बेवफा पति: जब रंगे हाथ पकड़े पत्नी

हाल ही में एक वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ. इस वीडियो में एक महिला अपने पति को रंगे हाथों दूसरी के साथ पकड़ लेती है और फिर उस का जो रिएक्शन होता है वह देखने लायक है.

दरअसल उस महिला को शक था कि उस के पति का किसी के साथ अफेयर चल रहा है. इस वजह से उस ने अपने पति की गाड़ी का पीछा किया और मुंबई के पेडर रोड पर पति की रेंज रोवर गाड़ी को रोक दिया. गाड़ी में पति के साथ उस की प्रेमिका बैठी हुई थी. यह दृश्य देख कर महिला आपे से बाहर हो गई. अपनी गाड़ी पति की कार के आगे लगा कर वह पागलों की तरह चीखनेचिल्लाने लगी. गाड़ी के शीशे पीटने लगी. वह कार के बोनट पर चढ़ गई और जूते से कार के शीशे पर मारने लगी.

उस की इन हरकतों का अंजाम यह हुआ कि सड़क पर अच्छाखासा जाम लग गया. महिला का पति जब बाहर निकला तो महिला ने उस पर हमला कर दिया. मारपीट की नौबत आ गई. सड़क पर तमाशा बनता देख वहां मौजूद ट्रैफिक पुलिस ने चालान काटा और गाड़ी के साथ उन तीनों को पुलिस स्टेशन ले जाया गया. शांति भंग करने के लिए महिला को तलब किया गया.

इस सारी वारदात में गलती किस की है? पति को इस तरह तमाशा बन कर क्या मिला और उस महिला को भी बाद में अपनी इस वीडियो को देख कर क्या शर्म नहीं आ रही होगी?

सच तो यह है कि पति और पत्नी का रिश्ता बहुत ही निजी और कोमल होता है. आप अपने संबंधों की हकीकत सड़क पर लाएंगे तो तमाशा आप का ही बनेगा. सच यह भी है कि कोई भी महिला अपने पति को दूसरी औरत के साथ देखना बर्दाश्त नहीं कर सकती.

सालोंसाल जिस रिश्ते को उस ने अपना सब कुछ दिया, जो पति रोज उस के पास आता है, हमबिस्तर होता है और प्यार की बातें करता है, जिस पति और बच्चों के लिए उस महिला ने अपने शरीर और सुंदरता की चिंता छोड़ दी, जिस घर को सजाने में वह दिनरात लगी रहती है. यदि अचानक वही पति बेवफा निकले, घर छूटता हुआ और रिश्ता टूटता हुआ दिखे तो महिला की मानसिक स्थिति कैसी होगी इस की कल्पना कोई भी कर सकता है.

क्या बीतता है महिला के मन पर

सोशल वर्कर और साइकोलॉजिस्ट अनुजा कपूर कहती हैं कि जब स्त्री अपने पति को रंगे हाथों पकड़ती है तो सब से पहले तो एक अधूरापन उस के दिलोदिमाग पर हावी हो जाता है. वह सोचती है कि आखिर ऐसी क्या कमी रह गई थी जो पति को दूसरी की जरूरत पड़ गई.

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पति के साथ गुजारे हुए पुराने लम्हे उस के जेहन में उभरने लगते हैं. उसे याद आते हैं वे पल जब वह पति की बाहों में समा कर दुनिया जान भूल जाया करती थी. अब उसी पति की यादें उसे डंक की तरह चुभने लगती है.

महिला को भविष्य की चिंता भी सताने लगती है. घर टूटता हुआ दिखता है. बच्चे का भविष्य डगमगाता नजर आता है. उसे महसूस होता है जैसे वह पति के लिए महत्वपूर्ण नहीं रह गई. एक दूसरी औरत बन गई है. उस का आत्मविश्वास टूटने लगता है. असुरक्षा की भावना घर करने लगती है.

वह आगे की बात भी सोचती है कि उसे क्या फैसला लेना चाहिए. क्या वह तलाक लेगी? क्या अब उसे भी लंबी कानूनी प्रक्रिया के दौर से गुजरना पड़ेगा? उस की आर्थिक जरूरतें कैसे पूरी होंगी? यदि उस ने तलाक नहीं लिया तो क्या वह घरेलू हिंसा का शिकार बन जाएगी?

क्यों आती है यह परिस्थिति

कभी कभी महिला इस स्थिति के लिए खुद ही जिम्मेदार होती है. वह पति को जीवनसाथी कम और ड्राइवर, पैसे कमाने की मशीन या सेक्स ऑब्जेक्ट अधिक समझने लगती है. कई बार स्त्री की कुछ कमियां जैसे अधिक बोलना, गंदा रहना या फिर बेवकूफी वाली हरकतें करना और चौकेचूल्हे में सिमटे रहने की आदत पति के मन में विरक्ति पैदा करती है. ऐसे में दूसरी औरतों की तरफ उस का रुझान बढ़ जाता है.

यही नहीं पुरुषों को जब अपनी पत्नी में सेक्स अपील, खूबसूरती या कंफर्ट जोन की कमी दिखती है तो वे दूसरी औरतों की तरफ आकर्षित होते हैं. वे दूसरी औरत में अपनी महबूबा, हमराज या दोस्त तलाशते हैं.

नतीजा सुखद नहीं होता

दूसरी औरत की तरफ आगे बढ़ने वाले पुरुषों को खतरनाक परिणाम भुगतने पड़ते हैं. कभी न कभी असलियत पत्नी और परिवार वालों के आगे खुल ही जाती है. इस तरह पुरुष अपने ही घर में आग लगा लेते हैं. अपनी गृहस्थी जला बैठते हैं. मांबाप, रिश्तेदार और दोस्तों के आगे एक तरह से नंगे हो जाते हैं. अपने ही बच्चों की नजरों में गिर जाते हैं. दूसरी स्त्री उसे संभाल लेगी इस बात की कोई गारंटी नहीं होती. वे कानूनी प्रक्रिया के मकड़जाल में उलझ कर रह जाते हैं. मैंटेनेंस और कंपनसेशन के तौर पर एक लंबीचौड़ी रकम से हाथ धो बैठते हैं.

एक पुरुष जब पत्नी की कमी दूसरी औरतों से पूरा करने का प्रयास करता है तो दूसरी औरत के साथ बेशर्मी और नंगापन भी विरासत या दहेज़ के रूप में उस के जीवन में प्रवेश करते हैं. जब कोई पुरुष अपनी लक्ष्मण रेखा पार करता है तो एक तूफान आता है और हमेशा के लिए उस की जिंदगी में सन्नाटा पसर जाता है. उसे इस अवैध रिश्ते को खुद के आगे, मांबाप के आगे, जज और बच्चों के आगे जस्टिफाई करना पड़ता है.

स्पाइस ऑफ मैरिड लाइफ

दरअसल पुरुष की जिंदगी में दूसरी औरत तब आती है जब उस की जिंदगी से मैरिड लाइफ में मौजूद स्पाइस खत्म हो जाता है. यानी पतिपत्नी के रिश्ते के बीच में आकर्षण और चार्म नहीं रह जाता. पुरुष इसी स्पाइस को बाहर ढूंढने लगता है और जब वह इस कोशिश में अपनी लक्ष्मण रेखा लांघता है तो फिर दोबारा लौट कर नहीं आ पाता. एक बार बेवफाई साबित हो जाने पर स्त्री दोबारा पति पर विश्वास नहीं कर पाती. रिश्ते में जो दरार आती है वह दोबारा भर नहीं पाती.

स्त्री को लगता है कि जिस पुरुष के लिए उस ने इतना कुछ किया, अपना शरीर, जवानी ,करियर, वक्त सबकुछ दांव पर लगा दिया वही पति अब खूबसूरती और जवानी की तलाश में दूसरों के पास जा रहा है. यह जो थप्पड़ महिला के मुंह पर पड़ता है वह उसे बर्दाश्त नहीं कर पाती और डिप्रेशन में चली जाती है. सुसाइड तक करने की नौबत आ जाती है.

कुछ भी हासिल नहीं होता

ऐसी घटनाओं के बाद घर टूट जाते हैं. दुनिया में तमाशा बन जाता है. पतिपत्नी दोनों के ही जीवन से सुख, शांति और सुकून पूरी तरह गायब हो जाते हैं. बच्चों का भविष्य अधर में लटक कर रह जाता है.

बुढ़ापे में अकेलापन

बेवफाई का असली खामियाजा बाहर मुंह मारने वाले साथी को साठ साल की उम्र के बाद झेलना पड़ सकता है. इस उम्र में इंसान का शरीर थकने लगता है. ऐसे में पैसे या शारीरिक सुख के आधार पर बनाए गए रिश्ते काम नहीं आते. इस वक्त इंसान को सच्चे साथी और हमदर्द की जरूरत होती है और सच्चा साथी पत्नी से बढ़ कर कोई नहीं हो सकता. मगर बेवफा पुरुष के पास पत्नी नहीं होती. बच्चे भी मुंह मोड़ चुके होते हैं. इस वक्त कोई उस के साथ नहीं होता और उसे अकेलापन सालने लगता है. पश्चाताप की भावना मुखर हो उठती है. ऐसे में उस के ऊपर यह कहावत सटीक बैठती है , अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत..

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समय रहते करें चिंतन

ऐसे हालात लाने से बेहतर है कि पुरुष यह समझे कि यदि यही काम उस की पत्नी करती तो क्या वह उसे बर्दाश्त कर पाता?पुरुष को चाहिए कि यदि उसे पत्नी में कोई कमी दिख रही है तो ऐसी बात सीधा अपनी पत्नी से कहे. परिवार वालों से सलाह ले. मैरिज काउंसलर के पास जाए. न कि उस कमी की पूर्ति बाहर करने का प्रयास करें.

समस्या कोई भी हो पहले उसे सुलझाने का प्रयास करना चाहिए

पुरुषों को यह समझना पड़ेगा कि बेवफाई का रास्ता बहुत गंदा और नंगा है जिस पर चल कर कुछ हासिल नहीं होता. इसी तरह स्त्री को भी ध्यान में रखना चाहिए कि वह बच्चों, चौकाचूल्हा और गृहस्थी में इतनी व्यस्त न हो जाए कि पति को भुला बैठे.

पति की जरूरतों का भी ख़याल रखें. खुद को हमेशा फिट और स्मार्ट बनाएरखने का प्रयास करें. पति की महबूबा बनें न कि मजबूरी. साफ़ सुथरी, स्मार्ट महिलाएं सब को पसंद आती हैं. लटकीझटकी बहनजी टाइप की महिला न बनें. अपने ऊपर भी ध्यान दें और अपनी रोमांटिक लाइफ पर भी काम करती रहें.

