बेवजह शक के 6 साइड इफैक्ट्स

पार्टी खत्म होते ही कावेरी हमेशा की तरह मुंह फुलाए पति संदीप के आगेआगे चलने लगी. कार में बैठते ही उस ने संदीप के सामने सवालों की झड़ी लगा दी, ‘‘मिसेज टंडन जब भी मिलती हैं, तब आप को देख कर इतना क्यों मुसकराती हैं? टंडन साहब के सामने तो वे मुंह बनाए रखती हैं… नेहा ने आप को मिस्टर हैंडसम क्यों कहा और अगर कह भी दिया था तो आप को क्या जरूरत थी सीने पर हाथ रख मुसकराते हुए सिर झुकाने की? और ये जो आप की असिस्टैंट सोनाली है न उस की तो किसी दिन उस के ही घर जा कर अच्छी तरह खबर लूंगी. अपने हसबैंड को घर छोड़ कर पार्टी में आ जाती है और बहाना यह कि उन की तबीयत ठीक नहीं रहती. दूसरों के पति ही मिलते हैं इसे चुहलबाजी करने के लिए?’’ कावेरी का बड़बड़ाना लगातार जारी था.

2 साल पहले कावेरी की शादी हुई थी तो संदीप जैसे स्मार्ट और हैंडसम पति को पा कर उस के पांव जमीन पर नहीं टिकते थे. मगर कुछ दिनों बाद ही उस की सारी खुशी हवा हो गई. अब संदीप के इर्दगिर्द किसी महिला को देख तिलमिला उठती है. असुरक्षा की भावना से घिर कर संदीप से ही झगड़ा करने लगती है.

कावेरी की ही तरह नताशा भी अपने पति रितेश की स्मार्टनैस को अपनी सौतन समझने लगी है, क्योंकि रितेश की स्मार्टनैस ने उस का चैन छीन लिया है. उसे लगता है कि रितेश अपने स्मार्ट होने का फायदा उठा रहा है. कोई चाहे कुंआरी हो या शादीशुदा सब से मेलजोल बढ़ाता है.

नताशा तो रितेश को किसी महिला से बात करता देख सब के सामने ही झगड़ना शुरू कर देती है. अपनी इज्जत बचाने की खातिर रितेश अपने मित्रों  की पत्नियों द्वारा की गई ‘हैलो,’ ‘नमस्ते’ का जवाब देने से भी कतराता है. जब वह नताशा के साथ होता है तो उसे बेहद सतर्क रहना पड़ता है. नताशा के बेबुनियाद शक ने रितेश की सोशल लाइफ लगभग समाप्त कर दी है.

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नताशा और कावेरी की तरह ही न जाने ऐसी कितनी पत्नियों के उदाहरण मिल जाएंगे जो अपने पति पर किसी महिला की नजर केवल इसलिए सहन नहीं कर पातीं कि उन का पति उन के मुकाबले अधिक आकर्षक दिखाई देता है. ऐसे में किसी भी महिला के करीब आने का दोषी वे पति को भी मानते हुए उस पर शक करने लगती हैं.

संदेह के दुष्प्रभाव

1. दांपत्य जीवन तनावग्रस्त:

कोई भी पति अपनी पत्नी द्वारा बिना वजह लगाए गए लांछन सहन नहीं करेगा. इस का परिणाम यह होगा कि दोनों के बीच लड़ाईझगड़े होते रहेंगे. ऐसे में दांपत्य जीवन में प्रेम व शांति के स्थान पर तनाव हावी हो जाएगा.

2. आत्मविश्वास में कमी:

यदि पतिपत्नी आत्मविश्वास से लबरेज होंगे तो दोनों का मन खुश रहेगा और वे एकदूसरे के साथ सुखद समय व्यतीत कर पाएंगे. किंतु पत्नी द्वारा बेबुनियाद शक पति के आत्मविश्वास में कमी ले कर आएगा. वह समझ ही नहीं पाएगा कि उस ने क्या गलत किया जो क्लेश का कारण बन गया. पत्नी भी स्वयं को अन्य महिलाओं की तुलना में हीन आंक कर कुंठाग्रस्त हो जाएगी.

3. बच्चों की मानसिकता पर प्रभाव:

बच्चों की उचित देखभाल के लिए मातापिता में समयसमय पर सलाहमशवरा बेहद जरूरी है, किंतु निरंतर शक के कारण पतिपत्नी के बीच बढ़ी दूरी बच्चों के विषय में चर्चा करने के अवसर न दे कर आपस के निराधार मसले सुलझाने को बाध्य करती रहेगी, जिस से बच्चों की मानसिकता प्रभावित होगी.

4. सामाजिक मेलजोल में कमी:

बेकार का शक पति को किसी भी सामाजिक समारोह में जाने से रोक देगा. वह इस बात से डरता रहेगा कि किसी भी महिला का उस की और मुसकरा कर देखना घर में तूफान ला सकता है. इसी तरह पत्नी भी सोशल गैदरिंग से बचने लगेगी. पति का हैंडसम होना उस की नजरों में अपने लिए एक नई परेशानी खड़नी करने जैसा हो जाएगा.

5. पति लेने लगता है झूठ का सहारा:

शक के कारण कुछ पत्नियां औफिस तक पति का पीछा करती हैं. वहां वह किस महिला सहकर्मी को कितनी अहमियत देता है, किसकिस के साथ हंस कर बातें करता है तथा अपनी सैके्रटरी के साथ कितना समय बिताता है, इन सब बातों की जानकारी बातोंबातों में पति से लेती रहती हैं. आपस में किसी भी बात पर जब जरा सी भी बहस होती है तो वे उन सब के नाम पति के साथ जोड़ कर उसे नीचा दिखने लगती हैं. परेशान हो कर धीरेधीरे पति सबकुछ सच न बता कर झूठ बोलने लगते हैं.

6. आत्महत्या की नौबत:

लखनऊ में एक भूतपूर्व सैनिक ओमप्रकाश की पत्नी को शक रहता था कि उस के पति का किसी अन्य महिला के साथ अनैतिक संबंध है. पति ने इस बेबुनियाद शक को दूर करने का पूरापूरा प्रयास किया. मगर पत्नी का शक दूर न कर पाया तो खुद को गोली मार कर उस ने अपना जीवन समाप्त कर लिया.

स्वयं को समाप्त कर देने का विचार पतिपत्नी के मन में आए या न आए, किंतु यह तो सत्य है कि संदेह से जन्मा क्लेश दांपत्य जीवन को नर्क अवश्य बना देता है. जब मन में संदेह के बीज पनप रहे हों तो पत्नी को ये बातें ध्यान में रखनी चाहिए.

एक स्मार्ट पति पा कर पत्नी को खुश होना चाहिए. यदि ऐसे व्यक्ति ने उसे पसंद किया है तो यकीनन उस में कुछ खासीयत तो होगी ही. इस बात को वह मन में बैठा ले तो स्वयं को किसी से कम नहीं आंकेगी और तब पति का किसी महिला से बात करना उसे नहीं खलेगा.

पति के हैंडसम होने पर हीनभावना से ग्रस्त होने के बजाय पत्नी को चाहिए कि वह अपने सौंदर्य को निखारने का प्रयास करे. इस के लिए विभिन्न पत्रपत्रिकाओं व यूट्यूब के माध्यम से मेकअप के नएनए टिप्स जान कर उन्हें अपनाया जा सकता है. भिन्नभिन्न प्रकार के नएनए ब्यूटी प्रोडक्ट्स बाजार में व औनलाइन उपलब्ध हैं, जिन की मदद से खुद को आकर्षक बनाया जा सकता है.

अपने पति के आसपास मंडराती हुई महिलाओं की ओर मुंह फुला कर देखते हुए पति को मन ही मन कोसने से अच्छा है कि उन महिलाओं से खुल कर हंसते हुए बातचीत करने का प्रयास किया जाए. इस प्रकार घुलनेमिलने से वे महिलाएं एक पारिवारिक मित्र की तरह लगने लगेंगी.

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अपने गुणों को पहचान कर उन्हें निखारना शुरू करें. मसलन, यदि पत्नी खाना अच्छा बनाती है तो मेहमानों, अपने व पति के मित्रों के आने पर नईनई डिशेज बना कर खिला सकती है. जब उस के स्वादिष्ठ खाने की चर्चा सब के बीच होगी तो वह स्वयं को उच्चतर महसूस करेगी. इसी प्रकार आवाज अच्छी होने पर किसी भी गैटटूगैदर में गाना गाने में हिचक महसूस न करें.

यदि संदेह से घिरी पत्नी टच में रहना ही चाहती है, तो पति की महिलामित्रों की जानकारी देने वाले लोगों के स्थान पर अच्छीअच्छी पत्रिकाओं, ज्ञानवर्धक व मनोरंजक वैबसाइट्स तथा व्हाट्सऐप पर अपने पुराने दोस्तों के टच में रहे. इस से नईनई जानकारी मिलने से उस की पर्सनैलिटी में निखार आएगा तथा मन खुश रहने से तनाव भी नहीं होगा.

इसी तरह अपनी पत्नी के शक्कीमिजाज का सामना करने के लिए पति भी रखे इन बातों का ध्यान:

पत्नी द्वारा बिना वजह शक व्यक्त किए जाने पर स्वयं को नियंत्रित रखें. गुस्से में या चिल्ला कर जवाब देने से पत्नी को लगेगा कि पति उसे कोई महत्त्व ही नहीं देना चाहता. यदि पत्नी सब के सामने झगड़ा करने लगे तो वहां चुप रह कर उसे बाद में समझाए और एहसास करवाए कि  वह सब के सामने उसे बेइज्जत नहीं करना चाहता. शक से घिरी पत्नी को पति से मिला सम्मान अपना नजरिया बदलने में मदद करेगा.

पत्नी की प्रशंसा करने में कंजूसी न करें. जब वह कुछ नया पहने या बाहर जाने के लिए तैयार हो तो तारीफ के 2 बोल जरूर बोलें.

पत्नी को समयसमय पर याद दिलाते रहना चाहिए कि शारीरिक सौंदर्य ही सबकुछ नहीं है. पत्नी के कुछ खास गुणों की तारीफ करते हुए कहें कि उस में सच में ऐसे गुण हैं, जो उस ने आज तक किसी भी सुंदरी में नहीं देखे.

समयसमय पर पत्नी के साथ घूमने का कार्यक्रम बनाएं. कभी रैस्टोरैंट में डिनर आदि का तो कभी वीकैंड पर आसपास की जगह जा कर 1-2 दिन बिताने का. वहां मस्ती के मूड में डूब कुछ तस्वीरें खींच कर फेसबुक पर पोस्ट की जा सकती हैं या व्हाट्सऐप स्टेटस के रूप में भी डाली जा सकती हैं. यदि कैप्शन ‘माई लवली वाइफ ऐंड आई’ जैसी हो तो सोने में सुहागा हो जाएगा.

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जानें वो 9 बातें जिन्हें पुरुषों को भी समझना चाहिए

आज भले ही महिलाएं आत्मनिर्भर हो गई हों, पुरुषों के साथ कदम से कदम मिला कर चलने लगी हों, लेकिन कुछ मामलों में आज भी उन की वही धारणा है, जो पहले हुआ करती थी, जैसे पैसे को ही ले लीजिए. महिलाएं आज भी खर्च से ज्यादा बचत करने पर विश्वास रखती हैं. अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना उन्हें आज भी आता है. अब तो कुछ जगहों पर महिलाएं पूंजी निवेश में भी विश्वास रखती हैं.

इस संबंध में श्री बालाजी ऐक्शन अस्पताल की वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. शिल्पी आष्टा का कहना है, ‘‘आज भी महिलाओं की सोच कुछ मामलों में पुरुषों से बिलकुल विपरीत है. पुरुष भविष्य से ज्यादा खुशहाल वर्तमान पर विश्वास रखते हैं, जबकि महिलाएं हर काम भविष्य को ध्यान में रख कर करती हैं और पुरुषों से भी यही अपेक्षा करती हैं कि वे भी इस बात को समझें.

