लेखक- वेद प्रकाश गुंजन
अंदर आते 2 किशोरों को देख उस व्यक्ति ने उन्हें बैठने का इशारा किया और अपने मोटे चश्मे को नीचे करते चुटकी लेते हुए कहा, ‘किस गांव से आ रहे हो तुम लोग और इस अंधी लड़की को कहां से भगा कर ला रहे हो?’
‘अरे, नहीं साहब, भगा कर नहीं लाया, मैं लाली को यहां गायिका बनाने लाया हूं,’ रोशन ने धीमे से कहा.
‘गायिका और यह…सुर की कितनी समझ है तुझे, गलीमहल्ले में गा कर खुद को गायिका समझने की भूल मत कर, यहां देश भर से कलाकार आ रहे हैं. मेरा समय बरबाद मत करो और निकलो यहां से,’ साहब ने गुर्राते हुए कहा.
‘अरे, नहीं साहब, लाली बहुत अच्छा गाती है. आप एक बार सुन कर तो देखिए,’ रोशन ने बात को संभालने के अंदाज से कहा.
‘देखो लड़के, यह कार्यक्रम सारे देश में टेलीविजन पर दिखाया जाएगा और मैं नहीं चाहता कि एक गंवार, अंधी लड़की इस का हिस्सा बने. तुम जाते हो या पुलिस को बुलाऊं,’ साहब ने चिल्लाते हुए कहा.
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दोनों स्तब्ध, अवाक् खड़े रहे जैसे सांप सूंघ गया हो उन्हें. लाली खुद को ज्यादा देर रोक नहीं पाई और उस की आंखों से आंसू निकल आए और वह फौरन कमरे से बाहर निकल आई. अंदर रोशन अपने सपनों को टूट कर बिखरते हुए देख खुद टूट गया था.
मुंबई नगरी अब उसे सपनों की नगरी नहीं शैतानों की नगरी लग रही थी. ये बिलकुल वैसे ही शैतान थे जिन्हें वह बचपन में सपनों में देखा करता था. बस, एक ही अंतर था, इन के सिर पर सींग नहीं थे. पर यह सब सोचने का समय नहीं था उस के पास, अभी तो उसे लाली को संभालना था.
दोनों समंदर के किनारे बैठे अपने दुख को भूलने की कोशिश कर रहे थे. रोशन डूबते सूरज के साथ अपने सपने को भी डूबता देख रहा था. उस ने लाली को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसे समझाना मुश्किल लग रहा था.
‘तुम्हें पता है लाली, डूबता सूरज बहुत खूबसूरत होता है,’ उस ने लाली को समझाने का अंतिम प्रयास किया, ‘और पता है यह खूबसूरत क्यों होता है, क्योंकि यह लाल रंग का होता है. और पता है तेरा नाम लाली क्यों है क्योंकि तू सब से सुंदर है. मेरा भरोसा कर लाली, तू मेरे लिए दुनिया की सब से खूबसूरत लड़की है.’
रोशन ने अनजाने में आज वह बात कह दी थी जिसे कहने की हिम्मत वह पहले कभी नहीं जुटा पाया था. डूबते सूरज की रोशनी में लाली का चेहरा पहले से ही लाल नजर आ रहा था, यह सुन कर उस का चेहरा और भी लाल हो गया और उस के होठों पर मुसकान आ गई.
12 साल बाद की उस घटना को सोच कर रोशन के चेहरे पर हंसी आ गई जैसे सबकुछ अभी ही हुआ है. रात का तीसरा पहर भी बीत गया था. चारदीवारी के अंदर का कोलाहल शांत हो गया था. शायद लाली की शादी हो गई थी. उस के सीने की जलन बढ़ती जा रही थी. कारखाने में काम करने के कारण उस के फेफड़े जवाब दे चुके थे. डाक्टरों के लाख समझाने के बाद भी उस ने बारूद के कारखाने में काम करना नहीं छोड़ा था अब उसे मरने से डर नहीं लगता था वह जीना ही नहीं चाहता था. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं और फिर से उस के जेहन में अतीत की यादें सजीव होने लगीं.
अब लाली महल्ले के मंदिर के सत्संग में गाने लगी थी और रोशन एक ढाबे में काम करने लगा था. शायद उन लोगों ने मुंबई की जिंदगी से समझौता कर लिया था. लाली के गाए भजनों की लोकप्रियता बढ़ने लगी थी, अब आसपास के लोग भी उसे सुनने आते थे. लाली इसी में खुश थी.
