Summer Special: North East में गुजारें खूबसूरत पल

जीवन में चाहे जितनी कठिनाइयां क्यों न आएं लेकिन अगर आप अपनों को समय देते हुए साथ साथ काम करते चलते हैं तो कठिनाइयां चुटकियों में कम हो जाती हैं. अपने बिजी शेड्यूल से कुछ वक्त चुराइए और आ जाइए नार्थ की इन रोमांटिक डेस्टिनेशन पर जाए. जहां आप और आपके पार्टनर के बीच सारी गलतफहमियां खत्म हो जायेंगी.

शादी एक ऐसा पवित्र बंधन जो न सिर्फ दो लोगों या दो परिवारों को मिलाती है बल्कि दो आत्माओं को भी एक करती है. एक ऐसी गांठ जो लाइफ को प्यार, आनंद और रोमांस की ओर ले जाता है. तो क्यों न इसमें एक ट्विस्ट डाले जो जाए एक सुखद रोमांटिक ट्रीप पर. पर ज्यादातर लोग यह सोचकर परेशान हो जाते हैं कि आखिर जाए कहां. अपने रोमांटिक ट्रीप को यादगार कैसे बनाए.

तो आइए हम आपको कुछ खूबसूरत और आनंद से भरे रोमांटिक डेस्टिनेशन के बारे में बताते हैं.

1. चंबा

उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित चंबा रोमांटिक युगल के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है. प्रदूषित रहित वातावरण, शांत व मनोरम दृश्य, ऊंचे ऊंचे घने वृक्ष, नदी का कल कल करता पानी और यहां की संस्कृति आपको बेहद भाएगी, कि आप यहीं रह जाने को सोचने लगेंगे. यह जगह सेब के बाग के लिए भी मशहूर है. यहां आप कई आकर्षक मंदिरों के भी दर्शन कर सकते हैं.

2. शिलांग

पूर्वोत्तर भारत का बेहद आकर्षक स्थल शिलांग पूर्वोत्तर भारत का स्कॉटलैंड कहा जाता है. हरे भरे घने जंगल, फूलों की मनमोहक खुशबु, बादलों को ओढ़े पहाड़ और पानी का शोर यह सब देखके मन शिलांग की खूबसूरती में डूब जाता है. यहाँ के लोग और उनकी संस्कृति भी बेमिसाल है, मेहमानों की खातिरदारी का यह एक जीत जागता उदाहरण हैं.

3. नुब्रा घाटी

लद्दाख के बाग के नाम से जाना जाने वाली नुब्रा घाटी फूलों की घाटी कहलाती है. गर्मियों के मौसम में यहाँ पीले रंग के जंगली गुलाब खिल जाते हैं. जिनका दृश्य बेहद लुभावना लगता है. साल बाहर बर्फ से ढकी रहने वाली नुब्रा घाटी कारण विश्व प्रसिद्ध है, जिसे हर युगल जोड़ा पसंद करती है, इसकी ठंडी वादिया प्यार को गर्म करने की कोशिश करती है.

4. सापूतारा

गुजरात का हरा भरा और गुजरात की नमी को समेटे हुए सापूतारा बेहद लोकप्रिय स्थल है. सापूतारा झील, सूर्यास्त प्वाइंट, सूर्योदय प्वाइंट, टाउन व्यू प्वाइंट और गांधी शिखर जैसे कई आकर्षणों के लिए जाना जाता है. यहाँ कई अभ्यारण,पार्क और बाग़ हैं- वंसदा नेशनल पार्क, पूर्णा अभयारण्य, गुलाब उद्यान, रोपवे सापूतारा आदि. यहाँ आकर आप प्राकृतिक नज़ारों का जी भर के लुफ्त उठा सकते हैं.

5. कलिम्‍पोंग

कलिम्‍पोंग भारत के पश्चिम बंगाल राज्‍य में स्थित यह आकर्षक स्थल हमेशा से ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है. आप अपने पार्टनर के साथ यहाँ आ सकते हैं क्यूंकि यहाँ की बर्फ से ढकी चोटियां एक बेहद रोमांटिक दृश्य प्रस्तुत करती हैं. यहाँ की ठंडी ठंडी हवा आपकी सारी थकान पल-भर में गायब कर देगी, जिससे आप एकदम रिलेक्स फील करेंगे.

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Travel Special: ट्रैवल फाइनैंस से बनाएं सुहाना सफर

पर्यटन आज शौक का नहीं, बल्कि लाइफस्टाइल का भी हिस्सा बन चुका है. रोजमर्रा की भागदौड़ भरी जिंदगी में जब नीरसता पनपने लगती है तो इंसान चंद दिनों के लिए मौजमस्ती पर निकलना चाहता है.

हम अपनी छुट्टियों को यादगार बना सकते हैं. किंतु उस के लिए जरूरी है कि हम अपने यात्रा के व्यय को नियंत्रित रखें, क्योंकि लापरवाही से खर्च कर के हम मस्ती तो कर लेंगे, लेकिन बाद में बजट बिगड़ने से उत्पन्न स्थिति अच्छेखासे मूड को खराब भी कर सकती है.

पहले बजट बनाएं

छुट्टियां मनाने के लिए प्राय: एकमुश्त रकम की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह खर्च दैनिक जीवन के सामान्य खर्चों से अलग होता है. इसलिए यह जरूरी है कि हौलिडे प्लान करते समय पहले आप अपना बजट बनाएं. तय करें कि आप कितने दिनों के लिए सफर पर जाना चाहते हैं और कितना पैसा खर्च करना चाहते हैं. उसी आधार पर आप को अपना डैस्टिनेशन चुनना होगा.

आप किस मोड से ट्रैवल करना चाहते हैं और किस तरह के होटल में ठहरना चाहते हैं यह भी आप को बजट के अनुरूप ही तय करना होगा. यदि आप सैल्फ कस्टमाइज टुअर पर जाना चाहते हैं, तो उस के लिए समय रहते बुकिंग करा कर कुछ रुपए बचा सकते हैं.

यदि आप पैकज टुअर पर जाना चाहते हैं तब भी आवश्यक है कि आप जल्द ही पैकेज की बुकिंग करा लें, क्योंकि टुअर औपरेटर जब देखते हैं कि टुअर की डिमांड अधिक है, तो वे भी कीमत बढ़ा देते हैं.

पर्यटन के दौरान रोज आप को कितना व्यय करना पड़ सकता है, बजट बनाते समय इस का अनुमान भी लगाना होगा, ताकि आप उतनी राशि नकद साथ रखें या क्रैडिट कार्ड अथवा एटीएम की लिमिट बचा कर रखें.

स्वतंत्र टुअर किफायती या पैकेज टुअर

अपने देश में घूमने के लिए अधिकतर लोग स्वतंत्र टुअर को प्राथमिकता देते हैं. जबकि विदेश यात्रा के लिए पर्यटक अकसर गु्रप पैकेज टुअर चुनना पसंद करते हैं.

अपने देश में भ्रमण करते समय आप को अपनी मुद्रा में व्यय करना होता है. आप पर्यटन स्थल के परिवेश और वहां की संस्कृति को समझते हैं. इसलिए आप असुरक्षित महसूस नहीं करते. ऐसे टुअर की स्वयं तैयारी करते हुए इसे अपने बजट में आसानी से सीमित रख सकते हैं.

जबकि विदेश यात्रा के मामले में विदेशी मुद्रा और वहां की भाषा, संस्कृति का अंतर होने के कारण पर्यटक के मन में असुरक्षा की भावना बनी रहती है. इसलिए विदेश यात्रा में लोगों को ग्रुप पैकेज टुअर में जाना अच्छा लगता है. वहीं विदेश में होटल, फूड आदि की स्वयं व्यवस्था करना पैकेज टुअर की तुलना में महंगा पड़ता है. इसलिए ट्रैवल फाइनैंस का प्रबंधन करते समय ध्यान रखें कि अपने देश में यात्रा करनी हो तो आप स्वतंत्र टुअर प्लान कर के पैसा बचा सकते हैं और विदेश यात्रा करनी हो तो पैकेज टुअर ज्यादा किफायती रहता है.

बुकिंग कराते समय

जब आप ने यह तय कर लिया कि आप स्वतंत्र टुअर पर निकलना चाहते हैं या पैकेज टुअर पर, तब आप उसी हिसाब से बुकिंग का माध्यम तय करें. खुद अपनी यात्रा मैनेज कर रहे हैं तो पहले ट्रेन या हवाईयात्रा की बुकिंग कराएं. यह आजकल आसानी से औनलाइन कराई जा सकती है.

ध्यान रखें, हवाईयात्रा के लिए आप जितना जल्दी बुकिंग कराएंगे टिकट उतना ही सस्ता मिलेगा. बहुत सी एअरलाइंस 30 दिन या 45 दिन पहले बुकिंग कराने पर बहुत सस्ता टिकट उपलब्ध कराती हैं. इस के अलावा आप लो कौस्ट एअरलाइन का विकल्प भी चुन सकते हैं.

छूट के मौसम में यात्रा करें

कम बजट में पर्यटन का ज्यादा आनंद लेना है, तो आप अपना कार्यक्रम पीक सीजन में न बनाएं. अब देखिए न पीक सीजन में ट्रैवल पैकेज हों या होटल पैकेज सभी महंगे होते हैं. लेकिन उन्हीं पैकेज पर औफ सीजन में 30 से 50% तक का डिस्काउंट मिलता है. तब कई लग्जरी पैकेज हमें अपने बजट के अनुरूप लगने लगते हैं. पीक सीजन में सैलानियों की तादाद ज्यादा होने लगती है, तो हर जगह कीमत शिखर पर पहुंचने लगती है.

विदेश यात्रा के मामले में भी सैलानियों को पीक सीजन से बचना चाहिए. ग्रीष्म अवकाश, न्यूईयर, क्रिसमस और शादियों के सीजन आदि के अलावा आप विदेश यात्रा का कार्यक्रम बनाएंगे तो यकीनन आप को सस्ते पैकेज मिलेंगे.

पहले घूमें फिर भुगतान करें

कभीकभी ऐसा भी हो सकता है कि आप ने बच्चों से छुट्टियों पर निकलने का वादा किया हुआ है, लेकिन हौलिडे प्लानिंग करते समय आप को लगता है कि उस समय आप अपनी बचत या रूटीन खर्चों से उतना पैसा नहीं निकाल पाएंगे. तब जरूरी नहीं कि आप छुट्टियां मनाने की योजना को स्थगित कर पूरे परिवार को निराश करें.

इस का सब से अच्छा विकल्प आज ट्रैवल लोन है. जी हां, लोगों के बढ़ते पर्यटन शौक को देखते हुए आज अनेक बैंक अपने ग्राहकों को ट्रैवल लोन देते हैं. यानी आप अपना ट्रैवल प्लान फाइनैंस करा कर आज घूमें और भविष्य में भुगतान करें. सामान्यतया यह लोन 1 वर्ष से 3 वर्ष के दौरान चुकाना होता है. ट्रैवल लोन ले कर आप अपने देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में भी घूम सकते हैं.

सफर के साथी क्रैडिट व ट्रैवल कार्ड

सफर की प्लानिंग करते समय डैस्टिनेशन पर बहुत से खर्चों और शौपिंग आदि के लिए आप के पास पर्याप्त राशि होनी चाहिए. लेकिन आजकल ज्यादा नकदी साथ रखना भी उचित नहीं है. ऐसे में क्रैडिट व डेबिट कार्ड आप के लिए बहुत सहायक होते हैं.

विदेश यात्रा के दौरान फंड की समुचित व्यवस्था बनाए रखने के लिए फौरेन करेंसी ट्रैवल कार्ड रखना अच्छा विकल्प है. एचडीएफसी, आईसीआईसीआई, ऐक्सिस बैंक आदि की बड़े शहरों की चुनिंदा शाखाओं में इस तरह के ट्रैवल कार्ड जारी किए जाते हैं.