क्योंकि रिश्ते अनमोल होते हैं…

क्या कभी आपने सोचा है कि जो लोग हर मुश्किल घड़ी में हमारा साथ देते हैं हम उन्हें कितना समय दे पाते हैं. क्या अपने जीवन में हम उनकी अहमियत को समझते हैं अगर हां तो कितना…हमें शायद ये लगता है कि ये तो हमारे अपने हैं कहां जाएंगे, लेकिन धीरे-धीरे वो कब और कैसे हमसे दूर होते जाते हैं हमें पता भी नहीं चलता. हमें ऐसा लगता है कि हम इनके लिए ही तो दिन रात मेहनत करते हैं काम करते हैं. शायद इसी बहाने के साथ हम एक ऐसी दुनिया की तरफ भागने लगते हैं जिसकी कोई सीमा नहीं.

हम क्यों भाग रहे हैं किसके लिए भाग रहे हैं कभी गौर से सोचते भी नहीं. रोज सुबह के बाद दिन, महीने और फिर साल…बस यूं ही गुजरते रहते हैं. जबकि असल में जिंदगी का मतलब भीड़ में भागना नहीं है. हां ये सच है कि हमारे लिए काम और सक्सेस दोनों जरूरी. इसके लिए हेल्दी कंपटीशन की भावना हमारे अंदर होनी चाहिए लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हम हमेशा काम को प्राथमिकता दें और परिवार को भूल जाएं. भई, जीवन में सब कुछ जरूरी है इसलिए काम और परिवार के बीच संतुलन बनाना बहुत महत्वपूर्ण है. आखिर, काम के नाम पर हमेशा आपके अपनों को ही कंप्रमाइज क्यों करना पड़े.

लॉकडाउन ने दी सबक

लॉकडाउन ने सबको परिवार की अहमियत हो सिखा ही दी. साथ ही हम सभी को यह सबक भी दिया कि जिंदगी में भले एक दोस्त हो लेकिन वह सच्चा हो. सिर्फ दिखावे के लिए सोशल मीडिया पर भीड़ बढ़ाने वाले रिश्तों से कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि रियल लाइफ में कितने लोग आपका साथ देते हैं इससे फर्क पड़ता है.

रिलेशनशिप बॉन्डिंग क्यों जरूरी है

डॉक्टर नेहा गुप्ता (मेदांता हॉस्पिटल गुड़गांव) का कहना है कि, अगर अपने लोगों से बॉडिंग स्ट्रांग होती है तो हम मेंटली फिट रहते हैं और हमारी इम्यूनिटी भी स्ट्रांग होती है. आज के समय में रिश्ते लाइक और कमेंट में उलझ कर रह गए हैं. ऐसे में हमारे अहम रिश्ते दम तोड़ते जा रहे हैं और हम वर्चुअल दुनिया में ही खुशियां मना रहे हैं, जबकि यह झूठी और बनावटी दुनिया है.

बाद में पछताने से बेहतर है कि कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर अपने अनमोल रिश्तों को जीवन भर के लिए अपना बना लें. फिर चाहे वे आपके परिवार के सदस्य हों, दोस्त हों या ऑफिस के सहकर्मी. याद रखिए रिश्ते तोड़ना आसान हैं लेकिन इसके बाद के परिणामों का भुगतना मुश्किल होता है.

रिश्तों को मजबूत बनाने के टिप्स

माफी मांगने या माफ करने में न हिचकिचाएं

एक-दूसरे पर विश्‍वास करना सीखें

खुलकर बात करें चाहे वे माता-पिता हों या बच्चे

नोक-झोंक प्यार का हिस्सा हैं इन्हें दिल पर न लें

रिश्ते तोड़ने का ख्याल मन से निकाल दें

सहकर्मी के साथ मजबूत रिश्ते बनाने के टिप्स

खुद पहल करते हुए बातचीत शुरू करें और काम के अलावा भी एक-दूसरे को जानने की कोशिश करें.
अगर ऑफिस में कोई आपसे रिश्ता न रखना चाहे तो नकारात्मक राय न बनाएं और सिर्फ ऑफिस संबंधी कामों में ही उसकी मदद करें.

सहकर्मियों में कॉमन इंट्रेस्ट तलाशें इससे दोस्ती करने में काफी आसानी होती है.

कलीग्स से रिलेशन स्ट्रांग करने के लिए अपनी बड़े या छोटे पद को भूलकर सबसे एक समान फ्रेंडली व्यवहार करें.

जब भी किसी सहकर्मी को आपकी जरूरत पड़े तो बिना हिचकिचाए उसकी मदद करें.

पर्सलन और प्रोफेशनल लाइफ को बैलेंस करना है जरूरी

परिवार के सदस्यों, दोस्तों की अक्सर यही शिकायत रहती है कि हम उन्हें समय नहीं देते. जबकि हमें जब भी उनकी जरूरत होती है वे हमारे साथ होते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम घर और काम को बैलेंस करके नहीं चलते हैं.

समय को बर्बाद न करें

काम के समय को पर्सनल चीजों में न गवाएं वरना ऑफिस का काम आपके लिए बोझ बन जाएगा और तय समय में पूरा भी नहीं हो पाएगा. अगर ऑफिस के समय ही काम खत्म हो जाएगा तभी आप बिना किसी टेंशन के अपनी दूसरी जिम्मेदारियों को निभा पाएंगे.

जरूरत से ज्यादा बोझ पड़ेगा भारी

अगर आपको अपनी क्षमता पता है और संकोच के कारण काम के लिए मना नहीं कर पा रहे हैं तो इस आदत को बदल दीजिए. आप अपने सीनियर्स से विनम्रता के साथ कह सकते हैं कि पहले आप जो काम कर रहे हैं उसे खत्म करने के बाद नए काम को पूरा कर पाएंगे.

महत्त्व के हिसाब से प्राथमिकता तय करें

अगर आप अपनी वर्क लाइफ को बैलेंस करना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी प्राथमिकता तय करें. आपको रोज बहुत से काम करने होते हैं लेकिन आपको यह पता होता है कि कौन सा काम ज्यादा जरूरी है और किस काम को थोड़े समय के लिए टाला जा सकता है. इससे आपका दिमाग शांत रहेगा और काम भी हो जाएगा.

 जब पति फूहड़ कह मारपीट करने लगे

 किसी भी पति को अपनी पत्नी पर हाथ उठाने का हक नहीं होना चाहिए भले ही वह दावा करे कि उसे फूहड़ पत्नी मिली है, वह उस से परेशान है. किसी भी स्त्री को यह कह कर प्रताडि़त किया जाना बेहद शर्मनाक है.

एक छोटे से शहर की मेधा जब विवाह के बाद एक बड़े शहर में आई तो वह बहुत खुश थी. सुशिक्षित थी, सुंदर थी, पर पति को बातबात पर उसे फूहड़ कह कर अपमान करने की आदत थी.

मेधा बताती है, ‘‘मेरा पति विनोद मु झे फूहड़ कह कर ऐसीऐसी जलीकटी सुनाता है कि मेरा मन कराह उठता है. मैं छोटे शहर की हूं, यह तो उसे शादी के समय भी पता था. मेरे जीने के आसान तरीके उसे फूहड़ों वाले लगते हैं. कहता है कि तुम फूहड़ हो, मु झे तो डर लगता है कि तुम बच्चों को भी कैसे संभालोगी, तुम्हारे जैसी फूहड़ तो मां कहलाने के लायक भी नहीं होगी. सब मु झे ही देखना पड़ेगा.

‘‘वह मु झे फूहड़ कह कर सारा पैसा अपने पास रखता है. मु झे फूटी कौड़ी भी नहीं देता. अब तो फूहड़ कहने के साथसाथ हाथ भी उठाने लगा है. बेकार की बातों पर मेरा अपमान करना उस की आदत बन गई है. तभी तो बच्चे भी नहीं हुए. होंगे तो उन के सामने भी फूहड़ कह कर यही सब करेगा. सोच कर ही बहुत परेशान रहने लगी हूं.’’

सुमन को ड्राइविंग आती है पर उस का पति उसे कार को हाथ तक नहीं लगाने देता, कहता है कि तुम फूहड़ हो. सुमन बताती है कि शादी से पहले वह अपने पापा की कार चला कर आराम से घर के काम कर आती थी, मगर अब उस का पति कपिल वह कहां है, क्या कर रही है यानी उस की पलपल की खबर रखने के लिए बारबार फोन करता है. वह गलती से भी किसी बात पर अपनी राय जाहिर कर दे तो उस पर हाथ तक उठा देता है, इसीलिए अब वह अपने मन की बात जबान पर नहीं लाती.

किस ने दिया पिटाई का हक

अपनी पत्नी को फूहड़ कह कर उस पर हाथ उठाने वाला हर पति यह कहता है कि उस का इस में कोई कुसूर नहीं है पत्नी ही उसे गुस्सा दिलाती है. परिवार के दोस्त भी ऐसे पतियों की बातों में आ जाते हैं और मानने लगते हैं कि पत्नी ही फूहड़ होगी, जिस वजह से पति परेशान हो कर कभीकभी हाथ उठा देता होगा. मगर यह तो वही बात हुई कि उलटा चोर कोतवाल को डांटे यानी पत्नी मार भी सहे और अपने को फूहड़ कहलाए जाने की बदनामी भी  झेले, जबकि सच यह है कि मारपीट की शिकार पत्नी अपने पति को खुश रखने के लिए क्या कुछ नहीं करती. पति का पत्नी को मारना किसी भी हालत में उचित नहीं ठहराया जा सकता.

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पत्नी के साथ दुर्व्यवहार एक ऐसा मामला है, जिसे आसानी से नहीं सुल झाया जा सकता. ऐसी पत्नियों की मदद करने के लिए पहला कदम यह उठाया जा सकता है कि हम प्यार से उन की हर बात सुनें. हम यह याद रखें कि मारपीट की शिकार औरतों को यह बताना अकसर बहुत मुश्किल लगता है कि उन पर क्या बीत रही है. जैसेजैसे ये महिलाएं अपने हालात का सामना करना सीखती हैं, हर कदम पर उन की हिम्मत बंधाई जानी चाहिए. फिर चाहे ऐसा करने में कितना ही समय क्यों न लगे.

पत्नी ले सकती कानून की मदद

मारपीट की शिकार कुछ औरतों को शायद कानून की मदद लेने की जरूरत हो सकती है. कभीकभी बात हद से पार हो जाने पर पुलिस की दखलंदाजी पति को यह एहसास दिला सकती है कि उस की हरकत मामूली नहीं. उसे उस के किए पर शर्मिंदा किया जा सकता है. यह भी होता है कि मामला रफादफा होने पर ऐसा इंसान अकसर पश्चात्ताप या बदलने का कोई भी इरादा अपने मन से निकाल देता है.

