नीली आंखों के गहरे रहस्य: भाग-3

मीठी मेरी बांहों में थी. उस ने कोई विरोध नहीं किया. मैं जैसे ही और आगे बढ़ने लगा तो उस ने रोक दिया, ‘‘प्लीज सर, आज नहीं, फिर कभी जब आप चाहें,’’ कहती हुई उस ने खुद को अलग कर लिया और मैं हड़बड़ा कर संभल गया.

‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूं, दिल्ली पहुंचते ही अपनी मां की तबीयत के बारे में फोन पर जरूर बताती रहना. अगर तुम कहो तो मैं सुबह तुम्हारे साथ दिल्ली चलूं,’’ अपनापन और आत्मीयता दर्शाते हुए मैं ने कहा.

‘‘नहीं सर, मैं सबकुछ मैनेज कर लूंगी. एंजियोप्लास्टी के बाद मैं किसी तरह पैसों का जुगाड़ कर के गहने छुड़ा लूंगी. मैं नहीं चाहती कि मम्मी को गहनों के बारे में कुछ पता चले.’’

मैं उस के घर से निकला तो घर पहुंचतेपहुंचते 11 बज चुके थे. साधना हैरानपरेशान थी. मुझे देखते ही उस की सांस में सांस आई, ‘‘मेरी तो जान ही निकल गई थी और ऊपर से आप का मोबाइल स्विच औफ…’’

‘‘और फिर जमाना भी ठीक नहीं है,’’ उस के आगे कुछ और बोलने से पहले मैं ने कहा तो वह मुसकरा पड़ी.

‘‘हां, सच ही तो कहती हूं कि जमाना ठीक नहीं है. चलो, अब जल्दी से चेंज करो, मैं खाना गरम करती हूं,’’ कहती हुई वह रसोई में चली गई.

उस ने खाना लगा दिया. लेकिन मेरा मन खाने में नहीं, बल्कि उस नीली आंखों वाली में लगा था. आज कितना अच्छा मौका हाथ से फिसल गया. मुझे कोफ्त हुई. चलो, फिर कभी सही. उस ने औफर तो कर ही दिया है, सोच कर मन में गुदगुदी सी हो गई.

दूसरे दिन बैंक गया. मन खुशगवार था. शाम को ही उस का फोन आ गया, ‘‘सर, मम्मी की एंजियोप्लास्टी हो गई है. वे अब ठीक हैं. 2 दिन यहीं रहना पड़ेगा, तीसरे दिन आ जाएंगे.’’

इन 2 दिनों फोन पर हमारी नियमित बातें होती रहीं. ऐसा लगा जैसे हमारा परिचय पुराना है.

जब वे लोग अलीगढ़ वापस आए तो मैं उस की मां को देखने उस के घर गया. मां को देखने का तो मात्र बहाना था.

उस की मां ने मेरा आभार प्रकट किया, ‘‘आनंदजी, आप ने 3 लाख रुपए हमें वक्तजरूरत पर उधार दे कर बहुत बड़ा उपकार किया है. हम जल्दी से जल्दी आप के रुपए लौटा देंगे.’’

‘‘अरे नहींनहीं, इतनी भी कोई जल्दी नहीं है. जब व्यवस्था बन जाए तब दे देना,’’ मैं ने सांत्वना दी.

उस रोज पहली बार मैं ने उस के घर में चाय पी. दूसरे दिन भी उस से फोन पर हलकीफुलकी औपचारिक बातें हुईं.

तीसरे दिन सुबह ही उस का फोन आया, ‘‘सर, आज मैं बहुत खुश हूं.’’

‘‘क्या कोई लौटरी खुल गई है?’’ मैं ने चुटकी ली.

‘‘हां सर, हमारे समय की लौटरी खुल गई है.’’

‘‘साफसाफ बताओ, आखिर माजरा क्या है?’’

‘‘सर, फोन पर नहीं बता सकती. आज शाम 6 बजे आप मुझ से सैंटर पौइंट के कौफीहाउस में मिलो.’’

मुझे दाल में कुछ काला नजर आया, ‘‘घर पर क्यों नहीं?’’

‘‘सर, खबर ही कुछ ऐसी है. मम्मी की अभी एंजियोप्लास्टी हुई है. सुन कर वे खुशी बरदाश्त नहीं कर सकेंगी. मैं नहीं चाहती कि उन्हें कुछ भी तकलीफ हो.’’ उस का जवाब सुन कर मैं संतुष्ट हो गया.

बैंक की ड्यूटी करने के बाद मैं सीधे सैंटर पौइंट के कौफीहाउस पहुंच गया. वह मेरा इंतजार कर रही थी. खुशी उस के चेहरे से साफ झलक रही थी. सच में, जब इंसान अंदर से खुश होता है तो उस के चेहरे का नूर बढ़ जाता है. वह पहले से अधिक हसीन और जवान नजर आ रही थी. उसे देख कर लगा, शायद आज मेरी हसरत पूरी हो जाएगी.

‘‘सर, प्लीज बैठिए,’’ कहती हुई उस ने 2 कप कौफी का और्डर कर दिया.

‘‘क्या बात है मीठी, आज तो तुम कोयल की तरह चहक रही हो?’’ मैं ने शरारती लहजे में कहा.

‘‘आज खुशी ही ऐसी मिली है कि मैं कोयल की तरह चहक रही हूं और मोरनी की तरह नाच रही हूं.’’

‘‘बताओ तो सही. या यों ही चहकती रहोगी?’’

‘‘सर, कल पापा का फोन आया था.’’

‘‘क्या?’’ मैं अचानक चौंक पड़ा, ‘‘लेकिन उन्होंने तो तुम दोनों से रिश्ता ही खत्म कर लिया था.’’

‘‘हां, यह सच है लेकिन पापा मुझ से बहुत प्यार करते हैं. जब मैं पैदा हुई थी, उन की तरह मेरी भी नीली आंखें थीं. मम्मी को बताए बगैर हम बापबेटी फोन पर बात करते रहते थे. मैं ने उन्हें मम्मी की तबीयत के विषय में नहीं बताया था लेकिन कल उन्होंने बेचैनीभरे स्वर में पूछा, ‘मीठी, ममता कैसी है? सपने में मैं ने उसे बहुत तकलीफ में देखा है’.

‘‘मैं कुछ छिपा न सकी और उन्हें सबकुछ सचसच बता दिया. उन्होंने तुरंत अपने किसी भारतीय मित्र से कह कर मेरे अकाउंट में 3 लाख रुपए डलवा दिए और बोले, ‘मीठी, मैं तुम दोनों का गुनाहगार हूं, तुम से माफी मांगता हूं. मेरे और सेरेना के बीच कुछ अच्छा नहीं चल रहा. मुझे तुम दोनों की बहुत याद आती है. सेरेना से तलाक ले कर मैं तुरंत भारत आ जाऊंगा. फिर हम सब साथ रहेंगे पहले की तरह. मैं ने पैसा भी खूब कमा लिया है.’’

वह अपने पर्स में से नोटों की गड्डियां निकाल कर मुझे देती हुई बोली, ‘‘ये पूरे 3 लाख रुपए हैं. आप मेरे गहने ले आइए.’’

नोटों की गड्डियां मेरे हाथों में थीं. समस्या यह थी कि मैं इन्हें रखूं कहां? मुझे उलझन में देख कर वह बोली, ‘‘मैं काउंटर से एक कैरी बैग ले कर आती हूं.’’

उस के जाते ही मैं ने तुरंत नोटों की गड्डियों को अच्छी तरह उलटपलट कर देखा और खुद को आश्वस्त कर लिया कि वे असली ही हैं और पूरे 3 लाख हैं.

रुपए ले कर ज्वैलर के यहां जाने लगा तो सोचा, यहां से उस की दुकान दूर है, रात का समय है, कल लंचटाइम में उस को पैसा दे आऊंगा और गहने ले कर, बैंक के बाद शाम को मीठी के घर दे आऊंगा. पैसों के विषय में साधना से कह दूंगा कि एक परिचित के हैं. बैंक में जमा कराने आए थे लेकिन देरी की वजह से जमा न हो सके. कल जमा कर दूंगा.

घर पहुंचतेपहुंचते रात हो गई थी. साधना गुस्से में बैठी थी. मैं जानता था कि देर से आने की वजह से यह गुस्सा है. मैं ने उसे मनाने के उद्देश्य से कहा, ‘‘मानता हूं जमाना ठीक नहीं है लेकिन एक पार्टी के साथ मीटिंग में इतना व्यस्त हो गया कि तुम्हें फोन भी न कर सका.’’

‘‘आप की पार्टी तो बहुत खूबसूरत होती हैं.’’

‘‘तुम्हारे कहने का मतलब क्या है?’’ मैं थोड़ा सकपका गया.

‘‘ईमानदार बैंक मैनेजर साहब, मेरे कहने का मतलब यह है कि आप ने एक लड़की को लोन दिलाने के एवज में रिश्वत ली है.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है. मैं ने कोई रिश्वतविश्वत नहीं ली है.’’

‘‘तो फिर इस कैरीबैग में क्या है?’’

‘‘इस में तो एक परिचित के पैसे हैं. कल बैंक में जमा करने हैं. आज वे देर से आए थे.’’

‘‘अब आप एक झूठ छिपाने के लिए और झूठ मत बोलो. वह बेचारी तो आत्मनिर्भर बनने के लिए अपना ब्यूटीपार्लर खोलना चाहती थी, इसलिए आप के बैंक से लोन लेना चाहती थी. और आप ने उस का लोन पास करवाने के लिए रिश्वत ली. उस वक्त कहां सैर करने चले गए थे आप के गांधीवादी विचार?’’

‘‘तुम से किस ने कहा?’’

‘‘मैं ने खुद अपनी आंखों से देखा सैंटर पौइंट के कौफीहाउस में.’’

यह सुन कर मेरे होश उड़ गए. साधना गुस्से की वजह से सोफे पर लेट गई. उस ने खाना तो दूर, चायपानी तक को न पूछा. मैं सिर पकड़ कर बैठा था, आखिर साधना को खबर किस ने की? तभी व्हाट्सऐप पर एक वीडियो आया जिस में मेरी और मीठी की वही प्रणयदृश्य वाली क्लिपिंग थी जो उस के घर पर क्षणिक आवेश में हुआ था. अभी मैं यह देख ही रहा था कि व्हाट्सऐप पर वे फोटो भी आ गए जिन में मीठी मुझे नोटों की गड्डियां दे रही है.

मैं सन्न रह गया. तो यह सब करतूत मीठी की है. गुस्से में उसे फोन लगाने लगा लेकिन उस से पहले ही एक अंजान नंबर से फोन आया, ‘‘सर, आप ने व्हाट्सऐप पर वीडियो और फोटो तो देख लिए हैं. इन्हें डिलीट करने के लिए सिर्फ 25 लाख रुपए आप मेरे अकाउंट में डाल दीजिए. अपना अकाउंट नंबर आप को मैसेज कर दूंगी,’’ कह कर फोन काट दिया.

यह आवाज तो मीठी की नहीं थी लेकिन मुझे विश्वास था कि यह करतूत उसी की है. मुझे खुद पर गुस्सा आया. इतनी सावधानी, सतर्कता और चतुराई बरतने के बावजूद मैं उस फ्रौड लड़की के जाल में फंस गया. इधर, साधना की नजरों में भी गिर गया. ‘न घर का न घाट का’ जैसी स्थिति हो गई मेरी. मैं फूटफूट कर रो पड़ा.

रोता देख कर शायद साधना को मुझ पर तरस आ गया, आ कर बोली, ‘‘मैं कहती थी न, जमाना ठीक नहीं है. यह सुन कर आप हंसते थे लेकिन पता नहीं क्यों आप को इस तरह रोता देख कर मुझे ऐसा लग रहा है कि आप बेकुसूर हो, आप को फंसाया गया है. प्लीज, मुझे सबकुछ साफसाफ बताओ.’’

‘‘साधना, तुम्हें कैसे पता चला कि मैं सैंटर पौइंट के कौफीहाउस में हूं.’’

‘‘शाम को 4 बजे के लगभग एक लड़की का फोन आया था. उसी ने बताया और मुझे कौफीहाउस पहुंचने को कहा था. लेकिन मुझे आप पर पूरा भरोसा था कि आप ऐसा कर ही नहीं सकते, जरूर वह लड़की झूठ बोल रही है. फिर मन में लगा, कभीकभी जब हम किसी पर अपने से ज्यादा भरोसा करते हैं तो वही उस के भरोसे को तोड़ भी देता है. इसलिए सोचा, जाने में क्या हर्ज है?’’

‘‘साधना, मैं अपनी एक क्षणिक कमजोरी की वजह से बुरी तरह फंस गया हूं,’’ कहता हुआ उस से लिपट कर फफकफफक कर रो पड़ा. पहली बार बैंक में मीठी से मिलने से ले कर कौफीहाऊस तक के पूरे घटनाक्रम को मैं ने साफसाफ बता दिया.

‘‘अब वह चालाक लड़की मुझे ब्लैकमेल कर के 25 लाख रुपए अपने अकाउंट में डालने को कह रही है. उस के खिलाफ पुलिस में भी रिपोर्ट नहीं कर सकता क्योंकि उस के पास अंतरंग क्षणों का वीडियो और उस से नोटों की गड्डियां लेते हुए फोटो हैं. मैं क्या करूं, मेरा तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा.’’

‘‘लगता है यह सब पूर्व नियोजित ढंग से रची हुई साजिश है जिस में वह लड़की अकेली नहीं, कोई और भी शामिल है,’’ पूरी कहानी सुनने के बाद साधना बोली.

‘‘हां, लग तो ऐसा ही रहा है लेकिन अब मैं क्या करूं? उसे फोन लगाता हूं तो स्विचऔफ जाता है.’’

‘‘आप कुछ मत करो, शांत बैठो.’’

‘‘तुम पागल हो गई हो? अगर उस के अकाउंट में पैसा न डाला तो वह वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो जाएंगे. वह सिरफिरी लड़की जोनल औफिस में मेरे खिलाफ शिकायत भी कर देगी क्योंकि उस के पास सुबूत हैं. नौकरी से तो हाथ धोना ही पड़ेगा, साथ ही जेल की हवा और बदनामी अलग. हमारी बेटी से शादी कौन करेगा? जब वह वीडियो  मेरी बेटी देखेगी तो मैं कहां मुंह छिपाऊंगा?’’ मैं रोंआसा हो उठा.

‘‘वह ऐसा कुछ नहीं करेगी. 25 लाख रुपए की रकम कोई मामूली नहीं होती. उस को आप की बदनामी से ज्यादा रकम प्यारी है. अकाउंट में पैसा न आने पर वह आप से संपर्क जरूर करेगी.’’

‘‘साधना, यह बहुत बड़ा रिस्क है.’’

‘‘रिस्क तो लेना ही पड़ेगा. मान लो उस के अकाउंट में पैसा डाल दिया और उस ने वह सबकुछ डिलीट न किया तो? और आगे भी ब्लैकमेल करती रही तब?’’

साधना बात तो ठीक कह रही थी. मैं ने बैंक से 2 दिनों की छुट्टी ले ली और सांस थामे मीठी के फोन का इंतजार करने लगा.

साधना की भविष्यवाणी सच साबित हुई. दूसरे दिन रात को उस का फोन आ गया, ‘‘सर, आप ने मेरा काम नहीं किया?’’

स्पीकर औन था. ‘‘मीठी, तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा क्यों किया?’’

‘‘सर, क्या कह रहे हैं आप? मैं ने धोखा किया है आप के साथ? यह तो आप सरासर झूठ बोल रहे हैं. आप ने ही तो मेरा लोन पास करवाने के लिए पैसे की मांग की थी और इस के लिए आप ने मुझे सैंटर पौइंट के कौफीहाऊस में बुलाया था और मैं ने आप को पैसा भी दे दिया लेकिन आप ने मेरा काम नहीं किया.’’

‘‘प्लीज मुझे 2 दिनों का समय दो,’’ कह कर मैं ने फोन काट दिया.

अधूरे प्यार की टीस: भाग 3-क्यों बिखर गई सीमा की गृहस्थी

कुछ देर बाद जब रवि ने उन के कमरे में कदम रखा तब राकेशजी के चेहरे पर तनाव के भाव साफ नजर आ रहे थे.

‘‘इतनी टेंशन में किसलिए नजर आ रहे हो, पापा?’’ रवि ने माथे में बल डाल कर सवाल पूछा.

‘‘तुम्हारी मम्मी का फोन आया था,’’ राकेशजी का स्वर नाराजगी से भरा था.

‘‘ऐसा क्या कह दिया उन्होंने जो आप इतने नाखुश दिख रहे हो?’’

‘‘मकान तुम्हारे नाम करने और मेरे अकाउंट में तुम्हारा नाम लिखवाने की बात कह रही थी.’’

‘‘क्या आप को उन के ये दोनों सुझाव पसंद नहीं आए हैं?’’

‘‘तुम्हारी मां का बात करने का ढंग कभी ठीक नहीं रहा, रवि.’’

‘‘पापा, मां ने मेरे साथ इन दोनों बातों की चर्चा चलने से पहले की थी. इस मामले में मैं आप को अपनी राय बताऊं?’’

‘‘बताओ.’’

‘‘पापा, अगर आप अपना मकान अंजु आंटी और नीरज को देना चाहते हैं तो मेरी तरफ से ऐसा कर सकते हैं. मैं अच्छाखासा कमा रहा हूं और मौम की भी यहां वापस लौटने में बिलकुल दिलचस्पी नहीं है.’’

