बेऔलाद: भाग 3- क्यों पेरेंट्स से नफरत करने लगी थी नायरा

‘‘मेरे बारे में?’’ नरेशा हंसा और बोला, ‘‘अब क्या बताऊं मैडमजी, जब मैं 10 साल का था तभी मेरे पिताजी मुझे छोड़ कर चले गए और कुछ महीने बाद दादी भी हमें अकेला कर गईं. फिर मां ने लोगों के कपड़े सिल कर मुझे बड़ा किया, पढ़ायालिखाया. लेकिन मेरा मन पढ़ने में जरा भी नहीं लगता था. सोचता, क्या करूं जो मां को काम न करना पड़े. इसलिए मैं ने एक गैराज में नौकरी कर ली. लेकिन वहां भी मेरा मन नहीं लगा, तो गाइड बन गया और आज आप के सामने खड़ा हूं,’’ बोल कर नरेश हंसा तो जोली भी खिलखिला पड़ी. नरेश कहने लगा कि अब यही उस की छोटी सी दुनिया है.

‘‘नरेश… तुम्हारी यह छोटी सी दुनिया बहुत ही सुंदर है और देखो अब मैं भी तुम्हारी इस छोटी सी दुनिया की सदस्य बन गई न,’’ बोल कर जोली ने नरेश को चूम लिया.

जोली के ऐसे व्यवहार से नरेश का पूरा शरीर सिहर उठा. वह तो

सम?झ ही नहीं सका कि एकदम से यह क्या हो गया. अपलक वह जोली को देखने लगा.

‘‘क्या हुआ… करंट लगा?’’ बोल कर जोली ने फिर उस के गालों पर किस कर लिया, ‘‘अच्छे लगते हो तुम मुझे,’’ बोल कर जोली ने उस की आंखों में ?झंका तो शरमा कर उस ने अपनी नजरें ?झका लीं. एकांत में जब 2 युवा दिल मिलते हैं तो अपनेआप उन के बीच की दूरियां सिमट कर छोटी हो जाती हैं. यहां भी यही हुआ. दोनों की मरजी से कुछ ही पलों में दोनों के बीच की सारी औपचरिकताएं मिट गईं और फिर ऐसा बारबार होने लगा. लेकिन जोली के लिए यह कोई नई बात नहीं थी. उस के लिए तो यह पेट की भूख की तरह था. मगर नरेश इसे प्यार सम?झ बैठा. जोली हर रात नरेश के आगोश में समा जाती और वह जोली को ले कर रोज नए सपने बुनता.

नरेश को अब हर चीज में जोली ही दिखाई पड़ती थी. उस की हर सांस जोली का ही नाम जपती. उस का दिल सिर्फ और सिर्फ जोली के लिए ही धड़कता था. उस के हर खयाल में सिर्फ जोली ही होती थी. जब वह सोता तो जोली के सपने आते और जागता तो जोली के खयालों में खोया रहता. जोली के बारे में सोच कर वह अकेले में हंसता, तो कभी उदास हो जाता था. वह दीवानों की तरह जोली से प्यार करने लगा था. उस से एक पल की भी दूरी अब उस से सहन नहीं होती थी. जोली के बिना वह खुद को अधूरा महसूस करने लगा था.

उस के बदले व्यवहार को देख कर नरेश के दोस्त उसे पागलदीवाना बुलाने लगे थे. कहते हैं इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता. पुष्पा को भी सम?झ आ गया था कि दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे हैं. वैसे मन ही मन पुष्पा भी जोली को पसंद करने लगी थीं. बल्कि वे तो नरेश और जोली की शादी के सपने भी देखने लगी थीं. मगर दोनों ने अभी तक अपने प्यार का इजहार नहीं किया था. इसलिए कई बार उन्होंने घुमाफिरा कर नरेश से पूछा भी कि जोली उसे पसंद है? प्यार करता है वह उस से? लेकिन शर्मीला नरेश मुसकरा कर बस अपनी नजरें ?झका लेता था.

उधर जोली कहती कि हां, नरेश उसे अच्छा लगता है और वह तो इतना प्यारा है कि किसी को भी उस से प्यार हो जाएगा.

‘‘नरेश, तुम मु?झ से प्यार तो करते हो न?’’ नरेश की बांहों के घेरे में सिमटी जोली बोल रही थी.

‘‘हां, जोली, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं,’’ जोली के रेशमी बालों से खेलते हुए नरेश बोला, ‘‘जोली, मैं तुम से इतना ज्यादा प्यार करता हूं कि तुम्हारे बिना जी नहीं सकता.’’

‘‘विल यू मैरी मी?’’

जोली की बात पर नरेश ने ?झट से ‘हां’ कह कर उस का हाथ थाम लिया.

‘‘अरे, छोड़छोड़ मेरा हाथ,’’ जब पुष्पा जोर से चिल्लाईं तो नरेश हड़बड़ा कर उठा बैठा. ‘ओह, तो क्या यह सपना था और मैं ने मां का हाथ… नरेश लज्जित हो उठा.

‘‘ले चाय पी और जा कर देख जोली कब से तुम्हें आवाज लगा रही है.’’

मगर नरेश ने चाय छुआ नहीं था और तुरंत जोली के पास पहुंच गया.

‘‘देखो, इस लड़के को… अरे, चाय तो पी जाता, ठंडी हो जाएगी,’’ पीछे से पुष्पा चिल्लाईं. लेकिन नरेश कहां सुनने वाला था.

पुष्पा ने सोचा वहीं जा कर उसे चाय दे आतीं वरना ठंडी हो जाएगी.

इधर नरेश जब कमरे में पहुंचा, तो देखा जोली बाथरूम से आ कर निढाल सी बिस्तर पर पड़ गई.

‘‘क्या हुआ, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’ जोली का हाथ अपने हाथों से मसलते हुए नरेश ने पूछा तो वह रोने लगी.

‘‘अरे, क्या हुआ बताओ तो?’’ नरेश अब घबरा उठा.

‘‘नरेश… आई एम प्रैगनैंट.’’

‘‘प्रैगनैंट यानी तुम मां बनाने वाली हो और मैं पापा… ओह जोली, तुम ने तो मुझे खुश कर दिया,’’ और फिर जोली को अपनी गोद में उठा लिया और उसे चूमने लगा. उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जो उस ने सुना वह सच है.

‘‘नरेश… नरेश… नीचे उतारो मुझे और इस का कोई रास्ता ढूंढ़ो जल्दी…’’

मगर खुशी से बौखलाया नरेश गुनगुनाने लगा, ‘‘ये हरियाली और ये रास्ता… इन

राहों पर चल कर हम और तुम…’’

‘‘नरेश,’’ जोली जोर से चीख पड़ी, ‘‘मैं तुम से शौल्यूशन मांग रही हूं और तुम हो कि पागलों की तरह गाना गा रहे हो. बताओ मुझे अब मैं क्या करूं? तुम्हें तो ध्यान रखना चाहिए था न.  वैसे गलती मेरी भी थी. सोचा था कैमिस्ट से जा कर बर्थकंट्रोल पिल ले आऊंगी पर भूल गई. लेकिन जो भी हो, मुझे यह बच्चा अबोर्ट करना है.’’

‘‘अबौर्ट मतलब गर्भपात?’’ नरेश चौंका, ‘‘पर क्यों जोली? यह बच्चा तो हम दोनों के प्यार की निशानी है. हां, मुझे पता है तुम यही सोच रही हो कि लोग क्या कहेंगे. बिन ब्याही मां बनना किसी भी लड़की के लिए शर्मिंदगी की बात होती है. इसलिए हम कल ही शादी कर लेंगे.’’

‘‘व्हाट,’’ अब चौंकने की बारी नरेश की थी, ‘‘शादी, प्यार, बच्चा… यह क्या बोले जा रहे हो तुम? नो… नो… तुम शायद गलत सम?झ रहे हो.’’

‘‘कुछ गलत नहीं सम?झ रहा हूं मैं बल्कि सब सही हो जाएगा. हम आज ही मंदिर में जा कर शादी कर लेंगे, फिर लोगों को कुछ बोलने का मौका ही नहीं मिलेगा,’’ उत्साह से भरा नरेश अपनी ही रौ में बोलता चला जा रहा था.

डर: क्या वृद्ध दंपती ने अंजान लड़की की मदद की

‘‘पता नहीं कैसेकैसे बेवकूफ लोग हैं. अखबार नहीं पढ़ते या पढ़ कर भी नहीं समझते अथवा समझ कर भी भूल जाते हैं और हर बार एक ही तरह से बेवकूफ बनते जाते हैं,’’ मेज पर अखबार पटकते हुए पति झल्लाए.

‘‘ऐसा क्या हुआ?’’ चाय के कप समेटते हुए मैं ने पूछा.

‘‘होना क्या है, फिर किसी बुजुर्ग महिला को कुछ लोगों ने लूट लिया, यह कह कर कि आगे खून हो गया है… मांजी अपने गहने उतार दीजिए…अरे खून होने से गहने उतारने का क्या संबंध और फिर खून तो हो चुका…उस के बाद खूनी वहां थोड़े खड़ा होगा. पता नहीं लोग लौजिकली क्यों नहीं सोचते? बस, आ गई बातों में और गहने उतार कर दे दिए.’’

‘‘अरे, वे तो बूढ़ी महिलाओं को निशाना बनाते हैं… घबरा जाती हैं बेचारी और फिर झांसे में आ जाती हैं.’’

‘‘अरे, बूढ़ी नहीं 35-40 साल की कामकाजी महिलाएं भी नहीं समझ पातीं. खैर मान लिया महिलाएं हैं लेकिन कितने ही आदमी भी तो ठगे जाते हैं… लड़कियां लिफ्ट लेती हैं और फिर सुनसान रास्ते पर गाड़ी रुकवा कर लूट लेती हैं…जब पता है कि आप का रास्ता सुनसान है तो क्यों देते हैं लोग लिफ्ट?’’

‘‘अब बेचारे मना नहीं कर पाते लड़कियों को मदद करने से…क्या करें,’’ मैं ने हंसते हुए कहा.

‘‘हां तुम्हें तो मौका मिल गया न हम मर्दों को कोसने का. हम तो बस…’’

‘‘अरे, आप इतना नाराज क्यों होते हैं? शायद हालात ही ऐसे होते होंगे… इंसानियत भी तो कोई चीज है. फिर किसी के माथे पर थोडे़ लिखा होता है कि जिस की आप मदद करने जा रहे हैं वह धोखेबाज है. चलिए, अब नहा लीजिए औफिस के लिए देर हो जाएगी,’’ मैं ने बात खत्म करते हुए कहा.

वैसे बात सही है. रोज तो एकजैसी घटनाएं होती हैं, पैदल चलती महिलाओं की चेन ?ापटना, मोबाइल छीन लेना, गहने उतरवा लेना, लिफ्ट ले कर लूट लेना…लेकिन पता नहीं क्यों लोग इस के बावजूद सीख नहीं लेते?

‘‘देर हो रही है, जल्दी चलिए न…हौस्पिटल दूर है. किसी को देखने जाना हो और वह भी इतनी देर से, ठीक नहीं लगता. फिर लौटने में भी देर हो जाएगी,’’ मैं ने जल्दी मचाते हुए कहा.

‘‘हां भई, चलो, अभी बहुत देर भी नहीं हुई है,’’ पति गाड़ी स्टार्ट करते हुए बोले.

घर से थोड़ी ही दूर मोड़ पर एक लड़की खड़ी थी. लगभग गाड़ी के सामने ही खड़े हो कर उस ने हाथ दिया तो गाड़ी रोकनी पड़ी.

‘‘अंकल प्लीज मेरी मदद कीजिए…प्लीज मेरी गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही है.’’

