Valentine’s Day 2024: ऐसा प्यार कहां: क्या थी पवन और गीता के प्यार की कहानी

पवन जमीन पर अपने दोनों हाथों को सिर पर रखे हुए ऊकड़ू बैठा था. वह अचरज भरी निगाहों से देखता कि कैसे जयपुर की तेज रफ्तार में सभी अपनी राह पर सरपट भागे जा रहे थे.

अचानक एक गरीब लड़का, जो भीख मांग रहा था, एक गाड़ी के धक्के से गिर गया. मगर उस की तरफ मुड़ कर देखने की जहमत किसी ने नहीं उठाई.

थोड़ी देर तक तो उस लड़के ने इधरउधर देखा कि कोई उस की मदद करने आएगा और सहारा दे कर उठाएगा, मगर जब कोई मदद न मिली तो वह खुद ही उठ खड़ा हुआ और आगे बढ़ गया.

उस लड़के को देख पवन ने कुछ देर सोचा और फिर उठ कर सामने रखी बालटी के पानी से मुंह धोया और जेब से कंघी निकाल कर बालों को संवारा.

तभी चाय की दुकान पर बैठे एक बुजुर्ग आदमी बोले, ‘‘पवन, तुम यहां

2 महीने से चक्कर काट रहे हो. देखो जरा, तुम ने अपना क्या हाल बना रखा है. तुम्हारा शरीर भी कपड़े की तरह मैला हो गया है. यह जयपुर है बेटा, यहां तो सिर्फ पैसा बोलता है. तुम जैसे गांव से आए हुए अनपढ़ और गरीब आदमी की बात कौन सुनेगा. मेरी बात मानो और तुम अपने गांव लौट जाओ.’’

‘‘काका, मुझे किसी की जरूरत नहीं है. मैं अपनी पत्नी को खुद ही ढूंढ़ लूंगा,’’ पवन ने कहा.

‘‘यह हुई न हीरो वाली बात… यह लो गरमागरम चाय,’’ रमेश चाय वाला बोला.

चाय की दुकान और रमेश ही पवन का ठिकाना थे. उस का सारा दिन थाने के चक्कर काटने में बीतता और रात होते ही वह इसी दुकान की बैंच को बिस्तर बना कर सो जाता. वह तो रमेश चाय वाला भला आदमी था जो उसे इस तरह पड़ा रहने देता था और कभी उस पर दया आ जाती तो चायबिसकुट भी दे देता.

अकेले में पवन को उदासी घेर लेती थी. हर दिन जब वह सुबह उठता तो सोचता कि आज तो गीता उस के साथ होगी, मगर उसे नाकामी ही हाथ लगती.

उस दिन की घटना ने तो पवन को एकदम तोड़ दिया था. लंबे समय तक हर जगह की खाक छानने के बाद उसे एक घर में गीता सफाई करते हुए मिली तो उस की खुशी का ठिकाना ही न रहा. वह भाग कर गीता से लिपट गया.

गीता की आंखों में भी पानी आ गया था. तभी गार्ड आ गया और उन दोनों को अलग कर के पवन को धक्के मार कर बाहर कर दिया.

बेचारा पवन बहुत चिल्लाया, ‘यह मेरी गीता है… गीता… गीता… तुम घबराना नहीं, मैं तुम्हें यहां से ले जाऊंगा,’ मगर आधे शब्द उस की जबान से बाहर ही न आ पाए कि कोई भारी चीज उस के सिर पर लगी और वह बेहोश हो गया.

आंखें खुलीं तो देखा कि पवन की जिंदगी की तरह बाहर भी स्याह अंधेरा फैल गया. किसी तरह अपने लड़खड़ाते कदमों से पुलिस स्टेशन जा कर वह मदद की गुहार लगाने लगा और थकहार कर वहीं सड़क किनारे सो गया.

सुबह होते ही पवन फिर पुलिस स्टेशन जा पहुंचा, तभी उन में से एक पुलिस वाले को उस की हालत पर तरस आ गया. वह बोला, ‘‘ठीक है, मैं तुम्हारे कहने पर चलता हूं, पर यह बात झूठ नहीं होनी चाहिए.’’

पुलिस को ले कर पवन उसी घर में पहुंचा और गीता के बारे में पूछा. वहां के मालिक ने कहा, ‘हमारे यहां गीता नाम की कोई लड़की काम नहीं करती.’

‘आप उसे बुलाएं. हम खुद ही उस से बात करेंगे,’ हवलदार ने डंडा लहराते हुए रोब से कहा.

अंदर से डरीसहमी एक लड़की आई. उसे देखते ही पवन चिल्लाया, ‘साहब, यही मेरी गीता है. गीता, तुम डरना नहीं, इंस्पैक्टर साहब को सबकुछ सचसच बता दो.’

‘क्या नाम है तेरा?’

‘साहब, मेरा नाम सपना है.’

‘क्या यह तुम्हारा पति है?’

‘नहीं साहब, मैं तो इसे जानती तक नहीं हूं.’

पवन भौचक्का सा कभी गीता को तो कभी पुलिस वाले को देखता रहा.

तभी पुलिस वाला बोला, ‘सौरी सर, आप को तकलीफ हुई.’

सभी लोग बाहर आ गए.

पवन कहता रहा कि वह उस की पत्नी है, पर किसी ने उस की न सुनी. सब उस से शादी का सुबूत मांगते रहे, पर वह गरीब सुबूत कहां से लाता.

‘‘पवन… ओ पवन, कल मेरी दुकान में एक मैडम आई थीं,’’ रमेश चाय वाले की यह बात सुन कर पवन अपने दिमाग में चल रही उथलपुथल से बाहर आ गया. वह अपना सिर खुजलाते हुए बोला, ‘‘हां, बोलो.’’

तभी रमेश चाय वाले ने उसे चाय का गरमागरम प्याला पकड़ाते हुए कहा, ‘‘कल मेरी दुकान में एक मैडम आई थीं और वे गीता जैसी लड़कियों की मदद के लिए एनजीओ चलाती हैं. हो सकता है कि वे हमारी कुछ मदद कर सकें.’’

थोड़ी देर बाद ही वे दोनों मैडम के सामने बैठे थे. मैडम ने पूछा, ‘‘उस ने तुम्हें पहचानने से क्यों मना कर दिया? अपना नाम गलत क्यों बताया?’’

‘‘मैडम, मैं ने गीता की आंखों से लुढ़कता हुआ प्यार देखा था. उन लोगों ने जरूर मेरी गीता को डराया होगा.’’

‘‘अच्छा ठीक है, तुम शुरू से अपना पूरा मामला बताओ.’’

यह सुन कर पवन उन यादों में खो गया था, जब गीता से उस की शादी हुई थी. दोनों अपनी जिंदगी में कितना खुश थे. सुबह वह ट्रैक्टर चलाने ठाकुर के खेतों में चला जाता और शाम होने का इंतजार करता कि जल्दी से गीता की बांहों में खो जाए.

इधर गीता घर पर मांबाबूजी को पहले ही खाना खिला देती और पवन के आने पर वे दोनों साथ बैठ कर खाना खाते और फिर अपने प्यार के पलों में खो जाते.

मगर कुछ दिनों से पवन परेशान रहने लगा था. गीता के बहुत पूछने पर वह बोला, ‘पहले मैं इतना कमा लेता था कि

3 लोगों का पेट भर जाता था, पर अब

4 हो गए और कल को 5 भी होंगे. बच्चों की परवरिश भी तो करनी होगी. सोचता हूं कि शहर जा कर कोई कामधंधा करूं. कुछ ज्यादा आमदनी हो जाएगी और वहां कोई कामकाज भी सीख लूंगा. उस के बाद गांव आ कर एक छोटी सी दुकान खोल लूंगा.’

‘आप के बिना तो मेरा मन ही नहीं लगेगा.’

‘क्या बात है…’ पवन ने शरारत भरे अंदाज में गीता से पूछा तो गीता भी शरमा गई और दोनों अपने भविष्य के सपने संजोते हुए सो गए.

कुछ दिनों बाद वे दोनों शहर आ गए. वहां उन्हें काम ढूंढ़ने के लिए ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ा. जल्दी ही एक जगह काम और सिर छिपाने की जगह मिल गई. रोजमर्रा की तरह जिंदगी आगे बढ़ने लगी.

पवन को लगा कि गीता से इतनी मेहनत नहीं हो पा रही है तो उस ने उस का काम पर जाना बंद करा दिया. वैसे भी फूल सी नाजुक और खूबसूरत लड़की ईंटपत्थर ढोने के लिए नहीं

बनी थी.

अभी बमुश्किल एक हफ्ता ही बीता था कि जहां पवन काम करता था वहां उस दिन बहुत कम लोग आए थे. वहां के मालिक ने पूछा, ‘क्या हुआ पवन, आजकल तेरी घरवाली काम पर नहीं आ रही है?’

पवन ने अपनी परेशानी बताई तो मालिक बोले, ‘कुछ दिनों से मेरे घर पर कामवाली बाई नहीं आ रही है, अगर तुम चाहो तो तुम्हारी घरवाली हमारे यहां काम कर सकती है और तुम इस काम के अलावा हमारी कोठी में माली का काम भी कर लो.’

पवन को जैसे मनचाहा वरदान मिल गया. सोचा कि इस से पैसा भी आएगा और गीता इस काम को कर भी पाएगी. उस ने गीता को बताया तो वह खुशीखुशी राजी हो गई.

इस तरह कुछ महीने आराम से बीत गए. कुछ ही समय में उन्होंने अपना पेट काट कर काफी पैसे इकट्ठा कर लिए थे और अकसर ही बैठ कर बातें करते कि अब कुछ ही समय में अपने गांव लौट जाएंगे.

मगर वे दोनों अपने ऊपर आने वाले खतरे से अनजान थे. गीता जहां काम करती थी, उन के ड्राइवर की नजर गीता पर थी. उधर मालकिन को गीता का काम बहुत पसंद था. वे अकसर पूरा घर गीता के भरोसे छोड़ कर चली जाती थीं.

रोज की तरह एक दिन पवन जब गीता को लेने पहुंचा और बाहर खड़ा हो कर इंतजार करने लगा. तभी ड्राइवर ने उसे साजिशन अंदर जाने के लिए कहा.

डरतेडरते पवन ने ड्राइंगरूम में पैर रखा तभी गीता आ गई और वे दोनों घर चले गए.

सुबह जब दोनों जैसे ही काम पर निकलने लगे कि देखा, मालिक पुलिस को लिए उन के दरवाजे पर खड़े थे.

‘क्या हुआ?’

‘इंस्पैक्टर, गिरफ्तार कर लो इसे.’

पुलिस ने पवन को पकड़ लिया तो उस ने पूछा, ‘मगर, मेरा कुसूर क्या है?’

‘जब तुम कल इन के घर गए थे तब तुम ने इन के घर से पैसे चुराए थे.’

वे दोनों बहुत समझाते रहे कि ऐसा नहीं है, मगर उन गरीबों की बात किसी ने नहीं सुनी और पवन को 2 महीने की सजा हो गई.

उधर गीता को मालिक ने घर से निकाल दिया. उस का तो बस एक ही ठिकाना रह गया था, वह बरसाती वाला घर और पवन की यादें.

उधर पवन के खिलाफ कोई पुख्ता सुबूत न होने के चलते कोर्ट ने उसे 2 महीने बाद निजी मुचलके पर छोड़ दिया.

जब पवन जेल से बाहर आया तो सीधे अपने घर गया, मगर वहां गीता का कोई अतापता नहीं था.