‘‘महिलाएं जोखिम भरे काम से बचना चाहती हैं, खासतौर पर पूंजी को ले कर. इसीलिए वे पूंजी को सोने या चांदी जैसी चीजों पर निवेश करना ज्यादा उचित समझती हैं, जबकि पुरुष ज्यादा मुनाफे के लिए शेयर मार्केट या म्यूचुअल फंड जैसे प्लान में पैसे इनवैस्ट करना ज्यादा उचित समझते हैं, जोकि जोखिम भरा होता है. इसीलिए महिलाएं पुरुषों से चाहती हैं कि वे प्रौपर्टी, सोना या चांदी में पूंजी निवेश करें अथवा बैंक में पैसा जमा कर के लाभ उठाएं.’’

1. पुरुष भी अपनाएं बजट प्लान

महिलाओं को होम फाइनैंस मिनिस्टर भी कहा जाता है और यह सच भी है, क्योंकि भले ही एक पुरुष पैसा कमा कर अपनी मां या पत्नी को देता हो, लेकिन उसे संभालने का गुण महिलाओं के ही हाथ में है. इसलिए महिलाएं चाहे कामकाजी महिलाएं हों या फिर गृहिणियां, वे अपने परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत बनाए रखने के लिए बजट के अनुसार चलना पसंद करती हैं, ताकि भविष्य में उन की आर्थिक स्थिति गड़बड़ाए नहीं. इसीलिए महिलाएं पुरुषों से भी यही चाहती हैं कि वे भी बजट के अनुरूप चलें.

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2. बच्चों की ऐजुकेशन प्लानिंग हो

शिक्षा इतनी महंगी हो चुकी है कि हर मातापिता के लिए उसे अफोर्ड कर पाना आसान नहीं है. पुरुषों से ज्यादा यह डर महिलाओं को सताता है कि कहीं वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने से पीछे न रह जाएं. आजकल बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए यह जरूरी हो गया है कि पहले से योजना बना कर चला जाए.

3. शादी की प्लानिंग

बढ़ती महंगाई में बच्चों की शादी भी महिलाओं के लिए चिंता का विषय है, खासतौर पर बेटियों की. यह चिंता कामकाजी महिलाओं से ले कर गृहिणियों तक की होती है. इस बारे में इंटरनैशनल मार्केटिंग मैनेजर के पद पर कार्य कर रही रविता बालियान का मानना है, ‘‘भले ही आज महिलाएं पुरुषों के कदम से कदम मिला कर चल रही हों, फिर भी अपनी जिम्मेदारियों को ले कर आज भी उन की वही भूमिका है, जो पहले हुआ करती थी. लेकिन बच्चों के जन्म के साथ उन की शादी की चिंता केवल मां को ही नहीं, बल्कि पिता को भी होनी चाहिए. बच्चों की शादी को ले कर कई ऐसे इंश्योरैंस प्लान भी मौजूद हैं, जिन्हें करा लिया जाए, तो उन की शादी के समय काफी आसानी होगी.’’

4. प्राथमिकताओं को महत्त्व दें

29 वर्षीय जयश्री रस्तोगी हाउसवाइफ हैं. पिछले 5 सालों से पूरे परिवार के साथ किराए के मकान में रह रही हैं. हर महिला की तरह उन का भी यह सपना है कि खुद का मकान हो, लेकिन उन के पति की इच्छा है कि पहले उन्हें कार लेनी चाहिए. जयश्री का मानना है कि अगर वे ईएमआई पर अभी घर ले लेंगे, तो भविष्य में किराए के पैसे बच जाएंगे, जिन्हें वे अपने बच्चों की पढ़ाईलिखाई पर खर्च कर सकते हैं. इस तरह की विपरीत सोच कई बार उन के बीच बहस का मुद्दा भी बन चुकी है.

महिलाएं यह बात भलीभांति समझती हैं कि भविष्य में बढ़ने वाली जिम्मेदारियों के साथ घर खरीदना मुश्किल होता जाता है. इसलिए वे पुरुषों से भी यही अपेक्षा रखती हैं कि वे भी इस बात को समझें.

5. निवेश में महिलाओं की भी राय लें

डा. शिल्पी का कहना है, ‘‘महिलाएं खुद के भविष्य के बारे में भी सोचने लगी हैं. इसीलिए वे चाहती हैं कि पुरुष जहां भी पैसे निवेश कर रहे हों, उस के बारे में उन्हें भी पता होना चाहिए ताकि भविष्य में किसी भी तरह की जरूरत पड़ने या पति के न रहने पर वे उन चीजों को संभाल सकें, अपने बच्चों का भविष्य खराब होने से बचा सकें.’’

6. होम मैंटेनैंस

जब बात होम मैंटेनैंस की आती है, तो महिलाएं इस में पैसे खर्च करने से पीछे नहीं हटती हैं, लेकिन पुरुषों को उन की यह आदत उन का शौक लगता है. लेकिन यह उन के शौक से ज्यादा जरूरत होती है, क्योंकि हर महिला चाहती है कि भले हाईफाई नहीं, फिर भी उन के परिवार का कुछ तो लाइफस्टाइल मैंटेन हो. इस सब का बच्चों के जीवन पर भी प्रभाव पड़ता है.

7. घर खर्च पुरुष ही उठाएं

महिलाएं अपना पैसा भविष्य के लिए जमा कर के रखती हैं ताकि भविष्य में आने वाली जरूरतों को आसानी से पूरा कर सकें. लेकिन कई बार महिलाओं के इस व्यवहार को पुरुष उन का लालच समझने लगते हैं. कई पुरुषों का तो यह भी कहना होता है कि जब पैसा दोनों ही कमा रहे हैं, तो फिर घर खर्च कोई एक ही क्यों उठाए? पुरुषों की इस तरह की सोच दांपत्य जीवन के लिए गलत भी साबित हो सकती है.

8. पर्सनल हैल्थ पौलिसी भी है जरूरी

25 वर्षीय एकता त्रिवेदी जोकि स्नैपडिल कंपनी, दिल्ली में एचआर के पद पर कार्य कर रही हैं, का कहना है, ‘‘जब से ईएसआई या नौकरी के दौरान मिलने वाली मैडिकल पौलिसियां आई हैं, तब से पुरुषों का पर्सनल हैल्थ पौलिसी की तरफ रुझान बहुत कम हो गया है. भले ही इन पौलिसियों में पूरे परिवार के लिए सुविधा हो, लेकिन वे इस बात को भूल जाते हैं कि ये पौलिसियां केवल तब तक हैं, जब तक कि आप की नौकरी है. इसलिए पुरुषों को अपने परिवार के भविष्य को ध्यान में रखते हुए पर्सनल हैल्थ पौलिसी में भी पैसा निवेश करना चाहिए ताकि बुढ़ापा सुखदायी हो.’’

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9. जरूरी नहीं हैं महंगी चीजें

आंचल गुप्ता, जो ल्यूपिन में मार्केटिंग ऐग्जीक्यूटिव के पद पर काम कर रही हैं, उन का कहना है, ‘‘मेरे पति को घूमने का बहुत ही ज्यादा शौक है. इसीलिए वे पूरे परिवार के साथ हर साल लंबे ट्रिप पर जाते हैं, जिस में अच्छाखासा पैसा खर्च हो जाता है. कम पैसों में हम अपने शहर या उस के आसपास की जगहों पर भी जा कर घूमने का मजा ले सकते हैं. इस से मौजमस्ती के साथसाथ पैसे भी बच जाएंगे. लेकिन मेरे पति को मेरी यह बात कंजूसी लगती है. जबकि पुरुषों को इस बात को समझना चाहिए, क्योंकि महिलाएं बचत खुद के लिए नहीं, बल्कि अपने परिवार के लिए करती हैं.’’

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एक विज्ञापन में सास के द्वारा अपना चश्मा न मिलने की बात पूछने पर बहू कहती है, ‘‘जगह पर तो रखती नहीं हैं और फिर दिन भर बकबक करती रहती हैं.’’

अगले ही पल मां जब अपने बेटे से पूछती है कि लंचबौक्स बैग में रख लिया तो बेटा जवाब देता है, ‘‘क्यों बकबक कर रही हो रख लिया न.’’

मां का पारा एकदम हाई हो जाता है और फिर बेटे को एक चांटा मारते हुए कहती है, ‘‘आजकल स्कूल से बहुत उलटासीधा बोलना सीख रहा है.’’

बच्चा अपना बैग उठा कर बाहर जातेजाते कहता है, ‘‘यह मैं ने स्कूल से नहीं, बल्कि आप से अभीअभी सीखा है.’’  मां अपने बेटे का चेहरा देखती रह जाती है. इस उदाहरण से स्पष्ट है कि बच्चे जो देखते हैं वही सीखते हैं, क्योंकि बच्चे भोले और नादान होते हैं और उन में अनुसरण की प्रवृत्ति पाई जाती है. आप के द्वारा पति के घर वालों के प्रति किया गया व्यवहार बच्चे अब नोटिस कर रहे हैं और कल वे यही व्यवहार अपनी ससुराल वालों के प्रति भी करेंगे. अपने परिवार वालों के प्रति आप के द्वारा किए जाने वाले व्यवहार को हो सकता है आज आप के पति इग्नोर कर रहे हों पर यह आवश्यक नहीं कि आप के बच्चे का जीवनसाथी भी ऐसा कर पाएगा. ऐसी स्थिति में कई बार वैवाहिक संबंध टूटने के कगार पर आ जाता है. इसलिए आवश्यक है कि आप अपने बच्चों के सामने आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करें ताकि उन के द्वारा किया गया व्यवहार घर में कभी कलह का कारण न बने.

न करें भेदभाव:

इस बार गरमी की छुट्टियों में रीना की ननद और बहन दोनों का ही उस के पास आने का प्रोग्राम था. रीना जब अपने दोनों बच्चों के साथ मौल घूमने गई तो सोचा सब को देने के लिए कपड़े भी खरीद लिए जाएं. बूआ के परिवार के लिए सस्ते और मौसी के परिवार के लिए महंगे कपड़े देख कर उस की 14 वर्षीय बेटी पूछ ही बैठी, ‘‘मां, बूआ के लिए ऐसे कपड़े क्यों लिए?’’

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‘‘अरे वे लोग तो गांव में रहते हैं. उन के लिए महंगे और ब्रैंडेड लेने से क्या लाभ? मौसी दिल्ली में रहती हैं और वे लोग हमेशा ब्रैंडेड कपड़े ही पहनते हैं, तो फिर उन के लिए उसी हिसाब के लेने पड़ेंगे न.’’

रीना की बेटी को मां का यह व्यवहार पसंद नहीं आया.  न तोड़ें पति का विश्वास: विवाहोपरांत पति अपनी पत्नी से अपने परिवार वालों के प्रति पूरी ईमानदारी बरतने की उम्मीद करता है. ऐसे में आप का भी दायित्व बनता है कि आप अपने पति के विश्वास पर खरी उतरें. केवल पति से प्यार करने के स्थान पर उस के पूरे परिवार से प्यार और अपनेपन का व्यवहार करें.  रीमा अपनी बीमार ननद को जब अपने पास ले कर आई तो बारबार उन की बीमारी के चलते उन्हें हौस्पिटलाइज करवाना पड़ता.

यह देख कर रीमा की मां ने एक दिन उसे समझाया, ‘‘देख बेटा वे शुरू से जिस माहौल में रही हैं उसी में रह पाएंगी. बेहतर है कि तुम इन्हें अपनी ससुराल में जेठानी के पास छोड़ दो और प्रति माह खर्चे के लिए निश्चित रकम भेजती रहो.’’

इस पर रीमा बोली, ‘‘मां, आज विपिन की जगह मेरी बहन होती तो भी क्या आप मुझे यही सलाह देतीं?’’ यह सुन कर उस की मां निरुत्तर हो गईं और फिर कभी इस प्रकार की बात नहीं की.

