Summer Special: धरती का स्वर्ग है गुलमर्ग

गुलमर्ग जम्मू कश्मीर के बारामूला जिले में स्थित एक खूबसूरत हिल स्टेशन है, जो फूलों के प्रदेश के नाम से भी प्रसिद्ध है. लगभग 2730 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गुलमर्ग, की खोज 1927 में अंग्रेजों ने की थी. कहा जाता है कि पहले गुलमर्ग का असली नाम गौरीमर्ग था जो यहाँ के चरवाहों ने इसे दिया था. फिर 16वीं शताब्‍दी में सुल्‍तान युसुफ शाह ने इसका नाम गुलमर्ग रखा.

हर ट्रेवेलर का सपना होता है कि एक बार न एक बार कश्मीर की इस सुन्दर वादी के मजे जरूर लें. यहां के हरे-भरे ढलान पूरे साल पर्यटकों को अपनी ओर खींचते हैं. क्या आपको पता है? गुलमर्ग सिर्फ बर्फ से ढके पहाड़ों का शहर ही नहीं बल्कि यहां विश्व का सबसे बड़ा गोल्फ कोर्स भी है और देश का प्रमुख स्की रिजॉर्ट भी यहीं पर है. गुलमर्ग बॉलीवुड के सबसे पसंदीदा शूटिंग लोकेशन्स में से भी एक है.

चलिए आज हम इसी सौन्दर्य की सैर पर चलते हैं, जहां जाकर आप भी अपने आपको यह कहने से नहीं रोक पाएंगे कि ‘गर फिरदौस बर-रोये जमीन अस्त, हमी अस्तो, हमी अस्तो, हमी अस्त.’ इसका मतलब है ‘अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है’

गोंडोला लिफ्ट

अगर आप गुलमर्ग की यात्रा पर हैं तो सबसे पहले यहां के गोंडोला लिफ्ट की यात्रा करना न भूलें जो एशिया का इकलौता समुद्री तल से लगभग 13500 फीट ऊंचा केबल कार सिस्टम है.

गुलमर्ग स्की एरिया

श्रीनगर से लगभग 35 किलोमीटर दूर गुलमर्ग का हिल रिजॉर्ट जो हिमालय के पीर पांजाल पर्वत श्रेणी का एक हिस्सा है. यहां भारी मात्रा में बर्फबारी होने की वजह से यह जगह पर्यटकों और यहां के निवासियों का मनपसंद स्की एरिया बन गया है.

गोल्फ कोर्स

समुद्र से लगभग 2650 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गुलमर्ग का गोल्फ कोर्स दुनिया का सबसे ऊंचा ग्रीन गोल्फ कोर्स है.

अफरवात पीक

पर्यटकों का सबसे पसंदीदा पर्यटक स्थल अफरवात पीक गुलमर्ग से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. बर्फ से ढके हुए ये पहाड़ पाकिस्तान के साथ लगे हुए लाइन ऑफ कंट्रोल (LOC) से काफी नजदीक हैं.

बाबा रेशी मंदिर

बाबा रेशी मंदिर मुख्यतः,सन् 1480 में स्थापित बाबा रेशी को समर्पित एक दरगाह है.

खिलनमार्ग

खिलनमार्ग गुलमर्ग में स्थित एक छोटी से घाटी है जो ठण्ड में गुलमर्ग मे स्किंग करने की सबसे बेहतरीन जगह है. बसंत ऋतू में इस घाटी का नजारा देखने लायक होता है. पूरी घाटी हरे-भरे घास से भर जाती है और हरे-भरे घास के चारों तरफ पर्वत श्रेणियों का खूबसूरत नजारा कश्मीर की घाटी का सबसे अदभुत नजारा है.

तंगमार्ग

बारामुल्ला जिले में स्थित तंगमार्ग, गुलमर्ग से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह पूरे क्षेत्र में हैंडीक्राफ्ट के कामों की वजह से प्रसिद्द है.

गुलमर्ग बायोस्फियर रिज़र्व

गुलमर्ग बायोस्फियर रिज़र्व, कई लुप्त होते जा रहे जीवों को आवास स्थल है. यहां आपको कई अज्ञात किस्म के पेड़ पौधे भी देखने को मिलेंगे.

वेरीनाग

वेरीनाग एक जल प्रवाह है जो पीर पंजाल के बनिबल पास के आधार पर स्थित है. वेरीनाग प्रवाह झेलम नदी का ही एक स्रोत है.

अलपाथर झील

चीड़ और देवदार के पेड़ों से घिरी यह झील अफरवात चोटी के नीचे स्थित है. इस खूबसूरत झील का पानी मध्‍य जून तक बर्फ बना रहता है.

स्ट्रॉबेरी घाटी

गर्मी के मौसम में आप यहां आकर फ्रेश स्ट्रॉबेरी के भरपूर मजे ले सकते हैं.

फिरोजपुरा गांव

तंगमार्ग में स्थित फिरोजपुरा गांव का दृश्य ठण्ड के मौसम में शानदार होता है. आपको ऐसा लगेगा कि आप स्विट्जरलैंड के किसी क्षेत्र में आ गए हो.

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Summer Special: चलो! माउंट आबू घूम आते हैं

राजस्थान में अरावली पर्वतमालाएं गर्मी से सुकून भरे पल का एहसास कराती हैं. मरुस्थल के बीच हरियाली भरी जगह एक अद्वितीय खूबसूरती है. जी हाँ हम बात कर रहे हैं माउंट आबू की जो राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन है. अरावली पर्वतमालाएं इस हिल स्टीव की खूबसूरती में चार चांद लगाती हैं. इसी तरह यह जगह कई पर्यटक आकर्षणों से भी भरी पड़ी है.

चलिए आज हम इसी खूबसूरत जगह की प्रमुख जगहों की सैर पर चलते हैं और इसकी खूबसूरती को सराहते हैं.

माउंट आबू वाइल्डलाइफ सेंचुअरी

माउंट आबू के जंगलों में कई जातियों के वनस्पति और जीवों पाए जाते हैं. अरावली पर्वत के ये जंगल यहां रहने वाले तेंदुओं के लिए प्रसिद्ध हैं. यहां कई अन्य जीव जैसे गीदड़, जंगली बिल्लियां, सांभर, भारत कस्तूरी बिलाव आदि भी पाए जाते हैं. इस हिल स्टेशन का यह इकलौता वाइल्डलाइफ सेंचुअरी पर्यटकों के बीच सबसे प्रमुख आकर्षण का केंद्र है.

नक्की झील

नक्की झील को एक मजदूर रसिया बालम ने अपने नाखूनों द्वारा खोद था. कथानुसार वहां के राजा की शर्त थी कि जो भी एक रात में वहां झील खोद देगा उससे वह अपनी पुत्री, राजकुमारी का विवाह करा देगा. नाखुनों से उस झील को खोदने की वजह से उस झील का नाम नक्की झील पड़ा. इस खूबसूरत झील में पर्यटकों के लिए नौका विहार का भी प्रबंध है. इसलिए नक्की झील माउंट आबू के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है.

दिलवाड़ा जैन मंदिर

दिलवाड़ा जैन मंदिर माउंट आबू के प्रसिद्द पांच दिलवाड़ा जैन मंदिर के निर्माण में संगमरमर पत्थरों का उत्तम उपयोग किया गया है. दिलवाड़ा मंदिर का परिसर एक वास्तु चमत्कार और जैन धर्म के लोगों के लिए प्रसिद्द पर्यटक स्थल भी है. मंदिर में की गयी मनमोहक नक्काशियां जैन पौराणिक कथाओं का चित्रण करती हैं जो इस मंदिर के प्रमुख आकर्षणों में से एक है.

अचलगढ़ का किला

अचलगढ़ का किला माउंट आबू में स्थित एक प्राचीन किला है. हालांकि इस किले का निर्माण परमार वंश ने किया था, पर इस किले का पुनर्निर्माण राजपूतों के राजा राणा कुंभा ने करवाया था. दुःख की बात है कि अब किले का ज्यादातर हिस्सा खंडहर में तब्दील हो गया है पर यह क्षेत्र आज भी इस प्रसिद्ध है.

