गर्भ में होने वाले बच्चों के विकार

गर्भ से ही कुछ बच्चों में उन के शरीर के अंगों में विकृतियां आने से ले कर उन की ऐक्टिविटीज और ऊर्जा तक बदलने आदि की समस्याएं शुरू हो जाती हैं. वे बच्चे जब इन स्वास्थ्य समस्याओं के साथ जन्म लेते हैं तो उन्हें हम जन्मदोष कहते हैं. जन्मदोष के 4,000 से अधिक विभिन्न प्रकार हैं. इन में वे भी हैं जिन्हें ठीक करने के लिए किसी तरह के इलाज की जरूरत नहीं पड़ती और दूसरे वे गंभीर बीमारियां भी हैं, जिन के लिए शल्य चिकित्सा की जरूरत पड़ती है, जिस के न होने से बच्चे के अपंगता के शिकार होने की भी संभावना रहती है. एक सर्वे के अनुसार, हर 33 में से 1 बच्चा जन्मदोष के साथ पैदा होता है. उस में भी अगर कोई बच्चा कुरूप हो कर जन्म ले या उस बच्चे के शरीर का कोई अंग गायब हो, तो उसे भी संरचनात्मक जन्मदोष ही कहा जाता है. हार्ट डिफैक्ट भी संरचनात्मक जन्मदोष का एक प्रकार है, तो हड्डियों का विस्थापित होना भी.

जो लोग मातापिता बनना चाहते हैं उन्हें यह जानना जरूरी है कि कुछ जन्मदोषों को होने से रोका जा सकता है. इस के लिए गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त मात्रा में आयोडीन तथा फौलिक ऐसिड का सेवन करना फायदेमंद रहता है. इस से बच्चे को काफी हद तक जन्मदोषों से बचाया जा सकता है.

कारण

जन्मदोष का एक कारण तो वातावरण से संबंधित होता है यानी गर्भ के दौरान बच्चा किन कैमिकल या वायरस के संपर्क में था, तो दूसरा कारण भू्रण के जीन में कोई समस्या होना हो सकता है या हो सकता है कि दोनों ही कारण हों. अगर गर्भावस्था के दौरान महिला को किसी प्रकार का संक्रमण है तो भी बच्चा जन्मदोष के साथ पैदा हो सकता है. अन्य कारण, जिन की वजह से जन्मदोष हो सकते हैं, वे हैं रुबेला और चिकन पौक्स. अच्छी बात यह है कि ज्यादातर लोगों को इन के संक्रमण से बचने के लिए टीके लगा दिए जाते हैं, इसीलिए इस प्रकार के संक्रमण होने के खतरे कम होते हैं. गर्भवती महिला के द्वारा शराब पीने से फीटल अल्कोहल सिंड्रोम की समस्या हो सकती है. इस के अलावा कुछ ऐसी दवाएं भी हैं जिन्हें लेने से बच्चे में जन्मदोष की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. डाक्टर ज्यादातर ऐसी दवाएं गर्भावस्था के दौरान देने से बचते हैं. शरीर की हर कोशिका में क्रोमोसोम्स होते हैं, जो जीन से बने होते हैं. ये किसी इंसान की अद्वितीय विशेषताओं का निर्धारण करते हैं. गर्भधारण के दौरान बच्चा मातापिता से 1-1 क्रोमोसोम जीन के साथ ग्रहण करता है. इस प्रक्रिया के दौरान किसी भी तरह की गलती बच्चे में क्रोमोसोम की मात्रा को बढ़ा या घटा सकती है या इस से क्रोमोसोम्स को क्षति भी पहुंच सकती है. डाउन सिंड्रोम एक ऐसा जन्मदोष है जो क्रोमोसोम की समस्या के कारण ही होता है. यह बच्चे में 1 क्रोमोसोम के ज्यादा आने की वजह से होता है. बाकी जैनेटिक डिफैक्ट भी मातापिता के गलत जीन के मौजूद होने के कारण ही होते हैं. इस प्रक्रिया को रिसेसिव इन्हैरिटैंस कहते हैं. जन्मदोष केवल एक व्यक्ति के जीन के कारण भी संभव है जिसे डौमिनैंट इन्हैरिटैंस कहते हैं.

कुछ मेल चाइल्ड्स में केवल उन की मां के जीन से आए विकार शामिल होते हैं. इन की वजह से हेमोफिला, कलर ब्लाइंडनैस आदि की समस्या हो जाती है जिन्हें एक्स-लिंक भी कहते हैं, क्योंकि ऐसे जीन एक्स क्रोमोसोम में ही होते हैं. पुरुषों में केवल एक्स-क्रोमोसोम ही होता है जो उन्हें उन की मां से प्राप्त होता है. दूसरी ओर महिलाओं में 2 क्रोमोसोम होते हैं, जिन में से एक मां से तथा दूसरा पिता से लिया गया होता है. इसीलिए एक्स-क्रोमोसोम के जीन में किसी भी तरह की गड़बड़ी होने से लड़कों पर इस का प्रभाव बहुत ज्यादा होता है. वहीं लड़कियों के एक जीन में खराबी से होने तथा दूसरे के सही होने से ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है.

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जैनेटिक जन्मदोष

सिस्टिक फाइब्रोसिस त्वचा की लाइनिंग में मौजूद कोशिकाओं के साथसाथ फेफड़े की ओर जाने वाले रास्ते को, पाचन तंत्र को यहां तक  कि रिप्रोडक्टिव सिस्टम को भी प्रभावित करती है. इस के कारण शरीर के इन अंगों में कफ की चिपचिपी मोटी परत बन जाती है. जिन बच्चों में सिस्टिक फाइब्रोसिस की समस्या होती है, उन्हें फेफड़े में संक्रमण, पाचनतंत्र में समस्या, कम वजन आदि की शिकायत हमेशा रहती है. फेफड़ों का ध्यान रखना, अच्छा पौष्टिक आहार लेना आदि इस समस्या का इलाज है. डाउन सिंड्रोम एक सामान्य जन्मदोष है, जो हर 800 से 1,000 में से 1 बच्चे को होता है. बच्चों में डाउन सिंड्रोम होने की संभावना मां की बढ़ती उम्र के साथ बढ़ती जाती है. जिन बच्चों को डाउन सिंड्रोम होता है उन में क्रोमोसोम संख्या 21 की एक कौपी अधिक होती है. दरांती सैल बीमारी लाल रक्त कोशिकाओं से जुड़ी बीमारी है जिस में असाधारण दरांती के आकार की कोशिका क्रौनिक ऐनीमिया को जन्म देती है, जिस से रक्त कोशिकाओं की संख्या घट जाती है तथा अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं.

सामान्य जन्मदोष

क्लेफ्ट होंठ की समस्या तब होती है जब मुंह या होंठों की कोशिकाएं अच्छे से विकसित नहीं हो पाती हैं. क्लेफ्ट लिप में ऊपर के होंठ और नाक के बीच में लंबा खुलापन होता है. क्लेफ्ट चंसंजम नाक के छेद और मुंह के अंदर के ऊपरी हिस्से के बीच के खुलेपन को कहते हैं. ये समस्याएं जन्म के बाद सर्जरी से ठीक की जा सकती हैं. क्लबफूट शब्द का इस्तेमाल पैरों के स्ट्रक्चरल डिफैक्ट के लिए किया जाता है. जिस में हड्डियां, जौइंट्स, मसल्स तथा रक्त धमनियां गलत तरह से विकसित होती हैं. यह एक सामान्य जन्मदोष है, लेकिन इस समस्या से लड़के, लड़कियों से दुगने प्रभावित होते हैं. ज्यादातर केसेज में कारण की जानकारी नहीं होती है, लेकिन कुछ केसेज में क्लबफूट एक जैनेटिक डिसऔर्डर या मां की बच्चेदानी में समस्या के कारण होता है जिस वजह से बच्चों के पैरों का विकास उतने ढंग से नहीं हो पाता है. जन्मजात हाइपोथाइरोडिज्म जो हर 3,000 से 4,000 में से एक बच्चे में पाया जाता है, तब होता है जब बच्चे में थायराइड ग्लैंड अनुपस्थित हो या जब वह अच्छे से विकसित न हुआ हो. इस बीमारी की वजह से थायराइड हारमोन में कमी आ जाती है, जो किसी भी बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए अत्यधिक जरूरी होता है.