ऐसे मामले में अंजलि अपना अच्छा अनुभव बहुत खुशी से शेयर करती हुई कहती है, ‘‘मेरी शादी हुई तो मैं सच में कई चीजों में बहुत फूहड़ थी. न खाना ठीक से बनाना आता था, न साफसफाई का शौक था. मेरे पति अजय को हर चीज ठीक से करने की आदत थी. उसे मु झ पर  झुं झलाहट होती, पर मैं  झट सौरी बोल कर काम में लग जाती और फिर वह प्यार से मु झे सिखाता चला गया और मैं सीखती चली गई. मेरी सासूमां ने भी मु झे कई चीजें बहुत प्यार से सिखाईं, वहीं अगर ससुराल में सब मु झे फूहड़ बताबता कर ताने मारते तो यकीनन अजय और मेरे संबंध काफी खराब होते. कई पति भी तो कई चीजों में अनाड़ी होते हैं, तब पत्नी भी तो उन के साथ खुशीखुशी ऐडजस्ट करती ही है न. फिर थोड़ाबहुत पति भी कर ले तो इस में क्या बुराई है.’’

सीमा अपना दुखद अनुभव शेयर करते हुए कहती है, ‘‘मु झे अपने पति को छोड़ने में 30 साल लगे. यह लंबा समय मैं ने सिर्फ यह सुनते हुए बिताया कि मैं फूहड़ हूं. बच्चे पूछते हैं कि मैं ने पहले क्यों नहीं अलग रहने के बारे में सोचा. मगर मैं सोचती थी कि बच्चों को कैसे पालूंगी? कहां ले कर जाऊंगी, पति न होने से मारपीट करने वाला पति ही ठीक है, पर आज सोचती हूं कि मैं कितनी गलत थी. अपनी लाइफ का कितना समय मैं ने दुखों में बिता दिया. हम कितने ही तरीकों से ऐसे रिश्ते में खुद को बांधे रहने में खुद को ही सम झाते रहते हैं, जबकि हाथ उठाने वाले पति को छोड़ने का एक यही कारण ही बहुत बड़ा है.’’

पेरैंट्स से न छिपाएं

अगर किसी भी पत्नी को फूहड़ कहकह कर उस पर हाथ उठाया जाता रहे तो उसे अपने पेरैंट्स से यह समस्या शेयर कर लेनी चाहिए और इस पर स्ट्रौंग ऐक्शन लेना चाहिए. कई बार पत्नी ही यह सोचने लगती है कि इस मारपीट की वही जिम्मेदार है. उसी ने अपने पति को गुस्सा दिलाया है. मगर यदि यह सिलसिला रुक न रहा हो तो पुलिस की हैल्प लेने की धमकी भी दें. अगर उसे यह सिर्फ धमकी लगे तो पुलिस की हैल्प लेने से पीछे न हटें. किसी भी सूरत में अपने साथ मारपीट न होने दें.

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पत्नी पर हाथ उठाने का कोई भी कारण बताया जाए, स्वीकार्य नहीं है. अगर पत्नी ने यह मारपीट रोकने के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया तो यह मारपीट कभी नहीं रुकेगी. एक स्त्री बहुत कुछ सहन कर लेती है. बचपन में भेदभाव, ससुराल के उलाहने सहने के बाद भी नहीं टूटती, पर वह तब टूट जाती है जब वह जिस के लिए सबकुछ छोड़ आती है, वही उस के साथ दुर्व्यवहार करता है.

जब किसी पुरूष का टूटता है दिल

जिंदादिल और दूसरों को हमेशा खुश रखने वाला समीर आजकल तनाव में रह रहा है. वह न तो किसी से ज्यादा बात करता है और न ही कहीं आताजाता है. औफिस से आते ही वह खुद को अपने कमरे में बंद कर लेता है. दरअसल, कुछ दिनों पहले उस का अपनी गर्लफ्रैंड से ब्रेकअप हो गया और जिस कारण वह तनाव में रहने लगा.

समीर का कहना है कि जब उस की गर्लफ्रैंड से उस का ब्रेकअप हुआ तो लगा मानो उस की पूरी दुनिया ही उजड़ गई. वह ब्रेकअप के दर्द से बाहर नहीं आ पा रहा है.

आज के संदर्भ में यह कहना गलत नहीं होगा कि व्यस्त जिंदगी के बीच रिश्ते भी बहुत तेजी से बदल रहे हैं. आज जितनी जल्दी लोगों को प्यार हो जाता है, उतनी ही जल्दी रिश्ते टूट भी जाते हैं.

लव अफेयर में जब ब्रेकअप होता है, तो इस का महिलाओं के जीवन में भी बहुत बुरा असर होता है. वे डिप्रैशन और असुरक्षा की भावना का शिकार हो जाती हैं. उन में उदासी घर कर जाती है. ब्रेकअप के कारण कई बार वे आत्महत्या तक कर लेती हैं, क्योंकि पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक भावुक और संवेदनशील होती हैं.

वहीं आमतौर पर यह माना जाता है कि पुरुषों पर ब्रेकअप का कुछ खास असर नहीं पड़ता. लेकिन ऐसा नहीं है. कई बार पुरुष भी ब्रेकअप से प्रभावित होते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि ब्रेकअप होने पर महिलाएं अपना दर्द व्यक्त कर पाती हैं, जिस से उन के दिल का बोझ कुछ कम हो जाता है, जबकि पुरुष अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं और ब्रेकअप के दर्द को अकेले ही झेलते हैं.

कई बार पुरुष ब्रेकअप से इस कदर टूट जाते हैं कि लोगों से मिलनाजुलना और यहां तक कि खानापीना तक छोड़ देते हैं. लेकिन लोग यह बात कम ही समझ पाते हैं.

ब्रेकअप का पुरुषों पर असर

जब किसी पुरूष का ब्रेकअप होता है, तो वे किस कदर इस से प्रभावित होते हैं, आइए जानते हैं :

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खुद को दोषी मानने लगना :

ब्रेकअप होने के बाद ज्यादातर पुरुष खुद को ही दोषी मानने लगते हैं. भले ही लोगों के सामने वे कुछ भी कह लें, पर मन ही मन ब्रेकअप के लिए खुद को ही जिम्मेदार मानने लगते हैं. ब्रेकअप के बाद पुरूष गहरे तनाव में आ जाते हैं. अधिक तनाव में रहने के कारण सोचनेसमझने की क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ने लगता है.  जो पुरुष अधिक संवेदनशील होते हैं, वे अपने पार्टनर की गलतियों को जानते हुए भी, उस की गलती न मान कर खुद को ही दोषी ठहरा देते हैं. ब्रेकअप के बाद ऐसे संवेदनशील लोग भीतर से टूट जाते हैं.

अकेलापन :

ब्रेकअप के बाद पुरूष अकेलापन महसूस करने लगते हैं और अपना दुख जाहिर नहीं कर पाते, जबकि महिलाएं अपने दिल का हाल दूसरों से शेयर कर लेती हैं. इस से उन का दर्द कम हो जाता है, पर पुरुषों के साथ ऐसा नहीं होता.

तनाव के शिकार हो जाते हैं :

ब्रेकअप के बाद तनाव और डिप्रैशन का शिकार सिर्फ महिलाएं ही नहीं होतीं, बल्कि पुरुष भी होते हैं. भले ही ब्रेकअप के तुरंत बाद कोई पुरूष खुद आजादी महसूस करता हो, पर धीरेधीरे वह अकेलापन और तनाव महसूस करना लगता है. वह शराबसिगरेट जैसी गलत लत का भी शिकार हो जाता है.

बारबार गलतियां दोहराते हैं :

पुरुष ब्रेकअप के बाद खुद को दोषी जरूर मानते हैं, लेकिन वे खुद में बिलकुल भी सुधार नहीं करते. जहां ब्रेकअप के बाद महिलाएं तुरंत किसी नए रिलेशनशिप में नहीं पड़ना चाहतीं, वहीं पुरुष ब्रेकअप के गम को भुलाने के लिए किसी दूसरे पार्टनर की तलाश में लग जाते हैं, जबकि कई बार यह तलाश सही साबित नहीं होती. अगर उन्हें कोई पार्टनर मिल भी जाता है तो ब्रेकअप के बाद  जल्दी उस पर भरोसा नहीं कर पाते और टाइमपास करने लगते हैं.

एक्स की याद में बेचैन हो जाना :

आमतौर यह देखा गया है कि ब्रेकअप के बाद भी ज्यादातर पुरुषों को यही उम्मीद रहती है कि उन की प्रेमिका फिर लौट कर उन के पास वापस आ जाएगी और इस के लिए वे प्रयास भी करते हैं. मौका मिलने पर वे अपनी ऐक्स से माफी भी मांग लेते हैं.

काम से लेते हैं ब्रैक :

कई पुरुष ब्रेकअप के बाद इतने दुख में डूब जाते हैं कि उन्हें कुछ करने का मन नहीं होता, यहां तक की औफिस में भी उन का मन नहीं लगता और वे काम से छुट्टी ले लेते हैं. लेकिन इस से भी उन्हें चैन नहीं मिलता, क्योंकि खाली बैठेबैठे फिर वही ब्रेकअप की बातें उन्हें परेशान करने लगती है और उन का दर्द घटने के बजाय और बढ़ने लगता है. वहीं महिलाएं मानसिक परेशानियों के बावजूद भी अपने काम बेहतर ढंग से करती रहती हैं.

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ब्रेकअप के दर्द से कैसे उबरें पुरुष

किसी भी रिश्ते को भुलाना आसान नहीं होता, उस से हमारी भावनाएं जुड़ी होती हैं. खासकर जब रिश्ता प्यार का हो. जब हम किसी अपने से अलग होते हैं, तो उस दर्द को बरदाश्त कर पाना आसान नहीं होता. हम उस रिश्ते से निकलना चाहते हैं, पर हमारी भावनाएं हम पर हावी रहती हैं और यही डिप्रैशन का कारण बनती है, क्योंकि हम उसे भुलाने की कोशिश करते हैं, पर बारबार उसी की याद आती है.

ऐसे में अकसर हम वे गलतियां कर जाते हैं जो हमें नहीं करनी चाहिए. जैसे बारबार हम अपने ऐक्स को फोन लगाते हैं, उसे मैसेज करने लगते हैं. कभी खुद को कमरे में बंद कर लेते हैं, तो कभी नशे में डूब जाते हैं, क्योंकि ब्रेकअप का वक्त बहुत बुरा होता है.

