समय की कमी के कारण क्या पिता को किसी वृद्धाश्रम में रख सकते हैं?

सवाल-

मैं 42 वर्षीय हूं. 1 बेटा है जो होस्टल में रह कर पढ़ाई करता है. मैं और मेरी पत्नी दोनों कामकाजी हैं. समस्या वृद्ध पिता को ले कर है. वे चलनेफिरने में लाचार हैं और उन की विशेष देखभाल करनी पड़ती है. समय की कमी की वजह से हम उन की उचित देखभाल नहीं कर पा रहे. क्या उन्हें किसी वृद्धाश्रम में रख सकते हैं? किसी वृद्धाश्रम की जानकारी मिले तो हमारा काम आसान हो जाएगा?

जवाब-

बेहतर यही होगा कि आप अपने वृद्ध पिता की देखभाल के लिए दिन में कोई केयर टेकर रख लें. इस अवस्था में वृद्धों को सिर्फ आर्थिक ही नहीं शारीरिक व मानसिक रूप से भी अपनों का साथ पसंद होता है. फिर सुबहशाम और छुट्टी के दिन तो उन्हें आप का साथ मिल ही रहा है. इस से वे बोर भी नहीं होंगे और उचित देखभाल की वजह से स्वस्थ भी रहेंगे.

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जाड़े की कुनकुनी धूप में बैठी मैं कई दिनों से अपने अधूरे पड़े स्वैटर को पूरा करने में जुटी थी. तभी अचानक मेरी बचपन की सहेली राधा ने आ कर मुझे चौंका दिया.

‘‘क्यों राधा तुम्हें अब फुरसत मिली है अपनी सहेली से मिलने की? तुम ने बेटे की शादी क्या की मुझे तो पूरी तरह भुला दिया… कितनी सेवा करवाओगी और कितनी बातें करोगी अपनी बहू से… कभीकभी हम जैसों को भी याद कर लिया करो.’’

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‘‘कहां की सेवा और कैसी बातें? मेरी बहू को तो अपने पति से ही बातें करने की फुरसत नहीं है… मुझ से क्या बातें करेगी और क्या मेरी सेवा करेगी? मैं तो 6 महीनों से घर छोड़ कर एक वृद्धाश्रम में रह रही हूं.’’

यह सुन कर मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे पैरों तले से जमीन खींच ली हो. मैं चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई. क्या बोलती उस राधा से जिस ने अपना सारा जीवन, अपनी सारी खुशियां अपने बेटे के लिए होम कर दी थीं. आज उसी बेटे ने उस के सारे सपनों की धज्जियां उड़ा कर रख दीं…

अपने बेटे मधुकर के लिए राधा ने क्या नहीं किया. अपनी सारी इच्छाओं को तिलांजलि दे, अपने भविष्य की चिंता किए बिना अपनी सारी जमापूंजी निछावर कर उसे मसूरी के प्रसिद्ध स्कूल में पढ़ाया. उस के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उसे दिल्ली भेजा. इस सब के लिए उसे घोर आर्थिक संकट का सामना भी करना पड़ा. फिर भी वह हमेशा बेटे के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना कर खुशीखुशी सब सहती रही. जब भी मिलती अपने बेटे की प्रगति का समाचार देना नहीं भूलती. वह अपने बेटे को खरा सोना कहती.

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फ्रिजिडिटी : इलाज है

कई स्त्रियां ऐसी होती हैं, जो सहवास के दौरान उत्तेजित नहीं हो पाती हैं, जिस से वे सहवास के दौरान पति को सहयोग भी नहीं दे पाती हैं. ऐसी स्त्रियां ‘फ्रिजिड’ अर्थात ‘ठंडी’ स्त्री के रूप में जानी जाती हैं. फ्रिजिड स्त्री की व्यथा को न कोई जान सकता है और न ही समझ सकता है. वह स्वयं भी इस बात को जान नहीं पाती कि वह यौन सुख से वंचित क्यों है? जिस प्रकार छप्पन पकवानों से सजी थाली का भोजन नलिका द्वारा पेट में पहुंचाए जाने पर व्यक्ति को स्वाद का पता नहीं चलता, ठीक उसी प्रकार फ्रिजिड स्त्री संतान तो उत्पन्न कर सकती है, लेकिन यौनसुख का अनुभव नहीं कर सकती. पति उस की फ्रिजिडिटी (ठंडेपन) से तंग आ कर पत्नी को मानसिक रूप से प्रताडि़त करता है और उसे शारीरिक पीड़ा भी पहुंचाता है. वह समझता है कि उस की पत्नी उसे जानबूझ कर सहयोग नहीं देती है या कोई अनैतिक संबंध रख कर उस से बेवफाई कर रही है. इस से पतिपत्नी के बीच दीवार खड़ी हो जाती है और पत्नी को स्वयं को कोसने के सिवा कोई चारा नहीं रह जाता है.

मेरे पास ऐसी कई स्त्रियां आई हैं, जिन में से कुछ की ‘केस हिस्ट्री’ आप को बताना चाहूंगा ताकि आप लोगों को फ्रिजिड स्त्रियों की व्यथा का पता चल सके. 23 वर्षीय मध्यवर्गीय वैशाली मासूमियत की प्रतीक थी. खुले दिल से हंसना, तत्परता से काम करना व कपटरहित व्यवहार उस का स्वभाव था. जब एक बड़े घराने में उस की शादी हुई तो वह खुशी से नाच उठी. उस ने सोचा कि अब उसे किसी प्रकार की कमी नहीं रहेगी, लेकिन कुछ दिनों में उस का यह भ्रम टूट गया. उस की हंसी, उछलकूद, सब से हिलनामिलना आदि पर पाबंदी लग गई, क्योंकि उस बड़े घराने में इसे अशिष्ट माना जाता था. हमेशा सास और ननद उस की हंसी उड़ाया करती थीं, जिस से वह धीरेधीरे स्वयं में खोने लगी. यहां तक की पति के साथ सहवास के समय पर अत्यंत आनंद के क्षणों में मुंह से निकले हुए उद्गार अथवा सिसकारी को दबाने लगी, क्योंकि उसे डर था कि पति उसे बदचलन या अशिष्ट स्त्री न समझ ले. धीरेधीरे वह भावशून्य होने लगी. बच्चे होने पर वह बच्चों में ही अधिक समय बिताने लगी और पति की मांग के कारण केवल एक फर्ज के रूप में यौन संबंध रखने लगी. वह यह भी भूल गई कि इस संबंध में सुख भी मिलता है.

हादसे की शिकार

उर्वशी की समस्या कुछ अलग ही है. विवेक जैसे शिक्षित, सुशील और होनहार युवक से उस का विवाह हुआ था, जो उस के कालेज जीवन का प्रेमी था. विवाह से पहले उर्वशी अपने प्रेमी विवेक से मिलने के लिए हमेशा आतुर रहती थी. वह अधिक से अधिक समय उस के साथ बिताना चाहती थी. जब दोनों का विवाह हुआ तो उस रात बड़ी देर तक विवेक दोस्तों से छुटकारा नहीं पा सका. उर्वशी उस की राह देखतेदेखते थक कर अपने कमरे में सो गई. जब विवेक बहुत देर बाद कमरे में पहुंचा तो उर्वशी की सुंदरता देख कर मुग्ध हो गया. उस ने धीरे से उस का सिर उठा कर एक चुंबन ले लिया, जिस से उर्वशी घबरा कर उठ गई और सिसकसिसक कर रोने लगी. उस का सारा शरीर कांप रहा था और वह पसीने से तरबतर हो गई. यह देख कर विवेक बहुत डर गया, क्योंकि उस ने ऐसा उर्वशी को डराने के लिए नहीं किया था. वह उर्वशी से बारबार माफी मांगने लगा. थोड़ी देर बाद उर्वशी सामान्य हुई तो घबराहट के कारण हुई गलतियों पर शर्मिंदा होने लगी. जब दोनों पतिपत्नी हनीमून के लिए गए, तब सहवास के दौरान उर्वशी को निश्चेष्ट और बर्फ समान ठंडा पा कर विवेक को बहुत परेशानी हुई, क्योंकि वह तृप्ति से वंचित रह जाती थी.