ओवरसीज इंश्योरैंस

विदेश यात्रा की तैयारी में ओवरसीज इंश्योरैंस एक आवश्यक कदम होता है. इस के अंतर्गत कवर होने वाले जोखिम जानने के बाद आप भी समझ सकते हैं कि थोड़े से प्रीमियम का भुगतान कर हम कितने सारे अकस्मात हो सकने वाले खर्चों से अपनी सुरक्षा कर लेते हैं.

इस पौलिसी के अंतर्गत दुर्घटना या बीमारी के इलाज से जुड़े खर्चे मुख्य रूप से कवर होते हैं. इन के अतिरिक्त हवाईजहाज में ले जाने वाले सामान का खोना या मिलने में एकदो दिन का विलंब होने का खर्च, पासपोर्ट गुम होने पर किया जाने वाला खर्च, किसी चूक से होटल या शोरूम आदि में हुई क्षति की भरपाई या ऐसे ही किसी और आकस्मिक नुकसान की स्थिति में यह पौलिसी एक सुरक्षाकवच के समान काम आती है.

ओवरसीज इंश्योरैंस पौलिसी ज्यादा महंगी भी नहीं होती. यह पौलिसी 1 दिन से 180 दिन के बीच किसी भी अवधि की ली जा सकती है. इस का प्रीमियम पौलिसी की अवधि एवं यात्री की आयु पर निर्भर करता है.

यह पौलिसी सभी साधारण बीमा कंपनियों एवं प्राइवेट इंश्योरैंस कंपनियों द्वारा जारी की जाती है. इस के लिए आप को अपने पासपोर्ट की कौपी देनी होगी. कुछ कंपनियां इस के लिए यात्री की मैडिकल रिपोर्ट भी साथ मांगती हैं. यात्रा के दौरान पौलिसी के साथ उन संस्थानों के फोन नंबर एवं वैबसाइट पते अवश्य साथ रखने होंगे.

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अंगरेजों ने अपने शासनकाल के दौरान हिल स्टेशन तब बनवाए जब वे देश की भीषण गरमी से उकता गए. गरमी के मौसम में सुकून भरे पल किसी ठंडी और शांत जगह पर बिता सकें, इस के लिए देश के पहाड़ी इलाकों में खूबसूरत और मनोरम ठिकानों की तफ्तीश कर उन्होंने देश में हिल स्टेशन परंपरा शुरू की. आज भी देश में पर्यटन के सब से मजेदार और मनभावन ठिकाने यही स्टेशन माने जाते हैं. डलहौजी इसी हिल स्टेशन परंपरा का एक हिस्सा है.

डलहौजी का पर्वतीय सौंदर्य सैलानियों के दिल में ऐसी अनोखी छाप छोड़ देता है कि यहां बारबार आने का मन करता है. 19वीं सदी में अंगरेज शासकों द्वारा बसाया गया यह टाउन अपने ऐतिहासिक महत्त्व और प्राकृतिक रमणीयता के लिए जाना जाता है. यहां मौजूद शानदार गोल्फ कोर्स, प्राकृतिक अभयारण्य और नदियों की जलधाराओं के संगम जैसे अनेक स्थलों के आकर्षण में बंधे हजारों पर्यटक हर वर्ष आते हैं.

प्राकृतिक सौंदर्य, मनमोहक आबोहवा, ढेरों दर्शनीय स्थल और देवदार के घने जंगलों से घिरा डलहौजी, हिमाचल प्रदेश के चंपा जिले में स्थित खूबसूरत हिल स्टेशन है. यह स्थल 5 पहाडि़यों कठलौंग, पोट्रेन, तेहरा, बकरोटा और बलून पर बसा है.

समुद्रतल से 2 हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह टाउन 13 किलोमीटर के छोटे से क्षेत्रफल में फैला है. एक ओर दूरदूर तक फैली बर्फीली चोटियां तो दूसरी ओर चिनाब, व्यास और रावी नदियों की कलकल करती जलधारा, मनमोहक नजारा पेश करती है.

पंचपुला और सतधारा

डलहौजी से केवल 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, पंचपुला. इस का नाम यहां पर मौजूद प्राकृतिक कुंड और उस पर बने छोटेछोटे 5 पुलों के आधार पर रखा गया है. यहां से कुछ दूरी पर एक अन्य रमणीय स्थल सतधारा झरना स्थित है. किसी समय तक यहां 7 जलधाराएं बहती थीं. लेकिन अब केवल एक ही धारा बची है. बावजूद इस के, इस झरने का सौंदर्य बरकरार है. माना जाता है कि सतधारा का जल प्राकृतिक औषधीय गुणों से भरपूर और अनेक रोगों का निवारण करने की क्षमता रखता है.

खजियार का सौंदर्य

डलहौजी हिल स्टेशन की यात्रा बगैर खजियार देखे अधूरी ही लगती है. यह स्थल डलहौजी से 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. दरअसल, खजियार उस मनमोहक झील के लिए प्रसिद्ध है जिस का आकार तश्तरीनुमा है. यह स्थल देवदार के लंबे और घने जंगलों के बीच स्थित है.

गोल्फ खेलने के शौकीन पर्यटकों को यह स्थान विशेषरूप से पसंद आता है, क्योंकि यहां एक शानदार गोल्फ कोर्स भी मौजूद है. इस के साथ ही व्यास, रावी और चिनाब नदियों का अद्भुत संगम यहां से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित डायनकुंड में देखा जा सकता है. यह डलहौजी का सब से ऊंचा स्थल है.

चंबा का दिल कहे जाने वाले हरियाले चैगान के एक छोर पर बने हरिराय मंदिर में अद्वितीय कलाकौशल की झलक देखने को मिलती है. यहीं पर भूरी सिंह संग्रहालय है, जहां ऐतिहासिक दस्तावेज, पेंटिंग्स, पनघट शिलाएं, अस्त्रशस्त्र और सिक्के संग्रहीत हैं.

आकर्षक है डलहौजी का जीपीओ इलाका

डलहौजी का जीपीओ इलाका भी काफी चहलपहल भरा माना जाता है. जीपीओ से करीब 2 किलोमीटर दूर सुभाष बावली है. कहा जाता है कि इस जगह पर सुभाष चंद्र बोस करीब 5 महीने रुके थे. इस दौरान वे इसी बावली का पानी पीते थे. यहां से बर्फ से ढके ऊंचे पर्वतों का विहंगम नजारा देखते ही बनता है. सुभाष बावली से लगभग आधा किलोमीटर दूर स्थित जंध्री घाट में मनोहर पैलेस ऊंचेऊंचे चीड़ के पेड़ों के बीच स्थित है. यह जगह चंबा के पूर्व शासक के पैलेस के लिए भी प्रसिद्ध है.

कब जाएं

डलहौजी का मौसम वैसे तो साल भर सुहाना रहता है, लेकिन सब से उपयुक्त समय अप्रैल से जुलाई और अक्तूबर से दिसंबर के बीच का माना जाता है.

-राजेश कुमार, अशोक वशिष्ठ

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Travel Special: घूमने जाते समय मददगार साबित होंगे ये 15 टिप्स

बच्चों के ग्रीष्मावकाश प्रारम्भ हो चुके हैं और 2 वर्ष के कोरोना काल के बाद अब सभी अपने मनपसन्द पर्यटन स्थलों पर घूमने जाने का प्लान बना रहे हैं. घूमने जाने से पूर्व हमें 2 प्रकार की तैयारियां करनी होती हैं एक तो सफर के लिए दूसरे घर के लिए ताकि जब हम घूमकर आयें तो घर साफ़ सुथरा और व्यवस्थित मिले और आते ही हमें काम में न जुटना पड़े. यदि आप भी घूमने जाने का प्लान बना रहे हैं तो इन टिप्स आपके लिए बेहद मददगार हो सकते हैं-

1-आजकल अधिकांश पर्यटन स्थलों पर घूमने के लिए सभी बुकिंग्स ऑनलाइन होती है, भीडभाड से बचने और अपने सफर को आनन्ददायक  बनाने के लिए आप अपने रुकने और घूमने की सभी बुकिंग्स ऑनलाइन ही करके जायें.

2-जो भी बुकिंग्स आपने ऑनलाइन की हैं उनके या तो प्रिंट निकाल लें अथवा रसीद को स्केन करके अपने मोबाईल में सेव कर लें इसके अतिरिक्त घर से निकलने से पूर्व अपने होटल या रिजोर्ट में फोन काल अवश्य कर लें ताकि आपके पहुंचने पर आपको अपना रूम साफ सुथरा मिले.

3-यदि आपके बच्चे 10 वर्ष से अधिक उम्र के हैं तो परिवार के सभी सदस्यों के बैग्स अलग अलग रखकर उन्हें अपने बैग्स की जिम्मेदारी सौंप दें इससे आप फ्री होकर घूमने का आनन्द ले सकेंगी.

4-परिवार के सभी सदस्यों के आधार कार्ड और वेक्सिनेशन सर्टिफिकेट अपने मोबाईल में सेव करके रखें ताकि आवश्यता पड़ने पर आप उनका उपयोग कर सकें.

5-यदि आपका सफर लम्बा है तो अपने मोबाईल, टैब या लेपटॉप में अपनी मनपसन्द मूवी या गाने डाऊनलोड कर लें ताकि आपको सफर में बोरियत न हो.

6-आजकल फोटो खींचने के लिए मोबाईल का ही उपयोग किया जाता है, सफर पर जाने से पूर्व अपने मोबाईल की गेलरी में से सभी वीडिओ और फोटोज को लेपटॉप में ट्रांसफर कर लें ताकि घूमने के दौरान आप भरपूर फोटोज ले सकें.

7-अपने साथ पावर बैंक, अतिरिक्त मेमोरी कार्ड भी रखें ताकि आपका मोबाईल हर समय अपडेट रहे.

8-सफर की तैयारियों के दौरान अक्सर घर अव्यवस्थित हो जाता है और फिर वापस आकर अस्त व्यस्त घर को देखकर आपका ही मूड ऑफ हो जाता है इससे बचने के लिए आप जाने से पूर्व घर को भली भांति व्यवस्थित करके जायें ताकि वापस आकर आप चैन से आराम फरमा सकें.

9-जहां तक सम्भव हो किचिन के सिंक में जूठे बर्तन न छोड़ें साथ किचिन के प्लेटफोर्म और गैस स्टैंड की अच्छी तरह सफाई करके ही जायें ताकि लौटने पर आपको बदबू और काकरोच आदि का सामना न करना पड़े.

10-फ्रिज में गर्म करके रखा गया दूध 10 से 15 दिन तक खराब नहीं होता, वापस आने पर आपको चाय और बच्चों के लिए दूध आदि के लिए परेशान न होना पड़े इसलिए फ्रिज में ढककर दूध रखकर जायें.

11-टमाटर, पालक, धनिया, पुदीना, कच्ची केरी आदि को मिक्सी में पीस लें और इस प्यूरी को आइस ट्रे में फ्रिज में जमा दें, इनके अतिरिक्त जो भी सब्जियां उन्हें या तो हटा दें अथवा किसी कामगार को दे दें.

12-घर के बेड, सोफा, डायनिंग टेबल आदि पर पुरानी चादर डाल दें वापस आकर केवल चादर हटाकर आप अपना दैनिक कार्य प्रारम्भ कर सकें.

13-यदि आप अपनी गाड़ी से जा रहे हैं तो फ़ास्ट टैग अवश्य लगवाएं अन्यथा आपको दोगुना टोल टैक्स देना पड़ सकता है. फ़ास्ट टैग आर टी ओ आफिस, बैंक या किसी भी नागरिक सुविधा केंद्र से आसानी से प्राप्त किया जा सकता है.

14-अपने साथ हैण्ड सेनेटाइजर, मास्क, उल्टी, दस्त, बुखार, सिरदर्द की आवश्यक दवाइयां तथा ग्लूकोज अवश्य ले जायें साथ ही तरल पदार्थों का भरपूर सेवन करके स्वयं को हाईड्रेट रखें.

15-यदि सम्भव हो तो अपने साथ कुछ खाद्य पदार्थ घर से बनाकर ले जायें क्योंकि कई बार रास्ते में कुछ भी नहीं मिलता और सफर में काम के अभाव में भूख तो लगती ही है.