हम किसी से भावनात्मक रूप से इतने जुङ जाते हैं कि हमें उस की आदत लग जाती है और जब वह किसी कारणवश अचानक से साथ छोड़ जाए, तो यह हम से बरदाश्त  नहीं होता. लेकिन भलाई इसी में है कि इस सचाई को स्वीकार कर  जीवन में आगे बढ़ा जाए.

अकेले न रहें :

ब्रेकअप के बाद अकसर लोग अकेले रहना पसंद करते हैं. यह सही नहीं है. दोस्तों से मिलें, परिवार को समय दें, उन के साथ थोड़ा वक्त बिताएं. घूमने जाएं. इस से आप के मन को सुकून मिलेगा और आप खुश भी रहेंगे.

कैरियर पर ध्यान दें :

ब्रेकअप का असर कभी भी अपने कैरियर पर न पड़ने दें. अकसर लोग ब्रेकअप के बाद अपने काम में मन नहीं लगाते और पर्सनल के साथ प्रोफैशनल लाइफ भी खराब कर लेते हैं. यह गलती कतई न करें, क्योंकि जिसे आप के जीवन से जाना था वह चला गया. फायदा इसी में है कि उसे भूल जाएं और अपने काम पर फोकस करें.

खुद को दोष देना बंद करें :

आप का ब्रेकअप हुआ है, इस का यह मतलब नहीं कि सारी गलती आप की ही थी. हर इंसान का अपनाअपना स्वभाव होता है. हो सकता है कि आप दोनों का स्वभाव एकदूसरे से मेल नहीं खाता हो, इसलिए आप दोनों का ब्रेकअप हो गया. ‘यह तो एक दिन होना ही था’, ऐसा सोचिए और खुश हो जाइए कि जो कल होना था, आज हो गया. अपनी गलतियों से सीख लें और सैल्फ गिल्ट में न जाएं.

सकारात्मक सोचें :

यह सोचें कि जो हुआ अच्छा हुआ और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा. इसलिए हमेशा सकारात्मक सोच रखें.

समाजिक बनें :

खुद को अच्छा महसूस कराने के लिए वह करें जिस से आप को खुशी मिलती हो. आप अपनी पसंद की कोई हौबी चुनें और उस में व्यस्त रहें.

नशे को दोस्त न बनाएं :

अकसर लोग ब्रेकअप के बाद, उसे भुलाने के लिए नशे आदि का सहारा लेने लगते हैं, जोकि गलत है. ब्रेकअप हुआ है, कोई जिंदगी खत्म नहीं हो गई. रास्ते और भी हैं, बस चलने की ताकत रखिए. इसलिए नशे से खुद को दूर रखिए.

कमियों को सुधारें :

आप का ब्रेकअप क्यों हुआ? यह सोचें और सबक लें, ताकि आगे यह गलती न होने पाए.

मनोचिकित्सक की सलाह लें :

अपनी फिलिंग्स हर किसी से शेयर न करें, क्योंकि जितनी मुंह उतनी बातें होंगी. जानें कौन आप की बातें किस तरह से लें. इस के बजाय आप किसी अच्छे मनोचिकित्सक से परामर्श ले सकते हैं. वे आप को सही सलाह देंगे.

आप बीमार नहीं हैं :

यह एक ऐसी परिस्थिति है जो धीरेधीरे वक्त के साथ ठीक हो जाएगी. इस दौरान अगर नींद नहीं आती है तो किसी अच्छे लेखक की किताब पढ़िए, पत्रिकाएं पढ़िए, संगीत सुनिए.

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ब्रेकअप को करें सैलिब्रेट :

जिस तरह हर छोटीबड़ी खुशियों को सैलिब्रेट करना जरूरी है, वैसे ही अपने ब्रेकअप को भी सैलिब्रेट करें. इस दौरान खुद को ट्रीट दें. आप को निश्चित ही अच्छा महसूस होगा.

मेरे पति आए दिन मारते-पीटते भी हैं, बताएं क्या करूं जिस से इस कलह से छुटकारा मिले?

सवाल

मैं शादीशुदा युवती हूं. विवाह को 10 वर्ष हो चुके हैं. 8 वर्ष का बेटा और 2 साल की बेटी है. मेरे पति आए दिन मुझ से लड़ते हैं. मारते पीटते भी हैं. इतना ही नहीं झगड़ा कर के 15-15 दिन घर से बाहर रहते हैं. मैं बहुत परेशान हूं. बताएं क्या करूं जिस से रोजरोज की कलह से छुटकारा मिले?

जवाब

विवाह को इतने वर्ष हो चुके हैं, इतने वर्षों में आप एकदूसरे की पसंदनापसंद जान गए होंगे. आप दोनों में झगड़ा किस बात को ले कर होता है, आप ने खुलासा पूरा नहीं किया. ध्यान देंगी तो समझ जाएंगी कि आप की किस आदत या कार्य को ले कर पति झगड़ते हैं और इतने उग्र हो जाते हैं कि नौबत मारपीट तक आ जाती है. कोशिश करेंगी तो वजह जान जाएंगी. अच्छा होगा कि ऐसा कोई कारण पैदा न होने दें, जिस से लड़ाईझगड़ा हो, क्योंकि लड़ाई बेवजह तो होगी नहीं. अब आप के 2 बच्चे भी हैं. उन की परवरिश पर भी गृहकलह का दुष्प्रभाव पड़ेगा.

पति जब शांत और अच्छे मूड में हों तो उन्हें भी यह बात समझाएं. विवाह एक समझौता है, जिस में पतिपत्नी दोनों को अपनाअपना अहं छोड़ कर एकदूसरे की कमियों को नजरअंदाज कर के चलना पड़ता है. घर में शांति रहेगी तो पति घर से बाहर नहीं जाएंगे. अच्छा होगा उन्हें प्यार से समझाएं, जिम्मेदारियों का एहसास कराएं.

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क्या आप भी अनचाहे सेक्स की शिकार हैं

दिन ब दिन बलात्कार की घटनाओं में बढ़ोतरी होती जा रही है. इस के कई कारण हैं, जिन में एक है मानसिक हिंसा की प्रवृत्ति का बढ़ना. बलात्कार शब्द से एक लड़की या युवती पर जबरदस्ती झपटने वाले लोगों के लिए हिंसात्मक छवि उभर कर सामने आती है. इस घृणित कार्य के लिए कड़े दंड का भी प्रावधान है. मगर बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि वैवाहिक जिंदगी में भी बलात्कार वर्जित है और इस के लिए भी दंड दिया जाता है. मगर इसे बलात्कार की जगह एक नए शब्द से संबोधित किया जाता है और वह शब्द है अनचाहा सेक्स संबंध.

आज अनचाहे सेक्स संबंधों की संख्या बढ़ गई है. समाज जाग्रत हो चुका है और अपने शरीर या आत्मसम्मान पर किसी भी तरह का दबाव कोई बरदाश्त नहीं करना चाहता है. इस विषय पर हम ने समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों से बातचीत भी की और जानने की कोशिश की कि आखिर क्या है यह अनचाहा सेक्स संबंध?

डा. अनुराधा परब, जो एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री हैं, बताती हैं, ‘‘बलात्कार और अनचाहे सेक्स में बहुत महीन सा फर्क है. बलात्कार अनजाने लोगों के बीच हुआ करता है और एक पक्ष इस का सशरीर पूर्ण विरोध करता है. अनचाहा सेक्स परिचितों के बीच होता है और इस में एक पक्ष मानसिक रूप से न चाह कर भी शारीरिक रूप से पूर्णत: विरोध नहीं करता है. सामान्यत: यही फर्क होता है. मगर गहराई से जाना जाए तो बहुत ही सघन भेद होता है. ‘‘अनचाहा सेक्स ज्यादातर पतिपत्नी के बीच हुआ करता है और आजकल प्रेमीप्रेमिका भी इस संबंध की चपेट में आ गए हैं. आधुनिक युग में शारीरिक संबंध बनाना एक आम बात भले ही हो गई हो, फिर भी महिलाएं इस से अभी भी परहेज करती हैं. कारण चाहे गर्भवती हो जाने का डर हो या मानसिक रूप से समर्पण न कर पाने का स्वभाव, मगर अनचाहे सेक्स संबंध की प्रताड़नाएं सब से ज्यादा महिलाओं को ही झेलनी पड़ती हैं.’’

वजह वर्कलोड

एक एडवरटाइजिंग कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर के पद पर कार्यरत पारुल श्रीनिवासन, जिन का विवाह 6 साल पहले हुआ था, एक चौंका देने वाला सत्य सामने लाती हैं. वह बताती हैं, ‘‘मैं अपने पति को बेहद प्यार करती हूं. उन के साथ आउटिंग पर भी अकसर जाती रहती हूं, मगर सेक्स संबंधों में बहुत रेगुलर नहीं हूं. इस का कारण जो भी हो, मगर मुझे ऐसा लगता है कि इस का मुख्य कारण है, हम दोनों का वर्किंग  होना. शुरूशुरू में 1 महीना हम दोनों छुट्टियां ले कर हनीमून के लिए हांगकांग और मलयेशिया गए थे. वहां से आने के बाद अपनेअपने कामों में व्यस्त हो गए. रात को बेड पर जाने के बाद सेक्स संबंध बनाने की इच्छा न तो मुझे रहती है, न मेरे पति को. पति कभी आगे बढ़ते भी हैं तो मैं टालने की पूरी कोशिश करती हूं.’’

कारण की तह तक पहुंचने पर पता चला कि शुरूशुरू के दिनों में पति सेक्स संबंध बनाना चाहता था. मगर पारुल को अपनी मार्केटिंग का वर्कलोड इतना रहता था कि वह उसी में खोई रहती थी. पति के समक्ष अपना शरीर तो समर्पित कर देती थी, मगर मन कहीं और भटकता रहता था. पति को यह प्रक्रिया बलात्कार सी लगती. कई बार समझाने, मनाने की कोशिश भी उस ने की. मगर पारुल हमेशा यही कहती कि आज मूड नहीं बन रहा है. और एक दिन पारुल ने खुल कर कह ही दिया कि वह यदि सेक्स संबंधों में रत होती भी है तो बिना मन और इच्छा के. वह अनचाहा सेक्स संबंध जी रही है. पति को यह बुरा लगा और धीरेधीरे सेक्स के प्रति उसे भी अरुचि होती चली गई.