गुरु शिखर

गुरु शिखर अगर आप माउंट आबू के चारों तरफ मनोरम दृश्य के मजे लेना चाहते हैं तो गुरु शिखर पॉइंट की ओर निकल पड़िये. यह शिखर अरावली पर्वत में सबसे उच्चतम बिंदु है और माउंट आबू से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर ही है. गुरु शिखर का अद्भुत दृश्य, हिल स्टेशन के नजदीक ही प्रमुख नजारों में से एक है. माउंट आबू पूरे साल अपने कई सारे प्रमुख आकर्षणों के साथ कई पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करता है. हालांकि अक्टूबर से फरवरी महीने का समय राजस्थान जैसे मरुस्थलीय क्षेत्र के इकलौते हिल स्टेशन की यात्रा के लिए सबसे सही समय है. अपनी गोद में कई सारे आकर्षक केंद्रों को समेटे हुए माउंट आबू पर्यटन के लिए एक आदर्श केंद्र है.

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Summer Special: नेचर का अनछुआ खजाना है धारचूला

आए ठहरे और रवाना हो गए, जिन्दगी क्या है सफर की बात है…

रोजाना बस से, ट्रेन से या मेट्रो से 9 से 5 की नौकरी करने के लिए किया जाने वाला सफर, सफर नहीं कहलाता. गौरतलब है कि, जिन्दगी है तो जिए जा रहे हैं… मशीनी दुनिया की मशीनी आदतों की बलिहारी, चंद लम्हें खुद के लिए निकालना कोई गुनाह तो नहीं है. और चंद लम्हें खुद के लिए निकालने का मतलब किसी रिश्तेदार के यहां चाय-बिस्किट खाने जाना कभी नहीं होता, न ही 1 हफ्ते की छुट्टियां लेकर किसी भीड़-भाड़ वाले पर्यटन स्थल की यात्रा, सुकून देती है. ऐसी यात्रा में मजा बहुत आता है, इसमें कोई शक नहीं है. पर अगर इंसानों से ही बचना था तो भीड़-भाड़ वाले इलाकों में जाने का कोई तुक नहीं है.

तो क्यों न किसी ऐसी जगह की यात्रा की जाए, जहां इंसानी चहल-पहल कम हो पर प्राकृतिक सौंदर्य दोगुना हो? आराम से कुछ दिन बिताने हैं तो धारचूला जरूर जाएं. यह जगह इंसानों के बीच उतनी लोकप्रिय नहीं हो पाई है, शायद इसलिए अभी तक शोषित होने से बची हुई है.

धारचूला उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में बसा एक खूबसूरत शहर है. हां, शहर के बाशिंदों को यह शहर नहीं लगेगा, क्योंकि यहां शहर जैसी सुविधायें नहीं हैं पर यहां की खूबसूरती कॉन्क्रीट के जंगलों में उपलब्ध सुविधाओं के सामने कुछ नहीं है. हिमालय की पहाड़ियों के बीचों-बीच बसा है धारचूला. यहां के स्थानीय निवासियों के अनुसार किसी जमाने में यहां से कई व्यापारी मार्ग होकर गुजरते थे. यह चारों तरफ से हिमालय की खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा हुआ बेहद खूबसूरत कस्बा है.

यहां के निवासी पहाड़ियों के उस पर बसे दारचूला के निवासियों से काफी मिलते-जुलते हैं. दारचूला नेपाल का एक कस्बा है. जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि उत्तराखंड के बाकि जगहों के मुकाबले यहां पर्यटकों की चहल-पहल नहीं रहती और यह इलाका काफी शांत रहता है.

समुद्रतल से 925 मीटर की की ऊंचाई पर भारत-नेपाल बोर्डर के पास बसा धारचूला अपने में अद्वितीय खूबसूरती समेटे हुए एक छोटा सा कस्बा है. धारचूला, ‘धार’ और ‘चूल्हा’ शब्द से बना है, क्योंकि इसका आकार, चूल्हे जैसा है. 1962 के युद्ध से पहले तक यह व्यापार का एक मुख्य शहर था. युद्ध के बाद भारतीयों और तिब्बतियों के बीच सारे व्यापारिक रिश्तें खत्म हो गए. धारचूला और नेपाल के दारचूला के बाशिंदों की संस्कृति, बोल-चाल, रहन-शहन काफी मिलते-जुलते हैं. यहां के लोगों को इतनी रियायत दी गई है कि बिना किसी कड़े पासपोर्ट चैकिंग के ये धारचूला से दारचूला और दारचूला से धारचूला आसानी से आ-जा सकते हैं.

धारचूला में देखने को है बहुत कुछ-

1. जौलजिबी

धारचूला से सिर्फ 23 किमी की दूरी पर बसा जौलजिबी गोरी और काली नदियों का संगम स्थल है. यह जगह नेपालियों के लिए भी महत्वपूर्ण है. हर साल नवंबर में यहां कुमाउंनी और नेपालियों द्वारा एक अन्तर्राष्ट्रीय मेले का आयोजन किया जाता है.

2. काली नदी

काली नदी को महाकाली या शारदा नदी भी कहा जाता है. यह नदी नेपाल और भारत की सीमा है. यहां जाएं और अपनी सारी चिंताएं नदी में डालकर नेपाल पहुंचा दें. यहां की खूबसूरती और शांति एक अलग ही सुकून देती है.

3. ओम पर्वत

इस पर्वत को छोटा कैलाश या आदि कैलाश भी कहा जाता है. यह हिन्दु धर्मियों के आस्था का केन्द्र है, पर इस खूबसूरत पर्वत के साथ धर्म को जोड़ने का कोई तुक समझ नहीं आता. यह पर्वत तिब्बत के कैलाश पर्वत से काफी मिलता-जुलता है. इस पर्वत के पास पार्वती झील और जौंगलिंगकोंग झील भी है. यह पर्वत भी भारत-नेपाल की सीमा की है.

4. अस्कोट मुस्क डियर सेन्चुरी

पिथौड़ागढ़ से 54 किमी की दूरी पर बसी यह सेन्चुरी पशु प्रेमियों को काफी पसंद आएगी. अस्कोट सेन्चुरी में कई प्रकार के पशु-पक्षी और पेड़-पौधे पाए जाते हैं. प्रकृति से घिरे और पशु पक्षियों के बीच यह जगह बहुत ज्यादा खूबसूरत है.

5. चिरकिला डैम

धारचूला से लगभग 20 किमी की दूरी पर यह डैम काली नदी पर बनाया गया है. यहां पर सरकार ने वाटर स्पोर्ट्स की भी व्यवस्था की है.

कब जाएं

धारचूला यूं तो कभी भी जाया जा सकता है. पर यहां मार्च-जून और सितंबर-दिसंबर के बीच जाना सही रहेगा. गर्मियों के मौसम में यहां ज्यादा गर्मी नहीं पड़ती और सर्दियों के मौसम में बर्फबारी भी होती है.

कैसे पहुंचे?

हवाई यात्रा : पंतनगर सबसे नजदीकी ऐयरपोर्ट है. टैक्सी से आप आसानी से पंतनगर से धारचूला पहुंच सकते हैं.

रेल यात्रा : तनकपुर सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है. यह पिथौड़ागढ़ से तकरीबन 150 किमी की दूरी पर है. यहां से धारचूला के लिए बसें आसानी से मिल जाती हैं.

सड़क यात्रा : धारचूला रेलवे लाइनों से भले जुड़ा न हो, पर सड़क मार्ग से अच्छे से जुड़ा हैय अलमोड़ा, पिथौड़ागढ़, काठगोदाम, तनकपुर आदि से बस या  टैक्सी से धारचूला पहुंच सकते हैं.

धारचूला खूबसूरती के साथ ही इस बात का भी सबूत देता है कि इंसान दीवारें खड़ी करने के लिए खूबसूरत से खूबसूरत चीजों का भी बंटवारा कर देते हैं. यहां हर जगह आपको नेपाल और भारत के बीच की समानताएं नजर आएंगी.

