Hindi Kahaniyan : चलो जीया जाए

Hindi Kahaniyan : एक तरफ लैपटौप पर किसी प्राइवेट कंपनी की वैब साइट खुली थी तो दूसरी ओर शाहाना अपने फोन पर शुभम से चैटिंग में व्यस्त थी.

अचानक मां के पैरों की आहट सुनाई दी तो. उस ने फोन पलट कर रख दिया और लैपटौप पर माउस चलाने लगी. दोपहर के 2 बज रहे थे. इस समय कंपनी के काम से उसे ब्रेक मिलता था. मां ने खाने के लिए बुलाया शाहाना को.

शाहाना ने मां को कमरे में खाना देने को कहा. कहा कि ब्रेक नहीं मिला है आज.

46 साल की निशा यानी शाहाना की मां उस की पसंद का खाना उस के पास रख गई. हिदायत दी कि याद से खा ले.

21 वर्ष की शाहाना अभी 6 महीने पहले भुवनेश्वर से होटल मैनेजमैंट में ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी कर के लौटी है. उसे अपने रिजल्ट के आने का इंतजार है और तब तक उस ने खुद की कोशिश से एक प्राइवेट कंपनी में वर्क फ्रौम होम वाली जौब ढूंढ़ ली है. लेकिन बात यह है कि जैसे ही सालभर होने को होगा उसे इस कंपनी के मेन औफिस दिल्ली जा कर जौब करनी होगी. यह कितनी खुशी की बात है, शाहाना ही जानती है. लेकिन सामने इस से भी बड़ी चिंता की दीवार खड़ी है उस के, जिस का उसे समाधान ढूंढे़ नहीं मिल रहा. रोज वह औफिस जाती है, उसे शाबाशी मिलती है और खुश होने के बजाय वह और ज्यादा चिंतित हो जाती है.

शाहाना सुदेश की बेटी है. 50 साल का सुदेश रेलवे में नौकरी करता है और अकसर उस की नाइट शिफ्ट रहती है. सुदेश की पत्नी यानी निशा की मां अपने 70 और 78 साल के क्रमश: अपने सास और ससुर की सेवा में लगी रहती है क्योंकि वे कुछ ज्यादा ही लाचार हैं.

दरअसल, किसी भी घर में वहां का माहौल बच्चों को बनाता है. आज जो शाहाना इतनी आजाद खयाल और खुद की आर्थिक आजादी के लिए दीवानी है उस के पीछे भी उस का घर और घर के लोग हैं. निस्संदेह. मगर कुछ अलग तरह से.

बूढ़े मातापिता सुदेश की जिम्मेदारी है लेकिन पैसे के इंतजाम के सिवा कभीकभार मातापिता को डाक्टर को दिखाने के सिवा सारी देखभाल शाहाना की मां निशा के जिम्मे थी और इस में निशा का पत्नी भाव कम नौकरानी का भाव ज्यादा था. अलिखित जैसी संधि थी कि यहां रहोगी तो वह सबकुछ करना होगा जो कमाने वाला पुरुष चाहता है. बचपन से ही शाहाना ने देखा है कि मां के दांपत्य भाव को कभी भाव ही नहीं दिया गया. उसे क्यों और किस तरह इस परिवार से कभी लगाव महसूस होता जहां परिवार की जड़ें ही एकदूसरे से न जुड़ी हों. दादादादी भी सिर्फ अपना काम करवाने और बाकी समय बहू की निंदा करने में व्यतीत करते. यहां सिर्फ व्यापार भर का जीवन था. लेकिन  शाहाना इस घर में  सिर्फ इसलिए ही घुटन महसूस करती हो, यह बात नहीं थी. कारण इस से भी बड़ा था.

पिता के लिए शाहाना बेटी के रूप में एक स्त्री थी और यह तब से था जब शाहाना खुद भी खुद के लड़की होने की बात को समझ भी नहीं पाई थी. यानी उस के बचपन से ही उस के पिता उसे बेटी कम, एक औरत जात ज्यादा समझते.

इधर शाहाना की मां निशा को बातबात पर उस के पिता न कमाने की उलाहने देते लेकिन लड़कियों की आर्थिक आजादी पर उन का रंग बदल जाता.

घोर परंपरावादी पिता की छत्रछाया में शाहाना पलते हुए बस एक ही बात सोचती, एक ही ध्यान करती कि कब वह इस घर से दूर कहीं, बहुत दूर चली जाएगी.

मुश्किलें थीं, उस की मां भी बड़ी लाचार थी. पढ़ीलिखी होने के बावजूद मां में अपने लिए आवाज उठाने की हिम्मत नहीं थी.

निशा अपने मातापिता की इकलौती संतान थी सो कभी अपने मातापिता, कभी सासससुर इन्हीं में उलझ कर रह गई थीं उन की जिंदगी.

मजबूर निशा शाहाना को समझती, ‘‘किसी तरह तू अपने पैरों पर खड़ी हो जा, फिर तेरा दुख दूर हो जाएगा.’’

होटल मैनेजमैंट की पढ़ाई के दौरान शाहाना को शुभम मिल गया. 2 साल सीनियर शुभम पहलवान सा दिखता था आकर्षक था. उस की हाइट शाहाना से बस 2 इंच ज्यादा यानी 5 फुट 7 इंच थी.

रोमांटिक चेहरे की स्वामिनी और खूबसूरत दुबलीपतली, सुघड़ बदन की मलिका शाहाना को एक सुंदर साथी की तलाश थी जो उसे समझे, सराहे और उस की आजादी को महत्त्व दे. इसलिए शुभम के सौंदर्य को कभी उस ने खुद से नापा ही नहीं.

होस्टल की एक सीनियर लड़की आभा जो शुभम की दोस्त थी, के संरक्षण में शुभम से शाहाना की दोस्ती दिनबदिन गहरी होती गई.

शाहाना को उस के पापा फोन पर चाहे हर बार रुपए भेजते समय उसे फटकार लगाए या नीचा दिखाए, शाहाना बीमार पड़े या उसे कहीं दूर किसी अच्छे स्पौट घूमने जाना हो, शुभम उस का संरक्षक, गाइड और प्यार बन चुका था.

ऐसा था कि शुभम अपने कालेज के लड़कों के बीच अपने अडि़यल स्वभाव और बात को खींच कर किसी भी तरह खुद को सही साबित करने वालों में जाना जाता था. लेकिन शुभम जैसा एक मजबूत सहारा शाहाना के लिए इतना कीमती था कि शाहाना को दोस्तों की सम?ाइश में जलन की बू आती. उस ने शुभम को जाननेसम?ाने के लिए किसी भी बाहरी सूचना को स्वीकार ही नहीं किया.

शुभम जब अपना कोर्स खत्म कर के अपने घर पुणे चला गया और वहां उस ने एमबीए जौइन कर लिया, तब शाहाना भुवनेश्वर में ही अपनी ग्रैजुएशन का दूसरा साल पूरा करती रही. जब तक शाहाना अपना कोर्स खत्म कर घर आई, शुभम को जयपुर में एक ट्रैवल कंपनी में मैनेजर पद की नौकरी मिल चुकी थी. कंपनी छोटी और नई थी, शुभम की सरकारी कालेज से एमबीए की डिगरी ने उसे 35 हजार की नौकरी दिला दी.

शाहाना घर तो आ गई थी लेकिन फिर से उस के पिता सुदेश की हुकुमदारी शुरू हो गई थी. 21 साल की आजाद खयाल और बहुत सैंसिटिव लड़की को नफरत भरी दकियानूसी सहन नहीं हो रही थी. वह यहां से बस कोई नौकरी पा कर निकल भागना चाहती थी. मगर नौकरी तो कोई खुद के बगीचे का आम नहीं था कि जब मन चाहा तोड़ लिया.

किसी भी प्राइवेट कंपनी में जौब पाने के लिए एक फ्रैशर्स को कम से कम 6 महीने तो इंटर्नशिप ट्रेनिंग की जरूरत होती है और उस के बाद नौकरी मिलेगी या नहीं कोई गारंटी नहीं.

होटल मैनेजमैंट कर के अगर कोई सीधे होटल की जौब में न जाना चाहे तो उसे इस तरह ही नौकरी ढूंढनी पड़ती है.

दरअसल, होटल की जौब में जबकि शाहाना ने सेफ की पढ़ाई नहीं की थी, हाउस कीपिंग में उस के चेहरेमोहरे और फिगर को प्रायौरिटी देते हुए उसे रिसैप्शनिस्ट की नौकरी मिली भी थी, लेकिन पढ़ाई के दौरान इंटर्नशिप में वह 17 घंटे खड़े हो कर काम करने का अनुभव ले चुकी थी और उस के पैर तब सूज जाते थे.

शुभम के सु?ाव से उस ने वर्क फ्रौम होम की एक प्राइवेट नौकरी की ट्रेनिंग ढूंढ़ी. तब से लगातार शुभम और उस के काम के बीच दोनों की चैटिंग चलती रहती. इतनी बात तो ठीक थी. लेकिन आगे की जिंदगी तक जाने वाली सड़क के बीच एक दीवार आ गई थी. यह वह दीवार थी जिस से हर बार उड़ने से पहले शाहाना के पंखों को टकरा कर घायल होना पड़ता.

बचपन से शाहाना पिता के मनुवादी संदेश सुनसुन कर थक चुकी थी कि बेटी पहले पिता के हाथ की फिर पति के हाथ की और अंत में बेटे की हाथ की यानी कुल मिला कर पुरुषों के हाथ की कठपुतली है.

उस की मां को कंट्रोल में रखते हुए भी सुदेश लगातार उलाहने देता रहता, कभी संतुष्ट नहीं होता क्योंकि वह मानता है कि अगर उस ने पत्नी के प्रति प्रेम दिखाया तो वह कुछ न कुछ मांग कर देगी और उसे पूरा करने का मतलब ही है कि स्त्री को भाव देना. इस से स्त्रियां कंट्रोल से निकल जाती हैं. ऐसे में बेटी इस पिता से जयपुर, दिल्ली या आगरा अपनी नौकरी के लिए कैसे कहे? कैसे इस मजबूत दीवार से टकराए?

इधर शाहाना जहां अभी ट्रेनिंग कर रही है उस के 6 महीने पूरे होने को आए थे और वे अपनी दिल्ली के औफिस में उसे नौकरी औफर कर रहे थे. इन हैंड 22 हजार का औफर था. अभी शाहाना की यह पहली नौकरी थी, फिर उसे घर से निकलना था, पिता जो पालक नहीं मालिक के दया के चंगुल से बाहर आना था, इस हाल में यह रकम उस के लिए बेहतर विकल्प थी.

शाहाना की कोफ्त बढ़ती जा रही थी क्योंकि वह कोई शब्द और वाक्य ऐसा नहीं पा रही थी जिस से इस रूखे और स्वार्थी व्यक्ति को राजी किया जा सके. दरअसल, अभी उस के पास बाहर जाने और रहने को शैल्टर के लिए पैसे नहीं थे, सुदेश को कहे बिना निकले कैसे.

खैर, शाहाना को इन्हीं परिस्थितियों ने बहुत मजबूत बनाया था और आगे की विपत्तियों ने उसे लौह शक्ति में कैसे बदल डाला यह जानना भी दिलचस्प होगा.

खाने की मेज पर अब आमनेसामने सुदेश और शाहाना. 1 घंटे में उस के तर्क को उस के पिता ने जितनी ही बार काटा, उसे लताड़ा, नीचा दिखाया, शाहाना ने अपनी आंखों में आंसुओं की बाढ़ एक तरफ रोक, लगातार पिता का प्रतिरोध सह कर खुद पर विश्वास के साथ पिता के प्रत्येक परंपरावादी बात को तर्क सहित काट डाला.

आखिर तय यह हुआ कि दिल्ली न जा कर वह कोई और शहर ढूंढे़ जो अपेक्षाकृत लड़कियों के लिए थोड़ा सुरक्षित हो. दिल्ली जा कर शाहाना बिगड़ सकती है. अत: शाहाना को दिल्ली वाली नौकरी ठुकरा कर दूसरी नौकरी की तलाश शुरू करनी पड़ी.

अंतत: शुभम ने उसे जयपुर बुलाया जिस कंपनी में वह खुद मैनेजर था. बिना मेघ के बारिश मिल गई उसे. शाहाना ने अब तक आसपास की हवाओं को भी पता लगने नहीं दिया था कि शुभम नाम का कोई शख्स उस की जिंदगी में है. काफी मशक्कत के बाद शाहाना को बाहर जाने की इजाजत मिली. पिता साथ गए और एक कालेज जाने वाली लड़कियों के पीजी में शाहाना को रखवा दिया, जिस में शाहाना का कमरा चौथी मंजिल पर था. पहली मंजिल पर खाने का इंतजाम था.

शाहाना के कमरे में 2 और कालेजगोइंग लड़कियां थीं जिन के साथ शाहाना एडजस्ट नहीं हो पा रही थी. यहां और भी कई सारी दिक्कतें थीं, साथ ही महीने के 5 हजार लग रहे थे जो नई नौकरी में उस के लिए भारी मुश्किल थे.

इस बीच शुभम ने कहा था कि औफिस के पास ही वह जिस फ्लैट की तीसरी मंजिल में रहता है, वहां लिफ्ट के साथ रहने के लिए सारी सुविधाएं हैं और एक कमरे का 5 हजार है. इस फ्लैट में 3 कमरे हैं. दोनों में 1-1 लड़की हैं जो शुभम के ही औफिस में सीनियर हं. उन में से एक शायद एक महीने में किसी और शहर में नौकरी लेकर शिफ्ट होने वाली है. फिलहाल वह राजी है कमरा शेयर करने में, एक गद्दा खरीद कर शाहाना उस लड़की के कमरे में आ सकती है, बाद में वह कमरा शाहाना का हो जाएगा, कम से कम यहां अपनी आजादी से रह सकेगी.

यह फ्लैट अच्छे बड़े एरिया में था. तीसरी मंजिल के इस फ्लैट में 3 कमरे, कौमन डाइनिंग और किचन थी. मकानमालिक को भी पैसे के सिवा और किसी चीज से कोई मतलब नहीं था. यहां कंपनी में काम करने वाले लड़केलड़कियां पैसे की कमी के चलते इस तरह रहते थे.

अचानक शाहाना खुश हो उठी कि अब पापा सुदेश से महीने के अंत में पैसों के लिए हजार झिड़कियां नहीं खानी पड़ेंगी. उसे अब कभी घर जाने की मजबूरी नहीं होगी. मां का उसे अफसोस होता कि इतनी पढ़ीलिखी और कई कलाओं में पारंगत होने के बावजूद सिर्फ 2 मुट्ठी अन्न तक ही जिंदगी सिमटा ली. खैर, अब वह शुभम के साथ अपने सपनों का संसार सजाएगी.

जिस दिलोजान से शुभम को शाहाना ने चाह लिया था, जो उस की जिंदगी में एक पिता के खाली स्थान को अपने प्यार और विश्वास, स्नेह और देखभाल के जरीए भरने आया था, शाहाना उस के लिए क्या कुछ कर सकती है, यह उस का मन ही जानता था.

शुभम के प्रति शहाना कृतज्ञता से दबी जाती थी, जब घर में हमेशा उसे सहारा और प्रेम देने के बदले पिता से उलाहने और बेसहारा छोड़ दिए जाने का एहसास मिला हो, ऐसे में शुभम की छोटी से छोटी बात भी उस के लिए बेहद अहम थी और ऐसा लगता था शाहाना खुद को शुभम पर लुटा देने का संकल्प कर चुकी है.