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घूमने का शौक हर किसी को होता है. भारत में अनेक ऐसी जगहें हैं, जो खूबसूरती से भरी होने के साथसाथ वहां पर तरहतरह के ऐडवैंचर स्पोर्ट्स का आयोजन किया जाता है.

आइए, जानते हैं ऐसी जगहों के बारे में:

ऋषिकेश फौर राफ्टिंग लवर्स

अगर आप पानी के साथ अठखेलियां करने को बेचैन हैं, तो आप के लिए बेहतरीन रिवर राफ्टिंग डैस्टिनेशन है ऋषिकेश. यह जगह उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल में स्थित है. यहां विदेशों से भारत भ्रमण करने आए लोग भी इस राफ्टिंग का मजा जरूर लेते हैं क्योंकि यह ऐडवैंचर है ही इतना मजेदार क्योंकि रबड़ की नाव में सफेद वाटर में घुमावदार रास्तों से गुजरना किसी रोमांच से कम नहीं होता है.

इस की खासीयत यह है कि अगर आप को तैरना नहीं भी आता तो भी आप गाइड की फुल देखरेख में इस ऐडवैंचर का लुत्फ उठा सकते हैं.

इन 4 जगहों पर होती है राफ्टिंग:  ब्रह्मपुरी से ऋषिकेश- 9 किलोमीटर, शिवपुरी से ऋषिकेश- 16 किलोमीटर, मरीन ड्राइव से ऋषिकेश- 25 किलोमीटर, कौड़ीयाला से ऋषिकेश- 35 किलोमीटर.

बैस्ट मौसम: यदि आप राफ्टिंग के लिए ऋषिकेश आने का प्लान कर रहे हैं तो मार्च से मई के मिड तक का समय अच्छा है.

बुकिंग टिप्स: आप राफ्टिंग के लिए बुकिंग ऋषिकेश जा कर ही कराएं क्योंकि वहां जा कर आप रेट्स को कंपेयर कर के अच्छाखासा डिस्काउंट ले सकते हैं. जल्दबाजी कर के बुकिंग न करवाएं वरना यह आप की जेब पर भारी पड़ सकता है. वैसे आप ₹1,000 से ₹1,500 में राफ्टिंग का लुत्फ उठा सकते हैं और अगर आप को ग्रुप राफ्टिंग करनी है तो इस पर भी आप डिस्काउंट ले सकते हैं.

इस बात का ध्यान रखें कि राफ्ट में गाइड वीडियो बनाने के पैसे अलग से चार्ज करता है. ऐसे में अगर इस की जरूरत हो तभी वीडियो बनवाएं वरना राफ्टिंग का लुत्फ ही उठाएं.

पैराग्लाइडिंग इन कुल्लूमनाली

आसमान की ऊंचाइयों को करीब से देखने का जज्बा हर किसी में नहीं होता और जिस में होता है वह खुद को पैराग्लाइडिंग करने से रोक नहीं पाता. तभी तो देश में पैराग्लाइडिंग ऐडवैंचर की कमी नहीं है और इस ऐडवैंचर के शौकीन लोग इसे करने के लिए कहीं भी पहुंच जाते हैं. इस में एक बहुत ही फेमस जगह है मनाली, जो भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के कुल्लू जिले में स्थित है. वहां की ब्यूटी को देखने के लिए हर साल हजारों लोग आते हैं.

यह जगह अपनी सुंदरता के लिए ही नहीं बल्कि ऐडवैंचर के लिए भी जानी जाती है. इसलिए पैराग्लाइडिंग प्रेमी होने पर वहां जाना न भूलें क्योंकि वहां आप को शौर्ट पैराग्लाइडिंग राइड से ले कर लौंग पैराग्लाइडिंग राइड तक का लुत्फ उठाने का मौका जो मिलेगा.

इन जगहों पर होती है पैराग्लाइडिंग: सोलंग वैली- 15 किलोमीटर फ्रौम मनाली, (पैराग्लाइडिंग डुरेशन- 20 मिनट), फटरु- लोंगर फ्लाइट टाइम, (पैराग्लाइडिंग डुरेशन- 30 से 35 मिनट), बिजली महादेव- लोंगर फ्लाइट टाइम, (पैराग्लाइडिंग डुरेशन- 35 से 40 मिनट), कांगड़ा वैली- (पैराग्लाइडिंग डुरेशन- 15 से 25 मिनट), मरही- यहां पैराग्लाइडिंग 3000 मीटर की ऊंचाई से होती है, जो काफी ऊंची है. (पैराग्लाइडिंग डुरेशन- 30-40 मिनट).

बैस्ट मौसम: मई से अक्तेबर. मौसम खराब होने पर पैराग्लाइडिंग नहीं करवाई जाती है. इस ऐडवैंचर को एक्सपर्ट की देखरेख में कराया जाता है, इसलिए पहली बार करने वालों को भी इस से डरना नहीं चाहिए.

बुकिंग टिप्स: आप पैराग्लाइडिंग के लिए बुकिंग जहां आप ठहरे हुए हैं, वहां आसपास से पूछ कर करें या फिर जिस जगह पर आप को इन ऐडवैंचर को करना है, वहां अच्छी तरह पूछ कर रेट्स को कंपेयर कर के आप अपनी बातों से हैवी डिस्काउंट भी ले सकते हैं. आप शौर्ट व लौंग फ्लाई के हिसाब से ₹1,000-₹2,500 में इस ऐडवैंचर का लुत्फ उठा सकते हैं. इस बात का ध्यान रखें कि तुरंत बुकिंग न कराएं क्योंकि ज्यादा जल्दी आप की पौकेट पर भारी पड़ सकती है.

स्कूबा डाइविंग अंडमान

अंडमान के बीच, नीला पानी, चारों तरफ फैली खूबसूरती हर किसी का मन मोह लेती है, साथ ही यहां के अंडरवाटर ऐडवैंचर्स तो ऐडवैंचर लवर्स की जान बन गए हैं. किसे पसंद नहीं होगा कि समुद्र के अंदर जा कर कोरेल, औक्टोपस व बड़ी मछलियों को नजदीक से देखने का अनुभव करना. तो अगर आप भी हैं स्कूबा डाइविंग के दीवाने तो इस जगह को भूल कर भी मिस न करें. यह वन टाइम ऐक्सपीरियंस जीवनभर आप को याद रहेगा.

इन जगहों पर होती है स्कूबा डाइविंग

हैवलौक आइलैंड: क्लीयर वाटर ऐंड व्यू औफ वाइब्रेंट फिशेज. सेफ ऐंड स्ट्रैस फ्री ऐडवैंचर. 30 मिनट राइड इन ₹2,000 से ₹2,500.

नार्थ बे आइलैंड: ब्लू वाटर विद फुल औफ कोरल्स.

नील आइलैंड: वाटर डैप्थ इज मीडियम, प्राइज इज लिटिल हाई. वंडरफुल प्लेस फौर स्कूबा डाइविंग.

बारेन आइलैंड: यह आइलैंड स्कूबा के लिए बैस्ट है, लेकिन महंगा है.

बैस्ट मौसम: अक्तूबर से मिड मई. मौनसून के मौसम में अंडरवाटर ऐक्टिविटीज बंद कर दी जाती हैं.

बुकिंग टिप्स: आप पीएडीआई सर्टिफाइड डाइवर्स से ही स्कूबा डाइविंग को प्लान करें क्योंकि इस से सेफ्टी के साथसाथ आप इस राइड को अच्छी तरह ऐंजौय कर पाएंगे. आप अपने पैकेज के साथ इसे बुक कर सकते हैं क्योंकि अधिकांश पैकेजस में यह कौंप्लिमेंट्री होता है. कोशिश करें कि इस पर अच्छाखासा डिस्काउंट लें ताकि मजा भी ले सकें और पौकेट पर भी ज्यादा बो झ न पड़े.

स्कीइंग गुलमर्ग

क्या आप की स्कीइंग में रुचि है, लेकिन आप यही सोच रहे हैं कि किस जगह जा कर अपने स्कीइंग के ऐडवैंचर को पूरा करें तो आप को बता दें कि गुलमर्ग कश्मीर से 56 किलोमीटर दूर एक खूबसूरत हिल स्टेशन है. यहां की चोटियां बर्फ से ढकी होने के कारण यह जगह बेहद खूबसूरत दिखती है. यह आप की ख्वाहिश को पूरा कर सकती है.

यहां करें स्कीइंग: गुलमर्ग, बारामुला जिला.

फर्स्ट फेज: स्कीइंग के लिए कोंगडोरी, जो 1476 फुट ढलान है, यह स्कीइंग के शौकीनों को रोमांचकारी अनुभव प्रदान करती है.

सैकंड फेज: अपरवाट पीक, जो 2624 फुट की दूरी पर है, जो अनुभवी स्कीइंग के शौकीनों में अधिक लोकप्रिय है.

बैस्ट मौसम: दिसंबर टू मिड फरवरी. वैसे मार्च से मई महीनों का मौसम भी काफी बेहतरीन रहता है.

बुकिंग टिप्स: आप औनलाइन बुकिंग.कौम से बुक करने के साथसाथ वहां जा कर भी बुक कर सकते हैं. इक्विपमैंट की कौस्ट ₹700 से ₹1,000 के बीच होता है और अगर आप इंस्ट्रक्टर लेते हैं तो वह आप से अलग से दिन के हिसाब से ₹1,200 से ₹2,000 तक लेता है. सब का रेट अलगअलग है, इसलिए अच्छी तरह रिसर्च कर के ही बुकिंग करें.

स्काई डाइविंग मैसूर

भारत के कर्नाटक राज्य के मैसूर जिले में स्थित एक नगर है, जो स्काई डाइविंग के लिए खासा प्रचलित है. तभी यहां स्काई डाइविंग करने के शौकीन खुद को यहां लाए बिना रह नहीं पाते हैं. मैसूर की चामुंडी हिल्स स्काई डाइविंग के लिए काफी फेमस है. लेकिन यहां स्काई डाइविंग का लुत्फ उठाने के लिए आप को पहले एक दिन की ट्रेनिंग लेनी होगी.

यहां आप टेनडेम स्टेटिक व ऐक्ससेलरेटेड फ्रीफाल्स जंप्स में से किसी का भी चुनाव कर सकते हैं. दोनों ही काफी रोमांचकारी होते हैं. टेनडेम स्टेटिक नए लोगों के लिए अच्छी है क्योंकि इस में प्रशिक्षित स्काई डाइवर आप के साथ एक ही रस्सी से बंधा होता है और पूरा कंट्रोल उस के हाथ में ही होता है. लेकिन ऐक्ससेलरेटेड फ्रीफाल्स जंप काफी मुश्किल माना जाता है. इस में आप के साथ इंस्ट्रक्टर नहीं होता. अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप किस का चुनाव करें.

बैस्ट मौसम: जब भी मौसम खुला हुआ हो, तो आप इस का लुत्फ उठा सकते हैं. वैसे सुबह 7 से 9 बजे का समय बैस्ट है.

बुकिंग टिप्स: आप इस के लिए मैसूर की स्काई राइडिंग से जुड़ी वैबसाइट्स की मदद ले सकते हैं या फिर वहां पहुंच कर औफलाइन बुकिंग भी अच्छा विकल्प है. आप को स्काई डाइविंग के लिए ₹30 से ₹35 हजार खर्च करने पड़ सकते हैं. इसलिए अगर आप ऐडवैंचर करने के लिए तैयार हैं तो इन जगहों पर जाना न भूलें.

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Travel Special: रोमांच से भरपूर ओडिशा

यदि आप किसी ऐसी जगह घूमने जाना चाहते हैं, जहां भीड़भाड़ से दूर शांत समुद्री किनारा हो, घने जंगल हों तथा पारंपरिक वास्तुकला के प्रतीकों की भी भरमार हो तो आप को ओडिशा जाना चाहिए. प्राचीन कला और परंपरा की विरासत से, संपन्न इस राज्य के निवासी बहुत ही मिलनसार और भले हैं.