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विवेक को कुछ समझ में नहीं आया कि दिन भर प्यार करने वाली उर्वशी सहवास के दौरान ऐसा बरताव क्यों करती है? डाक्टरी जांच कराने पर पता चला कि 14 साल की उम्र में जब वह मामा के घर किसी की शादी में गई थी, एक दिन दोपहर के समय वह सो गई थी, तब एक लड़का छिप कर उस के कमरे में आ गया और उस से जबरदस्ती करने की कोशिश करने लगा. उर्वशी ने किसी तरह वहां से भाग कर अपनी लाज बचाई. जैसेजैसे दिन बीतते गए उर्वशी उस हादसे को भूल गई, लेकिन विवेक द्वारा लिए गए प्रथम चुंबन ने उस के अवचेतन मन में छिपे इस पुराने डर को ताजा कर दिया, जिस से उस की भावनाएं आहत हुईं और वह फ्रिजिड हो गई.

शर्म व तनाव के कारण

रीता शर्मीले स्वभाव की लड़की थी. उस की सगाई सुदेश के साथ हो गई थी. एक दिन जब घर में कोई नहीं था, तो रीता को अकेली पा कर सुदेश उत्तेजित हो उठा और उस ने रीता से सहवास की मांग की, जिस से वह सहम गई. वह सोचने लगी कि यदि वह सुदेश को मना करती है तो वह नाराज हो जाएगा. अगर वह उस की बात मान लेती है तो उस की बदनामी हो जाएगी और उस के मन में गर्भवती होने का डर भी उत्पन्न हो गया. इस बीच सुदेश ने रीता के मौन को सहमति समझ कर सहवास कर ही लिया. इस के बाद रीता हताश और बेचैनी की अवस्था में मासिकधर्म की राह देख कर दिन बिताने लगी. जिस दिन रीता को मासिकधर्म शुरू हुआ उस ने चैन की सांस ली और आराम की नींद सोने लगी. लेकिन उस के कुछ समय बाद ही सुदेश ने उसे फ्रिजिड लड़की कह कर सगाई तोड़ दी. दुनिया की कोई भी स्त्री जन्म से फ्रिजिड नहीं होती. वह फ्रिजिड अपने घर के वातावरण, समाज और किसी भी हादसे के कारण जैसे- बलात्कार आदि से बन सकती है.

फ्रिजिडिटी मानसिक और शारीरिक कारणों से आती है, जिन में शारीरिक कारण तो बहुत कम होते हैं, लेकिन मानसिक कारण अधिक होते हैं. इसलिए उपरोक्त उपायों को अपना कर फ्रिजिडिटी दूर की जा सकती है और दांपत्य जीवन को सहज और सुखद बनाया जा सकता है.        

शारीरिक कारण

शारीरिक विकलांग अवस्था में योनि का न होना. वैसे यह कारण बहुत कम स्त्रियों में होता है.

दुखद यौन संबंध, योनि शोथ, गर्भाशय शोथ, रजोनिवृत्ति हो जाना, अंडाशय और यकृत रोग भी इस का कारण हो सकते हैं.

गर्भवती और गुप्तरोग हो जाने की शंकाएं भी स्त्री को फ्रिजिड बना देती हैं.

रक्तचाप कम करने वाली दवाओं का सेवन, नींद की गोलियां, ट्रैंक्विलाइजर्स और 3-4 साल से लगातार गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन भी फ्रिजिडिटी उत्पन्न कर सकता है.

मानसिक कारण

जब बच्चे बचपन में अनजाने में अपने शरीर को समझने के लिए यौनांगों को छूते हैं, तब उन्हें इस के लिए डांटा जाता है और कभीकभी तो मातापिता उन्हें सजा भी दे देते हैं.

बचपन से ही कड़े अनुशासनपूर्ण माहौल में परवरिश होने के कारण, जिस में सैक्स को बुरा या गंदा मानने वाले विचारों का बच्चे के मन में घर कर जाना, बच्चों द्वारा किए गए सैक्स संबंधित सवालों का जवाब न देना या डांट देना भी फ्रिजिडिटी का कारण होता है.

भावनाओं को दबाना, लड़के और लड़की से किए जाने वाले व्यवहार में भिन्नता, जिस में लड़की की उपेक्षा करना लड़की की आयु बढ़ने पर उस में फ्रिजिडिटी उत्पन्न कर देता है. इसे मूल कारण समझा जा सकता है.

धार्मिक शिक्षा, जो सैक्स को पाप मानती है और सहवास को केवल पुत्र प्राप्ति का साधन मात्र मानती है.

कई बार पुरुष अपने शीघ्रपतन और नपुंसकता की समस्या को छिपाने के लिए भी पत्नी को फ्रिजिड कह देता है, जिस से उस का मन आहत हो उठता है और वह फ्रिजिड बन जाती है.

मानसिक रोग जैसे डिप्रैशन, तनाव, चिंता आदि भी फ्रिजिडिटी पैदा करते हैं.

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फ्रिजिडिटी दूर करने के उपाय

यदि पतिपत्नी एकदूसरे को समझने का प्रयास करें व पति अपनी पत्नी को उचित प्यार व सहयोग दे तो यह समस्या हल हो सकती है.

पत्नी के मन में भी इसे दूर करने की तीव्र इच्छा होनी चाहिए. पतिपत्नी के बीच उत्पन्न तनाव के कारणों को दूर करना चाहिए.

पतिपत्नी युगल चिकित्सा का सहारा ले कर भी इसे दूर कर सकते हैं.

प्रेम, स्पर्श, आलिंगन व रसभरी बातों से भी इसे दूर किया जा सकता है.

इस के अलावा ‘सैक्स पावर’ बढ़ाने वाली एक्सरसाइज द्वारा भी आप इसे दूर कर सकते हैं.

इस में सम्मोहन चिकित्सा बहुत ही लाभकारी होती है, जो मन में बैठे हुए अज्ञात भय को निकालती है.

मैं जौइंट फैमिली में नहीं रहना चाहती, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं संयुक्त परिवार में रहती हूं. सासससुर अच्छे ओहदे पर थे. अब रिटायर्ड हैं जबकि मेरे पति और जेठजी अच्छी कंपनियों में काम करते हैं. ननद की शादी अभी नहीं हुई है. घर में किसी चीज की दिक्कत नहीं है यानी हर सुखसुविधा है पर आएदिन रोजरोज की किचकिच और झगड़े से परेशान रहने लगी हूं. पति चाहते हैं कि हम सब एक ही परिवार में रहें इसलिए चाह कर भी उन्हें अलग फ्लैट में रहने के लिए नहीं कह सकती. कृपया बताएं क्या करूं?

जवाब-

घर में छोटीबड़ी बातों पर तकरार होना आम बात है. कहते हैं जहां तकरार होती है वहीं प्यार भी होता है. मगर जब मतभेद मनभेद में बदल कर बड़े झगड़े का रूप लेने लगें तो यह जरूर चिंता की बात होती है. फिलहाल, आप के घर में हालात इतने खराब नहीं हुए हैं कि पति के साथ अलग रहने की सोची जाए. घर का झगड़ा किसी बड़े झगड़े का रूप न ले, इस से बचने की पहल आप को खुद करनी होगी.

इस दौरान अगर कोई गुस्से में है अथवा कुछ बोल रहा हो तो फायदा इसी में है कि दूसरे को शांत रहना चाहिए. ताली एक हाथ से नहीं बजती.

संयुक्त परिवार में तकरार आमतौर पर कामकाज को ले कर भी होती है. इसलिए बेहतर यही होगा कि घर के कामकाज को भी व्यवस्थित रूप से मिलजुल कर

करा जाए. छोटीबड़ी बातों को नजरअंदाज कर आगे बढ़ने में ही समझदारी है.

लोग एकल परिवारों में रहते हुए अपने सपनों को पंख नहीं दे पाते, जबकि संयुक्त परिवार इस के बेहतर अवसर देता है. संयुक्त परिवार में पलेबढ़े बच्चे भी आम बच्चों की तुलना में मानसिक व शारीरिक रूप से अधिक श्रेष्ठ होते हैं. इसलिए इस अवसर को आपसी झगड़ों में न गंवा कर मिलजुल कर रहने में ही भलाई है.

