लेखिका- दिव्या विजय
गर्भवती होने की आशंका डाक्टर पहले ही दूर कर चुकी थीं. सारे लक्षण सुनसमझ कर उन्होंने कहा कि कभीकभी स्टै्रस की वजह से पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं. चिंता वाली कोई बात नहीं है.
अनन्या दुविधा में थी कि जब यहां तक आ ही गई है तो डाक्टर से ही क्यों न पूछ ले. सारी बातें साफ हो जाएंगी.
‘‘डाक्टर, आप से कुछ पूछना है,’’ वह झिझकते हुए बोली.
‘‘हां, पूछिए न,’’ डाक्टर को लगा कि सैक्स से संबंधित कोई समस्या होगी. अकसर इस उम्र की लड़कियां यही सब पूछती हैं.
‘‘डाक्टर, किसी ने हमारे साथ संबंध स्थापित किया हो यह कैसे मालूम हो सकता है?’’ सवाल पूछ कर वह खुद को बेवकूफ जैसा महसूस कर रही थी कि यह कैसा सवाल है. शायद वह अपनी बात ठीक से नहीं रख पाई है.
‘‘मेरा मतलब है कि कोई बेहोश हो और कोई उसी बेहोशी का फायदा उठा कर कुछ कर बैठा हो, यह कितने दिनों बाद तक मालूम हो सकता है?’’
‘‘आप का मतलब बिना कंसेंट के संबंध स्थापित करने से है. देखिए, यह बलात्कार के अंतर्गत आता है और रेप हुआ है या नहीं यह मालूम करने के बहुत से तरीके होते हैं. सब से पहले बल प्रयोग के निशान देखे जाते हैं. शरीर के प्रत्येक भाग की जांच की जाती है. इंटरनल इंजरी के लिए टैस्ट किए जाते हैं. फोरेंसिक जांच होनी हो तो पीडि़त के शरीर या कपड़ों से बलात्कार करने वाले के वीर्य का सैंपल लेने की कोशिश की जाती है. सैक्स के बाद योनि में कुछ कैमिकल बदलाव आते हैं उन की जांच की जाती है. ये सब जितनी जल्दी हो जाए उतना ही अच्छा है.’’
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‘‘क्या आप के साथ कुछ हुआ है? कोई परेशानी है, तो आप मुझे बता सकती हैं.’’
‘‘डाक्टर, पिछले महीने मेरा ऐक्सीडैंट हुआ था, उस समय मैं टैक्सी में थी. ऐक्सीडैंट के बाद कुछ समय तक मैं अचेत रही थी. मन में एक डर बैठ गया है कि उस समय ड्राइवर ने मेरे साथ कुछ किया तो नहीं होगा?’’
‘‘ऐसा लगने की कोई खास वजह है या
यों ही?’’
‘‘उस की कुछ हरकतें, जो शक के दायरे में आती हैं और नहीं भी. मैं दुविधा में हूं.’’
‘‘देखिए, अब इतने समय बाद कुछ कहना असंभव है. चैकअप से भी कुछ मालूम नहीं हो सकेगा. आप को संदेह था तो उस समय ही कुछ करना चाहिए था. अब इन सब बातों का असर अपने जीवन पर मत होने दीजिए. इतने समय बाद इन बातों का कोई अर्थ नहीं रह जाता,’’ डाक्टर उस की मनोस्थिति समझ रही थीं, ‘‘हां, मैं आप को एचआईवी टैस्ट करवाने की सलाह जरूर दूंगी. क्या आप ने किसी से यह बात शेयर की है? किसी दोस्त से, अपने पार्टनर से या मातापिता से?’’
‘‘नहीं, मैं नहीं कर पाई.’’
‘‘अकेले इन बातों से जूझने से बेहतर है आप किसी को अपनी दुविधा बताइए. जिस पर आप को यकीन है आप उस से यह शेयर करिए. मोरल सपोर्ट बहुत सी मुश्किलों का हल होती है. स्ट्रैस के लिए दवा लिख देती हूं. आप को आराम आएगा. फिर भी कोई परेशानी हो तो जब चाहें मुझे कौल कर सकती हैं. यह रहा मेरा नंबर,’’ डाक्टर ने अपना कार्ड देते हुए कहा.
डाक्टर से बात कर के आज उसे काफी राहत महसूस हो रही थी. उस ने तय किया घर जा कर वह सुहास को सब बता देगी. उस से ज्यादा यकीन उसे किसी पर नहीं. मां भी पता नहीं कैसे रिएक्ट करें.
घर पहुंची तो सुहास बाहर था. आमनेसामने कहतेकहते कहीं वह हिम्मत न खो बेठे,
इसलिए उस ने तय किया कि सारी बातें उसे मेल कर दी जाएं. वह कोई भी ब्योरा नहीं छोड़ना चाहती थी. वह विस्तार से लिख कर अपनी बात कहेगी.
मेल लिखतेलिखते कई घंटे हो चले थे. कितनी बार कुछ लिखती और फिर मिटा देती. कभी भाषा अनुरूप नहीं लगती तो कभी भाव. लिखतेलिखते उस रात के डर को वह फिर महसूस कर रही थी. कितनी बार उस की आंखें भीग गईं. वह सुहास को किसी तरह का शौक नहीं देना चाहती थी न ही वह चाहती थी कि उसे गलत समझा जाए. बहुत सतर्कता से लिख रही थी.
अंत में जब मेल पूरा हुआ तो बिना दोबारा पढ़े झट उस ने सैंड का बटन दबा दिया. वह मेल भेजने या नहीं भेजने के बीच किसी तरह की उलझन का दखल नहीं चाहती थी. क्यों उसे पहले खयाल नहीं आया कि अपनी तकलीफ किसी से साझा कर लेनी चाहिए? अब मेल भेजने के बाद अपना डर, संशय सब उसे बचकाना प्रतीत हो रहा था, एक बेसिरपैर की बात. मेल भेज कर वह चैन की नींद सो गई पूरे महीने के बाद.
