Serial Story: महानगर की एक रात- भाग 4

लेखिका- दिव्या विजय

गर्भवती होने की आशंका डाक्टर पहले ही दूर कर चुकी थीं. सारे लक्षण सुनसमझ कर उन्होंने कहा कि कभीकभी स्टै्रस की वजह से पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं. चिंता वाली कोई बात नहीं है.

अनन्या दुविधा में थी कि जब यहां तक आ ही गई है तो डाक्टर से ही क्यों न पूछ ले. सारी बातें साफ हो जाएंगी.

‘‘डाक्टर, आप से कुछ पूछना है,’’ वह झिझकते हुए बोली.

‘‘हां, पूछिए न,’’ डाक्टर को लगा कि सैक्स से संबंधित कोई समस्या होगी. अकसर इस उम्र की लड़कियां यही सब पूछती हैं.

‘‘डाक्टर, किसी ने हमारे साथ संबंध स्थापित किया हो यह कैसे मालूम हो सकता है?’’ सवाल पूछ कर वह खुद को बेवकूफ जैसा महसूस कर रही थी कि यह कैसा सवाल है. शायद वह अपनी बात ठीक से नहीं रख पाई है.

‘‘मेरा मतलब है कि कोई बेहोश हो और कोई उसी बेहोशी का फायदा उठा कर कुछ कर बैठा हो, यह कितने दिनों बाद तक मालूम हो सकता है?’’

‘‘आप का मतलब बिना कंसेंट के संबंध स्थापित करने से है. देखिए, यह बलात्कार के अंतर्गत आता है और रेप हुआ है या नहीं यह मालूम करने के बहुत से तरीके होते हैं. सब से पहले बल प्रयोग के निशान देखे जाते हैं. शरीर के प्रत्येक भाग की जांच की जाती है. इंटरनल इंजरी के लिए टैस्ट किए जाते हैं. फोरेंसिक जांच होनी हो तो पीडि़त के शरीर या कपड़ों से बलात्कार करने वाले के वीर्य का सैंपल लेने की कोशिश की जाती है. सैक्स के बाद योनि में कुछ कैमिकल बदलाव आते हैं उन की जांच की जाती है. ये सब जितनी जल्दी हो जाए उतना ही अच्छा है.’’

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‘‘क्या आप के साथ कुछ हुआ है? कोई परेशानी है, तो आप मुझे बता सकती हैं.’’

‘‘डाक्टर, पिछले महीने मेरा ऐक्सीडैंट हुआ था, उस समय मैं टैक्सी में थी. ऐक्सीडैंट के बाद कुछ समय तक मैं अचेत रही थी. मन में एक डर बैठ गया है कि उस समय ड्राइवर ने मेरे साथ कुछ किया तो नहीं होगा?’’

‘‘ऐसा लगने की कोई खास वजह है या

यों ही?’’

‘‘उस की कुछ हरकतें, जो शक के दायरे में आती हैं और नहीं भी. मैं दुविधा में हूं.’’

‘‘देखिए, अब इतने समय बाद कुछ कहना असंभव है. चैकअप से भी कुछ मालूम नहीं हो सकेगा. आप को संदेह था तो उस समय ही कुछ करना चाहिए था. अब इन सब बातों का असर अपने जीवन पर मत होने दीजिए. इतने समय बाद इन बातों का कोई अर्थ नहीं रह जाता,’’ डाक्टर उस की मनोस्थिति समझ रही थीं, ‘‘हां, मैं आप को एचआईवी टैस्ट करवाने की सलाह जरूर दूंगी. क्या आप ने किसी से यह बात शेयर की है? किसी दोस्त से, अपने पार्टनर से या मातापिता से?’’

‘‘नहीं, मैं नहीं कर पाई.’’

‘‘अकेले इन बातों से जूझने से बेहतर है आप किसी को अपनी दुविधा बताइए. जिस पर आप को यकीन है आप उस से यह शेयर करिए. मोरल सपोर्ट बहुत सी मुश्किलों का हल होती है. स्ट्रैस के लिए दवा लिख देती हूं. आप को आराम आएगा. फिर भी कोई परेशानी हो तो जब चाहें मुझे कौल कर सकती हैं. यह रहा मेरा नंबर,’’ डाक्टर ने अपना कार्ड देते हुए कहा.

डाक्टर से बात कर के आज उसे काफी राहत महसूस हो रही थी. उस ने तय किया घर जा कर वह सुहास को सब बता देगी. उस से ज्यादा यकीन उसे किसी पर नहीं. मां भी पता नहीं कैसे रिएक्ट करें.

घर पहुंची तो सुहास बाहर था. आमनेसामने कहतेकहते कहीं वह हिम्मत न खो बेठे,

इसलिए उस ने तय किया कि  सारी बातें उसे मेल कर दी जाएं. वह कोई भी ब्योरा नहीं छोड़ना चाहती थी. वह विस्तार से लिख कर अपनी बात कहेगी.

मेल लिखतेलिखते कई घंटे हो चले थे. कितनी बार कुछ लिखती और फिर मिटा देती. कभी भाषा अनुरूप नहीं लगती तो कभी भाव. लिखतेलिखते उस रात के डर को वह फिर महसूस कर रही थी. कितनी बार उस की आंखें भीग गईं. वह सुहास को किसी तरह का शौक नहीं देना चाहती थी न ही वह चाहती थी कि उसे गलत समझा जाए. बहुत सतर्कता से लिख रही थी.

अंत में जब मेल पूरा हुआ तो बिना दोबारा पढ़े झट उस ने सैंड का बटन दबा दिया. वह मेल भेजने या नहीं भेजने के बीच किसी तरह की उलझन का दखल नहीं चाहती थी. क्यों उसे पहले खयाल नहीं आया कि अपनी तकलीफ किसी से साझा कर लेनी चाहिए? अब मेल भेजने के बाद अपना डर, संशय सब उसे बचकाना प्रतीत हो रहा था, एक बेसिरपैर की बात. मेल भेज कर वह चैन की नींद सो गई पूरे महीने के बाद.

घंटी की आवाज से उस की नींद टूटी. सुहास होगा. वह भागते हुए गई और दरवाजा खोल सुहास के सामने खड़ी हो गई. सुहास ने उसे अपनी छाती से लगा लिया. सुहास ने अपना सारा प्रेम उस आलिंगन में भर दिया. वह देर तक उसे भींचे खड़ा रहा. जब छोड़ा तब अनन्या का चेहरा हथेलियों में भर कर सहलाता रहा. अनन्या अपना विश्वास जीतता देख खुश थी. वह जानती थी सुहास ऐसी ही प्रतिक्रिया देगा.

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‘‘पहले क्यों नहीं बताया?’’ सुहास की आवाज में चिंता थी.

‘‘बस नहीं बता पाई,’’ अनन्या उस के सीने में अपना चेहरा छिपाते हुए बोली.

‘‘पर तुम्हें बताना चाहिए था.’’

‘‘जानती हूं’

‘‘तुम अकेले ये सब…’’ सुहास की मजबूत आवाज अभी भी बिखरी हुई लग रही थी, ‘‘पहले बताती तो कुछ ऐक्शन लिया जा सकता था. कन्फर्म किया जा सकता था कि कुछ हुआ या नहीं,’’ वह शायद कहते हुए झिझक रहा था.

‘‘क्या तुम्हें फर्क पड़ता है सुहास?’’

तुम किसी बात की वजह से परेशान हो तो जाहिर तौर पर मुझे भी फर्क पड़ेगा.’’

‘‘अब तुम्हें बता देने के बाद मैं ठीक हूं.’’

‘‘क्या तुम चाहती हो उस से बात की जाए… टैक्सी ड्राइवर से?’’

‘‘नहीं, बात कर के क्या हासिल, तुम साथ हो तो मुझे अब उस से कोई मतलब नहीं,’’ अनन्या की आवाज में निश्चिंतता थी.

‘‘आ जाओ,’’ कहते हुए सुहास ने उसे फिर गले से लगा लिया कि ओह, उस की अनन्या… किस मानसिक स्थिति से गुजर रही होगी… अकेले. क्या वह उस का इतना सा भी विश्वास अर्जित नहीं कर पाया कि आते ही उसे कह देती.