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इन 5 बातों से रिजेक्ट हो जाते हैं प्रपोजल 

क्रश कब किसको किस पर हो जाए , पता नहीं होता. लेकिन ये भी हर किसी के बस में नहीं कि  उस क्रश को सही से प्रपोज करके प्यार में बदलना. ऐसे में जब प्रपोज करने पर आपको हमेशा नाकामयाबी ही मिलती हो तो दिल टूट जाता है और समझ नहीं आता कि आखिर हम में ऐसी क्या कमी रह गई थी जो हमारा प्यार अधूरा रह गया. ऐसे में आपके लिए ये जानना बहुत जरूरी है कि पार्टनर ने आपको क्यों न कहा है. आइए जानते हैं इस संबंध में.

1. ऐटिटूड भरा प्रपोजल 

भले ही आपने अपने क्रश को प्रपोज तो कर दिया, लेकिन वो प्रपोजल आपका ऐटिटूड से भरा हुआ हो, तो हमेशा आपको न ही सुनने को मिलेगी. क्योंकि आप जिसे भी प्रपोज करें वो नहीं चाहेगा कि जिससे मैं संबंध जोड़ने जा रही हूं , उसमें ऐटिटूड हो. फिर चाहे आप कितने भी गुड लुकिंग क्यों न हो, आपके प्रपोजल को न करने पर मजबूर कर ही देगा. क्योंकि जिसमें अभी इतना ऐटिटूड है आगे कितना होगा, कहा नहीं जा सकता. और शायद इसलिए ही आपको हमेशा अपने क्रश को प्रपोज करने में असफलता मिलती हो.

टिप जब भी आप अपने पार्टनर को प्रपोज करने जाएं तो आपके प्रपोजल का तरीका बहुत ही सोफ्ट व सामने वाले को अपनी तरफ मोहित करने वाला होना चाहिए. न कि रौब व ऐटिटूड से भरा हुआ हो.

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2. आपका गुड लुकिंग नहीं होना 

क्रश होने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन हो सकता है कि आप जब भी अपने क्रश को प्रपोज करते हो, तो आपको न ही या बगर ऑफ यानि निकल जाओ मेरी जिंदगी से ही सुनने को मिलता हो. ऐसा इसलिए क्योंकि आप उसे प्रपोज करने तो पहुंच गए लेकिन अपने हुलिए पर जरा ध्यान देना ही भूल गए हैं. ऐसे में आपके क्रश से आपको न ही सुनने को मिलेगी. क्योंकि कोई भी लड़की ये नहीं चाहेगी कि उसका पार्टनर दिखने में अच्छा न हो. क्योंकि कहते हैं न कि बातों का इफेक्ट बाद में लोगों पर पड़ता है पहले तो चेहरा ही वर्क करता है. ऐसे में प्रपोज करने से पहले अपने हुलिए पर ध्यान जरूर दें.

टिप  भले ही आपको टिप टोप रहने का शौक न हो, लेकिन जब आप अपने क्रश को प्रपोज करने जा रहे हो तो खुद को टिप टोप बनाकर ही जाएं. ताकि लड़की की नजरों में आप पहली नजर में ही बस जाएं. और वे आपके प्रपोजल को न न कर पाए. क्योंकि गुड लुकिंग, हैंडसम बोय की कामना हर लड़की को होती है.

3. इशारों के बाद प्रपोज करना 

कुछ लड़कों की ये आदत होती है कि वे जिसे पसंद करते हैं , उसे इशारों से अपने मन का हाल बताने की कोशिश करते हैं. जबकि लड़कियां ऐसे लड़कों से दूरी बनाने में ही समझदारी समझती हैं. क्योंकि ऐसे लड़के उन्हें नियत के सही नहीं लगते. उन्हें लगता है कि जो अभी ऐसी हरकत करता है वो आगे किस हद तक चला जाएगा, कहा नहीं जा सकता. ऐसे में वे उनके प्रपोज करते ही उन्हें साफ इंकार कर देती हैं.

टिप  जिस पर भी आपका क्रश है ,और आप उसे प्रपोज करने के बारे में सोच रहे हैं तो इस बात का खास ध्यान रखें कि आप भले ही उसे छुपछुप कर देखें जरूर , लेकिन उसे इशारे न करें. जब भी उसे प्रपोज करें तो आपकी आंखों में उसके लिए प्यार दिखे, न कि एक अजीब सी शरारत.

4. शो ऑफ करके प्रपोज करना 

ये सच है कि आज अधिकांश लड़कियां पैसा , शोहरत देखकर ही लड़कों के प्रपोजल को मंजूर करती हैं. लेकिन हर स्तिथि में ये जरूरी नहीं है कि लड़कियां गाड़ी , पैसा देखकर ही इम्प्रेस हो. ऐसे में अगर आप अपने क्रश को प्रपोज करने जा रहे हैं और आप अगर उसे अपने पैसों का रुतबा दिखाकर प्रपोज कर रहे हैं तो यकीन मानिए आपको न ही सुनने को मिलेगा. क्योंकि जो शुरूवात में इतना दिखावा कर रहा है वो आगे भी अपने पैसों के बल पर मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करेगा, ऐसा सोच कर लड़की आपके गुड लुकिंग होते हुए भी आपको कई बार न करने में ही समझदारी समझेगी.

टिप जब प्रपोज करने के लिए जाएं तो आप इस बात का ध्यान रखें कि आपकी पर्सनालिटी व आपके प्रपोज़ करने के अंदाज में पैसों का दिखावा जरा भी न हो.

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5. ज्यादा स्मार्ट बनना 

कुछ लड़कों की ये आदत होती है कि वे लड़कियों के सामने खुद को जरूरत से ज्यादा स्मार्ट दिखाने की कोशिश करते हैं. इसी चक्कर में जब वे अपने क्रश को अपना बनाने के बारे में सोचते हैं तब उनकी ये स्मार्टनेस उनके रिजेक्शन के रूप में सामने आती है. क्योंकि कोई भी लड़की जरूरत से ज्यादा स्मार्ट बनने वाले लड़के को पसंद नहीं करना चाहती. ऐसे में बस वे यही सोचते रह जाते हैं कि लड़की ने हमें रिजेक्ट क्यों किया, जबकि हमने तो उन्हें पहल करके पहले प्रपोज किया है.

टिप  जब भी लड़की को प्रपोज करें तो ओवर स्मार्टनेस को एक तरफ रखकर कूल डाउन होकर इस अंदाज में प्रपोज करें कि आपका क्रश आपको हां कहे बिना रह न सके. क्योंकि जब आप में कुछ खास होगा, तभी तो कोई आपकी और अट्रैक्ट होगा.

Healthy रिश्ते में स्वच्छता का महत्त्व

रानी और रजनी पक्की सहेलियां हैं. दोनों मध्यवर्गीय, पढ़ीलिखी, उदार, सहिष्णु, मितव्ययी, परिवार का खयाल रखने वाली, नईनई चीजों को सीखने की इच्छुक हैं.

बस दोनों में एक ही अंतर है. यह अंतर देह प्रेम को ले कर है. एक छत के नीचे रहते हुए भी रानी और उस के पति के बीच देह प्रेम उमड़ने में काफी वक्त लगता है. महीनों यों ही निकल जाते हैं.

उधर रजनी और उस का पति हफ्ते में 1-2 बार शारीरिक निकटता जरूर पा लेते हैं. रानी इस प्रेम को गंदा भी समझती है, जबकि रजनी ऐसा नहीं सोचती है. दोनों एकदूसरे के इस अंतर को जानती हैं.

आप कहेंगे कि भला यह क्या अंतर हुआ? जी हां, यही तो बड़ा अंतर है. पिछले दिनों इस एक अंतर ने दोनों सहेलियों में कई और अंतर पैदा कर दिए थे.