पतिपत्नी के रिश्ते की तो इमारत ही विश्वास की नींव पर टिकी होती है, इसलिए अपने प्रयासों से इसे निरंतर अधिक मजबूती प्रदान करने की कोशिश करते रहना चाहिए.

आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करें:

सोशल मीडिया पर एक संदेश पढ़ने को मिला, जिस में एक पिता अपने बेटे को एक तसवीर दिखाते हुए कहते हैं, ‘‘यह हमारा फैमिली फोटो है.’’

8 वर्षीय बालक भोलेपन से पूछता है, ‘‘इस में मेरे दादादादी तो हैं ही नहीं, क्या वे हमारे फैमिली मैंबर नहीं हैं?’’

पिता के न कहने पर बच्चा बड़े ही अचरज और मासूमियत से कहता है, ‘‘उफ, तो कुछ सालों बाद आप भी हमारी फैमिली के मैंबर नहीं होंगे.’’

यह सुन कर बच्चे के मातापिता दोनों चौंक उठते हैं. उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है. इस से साफ जाहिर होता है कि बच्चे जो भी आज देख रहे हैं वे कल आप के साथ वही व्यवहार करने वाले हैं. इसलिए मायके और ससुराल में किसी भी प्रकार का भेदभाव का व्यवहार कर के अपने बच्चों को वह रास्ता न दिखाएं जो आप को ही आगे चल कर पसंद न आए.

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पारदर्शिता रखें:

दूसरों की बुराई करना, अपमान करना, ससुराल के प्रति अपनी जिम्मेदारी न निभाना, मायके के प्रति अधिक लगाव रखना जैसी बातें पतिपत्नी के रिश्ते को तो कमजोर बनाती ही हैं, अपरोक्षरूप से बच्चों पर भी नकारात्मक प्रभाव छोड़ती हैं, इसलिए आवश्यक है कि रिश्तों में सदैव पारदर्शिता रखी जाए. मेरी बहन और उस के पति ने विवाह के बाद एकदूसरे से वादा किया कि दोनों के मातापिता की जिम्मेदारी उन दोनों की है और उसे वे मिल कर उठाएंगे, चाहे हालात कैसी भी हों. वे पीछे नहीं हटेंगे.

आज उन के विवाह को 10 वर्ष होने वाले हैं. आज तक उन में मायके और ससुराल को ले कर कभी कोई मतभेद नहीं हुआ. जिम्मेदारी महसूस करें: अकसर देखा जाता है कि पति अपने परिवार की जिम्मेदारी को महसूस करते हुए परिवार की आर्थिक मदद करना चाहता है और पत्नी को यह तनिक भी रास नहीं आता. ऐसे में या तो घर महाभारत का मैदान बन जाता है या फिर पति पत्नी से छिपा कर मदद करता है. यदि ससुराल में कोई परेशानी है, तो आप पति का जिम्मेदारी उठाने में पूरा साथ दे कर सच्चे मानों में हम सफर बनें. इस से पति के साथसाथ आप को भी सुकून का एहसास होगा.

बुराई करने से बचें:

रजनी की सास जब भी उस के पास आती हैं, रजनी हर समय उन्हें कोसती है, ‘‘जब देखो तब आ जाती हैं, कितनी गंदगी कर देती हैं, ढंग से रहना तक नहीं आता.’’  उस की किशोर बेटी यह सब देखती और सुनती है, इसलिए उसे अपनी दादी का आना कतई पसंद नहीं आता.

ससुराल पक्ष के परिवार वालों के आने पर उन के क्रियाकलापों पर अनावश्यक टीकाटिप्पणी या बुराई न करें, क्योंकि आप की बातें सुन कर उन के प्रति बच्चे वही धारणा बना लेंगे. इस के अतिरिक्त मायके में ससुराल की और ससुराल में सदैव मायके की अच्छी बातों की ही चर्चा करें. नकारात्मक बातें करने से बचें ताकि दोनों पक्षों के संबंधों में कभी खटास उत्पन्न न हो.

जिस प्रकार एक पत्नी का दायित्व है कि वह अपनी ससुराल और मायके में किसी प्रकार का भेदभावपूर्ण व्यवहार न करे उसी प्रकार पति का भी दायित्व है कि वह अपनी पत्नी के घर वालों को भी पर्याप्त मानसम्मान दे और यदि पत्नी के मायके में कोई समस्या हो तो उसे भी हल करने में वही योगदान दे, जिस की अपेक्षा आप अपनी पत्नी से करते हैं, क्योंकि कई बार देखने में आता है कि यदि लड़की अपनी मायके के प्रति कोई जिम्मेदारी पूर्ण करना चाहती है, तो वह उस की ससुराल वालों को पसंद नहीं आता. इसलिए पतिपत्नी दोनों की ही जिम्मेदारी है कि वे अपनी ससुराल के प्रति किसी भी प्रकार का भेदभावपूर्ण व्यवहार न रखें. यह सही है कि जहां चार बरतन होते हैं आपस में टकराते ही हैं, परंतु उन्हें संभाल कर रखना भी आप का ही दायित्व है. बच्चों के सुखद भविष्य और अपने खुशहाल गृहस्थ जीवन के लिए आवश्यक है कि बच्चों के सामने कोई ऐसा उदाहरण प्रस्तुत न किया जाए जिस पर अमल कर के वे अपने भविष्य को ही दुखदाई बना लें.

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करते हैं प्यार पर शादी से इनकार क्यों?

4साल की लंबी कोर्टशिप के बाद जब नेहा और शेखर ने अचानक अपनी दोस्ती खत्म कर ली तो सभी को बहुत आश्चर्य हुआ. ‘‘हम सब तो उन की शादी के निमंत्रण की प्रतीक्षा में थे. आखिर ऐसा क्या घटा उन दोनों में जो बात बनतेबनते बिगड़ गई?’’ जब नेहा से पूछा तो वह बिफर पड़ी, ‘‘सब लड़के एक जैसे ही होते हैं. पिछले 2 साल से वह मुझे शादी के लिए टाल रहा है. कहता है, इसी तरह दोस्ती बनाए रखने में क्या हरज है? असल में वह जिम्मेदारियों से दूर भागने वाला, बस, मौजमस्ती करने वाला एक प्लेबौय किस्म का इनसान है. आखिर मुझे भी तो कोई सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा चाहिए.’’

दूसरी ओर शेखर का कुछ और ही नजरिया था, ‘‘मैं ने शुरू से ही नेहा से कह दिया था कि हम दोनों बस, इसी तरह एकदूसरे को प्यार करते हुए दोस्ती बनाए रखेंगे. मुझे शादी और परिवार जैसी संस्थाओं में विश्वास नहीं है. उस वक्त तो नेहा ने खुशी से सहमति दे दी थी, लेकिन मन ही मन वह शादी और बच्चों की प्लानिंग करती रही और जबतब मुझ पर शादी के लिए दबाव डालना शुरू किया तो मैं ने उस से संबंध तोड़ लिया.’’

पुरुषों के बारे में धारणा

आमतौर पर पुरुषों के बारे में स्त्रियों का यही नजरिया रहा है कि वे किसी एक के प्रति निष्ठावान हो कर समर्पित नहीं होते हैं. वे एक गैरजिम्मेदार, मौजमस्ती में यकीन करने वाले मदमस्त भौंरे होते हैं, किंतु अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि इस आरोप की जड़ें बहुत गहरी हैं. इस की मुख्य वजह है पुरुष और स्त्री की बुनियादी कल्पनाओं का परस्पर भिन्न होना. पुरुष की प्रथम कल्पना होती है अधिक से अधिक सुंदर स्त्रियों के साथ दोस्ती करना. दूसरी ओर अधिकांश स्त्रियों की कल्पना होती है किसी एक ऐसे पुरुष के साथ निष्ठापूर्वक संबंध बनाना, जो उन्हें आर्थिक और सामाजिक संरक्षण दे सके. विवाह के बाद जहां एक स्त्री की प्रथम कल्पना को और पोषण मिलता है वहीं पुरुष को अपनी कल्पना को साकार करने का अवसर जाता दिखता है. अत: एक पुरुष के लिए जहां समर्पण का अर्थ अपनी प्यारी कल्पना का त्याग करना है वहीं स्त्री के लिए समर्पण का अर्थ है अपनी बुनियादी कल्पना को साकार करना. शायद इसीलिए समर्पित होना या किसी बंधन में बंधना पुरुषों के लिए उतना आसान नहीं होता जितना स्त्रियों के लिए.

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कुछ तो मजबूरियां

एक औरत, जो स्वावलंबी हो उसे हम कैरियर विमन कहते हैं, लेकिन यदि पुरुष स्वावलंबी हो तो उसे हम प्लेबौय, जिम्मेदारियों से कतराने वाला कहते हैं. यह जो धारणा बनी है, उस के पीछे पुरुषों के विकास और उन के मनोविज्ञान को समझना बहुत जरूरी है. हमारे यहां लाखों रुपए ऐसे विज्ञापनों पर खर्च किए जाते हैं, जो एक किशोर बालक के अर्धविकसित मस्तिष्क में एक जवान खूबसूरत और विकसित औरत की चाहत भर देते हैं. नतीजतन 14-15 साल की उम्र तक पहुंचतेपहुंचते वह सुंदरियों की कल्पनाओं का आदी हो जाता है और फिर उसे एक नशीली लत लग जाती है. ऐसे में वह अपनी कल्पना की परी से अपनेआप को बहुत हीन महसूस करने लगता है. फिर जद्दोजहद शुरू होती है अपनेआप को बेहतर बनाने की. स्कूल में वह देखता है कि जो विजेता है, हीरो है, लड़कियां उसी के आसपास होती हैं. अत: उन का सामीप्य पाने के लिए वह हर क्षेत्र में हीरो बनने के लिए हाथपैर मारता है. इस कोशिश में वह बहुत मानसिक दबाव में रहता है. एक उम्र तक पहुंचतेपहुंचते वह समझने लगता है कि उसे लड़कियों का दिल जीतने के लिए या तो आर्थिक रूप से सबल बनना है या किसी और क्षेत्र में ‘हीरो’ बनना है. धीरेधीरे वह यह भी समझने लगता है कि ‘प्यार’ शब्द काफी महंगा है. प्यार जहां एक ओर अस्वीकार होने के भय को कम करता है वहीं दूसरी ओर यह पुरुष की जेबों पर आजीवन भार बनने वाला भी होता है. अत: समर्पित होने से पहले उसे बहुत कुछ सोचना पड़ता है.

अस्वीकृत होने का भय

सेक्स के मामले में यदि पुरुष पहल करते भी हैं तो स्त्री द्वारा अस्वीकार कर दिए जाने का भय भी उन्हें लगातार बना रहता है, क्योंकि अमूमन जब कोई पुरुष किसी महिला के प्रति आकर्षित होता है तो उसे (स्त्री को) समझने में देर नहीं लगती कि यह लड़का उस में रुचि रखता है, किंतु पुरुष के लिए अकसर यह समझना कठिन होता है कि उसे स्वीकार किया जाएगा या नहीं. वह इसी दुविधा में रहता है कि हो सकता है उस की महिला मित्र ने उसे इसलिए इनकार न किया हो, क्योंकि वह ‘न’ नहीं कह पाई हो या उसे सिर्फ उस से सहानुभूति हो.

