टीबी होने के बाद से मेरा वजन नहीं बढ़ता, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 27 वर्षीय विवाहित पुरुष हूं. मेरा शरीर बहुत ही दुबलापतला है. कई साल पहले मुझे टीबी हुई थी. मैं ने उस का पूरा इलाज कराया था. अब मैं ठीक हूं. बस, वजन नहीं बढ़ता. मैं ने 2 महीने पहले सभी टैस्ट भी करवाए. किसी भी रिपोर्ट में कोई कमी नहीं मिली. मैं एक मित्र के कहने पर विटामिन की गोलियां भी ले रहा हूं, पर उन से भी लाभ नहीं हो रहा. कोई ऐसा उपाय बताएं जिस से मेरा वजन बढ़ सके और शरीर हृष्टपुष्ट दिखने लगे.

जवाब-

अगर आप भोजन में रोजाना पर्याप्त कैलोरी ले रहे हैं और आप का वजन फिर भी नहीं बढ़ रहा तो इस के 2 कारण हो सकते हैं. पहला या तो आप की आंतें भोजन के पौष्टिक तत्त्वों को ठीक से जज्ब नहीं कर पातीं और दूसरा आप के शरीर का मैटाबोलिज्म नैगेटिव बैलेंस में चल रहा है.

कुछ खास टैस्ट करा कर यह पता लगाया जा सकता है कि इस की वजह क्या है. जैसे मल की जांच करने से यह पता लग सकता है कि आंतें भोजन के पौष्टिक तत्त्वों को जज्ब कर पा रही हैं या नहीं. बेरियम जांच यानी बेरियम मील फौलो थू्र कर के भी आंतों की अवशोषण ताकत के बारे में जाना जा सकता है. आंतों की अंदरूनी सतह में विहृसकारी परिवर्तन पैदा होने से उन की वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट जज्ब करने की शक्ति खत्म हो जाती है. अगर ऐसा कोई विकार मिले तो उस का ठीक से उपचार कराना होगा.

इस के अलावा हारमोनल टैस्ट करा कर यह देखना भी जरूरी है कि कहीं शरीर में थायराइड हारमोन अधिक मात्रा में तो नहीं बन रहा.

अगर सभी टैस्ट नौर्मल आएं तो फिर यह मान लें कि आहार में ही सुधार लाने की जरूरत है. उस सूरत में किसी डाइटिशियन से सलाह लें. उच्च प्रोटीनयुक्त आहार लेने से लाभ पहुंच सकता है.

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तनाव और घबराहट के कारण हथेलियों और पैर में पसीना आता है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी हथेलियों और पैर के तलवों में बहुत अधिक पसीना आता है और यह समस्या बारहों महीने बनी रहती है. कभीकभार कुछ दिन के लिए आराम आता है, लेकिन समस्या फिर से उतनी ही बढ़ जाती है. तनाव और घबराहट के क्षणों में यह परेशानी और बढ़ जाती है. कोई ऐसा उपाय बताएं जिस से मैं इस से छुटकारा पा सकूं?

जवाब-

आप की समस्या पूरे तौर पर शरीर क्रिया विज्ञान से जुड़ी हुई है. अगर हम मानसिक तनाव में रहते हैं तो इस का हमारे मस्तिष्क में बसे हाइपोथैलेमस पर सीधा असर पड़ता है. इसी से हमारे पसीने की ग्रंथियां सक्रिय हो उठती हैं. खास बात यह है कि इन ग्रंथियों की सब से बड़ी संख्या हथेलियों और पैरों के तलवों में होती हैं, इसीलिए शरीर के इन हिस्सों में सब से अधिक पसीना आता है. अगर शरीर के दूसरे अंगों, जैसे पीठ पर प्रति वर्गसैंटीमीटर 60 से 65 पसीने की ग्रंथियां होती हैं, तो हथेलियों और तलवों में यह संख्या 600-625 के बीच होती है.

इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए जरूरी होगा कि आप अपने मन को अधिक से अधिक शांत रखें. सुबहशाम सैर के लिए जाएं. कुछ समय योग के लिए निकालें. योग में ऐसे कई आसन हैं जिन से हम तनाव से छुटकारा पा सकते हैं. शव आसन और योग निद्रा इस के 2 सरल उदाहरण हैं. लगातार 3 से 6 महीने तक ये उपाय करने से आप अपने में बेहतरी महसूस करने लगेंगी. यदि फिर भी कुछ कमी महसूस हो तो उचित होगा कि किसी मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक से मदद लें. फिलहाल आप हथेलियों और तलवों पर ऐल्युमिनियम क्लोराइड का लोशन और पाउडर इस्तेमाल कर सकती हैं.

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क्या आप के साथ भी कभी ऐसा हुआ है कि आप कौंफ्रैंस रूम में खड़े हो कर प्रेजैंटेशन दे रहे हैं, सामने बौस, सीनियर्स और को-वर्कर्स बैठे हैं. मीटिंग काफी महत्त्वपूर्ण है और आप के दिल की धड़कनें बढ़ी हुई हैं. हथेलियां पसीने से भीग रही हैं?

अपने हाथों को आप किसी तरह पोंछने का प्रयास कर रहे होते हैं और घबराहट में आप के हाथों से नोट्स गिरते गिरते बचते हैं. ऐसी परिस्थिति में न सिर्फ आप का आत्मविश्वास घटता है बल्कि आप के व्यक्तित्त्व को ले कर दूसरों पर नकारात्मक असर पड़ता है. यह एक सामान्य प्रक्रिया है जो अकसर हमारे साथ होती है. यह अत्यधिक तनाव अथवा तनावपूर्ण परिस्थितियों की एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है.

पहली मुलाकात, सामाजिक उत्तरदायित्व अथवा किसी निश्चित कार्य को न कर पाने के भय के दौरान भी कुछ इसी तरह की स्थिति महसूस होती है. कई दफा तीखे मसालेदार भोजन, जंक फूड्स, शराब का सेवन, धूम्रपान या कैफीन के अधिक प्रयोग से भी ऐसा हो सकता है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- घबराहट में क्यों आता है पसीना

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हिदायतें जो Diabities से रखें दूर

मधुमेह यानी डायबीटिज खतरनाक रोग है, जो शरीर को धीरेधीरे खोखला कर देता है. इस बीमारी में रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है. चूंकि हमारे शरीर के हर हिस्से में रक्तसंचार होता है, इसलिए मधुमेह होने पर शरीर का कोई भी हिस्सा खराब हो सकता है. मधुमेह होने पर हार्टअटैक, किडनियों के खराब होने और आंखों की रोशनी तक चले जाने की बहुत संभावना रहती है.