सुहास के लिए यह रात लंबी थी. अनन्या के सो जाने के बाद भी वह करवटें

बदलता रहा. चाह कर भी उसे नींद नहीं आ रही थी. वैसा कुछ हुआ होगा या नहीं? अनन्या का डर ही होगा? कुछ होता तो ड्राइवर यों ही छोड़ कर चला आता? नहीं, जरूरी भी नहीं. छोड़ आता तो पुलिस केस बन जाता. सुहास की स्थिति वही हो चली थी जो पिछले 1 महीने से अनन्या की थी.

अनन्या के मेल के हिसाब से जब हादसा हुआ तब लगभग 12 बज रहे थे. ड्राइवर ने जब उसे फोन किया था तब रात के 3 बज रहे थे जबकि वह अनन्या से हादसे के समय ही मोबाइल मांग रहा था. इतनी देर का अंतराल क्यों रहा होगा? हो सकता है उस समय नैटवर्क न रहा हो या अनन्या का मोबाइल उस समय औफ हो गया हो, इसलिए उसे नंबर न मिला हो.

यह भी हो सकता है कि वह उस की हालत देख कर घबरा गया हो, इसलिए सीधे अस्पताल ले गया हो. लेकिन इतनी देर… रास्ता तो इतनी देर का नहीं. गूगल मैप उस के आगे खुला था और वह ऐक्सीडैंट वाली जगह से अस्पताल तक पहुंचने का वक्त माप रहा था. संशय और पीड़ा से उस की आंखें आहत थीं. वह किसी शून्य में खोया था. उस ने एक गहरी सांस छोड़ी. इतनी भारी आवाज जैसे किसी ने पत्थर बांध कर किसी को समंदर में फेंक दिया हो.

अनन्या की नींद उचट गई. सुहास को जागा देख उस से लिपट गई. सुहास ने भी उस का हाथ थाम लिया.

तभी अचानक सुहास को कुछ याद आया. यह बात उस की सोच में चुभ तो बहुत देर से रही थी पर वह उसे अनदेखा कर रहा था. लेकिन अब और नहीं हो सकेगा. बोला, ‘‘अनन्या, एक बात बताओ. तुम ने लिखा था कि तुम्हें सीट की जेब से कंडोम का बौक्स मिला था. वह तुम ने वापस वहीं रख दिया था या सीट पर रखा था?’’

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अनन्या सोच में पड़ गई. कुछ देर सोच कर उस ने कहा, ‘‘नहीं, वापस तो नहीं रखा था. वह देख कर मैं लगभग सदमें की स्थिति में थी. वापस रखने का खयाल ही नहीं आया.’’

अब चुप रहने की बारी सुहास की थी.

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘जब उस ने तुम्हारा सामान अस्पताल में जमा करवाया तो कंडोम वाला बौक्स क्यों छोड़ दिया? उसे मालूम था कि वह तुम्हारा नहीं है. मतलब वह उसी का था. हो सकता है उस ने जानबूझ कर वह वहां रखा हो.’’

हो भी सकता है और नहीं भी. कुछ होने की संभावना अब भी उतनी ही थी जितनी न होने की. जिस संदेह को अनन्या मन से निकाल देना चाहती थी वह और गहरा गया था.

प्रतिदिन: क्यों मिसेज शर्मा को देखकर चौंक गई प्रीति

Serial Story: प्रतिदिन– भाग 3

‘‘सुमित्रा आगे बताने लगी कि भाभी यह जान कर कि हम अब यहीं आ कर रहेंगे, खुश नहीं हुईं बल्कि कहने लगीं, ‘जानती हो कितनी महंगाई हो गई है. एक मेहमान के चायपानी पर ही 100 रुपए खर्च हो जाते हैं.’ फिर वह उठीं और अंदर से कुछ कागज ले आईं. सुमित्रा के हाथ में पकड़ाते हुए कहने लगीं कि यह तुम्हारे मकान की रिपेयरिंग का बिल है जो किराएदार दे गया है. मैं ने उस से कहा था कि जब मकानमालिक आएंगे तो सारा हिसाब करवा दूंगी. 14-15 हजार का खर्चा था जो मैं ने भर दिया.

‘‘‘रात खानेपीने के बाद देवरानी व जेठानी एकसाथ बैठीं तो यहांवहां की बातें छिड़ गईं. सुमित्रा कहने लगी कि दीदी, यहां भी तो लोग अच्छा कमातेखाते हैं, नौकरचाकर रखते हैं और बडे़ मजे से जिंदगी जीते हैं. वहां तो सब काम हमें अपने हाथ से करना पड़ता है. दुख- तकलीफ में भी कोई मदद करने वाला नहीं मिलता. किसी के पास इतना समय ही नहीं होता कि किसी बीमार की जा कर खबर ले आए.’

‘‘भाभी का जला दिल और जल उठा. वह बोलीं कि सुमित्रा, हमें भरमाने की बातें तो मत करो. एक तुम्हीं तो विलायत हो कर नहीं आई हो…और भी बहुत लोग आते हैं. और वहां का जो यशोगान करते हैं उसे सुन कर दिल में टीस सी उठती है कि आप ने विलायत रह कर भी अपने भाई के लिए कुछ नहीं किया.

‘‘सुमित्रा ने बात बदलते हुए पूछा कि दीदी, उस सुनंदा का क्या हाल है जो यहां स्कूल में प्रिंसिपल थी. इस पर बड़ी भाभी बोलीं, ‘अरे, मजे में है. बच्चों की शादी बडे़ अमीर घरों में कर दी है. खुद रिटायर हो चुकी है. धन कमाने का उस का नशा अभी भी नहीं गया है. घर में बच्चों को पढ़ा कर दौलत कमा रही है. पूछती तो रहती है तेरे बारे में. कल मिल आना.’

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‘‘अगले दिन सुमित्रा से सुनंदा बड़ी खुश हो कर मिली. उलाहना भी दिया कि इतने दिनों बाद गांव आई हो पर आज मिलने का मौका मिला है. आज भी मत आतीं.

‘‘सुनंदा के उलाहने के जवाब में सुमित्रा ने कहा, ‘लो चली जाती हूं. यह तो समझती नहीं कि बाहर वालों के पास समय की कितनी कमी होती है. रिश्तेदारों से मिलने जाना, उन के संदेश पहुंचाना. घर में कोई मिलने आ जाए तो उस के पास बैठना. वह उठ कर जाए तो व्यक्ति कोई दूसरा काम सोचे.’

‘‘‘बसबस, रहने दे अपनी सफाई,’ सुनंदा बोली, ‘इतने दिनों बाद आई है, कुछ मेरी सुन कुछ अपनी कह.’

‘‘आवभगत के बाद सुनंदा ने सुमित्रा को बताया तुम्हारी जेठानी ने तुम्हारा घर अपना कह कर किराए पर चढ़ाया है. 1,200 रुपए महीना किराया लेती है और गांवमहल्ले में सब से कहती फिरती है कि सुमित्रा और देवरजी तो इधर आने से रहे. अब मुझे ही उन के घर की देखभाल करनी पड़ रही है. सुमित्रा पिछली बार खुद ही मुझे चाबी दे गई थी,’ फिर आगे बोली, ‘मुझे लगता है कि उस की निगाह तुम्हारे घर पर है.’

‘‘‘तभी भाभी मुझ से कह रही थीं कि जिस विलायत में जाने को हम यहां गलतसही तरीके अपनाते हैं, उसी को तुम ठुकरा कर आना चाहती हो. तेरे भले की कहती हूं ऐसी गलती मत करना, सुमित्रा.’

‘‘सुनंदा बोली, ‘मैं ने अपनी बहन समझ कर जो हकीकत है, बता दी. जो भी निर्णय लेना, ठंडे दिमाग से सोच कर लेना. मुझे तो खुशी होगी अगर तुम लोग यहां आ कर रहो. बीते दिनों को याद कर के खूब आनंद लेंगे.’

‘‘सुनंदा से मिल कर सुमित्रा आई तो घर में उस का दम घुटने लगा. वह 2 महीने की जगह 1 महीने में ही वापस लंदन चली आई.

‘‘‘विनोद भाई, तुम्हीं कोई रास्ता सुझाओ कि क्या करूं. इधर से सब बेच कर इंडिया रहने की सोचूं तो पहले तो घर से किराएदार नहीं उठेंगे. दूसरे, कोई जगह ले कर घर बनाना चाहूं तो वहां कितने दिन रह पाएंगे. बच्चों ने तो उधर जाना नहीं. यहां अपने घर में तो बैठे हैं. किसी से कुछ लेनादेना नहीं. वहां तो किसी काम से भी बाहर निकलो तो जासूस पीछे लग लेंगे. तुम जान ही नहीं पाओगे कि कब मौका मिलते ही तुम पर कोई अटैक कर दे. यहां का कानून तो सुनता है. कमी तो बस, इतनी ही है कि अपनों का प्यार, उन के दो मीठे बोल सुनने को नहीं मिलते.’’