फीटल अल्कोहल सिंड्रोम की वजह से धीमा विकास, बौद्धिक अक्षमता, चेहरे में विकृति तथा नर्वस सिस्टम में समस्या आदि जैसी समस्याएं होती हैं. फीटल सिंड्रोम का कोई इलाज नहीं है, लेकिन गर्भावस्था के दौरान शराब से दूरी रख कर इस समस्या से बचा जा सकता है. न्यूरल ट्यूब डिफैक्ट की समस्या गर्भावस्था के उस महीने में होती है जब गर्भ में पल रहे बच्चे का दिमागी विकास शुरू होता है. इस दौरान बच्चे के दिमाग में स्पाइनल कौर्ड विकसित होना शुरू हो जाता है, जो एक ट्यूब के रूप में तैयार होता है. अगर यह ट्यूब अच्छे से बंद न हो तो न्यूरल ट्यूब डिफैक्ट की शुरुआत होती है. यह समस्या हर 3,000 में से 1 बच्चे को होती है और इस डिफैक्ट के होने पर कुछ बच्चों की जन्म के साथ ही मृत्यु हो जाती है. गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त मात्रा में फौलिक ऐसिड का सेवन बच्चों में न्यूरल ट्यूब डिफैक्ट की समस्या की संभावना को कम कम कर सकता है.

हार्ट डिफैक्ट की शुरुआत तब होती है जब गर्भ में बच्चे के दिल का विकास नहीं हो पाता. जतपंस डिफैक्ट व एअर वैंट्रिकुलर डिफैक्ट हार्ट डिफैक्ट के अंतर्गत ही आते हैं, जो दिल के दाएं तथा बाएं हिस्से को अलग करते हैं. हार्ट डिफैक्ट की शुरुआत तब होती है जब ट्यूब के आकार की धमनियों में बहने वाला खून गर्भावस्था के दौरान लिए जाने वाली दवाओं जैसे केपोथेरैपी ड्रग्स, थालिडोमाइड, दजोपेमप्रनतम ड्रग आदि के संपर्क में आता है. गर्भावस्था की शुरुआत के 3 महीने हार्ट डिफैक्ट के लिए बहुत संभावित होते हैं. इस के अलावा शराब का सेवन, रुबेला इन्फैक्शन, डायबिटीज आदि से भी बच्चों में हार्ट डिफैक्ट होने की संभावना बढ़ जाती है.

बच्चों में व्यवहार विकार

छोटे बच्चे नादान हो सकते हैं, बात न मानने वाले हो सकते हैं और समयसमय पर गुस्से में आ सकते हैं. ये सब साधारण बातें हैं, लेकिन कुछ बच्चों में ये बातें बहुत कठिन स्तर तक होती हैं. सब से हानिकारक व्यवहार विकारों में से एक है औपोजिटियोनाल डिफायंट डिसऔर्डर, तो दूसरा बरताव विकार और तीसरा अटैंशन डेफिसिट हाइपरऐक्टिविटी डिसऔर्डर. इन तीनों व्यावहारिक विकारों के समान लक्षण होते हैं, इसलिए इन का पता लगा पाना बहुत ही मुश्किल होने के साथसाथ बहुत ज्यादा समय भी लेता है.

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औपोजिटियोनाल डिफायंट डिसऔर्डर

12 साल से कम का करीब हर 10 में से 1 बच्चा इस से ग्रस्त होता है और लड़कों में यह समस्या होने की संभावना लड़कियों से लगभग दोगुनी होती है. इस से ग्रस्त किसी बच्चे के ये लक्षण हो सकते हैं:

जल्दी गुस्सा होना.

जल्दी आपा खो देना.

बहस करना खासकर अपने मांबाप से.

नियमों को न मानना.

दूसरों को चिढ़ाना.

जल्दी चिढ़ जाना.

अपनी गलतियों के लिए दूसरों को दोष देना.

बरताव विकार

जिन बच्चों में बरताव विकार पाया जाता है अकसर उन्हें बुराभला कहा जाता है, क्योंकि वे बड़े जिद्दी होते हैं और नियमों को नहीं मानते. 10 साल तक के करीब 5% बच्चों में यह विकार होता है, लेकिन लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में यह ज्यादा होता है. इस विकार से जुड़ी कुछ महत्त्वपूर्ण बातें ये हैं: कठिनाई भरी गर्भावस्था, समय से पहले जन्म, जन्म के समय कम वजन होना आदि कुछ ऐसे कारण हैं, जो आगे जा कर बच्चों में बरताव विकार लाते हैं. जिन बच्चों को बचपन से ही संभालना मुश्किल होता है जो बात नहीं मानते और हमेशा उग्र रहते हैं, उन में बरताव विकार के होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है. यह बरताव पारिवारिक बरताव तथा वातावरण पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है. जिन बच्चों को पढ़नेलिखने और समझने में समस्या आती है उन में इन विकारों के होने की संभावना ज्यादा होती है. कई अध्ययनों से पता चला है कि दिमाग का वह हिस्सा जहां ध्यान लगाने की शक्ति होती है वह ऐसे बच्चों में कम हता है.

लक्षण

मातापिता की बात न मानना.

ड्रग्स, सिगरेट, शराब आदि का सेवन करना.

दूसरों के लिए भावनाएं न होना.

बारबार झूठ बोलना.

लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहना.

लड़ते समय हथियार तक का इस्तेमाल करना.

चोरी करना, जानबूझ कर आग लगाना, किसी चीज को तोड़ देना, दूसरों के घर में बिना पूछे घुस जाना.

घर से भाग जाने की प्रवृत्ति.

आत्महत्या करने की कोशिश करना.

अटैंशन डेफिसिट हाइपरऐक्टिविटी डिसऔर्डर: करीब 5% बच्चों में यह समस्या पाई जाती है और लड़कों में लड़कियों की अपेक्षा यह समस्या ज्यादा होती है.

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लक्षण

किसी एक काम में ध्यान लगा पाने में असमर्थ होना.

दूसरों से ऊंची आवाज में बात करना.

बातचीत के दौरान ओवर रिऐक्ट करना.

समस्याओं के लिए इन लोगों से संपर्क करें:

अपने फैमिली डाक्टर से.

पैडियाट्रिशयन यानी बाल रोग विशेषज्ञ से.

बाल मनोवैज्ञानिक से. 

   -डा. आशीष गुप्ता पीडिएट्रिशियन, प्राइमस सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल

मेरे पति को डायबिटीज के कारण खाने पीने में परेशानी हो रही है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरे पति की उम्र 48 साल है. उन्हें शुगर है. कुछ दिनों से उन के सामने के दांत हिलने लगे हैं. इस कारण उन्हें खानेपीने में काफी परेशानी हो रही है. कृपया कोई समाधान बताएं ताकि वे इस समस्या से छुटकारा पा सकें?

जवाब-

डायबिटीज होने पर शुगर का कंट्रोल बिगड़ने से मसूढ़ों के स्वास्थ्य पर उलटा असर पड़ता है. मसूढ़ों में इन्फैक्शन हो जाने से सूजन हो जाती है और दांत हिलने लगते हैं. मसूढ़ों का यह विकार पायरिया कहलाता है. इस स्थिति में पहली जरूरत शुगर पर कंट्रोल करने की है. अच्छा होगा कि इस के लिए आप के पति अपने डायबिटोलौजिस्ट से मिलें. खानपान में संयम बरतने, नियमित शारीरिक कसरत करने और डाक्टरी सलाह पर समय से दवा लेने से ब्लड शुगर पर नियंत्रण प्राप्त कर सकते हैं. यह संभव है कि उन की ब्लड शुगर बहुत बढ़ी हुई हो और स्थिति को भांपते हुए डायबिटोलौजिस्ट उन्हें इंसुलिन लेने की सलाह दें. इस सूरत में आप के पति का इंसुलिन से कतराना ठीक नहीं होगा. यकीन मानिए जब तक उन की ब्लड शुगर कंट्रोल नहीं होगी तब तक पायरिया कंट्रोल में नहीं आने वाला. मगर ब्लड शुगर के साथसाथ उन्हें मसूढ़ों की तंदुरुस्ती पर भी ध्यान देने की सख्त जरूरत है. मसूढ़ों और दांतों की सुबह नाश्ते के बाद और रात में सोने से पहले सौफ्ट टूथब्रश से सफाई व हर भोजन करने के बाद ऐंटीसैप्टिक माउथवाश से कुल्ला करने, डैंटल हाईजीनिस्ट से मसूढ़ों और दांतों की सफाई और डैंटल सर्जन की देखरेख में ली गई दवा पायरिया से छुटकारा दिलाने में सहायक है.

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बिना चीनी वाला भोजन न केवल कई तरह की गंभीर बीमारियों से बचाता है, बल्कि वजन कम करने में भी मदद करता है. लेकिन ऐसे भोजन लेना शुरू करने से पहले कुछ चीजों को समझ लेना बेहद जरूरी है.