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गुजरात का सापूतारा एक ऐसा टूरिस्ट डेस्टिनेशन है, जहां ट्रैकिंग,एडवेंचर के साथ वाटरफॉल और दूर-दूर तक हरियाली दिखाई देता है. यह गुजरात का एकमात्र हिल स्टेशन है. भीड़भाड़ से दूर एक ऐसी जगह, जहां गांव और शहर दोनों का मजा साथ-साथ है. शहर की आपाधापी से दूर आदिवासियों के बीच एक दूसरी ही दुनिया है.

फैमिली के साथ करें एंज्वॉय

छुट्टियों पर जाने का मकसद तो बस इतना ही होता है कि ज्यादा से ज्यादा एंज्वॉय कर सकें. जगह इतनी खूबसूरत हो कि सारी परेशानियां और पूरे साल की आपाधापी की थकावट दूर कर सकें. वादियां इतनी खूबसूरत हों कि साल भर मन गुदगुदाता रहे. कुछ ऐसा ही है सापूतारा.

बादल कब आपको भिगो दें, पता ही नहीं चलता. थोड़ी-थोड़ी देर में होने वाली रिमझिम से पूरी वादी हरी-भरी, चंचल-सी लगने लगती है. जिधर नजर दौड़ाइए, वादियां, पहाडिय़ां, उमड़ते-घुमड़ते बादल, तपती गरमी में मन को शांति देते हैं, जबकि ठंड में पहाडिय़ों पर सफेद बर्फ की चादर हर किसी को लुभाती है.

एडवेंचर के साथ मस्ती भी

एक पर्यटक को चंद दिन गुजारने के लिए जो सुकून, मस्ती चाहिए सापूतारा में वह सब एक साथ मौजूद है. घने जंगलों के बीच से गुजरते इस छोटे से टूरिस्ट स्पॉट पर एडवेंचर पसंद करने वाले पर्यटकों के लिए जिप राइडिंग, पैराग्लाइडिंग, माउंटेन बाइकिंग के साथ साथ माउंटेनियरिंग की सुविधाएं भी मौजूद हैं. घने जंगलों से होकर इस गुजराती आदिवासी प्रदेश से गुजरना काफी रोमांचक है. पहाडिय़ों के बीच से जब आप गुजरेंगे, तो जगह- जगह छोटे-छोटे वाटरफॉल रोमांचित करते जाएंगे. झील, फॉल, ट्रैकिंग और एडवेंचर को एंज्वॉय करने का कंपलीट डेस्टिनेशन होने की वजह से युवाओं का फेवरेट टूरिस्ट स्पॉट भी है.

आदिवासियों का जनजीवन

गुजरात पर्यटन सापूतारा को हॉट टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाने और आदिवासी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए खास तरह की तैयारी कर रहा है. आदिवासियों के घरों का चयन कर टूरिस्ट फ्रेंडली और उनके घरों में शौचालयों की व्यवस्था कर रही है. पर्यटक अधिक से अधिक आदिवासियों के जनजीवन को समझ सकें, इसके लिए आदिवासियों को भी खास तरह का प्रशिक्षण दिया गया है. आदिवासियों के साथ एक रात गुजारने की कीमत 2500 से तीन हजार रुपये है.

सापूतारा महाराष्ट्र और गुजरात के बॉर्डर पर है. सापूतारा नासिक और शिरडी से महज 70-75 किलोमीटर की दूरी पर है इसलिए यहां देशभर के पर्यटक आते हैं. दो-दो धार्मिक स्थल के बीच में होने की वजह से यह पूरा क्षेत्र शाकाहारी है. बहुत ढूंढऩे के बाद कहीं एक-आध नानवेज की दुकान मिलती है. इसलिए इसे शाकाहारी शहर भी कहते हैं.

बारिशों का लुत्फ

रिमझिम बारिश के बारे में यहां के लोगों का कहना है कि यहां कभी-भी बारिश होती है और छतरी की जरूरत नहीं पड़ती है. ये बारिश आपको गुदगुदाती हैं. पहाड़ियों पर उमड़ते-घुमड़ते बादल कभी भी पहाड़ियों को अपने आगोश में ले लेते हैं. इन्हीं पहाड़ियों के बीच जिप ट्रैकिंग भी है.

अन्य आकर्षण

सापूतारा नाम के हिसाब से यहां सांप का झुंड या बसेरा होना चाहिए था. शायद वह घने जंगलों में हो. हां, यहां सांप का मंदिर जरूर है, जो पर्यटकों और बच्चों में खासा पॉपुलर है. यहां एक झील भी है, जो कपल्स के लिए मोस्ट रोमांटिक डेटिंग प्लेस की तरह दिखाई देता है. बोटिंग करते लोग और बारिश पूरे वातावरण को रोमांचक बना देता है. यहां पर जगह-जगह छल्ली मिलती है-नमक, मिर्च और नींबू के साथ,चाय और उबली हुई मूंगफली. अलग ही मजा है उबली मूंगफली का भी. यहां से ही कुछ दूरी पर है गिरा फॉल, जिसे नियाग्रा फॉल के नाम से भी जाना जाता है. यहां पहुचने का रास्ता घने जंगलों से होकर गुजरता है. मध्यमवर्गीय परिवारों का भी यह फेवरेट टूरिस्ट डेस्टिनेशन है, क्योंकि यहां 1100 रुपये से लेकर 5500 रुपये तक के कमरे मौजूद हैं.

कैसे पहुंचें

सापूतारा सूरत, नासिक या शिरडी से भी पहुंचा जा सकता है. नजदीकी हवाई अड्डा सूरत है, जो करीब 170 किमी. की दूरी पर है. छोटी लाइन की ट्रेन से बाघई फिर वहां से सापूतारा पहुंच सकते हैं.

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Travel Special: चलिए टॉय ट्रेन के मजेदार सफर पर

खूबसूरत वादियों में कभी घने जंगल, तो कभी टनल और चाय के बगानों के बीच से होकर गुजरती टॉय ट्रेन की यात्रा आज भी लोगों को खूब रोमांचित करती है. अगर आप फैमिली के साथ किसी ऐसी ही यात्रा पर निकलने का प्लान बना रहे हैं, तो विश्व धरोहर में शामिल शिमला, ऊटी, माथेरन, दार्जिलिंग के टॉय ट्रेन से बेहतर और क्या हो सकता है?

कालका-शिमला टॉय ट्रेन

हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत वैली हमेशा से पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करती रही है. लेकिन कालका-शिमला टॉय ट्रेन की बात ही कुछ और है. इसे वर्ष 2008 में यूनेस्को ने वल्र्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया था. कालका शिमला रेल का सफर 9 नवंबर, 1903 को शुरू हुआ था. कालका के बाद ट्रेन शिवालिक की पहाड़ियों के घुमावदार रास्तों से होते हुए करीब 2076 मीटर की ऊंचाई पर स्थित खूबसूरत हिल स्टेशन शिमला पहुंचती है. यह दो फीट छह इंच की नैरो गेज लेन पर चलती है.

इस रेल मार्ग में 103 सुरंगें और 861 पुल बने हुए हैं. इस मार्ग पर करीब 919 घुमाव आते हैं. कुछ मोड़ तो काफी तीखे हैं, जहां ट्रेन 48 डिग्री के कोण पर घूमती है. शिमला रेलवे स्टेशन की बात करें, तो छोटा, लेकिन सुंदर स्टेशन है. यहां प्लेटफॉर्म सीधे न होकर थोड़ा घूमा हुआ है. यहां से एक तरफ शिमला शहर और दूसरी तरफ घाटियों और पहाड़ियों के खूबसूरत नजारे देखे जा सकते हैं.

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे (टॉय ट्रेन) को यूनेस्को ने दिसंबर 1999 में वल्र्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया था. यह न्यू जलापाईगुड़ी से दार्जिलिंग के बीच चलती है. इसके बीच की दूरी करीब 78 किलोमीटर है. इन दोनों स्टेशनों के बीच करीब 13 स्टेशन हैं. यह पूरा सफर करीब आठ घंटे का है, लेकिन इस आठ घंटे के रोमांचक सफर को आप ताउम्र नहीं भूल पाएंगे. ट्रेन से दिखने वाले नजारे बेहद लाजवाब होते हैं. वैसे, जब तक आपने इस ट्रेन की सवारी नहीं की, आपकी दार्जिलिंग की यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी.