आसपास पूछने पर भी कोई बताने को तैयार नहीं हुआ. मगर उसी जगह काम करने वाली एक बुजुर्ग औरत को दया आ गई, ‘बेटा, मैं तुम्हें सबकुछ बताती हूं. तुम जब जेल में थे, उसी दौरान गीता के पास न कोई सहारा, न ही कोई काम रह गया था. तभी यहां के एक ठेकेदार ने उसे अपने घर के कामकाज के लिए रख लिया, क्योंकि वह अकेला रहता था.

‘तन और मन से टूटी गीता की मदद करने के बहाने वह करीब आने लगा. पहले तो वह मन से पास आया, फिर धीरेधीरे दोनों तन से भी करीब आ गए. गीता को अकसर उस के साथ बनसंवर कर घूमते देखा गया.

‘अब तुम्हीं बताओ, कोई अपनी काम वाली के साथ ऐसे घूमता है क्या? मैं ने तो यहां तक सुना है कि काम करतेकरते उस के साथ सोने भी लगी थी. अब इतनी बला की खूबसूरत लड़की के साथ यही तो होगा.

‘जब लोगों ने बातें करना शुरू कर दिया तो एक दिन रात के अंधेरे में सारा सामान ले कर चली गई. पर कुछ समय पहले ही मुझे बाजार में मिली थी. कह रही थी कि यहीं कालोनी के आसपास घरों में काम करती है.’

यह सब सुन कर पवन को बहुत दुख हुआ, पर उन की कही किसी बात पर उसे यकीन नहीं हुआ.

इतना जानने के बाद एनजीओ वाली मैडम ने पवन से आगे की कहानी पूछी.

पवन ने कहा, ‘‘मैं उसे ढूंढ़ता हुआ वहां पहुंच ही गया. मैं ने गीता को एक घर के अंदर जाते हुए देखा. उस ने पहचानने से मना कर दिया,’’ और पवन की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे.

‘‘यह लो पवन, पानी पी लो,’’ मैडम ने कहा, ‘‘तुम ने उस से दोबारा मिलने की कोशिश क्यों नहीं की?’’

‘‘आप को क्या लगता है कि मैं ने उस से मिलने की कोशिश नहीं की होगी. पुलिस का कहना है कि जब तक तू शादी का सुबूत नहीं लाता तब तक उस घर क्या गली में भी दिखाई दिया तो तुझे फिर से जेल में डाल देंगे.

‘‘मैं गरीब कहां से शादी का सुबूत लाऊं? मेरी शादी में तो एक फोटो तक नहीं खिंचा था.’’

‘‘ठीक है पवन, हम तुम्हारी जरूर मदद करेंगे,’’ मैडम ने कहा.

कुछ दिन बाद वे मैडम पवन और पुलिस को साथ ले कर गीता से मिलने गई और वहां जा कर पूछा कि आप के यहां गीता काम करती?है क्या?

उन लोगों में से एक ने एक बार में ही सच बयां कर दिया, ‘‘गीता ही हमारे यहां काम करती थी, मगर उस ने अपना नाम सपना क्यों बताया, यह हम नहीं जानते. जिस दिन पवन पुलिस को ले कर आया था. उसी दिन से वह बिना बताए कहीं चली गई और कभी वापस भी नहीं आई.’’

‘‘मैडम, ये सब झूठ बोल रहे हैं. आप इन के घर की तलाशी लीजिए.’’

मगर गीता सचमुच जा चुकी थी. तभी पुलिस ने गार्ड से पूछा, ‘‘क्या तुम ने गीता को जाते हुए देखा था?’’

‘‘हां साहब… उसी दिन रात 10 बजे के आसपास उसे ड्राइवर से बातें करते हुए देखा था.’’

पुलिस ने उत्सुकतावश पूछा, ‘‘कौन सा ड्राइवर?’’

गार्ड बोला, ‘‘साहब, जहां वह पहले काम करती थी वहीं का कोई ड्राइवर अकसर उस से मिलने आताजाता था.’’

पुलिस ने ड्राइवर का पताठिकाना निकाला. पहले तो उस ने मना कर दिया कि वह गीता को नहीं जानता, पर जब सख्ती की गई तो ड्राइवर ने पुलिस को बताया, ‘‘गीता इस घर के पास ही एक और घर में काम करती थी. उस का वहां के आदमी से अफेयर था. वह आदमी गीता की मजबूरी का फायदा उठाता रहा. उस के उस से नाजायज संबंध थे. उस ने तो गीता को अपने ही मकान में एक छोटा कमरा भी दे रखा था.

‘‘रोजाना गहरी होती हर रात को शराब के नशे में धुत्त वह गीता पर जबरदस्ती करता था. गीता चाहती तो गांव वापस जा सकती थी, पर वहां गांव में कुनबे के लिए रोटी बनाने से बेहतर काम उसे यह सब करना ज्यादा अच्छा लगने लगा था, क्योंकि उसे तो पाउडर और लिपस्टिक से लिपेपुते शहरी चेहरे की आदत हो गई थी.

‘‘मगर जब प्रेमी का मन भर गया और उस में कोई रस नहीं दिखाई देने लगा तो एक दिन चुपचाप अपने घर में ताला लगा कर चला गया.

‘‘जब वह 2-4 दिन बाद भी वापस नहीं आया तो गीता ने उस बन रही बिल्डिंग में जा कर उसे ढूंढ़ा लेकिन वहां पर भी उसे निराशा ही हाथ लगी. उस के रहने का ठिकाना भी न रहा.

‘‘उस के जाने के बाद अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए वह देह धंधे में उतर गई.’’

इतना सुनते ही पवन के होश उड़ गए और वह अपने उस दिन के फैसले पर पछताने लगा कि वे दोनों शहर क्यों आए थे. लेकिन पवन अच्छी तरह जानता था कि ऐसी औरतों के ठिकाने कहां होते हैं.

कुछ दिनों में पुलिस ने फौरीतौर पर छानबीन कर फाइल भी बंद कर दी और मैडम ने भी हार मान ली.

वे पवन को समझाने लगीं, ‘‘उस दुनिया में जाने के बाद सारे प्यार और जज्बात मर जाते हैं. वहां से कोई वापस नहीं आता. जब हम और पुलिस मिल कर कुछ नहीं कर पाए तो तुम अकेले क्या कर पाओगे? अच्छा होगा कि तुम भी गांव वापस चले जाओ और नई जिंदगी शुरू करो.’’

पर, पवन पर तो जैसे भूत सवार था. वह अपनी गीता को किसी भी कीमत पर पाना चाहता था. वह सारा दिन काम करता और रातभर रैडलाइट एरिया में भटकता रहता.

इसी तरह कई महीने बीत गए, मगर उस ने हार नहीं मानी. एक दिन रात को ढूंढ़ते हुए उस की निगाह ऊपर छज्जे पर खड़ी लड़की पर पड़ी. चमकीली साड़ी, आंखों पर भरपूर काजल, होंठो पर चटक लाल रंग की लिपस्टिक और उस पर से अधखुला बदन. अपने मन को मजबूत कर उस ने उस से आंखें मिलाने की हिम्मत की तो देखा कि तो गीता थी.

पवन दूसरे दिन मैडम को ले कर रैडलाइट एरिया के उसी मकान पर गया और लकड़ी की बनी सीढि़यों के सहारे झटपट ऊपर पहुंचा और बोला, ‘‘गीता, तुम यहां…’’ और यह कहते हुए उस के करीब जाने लगा, तभी उस ने उसे झटक कर दूर किया और कहा, ‘‘मैं रेशमा हूं.’’

पवन बोला, ‘‘मैं अब तुम्हारी कोई बात नहीं मानूंगा. तुम मेरी गीता हो… केवल मेरी… गीता घर लौट चलो… मैं तुझ से बहुत प्यार करता हूं, मैं तुम्हें वह हर खुशी दूंगा जो तुम चाहती हो. अब और झूठ मत बोलो.

‘‘मैं जानता हूं कि तुम गीता हो, तुम अपने पवन के पास वापस लौट आओ. तुझे उस प्यार की कसम जो शायद थोड़ा भी कभी तुम ने किया हो. यहां पर तुम्हारा कोई नहीं है. सब जिस्म के भूखे हैं. चंद सालों में यह सारी चमक खत्म हो जाएगी.’’

गीता भी चिल्लाते हुए बोली, ‘‘पवन, मैं चाह कर भी तुम्हारे साथ नहीं चल सकती. तुम्हारी गीता उसी दिन मर गई थी जिस दिन उस ने यहां कदम रखा था. तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं करते हो कि मैं गंदी हो चुकी हूं.’’

पवन उस के और करीब जा कर उस का चेहरा अपने हाथों में ले कर बोला, ‘‘तुम औरत नहीं, मेरी पत्नी हो, तुम कभी गंदी नहीं हो सकती. जहां वह रहती है वो जगह पवित्र हो जाती है, तुम यहां से निकलने की कोशिश तो करो. मैं तुम्हारे साथ हूं. तुम्हारा पवन सबकुछ भुला कर नई जिंदगी की शुरुआत करना चाहता है.’’

गीता भी शायद कहीं न कहीं

इस जिंदगी से तंग आ चुकी थी.

पवन की बातों से वह जल्दी ही टूट गई. वे दोनों एकदूसरे से लिपट गए और फफक कर रो पड़े.

पवन और गीता अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करने वहां से वापस चल दिए.

मैडम उन को जाते देख बोली, ‘‘जहां न कानून कुछ कर पाया और न ही समाज, वहां इस के प्यार की ताकत ने वह कर दिखाया जो नामुमकिन था. सच में… ऐसा प्यार कहां…’’

Valentine’s Day: अंत भला तो सब भला- विनय ने ग्रीष्मा की जिंदगी में कैसे हलचल मचाई

Valentine’s Day: हीरो निकला जीरो

2 वर्षों से विशाल के साथ रिलेशनशिप के बाद शुभि ने मन ही मन उसे पति का दर्जा दे दिया था. लेकिन, विशाल का अचानक उस की जिंदगी से चले जाना उसे अब हर वक्त यही महसूस करा रहा था कि वह बुरी तरह ठगी गई है.

शुभि 3 घंटे एटीएम की लाइन में लगी हुई थी. आज शनिवार था, औफिस की छुट्टी थी, सैलरी आ गई थी. हर जगह तो कार्ड काम नहीं करता. कैश चाहिए ही था, इतने में उस के मोबाइल पर उस की सहेली विभा का फोन आ गया. उस की चहकती हुई आवाज सुनाई दी, ‘‘कहां है?’’

‘‘एटीएम की लाइन में.’’

‘‘रुचि और तनु मेरे घर आई हुई हैं. इस बार वैलेंटाइंस डे पर कुछ अलग करते हैं. चल, हम चारों गोवा चलते हैं.’’

‘‘नहीं यार, मेरा तो मन नहीं है, तुम लोग चली जाओ.’’

‘‘क्यों, तु झे क्या हुआ?’’

शुभि चुप रही तो विभा को उस की मनोदशा का अंदाजा तुरंत हो गया, बोली, ‘‘अरे यार, ब्रेकअप तनु का भी हुआ है, पर उसे देखो, वही जाने के लिए सब से ज्यादा जोर डाल रही है.’’

‘‘सौरी विभा, मैं नहीं जा पाऊंगी,’’ कहतेकहते जब शुभि का गला भर्रा गया तो विभा ने फौरन टौपिक चेंज कर दिया, इधरउधर की बातों के बाद फिर फोन रखा.

शुभि तो लाइन में खड़ीखड़ी पिछले वैलेंटाइंस डे की यादों में पहुंच गई. दिल से एक ठंडी सी उदास आह निकल गई, ‘ओह, विशाल, तुम कहां हो, तुम ने यह क्या किया.’ 2 वर्षों से शुभि और विशाल रिलेशनशिप में थे. शुभि तो मन ही मन स्वयं को उस की पत्नी मानने लगी थी. फलस्वरूप, अपना तनमन उसे सौंप चुकी थी. पर अचानक विशाल गायब हो गया था.

