दीप्ति जल्दीजल्दी तैयार हो रही थी. उस ने अपने बेटे अनुज को भी फटाफट तैयार कर दिया. आज शनिवार था और अनुज को प्रदीप के घर छोड़ कर उसे औफिस भी जाना था. शनिवार और रविवार वह अनुज को प्रदीप के घर छोड़ कर आती है क्योंकि उस की छुट्टी होती है. प्रदीप की लिव इन पार्टनर यानी प्रिया भी उस दिन अपनी मां के यहां मेरठ गई हुई होती है. अगर वह कभीकभार घर में होती भी है तो अनुज के साथ ऐंजौय ही करती है.
बता दें कि दीप्ति है कौन और अनुज का प्रदीप से रिश्ता क्या है. दरअसल, अनुज प्रदीप का बेटा है और दीप्ति प्रदीप की ऐक्स वाइफ. वैसे उसे ऐक्स भी नहीं कह सकते क्योंकि अभी दोनों में डिवोर्स नहीं हुआ है. फिर भी दोनों ने अपने रास्ते और अपनी दुनिया अलग कर ली है. प्रदीप मूव औन भी हो चुका है और प्रिया के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा है. दीप्ति अभी मूव औन नहीं हुई है मगर वापस प्रदीप की जिंदगी में जाने का कोई इरादा भी नहीं है.
दोनों ने आपसी सहमति से तय किया था कि सप्ताह के 2 दिन अनुज प्रदीप के साथ रहेगा और बाकी के 5 दिन दीप्ति के साथ. दरअसल दीप्ति अनुज को अपने पिता से मिलने का मौका देना चाहती है ताकि उस की बचपन की ग्रोथ पर बुरा असर न पड़े. मासूम को यह महसूस न हो कि उस के पिता नहीं हैं. एक तरह से वह बच्चे को मनोवैज्ञानिक रूप से स्ट्रौंग बनाए रखना चाहती है वरना उस ने देखा है कि कैसे टूटे हुए घरों के बच्चे भी अंदर से टूट जाते हैं.
प्रदीप की नई पार्टनर यानी प्रिया से दीप्ति को कोई शिकायत नहीं है. वह जब प्रदीप के घर अनुज को छोड़ने जाती है तो कई दफा दीप्ति घर में ही होती है. उस वक्त दोनों एकदूसरे को देख कर मुंह नहीं बनाते बल्कि मुसकराते हैं. दीप्ति अनुज को छोड़ कर शांति से अपने औफिस निकल जाती है. दीप्ति को प्रिया पर विश्वास है कि वह अनुज का खयाल रखेगी और फिर प्रदीप तो उस का पिता है ही.
एक दिन दीप्ति ने प्रदीप को सुबहसुबह फोन किया, ‘‘आज तुम किसी भी समय वी3एस मौल में मु?ा से मिलने आ जाओ.
यहां आना मेरे लिए आसान होगा क्योंकि मैट्रो से उतरते ही मौल है. कहीं अलग से जाना नहीं पड़ेगा.’’
‘‘ओके मगर कोई जरूरी काम था क्या?’’ प्रदीप ने पूछा.
‘‘दरअसल, मुझे तुम से अनुज की पढ़ाई से जुड़ी कुछ बातों की
चर्चा करनी थी. तुम उस के डैडी हो और मैं मानती कि ऐसे मामलों में जहां बच्चे का भविष्य जुड़ा हो वहां कोई भी फैसला बच्चे के पिता और मां दोनों का मिल कर लेना जरूरी है.’’
‘‘ओके फिर मैं हाफ डे ले कर तुम से मिलने करीब 4 बजे तक मौल पहुंचता हूं.’’
दीप्ति 3 बजे ही मौल पहुंच गई क्योंकि उसे कुछ शौपिंग भी करनी थी. वहां उसे प्रिया दिखाई दी. प्रिया भी प्रदीप का इंतजार कर रही थी. प्रदीप ने उसे 3 बजे शौपिंग के लिए बुलाया था मगर वह मीटिंग में फंस गया था. इसी वजह से उसे आने में समय लग रहा था.
दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार से गले मिलीं और अच्छी सहेलियों की तरह एकदूसरे का हालचाल पूछने लगीं. आज पहली दफा दोनों को एकदूसरे के साथ वक्त बिताने का मौका मिला.
दीप्ति ने प्रिया का हाथ थाम कर कहा, ‘‘चलो कहीं बैठते हैं और खाते पीते हैं.’’
दोनों तीसरे फ्लोर पर स्थित फूड कोर्ट की तरफ बढ़ गईं. काउंटर पर पहुंच कर और्डर करने लगीं.
प्रिया बोली, ‘‘मुझे तो बस गोलगप्पे खाने हैं.’’
दीप्ति भी उत्साह से बोली, ‘‘भई गोलगप्पे खाने में तो मजा ही आ जाता है. ये खा कर सोचेंगे कि और क्या और्डर करें. वैसे यार हमारे टेस्ट कितने मिलते हैं. मैं खुद जब आती हूं चाट या गोलगप्पे बस यही 2 चीजें खाती हूं.’’
तब प्रिया बोल पड़ी, ‘‘सिर्फ खाने के टेस्ट ही नहीं मिलते हैं. तुम्हारा छोड़ा हुआ पति भी तो मु?ो पसंद आ गया.’’
दीप्ति हंस पड़ी और फिर पूछा, ‘‘यह बताओ प्रदीप की कौन सी बात तुम्हें सब से ज्यादा पसंद आती है?’’
प्रिया बताने लगी,’’ प्रदीप शायरी बहुत अच्छा करता है. जानती हो अकसर मु?ो देख कर मेरी खूबसूरती पर, मेरी आंखों पर, मेरे होंठों पर. बालों पर खूबसूरत शायरी सुनाता है.’’
इस बात पर दीप्ति हंसने लगी तो प्रिया चौंक कर बोली, ‘‘ऐसे क्यों हंस रही हो?
क्या तुम्हें उस की शायरी पसंद नहीं आई थी? क्या तुम्हारे लिए शायरी नहीं करते थे या फिर तुम्हें उस का शायरी सुनाने का अंदाज पसंद नहीं?’’
‘‘मैं मानती हूं कि उस का लहजा अच्छा है. मुझे भी उस से शायरी सुनना बहुत भाता था,
मगर एक बात बता दूं, वह शायरी सुनाता तो अच्छा है मगर यह शायरी वह खुद लिखता नहीं है.’’
‘‘यह क्या कह रही हो?’’ प्रिया ने चौंकते हुए पूछा.
‘‘सच कह रही हूं वह शायरी उस ने खुद नहीं लिखी है बल्कि चोरी की है और वह भी अपने दोस्त की डायरी से. क्या पता उस ने अपने दोस्त की डायरी भी चोरी की हो,’’ दीप्ति ने अपना शक जाहिर किया.
‘‘क्या मतलब है तुम्हारा? तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?’’
‘‘सही कह रही हूं. जब मैं नई थी तो मुझे भी उस ने अपनी शायरी से बहुत
प्रभावित किया था. मैं उस की शायरी की दीवानी हुआ करती थी. मगर एक दिन मैं ने उस की अलमारी में एक डायरी देखी. वह डायरी किसी अमन की थी और प्रौपर हैंडराइटिंग भी किसी और की थी यानी अमन की थी. लेकिन उस डायरी में शायरी वही थी जो प्रदीप मुझे अपनी कह कर सुनाया करता था.
‘‘फिर जब मैं ने उसे इस बात पर चार्ज किया और डायरी दिखा कर उस से पूछा कि यह सब क्या है, तब उस ने स्वीकार किया कि वह मुझे अपने दोस्त की शायरी सुनाता है,’’ दीप्ति ने बात साफ की.
‘‘यह तो बहुत गलत है. ऐसा तो मैं ने सोचा भी नहीं था. मैं तो बस आत्ममुग्ध हुआ करती थी कि मेरी खूबसूरती पर वह इतनी अच्छी शायरी कैसे कर लेता है.’’
‘‘कोई नहीं, बोलने का तरीका तो उसी
का है जो काफी अच्छा है,’’ दीप्ति ने बात संभालनी चाही.