शुगरफ्री भोजन क्या है

शुगरफ्री भोजन का मतलब है कि उस में हर तरह की जरूरत से ज्यादा या छिपी चीनी का सेवन बंद. इस में सिंपल कार्बोहाइडे्रट भी शामिल हैं. रोजाना 350 कैलोरी से अधिक शुगर लेने से मोटापा, मधुमेह और दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

इस के अलावा जरूरत से ज्यादा शुगर लेना शरीर के इम्यून सिस्टम को भी कमजोर बनाता है. कुछ लोग सोचते हैं कि शुगरफ्री भोजन का अर्थ है हर तरह की चीनी लेना बंद कर देना. लेकिन ऐसा नहीं है. इस में अनाज और फलों की मात्रा को कम करना चाहिए, लेकिन बंद बिलकुल नहीं करना चाहिए.

कैसे करता है काम

शुगरफ्री भोजन करने से ब्लड शुगर में अचानक बदलाव नहीं आता. इस में ज्यादा ग्लाइसेमिक से युक्त खाने वाली चीजें शामिल होती हैं, जिन का सीधा असर ब्लड शुगर और ग्लूकोज के स्तर पर पड़ता है. कम ग्लाइसेमिक से युक्त चीजें पचाने में ज्यादा मुश्किल होती हैं. इन्हें लेने से मैटाबोलिक रेट में सुधार होता है और आप पेट भरा हुआ महसूस करते हैं. आप के शरीर में प्रोटीन और वसा से ऊर्जा पैदा होती है. इस से धीरेधीरे वजन भी कम होने लगता है.

शुगरफ्री डाइट प्लान

ऐसे भोजन में कई खाने वाली चीजों को पूरी तरह बंद कर दिया जाता है. कुछ को ही शामिल किया जाता है. खट्टे फल ज्यादा खाए जाते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- क्यों जरूरी है शुगर फ्री भोजन

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

खाने से जुड़े मिथक और सचाई

95 फीसदी से ज्यादा बीमारियां पोषक तत्त्वों की कमी और शारीरिक श्रम में कमी होने के चलते होती हैं. आइए, भोजन से जुड़े कुछ मिथकों की सचाई के बारे में जानते हैं.

1. मिथक: चीनी की जगह शहद से अपने खाने को मनचाहे तरीके से मीठा कर सकत हैं.

सचाई: रासायनिक लिहाज से शहद और चीनी बिलकुल बराबर हैं. यहां तक कि नियमित चीनी के सेवन के मुकाबले शहद में ज्यादा कैलोरी हो सकती है. इसलिए बिलकुल चीनी की ही तरह शहद का भी कम मात्रा में ही इस्तेमाल करें.

2. मिथक: किसी वक्त का भोजन न करने पर अगले भोजन में उस की कमी पूरी हो जाती है.

सचाई: किसी भी समय का भोजन मिस करना ठीक नहीं माना जाता है और इस की कमी अगले वक्त का भोजन करने से पूरी नहीं होती. 1 दिन में 3 बार संतुलित भोजन लेना जरूरी होता है.

3. मिथक: यदि खाने के पैकेट पर ‘सब प्राकृतिक’ लिखा हो तो वह खाने में सेहतमंद होता है.

सचाई: अगर किसी चीज पर ‘सब प्राकृतिक’ का लेबल चस्पा हो तो भी उस में चीनी, असीमित वसा या फिर दूसरी चीजें शामिल होती हैं, जो सेहत के लिए खतरनाक हो सकती हैं. ‘सब प्राकृतिक’ लेबल वाले कुछ स्नैक्स में उतनी ही वसा शामिल होती है जितनी कैंडी बार में. पैकेट के पिछले हिस्से पर लिखी हिदायतों को पढ़ना जरूरी होता है जो आप से सब कुछ बयां कर देती है.

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4. मिथक: जब तक हम प्रत्येक दिन विटामिन का सेवन कर रहे हों, हम क्या खा रहे हैं उस के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है.

सचाई: कुछ पोषण विशेषज्ञों का कहना है कि विटामिन की गोलियां लेना अच्छी बात है, लेकिन ये गोलियां हर उस चीज को पूरा कर देंगी जिस की लंबे समय से आप को जरूरत है, जरूरी नहीं. सेहतमंद खाना आप को रेशे, प्रोटीन, ऊर्जा और बहुत सारी ऐसी जरूरी चीजें मुहैया कराता है जो विटामिन की गोलियां नहीं करा सकतीं. इसलिए विटामिन और चिप्स का 1 बैग अभी भी एक खतरनाक लंच है. इस की बजाय आप को संतुलित और पोषक तत्त्वों वाले भोजन की जरूरत है.

5. मिथक: अगर वजन जरूरत से ज्यादा नहीं है तो अपने खाने के बारे में परवाह करने की जरूरत नहीं है.

सचाई: अगर आप को अपने वजन से समस्या नहीं है तो भी हर दिन सेहतमंद भोजन का चुनाव करना जरूरी होता है. अगर आप अपने शरीर को एक मशीन की तरह से देखते हैं तो यह भी जानते होंगे कि मशीन को पूरी मजबूती के साथ चलाने के लिए अच्छे ईंधन का इस्तेमाल करना होता है. जंक फूड से दूर रहने का भी यही मकसद है. अगर आप खराब खाने की आदतें विकसित कर लेंगे तो आप को भविष्य में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

6. मिथक: विटामिन और खनिज की जरूरत को पूरा करने के लिहाज से ऐनर्जी बार सब से बेहतर रास्ता हैं.

सचाई: ऐनर्जी बार कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा के बेहतर स्रोत हो सकते हैं. लेकिन दूसरे खाने की तरह उन का भी बेजा इस्तेमाल हो सकता है. उन्हें ज्यादा खाने का मतलब है आप अपने शरीर को उतना ही नुकसान पहुंचा रहे हैं जितना कैंडी, केक और कूकी के खाने से होता है.

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7. मिथक: चीनी आप को ऊर्जा देती है. अगर आप को दोपहर या फिर खेल खेलने से पहले ऊर्जा बढ़ाने की जरूरत है तो एक कैंडी बार खाइए.

सचाई: चौकलेट, कूकी, कैंडी और केक जैसी खाद्य सामग्री में चीनी की सामान्य मात्रा पाई जाती है जो यकीनन आप के खून में शर्करा बढ़ा ला देगी और फिर इस के जरीए आप के शरीर की प्रणाली में जल्द ही ऊर्जा के संचार का एहसास होगा. लेकिन बाद में ब्लड शुगर में बहुत तेजी से गिरावट आती है और फिर आप को ऐसा महसूस होगा कि शुरू के ऊर्जा के स्तर में भी कमी आ गई है.

8. मिथक: कार्बोहाइड्रेट आप को मोटा करता है.

सचाई: अगर आप औसत और संतुलित मात्रा में इस का सेवन करते हैं तो आप के शरीर के लिए ये सब से बेहतर ऊर्जा के स्रोत साबित हो सकता है.                    

– डा. नीलम मोहन
पीडिएट्रिक गैस्ट्रोऐंटरोलौजिस्ट और यकृत प्रत्यारोपण विशेषज्ञ, मेदांता मैडिसिटी

प्रैग्नेंसी से पहले कैंसर से जुड़ीं सावधानियां बताएं?

सवाल

मेरी मां को डिंबाशय का कैंसर था. लेकिन अब उपचार से ठीक हो चुकी हैं. हाल ही में मेरी चाची को भी डिंबाशय के कैंसर का पता चला है. मुझे यह जानकारी है कि डिंबाशय का कैंसर आनुवंशिक रोग है, जिस के कारण मुझे इस की चपेट में आने का खतरा है. मुझे किन लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए और क्या मुझे जल्द ही किसी प्रकार की जांच करानी चाहिए?

जवाब-

डिंबाशय के कैंसर के सभी मामलों में 5 से 10% मामले ही आनुवंशिक होते हैं. इस रोग का पारिवारिक इतिहास होने के कारण आप के समक्ष जीन के उत्परिवर्तित होने का खतरा है. कैंसर के शीघ्र डायग्नोसिस के लिए कुछ जांचें करवाना जरूरी है. आप जीवनशैली में कुछ परिवर्तन ला कर भी इस से बची रह सकती हैं. डिंबाशय के कैंसर के प्रारंभिक चरणों में कोई लक्षण प्रकट नहीं होता, लेकिन यदि आप श्रोणि क्षेत्र या आमाशय अथवा गैस, पेट फूलने जैसी आंत्रजठरीय समस्याओं जैसे लक्षणों को महसूस करती हैं, तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें.