5 महीने से उस का कोई अतापता नहीं था. पुणे में ही जो फ्लैट विशाल ने किराए पर लिया हुआ था, वह कितनी बार देखने गई थी. शुभि भी पुणे में ही रहती थी. एक होटल में किसी मीटिंग में दोनों पहली बार मिले थे. पहले दोस्ती और फिर प्यार हो गया था.

शुभि ने अपने मम्मीपापा और बड़े भाई अजय को भी विशाल के बारे में बता दिया था. शुभि ने विशाल को हर तरह से ढूंढ़ा, पर कुछ पता नहीं चला था. फेसबुक पर वह शुभि को अनफ्रैंड कर चुका था. कई कौमन फ्रैंड्स से भी विशाल के बारे में कोई अपडेट नहीं मिल पा रहा था.

फोन नंबर भी शायद विशाल ने बदल लिया था. शुभि हर पल खुद को ठगी सी महसूस कर रही थी. घरवाले उस की मनोदशा सम झ रहे थे, पर कुछ कर नहीं पा रहे थे. शुभि दिनभर तो औफिस में बिता देती पर अकेले में उसे याद कर रोती रहती थी. उस की सहेलियों ने भी विशाल के बारे में पता करने की बहुत कोशिश की, पर सब असफल रहीं.

शुभि बहुत उदास थी. कहां ढूंढ़े विशाल को, क्यों वह बदल गया, उस की भावनाओं से इतने दिन क्यों खेलता रहा? अचानक लाइन में खड़ेखडे़ शुभि ने आगे खड़े लोगों पर नजर डाली. एक लड़के की पीठ और बाल दिखाई दे रहे थे. वह कुछ चौंकी और आगे हो कर  झांका, यह शर्ट… शुभि और

हैरान हुई.

पिछले वैलेंटाइन डे पर ऐसी ही तो शर्ट गिफ्ट की थी उस ने विशाल को. पिछले वैलेंटाइन डे पर अपने घरवालों से  झूठ बोल कर कि वह अपने औफिस फ्रैंड्स के साथ गोवा जा रही है, वह सिर्फ विशाल के साथ गोवा गई थी. गोवा के बीच पर समुद्र की लहरों में एकसाथ डूबतेउतरते एकदूसरे की बांहों में कस कर बंधे, दुनिया से बेखबर दोनों ने एकदूसरे के साथ हर पल को जीभर कर जिया था.

आंखों में नमी सी महसूस हुई तो शुभि ने फिर दोबारा देखा, विशाल ही था. वह किसी से फोन पर बातें कर रहा था, हंस रहा था, खुश था. विशाल को देखते ही अपने पिछले महीनों का दुख, बेचैनी याद कर शुभि के तनमन में क्रोध, नफरत की एक लहर सी दौड़ गई.

मन हुआ जा कर एक थप्पड़ मार दे, एक लड़की के तनमन से खेल कर, उस की भावनाओं को पलभर में भुला देने वाले इंसान को अच्छी तरह सबक सिखाए पर वह यहां लाइन में लगेलगे क्या कर सकती है. जो हो गया, सो हो गया, छोड़ो. पर नहीं, वह कुछ तो जरूर करेगी. ऐसे लड़कों को ऐसे नहीं छोड़ देना चाहिए. क्या करे. लाइन लंबी थी. अभी टाइम है उस के पास. वह 5 मिनट सोचती रही. चेहरा गुस्से से लाल होता जा रहा था. उस ने फौरन अपने भाई को फोन किया, ‘‘भैया, टाइम बहुत कम है, प्लीज, मेरी बात ध्यान से सुनना.’’

‘‘हां, बोलो.’’

‘‘भैया, मैं एटीएम की लाइन में हूं और लाइन में आगे विशाल खड़ा है. उस का ऐसा इलाज करो कि वह हमेशा याद रखे.’’

‘‘अच्छा, नहीं छोड़ं ूगा उसे. मेरी बहन के साथ खिलवाड़ किया है उस ने, अभी आया.’’

अजय अपने 2 दोस्तों विनय और अनिल को ले कर शुभि के पास पहुंच गया. अजय विशाल से 1-2 बार घर पर मिला था. देखने में सभ्य सा विशाल उसे भी अपनी बहन के लिए उपयुक्त वर लगा था. पर आजकल छोटी बहन का उतरा चेहरा देख वह आगबबूला होता घूमता था. अजय को अपने सामने देख विशाल सिटपिटा गया, ‘‘आप यहां?’’

‘‘चल इधर आ जा,’’ उस की शर्ट का कौलर पकड़ कर अजय उसे खींचता हुआ लाइन से हटा कर एक तरफ ले आया. शुभि चुपचाप लाइन में खड़ी सब देख रही थी.

विशाल गुर्राया, ‘‘क्या हो रहा है यह, क्या बदतमीजी है.’’ एक थप्पड़ मारा अनिल ने उस के मुंह पर, विशाल हिल गया,

‘‘क्या हो रहा है यह.’’ विनय और अनिल ने उसे बुरी तरह धुन दिया. भीड़ हैरान थी, कोई बीचबचाव करने भी नहीं आया. एक तो ऐसे मौके पर लोग कम ही हस्तक्षेप करते हैं, दूसरे, लाइन से हटते तो जगह जाती.

तीनों ने विशाल को बहुत मारा. वह कराहते हुए बोला, ‘‘मैं तुम लोगों की शिकायत करूंगा.’’ इतने में शुभि भी वहां आ गई. ‘‘हां भैया, इसे पुलिस स्टेशन ले चलो, इस का यह शौक भी पूरा हो जाएगा.’’

विशाल ने शुभि के सामने हाथ जोड़ दिए, ‘‘शुभि, मु झे माफ कर दो, मैं अभी शादी नहीं करना चाहता था.’’

शुभि ने उस की तरफ देखा भी नहीं, बोली, ‘‘चलो भैया.’’

विनय ने विशाल को कौलर से पकड़ कर जबरदस्ती अपनी बाइक पर बिठाया. शुभि अजय की बाइक पर बैठ गई. पुलिस स्टेशन पहुंच कर अजय ने विशाल के खिलाफ छेड़खानी की शिकायत दर्ज करवाई. वहां खड़े सिपाही ने एक डंडा यों ही लगा दिया विशाल को. आगे की कार्रवाई पूरी करने के बाद विशाल को वहीं छोड़ कर चारों पुलिस स्टेशन से बाहर आ गए.

अनिल, विनय अपनेअपने घर चले गए. अजय के साथ घर की तरफ जाते हुए बाइक पर पीछे बैठेबैठे शुभि ने अजय के गले में बांहें डाल दीं, ‘‘थैंक्यू भैया.’’

अजय ने भी कहा, ‘‘आगे से तुम भी ऐसी गलती मत करना, इतनी जल्दी किसी पर भरोसा नहीं करते.’’

‘‘हां भैया, ध्यान रखूंगी.’’ शुभि ने फिर तुरंत विभा को फोन किया, ‘‘मैं भी चलूंगी तुम लोगों के साथ गोवा, मेरा भी टिकट बुक करवाना.’’

‘‘वाह, बढि़या. पर क्या हुआ, तुम्हें तो अपना हीरो याद आ रहा था न?’’

शुभि ने हंसते हुए फोन पर ही पूरा किस्सा सुना दिया, फिर कहा, ‘‘वैलेंटाइन डे एंजौय करने के लिए किसी हीरो की जरूरत नहीं है, हम चारों ही मस्ती करेंगे.’’

अपनी बहन को इतने महीनों बाद खुश देख कर अजय भी खुश था. विशाल का पूरा शरीर दुख रहा था, सोच रहा था क्यों गया पैसे निकलवाने, न जाता तो बच जाता. नोट की चोट बहुत करारी थी, दर्द बहुत था.

Valentine’s Special: कोई अपना- शालिनी के जीवन में भी कोई बहार आने को थी

Valentine’s Day: कैक्टस के फूल- क्या विजय और सुषमा बन पाए हमसफर

फोन आने की खबर पर सुषमा हड़बड़ी में पलंग से उठी और उमाजी के क्वार्टर की ओर लंबे डग भरती हुई चल पड़ी. कैक्टस के फूलों की कतार पार कर के वह लौन में कुरसी पर बैठी उमाजी के पास पहुंच गई.

‘‘तुम्हारे कजिन का फोन आया है, वह शाम को 7 बजे आ रहा है. उस के साथ कोई और भी आ रहा है इसलिए कमरे को जरा ठीकठाक कर लेना,’’ उमाजी के चेहरे पर मुसकराहट आ गई.

उमाजी के चेहरे पर आज जो मुसकराहट थी, उस में कुछ बदलाव, सहजता और सरलता भी थी. उमाजी तेज स्वर में बोली, ‘‘आज कोई अच्छी साड़ी भी पहन लेना. सलवारकुरता नहीं चलेगा.’’

बोझिल मन के साथ वह कब अपने रूम में पहुंच गई उसे पता ही नहीं चला. एक बार तो मन में आया कि वह तैयार हो जाए, फिर सोचा कि अभी से तैयार होने से क्या फायदा? आखिर विजय ही तो आ रहा है.

कई महीने पहले की बात है, उस दिन सुबह वाली शटल टे्रन छूट जाने के बाद पीछे आ रही सत्याग्रह ऐक्सप्रैस को पकड़ना पड़ा था. चैकिंग होने की वजह से डेली पेसैंजर जनरल बोगी में लदे हुए थे. वह ट्रेन में चढ़ने की कोशिश कर रही थी तभी टे्रन चल पड़ी. गेट पर खड़े विजय ने उस का हाथ पकड़ कर उसे गेट से अंदर किया था. उस ने कनखियों से विजय को देखा था. सांवले चेहरे पर बड़ीबड़ी भावुक आंखों ने उसे आकर्षित कर लिया था.

उस के बाद वह अकसर विजय के साथ ही औफिस तक की यात्रा पूरी करती. विजय राजनीति, साहित्य और फिल्मों पर अकसर बहस व गलत परंपराओं और कुरीतियों के प्रति नाराजगी प्रकट करता. विजय मेकअप से पुती औरतों पर अकसर कमैंट करता. इस बात पर वह सड़क पर ही उस से झगड़ा करती और फिर विजय के हावभाव देखती.

एक दिन सुबह ही वह उमाजी के क्वार्टर पर पहुंची और उन से फिरोजाबाद से मंगाई चूडि़यां मांगने लगी थी. ‘मैडम, आप ने कहा था कि रंगीन चूडि़यां तो आप पहनती नहीं हैं, आप के पास कई पैकेट आए थे, उन में से एक…’

‘अरे, तुझे चूडि़यों की कैसे याद आई? तू तो कहती थी कि साहब के सामने डिक्टेशन लेने में चूडि़यां बहुत ज्यादा खनकती हैं. एकदो पैकेट तो मैं ने आया मां की लड़की को दे दिए हैं, वह ससुराल जा रही थी पर तुझे भी एक पैकेट दे देती हूं.’

एक दिन उमाजी ने सुषमा से मुसकराते हुए पूछा, ‘तुम्हारे जिस कजिन का फोन आता है, उस से तुम्हारा क्या रिश्ता है?’

वह एकदम हड़बड़ा सी गई. उस ने अपने को संयत करते हुए कहा, ‘अशोक कालोनी में मेरे दूर के रिश्ते की आंटी हैं, उन का बेटा है.’

‘सीधा है, बेचारा,’ उमाजी मुसकराईं.

‘क्या मतलब आंटी? कैसे? मैं समझी नहीं,’ उस ने अनजान बनने की कोशिश की.