मगर एक बड़ी मनोवैज्ञानिक गहरी बात है. जब जिंदगी की सचाई बन कर वह बात सामने आती है जिस से इंसान सब से ज्यादा डरता है तो इंसान उसे अपने साथ हुआ देख भी मान नहीं पाता. दूसरी बात यह थी कि इतनी खूबसूरत, मौडर्न, स्टाइलिश, इंटैलीजैंट लड़की खुद शुभम पर दीवानी हुई तो शुभम को अपना ग्रेड अचानक बहुत ऊंचा महसूस होने लगा. उसे अब महसूस होता कि वह बहुत कम में संतुष्ट हो रहा है. उसे तो बहुत कुछ मिल सकता है क्योंकि वह बहुत खास है.

इधर शाहाना ने शुभम के आसपास अपने प्रेम का मजबूत घेरा बना कर खुद ही उस में प्रवेश कर गई थी.

शाहाना की नौकरी औरों की तरह अच्छी चल रही थी. महीना खत्म होते ही पैसे आ रहे थे. वह दिल खोल कर शुभम के लिए खर्च करती. उस ने समझ लिया था शुभम है तो अब उस की जिंदगी बेफिक्र है. शुभम ने भी उसे कह रखा था जल्द ही वह अपने घर वालों से मिला देगा. 2 बार वीडियो कौल में वह शाहाना से घर वालों को मिलवा चुका था और शाहाना फूली नहीं समा रही थी कि ऐसा ही कोई परिवार उसे चाहिए था जो उसे भरपूर तवज्जो दे.

जयपुर में शाहाना रहने को तो शुभम के साथ रहती थी, लेकिन उस ने हमेशा अपने दायरे निश्चित कर रखे थे. वह आजाद खयाल थी, अपने हिसाब से जीना चाहती थी लेकिन उसे बखूबी अपनी मर्यादा मालूम थी. जब शुभम के घर वालों ने भी इस बात पर कोई सवाल नहीं उठाया कि एक ही फ्लैट में दोनों रहते हैं तो वह शुभम के घर वालों की उदारता देख काफी प्रसन्न हुई. वह इस बात को ले कर खुश थी कि सभी पैसे बचाने की जरूरत को समझ रहे थे. अभी शाहाना के पिता होते तो उफ. तोहमतों की बाढ़ आ जाती.

सबकुछ सही चल रहा था और शुभम की बात पर उस के घर वाले शाहाना को देख कर  चांदी की पायलें और मोती के कान के टौप्स दे कर गए थे. शाहाना के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.

शुभम के लिए वह बिछबिछ जाती और उस के किसी भी बुरे लगने वाले व्यवहार को आंख मूंद कर इगनोर करती. एक दिन औफिस में किसी लड़की को शुभम पीठ पर लाद कर हंसीमजाक करते सीढि़यों को अपनी से नीचे उतारता, शाहाना ने देखा, मगर उस पर उसे खुद से ज्यादा विश्वास था.

कई बार ऐसा होता कि शाहाना को घर भेज कर रात के 1 बजे तक पूल पार्टी में लड़कियों के साथ जलकेली कर के वापस आता. शाहाना उस के लिए इंतजार करती, खाना सर्व करती और कुछ पूछने की हिम्मत भी नहीं करती कि कहीं रूठ गया तो?

अब शुभम भी शाहाना को अपना अधिकार और अपनी संपत्ति सम?ाने लगा था. यह वह लड़की थी जो शुभम के अलावा किसी भी लड़के से कोई मतलब नहीं रखती थी. खुद को शुभम के आगे तुच्छ सम?ाती, उसके प्यार के बदले अपना प्यार उसे बहुत कम लगता. इस कृतज्ञता ने शाहाना को शुभम के आगे दिनोंदिन कमजोर कर दिया. अकसर शुभम औफिस के बाद देर से आता, शाहाना का बनाया डिनर करता, मीनमेख निकालता और सो जाता. शाहाना यह सोचती शुभम उसे अपना मानता है तभी इतना अधिकार जताता है.

इसी दौरान बरसात का मौसम आ गया यानी टूर ऐंड ट्रैवल कंपनी की मंदी का वक्त. इस मौसम में इन के औफिस में कुछ नए ट्रेनी कर्मचारियों की छंटनी कर दी जाती और सितंबर महीने से फिर नए ट्रेनी की खोज शुरू होती, जो कम से कम तनख्वाह में काम करें. इस तरह कमर्चारियों के भत्ते और तनख्वाह बढ़ाने से पहले ही कुछ कर्मचारियों की छंटनी कर कंपनी की बचत कराई जाती.

शुभम सीनियर था, उसे पता लग गया था कि छंटनी में 5 कर्मचारियों में एक शाहाना भी है. शुभम के लिए भी यह दिक्कत वाली बात थी, घर वाले नौकरी वाली लड़की चाहते थे, जिस से शुभम के पैसे उस की मां अनुपमा ले सके जैसे वह हमेशा लेती ही आई है.

शाहाना को बात पता लगी और उस ने यह नौकरी छोड़ एक नामी कंपनी में नौकरी कर ली जिस में काल सैंटर के वर्क फ्रौम होम की नाइट शिफ्ट थी.

महीनेभर में ही शाहाना को महसूस हुआ कि वह बस इतना ही नहीं चाहती है. आज के बाद जब वह शुभम के साथ पुणे जाएगी तो उसकी नौकरी फिर छूटेगी, उसे फिर से नौकरी के लिए हाथपांव मारने होंगे क्योंकि वह महज घरेलू बीवी बन कर जी नहीं पाएगी.

इधर शुभम का भी दिल बेजार, बेस्वाद हो गया. शाहाना कमाऊ बीवी के रूप में ही उसे स्वीकार है, लेकिन ऐसी नाइट शिफ्ट कर के कब तक काम चलेगा.

शाहाना ने बहुत सोचा और तय किया कि उसे इस नौकरी के साथ अलग कुछ करना होगा. अब तक शाहाना को उस का कमरा पूरी तरह मिल चुका था. उस ने एक नया आइडिया शुभम को बताया और इस से बढि़या क्या हो सकता था.

शाहाना अभी जहां नई जौब पर लगी है वह कंपनी काम करने का सारा सैटअप शाहाना के कमरे में इंस्टौल कर के गई थी, जहां से वह वर्क फ्रौम होम करती थी.

शाहाना रात 11 बजे से सुबह 8 बजे तक ड्यूटी करती थी. फिर फ्रैश हो कर नाश्ता बनाती शुभम और खुद के लिए. उस के बाद दोपहर 1 बजे तक सोकर उठ जाती और नहाधो कर लैपटौप खोल काम पर बैठ जाती. दोपहर 3 बजे तक कभी ओट्स उपमा या खिचड़ी या दालचावल बना कर खाती. जरूरत हुई तो बाजार जाती और शैड्यूल से फिर अपने लैपटौप ले कर काम पर बैठ जाती. शाम को उठ कर अपने कमरे की या कपड़ों की साफसफाई कर लेती, कुछ बिस्कुट वगैरह ले कर फिर काम. वैसे तो शाम 6 बजे शुभम के औफिस की छुट्टी हो जाती थी लेकिन अब जब शाहाना शुभम वाले औफिस नहीं जाती, शुभम के वापस आने का वक्त लगातार आगे बढ़ रहा था. आजकल वह 9-10 बजे आता और शाहाना को डिनर बनाते देख कर पैर फैला कर सो जाता. कभी मुंह भी फुलाता कि अभी तक डिनर रैडी कर लेना चाहिए था क्योंकि वह औफिस से आया है और उसे तुरंत खाना चाहिए.

शाहाना चुप रह कर काम करने वाली लड़कियों में से थी. वह और जल्दी हाथ चलाती. जब शुभम सो जाता वह फिर से नाइट ड्यूटी पर बैठ जाती.

कुल मिला कर एक अच्छा जीवन पाने और खास शुभम के साथ एक आजाद जिंदगी जीने के लिए उस ने एक ऐसा नया काम शुरू किया था, जिस से शाहाना की तो क्या शुभम और उस के पूरे खानदान की जिंदगी बदलने वाली थी.

आखिर शाहाना की दिनरात की मेहनत रंग लाई. उस का टूर ऐंड ट्रैवल का बिजनैस ‘लैट्स लिव’ यानी ‘चलो जीया जाए’ नाम की कंपनी की वैबसाइट शाहाना ने बना कर तैयार कर ली. इस बिजनैस में तकनीक और ताकत के साथसाथ ताउम्र शुभम के साथ चलने जैसा वादा और सपना था. अब बारी थी, इसे सरकारी मुहर लगा कर रजिस्टर्ड करवाने की.  कंपनी तैयार हो जाने के बाद शाहाना शुभम से बहुत प्यार और केयर की उम्मीद कर रही थी क्योंकि यह एक बहुत बड़ा काम उस ने अकेले कर दिखाया था.

शुभम इस बारे में बाहर जा कर अपने पिता से बात कर के आ गया और तय हुआ कि पिता ही कंपनी रजिस्टर्ड कराने का बीड़ा उठाएंगे, पैसे भरेंगे, कंपनी उन के पुणे के घर के पते से शुरू होगी.

शुभम अपने पैर में फ्रैक्चर होने का बहाना कर 8 महीने की छुट्टी ले कर अपने घर पुणे चला गया ताकि कंपनी रजिस्टर्ड करवा कर कंपनी का काम शुरू कर सके.

शाहाना तो जैसे धीरेधीरे अपनी जिंदगी का बटन शुभम को ट्रांसफर करती जा रही थी. वह उस के कहने पर जयपुर से ही बिजनैस का काम देखती और रात को नाइट ड्यूटी करती.

2 महीने बाद जब शाहाना की बनाई हुई कंपनी ‘लैट्स लिव’ रजिस्टर्ड हो कर वास्तव में शुरू हो गई तो शाहाना को पुणे बुला लिया गया और शाहाना घर पर बिना कुछ बताए सीधे अपना सामान ले कर और नौकरी से इस्तीफा दे कर पुणे आ गई. साथ में सपने और उम्मीदों की गठरी थी बहुत बड़ी.

पुणे आ कर शहाना ने मां को खबर दी कि उस की सहेली मेघना के घर रुकी है और वहीं से उस ने अपना बिजनैस शुरू किया है. लड़के का नाम सुनते ही पिता कहीं उस का सारा काम न बंद करवा दे इस का उसे डर था.

पिता का दिमाग गरम हो गया. लेकिन फिर सोचा छोड़ो, पैसे बच रहे हैं, जो करे सो करे.

इधर बिजनैस के लिए जितने घंटे शाहाना लैपटौप पर बैठे उतने ही कम होते. सारा टैक्निकल काम शाहाना को ही करना था क्योंकि बिजनैस उसी ने शुरू किया था. उसे ही सब पता था. शुभम सिर्फ लोगों से कौंटैक्ट करता था. लेकिन इधर बिजनैस के लाखों रुपए भी शुभम की मां को चाहिए, उधर शाहाना को बैठे काम करते देख भी उसे कोफ्त हो जाती. बेटे को भड़काती. औरत कहीं लैपटौप पर काम करे और मर्द को जो बोले सो करे. तू उस की बात क्यों मानता है? तू क्यों नहीं काम करता? उसे बरतन मांजने भेज, ढेर बरतन पड़े, हैं, पोंछा नहीं लगा अभी तक.’’

शाहाना के यहां आते ही कामवाली को हटा दिया गया था. अपने घर में रहने दे रहे हैं तो हिसाब इधर से बराबर करना था. शाहाना को यह सम?ा नहीं आया था.

दरअसल, शुभम की मां अनुपमा ऊपर से मीठी और अंदर से तेजाब थी. एक तरह से कहा जाए तो पिचर प्लांट. बेटा हो या पति हलका सा उस ने मुंह खोला और सारे हो गए उस के अंदर. समर्पित और आज्ञाकारी.

अपने रूपयौवन में सोलह कलाओं में पारंगत. ये उत्तर प्रदेश के कट्टर ब्राह्मण थे. शुभम के पिता बैंक कर्मचारी थे, और बाल विवाह किया था.

नतीजा अभी उन की 46 की उम्र और पत्नी की 40 की उम्र में अब उन के बेटे की उम्र 25 और बेटी 22 की. ऐसे में घमंड से भरी थी अनुपमा कि जिस उम्र में उस की उम्र की औरतें 8 या 10 साल के बच्चों को ले कर पस्त दिखाई देती हैं, वह हर जगह अपने बेटे या बेटी की दीदी सी लगती है. शाहाना को तब हैरान हुई जब अनुपमा ने यह कह डाला कि मैं तो इतनी जबान दिखती हूं कि बेटे को लोग मेरा पति सम?ा लेते हैं और बेटी को इस के पापा की पत्नी.’’

शाहाना को एहसास होने लगा कि वह गलत जगह आ गई है. फिर भी शाहाना ने जिंदगी को खुशी से जीने के लिए कई बड़े कदम उठा लिए. अब वापस आने का रास्ता उसे नहीं दिखता, दूसरे, सोचती शुभम के लिए यहां आई है, शुभम की मां के लिए चली जाए यह तो ठीक नहीं.

यह बिसनैस शहाना को बहुत कुछ दे रहा था. लोगों में उस के नाम से पहचान बन रही थी, कौंटैक्ट बढ़े थे उस के. काफी टूर भी हुआ था. 6-7 महीनों में शुभम और शाहाना क्लाइंट ले कर सिक्किम, लद्दाख, केदारनाथ आदि घूम आए थे. शाहाना को इस की बेहद खुशी थी. सोचती जिसे पिता ने हमेशा नाकारा, भोंदू, चरित्रहीन कह कर तब ताने मारे जब वह बहुत छोटी और मासूम थी. जब उस के पंख उगे ही नहीं थे, तभी से पिता ने कह दिया था यह लड़की कुछ नहीं कर सकेगी, इस से कुछ होगा ही नहीं.

भोली सी शाहाना पर कितना बुरा असर पड़ा था, खूंख्वार पिता को पता ही नहीं चला और अब तो एक परिवार की जिंदगी हिज बदल दी थी उस ने.

शाहाना के अंदर खुद को ले कर जो आत्मविश्वास की कमी थी, वह अब दूर हो गई थी, उस के अंदर अब एक शक्तिशाली और जिद्दी लड़की की पैदाइश हो गई थी. अब उस ने धीरेधीरे हर एक इंसान को अच्छी तरह पढ़ना भी शुरू कर दिया था. बिजनैस बढ़ाने की ताकीद भी यही थी कि लोगों को पहचाना जाए, उनके अंदर की बात को उन के न चाहते हुए भी समझ लिया जाए.

अनुपमा और संतोष ट्रांसफर की वजह से मुंबई चले जाने वाले थे. अब 2 कर्मचारी भी रखे गए थे, वे दूर शहर से आए थे, इसलिए इन के भी रहने का इंतजाम इसी मकान में किया जाने वाला था ताकि पैसे की बचत हो जाए सब की.

अब विदेश जाने की आइटनरी भी बनने लगी थी, किसकिस जगह के टूर पैकेज बन सकते हैं सब फाइनल करने के बाद शाहाना ने इस कंपनी को अब प्राइवेट लिमिटेड बनाने के प्रोसैस के लिए शुभम पर जोर डालना शुरू किया.

