मैं अभी गर्भवती नहीं होना चाहती?

सवाल-

मैं 25 साल की शादीशुदा महिला हूं. कोरोना वायरस से जहां पूरा विश्व परेशान है और डर का माहौल है, मैं अभी गर्भवती नहीं होना चाहती. पति भी फिलहाल बच्चा नहीं चाहते. मगर समस्या मेरी सासूमां को ले कर है. वे चाहती हैं कि उन्हें पोता या पोती हो और घर में किलकारियां गूंजे. कृपया उचित सलाह दें?

जवाब-

शादी के बाद फिलहाल बच्चा न हो, इस का निर्णय लेना कि सभी दंपति का अधिकार होता है. अगर आप व आप के पति ऐसा नहीं चाहते तो यही सही है. रही बात कोरोना के सय गर्भधारण व बच्चा जनने की बात तो इस का कोरोना से कोई लेनादेना एक दंपती का अधिकार है. अगर ऐसा कोई डर का माहौल होता तो देश के अस्पतालों में अभी डिलीवरी ही नहीं कराई जाती. अगर इस बात को ले कर मन में किसी तरह का भय है तो इस भय को मन से निकाल दें. फिलहाल आप दोनों बच्चा नहीं चाहते तो इस के लिए सासूमां से बात कर सकती हैं कि आप मानसिक रूप से अभी इस के लिए तैयार नहीं हैं. वे भी एक औरत हैं और कतई नहीं चाहेंगी कि बिना आप की मरजी से आप गर्भधारण करें.

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शादी के बाद कपल्स सारी कोशिश करके भी मां-बाप नहीं बन पाते हैं तो इसकी वजह इन्फर्टिलिटी यानी बांझपन को माना जाता है. इसमें बच्चा पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है या फिर पूरी तरह खत्म हो जाती है.

आमतौर पर शादी के एक से डेढ़ साल बाद अगर बिना किसी प्रोटेक्शन के कपल्स रिलेशनशिप बनाने के बाद भी मां-बाप नहीं बन पाते हैं तो मेडिकली इन्हें इन्फर्टिलिटी का शिकार माना जाता है. इसमें समस्या महिला और पुरुष दोनों में हो सकती है.

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कैसे निभाएं जब पत्नी ज्यादा कमाए

पत्नी कमाऊ और पति बेरोजगार ऐसे उदाहरण पहले बहुत कम मिलते थे, मगर पिछले 10-12 सालों में ऐसे उदाहरणों की संख्या बढ़ती जा रही है. ऐसे में आपसी तालमेल बैठाना मुश्किल होता जा रहा है. इसलिए जरूरत इस बात की है कि अब कमाऊ बहू को मानसम्मान और अधिकार देने के साथसाथ उस के साथ तालमेल बैठाने की भी शुरुआत की जाए. पति को भी पत्नी से तालमेल बैठा कर चलना चाहिए तभी गृहस्थी की गाड़ी चल सकेगी. मेरठ की रहने वाली नेहा की शादी उस के ही सहपाठी प्रदीप से हुई. शादी के समय से ही दोनों एकसाथ जौब के लिए कई कंपीटिशनों में एकसाथ बैठ रहे थे. मगर प्रदीप किसी भी कंपीटिशन में कामयाब नहीं हुआ, पर नेहा ने एक कंपीटिशन पास कर लिया. वह सरकारी विभाग में औफिसर नियुक्त हो गई. प्रदीप ने इस के बाद भी कई प्रयास किए पर जौब नहीं मिल सकी. इस के बाद उस ने अपना बिजनैस शुरू किया.

शादी के कुछ साल तक दोनों के बीच तालमेल बना रहा पर फिर धीरधीरे आपस में तनाव रहने लगा. नेहा की जो शानशौकत और रुतबा समाज में था वह प्रदीप को खटकने लगा. वह हीनभावना से ग्रस्त रहने लगा. यही हीनभावना उन के बीच दरार डालने लगी. धीरधीरे उन के बीच संबंध बिगड़ने लगे. नतीजा यह हुआ कि 4 साल में ही शादी टूट गई. सर्विस में गैरबराबरी होने से पतिपत्नी के बीच अलगाव के मामले अधिक बढ़ते जा रहे हैं. पिछले 10 सालों का बदलाव देखें तो पता चलता है कि लड़कों से अधिक लड़कियों ने शिक्षा से ले कर रोजगार तक में अपनी धाक जमाई है. किसी भी परीक्षा के नतीजे देख लें सब से अधिक लड़कियां ही अच्छे नंबरों से पास हो रही हैं.

पहले शादी के बाद लड़कियों को नौकरी छोड़ने के लिए कहा जाता था. सरकारी नौकरियों में बड़ी सुविधाओं के चलते अब शादी के बाद कोई लड़की अपनी सरकारी नौकरी नहीं छोड़ती. अब उन मामलों में तनाव बढ़ रहा है जहां पत्नी अच्छी सरकारी नौकरी कर रही है पर पति किसी प्राइवेट जौब में है.

बड़ी वजह है सामाजिक बदलाव

पहले बहुत कम मामलों में लड़कियां शादी के बाद जौब करती थीं. अब बहुत कम मामलों में लड़कियां शादी के बाद जौब छोड़ती हैं. इस का सब से बड़ा कारण लोगों की सामाजिक सोच का बदलना है. अब शादी के बाद महिला काम करे इसे ले कर किसी तरह का कोई दबाव नहीं होता. शहरों में रहना, बच्चों को पढ़ाना और सामाजिक रहनसहन के साथ तालमेल बैठाना मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे में पति ही नहीं उस का पूरा परिवार चाहता है कि पत्नी भी जौब करे. केवल सर्विस के मामले में ही नहीं, बिजनैस के मामले में भी ऐसा ही हो रहा है.

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राहुल प्राइवेट बैंक में काम करता है. उस की सैलरी अच्छी है. बावजूद इस के उस ने अपनी पत्नी को अपनी पसंद का ब्यूटी बिजनैस करने की अनुमति दे दी. राहुल की पत्नी संध्या ने एक ब्यूटीपार्लर की फ्रैंचाइजी ले ली. इस में पैसा तो था ही, साथ ही सामाजिक दायरा भी बढ़ा. अब राहुल से अधिक संध्या को लोग जानने लगे थे. बिजनैस में सफल होने के बाद संध्या की पर्सनैलिटी में भी बहुत बदलाव आ गया. नातेरिश्तेदारी में पहले जो लोग उस के काम का मजाक उड़ाते थे वही अब उस की तारीफ करते नहीं थकते हैं. पति की सैलरी से ज्यादा संध्या अपने यहां काम करने वालों को वेतन देने लगी है. वह कहती है, ‘‘10 साल पहले मैं ने जब इस बिजनैस को शुरू किया था तब घरपरिवार और नातेरिश्तेदार यह सोचते थे कि मैं ने टाइमपास के लिए काम शुरू किया है. कई लोग सोचते थे कि पति के वेतन से मदद ले कर मैं काम कर रही हूं. मगर जब कुछ ही सालों के अंदर मेरे काम की तारीफ होने लगी तो सब को यकीन हो गया.

‘‘अब वही लोग मेरा परिचय देते हुए गर्व से कहते हैं कि मैं उन की बहू हूं. पति भी मजाकमजाक में कह देते हैं कि मेरे से ज्यादा लोग तुम्हें जानते हैं.’’ महिलाएं पहले भी काम करती थीं, पर तब उन के सामने काम करने के अवसर कम थे. उन में खुद पर भरोसा नहीं होता था. समाज का भी पूरा सहयोग नहीं मिलता था. ऐसे में उन में आत्मविश्वास पैदा नहीं होता था. ज्यादातर संयुक्त परिवार होते थे, जिस से महिला की कमाई पर उस का अधिकार कम ही होता था. मगर अब ऐसा नहीं है. यह बचत किया पैसा महिला में आत्मविश्वास पैदा करता है. इस आत्मविश्वास से ही सही माने में महिलाओं का सशक्तीकरण हुआ है. वे अपने फैसले खुद लेने लगी हैं. इस से उन की अलग पहचान बन रही है.

35 साल की रीना बताती है, ‘‘मुझे केकपेस्ट्री बनाने का शौक बचपन से था. जो भी खाता खूब तारीफ करता था. मैं शादी से पहले प्राइवेट जौब करती थी. शादी के बाद वह छूट गई. कुछ सालों के बाद मैं ने दोबारा अपना काम शुरू करने की योजना बनाई. मेरे पति ने कहा कि जौब कर लो पर मैं ने कहा कि नहीं अब केकपेस्ट्री बनाने का काम करूंगी. पति को यह काम अच्छा नहीं लगा. ‘‘मैं ने मेहनत से काम किया और फिर 3 सालों में ही मेरे बनाए केक शहर के लोगों की पहली पसंद बन गए. मेरे पास अब काफी स्टाफ है. मैं शहर में बिजनैस वूमन बन गई हूं. लोग मेरी खूब तारीफ करते हैं. पति को भी अब लगता है कि मेरा फैसला सही था.’’ इन बदलावों को देखते हुए लड़कियों को पढ़ाने के लिए परिवार पूरी मेहनत करने लगे हैं. 12वीं कक्षा के बाद की पढ़ाई के लिए कालेज, नर्सिंग स्कूल, इंजीनियरिंग कालेज सभी कुछ खुलने लगे हैं. जहां पर स्कूल नहीं हैं वहां की लड़कियां पढ़ाई करने दूर के स्कूलों में जाने लगी हैं. कई मांबाप ऐसे भी हैं जो पढ़ाई के लिए मकान तक बेचने या किराए पर देने लगे हैं. बड़े शहरों में चलने वाली कोचिंग संस्थाओं को देखें तो बात समझी जा सकती है. पढ़ाई और नौकरी के जरीए सही माने में महिलाओं का सशक्तीकरण होने लगा है. यह सच है कि बदलाव की बयार धीरेधीरे बढ़ रही है.

पति को करना होगा समझौता एक समय था जब शादी के बाद केवल लड़कियों को समझौता करना होता था. पत्नी घर में चौकाचूल्हा करती थी और पति नौकरी करता था. अब हालात बदल गए हैं. इस तरह के समझौते अब पतियों को करने पड़ रहे हैं. जब पत्नी से दिनभर नौकरी करने के बाद घर में पहले की तरह काम करने की अपेक्षा की जाती है तो वहां विवाद खड़े होने लगते हैं. इन विवादों से बचने के लिए पति को समझौता करना होगा. उसे पत्नी का हाथ बंटाना चाहिए.

जिन परिवारों में ऐसे बदलाव हो रहे हैं वहां हालात अच्छे हैं. जहां पतिपत्नी आपसी विवाद में उलझ रहे हैं वहां मामले झगड़ों में बदल रहे हैं. पतिपत्नी के बीच तनाव बढ़ रहा है. बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश सहित कई प्रदेशों में हाल के कुछ सालों में शिक्षक के रूप में पुरुषों से अधिक महिलाओं को नौकरी मिली है. ऐसे में पति अपनी पत्नी को स्कूल में नौकरी करने जाने के लिए खुद मोटरसाइकिल से छोड़ने जाता है. शहरों में रहने वाली लड़कियां अब सरकारी नौकरी के चक्कर में गावों के स्कूलों में पढ़ाने जा रही हैं. स्कूल का काम खत्म कर के वे शहर वापस आ रही हैं.

