सुखद बनाएं Twin Pregnancy

रमा की शादी को कई 8 साल गए थे, पर उसे कोई बच्चा नहीं हो रहा था. बच्चे के लिए इलाज कराने रमा अपने पति के साथ डाक्टर के पास गई. कुछ दिन दवा खाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. रमा और उस के पति ने डाक्टर का इलाज बंद कर दिया. इस के 7 माह बाद ही रमा के पेट में बच्चा आ गया. उसे लगा कि बच्चा तो उसे बिना कोई दवा खाए आया है. जिस तरह बच्चा पेट में आया है उस तरह उस का प्रसव भी हो जाएगा, उस ने सोचा.

यहीं पर रमा से गलती हो गई. उसे कोई तकलीफ नहीं हुई तो वह किसी भी तरह की जांच कराने के लिए डाक्टर के पास नहीं गई. जब प्रसव का समय करीब आ गया और बच्चा नहीं हो पा रहा था तब रमा को पेट में बहुत दर्द होने लगा. तब रमा घबरा कर पति के साथ अस्पताल गई.

अस्पताल पहुंचते पहुंचते उस की हालत बहुत बिगड़ गई. बड़ी मुश्किल से औपरेशन कर के डाक्टरों ने रमा को तो बचा लिया, लेकिन उस के जुड़वां बच्चों को नहीं बचा पाए. रमा और उस का पति अब पछता रहे हैं कि अगर समयसमय पर जांच कराते रहते और प्रसव के समय अस्पताल चले जाते तो बच्चों को बचाया जा सकता था.

टैंशन नहीं सावधानी बरतें

दरअसल, बच्चा पेट में आने पर डाक्टर से जांच जरूर करानी चाहिए. प्रसव अस्पताल या किसी जानकार की देखरेख में ही होना चाहिए. अगर पेट में जुड़वां बच्चे पल रहे हों तो और ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत होती है.

अगर पेट में जुड़वां बच्चे हों तो किस तरह की सावधानियां बरतनी चाहिए, इस बारे में जानकारी देते हुए लखनऊ की स्त्रीरोग विशेषज्ञा डाक्टर रेनू मक्कड़ कहती हैं, ‘‘जब गर्भ में 1 से अधिक बच्चे हों तो इसे मल्टीपल प्रैगनैंसी कहते हैं. संतानहीनता का उपचार करने में प्रयोग होने वाली दवाओं के चलते जुड़वां बच्चों के मामलों में तेजी आ रही है. जब गर्भ में 1 से ज्यादा बच्चे पल रहे हों तो गर्भवती और उस के परिवार के लोगों को और भी ज्यादा सावधान रहने की जरूरत होती है.’’

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जुड़वां बच्चे यानी डबल परेशानी

डाक्टर रेनू मक्कड़ कहती हैं, ‘‘जुड़वां बच्चों के दौरान प्रसव की परेशानियां बढ़ जाती हैं. गर्भवती का वजन बढ़ जाता है, सामान्य प्रसव के मुकाबले अधिक उलटियां होती हैं. जुड़वां बच्चे जब पेट में होते हैं तो औरत को डायबिटीज का खतरा भी ज्यादा हो जाता है. औरत को हाई ब्लड प्रैसर की शिकायत हो जाती है.

प्रसव के बाद खून ज्यादा मात्रा में बहता है. जुड़वां बच्चों के मामलों में प्रसव समय से पहले हो जाता है. प्रसव के लिए औपरेशन करने की जरूरत भी सामान्य प्रसव के मुकाबले ज्यादा होती है. पेट में 1 से अधिक बच्चे होने पर वे कमजोर पैदा होते हैं.

‘‘जुड़वां बच्चों के पेट में पलने पर मां को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है. मां को ऐनीमिया की शिकायत ज्यादा होती है. इस तरह के बच्चों में कभीकभी जन्मजात विकृति भी हो जाती है. पेट में पानी की थैली में ज्यादा पानी भी हो जाता है.’’

कैसे पता करें जुड़वां बच्चों का

जुड़वां बच्चों के प्रसव में होने वाली परेशानी को दूर करने के लिए यह जानना जरूरी है कि सच में पेट में जुड़वां बच्चे पल रहे हैं. मगर इस बात का पता कैसे चल पाएगा? इस पर डाक्टर रेनू मक्कड़ कहती हैं कि अल्ट्रासाउंड के जरीए यह पता लगाना आसान हो गया है. गर्भवती महिला में जब एचसीजी का स्तर बढ़ जाता है तो पता चल जाता है कि पेट में जुड़वां बच्चे पल रहे हैं. इस का पता वक्त और मूत्र की जांच से भी चल जाता है. गर्भवती औरतों में किए जाने वाले एएफपी टैस्ट से भी इस का पता चल जाता है.

पेट में जुड़वां बच्चे होने की दशा में पेट का आकार सामान्य से ज्यादा बड़ा होता है. डाक्टर गर्भाशय का आकार नाप कर इस बात का पता लगा सकते हैं. मगर यह बात सटीक जानकारी नहीं देती. कभीकभी दूसरे कारणों से भी पेट का आकार बढ़ जाता है. गर्भवती औरत का बढ़ता वजन भी जुड़वां बच्चों की चुगली कर देता है. आमतौर पर प्रसव के दौरान औरतों का वजन 10 किलोग्राम बढ़ता है. अगर पेट में जुड़वां बच्चे पल रहे हैं तो वजन 15 किलोग्राम तब बढ़ जाता है.

जुड़वां बच्चों के पेट में पलने की दशा में औरतों को सामान्य से ज्यादा उलटियां होने लगती हैं, उन्हें थकान भी ज्यादा होती है और शरीर में सुस्ती बनी रहती है. अगर परिवार में गर्भवती की मां या नानी के जुड़वां बच्चे हुए हों तो जुड़वां बच्चे होने की संभावना ज्यादा रहती है.

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क्या करें जब पेट में हो जुड़वां बच्चे

जब औरत को इस बात का पता चल जाए कि उस के पेट में जुड़वां बच्चे पल रहे हैं, तो उसे सामान्य गर्भवती औरत से ज्यादा आराम करना चाहिए. जब प्रसव का समय करीब आए तो बहुत सावधानी बरते, क्योंकि कभीकभी जुड़वां बच्चे होने पर प्रसव समय से पहले भी हो जाता है. जुड़वां बच्चे होने की दशा में पेट में पल रहे बच्चों की सेहत पर भी बहुत प्रभाव पड़ता है. इसलिए उन की सेहत की जांच भी कराते रहना चाहिए. गर्भवती को ज्यादा पौष्टिक खाना खाने की जरूरत होती है. वह डाक्टर के संपर्क में रहे और इस बात का पता कर ले कि प्रसव सामान्य ढंग से होगा या फिर औपरेशन के द्वारा.

ड्राय आईज सिंड्रोम से बचे कुछ ऐसे

सभी प्राणियों की आँखे होती है, लेकिन मनुष्य में इसका महत्व सबसे अधिक है, क्योंकि आखें देखे हुए सन्देश को मस्तिष्क तक पहुंचाती है. ये शरीर की सबसे कोमल अंग होती है, इसलिए इसकी सुरक्षा का ध्यान भी हमेशा रखने की जरुरत होती है.एक शोध के अनुसार लगभग 2 लाख बच्चे भारत में दृष्टिहीन है, जिनमे कुछ को ही दृष्टि मिल पाती है, बाकी को दृष्टि के बिना ही जीवन गुजारना पड़ता है.

कोविड पेंड़ेमिक ने भी आखों पर सबसे अधिक दबाव डाला है, क्योंकि बच्चे से लेकर व्यष्क सभी को आजकल घंटो कंप्यूटर के आगे बैठनापड़ता है, इससे आखों का लाल होना, चिपचिपे म्यूक्स का जमा होना, आँखों में किरकिरी या भारीपन महसूस करना आदि है, जिससे आसुंओं का बनना कम हो जाता है और आखों में सूखेपन का खतरा हो जाता है, जिसे सम्हालना जरुरी है.