शहर के बीचों-बीच से गुजरती यह रेल गाड़ी लहराती हुई चाय बागानों के बीच से होकर हरियाली से भरे जंगलों को पार करती हुई, पहाड़ों में बसे छोटे -छोटे गांवों से होती हुई आगे बढ़ती है. इसकी रफ्तार भी काफी कम होती है. अधिकतम रफ्तार 20 किमी. प्रति घंटा है. आप चाहें, तो दौड़ कर भी ट्रेन पकड़ सकते हैं. इस रास्ते पर पड़ने वाले स्टेशन भी आपको अंग्रेजों के जमाने की याद ताजा कराते हैं.

दार्जिलिंग से थोड़ा पहले घुम स्टेशन है, जो भारत के सबसे ऊंचाई पर स्थित रेलवे स्टेशन है. यह करीब 7407 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां से आगे चलकर बतासिया लूप आता है. यहां एक शहीद स्मारक है. यहां से पूरे दार्जिलिंग का खूबसूरत नजारा दिखाई देता है. इसका निर्माण 1879 और 1881 के बीच किया गया था. पहाड़ों की रानी के रूप में मशहूर दार्जिलिंग में पर्यटकों के लिए काफी कुछ है. आप दार्जिलिंग और आसपास हैप्पी वैली टी एस्टेट, बॉटनिकल गार्डन, बतासिया लूप, वॉर मेमोरियल, केबल कार, गोंपा, हिमालियन माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट म्यूजियम आदि देख सकते हैं.

नीलगिरि माउंटेन रेलवे

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे की तरह नीलगिरि माउंटेन रेल भी एक वल्र्ड हेरिटेज साइट है. इसी टॉय ट्रेन पर मशूहर फिल्म ‘दिल से’ के ‘ चल छइयां-छइयां’ गाने की शूटिंग हुई थी. आपको जानकर थोड़ी हैरानी भी हो सकती है कि मेट्टुपालियम-ऊटी नीलगिरि पैसेंजर ट्रेन भारत में चलने वाली सबसे धीमी ट्रेन है. यह लगभग 16 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है. कहीं-कहीं पर तो इसकी रफ्तार 10 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो जाती है. आप चाहें, तो आराम से नीचे उतर कर कुछ देर इधर-उधर टहलकर, वापस इसमें आकर बैठ सकते हैं. मेट्टुपालियम से ऊटी के बीच नीलगिरि माउंटेन ट्रेन की यात्रा का रोमांच ही कुछ और है. इस बीच में करीब 10 रेलवे स्टेशन आते हैं.

मेट्टुपालियम के बाद टॉय ट्रेन के सफर का अंतिम पड़ाव उदगमंदलम है. यह टॉय ट्रेन हिचकोले खाते हरे-भरे जंगलों के बीच से जब ऊटी पहुंचती है, तब आप 2200 मीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर पहुंच चुके होते हैं. मेट्टुपालियम से उदगमंदलम यानी ऊटी तक का सफर करीब 46 किलोमीटर का है. यह सफर करीब पांच घंटे में पूरा होता है. अगर इतिहास की बात करें, तो वर्ष 1891 में मेट्टुपालियम से ऊटी को जोड़ने के लिए रेल लाइन बनाने का काम शुरू हुआ था. पहाड़ों को काट कर बनाए गए इस रेल मार्ग पर 1899 में मेट्टुपालियम से कन्नूर तक ट्रेन की शुरुआत हुई. जून 1908 इस मार्ग का विस्तार उदगमंदलम यानी ऊटी तक किया गया. देश की आजादी के बाद 1951 में यह रेल मार्ग दक्षिण रेलवे का हिस्सा बना. आज भी इस टॉय ट्रेन का सुहाना सफर जारी है.

नरेल-माथेरान टॉय ट्रेन

महाराष्ट्र में स्थित माथेरान छोटा, लेकिन अद्भुत हिल स्टेशन है. यह करीब 2650 फीट की ऊंचाई पर है. नरेल से माथेरान के बीच टॉय ट्रेन के जरिए हिल टॉप की जर्नी काफी रोमांचक होती है. इस रेल मार्ग पर करीब 121 छोटे-छोटे पुल और करीब 221 मोड़ आते हैं. इस मार्ग पर चलने वाली ट्रेनों की स्पीड 20 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा नहीं होती है. माथेरान करीब 803 मीटर की ऊंचाई पर इस मार्ग का सबसे ऊंचा रेलवे स्टेशन है. यह रेलवे की विरासत का एक अद्भुत नमूना है.

माथेरान रेल की शुरुआत 1907 में हुई थी. बारिश के मौसम में एहतियात के तौर पर इस रेल मार्ग को बंद कर दिया जाता है. पर मौसम ठीक रहने पर एक रेलगाड़ी चलाई जाती है. माथेरन का प्राकृतिक नजारा बॉलीवुड के निर्माताओं को हमेशा से आकर्षित करता रहा है.

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Summer Special: North East में गुजारें खूबसूरत पल

जीवन में चाहे जितनी कठिनाइयां क्यों न आएं लेकिन अगर आप अपनों को समय देते हुए साथ साथ काम करते चलते हैं तो कठिनाइयां चुटकियों में कम हो जाती हैं. अपने बिजी शेड्यूल से कुछ वक्त चुराइए और आ जाइए नार्थ की इन रोमांटिक डेस्टिनेशन पर जाए. जहां आप और आपके पार्टनर के बीच सारी गलतफहमियां खत्म हो जायेंगी.

शादी एक ऐसा पवित्र बंधन जो न सिर्फ दो लोगों या दो परिवारों को मिलाती है बल्कि दो आत्माओं को भी एक करती है. एक ऐसी गांठ जो लाइफ को प्यार, आनंद और रोमांस की ओर ले जाता है. तो क्यों न इसमें एक ट्विस्ट डाले जो जाए एक सुखद रोमांटिक ट्रीप पर. पर ज्यादातर लोग यह सोचकर परेशान हो जाते हैं कि आखिर जाए कहां. अपने रोमांटिक ट्रीप को यादगार कैसे बनाए.

तो आइए हम आपको कुछ खूबसूरत और आनंद से भरे रोमांटिक डेस्टिनेशन के बारे में बताते हैं.

1. चंबा

उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित चंबा रोमांटिक युगल के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है. प्रदूषित रहित वातावरण, शांत व मनोरम दृश्य, ऊंचे ऊंचे घने वृक्ष, नदी का कल कल करता पानी और यहां की संस्कृति आपको बेहद भाएगी, कि आप यहीं रह जाने को सोचने लगेंगे. यह जगह सेब के बाग के लिए भी मशहूर है. यहां आप कई आकर्षक मंदिरों के भी दर्शन कर सकते हैं.

2. शिलांग

पूर्वोत्तर भारत का बेहद आकर्षक स्थल शिलांग पूर्वोत्तर भारत का स्कॉटलैंड कहा जाता है. हरे भरे घने जंगल, फूलों की मनमोहक खुशबु, बादलों को ओढ़े पहाड़ और पानी का शोर यह सब देखके मन शिलांग की खूबसूरती में डूब जाता है. यहाँ के लोग और उनकी संस्कृति भी बेमिसाल है, मेहमानों की खातिरदारी का यह एक जीत जागता उदाहरण हैं.

3. नुब्रा घाटी

लद्दाख के बाग के नाम से जाना जाने वाली नुब्रा घाटी फूलों की घाटी कहलाती है. गर्मियों के मौसम में यहाँ पीले रंग के जंगली गुलाब खिल जाते हैं. जिनका दृश्य बेहद लुभावना लगता है. साल बाहर बर्फ से ढकी रहने वाली नुब्रा घाटी कारण विश्व प्रसिद्ध है, जिसे हर युगल जोड़ा पसंद करती है, इसकी ठंडी वादिया प्यार को गर्म करने की कोशिश करती है.