सवाल-

3 वर्ष पूर्व मेरे बाएं स्तन में कैंसर का पता चला था. चूंकि मुझ में बीआरसीए जीन पाया गया, इसलिए उस समय मेरे दोनों स्तनों को रिमूव कर दिया गया. मेरी 13 वर्ष की बेटी है. मुझे चिंता है कि कहीं वह भी स्तन कैंसर से ग्रस्त न हो जाए. हालांकि उस में कोई भी लक्षण प्रकट नहीं हुआ है, लेकिन मैं इस को ले कर आश्वस्त होना चाहती हूं. इस के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

प्राय: बच्चों में जो गांठें पाई जाती हैं उन के कैंसर के रूप में विकसित होने की संभावना बहुत कम होती है. स्तन कैंसर 15 से 39 वर्ष की महिलाओं में काफी कौमन एवं आक्रामक होता है. अपने इतिहास को जानने के बाद आप की चिंता स्वाभाविक है, लेकिन जब तक आप को कोई लक्षण न दिखाई दे तब तक भयभीत होने की जरूरत नहीं है. इस के लक्षणों में कांख अथवा स्तन क्षेत्र में गांठ, स्तनों के आकारप्रकार में परिवर्तन, उन से रक्त का डिस्चार्ज इत्यादि शामिल हैं. हालांकि ये लक्षण अन्य बीमारियों के भी हो सकते हैं. ऐसी स्थिति में चिकित्सक से संपर्क करें. दोनों स्तनों का अल्ट्रासाउंड कराएं. यदि किसी तरह का संदेह हो तो एमआरआई कराएं.

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सवाल-

मैं 30 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मैं और मेरे पति 2 वर्षों से गर्भधारण के लिए प्रयास कर रहे हैं. मुझ में हाल ही में गर्भग्रीवा के कैंसर का पता चला है. क्या मैं भविष्य में गर्भवती हो सकती हूं? और अगर मैं गर्भवती हो जाती हूं, तो क्या कैंसर का उपचार बच्चे के लिए नुकसानदायक हो सकता है?

जवाब-

ऐसी स्थिति में गर्भधारण मुमकिन नहीं है. विकिरण चिकित्सा से आप के डिंबाशय काम करना बंद कर सकते हैं तथा आप के गर्भाशय को रिमूव कर दिए जाने के कारण गर्भधारण मुमकिन नहीं हो सकता. यदि 2 सैंटीमीटर से कम ग्रोथ वाले गर्भग्रीवा के कैंसर का पहला चरण है, तो लैप्रोस्कोपिक पैल्विक लिंफैडेनेक्टोमी के साथ वैजाइनल ट्रैचेलैक्टोमी की सर्जरी के द्वारा गर्भाशय को बचाया जा सकता है. इस औपरेशन के बाद गर्भधारण के मामले देखे गए हैं. यदि गर्भावस्था के आखिरी तिमाही में कैंसर का पता चलता है, तो इस के उपचार को प्रसव के बाद तक टाला जा सकता है.

सवाल-

मैं 27 वर्षीय युवती हूं. मैं स्वस्थ हूं और नियमित व्यायाम करती हूं. जहां तक मेरे मासिकचक्र का प्रश्न है तो यह नियमित रहता है, लेकिन इस की उत्तरावस्था में माह में मुझे कम से कम 2 बार रक्तस्राव होता है, जिस में से दूसरा रक्तस्राव लंबे समय तक नहीं होता. इस के अतिरिक्त योनि से सफेद डिस्चार्ज होता है. मुझे सहवास के दौरान हलका दर्द होता है, लेकिन प्रारंभिक प्रवेश के बाद समाप्त हो जाता है. क्या मुझे ऐंडोमैट्रियल कैंसर हो सकता है? इस का उपचार क्या है?

जवाब-

27 वर्ष की अवस्था में ऐंडोमैट्रियल कैंसर की संभावना काफी कम होती है. लक्षणों का कारण पैल्विक इन्फ्लैमेटरी डिजीज है, जिस का ऐंटीबायोटिक्स द्वारा आसानी से उपचार किया जा सकता है. यदि मासिकधर्म लंबे समय तक अनियमित रहता है, तो डायलेशन ऐंड क्यूरेटेज (डीएनसी) किया जा सकता है. इस से उपचार में सहायता मिलती है.

सवाल-

मैं 33 वर्षीय महिला हूं. 3 माह की गर्भवती हूं. मुझे लगभग 2 वर्ष पूर्व गर्भपात हो गया था. मेरे गर्भाशय का आकार सामान्य से बड़ा है. मैं ने कहीं पढ़ा है कि यह कैंसर का लक्षण है. क्या मुझे कैंसर है?

जवाब-

हालांकि ये जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (जीटीडी) के लक्षण हैं, लेकिन यदि आप का चिकित्सक यह सोचता है कि इस में चिंता की कोई बात नहीं है, तो फिर चिंता न करें. इस की अल्ट्रासाउंड से पुष्टि की जा सकती है. खून की कमी प्राय: गर्भावस्था के दौरान हो जाती है. आयरन से भरपूर भोजन करें. तनाव गर्भ में पल रहे शिशु के लिए ठीक नहीं है.

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सवाल-

मैं 22 वर्षीय युवती हूं. मेरी मां 3 माह पहले स्तन कैंसर से गुजर गई थीं. मैं स्वयं को भी कैंसर के खतरे के दायरे में मानती हूं. मैं यह जानना चाहती हूं कि मुझे कितनी पहले जांच करा लेनी चाहिए? मेरे लिए इस से बचने का कोई तरीका है?

जवाब-

आप जांच कराने में देरी न करें. अल्ट्रासाउंड किसी भी आयु में कराया जा सकता है, लेकिन मैमोग्राफी लगभग 40 वर्ष की अवस्था में कराई जानी चाहिए. बीआरसीए के उत्परिवर्तन के साथ महिलाओं के लिए सुनियोजित उपचार की अब भी खोज की जा रही है. तुरंत ओंकोलौजिस्ट से संपर्क करें.

– डा. एस. के. दास
ऐक्शन कैंसर हौस्पिटल, दिल्ली

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

इन 25 बीमारियों से बचाएगी ग्रीन टी, पढ़ें खबर

ग्रीन टी अपने स्वास्थ्यवर्धक गुणों के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध होती जा रही है. ग्रीन टी के प्रयोग से विभिन्न बीमारियों पर नियंत्रण पाया जा सकता है. यहां हम बता रहे हैं कि ग्रीन टी कौनकौन सी बीमारी में किसकिस तरह सहायक होती है और उस में कौनकौन से लाभदायक तत्त्व होते हैं.

1. कैंसर

इस के अंदर पाए जाने वाले ऐंटीऔक्सीडैंट कैंसर का जोखिम को कम करने के लिए विटामिन सी के मुकाबले 25 गुणा और विटामिन बी के मुकाबले 100 गुना ज्यादा प्रभावकारी होते हैं. ये ऐंटीऔक्सीडैंट आप के शरीर के सैल्स को डैमेज होने से बचाए रखते हैं, जिस से कैंसर से बचाव होता है.

2. हृदयरोग

ग्रीन टी कोलेस्ट्रौल के स्तर को कम कर के हृदयरोगों और स्ट्रोक्स से होने वाले जोखिम को भी कम करने में सहायक है. यहां तक कि हार्टअटैक के बाद मृत पड़े हार्ट सैल्स को रिकवर कर दूसरे हार्ट सैल्स के संरक्षण में भी मदद करती है.

3. ऐंटीएजिंग

ग्रीन टी में पोलीफिनोल्स नामक ऐंटीऔक्सीडैंट होते हैं, जो फ्री रैडिकल्स से लड़ने की क्षमता रखते हैं. इस का अर्थ यह है कि ग्रीन टी बढ़ती उम्र से लड़ने में सहायक होती है और आप को ज्यादा समय तक जवां बनाए रखती है.

4. वेट लौस

शरीर से फैट बर्न कर के वजन को नियंत्रित करने में भी ग्रीन टी सहायक होती है. यह ऐक्स्ट्रा फैट को बर्न करने में भी मदद करती है और मैटाबोलिक रेट को प्राकृतिक तरीके से बढ़ाती है. यह एक दिन में शरीर से 70 कैलोरी तक बर्न करने की क्षमता रखती है.

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5. त्वचा

ग्रीन टी में पाए जाने वाले ऐंटीऔक्सीडैंट त्वचा को फ्री रैडिकल्स के हानिकारक दुष्प्रभावों से भी संरक्षित रखते हैं. त्वचा पर आई झुर्रियों और ढलती उम्र में त्वचा पर होने वाले प्रभाव इन्हीं फ्री रैडिकल्स के कारण उत्पन्न होते हैं.

