Mothers’s Day 2024: दर्द- क्या नदीम ने कनीजा बी को छोड़ दिया

कनीजा बी करीब 1 घंटे से परेशान थीं. उन का पोता नदीम बाहर कहीं खेलने चला गया था. उसे 15 मिनट की खेलने की मुहलत दी गई थी, लेकिन अब 1 घंटे से भी ऊपर वक्त गुजर गया?था. वह घर आने का नाम ही नहीं ले रहा था.

कनीजा बी को आशंका थी कि वह महल्ले के आवारा बच्चों के साथ खेलने के लिए जरूर कहीं दूर चला गया होगा.

वह नदीम को जीजान से चाहतीं. उन्हें उस का आवारा बच्चों के साथ घर से जाना कतई नहीं सुहाता था.

अत: वह चिंताग्रस्त हो कर भुनभुनाने लगी थीं, ‘‘कितना ही समझाओ, लेकिन ढीठ मानता ही नहीं. लाख बार कहा कि गली के आवारा बच्चों के साथ मत खेला कर, बिगड़ जाएगा, पर उस के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. आने दो ढीठ को. इस बार वह मरम्मत करूंगी कि तौबा पुकार उठेगा. 7 साल का होने को आया है, पर जरा अक्ल नहीं आई. कोई दुर्घटना हो सकती है, कोई धोखा हो सकता है…’’

कनीजा बी का भुनभुनाना खत्म हुआ ही था कि नदीम दौड़ता हुआ घर में आ गया और कनीजा की खुशामद करता हुआ बोला, ‘‘दादीजान, कुलफी वाला आया है. कुलफी ले दीजिए न. हम ने बहुत दिनों से कुलफी नहीं खाई. आज हम कुलफी खाएंगे.’’

‘‘इधर आ, तुझे अच्छी तरह कुलफी खिलाती हूं,’’ कहते हुए कनीजा बी नदीम पर अपना गुस्सा उतारने लगीं. उन्होंने उस के गाल पर जोर से 3-4 तमाचे जड़ दिए.

नदीम सुबकसुबक कर रोने लगा. वह रोतेरोते कहता जाता, ‘‘पड़ोस वाली चचीजान सच कहती हैं. आप मेरी सगी दादीजान नहीं हैं, तभी तो मुझे इस बेदर्दी से मारती हैं.

‘‘आप मेरी सगी दादीजान होतीं तो मुझ पर ऐसे हाथ न उठातीं. तब्बो की दादीजान उसे कितना प्यार करती हैं. वह उस की सगी दादीजान हैं न. वह उसे उंगली भी नहीं छुआतीं.

‘‘अब मैं इस घर में नहीं रहूंगा. मैं भी अपने अम्मीअब्बू के पास चला जाऊंगा. दूर…बहुत दूर…फिर मारना किसे मारेंगी. ऊं…ऊं…ऊं…’’ वह और जोरजोर से सुबकसुबक कर रोने लगा.

नदीम की हृदयस्पर्शी बातों से कनीजा बी को लगा, जैसे किसी ने उन के दिल पर नश्तर चला दिया हो. अनायास ही उन की आंखें छलक आईं. वह कुछ क्षणों के लिए कहीं खो गईं. उन की आंखों के सामने उन का अतीत एक चलचित्र की तरह आने लगा.

जब वह 3 साल की मासूम बच्ची थीं, तभी उन के सिर से बाप का साया उठ गया था. सभी रिश्तेदारों ने किनारा कर लिया था. किसी ने भी उन्हें अंग नहीं लगाया था.

मां अनपढ़ थीं और कमाई का कोई साधन नहीं था, लेकिन मां ने कमर कस ली थी. वह मेहनतमजदूरी कर के अपना और अपनी बेटी का पेट पालने लगी थीं. अत: कनीजा बी के बचपन से ले कर जवानी तक के दिन तंगदस्ती में ही गुजरे थे.

तंगदस्ती के बावजूद मां ने कनीजा बी की पढ़ाईलिखाई की ओर खासा ध्यान दिया था. कनीजा बी ने भी अपनी बेवा, बेसहारा मां के सपनों को साकार करने के लिए पूरी लगन व मेहनत से प्रथम श्रेणी में 10वीं पास की थी और यों अपनी तेज बुद्धि का परिचय दिया था.

मैट्रिक पास करते ही कनीजा बी को एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क की नौकरी मिल गई थी. अत: जल्दी ही उन के घर की तंगदस्ती खुशहाली में बदलने लगी थी.

कनीजा बी एक सांवलीसलोनी एवं सुशील लड़की थीं. उन की नौकरी लगने के बाद जब उन के घर में खुशहाली आने लगी थी तो लोगों का ध्यान उन की ओर जाने लगा था. देखते ही देखते शादी के पैगाम आने लगे थे.

मुसीबत यह थी कि इतने पैगाम आने के बावजूद, रिश्ता कहीं तय नहीं हो रहा था. ज्यादातर लड़कों के अभिभावकों को कनीजा बी की नौकरी पर आपत्ति थी.

वे यह भूल जाते थे कि कनीजा बी के घर की खुशहाली का राज उन की नौकरी में ही तो छिपा है. उन की एक खास शर्त यह होती कि शादी के बाद नौकरी छोड़नी पड़ेगी, लेकिन कनीजा बी किसी भी कीमत पर लगीलगाई अपनी सरकारी नौकरी छोड़ना नहीं चाहती थीं.

कनीजा बी पिता की असमय मृत्यु से बहुत बड़ा सबक सीख चुकी थीं. अर्थोपार्जन की समस्या ने उन की मां को कम परेशान नहीं किया था. रूखेसूखे में ही बचपन से जवानी तक के दिन बीते थे. अत: वह नौकरी छोड़ कर किसी किस्म का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती थीं.

कनीजा बी का खयाल था कि अगर शादी के बाद उन के पति को कुछ हो गया तो उन की नौकरी एक बहुत बड़े सहारे के रूप में काम आ सकती थी.

वैसे भी पतिपत्नी दोनों के द्वारा अर्थोपार्जन से घर की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो सकती थी, जिंदगी मजे में गुजर सकती थी.

देखते ही देखते 4-5 साल का अरसा गुजर गया था और कनीजा बी की शादी की बात कहीं पक्की नहीं हो सकी थी. उन की उम्र भी दिनोदिन बढ़ती जा रही थी. अत: शादी की बात को ले कर मांबेटी परेशान रहने लगी थीं.

एक दिन पड़ोस के ही प्यारे मियां आए थे. वह उसी शहर के दूसरे महल्ले के रशीद का रिश्ता कनीजा बी के लिए लाए थे. उन के साथ एक महिला?भी थीं, जो स्वयं को रशीद की?भाभी बताती थीं.

रशीद एक छोटे से निजी प्रतिष्ठान में लेखाकार था और खातेपीते घर का था. कनीजा बी की नौकरी पर उसे कोई आपत्ति नहीं थी.

महल्लेपड़ोस वालों ने कनीजा बी की मां पर दबाव डाला था कि उस रिश्ते को हाथ से न जाने दें क्योंकि रिश्ता अच्छा है. वैसे भी लड़कियों के लिए अच्छे रिश्ते मुश्किल से आते हैं. फिर यह रिश्ता तो प्यारे मियां ले कर आए थे.

कनीजा बी की मां ने महल्लेपड़ोस के बुजुर्गों की सलाह मान कर कनीजा बी के लिए रशीद से रिश्ते की हामी?भर दी थी.?

कनीजा बी अपनी शादी की खबर सुन कर मारे खुशी के झूम उठी थीं. वह दिनरात अपने सुखी गृहस्थ जीवन की कल्पना करती रहती थीं.

और एक दिन वह घड़ी भी आ गई, जब कनीजा बी की शादी रशीद के साथ हो गई और वह मायके से विदा हो गईं. लेकिन ससुराल पहुंचते ही इस बात ने उन के होश उड़ा दिए कि जो महिला स्वयं को रशीद की भाभी बता रही थी, वह वास्तव में रशीद की पहली बीवी थी.

असलियत सामने आते ही कनीजा बी का सिर चकराने लगा. उन्हें लगा कि उन के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है और उन्हें फंसाया गया है. प्यारे मियां ने उन के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात किया था. वह मन ही मन तड़प कर रह गईं.

लेकिन जल्दी ही रशीद ने कनीजा बी के समक्ष वस्तुस्थिति स्पष्ट कर दी, ‘‘बेगम, दरअसल बात यह थी कि शादी के 7 साल बाद?भी जब हलीमा बी मुझे कोई औलाद नहीं दे सकी तो मैं औलाद के लिए तरसने लगा.

‘हम दोनों पतिपत्नी ने किसकिस डाक्टर से इलाज नहीं कराया, क्याक्या कोशिशें नहीं कीं, लेकिन नतीजा शून्य रहा. आखिर, हलीमा बी मुझ पर जोर देने लगी कि मैं दूसरी शादी कर लूं. औलाद और मेरी खुशी की खातिर उस ने घर में सौत लाना मंजूर कर लिया. बड़ी ही अनिच्छा से मुझे संतान सुख की खातिर दूसरी शादी का निर्णय लेना पड़ा.

‘मैं अपनी तनख्वाह में 2 बीवियों का बोझ उठाने के काबिल नहीं था. अत: दूसरी बीवी का चुनाव करते वक्त मैं इस बात पर जोर दे रहा था कि अगर वह नौकरी वाली हो तो बात बन सकती है. जब हमें, प्यारे मियां के जरिए तुम्हारा पता चला तो बात बनाने के लिए इस सचाई को छिपाना पड़ा कि मैं शादीशुदा हूं.

‘मैं झूठ नहीं बोलता. मैं संतान सुख की प्राप्ति की उत्कट इच्छा में इतना अंधा हो चुका था कि मुझे तुम लोगों से अपने विवाहित होने की सचाई छिपाने में कोई संकोच नहीं हुआ.

‘मैं अब महसूस कर रहा हूं कि यह अच्छा नहीं हुआ. सचाई तुम्हें पहले ही बता देनी चाहिए थी. लेकिन अब जो हो गया, सो हो गया.

‘वैसे देखा जाए तो एक तरह से मैं तुम्हारा गुनाहगार हुआ. बेगम, मेरे इस गुनाह को बख्श दो. मेरी तुम से गुजारिश है.’

कनीजा बी ने बहुत सोचविचार के बाद परिस्थिति से समझौता करना ही उचित समझा था, और वह अपनी गृहस्थी के प्रति समर्पित होती चली गई थीं.

कनीजा बी की शादी के बाद डेढ़ साल का अरसा गुजर गया था, लेकिन उन के भी मां बनने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे. उस के विपरीत हलीमा बी में ही मां बनने के लक्षण दिखाई दे रहे थे. डाक्टरी परीक्षण से भी यह बात निश्चित हो गई थी कि हलीमा बी सचमुच मां बनने वाली हैं.

हलीमा बी के दिन पूरे होते ही प्रसव पीड़ा शुरू हो गई, लेकिन बच्चा था कि बाहर आने का नाम ही नहीं ले रहा था. आखिर, आपरेशन द्वारा हलीमा बी के बेटे का जन्म हुआ. लेकिन हलीमा बी की हालत नाजुक हो गई. डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद वह बच नहीं सकी.

हलीमा बी की अकाल मौत से उस के बेटे गनी के लालनपालन की संपूर्ण जिम्मेदारी कनीजा बी पर आन पड़ी. अपनी कोख से बच्चा जने बगैर ही मातृत्व का बोझ ढोने के लिए कनीजा बी को विवश हो जाना पड़ा. उन्होंने उस जिम्मेदारी से दूर भागना उचित नहीं समझा. आखिर, गनी उन के पति की ही औलाद था.

रशीद इस बात का हमेशा खयाल रखा करता था कि उस के व्यवहार से कनीजा बी को किसी किस्म का दुख या तकलीफ न पहुंचे, वह हमेशा खुश रहें, गनी को मां का प्यार देती रहें और उसे किसी किस्म की कमी महसूस न होने दें.

कनीजा बी भी गनी को एक सगे बेटे की तरह चाहने लगीं. वह गनी पर अपना पूरा प्यार उड़ेल देतीं और गनी भी ‘अम्मीअम्मी’ कहता हुआ उन के आंचल से लिपट जाता.

अब गनी 5 साल का हो गया था और स्कूल जाने लगा था. मांबाप बेटे के उज्ज्वल भविष्य को ले कर सपना बुनने लगे थे.

इसी बीच एक हादसे ने कनीजा बी को अंदर तक तोड़ कर रख दिया.

वह मकर संक्रांति का दिन था. रशीद अपने चंद हिंदू दोस्तों के विशेष आग्रह पर उन के साथ नदी पर स्नान करने चला गया. लेकिन रशीद तैरतेतैरते एक भंवर की चपेट में आ कर अपनी जान गंवा बैठा.

रशीद की असमय मौत से कनीजा बी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, लेकिन उन्होंने साहस का दामन नहीं छोड़ा.

उन्होंने अपने मन में एक गांठ बांध ली, ‘अब मुझे अकेले ही जिंदगी का यह रेगिस्तानी सफर तय करना है. अब और किसी पुरुष के संग की कामना न करते हुए मुझे अकेले ही वक्त के थपेड़ों से जूझना है.

‘पहला ही शौहर जिंदगी की नाव पार नहीं लगा सका तो दूसरा क्या पार लगा देगा. नहीं, मैं दूसरे खाविंद के बारे में सोच भी नहीं सकती.

‘फिर रशीद की एक निशानी गनी के रूप में है. इस का क्या होगा? इसे कौन गले लगाएगा? यह यतीम बच्चे की तरह दरदर भटकता फिरेगा. इस का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. मेरे अलावा इस का?भार उठाने वाला भी तो कोई नहीं.

‘इस के नानानानी, मामामामी कोई भी तो दिल खोल कर नहीं कहता कि गनी का बोझ हम उठाएंगे. सब सुख के साथी?हैं.

‘मैं गनी को लावारिस नहीं बनने दूंगी. मैं भी तो इस की कुछ लगती हूं. मैं सौतेली ही सही, मगर इस की मां हूं. जब यह मुझे प्यार से अम्मी कह कर पुकारता है तब मेरे दिल में ममता कैसे उमड़ आती है.

‘नहींनहीं, गनी को मेरी सख्त जरूरत है. मैं गनी को अपने से जुदा नहीं कर सकती. मेरी तो कोई संतान है ही नहीं. मैं इसे ही देख कर जी लूंगी.