पहले यह बीमारी एक निश्चित वर्ग और उम्र के लोगों को ही होती थी, लेकिन वर्तमान में असंतुलित खानपान और अव्यवस्थित रहनसहन के कारण बच्चों, बूढ़ों और युवाओं सभी को यह बीमारी अपनी चपेट में ले रही है. इस बीमारी से बचने और नजात पाने के निम्न उपाय हैं. जिन पर अमल कर के मधुमेह से बचा जा सकता है:

क्या करें

वजन कम करें: अकसर लोग अपने खानपान पर नियंत्रण नहीं रख पाते. दिन में जितनी बार भी भूख लगती है कुछ भी खा कर पेट भर लेते हैं. ऐसा करने से वजन तो बढ़ता ही है साथ ही असंतुलित आहार शरीर को बीमारियों का घर भी बना देता है. इन बीमारियों में ओबेसिटी यानी मोटापा बेहिसाब और बेवक्त खाने का ही नतीजा होता है. ओबेसिटी के शिकार को डायबिटीज आसानी से अपना शिकार बना लेती है. लेकिन इस का शिकार होने से बचा जा सकता है और इस के लिए ज्यादा मशक्कत करने की भी जरूरत नहीं पड़ती. बस, अपने आहार को छोटेछोटे मील्स में विभाजित कर दीजिए. हर मील का समय निर्धारित हो. इस से आप की भूख भी नियंत्रित हो जाएगी और वजन भी नहीं बढ़ेगा. इस के अलावा वजन कम करने के लिए दिन में 1 बार 30 से 45 मिनट तेज चलने की आदत डालें. इस से ब्लडशुगर कंट्रोल में रहती है. हफ्ते में 4-5 दिन तेज चलें.

स्ट्रैस से रहें दूर: मधुमेह और तनाव का गहरा संबंध है. आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम सिर्फ काम को ही समय दे पाते हैं. ऐसे में अपने बारे में सोचने और कुछ करने का समय ही नहीं मिल पाता. इस के चलते लोग स्ट्रैस से घिर जाते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार तनाव एक मानसिक बीमारी है, जो मनुष्य को मधुमेह जैसी बीमारी के मुंह में धकेल देती है. इसलिए कोशिश करें कि दिन में कुछ समय अपने लिए जरूर निकालें. तनाव से दूर रहने के लिए व्यायाम सब से अच्छा विकल्प है. दिन में 1 बार 15 से 20 मिनट व्यायाम जरूर करें.

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डैंटल हाइजीन: यदि आप को मधुमेह है, तो आप को अपने दांतों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि मधुमेह से पीडि़तों को बैक्टीरियल इन्फैक्शन और मसूड़ों से जुड़ी बीमारी होने की संभावनाएं रहती है. इस के लिए आप दिन में 2 बार दांतों में ब्रश करें. साथ ही समयसमय पर डैंटिस्ट से भी दांतों की जांच कराते रहना चाहिए.

शुगर लैवल की जांच: मधुमेह होने पर रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है. इस स्तर को कम करने से पहले उसे जानने के लिए शुगर लैवल टैस्ट करवाना पड़ता है, जिस से रक्त में ग्लूकोज की मात्रा पता चलती है. यदि आप मधुमेह के मरीज हैं तो हर तीसरे महीने इस की जांच जरूर करवाएं.

आंखों की जांच: मधुमेह के मरीजों को कम दिखने की भी समस्या होती है. इसलिए हर 6 महीने में 1 बार आंखों का चैकअप जरूर करवाएं.

खाली पेट फल न खाएं: मधुमेह के मरीजों को कभी खाली पेट फल नहीं खाना चाहिए. खाना खाने के बाद फल खाएं.

क्या न करें

मीठा: यदि आप मधुमेह के शिकार हैं तो आप को सब से पहले मीठे को त्यागना होगा. खासतौर पर चौकलेट, मिठाई, कोल्डड्रिंक्स, आइसक्रीम. शहद और ग्लूकोज युक्त चीजें तो बिलकुल न खाएं.

फैटी फूड: फैटी फूड यानी डीप फ्राइड और जंक फूड भी मधुमेह के खतरे को बढ़ाता है. पर जो मधुमेह के शिकार हैं उन्हें फ्रैंच फ्राइज, कौर्न चिप्स जैसी चीजों से परहेज करना चाहिए.

चावलों से बने खाद्यपदार्थ: मधुमेह के मरीजों के लिए चावल और चावलों से बनी चीजें भी बेहद हानिकारक हैं, क्योंकि चावल आसानी से शुगर में बदल जाता है. इसलिए इडली, पोहा, ढोकला, डोसा और चावल के आटे से बनी चीजों से मधुमेह के मरीजों को दूर रहना चाहिए.

मधुमेह के मरीजों को शराब या फिर हर उस पदार्थ से जिस में अलकोहल हो, बचना चाहिए, क्योंकि अलकोहल में शुगर कंटैंट होता है.

आम, केला, अंगूर, खरबूजा और चीकू जैसे फलों से भी मधुमेह के मरीजों को दूर रहना चाहिए. इसी तरह आलू, कद्दू, चुकंदर, गाजर, अरवी जैसी सब्जियों से भी परहेज करना चाहिए.

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क्या खाएं

फाइबर: ब्लड ग्लूकोज लैवल को नियंत्रित रखने के लिए अपने आहार मे ब्राउन राइस, पत्तागोभी, भिंडी, अमरूद, अनार और गेहूं शामिल करें, क्योंकि इन में फाइबर होता है जो डायबिटीज में फायदा करता है.

सलाद: मधुमेह के मरीजों को सलाद जरूर खाना चाहिए.

मेथी: मधुमेह के मरीजों के लिए मेथी बहुत अच्छी दवा है. इस के लिए रात भर मेथी को पानी मे भिगो कर रखें और सुबहउस के पानी को पी लें. इस से ब्लड में जाने वाले अनावश्यक ग्लूकोज को रोका जा सकता है.

दालचीनी: रोज 1/2 चम्मच दालचीनी खाने से ब्लडशुगर लैवल और कोलेस्ट्रौल लैवल नियंत्रित रहेगा. साथ ही दालचीनी मांसपेशियों और लिवर के लिए भी लाभदायक है.

प्रैग्नेंसी और कैंसर से जुड़ी बीमारियों के बारे में बताएं?