‘‘क्या तुम को लगता है कि अंजु की इस मकान को लेने में कोई दिलचस्पी होगी?’’ कुछ देर खामोश रहने के बाद राकेशजी ने गंभीर लहजे में बेटे से सवाल किया.

‘‘क्यों नहीं होगी, डैड? इस वक्त हमारे मकान की कीमत 70-80 लाख तो होगी. इतनी बड़ी रकम मुफ्त में किसी को मिल रही हो तो कोई क्यों छोड़ेगा?’’

‘‘मुझे यह और समझा दो कि मैं इतनी बड़ी रकम मुफ्त में अंजु को क्यों दूं?’’

‘‘पापा, आप मुझे अब बच्चा मत समझो. अपनी मिस्टे्रस को कोई इनसान क्यों गिफ्ट और कैश आदि देता है.’’

‘‘क्यों देता है?’’

‘‘रिलेशनशिप को बनाए रखने के लिए, डैड. अगर वह ऐसा न करे तो क्या उस की मिस्टे्रस उसे छोड़ क र किसी दूसरे की नहीं हो जाएगी.’’

‘‘अंजु मेरी मिस्टे्रस कभी नहीं रही है, रवि,’’ राकेशजी ने गहरी सांस छोड़ कर जवाब दिया, ‘‘पर इस तथ्य को तुम मांबेटा कभी सच नहीं मानोगे. मकान उस के नाम करने की बात उठा कर मैं उसे अपमानित करने की नासमझी कभी नहीं दिखाऊंगा. नीरज की पढ़ाई पर मैं ने जो खर्च किया, अब नौकरी लगने के बाद वह उस कर्जे को चुकाने की बात दसियों बार मुझ से कह…’’

‘‘पापा, मक्कार लोगों के ऐसे झूठे आश्वासनों को मुझे मत सुनाओ, प्लीज,’’ रवि ने उन्हें चिढ़े लहजे में टोक दिया, ‘‘अंजु आंटी बहुत चालाक और चरित्रहीन औरत हैं. उन्होंने आप को अपने रूपजाल में फंसा कर मम्मी, रिया और मुझ से दूर कर…’’

‘‘तुम आज मेरे मन में सालों से दबी कुछ बातें ध्यान से सुन लो, रवि,’’ इस बार राकेशजी ने उसे सख्त लहजे में टोक दिया, ‘‘मैं ने अपने परिवार के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियां बड़ी ईमानदारी से पूरी की हैं पर ऐसा करने के बदले में तुम्हारी मां से मुझे हमेशा अपमान की पीड़ा और अवहेलना के जख्म ही मिले.

‘‘रिया और तुम भी अपनी मां के बहकावे में आ कर हमेशा मेरे खिलाफ रहे. तुम दोनों को भी उस ने अपनी तरह स्वार्थी और रूखा बना दिया. तुम कल्पना भी नहीं कर सकते कि तुम सब के गलत और अन्यायपूर्ण व्यवहार के चलते मैं ने रातरात भर जाग कर कितने आंसू बहाए हैं.’’

‘‘पापा, अंजु आंटी के साथ अपने अवैध प्रेम संबंध को सही ठहराने के लिए हमें गलत साबित करने की आप की कोशिश बिलकुल बेमानी है,’’ रवि का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा था.

‘‘मेरा हर एक शब्द सच है, रवि,’’ राकेशजी जज्बाती हो कर ऊंची आवाज में बोलने लगे, ‘‘तुम तीनों मतलबी इनसानों ने मुझे कभी अपना नहीं समझा. दूसरी तरफ अंजु और नीरज ने मेरे एहसानों का बदला मुझे हमेशा भरपूर मानसम्मान दे कर चुकाया है. इन दोनों ने मेरे दिल को बुरी तरह टूटने से…मुझे अवसाद का मरीज बनने से बचाए रखा.

‘‘जब तुम दोनों छोटे थे तब हजारों बार मैं ने तुम्हारी मां को तलाक देने की बात सोची होगी पर तुम दोनों बच्चों के हित को ध्यान में रख कर मैं अपनेआप को रातदिन की मानसिक यंत्रणा से सदा के लिए मुक्ति दिलाने वाला यह निर्णय कभी नहीं ले पाया.

‘‘आज मैं अपने अतीत पर नजर डालता हूं तो तुम्हारी क्रूर मां से तलाक न लेने का फैसला करने की पीड़ा बड़े जोर से मेरे मन को दुखाती है. तुम दोनों बच्चों के मोह में मुझे नहीं फंसना था…भविष्य में झांक कर मुझे तुम सब के स्वार्थीपन की झलक देख लेनी चाहिए थी…मुझे तलाक ले कर रातदिन के कलह, लड़ाईझगड़ों और तनाव से मुक्त हो जाना चाहिए था.

‘‘उस स्थिति में अंजु और नीरज की देखभाल करना मेरी सिर्फ जिम्मेदारी न रह कर मेरे जीवन में भरपूर खुशियां भरने का अहम कारण बन जाता. आज नीरज की आंखों में मुझे अपने लिए मानसम्मान के साथसाथ प्यार भी नजर आता. अंजु को वैधव्य की नीरसता और अकेलेपन से छुटकारा मिलता और वह मेरे जीवन में प्रेम की न जाने कितनी मिठास भर…’’

राकेशजी आगे नहीं बोल सके क्योंकि अचानक छाती में तेज दर्द उठने के कारण उन की सांसें उखड़ गई थीं.

रवि को यह अंदाजा लगाने में देर नहीं लगी कि उस के पिता को फिर से दिल का दौरा पड़ा था. वह डाक्टर को बुलाने के लिए कमरे से बाहर की तरफ भागता हुआ चला गया.

राकेशजी ने अपने दिल में दबी जो भी बातें अपने बेटे रवि से कही थीं, उन्हें बाहर गलियारे में दरवाजे के पास खड़ी अंजु ने भी सुना था. रवि को घबराए अंदाज में डाक्टर के कक्ष की तरफ जाते देख वह डरी सी राकेशजी के कमरे में प्रवेश कर गई.

राकेशजी के चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव देख कर वह रो पड़ी. उन्हें सांस लेने में कम कष्ट हो, इसलिए आगे बढ़ कर उन की छाती मसलने लगी थी.

‘‘सब ठीक हो जाएगा…आप हिम्मत रखो…अभी डाक्टर आ कर सब संभाल लेंगे…’’ अंजु रोंआसी आवाज में बारबार उन का हौसला बढ़ाने लगी.

राकेशजी ने अंजु का हाथ पकड़ कर अपने हाथों में ले लिया और अटकती आवाज में कठिनाई से बोले, ‘‘तुम्हारी और अपनी जिंदगी को खुशहाल बनाने से मैं जो चूक गया, उस का मुझे बहुत अफसोस है…नीरज का और अपना ध्यान रखना…अलविदा, माई ल…ल…’’

जिम्मेदारियों व उत्तरदायित्वों के समक्ष अपने दिल की खुशियों व मन की इच्छाओं की सदा बलि चढ़ाने वाले राकेशजी, अंजु के लिए अपने दिल का प्रेम दर्शाने वाला ‘लव’ शब्द इस पल भी अधूरा छोड़ कर इस दुनिया से सदा के लिए विदा हो गए थे.

हम किसी से कम नहीं: समीर ने मानसी के साथ क्या किया?

मानसी की समीर से लैंडलाइन फोन पर रविवार की सुबह 11 बजे बात हुई. दिल्ली से मेरठ आए समीर को अपने घर का रास्ता समझने में मानसी को ज्यादा कठिनाई नहीं हुई. मानसी के मम्मीपापा उस के बीमार मामाजी का हाल पूछने गए हुए थे. उस ने अपने पापा से उन के मोबाइल पर बात कर के उन्हें समीर के आने की सूचना दे दी.

‘‘हमें लौटने में अभी करीब घंटा भर लग जाएगा. तब तक तुम समझदारी से उस के साथ बात करो और उसे नाश्ता भी जरूर करा देना,’’ हिदायत दे कर उस के पापा ने फोन काट दिया.

मानसी की मम्मी की बचपन की सहेली शीला का बेटा है समीर, जो उसी से मिलने आ रहा था. अगर वे इस पहली बार होने वाली मुलाकात में एकदूसरे को पसंद कर लेते हैं, तो यह रिश्ता पक्का होने में कोई और रुकावट नहीं आने वाली थी.

समीर 10 मिनट बाद उस के घर पहुंच गया. अपने सामने 2 सुंदर, स्मार्ट लड़कियों को देख समीर सकुचाया सा नजर आने लगा.

‘‘मैं मानसी हूं और यह है मेरी सब से अच्छी सहेली शिखा,’’ दरवाजे पर अपना व अपनी सहेली का परिचय दे कर मानसी उसे ड्राइंगरूम में ले आई. उन के बीच कुछ देर मामाजी की बीमारी, मौसम व ट्रैफिक की बातें हुईं और फिर मानसी उठ कर चाय बनाने चली गई.

शिखा ने मुसकराते हुए उसे ऊपर से नीचे तक ध्यान से देखा और फिर हलकेफुलके लहजे में कहा, ‘‘जोड़ी तो तुम दोनों की खूब जंचेगी.

तुम्हें कैसी लगी पहली नजर में मेरी सहेली?’’

‘‘मैं तो कहूंगा कि तुम दोनों सहेलियां एकदूसरे से बढ़चढ़ कर सुंदर और स्मार्ट हैं,’’ समीर ने लगे हाथ दोनों सहेलियों की तारीफ कर डाली.

शिखा खुश हो कर बोली, ‘‘तुम तो काफी समझदार इंसान लग रहे हो. अच्छा यह बताओ कि तुम अपने कैरियर से खुश हो या आगे और कोई कोर्स वगैरह करोगे?’’

‘‘इंजीनियरिंग के बाद मैं ने एमबीए कर लिया है. अब और ज्यादा पढ़ने की हिम्मत नहीं है मुझ में.’’

‘‘लेकिन मेरी सहेली अभी और पढ़ कर सीए बनना चाहती है. क्या तुम उसे आगे पढ़ने की सुविधा दोगे?’’

‘‘उसे मेरा पूरा सहयोग मिलेगा.’’

‘‘यानी आप उस की हर इच्छा पूरी करने को हमेशा तैयार रहेंगे?’’ शिखा ने बड़ी अदा के साथ सवाल किया.

‘‘बिलकुल.’’

‘‘और ऐसा करने पर

अगर लोग तुम्हें जोरू का गुलाम कहने लगे तो?’’ शिखा की खिलखिलाती हंसी ड्राइंगरूम में गूंज उठी. समीर को झेंपते देख शिखा के ऊपर हंसी का दौरा ही पड़ गया. जब उस की हंसी थमी तब समीर ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अगर तुम बुरा न मानो तो एक बात कहूं?’’

‘‘हां, कहो.’’

‘‘तुम्हारी हंसी बहुत सैक्सी है.’’

समीर की इस टिप्पणी को सुन कर उस के गाल गुलाबी हो उठे. फिर वह फौरन संभली और नाराज होते हुए बोली, ‘‘अरे, तुम तो पहली मुलाकात में ही जरूरत से ज्यादा खुल रहे हो.’’

‘‘सौरी. प्रौब्लम यह है कि सुंदर लड़कियों को देख कर मैं जरा ज्यादा ही अच्छे मूड में आ जाता हूं,’’ समीर शर्मिंदा दिखने के बजाय शरारती अंदाज में मुसकरा रहा था.

‘‘यानी तुम सुंदर लड़कियों से फ्लर्ट करने के शौकीन हो?’’ शिखा ने भौंहें चढ़ा कर पूछा.

‘‘थोड़ाथोड़ा, पर यह बात अपनी सहेली को मत बताना.’’

‘‘मैं तो जरूर बताऊंगी.’’

‘‘तुम नहीं बताओगी.’’

‘‘यह बात इतने विश्वास से कैसे कह रहे हो?’’ शिखा ने तुनक कर पूछा.

‘‘देखो, मानसी से मेरी शादी होगी तो तुम मेरी प्रिय साली बनोगी. क्या तुम अपने भावी जीजा की चुगली कर उस के साथ अभी से संबंध खराब करना चाहोगी?’’

‘‘बातें बनाने में तो तुम पूरे उस्ताद लग रहे हो. अच्छा यह बताओ कि नौकरी कहां कर रहे हो?’’

‘‘एक मल्टीनैशनल कंपनी में.’’

‘‘कितनी पगार मिलती है?’’

‘‘कटकटा कर 60 हजार रुपये मिल जाते हैं.’’

‘‘और कितने साल से नौकरी कर रहे हो?’’

‘‘लगभग 3 साल से.’’

‘‘तब तो तुम ने बहुत माल जमा कर रखा होगा?’’

‘‘तुम्हें कभी लोन चाहिए तो मांग लेना,’’ समीर ने फौरन दरियादिली दिखाई.

‘‘लेने के बाद अगर मैं ने लोन वापस नहीं किया तो?’’

‘‘कोई बात नहीं. अपनी प्यारी सी साली के लिए लोन को गिफ्ट में बदल कर मुझे बहुत खुशी होगी.’’

शिखा ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा, ‘‘मानसी बहुत सीधी और भोली लड़की है. मुझे नहीं लगता कि वह तुम्हारे जैसे तेजतर्रार और चालू इंसान के साथ शादी कर के खुश रहेगी.’’

‘‘अब यह शादी तो तुम्हें करानी ही पड़ेगी,’’ समीर ने फौरन नाटकीय अंदाज में उस के सामने हाथ जोड़ दिए.

‘‘वह क्यों?’’ शिखा ने चौंक कर पूछा.

‘‘मैं तुम जैसी अच्छी साली को नहीं खोना चाहता हूं.’’

‘‘सिर्फ अच्छी साली पाने के लिए तुम किसी के भी साथ शादी कर लोगे?’’

‘‘तुम जैसी शानदार साली को पाने के लिए ऐसा खतरा उठाया जा सकता है.’’

‘‘ऐ मिस्टर, मुझ पर ज्यादा लाइन मत मारो, नहीं तो मानसी नाराज हो जाएगी.’’

‘‘तब तुम अपनी अदाओं से मुझे लुभाना बंद कर दो.’’

शिखा उसे कोई तीखा जवाब दे पाती, उस से पहले ही मानसी चायनाश्ते की ट्रे उठाए वहां आ पहुंची. उस ने चाय का कप समीर को पकड़ाते हुए संजीदे स्वर में कहा, ‘‘मैं तुम दोनों की बातें रसोई में खड़ी सुन रही थी. मेरे मन में एक सवाल उठ रहा है. क्या तुम शादी के बाद अपनी भावी पत्नी के प्रति वफादार रह सकोगे?’’

समीर ने फौरन लापरवाह अंदाज में जवाब दिया, ‘‘इस मामले में मैं कुछ नहीं कह सकता. मेरा मानना है कि जबरदस्ती कोई किसी से प्यार नहीं कर सकता.’’

‘‘वाह, क्या बात कही है,’’ शिखा ने फौरन उस के डायलौग की तारीफ की.

‘‘लेकिन मेरा मानना है कि एक बार शादी हो गई तो उस पवित्र रिश्ते को हमें जीवन भर निभाना चाहिए,’’ मानसी ने उसे अपना मत बता दिया.

‘‘जीवनसाथी अगर गले का फंदा बन जाए तो रिश्ता तोड़ देने में भी कोई बुराई नहीं है,’’ समीर ने उस की बात सुनने के बाद भी अपना नजरिया नहीं बदला था.

‘‘वाह, क्या बात कही है,’’ शिखा फिर बीच में बोल पड़ी.

‘‘तुम मेरी तारीफ कर रही हो या मजाक उड़ा रही हो?’’ समीर ने उसे नाटकीय अंदाज में घूरा.

‘‘तुम्हें क्या लगता है?’’ शिखा सवाल पूछ कर व्यंग्य भरे अंदाज में मुसकरा उठी.

समीर के जवाब देने से पहले ही मानसी बोल पड़ी, ‘‘मुझे तो तुम दोनों की आपस में ट्यूनिंग ज्यादा अच्छी लग रही

है. इसलिए अच्छा यही होगा कि मेरी जगह…’’

‘‘बस, आगे कुछ मत कहो मानसी,’’ समीर ने उसे टोक दिया, ‘‘मैं शादी तुम से ही करूंगा, क्योंकि यह तो साली बन कर मेरी जिंदगी में आ ही जाएगी.’’

फिर समीर ने अचानक शरारती अंदाज में शिखा को आंख मारी तो वह भड़क कर झटके से खड़ी हो गई और बोली, ‘‘तुम जरूरत से ज्यादा चालू इंसान हो, मिस्टर समीर. मैं ने तुम्हें अच्छी तरह परख लिया है.’’

‘‘अगर परख लिया है तो बता दो कि मुझे 100 में से कितने नंबर दोगी?’’ समीर ने शान से कौलर खड़ा करते हुए पूछा.

‘‘मैं यह शादी होने ही नहीं दूंगी,’’ शिखा का मुंह गुस्से से लाल हो उठा.

‘‘तुम गुस्सा करते हुए और भी ज्यादा खूबसूरत लगती हो,’’ समीर उस की तारीफ करने का यह मौका भी नहीं चूका.

‘‘मैं इन जनाब को और ज्यादा सहन नहीं कर सकती. अब तू ही इन्हें झेल,’’ कह कर शिखा तमतमाती हुई वहां से उठी और मकान के भीतरी भाग में चली गई.