पत्नी दोहरी जिम्मेदारी उठाने लगी है. ऐसे में उस का तनाव बढ़ने लगा है. अब अगर पति, परिवार का सहयोग नहीं मिलता तो विवाद बढ़ जाता है. पहले शादी के समय दहेज ही नहीं, शक्लसूरत को ले कर भी सासससुर कई बार नाकभौंहें सिकोड़ते थे. मगर अब ऐसा नहीं है. लड़की सरकारी नौकरी कर रही है, तो उस में लोग समझौता करने लगे हैं. यही नहीं अब लड़की भी ऐसे ही किसी लड़के के साथ शादी नहीं करती. वह भी देखती है कि लड़का उस के लायक है या नहीं.

कई बार तो शादी तय होने के बाद भी लड़की ने अपनी तरफ से शादी तोड़ने का फैसला किया है. समय के इस बदलाव ने समाज और परिवार में लड़की को अपर हैंड के रूप में स्वीकारना शुरू कर दिया है. यहीं से पतिपत्नी के बीच दूरियां बढ़नी शुरू हो जाती हैं. कानपुर में एक पति ने पत्नी की हत्या कर दी. मामला यह था कि पत्नी विधि विभाग में अधिकारी थी और पति साधारण वकील. पति को लगता था कि पत्नी उस के साथ सही तरह से व्यवहार नहीं कर रही. वह खुद को बड़ा अधिकारी समझती है. ऐसे में दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. दोनों ने अलगअलग रहना शुरू कर दिया. फिर परिवार के दबाव में साथ रहने लगे. मगर यह साथ बहुत दिनों तक नहीं चला. ऐसे में दोनों के बीच तनाव बढ़ा और मसला हत्या तक पहुंच गया. पति फिलहाल जेल में है.

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शिक्षा और स्वास्थ्य में बढ़े अवसर

पहले लड़कियों के लिए केवल नर्स और बैंकिंग के क्षेत्र में ही अवसर थे. पिछले 10-12 सालों में लड़कियों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी सरकारी नौकरियों के बहुत विकल्प आए हैं. इन में कम पढ़ीलिखी महिलाओं से ले कर अधिक शिक्षित महिलाएं तक शामिल हैं. गांवों में जहां स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली ‘आशा बहू’ के रूप में नौकरी मिली, वहीं शहरों में नर्स के रूप में काम करने के बहुत अवसर आए. शिक्षा विभाग में शिक्षा मित्र से ले कर सहायक अध्यापक तक के क्षेत्र में महिलाओं को सब से अधिक जौब्स मिलीं.

शादी से पहले प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने का काम लड़कियां पहले भी करती थीं. कई दूसरी तरह की निजी नौकरियां भी करती थीं. शादी के बाद किसी न किसी वजह को ले कर उन्हें नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता था. सरकारी विभाग में नौकरी पाने वाली महिलाओं को शादी के बाद भी नौकरी छोड़ने के लिए कोई मजबूर नहीं करता है. सरकारी नौकरी में तबादला एक मुश्किल काम होता है. उत्तर प्रदेश में बहुत सारी लड़कियां इस का शिकार हैं. उन की ससुराल और नौकरी वाली जगह में बहुत दूरी है. ऐसे में वे दोनों जगहों को नहीं संभाल पा रही हैं. बड़े पैमाने पर सरकार पर दबाव पड़ रहा है कि लड़कियों को उन की मनचाही जगह तबादला दिया जाए. कई टीचर्स को तो 50 किलोमीटर से ले कर 150 किलोमीटर तक रोज का सफर तय करना पड़ता है.

सरकारी नौकरी में मिलने वाली सुविधाओं के चलते सरकारी नौकरी वाली बहू का मान बढ़ गया है. जरूरत इस बात की है कि पतिपत्नी के बीच तालमेल बना रहे. पतिपत्नी वैवाहिक जीवन के 2 पहिए हैं. ये साथ चलेंगे तो जीवन की गाड़ी तेजी से दौड़ेगी. अगर इन के बीच कोई फर्क होगा तो जीवन सही नहीं चलेगा.

सिल्वर सैपरेशन का बढ़ता ट्रैंड

जब से नेहा की शादी हुई उसी समय से नेहा पति रौकी को किसी और के साथ कहीं नहीं जाने देती. रौकी के किसी से बात करने पर नाराज हो जाती. जब रौकी उस से पूछता कि वह उस पर शक क्यों करती है तो कहती कि वह उस से बहुत प्यार करती है.

कुछ समय बाद तो हालात ऐसे हो गए कि नेहा रोज रौकी के औफिस हर 10 मिनट बाद फोन कर पूछती कि वह क्या कर रहा है. कभी कहती कि जब घर आओ तो उस के लिए कुछ खरीद लाना, फिर जब वह कुछ खरीद कर लाता तो उस पर शक करती. कहती कि कौन गई थी यह खरीदने उस के साथ. अब तो वह अपना कामधाम छोड़ कर रौकी की जासूसी करने लगी थी. इस वजह से रौकी क्या पूरा परिवार परेशान रहने लगा.

इसी कारण रौकी अपना काम ठीक से नहीं देख पा रहा था. उस का जमाजमाया बिजनैस डूबने लगा. वह अपने परिवार और दोस्तों से दूर होता गया. नेहा की वजह से घर से बाहर अपने परिवार वालों से भी नहीं मिलता.

नेहा की अपने प्यार को सहेजने की इस सनक ने 2 परिवारों का जीवन नर्क बना दिया. अंत में एक दिन रौकी ने नेहा को छोड़ दिया. रौकी को इस से बेहतर और कुछ समझ नहीं आया. यह कैसा प्यार है, जो नेहा की सनक की भेंट चढ़ गया?

नए रिश्तों की उलझन

शोध बताते हैं कि जब 2 लोग नया रिश्ता शुरू करते हैं तब पहलेपहल सामंजस्य बैठाने में उन्हें दिक्कत आती है. अगर इस दौरान रिश्ता न संभले तो तलाक की गुंजाइश बन जाती है. मगर इतने साल बिताने के बाद बढ़ती उम्र में तलाक अपनेआप में अटपटा लगता है.

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राघव एक मल्टीनैशनल कंपनी में ऊंचे पद पर कार्यरत और मिलनसार व्यक्ति था. जब घर में उस की शादी की बात शुरू हुई तो मंजरी उसे खास पसंद नहीं आई, पर परिवार की खुशी के लिए उस ने हां कर दी. परिवार वालों ने सुंदर लड़की का चुनाव किया था जो घरेलू थी ताकि वह हर कदम पर उस का साथ दे.

मंजरी को अपना लोगों से मिलनामिलाना बहुत पसंद था, पर राघव का किसी से मिलना या हंसना नहीं. धीरेधीरे वह राघव को हर बात पर टोकने लगी. राघव हंसता तो कहती कि इतना शोर क्यों मचा रहे हो? किसी महिला की तरफ देखता तो कहती कि उसे देख कर लार टपका रहे हो.

राघव अपने मित्रों के साथ कहीं जाता. तो हर थोड़ी देर में मंजरी फोन कर कहती कि गप्पें हांकने और चाय की चुसकियों से मन नहीं भरा है क्या जो अभी तक घर नहीं आए?

राघव के घर आने पर उस से झगड़ने लगती. लड़ाई से बचने के लिए अंतत: राघव ने लोगों से मिलनाजुलना ही छोड़ दिया. औफिस जाता और लौट कर अपने कमरे में कैद हो जाता. मंजरी टीवी देखने में व्यस्त रहती. धीरेधीरे राघव शराब पीने लगा. लेकिन अब भी मंजरी उस का साथ देने की जगह कहती कि नाटक करते हो. दोस्तों से मिलने के बहाने बनाते हो.

एक दिन तो हद ही हो गई. घर के सब सदस्य बैठे हुए थे. तभी मंजरी हिट का छिड़काव करने लगी. राघव ने जैसे ही यह देखा तो चीखा कि बेवकूफ औरत क्या सब की जान लेगी. इस बात का कोई असर नहीं हुआ.

अभी इस घटना को कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन राघव ने पैरों की सिंकाई के लिए गरम पानी मांगा तो पहले तो मंजरी ने मुंह बनाया और फिर खौलता पानी ले आई.

राघव ने मंजरी को बदलने की बहुत कोशिश की, पर जब कोई हल नहीं निकला तो उस ने मंजरी से बात करना बंद कर दिया. वह अब उस के साथ जिंदगी नहीं व्यतीत करना चाहता था, पर हर बार मातापिता के समझाने पर कि राघव ऐसा नहीं करते, समाज क्या कहेगा, एक बार बच्चा हो जाए सब सही हो जाएगा.

जिंदगी यों ही चलती रही. देखतेदेखते शादी हुए कितने साल बीत गए और इन सालों में हालात बद से बदतर होते गए. मंजरी ने बदलने या परिवार का दिल जीतने की कोई कोशिश नहीं की. कभी सास को कोसती तो कभी ससुर को गाली देती. बच्चों को भी मारतीपीटती. अगर कोई महिला रिश्तेदार कुछ समझानेबुझाने की कोशिश करती तो उसी के चरित्र पर उंगली उठाती कि राघव और उस के बीच संबंध हैं.

घर की स्थिति इतनी विकट हो गई कि कोई रास्ता ही नहीं सूझ रहा था. मंजरी के परिवार वाले भी उसे समझाने की जगह ससुराल वालों में ही दोष निकालते. हार कर बच्चों और बहनों की सलाह से राघव मंजरी को घर छोड़ आया. अब दोनों अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं, एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप लगा रहे हैं.

बच्चों से फैमिली कोर्ट में जब काउंसलर ने पूछा कि वे क्या चाहते हैं, दोनों बेटियों (जिन में से एक शादीशुदा है) ने कहा कि वे नहीं चाहतीं कि मम्मी कभी वापस आए. उन्होंने पापा को कभी समझा ही नहीं. उन के न आने से घर में शांति है.

अब सवाल यह है कि ऐसी स्थिति का कारण क्या है? एक सर्वे की रिपोर्ट में चौंकाने वाली बातें सामने आईं. 2 लोगों के बीच तलाक की एक वजह सनक भी है. चाहे वह जरूरत से ज्यादा प्यार की सनक हो या जरूरत से ज्यादा गुस्से की. असल में जब एक पार्टनर दूसरे से प्यार करता है तो अपने पार्टनर से भी बदले में वही ख्वाहिश रखता है. अगर दूसरा पार्टनर इस बात की तरफ ध्यान नहीं देता तो रिश्ता मुश्किल में पड़ जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक यह स्थिति दोनों के लिए ही खतरनाक होती है. क्योंकि एक तो यह सोचता है कि उस में कोई कमी नहीं दूसरा ही अडजस्ट नहीं कर पा रहा, जबकि दूसरा सोचता है कि वह कहां फंस गया, ऐसे में दोनों ही कुछ नए की तलाश में लग जाते हैं.

पक्की उम्र में तलाक क्यों

मशहूर लेखक कोएलो का कहना है कि अगर अलविदा कहने का हौसला नहीं है तो जिंदगी अवसरों से हमारी झोली भर कर हमें खुशामदीद भी नहीं कहेगी. यह बात तलाकशुदा लोगों पर फिट बैठती है.