सड़क के किनारे एक कार खड़ी थी. ऐसा लगा कि कच्ची सड़क की गीली मिट्टी में फंस गई है. अब मना तो किया नहीं जा सकता था. अत: पति तुरंत गाड़ी से उतर गए और उस की गाड़ी में बैठ कर गाड़ी स्टार्ट कर दी. गाड़ी निकालने की बड़ी कोशिश की लेकिन गाड़ी नहीं निकली. अब तक मैं भी गाड़ी से उतर आई थी. इस सुनसान रास्ते पर एक अकेली लड़की की मदद करने का एहसास सुखद था. वह लड़की भी मेरे पास आ कर खड़ी हो गई. तभी उस के मुंह से आई शराब की गंध से मैं 2 कदम पीछे हट गई. उफ, इस ने तो शराब पी रखी है. अब मैं ने गाड़ी को ध्यान से देखा तो पता चला कि गाड़ी का अगला हिस्सा दबा हुआ है, जिस की वजह से पहिया आगे को नहीं घूम पा रहा है. तभी एक गाड़ी वहां से निकली. हमारी गाड़ी बीच में खड़ी थी. खैर, गाड़ी को साइड में कर के मैं फिर जल्दी से बाहर आ गई. तब तक पति भी उस लड़की की गाड़ी से बाहर आ गए थे.

‘‘कहां रहती हो? कहां जाना है?’’ मैंने पूछा.

‘अब यह गाड़ी नहीं निकल सकती, बिना क्रेन के यह तो तय है. समय निकला जा रहा है. हमें तो हौस्पिटल जाना है…यह किस मुसीबत में फंस गए हम,’  मैं ने मन ही मन सोचा.

‘‘अंकल, प्लीज कुछ करिए न…मुझे मूसाखेड़ी जाना है… मेरी गाड़ी को पता नहीं क्या हो गया है.’’

‘‘लेकिन तुम यहां आई किस के घर हो? मूसाखेड़ी तो यहां से बहुत दूर है?’’

‘‘आंटी मैं अपनी एक सहेली के यहां आई थी. वह इसी कालोनी में रहती है.’’

‘‘तो तुम उसी के यहां चली जाओ. गाड़ी लौक कर दो. सुबह को फोन कर के क्रेन मंगवा लेना,’’ मैं ने किसी तरह पीछा छुड़ाने की गरज से कहा.

‘‘आंटी, मेरा उस सहेली से झगड़ा हो गया है. अब मैं उस के घर नहीं जा सकती. आप लोग कहां जा रहे हैं? आंटी प्लीज मुझे लिफ्ट दे दीजिए.’’

‘‘कहां रहती है तुम्हारी सहेली?’’ मैं ने पूछा तो उस ने दूर एक घर की तरफ इशारा कर दिया.

‘‘बेटा, सहेलियों में झगड़ा होता ही रहता है…वह सहेली है तुम्हें परेशानी में देख कर

जरूर मदद करेगी,’’ मैं ने फिर पीछा छुड़ाने की कोशिश की.

‘‘आंटी, मैं अच्छे घर से हूं…मेरे पापा बहुत बड़ी पोस्ट पर हैं. प्लीज आंटी मेरी मदद करिए…मैं यहां से कैसे जाऊंगी?’’

‘‘अपने घर से किसी को बुला लो,’’ मैं किसी भी तरह से इस बिन बुलाई मुसीबत से पीछा छुड़ाना चाहती थी.

‘‘आंटी, मैं होस्टल में रहती हूं. यहां कोई फैमिली मैंबर नहीं है… आप कहां तक जा रहे हैं? मु?ो किसी टैक्सी स्टैंड तक छोड़ दीजिए, प्लीज.

उफ, वही हुआ जिस का डर था. कालोनी के बाहर सुनसान रास्ता…रात का समय…एक अकेली लड़की को लिफ्ट देना…अखबार में पढ़ी खबरें… जानबू?ा कर बेवकूफ बनना… बहुत सारी बातें एकसाथ दिमाग में घूम गईं. पर फिर मन पिघलने लगा कि लड़की रात के समय अकेली कहां जाएगी? लेकिन सुनसान रास्ते पर उसे गाड़ी में बैठा कर ले जाना भी तो खतरे से खाली नहीं है. कहीं कुछ हो गया तो? घर में बच्चे इंतजार कर रहे हैं. लेकिन अगर इसे अकेले यहां छोड़ दिया तो? नहींनहीं यह तो कोई बात नहीं कि अपने डर की वजह से किसी अकेली लड़की की मदद न की जाए. अत: हम ने मदद की हामी भर दी.

गाड़ी ठीक से लौक कर वह हमारी गाड़ी में बैठ गई. पूरी गाड़ी शराब की गंध से भर गई. शीशे खोलने पड़े. मैं ने पति की तरफ देखा. सम?ा तो वे भी रहे थे, लेकिन बिना मदद किए वहां से आगे बढ़ जाना ठीक भी नहीं था.

गाड़ी ने कालोनी का रास्ता तय कर मोड़ लिया तो सुनसान रास्ता शुरू हो गया. इसी के साथ मेरे दिल की धड़कनें भी तेज हो गईं कि अगर 3-4 लोग रास्ता रोक लें तो कुछ नहीं किया जा सकता. उन पर गाड़ी तो नहीं चढ़ाई जा सकती…पता नहीं हम सही कर रहे हैं या नहीं?

जैसेजैसे रास्ता सुनसान होता गया मैं और अधिक चौकन्नी हो कर बैठ गई. मोबाइल हाथ में ले लिया. साइड मिरर से उस लड़की पर नजर रखे थी. तभी अचानक गाड़ी के सामने एक कुत्ता आ गया. गाड़ी के ब्रेक लगते ही मेरे नकारात्मक विचारों को भी विराम लग गया. मन ने खुद को धिक्कारा कि छि: यह क्या सोच रही हूं…11 साल पहले जब हम इस कालोनी में रहने आए थे तब कितनी ही बार इसी सड़क पर रात के समय लोगों को लिफ्ट दी थी. और आज एक लड़की से इतना डर? दुनिया इतनी भी बुरी नहीं है. फिर कर भला हो भला का यह विश्वास आज डगमगा क्यों रहा है? लेकिन मन यों ही तो हार नहीं मानता…जब उस के डर पर प्रहार होता है तो उस के अपने तर्क शुरू हो जाते हैं. संभल कर चलना और दूसरों की गलतियों से सीख लेना कोई बुरी बात तो नहीं है. फिर रोज इतनी खबरें पढ़ते हैं, दूसरों को कोसते हैं. आज जानबूझ कर खुद को मुसीबत में फंसा देना कहां की अकलमंदी है? फिर इस लड़की ने शराब पी रखी है. भले यह भले घर की हो, लेकिन शराब का शौक पूरा करने के लिए तो मातापिता पैसे नहीं भेजते होंगे न? जब घर से भेजे पैसों में खर्चे पूरे नहीं होते तो ये कोई शौर्टकट अपना लेते हैं.

अब तक हम तीनों ही खामोश बैठे थे. पति गाड़ी चला रहे थे, मैं विचारों के झंझवात में फंसी थी और पिछली सीट के अंधेरे में मैं देख नहीं पा रही थी कि वह लड़की क्या कर रही है या उस के क्या हावभाव हैं. लेकिन मुझे लगा शायद वह कुछ सोच रही है या शायद इतने नशे में है कि कुछ सोच नहीं पा रही है.

टैक्सी स्टैंड आने को था. तभी उस ने अपनी चुप्पी तोड़ी, ‘‘अंकल प्लीज, आप मुझे घर तक छोड़ दीजिए.’’

शायद उसे भी अब इतनी रात अकेले टैक्सी से जाने में डर लग रहा था.

मैं ने उस से कहा, ‘‘बेटा हमें पास ही कुछ काम है…तुम टैक्सी से चली जाओ…वह तुम्हें घर तक छोड़ देगा.’’

अब तक हम चौराहे पर आ गए थे. उस का चेहरा देख कर एक मन तो हुआ कि उसे उस के घर तक छोड़ दिया जाए, लेकिन उस का घर

10 किलोमीटर दूर था और पूरा रास्ता भी सुनसान था.

टैक्सी स्टैंड पर गाड़ी रुकते ही वह उतर गई. मैंने उस का पता पूछ टैक्सी वाले को समझाया और उस से कहा कि भैया इसे ठीक से इस के घर पहुंचा देना. उस की चिंता भी हो रही थी. अजीब उलझन थी. टैक्सी वाला भी भला आदमी लगा. उस ने पता समझ का मुझ आश्वस्त किया कि वह जगह मुझे पता है. मैं भी उसी इलाके में रहता हूं…आप चिंता न करें…मैं इन्हें सुरक्षित छोड़ दूंगा.

मैं ने उस से कहा, ‘‘जाओ बेटा, आराम से चली जाओगी’’

वह गाड़ी के बिलकुल करीब आ गई. मेरा हाथ खिड़की पर रखा था. मेरा हाथ पकड़

कर वह रो पड़ी. फिर बोली, ‘‘थैंक्यू आंटी, आई एम सौरी… मैं ने आप को बहुत परेशान किया. मेरा अपने पति से झगड़ा हो गया था…सौरी आंटी मैं ने शराब पी हुई है…आप बहुत अच्छी हैं… आप ने मेरी इतनी मदद की…’’

तभी मेरे पति भी वहां आ गए. वह उन की ओर मुखातिब हुई, ‘‘अंकल प्लीज, मुझे माफ कर दीजिए… मैं ने आप को बहुत तकलीफ दी.’’

‘‘बेटा, अगर आप की कोई परेशानी है तो आप अपने मातापिता को क्यों नहीं बतातीं?’’

‘‘आंटी, वे मुझ से बहुत नाराज होंगे…मैं उन्हें नहीं बता सकती.’’

‘‘नहीं ऐसा नहीं है. चाहे कितने भी नाराज हों, हैं तो मातापिता…उन से ज्यादा आप का भला और कोई नहीं सोच सकता. इस तरह अकेले रह कर शराब पी कर खुद को परेशानी में डालने से तो कोई हल नहीं निकलने वाला. तुम मेरी बेटी जैसी हो…तुम्हें इस तरह शराब के नशे में देख कर दुख हो रहा है. बेटा, कोई भी परेशानी हो अपने मातापिता को जरूर बताओ. हो सकता है वे गुस्से में तुम्हें डांट दें, शायद थप्पड़ भी लगा दें, लेकिन फिर भी तुम्हारी परेशानी को दूर करने के लिए कुछ न कुछ जरूर करेंगे.’’

वह मेरा हाथ पकड़े हुए थी. मैं ने उसे गले लगा लिया. 20 मिनट की असमंजस के बाद मात्र

3 मिनट में उस से ऐसी आत्मीयता हो गई कि उस का अकेलापन महसूस कर के दुख होने लगा था. मुझे नहीं पता था कि उस की असली परेशानी क्या है?

मैं ने एक बार पति की तरफ देखा. आंखों ही आंखों में बात हुई और फिर मैं ने उस से कहा, ‘‘अच्छा गाड़ी में बैठो, हम तुम्हें छोड़ देते हैं,’’ फिर टैक्सी वाले से कहा कि माफ करना भैया अब हमारा प्रोग्राम चेंज हो गया है हम ही उस तरफ जा रहे हैं.

हमारी गाड़ी अब नए रास्ते पर मुड़ चुकी थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘अब सचसच बताओ क्या हुआ है?’’

थोड़ी सी हिचक के बाद वह कहने लगी, ‘‘आंटी, मैं ने अपने पापा को बताए बिना शादी कर ली, लेकिन अब वह लड़का बातबात पर मुझ से झगड़ा करता है. वह कोई काम भी नहीं करता, अब तो अपने खर्चे के पैसे भी वह मुझ से मांगता है. आंटी, मैं अपने मम्मीपापा की अकेली लड़की हूं. पापा भी अच्छी पोस्ट पर हैं, लेकिन फिर भी मैं उन से कितना मांगू? मुझे अच्छा नहीं लगता. जब मना करती हूं तो झगड़ा करता है.’’

‘उफ, यह लड़की कहां फंस गई’ मैं ने मन ही मन सोचा. फिर पूछा, ‘‘उस लड़के के घर वालों को पता है तुम लोगों की शादी के बारे में?

‘‘नहीं आंटी, अभी किसी को पता नहीं है.’’

‘‘कोर्ट मैरिज की है?’’

‘‘नहीं आंटी हम ने मंदिर में की थी. बस हमारे 1-2 दोस्त आए थे.’’

‘‘तो शादी के बाद तुम लोग साथसाथ रहे भी नहीं हो?’’

‘‘शादी के बाद हम लोग 2 दिन के लिए बाहर गए थे. उस के बाद यहां जिस मकान में वह रहता है वहां मैं उस से मिलने आती हूं…लेकिन अब तो झगड़ा ज्यादा होता है.’’