स्त्री चरित्र

हमारे यहां ज्यादातर स्त्रियां दोस्ती तो कर लेती हैं, लेकिन प्रेम के इजहार में वे बहुत कंजूसी बरतती हैं. अकसर पुरुष के प्रत्येक प्रस्ताव पर उन के मुंह से ‘न’ ही निकलता है, चाहे मन में जितनी ही ‘हां’ हो. और जब कोई स्त्री ‘न’ कहती है तो उस के लिए यह अंदाजा लगाना मुश्किल होता है कि उस की प्रेमिका की किस ‘न’ का मतलब ‘हां’ है और फिर उस की ‘न’ को ‘संभावनाओं’ में और ‘संभावनाओं’ को ‘संभवों’ में बदलने की नैतिक जिम्मेदारी बेचारे पुरुष की होती है. वैसे यदि महिलाओं की मूक भाषा का अनुवाद किया जा सके तो पुरुषों के लिए अस्वीकार किए जाने का खतरा शायद कम हो जाए. एक तरफ तो पुरुष लगातार अपनी महिला मित्र की ‘अस्वीकृतियों’ को ‘स्वीकृतियों’ में बदलने की उलझन में रहता है तो दूसरी तरफ उसे यह भी डर लगा रहता है कि यदि वह उस पर ज्यादा दबाव डालता है तो उसे ‘चरित्रहीन’, ‘सेक्सी’ और न जाने क्याक्या समझा जाएगा. साथ ही वह इस उलझन में भी रहता है कि यदि वह उस पर ज्यादा दबाव डालता है तो कहीं वह उस से विरक्त न हो जाए.

महिलाओं की गुप्त योजनाएं

अधिकांश महिलाएं सोचती हैं कि शादी के बाद पुरुष बदल जाएगा, जबकि वह कम ही बदलता है. इसलिए वे मन ही मन अपने हिसाब से भविष्य के कार्यक्रम बनाती रहती हैं. नेहा और शेखर के केस में यही बात थी. शेखर के शादी न करने के निर्णय के बावजूद नेहा ने मन ही मन शादी की सारी तैयारी यह सोच कर डाली कि वह बाद में मान जाएगा. जब नेहा ने उस पर दबाव डाला तो शेखर को लगा कि नेहा ने पूरी तरह से न सिर्फ उस की भावनाओं की अपेक्षा की है बल्कि अपने वादे को भी तोड़ा है. ऐसे में भविष्य के प्रति नेहा के व्यवहार को ले कर आशंकित होना शेखर के लिए स्वाभाविक ही था. आज यद्यपि स्त्रियों की आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियां बदल चुकी हैं, अधिकांश महिलाएं आत्मनिर्भर होती जा रही हैं, फिर भी ज्यादातर मामलों में पुरुषों से उन की अपेक्षाएं नहीं बदली हैं. एक स्त्री जितनी अधिक आर्थिक परेशानियों में रहती है वह पुरुष से उतने ही अधिक आर्थिक संरक्षण की अपेक्षा रखती है. ऐसे में एक पुरुष जब अपनी प्रेमिका को यह हिसाब लगाते देखता है कि वह शादी के बाद काम करे या न करे, तब वह सोचता है कि यह लड़की शायद एक खास वजह से शादी करना चाहती है. शायद वह काम करतेकरते थक गई है और नौकरी से छुटकारा पाने के लिए विवाह के रूप में आर्थिक सुरक्षा की चादर ओढ़ना चाहती हो या उस की नौकरी छूटने वाली हो या वह अपने कैरियर से तंग आ कर मां बनना चाहती हो वगैरहवगैरह. ऐसी हालत में पुरुषों के जस्ट इन केस सिंड्रोम से पीडि़त हो कर अपनी महिला मित्र से संबंध खत्म कर लेना कोई अस्वाभाविक बात नहीं है.

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समर्पित पुरुषों की कमी

जहां स्त्रियां पुरुषों पर प्रेम में समर्पित न होने का आरोप लगाती हैं वहीं पुरुषों को भी महिलाओं से बहुत गंभीर शिकायतें होती हैं. उन का मानना है कि अधिकांश महिलाएं अपनी दूरबीन हमेशा कामयाब पुरुषों पर ही रखती हैं. स्कूलकालेज के समय से ही लड़के पाते हैं कि जो लड़के पढ़ाई में अच्छे होते हैं, खेल में भी आगे होते हैं, देखने में भी स्मार्ट होते हैं, साथ ही उन के पास अच्छी बाइक या कार होती है, लड़कियां उन्हीं के इर्दगिर्द चक्कर लगाती हैं. वे चाहती हैं कि पुरुष हर क्षेत्र में कामयाब भी हो और उन के प्रति पूरी तरह समर्पित भी हो. ऐसे में यकीन निष्ठावान पुरुषों की कमी तो होगी ही, क्योंकि अगर पुरुष भी इसी तरह की शर्त रख कर स्त्रियों का चयन करें तो उन्हें भी वफादार स्त्रियों की कमी खलेगी. मसलन, कोई पुरुष यदि ऐसी स्त्री की तलाश में हो जिस की कमाई वह खुद इस्तेमाल कर सके, वह खूबसूरत और आकर्षक भी हो, वह स्वयं प्रस्ताव भी ले कर आए और सेक्स में भी पहल करे तो क्या पुरुषों को ऐसी निष्ठावान स्त्रियों की समस्या नहीं रहेगी? चूंकि पुरुष के लिए समर्पण का अर्थ होता है अपनी बुनियादी कल्पनाओं का त्याग. अत: यदि वह अपनी प्रेमिका में ही अपने सारे सपने साकार कर सके तो वह काफी कुछ परेशानियों से बच सकता है.

कहीं आ न जाए रिश्तों में खटास

रिश्तें टूटने के कई कारण होते हैं. लेकिन हमारी हर रोज की कुछ आदतें भी हैं जो हमारे रिश्तों को रोजाना थोड़ा-थोड़ा कमजोर करती हैं. इन छोटी मोटी बातों पर हम ध्यान नहीं देते लेकिन ये बातें हमारे रिश्तों के लिये झूठ और धोखे से भी खतरनाक साबित होती है.

अपने आपसी संबंघ को खुश और स्वस्थ बनाए रखने के लिये हर कपल को जानना चाहिए कि वो कौन सी आदतें हैं जो उनके रिश्ते के लिये हानिकारक हो सकती है.

आप एक-दूसरे को जानते हैं – वो कपल जो कई सालों से रिलेशन में हैं, ऐसा मान लेते हैं कि वो अपने साथी को बहुत अच्छे से जानते हैं. डेटिंग के दौरान भी लोग अपने पार्टनर से उनके बारे में सवाल नहीं करते और ना ही उनके बारे में जानने की कोशिश करते हैं. इसे रिलेशन में जिज्ञासा की कमी कहा जाता है और यह कमी आपके रिश्ते के लिये हानिकारक हो सकती है.

समाधान – किसी भी रिश्ते में खुश रहने के लिये पार्टनर्स को हर रोज एक-दूसरे से बात करने की जरुरत है, चाहे फिर 10 मिनट के लिए ही करें. बात करते वक्त ध्यान रखें कि आप हर दिन किसी अलग विषय पर बात करें.

छोटी-छोटी नाराजगी को दबा लेना – बहुत से कपल अक्सर अपनी छोटी-छोटी नाराजगी और झुंझलाहट को दबा लेते हैं. समय के साथ ये हर रोज की छोटी परेशानियां इकट्ठी होकर आपके रिश्ते को नुकसान पहुंचा सकती है. कोई झगड़ा होने के बाद अगर आप नाराज होते है और अपनी नाराजगी को जाहिर नहीं करते तो यह आपके अंदर घर कर लेती है जिससे बाद में बड़ी परेशानी हो सकती है.

समाधान – सही समय और स्थिति का चुनाव करके अपनी सारी दिक्कतों और नाराजगी को साथी के साथ साझा करें.

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‘मी टाइम’ को अहमियत ना देना – मी टाइम का तात्पर्य खुद के लिए निजी समय से है. जब आप किसी रिश्ते में है तो आपको अपने लिये निजी वक्त की अहमियत भी समझनी होगी. यह वो समय है जब आप नए विचारों को बुनते हैं, अपने शौक को पूरा करते हैं, या बातें करने के लिये नए विषय खोजते हैं. अधिक स्पेस देना या अधिक समय के लिये अलग हो जाना भी ठीक नहीं है लेकिन वो लोग जो रिलेशनशिप में होते हुए भी निजी वक्त, अपने शौक, आदतें, रुचि और अपने दोस्तों को अहमियत देते हैं, वो बाकी लोगों की तुलना में अधिक खुश रहते हैं.

समाधान – अपने साथी से भी निजी समय के फायदों के बारे में बात करें और इस बात पर जोर दे कि आपका साथी अपने लिए समय जरूर निकाले और अपनी इच्छाओं को जरूर पूरा करे. अपने साथी से कोई राज़ ना रखें और उन बातों को साझा करें जो आपने अकेले समय बिताते वक्त की.

प्यार इजहार करने के लिये किसी विशेष अवसर का इंतजार करना – बहुत कपल ये गलतियां करते है कि वो अपना प्यार जाहिर करने के लिये किसी विशेष अवसर का इंतजार करते हैं जैसे जन्मदिन, सालगिरह, या कोई और विशेष दिन. कई शोधों में पता चला है कि जब किसी रिश्ते में लोग अपनी भावनाओं और साथी के लिये लगाव को जाहिर नहीं करते तो उनके रिश्ते के टूटने की संभावनाएं अधिक होती हैं.

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समाधान – समय-समय पर अपने साथी को कुछ ऐसा कहे जिससे उसे लगें कि वो आपके लिये महत्व रखता है. कभी कभी एक तारीफ भी अपने साथी की सराहना करने के लिये काफी होती है.

जब पति को खटकने लगे पत्नी

प्राचीनकाल से ही भारत पुरुषप्रधान देश है. लेकिन अब समय करवट ले चुका है. महिला हो या पुरुष दोनों को ही समानता से देखा जाता है. ऐसे में यदि बात पति और पत्नी के बीच की हो तो दोनों ही आधुनिक काल में सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते दिखते हैं. पर कई बार ऐसा होता है कि पति अपनी पत्नी से यदि किसी चीज में कम है तो वह हीनभावना का शिकार होने लगता है और उसे पत्नी कांटे के समान लगने लगती है.

ऐसे में जरूरी है पतिपत्नी में आपसी तालमेल, क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि पतिपत्नी में खटास नहीं होती है, लेकिन दूसरे लोग ताने कसकस कर आग में घी का काम करते हैं. ऐसे में जरूरी है कि इस कठिन स्थिति से निकलने की कोशिश पतिपत्नी दोनों करें.

गलत मानसिकता में रचाबसा समाज समाज में यह मानसिकता हमेशा बनी रहती है कि पत्नी के बजाय पति का ओहदा हमेशा उच्च होता है. पत्नी के उच्च शिक्षित, सुंदर, मशहूर और सफल होने से पति को ईगो प्रौब्लम होने लगती है. समाज की दृष्टि से पति को पत्नी की तुलना में प्रतिभाशाली, गुणी, उच्च पदस्थ आदि होना चाहिए. लेकिन पतिपत्नी को समझना चाहिए कि यह आप की अपनी जिंदगी है. इस में छोटाबड़ा कोई माने नहीं रखता है.

यदि पत्नी ऊंचे ओहदे पर है

अकसर देखने में आता है कि पत्नी का ऊंचे ओहदे पर होना समाज में लोगों को गवारा नहीं होता. ऐसा ही कुछ शालिनी के साथ हुआ. उस की लव मैरिज थी. वह उच्च शिक्षा प्राप्त और एक बड़ी कंपनी में उच्च पद पर कार्य करती थी जबकि पति अरुण उस से कम पढ़ालिखा और अपनी पत्नी के मुकाबले निम्न पद पर था. अकसर उस से लोग कहते रहते थे कि तुझे इतनी शिक्षित और कमाऊ बीवी कहां से मिल गई. साथ ही, शालिनी भी उसे ताने देती रहती थी. इन सभी बातों से अरुण इतना अधिक डिप्रेशन में रहने लगा कि उस के मन में अपनी पत्नी के खिलाफ जहर घुलने लगा और फिर तलाक की नौबत आ गई.