‘‘अपने प्यार को हर लड़की पर लुटाते रहोगे तो कोई भी हाथ नहीं आएगी,’’ ऐसा तीखा जवाब दे कर मानसी शिखा के पीछे जाने को तैयार हुई कि तभी कालबैल की आवाज गूंज उठी.

मानसी दरवाजा खोलने चली गई और जब लौटी तो उस के मातापिता साथ अंदर आए.

‘‘कैसे हो तुम, समीर? कुछ खिलायापिलाया इन दोनों ने तुम्हें?’’ मानसी के पिता ने समीर से बड़ी गर्मजोशी के साथ हाथ मिलाया.

तभी शिखा ने कमरे में प्रवेश किया और गुस्से से भरी आवाज में बोली, ‘‘हमारी शादी नहीं हो सकती, पापा.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रही हो, बेटी?’’ उस के पापा की आंखों में चिंता के भाव थे.

अपने पापा को जवाब देने के बजाय शिखा समीर की तरफ घूमी और चुभते लहजे में बोली, ‘‘मैं इन्हें पापा इसलिए कह रही हूं, क्योंकि मैं मानसी हूं, शिखा नहीं. मैं तुम से खुल कर बातें करना चाहती थी, इसलिए शिखा बन कर मिली. जो कुछ हुआ बहुत अच्छा हुआ, क्योंकि अब मैं कम से कम तुम्हारी असलियत तो पहचानती हूं. मैं तुम्हारे जैसे छिछोरे इंसान के साथ शादी कर के जिंदगी भर का रिश्ता बिलकुल नहीं जोड़ना चाहूंगी.’’

समीर परेशान दिखने के बजाय उत्साहित अंदाज में बोला, ‘‘लेकिन तुम जरा शांति से सोचोगी तो एक बात साफ हो जाएगी, मानसी. मैं फिदा तो तुम पर ही हुआ हूं और यह बात तो हमारी शादी होने के हक में जानी चाहिए.’’

‘‘सौरी, मिस्टर समीर, यही बात तो तुम्हारी नीयत व चरित्र में खोट होने का सुबूत है.’’

समीर अचानक गुस्से से भड़क उठा, ‘‘कुसूरवार तुम भी कम नहीं हो. तुम मुझे इतनी ज्यादा लिफ्ट क्यों दे रही थीं?’’

‘‘मुझे तुम्हारे साथ किसी बहस में नहीं पड़ना है. तुम अपने लिए कोई और लड़की

ढूंढ़ लो.’’

‘‘नहीं, मुझे तुम से ही शादी करनी है,’’ समीर उस के सामने तन कर खड़ा हो गया, ‘‘तुम मजाक करो तो मजाक और दूसरा मजाक करे तो चरित्रहीन. यह कहां का इंसाफ हुआ?’’

‘‘क्या मतलब हुआ तुम्हारी इस बात का?’’ मानसी एकदम से चौंक कर उलझन की शिकार बन गई.

‘‘तुम शिखा बन कर मुझ से मिलीं जरूर, पर सच यह है कि तुम मुझ से अपनी असलियत छिपा नहीं पाई थीं,’’ समीर अब खुल कर मुसकरा रहा था.

‘‘ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि हम जिंदगी में आज पहली बार मिले हैं,’’ मानसी को उस के कहे पर विश्वास नहीं हुआ था.

समीर ने अपने कोट की जेब से एक तसवीर निकाली और मानसी को दिखाते हुए बोला, ‘‘तुम्हारी कालेज की सहेली वंदना की शादी दिल्ली में हुई है. तुम्हारी यह तसवीर  मुझे 2 दिन पहले उसी से मिल गई थी. तभी मुझे आज तुम्हें पहचानने में दिक्कत नहीं हुई थी.’’

‘‘तुम्हें यह बात हमें शुरू में ही बतानी चाहिए थी,’’ मारे घबराहट के मानसी अब हकलाने लगी थी.

‘‘अगर मैं शुरू में ही यह सस्पैंस खोल देता तो फिर मुझे यह कैसे पता चलता कि मेरी होने वाली पत्नी कितनी नौटंकी करना जानती है,’’  समीर के इस मजाक पर मानसी को छोड़ बाकी तीनों ठहाका मार कर हंस पड़े.

‘‘यह आप ने बिलकुल ठीक नहीं किया,’’  मानसी के गोरे गाल गुलाबी हो उठे और वह पहली बार उसी अंदाज में शरमाई जैसे कोई भी लड़की अपने भावी पति को सामने देख कर शरमाती है.

‘‘मैं ऐसा न करता तो तुम्हें यह कैसे पता लगता कि नौटंकी करने में हम भी किसी कम नहीं हैं,’’ समीर द्वारा नाटकीय अंदाज में छाती फुला कर किए गए इस मजाक पर पूरा कमरा एक बार फिर ठहाकों से गूंजा तो मानसी लजातीशरमाती अपने कमरे में भाग गई.

दिशाएं और भी हैं

दोपहर से बारिश हो रही थी. रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. घर सुनसान था. कमरा खामोश था. कभीकभी नमिता को नितांत सन्नाटे में रहना भला लगता था. टीवी, रेडियो, डैक सब बंद रखना, अपने में ही खोए रहना अच्छा लगता था.

वह अपने खयालों में थी कि तभी उसे लगा कि साथ वाले कमरे में कुछ आहट हुई है. वह ध्यान से सुनने लगी, पर फिर कोई आवाज नहीं हुई. शायद उस के मन में अकेलेपन का भय होगा. कमरे में शाम का अंधेरा वर्षा के कारण कुछ अधिक घिर आया था.

नमिता खिड़की से निहार रही थी. इसी बीच उसे फिर लगा कि कमरे में आहट हुई है. अंधेरे में ही उस ने कमरे में नजर दौड़ाई. जब उस ने दरवाजा बंद किया था तब चारों ओर देख कर बंद किया था. कहीं सिटकिनी लगाना तो नहीं भूल गई.

जाते वक्त मां ने कहा था, ‘‘घर के खिड़कीदरवाजे बंद रखना, शाम ढलने के पहले घर लौट आना.’’

मां की इस हिदायत पर नमिता हंसी थी, ‘‘मैं छुईमुई बच्ची नहीं हूं मां. कानून पढ़ चुकी हूं और अब पीएचडी कर रही हूं. जूडोकराटे में भी पारंगत हूं. किसी भी बदमाश से 2-2 हाथ कर सकती हूं.’’

बावजूद इस के मां ने चेतावनी देते हुए कहा था, ‘‘मत भूल बेटी कि तू एक लड़की है और लड़की को ऊंचनीच और अपनी इज्जतआबरू के लिए डरना चाहिए.’’

‘‘मां तुम फिक्र मत करो. मैं पूरा एहतियात और खयाल रखूंगी,’’ वह बोली थी.

आज तो वह घर से बाहर निकली ही नहीं थी कि कोई घर में आ कर छिप गया हो. मां को गए अभी पूरा दिन भी नहीं गुजरा था. वह अभी इसी उधेड़बुन में थी कि उसे लगा जैसे कमरे में कोई चलफिर रहा है. हाथ बढ़ा कर नमिता ने स्विच औन किया. पर यह क्या लाइट नहीं थी. भय से उसे पसीना आ गया.

वह मोमबत्ती लेने के लिए उठी ही थी कि लाइट आ गई. बारिश फिर शुरू हो गई थी. वह सोचने लगी शायद बारिश के कारण आवाज हो रही थी. वह बेकार डर गई. अंधेरा भी डर का एक कारण है. अभी रात की शुरुआत थी. केवल 7 बजे थे.

नमिता को प्यास लग रही थी. किचन की लाइट औन कर जैसे ही फ्रिज की ओर बढ़ी कि उस की चीख निकल गई. सप्रयास वह इतना ही बोल पाई, ‘‘कौन हो तुम?’’

पुरुष आकृति के चेहरे पर नकाब था. उस ने बढ़ कर उस का मुंह अपनी हथेली से दबा दिया. बोला, ‘‘शोर करने की कोशिश मत करना वरना अंजाम ठीक नहीं होगा.’’

‘‘क्या चाहते हो? कौन हो तुम?’’

‘‘नासमझ लड़की कोई मनचला जवान पुरुष लड़की के पास क्यों आता है? तुझे मैं आतेजाते देखता था. मौका आज मिला है.’’

‘‘अपनी बकवास बंद करो… मैं इतनी कमजोर नहीं कि डर जाऊंगी. तुरंत निकल जाओ यहां से वरना मैं पुलिस को खबर करती हूं.’’

वह फोन की ओर बढ़ ही रही थी कि उस ने पीछे से उसे दबोच लिया. अचानक इस स्थिति से वह विवश हो गई. नकाबपोश ने उसे पलंग पर पटक दिया और कपड़े उतारने की कोशिश करने लगा.

‘‘वासना के कीड़े हर औरत को इतना कमजोर मत समझ. एक अकेली औरत अपने बल से एक अकेले पुरुष का सामना न कर पाए, यह संभव नहीं.’’ कहते हुए उस गुंडे की गिरफ्त से बचने के लिए नमिता अपना पूरा जोर लगा रही थी.

जैसे वह दरिंदा उस पर झुका नमिता ने उस की दोनों टांगों के मध्य अपने दोनों पैरों से जबरदस्त प्रहार किया. इस अप्रत्याशित प्रहार से वह तिलमिला उठा और दूर जा गिरा. वह उठ पाता उस से पहले ही नमिता भागी और कमरे का दरवाजा बंद कर ड्राइंगरूम में पहुंच गई. उस ने पुलिस को फोन कर दिया. तुरंत पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. दरवाजा खोला गया पर दरिंदा खिड़की की राह भागने में कामयाब हो गया. चारों ओर बिखरी चीजें. अस्तव्यस्त कमरे से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि नमिता को कितना संघर्ष करना पड़ा होगा.

खबर मिलते ही नमिता के मम्मीपापा रातोंरात टैक्सी कर के आ गए. नमिता मां से लिपट कर बहुत रोई.

मां सहमी बेटी को सहलाती रहीं. उस के पूरे शरीर में नीले निशान और खरोंचें थीं.

‘‘बेटा, पूरी घटना बता… डर छोड़… तू तो बहादुर बेटी है न.’’

‘‘हां मां, मैं ने उस दरिंदे को परास्त कर दिया,’’ कह नमिता ने पूरी घटना बयां कर दी.

सुबह का पेपर आ चुका था. जंगल की आग की तरह कल रात की घटना पड़ोसियों और परिचितों में फैल चुकी थी.

छात्रा के साथ बलात्कार की घटना छपी थी. मां को पढ़ कर सदमा लगा कि यह सब तो बेटी ने नहीं बताया.

मां को परेशान देख नमिता बोली, ‘‘मां, तुम परेशान क्यों होती हो… मेरे तन पर वह दरिंदा अभद्र हरकत करता उस के पहले ही मेरे अंदर की शक्ति ने उस पर विजय पा ली थी. मेरा विश्वास करो मां,’’ कह कर नमिता अंदर चली गई.

मां पापा से कह रही थीं, ‘‘घरघर में पढ़ी जा रही होगी हमारी बेटी के साथ हुई घटना की खबर… मुझे तो बहुत डर लग रहा है.’’

तभी फोन की घंटी बजने लगी. लोग अफसोस जताने के बहाने कुछ सुनना चाहते थे.

मांपापा बोले, ‘‘हमें अपनी बेटी की बहादुरी पर नाज है… पेपर झूठ बता रहे हैं.’’

शाम होतेहोते इंदौर से योगेशजी का फोन आ गया जहां नमिता की सगाई हुई थी. दिसंबर में उस की शादी होने जा रही थी.

‘‘पेपर में आप की बेटी के बारे में पढ़ा, अफसोस हुआ… मैं फिर आप से बात करता हूं.’’

योगेशजी के लहजे से भयभीत हो उठे नमिता के पिता विमल. पत्नी से बोले, ‘‘पेपर में छपी यह खबर हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी. योगेशजी का फोन था. उन के आसार अच्छे नजर नहीं आ रहे. कह रहे थे अभी आप परेशान होंगे, आप की और परेशानी बढ़ाना नहीं चाहता, बाद में बात करते हैं.’’

पुलिस और मीडिया वाले फिर घर के चक्कर लगा रहे थे, ‘‘हम नमिता का इंटरव्यू लेने आए हैं.’’

‘‘क्यों इतना कुछ छाप देने के बाद भी आप लोगों का जी नहीं भरा? लड़की ने अपनी सुरक्षा स्वयं कर ली, इतना काफी नहीं है?’’

‘‘नहीं सर, हम तो अपराधी को सजा दिलाना चाहते हैं… नमिता उस की पहचान बयां करती तो अच्छा था.’’

पापा बोले, ‘‘पुलिस में रिपोर्ट कर के तुम ने अच्छा नहीं किया बेटी. कितनी जलालत का सामना करना पड़ रहा है…’’

‘‘आप ने अन्याय के खिलाफ बोलने की आजादी दी है पापा,’’ नमिता उन्हें परेशान देख बोली, ‘‘मैं ने आप दोनों को सहीसही सारी घटना बता दी… मुझ पर भरोसा कीजिए.’’

‘‘नहीं बेटी, तू ने केस फाइल कर अच्छा नहीं किया. अब देख ही रही है उस का परिणाम… सब तरफ खबर फैल गई है… ऐसे हादसों को गुप्त रखने में ही भलाई होती है.’’

पापा की दलीलें सुन कर नमिता का सिर घूमने लगा, ‘‘यह क्या कह रहे हैं पापा? सत्यवीर, कर्मवीर पापा में कहां छिपी थी यह ओछी सोच जो मानमर्यादा के रूढ़ मानदंडों के लिए अन्याय सहने, छिपाने की बात कर रहे हैं? यही पापा कभी गर्व से कहा करते थे कि अपनी बेटियों को दहेज में दूंगा तो केवल शिक्षा, जो उन्हें आत्मनिर्भर बनाएगी. ये अपनी ऊंचनीच, अपने अधिकार और अन्याय के खिलाफ खुद ही निबटने में सक्षम होंगी. और आज जब मैं ने अपनी आत्मरक्षा अपने पूरे आत्मबल से की तो बजाय मेरी प्रशंसा के अन्याय को सहन करने, उसे बल देने की बात कह रहे हैं… मुझ पर गर्व करने वाले मातापिता अखबार में मेरी संघर्ष गाथा पढ़ कर यकायक संवेदनशून्य कैसे हो गए?’’

ग्वालियर मैडिकल कालेज में पढ़ने वाली नमिता की छोटी बहन रितिका ने भी पेपर में पढ़ा तो वह भी आ गई. अपनी दीदी से लिपट कर उसे धैर्य बंधाने लगी. दीदी के प्रति मांपापा के बदले व्यवहार से वह दुखी हुई. ऐसी उपेक्षा के बीच नमिता को बहन का आना अच्छा लगा.

मम्मीपापा जिस भय से भयभीत थे वह उन के सामने आ ही गया. फोन पर योगेशजी ने बड़ी ही नम्रता से नमिता के साथ अपने बेटे की सगाई तोड़ दी. मम्मी के ऊपर तो जैसे वज्रपात हुआ. वे फिर नमिता पर बरसीं, ‘‘अपनी बहादुरी का डंका पीट कर तुझे क्या मिला? सुरक्षित बच गई थी, चुप रह जाती तो आज ये दिन न देखने पड़ते. अच्छाभला रिश्ता टूट गया.’’

‘‘अच्छा रहा मां उन की ओछी मानसिकता पता चल गई. सोचो मां यही सब विवाह के बाद होता तब क्या वे लोग मुझ पर विश्वास करते जैसे अभी नहीं कर रहे? मैं उन लोगों को क्या दोष दूं, मेरे ही घर में जब सब के विश्वास को सांप सूंघ गया,’’ नमिता भरे स्वर में बोली.

अविश्वास के अंधेरे में घिरी थी नमिता

कि क्या होगा उस का भविष्य? अंगूठी उस के मंगेतर ने सगाई की बड़ी हसरत और स्नेह से पहनाई थी. वह छुअन, वह प्रतीति उसे स्नेह

में डुबोती रही थी. रोमांचित करती रही थी. क्याक्या सपने बुना करती थी वह. उस ने अपनी अनामिका को देखा जहां हीरे की अंगूठी चमक रही थी. वही अंगूठी अब चुभन पैदा करने लगी थी. रिश्ते क्या इतने कमजोर होते हैं, जो बेबुनियाद घटना से टूट जाएं?

इस छोटी सी घटना ने विश्वास के सारे भाव जड़ से उखाड़ दिए. नमिता सोच रही थी कि केवल प्रांजल के मांबाप की बात होती तो मानती, अपनेआप को अति आधुनिक, विशाल हृदय मानने वाला उस का मंगेतर कितन क्षुद्र निकला. एक बार मेरा सामना तो किया होता, मैं उस को सारी सचाई बताती.

नमिता के साहस की, उस की बहादुरी की, उस की सूझबूझ की तारीफ नहीं हुई. उस के इन गुणों को उस के मांबाप तक ने कोसा. 1 सप्ताह से घर से बाहर नहीं निकली. आज वह यूनिवर्सिटी जाएगी. देखना है उस के मित्रसहयोगी की क्या प्रतिक्रिया होती है? कैसा व्यवहार होता है उस के साथ?

तैयार हो कर नमिता जब अपने कमरे से निकली तो मां ने टोक दिया, ‘‘बेटा, तू तैयार हो कर कहां जा रही है? कम से कम कुछ दिन तो रुक जा, घटना पुरानी हो जाएगी तो लोग इतना ध्यान नहीं देंगे.’’