6. आर्थराइटिस

ह्यूमेटायड आर्थराइटिस के जोखिम को भी ग्रीन टी कम करती है और इस के दुष्प्रभावों से बचाव करती है. यह शरीर के ऐंजाइम्स को ब्लाक कर के कार्टिलेज को संरक्षित रखती है. ये ऐंजाइम कार्टिलेज को कमजोर बना कर उन्हें नष्ट करते हैं.

7. बोंस (हड्डियां)

ग्रीन टी का फ्लूअराइड नामक तत्त्व हड्डियों को मजबूत बनाने में सहायक होता है. यदि आप प्रतिदिन ग्रीन टी पीते हैं, तो यह आप के शरीर में हड्डियों की डैंसिटी (स्थिरता) को बरकरार रखती है.

8. कोलेस्ट्रौल

यह कोलेस्ट्रौल के स्तर को कम करने में सहायक है. यह बुरे कोलेस्ट्रौल के स्तर को कम कर के अच्छेबुरे कोलेस्ट्रौल के अनुपात को भी नियंत्रित करती है.

9. ओबेसिटी

फैट सैल्स में ग्लूकोज की बढ़ती सक्रियता को रोक कर ओबेसिटी पर भी ग्रीन टी नियंत्रण रखती है.

10. डायबिटीज

ग्रीन टी लिपिड प्रोफाइल को बेहतर बनाती है. ग्लूकोज मैटाबोलिज्म रेट में शुगर लैवल को बढ़ने से रोकता है और शरीर के मेटाबोलिक रेट को भी नियंत्रित करता है.

11. अलजाइमर

ग्रीन टी आप की मैमोरी को बढ़ाने में भी मदद करती है. हालांकि यह अलजाइमर से बचाव नहीं करती, लेकिन यह ब्रेन में मौजूद एसेटिलकोलिन नामक तत्त्व की सक्रियता को कम करने में मदद करती है. यह तत्त्व ही अलजाइमर होने के मुख्य कारण बनता है.

12. पार्किंसन

ग्रीन टी में पाए जाने वाले ऐंटीऔक्सीडैंट मस्तिष्क में होने वाले सैल डैमेज से बचाव में मदद करती है. यह डैमेज पार्किंसन होने की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभाता है.

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13. लीवर डिजीज

रिसर्च से पता चलता है कि ग्रीन टी शरीर की फैटी लीवर में मौजूद हानिकारक फ्री रैडिकल्स को नष्ट कर देती है. यह लीवर फेल होने के कारणों से बचाव कर के ट्रांसप्लांट के जोखिम को भी कम करती है.

14. हाई ब्लडप्रैशर

यह हाई ब्लडप्रैशर से बचाव में मदद करती है. ग्रीन टी पी कर ब्लडप्रैशर के स्तर को नियंत्रित करने में मदद मिलती है. यह एंगोएटेनसिन पर दबाव बनाए रखती है, जिस से ब्लडप्रैशर पर नियंत्रण बना रहता है.

15. फूड पौइजनिंग

इस में पाया जाने वाला कैटेचिन नामक तत्त्व शरीर के उन बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है, जो फूड पौइजनिंग की वजह बनते हैं. साथ ही, यह उन टौक्ंिसस को भी नष्ट करती है, जो इन बैक्टीरिया के कारण पनपते हैं.

16. ब्लड शुगर

यों तो बढ़ती उम्र के साथ शरीर में ब्लड शुगर लैवल बढ़ने की प्रवृत्ति होती है, लेकिन ग्रीन टी में पाए जाने वाले पौलीफिनोल्स ब्लड शुगर लैवल को कम करने में मदद करते हैं.

17. इम्यूनिटी

ग्रीन टी में मौजूद पोलीफिनोल्स और फ्लेवनौइड्स शरीर के इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाने में मदद करते हैं.

18. कोल्ड और फ्लू

इस में मौजूद विटामिन सी सामान्य कोल्ड और फ्लू से लड़ने में मदद और शरीर को अन्य बीमारियों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है.

19. अस्थमा

ग्रीन टी मसल्स को रिलैक्स करती है, इस से अस्थमा अटैक की तीव्रता में भी कमी आती है.

20. ईयर इन्फैक्शन

ग्रीन टी कानों में होने वाले इन्फैक्शन से भी बचाव करती है. रुई के फाहे को ग्रीन टी में भिगो कर उस से संक्रमित कान की सफाई करें. यह गंदगी को भी साफ कर देगा और कीटाणु भी नहीं पनपने देगा.

21 हरपीज

ग्रीन टी हरपीज के विशेष ट्रीटमैंट टौपिकल इंटरफेरन ट्रीटमैंट के प्रभाव को और अधिक बढ़ाने में मदद करती है. इस ट्रीटमैंट से पहले यह संक्रमित हिस्से पर दबाव या प्रभाव बनाती है और उस के बाद उस क्षेत्र के आसपास की त्वचा को ड्राई छोड़ देती है, जिस से ट्रीटमैंट का असर ज्यादा होता है और ट्रीटमैंट में भी सहूलियत रहती है.

22. सांसों की दुर्गंध

ग्रीन टी कई तरह के ऐसे वायरस और बैक्टीरिया को भी खत्म करती है, जो कई तरह की डैंटल प्रौब्लम्स का कारण होते हैं. साथ ही उन बैक्टीरिया को भी पनपने से रोकती है, जो सांस में दुर्गंध पैदा करते हैं.

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23. स्ट्रैस

ग्रीन टी एंग्जाइटी और स्ट्रैस से मुक्ति में सहायक होती है. इसलिए ग्रीन टी से स्ट्रैस पर नियंत्रण पाया जा सकता है.

24. ऐलर्जी

ग्रीन टी में मौजूद ईजीसीजी किसी भी तरह की स्किन ऐलर्जी से मुक्ति में सहायक है. इसलिए यदि आप को ऐलर्जी है, तो ग्रीन टी आप के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है.

25. एचआईवी

जापान के वैज्ञानिकों ने पाया है कि ग्रीन टी शरीर के हैल्दी इम्यून सैल्स को आपस में इकट्ठा कर के एचआईवी संक्रमण को रोक सकती है.q

जानें Bigg Boss 15 फेम विधि पांड्या के फिटनेस सीक्रेट्स

टीवी सीरियल तुम ऐसे ही रहना बालिका वधू, एक दूजे के वास्ते, उड़ान, लाल इश्क, क्राइम पेट्रोल, बिग बॉस 15 में नजर आ चुकी एक्ट्रेस विधि पांड्या अब सोनी टीवी के सीरियल ‘मोसे छल किए जाए’ में एक लेखिका सौम्या का किरदार निभाती नजर आ रही हैं. जो अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए घिसे-पिटे रिवाजों को तोड़ती हुई नजर आएंगी.

आपको बता दे विधि ने टीवी सीरियल तुम ऐसे ही रहना से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की थी. हालांकि, विधि को सफलता सीरियल उड़ान में चकोर की बहन के किरदार से मिली. उन्होंने सीरियल में निगेटिव किरदार निभाया था. मुंबई में जन्मी विधि सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. अक्सर अपनी फ़ैशनेबल फोटोज शेयर करती रहती है.

शो के प्रमोशन पर दिल्ली के ललित होटल आई विधि पांड्या ने शो के अलावा अपनी फिटनेस के बारे में कुछ सीक्रेट्स शेयर किए.

एक्ट्रेस विधि पांड्या के फिटनेस सीक्रेट्स

सुबह की शुरुआत

सुबह उठते ही मैं एप्पल इन सीडर विनेगर वार्म वाटर के साथ लेती हूं. नाश्ते में मूसली या पोहा लेती हूं.

डाइट

मैं कोई डाइट फॉर्मेट में बिलीव नही करती  मेरी कुछ बेसिक चीजे है सब कुछ खाओ लेकिन कम कॉन्टिटी में खाओ. रात को सोने से 2-3 घंटे पहले  अपना डिनर फिनिश कर लो ताकि डाइजेशन बेटर हो. मैं जंक फूड नही खाती, घर का खाना खाती हूं और खूब सारा पानी पीती हूं.

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लंच

लंच के समय मैं रोज मक्के की रोटी के साथ डिफरेंट टाइप की वेजिटेबल और दाल खाती हूं.

हाइड्रेशन

मैंअपनी बॉडी को हाइड्रेट करने के लिए खूब सारा पानी पीती हूं. जिसमें लाइम वाटर, कोकोनेट वाटर, और टर्मनिक वाटर रोज़ लेती हूं.