उस लड़की का भविष्य खाली सड़क सा दिखाई दे रहा था. मैं ने कहा, ‘‘अच्छा, अगर वह लड़का कल तुम्हें छोड़ कर भाग जाए तो क्या करोगी? कोई सुबूत है कि उस से तुम्हारी शादी हुई है?’’

‘‘नहीं आंटी मैं उस से कहती हूं कि अब सब को बता देते हैं तो वह मना कर देता है. कहता है कि अभी समय नहीं आया’’, और वह सुबकने लगी.

मेरा मन बेचैन हो गया. साफसाफ दिखाई दे रहा था कि वह लड़का सिर्फ अपना उल्लू सीधा कर रहा है.

‘‘यहां किस के साथ रहती हो?’’ मुझे उस की होस्टल वाली कहानी भी झूठी लगी.

‘‘मम्मीपापा के साथ.’’

‘‘इतनी देर तक घर से बाहर रहने पर वे नाराज नहीं होते?’’

‘‘मैं कह देती हूं कि फ्रैंड के यहां पढ़ रही थी. आंटी, मुझे झूठ बोलना अच्छा नहीं लगता, लेकिन क्या करूं, कुछ समझ नहीं आता. सच बात बताऊंगी तो मम्मीपापा बहुत नाराज होंगे शायद घर से भी निकाल दें… मेरा हसबैंड तो

खुद का खर्च भी नहीं उठा पाता…मैं कहां जाऊंगी? क्या करूं? अभी तो मेरी पढ़ाई भी बाकी है.’’

‘‘बेटा, अगर मेरी बात मानों तो तुम आज ही अपने मम्मीपापा को सब कुछ सचसच बता दो,’’ अब मेरे पति ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘वे मांबाप हैं सुन कर गुस्सा होंगे…शायद 1-2 थप्पड़ भी मार दें, फिर भी उन से ज्यादा कोई और इस दुनिया में नहीं है जो तुम्हारा भला चाहे. तुम चाहो तो हम तुम्हारी मदद कर सकते हैं.’’

मैं अवाक उन का मुंह देखने लगी कि ये मदद कैसे करेंगे? मैं ने प्रश्न वाचक नजरों से उन की ओर देखा.

‘‘अंकल यहां से राइट फिर एक और राइट.’’

‘‘देखो यहां से सब राइट होने लगा है तो तुम भी अब अपनी जिंदगी को राइट मोड़ दे दो,’’ उन्होंने कहा.

‘‘लेकिन कैसे अंकल?’’

‘‘अपने घर जाओ और अपने मम्मीपापा को सारी बात बता दो, हम लोग बाहर गाड़ी में रुकेंगे. अगर जरूरत पड़ी तो तुम्हारे पापा से बात कर लेंगे.’’

‘‘लेकिन अंकल मुझे डर लगता है. वे बहुत गुस्सा होंगे…मुझे मारेंगे.’’

‘‘मारता तो तुम्हारा पति भी है न तुम्हें? तुम ने बताया नहीं लेकिन यही सही है, है न? तो जब उस से मार खा सकती हो तो पापा से 1-2 थप्पड़ खा लेने में इतना डर क्यों? और फिर हो सकता वे न मारें. लेकिन कोई हल जरूर निकालेंगे.’’

‘‘लेकिन अंकल मुझे डर लगता है.’’

‘‘बेटा, कभी तो इस डर का सामना तुम्हें करना ही होगा. लेकिन कहीं ऐसा न हो कि बहुत देर हो जाए. जाओ बेटा हिम्मत करो. हम यहीं खड़े हैं.’’

गाड़ी घर के सामने खड़ी थी. उस ने खिड़की खोल ली. नीचे उतरने को हुई तो पैर हवा में रुक गया. बोली, आंटी, ‘‘मुझे डर लग रहा है.’’

‘‘बेटा, किसी न किसी दिन तुम्हें बताना ही होगा, लेकिन उस दिन शायद हम यहां नहीं होंगे. उस दिन अकेले बताना होगा.’’

वह चली गई. 2-3 मिनट के इंतजार के बाद दरवाजा खुला. सामने एक लंबातगड़े व्यक्ति की झलक दिखी.

करीब 10 मिनट इंतजार के बाद अंदर से किसी के ऊंचे स्वर में चिल्लाने की आवाजें आने लगीं. फिर घर का दरवाजा खुल गया. वह लड़की बाहर आई. उस के पीछे वही लंबातगड़े व्यक्ति थे, जो यकीनन उस के पिता थे. दोनों के बीच

5 मिनट बात हुई. मैं धड़कते दिल से जाऊं कि न जाऊं की उधेड़बुन में थी. तभी दोनों ने हाथ मिलाया और पति ने गाड़ी स्टार्ट कर दी. उस लड़की ने मुझ देख कर हाथ हिलाया. थोड़ी ही देर में गाड़ी हवा से बातें करने लगी.

बेऔलाद: भाग 2- क्यों पेरेंट्स से नफरत करने लगी थी नायरा

पुष्पा की बात सुनकर नायरा स्तब्ध रह गई, उसे तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था जो उसने सुना वह सच है.

‘‘हां, बेटा सच है, एकदम सच.’’

‘‘लेकिन दादी फिर पापा क्यों कहते रहे कि मां मर गई? आप ने भी क्यों नहीं बताया मुझे कि मेरी मां जिंदा है, जिस ने मुझे जन्म दिया, जिस की वजह से मैं इस दुनिया में आई, वह मरी नहीं, बल्कि जिंदा है? आप सब ने मु?झ से ?झठ क्यों कहा? क्यों ऐसा किया आप लोगों ने?’’ बोलते हुए नायरा की आंखों से ?झर?झर कर आंसू बहे जा रहे थे. मन तो किया उस का अभी इसी वक्त उड़ कर अपनी मां के पास पहुंच जाए.

‘‘बेटा, हमें गलत मत सम?झ. हमारी मजबूरी थी इसलिए हम ने तुम से वह बात छिपा कर रखी. लेकिन मरने से पहले मैं तुम्हें सारी सचाई बता देना चाहती हूं,’’ अपनी पोती के गालों को प्यार से सहलाते हुए पुष्पा बताने लगीं कि नरेश के पिताजी उदयपुर के डांगी गांव के जमींदार के यहां नौकरी किया करते थे. पहले उन का कच्चा मकान हुआ करता था. लेकिन फिर बाद में नरेश के पिताजी ने आप ने कमाए पैसों से उस घर को पक्का बनवा लिया. घर में खानेपीने की कोई कमी नहीं थी. सब बढि़या चल रहा था कि एक दिन नरेश के पिताजी चल बसे. तब नरेश 10 साल का अबोध बच्चा था. दुनियादारी की उसे कोई सम?झ नहीं थी. लेकिन पिता के गुजर जाने के बाद नरेश जैसे अचानक से सम?झदार हो गया.  मां को रोता देख कर कहता कि मां मत रो, मैं हूं न, सब ठीक कर दूंगा. लेकिन क्या ठीक करता वह. उसे तो इतनी भी सम?झ नहीं थी कि पैसे कैसे कमाए जाते हैं. कौन सी चीज कैसे खरीदी जाती है. नरेश के पिताजी के गुजर जाने से घर की स्थिति दिनबदिन बिगड़ती ही जा रही थी. घर में एक ही कमाने वाला था, वह भी नहीं रहा तो नरेश और उस की बूढ़ी दादी की जिम्मेदारी पुष्पा पर ही आ पड़ी.

मगर बेटे के गम में कुछ दिन बाद नरेश की दादी भी चल बसीं. कुछ ही समय के

अंतराल पर पति और सास को यों खो देना पुष्पा के लिए बड़ा आहत था. ऊपर से पैसों की किल्लत, कैसे पालेगी वह अपने बेटे को? घर कैसे चलेगा? नरेश की पढ़ाई कैसे होगी, सोचसोच कर पुष्पा रोने बैठ जातीं. लेकिन उस वक्त उन की सहेली ने उन्हें उन का हुनर याद दिलाया और कहा कि क्यों न वे गांव की औरतों के कपड़े सिलना शुरू कर दें. सिलाईकढ़ाई तो आती ही है उन्हें और फिर वह है न, फिर चिंता क्यों करती हैं, उस आड़े वक्त में पुष्पा की सहेली ने उन का बड़ा साथ दिया था.

धीरेधीरे पुष्पा की मेहनत रंग लाई और उन की कमाई से घर में दालरोटी चलने लगी और नरेश फिर से स्कूल जाने लगा. लेकिन नरेश का पढ़ाई में जरा भी मन नहीं लगता था. अपनी मां को काम करते देख कहींनकहीं उसे बुरा लगता था. किसी तरह खींचतान कर उस ने 12वीं तक पढ़ाई की और एक गैराज में नौकरी करने लगा. 1-2 साल किसी तरह नौकरी करने के बाद वहां से भी उस का मन ऊब गया, तो वह अपने दोस्तों की तरह गाइड का काम करने लगा. देशीविदेशी सैलनियों को घुमाना, उन्हें अपनी सभ्यता, संस्कृति के बारे में बताना नरेश को अच्छा लगता था.

पर्यटकों को भी नरेश का बातविचार खूब पसंद आते थे. सैलानी नरेश से इतने ज्यादा प्रभावित हो जाते थे कि जातेजाते वे उस का फोन नंबर और घर का पता नोट कर ले जाते और कहते कि अगर उन का कोई दोस्तरिश्तेदार यहां घूमने आएगा, तो वे उन्हें नरेश का फोन नंबर दे कर कहेंगे कि वह बहुत अच्छा गाइड है.

विदेशी सैलानियों की तरह ही जोली भी उदयपुर घूमने आई थी. नरेश ही उस का गाइड था. नरेश के साथ कुछ ही दिनों में वह काफी हिलमिल गई. कारण, नरेश सब से जुदा था. जोली देशविदेश घूमती रहती थी. बहुत गाइडों से उस का पाला पड़ा था. लेकिन नरेश जैसा हंसमुख सरल विचारों वाला गाइड उसे पहली बार मिला था. जब देखो वह मुसकराता रहता था जैसे उस की जिंदगी में कोई दुखतकलीफ हो ही न. वह इंसान सब से जुदा था. इसीलिए जोली को उस का साथ बहुत ही अच्छा लगता था. उस के साथ रहते हुए जोली की सारी टैंशन दूर हो जाती थी. नरेश जब जोली को मैडमजी कह कर बुलाता तो वह हंस पड़ती और कहती कि मैडमजी नहीं, तुम मुझे जोली बुला सकते हो.

एक रोज बातोंबातों में ही जोली ने बताया कि उसे राजस्थान बहुत पसंद है और वह अकसर यहां आती रहती है. लेकिन उसे होटल में रहना अच्छा नहीं लगता. अगर कोई पेइंगगैस्ट मिल जाता रहने को तो मजा आ जाता. वह जितना चाहे उतना पैसा पे करने को तैयार है पर उसे घर जैसा माहौल चाहिए.

उस पर नरेश संकुचाते हुए बोला था, ‘‘पैसे की तो कोई बात नहीं से मैडमजी, लेकिन अगर आप चाहें तो मेरे गरीबखाने में आ कर रह सकती हैं. वैसे भी हमारा ऊपर वाला कमरा खाली ही है.’’

अब जोली यही तो चाहती थी. वह तुरंत होटल से अपना सामान ला कर नरेश के ऊपर वाले कमरे में शिफ्ट हो गईं. पुष्पा के हाथों का बना खाना वह बड़े चाव से खाती और सब से अच्छा तो उसे दालबाटी लगता था. कहती, वहां जा कर यह डिश जरूर ट्राई करेगी. जब तब जोली पुष्पा के कामों में हाथ बंटा दिया करती थी. बड़ा अच्छा लगता था उसे किचन में पुष्पा की मदद कर के. उन के साथ रह कर वह बहुत कुछ बनाना भी सीख चुकी थी. दोनों के बीच मांबेटी जैसा रिश्ता बन गया था. मां का प्यार क्या होता है, उस ने पुष्पा के साथ रह कर ही जाना था वरना तो उसे कभी अपनी मां का प्यार नहीं मिला.

