Hindi Online Story : पेइंग गैस्ट

Hindi Online Story : 19 साल का दिलीप शहर में पढ़ाई करने आया था ताकि अपने मांबाप के सपनों को साकार कर सके. कहने को तो यह शहर बहुत बड़ा था, हजारों मकान थे पर दिलीप को रहने के लिए एक छत तक भी न मिल सकी.

एक कुंआरे लड़के को कौन किराएदार रखने का जोखिम उठाता? दरदर भटकने के बाद आखिरकार उसे सिर छिपाने को एक जगह मिल गई, वह भी पेइंग गैस्ट के तौर पर.

मिसेज कल्पना अपनी बहू मिताली के साथ घर में अकेली रहती थीं. उन का बेटा कहने को तो कमाने के लिए परदेस गया हुआ था पर पैसे वह कभीकभार ही भेजता था.

‘‘बेटा, तेरे यहां रहने से हमें दो पैसे की आमदनी भी हो जाएगी और रोहित की कमी भी नहीं खलेगी. जैसा हम खातेपीते हैं वैसा ही तुम भी खा लेना,’’ मिसेज कल्पना ने उसे एक कमरा दिखाते हुए कहा.

‘‘जी अम्मां, मेरी तरफ से आप को किसी तरह की शिकायत नहीं मिलेगी,’’ दिलीप ने कहा.

उस की रहने और खाने की समस्या एकसाथ इतनी आसानी से हल हो जाएगी, यह तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. अब वह पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा सकता था.

दिलीप को केवल और केवल अपनी पढ़ाई में ध्यान लगाते देख मिसेज कल्पना को बहुत खुशी होती थी. खाना पहुंचाने वे दिलीप के कमरे में खुद आतीं और उसे ढेरों आशीर्वाद भी दे डालतीं.

सबकुछ ठीक चल रहा था. एक दिन अचानक मिसेज कल्पना बीमार पड़ गईं. उन्हें अस्पताल दिलीप ही ले कर गया. एक लायक बेटे की तरह वह मिसेज कल्पना की सेवा कर रहा था.

एक दिन वह अस्पताल से घर लौट रहा था कि बारिश शुरू हो गई. बारिश तेज होती जा रही थी. दिलीप जल्दी से जल्दी घर पहुंचना चाहता था ताकि किताबें भीगने से बच जाएं.

जैसे ही वह घर पहुंचा तो दरवाजा खुला देख चौंक गया. वह घर के भीतर दाखिल हुआ तो आंगन का नजारा देख कर अपनी सुधबुध भूल गया. मिताली लहंगाब्लाउज पहने बरसात के पानी में नहा रही थी. भीगे कपड़ों में उस का सौंदर्य और भी गजब ढा रहा था. यही वजह थी कि दिलीप एकटक मिताली को निहारता रह गया.

इतने करीब से जब दिलीप ने मिताली के आकर्षक बदन को भीगते हुए देखा तो जैसे उस की धमनियों में बह रहा रक्त उबाल खाने लगा हो.

‘‘तुम… तुम कब आए?’’ दिलीप को सामने पा कर मिताली चौंकते हुए बोली.

उस ने कोई जवाब नहीं दिया. एकटक वह अपनी लाललाल आंखों से मिताली की भीगी देह का अमृत पी रहा था. मिताली की नजरें दिलीप की शोले जैसी दहकती आंखों से मिलीं तो उस के बदन में भी झुरझुरी होने लगी.

लज्जावश उस का गोराचिट्टा चेहरा गुलाबी पड़ता गया. न जाने ऐसा क्या हुआ कि मिताली अपनी जगह खड़ी न रह सकी.

दौड़ कर वह दिलीप के चौड़े सीने से जा लगी. दिलीप खुद पर काबू नहीं रख पाया और उस ने बलिष्ठ बांहों के घेरे में मिताली को कस कर जकड़ लिया और अपने तपते होंठ उस के लरजते होंठों पर रख दिए. मिताली ने कोई प्रतिकार नहीं किया.