पत्नी दे ध्यान: पत्नी के सामने यदि ऐसी स्थिति आए तो वह इस से घबराए नहीं, बल्कि डट कर सामना करे. कई बार हम सामने वालों की गलतियां गिना देते हैं, लेकिन कहीं न कहीं हम में भी खोट होता है. अकसर एक बड़े ओहदे पर होने के कारण पत्नी अपने पति को खरीखोटी सुनाती रहती है जैसे वह अपनी पढ़ाई व कमाई के नशे में चूर अपने पति की कमियों का उपहास उड़ाती रहती है कि घर का सारा खर्च तो उस की कमाई पर ही चलता है.

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कई कमाऊ पत्नियां सब के सामने यह कहती पाई जाती हैं कि अरे यह कलर टीवी तो मैं लाई हूं, वरना इन के वेतन से तो ब्लैक ऐंड व्हाइट ही आता. इन सब बातों से रिश्तों में खटास बढ़ती है. ऐसी स्थिति में पत्नियों को चाहिए कि वे अपने पति को प्रोत्साहित करें कि वे भी जीवन में तरक्की करें न कि हीनभावना से ग्रस्त हो कर कौंप्लैक्स पर्सनैलिटी बन जाएं.

पति ध्यान दें: पति को चाहिए कि वह अपनी पत्नी से हीनभावना रखने के बजाय उसे आगे बढ़ने का प्रोत्साहन दे. यदि कोई बाहरी व्यक्ति कमज्यादा तनख्वाह का मुद्दा उठाए तो कहे कि हमारे घर में सब कुछ साझा है और हम दोनों पतिपत्नी मिलजुल कर घर की जिम्मेदारियां निभाते हैं.

पत्नी का खूबसूरत होना

वैसे तो हर आदमी की चाह होती है कि उस की पत्नी खूबसूरत हो, लेकिन यदि पत्नी बेहद खूबसूरत हो और पति कम स्मार्ट और सिंपल हो तो लोग यह बोलते नहीं रुकते कि अरे देखो तो लंगूर के मुंह में अंगूर या बंदर के गले में मोतियों की माला. ऐसे में पति को पत्नी बेहद खटकने लगती है. वह न चाह कर भी उसे ताने देता रहता है.

वैसे तो पत्नी की तारीफें पति को गर्व से भर देती हैं, लेकिन जब पत्नी की आकर्षक पर्सनैलिटी पति के साधारण व्यक्तित्व को और दबा देती है, तब संतुलित विचारों वाला पति और भी बौखला जाता है. नतीजतन, पति अपनी सुंदर पत्नी के साथ पार्टीसमारोह में जाने से बचने लगता है. अगर साथ ले जाना जरूरी हो तो पार्टी में पहुंच कर पत्नी से अलगथलग खड़ा रहता है. सजनेधजने तक पर भी ताने देता है.

पत्नी ध्यान दे: ऐसे में पत्नी को समझदारी से काम लेना चाहिए. यदि पत्नी को लगता है कि उस का पति उस की खूबसूरती को ले कर हीनभावना महसूस कर रहा है तो वह पति को समझाए कि पति से बढ़ कर उस के लिए दुनिया में कोई माने नहीं रखता है. साथ ही अपने पति के सामने किसी आकर्षक दिखने वाले आदमी की बात भी न करे. किसी महफिल या समारोह में पति के हाथों में हाथ डाल कर यह दिखाने की कोशिश करे कि वह पति को दिल से प्रेम करती है.

पति ध्यान दे: जिंदगी में उतारचढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन पत्नी पति का हर परिस्थितियों में साथ निभाती है. ऐसे में जरूरी है कि पति लोगों की बातों को नजरअंदाज करे, क्योंकि कुछ लोगों का काम ही होता है कि दूसरे के खुशहाल परिवार में आग लगाना. यदि पतिपत्नी दोनों एकदूसरे का साथ सही से निभाएं तो दूसरा कोई उंगली नहीं उठा सकता.

मायके के पैसे का घमंड

कई बार ऐसा होता है कि पत्नी के मायके में ससुराल के मुकाबले ज्यादा पैसा होता है. पत्नी की सहज मगर रईस जीवनशैली उस के मायके वालों का लैवल, गाडि़यां, कोठियां आदि पति को हीनता का एहसास दिलाने लगते हैं. साथ ही पत्नी भी पति के समक्ष मायके में ज्यादा पैसे होने का राग अलापती रहती है. बातबात पर अपने मायके के सुख बखान कर पति को ताने देती रहती है, जिस से पति हीनभावना से ग्रस्त हो जाता है और उसे पत्नी खटकने लगती है.

पत्नी ध्यान दे: पतिपत्नी के रिश्ते में एकदूसरे का सम्मान सब से ज्यादा अहम होता है. पत्नी को चाहिए कि वह अपने मातापिता के पैसे पर इतना अभिमान न करे कि उस से दूसरे को ठेस पहुंचे. हमेशा मायके के ऐश्वर्य को अपने पति के सामने न जताए. इस से पति के अहम को ठेस पहुंचती है, साथ ही वह पत्नी को मायके जैसा सुख न देने के कारण हीनभावना से ग्रस्त हो जाता है.

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पति ध्यान दें: कई बार पत्नी के कुछ खरीदने पर या किसी डिमांड पर पति क्रोधित हो कर उस के मायके के ऐश्वर्य को ले कर उलटासीधा बोलने लगता है. ऐसे में जरूरी यह होता है कि आप प्रेमपूर्वक आपस में बैठ कर बात करें न कि लड़ाई ही इस विषय का समाधान है. जैसे पत्नी का बारबार अपने मायके के सुख के ताने देना पति को खराब लगता है ऐसे ही पति का पत्नी के मायके के लिए बोलना भी उसे खराब लगता है.

बड़े धोखे हैं इस राह में

जल्दबाजी करने से बचें 

एक उम्र आने पर हमारे मन में विपरीत सैक्स के प्रति फीलिंग्स बढ़ जाती हैं. तब भले ही हमें अपनों से कितना भी प्यार क्यों न मिले, लेकिन हमें तो हमसफर के साथ की ही जरूरत होती है. ऐसे में हमसफर की तलाश में जल्दबाजी में औनलाइन पार्टनर सर्च करने के चक्कर में कहीं आप के साथ धोखा न हो जाए, क्योंकि इस के जरीए बहुत धोखे जो होते हैं. कई बार पैसा ऐंठने के चक्कर में बहुत बड़ा सच छिपाया जाता है, कई बार दोबारा शादी कर दी जाती है. कई बार पूरा रिश्ता ही झूठ पर टिका होता है. ऐसे में भले ही आप को थोड़ा इंतजार करना पड़े, जांचपड़ताल करनी पड़े, लेकिन जल्दबाजी न करें.

अब औनलाइन का जमाना है. आप के एक और्डर करते ही सामान आप के दरवाजे पर पहुंच जाता है. मगर आप ने अपने लिए किसी भी औनलाइन साइट पर ड्रैस और्डर की, जो इमेज में तो बढि़या दिख रही है, कलर भी मस्त है, साइज भी परफैक्ट है, लेकिन जैसे ही ड्रैस घर आई और आप ने उसे ट्राई कर के देखा तो आप का सारा मूड औफ हो गया या फिर आप ने उसे देख कर मूड बदल लिया, क्योंकि जैसी वह खरीदते वक्त दिख रही थी, वास्तव में वैसी नहीं है.

तो ऐसे में भी आप को परेशान होने की जरूरत नहीं होती, क्योंकि आप के पास उसे बदलने या फिर उसे वापस करने का विकल्प जो है. इस की पूरी प्रक्रिया बहुत आसान होती है और आप का पैसा भी कुछ ही दिनों में वापस आ जाता है. लेकिन यह बात औनलाइन दूल्हादुलहन और्डर के मामले में सही नहीं होती है, क्योंकि कोरोना के संकट के समय में जब पार्टनर का चयन औनलाइन ही संभव है, वहां पर पार्टनर की अदलाबदली वाला औप्शन नहीं चलेगा. एक बार सामान और्डर कर दिया यानी आप का हमसफर घर आ गया फिर तोउस से समझौता करना ही पड़ेगा, नहीं तो भारी पड़ेगा.

ट्रैडिशनल तरीका वीएस नया रूप

पहले जहां पार्टनर के चयन करने में दोनों परिवारों के लोग आपस में कई बार मिलते थे, पासपड़ोस से पूछताछ होती थी. जीवनसाथी बनने जा रहे पार्टनर भी खुल कर आमनेसामने काफी बातें करते थे, खूब मिलनाजुलना होता था ताकि अच्छी तरह जान पाएं और जीवन के इस अटूट रिश्ते में बंधने के बाद ज्यादा दिक्कतें न हों. दोनों परिवार भी एकदूसरे को जानने की कोशिश करते थे ताकि आगे किसी तरह के मनमुटाव की गुंजाइश न रहे.

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मगर अब जब पूरी दुनिया में कोविड-19 फैला हुआ है और इस कारण काफी समय तक शादियां टाली भी जा चुकी हैं, लेकिन अब जब संकट लंबा चलने वाला है तो अब और मैरिज डिले करना समझदारी नहीं है. ऐसे में न चाहते हुए भी अब औनलाइन ही पार्टनर सर्च करना पड़ रहा है. सिर्फ सर्च ही नहीं, बल्कि मिलनाजुलना भी वर्चुअल ही हो गया है. एक बार लड़के को लड़की और लड़की को लड़का सही लगने पर फोन पर, वीडियो कौलिंग पर ही बातचीत का सिलसिला चल निकलता है. यहां तक कि परिवार भी एकदूसरे से फोन या वीडियो कौलिंग के जरीए ही शादी की सारी बातचीत करते हैं, क्योंकि इस समय बारबार घर बुलाना या बाहर मिलना सेफ जो नहीं है. ऐसे में औनलाइन ही सारी शादी की तैयारी की जाती है, जबकि पुराने तरीके में हर चीज के लिए आमनेसामने बैठ कर बात करना ही उचित समझा जाता था. ऐसे में नया तरीका हमारे बीच नए रूप में सामने आ रहा है. जिस में कदमकदम पर सावधानी बरतने की भी जरूरत है.

औनलाइन सर्च में रिस्क आप ही

कहते हैं न कि जोडि़यां पहले से ही बनी होती हैं, इसलिए कौन किस के लिए बना है, इस बारे में समय आने पर ही पता चलता है. जरूरी नहीं कि आप जिस शहर में रह रहे हों आप का पार्टनर भी उसी शहर में हो. ऐसे में जब पार्टनर सर्चिंग का औनलाइन चलन चल गया है तो सर्च के दौरान आप को नहीं पता कि आप का पार्टनर आप को किस जगह, किस देश में मिले. अगर इस दौरान दिल मिल गए, लेकिन दोनों के बीच जगह की दूरियां हैं तो शादी तक चैटिंग से ले कर डेटिंग तक सब औनलाइन के माध्यम से ही होगा. ऐसे में रिस्क तो ज्यादा है, क्योंकि आप उसे औनलाइन माध्यम से ही जो देख रहे हैं. हो सकता है कि आप को जो वीडियो कौलिंग के दौरान अच्छा लगे, वह सामने नहीं, क्योंकि आज ढेरों ऐसे ऐप्स आ गए हैं, जिन के जरीए आप अपने लुक को चेंज कर सकते हैं. हो सकता है कि कौलिंग के दौरान भी इसी के जरीए अपने लुक में बदलाव लाया गया हो. ऐसे में बाद में समझौता भी करना पड़ सकता है. इसलिए सोचसमझ कर ही आगे बढ़ें. आमनेसामने इन चीजों को करीब से देखने का मौका मिलता है.