4. सापूतारा

गुजरात का हरा भरा और गुजरात की नमी को समेटे हुए सापूतारा बेहद लोकप्रिय स्थल है. सापूतारा झील, सूर्यास्त प्वाइंट, सूर्योदय प्वाइंट, टाउन व्यू प्वाइंट और गांधी शिखर जैसे कई आकर्षणों के लिए जाना जाता है. यहाँ कई अभ्यारण,पार्क और बाग़ हैं- वंसदा नेशनल पार्क, पूर्णा अभयारण्य, गुलाब उद्यान, रोपवे सापूतारा आदि. यहाँ आकर आप प्राकृतिक नज़ारों का जी भर के लुफ्त उठा सकते हैं.

5. कलिम्‍पोंग

कलिम्‍पोंग भारत के पश्चिम बंगाल राज्‍य में स्थित यह आकर्षक स्थल हमेशा से ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है. आप अपने पार्टनर के साथ यहाँ आ सकते हैं क्यूंकि यहाँ की बर्फ से ढकी चोटियां एक बेहद रोमांटिक दृश्य प्रस्तुत करती हैं. यहाँ की ठंडी ठंडी हवा आपकी सारी थकान पल-भर में गायब कर देगी, जिससे आप एकदम रिलेक्स फील करेंगे.

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Travel Special: ट्रैवल फाइनैंस से बनाएं सुहाना सफर

पर्यटन आज शौक का नहीं, बल्कि लाइफस्टाइल का भी हिस्सा बन चुका है. रोजमर्रा की भागदौड़ भरी जिंदगी में जब नीरसता पनपने लगती है तो इंसान चंद दिनों के लिए मौजमस्ती पर निकलना चाहता है.

हम अपनी छुट्टियों को यादगार बना सकते हैं. किंतु उस के लिए जरूरी है कि हम अपने यात्रा के व्यय को नियंत्रित रखें, क्योंकि लापरवाही से खर्च कर के हम मस्ती तो कर लेंगे, लेकिन बाद में बजट बिगड़ने से उत्पन्न स्थिति अच्छेखासे मूड को खराब भी कर सकती है.

पहले बजट बनाएं

छुट्टियां मनाने के लिए प्राय: एकमुश्त रकम की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह खर्च दैनिक जीवन के सामान्य खर्चों से अलग होता है. इसलिए यह जरूरी है कि हौलिडे प्लान करते समय पहले आप अपना बजट बनाएं. तय करें कि आप कितने दिनों के लिए सफर पर जाना चाहते हैं और कितना पैसा खर्च करना चाहते हैं. उसी आधार पर आप को अपना डैस्टिनेशन चुनना होगा.

आप किस मोड से ट्रैवल करना चाहते हैं और किस तरह के होटल में ठहरना चाहते हैं यह भी आप को बजट के अनुरूप ही तय करना होगा. यदि आप सैल्फ कस्टमाइज टुअर पर जाना चाहते हैं, तो उस के लिए समय रहते बुकिंग करा कर कुछ रुपए बचा सकते हैं.

यदि आप पैकज टुअर पर जाना चाहते हैं तब भी आवश्यक है कि आप जल्द ही पैकेज की बुकिंग करा लें, क्योंकि टुअर औपरेटर जब देखते हैं कि टुअर की डिमांड अधिक है, तो वे भी कीमत बढ़ा देते हैं.

पर्यटन के दौरान रोज आप को कितना व्यय करना पड़ सकता है, बजट बनाते समय इस का अनुमान भी लगाना होगा, ताकि आप उतनी राशि नकद साथ रखें या क्रैडिट कार्ड अथवा एटीएम की लिमिट बचा कर रखें.

स्वतंत्र टुअर किफायती या पैकेज टुअर

अपने देश में घूमने के लिए अधिकतर लोग स्वतंत्र टुअर को प्राथमिकता देते हैं. जबकि विदेश यात्रा के लिए पर्यटक अकसर गु्रप पैकेज टुअर चुनना पसंद करते हैं.

अपने देश में भ्रमण करते समय आप को अपनी मुद्रा में व्यय करना होता है. आप पर्यटन स्थल के परिवेश और वहां की संस्कृति को समझते हैं. इसलिए आप असुरक्षित महसूस नहीं करते. ऐसे टुअर की स्वयं तैयारी करते हुए इसे अपने बजट में आसानी से सीमित रख सकते हैं.

जबकि विदेश यात्रा के मामले में विदेशी मुद्रा और वहां की भाषा, संस्कृति का अंतर होने के कारण पर्यटक के मन में असुरक्षा की भावना बनी रहती है. इसलिए विदेश यात्रा में लोगों को ग्रुप पैकेज टुअर में जाना अच्छा लगता है. वहीं विदेश में होटल, फूड आदि की स्वयं व्यवस्था करना पैकेज टुअर की तुलना में महंगा पड़ता है. इसलिए ट्रैवल फाइनैंस का प्रबंधन करते समय ध्यान रखें कि अपने देश में यात्रा करनी हो तो आप स्वतंत्र टुअर प्लान कर के पैसा बचा सकते हैं और विदेश यात्रा करनी हो तो पैकेज टुअर ज्यादा किफायती रहता है.

बुकिंग कराते समय

जब आप ने यह तय कर लिया कि आप स्वतंत्र टुअर पर निकलना चाहते हैं या पैकेज टुअर पर, तब आप उसी हिसाब से बुकिंग का माध्यम तय करें. खुद अपनी यात्रा मैनेज कर रहे हैं तो पहले ट्रेन या हवाईयात्रा की बुकिंग कराएं. यह आजकल आसानी से औनलाइन कराई जा सकती है.

ध्यान रखें, हवाईयात्रा के लिए आप जितना जल्दी बुकिंग कराएंगे टिकट उतना ही सस्ता मिलेगा. बहुत सी एअरलाइंस 30 दिन या 45 दिन पहले बुकिंग कराने पर बहुत सस्ता टिकट उपलब्ध कराती हैं. इस के अलावा आप लो कौस्ट एअरलाइन का विकल्प भी चुन सकते हैं.

छूट के मौसम में यात्रा करें

कम बजट में पर्यटन का ज्यादा आनंद लेना है, तो आप अपना कार्यक्रम पीक सीजन में न बनाएं. अब देखिए न पीक सीजन में ट्रैवल पैकेज हों या होटल पैकेज सभी महंगे होते हैं. लेकिन उन्हीं पैकेज पर औफ सीजन में 30 से 50% तक का डिस्काउंट मिलता है. तब कई लग्जरी पैकेज हमें अपने बजट के अनुरूप लगने लगते हैं. पीक सीजन में सैलानियों की तादाद ज्यादा होने लगती है, तो हर जगह कीमत शिखर पर पहुंचने लगती है.

विदेश यात्रा के मामले में भी सैलानियों को पीक सीजन से बचना चाहिए. ग्रीष्म अवकाश, न्यूईयर, क्रिसमस और शादियों के सीजन आदि के अलावा आप विदेश यात्रा का कार्यक्रम बनाएंगे तो यकीनन आप को सस्ते पैकेज मिलेंगे.

पहले घूमें फिर भुगतान करें

कभीकभी ऐसा भी हो सकता है कि आप ने बच्चों से छुट्टियों पर निकलने का वादा किया हुआ है, लेकिन हौलिडे प्लानिंग करते समय आप को लगता है कि उस समय आप अपनी बचत या रूटीन खर्चों से उतना पैसा नहीं निकाल पाएंगे. तब जरूरी नहीं कि आप छुट्टियां मनाने की योजना को स्थगित कर पूरे परिवार को निराश करें.

इस का सब से अच्छा विकल्प आज ट्रैवल लोन है. जी हां, लोगों के बढ़ते पर्यटन शौक को देखते हुए आज अनेक बैंक अपने ग्राहकों को ट्रैवल लोन देते हैं. यानी आप अपना ट्रैवल प्लान फाइनैंस करा कर आज घूमें और भविष्य में भुगतान करें. सामान्यतया यह लोन 1 वर्ष से 3 वर्ष के दौरान चुकाना होता है. ट्रैवल लोन ले कर आप अपने देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में भी घूम सकते हैं.

सफर के साथी क्रैडिट व ट्रैवल कार्ड

सफर की प्लानिंग करते समय डैस्टिनेशन पर बहुत से खर्चों और शौपिंग आदि के लिए आप के पास पर्याप्त राशि होनी चाहिए. लेकिन आजकल ज्यादा नकदी साथ रखना भी उचित नहीं है. ऐसे में क्रैडिट व डेबिट कार्ड आप के लिए बहुत सहायक होते हैं.