इस एक अंतर से ही रानी तन को स्वच्छ रखने में संकोची हो गई थी. केवल वह ही नहीं, बल्कि उस के पति का भी यही हाल था. उसे अपने कारोबार से ही फुरसत नहीं थी. वह हर समय गुटका भी चबाता रहता था.

सैक्स सिखाए स्वच्छ रहना

उधर, रजनी नख से शिख तक हर अंग को ले कर सतर्क थी. बेहतर तालमेल, प्रेम, अंतरंगता और नियमित सहवास की वजह से रजनी को यह एहसास रहता था कि एकांत, समय और निकटता मिलने पर पति कभी भी उसे आलिंगन में भर सकता है. वह कभी भी उस के किसी भी अंग को चूम सकता है. कभी भी दोनों के यौन अंगों का मिलन हो सकता है. ऐसे में वह अंदरूनी साफसफाई को ले कर लापरवाह नहीं हो सकती थी. रजनी की तरफ से इसी प्रकार की कोई भी प्रतिक्रिया उस के पति को भी अंदरूनी रूप से स्वच्छ रखने में मदद करती थी.

इस एक अंतर से ही रानी अपनी देह और खानपान के प्रति भी लापरवाह हो गई थी. जब देह को निहारने वाला, देह की प्रशंसा करने वाला कोई न हो तो अकसर शादी के बाद इस तरह की लापरवाही व्यवहार में आ जाती है. रानी इस का सटीक उदाहरण थी. इस वजह से समय बीतने के साथ उस ने चरबी की कई परतों को आमंत्रण दे दिया था. उधर रजनी का खुद पर पूरा नियंत्रण था, लिहाजा वह छरहरे बदन की स्वामिनी थी.

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इस एक अंतर के कारण ही रानी एक दिन डाक्टर के सामने बैठी थी. रजनी भी साथ थी. रानी को जननांग क्षेत्र में दर्द की समस्या थी, जो काफी अरसे से चली आ रही थी. डाक्टर ने बताया कि इन्फैक्शन है. इन्फैक्शन का कारण शरीर की साफसफाई पर ठीक से ध्यान नहीं दिया जाना है. साफसफाई में लापरवाही से समस्या गंभीर हो गई थी.

रानी का मामला रजनी के पति को भी पता चल गया था. वास्तव में हर वह बात जो रजनी और उस के पति में से किसी एक को पता चलती थी, वह दूसरे की जानकारी में आए बिना नहीं रहती थी. वे दोनों हर मामले पर बात करते थे. रात में जब रजनी ने पति राजेश को सारी बात बताई तो राजेश ने कहा, ‘‘तुम्हें अपनी सहेली को समझाना चाहिए कि देह प्रेम गंदी क्रिया नहीं है. मैं यह तो नहीं कहता कि ऐसे सभी विवाहित लोग जो सहवास नहीं करते, वे शरीर की साफसफाई को ले कर लापरवाह रहते होंगे, लेकिन मैं यह गारंटी से कह सकता हूं कि यदि पतिपत्नी नियमित अंतराल पर देह प्रेम करते हैं, तो दोनों ही अपने तन की स्वच्छता के प्रति लापरवाह नहीं रह सकते यानी यदि वे सहवास का आनंद लेते हैं तो वे ज्यादा स्वस्थ और स्वच्छ रहते हैं.’’

दवा है सैक्स

राजेश ने बिलकुल ठीक कहा. दरअसल, जब पतिपत्नी को यह एहसास रहता है कि वे एकदूसरे को प्यार करते हैं और उन्हें शारीरिक रूप से जल्दीजल्दी निकट आना है, तो दोनों ही स्वाभाविक रूप से अपने हर अंग की साफसफाई के प्रति सचेत रहते हैं. इस से न सिर्फ उन का व्यक्तित्व निखरता है और दोनों में प्रेम बढ़ता है, बल्कि कई रोग भी शरीर से दूर रहते हैं. इस के उलट जो दंपती शारीरिक संबंधों के प्रति उदासीन रहते हैं, वे अपनी साफसफाई के प्रति भी लापरवाह हो सकते हैं.

हम सभी जानते हैं कि वैवाहिक जीवन में पतिपत्नी के बीच शारीरिक संबंध के 2 प्रमुख उद्देश्य होते हैं. पहला संतान की उत्पत्ति और दूसरा आनंद की प्राप्ति. लेकिन बारीकी से नजर डालें तो सहवास से एक परिणाम और निकलता है, जिसे तीसरा उद्देश्य भी बनाया जा सकता है. दरअसल, सहवास से पतिपत्नी अच्छा स्वास्थ्य भी पा सकते हैं. इसे हम यों भी कह सकते हैं कि यदि पतिपत्नी के बीच नियमित अंतराल पर शारीरिक संबंध बन रहे हैं, तो इस बात की संभावना ज्यादा है कि वे स्वस्थ भी रहेंगे.

जी हां, पतिपत्नी के बीच सैक्स को कई तरह की दिक्कतें दूर करने की दवा बताया गया है. सैक्स को ले कर दुनिया भर में अनेक शोध किए गए हैं और किए जा रहे हैं. विभिन्न शोधों के बाद दुनिया भर के विशेषज्ञों ने सैक्स के फायदे कुछ इस तरह गिनाए हैं:

– पतिपत्नी के बीच नियमित अंतराल पर शारीरिक संबंध बनने से तनाव और ब्लड प्रैशर नियंत्रण में रखने में सहायता मिलती है. तनाव में कमी आती है, तो अनेक अन्य रोग भी पास नहीं फटकते हैं.

– सप्ताह में 1-2 बार किया गया सैक्स रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.

– सैक्स अपनेआप में एक शारीरिक व्यायाम है और विशेषज्ञों के अनुसार आधे घंटे का सैक्स करीब 90 कैलोरी कम करता है यानी सैक्स के जरीए वजन घटाने में भी मदद मिलती है.

– एक अध्ययन कहता है कि जो व्यक्ति हफ्ते में 1-2 बार सैक्स करते हैं उन में हार्ट अटैक की आशंका आधी रह जाती है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि शारीरिक प्यार एक तरह से भावनात्मक प्यार का ही बाहरी रूप है, इसलिए जब हम शारीरिक प्यार करते हैं, तो भावनाओं का घर यानी हमारा दिल स्वस्थ रहता है.

– वैज्ञानिकों के अनुसार सैक्स, फील गुड के एहसास के साथसाथ स्वसम्मान की भावना को भी बढ़ाने में सहायक होता है.

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– शारीरिक संबंध प्रेम के हारमोन औक्सीटौसिन को बढ़ाने का काम करता है, जिस से स्त्रीपुरुष का रिश्ता मजबूत होता है.

– सैक्स शरीर के अंदर के स्वाभाविक पेनकिलर ऐंडोर्फिंस को बढ़ावा देता है, जिस से सैक्स के बाद सिरदर्द, माइग्रेन और यहां तक कि जोड़ों के दर्द में भी राहत मिलती है.

– वैज्ञानिकों के अनुसार जिन पुरुषों में नियमित अंतराल पर स्खलन (वीर्य का निकलना) होता रहता है, उन में ज्यादा उम्र होने पर प्रौस्टेट संबंधी समस्या या प्रौस्टेट कैंसर की आशंका काफी कम हो जाती है. यहां नियमित अंतराल से मतलब 1 हफ्ते में 1-2 बार सहवास से है.

– सैक्स नींद न आने की दिक्कत को भी दूर करता है, क्योंकि सैक्स के बाद अच्छी नींद आती है.

सहवास एक दवा है. दवा भी ऐसी जिस का कोई साइड इफैक्ट भी नहीं है, इसलिए पतिपत्नी को स्वस्थ रहने के लिए इस दवा का नियमित अंतराल पर सेवन अवश्य करना चाहिए.

कुछ दिनों से देवर के व्यवहार में बदलाव की वजह से परेशान हूं?