विदेशी टूर से ही वास्तव में अच्छा रोजगार हो सकता था लेकिन इस के लिए कंपनी का प्राइवेट लिमिटेड होना और पार्टनरशिप डील स्पष्ट होनी जरूरी थी.

खाता खुला और शाहाना के पैरों तले की जमीन टूट धंस गई. इसी वजह से शुभम ज्यादा कानूनी पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था और जैसेतैसे शाहाना को काम में व्यस्त किए रहता.

शाहाना का माथा गरम हुआ और पहली बार वह चीख पड़ी. इस समय पूरे परिवार के लोग शुभम के मामा के घर गए थे क्योंकि अगले हफ्ते वे लोग मुंबई शिफ्ट हो रहे थे.

पूरी ‘लैट्स लिव’ कंपनी शुभम के नाम पर रजिस्टर थी. शाहाना का कहीं नामोनिशान नहीं था. बात खुली तो शाहाना को पता चला कि शुभम के पिता ने जब रजिस्ट्री के पैसे दिए तो जिस शाहाना ने पूरी कंपनी का आइडिया दिया और खुद इतनी मेहनत से अकेले एक कंपनी को खड़ा किया उस का ही पूरा अस्तित्व मिटा डाला. पूरी कंपनी सिर्फ शुभम के नाम से रजिस्टर कराने का आइडिया शुभम के पिता का ही था.

शाहाना ने शुभम को पूछा, ‘‘ऐसा नहीं था क्या कि हम दोनों मिल कर 15 हजार में कंपनी रजिस्टर करवा लेते? फिर पुणे में तुम्हारे घर का ही पता क्यों दिया गया और कंपनी सिर्फ तुम्हारे नाम से? क्यों मैं कहां गई? क्या तुम्हारे पिता ने इस कंपनी को ?ाटक लेने के लिए यहां मु?ो नहीं बुलवाया? तुम्हें भी ये सब आसान लगा?’’

‘‘तो तु?ो इतना लालच भी क्यों है. शादी के बाद कौन सा तू बिजनैस करेगी? बच्चे पैदा करेगी, उन्हें संभालेगी, मां के साथ रहेगी, उन की सेवा करेगी. तुझे नाम की क्या जरूरत? पैसे चाहिए तो मुझ से मांगेगी.’’

शाहाना को लगा रेत पर उकेरे उस के सारे सपनों पर किसी ने अपने जूते घिस दिए हैं. थोड़ी देर आश्चर्य से शुभम को देखती रही. फिर दर्द से पिघली और जकड़ी हुई आवाज में पूछा, ‘‘यानी जिस पिता की स्वार्थी सोच से भागने के लिए मैं ने इतने दर्द और अपमान सहे, आज मेहनत और बुद्धि से इतनी बड़ी कंपनी खड़ी कर देने के बाद और तुम्हें ये पैसे वाला कैरियर बना देने के बाद तुम्हें अपनी कमाई के जमाए पैसे से 2 लाख की बाइक खरीद देने के बाद, तुम्हें कई महंगे गिफ्ट देने के बाद, तुम्हारे मांबाप का घर भरने के बाद, तुम यह कहोगे कि मैं इस कंपनी की सीईओ नहीं,  तुम्हारी मां की कामवाली हूं.’’

शुभम ने अपने नए 2 कर्मचारियों के सामने शाहाना को कस कर तमाचा जड़ दिया, ‘‘तू ने मेरे मांबाप को कुछ कहा तो तुझे अभी घर से बाहर निकाल दूंगा. चल जा अपने कमरे में, बड़ी आई कंपनी की सीईओ. ऐसा हुआ तो शादी नहीं करूंगा तुझ से.’’

शाहाना को इस व्यवहार का जितना दुख था उस से कहीं ज्यादा उसे शुभम का भरोसा और विश्वास टूट जाने का आश्चर्य था. उसे कभी ऐसा नहीं लगा था कि शुभम दकियानूसी है या उस के सम्मान का खयाल नहीं रखेगा. उस ने तो सोचा था शादी के बाद भी शुभम और शाहाना मिल कर कंपनी चलाएंगे, बाहर कस्टमर ले कर भी साथ जाएंगे और चूंकि इस के मातापिता की उम्र अभी कम है, जिम्मेदारी उतनी नहीं रहेगी, इसलिए उन के पास आनाजाना बनाए रखते हुए भी कुछ साल आसानी से बिजनैस को बढ़ाने में जुटे रह सकेंगे.

शाहाना ने यहां आने के बाद बड़ी खुशी से घर का काम निबटाया, साथ खाना भी बनाया और बिजनैस भी पूरी शिद्दत से संभाला लेकिन बिजनैस में बैठते ही शुभम की मां का ताना और उसी सांचे में ढल कर शुभम का रिएक्शन, शुभम के पिता का हमेशा शाहाना को सीख दे कर कंट्रोल में रखने की कोशिश, यहां तक कि घर से बाहर निकलने पर भी पाबंदी क्योंकि बाहर के लोग अगर देखेंगे और कहीं शादी नहीं हुई तो शुभम को फिर मोटे दहेज के साथ दुलहन मिलना मुश्किल होगा, शाहाना के दिलोदिमाग पर एक बड़ा प्रश्न चिह्न बना रहा था.

बात दोनों के बीच भले ही बंद थी लेकिन मसला इस कंपनी का था. शाहाना ने इस कंपनी में अपना खून डाला था, इतनी जल्दी निकल नहीं सकती थी. शुभम को भी विदेश के टूर से ढेरों पैसे कमाने थे. शाहाना की जिद पर राजी हो कर उस ने खुद और शाहाना के नाम आधेआधे की पार्टनरशिप की नई कंपनी फिर से खोली. इस बार शाहाना ने फिर से मेहनत की और नई कंपनी सामने आई ‘लिवाना’ नाम से. ‘लिवाना प्राइवेट लिमिटेड’ की रजिस्ट्री भी अब शाहाना ने कंपनी के पैसे से दोनों के नाम करवा. अब ‘लिवाना’ की रजिस्टर्ड सीईओ शाहाना थी.

अनुपमा और संतोष मुंबई से अकसर आते रहते और उस वक्त शाहाना पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता. मानसिक, शारीरिक तकलीफों से जुझते हुए भी उसे सारे काम करने पड़ते.

मगर जिंदगी ने सचाई की उंगली जो शाहाना की आंखों में घुसा दी थी, इस से उस का वजूद अब बहुत अलग सा हो गया था. उस में गजब की मल्टी टास्किंग कैपैसिटी बढ़ गई थी. अपने लिए उस ने स्कूटी खरीदी थी और किन्हीं भी अत्याचार के दिनों में वह स्कूटी ले कर निकल पड़ती और सड़क पर घूमती, लेकिन उन के तानों को बैठे नहीं सुनती. बिजनैस का नुकसान होता. शुभम मां को चुप कराता. एक तरह से वे लोग बिजनैस के लिए शाहाना पर निर्भर थे क्योंकि शुभम को टैक्निकल काम नहीं आते थे.

शाहाना ने बाहर से मां को एक रात फोन किया और सारी बातें बताईं. निशा बिलकुल आश्चर्यचकित नहीं हुई. किशोर बच्ची को पिता के रूप में जब एक पुरुष का नेह और केयर मिलती है तब उस के दरदर भटकने की संभावना नहीं रहती. जिस का पिता ही बेटी के अस्तित्व को रौंद रहा हो तो स्वाभाविक था जहां से उसे सहारा मिलने का भाव मिला होगा टूटी, भीगी चिडि़या उस पेड़ के आश्रय में तो जाएगी ही न. अब उस चिडि़या को क्या मालूम कि यह पेड़ भी खून चूसने वाला होगा.

मां ने कहा, ‘‘तू एक मासूम और पवित्र लड़की है, तू दिल सख्त कर के उस नर्क से निकल आ.’’

‘‘ये लोग आने नहीं देंगे इन का बिजनैस अभी पूरी तरह बना नहीं है, इसे बनाने और संभालने का काम मैं ही कर रही हूं.’’

‘‘तू अपनी लाइफ को बचा, बिजनैस फिर बना लेना. अपने बाजुओं के दम पर भरोसा रख. पापा से कहो अपने बिजनैस की बात, लालची हैं तेरे पापा, वे खुद तुम्हें वहां से निकाल लाएंगे. बाद में फिर और बुद्धि निकाली जाएगी.’’

उस दिन शाहाना को पहली बार लगा कि उस की मां कितनी सम?ादार और बड़े दिल की है. मां से लंबी बातचीत के बाद शाहाना ने खुद को तैयार कर लिया कि किश्ती बदली जाए.

वह बिजनैस पर काम कर रही थी. वह लोगों के दुर्व्यवहार और उपेक्षा की शिकार थी, वह घर का सारा काम निबटाती, वह रात तक जग कर क्लाइंट के साथ कंपनी के डिस्प्यूट सुल?ाती, शुभम के साथ कस्टमर के झगड़े के समाधान देती, नए लड़कों और लड़कियों को काम सिखाती, कंपनी के लिए ट्रेनी हायर करती और उन्हें टास्क देती और उस के बाद अपने लिए रास्ता तलाशती कि कैसे इस घर से निकले और जब सोने जाती तब सीने में शुभम से बिछड़ने का दर्द महसूस करते हुए थक कर सो जाती.

काम तो फैल रहा था और कस्टमर ले कर वे उन की कंपनी के जरीए जापान, थाईलैंड, मलयेशिया, बाली, वियतनाम घूमने जा रहे थे. शाहाना अपनी तरफ से शुभम को पाने के लिए कभीकभी दिलोजान से कोशिश भी करती लेकिन शुभम अब लगातार अपनी मां के कौंटैक्ट में रहता, हर पल उस की मां की इंस्ट्रक्शन चलती और शुभम का उसी तरह व्यवहार दिखता.

विदेशी भूमि पर भी शुभम ने शाहाना से अपनापन नहीं दिखाया, अकेले कई बार मुसीबत में छोड़ा और शाहाना ने शुभम को समझने की कोशिश की तो थप्पड़ भी जड़ा.

इधर शुभम की मां ने अब शाहाना को यह कहना शुरू कर दिया था, ‘‘बेटे की शादी हम तुम्हारे पिता के बिना नहीं करेंगे. हमारे में दमदार दहेज के बिना शादी नहीं होती. समाज में इज्जत के लिए हम उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों को दहेज लेना ही पड़ता है.’’

उन्हें दहेज में कम से कम बीस लाख की गाड़ी और डैस्टिनेशन वैडिंग के साथसाथ घर भर की सामान, नए खरीदे फ्लैट का इंटीरियर, सोने के गहने, चांदी के बरतन, घर वालों को महंगे गिफ्ट और कैश इतना देना होगा जिस से वे अपनी बेटी की शादी भी निबटा लें.

शाहाना के पिता की आर्थिक स्थिति भी सामान्य थी और वह पिता जो बेटी पर एक दूध के पैसे के भी सौ हिसाब मांगता था, वह बेटी के लिए क्या खड़ा होता. आपसी समझ वाली बात ही नहीं थी यहां.

और शुभम चुप था, ‘‘मां के आगे मैं कुछ नहीं कहूंगा. मै एक आज्ञाकारी पुत्र हूं.’’

शाहाना शुभम को जितना पहचान रही थी वह खुद की पसंद पर नफरत करने लगी थी. शुभम के पास रीढ़ की हड्डी ही नहीं थी. एक तो दहेज और वो भी प्रेम में. रुपयों के लालच में वह मां के अन्याय को आज्ञा कह कर हाथ ?ाड़ रहा था.

शाहाना हार गई थी अपने प्रेम में. उस ने अचानक ठान लिया कि यह रिश्ता अकेले के वश की बात नहीं है. शादी के बाद इस से भी बुरा होगा. इस से अच्छा वह निकल ही आए इस रिश्ते से, भले ही अंदर घाव कितना भी गहरा हो जाए. उस ने इंडिया वापस आने के बाद अपने पापा को फोन किया और मां के कहेअनुसार बात की.

पापा सुदेश को जब मालूम हुआ कि बेटी किसी बड़ी टूर ट्रैवल कंपनी की सीईओ है और अगर कंपनी किसी तरह वह यहां शिफ्ट कर लेती है तो शुभम को हटा कर वह खुद कंपनी की आधी पार्टनरशिप रख लेगा. इस से एक तो वह नौकरी छोड़ देगा और ढेरों पैसे बेटी के मेहनत पर ही पा जाएगा, दूसरे बेटी घर पर रहेगी तो पूरी तरह उस के कब्जे में. कई लोगों में दूसरों को कंट्रोल में रखने का एक जनून होता है, हो सकता है यह एक मानसिक बीमारी हो.

शाहाना ने अभी पापा से कुछ और नहीं कहा सिवा इस के कि बिजनैस कर के पैसा कमाने के लिए वह इन लोगों के पास आई थी लेकिन ये लोग सारे पैसे लूट लेना चाहते हैं और अब वह अपने पिता के पास आना चाहती है.

सुदेश को लगा बेटी और उस के बिजनैस को हाथ करना आसान होगा, क्योंकि वह बहुत सीधी है. अत: वह पुणे आया और काफी बहसबाजी के बाद सुदेश के साथ शाहाना अपने घर की ओर रवाना हुई पर रवाना हुई दिल पर बहुत सारे चुभे हुए कांटे ले कर. दर्द की इंतहा थी. कालेज के दिनों का शुभम बुरी तरह याद आ रहा था.

आज शुभम की वजह से ही शुभम को खो दिया उस ने और इस नासूर से रिसते खून के दर्द को शुभम देख ही नहीं पाया. वह उस के लिए बस पैसे बनाने और घर के काम करने की एक मशीन हो कर रह गई थी. जहां प्यार और सम्मान न हो, कितना ही दुख क्यों न हो, उस रिश्ते से निकल आना ही बेहतर है.

घर आ कर शाहाना को इतने बड़े झटके से उबरने का मौका ही नहीं दिया गया. उस के शोक उस के दिल में लगातार घाव कुरेद रहे थे और वह पिता को अलग झेल रही थी. ‘लिवाना’ का काम उसे करना पड़ रहा था क्योंकि क्लाइंट आ रहे थे, उन्हें फेंका नहीं जा सकता था. उन के सामने शाहाना की साख की भी बात थी. मगर वह धीरेधीरे सब सोच भी रही थी कि इस कंपनी से कैसे निकले या अपने लिए कोई नई कंपनी खोले लेकिन इस के पिता उसे दिन रात इस कंपनी में पार्टनरशिप देने या जल्दी नई कंपनी खोलने के लिए इतना ज्यादा विवश करने लगे कि वह फिर से खुद को सिलबट्टे में पिसा हुआ महसूस करने लगी.

शाहाना की दिक्कतों को समझे बिना सुदेश अपने लिए पीछे ही पड़ गया. शाहाना की रात की नींद उड़ गई. शुभम भी फोन कर के परेशान करने लगा. सिर्फ पैसे और पैसे, पिता हो या प्यार सभी दमड़ी के लिए मक्खी की तरह उस की चमड़ी खींचते चले जा रहे थे. पिता दिनरात उसे धमकाता, शुभम दिनरात पैसे मांगता क्योंकि कंपनी के अकाउंट का होल्ड शाहाना के पास था और शुभम और उस के मां बाप कंपनी खाली करने में लगे थे.