श्री रामकृष्ण अस्पताल के डॉ नितिन देशपांडे कहते है किकोविड महामारी की वजह से जीवन शैली में बदलाव आया है, इस दौरान सूखी आंख की समस्या सबसे अधिक है, क्योंकि आँखों का सूखापन एक गंभीर स्थिति है, जिसके परिणामस्वरूप आंखों में परेशानी के अलावा दृष्टि संबंधी समस्याएं हो सकती है.आँखों की समस्याएं आज बहुत बढ़ गई है. स्क्रीन टाइम में वृद्धि, पौष्टिक खाने की आदतों में व्यवधान और अनियमित नींद आदि से सूखी आंखों के मामलों में वृद्धि हो रही है. इससे बचने के लिए कुछ उपाय निम्न है,

कमरे के अंदर की हवा के दबाव पर रखें नजर

डॉ.नितिन कहते है कि घर के अंदर या घर पर रहने से ड्राई आईज के मामलों में वृद्धि के साथ-साथ लक्षणों में वृद्धि हुई है. इनडोर एयर क्वालिटी की वजह से भी ड्राई आईज की समस्या बढती है, जो स्क्रीन के सामने काम के साथ शामिल होता है, जिससे आँखों के अंदर का पानी, वाष्पीकरण में परिवर्तित हो जाती है, जिससे आँखें सूख जाती है.

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नेत्र विशेषज्ञों के अनुसार, खाना पकाने और खाने की दिनचर्या में बदलाव और  अनुचित आहार के कारण शरीर में आवश्यक फैटी एसिड, विटामिन ए, विटामिन डी की कमी हो जाती है, जो आंखों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है. इसके अलावा सही मात्रा में नींद न लेने पर आंखों के तरल पदार्थ की मात्रा कम हो जाती है, जिससे आखें ड्राई हो जाती है. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का बढ़ने से व्यक्ति केस्क्रीन का समय काफी बढ़ चुका है.

पलकों का कम झपकना

इसके आगे डॉक्टर नितिन कहते है कि स्क्रीन टाइम का बढ़ना, ड्राई आईज का प्रमुख कारण है. सामान्यतः15 ब्लिंक प्रति मिनट है, स्क्रीन टाइम ने ब्लिंक रेट को घटाकर 5 से 7 ब्लिंक प्रति मिनट कर दिया है. कम पलकें और अधूरी पलकें आंखों की सतह पर नमी को कम करती है.रिसर्च के अनुसार स्क्रीन से नीली रोशनी आंखों को नुकसान नहीं पहुंचाती है, लेकिन यह नींद के पैटर्न को प्रभावित कर सकती है.कम नींद से आंखों में सूखापन हो सकता है. साथ हीकोविड19 प्रोटोकॉल मास्क की सही फिटिंग का न होना भी आंखों के सूखेपन को बढ़ा सकती है क्योंकि मास्क के साथ सांस लेने से हवा ऊपर की ओर प्रवाहित होती है और इसके परिणामस्वरूप आँसू का वाष्पीकरण होता है. नाक पर सही तरह से मास्क लगाने पर ऊपर की ओर हवा के प्रवाह को रोका जा सकता है और सूखी आंखों की समस्या को कुछ हद तक दूर करने में मदद मिलती है.

20:20:20 पैटर्न

कंसल्टिंग ऑप्थल्मोलॉजिस्ट और विटेरियोरेटिनल सर्जन डॉ प्रेरणा शाह कहती है कि आज हर काम कम्प्यूटर, लैपटॉप या मोबाइल पर होने लगा है और इससे निकला नहीं जा सकता, इसलिए कुछ उपाय निम्न है जिसका पालन करने से इसे कम किया जा सकता है

  • नेत्र रोग विशेषज्ञों ने लोगों को 20:20:20 पैटर्न का पालन करने की सलाह दी है. इसमेंहर व्यक्ति को हर 20 मिनट में स्क्रीन से ब्रेक लेने, 20 फीट दूर किसी वस्तु को 20 सेकंड के लिए देखने की सलाह दी जाती है.
  • इसके साथ बार-बार पलकें झपकाने की जरूरत है,
  • हवा के प्रवाह को ऊपर जाने से रोकने के लिए ठीक से मास्क पहने. सोने से 2-3 घंटे पहले स्मार्टफोन या लैपटॉप की स्क्रीन बंद कर दें,
  • लुब्रिकेटिंग आई ड्रॉप्स का इस्तेमाल करें और कोई परेशानी होने पर डॉक्टर से तुरंत मिले,
  • नियमित नेत्र परीक्षण से इसे कुछ हद तक कम किया जा सकता है,
  • नियमित समय पर आज आंखों की देखभाल करें, जो हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है.

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सैक्सुअल हैल्थ से जुड़ी प्रौब्लम का जवाब बताएं?

सवाल-

मुझे 3 हफ्तों से 99 से 100 डिग्री बुखार रहा. पेशाब के साथ कुछ उजला डिस्चार्ज भी होता है. पैथोलौजिस्ट ने पेशाब में संक्रमण की शंका जाहिर की है. कृपया बताएं मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

आप की मूत्रनली में संक्रमण की आशंका लगती है, इसलिए कल्चर टैस्ट के लिए पेशाब दे कर आप रिपोर्ट का इंतजार किए बगैर इलाज शुरू कर दें. आप को इलाज के अलावा भी काफी सावधानियां बरतनी होंगी, जैसेकि 24 घंटे में कम से कम डेढ़ लिटर पानी पीना, हर बार पेशाब करने के बाद जननांग को अच्छी तरह साफ करना और ब्लैडर को यथासंभव खाली रखना.

सवाल-

मैं 25 वर्षीय अविवाहिता हूं और वजन 45 किलोग्राम है. मुझे पेशाब करते समय योनिमुख में जलन महसूस होती है. खुजली नहीं होती है, लेकिन योनि से सफेद चिपचिपा सा डिस्चार्ज होता है, जिस से दुर्गंध आती है. मैं ने पेशन की पूरी माइक्रोस्कोपी करवाई है. रिपोर्ट में मेरा पीएच का स्तर 5, विशिष्ट घनत्व 1.005 था और नाइट्राइट्स तथा बिलिरुबिन नैगेटिव था. मैं ने बैक्टीरिया का पता लगाने के लिए यूरिन कल्चर भी करवाया. डाक्टर ने कैंडिड क्रीम और वी वौश लिखा, लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा है. सलाह दें क्या करूं?

जवाब

डाक्टर ने आप को फंगल इन्फैक्शन मान कर दवा लिखी है. आप की मूत्रनली में इन्फैक्शन (यूटीआई) हो सकता है. इस संबंध में चिकित्सक से परामर्श लें. उचित दवा लेने से आप की यह समस्या जरूर दूर हो जाएगी.

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सवाल-

मेरी एक्सरे रिपोर्ट में पेशाब की थैली में 5-6 एमएम का स्टोन दिखा है, लेकिन किडनी के एक्सरे में स्टोन नहीं दिखा है. बड़ी आंत में कुछ टेढ़ापन हो गया है, जिस से मेरा पाचन गड़बड़ा गया है और कभीकभी मुझे पेट के दाहिनी ओर दर्द भी होता है. कई दवाएं ले लीं, लेकिन अभी तय नहीं कि स्टोन निकल गया है या है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

अगर आप का स्टोन मूत्रथैली और मूत्रनली के संधिस्थल पर है, तो वह स्वत: निकल जाएगा. दिन में भरपूर पानी पीएं. हर घंटे बाद 1 गिलास. भोजन करने के 2 घंटे बाद 1 गिलास पानी में साइट्रोसोडा पाउडर घोल कर रोजाना 3 बार पीएं. कुछ स्टोन एक्सरे में दिखाई नहीं देते हैं, इसलिए 2 सप्ताह के बाद अल्ट्रासाउंड करा लें. अगर उस में अभी भी स्टोन दिखाई दे तो तुरंत चिकित्सक से परामर्श लें.

सवाल-

मैं 27 वर्षीय गृहिणी हूं. 10 वर्षों से मूत्र असंयम से परेशान हूं. छींकने, खांसने, हंसने पर भी पेशाब निकल जाता है. 2 बार यूरोडायनैमिक जांच करवा चुकी हूं. 3 महीने पहले जांच में पता चला कि ब्लैडर की मूत्रधारण क्षमता केवल 22 एमएल है. दवाएं ले रही हूं, लेकिन अभी भी पेशाब रोकना मुश्किल हो जाता है. बताएं मूत्र असंयम को कैसे ठीक करूं?