सवाल-

मेरी मां को डिंबाशय का कैंसर था. लेकिन अब वे उपचार से ठीक हो चुकी हैं. हाल ही में मेरी चाची को भी डिंबाशय के कैंसर का पता चला है. मैं ने सुना है कि डिंबाशय का कैंसर आनुवंशिक रोग है, जिस के कारण मुझे इस की चपेट में आने की आशंका है. कृपया बताएं कि मुझे किन लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए और क्या मुझे किस प्रकार की जांच करानी चाहिए?

जवाब-

डिंबाशय के कैंसर के कुल मामलों में 5 से 10% मामले ही आनुवंशिक होते हैं. इस रोग का पारिवारिक इतिहास होने के कारण आप के समक्ष जीन के उत्परिवर्तित होने का उच्चस्तरीय खतरा रहता है. कैंसर के शीघ्र डाइग्नोसिस के लिए कुछ जांचें कराना जरूरी होता है. डिंबाशय के कैंसर के शुरू के चरणों में कोई लक्षण प्रकट नहीं होता, लेकिन यदि आप श्रोणिक्षेत्र अथवा आमाशय अथवा गैस, पेट फूलने जैसी आंत्रजठरीय समस्याओं जैसे लक्षणों को महसूस करती हैं, तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें. अल्ट्रासाउंड के जरीए इस का डाइग्नोसिस किया जा सकता है.

सवाल-

मैं 30 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मैं और मेरे पति 2 वर्षों से गर्भधारण के लिए प्रयास कर रहे हैं. हाल ही में मुझ में गर्भग्रीवा के कैंसर का पता चला है. क्या मैं भविष्य में गर्भवती हो सकती हूं? यदि मैं गर्भवती हो जाती हूं, तो क्या कैंसर का उपचार बच्चे के लिए नुकसानदायक होगा?

जवाब-

ऐसी स्थिति में गर्भधारण मुमकिन नहीं है. विकिरण चिकित्सा से आप के डिंबाशय काम करना बंद कर सकते हैं तथा आप के गर्भाशय को रिमूव कर दिए जाने के कारण गर्भधारण मुमकिन नहीं हो सकता. यदि 2 सैंटीमीटर से कम ग्रोथ वाले गर्भग्रीवा के कैंसर का पहला चरण होता है, तो लैप्रोस्कोपिक पैल्विक लिंफैडेनैक्टोमी के साथ वैजाइनल ट्रैचेलैक्टोमी की सर्जरी के द्वारा गर्भाशय को बचाया जा सकता है. इस औपरेशन के बाद गर्भधारण के मामले देखे गए हैं. यदि कैंसर का जल्दी पता लग जाता है अथवा गर्भावस्था की आखिरी तिमाही में कैंसर का पता चलता है, तो इस के उपचार को प्रसव के बाद तक टाला जा सकता है.

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सवाल-

मैं 27 वर्षीय युवती हूं. मैं स्वस्थ हूं और नियमित व्यायाम करती हूं. मेरा मासिकचक्र भी नियमित रहता है. लेकिन इस की उत्तरावस्था में माह में मुझे कम से कम 2 बार रक्तस्राव होता है, जिस से दूसरा रक्तस्राव लंबे समय तक नहीं होता. इस के अलावा योनि से सफेद डिस्चार्ज भी होता है. मुझे सहवास के दौरान भी हलका दर्द होता है लेकिन प्रारंभिक प्रवेश के बाद दर्द समाप्त हो जाता है. क्या मुझे ऐंडोमैट्रियल कैंसर हो सकता है? इस का उपचार क्या है?

जवाब-

27 वर्ष की अवस्था में ऐंडोमैट्रियल कैंसर की संभावना काफी कम होती है. लक्षणों का कारण पैल्विक इन्फ्लैमेट्री डिजीज होता है, जिस का ऐंटीबायोटिक्स द्वारा आसानी से उपचार किया जा सकता है. यदि मासिकधर्म लंबे समय तक अनियमित रहता है, तो डायलेशन ऐंड क्योरटेज (डीएनसी) किया जा सकता है.

सवाल-

मैं 33 वर्षीय महिला हूं. 3 माह का गर्भ है. करीब 2 वर्ष पूर्व गर्भपात हो गया था. मेरे गर्भाशय का आकार सामान्य से बड़ा है. मैं ने सुना है कि यह कैंसर का लक्षण है. क्या मुझे कैंसर है?

जवाब-

यह जैस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (जीटीडी) का लक्षण है. यदि आप का चिकित्सक यह सोचता है कि इस में चिंता की कोई बात नहीं है, तो फिर चिंता नहीं करनी चाहिए. अल्ट्रासाउंड से इस की पुष्टि की जा सकती है. प्राय: गर्भावस्था के दौरान खून की कमी हो जाती है. अत: आयरन से भरपूर भोजन कीजिए.

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सवाल-

मैं 22 वर्षीय लड़की हूं. मेरी मां 2 माह पहले स्तन कैंसर से गुजर गई थीं. कैंसर उन के फेफड़ों और अन्य अंगों तक पहुंच गया था. मैं भी स्वयं को कैंसर के खतरे के दायरे में मानती हूं तथा यह जानना चाहती हूं कि मुझे कितनी पहले जांच करा लेनी चाहिए? मेरे लिए इस से बचने का कोई उपाय है?

जवाब-

आप जांच के लिए देरी न करें. किसी भी आयु में अल्ट्रासाउंड कराया जा सकता है. लेकिन मैमोग्राफी 40 वर्ष की अवस्था में कराई जानी चाहिए. बीआरसीए के उत्परिवर्तन के साथ नवीनतम डाइगनोज्ड महिलाओं के लिए सुनियोजित उपचार की अब भी खोज की जा रही है. किसी ओन्कोलौजिस्ट से संपर्क करें.

डा. एस.के. दास

सीनियर कंसल्टैंट, गाइनीओन्कोलौजी,

ऐक्शन कैंसर हौस्पिटल.

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हार्ट फेल्योर से जुड़े सवालों का जवाब दें?

सवाल-

मेरे सहकर्मी को हार्ट फेल्योर की शिकायत रहती है. इस का क्या मतलब है? क्या हृदय वाकई काम करना बंद कर देता है?

जवाब-

हार्ट फेल्योर एक स्थिति है जिस में कमजोर हृदय खून की सामान्य मात्रा पंप करने में सक्षम नहीं होता. इस से वह पूरे शरीर में औक्सीजन और पोषक तत्त्व प्रभावी ढंग से नहीं पहुंचा पाता. हार्ट फेल्योर को बीमारी नहीं कहा जा सकता. यह एक क्रौनिक सिंड्रोम है, जो आमतौर पर धीरेधीरे विकसित होता है. इस से शरीर को सामान्य ढंग से काम करते रहने के लिए पोषण मिलना कम होता जाता है.