शाहाना ने तय किया, ‘‘बस अब और नहीं. निकाल फेंकना है जिंदगी से इन स्वार्थी कीड़ों को. उस ने मां से अपनी मंशा बताई और मां ने उसे गले लगा कर आशीष दिया.

शाहाना अब एक बड़े शहर में आ गई है. किराए पर अपना फ्लैट लिया है, खुद की मेहनत और तपस्या के फल ‘लिवाना’ कंपनी से खुद को अलग कर लिया है, साथ ही दिल लोहे का कर लिया है.

एक नई कंपनी के साथ फिर से अपनी नई जिंदगी की शुरुआत की है शाहाना ने. भले ही उस ने दर्द देने वाले बहुत सारे रिश्तों को खो दिया है लेकिन बदले में खुद को पाया है. इस बार खुद के प्यार में है वह. खुद से कहते हुए कि चलो जिया जाए.

Hindi Fiction Stories : एक किरण आशा की

Hindi Fiction Stories : हर पटाखे की आवाज मेनका के सीने पर हथौड़े की तरह पड़ रही थी. उन चोटों से होने वाले दर्द से वह किसी विरहिणी की तरह तड़प रही थी. जब उस से रहा नहीं गया तो वह उन आवाजों से बचने के लिए भीतर के कमरे की ओर बढ़ गई.

‘‘मां,’’ अभी मेनका 2 कदम भी नहीं चल पाई थी कि उस की 8 वर्षीय बेटी डिक्की ने पुकारा.

‘‘क्या है?’’ मेनका को न चाहते हुए भी रुकना पड़ा.

‘‘आज आप पटाखे नहीं चलाएंगी?’’ डिक्की उस के पास आ कर उस की टांगों से लिपटती हुई बोली. मेनका के मन में उठ रहे तूफान से वह पूरी तरह अनजान थी.

मेनका ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘नहीं, बेटी.’’

‘‘क्यों?’’ डिक्की उसी तरह उस से लिपटी रही.

‘‘मेरा दिल नहीं करता, बेटी. बेटे सुप्रीम कोर्ट ने भी मना किया कि पौल्यूशन की वजह से पटाखे नहीं चलाओ. इस से धुआं फैलता है,’’ कहते हुए मेनका का स्वर भर्रा गया और आंखें भीग गईं क्योंकि यह बात उस के मन से नहीं निकली थी, डिक्की को चुप करने का बहाना ही था.

डिक्की ने अभी मां की आंखों की ओर नहीं देखा था. मां से अपनी बात मनवाने के लिए उन्हें पिछली दीवाली की याद दिलाते हुए कहा, ‘‘पर पिछली दीवाली पर तो आप न खूब पटाखे चलाए थे. इस बार आप का दिल क्यों नहीं कर रहा है?’’

डिक्की की भोली सी बात सुन कर मेनका को लगा कि उस के भीतर कुछ चटक गया है. एकसाथ न जाने कितनी यादों ने उसे चारों ओर से घेर लिया.

‘‘चलो न मां,’’ उसे खामोश पा कर डिक्की ने फिर अपना आग्रह दोहराया.

डिक्की के नन्हे से हाथ का स्पर्श पाते ही मेनका अतीत में से निकल कर वर्तमान में आ गई, ‘‘जिद नहीं करते, बेटी,’’ किसी तरह उस से पीछा छुड़ाने की चाह में मेनका ने उसे बहलाना चाहा, ‘‘आज मेरी तबीयत सचमुच ठीक नहीं है.’’

‘‘मैं सम?ा गई,’’ मेनका के मनोभावों को देख कर डिक्की ने भोलेपन के साथ कहा, ‘‘आज आप पटाखे क्यों नहीं चला रहीं?’’

डिक्की की बात के उत्तर में मेनका कुछ भी न कह पाई. पत्थर की मूर्ति बनी डिक्की की ओर देखती रह गई मानो पूछ रही हो, ‘क्या… क्या सम?ा गई तुम?’

मासूम डिक्की मां की आंखों में उठे प्रश्न को तो न पढ़ पाई लेकिन मेनका को खामोश पा कर उस ने अपने दिल की बात कह ही दी, ‘‘आज पापा हमारे घर होते तो आप भी पिताजी के साथ पिछली दीवाली की तरह बहुत सारे पटाखे चलातीं. चाहे जितना भी बैन लगा हो.’’

डिक्की की बात ने मां के अस्तित्व का झकझोर कर रख दिया. कितने ही प्रश्नों ने एकसाथ उस के  मन में जन्म ले लिया. उसे अपने चारों ओर प्रश्न ही प्रश्न दिखाई देने लगे थे. डिक्की के सामने वह खुद को बौनी सी महसूस करती हुई सोचने लगी कि अगर डिक्की उसी प्रकार उस से प्रश्न करती रही तो वह पागल हो जाएगी. डिक्की की बातों में छिपी सचाई को सहन करने में वह खुद को बुरी तरह असमर्थ पा रही थी.

‘‘डिक्की…’’ तभी एक बच्चा दौड़ता हुआ उस के पास आ कर बोला, ‘‘जल्दी चलो वरना सैम सारे पटाखे चला देगा.’’

डिक्की असमंजस में पड़ गई. मां को छोड़ कर जाने का उस का मन नहीं था पर पटाखों के समाप्त हो जाने की बात उस के नन्हे से मन को बुरी तरह मथ गई. थोड़ी देर के लिए वह यही सोचती रही कि उसे क्या करना चाहिए.

‘‘जाओ, बेटी,’’ डिक्की से मुक्ति पाने का सुनहरा अवसर पा कर मेनका ने कहा, ‘‘वरना तुम्हारे सारे पटाखे खत्म हो जाएंगे. फिर तुम क्या चलाओगी? बाजार में वैसे भी अब नहीं मिलते. न जाने ये बच्चे कहां से ले कर आए थे.’’

‘‘चलो,’’ डिक्की मेनका की बात सुनते ही उस बच्चे का हाथ थाम कर बाहर की ओर भाग गई.

उन के जाते ही मेनका ने चैन की सांस ली. इस भय से कि कहीं डिक्की फिर न आ जाए, वह तेज कदमों से चलती हुई कमरे में जा कर लेट गई.

जिन यादों से बचने के लिए मेनका वहां आई थी, उन्हीं यादों ने उसे यहां भी आ घेरा. प्रत्येक घटना उस की आंखों के सामने सिनेमा की फिल्म की तरह घूमने लगी…

‘‘माधवी का फोन आया था,’’ उस दिन जैसे ही रमन ने कमरे में प्रवेश किया, मेनका ने और दिनों की तरह मुसकराते हुए उस का स्वागत करने के स्थान पर यह संदेश दिया.

माधवी का नाम सुनते ही रमन रोमांचित सा हो गया और भूल गया कि उस समय वह अपनी पत्नी से बात कर रहा था, ‘‘वह… वह कहां से आ टपकी?’’ अपनी ही रौ में उस ने पहले प्रश्न का उत्तर मिले बिना एक और प्रश्न कर डाला, ‘‘क्या कह रही थी.’’

मेनका बड़े ध्यान से उस के चेहरे पर आनेजाने वाले भावों को देखती रही. उन्हीं भावों को देखते हुए उस ने महसूस किया कि माधवी कभी जरूर रमन के मन की कमजोरी रह चुकी होगी. उस का नारी मन ईर्ष्या से भर उठा. रमन की बात का उत्तर दे कर उस ने पूछा, ‘‘यह माधवी कौन है?’’

मेनका का कमजोर लेकिन चुभता हुआ स्वर सुन कर रमन को अपनी भूल का एहसास हो गया. दिल में आया कि वह बात बदल दे लेकिन मेनका के चेहरे पर छाए भावों को देख कर उसे लगा कि उस का झूठ सच नहीं बन सकता. बात को गोल करते हुए उस ने बताया, ‘‘हम दोनों कालेज में एकसाथ पढ़ा करते थे.’’

मेनका के होंठों पर एक विषभरी मुसकान तैर गई, ‘‘सिर्फ साथ पढ़ा करते थे या कुछ और भी था आप दोनों के बीच?’’

रमन चारों ओर से घिर गया था. सच बोलने का उस में साहस नहीं रह गया था और ?ाठ को वह सच बना नहीं पा रहा था. स्वयं को आने वाले तूफान का सामना करने के लिए तैयार करते हुए उस ने पूछा, ‘‘सच जानना चाहती हो?’’

‘‘सच क्या है, यह तो मैं वैसे भी जान चुकी हूं.’’

‘‘क्या जान लिया है तुम ने?’’

‘‘अगर मेरा विचार गलत नहीं है तो आप उसे प्यार करते रहे हैं. उस के साथ कई रातें रह चुके हैं.’’

‘‘हां,’’ न चाहते हुए भी रमन को स्वीकार करना पड़ा, ‘‘लेकिन यह तब की बात है, जब हम कालेज में पढ़ा करते थे.’’

तभी दरवाजे की घंटी की आवाज सुन कर मेनका ने मोबाइल पर समय देखा. समय देखते ही उस के मुंह से निकल गया, ‘‘शायद वे लोग आ गए.’’

‘‘कौ… कौन लोग?’’ अनचाहे ही रमन

पूछ बैठा.

‘‘आप की माधवी,’’ मेनका के स्वर में कटाक्ष था, ‘‘6 बजे आने को कहा था उस ने,’’ दरवाजे की ओर बढ़ते हुए मेनका ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘6 बजने ही वाले हैं. वही होगी अपने हब्बी के साथ.’’

‘‘सुनो,’’ मेनका के पीछे चलते हुए रमन ने उसे पुकारा.

मेनका रुक गई और पलट कर खामोश सी वह रमन की ओर देखने लगी.

रमन मन ही मन डर रहा था कि कहीं मेनका माधवी को बुराभला न कह दे. यही कहने के लिए रमन ने उसे रोका था लेकिन कहने का साहस नहीं कर पाया. मेनका को अपनी ओर प्रश्नसूचक निगाहों से देखता पा कर उस ने सिर ?ाका लिया.

‘‘सम?ा रही हूं कि इस समय आप के दिल में क्या है और आप क्या कहना चाह रहे हैं,’’ मेनका उसी की ओर देखती हुई बोली, ‘‘घर आए गैस्ट की किस तरह रिस्पैक्ट की जाती है, मैं अच्छी तरह जानती हूं. आप चिल रहिए. जो आप के दिल में है वैसा कुछ नहीं होगा,’’ और रमन को वहीं खड़ा छोड़ कर वह आगे बढ़ गई.

रमन के मन पर से जैसे मनों बो?ा उतर गया. स्वयं को नौर्मल बनाने की कोशिश करता हुआ मेनका के पीछेपीछे डोर की ओर बढ़ गया.

मेनका का विचार ठीक ही निकला. माधवी और उस का पति दोनों डोर पर खड़े थे. स्माइल फेंकते हुए उन को वैलकम करती मेनका उन्हें भीतर ले आई.

अपने पति का परिचय रमन से करवाते हुए माधवी ने कहा, ‘‘यह ता तुम जान ही गए होंगे कि ये मेरे पति हैं.’’

उस का इशारा अपने पति की ओर था, ‘‘इन का नाम राहुल है.’’

रमन ने मुसकराते हुए राहुल से हाथ मिलाते हुए कुछ औपचारिक शब्द कहने के बाद पूछा, ‘‘क्या मु?ो भी इन का परिचय देना होगा?’’ उस का संकेत मेनका की ओर था.

‘‘नहीं,’’ उत्तर माधवी ने ही दिया, ‘‘हम फोन पर एकदूसरे का परिचय पा चुकी हैं.’’

अब तक वे ड्राइंगरूम में पहुंच चुके थे. उन्हें बैठाने के बाद राहुल की बगल में बैठते हुए रमन ने बातों का सिलसिला चालू रखने के लिए पूछा, ‘‘आप को हमारा फोन नंबर कहां से मिल गया?’’

‘‘इसे तुम संयोग ही कह सकते हो,’’ माधवी ने कहा, ‘‘हमारे पड़ोस वाले फ्लैट में हमारा क्लासफैलो दीपक रहता है. उसी ने मुझे तुम्हारे बारे में बताया. वरना मुझे तो यह भी मालूम नहीं था कि तुम आजकल सुंदर नगर में ही हो…’’

‘‘रमन, तुम्हारे साथ अपने रिलेशन के बारे में इस ने मुझे बहुत पहले बता दिया था,’’ माधवी की बात काट कर राहुल ने कहना शुरू किया, ‘‘उसी दिन आप को देखने, आप से मिलने की जिज्ञासा मन में पैदा हो गई और जब कल इस ने बताया कि आप यहां सुंदर नगर में ही हैं तो मैं आप से मिलने के लोभ को न छोड़ सका. आप का पता मिलते ही चले आए हम.’’

तभी मेड चाय ले आई. चाय की चुसकियां लेते समय भी उन की बातें जारी रहीं.  उस दिन मेनका ने उन्हें खाना खाने के बाद ही भेजा.

इस के बाद उन की मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता ही गया. माधवी का अब जब भी दिल करता वह उन से मिलने आ जाती. कभी अकेले ही और कभी राहुल के साथ. रमन भी उन से कई बार मिलने जा चुका था. 2-1 बार मेनका भी उस के साथ गई थी.

कुछ दिन बाद रमन एकाएक देर से घर आने लगा. मेनका तो पहले ही से ईर्ष्या की आग में जल रही थी. रमन के देर से आने में उस आग ने घी का काम किया. उसे इस बात का पूरा यकीन हो गया कि रमन केवल माधवी के कारण ही देर से आता है.

स्वयं को उपेक्षित सी पा कर एक दिन मेनका का स्वयं पर से संयम उठ गया. जैसे ही रमन ने कमरे में प्रवेश किया, मेनका ने कटु स्वर में पूछा, ‘‘लगता है कालेज के मस्ती भरे दिन फिर लौट आए हैं.’’

‘‘क्या?’’ रमन विस्मित सा उस की ओर देखते हुए बोला, ‘‘क्यों कह रही हो तुम?’’

‘‘वही जो सच है.’’

‘‘और सच क्या है?’’

‘‘क्या आप नहीं जानते?’’

‘‘अगर जानता होता तो तुम से पूछता क्यों?’’

‘‘इस तरह अनजान बन कर आप सचाई को ?ाठला नहीं सकते,’’ अपने मन की भड़ास निकालती हुई मेनका आवेश में बोली, ‘‘क्या यह सच नहीं है कि आजकल आप माधवी के साथ अपनी शामों को रंगीन बना रहे हैं?’’

मेनका के क्रोध का कारण सम?ा आते ही रमन हलके से मुसकरा दिया, ‘‘नहीं, तुम ने जो कुछ भी कहा है उस में लेशमात्र भी सचाई नहीं है?’’

‘‘फिर आप देर से क्यों आते हैं.’’

‘‘सच मानो माधबी से मिले मुझे 7 दिन हो गए हैं,’’ रमन ने अपनी सफाई दी, ‘‘रमेश छुट्टी गया हुआ है. आजकल उस काम भी मुझे ही निबटाना पड़ता है और…’’

‘‘काम का झूठा बहाना बना कर आप मुझे बहला नहीं सकते,’’ रमन की बात पूरी होने से पहले ही मेनका ने काट दी.