नमिता बौखला उठी, ‘‘कौन सी घटना? क्या हुआ है उस के साथ? बेवजह क्यों पड़ी रहतीं मेरे पीछे मां? तुम कोई भी मौका नहीं छोड़तीं मुझे लहूलुहान करने का… कहां गई तुम्हारी ममता?’’ फिर शांत होती हुई बोली, ‘‘मां, तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं, जो होगा मैं निबट लूंगी,’’ और फिर स्कूटी स्टार्ट कर यूनिवर्सिटी चली गई.

परम संतुष्ट भाव से उस ने फैसला किया कि वह पीएचडी के साथसाथ भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा की भी तैयारी करेगी. निष्ठा और दृढ़ इरादे से ही काम नहीं चलता, समाज से लड़ने के लिए, प्रतिष्ठा पाने के लिए, पावर का होना भी अति आवश्यक है.

जो वह ठान लेती उसे पा लेना उस के लिए कठिन नहीं होता है. उस का परिश्रम, उस की

दृढ़ इच्छाशक्ति रंग लाई. आज वह खुश थी अपनी जीत से. देश के समाचार पत्रों में उस का यशोगान था, ‘‘डा. नमिता शर्मा भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा में प्रथम रहीं.’’ मम्मीपापा ने उसे गले लगाना चाहा पर वे संकुचित हो गए. उन के बीच दूरियां घटी नहीं वरन बढ़ती गईं. जिस समय मां के स्नेह, धैर्य और सहारे की सख्त जरूरत थी तब उन के व्यंग्यबाण उसे छलनी करते रहे. कठिन समय में अपनों की प्रताड़ना वह भूल नहीं सकती.

स्त्री सुलभ गुणों को ले कर क्या करेगी वह अब. स्त्री सुलभ लज्जा, संकोच, सेवा,

ममता जैसे भावों से मुक्त हो जाना चाहती है, कठोर हो जाना चाहती है. उस के प्रिय जनों ने उस की अवहेलना की. आज उस की सफलता, उपलब्धियां, सम्मान देख उस के सहयोगी, उस के मातहत सहम जाते हैं. फिर भी वह संतुष्ट क्यों नहीं? शायद इसलिए कि उस की सफलता का जश्न मनाने उस के साथ कोई नहीं.

उसे याद है उस के मन में भी उमंग उठी थी, सपने संजोए थे. आम भारतीय नारी की तरह एक स्नेहमयी बेटी, बहू, पत्नी और मां बनना चाहती थी. वह अपना प्यार, अपनी ममता किसी पर लुटा देना चाहती थी. रात के अकेलेपन में पीड़ा से भरभरा कर कई बार रोई है. एक आधीअधूरी जिंदगी उस ने खुद वरण की है… उसे भरोसा ही नहीं रहा है रिश्तों पर.

ढेरों रिश्ते आ रहे थे. मांबाप विवाह के लिए जोर डाल रहे थे कि वह विवाह के लिए हां कर दे. वह नकार देती, ‘‘मां, इस विषय पर कभी बात न करना और फिर तुम देख ही रही हो मुझे फुरसत ही कहां है घरगृहस्थी के लिए… मैं ऐसे ही खुश हूं… विवाह करना जरूरी तो नहीं?’’

किस्सेकहानियों और सिनेमा की तर्ज पर वास्तविक जिंदगी में भी ऐसे संयोग आ सकते हैं. विश्वास करना पड़ता है. देशप्रदेश के दौरे नमिता के पद के आवश्यक सोपान थे. ऐसे ही एक कार्य से नमिता दिल्ली जा रही थी. अपनी सीट पर व्यवस्थित हो उस ने पत्रिका निकाली और टाइम पास करने लगी.

गाड़ी चलने में चंद क्षण ही शेष थे कि अचानक गहमागहमी का एहसास हुआ. नमिता की पास वाली सीट पर सामान रखने में एक सज्जन व्यस्त थे. नमिता ने पत्रिका को हटा कर अपने सहयात्री पर ध्यान केंद्रित किया, तो उस के आश्चर्य की सीमा न रही. वे प्रांजल थे. क्षणांश में उस ने निर्णय ले लिया कि सीट बदल लेगी.

विपरीत इस के प्रांजल खुशी से उछल पड़ा. बिना किसी भूमिका के बोला, ‘‘नमिता, मैं बरसों से ऐसे ही चमत्कार के लिए भटक रहा था.’’

नमिता किसी तरह उस से वार्त्तालाप नहीं करना चाहती थी, पर प्रांजल आप बीती कहने के लिए बेताब था.

प्रायश्चित का हावभाव लिए नमिता को कोई मौका दिए बिना ही बोलता चला गया, ‘‘तुम आईएएस में प्रथम आईं उस दिन चाहा था तुम्हें बधाई दूं, पर हिम्मत नहीं हुई. मैं तुम्हारा अपराधी था, कायर. मैं ने भी इस परीक्षा में बैठने का निर्णय लिया. तनमन से जुट गया. मन ही मन चाहा कि एक न एक दिन हम अवश्य मिलेंगे और आज तुम्हारे सामने हूं. मैं तुम्हारा अपराधी हूं नमिता, मैं कुछ भी नहीं कर सका.

‘‘मां ने पापा से कहा था कि मुझे इस तरह की दुस्साहसी बहू नहीं, मुझे तो सौम्य, सरल, सीधीसादी बहू चाहिए. मैं तुम से मिलने आना चाहता था पर मां ने जान देने की धमकी दी थी. बस मैं ने तभी निश्चित कर लिया था कि मैं तुम्हारे अलावा किसी से विवाह नहीं करूंगा. मां मेरी प्रतिज्ञा से परेशान हैं. उन्हें अपनी गलती का एहसास हो चुका है पर मैं तुम से मिलने की हिम्मत नहीं जुटा सका.’’

नमिता बुत बनी बैठी थी. मन में विचारों के बवंडर न जाने कहां उड़ाए लिए जा रहे थे. नमिता प्रांजल से कह देना चाहती थी कि उस का अंतर रेगिस्तान हो चुका है. प्रेम की धारा सूख चुकी है. अंतर की सौम्यता, सहजता, सरलता सब खो चुकी है. प्रांजल बात यहीं खत्म कर दे. फिर कभी मिलने की कोशिश न करे. वे अपने काम में सब कुछ भूल चुकी है.

प्रांजल की उंगली में आज भी सगाई की अंगूठी चमक रही थी. प्रांजल सब कुछ कह चुका था. नमिता खामोश ही रही. यात्रा का शेष समय खामोशी में कट गया.

सप्ताह के अंतराल बाद शाम जब नमिता कार्यालय से लौटी तो देखा कि प्रांजल के मम्मीपापा बैठक में बैठे हैं और लंबे अरसे बाद मां की उल्लासित आवाज सुनाई दी, ‘‘नमिता, यहां तो आ बेटा. देख कौन आया है.’’

‘लगता है उन दोनों ने मां के मन से कलुष धो दिया है, पिछले अपमान का,’ नमिता ने मन ही मन सोचा. वह जिन की शक्ल तक नहीं देखना चाहती थी, विवश सी उन लोगों के बीच आ खड़ी हुई.

प्रांजल की मां ने नमिता के दोनों हाथ स्नेह से अपनी हथेलियों में भर लिए और फिर भावुक होती हुई बोलीं, ‘‘मुझे माफ कर दो बेटी. मैं हीरे की पहचान नहीं कर पाई. मैं बेटे का दुखसंताप नहीं सह पा रही हूं. मेरी भूल, मेरे अहंकार का फल बेटा भोग रहा है. तुम्हारी अपराधी मैं हूं बेटा, मेरा बेटा नहीं… मुझे एक अवसर नहीं दोगी बेटी?’’

नमिता रुद्ररूप न दिखा सकी और फिर बिना कुछ बोले वहां से चली आई. उस दिन आधी रात बीत जाने पर भी वह जागती रही. सप्ताह में घटी घटना पर विचार करती रही. ट्रेन में प्रांजल की क्षमायाचना याद आती रही, ‘‘बोलो, बताओ मुझे क्षमा किया? मेरे परिवार ने तुम्हारा अपमान किया, मैं स्वयं को तुम्हारा अपराधी मानता हूं.’’

प्रांजल, यह अलाप अब नमिता को धोखा या बकवास नहीं लग रहा था. पर उस के मन में कई प्रश्न घुमड़ रहे थे. स्पष्ट पूछना चाहती थी कि अब कौन सा प्रयोग करना चाहते हो हमारी जिंदगी में… क्या उस समय इतना साहस नहीं था कि अपनी मां को समझा पाते? उस दिन वह भी तो उन की मां के सामने चुप ही रही. संस्कार की बेडि़यों ने उस की जबान पर ताला लगा दिया था. फिर आंसुओं की राह सारा विद्रोह न जाने कैसे बह गया.

एक दिन निकट बैठी मां बोलीं, ‘‘बेटा,

इतने दिन तुझे सोचने को समय दिया… योगेशजी के यहां से बारबार फोन आ रहे हैं. मैं क्या जवाब दूं?’’

एक सहज सी नजर मां पर डाल नमिता यह कहती हुई उठ खड़ी हुई, ‘‘तुम जैसा चाहो करो मां.’’

मां निहाल हो गईं. घर में फिर से खुशियों ने डेरा डाल दिया था. अगले ही दिन मांपापा विवाह की तिथि तय करने इंदौर चले गए.

नीली आंखों के गहरे रहस्य: भाग-2

शाम को भी उस का मोबाइल स्विच औफ था. 2 दिनों से उसे लगातार फोन करता रहा लेकिन उस का मोबाइल स्विच औफ ही मिला.

तीसरे दिन रविवार को उस का फोन आया. मन आशंकित हो उठा, न जाने कैसी खबर हो?

‘‘सर…’’

‘‘कमाल हो तुम भी, मैं लगातार 2 दिनों से तुम्हें फोन कर रहा हूं और तुम्हारा मोबाइल स्विच औफ जा रहा है,’’ मैं ने लगभग डांटते हुए, अधिकारपूर्वक उस से कहा लेकिन दूसरे ही क्षण मुझे आत्मग्लानि हुई कि मैं ने उस की मां की तबीयत के विषय में नहीं पूछा. धीरे से बोला, ‘‘सौरी मीठी, अब तुम्हारी मां की तबीयत कैसी है?’’

‘‘मम्मी ठीक नहीं हैं, सर. अस्पताल में दौड़धूप व उन की देखभाल में इतनी व्यस्त रही कि मोबाइल चार्ज करना ही भूल गई. और हमारा अपना है ही कौन जो मेरे फोन पर मेरी मम्मी का हाल पूछता. इस शहर में थोड़े समय पहले ही तो शिफ्ट हुई हैं हम मांबेटी.’’

‘‘क्या? तुम लोग अभी थोड़े वक्त पहले ही शिफ्ट हुई हो इस शहर में? और इतनी जल्दी खुद का मकान भी ले लिया जिस के आधार पर तुम बैंक से लोन लेना चाहती हो?’’ ऐसे नाजुक मौके पर भी मैं ने अपना बैंक वाला दिमाग दौड़ा लिया. मन में सोचा, मुझे बेवकूफ समझ रही है कल की लड़की. सोच रही है अपने नाम की तरह ही मीठी बातों में फंसा कर मुझ से लोन पास करवा लेगी.

‘‘सर, बात थोड़ी गंभीर है. फोन पर नहीं बता सकती. मुझे आप की मदद की सख्त जरूरत है. अगर आप मेरे घर आएंगे तो मेरी मम्मी से भी मिल लेंगे और मैं आप को अपनी बात खुल कर बता सकूंगी. मैं अपने घर का पता आप को अभी एसएमएस करती हूं.’’

जल्दी ही उस के पते का एसएमएस भी आ गया. उस का घर मेरे घर से काफी दूर था. एक बार को लगा, कहीं यह नीली आंखों वाली अपनी मां के साथ मिल कर मेरे खिलाफ कोई साजिश तो नहीं रच रही? नहीं, मैं नहीं जाऊंगा, आखिर मेरी उस से पहचान ही कितनी है? फिर अंदर से आवाज आई, इंसानियत के नाते बीमार को देखने जाना चाहिए. शायद वास्तव में उसे मेरी मदद की जरूरत हो? साधना को भी साथ ले जाऊंगा.

लेकिन दूसरे ही पल खयाल आया, अगर साधना को साथ ले गया तो मामला और पेचीदा हो सकता है. सुंदर और जवान लड़की को देख कर कहीं वह मेरे और उस के संबंधों को ले कर कोई गलत धारणा न बना ले और मुझ पर अधिक निगाह रखने लगे. हो सकता है मेरी जासूसी भी करे. आफत मेरी ही आएगी. इसलिए उसे साथ ले जाने का विचार त्याग  दिया और उस के घर जाने के लिए खुद को पूरी तरह से सतर्क व चौकन्ना कर लिया. साधना से कह दिया कि विजिट के लिए एक पार्टी के साथ जा रहा हूं.

उस का घर ढूंढ़ने में बहुत परेशानी हुई. काफी वक्त लग गया जबकि लगातार उस से मोबाइल पर घर की सिचुएशन पूछता रहा था. वह मुझे अपने घर के दरवाजे पर ही मिल गई. बेहद तनावग्रस्त, चिंतित और दुखी लगी. मुझे देख कर भरे स्वर में बोली, ‘‘थैंक्यू सर, प्लीज आइए,’’ कहती हुई मुझे अंदर ले गई जहां एक छोटे से कमरे में उस की बीमार मां लेटी थीं.

लगभग 50 वर्षीया एक महिला पलंग पर लेटी थीं, मुझे देख कर वे उठने का प्रयास करने लगीं. मैं ने रोक दिया, ‘‘प्लीज, आप लेटी रहिए.’’

‘‘मम्मी, आप बैंक मैनेजर आनंदजी हैं. अपने ब्यूटीपार्लर के लिए मैं लोन के सिलसिले में इन से मिली थी.’’

‘‘आनंदजी, प्लीज आप इस के ब्यूटीपार्लर के लिए लोन पास करवा दीजिए, जिस से यह आत्मनिर्भर हो जाए,’’ कमजोर स्वर में जब वे बोलीं तो मीठी ने उन्हें चुप कराते हुए कहा, ‘‘प्लीज मम्मी, आप बोलिए मत, मैं बात कर लूंगी, आनंदजी से.’’

‘‘सर, आप क्या लेंगे चाय या कौफी?’’ मीठी ने पूछा तो मैं ने कहा, ‘‘मीठी, मैं यहां चाय या कौफी पीने नहीं आया हूं. मैं तो तुम्हारी मां को देखने आया हूं. अब उन की तबीयत कैसी है? उन्हें हुआ क्या है?’’

मेरे यह पूछने पर वह असहज हो गई. फिर अपनी मां को दवाई खिलाती हुई बोली, ‘‘मम्मी, आप यह दवाई खा कर आराम करो. मैं आनंदजी को अपना घर दिखाती हूं. इसी के आधार पर हमें लोन मिलेगा.’’

मुझे उस का व्यवहार कुछ अजीब सा लगा. इस की मां की तबीयत खराब है और इसे लोन की पड़ी है.

वह मुझे ऊपर एक कमरे में ले गई जो बहुत ही कलात्मक ढंग से सजा था और वहां सिर्फ एक बैड पड़ा था. बैड के अलावा वहां बैठने के लिए कोई कुरसी या स्टूल न था. लिहाजा, मुझे सकुचाते हुए उसी बैड पर बैठना पड़ा.

‘‘सौरी सर, मैं मम्मी के सामने आप को कुछ बता नहीं सकती थी, इसलिए आप को ऊपर ले कर आई हूं. इस समय मैं ने उन्हें वह दवाई दे दी है जिस से उन्हें गहरी नींद आ जाएगी.’’

यह सुन कर मेरी घिग्घी बंध गई. आखिर, यह लड़की कहना क्या चाहती है?

‘‘सर, हम लोग अलीगढ़ के नहीं, बल्कि आगरा के हैं. आगरा में हमारा छोटा सा खुशहाल परिवार था. मैं मीठी, मेरी मम्मी ममता और पापा मनोज. पापा ताजमहल में गाइड थे. उन के सपने बहुत ऊंचे थे. वे विदेश जा कर खूब पैसा कमाना चाहते थे. उन की इस चाहत और सपने को पूरा किया अमेरिका की सेरेना ने जो ताजमहल घूमते वक्त अपने गाइड की नीली आंखों की गहराई में इस कदर डूब गई कि उन्हें अपना बना कर ही दम लिया. वह बहुत अमीर थी, पापा यही तो चाहते थे. मम्मी बहुत रोईंगिड़गिड़ाईं, मेरा हवाला दिया लेकिन पापा नहीं पिघले. सेरेना ने हम मांबोटी को 15 लाख रुपए दे दिए या यों कहो, हमारे पापा की कीमत हमें दे दी. वे 15 लाख रुपए पा कर भी हम गरीब थे क्योंकि हमारे पापा हमारे पास नहीं थे.

‘‘औपचारिकता पूरी हो जाने के बाद पापा उस के साथ अमेरिका चले गए हमेशा के लिए. हम मांबेटी ने आगरा शहर छोड़ने का मन बना लिया. जिस प्रेम के प्रतीक ताजमहल की वजह से हमारा घरसंसार चलता था, हम सब मुहब्बत से रहते थे, उसी की वजह से हमारा सबकुछ हम से छिन गया क्योंकि हमारी दुनिया थे हमारे पापा. उन्होंने हमें बेशक भुला दिया था लेकिन हम उन्हें नहीं भुला सके थे, इसलिए हम आगरा में रहना ही नहीं चाहते थे.

