क्योंकि वह अमृत है…: सरला की मासूमियत पर क्यों फिदा था मोहित

लेखक- राजेंद्रप्रसाद शंखवार

सरला ने क्लर्क के पद पर कार्यभार ग्रहण किया और स्टाफ ने उस का भव्य स्वागत किया. स्वभाव व सुंदरता में कमी न रखने वाली युवती को देख कर लगा कि बनाने वाले ने उस की देह व उम्र के हिसाब से उसे अक्ल कम दी है.

यह तब पता चला जब मैं ने मिस सरला से कहा, ‘‘रमेश को गोली मारो और जाओ, चूहों द्वारा क्षतिग्रस्त की गई सभी फाइलों का ब्योरा तैयार करो,’’ इतना कह कर मैं कार्यालय से बाहर चला गया था.

दरअसल, 3 बच्चों के विधुर पिता रमेश वरिष्ठ क्लर्क होने के नाते कर्मचारियों के अच्छे सलाहकार हैं, सो सरला को भी गाइड करने लगे. इसीलिए वह उस के बहुत करीब थे.

अपने परिवार का इकलौता बेटा मैं सरकार के इस दफ्तर में यहां का प्रशासनिक अधिकारी हूं. रमेश बाबू का खूब आदर करता हूं, क्योंकि वह कर्मठ, समझदार, अनुशासित व ईमानदार व्यक्ति हैं. अकसर रमेश बाबू सरला के सामने बैठ कर गाइड करते या कभीकभी सरला को अपने पास बुला लेते और फाइलें उलटपलट कर देखा दिखाया करते.

उन की इस हरकत पर लोग मजाक करने लगे, ‘‘मिस सरला, अपने को बदल डालो. जमाना बहुत ही खराब है. ऐसा- वैसा कुछ घट गया तो यह दफ्तर बदनाम हो जाएगा.’’

असल में जब भी मैं सरला से कोई फाइल मांगता, उस का उत्तर रमेशजी से ही शुरू होता. उस दिन भी मैं ने चूहों द्वारा कुतरी गई फाइलों का ब्योरा मांगा तो वह सहजता से बोली, ‘‘रमेशजी से अभी तैयार करवा लूंगी.’’

हर काम के लिए रमेशजी हैं तो फिर सरला किसलिए है और मैं गुस्से में कह गया, ‘रमेश को गोली मारो.’ पता नहीं वह मेरे बारे में क्याक्या ऊलजलूल सोच रही होगी. मैं अगली सुबह कार्यालय पहुंचा तो सरला ने मुझ से मिलने में देर नहीं की.

‘‘सर, मैं कल से परेशान हूं.’’

‘‘क्यों?’’ मुसकराते हुए मैं ने उसे खुश करने के लिए कहा, ‘‘फाइलों का ब्योरा तैयार नहीं हुआ? कोई बात नहीं, रमेशजी की मदद ले लो. सरला, अब तुम स्वतंत्र रूप से हर काम करने की कोशिश करो.’’

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वह मुझे एक फाइल सौंपते हुए बोली, ‘‘सर, यह लीजिए, चूहों द्वारा कुतरी गई फाइलों का ब्योरा, पर मेरी परेशानी कुछ और है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मैं ने जानना चाहा.

‘‘कल आप ने कहा था कि रमेशजी को गोली मारो. सर, मैं रातभर सोचती रही कि रमेशजी में क्या खराबी हो सकती है जिस की वजह से मैं उन को गोली मारूं. पहेलीनुमा सलाह या अधूरे प्रश्न से मैं बहुत बेचैन होती हूं सर,’’ वह गंभीरतापूर्वक कहती गई.

तभी मेरी मां की उम्र की एक महिला मुझ से मिलने आईं. परिचय से मैं चौंक गया. वह सरला की मां हैं. जरूर सरला से संबंधित कोई शिकायत होगी. यह सोच कर मैं ने उन्हें सादर बिठाया. उन्होंने मेरे सामने वाली कुरसी पर बैठने से पहले अपनी बेटी के सिर पर हाथ फेर कर उस से जाने को कहा तो वह केबिन से निकल गई.

‘‘सर, मैं एक प्रार्थना ले कर आप को परेशान करने आ गई,’’ सरला की मां बोलीं.

‘‘हां, मांजी, आप एक नहीं हजार प्रार्थनाएं कर सकती हैं,’’ मैं ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘बताइए, मांजी.’’

वह बोलीं, ‘‘सर, मेरी सरला कुछ असामान्य हरकतें करती है. उस के सामने कोई बात अधूरी मत छोड़ा कीजिए. कल घर जा कर उस ने धरतीआसमान उठा कर जैसे सिर पर रख लिया हो. देर रात तक समझानेबुझाने के बाद वह सो पाई. बेचैनी में बहुत ही अजीबोगरीब हरकतें करती है. दरअसल, मैं उसे बहुत चाहती हूं, वह मेरी जिंदगी है. मैं ने सोचा कि यह बात आप को बता दूं ताकि कार्यालय में वह ऐसावैसा न करे.’’

मैं ने आश्चर्य व धैर्यता से कहा, ‘‘मांजी, आप की बेटी का स्वभाव बहुत कुछ मेरी समझ में आ गया है. पिछले सप्ताह से मैं उसे बराबर रीड कर रहा हूं. असहनीय बेचैनी के वक्त वह अपना सिर पटकती होगी, अपने बालों को भींच कर झकझोरती होगी, चीखतीचिल्लाती होगी. बाद में उस के हाथ में जो वस्तु होती है, उसे फेंकती होगी.’’

‘‘हां, सर,’’ मांजी ने गोलगोल आंखें ऊपर करते हुए कहा, ‘‘सबकुछ ऐसा ही करती है. इसीलिए मैं बताने आई हूं कि उसे सामान्य बनाए रखने के लिए सलाहमशविरा यहीं खत्म कर लिया करें अन्यथा वह रात को न सोएगी न सोने देगी. भय है कि कहीं कार्यालय में किसी को कुछ फेंक कर न मार दे.’’

‘‘जी, मांजी, आप की सलाह पर ध्यान दिया जाएगा. पर एक प्रार्थना है कि मैं आप को मांजी कहता हूं इसलिए आप मुझे रजनीश कहिए या बेटा, मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’’

उठते हुए मांजी बोलीं, ‘‘ठीक है बेटा, एक जिज्ञासा हुई कि सरला के लक्षणों को तुम कैसे समझ पाए हो? क्या पिछले दिनों भी कार्यालय में उस ने ऐसा कुछ…’’

‘‘नहीं, अब तक तो नहीं, पर मैं कुछ मनोभावों के संवेदनों और आप द्वारा बताए जाने से यह सब समझ पाया हूं. मेरा प्रयास रहेगा कि सरला जल्दी ही सामान्य हो जाए,’’ मैं ने मांजी को उत्तर दिया तो वह धन्यवाद दे कर केबिन से बाहर निकली और फिर सरला का माथा चूम कर बाहर चली गईं.

मैं ने अपना प्रभाव जमाने के लिए उन्हें आश्वस्त किया था. संभव है कि हालात मेरे पक्ष में हों और सरला को सामान्य करने का मेरा प्रयास सफल रहे. सरला की शादी के बाद किसी एक पुरुष की जिंदगी तो बिगड़ेगी ही, क्यों न मेरी ही बिगड़े. हालांकि उसे सामान्य करने के लिए शादी ही उपचार नहीं है पर प्रथम शोधप्रयास विवाहोपचार ही सही. वैसे मेरे हाथ के तोते तो उड़ चुके थे फिर भी साहस बटोर कर सरला को बुला कर मैं बोला, ‘‘मिस सरला, मैं एक सलाह दूं, तुम उस पर विचार कर के मुझे बताना.’’

‘‘जी, सर, सलाह बताइए, मैं रमेशजी से समझ लूंगी. रही बात विचार की, सो मैं विचार के अलावा कुछ करती भी तो नहीं, सर,’’ प्रसन्नतापूर्वक सरला ने आंखें मटकाते हुए कहा.

चंचलता उस की आंखों में झलक आई थी. तथास्तु करती परियों जैसी मुसकराहट उस के होंठों पर खिल उठी.

मैं ने सरला को ही शादी की सलाह दे कर उकसाना चाहा ताकि उसे भी कुछकुछ होने लगे और जब तक उस की शादी नहीं हो जाएगी, वह बेचैन रहेगी. घर जा कर अपने मातापिता को तंग करेगी और तब शादी की बात पर गंभीरता से विचारविमर्श होगा.

मैं तो आपादमस्तक सरला के चरित्र से जुड़ गया था और मैं ने उसे सहजता से कह दिया, ‘‘देखो, सरला, अब तुम्हें अपनी शादी कर लेनी चाहिए. अपने मातापिता से तुम यह बात कहो. मैं समझता हूं कि तुम्हारे मातापिता की सभी चिंताएं दूर हो जाएंगी. उन की चिंता दूर करने का तुम्हारा फर्ज बनता है, सरला.’’

‘‘ठीक है, सर, मैं रमेशजी से पूछ लेती हूं,’’ सरला ने बुद्धुओं जैसी बात कह दी, जैसे उसे पता नहीं कि उसे क्या सलाह दी गई. उस के मन में तो रमेशजी गणेशजी की तरह ऐसे आसन ले कर बैठे थे कि आउट होने का नाम ही नहीं लेते.

मैं ने अपना माथा ठोंका और संयत हो कर बोला, ‘‘सरला, तुम 22 साल की हो और तुम्हारे अच्छे रमेशजी डबल विधुर, पूरे 45 साल के यानी तुम्हारे चाचा हैं. तुम उन्हें चाचा कहा करो.’’

मैं ने सोचा कि रमेश से ही नहीं अगलबगल में भी सब का पत्ता साफ हो जाए, ‘‘और सुनो, बगल में जो रसमोहन बैठता है उसे भैयाजी और उस के भी बगल में अनुराग को मामाजी कहा करो. ये लोग ऐसे रिश्ते के लिए बहुत ही उपयुक्त हैं.’’

‘‘जी, सर,’’ कह कर सरला वापस गई और रमेश के पास बैठ कर बोली, ‘‘चाचाजी, आज मैं अपने मम्मीपापा से अपनी शादी की बात करूंगी. क्या ठीक रहेगा, चाचाजी?’’

यह सुन कर रमेशजी तो जैसे दस- मंजिली इमारत से गिर कर बेहोश होती आवाज में बोले, ‘‘ठीक ही रहेगा.’’

5 बजे थे. सरला ने अपना बैग कंधे पर टांगा और रसमोहन से ‘भैयाजी नमस्ते’, अनुराग से ‘मामाजी नमस्ते’ कहते हुए चलती बनी. सभी अपनीअपनी त्योरियां चढ़ा रहे थे और मेरी ओर उंगली उठा कर संकेत कर रहे थे कि यह षड्यंत्र रजनीश सर का ही रचा है.

मैं जानता हूं कि मेरे विभाग के सभी पुरुषकर्मी असल में जानेमाने डोरीलाल हैं. किसी पर भी डोरे डाल सकते हैं. लेकिन शर्मदार होंगे तो इस रिश्ते को निभाएंगे और तब कहीं सरला खुले दिमाग से अपना आगापीछा सोच सकेगी. उस के मातापिता भी अपनी सुकोमल, बचकानी सी बेटी के लिए दामाद का कद, शिक्षा, पद स्तर आदि देखेंगे जिस के लिए पति के रूप में मैं बिलकुल फिट हूं.

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अगली सुबह बिना बुलाए सरला मेरे कमरे में आई. मुझे उस से सुन कर बेहद खुशी हुई, ‘‘सर, मैं ने कल चाचाजी, भैयाजी, मामाजी कहा तो ये सब ऐसे देख रहे थे जैसे मैं पागल हूं. आप बताइए, क्या मैं पागल लगती हूं, सर?’’

इस मानसिक रूप से कमजोर लड़की को मैं क्या कहता, सो मैं ने उस के दिमाग के आधार पर समझाया, ‘‘देखो, सरला…चाचा, भैया, मामा लोग लड़कियों को लाड़प्यार में पागल ही कहा करते हैं. तुम्हारे मम्मीपापा भी कई बार तुम्हें ‘पगली कहीं की’ कह देते होंगे.’’

उस की ‘यस सर’ सुनतेसुनते मैं उस के पास आ गया. वह भी अब तक खड़ी हो चुकी थी. अपने को अनियंत्रित होते मैं ने उसे अपने सीने से लगा लिया और वह भी मुझ से चिपक गई, जैसे हम 2 प्रेमी एक लंबे अरसे के बाद मिले हों. हरकत आगे बढ़ी तो मैं ने उस के कंधे भींच कर उस के दोनों गालों पर एक के बाद एक चुंबन की छाप छोड़ दी.

मैं ने उसे जाने को कहा. वह चली गई तो मैं जैसे बेदिल सा हो गया. दिल गया और दर्द रह गया. पहली बार मेरा रोमरोम सिहर उठा, क्योंकि प्रथम बार स्त्रीदेह के स्पर्श की चुभन को अनुभव किया था. जन्मजन्मांतर तक याद रखने लायक प्यार के चुंबनों की छाप से जैसे सारा जहां हिल गया हो. सारे जहां का हिलना मैं ने सरला की देह में होती सिहरन की तरंगों में अनुभव किया.

