एक दिन इन्होंने शाम के खाने पर अपने सहयोगी को पत्नी के साथ बुलाया. वे लोग खाना खा कर बैठे. थोड़ी देर हंसीमजाक और मस्ती का दौर चला. बातों ही बातों में जब ऋ षभ ने उन्हें बताया कि मेरी वाइफ बहुत टैलेंटेड हैं व पार्लर चलाती हैं, तो उन के दोस्त की पत्नी ने मेरा पार्लर देखा और सराहा. अगले ही दिन वे अपनी एक फ्रैंड के साथ पार्लर आईं और काफी काम कराया, मैं बहुत उत्साहित थी. उन के जाने के बाद बैठी ही थी कि कुछ दूर रहने वाली नैंसी और ममता भी आ गईं. नैंसी बड़ी ही मुंहफट थी. मैं ने हंस कर दोनों का स्वागत किया. नैंसी को अपने बालों को अलग लुक देना था तथा ममता को वैक्सिंग करवानी थी. नैंसी को अपने बालों की कटिंग बहुत पसंद आई. दोनों ही मेरे काम से खुश दिखीं. इस दौरान हमारे बीच कुछ फौर्मल सी बातचीत भी हुई.
एक दिन सुबहसुबह छुट्टी के दिन खुशी अभी सो कर नहीं उठी थी, ऋ षभ वाशरूम में थे कि तभी किसी ने बैल बजाई. यह सोच कर कि बाई आ गईर् होगी मैं ने दरवाजा खोला तो सामने मयंक को देख कर अचकचा गई. मेरा मन कसैला हो गया और चेहरे पर तनाव आ गया. ‘‘भैया हैं क्या?’’ मयंक धीरे से बोला और आंखों ही आंखों में मुझे कुछ समझाने की कोशिश करने लगा. उस की आंखों के भाव समझ मुझे उस से नफरत हो आई. क्या अब भी उसे मुझ से कुछ उम्मीद है? छि: यह अपनेआप को समझता क्या है? बहुत कड़े शब्दों में कोई जवाब देना चाहती थी कि तभी ऋ षभ ने पीछे से आवाज दी, ‘‘आओआओ मयंक, तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था.
‘‘जी भैया आज्ञा कीजिए,’’ शब्दों में शहद घुली मिठास ले कर वह बेशर्मों की तरह बोला. ‘‘जान, मयंक के लिए कुछ ले कर आओ,’’ मेरे हाथों को थाम ऋ षभ ने मेरी पेशानी को चूमते हुए कहा.
‘‘जी,’’ ऋ षभ की बात का आशय समझ मैं वहां से चली आई. ‘‘मयंक, आप की भाभी यानी हमारी बेगम साहिबा का जन्मदिन आ रहा है 26 सितंबर को, तो एक पार्टी प्लान करने की सोच रहा हूं.’’
‘‘जी भैया बहुत अच्छा, मैं सारा इंतजाम कर दूंगा,’’ मयंक को जैसे इसी मौके की तलाश थी. ऋ षभ के बताए गार्डन में मयंक द्वारा वाकई बहुत खूबसूरत इंतजाम कर दिया गया. हालांकि इस बीच मयंक ने मुझे फिर से बहकाने का एक भी मौका नहीं छोड़ा. जब भी मेरे सामने अपनी जाहिल हरकतें करता और मैं उसे जवाब देने को आतुर होती, न जाने कहां से ऋ षभ हमारे बीच आ जाते. ऐसा लगता कि वे हमेशा मेरे पास ही हैं. लेकिन एक बात तो तय थी कि मयंक के जिन गुणों या हरकतों पर पहले मैं रीझ उठती थी अब उस की उन्हीं हरकतों पर मुझे क्रोध आता था.
शाम को ऋ षभ के पसंदीदा ग्रे शेड गाउन को पहन जब उन का हाथ थाम कर मैं ने गार्डन के हौल में प्रवेश किया, तो सभी ने तारीफ भरी नजरों से तालियां बजा कर हमारा स्वागत किया. पिंक कलर की फ्रौक में खुशी भी किसी परी से कम नहीं लग रही थी. केक कटने के बाद बजती तालियों के बीच सब से पहले मैं ने खुशी को केक खिलाया, फिर ऋ षभ ने मुझे व मैं ने ऋ षभ को खिलाया.