रोज की तरह उस रात भी दोनों खाना खाने के बाद छत पर बैठ कर कौफी का आनंद लेते हुए यहांवहां की बातें कर रहे थे. नरेश के पूछने पर कि उस के घर में कौनकौन हैं? तो जोली भावुक हो कर बताने लगी कि जब वह 8 साल की थी तभी उस के मांपापा का तलाक हो गया और वह अपनी नानी के साथ रहने चली गई थी. तलाक लेने के बाद उस के मांपापा ने दोबारा शादी कर अपनी नई दुनिया बसा ली. अपने पेरैंट्स होने का फर्ज वे बस इतना ही निभाते कि नायरा की पढ़ाई और खर्चे के लिए पैसे भेज दिया करते थे. कुछ समय बाद जब उस की नानी का देहांत हो गया, तो वह होस्टल रहने चली गई.

‘‘क्यों, आप अपने मांपापा के साथ भी तो जा कर रह सकती थी न?’’

नरेश की बात पर जोली ने बताया कि वह गई थी अपने पापा के पास रहने, पर

सौतेली मां उसे पसंद नहीं करती थी. इसलिए वह अपनी मां के पास रहने चली आई. लेकिन वहां उस का सौतेला पिता उस पर गंदी नजर रखता था. इसलिए फिर होस्टल ही उस का घर बन गया.

‘‘उफ, बहुत दुखभरी कहानी है आप की,’’ अफसोस जताते हुए नरेश बोला.

यह सुन मुसकराई और फिर ऊपर आसमान की तरफ देखती हुई एक गहरी सांस छोड़ते हुए बोली, ‘‘मुझे तो यह सम?झ नहीं आता कि जब लोगों को पालना ही नहीं होता है, फिर बच्चे पैदा ही क्यों करते हैं?’’ बोलते हुए जोली की आंखें छलक आई थीं. लेकिन बड़ी सफाई से वह अपने आंसू पोंछ कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘वे सब छोड़ो… तुम बताओ, तुम्हारे जीवन में क्याक्या हुआ… मेरा मतलब है तुम्हारी परवरिश, पढ़ाई, सब जानना है मुझे.’’

क्या फर्क पड़ता है: भाग 1

‘‘आज मेरे दोनों बेटे साथसाथ आ गए. बड़ी खुशी हो रही है मुझे तुम दोनों को एकसाथ देख कर. बैठो, मैं सूजी का हलवा बना कर लाती हूं. अजय, बैठो बेटा… और सोम, तुम भी बैठो,’’ सोम की मां ने उसे मित्र के साथ आया देख कर कहा.

‘‘नहीं, मां. अजय है न. तुम इसी को खिलाओ. मुझे भूख नहीं है.’’

मैं क्षण भर को चौंका. सोम की बात करने का ढंग मुझे बड़ा अजीब सा लगा. मैं सोम के घर में मेहमान हूं और जब कभी आता हूं उस की मां मेरे आगेपीछे घूमती हैं. कभी कुछ परोसती हैं मेरे सामने और कभी कुछ. यह उन का सुलभ ममत्व है, जिसे वे मुझ पर बरसाने लगती हैं. उन की ममता पर मेरा भी मन भीगभीग जाता है, यही कारण है कि मैं भी किसी न किसी बहाने उन से मिलना चाहता हूं.

इस बार घर गया तो उन के लिए कुछ लाना नहीं भूला. कश्मीरी शाल पसंद आ गई थी. सोचा, उन पर खूब खिलेगी. चाहता तो सोम के हाथ भी भेज सकता था पर भेज देता तो उन के चेहरे के भाव कैसे पढ़ पाता. सो सोम के साथ ही चला आया. मां ने सूजी का हलवा बनाने की चाह व्यक्त की तो सोम ने इस तरह क्यों कह दिया कि अजय है न. तुम इसी को खिलाओ.

मैं क्या हलवा खाने का भूखा था जो इतनी दूर यहां उस के घर पर चला आया था. कोई घर आए मेहमान से इस तरह बात करता है क्या?

अनमना सा लगने लगा मुझे सोम. मुझे सहसा याद आया कि वह मुझे साथ लाना भी नहीं चाह रहा था. उस ने बहाना बनाया था कि किसी जरूरी काम से कहीं और जाना है. मैं ने तब भी साथ जाने की चाह व्यक्त की तो क्या करता वह.

‘तुम्हें जहां जाना है बेशक होते चलो, बाद में तो घर ही जाना है न. मैं बस मौसीजी से मिल कर वापस आ जाऊंगा. आज मैं ने अपना स्कूटर सर्विस के लिए दिया है इसलिए तुम से लिफ्ट मांग रहा हूं.’

‘वापस कैसे आओगे. स्कूटर नहीं है तो रहने दो न.’

‘मैं बस से आ जाऊंगा न यार… तुम इतनी दलीलों में क्यों पड़ रहे हो?’

‘‘घर में सब कैसे हैं, बेटा? अपनी चाची को मेरी याद दिलाई थी कि नहीं,’’ मौसी ने रसोई से ही आवाज दे कर पूछा तो मेरी तंद्रा टूटी. सोम अपने कमरे में जा चुका था और मैं वहीं रसोई के बाहर खड़ा था.

कुछ चुभने सा लगा मेरे मन में. क्या सोम नहीं चाहता कि मैं उस के घर आऊं? क्यों इस तरह का व्यवहार कर रहा है सोम?

मुझे याद है जब मैं पहली बार मौसी से मिला था तो उन का आपरेशन हुआ था और हम कुछ सहयोगी उन्हें देखने अस्पताल गए थे. मौसी का खून आम खून नहीं है. उन के ग्रुप का खून बड़ी मुश्किल से मिलता है. सहसा मेरा खून उन के काम आ गया था और संयोग से सोम की और हमारी जात भी एक ही है.

‘ऐसा लगता है, तुम मेरे खोए हुए बच्चे हो जो कभी किसी कुंभ के मेले में छूट गए थे,’ मौसी बीमारी की हालत में भी मजाक करने से नहीं चूकी थीं.

खुश रहना मौसी की आदत है. एक हाथ से उन के शरीर में मेरा दिया खून जा रहा था और दूसरे हाथ से वे अपना ममत्व मेरे मन मेें उतार रही थीं. उसी पल से सोम की मां मुझे अपनी मां जैसी लगने लगी थीं. बिन मां का हूं न मैं. चाचाचाची ने पाला है. चाची ने प्यार देने में कभी कोई कंजूसी नहीं बरती फिर भी मन के किसी कोने में यह चुभन जरूर रहती है कि अगर मेरी मां होतीं तो कैसी होतीं.

अतीत में गोते लगाता मैं सोचने लगा. चाची के बच्चों के साथ ही मेरा लालनपालन हुआ था. शायद अपनी मां भी उतना न कर पाती जितना चाची ने किया है. 2-3 महीने के बाद ही दिल्ली जा पाता हूं और जब जाता हूं चाची के हावभाव भी वैसी ही ममता और उदासी लिए होते हैं, जैसे मेरी मां के होते. गले लगा कर रो पड़ती हैं चाची. चचेरे भाईबहन मजाक करने लगते हैं.

‘अजय भैया, इस बार आप मां को अपने साथ लेते ही जाना. आप के बिना इन का दिल नहीं लगता. जोजो खाना आप को पसंद है मां पकाती ही नहीं हैं. परसों गाजर का हलवा बनाया, हमें खिला दिया और खुद नहीं खाया.’

‘क्यों?’

‘बस, लगीं रोने. आप ने नहीं खाया था न. ये कैसे खा लेतीं. अब आप आ गए हैं तो देखना आप के साथ ही खाएंगी.’

‘चुप कर निशा,’ विजय ने बहन को टोका, ‘मां आ रही हैं. सुन लेंगी तो उन का पारा चढ़ जाएगा.’

सचमुच ट्रे में गाजर का हलवा सजाए चाची चली आ रही थीं. चाची के मन के उद्गार पहली बार जान पाया था. कहते हैं न पासपास रह कर कभीकभी भाव सोए ही रहते हैं क्योंकि भावों को उन का खादपानी सामीप्य के रूप में मिलता जो रहता है. प्यार का एहसास दूर जा कर बड़ी गहराई से होता है.

‘आज तो राजमाचावल बना लो मां, भैया आ गए हैं. भैया, जल्दीजल्दी आया करो. हमें तो मनपसंद खाना ही नहीं मिलता.’

‘क्या नहीं मिलता तुम्हें? बिना वजह बकबक मत किया करो… ले बेटा, हलवा ले. पूरीआलू बनाऊं, खाएगा न? वहां बाजार का खाना खातेखाते चेहरा कैसा उतर गया है. लड़की देख रही हूं मैं तेरे लिए. 1-2 पसंद भी कर ली हैं. पढ़ीलिखी हैं, खाना भी अच्छा बनाती हैं…लड़की को खाना बनाना तो आना ही चाहिए न.’

‘2 का भैया क्या करेंगे. 1 ही काफी है न, मां,’ विजय और निशा ने चाची को चिढ़ाया था.

क्याक्या संजो रही हैं चाची मेरे लिए. बिन मां का हूं ऐसा तो नहीं है न जो स्वयं के लिए बेचारगी का भाव रखूं. जब वापस आने लगा तब चाची से गले मिल कर मैं भी रो पड़ा था.

‘अपना खयाल रखना मेरे बच्चे. किसी से कुछ ले कर मत खाना.’

‘इतनी बड़ी कंपनी में भैया क्याक्या संभालते हैं मां, तो क्या अपनेआप को नहीं संभाल पाएंगे?’

‘तू नहीं जानती, सफर में कैसेकैसे लोग मिलते हैं. आजकल किसी पर भरोसा करने लायक समय नहीं है.’

मेरे बिना चाची को घर काटने को आता है. क्या इस में वे अपने को लावारिस महसूस करने लगी हैं? कहीं चाची मुझे बिन मां का समझ कर अपने बच्चों का हिस्सा तो मुझे नहीं देती रहीं? आज 27 साल का हो गया हूं. 4 साल का था जब एक रेल हादसे ने मेरे मांबाप को छीन लिया था. मैं पता नहीं कैसे बच गया था. चाचाचाची न पालते तो कौन जाने क्या होता. कहीं कोई कमी नहीं है मुझे. मेरे पिता द्वारा छोड़ा रुपया मेरे चाचाचाची ने मुझ पर ही खर्च किया है. जमीन- जायदाद पर भी मेरा पूरापूरा अधिकार है. मेरा अधिकार सदा मेरा ही रहा है पर कहीं ऐसा तो नहीं किसी और का अधिकार भी मैं ही समेटता जा रहा हूं.’

‘‘क्या सोच रहे हो, अजय?’’ मौसी ने पूछा तो मैं अतीत से वर्तमान में आ गया, ‘‘क्या अपनी चाची से कहा था मेरे बारे में. उन्हें बताना था न कि यहां तुम ने अपने लिए एक मां पसंद कर ली है.’’

‘‘मां भी कभी पसंद की जाती है मौसीजी, यह तो प्रकृति की नेमत है जो किस्मत वालों को नसीब होती है. मां इतनी आसानी से मिल जाती है क्या जिसे कोई कहीं भी…’’

‘‘अजय, क्या बात है बच्चे?’’ मौसी मेरे पास खड़ी थीं फिर मेरा हाथ पकड़ कर मुझे सोफे तक ले आईं और अपने पास ही बैठा लिया. बोलीं, ‘‘क्या हुआ है तुम्हें, बेटा? कब से बुलाए जा रही हूं… मेरी किसी भी बात का तू जवाब क्यों नहीं देता. परेशानी है क्या कोई.’’

‘‘जी, नहीं तो. चाची ने यह शाल आप के लिए भेजी है. बस, मैं यही देने आया था.’’

मेरे घर आई नन्ही परी: क्यों परेशान हो गई समीरा

समीरा परी को गोद में लिए शून्य में ताक रही थी. उस की आंखों से आंसुओं की ?ामा?ाम बरसात हो रही थी. उसे सम नहीं आ रहा था कि क्यों उसे परी के लिए वह ममता महसूस नहीं हो रही हैं जैसे एक आम मां को होती है. समीरा को तो यह खुद को भी बताने में शर्म आ रही थी कि उसे परी से कोई लगाव महसूस नहीं होता. तभी परी ने अचानक रोना शुरू कर दीया.

समीरा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसे रोना क्यों आ रहा है. उसे लग रहा था कि जैसे उसे किसी ने बांध दीया हो. उस की पूरी जिंदगी अस्तव्यस्त सी हो गई थी. वह अपनेआप को ही नहीं पहचान पा रही थी.