रमन का चेहरा एकदम गंभीर हो गया. सोफे पर पीठ टिका कर बिना कुछ कहे वह मेनका की ओर देखता रहा. देर तक उस प्रकार देखते रहने के बाद उस ने कहा, ‘‘मैना,’’ प्यार से रमन मेनका को इसी नाम से पुकारता था, ‘‘पतिपत्नी के संबंधों की जड़ विश्वास हुआ करती है. जब उस जड़ को शकरूपी घुन लग जाता है तो एक दिन संबंधों का पौधा स्वयं ही गिर जाता है. तुम्हारे मन में भी शक पैदा हो गया है और एक दिन तुम्हारे मन का यही बहम हमारे घर को तबाह कर देगा.’’

‘‘क्या आप चाहते हैं कि यह घर बरबाद न हो?’’

‘‘हां, लेकिन सिर्फ मेरे चाहने से कुछ नहीं होगा. इसे बचाने के लिए तुम्हें भी मेरे कंधे से कंधा मिला कर चलना होगा.’’

‘‘क्या करना होगा मुझे?’’

‘‘अपने मन में से वहम को निकालना होगा.’’

‘‘अगर आप सचमुच यह चाहते हैं तो आप माधवी से मिलना छोड़ दीजिए,’’ मेनका ने अपनी शर्त रख दी, ‘‘उसे साफसाफ कह दीजिए कि वह यहां न आया करे.’’

‘‘यह मुझ से नहीं होगा,’’ रमन ने उस की बात मानने से इनकार कर दिया.

‘‘इस का मतलब यह कि आप मेरी बात नहीं मान रहे हैं?’’

‘‘अगर तुम्हारी बात में थोड़ा सा भी वजन होता तो मैं जरूर मानता. जो कुछ भी तुम ने कहा है वह सब तुम्हारे वहम की उपज है,’’ रमन का स्वर कठोर हो गया था.

कमरे में मरघट जैसी खामोशी छा गई थी. बहुत देर बाद मेनका ने ही उस खामोशी को तोड़ा एक विस्फोट के साथ, ‘‘अगर आप उस से मिलना नहीं छोड़ सकते तो आप को हम दोनों में से एक को चुनना होगा.’’

‘‘मेरा यकीन करो, मैना,’’ उसे अपनी बात का यकीन दिलाने के लिए रमन ने सामान्य स्तर में कहा, ‘‘जो तुम सोच रही हो हमारे बीच वैसा कुछ भी नहीं है. तुम बेकार में ही तिल का पहाड़ बना रही हो.’’

‘‘आप जो चाहे कह सकते हैं, लेकिन आप को फैसला करना ही होगा.’’

‘‘फैसला मु?ो नहीं, तुम्हें ही करना होगा,’’ रमन ने सारी बात उस पर छोड़ दी, ‘‘लेकिन कोई भी निर्णय लेने से पहले मेरी बातों को ठंडे दिमाग से सोच लेना. कहीं ऐसा न हो कि आवेश में लिया गया तुम्हारा निर्णय तुम्हें जिंदगीभर पश्चात्ताप की आग में जलाता रहे.’’

‘‘देखा जाएगा,’’ मेनका ने लापरवाही भरे स्वर में कहा और फिर रमन को वहीं छोड़ कर दूसरे कमरे में चली गईर्.

यह सोच कर कि गुस्सा उतर जाने पर मेनका स्वयं ही सामान्य हो जाएगी, रमन वहीं बैठा रहा.

‘‘मैं जा रही हूं,’’ थोड़ी देर बाद मेनका एक हाथ में अटैची और दूसरे में डिक्की की उंगली पकड़े रमन के सामने आ खड़ी हुई.

मेनका को इस तरह घर छोड़ने को तैयार देख कर रमन सकते में आ गया. बहुत कुछ कहना चाह कर भी वह कुछ नहीं कह पाया. बस फटीफटी आंखों से मेनका की ओर देखता रहा.

‘‘सुनो,’’ रमन एकाएक उठ खड़ा हुआ. मेनका को रोकने के लिए उस ने पुकारा, ‘‘सुनो, मैना.’’

मेनका रुक गईर्. पलट कर रमन की ओर देखते हुए उस ने पूछा, ‘‘अब क्या है?’’

उसे मनाने के लिए रमन उस के पास चला आया था, ‘‘परसों दीवाली है और…’’

‘‘मेरे होने या न होने से आप को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला,’’ मेनका ने चोट की, ‘‘आप की दीवाली को रोशन करने के लिए आप की माधवी आ जाएगी,’’ और फिर रमन को वहीं छोड़ कर वह तेज कदमों से आगे बढ़ गई.

रमन पत्थर का बुत बना खड़ा रहा. उस में इतना साहस भी नहीं रह गया था कि आगे बढ़ कर मेनका को रोक लेता.

‘‘अरे तुम…’’ मेनका को डिक्की के साथ आया हुआ देख कर उस की भाभी विभा ने आश्चर्यभरे स्वर में पूछा. उस के हाथ से अटैची लेते हुए विभा ने अपने पहले प्रश्न का उत्तर लिए बिना ही स्नेहभरे स्वर में कहा, ‘‘आने से पहले फोन ही कर दिया होता. हम तुम्हें लेने स्टेशन

आ जाते.’’

‘‘कार्यक्रम इतनी जल्दी में बना कि फोन करने का समय ही नहीं मिला,’’ मेनका ने सचाई छिपाते हुए कहा.

विभा ध्यान से उस की ओर देखती रही. उस की ओर देख कर विभा के दिल में एक संदेह पैदा हो गया. उसी को मिटाने के लिए उस ने पूछा, ‘‘रमन नहीं आया?’’

‘‘नहीं,’’ रमन का नाम सुनते ही मेनका की आंखों में पानी भर गया. विभा की गोद में सिर रखने के बाद उस ने उसे सारी बात बता दी.

‘‘पागल हो तुम तो,’’ उस की बातें सुनने के बाद विभा उस के सिर पर स्नेह से हाथ फेरती हुई बोली, ‘‘मु?ो दुख है कि 10 साल तक रमन के साथ रहने के बाद भी तुम उसे पहचान नहीं सकी हो. उस ने ठीक ही कहा है कि यह सब तुम्हारे दिमाग की उपज है और इस में सचाई नाम की कोई चीज नहीं है.’’

विभा की बातों ने मेनका को सोचने पर विवश कर दिया. हरेक घटना को याद करने के बाद वह इसी नतीजे पर पहुंची कि उसे रमन को छोड़ कर नहीं आना चाहिए था.

मन में इस विचार के आते ही उस के भीतर कुछ चटक गया. वह एकाएक उठ बैठी. विभा की ओर देखते हुए उस ने पूछा, ‘‘अब… अब मुझे क्या करना चाहिए.’’

‘‘अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है,’’ विभा ने सलाह दी, ‘‘रमन के पास वापस चली जाओ.’’

विभा की बातों पर मनन करने के बाद मेनका भी इसी निर्णय पर पहुंची कि उसे वापस चले जाना चाहिए, लेकिन इस तरह वापस जा कर वह अपनी हेठी नहीं करवाना चाहती थी और फिर वह डर रही थी कि  अगर रमन ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया तो क्या होगा. उस के मन का यही भय उसे अपने निर्णय पर अमल नहीं करने दे रहा था.

‘‘क्या सोचने लगी?’’ उसे खामोश पा कर विभा ने पूछा.

‘‘क्या इस तरह वापस जा कर मेरा अपमान नहीं होगा?’’ अपने मन की बात को मेनका होंठों पर ले ही आई.

‘‘तुम्हारे सोचने का ढंग बहुत ही गलत है मैना,’’ उस की बात पर हलके से मुसकराते

हुए विभा ने कहा, ‘‘पतिपत्नी का रिश्ता ही कुछ ऐसा है. इस में मानअपमान स्वयं ही खत्म हो जाता है. जो लोग रिश्ते में बंधने के बाद भी अपने अहं को नहीं छोड़ पाते उन का जीवन विषाक्त बन जाता है.’’

‘‘वह तो ठीक है, भाभी, लेकिन…’’

‘‘सम?ा रही हूं कि मेरी बात मान लेने के बाद भी तुम खुद वापस नहीं जाना चाह रही हो,’’ मेनका की बात पूरी होने से पहले ही विभा ने कहा, ‘‘अगर तुम्हें जाना होता तो तुम इस बहस में ही न पड़तीं. खैर, कोई बात नहीं मैं कल सुबह ही तेरे भैया को रमन को लाने भेज दूंगी.’’

‘‘और अगर उन्होंने आने से इनकार कर दिया तो,’’ मेनका के दिल में नया शक पैदा हो गया?

‘‘किसी चीज से डर कर उस से मुंह नहीं मोड़ लिया जाता,’’ विभा ने उसे सांत्वना दी, ‘‘और फिर जिंदगी निराशा का नहीं, आशा का नाम है.’’

उसी आशा की एक किरण के सहारे मेनका ने रात काट दी. सुबह होते ही उस का भाई राजीव रमन को लेने चला गया.

दिनभर मेनका आशानिराशा के ?ाले में ?ालती रही. जैसेतैसे शाम गहराने लगी. उस

की आशाकी किरण धुंधली पड़ने लगी. इंतजार करती हुई आंखें पथरा गईं. पटाखों की आवाज ने उसे परेशान कर दिया था. पटाखों की उसी आवाज से बचने के लिए वह भीतर वाले कमरे में जा लेटी थी.

तभी किसी के कदमों की आवाज को अपनी ओर आता हुआ सुन कर मेनका के दिल में आया कि शायद राजीव रमन को साथ ले आया. मस्तिष्क में इस विचार के आते ही उस के निढाल पड़ गए बदन में स्फूर्ति भर गई. एक पल भी गंवाए बिना उस ने अपनी साड़ी के पल्लू से अपनी आंखों को पोंछ डाला. आंखों में आशा की झलक लिए वह दरवाजे की ओर देखने लगी.

मगर आशा के विपरीत दरवाजे पर राजीव की जगह विभा को देख कर उस का दिल धक से रह गया. आशा की वह धुंधली सी किरण भी बुझ गई. अनजाने में ही वह पूछ बैठी, ‘‘भैया नहीं आए?’’

‘‘मैं तो आ गया हूं, लेकिन…’’

‘‘लेकिन…’’ मेनका का मन आशंका से भर उठा. राजीव की बात काट कर उस ने पूछा, ‘‘लेकिन क्या?’’ किसी प्रश्नचिह्न की तरह मेनका उस के सामने आ खड़ी हुई.’’

‘‘रमन नहीं आया,’’ कहते हुए राजीव ने सिर ?ाका लिया.

‘‘क्यों? मेनका की आंखों से पानी की बूंदें निकल कर उस के गालों से होती हुईं फर्श को भिगोने लगीं, ‘‘क्यों…क्यों नहीं आए वे? क्या कहा है उन्होंने?’’

मेनका का तड़प भरा स्वर सुन कर राजीव के पीछे छिपा हुआ रमन स्वयं पर नियंत्रण न रख सका. राजीव को एक ओर हटा कर वह मेनका के सामने जा खड़ा हुआ.

रमन को देखते ही मेनका के बुझे हुए चेहरे पर चमक आ गई. रमन की ओर तिरछी निगाहों से मुसकरा कर देखने के बाद उस ने विभा का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘दीवाली के दिन घर में यह मातम क्यों छाया हुआ है,’’ विभा को लगभग घसीटती हुई ही वह बाहर की ओर ले जाती हुई बोली, ‘‘आओ न, पटाखे चलाएं. सुप्रीम कोर्ट की चिंता यहां कौन करता है.’’

मेनका की बात पर केवल विभा ही नहीं, राजीव और रमन भी ठहाका मार कर हंस पड़े. विभा दीए और लाइटें जलाने चल पड़ी.

Headache : क्या है कौंटैक्ट पौइंट सिरदर्द

Headache :  कौंटैक्ट पौइंट सिरदर्द एक प्रकार से सब माइग्रेन है. इस के चलते सिर में भयंकर दर्द होता है, जिस से मरीजों को असहनीय और लंबे समय तक रहने वाली पीड़ा का सामना करना पड़ता है. इस के अलावा इस दर्द की वजह से चेहरे के एक सीमित हिस्से में घाव या पीड़ा का भी अनुभव होता है. आमतौर पर मरीज सालों तक इस माइग्रेन पर ध्यान न दे कर इलाज नहीं कराते हैं.

सामान्यतया लोग इस समस्या के लिए न्यूरोलौजिस्ट, डैंटिस्ट, स्पैशलिस्ट आदि के पास जाने की सलाह देते हैं, हालांकि कोई भी इस पीड़ा की असली वजह का पता नहीं लगा सकता है. यहां तक कि दर्द निवारक, संक्रमण रोधी एजेंट भी इस दर्द में आप को बहुत आराम नहीं पहुंचा सकते हैं. ईएनटी विशेषज्ञ द्वारा इस का विश्लेषण किया जा सकता है. वही इस का कारण बता सकता है और आप की मदद कर सकता है.

आमतौर पर कौंटैक्ट पौइंट सिरदर्द का एक इतिहास होता है, जिस में बाद में अन्य कारण भी शामिल हो सकते हैं जैसे आमतौर पर यह दर्द ऊपरी श्वसन संदूषण के कारण होता है. यह दर्द चेहरे के एक तरफ सीमित क्षेत्र में होता है. यह पीड़ा ऊपरी दांतों और मुंह के ऊपरी भाग तक सीमित रहती है. सिरदर्द के निर्धारण के लिए सर्दीखांसी की दवा अच्छा काम करती है, मगर ऐसा संयोग से होता है.

दर्द शुरू करने वाले कारक

शीत लहर, हाइपोग्लेसिमिया, भावनात्मक सदमा, अत्यधिक चाय या कौफी का सेवन, नींद की कमी, असंतुलित खानपान.

कारण

वास्तव में नाक के भीतर एक जगह होती है जहां एक शिरा (तंत्रिका) 2 हिस्सों के बीच पैक होती है. यह बहुत हद तक पैर के कटिस्नायुशूल जैसा होता है, मगर यह नाक और चेहरे के बीच होता है, जो शिरा 2 हिस्सों से घिरी होती है, वह या तो सामने से बंद शिरा होती है जोकि ट्राइजैमिनल शिरा के आंख वाले भाग की शाखा होती है या उन शिराओं में से एक होती है, जो स्पेनोप्लेटाइन केंद्र को अलग करती हैं.

इस कारण से पीड़ा उन हिस्सों में होती है जहां ये शिराएं दबी होती हैं. नाक की साइड प्रोफाइल में दोनों शिराएं पाई जाती हैं. दोनों शिराएं उस झिल्ली के भीतर होती हैं, जो नाक के दाएं और बाएं हिस्से को अलग करती हैं और नाक के आगे के हिस्से में स्थित होती हैं. पैट्रीगोपलेटाइन केंद्र इस से आगे मुंह और ऊपरी दांतों में जाता है.

अगर सभी चीजों पर विचार करें, तो ऊपरी दांतों और मसूड़ों में दर्द या मुंह के ऊपरी हिस्से में परेशानी के साथ कौंटैक्ट पौइंट माइग्रेन का अनुभव करने वाले मरीजों के स्पेनोप्लेटाइन केंद्र में शिकायत होती है, हालांकि सामने की एथमौइस शिरा में ऐसा नहीं होता है.