‘मैं गनी को पढ़ालिखा कर एक नेक इनसान बनाऊंगी. इस की जिंदगी को संवारूंगी. यही अब जिंदगी का मकसद है.’

और कनीजा बी ने गनी की खातिर अपना सुखचैन लुटा दिया, अपना सर्वस्व त्याग दिया. फिर उसे एक काबिल और नेक इनसान बना कर ही दम लिया.

गनी पढ़लिख कर इंजीनियर बन गया.

उस दिन कनीजा बी कितनी खुश थीं जब गनी ने अपनी पहली तनख्वाह ला कर उन के हाथ पर रख दी. उन्हें लगा कि उन का सपना साकार हो गया, उन की कुरबानी रंग लाई. अब उन्हें मौत भी आ जाए तो कोई गम नहीं.

फिर गनी की शादी हो गई. वह नदीम जैसे एक प्यारे से बेटे का पिता भी बन गया और कनीजा बी दादी बन गईं.

कनीजा बी नदीम के साथ स्वयं भी खेलने लगतीं. वह बच्चे के साथ बच्चा बन जातीं. उन्हें नदीम के साथ खेलने में बड़ा आनंद आता. नदीम भी मां से ज्यादा दादी को चाहने लगा था.

उस दिन ईद थी. कनीजा बी का घर खुशियों से गूंज रहा था. ईद मिलने आने वालों का तांता लगा हुआ था.

गनी ने अपने दोस्तों तथा दफ्तर के सहकर्मियों के लिए ईद की खुशी में खाने की दावत का विशेष आयोजन किया था.

उस दिन कनीजा बी बहुत खुश थीं. घर में चहलपहल देख कर उन्हें ऐसा लग रहा था मानो दुनिया की सारी खुशियां उन्हीं के घर में सिमट आई हों.

गनी की ससुराल पास ही के शहर में थी. ईद के दूसरे दिन वह ससुराल वालों के विशेष आग्रह पर अपनी बीवी और बेटे के साथ स्कूटर पर बैठ कर ईद की खुशियां मनाने ससुराल की ओर चल पड़ा था.

गनी तेजी से रास्ता तय करता हुआ बढ़ा जा रहा था कि एक ट्रक वाले ने गाय को बचाने की कोशिश में स्टीयरिंग पर अपना संतुलन खो दिया. परिणामस्वरूप उस ने गनी के?स्कूटर को चपेट में ले लिया. पतिपत्नी दोनों गंभीर रूप से घायल हो गए और डाक्टरों के अथक प्रयास के बावजूद बचाए न जा सके.

लेकिन उस जबरदस्त दुर्घटना में नन्हे नदीम का बाल भी बांका नहीं हुआ था. वह टक्कर लगते ही मां की गोद से उछल कर सीधा सड़क के किनारे की घनी घास पर जा गिरा था और इस तरह साफ बच गया था.

वक्त के थपेड़ों ने कनीजा बी को अंदर ही अंदर तोड़ दिया था. मुश्किल यह थी कि वह अपनी व्यथा किसी से कह नहीं पातीं. उन्हें मालूम था कि लोगों की झूठी हमदर्दी से दिल का बोझ हलका होने वाला नहीं.

उन्हें लगता कि उन की शादी महज एक छलावा थी. गृहस्थ जीवन का कोई भी तो सुख नहीं मिला था उन्हें. शायद वह दुख झेलने के लिए ही इस दुनिया में आई थीं.

रशीद तो उन का पति था, लेकिन हलीमा बी तो उन की अपनी नहीं थी. वह तो एक धोखेबाज सौतन थी, जिस ने छलकपट से उन्हें रशीद के गले मढ़ दिया था.

गनी कौन उन का अपना खून था. फिर भी उन्होंने उसे अपने सगे बेटे की तरह पालापोसा, बड़ा किया, पढ़ाया- लिखाया, किसी काबिल बनाया.

कनीजा बी गनी के बेटे का भी भार उठा ही रही थीं. नदीम का दर्द उन का दर्द था. नदीम की खुशी उन की खुशी थी. वह नदीम की खातिर क्या कुछ नहीं कर रही थीं. कनीजा बी नदीम को डांटतीमारती थीं तो उस के भले के लिए, ताकि वह अपने बाप की तरह एक काबिल इनसान बन जाए.

‘लेकिन ये दुनिया वाले जले पर नमक छिड़कते हैं और मासूम नदीम के दिलोदिमाग में यह बात ठूंसठूंस कर भरते हैं कि मैं उस की सगी दादी नहीं हूं. मैं ने तो नदीम को कभी गैर नहीं समझा. नहीं, नहीं, मैं दुनिया वालों की खातिर नदीम का भविष्य कभी दांव पर नहीं लगाऊंगी.’ कनीजा बी ने यादों के आंसू पोंछते हुए सोचा, ‘दुनिया वाले मुझे सौतेली दादी समझते हैं तो समझें. आखिर, मैं उस की सौतेली दादी ही तो हूं, लेकिन मैं नदीम को काबिल इनसान बना कर ही दम लूंगी. जब नदीम समझदार हो जाएगा तो वह जरूर मेरी नेकदिली को समझने लगेगा.

‘गनी को भी लोगों ने मेरे खिलाफ कम नहीं भड़काया था, लेकिन गनी को मेरे व्यवहार से जरा भी शंका नहीं हुई थी कि मैं उस की बुराई पर अमादा हूं.

अब नदीम का रोना भी बंद हो चुका था. उस का गुस्सा भी ठंडा पड़ गया था. उस ने चोर नजरों से दादी की ओर देखा. दादी की लाललाल आंखों और आंखों में भरे हुए आंसू देख कर उस से चुप न रहा गया. वह बोल उठा, ‘‘दादीजान, पड़ोस वाली चचीजान अच्छी नहीं हैं. वह झूठ बोलती हैं. आप मेरी सौतेली नहीं, सगी दादीजान हैं. नहीं तो आप मेरे लिए यों आंसू न बहातीं.

‘‘दादीजान, मैं जानता हूं कि आप को जोरों की भूख लगी है, अच्छा, पहले आप खाना तो खा लीजिए. मैं भी आप का साथ देता हूं.’’

नदीम की भोली बातों से कनीजा बी मुसकरा दीं और बोलीं, ‘‘बड़ा शरीफ बन रहा है रे तू. ऐसे क्यों नहीं कहता. भूख मुझे नहीं, तुझे लगी है.’’

‘‘अच्छा बाबा, भूख मुझे ही लगी है. अब जरा जल्दी करो न.’’

‘‘ठीक है, लेकिन पहले तुझे यह वादा करना होगा कि फिर कभी तू अपने मुंह से अपने अम्मीअब्बू के पास जाने की बात नहीं करेगा.’’

‘‘लो, कान पकड़े. मैं वादा करता हूं कि अम्मीअब्बू के पास जाने की बात कभी नहीं करूंगा. अब तो खुश हो न?’’

कनीजा बी के दिल में बह रही प्यार की सरिता में बाढ़ सी आ गई. उन्होंने नदीम को खींच कर झट अपने सीने से लगा लिया.

अब वह महसूस कर रही थीं, ‘दुनिया वाले मेरा दर्द समझें न समझें, लेकिन नदीम मेरा दर्द समझने लगा है.’

Mother’s Day 2024: बेटों को भी कराएं ससुराल की तैयारी

अर्पिता एक अच्छी मां हैं. अपनी अच्छाई के चलते वे रिश्तेदारों व पूरे महल्ले की प्रिय हैं. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि उन का रवैया एकसमान है. जितना वे बेटी के लिए करती हैं उतना ही अपने बेटे के लिए भी करती हैं. न किसी के लिए कम न किसी के लिए ज्यादा. सब से बड़ी बात यह है कि जहां महल्ले और रिश्तेदारों की महिलाएं अपनी बहुओं से परेशान रहती हैं वहीं अर्पिता को सब से ज्यादा सुख अपनी बहू से ही है.

दरअसल, अर्पिता ने शुरू से ही घर के काम सिर्फ बेटी को ही नहीं सिखाए, बल्कि अपने बेटे को भी सिखाए हैं. अर्पिता का बेटा मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करता है. अच्छा कमाता है. इस के बावजूद वह घर के कामकाज में पत्नी को पूरा सहयोग देता है. बेटा अगर किचन में पत्नी की मदद करता है तो अर्पिता को बुरा नहीं लगता. अगर बहू किचन में काम कर रही है और अर्पिता किसी काम में बिजी हैं तो भी वह बेटे को किचन में बहू की मदद करने के लिए जाने को कहती हैं.

अर्पिता की बहू को सास का यह रवैया काफी पसंद आया और यही वजह है कि उन की कभी खटपट नहीं हुई जबकि शादी को करीब 5 साल हो रहे हैं. लेकिन ऐसा काफी कम घरों में ही देखने को मिलता है. बेटे को घर की शुरू से ही कोई भी जिम्मेदारी नहीं दी जाती. उसे नाजों से पाला जाता है जो आगे चल कर परेशान करता है.

बेटों को भी करें तैयार

घर के काम सिर्फ बेटियों को ही न सिखाएं बल्कि बेटों में भी काम करने की आदत डालें. अकसर हर घर में देखने को मिलता है कि बेटे को खेलने भेज दिया जाता है और बेटियों को मांएं घर के काम में व्यस्त कर देती हैं. अगर बेटों को खेलने का हक है तो बेटियों को भी है. बेटों से घर के काम करवाएं, शुरुआत छोटेछोटे काम सेकरें लेकिन इस आदत को छूटने न दें.

बड़ेबुजुर्ग चढ़ाते हैं बेटों को सिर पर

अकसर देखने को मिलता है कि बुजुर्ग घर में बेटों को सिर चढ़ा कर रखते हैं. अगर बेटे से किसी काम के लिए बोल भी दिया जाए तो बुजुर्ग मना कर देते हैं. कहा जाता है कि बच्चा थक गया है. अरे छोड़ो भी, क्या काम करवा रहे हो. लड़कियों वाले काम क्यों करेगा बेटा. ऐसे कथनों की आड़ में बेटों को बचाने की कोशिश की जाती है, लेकिन यह सही नहीं है.

काम के प्रति जितनी जिम्मेदारी एक लड़की की होती है उतनी ही जिम्मेदारी एक बेटे की भी होती है. घर में भले ही 10 नौकर हों लेकिन काम करने की आदत हर बच्चे में होनी चाहिए.

जरूरी काम तो जरूर सिखाएं

ऐसा तो नहीं है कि बेटा हमेशा आप से ही चिपका रहेगा. कल को उसे पढ़ाई के लिए बाहर किराए पर रहना पड़े तो सोचिए वह उस वक्त क्या करेगा. आप कब तक उस के दोस्तों के साथ रहेंगे. कम से कम बच्चों को इस लायक बनाएं कि वह नूडल्स के भरोसे न रहे. अपने लिए खाने के लिए कुछ बना सके. बाहर का खाना हर वक्त सही नहीं रहता है. खुद के कपड़े धोना, बाहर से सामान लेना. खाना बनाना ये वे काम हैं जिन से वास्ता हर शख्स का पड़ता है. कल को परेशानी न हो, इसलिए आज से ही इस के लिए कोशिश कर लीजिए.

बेटों को घर का काम सिखा कर न सिर्फ आप उन्हें सुखी रखेंगी, बल्कि अपनी आने वाली बहू की नजर में भी आप की इज्जत बढ़ जाएगी. और शायद आप के इस रवैए से हो सकता है समाज का नजरिया धीरेधीरे बदल जाए.

कैसे करें शुरुआत

•       बच्चा अगर छोटा है तो उसे धीरेधीरे काम देना शुरू करें. मसलन, अगर वह 10 साल का है तो छोटेमोटे काम में हाथ बंटाने को बोलें.

•       बाहर से कुछ सामान लाना हो तो उसे भेजना शुरू करें. ज्यादा दूर तक नहीं. थोड़ा बड़ा होने पर आप घर के  बाकी कामों में भी उस की मदद ले सकती हैं.

•       अगर बच्चे की छुट्टियां हैं तो रसोई में मदद करने के लिए कहें.

•       उसे गमलों को ठीक करने का काम दें.

•       बच्चा अगर 15 साल के आसपास है तो कभीकभी उस से अपने कपड़े धोने के लिए बोलें.

•       खाना खा कर बच्चे अकसर टीवी देखने बैठ जाते हैं. ऐसा न करने दें.

•       खाना खा कर टेबल पर पड़े बरतन उठा कर किचन में रखने का काम दें.

•       बीमार हैं तो रैस्ट करें, बच्चे और पति को घर की जिम्मेदारी दें.

•       सिर्फ नूडल्स बनाना ही न सिखाएं, आगे का प्रोसैस भी धीरेधीरे शुरू करें.

अच्छी नौकरी और भविष्य के साथ यह भी जरूरी है कि वह निजी तौर पर भी अच्छा बने. अगर आज वह आप की मदद कर रहा है तो कल को वह अपनी पत्नी की भी मदद करेगा. इस से आप की आने वाली बहू को भी काफी आराम मिलेगा और आप की छवि एक अच्छी मां की बनेगी.

Mother’s Day 2024: बच्चों के लिए लंच में बनाएं कॉर्नफ्लैक्स स्टफ्ड कुकम्बर

गर्मियों में सब्जियों की उपलब्धता बहुत कम हो जाती है हर रोज एक ही समस्या होती है कि क्या सब्जी बनाई जाए. खीरा आजकल हर मौसम में भरपूर मात्रा में मिलता है. गहरे हरे और हल्के हरे रंग में पाया जाने वाले खीरे में विटामिन सी और बीटा केरोटीन जैसे एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो इम्युनिटी को बेहतर बनाते हैं. खीरे के छिल्के में काफी मात्रा में सिलिका पाया जाता है जो हड्डियों को मजबूत बनाता है इसलिए इसे छिल्का सहित ही खाना चाहिए.

खीरे में भरपूर मात्रा में पानी होता है जिससे यह शरीर को हाइड्रेट रखता है और नाममात्र की कैलोरी होने से वजन को भी नियंत्रित रखता है. आमतौर पर खीरे का उपयोग सलाद के रूप में किया जाता है परन्तु आज हम आपको एक नए स्टाइल में खीरे की सब्जी बनाना बता रहे हैं जो बनाने में तो बहुत आसान है ही साथ ही खाने में भी बहुत स्वादिष्ट है. तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाते हैं.