फोटो में रूप बदलते हैं

अकसर फोटो से असली चेहरे को छिपाने की कोशिश की जाती है. तभी तो फोटो में पसंद आने वाले चेहरे सामने आने पर कई बार पसंद नहीं आते, क्योंकि फोटो में वास्तविक रूप को छिपाने की कोशिश जो की जाती है, जबकि असलियत में रूप अलग होता है. तभी तो शादी के मामले में आमनेसामने आने पर कई बार हां न में बदल जाती है. लेकिन औनलाइन में नजदीक से देखने का औप्शन जो नहीं है, इसलिए गड़बड़ के चांसेज ज्यादा रहते हैं.

वर्चुअल रिश्तेदारों में वह बात कहां

एक बार शादी तय हो जाने के बाद परिवार के हर सदस्य को ऐक्साइटमैंट रहती है कि हम होने वाले ब्राइड या ग्रूम को देखें. इस के लिए फोन या वीडियो कौल या कौन्फ्रैंस के जरीए ही बातचीत की जा सकती है. ऐसे में दूर से बात कर के एकदूसरे के करीब आने वाली फीलिंग थोड़ी कम होती है. उस में भले ही सामने से थोड़ा सा बातों का तड़का भी लगा दिया जाए, फिर भी वह बात नहीं आ पाती जो आनी चाहिए. ऐसे में आमनेसामने कंफर्टेबल जोन नहीं मिलने के कारण सब बस यही मौका ढूंढ़ते हैं कि जल्दी से कौल खत्म हो और हमारा पीछा छूटे. ऐसे में फोन पर करीब से दिल के तार नहीं जुड़ पाते, जबकि आमनेसामने परिवार के लोग जब बातें करते हैं तब एकदूसरे को करीब से देखने के कारण ज्यादा करीबी महसूस होती है, जो एकदूसरे को करीब लाने का काम करती है, क्योंकि फेस ऐक्सप्रैशन से व आमनेसामने होने से चीजें ज्यादा अच्छी तरह समझ आ पाती हैं.

रिटर्न का कोई चांस नहीं

यह मान लें कि यह कोई सामान नहीं है कि पसंद नहीं आने पर बदल जाएगा. एक बार घर में आ गया फिर तो आप को उसे एडजस्ट ही नहीं, बल्कि परिवार का सदस्य भी मानना ही होगा. उस की हर बुराई को अपनाना होगा, उस का लुक चाहे आप को अच्छा न भी लगे फिर भी उसे अपनाना होगा. उस की ईटिंग हैबिट्स आप के मुताबिक न भी हों तो भी उसे हंस कर स्वीकारना ही होगा, क्योंकि भले ही आप ने उस से औनलाइन ही सही, लेकिन साथ जीनेमरने के वादे किए होते हैं और यह बात लड़कालड़की दोनों पर ही लागू होती है, साथ ही उस के परिवार को भी स्वीकार करना होगा वरना आए दिन घर में कलह का माहौल बनने में देर नहीं लगेगी.

मजेदार डेटिंग नहीं औनलाइन मिलाप

एक बार शादी तय होने के बाद कपल्स के दिल उफान पर होते हैं. बस हर दम यही मौका तलाशते हैं कि कब एकदूसरे के करीब आएं, इस के लिए रोज डेटिंग प्लान होती है ताकि खुल कर मस्ती के पल बिता सकें. एकदूसरे की आंखों में आंखें डाल कर खो सकें. अपनी बातों को शेयर कर सकें ताकि सामने से आई प्रतिक्रिया से जानने में आसानी हो कि हमारा पार्टनर किस हद तक हमें सपोर्ट कर सकता है. एकदूसरे के स्वभाव को जान पाएं, क्योंकि आमनेसामने होने पर भले ही आप शब्दों पर कंट्रोल कर जाएं, लेकिन आंखें तो सब बयां कर देती हैं. ऐसे में समझने में काफी आसानी होती है, जबकि औनलाइन डेटिंग में गपशप पर कोई पाबंदी नहीं होती, लेकिन सही ऐक्सप्रैशन के पता नहीं चलने के कारण बाद में काफी दिक्कत हो सकती है. इसलिए इस में रिस्क तो है.

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सीक्रेट्स पता लगाने में भी मुश्किल

एक बार शादी तय होने के बाद जब मिलनाजुलना शुरू होता है, तब बहुत सारे ऐसे पहलू भी उजागर हो जाते हैं, जिन पर अभी तक परदा डाला हुआ होता है जैसे डेटिंग के दौरान बारबार कौल आना और फिर एकदम से फोन की स्क्रीन को छिपाते हुए काट देना और पूछने पर घबराहट के साथ जवाब देना कि औफिस से कौल थी. 1-2 बार तो ये बहाना चलता है, लेकिन बारबार आप के सामने ऐसा होने पर आप के मन में जब शक पैदा होगा तो हो सकता है कि बातबात में या गुस्से में कोई राज सामने आ ही जाए. ऐसे में तब आप इस रिश्ते में बंधने से बच सकते हैं. लेकिन औनलाइन डेटिंग में इस तरह की चीजों पर बड़ी आसानी से परदा डाल कर आप को बेवकूफ बनाया जा सकता है और फिर जब राज खुलेगा तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.

वापस किया तो भुगतना पड़ेगा

शादी कोई मजाक नहीं है, जो मन बहलाने के लिए कुछ पलों के लिए ले आए और जब मन नहीं किया तो वापस करने का मूड बना लिया. ऐसा करने से जहां भावनाओं को ठेस पहुंचती है वहीं आप को इस का भारी भुगतान भी करना पड़ा सकता है. इस के लिए आप को जेल भी जाना पड़ सकता है और मोटी रकम भी देनी पड़ सकती है. इसलिए सोचसमझ कर फैसला लेने की जरूरत है.

इस संबंध में सारथी काउंसलिंग सर्विसेज की फाउंडर, डाइरैक्टर शिवानी मिश्री साधु का कहना है, ‘‘अगर हम बात करें औफलाइन और औनलाइन पार्टनर सर्च करने की तो दोनों में ही गारंटी नहीं है कि सैपरेशन न हो या फिर तलाक तक बात न पहुंचे, क्योंकि ये सब आपसी समझदारी या पहले से चीजों की जांचपड़ताल पर निर्भर करता है. हां, बस औफलाइन पार्टनर सर्च करने में रिस्क थोड़ा कम होता है, क्योंकि पूछताछ के साथसाथ मिलनेजुलने से थोड़ी चीजें समझ आ जाती हैं कि जिस परिवार से हम जुड़ने जा रहे हैं उस से हमारा मेल हो पाएगा या नहीं, क्योंकि बातों के तरीकों से काफी हद तक आप सामने वाले के नजरिए को जान पाते हैं. लेकिन औनलाइन प्लेटफौर्म में वीडियो और वैब कौल से यह ज्यादा संभव नहीं है.’’

‘‘आज जिस तरह का समय है उस में औनलाइन सर्चिंग में फिजिकल वैरिफिकेशन करना काफी मुश्किल है, क्योंकि इस समय कोई भी अपनी जान जोखिम में डालना पसंद नहीं करेगा. ऐसे में सोशल प्लेटफौर्म के जरीए ही संबंधित विरक्ति और परिवार की जानकारी जुटाने का प्रयास किया जा रहा है. और अगर सोशल मीडिया पर कोई डीटेल हासिल नहीं होती तो उसे रैड फ्लैग ही समझें यानी जानकारी छिपाने की कोशिश की जा रही है और अगर बात आगे बढ़ती है तो उन के सोशल प्लेटफौर्म के जरीए उन के फ्रैंड्स से भी उन के कैरियर, उन की जौब व उन के व परिवार के बारे में जानकारी लेने की कोशिश करें और इस में जरा भी झिझकें नहीं कि पता चलेगा कि हम उन की पड़ताल कर रहे हैं तो कैसा लगेगा. आखिर यह पूरी जिंदगी का सवाल है.

‘‘अगर सोशल मीडिया पर लेनदेन संबंधित मैसेज दिखते हैं तो वे सही संकेत नहीं होते. ऐसे में उस परिवार से वहीं बात खत्म कर देनी चाहिए ताकि आगे कोई दिक्कत न हो, क्योंकि ये जीवन का बहुत ही अहम फैसला होता है, जिस के लिए आप खुद ही जिम्मेदार होते हैं. इसलिए बारबार जितना हो सके क्रौस चैक करना सही रहता है.’’

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बेड़ी नहीं विवाह: शादी के बाद क्यों कठपुतली बन जाती है लड़की

महिलाओं को विवाह के बाद अपने व्यक्तित्व को, स्वभाव को बहुत बदलना पड़ता है. समाज सोचता है कि नारी की स्वयं की पहचान कुछ नहीं है. विवाह के बाद बड़े प्यारदुलार से उस की सामाजिक, मानसिक स्वतंत्रता उस से छीनी जाती है. छीनने वाला और कोई नहीं स्वयं उस के मातापिता, सासससुर और पति नामक प्राणी होता है. विदाई के समय मांबाप बेटी को रोतेरोते समझाते हैं कि बेटी यह तुम्हारा दूसरा जन्म है. सासससुर और पति की आज्ञा का पालन करना तुम्हारा परम कर्त्तव्य है.

ससुराल में साससुसर और पति कुछ स्पष्ट और कुछ संकेतों द्वारा ससुराल के अनुसार चलने की हिदायत देते हैं. मध्यवर्गीय व उच्च मध्यवर्गीय समाज की यह खास समस्या है. पत्नी विदूषी है, किसी कला में पारंगत है, तो उस में ससुराल वाले और संकुचित मानसिकता वाला पति उस की प्रतिभा का गला घोटने में देर नहीं करता. नृत्यकला या गायन क्षेत्र हो तो उसे साफतौर पर बता दिया जाता है कि ये सब यहां नहीं चलेगा. इज्जतदार खानदान के मानसम्मान की दुहाई दी जाती.

यहां तक कि कुछ घरों में बहुओं को नौकरी करने से भी मना कर दिया जाता है. भले घर में कितनी ही आर्थिक तंगी क्यों न हो. किसीकिसी घर में जहां आर्थिक तंगी, बदहाली चरम सीमा पर पहुंची होती है वे नौकरी की आज्ञा तो दे देते हैं, पर औफिस में किसी पुरुष से बात नहीं करनी और पूरा वेतन पति या सास को देने की शर्त रख दी जाती है. कठपुतली वाली जिंदगी

सुनंदा जिला स्तर की टैनिस खिलाड़ी थी. घर भर की लाडली थी. जीवन कैसे हंसखेल कर बिताया जाता है यह उस से सीखा जा सकता था पर अपनी जीवन प्रतियोगिता में वह पिछड़ गई. देखसुन कर एक सभ्रांत घर में रिश्ता तय किया गया. पति व ससुर दोनों उच्चपदाधिकारी थे. पगफेरे के लगभग 1 महीने बाद कठपुतली की तरह व्यवहार करने को मजबूर हो गई, जिस की डोर सिर्फ ससुराल वालों के हाथ में थी. क्या पहनेगी, कहां जाएगी, कितनी बात करनी है सब पति और ससुराल वाले तय करते थे. उस की भाभी ने अपना मोबाइल उसे छिपा कर दे दिया. अवसर पाते ही सुनंदा ने मायके से फोन पर अपनी व्यथाकथा कही तो भाभी हैरान रह गईं. ऊंची दुकान फीके पकवान वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी. अगर वह कुछ कहती तो ससुराल वाले उस के भाई व पिता को नुकसान पहुंचाने की धमकी देते. बेचारी डर के मारे चुप रह जाती.

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अवसर पाते ही पिता व भाई सुनंदा को ससुराल से वापस ले आए. 1 साल तक वह उन के साथ रही. जिला क्लब में टेबल टैनिस की कोच बन गई. साल भर तो ससुराल वालों की नाराजगी के कारण कोई खोजखबर नहीं ली पर बाद में एक दिन पति ही सिर झुकाए गिड़गिड़ाता हुआ आ पहुंचा और सुनंदा को ले जाने का आग्रह करने लगा. घरवालों ने लिखित रूप से उस से वे सब बातें लिखवाई जिन से पति और उस का पिता सुनंदा को धमकाता था. आइंदा सुनंदा के साथ कुछ गलत न करने का वादा रिकौर्ड करवा कर सुनंदा को उस के साथ भेज दिया.