‘‘हम अलीगढ़ आ गए. बरसों पहले जब नानाजी की पोस्टिंग अलीगढ़ में थी तब मम्मी यहां रही थीं, इसलिए उन्होंने अलीगढ़ को चुना. हम किराए के मकान में रहने लगे. हमें लगा ये 15 लाख रुपए धीरेधीरे खत्म हो जाएंगे. इसलिए हम ने एक ब्रोकर की मदद से 10 लाख रुपए का यह छोटा सा घर ले लिया. डेढ़ लाख रुपए में घर का जरूरी सामान खरीद लिया, 3 लाख रुपए मेरी शादी के लिए मम्मी ने गहने खरीद लिए और बाकी 50 हजार रुपए बैंक में जमा कर दिए.

‘‘मां ने घर का खर्चा चलाने के लिए एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली और ट्यूशन भी पढ़ाने लगीं. मैं कालेज के बाद ब्यूटीपार्लर का कोर्स करने लगी. इस कार्य में मैं पारंगत हो गई, तो सोचा, क्यों न घर के नीचे वाले हिस्से में ब्यूटीपार्लर खोल लूं. कमाई अच्छी होगी, घर की घर में भी रहूंगी.

‘‘लेकिन मम्मी, पापा की बेवफाई सह न सकीं और दिल की मरीज हो गईं. उन्हें अटैक पड़ा तो एंजियोग्राफी से पता चला उन की 2 आर्टरीज ब्लौक हैं. डाक्टरों ने एंजियोप्लास्टी के लिए बोला है. इस का खर्चा लगभग 2-3 लाख रुपए तो होगा ही. बस, इसी वजह से परेशान हूं कि इतना पैसा इतनी जल्दी कैसे मैनेज करूं? यह सब मम्मी को बता कर परेशान नहीं करना चाहती.’’

मेरे दिमाग ने सचेत किया, इस के झांसे में मत आना. हो सकता है यह सब मनगढ़ंत कहानी हो. मैं बोला, ‘‘मीठी, इस मामले में मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं?’’

‘‘सर, मैं चाहती हूं अगर आप किसी भी तरह 3 लाख रुपए का इंतजाम करवा दें तो मैं आप का एहसान जिंदगीभर नहीं भूलूंगी. 50 हजार रुपए मैं अपने अकाउंट से निकाल लूंगी,’’ आशाभरी नजरों से उस ने मुझे ताकते हुए कहा.

लेकिन मैं अंदर से मजबूत था और उस की भावनाओं के जाल में फंसने वाला नहीं था. ‘‘मीठी, 3 लाख रुपए तो बहुत होते हैं. 10-20 हजार रुपए की रकम होती तो मैं अभी दे देता. 3 लाख रुपए तो मेरे खाते में भी नहीं है,’’ मैं ने झूठ बोला हालांकि मैं जानता था कि उसे पता है कि मैं झूठ बोल रहा हूं क्योंकि एक बैंक मैनेजर के खाते में 3 लाख रुपए नहीं होंगे, ऐसा नहीं हो सकता.

‘‘सर, मैं आप से पैसा नहीं, बल्कि सहयोग मांग रही हूं. आप मेरे गहने गिरवी रखवा कर पैसा दिलवा दें क्योंकि ऐसा काम कोई भरोसेमंद इंसान ही कर सकता है.’’

‘‘तुम मुझ पर किस आधार पर विश्वास कर रही हो? तुम तो सिर्फ एक बार ही मुझ से मिली हो.’’

‘‘उम्र भले ही कम हो मेरी लेकिन वक्त और हालात ने मुझे इतना परिपक्व कर दिया है कि इंसान की नीयत और फितरत को पहचानने में कभी गलती नहीं करती हूं,’’ आत्मविश्वास से भरे स्वर में वह बोली.

मेरी जिज्ञासा बढ़ी और मुसकरा कर बोला, ‘‘जरा मेरी नीयत और फितरत तो बताओ.’’

‘‘सर, आप परीक्षा ले रहे हैं मेरी. लेकिन मैं सच जरूर बताऊंगी.’’

मैं मन ही मन थोड़ा डर गया, पता नहीं मेरे बारे में क्या बताए? लेकिन मैं हंस कर बोला, ‘‘हांहां, बताओ, जरा मैं भी तो सुनूं मेरे बारे में क्या धारणा है तुम्हारी?’’

‘‘आप बहुत ही नेकदिल और ईमानदार इंसान हैं लेकिन मुझे ले कर आप थोड़ा आशंकित व भयभीत हैं. कहीं मैं आप के साथ फ्रौड या धोखा न कर दूं.’’

हालांकि वह सच कह रही थी लेकिन मैं ने कहा, ‘‘नहीं, मीठी तुम गलत बोल रही हो, ऐसा कुछ भी नहीं है.’’

‘‘नहीं सर, आप अपनी जगह ठीक हैं. 3 लाख रुपए की रकम कोई छोटीमोटी तो है नहीं जो किसी अजनबी को दे दी जाए. अगर आप की जगह मैं होती तो शायद मैं भी हिचकिचाती. लेकिन आप मेरे गहने ले जाइए और अपने किसी परिचित व विश्वसीनय सुनार से उन की जांच करवा लीजिए. और फिर पैसा दिलवा दीजिए. मैं मम्मी की जल्दी से जल्दी एंजियोप्लास्टी कराना चाहती हूं.’’

मैं ने मन में सोचा जब यह लड़की अपने कीमती गहने मुझे सौंप रही है, सिर्फ मुझ पर विश्वास कर के तो इंसानियत के नाते मुझे भी इस की मदद करनी चाहिए.

‘‘ठीक है, मेरा एक खास परिचित ज्वैलर है. वह यह काम भी करता है. मैं अभी उस से फोन पर बात कर के देखता हूं.’’

‘‘सर, अगर पैसा आज ही मिल जाए तो बेहतर होगा. कल सुबह ही टैक्सी कर के मम्मी को दिल्ली ले जाऊंगी.’’

मैं ने ज्वैलर से बात की तो उस ने हां कर दी. मैं ने मीठी से पूछा, ‘‘गहने घर पर हैं या लौकर में?’’

‘‘मैं ने कल ही गहने और कैश लौकर से निकाल लिए थे, पता नहीं कब जरूरत पड़ जाए,’’ कहती हुई वह एक बैग ले आई और सारे गहने दिखा दिए.

‘‘चलो जल्दी से तैयार हो जाओ, मैं ने ज्वैलर को टाइम दे दिया है.’’

‘‘मैं क्या करूंगी वहां जा कर? आप हो तो सही.’’

‘‘नहीं मीठी, तुम्हें चलना पड़ेगा. गहने कितने वजन के हैं? कितने रुपए के हैं. लिखापढ़ी, रसीद बहुतकुछ होता है. जल्दी चलो और अपनी मां को भी बता दो.’’

‘‘सर, मुझे आप पर पूरा भरोसा है, प्लीज आप जल्दी जाइए.’’

‘‘मीठी, मुझे यह ठीक नहीं लग रहा. उस ज्वैलर को इन गहनों के बारे में क्या बताऊंगा? तुम साथ होगी तो मुश्किल नहीं होगी.’’

‘‘कह देना, एक दूर की रिश्तेदार के हैं, बीमारी की वजह से आने में असमर्थ हैं,’’ कहती हुई वह मुसकरा पड़ी.

मन में आया कह दूं कि तुम दूर की नहीं, मेरे दिल की रिश्तेदार हो.

गहनों का बैग ले कर मैं तुरंत निकल पड़ा. इस दौरान साधना के पचासों फोन आए लेकिन मैं ने रिसीव नहीं किए. हर बार काट दिए. रास्ते में फिर फोन बजा. मुझे पता था कि उसी का होगा. सुबह का निकला और लगभग शाम हो चली, चिंता तो कर रही होगी, इसलिए स्कूटी साइड में रोक कर बात की.

‘‘अरे, सुबह से कहां हो आप? एक कप चाय पी कर निकले हो. फोन करना तो दूर, मेरा फोन भी काट रहे हो. कहीं किसी मुसीबत में तो नहीं हो,’’ वह घबराए और आशंकित स्वर में बोली.

‘‘नहीं साधना, मैं किसी मुसीबत में नहीं हूं. बस, हुआ यों, मैं जिस पार्टी के साथ था उस की मां की अचानक तबीयत खराब हो गई तो मानवता के नाते मैं उस के साथ अस्पताल में हूं. तुम परेशान मत हो,’’ बड़ी सफाई से झूठ बोलते हुए मैं ने उसे आश्वस्त कर दिया.

ज्वैलर्स की दुकान पर पहुंच कर जैसे ही गहनों का बैग खोला तो ज्वैलर शरारत से मुसकरा कर बोला, ‘‘बैंक मैनेजर साहब, किस का लौकर तोड़ दिया?’’

‘‘अरे यार, बात यह है कि…’’

‘‘जुए में बुरी तरह हार कर भाभी के गहने चुरा लाए हो. लेकिन याद रखो दोस्त, जैसे ही भाभी को पता चलेगा, वे तुम्हें रुई की तरह धुन देंगी,’’ मेरी बात पूरी होने से पहले ही वह फिर शरारत पर उतर आया था.

‘‘अरे भाई, यह मस्तमजाक छोड़ो. पहले मेरी बात सुनो. मेरे एक दूर के रिश्तेदार हैं जो बहुत बीमार हैं. उन्हें तुरंत दिल्ली के एक अस्पताल में ले जाना है, जहां उन का औपरेशन होना है. ये गहने उन्हीं के हैं. उन्हें पैसों की सख्त जरूरत है. इन की जल्दी से जांच कर लो कि असली हैं या नकली? अगर असली हैं तो इन्हें गिरवी रख कर कितना पैसा मिल जाएगा.’’

वह शीघ्र ही गहनों की शुद्धता की जांच करने लगा और बोला, ‘‘गुरु, शुद्ध खालिस सोने के हैं.’’

‘‘क्या कीमत होगी इन की?’’

उस ने जल्दी ही गहनों को तोल कर बताया, लगभग 3 लाख रुपए के हैं. मैं पूरे 3 लाख रुपए दे दूंगा क्योंकि किसी जरूरतमंद बीमार के लिए चाहिए और आप मेरे खास परिचित भी हो. उस ने गहनों की लिखापढ़ी, लिस्ट, रसीद सबकुछ देते हुए पूरे 3 लाख रुपए भी दे दिए.

रुपए ले कर निकला तो बाहर गहरा अंधेरा हो गया था. मैं ने स्कूटी मीठी के घर की तरफ दौड़ा दी. अपना मोबाइल भी स्विच औफ कर लिया क्योंकि मुझे पता था साधना बारबार फोन करेगी. घर जा कर कह दूंगा कि बैटरी डिस्चार्ज हो गई थी. उस के घर पहुंचतेपहुंचते रात हो चुकी थी.

वह दरवाजे पर खड़ी मेरा इंतजार कर रही थी. मुझे जल्दी से ऊपर कमरे में ले गई, ‘‘सर, काम बना?’’

‘‘हांहां, बन गया. पूरे 3 लाख रुपए हैं, गिन लो,’’ कहते हुए मैं ने उसे नोटों का बैग थमा दिया.

‘‘थैंक्यू सर,’’ कहती हुई वह भावावेश में मुझ से कस कर लिपट गई. मैं हक्काबक्का रह गया. यह अप्रत्याशित स्थिति मेरे लिए अकल्पनीय थी. इस के लिए मैं तैयार न था. लेकिन उस के जिस्म की गरमी, सांसों की तेज रफ्तार…मैं खुद पर काबू न रख सका और उसे बेतहाशा चूमने लगा.

 

अधूरे प्यार की टीस: भाग 2-क्यों बिखर गई सीमा की गृहस्थी

अलग होने के बाद भी सीमा ने लड़ाईझगड़े बंद नहीं किए थे. फिर उस ने मकान व दुकान के हिस्से कराने की रट लगा ली थी. राकेश अपने दोनों छोटे भाइयों के सामने सीमा की यह मांग रखने का साहस कभी अपने अंदर पैदा नहीं कर सके. इस कारण पतिपत्नी के बीच आएदिन खूब क्लेश होता था.

3 बार तो सीमा ने पुलिस भी बुला ली थी. जब उस का दिल करता वह लड़झगड़ कर मायके चली जाती थी. गुस्से से पागल हो कर वह मारपीट भी करने लगती थी. उन के बीच होने वाले लड़ाईझगड़े का मजा पूरी कालोनी लेती थी. राकेश को शर्म के मारे सिर झुका कर कालोनी में चलना पड़ता था.

फिर एक ऐसी घटना घटी जिस ने सीमा को रातदिन कलह करने का मजबूत बहाना उपलब्ध करा दिया.

उन की शादी के करीब 5 साल बाद राकेश का सब से पक्का दोस्त संजय सड़क दुर्घटना का शिकार बन इस दुनिया से असमय चला गया था. अपनी पत्नी अंजु, 3 साल के बेटे नीरज की देखभाल की जिम्मेदारी दम तोड़ने से पहले संजय ने राकेश के कंधों पर डाल दी थी.

राकेशजी ने अपने दोस्त के साथ किए वादे को उम्र भर निभाने का संकल्प मन ही मन कर लिया था. लेकिन सीमा को यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता था कि वे अपने दोस्त की विधवा व उस के बेटे की देखभाल के लिए समय या पैसा खर्च करें. जब राकेश ने इस मामले में उस की नहीं सुनी तो सीमा ने अंजु व अपने पति के रिश्ते को बदनाम करना शुरू कर दिया था.

इस कारण राकेश के दिल में अपनी पत्नी के लिए बहुत ज्यादा नफरत बैठ गई थी. उन्होंने इस गलती के लिए सीमा को कभी माफ नहीं किया.

सीमा अपने बेटे व बेटी की नजरों में भी उन के पिता की छवि खराब करवाने में सफल रही थी. राकेश ने इन के लिए सबकुछ किया पर अपने परिवारजनों की नजरों में उन्हें कभी अपने लिए मानसम्मान व प्यार नहीं दिखा था.

अपनी जिंदगी के अहम फैसले उन के दोनों बच्चों ने कभी उन के साथ सलाह कर के नहीं लिए थे. जवान होने के बाद वे अपने पिता को अपनी मां की खुशियां छीनने वाला खलनायक मानने लगे थे. उन की ऐसी सोच बनाने में सीमा का उन्हें राकेश के खिलाफ लगातार भड़काना महत्त्वपूर्ण कारण रहा था.

उन की बेटी रिया ने अपना जीवनसाथी भी खुद ढूंढ़ा था. हीरो की तरह हमेशा सजासंवरा रहने वाला उस की पसंद का लड़का कपिल, राकेश को कभी नहीं जंचा.

कपिल के बारे में उन का अंदाजा सही निकला था. वह एक क्रूर स्वभाव वाला अहंकारी इनसान था. रिया अपनी विवाहित जिंदगी में खुश और सुखी नहीं थी. सीमा अपनी बेटी के ससुराल वालों को लगातार बहुतकुछ देने के बावजूद अपनी बेटी की खुशियां सुनिश्चित नहीं कर सकी थी.

शादी करने के लिए रवि ने भी अपनी पसंद की लड़की चुनी थी. उस ने विदेश में बस जाने का फैसला अपनी ससुराल वालों के कहने में आ कर किया था.

राकेश को इस बात से बहुत पीड़ा होती थी कि उन के बेटाबेटी ने कभी उन की भावनाओं को समझने की कोशिश नहीं की. वे अपनी मां के बहकावे में आ कर धीरेधीरे उन से दूर होते चले गए थे.

इन परिस्थितियों में अंजु और उस के बेटे के प्रति उन का झुकाव लगातार बढ़ता गया. उन के घर उन्हें मानसम्मान मिलता था. वहां उन्हें हमेशा यह महसूस होता कि उन दोनों को उन के सुखदुख की चिंता रहती है.

इस में कोई शक नहीं कि उन्होंने नीरज की इंजीनियरिंग की पढ़ाई का लगभग पूरा खर्च उठाया था. सीमा ने इस बात के पीछे कई बार कलहक्लेश किया पर उन्होंने उस के दबाव में आ कर इस जिम्मेदारी से हाथ नहीं खींचा था. वह अंजु से उन के मिलने पर रोक नहीं लगा सकी थी क्योंकि उसे कभी कोई गलत तरह का ठोस सुबूत इन के खिलाफ नहीं मिला था.

राकेशजी को पहला दिल का दौरा 3 साल पहले और दूसरा 5 दिन पहले पड़ा था. डाक्टरों ने पहले दौरे के बाद ही बाईपास सर्जरी करा लेने की सलाह दी थी. अब दूसरे दौरे के बाद आपरेशन न कराना उन की जान के लिए खतरनाक साबित होगा, ऐसी चेतावनी उन्होंने साफ शब्दों में राकेशजी को दे दी थी.

पिछले 5 दिनों में उन के अंदर जीने का उत्साह मर सा गया था. वे खुद को बहुत अकेला महसूस कर रहे थे. उन्हें बारबार लगता कि उन का सारा जीवन बेकार चला गया है.

मोबाइल फोन की घंटी बजी तो राकेशजी यादों की दुनिया से बाहर निकल आए थे. उन की पत्नी सीमा ने अमेरिका से फोन किया था.