समीरा ने जैसा फिल्मों में देखा था, जैसा अपनी बहनोंभाभियों से सुना था वैसा कुछ भी महसूस नहीं कर पा रही थी. उस ने सुना था कि मां की थपकी से बच्चा सो जाता है. उस ने भी परी को थपथपाना शुरू कर दीया परंतु परी का रोना और तेज हो गया.

झंझाला कर समीरा ने परी को पलंग पर पटक दीया और खुद को आईने में निहारने लगी. आईने में खुद को देख कर उस की झंझलाहट और बढ़ गई. हर तरफ से झुलती हुई मांस की परतें, शरीर की कसावट न जाने कहां गुम हो गई थी. 55 किलोग्राम से एक झटके में वह 70 किलोग्राम की हो गई थी. कितना नाज था उसे अपनी त्वचा, बालों और फिगर पर. परी के जन्म के बाद सब एक याद बन कर रह गया.

तभी पीछे से समीरा की सास रुपाली आ गई और परी को गोद में उठाते हुए बोली, ‘‘अजीब मां हो तुम, बेटी गला फाड़फाड़ कर रो रही है और तुम्हें शीशे से फुरसत नहीं है.’’

‘‘सभी कामों के लिए तो नौकर हैं और ऊपरी काम मैं करती हूं.  कमसेकम परी का ध्यान तो रख सकती हो. कैसे लगाव होगा बेटी को तुम्हारे साथ अगर उस का सारा काम दादी या नानी ही करेगी?’’

समीरा गुस्से से परी को देख रही थी. 1 माह की परी दादी की गोद में मंदमंद मुसकरा रही थी.

बिना कोई जवाब दिए समीरा गुसलखाने में नहाने चली गई. शावर की ठंडी फुहारें सिर पर पड़ते ही उस का गुस्सा शांत हो गया और अब फिर से उस की आंखें गीली थीं परंतु इस बार कारण था परी.

समीरा सोच रही थी कि वह कितनी बुरी मां है. क्यों वह परी से कटीकटी रहती है. बालों में शैंपू लगा कर जैसे ही धोने लगी. बालों का गुच्छा हाथों में आ गया. समीरा फिर से चिंतित हो उठी कि इसी रफ्तार से बाल गिरते रहे तो जल्द ही वह टकली हो जाएगी. नहाने के बाद जैसे ही वह तौलिए से अपना शरीर पोंछने लगी तो पेट, स्तनों और जांघों पर स्ट्रैचमार्क फिर से उसे दिखाई दे गए. जल्दीजल्दी वह गाउन पहन कर गुसलखाने से बाहर आ गई.

समीरा का पूरा वार्डरोब बेकार हो गया था. कोई भी कपड़ा उसे फिट नहीं आता था.

तभी रुपाली परी को ले कर आ गई और प्यार से समीरा से बोली, ‘‘बेटा, परी को फीड करा दो.’’

समीरा के लिए यह एक समस्या थी. स्तनपान कैसे कराना है समीरा को ठीक से पता नहीं था. कभी परी के मुंह में दूध ही नही जा पाता था तो कभी परी इतना अधिक दूध पी लेती कि उसे उलटी हो जाती. समीरा सोच रही थी, दीदी बोलती थी कि बच्चे को स्तनपान कराने से मां

को बहुत संतुष्टि महसूस होती हैं पर समीरा को कितना दर्द महसूस होता है. ऊपर से समीरा के सब पसंदीदा खानपान पर स्तनपान के कारण रोक थी. 1 माह बाद भी परी को स्तनपान कराने का सही तरीका समीरा समझ नहीं पा रही थी. कभीकभी तो उसे लगता कि वह कैसे इस झंझट से बाहर भी निकल पाएगी. थोड़ी देर बाद परी सो गई. उसे बिस्तर पर लिटा कर समीरा भी आंखें बंद कर लेट गई पर नींद थी कि आंखों से कोसों दूर.

समीरा का विवाह 5 वर्ष पहले रोहिन से हुआ था. रोहिन से उस का परिचय एक मैट्रीमोनियल साइट पर हुआ था, दोनों ने लगभग 1 साल तक डेटिंग करी और फिर परिवार की सहमति से विवाह के बंधन में बंध गए. रोहिन का परिवार आधुनिक सोच का था. समीरा के सपने पंख लगा कर खुले असमान में उड़ रहे थे.

विवाह की पहली सालगिरह पर भी समीरा का परिवार ही समीरा को बच्चे के लिए छेड़ रहा था परंतु समीरा की सास रुपाली बोली, ‘‘अरे, अभी तो समीरा खुद ही बच्ची है. जब मरजी होगी कर लेंगे.’’

विवाह के समय समीरा 30 वर्ष की थी. विवाह के 3 वर्ष पूरे हो गए थे और तभी 1 माह समीरा ने अपने पीरियड्स मिस कर दिए. उसे लगा शायद वह मां बनने वाली है, इसलिए वह और रोहिन डाक्टर के पास गए. प्रैगनैंसी टैस्ट नैगेटिव आया तो डाक्टर्स ने और हारमोनल चैकअप कराए. रिपोर्ट्स निराशाजनक आई. रिपोर्ट्स के मुताबिक समीरा का फर्टिलिटी रेट तेजी से डिक्लाइन हो रहा है. उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था. उस का मासिकचक्र तो एकदम सामान्य था. फिर शुरू हुआ चैकअप और टैस्ट्स न कभी भी खत्म होने वाला सिलसिला. समीरा भी अब मां बनना चाहती थी इसलिए खुद को तनावमुक्त रखने के लिए उस ने अपनी नौकरी भी छोड़ दी. 1 साल की मेहनत के बाद परिणाम सकारात्मक रहा. समीरा मातृत्व की इस यात्रा को पूरी तरह से जीना चाहती थी. उस ने पूरे 9 माह भरपूर एहतियात बरती. बच्चे के लिए सारी तैयारी कर ली परंतु ना जाने आखिरी माह आतेआते उस का चिड़चिड़ापन बढ़ क्यों गया.

समीरा की दमकती त्वचा पर झइयां आ गईं. वजन भी बढ़ा जा रहा था. समीरा की मम्मी और सास ने उसे प्यार से सम?ाया, ‘‘बेटा, एक बार बच्चा हो जाएगा तो सब ठीक हो जाएगा.’’

परी भी अब 1 माह की हो गई थी परंतु समीरा के बाल जिस तेजी से झड़ रहे थे वजन भी उसी तेजी से बढ़ रहा था. उसे लगता जैसे परी के जन्म के बाद वह एक जेलखाने में कैद हो गई है. उसे रोहिन से जलन होने लगी थी क्योंकि रोहिन तो अभी भी जस का तस था और वह बूढ़ी सी लगने लगी थी.

जब परी को देखने उस की ननद दीया आई तो मजाक में बोली, ‘‘भाभी, अब तो आप भैया की आंटी भी लगने लगी हो.’’

हालांकि रुपाली ने दीया को डांटते हुए कहा, ‘‘अपने बढ़ते वजन की चिंता करो.’’

मगर समीरा के मन में यह बात घर कर गई.

आज समीरा परी को ले कर अपने घर जा रही थी. समीरा के साथसाथ रोहिन को भी लग रहा था कि जगह बदलने से समीरा का मूड भी बदल जाएगा.

घर पहुंचते ही सब से पहले छोटी बहन बोली, ‘‘दीदी, ये बाल कैसे हो गए हैं ?ाड़ू जैसे… कितने घने और चमकीले बाल थे आप के.’’

जो भी पासपड़ोस की आंटी आती कोई उस के काले धब्बों पर तो कोई उस के बढ़ते वजन का जिक्र जरूर करती, पर जातेजाते यह तस्सली दे जाती कि जल्द ही सब ठीक हो जाएगा.

समीरा सुबह से बिना नहाएधोए टैलीविजन के आगे पसरी थी. रोहिन का फोन आते ही उस से लड़ने लगी, ‘‘अब फुरसत मिली हैं तुम्हें, रात में मैं ने तुम्हें कितनी बार फोन किया. मन भर गया न तुम्हारा मु?ा से क्योंकि मैं अब अनाकर्षक हो गई हूं.’’

रोहिन दूसरी तरफ क्या कह रहा था, समीरा की मां को पता नहीं चल पाया परंतु रोहिन के फोन रखते ही समीरा की मां ने समीरा को आड़े हाथों लिया, ‘‘अगर ऐसे ही रहोगी तुम समीरा, तो जरूर रोहिन रास्ता भटक जाएगा. क्या हाल बना रखा है तुम ने… रोनेबिसूरने के अलावा करती क्या हो तुम? वहां पर तुम्हारी सास और यहां

पर मैं परी की देखभाल करती हूं और तुम क्या करती हो. मां बनने का फैसला तुम्हारा था. तुम्हें किसी ने मजबूर नहीं किया था… मां बनना आसान नही है.’’

एकाएक समीरा के सब्र का बांध टूट गया. बोली, ‘‘यह अकेला मेरा नहीं रोहिन का भी फैसला था पर उस की जिंदगी पर क्या फर्क

पड़ा. मेरी आजादी छिन गई है. मेरी अपनी पहचान मुझ से छूट गई है. परी की नींद सोती हूं और उस की नींद जागती हूं, बाहर की दुनिया से कट सी गई हूं.

‘‘मेरा अपना पति जो कभी मेरा दीवाना था मुझ से दूरी बना कर रखता है. एकाएक उम्र से 10 वर्ष बड़ी हो गई हूं. हरकोई मां के फर्ज के ऊपर नसीहत देता है पर यह मां भी एक इंसान है, हरकोई भूल जाता है,’’ दिल का गुबार निकाल कर समीरा फूटफूट कर रोने लगी.

समीरा की मां को समीरा का यह व्यवहार समझ नहीं आ रहा था. उसे लगता था कि समीरा कामचोर और आलसी मां है. रातदिन समीरा की मम्मी उसे यही बताती रहती कि मां बनने का दूसरा नाम त्याग और बलिदान है. समीरा को न ठीक से भूख लगती और न ही नींद आती थी. सारा दिन सब को काटने के लिए तैयार रहती.

जब रोहिन समीरा को लेने आया तो उसे देख कर दंग रह गया. समीरा का वजन

और भी बढ़ गया था. रोहिन को देखते ही वह उस के गले लग कर रोने लगी. रोहिन को समीरा के मूक रुदन में उस की छटपटाहट समझ आ रही थी.

अगले रोज उस ने दफ्तर से छुट्टी ले ली और समीरा को डाक्टर के पास ले गया. डाक्टर ने चैकअप कर के रोहिन से कहा, ‘‘देखो, शारीरिक रूप से समीरा ठीक है परंतु उस के अंदर पोस्टपार्टम डिप्रैशन के लक्षण नजर आ रहे हैं.

‘‘आमतौर पर हर 5 में से 1 महिला बच्चे के जन्म के पश्चात ऐसे दौर से गुजरती है. इसके लिए उसे दवा की नहीं तुम्हारे साथ की जरूरत है. तुम्हें समीरा को वापस यह एहसास दिलाना होगा कि वह अब भी उतनी ही

आकर्षक है. उस के अंदर हीनभावना घर कर गई है. तुम लोगों ने आखिरी बार संबंध कब बनाया था?’’

रोहिन अचकचाते हुए बोला, ‘‘अभी तो परी 1 माह की हुई है और समीरा तो अभी शायद इस के लिए तैयार नहीं है.’’

डाक्टर बोली, ‘‘बिना पूछे ही तुम ने तय कर लिया… शायद यह भी समीरा के पोस्टपार्टम का कारण हो सकता है. समीरा को नौर्मल होने का एहसास कराना तुम्हारी ही जिम्मेदारी हैं. हम लोग यह भूल जाते हैं कि बच्चे के जन्म के साथसाथ मां का भी जन्म होता है. उसे भी दुलार और प्यार की आवश्यकता होती है क्योंकि उस की तो पूरी जिंदगी ही बदल जाती है और फिर डाक्टर ने रोहिन के साथसाथ समीरा को भी खुद पर ध्यान देने की सलाह दी.

रोहिन को डाक्टर से बातचीत के बाद समीरा के बदले व्यवहार का कारण काफी हद तक सम?ा आ गया था.