कितने लोंगों के लिए 4
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

मोटा बड़ा खीरा 1
कॉर्नफ्लेक्स 1 टेबलस्पून
उबला और मैश किया आलू 1
बारीक कटा प्याज 1
अदरक, लहसुन, हरी मिर्च पेस्ट 1 टीस्पून
दरदरी सौंफ 1 टीस्पून

धनिया पाउडर 1 टीस्पून
हल्दी पाउडर 1/4टीस्पून
लाल मिर्च पाउडर 1/2टीस्पून
अमचूर पाउडर 1 टीस्पून
नमक स्वादानुसार
तेल 3 टेबलस्पून
नारियल बुरादा 1 टीस्पून
बारीक कटी हरी धनिया 1 टीस्पून

विधि

खीरा को छीलकर बीच से काटकर स्कूपर से बीज वाला भाग अलग कर दें. कॉर्नफ्लैक्स को आधा कप पानी में भिगो दें. 1 टेबलस्पून गर्म तेल में प्याज सॉते करें और अदरक, हरी मिर्च, लहसुन का पेस्ट डालकर भूनें. 1टेबलस्पून पानी में सभी मसाले मिलाकर पैन में डालें और तेल के ऊपर आने तक भूनें. अब नमक, कॉर्नफ्लैक्स तथा आलू डालकर भली भांति मिलाएं. गैस बंद कर दें और मिश्रण को ठंडा होने दें. तैयार भरावन को खीरे में अच्छी तरह भरें और चारों ओर धागा लपेटें ताकि मसाला बाहर न निकले. एक नॉनस्टिक पैन में बचा 1 टेबलस्पून तेल डालें और भरे खीरे को डालकर पैन को ढक दें और मध्दिम आंच पर खीरा के गलने तक पकाएं. पकने पर धागा निकालकर हरा धनिया और नारियल बुरादा डालकर कलछी से टुकड़ों में काटकर परांठा या रोटी के साथ सर्व करें.

 

Mother’s Day 2024: थोड़ा सा समय-सास और मां के अंतर को कैसे भूल गई जूही

हनीमून से लौटते समय टैक्सी में बैठी जूही के मन में कई तरह के विचार आ जा रहे थे. अजय ने उसे खयालों में डूबा देख उस की आंखों के आगे हाथ लहरा कर पूछा, ‘‘कहां खोई हो? घर जाने का मन नहीं कर रहा है?’’

जूही मुसकरा दी, लेकिन ससुराल में आने वाले समय को ले कर उस के मन में कुछ घबराहट सी थी. दोनों शादी के 1 हफ्ते बाद ही सिक्किम घूमने चले गए थे. उन का प्रेमविवाह था. दोनों सीए थे और नरीमन में एक ही कंपनी में जौब करते थे.

अजय ब्राह्मण परिवार का बड़ा बेटा था. पिता शिवमोहन एक प्राइवेट कंपनी में अच्छे पद पर थे. मम्मी शैलजा हाउसवाइफ थीं और छोटी बहन नेहा अभी कालेज में थी. अजय का घर मुलुंड में था.

पंजाबी परिवार की इकलौती बेटी जूही कांजुरमार्ग में रहती थी. जूही के पिता विकास डाक्टर थे और मां अंजना हाउसवाइफ थीं. दोनों परिवारों को इस विवाह पर कोई एतराज नहीं था. विवाह हंसीखुशी हो गया. जूही को जो बात परेशान कर रही थी वह यह थी कि उस के औफिस जानेआने का कोई टाइम नहीं था. अब तक तो घर की कोई जिम्मेदारी उस पर नहीं थी, नरीमन से आतेआते कभी 10 बजते, तो कभी 11. जिस क्लाइंट बेसिस पर काम करती, पूरी टीम के हिसाब से उठना पड़ता. मायके में तो घर पहुंचते ही कपड़े बदल हाथमुंह धो कर डिनर करती और फिर सीधे बैड पर.

शनिवार और रविवार पूरा आराम करती थी. मन होता तो दोस्तों के साथ मूवी देखती, डिनर करती. वैसे भी मुंबई में औफिस जाने वाली ज्यादातर कुंआरी अविवाहित लड़कियों का यही रूटीन रहता है, हफ्ते के 5 दिन काम में खूब बिजी और छुट्टी के दिन आराम. जूही के 2-3 घंटे तो रोज सफर में कट जाते थे. वह हमेशा वीकैंड के लिए उत्साहित रहती.

जैसे ही अंजना दरवाजा खोलतीं, जूही एक लंबी सांस लेते हुए कहती थी, ‘‘ओह मम्मी, आखिर वीकैंड आ ही गया.’’ अंजना को उस पर बहुत स्नेह आता कि बेचारी बच्ची, कितनी थकान होती है पूरा हफ्ता.

जूही को याद आ रहा था कि जब बिदाई के समय उस की मम्मी रोए जा रही थीं तब उस की सासूमां ने उस की मम्मी के कंधे पर हाथ रख कर कहा था, ‘‘आप परेशान न हों. बेटी की तरह रहेगी हमारे घर. मैं बेटीबहू में कोई फर्क नहीं रखूंगी.’’

तब वहीं खड़ी जूही की चाची ने व्यंग्यपूर्वक धीरे से उस के कान में कहा, ‘‘सब कहने की बातें हैं. आसान नहीं होता बहू को बेटी समझना. शुरूशुरू में हर लड़के वाले ऐसी ही बड़ीबड़ी बातें करते हैं.’’

बहते आंसुओं के बीच में जूही को चाची की यह बात साफसाफ सुनाई दी थी. पहला हफ्ता तो बहुत मसरूफियत भर निकला. अब वे घूम कर लौट रहे थे, देखते हैं क्या होता है. परसों से औफिस भी जाना है. टैक्सी घर के पास रुकी तो जूही अजय के साथ घर की तरफ चल दी.

शिवमोहन, शैलजा और नेहा उन का इंतजार ही कर रहे थे. जूही ने सासससुर के पैर छू कर उन का आशीर्वाद लिया. नेहा को उस ने गले लगा लिया, सब एकदूसरे के हालचाल पूछते रहे.

शैलजा ने कहा, ‘‘तुम लोग फै्रश हो जाओ, मैं चाय लाती हूं.’’

जूही को थकान तो बहुत महसूस हो रही थी, फिर भी उस ने कहा, ‘‘नहीं मम्मीजी मैं बना लूंगी.’’

‘‘अरे थकी होगी बेटा, आराम करो और हां, यह मम्मीजी नहीं, अजय और नेहा मुझे मां ही कहते हैं, तुम भी बस मां ही कहो.’’ जूही ने झिझकते हुए सिर हिला दिया. अजय और जूही ने फ्रैश हो कर सब के साथ चाय पी. थोड़ी देर बाद शैलजा ने पूछा, ‘‘जूही, डिनर में क्या खाओगी?’’ ‘‘मां, जो बनाना है, बता दें, मैं हैल्प करती हूं.’’ ‘‘मैं बना लूंगी.’’ ‘‘लेकिन मां, मेरे होते हुए…’’

हंस पड़ीं शैलजा, ‘‘तुम्हारे होते हुए क्या? अभी तक मैं ही बना रही हूं और मुझे कोई परेशानी भी नहीं है,’’ कह कर शैलजा किचन में आ गईं तो जूही भी मना करने के बावजूद उन का हाथ बंटाती रही.

अगले दिन की छुट्टी बाकी थी. शिवमोहन औफिस और नेहा कालेज चली गई. जूही अलमारी में अपना सामान लगाती रही. सब अपनेअपने काम में व्यस्त रहे. अगले दिन साथ औफिस जाने के लिए अजय और जूही उत्साहित थे. दोनों लोकल ट्रेन से ही जाते थे. हलकेफुलके माहौल में सब ने डिनर साथ किया.

रात को सोने के समय शिवमोहन ने कहा ‘‘कल से जूही भी लंच ले जाएगी न?’’ ‘‘हां, क्यों नहीं?’’ ‘‘इस का मतलब कल से उस की किचन की ड्यूटी शुरू?’’ ‘‘ड्यूटी कैसी? जहां मैं अब तक 3 टिफिन पैक करती थी, अब 4 कर दूंगी, क्या फर्क पड़ता है?’’ शिवमोहन ने प्यार भरी नजरों से शैलजा को देखते हुए कहा, ‘‘ममतामयी सास बनोगी इस का कुछ अंदाजा तो था मुझे.’’ ‘‘आप से कहा था न कि जूही बहू नहीं बेटी बन कर रहेगी इस घर में.’’ शिवमोहन ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘लेकिन तुम्हें तो बहुत कड़क सास मिली थीं.’’

शैलजा ने फीकी हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘इसीलिए तो जूही को उन तकलीफों से बचाना है जो मैं ने खुद झेली हैं. छोड़ो, वह अम्मां का पुराना जमाना था, उन की सोच अलग थी, अब तो वे नहीं रहीं. अब उन बातों का क्या फायदा? अजय ने बताया था जूही को पनीर बहुत पसंद है. कल उस का पहला टिफिन तैयार करूंगी, पनीर ही बनाऊंगी, खुश हो जाएगी बच्ची.’’

शिवमोहन की आंखों में शैलजा के लिए तारीफ के भाव उभर आए. सुबह अलार्म बजा. जूही जब तक तैयार हो कर किचन में आई तो वहां 4 टिफिन पैक किए रखे थे. शैलजा डाइनिंग टेबल पर नाश्ता रख रही थीं.

जूही शर्मिंदा सी बोली. ‘‘मां, आप ने तो सब कर लिया.’’ ‘‘हां बेटा, नेहा जल्दी निकलती है. सब काम साथ ही हो जाता है. आओ, नाश्ता कर लो.’’ ‘‘कल से मैं और जल्दी उठ जाऊंगी.’’ ‘‘सब हो जाएगा बेटा, इतना मत सोचो. अभी तो मैं कर ही लेती हूं. तबीयत कभी बिगड़ेगी तो करना ही होगा और आगेआगे तो जिम्मेदारी संभालनी ही है, अभी ये दिन आराम से बिताओ, खुश रहो.’’

अजय भी तैयार हो कर आ गया था. बोला, ‘‘मां, लंच में क्या है?’’ ‘‘पनीर.’’जूही तुरंत बोली, ‘‘मां यह मेरी पसंदीदा डिश है.’’ अजय ने कहा, ‘‘मैं ने ही बताया है मां को. मां, अब क्या अपनी बहू की पसंद का ही खाना बनाओगी?’’ जूही तुनकी, ‘‘मां ने कहा है न उन के लिए बहू नहीं, बेटी हूं.’’ नेहा ने घर से निकलतेनिकलते हंसते हुए कहा, ‘‘मां, भाभी के सामने मुझे भूल त जाना.’’ शिवमोहन ने भी बातों में हिस्सा लिया, ‘‘अरे भई, थोड़ा तो सास वाला रूप दिखाओ, थोड़ा टोको, थोड़ा गुस्सा हो, पता तो चले घर में सासबहू हैं.’’ सब जोर से हंस पड़े. शैलजा ने कहा, ‘‘सौरी, यह तो किसी को पता नहीं चलेगा कि घर में सासबहू हैं.’’ सब हंसतेबोलते घर से निकल गए.

थोड़ी देर बाद ही मेड श्यामाबाई आ गई. शैलजा घर की सफाई करवाने लगी. अजय के कमरे में जा कर श्यामा ने आवाज दी, ‘‘मैडम, देखो आप की बहू कैसे सामान फैला कर गई हैं.’’ शैलजा ने जा कर देखा, हर तरफ सामान बिखरा था, उन्हें हंसी आ गई. श्यामा ने पूछा, ‘‘मैडम, आप हंस रही हैं?’’ शैलजा ने कहा, ‘‘आओ, मेरे साथ,’’ शैलजा उसे नेहा के कमरे में ले गई. वहां और भी बुरा हाल था.

शैलजा ने कहा, ‘‘यहां भी वही हाल है न? तो चलो अब हर जगह सफाई कर लो जल्दी.’’ श्यामा 8 सालों से यहां काम कर रही थी. अच्छी तरह समझती थी अपनी शांतिपसंद मैडम को, अत: मुसकराते हुए अपने काम में लग गई. जूही फोन पर अपने मम्मीपापा से संपर्क में रहती ही थी. शादी के बाद आज औफिस का पहला दिन था. रास्ते में ही अंजना का फोन आ गया. हालचाल के बाद पूछा, ‘‘आज तो सुबह कुछ काम भी किए होंगे?’’

शैलजा की तारीफ के पुल बांध दिए जूही ने. तभी अचानक जूही को कुछ याद आया. बोली, ‘‘मम्मी, मैं बाद में फोन करती हूं,’’ फिर तुरंत सासूमां को फोन मिलाया. शैलजा के हैलो कहते ही तुरंत बोली, ‘‘सौरी मां, मैं अपना रूम बहुत बुरी हालत में छोड़ आई हूं… याद ही नहीं रहा.’’‘‘श्यामा ने ठीक कर दिया है.’’‘सौरी मां, कल से…’’ ‘‘सब आ जाता है धीरेधीरे. परेशान मत हो.’’

शैलजा के स्नेह भरे स्वर पर जूही का दिल भर आया. अजय और जूही दिन भर व्यस्त रहे. सहकर्मी बीचबीच में दोनों को छेड़ कर मजा लेते रहे. दोनों रात 8 बजे औफिस से निकले तो थकान हो चुकी थी. जूही का तो मन कर रहा था, सीधा जा कर बैड पर लेटे. लेकिन वह मायका था अब ससुराल है.

10 बजे तक दोनों घर पहुंचे. शिवमोहन, शैलजा और नेहा डिनर कर चुके थे. उन दोनों का टेबल पर रखा था. हाथ धो कर जूही खाने पर टूट पड़ी. खाने के बाद उस ने सारे बरतन समेट दिए. शैलजा ने कहा, ‘‘तुम लोग अब आराम करो. हम भी सोने जा रहे हैं.’’ शैलजा लेटीं तो शिवमोहन ने कहा, ‘‘तुम भी थक गई होगी न?’’‘‘हां, बस अब सोना ही है.’’‘‘काम भी तो बढ़ गया होगा?’’ ‘‘कौन सा काम?’’ ‘‘अरे, एक और टिफिन…’’

‘‘6 की जगह 8 रोटियां बन गईं तो क्या फर्क पड़ा? सब की तो बनती ही हैं और आज तो मैं ने इन दोनों का टिफिन अलगअलग बना दिया. कल से एकसाथ ही पैक कर दूंगी. खाना बच्चे साथ ही तो खाएंगे, जूही का खाना बनाने से मुझ पर कोई अतिरिक्त काम आने वाली बात है ही नहीं.’’