प्रथम बार मैं ने किसी युवती के लिए अपने दिल में प्रेमज्योति की गरमाहट अनुभव की. काश, यह ज्योति सदा के लिए जल उठे. शायद ऐसी भावनाओं को ही प्यार कहते होंगे? यदि यह सत्य है तो मैं ने इस अद्भुत प्यार को पा लिया है उन पलों में. पहली बार लगा कि मैं अब तक मुर्दा देह था और सरला ने गरम सांसें फूंक कर मुझ में जान डाल दी है.

सरला ने दफ्तर से जाने के पहले मेरी विचारतंद्रा भंग की, ‘‘सर, आज मैं खुश भी हूं और परेशान भी. वह दोपहर पूर्व की घटना मुझ से बारबार कहती है कि मैं आप के 2 चुंबनों का उधार चुका दूं वरना मैं रातभर सो नहीं सकती.’’

मैं मन ही मन बेहद खुश था. यही तो प्यार है, पर इस पगली को कौन समझाए. इसे तो चुंबनों का कर्ज चुकता करना है, नहीं तो वह सो नहीं पाएगी. बस…प्यार हमेशा उधार रखने पर ही मजा देता है पर यह नादान लड़की. बदला चुकाना प्यार नहीं हो सकता. यदि ऐसा हुआ तो मेरी बेचैनी बढ़ेगी और वह निश्ंिचत हो जाएगी अर्थात सिर्फ मेरा प्यार जीवित रहे, यह मुझे गंवारा नहीं है और न ही हालात को.

मैं सरला को निराश नहीं कर सकता था, अत: पूछा, ‘‘सरला, क्या तुम्हें मेरी जरूरत है या एक पुरुष की?’’ और उस के चेहरे पर झलकती मासूमियत को मैं ने बिना उस का उत्तर सुने परखना चाहा. उसे अपने सीने से लगा कर कस कर भींच लिया, ‘‘सरला, इस रजनीश के लिए तुम अपनेआप को समर्पित कर दो. यही प्यार की सनक है. 2 जिंदा देहों के स्पर्श की सनक.’’

और वह भिंचती गई. चुंबनों का कौन कितना कर्जदार रहा, किस ने कितने उधार किए, कुछ होश नहीं था. शायद कुछ हिसाबकिताब न रख पाना ही प्यार होता है. हां, यही सत्य है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता.

मैं ने उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘सरला, हम प्यार की झील में कूद पड़े हैं,’’ मैं ने फिर 2 चुंबन ले कर कहा, ‘‘देखो, अब इन चुंबनों को उधार रहने दो, चुकाने की मत सोचना, आज उधार, कल अदायगी. इसे मेरी ओर से, रजनीश की ओर से उपहार समझना और इसे स्वस्थ व जीवंत रखना.’’

‘‘जी, सर,’’ कह कर वह चली गई. मुझे इस बात की बेहद खुशी हुई, अब की बार उस ने ‘रमेशजी’ का नाम नहीं लिया. उस के मुड़ते ही मैं धम्म से कुरसी पर बैठ गया. लगा मेरी देह मुर्दा हो गई. सोचा, चलो अच्छा ही हुआ, तभी तो कल जिंदादेह हो सकूंगा उस से मिल कर, उस से आत्मसात हो कर, अपने चुंबनों को चुकता पा कर. मैं वादा करता हूं कि अब मैं सरला की सनक के लिए फिर दोबारा मरूंगा, क्योंकि वह अमृत है.

घर से दफ्तर के लिए निकला तो मन पर कल के नशे का सुरूर बना हुआ था. मैं कब कार्यालय पहुंचा, पता ही नहीं चला. हो सकता है कि 2 देहों के आत्मसात होने में स्वभावस्वरूप पृथक हों, परंतु नतीजा तो सिर्फ ‘प्यार’ ही होता है.

आज कार्यालय में सरला नहीं आई. उस की मम्मी आईं. गंभीर समस्या का एहसास कर के मैं सहम ही नहीं गया, अंतर्मन से विक्षिप्त भी हो गया था क्योंकि इस मुर्दादेह को जिंदा करने वाली तो आई ही नहीं. पर उन की बातों से लगा कि यह दूसरा सुख था जो मेरे रोमरोम में प्रवेश कर रहा था जिसे आत्मसंतुष्टि का नाम दिया जा सके तो मैं धन्य हो जाऊं.

‘‘मेरी बेटी आज रात खूब सोई. सुबह उस में जो फुर्ती देखी है उसे देख कर मुझ से रहा नहीं गया. मुझे विवश हो कर तुम्हारे पास आना पड़ा, बेटा. आखिर कैसे-क्या हुआ? दोचार दिनों में ही उस का परिणाम दिखा. काश, वह ऐसी ही रहे, स्थायी रूप से,’’ मांजी स्थिति बता कर चुप हुईं.

‘‘हां, मांजी,’’ मैं प्रसन्नतापूर्वक बोला, ‘‘असल में मैं ने कल दुनियादारी के बारे में खुश व सामान्य रहने के गुर सरला को सिखाए और मैं चाहता हूं कि आप सरला की शादी कर दें.’’

फिर मैं ने अपने पक्ष में उन्हें सबकुछ बताया और वह खुश हुईं.

मैं ने उन की राय जाननी चाही कि वह मुझे अपने दामाद के रूप में किस तरह स्वीकारती हैं. वह हंसते हुए बोलीं, ‘‘मैं जातिवाद से दूर हूं इसलिए मुझे कोई एतराज नहीं है, बेटा. इतना जरूर है कि आप के परिवार में खासतौर से मातापिता राजी हों तो हमें कोई एतराज नहीं है.’’

‘‘ठीक है, मांजी, सभी राजी होंगे तभी हम आगे बात बढ़ाएंगे,’’ मैं ने अपनी सहमति दी.

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‘‘अच्छा बेटा, मन में एक बात उपजी है कि सरला दिमाग से असामान्य है, यह जान कर भी तुम उस से शादी क्यों करना चाहते हो?’’ मांजी ने अपनी दुविधा को मिटाना चाहा.

‘‘मांजी, इस का कारण तो मैं खुद भी नहीं जानता पर इतना जरूर है कि वह मुझे बेहद पसंद है. अब सवाल यह है कि शादी के बारे में वह मुझे कितना पसंद करती है.’’

चलते वक्त मुझे व मेरे मातापिता को अगले दिन छुट्टी पर घर बुलाया. मैं जानता हूं कि मेरे मातापिता मेरी पसंद पर आपत्ति नहीं कर सकते. सो आननफानन में शादी तय हुई.

शादी के ठीक 1 सप्ताह पहले मैं और सरला अवकाश पर गए तथा निमंत्रणपत्र भी कार्यालय में सभी को बांट दिए. सब के चेहरे आश्चर्य से भरे थे. सभी खुश भी थे.

विवाह हुआ और 1 माह बाद हम ने साथसाथ कार्यभार ग्रहण किया. हमारा साथसाथ आना व जाना होने से हमें सभी आशीर्वाद देने की नजर से ही देखते.

रूह का स्पंदन: भाग 2- क्या था दीक्षा ने के जीवन की हकीकत

लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह

‘‘मम्मी, मैं तो यह कह रही थी कि यदि वह अपने ही क्षेत्र का होता तो अच्छा रहता.’’ दक्षा ने मन की बात कही. लड़का गढ़वाली ही नहीं, अपने इलाके का ही है. मां ने बताया तो दक्षा खुश हो उठी.

दक्षा मां से बातें कर रही थी कि उसी समय वाट्सऐप पर मैसेज आने की घंटी बजी. दक्षा ने फटाफट बायोडाटा और फोटोग्राफ्स डाउनलोड किए. बायोडाटा परफेक्ट था. दक्षा की तरह सुदेश भी अपने मांबाप की एकलौती संतान था. न कोई भाई न कोई बहन. दिल्ली में उस का जमाजमाया कारोबार था. खाने और ट्रैवलिंग का शौक. वाट्सऐप पर आए फोटोग्राफ्स में एक दाढ़ी वाला फोटो था.

दक्षा को जो चाहिए था, वे सारे गुण तो सुदेश में थे. पर दक्षा खुश नहीं थी. उस के परिवार में जो घटा था, उसे ले कर वह परेशान थी. उसे अपनी मर्यादाओं का भी पता था. साथ ही स्वभाव से वह थोड़ी मूडी और जिद्दी थी. पर समय और संयोग के हिसाब से धीरगंभीर और जिम्मेदारी भी थी.

दक्षा का पालनपोषण एक सामान्य लड़की से हट कर हुआ था. ऐसा नहीं करते, वहां नहीं जाते, यह नहीं बोला जाता, तुम लड़की हो, लड़कियां रात में बाहर नहीं जातीं. जैसे शब्द उस ने नहीं सुने थे, उस के घर का वातावरण अन्य घरों से कदम अलग था. उस की देखभाल एक बेटे से ज्यादा हुई थी. घर के बिजली के बिल से ले कर बैंक से पैसा निकालने, जमा करने तक का काम वह स्वयं करती थी.

दक्षा की मां नौकरी करती थीं, इसलिए खाना बनाना और घर के अन्य काम करना वह काफी कम उम्र में ही सीख गई थी. इस के अलावा तैरना, घुड़सवारी करना, कराटे, डांस करना, सब कुछ उसे आता था. नौकरी के बजाए उसे बिजनैस में रुचि ही नहीं, बल्कि सूझबूझ भी थी. वह बाइक और कार दोनों चला लेती थी. जयपुर और नैनीताल तक वह खुद गाड़ी चला कर गई थी. यानी वह एक अच्छी ड्राइवर थी.

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दक्षा को पढ़ने का भी खासा शौक था. इसी वजह से वह कविता, कहानियां, लेख आदि भी लिखती थी. एकदम स्पष्ट बात करती थी, चाहे किसी को अच्छी लगे या बुरी. किसी प्रकार का दंभ नहीं, लेकिन घरपरिवार वालों को वह अभिमानी लगती थी. जबकि उस का स्वभाव नारियल की तरह था. ऊपर से एकदम सख्त, अंदर से मीठी मलाई जैसा.

उस की मित्र मंडली में लड़कियों की अपेक्षा लड़के अधिक थे. इस की वजह यह थी कि लिपस्टिक या नेल पौलिश के बारे में बेकार की चर्चा करने के बजाय वह वहां उठनाबैठना चाहती थी, जहां चार नई बातें सुननेसमझने को मिलें. वह ऐसी ही मित्र मंडली पसंद करती थीं. उस के मित्र भी दिलवाले थे, जो बड़े भाई की तरह हमेशा उस के साथ खड़े रहते थे.

सब से खास मित्र थी दक्षा की मम्मी, दक्षा उन से अपनी हर बात शेयर करती थी. कोई उस से प्यार का इजहार करता तो यह भी उस की मम्मी को पता होता था. मम्मी से उस की इस हद तक आत्मीयता थी. रूप भी उसे कम नहीं मिला था. न जाने कितने लड़के सालों तक उस की हां की राह देखते रहे.

पर उस ने निश्चय कर लिया था कि कुछ भी हो, वह प्रेम विवाह नहीं करेगी. इसीलिए उस की मम्मी ने बुआ के कहने पर मेट्रोमोनियल साइट पर उस की प्रोफाइल डाल दी थी. जबकि अभी वह शादी के लिए तैयार नहीं थी. उस के डर के पीछे कई कारण थे.

सुदेश और दक्षा के घर वाले चाहते थे कि पहले दोनों मिल कर एकदूसरे को देख लें. बातें कर लें और कैसे रहना है, तय कर लें. क्योंकि जीवन तो उन्हें ही साथ जीना है. उस के बाद घर वाले बैठ कर शादी तय कर लेंगे.

घर वालों की सहमति से दोनों को एकदूसरे के मोबाइल नंबर दे दिए गए. उसी बीच सुदेश को तेज बुखार आ गया, इसलिए वह घर में ही लेटा था. शाम को खाने के बाद उस ने दक्षा को मैसेज किया. फोन पर सीधे बात करने के बजाय उस ने पहले मैसेज करना उचित समझा था.

काफी देर तक राह देखने के बाद दक्षा का कोई जवाब नहीं आया. सुदेश ने दवा ले रखी थी, इसलिए उसे जब थोड़ा आराम मिला तो वह सो गया. रात करीब साढ़े 10 बजे शरीर में दर्द के कारण उस की आंखें खुलीं तो पानी पी कर उस ने मोबाइल देखा. उस में दक्षा का मैसेज आया हुआ था. मैसेज के अनुसार, उस के यहां मेहमान आए थे, जो अभीअभी गए हैं.