देह के इस महासंग्राम में दोनों युवा तन देर तक गोते लगाते रहे. जब वासना का ज्वार थमा तो दोनों एकदूसरे से नजरें चुराते हुए अपनेअपने कमरे में चले गए.

‘तू ने यह क्या किया दिलीप? जिस औरत ने तुझे बेटा समझ कर अपने घर में रखा उसी घर की बहू के जिस्म पर तू ने डाका डाल दिया,’ दिलीप अपने ही सवालों में उलझ गया.

‘पहल मैं ने कहां की? मिताली खुद ही मेरी बांहों में आ कर समा गई तो मैं क्या करता? देहसुख के उफान के आगे अच्छेबुरे का सवाल ही कहां रह जाता है?’ दिलीप ने मानो अपना पक्ष रखा.

उधर मिताली अभी भी सामान्य नहीं हो पाई थी. आज एक अनजान पुरुष के संसर्ग में उसे अकल्पनीय सुख की प्राप्ति हुई थी. ऐसा आनंद तो उसे आज तक उस का कारोबारी पति भी नहीं दे पाया था.

उस ने विचारों को झटका और कपड़े बदल लिए. फिर चाय बनाई और टे्र में एक कप रख कर दिलीप को देने चली आई. दिलीप सोने की तैयारी में था. मिताली को सामने खड़ा पा कर वह हड़बड़ा गया.

‘‘लो, चाय पी लो. पानी में इतनी देर भीगने के बाद चाय पीना ठीक रहता है,’’ मिताली ने कप आगे बढ़ाते हुए मुसकरा कर देखा. सचमुच चाय अच्छी बनी थी.

रात के खाने में मिताली ने उस की मनपसंद करेले की सब्जी बनाई थी. न जाने कैसे मिताली को उस की पसंदनापसंद का पता चल गया. यहां तक कि दाल, सब्जी, मिठाई में उसे क्याक्या पसंद है, उस की बाकायदा लिस्ट मिताली ने बना रखी थी.

एक रात वह दूध का गिलास ले कर कमरे में आ गई. दिलीप को गरमी लग रही थी. उस ने ज्यादातर कपड़े खोल रखे थे. अचानक मिताली को सामने पा कर उस ने तौलिया उठा लिया.

यह देख कर मिताली जोर से हंस पड़ी. निर्झर झरने सरीखी हंसी कानों में मिसरी घोल रही थी. पारदर्शी गाउन में मिताली किसी अप्सरा जैसी नजर आ रही थी गिलास मेज पर रख कर वह पलंग पर ही बैठ गई और अपने हाथों से दिलीप के बालों को सहलाने लगी. दिलीप इतना भोला नहीं था जो किसी स्त्री के मनोभावों को न समझ पाता.

उस रात दोनों ने जीभर कर देहसुख भोगा. पूरे घर में वे दोनों अकेले और रात की तनहाई का सहारा, ऐसे में कोई कसर कैसे रह पाती. 2-3 दिन में मिसेज कल्पना अस्पताल से स्वस्थ हो कर घर लौट आईं. ‘‘बेटा, तू तो मेरे सगे बेटे से भी बढ़ कर निकला,’’ अपनी सेवा से खुश मिसेज कल्पना ने उसे ढेरों असीस दे डालीं.

दिलीप और मिताली को लगा कि मांजी के घर लौट आने के बाद वे शायद अब नहीं मिल सकेंगे. पर देह की भाषा जब देश की दूरियां तक लांघ जाती है तो फिर यहां एक ही घर में रजामंदी के साथ मिलने में क्या मुश्किल आती.

अब तो हालत यह थी कि जब दिल करता दिलीप मिताली को अपने कमरे में बुला लेता और उस के साथ  देह की तृष्णा पूरी करता. उधर मिताली भी इस सुख का उपभोग करने में पीछे नहीं थी.