‘‘‘बात तो तुम्हारी सही है. थोडे़ सुख के लिए ज्यादा दुख उठाना तो समझदारी नहीं. यहीं अपने को व्यस्त रखने की कोशिश करो,’’ विनोद ने उन्हें सुझाया था.

‘‘अब जब सारी उम्र खूनपसीना बहा कर यहीं गुजार दी, टैक्स दे कर रानी का घर भर दिया. अब पेंशन का सुख भी इधर ही रह कर भोगेंगे. जिस देश की मिट्टीपानी ने आधी सदी तक हमारे शरीर का पोषण किया उसी मिट्टी को हक है हमारे मरने के बाद इस शरीर की मिट्टी को अपने में समेटने का. और फिर अब तो यहां की सरकार ने भारतीयों के लिए अस्थिविसर्जन की सुविधा भी शुरू कर दी है.

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‘‘विनोद, मैं तो सुमित्रा को समझासमझा कर हार गया पर उस के दिमाग में कुछ घुसता ही नहीं. एक बार बडे़ बेटे ने फोन क्या कर दिया कि मम्मी, आप दादी बन गई हैं और एक बार अपने पोते को देखने आओ न. बस, कनाडा जाने की रट लगा बैठी है. वह नहीं समझती कि बेटा ऐसा कर के अपने किए का प्रायश्चित करना चाहता है. मैं कहता हूं कि उसे पोते को तुम से मिलाने को इतना ही शौक है तो खुद क्यों नहीं यहां आ जाता.

‘‘तुम्हीं बताओ दोस्त, जिस ने हमारी इज्जत की तनिक परवा नहीं की, अच्छेभले रिश्ते को ठुकरा कर गोरी चमड़ी वाली से शादी कर ली, वह क्या जीवन के अनोखे सुख दे देगी इसे जो अपनी बिरादरी वाली लड़की न दे पाती. देखना, एक दिन ऐसा धत्ता बता कर जाएगी कि दिन में तारे नजर आएंगे.’’

‘‘यार मैं ने सुना है कि तुम भाभी को बुराभला भी कहते रहते हो. क्या इस उम्र में यह सब तुम्हें शोभा देता है?’’ एक दिन विनोद ने शर्माजी से पूछा था.

‘‘क्या करूं, जब वह सुनती ही नहीं, घर में सब सामान होते हुए भी फिर वही उठा लाती है. शाम होते ही खाना खा ऊपर जा कर जो एक बार बैठ गई तो फिर कुछ नहीं सुनेगी. कितना पुकारूं, सिर खपाऊं पर जवाब नहीं देती, जैसे बहरी हो गई हो. फिर एक पैग पीने के बाद मुझे भी होश नहीं रहता कि मैं क्या बोल रहा हूं.’’

पूरी कहानी सुनातेसुनाते दीप्ति को लंच की छुट्टी का भी ध्यान न रहा. घड़ी देखी तो 5 मिनट ऊपर हो गए थे. दोनों ने भागते हुए जा कर बस पकड़ी.

घर पहुंचतेपहुंचते मेरे मन में पड़ोसिन आंटी के प्रति जो क्रोध और घृणा के भाव थे सब गायब हो चुके थे. धीरेधीरे हम भी उन के नित्य का ‘शबद कीर्तन’ सुनने के आदी होने लगे.

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Serial Story: प्रतिदिन– भाग 1

प्रीति अपने पड़ोस में रहने वाले वृद्ध दंपती मिस्टर एंड मिसेज शर्मा के आएदिन के आपसी झगड़ों से काफी हैरान परेशान थी. लेकिन एक दिन सहेली दीप्ति के घर मिसेज शर्मा को देख कर चौंक गई. और वह दीप्ति से मिसेज शर्मा के बारे में जानने की जिज्ञासा को दबा न सकी.

कहते हैं परिवर्तन ही जिंदगी है. सबकुछ वैसा ही नहीं रहता जैसा. आज है या कल था. मौसम के हिसाब से दिन भी कभी लंबे और कभी छोटे होते हैं पर उन के जीवन में यह परिवर्तन क्यों नहीं आता? क्या उन की जीवन रूपी घड़ी को कोई चाबी देना भूल गया या बैटरी डालना जो उन की जीवनरूपी घड़ी की सूई एक ही जगह अटक गई है. कुछ न कुछ तो ऐसा जरूर घटा होगा उन के जीवन में जो उन्हें असामान्य किए रहता है और उन के अंदर की पीड़ा की गालियों के रूप में बौछार करता रहता है.

मैं विचारों की इन्हीं भुलभुलैयों में खोई हुई थी कि फोन की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो,’’ मैं ने रिसीवर उठाया.

‘‘हाय प्रीत,’’ उधर से चहक भरी आवाज आई, ‘‘क्या कर रही हो…वैसे मैं जानती हूं कि तू क्या कर रही होगी. तू जरूर अपनी स्टडी मेज पर बैठी किसी कथा का अंश या कोई शब्दचित्र बना रही होगी. क्यों, ठीक  कहा न?’’

‘‘जब तू इतना जानती है तो फिर मुझे खिझाने के लिए पूछा क्यों?’’ मैं ने गुस्से में उत्तर दिया.

‘‘तुझे चिढ़ाने के लिए,’’ यह कह कर हंसती हुई वह फिर बोली, ‘‘मेरे पास बहुत ही मजेदार किस्सा है, सुनेगी?’’

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मेरी कमजोरी वह जान गई थी कि मुझे किस्सेकहानियां सुनने का बहुत शौक है.

‘‘फिर सुना न,’’ मैं सुनने को ललच गई.

‘‘नहीं, पहले एक शर्त है कि तू मेरे साथ पिक्चर चलेगी.’’

‘‘बिलकुल नहीं. मुझे तेरी शर्त मंजूर नहीं. रहने दे किस्साविस्सा. मुझे नहीं सुनना कुछ और न ही कोई बकवास फिल्म देखने जाना.’’

‘‘अच्छा सुन, अब अगर कुछ देखने को मन करे तो वही देखने जाना पड़ेगा न जो बन रहा है.’’

‘‘मेरा तो कुछ भी देखने का मन नहीं है.’’

‘‘पर मेरा मन तो है न. नई फिल्म आई है ‘बेंड इट लाइक बैखम.’ सुना है स्पोर्ट वाली फिल्म है. तू भी पसंद करेगी, थोड़ा खेल, थोड़ा फन, थोड़ी बेटियों को मां की डांट. मजा आएगा यार. मैं ने टिकटें भी ले ली हैं.’’

‘‘आ कर मम्मी से पूछ ले फिर,’’ मैं ने डोर ढीली छोड़ दी.

मैं ने मन में सोचा. सहेली भी तो ऐसीवैसी नहीं कि उसे टाल दूं. फोन करने के थोड़ी देर बाद वह दनदनाती हुई पहुंच जाएगी. आते ही सीधे मेरे पास नहीं आएगी बल्कि मम्मी के पास जाएगी. उन्हें बटर लगाएगी. रसोई से आ रही खुशबू से अंदाजा लगाएगी कि आंटी ने क्या पकाया होगा. फिर मांग कर खाने बैठ जाएगी. तब आएगी असली मुद्दे पर.

‘आंटी, आज हम पिक्चर जाएंगे. मैं प्रीति को लेने आई हूं.’

‘सप्ताह में एक दिन तो घर बैठ कर आराम कर लिया करो. रोजरोज थकती नहीं बसट्रेनों के धक्के खाते,’ मम्मी टालने के लिए यही कहती हैं.

‘थकती क्यों नहीं पर एक दिन भी आउटिंग न करें तो हमारी जिंदगी बस, एक मशीन बन कर रह जाए. आज तो बस, पिक्चर जाना है और कहीं नहीं. शाम को सीधे घर. रविवार तो है ही हमारे लिए पूरा दिन रेस्ट करने का.’

‘अच्छा, बाबा जाओ. बिना गए थोड़े मानोगी,’ मम्मी भी हथियार डाल देती हैं.