‘‘क्या रवि ठीकठाक पहुंच गया है?’’ सीमा ने उन का हालचाल पूछने के बजाय अपने बेटे का हालचाल पूछा तो राकेशजी के होंठों पर उदास सी मुसकान उभर आई.

‘‘हां, वह बिलकुल ठीक है,’’ उन्होंने अपनी आवाज को सहज रखते हुए जवाब दिया.

‘‘डाक्टर तुम्हें कब छुट्टी देने की बात कह रहे हैं?’’

‘‘अभी पता नहीं कि छुट्टी कब तक मिलेगी. डाक्टर बाईपास सर्जरी कराने के लिए जोर डाल रहे हैं.’’

‘‘मैं तो अभी इंडिया नहीं आ सकती हूं. नन्हे रितेश की तबीयत ठीक नहीं चल रही है. तुम अपनी देखभाल के लिए एक नर्स का इंतजाम जरूर कर लेना.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘अपने अकाउंट में भी उस का नाम जुड़वा दो.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘मैं तो कहती हूं कि आपरेशन कराने के बाद तुम भी यहीं रहने आ जाओ. वहां अकेले कब तक अपनी बेकद्री कराते रहोगे?’’

‘‘तुम मेरी फिक्र न करो और अपना ध्यान रखो.’’

‘‘मेरी तुम ने आज तक किसी मामले में सुनी है, जो अब सुनोगे. वकील को जल्दी बुला लेना. रवि के यहां वापस लौटने से पहले दोनों काम हो जाने…’’

राकेशजी को अचानक अपनी पत्नी की आवाज को सुनना बहुत बड़ा बोझ लगने लगा तो उन्होंने झटके से संबंध काट कर फोन का स्विच औफ कर दिया. कल रात को अपनेआप से किया यह वादा उन्हें याद नहीं रहा कि वे अब अतीत को याद कर के अपने मन को परेशान व दुखी करना बंद कर देंगे.

‘इस औरत के कारण मेरी जिंदगी तबाह हो गई.’ यह एक वाक्य लगातार उन के दिमाग में गूंज कर उन की मानसिक शांति भंग किए जा रहा था.

अभिनेत्री: क्यों उसे प्यार में धोखा मिला?

सैकड़ों आंखें उसे एकटक निहार रही थीं. उन सभी आंखों से छलकते खारे पानी को वह अपनी आंखों में महसूस कर रही थी. रुलाई फूटने से पहले उस का गला भर आया. वह बोलना चाह रही थी पर शब्द उस के गले में बर्फ की तरह जम गए थे. जमे हुए वे शब्द ही तरल हो कर जब आंखों की राह बहने लगे तो फिर उन्हें थामना मुश्किल हो गया.

अपने आंसुओं को रोकने के लिए उस ने पूरी ताकत लगा दी. वह चाह रही थी कि अपना आखिरी संवाद पूरा कहे. अक्षर उस के मस्तिष्क में पालतू कबूतरों के झुंड की तरह उड़ रहे थे. उसे महसूस हो रहा था कि वह उन्हें पकड़ सकती है पर वह बोल क्यों नहीं पा रही? बस 5-7 पंक्तियां ही तो हैं. उसे बोलना ही होगा, यह बहुत जरूरी है.

अभिनेत्री ने पूरी शिद्दत से अपनी रुलाई रोकी. एक बार जो शब्दों को हवा में उछालना शुरू किया तो फिर वह बोलती ही गई. वह समझ नहीं पा रही थी कि जो संवाद उस के लिए तय थे, वही बोल रही है या दूसरे. बस, वह बोले जा रही थी.

अपनी भूमिका समाप्त होते ही वह चित्रवत खड़ी हो गई. धीरेधीरे प्रकाश उस पर कम से कमतर होता चला गया और पूरी रंगशाला में अंधकार छा गया. वह मंच से भागी. अब वह जी भर कर रोना चाह रही थी, सचमुच रोना. दौड़ कर वह रंगमंच के पिछले हिस्से में चली गई. दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

कुछ पल के बाद उसे लगा कि तालियों की गूंज से सारी रंगशाला हिल उठी हो. वहां बेतहाशा शोर मच रहा था और रंगमंच के परदे के पीछे की एक कोने में बैठी अभिनेत्री की आंखों का पानी रुक नहीं पा रहा था.

अचानक दरवाजे पर थापें पड़ने लगीं, ‘‘प्रीताजी…प्रीताजी बाहर आइए, दर्शक आप से मिलने को बेताब हैं.’’

वह उठना नहीं चाह रही थी. दरवाजा लगातार भड़भड़ाए जाने से झुंझला सी गई. जोर से चीखी, ‘‘क्या है, मैं पोशाक तो बदल लूं.’’

‘‘बस, कुछ देर की ही बात है, कृपया आप जल्द बाहर आइए.’’

हार कर उसे दरवाजा खोलना पड़ा और अचानक उस छोटे से कमरे में भीड़ का सैलाब उमड़ आया. लोग उसे बधाइयां देने लगे, ‘‘क्या बात है, कैसा स्वाभाविक अभिनय था! आप ने तो सभी को रुला ही दिया.’’

‘‘क्या आप नाटक में सचमुच रोती हैं?’’ एक बच्चे ने जब उस से पूछा तो उस ने मुसकरा कर बच्चे का गाल थपथपा दिया.

‘कैसी अजीब जिंदगी है, उस का मन तो अब भी रोना चाह रहा है पर उसे जबरन मुसकराना पड़ रहा है,’ वह सोच रही थी.

‘रोना और हंसना तो अभिनय के बड़े स्थूल रूप हैं. सूक्ष्म मनोभावों को सहजता से चेहरे पर लाना उतना ही मुश्किल है जितना आंधी में उड़ते हुए पत्तों को बटोरना.’ इसी तरह की बहुत सारी बातें रविशेखर उस से किया करता था. उसे याद आया कि कितना तनावग्रस्त रहता था वह हर समय. रिहर्सल, पटकथा, पोस्टर, लाल रंग, सौंदर्यशास्त्र, वेशभूषा और न जाने क्याक्या? बस, हमेशा नाटक के बारे में ही सोचता रहता था.

घनी दाढ़ी, खादी का कुरता, अधघिसी जींस, गले में रुद्राक्ष की माला, कंधे पर खादी का थैला यानी विचित्र सा स्वरूप था रविशेखर का. बोलता तो बोलता ही जाता और चुप रहता तो घंटों ‘हूंहां’ ही करता रहता. अपनेआप को कुछ अधिक समझने की आदत तो थी ही उसे.

प्रीता नाटकों में अभिनय करेगी, यह तो उस ने कभी सोचा भी न था. सब कुछ अचानक ही हुआ.

उसे याद आया, एक दिन सांझ को रविशेखर उस की मां के सामने आ खड़ा हुआ था. कहने लगा, ‘चाचीजी, आप के पास बड़ी उम्मीदों से आया हूं. 4 दिन बाद हमारे नाटक का मंचन होना है. जो लड़की उस की हीरोइन थी, परसों उसे लड़के वाले देखने आए. जब उन्हें पता चला कि लड़की नाटकों में हिस्सा लेती है तो कहने लगे कि हम नहीं चाहेंगे कि हमारी होने वाली बहू नाटकवाटक करे. बस, उस के घर वालों ने उसी वक्त से उस के थिएटर आने पर रोक लगा दी. 2 दिन जब वह रिहर्सल में नहीं आई तब मुझे पता लगा. अब आप के पास आया हूं. मेरे जीवन का यह महत्त्वपूर्ण नाटक है. निमंत्रणपत्र बंट चुके हैं. अब सबकुछ आप के हाथों में है. अगर प्रीताजी को आप आज्ञा दे दें तो मैं आप का एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा,’ कहतेकहते वह भावुक हो उठा था.

प्रीता जब चाय बना कर लाई तब यही बातें चल रही थीं. रविशेखर का प्रस्ताव सुन कर वह एकदम ठंडी पड़ गई. ठीक है, कालेज में वह गाना गाती रही है, पर नाटक. गाने और अभिनय करने में तो बेहद फर्क है.

मां ने तो यह कह कर पल्लू झाड़ लिया कि अगर प्रीता चाहे तो मुझे कोई एतराज नहीं. उस ने भी रविशेखर से साफ कह दिया था कि न तो उस ने कभी अभिनय किया है और न ही वह कर सकती है. तब कैसा रोंआसा हो गया था वह. कहने लगा, ‘यह सब आप मेरे ऊपर छोड़ दीजिए.’

उस के बाद बचे 4 दिनों में 5-5, 6-6 घंटे रिहर्सल चलती रही. एक से संवादों को बारबार बोलतेबोलते वह तो उकता सी गई.

शुरूशुरू में तो वह समझ ही नहीं पाई कि नाटक के प्रदर्शन के बाद जो तालियां बजी थीं उन में से आधी उसी के लिए थीं. लोग लगातार उसे मुबारकबाद दे रहे थे. रविशेखर की आंखों में सफलता के आंसू चमक रहे थे. परंतु प्रीता स्वयं समझ नहीं पा रही थी कि आखिर उस ने किया क्या है? नाटक ही कुछ ऐसा था जो उस की जिंदगी से बेहद मेल खाता था.

इस नाटक में एक ऐसी युवती की कहानी थी जो अपने पिता और मां के अहं के टकराव में ‘शटलकौक’ बनी हुई थी. इस पाले से उस पाले में उसे फेंका जा रहा था. कुछ तमाशबीन उस खेल को देख रहे थे और एक निर्णायक उस तमाशे का फैसला दे रहा था. जिंदगी के असली नाटक में शटलकौक प्रीता स्वयं थी और दर्शक के रूप में उस के रिश्तेदार व मातापिता के पारिवारिक मित्र थे.

अंतर सिर्फ यह था कि मंच पर खेले गए नाटक का अंत सुखद था. जिस युवती का अभिनय उस ने किया था वह अपने प्रयासों से अपने मातापिता को मिला देती है. पर वास्तविक जिंदगी में कितनी ही कोशिशों के बाद प्रीता अपने मातापिता को एक नहीं कर पाई थी.

कभीकभी वह सोचती कि ये लेखक यथार्थ पर नाटक लिखते हैं तो फिर उस का अपना यथार्थ और उस नाटक का अंत इतना उलट क्यों? कहां खुशी के आंसू और कहां जीवन भर का अवसाद. कभी प्रीता को लगता कि यह जीवन रंगमंच ही तो है. इतने सारे पात्र, हरेक पात्र की अपनी पीड़ा, हरेक पीड़ा की अपनी कहानी, हर कहानी का अपना अंत और हर अंत के अपने परिणाम.

पर कितना खुदगर्ज निकला रविशेखर. जब तक उसे प्रीता की जरूरत थी, कैसा भावुक बना रहा. रिहर्सल में वह अकसर पहले आ जाती थी क्योंकि उस का रोल हमेशा बड़ा रहता था. वह उस के दोनों हाथों को अपनी हथेलियों में भर कर थरथराते स्वर में कहता, ‘प्रीता, तुम्हारा संग रहा तो हम राष्ट्रीय स्तर पर जा पहुंचेंगे.’

उस नितांत भावुक व्यक्ति की बातें शुरूशुरू में तो प्रीता को बेहद सतही लगतीं पर धीरेधीरे ये संवाद उसे भले लगने लगे. रवि के संग प्रीता ने कई नाटक किए. वह निर्देशक रहता और प्रीता नायिका. बूढ़ी, ब्याहता, पागल युवती, विधवा, अभिसारिका, तनावग्रस्त प्रौढ़ा, हंसोड़, बिंदास आदि न जाने कितनेकितने चरित्रों को उस ने मंच पर जिया.

एक दिन रविशेखर खुशी में झूमता हुआ मिठाई का बड़ा सा डब्बा ले कर उन के घर आया और बोला कि उसे फाउंडेशन की छात्रवृत्ति मिल गई है. फिर वह उस बेमुरव्वत हवाईजहाज की तरह अमेरिका उड़ गया, जिसे ‘रनवे’ पर लगी उन बत्तियों से कोई सरोकार ही नहीं होता,  जिन की मदद से वह आसमान में परवान चढ़ता है.

रविशेखर के अमेरिका जाने के बाद उसे सहारा देने को कई हाथ बढ़े. पर तब तक प्रीता तरहतरह की भूमिकाएं और विभिन्न कलाकारों के संग रिहर्सल और शो करतेकरते जान चुकी थी कि हाथों की थरथराहट का मतलब क्या होता है. उंगलियों के दबाव और हथेली की उष्णता के विभिन्न अर्थ उस की समझ में आ चुके थे. एक कुशल अदाकारा की तरह मंच पर हीर बन कर प्रेमरस में डूबी नायिका रहती तो नेपथ्य में उसी रांझा को न पहचानने का अभ्यास भी उसे हो गया था.

पर बारबार उसे लगता कि उसे पुरुष की जरूरत है. ऐसे पुरुष की जो उस के मस्तिष्क में उमड़ते विचारों को बांध सके, ऐसे पुरुष की जो उस की अभिव्यक्ति के सैलाब को सही दिशा दे सके. वह बिजली बन कर उस पुरुष के आकाश में चमकना चाहती थी. वह चाहती थी कि एक ऐसा संपूर्ण पुरुष जो उसे नारीत्व की गरिमा प्रदान कर सके.

उन्हीं दिनों सुकांत आया. अचानक धूमकेतु की तरह मंच पर वह प्रकट हुआ. सुदर्शन, चमकीली आंखें, लंबी नाक, खिला हुआ रंग. बोलता तो बोलता ही चला जाता, फ्रायड से राधाकृष्णन तक, यूजीन ओ नील से अब्दुल बिस्मिल्लाह तक और अंडे की सब्जी से अरहर की दाल तक. पर इस का अर्थ यह नहीं कि उसे इन सब बातों के बारे में जानकारी थी.

शुरूशुरू में जब इतने सारे भारीभारी नाम सुकांत ने उस के सामने बोलने शुरू किए तो वह सहम सी गई. इतना पढ़ालिखा, इतना प्रखर. पर धीरेधीरे वह जान गई कि जैसे कुछ लोगों को दुनिया के सारे देशों की राजधानियों के नाम रटे होते हैं, पर उन से पूछा जाए कि एफिल टावर कहां है तो जवाब नहीं बनता, सुकांत भी कुछकुछ इसी किस्म का था. पर वह उसे अच्छा लगने लगा. शायद इसलिए कि सुकांत की बातों से उसे एहसास होता कि वह बहुत भोला है.

रविशेखर प्रतिभाशाली था, पर उतना ही खुदगर्ज. कभीकभी वह रविशेखर और सुकांत की तुलना करने लगती तो सुकांत उसे भोला, सुंदर और थोड़ाथोड़ा मूर्ख लगता. अभिनय का शौक सुकांत को भी था, पर वह फिल्मी दुनिया में जाने को उतावला था. उस के मनोहर रूप और लंबेचौड़े व्यक्तित्व से उसे लगने लगा कि सुकांत जरूर हीरो बनेगा.

एक दिन नवंबर की एक शाम की हलकीहलकी ठंड में सुकांत ने उस के दोनों हाथों को अपनी गरम हथेलियों में भर के विवाह का प्रस्ताव रख ही दिया तो वह इनकार न कर सकी.

दूर के ढोल सुहावने होते हैं. सुकांत की जो बेवकूफियां विवाह से पहले उसे हंसातीं और गुदगुदाती थीं, अब वही असहनीय होने लगीं. बातबात में वह उस से अपनी तुलना करने लगता. सुकांत को मंच पर नाटक करने में कोई रुचि नहीं थी. वह थिएटर का इस्तेमाल सीढ़ी की तरह करना चाहता था.

उस के बहुत कहने पर एक बार उन दोनों ने एक नाटक में अभिनय किया. सुकांत ने उस नाटक में अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ अभिनय किया, पर बधाई देने वाले प्रीता के इर्दगिर्द ही ज्यादा थे. उस दिन से सुकांत कुछ अधिक ही उखड़ाउखड़ा रहने लगा. उस के बाद वह जानबूझ कर उन अवसरों को टालने लगी, जब उसे और सुकांत को एकसाथ अभिनय करना होता.

एक बार थिएटर में उस के नए नाटक का प्रदर्शन था. एक गूंगी लड़की की भूमिका उसे करनी थी. उस के हिस्से में संवाद नहीं थे, पर इतने दिनों के अनुभव से वह जान गई थी कि आंखों और चेहरे की भावभंगिमा से कैसे मन की बात कही जाती है. संयोग ही था कि यह सब उस ने एक गूंगी लड़की से ही सीखा था. उस की पड़ोसन रजनी की एक ननद सुनबोल नहीं पाती थी. कितनी प्यारी लड़की थी वह. उस के संग वह घंटों बातें करती रहती, पर बात जबान से नहीं, आंखों और हाथों से होती थी.

गूंगी लड़की के अद्भुत किरदार को निभाने के बाद तो वह मंच की रानी ही बन गई. कितनी सारी तालियां, कितना सम्मान, कितना स्नेह उसे एकसाथ मिल गया था. उस ने सोचा, सुकांत आज बेहद खुश होगा, पर नेपथ्यशाला से निकल कर वह बाहर आई तो सुकांत उसे कहीं नहीं दिखा. हार कर नाटक के निर्देशक विनय उसे स्कूटर से घर छोड़ने आए थे.

घर में अंधेरा था. घंटी बजाने पर सुकांत ने दरवाजा खोला. चढ़ी आंखें, बिखरे बाल.