भयमुक्त करना जरूरी

ऐसी कई पत्नियां हैं, जो अनचाहा सेक्स संबंध बनाने पर विवश हो जाती हैं. मगर तबस्सुम खानम की कहानी कुछ और ही है.  26 वर्षीय तबस्सुम एक टीचर हैं, उन के पति उन से 12 साल बड़े हैं. उन की एक दुकान है. वह बताती हैं, ‘‘जब मैं किशोरी थी, तभी से मुझे सेक्स संबंधों के प्रति भय बना हुआ था. सहेलियों से इस को ले कर सेक्स अनुभव की बातें करती थीं और मुझे सुन कर डर सा लगता था. मैं सहेलियों से कहती थी कि मैं तो अपने शौहर से कहूंगी कि बस मेरे गले लग कर मेरे पहलू में सोए रहें. इस से आगे मैं उन्हें बढ़ने ही नहीं दूंगी. सभी सहेलियां खूब हंसती थीं. जब मेरी शादी हुई तो शौहर हालांकि बड़े समझदार हैं, मगर शारीरिक उत्तेजना की बात करें तो खुद पर संयम नहीं रख पाते हैं.’’

थोड़ा झिझकती हुई, थोड़ा शरमाती हुई तबस्सुम बताती हैं, ‘‘मेरे पति ने मेरे लाख समझाने पर भी सुहागरात के दिन ही मुझे अपनी मीठीमीठी बातों में बहला लिया. उन का यह सिलसिला महीनों चलता रहा, मुझे आनंद का अनुभव तो होता, मगर भय ज्यादा लगता था. मेरा भय बढ़ता गया. जब भी रात होती, मेरे पति बेडरूम में प्रवेश करते, मैं डर से कांप उठती थी. हालांकि मेरे पति के द्वारा कोई भी अमानवीय हरकत कभी नहीं होती. काफी प्यार और भावुकता से वे फोरप्ले करते हुए, आगे बढ़ते थे. मगर मेरे मन में जो डर समाया था, वह निकलता ही न था. 3 महीनों के बाद जब मैं गर्भवती हो गई तो डाक्टर ने हम दोनों के अगले 2 महीनों तक शारीरिक संबंध बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया था. मुझे तो ऐसा लगाजैसे एक नया जीवन मिल गया. मेरा बेटा हुआ. इस बीच मैं ने धीरेधीरे पति को अपने डर की बात बता दी और वे भी समझ गए. मेरे पति ने भी परिपक्वता दिखाई और मुझ से दूर रह कर मुझे धीरेधीरे समझाने लगे. वे सेक्स संबंधों को स्वाभाविक और जीवन का एक अंश बताते. अंतत: उन्होंने मेरे मन से भय निकाल ही दिया.’’

इच्छा अनिच्छा का खयाल

विनोद कामलानी, जो एक प्रसिद्ध मनोचिकित्सक हैं, अपना क्लीनिक चलाते हैं, बताते हैं, ‘‘तबस्सुम के मन में बैठा हुआ सेक्स का डर था. बहुत सी लड़कियां इस भय से भयातुर हुआ करती हैं. मगर बहुत कम पति ऐसे होते हैं, जो धीरेधीरे इस भय को निकालते हैं. ऐसे कई केस मेरे पास आते हैं. पुरुषों के भी होते हैं, मगर अनचाहे सेक्स की शिकार ज्यादातर महिलाएं ही हुआ करती हैं.’’ डा. कामलानी के ही एक मरीज तरुण पटवर्धन ने बताया कि उन की शादी को 3 साल हो गए हैं, मगर आज तक उन्होंने अनचाहा सेक्स संबंध ही जीया है.

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तरुण के अनुसार, विवाहपूर्व उन का प्रेम अपने पड़ोस की एक लड़की से था. किसी कारणवश शादी नहीं हो पाई, मगर प्रेम अभी भी बरकरार है. उस लड़की ने तरुण की याद में आजीवन कुंआरी रहने की शपथ भी ले रखी है. यही कारण है कि जब भी तरुण अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने की पहल करते हैं, उन की प्रेमिका का चेहरा सामने आ जाता है. उन्हें एक ‘गिल्ट’ महसूस होता है और वे शांत हो कर लेट जाते हैं. वे अपनी पत्नी से यह सब कहना भी नहीं चाहते हैं वरना उस के आत्मसम्मान को चोट पहुंचेगी. चूंकि उन की पत्नी तरुण को सेक्स प्रक्रिया बनाने में अयोग्य न समझे, उन्हें अपनी पत्नी के साथ सेक्स संबंध बनाना पड़ता है. वे सेक्स संबंध बिना मन, बिना रुचि के बनाते हैं और इस तरह वे अनचाहा सेक्स संबंध ही जी रहे हैं.

एक सर्वे के अनुसार, आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में काम की होड़ और आगे निकलने की चाह ने इनसान को मशीन बना दिया है. पैसा कमाना ही एक मात्र ध्येय बन चुका है. ऐसी भागदौड़ में इनसान सेक्स संबंधों के प्रति इंसाफ नहीं कर पाता है और बिना मन और बिना प्रोपर फोरप्ले के बने हुए सेक्स संबंध, मन में सेक्स के प्रति अरुचि पैदा कर देते हैं. यहीं से शुरुआत होती है अनचाहे सेक्स संबंधों की. अपने पार्टनर की खुशी के लिए संबंध बनाना कभीकभी विवशता भी होती है. अंतत: यही संबंध ऊब का रूप धारण कर लेते हैं या पार्टनर बदलने की चाह मन में उठती है. यद्यपि यह अनचाहा सेक्स पश्चिमी देशों में तेजी से बढ़ रहा है, भारत भी इस से अछूता नहीं है, परंतु यहां का अनुपात अन्य देशों के मुकाबले नगण्य है.

किसिंग पर कोरोना का कहर

कोरोना का फैलने से रोकने के लिए लार के संपर्क से दूर रहने की बात कही जाती है. जिसकी वजह से किसिंग से दूरी बनती जा रही. इस कारण अब माउथ ऑर्गेज्म का आनंद नहीं मिल पा रहा. कुछ लोग कोरोना से बचाव के साथ पार्टनर के साथ किसिंग का प्रयास करते है पर कोरोना के डर ने किसिंग के सुखद एहसास को रोक सा दिया हैं.

किसिंग को सभी एंजॉय करते हैं. किसिंग प्यार जताने का बेहतर तरीका है. कई बार हम अपनी भावनाओं को शब्दों से उतने अच्छे तरीके से नहीं बता पाते जितने अच्छे “एक किस” सकते हैं. ‘किस’ में एक खास बात होती है जिसके कारण यह बॉडी में इम्म्यून सिस्टम को मजबूत करती हैं. किस के जरिये  हमारी बॉडी को नए तरह के बैक्टीरिया और कीटाणुओं मिलते हैं जो बॉडी के इम्म्यून सिस्टम को मजबूत करते हैं. ‘ कोरोना संक्रमण के डर से लोग अब किसिंग से बच रहे है.

कोविड 19’ कोरोना संक्रमण के दौरान ‘किस’ करना खतरनाक हो गया है. खासकर उन लोगो के लिए जिनको आप कम जानते हैं. जिनका बाहर आना जाना रहता है. जो कोरोना के कैरियर हो सकते हैं. ऐसे में किसिंग से लोग दूर होते जा रहे हैं. लोग खुद इतना डरे हुए हैं कि अपने पार्टनर को कोरोना के खतरों से बचाने के लिए किसिंग से दूर होते जा रहे. ऐसे में वो तमाम तरह से किसिंग के फायदों से दूर होते जा रहे हैं.

रीना और नीलेश के बीच दोस्ती उनकी किसिंग के बाद परवान चढ़ी थी. दोनो जब भी अकेले मिलते, फ़िल्म देखने जाते कभी कभी तो लिफ्ट में ही या मॉल्स की सीढ़ियों को चढ़ते हुए सूनसान जगह देखते किसिंग का मौका जाने नही देते थे. कैंटीन और दूसरी जगहों का मौका भी जाने नही देते थे. कोरोना खतरे के बाद बहुत परेशान हैं. इनकी परेशानी का सबसे बड़ा कारण अब किसिंग करने से पहले कई बार सोचना पड़ता हैं कि कंही हम साथी में संक्रमण ना फैला दे.

कोरोना के अलावा लाभकारी होती हैं किसिंग :

कोरोना संक्रमण से हट कर बात करें तो किसिंग बॉडी और रिलेशनशिप दोनो के लिए लाभकारी होती हैं. डॉक्टर जीसी मक्कड़ कहते है कि अगर दोनो पार्टनर में किसी तरह का कोरोना संक्रमण नही है. सर्दी जुखाम, या स्वास रोग का कोई संक्रमण नही है तो किसिंग से परहेज कोई जरूरी चीज नहीं है.

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‘किस’ करते समय आँखें बंद हो जाती हैं. आंखों की पुतलियां डाईलेट हो जाती हैं जिससे फोकस करना मुश्किल हो जाता है. सब कुछ धुंधला सा दिखने लगता है. इसलिए आंखें बंद हो जाती है. आंखे बंद होने का सबसे बड़ा लाभ होता है कि तमाम तरह का तनाव कुछ समय के लिए ही सही खत्म हो जाता है.

अच्छी रिलेशनशिप के लिए जरूरी

परफेक्ट पार्टनर तलाश में ‘किस’ का अहम रोल हो सकता है. ‘किस’ करने के बाद आप दोनों यह जान सकते है कि  एक दूसरे  के लिए सही हैं.आप के बीच तालमेल कैसा रहेगा. यही नहीं किसिंग से हमे एक दूसरे की पसंद और व्यवहार के बारे में पता चलता है. एक दूसरे के प्रति कितना केयरिंग है इसका भी आभास होता है. हमें पता होता है कि किसिंग हमारे लिए कितना जरूरी है तो हम इसके लिए खुद को तैयार भी करते है. चाहे साँसों को खुश्बू से भरना हो या ताजी सांस ले पार्टनरशिप को करीब लाने की. यही कारण का की  टूथ पेस्ट का प्रचार में ताजी और खुशबू दार सांस को लेकर प्रचार अभियान भी चलता है.

किसिंग से मिलता है माउथ ऑर्गेज्म

केवल लड़का लड़की ही नही कई बार दो लड़कियां भी आपस मे किसिंग करती हैं. लेट नाइट पार्टी में यह बहुत होता हैं. अब होटल और रेस्त्रां में पार्टियां नही हो रही.  कुछ लोग अपने घरों में 4-5 करीबी दोस्तो के साथ पार्टी करते है. ऐसी ही दो दोस्तों का कहना है कि हम सब कुछ तो कर लेते हैं पर किसिंग से अब डर लगने लगा है. लोकडाउन के बाद से हमने किसिंग नहीं कि है.

अगर पूरे भरोसे और समर्पण से किसिंग की जाए तो किसिंग से माउथ ऑर्गेज्म मिलता है. खासकर जब लडकियां ओव्यूलेशन के करीब होती हैं उस समय किसिंग ज़्यादा संतुष्ट करती हैं. ऐसे में उनको ओर्गाज्म का जल्द अनुभव होता है. इसको माउथ ओर्गाज्म भी माना जाता है. किसिंग ना होने से यह आंनद नही मिल पा रहा.