जवाब

आप के विवरण से लगता है आप बेहद कम धारण क्षमता वाले ब्लैडर के साथसाथ मिश्रित मूत्र असंयम से भी पीडि़त हैं. आप कोई ऐंटीकोलिनर्जिक दवा ले रही होंगी, जो काम नहीं कर रही है. समस्या के विस्तृत विश्लेषण, पेशाब की जांच, साइटोस्कोपी और अन्य परीक्षणों के लिए किसी मूत्र विशेषज्ञ से परामर्श करें. इस प्रकार के कम धारण क्षमता वाले ब्लैडर के मामले में टीबी जैसे पुराने संक्रमण के बारे में भी निश्चिंत हो जाना जरूरी है.

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सवाल-

मेरी पत्नी की उम्र 24 वर्ष है. उसे मूत्र संक्रमण है, जिस के कारण अकसर बुखार हो जाता है. उस के पेट में दर्द भी रहता है. साइड इफैक्ट के डर से ऐंटीबायोटिक्स लेने से वह घबराती है. बताएं क्या करें?

जवाब

यौन समागम के बाद विशेषकर नवविवाहित स्त्रियों में मूत्रनली संक्रमण होना सामान्य बात है. बारबार और देर तक यौन समागम से होने वाली जलन और खरोंच के कारण ऐसा होता है. इस के लक्षण में पेशाब करते समय जलन या पीड़ा, बारबार पेशाब लगना, पेशाब का रंग मटमैला होना, पेशाब के साथ खून और पेड़ू में दर्द होना शामिल है. यह मूत्रनली का स्थानिक संक्रमण है. संक्रमण के कारण उन का ल्यूकोसाइट बढ़ गया है और संक्रमण दूर करने के लिए उन्हें कुछ समय तक ऐंटीबायोटिक्स लेनी होगी. आप अपने डाक्टर से मूत्र संक्रमण के प्रति संवेदनशील और बिना साइड इफैक्ट वाले ऐंटीबायोटिक्स देने को कहें.

– समस्याओं के समाधान प्रसूति एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञा डा. उमा रानी द्वारा.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

शहद से जुड़ी जान लें ये बातें

शहद एक मधुर द्रव है, जो मधुमक्खियों द्वारा पुष्पों के मकरंद को चूस कर उस में अतिरिक्त पदार्थों को मिलाने के बाद छत्ते के कोषों में इकट्ठा करने से बनता है. शहद बेहद मीठा होता है. दूध के बाद शहद ही ऐसा पदार्थ है, जो उत्तम व संतुलित भोजन की श्रेणी में आता है, क्योंकि शहद में वे सभी तत्त्व पाए जाते हैं, जो संतुलित आहार में होने चाहिए. इस के बावजूद पाश्चात्य संस्कृति व आधुनिकता की अंधी दौड़ में शहद आज जनसामान्य के बीच अपनी लोकप्रियता खोता जा रहा है.

शुष्क व शीतल

शहद को मधु भी कहते हैं. आयुर्वेद में शहद को मीठा, शुष्क और शीतल होने के साथसाथ स्रावरोधी भी बताया गया है. यह वात और कफ को नियंत्रित करता है तथा रक्त व पित्त को सामान्य रखता है. आयुर्वेद में शहद को दृष्टि के लिए बहुत अच्छा माना गया है. यह प्यास को शांत करता है, कफ को बाहर निकालता है, शरीर में विषाक्तता को कम करता है और हिचकियों को रोकता है. इतना ही नहीं, शहद मूत्रमार्ग में उत्पन्न व्याधियों तथा निमोनिया, खांसी, डायरिया, दमा आदि में भी बहुत उपयोगी होता है. यह घावों के पानी को सोख कर भरण प्रक्रिया को तीव्र करता है तथा ऊतकों की वृद्धि को बढ़ाता है.

शहद में लगभग 75% शर्करा होती है, जिस में फ्रूक्टोज, ग्लूकोज, सुक्रोज, माल्टोज, लैक्टोज आदि प्रमुख हैं. शहद में जल 14 से 18% तक पाया जाता है. अन्य पदार्थों के रूप में प्रोटीन, वसा, एंजाइम तथा वाष्पशील सुगंधित पदार्थ भी पर्याप्त मात्रा में उपस्थित रहते हैं. यही नहीं, शहद में विटामिन ए, विटामिन बी1, बी2, बी3, बी5, बी6, बी12 तथा अल्प मात्रा में विटामिन सी, विटामिन एच और विटामिन के भी विद्यमान रहते हैं. इन के अतिरिक्त शहद में फास्फोरस, कैल्सियम, आयोडीन, आयरन भी पाए जाते हैं.

ऊर्जा से भरपूर

शहद को पूर्व पाच्य आहार भी कहते हैं, क्योंकि इस में कई प्रकार के एंजाइम मधुमक्खियों के उदर से आते हैं, जिन में से इनवर्टेज, एमाइलेज, कैटालेज, ग्लूकोज, आक्सीडेज प्रमुख हैं. ये एंजाइम उत्प्रेरक के रूप में जीवों के अंदर होने वाली रासायनिक क्रियाओं में भाग लेते हैं. पुष्पों का मकरंद मधुमक्खियों के सिर में स्थित ग्रंथियों से स्रावित एंजाइम इनवर्टेज की मदद से ग्लूकोज और फ्रूक्टोज में बदल जाता है. अत: शहद के सेवन के पश्चात आंत के ऊपर का भाग इसे अभिशोषित कर लेता है तथा यह तत्काल मस्तिष्क एवं मांसपेशियों तक जा कर ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है, जिस के कारण थकान दूर हो जाती है.

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औषधीय गुण

शहद को घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है, क्योंकि शहद आर्द्रताग्राही होता है. यह घाव में मौजूद अतिरिक्त जल को सोख कर संक्रमण से बचाव करता है.

शहद का पी.एच. मान 3.29 से 4.87 के बीच होता है. ऐसा इस में उपस्थित एसिटिक, फार्मिक, लैक्टिक, टार्टरिक, फास्फोरिक, फाइटोग्लूटामिक तथा अमीनो अम्लों आदि के कारण होता है. अम्लीय होने के कारण इस में जीवाणुरोधी गुण स्वत: पाए जाते हैं.

सुबह शौच जाने से पूर्व शहद के साथ बराबर मात्रा में नीबू का रस मिला कर कुनकुने जल के साथ सेवन करने से मोटापा घटता है, कब्ज दूर होता है तथा रक्त शुद्ध होता है.

गर्भावस्था के दौरान स्त्रियों द्वारा शहद का सेवन करने से पैदा होने वाला शिशु स्वस्थ तथा मानसिक दृष्टि से अन्य शिशुओं से बेहतर होता है.

त्वचा के जल जाने, कट जाने या छिल जाने पर भी शहद लगाने से लाभ मिलता है.

कंप्यूटर के सामने बैठ कर लंबे समय तक काम करने वाले व्यक्तियों को गाजर के रस के साथ 2 चम्मच शहद प्रतिदिन लेना चाहिए. इस से आंखें स्वस्थ रहती हैं तथा कार्य करते समय मन विचलित नहीं होता है.

उच्च रक्तचाप की अवस्था में लहसुन के रस के साथ बराबर मात्रा में शहद मिला कर लेने से रक्तचाप सामान्य हो जाता है.

शहद का नियमित सेवन एवं उचित उपयोग शरीर को स्वस्थ, बलवान, स्फूर्तिवान एवं ऊर्जावान बना कर व्यक्ति को दीर्घ जीवन देता है. अत: सभी आयुवर्ग के लोगों को प्रतिदिन नियमित रूप से 1 चम्मच शहद का सेवन अवश्य करना चाहिए.     

शुद्ध शहद की पहचान

शहद की शुद्धता की पहचान उस के रंग, गंध तथा स्वाद को क्रमश: देख कर, सूंघ कर तथा खा कर की जा सकती है. शहद को देखने पर यदि उस में किसी प्रकार की लकीरें न दिखें, सूंघने पर शहद की गंध मिले तथा चखने पर गले में खराश महसूस न हो तो शहद शुद्ध है. बाजार में ज्यादातर शहद चाशनी मिला कर बेचा जाता है. जहां तक संभव हो सके विश्वसनीय और प्रतिष्ठित दुकानों से ही शहद खरीदना चाहिए.