पति की अनुपस्थिति में किसी युवा स्त्री की देह जो सुख चाहती है, दिलीप वह सुख मिताली को प्रदान कर रहा था. देहसुख के भोग में दोनों शायद यह बात भूल गए कि सुख हमेशा अकेला नहीं आता, अपने साथ दुख भी ले कर आता है.

मिताली के समर्पण ने दिलीप को निरंकुश बना दिया. वह हरदम मनमानी करने लगा. मिताली उस के लिए जिस्म की भूख मिटाने वाली महज मशीन बन कर रह गई. भावना की जगह अधिकार हावी होने लगा. दिलीप एक पति की तरह हुक्म दे कर उस से बात करता. एक बार तो उस ने हाथ भी उठा दिया.

‘‘मुझे लगता है, मुझे गर्भ ठहर गया है,’’ एक रोज मिताली ने कहा तो दिलीप जैसे आसमान से गिरा. मौजमजे के लिए बनाए गए संबंध में ऐसे मोड़ की कल्पना उसे नहीं थी.

‘‘मैं दवा ला दूंगा. अगर बच्चे के पेट में होने की बात सामने आ गई तो हम कहीं के नहीं रहेंगे,’’ दिलीप झुंझला कर बोला.

इस बार तो गोलियों से बात बन गई पर गर्भ ठहरने का डर हमेशा बना रहा. अब उन के मिलन में वह पहले जैसी गरमाहट भी नहीं रह गई थी. दोनों के लिए संबंध बोझ में तबदील हो चुका था.

कहीं न कहीं मिसेज कल्पना की अनुभवी आंखें भी ताड़ गईं कि घर में उन की नाक के नीचे क्या गुल खिलाए जा रहे हैं. उधर दिलीप जब से इस चक्कर में पड़ा था उस की पढ़ाईलिखाई पूरी तरह चौपट हो गई थी. एक रात जब वह नाइट लैंप की रोशनी में पढ़ रहा था तो मिताली उस के कमरे में आ गई. उस ने लैंप का स्विच औफ किया तो दिलीप चीख पड़ा, ‘‘यह क्या तमाशा है? जा कर अपना काम करो और मुझे पढ़ने दो.’’

मिताली यह सुन कर हक्कीबक्की रह गई. उसे पहली बार महसूस हुआ कि पति की गैरमौजूदगी में किसी गैर मर्द के साथ संबंध बना कर उस ने कितनी बड़ी भूल की है.

‘नहीं, अब वह इस दलदल में और नहीं गिरेगी, जो होना था हो गया. यह संबंध अंधे कुएं में गिरने के समान है. मुझे कुएं में नहीं गिरना,’ मिताली ने मन ही मन निर्णय लिया.

उस ने फोन कर के अपने पति को जल्दी आने को कह दिया ताकि यह किस्सा विराम ले सके. दिलीप भी जितना जल्दी हो सके इस संबंध के बोझ को सिर से हटाने के बारे में सोच चुका था.

मिलने की पहल रजामंदी से हुई तो अलग होने के लिए भी परस्पर रजामंदी काम आई. दिलीप ने बहाना बना कर घर छोड़ दिया. जीवन में घटे इस घटनाक्रम को दोनों पक्ष एक स्वप्न समझ कर भुलाने की कोशिश करने लगे.

Kahani In Hindi : बबूल का पेड़

Kahani In Hindi : कमरे में प्रवेश करते ही नीलम को अपने जेठजी, जिन्हें वह बड़े भैया कहती थी, पलंग पर लेटे हुए दिखाई दिए. नीलम ने आवाज लगाई, ‘‘भैया, कैसे हैं आप?’’

‘‘कौन है?’’ एक धीमी सी आवाज कमरे में गूंजी.

‘‘मैं, नीलम,’’ नीलम ने कहा.