सुदेश ने बात आगे बढ़ाई. औपचारिक पूछताछ करतेकरते दोनों एकदूसरे के शौक पर आ गए. यह हैरानी ही थी कि दोनों के अच्छेबुरे सपने, डर, कल्पनाएं, शौक, सब कुछ काफी हद इस तरह से मेल खा रहे थे, मानो दोनों जुड़वा हों. घंटे, 2 घंटे, 3 घंटे हो गए. किसी भी लड़की से 10 मिनट से ज्यादा बात न करने वाला सुदेश दक्षा से बातें करते हुए ऐसा मग्न हो गया कि उस का ध्यान घड़ी की ओर गया ही नहीं, दूसरी ओर दक्ष ने भी कभी किसी से इतना लगाव महसूस नहीं किया था.

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सुदेश और दक्षा की बातों का अंत ही नहीं हो रहा था. दोनों सुबह 7 बजे तक बातें करते रहे. दोनों ने बौलीवुड हौलीवुड फिल्मों, स्पोर्ट्स, पौलिटिकल व्यू, समाज की संरचना, स्पोर्ट्स कार और बाइक, विज्ञान और साहित्य, बच्चों के पालनपोषण, फैमिली वैल्यू सहित लगभग सभी विषयों पर बातें कर डालीं. दोनों ही काफी खुश थे कि उन के जैसा कोई तो दुनिया में है. सुबह हो गई तो दोनों ने फुरसत में बात करने को कह कर एकदूसरे से विदा ली.

घर वालों की सहमति पर सुदेश और दक्षा ने मिल कर बातें करने का निश्चय किया. सुदेश सुबह ही मिलना चाहता था, लेकिन दक्षा ने ब्रेकफास्ट कर के मिलने की बात कही. क्योंकि वह पूजापाठ कर के ही ब्रेकफास्ट करती थी. सुदेश में दक्षा से मिलने के लिए गजब का उत्साह था. दक्षा की बातों और उस के स्वभाव ने आकर्षण तो पैदा कर ही दिया था. इस के अलावा दक्षा ने अपने जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण बातें मिल कर बताने को कहा था. वो बातें कौन सी थीं, सुदेश उन बातों को भी जानना चाहता था.

निश्चित की गई जगह पर सुदेश पहले ही पहुंच गया था. वहां पहुंच कर वह बेचैनी से दक्षा की राह देख रहा था. वह काले रंग की शर्ट और औफ वाइट कार्गो पैंट पहन कर गया था. रेस्टोरेंट में बैठ कर वह हैडफोन से गाने सुनने में मशगूल हो गया. दक्षा ने काला टौप पहना था, जिस के लिए उस की मम्मी ने टोका भी था कि पहली बार मिलने जा रही है तो जींस टौप, वह भी काला.

तब दक्षा ने आदत के अनुसार लौजिकल जवाब दिया था, ‘‘अगर मैं सलवारसूट पहन कर जाती हूं और बाद में उसे पता चलता है कि मैं जींस टौप भी पहनती हूं तो यह धोखा देने वाली बात होगी. और मम्मी इंसान के इरादे नेक हों तो रंग से कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

तर्क करने में तो दक्षा वकील थी. बातों में उस से जीतना आसान नहीं था. वह घर से निकली और तय जगह पर पहुंच गई. सढि़यां चढ़ कर दरवाजा खोला और रेस्टोरेंट में अंदर घुसी. फोटो की अपेक्षा रियल में वह ज्यादा सुंदर और मस्ती में गाने के साथ सिर हिलाती हुई कुछ अलग ही लग रही थी.

अगले भाग में पढ़ें- कोई मन का इतना साफ कैसे हो सकता है

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रूह का स्पंदन: भाग 1- क्या था दीक्षा ने के जीवन की हकीकत

लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह

‘‘डूयू बिलीव इन वाइब्स?’’ दक्षा द्वारा पूरे गए इस सवाल पर सुदेश चौंका. उस के चेहरे के हावभाव तो बदल ही गए, होंठों पर हलकी मुसकान भी तैर गई. सुदेश का खुद का जमाजमाया कारोबार था. वह सुंदर और आकर्षक युवक था. गोरा चिट्टा, लंबा, स्लिम,

हलकी दाढ़ी और हमेशा चेहरे पर तैरती बाल सुलभ हंसी. वह ऐसा लड़का था, जिसे देख कर कोई भी पहली नजर में ही आकर्षित हो जाए. घर में पे्रम विवाह करने की पूरी छूट थी, इस के बावजूद उस ने सोच रखा था कि वह मांबाप की पसंद से ही शादी करेगा.

सुदेश ने एकएक कर के कई लड़कियां देखी थीं. कहीं लड़की वालों को उस की अपार प्यार करने वाली मां पुराने विचारों वाली लगती थी तो कहीं उस का मन नहीं माना. ऐसा कतई नहीं था कि वह कोई रूप की रानी या देवकन्या तलाश रहा था. पर वह जिस तरह की लड़की चाहता था, उस तरह की कोई उसे मिली ही नहीं थी.

सुदेश का अलग तरह का स्वभाव था. उस की सीधीसादी जीवनशैली थी, गिनेचुने मित्र थे. न कोई व्यसन और न किसी तरह का कोई महंगा शौक. वह जितना कमाता था, उस हिसाब से उस के कपड़े या जीवनशैली नहीं थी. इस बात को ले कर वह हमेशा परेशान रहता था कि आजकल की आधुनिक लड़कियां उस के घरपरिवार और खास कर उस के साथ व्यवस्थित हो पाएंगी या नहीं.

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अपने मातापिता का हंसताखेलता, मुसकराता, प्यार से भरपूर दांपत्य जीवन देख कर पलाबढ़ा सुदेश अपनी भावी पत्नी के साथ वैसे ही मजबूत बंधन की अपेक्षा रखता था. आज जिस तरह समाज में अलगाव बढ़ रहा है, उसे देख कर वह सहम जाता था कि अगर ऐसा कुछ उस के साथ हो गया तो…

सुदेश की शादी को ले कर उस की मां कभीकभी चिंता करती थीं लेकिन उस के पापा उसे समझाते रहते थे कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा. सुदेश भी वक्त पर भरोसा कर के आगे बढ़ता रहा. यह सब चल रहा था कि उस से छोटे उस के चचेरे भाई की सगाई का निमंत्रण आया. इस से सुदेश की मां को लगा कि उन के बेटे से छोटे लड़कों की शादी हो रही हैं और उन का हीरा जैसा बेटा किसी को पता नहीं क्यों दिखाई नहीं देता.

चिंता में डूबी सुदेश की मां ने उस से मेट्रोमोनियल साइट पर औनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने को कहा. मां की इच्छा का सम्मान करते हुए सुदेश ने रजिस्ट्रेशन करा दिया. एक दिन टाइम पास करने के लिए सुदेश साइट पर रजिस्टर्ड लड़कियों की प्रोफाइल देख रहा था, तभी एक लड़की की प्रोफाइल पर उस की नजर ठहर गई.

ज्यादातर लड़कियों ने अपनी प्रोफाइल में शौक के रूप में डांसिंग, सिंगिंग या कुकिंग लिख रखा था. पर उस लड़की ने अपनी प्रोफाइल में जो शौक लिखे थे, उस के अनुसार उसे ट्रैवलिंग, एडवेंचर ट्रिप्स, फूडी का शौक था. वह बिजनैस माइंडेड भी थी.

उस की हाइट यानी ऊंचाई भी नौर्मल लड़कियों से अधिक थी. फोटो में वह काफी सुंदर लग रही थी. सुदेश को लगा कि उसे इस लड़की के लिए ट्राइ करना चाहिए. शायद लड़की को भी उस की प्रोफाइल पसंद आ जाए और बात आगे बढ़ जाए. यही सोच कर उस ने उस लड़की के पास रिक्वेस्ट भेज दी.

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सुदेश तब हैरान रह गया, जब उस लड़की ने उस की रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. हिम्मत कर के उस ने साइट पर मैसेज डाल दिया. जवाब में उस से फोन नंबर मांगा गया. सुदेश ने अपना फोन नंबर लिख कर भेज दिया. थोड़ी ही देर में उस के फोन की घंटी बजी. अनजान नंबर होने की वजह से सुदेश थोड़ा असमंजस में था. फिर भी उस ने फोन रिसीव कर ही लिया.

दूसरी ओर से किसी संभ्रांत सी महिला ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मैं दक्षा की मम्मी बोल रही हूं. आप की प्रोफाइल मुझे अच्छी लगी, इसलिए मैं चाहती हूं कि आप अपना बायोडाटा और कुछ फोटोग्राफ्स इसी नंबर पर वाट्सऐप कर दें.’’

सुदेश ने हां कह कर फोन काट दिया. उस के लिए यह सब अचानक हो गया था. इतनी जल्दी जवाब आ जाएगा और बात भी हो जाएगी, सुदेश को उम्मीद नहीं थी. सोचविचार छोड़ कर उस ने अपना बायोडाटा और फोटोग्राफ्स वाट्सऐप कर दिए.

फोन रखते ही दक्षा ने मां से पूछा, ‘‘मम्मी, लड़का किस तरह बातचीत कर रहा था? अपने ही इलाके की भाषा बोल रहा था या किसी अन्य प्रदेश की भाषा में बात कर रहा था?’’

‘‘बेटा, फिलहाल वह दिल्ली में रह रहा है और दिल्ली में तो सभी प्रदेश के लोग भरे पड़े हैं. यहां कहां पता चलता है कि कौन कहां का है. खासकर यूपी, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान वाले तो अच्छी हिंदी बोल लेते हैं.’’ मां ने बताया.

अगले भाग में पढ़ें- सुदेश और दक्षा की बातों का अंत ही नहीं हो रहा था. 

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बहकते कदम: भाग 5- रोहन के लिए नैना ने मैसेज में क्या लिखा था

लेखक- अरुण गौड़

नैना के एक दोस्त की बर्थडे पार्टी थी. उस का मन नहीं था लेकिन फिर भी जाना तो था. वह देररात तक दोस्तों के साथ रही. वैसे पार्टी फंक्शन में वह एकदो पैग ही पीती थी लेकिन आज उस ने कुछ ज्यादा ही पी ली. अकसर लोग गम या खुशी में इतनी शराब पीते हैं. लेकिन नैना ने तो आज उलझन में इतनी शराब पी थी. शायद, अभी वह खुद को होश में नहीं रखना चाहती थी. वह लेटनाइट घर पहुंची और ऐसे ही जा कर बिस्तर पर सो गई. इस दुनिया, अकेलेपन, चाहत, उलझन इन सब से दूर खयालों की दुनिया में वह घूमती रही. सुबह आंख खुली, तो उसे एहसास हुआ कि उठने में काफी देर हो गई थी. रात के हैंगऔवर की वजह से उस का सिर थोड़ा सा भारी था. मन नहीं कर रहा था बिस्तर से उठने का. लेकिन औफिस में एक मीटिंग थी, जिस में शिरकत जरूरी था उसे, इसलिए वह तैयार हो कर औफिस चली गई.

औफिस में वह बारबार अपना फोन चैक कर रही थी. नईनई उम्र में लड़का या लड़की की लाइफ में कोई आता है तो एक उतावलापन रहता है. लेकिन यह तो टीनएजर के लिए था. नैना तो चालीस पार कर चुकी थी, उस को ऐसा उतावलापन क्यों हो रहा था, वह समझ नहीं पा रही थी.

वह एक पल रोहन को भुलाना चाहती थी, तो दूसरे पल उसे पाना चाहती थी. पिछले 4 दिनों से उस के साथ यह ही हो रहा था. इस कशमकश में वह बेचारी फंस चुकी थी. मीटिंग हो गई थी. तभी संध्या की कौल आई, “हैलो, नैना कैसी हो?”

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नैना बोली, “मैं ठीक हूं, तुम बताओ.”

“अरे यार, कल तुझ से साड़ी ली थी, वह लौटानी थी,” संध्या ने कहा.

“कोई नहीं, आराम से दे देना. अभी तो मैं औफिस में हूं,” नैना ने उसे टालते हुए कहा.

“मैं सोच रही थी कि शाम को रोहन के हाथ भेज देती लेकिन तू कहती है तो ठीक है बाद में ले जाना,” संध्या ने कहा और कौल काट दी.

कौल कटने से पहले संध्या ने जो कहा था उसे सुन कर नैना थम सी गई. उस ने बिना देर किए कौल मिलाई.

“हैलो संध्या, अरे यार, मैं भूल गई थी, मुझे कल एक फंक्शन में जाना है, तो सोचती हूं कि यह साड़ी ही पहन जाऊंगी. एक काम करो, तुम भेज दो रोहन के हाथ.”

“अच्छा, अभी तो रोहन नहीं है, तुम्हें जल्दी है तो मैं खुद देने आ जाती हूं.”

“नहींनहीं, कोई जल्दी नहीं है, आराम से भेज देना. वैसे भी, मैं शाम तक ही घर पहुंचूंगी,” नैना ने कहा.

“ठीक है तो शाम को रोहन ट्यूशन से आ जाएगा, तो मैं उसे भेज दूंगी,” संध्या ने कहा.