एक्सरसाइज

फिट रहने के लिए एक टाइम पर मैं योगा करती थी लेकिन अब मैं एक्सरसाइज करती हूं मेरी बॉडी एक्सरसाइज के लिए कंफरटेबल है. मुझे रनिंग करना पसंद है. मैं 5 से 6 किलोमीटर रन करती हूं. रोज  एक घंटा जिम करती हूं जिसमें20 मिनट कार्डियो, 20 मिनट वेट् ट्रेनिंग और 20 मिनट दूसरी एक्सरसाइज करती हूं.

डिनर

डिनर मैं लाइट ही लेती हूं जिसमे पनीर सैलेड लेती हूं या मूसली, सूप लेती हूं जिससे रात में डाइजेशन सही रहे.

चीट डे

चीट डे में मैं कभी- कभी पिज़्जा, ब्राउनी और चॉकलेट खा लेती हूं क्योंकि ये मुझे बहुत पसंद है.

अगर आप भी रहना चाहती है फिट तो एक्ट्रेस विधि पांड्या के फिटनेस टिप्स को जरूर फॉलो करें. ….

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40 की उम्र में इन 20 टिप्स से रहें फिट

महिलाएं पति और बच्चों का तो खूब खयाल रखती हैं पर खुद को इग्नोर करती रहती हैं. युवावस्था तो सब झेल जाती है पर 40 की दहलीज पर पहुंचने पर समझदारी का साथ नहीं छोड़ना चाहिए. इस उम्र में फिट रहने के 20 फंडे हम आप को बता रहे हैं. इन में से कुछ तो आप जानती होंगी पर कुछ आप के लिए बिलकुल नए होंगे. अगर आप इन्हें धीरेधीरे अपने लाइफस्टाइल का हिस्सा बना लें तो बहुत सी परेशानियों से आप दूर रहेंगी.

1. कैल्सियम और आयरन हासिल करें:

हिंदुस्तानी महिलाओं में आयरन और कैल्सियम की कमी आमतौर पर पाई जाती है. एक बार इन दोनों के टैस्ट करा लें और खानपान में ऐसी चीजें शामिल करें, जिन में इन की मात्रा अधिक हो. इन की गोलियां लेने से परहेज न करें.

2. एक प्याला सेहत का:

कौफी हमारी दोस्त होती है. इस में मौजूद कैफीन फैट को ऐनर्जी में बदलने के लिए उकसाता है. यह काम ग्रीन टी भी बखूबी करती है. इसलिए दोनों को अपना दोस्त मानें.

3. वेट टे्रनिंग करें:

आप ने पहले कभी जिम जौइन की हो या नहीं फर्क नहीं पड़ता. अब मसल्स कमजोर पड़ रहे हैं. वेट टे्रनिंग उन्हें मजबूती देती है. हिंदुस्तानी महिलाएं वेट टे्रनिंग से परहेज करती हैं पर इस के कई फायदे हैं. जिम नहीं जा सकतीं तो घर पर इस की व्यवस्था कर लें.

4. शैड्यूल चेंज करें:

अगर आप योग करती हैं या सैर पर जाती हैं और लंबे समय से यह करती आ रही हैं तो इस शैड्यूल में थोड़ा बदलाव करें. हैल्थ स्पैशलिस्ट से सलाह ले कर कुछ और चीजें शामिल करें तो कुछ चीजों को बंद करें. सैर का टाइम भी बदल सकें तो बदलें.

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5. सप्लीमैंट्स का इस्तेमाल:

इस उम्र में आप को सब से ज्यादा फिक्र अपने जोड़ों और हड्डियों की होनी चाहिए. कैल्सियम के बारे में हम बात कर चुके हैं. आप विटामिन डी, सी और ई का खयाल रखें. विटामिन सी और ई को एकसाथ लें. ऐक्सरसाइज करती हैं तो उस से 1 घंटा पहले डाक्टर से बात कर सप्लीमैंट का चुनाव करें.

6. पोस्चर पर ध्यान दें:

पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को कंधों, गरदन और कमर दर्द की शिकायत ज्यादा होती है. इस की प्रमुख वजह बैठने और सोने के तरीके में गड़बड़ी है. अब जरा इस पर ध्यान दें. फिजियोथेरैपिस्ट से बात करें, कैसे बैठें, कैसे सोएं वगैरह जानें.

7. दिमाग से तैयार हों:

खुद को बदलाव के लिए तैयार करें. लेख पढ़ने और मन में सोचने से कुछ नहीं होगा. अगर स्वस्थ रहना चाहती हैं तो इसे ठान लें. शुरू में लोग टोकेंगे भी मगर उसे आप को संभालना है. ‘मैं करूंगी’, ‘मैं करना चाहती हूं’ की जगह ‘मैं कर रही हूं’, ‘मैं जा रही हूं’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करें.

8. स्पोर्ट्स शूज खरीदें:

हो सकता है आप को आदत न हो, मगर टहलने के लिए स्पोर्ट्स शूज अच्छे होते हैं. अपनी पसंद के शूज खरीदें और उसी में टहलने या जिम जाएं.

9. गलती से घबराएं नहीं:

अगर कुछ नतीजे सामने नहीं आए तो परेशान होने की जरूरत नहीं. दोबारा नई तकनीक के साथ चीजें शुरू करें. ऐक्सपर्ट की मदद लेने में कोई बुराई नहीं.

10. सब को बताएं:

आप जो कुछ कर रही हैं और जो कुछ करना चाहती हैं उस के बारे में खुद से जुड़े लोगों को जरूर बताएं. ताकि वे लोग आप की सफलता पर आप को बधाई दें और टोकते भी रहें, ‘आज जिम नहीं जा रहीं…’

11. खानासोना ऐसे हो:

रात का खाना सोने से 2 घंटे पहले खा लें. खाने के बाद कम से कम 100 कदम टहलें, लेकिन खाने के तुरंत बाद नहीं थोड़ा रुक कर.

12. स्पा और मसाज:

हफ्ते में एक बार अगर जेब आप को मंजूरी देती हो तो मसाज और स्पा का लुत्फ उठाएं. नहीं तो घर में किसी से कहें वह आप की मालिश कर दे. प्यारमुहब्बत से सब काम हो जाते हैं.

13. बाथरूम पर ध्यान दें:

घर का सब से खतरनाक इलाका बाथरूम होता है. घर के बड़े अकसर वहीं फिसल कर चोट खाते हैं. घर में आदेश जारी कर दें कि कोई भी बाथरूम को गीला नहीं छोड़ेगा. इस्तेमाल के बाद तुरंत वाइपर से पानी पोंछ दें. बाथरूम में कभी जल्दी में न घुसें.

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14. शुरुआत फल के साथ:

दिन की शुरुआत किसी फल से करें. सेब अच्छा फल है, नहीं तो जो भी मौसमी फल मिले उसे खाएं. सेहत के लिए जितना अच्छा अनार है उतना ही अमरूद भी है.

15. आंवला कैंडी, बेल का मुरब्बा:

पेट को दुरुस्त रखने में बेल का कोई जवाब नहीं. इस का फल तो आता ही है, मुरब्बा, पाउडर और सिरप भी आता है. आंवले की कैंडी इस्तेमाल करें.

16. दिन में 2 बार:

अगर कंफर्टेबल फील करना चाहती हैं तो दिन में 2 बार पेट साफ करें. शरीर में हलकापन रहेगा.

17. पिएं और पीती रहें:

अरे रे, शराब मत समझ लेना. हम पानी की बात कर रहे हैं. पानी किसी टौनिक से कम नहीं है. हमेशा साथ रखें और सिप कर के पीती रहें.

18. प्रोटीन से प्यार:

प्रोटीन आप के कमजोर होते मसल्स में नई जान फूंक देगा. इस की मात्रा बढ़ाएं. यह मेटाबौलिज्म को तेज करते हुए फैट बर्न करने में भी मदद करता है.

19. चैकअप कराएं:

डाक्टर से सलाह ले कर शुगर, कोलैस्ट्रौल, थाइराइड और एचबी की जांच करवाती रहें. जहां भी गड़बड़ी हो डाइट प्लान उसी हिसाब से करें.

20.नाराज होना बंद करें:

यह बात बहुत जरूरी है. क्या जल गया, क्या खल गया इन सब का ध्यान रखना आप का काम है, मगर पैनिक होने की जरूरत नहीं. बच्चों को खुद सीखने दें. खुश रहना 100 बीमारियों का इलाज है.