‘‘हां यह तो सही कह रही हो,’’ प्रिया रोंआंसी हो कर बोली.
प्रिया के दिमाग में कुछ उधेड़बुन शुरू हो गई थी. फिर भी नौर्मल होने की कोशिश करती हुई बोली, ‘‘गोलगप्पे
तो बहुत अच्छे हैं. पता है प्रदीप को भी बाहर खाना बहुत पसंद है. सप्ताह में 2 दिन तो हम बाहर आ ही जाते हैं खाने को. वह कहता है कि बस रोज तुम क्यों मेहनत करो. कभीकभी बाहर का खाना अच्छा लगता है. स्वाद भी बदलता है और हमें साथ समय बिताने का मौका भी मिलता है.’’
‘‘मेरे खयाल से समय साथ बिताना है तो वह तो घर में बिताते ही हो. जहां तक बात स्वाद बदलने की है तो वह जरूर सच है. प्रदीप का मन स्वादिष्ठ खाने का मन करता रहता है.’’
‘‘तुम ऐसा क्यों कह रही हो? मतलब मैं कुछ समझ नहीं?’’
‘‘समझना क्या है. समझ तो मैं भी नहीं थी. करीब 1 साल तक मुझे वह बात समझ नहीं आई थी. प्रदीप मुझे हमेशा बाहर खिलाने की जिद करता और कहता कि चलो आज बाहर चलते हैं या चलो बाहर खा कर आते हैं. मैं भी ख़ुशीख़ुशी उस के साथ निकल जाती थी.
‘‘एक दिन मुझे उस के दोस्त ने बताया कि वह औफिस में अपने दोस्तों से टिफिन भी ऐक्सचेंज करता है. तब मैं ने बैठ कर उस से पूछा था कि ऐसी क्या बात है. उस ने बताया कि उसे मेरा बनाया खाना पसंद नहीं आता. मुझे खयाल आया कि यह बंदा पहले तो मेरी डिशेज की बहुत तारीफ कर के खाता था.
‘‘फिर चुप रह कर खाने लगा था और इधर कुछ दिनों से सच में वह मेरे खाने में कभी नमक तेज, कभी जला हुआ, कभी कच्चा इस तरह की शिकायत करता. फिर जब उस दिन उस ने मुझे हकीकत बताई कि इस वजह से वह मुझे बाहर खिलाने ले जाता तो सम?ा आया कि उसे अपनी पत्नी के हाथ का बनाया खाना पसंद नहीं.
‘‘वही खाना अगर मैं उस के दोस्त के टिफिन में रखती तो वह जरूर बहुत स्वाद ले कर खाता मगर जब मैं बना कर खुद उस के टिफिन में रखती थी तो उसे पसंद नहीं आता था. मुझे लगता है उस का एक तरह से माइंड सैटअप बना हुआ है,’’ दीप्ति ने विस्तार से बताया.
प्रिया सोच में पड़ गई और फिर बोली, ‘‘यह सच हो सकता है क्योंकि मेरे खाने को भी वह कुछ दिन पहले तक तो स्वाद ले कर खाता था. पर इधर कुछ दिनों से वह कुछ कहता नहीं बस चुपचाप खा लेता है.’’
‘‘छोड़ो ज्यादा मत सोचो. अच्छा यह बताओ कि उस ने तुम्हें प्रपोज किया था या तुम ने उसे,’’ दीप्ति ने पूछा.
औफकोर्स उस ने ही किया था,’’ प्रिया बोली.
‘‘अच्छा कैसे?’’
‘‘बहुत ही अच्छे तरीके से. पता है पहले दिन उस ने मुझे अपने घर इनवाइट किया और जब मैं घर के अंदर दाखिल हुई…’’
‘‘तो उस ने ऊपर ऐसी सैटिंग की हुई थी कि दरवाजा खोलते ही ढेर सारी गुलाब की पंखुडि़यां तुम्हारे ऊपर बिखर गईं है न?’’
‘‘हां मगर तुम्हें कैसे पता?’’ प्रिया ने चौंक कर पूछा.