फिर पिक्चर हाल में दीप्ति एकएक सीन को बड़ा आनंद लेले कर देखती और मैं बैठी बोर होती रहती. पिक्चर खत्म होने पर उसे उम्मीद होती कि मैं पिक्चर के बारे में अपनी कुछ राय दूं. पर अच्छी लगे तब तो कुछ कहूं. मुझे तो लगता कि मैं अपना टाइम वेस्ट कर रही हूं.

जब से हम इस कसबे में आए हैं पड़ोसियों के नाम पर अजीब से लोगों का साथ मिला है. हर रोज उन की आपसी लड़ाई को हमें बरदाश्त करना पड़ता है. कब्र में पैर लटकाए बैठे ये वृद्ध दंपती पता नहीं किस बात की खींचातानी में जुटे रहते हैं. बैक गार्डेन से देखें तो अकसर ये बड़े प्यार से बातें करते हुए एकदूसरे की मदद करते नजर आते हैं. यही नहीं ये एकदूसरे को बड़े प्यार से बुलाते भी हैं और पूछ कर नाश्ता तैयार करते हैं. तब इन के चेहरे पर रात की लड़ाई का कोई नामोनिशान देखने को नहीं मिलता है.

हर रोज दिन की शुरुआत के साथ वृद्धा बाहर जाने के लिए तैयार होने लगतीं. माथे पर बड़ी गोल सी बिंदी, बालों में लाल रिबन, चमचमाता सूट, जैकट और एक हाथ में कबूतरों को डालने के लिए दाने वाला बैग तथा दूसरे हाथ में छड़़ी. धीरेधीरे कदम रखते हुए बाहर निकलती हैं.

2-3 घंटे बाद जब वृद्धा की वापसी होती तो एक बैग की जगह उन के हाथों में 3-4 बैग होते. बस स्टाप से उन का घर ज्यादा दूर नहीं है. अत: वह किसी न किसी को सामान घर तक छोड़ने के लिए मना लेतीं. शायद उन का यही काम उन के पति के क्रोध में घी का काम करता और शाम ढलतेढलते उन पर शुरू होती पति की गालियों की बौछार. गालियां भी इतनी अश्लील कि आजकल अनपढ़ भी उस तरह की गाली देने से परहेज करते हैं. यह नित्य का नियम था उन का, हमारी आंखों देखा, कानों सुना.

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हम जब भी शाम को खाना खाने बैठते तो उधर से भी शुरू हो जाता उन का कार्यक्रम. दीवार की दूसरी ओर से पुरुष वजनदार अश्लील गालियों का विशेषण जोड़ कर पत्नी को कुछ कहता, जिस का दूसरी ओर से कोई उत्तर न आता.

मम्मी बहुत दुखी स्वर में कहतीं, ‘‘छीछी, ये कितने असभ्य लोग हैं. इतना भी नहीं जानते कि दीवारों के भी कान होते हैं. दूसरी तरफ कोई सुनेगा तो क्या सोचेगा.’’

मम्मी चाहती थीं कि हम भाईबहनों के कानों में उन के अश्लील शब्द न पड़ें. इसलिए वह टेलीविजन की आवाज ऊंची कर देतीं.

खाने के बाद जब मम्मी रसोई साफ करतीं और मैं कपड़ा ले कर बरतन सुखा कर अलमारी में सजाने लगती तो मेरे लिए यही समय होता था उन से बात करने का. मैं पूछती, ‘‘मम्मी, आप तो दिन भर घर में ही रहती हैं. कभी पड़ोस वाली आंटी से मुलाकात नहीं हुई?’’

‘‘तुम्हें तो पता ही है, इस देश में हम भारतीय भी गोरों की तरह कितने रिजर्व हो गए हैं,’’ मम्मी उत्तर देतीं, ‘‘मुझे तो ऐसा लगता है कि दोनों डिप्रेशन के शिकार हैं. बोलते समय वे अपना होश गंवा बैठते हैं.’’

‘‘कहते हैं न मम्मी, कहनेसुनने से मन का बोझ हलका होता है,’’ मैं अपना ज्ञान बघारती.

कुछ दिन बाद दीप्ति के यहां प्रीति- भोज का आयोजन था और वह मुझे व मम्मी को बुलाने आई पर मम्मी को कहीं जाना था इसीलिए वह नहीं जा सकीं.

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Serial Story: प्रतिदिन– भाग 2

यह पहला मौका था कि मैं दीप्ति के घर गई थी. उस का बड़ा सा घर देख कर मन खुश हो गया. मेरे अढ़ाई कमरे के घर की तुलना में उस का 4 डबल बेडरूम का घर मुझे बहुत बड़ा लगा. मैं इस आश्चर्य से अभी उभर भी नहीं पाई थी कि एक और आश्चर्य मेरी प्रतीक्षा कर रहा था.

अचानक मेरी नजर ड्राइंगरूम में कोने में बैठी अपनी पड़ोसिन पर चली गई. मैं अपनी जिज्ञासा रोक न पाई और दीप्ति के पास जा कर पूछ बैठी, ‘‘वह वृद्ध महिला जो उधर कोने में बैठी हैं, तुम्हारी कोई रिश्तेदार हैं?’’

‘‘नहीं, पापा के किसी दोस्त की पत्नी हैं. इन की बेटी ने जिस लड़के से शादी की है वह हमारी जाति का है. इन का दिमाग कुछ ठीक नहीं रहता. इस कारण बेचारे अंकलजी बड़े परेशान रहते हैं. पर तू क्यों जानना चाहती है?’’

‘‘मेरी पड़ोसिन जो हैं,’’ इन का दिमाग ठीक क्यों नहीं रहता? इसी गुत्थी को तो मैं इतने दिनों से सुलझाने की कोशिश कर रही थी, अत: दोबारा पूछा, ‘‘बता न, क्या परेशानी है इन्हें?’’

अपनी बड़ीबड़ी आंखों को और बड़ा कर के दीप्ति बोली, ‘‘अभी…पागल है क्या? पहले मेहमानों को तो निबटा लें फिर आराम से बैठ कर बातें करेंगे.’’

2-3 घंटे बाद दीप्ति को फुरसत मिली. मौका देख कर मैं ने अधूरी बात का सूत्र पकड़ते हुए फिर पूछा, ‘‘तो क्या परेशानी है उन दंपती को?’’

‘‘अरे, वही जो घरघर की कहानी है,’’ दीप्ति ने बताना शुरू किया, ‘‘हमारे भारतीय समाज को पहले जो बातें मरने या मार डालने को मजबूर करती थीं और जिन बातों के चलते वे बिरादरी में मुंह दिखाने लायक नहीं रहते थे, उन्हीं बातों को ये अभी तक सीने से लगाए घूम रहे हैं.’’

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‘‘आजकल तो समय बहुत बदल गया है. लोग ऐसी बातों को नजरअंदाज करने लगे हैं,’’ मैं ने अपना ज्ञान बघारा.

‘‘तू ठीक कहती है. नईपुरानी पीढ़ी का आपस में तालमेल हमेशा से कोई उत्साहजनक नहीं रहा. फिर भी हमें जमाने के साथ कुछ तो चलना पड़ेगा वरना तो हम हीनभावना से पीडि़त हो जाएंगे,’’ कह कर दीप्ति सांस लेने के लिए रुकी.

मैं ने बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘जब हम भारतीय विदेश में आए तो बस, धन कमाने के सपने देखने में लग गए. बच्चे पढ़लिख कर अच्छी डिगरियां लेंगे. अच्छी नौकरियां हासिल करेंगे. अच्छे घरों से उन के रिश्ते आएंगे. हम यह भूल ही गए कि यहां का माहौल हमारे बच्चों पर कितना असर डालेगा.’’

‘‘इसी की तो सजा भुगत रहा है हमारा समाज,’’ दीप्ति बोली, ‘‘इन के 2 बेटे 1 बेटी है. तीनों ऊंचे ओहदों पर लगे हुए हैं. और अपनेअपने परिवार के साथ  आनंद से रह रहे हैं पर उन का इन से कोई संबंध नहीं है. हुआ यों कि इन्होंने अपने बड़े बेटे के लिए अपनी बिरादरी की एक सुशील लड़की देखी थी. बड़ी धूमधाम से रिंग सेरेमनी हुई. मूवी बनी. लड़की वालों ने 200 व्यक्तियों के खानेपीने पर दिल खोल कर खर्च किया. लड़के ने इस शादी के लिए बहुत मना किया था पर मां ने एक न सुनी और धमकी देने लगीं कि अगर मेरी बात न मानी तो मैं अपनी जान दे दूंगी. बेटे को मानना पड़ा.