भारत जैसे देश में पिछले 12 सालों में तलाक दर दोगुनी हो गई है. आखिर परिपक्व या पक्की उम्र में तलाक का कारण क्या है?

लेखक जेनिफर का कहना है, ‘‘तलाक का मतलब जिंदगी खत्म होना नहीं. अगर शादीशुदा जिंदगी निभाने में परेशानी आ रही हो तो असफल शादीशुदा जिंदगी जीने से क्या फायदा, तलाक के बाद कोई मरता नहीं. सेहत तो तब खराब होती है जब हम असफल शादीशुदा जिंदगी जी रहे होते है.’’

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25वीं सालगिरह पर तलाक की ओर

सिल्वर जुबली या सिल्वर सैपरेशन यानी तलाक के बाद उन्हें जिम्मेदारियों का दंश नहीं सताता. उन के बच्चे शादी कर घर बसा चुके  होते हैं. अब अपने हिसाब से जिंदगी जीने का वक्त उन का होता है. पार्टनर की कोई टोकाटाकी नहीं. हर पल सुकून भरा. बस इसी सुकून को तरसते लोग ढलती उम्र में भी तलाक लेने में संकोच नहीं कर रहे हैं.

फैमिली कोर्ट काउंसलर सिन्हा का कहना है कि रिश्ते में कड़वाहट पड़ जाए और उस में सड़न पैदा होने लगे तो अच्छा है रिश्ता तोड़ लिया जाए? उन के मुताबिक उन का दोस्त तलाकशुदा है और उस के 2 बच्चे हैं. ऐसे में पतिपत्नी अलग रहते हुए भी बच्चों की परवरिश अच्छी तरीके से बिना किसी मनमुटाव और झगड़े के कर रहे हैं. बच्चे भी खुश है.

परिवार और समाज

सब से पहले जरूरी है कि बच्चों के साथ संबंधों को मधुर बनाया जाए, क्योंकि वही आप की असली धरोहर हैं. उन के साथ प्यार से पेश आएं.

अगर आप संयुक्त परिवार में रहती हैं तो पति और बच्चों के साथसाथ बुजुर्गों का भी खयाल रखें. उन की भावनाओं का सम्मान करेें.

अगर किसी रिश्तेदार से अनबन हो या वह नापसंद हो, तो रिश्ते की इस कटुता को न बढ़ाएं, बल्कि नफरत और नाराजगी को खत्म करने की कोशिश करें.

अकसर समय के साथ आप बदल जाते हैं, लेकिन पार्टनर की वही ऐक्सपैक्टेशंस रह जाती हैं जोकि रिश्ता शुरू होने के समय थीं. लेकिन सोचिए कि यह रिश्ता जा कहां रहा है? क्या रिश्ते के साथ आप आगे बढ़ रहे हैं या फिर वहीं ठहर गए हैं जहां उस वक्त थे, जब रिश्ता शुरू हुआ था? अगर ऐसा है तो इस रिश्ते को संभालने के लिए दोबारा से सोचिए. इन सारी बातों से जितना आप प्रभावित हैं उतने ही घर के सारे सदस्य भी. हो सकता है इन सारी बातों से एक दिन परेशानियां इतनी बढ़ जाएं कि आप को अलग होना पड़ जाए. अत: अच्छा है वक्त रहते संभल जाएं.

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मृत्यु के बाद सामान का क्या करें

अनुराधा के पति की मृत्यु हुए डेढ़ साल हो चुका है. मृत्यु भी अचानक हो गई थी. कोई बीमारी न थी. बस हार्ट अटैक हुआ और अस्पताल पहुंचने से पहले ही मृत्यु हो गई. अब उन के जाने के बाद भी उन का सामान यानी चश्मा, मोबाइल, परफ्यूम, घड़ी, शेविंग का सामान, जूते ज्यों के त्यों रखे हैं.

अनुराधा की हिम्मत ही नहीं होती कि वह इन चीजों को हटा या किसी को दे दे. हर चीज के साथ एक याद जुड़ी है और उसे अलग करने की बात सोच कर ही वह कांप जाती है. अपनी मृत्यु से 1 दिन पहले एक परिचित की शादी में वे जिस सूट को पहन कर गए थे, उसे छू कर देखती है.

यहां तक कि उस के बेटे का भी कहना है कि पापा की चीजें जैसे रखी हैं, वैसे ही रखी

रहने दें. उन्हें हटाना नहीं. उन का कमरा भी वैसा ही है आज तक, जिस में वे बैठ कर काम करते थे. यहां तक कि मेज पर रखा लैपटौप तक नहीं हटा पाई है. उसे लगता है कि पति अभी काम करने बैठ जाएंगे.

एक पीड़ा से गुजरना पड़ता है

अगर अचानक किसी की मृत्यु हो जाती है तो पहले से ही किसी तरह की तैयारी कर पाना मुमकिन नहीं हो पाता है. कोई लंबे समय से बीमार हो या वृद्ध तो पहले से बहुत सारी बातों के बारे में सोचा जा सकता है, पर अचानक चले जाने से शोकाकुल परिजनों को न पहले सोचने का मौका मिलता है न बाद में. मृतक से जुड़ी हर चीज जहां उस के होने का एहसास दिलाती है, वहीं उस के न होने का दर्द भी हर पल ताजा किए रहती है. इस पीड़ा को केवल वही समझ सकता है, जिस ने इसे सहा हो. महीनों, कई बार वर्षों लग जाते हैं इस वास्तविकता को स्वीकारने में और तभी निर्णय ले पाते हैं कि उस की चीजों का क्या किया जाना चाहिए.

जाने वाले की चीजों का क्या करना है, यह तय करना बहुत सारी बातों पर निर्भर करता है, जिस में मृतक के साथ क्या रिश्ता था, यह बात भी शामिल होती है. जैसा रिश्ता होता है, उसी के हिसाब से पीड़ा भी होती है. एक पोते को अपने दादा की चीजें हटाने में उतनी तकलीफ न हो, जितनी उन के बेटे या पत्नी को हो सकती है.

शालिनी को लगता है जब भी वह अपनी मां की चीजें किसी को दान में देती है तो उसे महसूस होता है जैसे उस का कोई हिस्सा उस के हाथ से छूट रहा है. यह जानते हुए भी कि अब मां कभी लौट कर नहीं आएंगी. उस ने उन का चश्मा, उन का तकिया तक संभाल कर रखा है.

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जब कोई चला जाता है तो घर पर उस के टूथब्रश से ले कर धुलने के लिए मशीन में रखे कपड़े, उस की किताबें, उस के सिरहाने रखा पानी का गिलास या लैंप, अधबुना स्वैटर या कौफी का मग तक बारबार उस के चले जाने की याद दिलाता है, मन को कचोटता है. तब यह खयाल आ सकता है कि इन चीजों को बारबार देख कर दुखी होने से तो अच्छा है कि इन्हें फेंक या किसी को दे दिया जाए. खुद के लिए ऐसा करना बेहद मुश्किल हो तो किसी परिजन, मित्र या रिश्तेदार से ऐसा करने को कहा जा सकता है.

समय लें जल्दबाजी न करें

सामान का क्या करना है, इस पर निर्णय लेने में जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं होती है. समय लें, क्योंकि इस प्रक्रिया से गुजरना कोई आसान काम नहीं होता है. लेकिन वास्तविकता को स्वीकारने का कभी कोई सही समय नहीं होता. इसलिए पीड़ा का सामना करने के लिए स्वयं को तैयार करें. जितना ज्यादा उन चीजों से जुड़े रहेंगे, उतना ही उन्हें अपने से अलग करना कठिन होगा. कुछ समय गुजर जाने के बाद उन यादों से बाहर आने की कोशिश करें, जो मृतक की वस्तुओं से जुड़ी हुई हों.

सामान हटाने का मतलब यह नहीं है कि जाने वाले की यादों से आप छुटकारा पाना चाहती हैं या अब उस से नाता टूट गया. लोग ऐसी बातें बना सकते हैं, उन पर ध्यान न दें क्योंकि यह दुख आप का है और इस से कैसे बाहर निकलना है, यह भी आप को ही तय करना है.

क्या है सही तरीका

मृतक की वस्तुएं घर में अन्य किसी के काम आ सकती हैं जैसे कपड़े, इत्यादि. मगर जरूरी नहीं कि कोई उन का उपयोग करना चाहे. माधवी ने कितनी बार अपने बेटे से कहा कि वह पापा के कपडे़ पहन लिया करे, पर उस ने साफ इनकार कर दिया कि इस तरह तो उसे पापा की और ज्यादा याद आएगी. किसी रिश्तेदार को कपड़े आदि देने की उस की हिम्मत नहीं हुई कि पता नहीं कोई बुरा न मान जाए कि जो चला गया है उस का सामान बांट रही है. कई लोग इसे अपशगुन या अशुभ भी मानते हैं कि जो दुनिया में नहीं है, उस का सामान कोई और इस्तेमाल करेगा तो उस का भी अनिष्ट हो सकता है.

अकसर लोग सुझव देते हैं कि किसी जरूरतमंद यानी गरीब को दे दें. उसे देंगे तो वह दुआ देगा. लेकिन क्या ऐसा होता है? आप जिसे जरूरतमंद समझ कर दे रहे हो, उस के किसी उपयोग का वह सामान न हो और वह उसे किसी को बेच दे या कूड़े में फेंक दे तो क्या यह ठीक होगा? जितनी सैंटीमैंटल वैल्यू आप के लिए उस सामान की है उतनी किसी और को कैसे हो सकती है? किसी गरीब ने कपड़ा पहन भी लिया और वह उस का रखरखाव ठीक से न कर पाया तो क्या गंदे और यहांवहां से फटे कपड़ों को देख पाना आप को सहन हो पाएगा?

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ऐसे में बेहतर विकल्प है कि उस सामान को बेच दिया जाए. बेचने का उद्देश्य यहां पैसा कमाना नहीं है, बल्कि उस से प्राप्त पैसों को उपयुक्त जगह पर लगाया जा सकता है. उन पैसों से किसी की मदद की जा सकती है या यदि मृतक किन्हीं सामाजिक कार्यों से जुड़ा था तो उन में इसे लगाया जा सकता है.

अकेली पड़ी इकलौती औलाद

किरत अपने मातापिता की इकलौती औलाद है. उस की उम्र करीब 6 साल है. 6 साल पहले सब ठीक था. वह खुश थी अपने मातापिता के साथ. जब जो चाहती वह मिल जाता. भई, सबकुछ उसी का तो है. पिता पेशे से इंजीनियर हैं. मां मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती हैं. लिहाजा, कमी का तो कहीं सवाल नहीं था, लेकिन इन दिनों किरत कुछ बुझीबुझी से रहने लगी. चिड़चिड़ापन बढ़ने लगा. इतवार के दिन मातापिता ने अपने पास बिठाया और पूछा तो किरत फफक पड़ी.

किरत ने बताया कि उस के दोस्त हैं, लेकिन घर पर कोई नहीं है. न भाई न बहन. सब के पास अपने भाईबहन हैं लेकिन वह किस को परेशान करेगी. किस के साथ खाना खाएगी. किस के साथ सोएगी. किरत ने जो बात कही वह छोटी सी थी लेकिन गहरी थी.