‘‘तुम हर बात को इतनी आसानी से कैसे ले लेती हो, शैल?’’

‘‘शांति से जीना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है, बस हम औरतें ही अपने अहं, अपनी जिद में आ कर अकसर घर में अशांति का कारण बन जाती हैं. जैसे नेहा को भी अभी कोई काम करने की ज्यादा आदत नहीं है वैसे ही वह बच्ची भी तो अभी आई है. आजकल की लड़कियां पहले पढ़ाई, फिर कैरियर में व्यस्त रहती हैं. इतना तो मैं समझती हूं आसान नहीं है कामकाजी लड़कियों का जीवन. अरे मैं तो घर में रहती हूं, थक भी गई तो दिन में थोड़ा आराम कर लूंगी. कभी नहीं कर पाऊंगी तो श्यामा है ही, किचन में हैल्प कर दिया करेगी, जूही पर घर के भी कामों का क्या दबाव डालना. नेहा को ही देख लो, कालेज और कोचिंग के बाद कहां हिम्मत होती है कुछ करने की, ये लड़कियां घर के काम तो समय के साथसाथ खुद ही सीखती चली जाती हैं. बस, थोड़ा सा समय लगता है.’’

शैलजा अपने दिल की बातें शेयर कर रही थीं, ‘‘अभी नईनई आई है, आते ही किसी बात पर मन दुखी हो गया तो वह बात दिल में एक कांटा बन कर रह जाएगी जो हमेशा चुभती रहेगी. मैं नहीं चाहती उसे किसी बात की चुभन हो,’’ कह कर वे सोने की तैयारी करने लगीं, बोलीं, ‘‘चलो, अब सो जाते हैं.’’

उधर अजय की बांहों का तकिया बना कर लेटी जूही मन ही मन सोच रही थी, आज शादी के बाद औफिस का पहला दिन था. मां के व्यवहार और स्वभाव में कितना स्नेह है. अगर उन्होंने मुझे बेटी माना है तो मैं भी उन्हें मां की तरह ही प्यार और सम्मान दूंगी. पिछले 15 दिनों से चाची की बात दिल पर बोझ की तरह रखी थी, लेकिन इस समय उसे अपना दिल फूल सा हलका लगा, बेफिक्री से आंखें मूंद कर उस ने अपना सिर अजय के सीने पर रख दिया.

 

ऊंची उड़ान: क्या है राधा की कहानी

जाड़े की कुनकुनी धूप में बैठी मैं कई दिनों से अपने अधूरे पड़े स्वैटर को पूरा करने में जुटी थी. तभी अचानक मेरी बचपन की सहेली राधा ने आ कर मुझे चौंका दिया.

‘‘क्यों राधा तुम्हें अब फुरसत मिली है अपनी सहेली से मिलने की? तुम ने बेटे की शादी क्या की मुझे तो पूरी तरह भुला दिया… कितनी सेवा करवाओगी और कितनी बातें करोगी अपनी बहू से… कभीकभी हम जैसों को भी याद कर लिया करो.’’

‘‘कहां की सेवा और कैसी बातें? मेरी बहू को तो अपने पति से ही बातें करने की फुरसत नहीं है… मुझ से क्या बातें करेगी और क्या मेरी सेवा करेगी? मैं तो 6 महीनों से घर छोड़ कर एक वृद्धाश्रम में रह रही हूं.’’

यह सुन कर मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे पैरों तले से जमीन खींच ली हो. मैं चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई. क्या बोलती उस राधा से जिस ने अपना सारा जीवन, अपनी सारी खुशियां अपने बेटे के लिए होम कर दी थीं. आज उसी बेटे ने उस के सारे सपनों की धज्जियां उड़ा कर रख दीं…

अपने बेटे मधुकर के लिए राधा ने क्या नहीं किया. अपनी सारी इच्छाओं को तिलांजलि दे, अपने भविष्य की चिंता किए बिना अपनी सारी जमापूंजी निछावर कर उसे मसूरी के प्रसिद्ध स्कूल में पढ़ाया. उस के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उसे दिल्ली भेजा. इस सब के लिए उसे घोर आर्थिक संकट का सामना भी करना पड़ा. फिर भी वह हमेशा बेटे के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना कर खुशीखुशी सब सहती रही. जब भी मिलती अपने बेटे की प्रगति का समाचार देना नहीं भूलती. वह अपने बेटे को खरा सोना कहती.

मैं बहुत कुछ समझ रही थी पर उस की दुखती रग पर हाथ रखने की हिम्मत नहीं हो रही थी. मैं बात बदल कर नेहा की पढ़ाई और शादी पर ले आई. शाम ढलने से पहले ही राधा आश्रम लौट गई, पर छेड़ गई अतीत की यादों को…

उस की स्थिति मेरे मन को बेचैन किए थी. बारबार मन चंचल बन उस अतीत में विचरण कर रहा था जहां कभी मेरे और राधा के बचपन से युवावस्था तक के पल गुजरे थे.

राधा मेरे बचपन की सहेली और सहपाठी थी. उस का एक ही सपना था कि वह बड़ी हो कर डाक्टर बनेगी. अपने सपने को पूरा करने के लिए मेहनत भी बहुत करती थी. टैंथ की परीक्षा में पूरे बिहार में 10वें स्थान पर रही थी.

अपने 7 भाईबहनों में सब से बड़ी होने के कारण उस के पिता ने 12वीं कक्षा की परीक्षा समाप्त होते ही विलक्षण प्रतिभा की धनी अपनी इस बेटी की शादी कर दी. शादी के बाद उसे आशा थी कि शायद पति की सहायता से अपना सपना पूरा कर पाएगी पर उस का पति तो एक तानाशाह किस्म का था जिसे लड़कियों की पढ़ाई से चिढ़ थी. इसलिए उस ने डाक्टर बनने के रहेसहे विचार को भी तिलांजलि दे दी और अपने इस रिश्ते को दिल से निभाने की कोशिश करने लगी.

जब वह पूरी तरह अपनी शादी में रम गई, तो कुदरत ने एक बार फिर उस की परीक्षा ली. एक सड़क हादसे में उस ने अपने पति को भरी जवानी में खो दिया. वह अपने 3 वर्ष के अबोध बेटे मधुकर और अपनी बूढ़ी सास के साथ अकेली रह गई. वैधव्य ने भले ही उसे तोड़ दिया था पर उस ने अपनेआप को दीनहीन नहीं बनने दिया. हिम्मत नहीं हारी. भागदौड़ कर अपने पति के बिजनैस को संभाला पर अनुभव के अभाव में उसे सही ढंग से चला नहीं पाई. फिर भी खर्च के लायक पैसे आ ही जाते थे.

उस के पति अपने मातापिता की इकलौती संतान थे, इसलिए कोई करीबी भी नहीं था, जो उसे किसी प्रकार का संरक्षण दे. फिर भी उस कर्मठ औरत ने हार नहीं मानी. अपने बेटे के उज्ज्वल भविष्य के लिए अच्छी से अच्छी शिक्षा की व्यवस्था की.

राधा के घोर परिश्रम का ही परिणाम था कि मधुकर आज आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद अहमदाबाद के प्रसिद्ध कालेज से मैनेजमैंट की पढ़ाई पूरी कर एक मल्टीनैशनल कंपनी में काफी ऊंचे पद पर काम कर रहा था. अपने बेटे की सफलता पर गर्व से दमकती राधा की तृप्त मुसकान देख मुझे लगता अंतत: कुदरत ने उस के साथ न्याय किया. अब उस के सुख के दिन आ गए हैं पर आज स्थिति यह है कि वह वृद्धाश्रम में आ गई है. वह भी अपने बेटे की शादी के मात्र 1 साल बाद ही. यह बात मेरे गले नहीं उतर रही थी.

मेरे मन की परेशानी को नेहा ने न जाने कैसे बिना बोले ही भांप लिया था. बोली, ‘‘क्या बात है ममा, जब से राधा मौसी गई हैं आप कुछ ज्यादा ही परेशान और खोईखोई लग रही हैं?’’

‘‘मैं आज यही सोच रही हूं कि इस आधुनिक युग में शिक्षा का स्तर कितना गिर गया है कि आज के उच्च शिक्षा प्राप्त लड़के भी अपने रिश्तों को अहमियत देने के बदले पैसों के पीछे भागते हैं… इन के आचरण इतने घटिया हो जाते हैं कि न मातापिता को सम्मान दे पाते हैं न ही उन की जिम्मेदारी उठाने को तैयार होते हैं. क्या फायदा है इतने बड़ेबड़े स्कूलकालेजों में पढ़ा कर जहां के शिक्षक सिर्फ सबजैक्ट का ज्ञान देते हैं आचरण और संस्कार का नहीं.’’

‘‘ममा… आप को बुरा लगेगा पर आप हमेशा अपने संस्कारों और संस्कृति की दुहाई देती हैं और यह भूल जाती हैं कि समय में परिवर्तन के अनुसार इन में भी बदलाव स्वाभाविक है. आधुनिक युग में शिक्षा नौकरशाही प्राप्त करने को साधन मात्र रह गई है, जिसे प्राप्त करने के लिए आचरण चंद लाइनों में लिखी इबारत होती है. फिर आचरण का मूल्य ही कहां रह गया है?

शिक्षक भी क्या करें उन्हें सिर्फ लक्ष्यप्राप्ति का माध्यम मान लोग पैसों से तोलते हैं. जब मातापिता को बच्चे के आचरण से ज्यादा किताबी ज्ञान प्राप्त करने की चिंता रहती है, तो शिक्षक भी यही सोचते हैं कि भाड़ में जाएं संस्कार और संस्कृति. जिस के लिए वेतन मिलता है उसी पर ध्यान दो, क्योंकि अर्थ ही आज के समाज में लोगों का कद तय करता है. इसी सोच के कारण अर्थ के पीछे भागते लोगों के अंदर भोगविलासिता इतनी बढ़ गई है कि उन्हें उसूलों और मानवता के लिए आत्मबलिदान जैसी बातें मूर्खतापूर्ण और हास्यप्रद लगती हैं और करीबी रिश्ते व्यर्थ के मायाजाल लगते हैं, जो उन्हें मिली शिक्षा और संस्कार के हिसाब से सही हैं.

‘‘अगर आप अपने अंदर झांकिएगा तो आप को खुद अपनी बातों का खोखलापन नजर आएगा, क्योंकि पैसे और पावर के पीछे भागने की प्रेरणा सब से पहले उन्हें अपने मातापिता से ही मिलती है, जो अपने बच्चों को अच्छा व्यक्ति और नागरिक बनाने से ज्यादा इस बात को प्राथमिकता देते हैं कि उन के बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में उच्च प्रदर्शन करें. उन के नंबर हमेशा अपने सहपाठियों की तुलना में ज्यादा हों, यहां तक कि अपने बच्चों के अभ्युत्थान के लिए अपनी सामर्थ्य से ज्यादा संसाधन प्रयोग करते हैं, जिस का बोझ कहीं न कहीं बच्चों के दिलोदिमाग पर रहता है.

‘‘मातापिता की यही लालसा शिक्षा के रचनात्मक विकास के बदले तनाव, चिंता और आक्रोश का कारण बनती है और कभीकभी आत्महत्या का भी. ममा, क्या अब भी आप को लगता है कि सारा दोष इस नई पीढ़ी का ही है? अगर लड़कियां रिश्तों से ज्यादा अपने कैरियर को अहमियत दे रही हैं तो इस में उन की क्या गलती है? उन की यह सोच उन के अपने ही मातापिता और बदलते समय की देन है.’’

‘‘पुरुष तो वैसे भी भावनात्मक तौर पर इतने अहंवादी होते हैं कि अपने कैरियर को परिवार के लिए विराम देने की बात सोच भी नहीं सकते, तो लड़कियां ही सारे त्याग क्यों करें? यह आपसी टकराव सारे रिश्तों की धज्जियां उड़ा रहा है… इस स्थिति को आपसी समझदारी से ही सुलझाया जा सकता है, नई पीढ़ी को कोसने से नहीं.’’

‘‘चुप क्यों हो गई और बोलो. नैतिक मूल्यों को त्याग सिर्फ भौतिक साधनों से लोगों को सुखी बनाने की बातें करो. यही संस्कार मैं ने तुम्हें दिए हैं कि समाज और परिवार को त्याग, प्यार, ममता और मानवता के लिए कुछ कर गुजरने की भावना को भूल सिर्फ अपने लिए जीने की बातें करो जैसे मधुकर ने अपने सुखों के लिए अपनी वृद्ध मां को वृद्धाश्रम भेज दिया. मुझे पता है भविष्य में तुम भी मधुकर के नक्शेकदम पर चलोगी, क्योंकि मधुकर कभी तुम्हारा बैस्ट फ्रैंड हुआ करता था.’’

‘‘जहां तक मेरी बात है ममा वह तो बाद की बात है, अभी तो मेरी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई है. पर एक बात जरूर है कि राधा मौसी के वृद्धाश्रम जाने की बातें सुन मधुकर से आप को ढेर सारी शिकायतें हो गई हैं. पर जैसे आप राधा मौसी को समझती हैं मैं मधुकर को समझती हूं. सच कहूं तो राधा मौसी अपनी स्थिति के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं. कभी आप ने सोचा है संतान का कोई भी कर्म सफलता या विफलता सब कहीं न कहीं उस के मातापिता की सोच और परवरिश का परिणाम होता है? वह राधा मौसी ही थीं, जिन्हें कभी जनून था कि उन का बेटा हमेशा अव्वल आए. वह इतनी ऊंची उड़ान भरे कि कोई उस के बराबर न आने पाए. नातेरिश्तेदार सब कहें कि देखो यह राधा का बेटा है जिसे राधा ने अकेले पति के बिना भी कितने ऊंचे पद पर पहुंचा दिया, जहां विरले ही पहुंच पाते हैं.