‘‘क्या तुम्हारी तबीयत खराब है, सुकांत?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तुम ने नाटक देखा?’’

‘‘हां, आधा.’’

‘‘पूरा क्यों नहीं?’’

‘‘प्रीता, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’

सुकांत की आवाज सुन कर वह सहम गई. वह कुछ बोल नहीं पाई.

‘‘प्रीता, क्या तुम थिएटर छोड़ नहीं सकतीं?’’

वह हतप्रभ रह गई कि सुकांत उस से कह क्या रहा है. उसे अपने कानों पर अविश्वास हो रहा था कि क्या सुकांत ने जो शब्द कहे वे उस ने सही सुने थे. वह फटीफटी आंखों से सुकांत को देख रही थी. उसे लगा कि सुकांत की आंखों में भी वही भाव हैं जो तब रविशेखर की आंखों में रहे थे, जब उस ने छात्रवृत्ति मिलने पर अमेरिका जाने की खबर सुनाई थी.

जानते हुए भी कि सुकांत का उत्तर क्या होगा, वह उस से पूछना चाह रही थी कि क्यों, आखिर क्यों? पर शब्द उस के कंठ में फंस गए. वह न उन्हें उगल सकती थी और न निगल सकती थी. एक दर्द का गोला उस के दिल से उठा और चेतना पर छाता चला गया.

बंद कमरे में फंसी, खुले आकाश में उड़ने को छटपटाती, तेज घूमते पंखे से टकराई चिडि़या सी वह धड़ाम से फर्श पर गिर कर तड़पने लगी.

आंसू: आखिर कौन था वह अजनबी जिसने सुनीता की मदद की

‘‘कुमारी सुनीता, आप की पूरी फीस जमा है. आप को फीस जमा करने की आवश्यकता नहीं है,’’ बुकिंग क्लर्क अपना रेकौर्ड चैक कर के बोला. ‘‘मगर मेरी फीस किस ने जमा कराई है. वह भी पूरे 50 हजार रुपए,’’ सुनीता हैरानी से पूछ रही थी.

‘‘मैडम, आप की फीस औनलाइन जमा की गई है,’’ क्लर्क का संक्षिप्त सा उत्तर था. वह हैरानपरेशान कालेज से वापस लौट आई. उस की मां बेटी का परेशान चेहरा देख कर पूछ बैठी, ‘‘क्या बात है बेटी?’’

‘‘मां, किसी व्यक्ति ने मेरी पूरी फीस जमा करा दी है,’’ वह हैरानी से बोली. ‘‘किस ने और क्यों जमा कराई?’’ सुनीता की मां भी परेशान हो उठी.

‘‘पता नहीं मां, कौन है और बदले में हम से क्या चाहता है?’’ बेटी की परेशानी इन शब्दों में टपक रही थी. उस की मां सोच में पड़ गई. आजकल मांगने के बाद भी मुश्किल से 5-10 हजार रुपए कोई देता है वह भी लाख एहसान जताने के बाद. इधर ऐसा कौन है जिस ने बिना मांगे 50 हजार रुपए जमा करा दिए. आखिर, बदले में उस की शर्त क्या है?

‘‘खैर, जाने दो जो भी होगा दोचार दिनों में खुद सामने आ जाएगा,’’ मां ने बात को समाप्त करते कहा. दोनों मांबेटी खाना खा कर लेट गईं. सुनीता की मां एक प्राइवेट हौस्पिटल में 4 हजार रुपए मासिक पर दाई की नौकरी करती है. आज से 15 साल पहले एक रेल ऐक्सिडैंट में वह पति को खो चुकी थीं. तब सुनीता मुश्किल से 5-6 साल की रही होगी. तब से आज तक दोनों एकदूसरे का सहारा बन जी रही हैं. सुनीता को पढ़ाना उस का एक फर्ज है. बेटी बीए कर रही थी.

सुनीता ने अपने पिता को इतनी कम उम्र में देखा था कि उसे उन का चेहरा तक ठीक से याद नहीं है. कोई नातेरिश्तेदार इन से मिलने नहीं आता था. ऐसे में यह कौन है जो उस की फीस भर गया? दोनों मांबेटी की आंखों में यह प्रश्न तैर रहा था. पिता के नाम के स्थान पर दिवंगत रामनारायण मिश्रा लिखा था मगर वे कौन थे और कैसे थे, इस की चर्चा घर में कभी नहीं होती थी. मगर आज…

सुनीता के चाचा, मामा, मौसा या किसी दूसरे रिश्तेदार ने आज तक कभी एक रुपए की मदद नहीं की, ऐसी स्थिति में इतनी बड़ी रकम की मदद किस ने की. बहरहाल, सुनीता उत्साह के साथ पढ़ाई में जुट गई. दोचार वर्षों में वह बैंक, रेलवे या कहीं भी नौकरी कर के घर की गरीबी दूर कर देगी. वह मां को इस तरह खटने नहीं देगी. मां ने विधवा की जिंदगी में काफी कष्ट झेला है.

सुनीता उस दिन अचकचा गई जब उस के प्राचार्य ने उसे एक खत दिया. और कहा, ‘‘बेटी, आप के नाम यह पत्र एक सज्जन छोड़ गए हैं, आप चाहें तो इस पते पर उन से संपर्क कर सकती हैं या फोन पर बात कर सकती हैं.’’ ‘‘जी, धन्यवाद सर,’’ कह कर वह उन के कैबिन से बाहर आ गई और सीधा घर जा कर खत पढ़ा. उस में लिखा था, ‘‘बेटी, आप की फीस मैं ने भरी है, बदले में मुझे तुम से कुछ भी नहीं चाहिए, न ही तुम्हें यह पैसा लौटाना है.’’ नीचे उन के हस्ताक्षर और मोबाइल नंबर था.

सुनीता की मां ने जब वह नंबर डायल किया तो तुरंत जवाब मिला, ‘‘जी, आप सुनीता या उस की मां?’’ ‘‘मैं उस की मां बोल रही हूं. आप ने मेरी बेटी की फीस क्यों भरी?’’

‘‘जी, इसलिए कि मुझे इन के पिता का कर्ज चुकाना था.’’ वह संक्षिप्त उत्तर दे कर चुप हो गया. ‘‘ऐसा कीजिए आप मेरे घर आ जाइए.‘‘

‘‘ठीक है, रविवार को दोपहर 1 बजे मैं आप के घर आऊंगा,’’ कह कर उस व्यक्ति ने फोन काट दिया. रविवार को वह समय पर हाजिर हो गया. करीब 28-30 वर्ष का वह नौजवान आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था. वह बाइक से आया और सुनीता की मां को मिठाई का डब्बा दे कर नमस्कार किया.

सुनीता ने भी उसे नमस्कार किया और पास में बैठते हुए अपना प्रश्न दोहराया. ‘‘मैं ने फोन पर बताया तो था कि आप का ऋण चुकता किया है,’’ वह सरल स्वर में बोला था.

‘‘कैसा ऋण? दोनों मांबेटी चौंकी थीं. ‘‘ऐसा है कि रामनारायणजी ने मेरे पिताजी की 3 हजार रुपए की मदद की थी. उस के बाद मेरे पिताजी जब तक वह पैसा लौटाते तब तक रामनारायणजी गुजर चुके थे. परिवार का कोई ठिकाना नहीं था. मेरे पिताजी ने आप लोगों को बहुत ढूंढ़ा पर खोज नहीं पाए,’’ वह स्पष्ट स्वर में जवाब दे रहा था, मैं पढ़लिख कर नौकरी में आ गया और स्टेट बैंक की उसी शाखा में आ गया जहां आप लोगों का खाता है. साथ ही, वहीं सुनीता के कालेज का भी खाता है. मुझे यहीं आप का परिचय और आप की माली हालत का पता चला. मैं ने आप की मदद का निश्चय किया और फीस भर दी.’’

‘‘मगर आप अपनेआप को छिपा कर क्यों रखना चाहते थे,’’ यह सुनीता का प्रश्न था. ‘‘वह इसलिए कि मुझे बदले में कुछ भी नहीं चाहिए था और जमाने को देखते हुए मुझे चलना था.’’

‘‘फिर सामने क्यों आए?’’ यह सुनीता की मां का प्रश्न था. ‘‘जब आप लोगों को परेशान देखा, खास कर आप का यह डर की पता नहीं इस आदमी की छिपी शर्त क्या है? मैं ने आप का ऋण चुकाया था, डराना मेरा पेशा नहीं है. सो, सामने आ गया.’’

अब उस के इस जवाब से वे दोनों मांबेटी, आश्चर्य से भर उठीं. ‘‘मैं अब निकलना चाहूंगा. आप लोग चिंता न करें. मैं ने अपने पिताजी का ऋण चुकाया है,’’ वह उठते ही बोला.

‘‘ऐसे कैसे? वह भी 3 हजार के 50 हजार रुपए?’’ अभी भी सुनीता की मां समझ नहीं पा रही थी. ‘‘3 हजार रुपए नहीं, उन 3 हजार रुपए से मेरे पिता ने मेरी जान बचाई, मेरा इलाज कराया. मैं जीवित हूं, तभी आज बैंक में काम कर रहा हूं. गरीबी की हालत में मेरे पिताजी की रामनारायणजी ने मदद की थी. आज मेरे पास सबकुछ है, बस, पिताजी नहीं हैं,’’ वह भावुक हो कर बोल रहा था.

‘‘फिर तुम यह पैसा वापस क्यों नहीं लेना चाहते?’’ यह सुनीता की मां का प्रश्न था. ‘‘उपकार के बदले प्रत्युपकार हो गया. सो कैसा पैसा?’’ वह स्पष्ट बोला.

‘‘फिर भी…’’ सुनीता की मां समझ नहीं पा रही थी कि क्या कहे? ‘‘कुछ नहीं आंटीजी, आप ज्यादा न सोचें. अब मुझे इजाजत दें,’’ इतना कह कर वह चल दिया.

दोनों मांबेटी उसे जाता देख रही थीं. इन की आंखों से खुशी के आंसू झर रहे थे. ‘‘मां, आज भी ऐसे लोग हैं,’’ सुनीता बोली.

‘‘हां, तभी तो वह हमारी मदद कर गया.’’ ‘‘मैं नौकरी कर के उन का पैसा वापस कर दूंगी,’’ वह भावुक हो कर बोली.

‘‘बेटी, ऐसे लोग बस देना जानते हैं, लेना नहीं. सो, फीस की बात भूल जाओ. हां, बैंक में मेरा परिचय हो गया है, काम जल्दी हो जाएगा,’’ मां के बोल दुनियादारी भरे थे. दोनों मांबेटी की आंखों में आंसू थे जो एक ही वक्त में 2 अलग सोच पैदा कर रहे थे. मां जहां पति को याद कर रो रही थी जिन के दम पर आज 50 हजार रुपए की मदद मिली, वहीं बेटी को यह व्यक्ति फरिश्ता नजर आ रहा था. काश, वह भी किसी की मदद कर पाती. 50 हजार रुपए कम नहीं होते.

अब बस, दोनों की आंखों से आंसू बह रहे थे.

नीली आंखों के गहरे रहस्य: भाग-1

नीली आंखें मैं ने फिल्मों में नायक और नायिकाओं की देखी थीं. वास्तविक जीवन में पहली बार उस की नीली आंखें देखीं जब वह बैंक में मुझे पहली बार मिली थी.

‘‘सर, मैं ब्यूटीपार्लर खोलना चाहती हूं, आप के बैंक से लोन चाहिए.’’ अपने केबिन में बैठा, मैं एक जरूरी फाइल देख रहा था. यह स्वर सुन कर मैं ने अपना चेहरा ऊपर उठाया तो उस 24-25 वर्षीया युवती को देख कर ठगा सा रह गया. टाइट जींस, चुस्त टौप, खुले लहराते बाल, देखने में अति सुंदर, साथ ही, उस की नीली आंखें जिन में न जाने कैसी कशिश और सम्मोहन था कि मैं उन के गहरे समंदर में गोते लगाने लगा.

‘‘सर,’’ उस ने कुछ जोर दे कर लेकिन कोमल स्वर में कहा तो मैं सचेत हो गया, ‘‘हां, कहिए, कैसे?’’

‘‘जी, मेरा नाम मीठी है. मैं ब्यूटीपार्लर खोलना चाहती हूं, आप के बैंक से लोन चाहिए.’’

‘‘कितना लोन चाहिए?’’

‘‘5 लाख रुपए. इस के लिए मुझे क्या औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी,’’ बहुत ही गंभीर और सधे स्वर में उस ने पूछा.

‘‘इस के लिए आप को अपनी किसी प्रौपर्टी के कागजात देने होंगे. एक गारंटर की भी जरूरत पड़ेगी. और हां, वह प्रौपर्टी मुझे देखनी भी पड़ेगी तभी उस के आधार पर कार्यवाही आगे बढ़ेगी.’’

‘‘ठीक है सर, हमारा घर है जो कि मां के नाम है. ऊपरी हिस्से में हम रहते हैं. नीचे के हिस्से में ब्यूटीपार्लर खोलने की सोची है. आप जब चाहें हमारा घर देख सकते हैं,’’ उस ने उत्साहित स्वर में कहा, ‘‘तो सर, आप कब आ रहे हैं हमारा घर देखने?’’

उस का उत्साह, खुशी, लगन, रूपसौंदर्य और नीली आंखें देख कर मन में आया कह दूं कि आज शाम को ही, लेकिन मेरी छठी इंद्रिय ने मुझे सचेत किया कि मैं एक बैंक मैनेजर हूं और मुझे बैंक संबंधी, खासतौर से लोन संबंधी, मामलों में बहुत सूझबूझ, चतुराई, सतर्कता व दूरदर्शिता से काम लेना होगा क्योंकि आजकल बहुत फ्रौड हो रहे हैं.

बैंक में कोई भी जालसाजी या धोखाधड़ी होती है तो पहले बैंक मैनेजर पर ही शक की सूई ठहरती है चाहे उस का कुसूर हो या न हो. इसलिए हर कदम फूंकफूंक कर रखना पड़ता है. यह लड़की अपने यौवन और सौंदर्य के जाल में उलझा कर कहीं मुझ से कोई ऐसा गलत काम न करवा दे कि मैं फंस जाऊं.

‘‘सर, क्या सोचने लगे आप?’’ उस ने मुझे टोका तो मैं अपनी विचारयात्रा को विराम दे कर बोला, ‘‘देखिए, अभी 2-4 दिन मेरे पास वक्त नहीं है, काम ज्यादा है. आप अपना मोबाइल नंबर दे दीजिए, जिस दिन भी फ्री होऊंगा, आप को फोन पर बता दूंगा.’’

‘‘थैंक्यू सर,’’ कहते हुए उस ने अपना मोबाइल नंबर बता दिया और मैं ने शरारत से उस का नंबर अपने मोबाइल में ‘ब्लू आइज’ नाम से सेव कर लिया.

उस के जाते ही मैं फिर से उस की नीली आंखों की गहराई में उतर गया. अपने से आधी उम्र की लड़की के बारे में सोचना मुझे गलत तो लग रहा था, मेरी बेटी भी लगभग उसी की उम्र की थी, लेकिन पता नहीं क्यों उस की नीली आंखों ने मुझ पर क्या जादू कर दिया था कि मेरा मन उस की तरफ बेलगाम घोड़े की तरह दौड़ा ही जा रहा था और मैं, बेबस व असहाय सा हो गया था.

शाम को घर पहुंचते ही पत्नी चाय बनाने लगी और मैं मुंहहाथ धोने लगा. गरमागरम चाय का कप पकड़ाते हुए वह बोली, ‘‘सुनो, अब खुशी के लिए लड़के देखने शुरू कर दो. पूरे 25 वर्ष की हो गई है. उस का एमबीए भी कंपलीट हो गया है. जौब जब मिलेगी तब मिलती रहेगी लेकिन हमें तो लड़के देखने शुरू कर देने चाहिए.’’

यह सुन कर मुझे लगा कि मैं बूढ़ा हो गया हूं. खुशी की शादी होगी, फिर मैं नाना भी बन जाऊंगा. साथ ही, सोच रहा हूं उस नीली आंखों वाली लड़की के बारे में. मुझे अपने पर शर्म आई.

‘‘पापा, आप कब आए बैंक से?’’ मेरी बेटी ने पूछा.

‘‘बस बेटा, अभी थोड़ी देर पहले.’’ जैसे ही मैं ने उसे बेटा कहा तो उस नीली आंखों वाली की तसवीर मेरे सामने आ गई. अपने मन को हर तरह से काबू किया लेकिन रात को न चाहते हुए भी उंगलियां मोबाइल स्क्रीन पर पहुंच गईं और ‘ब्लू आइज’ पर उंगली का हौले से दबाव पड़ गया.

‘‘हैलो कौन?’’ इतनी जल्दी फोन उठा लेगी, यह तो मैं ने सोचा भी न था, संभलते हुए बोला, ‘‘मीठीजी, मैं बैंक मैनेजर आनंद बोल रहा हूं. असल में, मैं कल शाम को फ्री हूं, अगर आप चाहें तो अपना घर दिखा सकती हैं.’’

‘‘जरूर सर?’’ वह चहक कर बोली, ‘‘यह तो बहुत अच्छा है. मैं तो खुद चाहती हूं कि जल्दी से जल्दी मेरा लोन पास हो जाए और मेरा ब्यूटीपार्लर खोलने का सपना पूरा हो जाए.’’