हार्ट फेल्योर की स्थिति अकसर इसलिए बनती है कि या तो आप की मैडिकल स्थिति ऐसी बन जाती है या फिर पहले से ऐसी होती है. इस में कोरोनरी आर्टरी डिजीज, हार्ट अटैक या उच्च रक्तचाप शामिल है. इस से आप का हृदय क्षतिग्रस्त हो गया होता है या उस पर अतिरिक्त कार्यभार पड़ गया होता है. इसे भले ही हार्ट फेल्योर कहा जाता है पर इस का मतलब यह नहीं कि आप का हृदय काम करना बंद करने वाला है. इस का मतलब है कि आप के हृदय को आप के शरीर की जरूरतें पूरी करने में खासकर गतिविधियों के दौरान मुश्किल हो रही है.

सवाल-

मुझे रात में सांस लेने में असुविधा होती है. क्या यह हार्ट फेल्योर का लक्षण है?

जवाब-

हार्ट फेल्योर के आम लक्षण हैं:

खांसी, थकान, कमजोरी, बेहोशी के लक्षण व भूख नहीं लगना.

नब्ज का तेज या अनियमित चलना या फिर हृदय की धड़कन तेज होने का एहसास होना.

आप जब सक्रिय हों या लेटे हों तो सांस तेज चलना.

सूजा हुआ लिवर (यकृत) या फूला हुआ पेट.

सवाल-

हार्ट फेल्योर के कारण क्या हैं?

जवाब-

हार्ट फेल्योर कई भिन्न कारणों से हो सकता है. इस में लंबे समय से उच्च रक्तचाप रहना, कोरोनरी आर्टरी डिजीज, कभी हार्ट अटैक होना, हार्ट वाल्व का बीमार होना, हृदय की अनियमित धड़कन, अनियंत्रित डायबिटीज, शराब का सेवन, अवैध नशा (जैसे कोकीन) और कुछ दवाएं (जो कीमोथेरैपी में उपयोग में लाई जाती हैं उन के जैसी), हृदय से जुड़ी जन्मजात समस्याएं (कोजेनीटेल हार्ट डिजीज) और हृदय की मांसपेशियों में संक्रमण या सूजन जैसी चीजें शामिल हैं. हार्ट फेल्योर किसी भी ऐसी समस्या के कारण हो सकता है, जो आप के हृदय को क्षतिग्रस्त कर सकता है तथा इस के अच्छे ढंग से काम करने को प्रभावित कर सकता है.

सवाल-

मैं 45 साल का हूं और शराब पीता रहा हूं. हाल के दिनों में मुझे हार्ट फेल्योर जैसे लक्षण महसूस हुए हैं. मुझे यह कैसे पता चलेगा कि यह गंभीर है कि नहीं? क्या हार्ट फेल्योर का पता लगाया जा सकता है और इसे ठीक किया जा सकता है?

जवाब-

हार्ट फेल्योर को ठीक नहीं किया जा सकता पर टैक्नोलौजी में नई प्रगति और दवाओं की खोज का नतीजा है कि इस पर कंट्रोल किया जा सकता है. जीवनशैली में उपयुक्त परिवर्तन से इस बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है, इसलिए बीमारी का समय रहते पता चलना और उपचार महत्त्वपूर्ण है. चिकित्सक कुछ परीक्षणों के जरीए इस का पता लगाता है जिन में सीने का एक्सरे, खून और पेशाब की जांच और एक इलैक्ट्रोकार्डियोग्राम शामिल है. इस जांच में दर्द नहीं होता. इस के लिए छोटेछोटे चिपचिपे टुकड़े जो कंप्यूटर से जुड़े होते हैं, आप के सीने पर रखे जाते हैं और कंप्यूटर आप के सीने की सूचना रिकौर्ड करता है.

इस के अलावा, डाक्टर इकोकार्डियोग्राम कर सकता है. इस में एक प्रोब को आप के सीने पर घुमाना होता है. इस से डाक्टर जान सकता है कि आप का हृदय कितनी अच्छी तरह पंपिंग (इजैक्शन फ्रैक्शन) कर सकता है, वाल्व ठीक काम कर रहे हैं कि नहीं, हृदय की दीवार की मोटाई कितनी है और चैंबर का आकार क्या है.

इजैक्शन फ्रैक्शन एक माप है जिस से पता चलता है कि आप का हृदय कितनी अच्छी तरह पंपिंग कर रहा है. स्वस्थ हृदय वाले लोगों का इजैक्शन फ्रैक्शन अमूमन 60% या कम होता है. हार्ट फेल्योर वाले ज्यादातर लोगों का इजैक्शन फ्रैक्शन 40% या इस से भी कम होता है.

सवाल-

हार्ट फेल्योर का उपचार कैसे किया जाता है?

जवाब-

हार्ट फेल्योर के उपचार की दिशा में इधर कुछ महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, इसलिए हार्ट फेल्योर के शिकार कई लोग सामान्य जीवन जी सकते हैं और अस्पताल में दाखिल किए जाने का जोखिम भी कम रहता है. अगर आप के हार्ट फेल्योर होने का पता चला है तो कई दवाएं ऐसी हैं, जो आप के लक्षण ठीक करने के लिए एकसाथ काम करती हैं और आप के हार्ट फेल्योर को और खराब होने से बचाए रखने में सहायता करती हैं. सही भोजन और नियमित व्यायाम के साथ इन दवाओं के सेवन से आप को अपना स्वास्थ्य ठीक करने में सहायता मिलती है. इस के अलावा कार्डियैक रिसिंक्रोनाइजेशन थेरैपी (सीआरटी) को हार्ट फेल्योर के प्रभावी उपचारों में से एक माना जाता है. इस में इंप्लाट किए जाने वाले उपकरण का उपयोग किया जाता है, जो हृदय की पंप करने की कार्यकुशलता बेहतर करता है.

सवाल-

मेरे पिताजी को पिछले साल एक बार हार्ट फेल्योर हुआ था. हाल में मेरी मां ने वैसे ही लक्षण महसूस करने शुरू कर दिए हैं. क्या महिलाओं में भी हार्ट फेल्योर होता है? क्या मेरी मां जोखिम में हैं?

