चाय पीते हुए भी वह वही सब बातें सोचने लगा. आज उस का औफिस जाने का जरा भी मन नहीं हो रहा था. पर, जाना तो पड़ेगा ही. सो, खापी कर तैयार हो कर वह औफिस के लिए निकल गया और सोचने लगा, ‘काश, रूपम एक बार फिर उसे मिल जाए, तो इस बार उसे जाने नहीं देगा.‘
3-4 दिन ऐसे ही बीत गए, पर रूपम नहीं आई. एक दिन अचानक एक अनजान नंबर से वरुण के फोन पर फोन आया, तो उस ने उठा लिया. वह अभी हैलो बोलता ही कि सामने से वही मधुर आवाज सुन कर उस का रोमरोम सिहर उठा. रूपम कहने लगी कि क्या कल वह उस से मिलने बैंक आ सकती है?
वरुण अभी बोलने ही जा रहा था कि वह तो खुद उस से मिलने को बेचैन है. लेकिन उस ने खुद को कंट्रोल कर लिया, क्योंकि इतनी जल्दी वह शिकारी को अपने जाल में नहीं फंसाना चाहता था. पहले थोड़ा दाना डालेगा, फिर वह खुदबखुद उस के जाल में फंसती चली आएगी.
“सर, आप ने बताया नहीं, क्या मैं कल आप से मिलने आ सकती हूं?” रूपम ने फिर वही बात दोहराई, तो वरुण ने बड़े ही शालीनता से हां में जबाव दे कर फोन रख दिया. लेकिन उस के दिल में जो हलचल मची थी, नहीं बता सकता था.
कई दिनों से वरुण को गुमशुम, उदास देख स्नेहा को भी अच्छा नहीं लग रहा था. लेकिन आज बाथरूम में उसे गुनगुनाते देख स्नेहा को जरा अचरज तो हुआ, पर खुश भी हुई कि वरुण खुश है.
औफिस पहुंच कर वरुण बेसब्री से रूपम के आने का इंतजार करने लगा. कुछ देर बाद मैसेंजर ने आ कर बताया कि एक महिला उस से मिलना चाहती है.
“भेज दो,” कह कर वरुण रूपम के सपनों में खो गया. तभी उस की खनकती आवाज से वरुण की तंद्रा टूटी और जब उस ने मुसकुराते हुए ‘गुड मार्निंग सर‘ कहा, तो वरुण को जैसे जोर का करंट लगा.
“गुड मार्निंग… प्लीज, हैव ए सीट,” वरुण ने कुरसी की तरफ इशारा किया.
‘थैंक यू सर’ बोल कर वह कुरसी पर बैठ गई और कहने लगी कि वह एकदो बैंक गई थी लोन मांगने, पर कहीं भी उस का काम नहीं बना. लेकिन अगर आप मेरी मदद कर दें तो लोन मिल सकता है.
“वह कैसे मैडम…?” वरुण ने उसे तिरछी नजरों से देखते हुए पूछा.
“सर, वह तो मुझे नहीं पता, लेकिन आप इतने बड़े बैंक में मैनेजर हैं. देखने में आप इनसान भी अच्छे लग रहे हैं, तो कुछ तो मेरी मदद कर ही सकते हैं.
‘‘सर, मुझे पैसों की सख्त जरूरत है, वरना मैं यों बैंकों के चक्कर नहीं काट रही होती.
‘‘मैं जल्दी ही बैंक का लोन चुका दूंगी, विश्वास कीजिए सर मेरी बात पर.”
रूपम की बात पर वरुण को कुछकुछ विश्वास होने लगा कि यह औरत सही बोल रही है. इसी तरह वह रोज किसी न किसी बहाने वरुण से मिलने लगी. अगर वह नहीं आ पाती तो सामने से वरुण ही उसे फोन लगा देता.
रूपम को अच्छे से जान लेने के बाद कि सच में इस औरत को पैसों की जरूरत है, वरुण खुद गारंटर बन कर उसे बैंक से लोन दिलवा देता है.