नाक के भीतर मौजूद गिल्टी पार्टी जोकि लगातार शिरा पर दबाव डालती है, एक झिल्ली होती है, जो नाक के किनारे पर गड्ढा या उभार सा बना देती है. इसे नाक के भीतर गोखरू की तरह समझें. झिल्ली एक विभाजक होती है, जो प्रिविलिज और नाक के बाएं दबाव को विभाजित करती है. उसे सीधा होना चाहिए. फिर भी जब इस में विसंगति आती है, तो यह एक साइड में सिकुड़ सकती है. अत्यधिक गंभीर स्थिति में यह क्षैतिज नैजल विभाजक में जा सकती है, जहां केंद्र और सर्पिल के कारण पिनपौइंट दिमागी दर्द होता है.

झिल्ली के अलावा अन्य संरचनाएं भी हैं, जो कभीकभी शिराओं पर दबाव बनाती हैं, जिस से कौंटैक्ट पौइंट दिमागी दर्द हो सकता है. इस में कोंच बुलोसा केंद्रीय सर्पिल से प्रवाहित वायु या अनियमित स्थिर सर्पिल की समस्या शामिल है. सर्पिल नाक के भीतर की विशिष्ट संरचना होती है, जो नाक में जाने वाली हवा को गरम और नम करती है.

उपचार

कौंटैक्ट पौइंट माइग्रेन शुरू करने वाले ये कारण संरचना से संबंधित हैं, इसलिए ऐसी कोई गोली या नैजल शौवर नही है जो इस समस्या का आसानी से समाधान कर दे, बिलकुल उसी तरह जैसे टूटी हड्डी को सिर्फ दवा खा कर ठीक नहीं किया जा सकता है. नैजल स्प्लैश और सर्दीखांसी की दवा से थोड़ी राहत मिल सकती है (कुछ घंटों से 1-2 दिन तक) क्योंकि ये सौल्यूशन उस सूजन को कम कर देते हैं, जो जगह बनाने और शिरा के दबाव को कम करने से रोकती है जैसे ही म्यूसोकल सूजन फिर से बढ़ती है, दर्द शुरू हो जाता है.

दर्द का जड़ से उपचार करने का मानक तरीका सर्जरी है, जिस में शिरा पर दबाव डालने वाली संरचनाओं को ठीक किया जाता है. इस सर्जरी में झिल्ली को ठीक करना या सैप्टल गोड को अपरूट किया जाता है. असामान्य स्थिति में सर्जरी की आवश्यकता भी पड़ सकती है. इस का उद्देश्य नाक में जितनी संभव हो सके उतनी जगह बनाना है, जिस से शिरा पर दबाव न पड़े और म्यूसोकल सूजन न हो.

असाधारण मामलों में कुछ अन्य चीजें भी हैं, जिन पर विचार किया जा सकता है जैसे इन्फ्यूजन, हालांकि इस से भी कुछ समय के लिए ही राहत मिलती है (सब कुछ ठीक रहने पर कुछ महीने, आमतौर पर कुछ सप्ताह). इस से होने वाली राहत अस्थाई होने के कारण अब हम इस विकल्प की अनुशंसा नहीं करते हैं.

पंजाब के छोटे से गांव से आई Shehnaaz Gill इस फिल्म को कर रही हैं प्रोड्यूस

Shehnaaz Gill : पंजाब के छोटे से गांव से आई पंजाबी एक्ट्रेस शहनाज गिल जिन्होंने कलर्स के अतिचर्चित शो बिग बौस 13 से बतौर प्रतियोगी अपने करियर की शुरुआत की थी, उनकी असल जिंदगी की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. बिग बौस में ही शहनाज गिल को अन्य प्रतियोगी सिद्धार्थ शुकला से प्यार हो गया, जो एक बौलीवुड और टीवी एक्टर और मौडल थे , दोनों प्रतियोगियों ने शो खत्म होने के बाद शादी करने का प्लान बनाया था, लेकिन तभी करोना महामारी का प्रकोप हो गया और शादी भी टल गई लेकिन क्योंकि दोनों को प्यार सच्चा था इसलिए कोरोना खत्म होने के बाद दोनों शादी करने वाले ही थे की तभी 40 साल की उम्र में सिद्धार्थ शुक्ला का दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया.

जिसके बाद कुछ महीनों तक शहनाज गिल की हालत बहुत खराब रही. लेकिन बाद में सिद्धार्थ शुक्ला की फैमिली, शो के एंकर सलमान खान जो शहनाज गिल को शो में बहुत पसंद करते थे और पूरी फिल्म इंडस्ट्री ने सिंपैथी के चलते शहनाज गिल को सपोर्ट किया. सबके सपोर्ट की वजह से शहनाज गिल एक बार फिर से संभल पाई और उन्होंने कुछ बड़ी फिल्मों में काम किया जिसने एक फिल्म सलमान खान की किसी का भाई किसी की जान भी थी.

वही शहनाज गिल अपनी कड़ी मेहनत के बाद टीवी एक्ट्रेस से निर्मात्री बनने की ओर बढ़ चुकी है. हाल ही में शहनाज गिल ने सोशल मीडिया पर गुड न्यूज शेयर करते हुए बताया कि बतौर निर्मात्री उन्होंने अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू किया है जिसमें वह दिनरात मेहनत कर रही हैं. इस प्रोडक्शन हाउस के जरिए वह एक कुड़ी नामक फिल्म प्रोड्यूस कर रही है. जो कि 13 जून को सिनेमाघर में प्रदर्शित होगी. गौरतलब है शहनाज गिल ने अपने प्रोडक्शन हाउस के साथ एक और प्रोडक्शन हाउस की जोड़ा है ताकि वह और अच्छा काम कर सके.

एक्ट्रेस चाहत खन्ना से जानें, Stretch Marks से बचने के उपाय

खूबसूरत अभिनेत्री चाहत खन्ना (Chahat Khanna) को हमेशा से ही जीवन के प्रति अपनी बेबाक और सहज सोच के लिए सराहा जाता रहा है, खासकर जब स्त्रियों के स्वास्थ्य और जीवनशैली की बात आती है, तो हमेशा वह आगे आकर अपनी बात रखती है. इस बार उन्होंने एक ऐसे विषय पर प्रकाश डाली है, जो आज की कई स्त्रियों को प्रभावित करता है. खासकर गर्भावस्था के दौरान और बाद में स्ट्रेच मार्क से निपटना उनके लिए बड़ी बात होती है. चाहत दो बार गर्भावस्था में रही और दो बेटियों की मां बनी है, लेकिन अभी भी वह खूबसूरत है और आगे कई फिल्मों और वेब सीरीज में काम कर रही है. गर्भावस्था के दौरान हुए परिवर्तन को उन्होंने नई माओं के साथ शेयर किया है और बताया कि कैसे उन्होंने अपनी त्वचा को स्वस्थ, कोमल और स्ट्रेच मार्क्स से पूरी तरह मुक्त रखा है.

प्रेग्नेंसी में स्ट्रेच मार्क समस्या नहीं

अपने अनुभव को शेयर करते हुए चाहत का कहना है कि अधिकतर नई मां प्रेग्नेंट होने पर डर जाती है और सोचती है कि उनके पेट पर हुए स्ट्रेच मार्क कभी जाएंगे नहीं, जबकि ऐसा नहीं होता, ये भी धीरेधीरे त्वचा से गायब हो जाते है. गर्भावस्था के दौरान और बाद में खिंचाव के निशान बहुत आम होते है, ये कोई समस्या घबराने की नहीं होती है, क्योंकि गर्भावस्था एक अच्छी बात है, लेकिन ये शरीर में कई परिवर्तन को भी लेकर आती है. जब मैं पहली बार प्रेग्नेंट हुई थी, तो मैं भी स्ट्रेच मार्क से डरती थी, लेकिन डिलीवरी के बाद धीरेधीरे वे गायब भी हो गए. इतना ही नहीं गर्भावस्था में वजन भी मेरा काफी बढ़ गया था, जिसकी वजह से शरीर की कई जगहों जैसे पेट, स्तन, कूल्हों, जांघों और पीठ के निचले हिस्सों पर स्ट्रेच मार्क्स आ गए थे. मैंने दिन में दो बार बायो औयल या भरोसेमंद एंटीस्ट्रेच मार्क औयल से 2 से 3 मिनट तक हल्के हाथों से मसाज करती थी, इससे ब्लड सर्कुलेशन बढ़ा और किसी प्रकार की स्ट्रेच मार्क का सामना नहीं करना पड़ा. ये काम अपनी व्यस्त दिनचर्या में भी हमेशा किया है. ड्राइ स्किन डेज में मैं माइल्ड मौइश्चराईजर या बौडी बटर से एक्स्ट्रा हाईड्रेशन त्वचा को देती थी, ये कोई कठिन काम नहीं है, बल्कि एक आसान तरीका स्ट्रेच मार्क से खुद को बचाने का है.

डाइट का रखें ध्यान

इसके आगे चाहत कहती है कि प्रेग्नेंसी के दौरान हर मौसम में डाइट की बड़ी भूमिका त्वचा को ठीक रखने में होती है, मसलन पानी अधिक पीना पड़ता है, ताकि स्किन हाईड्रेटेड रहे, इसके लिए थोड़ी मात्रा में नट्स, सीड्स और एवाकाडो खाना अच्छा रहता है. इसके साथसाथ प्रोटीन रिच फूड खाने की कोशिश करनी पड़ती है, जो स्किन की कोलेजन के बढ़ाने में सहायक होती है. अगर आपकी त्वचा ड्राई है, तो डौक्टर से पूछकर विटामिन-E जैसी सप्लीमेंट्स ले सकती है, जो अंदर से आपकी स्किन को नौरिश करती है.
त्वचा की करें केयर

ये भी सही है कि हर स्त्री की स्किन एक दूसरे से अलग होती है और प्रेग्नेंसी का रिएक्शन भी अलग होता है, जो अधिकतर जेनेटिक्स पर आधारित होता है, जैसे कि कुछ स्त्रियों को सब कुछ कर लेने के बाद भी स्ट्रेच मार्क से बचना संभव नहीं होता. मेरा उनसे कहना है कि प्रेग्नेंसी के शुरू होते ही त्वचा ही केयर करना शुरू करें, स्ट्रेच मार्क दिखाई पड़ने की इंतजार न करें, क्योंकि कई बार स्किन के डैमेज होने के बाद ही स्ट्रेच मार्क दिखते है. इसलिए अगर आप प्रेग्नेंट है या फिर वजन कम करने के बारें में सोच रहे है, तो बौडी चेंज के बारें में पहले से सोचें, स्किन के इची या स्ट्रेच मार्क होने का इंतजार न करें.

अंत में चाहत कहती हैं कि मेरा सभी से अपनी बात शेयर करने का असली मकसद उन्हें प्रेग्नेसी में हुए स्ट्रेच मार्क के फ्रस्ट्रैशन से उन्हे दूर रखना है, क्योंकि आज की स्त्री हर समय खूबसूरत और स्मार्ट लगना चाहती है, ताकि बेबी होने के बाद भी वे स्विम सूट पहन सके, क्योंकि अच्छी बौडी उन्हे कौन्फिडेंट, सुंदर और प्राउड बनाए रखती है. अपनी त्वचा का ख्याल हर स्त्री कर सकती है, क्योंकि स्किन केयर अभिमान नहीं, खुद से प्यार को दर्शाती है.

Married Life : पति के बदले व्यवहार से परेशान हो गई हूं, मैं क्या करूं ?

Married Life : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 28 साल की विवाहित स्त्री हूं. मेरे पति और मेरी कामेच्छा में जमीन आसमान का अंतर है. मुझे लगता है कि मेरी योनि में पहले की तुलना में काफी ढीलापन आ गया है और मेरा सैक्स के प्रति रुझान घट गया है. लेकिन पति की कामेच्छा पहले की ही तरह बनी हुई है. मैं उन का साथ नहीं दे पाती. इस से उन के व्यवहार में मेरे प्रति रूखापन आता जा रहा है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

कामसुख दांपत्य जीवन की महत्त्वपूर्ण कड़ी है. इस से दांपत्य में अबाध प्रेम, भावात्मक बंधन, सुख, संतोष और आस्था के स्वर गहरे होते हैं, परस्पर आकर्षण बना रहता है और प्रेम गाढ़ा होता है.

प्रत्येक विवाहित स्त्री के लिए यह जानना जरूरी है कि पति के लिए कामसुख प्रेम की तीव्रतम अभिव्यक्ति है. पति के अंतर्मन में पत्नी की अस्वीकृति शूल सी चुभ जाती है. उस का मन क्षोभ और पीड़ा से भर उठता है, जिस के फलस्वरूप वैवाहिक जीवन में असंतोष और बिखराव की रेखाएं सघन होने लगती हैं, दांपत्य संबंधों में ठंडापन आ जाता है और कलह सिर उठाने लगती है.

आप के लिए उचित यही होगा कि आप अपने पति की भावनाओं का आदर करें. यदि किसी कारण कभी मन संबंध बनाने का न हो, तब भी अपने मधुर व्यवहार से पति के मन को संभालें, उन्हें टीस न लगने दें.

योनि में आए ढीलेपन को मिटाने के लिए आप श्रोणि पेशियों का व्यायाम करें. यह व्यायाम आप दिन के किसी भी पहर कर सकती हैं. इसे आप लेटे हुए, बैठे हुए या खड़े किसी भी मुद्रा में कर सकती हैं. करने की विधि बिलकुल आसान है. बस, श्रोणि पेशियों को इस प्रकार सिकोड़ें और भींच कर रखें मानो मूत्रत्याग की क्रिया पर रोक लगाने की जरूरत है.

10 की गिनती तक श्रोणि पेशियों को भींचे रखें और फिर उन्हें ढीला छोड़ दें. अगले 10 सैकंड तक श्रोणि पेशियों को आराम दें. इस के लिए 10 तक गिनती गिनें. यह व्यायाम पहले दिन 12 बार दोहराएं. फिर धीरेधीरे बढ़ाते हुए सुबहशाम 24-24 बार इसे करने का नियम बना लें. 2-3 महीनों के भीतर ही आप योनि की पेशियों को फिर से कसा हुआ पाएंगी. नतीजतन आप पतिपत्नी के बीच यौनसुख भी दोगुना हो जाएगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz . सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

जोरदार ऐक्टिंग से दर्शकों को दीवाना बना दिया : Shabana Azmi

Shabana Azmi : 20 मार्च, 2025 को गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड्स 2025 का आयोजन त्रावनकोर पैलेस, नई दिल्ली में किया गया. इस सम्मान समारोह में उन इंस्पायरिंग महिलाओं को सम्मानित किया गया, जिन्होंने समाज में बेहतरीन योगदान दिया है. इसी कड़ी में शबाना आजमी जो हिंदी सिनेमा की ऐसी अदाकारा हैं जो अपनेआप को हर रोल के हिसाब से बखूबी ढाल लेती हैं, उन्हें ऐंटरटेनमैंट आइकोन कैटेगरी के लिए गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड्स से नवाजा गया.

शबाना आजमी ने हिंदी फिल्मों के साथसाथ हौलीवुड में भी में तरहतरह के रोल अदा किए हैं. वे आज भी फिल्मों में सक्रिय हैं. एक ऐक्ट्रैस होने के साथसाथ शबाना आजमी कई सामाजिक कार्यों से भी जुड़ी रहती हैं. वैसे तो शबाना आजमी मशहूर शायर और कवि कैफी आजमी की बेटी और हिंदी सिनेमा के मशहूर लेखक, संगीतकार जावेद अख्तर की पत्नी हैं पर उन की बेहतरीन परफौर्मैंस और अदाकारी के चलते उन्हें अपने पिता और पति की पौपुलैरिटी का अपने कैरियर में सहारा नहीं लेना पड़ा.