‘मैं ने फोन पर उस से तेज आवाज में पूछ लिया कि आप सुषमा से बात तो करना चाहते हैं पर बोल कौन रहे हैं, तो वह हड़बड़ा कर बोला, ‘मैं विजय सरीन बोल रहा हूं, मैं बहुत देर तक सोचती रही कि सरीन सुषमा गुप्ता का कजिन कैसे हो सकता है.’

‘ओह आंटी, आप को तो सीबीआई में होना चाहिए था. एक होस्टल वार्डन का पद तो आप के लिए बहुत छोटा है.’

उमाजी सुषमा में आए परिवर्तन को अच्छी तरह समझने लगी थीं. वे बेटी की तरह उसे प्यार करती थीं.

मुरादाबाद में सांप्रदायिक दंगे होने के कारण टे्रनों में भीड़ नहीं थी. एक दिन विजय उसे पेसैंजर टे्रन में मिल गया था. कौर्नर की सीट पर वह और विजय आमनेसामने थे. हलकी बूंदाबांदी होने से बाहर की तरफ फैली हरियाली मन को अधिक लुभा रही थी. सुषमा भी बेहद खूबसूरत नजर आ रही थी.

‘आज तुम्हें देख कर करीना कपूर की याद ताजा हो रही है,’ विजय ने उस को देख कर कहा. उसे लगा कि विजय ने शब्द नहीं चमेली के फूल बिखेर दिए हों. उस ने एक नजर विजय की ओर डाली तो वह दोनों हाथ खिड़की से बाहर निकाल कर बरसात की बूंदों को अपनी हथेलियों में समेट रहा था.

वह उस से कहना चाहती थी कि विजय, तुम्हें एकपल देखने के लिए मैं कितनी रहती हूं. तुम से मिलने की खातिर बेचैन अलीगढ़, कानपुर, इलाहाबाद शटल को छोड़ कर सर्कुलर से औफिस जाती हूं और देर से पहुंचने के कारण बौस की झिड़की भी खाती हूं.

अकसर विजय उस से मिलने होस्टल भी आ जाता था. उसे भी रविवार और छुट्टी के दिन उस का बेसब्री से इंतजार रहता था. अकसर रूटीन में वह रविवार को ही कमरा साफ करती थी, पर जब उसे मालूम होता कि विजय आ रहा है तो विशेष तैयारी करती. अपने लिए वह इतनी आलसी हो जाती थी कि मौर्निंग टी भी स्टेशन पहुंच कर टी स्टौल पर पीती. विजय के जाने के बाद जो सलाइस बच जाती उन्हें भी नहीं खाती. उसे या तो चूहे खा जाते या फिर माली के लड़के को दे देती, जिन्हें वह दूध में डाल कर बड़े चाव से खाता.

एक दिन विजय ने सुषमा के सारे सपने तोड़ दिए थे. डगमगाते कदमों से वह रूम तक आया और ब्रीफकेस को पटक कर पलंग पर लेट गया. शराब की दुर्गंध पूरे कमरे में फैल गई थी. उस ने उठ कर दरवाजे पर पड़ा परदा हटा दिया था.

उसे आज विजय से डर सा लगा था, जबकि वह उस के साथ नाइट शो में फिल्म देख कर भी आती रही है.

‘सुषमा, तुम जैसी खूबसूरत और होशियार लड़की को अपना बनाने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है. उस दिन ट्रेन में पहले मैं चढ़ा था, मैं जानता था कि चलती टे्रन में चढ़ने के लिए तुम्हें सहारे की जरूरत होगी. उस दिन तुम्हें सहारा दे कर मैं ने आज तुम्हें अपने पास पाया,’ विजय ने लड़खड़ाती जबान से बोला.

उस ने सोचा था कि अपने सपनों को भरने के लिए उस ने गलत रंगों का इस्तेमाल कर लिया है. उस का चुनाव गलत साबित हुआ है. उस दिन सुषमा एक लाश बनी विजय को देखती रही थी. चौकीदार की सहायता से उस की मोटरसाइकिल को अंदर खड़ा करवा कर उसे ओटो से उस के घर के बाहर तक छोड़ आई थी. सुबह विजय चुपके से चौकीदार से मोटरसाइकिल मांग कर ले गया था.

अगले दिन उमाजी ने सुषमा को एक माह के अंदर होस्टल खाली करने का नोटिस दे दिया था. वह नोटिस ले कर मिसेज शर्मा के पास गई और उन के गले लग कर फफकफफक कर रो पड़ी थी. उमाजी ने नोटिस फाड़ दिया था.

विजय से मिलने में उस की कोई खास दिलचस्पी नहीं रह गई थी. उस ने अब लेडीज कंपार्टमैंट में आनाजाना शुरू कर दिया था. अगर वह स्टेशन पर मिल भी जाता तो हल्का सा मुसकरा कर हैलो कह देती. उस का सुबह उठने से ले कर रात सोने तक का कार्यक्रम एक ढर्रे पर चलने लगा था.

सुषमा की नीरसता से भरी दिनचर्या उमाजी से देखी नहीं गई. एक दिन उमाजी ने उसे चाय पर बुलाया, ‘सुषमा, नारी विमर्श और नारी अधिकारों की चर्चाएं बहुत हैं पर आज भी समाज में पुरुषों का डोमिनेशन है. इसलिए बहुत कुछ इग्नोर करना पड़ता है और तू कुछ ज्यादा ही भावुक है. अपनी जिंदगी को प्रैक्टिकल बना कर खुश रहना सीखो.

‘शराब को ले कर ही तो तुम्हारे अंकल से मैं लड़ी थी. 2 दिन बाद ही एक विमान दुर्घटना में उन की मौत हो गई. आज भी उस बात का मुझे दुख है.’

अचानक स्मृतियों की शृंखला टूट गई. सुषमा ने देखा कि गेट पर उमाजी खड़ी थीं. उन के हाथ में रात में खिले कैक्टस के फूल के साथ ही पिंक कलर की एक साड़ी थी.

‘‘आंटीजी, आप ने मुझे बुला लिया होता,’’ सुषमा को पता है कि पिंक कलर विजय को पसंद है.

‘‘जाओ, इस साड़ी को पहन लो.’’

साड़ी पहन कर जैसे ही सुषमा कमरे में आई तो उसे उमाजी के साथ एक और भद्र महिला दिखीं. उमाजी ने परिचय कराया, ‘‘यह तुम्हारे कजिन विजय की मम्मी हैं.’’

‘‘सुषमा, मेरा बेटा बहुत नादान है. तुम तो बहुत समझदार हो. उस के लिए तुम से मैं माफी मांगने आई हूं. तुम दोनों की स्मृतियों के हर पल को मैं ने महसूस किया, क्योंकि तुम्हारे से हुई हर मुलाकात का ब्योरा वह मुझे देता था. जिस रात तुम ने उसे घर तक छोड़ा है, उस रात वह मेरे गले लग कर बहुत रोया था. तुम उस के जीवन में एक नया परिवर्तन ले कर आई हो,’’ विजय की मम्मी ने सुषमा के चेहरे से नजरें हटा कर उमाजी की ओर डालीं, ‘‘उमाजी ने तुम तक पहुंचने में हमारी बहुत मदद की है. मैं तुम्हें अपनी बहू बनाना चाहती हूं, क्योंकि मेरे बेटे के उदास जीवन में अब तुम ही रंग भर सकती हो. यह साड़ी में उसी की पसंद की तुम्हारे लिए लाई हूं.’’

‘‘सुषमा, हर बेटी को विदा करने का एक समय आता है. विजय ने तुम्हें एक अंगूठी दी थी, तुम ने उसे कहीं खो तो नहीं दिया है.’’

‘‘नहीं आंटी, वह ट्रंक में कहीं नीचे पड़ी है,’’ सुषमा ने ट्रंक खोल कर अंगूठी निकाली तथा सड़क की ओर खुलने वाली खिड़की को खोल दिया.

सुषमा ने देखा, बाहर मोटरसाइकिल पर विजय बैठा था. उमाजी और विजय की मम्मी ने एकसाथ आवाज दी, ‘‘विजय, ऊपर आ जा. इस अंगूठी को तो तू ही पहनाएगा,’’ सुषमा को लगा जैसे उस के सपने इंद्रधनुषी हो गए हैं.

Valentine’s Special: मन का बोझ- क्या हुआ आखिर अवनि और अंबर के बीच

अंबर से उस के विवाह को हुए एक माह होने को आया था. इस दौरान कितनी नाटकीय घटना या कितने सपने सच हुए थे. इस घटनाक्रम को अवनि ने बहुत नजदीक से जाना था. अगर ऐसा न होता तो निखिला से विवाह होतेहोते अंबर उस का कैसे हो जाता? हां, सच ही तो था यह. विवाह से एक दिन पहले तक किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि निखिला की जगह अवनि दुलहन बन कर विवाहमंडप में बैठेगी. विवाह की तैयारियां लगभग पूर्ण हो चुकी थीं. सारे मेहमान आ चुके थे. अचानक ही इस समाचार ने सब को बुरी तरह चौंका दिया था कि भावी वधू यानी निखिला ने अपने सहकर्मी विधु से कचहरी में विवाह कर लिया है. सब हतप्रभ रह गए थे. खुशी के मौके पर यह कैसी अनहोनी हो गई थी.

अंबर तो बुरी तरह हैरान, परेशान हो गया था. अमेरिका से उस की बहन शालिनी आई हुई थी और विवाह के ठीक 2 दिन बाद उस की वापसी का टिकट आरक्षित था. मांजी की आंखों में पढ़ी- लिखी, सुंदर बहू के आने का जो सपना तैर रहा था वह क्षण भर में बिखर गया था. वैसे ही अकसर बीमार रहती थीं. अब सब यही सोच रहे थे कि कहीं से जल्दी से जल्दी दूसरी लड़की को अंबर के लिए ढूंढ़ा जाए, लेकिन मांजी नहीं चाहती थीं कि जल्दबाजी में उन के सुयोग्य बेटे के गले कोई ऐसीवैसी लड़की बांध दी जाए.

अंबर के ही मकान में किराएदार की हैसियत से रहने वाली साधारण सी लड़की अवनि तो अपने को अंबर के योग्य कभी भी नहीं समझती थी. वैसे अंबर को उस ने चाहा था, पर उसे सदैव के लिए पाने की इच्छा वह जुटा ही नहीं पाती थी. वह सोचती थी, ‘कहां अंबर और कहां वह. कितना सुदर्शन और शिक्षित है अंबर. इतना बड़ा इंजीनियर हो कर भी पद का घमंड उसे कतई नहीं है. सुंदर से सुंदर लड़की उसे पा कर गर्व कर सकती है और वह तो रूप और शिक्षा दोनों में ही साधारण है.’

अवनि तो एकाएक चौंक ही गई थी मां से सुन कर, ‘‘सुना तुम ने अवनि, अंबर की मां ने अंबर के लिए तुझे मांगा है. चल जल्दी से दुलहन बनने की तैयारी कर और हां…सरला बहन 5 मिनट के लिए तुम से मिलना चाहती हैं.’’ अवनि तो जैसे जड़ हो गई थी. उस का सपना इस प्रकार साकार हो जाएगा, ऐसा तो उस ने सोचा भी न था. अचानक उस की आंखों से आंसू बहने लगे तो उस की मां घबरा गईं, ‘‘क्या बात है, अवनि, क्या तुझे अंबर पसंद नहीं? सच बता बेटी, तू क्यों रो रही है?’’