कौल कट चुकी थी. नैना के मन में सुबह से जमी उदासी गायब हो गई थी. उस की आंखों में एक नई चमक थी. उस ने आंखें बंद कीं और धीरे से कहा, ‘ऐ शाम, जल्दी आ जा तू.’

नैना शाम का इंतजार किए बिना ही औफिस से निकल गई थी. उसे घर पहुंचने की जल्दी थी जैसे आज उसे अपना घर किसी के लिए सजाना है.

घर पहुंच कर वह सोचने लगी कि रोहन आएगा तो उस से क्या कहेगी, कैसे उसे अपनी चाहत वह बताएगी. वह जानती थी कि रोहन के मन में क्या है, रोहन अपनी चाहत उस के सामने बता भी चुका था लेकिन फिर भी न जाने क्यों नैना का दिल घबरा रहा था. लेकिन हां, आज वह अपनी चाहत पूरी करना चाहती थी. वह सोच रही थी कि काश, उसे कुछ कहना ही न पड़े और रोहन खुद ही उस की चाहत को समझ जाए.

शाम हो चुकी थी. रोहन पहले भी कई बार उस के घर आ चुका था. लेकिन आज नैना ने घर को सलीके से ठीक किया था, जैसे रोहन पहली बार उस के घर आ रहा है. साइड में रखा सारेगामा कारवा वाला रेडियो औन था जिस पर गाना आ रहा था, ‘पहलापहला प्यार है, पहलीपहली बार है…’ नैना के लिए कुछ भी पहली बार नहीं था, फिर भी उसे लग रहा था जैसे सबकुछ पहली बार है और पहली बार ही वह किसी से मिल रही है…

यहां तक तो सब ठीक था लेकिन नैना अब भी नहीं सोच पा रही थी कि वह रोहन को कैसे अपने दिल की बात बताएगी, सालों से अपनी प्यास को पूरा करेगी. वह मन ही मन बहुत से आइडियाज ला रही थी, लेकिन कोई भी उसे जंच नहीं रहा था. फिर वह बिस्तर पर लेट गई. कुछ पल बाद उसे किसी के सीढ़ियां चढ़ने की आवाजें सुनाई दीं. उसे लगा कि जैसे रोहन आ रहा है. वह उठ गई और तभी उस के मन में एक विचार आया. उस ने अपने गेट का लौक खोल दिया और खुद बाथरूम में चली गई नहाने…

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उस का अंदाजा सही था. रोहन ही आया था. उस ने बाहर से घंटी बजाई. नैना ने पूछा, “कौन है?”

“नैनाजी, मैं हूं, रोहन,” रोहन ने कहा.

“अच्छा, रोहन आ गए तुम. अंदर आ जाओ, लौक खुला हुआ है. बैठो, मैं अभी आती हूं,” नैना ने बाथरूम से ही कहा.

“ओके मैम,” रोहन ने कहा और उस का इंतजार करने लगा. शायद उस के मन में भी कुछ चल रहा था क्योंकि वह तो पहले ही नैना को पाने के लिए पागल था लेकिन अब वह अपनी चाहत को मन में दबाए हुए था.

थोड़ी देर बाद नैना बाथरूम से निकली. गीले बाल, हलका गीला सा बदन और उस पर एक टौवल जिस से शरीर का थोड़ा सा हिस्सा ही ढका हुआ था. काफीकुछ तो रोहन की आंखों के सामने था. रोहन तो पहले ही नैना को पाने के लिए पागल था, ऐसा नजारा देख कर उस की धड़कनें बढ़ रही थीं, जो उस के चेहरे से साफ दिख भी रहा था.

“अरे रोहन, क्या हुआ, चेहरा क्यों लाल हो रहा है तुम्हारा,” नैना ने पूछा.

“कुछ नहीं नैनाजी, वह गरमी थी न बाहर, शायद इसलिए,” रोहन ने कहा.

नैना समझ रही थी कि यह बाहर की गरमी थी या अंदर की जिस की वजह से रोहन का चेहरा लाल हो रहा था.

“मैम, मैं आप की साड़ी लाया था, मम्मी ने भेजी है,” रोहन ने कहा.

“हां, पता है साड़ी लाए हो, लेकिन यह मैममैम क्या लगा रखा है, तुम तो मुझे नैना भी कह सकते हो,” नैना ने रोहन की तरफ देखते हुए कहा.

“सौरी मैम, उस रात गलती से कह दिया था,” रोहन ने कहा.

“अच्छा, अब कह दिया तो डर क्यों रहे हो,” नैना ने आईने में देखते हुए कहा.

“जी, नैनाजी,” रोहन ने दबी आवाज में कहा.

नैना समझ गई कि उस रात के वाकए के बाद रोहन डर गया है. वह लगातार चोर नजरों से पीछे से उस के गीले बदन को देख रहा था. वह चाहता तो बहुतकुछ है लेकिन कह कुछ नहीं पा रहा है.

आखिर अब नैना से नहीं रहा जा रहा था. उस ने खुद पहल करने का फैसला किया. आईने के सामने खड़े हुए ही उस ने कहा, “रोहन, एक मिनट इधर आना, जरा देखना कि मेरी कमर पर कुछ है क्या, कुछ चुभ रहा है?”

रोहन तो कब से उसे छूने के लिए तड़प रहा था. वह खड़ा होना चाहता था, लेकिन उस ने एक अनजाने डर के कारण खुद को रोके रखा.

नैना ने फिर कहा, “अरे यार, देखो न, प्लीज.”

इस बार रोहन खुद को नहीं रोक पाया और नैना के पीछे जा कर खड़ा हो गया. उस ने अपना हाथ उठाया और नैना के कंधे पर रखा. हाथ रखते ही उसे लगा जैसे उस का हाथ कांप रहा है. वहीं रोहन के टच करने से नैना भी कांपने लगी थी. उस की आंखें बंद हो चुकी थीं. उसे लगा जैसे सालों से सूखी धरती पर बारिश की पहली बूंद पड़ी है, जिस से उस की गरमी कम होने की जगह और ज्यादा बढ़ जाती है. उस सूखी धरती की चाहत थी एक झमाझम बारिश की. इस के लिए वह मन ही मन तैयार थी. तभी रोहन ने कहा, “मैम, यहां…”

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“नहीं, हलका सा नीचे,” नैना ने बिना आंखें खोले ही कहा.

रोहन का हाथ उस की कमर के थोड़ा नीचे गया. वह भी जवान हो चुका था, इसलिए इतने आमंत्रण को समझ रहा था. उस का हाथ थोड़ा और नीचे जाने लगा. नैना का टौवल बस जैसेतैसे ही रुका हुआ था, वह तो बस जरा से इशारे के साथ खुलने को तैयार था. नैना आंखें बद कर के रोहन के स्पर्श को महसूस कर रही थी. रोहन थोड़ा आगे बढ़ा. उस के होंठ नैना के कंधे के पास आ गए थे. और उस के हाथ आगे सीने की तरफ आने को मचल रहे थे. नैना इस के लिए तैयार थी ही.

रोहन के हाथ उस के बदन पर आगे उसे टच करने ही वाले थे और उस के होंठ नैना के कंधों को चूमने ही वाले थे कि तभी नैना ने आंखें खोलीं. उस की आंखों में बसी प्यास पर अचानक से कुछ और हावी हो गया था, वह क्या कर रही है…एक बच्चा है वह, शायद उस का बच्चा, उस की आंखों और दिल में अचानक से ममता के एक अपनेपन ने कब्जा कर लिया.

कुछ होने से पहले ही नैना ने एक झटके से रोहन को पीछे धकेल दिया, “पागल हो तुम, क्या कर रहे हो?” अचानक से नैना के इस तरह के बिहैव से रोहन घबरा गया. उस के दिल में कुछ पाने की जगह एक डर ने जगह ले ली, शायद उस रात वाले डर ने. “सारी मैम,” रोहन ने डरते हुए कहा और फ़ौरन ही वहां से चला गया.

नैना बेसुध सी बिस्तर पर गिर गई. उस की आंखों में आंसू आने लगे, जैसे वह एक बहुत बड़ा गुनाह करने वाली थी.

रोहन को उस रात नींद नही आई. उस ने लगातार नैना को सौरी के मैसेज किए. वह बेचारा इस सब के लिए खुद को जिम्मेदार मान रहा था, अपनी गलती मान रहा था.

नैना ने उस का कोई रिप्लाई नहीं दिया. बस, चुपचाप उस के मैसेजेज को देखती रही जब तक रोहन औफलाइन हो कर सो नहीं गया.

अगले दिन नैना अपने औफिस गई और वहां से जल्दी वापस आ गई. उस ने आ कर अपना फोन देखा. उस में फिर से रोहन के मैसेज थे. वह बारबार उस गलती के लिए सौरी बोल रहा था जो उस ने की भी नहीं थी.

नैना उस का हाल समझती थी शायद, अभी तक इसीलिए उस ने उस का कोई रिप्लाई नहीं दिया था.

अब घर आ कर उस ने रिप्लाई किया-

“डियर रोहन,

“तुम बहुत अच्छे लड़के हो, जो भी हुआ, उस में तुम्हारी कोई गलती नहीं है. इस उम्र में अकसर ऐसा हो जाता है. गलती मेरी है, मैं ही शायद बहक रही थी. लेकिन फिर मैं ने देखा कि तुम बच्चे हो, शायद मेरे बच्चे जैसे. मुझे अपनी भूल का एहसास है. तुम्हें सौरी बोलने और डरने की जरूरत नहीं है. मैं खुद इस सब के लिए तुम से सौरी बोलती हूं.

“कल जो हुआ उस के चलते मैं तुम से और तुम्हें देख कर शायद खुद से नजरें नहीं मिला पाऊंगी. इसलिए मैं अब यहां रहना नहीं चाहती. मैं ने कंपनी को बोल दिया है कि मेरा ट्रांसफर दूसरे शहर में कर दिया जाए और वह इस के लिए राजी भी है.

“मैं आज ही यह शहर छोड़ कर जा रही हूं. हो सके तो एक बार मुझ से मिल लो, मैं तुम्हें गले लगाना चाहती हूं एक बच्चे की तरह, अपने बच्चे की तरह. लेकिन मैं ऐसा नहीं कर पाऊंगी क्योंकि जब भी तुम्हारे सामने आऊंगी, तो न तुम मुझ से नजरें मिला सकोगे और न मैं तुम्हारी आंखों में आंखें डाल पाऊंगी.

“इसलिए, मैं तुम्हारा नंबर ब्लौक कर रही हूं. हो सके, तो तुम भी ब्लौक कर देना. तुम्हारी नादानी और अपनी बेवकूफी के चैप्टर को यही बंद करते हैं.

“बाय, हमेशा अपना खयाल रखना, स्वीट बौय.”

नैना का मैसेज पढ़ कर रोहन की जान में जान आ गई. डर की जगह उस के चेहरे पर हलकी सी मुसकान छाने लगी. वह खुद एक बार नैना से मिलना चाहता था, लेकिन वह जानता था कि नैना सही कह रही थी कि वे दोनों सामने होने पर नजरें नहीं मिला सकेंगे. रोहन को भी अपनी नादानी का इल्म था, उस ने नैना की बात मानी. फ़ौरन ही उस ने नैना का नंबर, उस की फोटो सब डिलीट कर दिए. और इस अनजाने जैसे प्यार के चैप्टर को हमेशा के लिए बंद कर दिया.

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बहकते कदम: भाग 4- रोहन के लिए नैना ने मैसेज में क्या लिखा था

लेखक- अरुण गौड़

नैना शादी के बाद से अकेली थी. लेकिन ऐसा नहीं कि उस की लाइफ में कोई आया नहीं. शादी के बाद उस की लाइफ में कृष्ण, वरुण और 4 वर्षों पहले तुषार आया था. उन से नैना के संबध तो थे जो शारीरिक तक पहुंचे लेकिन दिल तक नहीं. उन्होंने भी नैना को अपना बनाना चाहा लेकिन नैना सिर्फ अपनी ही बनी रही. कृष्ण ने तो शादी का प्रस्ताव भी दिया लेकिन नैना एक बार शादी कर के खुद को बांध चुकी थी. अब वह फिर से ऐसी गलती नहीं करना चाहती थी. वरुण भी उसे ले कर सीरियस था लेकिन नैना बस नौर्मल थी. हां, तुषार जरूर उस के साथ टाइमपास कर रहा था लेकिन उसे पता नहीं था कि नैना भी बस टाइमपास ही कर रही है. जैसे ही दोनों का वह टाइम पास हुआ, दोनों अलग हो गए.