‘‘बेटे ने कनाडा में नौकरी के लिए आवेदन किया था. नौकरी मिल गई तो वह चुपचाप घर से खिसक गया. वहां जा कर फोन कर दिया, ‘मम्मी, मैं ने कनाडा में ही रहने का निर्णय लिया है और यहीं अपनी पसंद की लड़की से शादी कर के घर बसाऊंगा. आप लड़की वालों को मना कर दें.’

‘‘मांबाप के दिल को तोड़ने वाली यह पहली चोट थी. लड़की वालों को पता चला तो आ कर उन्हें काफी कुछ सुना गए. बिरादरी में तो जैसे इन की नाक ही कट गई. अंकल ने तो बाहर निकलना ही छोड़ दिया लेकिन आंटी उसी ठाटबाट से निकलतीं. आखिर लड़के की मां होने का कुछ तो गरूर उन में होना ही था.

‘‘इधर छोटे बेटे ने भी किसी ईसाई लड़की से शादी कर ली. अब रह गई बेटी. अंकल ने उस से पूछा, ‘बेटी, तुम भी अपनी पसंद बता दो. हम तुम्हारे लिए लड़का देखें या तुम्हें भी अपनी इच्छा से शादी करनी है.’ इस पर वह बोली कि पापा, अभी तो मैं पढ़ रही हूं. पढ़ाई करने के बाद इस बारे में सोचूंगी.

‘‘‘फिर क्या सोचेगी.’ इस के पापा ने कहा, ‘फिर तो नौकरी खोजेगी और अपने पैरों पर खड़ी होने के बारे में सोचेगी. तब तक तुझे भी कोई मनपसंद साथी मिल जाएगा और कहेगी कि उसी से शादी करनी है. आजकल की पीढ़ी देशदेशांतर और जातिपाति को तो कुछ समझती नहीं बल्कि बिरादरी के बाहर शादी करने को एक उपलब्धि समझती है.’ ’’

इसी बीच दीप्ति की मम्मी कब हमारे लिए चाय रख गईं पता ही नहीं चला. मैं ने घड़ी देखी, 5 बज चुके थे.

‘‘अरे, मैं तो मम्मी को 4 बजे आने को कह कर आई हूं…अब खूब डांट पड़ेगी,’’ कहानी अधूरी छोड़ उस से विदा ले कर मैं घर चली आई. कहानी के बाकी हिस्से के लिए मन में उत्सुकता तो थी पर घड़ी की सूई की सी रफ्तार से चलने वाली यहां की जिंदगी का मैं भी एक हिस्सा थी. अगले दिन काम पर ही कहानी के बाकी हिस्से के लिए मैं ने दीप्ति को लंच टाइम में पकड़ा. उस ने वृद्ध दंपती की कहानी का अगला हिस्सा जो सुनाया वह इस प्रकार है:

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‘‘मिसेज शर्मा यानी मेरी पड़ोसिन वृद्धा कहीं भी विवाहशादी का धूमधड़ाका या रौनक सुनदेख लें तो बरदाश्त नहीं कर पातीं और पागलों की तरह व्यवहार करने लगती हैं. आसपड़ोस को बीच सड़क पर खड़ी हो कर गालियां देने लगती हैं. यह भी कारण है अंकल का हरदम घर में ही बैठे रहने का,’’ दीप्ति ने बताया, ‘‘एक बार पापा ने अंकल को सुझाया था कि आप रिटायर तो हो ही चुके हैं, क्यों नहीं कुछ दिनों के लिए इंडिया घूम आते या भाभी को ही कुछ दिनों के लिए भेज देते. कुछ हवापानी बदलेगा, अपनों से मिलेंगी तो इन का मन खुश होगा.

‘‘‘यह भी कर के देख लिया है,’ बडे़ मायूस हो कर शर्मा अंकल बोले थे, ‘चाहता तो था कि इंडिया जा कर बसेरा बनाऊं मगर वहां अब है क्या हमारा. भाईभतीजों ने पिता से यह कह कर सब हड़प लिया कि छोटे भैया को तो आप बाहर भेज कर पहले ही बहुत कुछ दे चुके हैं…वहां हमारा अब जो छोटा सा घर बचा है वह भी रहने लायक नहीं है.

‘‘‘4 साल पहले जब मेरी पत्नी सुमित्रा वहां गई थी तो घर की खस्ता हालत देख कर रो पड़ी थी. उसी घर में विवाह कर आई थी. भरापूरा घर, सासससुर, देवरजेठ, ननदों की गहमागहमी. अब क्या था, सिर्फ खंडहर, कबूतरों का बसेरा.

‘‘‘बड़ी भाभी ने सुमित्रा का खूब स्वागत किया. सुमित्रा को शक तो हुआ था कि यह अकारण ही मुझ पर इतनी मेहरबान क्यों हो रही हैं. पर सुमित्रा यह जांचने के लिए कि देखती हूं वह कौन सा नया नाटक करने जा रही है, खामोश बनी रही. फिर एक दिन कहा कि दीदी, किसी सफाई वाली को बुला दो. अब आई हूं तो घर की थोड़ी साफसफाई ही करवा जाऊं.’

‘‘‘सफाई भी हो जाएगी पर मैं तो सोचती हूं कि तुम किसी को घर की चाबी दे जाओ तो तुम्हारे पीछे घर को हवाधूप लगती रहेगी,’ भाभी ने अपना विचार रखा था.

‘‘‘सुमित्रा मेरी सलाह लिए बिना भाभी को चाबी दे आई. आ कर भाभी की बड़ी तारीफ करने लगी. चूंकि इस का अभी तक चालाक लोगों से वास्ता नहीं पड़ा था इसलिए भाभी इसे बहुत अच्छी लगी थीं. पर भाभी क्या बला है यह तो मैं ही जानता हूं. वैसे मैं ने इसे पिछली बार जब इंडिया भेजा था तो वहां जा कर इस का पागलपन का दौरा ठीक हो गया था. लेकिन इस बार रिश्तेदारों से मिल कर 1 महीने में ही वापस आ गई. पूछा तो बोली, ‘रहती कहां? बड़ी भाभी ने किसी को घर की चाबी दे रखी थी. कोई बैंक का कर्मचारी वहां रहने लगा था.’

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निडर रोशनी की जगमग: भाग्यश्री को किस पुरुष के साथ देखा राधिका ने

Serial Story: निडर रोशनी की जगमग– भाग 3

शाम को अमन के आने पर राधिका ने देखा कि सरवैंट क्वार्टर का दरवाजा खुला है. सीमा और सतीश वहां से चुपचाप अपना सामान ले कर गायब हो चुके थे.सीमा की कलई खुल जाने से राधिका खुश तो थी पर फिर वही मेड की समस्या मुंह बाए खड़ी थी. ‘इस बार जल्दबाजी नहीं करूंगी. सोच-समझ कर फैसला लूंगी,’ सोचते हुए उस ने सिक्युरिटी गार्ड को फोन कर क्वार्टर के लिए इच्छुक लोगों को भेजते रहने को कहा.

रविवार के दिन राधिका को न अमन के औफिस जाने की चिंता होती और न खुद के कहीं इंटरव्यू के लिए जाने की. उस दिन भी रविवार था. सुबह की चाय पीते हुए वह अमन से गप्पें मार रही थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी.

‘‘अरे, सुबह के 8 बजे कौन आ गया?’’ नाक चढ़ा कर राधिका अमन को देखते हुए बोली.

‘‘देखता हूं मैं,’’ कह कर अमन दरवाजा खोलने चल दिया.

‘शायद कोई सरवैंट क्वार्टर की बात करने आया होगा.’ सोच कर राधिका भी अमन के पीछेपीछे हो ली.

अमन ने दरवाजा खोला. सामने 65-70 वर्षीय वृद्ध दंपती खड़े थे. साथ ही छोटे से कद की गौरवर्णीय 21-22 वर्षीय युवती भी थी. अमन को देखते ही वृद्ध ने हाथ जोड़ करुण स्वर में कहा, ‘‘साहब, मैं रिटायर्ड सरकारी चपरासी हूं. हम लोग बहुत सालों से बसंत रोड पर एक परिवार के साथ उन के सरवैंट क्वार्टर में रहे हैं. भाग्यश्री उन के घर का सारा काम करती है. इसी महीने उन साहब का यहां से ट्रांसफर हो गया, इसलिए घर खाली करना है. मेरी पैंशन से खानापीना तो हो जाता है, पर हम किराए पर कमरा नहीं ले सकते. मकान का किराया बहुत ज्यादा है आजकल… और फिर जवान लड़की का  साथ… आप तो सब समझते ही होंगे. बहुत जरूरत है हमें सरवैंट क्वार्टर की.’’