सवाल-

मैं 25 साल की शादीशुदा महिला हूं. हम एक शहर में किराए के मकान में रहते हैं. कुछ दिन पहले मेरे पति के छोटे भाई यानी मेरा देवर हमारे साथ रहने आया हुआ है. देवर अभी अविवाहित है. पति औफिस के काम में बिजी रहते हैं, इस वजह से मैं देवर के साथ शौपिंग आदि करने लगी. इधर कुछ दिनों से उस के व्यवहार में बदलाव की वजह से परेशान हूं. वह अब जानेअनजाने मेरे पास आने की कोशिश करता है. मुझे छूना चाहता है. समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूं? मैं नहीं चाहती कि इस वजह से दोनों भाइयों में दूरियां बनें. कई बार लगा कि पति से बात करूं पर बहुत कुछ सोच कर रुक जाती हूं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

संभव है कि ज्यादा हंसीमजाक कर आप ने उसे सिर चढ़ा लिया है. देवर और भाभी का संबंध बहुत पवित्र होता है और अगर आप का देवर इस मर्यादा को भूल कर गलत मंशा रखता है, तो उस से दूरी बना कर रखें. शौपिंग या बाजार आदि भी देवर के साथ नहीं पति के साथ जाएं.

आप अपनी छोटीमोटी जरूरतों का सामान पति के साथ भी जा कर खरीद सकती हैं. पति के औफिस से आने के बाद नजदीकी बाजार में खरीदारी कर सकती हैं. इस से पति को भी अच्छा लगेगा. सप्ताह के अंत या जिस दिन पति की छुट्टी हो, साथ जा कर पूरे सप्ताह की खरीदारी कर लें.

इस दौरान आप को संयम से काम लेना होगा. देवर को रिश्ते की मर्यादा बताएं, बावजूद इस के अगर वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आता तो पति और घर वालों से बात कर सकती हैं.

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बड़े शहरों में सब से बड़ी समस्या आवास की होती है. 2 कमरों के छोटे से फ्लैट में पतिपत्नी, बच्चे और सासससुर रहते हैं. ऐसे में पतिपत्नी एकांत का नितांत अभाव महसूस करते हैं. एकांत न मिल पाने के कारण वे सैक्स संबंध नहीं बना पाते या फिर उन का भरपूर आनंद नहीं उठा पाते क्योंकि यदि संबंध बनाने का मौका मिलता है तो भी सब कुछ जल्दीजल्दी में करना पड़ता है. संबंध बनाने से पूर्व जो तैयारी यानी फोरप्ले जरूरी होता है, वे उसे नहीं कर पाते. इस स्थिति में खासकर पत्नी चरमसुख की स्थिति में नहीं पहुंच पाती है. पतिपत्नी को डर लगा रहता है कि कहीं बच्चे न जाग जाएं, सासससुर न उठ जाएं. मैरिज काउंसलर दीप्ति सिन्हा का कहना है, ‘‘संबंध बनाने के लिए एकांत न मिलने के कारण महिलाएं चिड़चिड़ी, झगड़ालू और उदासीन हो जाती हैं और फिर धीरेधीरे दांपत्य जीवन में दरार पड़नी शुरू हो जाती है, यह दरार अनेक समस्याएं खड़ी कर देती है. कभीकभी तो नौबत हत्या या आत्महत्या तक की आ जाती है.’’

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

मौसम और Mood: क्या होता है असर 

बरसात के मौसम में बच्चों का बाहर निकल कर खेलना कूदना बंद हो जाता है और वे कहते हैं- रेन रेन गो अवे… उसी तरह अधिक गरमी या जाड़े में परेशान हो कर हम कहते हैं कि यह मौसम कब जाएगा. मौसम का अपना एक नैचुरल साइकिल है और आमतौर पर किसी खास भौगोलिक स्थान पर यह अपने समय पर आता जाता है. हालांकि आजकल क्लाइमेट चेंज के चलते बेमौसम के भी कभी मौसम में बदलाव देखने को मिल सकता है.

कोई भी स्थिति ज्यादा बरसात या ज्यादा गरमी या ज्यादा ठंड जब लगातार लंबे समय के लिए हमें परेशान करता है तब मन में कुढ़न होती है. मगर क्या यह मात्र मन की परिकल्पना है कि सच में मौसम का असर हमारे मूड पर पड़ता है? 70 के अंत और 80 की शुरुआत में इन का संबंध उभर कर आने लगा था जब कुछ वैज्ञानिकों ने इस विषय पर अध्ययन शुरू किया है

मौसम और मूड का संबंध: यह संबंध बहुत मर्की है जिसे आप धुंधला, उदास, फीका या गंदा कुछ भी कह सकते हैं. विज्ञान के अनुसार मौसम और मूड का संबंध विवादों से घिरा है और दोनों तरह के तर्कवितर्क भिन्न हो सकते हैं. 1984 में वैज्ञानिकों ने मूड चेंज के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययन किया. इस अध्ययन में देखा गया कि मूड में परिवर्तन जैसे क्रोध, खुशी, चिंता, आशा, निराशा या आक्रामक व्यवहार जिन पहलुओं पर निर्भर करता है वे हैं- धूप, तापमान, हवा,  ह्यूमिडिटी, वायुमंडल का दबाव और उतावलापन.

अध्ययन में देखा गया कि जिन बातों का सर्वाधिक असर मूड पर पड़ता है वे हैं- सनशाइन या धूप, तापमान और ह्यूमिडिटी. खास कर ज्यादा   ह्यूमिडिटी बढ़ने पर कंसंट्रेशन में कमी होती है और सोने को जी चाहता है. 2005 के एक अध्ययन में देखा गया कि अच्छे मौसम में बाहर घूमने या समय बिताने से मूड अच्छा होता है और याददाश्त में बढ़त देखने को मिलती है.

अच्छा और खराब

वसंत ऋतु में मूड सब से अच्छा और गर्मी में खराब होता है. पर कुछ वैज्ञानिक इस अध्ययन से सहमत नहीं थे और उन्होंने 2008 में अलग अध्ययन किया. इस अध्य्यन में उन्होंने देखा कि धूप, टैंपरेचर और ह्यूमिडिटी का मूड पर कुछ खास सकारात्मक या नकारात्मक असर नहीं पड़ता है. अगर है भी तो वह नगण्य है. उन्होंने यह भी देखा कि 2005 के अध्ययन में कहे गए अच्छे मौसम का बहुत ही मामूली सकारात्मक प्रभाव मूड पर पड़ता है.

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मौसम और मूड के संबंध में अभी और अध्ययन की जरूरत है. पर एक बात जिस पर लगभग सभी सहमत हैं वह यह कि मौसम का आदमी पर प्रभाव किसी व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है जो सभी के लिए समान नहीं हो सकता है.

क्या हर आदमी वैदर टाइप होता है: मौसम के प्रति प्रतिक्रिया या संवेदनशीलता हर आदमी की अलग होती है. उदाहरण के लिए स््नष्ठ (सीजनल इफैक्टिव डिसऔर्डर) जिसे मौसम के अनुसार मूड में बदलाव कहते हैं को लें तो जाड़ों में दिन छोटा होने से कुछ लोगों के मूड डिप्रैसिव पाए गए हैं जिसे विंटर ब्लू भी कहते हैं.

वैज्ञानिकों के अनुसार विंटर ब्लू सिंड्रोम दुनिया की 6% आबादी में देखा गया है, इसलिए इसे रेयर मूड रिलेटेड डिसऔर्डर कहा जाता है. अमेरिका के नैशनल इंस्टियूट औफ मैंटल हैल्थ के अनुसार स््नष्ठ एक अति साधारण स्तर का डिसऔर्डर है.

समर सैड: अध्ययन में देखा गया है कि कुछ लोगों में समर सैड होता है जिस से वे डिप्रैस्ड अनुभव करते हैं . खास कर बाइपोलर डिसऔर्डर रोग में गरमी के चलते लोगों को दौरा पड़ सकता है जिस से वे उन्मत्त या हाइपोमैनियक हो सकते हैं. कुछ लोग गरमियों में चिंतित, चिड़चिड़े या हिंसक भी हो सकते हैं.

कुछ मामलों में बुरे मौसम (व्यक्ति विशेष के लिए ज्यादा गरमी या ठंड अथवा बरसात कुछ भी हो सकता है) में लो मूड और खराब हो सकता है. ह्यूमिडिटी (आर्द्रता) में असहज और प्रेरणाहीन महसूस हो सकता है.