‘‘कुछ नहीं मां, बस ऐसे ही दिल घबरा सा गया था.’’ तभी मांजी कमरे में आ गईं, ‘‘अवनि, बता तुझे यह विवाह मंजूर है न? देखो, कोई जबरदस्ती नहीं है. अंबर से भी मैं ने पूछ लिया है. इतने सारे चिरपरिचित चेहरों में मुझे तुम ही अपनी बहू बनाने योग्य लगी हो. इनकार मत करना बेटी.’’

‘‘यह आप क्या कह रही हैं, मांजी,’’ इस से आगे अवनि एक शब्द भी न कह सकी और आगे बढ़ कर उस ने मांजी के चरण छू लिए. अगले दिन विवाह भी हो गया. कैसे सब एकदम से घटित हो गया, आज भी अवनि समझ नहीं पाती. वह दिन भी उसे अच्छी तरह याद है जब अंबर की बहन नेहा और अंबर लड़की देखने गए थे. आते ही नेहा ने उसे नीचे से आवाज लगाई थी, ‘‘अवनि दीदी, नीचे आओ.’’

‘‘क्या है, नेहा?’’ नीचे आ कर उस ने पूछा, ‘‘बड़ी खुश नजर आ रही हो.’’ ‘‘खुश तो होना ही है दीदी, अपने लिए भाभी जो पसंद कर के आ रही हूं.’’

‘‘सच, क्या नाम है उन का?’’ ‘‘निखिला, बड़ी सुंदर है मेरी भाभी.’’

‘‘यह तो बड़ी खुशी की बात है. बधाई हो नेहा…और आप को भी,’’ पास बैठे मंदमंद मुसकरा रहे अंबर की ओर मुखातिब हो कर अवनि ने कहा था. ‘‘धन्यवाद अवनि,’’ कह कर अंबर दूसरे कमरे में चला गया था.

अंबर की खुशी से अवनि भी खुश थी. कैसा विचित्र प्यार था उस का, जिसे चाहती थी उसे पाने की कामना नहीं करती थी, पर अपने मन की थाह तक वह खुद ही नहीं पहुंच सकी थी. बस एक ही तो चाह थी कि अंबर हमेशा खुश रहे. एक ही घर में रहने के कारण अवनि का रोज ही तो अंबर से मिलना होता था. अंबर के परिवार में थे नेहा, मांजी, अंबर, छोटा भाई सृजन तथा शालिनी दीदी, जो विवाह होने के बाद अमेरिका में रह रही थीं. सृजन बाहर छात्रावास में रह कर पढ़ाई कर रहा था. अंबर तो अकसर दौरों पर रहता था.

पर अंबर को देखते ही अवनि उन के घर से खिसक आती थी. शांत, सौम्य सा व्यक्तित्व था उस का, परंतु उस की उपस्थिति में अवनि की मुखरता, जड़ता का रूप ले लेती थी. वैसे जब कभी भी अनजाने में अंबर की आंखें अवनि को अपने पर टिकी सी लगतीं, वह सिहर जाती थी. जाने कब उसे अंबर बहुत अच्छा लगने लगा था. अंबर के मन तक उस की पहुंच नहीं थी. कभीकभी उसे लगता भी था कि अंबर के मन में भी एक कोमल कोना उस के लिए है. फिर वह सोचने लगती, ‘नहीं, भला अंबर व अवनि (धरती) का भी कभी मिलन हुआ है.’ जब कभी दौरे से लौटने में अंबर को देर हो जाती तो मांजी और नेहा के साथसाथ अवनि भी चिंतित हो जाती थी. कभीकभी उसे खुद ही आश्चर्य होता था कि आखिर वह अंबर की इतनी चिंता क्यों करती है, भला उस का क्या रिश्ता है उस से? कहीं उस की आंखों में किसी ने प्रेम की भाषा पढ़ ली तो? फिर वह स्वयं ही अपने मन को समझाती, ‘जो राह मंजिल तक न पहुंचा सके, उस पर चलना ही नहीं चाहिए.’

अवनि भी तो खुशीखुशी अंबर के विवाह की तैयारियां नेहा के साथ मिल कर कर रही थी. विवाह का अधिकांश सामान नेहा और उस ने मिल कर ही खरीदा था. निखिला की हर साड़ी पर उस की स्वीकृति की मुहर लगी थी. अवनि का दिल चुपके से चटका था, पर उस की आवाज किसी ने नहीं सुनी थी. आंसू आंखों में ही छिप कर ठहर गए थे. बाबूजी उस के लिए भी लड़का ढूंढ़ रहे थे. पर संयोगिक घटनाओं की विचित्रता को भला कौन समझ सकता है. नेहा और मांजी ने उसे खुले मन से स्वीकार कर लिया था. मांजी का तो बहूबहू कहते मुंह न थकता था.

एक अंबर ही ऐसा था जिसे पा कर भी अवनि उस के मन तक नहीं पहुंची थी. शादी के बाद वह कुछ ज्यादा ही व्यस्त दिखाई दे रहा था. कितना चाहा था अवनि ने कि अंबर से दो घड़ी मन की बातें कर ले. उस के मन पर एक बोझ था कि कहीं अंबर उसे पा कर नाखुश तो नहीं था. वैसे भी परिस्थितियों से समझौता कर के किसी को स्वीकार करना, स्वीकार करना तो नहीं कहा जा सकता. हो सकता है मांजी और शालिनी दीदी ने उस पर दबाव डाला हो या अपनी मां के स्वास्थ्य का खयाल कर के उस ने शादी कर ली हो.

अवनि के परिवार ने विवाह के दूसरे दिन ही अपने लिए दूसरा मकान किराए पर ले लिया था. शालिनी दीदी को भी दूसरे दिन दिल्ली जाना था. अंबर उन्हें छोड़ने चला गया था. मेहमान भी लगभग जा चुके थे.

अवनि मांजी के पास रहते हुए भी मानो कहीं दूर थी. काश, वह किसी भी तरह अंबर के मन तक पहुंच पाती. दिल्ली से लौट कर अंबर अपने दफ्तर के कामों में व्यस्त हो गया था. स्वयं तो अवनि अंबर से कुछ पूछने का साहस ही नहीं जुटा पा रही थी. प्रारंभ में अंबर की व्यस्ततावश और फिर संकोचवश चाह कर भी वह कुछ न पूछ सकी थी. अंबर भी अपने मन की बातें उस से कम ही करता था. इस से भी अवनि का मन और अधिक शंकित हो जाता था कि पता नहीं अंबर उसे पसंद करता है या नहीं.

अंबर शायद मन से अवनि को स्वीकार नहीं कर पाया था. वैसे वह उस के सामने सामान्य ही बने रहने का प्रयास करता था. कभी भी उस ने अपने मन के अनमनेपन को अवनि को महसूस नहीं होने दिया था. ऊपरी तौर से उसे अवनि में कोई कमी दिखती भी नहीं थी, पर जबजब वह उस की तुलना निखिला से करता तो कुछ परेशान हो जाता. निखिला की सुंदरता, योग्यता आदि सभी कुछ तो उस के मन के अनुकूल था. अवनि को अंबर प्रारंभ से ही एक अच्छी लड़की के रूप में पसंद करता था, पर जीवनसाथी बनाने की कल्पना तो उस ने कभी नहीं की थी. सबकुछ कितने अप्रत्याशित ढंग से घटित हो गया था.

दिन बीत रहे थे. धीरेधीरे अवनि का सुंदर, सरल रूप अंबर के समक्ष उद्घाटित होता जा रहा था. घरभर को अवनि ने अपने मधुर व्यवहार से मोह लिया था. मांजी और नेहा उस की प्रशंसा करते न थकती थीं. उस के समस्त गुण अब साथ रहने से अंबर के सामने आ रहे थे, जिन्हें वह पहले एक ही घर में रहने पर भी नहीं देख पाया था. उन दिनों नेहा की परीक्षाएं चल रही थीं और मां भी अस्वस्थ थीं. अवनि के पिताजी एकाएक उसे लेने आ गए थे, क्योंकि उन्होंने नया घर बनवाया था. पीहर जाने की लालसा किस लड़की में नहीं होती, पर अवनि ने जाने से इनकार कर दिया था. मांजी ने कहा था, ‘‘चली जाओ, दोचार दिन की ही तो बात है, सब ठीक हो जाएगा.’’

पर अवनि ही तैयार नहीं हुई थी. वह नहीं चाहती थी कि नेहा की पढ़ाई में व्यवधान पड़े. अंबर सोचने लगा, जिस तरह अवनि ने उस के घरपरिवार के साथ सामंजस्य बैठा लिया था, क्या निखिला भी वैसा कर पाती? मांबाप की इकलौती बेटी, धनऐश्वर्य, लाड़प्यार में पली, उच्च शिक्षित, रूपगर्विता निखिला क्या इतना कुछ कर सकती थी? शायद कभी नहीं. वह व्यर्थ ही भटक रहा था. जो कुछ भी हुआ, ठीक ही हुआ. अंबर अब महसूस करने लगा था कि मां ने सोचसमझ कर ही अवनि का हाथ उस के हाथ में दिया था.

फिर एक दिन स्वयं ही अंबर कह उठा था, ‘‘सच अवनि, मैं बहुत खुश हूं कि मुझे तुम्हारे जैसी पत्नी मिली. वैसे तुम से मेरा विवाह होना आज भी स्वप्न जैसा ही लगता है.’’ ‘‘क्या आप को निखिला से विवाह टूटने का दुख नहीं हुआ. कहां निखिला और कहां मैं.’’

‘‘नहीं अवनि, ऐसा नहीं है,’’ अंबर ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘निखिला से जब मेरा रिश्ता तय हुआ तो उस से लगाव भी स्वाभाविक रूप से हो गया था. फिर शादी से एक दिन पूर्व ही रिश्ता टूटने से ठेस भी बहुत लगी थी. वैसे भी निखिला से मैं काफी प्रभावित था. ‘‘सच कहूं, प्रारंभ में मैं एकाएक तुम से विवाह हो जाने पर बहुत प्रसन्न हुआ हूं, ऐसा नहीं था क्योंकि एक ही घर में रहते हुए तुम्हें जानता तो था, पर उतना नहीं, जितना तुम्हें अपनी सहचरी बना कर जाना. तुम्हारे वास्तविक गुण भी तभी मेरे सामने आए. तुम्हें एक अच्छी लड़की के रूप में मैं सदा ही पसंद करता रहा था. तुम्हारी सौम्यता मेरे आकर्षण का केंद्र भी रही थी, पर विवाह करने का मेरा मापदंड दूसरा ही था. इसीलिए मैं शायद तुम्हारे गुणों व नैसर्गिक सौंदर्य को अनदेखा करता रहा था, पर अब मुझे एहसास हो रहा है कि शायद मैं ही गलत था.

‘‘वैसे भी अवनि और अंबर को तो एक दिन क्षितिज पर मिलना ही था,’’ अंबर ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘सच,’’ अंबर की स्पष्ट रूप से कही गई बातों से अवनि के मन का बोझ भी उतर गया था.

Valentine’s Day: प्रतियोगिता

रोज की तरह आज भी शैली सुबहसुबह सोसाइटी के पार्क में टहलने के लिए पहुंची. 32 साल की शैली खुले बालों में आकर्षक लगती थी. रंग भले ही सांवला था मगर चेहरे पर आत्मविश्वास और चमक की वजह से उस का व्यक्तित्व काफी आकर्षक नजर आता था. वह एक सिंगल स्मार्ट लड़की थी और एक कंपनी में काफी ऊंचे पद पर काम करती थी. उसे अपने सपनों से प्यार था. शैली करीब 3 महीने पहले ही इस सोसाइटी में आई थी.