किस करते वक्त हमारा दिमाग एंडोर्फिन रिलीज़ करता है जो हमें शांत करते हैं. इसलिए अगर सुबह की शुरुआत किस से की जाए तो आपके पूरा दिन पॉजिटिव होता है. किस करने से  “हैप्पी हॉरमोन” डोपामाइन रिलीज होता है. जो ना केवल आपको खुश रखता है बल्कि दो लोगो के बीच तालमेल को मजबूत करता है. रिश्तों को लंबे समय तक मजबूत बनाने के लिए किसिंग की बहुत जरूरत होती है.

किसिंग से आता हैं स्किन में ग्लो

कुछ लोगों को किस से बहुत ज्यादा डर लगता है. जिसे फिलेमाफोबिया कहते हैं. ऐसे लोग ना सिर्फ किसिंग से दूर रहते हैं बल्कि वो किसी को किस करते हुए देख भी नहीं  पाते हैं. हालांकि डरने जैसा कुछ होता नहीं. किसिंग को एक तरह की एक्सरसाइज भी माना जता है. इससे कई तरह के लाभ होते है.

माना जाता हैं कि एक घंटे तक वर्कआउट करने से 120 कैलोरीज को बर्न करने में मदद मिलती है. किसिंग में भी कैलोरीज़ बर्न होती है जो ब्लडप्रेशर, हार्ट के रोगो से शरीर को बचाती हैं. यही नही किसिंग से फेस मसाज तक हो जाती हैं.

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किसिंग में लगभग 30 फेशियल मसल्स काम कर रही होती हैं. इससे त्वचा की एक्सरसाइज हो जाती है.

ऐसे में किसिंग से डरने की जरूरत नही है. कोरोना संक्रमण से बचाव रखते हुए किसिंग को पहले की तरफ कर सकते है. यह बात जरूर है कि कोरोना के डर से सतर्क रहें. किसिंग के लिए भी वफादारी निभानी होगी. बेवफाई करने का अंजाम खतरनाक हो सकता है.

जानें क्या है रिश्ते में झूठ स्वीकार करने का सही तरीका

आजकल रिश्तों में झूठ बोलना आम बात है लेकिन हमें ऐसा झूठ नही बोलना चाहिए जो हमारे रिश्तो में दूरियां पैदा कर दे. कई बार झूठ बोलते हैं तो हमारा झूठ पकड़ा जाता है जो हमारे लिए हानिकारक होता है.इसलिए हमें किसी भी रिश्ते में कोई भी झूठ बोलने के सही समय और सही स्थिति देखनी चाहिए कि अगर हम झूठ बोलेंगे तो पकड़े जाएंगे.जब आपके झूठ से किसी को नुकसान नहीं पहुंच रहा हो तभी सही है.

1. झूठ को स्वीकार करना चाहिए

आपने अपने साथी को कोई झूठ बोला है और आपका झूठ पकड़ा जाए तो बिना कोई बहस करे आपको झूठ स्वीकार कर लेना चाहिए. उसको इस बारे में विश्वास दिलाएं कि आपने झूठ क्यों बोला था.इस से रिश्ते में अच्छे सम्बन्ध बने रहते हैं. अगर आपका साथी आप पर शक करता है तो ये आपके लिए चिंता का विषय है.

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2. धर्य रखें

अगर आपका झूठ आपका साथी पकड़ लेता है या उसको पता चल जाता है तो आप घबराएं नही धर्य रखे.और उसको जितनी बार समझाना पड़े उसको प्यार से समझाएं. उसकी देखभाल रखे जिस से उसको आप पर शक ना हो. उसको ये विश्वास दिलाएं कि आप उस झूठ को बोलने के बाद शर्मिन्दा है. अगर आप प्यार से विश्वास दिलाएंगे तो आपका रिश्ता अच्छा बना रहेगा.

3. सही बनाने की कोशिश करें

अगर आपका झूठ पकड़ा जाता है और आप झूठ को स्वीकार कर लेते हैं तब भी आपके साथी को आप पर विश्वास नही होता है. तो उस विश्वास को वापिस लाने की कोशिश करे. उस से पूछें कि उसे किस बात पर शक हुआ है और क्यों हुआ है उसका सही कारण जानने की कोशिश करें. क्योंकि विशवास वापिस पाने के लिए सही कारण जानना जरूरी है.

4. खुद के साथ अपने बयान शुरू करें

ये बात हमेशा याद रखिए कि आपकी बातों की शुरुआत ‘मैं’ से होनी चाहिए. जैसे कि ,’मैं गलत था’. ‘मैने तुम्हारे साथ गलत किया’! इस स्थिति में आपका साथी आपकी झूठ को प्यार से स्वीकार कर लेगा. अपने साथी को गलत ठहराने की गलती मत करना वरना बात बिगड़ सकती है.

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5. जब तुम झूठ बोलते हुए पकड़े जाते हो तो सच बताओ 

अगर आप अपने साथी से झूठ बोलते हुए पकड़े गए हैं तो उस झूठ को ज्यादा बड़ा ना बनाएं. अपने साथी को सच बता दे नही तो आपके रिश्ते में दूरियां पैदा हो सकती है. अपने साथी का भरोसा ना तोड़े.

सलाह दें मगर प्यार से

रति की शादी को अभी 2 महीने ही हुए थे. आज पहली बार उस के सासससुर उस के पास रहने आ रहे थे. रति की नईनई गृहस्थी थी और पहली बार ससुराल से कोई आ रहा था. इसलिए वह बहुत खुश थी. रति ने ढेर सारे फल, सब्जियां, पनीर, मिठाई आदि से अपना फ्रिज भर लिया. वह अपने सासससुर की आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी.

जब सासससुर आए तो रति की सास सारिका ने दूसरे दिन से ही नुक्ताचीनी करनी आरंभ कर दी थी. पहले तो सास ने ही बोला, ‘‘रति, इसी तरह तुम अपना फ्रिज बिना  सोचेसम झे भरती रहोगी तो जल्द ही मेरा बेटा बीमार हो जाएगा.’’

वहीं ससुर ने रति को फुजूलखर्ची पर भाषण दिया. जब रति ने अपने पति से इस बारे में बातचीत करनी चाही तो पति मनुज भी रति से बोला, ‘‘मम्मीपापा के पास अनुभव हैं. उन की बातों का बुरा न मान कर उन से कुछ सीख लो.’’

रति के सासससुर तो एक हफ्ते बाद चले गए पर रिश्ते में एक ऐसी गांठ बांध गए जो शायद अब खुल नहीं पाएगी.

अंशु के घर आज उस की बड़ी ननद निधि आई थी. अंशु ने प्यार और सम्मान से उस के लिए ढेर सारे पकवान बनाए.

निधि ने भोजन को देख कर नाक बनाते  हुए कहा, ‘‘अंशु, तुम्हारे बढ़ते वजन का यही कारण है और इसी कारण साकेत को रातदिन जिम में रहना पड़ता है. भई मु झे तो दालरोटी ही खानी है.’’

अंशु की आंखों में आंसू आ गए. मन ही मन वह सोच रही थी कि थोड़ा सा ही सही मन रखने के लिए खा लेती. उस के बढ़ते वजन पर कमैंट करने की क्या जरूरत थी.’’

मनीषा को घर सजाने का बड़ा शौक था. इस चक्कर में कभीकभी वह फुजूलखर्ची भी कर बैठती थी. इस बार जब उस की भाभी मीनाक्षी कानपुर आई तो पहले तो उस ने मनीषा के घर की साजसज्जा की खुल कर तारीफ करी. उस के बाद मीनाक्षी ने मनीषा को छोटेछोटे टिप्स भी दिए ताकि कम खर्च में ही वह अपने घर की साजसज्जा कर सके. सलाह देते हुए मीनाक्षी ने एक बात का ध्यान अवश्य रखा कि उस की बातों से मनीषा के सम्मान को ठेस न पहुंचे.

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तापसी ने रातदिन एक कर के अपने बौस का प्रेजैंटेशन तैयार किया. सुबह जब तापसी ने अपने बौस को प्रेजैंटेशन दिखाया तो बौस अजय शर्मा ने उस के काम की तारीफ करते हुए उसे कुछ इंप्रूवमैंट के टिप्स भी दिए. जब तापसी प्रेजैंटेशन पर दोबारा काम कर रही थी तो उसे सम झ आ गया कि उस ने कितनी सारी गलतियां कर रखी थीं, परंतु उस के बौस ने उस के काम और उस का सम्मान करते हुए बस इंप्रोविजेशन बता दिया. तापसी को बेहतर काम करना भी आ गया और बौस के लिए उस के दिल में सम्मान भी दोगना हो गया.

इन उदाहरणों में अगर आप देखें तो सभी घटनाओं में सलाह देने वाले लोगों का प्रमुख उद्देश्य दूसरे की भलाई ही था, परंतु सीख या सलाह से अधिक महत्त्व इस बात का होता है कि सीख या सलाह देने वाले व्यक्ति ने किस भाव से अपनी सलाह को परोसा है. अगर आप दूसरे को नीचा दिखाने के भाव से सलाह दे रही हैं तो वह कभी न खत्म होने वाले शीतयुद्घ में तबदील हो जाएगी.

अपने बच्चों, सहकर्मियों, मातापिता या किसी को भी सलाह देना कोई गलत बात नहीं है. परंतु सलाह देने से पहले कुछ छोटीछोटी चीजों का ध्यान रखेंगी तो न केवल वह सामने वाले के लिए उपयोगी होगी, बल्कि यह आप के संबंधों को भी प्रगाढ़ बनाने में सहायक होगी.

शब्दों का चयन सावधानी से करें: आप की कोई भी सलाह कितनी भी अच्छी हो, अगर कड़वे शब्दों के साथ परोसी जाएगी तो सामने वाला व्यक्ति उसे सिरे से नकार देगा. अगर आप वही सलाह सम झदारी के साथ परोसेंगी तो वे अवश्य सुनेंगे. सलाह को उपयोगी बनाने में शब्दों की प्रमुख भूमिका होती है.

सम्मान को ठेस न पहुंचाएं: अकसर देखने में आता है कि जब भी कोई सलाह देता है तो वह हमेशा सामने वाले व्यक्ति को ऐसे सलाह देता है कि व्यक्ति को लगता है उस के कार्य को नहीं उसे ही नकार दिया गया है. व्यक्ति चाहे आप से छोटा ही क्यों न हो आप उसे सिरे से नकार नहीं सकते हैं.