संबंधित प्रतिक्रिया

इस के बाद पुन: 2011 में अध्ययन किया गया जिस में कहा गया है कि मौसम का असर मूड पर जरूर पड़ता है, भले ही थोड़े लोगों में न हो. जिन लोगों पर यह अध्ययन किया गया उन में 50% पर मौसम का कोई प्रभाव नहीं देखा गया? जबकि शेष 50% में इस का पौजिटिव या नैगेटिव असर देखने को मिला.

इन सभी अध्ययनों के बाद, अध्ययन में शामिल लोगों में निम्नलिखित 4 मौसम संबंधित बातें या प्रतिक्रिया देखने को मिली है-

मौसम और मूड का कोई संबंध नहीं: जिन पर मौसम का कोई असर नहीं उन के अनुसार मूड और मौसम का कोई संबंध नहीं है.

समर लवर्स: कुछ लोगों में गरमी और सनशाइन के मौसम में मूड अच्छा रहता है.

समर हेटर्स: ठंडे और बादल वाले दिनों में मूड अच्छा रहता है.

रेन हेटर्स: इन्हें बरसात का मौसम बिलकुल पसंद नहीं है. इन दिनों इन का मूड अच्छा नहीं (लो) रहता है. करीब 9% लोग इस श्रेणी में आते हैं. अमेरिकन मनोवैज्ञानिक डा. टैक्सिआ एवंस के अनुसार बरसात की अंधेरी रातों में अकेलापन और डर महसूस होता है और मूड अच्छा नहीं रहता है.

इस के विपरीत न्यूयौर्क की मनोचिकित्सक और लाइट थेरैपिस्ट डा. जूलिया सैम्टन बरसात और क्लाउडी दिनों में भी अपने रोगी को बाहर प्रकाश में जाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं. उन के अनुसार लाइट से कुछ लोगों का सिरकाडियन रिद्म रैगुलेट होता है और उन का मूड अच्छा होता है.

पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी के फैलो डा. उरी सिमोन्सन द्वारा प्रस्तुत शोध पेपर ‘क्लाउड्स मेक नर्ड लुक बैटर’ (बादल बेवकूफ को बेहतर बनाते हैं)’ में कहा गया है कि यूनिवर्सिटी के एडमिशन अफसर विद्यार्थियों के शैक्षणिक  गुण का आकलन क्लाउडी दिनों में करते हैं और गैरशैक्षणिक योग्यता का आकलन धूप के दिनों में करते हैं.

दूसरी ओर धूप हो न हो तापमान का असर भी व्यक्ति के व्यवहार और मस्तिष्क पर पड़ता है. सामान्यतया 25% तापमान से जितनी दूर (ज्यादा  या कम हों) आदमी हो उतना ही ज्यादा असहज महसूस करता है. एक अध्ययन में देखा गया है कि इस तापमान से दूर होने पर आदमी में  सहायता करने की प्रवृत्ति कम हो जाती है.

क्या मौसम और सैक्स में संबंध है: हालांकि मौसम और सैक्स के बारे में कोई एक जनरल नियम नहीं है जो सब पर लागू हो. फिर भी मौसम का असर कुछ हद तक सैक्स ड्राइव पर पड़ता है.

गरमियों में सैक्स ड्राइव जाड़े की तुलना में बेहतर: विडंबना यह है कि गरमी के मौसम में ठंड की अपेक्षा सैक्स की इच्छा ज्यादा होती है. वैज्ञानिकों के अनुसार इस के लिए हारमोन बधाई का पात्र है. महिलाओं के सैक्स हारमोन गरमी और सनशाइन में ज्यादा बनते हैं जिस के चलते उन में सैक्स ड्राइव बढ़ा देता है. इसके अलावा फील गुड न्यूरो ट्रांसमीटर, सैरोटोनिन, महिलाओं और पुरुषों दोनों में वसंत और गरमी में ज्यादा बनते हैं जिस के चलते मूड अच्छा रहता है.

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जाड़े में सैक्स ड्राइव: इस मौसम में फील गुड हारमोन. सैरोटोनिन कम बनता है और महिलाओं में ऐस्ट्रोजन भी कम बनता है जिस के चलते सैक्स में कमी हो सकती है. इस के अतिरिक्त ठंड में बदन पर हमेशा ज्यादा कपड़े होने से स्किन का ऐक्सपोजर कम होता है जिस के चलते परस्पर आकर्षण में कुछ कमी होती है. इस मौसम में अनड्रैस होना भी कठिन है. धूप में कम ऐक्सपोजर होने से विटामिन डी का कम बनना भी एक कारण हो सकता है.

मौनसून सैक्स के लिए सब से अच्छा: मौनसून को सैक्स के लिए सर्वोत्तम मौसम माना जाता है. बिजली की चमक और बादलों की गर्जना से एक अलग थ्रिल का एहसास होता है और सैक्स का उन्माद जाग्रत होता है.

ठंडी हवा और बारिश की फुहारें सैक्स की चिनगारी भड़काती हैं. बरसात में कडलिंग से लव हारमोन औक्सीटोसिन भी ज्यादा बनता है जो दोनों पार्टनर में सैक्स ड्राइव बढ़ा देता है.

इन अध्ययन से प्रतीत होता है कि कुछ व्यक्ति मौसम के प्रति लचीला व्यवहार करते हैं यानी एक तरह से वैदरपू्रफ हैं, उन पर किसी मौसम का कोई खास असर नहीं पड़ता है. सब से अच्छी बात यह है कि ज्यादातर आदमी स्वाभाविक रूप से मौसम के अनुकूल अपने को एडजस्ट कर सकता है.

दूसरी ओर कुछ लोग मौसम विशेष के प्रति संवेदनशील होते हैं और मौसम की प्रतिक्रिया की तीव्रता उस व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है.

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मनपसंद के लिए इतना तो कीजिए

लेखिका -स्नेहा सिंह

अब उस से मिलने के लिए मन बेचैन नहीं होता. सबकुछ छोड़ कर उस के पास जाने की इच्छा की धार कुंद हो गई है. बातों के विषय खत्म हो गए हैं. भावनाएं फर्ज बन कर रह गई हैं. शरीर का आकर्षण मर चुका है. जो स्पर्श पतिंगे उड़ा सकता था, अब वह शरीर पर कांटे की तरह चुभता है. संस्कार कमिटमैंट, संबंध और समाज ने अभी एकदूसरे के साथ जोड़ रखा है. पर सचाई और कही न जा सके वास्तविकता यह है कि अब उस के साथ पहले जैसा अच्छा नहीं लगता.

जब आप किसी के साथ संबंध में होती हैं तो उस संबंध को बनाए रखने के लिए उस का जमाउधार नियमित जांचते रहना चाहिए. धंधे में संबंध का उसूल और संबंध में धंधे का उसूल रखने और पालन करने की कोशिश करेंगी तो दोनों ओर से कोई दिक्कत नहीं आएगी. आप महिला हैं. आप को मनपसंद पुरुष के लिए हमेशा इंटरैस्टिंग बने रहना जरूरी होगा.

आप को इंटरैस्टिंग बने रहना होगा

सामाजिक जिम्मेदारियों और बच्चों के बीच महिलाएं इस तरह खो जाती हैं कि पति के प्रति इंटरैस्टिंग बन कर रहना भूल जाती हैं. ऐसा ही पति के साथ भी होता है. पैसा और नाम कमाने में व्यस्त रहना पतिपत्नी को ‘अच्छा’ लगने की कोशिश नहीं कराता. प्रेम संबंध में भी ऐसा ही होता है. इंटरैस्टिंग बन कर रहना यानी आप अपने पसंद के व्यक्ति के लिए शारीरिक और मानसिक, दोनों तरह से रुचिकर रहें.

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मानसिक अपग्रेडेशन

एक घर अच्छी तरह चले, इस में गृहिणी की बहुत बड़ी भूमिका होती है पर घर संभालने के चक्कर में गृहिणियां संबंध संभालने में चूक जाती हैं. आप हाउसवाइफ हैं तो क्या हो गया. मानसिक रूप से अपग्रेडेड रह सकती हैं और रहना भी चाहिए. हाउसवाइफ को पढ़ना चाहिए, अच्छी फिल्में देखनी चाहिए, अच्छे गाने सुनने चाहिए और देशविदेश के समाचार जानने चाहिए.