ये परेशानी आज सिर्फ किरत की नहीं है, शहरों में रहने वाले अमूमन हर घर में यही परेशानी है. जैसेजैसे बच्चे बड़े होने लगते हैं वैसेवैसे वे अकेलापन फील करने लगते हैं. मातापिता कामकाजी हैं. बच्चे मेड या फिर दूसरे लोगों के भरोसे बच्चे छोड़ देते हैं. लेकिन बच्चे धीरेधीरे अकेलापन महसूस करने लगते हैं. सवाल कई हैं. क्या हम भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चों को अकेला छोड़ रहे हैं? क्या हम बच्चों से अपने रिश्ते छीन रहे हैं? क्या हम बच्चों से उन का बचपन छीन रहे हैं?

पहले से अलग है स्थिति

पिछली पीढ़ी के आसपास काफी बच्चे हुआ करते थे. खुद उन के घर में भाईबहन होते थे. पूरा दिन लड़नेझगड़ने में बीत जाता था. खेलकूद में वक्त का पता नहीं चलता था. कब पूरा दिन निकल गया और कब रात हो जाती थी, होश ही नहीं रहता था. चाचाचाची, ताऊताई, दादादादी कितने रिश्ते थे. हर रिश्ते को बच्चे पहचानते थे लेकिन अब स्थिति एकदम अलग है. अब बच्चे अकेलापन फील करने लगे हैं. न तो उन्हें रिश्ते की समझ है न ही खेलकूद के लिए घर में कोई साथ. स्कूल के बाद ट्यूशन और फिर टीवी बस इन्हीं में बच्चों की दुनिया सिमट कर रह गई है.

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क्या है वजह

इस की सब से बड़ी वजह यह है कि मातापिता एक बच्चे से ही खुश हो जाते हैं. अब पहले की तरह भेदभाव नहीं होता. लड़का हो या लड़की, मातापिता दोनों को समान तरीकों से पालतेपोसते हैं. पहले एक सामाजिक व पारिवारिक दबाव था लड़का पैदा करने का, इसलिए काफी बच्चे हो जाते थे. ये तो अच्छी बात है कि समाज धीरेधीरे उस दबाव से निकल रहा है लेकिन इसी ने अब बच्चों को अकेला कर दिया है. दूसरी सब से बड़ी वजह यह है कि मातापिता के पास वक्तकी कमी है.

दरअसल, अब पतिपत्नी दोनों ही कामकाजी हैं. इसलिए बच्चा पैदा करना मातापिता झंझट समझते हैं. सोचते हैं कौन पालेगा, टाइम नहीं है, एक बच्चा ही काफी है, महंगाई बहुत है, एजुकेशन काफी ज्यादा महंगी होती जा रही है. और भी कई ऐसी बातें हैं जिस के चलते मातापिता दूसरा बच्चा करने से बचते हैं. महिलाओं को लगता है कि अगर दूसरा बच्चा हो गया तो वे अपने कैरियर को वक्त नहीं दे पाएंगी. लिहाजा, बच्चे अकेले रह जाते हैं. कई बार बच्चे मातापिता से शिकायत तो करते हैं लेकिन तब तक काफी देर हो जाती है. उम्र बढ़ने लगती है. कई बार बढ़ती उम्र के कारण महिलाएं मां नहीं बन पातीं. कई तरह के जटिलताएं आ जाती हैं.

जरूरी है बच्चों को मिले रिश्ते

बच्चों से उन के रिश्ते मत छीनिए. पहले बच्चे के कुछ साल बाद दूसरा बच्चा करने की कोशिश कीजिए, ताकि बच्चे आपस में खेल सकें. एकदूसरे के साथ बड़े हो कर बातें और चीजें शेयर कर सकें. कई बार इकलौता बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है. चीजें शेयर नहीं करता. अपनी चीजों पर एकाधिकार जमाने लगता है जिस के चलते मातापिता परेशान हो जाते हैं. ये स्थिति उन घरों में ज्यादा होती है, जहां बच्चे अकेले होते हैं. अगर एक भाई या बहन हो तो बच्चे शेयर करना आसानी से सीख जाते हैं. बच्चों को रिश्तों की समझ होने लगती है. एकदूसरे की परेशानी समझने लगते हैं.

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अगर आप भी इस तरह की परेशानी से गुजर रही हैं और रहरह कर आप का बच्चा आप से शिकायत करता है तो वक्त रहते संभल जाइए. बच्चों को उन का रिश्ता दीजिए, ताकि वह भी अपना बचपन जी सकें. थोड़ा लड़ सकें, थोड़ा प्यार कर सकें, थोड़ा प्यार पा सकें. अपनी चाहतों के चक्कर में या फिर कैरियर के लिए बच्चों से उन का बचपन न छीनिए वरना कोमल कली खिलने से पहले ही मुरझा जाएगी.

लड़की में क्या-क्या ढूंढ़ते हैं लड़के 

विश्वास पिछले 3 वर्षों से अपनी बेटी सोनिया की शादी के लिए लड़का देख रहे हैं. दर्जनों लड़के इन वर्षों के दौरान सोनिया को देखने आए और अच्छीभली लड़की को रिजैक्ट कर के चले गए. चार्टर्ड अकाउंटैंट का कोर्स खत्म करने के बाद जब सोनिया की शादी की बात चलनी शुरू हुई थी, तो सोनिया कैसे शरमाईलजाई, मगर खुश दिखती थी. उस की सारी सहेलियों की शादी हो चुकी थी. मगर उस की जिद थी कि सीए की पढ़ाई पूरी कर के ही शादी करेगी. पढ़ाई पूरी होते ही उस के मातापिता ने उस के लिए लड़का ढूंढ़ना शुरू कर दिया था. तमाम लड़के देखे, कितने परिवार उस के घर भी आए और कई बार पब्लिक प्लेसेज पर भी सोनिया की दिखाई हुई. मगर बात बनी नहीं.

लड़के वाले कोई न कोई नुक्स निकाल कर रिश्ता करने से मना कर देते थे. इन बीते 3 सालों में बारबार रिजैक्ट होने के चलते सोनिया हताश हो गई है, मुर झा सी गई है, अवसादग्रस्त होने लगी है. अब तो कोई उस को देखने आता है तो बड़े अनमने ढंग से तैयार हो कर सामने जाती है. उस का व्यवहार भी रूखा होता जा रहा है. उस के मातापिता बेटी की इस हालत से काफी चिंतित हैं. ‘पता नहीं इस की शादी होगी या नहीं, पता नहीं लड़की में कोई दोष न निकाल दे, पता नहीं किसी ने जलन में कोई टोनाटोटका करवा दिया हो,’ इन आशंकाओं से घिरे अब वे पंडितोंबाबाओं के चक्कर लगाने लगे हैं. इस चक्कर में जहां उन की जमापूंजी उड़ रही है, वहीं सोनिया का व्यवहार इन सब बातों से और ज्यादा नैगेटिव होता जा रहा है. वह सोचती है कि उस ने थ्रूआउट फर्स्ट डिविजन में अपनी पढ़ाई पूरी की, दिखने में भी ठीकठाक है, कल को अच्छी नौकरी भी करेगी, फिर भी कोई उस से शादी के लिए हां क्यों नहीं बोल रहा है?

पहले जहां लड़के को ले कर सोनिया की अपनी कुछ चौइसेस थीं कि लड़के में यह होना चाहिए, वह होना चाहिए, वहीं अब बारबार ठुकराए जाने व अपने मातापिता की गहरी होती चिंताओं को देख कर वह सोचती है कि कोई भी, कैसा भी लड़का हो, चलेगा. बस, कोई हां तो कर दे.

दरअसल, सोनिया एक सीधीसरल लड़की है. वह दिखावे में कतई विश्वास नहीं करती है. वह सोचती है जैसी वह है, बस वैसी ही कोई उस को पसंद कर ले. इसलिए जब भी लड़के वाले आते हैं तो वह शालीन मगर साधारण तरीके से तैयार हो कर उन के सामने प्रस्तुत होती है. सोनिया सम झ नहीं रही है कि यह डिजिटल युग है. हर आदमी रंगीन परदे की चमक और ग्लैमर को अपने स्मार्टफोन में समेटे घूम रहा है. दिनरात उन तसवीरों से अपनी आंखें सेंकता है, सपने बुनता है. उस ग्लैमर में वह इतना रचबस गया है कि वास्तविक, सरल और साधारण चीजें उस को फूहड़ व पिछड़ी नजर आती हैं. आजकल लड़के ही नहीं, वरन उन के मांबाप भी होने वाली बहू में कुछ एक्सट्राऔर्डिनरी खूबियां तलाशते हैं, भले वे आर्टिफिशयल क्यों न हों.

दरअसल, सोनिया के रिजैक्शन की बड़ी वजह है उस की हाइट और साधारण तरीके से एक चोटी में गुंथे उस के बाल. सोनिया 5 फुट 2 इंच लंबी है. आमतौर पर भारत में लड़कियां इसी लंबाई की ही होती हैं. मगर ज्यादातर लड़कियां हाईहील में खुद को और लंबा शो करती हैं और लड़के उन की इस हाइट पर फिदा हो जाते हैं. वहीं, सोनिया ने आज तक हाईहील ट्राई ही नहीं की. वह साड़ी के नीचे भी फ्लैट चप्पल या सैंडल ही पहनती है. अपने घने, लंबे और चमकीले बालों को वह हमेशा एक चोटी में गूंथ कर रखती है. जबकि, फैशन है खुलेलहराते बालों का. यही कुछ छोटेमोटे कारण हैं कि लड़के वाले सोनिया को रिजैक्ट कर के चले जाते हैं.

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कोई लड़का जब शादी के लिए लड़की देखने को निकलता है तो आमतौर पर वह 4-5 चीजें अपनी होने वाली बीवी में देखना चाहता है. पहली नजर में वह कुछ बातें नोटिस करता है और अगर आप उन बातों में मात खा जाएं तो आप को रिजैक्ट होने में देर नहीं लगेगी. क्या कभी आप ने सोचा है कि पहली मुलाकात में पुरुष आप के बारे में क्या सोचते हैं? वे आप को किस रूप में देखते हैं?

किसी ने कहा है, ‘ह्यूमन बींग्स आर विजुअल बींग्स’ यानी जिन लोगों से हम मिलते हैं, उन के शारीरिक हावभाव पर हमारा ध्यान सब से पहले जाता है और यह बहुत स्वाभाविक है कि जब हमें वह व्यक्ति शारीरिक रूप से आकर्षित करता है, तभी बात आगे बढ़ती है, अन्यथा वहीं खत्म हो जाती है. आप की पढ़ाईलिखाई, गुण, आदतें, विचार, पैसा, बैंक बैलेंस ये सब तो बहुत बाद की बातें हैं.

लड़के जब पहली बार किसी लड़की से मिलते हैं तो उन की कुछ शारीरिक बातों की तरफ ही सब से ज्यादा आकर्षित होते हैं. जी हां, यह बात सुनने में जरूर अटपटी लग सकती है, लेकिन सच है. लड़के कुछ बेहद छोटीछोटी बातों को नोटिस करते हैं और इन्हीं बातों पर उन की हां या न टिकी होती है. आप की शानदार उपस्थिति के अलावा, आप की सम झदारी, बौडी लैंग्वेज, मुसकान, आंखें, लंबाई यहां तक कि पुरुष आप के बालों को भी नोटिस करते हैं. पहली बार लड़की देखने जा रहे लड़के मन ही मन इन्हीं चीजों को सोचते हैं. हालांकि, वे कभी बताते नहीं हैं. हम आप को बताते हैं वो बातें, जो लड़की देखने जा रहा लड़का जरूर नोटिस करता है. अगर आप भी इन बातों का खयाल रखें तो मजाल है कि कोई आप को रिजैक्ट कर दे.