‘‘तो ठीक है. आप कल शाम को 5 बजे बैंक आ जाना, मैं आप के साथ चलूंगा.’’

‘‘किस के साथ चलोगे और कहां चलोगे?’’ पत्नी ने पूछा.

उस का इस तरह पूछना, मुझे लगा जैसे उस ने किसी शुभ काम में टोक लगा दी है. सो, झुंझला कर बोला, ‘‘कल बैंक के बाद एक पार्टी के साथ विजिट के लिए जाना है. कहीं मौजमस्ती के लिए नहीं जा रहा.’’

‘‘आप तो बेवजह नाराज हो गए. और हां, अकेले मत जाना, साथ में किसी सहकर्मी को ले जाना. जमाना ठीक नहीं है. एक से भले दो रहते हैं,’’ वह मुझे एक बच्चे की तरह समझाती हुई बोली.

उस की इस नसीहत से मेरा पारा और चढ़ गया, ‘‘हद करती हो तुम? बैंक मैनेजर हूं. अनुभव है मुझे. पहचान है आदमी की, कौन भला है कौन बुरा? और, मेरी किसी से रंजिश या दुश्मनी थोड़ी है जो कोई मुझे नुकसान पहुंचाएगा.’’

‘‘आप को कुछ बताना और राय देना बेकार है. आप तो अपने काम के प्रति पूरी तरह समर्पित, ईमानदार बैंक मैनेजर हो. आप जिस संस्था का नमक खाते हो उस के साथ गद्दारी नहीं कर सकते. यह सिर्फ मैं ही जानती हूं लेकिन कोई बाहर वाला नहीं. किसी केस में आप ने नानुकुर की या अपनी असंतुष्टता व असहमति दर्शायी तो सामने वाला आप को प्रलोभन देगा ही और आप पूरी कठोरता से उस निम्न प्रस्ताव को अस्वीकार करोगे. ऐसे में वह आप की इस बात व व्यवहार से चिढ़ जाए व आप को अपना दुश्मन मान ले तब…यही सोच कर डर लगता है और फिर, घर में जवान बेटी है, तो यह डर और सताने लगता है. अब आप ही बताओ, क्या मैं गलत कह रही हूं?’’

‘‘साधना, रिलैक्स यार. मैं बैंक की नौकरी 30 वर्षों से कर रहा हूं. कभी झंझटों या गलत कामों में नहीं फंसा क्योंकि मैं अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले हर काम को पूरी स्पष्टता, सत्यता, पारदर्शिता और ईमानदारी से करता हूं और अपने सामने वाले को पहली मुलाकात में ही अपने व्यवहार, स्वभाव व कार्यशैली से यह दर्शा देता हूं कि मैं गलत नीति और गलत आचरण वाला व्यक्ति नहीं हूं. इज्जत से नौकरी की है, रिटायरमैंट भी पूरे सम्मान के साथ लूंगा.’’

‘‘बस, आप की इसी गांधीवादी विचारधारा पर तो फिदा हूं मैं,’’ कहती हुई वह शरारत से लिपट गई.

जल्दी ही वह गहरी नींद की आगोश में समा गई लेकिन आज नींद मुझ से कोसों दूर थी या यों कहिए नींद मुझ से रूठ कर रात्रिजागरण करवाने पर तुली थी.

शायद, साधना सही कहती है. औरतों की बातें, सलाह पुरुषों को हमेशा गलत लगती हैं. हालांकि ऐसा नहीं है. वे भी सही होती हैं. साधना का डर जायज है. आजकल लोग छोटी सी बात पर ही रंजिश पैदा कर लेते हैं. माना कि मैं बहुत होशियार व समझदार हूं लेकिन फिर भी मुझे और ज्यादा चौकन्ना रहना होगा.

सुबह आंख देर से खुली. साधना ने नाश्ता तैयार कर दिया था और लंच की तैयारी में जुटी थी. फ्रैश हो कर आया तो मोबाइल घनघना उठा. स्क्रीन पर‘ब्लू आइज’ देख कर मन सुहावने मौसम की तरह मदमस्त हो गया.

‘‘हैलो सर, मैं मीठी बोल रही हूं. आज शाम को आप मेरे घर आ रहे हैं न. तो प्लीज सर, डिनर मेरे यहां ही कीजिए. मेरी नानी कहती थीं कि मैं खीर बहुत स्वादिष्ठ बनाती हूं, इसलिए प्लीज…’’

निवेदनभरे मीठे स्वर में उस का आग्रह न ठुकरा सका मैं.

‘‘ठीक है, मैं डिनर आप के यहां ही कर लूंगा.’’

‘‘कहां डिनर कर लेंगे आप?’’ कहते हुए साधना ने कौफी का मग मेरे सामने बढ़ा दिया.

जब भी कोई अच्छी शुरुआत करने की सोचो, यह जरूरी बीच में आ टपकती है. औरत है या बिन मौसम बरसात, मन ही मन कुढ़ गया मैं क्योंकि मैं नीली आंखों वाली के साथ डिनर और खीर का आनंद लेने की सोच रहा था.

‘‘क्या सोचने लगे? और मेरी बात का जवाब भी नहीं दिया.’’

‘‘सोच रहा हूं आज शाम मुंबई के लिए उड़ जाऊं और वहां किसी नीली आंखों वाली हीरोइन के साथ डिनर करूं,’’ अपनी खीझ और कुढ़न को हास्यपरिहास से पेश कर दिया.

यह सुन कर वह खुल कर हंस पड़ी, ‘‘इस उम्र में कोई भूरी, काली, पीली, हरी और नीली आंखों वाली घास भी न डालेगी आप को, डिनर तो बहुत दूर की बात है.’’ उस ने भी मेरी तरह व्यंग्य से जवाब दिया.

‘‘छोड़ो भी यह हंसीमजाक. मैं आज डिनर बाहर ही करूंगा. एक पार्टी के साथ, उस के घर पर ही. बहुत आग्रह किया उस ने, इसलिए मना न कर सका,’’ अपना टिफिन हाथ में लेते हुए बड़ी सफाई से झूठ बोला मैं.

‘‘यह पार्टी जानकारी की है या अपरिचित?’’ उस ने फिर जासूसी की.

‘‘बस, एक बार बैंक में लोन के सिलसिले में मुलाकात हुई है,’’ इस बार सच बोला.

‘‘तो आप उन के यहां डिनर मत करो. जब तक जानपहचान गहरी न हो तो किसी के यहां डिनर पर नहीं जाना चाहिए.’’

‘‘क्यों नहीं जाना चाहिए?’’ मैं ने चिढ़ कर पूछा.

‘‘जमाना ठीक नहीं है. अपना काम निकलवाने के लिए सामने वाला आप के खाने में कुछ ऐसावैसा मिला दे और आप को अपने वश में कर के कुछ आप से गलत काम करा बैठे तो?’’ उस ने चिंता व्यक्त की.

अब मेरा क्रोध सातवें आसमान पर था, ‘‘जमाना तो ठीक है लेकिन तुम मानसिक रूप से ठीक नहीं हो. तभी तो ऐसे वाहियात विचार तुम्हारे मन में आते रहते हैं. खाने में कुछ मिला कर वश में करने की बात तुम्हें बताई किस ने? इतनी पढ़ीलिखी होने के बावजूद यह अंधविश्वास? मेरी तो समझ से परे है. अगर खिलानेपिलाने से वश में करने के नुसखे कामयाब होते तो आज हर सास अपनी बहू की गुलाम होती, पति अपनी पत्नी का सेवक और हर बौस अपने मातहतों के हाथों की कठपुतली बन जाता.

‘‘साधना, अपने दिमाग का इस्तेमाल करो, ये सब पाखंडी बाबाओं और मौलवियों के पैसा कमाने के साधन हैं. वे अपनी दुकानें चलाने के लिए अपने एजेंटों को ग्राहक फंसाने का काम सौंपते हैं. सब का अपनाअपना कमीशन होता है. अपने दिमाग का न इस्तेमाल करने वाली जनता से ही इन का खुराफाती बिजनैस फलफूल रहा है.’’

क्रोध और झुंझलाहट से बड़बड़ाता हुआ मैं बाहर आ गया और स्कूटी स्टार्ट कर के बैंक के लिए चल पड़ा.

साधना की बेतुकी बातों से मूड चौपट हो चुका था. बैंक में घुसते ही केबिन में रखा लैंडलाइन फोन बज उठा. जोनल औफिस से आने वाला बैंक में इस समय का नियमित फोन था. मैं ने ‘‘हैलो, गुडमौर्निंग सर’’ कहा और उधर से भी हैलो हुई, थोड़ी औपचारिक बातें हुईं और मेरी बैंक उपस्थिति दर्ज हो गई.

मैं अपने कार्य में लग गया. तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी. स्क्रीन पर ब्लू आइज देख कर लगा, अब मूड औन हो जाएगा.

‘‘सर…’’

‘‘आज शाम को तुम्हारे घर चलूंगा और डिनर भी करूंगा,’’ उस की पूरी बात सुने बिना मैं बोल पड़ा.

‘‘लेकिन सर, आज…’’

उस के घबराए स्वर को भांप कर मैं ने पूछा, ‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘सर, आज सुबह ही मम्मी को हार्टअटैक आया है. वे अस्पताल में भरती हैं,’’ कहती हुई वह लगभग रो पड़ी.

‘‘कौन से अस्पताल में हैं?’’ लेकिन उस के जवाब देने से पहले ही फोन कट गया. मेरे मिलाने पर वह उठा नहीं रही थी. शायद, अस्पताल में परेशान और व्यस्त होगी, यह सोच कर मैं ने फिर फोन नहीं किया.

अधूरे प्यार की टीस: भाग 1-क्यों बिखर गई सीमा की गृहस्थी

आज सुबह राकेशजी की मुसकराहट में डा. खन्ना को नए जोश, ताजगी और खुशी के भाव नजर आए तो उन्होंने हंसते हुए पूछा, ‘‘लगता है, अमेरिका से आप का बेटा और वाइफ आ गए हैं, मिस्टर राकेश?’’

‘‘वाइफ तो नहीं आ पाई पर बेटा रवि जरूर पहुंच गया है. अभी थोड़ी देर में यहां आता ही होगा,’’ राकेशजी की आवाज में प्रसन्नता के भाव झलक रहे थे.

‘‘आप की वाइफ को भी आना चाहिए था. बीमारी में जैसी देखभाल लाइफपार्टनर करता है वैसी कोई दूसरा नहीं कर सकता.’’

‘‘यू आर राइट, डाक्टर, पर सीमा ने हमारे पोते की देखभाल करने के लिए अमेरिका में रुकना ज्यादा जरूरी समझा होगा.’’

‘‘कितना बड़ा हो गया है आप का पोता?’’

‘‘अभी 10 महीने का है.’’

‘‘आप की वाइफ कब से अमेरिका में हैं?’’

‘‘बहू की डिलीवरी के 2 महीने पहले वह चली गई थी.’’

‘‘यानी कि वे साल भर से आप के साथ नहीं हैं. हार्ट पेशेंट अगर अपने जीवनसाथी से यों दूर और अकेला रहेगा तो उस की तबीयत कैसे सुधरेगी? मैं आप के बेटे से इस बारे में बात करूंगा. आप की पत्नी को इस वक्त आप के पास होना चाहिए,’’ अपनी राय संजीदा लहजे में जाहिर करने के बाद डा. खन्ना ने राकेशजी का चैकअप करना शुरू कर दिया.

डाक्टर के जाने से पहले ही नीरज राकेशजी के लिए खाना ले कर आ गया.

‘‘तुम हमेशा सही समय से यहां पहुंच जाते हो, यंग मैन. आज क्या बना कर भेजा है अंजुजी ने?’’ डा. खन्ना ने प्यार से रवि की कमर थपथपा कर पूछा.

‘‘घीया की सब्जी, चपाती और सलाद भेजा है मम्मी ने,’’ नीरज ने आदरपूर्ण लहजे में जवाब दिया.

‘‘गुड, इन्हें तलाभुना खाना नहीं देना है.’’

‘‘जी, डाक्टर साहब.’’

‘‘आज तुम्हारे अंकल काफी खुश दिख रहे हैं पर इन्हें ज्यादा बोलने मत देना.’’

‘‘ठीक है, डाक्टर साहब.’’

‘‘मैं चलता हूं, मिस्टर राकेश. आप की तबीयत में अच्छा सुधार हो रहा है.’’

‘‘थैंक यू, डा. खन्ना. गुड डे.’’

डाक्टर के जाने के बाद हाथ में पकड़ा टिफिनबौक्स साइड टेबल पर रखने के बाद नीरज ने राकेशजी के पैर छू कर उन का आशीर्वाद पाया. फिर वह उन की तबीयत के बारे में सवाल पूछने लगा. नीरज के हावभाव से साफ जाहिर हो रहा था कि वह राकेशजी को बहुत मानसम्मान देता था.

करीब 10 मिनट बाद राकेशजी का बेटा रवि भी वहां आ पहुंचा. नीरज को अपने पापा के पास बैठा देख कर उस की आंखों में खिं चाव के भाव पैदा हो गए.

‘‘हाय, डैड,’’ नीरज की उपेक्षा करते हुए रवि ने अपने पिता के पैर छुए और फिर उन के पास बैठ गया.

‘‘कैसे हालचाल हैं, रवि?’’ राकेशजी ने बेटे के सिर पर प्यार से हाथ रख कर उसे आशीर्वाद दिया.

‘‘फाइन, डैड. आप की तबीयत के बारे में डाक्टर क्या कहते हैं?’’

‘‘बाईपास सर्जरी की सलाह दे रहे हैं.’’

‘‘उन की सलाह तो आप को माननी होगी, डैड. अपोलो अस्पताल में बाईपास करवा लेते हैं.’’

‘‘पर, मुझे आपरेशन के नाम से डर लगता है.’’

‘‘इस में डरने वाली क्या बात है, पापा? जो काम होना जरूरी है, उस का सामना करने में डर कैसा?’’

‘‘तुम कितने दिन रुकने का कार्यक्रम बना कर आए हो?’’ राकेशजी ने विषय परिवर्तन करते हुए पूछा.

‘‘वन वीक, डैड. इतनी छुट्टियां भी बड़ी मुश्किल से मिली हैं.’’

‘‘अगर मैं ने आपरेशन कराया तब तुम तो उस वक्त यहां नहीं रह पाओगे.’’

‘‘डैड, अंजु आंटी और नीरज के होते हुए आप को अपनी देखभाल के बारे में चिंता करने की क्या जरूरत है? मम्मी और मेरी कमी को ये दोनों पूरा कर देंगे, डैड,’’ रवि के स्वर में मौजूद कटाक्ष के भाव राकेशजी ने साफ पकड़ लिए थे.

‘‘पिछले 5 दिन से इन दोनों ने ही मेरी सेवा में रातदिन एक किया हुआ है, रवि. इन का यह एहसान मैं कभी नहीं उतार सकूंगा,’’ बेटे की आवाज के तीखेपन को नजरअंदाज कर राकेशजी एकदम से भावुक हो उठे.

‘‘आप के एहसान भी तो ये दोनों कभी नहीं उतार पाएंगे, डैड. आप ने कब इन की सहायता के लिए पैसा खर्च करने से हाथ खींचा है. क्या मैं गलत कह रहा हूं, नीरज?’’

‘‘नहीं, रवि भैया. आज मैं इंजीनियर बना हूं तो इन के आशीर्वाद और इन से मिली आर्थिक सहायता से. मां के पास कहां पैसे थे मुझे पढ़ाने के लिए? सचमुच अंकल के एहसानों का कर्ज हम मांबेटे कभी नहीं उतार पाएंगे,’’ नीरज ने यह जवाब राकेशजी की आंखों में श्रद्धा से झांकते हुए दिया और यह तथ्य रवि की नजरों से छिपा नहीं रहा था.

‘‘पापा, अब तो आप शांत मन से आपरेशन के लिए ‘हां’ कह दीजिए. मैं डाक्टर से मिल कर आता हूं,’’ व्यंग्य भरी मुसकान अपने होंठों पर सजाए रवि कमरे से बाहर चला गया था.

‘‘अब तुम भी जाओ, नीरज, नहीं तो तुम्हें आफिस पहुंचने में देर हो जाएगी.’’

राकेशजी की इजाजत पा कर नीरज भी जाने को उठ खड़ा हुआ था.

‘‘आप मन में किसी तरह की टेंशन न लाना, अंकल. मैं ने रवि भैया की बातों का कभी बुरा नहीं माना है,’’ राकेशजी का हाथ भावुक अंदाज में दबा कर नीरज भी बाहर चला गया.

नीरज के चले जाने के बाद राकेशजी ने थके से अंदाज में आंखें मूंद लीं. कुछ ही देर बाद अतीत की यादें उन के स्मृति पटल पर उभरने लगी थीं, लेकिन आज इतना फर्क जरूर था कि ये यादें उन को परेशान, उदास या दुखी नहीं कर रही थीं.

अपनी पत्नी सीमा के साथ राकेशजी की कभी ढंग से नहीं निभी थी. पहले महीने से ही उन दोनों के बीच झगड़े होने लगे थे. झगड़ने का नया कारण तलाशने में सीमा को कोई परेशानी नहीं होती थी.

शादी के 2 महीने बाद ही वह ससुराल से अलग होना चाहती थी. पहले साल उन के बीच झगड़े का मुख्य कारण यही रहा. रातदिन के क्लेश से तंग आ कर राकेश ने किराए का मकान ले लिया था.

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