जवाब-

आमतौर पर महिलाओं में हार्ट फेल्योर का जोखिम वही होता है, जो पुरुषों में है. लेकिन कुछ जोखिम महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले अलग तरह से प्रभावित कर सकते हैं. जैसे डायबिटीज महिलाओं में हार्ट फेल्योर का जोखिम ज्यादा बढ़ाता है. इस के अलावा कुछ जोखिम जैसे गर्भ नियंत्रण की गोलियां और रजोनिवृत्ति सिर्फ महिलाओं को प्रभावित करते हैं.

– डा. जे.एस. मक्कड़

इटरनल हार्ट केयर सैंटर ऐंड रिसर्च इंस्टिट्यूट, जयपुर

माइग्रेन में फायदेमंद हैं ये पांच फूड

माइग्रेन की प्रॉब्लम बहुत कॉमन हो गई है. ये दर्द कभी भी और कहीं भी हो सकता है. यूं तो माइग्रेन होने के कई कारण हो सकते हैं लेकिन ये एक अनुवांशिक बीमारी भी है. मतलब, अगर आपके घर में कोई माइग्रेन का पेशेंट रह चुका है तो हो सकता है कि उसकी ये प्रॉब्लम ट्रांसफर हो जाए.

माइग्रेन में सिर के एक ओर तेज दर्द उठता है. इस दर्द को बर्दाश्त कर पाना वाकई बहुत मुश्क‍िल है. उल्टी आना, चक्कर आना और थकान महसूस होना माइग्रेन के प्रमुख लक्षण हैं. माइग्रेन का दर्द सिर के एक हिस्से में होता है इसलिए इसे आम बोलचाल में अधकपारी भी कहते हैं.

माइग्रेन के दर्द को कम करने के लिए कई तरह की दवाइयां मौजूद हैं लेकिन आप चाहें तो कुछ घरेलू उपाय अपनाकर भी माइग्रेन के दर्द को कम कर सकते हैं. कुछ डाइट्स ऐसी हैं जो माइग्रेन की प्रॉब्लम को कम करने का काम करती हैं. खाने-पीने की इन चीजों से आप चाहें तो माइग्रेन की प्रॉब्लम को काफी हद तक कंट्रोल कर सकती हैं.

माइग्रेन होने के कई कारण हो स‍कते हैं. कई बार ये टेंशन की वजह से हो जाता है और कई बार हमारी अस्त-व्यस्त लाइफस्टाइल के चलते. ऐसे में कोशिश करें कि टाइम पर खाएं, सही खाएं और पूरी नींद लें .

इन चीजों को डाइट में शामिल करके आप भी कम कर सकते हैं माइग्रेन का दर्द

1. हरी पत्‍तेदार सब्‍जियां खाकर

हरी पत्तेदार सब्ज‍ियों में पर्याप्त मात्रा में मैग्नीशि‍यम पाया जाता है. माइग्रेन के दर्द में मैग्नीशियम बहुत ही कारगर तरीके से काम करता है. अनाज, सी-फूड और गेंहूं में भी भरपूर मात्रा में मैग्नीशियम होता है.

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2. मछली खाना भी रहेगा फायदेमंद

मछली में ओमेगा 3 फैटी एसिड और विटामिन ई पाया जाता है. ये दोनों ही चीजें माइग्रेन के दर्द को कंट्रोल करने में मदद करते हैं.

3. डाइट में जरूर शामिल करें दूध

माइग्रेन में फैट फ्री दूध पीना बहुत फायदेमंद रहेगा. दूध में विटामिन बी पाया जाता है. जो सेल्स को एनर्जी देने का काम करता है. कई बार ऐसा होता है कि दिमाग की नसें सुस्त पड़ जाती हैं और माइग्रेन का दर्द शुरू हो जाता है. ऐसे में में विटामिन बी उन्हें एनर्जी देने का काम करता है.

4. कॉफी पीना भी है फायदेमंद

जिस तरह नॉर्मल सि‍र दर्द में कॉफी और चाय पीना फायदेमंद है उसी तरह माइग्रेन में भी ये काफी मददगार है. माइग्रेन अटैक  आने पर कॉफी पीने से राहत मिलेगी.

5. रेड वाइन भी है बेहतर विकल्प

वाइन और बीयर में टायरामाइन पाया जाता है जो माइग्रेन के दर्द को दूर करने में मदद करता है.

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6. ब्रॉकली

ब्रॉकली में भरपूर मात्रा में मैग्नीशि‍यम पाया जाता है. जिससे माइग्रेन के दर्द में राहत मिलती है.

क्या लंबाई बढ़ाने वाले कैप्सूल इस में कुछ मदद कर सकते हैं?

सवाल-

मेरी लंबाई 4 फुट 11 इंच और उम्र 15 साल है. अब मेरी लंबाई बढ़नी रुक गई है. क्या लंबाई बढ़ाने वाले कैप्सूल इस में कुछ मदद कर सकते हैं? और मेरे लिए कौनकौन से व्यायाम उपयोगी होंगे?

जवाब-

इस संदर्भ में किए गए अध्ययनों के अनुसार भारतीय किशोरियों की लंबाई प्राय: 16-17 साल तक बढ़ती है. इस दृष्टि से आप अभी कम से कम अगले 1-2 साल तक लंबाई बढ़ने की उम्मीद रख सकती हैं. असल में लंबाई का पूरा जोड़तोड़ जीन्स से जुड़ा है. तंदुरुस्ती, समुचित पौष्टिक आहार, शारीरिक व्यायाम, पर्याप्त नींद इस गणित में चार चांद लगाते हैं. अगर आप तंदुरुस्त हैं तो आप को किसी भी दवा की जरूरत नहीं है. विज्ञापनों के जोर पर बिकने वाली गोलियां व कैप्सूल मात्र पैसा बनाने का गोरखधंधा हैं. उन्हें लेने से सिर्फ जेब हलकी होती है, कोई लाभ नहीं होता. आप कोई भी व्यायाम कर सकती हैं. जौगिंग, तैराकी या साइक्लिंग सभी अच्छे हैं. उन से ग्रोथ हारमोन में वृद्धि का लाभ उठाया जा सकता है. यह आप के ऊपर है कि आप कौन सा व्यायाम चुनें.