आप की लंबाई

अधिकांश लड़के उन लड़कियों से दूर भागते हैं जो उन से बहुत ज्यादा लंबी या छोटी होती हैं. पहली मीटिंग में लड़के ज्यादातर लड़कियों की हाइट पर ध्यान देते हैं. लड़के उन्हीं लड़कियों की तरफ सब से ज्यादा आकर्षित होते हैं, जिन की लंबाई उन के समान हो या लड़की कम से कम उन की गरदन तक तो जरूर हो. इसलिए शादी के लिए लड़के वाले आ रहे हों तो लड़के की हाइट पहले से पता कर लें और उसी के मुताबिक हाईहील सैंडल का चुनाव कर के खुद को तैयार करें. अगर लड़के की हाइट कम है तो हाईहील हरगिज न पहनें क्योंकि लड़के कभी भी यह नहीं चाहते कि लड़की की लंबाई उन से ज्यादा निकली हुई हो. हालांकि, इस का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि लंबी लड़कियों की तरफ लड़के आकर्षित नहीं होते या छोटी हाइट वाली लड़कियां उन्हें नहीं भातीं, लेकिन यह पूरी तरह सभी की पसंदनापसंद पर निर्भर करता है.

आप की मुसकान

किसी ने ठीक ही कहा है कि एक खूबसूरत मुसकान किसी का भी दिल जीत सकती है. जी हां, जो लड़कियां मुसकराती हैं, उन्हें काफी आकर्षक माना जाता है. शायद यही एक कारण भी है कि ऐसी लड़कियों से लड़कों को बात करने में काफी आसानी होती है. ऐसे में अगर आप को लड़के वाले देखने आ रहे हैं तो अपनी मुसकान के साथ पर्सनैलिटी का भी ध्यान रखें. न बहुत ज्यादा मुसकराएं और न होंठ सी कर बैठें. आप के चेहरे की लज्जाशील मुसकराहट किसी का भी दिल जीत लेगी, इसलिए हलकी मुसकान जरूर ओढ़े रहें.

आप की आंखें

आप एक व्यक्ति की आंखों में देख कर उस के बारे में बहुतकुछ पता लगा सकते हैं. यही नहीं, आंखें एक चुंबक की तरह हैं जो किसी भी अजनबी को अपनी तरफ आकर्षित कर सकती हैं. ऐसे में ज्यादातर लड़के एक लड़की की आंखों में देखने का जरूर प्रयास करते हैं. वे बातचीत के दौरान आप की आंखों में देख कर यह जानने की कोशिश करते हैं कि आप उन को कैसा फील कर रही हैं. आप की आंखों में उन के लिए प्यार और विश्वास है कि नहीं. ऐसे में बाकी बौडी पार्ट्स की तरह अपनी आंखों पर भी विशेष ध्यान दें. आप की आंखें छोटीबड़ी जैसी भी हों, उन्हें मेकअप के जरिए थोड़ा और आकर्षक बनाएं. काजल, मसकारा और आई लाइनर ये तो अब रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजें हैं, इन से परहेज न करें. आंखों को साफ भी रखें. ऐसा न हो कि उन से बात करतेकरते आप की आईज के साइड बट्स पर जमा मैल उन को नजर आ जाए और बनती बात बिगड़ जाए.

आप की ड्रैसिंग स्टाइल

यह आप को थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन ऐसा सच है कि लड़के ज्यादातर लड़कियों को उन की ड्रैसिंग स्टाइल से भी जज करते हैं. हालांकि, इस का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि आप ने फर्स्ट मीटिंग में इंप्रैस करने के लिए एक सुपर हौट ड्रैस चुन ली या जो ड्रैस आप ने चुनी है उस का रंग आप के टैक्सचर पर बिलकुल भी सूट न करे. ऐसे में वहां बात बनने से पहले ही बिगड़ जाएगी.़

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हर लड़की को पता होता है कि उस पर सब से ज्यादा कौन सा रंग खिलता है. कौन से कलर में उस का शरीर आकर्षक दिखता है. तो जिस रंग को ले कर आप पहले से कौन्फिडैंट हैं, उसी रंग की पोशाक ट्राई करें. किसी और के कहने पर भड़काऊ रंग के कपड़े न पहनें. जिस के बारे में आप को पहले से पता है कि यह कलर आप को सूट करता है तो उस में आप का आत्मविश्वास जागेगा, जो आप की बौडी लैंग्वेज में भी पता चलेगा और आप की आंखों से भी छलकेगा.

इस बात को गांठ बांध लीजिए कि एक आत्मविश्वास से भरा हुआ व्यक्ति सब से अधिक आकर्षक लगता है. यदि आप फुल कौन्फिडैंस के साथ बातचीत करती हैं या उन की हर बात का बेबाक तरीके से जवाब देती हैं तो आप की बात बननी पक्का है, कोई कैसे आप को रिजैक्ट कर सकता है.

रखें घर की सैल्फ रिस्पैक्ट का ध्यान

“देख आशिमा मेरा मुंह मत खुलवा. वरना तू जानती है मैं क्या कर सकता हूं, ” नीरज चीखा.

” क्या करोगे? करो जो करना है. मार डालोगे न और क्या कर सकते हो? तुम्हारी और तुम्हारे घर वालों की औकात जानती हूं मैं. गलियों के गुंडे तुम से ज्यादा अच्छे होंगे.”

” औकात की बात मत कर. तेरी बदचलन मां और नल्ले बाप की औकात बताऊं तुझे?’

” खबरदार जो मेरे मांबाप के लिए एक शब्द भी मुंह से निकाला.” गुस्से में आशिमा चीखी.

” क्या कर लेगी? बता क्या कर लेगी? तेरे बाप ने तेरे साथ भेजा ही क्या था? वह तो हम हैं धनसंपन्न, कुलीन वर्ग के लोग जो तुझे अपनी पत्नी का दर्जा दिया.”

” पत्नी बना कर कौन सा एहसान कर डाला? तुम्हारे जैसे जानवर के साथ ब्याहने से अच्छा था बिनब्याही मर जाती,” कह कर आशिमा जोरजोर से रोने लगी.

तब तक कमरे से मारपीट की आवाजें भी आने लगीं. आशिमा का रोना भी बढ़ गया.

आशिमा और नीरज के घर के बगल में रहने वाले अनिल वर्मा व्यंग से मुस्कुराए. पास से गुजरते अरविंद दास धीमी आवाज में हंसते हुए बोले,” इन लोगों का तो रोज का बस एक ही काम है. यही चीखनाचिल्लाना, मारपीट. पता नहीं कैसे लोग हैं. मेरा बस चले तो इन्हें कॉलोनी से चलता कर दूं. ”

” सच कह रहे हो भाई. ऐसे लोगों के साथ रहना कौन चाहता है? कोई सैल्फ रिस्पैक्ट ही नहीं है इन की ,” अनिल ने सहमति जताई.

आजकल सैल्फ रिस्पैक्ट की बहुत बात की जाती है. क्या है यह सैल्फ रिस्पैक्ट ? इस का सीधा सा अर्थ है खुद का सम्मान करना. पर इसे ईगो समझने की भूल न करें. ईगो का अर्थ होता है अहंकार यानी दूसरों के आगे खुद को बड़ा महसूस करना और अपना महत्व जताना. यह एक नकारात्मक भाव है. जबकि सैल्फ रिस्पैक्ट सकारात्मक भावना है. जब तक हम खुद अपना सम्मान नहीं करेंगे लोग हमें अहमियत नहीं देंगे.

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सैल्फ रिस्पैक्ट केवल एक इंसान की ही नहीं होती बल्कि पूरे परिवार और घर की भी होती है. जब तक हम अपने घरपरिवार और रिश्तों को अहमियत नहीं देंगे, उन का सम्मान नहीं करेंगे, दूसरे लोग भी आप के घर की रिस्पैक्ट नहीं करेंगे.
आप के घर में यदि हमेशा तनाव रहता है और छोटीछोटी बातों पर झगड़े होते रहते हैं, घर के सदस्य एकदूसरे पर जोरजोर से चीखतेचिल्लाते हैं और एकदूसरे की इज्जत की धज्जियां उड़ाते हैं, गंदेगंदे इल्जाम लगाते हैं तो दूसरों की नजरों में आप के घर की और आप की कोई इज्जत नहीं रह जाती. क्यों कि ऐसी आवाजें जब घर के बाहर तक जाती हैं तो पड़ोसी व्यंग से मुस्कुराते हैं. लोग आप के घर को ले कर तरहतरह की बातें बनाते हैं. दरवाजे पर खड़े आगंतुक के दिल में भी आप के परिवार की नकारात्मक छवि बन जाती है. ऐसे में घर की रेस्पैक्ट कहां रह जाती है?

मान लिया आप बहुत बड़े घर के मालिक हैं. आप के घर में बहुत से काम करने वाले लोग जैसे नौकरनौकरानी, ड्राइवर, रसोईया, दरजी, सुरक्षा गार्ड आदि है. यदि ये लोग बाहर आप की बुराई करते हैं, दूसरों के आगे आप के स्वभाव की खामियां गिनाते हैं और आप को कंजूस, गुस्सैल, बददिमाग या सनकी जैसी उपाधियों से नवाजते हैं, आप के घर में होने वाले झगड़े सुना कर मजाक उड़ाते हैं तो संभल जाइए. कहीं न कहीं ये बातें बता रही हैं कि आप के घर की सैल्फ रिस्पैक्ट नहीं रखी जा रही है और इस के कसूरवार आप खुद हैं.

कैसे घटती है रिस्पैक्ट

कहा जाता है कि कोई इंसान कैसा है यह बात जाननी है तो उस के नौकर से पूछो. दरअसल ये गरीब और काम करने वाले लोग ही हैं जो आप को बहुत करीब से पहचानते हैं. यदि इन की नजर में आप के परिवार के लोग गिरे हुए इंसान हैं तो समझ जाइए कि आप सब अपने घर की रिस्पैक्ट खो चुके हैं.

यदि आप अपने सब्जी वाले से छोटीछोटी रकम के लिए झगड़ते हैं, दूसरों से सामान लेते समय जरूरत से ज्यादा मीनमेख निकालते हैं, लोगों के सामने अपने घरवालों जैसे पति, पत्नी, सास, ससुर, ननद आदि की बुराइयां करते हैं तो समझ जाइये कि ऐसी बातें सोसाइटी में आप के परिवार का सम्मान घटाती है.

माना आप ने अपने घर में महंगेमहंगे सामान ले रखे हों. इस से सोसाइटी में आप के परिवार का सम्मान तो बढ़ेगा लेकिन बहुत कम समय के लिए. असली सम्मान तो परिवार के सभी सदस्यों के घुलमिल कर रहने बड़ों का आदर करने, दूसरों की मदद करने और इमानदारीपूर्ण जीवन जीने में ही मिलता है. गलत कमाई से आप कितनी भी बड़ी बिल्डिंग तैयार कर लें मगर जब लोगों के आगे आप की असलियत आएगी तो आप के घर की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी. इस के विपरीत ईमानदारी के बल पर कमाई गई इज्जत ही लंबी टिकती है.