तभी अचानक लाइट के चले जाने से जो जहां था वहीं खड़ा रह गया. किसी को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. कई लोगों की मिलीजुली आवाजें कानों में आ रही थीं कि सहसा किसी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे एक ओर ले चला. एक पल को तो मैं समझ नहीं पाई, पर फिर उन हाथों की छुअन का एहसास होते ही मैं ने उस व्यक्ति के गालों पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद कर दिया. तभी लाइट आ गई. मेरा अंदाजा बिलकुल सही था, यह मयंक ही था, जिस ने लाइट जाने का फायदा उठाने की कोशिश की थी. फिर तो मैं ने मयंक को खूब खरीखोटी सुनाई. मेरे मन में उस के पति जितना आक्रोश था सारा मेरी जबान पर आ गया. उस की कारगुजारियों को बेपरदा करतेकरते मैं स्वयं भी आत्मग्लानि से भर भावुक हो उठी.
तभी किसी ने फिर पीछे से मेरा हाथ थाम लिया. हां ये ऋ षभ ही थे हमेशा की तरह. आगे ऋ षभ ने कहा, ‘‘दोस्तो, हकीकत से आप सभी अच्छी तरह वाकिफ हैं. जो भी कुछ हो चुका है उस में मैं अपनी पत्नी का दोष नहीं मानता. कई बार स्थितियां व निर्णय हमारे बस में नहीं रहते. मेरा मानना है कि मेरी पत्नी आज भी उतनी ही पवित्र है और आज भी मैं उस का उतना ही सम्मान करता हूं जितना पहले करता था, बल्कि अब और ज्यादा. वैसे भी कायदे से सजा उसे मिलनी चाहिए, जो आज भी वही गलती दोहराने की कोशिश में लगा है. आप सभी देख चुके हैं. सचाई आप के सामने है.’’
थप्पड़ खाने के बाद मयंक कुछ गुस्से और चिढ़ से मुझे घूरने लगा. तभी ऋषभ की साफगोई देख कर महल्ले वाले भी हमारे पक्ष में बोलने लगे. बात बढ़ती देख मयंक के मम्मीपापा उसे वहां से ले कर चले गए. पार्टी में आए अचानक इस व्यवधान के लिए ऋ षभ और मैं ने मेहमानों से काफी मांगी. फिर सभी ने उत्साहपूर्वक पूरा प्रोग्राम अटैंड किया. पार्टी में जो कुछ हुआ उस ने मेरे खोए आत्मविश्वास को एक बार फिर लौटा दिया. ऋ षभ के साथ ने मुझ में एक साहस का संचार कर दिया.
मयंक को बारबार बुला कर उस से मेरा सामना कराना भी ऋषभ ने जानबूझ कर कराया था, ताकि मैं समाज के सामने अपने अपराधबोध से मुक्त हो सकूं, क्योंकि वे मयंक को मुझ से बेहतर समझ पाए थे और जानते थे कि मुझ से मिलने पर वह दोबारा अपनी जलील हरकत अवश्य दोहराएगा. बहरहाल, अब मैं बेधड़क बाहर आनेजाने लगी. मेरी झिझक व संकोच दूर हो गया था. मयंक मुझे फिर दिखाई नहीं पड़ा. दूसरे पड़ोसियों से ही मालूम हुआ कि मयंक के मातापिता अपना घर बेच कर कहीं और चले गए हैं. सुन कर मैं ने राहत की सांस ली.
उन के घर बदलने के 7-8 महीने बाद ही पता चला था कि मयंक की शादी हो गई है. अब उड़तीउड़ती खबरें कभीकभार सुनने को मिलती हैं कि वह अपनी पत्नी को बहुत परेशान करता है. मैं खुद को धन्य समझती हूं कि ऋषभ जैसा जीवनसाथी मुझे मिला, जिस ने मुझे मयंक के झूठे मोहपाश के दलदल से बचा लिया. तभी मेरी नजर घड़ी पर गई तो चौंक उठी कि खुशी के आने का वक्त हो गया है. घर का सारा काम जस का तस पड़ा था. खुशी को लेने जाने के लिए ताला लगा कर घर से निकली, रास्ते में ऋ षभ को फोन किया, तो उन्होंने बताया कि उन्हें मालूम हो चुका है, वे भी स्तब्ध हैं यह जान कर कि उस की पत्नी ने आत्महत्या कर ली है.
मैं पूजा के लिए वाकई बहुत दुखी थी. लेकिन मयंक जैसे अवसरपरस्त व बदतमीज इंसान के लिए मेरे मन में कोई संवेदना नहीं थी.