विदेश यात्रा के दौरान फंड की समुचित व्यवस्था बनाए रखने के लिए फौरेन करेंसी ट्रैवल कार्ड रखना अच्छा विकल्प है. एचडीएफसी, आईसीआईसीआई, ऐक्सिस बैंक आदि की बड़े शहरों की चुनिंदा शाखाओं में इस तरह के ट्रैवल कार्ड जारी किए जाते हैं.

ओवरसीज इंश्योरैंस

विदेश यात्रा की तैयारी में ओवरसीज इंश्योरैंस एक आवश्यक कदम होता है. इस के अंतर्गत कवर होने वाले जोखिम जानने के बाद आप भी समझ सकते हैं कि थोड़े से प्रीमियम का भुगतान कर हम कितने सारे अकस्मात हो सकने वाले खर्चों से अपनी सुरक्षा कर लेते हैं.

इस पौलिसी के अंतर्गत दुर्घटना या बीमारी के इलाज से जुड़े खर्चे मुख्य रूप से कवर होते हैं. इन के अतिरिक्त हवाईजहाज में ले जाने वाले सामान का खोना या मिलने में एकदो दिन का विलंब होने का खर्च, पासपोर्ट गुम होने पर किया जाने वाला खर्च, किसी चूक से होटल या शोरूम आदि में हुई क्षति की भरपाई या ऐसे ही किसी और आकस्मिक नुकसान की स्थिति में यह पौलिसी एक सुरक्षाकवच के समान काम आती है.

ओवरसीज इंश्योरैंस पौलिसी ज्यादा महंगी भी नहीं होती. यह पौलिसी 1 दिन से 180 दिन के बीच किसी भी अवधि की ली जा सकती है. इस का प्रीमियम पौलिसी की अवधि एवं यात्री की आयु पर निर्भर करता है.

यह पौलिसी सभी साधारण बीमा कंपनियों एवं प्राइवेट इंश्योरैंस कंपनियों द्वारा जारी की जाती है. इस के लिए आप को अपने पासपोर्ट की कौपी देनी होगी. कुछ कंपनियां इस के लिए यात्री की मैडिकल रिपोर्ट भी साथ मांगती हैं. यात्रा के दौरान पौलिसी के साथ उन संस्थानों के फोन नंबर एवं वैबसाइट पते अवश्य साथ रखने होंगे.

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अंगरेजों ने अपने शासनकाल के दौरान हिल स्टेशन तब बनवाए जब वे देश की भीषण गरमी से उकता गए. गरमी के मौसम में सुकून भरे पल किसी ठंडी और शांत जगह पर बिता सकें, इस के लिए देश के पहाड़ी इलाकों में खूबसूरत और मनोरम ठिकानों की तफ्तीश कर उन्होंने देश में हिल स्टेशन परंपरा शुरू की. आज भी देश में पर्यटन के सब से मजेदार और मनभावन ठिकाने यही स्टेशन माने जाते हैं. डलहौजी इसी हिल स्टेशन परंपरा का एक हिस्सा है.

डलहौजी का पर्वतीय सौंदर्य सैलानियों के दिल में ऐसी अनोखी छाप छोड़ देता है कि यहां बारबार आने का मन करता है. 19वीं सदी में अंगरेज शासकों द्वारा बसाया गया यह टाउन अपने ऐतिहासिक महत्त्व और प्राकृतिक रमणीयता के लिए जाना जाता है. यहां मौजूद शानदार गोल्फ कोर्स, प्राकृतिक अभयारण्य और नदियों की जलधाराओं के संगम जैसे अनेक स्थलों के आकर्षण में बंधे हजारों पर्यटक हर वर्ष आते हैं.

प्राकृतिक सौंदर्य, मनमोहक आबोहवा, ढेरों दर्शनीय स्थल और देवदार के घने जंगलों से घिरा डलहौजी, हिमाचल प्रदेश के चंपा जिले में स्थित खूबसूरत हिल स्टेशन है. यह स्थल 5 पहाडि़यों कठलौंग, पोट्रेन, तेहरा, बकरोटा और बलून पर बसा है.

समुद्रतल से 2 हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह टाउन 13 किलोमीटर के छोटे से क्षेत्रफल में फैला है. एक ओर दूरदूर तक फैली बर्फीली चोटियां तो दूसरी ओर चिनाब, व्यास और रावी नदियों की कलकल करती जलधारा, मनमोहक नजारा पेश करती है.

पंचपुला और सतधारा

डलहौजी से केवल 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, पंचपुला. इस का नाम यहां पर मौजूद प्राकृतिक कुंड और उस पर बने छोटेछोटे 5 पुलों के आधार पर रखा गया है. यहां से कुछ दूरी पर एक अन्य रमणीय स्थल सतधारा झरना स्थित है. किसी समय तक यहां 7 जलधाराएं बहती थीं. लेकिन अब केवल एक ही धारा बची है. बावजूद इस के, इस झरने का सौंदर्य बरकरार है. माना जाता है कि सतधारा का जल प्राकृतिक औषधीय गुणों से भरपूर और अनेक रोगों का निवारण करने की क्षमता रखता है.

खजियार का सौंदर्य

डलहौजी हिल स्टेशन की यात्रा बगैर खजियार देखे अधूरी ही लगती है. यह स्थल डलहौजी से 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. दरअसल, खजियार उस मनमोहक झील के लिए प्रसिद्ध है जिस का आकार तश्तरीनुमा है. यह स्थल देवदार के लंबे और घने जंगलों के बीच स्थित है.

गोल्फ खेलने के शौकीन पर्यटकों को यह स्थान विशेषरूप से पसंद आता है, क्योंकि यहां एक शानदार गोल्फ कोर्स भी मौजूद है. इस के साथ ही व्यास, रावी और चिनाब नदियों का अद्भुत संगम यहां से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित डायनकुंड में देखा जा सकता है. यह डलहौजी का सब से ऊंचा स्थल है.

चंबा का दिल कहे जाने वाले हरियाले चैगान के एक छोर पर बने हरिराय मंदिर में अद्वितीय कलाकौशल की झलक देखने को मिलती है. यहीं पर भूरी सिंह संग्रहालय है, जहां ऐतिहासिक दस्तावेज, पेंटिंग्स, पनघट शिलाएं, अस्त्रशस्त्र और सिक्के संग्रहीत हैं.

आकर्षक है डलहौजी का जीपीओ इलाका

डलहौजी का जीपीओ इलाका भी काफी चहलपहल भरा माना जाता है. जीपीओ से करीब 2 किलोमीटर दूर सुभाष बावली है. कहा जाता है कि इस जगह पर सुभाष चंद्र बोस करीब 5 महीने रुके थे. इस दौरान वे इसी बावली का पानी पीते थे. यहां से बर्फ से ढके ऊंचे पर्वतों का विहंगम नजारा देखते ही बनता है. सुभाष बावली से लगभग आधा किलोमीटर दूर स्थित जंध्री घाट में मनोहर पैलेस ऊंचेऊंचे चीड़ के पेड़ों के बीच स्थित है. यह जगह चंबा के पूर्व शासक के पैलेस के लिए भी प्रसिद्ध है.

कब जाएं

डलहौजी का मौसम वैसे तो साल भर सुहाना रहता है, लेकिन सब से उपयुक्त समय अप्रैल से जुलाई और अक्तूबर से दिसंबर के बीच का माना जाता है.

-राजेश कुमार, अशोक वशिष्ठ

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Travel Special: घूमने जाते समय मददगार साबित होंगे ये 15 टिप्स

बच्चों के ग्रीष्मावकाश प्रारम्भ हो चुके हैं और 2 वर्ष के कोरोना काल के बाद अब सभी अपने मनपसन्द पर्यटन स्थलों पर घूमने जाने का प्लान बना रहे हैं. घूमने जाने से पूर्व हमें 2 प्रकार की तैयारियां करनी होती हैं एक तो सफर के लिए दूसरे घर के लिए ताकि जब हम घूमकर आयें तो घर साफ़ सुथरा और व्यवस्थित मिले और आते ही हमें काम में न जुटना पड़े. यदि आप भी घूमने जाने का प्लान बना रहे हैं तो इन टिप्स आपके लिए बेहद मददगार हो सकते हैं-

1-आजकल अधिकांश पर्यटन स्थलों पर घूमने के लिए सभी बुकिंग्स ऑनलाइन होती है, भीडभाड से बचने और अपने सफर को आनन्ददायक  बनाने के लिए आप अपने रुकने और घूमने की सभी बुकिंग्स ऑनलाइन ही करके जायें.