खुद को फिट और हैल्दी बनाए रखने के लिए वह हर संभव प्रयास करती. हैल्दी खाना और हैल्दी लाइफ़स्टाइल अपनाती. रोज सुबह वॉक पर निकलती तो शाम में डांस क्लास के लिए जाती. आज ठंड ज्यादा थी सो उस ने वार्मर के ऊपर एक स्वेटर भी पहन रखा था. टहलतेटहलते उस की नजरें किसी को ढूंढ रही थीं. रोज की तरह आज वह लड़का उसे कहीं नजर नहीं आ रहा था जो सामने वाली फ्लैट में रहता था और रोज इसी वक्त टहलने के लिए आता था. टीशर्ट के ऊपर पतली सी जैकेट और स्लीपर्स में भी वह लड़का शैली को काफी स्मार्ट नजर आता था.

अभी दोनों अजनबी थे. इसलिए बस एकदूसरे को निगाह भर कर देखते और आगे बढ़ जाते. इधर कुछ दिनों से दोनों के बीच हल्की सी मुस्कान का आदानप्रदान भी होने लगा था. आज उस लड़के को न देख कर शैली थोड़ी अचंभित थी क्योंकि मौसम कैसा भी हो, कुहासे की चादर फैली हो या फिर बारिश हो कर चुकी हो, वह लड़का जरूर आता था. अगले दो दिनों तक शैली को वह नजर नहीं आया तो शैली उस के लिए थोड़ी चिंतित हो गई. कोई रिश्ता न होते हुए भी उस लड़के के लिए वह एक अपनापन सा महसूस करने लगी थी. वह सोचने लगी कि हो सकता है उस के घर में कोई बीमार हो या वह कहीं गया हुआ हो.

तीसरे दिन जब वह लड़का दिखा तो शैली एकदम से उस के करीब पहुँच गई और पूछा,” आप कई दिनों से दिख नहीं रहे थे, सब ठीक तो है?”

“कई दिनों से कहां, केवल 2 दिन ही तो… ”

“हां वही कह रही थी. सब ठीक है न? ”

“यस एवरीथिंग इज फाइन. थैंक यू…  वैसे आज मुझे पता चला कि आप मुझे औब्जर्व भी करती हैं,” चमकीली आंखों से देखते हुए उस ने कहा.

“अरे नहीं वह तो रोज देखती थी न..,” शैली शरमा गई.

” एक्चुअली मेरे नौकर की बेटी बीमार थी. उसी के इलाज के चक्कर में हॉस्पिटलबाजी में लगा था,” उस लड़के ने बताया.

“आप अपने नौकर की बेटी के लिए भी इतनी तकलीफ उठाते हैं?” आश्चर्य से शैली ने पूछा.

” क्यों नहीं आखिर वह भी हमारे परिवार की सदस्य जैसी ही तो है.”

“नाइस. आप के घर में और कौनकौन है?”

“बस अपनी मां के साथ रहता हूं. पत्नी से तलाक हुए 3 साल हो चुके हैं. .., ” कहते हुए उस लड़के ने परिचय के लिए हाथ बढ़ाया.

शैली ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया,” मैं यहां अकेली ही रहती हूं, अब तक शादी नहीं की है. मेरा नाम शैली है और आप का?”

” माईसेल्फ रोहित. नाइस टू मीट यू.”

इस के बाद काफी समय तक दोनों वाक करने के साथ ही बातें करते रहे. आधे घंटे की वाक पूरी करतेकरते दोनों के बीच अच्छीखासी दोस्ती हो गई. मोबाइल नंबर का आदानप्रदान भी हो गया. अब दोनों फोन पर भी एकदूसरे से कनेक्टेड रहने लगे. धीरेधीरे दोनों की जानपहचान गहरी दोस्ती में बदल गई. दोनों को ही एकदूसरे का साथ बहुत पसंद आने लगा. दोनों फिटनेस फ्रीक होने के साथ स्ट्रांग मेंटल स्टेटस वाले लोग थे. दूसरों की परवाह न करना, अपने काम से काम रखना, रिश्तों को अहमियत देना और काम के साथसाथ स्टाइल में जीवन जीना. जीवन के प्रति दोनों की ही सोच एक जैसी थी. वे काफी समय साथ बिताने लगे. वक्त इसी तरह गुजरता जा रहा था.

इधर उन दोनों की दोस्ती सोसाइटी में बहुत से लोगों को नागवार गुजर रही थी. खासकर रोहित की पड़ोसन माला बहुत अपसेट थी. उस की कभी कभार शैली से भी बातचीत हो जाती थी. उस दिन भी शैली घर लौट रही थी तो रास्ते में वह मिल गई.

फॉर्मल बातचीत के बाद माला शुरू हो गई,” यार मैं ने कितनी कोशिश की कि रोहित मुझ से पट जाए. उस के लिए क्याक्या नहीं किया. कभी उस की पसंद का खाना बना कर उस के घर ले गई तो कभी उस के लिए अपने बालों की स्मूथनिंग कराई. कभी उसे रिझाने के लिए एक से बेहतर एक कपड़े खरीदे तो कभी उस के पीछे अपना पूरा दिन बर्बाद किया. मगर उस ने कभी मेरी तरफ ढंग से देखा भी नहीं. देख जरा कितनी खूबसूरत हूं मैं. कॉलेज में सब मुझे मिस ब्यूटी कहते थे. एक बात और जानती है, उस की तरह मैं भी राजपूत हूं. उबलता हुआ खून है हम दोनों का. मगर देख न मेरा तो चक्कर ही नहीं चल सका. अब तू बता, तूने ऐसी कौन सी घुट्टी पिला दी उसे जो वह….”

जो वह ..? क्या मतलब है तुम्हारा?”

“मतलब तुम दोनों के बीच इलूइलू की शुरुआत कैसे हुई? ”

“देखिए इलूविलू मैं नहीं जानती. मैं बस इतना जानती हूं कि वह मेरा दोस्त बन चुका है और हमेशा रहेगा. इस से ज्यादा न मैं जानती हूं न तुम से या किसी और से सुनना या बात करना चाहती हूं,”  टका सा जवाब दे कर शैली अपने फ्लैट में घुस गई.

शैली के जाते ही पड़ोस की रीमा आंटी माला के पास आ गई. माला गुस्से में बोली,” आंटी तेवर तो देखो इस के. सोसाइटी में आए दिन ही कितने बीते हैं और इस चालाक लोमड़ी ने रोहित को अपने जाल में फंसा लिया.”

“बहुत ऊंचा दांव खेला है इस लड़की ने. सोचा होगा कि इस उम्र में कुंवारे कहां मिलेंगे. चलो तलाकशुदा को ही पकड़ लिया जाए और तलाकशुदा जब रोहित जैसा हो तो कहना ही क्या. धनदौलत की कमी नहीं. देखने में भी किसी चार्मिंग हीरो से कम नहीं लगता. मैं ने तो अपनी नेहा के लिए इस से कितनी बार बात करनी चाही पर यह हमेशा ऐसा नादान बन जाता है जैसे कुछ समझ ही न रहा हो.”

“नेहा कौन आंटी, आप की भतीजी?”

“हां वही. जब भी मेरे घर आती है तो रोहित की ही बातें करती रहती है. रोहित के घर भी जाती है, उस की मां से भी अच्छी फ्रेंडशिप कर ली है, पर वह उसे भाव ही नहीं देता.”

“आंटी नेहा तो अभी बच्ची है. आप उस के लिए कोई और लड़का देख लीजिये. मैं तो अपनी बात कर रही थी. बताओ मुझ में क्या कमी है?” माला ने पूछा.

“सही कह रही है माला. मेरे लिए तो जैसे नेहा है वैसी ही तू है. मेरी नेहा न सही वह तुझ से ही शादी कर ले तो भी मैं खुश हो जाउंगी. फूल सी बच्ची है तू भी पर आजकल तेरी शक्ल पर 12 क्यों बजे रहते हैं? कई दिनों से ब्यूटी पार्लर नहीं गई क्या?” रीमा आंटी ने माला को गौर से देखते हुए कहा.

“हां आंटी आप सच कह रही हो. कल ही पार्लर जा कर आती हूं. अपना लुक बिल्कुल ही बदल डालूंगी फिर देखूंगी रोहित कैसे मुझे छोड़ कर किसी और पर नजर भी डालता है?”

“सही है. मैं भी अपनी नेहा के लिए लेटेस्ट फैशन के कुछ कपड़े और ज्वेलरी लाने जाने वाली हूं,” आँख मारते हुए आंटी ने कहा तो दोनों हंस पड़ी.

शैली और रोहित को साथ देख कर इन की तरह कुछ और लोगों के सीने पर भी सांप लोटने लगे थे. शैली के बगल में रहने वाली देवलीना आंटी को अपने बेटे के लिए शैली बहुत पसंद थी. जॉब करने वाली इतनी कॉन्फिडेंट और खूबसूरत लड़की को ही वह अपनी बहू बनाना चाहती थी. शैली दिखने में आकर्षक होने के साथसाथ एक कमाऊ लड़की भी थी. जब कि उन के इकलौते बेटे पीयूष का बिज़नेस ठीक नहीं चल रहा था. जाहिर था कि अगर शैली उन के घर में आ जाती तो सब कुछ चमक जाता. इसी चक्कर में पिछले 2 महीने से उन्होंने अपने बेटे के लुक पर मेहनत करनी शुरू कर दी थी. उन के बेटे का पेट थोड़ा निकला हुआ था. वह एक्सरसाइज वगैरह से दूर भागता था जब कि शैली को उन्होंने जिम जाते और मॉर्निंग वॉक करते देखा था.

देवलीना आंटी ने बेटे को जिम भेजना शुरू कर दिया था ताकि वह भी आकर्षक नजर आए. इस बीच शैली और रोहित को साथ मॉर्निंग वाक करते देख आंटी के मन में कंपटीशन की भावना बढ़ने लगी.

सुबह 7 बजे भी बेटे को सोता देख कर उन्होंने उस की चादर खींची और चिल्लाती हुई बोली,” रोहित जानबूझ कर शैली के साथ वॉक करने लगा है ताकि उस के करीब आ सके और एक तू है…  तू क्या कर रहा है ? चादर तान कर सो रहा है? चल उठ और पता कर कि शैली जिम करने किस समय जाती है. कल से तुझे भी उसी समय जिम जाना होगा.”

बेटे ने भुनभुनाते हुए चादर फिर से ओढ़ ली और बोला,” यार मम्मी मुझे नहीं जाना जिमविम.”

“समय रहते चेत जा लड़के. ऐसी लड़की घर की बहू बन कर आ गई तो पैसों की कमी नहीं रहेगी. तेरा बिजनेस तो सही चलता नहीं है, कम से कम बहू तो कमाऊ ले आ. चल उठ मैं ने कोई बहाना नहीं सुनना. खुद तो बात आगे बढ़ा नहीं पाता बस उसे देख कर दांत भर निकाल देता है. कभी यह कोशिश नहीं करता कि कैसे उसे अपने प्यार में पागल किया जाए.”

” ओह मम्मी, प्यार ज़बरदस्ती नहीं किया जाता. जिस से होना होगा हो जाएगा.”

” तो क्या बुढ़ापे में प्यार होगा और शादी भी बुढ़ापे में करेगा?”

” मम्मी अरैंज मैरिज कर लूंगा. डोंट वरी. मुझे सोने दो,” उनींदी आवाज़ में पियूष ने कहा और करवट बदल कर सो गया.

आंटी को गुस्सा आ गया. इस बार उन्होंने एक गिलास पानी उस के मुंह पर उड़ेल दिया और चिल्लाईं,” चल उठ और जिम हो कर आ. चल जा… ”

शैली को रोहित के साथ देख कर ऐसी हालत केवल देवलीना आंटी की ही नहीं थी बल्कि कुछ और लोग भी थे जो शैली को अपनी बहू या बीवी बनाने के सपने देख रहे थे. उन के दिल में भी रोहित को ले कर प्रतियोगिता की भावना घर करने लगी थी. सब अपनेअपने तरीके से इस प्रतियोगिता को जीतने की कोशिश में लग गए.