पता नहीं क्यों तब से नैना ने किसी को अपनी लाइफ में आने की इजाजत ही नहीं दी. लेकिन इस बार यह दरवाजा रोहन के लिए हलका सा खुल चुका था. लेकिन मन में अभी भी संशय बना हुआ था कि रोहन, यार अगर संध्या को पता चल गया तो वह क्या सोचेगी… लोग क्या सोचेंगे…

इसी संशय के बीच झूलती हुई नैना का वह दिन कट चुका था. आज उस ने कई बार अपना फोन चैक किया लेकिन रोहन का एक भी मैसेज नहीं था. उस के दिल में हलकी सी बेचैनी थी. वह अपने घर पहुंची. आज उस की जिंदगी में कुछ अलग सा, कुछ नया सा हो रहा था. वह रोहन को मैसेज कर चुकी थी. लेकिन फिर उस का कोई रिप्लाई नहीं आया. आज उसे अपने अंदर कुछ बेचैनी महसूस हो रही थी. रात के 10 बज चुके थे. उस ने अपनी बेचैनी को कम करने के लिए नहाने का इरादा किया. वह काफी देर तक बाथटब में लेटी नहाती रही. लेकिन उसे पानी से ठंडक नहीं मिल रही थी. वह नहा कर बाहर आई. अपने शरीर पर टौवल ढके हुए आईने के सामने थी. उस ने खुद को देखा, और कहा, ‘हां नैना, कुछ तो बात है तुझ में.’ उस ने अपने बाल सुलझाए और ऐसे ही आ कर बिस्तर पर लेट गई. फोन उठाया और व्हाटसऐप चैक किया. सभी के मैसेज थे लेकिन रोहन का कोई मैसेज न था. उस ने रोहन की डीपी खोली और उसे देखने लगी. न जाने उसे क्या हुआ कि उस ने रोहन की डीपी को चूम लिया. उसे लगा कि रोहन उस के पास है. उस का नशा उस पर छा रहा था. वह अंगड़ाइयां लेने लगी. उस का टौवल खुल चुका था. और उस का खुद पर अब कोई काबू न था. उस का हाथ शरीर पर घूमते हुए नीचे की तरफ जा रहा था. वह आज खुद को रोक न पाई. वह रोहन को अपनी आगोश में इमेजिन कर के खुद को तृप्त करने लगी. एक अरसे के बाद आज उसे ऐसा नशा हुआ था. और कुछ समय बाद यह नशा अपने चरम पर पहुच कर शांत हो गया. नैना को सुकून सा मिल रहा था. और इस सूकन में खलल डाले बिना वह ऐसे ही सो गई.

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सुबह नैना की आंखें खुलीं. खुद की ऐसी अस्तवयस्त हालत देख कर उसे हंसी आने लगी. उस ने आईना देखा और खुद को देख कर मुसकरा कर बोली, ‘पागल…’ लेकिन यह पागलपन नैना के ऊपर लगातार हावी होता जा रहा था. वह रोहन से मिलना चाहती थी. लेकिन अभी कल ही तो उस के घर गई थी. आज फिर से वहां जाने का कोई बहाना नहीं था उस के पास. वह अपना दिल मसोस कर रह गई. लेकिन शायद कुदरत उस की निराशा को समझ रही थी, सो उस ने उसे रोहन के घर जाने का एक मौका दे दिया. संध्या का कौल आया, “हैलो नैना, अरे यार, एक काम था तुझ से.”

नैना बोली, “बोलो, क्या काम था?”

संध्या बोली, “अरे यार, मुझे आज एक फंक्शन में जाना है. कोई नई साड़ी है नहीं. जो हैं उन्हें मैं पहले ही पहन कर जा चुकी हूं. क्या तू मुझे अपनी औरेंज साड़ी दे सकती है, मैं कल ही उसे लौटा दूंगी?”

नैना ने कहा, “हांहां, क्यों नहीं, बिलकुल दे सकती हूं. कब है फंक्शन?”

संध्या ने कहा, “फंक्शन तो आज दिन में ही है, इसलिए साड़ी आज ही चाहिए थी.”

नैना बोली, “ठीक है, मैं तुम्हारे घर की तरफ ही आ रही थी, कुछ काम था, मैं ही साड़ी ले आऊंगी.”

संध्या बोली, “थैंक यू डियर, जल्दी आ जाना, मैं वेट कर रही हूं तुम्हारा.” और संध्या ने कौल काट दी.

नैना को बहाना मिल गया रोहन से मिलने का, उसे देखने का. वह जल्दी से तैयार हुई, औरेंज साड़ी ली और अपनी कार से चल दी संध्या के घर, नहीं रोहन के घर. अब संध्या तो उस के लिए एक बहाना है.

आज वह संध्या को साड़ी देने ही उस के घर आई थी. संध्या उस से बातें कर रही थी. लेकिन उस का ध्यान संध्या पर नहीं था. वह तो महसूस कर रही थी कि रोहन कहीं न कहीं से चोरीछिपे उसे देख रहा है. वह रोहन की ख्वाहिश पूरी करने के लिए तैयार थी और इस तरह बैठी थी कि रोहन उसे देखे तो देखता ही रहे. उस के खास अंगों से उस की नजर हटे ही न.

उस की चाय खत्म हो चुकी थी लेकिन तब भी रोहन उसे नहीं दिखा. वह खुद संध्या से पूछ नहीं सकती थी कि रोहन कहां है. लेकिन वह बिना जाने रह भी तो नहीं सकती थी. तभी संध्या ने कहा, “अच्छा, मैं साड़ी पहन कर दिखाती हूं कि कैसी लगती हूं.” और वह साड़ी चेंज करने लगी.

नैना को एक बहाना मिल गया था और इस बहाने को लपके हुए वह बोली, “अरे, यहीं चेंज करोगी क्या, कोई आ गया तो, रोहन भी घर पर होगा, वह भी आ सकता है.”

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“अरे नहीं, कोई नहीं आएगा. रोहन भी यहां नहीं है. कल रात उस के दोस्त के यहां पार्टी थी, वहीं गया हुआ है. अभी कौल किया था, तो बोला कि थोड़ा लेट आएगा,” संध्या ने कहा.

“ओह,” नैना के मुंह से निकला. जिस के लिए वह आई थी, जिस की नजरों से काफी देर से खुद को देख रही थी वह तो यहां था ही नहीं. नैना के मन में हलकी सी उदासी आ गई. अब उसे यहां रुकने का कोई फायदा नहीं था. वह सोफे से खड़ी हुई और बोली, “ओके संध्या, मुझे कहीं जाना है, तुम अपनी पार्टी एंजौय करो.”

“ओके, काम है तो जाओ, मैं कल साड़ी पहुंचवा दूंगी तुम्हें,” संध्या ने कहा.

“कोई नहीं यार, आराम से पहुंचा देना, कोई जल्दी नहीं है,” नैना ने कहा और वह अपने औफिस चली गई.

नैना सुबह किस मूड से उठी थी, लेकिन रोहन को न पा कर उस का मूड दिनभर खराब ही रहा.

आगे पढ़ें- नैना ने तो आज उलझन में…

बहकते कदम: भाग 2- रोहन के लिए नैना ने मैसेज में क्या लिखा था

लेखक- अरुण गौड़

रोहन ने एक नशे में यह सब कह तो दिया लेकिन नैना का गुस्से से भरा रिऐक्शन देख कर उस का सारा नशा उड़ गया. अब उसे लगा कि नैना को पाने के चक्कर में उस की दोस्ती भी खत्म हो गई, और हो सकता है कि वे मम्मी को यह सब बोल दें. क्या बेवकूफी कर दी उस ने. उस ने एकदो बार सोचा कि वह कौल कर के नैना से माफी मांग ले, लेकिन इस सब के बाद उस की हिम्मत न हुई कि वह कौल करे. उस का मन बहुत परेशान था. परेशानी में वह इधरउधर करवट बदलता रहा. पर पूरी रात उसे नींद न आई. वह रातभर अपनी इस बेवकूफी पर खुद पर गुस्सा करता रहा.

अगले दिन वह घर पर ही था. रात की घटना को ले कर उस का मन परेशान था. वह उदास सा अपने कमरे में पड़ा था. तभी उसे घर में किसी के आने की आवाज सुनाई दी. उस ने ध्यान से देखा, ये तो नैना हैं. ओह्ह गौड, ये रात वाली बात मम्मी को बोलने आई होंगी. इन के फोन में मेरे मैसेज भी होंगे. अब क्या होगा… सोच कर रोहन घबराने लगा.

खुद को कैसे भी कर के बचाने के इरादे से वह बाहर आया. नैना ने उसे देखा. लेकिन रोहन की हिम्मत न हुई कि वह उस से नजर मिला सके. उस ने नजरें चुरा लीं.

“अरे रोहन, नैना आंटी आई हैं, तुम ने हैलो भी नहीं बोला उन्हें,” रोहन की मम्मी ने कहा.

आंटी, ओह मेरी मम्मा, मेरे लिए ये आंटी नहीं हैं, रोहन ने मन में यह सोचा लेकिन कुछ कहा नहीं. बस, नजरें नीचे किए हुए ही बोला, “हैलो.”

“हैलो रोहन, कैसे हो,” नैना ने चेहरे पर गंभीरता ओढ़े हुए कहा.

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“जी, ठीक हूं,” रोहन ने कहा और उस ने डरी सी आंखों से नैना को उस के मोबाइल की तरफ इशारा किया और अपने रूम में चला गया. रूम में जाते ही रोहन ने मैसेज टाइप किया, “सौरी नैनाजी, मुझ से गलती हो गई. प्लीज, मम्मी से मत कहना. आज के बाद ऐसा कभी नहीं होगा. आप ने मुझे अपना दोस्त कहा था, प्लीज एक बार मुझे दोस्त समझ कर माफ कर दो.”

अगले ही पल नैना के फोन पर मैसेज था. उस ने मैसेज पढ़ा और कुछ पल में ही उस के चेहरे पर गंभीरता की जगह मुसकान आ गई. रोहन उस की मुसकान देख रहा था, लेकिन आज उसे नैना की मुसकान से ज्यादा उस के रिप्लाई का इंतजार था. नैना ने कोई रिप्लाई नहीं किया. बस, वह संध्या के साथ बैठ कर बातें करती रही.

रोहन के कान लगातार उन की बातों पर लगे थे. लेकिन नैना ने उस के बारे में कुछ नहीं कहा. और थोड़ी देर गपशप करने के बाद वह वापस अपने घर चली गई. हमेशा नैना के आने का इंतजार करने वाले रोहन ने आज उस के जाने पर थोड़ी राहत की सांस ली.

नैना गुस्से से भरी रोहन के घर गई थी लेकिन मन में हलकी सी मुसकान ले कर वापस आई. सच तो यह है कि वह सोच कर गई थी कि कल रात जो हुआ, वह पूरा तो नहीं लेकिन थोड़ाबहुत तो रोहन की मम्मी को बताएगी ताकि वह उसे डांटे और उस के बिगड़ते कदमों को कुछ लगाम लगे. लेकिन रोहन की मुरझाई शक्ल, आंखों में डर और उस का इस तरह मैसेज कर के माफी मांगना… नैना का सारा गुस्सा खत्म हो गया. उसे लगा कि वह बच्चा है, यह सब बचपना है, एक बच्चे की तरह डर रहा है वह. इसलिए उस ने इस बचपने को खुद ही माफ कर दिया.

नैना ने रोहन की पिछले एक महीने की चैट पढ़ी. उसे महसूस हुआ कि रोहन की हर बात, हर तारीफ में उस के मन में क्या है, यह दिख रहा था. बस, मैं ही अनजान थी. और शायद उस के साथ मैं भी अपने पुराने समय का लुत्फ ले रही थी.

शाम को नैना बाथरूम से नहा कर बहार आई. वह टौवल में आईने के सामने खड़ी थी. अचानक से उसे रोहन की रात वाली पंक्तिया याद आईं जो रोहन ने उस की तारीफ में लिखी थीं. नैना आईने में खुद को देखने लगी, और बोली, ‘क्या सच में इतनी हसीन हूं मैं, एक एक जवान लड़का मेरे लिए शायरी करता है, मुझे अपनी आगोश में लेना चाहता है… कुछ तो बात है नैना तुझ में,’ उस ने खुद से कहा और खिलखिला कर हंसने लगी.

वह आ कर बैड पर लेट गई. उस ने रोहन की खिलखिलाती मुसकान वाली पिक देखी और फिर आंखें बंद कर के उस का उदास चेहरा याद किया. उसे लगा कि एक मुसकराते लड़के के चेहरे पर उस ने बिना मतलब उदासी के रंग भर दिए हैं. चलो, उसे फिर से खुश करते हैं.

नैना ने रोहन को अनब्लौक कर दिया और उसे मैसेज दिया, “हैलो रोहन.”

रोहन ने कोई रिप्लाई नहीं दिया, वह औनलाइन भी नहीं था.

नैना ने फिर कहा, “हैलो, कहां हो रोहन?”

लेकिन फिर कोई रिप्लाई नहीं था. नैना को लगा कि शायद कहीं बिजी होगा, इसलिए औनलाइन नहीं है, फ्री हो कर औनलाइन आ जाएगा. नैना अपना काम करने लगी. थोड़ी देर बाद उस ने फिर से मोबाइल चैक किया. रोहन अभी तक औनलाइन नहीं था. नैना अपने दोस्तों से बातें करने लगी. बीचबीच में वह रोहन का अकाउंट भी चैक करती रही. लेकिन रोहन आज औनलाइन ही नहीं आया.