‘‘क्योंकि मेरे साथ भी उस ने ऐसा ही
किया था. मुझे अपना घर दिखाने के लिए वह मुझे ले कर आया था. घर में मेरे कदम पड़ते ही गुलाब की पंखुडि़यां बिखरीं और उस ने मुझे प्रपोज किया. जमीन पर बैठ कर, घुटनों के बल, रिंगहाथ में ले कर, बिलकुल वैसे ही जैसे फिल्मों में होता है.’’
‘‘यह तो तुम ने बिलकुल सही कहा. सब कुछ वैसा ही था जैसा फिल्मों में होता है. पर ऐसा वह सब के साथ करता है यह मुझे नहीं पता था. क्या तुम से पहले कोई और भी थी उस की जिंदगी में,’’ प्रिया ने सवाल किया. उस का चेहरा बुझ चुका था.
‘‘मेरे से पहले उस की जिंदगी में कोई थी या नहीं वह तो नहीं पता पर मेरी जिंदगी में जो हुआ वह सब तुम्हारी जिंदगी में कर रहा है यह समझ आ रहा है. मैं तुम्हें उस के खिलाफ भड़का नहीं रही मगर सचेत कर रही हूं कि उस से इतना ही जुड़ो जितना टूटने पर दिल टूटे न,’’ दीप्ति ने बात साफ करते हुए कहा.
दोनों थोड़ी देर खामोश बैठी रहीं. दीप्ति ने 2 प्लेट इडली का और्डर दिया और प्लेट ले कर वापस आ गई. प्रिया का खाने का दिल नहीं था मगर दीप्ति के जोर देने पर खाने लगी.
फिर प्रिया ने ही पूछा, ‘‘और कुछ बताओ दीप्ति प्रदीप की कोई और आदत जिसे शेयर करना चाहोगी?’’
‘‘अच्छा यह बताओ कि उस ने तुम्हें अच्छीअच्छी जगह घुमाने का वादा भी किया
होगा न?’’
‘‘हां उस ने मुझे करीब 5 साल की प्लानिंग अभी से बता रखी है.’’
‘‘जब तुम लोग साथ हुए उस के 2-4 महीनों के अंदर वह तुम्हें अच्छी जगह ले कर जरूर गया होगा.’’
‘‘हम लोग मनाली गए थे,’’ प्रिया ने बताया.
‘‘बस मनाली के बाद वह आगे नहीं बढ़ेगा और जो वह 5 साल की प्लानिंग बता रहा हैं न वह अगले 5 साल बाद भी मैं तुम से बात करूंगी तो उस पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा होगा क्योंकि उस ने मेरे साथ भी ऐसा ही किया. हमारी 8 साल की शादी में वह बस एक बार मुझे घुमाने ले गया. उस के बाद से प्लानिंग ही होती रही,’’ दीप्ति ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘यह क्या कह रही हो?’’ प्रिया को विश्वास नहीं हुआ.
‘‘सच कह रही हूं. जो मेरे साथ हुआ वही बता रही हूं.’’
‘‘उफ, क्या प्रदीप ऐसा है,’’ प्रिया परेशान स्वर में बोली.
‘‘देखो प्रिया मैं फिर कह रही हूं कि तुम से उस की बुराइयां करना मेरा मकसद नहीं है और न ही मैं उस का बुरा चाहती हूं क्योंकि मन से वह अच्छा है. कई बार वह इतनी अच्छी तरह से केयर करता है, इतनी प्यारी बातें करता है कि उसे छोड़ने का दिल नहीं करता. यही नहीं मैं मानती हूं वह हैंडसम भी है. उस के पास दूसरों को प्रभावित करने का हुनर भी है. मगर सच कहूं मुझे जिंदगी में कुछ और चाहिए था.