रात में जब रोहिन ने समीरा से प्यार करने की पेशकश करी तो वह तुरंत तैयार हो गई. परी के जन्म के बाद समीरा को पहली बार ऐसा लगा वह मां ही नहीं एक पत्नी भी है. इस प्रेमक्रीड़ा के साथ समीरा का तनाव भी कहीं धुल सा गया. रोहिन को भी बहुत दिनों के बाद समीरा खुश दिखाई दे रही थी जो उसे भी खुशी दे रहा था.

उस रात के बाद से रोहिन और समीरा हर रात साथ बिताने लगे. परी के छोटेछोटे काम रात में उठ कर रोहिन भी कर देता. समीरा को इस बात से ही बहुत मदद हो जाती थी. रोहिन फिर सुबह भी समय से उठ कर जिम जाता और फिर औफिस.

समीरा को भी अब लगने लगा था कि उसे भी अब अपने खोल से बाहर निकलना चाहिए. रात में तो उस के साथ रोहिन भी जागता है मगर फिर भी वह बिना किसी शिकायत के अपने सारे काम भी करता है.

रोहिन शनिवार को परी की पूरी जिम्मेदारी उठाता. समीरा शनिवार को कहीं भी घूमनेफिरने को आजाद थी. रोहिन की सपोर्ट के कारण अब समीरा भी अपनी पुरानी दुनिया में आने लगी.

कुछ दिनों बाद समीरा ने खुद रसोई का काम संभालना शुरू किया. वह अब अपना खाना खुद बनाने लगी थी. 1 हफ्ते में ही वह पहले से अधिक स्फूर्तिवान हो गई. उस ने यह भी विवेचना कर ली थी कि परी के काम के कारण वह घर के बाकी कामों पर ध्यान नहीं दे पा रही है. इसलिए सब के मना करने के बावजूद उस ने परी के लिए 12 घंटे के लिए एक आया रख ली. अब समीरा के पास खुद के लिए भी समय था. उस ने ऐक्सरसाइज आरंभ कर दी. धीरेधीरे सब समस्याओं का निदान हो रहा था.

अब समीरा  की चिड़चिड़ाहट पहले से बहुत कम हो गई थी. रोहिन ने भी समीरा के हर फैसले में साथ दीया. समीरा ने 7 माह बाद फिर से नौकरी करने का फैसला लिया और 1 माह के भीतर ही उसे अपनी पसंद के अनुरूप नौकरी मिल गई.

घर से बाहर निकलते ही समीरा की शिकायतें, चिड़चिड़ाहट, बढ़ता वजन, बेजान त्वचा सब एक खिड़की से बाहर निकल गए और समीरा के आत्मविश्वास को पंख लग गए थे. समीरा को समझ आ गया था कि वह पत्नी है, बेटी है, बहू है, मां भी है मगर सब से पहले एक स्त्री है. मां बनना भी जिंदगी का एक और प्यारा मोड़ ही है मगर यह जिंदगी का आखिरी पड़ाव नहीं है.

मां बनने के बाद शरीरक, मानसिक और भावनात्मक रूप से परिवर्तन तो होते हैं मगर उन्हें सहज रूप से स्वीकार कर के या  तो हम इस सफर का आनंद ले सकते हैं या फिर रोतेबिसूरते रहें.

आज परी पूरे 9 माह की हो गई थी और दीवार पकड़पकड़ कर चलने की कोशिश कर रही थी. समीरा भी खुश हो कर मोबाइल में ये पल कैद करते हुए गुनगुना रही थी, ‘‘मेरे घर आई एक नन्ही परी…’’

बेऔलाद: भाग 1- क्यों पेरेंट्स से नफरत करने लगी थी नायरा

तेजी से सीढि़यां उतरती हुई नायरा चिल्लाई, ‘‘दादी… दादी… जल्दी नाश्ता दो वरना मैं चली.’’

‘‘अरे, बस ला रही हूं,’’ हाथ में थाली लिए पुष्पा बड़बड़ाती हुई किचन से बाहर निकलीं और अपने हाथों से नायरा को जल्दीजल्दी आलूपरांठा और दही खिलाते हुए बोलीं, ‘‘सुन बताती जा कब आएगी क्योंकि तेरे इंतजार में मैं भूखी बैठी रहती हूं.’’

‘‘तो तुम खा लिया करो न दादी. मैं जब आऊंगी निकाल कर खा लूंगी.’’

नायरा की बात पर पुष्पा कहने लगीं, ‘‘आज तक ऐसा हुआ है कभी कि पोती भूखी रहे और मैं खा लूं.’’

‘‘ओ मेरी प्यारी दादी… इतना प्यार करती हो तुम मु?झ से,’’ कह कर नायरा ने दादी के गालों को चूम लिया और फिर अपने कंधे पर बैग टांगते हुए बोली, ‘‘ठीक है, आज जल्दी आने की कोशिश करूंगी, अब खुश?’’

लेकिन पुष्पा मन ही मन भुनभुनाते हुए कहने लगीं कि क्या खुश रहेंगी वे. जिस की जवान पोती अनजान लोगों के साथ पूरा दिन गलीगलीकूचेकूचे घूमतीफिरती रहती हो, वह दादी खुश कैसे रह सकती है. हर पल एक डर लगा रहता है कि नायरा ठीक तो होगी न… कितनी बार कहा नरेश से कि बेटी बड़ी हो गई है, ब्याह कर दो अब इस का. लेकिन उन का. सुनता ही कौन है?

पुष्पा के चेहरे पर चिंता की लकीरें देख कर नायरा को सम?झते देर नहीं लगी कि उस की दादी उसे ले कर परेशान हैं. वह बोली, ‘‘दादी… तुम यही सोच रही हो न कि कैसे जल्दी से मेरी शादी हो जाए और तुम्हारी जान छूटे? तो बता दूं नहीं छूटने वाली सम?झ लो,’’ बड़ी मासूमियत से वह अंगूठा दिखाते हुए बोली और फिर डब्बे में से एक लड्डू निकाल कर पुष्पा के मुंह में ठूंसते हुए खिलखिला कर हंस पड़ी.

लेकिन वे ‘थूथू’ कर कहने लगीं कि पता है उसे कि मुझे शुगर की बीमारी है, फिर क्यों वह मुझे मीठा खिला रही है? मारना चाहती है क्या?

नायरा सिर्फ अपनी दादी की ही नहीं, बल्कि अपने पापा नरेश की भी जान है. वही

उन के जीने की वजह है. नायरा से ही पूरे घर में रौनक है. 21 साल की नायरा अपने पापा की तरह ही टूरिस्ट गाइड का काम करती है. जब नायरा बहुत छोटी थी तभी ये लोग दिल्ली आ कर बस गए थे. यहीं दिल्ली में ही नरेश का अपना खुद का मकान है.  देखने में बला की खूबसूरत नायरा को देख कर कोई कह ही नहीं सकता कि वह नरेश की बेटी है. उस का रंग ऐसा जैसे मक्खन में जरा सा सिंदूर बुरक दिया गया हो. उस की भूरी आंखें, पतले लाललाल होंठ, रेशमी बाल देख कर लोग उसे देखते ही रह जाते. उस की बातों में ऐसी चुंबकीय शक्ति कि जब वह बोलती तो लोग बस सुनते ही रहते. अपने व्यवहार से वह लोगों को अपना बना लेती.

मगर ऐसा भी नहीं था कि किसी पर भी वह आंख मूंद कर भरोसा कर लेती थी. अच्छेबुरे लोगों को पहचानना आता था उसे. 2 साल से टूरिस्ट गाइड का काम कर रही नायरा यह बात बहुत अच्छी तरह जानती कि दिल्ली में औटो वालों से मोलभाव कर के पैसे कम कैसे करवाए जाते हैं. अगर दिल्ली में कोई विदेशी टूरिस्ट परेशान है तो उस का साथ कैसे दिया जा सकता है, टूरिस्ट को कौन से ऐतिहासिक स्थानों पर घुमाना है. टूरिस्ट के साथ बातचीत करने से ले कर उन्हें सम?झने की कुशलता ही नायरा को एक कामयाब गाइड बनाता.

नायरा विदेशी टूरिस्टों को अपने देश, शहरों के बारे में बड़े विस्तार से बताती थी. जब वह गाइड बन कर अपने देश की धरोहर, सभ्यता और संस्कृति के बारे में टूरिस्टों को बताती थी तो इस काम से उसे बहुत खुशी मिलती थी.

टूरिस्ट की जौब के साथसाथ वह अपनी पढ़ाई भी जारी रखे हुए थी. 12वीं कर लेने के बाद वह आर्किटैक्चर की पढ़ाई कर रही थी. नायरा रोज लगभग 6-7 घंटे 10-12 लोगों को गाइड करने का काम करती थी. लेकिन कभी भी उसे इस काम से ऊब महसूस नहीं हुई बल्कि उसे नएनए लोगों से मिल कर, उन के बारे में जान कर मजा आता था. दुनिया के हर कोने से लोग यहां घूमने आते थे. उन के साथ समय बिताते हुए नायरा थोड़ीबहुत उन की भाषा भी बोलना सीख जाती थी. वह चाहे कभी घर देर से पहुंचे या अपने पढ़ाई की वजह से उसे देर रात तक जागना पड़े, उस का उस समय कोई साथ देता था, तो वह थी उस की दादी पुष्पा, जो उस के लिए ही जीती और मरती थीं. लेकिन उन्हें नायरा की चिंता लगी रहती है कि कहीं वह किसी मुसीबत में न फंस जाए. वैसे भी दिल्ली लड़कियों के लिए महफूज नहीं रह गई. अगर कहीं नायरा के साथ कुछ ऐसावैसा हो गया तो क्या करेंगी वे सोच कर ही पुष्पा कांप उठतीं.

मगर नायरा उन्हें सम?झती कि ऐसा कुछ भी नहीं होगा क्योंकि उन की पोती अब बच्ची नहीं रही, बल्कि वह तो लोगों को रास्ता दिखाती है. लेकिन पुष्पा अपने कमजोर दिल को कैसे सम?झएं? कैसे कहें कि सब ठीक है, कुछ नहीं होगा? कितना चाहा था उन्होंने कि नरेश शादी कर ले ताकि नायरा को एक मां मिल जाए. लेकिन नरेश तो शादी की बात से ही भड़क उठता था. उस का कहना था कि अब नायरा ही उस के लिए सबकुछ है. लेकिन पुष्पा को अब अपनी पोती नायरा की शादी की चिंता सताने लगी थी. वे चाहती हैं जल्द से जल्द उस की शादी हो जाए, तो वे चैन से मर सकें.

मगर नरेश का कहना था कि नायरा किस से शादी करेगी, कब करेगी, यह उस की अपनी मरजी होगी. नरेश को अपनी बेटी पर पूरा भरोसा था. अपने पापा का खुद पर भरोसा देख नायरा के मन में तसल्ली जरूर हुई थी, लेकिन पुष्पा को अपने लिए इतना चिंतित देख उसे बुरा भी लगता था. ऐसे समय में नायरा को अपनी मां की याद सताने लगती और वह भावुक हो कर रो पड़ती थी.

नायरा के पैदा होते ही उस की मां चल बसी थी, यह बात उस के पापा ने ही उसे बताई थी. लेकिन नायरा जब भी अपने पापा से अपनी मां के बारे में पूछती है कि उन्हें क्या हुआ था? कैसे मर गईं वे? तो नरेश चिड़ उठता और कहता कि एक ही सवाल बारबार दोहरा कर वह उसे परेशान न किया करे.

नायरा सम?झ नहीं पाती कि मां के बारे में पूछने पर नरेश इतना भड़क क्यों जाते हैं, जबकि उस की मां तो अब इस दुनिया में भी नहीं है. लेकिन पुष्पा उसे सम?झतीं कि उस के पापा, उस की मां से बहुत प्यार करते थे और जब वह उसे छोड़ कर चली गई तो नरेश को अच्छा नहीं लगा था.

‘‘लेकिन दादी… इस में मां की क्या गलती थी? उन्होंने क्यों मरना चाहा होगा? उन्हें दुख नहीं हुआ होगा अपने पति व बच्चे को छोड़ कर जाते हुए? बोलो न दादी… चुप क्यों हो?’’

पुष्पा क्या बोलतीं? कैसे और किस मुंह से कहतीं कि उस की मां मरी नहीं, बल्कि जिंदा है.