एकदूसरे से सीखें: आप जिस भी व्यक्ति को सलाह देने जा रही हैं सब से पहले उस की बात को धैर्य से सुनें. ऐसा हो सकता है उस व्यक्ति के पास ऐसे कार्य करने की कोई न कोई वजह अवश्य रही होगी. आप उस की बात सुन कर उस की कार्यप्रणाली को अपने अनुभव या जानकारी के साथ थोड़ा सा मौडिफाई कर सकती हैं. इस से उसे न बुरा लगेगा और आप का काम भी हो जाएगा.

कार्य को नकारें व्यक्ति को नहीं: अगर रति की सास उसे प्यार से सम झाती कि जरूरत से ज्यादा फलसब्जियां खरीद कर रखने से वे बासी हो जाएंगी, जो स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होती हैं तो यकीन करिए केवल इस एक वाक्य से रति की नजरों में अपनी सास का सम्मान दोगुना हो जाता और भविष्य में वह अपने हर छोटेबड़े कार्य के लिए सास की सलाह अवश्य लेती.

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स्कोप औफ इंप्रूवमैंट: किसी को सलाह इस प्रकार दें कि वह उन्हें सलाह नहीं, बल्कि स्कोप औफ इंप्रूवमैंट लगे. किसी भी व्यक्ति के कार्य या उस की कार्यप्रणाली को सिरे से नकार देना बिलकुल सही नहीं होता है. यह आप के रिश्तों में सदा के लिए खटास ला सकता है.

रिश्तों का रखें ध्यान: सलाह देते हुए रिश्तों की गरिमा का ध्यान अवश्य रखें. जो सलाह आप अपनी बेटी को दे सकती हैं वह आप अपने दामाद को नहीं दे सकती हैं. खुद  को अधिक सम झदार या अनुभवी सम झने के कारण ऐसा न हो कि आप के रिश्ते आप से दूर हो जाएं.

पति को निर्भर बनाएं अपने ऊपर

‘नाम मानसी मल्होत्रा, उम्र 30 वर्ष, विवाहित, शिक्षा बी.ए., एम.ए. घरेलू कार्यों में सुघड़. पति का गारमेंट्स का अच्छा व्यापार, छोटा परिवार, 2 बच्चे, 8 वर्षीय बेटी, 5 वर्षीय बेटा. दिल्ली के पौश इलाके में अपना घर, घर में नौकरचाकर, गाड़ी, सुखसुविधाओं की कोई कमी नहीं.’ फिर भी मानसी परेशान रहती है. आप हैरान हो गए न, अरे भई, सुखी जीवन के लिए और क्या चाहिए, इतना सब कुछ होते हुए भी कोई कैसे परेशान रह सकता है? लेकिन मानसी खुश नहीं है. घरपरिवार, प्यार करने वाला पति, बच्चे, आर्थिक संपन्नता सब कुछ होते हुए भी मानसी तनावग्रस्त रहती है. उसे लगता है कि उस की पढ़ाईलिखाई सब व्यर्थ हो गई. उस का सदुपयोग नहीं हो रहा है. वह बच्चों को तैयार कर के, लंच पैक कर के स्कूल भेजने, नौकरों पर हुक्म चलाने, शौपिंग करने, फोन पर गप्पें लड़ाने के अलावा और कुछ नहीं करती.

क्या ये सब करने के लिए उस के मातापिता ने उसे उच्च शिक्षा दिलाई थी? सब उसे एक हाउस वाइफ का दर्जा देते हैं. पति की कमाई पर ऐश करना मानसी को खुशी नहीं देता. वह चाहती है कि अपने दम पर कुछ करे, पति के काम में सहयोगी बने, अपनी शिक्षा का सदुपयोग करे  क्या घर से बाहर जा कर नौकरी करना ही शिक्षा का सदुपयोग है? क्या यही नारीमुक्ति व नारी की आत्मनिर्भरता को दर्शाता है, नहीं यह केवल स्वैच्छिक सुख है, जिस के जरिए महिलाएं आर्थिक आत्मनिर्भरता का दम भरती हैं और घर में महायुद्ध मचता है. क्या किसी महिला के नौकरी भर कर लेने से उसे सुकून और शांति मिल सकती है? इस का जवाब आप सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक बसों में धक्के खा कर, भागतेभागते घर की जिम्मेदारियों को निबटा कर नौकरी करने वाली महिलाओं से पूछिए.

28 वर्षीय आंचल अग्रवाल पीतमपुरा में रहती हैं, जनकपुरी में नौकरी करती हैं. सुबह 10 बजे के आफिस के लिए उन्हें 9 बजे घर से निकलना पड़ता है. रात को 7 बजे बसों में धक्के खा कर घर पहुंचती हैं. घर पहुंचते ही घर का काम उन का स्वागत करता है. अपनी सेहत, स्वास्थ्य, परिवार के लिए उन के पास कोई समय नहीं है. नौकरी की आधी कमाई तो आनेजाने व कपड़ों पर खर्च हो जाती है, ऊपर से तनाव अलग होता है. जब पतिपत्नी दोनों नौकरी करते हैं तब इस बात पर बहस होती है कि यह काम मेरा नहीं, तुम्हारा है. जबकि अगर पति घर से बाहर कमाता है और पत्नी घर में रह कर घर और बच्चे संभालती है तो काम का दायरा बंट जाता है और गृहक्लेश की संभावना कम हो जाती है. घर पर रह कर महिलाएं न केवल पति की मदद कर सकती हैं बल्कि उन्हें पूरी तरह अपने पर निर्भर बना कर पंगु बना सकती हैं. उस स्थिति में आप के पति आप की मदद के बिना एक कदम भी नहीं चल पाएंगे. कैसे, खुद ही जानिए :

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घर की मेंटेनेंस में योगदान

एक पढ़ीलिखी गृहिणी घर की टूटफूट मसलन, प्लंबिंग, इलेक्ट्रिसिटी वर्क, घर के पेंट पौलिश बिना पति की मदद के बखूबी करा सकती है. कुछ महिलाएं चाहे घर के नल से पानी बह रहा हो, बिजली का फ्यूज उड़ जाए, दीवारों से पेंट उखड़ रहा हो, वे चुपचाप बैठी रहती हैं, पति की छुट्टी का इंतजार करती हैं कि कब वे घर पर होंगे और घर की मेंटेनेंस कराएंगे. वे घर की इन टूटफूट के कामों के लिए पति की जिम्मेदारी मानती हैं. बेचारे पति एक छुट्टी में इन सभी कामों में लगे रहते हैं और झुंझलाते रहते हैं, ‘‘क्या ये काम तुम घर पर रह कर करा नहीं सकती हो?’’

स्वाति घर पर ही रहती है. पढ़ीलिखी है. वह घर की इन छोटीमोटी जरूरतों का खुद ध्यान रखती है. जब भी कोई परेशानी हुई, मिस्त्री को फोन कर के बुलाती है और स्वयं अपनी निगरानी में ये सभी काम कराती है. स्वाति के इस नजरिए से उस के पति मेहुल बहुत खुश रहते हैं.

बच्चों की शिक्षा में मदद

अगर आप पढ़ीलिखी हैं और हाउस वाइफ हैं तो बच्चों की शिक्षा में आप अपनी पढ़ाईलिखाई का सदुपयोग कर सकती हैं. बच्चों को घर से बाहर ट्यूशन पढ़ाने भेजने के बजाय आप स्वयं अपने बच्चों को पढ़ा सकती हैं. इस से व्यर्थ के खर्च में तो बचत होगी ही, साथ ही बच्चे पढ़ाई में कैसा कर रहे हैं, आप की उन पर नजर भी रहेगी. बच्चों की स्कूली गतिविधियों में आप भाग ले सकती हैं. मेहुल अपने बच्चों की पढ़ाईलिखाई उन की पी.टी.एम., उन की फीस जमा कराना इन सभी के लिए स्वाति पर निर्भर रहता है, क्योंकि उसे तो आफिस से समय मिलता नहीं और उस की गैरहाजिरी में स्वाति इन सभी कार्यों को बखूबी निभाती है. इस से स्वाति के समय का तो सदुपयोग होता ही है, साथ ही उसे संतुष्टि भी होती है कि उस की शिक्षा का सही माने में उपयोग हो रहा है. बच्चों का अच्छा परीक्षा परिणाम देख कर मेहुल स्वाति की तारीफ करते नहीं थकता. बच्चों की शिक्षा को ले कर वह पूरी तरह से स्वाति पर निर्भर है.

परिवार की सेहत में मददगार

एक पढ़ीलिखी गृहिणी घर के स्वास्थ्य व सेहत के मसले पर भी पति को बेफिक्र कर सकती है. अभी पिछले दिनों की बात है, स्वाति की सास को अचानक दिल का दौरा पड़ा, तब मेहुल की आफिस में कोई महत्त्वपूर्ण मीटिंग चल रही थी. वह आफिस छोड़ कर आ नहीं सकता था, तब स्वाति ने ही पहले डाक्टर को घर पर बुलाया और जब डाक्टर ने कहा कि इन्हें फौरन अस्पताल ले जाइए, तब स्वाति एक पल का भी इंतजार किए बिना सास को स्वयं ड्राइव कर के अस्पताल ले कर गई. वहां अस्पताल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर के सास को अस्पताल में दाखिल कराया.

डाक्टरों से सारी बातचीत, उन का इलाज, सारी भागदौड़ स्वयं स्वाति ने पूरी जिम्मेदारी से निभाई. इसी का परिणाम है कि आज स्वाति की सास पूरी तरह ठीक हो कर घर पर हैं. अगर उस दिन स्वाति ने फुर्ती व सजगता न दिखाई होती तो कुछ भी हो सकता था. मेहुल की अनुपस्थिति में उस ने अपनी शिक्षा व आत्मविश्वास का पूरा सदुपयोग और मेहुल के दिल में हमेशा के लिए जगह बना ली. जब पति घर से बाहर होते हैं और पत्नी घर पर होती है तो वह बच्चों, घरपरिवार की सेहत का पूरा ध्यान रख सकती है और पति को बेफिक्र कर के अपने ऊपर निर्भर बना सकती है.

हर क्षेत्र में भागीदार

पढ़ीलिखी पत्नियां घर पर रह क र पति की गैरहाजिरी में घर की सारी जिम्मेदारियां निभा कर पति को पंगु बना सकती हैं. घर के जरूरी सामानों की खरीदारी, घर की साफसफाई, बच्चों की शिक्षा, सेहत, घर का आर्थिक मैनेजमेंट, कानूनी दांवपेच, घर की मेंटेनेंस, गाड़ी की सर्विसिंग ये सभी काम, जिन के लिए अधिकांश पत्नियां पतियों के खाली समय होने का इंतजार करती हैं और कामकाजी पति के समयाभाव के कारण जरूरी कार्य टलते रहते हैं और घर में क्लेश होता है.