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मेरे न्यू बौर्न बेबी की हार्ट प्रौब्लम के कारण मौत हो गई, कृपया इसका कारण बताएं?

सवाल-

मैं 20 वर्षीय विवाहिता हूं. 4 महीने पहले मैं ने एक बेटे को जन्म दिया था. बच्चे को कोई हार्ट प्रौब्लम थी और उस का पेट भी सामान्य से बड़ा था. शायद इसीलिए औपरेशन से प्रसव होने के 13 घंटों के बाद ही मेरे बेटे की मृत्यु हो गई. प्रसव से पूर्व सब कुछ ठीक था अर्थात प्रसवावस्था में मुझे कोई समस्या नहीं थी. फिर मेरे बच्चे के साथ ऐसा क्यों हुआ? मैं बहुत दुखी रहती हूं.

जवाब-

एक मां 9 महीने तक जिस शिशु को अपने गर्भ में रखती है, जिस के लिए कष्ट सहती है, उसे अपनी गोद में लेने और उस पर अपनी ममता लुटाने के सपने देखती है. पर जब उस सपने को यों ठेस पहुंचती है तो मायूस होना लाजिम है. आप को स्वयं को इस दुख से उबारना होगा. साथ ही अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना होगा. अभी आप की उम्र बहुत कम है. आप थोड़े अंतराल के बाद किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञा की देखरेख में दोबारा गर्भधारण कर सकती हैं.

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अबौर्शन कराने का निर्णय कठोर और साहसिक निर्णय होता है. कुछ महिलाएं विवाह से पहले अनचाहे गर्भ से, तो कुछ विवाह बाद के अनप्लान्ड गर्भ से छुटकारा पाने के लिए अबौर्शन कराती हैं. कई महिलाओं को बच्चे की चाह रखने के बावजूद चिकित्सकीय या सामाजिक दबाव के कारण यह निर्णय लेना पड़ता है. अबौर्शन में कई शारीरिक और मानसिक बदलावों से गुजरना पड़ता है. अबौर्शन सर्जरी या दवाईयों के द्वारा किया जाता है.

ये शारीरिक लक्षण चिंता का कारण

वैसे तो अधिकतर अबौर्शन सुरक्षित होते हैं, लेकिन फिर भी दूसरे सर्जिकल प्रोसैस की तरह इस में कई जटिलताएं और जोखिम होते हैं. अबौर्शन के बाद ये शारीरिक लक्षण चिंता का कारण हो सकते हैं:

– 48 घंटे से अधिक समय तक 100 डिग्री से अधिक बुखार रहना.

– अत्यधिक ब्लीडिंग.

– वैजाइना से रक्त के बड़ेबड़े थक्के निकलना.

– अबौर्शन के 4-5 दिन बाद तक ब्लीडिंगजारी रहना.

– पेट में मरोड़ और अत्यधिक दर्द होना.

– वैजाइना से ऊतकों का डिसचार्ज होना.

– वैजाइना से निकलने वाले डिसचार्ज सेदुर्गंध आना.

– मूत्र और मल त्याग की आदत में बदलाव आना.

– पेशाब और मल में रक्त आना.

– चक्कर आना, बेहोशी छाना.

– कमजोरी महसूस होना.

– अवसादग्रस्त अनुभव करना.

– भूख न लगना.

– सोने में समस्या आना.

अबौर्शन कराने के बाद प्रैगनैंसी हारमोन भी शरीर में रहते हैं यानी अबौर्शन के बाद शरीर और हारमोन सिस्टम को सामान्य अवस्था में आने में 1 से 6 हफ्ते लग सकते हैं. आमतौर पर अबौर्शन सुरक्षित होता है. 100 में से 1 महिला मेंही गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं. अबौर्शन के बाद के ये समस्याएं हो सकती हैं:

पूरी खबर पढ़ने के लिए- अबौर्शन: क्या करें क्या नहीं

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

ले न डूबे यह लत

लोग बिस्तर तक मोबाइल से चिपके रहते हैं. मगर उन की यह लत उन्हें भारी पड़ सकती है क्योंकि हाल ही में अमेरिकन जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार हफ्ते में 20 घंटे से ज्यादा टीवी या मोबाइल फोन देखने से पुरुषों के स्पर्म प्रोडक्शन में 35% तक की कमी आ सकती है. रिपोर्ट के मुताबिक 1 दिन में 5 घंटे से ज्यादा टीवी देखने वालों के शरीर में स्पर्म काउंट में भारी कमी आती देखी गई है.

इस के ठीक उलट कंप्यूटर पर रोजमर्रा का औफिस का दिनभर काम करते रहने वालों के शरीर में ऐसी कोई कमी नहीं देखी गई. ऐसे लोगों के न तो स्पर्म काउंट में कोई कमी देखी गई और न ही उन के शरीर में टेस्टोस्टेरौन हारमोन के स्तर में कोई कमी आई. इस का एक कारण यह भी हो सकता है कि ऐसे लोग जो बहुत ज्यादा टीवी देखते हों, पर ज्यादा ऐक्सरसाइज नहीं करते हों और न ही हैल्दी खाना खाते हों, तो ये दोनों ही आदतें उन की फर्टिलिटी पर प्रभाव डालती हैं.

इन्फर्टिलिटी का बड़ा कारण

टीवी या मोबाइल पर फिल्में देखने वालों का दिमाग एक तरह से काम करना बंद कर देता है. जंक फूड के अत्यधिक सेवन और आलस भरे लाइफस्टाइल के चलते आजकल काफी लोग मोटापे का शिकार होते जा रहे हैं और यह इन्फर्टिलिटी का एक बड़ा कारण बनता जा रहा है. मोटापे की वजह से पुरुषों और महिलाओं दोनों में कामेच्छा कम होती जाती है.

मोटापा न केवल यौन संबंध बनाने की इच्छा में कमी लाता है, बल्कि इस के चलते सैक्स के दौरान जल्दी स्खलन होने की समस्या भी पेश आती है. इस के चलते सैक्सुअल परफौर्मैंस प्रभावित होती है क्योंकि लिंग में पर्याप्त उत्तेजना नहीं आ पाती, साथ ही अगर महिला मोटापे से पीडि़त है, तो उस स्थिति में भी सही तरीके से समागम नहीं हो पाता है.

कैन, पैकेट बंद फूड और हाई फैट युक्त चीजें बहुत तेजी से और बड़ी मात्रा में ऐसिडिटी पैदा करती हैं, जिस से शरीर के पीएच स्तर में बदलाव आता है. आलस भरे लाइफस्टाइल के साथ कैमिकल ऐडिटिव्स और ऐसिडिक नेचर वाला खानपान या तो स्पर्म सैल्स के आकार और उन की गतिशीलता को नुकसान पहुंचाता है या फिर इस की वजह से स्पर्म डैड हो जाते हैं.

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हार्ट पर खतरा

‘ब्रिटिश जर्नल औफ स्पोर्ट्स मैडिसन’ में प्रकाशित रिपोर्ट के तहत लैब ऐनालिसिस के लिए 18 से 22 साल की उम्र के 200 स्टूडैंट्स के स्पर्म सैंपल कलैक्ट किए गए. उन के विश्लेषण से यह पता चला कि सुस्त लाइफस्टाइल और स्पर्म काउंट में कमी का एकदूसरे से सीधा संबंध है.

ज्यादा टीवी देखने वालों का औसत स्पर्म काउंट 37 एमएन माइक्रोन प्रति एमएल था, जबकि उन स्टूडैंट्स का स्पर्म काउंट 52 एमएन माइक्रोन प्रति एमएल था, जो बहुत कम टीवी देखते हैं. सुस्त लाइफस्टाइल और टीवी देखने के आदी लोगों के स्पर्म काउंट में सामान्य के मुकाबले 38% तक कमी पाई गई है.

इस रिपोर्ट से यह भी साबित हुआ है कि अत्यधिक टीवी देखने वालों के हृदय में अत्यधिक आवेग के चलते फेफड़ों में खून का जानलेवा थक्का जमने और उस के चलते हार्ट अटैक से मौत होने की संभावना भी 45% तक बढ़ जाती है और टीवी, या मोबाइल स्क्रीन के सामने हर 1 घंटा और बिताने के साथसाथ यह संभावना और भी बढ़ती जाती है.

प्रजनन क्षमता पर असर

कुछ रिपोर्ट्स में बताया गया है कि हर हफ्ते औसतन 18 घंटे की ऐक्सरसाइज करने से स्पर्म क्वालिटी बढ़ाई जा सकती है, लेकिन अत्यधिक ऐक्सरसाइज करने से भी स्पर्म क्वालिटी पर असर पड़ता है. देखने में आया है कि शारीरिक रूप से सक्रिय रहने वाले ऐसे लोग जो हफ्ते में 15 घंटे मौडरेट ऐक्सरसाइज करते हैं या कोई खेल खेलते हैं उन का स्पर्म काउंट शारीरिक रूप से कम सक्रिय रहने वाले लोगों की तुलना में 3-4 गुना तक ज्यादा रहता है.