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‘‘भाग्यश्री बेटी है तुम्हारी?’’ लड़की और दंपती के बीच उम्र के अंतराल को देख कर राधिका संदेह में थी.

‘‘मैडम न पूछो… यह भाग्यश्री नहीं, अभाग्यश्री है. पोती है हमारी. इस के पैदा होते ही इस की मां चल बसी थी. फिर कुछ साल बाद हमारा बेटा भी बीमार हो कर…’’ वृद्ध का गला रुंध गया.

‘‘अरे, आप दोनों ने अपना नाम तो बताया ही नहीं?’’ बात बदलने के इरादे से राधिका बोली.

‘‘जी मैं बनवारी और यह शारदा,’’ अपनी पत्नी की ओर इशारा करते हुए वह बोला.उन के विषय में थोड़ाबहुत और जान कर राधिका भीतर चली गई. अमन भी उस के पीछेपीछे अंदर आ गया. दोनों को ही बनवारी परिवार को कमरा देना कुछ गलत नहीं लगा. अमन बनवारी को चाबी देते हुए जल्दी आने को कहा.

रात को ही वे सामान के साथ कमरे में आ गए. कई दिन काम का बोझ उठातेउठाते राधिका भी थक गई थी, इसलिए बनवारी परिवार के आते ही उस ने भी चैन की सांस ली. भाग्यश्री के रूप में उसे एक अच्छी मेड मिलने की पूरी आशा थी.

अगले दिन सुबह बनवारी और शारदा उन के घर आ गए और काम करना शुरू कर दिया. भाग्यश्री के न आने का कारण पूछने पर बनवारी ने कहा कि उसे बुखार आ रहा है. काम निबटतेनिबटते दोपहर हो गई. बनवारी दंपती थक कर चूर दिख रहे थे.

अगले दिन भी वे दोनों ही काम करने आए. इसी तरह 15 दिन बीत गए. राधिका को इतने वृद्ध लोगों से काम करवा कर ग्लानि हो रही थी. इस के अतिरिक्त काम सफाई से भी नहीं हो पा रहा था.

‘कहीं ऐसा तो नहीं कि भाग्यश्री कहीं और काम करने जा रही हो और उस के बहाने इन लोगों ने मेरा सरवैंट क्वार्टर ले लिया हो?’ राधिका के मन में संदेह उत्पन्न हो रहा था.

‘इस तरह कब तक चलता रहेगा? क्या सच में बीमार है भाग्यश्री’ सोच कर एक दिन राधिका ने सरवैंट क्वार्टर का दरवाजा खटखटा दिया. बनवारव शारदा उस समय राधिका केघर के काम में व्यस्त थे. दस्तक होते ही भाग्यश्री दरवाजा आधा खोल कर प्रश्न भरी निगाहों से राधिका की ओर देखने लगी.

‘‘तुम तो भलीचंगी हो, काम पर क्यों नहीं आती?’’ राधिका ने जानना चाहा.

‘‘वह… ऐसा है… मेरे… मुझे…’’ भाग्यश्री की जबान लड़खड़ा गई.

राधिका और कुछ बोले बिना वापस चल दी. वह अभी मुड़ी ही थी कि एक 30-35 वर्षीय व्यक्ति क्वार्टर से निकल कर लिफ्ट की ओर भागा. यह दृश्य देख कर राधिका आश्चर्यचकित रह गई. भाग्यश्री की पहेली सुलझने के स्थान पर और उलझ रही थी. परेशान सी राधिका ने इस पहेली को सुलझाने का फैसला कर लिया.

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अब प्रतिदिन बनवारी और शारदा के काम पर आते ही वह घर के बाहर जा कर सरवैंटक्वार्टर के आसपास मंडराती रहती. उस ने पाया कि लगभग प्रत्येक दिन ही उस कमरे में कोई पुरुष आता है. आश्चर्य की बात यह थी कि वह कोई एक पुरुष नहीं था. अलगअलग आयु के पुरुषों को उस ने वहां आतेजाते देखा. राधिका का दिल बैठा जा रहा था. उसे डर था कि कहीं देहव्यापार जैसा घृणित कार्य तो नहीं हो रहा यहां? जब अमन से उस ने इस विषय में चर्चा की तो दोनों ने बनवारी परिवार का परदाफाश करने का निश्चय किया.

अगले दिन अमन ने औफिस से छुट्टी ले ली थी. उस ने सरवैंट क्वार्टर में किसी को घुसता देख उसी समय बनवारी से क्वार्टर में चलने को कहा. बहाना बना दिया कि वहां एक छोटी से अलमारी रखवानी है. सुनते ही बनवारी टालमटोल करने लगा. यह देख अमन ने बनवारी को डांटना शुरू कर दिया.

राधिका ने शारदा से भाग्यश्री के अब तक काम पर न आने की असली वजह जाननी चाही.

अमन के गुस्से से भरे चेहरे को देख कर बनवारी फूटफूट कर रोने लगा. शारदा हाथ जोड़ते हुए बनवारी से बोली, ‘‘इन दोनों को सच बता दो… हम से अब सहा नहीं जाता.’’

बनवारी ने अपनेआप को संभालते हुए बोलना शुरू किया, ‘‘साहब… भाग्यश्री की शादी हो चुकी है. हमारा दामाद बहुत बुरा आदमी है. खूब शराब पीने की आदत है उसे. जब शादी की थी तब चाय की दुकान थी उस की छोटी सी. शादी के बाद उस ने हमारी लड़की की सोने की अंगूठी, चेन, झुमके सब कुछ बेच दिया. फिर जब दुकान भी बिक गई तो भाग्यश्री से गलत काम करवाने लगा. हम अपनी लड़की को वापस घर ले आए. फिर भी उस ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा. वहां भी लोगों को भेजता रहता… आप ने जब कमरा देने को हां कह दी तो हम तुरंत वहां से भाग निकले, पर उस ने पता लगा लिया और यहां भी… बनवारी फिर रोने लगा.

‘‘तुम ने पुलिस में शिकायत क्यों नहीं की?’’ अमन ने परेशान हो कर पूछा.

‘‘हमें उस ने धमकी दी थी कि पुलिस के पास जाएंगे तो वह हमारी लड़की को मरवा देगा,’’ शारदा ने भयभीत होते हुए बताया.

‘‘अरे, वह अकेला इन सब को डराता रहा और ये उस की हर बात मानते रहे, अमन राधिका की ओर देखते हुए बोला.’’

‘‘साहब, हमारा भाग्यश्री के अलावा कोई नहीं है… बहुत प्यार करते हैं हम दोनों इसे… उस पापी आदमी ने हमारा जीवन नर्क बना दिया है, बनवारी ने करुण स्वर में कहा.’’

‘‘हम अभी पुलिस में शिकायत करने चलेंगे,’’ बनवारी को आश्वस्त कर अमन पुलिस स्टेशन जाने की तैयारी करने लगा.

अमन बनवारी परिवार को साथ ले कर थाने पहुंच गया. अगले ही दिन सूचना मिली कि भाग्यश्री के पति को गिरफ्तार कर लिया गया है. बनवारी परिवार ने यह समाचार सुन कर चैन की सांस ली. उन को मानो नया जीवन मिल गया हो.

भाग्यश्री तो पिंजरे से आजाद हुई चिडि़या की तरह चहकने लगी थी अब. वह समझ गई थी कि थोड़ी सी हिम्मत जुटाने से ही उस के जीवन में बहार आई है. राधिका से उस ने वादा कि अब कभी वह भाग्य के भरोसे रह कर, स्याह डर के साए में नहीं जीएगी. अमन और राधिका ने उस का निडर रोशनी की जगमग से परिचय जो करवा दिया था.

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Serial Story: निडर रोशनी की जगमग– भाग 2

राधिका को उस का व्यवहार बहुत खटक रहा था. थोड़ी देर बाद बिमला हाथ में एक पैकेट लिए आई और राधिका को थमाते हुए बोली, ‘‘लो, जल्दी पकड़ो मैडमजी… हमें भी काम खत्म करना है…सारा दिन यहीं लगा देंगे क्या?’’

राधिका को बुरा तो बहुत लगा पर गुस्से को पीते हुए उस ने पैकेट खोल कर अपनी नई चप्पलें निकालीं, जो औनलाइन मंगवाई थीं.