शरीर

शरीर को संभालना और यथास्थित रखना महिलाओं के लिए एक नैशनल समस्या बन गई है. कमर लचीली न रहे, चलेगा, पर वहां चरबी घर कर जाए, यह नहीं चलेगा. सैक्सलाइफ के लिए शरीर को संभाल कर रखना जरूरी है. नियमित वैक्स, अंडरआर्म्स, विकिनी वैक्स कराते रहना जरूरी है. प्राइवेट पार्ट की सफाई भी उतनी ही जरूरी है.

मैनर्स

पति की अनुपस्थिति में उन का व्हाट्सऐप पढ़ना, उन का कौल लौग देखना मैनर्स नहीं है. ऐसा ही पत्नी के फोन के साथ भी नहीं किया जा सकता. खाना आप बहुत अच्छा बनाती हैं, पर उसे परोसना भी आना चाहिए. थाली में सब्जी कहां रखी जाए और रोटी किस तरह रखी जाए, यह सब पता होना चाहिए. कहां रोका जाए, इस का भी ज्ञान होना चाहिए. आप को समय नहीं देते, यह शिकायत हर समय नहीं होनी चाहिए.

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अभिव्यक्ति

किसी भी संबंध को बनाए रखने के लिए अभिव्यक्ति बहुत जरूरी है. आप कितना प्रेम करती हैं, आप एकदूसरे को कितना मिस करते हैं, आप दोनों को क्या अच्छा लगता है, क्या नहीं , इस बात की अभिव्यक्ति जरूरी है. तमाम लोग यह कह देते हैं कि मैं इंट्रोवर्ट हूं, पर इंट्रोवर्ट रह कर भी आप के व्यवहार से प्रेम की अभिव्यक्ति हो सकती है.

आप के पार्टनर की बदल रही जरूरतें आप को पता होनी चाहिए. उसे आप से क्या अपेक्षाएं हैं, इस की भी आप को खबर होनी चाहिए. बातबात में आप को अपनी जरूरतें भी पार्टनर से कह देनी चाहिए.

शादी से पहले प्यार की सीमाएं

प्राय: मंगनी होते ही लड़कालड़की एकदूसरे को समझने के लिए, प्यार के सागर में गोते लगाना चाहते हैं. एक बात तो तय रहती है खासकर लड़के की ओर से, क्या फर्क पड़ता है, अब तो कुछ दिनों में हम एक होने वाले हैं, फिर क्यों न अभी साथ में घूमेंफिरें. उस की ओर से ये प्रस्ताव अकसर रहते हैं कि चलो रात में घूमने चलते हैं, लौंग ड्राइव पर चलते हैं. वैसे तो आजकल पढ़ीलिखी पीढ़ी है, अपना भलाबुरा समझ सकती है. वह जानती है उस की सीमाएं क्या हैं. भावनाओं पर अंकुश लगाना भी शायद कुछकुछ जानती है. पर क्या यह बेहतर न होगा कि जिसे जीवनसाथी चुन लिया है, उसे अपने तरीके से आप समझाएं कि मुझे आनंद के ऐसे क्षणों से पहले एकदूसरे की भावनाओं व सोच को समझने की बात ज्यादा जरूरी लगती है. मन न माने तो ऐसा कुछ भी न करें, जिस से बाद में पछतावा हो.

मेघा की शादी बहुत ही सज्जन परिवार में तय हुई. पढ़ालिखा, खातापीता परिवार था. मेघा मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे ओहदे पर थी. खुले विचारों की लड़की थी. मंगनी के होते ही लड़के के घर आनेजाने लगी. जिस बेबाकी से वह घर में आतीजाती थी, लगता था वह भूल रही थी कि वह दफ्तर में नहीं, ससुराल परिवार में है. शुरूशुरू में राहुल खुश था. साथ आताजाता, शौपिंग करता. ज्योंज्यों शादी के दिन नजदीक आते गए दूरियां और भी सिमटती जा रही थीं. एक दिन लौंग ड्राइव पर जाने के लिए मेघा ने राहुल से कहा कि क्यों न आज शाम को औफिस के बाद मैं तुम्हें ले लूं. लौंग ड्राइव पर चलेंगे. एंजौय करेंगे. पर यह क्या, यहां तो अच्छाखास रिश्ता ही फ्रीज हो चला. राहुल ने शादी से इनकार कर दिया. कार्ड बंट चुके थे, तैयारियां पूरी हो चली थीं. पर ऐसा क्या हुआ, कब हुआ, कैसे हुआ? पूछने पर नहीं बताया, बस इतना दोटूक शब्दों में कहा कि रिश्ता खत्म. बहुत बाद में जा कर किसी से सुनने में आया कि मेघा बहुत ही बेशर्म, चालू टाइप की लड़की है. राहुल ने मेघा के पर्स में लौंग ड्राइव के समय रखे कंडोम देख लिए. यह देख कर उस ने रिश्ता ही तोड़ना तय कर लिया. शायद उसे भ्रम था मेघा पहले भी ऐसे ही कई पुरुषों के साथ इस बेबाकी से पेश आ चुकी होगी. आजकल की लड़कियों में धीरेधीरे लुप्त होती जा रही लोकलाज, लज्जा की भनक भी मेघा के सरल व्यवहार में मिलने लगी थी. इन बातों की वजह से ही रिश्ता टूटने वाली बात हुई.

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कौन सी बातें जरूरी

इसलिए बेहतर है कोर्टशिप के दौरान आचरण पर, अपने तौरतरीकों पर, बौडी लैंग्वेज पर विशेष ध्यान दें. वह व्यक्ति जिस से आप घुलमिल रही हैं, भावी जीवनसाथी है, होने वाला पति है, हुआ नहीं. तर्क यह भी हो सकता है, सब कुछ साफसाफ बताना ही ठीक है. भविष्य की बुनियाद झूठ पर रखनी भी तो ठीक नहीं. लेकिन रिश्तों में मधुरता, आकर्षण बनाए रखने के लिए धैर्य की भावनाओं को वश में रखने की व उन पर अंकुश लगाने की जरूरत होती है.

प्यार में डूबें नहीं

शादी के पहले प्यार के सागर में गोते लगाना कोई अक्षम्य अपराध नहीं. मगर डूब न जाएं. कुछ ऐसे गुर जरूर सीखें कि मजे से तैर सकें. सगाई और शादी के बीच का यह समय यादगार बन जाए, पतिदेव उन पलों को याद कर सिहर उठें और आप का प्यार उन के लिए गरूर बन जाए और वे कहें, काश, वे पल लौट आएं. इस के लिए इन बातों के लिए सजग रहें- 

हो सके तो अकेले बाहर न जाएं. अपने छोटे भाईबहन को साथ रखें.

बहुत ज्यादा घुलनामिलना ठीक नहीं.

मुलाकात शौर्ट ऐंड स्वीट रहे.

घर की बातें न करें.

अभी से घर वालों में, रिश्तेदारों में मीनमेख न निकालें.

एकदूसरे की भावनाओं का सम्मान करें.

अनर्गल बातें न करें.

बेबाकी न करें. बेबाक को बेशर्म बनते देर नहीं लगती.

याद रहे, जहां सम्मान नहीं वहां प्यार नहीं, इसलिए रिश्तों को सम्मान दें.

कोशिश कर दिल में जगह बनाएं. घर वाले खुली बांहों से आप का स्वागत करेंगे.

मनमानी को ‘न’ कहने का कौशल सीखें.

चटोरी न बनें

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जादुई झप्पी के 11 फायदे

जादू की मीठी झप्पी सचमुच कितनी जादुई है, इस को वही महसूस कर सकता है, जो अपने प्यार को एक नर्म, सुंदर स्पर्श से अभिव्यक्त करना जानता है. चिकित्सक भी मानते हैं कि कुछ सैकंड के झप्पी या आलिंगन दवा सा प्रभाव दिखाता है.