ओडिशा के 3 प्रमुख स्थान भुवनेश्वर, पुणे तथा कोणार्क पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं. भुवनेश्वर की ख्याति सिर्फ इसलिए नहीं है कि यह ओडिशा की राजधानी है, बल्कि इसलिए भी है कि यह अपनी वास्तुकला का महत्त्वपूर्ण केंद्र है. सदियों पूर्व कोटिलिंग नाम से पहचानने वाला यह नगर मंदिरों, तालाबों और  झीलों का शहर ही कहा जाता है.

भुवनेश्वर नगर के 2 भागों में बांट कर देखा जा सकता है. प्रथम आधुनिक भुवनेश्वर और द्वितीय प्राचीन भुवनेश्वर. आधुनिक भुवनेश्वर वह है जो हाल के दशकों में राजधानी के रूप में निखर कर सामने आया है और प्राचीन भुवनेश्वर वह है जो इस आधुनिक भुवनेश्वर से थोड़ा अलग दिखता है. प्राचीन भुवनेश्वर में ही ओडिशा की संस्कृति सुरक्षित व संरक्षित देखने को मिलती है. आधुनिक भुवनेश्वर अन्य प्रदेशों की अन्य राजधानियों जैसा ही है.

लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर का सब से बड़ा मंदिर है. इसे भुवनेश्वर मंदिर भी कहते हैं. इस का कारण यह है कि इस मंदिर में विशाल शिवलिंग है. मंदिर के प्रांगण में भगवती का भी एक मंदिर है. मंदिर का विशाल शिवलिंग ग्रेनाइट पत्थर का बना है. स्थापत्य कला की दृष्टि से यह मंदिर बेजोड़ है.

नंदन कानन पार्क

भुवनेश्वर में नंदन कानन पार्क भी है. 400 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला यह हराभरा पार्क है जिस में छोटी सी  झील, चिडि़याघर व अभयारण्य है.

ओडिशा का राज्य संग्रहालय नए और पुराने भुवनेश्वर के मध्य बना है. इस संग्रहालय में मध्यकालीन दुर्लभ ताम्र पत्रों की पांडुलिपियां, कलाकृतियां, शिलालेख आदि का संग्रह किया गया है.

भुवनेश्वर की धौली पहाड़ी सम्राट अशोक के हृदयपरिवर्तन की कहानी कहती है. यहीं कलिंग युद्ध के बाद हृदयपरिवर्तन होने पर अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया था. इस पहाड़ी पर एक शांति स्तूप बना है. स्तूप के चारों ओर बुद्ध की 4 विशाल प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं. पहाड़ी की ढलान पर मार्ग के दोनों ओर काजू के वृक्षों की हरियाली मनमोहक लगती है. पहाड़ी के निचले भाग में दूर तक नारियल के बाग फैले नजर आते हैं.

ऐतिहासिक स्थल

शिशुपालगढ़ में ओडिशा की पुरानी राजधानी थी. यह एक ऐतिहासिक स्थल है. यहां प्राचीनकाल पुरातात्विक अवशेष देखे जा सकते हैं

भुवनेश्वर में ही खंडगिरि की गुफाएं हैं. खंडगिरि जैनियों का पवित्र तीर्थ है. यहां सघन वृक्षों की बहुतायत है. पहाड़ी पर 2000 वर्र्ष पुरानी अनेक गुफाएं हैं, जिन में कभी जैन साधू निवास करते थे. यहां जैन आचार्य पारसनाथ का मंदिर है. यह मंदिर हरेभरे वृक्षों के मध्य बना है. एक ही पत्थर पर तराश कर यहां शिल्पियों ने 24 तीर्थकरों की मूर्तियां गढ़ी हैं.

खंडगिरि की पहाडि़यों के निकट ही उदयगिरि की गुफाएं हैं. उदयगिरि बौद्धों का पवित्र स्थान है. यहां बौद्धकालीन अनेक गुफाएं हैं, जिन का निर्माण पहाडि़यों को काट कर किया गया था. प्रत्येक गुफा में कई कोठरियां, आंगन और बरामदे हैं. इन में बौद्ध भिक्षु रहते थे.

जगन्नाथपुरी

यों तो पुरी की गणना भारत के चारों धामों में होती है, किंतु हरेभरे बागों, सदाबहार वनों, लहलहाती  झीलों, हिलोरें लेता समुद्र आदि ने पुरी को प्रकृति का सुंदर पर्यटन स्थल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. समुद्र तट तो विश्व के सुंदरतम समुद्र तटों में से एक है. पुरी अंधविश्वास के चलते भक्तों के आकर्षण का केंद्र है जहां पाखंड खूब फूलताफलता है.

पुरी का प्राचीन नाम पुरुषोत्तम क्षेत्र और श्री क्षेत्र भी मिलता है. 12वीं शताब्दी में नरेश चोड़गंग ने यहां जगन्नाथ का एक विशाल मंदिर बनवाया था, तभी से यह जगन्नाथ पुरी के नाम से प्रसिद्ध है, जिसे आजकल संक्षिप्त में ‘पुरी’ कहा जाता है.

जगन्नाथ मंदिर शिल्प की दृष्टि से बेहद आकर्षक एवं महत्त्वपूर्ण है, मंदिर के 4 द्वार हैं. पूरब का सिंह द्वार सब से अधिक सुंदर है जिस की दोनों ओर 2 सिंह मूर्तियां हैं. सिंह द्वार के सामने काले पत्थर का सुंदर गरुड़ स्तंभ है, जिस पर सूर्य सारथी अरुण की प्रतिमा है. मंदिर का दक्षिण में अश्व द्वार, उत्तर में हाथी द्वार और पश्चिम में बाघ द्वार है. द्वारों का नामकरण उन के निकट स्थित जानवरों की मूर्तियों के नाम पर किया गया है. मंदिर में पहले दलितों और शूद्रों का प्रवेश मना था पर अब कोई रोकटोक नहीं है.

मुख्य मंदिर के अंदर पश्चिम की ओर एक रत्नवेदी पर सुदर्शन चक्र है, स्थापत्य कला की दृष्टि से मंदिर के 4 भाग हैं- पहला भाग भोग मंडप है, दूसरा भाग नृत्य मंडप है, जहां पर भक्तगण नृत्य करते हैं, तीसरा भाग जगमोहन मंडप कहलाता है, जहां दर्शक बैठते हैं. इस मंडप की दीवारों पर नरनारी की अनेक कलाकृतियां बनी हैं. चौथा भाग मुख्य मंडप है. ये चारों मंडप परस्पर मिले हुए हैं ताकि एक से दूसरे मंडप में आसानी से प्रवेश किया जा सके. मंदिर की व्यवस्था में हजारों लोग रहते हैं और मंदिर को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपयों की आय होती है. मंदिर में प्रवेश करते समय पंडों के चंगुल से बच कर रहें.

सुनहरी धूप में चमकता पुरी का समुद्र तट बेहद लुभावना लगता है. यहां सूर्योदय और सूर्यास्त के समय लहरों में किरणों की  िझलमिलाहट का अनोखा आनंद है.

भुवनेश्वर से पुरी के लिए बसें मिलती हैं पर टैक्सी करना ही ज्यादा ठीक है.

कोणार्क

ओडिशा के आकर्षक शांत और रेतीले समुद्र तट पर एक नदी बहती है चंद्रभाग. बलखाती चंद्रभागा के एक तट पर स्थित है कोणार्क. कोणार्क ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टिकोण से बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है.

कोणार्क का सूर्य मंदिर तो उड़ीसी शिल्प कला का चरम उत्कर्ष है, जिसे देख कर लगता है कि मानों पत्थर में जीवन का संचार कर दिया गया हो. संपूर्ण सूर्र्य मंदिर के निर्माण में सूर्र्य के पौराणिक स्वरूप की कल्पना को रूपायित किया गया है. इस मंदिर का शिलान्यास 9वीं सदी में केसरी वंश के किसी राजा ने किया था. तत्पश्चात 13वीं शताब्दी में गंगवंशीय राजा नरेश सिंह देव (प्रथम) ने उस का पुनरुद्धार करा कर वर्तमान रूप दिया था.

सूर्य मंदिर के नाट मंडप में अनेक अलंकृत मूर्तियां उकेरी गई हैं. नृत्य की मुद्रा में चित्रित इन मूर्तियों को देखकर लगता है मानों उन के पैरों के नूपुरों की ध्वनि अभीअभी स्तब्ध हुई हो. इसी मंडप में गजशादूर्ल की विचित्र रचनाएं भी दर्शनीय हैं. मंदिर के गर्भगृह में भी विभिन्न कलाकृतियां हैं, जिन में जीवजंतुओं देव, किन्नर, गंधर्व, अप्सराओं आदि की मूर्तियों के अलावा मिथुनरत नरनारी की भी उत्तेजक मुद्राएं शिल्पित की गई हैं.

अन्य उल्लेखनीय कलाकृतियों में प्रेम और युद्ध, शिकार और शिकारी, जंगली हाथियों को पकड़ना सद्शिक्षा, बालजन्म, सुरा सुंदरी आदि की आकर्षक मुद्राएं अंकित हैं. अगर गाइड अच्छा हो और बच्चे साथ न हों तो मूर्तियों का विवरण काफी रोचक हो जाता है.

कोणार्क मंदिर के निकट ही कोणार्क म्यूजियम है. इस म्यूजियम में दुर्लभ कलाकृतियों का संग्रहीत किया गया है. यह म्यूजियम भारत सरकार के पुरातत्व विभाग द्वारा स्थापित किया गया है.

कोणार्क के शांत रेतीले समुद्र तट पर पिकनिक का आनंद लिया जा सकता है. यह तट कोणार्क मंदिर से करीब 3 किलोमीटर दूर है. यहां से सूर्योदय का लुभावना दृश्य देखा जा सकता है.

कैसे जाएं

भुवनेश्वर एयरपोर्ट ठीकठाक है और हर एयरलाइंस से जुड़ा है. रेल द्वारा भी पहुंचा जा सकता है. रेल पुरी तक भी जाती है. यदि पुरी उतरें तो बस द्वारा 2 घंटे में भुवनेश्वर आ सकते हैं. कोणार्क भुवनेश्वर से 65 किलोमीटर और पुरी से 35 किलोमीटर दूर है. भुवनेश्वर दिल्ली से 2063 कि.मी. चैन्नई से 1222 किलोमीटर, हैदराबाद से 1170 किलोमीटर व कोलकाता से 469 किलोमीटर दूर है. राष्ट्रीय राजमार्ग 5 द्वारा भुवनेश्वर कोलकाता, रांची, रायपुर, दुर्गापुर, विशाखापट्टनम तथा टाटानगर से जुड़ा है. आजकल सड़कें अच्छी हैं. टैक्सी करने या अपनी कार हो तो पर्यटन का आनंद कई गुना बढ़ जाता है.

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Travel Special: 5 रोमांटिक हनीमून डैस्टिनेशन

हर कपल की यह ख्वाहिश होती है कि उन का हनीमून यादगार बने, जिस में वे हाथ में हाथ डाल कर एकदूसरे के साथ रोमांटिक पल बिताएं. लाइफ में हनीमून पीरियड सिर्फ एक बार आता है, जिसे हर कपल जीभर कर जी लेना चाहता है. लेकिन उस के लिए जरूरी है ऐसे हनीमून डैस्टिनेशन का चयन करने की, जहां लवबर्ड्स भीड़भाड़ से दूर एकदूसरे के साथ रोमांटिक व इंटीमेट पल बिता सकें.

तो आइए, जानते हैं ऐसी जगहों के बारे में, जो आप के हनीमून के लिए बैस्ट रहने वाली हैं:

सिक्किम

अगर आप हनीमून के लिए किसी शांत, रोमांटिक व खूबसूरत जगह की तलाश कर रहे हैं तो सिक्किम उन में से वन औफ द बैस्ट जगह है क्योंकि हिमालय की वादियों में बसा सिक्किम अपनी नैचुरल ब्यूटी के लिए जाना जाता है. यहां ग्रीन वैली, ऊंचेऊंचे पहाड़, चहकती नदियां, मोनेट्री, स्नो फाल, यहां का सुहावना मौसम हर तरह से लवबर्ड्स के लिए परफैक्ट जगह है.