घंटी की आवाज से उस की नींद टूटी. सुहास होगा. वह भागते हुए गई और दरवाजा खोल सुहास के सामने खड़ी हो गई. सुहास ने उसे अपनी छाती से लगा लिया. सुहास ने अपना सारा प्रेम उस आलिंगन में भर दिया. वह देर तक उसे भींचे खड़ा रहा. जब छोड़ा तब अनन्या का चेहरा हथेलियों में भर कर सहलाता रहा. अनन्या अपना विश्वास जीतता देख खुश थी. वह जानती थी सुहास ऐसी ही प्रतिक्रिया देगा.
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‘‘पहले क्यों नहीं बताया?’’ सुहास की आवाज में चिंता थी.
‘‘बस नहीं बता पाई,’’ अनन्या उस के सीने में अपना चेहरा छिपाते हुए बोली.
‘‘पर तुम्हें बताना चाहिए था.’’
‘‘जानती हूं’
‘‘तुम अकेले ये सब…’’ सुहास की मजबूत आवाज अभी भी बिखरी हुई लग रही थी, ‘‘पहले बताती तो कुछ ऐक्शन लिया जा सकता था. कन्फर्म किया जा सकता था कि कुछ हुआ या नहीं,’’ वह शायद कहते हुए झिझक रहा था.
‘‘क्या तुम्हें फर्क पड़ता है सुहास?’’
तुम किसी बात की वजह से परेशान हो तो जाहिर तौर पर मुझे भी फर्क पड़ेगा.’’
‘‘अब तुम्हें बता देने के बाद मैं ठीक हूं.’’
‘‘क्या तुम चाहती हो उस से बात की जाए… टैक्सी ड्राइवर से?’’
‘‘नहीं, बात कर के क्या हासिल, तुम साथ हो तो मुझे अब उस से कोई मतलब नहीं,’’ अनन्या की आवाज में निश्चिंतता थी.
‘‘आ जाओ,’’ कहते हुए सुहास ने उसे फिर गले से लगा लिया कि ओह, उस की अनन्या… किस मानसिक स्थिति से गुजर रही होगी… अकेले. क्या वह उस का इतना सा भी विश्वास अर्जित नहीं कर पाया कि आते ही उसे कह देती.
सुहास के लिए यह रात लंबी थी. अनन्या के सो जाने के बाद भी वह करवटें
बदलता रहा. चाह कर भी उसे नींद नहीं आ रही थी. वैसा कुछ हुआ होगा या नहीं? अनन्या का डर ही होगा? कुछ होता तो ड्राइवर यों ही छोड़ कर चला आता? नहीं, जरूरी भी नहीं. छोड़ आता तो पुलिस केस बन जाता. सुहास की स्थिति वही हो चली थी जो पिछले 1 महीने से अनन्या की थी.
अनन्या के मेल के हिसाब से जब हादसा हुआ तब लगभग 12 बज रहे थे. ड्राइवर ने जब उसे फोन किया था तब रात के 3 बज रहे थे जबकि वह अनन्या से हादसे के समय ही मोबाइल मांग रहा था. इतनी देर का अंतराल क्यों रहा होगा? हो सकता है उस समय नैटवर्क न रहा हो या अनन्या का मोबाइल उस समय औफ हो गया हो, इसलिए उसे नंबर न मिला हो.
यह भी हो सकता है कि वह उस की हालत देख कर घबरा गया हो, इसलिए सीधे अस्पताल ले गया हो. लेकिन इतनी देर… रास्ता तो इतनी देर का नहीं. गूगल मैप उस के आगे खुला था और वह ऐक्सीडैंट वाली जगह से अस्पताल तक पहुंचने का वक्त माप रहा था. संशय और पीड़ा से उस की आंखें आहत थीं. वह किसी शून्य में खोया था. उस ने एक गहरी सांस छोड़ी. इतनी भारी आवाज जैसे किसी ने पत्थर बांध कर किसी को समंदर में फेंक दिया हो.
अनन्या की नींद उचट गई. सुहास को जागा देख उस से लिपट गई. सुहास ने भी उस का हाथ थाम लिया.
तभी अचानक सुहास को कुछ याद आया. यह बात उस की सोच में चुभ तो बहुत देर से रही थी पर वह उसे अनदेखा कर रहा था. लेकिन अब और नहीं हो सकेगा. बोला, ‘‘अनन्या, एक बात बताओ. तुम ने लिखा था कि तुम्हें सीट की जेब से कंडोम का बौक्स मिला था. वह तुम ने वापस वहीं रख दिया था या सीट पर रखा था?’’
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अनन्या सोच में पड़ गई. कुछ देर सोच कर उस ने कहा, ‘‘नहीं, वापस तो नहीं रखा था. वह देख कर मैं लगभग सदमें की स्थिति में थी. वापस रखने का खयाल ही नहीं आया.’’
अब चुप रहने की बारी सुहास की थी.
‘‘क्यों, क्या हुआ?’’
‘‘जब उस ने तुम्हारा सामान अस्पताल में जमा करवाया तो कंडोम वाला बौक्स क्यों छोड़ दिया? उसे मालूम था कि वह तुम्हारा नहीं है. मतलब वह उसी का था. हो सकता है उस ने जानबूझ कर वह वहां रखा हो.’’
हो भी सकता है और नहीं भी. कुछ होने की संभावना अब भी उतनी ही थी जितनी न होने की. जिस संदेह को अनन्या मन से निकाल देना चाहती थी वह और गहरा गया था.