एक दिन सुबहसुबह दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी. रोशन ने दरवाजा खोला तो देखा एक अधेड़ व्यक्ति साहब जैसे कपड़े पहने खड़ा था.
‘बेटे, लाली है क्या? मैं आकाश- वाणी में सितार बजाता हूं. हमारा भक्ति संगीत का कार्यक्रम हर दिन सुबह 6 बजे रेडियो पर प्रसारित होता है. जो गायिका हमारे लिए गाया करती थी वह बीमार है,’ उस व्यक्ति ने कमरे के अंदर बैठी लाली को देखते हुए कहा.
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लाली यह सुन कर बाहर आ गई.
‘लाली, क्या तुम हमारे रेडियो कार्यक्रम के लिए गाओगी?’
यह सब किसी सपने से कम नहीं था, रोशन को अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था.
‘बेटे, मैं ने लाली को मंदिर में गाते हुए सुना है. मैं ने अपने संगीतकार को लाली के बारे में बताया है. वह लाली को एक बार सुनना चाहते हैं. अगर उन्हें लाली की आवाज पसंद आई तो लाली को रेडियो में गाने का काम मिल सकता है,’ उस व्यक्ति ने स्पष्ट करते हुए कहा.
उसी दिन शाम को दोनों रेडियो स्टेशन पहुंच गए. लाली को माइक्रो- फोन के आगे खड़ा कर दिया गया. साजिंदों ने साज बजाने शुरू किए और लाली ने गाना :
‘अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम…’
गाना खत्म हुआ और अचानक सभी बाहर आ गए. लाली के आसपास भीड़ जुटने लगी. स्वर के जादू ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया था, जैसे सभी उस आवाज को आत्मसात कर रहे हों. गाने के बाद तालियों की गूंज ने लाली को बता दिया था कि उस की नौकरी पक्की हो गई है. रोशन की खुशी का ठिकाना नहीं था.
श्रोताओं में शास्त्रीय संगीत के जानेमाने संगीतकार पंडित मदनमोहन शास्त्री भी थे. दूसरों की तरह वह भी लाली की आवाज से बेहद प्रभावित थे. उन्होंने लाली को बुलाया और कहने लगे, ‘बेटी, तुम्हारे कंठ में बेहद मिठास है पर तुम अभी सुर में थोड़ी कच्ची हो. मैं तुम्हें संगीत की विधिवत शिक्षा दूंगा.’
लाली मारे खुशी के कुछ बोल नहीं पाई. बस, स्वीकृति में सिर हिला दिया.
लाली की संगीत की शिक्षा शुरू हो गई. पंडितजी लाली के गाने से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने लाली को गोद ले लिया और वह लाली से लालिमा शास्त्री बन गई. पंडितजी के इस फैसले के कारण लाली पंडितजी के घर में ही रहने लगी और नियति ने रोशन के एकमात्र सहारे को भी उस से छीन लिया.
अब रोशन को लाली से मिलने के लिए पंडितजी की इजाजत लेनी पड़ती और पंडितजी को बिलकुल भी पसंद नहीं था कि कोई फुटपाथ का आदमी रोज उन के घर आए पर लाली की इच्छा का खयाल रखते हुए वह कुछ देर के लिए इजाजत दे देते. धीरेधीरे लाली की लोकप्रियता बढ़ने लगी और घटने लगा रोशन को दिया जाने वाला समय. रोशन इस अचानक आए बदलाव को समझ नहीं पा रहा था. वह लालिमा शास्त्री के सामने खुद को छोटा पाने लगा था.
एक दिन उस ने एक निर्णय लिया और लाली से मिलने उस के घर चला गया.
‘लाली, मेरा यहां मन नहीं लग रहा. चलो, वापस गांव चलते हैं,’ रोशन ने लाली क ी ओर देखते हुए कहा.
‘क्यों, क्या हुआ? मन क्यों नहीं लग रहा तेरा,’ लाली ने सोचते हुए कहा, ‘लगता है, मैं तुझ से मिल नहीं पा रही हूं, इसी कारण मन नहीं लग रहा तेरा.’
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‘नहीं…सच तो यह है कि पंडितजी यही चाहते हैं कि मैं तुझ से न मिलूं और मुझे लगता है कि शायद तू भी यही चाहती है. तुझे लगता है कि मैं तेरे संगीत की शिक्षा में रुकावट हूं,’ रोशन ने गुस्से में कहा.
‘अरे, नहीं, यह बात नहीं है. रियाज और बाकी काम होने के कारण मैं तुम से मिल नहीं पाती,’ लाली ने समझाने की कोशिश की.
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