2-जो भी बुकिंग्स आपने ऑनलाइन की हैं उनके या तो प्रिंट निकाल लें अथवा रसीद को स्केन करके अपने मोबाईल में सेव कर लें इसके अतिरिक्त घर से निकलने से पूर्व अपने होटल या रिजोर्ट में फोन काल अवश्य कर लें ताकि आपके पहुंचने पर आपको अपना रूम साफ सुथरा मिले.

3-यदि आपके बच्चे 10 वर्ष से अधिक उम्र के हैं तो परिवार के सभी सदस्यों के बैग्स अलग अलग रखकर उन्हें अपने बैग्स की जिम्मेदारी सौंप दें इससे आप फ्री होकर घूमने का आनन्द ले सकेंगी.

4-परिवार के सभी सदस्यों के आधार कार्ड और वेक्सिनेशन सर्टिफिकेट अपने मोबाईल में सेव करके रखें ताकि आवश्यता पड़ने पर आप उनका उपयोग कर सकें.

5-यदि आपका सफर लम्बा है तो अपने मोबाईल, टैब या लेपटॉप में अपनी मनपसन्द मूवी या गाने डाऊनलोड कर लें ताकि आपको सफर में बोरियत न हो.

6-आजकल फोटो खींचने के लिए मोबाईल का ही उपयोग किया जाता है, सफर पर जाने से पूर्व अपने मोबाईल की गेलरी में से सभी वीडिओ और फोटोज को लेपटॉप में ट्रांसफर कर लें ताकि घूमने के दौरान आप भरपूर फोटोज ले सकें.

7-अपने साथ पावर बैंक, अतिरिक्त मेमोरी कार्ड भी रखें ताकि आपका मोबाईल हर समय अपडेट रहे.

8-सफर की तैयारियों के दौरान अक्सर घर अव्यवस्थित हो जाता है और फिर वापस आकर अस्त व्यस्त घर को देखकर आपका ही मूड ऑफ हो जाता है इससे बचने के लिए आप जाने से पूर्व घर को भली भांति व्यवस्थित करके जायें ताकि वापस आकर आप चैन से आराम फरमा सकें.

9-जहां तक सम्भव हो किचिन के सिंक में जूठे बर्तन न छोड़ें साथ किचिन के प्लेटफोर्म और गैस स्टैंड की अच्छी तरह सफाई करके ही जायें ताकि लौटने पर आपको बदबू और काकरोच आदि का सामना न करना पड़े.

10-फ्रिज में गर्म करके रखा गया दूध 10 से 15 दिन तक खराब नहीं होता, वापस आने पर आपको चाय और बच्चों के लिए दूध आदि के लिए परेशान न होना पड़े इसलिए फ्रिज में ढककर दूध रखकर जायें.

11-टमाटर, पालक, धनिया, पुदीना, कच्ची केरी आदि को मिक्सी में पीस लें और इस प्यूरी को आइस ट्रे में फ्रिज में जमा दें, इनके अतिरिक्त जो भी सब्जियां उन्हें या तो हटा दें अथवा किसी कामगार को दे दें.

12-घर के बेड, सोफा, डायनिंग टेबल आदि पर पुरानी चादर डाल दें वापस आकर केवल चादर हटाकर आप अपना दैनिक कार्य प्रारम्भ कर सकें.

13-यदि आप अपनी गाड़ी से जा रहे हैं तो फ़ास्ट टैग अवश्य लगवाएं अन्यथा आपको दोगुना टोल टैक्स देना पड़ सकता है. फ़ास्ट टैग आर टी ओ आफिस, बैंक या किसी भी नागरिक सुविधा केंद्र से आसानी से प्राप्त किया जा सकता है.

14-अपने साथ हैण्ड सेनेटाइजर, मास्क, उल्टी, दस्त, बुखार, सिरदर्द की आवश्यक दवाइयां तथा ग्लूकोज अवश्य ले जायें साथ ही तरल पदार्थों का भरपूर सेवन करके स्वयं को हाईड्रेट रखें.

15-यदि सम्भव हो तो अपने साथ कुछ खाद्य पदार्थ घर से बनाकर ले जायें क्योंकि कई बार रास्ते में कुछ भी नहीं मिलता और सफर में काम के अभाव में भूख तो लगती ही है.

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घूमने का शौक हर किसी को होता है. भारत में अनेक ऐसी जगहें हैं, जो खूबसूरती से भरी होने के साथसाथ वहां पर तरहतरह के ऐडवैंचर स्पोर्ट्स का आयोजन किया जाता है.

आइए, जानते हैं ऐसी जगहों के बारे में:

ऋषिकेश फौर राफ्टिंग लवर्स

अगर आप पानी के साथ अठखेलियां करने को बेचैन हैं, तो आप के लिए बेहतरीन रिवर राफ्टिंग डैस्टिनेशन है ऋषिकेश. यह जगह उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल में स्थित है. यहां विदेशों से भारत भ्रमण करने आए लोग भी इस राफ्टिंग का मजा जरूर लेते हैं क्योंकि यह ऐडवैंचर है ही इतना मजेदार क्योंकि रबड़ की नाव में सफेद वाटर में घुमावदार रास्तों से गुजरना किसी रोमांच से कम नहीं होता है.

इस की खासीयत यह है कि अगर आप को तैरना नहीं भी आता तो भी आप गाइड की फुल देखरेख में इस ऐडवैंचर का लुत्फ उठा सकते हैं.

इन 4 जगहों पर होती है राफ्टिंग:  ब्रह्मपुरी से ऋषिकेश- 9 किलोमीटर, शिवपुरी से ऋषिकेश- 16 किलोमीटर, मरीन ड्राइव से ऋषिकेश- 25 किलोमीटर, कौड़ीयाला से ऋषिकेश- 35 किलोमीटर.

बैस्ट मौसम: यदि आप राफ्टिंग के लिए ऋषिकेश आने का प्लान कर रहे हैं तो मार्च से मई के मिड तक का समय अच्छा है.

बुकिंग टिप्स: आप राफ्टिंग के लिए बुकिंग ऋषिकेश जा कर ही कराएं क्योंकि वहां जा कर आप रेट्स को कंपेयर कर के अच्छाखासा डिस्काउंट ले सकते हैं. जल्दबाजी कर के बुकिंग न करवाएं वरना यह आप की जेब पर भारी पड़ सकता है. वैसे आप ₹1,000 से ₹1,500 में राफ्टिंग का लुत्फ उठा सकते हैं और अगर आप को ग्रुप राफ्टिंग करनी है तो इस पर भी आप डिस्काउंट ले सकते हैं.

इस बात का ध्यान रखें कि राफ्ट में गाइड वीडियो बनाने के पैसे अलग से चार्ज करता है. ऐसे में अगर इस की जरूरत हो तभी वीडियो बनवाएं वरना राफ्टिंग का लुत्फ ही उठाएं.

पैराग्लाइडिंग इन कुल्लूमनाली

आसमान की ऊंचाइयों को करीब से देखने का जज्बा हर किसी में नहीं होता और जिस में होता है वह खुद को पैराग्लाइडिंग करने से रोक नहीं पाता. तभी तो देश में पैराग्लाइडिंग ऐडवैंचर की कमी नहीं है और इस ऐडवैंचर के शौकीन लोग इसे करने के लिए कहीं भी पहुंच जाते हैं. इस में एक बहुत ही फेमस जगह है मनाली, जो भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के कुल्लू जिले में स्थित है. वहां की ब्यूटी को देखने के लिए हर साल हजारों लोग आते हैं.