पहली फिल्म से ही बन गई थीं स्टार

हैदराबाद में जन्मी शबाना आजमी ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 1973 में श्याम बेनेगल की फिल्म ‘अंकुर’ से की थी. इस फिल्म में शबाना ने अपनी जोरदार ऐक्टिंग से क्रिटिक्स के साथसाथ दर्शकों को भी दीवाना बना लिया. यह फिल्म बौक्स औफिस पर हिट रही. अपनी पहली ही फिल्म के लिए उन्हें बैस्ट ऐक्ट्रैस का नैशनल अवार्ड हासिल हुआ.

शबाना भारत की पहली ऐसी ऐक्ट्रैस हैं जिन्हें 5 बार बैस्ट ऐक्ट्रैस के लिए नैशनल अवार्ड मिल चुका है. उन्हें ‘अंकुर’ के अलावा ‘अर्थ’ (1982), ‘खंडहर’ (1984), ‘पार’ (1984) और ‘गौडमदर’ (1999) नैशनल अवार्ड से नवाजा गया है.

शबाना करीब कई दशकों से इंडियन सिनेमा में अपनी ऐक्टिंग का लोहा मनवाती आई हैं और अब तक हिंदी, बंगाली और अंगरेजी सहित

140 से ज्यादा फिल्में कर चुकी हैं. उन्होंने जहां अपने कैरियर के पीक में लीजैंडरी डाइरैक्टर्स श्याम बेनेगल, सत्यजित रे, अपर्णा सेन आदि के साथ काम किया है, वहीं नसीरुद्दीन शाह, अमिताभ बच्चन और ओमपुरी सहित कई और कलाकारों के साथ भी हिट फिल्में की हैं. हाल ही में उन्हें नैटफ्लिक्स पर रिलीज हुई ड्रामा सीरीज डब्बा कार्टेल में देखा गया है.

जावेद से शादी नहीं होने देना चाहते थे शबाना के पेरैंट्स

9 दिसंबर, 1984 को शबाना आजमी ने हिंदी फिल्मों के गीतकार, कवि और पटकथा लेखक जावेद अख्तर से शादी की. जावेद अकसर शबाना के पिता कैफी आजमी से सलाह लेने आते थे. इसी बीच शबाना और जावेद की दोस्ती हुई और फिर यह प्यार में बदल गई. लेकिन शबाना के मातापिता को दोनों की रिलेशनशिप से दिक्कत थी क्योंकि जावेद अख्तर शादीशुदा थे. बाद में जावेद ने अपनी की पहली पत्नी हनी ईरानी से तलाक ले लिया. उस के बाद शबाना के पिता दोनों की शादी के लिए राजी हो गए. गौरतलब है कि शबाना और जावेद की कोई संतान नहीं है.

शबाना आजमी की शख्शियत ही उन्हें दूसरे अदाकारों से अलग करती है. निजी जिंदगी में वे हर मुद्दे पर अपनी राय पूरी बेबाकी से रखती हैं. उन्होंने एक निडर महिला की तसवीर दुनिया के सामने पेश की है और सभी महिलाओं को यह प्रेरणा दी है कि कभी अपनी बात आगे रखने से डरना नहीं चाहिए और परिस्थिति चाहे जैसी हो कभी झुकना नहीं चाहिए. औनस्क्रीन और औफस्क्रीन दोनों जगहों पर उन्होंने अपने पक्ष को हमेशा मजबूती के साथ रखा है. शबाना सही मायने में महिलाओं के लिए इंस्पिरेशन हैं.

टीम के साथ मिल कर कई गाडि़यों की शानदार डिजाइनिंग की : रामकृपा अनंतन

जब आप किसी आइकोनिक इंडियन एसयूवी के नाम के बारे में सोचते हैं तो एक नाम सब से पहले आप के दिमाग में आता है और वह है महिंद्रा थार ऐक्सयूवी और स्कौर्पियो. इन दोनों गाडि़यों की समानता के बारे में अगर हम सोचें तो सहज ही रामकृपा अनंथन का नाम दिमाग में आता है. रामकृपा अनंथन एक मशहूर और सक्सैसफुल औटोमोबाइल डिजाइनर हैं. उन्होंने कई ऐसी गाडि़यों को डिजाइन किया है, जिन्हें खरीदने में लोग दिलचस्पी रखते हैं.

रामकृपा अनंथन ने स्कौर्पियो और एसयूवीएस से ले कर महिंद्रा थार के भी मौडल को डिजाइन किया है. महिंद्रा की ये सभी गडि़यां लोगों के बीच काफी पौपुलर हैं. वे इस समय रामकृपा अनंथन ओला इलैक्ट्रिक में हैं और इस कंपनी की डिजाइन हैड हैं. रामकृपा अनंथन ने 1997 से अपने कैरियर की शुरुआत की और इन 28 सालों में उन्होंने दुनियाभर में भारत का नाम रोशन किया.

रही चुनौतियां

पुरुषप्रधान इंडस्ट्री में रामकृपा अनंथन का टिके रहना आसान नहीं था. वे अपनी लगन, मेहनत और धैर्य के बल पर औटोमोबाइल के क्षेत्र में आज सभी महिलाओं के लिए रोल मौडल बनीं और देश में ही नहीं, पूरे विश्व में नाम कमाया.

रामकृपा अनंथन ने बिट्स पिलानी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. इन्होंने आईआईटी बौंबे से डिजाइन प्रोग्राम में मास्टर्स भी किया है. पढ़ाई पूरी करने के बाद रामकृपा अनंथन ने महिंद्रा ऐंड महिंद्रा से ही अपने कैरियर की शुरुआत की थी. 1997 में इंटीरियर डिजाइनर की पोस्ट के लिए इन्हें कंपनी ने हायर किया था.

इंटीरियर डिजाइनर की पोस्ट पर आने के 8 साल बाद यानी 2005 में महिंद्रा ऐंड महिंद्रा में ही उन्हें डिजाइन डिपार्टमैंट का हैड बना दिया गया. डिजाइन डिपार्टमैंट की हैड बनने के बाद इन्होंने अपनी टीम के साथ मिल कर कई गाडि़यों की शानदार डिजाइनिंग की, जिन में थार, ऐक्सयूवी 700 और स्कौर्पियो के लिए 3 आइकोनिक डिजाइन को लोगों ने काफी पसंद किया.

पौपुलर गाडि़यों की बनाईं डिजाइन

रामकृपा अनंथन और उन की टीम की डिजाइन की हुई कारों की लिस्ट में बोलेरो, जायलो, महिंद्रा ऐक्सयूवी 700, स्कौर्पियो, महिंद्रा थार आदि कई पौपुलर गाडि़यों के नाम शामिल हैं. रामकृपा अनंथन ने औटो इंडस्ट्री की दुनिया में खूब नाम कमाया है.

मिली प्रेरणा

यह सही है कि हर व्यक्ति के जीवन में कुछ अलग अचीवमैंट के लिए किसी से प्रेरित होना आवश्यक होता है और यही बात रामकृपा के साथ भी लागू होती है. उन के जीवन में उन की प्रेरणास्रोत उन की मां रही हैं. उन्होंने कुछ समय पहले एक पोस्ट में अपनी मां के बारे में बताया कि उन की मां ने शादी के बाद अपनी पढ़ाई को पूरा किया. 3 बच्चों को अच्छे से पालने के साथसाथ ही उन की मां ने पीयूसी, बीए, एमए, बीएड की शिक्षा पूरी की और शिक्षिका बनीं. उन की मां ने 70 साल की उम्र में टीचिंग से रिटायर होने के बाद संस्कृत विषय में एक और मास्टर्स की डिगरी को हासिल किया. मां की ये सारी बातें उन्हें हमेशा किसी काम को करते रहने के लिए उत्साह बढ़ाती रहीं.

इस तरह रामकृपा अनंथन केवल एक औटोमोबाइल डिजाइनर ही नहीं बल्कि एक विलक्षण प्रतिभा की धनी है, जिन्होंने इंडियन औटोमोबाइल के क्षेत्र में एक अमिट छाप छोड़ी है. यही नहीं एक सफल महिला इंजीनियर और डिजाइनर होने के नाते वे युवा महिलाओं के लिए भी प्रेरणास्रोत हैं. उन्होंने जो कुछ हासिल किया है वह युवाओं खासकर लड़कियों के लिए उत्साह बढ़ाने वाला है.

Summer Fashion : समर में स्टाइलिंग के साथ कूलिंग का अहसास दिलाती चिकनकारी कुर्तीज

Summer Fashion : समर में स्टाइलिश और कूल दिखने के लिए लड़कियां नित नएनए फैशन ट्रैंड को अपनाती है और अपने कंफर्ट से कौम्प्रोमाईज़ कर लेती है. लेकिन क्या आपको पता है अब आपको इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि समर सीजन को देखते हुए मार्केट में नए स्टाइल के लखनवी चिकन सूट आ गए हैं. इन्हें पहनकर अब आप समर में भी स्टालिंग के साथ कूलिंग का अहसास ले सकती हैं. वो कैसे आइए जानते हैं.

लखनवी चिकनकारी कुर्ती सेट

समर के सीजन में स्टाइलिश और कूल दिखने के लिए हमेशा से ही हर लड़की और महिला की पहली चौइस कौटन फैब्रिक की चिकनकारी कुर्ती सेट ही होती हैं. क्योंकि यह कुर्तीयां हल्के और हवादार कपड़ों जैसे कपास, मलमल और शिफॉन का उपयोग करके तैयार की जाती हैं. जो बहुत ही कम्फर्टेबल होती हैं और आसानी से पसीने को सोख लेती हैं. ये मार्केट में हर कलर और डिजाइन में यह अवलेबल हैं. समर सीजन को ध्यान रखते हुए देखा जाए तो आजकल वाइट चिकनकारी वाली कुर्ती सभी की पहली पसंद हैं.

गर्ल्स की पहली पसंद वाइट चिकनकारी कुर्ती सेट 

कौलेज जाने वाली लड़की हो या औफिस जाने वाली. सभी वाइट कुर्ती सेट पहनना पसंद करती हैं. इसमें आपको कुर्ती के साथ पेंट स्टाइल पायजामा,कम मोहरी वाला या ज्यादा मोहरी वाला चिकनकारी वाला पायजामा मिल जाएगा, और साथ में अगर आप दुपट्टा भी लेना चाहती हैं तो वो भी मैचिंग का मिलेगा जो आपके लुक में चार -चांद लगाएगा.

क्लासी लुक

अगर आप समर में कुछ अलग दिखना चाहती हैं तो आपको लखनवी चिकन सूट पूरा लेने की जरुरत नही सिर्फ कुर्ती लेकर भी आप स्टाइलिश नजर आ सकती हैं. इस कुर्ती को आप अपनी डेनिम जींस के साथ पहन सकती हैं. फिर चाहे वो कुर्ती लॉन्ग हो या शार्ट दोनों ही कुर्तीया जींस पर क्लासी लुक देती हैं. यदि आप स्किन टाइट जींस पहन रहीं हैं तो फुटवियर में हील्स पहनें. यदि वाइड लेग जींस पहन रहीं हैं तो शूज कैरी कर सकती हैं.

डिफेंरेंट कलर डिजाइन और फैब्रिक 

इन कुर्तीयों में आपको लॉन्ग कुर्ती, शार्ट कुर्ती, फ्रॉक कुर्ती और अंगरखा कुर्ती, स्ट्रेप्पी कुर्ती, स्लीवलेस कुर्ती, शार्ट बाजु कुर्ती और लॉन्ग बाजु कुर्ती सभी तरह की अलग-अलग कलर और फैब्रिक में मार्केट में अवलेवल हैं जैसे – कॉटन, शिफान, रियान, लिलेन, आर्गेजा और जार्जेट में मिल जाएंगी लेकिन देखना आपको हैं की बॉडी पर कौन सी कुर्ती परफेक्ट लगती हैं.

स्टाइलिश लुक

जींस के अलावा प्लाजो के साथ भी आप चिकनकारी कुर्ती कैरी कर सकती हैं ये आपको एथनिक लुक देगा. अपने लुक को कम्पलीट करने के लिए आप इसके साथ ऑक्सीडाइज ज्वेलरी ही पहनें, क्योंकि चिकनकारी कुर्ती का रंग काफी हल्का होता है। ऐसे में आप इसके साथ ऑक्सीडाइज ज्वेलरी पहनकर अलग स्टाइल बना सकती हैं. प्लाजो के साथ फुटवियर में फ्लैट्स ही पहनें ये परफेक्ट लुक दिखाएगा.

खास स्टाइलिंग टिप्स

1.लांग चिकनकारी कुर्ती के साथ पलाजो को पेयर करें. लांग फ्लोई पलाजो और लूज फिटेड चिकनकारी कुर्ती खूबसूरत लुक देती है। साथ में थ्रेड वर्क वाली जूती को पेयर करें.

2.शार्ट चिकनकारी कुर्ती को रेगुलर फिट या रिप्ड जींस के साथ पेयर करें. ये आपको फैशनेबल लुक देगी. इसके साथ स्ट्रैपी हील्स पेयर करें तो बेस्ट दिखेंगी.

3.चिकनकारी कुर्ती के साथ बोहो लुक अपनाए इसके लिए सिल्वर
ऑक्सीडाइज्ड ज्वैलरी को कुर्तीज के साथ पेयर करें. सिल्वर कड़े, स्टेटमेंट नेकपीस या ईयररिंग्स आपके सिंपल लुक को एकदम से स्टाइलिश बना देंगे.

4.चिकनकारी कुर्ती ट्रांसपेरेंट होती हैं और इसका मैटैरियल सॉफ्ट और शियर होता है तो इसकी लेंथ के हिसाब से मैचिंग लांग वेस्ट फिटिंग इनरवियर जरूर पहने. जिससे कुर्ती का बेहतर लुक नजर आए, ट्रांसपैरेंट दिखने वाली कुर्ती पहनने पर ओड ना दिखे.

5.चिकनकारी कुर्ती वैसे तो लूज फिटिंग ही अच्छी लगती लेकिन ज्यादा लूज़ आपका लुक ही बिगाड़ देती हैं ऐसे में अपनी बॉडी के हिसाब से इसे हल्का फिट करवाएं.

6.चिकनकारी सूट के साथ आप कोल्हापुरी, मोजरी और फ्लैट सैंडल के साथ पेयर करें तो आपका लुक अट्रैक्टिव लगेगा.

Hindi Stories Online : आसमान की ओर

Hindi Stories Online :  मेरी यात्रा लगातार जारी है. मैं शायद किसी बस में हूं. मुझे यों प्रतीत हो रहा है. बस के भीतर बैठने की सीटें नहीं हैं. सब लोग नीचे ही बस के तले पर बैठे हैं. कुछ लोग इसी तल पर लेटे हैं. बस से बाहर जाने का कोई भी मार्ग अभी तक मुझे दिखाई नहीं दिया है और न ही किसी और कोे.

बस की दीवारों में छोटेछोटे छेद हैं, जिन में से रोशनी कभीकभी छन कर भीतर आ जाती है. जब रोशनी उन छिद्रों से बस के भीतर आती है तो उस से रोशनी की लंबीलंबी लकीरें बन जाती हैं. मेरे सहित सब लोग उसे पकड़ने की भरसक कोशिश करते हैं, लेकिन नाकाम हो जाते हैं. कोईर् भी उन को पकड़ नहीं पाया है. बहुत देर से कई लोग इस तरह की कोशिश कर चुके हैं.