टीवी या मोबाइल के सामने घंटों एकटक निगाहें रखने का सीधा संबंध शरीर में गरमी बढ़ाने से होता है. स्पर्म ठंडे वातारण में ज्यादा अच्छी तरह पनपते हैं, जबकि शरीर के ज्यादा गरम रहने से वे ज्यादा अच्छी तरह नहीं पनप पाते हैं. जरूरत से ज्यादा ऐक्सरसाइज करना और लगातार टीवी देखना, दोनों ही शरीर में फ्रीरैडिकल्स के उत्पादन और उत्सर्जन को बढ़ावा देते हैं, जिस के चलते स्पर्म सैल्स मर जाते हैं, जिस का सीधा असर प्रजनन क्षमता पर पड़ता है. इसलिए डाक्टरों की सलाह है कि आप सबकुछ करें, लेकिन हर चीज की एक सीमा हो.

आप टीवी, मोबाइल देखिए, लेकिन साथ में जिन में भी वक्त बिताएं, हैल्दी डाइट लें और जीवन को अच्छी तरह ऐंजौय करें.

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कैंसर से जुड़ी गलत धारणा और फैक्ट के बारे में बताएं?

सवाल-

मुझे ब्रैस्ट कैंसर है. डाक्टर ने सर्जरी के द्वारा ब्रैस्ट का एक भाग निकालने को कहा है, लेकिन मुझे किसी ने सलाह दी है कि पूरी ब्रैस्ट निकालनी जरूरी है वरना यह दोबारा हो सकता है?

जवाब-

सर्जरी के द्वारा ब्रैस्ट के उसी भाग को निकाला जाता है जिस में कैंसर होता है. डाक्टर हमेशा ब्रैस्ट को सुरक्षित रखना चाहते हैं क्योंकि यह मरीज के आत्मविश्वास और सामान्य जीवन जीने के लिए बहुत जरूरी है. स्वस्थ ब्रैस्ट को बचाने से दोबारा कैंसर होने का रिस्क नहीं बढ़ता है. आप अपने डाक्टर पर विश्वास बनाए रखें और उस के निर्देशों का पालन करें.

सवाल-

मेरी शादी को 2 साल हुए हैं. कोई बच्चा नहीं है. ब्रेस्ट कैंसर के लिए सर्जरी कराने के बाद अब कीमोथेरैपी हो रही है. क्या मैं अपने अंडे प्रिजर्व करा सकती हूं?

जवाब-

ब्रैस्ट कैंसर के उपचार के परिणाम बहुत अच्छे हैं. उपचार के पश्चात अधिकतर मरीज सामान्य जीवन जी सकते हैं. कीमोथेरैपी डिवाइडिंग सैल्स पर काम करती है, इसलिए यह अंडों की कोशिकाओं को भी मार सकती है. इसलिए जो महिलाएं फैमिली प्लान करना चाहती हैं उन्हें अपने अंडे प्रिजर्व करा लेने चाहिए.

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सवाल-

मेरी उम्र 54 वर्ष है. 5 साल पहले मेनोपौज हो गया है. लेकिन कभीकभी वैजाइना से ब्लीडिंग होती है. कोई खतरे की बात तो नहीं?

जवाब-

मेनोपौज के बाद वैजाइना से ब्लीडिंग होना बिलकुल भी सामान्य नहीं है. ब्लीडिंग चाहे मेनोपौज के बाद हो, 2 माहवारी के बीच या शारीरिक संबंध बनाने के बाद, महिलाओं को इसे गंभीरता से लेना चाहिए. यह सर्वाइकल कैंसर का संकेत हो सकता है. आप तुरंत किसी अच्छे डाक्टर को दिखाएं, जरूरी जांच कराएं और डायग्नोसिस के अनुसार उपचार शुरू करें.

सवाल-

मेरे पति स्मोकिंग करते हैं. उन के फेफड़ों की स्थिति को देखते हुए डाक्टर ने उन्हें स्मोकिंग पूरी तरह बंद करने का सुझाव दिया है. क्या इस कारण मेरे लिए भी फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ गया है?

जवाब-

विश्वभर में स्मोकिंग को फेफड़ों के कैंसर का सब से बड़ा रिस्क फैक्टर माना जाता है. आप स्मोकिंग नहीं करतीं. लेकिन अपने पति के कारण आप पैसिव स्मोकर तो हैं ही. ऐसे में आप के लिए फेफड़ों के कैंसर का खतरा सामान्य लोगों से अधिक है. आप अपने पति को धूम्रपान पूरी तरह बंद करने के लिए समझाएं.

सवाल-

मेरे स्तन में गांठ है. डाक्टर ने बायोप्सी और एफएनएसी कराने को कहा है. लेकिन मुझे डर लग रहा है कि कहीं नीडिल के कारण कैंसर दूसरे अंगों तक तो नहीं फैल जाएगा?

जवाब-

बायोप्सी और फाइन नीडल एसपाइरेशन साइटोलौजी (एफएनएसी) दोनों ही बड़ी सुरक्षित प्रक्रियाएं हैं. इन्हीं जांचों के द्वारा कैंसर और उस के प्रकार के बारे में पता चलता है. बायोप्सी या एफएनएसी कैंसर के फैलने का कारण बन सकते हैं. यह पूरी तरह गलत धारणा है. आप अपने डाक्टर के कहे अनुसार दोनों जांचें जरूर कराएं.

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सवाल-

मेरी मां को लिवर कैंसर और पिता को प्रोस्टेट कैंसर है. मैं अपने स्वास्थ्य को ले कर बहुत चिंतित हूं. क्या मातापिता दोनों को कैंसर होने से मैं हाई रिस्क कैटेगरी में आती हूं?

जवाब-

यह सही है कि आनुवंशिक कारण कैंसर के लिए प्रमुख रिस्क फैक्टर्स में से एक है. लेकिन परिवार में जब 3 पीढि़यों तक कैंसर के मामले लगातार होते हैं तब उसे आनुवंशिक माना जाता है. आप के मातापिता दोनों को कैंसर है इस से आप को घबराने की जरूरत नहीं है. उन में आपस में कोई रक्त संबंध नहीं है क्योंकि वे अलगअलग परिवारों से आते हैं. इसलिए ये आनुवंशिकता से संबंधित नहीं माना जा सकता है.

सवाल-

डाक्टर मुझे कीमोथेरैपी के बाद स्टेराइड भी दे रहे हैं. मैं ने बहुत पढ़ा है कि स्टेराइड का सेवन नहीं करना चाहिए. यह सेहत के लिए काफी नुकसानदायक होता है?

जवाब-

अगर आप के डाक्टर आप को कीमोथेरैपी के साथ स्टेराइड दे रहे हैं तो आप को जरूर लेना चाहिए. यह कीमोथेरैपी के साइड इफैक्ट्स से बचने के लिए दिया जाता है. कई बार तो स्टेराइड कीमोथेरैपी का ही हिस्सा होता है. ऐसे में इसे लेने से कोई दिक्कत नहीं होती. इसलिए डाक्टर द्वारा सुझाई सभी दवाइयां नियत समय पर और निर्धारित मात्रा में जरूर लें.

सवाल-

मुझे 2-3 महीनों से लगातार खांसी आ रही है. 1-2 बार बलगम में खून भी आया है. क्या यह फेफड़ों के कैंसर का संकेत हो सकता है? लेकिन मैं ने तो जीवन में कभी सिगरेट नहीं पी है?

जवाब-

यह सही है कि फेफड़ों के कैंसर को पहले स्मोकर्स डिजीज के नाम से जाना जाता था. लेकिन आज हालात बदल गए हैं. बढ़ते वायुप्रदूषण, खानपान की गलत आदतें, शारीरिक सक्रियता की कमी के कारण धूम्रपान न करने वाले भी फेफड़ों के कैंसर के शिकार हो रहे हैं. आप डाक्टर को दिखाएं. छाती का एक्सरे या सीटी स्कैन कराने पर ही स्थिति स्पष्ट होगी. फेफड़ों के कैंसर का संदेह होने पर बायोप्सी कराई जाएगी.

-डा. गौतम गोयल

कंसल्टैंट, कैंसर विशेषज्ञ, मैक्स हौस्पिटल, मोहाली, पंजाब.

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