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बच्चों की हाइट में रुकावट आना माता-पिता के लिए चिंता का कारण बन जाता है. वैसे तो लड़कों की हाइट 25 वर्ष तक और लड़कियों की हाइट 18 वर्ष तक बढ़ती है. ज़्यादातर बच्चों की हाइट उनके माता-पिता के अनुसार ही होती है जिसे हम जेनेटिक बोलते है, लेकिन कई बार बच्चों की हाइट माता -पिता जितनी भी नहीं बढ़ती इसकी वजह हार्मोन का ग्रोथ न होना हो सकता है.
कम हाइट के वजह से बच्चों के व्यवहार में भी बदलाव देखने को मिलता है. कई बार कम हाइट वाला बच्चा बाकी बच्चों के सामने खुद को कमजोर समझने लगता है, ऐसा देखा भी गया है जिन बच्चों की हाइट कम होती है उन में चिढ़चिढ़ापन ज्यादा आ जाता है. अगर आप को भी अपने बच्चों के हाइट में ग्रोथ नजर नहीं आ रही तो आप इन टिप्स को जरूर अपनाएं.

एक्सरसाइज है जरूरी

बच्चों को सुबह एक्सरसाइज करवाना बहुत जरूरी है. हालांकि बच्चे सुबह उठना पसंद नहीं करते, लेकिन बच्चों के लिए आप को भी थोड़ी सी मेहनत करनी पड़ेगी. एक्सरसाइज में आप बच्चों से स्ट्रेचिंग, जमपिंग और दौड़ लगवा सकते है. बच्चों के अच्छी ग्रोथ के लिए साइकलिंग भी जरूरी है. बच्चों से सुबह शाम साइकलिंग जरूर करवाएं.

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खाने पर रखें खास ध्यान

अगर बच्चों का खानपान सही हो तो बच्चों की हाइट भी बढ़ती है और वह हेल्दी के साथ एक्टिव भी नजर आते है. इसलिए बचपन से ही बच्चों का खानपान का खास ध्यान रखना चाहिए. आइए जानते है बच्चों के ग्रोथ के लिए उन्हें क्या खिलाना चाहिए.

ब्लडप्रैशर कंट्रोल करने के लिए क्या करना चाहिए?

सवाल-

मेरे पति को पान खाने की आदत है और वे पान में मुलेठी डलवाना भी पसंद करते हैं. उन का स्वास्थ्य यों तो ठीक है, पर उन का ब्लडप्रैशर कभीकभी बढ़ जाता है. इधर पिछले 6-7 महीनों से वे दवा ले रहे हैं जिस से ब्लडप्रैशर कंट्रोल में है. हाल ही में मेरे जीजाजी हमारे यहां आए थे. उन्होंने हमें बताया कि ब्लडप्रैशर बढ़े होने पर मुलेठी खाना ठीक नहीं, क्योंकि यह ब्लडप्रैशर बढ़ाती है. पर मेरे पति का कहना है कि उन्होंने तो ऐसा कहीं नहीं पढ़ा. आप ही बताएं कि सच क्या है?

जवाब- 

आप के जीजाजी ने बिलकुल वाजिब सलाह दी है. यह बात सच है कि मुलेठी का सेवन करने से ब्लडप्रैशर बढ़ता है और ब्लडप्रैशर की दवाएं भी अपना असर ठीक से नहीं दिखा पातीं और अगर ब्लडप्रैशर बढ़ा रहे तो पूरे शरीर पर बुरा असर पड़ता है. अधिक दाब बने रहने से शरीर को ऊर्जा देने वाली धमनियां अपना लचीलापन गवां बैठती हैं और पत्थर जैसी सख्त होती जाती हैं. इस का असर आदमी के हृदय, मस्तिष्क, आंखों और गुरदों पर पड़ता है और न सिर्फ उम्र घटती है, बल्कि तरहतरह के शारीरिक कष्टों का अंदेशा बना रहता है. अपने पति को समझाएं कि वे ब्लडप्रैशर नियंत्रण में रखें ताकि संभावित दुष्प्रभावों पर रोक लगी रहे. अध्ययनों से पता चला है कि ब्लडप्रैशर काबू में रखने के कई बड़े लाभ हैं. इस से ब्रेन स्ट्रोक होने की दर 35-40%, दिल की बीमारी होने की दर 20-25% और हार्ट फेल्योर की दर 50% कम हो जाती है.

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ब्लडप्रैशर या हाइपरटैंशन की समस्या आज आम समस्या बन गई है, जो जीवन शैली से जुड़ी हुई है, लेकिन कहते हैं न कि भले ही समस्या कितनी ही बड़ी हो लेकिन समय पर जानकारी से ही बचाव संभव होता है. ऐसे में जब पूरी दुनिया पर कोविड-19 का खतरा है, तब आप अपने लाइफस्टाइल में बदलाव ला कर हृदय रोग और हाई ब्लडप्रैशर के खतरे को काफी हद तक कंट्रोल कर सकते हैं. इस संबंध में जानते हैं डा. के के अग्रवाल से:

हाइपरटैंशन क्या है

खून की धमनियों में जब रक्त का बल ज्यादा होता है तब हमारी धमनियों पर ज्यादा दबाव पड़ता है, जिसे हम ब्लडप्रैशर की स्थिति कहते हैं. ये 2 तरह के होते हैं एक सिटोलिक ब्लडप्रैशर और दूसरा डायास्टोलिक ब्लडप्रैशर. 2017 की नई गाइडलाइंस के अनुसार अगर ब्लडप्रैशर 120/80 से कम हो तो उसे उचित ब्लडप्रैशर की श्रेणी में माना जाता है. इस की रीडिंग मिलीमीटर औफ मरकरी में नापी जाती है.

130/80 एमएम एचजी से ऊपर हाई ब्लडप्रैशर होता है. अगर ब्लडप्रैशर 180 से पार है, तब तुरंत इलाज की जरूरत होती है. वरना स्थिति गंभीर हो सकती है.

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बता दें कि हाइपरटैंशन के लिए निम्न कारण जिम्मेदार हैं:

– उम्र सब से बड़ा कारक माना

जाता है, क्योंकि उम्र बढ़ने के कारण रक्त धमनियां की इलास्टिसिटी में कमी आने के साथसाथ होर्मोन्स में उतार चढ़ाव आने से ब्लडप्रैशर के बढ़ने का खतरा बना रहता है.

– अस्वस्थ जीवन शैली की वजह से भी हाइपरटैंशन की समस्या होती है. क्योंकि जब हमारी

शारीरिक गतिविधि कम होने से हमारा वजन बढ़ता है, तब हाइपरटैंशन की समस्या होती है, क्योंकि दिल को औक्सीजन की आपूर्ति करने के लिए ज्यादा खून पंप करना पड़ता है, जिस से रक्त पर दबाव पड़ता है.