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अब नैना को थोड़ा खालीपन सा महसूस होने लगा. उस का मन चाह रहा था किसी से भी बात करने का. उस का मन किया कि रोहन को कौल करें. लेकिन फिर उस के बढ़ते हाथ रुक जाते थे. अपने अलावा किसी और के लिए न सोचने वाली नैना को पता नहीं क्या हो रहा था. वह बेचैन सी होने लगी.

आधी रात यानी 12 बजे के आसपास का समय था. आखिर उस ने रोहन को कौल किया. कौलरिंग जा रही थी. लेकिन रोहन ने कौल रिसीव नहीं की. नैना ने फिर से ट्राई किया. लेकिन फिर ऐसा ही हुआ. आखिर में उस ने अपना फोन साइड में रख दिया. अब वह न जाने क्याक्या सोचने लगी और न जाने कब उस की आंखें लग गईं, उसे पता ही न चला.

अगले दिन वह सुबह अपना काम खत्म कर के तैयार हुई. अधिकतर दोस्तों के यहां वह फौर्मल कपड़ों में जाती थी. लेकिन आज उस ने कुछ अगल कपड़े पहने. ब्लैक शौर्ट मिडी जो उस के घुटनों तक थी और पूरी तरह बाडीफिट थी, को पहना. उस ड्रैस में वह बहुत हौट लगती थी. ऐसा लगता कि वह ड्रैस उस के लिए ही बनी है. उस के बाल खुले थे, क्योंकि उसे याद था एक बार रोहन ने कहा था, ‘मैम, आप खुलेबालों में ज्यादा अच्छी लगती हैं.’

आगे पढ़े- आज फिर से नैना को देख कर…

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बहकते कदम: भाग 3- रोहन के लिए नैना ने मैसेज में क्या लिखा था

लेखक- अरुण गौड़

उस ने रात बहुत मुश्किल से काटी थी, इसलिए उस ने अब वक्त जाया करना सही नहीं समझ, अपनी कार ले कर वह रोहन के घर चल दी. वह न जाने कितनी बार उस घर गई थी. लेकिन आज पहली बार रोहन से मिलने के लिए जा रही थी.

आज फिर से नैना को देख कर संध्या सरप्राइज्ड थी क्योंकि कल ही तो वह घर आई थी. अधिकतर वह हफ्ते में एकदो बार ही आती थी. लेकिन इस तरह से अगले ही दिन आना आज पहली बार था. इसलिए संध्या का आश्चर्यचकित होना बनता था. खैर, नैना आई तो किसी और काम से थी लेकिन वह संध्या को तो यह नहीं बता सकती थी, सो बोली, “अरे यार, आज औफिस की छुट्टी थी और घर पर मन नहीं लग रहा था, इसलिए तेरे पास आ गई. चल, चाय तो पिला.”

“हां, क्यों नहीं. चल किचन में, साथ में चाय भी बन जाएगी और गपें भी मार लेंगे,” संध्या ने खुश होते हुए कहा.

वे दोनों किचन में चली गईं और बातें करने लगीं. लेकिन नैना का मन बातों में नहीं, कहीं और था. उस की नजरें बारबार रोहन को ढूंढ रही थीं. लेकिन वह उसे कहीं दिख नहीं रहा था. आखिर उस ने संध्या से पूछ ही लिया, “तुम्हारे पतिदेव आए नहीं अभी तक औफिस टूर से?”

“नहीं, अभी नहीं, कौल आया था, शायद परसों तक आएंगे,” संध्या ने कहा.

“और रोहन भी नहीं दिख रहा, कहीं गया है क्या?” नैना ने घूमफिर कर अपने काम की बात पूछी.

“नहीं, गया तो कहीं नहीं है. आज भी छुट्टी है उस की. उस के पापा घर पर नहीं हैं तो आज पंक्षी बन रहा है. रात को दोस्तों के साथ घूमने गया था, देर से वापस आया और अभी तक सो रहा है. अभी चाय ले कर जाती हूं, फिर जगाती हूं उसे,” संध्या ने कहा.

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“अरे रुको, तुम अपना काम निबटाओ, मैं रोहन को चाय दे आती हूं. वैसे, तुम तो रोज जगाती हो उसे, आज मैं जाती हूं चाय ले कर, देखती हूं मुझे देख कर कैसे सरप्राइज होता है,” नैना ने संध्या को रोक कर कहा.

“हां, ठीक है, तुम ही जा कर जगा लो उसे. मैं इतने में बाकी काम खत्म करती हूं,” संध्या ने कहा और चाय का कप नैना को थमा दिया.

नैना रोहन के कमरे मे गई. वह निश्चिन्त सो रहा था. रूम की लाइट औन होने पर उस ने अपनी आंखों पर हाथ धर लिया और बोला, “मम्मी, अभी नहीं उठना मुझे, प्लीज थोड़ी देर और सोने दो.”

“अच्छा, नहीं उठना तो सोते रहो, लेकिन कोई तुम से मिलने आया है, फिर उसे ऐसे ही जाना पड़ेगा,” नैना ने चाय का कप साइड में रखते हुए कहा.

नैना की आवाज सुनते ही रोहन की नींद उड़ गई. उस ने जल्दी से आंखें खोलीं. उस के सामने नैना थी, बाल खुले हुए, चेहरे पर मुसकान लिए. उसे देखते ही रोहन एकदम खड़ा हो गया और बोला, “नैनाजी, सौरी, मैम आप, यहां!”

“हां मैं, तुम्हारी मम्मी के पास आई थी, पता चला जनाब अभी तक सो रहे हैं तो सोचा कि आप को जगा दूं,” नैना ने रोहन की तरफ मुसकरा कर कहा.

रोहन, जो खुद के बाल और आलस से भरे चेहरे को ठीक करने की कोशिश कर रहा था, नैना से नजरें नहीं मिला पा रहा था.

“बहुत देर हो गई है डियर, अब उठ भी जाओ,” नैना ने कहा.

“हां, जी, उठ गया,” रोहन ने नजरें चुराते हुए कहा.

“दोस्तों के साथ इतना भी बिजी मत हुआ करो कि फोन भी चैक नहीं करते, कोई कौल या मैसेज भी करता होगा आप को,” नैना ने फोन की तरफ इशारा करते हुए कहा.

रोहन ने कुछ नहीं कहा. वह चुपचाप बैठा रहा.

“और तुम फ्रैश हो कर बहार आ जाओ, थोड़ी सी बातें हम से भी कर लेना,” नैना ने कहा और वह रूम से बाहर को चल दी.

नैना की कमर रोहन की तरफ थी. रोहन की नजरें ऊपर उठ चुकी थीं. उस बाडीफिट शौर्ट में नैना पीछे से बहुत हौट दिख रही थी. रोहन की नजरें उस के खास अंग पर थीं. नैना यह जानती थी कि रोहन के लिए ही तो वह यह ड्रैस पहन कर आई थी.

नैना बाहर आ कर सोफे पर बैठ गई और संध्या से बातें करने लगी लेकिन उस की नजरें रोहन के दरवाजे पर थीं. कुछ देर बाद रोहन बाहर आया. नैना उस के इंतजार में ही बैठी थी. उस के पैर एकदूसरे के ऊपर थे, इसलिए उस की शौर्ट मिडी थोड़ी और शौर्ट हो गई थी. उस की भरी हुई जांघें साफ दिख रही थीं. नैना का ध्यान रोहन पर था लेकिन उस ने नजरें उस से हटा रखी थीं क्योंकि वह जानती थी अगर रोहन को वह देखेगी तो वह उस की तरफ नहीं देख पाएगा.

रोहन उसे देख रहा था. नजरें उस पर जम चुकी थीं. नैना को यह पता था. फिर उस ने अचानक से रोहन की तरफ देखा. उस की नजरों को पकड़ लिया और मुसकराई, “आओ रोहन, उठ गए. बहुत लेट!”

“जी, जी हां, कल थोड़ा लेट सोया था. बस, इसलिए लेट हो गया,” रोहन ने कहा.

“अच्छा, तुम आंटी के पास बैठो, मैं दो मिनट में किचन से आई,” संध्या ने कहा और चली गई.

रोहन नैना के सामने बैठा था, नजरें नीची थीं उस की.

नैना ने उस का हाथ थामा और बोली, “क्या हुआ रोहन?”

“सौरी मैम उस रात के लिए, प्लीज, मम्मी से कुछ मत कहना.”

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“पागल हो तुम, ऐसा कुछ नहीं है यार. तुम दोस्त हो मेरे. और दोस्तों की बात दोस्तों के बीच ही रहनी चाहिए, समझे. अच्छा, यह बताओ मैं कैसी लग रही हूं?” संध्या ने रोहन की आंखों में देखते हुए पूछा.

“हमेशा की तरह बहुत खूबसूरत,” रोहन ने कहा.

“अरे यार, फौर्मल लाइन मत बोलो, वो बताओ जो मुझे देख कर तुम्हारे दिल में पहला खयाल आता है?”

नैना की बातों से रोहन अब नौर्मल हो चुका था. वह बोला, “मैं बताऊं, आप नाराज मत होना.”

“ओके, पक्का, नहीं नाराज होऊंगी. अब बोलो.”

“आप एकदम ‘सैक्स बम’ लग रही हो,” रोहन ने मुसकराते हुए कहा.

“ओह शैतान, झूठी तारीफ,” नैना ने हंस कर कहा.

“अरे, बहुत खिलखिलाने की आवाज आ रही है. क्या बात चल रही है आंटी-बेटे में,” संध्या ने आ कर कहा.

आंटी-बेटा… रोहन और नैना ने एकदूसरे की तरह देख कर सोचा और नैना ने धीरे से कहा, ‘बेस्ट फ्रैंड्स में…’ और दोनों हंसने लगे.

“अच्छा, मैं चलती हूं. मुझे कहीं जाना है, टाइम हो गया है,” नैना ने कहा और रोहन को बाय कर के चल दी. अपनी कार में बैठी नैना न जाने क्यों मुसकरा रही थी, उसे खुद भी मालूम नहीं था कि यह पागलपन वह क्यों कर के आई है.

आगे पढ़ें- नैना शादी के बाद से अकेली थी. लेकिन…

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बहकते कदम: भाग 1- रोहन के लिए नैना ने मैसेज में क्या लिखा था

लेखक- अरुण गौड़

नैना बातें तो सामने बैठी अपनी दोस्त संध्या से कर रही थी लेकिन उस का ध्यान कहीं और था. वह जानती थी कि किसी की आंखें लगातार उसे देख रही हैं, उस के बदन पर घूम रही हैं. वह यह जान कर भी अंजान बन रही थी क्योंकि वे आंखें रोहन की थीं. रोहन उस की फ्रैंड संध्या का बेटा था.

उम्र और रिश्तों की बात की जाए और अगर नैना की भी फैमिली होती तो उस का बेटा भी आज लगभग रोहन का हमउम्र ही होता. लेकिन यहां बात उम्र और रिश्तों की नहीं थी. यहां बात थी चाहत की. रोहन अपनी मम्मी की सहेली नैना को बहुत पंसद करता था. जवानी में प्रवेश करने की उम्र में मैच्योर लेडी की तरफ झुकाव आज की पीढ़ी में आम है. रोहन इसी पीढ़ी का लडका था. सो, वह अपने नएनए आवारा हुए मन को काबू में न रख सका. अब इसे चाहत समझें या जवानी का भटकाव. जो भी था, बहरहाल, रोहन नैना की तरफ झुक रहा था. जबकि, नैना के मन में ऐसा कुछ था या नहीं, यह वह खुद भी नहीं जानती थी.

नैना, लगभग 40 साल की एक सफल लेकिन सिंगल महिला, की जिंदगी में सफलता तो थी लेकिन प्यार नहीं. उस की जिंदगी में प्यार की उम्मीदों के साथ परिवार वालों ने सात फेरों के बंधन में उसे जिस से बांधा था, उस ने उस की जिंदगी को खुशियों से भरने की जगह, बस, बंधनों से बांध दिया था.

नैना आजादखयाल की पढ़ीलिखी लड़की थी. कुछ समय तक तो सामाज, इज्जत, रिश्तों के दबाव में उस ने अपने आजादखयालों को दबाए रखा लेकिन वक्त के साथसाथ बंधन और बढ़ते गए.

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नैना ज्यादा समय तक बंधन सहन न कर पाई और उस ने सामाजिक प्रतिष्ठा को ठुकरा कर अपनी आजादी चुनी. आज वह आजाद है और सफल भी. सफलता के साथ प्रतिष्ठा, इज्जत खुद ही चल कर आ जाती है, यह उस ने साबित कर दिया था क्योंकि जो परिवार वाले अपने पति से रिश्ता तोड़ने के कारण शुरू में उस से बोलने से कतराते थे, आज खुशीखुशी उसे फिर से अपना बताते हैं.