कांच के 1 साफ गिलास में पानी भर कर उस में शहद की 1 बूंद टपकाएं. यदि शहद तली में बैठ जाए तो शहद शुद्ध है और यदि तली में पहुंचने से पहले ही घुल जाए या फैल जाए तो शहद अशुद्ध या मिलावट वाला है.

शुद्ध शहद देखने में पारदर्शी होता है, जबकि मिलावटी शहद शुद्ध शहद की तुलना में कम पारदर्शी होता है.

शुद्ध शहद में मक्खी गिर कर फंसती नहीं है, बल्कि फड़फड़ा कर उड़ जाती है. मिलावटी शहद में मक्खी फंसी रह जाएगी. काफी कोशिश के बाद भी उड़ नहीं सकेगी.

शहद में बताशा डालने पर यदि बताशा न पिघले तो शहद शुद्ध होगा और यदि बताशा पिघलने लगे तो शहद अशुद्ध होगा.

शुद्ध शहद आंखों में लगाने पर थोड़ी जलन होगी पर चिपचिपाहट नहीं होगी और थोड़ी देर के बाद आंखों में ठंडक का एहसास होता है.

शहद की बूंदों को किसी लकड़ी अथवा धागे पर टपका कर आग में जलाने पर यदि शहद जलने लगे तो यह शुद्ध है और यदि न जले या चटचट की आवाज के साथ धीरेधीरे जले तो मिलावटी है.

शुद्ध शहद सुगंधित होता है, ठंड में जम जाता है और गरमी में पिघल जाता है, जबकि मिलावटी शहद हर समय एक ही तरह का रहता है.

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शुद्ध शहद यदि कुत्ते के सामने रख दिया जाए तो वह सूंघ कर उसे छोड़ देगा, जबकि मिलावटी शहद को कुत्ता चाटने लगेगा.

शीशे की प्लेट में शहद टपकाने पर यदि उस की आकृति सांप की कुंडली जैसी बन जाए तो शहद शुद्ध है. मिलावटी शहद प्लेट में गिरते ही फैल जाएगा.

शुद्ध शहद का दाग कपड़ों पर नहीं लगता है, जबकि मिलावटी शहद का दाग कपड़ों पर लग जाता है.

सावधानियां

शहद को गुड़, घी, शक्कर, मिस्री, पके कटहल, तेल, मांस, मछली इत्यादि के साथ नहीं खाना चाहिए.

खुले व कई वर्ष पुराने शहद का सेवन नहीं करना चाहिए.

कांच की टूटी शीशी से निकले शहद का प्रयोग नहीं करना चाहिए.

एक ही बार में अधिक मात्रा में शहद का सेवन करने से उदरशूल होने की संभावना रहती है.

शहद को कभी भी तेज आंच पर गरम नहीं करना चाहिए और न ही गरम व मसालेदार भोज्य पदार्थों में मिलाना चाहिए. शहद में कई प्रकार के पुष्पों के पराग मौजूद होते हैं, जिन में से कुछ विषाक्त भी होते हैं. शहद को गरम करने पर या गरम भोजन में मिलाने पर विषैले परागों की विषाक्तता बढ़ जाती है, जिस से शारीरिक संतुलन में बाधा उत्पन्न होती है

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एमसीयूजी और यूरोडायनैमिक जांच के कारण डर लग रहा है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी बेटी 7 साल की है और उस का वजन 33 किलोग्राम है. वह 3 सालों से मूत्रनली के संक्रमण से पीडि़त है. इस दौरान उसे बुखार या पेट में दर्द नहीं हुआ, लेकिन पिछले 2 हफ्तों से उसे दर्द रहने लगा है, जो पेशाब करने के 3-4 घंटों के बाद ठीक हो जाता है. जांच में पता चला है कि उसे ई. कोली बैक्टीरिया का संक्रमण है और डाक्टर ने उसे ऐंटीबायोटिक का कोर्स लेने को कहा है. ऐंटीबायोटिक में मौजूद नाइट्रोफ्यूरैंटोइन से उसे उलटी और पेट में जलन की शिकायत होती है. पेट के अल्ट्रासाउंड में सबकुछ सामान्य निकला है. उस के गुरदों और ब्लैडर की अवस्था भी ठीक है और ब्लैडर में अवशिष्ट पेशाब भी नहीं था. यूरोलौजिस्ट ने उपचार जारी रखते हुए एमसीयूजी तथा यूरोडायनैमिक जांच करवाने को कहा. बताएं, क्या करूं?

जवाब-

आप की जांच अपर्याप्त लगती है. इस में एमसीयूजी या यूरोडायनैमिक जांच की जरूरत नहीं है. लेकिन यूरोलौजिस्ट ने बच्ची को रोगनिरोधक ऐंटीबायोटिक देने की सही सलाह दी है. पेशाब की संवेदनशीलता और कल्चर जांच दोबारा करा लें. अगर रिपोर्ट जीवाणुरहित आती है तो रोगनिरोध के लिए अपने चिकित्सक की सलाह से ऐंटीबायोटिक लें. इस बीच उसे भरपूर पानी पीने को दें और जब भी महसूस हो तुरंत पेशाब करा लें. भरपूर पानी पीने से पेशाब की थैली में बैक्टीरिया का जमाव नहीं होगा.

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अगर आप अपने पार्टनर को काफी समय से सेक्‍स के लिए न कह रही हैं, तो यह चिंता का विषय हो सकता है. ये भी संभव है कि आपका पार्टनर सेक्‍स के प्रति आपका रुझान न होने की समस्‍या से परेशान हो. इसे  यौन अक्षमता भी कहा जाता है. इस शब्द का उपयोग किसी ऐसे व्यक्ति को परिभाषित करने के लिए किया जाता है जो अपने साथी को सेक्‍स के दौरान सहयोग नहीं करता. महिलाओं में एफएसडी होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे सेक्स के दौरान दर्द या मनोवैज्ञानिक कारण. ज्यादातर मामलों में, हालांकि, एफएसडी को मनोवैज्ञानिक कारणों के लिए जिम्मेदार माना जाता है. इस परिदृश्य में, महिलाओं के लिए किसी पेशेवर से मदद लेना महत्वपूर्ण होता है. डौ. अनुप धीर ने एफएसडी के निम्‍न  मुख्‍य कारण बताएं हैं-

1. मनोवैज्ञानिक कारण

डॉ. धीर कहते हैं, पुरुषों के लिए सेक्‍स एक शारीरिक मुद्दा हो सकता है, लेकिन महिलाओं के लिए यह एक भावनात्मक मुद्दा है. पिछले बुरे अनुभवों के कारण कुछ महिलाएं भावनात्मक रूप से टूट जाती हैं. वर्तमान में बुरे अनुभवों के कारण मनोवैज्ञानिक मुद्दे या फिर अवसाद इसका कारण हो सकता है.

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2. और्गेज्‍म तक न पहुंच पाना

एनोर्गस्मिया के बारे में समझाते हुए डॉ. धीर कहते हैं, एफएसडी का दूसरा भाग एनोर्गस्मिया कहलाता है. यह स्थिति तब होती है जब व्‍यक्ति को या तो कभी ऑर्गेज्‍म नहीं होता या वह कभी इस तक पहुंच ही नहीं पाता. ऑर्गेज्‍म तक पहुंचने में असमर्थता भी एक मेडिकल कंडीशन है. सेक्स में रुचि की कमी और ऑर्गेज्‍म तक पहुंचने में असमर्थता दोनों ही स्थिति गंभीर हैं. यह मुख्य रूप इसलिए होता है क्योंकि महिलाएं अधिक फोरप्ले पसंद करती हैं. अगर ऐसा नहीं हो रहा तो ऑर्गेज्‍म तक पहुंचना मुश्किल है. इसका मनोचिकित्सा के माध्यम से इलाज किया जा सकता है.महिलाओं को अपने रिश्ते में सेक्स के साथ समस्याएं होती हैं. अगर आपको ऐसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, तो आपको अपने एंड्रॉजिस्ट को जल्द से जल्द दिखाना चाहिए ताकि समस्या संबंधों को प्रभावित न करे.