एक प्याली चाय के हैं फायदे अनेक

‘ए क प्याली चाय’ यह सुनते ही शरीर की सारी थकान दूर हो जाती है. अपने देश का सब से सस्ता, आसानी से हर जगह उपलब्ध और आम जन के प्रिय पेय पदार्थों में से एक है ‘चाय’. मौका किसी भी तरह का हो, हर मौके पर एक प्याली चाय मौजूद रहती है. आफिस के ऊंघते माहौल में चाय स्फूर्ति जगाती है. यही नहीं कड़कड़ाती ठंड में शरीर व दिमाग को गरमाहट देती चाय, मरीज को भी राहत देती है.

चाय की चाह में इस के ज्यादा इस्तेमाल के बाद लोगों में भूख न लगने की या पेट में जलन की शिकायत रहती है. फिर डाक्टर की सलाह कि चाय का सेवन कम करें, लेकिन इस के बावजूद आम लोगों में चाय जहां फायदे के रूप में मशहूर है वहीं डाक्टर भी इसे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक मानते हैं, पर समस्या यह है कि पूरे देश में इसे जिस तरह बना कर पिया जाता है वह गलत है.

चाय के गुण

चाय में एंटी आक्सीडेंट के गुण पाए जाते हैं, जो दिल और कोलेस्ट्राल को सही रखते हैं, यही नहीं जवानी को बरकरार रखने में भी चाय सहायक होती है. यह शरीर में ताजगी, त्वचा में चमक और थकान दूर करने का काम भी करती है.

कैसे है नुकसानदायक चाय

इन तमाम गुणों के बावजूद चाय व्यक्ति के लिए कैसे नुकसानदेह बन जाती है. असल में भारत में चाय बनाने का तरीका गलत है. चाय को जब दूध और चीनी के साथ उबाला जाता है तो वह अपने औषधीय गुण खो देती है और शरीर को नुकसान पहुंचाती है. पश्चिम के विकसित देशों के लोग जानते हैं कि चाय को अगर बिना दूध के उबाल कर  पीया जाए तो वह सेहत और त्वचा दोनों के लिए फायदेमंद होगी. भारतीय लोगों का मानना है कि बिना दूध की चाय का कोई स्वाद नहीं होता जबकि सेहत और सीरत दोनों के हिसाब से नीबू की चाय सही मानी गई है.

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आमतौर पर चाय 3 तरह की होती है. सफेद, हरी और काली. इन में सफेद चाय का सब से ज्यादा प्राकृतिक रूप है, जिस में उस की अपनी एक मिठास होती है और वह पीते ही मन में उमंग भर देती है. चिकित्सकों के अनुसार सफेद चाय में एंटी आक्सीडेंट पाए जाते हैं, जो कैंसर से बचाव करते हैं. अनुसंधान और सर्वे के अनुसार हरी चाय वायरस, बैक्टीरिया से होने वाले रोगों से बचाती है. यह हृदय रोग से संबंधित बीमारी को कम करने में भी मदद करती है. इस में भी कैंसर को रोकने की क्षमता ज्यादा होती है. काली चाय सेहत के लिहाज से सफेद और हरी चाय से कम फायदेमंद होती है.

महिलाओं के लिए लाभ

मेनोपाज के बाद महिलाओं में एस्ट्रोजन की मात्रा बढ़ाने में चाय मदद करती है. इस का लगातार इस्तेमाल स्ट्रोक जैसी बीमारी को भी दूर रखने में मदद करता है. महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन की मात्रा घटने से उन में चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है. काली चाय में कैफीन मस्तिष्क को चार्ज करता है तथा ?नसों को सही तरीके से चलाने में मदद करता है. हमें अपने मस्तिष्क की कोशिकाओं को बचाना जरूरी होता है क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ दिमाग में न्यूरान की मात्रा घटती जाती है. कई लोगों में इसी वजह से अल्जाइमर और पार्किंसन रोग पनपने लगते हैं. हरी और सफेद चाय दिमाग की कोशिकाओं को सक्रिय रखने में मदद करती है. चाय, जिसे हर रोज इस्तेमाल किया जाता है, हम अपनी नासमझी की वजह से उस के महत्त्वपूर्ण गुणों का लाभ नहीं उठा पाते हैं. सही तरीके से तैयार की गई चाय स्वाद के साथसाथ सेहत को भी सही रखती है.

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Winter Special: सर्दी में पानी भी है जरूरी

सर्दी शुरू होते ही खानपान की खपत भले ही बढ़ जाती हो पर पानी की खपत काफी कम हो जाती है. सर्दी में त्रिशला अकसर बीमार हो जाती है. उसे कब्ज, गैस व ऐसी ही अन्य समस्याओं से दोचार होना पड़ता है. उसे ताज्जुब है कि कोई समस्या ऐसी नहीं है जो खासतौर पर सर्दी में होने वाली अथवा सर्दी में हावी हो जाने वाली हो. फिर यह सब उसे क्यों हो रहा है?

एक कौर्पोरेट कंपनी में काम करने वाले सुशील कुमार कहते हैं कि उन का खानापीना, घूमना ठंड में ज्यादा होता है. वे सर्दी को मन से पसंद करते हैं. पता नहीं क्या बात है कि सर्दी में वे बुखार, संक्रमण आदि की चपेट में ज्यादा ही आते हैं. कई बार तरहतरह की डाक्टरी जांच करवाई. तब जा कर पता चला कि पानी की कमी से वे तरहतरह के संकट से घिरते व जूझते हैं.

जल बिन सब सून

पानी या जल को जीवन माना व कहा जाता है. शरीर की बनावट में 55 से 75 फीसद जल है. शरीर जितना कम फैटमय होगा, मांसपेशियों में जलधारण की क्षमता उतनी ही ज्यादा होती है. इसीलिए मोटे लोगों की तुलना में पतले लोगों के शरीर में जल ज्यादा पाया जाता है.

शरीर अपनी गतिविधियों के चालनसंचालन में काफी पानी खर्च करता है. उदाहरणार्थ दिनरात सांस लेने तथा छोड़ने में ही करीब सवा गिलास पानी खर्च हो जाता है. पसीने और मूत्र के रूप में शरीर की गंदगी को बाहर निकालने में पानी की महत्त्वपूर्ण मात्रा खर्च होती है. बारबार पानी पीपी कर हम उपयोग में आ चुके जल की क्षतिपूर्ति करते हैं.