चप्पलें देखते ही बिमला बोली, ‘‘लो, शू रैक तो पहले ही भरा पड़ा है. एक और मंगवा ली आप ने. फालतू खर्च. पैसा तो आप लोगों के पास बहुत है पर गरीब जरा सा कुछ ले ले तो जान निकल जाती है.’’

राधिका का गुस्सा अब 7वें आसमान पर था. बिमला के बदलते व्यवहार से पहले ही परेशान राधिका ने उसे तुरंत काम छोड़ने और क्वार्टर खाली करने का आदेश सुना दिया.

बिमला गुस्सा दिखाते हुए बोली, ‘‘आज ही कमरा खाली कर हम अपनी लड़की के पास चले जाएंगे… रखना किसी और को… पता लग जाएगा आप को और फिर दनदनाती हुई घर से निकाल कर सरवैंट क्वार्टर में घुस गई. कुछ देर बाद ही उस ने अपनी बेटी और दामाद को बुला कर सामान समेटा और 2 घंटे के भीतर कमरा खाली कर दिया.

राधिका का गुस्से और परेशानी से बुरा हाल था. किसी तरह उस ने अधूरा काम निबटाया और आराम करने लेट गई. थकान के कारण जल्द ही उस की आंख लग गई. शाम को डोरबैल की आवाज से ही नींद टूटी.

दरवाजा खोला तो बाहर एक लजाती हुई 23-24 वर्षीय युवती खड़ी थी. देखने से वह नवविवाहिता लग रही थी. उस की कमसिन मुसकराहट देख कर राधिका अपनी सारी परेशानी भूल गई. उस के पास ही युवक भी खड़ा था, जो उस का पति जान पड़ता था.

‘‘मेम साहब, मेरा नाम सीमा है, ये सतीश… मेरे… हम कमरे के लिए आए हैं.’’

सीमा का वाक्य पूरा होते ही सतीश ने नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़ दिए.

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‘‘ओके. पर तुम्हें कैसे पता लगा कि मुझे काम पर रखना है किसी को? आज ही तो गई है मेरी मेड. अभी तो कमरे को ले कर मैं ने किसी से कुछ कहा ही नहीं,’’ राधिका ने दोनों को अंदर बुलाते हुए कहा.

दोनों अंदर आ कर दीवार से सट कर खड़े हो गए.

‘‘मेम साहब, वे मेरी बूआजी हैं, जो आप के यहां काम करती थीं. आज वे गुस्से में कुछ ज्यादा बोल गई थीं, अब पछता रही हैं. आप तो दोबारा उन्हें रखेंगी नहीं, इसलिए मुझे भेजा है उन्होंने,’’ बिना किसी लागलपेट के सीमा ने सब सच बोल दिया.

‘‘अच्छा, बिमला ने भेजा है तुम्हें… चलो ठीक है… काम कर तो पाओगी न सब?’’ राधिका उस की साफगोई से खुश हो कर उसे सरवैंट क्वार्टर में रखने का निर्णय कर चुकी थी.

‘‘मेम साहब, अपनी जेठानी के पास रह रही हूं आजकल. वे भी इसी कालोनी के एक सरवैंट क्वार्टर में रहती है… आप को सच्ची बताऊं तो काम तो सारा वहां भी मैं ही कर रही हूं… काम की परेशानी नहीं है मुझे बस सोने

में बहुत दिक्कत हो रही है वहां हमें. कमरा एक है और जेठजेठानी, उन के 2 बच्चे और ऊपर से 2 जने हम. 1 महीना बीत गया वहीं सब के साथ सोतेसोते…’’

दोनों को प्यार के कुछ पल साथसाथ बिताने को तरसते देख कर राधिका को उन पर ही प्यार आ गया. दोनों की ओर देख मुसकराते हुए राधिका ने क्वार्टर की चाबी सीमा को थमा दी. वे दोनों एक फोल्डिंग पलंग और कुछ कपड़ों के साथ रात को क्वार्टर में आ गए.

अगले दिन सतीश सुबहसुबह अपने काम पर चला गया और सीमा राधिका के पास आ गई. आते ही गुनगुनाते हुए उस ने काम करना शुरू कर दिया. बीचबीच में वह राधिका से बातें भी करने लगती थी.

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सीमा के व्यवहार और काम से आश्वस्त राधिका लैपटौप ले कर नौकरी की नई संभावनाओं की खोज में लगी रहती. सीमा और राधिका को एकदूसरे का साथ बहुत अच्छा लग रहा था.

रविवार को सीमा अकसर आधे दिन की छुट्टी ले कर सतीश के साथ घूमने, फिल्म देखने या किसी रिश्तेदार से मिलने चली जाती थी. उस दिन वह खूब मेकअप करती. जब वह तैयार होती तो उसे देख कर कोई कह नहीं सकता था कि वह बाई है. तरहतरह के शेड्स की लिपस्टिक, मसकारा, स्टोन की बिंदियां… बहुत कुछ था उस के पास. ब्लाउज भी अच्छीअच्छी डिजाइन के पहनती थी वह… उस का इतना खर्च देख कर राधिका कभीकभी अचरज में पड़ जाती थी.

सीमा इस विषय में कभी बात करती तो वह कहती, ‘‘अभी नईनई शादी हुई है. खर्चा है ही क्या हमारा… थोड़ा सजसंवर लेते हैं तो हमारे इन को भी अच्छा लगता है. यही सारा सामान खरीदने की जिद करते हैं.’’

सीमा को घर का सारा काम सौंप कर राधिका पूरी तरह निश्चिंत थी. अब जल्द ही वह नई जौब पा लेना चाहती थी.

उस दिन नौकरी की साइट्स देखतेदखते वह बोर हो गई तो औनलाइन शौपिंग की साइट पर चली गई. ‘कोई चीज पसंद आए इस से पहले ही क्रैडिटकार्ड ले आती हूं’, सोचती हुई राधिका ड्राइंगरूम की ओर चल दी, जहां टेबल पर कल से उस का पर्स रखा था.

ड्राइंगरूम में पहुंचते ही वह सन्न रह गई. सोफे पर बैठी सीमा उस के पर्स की छानबीन में लगी थी. उस की पीठ राधिका की ओर थी, इसलिए वह राधिका को देख नहीं पाई. जब

तक राधिका वहां पहुंचती, सीमा ने कुछ निकाल कर अपने ब्लाउज में रख लिया. राधिका दबे पांव वहां पहुंची और सीमा को पीछे से पकड़ लिया. इस प्रकार रंगे हाथों पकड़े जाने से सीमा हड़बड़ा गई.

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‘‘मेम साहब, मुझे माफ कर दो… मैं कभी चोरी नहीं करती… आज तबीयत ठीक नही थी… डाक्टर को दिखाना था, इसलिए ये पैसे… अब कभी ऐसा नही करूंगी,’’ सीमा क्व5 सौ का नोट अपने ब्लाउज से निकाल कर राधिका को देती हुई बोली.

‘‘बीमार हो तुम? फिर बताया क्यों नहीं मुझे… सुबह से तो खूब खुश लग रही थी… उफ,  अब मेरी समझ आ रहा है कि मेरे शैंपू और कंडीशनर्स इतनी जल्दी क्यों खत्म होने लगे थे? मेरी कुछ लिपस्टिक्स कुछ दिनों से क्यों नहीं मिल रहीं और काम के बीच में बहाने बना कर कुछ देर के लिए तुम क्वार्टर में क्यों चली जाती थी. मैं अब कुछ नहीं सुनूंगी, तुम बस अभी मेरे घर से चली जाओ,’’ राधिका गुस्से से आगबबूला हो रही थी, वह सोच नहीं पा रही थी कि इस गुनाह के लिए सीमा की शिकायत पुलिस में करनी चाहिए या नहीं.

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Serial Story: निडर रोशनी की जगमग– भाग 1

धारा सोसाइटी के फ्लैट को देख कर राधिका ने वहां शिफ्ट करने के लिए तुरंत हामी भर दी. अमन को भी वह मकान पसंद आ गया था. दिल्ली आने के बाद कई दिनों से वे मकान के लिए इधरउधर भटक रहे थे. कब तक होटल के कमरे में कैद हो कर रहते. बैंगलुरु में औफिस के पास ही अच्छा सा फर्निश्ड मकान किराए पर ले रखा था उन्होंने. दिल्ली में भी ऐसे ही मकान की तलाश में थे वे दोनों. अमन को यहां एक कंपनी में अच्छा पैकेज मिल गया था. राधिका ने उस के साथ आने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी थी. उस का विचार दिल्ली आ कर अपने लिए भी एक नई नौकरी की तलाश करना था. होटल में 15 दिन से ज्यादा हो गए थे. घर किराए पर ले कर अब वे होटल से बाहर आने को बेचैन थे.