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एक सुघड़ पत्नी अपने गुणों से पति को अपने काबू में कर सकती है. अगर आप घर की ए टू जेड जिम्मेदारियां संभाल लेंगी तो पति स्वयंमेव आप के बस में हो जाएंगे, वे आप के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा पाएंगे. नौकरी से केवल आप पति की आर्थिकमददगार बनती हैं लेकिन घर संभाल कर आप उन के हर क्षेत्र में भागीदार बनती हैं. जब पत्नियां पति की सभी जिम्मेदारियां निभाती हैं तो पति भी उस से खुश रहते हैं, उन की हर संभव मदद करते हैं न कि जिम्मेदारियों को ले कर तूतू मैंमैं करते हैं. सलिए अगर पति के दिल पर राज करना है, अपने खाली समय का सदुपयोग करना है, अपनी शिक्षा का सदुपयोग करना है, व्यर्थ के तनाव से बचना है तो घर की हर जिम्मेदारी संभालिए. स्वयं को पूरी तरह व्यस्त कर लीजिए. पति को पूरी तरह अपने ऊपर निर्भर बना दीजिए. अगर वह घर पर हों तो बिना आप की मदद के कुछ भी न कर सकें, इतना अपने ऊपर निर्भर बना दीजिए उन को. फिर देखिए, वे कैसे दिनरात आप के नाम की माला जपेंगे और घर में हर तरफ खुशियों की बहार आ जाएगी.

शादी रे शादी, तेरे कितने रूप

शादी 2 लोगों के बीच सामाजिक एकता या वैधानिक संधि है. इस का आधार पे्रम व विश्वास माना जाता है. शादी करने के पीछे कानूनी, सामाजिक, भावानात्मक, आर्थिक, धार्मिक आदि कई कारण माने जाते हैं. प्रत्येक संस्कृ ति, देश, राज्य में अलगअलग तौरतरीकों से शादियां होती हैं. शादी स्वयं में एक संस्था कहलाती है और समाज में शादी को आवश्यक भी माना जाता है. समय बदलने के साथसाथ जहां दुनिया भर के लोगों के रहनसहन में बदलाव आए हैं, वहीं उन के विचारों में भी परिवर्तन आए हैं. आज अनेक लोग शादी नामक संस्था से सहमत नहीं हैं और इसलिए वे इसे एक नया और ज्यादा अनुकूल आकार देने के लिए तत्पर रहते हैं.

पहले शादी का अर्थ किसी भी हाल में अपनी एक ही पत्नी या एक ही पति का साथ निभाना ही होता था, लेकिन आज शादी के रिश्ते में उतारचढ़ाव आते ही इस रिश्ते को तोड़ दिया जाता है. आज लोग शादी को उम्र भर का बंधन भी नहीं बनाना चाहते. कई बार तो वे शादी के रिश्ते में बंधना ही पसंद नहीं करते. लिव इन रिलेशनशिप इसी बात की गवाही देता है कि हम अपनी शारीरिक जरूरतें तो पूरी करना चाहते हैं लेकिन शादी कर के किसी के साथ उम्र भर बंधने को तैयार नहीं हैं. यही वजह है कि ऐसे नए रिश्तों की शुरुआत हो चुकी है. लेकिन फिर भी इन रिश्तों को अभी वैधानिक रूप से उचित नहीं माना जाता.

होमोसेक्सुअल रिलेशनशिप में इस बात के बंधन से मुक्ति मिल गई है कि आप को अपने विपरीत लिंग के साथ ही शारीरिक संबंध बनाने हैं. इस बात की आजादी पर अब कानून की मुहर भी लग चुकी है. रिश्तों को ले कर एकदम इतना ज्यादा बदलाव पहले कभी देखने में नहीं आया. पहले ऐसा होता था पर छिपतेछिपाते. आज इन रिश्तों को डंके की चोट पर बनाया जाता है.

जहां तक शादी का सवाल है तो ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो थोड़े समय के लिए शादी करना चाहते हैं. लोगों की जरूरतों के कारण ही आज समाज में कई तरह की शादियों का चलन बढ़ा है. कई लेखकों ने कौंटे्रक्चुअल मैरिज (यह शादी एक समय सीमा पर समाप्त हो जाने वाले कौंट्रेक्ट पर आधारित होती है), प्रिमिसिव मैरिज (इस शादी में एक्स्ट्रा मैरिटल संबंध रखने की आजादी होती है), क्वार्टनरी मैरिज (इस में 2 शादीशुदा जोड़े और उन के बच्चे साथसाथ रहते हैं) आदि शादियों की सिफारिश की है. इन अरेंजमेंट्स को पारंपरिक शादियों की तुलना, जिन में शादियां टूटने की कल्पना अधिक होती है, के मुकाबले ज्यादा टिकाऊ माना जाता रहा है. फिर भी सचाई यह है कि कुछ लोगों को लगता है कि इन प्रोपोजल्स में भी नया कुछ नहीं है. वास्तव में देखा जाए तो फ्यूचर में जिस तरह की नई शादियों को करने की वकालत की जाती है वह सब कहीं न कहीं पहले से ही अस्तित्व में रहे हैं.

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आज समाज में जिस तरह की शादियां होती हैं उन में एक सराहनीय बात यह होती है कि पतिपत्नी साथसाथ जीवन शुरू करते हैं और अपनी आने वाली पीढ़ी की देखरेख स्वयं करते हैं. यह एक ऐसी स्थिति है, जिस में दोनों पार्टनर आपस में पूरी तरह समर्पित होते हैं. इन सब को देखते हुए शादी की संस्था में कुछ लचीलापन लाने की जरूरत महसूस होती रही है. इस सब के मद्देनजर भविष्य में शादी के संबंध में और ज्यादा विकास आ सकता है. नौन मैरिटल सेक्सुअल रिलेशनशिप के खिलाफ कानून में बदलाव आएगा. शादी पूरी तरह एक व्यक्तिगत विचार व मामला होगा. इस से व्यक्ति के पास ज्यादा विकल्प होंगे.

ग्रुप मैरिज

ग्रुप मैरिज आने वाले समय में प्रचलित हो सकती है. जब समाज में सैक्सुअल समानता स्थापित होगी तब ग्रुप मैरिज पौपुलर होगी. इस में कई पतियों की शादियां कई पत्नियों व कई पत्नियों की शादियां कई पतियों से होती हैं. इस में वे एकदूसरे के साथ संबंध बनाने के लिए आजाद होते हैं. लचीलेपन के कारण उस में आपसी संबंध सहमति पर आधारित हो सकते हैं.

ओपन मैरिज

इस तरह की शादी में दोनों पार्टनर आपस में प्रेम करते हैं और साथसाथ रहना चाहते हैं. लेकिन उन की तरफ से एकदूसरे को यह छूट रहती है कि वे किसी अन्य के साथ शारीरिक संबंध बना सकते हैं. यही नहीं, वे अपने संबंध एक से अधिक के साथ भी बनाने के लिए स्वतंत्र रहेंगे. यदि एड्स या गर्भवती न होने की गारंटी रहेगी तो यह सरलता से चल सकेगा.

टैंपरेरी मैरिज

टैंपरेरी मैरिज जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि यह शादी कुछ समय के लिए ही होती है. यह भी कौंट्रेक्ट के आधार पर कुछ माह व सालों के लिए की जाती है. ओल्ड जापान में इस तरह की शादियां संभव थीं, जो 5 या अधिक वर्षों के लिए की जाती थीं. 19 वीं शताब्दी में जरमन लेखक गाथे ने अपने एक उपन्यास में 5 वर्ष के कौंट्रेक्ट के आधार पर की गई शादी का वर्णन किया है.

अगर दोनों पार्टनर एकदूसरे के साथ खुश हैं तो यह शादी अधिक समय तक बनी रहती है. यूरोपीय देशों में कुछ ही वर्षों में कई पार्टनर्स के साथ शादी और बाद में तलाक हो जाता है. कानूनी रूप से जिस तारीख को कौंट्रेक्ट समाप्त हो रहा है उस दिन शादी के इस एग्रीमेंट को पुन: रिन्यू कराना आवश्यक होता है अगर आप ने ऐसा नहीं कराया तो यह कौंट्रेक्ट टूट जाता है. चूंकि लोग अब दूसरे देशों में जा कर नौकरियां कर रहे हैं और यह आगे बढ़ेगा, तब टेंपरेरी शादियों का चलन भी बढ़ेगा.

ट्रायल मैरिज

यूरोप के इतिहास में किसान अपने बच्चों को इस बात की स्वतंत्रता देते थे कि वे अपना मनपसंद पार्टनर पाने के लिए शादी से पहले किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाने का अनुभव प्राप्त कर लें. उन के मातापिता इसे एक गंभीर मामला मानते थे. इस तरह की शादियों के पीछे यही उद्देश्य रहता था कि यदि रिश्ता ठीक न चला तो तलाक के झंझटों से बचा जा सके और एकदूसरे से आसानी से अलग हुआ जा सके. एक ट्रायल मैरिज टैंपरेरी मैरिज की तरह ही होती है. आज भी समाज में युवा एक प्राइवेट इनफौर्मल एग्रीमेंट कर के आपस में साथसाथ रहते हैं और इस के बाद जब एकदूसरे को अच्छी तरह समझ लेते हैं तब  शादी कर लेते हैं.

इंडीविजुअल मैरिज

इस शादी में 2 पार्टनर तब तक साथ रहते हैं जब तक वे चाहते हैं. लेकिन उन्हें बच्चे पैदा करने का अधिकार नहीं होता. इस के बाद जब पतिपत्नी बच्चों की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हो जाते हैं तो ‘पैरेंटल मैरिज’ होती है.

होमोसेक्सुअल मैरिज

हाल ही में इस तरह के संबंध को ले कर काफी चर्चा सुनने को मिली. 2 होमोसेक्सुअल अब आपस में विवाह के लिए स्वतंत्र हैं. इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे दोनों स्त्रियां हैं या दोनों पुरु ष.

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लिव इन रिलेशनशिप

आज लिव इन रिलेशनशिप जैसे रिश्ते खूब बन रहे हैं. बिना शादी के 2 लोग साथ में पतिपत्नी जैसे रहते हैं और जब मन भर जाए तो अपनेअपने रास्ते हो लेते हैं. इस में किसी को किसी से कोई शिकायत नहीं होती और न ही कोई किसी पर जबरदस्ती दबाव बना सकता है. जहां आज इस तरह के रिश्तों को काफी जगह दी जा रही है वहीं आने वाले समय में लोग शादी और तलाक जैसे झंझटों में उलझनों के बजाय लिव इन रिलेशन बनाना पसंद करेंगे.

 

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