‘‘आप को याद है ममा… याद कैसे नहीं होगा, राधा मौसी अपना हर फैसला तो आप की सलाह से ही लेती थीं. मधुकर की दादी यमुना देवी जीवन की अंतिम घडि़यां गिन रही थीं. उन के प्राण अपने बेटे की अंतिम निशानी मधुकर में अटके हुए थे. बारबार उसे बुलवाने का अनुरोध कर रही थीं. उस समय मधुकर दिल्ली में आईआईटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था. पर राधा मौसी ने उसे पटना बुलाना जरूरी नहीं समझा. उन का कहना था कि अगर वह फ्लाइट से भी आएगा तो भी 2 दिन बरबाद हो जाएंगे और फिर दादी को देख डिस्टर्ब हो जाएगा वह अलग. उन्होंने यमुना देवी के बीमार होने तक की सूचना मधुकर को नहीं दी, क्योंकि मधुकर भी अपनी दादी से बेहद प्यार करता था. यहां तक कि यमुना देवी का देहांत हो गया, तब भी मधुकर को सूचित नहीं किया.

‘‘मधुकर का जब आईआईटी में चयन हो गया और वह पटना आया तब उसे पता चला कि उस की दादी नहीं रहीं. वह देर तक फूटफूट कर रोता रहा, पर राधा मौसी अपनी गलती मानने के बदले अपने फैसले को सही बताती रहीं. ऐसा कर मधुकर के अंदर स्वार्थ का बीज तो खुद उन्होंने ही डाला. अब वह हर रिश्तेनाते और अपनी खुशी तक को भुला सिर्फ अपने कैरियर पर ध्यान दे रहा है, तो क्या गलत कर रहा है? मां का ही तो अरमान पूरा कर रहा है?

‘‘मधुकर राधा मौसी की कसौटी पर पूरी तरह खरा उतरा. उस ने अपनी मां की सभी इच्छाएं पूरी कीं. उस के बदले वह अपनी मां से सिर्फ इतना ही चाहता था कि जिस लड़की से वह प्यार करता है, उस के साथ राधा मौसी उस की शादी करवा दें.

‘‘उस की बात मानने के बदले राधा मौसी ने हंगामा बरपा दिया, क्योंकि उन्हें जनून था कि उन की बहू भी ऐसी हो, जो नौकरी के मामले में उन के बेटे से कतई उन्नीस न हो. मधुकर जिस से प्यार करता था वह लड़की अभी पढ़ ही रही थी. अपनी महत्त्वाकांक्षा के आगे उन्होंने मधुकर की एक नहीं सुनी. न ही उस की खुशियों का खयाल किया. उन्होंने साफसाफ कह दिया कि वह मखमल में टाट का पैबंद नहीं लगने देंगी. उन्होंने अपनी जान देने की धमकी दे मधुकर को फैसला मानने पर मजबूर कर दिया और उस की शादी अपनी पसंद की लड़की रश्मि से करवा दी.

‘‘अपनी सोच के अनुसार उन्होंने अपने बेटे के जीवन को एक नई दिशा दी, अपनी सारी इच्छाएं पूरी कीं पर अब हाल यह है कि बेटाबहू दोनों काम के बोझ तले दबे हैं. कभी मधुकर घर से महीने भर के लिए बाहर रहता है, तो कभी रश्मि, तो कभी दोनों ही. एकदूसरे के लिए भी दोनों न समय निकाल पा रहे हैं न ही परिवार बढ़ाने के बारे में सोच पा रहे हैं. फिर राधा मौसी के लिए वे कहां से समय निकालें? दोनों में से कोई भी अपनी तरक्की का मौका नहीं छोड़ना चाहता है. रश्मि वैसे अच्छी लड़की है पर अपने कैरियर से समझौता करने के लिए किसी भी शर्त पर तैयार नहीं है. यह सोच उस को अपनी मां से मिली है. वह अपने मातापिता की इकलौती संतान है. बचपन से ही उस में यह जनून इसलिए भरा गया था कि लोगों को दिखा सकें कि उन की बेटी किसी के लड़के से कम नहीं है.

‘‘दुनिया चाहे कितनी भी बदल जाए पर ममा किसी रिलेशनशिप में सब से बड़ी होती है आपसी अंडरस्टैंडिंग. अगर हम अपने नजरिए से सोचते हैं, तो वह अपने लिए सही हो सकता है पर दूसरों के लिए जरूरी नहीं कि सही हो. आप को अच्छा नहीं लगेगा पर राधा मौसी ने अपना हर फैसला खुशियों को केंद्र में रख कर लिया, जो उन के लिए जरूर सही था पर मधुकर के लिए नहीं. अपने फैसले का परिणाम वे खुद तो भोग ही रही हैं, कहीं न कहीं मधुकर भी अपने प्यार को खो देने का गम भुला नहीं पा रहा है.’’

नेहा की बातें सुन मैं हतप्रभ रह गई. वास्तव में हम अपने बच्चों में कैरियर को ले कर ऐसा जनून भर देते हैं कि पूरी उम्र उन की जिंदगी मशीन बन कर रह जाती है.

नेहा के अत्यधिक बोलने और आंखों में अस्पष्ट असंतोष और झिझक देख मेरे दिमाग में बिजली सी कौंध गई. मैं अपने को रोक नहीं सकी. बोली, ‘‘कहीं मधुकर तुम से तो प्यार नहीं करता था?’’

मेरी बात सुन वह पल भर को चौंकी, फिर अचानक उठ खड़ी हुई जैसे अपने मन की वेदना को संभाल नहीं पा रही हो और मेरे गले से आ लगी. उस की आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा. आज पहली बार मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ.

पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध में हमारी आंखें इस कदर चौंधियां गई हैं कि हम समृद्धि और ऐशोआराम की चीजों को ही अपनी सच्ची खुशी समझने लगे हैं, हालांकि जल्द ही हमें इन से ऊब होने लगती है. अगर हम गहराई से देखें तो यही विलासिता आगे चल कर अकेलेपन और सामाजिक असुरक्षा का कारण बनती है. नई पीढ़ी के इस भटकाव का कारण कहीं न कहीं उस के मातापिता ही होते हैं. फिर मैं उस के बाल सहलाते हुए बेहद आत्मीयता से बोली, ‘‘मैं मानती हूं कि बड़ों की गलतियों की बहुत बड़ी सजा तुम दोनों को मिली, फिर भी अब तो यही कहूंगी कि अतीत को भुला आगे बढ़ने में ही सब की भलाई है. तुम्हारी मंजिल कभी मधुकर था, अब नहीं है तो न सही, मंजिलें और भी हैं. अब से तुम्हारी मां तुम्हारे हर कदम में तुम्हारे साथ है.’’

Mother’s Day Special- अधूरी मां- भाग 3: क्या खुश थी संविधा

तुम्हारे भैया तो दिन में न जाने कितनी बार औफिस से फोन कर के उस की आवाज सुनाने को कहते हैं. शाम 4 बजे तक सारा कामकाज मैनेजर को सौंप कर घर आ जाते हैं. रात को खाना खा कर सभी दिव्य को ले कर टहलने निकल जाते हैं. दिव्य के आने से मेरे घर में रौनक आ गई है. इस के लिए संविधा तुम्हारा बहुतबहुत धन्यवाद. संविधा, अरेअरे दिव्य… संविधा मैं तुम्हें फिर फोन करती हूं. यह तेरा बेटा जो भी हाथ लगता है, सीधे मुंह में डाल लेता है. छोड़…छोड़…’’

इस के बाद दिव्य के रोने की आवाज आई और फोन कट गया.

‘‘यह भाभी भी न, दिव्य अब मेरा बेटा कहां रहा. जब उन्हें दे दिया तो वह उन का बेटा हुआ न. लेकिन जब भी कोई बात होती है, भाभी उसे मेरा ही बेटा कहती हैं. पागल…’’ बड़बड़ाते हुए संविधा ने फोन मेज पर रख दिया.

इस के बाद मोबाइल में संदेश आने की घंटी बजी. ऋता ने व्हाट्सऐप पर दिव्य का फोटो भेजा था. दिव्य को ऋता की मम्मी खेला रही थीं. संविधा आनंद के साथ फोटो देखती रही. ऋता का फोन नहीं आया तो संविधा ने सोचा, वह रात को फोन कर के बात करेगी.

इसी बीच संविधा को कारोबार के संबंध में विदेश जाना पड़ा. विदेश से वह दिव्य के लिए ढेर सारे खिलौने और कपड़े ले आई. सारा सामान ले कर वह ऋता के घर पहुंची.

ऋता ने उसे गले लगाते हुए पूछा, ‘‘तुम कब आई संविधा?’’

‘‘आज सुबह ही आई हूं. घर में सामान रखा, फ्रैश हुई और सीधे यहां आ गई.’’

पानी का गिलास थमाते हुए ऋता ने पूछा, ‘‘कैसी रही तुम्हारी कारोबारी यात्रा?’’

‘‘बहुत अच्छी, इतना और्डर मिल गया है कि 2 साल तक फुरसत नहीं मिलेगी,’’ बैड पर सामान रख कर इधरउधर देखते हुए संविधा ने पूछा, ‘‘दिव्य कहां है, उस के लिए खिलौने और कपड़े लाई हूं?’’

‘‘दिव्य मम्मी के साथ खेल रहा है. तभी दिव्य को ले कर सुधा आ गईं शायद उन्हें संविधा के आने का पता चल गया था. संविधा ने चुटकी बजा कर दिव्य को बुलाया, ‘‘देख दिव्य, तेरे लिए मैं क्या लाई हूं.’’

इस के बाद संविधा ने एक खिलौना निकाल कर दिव्य की ओर बढ़ाया. खिलौना ले

कर दिव्य ने मुंह फेर लिया. इस के बाद संविधा ने दिव्य को गोद में लेना चाहा तो वह रोने लगा.

इस पर ऋता ने कहा, अरे, यह तो रोने लगा.

वह क्या है न संविधा, यह किसी भी अजनबी के पास बिलकुल नहीं जाता.

संविधा ने हाथ खींच लिए तो दिव्य चुप हो गया. संविधा उदास हो गई. उस का मुंह लटक गया. वह कैसे अजनबी हो गई, जबकि असली मां तो वही है. संविधा जो कपड़े लाई थी, अपने हाथों से दिव्य को पहनाना चाहती थी. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. कुछ देर बातें कर के वह सारा सामान भाभी को दे कर वहां से निकली तो सीधे मां के घर चली गई. वहां मां के गले लग कर रो पड़ी कि वह अपने ही बेटे के लिए अजनबी हो गई.

रमा देवी ने संविधा के सिर पर हाथ फेरते हुए समझाया कि वह जी न छोटा करे, दिव्य थोड़ा बड़ा होगा तो खुद ही उस के पास आने लगेगा. उस से अपनी खुशी भाईभाभी को दी है, इसलिए अब उसे अपना बेटा मान कर मन को दुखी न करे. इस के बाद संविधा को पानी पिला कर उस के कारोबार और विदेश की यात्रा के बारे में बातें करने लगीं तो संविधा उत्साह में आ गई.

कारोबार में व्यस्त हो जाने की वजह से संविधा को किसी से मिलने का समय नहीं मिल रहा था. सात्विक अब अकसर बाहर ही रहता था. फोन पर ही ऋता संविधा को दिव्य के बारे में बताती रहती थी कि आज उस ने यह खाया, ऐसा किया, यह सामान तोड़ा. मम्मी तो उस से बातें भी करने लगी हैं. अगर वह राजन के पास होता है तो वह उसे किसी दूसरे के पास नहीं जाने देते. जिस दिन दिव्य बैड पकड़ कर खड़ा हुआ और 4-5 कदम चला, ऋता ने उस का वीडियो बना कर संविधा को भेजा.

अब तक दिव्य 10 महीने का हो गया था. 2 महीने बाद उस का जन्मदिन आने वाला था. सभी उत्साह में थे कि खूब धूमधाम से जन्मदिन मनाया जाएगा. जन्मदिन मनाने में मदद के लिए संविधा को भी एक दिन पहले आने को कह दिया गया था. जब भी ऋता और संविधा की बात होती थी, ऋता यह बात याद दिलाना नहीं भूलती थी. संविधा भी खूब खुश थी.

उस दिन मीटिंग खत्म होने के बाद संविधा ने मोबाइल देखा तो ऋता की 10 मिस्डकाल्स थीं. इतनी ज्यादा मिस्डकाल्स कहीं मम्मी…? उस के मन में किसी अनहोनी की आशंका हुई. संविधा ने तुरंत ऋता को फोन किया.

दूसरी ओर से ऋता के रोने की आवाज आई. रोते हुए उस ने कहा, ‘‘कहां थीं तुम…कितने फोन किए… तुम ने फोन क्यों नही उठाया?’’

‘‘मीटिंग में थी, ऐसा कौन सा जरूरी काम था, जो इतने फोन कर दिए?’’

‘‘दिव्य को अस्पताल में भरती कराया है,’’ ऋता ने कहा.ॉ

संविधा ने तुरंत फोन काटा और सीधे अस्पताल जा पहुंची. दिव्य तमाम नलियों से घिरा स्पैशल रूम में बैड पर लेटा था. नर्स उस की देखभाल में लगी थी. डाक्टर भी खड़े थे.

वह अंदर जाने लगी तो ऋता ने रोका, ‘‘डाक्टर ने अंदर जाने से मना किया है.’’

‘‘क्या हुआ है दिव्य को?’’ संविधा ने पूछा.

‘‘कई दिनों से बुखार था. फैमिली डाक्टर से दवा ले रही थी. लेकिन बुखार उतर ही नहीं रहा था. आज यहां ले आई तो भरती कर लिया. अब ठीक है, चिंता की कोई बात नहीं है.’’

संविधा सोचने लगी, इतने दिनों से बुखार था, राजन ने ध्यान नहीं दिया. यह इन का अपना बेटा तो है नहीं. इसीलिए ध्यान नहीं दिया. खुद पैदा किया होता तो ममता होती. मेरा बच्चा है न, इसलिए इतनी लापरवाह रही. आज कुछ हो जाता, तो… संविधा ने सारे काम मैनेजर को समझा दिए और खुद अस्पताल में रुक गई बेटे की देखभाल के लिए. ऋता ने उस से बहुत कहा कि वह घर जाए, दिव्य की देखभाल वह कर लेगी, पर संविधा नहीं गई. उस की जिद के आगे ऋता को झुकना पड़ा.

अगले दिन किसी जरूरी काम से संविधा को औफिस जाना पड़ा. वह औफिस से लौटी तो देखा ऋता दिव्य के कमरे से निकल रही थी.