जानें कब और कितना करें मेनोपौज के बाद HRT का सेवन

महिलाओं में प्राकृतिक रूप से मेनसेज 45 से 52 वर्ष की आयु में धीरेधीरे या फिर अचानक बंद हो जाता है. यह रजोनिवृत्ति मेनोपौज कहलाती है. मेनोपौज के दौरान अंडाशय से ऐस्ट्रोजन और कुछ हद तक प्रोजेस्टेरौन हारमोन का स्राव बंद होने के कारण अनेक शारीरिक एवं व्यावहारिक बदलाव होते हैं. विशेष रूप से ऐस्ट्रोजन हारमोन का स्राव बंद होने के कारण महिलाओं में अनेक समस्याएं हो सकती हैं. रजोनिवृत्ति के बाद ये समस्याएं पोस्ट मेनोपोजल सिंड्रोम (पीएमएस) कहलाती हैं. इन में स्तन छोटे होने लगते हैं और लटक जाते हैं, योनि सूखी रहती है, यौन संबंध बनाने में दर्द हो सकता है, चेहरे पर बाल निकल सकते हैं. मानसिक असंतुलन हो सकता है, जल्दी गुस्सा आ सकता है, तनावग्रस्त हो सकती हैं, हार्टअटैक का खतरा बढ़ सकता है व कार्यक्षमता घट सकती है.

पीएमएस का समाधान

पीएमएस के कारण जिन महिलाओं का दृष्टिकोण सकारात्मक होता है और जो खुश व संतुष्ट रहती हैं, उन्हें परेशानियां कम होती हैं. उन्हें किसी उपचार की जरूरत नहीं होती है. जिन महिलाओं को हलकी परेशानियां होती हैं, वे अपनी जीवनशैली में सुधार कर, समय पर भोजन कर, सक्रिय रह कर व नियमित व्यायाम कर इन से छुटकारा पा सकती हैं. जिन महिलाओं को गंभीर परेशानियां होती हैं उन्हें इन से छुटकारा पाने के लिए डाक्टर से बचाव और उपचार के लिए ऐस्ट्रोजन हारमोन या ऐस्ट्रोजन+प्रोजेस्टेरौन हारमोन के मिश्रण की गोलियों के नियमित सेवन की सलाह दे सकते हैं. यह उपचार विधि हारमोन रिप्लेसमैंट थेरैपी यानी एचआरटी कहलाती है. लेकिन इन गोलियों के लंबे समय तक सेवन के दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं. अत: रजोनिवृत्ति के बाद इन का सेवन करते समय क्या सावधानियां बरतनी चाहिए उन का पता होना चाहिए.

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एचआरटी के लाभ

रजोनिवृत्ति के बाद एचआरटी के सेवन से होने वाली हौटफ्लैशेज यानी शरीर में गरमी लगने से अटैक, पसीना आना, हृदय का तेजी से धड़कना आदि लक्षणों से राहत मिलती है.

हारमोन सेवन से योनि में बदलाव नहीं होता, वह सूखी नहीं होती और मिलन के समय रजोनिवृत्ति के बाद दर्द भी नहीं होता.

स्ट्रोजन हारमोन की कमी होने से योनि में संक्रमण आसानी से होता है. अत: एचआरटी सेवन से यौन संक्रमण से बचाव होता है.

रजोनिवृत्ति के बाद एचआरटी का सेवन मूत्र संक्रमण से भी बचाव करता है.

एचआरटी के सेवन से रजोनिवृत्ति के दौरान होने वाले मांसपेशियों, जोड़ों के दर्द, मांसपेशियों के पतला होने, शक्ति कम होने आदि समस्याओं से राहत मिलती है.

अनिद्रा, चिंता, अवसाद की समस्या भी एचआरटी के सेवन से कम हो जाती है और कार्यक्षमता बरकरार रहती है.

महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद हड्डियों की सघनता कम होने से औस्टियोपोरोसिस की समस्या हो सकती है. इस के कारण हड्डियों में दर्द होता है और वे हलकी चोट या झटके से भी टूट सकती हैं. एचआरटी सेवन से इन कष्टों, जटिलताओं की संभावना कम हो जाती है.

एचआरटी के सेवन से कार्यक्षमता, निर्णय लेने की क्षमता, एकाग्रता में कमी होने की संभावना भी कम हो जाती है.

रजोनिवृत्ति के बाद एचआरटी के सेवन से त्वचा की कोमलता, लावण्य और बालों की चमक बरकरार रहती है.

इन के सेवन से वृद्धावस्था में दांतों, आंखों में होने वाले बदलाव भी देरी से और मंद गति से होते हैं.

अध्ययनों से पता चला है कि एचआरटी का सेवन करने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर की संभावना कम हो जाती है. उन में आंतों के कैंसर व हृदय रोग का खतरा भी कम होता है.

एचआरटी के सेवन के दुष्प्रभाव

अकेले ऐस्ट्रोजन हारमोन सेवन से गर्भाशय कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. अत: यदि गर्भाशय मौजूद है, तो ऐस्ट्रोजन प्रोजेस्टेरौन मिश्रित गोलियों का सेवन करें. यदि औपरेशन से गर्भाशय निकाल दिया गया है तो अकेले ऐस्ट्रोजन हारमोन का सेवन करें.

एचआरटी के सेवन से रक्त वाहिनियों में रक्त थक्का बनने की संभावना बढ़ जाती है. यह किसी भी अंग में फंस कर रक्तप्रवाह को बाधित कर हार्टअटैक, पक्षाघात आदि का कारण बन सकता है.

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इस के सेवन से कुछ हद तक पित्ताशय में पथरी की संभावना भी बढ़ जाती है.

एचआरटी की न्यूनतम प्रभावी खुराक रजोनिवृत्ति के दौरान और बाद में होने वाली समस्याओं से बचाव के लिए सुरक्षित रूप से 5 वर्ष तक ली जा सकती है. फिर धीरेधीरे बंद कर दें.

रजोनिवृत्ति के बाद होने वाली समस्याओं से बचाव के लिए सिर्फ एचआरटी सेवन ही एकमात्र विकल्प नहीं है. रजोनिवृत्ति के दौरान और बाद में पर्याप्त मात्रा में ऐसा संतुलित भोजन करें, जिस में कैल्सियम प्रचुर मात्रा में हो. इस के अलावा मल्टीविटामिन के कैप्सूल्स और विटामिन डी का सेवन करें.

Arthritis: गलत व ओवर एक्सरसाइज से बचें 

अर्थोरिटिस एक ऐसी स्थिति है, जिसमें जोड़ों में दर्द और सूजन आने लगती है. अगर बात करें भारत की तो यहां 40 – 50 साल की महिलाएं सबसे ज्यादा इस बीमारी की गिरफ्त में आती हैं. खासकर के वो जो मोटापे से ग्रसित हैं. इस बीमारी में सबसे ज्यादा घुटनों , हिप व हाथ के जोइंट प्रभावित होते हैं. अभी हाल के वर्षों में इस बीमारी में तेजी से बढ़ोतरी देखी गई  है, जिसके पीछे हमारे इनएक्टिव लाइफस्टाइल व मोटापे को जिम्मेदार माना जा रहा है. जबकि इसके अन्य कारणों में जोड़ों में खराबी होना, बढ़ती उम्र, जेनेटिक व ऑटो इम्यून डिसऑर्डर्स आदि को जिम्मेदार माना जाता है. इसलिए इसे समय रहते लाइफस्टाइल व इलाज से कंट्रोल करना जरूरी है, वरना स्थिति को गंभीर होने में देर नहीं लगती. इस संबंध में बता रहे हैं बेंगलुरु के यशसवंतपुर स्तिथ  मणिपाल होस्पिटल के कंसलटेंट ओर्थोपेडिक सर्जन डाक्टर किरण चौका.

एक्सरसाइज का महत्व 

एक्सरसाइज जहां हमें फ्रेश, एक्टिव व हैल्दी रखने का काम करती है, वहीं ये हमारी मांसपेशियों व हड्डियों को भी मजबूती प्रदान करने में मददगार है. कई बार जब सर्जरी व दवाइयों से भी आराम नहीं मिलता है, तब डाइट व खुद को शारीरिक रूप से एक्टिव रखने पर अर्थोरिटिस के मरीजों को बहुत आराम मिलता है. इसलिए एक्सपर्ट भी मरीज की स्थिति को देखते हुए हर हफ्ते कम से कम 150 मिनट योग, रेंज ओफ मोशन , एरोबिक करने की सलाह देते हैं , ताकि शरीर फ्लेक्सिबल बने व हड्डियों को मजबूती मिले. बता दें कि अर्थोरिटिस के मरीजों के लिए एक्सरसाइज करने के और भी कई फायदे हैं , जो इस प्रकार से हैं.