यों पूरी दुनिया में गले लगा कर झप्पी देनेलेने के तरीके सिखाने वाले क्लब तक बने हुए हैं और आलिंगन से जुड़े अनेक उत्सव पूरी दुनिया में मनाए जा रहे हैं, फिर भी अचानक या किसी बधाई के रूप में एकदूजे को दिया जाने वाला आलिंगन तो अपनेआप में अनूठा है ही.

सार्वजनिक रूप से शुरुआत

सब से पहले सार्वजनिक रूप से आलिंगन को अमेरिका में विधिवत रूप से किया जाना शुरू किया गया था. हालांकि कुछ स्रोतों का कहना है कि जब से दुनिया शुरू हुई प्रेमीप्रेमिका या मित्र आलिंगन करते हैं.

हां, यह बात जरूर है कि सीने से लगाने की यह भावना चोरीछिपे पूरी की जाती होगी और मारे शर्म से कोई इस का लाभ ही नहीं ले पाता होगा, तब किसी जागरूक व्यक्ति ने इस को खूब फैलाया होगा.

फिर भी यह माना जाता है कि लगभग 50 साल पहले यह प्रथा कुछ यूरोपीय छात्रों द्वारा आविष्कृत की गई थी. उस समय बोझिल लैक्चरों से उकता कर कुछ छात्रों द्वारा यह तरीका खोजा गया था.

यूरोप के छात्रों को तकनीकी विषयों ने लगातार सुस्त और निराश कर दिया तो यह उपाय खोजा गया. उन्होंने पठनपाठन के दौरान उदास करने वाले और ऊब पैदा करने वाले सत्र के अवसाद के बाद जम्हाई लेते सहपाठियों को प्यार से हग कर के सत्र खत्म होने का जश्न मनाने का फैसला किया. इस के परिणाम बेहद शानदार रहे थे. हौलेहौले ही सही, यह हग किसी स्वार्थ और विशेष कारण के बिना भी गले लगाने का एक बहाना बनता चला गया.

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पूरे संसार का समर्थन

अब आलिंगन की संस्कृति को पूरे संसार में समर्थन मिल गया है और आज अगर कोई अपने विपरीतलिंगी को भी सब के सामने गले लगा ले तो यह गलत या अनैतिक नहीं माना जाता.

हग करना स्नेह की गरमाहट और प्रेम का आदानप्रदान है. चिकित्सकों और वैज्ञानिकों ने प्रेमी के लिए न केवल गले लगाने के रोमांच, बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी पर्याप्त शोध किया है. तो फिर आइए, जानते हैं आलिंगन के लाभ :

मजबूत होता है आत्मविश्वास :

जादू की यह झप्पी सच्चे साथी के रूप में पूर्ण सुरक्षा की भावना अंकुरित करती है. युगल साफ कहते हैं कि जब प्रेमी ने स्नेह से गले लगाया, तो कोई और डर या परेशानी नहीं थी. आलिंगन से आत्मविश्वास मजबूत होता है और आपसी जुड़ाव में भी तीव्र बढ़ोत्तरी होती है.

गले लगाते हुए प्रेमी सुकून और आराम महसूस करते हैं. कई अध्ययनों से पता चला है कि अकसर गले लगाना मानसिक और रचनात्मक विकास को आगे ले जाता है.

थकावट को दूर भगाता है :

अगर आप बहुत ज्यादा थके हुए हैं, तो आप के लिए भी आलिंगन बहुत जरूरी है. आलिंगन में यह माद्दा है कि यह चुटकी में थकान को दूर भगाता है. आलिंगन से दिमाग शांत होता है. आप का ध्यान उस चीज से हटता है जिसे ले कर आप परेशान हैं.

ऐनर्जी बूस्ट करता है :

अगर आप अकेलेपन और आलस्य के शिकार हैं, तो आलिंगन आप के लिए फायदेमंद हो सकता है. खून में बढ़ी औक्सीटोसिन की मात्रा मोरल बूस्टअप करती है. इसलिए आलिंगन के बाद लोग तरोताजा महसूस करने लगते हैं और अकेलेपन का एहसास भी दूर हो जाता है.

स्ट्रेस बूस्टर भी है :

जब कोई अपने बहुत करीबी साथी को गले लगाता है, तो उस के अंदर का सारा तनाव पलक झपकते दूर हो जाता है. यह खून में बढ़ते औक्सीटोसिन का कमाल है. इसलिए कई विशेषज्ञ तनावग्रस्त लोगों को अपने प्रियतम से आलिंगन की सलाह देते हैं.

दिल के लिए लाभप्रद :

अपने किसी खास का नियमित रूप से आलिंगन से दिल की धड़कन नियंत्रित रहती है, जो औक्सीटोसिन और मेटाबौलिज्म का निर्माण करता है. दिल के मरीजों को अपने जीवनसाथी या प्रेमीप्रेमिका को नियमित रूप से हग करना चाहिए.

अनिद्रा का दुश्मन :

आलिंगन को अनिद्रा का दुश्मन माना जाता है. जिन्हें रात में नींद न आती हो या कम नींद आती हो उन्हें अपने प्रिय से प्यार की झप्पी लेनी चाहिए. इस से उन्हें खूब नींद आएगी. विशेषज्ञ कहते हैं कि आलिंगन के बाद बहुत अच्छी नींद आती है और जो लोग खूब हग करते हैं, वे जम कर सोते हैं.

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बढ़ती है मैमोरी पावर :

रिसर्च में यह भी पता चला है कि नियमित रूप से आलिंगन सुख लेने वाले स्त्रीपुरुष की स्मरणशक्ति बहुत लंबे समय तक दुरुस्त रहती है. विशेषज्ञ कहते हैं कि आलिंगन न करने वालों की तुमना में नियमित आलिंगन करने वाले स्त्रीपुरुष की स्मरण शक्ति भी बेहतर होती है.

लंबी उम्र में फायदेमंद :

औक्सीटोसिन के रिसाव से शारीरिक दमखम बढ़ता है. इसलिए नियमित रूप से आलिंगन करना एक औषधि साबित होता है. इस से दिल की धड़कनें नियंत्रित रहती हैं, जिस से औक्सीटोसिन के साथसाथ मेटाबौलिज्म भी बेहतर होता है.

आलिंगन के बाद बहुत अच्छी नींद आती है. वैज्ञानिक दावा करते हैं कि नियमित आलिंगन से उम्र बढ़ती है. इतना ही नहीं, आलिंगन मानसिक स्वास्थ्य भी सही रखता है. अगर कोई उदास है और उस का कोई साथी आ कर उसे हग कर ले तो अच्छा लगता है और उदासी दूर हो जाती है.

सकारात्मक सोच :

आलिंगन से हर किसी की सोच सकारात्मक हो जाती है, क्योंकि इस से दिमाग में सकारात्मक प्रतिक्रिया होती है. इस आधार पर कह सकते हैं कि आलिंगन इंसान की जिंदगी को सकारात्मकता से भर देती है और नियमित आलिंगन करने वाले के स्वभाव से नकारात्मकता दूर हो जाती है.

बेचैनी होती है दूर :

खून में औक्सीटोसिन नाम के हारमोन का जितना ज्यादा रिसाव होगा, कोई भी व्यक्ति उतना ही ज्यादा हैल्दी होगा. यह हारमोन इंसान की बेचैनी को भी खत्म करता है यानी आप अगर बेचैनी महसूस कर रहे हैं तो अपने प्रिय को गले लगा लीजिए, आप की बेचैनी खत्म हो जाएगी.

मेहनती बनाता है :

इटली की एक लोककथा में बताया गया है कि एक कमजोर शरीर वाले युवक को उस की प्रेमिका सीने से लगा कर ऊर्जा देती थी और वह मजदूरी करता था. हौलेहौले उस युवक का शरीर मजबूत हो गया और वह खूब मन लगा कर मेहनत करने लगा. उस के बाद उस युवक ने यह रहस्य अपने दोस्तों से साझा किया और उन्होंने भी अपनी प्रेमिका को हर रोज सीने से लगाने का संकल्प लिया.

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