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आप सोसाइटी में भले ही खुद को बहुत उदार और आधुनिक दिखाने का प्रयास कर लें मगर यदि घर के किसी बच्चे द्वारा किसी गैर जाति में किए गए प्यार को आप स्वीकार नहीं कर पाते हैं तो आप कहीं से भी आधुनिक या उदार नहीं है. जब वही बच्चा घर से स्वीकृति न मिलने पर भाग कर अपने प्रेमी/प्रेमिका से शादी करता है तो सोसाइटी में आप के लाडले के इस कृत्य चर्चाएं होती हैं और आप के घर की रिसपैक्ट बहुत नीचे चली जाती है.

रिस्पैक्ट तो तब बढ़ेगी जब आप किसी भी जाति और स्टेटस की बहू या दामाद को स्वीकार कर एक आदर्श प्रस्तुत करेंगे.

इस कोरोनाकाल में या ऐसे ही किसी विपत्ति के समय यदि आप घर में काम करने वालों या दूसरे जरूरतमंदों की मदद करने की बजाय उन्हें झिड़कते हैं या दो बातें सुना कर निकाल बाहर करते हैं तो लोगों की नजरों में आप बहुत छोटे दिल के साबित हो जाएंगे. इस के विपरीत उन्हें धन या राशन की मदद दे कर आप दूसरों की तारीफ के पात्र बनेंगे. आप का परिवार भी इस रिसपैक्ट को महसूस कर संतुष्ट रह सकेगा .

जब घर में अविवाहित देवर या जेठ हों

हाल ही में (22, फरवरी 2020) मध्य प्रदेश के विदिशा में देवरभाभी के प्यार में एक शख्स को अपनी जान गंवानी पड़ गई. दरअसल पति को अपनी पत्नी और अपने भाई के बीच पनप रहे अवैध संबंधों की भनक लग गई थी. उस ने एकदो बार दोनों को रंगे हाथों पकड़ भी लिया था. इस के बाद पतिपत्नी के बीच अकसर झगड़े होने लगे थे. भाभी के प्यार में डूबे देवर को अच्छेबुरे का कुछ भी ख़याल नहीं रहा. उस ने भाभी के साथ मिल कर भाई को रास्ते से हटाने का षड्यंत्र रच डाला.

इसी तरह उत्तर प्रदेश के बिजनौर की एक घटना भी रिश्तों को शर्मसार करने वाली है. यहाँ की एक महिला ने अपने साथ हुए अपराध के बारे में पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट लिखवाई. महिला के मुताबिक़ उसे घर में अकेला देख उस के देवर ने जबरन क्रूरता से उस के साथ दुष्कर्म किया और धमकी दे कर वहां से भाग गया.

ऐसी घटनाएं हमें एक सबक देती हैं. ये हमें बताती हैं कि कुछ बुरा घटित हो उस से पहले ही हमें सावधान रहना चाहिए खासकर कुछ रिश्तों जैसे नई भाभी और साथ रह रहे अविवाहित देवर या जेठ के मामले में सावधानी जरूरी है.

दरअसल जीजासाली की तरह ही देवरभाभी का रिश्ता भी बहुत खूबसूरत पर नाजुक होता है. नई दुल्हन जब नए घर में कदम रखती है तो नए रिश्तों से उस का सामना होता है. हमउम्र ननद और देवर जल्दी ही उस से घुलमिल जाते हैं. जेठ के साथ उसे थोड़ा लिहाज रखना पड़ता है. पर कहीं न कहीं देवर और जेठ के मन में भाभी के लिए सैक्सुअल अट्रैक्शन जरूर होता है. वैसे भी युवावस्था में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बहुत सहज प्रक्रिया है. ऐसे में जरूरी है अपने रिश्ते की मर्यादा संभाल कर रखने की ताकि भविष्य में कोई ऐसी घटना न हो जाए जिस से पूरे परिवार को शर्मिंदगी का सामना करना पड़े.

1. काउंसलिंग

सब से पहले घर के बड़ों का दायित्व है कि शादी से पूर्व ही घर में मौजूद भावी दूल्हे के अविवाहित भाइयों की काउंसलिंग करें. उन्हें समझाएं कि जब घर में नई दुल्हन कदम रखे तो उसे आदर की नजरों से देखें. रिश्ते की गांठ के साथसाथ आने वाली जिम्मेदारियां भी निभाऐं. भाभी का अपना व्यक्तित्व है और अपनी पसंद है इसलिए उस की इज्जत का ध्यान रखें.

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लड़की के मांबाप भी अपनी बेटी को विदा करने से पहले उसे ससुराल में रहने के कायदे सिखाएं. अपनी आंखों में लज्जा और व्यवहार में शालीनता की अनिवार्यता पर बल दें. बातों के साथसाथ अपने कपड़ों पर भी ध्यान देने की बात कहें.

2. थोड़ी प्राइवेसी भी जरुरी

अक्सर देखा जाता है कि छोटे घरों में भाभी, देवर, जेठ, ननद सब एक ही जगह बैठे हंसीमजाक या बातचीत करते रहते हैं. परिवार के सदस्यों का मिल कर बैठना या बातें करना गलत नहीं है. पर कई दफा देवर या जेठ नहाने के बाद केवल टॉवेल लपेट कर खुले बदन भाभी के आसपास घूमते रहते हैं. बहू को कोई अलग कमरा नहीं दिया जाता है. यह उचित नहीं है.

हमेशा नवल दंपत्ति को एक कमरा दे देना चाहिए ताकि बहू की प्राइवेसी बनी रहे. यदि संभव हो तो दूल्हादुल्हन के लिए छत पर एक कमरा बनवा दिया जाए या ऊपर का पूरा फ्लोर दे दिया जाए और अविवाहित देवर या जेठ मांबाप के साथ नीचे रह जाएं. इस से हर वक्त देवर या जेठ बहू के आसपास नहीं भटकेगें और लाज का पर्दा भी गिरा रहेगा.

3. जरूरत पड़े तो इग्नोर करें

इस संदर्भ में मनोवैज्ञानिक अनुजा कपूर कहती हैं कि यदि आप नईनवेली दुल्हन है और आप को महसूस हो रहा है जैसे अविवाहित देवर या जेठ आप की तरफ आकर्षित हो रहे हैं तो आप को उन्हें इग्नोर करना सीखना पड़ेगा. भले ही देवर छोटा ही क्यों न हो. मान लीजिए कि आप का देवर मात्र 15 -16 साल का है और आप उसे सामान्य नजरों से देख रही हैैं. पर संभव है कि वह आप को दूसरी ही नजरों से देख रहा हो. याद रखें किशोरावस्था से ही इंसान विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित होने लगता है. इसलिए उसे कभी भी बढ़ावा न दें.

दिल्ली में रहने वाली 40 वर्षीया निधि गोस्वामी कहती हैं,” जब मेरी नईनई शादी हुई और मैं ससुराल आई तो मेरा इकलौता देवर मुझ से बहुत जल्दी ही हिलमिल गया. घर में सासससुर भी थे पर दोनों बुजुर्ग होने की वजह से अक्सर अपने कमरे में ही रहते थे. इधर मेरे पति के जाने के बाद मेरा देवर अक्सर कमरे में आ जाता. मैं खाली समय में पेंटिंग बनाने का शौक रखती थी. पेंटिंग देखने के बहाने देवर अक्सर मुझे निहारता रहता या फिर मेरे हाथों को स्पर्श करने का प्रयास करता. पहले तो मैं ने इस बात को तूल नहीं दिया. पर धीरेधीरे मुझे एहसास हुआ कि देवर की इंटेंशन सही नहीं है. बस मैं ने उसे दूर रखने का उपाय सोच लिया. अब मैं जब भी अपने कमरे में आती तो दरवाजा बंद कर लेती. वह एकदो बार दरवाजा खुलवा कर अंदर आया पर मेरे द्वारा इग्नोर किए जाने पर बात उस की समझ में आ गई और वह भी अपनी मर्यादा में रहने लगा.”

इग्नोर किए जाने पर भी यदि आप के जेठ या देवर की हरकते नहीं रुकतीं तो उपाय है कि आप सख्ती से मना करें. इस से उन के आगे आप का नजरिया स्पष्ट हो जाएगा.

4. जब घर वाले दें प्रोत्साहन

प्राचीन काल से ही हमारे समाज में ऐसे रिवाज चलते आ रहे हैं जिस के तहत पति की मौत पर देवर या जेठ के साथ विधवा की शादी कर दी जाती है. इस में महिला की इच्छा जानने का भी प्रयास नहीं किया जाता. यह सर्वथा अव्यावहारिक है. इसी तरह कुछ घरों में ऐसी घटनाएं भी देखने को मिल जाती हैं जब पतिपत्नी की कोई संतान नहीं होती तो घर के किसी बुजुर्ग व्यक्ति की सलाह पर चोरीचुपके देवर या जेठ से बहू के शारीरिक संबंध बनवा दिए जाते हैं ताकि घर में बच्चे का आगमन हो जाए. इस तरह की घटनाएं भी महज शर्मिंदगी के और कुछ नहीं दे सकतीं. रिवाजों के नाम पर रिश्तों की तौहीन करना उचित नहीं.

कई घटनाएं ऐसी भी नजर आती हैं जब पत्नियां जेठ या देवर से अवैध सैक्स सम्बन्ध खुद खुशी खुशी बना लेती हैं. यह भी सर्वथा अनुचित है. क्योंकि इस का नतीजा कभी अच्छा नहीं निकलता. कितने ही घर ऐसे हालातों में बर्बाद हो चुके हैं. कुछ दिन बाद पोल खुल ही जाती है और घर तो टूटते ही हैं, कई जोड़ों में तलाक की नौबत आ सकती है.

5. बात करें

यदि कभी आप को महसूस हो कि देवर या जेठ की नजर सही नहीं और आप में ज्यादा ही इंटरेस्ट ले रहे हैं तो पहले तो खुद उन से दूर रहने का प्रयास करें. मगर यदि उन की कोई हरकत आप को नागवार गुजरे तो घर के किसी सदस्य से इस संदर्भ में बात जरूर करें. बेहतर होगा कि आप पति से बात करें और उन्हें भी सारी परिस्थितियों से अवगत कराएं. आप अपने मांबाप से भी बात कर सकती हैं. सास के साथ कम्फर्टेबल हैं तो उन से बात करें. घर में ननद है तो उस से सारी बातें डिसकस करें. इस से आप का मन भी हल्का जाएगा और सामने वाला आप को समस्या का कोई न कोई समाधान जरूर सुझाएगा. संभव हो तो आप उस देवर या जेठ से भी इस संदर्भ में बात कर उन्हें समझा सकती हैं और अपना पक्ष स्पष्ट कर सकती हैं.

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6. जब देवर /जेठ को किसी से प्यार हो जाए

मान लीजिये कि आप के देवर को किसी लड़की से प्यार हो जाए. ऐसे में ज्यादातर देवर भाभी से यह सीक्रेट जरूर शेयर करते है. यदि वह बताने में शरमा रहा है तो भी उस के हावभाव से आप को इस बात का अहसास जरूर हो जाएगा. ऐसे समय में आप को एक अभिभावक की तरह उसे सही सलाह देनी चाहिए और कोई भी गलत कदम उठाने से रोकना चाहिए.