नैना 40 वर्ष की उम्र के आसपास थी. उम्र के नंबर के हिसाब से तो जवानी उसे अलविदा कह चुकी थी, लेकिन वास्तविकता देखें तो जवानी शायद उसे छोड़ कर कहीं जाना ही नहीं चाहती थी. जब उस के साथ की लगभग सभी महिलाएं बुढ़ापे में प्रवेश कर चुकी थीं तब भी नैना अपनी खूबसूरती और यौवन को बनाए हुई थी. उस का भरा हुआ शरीर, बेदाग सा चेहरा, उभरे हुए स्तन, सपाट सी कमर और थोड़े भारी निंतम्ब मिल कर एक ऐसा यौवन तैयार करते थे कि हमउम्र पुरुष तो दूर, एक नया लड़का भी उस के लिए आंहें भरने लगे.

उस का ड्रैसिंग सैंस भी गजब का था. जब भी वह किसी शादी या फंकशन में जाती, तो हरेक नजर का उस पर ठहरना एक नियम सा बन जाता. कुछ नजरें दूर से ही उसे देख कर अपने अरमानों के पंख लगा लेती थीं तो कुछ पास आ कर नजदीक से उस के श्रृंगार के रस का रसपान करने की कोशिश करती थीं. ऐसी थी नैना के रूप की दीवानगी. रोहन भी शायद इसी दीवानगी का शिकार हो गया था, तभी तो उस की आंखें लगातार उस में कुछ ढूंढती रहती थीं. 19 साल का रोहन स्कूलिंग की पढ़ाई पूरी कर कालेज में गया ही था. नईनई जवानी थी. उम्र का यह मोड़ मन में न जाने कैसेकैसे खयाल ले आता है. शायद इसी जवानी के बहकावे में आ कर वह नैना की तरफ बह रहा था.

नैना, जिसे वह कुछ समय पहले तक आंटी कहता था, आज उस के लिए स्वपनसुंदरी बन चुकी थी. न जाने कितनी ही रातें उस ने नैना की डीपी वाली फोटो देख कर खुद को उस की आगोश में महसूस किया था.

नैना, जो रोहन के लिए आंटी थी, उसे एक बच्चे की तरह ही ट्रीट करती थी. जबकि रोहन उस के नजदीक होना चाहता था लेकिन उस में अपनी तरफ से पहल करने की हिम्मत न थी, इसलिए उसे फौर्मल बैटन से आगे बढ़ने का मौका न मिला. लेकिन फिर दोनों के बीच में आया व्हाटसऐप.

यह व्हाटसऐप बहुत कमीनी चीज है, आसपास न हो कर भी हमें फील होता है कि हम साथ ही हैं. और इसी फीलिंग में जब बातों का दौर शुरू होता है तो पता ही नहीं चलता कि बातों ही बातों में इस ने रिश्तों को कहां से कहां पहुंचा दिया. शुरूशुरु में थोड़े डर, थोड़ी झिझक के साथ हायहैलो हुआ, फिर नौर्मल गुडमौर्निंग, गुडनाइट का खेल चला, और फिर फनी जोक्स आए. रोहन 10 जोक्स भेजता, तब नैना एकदो जोक्स भेजती. फिर आया थोड़ा बोल्ड जोक्स. बोल्ड जोक समझते हो न, जिसे आम भाषा में नौनवेज जोक कहते हैं. रोहन ने बहुत हिम्मत कर के फनी सा नौनवेज जोक भेजा और थोड़ी देर बाद ही मैसेज भेज दिया, “सौरी, गलती से आप को सैंड हो गया है, मैं अपने फ्रैंड्स को भेज रहा था. प्लीज, आप यह न पढ़ें, सौरी.”

रोहन नैना की जिंदगी में अपने लिए एक दरवाजा खोलना चाहता था – खुलेपन का – इसलिए उस ने यह मैसेज भेजा था…और कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए, नैना गुस्सा न हो जाए, इसलिए खुद के बचाव में उस ने ‘गलती से चला गया’ वाला भी मैसेज भेज दिया. दिमाग के साथ चल रहा था रोहन.

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नैना तो सिंगल थी लेकिन उस की फ्रैंडलिस्ट काफी बड़ी थी. उस के लिए ऐसा मैसेज कोई नई बात न थी. वह खुद अपने दोस्तों को इस से भी बोल्ड जोक्स भेजती थी और कभीकभी वीडियो भी. वह जानती थी कि रोहन नई उम्र का लड़का है, सभी ऐसे मैसेज भेजते हैं अपने दोस्तों को, इसलिए उस ने कह दिया- “कोई नहीं रोहन, परेशान मत हो बच्चे. आगे से ध्यान रखना.”

“बच्चा… मैम, मैं बच्चा नहीं हूं. अब मैं जवान हो गया हूं. प्लीज, अब तो बच्चों जैसा ट्रीट मत करो,” रोहन ने मैसेज किया.

“ओके मेरे जवान मुंडे,” नैना ने हंस कर जवाब दिया.

“मैम, थैंक यू, आप नाराज नहीं हुईं. मैं तो डर गया था कि आप आज मुझ पर खूब गुस्सा करने वाली हो. लेकिन आप बाकी महिलाओं की तरह पुराने खयालों की नहीं हैं, बहुत फौरवर्ड हैं, बहुत इंटैलिजैंट हैं. क्या आप मेरी दोस्त बनेंगी?” रोहन ने थोड़ी सी तारीफ के साथ अपनी मम्मी की दोस्त की तरफ अपनी दोस्ती का हाथ बढ़ाया.

“मैं, अरे यार, मैं तो तुम्हारी मम्मी की दोस्त हूं. अगर उन्हें पता चला तो शायद नाराज हो जाएं वो,” नैना ने कहा.

“नहीं, नहीं. उन्हें कुछ पता नहीं चलेगा, आई प्रौमिस. अब बताओ, लेट्स फ्रैंड?”

“रोहन, तुम बहुत छोटे हो, तुम से दोस्ती करूंगी तो… अरे यार, मैं ने कभी बच्चों से दोस्ती नहीं की है,” नैना ने थोड़ी हिचक के साथ मैसेज किया.

“‘मैम, मैं ने अभी कहा था न कि बच्चा नहीं हूं मैं, कालेज में आ गया हूं. और हमारी जनरेशन से दोस्ती नहीं की है तो अब कर लो, इस में क्या है. लाइफ में कभीकभी कुछ नया भी करना चाहिए,” रोहन ने थोड़ा कौन्फिडैन्स दिखाते हुए कहा.

“हम्म, कह तो तुम सही रहो हो, ओके, लेट्स फैंड. अब खुश मेरे लिटिल फ्रैंड,” नैना ने कहा.

“खुश नहीं, बहुत खुश,” रोहन ने एक स्माइल के साथ जवाब दिया. और उस दिन से 2 अलगअगल पीढ़ियों की दोस्ती का चैप्टर शुरू हो गया.

बातें चलती रहीं. नजदीकियां बढ़ती रहीं. नैना के मन में दोस्ती थी, बाकी कुछ नहीं. लेकिन रोहन के मन में तो बहुतकुछ चल रहा था.

नैना जब भी रोहन के घर आती तो रोहन उस दिन पूरा तैयार हो कर बैठ जाता था और छिपछिप कर चोर नजरों से नैना को देखता था.

एक दिन… नैना ने व्हाटसऐप डीपी पर अपनी एक कोलाज जिस में फ्रंट और बैक दोनों साइड से शो कर रही नई तसवीर लगाई थी साड़ी में. स्टाइल में साड़ी बांधी हुई थी उस ने. कमर पर काफी नीचे की तरफ. और ब्लाउज भी थोड़ा ऊपर था. उस पर काफी बड़ा गला और बैक साइड में फुल बैकलैस. इस अंदाज में काफी हौट दिख रही थी वह. अपने बिस्तर पर लेटा हुआ रोहन तो एकटक उसे देखता ही रहा. उसे नैना के इस अंदाज का नशा सा होने लगा था.

नैना का नशा तो रोहन को बहुत समय से था लेकिन आज कुछ ज्यादा हो रहा था. और आज वह अपने अरमानों को सीने में दबा कर नहीं रख सका था. उस ने नैना को मैसेज किया, “नाइस पिक.”

नैना ने रिप्लाई दिया, “थैंक यू.”

“मैं कुछ और कहूं इस पिक के बारे में…” रोहन ने कहा.

“हां, कहो न,” नैना ने कहा.

“इश्क टपका है बादलों से

मेरे खूबसूरत इश्क

अब तू भी आ जा

मेरी आगोश में समा जा,” रोहन ने कहा.

“वाऊ, शायरी बढ़िया है. लेकिन इस का मतलब क्या है शायर साहब,” नैना ने हंसते हुए पूछा.

“‘आप इस पिक में बहुत हौट लग रही हो. काश, आप इस समय मेरे पास होतीं, तो आप को अपनी बांहों में भर लेता,” रोहन ने अपने अरमान नैना के सामने रखते हुए कहा.

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“क्या…क्या कह रहे हो तुम, पता है न किस से बात कर रहे हो तुम,” नैना ने कहा.

“मैं मजाक नहीं कर रहा, नैनाजी. सच में. अगर ऐसी ड्रैस में आप मेरे पास होतीं, तो…मैं खुद पर कंट्रोल न कर पाता,” रोहन ने हिम्मत कर फिर से अपने दिल की बात कही.

“आर यू मैड, तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो? आज के बाद मुझ से बात मत करना. मैं तुम्हें एक दोस्त समझती थी और तुम यह सोचते हो मेरे बारे में!” नैना ने कहा और गुस्से में पहले अपनी पिक हटाई और फिर रोहन को ब्लौक कर दिया.

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वो नीली आंखों वाला: भाग 3- वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी

लेखिका- पारुल हर्ष बंसल

“आप… आप हैं …मिस्टर वरुण शर्मा.”

वरुण बोला, “इफ आई एम नोट रौंग, यू आर छुटकी.”

“एंड… आप वो नीली आंखों वाले लड़के…”

यह बोलतेबोलते मालिनी की जबान पर ताला सा लग गया… उस की आंखों के नीले समुंदर में, वो फिर से ना खो जाए,

“हां, हां…”

मालिनी उन्हें पुष्पगुच्छ दे कर उन का स्वागत करने के साथसाथ दिल की गहराइयों से मन ही मन धन्यवाद ज्ञापन करती है, जो इतने बरसों में ना कर सकी.

जैसे आज भगवान उस पर मेहरबान हो गए हो और कोई बरसों पुराना काम आज पूरा हो गया हो.

आज उस के दिल से उस नीली आंखों वाले लड़के को धन्यवाद ना कर पाने का अपराधबोध समाप्त हो चुका था.

“क्या आप एकदूसरे को जानते हैं…?” शशांक ने पूछा.

“जी… मालिनी जी मेरी जूनियर थीं…”

आज मालिनी का “समय पर किसी का अधिकार नहीं, किंतु समय की दयालुता पर विश्वास” पेड़ की जड़ों की तरह गहरा हो गया था.

“ओह दैट्स ग्रेट…” इतना कह कर मिस्टर शशांक दूसरे कामों में व्यस्त हो गए, जैसे उन्होंने मन ही मन स्वीकार कर लिया था कि अब उन के मेहमान मालिनी के भी हैं, तो वह उन की बढ़िया आवभगत कर लेगी.

मालिनी और वरुण की आंखों में न जाने कितने मूक संवाद तैर रहे थे, जिन में अनेकों प्रश्न, उत्तर की नोक पर भटक रहे थे. जैसे नदी का बांध खोल देने पर सबकुछ प्रवाहित होने लगता है.

दोनों इतने वर्षों बाद भी औपचारिक बातों के अलावा और कुछ नहीं कह पा रहे थे. शायद वह माहौल उन के अंतर्मन में उठते प्रश्नों के जवाब के लिए उपयुक्त ना था, किंतु वर्षों बाद वरुण के मन की तपती बंजर भूमि पर आज मालिनी से मिलन एक बरखा समान बरस रहा था और साथ ही वरुण इस के विपरीत भाव मालिनी के चेहरे पर पढ़ रहा था.

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पूरे कार्यक्रम के दौरान वरुण ने अनेकों बार चोर निगाहों से मालिनी को निहारा. उस के दिल का वायलिन जोरजोर से बज रहा था, किंतु उस की भनक सिर्फ शशांक को ही महसूस हो रही थी.

कार्यक्रम के उपरांत सभी ने रात्रिभोज एकसाथ किया और तभी बारिश होने लगी. वरुण की फ्लाइट खराब मौसम के कारण कुछ घंटों के लिए स्थगित कर दी गई.

मिस्टर वरुण शशांक से एयरपोर्ट के लिए विदा लेने लगे, तो शशांक ने उन्हें कुछ देर घर पर ही चल कर आराम करने को कहा.

वरुण तो जैसे अपने प्रश्नों के जवाब हासिल करने को बेताब हुआ जा रहा था और ऐसे में शशांक के घर पर रुकने का न्योता…

पर, इस बात से मालिनी कुछ असहज सी होने लगी, जिसे वरुण ने भांप लिया.