यह जगह अपनी सुंदरता के लिए ही नहीं बल्कि ऐडवैंचर के लिए भी जानी जाती है. इसलिए पैराग्लाइडिंग प्रेमी होने पर वहां जाना न भूलें क्योंकि वहां आप को शौर्ट पैराग्लाइडिंग राइड से ले कर लौंग पैराग्लाइडिंग राइड तक का लुत्फ उठाने का मौका जो मिलेगा.

इन जगहों पर होती है पैराग्लाइडिंग: सोलंग वैली- 15 किलोमीटर फ्रौम मनाली, (पैराग्लाइडिंग डुरेशन- 20 मिनट), फटरु- लोंगर फ्लाइट टाइम, (पैराग्लाइडिंग डुरेशन- 30 से 35 मिनट), बिजली महादेव- लोंगर फ्लाइट टाइम, (पैराग्लाइडिंग डुरेशन- 35 से 40 मिनट), कांगड़ा वैली- (पैराग्लाइडिंग डुरेशन- 15 से 25 मिनट), मरही- यहां पैराग्लाइडिंग 3000 मीटर की ऊंचाई से होती है, जो काफी ऊंची है. (पैराग्लाइडिंग डुरेशन- 30-40 मिनट).

बैस्ट मौसम: मई से अक्तेबर. मौसम खराब होने पर पैराग्लाइडिंग नहीं करवाई जाती है. इस ऐडवैंचर को एक्सपर्ट की देखरेख में कराया जाता है, इसलिए पहली बार करने वालों को भी इस से डरना नहीं चाहिए.

बुकिंग टिप्स: आप पैराग्लाइडिंग के लिए बुकिंग जहां आप ठहरे हुए हैं, वहां आसपास से पूछ कर करें या फिर जिस जगह पर आप को इन ऐडवैंचर को करना है, वहां अच्छी तरह पूछ कर रेट्स को कंपेयर कर के आप अपनी बातों से हैवी डिस्काउंट भी ले सकते हैं. आप शौर्ट व लौंग फ्लाई के हिसाब से ₹1,000-₹2,500 में इस ऐडवैंचर का लुत्फ उठा सकते हैं. इस बात का ध्यान रखें कि तुरंत बुकिंग न कराएं क्योंकि ज्यादा जल्दी आप की पौकेट पर भारी पड़ सकती है.

स्कूबा डाइविंग अंडमान

अंडमान के बीच, नीला पानी, चारों तरफ फैली खूबसूरती हर किसी का मन मोह लेती है, साथ ही यहां के अंडरवाटर ऐडवैंचर्स तो ऐडवैंचर लवर्स की जान बन गए हैं. किसे पसंद नहीं होगा कि समुद्र के अंदर जा कर कोरेल, औक्टोपस व बड़ी मछलियों को नजदीक से देखने का अनुभव करना. तो अगर आप भी हैं स्कूबा डाइविंग के दीवाने तो इस जगह को भूल कर भी मिस न करें. यह वन टाइम ऐक्सपीरियंस जीवनभर आप को याद रहेगा.

इन जगहों पर होती है स्कूबा डाइविंग

हैवलौक आइलैंड: क्लीयर वाटर ऐंड व्यू औफ वाइब्रेंट फिशेज. सेफ ऐंड स्ट्रैस फ्री ऐडवैंचर. 30 मिनट राइड इन ₹2,000 से ₹2,500.

नार्थ बे आइलैंड: ब्लू वाटर विद फुल औफ कोरल्स.

नील आइलैंड: वाटर डैप्थ इज मीडियम, प्राइज इज लिटिल हाई. वंडरफुल प्लेस फौर स्कूबा डाइविंग.

बारेन आइलैंड: यह आइलैंड स्कूबा के लिए बैस्ट है, लेकिन महंगा है.

बैस्ट मौसम: अक्तूबर से मिड मई. मौनसून के मौसम में अंडरवाटर ऐक्टिविटीज बंद कर दी जाती हैं.

बुकिंग टिप्स: आप पीएडीआई सर्टिफाइड डाइवर्स से ही स्कूबा डाइविंग को प्लान करें क्योंकि इस से सेफ्टी के साथसाथ आप इस राइड को अच्छी तरह ऐंजौय कर पाएंगे. आप अपने पैकेज के साथ इसे बुक कर सकते हैं क्योंकि अधिकांश पैकेजस में यह कौंप्लिमेंट्री होता है. कोशिश करें कि इस पर अच्छाखासा डिस्काउंट लें ताकि मजा भी ले सकें और पौकेट पर भी ज्यादा बो झ न पड़े.

स्कीइंग गुलमर्ग

क्या आप की स्कीइंग में रुचि है, लेकिन आप यही सोच रहे हैं कि किस जगह जा कर अपने स्कीइंग के ऐडवैंचर को पूरा करें तो आप को बता दें कि गुलमर्ग कश्मीर से 56 किलोमीटर दूर एक खूबसूरत हिल स्टेशन है. यहां की चोटियां बर्फ से ढकी होने के कारण यह जगह बेहद खूबसूरत दिखती है. यह आप की ख्वाहिश को पूरा कर सकती है.

यहां करें स्कीइंग: गुलमर्ग, बारामुला जिला.

फर्स्ट फेज: स्कीइंग के लिए कोंगडोरी, जो 1476 फुट ढलान है, यह स्कीइंग के शौकीनों को रोमांचकारी अनुभव प्रदान करती है.

सैकंड फेज: अपरवाट पीक, जो 2624 फुट की दूरी पर है, जो अनुभवी स्कीइंग के शौकीनों में अधिक लोकप्रिय है.

बैस्ट मौसम: दिसंबर टू मिड फरवरी. वैसे मार्च से मई महीनों का मौसम भी काफी बेहतरीन रहता है.

बुकिंग टिप्स: आप औनलाइन बुकिंग.कौम से बुक करने के साथसाथ वहां जा कर भी बुक कर सकते हैं. इक्विपमैंट की कौस्ट ₹700 से ₹1,000 के बीच होता है और अगर आप इंस्ट्रक्टर लेते हैं तो वह आप से अलग से दिन के हिसाब से ₹1,200 से ₹2,000 तक लेता है. सब का रेट अलगअलग है, इसलिए अच्छी तरह रिसर्च कर के ही बुकिंग करें.

स्काई डाइविंग मैसूर

भारत के कर्नाटक राज्य के मैसूर जिले में स्थित एक नगर है, जो स्काई डाइविंग के लिए खासा प्रचलित है. तभी यहां स्काई डाइविंग करने के शौकीन खुद को यहां लाए बिना रह नहीं पाते हैं. मैसूर की चामुंडी हिल्स स्काई डाइविंग के लिए काफी फेमस है. लेकिन यहां स्काई डाइविंग का लुत्फ उठाने के लिए आप को पहले एक दिन की ट्रेनिंग लेनी होगी.

यहां आप टेनडेम स्टेटिक व ऐक्ससेलरेटेड फ्रीफाल्स जंप्स में से किसी का भी चुनाव कर सकते हैं. दोनों ही काफी रोमांचकारी होते हैं. टेनडेम स्टेटिक नए लोगों के लिए अच्छी है क्योंकि इस में प्रशिक्षित स्काई डाइवर आप के साथ एक ही रस्सी से बंधा होता है और पूरा कंट्रोल उस के हाथ में ही होता है. लेकिन ऐक्ससेलरेटेड फ्रीफाल्स जंप काफी मुश्किल माना जाता है. इस में आप के साथ इंस्ट्रक्टर नहीं होता. अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप किस का चुनाव करें.

बैस्ट मौसम: जब भी मौसम खुला हुआ हो, तो आप इस का लुत्फ उठा सकते हैं. वैसे सुबह 7 से 9 बजे का समय बैस्ट है.

बुकिंग टिप्स: आप इस के लिए मैसूर की स्काई राइडिंग से जुड़ी वैबसाइट्स की मदद ले सकते हैं या फिर वहां पहुंच कर औफलाइन बुकिंग भी अच्छा विकल्प है. आप को स्काई डाइविंग के लिए ₹30 से ₹35 हजार खर्च करने पड़ सकते हैं. इसलिए अगर आप ऐडवैंचर करने के लिए तैयार हैं तो इन जगहों पर जाना न भूलें.

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