सताने के नए पैंतरे एक और घटना में एक युवती का विवाह एक ऐसे घराने में हो गया. जो अव्वल दर्जे के धोखेबाज थे. उन्होंने अमीर और सभ्य बनने का नाटक किया था. वास्तव में वे लोग सिर से पैरों तक कर्ज में डृबे थे. शादी में उन्हें अच्छाखासा कैश मिलने की उम्मीद थी, जो पूरी नहीं हुईं. इस का आक्रोश निकाला गया.

युवती की सारी बुनियादी आवश्यकताओं पर रोक लग गई. पति और ससुर के खाने के बाद जो बचता वही वह खाती. फोन करने, बाहर जाने पर पाबंदी थी. मायका दूसरे शहर में था. ससुराल वाले जानपहचान वालों से भी नहीं मिलवाते. अगर कोई मिलने की इच्छा जाहिर करता तो वे कहते कि वह सोई हुई है या तबीयत खराब है. बड़ी कोशिशों के बाद परिवार को उसे वहां से निकालने का मौका मिला. जहां तक सैक्स की बात हो पति अपनी इच्छाओं को सर्वोपरि रखता है. पत्नी थकी हो या बीमार अथवा उस की इच्छा न हो, परंतु स्त्री को पति की जरूरत के आगे घुटने टेकने ही पड़ते हैं. यदि यह प्रस्ताव पत्नी की ओर से हो तो उसे पहले दर्जे की बेहया मान कर अपमानित किया जाता है यानी कदमकदम पर उस की स्वतंत्रता को रौंदा जाता है.

कुछ पुरुष तो अपनी पत्नी को अपनी जायदाद या संपत्ति समझते हैं. पिछले दिनों यह खबर सुर्खियों में थी कि एक सैनिक अपनी पत्नी को अपने सैनिक मित्रों, सहयोगियों के साथ यौन संबंध बनाने को बाध्य करता था. मना करने पर चाकू से उस के कपड़े काट देता था. सच में स्त्री के साथ ऐसा व्यवहार, ऐसी दरिदंगी बेहद खौफनाक है. एक औरत विवाह के बाद अगर इस तरह के पुरुषरूपी भेडि़यों के हाथ पड़ जाती है, तो उस की हर प्रकार की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है. ज्यादातर पत्नियों को स्त्री समस्या के बारे में, रेप की बढ़ती घटनाओं पर, किसी सभा में बोलने या लिखने पर भी पाबंदी लगा दी जाती है. पति शराबी है, मारपीट करता है, नपुंसक है तो भी पत्नी को उसी पति के लिए सती होना पड़ता. यानी रहने को मजबूर होना पड़ता है.

क्या करें महिलाएं विवाह के बाद महिला की स्वतंत्रता समाप्त न हो, इस के लिए स्त्रियों को स्वयं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए. कुछ दिन पहले का मामला है, विवाह के समय दूल्हा नशे में धुत्त होशहवास खो कर डांस कर रहा था. यह देख कर दुलहन ने उस से शादी करने से इनकार करते हुए मंडप छोड़ दिया. जहांतहां दहेज लोभियों को सबक सिखाने के लिए लड़की द्वारा बरात लौटा देने के समाचार आते रहते हैं, जो अच्छा संकेत हैं.

आज की युवा पीढ़ी को चाहिए कि अपने होने वाले पति या होने वाली पत्नी के साथ मिलबैठ कर अपनी आंकाक्षाओं, विचारधाराओं से भली प्रकार एकदूसरे को अवगत करा दें. शराबी, बेरोजगार, तथा दहेज के लोभी पुरुषों का बहिष्कार कर देना चाहिए. मातापिता भी अपनी बेटियों को बेवजह घुटने टेकने के लिए मजबूर न करें.

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जिस प्रकार हम एक पौधे को जड़ से निकाल कर दूसरी जगह रोपते हैं, तो देखते हैं कि मिट्टी, पानी, हवा सब उस पौधे के लिए अनुकूल हैं अथवा नहीं. अगर मिट्टी ठीक नहीं है, पानी ज्यादा या कम दे दिया, हवा पर्याप्त न मिली तो पौधा सूख जाता है. इसी प्रकार स्त्री भी विवाह के बाद अपनी जड़ें मायके से निकाल कर ससुरालरूपी बगीचे में रोपती है. उसे स्वतंत्रता, प्यारदुलार रूपी हवा, मिट्टी मिलनी चाहिए नहीं तो उस का व्यक्तित्व मुरझा जाएगा. विवाह नारी स्वंतत्रता का अंत नहीं. प्रत्येक स्त्री को अपनी प्रतिभा, आकांक्षाओं और सपनों को संजो कर रखने का पूरा हक है. ये उस के जीवन की अमूल्य धरोहर हैं, जिन्हें नष्ट होने से रोकना है. उन का व्यक्तित्व और अस्तित्व एक ऐसा भवन है, जिसे खंडित करने का हक किसी को नहीं है.

यदि स्त्री किसी कारणवश ऐसे नर्क से गुजर रही है, तो उसे किसी की सहायता लेनी चाहिए. अपनी निजी स्वतंत्रता का हनन होने से रोकना चाहिए. नारी एक जननी है. उस का अपमान करना, उस पर अत्याचार करना या उस की मानसिक, शारीरिक, स्वतंत्रता पर पाबंदी लगाना, जघन्य अपराध ही नहीं पूरे परिवार के विकास में भी बाधा है.

थोड़ा ब्रेक तो बनता है : घर संभाल रही गृहिणी को भी दें स्पेस

गृहिणी पूरे परिवार की धुरी होती है. खुद की परवाह किए बिना वह अपने पति, सासससुर और बच्चों की देखरेख में लीन रहती है. सुबह से शाम तक चकरघिन्नी की तरह सारे घर में घूमती और सब का ध्यान रखती गृहिणी के पास अपने लिए वक्त ही कहां होता है कि वह अपनी मनमरजी से थोड़ा वक्त निकाल कर अपना मनपसंद काम कर सके.

सारे परिवार की अपेक्षाएं पूरी करतेकरते उस की सारी जिंदगी बीत जाती है. अगर वह अपनी मनमरजी करने लगे तो यह सभी को अखरने लगता है. क्या उस का अपना कोई वजूद नहीं? उस की अपनी इच्छाएं या आकांक्षाएं नहीं हो सकतीं? सब के लिए जीने वाली को क्या थोड़ा समय भी अपने लिए जीने का हक नहीं?

पति का एकाधिकार

हर पति की चाह होती है कि वह जब औफिस से घर आए तो पत्नी उस का पूरा खयाल रखे और अकसर हर पत्नी यह करती भी है, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि वह पति के सोने तक हाथ बांध कर उस की जीहुजूरी करती रहे. विभा जो एक गृहिणी हैं उन की यही शिकायत है कि उन के पति का शादी के दूसरे दिन से यही रवैया है. उन्हें विभा का हर वक्त अपने आगेपीछे घूमना और जरूरत के वक्त उन की हर चीज हाजिर करना जरूरी है. यहां तक कि उन के सो जाने के बाद भी अगर वह कुछ पढ़नालिखना चाहे या संगीत सुनना चाहे तो उसे अगले दिन ताना सुनने को मिल जाता है.

इस सब से तंग आ चुकी विभा झल्ला कर कहती है कि मुझे जीने दो. मेरा अपना भी कोई वजूद है, अपनी इच्छाएं हैं, मुझे भी स्पेस चाहिए. मैं उन की पत्नी हूं कोई गुलाम नहीं.

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बच्चों की मनमानी

संगीता को पुराने हिंदी गीत सुनने का बेहद शौक है. वह अकसर अपने मोबाइल पर पुराने गीत, गजलें डाउनलोड कर के सुनना पसंद करती है. पर बच्चों को ये गीत बोरिंग लगते हैं. वे आपत्ति करते हैं तो संगीता का दिल टूट जाता है, पर जब पति और बच्चे घर में नहीं होते तो वह अपनी मनमरजी से जीती है, पुराने गीत सुनते हुए खुशीखुशी सारे काम करती है. पति और बच्चों के घर में न रहने पर उसे लगता है कि वह आजाद है. अपनी मरजी से अपना समय व्यतीत कर सकती है.

वह कहती, ‘‘सारे दिन में बस यही कुछ घंटे होते हैं जब मैं अपनी मनमरजी से जी सकती हूं. इस तन्हाई का भी अलग ही मजा होता है.’’

बच्चों की पढ़ाई

आजकल कंपीटिशन का जमाना है. सभी अभिभावक अपने बच्चों को सब से आगे देखना चाहते हैं. ऐसे में गृहिणी की जिम्मेदारी सब से ज्यादा अहम मानी जाती है. बच्चे का अच्छा या खराब प्रदर्शन गृहिणी की ही जिम्मेदारी मानी जाती है वरना यह सुनने को मिलता है कि सारा दिन करती ही क्या हो. बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दो. खासकर परीक्षा के दिनों में तो गृहिणी को ऐसा लगता है जैसे उसी की परीक्षा चल रही है और इस परीक्षा में अव्वल आने का पूरा दबाव उस के ऊपर होता है. इन दिनों तो वह सब से ज्यादा बंध जाती है.

परिवार का स्वास्थ्य

अगर बच्चे बीमार हो गए तो यह भी गृहिणी की गलती मानी जाती है कि उस ने ध्यान नहीं रखा. अगर वह रोज सादा खाना बनाए तो भी किसी को पसंद नहीं आता और अगर उस ने कभी कुछ स्पैशल बनाया और सब के पेट खराब हो गए तो भी उसे ही सुनने को मिलता है कि यह बनाने की क्या जरूरत थी. ऐसे में गृहिणियां कभीकभी उलझन में पड़ जाती हैं. एक तो सुबहशाम रसोई से छुट्टी नहीं मिलती ऊपर से कोई बीमार हो जाए तो भी उन्हीं की गलती.

अगर पति को अपने दोस्तों के साथ घूमनेफिरने और मौजमस्ती का हक है और बच्चों को भी पर्याप्त स्पेस मिल जाती है, तो गृहिणी को क्यों नहीं? कुछ पल तो उसे भी अपने लिए जीने का पूरा हक है. उसे भी स्पेस चाहिए.

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जब बहक जाए पति या बेटा

सरकारी औफिस में अधिकारी के रूप में काम करने वाले प्रदीप कुमार को देर रात तक घर से बाहर रहना पड़ता था. औफिस के काम से छोटेबडे़ शहरों में टूर पर भी जाना होता था. 48 साल के प्रदीप की शादी हो चुकी थी. उन की 2 बेटियां और 1 बेटा था. घर में वे जब भी पत्नी के साथ सैक्स की बात करते तो पत्नी शोभा मना कर देती. शोभा को बडे़ होते बच्चों की फिक्र होने लगती थी. शोभा को यह पता था कि यह प्रदीप के साथ एक तरह का अन्याय है पर बच्चों को संस्कार देने के खयाल में वह पति की भावनाओं को नजरअंदाज कर रही थी. प्रदीप का काम ऐसा था जिस में कई बड़े ठेकेदार और प्रभावी लोग जुडे़ होते थे. ऐसे में जब वह टूर पर बाहर जाते तो उन को खुश करने वालों की लाइन लगी रहती थी.