–  कार्टिलेज की हैल्थ बहुत हद तक एक्सरसाइज करने या फिर चलनेफिरने पर निर्भर करती है. क्योंकि इसके कारण जोड़ों को जरूरत के मुताबिक ओक्सीजन व जरूरी न्यूट्रिएंट्स जो मिल पाते हैं.

– एक्सरसाइज मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करने के साथ उन्हें लचीला बनाने का काम करती है. साथ ही इससे जोड़ों में दर्द की शिकायत भी कम महसूस होती है.

–   रोजाना एक्सरसाइज करने से वजन कम होता है, जिससे जोइंट्स पर पड़ने वाला तनाव खुद ब खुद कम होने लगता है.

– इससे अच्छी नींद आने के साथसाथ थकान महसूस नहीं होती है.

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अर्थोरिटिस में ओवर एक्सरसाइज  के नुकसान 

अर्थोरिटिस में एक्सरसाइज करना अच्छी बात है. लेकिन अगर जरूरत से ज्यादा व बिना सोचेसमझे एक्सरसाइज करेंगे तो इसका नुकसान भी आपको भुगतना पड़ सकता है. इसलिए सही डाइट , जिससे हड्डियों को मजबूती मिले और वजन कम करने के लिए सही तरह से व्यायाम करना लाभकारी साबित होता है. जरूरत से ज्यादा एक्सरसाइज करने से दर्द में बढ़ोतरी, सूजन व जोड़ों की हालत और ख़राब हो सकती है. यही नहीं बल्कि आपको लंबे समय तक चलने वाली थकान , कमजोरी, चलने में दिक्कत महसूस होना व जोड़ों में सूजन की शिकायत महसूस हो सकती है. अर्थोरिटिस के मरीजों को कई बार तो अधिक एक्सरसाइज करने से फ्रैक्चर, सर्जरी या फिर परमानेंट विकलांगता की स्थिति भी आ सकती है. इसलिए ओवर एक्सरसाइज से बचें.

टिप्स फोर एक्सरसाइज 

एक्सपर्ट की सलाह लें परिस्थिति में सुधार लाने हेतु एक्सपर्ट की सलाह के अनुसार ही जोड़ों की हेल्थ के अनुसार ही एक्सरसाइज करें. जिससे आपको इम्प्रूवमेंट दिखे. अगर आप हैल्थ केयर प्रोवाइडर या फिर फिजिकल थेरेपिस्ट की मदद लेकर उनकी सलाह के मुताबिक एक्सरसाइज करेंगे तो आपको ज्यादा फायदा मिलेगा. आपके डाक्टर अर्थोरिटिस की स्थिति में विशेष तरह का स्कैन जिसे डेक्सा कहते हैं , करवाने की सलाह देते हैं. क्योंकि इस स्कैन के द्वारा आपके बोन मिनरल डेंसिटी को समझ कर आपको फ्रैक्चर होने का कितना खतरा है, इसके आधार पर ही एक्सरसाइज बताई जाती है.

धीरेधीरे बढ़ें याद रखें कि हर एक दूसरा दिन आपको चांस मिलता है, जो सुधार के लिए होना चाहिए न की दर्द या फिर खुद के शरीर को नुकसान पहुंचाने के लिए.  इसलिए एक्सरसाइज को धीरेधीरे बढ़ाएं, जिससे आपके शरीर को इन बदलावों की आदत हो जाए. केवल खुद से वजन घटाने का निर्णय लेकर सीढ़ियां चढ़ने , उतरने जैसी एक्सरसाइज करके आप अर्थोरिटिस की स्तिथि में अपने जोइंट्स को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

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–  पहले वार्मअप करें एक्सरसाइज करने से पहले अपनी मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करने के लिए शरीर को वार्मअप जरूर करें.

लो इम्पेक्ट एक्सरसाइज का चयन करें  वॉक , साइकिलिंग, स्विमिंग, योगा , स्ट्रेचिंग इत्यादि अर्थोरिटिस के लिए बेस्ट एक्सरसाइज हैं. जबकि ऑस्टियोपोरोसिस के मरीजों के लिए हलकी एक्सरसाइज ही सही रहती है. क्योंकि उनके लिए इंजरी काफी घातक साबित हो सकती है.

अपनी डाइट का भी खयाल रखें  कैलोरी को कम करने से न सिर्फ जोड़ों से लोड कम होता है, बल्कि इससे आपको ज्यादा वर्कआउट की भी जरूरत नहीं होती है. इसके अलावा हेल्दी डाइट के साथ एक्सरसाइज करने से बोन डेंसिटी इम्प्रूव होने के साथ मांसपेशियों को मजबूती मिलती है. खाने में फल, सब्जियां , ओमेगा 3 फैटी एसिड रिच फ़ूड जैसे सीड्स इत्यादि लेने से सूजन व दर्द को कम करने में मदद मिलती है. साथ ही विटामिन सी युक्त चीजों के सेवन से कोलेजन के बढ़ने में मदद मिलती है. वहीं कैल्शियम व विटामिन डी अर्थोरिटिस की स्थिति में हड्डियों को मजबूती प्रदान करने में काफी मददगार होता है.

मैडिकल टैस्ट क्यों जरूरी

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में जब लोग अपने शरीर का अच्छे से ध्यान नहीं रख पाते, तो कई बीमारियां उन के शरीर में घर कर जाती हैं, जिन्हें समय रहते अगर पकड़ लिया जाए, तो आने वाले जीवन में तकलीफों से बचा जा सकता है. लोगों का यह सोचना है कि रैग्युलर मैडिकल चैकअप सिर्फ बड़ी उम्र के लोगों के लिए होता है, लेकिन सच तो यह है कि 25 की उम्र होते ही इंसान को एक बार अपने पूरे शरीर का चैकअप करवा लेना चाहिए.

मैडिकल टैस्ट करवाने से हमें क्या फायदे होते हैं आइए उसे भी जानते हैं:

ब्लड टैस्ट: किसी भी बीमारी के इलाज से बेहतर होती है उस की रोकथाम. यदि समय से उस की रोकथाम कर ली जाए, तो आने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है. इस के लिए सब से जरूरी होता है ब्लड टैस्ट. एक ब्लड टैस्ट हमें होने वाली बहुत सी बीमारियों के बारे में बता सकता है. कई लोग साल में 3 बार अपना रूटीन चैकअप करवाना पसंद करते हैं ताकि उन को आने वाली किसी भी बीमारी के बारे में पता चल जाए. यही नहीं, यदि आप मां बनने वाली हैं तो उस समय भी आप के लिए ब्लड टैस्ट करवाना बहुत जरूरी है ताकि आप की और आप के आने वाले बच्चे की सेहत का अच्छे से खयाल रखा जा सके.

हीमोग्राम: हीमोग्राम या कंप्लीट ब्लड काउंट कई बीमारियों की जांच में मदद करता है जैसे ऐनीमिया, संक्रमण आदि. यह टैस्ट विकारों की जांच करने के लिए एक व्यापक स्क्रीनिंग परीक्षा के रूप में प्रयोग किया जाता है. यह वास्तव में रक्त के विभिन्न भागों को जांचने में मदद करता है.

किडनी फंक्शन टैस्ट: अगर हमारे शरीर में हमारी दोनों किडनियां सही ढंग से काम कर रही हों तो वे हमारे खून में मिल रही गंदगी को साफ कर देती हैं. लेकिन अगर वे खराब हो जाएं, तो हमारे शरीर में कई सारी दिक्कतें आ जाती हैं. किडनी फंक्शन टैस्ट से हमें पता चलता है कि वे सही ढंग से काम कर रही हैं या नहीं.

लिवर फंक्शन टैस्ट: लिवर फंक्शन टैस्ट एक टाइप का ब्लड टैस्ट होता है, जिस के द्वारा लिवर में हो रही सभी दिक्कतों का पता लगाया जाता है.

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ब्लड काउंट: यह एक ऐसा टैस्ट होता  है जिस के द्वारा हमारे शरीर के व्हाइट ब्लड सैल्स और रैड ब्लड सैल्स को काउंट किया जाता है.