बस को कौन चला रहा है, इस बात का भी अभी तक किसी को पता नहीं है. मैं कभीकभार बस के भीतर घूम लेता हूं, लेकिन यह खत्म होने को ही नहीं आती है. शायद यह बहुत लंबी है. मैं थकहार कर फिर वहीं आ बैठता हूं जहां से मैं उठ कर गया था. मेरी तरह और भी बहुत सारे लोग इस बस में घूमघूम कर फिर से वहीं आ बैठते हैं जहां से वे उठ कर जाते हैं.

यह एक बस है और यह कई सदियों से ऐसे ही चल रही है. सच बताऊं तो, पता मुझे भी पूरी तरह से नहीं है. मैं कई बार यह समझने की कोशिश करता हूं कि यह बस है या फिर कुछ और. लेकिन सच का पता नहीं चल रहा है. अजीब किस्म का रहस्य है, जिस का पता नहीं चल रहा है.

कभीकभार कुछ लोग आते हैं और हमारा खून निकाल कर ले जाते हैं. पूछने पर कुछ नहीं बताते. जब कभी गुस्सा कर लें, तो फिर बहुत एहसान से बताते हैं कि वे लोग इस बस को चला रहे हैं. इस बस को चलाने के लिए उन को कितनी मेहनत करनी पड़ती है, इस का तो उन लोगों को ही पता है. पूछें तो कहते हैं कि यह बस उन के अपने खून से चल रही है.

‘‘लेकिन खून तो आप लोग हमारा ले रहे हो?’’ हम में से कोई बोलता है.

‘‘तुम्हारा खून तो हम कभीकभार लेते हैं, बस तो हम अपने खून से ही चलाते हैं.’’

फिर जब हम अपनी ओर देखते हैं तो हम तो नुचेसिकुड़े से कमजोर से हैं और वे हट्टेकट्टे, हृष्टपुष्ट जवान. समझ कुछ भी नहीं आता है. हर समय हम लोग परेशान रहते हैं. उन की पूंछें सदैव ऊपर आसमान की तरफ तनी हुई रहती हैं और हमारी जमीन पर लटकी रहती हैं, जैसे कि इन में हड्डी ही न हो. खून लेने आने वाले लोग कुछ देर बाद बदल जाते हैं. बहुत ही एहसान से वे हमारा खून ले कर जाते हैं जैसे कि वे लोग हम पर बहुत दया कर रहे हों. हम भी इस डर से खून दे देते हैं कि कहीं हमारी बस रुक ही न जाए. पसोपेश वाली स्थिति है कि यह बस है या फिर कुछ और, और यह हमें कहां ले जा रही है.

बस चलाने वाले पूछने पर गुस्सा करते हैं, कहते हैं, ‘‘आप लोग चुप रहो, आराम से बैठो, आप को कुछ नहीं पता है. आप, बस, हमें अपना खून दो.’’

कुछ देर बाद खून लेने वाले फिर बदल जाते हैं. यह भी समझ नहीं आता कि पहले वाले लोग कहां गए. पूछने पर कोई जवाब नहीं देते हैं. बारबार पूछने पर कहते हैं, ‘‘वे पहले वाले लोग सारा का सारा खून खुद ही डकार गए हैं, खून वाली सारी टंकी खाली है. अब हम क्या करें, हमें खून चाहिए, वरना बस नहीं चलेगी.’’

हम फिर अपना हाथ खून देने के लिए उन के आगे कर देते हैं. फिर बस चलती रहती है. फिर बस की दीवारों के छेदों से रोशनी की लकीरें अंदर तक पहुंचती हैं. फिर से हम लोग उन को पकड़ने की पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन वे किसी के भी हाथ नहीं आतीं. सब थकहार कर फिर वहीं बैठ जाते हैं. कुछ दिनों पहले उड़ती हुई एक अफवाह आईर् थी कि बस को चलाने वाले कुछ लोग हमारे से लिए खून में से ज्यादा खून तो खुद ही पी जाते हैं और बाकी जो बच जाता है उसे बस की टंकी में डाल देते हैं. और कई बार तो वे लोग बस के पुर्जे तक खा जाते हैं.

यह तो गनीमत है कि बस के जो पुर्जे कम हो जाते हैं, वे कुछ दिनों बाद खुदबखुद ही पनप उठते हैं. बस में सफर करने वाले सब लोग भोलेभाले, ईमानदार और साफ दिल के हैं. कभीकभी वे लोग इस तरह की बातें सुन कर निराश हो जाते हैं. लेकिन कुछ समय बाद वे लोग फिर अपनेआप ही ठीक हो जाते हैं. यही आम आदमी की विशेषता है. वैसे इस के अलावा उन के पास और कोई चारा भी नहीं है. और फिर जब उन का खून ले लिया जाता है तो वे फिर अपनेआप शांत हो जाते हैं.

बस बहुत समय से ऐसे ही चल रही है. कहां जा रही है, क्यों जा रही है, यह रहस्य है जो किसी को पता नही है. कभीकभार खून लेने वाले ही कह जाते हैं कि –

‘‘बस स्वर्ग जा रही है’’

‘‘परंतु इतनी देर…’’ हम में से कोई कहता है.

‘‘धैर्य रखो, रास्ता बहुत लंबा और मुश्किल है, समय तो लगता ही है,’’ वे कहते हैं.

हम लोग फिर उन की बातें सुन कर चुप हो जाते हैं. हम यह सोचते हैं कि ये चालाक व समझदार लोग हैं, ठीक ही कहते होंगे. देखेंभालें तो न बस का चालक दिखता है, न ही कोई इंजन और न ही कोई टैंक. खून किस टंकी में पड़ता है, कहां जाता है, यह भी पता नहीं चलता है. सभी रहस्यमयी विचारों में उलझे रहते हैं.

अभी कुछ दिनों पहले की बात है. कुछ लोग हमारा खून लेने के लिए आए थे. वे लोग नएनए ही लग रहे थे. वे बहुत जोशीले थे. वे बहुत ही चालाकी से बातें कर रहे थे. वे पूरे वातावरण में एक अलग तरह का उत्साह भर रहे थे. वे बहुत प्यार से हमारा खून ले रहे थे. सब ने उन की बातें सुन कर उन को बहुत ही प्यार व सम्मान सहित अपना खून दिया.

वे लोग सब को यह भरोसा दिला रहे थे कि हम लोग बहुत जल्दी स्वर्ग पहुंच जाएंगे. सब उन की बातें सुनसुन कर बहुत खुश हो रहे थे. कितनी देर से दबेकुचले हम लोग भी आखिरकार स्वर्ग को जा रहे हैं, यह सोचसोच कर बहुत खुशी हो रही थी. सब लोग मारे खुशी के उन की जयजयकार कर रहे थे.

कुछ दिनों बाद फिर वे लोग हमारा खून लेने के लिए आए. ये पहले से कुछ जल्दी आ गए थे. उन्होंने फिर हमारे भीतर जोश भरा. हमें फिर सब्जबाग दिखाए. हमारी बांछें खिल उठीं. हम फिर मुसकराए. उन की बातों में बहुत उत्साह व जोश था. उन की बातें सुनसुन कर हमारे भीतर भी जोश आ गया. चारों ओर फिर उन की जयजयकार होने लगी. जोश ही जोश में उन्होंने हमारा खून निकालने वाले टीके निकाल लिए और हमारा खून निकालना शुरू कर दिया.

सब ने बहुत खुशीखुशी अपना खून दिया. परंतु इस बार हमारा खून निकालने वाले टीके पहले से कुछ बड़े थे. लेकिन हमारे भीतर जोश इतना भर गया था कि हमें सब पता होते हुए भी बुरा न लगा. कुछ अजीब तो लगा परंतु ज्यादा बुरा न लगा. थोड़ा सा बुरा लगा लेकिन यह तो होना ही है, ठीक है, अब बस को चलाने के लिए हमें भी तो कुछ करना ही है. सब की आस्था बस के ठीक रहने और उस के स्वर्ग तक पहुंचने की है. बस, इसी जोश और जज्बे के चलते हर कोई अपना सबकुछ न्योछावर करने को तैयार बैठा है.

अजीब बात तब हुई जब वे लोग फिर हमारे पास आए और हम से हमारी थोड़ीथोड़ी टांगों की मांग करने लगे. मतलब कि उन को हमारी टांगों के छोटेछोटे टुकड़े चाहिए थे. सब ने उन की इस मांग पर आपत्ति की. कोई भी उन को अपनी टांगें देने को तैयार नहीं था. उन को हमारी टांगें क्यों चाहिए, इस बात का किसी के पास कोई जवाब न था.

आखिर उन में से एक ने बताया कि वे लोग हमारी टांगों के छोटेछोटे टुकड़े ले कर बस में लगाएंगे ताकि बस तेजी से स्वर्ग की ओर जा सके. मेरे साथसाथ सब को बहुत बुरा लगा. सब ने फिर विरोध किया. कोई अपनी टांगों के टुकड़े देने को तैयार न था. आखिर वे लोग जोरजबरदस्ती पर उतर आए और हमारी टांगों के छोटेछोट टुकड़े उतार कर ले गए. हमारे सब के कद छोटे हो गए. आहिस्ताआहिस्ता यह परंपरा बन गई.

अब जब वे लोग हमारा खून लेने के लिए आते हैं तो वे हमारी टांगों के छोटेछोटे टुकड़े भी उतार कर ले जाते हैं. पूछने पर कहते कि बस को बहुत सारी टांगों की जरूरत है. उस में लगा रहे हैं. परंतु अजीब बात तो यह है कि हम बस में लगी अपनी टांगें देख नहीं पाते हैं क्योंकि बस में से बाहर जाने को हमारे लिए कोईर् रास्ता ही नहीं है. बस को चलाने वाले कैसे बाहर जाते हैं, हमें इस का भी कोई पता नहीं है.

हमें कभीकभी अपनी अवस्था गुलामों जैसी लगती है. लेकिन जब हम उन खून लेने वाले लोगों की बातें सुनते हैं तो हमें लगता है कि हम लोग ही सबकुछ हैं, लेकिन कई बार लगता है कि हम लोग कुछ भी नहीं है. यह भी बहुत अजीब तरह का एहसास है.

एक और अजीब बात है कि हमारे कद तो छोटे होते जा रहे हैं और हमारा खून लेने वालों के कद बड़े. हम लोग सूखते जा रहे हैं और वे लोग ताकतवर होते जा रहे हैं. हमारी पूंछें तो जमीन पर लटकती जा रही हैं और उन की तनती जा रही हैं.

अजीब बात है कि हम लोगों को लगता है कि हमारी पूंछ में कोई हड्डी ही नहीं. बस चलाने वाले अकसर यह कहते है कि वे लोग बस में हमारी टांगें लगा कर उस को रेलगाड़ी बना देंगे और अगर आप का ऐसा ही सहयोग रहा तो एक दिन रेलगाड़ी को हवाईजहाज बना देंगे. उन की बातों में बहुत ही जोश है और बहुत ही उत्साह. सब लोग उन की ऐसी बातें सुन कर बहुत ही उत्साह में आ जाते हैं. सब को उन की बातें सुन कर ऐसा लगता है कि ये लोग एक न एक दिन उन को स्वर्ग जरूर पहुंचा देंगे. हमारी बस को रेलगाड़ी और रेलगाड़ी को एक न एक दिन हवाईजहाज जरूर बना देंगे.

इसी विश्वास के साथ हम लोग हर बार उन की मांग के अनुसार उन को खून देने के लिए अपनेआप को उन के सम्मुख कर देते हैं. अपनी टांगों के छोटेछोटे टुकड़े भी उतार कर दे देते हैं, चाहे आहिस्ताआहिस्ता हमारा खून निकालने वाले टीकों के आकार बढ़ते जा रहे हों. हमारे कद छोटे होते जा रहे हैं और उन के बड़े. उन की पूंछें आसमान की ओर तनी जा रही हैं और हमारी जमीन पर लटकती जा रही हैं. लेकिन हम तो यही सोच कर अपना सबकुछ समर्पित करते जा रहे हैं कि एक न एक दिन ये लोग हमें स्वर्ग जरूर पहुंचा देंगे. लेकिन हमारे नौजवान उन की आसमान की ओर तनी पूछें देख कर अकसर दांत पीसते नजर आते हैं.   यह भी खूब रही राम अपने कंजूस दोस्त श्याम को कथा सुनाने ले गया. दोनों जब वहां पहुंचे तो देखा कि चारों तरफ पंडाल रंगबिरंगे कपड़ों से सजा हुआ था. फूलमाला पहने कथावाचक लोगों को दानपुण्य की महिमा बता रहे थे. कहने का मतलब पूरी कथा में दानपुण्य की महिमा बताई गई थी. वापस आने के बाद राम ने पूछा, ‘‘अब तुम्हारा क्या विचार है दान देने के बारे में?’’

श्याम ने कहा, ‘‘भाई, मैं तो धन्य हो गया आज की कथा सुन कर. सोच रहा हूं, मैं भी दान मांगना शुरू कर दूं.’’ यह सुनते ही राम की बोलती बंद हो गई.

मेरा बेटा 9 महीने का था. दिसंबर का महीना होने की वजह से कड़ाके की ठंड पड़ रही थी. एक दिन रात को करीब 3 बजे मेरे बेटे ने सोते समय पोटी कर दी. दांत निकल रहे थे, इसलिए पोटी पतली होने की वजह से उस के पैर भी गंदे हो गए थे.

पानी एकदम बर्फ की तरह ठंडा होेने की वजह से मैं ने बराबर में दूसरे बिस्तर पर सो रहे अपने पति को उठाया कि थोड़ा पानी गरम कर दें. जिस से मैं बेटे की पोटी साफ कर सकूं और उसे ठंड न लगे. किंतु मेरी बहुत कोशिश के बावजूद मेरे पति उठने को तैयार नहीं हुए. करवट बदल कर दूसरी तरफ मुंह कर के लिहाफ में दुबक कर सो गए.

मजबूर हो कर मैं ने बर्फ जैसे पानी से ही अपने बेटे की पोटी को साफ किया. पानी इतना ठंडा था कि मेरा बेटा बुरी तरह रो रहा था. मेरी भी उंगलियां ठंडे पानी की वजह से गली जा रही थीं. किंतु मेरे पतिदेव अब भी लिहाफ से मुंह ढक कर सो रहे थे. मैं ने जैसेतैसे बेटे को कपड़े से पोंछ कर सुखाया और लिहाफ में गरम कर के सुला दिया.

किंतु मेरी आंखों में नींद बिलकुल नहीं थी. मुझे पति पर गुस्सा आ रहा था कि उन के पानी न गरम करने की वजह से मुझे अपने बेटे को ठंडे पानी से साफ करना पड़ा और उसे परेशानी हुई.

अचानक मैं उठी और वही बर्फ जैसा पानी बालटी में ले आई. फिर गहरी नींद में सो रहे अपने पति के ऊपर उलट दिया. अब गुस्सा होने की बारी उन की थी. उन्होंने उठ कर एक जोर का चांटा मेरे गाल पर जड़ दिया. किंतु, फिर भी मैं उन को गीला करने के बाद अपने लिहाफ में चैन से सो गई.

आज उस घटना को 18 वर्ष बीत चुके, किंतु अब भी उस घटना को याद कर के हम लोग हंस पड़ते हैं.

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