प्रदीप स्वभाव से सामान्य व्यक्ति थे. न किसी चीज के प्रति ज्यादाभागते थे और न ही किसी के प्रति उन के मन में कोई वैराग्य भाव ही था. हर हाल में खुश रहने वाला उन का स्वभाव था. एक बार वे आगरा के टूर पर थे. वहां उन को एक खास प्रोजैक्ट पर काम करना था. इस कारण उन को लगातार एक सप्ताह तक वहां रहना था. प्रदीप के लिए सरकारी गैस्ट हाउस में इंतजाम था. वहीं एक दिन कौलगर्ल की चर्चा होने लगी. देर शाम एक ठेकेदार ने लड़की का इंतजाम कर दिया. कुछ नानुकुर करने के बाद प्रदीप ने लड़की के साथ रात गुजार ली. इस के बाद तो यह सिलसिला चल निकला. कई बार प्रदीप को खुद लगता कि वे गलत कर रहे हैं पर उन को यह सब अच्छा लगने लगा था. अब वे अकसर शहर से बाहर जाने का बहाना बनाने लगे. कुछ दिन तो यह बात छिपी रही पर शोभा को शक होने लगा. शोभा ने बिना कुछ कहे उन पर नजर रखनी शुरू कर दी. शोभा को कई ऐसी जानकारियां मिल गईं जिन से उस का शक यकीन में बदल गया.

शोभा ने सोचा कि अगर वह यह बात पति से करेगी तो आसानी से वे मानेंगे नहीं. लड़ाई झगड़ा अलग से शुरू हो जाएगा. बच्चों के जिन संस्कारों को बचाने के लिए वह प्रयास करती आई है वे भी खाक में मिल जाएंगे. ऐसे में शोभा ने अपने घरेलू डाक्टर से बात की. डाक्टर ने कुछ बातें बताईं. कुछ दिन बीत गए. प्रदीप इस बात से खुश थे कि शोभा को उन के नए शौक के बारे में कुछ पता नहीं चला. अचानक एक दिन प्रदीप को तेज बुखार आ गया. शोभा उन को ले कर डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने कुछ ब्लड टैस्ट कराने के लिए कह दिया. दवा दे कर प्रदीप को वापस घर भेज दिया और बैडरैस्ट करने को कहा है. घर पहुंचने के बाद प्रदीप ने बैडरैस्ट तो किया पर बुखार कम हो कर वापस आजा रहा था.

एक दिन के बाद प्रदीप जब डाक्टर के पास जाने लगे तो शोभा भी साथ चली गई. डाक्टर ने ब्लड रिपोर्ट देखी और चिंता में पड़ गया. उस ने शोभा को कुछ देर बाहर बैठने के लिए कहा और प्रदीप से बात करने लगा. डाक्टर ने कहा कि रिपोर्ट में तो बुखार आने का कारण एचआईवी का संक्रमण आ रहा है. क्या आप कई औरतों से संबंध रखते हैं? प्रदीप सम झदार व्यक्ति थे, डाक्टर से  झूठ बोलना उचित नहीं सम झा. सारी कहानी डाक्टर को बता दी. इस के बाद डाक्टर ने पतिपत्नी दोनों को ही सामने बैठा कर सम झाया. सैक्स के महत्त्व को सम झाया और बाजारू औरतों से सैक्स संबंध बनाने के खतरे भी बताए. उस रात प्रदीप को नींद नहीं आई. शोभा उन के पास ही थी. प्रदीप ने अपनी गलती मान ली और शोभा से माफी भी मांगी. दूसरी ओर शोभा ने अपनी गलती मान ली. प्रदीप को ज्यादा परेशान देख कर शोभा ने उन को गले लगाते हुए कहा, ‘‘यह सब नाटक था तुम्हारी आंखें खोलने के लिए. हां, बुखार वाली बात तो ठीक थी पर एचआईवी की बात गलत थी. हमें पहले ही पता था कि तुम बाहर जा कर क्या गलती कर बैठे हो.’’

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न करें  झगड़ा

लखनऊ में सैक्स रोगों की काउंसलिंग करने वाले डा. जी सी मक्कड़ कहते हैं, ‘‘सैक्स के लिए बाजारू औरतों से संबंध रखना सेहत के लिए किसी भी तरह से अच्छा नहीं होता. इस के लिए केवल पुरुष ही दोषी नहीं हैं, कई बार पत्नियां पतियों को समझ नहीं पातीं. घरपरिवार, बच्चों के चलते उन को समय नहीं मिलता या वे मेनोपौज का शिकार हो कर पति की जरूरतों को पूरा करने से बचने लगती हैं. ऐसे में पति के भटकने का खतरा बढ़ जाता है. कभी वह कोठे पर जाने लगता है तो कभी सैक्स कारोबार करने वाली दूसरी औरतों के चक्कर में पड़ जाता है. इस से बचने के लिए औरतों को बहुत ही धैर्यपूर्वक परेशानी का मुकाबला करना चाहिए.  झगड़ा करने से परिवार के टूटने का खतरा ज्यादा रहता है.’’

समाजसेवी शालिनी कुमार कहती हैं, ‘‘आमतौर पर आदमी के लिए उम्र के 2 पड़ाव बेहद कठिन होते हैं. एक जब वह 17 से 20 साल की उम्र में होता है. और दूसरा 45 साल के करीब. ऐसे में वह अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए बाजारू औरतों की मदद लेने लगता है. ऐसे में उस का प्रभाव एक औरत को मां या पत्नी के रूप में  झेलना पड़ता है. घरपरिवार को बचाने के लिए बहुत ही समझदारी से काम लेना चाहिए.’’

जब बिगड़ जाए बेटा

25 साल के अनुराग की अच्छी नौकरी लग गई. उस के ऊपर कोई खास जिम्मेदारी भी नहीं थी. अनुराग की गर्लफ्रैंड तो बहुत थीं पर उन से उस के सैक्स संबंध नहींथे. अनुराग को दोस्तों से पता चला कि सैक्स संबंधों के लिए कौलगर्ल बेहतर होती हैं क्योंकि उन से केवल जरूरत भर का साथ होता है. गर्लफ्रैंड तो गले की हड्डी भी बन सकती है. पब और डिस्को में जाने के दौरान उस की मुलाकात ऐसी ही कुछ लड़कियों से होने लगी. सैक्स के लिए टाइमपास करने वाली ये लड़कियां कई बार पार्टटाइम गर्लफ्रैंड भी बन जाती थीं. देखनेसुनने में यह भी सामान्य लड़कियों की ही तरह होती हैं. अनुराग को अपने शहर में ऐसा काम करने से खतरा लगता था. ऐसे में वह लड़की को ले कर दिल्ली, मुंबई और गोआ जाने लगा. वह अकसर वीकएंड पर ऐसे कार्यक्रम बनाने लगा. बाहर जा कर उसे बहुत अच्छा लगने लगा.

अनुराग के इस शौक  ने उसे बदल दिया था. वह घर में कम समय देता था. जब भी उस की शादी की बात चलती वह अनसुना कर देता. एक बार वह ऐसी ही एक लड़की के साथ गोआ गया था. वहां से जिस दिन उसे वापस आना था उस की मां उस को लेने के लिए एअरपोर्ट पहुंच गई. अनुराग को इस बारे में कुछ पता नहीं था. वह लड़की के साथ एअरपोर्ट से बाहर आ कर टैक्सी में बैठने लगा. लड़की पहले ही टैक्सीमें बैठ चुकी थी. इस के पहले कि टैक्सी आगे बढ़ती, अनुराग की मां ने उसे पुकारा, ‘‘बेटा, मैं अपनी गाड़ी ले कर आई थी. इसी में आ जाओ.’’

मां की आवाज सुन कर अनुराग सोच में पड़ गया. उसे साथ वाली लड़की की फिक्र होने लगी. वह मां से कुछ कहता, इस के पहले मां बोलीं, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, अपनी फ्रैंड को साथ ले आ.’’ अनुराग को कुछ राहत महसूस हुई. गाड़ी में बैठने के बाद अनुराग की मां ने लड़की की बेहद तारीफ करनी शुरू कर दी. घर आतेआते यह भी कह दिया कि वह बहू के रूप में उसे पसंद है. अनुराग उस लड़की को छोड़ कर वापस घर आया तो मां को बहुत प्रसन्न पाया. मां अनुराग और उस लड़की की शादी की बातें करने लगीं. कुछ देर तो अनुराग चुप रहा फिर बोला, ‘‘मां, आप को जिस लड़की के बारे में कुछ पता नहीं उस से मेरी शादी करने जा रही हो?’’

मां बोलीं, ‘‘बेटा, मैं भले ही उस से आज मिली थी पर तू तो उस के साथ घूम कर आया है. तुझे देख कर लगता है कि तू बहुत खुश है उस के साथ. जब तू खुश है तो मुझे और क्या चाहिए?’’

अनुराग परेशान हो गया. उस ने सोचा कि मां को सचाई बतानी ही होगी. रात में ठंडे दिमाग से अनुराग ने मां को पूरी बात बताई और अपनी गलती मान ली. अनुराग की मां बोलीं, ‘‘बेटा, तुझे अपनी गलती समझ आ गई, इस से बड़ी क्या बात हो सकती है. अब अच्छी लड़की देख कर तेरी शादी हो जानी चाहिए.’’

शादी के बाद अनुराग बदल गया. मां की समझदारी ने अनुराग का जीवन खराब होने से बचा लिया. इस प्रकार ऐसे हालात को संभालने में पत्नी और मांबाप को धैर्य से काम लेना चाहिए. नहीं तो एक खुशहाल परिवार को बिखरने में देर नहीं लगेगी.

बेटे के प्रति ध्यान रखने योग्य बातें

– बेटे के दोस्तों पर निगाह रखें. जिन दोस्तों का स्वभाव अच्छा न लगे उन से दूरी बनाने के लिए बेटे को सम झाएं.

– बेटे की बदलती सैक्स लाइफ पर नजर रखने की कोशिश करें. उस की मुलाकात मनोचिकित्सक से कराएं. जो बातें आप नहीं बता सकतीं वह उस के संबंध में समझा सकता है.

– बाजारू औरतों के साथ सैक्स संबंध बनाने के खतरे बताएं. ऐसे संबंधों से यौन रोग फैल सकते हैं यह बताएं.

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– कोठे वैसे नहीं होते जैसे फिल्मों में दिखते हैं, यह सम झाएं. वहां होने वाले नुकसान से आगाह कराते रहें. वहां पुलिस का छापा पड़ने से जेल जाने का खतरा रहता है.

– बेटे को समझाने में पति की मदद ले सकती हैं. कई बार वह आप से बात करने में हिचक सकता है. ऐसे में पिता से बात करना सरल होता है.

– उसे लड़कियों से दोस्ती करने से रोकें नहीं. दोस्ती की सीमाओं को बता कर रखें. बेटे को अनापशनाप खर्च करने के लिए पैसे न दें.

– समय से उस की शादी करा दें. कई बार शादी के बाद सुधार आ जाता है.

पति के प्रति ध्यान रखने योग्य बातें

– पति से बात करने से पहले खुद से जरूरी जानकारियां एकत्र करने की कोशिश करें.

– कुछ ऐसा उपाय करें कि बिना आप के कहे पति को अपनी गलती सम झ में आ जाए.

– अपनी बात रखने के लिए  झगड़ा न करें. ऐसे तर्क न करें जिन से संबंधों में कटुता आए.

– पति के साथ शारीरिक संबंध बनाए रखें. घरपरिवार की जिम्मेदारी के बीच सैक्स संबंधों को न भूलें.

– एक उम्र के बाद महिलाओं में सैक्स की इच्छा खत्म होने लगती है. ऐसे में महिला रोगों की जानकार डाक्टर से मिलें और उचित इलाज करवाएं.

– पति के साथसाथ अपनी सैक्स परेशानियां मनोचिकित्सक को बताएं.

– पति को बाजारू औरतों के साथ सैक्स संबंध बनाने के खतरे बताएं.

– ऐसे काम पद और प्रतिष्ठा दोनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

– पति को पारिवारिक जिम्मेदारी का एहसास कराते रहें. इस से उन का ध्यान इधरउधर नहीं भटकेगा.

– समयसमय पर पति के साथ अकेले बाहर जाने का कार्यक्रम रखें, होटल में रुकें ताकि सैक्स संबंधों को खुल कर जी सकें.

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