ब्लड शुगर टैस्ट: यह टैस्ट मधुमेह के रोगियों के लिए बहुत जरूरी है. इस के लक्षण बहुत ही आम हैं जैसे कमजोरी आना, पैरों में दर्द, वजन कम होना, हड्डियां कमजोर होना. अगर मधुमेह के किसी रोगी को चोट लगे तो वह जल्दी ठीक नहीं हो पाती. अगर समय से टैस्ट करवा लिया जाए तो व्यक्ति अपने खानेपीने का ध्यान रख सकता है.

चैस्ट ऐक्सरे: चैस्ट का ऐक्सरे करवाने से हमें छाती से जुड़ी प्रौब्लम्स का पता चलता है जैसे फेफड़ों की तकलीफ, दिल से जुड़ी बीमारियां आदि.

टोटल लिपिड प्रोफाइल: टोटल लिपिड प्रोफाइल भी एक प्रकार का ब्लड टैस्ट होता है, जिस के द्वारा कई बीमारियों का पता लगाया जाता है जैसे कोलैस्ट्रौल, जैनेटिक डिसऔर्डर, कार्डियोवैस्क्यूलर डिजीज, पैंक्रिआइटिस आदि.

यूरिन और स्टूल रूटीन ऐग्जामिनेशन: यूरिन और स्टूल रूटीन ऐग्जामिनेशन से मधुमेह जैसे रोगों का भी पता चलता है.

ई.सी.जी.: ई.सी.जी. के द्वारा हमें दिल की कई बीमारियों का पता चलता है.

सभी टैस्ट करवाने से पहले एक बार डाक्टर की सलाह जरूर लें और अगर डाक्टर कहे तो पेट का अल्ट्रासाउंड और थायराइड प्रोफाइल टैस्ट भी जरूर करवाएं. यदि किसी का ब्लडप्रैशर कम रहता हो, भूख न लगती हो और पेट में दर्द रहता हो तो उसे तुरंत ही डाक्टर से संपर्क करना चाहिए, चाहे वह किसी भी उम्र का हो. एक बार ये सभी टैस्ट करवाने के बाद 5 साल में एक बार इन सभी टैस्ट को दोबारा करवाना चाहिए और बीमारी या बीमारी से जुड़ा कोई भी लक्षण हो तो तुरंत ही डाक्टर से संपर्क करना चाहिए. खुद ही डाक्टर बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

इस के बाद 40 की उम्र में प्रवेश करते ही ये सभी टैस्ट हर 2 वर्ष में करवाने चाहिए, क्योंकि इस उम्र में शरीर थोड़ा कमजोर होने लगता है और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. इस के साथ ही जैसेजैसे उम्र बढ़ती जाती है हमारी हड्डियां कमजोर होने लगती हैं, इसलिए औरतों को बोन डैंसिटी चैकअप करवाना शुरू कर देना चाहिए. इस उम्र में अपने सभी रैग्युलर टैस्ट के साथसाथ टे्रडमिल टैस्ट (टी.एम.टी) और ईको कार्डियोग्राफी (ईको) करवाना भी आवश्यक है, क्योंकि इस उम्र में हमारी हड्डियों के साथसाथ हमारा दिल भी कमजोर होने लगता है.

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औरतों को 40 से 45 की उम्र में अपना हारमोनल टैस्ट भी करवा लेना चाहिए, क्योंकि इस उम्र में बहुतों को मेनोपौज आ जाता है, जिस के साथ शरीर के हारमोंस में भी कई तरह के बदलाव आते हैं. ऐसे ही जब 50 की उम्र में आ जाए तो ये सब टैस्ट हर वर्ष करवाने चाहिए. इन सभी टैस्ट के साथसाथ पुरुषों के लिए इस उम्र में प्रोस्टेट टैस्ट करवाना भी जरूरी है. अपना रूटीन चैकअप करवाने से हम आने वाली बीमारियों के प्रति सतर्क तो रहते ही हैं, भविष्य में होने वाली कई तकलीफों से भी बच जाते हैं.                 

  -डा. अनुराग सक्सेना प्राइमस सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल

जानें एक्ट्रेस फ्लोरा सैनी के फिटनेस मंत्र

हिंदी, तमिल, तेलगू, कन्नड़ फिल्मों में काम करने के अलावा ऑल्ट बालाजी की सबसे बोल्ड वेब सीरीज ‘गंदी बात’ के 5वें सीजन से धमाल मचाने वाली ग्लैमरस एक्ट्रेस फ्लोरा सैनी सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती है. अक्सर अपनी बोल्ड और सेक्सी फोटोज शेयर करती रहती है. हाल ही में उन्होंने वीमेंस डे के मौके पर महिलाओं को फिट रहने के अपने पर्सनल सीक्रेट्स शेयर किए है. उनके फिट रहने का राज क्या है बताते है उन्ही की जुबानी.

एक्ट्रेस फ्लोरा सैनी का फिटनेस मंत्र-

1.वीमेंस डे आने वाला है इस मौके पर महिलाओं को क्या संदेश देना चाहती है?

मैं ये ही कहना चाहती हूं महिलाएं बहुत ही स्ट्रांग है , सुपर वीमेंस है. अपने आप को किसी के कहने पर कभी कम मत समझना, सारे आदमियों की जितनी भी पोस्ट है उन पर कब्जा करना, सबको दिखा देना आप कितना अच्छा कर सकती हो. यंग लड़कियों के लिए इंस्प्रेशन बनना. महिलाओं के लिए वर्क लाइफ और प्रोफेशनल लाइफ दोंनो को बैलेंस करना आसान नही है बिग सेल्यूट आल द वीमेंस.

2.आपकी नजर में महिलाओं के लिए हेल्थ अवेरनेस होना कितना जरूरी है?

मेरे नजरिए में महिलाओं, पुरुषों और बच्चों , सभी के लिए हेल्थ अवेरनेस होना जरूरी है. पहले  हमारे समय में प्ले ग्राउंड होते थे उस समय बच्चे खेलते थे. पर अब सब चेंज हो चुका है. आजकल के बच्चे अपना  समय मोबाइल या फिर गेम पर ज्यादा बिताते  है. इसलिए  बहुत जरूरी है कि बच्चों को अधिक से अधिक एक्टिवेटी में शामिल करें. महिलाएं अगर अपने लिए टाइम नहीं निकाल पा रहीं हैं तो वह घर के काम करके भी अपने को फिट रख सकती हैं. अपने घर को साफ करके जो वर्क आउट होता है उससे बढ़िया कुछ हो ही नहीं सकता.

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3.महिलाओं को ऐसी कौन सी 5 चीजें स्ट्रांग बनाती है?

मुझे 5 चीजे तो नही पता बट महिलाएं, आदमियों के मुकाबले ज्यादा स्ट्रांग है. मेरी मम्मी कहती है आदमियों को जब स्ट्रेस होता है तो उन्हें कुछ न कुछ सहारे की जरूरत होती है वो स्ट्रेस में सिगरेट और शराब का सहारा लेते है लेकिन महिलाओं को इन सब चीजों की जरूरत नहीं होती है. हमारी नानी, दादी, मां और बहनों ने कम पैसों में भी घर चलाया है. बहुत सारे बच्चों को एक साथ एजुकेट किया है. महिलाएं बनी ही स्ट्रांग है. जो अपने अंदर से एक बच्चे को निकाल सकती है वो कुछ भी कर सकती है. उसकी लाइफ में कुछ भी हो जाए वो दोबारा उसे फिर से शुरू कर सकती है. महिलाओं की स्ट्रेंथ ही उसकी खूबसूरती है.

4- लॉक डाउन बहुत लंबा सफर रहा जिसका असर मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत पड़ा है आप इससे बाहर कैसे निकली?

लॉक डाउन लंबा सफर जरूर था थैंकफुली मैं अपना ऐप चला रही थी तो मैं मेंटली काफी बिजी थी. मैंने बहुत सारे लोगों को एडवाइज जरूर दी जिन्हें डिप्रेशन हुआ, अकेलापन महसूस हुआ. आजकल की लाइफ डिजिटल ज्यादा हो गई है लोग आपस में कम मिलते है डिजिटली फोन पर सोशल मीडिया के जरिए ज्यादा टच में रहते है तो लॉक डाउन एक क्रेच कोर्स था. हमें ये रिलाइज करने के लिए की ह्यूमेन इमोशन को मत भूले एक दूसरे से मिलना, गले लगाना सिंपल सी चीज है इसमें कितनी हीलिंग है.

