मेरी शादी की बात चल रही है, क्या कौंटैक्ट लैंस की बात लड़के वालों को बताई जाए?

सवाल

मैं 23 वर्षीय युवती हूं. रिश्ते की बात चल रही थी. कई अच्छे प्रस्ताव इसलिए हाथ से निकल गए कि उन्हें चश्मा लगाने वाली बहू नहीं चाहिए. मैं ने अब कौंटैक्ट लैंस लगवा लिए हैं ताकि मेरे लिए उपयुक्त वर मिल सके.

1-2 जगह रिश्ते की बात चल भी रही है. क्या उन्हें कौंटैक्ट लैंस की बात बताई जाए? घर में काफी तनातनी चल रही है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब
कौंटैक्ट लैंस चश्मे का बेहतर विकल्प है और यह कोई ऐब नहीं है. शादी से पहले दोनों पक्षों की ओर से पारदर्शिता बरतना जरूरी होता है. यदि आप के घर वाले नहीं चाहते कि लड़के वालों से इस का जिक्र किया जाए तो आप अकेले में लड़के से बात कर सकती हैं.

लड़का समझदार हुआ तो आप की साफगोई का कायल हो जाएगा और शादी के बाद आप को मलाल नहीं होगा कि आप ने उन्हें सचाई से रूबरू नहीं कराया.

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जिस्म का हर अंग बेहद अहम है, लेकिन आंखों से ज्यादा अहम दूसरा अंग नहीं होता. आप के आंखों की रोशनी सही है, देखने में कोई दिक्कत नहीं है तो आप को इस बात की फिक्र नहीं होगी कि आंखों पर कोई आंच आ सकती है. यह और बात है कि उम्र बढ़ने के साथ आंखों की रोशनी आज जैसी मजबूत नहीं रहेगी.

आंखों के सिलसिले में आंख खोलने वाली बात यह है कि आंख से जुड़ी बीमारियों के अलावा भी कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जो आंखों की रोशनी को इतना ज्यादा प्रभावित कर सकती हैं कि इंसान अंधेपन के करीब पहुंच जाए.

विशेषज्ञ डाक्टरों का कहना है कि ऐसी कई बीमारियां हैं जो आंखों से जुड़ीं नहीं होती हैं लेकिन वे आंखों की रोशनी को नुकसान पहुंचा सकती हैं. वे कहते हैं कि डायबिटीज और हाइपरटेनसिव रेटिनोपैथी, तम्बाकू और अल्कोहल एम्ब्लौयोपिया, स्टेरौयड का इस्तेमाल और ट्रामा इंसान को अंधा बना सकते हैं और लोगों को इस का पता बहुत देर से चलता है.

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दूरी न कर दे दूर

अकसर कहा जाता है कि दूरी दिल को निकट लाती है. एकदूसरे को एकदूसरे का महत्त्व पता चलता है. साथ रहते हुए जो बातें महसूस नहीं हो पातीं, वे भी बहुत शिद्दत से महत्त्व के साथ महसूस होती हैं. शादी की शुरुआत में पीहर वालों की दूरी खटकती है, वही धीरेधीरे ससुराल वालों के लिए भी महसूस होने लगती है. पति से दूरी तो खासतौर से खटकती है. एक नवविवाहित जोड़े की पत्नी कहती हैं कि हम अभी हनीमून भी पूरा नहीं कर पाए थे कि पति को विदेश जाना पड़ा. साथ बिताए महज 10 दिन और 3 महीनों की दूरी. दोनों का रोरो कर बुरा हाल. सारे घरपरिवार में पति का मजाक बना. किसी ने उन्हें तुलसीदास कहा तो किसी ने कालिदास. तब औरों के सामने मुंह तक न खोलने वाले पति ने सब से दिलेरी से कहा कि मेरा मजाक उड़ाने का अधिकार उसे ही है जिस ने खुद दिलेरी से जुदाई सही हो. धीरेधीरे सब चुप हो गए. इस जोड़े के पति कहते हैं कि हमें हनीमून के रोमानी दिनों ने ही फर्ज में दक्ष कर दिया. कहां हम मौजमस्ती के लिए घूम रहे थे और कहां साथ ले जाने के लिए सामानों की सूची तैयार कर रहे थे और उन्हें खरीद रहे थे. मैं ने अपनेआप को बहुत अच्छा महसूस किया. पहले दफ्तर के काम के साथ यह काम करता था. तब बहुत दबाव रहता था. मेरा ध्यान अधिकतर कंपनी के काम पर होता था, इसलिए व्यक्तिगत रूप से कुछ न कुछ छूट जाता था. अब कंपनी के काम की तैयारी मैं ने व निजी काम की पूरी तैयारी पत्नी ने की. कुल मिला कर सुखद यात्रा. बाद में सिर्फ उस की कमी थी. लेकिन हम शरीर से दूर थे पर मन से बेहद निकट. इस का श्रेय दूरी को ही है, वरना हम इतनी जल्दी एकदूसरे को नहीं जान पाते. बस कई दंपतियों की तरह लड़तेझगड़ते.

एक और जोड़े के पति कहते हैं कि शादी के चंद महीनों बाद अपनी नौकरी के चलते पत्नी 1 साल के लिए दूर चली गईं. घर में तूफान उठा. सब ने उन्हें नौकरी छोड़ने की सलाह दी. पत्नी भी सहमत थीं पर मैं ने पूरे परिवार को समझाया कि यह मामूली मौका नहीं है. अगर आप उन के लिए कुछ नहीं करेंगे तो उन से उम्मीद पालने का भी किसी को क्या अधिकार है. फिर सब जयपुर से बैंगलुरु आतेजाते रहे. मजे की बात यह है मेरे मांबाप भी पत्नी के साथ रहने लगे. मैं भी 2-3 महीनों में एकाध बार चला जाता था. आज मेरे परिवार के साथ उन का अच्छा तालमेल है. मुझ से ज्यादा लोग उन्हें पूछते हैं.

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खटकती है दूरी

शादी के शुरू में ही नहीं लंबे समय बाद भी दूरी खटकती है. शादी के 20 साल बाद 2 साल के लिए दूर हुई पत्नी कहती हैं कि हम साथ रहने के इतने अभ्यस्त हो गए थे कि सोच भी नहीं सकते थे कि कभी ऐसा मौका भी आएगा. हर काम की व्यवस्था थी. वह बिखर गई. ये बच्चों को पढ़ाते थे. बाजार व बैंक आदि के काम करते थे. मेरे जिम्मे घर था. शुरूशुरू में लगा जैसे मुझ पर पहाड़ टूट पड़ा हो. पर पति ने कई काम औनलाइन करने शुरू किए और बच्चों को भी चैट के माध्यम से अपनी गाइडैंस से जोड़े रखा. हमारा संपर्क बना हुआ था, इसलिए कभी कमी महसूस नहीं हुई. बच्चे इतने जिम्मेदार हो गए कि काफी काम उन्होंने टेकअप कर लिए.

ईमानदार रहना जरूरी

कमला कहती हैं कि उन्हें अमेरिका का वीजा नहीं मिला तो उन के पति अकेले ही वहां गए. इस बीच उन का पुराने प्रेमी से मिलनाजुलना शुरू हो गया. उन के प्रेमी ने उन्हें हवा दी कि अमेरिका में वह कौन सा दूध का धुला बैठा होगा. अचानक शरीर जाग उठा. तन और मन एकदूसरे पर इतने हावी हो सकते हैं, इस का एहसास मुझे अब ज्यादा होने लगा. पति के ईमेल पढ़पढ़ कर उन की बेचैनी व तड़प मुझे बेकार, झूठी व ड्रामा लगने लगी. इस बीच प्रेमी की शादी हो गई. मिलनाजुलना कम हुआ तो मुझे वह स्वार्थी लगने लगा. जब मैं ने उस पर दबाव डाला कि वह भी तो पति के होते हुए उस से मिलती रही है तो उस ने साफ कह दिया कि वह इतना मूर्ख नहीं. अपनी गृहस्थी में कोई आग नहीं लगाना चाहता. वह कोई और विकल्प ढूंढ़ ले तो उसे उस की कमी नहीं लगेगी. जैसे पति की कमी उस ने उस से पूरी की, वैसे ही उस की कमी भी कोई पूरी कर देगा. यह मेरे मन पर करारा चांटा था. मैं सिर्फ टाइमपास, जरूरत और सैक्स औब्जैक्ट थी, यह मुझे अब पता चला. पत्रपत्रिकाओं से मिली गाइडैंस के अनुसार मैं ने इस सदमे का पति से जिक्र नहीं किया पर दंड स्वरूप आजीवन ईमानदार रहने का संकल्प लिया. अपनी गलती के कारण मैं उस पर अमल कर सकी. पति कंपनी बदल कर भारत आ गए. यहां अलगअलग शहर होने पर भी हम महीने में 2 बार मिल सकते थे, जो पहले की तुलना में काफी था.

सकारात्मकता दे सकती है दिशा

ऋतु के पति महीने में 15 दिन टूर पर रहते हैं. उसे शुरू में दूरी खटकती थी, इसलिए उस ने ताश ग्रुप जौइन किया. उस का चसका ऐसा लगा कि पति के साथ होने वाले दिनों में भी वह उन्हें छोड़ कर जाने लगी. इस से तनातनी और आरोपप्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हुआ तो गृहस्थी बिखरने लगी. समय रहते परिवार ने काउंसलिंग की तो उस बुरी लत को छोड़ पाई. उस के पिता ने कहा कि वह चाहे तो एमबीए करने की अपनी हसरत पूरी कर ले. दरअसल, अच्छा लड़का मिलने से अचानक आई शादी की नौबत ने उस की यह इच्छा अधूरी छोड़ दी थी. उसे यह अच्छा लगा. अब पति व पढ़ाई दोनों में उस का उम्दा तालमेल है. रेणु ने कंप्यूटर सीखा ताकि वह पति से चैट और मेल द्वारा संपर्क रख सके. वह पहले की तुलना में काफी कम समय ही अपने को खाली या पति से दूर समझती है. वह पत्रपत्रिकाएं पढ़ती है, कुकिंग करती है और नईनई चीजें सीखती है. एकदूसरे से दूर रहने वाले दंपती क्रिएटिविटी के जरीए भी जीवन अच्छा चलाते हैं. कुछ लोग रचनात्मक काम सीख कर, सिखा कर या कोई हुनर सीख कर इस बिछोह और दूरी को पाट सकते हैं.

दूरी चुनौती है

हमसफर से दूरी होने पर अपनेआप को, निजी संबंधों, परिवार तथा सामाजिकता सब को देखनापरखना पड़ता है. इसे सहज चुनौती मान कर स्वीकार किया जाए तो जीवन आसान हो जाता है. हर एक के जीवन में कोई न कोई चुनौती आती जरूर है. उस से भाग कर जीवन जिया नहीं जा सकता. उसे झेल कर व जीत कर जीना बहुत सुखद व संतोषदायक होता है. गरमी के बाद वर्षा सुखद लगती है. भूखप्यास के बाद भोजनपानी कितना स्वादिष्ठ लगता है.