‘‘हां, नायरा की मां जिंदा है.  लेकिन वह अपनी बेटी से कोसों दूर रहती है. इतनी दूर कि नायरा की आवाज भी उस तक नहीं पहुंच सकती है. पुष्पा नायरा को उस की मां के बारे में सबकुछ बता देना चाहती थीं. लेकिन नरेश को दिया वचन उन्हें बोलने से रोक देता था. पुष्पा अंदर ही अंदर इस सोच में घुली जा रही थीं कि उन के जाने के बाद उन की पोती का क्या होगा? कौन ध्यान रखेगा उस का? उन्हें नायरा के भविष्य की चिंता सताने लगी थी. लेकिन यह बात वे नरेश से कह भी नहीं पाती थीं.

एक बार कहा था तो कैसे चिढ़ते हुए उस ने बोला था कि क्या वह मरने वाला है जो वे ऐसी बातें कह रही हैं? जिंदा है वह अभी और अपनी बेटी का खयाल रख सकता है. लेकिन पुष्पा अपने मन की उल?झन को कैसे सम?झएं कि वे क्या सोचती रहती हैं.

इधर कई दिनों से पुष्पा की तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी. सोतीं तो उठने का मन

ही नहीं होता. पूरे बदन में दर्द सा महसूस होता. शायद शुगर बढ़ गई हो उन की. लेकिन सारी दवाइयां तो समय से ले ही रही थीं वे, फिर क्या हुआ उन्हें? शुगर बढ़ने पर भूखप्यास ज्यादा लगती है. पर उन का तो खाना देखने तक का मन नहीं करता. पुष्पा को अब इस बात का एहसास होने लगा कि उस के पास समय कम है, लेकिन मरने से पहले वे नायरा को उस की मां के बारे में सबकुछ बता देना चाहती थीं.

‘‘बेटा, यहां मेरे पास आ कर बैठ, मुझे तुम से कुछ बातें करनी हैं,’’ नायरा को अपने पास बुलाते हुए पुष्पा बोलीं, लेकिन नायरा कहने लगी कि वह उन की सारी बातें सुनेगी, लेकिन पहले वे ठीक हो जाएं.

‘‘नहीं बेटा, फिर शायद कहने के लिए मैं न रहूं,’’ बोलते हुए वे जोर से खांसने लगीं तो नायरा दौड़ कर उन के लिए पानी लाने चली.  लेकिन पुष्पा उस का हाथ पकड़ कर रोकते हुए बोलीं, ‘‘नहीं… पानी नहीं… तुम यहां… मेरे पास… बैठो और और सुन लो मेरी बात क्योंकि मेरे पास समय… नहीं है. बेटा… मैं तुम्हें यह बताना चाहती हूं कि तुम्हारी मां… जिंदा है, लेकिन यह बात तुम से इसलिए छिपा कर रखी गई क्योंकि नरेश नहीं चाहता था कि तुम्हें यह बात कभी पता चले.’’

सही पकड़े हैं: भाग 2- कामवाली रत्ना पर क्यों सुशीला की आंखें लगी थीं

सुशीला की तेज नजरें सप्ताह बाद ही तेजी से खत्म हो रहे सामनों का लेखाजोखा किए जा रही थीं. खास चीनी, मक्खनमलाई, देशी घी, चाय, कौफी, मिठाई, बिस्कुट्स, नमकीन की खपत पर उस का शक 15 दिनों के भीतर यकीन में बदलने लगा.

एक दिन रंगेहाथ पकड़ेंगे रत्ना महारानी को. अदिति तो उस के खिलाफ सुनने वाली नहीं, तरुण को झमेले में पड़ना नहीं, भाभीजी को तो धर्मकर्म से फुरसत नहीं और भाईसाहब के तो कहने ही क्या. वे कहते हैं, ‘रत्ना के सिवा कौन ऐसा करेगा, वह काम समझ चुकी है, उस के बिना घर कैसे चलेगा, इसलिए उसे बरदाश्त तो करना ही होगा, कोई चारा नहीं. नजरअंदाज करें, बस.’ यह भी कोई बात हुई भला? बच्चों को पकड़ती हूं अपने साथ इस चोर को धरपकड़ने के मिशन में. अगले हफ्ते से ही बच्चों की गरमी की छुट्टियां शुरू होने वाली हैं. वे चोरसिपाही के खेल में खुशीखुशी साथ देंगे. तब तक हम अकेले ही कोशिश करते हैं, सुशीला ने दिमाग दौड़ाया.

रत्ना दिन में 3 बार काम करने आती थी. सुबह सफाई करती, बरतन मांजती और फिर नाश्ता बनाती. फिर 12 बजे आ कर लंच बनाती. और फिर शाम को आ कर बरतन साफ करती. शाम का चायनाश्ता, डिनर बना जाती. रत्ना के आने से पहले सुशीला तैयार हो जाती और उस के आते ही दमसाधे उस पर निगाह रखने में जुट जाती. हूं, सही पकड़े हैं, जाते समय तो बड़ा पल्ला झाड़ कर दिखा जाती है कि देख लो, जा रहे हैं, कुछ भी नहीं ले जा रहे, पर असल में वह अपना डब्बाथैला बाहर ऊपर जंगले में छिपा जाती है. काम करते समय मौका मिलते ही इधर से उधर कुछ उसी में सरका जाती है. सुशीला ने जाते वक्त उसे थैलाडब्बा जंगले से उठाते देख लिया था. कल चैक करेंगे, थैले में क्या लाती है और क्या ले जाती है,’ वह स्फुट स्वरों में बुदबुदा रही थी.

दूसरे दिन रत्ना जैसे ही आई, सुशीला मौका पाते ही बाहर हो ली. जंगले पर हाथ डाला और सामान उतार कर चैक करने लगी. ‘यह तो पहले ही इतना भरा है. दूध, कुछ आलूबैगन, 2-4 केले, आटा, थोड़ी चीनी उस ने फटाफट सामान का थैला फिर से ऊपर रख दिया और अंदर हो ली. पिछले घर से लाई होगी, आज ले जाए तो सही,’ सुशीला सोच रही थीं. रत्ना झाड़ू ले कर बाहर निकल रही थी, उस से टकरातेटकराते बची.

‘‘क्या है, थोड़ा देख कर चला कर, कोई घर का बाहर भी आ सकता है,’’ कह कर सुशीला अर्थपूर्ण ढंग से मुसकराई, जैसे अब तो जल्द ही उस की करनी पकड़ी जाने वाली है. ‘‘जी अम्माजी,’’ वह अचकचा गई, उस अर्थपूर्ण मुसकराहट का अर्थ न समझते हुए वह मन ही मन बुदबुदा उठी, ‘अजीब ही हैं अम्माजी.’

तेजप्रकाश आधा कटोरा मलाई खा कर प्रसन्न थे कि चलो, अच्छा है कि बहनजी का रत्ना पर शक यों ही बना रहे. जब सब सो रहे होते, वे अपनी जिह्वा और उदर वर्जित मनपसंद चीजों से तृप्त कर लिया करते. हालांकि, सुशीला की जासूसी से उन के इस क्रियाकलाप में थोड़ी खलल पैदा हो रही थी.

‘गनीमत यही हुई कि मैं ने सुशीला बहनजी और बच्चों की प्लानिंग सुन ली,’ तेजप्रकाश सतर्क हो मन ही मन मुसकरा रहे थे. ‘बच्चों की छुट्टियां क्या शुरू हुईं, जासूसी और तगड़ी हो गई. मक्खनमलाई, मीठा खाना दुश्वार हो गया. अभी तक तो एक ही से उन्हें सावधान रहना था, अब तीनतीन से,’ तेजप्रकाश के दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे. सोचा, क्यों न बच्चों को अपनी ओर कर लिया जाए. और जो सब से छिपा कर सुशीला बहनजी अपने बैग से लालमिर्च का अचार और हरीमिर्च, नमक, खटाई अलग से खाती हैं, उस तरफ लगा देता हूं. अभी तक तो मैं ने नजरअंदाज किया था पर ये तो रत्नारत्ना करतेकरते अब मुझ तक ही न पहुंच जाएं, इसलिए जरूरी है कि मैं बच्चा पार्टी को इन की ओर ही मोड़ दूं. यह ठीक है. यह सब सोचते हुए तेजप्रकाश के चेहरे पर मुसकान फैल गई. वे शरारती योजना बुनने में लग गए.

‘‘बंटू, मिंकू इधर आओ,’’ तेज प्रकाश ने उन्हें धीरे से बुलाया. सुशीला कमरे में बैठी थीं. तारा के पैरों की मालिश वाली मालिश कर रही थी. तरुण, अदिति और रत्ना जा चुके थे. ‘‘मामा वाली चौकलेट खानी है?’’ बच्चों ने उतावले हो कर हां में सिर हिलाया.

‘‘यह जो नानी का बैग देख रहे हो, जिस में नंबर वाला लौक पड़ा है. इस में से नानी रोज निकाल कर कुछकुछ खाती रहती हैं, मुझे तो लगता है बहुत सारी इंपौर्टेड चौकलेट अभी भी हैं, जो आते ही इन्होंने तुम्हें दी थीं. तुम्हारे मामा ने तुम लोगों के लिए दी थीं इन्हें. पहले खाते हुए पकड़ लेना, फिर मांगना.’’ वे जानते थे कि बहनजी को स्वयं कहना कतई श्रेयस्कर नहीं होगा, अतएव खुद नहीं कहा. ‘‘सही में दादू, पर उन्होंने तो कहा था खत्म हो गई हैं,’’ दोनों एकसाथ बोले.

‘‘वही तो पकड़ना है. अब से जरा आतेजाते नजर रखना.’’ ‘‘ओए मिंकू, मजा आएगा. अब तो दोदो मिशन हो गए. अपनीअपनी टौयगन निकाल लेते हैं, चल…’’ दोनों उछलतेकूदते भाग जाते हैं. तेजप्रकाश मुसकराने लगे.

सुबह से दोनों बच्चों की धमाचौकड़ी होने लगती. दोनों छिपछिप कर जासूस बने फिरते. सुशीला अलग छानबीन में हैरानपरेशान थीं. आखिर मक्खनमलाई डब्बे से, कनस्तर से चीनी, मिठाई फ्रिज से, सब कैसे गायब हुए जा रहे हैं. रत्ना है बड़ी चालाक चोरनी.

रत्ना पर बेमतलब शक किए जाने से, उस की खुंदस बढ़ती ही जा रही थी. वह चिढ़ीचिढ़ी सी रहती. लगता, बस, किसी दिन ही फट पड़ेगी कि काम छोड़ कर जा रही है. कई बार अम्माजी डब्बे खोलखोल कर दिखा चुकी हैं कि ताजी निकाली सुबह की कटोराभर मलाई आधी से ज्यादा साफ, मक्खन पिछले हफ्ते आया था, कहां गया? परसों ही 2 पैकेट मिठाई के रखे थे, कहां गए? महीनेभर की चीनी 15 दिनों में ही खत्म. कितनी जरा सी बची है? मैं तो नहीं खाती, ले जाती नहीं, पर सही में ये चीजें जाती कहां हैं? वह भी सोचने लगी. कैसे पकड़ूं असली चोर, और रोजरोज के शक से जान छूटे. वह भी संदिग्ध नजरों से हर सदस्य को टटोलने लगी.

उस दिन रत्ना घर की चाबी प्लेटफौर्म पर छोड़ आई, आधे रास्ते जा कर लौटी तो तेजप्रकाश को फ्रिज में मुंह डाले पाया. वे मजे से एक, फिर दो, फिर तीन गपागप मिठाइयां उड़ाए जा रहे थे. उस का मुंह खुला रह गया. वह एक ओट में छिप कर देखने लगी. जब वह मिठाइयों से तृप्त हुए तो मलाई के कटोरे को जल्दीजल्दी आधा साफ कर, बाकी पहले की इकट्ठी मलाई के डब्बे में उलट कर अगलबगल देखने लगे. मूंछों पर लगी मलाई को देख कर रत्ना को हंसी आने लगी. जिसे एक झटके में उन्होंने हाथों से साफ करना चाहा.