शरीर से 10 फीसदी तरल पदार्थ कम हो जाने पर किसी भी मौसम में डिहाड्रेशन का खतरा बढ़ जाता है. इसीलिए शरीर को स्वस्थ, ऊर्जामय रखने तथा किडनी जैसे अंगों के सम्यक चालन के लिए बारबार पानी पीते रहना जरूरी है.

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कितना पीएं पानी

शरीर का सिस्टम ही इतना मुस्तैद है कि जब भी शरीर को पानी की जरूरत होती है, तो वह प्यास के द्वारा बता देता है. फिर भी कई लोग काम की व्यस्तता में पानी पीना भूल भी जाते हैं. कुछ को पानी स्वादिष्ट नहीं लगता. वैसे कितना पानी लिया जाए, यह हमारी शारीरिक संरचना, काम के तौरतरीकों तथा वातावरण पर निर्भर करता है.

अमेरिकन इंस्टिट्यूट औफ मैडिसिन ने शरीर के लिए पानी की पर्याप्त ग्राह्यता पर रिसर्च की है. इस में एक दिन में महिलाओं के लिए 2.2 लिटर पानी तथा पुरुषों के लिए 3 लिटर पानी की सिफारिश की गई है.

क्या है पानी के विकल्प

आहार तथा पोषण विज्ञानी इशी खोसला कहती हैं, ‘‘चाय, कौफी व ऐसे ही तरल पदार्थों से शरीर को कुछ पानी मिलता है परवे पानी की क्षतिपूर्ति नहीं कर सकते. कम कैलोरी वाले तरल पदार्थ से शरीर ज्यादा अच्छी तरह चुस्तदुरुस्त रहता है.’’ यूनिवर्सिटी औफ मेरीलैंड मैडिकल सैंटर ने शोध में पाया है कि पानी के बाद चाय विश्व में सब से ज्यादा पसंद किया जाने वाला पेय है परंतु यह पानी का विकल्प नहीं है.

कब पीएं, कब न पीएं

कब पानी पीया जाए कब नहीं, इसे ले कर लोगों में तरहतरह के भ्रम व्याप्त हैं. कुछ भोजन से आधे घंटे पहले व आधे घंटे बाद तक पानी न पीना पाचनतंत्र के लिए श्रेष्ठ बताते हैं तो कुछ लोग मानते हैं कि भोजन के पहले या करते ही अथवा बीचबीच में पानी पीते रहने से ही वे पूरी तरह स्वस्थ हैं. नए शोध इस क्षेत्र में काफी मददगार हैं.

अमेरिकन कैमिकल सोसाइटी ने इस संबंध में शोध करने पर पाया कि खाने के पहले पानी पी लेने से 3 महीने में करीब सवा 2 किलो वजन कम होने के परिणाम दिखे क्योंकि भोजन से पहले ग्रहण किया गया पानी भोजन में 75 से 90 फीसदी कैलोरी कम ग्रहण करने में मददगार साबित होता है. खाने के बाद छोटी आंत में भोजन पहुंचता है. वहां भोजन से विटामिन मिनरल, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन आदि के अलग होने की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है. इस प्रक्रिया में पानी प्रौपर लुब्रिकैंट का काम करता है. इस तरह यह शोध भोजन के बीच में पीए गए पानी को भोजन पाचन में मददगार साबित करता है.

फल सेवन के समय पानी पीना ठीक नहीं क्योंकि पेट में मौजूद एसिड फलों के बैक्टीरिया का मुकाबला करते हैं, ऐसे में पानी एसिड की ऊर्जा तथा ताकत को घटा देता है.

इशी खोसला के अनुसार पानी कैसा पीया जाए, आप मौसम के हिसाब से तय कर सकते हैं. कैलोरी बर्न करने में गरम या ठंडा पानी अलग से कोई खास भूमिका नहीं निभाता. लेकिन शरीर को डिटौक्सिफाई करने में गुनगुना पानी मददगार है.

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सौंदर्यवर्द्धन में अहम भूमिका

पानी थकान तथा तनावहारी होता है. तरोताजा रखने के साथ ही वह त्वचा की चमकदमक में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. पानी प्राकृतिक पोषक और नैचुरल क्लींजर है. बेजान त्वचा को जानदार बनाता है, वहीं झुर्रियों से भी मुक्ति दिलाता है. पानी त्वचा की कोशिकाओं के लिए प्रमुख तत्त्व है. त्वचा की बाहरी नमी में मौइश्चराइजर की भूमिका की तरह यह भीतरी नमी व पोषण देता है.

कैलिफोर्निया विश्व विद्यालय के प्रोफैसर हार्वर्ड ने ‘वाटर सीक्रेट : दि सैल्युलर बे्रकथू्र’ नामक अपने जल विषयक शोध में पाया कि पर्याप्त जलसेवन से आप ज्यादा साल तक जवान व सुंदर दिख सकते हैं. स्नान करने की सौंदर्य के साथसाथ स्वस्थता में महत्त्वपूर्ण भूमिका है. शरीर के भीतर के पानी को शरीर विभिन्न गतिविधियों के द्वारा उपयोग में ला कर बाहर निकाल देता है. बाहरी पानी को हमें समय पर पोंछ कर सुखाना चाहिए. हाथ धोने के बाद उन्हें पोंछना चाहिए. इस से हाथों में बीमारीवाहक बैक्टीरिया हाथ से दूर हो जाते हैं वरना हाथों में ही रहने से इन की संख्या घटने के बजाय बढ़ जाती है. इसी तरह जांघों, बगलों तथा घुटनों व उंगलियों की खोह में घुसा पानी कई बार फंगल इन्फैक्शन का मुख्य कारण बन जाता है. इसलिए जिस्म से पानी को पोंछना भी आवश्यक है.

शुद्ध जल की कमी भी कई रोगकारक है, इसलिए स्वच्छ जल का सेवन किया जाए. भोजन निर्माण में आंच की गरमी से जल के कीटाणु मर जाएंगे, यह सोच ठीक नहीं. भोजन निर्माण भी स्वच्छ जल से करना चाहिए.

पानी की कमी स्वास्थ्य के लिए खतरनाक

सर्दी के दिनों में प्यास कम लगने के कारण लोग पानी कम पीते हैं. शरीर में पानी की कमी स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है. इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, दिल्ली की प्रमुख डायटीशियन डा. अनिता जताना का कहना है कि अपने दैनिक आहार में कम से कम 2-3 लिटर पानी या तरल पदार्थ जैसे नीबू पानी, नारियल पानी, ग्रीन टी, लस्सी आदि शामिल करें.

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