टोसोमगो लेक: अगर आप ऐडवैंचर करने के शौकीन हैं तो इस जगह को बिलकुल भी मिस न करें क्योंकि बर्फ से ढकी चोटियों के साथ यहां खूबसूरत  झील है, जिस के किनारे बैठ कर आप अपने पार्टनर के साथ रोमांटिक पलों का आनंद उठा सकते हैं. साथ ही  झील के किनारे याक की खूबसूरत सवारी पर बैठ कर कपल एकदूसरे की नजदीकी का मजा लेने के साथसाथ इन यादगार पलों को कैमरे में भी कैद कर सकते हैं.

गंगटोक: सिक्किम में गंगटोक एक ऐसा पर्यटन स्थल है, जहां किसी भी कपल को जाने पर कभी पछतावा नहीं होगा क्योंकि यहां खूबसूरत नजारों से ले कर ऐडवैंचर व स्ट्रीट फूड तक का लुत्फ उठाया जा सकता है. यह जगह ऐडवैंचर लवर्स के लिए भी काफी अच्छी है. यहां टेस्टा रिवर में आप रिवर राफ्टिंग का लुत्फ भी उठा सकते हैं.

वहीं आप गंगटोक के नजदीक बलिमान दर्रा, बुलबुले दर्रा आदि में आप पैराग्लाइडिंग का मजा ले कर पहाड़ों, आसमान को नजदीक से देखने का मजा ले सकते हैं. ये ऐडवैंचर दिल को छू जाने वाले हैं. गंगटोक के लोकल प्लेसेज को अपने पार्टनर के साथ विजिट करने के लिए ठंडीठंडी हवाओं व खूबसूरती का मजा लेते हुए साइकिल टूर कर सकते हैं.

लाचेन लाचुंग: सिक्किम का यह बेहद खूबसूरत शहर लाचुंग, उत्तर सिक्किम जिले में स्थित है. लाचुंग, लाचेन और लाचुंग नदियों के संगम पर स्थित है, जो आगे जा कर तीस्ता नदी में मिल जाता है. यह जगह इतनी अधिक खूबसूरत है कि पर्यटक खुद को यहां लाए बिना नहीं रह पाते हैं. यहां का मुख्य अट्रैक्शन सुंदर  झरने, नदियां व सेब के बगीचे सब का ध्यान आकर्षित करते हैं.

बैस्ट टाइम टु विजिट: स्प्रिंग सीजन व विंटर सीजन

कितने दिन: 6-7 डेज.

नजदीकी एयरपोर्ट: बागडोगरा एयरपोर्ट शहर के सब से नजदीक है.

नजदीकी रेलवे स्टेशन: जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी.

बजट: ₹30 से 35 हजार.

लोकल फूड: अगर आप हनीमून के लिए सिक्किम आने का प्लान कर रहे हैं तो यहां का फेमस लोकल फूड, जिस में मोमोज, मसूरिया करी, किनेमा सोयाबीन डिश, थुक्पा आदि जरूर ट्राई करें.

अंडमान ऐंड निकोबार आइलैंड

अगर आप और आप के पार्टनर को सी बहुत पसंद है तो आप गोवा, केरल का तो पहले ही विजिट कर आए हैं. आप के लिए कूल व रिलैक्सिंग सा हनीमून डैस्टिनेशन है अंडमान ऐंड निकोबार आइलैंड, जहां बीचेस पर पार्टनर के साथ मस्ती करने के साथ आप अंडरवाटर स्पोर्ट्स गेम्स का भरपूर लुत्फ उठा सकते हैं. यह दीपसमूह  बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के संगम पर है जहां आप अपने पार्टनर के साथ फुरसत के क्षणों को बिता कर अपने हनीमून ट्रिप को यादगार बना सकते हैं.

यहां देखने के एक से एक नजारों के साथ ऐडवैंचर की भी कोई कमी नहीं है. इसलिए सी लवर्स के लिए यह जगह बैस्ट है. अगर आप इस आइलैंड पर जाने की सोच रहे हैं तो इन जगहों पर जाना न भूलें:

सेल्यूलर जेल: इसे काला पानी के नाम से भी जाना जाता है. अंगरेज स्वतंत्रता सेनानियों को इसी जेल में रख कर तरहतरह की यातनाएं देते थे. यहां रात को होने वाला लाइट शो देखने लायक है. इसलिए आप इसे देखने के बाद ही आगे बढ़ें क्योंकि अगर आप ने इसे नहीं देखा तो आप हमेशा इसे मिस करते रहेंगे.

नील द्वीप: अगर धरती पर स्वर्ग देखने की बात हो तो नील द्वीप से बेहतर कोई दूसरी जगह नहीं है क्योंकि आसमान की चादर से ढका यह द्वीप आप के तनमन को तरोताजा करने के साथसाथ आप को अपने पार्टनर के साथ फुल रिलैक्स करवाने का भी काम करेगा. यहां पर भरतपुर समुद्र तट शांत होने के साथ वाटर स्पोर्ट्स को ऐंजौय करने के साथ काफी अच्छी जगह है. यहां कांच के नीचे वाटर राइड, स्कूबा डाइविंग, स्नौर्कलिंग आदि राइड्स होती हैं, जिसे आप ऐक्सपर्ट की देखरेख में अच्छी तरह ऐंजौय कर सकते हैं.

राजीव गांधी वाटर स्पोर्ट्स कौंप्लैक्स: इस स्पोर्ट्स कौंप्लैक्स में आप अपने पार्टनर के साथ बनाना राइड, स्पीड बोट राइड, जैट स्कीइंग का भरपूर आनंद उठा सकते हैं.

राधानगर बीच: हैवलौक आइलैंड पर स्थित यह बीच खूबसूरत नजारों के लिए जाना जाता है. यहां का सूर्यास्त देखने का लोग बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं. यहां नीले रंग का पानी लोगों को मंत्रमुग्ध कर देता है. यहां कपल्स बैस्ट टाइम स्पैंड करने के साथसाथ स्नौर्कलिंग व स्कूबा डाइविंग का भी जी भर कर लुत्फ उठा सकते हैं.

चिडि़या टापू: जी हां, आप को यहां ढेर सारे पक्षी देखने के साथासाथ अनदेखे प्रवासी पक्षियों की भी  झलक देखने को मिलेगी.

बैस्ट टाइम टु विजिट: अप्रैल, मई ऐंड अक्तूबर, नवंबर. (मौनसून सीजन में जाने से बचें).

कितने दिन: 7-8 डेज.

नजदीकी एयरपोर्ट: पोर्ट ब्लेयर एयरपोर्ट.

बजट: ₹50 से ₹60 हजार.

लोकल फूड: आप यहां पर नारियल पानी का जी भर कर लुत्फ उठा सकते हैं, साथ ही आप यहां पर कोकोनट प्रौन करी, तंदूरी फिश , अंडमान फेमस कुलचा, भेल चाट, फ्रूट चाट, करी स्पैशल आदि का लुत्फ भी सकते हैं.

अन्नामलाई हिल्स

अन्नामलाई हिल्स को ऐलिफैंट माउंटैंस के नाम से भी जाना जाता है और यह जगह जंगल लविंग कपल्स के लिए खासी प्रचलित है. यह केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों से गुजरने वाले पश्चिमी घाट का हिस्सा है. इसे ऐलिफैंट माउंटैंस या हाथी की पहाड़ी इसलिए कहा जाता है क्योंकि अन्नामलाई अनइ और मलाई 2 शब्दों से मिल कर बना है. अनइ का अर्थ है हाथी और मलाई का अर्थ है पहाड़ी:

इंदिरा गांधी वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी: यहां आप अपने पार्टनर के साथ जंगल सफारी का लुत्फ उठाते हुए ऐनिमल्स की विभिन्न प्रजातियां देख सकते हैं, जिन में बिल्लियां, बाघ, तेंदुआ, जंगली सूअर, हिरण व हाथी शामिल हैं.

ठुनककदावु: अन्नामलाई वन्यजीव  अभयारण्य को देखने के बाद आप ठुनककदावु नामक ट्रैंडी लेक को जरूर देखें. यह  झील आप को ठंडक पहुंचाएगी क्योंकि यह  झील हरेभरे जंगलों से घिरी हुई जो है. इस  झील में काफी मगरमच्छ हैं, इसलिए इसे दूर से ही देखें.

परंबिकुलम सैंक्चुअरी: अन्नामलाई वन्यजीव अभयारण्य की सीमा पर परंबिकुलम सैंक्चुअरी के रूप में जाने जाना वाला 285 वर्ग किलोमीटर का जंगल केरल के प्रमुख वन्यजीव अभयारण्यों में से एक है. यहां की सुंदरता देखने लायक है. यहां बांस, चंदन, शीशम व सागौन के स्टैंड हैं. साथ ही पशु प्रजातियों में बाघ, हिरण, जंगली कुत्ते, भालू व लंगूर देखने को मिलेंगे.

वारागलियर ऐलिफैंट कैंप: इस जगह पर आप खुल कर ऐलीफैंट्स को देख सकते हैं. यह जगह अन्नामलाई फौरेस्ट के दाईं ओर एक सुनसान जगह में स्थित है. इस जगह को देख आप का मन खुश हो जाएगा क्योंकि एक तो सुनसान जगह और दूसरा पार्टनर का साथ आप को खुलकर इस हनीमून पीरियड को स्पैंड करने का मौका देगा. बस जब भी अन्नामलाई आएं तो वाइल्डलाइफ सफारी और ऐनिमल स्पोटिंग को मिस न करें.

बेस्ट टाइम टु विजिट: यहां आप वैसे किसी भी सीजन में आ सकते हैं. लेकिन मई से नवंबर तक का मौसम काफी बेस्ट है.

कितने दिन: 4-5 डेज

नजदीकी एयरपोर्ट: कोयंबटूर

नजदीकी रेलवे स्टेशन: पोलाची

बजट: ₹30 से ₹40 हजार.

लोकल फूड: यहां आप वैज से ले कर नौन वैज डिशेज का जीभर कर लुत्फ उठा सकते हैं. साथ ही सफारी के दौरान सूपी मैग्गी, सूप, पकौड़ों का मजा ले कर ट्रिप के मजे को और बढ़ा सकते हैं.

कुर्ग

यह हिल स्टेशन भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित है. इस जगह को खूबसूरत नजारों व वादियों के लिए जाना जाता है. कुर्ग समुद्री तट से 1525 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यहां चाय, कौफी के बागान प्रचुर मात्रा में होने के साथसाथ यह जगह हनीमून कपल्स के लिए काफी रोमांचकारी है क्योंकि शायद ही कोई कपल ऐसा होगा, जिसे वादियां, ठंडा मौसम,  झीलें, फूलों से भरे बागान पसंद न हों.

यह जगह रोमांस के साथसाथ आप को अंदर से तरोताजा करने का भी काम करेगी. अगर आप हनीमून के लिए कुर्ग जाने का प्लान कर रहे हैं तो इन जगहों पर विजिट करना न भूलें:

एबी फाल्स: पहाड़ों के बीच से निकला  झरना किसे मंत्रमुग्ध नहीं करेगा और खासकर तब जब यह  झरना हरेभरे कौफी के बागानों से घिरा हुआ हो.  झरना, बादलों का नीचे आना और ठंडाठंडा मौसम देख कपल्स एकदूसरे के करीब आए बिना नहीं रह पाएंगे. यकीन मानिए यह फाल आप के रोमांस को और बढ़ाने का काम करेगा.

ताडिअदामोल पीक: कुर्ग की सब से ऊंची चोटी में शामिल है ताडिअदामोल पीक. यह पहाड़ घने जंगलों से भरे पड़े हैं. इस जगह तक पहुंचने के लिए आप ट्रैकिंग का भी सहारा ले सकते हैं या फिर आप जीप से भी इस जगह का मजेदार सफर तय कर सकते हैं. पीक पर पहुंच कर आप ऊंचाई को तो अनुभव करेंगे ही, साथ ही आप इस जगह पर अपने पार्टनर के साथ मनमोहक दृश्यों के साथ सैल्फी का भी लुत्फ उठा कर अपने इन पलों को यादगार बना सकते हैं.