कई जगह मकान देख कर निराश होने के बाद इस फ्लैट को देख कर उन्हें तसल्ली हो गई. अमन को 2 बैडरूम के इस मकान का सलीके से लगा फर्नीचर और कमरों तथा बाथरूम की साजसज्जा आकर्षित कर रही थी, तो राधिका को मौडरेट किचन. पर इन सब से बढ़ कर जल्द ही नई नौकरी ढूंढ़ कर जौइन करने की इच्छुक राधिका को घर के साथ एक ‘सरवैंट क्वार्टर’ भी होना बेहद सुखद लग रहा था. यहां की सोसाइटी के सभी फ्लैट्स में यह व्यवस्था थी.

फ्लैट से सटा 1 कमरे का छोटा सा क्वार्टर, जिस में बाथरूम और रसोई भी. प्रवेशद्वार भी पूरी तरह अलग था सरवैंट क्वार्टर का. उन क्वार्टर्स में कामवालियां अपने परिवार सहित रही थीं. क्वार्टर के बदले में उन्हें उसी घर का काम कम पैसों में करना होता था. राधिका यह सोच कर बेहद खुश थी कि वह भी अपने फ्लैट के सरवैंट क्वार्टर में मेड को रख लेगी. फिर जौब लगने पर औफिस में निश्चिंत हो कर काम करने के साथसाथ औफिस से आते ही किचन में जुट जाने के झंझट से मुक्त हो जाएगी.

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जल्द ही वे उस फ्लैट में शिफ्ट हो गए. आसपड़ोस के लोग अच्छे थे. उन से पता लगा कि मेड रखने के लिए वहां के सिक्युरिटी गार्ड से संपर्क करना अच्छा होगा, क्योंकि उस के पास वे लोग अपना मोबाइल नंबर दे जाते हैं, जो सरवैंट क्वार्टर्स में रह कर घर के काम करने के इच्छुक होते हैं.

सिक्युरिटी गार्ड को मेड के लिए सूचित करते ही उन के यहां क्वार्टर लेने वालों का तांता लग गया. बाहर बस्ती में छोटे से कमरे के लिए भी इन लोगों को क्व5-6 हजार तक किराया देना पड़ता था और वह भी सुविधारहित मकान का. अत: साफसुथरी सोसाइटी में क्वार्टर और बदले में केवल एक ही घर का काम, इसलिए बहुत सी कामवालियां तैयार थीं आने को.

राधिका की कई लोगों से बात हुई. पर उसे संतुष्टि नहीं हो पा रही थी. एक महिला उसे जंची भी, पर उस का अपना बच्चा ही 2 महीने का था. अत: राधिका को लग रहा था कि न जाने वह काम में पूरा ध्यान लगा पाएगी या नहीं?

‘‘इतने लोग आ चुके हैं अब तक, पर कोई भी ढंग का नहीं… पता नहीं दिल्ली में उसे मनपसंद बाई मिल पाएगी या नहीं’ सोच कर निराश हुई राधिका रसोई में घुसी ही थी कि एक बार फिर डोरबैल बज उठी. कुछ उत्सुक, कुछ परेशान सी राधिका ने दरवाजा खोला.

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सामने एक अधेड़ उम्र की स्त्री, लंबी सी चोटी आगे किए. साफसुथरी सूती साड़ी पहने खड़ी हुई दिखाई दी. राधिका की ओर देख कर उस ने मुसकराते हुए नमस्ते की.

राधिका उस स्त्री से कुछ पूछती उस से पहले ही वह बोल उठी, ‘‘मैडम हम बिमला हैं. हमें बहुत जरूरत है कमरे की. हमारा आदमी तो इस दुनिया में नहीं. बस 2 लड़कियां हैं. दोनों की शादी हो चुकी है. हम पास ही किराए के कमरे में रहते हैं. अभी तक हम कई घरों का काम करते आए हैं, पर अब घूमघूम कर काम नहीं होता हम से. एक घर में रहेंगे और वहीं का काम करेंगे… काम को ले कर कोई शिकायत नहीं होगी हम से. हम खूब काम करते हैं.’’

राधिका को वह तौरतरीके से सरल स्वभाव की लगी. पूरी तरह आश्वस्त होने से पहले उस ने अपने मन में उठ रही शंका को शांत करने के उद्देश्य से पूछ लिया, ‘‘एक बात बताओ, तुम तो जानती हो न कि सरवैंट क्वार्टर तुम्हें मिलेगा तो उस के बदले काम के पैसे कम मिलेंगे. फिर रोज का अपना खर्चा कैसे चलाओगी तुम?’’

‘‘आप उस की चिंता न करो मैडम… हमें तो एक भी पैसा नहीं चाहिए. आप कमरा दे दो बस. हमारे गांव से हर 6 महीने बाद अनाज आता है. फिर हमारे दोनों दामाद भी बहुत अच्छे हैं, रुपयोंपैसों से वे भी मदद करते रहते हैं हमारी.’’

राधिका को बिमला काम पर रखने के लिए अनुकूल लगी. ‘सारा दिन अकेली ही होगी बिमला… अपने घर का ज्यादा काम तो होगा नहीं उसे…इसलिए मेरा घर ठीक से देख लेगी,’ सोच कर प्रसन्न होती हुई राधिका ने क्वार्टर की चाबी बिमला को थमा दी.

2 दिन बाद बिमला अपना सामान ले कर आ गई और राधिका से काम समझ कर सब काम ठीक से करने लगी. राधिका के 15 दिन बहुत चैन से बीते. इसी बीच वह 2 कंपनियों में इंटरव्यू भी दे आई. पर कुछ दिनों बाद ही बिमला की कुछ बातें उसे खटकने लगीं.

गांव से अनाज आने की बात कहने वाली बिमला ने लगभग रोज राधिका से कुछ न कुछ मांगना शुरू कर दिया. धीरेधीरे उस की हिम्मत बढ़ने लगी और वह अपनेआप ही डब्बे में से आटा, चावल, दाल और फ्रिज में से दूध और सब्जियां निकाल लेती.

एक दिन राधिका से रहा नहीं गया. उस ने विरोध किया तो बिमला तपाक से बोली, ‘‘हम कोई चोरी थोड़े ही कर रहे हैं. आप के सामने ही तो निकाला है. अब यहां काम कर रहे हैं और गांव से कोई सामान देने नहीं आया तो यहीं से लेंगे और कहां जाएंगे?’’

राधिका को गुस्सा तो बहुत आया पर वह चुप हो गई.

कुछ दिन और बीते. फिर बिमला की मांगें बढ़ने लगीं. कभी उसे आने वाले मेहमानों के सामने बिछाने के लिए नई चादर चाहिए होती तो कभी शादी में जाने के लिए साड़ी. इतना ही नहीं राधिका पर वह रोब भी गांठने लगी. प्रतिदिन किसी न किसी बात पर वह राधिका को पुराने रीतिरिवाजों का महत्त्व समझाने लगती. कभी वह उसे मांग में सिंदूर न भरने के लिए टोकती तो कभी किसी त्योहार पर पूजापाठ न करने पर. राधिका काम के विषय में कुछ कहती तो वह अनसुना कर देती. धीरेधीरे किसी न किसी बहाने वह पैसे भी मांगने लगी. मना करने पर उस की त्योरियां चढ़ जातीं. राधिका समझ नहीं पा रही थी कि क्या किया जाए?

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उस दिन राधिका ने फेसपैक लगाया हुआ था और नहाने के लिए बाथरूम में घुस ही रही थी कि डोरबैल बज उठी. बिमला के पास रसोई में जा कर राधिका ने उसे दरवाजा खोल कर देखने को कहा. बिमला ने तुरंत हाथ में ली हुई कटोरी जोर से सिंक में फेंकी और हाथ धो कर दनदनाती हुई दरवाजा खोलने चल दी.

आगे पढ़ें- राधिका को उस का व्यवहार बहुत खटक रहा था. थोड़ी देर बाद…

मैट्रिमोनियल: पंकज को क्यों दाल में कुछ काला नजर आ रहा था

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