संविधा ने इस बारे में डाक्टर से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मां को तो अंदर जाना ही पड़ेगा. बिना मां के बच्चा कहां रह सकता है.’’

संविधा का मुंह उतर गया. मां वह थी.  अब उस का स्थान किसी दूसरे ने ले लिया था. वह दिव्य को देख तो पाती थी, लेकिन बीमार बेटे को गोद नहीं ले पाती थी. इसी तरह 2 दिन बीत गए. रोजाना शाम को सात्विक भी अस्पताल आता था. ऋता बारबार संविधा से निश्ंिचत रहने को कहती थी, लेकिन वह निश्ंिचत नहीं थी. अब वह दिव्य को पलभर के लिए भी आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहती थीं. 5वें दिन डाक्टर ने दिव्य को घर ले जाने के लिए कह दिया.

सभी रमा देवी के घर इकट्ठा थे. संविधा ने दिव्य को गोद में ले कर कहा, ‘‘मैं ने इसे जन्म दिया है, इसलिए यह मेरा बेटा है. यह मेरे साथ रहेगा.’’

‘‘तुम्हारा बेटा कैसे है? मैं ने इसे गोद लिया है,’’ ऋता ने तलखी से कहा, ‘‘तुम इसे कैसे ले जा सकती हो?’’

‘‘कुछ भी हो, अब मैं दिव्य को तुम्हें नहीं दे सकती. तुम उस की ठीक से देखभाल नहीं कर सकी.’’

‘‘बिना देखभाल के ही यह इतना बड़ा हो गया? एक बार जरा…’’

‘‘एक बार जो हो गया, अब वह दोबारा नहीं हो सकता, ऐसा तो नहीं है.’’

‘‘अब तुम्हारा कारोबार कौन देखेगा… इसे दिन में संभालोगी औफिस कौन देखेगा?’’

‘‘तुम्हें इस सब की चिंता करने की जरूरत नहीं है. कारोबार मैनेजर संभाल लेगा तो औफिस सात्विक. मेरे कारोबार और औफिस के लिए तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. कुछ भी हो, अब मेरा बेटा मेरे पास ही रहेगा.’’

ऋता और संविधा को लड़ते देख सब हैरान थे. ननदभौजाई का प्यार पलभर में

खत्म हो गया था. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कोई किसी को क्या कह कर समझाए. ऋता ने धमकी दी कि उस के पास दिव्य को गोद लेने के कागज हैं तो संविधा ने कहा कि उन्हीं को ले कर देखती रहना.

ऋता ने दिव्य को गोद में लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाए तो राजन ने उस के हाथ थाम लिए. उसे पकड़ कर बाहर लाया और कार में बैठा दिया. ऋता रो पड़ी. राजन ने कार बढ़ा दी. राजन ने ऋता को चुप कराने की कोशिश नहीं की.

रास्ते में ऋता के मोबाइल फोन की घंटी बजी. ऋता ने आंसू पोंछ फोन रिसीव किया, ‘‘बहुतबहुत धन्यवाद भाई साहब, मेरी योजना किसी को नहीं बताई इस के लिए आभार, क्योंकि उस समय संविधा को गर्भपात न कराने का दबाव डालने के बजाय यह उपाय ज्यादा अच्छा था, जो सफल भी रहा.’’

राजन ने ऋता की ओर देखा, उस आंखों में आंसू तो थे, लेकिन चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था.

Mother’s Day 2024- अधूरी मां- भाग 2: क्या खुश थी संविधा

संविधा भी पहले नौकरी करती थी. उसे भी 6 अंकों में वेतन मिलता था. इस तरह पतिपत्नी अच्छी कमाई कर रहे थे. लेकिन संविधा को इस में संतोष नहीं था. वह चाहती थी कि भाई की तरह उस का भी आपना कारोबार हो, क्योंकि नौकरी और अपने कारोबार में बड़ा अंतर होता है. अपना कारोबार अपना ही होता है.

नौकरी कितनी भी बड़ी क्यों न हो, कितना भी वेतन मिलता हो, नौकरी करने वाला नौकर ही होता है. इसीलिए संविधा भाई की तरह अपना कारोबार करना चाहती थी. वह फ्लैट में भी नहीं, कोठी में रहना चाहती थी. अपनी बड़ी सी गाड़ी और ड्राइवर चाहती थी. यही सोच कर उस ने सात्विक को प्रेरित किया, जिस से उस ने अपना कारोबार शुरू किया, जो चल निकला. कारोबार शुरू करने में राजन के ससुर ने काफी मदद की थी.

संविधा ने सात्विक को अपनी प्रैगनैंसी के बारे में बताया तो वह बहुत खुश

हुआ, जबकि संविधा अभी बच्चा नहीं चाहती थी. वह अपने कारोबार को और बढ़ाना चाहती भी. अभी वह अपना जो काम बाहर कराती थी, उस के लिए एक और फैक्टरी लगाना चाहती थी. इस के लिए वह काफी मेहनत कर रही थी. इसी वजह से अभी बच्चा नहीं चाहती थी, क्योंकि बच्चा होने पर कम से कम उस का 1 साल तो बरबाद होता ही. अभी वह इतना समय गंवाना नहीं चाहती थी.

सात्विक संविधा को बहुत प्यार करता था. उस की हर बात मानता था, पर इस तरह अपने बच्चे की हत्या के लिए वह तैयार नहीं था. वह चाहता था कि संविधा उस के बच्चे को जन्म दे. पहले उस ने खुद संविधा को समझाया, पर जब वह उस की बात नहीं मानी तो उस ने अपनी सास से उसे मनाने को कहा. रमा बेटी को मनाने की कोशिश कर रही थीं, पर वह जिद पर अड़ी थी. रमा ने उसे मनाने के लिए अपनी बहू ऋता को बुलाया था. लेकिन वह अभी तक आई नहीं थी. वह क्यों नहीं आई, यह जानने के लिए रमा देवी फोन करने जा ही रही थीं कि तभी डोरबैल बजी.

ऋता अकेली आई थी. राजन किसी जरूरी काम से बाहर गया था. संविधा भैयाभाभी की बात जल्दी नहीं टालती थी. वह अपनी भाभी को बहुत प्यार करती थी. ऋता भी उसे छोटी बहन की तरह मानती थी.

संविधा ने भाभी को देखा तो दौड़ कर गले लग गई. बोली, ‘‘भाभी, आप ही मम्मी को समझाएं, अभी मुझे कितने काम करने हैं, जबकि ये लोग मुझ पर बच्चे की जिम्मेदारी डालना चाहते हैं.’’

ऋता ने उस का हाथ पकड़ कर पास बैठाया और फिर गर्भपात न कराने के लिए समझाने लगी.

‘‘यह क्या भाभी, मैं ने तो सोचा था, आप मेरा साथ देंगी, पर आप भी मम्मी की हां में हां मिलाने लगीं,’’ संविधा ने ताना मारा.

‘‘खैर, तुम अपनी भाभी के लिए एक काम कर सकती हो?’’

‘‘कहो, लेकिन आप को मुझे इस बच्चे से छुटकारा दिलाने में मदद करनी होगी.’’

‘‘संविधा, तुम एक काम करो, अपना यह बच्चा मुझे दे दो.’’

‘‘ऋता…’’ रमा देवी चौंकीं.

‘‘हां मम्मी, इस में हम दोनों की समस्या का समाधान हो जाएगा. पराया बच्चा लेने से मेरी मम्मी मना करती हैं, जबकि संविधा के बच्चे को लेने से मना नहीं करेंगी. इस से संविधा की भी समस्या हल हो जाएगी और मेरी भी.’’

संविधा भाभी के इस प्रस्ताव पर खुश हो गई. उसे ऋता का यह प्रस्ताव स्वीकार था. रमा देवी भी खुश थीं. लेकिन उन्हें संदेह था तो सात्विक पर कि पता नहीं, वह मानेगा या नहीं?

संविधा ने आश्वासन दिया कि सात्विक की चिंता करने की जरूरत नहीं है, उसे वह मना लेगी. इस तरह यह मामला सुलझ गया. संविधा ने वादा करने के लिए हाथ बढ़ाया तो ऋता ने उस के हाथ पर हाथ रख कर गरदन हिलाई. इस के बाद संविधा उस के गले लग कर बोली, ‘‘लव यू भाभी.’’

‘‘पर बच्चे के जन्म तक इस बात की जानकारी किसी को नहीं होनी चाहिए,’’ ऋता

ने कहा.

ठीक समय पर संविधा ने बेटे को जन्म दिया. सात्विक बहुत खुश था. बेटे के

जन्म के बाद संविधा मम्मी के यहां रह रही थी. इसी बीच ऋता ने अपने लीगल एडवाइजर से लीगल दस्तावेज तैयार करा लिए थे. ऋता ने संविधा के बच्चे को लेने के लिए अपनी मम्मी और पापा को राजी कर लिया था. उन्हें भी ऐतराज नहीं था. राजन के ऐतराज का सवाल ही नहीं था. लीगल दस्तावेजों पर संविधा ने दस्तखत कर दिए. अब सात्विक को दस्तखत करने थे. सात्विक से दस्तखत करने को कहा गया तो वह बिगड़ गया.

रमा उसे अलग कमरे में ले जा कर कहने लगी, ‘‘बेटा, मैं ने और ऋता ने संविधा को समझाने की बहुत कोशिश की, पर वह मानी ही नहीं. उस के बाद यह रास्ता निकाला गया. तुम्हारा बेटा किसी पराए घर तो जा नहीं रहा है. इस तरह तुम्हारा बेटा जिंदा भी है और तुम्हारी वजह से ऋता और राजन को बच्चा भी मिल रहा है.’’

रमा की बातों में निवेदन था. थोड़ा सात्विक को सोचने का मौका दे कर रमा देवी ने आगे कहा, ‘‘रही बच्चे की बात तो संविधा का जब मन होगा, उसे बच्चा हो ही जाएगा.’’

रमा देवी सात्विक को प्रेम से समझा तो रही थीं, लेकिन मन में आशंका थी कि पता नहीं, सात्विक मानेगा भी या नहीं.

सात्विक को लगा, जो हो रहा है, गलत कतई नहीं है. अगर संविधा ने बिना बताए ही गर्भपात करा लिया होता तो? ऐसे में कम से कम बच्चे ने जन्म तो ले लिया. ये सब सोच कर सात्विक ने कहा, ‘‘मम्मी, आप ठीक ही कह रही हैं… चलिए, मैं दस्तखत कर देता हूं.’’

सात्विक ने दस्तखत कर दिए. संविधा खुश थी, क्योंकि सात्विक को मनाना आसान नहीं था. लेकिन रमा देवी ने बड़ी आसानी से मना लिया था.

समय बीतने लगा. संविधा जो चाहती थी, वह हो गया था. 2 महीने आराम कर के संविधा औफिस जाने लगी थी. काफी दिनों बाद आने से औफिस में काम कुछ ज्यादा था. फिर बड़ा और्डर आने से संविधा काम में कुछ इस तरह व्यस्त हो गई कि ऋता के यहां आनाजाना तो दूर वह उस से फोन पर भी बातें नहीं कर पाती.

एक दिन ऋता ने फोन किया तो संविधा बोली, ‘‘भाभी, लगता है आप बच्चे में कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो गई हैं, फोन भी नहीं करतीं.’’

‘‘आप व्यस्त रहती हैं, इसलिए फोन नहीं किया. दिनभर औफिस की व्यस्तता, शाम को थकीमांदी घर पहुंचती हैं. सोचती हूं, फोन कर के क्यों बेकार परेशान करूं.’’

‘‘भाभी, इस में परेशान करने वाली क्या बात हुई? अरे, आप कभी भी फोन कर सकती हैं. भाभी, आप औफिस टाइम में भी फोन करेंगी, तब भी कोई परेशानी नहीं होगी. आप के लिए तो मैं हमेशा फ्री रहती हूं.’’

संविधा ने कहा, ‘‘बताओ, दिव्य कैसा है?’’

‘‘दिव्य तो बहुत अच्छा है. तुम्हारा धन्यवाद कैसे अदा करूं, मेरी समझ में नहीं आता. इस के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं. मम्मीपापा बहुत खुश रहते हैं. पूरा दिन उसी के साथ खेलते रहते हैं.

Mother’s Day 2024- अधूरी मां- भाग 1: क्या खुश थी संविधा

संविधा की जिद के आगे सात्विक ने हार जरूर मान ली थी, लेकिन उम्मीद नहीं छोड़ी थी. उसे पूरा विश्वास था कि संविधा की मां यानी उस की सास संविधा को समझाएंगी तो वह जरूर मान जाएगी.

यही उम्मीद लगा कर उस ने सारी बात अपनी सास रमा देवी को बता दी थी. इस के बाद रविवार को जब संविधा मां से मिलने आई तो रमा देवी ने उसे पास बैठा कर सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘संविधा बेटा, यह मैं क्या सुन रही हूं?’’

‘‘आप ने क्या सुना मम्मी?’’ संविधा ने हैरानी से पूछा.

‘‘यही कि तू गर्भपात कराना चाहती है.’’

‘‘मम्मी, आप को कैसे पता चला कि मैं गर्भवती हूं और गर्भपात कराना चाहती हूं? लगता है यह बात आप को सात्विक ने बताई है. उन के पेट में भी कोई बात नहीं पचती.’’

‘‘बेटा सात्विक ने बता कर कुछ गलत तो नहीं किया. वह जो कह रहा है, ठीक ही कह रहा है. बेटा, मां बनना औरत के लिए बड़े गर्व की बात होती है. तुम्हारे लिए तो यह गर्व की बात है कि तुम्हें यह मौका मिल रहा है और तुम हो कि गर्भ नष्ट कराने की बात कर रही हो.’’

‘‘मम्मी, जीवन में बच्चा पैदा करना ही गर्व की बात नहीं होती है. अभी तो मुझे बहुत कुछ करना है. हमारा नयानया कारोबार है. इसे जमाना ही नहीं, बल्कि और आगे बढ़ाना है. बच्चा पैदा करने से पहले उस के भविष्य के लिए बहुत कुछ करना है. बच्चा तो बाद में भी हो जाएगा. अभी बच्चा होता है तो उस की वजह से कम से कम 2 साल मुझे घर में रहना होगा. मैं औफिस नहीं जा पाऊंगी. आप को पता नहीं, मैं कितना काम करती हूं. मेरा काम कौन करेगा? मैं अभी रुकना नहीं चाहती.’’