राजा सीट: यह जगह खूबसूरत नजारों से भरी पड़ी है. नेचर लवर इस जगह पर आ कर सुकून के पल बिताने के साथसाथ यहां की सुंदरता का आनंद भी उठा सकते हैं. यहां फूलों की बाहर तो है ही, साथ ही यहां पर लगे म्यूजिकल फाउंटेन इस जगह को और सुंदर बनाने का काम करते हैं. इसलिए आप इस जगह को मिस न करें.

बारपोल नदी: एक तो बहती नदी और दूसरा इस में रिवर राफ्टिंग हनीमून ट्रिप को और मजेदार बनाने का काम करेगी. यहां आ कर आप पार्टनर के साथ पानी में अठखेलियां कर राफ्टिंग का मजा ले सकते हैं. यह जगह खूबसूरत नजारों से भरी होने के साथसाथ ऐडवैंचर लवर्स को खूब भाती है.

ब्रह्मगिरी ट्रैक: इस ट्रैक को पार करने के लिए आप को खूबसूरत नजारों से गुजरना होगा. यहां की हरियाली नदियां इस ट्रैक के सफर को यादगार बनाने का काम करती हैं.

नागरहोले राष्ट्रीय उद्यान: नेचर लवर इस जगह पर जरूर आएं क्योंकि यहां आप को जीवों की विविधता दिखने के साथसाथ आकर्षक नजारे भी देखने को मिलेंगे.

बैस्ट टाइम टु विजिट: मार्च से अक्तूबर.

कितने दिन: 3-4 डेज.

नजदीकी एयरपोर्ट: मंगलौर इंटरनैशनल एयरपोर्ट.

नजदीकी रेलवे स्टेशन: मैसूर रेलवे स्टेशन.

बजट: ₹25 से ₹30 हजार.

पहलगाम

जम्मू और कश्मीर के खूबसूरत शहरों में से एक है पहलगाम. यहां के नजारे देख हरकोई बस उन्हें देखता ही रह जाता है. यह जगह अनंतनाग जिले के अंतर्गत आती है. यह जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं है. यहां देवदार और चीड़ के वृक्ष ब्यूटी में चारचांद लगाते हैं.

बर्फ से ढकी वादियां वैसे तो सभी को मोहित करती हैं, लेकिन हनीमून कपल से लिए यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं क्योंकि यहां खूबसूरत नजारों के साथसाथ ऐडवैंचर स्पोर्ट्स का कपल्स जीभर कर लुत्फ जो उठा सकते हैं. इसलिए जब भी यहां आने का प्लान करें तो इन जगहों पर घूमना न भूलें.

अरु वैली: पहलगाम आएं और यह वैली न देखें, ऐसा हो ही नहीं सकता क्योंकि यह वैली घने जंगलों से घिरी होने के कारण बेहद खूबसूरत दिखती है. यहां आ कर आप शांत माहौल में पार्टनर के साथ क्वालिटी टाइम स्पैंड करने के साथसाथ जीभर कर मस्ती भी कर सकते हैं क्योंकि यह जगह यहां की खूबसूरती के साथसाथ ट्रैकिंग और घुड़सवारी के लिए भी जानी जाती है. यकीन मानिए जब आप पार्टनर के साथ घुड़सवारी का मजा लेंगे तो आप इन पलों को भूल नहीं पाएंगे.

तुलियन  झील: पहलगाम से 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तुलियन  झील खूबसूरत नजारों से भरी पड़ी है. यह  झील बर्फ से ढकी होने के कारण पर्यटकों के लिए हमेशा आकर्षण का केंद्र बनी रहती है.

बेताब घाटी: यह जगह पहलगाम से 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां बर्फ के नजारे, नदियां व देवदार के पेड़ इस जगह को स्वर्ग बनाने का काम करते हैं. आप यह पहलगाव में आइस गेम्स, ट्रैकिंग, बोटिंग व घुड़सवारी का मजा भी ले सकते हैं.

चंदनवारी: यह अमरनाथ यात्रा का ऐंट्री पौइंट है. आप को यहां से नीचे नदी बहती हुई दिख जाएगी, जो इस जगह की खूबसूरती को और बढ़ाने का काम करती है.

बैस्ट टाइम टु विजिट: मार्च से नवंबर.

नजदीकी एयरपोर्ट: श्रीनगर.

नजदीकी रेलवे स्टेशन: उदमपुर.

बजट: ₹30 से ₹40 हजार.

लोकल फूड: यहां आप मटन रोगन जोश, मोदुर पुलाव, कहवा, कश्मीरी मुजी, कश्मीरी बैगन, मोमोस, थुक्पा, नादिर मोंजी इत्यादि का मजा ले सकते हैं.

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Summer Special: नैनों में नैनीताल…

नैनीताल उत्तराखण्ड राज्य का एक प्रमुख शहर है. कुमाऊँ क्षेत्र में नैनीताल जिले का विशेष महत्व है. देश के प्रमुख क्षेत्रों में नैनीताल की गणना होती है. यह ‘छखाता’ परगने में आता है. ‘छखाता’ नाम ‘षष्टिखात’ से बना है. ‘षष्टिखात’ का तात्पर्य साठ तालों से है. इस अंचल मे पहले साठ मनोरम ताल थे. इसीलिए इस क्षेत्र को ‘षष्टिखात’ कहा जाता था.

आज भी नैनीताल जिले में सबसे अधिक ताल हैं. इसे भारत का लेक डिस्ट्रिक्ट कहा जाता है, क्योंकि यह पूरी जगह झीलों से घिरी हुई है. ‘नैनी’ शब्द का अर्थ है आँखें और ‘ताल’ का अर्थ है झील. झीलों का शहर नैनीताल उत्तराखंड का प्रसिद्ध पर्यटन स्‍थल है. बर्फ़ से ढ़के पहाड़ों के बीच बसा यह स्‍थान झीलों से घिरा हुआ है. इनमें से सबसे प्रमुख झील नैनी झील है जिसके नाम पर इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा है. इसलिए इसे झीलों का शहर भी कहा जाता है. नैनीताल को जिधर से देखा जाए, यह बेहद ख़ूबसूरत है.

आकाश पर छाये हुए बादलों का प्रतिबिम्ब इस तालाब में इतना सुन्दर दिखाई देता है कि इस प्रकार के प्रतिबिम्ब को देखने के लिए सैकड़ो किलोमीटर दूर से प्रकृति प्रेमी नैनीताल आते-जाते हैं. जल में विहार करते हुए बत्तखों का झुण्ड, थिरकती हुई तालों पर इठलाती हुई नौकाओं तथा रंगीन बोटों का दृश्य और चाँद-तारों से भरी रात का सौन्दर्य नैनीताल के ताल की शोभा बढ़ाने में चार – चाँद लगा देता है. इस ताल के पानी की भी अपनी विशेषता है. गर्मियों में इसका पानी हरा, बरसात में मटमैला और सर्दियों में हल्का नीला हो जाता है.

1.नैना देवी मंदिर

नैनी झील के उत्‍तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है. १८८० में भूस्‍खलन से यह मंदिर नष्‍ट हो गया था. बाद में इसे दुबारा बनाया गया. यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है. मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं.

2.नैनी झील

नैनीताल का मुख्‍य आकर्षण यहाँ की झील है. स्‍कंद पुराण में इसे त्रिऋषि सरोवर कहा गया है. कहा जाता है कि जब अत्री, पुलस्‍त्‍य और पुलह ऋषि को नैनीताल में कहीं पानी नहीं मिला तो उन्‍होंने एक गड्ढा खोदा और मानसरोवर झील से पानी लाकर उसमें भरा.

इस खूबसूरत झील में नौकायन का आनंद लेने के लिए देश-विदेश से लाखों पर्यटक यहाँ आते हैं. झील के पानी में आसपास के पहाड़ों का प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है. रात के समय जब चारों ओर बल्‍बों की रोशनी होती है तब तो इसकी सुंदरता और भी बढ़ जाती है. झील के उत्‍तरी किनारे को मल्‍लीताल और दक्षिणी किनारे को तल्‍लीताल करते हैं. यहां एक पुल है जहां गांधीजी की प्रतिमा और पोस्‍ट ऑफिस है. यह विश्‍व का एकमात्र पुल है जहां पोस्‍ट ऑफिस है.

नैनीताल के ताल के दोनों ओर सड़के हैं. ताल का मल्ला भाग मल्लीताल और नीचला भाग तल्लीताल कहलाता है. मल्लीताल में फ्लैट का खुला मैदान है. मल्लीताल के फ्लैट पर शाम होते ही मैदानी क्षेत्रों से आए हुए सैलानी एकत्र हो जाते हैं. यहाँ नित नये खेल – तमाशे होते रहते हैं.

3.नैना पीक

सात चोटियों में चीनीपीक (नैना पीक या चाइना पीक) २,६११ मीटर की ऊँचाई वाली पर्वत चोटी है. नैनीताल से लगभग साढ़े पाँच किलोमीटर पर यह चोटी पड़ती है. यहां एक ओर बर्फ़ से ढ़का हिमालय दिखाई देता है और दूसरी ओर नैनीताल नगर का पूरा भव्य दृश्‍य देखा जा सकता है. इस चोटी पर चार कमरे का लकड़ी का एक केबिन है जिसमें एक रेस्तरा भी है.

4.हनुमानगढ़ी

हनुमानगढ़ी तल्लीताल के दक्षिण में है. यह मंदिर समुद्र तल 6,401 फीट की ऊंचाई पर है. धार्मिक महत्तव के साथ ही यहां पर सूर्योदय और सूर्यास्त का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है.

5.भवाली

भवाली से अल्मोरा और बागेश्वर आसानी से पहुंचा जा सकता है.

6.नौकुचियाताल

यह भीमताल से 4 कि मी दक्षिण-पूरब समुद्र की सतह से 1292 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. इसे ‘नौ कोने वाले ताल’ भी कहा जाता है. इस ताल में विदेशी पक्षियों का बसेरा रहता है. नौका विहार के शौकीन लोगों की यह पसंदीदा जगह है.

7.सात ताल

सात ताल का अनोखा और नैसर्गिक सौंदर्य सबका मन मोह लेता है. इस ताल तक पहुँचने के लिए भीमताल से ही मुख्य मार्ग है. यहां माहरा गांव से भी पहुंचा जा सकता है. इसके आस-पास घने जंगल है. इस ताल की विशेषता है कि लगातार सात तालों का सिलसिला इससे जुड़ा हुआ है.

सात ताल की विशेषता है कि इससे लगातार सात तालों का सिलसिला जुड़ा हुआ है.

8.भीमताल

यह एक त्रिभुजाकर झील है. यह काठगोदाम से 10 कि. मी. की दूरी पर है. यह नैनीताल से भी बड़ा ताल है. नैनीताल से भीमताल की दूरी 22.5 कि. मी. है. इस ताल के बीच में एक टापू है.

कैसे पहुंचे

वायु मार्ग- निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर विमानक्षेत्र नैनीताल से ७१ किमी. दूर है. यहाँ से दिल्‍ली के लिए उड़ानें हैं.

रेल मार्ग- निकटतम रेलहेड काठगोदाम रेलवे स्‍टेशन (३५ किमी.) है जो सभी प्रमुख नगरों से जुड़ा है.

सड़क मार्ग- नैनीताल राष्ट्रीय राजमार्ग ८७ से जुड़ा हुआ है. दिल्ली, आगरा, देहरादून, हरिद्वार, लखनऊ, कानपुर और बरेली से रोडवेज की बसें नियमित रूप से यहां के लिए चलती हैं.