मेरी 3 चीजे जो लॉक डाउन से रिलेटेड है जिससे आपको जिंदगी में किसी भी चीज से मेंटल स्ट्रेस नही होगा. एक तो मीठा खाएं, मीठा खा कर अपना गम भूल जाएं, जो मीठा खाता है तो हैप्पी हार्मोन्स आते है. दूसरा अच्छा गाना लगाएं तो आटोमेटेकली आपको लगेगा कि अच्छे गाने पर डांस करू और जो आदमी डांस करेगा तो वह बिना स्माइल किये रहेगा नही,  उसे डिप्रेशन होएगा नही और तीसरा अच्छे दोस्तों से बात करना यानी खुशमिजाज दोस्त जो पॉजिटिव वाइवज वाले हो, आज के समय मैं हंसी, ख़ुशी और मुस्कुराहट ही सबसे बड़ा खजाना है जिससे आपके दिमाग में निगेटिव ख्याल ही नही आते है.

5.बॉडी को फिट रखने के लिए दिन की शुरुआत किस तरह करतीं है?

मेरे दिन की शुरुआत बुलेट कॉफी से होती है. आप भी सोच रहें होंगे कि आख़िर  बुलेट कॉफी है क्या? तो मैं आपको बता दूं कि ये नॉर्मल ब्लैक कॉफी का

थोड़ा हाईटेक वर्जन है, जिसमें घी और कोकोनेट  ऑयल डाला जाता है . ये पीने में बहुत टेस्टी होता है. मैं इसे अपने तरीके से टेस्टी बनाती हूं. इसको पीने के बाद काफी देर तक भूख नहीं लगती क्योंकि ये हैवी होती है.पर  मैं जब शूट पर होती हूं तो एक कड़क मसाला चाय पीती हूं.

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6.योग या एक्सरसाइज में क्या करना पसंद करती है?

ये मेरे मूड पर डिपेंड करता है उस समय स्ट्रेसफुल डे है कैसा दिन है. मुझे डांस करना पसंद है. अगर मैं  शूट पर होती हूं तो शॉट के बीच में डायलॉग याद करते हुए चलती रहती हूं इससे मेरी वॉक होती रहती है.

7- फिट रहने के लिए रुटीन फालो करने के क्या नियम है?

फिट रहने के लिए रूटीन को फॉलो करना बहुत जरूरी होता है पर लोग ऐसा नहीं कर पाते. अकसर देखने को  मिलता है कि न्यू ईयर पर लोग फिट रहने का रेसलूशन लेते हैं पर थोड़े दिन बाद ब्रेक हो जाता है. ऐसा ना हो इसके लिये बहुत जरूरी है कि रूटीन को ब्रेक ना होने दें.

8.आप वेजिटेरियन है या नॉन वेजिटेरियन डाइट में क्या लेती है. डाइट प्लान क्या है?

वैसे तो मैं नॉन वेजिटेरियन हूं मगर मुझे वेजिटेरियन खाना बहुत पसंद है. अगर मुझे ऑप्शन दिया जाए तो मैं वेजिटेरियन खाना ही पसंद करती हूं. मुझे लगता है कि यह बहुत कंपलीट खाना है. वैसे अभी तो मैं स्ट्रिक्ट डाइट पर हूं तो चिकन और सैलिड बहुत जरूरी है मेरी डाइट में. वेजिटेरियन में अगर  मुझे ऑप्शन दिया जाए तो मैं इडली की बहुत बड़ी फैन हूं.

5 फैक्ट्स अबाउट बेबी मसाज

किसी भी शिशु के स्वस्थ जीवन की नींव उसे बचपन में मिलने वाली मजबूत व पौष्टिक औयल मसाज से होती है. आइए, जानते हैं बेबी मसाज के फायदों के बारे में:

रिलैक्स योर बेबी

जिस तरह आप को पार्लर में जा कर हैड मसाज, फुल बौडी मसाज लेने से काफी रिलैक्स व अच्छा फील होता है, आप खुद को स्ट्रैसफ्री महसूस करती हैं ठीक उसी तरह आप के बेबी को भी मसाज से काफी रिलैक्स फील होगा और इस से उस की मांसपेशियां व हड्डियां भी मजबूत बनेंगी क्योंकि मसाज करने से बच्चे में फील गुड नामक हारमोन रिलीज होता है, जो बच्चे को शांत रखने के साथसाथ उसे अंदर से खुश रखने का भी काम करता है. जिस से उस का चिड़चिड़ापन दूर होता है और वह रिलैक्स हो कर सोता है, खेलता है, जिस से आप भी उस के साथ ऐंजौय कर पाती हैं.

विकास में मददगार

मसाज से बच्चे की इम्यूनिटी बूस्ट होने के साथसाथ वजन बढ़ने में भी मदद मिलती है क्योंकि जब आप अपने स्पर्श से अपने बेबी की मसाज करती हैं तो उस से उस के इंटरनल सिस्टम में स्फूर्ति पैदा होने के साथसाथ ब्लड सर्कुलेशन में भी बढ़ोतरी होती है.

साथ ही आप इस के द्वारा अपने बच्चे के शरीर में मायलीनेशन की प्रक्रिया को तेज व सक्रिय बनाते हैं, जो आप के शिशु के ब्रेन व बौडी को सिगनल देने का काम करता है. यह आप के बच्चे में बोलने, समझने का विकास करने में मदद करता है.

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फैक्ट्स अबाउट बौडी पार्ट्स मसाज

बैली मसाज: अगर आप के बच्चे को कब्ज या फिर पाचन में किसी भी तरह की कोई दिक्कत हो, तो बैली मसाज से पाचन संबंधित दिक्कतों से नजात मिलता है, जिस से बच्चा चैन की नींद भी सो पाता है.

आर्म्स मसाज: इस से मांसपेशियों में मजबूती आने से बच्चे के हाथों में तेजी से मूवमैंट आने लगती है.

लेग्स मसाज: इस में थाईज मसाज भी शामिल है. इस से हड्डियां स्ट्रौंग बनने के साथसाथ पैरों व बौडी मूवमैंट में भी सुधार आता है.

चैस्ट मसाज: इस से बच्चे को गरमाहट मिलने से उसे कफ, कोल्ड की शिकायत नहीं होती है.

फेस मसाज: यह चेहरे की डाइनैस को दूर कर स्किन टैक्स्चर को इंप्रूव करती है.

हैड मसाज: यह मस्तिष्क के विकास व स्ट्रैस को दूर करने के साथसाथ बेबी स्लीप को ठीक करने का काम भी करती है. इस से ब्लड सर्कुलेशन भी इंपू्रव होता है.

बैक मसाज: यह हड्डियों को मजबूत बनाती है.

बिल्ट ए स्ट्रौंग बौंडिंग

जब आप उस की आंखों में आंखें डाल कर, गुनगुनाते हुए, उसे सहलाते हुए उस की मसाज करती हैं, तो उस में आप के हाथों की खुशबू बसने के साथसाथ स्मैल सैंस विकसित होने के साथसाथ एक बहुत ही मजबूत बौंडिंग का विकास होता है, जो बहुत ही सुंदर एहसास देने का काम करता है.

बेबी स्किन में इंपू्रवमैंट

नवजात की स्किन जन्म के बाद रंग व टैक्स्चर में भिन्न होती है, जो धीरेधीरे अपनी नैचुरल स्किन टोन में आने में समय लेती है. नवजातों की स्किन टोन लाइट पिंक कलर का होती है, जो उन का रियल कंप्लैक्सन नहीं होता है. यह पिंकिश टोन ब्लड वैसल्स के कारण होती है, जो बच्चे की पतली त्वचा के माध्यम से दिखाई देती है, लेकिन धीरेधीरे यह मसाज व फीडिंग से बच्चे की खुद की स्किन में सैटल हो कर उस का खुद का स्किन कलर दिखाई देने लगता है.

लगातार बेबी मसाज करने से स्किन का कलर नहीं बल्कि उस का टैक्स्चर इंप्रूव होने लगता है क्योंकि बेबी औयल से स्किन ऐक्सफौलिएट होने से स्किन को नैचुरल मौइस्चर व शाइन मिलती है. साथ ही स्किन की ड्रायनैस भी दूर होती है.

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