‘‘धीरज रखो बेटा. तुम्हारा कारोबार चल निकला है. जो कमाई हो रही है, वह कम नहीं  है. बच्चे के जन्म के बाद तुम औफिस नहीं जाओगी तो काम रुकने वाला नहीं है. सात्विक है, मैनेजर है, बाकी का स्टाफ काम देख लेगा. यह तुम्हारे मन का भ्रम है कि तुम्हारी वजह से काम का नुकसान होगा. बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाएगा तो तुम उसे मेरे पास छोड़ कर औफिस जा सकती हो, इसलिए बच्चा होने दो. गर्भपात कराने की जरूरत नहीं है. तुम्हारे सासससुर होते तो मुझे ये सब कहने की जरूरत न पड़ती. वे तुम्हें ऐसा न करने देते.’’

‘‘लेकिन मम्मी…’’

‘‘देखो बेटा, यह तुम्हारी संतान है. तुम बड़ी और समझदार हो. तुम्हारे पापा के गुजर जाने के बाद मैं ने तुम भाईबहन को कभी किसी काम के लिए रोकाटोका नहीं, अपनी इच्छा तुम पर नहीं थोपी, तुम दोनों को अपने हिसाब से जीने की स्वतंत्रता दी.’’

‘‘मम्मी, हम ने उस का दुरुपयोग भी तो नहीं किया.’’

‘‘हां, दुरुपयोग तो नहीं किया, लेकिन अगर तुम लोग कोई गलत काम करते हो तो उस के बारे में समझाना मेरा फर्ज बनता है न? बाकी अंतिम निर्णय तो तुम लोगों को ही करना है. अब अपने भैयाभाभी को ही देख लो, एक बच्चे के लिए तरस रहे हैं. कितना परेशान हैं दोनों. अनाथाश्रम से बच्चा गोद लेना चाहते हैं, पर राजन की सास इस के लिए राजी नहीं हैं. वैसे तो वे राजन को बहुत मानती हैं, उस की हर बात का सम्मान करती हैं, लेकिन जब भी अनाथाश्रम से बच्चा गोद लेने की बात चलती है, सुधाजी साफ मना कर देती हैं. मां के कहने पर ऋता ने 2 बार टैस्टट्यूब बेबी के लिए भी कोशिश की, लेकिन सब बेकार गया. पैसा है, इसलिए वह कुछ भी कर सकती है. तुम्हें तो बिना कुछ किए मां बनने का मौका मिल रहा है, फिर भी तुम यह मौका गंवा रही हो.’’

‘‘मम्मी, तुम कुछ भी कहो, अभी मुझे बच्चा नहीं चाहिए. यह सात्विक के पेट में कोई बात पचती नहीं. मैं ने मना किया था, फिर भी उन्होंने यह बात आप को बता ही दी. उन से यह बात बताने के बजाय चुपचाप गर्भपात करा लिया होता तो ये सब न होता,’’ कह संविधा रसोई की ओर बढ़ गई.

करीब 10 साल पहले रमादेवी के पति अवधेश की अचानक मौत हो गई. वे सरकारी नौकरी में थे, इसलिए बच्चों को पालने में रमादेवी को कोई परेशानी नहीं हुई. उन्हें 1 बेटा था और

1 बेटी. बेटा राजन उस समय 12 साल का था तो बेटी संविधा 2 साल की. बच्चों की ठीक से देखभाल हो सके, इसीलिए रमादेवी ने पति के स्थान पर मिलने वाली नौकरी ठुकरा दी थी.

पैंशन से ही उन्होंने बच्चों को पढ़ालिखा कर लायक बनाया. बच्चे समझदार हुए तो अपने निर्णय खुद ही लेने लगे. रमा देवी ने कभी रोकाटोका नहीं. इसलिए बच्चों को अपने निर्णय खुद लेने की आदत सी पड़ गई. हां, रमादेवी इतना जरूर करती थीं कि वे हर काम का अच्छा और बुरा यानी दोनों पहलू बता कर निर्णय उन पर छोड़ देती थीं.

बेटा राजन बचपन से ही सीधा, सरल और संतोषी स्वभाव का था, जबकि संविधा

महत्त्वाकांक्षी और जिद्दी स्वभाव की थी. ऐसी लाडली होने की वजह से हो गई थी. लेकिन पढ़ाई में दोनों बहुत होशियार थे. शायद इसीलिए मां और भाई संविधा की जिद को चला रहे थे. पढ़ाई के दौरान ही राजन को ऋता से प्यार हो गया तो रमा देवी ने ऋता से उस की शादी कर दी.

ऋता ने अपनी ओर से राजन के सामने प्रेम का प्रस्ताव रखा था. शायद राजन का स्वभाव उसे पसंद आ गया था. ऋता के पिता बहुत बड़े कारोबारी थे. नोएडा में उन की 3 फैक्टरियां थीं. वह मांबाप की इकलौती संतान थी. उसे किसी चीज की कमी तो थी नहीं. बस, एक अच्छे जीवनसाथी की जरूरत थी.

राजन उस की जातिबिरादरी का पढ़ालिखा संस्कारी लड़का था. इसलिए घर वालों ने भी ऐतराज नहीं किया और ऋता की शादी राजन से कर दी. शादी के बाद राजन ससुराल में रहने लगा. लेकिन औफिस जाते और घर लौटते समय वह मां से मिलने जरूर जाता था. हर रविवार को ऋता भी राजन के साथ सास से मिलने आती थी. इस तरह रमा देवी बेटे की ओर से निश्चिंत हो गई थीं.

भाई की तरह संविधा ने भी सात्विक से प्रेमविवाह किया. सात्विक पहले नौकरी करता था. उसे 6 अंकों में वेतन मिलता था. उसे भी किसी चीज की कमी नहीं थी. थ्री बैडरूम का फ्लैट था, गाड़ी थी. पिता काफी पैसा और प्रौपर्टी छोड़ गए थे. वे सरकारी अफसर थे. कुछ समय पहले ही उन की मौत हुई थी. उन की मौत के 6 महीने बाद ही सात्विक की मां की भी मौत हो गई थी. उस के बाद संविधा और सात्विक ही रह गए थे. सात्विक का कोई भाईबहन नहीं था.

Mother’s Day Special: जब बन रही हों दूसरी मां

दूसरी शादी का मतलब सौतेली मां बनना भी है. सौतेली मां शब्द के साथ जुड़ी है, एक नकारात्मक छवि. स्त्री जितने भी प्रयास कर ले, खुद को इस छवि से मुक्त कराना उस के लिए आसान नहीं होता. नई मां को बच्चे दुश्मन के रूप में देखते हैं. ऐसा करने में उन की सगी मां (यदि जिंदा है) और मृत है तो रिश्तेदार चिनगारी छोड़ने का काम करते हैं. उसे ताने दिए जाते हैं. रहरह कर याद दिलाया जाता है कि बच्चे उस के अपने नहीं हैं. घरपरिवार के लिए लाख त्याग करने के बावजूद उसे सराहना नहीं मिलती. बच्चों के कारण पति के साथ उसे पूरी प्राइवेसी भी नहीं मिल पाती. लोगों की सहानुभूति भी सदैव बच्चों के साथ ही होती है. ऐसी महिला की मन:स्थिति कोई नहीं समझता.

बदलता ट्रैंड

चुनौतियां कितनी भी हों, आज बहुत सी लड़कियां अपनी मरजी से विवाहित पुरुषों से शादी कर रही हैं. वैसे भी आजकल कैरिअर की वजह से बड़ी उम्र में शादी करने का रिवाज चल पड़ा है. इस के अलावा दहेज या तलाक भी दूसरी शादी की वजह बन सकता है. कई बार प्रेम में पड़ कर लड़कियां शादीशुदा पुरुषों को जीवनसाथी चुनती हैं. बात जो भी हो, सौतेली मां की भूमिका अपनेआप में काफी चुनौतीपूर्ण है. इसे सफलतापूर्वक स्वीकार करने के लिए जरूरी है कुछ बातों का ध्यान रखना:

जरूर कर लें छानबीन

समस्याओं से बचने और अच्छा रिश्ता बनाने के लिए पहले से उस परिवार के बारे में छानबीन करें.

यह पता करें कि पहली पत्नी से अलगाव की वजह क्या थी. तलाक, मौत या कोई और वजह? तलाक हुआ तो क्यों और यदि मौत हुई तो कैसे?

पति से पूछें कि पुरानी पत्नी का स्वभाव कैसा था? बच्चों को किस तरह रहने की आदत है? उन्हें कौन सी बातें अच्छी लगती हैं? किन बातों से भय लगता है वगैरह.

नए घर के तौरतरीकों और रीतिरिवाजों की जानकारी पहले से लें.

बच्चों से मिलें

बच्चों के साथ समय बिताएं, उन की कमियों, समस्याओं, गुणअवगुणों को जानने का प्रयास करें. उन की मानसिक स्थिति और उन्हें सुकून देने वाली बातों को समझें. उन से दोस्ताना व्यवहार रखें ताकि शादी के बाद वे आसानी से आप को अपना लें.

मैरिज काउंसलर, कमल खुराना कहते हैं, ‘‘सौतेली मां के रूप में घर में ऐडजस्ट करना कितना कठिन होगा, यह काफी हद तक इस बात पर भी निर्भर करता है कि बच्चा कितना बड़ा है. छोटे बच्चे सिर्फ प्यारदुलार की भाषा समझते हैं और आसानी से नई मां को अपना लेते हैं, पर कुछ बड़े हो चुके बच्चे या टीनएजर्स के लिए जीवन में आए इनबदलावों को स्वीकार करना उतना आसान नहीं होता. उन का संवेदनशील मन रिश्तों के नए समीकरण समझने में वक्त लेता है. उन के दिल पर पुरानी मां की यादें पूरी तरह हावी रहती हैं. ऐसी परिस्थिति में जरूरी है कि आप बच्चे को मानसिक रूप से तैयार होने के लिए वक्त दें और उस की सहमति मिलने के बाद ही शादी करें.’’ सौतेली मां बनने के बाद आप को सम्मान मिले, इस के लिए जरूरी है कि पहले दिन से ही आप घर में अनुशासन और एकदूसरे के प्र्रति सम्मान की भावना डेवलप करें. आप बड़ों को सम्मान दें, बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार करें, तभी बदले में आप वैसे ही व्यवहार की आशा कर सकती हैं.

आपसी समझ मजबूत करें :

शादी के बाद सब से महत्त्वपूर्ण है बच्चे के साथ आपसी समझ मजबूत करना. हंसीमजाक का माहौल बनाए रखें. यदि उन्होंने आप से अपनी कोई बात शेयर की है और पापा को न बताने का आग्रह किया है, तो वादा कर के निभाएं जरूर.

धैर्य जरूरी :

जिंदगी संघर्ष का नाम है. फिर आप जिस रिश्ते को निभा रही हैं, उस की तो बुनियाद ही समझौते से जुड़ी है, इसलिए अपना मनोबल कभी नीचा न होने दें. बच्चों द्वारा दिखाई जा रही उपेक्षा को व्यक्तिगततौर पर न लें.

मानसिकता समझें :

मैरिज काउंसलर कमल खुराना कहते हैं, ‘‘किसी टेढ़ी या अजीब परिस्थिति में बच्चे की प्रतिक्रिया देख कर बच्चे की सोच समझी जा सकती है. यदि वह उद्दंड या रूखा व्यवहार करता है तो जरूरी है कि आप उस के हृदय की गहराइयों में झांकें और वजह जानने का प्रयास करें, न कि बच्चे को अपशब्द कहें, आवेश में कभी भी बच्चे को डांटने या सौतेला कह कर दुत्कारने से आप दोनों के रिश्ते में गहरी दरार आ सकती है. इसलिए बच्चे के साथ व्यवहार करते वक्त उस की मानसिक स्थिति को ध्यान में रखें. तभी आप उस के दिल में जगह बना सकेंगी.’’

क्या न करें

बच्चों की सगी मां बनने का प्रयास न करें और न ही उस की जगह लेने की बात सोचें. अपनी अलग जगह बनाएं.

बच्चों के सामने उन की मां के लिए बुराभला न कहें और न ईर्ष्या रखें.

अपने बच्चे हैं तो उन से सौतेले बच्चों की तुलना करने या अपने बच्चों को ज्यादा महत्त्व देने से बचें.

कभी भी अपना निर्णय बच्चों पर थोपने का प्रयत्न न करें.

यदि पति और बच्चे पुरानी मां से मिलते हैं तो आप गुस्सा न करें.

बच्चों के चक्कर में पति की उपेक्षा न करें.

यह न सोचें कि मेरा सौतेला बच्चा कभी भी मुझे प्यार नहीं करेगा. शुरुआत में संभव है वह आप से नफरत करे पर वक्त के साथ सब बदल जाता है.

भ्रांतियां और उन की असलियतें

भ्रांति : सौतेली मां बच्चे के प्रति कठोर होती है.

असलियत : जहां तक अनुशासन की बात है, सौतेली मां तुलनात्मक रूप से कम कठोर होती है. वह बच्चे के साथ उदार रवैया रखती है ताकि बच्चा उस से घुलमिल सके.

भ्रांति :  सौतेली मां हो या बाप, निभाना एक सा कठिन होता है.

असलियत : यह सच नहीं है. दरअसल सौतेली मां को सौतेले बाप से ज्यादा परेशानियां झेलनी पड़ती हैं. बच्चों के दिमाग में और समाज में भी सौतेली मां की छवि दुष्ट महिला के रूप में अंकित है. ऐसे में उसे बच्चों की तरफ से ज्यादा रूखा और विरोधपूर्ण व्यवहार सहना पड़ता है. वैसे भी औरतें रिश्तों से ज्यादा जुड़ती हैं. रिश्तेनाते व भावनाएं उन के जीवन में अहम स्थान रखती हैं. इसलिए जब यह सपना टूटता है तो उन्हें ज्यादा दुख होता है.

भ्रांति : यदि आप का सौतेला बच्चा आप को नापसंद कर रहा है तो इस का मतलब है आप कुछ गलत कर रही हैं.