इधर वरुण की मदद पा कर रूपम उस की शुक्रगुजार हो जाती है और वह उस के लिए अपने हाथों का बना पकवान ले कर आती है.
इसी तरह दोनों की दोस्ती गहरी होती जाती है और जिस का फायदा रूपम खूब अच्छे से उठाने लगती है.
अब वरुण की शाम रूपम की बांहों में बीतने लगती है. और जब स्नेहा उस से देर से आने का कारण पूछती है तो कोई न कोई बहाना बना कर उसे टाल देता है, जैसे कि आज औफिस में बहुत काम था, बौस के साथ जरूरी मीटिंग चल रही थी, क्लाइंट के साथ बिजी था, बोल कर स्नेहा को बहला देता. और उसे लगता कि वरुण सही कह रहा है.
उस रोज वरुण की शर्ट की जेब में मूवी की 2 टिकटें देख कर स्नेहा चीख पड़ी, “वरुण… वरुण, ये तुम्हारी जेब में मूवी की 2 टिकट… क्या चल रहा है?”
“मू… मूवी की टिकट. अरे, वो… वो तो मैं एक क्लाइंट के साथ ही गया था पागल. बौस ने कहा था क्लाइंट को खुश करने के लिए मूवी दिखा आ. अब बोलो बौस की बात कैसे टाल सकता था मैं. जानती तो हो अगले साल मेरा प्रमोशन ड्यू है, क्या तुम नहीं चाहती मेरी तरक्की हो? हद है भाई… बातबात पर शक करती हो मुझ पर,” वरुण ने मुंह बनाया, तो स्नेहा को भी लगा कि वह बेकार में उस के पीछे पड़ी रहती है.
वरुण को लग रहा था कि वह स्नेहा को चकमा दे रहा है. लेकिन उसे नहीं पता कि रूपम उसे चकमा दे रही थी. वह एक नंबर की फ्रौड थी. उस ने कितनों को ठगा था अब तक. और इस बार वरुण की बारी थी.
वरुण अपने प्रमोशन के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहा था, लेकिन अभी भी कई लोन एमपीए जा रहा था, जिस के लिए रोज उसे अपने बौस की डांट खानी पड़ रही थी. वैसे तो रूपम को उस ने कई बार कहा लोन भरने के लिए, लेकिन हर बार वह यही कहती, गांव में उस का एक पुराना पुश्तैनी मकान है, जिसे बेच कर वह एकसाथ बैंक के सारे पैसे भर देगी.
वरुण को उस की बात सही लगती, मगर इधर कई दिनों से रूपम का कुछ अतापता नहीं था. न तो वह उस से मिलने आ रही थी और न ही उस का फोन उठा रही थी. लेकिन जब उस का फोन स्विच औफ आने लगा तो वरुण को लगा कि कहीं वह किसी मुसीबत में तो नहीं है? या कहीं उस की तबीयत तो नहीं खराब है? यह सोच कर वह उस से मिलने उस के घर चला गया. वैसे तो बैंक अधिकारी किसी के घर नहीं जाते जल्दी, लेकिन उस रोज रूपम के बहुत जिद करने पर वह उस के घर चला गया था. 2 कमरे के एक छोटे से घर में वह अकेली रहती थी. बताया था उस ने उस के मांबाप का देहांत हो चुका है. शादी हुई, पर पति से उस का तलाक हो चुका है और अब वह अपने जीवन में अकेली है. ब्यूटीपार्लर का कोर्स कर रखा था, इसलिए अपना खुद का एक पार्लर खोलना चाहती थी, जिस के लिए उसे बैंक से लोन चाहिए.
खैर, जब वरुण उस के घर पहुंचा, तो दरवाजे पर बड़ा सा ताला लटका देख हैरान रह गया… हैरान इसलिए, क्योंकि अपनी हर एक छोटी से छोटी बात वह उस से बताती आई थी. तो यह बात कैसे नहीं बताई कि वह कहीं जा रही है? वह कहां गई है? कब आएगी ? कैसे पता करेगा, समझ नहीं आ रहा था उसे. तभी उसे सामने से एक अधेड़ उम्र की महिला आती दिखी.