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भटकें नहीं

एकदूसरे से दूर रहना दंपतियों के लिए सब से बड़ी चुनौती है, जिस में कुछ भटक जाते हैं. सैक्स को दूरियों के बावजूद मैनेज किया जा सकता है. मनोचिकित्सक डा. अंजू सक्सेना कहती हैं कि हमारे पास जब ऐसे लोग आते हैं, तो हम उन्हें सब से पहले क्रिएटिव होने की सलाह देते हैं. इस से वे अपनी पहचान बनाना व संतोष पाना सीखते हैं. वैसे हमें लोग खुद ही बताते हैं कि वे क्या करते हैं. हम से वे सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि उन का यह तरीका ठीक है या नहीं. कुछ स्त्रियां कहती हैं कि वे खूब थकाने वाले काम या व्यायाम करती हैं, जिस से सैक्स की जरूरत महसूस होने से पहले ही नींद आ जाए. कुछ मास्टरबेशन से काम चलाते हैं. स्वप्न संभोग भी कई दंपतियों का आधार है. अंजू इन तरीकों को ठीक बताती हैं बशर्ते ये उन की अपनी सोच के हों. चोटिल करने वाले तरीके न हों. कुछ लोग अनजान होने से ऐसे साधन इस्तेमाल करते हैं कि सर्जरी की नौबत आ जाती है या जान पर बन आती है. उन से बचना चाहिए. इन दिनों युवा जोड़े फोन पर संभोग या चैटिंग संभोग व एसएमएस का सहारा ले रहे हैं. यह उन्हें सूट करता है तो ठीक है पर लंबे समय तक यह ठीक नहीं. जुदाई तक कामचलाऊ है.

अंजू महावीर हौस्पिटल में काउंसलिंग करती हैं. वहां जागरूकता के तहत एचआईवी से बचने के लिए कृत्रिम लिंग को निरोध पहना कर उसे डेमो करना पड़ता है. तब कई स्त्रियां उस के प्रयोग के बारे में जानना, पूछना चाहती हैं. अंजू कहती हैं कि किसी तीसरे के प्रवेश व भटकने के बजाय इन साधनों द्वारा गृहस्थी बचा कर भी संतोष पाया जा सकता है. एक और मनोवेत्ता कहती हैं कि शरीर की आवश्यकता कम नहीं. उसे दांपत्य जीवन में नकारा नहीं जा सकता. अत: दंपती हर संभव साथ रहने की कोशिश करें. छोटेमोटे त्याग से भी संभव हो तो भी कोई बुराई नहीं है. पैसा महत्त्वपूर्ण है, लेकिन सुखशाति के लिए जब तक मजबूरी न हो दूर न रहें.

सहयोग भी बहुत कारगर

परिवार अगर दूर हो तो भी परिवार और परिजनों का सहयोग लिया जा सकता है. इस के लिए आवश्यक है कि हम भी औरों का सहयोग करें. एक दंपती बच्चों से दूर हैं. बच्चे कोटा में कोचिंग ले रहे हैं. वे प्रतिमाह बच्चों के पास जाते हैं पर हर हफ्ते दादा, नाना, बूआ, मामा आदि में से कोई जा कर बच्चों से मिल आता है. सुधा अपनी ननद के परिवार में रह रही हैं. 6 महीनों ने उन में अद्भुत प्यार पनपा दिया. पति भी पत्नी की सुरक्षा की फिक्र से मुक्त हैं. शुचि कहती हैं कि उन के पति 6 महीने के लिए स्वीडन गए. उन के जाने के 2 महीने बाद उन्हें बेटी हो गई. उन्होंने उन्हें बच्ची के फोटो आदि भेजे. 6 महीने बाद वे आए. तब तक समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला. मुझे क्रैडिट मिला अकेले बच्चे की परवरिश करने का. माधुरी दीक्षित नैने ने भी योजनापूर्वक अमेरिका व मुंबई के बीच अच्छा तालमेल बनाया और 2 बच्चे संभाले. ऐसे कई उदाहरण हमें मिलेंगे लेकिन ऐसी स्थितियों में सिर्फ पति या पत्नी को ही नहीं, बल्कि दोनों को समायोजन करना पड़ता है. फिर अब तो संपर्क के इतने साधन आ गए हैं, जैसे पहले बिलकुल नहीं थे. उन से दूरियों को पाटा जा सकता है. पहले तो पति कमाने बाहर जाते थे तो लौटने तक कोई संपर्क साधन न थे. इस स्थिति से आंका जाए तो आज परिवहन और संप्रेषण के साधनों ने दूरी को दूरी नहीं रहने दिया है.

जब शादीशुदा जिंदगी पर भारी हो दोस्ती

हफ्ते के 5 दिन का बेहद टाइट शेड्यूल, घर और आफिस के बीच की भागमभाग. लेकिन आने वाले वीकेंड को सेलीब्रेट करने का प्रोग्राम बनातेबनाते प्रिया अपनी सारी थकान भूल जाती है. उस के पिछले 2 वीकेंड तो उस के अपने और शिवम के रिश्तेदारों पर ही निछावर हो गए थे. 20 दिन की ऊब के बाद ये दोनों दिन उस ने सिर्फ शिवम के साथ भरपूर एेंजौय करने की प्लानिंग कर ली थी. लेकिन शुक्रवार की शाम जब उस ने अपने प्रोग्राम के बारे में पति को बताया तो उस ने बड़ी आसानी से उस के उत्साह पर घड़ों पानी फेर दिया.

‘‘अरे प्रिया, आज ही आफिस में गौरव का फोन आ गया था. सब दोस्तों ने इस वीकेंड अलीबाग जाने का प्रोग्राम बनाया है. अब इतने दिनों बाद दोस्तों के साथ प्रोग्राम बन रहा था तो मैं मना भी नहीं कर सका.’’ऐसा कोई पहली बार नहीं था. अपने 2 साल के वैवाहिक जीवन में न जाने कितनी बार शिवम ने अपने बचपन की दोस्ती का हवाला दे कर प्रिया की कीमती छुट्टियों का कबाड़ा किया है. जब प्रिया शिकायत करती तो उस का एक ही जवाब होता, ‘‘तुम्हारे साथ तो मैं हमेशा रहता हूं और रहूंगा भी. लेकिन दोस्तों का साथ तो कभीकभी ही मिलता होता है.’’

शिवम के ज्यादातर दोस्त अविवाहित थे, अत: उन का वीकेंड भी किसी बैचलर्स पार्टी की तरह ही सेलीब्रेट होता था. दोस्तों की धमाचौकड़ी में वह भूल ही जाता था कि उस की पत्नी को उस के साथ छुट्टियां बिताने की कितनी जरूरत है.

बहुत से दंपतियों के साथ अकसर ऐसा ही घटता है. कहीं जानबू कर तो कहीं अनजाने में. पतिपत्नी अकसर अपने कीमती समय का एक बड़ा सा हिस्सा अपने दोस्तों पर खर्च कर देते हैं, चाहे वे उन के स्कूल कालेज के दिनों के दोस्त हों अथवा नौकरीबिजनेस से जुड़े सहकर्मी. कुछ महिलाएं भी अपनी सहेलियों के चक्कर में अपने घरपरिवार को हाशिए पर रखती हैं.थोड़े समय के लिए तो यह सब चल सकता है, किंतु इस तरह के रिश्ते जब दांपत्य पर हावी होने लगते हैं तो समस्या बढ़ने लगती है.

यारी है ईमान मेरा…

दोस्त हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा होते हैं, इस में कोई शक नहीं. वे जीवनसाथी से कहीं बहुत पहले हमारी जिंदगी में आ चुके होते हैं. इसलिए उन की एक निश्चित और प्रभावशाली भूमिका होती है. हम अपने बहुत सारे सुखदुख उन के साथ शेयर करते हैं. यहां तक कि कई ऐसे संवेदनशील मुद्दे, जो हम अपने जीवनसाथी को भी नहीं बताते, वे अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं, क्योंकि जीवनसाथी के साथ हमारा रिश्ता एक कमिटमेंट और बंधन के तहत होता है, जबकि दोस्ती में ऐसा कोई नियमकानून नहीं होता, जो हमारे दायरे को सीमित करे. दोस्ती का आकाश बहुत विस्तृत होता है, जहां हम बेलगाम आवारा बादलों की तरह मस्ती कर सकते हैं. फिर भला कौन चाहेगा ऐसी दोस्ती की दुनिया को अलविदा कहना या उन से दूर जाना.

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लेकिन हर रिश्ते की तरह दोस्ती की भी अपनी मर्यादा होती है. उसे अपनी सीमा में ही रहना ठीक होता है. कहीं ऐसा न हो कि आप के दोस्ताना रवैए से आप का जीवनसाथी आहत होने लगे और आप का दांपत्य चरमराने लगे. विशेषकर आज के व्यस्त और भागदौड़ की जीवनशैली में अपने वीकेंड अथवा छुट्टी के दिनों को अपने मित्रों के सुपुर्द कर देना अपने जीवनसाथी की जरूरतों और प्यार का अपमान करना है. अपनी व्यस्त दिनचर्या में यदि आप को अपना कीमती समय दोस्तों को सौंपना बहुत जरूरी है तो उस के लिए अपने जीवनसाथी से अनुमति लेना उस से भी अधिक जरूरी है.

ये दोस्ती…

कुछ पुरुष तथा महिलाएं अपने बचपन के दोस्तों के प्रति बहुत पजेसिव होते हैं तो कुछ अपने आफिस के सहकर्मियों के प्रति. श्वेता अपने स्कूल के दिनों की सहेलियों के प्रति इतनी ज्यादा संवेदनशील है कि अगर किसी सहेली का फोन आ जाए तो शायद पतिबच्चों को भूखा ही आफिस स्कूल जाना पड़े. और यदि कोई सहेली घर पर आ गई तो वह भूल जाएगी कि उस का कोई परिवार भी है.

दूसरी ओर कुछ लोग किसी गेटटूगेदर में अपने आफिस के सहकर्मियों के साथ बातों में ऐसा मशगूल हो जाएंगे कि उन की प्रोफेशनल बातें उन के जीवनसाथी के सिर के ऊपर से निकल रही हैं, इस की उन्हें परवाह नहीं होती.

इस के अलावा आफिस में काम के दौरान अकसर लोगों का विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण और दोस्ती एक अलग गुल खिलाती है. इस तरह का याराना बहुधा पतिपत्नी के बीच अच्छीखासी समस्या खड़ी कर देता है. कहीं देर रात की पार्टी में उन के साथ मौजमस्ती, कहीं आफिशियल टूर. कभी वक्तबेवक्त उन का फोन, एस.एम.एस., ईमेल अथवा रात तक चैटिंग. इस तरह की दोस्ती पर जब दूसरे पक्ष को आब्जेक्शन होता है तो उन का यही कहना होता है कि वे बस, एक अच्छे दोस्त हैं और कुछ नहीं. फिर भी दोनों में से किसी को भी इस ‘सिर्फ दोस्ती’ को पचा पाना आसान नहीं होता.

दोस्ती अपनी जगह है दांपत्य अपनी जगह

यह सच है कि दोस्ती के जज्बे को किसी तरह कम नहीं आंका जा सकता, फिर भी दोस्तों की किसी के दांपत्य में दखलअंदाजी करना अथवा दांपत्य पर उन का हावी होना काफी हद तक नुकसानदायक साबित हो सकता है. शादी से पहले हमारे अच्छेबुरे प्रत्येक क्रियाकलाप की जवाबदेही सिर्फ हमारी होती है. अत: हम अपनी मनमानी कर सकते हैं. किंतु शादी के बाद हमारी प्रत्येक गतिविधि का सीधा प्रभाव हमारे जीवनसाथी पर पड़ता है. अत: उन सारे रिश्तों को, जो हमारे दांपत्य को प्रभावित करते हैं, सीमित कर देना ही बेहतर होगा.

कुछ पति तो चाहते हुए भी अपने पुराने दोस्तों को मना नहीं कर पाते, क्योंकि उन्हें ‘जोरू का गुलाम’ अथवा ‘बीवी के आगे दोस्तों को भूल गए, बेटा’ जैसे कमेंट सुनना अच्छा नहीं लगता. ऐसे पतियों को इस प्रकार के दोस्तों को जवाब देना आना चाहिए, ध्यान रहे ऐसे कमेंट देने वाले अकसर खुद ही जोरू के सताए हुए होते हैं या फिर उन्होंने दांपत्य जीवन की आवश्यकताओं का प्रैक्टिकल अनुभव ही नहीं किया होता.

सांप भी मरे और लाठी भी न टूटे

जरूरत से ज्यादा यारीदोस्ती में बहुत सारी गलतफहमियां भी बढ़ती हैं. साथ ही यह जरूरी तो नहीं कि हमारे अपने दोस्तों को हमारा जीवनसाथी भी खुलेदिल से स्वीकार करे. इस के लिए उन पर अनावश्यक दबाव डालने का परिणाम भी बुरा हो सकता है. अत: इन समस्याओं से बचने के लिए कुछ कारगर उपाय अपनाए जा सकते हैं :

अपने बचपन की दोस्ती को जबरदस्ती अपने जीवनसाथी पर न थोपें.

अगर आप के दोस्त आप के लिए बहुत अहम हों तब भी उन से मिलने अथवा गेटटूगेदर का वह वक्त तय करें, जो आप के साथी को सूट करे.

बेहतर होगा कि जैसे आप ने एकदूसरे को अपनाया है वैसे एकदूसरे के दोस्तों को भी स्वीकार करें. इस से आप के साथी को खुशी होगी.

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जीवनसाथी के दोस्तों के प्रति कोई पूर्वाग्रह न पालें. बेवजह उन पर चिढ़ने के बजाय उन की इच्छाओं पर ध्यान दें.

‘तुम्हारे दोस्त’, ‘तुम्हारी सहेलिया’ के बदले कौमन दोस्ती पर अधिक जोर दें.

अपने बेस्ट फ्रेंड को भी अपनी सीमाएं न लांघने दें. उसे अपने दांपत्य में जरूरत से ज्यादा दखलअंदाजी की छूट न दें.

आफिस के सहकर्मियों की भी सीमाएं तय करें.

अपने दांपत्य की निजी बातें कभी अपने दोस्तों पर जाहिर न करें.

ऐसे सिखाएं बच्चों को तहजीब, ताकि वह बन सके एक बेहतर इंसान

चलती ट्रेन में ठीक मेरे सामने एक जोड़ा अपने 2 बच्चे के साथ बैठा था. बड़ी बेटी करीब 8-10 साल की और छोटा बेटा करीब 5-6 साल का. भावों व पहनावे से वे लोग बहुत पढ़ेलिखे व संभ्रांत दिख रहे थे. कुछ ही देर में बेटी और बेटे के बीच मोबाइल के लिए छीनाझपटी होने लगी. बहन ने भाई को एक थप्पड़ रसीद किया तो भाई ने बहन के बाल खींच लिए. यह देख मुझे भी अपना बचपन याद आ गया.

रिजर्वेशन वाला डब्बा था. उन के अलावा कंपार्टमैंट में सभी बड़े बैठे थे. अंत: मेरा पूरा ध्यान उन दोनों की लड़ाई पर ही केंद्रित था.

उन की मां कुछ इंग्लिश शब्दों का इस्तेमाल करती हुई उन्हें लड़ने से रोक रही थी, ‘‘नो बेटा, ऐसा नहीं करते. यू आर अ गुड बौय न.’’

‘‘नो मौम यू कांट से दैट. आई एम ए बैड बौय, यू नो,’’ बेटे ने बड़े स्टाइल से आंखें भटकाते हुए कहा.

‘‘बहुत शैतान है, कौन्वैंट में पढ़ता है न,’’ मां ने फिर उस की तारीफ की. बेटी मोबाइल में बिजी हो गई थी.

‘‘यार मौम मोबाइल दिला दो वरना मैं इस की ऐसी की तैसी कर दूंगा.’’

‘‘ऐसे नहीं कहते बेटा, गंदी बात,’’ मौम ने जबरन मुसकराते हुए कहा.

‘‘प्लीज मौम डौंट टीच मी लाइक ए टीचर.’’

अब तक चुप्पी साधे बैठे पापा ने उसे समझाना चाहा, ‘‘मम्मा से ऐसे बात करते हैं•’’

‘‘यार पापा आप तो बीच में बोल कर मेरा दिमाग खराब न करो,’’ कह बेटे ने खाई हुई चौकलेट का रैपर डब्बे में फेंक दिया.

‘‘यह तुम्हारी परवरिश का असर है,’’ बच्चे द्वारा की गई बदतमीजी के लिए पापा ने मां को जिम्मेदार ठहराया.

‘‘झूठ क्यों बोलते हो. तुम्हीं ने इसे इतनी छूट दे रखी है, लड़का है कह कर.’’

अब तक वह बच्चा जो कर रहा था और ऐसा क्यों कर रहा था, इस का जवाब वहां बैठे सभी लोगों को मिल चुका था.

दरअसल, हम छोटे बच्चों के सामने बिना सोचेसमझे किसी भी मुद्दे पर कुछ भी बोलते चले जाते हैं, बगैर यह सोचे कि वह खेलखेल में ही हमारी बातों को सीख रहा है. हम तो बड़े हैं. दूसरों के सामने आते ही अपने चेहरे पर फौरन दूसरा मुखौटा लगा देते हैं, पर वे बच्चे हैं, उन के अंदरबाहर एक ही बात होती है. वे उतनी आसानी से अपने अंदर परिवर्तन नहीं ला पाते. लिहाजा उन बातों को भी बोल जाते हैं, जो हमारी शर्मिंदगी का कारण बनती हैं.

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आज के इस व्यस्ततम दौर में अकसर बच्चों में बिहेवियर संबंधी यही समस्याएं देखने को मिलती हैं. जैसे मनमानी, क्रोध, जिद, शैतानी, अधिकतर पेरैंट्स की यह परेशानी है कि कैसे वे अपने बच्चों के बिहेवियर को नौर्मल करें ताकि सब के सामने उन्हें शर्मिंदा न होना पड़े. बच्चे का गलत बरताव देख कर हमारे मुंह से ज्यादातर यही निकलता है कि अभी उस का मूड सही नहीं है. परंतु साइकोलौजिस्ट और साइकोथेरैपिस्ट का कहना है कि यह मात्र उस का मूड नहीं, बल्कि अपने मनोवेग पर उस का नियंत्रण न रख पाना है.

इस बारे में बाल मनोविज्ञान के जानकार डा. स्वतंत्र जैन आरंभ से ही बच्चों को स्वविवेक की शिक्षा दिए जाने के पक्ष में हैं ताकि बच्चा अच्छेबुरे में फर्क करने योग्य बन सके. अपने विचारों को बच्चों पर थोपना भी एक तरह से बाल कू्ररता है और यह उन्हें उद्वेलित करती है.

क्या करें

  • बच्चों के सामने आपस में संवाद करते वक्त बेहद सावधानी बरतें. आप का लहजा, शब्द बच्चे सभी कुछ आसानी से कौपी कर लेते हैं.
  • बच्चों को किसी न किसी क्रिएटिव कार्य में उलझाए रखें. ताकि वे बोर भी न हों और उन में सीखने की जिज्ञासा भी बनी रहे.
  • अपने बीच की बहस या झगड़े को उन के सामने टाल दें. बच्चों के सामने किसी भी बहस से बचें.
  • बच्चों को खूब प्यार दें. मगर साथ ही जीवन के मूल्यों से भी उन का परिचय कराते चलें. खेलखेल में उन्हें अच्छी बातें छोटीछोटी कहानियों के माध्यम से सिखाई जा सकती हैं. इस काम में बच्चों के लिए कहानियां प्रकाशित होने वाली पत्रिका चंपक उन के लिए बेहद मनोरंजक व ज्ञानवर्धक साबित हो सकती है.
  • रिश्तों के माने और महत्त्व जानना बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए उतना ही जरूरी है, जितना एक स्वस्थ पेड़ के लिए सही खादपानी का होना.
  • समयसमय पर अपने बच्चों के साथ क्वालिटी वक्त बिताएं. इस से आप को उन के मन में क्या चल रहा है, यह पता चल सकेगा और समय पर उन की गलतियों को भी सुधारा जा सकेगा.
  • बच्चों के हिंसक होने पर उन्हें मारनेपीटने के बजाय उन्हें उन की मनपसंद ऐक्टिविटी से दूर कर दें. जैसे आप उन्हें रोज की कहानियां सुनाना बंद कर सकते हैं. उन से उन का मनपसंद खिलौना ले कर कह सकते हैं कि अगर उन्होंने जिद की या गलत काम किए तो उन्हें खिलौना नहीं मिलेगा.

क्या करें

  • बच्चों को बच्चा समझने की भूल हरगिज न करें. माना कि आप की बातचीत के समय वे अपने खेल या पढ़ाई में व्यस्त हैं. पर इस दौरान भी वे आप की बातों पर गौर कर सकते हैं. समझने की जरूरत है कि बच्चों को दिमाग हम से अधिक शक्तिशाली व तेज होता है.
  • बच्चों पर अपनी बात कभी न थोपें, क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें अच्छी बातें भी बोझ लगती हैं, लिहाजा बच्चे निराश हो सकते हैं. सकारात्मक पहल कर उन्हें किसी भी काम के फायदे व नुकसान से बड़े प्यार से अवगत कराएं.
  • बच्चों की कही किसी भी बात को वक्त निकाल कर ध्यान से सुनें. उसे इग्नोर न करें.
  • बच्चों की तुलना घर या बाहर के किसी दूसरे बच्चे से हरगिज न करें. ऐसा कर आप उन के मन में दूसरे के प्रति नफरत बो रहे हैं. याद रहे कि हर बच्चा अपनेआप में यूनीक और खास होता है.
  • आज के अत्याधुनिक युग में हर मांबाप अपने बच्चों को स्मार्ट और इंटैलिजैंट देखना चाहते हैं. अत: बच्चों के बेहतर विकास के लिए उन्हें स्मार्ट अवश्य बनाएं. पर समय से पूर्व मैच्योर न होने दें.

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  • बच्चों को अपने सपने पूरा करने का जरीया न समझें, बल्कि उन्हें अपनी उड़ान उड़ने दें. मसलन, जिंदगी में आप क्या करना चाहते थे, क्या नहीं कर पाए. उस पर अपनी हसरतें न लादें, बल्कि उन्हें अपने सपने पूरा करने का अवसर व हौसला दें ताकि बिना किसी पूर्वाग्रह के वे अपनी पसंद चुनें और सफल हों.
  • विशेषज्ञों की राय अनुसार बच्चों से बाबा, भूतप्रेत आदि का डर दिखा कर कोई काम करवाना बिलकुल सही नहीं है. ऐसा करने से बच्चे काल्पनिक परिस्थितियों से डरने लगते हैं. इस से उन का मानसिक विकास अवरुद्ध होता है और वे न चाहते हुए भी गलतियां करने लगते हैं.

जब पति फ्लर्टी हो

रेखा ने अपने विवाह के पहले साल में ही यह नोट कर लिया था कि उस के पति अनिल को दूसरी महिलाओं से फ्लर्ट करने की आदत है. पहले तो उस ने सोचा कि शादी से पहले सभी लड़के फ्लर्ट करते ही हैं. अनिल की आदत भी धीरेधीरे छूट ही जाएगी, पर ऐसा हुआ नहीं.

वह हैरान थी कि कैसे उस की मौजूदगी में भी अनिल दूसरी महिलाओं से फ्लर्ट करने का मौका नहीं छोड़ता. दोनों के 2 बच्चे भी हो गए.

रेखा सोचती, मेरे सामने ही जब यह हाल है, तो औफिस में या बाहर क्याक्या करते होंगे? अनिल की हरकतें देख वह एक अजीब से अवसाद में रहती.

एक दिन तो हद ही हो गई. उसी की सोसाइटी में रहने वाली एक खास फ्रैंड रीना शाम को उस के घर आई. अनिल घर पर ही था. जब तक रीना के लिए रेखा चाय ले कर आई, अनिल रीना से खुल कर फ्लर्ट करने वाली हरकतें कर रहा था. रेखा को बहुत गुस्सा आया.

रीना के जाने के बाद उस ने अनिल से गुस्से में पूछा, ‘‘रीना से इतनी फालतू बातें करने की क्या जरूरत थी?’’

अनिल ने कहा, ‘‘मैं तो सिर्फ उस से बातें कर रहा था. वह हमारी मेहमान थी.‘‘

जब बरदाश्त से बाहर हो जाए

ऐसा फिर हुआ, अनिल नहीं माना. रीना जब भी घर आती और अनिल घर पर होता, तो वह वहीं डटा रहता. न कभी वह उठ कर अंदर जाता कि अपना कोई काम कर ले.

और एक दिन तो हद ही हो गई, जब उस ने रीना का मजाकमजाक में हाथ पकड़ लिया. जब वह घर जाने के लिए उठी, तो अनिल ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘अरे, थोड़ी देर और बैठो. यहीं सोसाइटी में ही तो जाना है.‘’

रीना तो झेंपती हुई चली गई. रेखा अपने पति की इस हरकत पर बहुत शर्मिंदा थी. वह रीना के जाने के बाद अनिल से बहुत झगड़ी. लेकिन अनिल पर जरा भी असर नहीं हुआ.

रेखा और रीना बहुत अच्छी सहेली थीं. अकेले में रेखा ने अपने पति की इस हरकत के लिए उस से माफी मांगी और उसे यह भी कहना पड़ा, ‘‘रेखा, अगर अनिल घर पर हों, तब तुम आया ही मत करो. मुझे फोन करना, मैं ही आ जाया करूंगी.‘‘

बन जाती है दुखद स्थिति

उस दिन के बाद से रीना कभी भी अनिल की उपस्थिति में रेखा के घर नहीं आई. इस में और भी दुखद स्थिति तब हो गई, जब रीना ने कई लोगों को यह कह दिया कि रेखा अपने पति की दिलफेंक हरकतों के कारण सुंदर औरतों को घर आने के लिए मना कर देती है.‘’

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एक कंपनी में बतौर अधिकारी अनिल और सरल स्वभाव की रेखा अनिल की फ्लर्टिंग की आदत के कारण अपनी छवि खराब करा बैठे. रेखा कभी इस बात को नहीं भूली और दुखी होती रही. दोनों में अकसर मनमुटाव होता रहा.

यह आदत यहीं नहीं रुकी. दोनों के बच्चे बड़े हो गए, बेटी की सहेलियां अब घर आतीं तो अनिल उन के आगेपीछे घूमता, अजीब से कमैंट्स करता, बेटी को अच्छा नहीं लगता.

एक दिन बेटी ने भी यह कह ही दिया, ‘‘पापा, मेरी फ्रैंड्स आएं, तो आप अपने कमरे में ही रहा करो…‘’

बेटे की शादी हुई. अब बहू घर में आई, तो अनिल कभी नई बहू का हाथ बातोंबातों में पकड़ कर बैठा लेता, कभी उस के कंधे पर हाथ रख देता. रेखा को यह सब सहन नहीं हुआ.

एक दिन वह अकेले में सख्त शब्दों में बोली,”तुम ने किसी भी तरह से यह आदत नहीं छोड़ी, तो अब अंजाम बहुत बुरा होगा, सोच लेना.‘’

रेखा से बात करने पर उस ने अपनी लाइफ की ये सब बातें बताते हुए यह भी कहा, ‘‘मैं जीवनभर अनिल की फ्लर्टिंग की आदत छुड़ा ही नहीं पाई. पता नहीं क्या कारण रहा कि इतनी उम्र में भी अनिल दूसरी महिलाओं से फ्लर्टिंग का मौका आज भी नहीं छोड़ते. इन के इसी स्वभाव के कारण मैं न कभी अपने मायके चैन से जा कर रह पाई और ससुराल में तो जैसे अपनी भाभियों के साथ फ्लर्टिंग करने का लाइसैंस ही था इन के पास. इस आदत ने मुझे जीवनभर एक दुख से भरे रखा है.”

वहीं आरती भी अपने पति की फ्लर्टिंग की आदत से बहुत परेशान है. वह बताती है, ‘‘अगर कहीं किसी काउंटर पर लड़के, लड़की दोनों हैं, तो मेरे पति कपिल लड़की वाले काउंटर पर ही अटक जाते हैं. पता नहीं, कितनी बातें करने के बहाने खोज लेते हैं.

“यह देख मुझे शर्मिंदगी सी होती है, जब मैं उस लड़की की आंखों में चिढ़ देखती हूं, किसी लड़के से बात करते हुए काम की बात करते हैं और फोन रख देते हैं, पर अगर किसी लड़की का फोन हो तो उन के सुर ही बदले हुए होते हैं.

“एक बार तो किसी लड़की का रौंग नंबर आने पर भी जनाब शुरू हो चुके थे. कोफ्त होती है फ्लर्टिंग की इस आदत से. पता नहीं क्या मिल जाता है 2 मिनट किसी लड़की के बिना बात के मुंह लग कर?”

रिश्ते में उपजा एक असंतोष

सिल्वरमैन के अनुसार, फ्लर्टेशन किसी रिश्ते में उपजा एक असंतोष है. वे कहते हैं, ‘‘जो उसे फ्लर्टिंग से मिल रहा है. उसे अपनी पत्नी से बात करनी चाहिए कि वह यह क्यों कर रहा है?‘‘

पुरुष फ्लर्ट करते हैं, यह एक फैक्ट है, पर जब मैरिड पुरुष फ्लर्टिंग करते हैं, तो फ्लर्टिंग किसे कहा जा सकता है?

सैक्स रोल्स में छपी एक नई रिसर्च के अनुसार, पुरुष इन कारणों से फ्लर्ट करते हैं- सैक्स के लिए, रिलेशनशिप में होना कैसा लगेगा, किसी रिलेशनशिप को मजबूत करने के लिए, किसी चीज को ट्राई करने के लिए, सैल्फ इस्टीम बढ़ाने के लिए या फिर मौजमस्ती करने के लिए.

फैमिली थेरैपिस्ट कसेंड्रा लेन के अनुसार, ‘‘एक पुरुष अपने पार्टनर को बहुत प्यार और उस की केयर करता है, पर वह ऐक्ससाइटमैंट या ईगो बूस्ट के लिए फ्लर्ट भी कर सकता है.”

लाइफ कोच ऐंड लव गुरु टोन्या का कहना है कि फ्लर्टिंग चीटिंग नहीं है, पर फ्लर्टिंग प्रौब्लम दे सकती है, फ्लर्टी पार्टनर्स के साथ सैल्फ इस्टीम कम हो सकती है.

ठीक समय और जगह पर अपने पार्टनर पर कोई आरोप लगाए बिना बात करें. उसे बताएं कि आप क्या नोटिस करते हैं? लोग आप को उस की फ्लर्टिंग की आदत पर क्या कहते हैं? आप क्या फील करते हैं? कभीकभी फ्लर्टी पार्टनर को एहसास ही नहीं होता कि उन की हरकतें उन के पार्टनर को हर्ट कर रही हैं. यदि एक व्यक्ति खुश नहीं है तो वह इस तरह से खुशी की तलाश में फ्लर्टिंग कर सकता है, अपने पर ध्यान दें, पूरी स्थिति को गौर से समझें.

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आप की हर बात पर कोशिश करने के बावजूद भी पार्टनर फ्लर्टिंग से बाज नहीं आता तो गंभीरता से इन पर बात करें और फैसला लें :

• पति की फ्लर्टिंग की आदत आप को ईर्ष्या, इमोशनल असुरक्षा की भावना से भर सकती है. आप को लगता है कि आप का पति विश्वास के लायक नहीं है. पर, अगर ऐसा कुछ है, तो आप इस फ्लर्टिंग की आदत को इग्नोर कर सकती हैं.

• आप जानती हैं कि वह फ्लर्ट करता है और सभी से वह इसी तरह पेश आता है. कुछ पुरुष सब से फ्लर्ट करते हैं, चाहे वेट्रेस हो या पास से जाती कोई महिला या लड़की, इस का कोई मतलब ही नहीं होता, कभीकभी वे फ्रेंडली होने के लिए फ्लर्टिंग करते हैं या कुछ अटेंशन पाने के लिए. आउटगोइंग पर्सनैलिटी वाले पुरुष अकसर ऐसा करते हैं.

• कभीकभी वह आप को जलाने के लिए भी फ्लर्ट करता है. फ्लर्टिंग अगर आप के सामने ही की जा रही है तो यह गंभीर बात नहीं है, पर कभीकभी बात कुछ अलग भी हो सकती है.

• हो सकता है कि वे दोनों जानबूझ कर आप के सामने हलकीफुलकी फ्लर्टिंग कोई अफेयर छिपाने के लिए कर रहे हों.

• कभीकभी पुरुष यह दिखाने के लिए भी फ्लर्टिंग करते हैं कि अभी भी उन में बहुतकुछ है. प्रौढ़ पुरुष, जिन की लाइफ में सैक्स कम है, वे इस कमी को दूर करने के लिए फ्लर्टिंग का सहारा लेते हैं.

• कई बार ऐसा होता है कि आप के पति यह महसूस करते हैं कि जब आप जेलस होती हैं, तो आप उन के शारीरिक रूप से ज्यादा करीब आती हैं, तो वे आप के सामने दूसरी महिलाओं से फ्लर्ट करते हैं. वे समझ जाते हैं कि आप जेलस हो रही हैं. इस स्थिति में आप के पति सिर्फ दूसरी महिलाओं से ही नहीं, आप से भी फ्लर्ट कर रहे होते हैं.

• आप अपने पार्टनर का फ्लर्टिंग बिहैवियर नोट करें. उसे एकदम से ब्लेम न करें. थोड़ा फनी तरीके से उन्हें इस आदत पर टोकने की कोशिश करें.

ऐसे ही एक मनगढंत उदाहरण रख कर पूछें कि एक पति और एक पत्नी दोनों ही फ्लर्टिंग के शौकीन हों तो कितना मजा आएगा, दोनों को ही फ्लर्टिंग एंजौय करना चाहिए न? अपने पार्टनर के चेहरे का रंग बदलते देखें, वह फौरन अपने को सुधारने की कोशिश कर सकता है, कुछ इस तरह के उदाहरण देती रहें.

• अगर स्थिति कंट्रोल से बाहर हो, तो साफसाफ बात करें. उन्हें बताएं कि आप को कितना दुख होता है, जब आप उन्हें दूसरी महिलाओं से बेकार की फ्लर्टिंग करते देखती हैं. उन्हें पता होना चाहिए कि उन की इस आदत से आप को तकलीफ पहुंचती है, और आप साफसाफ अपने मन की बात उन से कर रही हैं और इस इशू को बढ़ाना नहीं चाहती हैं.

• यदि आप का पति फ्लर्टिंग करता है, तो आप को पूरा हक है कि उस से इस बारे में खुल कर बात करें. वैवाहिक जीवन में समयसमय पर कोई न कोई चैलेंज आते ही रहते हैं, यह आम बात है. आप इस विषय पर अपने मन की परेशानी को उन से शेयर कर के कोई गलती नहीं कर रही हैं.

• रिश्तों में बाहर से मिलने वाला अटेंशन हमें एक उत्साह से भर देता है, तो इस बात का ध्यान रखते हुए अपने व्यवहार पर भी नजर डालती रहें. आप का व्यवहार अपने पति के साथ कैसा है, इस पर जरूर ध्यान दें.

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• अपने पति से इस विषय पर चर्चा करते हुए उन्हें एक कौम्पलीमैंट देते हुए बात शुरू करें, अपने मन की बात शांत, अच्छे शब्दों में करें. बात खत्म करते हुए भी उन्हें एक कौम्पलीमैंट दें, इस से आप का बात करने का तरीका परफैक्ट रहेगा और आप के पति की फ्लर्टिंग करने की आदत से दूरी रखने का मन करेगा. बड़ी से बड़ी समस्याएं खत्म हो सकती हैं, जब आप शांत मन से इस का समाधान सोचती हैं.

अकेले हैं तो क्या गम है

आजकल अधिकांश लोग अकेले रहते हैं. आप भी उन में से एक हैं तो कहीं आप को यह तो नहीं लगता कि अकेले रहना बहुत बुरी और मुश्किल चीज है. आप अपने अकेले रहने वाले समय को ऐंजौय करने, रिलैक्स करने के बजाय घर में इधर से उधर भटकते हुए यह सोचने में तो नहीं बिता देतीं कि आप इस समय क्या करें?

अगर ऐसा है, तो आप इन लोगों के बारे में जरूर जानिए:

65 वर्षीय श्यामला आंटी अकेली रहती हैं, पति का निधन हो चुका है, इकलौती विवाहित बेटी अपनी फैमिली के साथ आस्ट्रेलिया में सैटल्ड है. आंटी हम सब के लिए प्रेरणास्रोत हैं. हम में से किसी ने भी कभी उन्हें किसी भी बात पर झींकते हुए नहीं देखा. वे अपने अकेलापन को बहुत ही पौजिटिव तरीके से लेती हैं, ऐसा भी नहीं कि उन्हें कभी कोई परेशानी नहीं होती. तबीयत खराब होने पर खुद ही डाक्टर के पास जाती हैं, कभी किसी को नहीं कहतीं कि उन्हें कंपनी चाहिए. मेड जरूरी काम निबटा जाती है, वही अगर किसी को बताए कि आंटी की तबीयत ठीक नहीं है, तो तभी पता चलता है.

महीने में एक बार मुंबई में किसी रिश्तेदार से मिल आती हैं. कैब भी खुद बुक करना सीख लिया है, बेटी दिन में एक बार बात करती है, उन की हर प्रौब्लम को वहीं से निबटा देती है. शाम को अच्छी तरह तैयार हो कर आंटी नीचे उतरती हैं, सैर करती हैं, अपनी हमउम्र महिलाओं के साथ बैठती हैं, जो महिलाएं अपने बेटेबहू, घरपरिवार की बुराई करती हैं, उन से फौरन दूरी बना लेती हैं. हंसमुख, शालीन आंटी का स्वभाव ऐसा है कि जब भी उन्हें हमारी कोई हैल्प चाहिए होती है, कोई पीछे नहीं हटता. ऐसा नहीं कि उन्हें घर में अकेलापन कभी खलता नहीं होगा पर यह अकेलापन उन्होंने स्वीकार कर लिया है और अब इसे ऐंजौय करने लगी हैं. गु्रप में किसी को पार्टी करनी हो और यदि वह अपने घर में न कर पा रही हो, कारण कुछ भी हो, आंटी का घर हमेशा सब के लिए हर काम के लिए खुला है.

हंस कर कहती हैं, ‘‘अरे, यहां कर लो पार्टी, मेरी क्रौकरी भी इस बहाने निकल जाएगी, कुछ रौनक होगी.’’

देखते ही देखते उन के यहां पार्टी हो जाती है और किसी की भी अपने घर पार्टी न कर पाने की प्रौब्लम खत्म.

जीवन में किसी के सामने कभी भी अकेले रहने का समय आए तो सब यही सोचती हैं कि अकेले रहने की प्रेरणा आंटी से लेनी है.

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नीरजा के बेटेबहू जब भी विदेश से मुंबई आते, तो उन का मन खुशी से नाच उठता. पति विशाल के साथ मिल कर ढेरों प्लानिंग कर लेतीं, कितनी ही चीजें उन की पसंद की बना कर रख देतीं. उन के वापस जाने के बाद जीवन में फिर से छाए अकेलेपन के अवसाद में कई दिनों तक घिरी रहतीं. पर धीरेधीरे बेटेबहू के बदलते लाइफस्टाइल ने उन के सोचने की भी दिशा बदल दी.

अब वे उन के जाने पर जरा भी अकेलापन महसूस नहीं करतीं, अब वे अपने अनुभव कुछ इस तरह से बताती हैं, ‘‘बच्चों की शिकायत नहीं कर रही हूं. उन का लाइफस्टाइल अलग है हमारा अलग. वे

11 बजे सो कर उठते हैं, रात दोस्तों से मिलमिला कर पार्टी कर के 2-3 बजे लौटते हैं. हमारे पास तो बहुत ही थोड़ी देर बैठते हैं पर मेरा पूरा रूटीन घर के हर काम का समय बुरी तरह बिगड़ जाता है, रात को नींद डिस्टर्ब होती है, हमें जल्दी सुबह उठने की आदत है. मगर बच्चे घर में रहते हैं तो पूरा दिन किचन समेटने की नौबत ही नहीं आती. बहू किचन में झांकती भी नहीं. मेरी हालत खराब हो जाती है. उन की दुनिया अलग ही है. हमारी भी अलग. अब तो जब वे चले जाते हैं चैन की सांस आती है. अब अकेलेपन में आराम दिखता है, शांति है. साथ रहने पर किसी न किसी बात में मनमुटाव भी हो जाता है, जो अच्छा नहीं लगता. वे वहां खुश रहें, हम यहां खुश रहें, बच्चों के बिना अब अकेलेपन को खलता नहीं, हम अकेलेपन को ऐंजौय करते हैं.’’

70 वर्षीय सुधा रिटायर्ड टीचर हैं. उन के बेटाबेटी उसी शहर में अपनेअपने परिवार के साथ अलग रहते हैं. सुधा पति की डैथ के बाद से अकेली ही रह रही हैं. उन्हें कभी किसी पर आश्रित हो कर रहना भाया ही नहीं. हमेशा अकेली रहीं.

उन का कहना है, ‘‘मुझे अकेले रहने की आदत है, मैं नहीं चाहती साथ रह कर बेटे के साथ कोई खटपट हो. अभी सब अलग हैं, सब को अपनी प्राइवेसी चाहिए, कोई जरूरत होने पर एक फोन पर कोई भी आ ही जाता है. मिलतेजुलते तो रहते ही हैं, किसी के साथ रहने का बंधन नहीं है. जब मन हुआ अपनी फ्रैंड्स को बुलाती हूं, जब मन हुआ घूमने चली जाती हूं, सब अपनी मरजी से जीएं, क्या बुरा है. अकेलापन कोई समस्या है ही नहीं, लाइफ एंजौय करनी आनी चाहिए.’’

26 वर्षीय संजय विदेश में पढ़ता है. इंडिया आने पर वहां के लाइफस्टाइल के बारे में पूछने पर कहता है, ‘‘शुरू में मन नहीं लगता था, काम करने की आदत नहीं थी, बहुत अकेलापन लगता था, फ्रैंड्स भी नहीं थे पर अब सब काम खुद करतेकरते अकेले रहने की आदत सी पड़ गई है, लेट आने पर किसी की रोकटोक की आदत नहीं रही. अपनी मरजी से जब जो मन होता है, करता हूं. अब अकेले रहने को ऐंजौय करता हूं. अब लगता है किसी के साथ रहने पर काफी ऐडजस्ट करना पड़ेगा,’’ और फिर हंस पड़ता है.

42 वर्षीय दीपा तो अकेले रहने की कल्पना पर ही जोश से भर उठती है. वह कहती है, ‘‘यार, सपना होता है कि कभी अकेली भी रहूं. पति टूर पर जाएं तो मजा आ जाता है. वे हर तरह से अच्छे पति हैं पर उन के टूर पर जाने पर जो थोड़ी फ्री होती हूं न, जो रूटीन चेंज होता है, अच्छा लगता है और उस पर बच्चे भी बाहर व्यस्त हों तो क्या कहने, यह भी टाइम बहुत बड़ा गिफ्ट लगता है नहीं तो सुबह से रात तक अपने लिए सोचने का टाइम मुश्किल से ही मिलता है. मुझे तो इंतजार है उस दिन का जब बच्चे पढ़लिख कर सैटल हों और मुझे अकेले रहने का टाइम मिले और मैं अपने हिसाब से अपने कुछ शौक पूरे कर लूं.’’

24 वर्षीय वीनू को मुंबई में जब ट्रेनिंग के लिए आना पड़ा तो पूरा परिवार हैरानपरेशान हो गया, भोपाल से मुंबई आ कर वह 2 और लड़कियों के साथ रूम शेयर कर के रहने लगी. उस के पेरैंट्स बहुत परेशान कि कैसे रहेगी, क्या करेगी, यह तो एक दिन भी हमारे बिना नहीं रही. सब का रोरो कर बुरा हाल, 1 महीना ही लगा वीनू को मुंबइया लाइफ में सैट होने में. हमेशा घरपरिवार की सुरक्षा में रहने वाली वीनू बाहर निकल कर आत्मविश्वास से भरती चली गई. सारे काम गूगल की हैल्प लेले कर पूरी तरह आत्मनिर्भर हो गई और अपनी इस नई दुनिया में अकेलापन ऐसा भाया कि अब घर वाले  उसे अकेले इतनी खुश देख हैरान रह जाते.

45 वर्षीय दीपा को लिखने का शौक है, वे कभी रात में घर में अकेली नहीं रहीं. पति टूर पर  होते हैं तो दोनों बच्चे तो साथ होते ही.

एक बार कुछ ऐसा हुआ कि पति टूर पर और दोनों बच्चों को तेज बारिश के कारण 2 दिन मुंबई में अपने फ्रैंड्स के घर रुकना पड़ा. वे बताती हैं, ‘‘पहले तो मैं यह सोच कर घबराई कि अकेली कैसे रहूंगी, पर सच मानिए, इस अकेलेपन को मैं ने इतना ऐंजौय किया कि मैं खुद हैरान रह गई. अपने रूटीन से फ्री हो कर अपने लेखनकार्य में इतनी व्यस्त रही कि पता नहीं कब का सोचा हुआ शांति से लिख कर पूरा कर पाई. इतना कुछ घर के कामों में मन में ही रखा रह जाता है. अब पता नहीं इतना अच्छा मौका कब मिलेगा जो मैं इस तरह से कुछ लिख पाऊंगी.’’

अकेलापन इतनी बड़ी समस्या है ही नहीं जितना लोग समझते हैं. अकेलापन अकसर नैगेटिव विचारों से भर देता है, इसलिए लोग अकसर अकेले रहने से बचते हैं. आप को अकेलापन बोझ न लगे इस के लिए ये टिप्स आजमा सकती हैं:

– इस समय करने के लिए कोई रोचक ऐक्टिविटी ढूंढ़ें, सिर्फ बैठ कर टीवी देखना ही काम न हो.

– स्वयं से जुड़ें, फोन, टैब, लैपटौप से थोड़ा ब्रेक ले कर कुछ और करें, आप को महसूस होगा, आप को किसी की जरूरत नहीं. आप अकेले बहुत कुछ ऐंजौय कर सकती हैं.

– स्वयं से जुड़ने का, खुद को समझने का यह समय बहुत अच्छा होता है. यह आप का टाइम होता है. आप जो चाहें कर सकती हैं.

– इस का मतलब यह नहीं कि आप को घर में ही अकेले रहना है. आप बाहर जाएं, कहीं कौफी पीएं, सैर करें, पार्क में बैठ कर कुछ पढ़ें.

– डाक्टर शैरी के अनुसार अपने साथ ही समय बिताने से खुद को समझने में आसानी होती है. आप सोचें कि आप को जीवन में क्या चाहिए, अपनी पसंद से जरूर कुछ करें.

– अकेले रहने का मतलब यह समझ लें कि आप खुद पर फोकस कर सकते हैं. अपनी फन लिस्ट पर ध्यान देना शुरू करें, जो अभी तक आप के मन में थी.

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– लाइफ ऐंजौय न करने का यह बहाना न ढूंढ़ें कि आप अकेले हैं. जीवन में अच्छी चीजों को देखना सीखें, आशावादी दृष्टिकोण रखें.

– कई बार आप अपने पार्टनर या फ्रैंड को नहीं, उन के साथ बिताया गया समय, मूवी या डिनर पर जाना याद कर रहे होते हैं, तो अब भी स्वयं को रोके नहीं, बाहर जाएं, मूवी देखें, अच्छी जगह कुछ खाएं भी.

– ऐक्सरसाइज जरूर करें, नए दोस्त बनाना चाहते हैं तो जिम जौइन कर लें. अपने घर में ही सिमट कर न रहें. नेचर को ऐंजौय करें. बाहर जाएं, घूमेंफिरें, लोगों से जोश, खुशी से मिलें, आप के नए दोस्त बनेंगे.

– कुछ चैरिटी वर्क करें, किसी हौस्पिटल, किसी संस्था या अनाथालय से जुड़ सकते हैं.

– कुछ लिखें. लिखने से न सिर्फ आप की कल्पनाशक्ति बढ़ती है, लिखना आप को सकारात्मक विचारों से भर कर खुशी भी देता है.

– अच्छी किताबें पढ़ें, पढ़ने का शौक पूरा करने के लिए अकेलापन वरदान है.

– म्यूजिक, डांस या कोई इंस्ट्रूमैंट सीखें.

– लोगों से, पड़ोसियों से मिलने पर अच्छी मधुर बातें करें, किसी से कट कर जीने की आदत न डालें.

Facebook Vote Poll- ‘फेयर एंड लवली’ से जल्द हटेगा ‘फेयर’ शब्द… 

नेक्स्ट डोर महिला जब पति में कुछ ज्यादा  रुचि लेने लगे

मेघा ने अपने नए पड़ोसियों का स्वागत खुले दिल से किया, फ्लोर पर ही सामने वाले फ्लैट में आए अंजलि, उस के पति सुनील और उन की 4 साल की बेटी विनी भी उन से अच्छी तरह बात करते, सामना होने पर हंसते, मुसकराते, सुनील का टूरिंग जौब था, मेघा के पति विनय और उन का युवा बेटा यश थोड़े इंट्रोवर्ट किस्म के इंसान थे.

कुछ ही दिन हुए कि मेघा ने नोट किया कि अंजलि जानबूझ कर उसी समय पार्किंग में टहल रही होती है जब विनय का औफिस से आने का समय होता है. पहले तो उस ने इसे सिर्फ इत्तेफाक समझा पर जब विनय ने एक दिन आ कर बताया कि अंजलि उस से बातें करने की कोशिश भी करती है, उन का फोन नंबर भी यह कह कर ले लिया कि अकेली ज्यादा रहती हूं, पड़ोसियों का नंबर होना ही चाहिए तो मेघा हैरान हुई कि कितनी बार तो उस से उस का आमनासामना होता है, उस से तो कभी ऐसी बात नहीं की.

अंजलि अकसर उस टाइम आ धमकने भी लगी जब वह किचन में बिजी होती, विनय टीवी देख रहे होते. उस के रंगढंग मेघा को कुछ खटकने लगे. एक दिन विनय ने बताया कि वह उन्हें मैसेज, जोक्स भी भेजने लगी है. पहले तो मेघा को बहुत गुस्सा आया फिर उस ने शांत मन से विनय को छेड़ा, ‘‘तुम इस चीज को एेंजौय तो नहीं करने लगे?’’

‘‘ऐंजौय कर रहा होता तो बताता क्यों,’’ विनय ने भी मजाक किया, ‘‘मतलब तुम्हारा पति इस लायक है कि कोई पड़ोसन उस से फ्लर्ट करने के मूड में है, माय डियर प्राउड वाइफ.’’

‘‘चलो, फिर पड़ोसन का फ्लर्टिंग का भूत उतारना तो मेरे बाएं हाथ का काम है. अच्छा है, तुम्हें इस में मजा नहीं आ रहा नहीं तो 2 का भूत उतारना पड़ता,’’ मेघा की बात पर विनय ने हंस कर हाथ जोड़ दिए.

अगले दिन मेघा विनय के आने के समय पार्किंग प्लेस के आसपास टहल रही थी. उसे अंजलि दिखी, अचानक अंजलि उसे देख कर थोड़ी सकपका गई, फिर हायहैलो के बाद जल्दी ही वहां से हट गई. मेघा मन ही मन मुसकरा कर रह गई. शाम के समय विनय और यश टीवी में मैच देख रहे थे, वह भी आ धमकी और यह कहते हुए विनय के आसपास ही बैठ गई कि

उसे भी मैच देखने का शौक है. उस के पति को तो स्पोर्ट्स में जरा भी रुचि नहीं. उस की बात सुनते ही मेघा बोली, ‘‘आओ अंजलि, हम लोग अंदर बैठते हैं. इन दोनों को मैच देखने में क्या डिस्टर्ब करना.

‘‘नहीं, मैं अब चलती हूं, विनी अकेली है.’’

‘‘हां, उसे अकेली ज्यादा मत छोड़ा करो.’’

उस दिन तो जल्दी ही अंजलि चली गई. फिर एक दिन विनय ने कहा, ‘‘यार, काफी मैसेज भेजती रहती है, कभी गुडमौर्निंग, कभी जोक्स.’’

‘‘दिखाना,’’ मेघा ने विनय के फोन पर अंजलि के भेजे मैसेज पढ़े, सभी ऐडल्ट जोक्स वीडियो भी आपत्तिजनक, जिन्हें विनय ने देखा ही नहीं था अभी तक, क्योंकि विनय औफिस में ज्यादा ही बिजी रहता था और वह उसे बिलकुल भी लिफ्ट देने के मूड में था ही नहीं. अब मेघा गंभीर हुई.

अगले दिन यों ही अंजलि के फ्लैट पर गई. थोड़ी देर बैठने के बाद उस ने बातोंबातों में कहा, ‘‘तुम शायद बहुत बोर होती हो. विनय बता रहे थे कि उन्हें खूब वीडियो, जोक्स भेजती रहती हो. उन्हें तो देखने का भी टाइम नहीं, मैं ने ही देखे वे वीडियो, उन्हें भेजने का क्या फायदा मुझे भेज दिया करो, मैं देख लूंगी. विनय कुछ अलग टाइप के इंसान हैं, मुझ से कुछ छिपाते नहीं, तुम मेरा फोन नंबर ले लो.’’ अंजलि को बात संभालना मुश्किल हो गया. बुरी तरह शर्मिंदा होती रही. मेघा घर लौट आई. उस दिन से कभी अंजलि ने विनय को एक मैसेज भी नहीं भेजा, न उस के आसपास मंडराई. उस का किस्सा मेघा की लाइफ से खत्म हुआ.

मामला अलग स्थिति अलग

अगर यहां विनय पड़ोसन के साथ फ्लर्ट कर रहा ?होता तो बात दूसरी होती, समस्या पड़ोसन की नहीं, पति की होती पर यहां मामला अलग था. ऐसी स्थिति को बहुत जल्दी ही संभाल लेना चाहिए, फ्लर्टिंग को अफेयर बनते देर नहीं लगती.

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ट्रेसी कौक्स जो डेटिंग, सैक्स और रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट हैं, का कहना है कि महिलाएं विवाहित पुरुषों की तरफ ज्यादा आकर्षित होती हैं, कोई महिला आप के पति के साथ फ्लर्ट कर रही है या नहीं, कैसे समझ सकते हैं, जानिए:

– यदि आप का पति उस की कौल्स और मैसेज के बारे में आप को बता देता है तो इस का मतलब है कि वह आप को प्यार करता है, पर यदि आप को खुद ही यह सब पता चला है तो इस का मतलब है कि आप के पति भी उसे बढ़ावा दे रहे हैं.

– जब वह आप के पति के आसपास मंडराती

है तो वह कुछ अलग ही मेकअप, कपड़ों में होती है, वह उस में रुचि ले रही हैं तो उस

का ध्यान आप के पति को आकर्षित करने

में होगा.

– कोई भी महिला जो किसी विवाहित पुरुष में रुचि लेती है, वह हमेशा यह दिखाने की कोशिश करती है कि वह उस की पत्नी से

बैटर है, अगर उसे पता चलता है कि पति

को कोई शौक है और पत्नी को नहीं है तो वह पति वाले शौक को ही अपना बताने की कोशिश करेगी.

क्या करें

अब सवाल यह उठता है कि ऐसे में एक पत्नी को क्या करना चाहिए, अपने पति पर शक करते हुए उस से सवालजवाब करने से आप के वैवाहिक जीवन में तनाव हो सकता है, उसे ऐसा लगेगा कि आप उस पर विश्वास नहीं करतीं, यह बात आप को नुकसान पहुंचा सकती है, पति के साथ फ्लर्ट करने वाली महिला के साथ कैसे व्यवहार करें, ऐसी कुछ टिप्स जानिए:

– पड़ोसन को सीधेसीधे कुछ कहेंगीं तो आप सनकी, इन्सेक्युर पत्नी लगेंगी. उस के साथ अच्छी तरह पेश आइए, ऐसे कि वह असहज हो जाए. सच यही है कि वह आप को पसंद नहीं करती होगी क्योंकि उस की रुचि आप के पति में है. उसे यह न महसूस होने दें कि आप भी उसे पसंद नहीं करतीं, उस की अच्छी फ्रैंड होने का नाटक करें, उसे अपने पति के साथ टाइम बिताने का मौका बिलकुल न दें. वह खुद ही अनकंफर्टेबल हो कर पीछे हट जाएगी.

– अपने पति से बात करें. उस के इरादों के बारे में आप के पति को भी संदेह हो सकता है. अपने पति पर सवालों की बौछार न करते हुए शांति से बात करें. याद रखें, यहां विक्टिम वह है, उस से पूछें कि क्या उसे भी यही लग रहा है कि पड़ोसन उस के साथ फ्लर्ट कर रही है. यदि पति कहे कि आप को ही बेकार का शक हो रहा तो उन्हें घटनाओं के साथ स्पष्ट करें कि वह फ्लर्ट कर रही थी. अपने पति की इस स्थिति को समझने में हैल्प करें और मिल कर इस से निबटें.

– इस स्थिति पर हंसना सीखें. कोई महिला उस पुरुष के साथ फ्लर्ट करने की कोशिश कर रही है जो आप को प्यार करता है, यह तो फनी है.  अपने विवाह पर फोकस रखें, हर समय इस महिला के बारे में सोच कर तनाव में न रहें.

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– ऐसी महिलाएं आप के और आप के पति के बीच मिसिंग स्पार्क का फायदा उठाने की कोशिश करती हैं. इसलिए उन्हें ऐसा करने का मौका न दें.

अपने पति पर विश्वास रखें, उसे बताएं कि आप को उस पर विश्वास है भले ही कोई भी स्थिति हो. यदि वह गलत नहीं है तो उसे अच्छा लगेगा कि उस की पत्नी को उस पर विश्वास है.

जब बारबार उठे फैमिली प्लानिंग की बात

शादी के कुछ महीने बीते नहीं कि न्यूली वेड कपल से हर कोई बस यही सवाल पूछता रहता है कि कब सुना रहे हो गुड न्यूज, जल्दी से मुंह मीठा करवा दो, अब तो दादीचाची सुनने को कान तरस रहे हैं. ज्यादा देर मत करना वरना बाद में दिक्कत हो सकती है. अकसर ऐसी बातें सुन कर कान थक जाते हैं. और ये सवाल कई बार रिश्ते में मन मुटाव का कारण भी बन जाते हैं. ऐसे में आप के लिए जरूरी है कि इन सवालों के जवाब बहुत ही स्मार्टली दें, जिस से किसी को बुरा नहीं लगेगा और आप खुद को स्ट्रेस से भी दूर रख पाएंगे.

कैसे करें स्मार्टली हैंडिल

1. जब हो डिनर टेबल पर:

अकसर इस तरह की बातें डिनर टेबल पर ही होती हैं क्योंकि जहां पूरा परिवार साथ होता है वहीं सब रिलैक्स मूड में होते हैं. ऐसे में जब आप की मां आप से बोले कि अब फैमिली प्लानिंग के बारे में सोचो तो आप अपना मूड खराब न करें. क्योंकि बड़ों से हम इसी तरह के सवालों की उम्मीद करते हैं. बल्कि उन्हें हां बोल कर बात को कुछ इस तरह घुमाएं कि मोम आज तो खाना कुछ ज्यादा ही टैस्टी बना है, मोम आप तो वर्ल्ड की बैस्ट शेफ हो वगैरहवगैरह बोल कर उन्हें टौपिक से दूसरी जगह ले जाएं. इस से आप का मूड भी खराब नहीं होगा और बात भी टल जाएगी.

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2. मजाकमजाक में करें बोलती बंद:

इंडियन कल्चर ऐसा है कि यहां लोगों को खुद से ज्यादा दूसरों की चिंता होती है. आप की लड़की या लड़का इतने का हो गया है या अभी तक शादी नहीं हुई, शादी को 4 साल हो गए और अभी तक बच्चा नहीं हुआ. यहां तक कि कभीकभी फ्रैंड्स भी ऐसे ताने मारे बिना नहीं रहते. ऐसे में खुद पर बातों को हावी न होने दें बल्कि उन्हें मजाकमजाक में बोलें यार तू पालेगी मेरे बच्चे को तो मैं आज ही प्लेन कर लेती हूं, यह बोलबोल कर हंसने लगे, इस से उस की बोलती भी बंद हो जाएगी और मजाकमजाक में आप का काम हो जाएगा.

3. रिश्तेदारों के सामने बोल्ड रहें:

जहां परिवार के लोग इकट्ठा हुए नहीं फिर चाहे उस में बच्चे हों या बड़े सब मस्ती के मूड में आ जाते हैं. क्योंकि लंबे समय के बाद जो सब मिलते हैं. ऐसे में रिश्तेदार हंसीहंसी में बच्चे के बारे में ञ्चया विचार है पूछे बिना रह नहीं पाते. ऐसे में आप इस बात पर भड़क कर माहोल को खराब न करें बल्कि बोलें अभी तो हम बच्चे हैं, अभी तो तो हमारी उम्र मस्ती करने की है. आप के इस जवाब को सुन कर बोलने वालों को समझ आ जाएगा कि इन्हें अभी इस बारे में कहने का कोई फायदा नहीं है.

4. खुद को रखें मेंटली प्रपेयर:

जब शादी हुई है तो बच्चे भी होंगे ओर इस बारे में सवाल भी पूछे जाएंगे. इसलिए जब भी कोई इस बारे में पूछे तो मुंह बनाने के बजाय उन्हें प्यार से बताएं कि अभीअभी तो हमारी नई जिंदगी शुरू हुई है और अभी चीजों को सैटल करने में थोड़ा वक्त लगेगा. जब सब कुछ अच्छे से मैनेज हो जाएगा तब प्लान करने के बारे में सोचेंगे. आप के इस

जवाब के बाद कोई भी आप से बारबार इस बारे में नहीं पूछेगा.

5. शर्माएं नहीं खुल कर करें बात:

जब भी इस टौपिक पर बात होती है तो या तो हम शरमा जाते हैं या फिर उस जगह से उठ कर चले जाते हैं. भले ही ये टौपिक झिझक का होता है लेकिन अगर आप ने अपनी बात खुल कर सब के सामने नहीं रखी तो लोग कुछ का कुछ भी समझ सकते हैं. यह जान लें कि इस बारे में फैसला आप का ही होगा, कोई भी आप पर अपना फैसला नहीं थोप पाएगा. इसलिए जब भी बात हो तो उन्हें बताएं कि अभी हम इस बारे में नहीं सोच रहे हैं, जब गुड न्यूज होगी तो आप को ही सब से पहले बताएंगे.

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6. हमेशा साथ निभाएं:

शादी के कई साल हो गए हैं और कंसीव करने में दिक्कत आ रही है तो ये बात जहां कपल को अंदर ही अंदर परेशान किए रहती है वहीं दूसरों के द्वारा इस बारे में बारबार पूछे जाने पर कई बार इतना अधिक गुस्सा आ जाता हैन् कि पलट कर जवाब देने को दिल करता है. लेकिन आप ऐसा भूल कर भी न करें, क्योंकि ये दूसरों के सामने आप की इमेज को बिगाड़ने का काम करेगा. इसलिए एकदूसरे की हिम्मत बने. एकदूसरे का हर दम साथ निभाएं और फैसला करें कि अगर कोई इस बारे में पूछेगा तो क्या जवाब देना है. आप का यही साथ आप को भीतर से मजबूत बनाने का काम करेगा और दूसरों के सामने आप बोल्ड बन कर जवाब दे पाएंगे.

इस तरह आप खुद को स्ट्रेस फ्री रख पाएंगे.

मायके और ससुराल वाले भी दूसरी शादी करने पर अड़े हैं, मैं क्या करूं?

सवाल-

मैं 35 वर्षीय महिला और 9 साल की बेटी की मां हूं. पति की 5 साल पहले एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. मायके और यहां तक कि ससुराल वाले भी दूसरी शादी करने पर अड़े हैं पर दिल से पति का चेहरा उतर ही नहीं पाता. एक लड़के को मेरे मायके और ससुराल वाले दोनों ही पसंद करते हैं. लड़का भी बिना शर्त शादी करने को तैयार है. मैं क्या करूं?

जवाब-

किसी की यादों और भरोसे में जिंदगी नहीं चलती न ही रुकती है. आप की बेटी अभी छोटी है. कल को बेटी की शादी होगी और वह भी अपने परिवार में रम जाएगी. तब आप नितांत ही खुद को अकेला महसूस करेंगी.

अभी आप के पास समय है. इसलिए दूसरी शादी करने में कोई बुराई नहीं. बेटी को सही तालीम देने और उस की शादी करने जैसी जिम्मेदारियां आप समय पर तब भी निभा सकती हैं जब आप की घरगृहस्थी जम चुकी हो. आप चाहें तो बेटी की परवरिश के लिए भावी पति से पहले ही बात कर सकती हैं.

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भोर हुई तो चिरैया का मीठासुरीला स्वर सुन कर पूर्वा की नींद उचट गई. उस की रिस्टवाच पर नजर गई तो उस ने देखा अभी तो 6 भी नहीं बजे हैं. ‘छुट्टी का दिन है. न अरुण को दफ्तर जाना है और न सूर्य को स्कूल. फिर क्या करूंगी इतनी जल्दी उठ कर? क्यों न कुछ देर और सो लिया जाए,’ सोच कर उस ने चादर तान ली और करवट बदल कर फिर से सोने की कोशिश करने लगी. लेकिन फोन की बजती घंटी ने उस के छुट्टी के मूड की मिठास में कुनैन घोल दी. सुस्त मन के साथ वह फोन की ओर बढ़ी. इंदु भाभी का फोन था.

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कोरोनावायरस के चलते संकट में घिरा ‘वर्क-वाइफ, वर्क-हसबैंड’ का कामकाजी समाजशास्त्र

क्या कोविड-19 के विश्वव्यापी संक्रमण ने कार्यस्थलों के समाजशास्त्र को उलट पलट दिया है? किसी हद तक इस सवाल का जवाब है, हां, ऐसा ही है.  तमाम मीडिया रिपोर्टें इस बात की तस्दीक कर रही हैं कि कोरोना संक्रमण के बाद से पूरी दुनिया के कार्यस्थलों का समाजशास्त्र तनाव में है. इसकी वजह है इनकी पारंपरिक व्यवस्था का उलट पलट हो जाना. जिन देशों में लाॅकडाउन नहीं भी लगा या लाॅकडाउन लगने के बाद अब यह पूरी तरह से उठ चुका है, वहां भी दफ्तरों की दुनिया कोरोना संक्रमण के पहले जैसी थी, वैसी अब नहीं रही. न्यूयार्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना के बाद से पूरी दुनिया में 25 से 40 फीसदी तक कर्मचारियों को या तो वर्क फ्राॅम होम दे दिया गया है या फिर बड़ी संख्या में उनकी छंटनी कर दी गई है. कुल मिलाकर इतने या इससे ज्यादा कर्मचारी अब नियमित रूप से दफ्तरों में नहीं आते.

हालांकि आधुनिक तकनीक के चलते घर से काम करने में कोई बड़ी दिक्कत नहीं है. जूम और इसके जैसे तमाम दूसरे ऐसे साॅफ्टवेयर आ गये हंै, जिनके चलते आप कहीं से भी दफ्तर के लोगों के साथ मीटिंग कर सकते हैं.  इस मीटिंग में भी आमने सामने जैसे बैठे होने की फीलिंग होगी. आप इन तकनीकी उपकरणों के चलते कामकाज संबंधी सारी बातचीत कर सकते हैं, काम और जिम्मेदारियों का आदान प्रदान कर सकते हैं. सवाल है फिर भी तमाम कर्मचारी एक दूसरे से इस तरह दूर दूर हो जाने या दफ्तर में रहते हुए बरती जाने वाली सोशल डिस्टेंसिंग से परेशान क्यों हैं?

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जी, हां! कोरोना के कारण तमाम सहकर्मी जो एक दूसरे से दूर हो गये हैं, वे एक दूसरे को छू नहीं सकते. अगर अब भी वे दफ्तर में साथ-साथ हैं तो भी सोशल डिस्टेंसिंग के कारण वे एक दूसरे को महसूस नहीं सकते. कहने और सुनने में यह बात भले थोड़ी अटपटी लग रही हो, लेकिन इसकी वजह यह है कि दफ्तरों में बड़े पैमाने पर ऐसे स्त्री पुरुष हैं जो एक दूसरे के साथ ‘वर्क वाइफ, वर्क हसबैंड’ जैसे रिश्तों में जाने अंजाने बंधे हुए हैं. यह किसी एक देश या एक शहर की बात नहीं है. पूरी दुनिया में जहां भी पुरुष और औरत साथ-साथ काम करते हैं, वहां प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से इस तरह के रिश्तों की मौजूदगी है. चाहे भले कई बार लोग इन रिश्तों को स्वीकार तक न करते हों.

दशकों पहले अमरीका की दफ्तरी कार्यसंस्कृति में एक मुहावरे का जन्म हुआ था, ‘वर्क-स्पाउस’. वही मुहावरा हाल के दशकों में विस्तारित होकर ‘वर्क-वाइफ, वर्क-हसबैंड’ में तब्दील हो चुका है. यह कोई चकित कर देने वाली बात भी नहीं है. सालों से दुनिया में इन संबंधों की मौजूदगी है और यह बिल्कुल स्वभाविक है. कहा जाता है कि घर में अगर पालतू कुत्ता होता है, तो उससे भी उतना ही लगाव हो जाता है जितना कि किसी इंसान से. तब फिर भला दो साथ रहने वाले इंसान, वह भी विपरीत सेक्स के, आखिरकार एक दूसरे के लगाव में क्यों नहीं महसूस करेंगे? यही कारण है कि हाल के दशकों में न सिर्फ ‘वर्क-वाइफ, वर्क-हसबैंड’ कल्चर बढ़ी है बल्कि इसे साफगोई से स्वीकार किया जाने लगा है.

आज के दौर में स्त्री और पुरुष दोनो ही घर से बाहर निकलकर साथ-साथ काम कर रहे हैं. दोनो का ही आज घर में रहने की तुलना में दफ्तर में ज्यादा वक्त गुजर रहा है. काम की संस्कृति भी कुछ ऐसी विकसित हुई है कि तमाम काम साथ-साथ मिलकर करने पड़ रहे हैं. लिहाजा एक ही दफ्तर में काम करते हुए दो विपरीत लिंगों के बीच प्रोफेशनल के साथ-साथ भावनात्मक नजदीकियां बढ़नी बहुत स्वभाविक है. एक और भी बात है एक जमाना था, जब दफ्तर का मतलब होता था, सिर्फ आठ घंटे. लेकिन आज दफ्तरों का मिजाज आठ घंटे वाला नहीं रह गया है. आज की तारीख में व्हाइट काॅलर जाॅब वाले प्रोफेशनलों के लिए दफ्तर का मतलब है, एक तयशुदा टारगेट पूरा करना, जिसमें हर दिन के 12 घंटे भी लग सकते हैं और कभी-कभी लगातार 24-36 घंटों तक भी साथ रहते हुए काम करना पड़ सकता है.

ऐसा इसलिए है क्योंकि अर्थव्यवस्था बदल गई है, दुनिया सिमट गई है और वास्तविकता से ज्यादा चीजें आभासी हो गई हैं. जाहिर है लंबे समय तक दफ्तर में साथ-साथ रहने वाले दो लोग अपने सुख दुख भी साझा करेंगे. क्योंकि जब दो लोग साथ-साथ रहते हुए काम करते हैं, तो वे आपस में हंसते भी हैं, साथ खाना भी खाते हैं, एक दूसरे के घर परिवार के बारे में भी सुनते व जानते हैं, बाॅस की बुराई भी मिलकर करते हैं और एक दूसरे को तरोताजा रखने के लिए एक दूसरे को चुटकले भी सुनाते हैं. यह सब कुछ एक छोटे से केविन में सम्पन्न होता है, जहां दो सहकर्मी बिल्कुल पास-पास होते हैं. ऐसी स्थिति में वह एक दूसरे की चाहे अनचाहे हर चीज साझा करते हैं. सहकर्मी को कैसा म्युजिक पसंद है यह आपको भी पता होता है और उसे भी. उसे चाॅकलेट पसंद है या आइस्क्रीम यह बात दोनो सहकर्मी भलीभांति जानते हैं. जाहिर है लगाव की डोर इन सब धागों से ही बनती है.

जब साथ काम करते-करते काफी वक्त गुजर जाता है तो हम एक दूसरे के सिर्फ काम की क्षमताएं ही नहीं, उनकी मानसिक बुनावटों और भावनात्मक झुकावों को भी अच्छी तरह जानने लगते हैं. जाहिर है ऐसे में दो विपरीत सेक्स के सहकर्मी एक दूसरे के लिए अपने आपको कुछ इस तरह समायोजित करते हैं कि वे एक दूसरे के पूरक बन जाते हैं. उनमें आपस में झगड़ा नहीं होता, वे दोनो मिलकर काम करते हैं तो काम भी ज्यादा होता है और थकान भी नहीं होती. दोनो साथ रहते हुए खुश भी रहते हैं. कुल जमा बात कहने की यह है कि ऐसे सहकर्मी मियां-बीवी की तरह काम करने लगते हैं. इसलिए ऐसे लोगों को समाजशास्त्र में परिभाषित करने के लिए वर्क-हसबैंड और वर्क-वाइफ की कैटेगिरी में रखा जाता है.

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पहले इसे सैद्धांतिक तौरपर ही माना और समझा जाता था. लेकिन पूरी दुनिया में मशहूर कॅरिअर वेबसाइट वाल्ट डाटकाम ने एक सर्वे किया है और पाया है कि साल 2010 में ऐसे वर्क-हसबैंड और वर्क-वाइफ तकरीबन 30 फीसदी थे, जो कि साल 2014 में बढ़कर 44 फीसदी हो गये थे. हालांकि इस संबंध में कोरोना के पहले कोई ताजा सर्वे तो नहीं आया था कि आज की तारीख में दफ्तरों में ‘वर्क-वाइफ, वर्क-हसबैंड’ कितने हैं लेकिन कोरोना संक्रमण के बाद दफ्तरों के पारंपरिक ढाचे में जो बदलाव हुआ है और उसके बाद कर्मचारियों में तनाव देखा गया है, उससे यह साफ है कि लोग बहुत जल्द ही इस कल्चर को छोड़ने वाले नहीं है और जबरदस्ती छुड़वाये जाने की स्थितियों के कारण तनावग्रस्त हैं.

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