असलियत : ऐसा नहीं है. दरअसल बात उलटी होती है. आप जितना नर्म बनेंगी और बच्चे का खयाल रखने का प्रयास करेंगी, बच्चा उतना ही बुरा व्यवहार कर अपना विरोध जताने लगेगा ताकि आप उस की मां का स्थान न लें. खासकर शुरुआत में ऐसा ज्यादा होता है. इसलिए खुद को दोषी नहीं समझना चाहिए.

भ्रांति : बच्चे से रिलेशन के लिए सिर्फ मां जिम्मेदार है.

असलियत : सौतेली मां व बच्चे का रिलेशन कैसा है, इस के लिए पति, रिश्तेदार और ऐक्सपार्टनर भी जिम्मेदार हैं. पति को चाहिए कि बच्चों के आगे अपनी स्थिति साफ करें. उन्हें बताएं कि अब हम सब एक परिवार के हैं और अपनी नई पत्नी को सपोर्ट करें. रिश्तेदारों को भी नई मां और बच्चे के बीच मधुर रिश्ता कायम करवाने का प्रयास करना चाहिए.

भ्रांति : सौतेली मां को अपने बजाय बच्चों की खुशी का खयाल रखना चाहिए.

असलियत : हर वक्त बच्चों की चिंता करने और उन पर ऐनर्जी खर्च करने से बेहतर है, थोड़ा अपनी खुशियों का भी खयाल रखा जाए. कुछ वक्त घर और बच्चों से दूर अपने लिए बिताएं. इस से तनाव से मुक्ति मिलेगी और जीवन में नया उजाला फैलेगा.

भ्रांति : सौतेली मां और बच्चे के रिश्ते की असलियत तुरंत पता लग जाती है.

असलियत : ऐसा नहीं है. बुरी इमेज की धारणा होने की वजह से नई मां को समायोजन करने में वक्त लग जाता है.

भ्रांति : सौतेली मां बच्चे के लिए बुरी है.

असलियत : ऐसा नहीं है, हकीकत तो यह है कि घर का सूनापन बच्चे के लिए ज्यादा बुरा है.

भ्रांति : सगी मां का स्थान लिया जा सकता है.

असलियत : नई मां बच्चे के कितने भी करीब आ जाए पर एक दीवार उन के बीच रह ही जाती है, क्योंकि बच्चा यह स्थान किसी को नहीं दे सकता और ऐसा प्रयास करना भी नहीं चाहिए.              

1 हेमामालिनी-धर्मेंद्र

बौलीवुड की ड्रीमगर्ल ने 1980 में हीमैन धर्मेंद्र से शादी की. इस से पहले धर्मेंद्र की शादी प्रकाश कौर के साथ 1954 में हो चुकी थी. उन से धर्मेंद्र के 4 बच्चे थे. पर ‘शोले’ के सैट पर भड़की प्रेम की आग में, सामाजिक बंधनों की परवाह न कर धर्मेंद्र ने पहली पत्नी के रहते हेमा से दूसरी शादी की.

2 शबाना आजमी-जावेद अख्तर

शबाना ने शायर, संगीतकार और स्क्रिप्ट राइटर जावेद अख्तर को अपना जीवनसाथी चुना, जो पहले से शादीशुदा और 2 बच्चों के पिता थे. पहली पत्नी, हनी ईरानी से तलाक लेने के बाद जावेद अख्तर ने 1984 में शबाना से शादी की.

3 जयाप्रदा-श्रीकांत

जयाप्रदा ने 1986 में प्रोड्यूसर श्रीकांत नहाटा से प्रेमविवाह किया. श्रीकांत पूर्वविवाहित, 3 बच्चों के पिता थे. उन्होंने अपनी पहली पत्नी चंद्रा को तलाक नहीं दिया. जयाप्रदा ने श्रीकांत को उन की पहली पत्नी और बच्चों के साथ स्वीकार किया.

4 स्मिता पाटिल-राज बब्बर

स्मिता पाटिल ने पूर्वविवाहित राज बब्बर से शादी की थी. राज बब्बर की पहली पत्नी नादिरा जहीर थीं. उन दोनों के 2 बच्चे भी थे. पर राज बब्बर ने स्मिता से शादी करने के लिए पहली पत्नी को छोड़ दिया.

5 महिमा चौधरी-बौबी मुखर्जी

महिमा ने 2 बच्चों के पिता आर्किटैक्ट बौबी मुखर्जी से शादी की.

6 करीना कपूर-सैफ अली खान

अपनी बड़ी बहन करिश्मा के नक्शेकदम पर चलती हुई करीना कपूर भी शादीशुदा सैफ अली खान के साथ शादी की है. सैफ अपने से बड़ी उम्र की अदाकारा अमृता सिंह के साथ 13 साल की शादीशुदा जिंदगी बिता चुके हैं और उन दोनों के बच्चे भी हैं. वहीं अब करीना से उनका बेटा तैमूर और दूसरा बेटा भी हुआ है.

Mother’s Day Special: अकेलेपन और असामाजिकता के शिकार सिंगल चाइल्ड

7 साल का आर्यन घर का इकलौता बच्चा है. वह न नहीं सुन सकता. उस की हर जरूरत, हर जिद पूरी करने के लिए मातापिता दोनों में होड़ सी लगी रहती है. उसे आदत ही हो गई है कि हर बात उस की मरजी के मुताबिक हो. हालात ये हैं कि घर का इकलौता दुलारा इस उम्र में भी मातापिता की मरजी के मुताबिक नहीं, बल्कि मातापिता उस की इच्छा के अनुसार काम करने लगे हैं. कई बार ऐसा भी देखने में आता है कि हद से ज्यादा लाड़प्यार और अटैंशन के साथ पले इकलौते बच्चों में कई तरह की समस्याएं जन्म लेने लगती हैं. ‘एक ही बच्चा है’ यह सोच कर पेरैंट्स उस की हर मांग पूरी करते हैं. लेकिन यह आदत आगे चल कर न केवल अभिभावकों के लिए असहनीय हो जाती है बल्कि बच्चे के पूरे व्यक्तित्व को भी प्रभावित करती है.

इसे मंहगाई की मार कहें या बढ़ती जनसंख्या के प्रति आई जागरूकता या वर्किंग मदर्स के अति महत्त्वाकांक्षी होने का नतीजा या अकेले बच्चे को पालने के बोझ से बचने का रास्ता? कारण चाहे जो भी हो, अगर हम अपने सामाजिक परिवेश और बदलते पारिवारिक रिश्तों पर नजर डालें तो एक ही बच्चा करने का फैसला समझौता सा ही लगता है. आज की आपाधापी भरी जिंदगी में ज्यादातर वर्किंग कपल्स एक ही बच्चा चाहते हैं. ये चाहत कई मानों में हमारी सामाजिकता को चुनौती देती सी लगती है. न संयुक्त परिवार और न ही सहोदर का साथ, एक बच्चे के अकेलेपन का यह भावनात्मक पहलू उस के पूरे जीवन को प्रभावित करता है.

खत्म होते रिश्तेनाते

एक बच्चे का चलन हमारी पूरी पारिवारिक संस्था पर प्रश्नचिह्न लगा रहा है. अगर किसी परिवार में इकलौता बेटा या बेटी है तो उस की आने वाली पीढि़यां चाचा, ताऊ और बूआ, मौसी, मामा के रिश्ते से हमेशा के लिए अनजान रहेंगी.  समाजशास्त्री भी मानते हैं कि सिंगल चाइल्ड रखने की यह सोच आगे चल कर पूरे सामाजिक तानेबाने के लिए खतरनाक साबित होगी. पारिवारिक माहौल के बिना वे जीवन के उतारचढ़ाव को नहीं समझ पाते और बड़े होने पर अपने ही अस्तित्व से लड़ाई लड़ते हैं. बच्चों को सभ्य नागरिक बनाने में परिवार का बहुत बड़ा योगदान होता है. संयुक्त परिवारों में 3 पीढि़यों के सदस्यों के बीच बच्चों का जीवन के सामाजिक और नैतिक पक्ष से अच्छी तरह परिचय हो जाता है.

कितने ही पर्वत्योहार हैं जब अकेले बच्चे व्यस्तता से जूझते पेरैंट्स को सवालिया नजरों से देखते हैं. घर में खुशियां बांटने और मन की कहने के लिए हमउम्र भाईबहन का न होना बच्चों को भी अखरता है. इतना ही नहीं, सिंगल चाइल्ड की सोच हमारे समाज में महिलापुरुष के बिगड़ते अनुपात को भी बढ़ावा दे रही है क्योंकि आमतौर पर यह देखने में आता है कि जिन कपल्स का पहला बच्चा बेटा होता है वे दूसरा बच्चा करने की नहीं सोचते. समग्ररूप से यह सोच पूरे समाज में लैंगिक असमानता को जन्म देती  है.

शेयरिंग की आदत न रहना

आजकल महानगरों के एकल परिवारों में एक बच्चे का चलन चल पड़ा है. आमतौर पर ऐसे परिवारों में दोनों अभिभावक कामकाजी होते हैं. नतीजतन बच्चा अपना अधिकतर समय अकेले ही बिताता है. ऐसे माहौल में पलेबढ़े बच्चों में एडजस्टमैंट और शेयरिंग की सोच को पनपने का मौका ही नहीं मिलता. छोटीछोटी बातों में वे उन्मादी हो जाते हैं. अपनी हर चीज को ले कर वे इतने पजेसिव रहते हैं कि न तो किसी के साथ रह सकते हैं और न ही किसी दूसरे की मौजूदगी को सहन कर सकते हैं. वे हर हाल में जीतना चाहते हैं. यहां तक कि खिलौने और खानेपीने का सामान भी किसी के साथ बांट नहीं सकते. ऐसे बच्चे अकसर जिद्दी और शरारती बन जाते हैं.

अकेला बच्चा होने के चलते मातापिता का उन्हें पूरा अटैंशन मिलता है. वर्किंग पेरैंट्स होने के चलते अभिभावक बच्चे को समय नहीं दे पाते. उस की हर जरूरी और गैरजरूरी मांग को पूरा कर के अपने अपराधबोध को कम करने की राह ढूंढ़ते हैं. बच्चे अपने साथ होने वाले ऐसे व्यवहार को अच्छी तरह से समझते हैं जिस के चलते छोटी उम्र में ही वे अपने पेरैंट्स को इमोशनली ब्लैकमेल भी करने लगते हैं. अगर उन की जिद पूरी नहीं होती तो वे कई तरह के हथकंडे अपनाने लगते हैं.

गैजेट्स की लत

इसे समय की मांग कहें या दूसरों से पीछे छूट जाने का डर, अभिभावक अपने इकलौते बच्चों को आधुनिक तकनीक से अपडेट रखने की हर मुमकिन कोशिश करते नजर आते हैं. कामकाजी अभिभावकों को ये गैजेट्स बच्चों को व्यस्त रखने का आसान जरिया लगते हैं. यही वजह है कि अकेले बच्चों की जिंदगी में हमउम्र साथियों और किस्सेकहानी सुनाने वाले बुजुर्गों की जगह टीवी, मोबाइल और लैपटौप जैसे गैजेट्स ने ले ली है. आज के दौर में इन इकलौते बच्चों के पास समय भी है और एकांत भी. बडे़ शहरों में आ बसे कितने ही परिवार हैं जिन में कुल 3 सदस्य हैं. साथ रहने और खेलने को न किसी बड़े का मार्गदर्शन और न ही छोटे का साथ. नतीजतन, वे इन गैजेट्स का इस्तेमाल बेरोकटोक मनमुताबिक ढंग से करते रहते हैं. उन का काफी समय इन टैक्निकल गैजेट्स को एक्सैस करने में ही बीतता है. अकेले बच्चे घंटों इंटरनैट और टीवी से चिपके रहते हैं. धीरेधीरे ये गैजेट्स उन की लत बन जाते हैं और ऐसे बच्चे लोगों से घुलनेमिलने से कतराने लगते हैं.

‘एन इंटरनैशनल चाइल्ड ऐडवोकेसी और्गनाइजेशन’ की एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि इंटरनैट पर बहुत ज्यादा समय बिताने वाले बच्चों में सामाजिकता खत्म हो जाती है. नतीजतन, उन के शारीरिक और मानसिक संवेदनात्मक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इतना ही नहीं, मनोचिकित्सकों ने तो इंटरनैट की लत को मनोदैहिक बीमारी का नाम दिया है. अकेले बच्चों को मिलने वाली मनमानी छूट कई माने में उन्हें जानेअनजाने ऐसी राह पर ले जाती है जो आखिरकार उन्हें कुंठाग्रस्त बना देती है.

समस्याएं और भी हैं

इकलौते बच्चे का व्यवहार और कार्यशैली उन बच्चों से बिलकुल अलग होती है जो अपने हमउम्र साथियों या भाईबहनों के साथ बड़े होते हैं. वर्किंग पेरैंट्स के व्यस्त रहने के कारण ऐसे बच्चे उपेक्षित और कुंठित महसूस करते हैं. कम उम्र में सारी सुखसुविधाएं मिल जाने के कारण ये जीवन की वास्तविकता और जिम्मेदारियों को ठीक से नहीं समझ पाते. ऐसे बच्चे आमतौर पर आत्मकेंद्रित हो जाते हैं. अकेला रहने वाला बच्चा अपनी बातें किसी से नहीं बांट पाता. उसे अपनी भावनाएं शेयर करने की आदत ही नहीं रहती जिस के चलते ऐसे बच्चे बड़े हो कर अंतर्मुखी, चिड़चिड़े और जिद्दी बन जाते हैं और उन का स्वभाव उग्र व आक्रामक हो जाता है.

मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि अकेले पलेबढ़े बच्चे सामाजिक नहीं होते और उन्हें हर समय अटैंशन व डिपैंडैंस की तलाश रहती है. संपन्न और सुविधाजनक परवरिश मिलने के कारण इकलौते बच्चे जिंदगी की हकीकत से दूर ही रहते हैं. लाड़प्यार और सुखसुविधाओं में पलने के कारण वे आलसी और गैरजिम्मेदार बन जाते हैं. छोटेछोटे काम के लिए उन्हें दूसरों पर निर्भर रहने की आदत हो जाती है. आत्मनिर्भरता की कमी के चलते उन के व्यक्तित्व में आत्मविश्वास की भी कमी आ जाती है. एक सर्वे में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि अकेले रहने वाले बच्चों की खानपान की आदतें भी बिगड़ जाती हैं. यही वजह है कि अकेले बच्चों में मोटापे जैसी शारीरिक व्याधियां भी घर कर जाती हैं.

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