जलन क्यों नहीं जाती मन से

जलन एक सामान्य भावना है. सब का अपने जीवन में इस भावना से सामना होता ही है, चाहे कोई इसे स्वीकार करे या न करे, पर यह भावना एक स्वस्थ भाव से अस्वस्थ और हानिकारक भाव में बदल जाए, तब चिंता की बात है.

जलन के भी अनेक रूप होते हैं. यह केवल दूसरों की उपलब्धियों को सहन कर पाने की अक्षमता के रूप में हो सकती है या इस में यह इच्छा भी शामिल हो सकती है कि वे उपलब्धियां हमें हासिल हों. हम यह चाहें कि हमारे पास वह हो जो दूसरों के पास हो और हम यह भी चाह सकते हैं कि उस के पास वह चीज न रहे.

जलन अकसर ही क्रोध, आक्रोश, अपर्याप्तता, लाचारी और नफरत के रूप में भावनाओं का एक संयोजन होता है. यह एक मानसिक कैंसर है.

‘जलन तू न गई मेरे मन से…‘ रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित एक निबंध है. इस में लेखक ने जलन होने के कारण और उस से होने वाले नुकसानों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है. जलनलु व्यक्ति असंतोषी प्रवृत्ति के होते हैं.

लेखक रामधारी सिंह दिनकर ने जलन की बड़ी बेटी का नाम निंदा बताया है. जलन के कारण ही व्यक्ति दूसरों की निंदा करता है. जो व्यक्ति सादा व सरल होता है, वह यह सोच कर परेशान होता है कि दूसरा व्यक्ति मुझ से क्यों जलन करता है.

ईश्वर चंद्र विद्या सागर ने भी एक बार कहा था कि, ‘‘तुम्हारी निंदा वही करता है, जिस की तुम ने भलाई की है.‘‘

और जब महान लेखक नीत्से इस से हो कर गुजरे, तो इसे उन्होंने बाजार में भिनभिनाने वाली मक्खी बताया, जो सामने व्यक्ति की तारीफ और पीठ पीछे उसी की बुराई करती है. वे कहते हैं, ‘‘ये मक्खियां हमारे अंदर व्याप्त गुणों के लिए सजा देती हैं और बुराइयों को माफ कर देती हैं.’’

नीत्से ने कहा है, आदमी के गुणों के कारण लोग उन से जलते हैं.

जलन जब किसी अजनबी के कारण आप तक पहुंचे तो भी तकलीफ देती है. तो जरा सोचिए, जब जलन किसी प्यार भरे रिश्ते में अपने पैर पसार ले तो कितने दुख की बात होगी.

जब पति को ही अपनी पत्नी से किसी बात पर जलन होने लगेगी तो जलन की यह भावना आप के विवाह में कितनी अशांति ला सकती है. थोड़ीबहुत जलन की भावना सभी के अंदर हो सकती है, पर जब यह बढ़ जाए तो खतरनाक चीजों की शुरुआत कर सकती है, जैसे स्टाकिंग, हिंसा या मानसिक प्रताड़ना.

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मुंबई निवासी संजना देशमुख बताती हैं, ‘‘मेरे पति और मैं एक ही बिजनैस में थे और हम दोनों को ही बहुत टैलेंटेड समझा जाता था, वे शुरू के दिन थे और हम ने बहुत अच्छा काम किया. हम हर चीज शेयर करते थे. मुझे एक अवार्ड भी मिला और मेरी खूब तारीफ हुई.

‘‘मुझे महसूस हुआ कि मेरे पति को कुछ जलन हुई, पर मैं इस खयाल को झटक फिर खूब काम करती रही, फिर हम ने बच्चों के बारे में सोचा और मैं ने करीब 20 साल तक काम नहीं किया, घरगृहस्थी में व्यस्त रही.

‘‘यह मैं ने अपनी मरजी से किया था. मेरे पति बहुत खुश थे और मुझे सपोर्ट करते. फिर मैं ने दोबारा कैरियर शुरू किया और फिर मुझे अच्छे रिव्यूज मिले और नई सफलता मिलने लगी.

‘‘अब मेरे पति को इन सब से परेशानी होने लगी. वे मेरी सफलता को ले कर कमैंट्स करने लगे और हर समय मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करने लगे. इस से हमारे रिश्ते पर बहुत असर हुआ. मैं अब खुद को उन से जुड़ा हुआ नहीं पाती. ऐसा लगता है कि मुझे अपने रिश्ते या कैरियर में से किसी एक को चुनना पड़ेगा.‘’

कभीकभी पति में यह भाव इस कदर हावी हो जाता है कि वे अपनी पत्नी की हर बात कंट्रोल करना शुरू कर देते हैं और अपनी यह जलन की भावना छुपाने के लिए उसे आर्थिक रूप से परेशान भी करते हैं या हाथ भी उठाने लगते हैं और बुराभला भी कहते रहते हैं.

कारण क्या हो सकते हैं

अकसर जलनलु पतियों में डर, क्रोध, दुख, चिंता, शक की भावना होती है. उन में असफलता का डर भी छुपा हो सकता है. जलन कई कारणों से हो सकती है, कुछ कारण हैं –

– असुरक्षित महसूस करना या अपने अंदर हीनता की भावना होना.

– किसी धोखे का डर.

– बहुत ज्यादा पजेसिव होना या कंट्रोल करने की इच्छा.

– विवाह में कुछ ज्यादा ही आशाएं रखना.

– अतीत का कोई बुरा अनुभव.

– किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति को खो देने की चिंता

यह जलन रिश्ते को नुकसान पहुंचाती है. यह भावना जलनलु व्यक्ति को शारीरिक रूप से भी परेशान करती है. वह डिप्रेशन या नींद न आने का शिकार हो सकता है. यह रिश्ता हाथ से निकले, इस से पहले इस के बारे में कुछ कदम उठाने चाहिए. जलन से कैसे निबटें, आइए जानते हैं :

– कई लोग या कई स्थितियां कभीकभी ऐसी होती हैं, जब विवाह की सिक्योरिटी पर सवाल उठाती हैं, चाहे वो कोई कलीग हो या टूर पर जाने वाला जौब. इस में थोड़ीबहुत जलन नौर्मल है.

यहां यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने पार्टनर से इस बारे में बात करती रहें और कुछ बाउंड्रीज सेट हो, जो आप के विवाह और आप के दिलों को जोड़े रखे.

जैसे आप दोनों इस बात से सहमत हों कि फ्लर्ट कलीग से एक दूरी रखनी है और टूर पर होने पर रोज बेडटाइम पर बात करनी है और कोई समस्या होने पर शांति से उसे सुलझाना है.

– जब पति को बारबार किसी बात पर जलन हो रही हो तो कारण का पता लगाना बहुत जरूरी है. जैसे अगर आप उन के साथ ज्यादा टाइम नहीं बिता पा रही हैं, तो क्या वे इनसिक्योर हो रहे हैं? या विवाह में अनैतिकता के कारण ट्रस्ट इश्यूज हैं, बात करें, कारण जानें, विश्वास का माहौल बना कर रखें. साथ ही साथ ज्यादा टाइम बिताएं.

– विवाह का मतलब साथ रहना या बेड शेयर करना ही नहीं होता. पर, अगर जलन का कोई कारण ही नहीं है तो खतरे को समझें, फिर यह स्वभाव ही है, जिस में बारबार जलन रखने की आदत है.

40 वर्षीया सोमा बताती हैं, ‘‘मैं और मेरे पति दोनों ही मैथ्स के टीचर हैं. मेरे पास ट्यूशन्स के ज्यादा बच्चे आते गए. वे अच्छा पढ़ाते हैं, पर मेरे पास ज्यादा स्टूडेंट्स हैं. अकसर ही वे मुझ पर बिना बात के गुस्सा करने लगे, बातबेबात नाराज हो जाते. मुझे कारण समझ आ रहा था. मैं खुद ही ट्यूशन्स कम लेने लगी, जबकि मैं बच्चों को पढ़ाना बहुत ऐंजौय करती हूं.‘‘

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कभीकभी यह इनसिक्युरिटी बढ़ जाती है, जब पार्टनर आप की लोकप्रियता, कौन्फिडेंस और लुक्स के मामले में अपने को कम समझने लगा हो.

मनोवैज्ञानिक डाक्टर कुलकर्णी कहते हैं, ‘‘रोज 1-2 कपल ऐसे आते हैं, जिन के रिश्ते में झगडे़, कम बातचीत और प्यार खोता जा रहा है. ऐसे मामलों में अकसर जलन देखने को मिल रही है. पार्टनर की प्रोग्रेस सहन नहीं होती है, विशेष रूप से जब पत्नी ज्यादा सफल होती जा रही हो, क्योंकि पुरुष को तो यही सिखाया जाता है कि सबकुछ उस के कंट्रोल में होना चाहिए. जब पत्नी की प्रोफेशनल रैंक और सैलरी पति से ज्यादा हो जाए, तो पति को कंट्रोल खोने का डर सताने लगता है.

जलन एक ऐसा शब्द है जो औरों के जीवन में भी परेशानियां ले आता है और खुद को भी बहुत नुकसान पहुंचाता है. यदि आप किसी को खुशी नहीं दे सकते तो कम से कम दूसरों की खुशी देख कर जलिए मत. खुद को जलन की आग में न जलाएं. पति को ही अपनी पत्नी से जलन नहीं हो सकती, बल्कि आप के साथ काम करने वाले कलीग्स, जिन्हें आप अपना दोस्त समझने लगते हैं, उन के अंदर तो जलन की भावना बहुत ही आम है. लगभग हर इनसान को अपने जीवन में किसी न किसी जलनलु कलीग का सामना करना ही पड़ जाता है. कोई आगे बढ़ रहा है, किसी की उन्नति हो रही है, नाम हो रहा है, तो अधिकांश लोग ऐसे देखने को मिल जाएंगे, जो पहले यह सोचेंगे, कैसे बढ़ते हुए लोगों की राह का रोड़ा बना जाए, उन्हें कैसे नीचे दिखाया जाए, कैसे समाज में उन का मजाक बने, कैसे उन्हें दुखी किया जाए. जो कलीग्स आप से जलते हैं, उन की पहचान करना जरूरी है, कौन आप से जलता है, कौन नहीं, इन लक्षणों से पहचानिए:

– जलनलु व्यक्ति हमेशा आप के मुंह पर आप की तारीफ करेगा, चाहे यह आप की ड्रेसिंग सेंस हो या काम से संबंधित आप की अचीवमेंट्स. वह आप को बड़े उत्साह से खूब बधाई देगा. वह आप को खुश करने का कोई मौका नहीं छोड़ेगा. आप के लिए यह पता लगाना मुश्किल होगा कि वह आप से जलता है या नहीं.

ऐसे व्यक्ति से कैसे निबटें

– जब आप महसूस करें कि नकली बधाइयां दी जा रही हैं, तनाव में न आएं. उन के फ्लैटरिंग कमैंट्स को इग्नोर करें, सीधेसीधे बात करें और कह दें कि फेक कंप्लीमेंट्स न दें.