निलय मित्तल तो शैली के घर ही पहुंच गए. शैली का निलय जी से सिर्फ इतना ही परिचय था कि वह इसी सोसाइटी में रहते हैं और किसी कंपनी में मैनेजर हैं. उन्हें अपने घर देख कर शैली चकित थी.

चाय वगैरह पूछने के बाद शैली ने आने की वजह पूछी तो निलय मित्तल बड़े प्यार से शैली से कहने लगे, “बेटा तू जिस कंपनी में  है उस में मेरा दोस्त भी काम करता है. उस ने तेरे बारे में एक बार बताया था. इतनी कम उम्र में तूने कंपनी में अपनी खास जगह बना ली है. मेरा बेटा विकास भी इसी फील्ड में है. तभी मैं ने सोचा कि तुम दोनों की दोस्ती करा दूँ. वैसे तो दोनों ऑफिस चले जाते हो सो एकदूसरे से मिल नहीं पाते. मगर यह तुझे कभी भी आतेजाते देखता है तो तारीफ करता है. मेरी वाइफ भी तुझे पसंद करती और जानती है हम भी इलाहाबाद के वैश्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं. हम भी महाराजा अग्रसेन के वंशज हैं. तेरे घर के बुजुर्ग हमारे परिवार को जरूर जानते होंगे”

” जी अंकल हो सकता है. मुझे आप से और विकास से मिल कर अच्छा लगा. कभी जरूरत पड़ी तो मैं विकास को जरूर याद करूंगी.”

” अरे बेटा कभी जरूरत पड़ी की क्या बात है ? हम एक ही जगह से हैं, तुम दोनों एक ही फील्ड के हो, एक ही जाति के भी हो. आपस में मिलते रहा करो. समझ रही है न बेटी? मेरा विकास तो बहुत शर्मीला है. तुझे ही बात करनी होगी. स्विमिंग पूल के बगल वाली बिल्डिंग के पांचवें फ्लोर पर हम रहते हैं. मैं तो कहता हूं आज रात तू हमारे यहां खाने पर आ जा.”

” जी अंकल बिल्कुल मैं ख्याल रखूंगी मगर खाने पर नहीं आ पाऊंगी क्योंकि मुझे आज ऑफिस में देर हो जाएगी. अच्छा अंकल मुझे अभी ऑफिस के लिए निकलना होगा. आप बताइए चायकॉफी कुछ बना दूं ?” शैली ने पीछा छुड़ाने की गरज से कहा.

” अरे नहीं बेटा. बस तुझ से ही मिलने आए थे.”

शैली की बिल्डिंग के सब से ऊपरी फ्लोर पर रहने वाले गुप्ता जी भी एक दिन लिफ्ट में मिल गए. वह शैली से पूछने लगे, “तुम इलाहाबाद की हो न.”

“जी,” शैली ने जवाब दिया.

“मेरा दोस्त भी उधर का ही है और वह भी बनिया ही है . उस के बेटे की फोटो दिखाता हूं. यह देख कितना स्मार्ट है. तुझे बहुत पसंद करता है,” गुप्ता जी ने मौका देखते ही निशाना साधने की कोशिश की थी.

“अरे यह तो सूरज है. मैं जब बास्केटबॉल खेलने जाती हूं तो एक कोने में खड़े रह कर मुझे देखता रहता है. जिम जाती हूं तब भी नजर आता है और ऑफिस जाते समय भी…” शैली ने उसे पहचानते हुए कहा.

“तू गौर करती है न इस पर, असल में यह बस तुझे नजर भर कर देखने को ही तेरा पीछा करता है. दिल का बहुत अच्छा है बस बोल नहीं पाता.”

“पर अंकल मैं तो इसे स्टॉकर समझ कर पुलिस में देने वाली थी. ”

“अरे बेटा यह कैसी बात कर रही है? यह तो बस इस का प्यार है,” गुप्ता जी ने समझाने के अंदाज़ में कहा.

“बहुत अजीब प्यार है अंकल. इसे कहिए थोड़ा ग्रूम करे,” कह कर हंसी छिपाती शैली वहां से निकल गई.

इस तरह शैली और रोहित की दोस्ती ने सोसायटी के बहुत सारे लोगों के दिलों में दर्द पैदा कर दिया था. शैली और रोहित इन लोगों के बारे में एकदूसरे को बता कर खूब हंसते. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उन की दोस्ती इतने लोगों के दिलोदिमाग में खलबली मचा देगी. दोनों एकदूसरे का साथ एंजॉय करते. अब वे सोसाइटी के बाहर भी एकदूसरे से मिलने लगे थे. धीरेधीरे उन के बीच की दोस्ती प्यार में तब्दील होने लगी. दोनों काबिल थे. एकदूसरे को पसंद करते थे. रोहित की मां को भी इस रिश्ते से कोई गुरेज नहीं था.

उस दिल शैली का जन्मदिन था. रोहित ने तय किया था कि वह इस बार शैली को बर्थडे पर सरप्राइज देगा. इस के लिए उस ने एक रिसोर्ट बुक कराया. शानदार तरीके से उस का बर्थडे मनाया. रात 12 बजे केक काटा गया.

उस रात रोहित ने प्यार से शैली से पूछा,” आज के दिन तुम मुझ से जो भी मांगोगी मैं उसे पूरा करूंगा. बताओ तुम्हें मुझ से क्या चाहिए?”

“रियली ?”

“यस ”

“तो फिर ठीक है. मुझे आज कुछ लोगों की आंखों का सपना छीन कर उसे अपना बनाना है.”

“मतलब ?”

” मतलब जिन की आंखों में तुम्हें या मुझे ले कर सपने सजते रहते हैं उन्हें उन के सपनों से हमेशा के लिए दूर करना है. उन सपनों को अपनी आंखों में सजाना है यानी तुम्हें अपना बनाना है,” एक अलग ही अंदाज में शैली ने कहा और मुस्कुरा उठी.

रोहित को जैसे ही बात समझ में आई तो उस ने शैली को अपनी बाहों में भर लिया और उसी अंदाज में बोला,” तो ठीक है सपनों को नया अंजाम देते हैं. इस रिश्ते को प्यारा सा नाम देते हैं. ”

दोनों की आँखों में उमंग भरी एक नई जिंदगी की मस्ती घुल गई और दोनों एकदूसरे में खो गए. एक महीने के अंदर शादी कर शैली रोहित की बन गई और इस के साथ ही बहुतों के सपने एक झटके में टूट गए.

Valentine’s Day: नया सवेरा- क्या खुशियों को पाने के लिए तैयार थी प्रीति

Valentine’s Special: थिक लिप्स के लिए 7 Lipstick

जब महिलाएं लिपस्टिक खरीदने जाती हैं, तो अकसर उसी शेड की लिपस्टिक खरीदती हैं, जो उन्हें पसंद आता है. बिना यह सोचे कि इस शेड की लिपस्टिक उन की स्किनटोन पर सूट करेगी भी या नहीं. अगर स्किनटोन और लिप्स टाइप को ध्यान में रख कर लिपस्टिक खरीदी जाए, तो चेहरे की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है. आइए, मेकअप आर्टिस्ट क्रिस्टल फर्नांडिस से जानें कि मोटे लिप्स वाली महिलाओं पर लिपस्टिक के कौनकौन से शेड्स अच्छे दिखते हैं:

1. रैड

रैड लिपस्टिक का चुनाव करते समय अपनी स्किनटोन को ध्यान में रखें. जैसे यदि आप गोरी हैं तो रौयल रैड शेड की लिपस्टिक लगाएं और अगर आप का कौंप्लैक्शन गेहुआं है, तो वाइन रैड कलर की लिपस्टिक खरीदें. इस से आप खूबसूरत नजर आएंगी.

2. मोव

मोटे लिप्स वाली महिलाओं को लगता है कि लिपस्टिक के डार्क शेड्स उन पर नहीं जंचेंगे. अगर आप भी यही सोचती हैं, तो आप गलत हैं. मोटे लिप्स पर रैड शेड ही नहीं, बल्कि मोव शेड्स की लिपस्टिक भी खूबसूरत नजर आती है. चूंकि मोव शेड शाइनी होता है, इसलिए इसे नियमित लगाने के बजाय पार्टी जैसे खास मौकों पर ही लगाएं.

3. सौफ्ट पिंक

अगर आप डार्क शेड की लिपस्टिक लगाना पसंद नहीं करतीं, तो सिंपल और सोबर लुक के लिए सौफ्ट पिंक शेड की लिपस्टिक लगा सकती हैं. इस से मोटे होंठ हाईलाइट नहीं होते हैं. ये शेड औफिस गोइंग महिलाओं के लिए भी बैस्ट हैं. इन्हें आप औफिस की खास मीटिंग में ही नहीं, रोजाना भी लगा सकती हैं.

4. बेरी

नाइट पार्टी या किसी खास फंक्शन की सैंटर औफ अटै्रक्शन बनना चाहती हैं, तो थिक लिप्स पर बेरी शेड की लिपस्टिक लगाएं. डार्क बेरी शेड लिपस्टिक ड्रामा क्वीन लुक के लिए बैस्ट है. हां, लेकिन जब बेरी शेड की लिपस्टिक लगाएं, तब आई मेकअप न्यूड रखें. डार्क शेड की लिपस्टिक के साथ हैवी आई मेकअप गौडी लुक देता है.

5. कौपर

थिक लिप्स पर कौपर शेड भी काफी फबता है. इस से मोटे होंठ पतले नजर आते हैं. पार्टी जैसे खास मौकों पर डार्क कौपर शेड की लिपस्टिक लगा सकती हैं, लेकिन औफिस में रोजाना इस्तेमाल के लिए कौपर का लाइट शेड ही खरीदें. ब्यूटीफुल लुक के लिए जब कौपर शेड की लिपस्टिक लगाएं तब आई मेकअप के लिए ब्राउन आईलाइनर इस्तेमाल करें.

6. रोज

अगर आप हैवी लिप मेकअप से बचना चाहती हैं, तो अपने वैनिटी बौक्स में रोज लिपस्टिक रख सकती हैं. रोज लिपस्टिक के कई शेड्स हैं. सिंपल लुक के लिए लाइट रोज शेड की लिपस्टिक चुनें और यंग लुक के लिए रोज लिपस्टिक का फ्रैश शेड खरीदें. रोजाना इस्तेमाल के लिए अपनी स्किनटोन से मैच करता रोज शेड खरीदें.

7. न्यूड

अगर आप आई मेकअप को स्मोकी लुक दे कर हाईलाइट करना चाहती हैं, तो लिप मेकअप के लिए न्यूड शेड लिपस्टिक का चयन कर सकती हैं और अगर आई मेकअप को लाइट रखते हुए लिप मेकअप को हाईलाइट करना हो तो होंठों पर न्यूड शेड लिपस्टिक लगा कर लिप ग्लौस लगा लें.

स्किनटोन और लिप्स टाइप को सूट करती लिपस्टिक्स के चुनाव के साथसाथ यह भी ध्यान रखें कि आप का आउटफिट आप के मेकअप को सूट कर रहा है या नहीं वरना आप का लुक खराब हो सकता है. इन सब बातों को फौलो कर के आप दिखेंगी हर मौके पर सबसे हसीन.

ऐक्सपर्ट ऐडवाइज

– मोटे लिप्स के लिए मैट फिनिश या क्रीम टैक्स्चर वाली लिपस्टिक खरीदें. ग्लौसी लिपस्टिक खरीदने की गलती न करें.