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नेचर का लाइट जोन है हिमाचल

हमारी टोली की ट्रैक गाइड आइसा कह रही थी, ‘‘इस बार कुछ नया हंगामा करेंगे. खानाबदोशी का निराला जश्न मनाएंगे. ऐसा ट्रैक पकड़ेंगे कि हिमाचल प्रदेश के अधिकांश ऊपरी रोमांचक स्थलों पर पैदल घूमा जा सके और वहां बसे लोगों के संग फुरसत से रहा जा सके. हम तिब्बत से जुड़ी भारत की अंतिम आबादियों तक जाएंगे.’’

इस सफर में 14 मित्र शामिल हुए, हालांकि हमें 10 से ज्यादा की उम्मीद नहीं थी. पहाड़ों पर छोटी टोली में  झं झट कम रहते हैं. आइसा जैसी गाइड हों तो 2 ही बहुत हैं.

अगली सुबह हम ओल्ड मनाली से क्लबहाउस के रास्ते सोलंगनाला की पगडंडी पर थे. मनालसू नदी पीछे छूट गई. अब व्यास नदी हमारे दाहिने थी. सब नदी पार बसे वसिष्ठ गांव और उस के आगे के जोगनी फौल के खुलेपन को देख रहे थे. धीरेधीरे हम सब में एक फासला आ गया और हम बातचीत भूल कर नजारों में डूब गए.

हिमालय की घाटियों से बचपन से परिचित आइसा सब से आगे थी. पीछे छूट जाने वाले मित्रों की सुविधा के लिए वह हर मोड़ या दोराहे पर चट्टान पर चाक से तीर का निशान बना कर ‘एस’ लिख रही थी, ताकि अगर मोबाइल फोन काम न कर सके तो आगे मिला जा सके.

स्कूल के लिए निकले बालकबालिकाएं और बागों व वनों में निकले स्त्रीपुरुष मुसकराते और हाथ हिलाते. दोनों ओर फैले सेब के बागों में भरे अधपके सेबों पर लाली आ रही थी. सामने धौलाधार का अंतिम शिखर और उस से जुड़ा रोहतांग पर्वत अपने विराट रूप में सुबह की किरणों का सुनहरा जादू ओढ़े प्रतीत हो रहे थे.

2 घंटे के बाद सोलंगनाला के चट्टानी नदी तट पर हमारी टोली शवासन में लेटी थी. आइसा ने हमें मन और सांस को साधने की यौगिक क्रिया से गुजारा और बताया कि किस तरह शरीर थक जाने के बाद भी वह स्वयं को दोबारा अनोखी ऊर्जा से भर देता है. होश और जोश के साथ मन से मिलजुल कर भोजन पकाया व खाया. दोपहर बाद चाय पी कर हम मनाली-लेह रोड की चढ़ाई की ओर मुड़े. पलचान और कोठी के बीच के अनोखे मखमली भूभाग से गुजर कर शाम को गुलाबा के ऊपरी वन में पहुंचे, जहां देवदारों का सिलसिला समाप्त होता है और भोजपत्र के वन दिखाई देने लगते हैं.

सुबह हम चले तो ग्लेशियरों और  झरनों से घिरी चढ़ाई पार कर के मढ़ी पहुंचे, जहां पेड़पौधे नहीं उगते. हमारे सिरों के ऊपर सैलानी हैंडग्लाइडरों पर उड़ रहे थे. यहां से मनाली तक की ढलानों और उन पर बिछी सर्पीली सड़क और चारों ओर के बर्फ ढके पहाड़ों को देखना रोमांचक है.

मढ़ी के निचले क्षेत्र में नदी की धाराओं और ग्लेशियरों पर हजारों पर्यटकों को एक नजर में खेलते और खातेपीते देखा जा सकता है. मढ़ी में भी एक ढाबे में जलते चूल्हे के इर्दगिर्द हमारे रैनबसेरे का इंतजाम हो गया, अपने पल्ले में ओढ़नेबिछाने और खानेपीने का इंतजाम हो तो मईजून में जनवरीफरवरी की ठंडक पाने का मजा ही कुछ और है. जहां जलाने की लकड़ी नहीं होती, वहां चाय बनाने के लिए नन्हा गैसस्टोव हमारी मदद कर रहा था. रोमांच की आंच हो तो इस से अच्छा और क्या हो सकता है.

हमारी टोली की जयपुरवासी नेहा गा रही थी, ‘‘इस रंग में कोई जी ले अगर…’’

सुबह सूरज निकलते ही हम रोहतांग पर्वत की चोटी पर चढ़ रहे थे, दिसंबर से 5-6 महीने के लिए यह रास्ता वाहनों और पैदल यात्रियों के लिए पूरी तरह बंद हो जाता है, लेकिन जून से अक्तूबर तक इस पर दुनियाभर के सैलानियों का मेला दिखाई देता है. हजारों लोग जोखिम उठा कर अपनी कारों पर सपरिवार यहां पहुंचते हैं.

मनाली से रोहतांग शिखर 52 किलोमीटर है. हम ने शौर्टकट वाली कुछ पगडंडियां पकड़ कर 10-12 किलोमीटर कम कर लिए थे. इस में चढ़ाई ज्यादा बढ़ जाती है, लेकिन कुदरत के अजूबे ज्यादा मिलते हैं.

दोपहर से पहले हम रोहतांग की चोटी पर थे. पर्यटकों को ले कर मनाली से मुंहअंधेरे निकली गाडि़यों की कतारें लग रही थीं. यहां की बर्फ से व्यास नदी निकली है जो आगे आने वाले  झरनों और नालों से भरती चली गई है. रोहतांग पर्वत पर नीले आसमान से उतरी मीठी धूप में बैठने, बर्फीले मैदानों पर टहलने और ढलानों पर फिसलने का मजा लेने के बाद रोहतांग के उस पार निकले.

उतराई पर बसमार्ग से हट कर निकली पगडंडी ने हमारे सफर को राहत दी. 3 घंटे के बाद हम रोहतांग की तलहटी पर बहती चंद्र नदी के किनारे अगले भोजन के लिए

3 पत्थरों वाला चूल्हा बना रहे थे. सूखे हुए तिनके और डंठल आसानी से मिल गए. सूखा हुआ गोबर भी काम आया. ग्रांफू नामक इस जगह से बाएं लाहुलस्पिति के मुख्यालय केलांग को और दाएं स्पिति घाटी को रास्ते हैं. हमें स्पिति जाना था. तभी घास से अधभरा एक ट्रक हमारे चूल्हे के पास आ कर रुका. ड्राइवर ने हमारी चाय सुड़की और बताया कि अगर हम 14 नरनारी घास के बीच समाना पसंद करें तो वह हमें बातल तक पहुंचा देगा. यह एक संयोग था कि हमें बातल में डेरा डालना था, जहां से 12 किलोमीटर का चंद्रताल लेक ट्रैक दुनिया के बेहतरीन घुमक्कड़ों को निमंत्रण देता आया है.  शाम को हम चंद्र नदी के किनारे बातल में डेरा डाल चुके थे.

रोमांच से भरा चंद्रताल

सुबह आइसा की आवाज गूंजी, ‘‘चायवाय और बाकी सब कुछ रास्ते में होगा. 7 बजने वाले हैं. दोपहर को हम चंद्रताल पर खिली धूप में खाना पका रहे होंगे. आप लोग वहां फैसला करेंगे कि आज यहां लौटना है या वहीं कहीं गुफा में रहना है. मैं रात को वहीं रुकना चाहती हूं.’’ मैं ने बताया, ‘‘मैं अकेला होता हूं तो सप्ताहभर वहीं रहता हूं. आज तो नहीं लौटूंगा.’’

चंद्रताल पहुंचे तो वहां का मंजर देख कर चिल्लाए, ‘‘आज यहीं रहेंगे.’’ जेएनयू दिल्ली के हितेश और लंदन की मिरांडा को कल से हलका बुखार था, लेकिन उन्होंने बताया कि यहां की प्यारी हवा में दोपहर तक बुखार उड़ जाएगा. सब उस पतली धारा में हाथपांव भिगोने लगे जो चंद्रताल  झील में से निकल कर चंद्रताल नदी बनाती है और केलांग के पास भागा नदी से मिल कर चंद्रभागा हो जाती है. इसी नदी को चेनाब कहा जाता है यानी चंद्रनीरा.

एक छोर पर थैले और स्टिक्स छोड़ कर सब चुपचाप अकेलेअकेले  झील की ढाई किलोमीटर की परिक्रमा पर निकल गए. हम ने पूर्णिमा की रात यहां रहने के लिए चुनी थी. आइसा यह देख कर मुसकराई कि कुछ साथी अपनी नोटबुकें निकाल कर कुछ लिखने लगे हैं. वह बोली, ‘‘यहां आ कर मैं ने अकसर कविताएं और कहानियां लिखी हैं. हिमाचल प्रदेश में यह एकमात्र जगह है, जहां मकान या मंदिर जैसी कोई चीज दिखाई नहीं देती. आकाश जैसी यह  झील है और उस के चारों ओर खड़े बर्फीले पर्वत. मन सीधा कुदरत से बात करता है,’’ सहसा वह गाने लगी, ‘‘अज्ञात सा कुछ उड़नखटोले पर आता है और हमारे कोरे कागज पर उतर जाता है…’’

रात को चांद निकला तो वही हुआ, जिसे सम झाया नहीं जा सकता. चांद के निकलते ही  झील में लहरें उठने लगीं और चांद की परछाईं उन में नाचती रही. हमारे पास चांद और लहरों के साथ थिरकने के अलावा और कुछ नहीं था. चंद्रताल और उस के सारे विराट मंजर को प्रणाम कर के हम अपना हर निशान मिटा कर लौटे. अधकचरे लोग तो हर कहीं अपना नाम खोद कर ही लौटते हैं.

तन और मन का शोध करने वालों की बस्ती

बातल से कुंजुम दर्रे तक खड़ी चढ़ाई है. दोपहर को बातल में बस मिली और शाम को हम कुंजुम और लोसर गांव की अनोखी बुलंदियों से होते हुए स्पिति के मुख्यालय काजा में पहुंचे. अगली सुबह हम पास ही ‘की’ गोंपा को निकले और दोपहर को दुनिया के ऐसे सब से ऊंचे गांव किब्बर में पहुंचे जहां बिजली भी है और बस भी पहुंचती है. स्पिति नदी के तट पर बसे काजा क्षेत्र और वहां के लोगों के बीच 2 दिन बिताने और जीभर कर सुस्ताने के बाद हम ने ताबो की बस पकड़ी. लगभग डेढ़ सदी पहले ताबो में ऐसे  स्त्रीपुरुषों ने डेरा जमाया था जो निपट सन्नाटे में रह कर तन और मन के रहस्यों को जानना चाहते थे. ताबो संग्रहालय में उन लोगों की प्रतिमाएं और ममियां देखी जा सकती हैं. ‘की’ गोंपा, काजा और ताबो में आज भी गहरी रुचियों वाले लोग अज्ञातवास में रहने आते हैं. हर गोंपा में ध्यान, निवास और खानेपीने की सुविधाएं हैं. बौद्ध परंपरा में भी हालांकि रूढि़यां भर गई हैं लेकिन वहां हर व्यक्ति को अपने ढंग से भीतरबाहर का अध्ययन करने की स्वतंत्रता है. शांत चित्त के लिए तो यहां की दुनिया संजीवनी है.

किन्नर कैलास और वास्पा घाटी

चांगो की हिमानी और चट्टानी दुनिया और नाको  झील की खामोशी से बातें करते हम उस सतलुज नदी के तटों पर थे जो मानसरोवर से निकल कर यहां से गुजरती है. हिमाचल का जिला किन्नौर सामने था. मुख्यालय रिकांगपिओ और कल्पा से हम ने किन्नर कैलास की बुलंदियों को देखा.

रिकांगपिओ से हम सतलुज और वास्पा नदियों के संग पर कड़छम गए और वास्पा नदी के साथसाथ सांगला घाटी पहुंचे. वास्पा या सांगला घाटी किन्नर कैलास पर्वत के ठीक पीछे बसी है. यहां काला जीरा और केसर की खेती होती है. कई गांवों में से गुजरते हुए हम अंतिम भारतीय गांव चितकुल पहुंचे. हर गांव कलात्मक मंदिरों से संपन्न हैं. हर कहीं देवदारों के सिलसिले हैं.