‘‘सही पकड़े हैं…बाबूजी आप हैं और अम्माजी तो हमें…’’ वह हैरान हो कर मुसकराई. तेजप्रकाश दयनीय स्थिति में हो गए, चोरी पकड़ी गई. याचना करने लगे थे. ‘‘सुन, बताना मत री किसी को. सब की डांट मिलेगी सो अलग, चैन से कभी खाने को नहीं मिलेगा. यदि बीमार होऊं तो परहेज भी कर लूं, पहले से क्या, इतनी सी बात किसी के पल्ले नहीं पड़ती,’’ उन्होंने बड़ी आजिजी से कहा.

ढाई आखर प्रेम का: क्या अनुज्ञा की सास की सोच बदल पाई

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नारियल: भाग 3- जूही और नरेंद्र की गृहस्थी में नंदा घोल रही थी स्वार्थ का जहर

जूही ने सब के साथ ही नंदा को भी मांजी की लाई मिठाई और फल वगैरह दिए. मगर इतने सवालों के साथ मिठाई और फलों की मिठास जैसे गायब हो गई थी. वह साफ देख रही थी कि नरेंद्र मां के सामने आंख उठा कर उस की ओर देख भी नहीं पा रहा है. वह बिलकुल मेमने जैसा लग रहा है. जिस नरेंद्र ने उस से प्रेम किया था, उस के साथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं, वह एक जिंदादिल इंसान था. उस का यह रूप तो रीढ़हीन केंचुए जैसा है. यह रूप ले कर क्या वह समाज से टक्कर ले सकेगा? उसे लगा, कम से कम मांजी के यहां रहते तो नहीं?

वह चुपचाप वहां से खिसकना चाहती थी कि मांजी ने कहा, ‘‘अभी इतनी जल्दी भी क्या है जाने की, बैठो.’’

फिर उन्होंने नरेंद्र से कहा, ‘‘बनियाइन, कमीज उतार…’’

कपड़े उतारने पर नरेंद्र पर ऐक्सरे जैसी नजर डाल कर बोलीं, ‘‘इसी सुख के लिए यहां रह रहा है, एकएक पसली गिन लो. बहू, तूने इसे यही खिलायापिलाया है? अब जब तक तू अपने जिले में तबादला नहीं करा लेता, मैं यहीं रहूंगी. अपना घर अपना ही होता है. इस बड़े शहर की फिजा में जहरीले मच्छर घूमते हैं. यहां से लाख दर्जा अच्छा अपना कसबा है, जहां हर चीज सस्ती है.’’

नरेंद्र और नंदा इस प्रवचन के बंद होने के  इंतजार में जैसे जमीन में आंखें गड़ाए बैठे थे. मां फिर नरेंद्र से बोलीं, ‘‘देख, ये हरीश और नवल तुझ से कितने छोटे हैं और कैसे खिले पट्ठे हो गए हैं. तेरे बापू की पैंशन और गांव की खेती के सहारे हम ने मकान को दोमंजिला कर दिया है और 2 भैंसें भी पाल रखी हैं.’’

नंदा का मन पूरी तरह से बुझ गया था. वह मांजी और उन के साथ आए हट्टेकट्टे बेटों को देख कर घबरा उठी कि यह औरत उस की  कामनाओं की कृषि पर मानो पाला बन कर पड़ गई है. निराशा से लंबी सांस ले कर वहां से चल दी.

बाहर निकल कर वह इस आशा से घूम कर पीछे देखने लगी कि शायद नरेंद्र उसे इशारों में ही कुछ दिलासा दे. मगर उस की आंखें उठ नहीं रही थीं.

अगले दोचार दिन नरेंद्र बड़ा व्याकुल रहा. रमाबाबू के घर चाय के बहाने नंदा से थोड़ी देर के लिए मुलाकात हो जाती थी, लेकिन इतने भर से प्यासे हृदयों को तसल्ली कैसे मिलती? रमाबाबू के सामने वे एकदूसरे को अधिक से अधिक देख ही सकते थे. दोनों के शरीर एकदूसरे से मिलने को तड़प रहे थे.

एक दिन रमाबाबू के न होने पर नंदा ने कहा था, ‘‘इसी बूते पर प्यार की कसमें खाते थे, संसार से टकराने की बात करते थे. अब मां के सामने भीगी बिल्ली बन गए.’’

नंदा के उत्तेजित करने से नरेंद्र का अहं जागृत हुआ, ‘‘मैं अब दूधपीता बच्चा नहीं हूं जो हर काम के लिए मां की मरजी का मुंह ताकूं…खुद कमाता हूं, खाता हूं, किसी से मांगने नहीं जाता हूं. अपनी जिंदगी अपनी मरजी से जीऊंगा,’’ उस ने नंदा को दिलासा देते हुए कहा, ‘‘तुम घबराओ मत. मैं मां से साफसाफ बात कर लूंगा. तुम्हारे बिना मैं जी नहीं सकता.’’

नंदा को हालांकि भरोसा नहीं था, फिर भी वह उसे उत्साहित करती हुई बोली, ‘‘तुम हिम्मत से काम लो, सब काम बन जाएगा.’’

‘‘हां, जानेमन, मेरी हिम्मत देखनी हो तो शाम को घर चली आना,’’ नरेंद्र ने नंदा के हाथ पर हाथ मार कर कहा.

उस दिन शाम को औफिस से लौटने पर नरेंद्र, नंदा के साथ आया था. लाल साड़ी में नंदा बड़ी फब रही थी और नरेंद्र भी अकड़ाअकड़ा दिखाई दे रहा था. उन दोनोें को देख कर जूही के उन अरमानों पर पानी जैसा पड़ गया था जिन के साथ उस ने गोभी और प्याज की पकौडि़यां चाय के साथ तैयार की थीं, रसोई में जा कर वह आंसू बहाने लगी.

बहू के आंसू देख कर सास ने पूछा, ‘‘यह क्या, फिर टेसुए बहाने लगीं.’’

जूही सुबकती हुई बोली, ‘‘वह फिर आ गई है.’’

‘‘तो क्या हुआ? तू चुप बैठ, बाकी जिम्मा मेरा,’’ वे जूही की पीठ ठोंकने लगीं.

नंदा नरेंद्र के पास ही कुरसी पर बैठी थी. मांजी ने उन दोनों को घूरते हुए हरीश और नवल को भी वहीं बुला लिया. जूही ने प्यालों में चाय डाली, तो पहला घूंट ले कर ही मांजी नरेंद्र से बोलीं, ‘‘आज तुम कुछ भरेभरे लग रहे हो. मुझे आए इतने दिन हो गए. मगर तुम्हारे साथ कोई बात ही नहीं हो सकी. आज कुछ बातें करेंगे.’’

‘‘हांहां, यही मैं भी चाहता था. पहली बात तो यह कि आप कल घर को रवाना हो जाएं. खेतीबाड़ी और भैंसें देखना अकेले बापू के बस की बात नहीं है,’’ नरेंद्र बोला.

‘‘ठीक है, आई हूं तो चली भी जाऊंगी. आखिर यह भी मेरा घर है. मगर यह लड़की कौन है? अकेली तुम्हारे साथ इस के आने का कौन सा तुक है? जवान लड़कियां इस तरह घूमें, यह अच्छा नहीं है,’’ मांजी बोलीं.

‘‘मैं तो सोचता था, आप का अदब कायम रहे. पर जब आप ही नहीं चाहती हैं, तो सुनिए, यह नंदा है और मैं इस के बिना रह नहीं सकता. इस से शादी करूंगा. अब यही इस घर की मालकिन बनेगी,’’ जी कड़ा कर के नरेंद्र कह गया.

नंदा गर्वभरी दृष्टि से उसे देख रही थी.

‘‘लेकिन बहू का क्या होगा? जिस के साथ सात भांवरें ले कर तुम ने अग्नि के सामने जीवनभर साथ निभाने की प्रतिज्ञा की थी?’’ मांजी ने ठंडेपन से उसे तोला.

नरेंद्र की हिम्मत बढ़ गई, वह बोला, ‘‘वह ब्याह तुम लोगों की मरजी से हुआ था, तुम्हीं जानो. प्रतिज्ञा जैसे शब्द आज की दुनिया में बेमानी हो गए हैं.’’

‘‘ठीक है, कोई बात नहीं. फिर भी यह  शादी न हो, तो अच्छा है. यही जूही के साथसाथ तुम्हारे और नंदा के लिए भी भला होगा,’’ मांजी ने उसी तरह कहा.

‘‘हम अपना भलाबुरा सब समझते हैं. मैं आप की यह राय मानने को मजबूर नहीं हूं,’’ नरेंद्र ने दृढ़ता से कहा.

‘‘हां, हम किसी के लिए अपनी तमन्नाओं का गला तो घोंट नहीं सकते,’’ नंदा ने पहली बार हिम्मत की.

‘‘तू चुप रह. तेरी दवा तो मैं यों कर दूंगी,’’ मांजी ने चुटकी बजाई.

उन के चुटकी बजाने से स्वयं को अपमानित अनुभव कर नंदा ने नरेंद्र की ओर देखा और कहा, ‘‘यदि मैं शादी कर ही लूं तो आप क्या कर लेंगी? अब तो शादी हो कर रहेगी.’’

‘‘मैं क्या कर लूंगी? सुन,’’ इस के साथ ही उन की त्योरियां बदलीं और वे नरेंद्र से बोलीं, ‘‘पहले तो तुझे घर की जायदाद से वंचित कर दूंगी. दूसरे रमाबाबू से कह कर इस लौंडिया की लगाम कसूंगी. तब भी न मानी, तो इस की चोटी का एकएक बाल उखाड़ लूंगी और धक्के दे कर इसे घर से बाहर कर दूंगी. मेरी राय में इतने में सही हो जाएगी,’’ तीखी आवाज में बोलती मांजी ने नंदा के उतरे चहरे की ओर देखा.

नंदा सोच रही थी, जायदाद के लिए नरेंद्र शायद दब जाए, लेकिन उस पर इस का असर आंशिक ही पड़ा. नंदा के साथ वह नौकरी में भी गुजर कर सकता था. सो, बोला, ‘‘आप अपनी जायदाद ले जाइए, मुझे नहीं चाहिए. मगर शादी होगी.’’

‘‘शादी तो किसी कीमत पर नहीं होगी. जायदाद जाने से भी तुझ पर असर नहीं होगा तो थानाकचहरी बना है. एक रिपोर्ट में लैलामजनूं दोनों जेल में नजर आओगे. फिर नौकरी भी नहीं बचेगी. पहली बीवी के रहते दूसरी शादी करने पर 7 साल की सजा होती है,’’ मांजी का गंभीर स्वर गूंजा.

अब नंदा का हौसला भी पस्त हो चुका था. मां ने उसे जाने को कहा तो नरेंद्र बोला, ‘‘अब जो भी हो, यह जाएगी नहीं.’’

मांजी ने नंदा का झोंटा पकड़ कर उसे ऊंचे उठा दिया. वह चीख कर गालियां बक रही थी और उसे छुड़ाने को आगे बढ़े नरेंद्र को हरीश और नवल ने पकड़ लिया था. अब नंदा मांजी से रहम की भीख मांग रही थी. उन्होंने उसे धक्के दे कर दरवाजे से निकाल कर कहा, ‘‘देह दर्द करे, तो फिर आ जाना, मरम्मत कर दूंगी.’’

छूटने पर नरेंद्र ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘रुको तो, नंदा.’’

पर वह कह रही थी, ‘‘नौकरी जाने के बाद तुम्हारे पास रह क्या जाएगा? मेरी इज्जत तक तो उतरवा दी. ऐसे कायर पर मैं थूकती हूं.’’

नरेंद्र को लग रहा था, वह वास्तव में नौकरी जाने के बाद कुछ भी नहीं रह जाएगा. जेल की कठोर यातनाएं सह कर वहां से छूटने के बाद दुनिया बदल चुकी होगी. वह धम्म से चारपाई पर बैठ गया.

मांजी जूही से कह रही थीं, ‘‘देखना, जो यह कलमुंही दोबारा घर की दहलीज पर पैर तक रखे. साहबजादे भी कुछ दिनों में ठीक हो जाएंगे. तुम मियांबीवी एक हो जाओगे, मैं ही कड़वी दवा रहूंगी.’’

मांजी का हाथ बहू की पीठ सहला रहा था और बहू को लग रहा था, जैसे उस की बिछुड़ी सगी मां एक हाथ में छड़ी और दूसरे में दूध का गिलास लिए हो, नारियल के फल की तरह ऊपर से कठोर, भीतर से नर्म.

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