‘‘उस ने मुझे धोखा नहीं दिया. हमेशा
मुझे खुश रखने की कोशिश भी की पर मुझे ऐसा बंदा चाहिए था जो मेरा विश्वास जीत सके. मगर प्रदीप मेरा विश्वास नहीं जीत पाया इसलिए मैं अलग हुई वरना उस में कोई ऐसी बहुत बड़ी बुराई नहीं है. तुम्हें डराना नहीं चाहती. कुछ अपनी प्राथमिकताएं होती हैं. तुम्हें उस से क्या चाहिए और क्या नहीं चाहिए वह तुम डिसाइड करो. तुम्हें जिंदगी से क्या चाहिए यह भी तुम ही डिसाइड करोगी. वैसे एक बात और पूछूं?’’
‘‘हां पूछो न.’’
‘‘उस ने तुम्हें जरूर बताया होगा कि वह घर जिस में तुम दोनों रहते हो, उस ने अपने पैसों से खरीदा है. इस के अलावा 2 घर और हैं अलगअलग शहरों में और उस के पास बहुत जमीन जायदाद भी है. है न,’’ दीप्ति ने पूछा.
‘‘हां यह सब तो उस ने बताया मुझे.’’
‘‘इस में सचाई सिर्फ इतनी है कि उस ने यह घर लोन पर लिया है. बाकी उस के पास ऐसी कोई भारी जायदाद नहीं है. मगर इस से मुझे कोई दिक्कत नहीं थी. मुझे तो इंसान अच्छा चाहिए था. वह इंसान भी अच्छा था पर मेरी कसौटियों पर खरा नहीं उतरा. कई बार वह बहुत जल्दी गुस्सा हो जाता है और यह गुस्सा मैं सह नहीं पाती थी. अभी तुम नई हो. तुम्हारे साथ अभी वैसा गुस्सा नहीं होता होगा या हो सकता है मेरी ही कोई बात उसे गुस्सैल का बना रही होगी. समय के साथ क्या हो कुछ कह नहीं सकते.’’
‘‘यार तुम ने इतना कुछ बता दिया कि अब समझ नहीं आ रहा मुझे क्या करना चाहिए?’’ प्रिया की उलझन बढ़ गई थी.
‘‘अपने दिल की सुनो बस सब समझ आ जाएगा. वैसे उस की एक और आदत बताती हूं. वह नहा कर अपना गीला हुआ तौलिया कहीं भी पटक देता है. यहां तक कि बिस्तर पर भी रख देता है,’’ कह कर दीप्ति हंस पड़ी.
‘‘हां, वह ऐसा ही करता है.’’
‘‘प्रिया मैं ने बहुत से रिऐलिटी चैक
मिलने के बाद यह फैसला किया था कि उस से अलग हो जाऊं. मैं नहीं कह रही कि तुम्हें भी ऐसा करना चाहिए पर तुम अपनेआप को इतना स्ट्रौंग बना कर रखो कि अगर कभी तुम्हें उस से अलग होना पड़े तो तुम अंदर से टूटो नहीं. इसलिए कहीं न कहीं उस से उतनी ज्यादा मत जुड़ो कि टूटने पर खुद को संभाल न सको. बस इतना ही कहना चाहती हूं.’’
अब तक दोनों ने इडली खा ली थी. तभी प्रदीप का फोन प्रिया के पास आया कि वह अपने औफिस से निकल चुका है और उस से मिलने और शौपिंग कराने आ रहा है.
दीप्ति ने भरपूर नजरों से प्रिया की तरफ देखा और उसे गले से लगा लिया, ‘‘तुम मेरी छोटी बहन की तरह हो. मैं तुम्हारे दिल को ठेस नहीं पहुंचने देना चाहती. बात याद रखना कि खुद को इतना मजबूत बनाओ कि कभी जरूरी लगे तो उस से अलग होना कठिन न हो. बस मैं ने तो सही फैसला ले लिया अब तुम्हारी बारी है. तुम अपना खयाल रखना.’’
प्रिया ने दीप्ति को प्यार से देखते हुए अलविदा कहा और दोनों अपनेअपने रास्ते चल दिए. मगर आज प्रिया के मन में बहुत सी बातें उठ रही थीं. बहुत से सवाल थे और बहुत सी उलझनें थीं. आज प्रदीप से मिलने जाने के लिए उस के कदम खुशी से नहीं उठ रहे थे बल्कि बहुत थकेथके से उठ रहे थे.