– जब आप की औफिस में तारीफ हो रही होगी, जलनलु लोग हमेशा आप की मेहनत के बजाय किस्मत को क्रेडिट देंगे और अपनी किस्मत को कोसेंगे. उन के लिए आप की सफलता सिर्फ लक बाय चांस ही है.

– जब कभी ऐसा हो, तो अपनी सफलता के कारण ऐसे लोगों को न बताएं. वे जल्दी ही आप के बारे में बात करना बंद कर देंगे.

– अगर आप किसी वजह से परफौर्म नहीं कर पाए, तो इन्हें बड़ा संतोष मिलता है. वे आप की हार पर खुश होंगे. वे आप की असफलता का जश्न मना कर खुश होते हैं. ये जेलस कलीग्स आप की पर्सनल लाइफ में भी रुचि रखते हैं और हर बात में आप की नकल करने की भी कोशिश करते हैं.

– ऐसे लोगों को इग्नोर करें और उन की बातों में कोई रुचि न लें.

– ऐसे लोग आप की पीठ पीछे बुराई करते हैं. जब आप अपने बारे में ही कोई अफवाह सुनें तो ऐसे दोस्तों से अलर्ट हो जाएं, जिन के डबल स्टैंडर्ड हैं. उन की जलन बहुत हद तक खतरनाक हो सकती है, इतनी कि वे अपनी सारी ऐनर्जी आप की इमेज खराब करने में लगा सकते हैं.

उन की ऐसी हरकतों से आप तनाव में आ कर दुखी हो कर एक कोने में न बैठें, उन्हें कंफ्रंट करें, उन्हें अपनी हरकतें बंद करने के लिए कहें. आप शालीनता से अपने मैनेजर से भी इस बारे में बात कर सकती हैं.

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– जीवन में किसी न किसी जलनलु व्यक्ति से सामना होता ही रहेगा. इस भावना से खुद को प्रभावित न होने दें. मुश्किल है, असंभव नहीं.

– आप अपना काम मेहनत से करते रहें, खुद को जलन के नेगेटिव टच से दूर रखने की कोशिश करें, इग्नोर करना सब से अच्छा है.

कामकाजी सास और घर बैठी बहू, कैसे निभे

कुमकुम भटनागर 55 साल की हैं पर देखने में 45 से अधिक की नहीं लगतीं. वह सरकारी नौकरी में हैं और काफी फिट हैं. स्टाइलिश कपड़े पहनती हैं और आत्मविश्वास के साथ चलती हैं.

करीब 25 साल पहले अपने पति के कहने पर उन्होंने सरकारी टीचर के पद के लिए आवेदन किया. वह ग्रेजुएट थीं और कंप्यूटर कोर्स भी किया हुआ था. इस वजह से उन्हें जल्द ही नौकरी मिल गई. कुमकुम जी पूरे उत्साह के साथ अपने काम में जुट गईं.

उस वक्त बेटा छोटा था पर सास और पति के सहयोग से सब काम आसान हो गया. समय के साथ उन्हें तरक्की भी मिलती गई

आज कुमकुम खुद एक सास हैं. उन की बहू प्रियांशी पढ़ीलिखी, समझदार लड़की है. कुमकुम ऐसी ही बहू चाहती थीं. उन्होंने जानबूझकर कामकाजी नहीं बल्कि घरेलू लड़की को बहू बनाया क्योंकि उन्हें डर था कि सासबहू दोनों ऑफिस जाएंगी तो घर कौन संभालेगा?

प्रियांशी काफी मिलनसार और सुघड़ बहू साबित हुई. घर के काम बहुत करीने से करती. मगर प्रियांशी के दिल में कहीं न कहीं एक कसक जरूर उठती थी कि उस की सास तो रोज सजधज कर ऑफिस चली जाती है और वह घर की चारदीवारी में कैद है.

वैसे जॉब न करने का इरादा उस का हमेशा से रहा था. पर सास को देख कर एक हीनभावना सी दिल में उतरने लगती थी. कुमकुम अपने रुपए जी खोल कर खुद पर खर्च करतीं. कभीकभी बहूबेटे के लिए भी कुछ उपहार ले आतीं. मगर बहू को हमेशा पैसों के लिए अपने पति की बाट जोहनी पड़ती. धीरेधीरे यह असंतोष प्रियांशी के दिमाग पर हावी होने लगा. उस की सहेलियां भी उसे भड़काने का मजा लेती.

नतीजा यह हुआ कि प्रियांशी चिड़चिड़ी होती गई. खासकर सास की कोई भी बात उसे जल्दी अखरने लगी. घर में झगड़े होने लगे. एक हैप्पी फैमिली जल्द ही शिकायती फैमिली के रूप में तब्दील हो गई.

देखा जाए तो आज लड़कियां ऊँची शिक्षा पा रही हैं. कंपटीशन में लड़कों को मात दे रही हैं. भारत में आजकल ज्यादातर लड़कियां और महिलाएं कामकाजी ही हैं. खासकर नई जेनेरेशन की लड़कियां घर में बैठना पसंद नहीं करतीं. ऐसे में यदि घर की सास ऑफिस जाए और बहू घर में बैठे तो कई बातें तकरार पैदा कर सकतीं हैं. आवश्यकता है कुछ बातों का ख्याल रखने की———

1. रुपयों का बंटवारा

यदि सास कमा रही है और अपनी मनमर्जी पैसे खर्च कर रही है तो जाहिर है कहीं न कहीं बहू को यह बात चुभेगी जरूर. बहू को रुपयों के लिए अपने पति के आगे हाथ पसारना खटकने लगेगा. यह बहू के लिए बेहद शर्मिंदगी की बात होगी. वह मन ही मन सास के साथ प्रतियोगिता की भावना रखने लगेगी.

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ऐसे में सास को चाहिए कि अपनी और बेटे की कमाई एक जगह रखें और इस धन को कायदे से चार भागों में बांटें. एक हिस्सा भविष्य के लिए जमा करें. एक हिस्सा घर के खर्चों के लिए रखें. एक हिस्सा बच्चे की पढ़ाई और किराया आदि के लिए रख दें. अब बाकी बचे एक हिस्से के रूपए बहू, बेटे और अपने बीच बराबर बराबर बाँट लें. इस तरह घर में रुपयों को ले कर कोई झगड़े नहीं होंगे और बहू को भी इंपोर्टेंस मिल जाएगी.

2. काम का बंटवारा

सास रोज ऑफिस जाएगी तो जाहिर है कि बहू का पूरा दिन घर के कामों में गुजरेगा. उसे कहीं न कहीं यह चिढ़न रहेगी कि वह अकेली ही खटती रहती है. उधर सास भी पूरे दिन ऑफिस का काम कर के जब थक कर लौटेगी तो फिर घर के कामों में हाथ बंटाना उस के लिए मुमकिन नहीं होगा. उस की बहू से यही अपेक्षा रहेगी कि वह गरमागरम खाना बना कर खिलाए.

इस समस्या का समाधान कहीं न कहीं एकदूसरे का दर्द समझने में छिपा हुआ है. सास को समझना पड़ेगा कि कभी न कभी बहू को भी काम से छुट्टी मिलनी चाहिए. उधर बहू को भी सास की उम्र और दिन भर की थकान महसूस करनी पड़ेगी.

जहां तक घर के कामों की बात है तो सैटरडे, संडे को सास घर के कामों की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले कर बहू को आराम दे सकती है. वह बहू को बेटे के साथ कहीं घूमने भेज सकती है या फिर बाहर से खाना ऑर्डर कर बहू को स्पेशल फील करवा सकती है. इस तरह एकदूसरे की भावनाएं समझ कर ही समस्या का समाधान निकाला जा सकता है.

3. फैशन का चक्कर

कामकाजी सास की बहू को कहीं न कहीं यह जरूर खटकता है कि उस के देखे सास ज्यादा फैशन कर रही है. वह खुद तो सुबह से शाम तक घरगृहस्थी में फंसी पड़ी है और सास रोज नए कपड़े पहन कर और बनसंवर कर बाहर जा रही है. ऑफिस जाने वाली महिलाओं का सर्कल भी बड़ा हो जाता है. सास की सहेलियां और पॉपुलैरिटी बहू के अंदर एक चुभन पैदा कर सकती है.

ऐसे में सास का कर्तव्य है कि फैशन के मामले में वह बहू को साथ ले कर चले. बात कपड़ों की हो या मेकअप प्रोडक्ट्स की, सलून जाने की हो या फिर किटी पार्टी में जाने की, बहू के साथ टीम अप करने से सास की ख़ुशी और लोकप्रियता बढ़ेगी और बहु भी खुशी महसूस करेगी.

वैसे भी आजकल महिलाएं कामकाजी हों या घरेलू, टिपटॉप और स्मार्ट बन कर रहना समय की मांग है. हर पति यही चाहता है कि जब वह घर लौटे तो पत्नी का मुस्कुराता चेहरा सामने मिले. पत्नी स्मार्ट और खूबसूरत होगी तो घर का माहौल भी खुशनुमा बना रहेगा.

4. प्रोत्साहन जरूरी

यह आवश्यक नहीं कि कोई महिला तभी कामकाजी कहलाती है जब वह ऑफिस जाती है. आजकल घर से काम करने के भी बहुत सारे ऑप्शन हैं. आप की बहू घर से काम कर सकती है. वह किसी ऑफिस से जुड़ सकती है या फिर अपना काम कर सकती है. हर इंसान को प्रकृति ने कोई न कोई हुनर जरुर दिया है. जरूरत है उसे पहचानने की.

यदि आप की बहु के पास भी कोई हुनर है तो उसे आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करें. वह कई तरह के काम कर सकती है जैसे पेंटिंग, डांस या म्यूजिक टीचर, राइटर, इवेंट मैनेजर, फोटोग्राफर, ट्रांसलेटर, कुकिंग एक्सपर्ट या फिर कुछ और. इन के जरिए एक महिला अच्छाखासा कमाई भी कर सकती है और समाज में रुतबा भी हासिल कर सकती है.

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5. घर में सास का रुतबा

पैसे के साथ इंसान का रुतबा बढ़ता है. बाहर ही नहीं बल्कि घर में भी. जाहिर है जब पत्नी घरेलू हो और मां कमाऊ तो पति भी अपनी मां को ही ज्यादा भाव देगा. घर के हर फैसले पर मां की रजामंदी मांगी जाएगी. पत्नी को कोने में कर दिया जाएगा. इस से युवा पत्नी का कुढ़ना लाजमी है.

ऐसे में पति को चाहिए कि वह मां के साथसाथ पत्नी को भी महत्व दे. पत्नी युवा है, नई सोच और बेहतर समझ वाली है. वैसे भी पतिपत्नी गृहस्थी की गाड़ी के दो पहिए हैं. पत्नी को इग्नोर कर वह अपना ही नुकसान करेगा.

उधर मां भी उम्रदराज हैं और वर्किंग हैं. उन के पास अनुभवों की कमी नहीं. ऐसे में मां के विचारों का सम्मान करना भी उस का दायित्व है.

जरूरत है दोनों के बीच सामंजस्य बिठाने की. घर की खुशहाली में घर के सभी सदस्यों की भूमिका होती है. इस बात को समझ कर समस्या को जड़ से ही समाप्त किया जा सकता है.

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