खैर, सभी घर पहुंचे और वरुण को मेहमानों के कमरे में शशांक ही पहुंचा कर आया और यह भी कहा कि इसे अपना ही घर समझें. कुछ चीज की आवश्यकता हो तो मुझे या मालिनी को अवश्य बताएं.

“जी, जरूर… आप बेतकल्लुफ हो रहे हैं.”

शशांक अपने कमरे में आते ही मालिनी से कहता है कि आज मैं सब देख रहा था…

“जी, क्या?”

“वही…”

“क्या..?”

“ज्यादा भोली न बनो. मिस्टर वरुण तुम्हें टुकुरटुकुर निहार रहे थे.
पर, मैं तो नहीं…”

“क्या इस का अंदाजा तुम्हें नहीं कि वह तुम्हें…”

“छी:.. छी:, कैसी बात करते हैं आप? मेरे जीवन में आप के सिवा कोई दूसरा नहीं.”

“अरे, मैं ने कब कहा ऐसा… मैं तो पहले की बात कर रहा हूं.”

मालिनी गुस्से से तमतमाते हुए…. “नहीं, हमारे बीच पहले भी कभी ऐसी कोई बात नहीं हुई.”

“तो फिर मिस्टर वरुण की आंखों में मैं ने जो देखा, वह क्या…?”

शशांक की इन बातों ने मालिनी के दिल में नश्तर चुभो दिए और वह चुपचाप जा कर सो गई.

वह सुबह उठी, तो मिस्टर वरुण जा चुके थे और शशांक अपने औफिस.
तभी हरिया चाय के साथ मालिनी के कमरे में दाखिल होता है.

“बीवीजी… वह साहब जो रात को यहां ठहरे थे, आप के लिए यह चिट्ठी छोड़ गए हैं. बोले, मैं आप को दे दूं…”

मालिनी की आंखों में छाई सुस्ती क्षणभर के लिए जिज्ञासा में परिवर्तित हो गई कि क्या है इस में… ऐसा क्या लिखा है…” मालिनी ने कांपते हाथों से वह चिट्ठी खोली और पढ़ने लगी.

‘प्रिय छुटकी,

‘मैं जानता हूं कि तुम्हारे मन में अनगिनत सवाल उमड़ रहे होंगे कि मैं तुम्हें कभी कालेज के बाद क्यों नहीं मिला?

‘क्यों तुम से कभी अपने दिल की बात नहीं कही. जबकि मैं ने कई बार महसूस किया कि तुम मुझ से कुछ कहना चाहती थी.

‘किंतु वह शब्द हमेशा तुम्हारे गले में ही अटके रहे. उन्हें कभी जबान का स्पर्श नसीब नहीं हुआ. मैं वह सुनना चाहता था, किंतु मेरी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. मैं आशा करता हूं कि मेरे इस पत्र में तुम्हें अपने सभी सवालों के जवाब के साथसाथ मेरे दिल का हाल भी पता लग जाएगा.

‘मालिनी, मैं तुम्हारे काबिल ही नहीं था, इसलिए तुम से बाद में चाह कर भी नहीं मिला, क्योंकि मैं तुम्हें वह सारी खुशियां देने में शारीरिक रूप से पूर्ण नहीं था. मेरे साथ तुम तो क्या कोई भी लड़की खुश नहीं रह सकती.’

पढ़तेपढ़ते मालिनी की आंखों से गिरते आंसू इन अक्षरों को अपने साथ बहाव नहीं दे पा रहे थे. वह फिर पढ़ने लगी.

‘मेरी उस कमी ने मुझे तुम से दूर कर दिया, किंतु तुम आज भी मेरे मनमंदिर में विराजमान हो. तुम्हारे अलावा आज तक उस का स्थान कोई और नहीं पा सका है.

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‘बचपन में क्रिकेट खेलते वक्त गेंद इतनी तेजी से मेरे अंग में लगी, जिस ने मेरे पौरूष को जबरदस्त चोट पहुंचाई और मेरे आत्मविश्वास को भी… किंतु मेरा तुम से वादा है कि मैं तुम्हें यों ही बेइंतहा चाहता रहूंगा और एक दिन तुम्हें भी अपने प्यार का एहसास करा कर रहूंगा….

‘तुम्हारा ना हो सका
वरुण.’

मालिनी कुछ पछताते हुए सोचने लगी, “तुम ने मुझ से कहा तो होता… क्या सैक्स ही एक खुशहाल जिंदगी की नींव होता है? क्या एकदूसरे का साथ और असीम प्यार जीवन के सफर को सुहाना नहीं बना सकता?”

आज फिर से वह सवालों के घेरे में खुद को खड़ा महसूस कर रही है.

मालिनी की नजर बगीचे में पड़ी तो देखा…

अनगिनत टेसू के फूल झड़े पड़े थे और संपूर्ण वातावरण केसरिया नजर आ रहा था.

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वो नीली आंखों वाला: भाग 2- वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी

लेखिका- पारुल हर्ष बंसल

इतना ही नहीं, वरुण ने स्कूल में होने वाली रैगिंग से भी कई बार मालिनी को बचाया. और तो और रैगिंग को स्कूल से खत्म ही करवा दिया, क्योंकि वह हैडब्वौय था और उस के एक प्रार्थनापत्र ने प्रधानाचार्य को उस की बात स्वीकार करने के लिए राजी कर लिया, क्योंकि बात काफी हद तक सभी विद्यार्थियों के हितार्थ की थी.

अगले दिन मालिनी उस नीली आंखों वाले लड़के का स्वेटर स्कूल में लौटाती है, किंतु हिचक के कारण वही दो शब्द गले में फांस से अटके रह जाते हैं, जिस की टीस उस के मन में बनी रहती है.

शीघ्र ही स्कूल में बोर्ड के पेपर शुरू होने वाले हैं. सभी का ध्यान पूरी तरह से पढ़ाई पर केंद्रित हो जाता है, क्योंकि अच्छे अंक प्राप्त करना हर विद्यार्थी का लक्ष्य होता है.

बस मालिनी की वह वरुण से आखिरी मुलाकात बन कर रह गई, क्योंकि 9वीं और 11वीं के पेपर खत्म होते ही उन की छुट्टी कर दी गई थी, क्योंकि पूरे विद्यालय में 10वीं व 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं के लिए उचित व्यवस्था की जा रही थी.

फिर मालिनी चाह कर भी वरुण से नहीं मिल पाई, क्योंकि वह विद्यालय 12वीं तक ही था, जिस के बाद वरुण ने कहीं और दाखिला ले लिया होगा.

समय के साथसाथ मालिनी भी आगे की पढ़ाई में व्यस्त होती चली गई और वह 12वीं क्लास वाला लड़का उस के मन में एक सम्मानित व्यक्ति की छाप छोड़ कर जा चुका था.

धीरेधीरे मालिनी का ग्रेजुएशन पूरा हो गया और उस के पापा ने बड़े ही भले घर में उस का रिश्ता तय कर दिया. बड़े ही सफल बिजनेसमैन मिस्टर गुप्ता, उन्हीं के बेटे शशांक के साथ बात पक्की हो जाती है और आज अपनी खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के 20 बरस बिता चुकी है. उस के 2 बेटे और एक प्यारी सी बेटी भी है.

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“अरे मालिनी, कहां हो… जल्दी इधर आओ…” तब मालिनी की तंद्रा टूटती है, जो घंटों से खिड़की के पास खड़ेखड़े 20 बरस से हो रही हृदय की बारिश संग उन पुराने पलों को याद कर सराबोर हो रही होती है.

“हां, आती हूं. अरे, आप…
इतना कहां भीग गए…?”

“आज कार रास्ते में ही बंद हो गई. बस, फिर वहां से पैदल ही…”

“आप भी बच्चों की तरह जिद करते हैं… फोन कर के औफिस से दूसरी कार या टैक्सी ले लेते.”

“अरे भई, हम बड़ों को भी तो कभीकभी नादानी कर अपने बचपन से मुलाकात कर लेनी चाहिए. वो मिट्टी की सोंधी सी सुगंध, महका रही थी मेरा तन और मन… याद आ रही थीं वो कागज की नावें…”

मालिनी शशांक को चुटकी काटते हुए बोली, “हरसिंगार सी महक उठ रही है…”

“अरे मैडम, आप का आशिक यों ही थोड़ी देर और ऐसे ही खड़ा रहा, तो सच मानिए आप का मरीज हो जाएगा…”

“आप को तो बस हर पल इमरान हाशमी (रोमांस) सूझता है. बच्चे बड़े हो गए हैं…”

“तो क्या हम बूढ़े हो गए हैं… हा… हा… हा…
कभी नहीं मालिनी…
मेरा शरीर बूढ़ा भले ही हो जाए, पर दिल हमेशा जवान रहेगा… देख लेना… उम्र पचपन की और दिल बचपन का…”

“अब बातें ही होंगी …मेम साहब या गरमागरम चायपकौड़ी भी…”

“बस, अभी लाई…”

“लीजिए हाजिर है… आप के पसंदीदा प्याज के पकौड़े.”

“वाह… मालिनी वाह… मजा आ गया. आज बहुत दिनों बाद ऐसी बारिश हुई और मैं जम कर भीगा…”

वह मन ही मन बोली, ” मैं भी…”

“अरे, एक बात तो तुम्हें बताना ही भूल गया कि कल हमारे औफिस की न्यू ब्रांच का उद्घाटन है, तो हमें सुबह 10 बजे वहां पहुंचना है. काफी चीफ गेस्ट आ रहे हैं. मैं ने खासतौर पर एक बहुत बड़े उद्योगपति हैं, मिस्टर शर्मा… उन्हें आमंत्रित किया है…

“देखो, वे आते भी हैं या नहीं.. बहुत बड़े आदमी हैं…”

मालिनी चेहरे पर प्यारी सी मुसकान लिए शशांक को अपनी बांहों का बधाईरूपी हार पहना देती है.

मालिनी को बांहों में भरते हुए शशांक भी अपना हाल ए दिल बयां करने से पीछे नहीं रहता. वह कहता है, “यह सब तुम्हारे शुभ कदमों का ही प्रताप है.

“मैं बुलंदी की कितनी ही सीढ़ियां हर पल चढ़ता चला गया… न जाने कितनी ख्वाहिशों को होम होना पड़ा. मैं चलता चला चुनौती भरी डगर पर… पाने को आसमां अपना, पूरी उम्मीद के साथ मिलेगा साथ अपनों का, ख्वाब आंखों में संजोए कि किसी दिन उन बिजनेस टायकून के साथ होगा नाम अपना…

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“सच अगर तुम मेरी जिंदगी में ना होती, तो मेरा क्या होता…”

मालिनी हंसते हुए बोली, “हुजूर, वही जो मंजूरे खुदा होता…”

“हा… हा… हा.. हा… हाय, मैं मर जावा…”

अगली सुनहरी सुबह मालिनी और शशांक की राह में पलकें बिछाए खड़ी थी. वह कह रहा था, “कमाल लग रही हो… लगता है, सारी कायनात आज मेरी ही नजरों में समाने को आतुर है.
इस लाल सिल्क की कांजीवरम साड़ी में तो तुम नई दुलहन को भी फीका कर दो…”

“चलिए… अब बस भी कीजिए… बच्चे सुन लेंगे…”

“अरे ,सुनने दो… सुनेंगे नहीं तो सीखेंगे कैसे…”

“चलें अब..?”

“वाह, जी वाह, अपना तो सज लीं. अब जरा इस नाचीज पर भी थोड़ा रहम फरमाइए और यह टाई लगाने में हमारी मदद कीजिए.”

“जी, जरूर…”

“सच कहूं मालिनी, आज तुम्हारी आंखों में देख कर फिर मुझे वही 20 साल पुरानी बातें याद आ रही हैं…

“किस तरह मैं ने तुम्हें घुटने के बल बैठ कर गुलाब के साथ प्रपोज किया था…”

“जनाब, अब ख्वाबों की दुनिया से बाहर निकलिए… कहीं आप के चीफ गेस्ट आप के इंतजार में वहीं सूख कर कांटा ना हो जाए…”

“तो आइए, मोहतरमा तशरीफ लाइए…”

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शशांक और मालिनी उद्घाटन समारोह के लिए निकलते हैं. वहां पहुंच कर दोनों अपने मुख्य अतिथि मिस्टर शर्मा का स्वागत करने के लिए गेट पर ही पलकें बिछाए खड़े रहते हैं.
जैसे ही मि. शर्मा गाड़ी से उतरते हैं, उन्हें देखते ही मालिनी तो जैसे जड़ सी हो जाती है…

उधर मिस्टर शर्मा भी…

“आइएआइए मिस्टर वरुण शर्मा… आप ने आज यहां आ कर हमारा सम्मान बढ़ा दिया.”

“अरे नहीं, आप बेतकल्लुफ हो रहे हैं…”

“बाय द वे माय वाइफ मालिनी…”

मालिनी तो सिर्फ उन्हें देख कर ही 20 बरस पीछे लौट गई. नाम तो सुनने की उसे आवश्यकता ही नहीं रही.

आगे पढें- मालिनी की जबान पर ताला सा लग गया…

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