“ए… एक मिनट मैडम, क्या आप बता सकती हैं कि इस घर में जो महिला रहती थी, रूपम व्यास… कहां गई है और कब आएगी?”
पहले तो उस महिला ने वरुण को ऊपर से नीचे तक गौर से देखा, फिर यह बोल कर आगे बढ़ गई कि उसे कुछ नहीं पता.
वरुण ने फिर कई बार रूपम को फोन मिलाया, पर वही स्विच औफ.
‘कहीं उस ने मुझे धोखा तो नहीं दे दिया? अगर ऐसा हुआ तो गया काम से मैं,’ अपने मन में ही सोच वरुण ने माथा पकड़ लिया. बहुत पता लगाया, लेकिन रूपम का कहीं कोई पताठिकाना नहीं मिला उसे, लेकिन एक रोज रूपम की सचाई जान कर वरुण को जोर का करंट लगा. उस ने वरुण को जोजो बताया अपने बारे में, सब झूठ था. यहां तक कि उस का नाम भी झूठा था. वह एक फ्रौड महिला थी, जो लोगों को लूटने का काम करती थी. पहले वह लोगों को अपनी सुंदरता के जाल में फंसाती थी, फिर उस के पैसे लूट कर रफूचक्कर हो जाती थी.
कितना समझाया था स्नेहा ने, ‘सुधर जाओ, वरना… खुद तो डूबोगे ही एक दिन हमें भी ले डूबोगे,’ और ऐसा ही हुआ.
वरुण हमेशा स्नेहा की बातों को इगनोर करता आया था. लेकिन आज उसे एहसास हो रहा था कि वह कितना गलत था. लेकिन अब क्या…? पैसे तो अब उसे अपनी जेब से ही भरने पड़ेंगे न, वरना अपनी नौकरी से जाएगा.. बड़ी हिम्मत कर के जब उस ने स्नेहा को यह सारी बात बताई, तो वह सिर पकड़ कर बैठ गई. पूरी रात दोनों चिंता, अनिद्रा और तनाव के कारण करवटें बदलते रहे. अब एकदो पैसे की बात तो थी नहीं, पूरे 10 लाख रुपए…? कहां से लाएगा वो इतनी बड़ी रकम…? अब स्नेहा भी क्या कर सकती थी. लेकिन गुस्सा तो उसे अभी भी बहुत आ रहा था. रात में कितना सुनाया उस ने वरुण को कि देख लिया न अपनी करनी का फल? सुंदर औरतों के पीछे भागने का नतीजा? उस पर वरुण ने अपने दोनों कान पकड़ कर उस से माफी मांगी थी और कहा था कि अब कभी वह ऐसी गलती नहीं करेगा. अब गलतियां तो इनसान से ही होती हैं न? यह सोच कर स्नेहा ने भी उसे माफ कर दिया और अपने सारे जेवर यह बोल कर उस के हाथों में पकड़ा दिए कि वह जा कर लोन की रकम भर दे, वरना प्रमोशन मिलना भी मुश्किल हो जाएगा.
“चलो, मैं औफिस के लिए निकलता हूं,” स्नेहा को सीने से लगाते हुए वरुण बोला, तो स्नेहा ने चुटकी ली कि फिर वह कहीं किसी मेनका के फेर में न पड़ जाए.
“पागल हो क्या…?‘‘ अपनी आंखें गोलगोल घुमाते हुए वरुण बोला, “गलती बारबार थोड़ी ही दोहराई जाती है. मैं तो एक नारी ब्रह्मचारी हूं और रहूंगा…” लेकिन गाड़ी में बैठते ही वह बड़ी कुटिलता से मुसकराया और बोला, “पागल… अब घोड़ा घास से यारी नहीं करेगा तो खाएगा क्या?