– लिपग्लौस लगाना चाहती हैं तो पूरे होंठों पर लिपग्लौस लगाने के बजाय होंठों के बीच में लगा कर उसे होंठों से ही फैला लें. इस से लिप्स मोटे नजर नहीं आएंगे.

– लिप मेकअप के लिए लिपलाइनर इस्तेमाल करना हो तो लिपलाइनर को होंठों के अंदर की ओर लगाएं. बाहर की ओर लगाने से लिप्स और भी मोटे नजर आते हैं.

Valentine’s Special: कैसें संभाले Intimate रिलेशनशिप को

जब लगातार दूसरे महीने भी पीरियड्स नहीं आए तो 44 वर्षीय निमिषा घबरा उठी. एक आशंका उन के जेहन में कौंध गई कि कहीं वह प्रैगनैंट तो नहीं हो गई.

एक सरकारी विभाग में ऊंच पद पर कार्य कर रही निमिषा के संबंध अपने ही सहकर्मी मनीष से थे पर इस की हवा किसी को उन्होंने नहीं लगने दी थी. दफ्तर में वे एकदूसरे से औपचारिक तरीके से पेश आते थे. अपने काम से काम रखने वाली निमिषा कब और कैसे मनीष के इतने नजदीक आ गई कि उस से वर्षों से दबी सैक्स इच्छा पूरी करने को तैयार हो गई.

अब वह घबरा रही है कि कहीं गर्भ न ठहर गया हो. शहर के दूरदराज के कैमिस्ट के यहां से वह झिझकते झिझकते प्रैगनैंसी किट लाई और यूरिन टैस्ट किया तो 2 गुलाबी लाइनें देख उस के होश उड़ गए.

कुछ पारिवारिक वजहों के चलते निमिषा वक्त रहते शादी नहीं कर पाई थी, इस का उसे कोई खास मलाल नहीं था, लेकिन करीब 10 साल पहले तक मां बनने की इच्छा होती थी, फिर धीरेधीरे कब इस सुखद अनुभूति को भी दूसरे जज्बातों की तरह तनहाई निगल गई इस का भी उसे पता नहीं चला.

करीब 4 साल पहले जब मनीष उस के नजदीक आया तो सारी वर्जनाएं टूट गईं हालांकि परिचय को सैक्स तक पहुंचने के दिन मनीष ने उसे समझया भी था कि सोचा लो कोई जबरदस्ती नहीं, कल को यदि मन में कोई गिल्ट या पछतावा आए तो सैक्स बहुत जरूरी नहीं.

हरज की बात नहीं

मगर निमिषा के लिए अब खुद को और नियंत्रित कर पाना मुश्किल लग रहा था. खुद उस ने यह फैसला लेने के पहले बहुत सोचविचार कर लिया था और इस नतीजे पर पहुंची थी कि इस में कोई हरज की बात नहीं. आखिर कब तक अपनी इच्छा को मारती रहेगी. मनीष की हिचक को देख खुद उस ने उसे बढ़ावा दिया और फिर यह रोजरोज का तो नहीं पर महीने में 2-3 बार का सिलसिला हो गया.

मनीष से वह बहुत खुल गई थी और जबजब वह सैक्स के दौरान कंडोम का इस्तेमाल करता था तो निमिषा ही मजाक में उसे टोक देती थी कि अब क्या बुढ़ापे में बच्चा होगा तो जवाब में मनीष उसे समझता था कि यह खतरा तो 60 के बाद तक या मेनोपौज तक बना रहता है और तुम्हारी प्रतिष्ठा और मेरी घरगृहस्थी के लिए यह सावधानी भी जरूरी है.

जरूरी बातें

पिछले 2-3 बार से जल्दबाजी में मनीष कंडोम नहीं खरीद पाया था क्योंकि कैमिस्टों पर तो कोविड-19 वालों की भीड़ लगी रहती थी, जिस का नतीजा सामने था. मौका पा कर जब निमिषा ने मनीष को प्रैगनैंट होने की बात बताई तो एक दफा तो वह भी घबरा गया जो पहले से ही 2 बच्चों का पिता था, लेकिन फिर जल्द ही संभल भी गया. शाम को अंधेरा होते ही हमेशा की तरह अपनी गाड़ी पार्किंग में खड़ी कर के पैदल ही निमिषा के घर पहुंचा और हमेशा की तरह पीछे के दरवाजे से दाखिल हुआ तो निमिषा का उतरा चेहरा देख ग्लानि से भर उठा.

काफी देर विचारविमर्श करने के बाद दोनों ने फैसला किया कि जितनी जल्दी हो सके अबौर्शन करा लेना ही बेहतर रास्ता है. मनीष को थोड़ीबहुत जानकारी डाक्टरों की थी पर दोनों साथ जाएं कैसे इस में वे हिचक रहे थे.

आखिर में तय हुआ कि निमिषा अकेले ही जा कर लेडी डाक्टर से बात करेगी और अबौर्शन करा लेगी. मनीष अप्रत्यक्ष रूप से उस के साथ रहेगा.

मनीषा ने जब योजना के मुताबिक डाक्टर को सारा सच बता दिया तो कोई खास दिक्कत नहीं आई. लेडी डाक्टर ने जांच कर आश्वस्त किया कि भ्रूण अभी 8 सप्ताह के लगभग का है और आसानी से अबौर्शन हो जाएगा तो उन्हें सुकून मिला और डाक्टर से बात कर लेने से घबराहट भी कम हुई.

3 दिन बाद ही छुट्टी ले कर वह चुपचाप भरती हो गईर् और 2 दिन बाद गर्भ से छुटकारा पा कर घर वापस भी आ गई. पड़ोसी को यह कह कर गई थी कि 3 दिन के लिए बाहर टूर पर जा रही है.

सावधानी हटी दुर्घटना घटी

हफ्तेभर बाद ही वह और मनीष के शहर के एक नामी होटल में कौफी पीते जश्न मना रहे थे क्योंकि एक मामली चूक भयंकर बखेड़ा करने वाली थी. उंगलियां एक प्रतिष्ठित परिवार की अकेली रह रही महिला के चालचलन पर भी उठ सकती थीं जिस की अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारियां थीं और उस के सहकर्मी पर भी उठतीं जिस के बारे में लोग यह जानते थे कि वह अपने बीवी बच्चों को बहुत प्यार करता है.

मनीष बेवजह 2 पाटों के बीच पिसना नहीं चाहता था तो निमिषा की मजबूरी यह थी कि प्राइवेसी और सैक्स के मामले में मनीष उसे भरोसेमंद और समझदार व्यक्ति लगा था जो आखिरकार निकला भी. प्रैगनैंसी की बात सुनते ही खुद की बराबर की गलती और लापरवाही मानते जैसे निमिषा चाहे वैसा करने की बात पूरी ईमानदारी से उस ने कह दी थी कि उस पर अमल करने के लिए दृढ़ भी दिख रहा था.

वैसे भी मनीषा को उस पर किसी तरह का शक नहीं था इसलिए अबौर्शन कराने में उसे ज्यादा मुसीबतों का सामना नहीं करना पड़ा जितनी कि वह सोच रही थी. दोनों अब भी पहले की तरह तयशुदा दिनों में मिलते हैं, लेकिन कोई रिस्क नहीं उठाते.

हरेक के लिए जरूरी

वजहें कुछ भी हों निमिषा जैसी अकेली रह रही महिलाओं के लिए सैक्स संबंध बनाने से पहले यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि यह कभीकभी बेहद दिक्कत वाला काम भी साबित हो सकता है. लिहाजा किसी किस्म की लापरवाही काफी महंगी पड़ सकती है.

सैक्स किसी भी वयस्क के लिए किसी भी लिहाज से वर्जित नहीं है पर कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें अकेली रह रही महिला वह भी अधेड़ावस्था में नजरअंदाज नहीं कर सकती और अगर करेगी तो बड़ी दिक्कतों में पड़ जाएगी.

सैक्स संबंध क्यों जिम्मेदारी से निभाएं

समझदार और समाज के प्रति जवाबदेह लोगों के बीच मरजी से बने सैक्स संबंध क्यों जिम्मेदारी से निभाने चाहिए लापरवाही से नहीं, आइए जानते हैं:

– जिस से सैक्स संबंध बनाएं वह विश्वसनीय होना चाहिए.

– विश्वसनीयता आंकने का हालांकि कोई तयशुदा पैमाना नहीं पर वह हर लिहाज से बराबरी का होना चाहिए.

– आमतौर पर शादीशुदा गृहस्थ पुरुष सैक्स संबंधों के लिए विश्वसनीय होते हैं क्योंकि उन पर कई पारिवारिक व सामाजिक जिम्मेदारियां होती हैं जिन के चलते वे भी आप की तरह नहीं चाहते कि ये संबंध आम हों.

– सैक्स संबंध रोजरोज खुलेआम या दिनदहाड़े नहीं बनाना चाहिए.

– आतेजाते कोई देखे नहीं या जासूसी या फिर निगरानी न करे इस बात का खयाल रखा जाना चाहिए.

– सैक्स करने के लिए महिला का खुद का ही घर उपयुक्त रहता है बजाय पुरुष के साथ कहीं और जाने के क्योंकि खुद के घर में सुरक्षा भी रहती है और बेफिक्री भी.

– सैक्स के लिए घर के बाहर खासतौर से होटलों में जाने से परहेज करना चाहिए क्योंकि आजकल आए दिन पुलिस ताकझंक करते हैं और होटल वाले भी रिश्ते को ले कर कभीकभी प्रमाण मांगने लगते हैं.

– संबंध शारीरिक स्तर तक ही सीमित रहे तो बेहतर है. पुरुष से भावनात्मक लगाव या प्यार करना बाद के लिए दिक्कत देने वाला काम साबि होता है. कोई पुरुष अपनी गृहस्थी और सामाजिक प्रतिष्ठा में आग लगाना पसंद नहीं करता.

– मोबाइल पर ज्यादा बात न करें कि कहीं दूसरा रिकौर्ड न कर रहा हो. जिस के साथ आज खुशी से रहे हैं वह कल को ब्लैकमेल भी कर सकता है.

– पीरियड्स का विशेष खयाल रखें खासतौर से यह कि उम्र का गर्भधारण से कोई संबंध नहीं होता. जरा सी लापरवाही से गर्भ ठहर सकता है जैसाकि निमिषा के साथ हुआ.

– गर्भनिरोधकों की जानकारी शैक्षणिक तरीके से हासिल कर खासतौर से पत्रपत्रिकाओं से. जरूरत पड़ने पर डाक्टर से भी जानकारी ली जा सकती है.

– सैक्स को आदत न बनाएं, इस के लिए जरूरी है कि बीचबीच में संबंधों में लंबा गैप दें.

– यह ठीक है कि जिस से सैक्स संबंध बनाएंगी उस से बहुत कुछ छिपा नहीं रह पाएगा लेकिन फूहड़ हंसीमजाक और अश्लील मैसेज तथा सोशल मीडिया पर अश्लील कहीं जाने वाली पोस्टों के आदानप्रदान से बचें.

– बहुत ज्यादा पुरुषों से सैक्स संबंध स्थापित करने से बचें.

– शराब या किसी दूसरे नशे में आदी पुरुष से संबंध न बनाएं न ही उस के साथ बैठ कर कभी शराब पीएं. अगर यह संबंध बनाए रखने की जिद है तो संबंध तोड़ लेना ही बेहतर होता है.

– पार्टनर से पैसों का लेनदेन कतई न करें.

– अगर कभी वह किसी भी तरह की ब्लैकमेलिंग करे या संबंध उजागर करने की धमकी दे तो डरें बिलकुल नहीं उलटे उसे धमकाएं कि आप की एक शिकायत से उसे जेल की हवा खानी पड़ सकती है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें