सुनिए भी और सुनाइए भी…..

लेखिका- प्रीता जैन

प्रणव तेरी लखनऊ वाली ज़मीन कितने की बिकी, किसने ली कहाँ का रहने वाला है, कब तक पैसे मिलेंगे क्या सौदा हुआ वगैरा-वगैरा. एक के बाद एक कई सवाल और उससे अधिक सभी कुछ जानने की इच्छा, प्रणव के बड़े भाई फ़ोन पर पूछताछ कर रहे थे वैसे तो प्रणव उनसे कुछ नहीं छिपाता था पर आज ज़्यादा बताने का उसका मन नहीं हो रहा था वजह एक-एक बात पूछ लेना और अपने बारे में कुछ ना बताना, बस! इतना कह देना सब ठीक है.

इसी तरह अंजू और उसकी बहन की बातचीत हो रही थी बातों-बातों में अंजू की दीदी ने पूछा, तेरी कुछ बचत भी है या नहीं कुछ ज्वैलरी भी लेकर रखी थी ना तूने– हाँ! दीदी अविनाश ने हर महीने की बचत के साथ कुछ पैसे की मेरे नाम एफडी करा दी है इसके अलावा कुछ दिन पहले हमने ज्वैलरी (सोने का एक सेट) भी खरीदी है सब सहेज कर रख दिया है तुम चिंता ना करो. तुम बताओ दीदी क्या सेविंग्स हो रही है क्या-क्या खरीदा? अरे! अंजू तुझे तो पता ही है मैं सब खर्च देती हूँ, बस! यूँ समझ ले अभी तो मेरे पास कुछ भी नहीं है. दीदी तुम पिछले महीने तो ज्वैलर्स के यहां गई थी और सुना था कुछ प्रॉपर्टी भी ली है अरे! वो तो सब थोड़ा-बहुत ऐसे ही है, चल छोड़ तू फ़िक्र ना कर और अपनी कुछ बता…..

ऐसा सिर्फ प्रणव या अंजू के साथ ही ना होकर हममें से कई लोग ऐसे ही अनुभव अहसास से गुज़रते हैं. कुछ ऐसे परिचितों से बातचीत होती है जो आमने-सामने या फिर फ़ोन पर ही निजी बातें मालुम करने में माहिर होते हैं, वे इतनी जानकारी लेते हैं कि दूसरा व्यक्ति वास्तव में परेशान हो जाता है और ये विशेषता होती है कि अपने बारे में ज़रा नहीं बताना चाहते, टालमटोल ही करते रहते हैं. कई दफ़ा तो रोज़मर्रा तक की बातें अक्सर ही मालुम करते रहते हैं मसलन– आज खाने में क्या बनाया, सारा दिन क्या-क्या किया कौन आया कौन गया, कहां-कहां फ़ोन पर बातचीत की वगैरा-वगैरा. और हाँ! पूछते-पूछते यदि उन्हें कोई बात सही नहीं लगती तो अपनी सलाह भी देने लगते हैं ऐसा करना चाहिए वैसा करना चाहिए, यह सही वो गलत……

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क्या ऐसा करना उचित है? हर किसी समझदार व्यावहारिक इंसान की यही राय होगी ऐसा करना सही नहीं है, दूसरे की हर बात जानने की यदि जिज्ञासा रहती है तो स्वयं की भी बताएं अन्यथा किसी तरह की रूचि ना लें. यदि दूसरा  व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कुछ भी बताना चाहे तो अवश्य सुनें किन्तु हर बात जानने की और सलाह देने की पहल कदापि ना करें, यदि सुनना भी चाहें तो अपनी भी बताएं इसी में आपकी समझदारी तथा बड़प्पन माना जाता है. सबसे अहम् ऐसा करने से आपसी रिश्ते-नातों में स्नेह व लगाव बना रहता है और आपसी सम्बन्ध अधिक प्रगाढ़ घनिष्ठ होते हैं, वर्षों तक परस्पर स्नेह की गांठ बंधी रहती है ढीली नहीं होती.

हम सभी भलीभांति जानते हैं व्यस्तता से परिपूर्ण ये जीवन अपनों के और पारिवारिक संबंधों के बिना नहीं बिताया जा सकता, प्रतिपल ख़ुशी-ख़ुशी भरपूर जीने के लिए नाते-रिश्तों का हमारे साथ होना बेहद ज़रूरी है इससे मानसिक अवसाद भी कम होने से काफी हद तक तनावमुक्त रहा जाता है. अतः कुछ बातों का ध्यान रख सालोंसाल प्रियजनों का संग-साथ पाकर खुशहाल जीवन बिताएं–

1. हरेक की अपनी पर्सनल लाइफ व बातें होती हैं, जिन्हें कई बार दूसरों के साथ साझा नहीं किया जा सकता. चाहे कोई कितना भी अपना सगा हो फिर भी उसके जीवन की हर घटना या बात जानने का प्रयास अथवा कोशिश कदापि ना करें.

2. किसी की व्यक्तिगत बातों की जानकारी इधर-उधर से भी मालुम करने की आदत स्वयं में विकसित ना करें, ऐसा करना हमारी अव्यवहारिकता और नासमझी दर्शाता है.

3. अन्य व्यक्ति इच्छुक हो अथवा ज़रुरत मुताबिक आपसे कोई अपनी बात शेयर करना चाहता हो तभी अपनी रुचि ज़ाहिर करें अन्यथा सुनने या मालुम करने में कोई उतावलापन ना दिखाएं. साथ ही अपनी राय-मशविरा बात-बात में देने की आदत से भी बचें.

4. यदि सामने वाले से आप कुछ बातों की जानकारी लेते हैं तो आवश्यकतानुसार ही लें ज़रूरत से ज़्यादा इच्छुक होना अच्छी बात नहीं है. और हाँ! स्वयं के बारे में भी विस्तारपूर्वक सही ढंग से बताएं, किसी तरह का दुराव-छिपाव आपस में ना होने दें इससे दूरियां भी नज़दीकियां बन जाती हैं रिश्तों में सदा अपनत्व बना रहता है.

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5. रिश्तों को बहुत ही सहेजकर- संभालकर रखा जाता है इन्हीं के सहारे ज़िन्दगी की हर चुनौती का सामना कर लिया जाता है, इसलिए आवश्यकता से अधिक एक-दूसरे की बातों या पर्सनल मामलों में हस्तक्षेप ना किया जाए ना ही पारिवारिक मामलों में बिन मांगे

सलाह-मशविरा दिया जाए. यदि लम्बे समय तक रिश्तों में स्नेह-प्यार लगाव व अपनापन रखना है तो आसपास बेफिज़ूल ध्यान केंद्रित करने की बजाय मैं और मेरा जीवन तक ही सोचें इसी में सुख व खुशियां निहित हैं.

अतः! थोड़ी सी सूझबूझ व समझदारी से प्यारे आत्मीय रिश्तों का बगीचा अपनों की खुशबू से महकते हुए सदैव आनंदमय सुखमय बना रहता है.

मेरी भाभी मुझ पर गंभीर आरोप लगाती हैं, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं अविवाहित युवती हूं. माता पिता नहीं हैं. मैं भाई भाभी के साथ रहती हूं. समस्या यह है कि मेरी भाभी मुझ पर आरोप लगाती हैं कि मेरे और भैया के बीच गलत संबंध हैं. मुझे उन का यह आरोप बहुत परेशान करता है. समझ नहीं आता कि भैया से इस बारे में बात करूं या नहीं, सलाह दें.

जवाब

लगता है आप की भाभी को आप का उन के साथ रहना अखरता है. वे आप के प्रति अपनी व आप के भैया के जिम्मेदारी से बचने के लिए ऐसा आरोप लगा रही है. भाई से अपनी शादी कराने के लिए कहें. जैसा भी पति मिले, उस के साथ शादी करने को हां कह दें. यह क्लेश सब को भारी पड़ सकता है.

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न बहकें कदम

पिछले दिनों एक समाचारपत्र में खबर आई थी कि एक विवाहित महिला का एक युवक से प्रेमसंबंध चल रहा था. दुनिया की आंखों में धूल झोंक कर दोनों अपने इस संबंध का पूरी तरह से आनंद उठा रहे थे. महिला के घर में सासससुर, पति और उस के 2 बच्चे थे. पति जब टूअर पर जाता था, तो सब के सो जाने पर युवक रात में महिला के पास आता था. दोनों खूब रंगरलियां मना रहे थे.

एक रात महिला अपने प्रेमी के साथ हमबिस्तर थी, तभी उस का पति उसे सरप्राइज देने के लिए रात में लौट आया. आहट सुन कर महिला और युवक के होश उड़ गए. महिला ने फौरन युवक को वहां पड़े एक खाली ट्रंक में लिटा कर उसे बंद कर दिया. पति आ गया. वह उस से सामान्य बातें करती रही. काफी देर हो गई. पति को नींद नहीं आ रही थी. महिला को युवक को ट्रंक से बाहर निकालने का मौका ही नहीं मिला. बहुत घंटों बाद उस ने ट्रंक खोला. ट्रंक में दम घुटने से युवक की मृत्यु हो चुकी थी.

उस के बाद जो हुआ, उस का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. चरित्रहीनता का प्रत्यक्ष प्रमाण, तानेउलाहने, पुलिस, कोर्टकचहरी, परिवार, समाज की नजरों में जीवन भर के लिए गिरना. क्या कुछ नहीं सहा उस महिला ने. बहके कदमों का दुष्परिणाम उस ने तो सहा ही, युवक का परिवार भी बरबाद हो गया. बहके कदमों ने 2 परिवार पूरी तरह बरबाद कर दिए.

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कभी न भरने वाले घाव

ऐसा ही कुछ मेरठ में हुआ. 2 पक्की सहेलियां कविता और रेखा आमनेसामने ही रहती थीं. दोनों की दोस्ती इतनी पक्की थी कि कालोनी में मिसाल दी जाती थी. दोनों के 2-2 युवा बच्चे भी थे. पता नहीं कब कविता और रेखा के पति विनोद एकदूसरे की आंखों में खोते हुए सब सीमाएं पार कर गए. कविता के पति अनिल और रेखा को जरा भी शक नहीं हुआ. पहले तो विनोद रेखा के साथ ही कविता के घर जाता था. फिर अकेले भी आने लगा.

कालोनी में सुगबुगाहट शुरू हुई तो दोनों ने बाहर मिलना शुरू कर दिया. बाहर भी लोगों के देखे जाने का डर रहता ही था. दोनों हर तरह से सीमा पार कर एक तरह से बेशर्मी पर उतर आए थे. अपने अच्छेभले जीवनसाथी को धोखा देते हुए दोनों जरा भी नहीं हिचकिचाए और एक दिन कविता और विनोद अपनाअपना परिवार छोड़ घर से ही भाग गए.

रेखा तो जैसे पत्थर की हो गई. अनिल ने भी अपनेआप को जैसे घर में बंद कर लिया. दोनों परिवार शर्म से एकदूसरे से नजरें बचा रहे थे. हैरत तो तब हुई जब 10 दिन बाद दोनों बेशर्मी से अपनेअपने घर लौट कर माफी मांगने का अभिनय करने लगे.

रेखा सब के समझाने पर बिना कोई प्रतिक्रिया दिए भावशून्य बनी चुप रह गई. बच्चों का मुंह देख कर होंठ सी लिए. विनोद को उस के अपने मातापिता और रेखा के परिवार ने बहुत जलील किया पर अंत में दिखावे के लिए ही माफ किया. सब के दिलों पर चोट इतनी गहरी थी कि जीवन भर ठीक नहीं हो सकती थी.

कविता को अनिल ने घर में नहीं घुसने दिया. उसे तलाक दे दिया. बाद में अनिल अपना घर बेच कर बच्चों को ले कर दूसरे शहर चला गया. लोगों की बातों से बचने के लिए, बच्चों के भविष्य का ध्यान रखते हुए रेखा का परिवार भी किसी दूसरे शहर में शिफ्ट हो गया. रेखा को विनोद पर फिर कभी विश्वास नहीं हुआ. दोस्ती से उस का मन हमेशा के लिए खट्टा हो गया. उस ने फिर किसी से कभी दोस्ती नहीं की. बस बच्चों को देखती और घर में रहती. विनोद हमेशा एक अपराधबोध से भरा रहता.

क्षणिक सुख

दोनों घटनाओं में अगर अपने भटकते मन पर नियंत्रण रख लिया जाता, तो कई घर बिखरने से बच जाते. कदम न बहकें, किसी का विश्वास न टूटे, इस तरह के विवाहेत्तर संबंधों में तनमन को जो खुशी मिलती है वह हर स्थिति में क्षणिक ही होती है. इन रिश्तों का कोई वजूद नहीं होता. ये जितनी जल्दी बनते हैं उतनी ही जल्दी टूट भी जाते हैं.

अपनी बेमानी खुशियों के लिए किसी के पति, किसी की पत्नी की तरफ अगर मन आकर्षित हो तो अपने मन को आगे बढ़ने से पहले ही रोक लें. इस रास्ते पर सिर्फ तबाही है, जीवन भर का दुख है, अपमान है. परपुरुष या परस्त्री से संबंध रख कर थोड़े दिन की ही खुशी मिल सकती है. ऐसे संबंध कभी छिपते नहीं.

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यदि आप के वैवाहिक रिश्ते में कोई कमी, कुछ अधूरापन है तो अपने जीवनसाथी से ही इस बारे में बात करें, उसे ही अपने दिल का हाल बताएं. पति और पत्नी दोनों का ही कर्तव्य है कि अपना प्यार, शिकायतें, गुस्सा, तानेउलाहने एकदूसरे तक ही रखें.

स्थाई साथ पतिपत्नी का ही होता है. पतिपत्नी के साथ एकदूसरे के दोस्त भी बन कर रहें तो जीने का मजा ही और होता है. अपने चंचल होते मन पर पूरी तरह काबू रखें वरना किसी भी समय पोल खुलने पर अपनी और अपने परिवार की तबाही देखने के लिए तैयार रहें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

शादी के बाद तुरंत उठाएं ये 5 स्‍टेप

बैचलर लाइफ में आपके लिए फाइनेंशियल प्‍लानिंग करना थोड़ा मुश्किल होता है. लेकिन आपकी शादी के बाद आपकी जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं. ऐसे में आपके लिए आगे की लाइफ के लिए प्‍लानिंग करना जरूरी हो जाता है. हम आपको पांच टिप्‍स बता रहे हैं जिनको फॉलो करके आप हैप्पी मैरिड लाइफ जी सकते हैं और आपको कोई फाइनेंशियल क्राइसिस भी नहीं होगी.

1. लाइफ पार्टनर के साथ साझा करें पैसे को लेकर अपना नजरिया

फाइनेंस या पैसे को लेकर हर आदमी का नजरिया अलग-अलग होता है. ऐसे में अगर आपको फ्यूचर के लिए फाइनेंशियल प्‍लानिंग करनी है तो जरूरी है कि आप पैसों को लेकर अपने लाइफ पार्टनर का नजरिया समझें. अगर आप दोनों की सोच या नजरिया अलग-अलग है तो बातचीत करके सामंजस्‍य बनाएं. इससे फ्यूचर में आपके और आपके लाइफ पार्टनर के बीच पैसे या फाइनेंशियल पलानिंग को लेकर विवाद की आशंका नहीं रहेगी.

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2. शार्ट, मीडियम और लांग टर्म के लिए तय करें गोल

आप कहां रहना चाहते हैं. आप किराए के घर में रहे हैं तो क्‍या आप अपना घर खरीदना चाहेंगे. आने वाले समय कैरियर के मोर्चे पर खुद को कहां देख रहे हैं. गोल तय करना और लाइफ को प्‍लान करना सक्‍सेजफुल मैरिज के अहम है. आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आप और आपका लाइफ पार्टनर एक दूसरे के गोल को समझे. इससे इसके अनुरूप फाइनेंशियल प्‍लानिंग करने में आसानी होगी.

3. ज्‍वाइंट स्‍पेंडिंग और सेविंग के लिए बनाएं प्‍लान

आप कहां रहना चाहते हैं. आप किराए के घर में रहे हैं तो क्‍या आप अपना घर खरीदना चाहेंगे. आने वाले समय कैरियर के मोर्चे पर खुद को कहां देख रहे हैं. गोल तय करना और लाइफ को प्‍लान करना सक्‍सेजफुल मैरिज के अहम है. आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आप और आपका लाइफ पार्टनर एक दूसरे के गोल को समझे. इससे इसके अनुरूप फाइनेंशियल प्‍लानिंग करने में आसानी होगी.

4. अपनी क्रेडिट हिस्‍ट्री करें साझा

शादी के पहले अगर आपने क्रेडिट हिस्‍ट्री पर ठीक से गौर नहीं किया है तो अब इसे नजरअंदाज करने की गलती न करें. आप दोनों की क्रेडिट हिस्‍ट्री आपकी फ्यूचर प्‍लानिंग में अहम रोल निभाने वाली है. अगर किसी भी वजह से आप दोनों में से किसी की क्रेडिट हिस्‍ट्री खराब या क्रेडिट स्‍कोर कम है तो इसे सुधारने के उपायों पर डिस्‍कर करें या किसी कंसलटेंट की मदद लें.

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5. मिल कर करें इन्वेस्‍टमेंट के फैसले

पैसे मैनेज करने को लेकर पुरुष और महिलाओं की स्‍ट्रेंथ अलग अलग होती है. पुरुष आम तौर तेजी से फैसले करते हैं और परिवार के खर्च पर कंट्रोल करना पसंद करते हैं. वहीं महिलाओं में ज्‍यादा धैर्य होता है और वे कोई फैसला लेने से पहले ज्‍यादा सोच विचार करतीं हैं. ऐसे में अगर इन्‍वेस्‍टमेंट से जुड़े फैसले आप दोनों मिल कर करते हैं तो इसमे दोनों की स्‍ट्रेंथ का फायदा उठाया जा सकता है.

तो कहलाएंगी Wife नं. 1

आजकल अगर आप पत्नियों से यह पूछें कि पति पत्नी से क्या चाहता है तो ज्यादातर पत्नियों का यही जवाब होगा कि सौंदर्य, वेशभूषा, मृदुलता, प्यार.

जी हां, काफी हद तक पति पत्नी से नैसर्गिक प्यार का अभिलाषी होता है. वह सौंदर्य, शालीनता, बनावट और हारशृंगार भी चाहता है. पर क्या केवल ये बातें ही उसे संतुष्ट कर देती हैं?

जी नहीं. वह कभीकभी पत्नी में बड़ी तीव्रता से उस की स्वाभाविक सादगी, सहृदयता, गंभीरता और प्रेम की गहराई भी ढूंढ़ता है. कभीकभी वह चाहता है कि वह बुद्धिमान भी हो, भावनाओं को समझने वाली योग्यता भी रखती हो.

बहलाने से नहीं बनेगी बात

पति को गुड्डे की तरह बहलाना ही पत्नी के लिए पर्याप्त नहीं. दोनों के मध्य गहरी आत्मीयता भी जरूरी है. ऐसी आत्मीयता कि पति को अपने साथी में किसी अजनबीपन की अनुभूति न हो. वह यह महसूस करे कि वह उसे सदा से जानता है और वह उस के दुखसुख में हमेशा उस के साथ है. पतिपत्नी के प्यार और वैवाहिक जीवन में यह आत्मिक एकता जरूरी है. पत्नी का कोमल सहारा वास्तव में पति की शक्ति है. यदि वह सहृदयता और सूझबूझ से पति की भावनाओं का साथ नहीं दे सकती, तो वह सफल पत्नी नहीं कहला सकती.

पत्नी भी मानसिक तृष्णा अनुभव करती है. वह भी चाहती है कि वह पति के कंधे पर सिर रख कर जीवन का सारा बोझ उतार फेंके.

बहुतों का जीवन प्राय: इसलिए कटु हो जाता है कि वर्षों के सान्निध्य के बावजूद पति और पत्नी एकदूसरे से मानसिक रूप से दूर रहते हैं और एकदूसरे को समझ नहीं पाते हैं. बस यहीं से शुरू होती है दूरी. यदि आप चाहती हैं कि यह दूरी न बढ़े, जीवन में प्रेम बना रहे तो निम्न बातों पर गौर करें:

– यदि आप के पति दार्शनिक हैं तो आप दर्शन में अपनी जानकारी बढ़ाएं. उन्हें कभी शुष्क या उदास मुखड़े से अरुचि का अनुभव न होने दें.

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– यदि आप कवि की पत्नी हैं, तो समझिए वीणा के कोमल तारों को छेड़ते रहना आप का ही जीवन है. सुंदर बनी रहें, मुसकराती रहें और

सहृदयता से पति के साथ प्रेम करें. उन का दिल बहुत कोमल और भावुक है, आप की चोट सहन न कर पाएगा.

– आप के पति प्रोफैसर हैं तो आटेदाल से ले कर संसार की प्रत्येक समस्या पर हर समय व्याख्यान सुनने के लिए प्रसन्नतापूर्वक तैयार रहें.

– यदि आप के पति धनी हैं, तो उन के धन को दिमाग पर लादे न घूमें. धन से इतना प्रभावित न हों कि पति यह विश्वास करने लगे कि सारी दिलचस्पी का केंद्र उस की दौलत है. आप दौलत से बेपरवाह हो कर उन के व्यक्तित्व की उस रिक्तता को पूरा करें जो हर धनिक के जीवन में होती है. विनम्रता और प्रतिष्ठतापूर्वक दौलत का सही उपयोग करें और पति को अपना पूरा और सच्चा सान्निध्य दें.

– यदि आप के पति पैसे वाले न हों तो उन्हें केवल पति समझिए गरीब नहीं. आप कहें कि आप को गहनों का तो बिलकुल शौक नहीं है. साधारण कपड़ों में भी अपना नारीसौंदर्य स्थिर रखें. चिंता और दुख से बच कर हर मामले में उन का साथ दें.

हमेशा याद रखें कि सच्चा सुख एकदूसरे के साथ में है, भौतिक सुखसुविधाएं कुछ पलों तक ही दिल बहलाती हैं.

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Married Life पर पड़ता परवरिश का असर

आप जब विवाह के बंधन में बंधते हैं, तो जीवन में ढेर सारे बदलाव आते हैं. जिंदगी में प्यार के साथसाथ जिम्मेदारियों का भी समावेश होता है. जब आप अपने जीवनसाथी के साथसाथ उस के परिवार के सदस्यों को भी दिल से स्वीकारते हैं, तो आप के जीवन से कभी न जाने वाली खुशियों का आगमन होता है.

पतिपत्नी का संबंध बेहद संवेदनशील होता है, जिस में प्यारदुलार के साथसाथ एकदूसरे की अच्छीबुरी बातों को स्वीकार करने की भावना भी होती है. आप चाहे इस बात को मानें या न मानें कि आप के संबंधों पर आप के मातापिता का संबंध एकदूसरे के साथ कैसा था, इस का प्रभाव पड़ता है. सच तो यह है कि आप के व्यक्तित्व पर कहीं न कहीं आप के पेरैंट्स की छाप होती है. जीवन के प्रति आप के नजरिए में काफी हद तक आप के पेरैंट्स का असर दिखता है.

कई बार न चाहते हुए भी आप अपने पेरैंट्स की गलत आदतों को सीख लेते हैं, जो जानेअनजाने आप के संबंधों को प्रभावित करती हैं.

अगर आप में अपने पेरैंट्स की कोई ऐसी आदत है, जिस की वजह से जीवनसाथी के साथ आप के संबंधों में टकराहट आ रही है, तो उसे छोड़ने का प्रयास करें.

कभी प्यार कभी तकरार

रिलेशनशिप काउंसलर डा. निशा खन्ना के अनुसार, पतिपत्नी का रिश्ता बेहद संवेदनशील होता है, जिस में प्यारदुलार के साथसाथ तकरार भी होती है. लेकिन जब यह तकरार जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है, तो दोनों के संबंधों में दरार आते देर नहीं लगती. सच तो यह है कि पतिपत्नी अपने संबंध को बिलकुल ही वैसा बना देना चाहते हैं, जैसा संबंध उन के पेरैंट्स का एकदूसरे से था. इस की वजह से दोनों के संबंधों में दूरी आने लगती है. जब पतिपत्नी एकदूसरे पर अपनी बातें थोपना शुरू करते हैं, तो उन के संबंधों से प्रेम समाप्त होने लगता है और वे एकदूसरे से छोटीछोटी बातों पर भी लड़ना शुरू कर देते हैं. आमतौर पर पत्नी को शिकायत होती है कि पति उसे समय नहीं देता है और पति को यह शिकायत रहती है कि पत्नी औफिस से आते ही उस के सामने शिकायतों की पिटारा खोल कर बैठ जाती है.

आमतौर पर पतिपत्नी में यह आदत उन के पेरैंट्स से आती है. अगर आप के पेरैंट्स की आदत अपनी गलतियों को एकदूसरे के ऊपर थोपने की रही है, तो न चाहते हुए भी आप उस आदत का शिकार हो जाते हैं. सुखमय दांपत्य जीवन के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप अपने साथी को उस की हर अच्छाईबुराई के साथ स्वीकार करें. कोशिश करें कि आप के जीवन में वैसी नकारात्मक बातें न हों जैसी आप के पेरैंट्स के जीवन में थीं.

जिन दंपतियों के पेरैंट्स की आदत संबंधों को फौर ग्रांटेड लेने की रही है, उन के बच्चे भी अपने जीवनसाथी के साथ उसी तरह का संबंध स्थापित करते हैं. इस तरह की सोच दोनों के संबंधों को पनपने नहीं देती है.

सच तो यह है कि पतिपत्नी एकदूसरे के पूरक हैं. जब दोनों एकसाथ मिल कर चलते हैं, तो जीवन की गाड़ी सहजता से आगे बढ़ती है, लेकिन जब दोनों में टकराव होता है, तो संबंधों की डोर को टूटते देर नहीं लगती. अपने रिश्ते को सहजता से चलाने के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप अपने साथी को टेकन फौर ग्रांटेड लेने की भूल न करें. उसे अपना दोस्त, अपना हमसफर समझ कर उस के साथ अपने सुखदुख को साझा करें.

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जरूरी नहीं आप ही सही हों

अगर आप के पेरैंट्स की आदत यह रही है कि मैं ही सही हूं, तो यकीनन कहीं न कहीं आप के अंदर भी वही बात होगी. अपनी इस तरह की सोच को बदलें. आजकल पतिपत्नी एकदूसरे के साथ मिल कर काम कर रहे हैं. घरपरिवार की जिम्मेदारियों को साथ मिल कर निभा रहे हैं. ऐसे में दोनों की बात माने रखती है. अगर आप के अंदर अपनी बात को ही ऊपर रखने की आदत है, तो इस आदत को छोड़ कर अपने साथी की बात को भी मानें. जरूरी नहीं कि हर बार आप ही सही हों. आप का साथी जो सोच रहा है, कर रहा है. वह भी सही हो सकता है.

साझी जिम्मेदारी साझा पैसा

आमतौर पर हम में से बहुत सारे लोगों की परवरिश ऐसे माहौल में होती है, जहां पति का काम पैसा कमाना और पत्नी का घर की जिम्मेदारियों को निभाना था. आप के पिता मां को पैसा दे कर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते थे और मां जरूरत पड़ने पर भी अपने संचित पैसे पिता को देने से गुरेज करती थीं.

अगर आप की सोच इस तरह की है, तो इस में बदलाव लाने की जरूरत है, क्योंकि बदलते परिवेश में जब पतिपत्नी दोनों वर्किंग हैं, तो ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि संबंधों में मजबूती के लिए पतिपत्नी दोनों ही एकदूसरे की जिम्मेदारियों में सहयोग दें. पति यह न सोचे कि घर का काम करना पत्नी की जिम्मेदारी है. इसी तरह पत्नी को भी इस सोच से बाहर निकलने की जरूरत है कि घर के खर्चे चलाना तो पति का काम है.

जमाना बदल गया है

जीवनसाथी के साथ संबंधों में प्रगाढ़ता के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप पुरानी चीजों से बाहर निकलें. यह जरूरी नहीं है कि जिस तरह से आप की मां साड़ी पहनती थीं या फिर घूंघट निकालती थीं ठीक उसी तरह आप की पत्नी भी करेगी. आप की मां मंदिर जाती थीं पूजा करती थीं, तो इस का यह अर्थ नहीं है कि आप की पत्नी भी वैसा ही करेगी. उसे अपनी तरह से जीने की आजादी दें. पत्नी के लिए भी यह समझना जरूरी है कि घर से संबंधित बाहर के कामों की जिम्मेदारी पति की ही नहीं है. यह जरूरी नहीं है कि आप के पिता घर से बाहर के सारे काम करते थे, तो आप के पति को भी वैसा ही करना चाहिए. बदलते परिवेश में अपनी सोच को बदल कर ही आप अपने संबंधों में प्यार और दुलार का समावेश कर सकते हैं.

लड़ाई झगड़ा न बाबा न

आप के पेरैंट्स आपस में छोटीछोटी बातों पर उलझ जाते थे, तो इस का अर्थ यह नहीं है कि यह बहुत अच्छी बात है और आप भी बातबात पर अपने जीवनसाथी से उलझने लगें.

सच तो यह है कि आप दोनों एकदूसरे की भावनाओं की कद्र कर के और एकदूसरे का सम्मान कर के अपने संबंधों को ज्यादा बेहतर तरीके से जी सकते हैं.

क्वालिटी लव है जरूरी

अगर आप के मन में अपने पेरैंट्स को देख कर यह सोच घर कर गई है कि पेरैंट्स बनने के बाद एकदूसरे के साथ रोमांस करना एकदूसरे से प्यार जताना गलत है, तो अपनी इस सोच को अपने मन से बाहर निकालें.

आमतौर पर मां बनने के बाद पत्नी का पूरा ध्यान अपने बच्चे पर रहता है, जिस की वजह से पति फ्रस्टे्रट होता है. पेरैंट्स बनने के बाद भी एकदूसरे के साथ समय बिताएं. कभीकभार एकदूसरे के साथ घूमने जाना और एकदूसरे से अपना प्यार जताना आप के संबंधों की मजबूती देगा. बच्चे की जिम्मेदारी मिलजुल कर उठाएं. इस सोच को परे करें कि बच्चे की जिम्मेदारी सिर्फ मां की है.

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इन बातों का भी रखें ध्यान

– अगर आप के पिता आप के ननिहाल के लोगों की कद्र नहीं करते थे, तो इस का यह अर्थ बिलकुल भी नहीं है कि आप भी अपनी पत्नी के मायके वालों से वैसा ही व्यवहार करें. अपनी ससुराल के लोगों की कद्र करें, उन को पूरा सम्मान देंगे तो आप की पत्नी के मन में आप के प्रति प्यार का भाव और बढ़ेगा फिर वह भी आप के परिवार के सदस्यों को पूरा मानसम्मान देगी.

– अगर आप की आदत बातबात पर चिल्लाने की है, तो उसे भूल जाएं. घर में प्रेमपूर्ण माहौल बनाए रखें.

– घरपरिवार की जिम्मेदारियों को मिलजुल कर निभाएं.

– अपने जीवनसाथी को पूरा स्पेस दें.

– अगर किसी बात पर मनमुटाव हो गया है, तो तेज आवाज में एकदूसरे से लड़ने के बजाय चुप बैठ जाएं.

– सुखमय दांपत्य के लिए एकदूसरे पर गलतियां थोपने के बजाय एकदूसरे की गलतियों को स्वीकार करना सीखें.

लड़कियों में न निकालें मीनमेख

सुश्रुत अपने परिवार के साथ दिल्ली के राजौरी गार्डन में लड़की देखने गया. वह बड़े जोश में था और दोस्तों को भी बता कर आया था कि लड़की देखने जा रहा हूं. लड़की वालों के घर जब उस का पूरा परिवार पहुंचा तो उन्होंने आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ी. अच्छा खाना खिलाया. सभी रिश्तेदारों ने उन का खुले दिल से स्वागत किया.

अब आई लड़की दिखाने की बारी. सौम्य सी लड़की वंदना जब सामने बैठी तो सुश्रुत समेत उस के घर वाले इस तरह से सवाल दागने लगे मानो वंदना उन की कंपनी में इंटरव्यू देने आई हो.

कितनी उम्र है? अब तक कितने लड़के देख चुके हैं तुम्हें? कहां जौब करती हो औफिस में किसी से अफेयर तो नहीं है? बौस पुरुष है या महिला? हाइट कितनी है तुम्हारी? सैलरी कितनी मिलती है? इन्हैंड कितनी है और पेपर में कितनी है? तुम्हारी हाईट बिना हाई हील्स के कितनी है? तुम्हारा कलर ही इतना फेयर है या मेकअप किया है? कपड़े कैसे पहनती हो? वैस्टर्न का भी शौक है? इतनी ज्यादा उम्र हो गई है, अभी तक कोई लड़का नहीं मिला या कोई कमी थी?

ऐसे ही सवालों की झड़ी लगा दी उन्होंने, जिस से वंदना घबरा गई और बिना कुछ कहे रोते हुए अंदर चली गई. इस पर भी सुश्रुत का परिवार नहीं माना. लड़की हकली है क्या? कुछ बीमारी तो नहीं है? कुछ बोल क्यों नहीं रही थी? कुछ छिपा रही थी क्या? जैसे सवाल दागते रहे. जाहिर है लड़की और उन के परिवार वालों को उन की इन हरकतों से बहुत शर्मिंदा होना पड़ा.

लड़की राशन का सामान नहीं

यह ऐसी अकेली घटना नहीं है. लगभग हर घर में लड़की देखने आए लोग ऐसा ही व्यवहार करते हैं. बड़े बुजुर्ग ऐसा व्यवहार करते हैं तो समझ में आता है, लेकिन जब आज के युवा लड़की देखते वक्त इतनी मीनमेख निकालते हैं, तो लगता है उन्हें लड़की नहीं कोई स्मार्ट फीचर वाला फोन चाहिए, जिस का एकएक स्पैसिफिकेशन चैक करना जरूरी हो. अरे भाई, लड़की है कोई खानेपीने का सामान नहीं, जो इतना मोलभाव किया जाए.

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हर इंसान में कुछ कमियां और कुछ खूबियां होती हैं. ऐसे में सिर्फ युवती में ही कमी निकालना गलत है. आज युवाओं को सोचना चाहिए कि युवतियां आत्मनिर्भर हो कर अपना जीवन जीना चाहती हैं.

इसलिए वे आत्मसम्मान से समझौता नहीं करतीं ऐसे में क्या कोई युवा चाहेगा कि उस की होने वाली वाइफ के साथ इस तरह की मीनमेख निकाल कर शादी हो. होना तो यह चाहिए कि युवक अपनी होने वाली पत्नी के साथ अलग से बात कर के अपनी पसंदनापसंद, हौबीज, आइडियोलौजी और जीवन में वरीयता देने वाली बातों पर चर्चा करे और जब मन मिल जाएं तब शादी के लिए हां करे.

शक्लसूरत और धनसंपदा न होने के कारण लड़की में कमी निकालना मूर्खता है. शरीर और पैसा तो बदलता रहता है, लेकिन इंसान के विचार नहीं बदलते. जरा सोचिए जो युवक शादी से पहले युवतियों में इतनी मीनमेख निकाल कर उन्हें शर्मिंदा करते हैं, अगर उन की बहन को देखने आए लड़के वाले भी ऐसी ही हरकत करें तो उन्हें कितना बुरा लगेगा? जाहिर है सब की भावना और आत्मसमान का आदर करना चाहिए.

अपने गिरेबान में भी झांकें

हमारी संस्कृति और रीतिरिवाज ऐसे हैं जहां लड़की को लड़के वालों के सामने झुकना पड़ता है. लड़का लड़की को ब्याह कर यह समझता है कि वह उस पर एहसान कर रहा है जबकि दुनिया में दो लड़कालड़की शादी करते वक्त एकदूसरे का बराबरी से सामना करते हैं और कोई बिना किसी के सामने झुके व आपस में बात कर शादी तय करते हैं, लेकिन हमारे यहां युवक समझते हैं कि अगर वे शादी करने जा रहे हैं तो लड़की की क्लास ले कर आएंगे. उस का अगलापिछला सब चैक कर फिर उसे पास करेंगे.

दरअसल, वे अपने गिरेबान में झांकना भूल जाते हैं. जरा सोचिए, युवती यदि आप के शरीर, लंबाई और हैसियत का मजाक बना कर शादी के दौरान आप को कमतर आंके तो कैसा लगेगा?

युवा प्रश्न करने से पहले यह भूल जाते हैं कि पहले वे अपनी खूबियां भी तो बताएं. जब उन से सिर्फ लड़के के बारे में पूछा जाता है तो कहते हैं कि लड़का ज्यादा पढ़ा तो नहीं है, लेकिन बाप का बिजनैस देखेगा.

अगर लड़का लड़की देखने जा रहा है तो बिना लड़की देखे कोई राय न बनाएं. अकसर लोग पहले से ही नकारात्मक विचार मन में बना लेते हैं. जिस वजह से उन्हें हर चीज में यही भाव दिखाई देता है. लड़की वालों को ऐसा महसूस न कराएं कि आप को लड़की नापसंद है. सिर्फ लड़की की कमियां न गिनवाएं. इतना ही नहीं यदि लड़की या लड़के में कोई कमी या विकार है तो उसे उजागर करें.

लड़की वालों के यहां रिश्तेदारों की पूरी फौज ले कर न जाएं. अगर युवक ज्यादा कमाता है या परिवार आर्थिक रूप से लड़की वालों से मजबूत भी हो, तो भी लड़की वालों पर अपने पैसे का रोब दिखा कर उन्हें छोटा होने का एहसास न होने दें.

अंधविश्वासी न बनें

शादी के समय पंडेपुरोहित लड़के के घर वालों को अंधविश्वास में फंसा कर अपनी जेब भर लेते हैं. युवक को भी लड़की की खूबसूरती से जुड़े टोटके बता कर भटकाने का काम करते हैं.

वे भाग्य को चमकाने वाले चिह्न बता कर युवक के मन में शारीरिक और नस्लीय भेदभाव का बीज रोप देते हैं. कभी भी अंधविश्वास के चक्कर में पड़ कर शादी के दौरान लड़की देखते हुए ऐसे रिवाजों में न पड़ें. तन की नहीं मन की सुंदरता भी देखें.

लड़की को करें सहज

जब कोई युवा किसी लड़की को देखने जाता है तो उसे यह बात समझनी चाहिए कि यह समय लड़की के लिए बड़ा नर्वस होने वाला होता है. उस पर कई तरह के दबाव रहते हैं. मातापिता का दबाव होता है कि ठीक ढंग से तैयार हो कर लड़के के सामने जाना. किसी भी तरह की कोई चूक नहीं होनी चाहिए, जबकि लड़के के सामने किसी तरह का कोई दबाव नहीं होता. उलटे वह सीना चौड़ा कर यह सोच कर जाता है कि उसे तो लड़की सिलैक्ट या रिजैक्ट करनी है.

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यह मानसिकता गलत है. युवक को चाहिए कि लड़की से बात कर उसे सहज करे. जाहिर सी बात है इस दिन आप दोनों अच्छे कपड़े पहन कर गए होंगे, लेकिन बात की शुरुआत के लिए कपड़ों की तारीफ करना अच्छा रहेगा. इस से उस लड़की को लगेगा कि आप ने उसे नोटिस किया.

लड़की को अच्छा लगेगा अगर आप अपनी संभावित पत्नी से उन के घरपरिवार के बारे में पूछें. कैरियर के बारे में उस से बातें करना भी एक अच्छा विकल्प है. कुछ न समझ आए तो चुपचाप उस की पसंद के बारे में पूछ लें. ऐसा करने से लड़की काफी सहज हो जाएगी और आप की बातों का उचित और तार्किक जवाब दे पाएगी.

जरा सोचिए, आप एक परिवार के साथ जीवनभर का रिश्ता जोड़ने के इरादे से जाते हैं ऐसे में अगर वे भी आप के परिवार व आप को ले कर मीनमेख निकालें तो जाहिर है बुरा लगेगा. जो व्यवहार आप को बुरा लग सकता है उसे दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए. रीतिरिवाज या रिश्तेदारों के दबाव में आ कर लकड़ी की या उस के परिवार वालों की मीनमेख निकालने के चक्कर में हो सकता है आप के हाथ से एक अच्छा रिश्ता निकल जाए. शादी को सौदेबाजी का खेल बनाना निहायत ही गलत है.

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पति की जबरदस्ती से कैसे बचें

श्वेता खाना खा कर सोने चली गई थी. उस का पति प्रदीप अभी घर नहीं लौटा था. पहले रात के खाने पर श्वेता पति का देर रात तक इंतजार करती थी. कुछ दिनों के बाद प्रदीप ने कहा कि अगर वह 10 बजे तक घर न आए तो खाने पर उस का इंतजार न किया करे. इस के बाद प्रदीप के आने में देर होने पर श्वेता खाना खा कर लेट जाती थी. उस दिन भी वह लेट तो गई थी, मगर उसे नींद नहीं आ रही थी. वह अपने संबंधों के बारे में सोच रही थी. उसे लग रहा था जैसे वह पति की जबरदस्ती का शिकार हो रही है. प्रदीप ज्यादातर देर रात घर लौटता था. इस के बाद कभी सो जाता था, तो कभी श्वेता को शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर करने लगता था. नींद के आगोश में पहुंच चुकी श्वेता को तब संबंध बनाना अच्छा नहीं लगता था. श्वेता को कभीकभी लगता जैसे पति प्यार न कर के बलात्कार कर रहा हो.

श्वेता अपने को यह सोच कर समझाती कि पति की शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए ही शादी होती है, इसलिए उसे केवल पति की जरूरतों को पूरा करना चाहिए. इस जोरजबरदस्ती में श्वेता को 4 साल के विवाहित जीवन में 1-2 बार ही ऐसा लगा था कि प्रदीप प्यार के साथ संबंध बना सकता है, ज्यादातर श्वेता जोरजबरदस्ती का ही शिकार बनी थी. इस का प्रभाव उस के ऊपर कुछ इस तरह पड़ा कि वह शारीरिक संबंधों से चिढ़ने लगी. श्वेता और प्रदीप का 1 बेटा था. श्वेता जब कभी अपनी सहेली शालिनी से मिलती तो उसे पता चलता कि उन का पतिपत्नी का रिश्ता मजे में चल रहा है. एक दिन जब श्वेता ने अपनी परेशानी शालिनी को बताई, तो वह उसे सैक्स काउंसलर के पास ले गई.

पति से करें बात

काउंसलर ने बातचीत कर के यह जानने की कोशिश की कि श्वेता की परेशानी क्या है? श्वेता ने काउंसलर को बताया कि उस का पति उस समय उस से सैक्स संबंध बनाने की कोशिश करता है जब उस का मन नहीं होता है. कई बार जब वह इस के लिए मना करती है, तो वह जोरजबरदस्ती पर उतर आता है. इस से श्वेता का सैक्स संबंधों से मन उचट गया है. काउंसलर रेखा पांडेय ने श्वेता को सलाह देते हुए कहा कि इस बारे में पति से आराम से बात करें और यह बातचीत सैक्स संबंधों के समय न कर के बाद में की जाए. इस के लिए प्यार से पति को मनाने की कोशिश की जाए. अगर पति कभी नशे की हालत में सैक्स संबंध बनाने की कोशिश करे तो उस समय कुछ न कह कर नशा उतरने के बाद बात करें. नशे की हालत में बात समझ में नहीं आती उलटे कभीकभी लड़ाईझगड़े से मामला बिगड़ जाता है.

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पति हर समय गलत होता है, यह भी नहीं मान लेना चाहिए. उसे इस के लिए हमेशा टालना सही नहीं होता है. हो सकता है कि कभी आप का मन न हो, बावजूद इस के आप को सकारात्मक रुख अपनाना चाहिए. सैक्स पति और पत्नी दोनों की जरूरत होती है. इसलिए इस से जुड़ी किसी भी परेशानी को हल करने के लिए पतिपत्नी दोनों को मिल कर सोचना चाहिए. जब आप खुल कर एकदूसरे से बात करेंगे तो सारी गलतफहमियां दूर हो जाएंगी.

क्यों करनी पड़ती जबरदस्ती

सैक्स दांपत्य जीवन की सब से अहम चीज होती है, यह बात पतिपत्नी दोनों को पता होती है. ऐसे में सवाल उठता है कि तब सैक्स संबंध के लिए जबरदस्ती क्यों करनी पड़ती है? कई बार कभी पति या पत्नी को कोई ऐसी बीमारी हो जाती है, जिस से सैक्स संबंधों से मन उचट जाता है. ऐसे में बहुत ही धैर्य और समझदारी की जरूरत होती है. सब से पहले अपने साथी की जरूरत को समझने की कोशिश करें. अगर कोई शारीरिक परेशानी है, तो उस का इलाज किसी योग्य डाक्टर से कराएं. सैक्स की ज्यादातर बीमारियों की वजह मानसिक ही होती है. इस के लिए आपस में बात करें. अगर बात न बने तो मनोरोगचिकित्सक से भी बातचीत कर सकती हैं.

सैक्स के प्रति पत्नी की नकारात्मक सोच ही पति को कभीकभी जबरदस्ती करने के लिए मजबूर करती है. कुछ पत्नियां सैक्स को गंदा काम मान कर उस से संकोच करती हैं. अगर आप भी इसी तरह के विचार रखती हैं, तो यह सही नहीं है. आप के इस तरह के विचार पति को जबरदस्ती करने के लिए उकसाते हैं  पति की जबरदस्ती से बचने के लिए इस तरह की नकारात्मक सोच से बचना चाहिए. इस मानसिकता के चलते न तो आप स्वयं कभी खुश रह सकती हैं और न ही पति को खुश रख पाएंगी. ऐसा कर के आप कभी सैक्स का आनंद न स्वयं ले पाएंगी और न कभी अपने पति को ही यह सुख दे पाएंगी. जबरदस्ती से बचने के लिए सैक्स के प्रति अपनी सोच को सकारात्मक बनाएं.

बहाने बनाने से बचें

आमतौर पर पतियों को यह शिकायत होती है कि पत्नियां बहाने बनाती हैं, जिस के चलते जबरदस्ती करनी पड़ती है. इन शिकायतों में बच्चों के बड़े होने, मूड ठीक न होने और घर में एकांत की कमी होना मुख्य कारण होते हैं. रमेश प्रधान का कहना है कि मैं जब भी अपनी पत्नी के साथ सैक्स करने की पहल करता था, वह बच्चों और परिवार का बहाना कर टाल जाती थी. इस का मैं ने हल यह निकाला कि सप्ताह में 1 बार पत्नी को ले कर आउटिंग पर जाने लगा. इस के बाद हमारे संबंध सही रूप से चलने लगे. अब पत्नी को यह अच्छा लगने लगा है. हमारे संबंध अब सहज हो गए हैं. पत्नी के बहाना बनाने का असर यह होता है कि जब कभी पत्नी को हकीकत में कोई परेशानी होगी तब भी पति को लगेगा कि वह बहाना बना रही है.

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अत: मूड न होने पर भी साथी को सहयोग देने की कोशिश करें. इस से उस की जबरदस्ती से बच सकती हैं. पति का समीप आना पत्नी की अंदर की भावनाओं को जगा देता है. इस से पत्नी भी उत्तेजित हो जाती है. पति जबरदस्ती करने से बच जाता है. आप का मूड न हो तो भी उसे बनाया जा सकता है. आप को पति को बताना पड़ेगा कि मूड बनाने के लिए वह क्या करे. अगर कभी पति जबरदस्ती करे तो आप को उसे सहयोग दे कर जबरदस्ती से बचना चाहिए. पति जबरदस्ती करने लगे और आप भी संबंध न बनाने पर अड़ गईं, तो इस से संबंधों में दरार पड़ सकती है.

तो आसान होगी तलाक के बाद दूसरी शादी

2017 में पति अरबाज खान से तलाक ले चुकी फिल्म अभिनेत्री मलाइका अरोड़ा ने हाल ही में अपने 17 वर्षीय बेटे अरहान का जन्मदिन मनाया. 46 वर्षीय मलाइका फिलहाल अपने बौयफ्रैंड अर्जुन कपूर के साथ रिलेशनशिप में हैं और दोनों जल्द ही शादी प्लान करने की सोच रहे हैं.

एक वैबसाइट को दिए इंटरव्यू में मलाइका ने बताया कि तलाक के बाद दोबारा प्यार पाना उन के लिए बहुत खास है. उन के मुताबिक यह एक कमाल की फीलिंग है क्योंकि जब शादी टूट रही थी, वे नहीं जानती थीं कि दूसरी बार उन्हें इस रिश्ते में जाना है या नहीं. बहरहाल उन्हें खुशी है कि उन्होंने अपनेआप को दोबारा यह मौका दिया और सही फैसला लिया. उन के अनुसार तलाक के बाद दूसरी शादी एक औरत का नितांत निजी निर्णय है जिस पर किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

यह सही है कि तलाक के बाद किसी भी व्यक्ति की जिंदगी में बदलाव आ जाता है खासकर औरतों की जिंदगी तो लगभग पूरी तरह से बदल जाती है क्योंकि संबंधविच्छेद द्वारा पति की ओर से मिलने वाली तकलीफों से तो वे आजाद हो जाती हैं परंतु दूसरी परेशानियां इस कदर बढ़ जाती हैं मानो ंिंजदगी में कोई भूचाल आ गया हो. ऐसे में तलाकशुदा स्त्री अगर दूसरी शादी के बारे में सोचती है तो यकीनन उस की दिक्कतें और बढ़ जाती हैं.

आज के दौर में तेजी से होते तलाक इतना गंभीर विषय नहीं जितना कि इस के बाद तलाकशुदा स्त्री की जिंदगी में होने वाली परेशानियां हैं. निम्न केस इस मसले पर महत्त्वूपर्ण प्रकाश डाल सकते हैं:

नीरा के तलाक को 2 साल हो चुके हैं. पति की बेवफाई ने उसे जिंदगी के मझधार पर ला कर खड़ा कर दिया है. 15 वर्षीय बेटी शैली की मां नीरा को अब बेटी के साथ ही अपने भविष्य की भी चिंता सता रही है. तलाक की कानूनी प्रक्रिया में उलझ कर उस ने एक तरफ जहां समय की बरबादी झेली है वहीं दूसरी ओर अपना मानसिक सुकून भी खोया है. फिलहाल वह एक प्राइवेट स्कूल में टीचर की नौकरी कर रही है. लेकिन भविष्य की असुरक्षा कई बार उस के मन को बेचैन कर देती है. वह दूसरी शादी की इच्छुक है, मगर जानती है कि दूसरी शादी का यह सफर उतना आसान भी नहीं.

पिंक सिटी जयपुर की निवासी कोमल गुप्ता के तलाक की मुख्य वजह उस के पति का हिंसक रवैया था. यहां तक कि अंतरंग पलों में भी उसे अपने पति के वहशीपन को झेलना पड़ता था. तलाक की बोझिल प्रक्रियाओं से गुजरती कोमल भीतर ही भीतर टूट चुकी है. उसे अब किसी सहारे की दरकार है. मगर 8 साल के बच्चे आशू के साथ उसे कोई अपना सकेगा, इस पर उसे संशय है.

नीरा और कोमल की तरह कई महिलाएं हैं, जो किसी न किसी मजबूरी के चलते पति से तलाक ले कर अलग तो हो गई हैं, किंतु आगे की जिंदगी का सफर उन के लिए बेहद दुष्कर प्रतीत होता है. वे बच्चों के भविष्य के साथसाथ अपने भविष्य के प्रति भी शंकित हैं.

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तलाक के बाद होने वाली परेशानियां

हेयदृष्टि वाली सामाजिक मानसिकता:

भले ही हमारा सामाज आज तकनीकी ज्ञान व रहनसहन, पहनावे आदि से काफी आधुनिक हो चुका है पर सच तो यह है कि उस की सोच आज भी सदियों पुरानी है. यही कारण है कि तलाकशुदा महिलाओं को आज भी हेयदृष्टि से देखा जाता है फिर चाहे वह किसी भी वर्ग से क्यों न हो. उसे तेजतर्रार, बेशर्म व चालाक औरत की पदवी दी जाती है मानो उस ने बड़ी खुशी से अपने पति से तलाक का चुनाव किया हो.

व्यक्तिगत जीवन में ताकझांक:

समाज में स्त्रीपुरुष के दोहरे मानदंड के चलते अकसर स्त्रियों को ही तलाक के लिए पूर्णरूपेण दोषी करार दिया जाता है. उन की तकलीफ समझना तो दूर लोग उन पर तंज कसने से भी बाज नहीं आते. तलाक को ले कर गाहेबगाहे उन्हें पासपड़ोस, नातेरिश्तेदारों के कटाक्षों का सामना करना पड़ता है. वैसे भी हमारा तथाकथित सभ्य समाज एक पुरुष के मुकाबले स्त्री के व्यक्तिगत जीवन में ज्यादा दिलचस्पी रखता है. ऐसे में जाहिर सी बात है उस की पर्सनल लाइफ में लोगों की ताकझांक अधिक कुतूहल और चर्चा का विषय बन जाती है.

आर्थिक निर्भरता:

चूंकि आज भी ज्यादातर महिलाएं आर्थिक रूप से पति पर ही निर्भर हैं लिहाजा तलाक के बाद भी अपने भरणपोषण के लिए उन्हें अपने पति की ओर देखना पड़ता है. कोर्ट द्वारा पति से दिलवाया गया गुजाराभत्ता कई बार उन के खर्चों के लिए नाकाफी होता है.

शारीरिक व मानसिक शोषण:

तलाकशुदा औरतों का उन के वर्कप्लेस पर शारीरिक व मानसिक शोषण होने की बहुत गुंजाइश होती है. पुरुषप्रधान समाज होने से बिना मर्र्द वाले घर की औरतें सभी के लिए आसान शिकार मानी जाती हैं, जिन्हें थोड़ी सी हमदर्दी दिखा कर कोई भी बड़ी सहजता से हासिल कर सकता है. लिहाजा घर में नातेरिश्तेदार तथा बाहर बौस की ललचाई नजरें तलाकशुदा स्त्री पर विचरती ही रहती हैं. इस तरह महिलाओं को हर कदम फूंकफूंक कर रखना पड़ता है.

बढ़ती जिम्मेदारियां:

जिस तरह 2 पहियों की गाड़ी अपने बोझ को आसानी से उठा पाने में सक्षम होती है उसी तरह पतिपत्नी भी मिल कर सहजता से अपनी गृहस्थी की गाड़ी को चला लेते हैं जबकि अकेली स्त्री के लिए गृहस्थी की पूरी जिम्मेदारियां संभालना इतना आसान नहीं है. घरबाहर के काम, बच्चों की परवरिश, आमदनी का जुगाड़ करतेकरते उस की हालत खराब होने लगती है. ऐसे में बढ़ती जिम्मेदारियों का दबाव उस के तलाकशुदा जीवन को मुश्किलों में डाल देता है.

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दूसरी शादी में आने वाली अड़चनें:

पुरुषवादी सोच का गुलाम हमारा समाज आज भी तलाकशुदा स्त्री को संदेह की नजर से देखता है. इसलिए उस के साथ वैवाहिक संबंध जोड़ने से पहले अपने स्तर पर तलाक के कारणों की जांचपड़ताल की जाती है कि तलाक का जो कारण था वह वाजिब था या नहीं. ऐसे में तलाकशुदा महिला के चरित्र पर भी कई सवाल उठ खड़े होते हैं जिन से उस की परेशानियां बढ़ जाना लाजिम है.

मगर कहते हैं जब ओखली में सिर दिया तो मूसलों की क्या गिनती यानी जब तलाक लेने का तय कर ही लिया तो उस के बाद आने वाली मुश्किलों से घबराना कैसा.

शादी के 7 सालों बाद अपने पति से तलाक ले चुकी रीना तलाक के बाद की जिंदगी पर खुल कर अपने विचारों को साझा करती है. उस के मुताबिक तलाक के बाद का जीवन कठिन है पर नामुमकिन नहीं. वैसे भी तलाक से पहले उस का जीवन एक दर्दभरी दास्तां के अलावा कुछ नहीं था. पति और ससुराल वालों ने उस का व बच्ची का जीना मुहाल कर रखा था. वह कभी अपने पति के पास लौटने को तैयार नहीं है. अपनी 6 साल की बच्ची के साथ अपने जीवन को खुशीखुशी जीना चाहती है. रीना दूसरी शादी की भी इच्छा रखती है बशर्ते उस की बच्ची को पिता का प्यार मिले. पर शादी के नाम पर अपनी स्वतंत्रता को गिरवी रख देना अब उसे गवारा नहीं है.

तलाकशुदा होना कोई गुनाह नहीं. किसी वाजिब कारण से यदि आप ने तलाक ले ही लिया है तो जिंदगी को बदनुमा दाग की तरह नहीं बल्कि प्रकृति की अनमोल देन मान कर जीएं. अपने सकारात्मक रवैए से आने वाली चुनौतियों का हंस कर मुकाबला करें और अबला नहीं बल्कि सबला बन कर समाज में अपने वजूद, अपनी गरिमा को बनाएं. निम्न उपाय इस काम में आप की सहायता कर सकते हैं:

भविष्य की प्राथमिकताएं तय करना:

बिना किसी दबाव के अपने भविष्य की प्राथमिकताओं को तय करें. याद रखें जिंदगी आप की है तो उसे जीने का सलीका और तरीका भी आप का ही होगा. सोचसमझ कर जिंदगी को दूसरा मौका दें और बिना घबराए अपने लक्ष्य की ओर चलने का प्रयास करें.

सकारात्मक सोच हो भविष्य की:

कभीकभी ऐसा होता है कि 2 व्यक्ति एकसाथ नहीं रह पाते, मगर इस का मतलब यह तो नहीं कि जिंदगी खत्म हो चुकी है. जिंदगी हमेशा दूसरा मौका देती है और वह भी पहले से बेहतर. अत: लोग क्या कहेंगे इस बात को दिल से निकाल दें और उन के द्वारा की जा रहीं टीकाटिप्पणियों पर ध्यान न दें क्योंकि कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना. अत: सकारात्मक हो कर जीवन को नए सिरे से जीने की कोशिश करें.

आत्मनिर्भर बनें:

आर्थिक रूप से अपने आप को मजबूत बनाने की कोशिश करें. अपनी पढ़ाई व प्रतिभा अनुसार रोजगार के अवसर तलाशें और अपने पैरों पर खड़ा होने का प्रयास करें.

बच्चे के साथ मजबूत ब्रैंड:

कितनी भी परेशानियां हों बच्चे को नजरअंदाज न करें. उस के साथ खुशियों भरे पल जरूर बिताएं. इस से बच्चे के साथ आप का रिश्ता भी मजबूत होगा और आप स्वयं सकारात्मक ऊर्जा से भर उठेंगी. कोईर् भी महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले बच्चों को विश्वास में लेना जरूरी है अन्यथा उन का रोष या उदासीनता आप के किसी भी निर्णय पर भारी पड़ सकती है. अत: बच्चों के साथ मजबूत बौंड बनाएं.

आत्मविश्वास बढ़ाएं:

आप ने कुछ गलत नहीं किया बल्कि आप के साथ जो गलत हो रहा था आप ने उस का विरोध कर अपना मानसिक बल दिखाया है. भले ही समाज कुछ देर से आप के नजरिए को सही माने मगर आप स्वयं हमेशा अपने साथ खड़ी रहें अर्थात अपने को बेवजह के आरोपों और दोषों से मुक्त कर खुली हवा में सांस लें और अपने हर फैसले पर विश्वास रखें.

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करिए वही जो आप को लगता है सही:

तलाक के बाद अकेले रहना है या खुद को दूसरा मौका दे कर शादी करनी है आप का अपना फैसला होना चाहिए. कठिनाइयों के डर से पीछे न हटें बल्कि पूरी मुस्तैदी से उठ खड़ी हों अपनी समस्याओं का स्वयं समाधान करने हेतु क्योंकि लोग भी उन्हीं का साथ देते हैं जो अपने लिए खड़े होने का जज्बा रखते हैं. इसलिए यदि आप हैं तैयार तो आसान होगा तलाक के बाद दूसरी शादी का सफर भी.

इस Festive Season डर नहीं लाएं खुशियां

त्योहार का मतलब खुशियों का समय, लेकिन पिछले साल से कोरोना के हमारे बीच में रहने की वजह से हम अपने घरों में रहने पर मजबूर हो गए हैं और अगर निकलते भी हैं तो डरडर कर. इस कारण लोगों से मिलनाजुलना न के बराबर हो गया है.

अब त्योहारों पर वह एक्साइटमैंट भी देखने को नहीं मिलता, जो पहले मिलता था. ऐसे में जरूरी हो गया है कि हम त्योहारों को खुल कर ऐंजौय करें. खुद भी पौजिटिव रहें, दूसरों में भी पौजिटिविटी का संचार करें.

तो आइए जानते हैं उन टिप्स के बारे में, जिन से आप इन त्योहारों पर अपने घर में पौजिटिव माहौल बनाए रख सकते हैं:

घर में बदलाव लाएं

त्योहारों के आने का मतलब घर की साफसफाई करने से ले कर ढेर सारी शौपिंग करना, घर के इंटीरियर में बदलाव लाना, घर व अपनों के लिए हर वह चीज खरीदना, जो घर को नया लुक देने के साथसाथ अपनों के जीवन में खुशियां लाने का भी काम करे. तो इन त्योहारों पर आप यह न सोचें कि किस को घर पर आना है या फिर ज्यादा बाहर आनाजाना तो है नहीं, बल्कि इस सोच के साथ घर को सजाएं कि इस से घर को नयापन मिलने के साथसाथ घर में आए बदलाव से आप की जिंदगी की उदासीनता पौजिटिविटी में बदलेगी.

इस के लिए आप ज्यादा बाहर न निकलें बल्कि खुद की क्रिएटिविटी से घर को सजाने के लिए छोटीछोटी चीजें बनाएं या फिर आप मार्केट से भी बजट में सजावट की चीजें खरीद सकती हैं और अगर आप काफी टाइम से घर के लिए कुछ बड़ा सामान खरीदने की सोच रही हैं और आप का बजट भी है तो इन त्योहारों पर उसे खरीद ही लें. यकीन मानिए यह बदलाव आप की जिंदगी में भी खुशियां लाने का काम करेगा.

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करें साथ सैलिब्रेट

त्योहार हों और अपनों से मिलनाजुलना न हो, तो त्योहारों का वह मजा नहीं आ पाता, जो अपनों के साथ सैलिब्रेशन में आता है. इन त्योहारों पर आप सावधानी बरत कर अपनों के साथ खुल कर त्योहारों को सैलिब्रेट करें. अगर आप व आप का परिवार जिन अपनों व दोस्तों के साथ त्योहार मनाने का प्लान कर रहा है और अगर वे फुली वैक्सिनेटेड हैं तो आप उन के साथ सावधानी बरत कर त्योहारों को सैलिब्रेट कर सकते हैं. इस दौरान खुल कर मस्ती करें, खूब सैल्फीवैल्फी लें, जम कर डांस पार्टी करें, अपनों के साथ गेम्स खेल कर त्योहारों की रात को भी रंग डालें.

पार्टी में इतनी धूम मचाएं कि आप के जीवन की सारी उदासीनता ही गायब हो जाए और आप बस इन दिनों हुए ऐंजौयमैंट को याद कर बस यही सोचें कि हर दिन ऐसा ही हो. मतलब सैलिब्रेशन में इतना दम हो कि आप को उस की याद आते ही चेहरे पर मुसकान लौट आए.

खुद को भी रंगे रंगों से

आप ने त्योहारों के लिए घर को तो सजा लिया, लेकिन फैस्टिवल वाले दिन आप का लुक फीकाफीका आप को बिलकुल भी त्योहारों का एहसास नहीं दिलवाएगा. ऐसे में घर को सजाने के साथसाथ आप को अपनी जिंदगी में रंग भरने के लिए खुश रहने के साथसाथ नए कपड़े खरीदना और खुद को सजानासंवारना होगा ताकि आप में आया नया बदलाव देख कर आप का कौन्फिडैंस बढ़े.

आप को खुद लगे कि आप त्योहारों को पूरे मन से सैलिब्रेट कर रही हैं. आप के नए आउटफिट्स पर आप का खिलाखिला चेहरा दूसरों के चेहरे पर भी मुसकान लाने का काम करेगा. आप भले ही किसी से मिलें या न मिलें, लेकिन त्योहारों पर सजनासंवरना जरूर क्योंकि यह बदलाव हमारे अंदर पौजिटिविटी लाने का काम करता है.

गिफ्ट्स से दूसरों में भी बांटें खुशियां

जब भी आप त्योहारों पर किसी के घर जाएं या फिर कोई अपना आप के घर आए तो आप उसे खाली हाथ न लौटाएं बल्कि आपस में खुशियां बांटने के लिए गिफ्ट्स का आदानप्रदान करें. भले ही गिफ्ट्स ज्यादा महंगे न हों, लेकिन ये मन को इस कदर खुशी दे जाते हैं, जिस का अंदाजा भी हम नहीं लगा पाते हैं.

गिफ्ट्स मिलने की खुशी से ले कर उन्हें खोलने व देखने की खुशी हमें अंदर तक गुड फील करवाने का काम करती है. साथ ही इस से किसी स्पैशल डे का भी एहसास होता है. आप औनलाइन भी अपनों तक गिफ्ट्स पहुंचा सकती हैं. तो फिर इन त्योहारों पर अपनों के चेहरों पर गिफ्ट्स से लाएं खुशियां.

खानपान से करें ऐंजौय

अगर आप त्योहारों पर त्योहारों जैसा फील लेना चाहती हैं तो फिर इन दिनों बनने वाले पकवानों का जम कर ऐंजौय करें. यह न सोचें कि अगर हम चार दिन तलाभुना खाना खा लेंगे तो मोटे हो जाएंगे बल्कि इन दिनों बनने वाले हर ट्रैडिशनल फूड का मजा लें. खुद भी खाएं और दूसरों को भी खिलाएं. इस से घर में खुशियों भरा माहौल रहता है.

चाहे कोरोना के कारण त्योहारों को मनाने के स्टाइल में थोड़ा बदलाव जरूर आया है, लेकिन आप त्योहारों को वैसे ही पूरी ऐनर्जी के साथ मनाएं, जैसे पहले मनाती थीं. भले ही कोई न आए, लेकिन आप अपनों के लिए बनाएं पकवान. जब घर में बनेंगे पकवान और उन्हें सब मिल बैठ कर खाएंगे, तो त्योहारों का मजा और दोगुना हो जाएगा.

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सजावट से लाएं पौजिटिविटी

अगर आप घर में एक ही चीज को सालों से देखदेख कर बोर हो गई हैं और घर में पौजिटिविटी लाना चाहती हैं तो घर में छोटीछोटी चीजों से बदलाव लाएं. जैसे कमरे की एक दीवार को हाईलाइट करें. इस से आप के पूरे रूम का लुक बदल जाएगा. वहीं घर में नयापन लाने के लिए कुशन कवर, टेबल कवर, बैडशीट को कौंबिनेशन में डालें. आप पुरानी साडि़यों से भी कुशन कवर बना सकती हैं. आप बाहर बालकनी में हैंगिंग वाले गमले लगाने के साथसाथ खाली बोतलों को भी सजा कर उन में भी पौधे लगा सकती हैं.

ऐसा करना आप को अंदर से खुशी देने के साथसाथ आप के घर में पौजिटिव ऐनर्जी लाने का काम भी करे. वहीं कमरे की दीवारें जो घर की जान होती हैं, उन्हें अपने हाथ से बनी चीजों से सजा कर  फिर से जीवंत करें.

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मेरे देवर को क्राइम शो देखने की लत लग गई है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 32 वर्षीया विवाहिता हूं. सासससुर नहीं रहे इसलिए 17 साल का देवर साथ ही रहता है. मैं उसे अपने बच्चे जैसा प्यार करती हूं. पर इधर कुछ दिनों से देख रही हूं कि वह टीवी पर अकसर क्राइम शो देखता है और उसी पर बातें भी करता है. कुछ दिनों पहले उस का 2-4 लड़कों से झगड़ा भी हो गया था. मैं ने डांटा तो पलट कर जवाब तो नहीं दिया पर उस ने उस दिन से मुझ से बात कम करता है. क्राइम शो देखने की लत कई बार मना करने पर भी उस ने नहीं छोड़ी है. उस की यह लत उसे गलत दिशा में तो नहीं ले जाएगी? कृपया उचित सलाह दें?

जवाब-

टीवी पर दिखने वाले अधिकतर क्राइम शो काल्पनिक होते हैं, जो समाज में जागरूकता तो नहीं फैलाते अलबत्ता लोगों को गुमराह जरूर करते हैं.

अकसर रिश्ते में धोखाधड़ी, एक दोस्त द्वारा दूसरे दोस्त का कत्ल, पैसे के लिए हत्या, शादी में धोखा, अवैध संबंध, पतिपत्नी में रिश्तों में विश्वास का अभाव दिखाना कहीं न कहीं लोगों के मन में अपनों के प्रति अविश्वास का भाव ही पैदा करता है. यकीनन, टीवी पर दिखाए जाने वाले अधिकतर क्राइम शो न सिर्फ रिश्तों को प्रभावित करते हैं, अपराधियों के लिए मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाते हैं.

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हाल ही में एक खबर सुर्खियों में आई थी जिस में एक आदमी ने अपनी ही पत्नी की निर्मम हत्या कर दी थी. जब वह पकड़ा गया तो उस ने पुलिस को बताया कि यह हत्या उस ने टीवी पर प्रसारित एक क्राइम शो देखने के बाद की थी. यह कोई एक मामला नहीं. आएदिन ऐसी घटनाएं घट रही हैं.

अधिकतर क्राइम शो में दिखाया जाता है कि अपराधी किस तरह अपराध करते वक्त एहतियात बरतता है, ताकि वह कानून के चंगुल में फंस न सके. इस से कहीं न कहीं आपराधिक मानसिकता के लोगों का गलत मार्गदर्शन ही होता है.

बच्चों को तो इन धारावाहिकों से दूर ही रखने में भलाई है. और फिर आप के देवर की उम्र तो अभी काफी कम है. उस का मन अभी पढ़ाई की ओर लगना चाहिए. आप उसे प्यार से समझाने की कोशिश करें. उसे अच्छी पत्रिकाएं या अच्छा साहित्य पढ़ने को दें या प्रेरित करें. आप चाहें तो अपने पति से भी बात करें ताकि समय रहते उसे सही दिशा की ओर मोड़ा जा सके.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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