ओगला और फाफरा नामक अनाजों से खेत सजे हुए मिले. नृत्य व संगीत के लिए कभी मौका न चूकने वाली मेहनती युवतियों ने हमें कई जगह घेरा और मेहमान बनाया. हिमालय के लोगों का दुर्लभ सरल स्वभाव इस घाटी की माटी में रचाबसा हुआ है. चितकुल में हमें शिमला जाने वाली बस मिली.

जलोड़ी दर्रे के आरपार

किन्नौर के टापरी, वांगतू, भाभानगर, तरंडा और निगुलसरी होते हुए हम शिमला जिले के ज्योरी, सराहन और फिर रामपुर बुशहर पहुंचे. अगले दिन फिर बड़ा रोमांच सामने था. सतलुज पार की चढ़ाई से पैदल कुल्लू जिले के जलोड़ी दर्रे पर पहुंचना और अगले दिन दूसरी तरफ उतरना. जलोड़ी की चढ़ाई रोहतांग से आसान है. रास्ते में कई गांव हैं. हम यहां की अनोखी सरयोलसर  झील तक गए और पास ही वनविभाग की हट में शरण ली. अगले दिन जलोड़ी दर्रे की दूसरी तरफ की उतराई पर शोजा और बनजार होते हुए दिल्ली-मनाली मार्ग पर आ गए.

शाम को हम नए ट्रैक्स पर जाने की योजना बना रहे थे, वे थे : मनाली के वसिष्ठ गांव से भुगु लेक, मनाली से नग्गर होते हुए मलाना, मलाना से मणिकर्ण होते हुए पार्वती वैली के रोमांचक स्थल क्षीरगंगा, क्षीरगंगा से बजौरा होते हुए पर्वत शिखर पर पराशर  झील, रिवालसर  झील और शिकारीदेवी शिखर. इस में एक और महीना लगने वाला था.

हिमाचल प्रदेश के अधिकांश ट्रैक्स आज ठहरने और खानेपीने की सुविधाओं से भरे हुए हैं, इसलिए जब भी जरूरी हो, पैदल चलने वाले लोग उन सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं.

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Summer Special: बेहद खूबसूरत है लक्षद्वीप

जून के पहले सप्ताह में हमें लक्षद्वीप जाने का अवसर मिला. दिल्ली से हवाई मार्ग द्वारा रात को कोच्चि पहुंचने पर, कोच्चि में ही विश्राम करना पड़ा क्योंकि कोच्चि से लक्षद्वीप के लिए प्रतिदिन एअर इंडिया की एक ही घरेलू फ्लाइट है और फिर वही फ्लाइट दोपहर को वापस कोच्चि आ जाती है. इसलिए हम कोच्चि से एअर इंडिया की घरेलू फ्लाइट से लक्षद्वीप के लिए रवाना हुए. कोच्चि से लक्षद्वीप पहुंचने में लगभग 2 घंटे का समय लगा. हमारा विमान लक्षद्वीप के एक छोटे से द्वीप अगाती हवाई अड्डे पर जब उतरा तो विमान से बाहर आते ही बड़ा ही रोमांचकारी दृश्य देखने को मिला. हम ने अपनेआप को समुद्र के बीच एक द्वीप पर पाया. 3 ओर से समुद्र की लहरें हिलोरे मार रही थीं. हवाई पट्टी के एक ओर पवन हंस का एक हैलीकौप्टर भी आ कर खड़ा हो गया.

पूछने पर पता चला कि यह हैलीकौप्टर लोगों को लक्षद्वीप की राजधानी कावाराती से ले कर आ रहा है और अभीअभी जो यात्री विमान से उतरे हैं और कावाराती जाने वाले हैं, यह उन्हें ले कर भी जाएगा. यात्रियों को यहां से हैलीकौप्टर द्वारा सिर्फ कावाराती द्वीप पर ही ले जाया जाता है और यात्रियों को यह सुविधा दिन में एक ही बार मिलती है. शनिवार और रविवार को यह हैलीकौप्टर सेवा छुट्टियों के कारण बंद रहती है.

वास्तव में 32 किलोमीटर लंबी भूमि वाला लक्षद्वीप 36 छोटेछोटे द्वीपों से मिल कर बना है, जिन में आबादी केवल 10 द्वीपों पर ही है.

लक्षद्वीप भारत का केंद्र शासित राज्य है. इस के सभी द्वीपों पर जलवायु सामान्य है. यहां की मिश्रित भाषा है जिस में मलयालम, तमिल और अरेबिक इत्यादि भाषाओं का मिश्रण है, जिसे ‘जिसरी’ कहा जाता है.

दर्शनीय स्थल

अगाती द्वीप : यह कोच्चि से 459 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. हवाई जहाज से यहां पहुंचने में 2 घंटे का समय लग जाता है. यह द्वीप 7 किलोमीटर लंबा है. सब द्वीपों में लंबा होने के कारण ही यहां एअरपोर्ट बनाना संभव हो पाया, इसलिए इस द्वीप का अपना ही महत्त्व है. उत्तर में इस द्वीप की चौड़ाई आधे किलोमीटर से भी कम है. द्वीप के बीचोंबीच एक पक्की सड़क बनी हुई है जहां से दोनों ओर का समुद्र दिखाई देता है.

जब हम इस द्वीप पर पहुंचे, वहां वर्षा ऋतु का आगमन हो चुका था. समुद्र और मौसम के बदले तेवर के कारण यहां से अन्य द्वीपों पर जाने का एकमात्र साधन पानी के जहाज बंद हो चुके थे, इसलिए हम कुछ दिन अगाती में ही रुक कर वापस कोच्चि के लिए रवाना हो गए. इसी दौरान इस द्वीप पर बसे गांव को बड़े नजदीक से देखने का अवसर मिला.

यहां टूरिज्म विभाग भी कार्यरत है और यहां आने वाले पर्यटकों के लिए आधुनिक सुविधाओं से लैस उन का गैस्ट हाउस और एक पुराना डाकबंगला भी है. यहां वाटर स्पोर्ट्स, स्कूबा डाइविंग, केनोइंग, कांच के तल वाली नावों से समुद्र के अंदर कोरल व समुद्री जीवजंतुओं को देखने व हट्स इत्यादि जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध हैं.

समुद्र के किनारे बहुत ही साफसुथरे हैं. नारियल के पेड़ों की सूखी टहनियों और खोलों को बड़े ही करीने से ढेर लगा कर रखा जाता है. यहां लोगों के आनेजाने का मुख्य साधन साइकिल लोकप्रिय है, इसलिए प्रदूषण की समस्या नहीं है. इस द्वीप की एक बड़ी खासीयत यह भी है कि बिजली आपूर्ति के लिए सोलर स्टेशन बनाया गया है. सड़कों पर सोलर लाइटें लगी हुई हैं. पीने के पानी के लिए घरघर में वर्षाजल संचित किया जाता है.

कावाराती द्वीप : कोच्चि से 440 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, कावाराती द्वीप लक्षद्वीप की राजधानी है. इस द्वीप का क्षेत्रफल 4.22 वर्ग किलोमीटर है और जनसंख्या 25 हजार से भी अधिक है, इसलिए भीड़भाड़ भी ज्यादा है. अगाती से कावाराती हैलीकौप्टर या शिप द्वारा आया जा सकता है. हैलीकौप्टर से 20-25 मिनट और शिप से यहां पहुंचने के लिए 6 घंटे लगते हैं. वर्षा ऋतु में मौसम खराब हो जाने पर शिप बंद कर दिए जाते हैं. यहां भी अगाती की तरह स्थानीय लोगों के लिए जीवनयापन की सभी सुविधाएं मौजूद हैं. पर्यटकों के लिए सभी सुखसुविधाओं से लैस गैस्ट हाउस बने हुए हैं. यहां के खूबसूरत समुद्री किनारे पर्यटकों को लुभाते नजर आते हैं इसीलिए पर्यटक यहां वाटर स्पोर्ट्स और तैराकी का लुत्फ उठाते हैं.

मिनीकाय द्वीप : कोच्चि से इस द्वीप की दूरी 398 किलोमीटर है. इस का क्षेत्रफल 4.80 वर्ग किलोमीटर है. यह दूसरा सब से बड़ा द्वीप है. पहला बड़ा द्वीप अन्द्रोथ है. मिनीकाय, लक्षद्वीप के दक्षिण में स्थित है. इस द्वीप पर रहने वाले लोगों की संस्कृति उत्तरी द्वीपों के लोगों से भिन्न है. यहां की बोलचाल की भाषा माही है. यहां वर्ष 1885 का बना सब से पुराना लाइटहाउस भी  है. पर्यटकों को लुभाने हेतु खूबसूरत समुद्री किनारे हैं.

किल्टन द्वीप : फारस की खाड़ी और श्रीलंका के साथ व्यापार करने के लिए यह एक अंतर्राष्ट्रीय मार्ग के नाम से भी जाना जाता है. यह द्वीप बहुत गरम है. गरमी अधिक होने के कारण लोग बाहर सोते हैं. यह पहला द्वीप है जिस की ‘बीचेस’ पर ऊंची तूफानी लहरें उठती रहती हैं. इस द्वीप की मिट्टी बहुत उपजाऊ होने के कारण यहां बहुत अधिक वनस्पतियां उगाई जाती हैं. यहां के समुद्री किनारे लोकनृत्यों के लिए प्रसिद्ध हैं.

कादमत द्वीप : यह द्वीप कोच्चि से 407 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस के पश्चिम में खूबसूरत व उथला समुद्र होने के कारण वाटर स्पोर्ट्स के लिए यह बहुत उत्तम समुद्री किनारा है. पूर्व में तंग लैगून है और लंबा बीच है. शहर से दूर यहां आ कर सैलानी वाटर स्पोर्ट्स, पैडल बोट्स, स्वीमिंग, सी डाइविंग, सेलिंग के अतिरिक्त शीशों के तल वाली नावों में समुद्र में जा कर, समुद्री जीवजंतुओं को देखने का आनंद भी उठाते हैं. इस के अतिरिक्त स्कूबा डाइविंग पर्यटकों के लिए यहां का विशेष आकर्षण है.

एडमिनी द्वीप : कोच्चि से इस द्वीप की दूरी 407 किलोमीटर है. यह द्वीप आयताकार है. यहां के समुद्र में भवन निर्माण हेतु कोरल्स और रेतीले पत्थर बहुतायत मात्रा में पाए जाते हैं. यहां के निवासी कुशल शिल्पकार हैं जो कछुए के खोल और नारियल के खोलों से छड़ी बनाने के लिए मशहूर हैं.

अन्द्रोथ द्वीप : कोच्चि से इस द्वीप की दूरी 293 किलोमीटर है. यह लक्षद्वीप का सब से बड़ा द्वीप है. यह द्वीप घनी हरियाली के लिए भी जाना जाता है, विशेषकर घने नारियल के पेड़ों के कारण. जूट और नारियल यहां के मुख्य उत्पादन हैं.

चेतला द्वीप : कोच्चि से इस द्वीप की दूरी 432 किलोमीटर है. यहां नारियल कम होता है इसलिए जूट यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय है. नारियल के पत्तों की चटाइयां बनाई जाती हैं. 20वीं शताब्दी में यहां समुद्री जहाज, नावें बनाने का यहां का उद्योग बहुत प्रसिद्ध रहा है जिस की अन्य द्वीपों पर जाने वाले लोगों द्वारा मांग की पूर्ति की जाती थी.

कल्पेनी द्वीप : कोच्चि से यह द्वीप 287 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह द्वीप भी अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है. सब से पहले इस द्वीप पर लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया गया था. वर्ष 1847 में इस द्वीप पर बहुत बड़ा तूफान आया था जिस में बहुत बड़ेबड़े पत्थर भी यहां आ कर गिरे थे. वाटर स्पोर्ट्स, रीफ वौक, तैराकी जैसी सुविधाएं पर्यटकों के लिए यहां उपलब्ध हैं.

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