बड़े भैया ने करवट बदली. नीलम उन को देख कर हैरान रह गई. क्या यही हैं वे बड़े भैया, जिन की एक आवाज से सारा घर कांपता था, कपड़े इतने गंदे जैसे महीनों से बदले नहीं गए हों, दाढ़ी बढ़ी हुई, जैसे बरसों से शेव नहीं की हो, शायद कुछ देर पहले कुछ खाया था जो मुंह के पास लगा था और साफ नहीं किया गया था. हाथपैर भी मैलेमैले से लग रहे थे, नाखून बढ़े हुए. उन को देख कर नीलम को उन पर बड़ा तरस आया. तभी नीलम का पति रमन भी कमरे में आ गया. बड़े भाई को इस दशा में देख कर रमन रोने लगा, ‘‘भैया, क्या मैं इतना पराया हो गया कि आप इस हालत में पहुंच गए और मुझे खबर भी नहीं की.’’

भैया से बोला नहीं जा रहा था. उन्होंने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए और कहने लगे, ‘‘किस मुंह से खबर करता छोटे, क्या नहीं किया मैं ने तेरे साथ. फिर भी तू देखने आ गया, क्या यह कम है.’’

‘‘नहीं भैया, अब मैं आप को यहां नहीं रहने दूंगा. अपने साथ ले जाऊंगा और अच्छी तरह से इलाज करवाऊंगा,’’ रमन सिसकते हुए कह रहा था.

नीलम को याद आ रहे थे वे दिन जब वह दुलहन बन कर इस घर में आई थी. उस के मातापिता ने अपनी सामर्थ्य से ज्यादा दहेज दिया था लेकिन मनोहर भैया हमेशा उस का मजाक उड़ाते थे. उस के दहेज के सामान को देख कर रमन से कहते, ‘क्या सामान दिया है, इस से अच्छा तो हम लड़की को सिर्फ फूलमाला पहना कर ही ले आते.’

उन की शादी अमीर घर में हुई थी, लेकिन रमन की ससुराल उतनी अमीर नहीं थी. इसलिए वे हमेशा उस का मजाक उड़ाते थे. रोजरोज के तानों से नीलम को बहुत गुस्सा आता, पर रमन के समझाने पर वह चुप रह जाती. फिर भी बड़े भैया के लिए उस के दिल में गांठ पड़ ही गई थी. उन से भी ज्यादा तेज उन की पत्नी शालू थी जो बोलती कम थी पर अंदर ही अंदर छुरियां चलाने से बाज नहीं आती थी.

मातापिता की मृत्यु के बाद घर में मनोहर भैया की ही चलती थी. सब कुछ उन से पूछ कर होता था. एक तो मनोहर बड़े थे, दूसरे, वे एक अच्छी कंपनी में अच्छे पद पर थे. उन की शादी भी पैसे वाले घर में हुई थी जबकि रमन न सिर्फ छोटा था बल्कि एक छोटी सी दुकान चलाता था. उस की शादी एक साधारण घर में हुई थी. उस की घरेलू स्थिति ठीक नहीं थी. रमन को इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था, वह न सिर्फ अपने बड़े भाई को बहुत प्यार करता था बल्कि उन की हर बात को मानना अपना कर्तव्य भी समझता था. मनोहर अपने छोटे भाई को वह प्यार नहीं देते थे जिस का वह हकदार था, बल्कि हमेशा उस की बेइज्जती करने के बहाने ढूंढ़ते रहते. वे हमेशा यह जतलाना चाहते थे कि घर में सिर्फ वे ही श्रेष्ठ हैं और बाकी सब बेवकूफ हैं.

‘‘नीलम, कहां खो गईं. चलो, भैया का सामान पैक करो, इन को हम अपने साथ ले जाएंगे,’’ रमन की आवाज सुन कर नीलम वापस वर्तमान में आ गई.

‘‘भैया, प्रिया नहीं आती क्या आप से मिलने?’’ नीलम ने पूछा.

‘‘आती है कभीकभी, लेकिन वह भी क्या करे. उस की अपनी गृहस्थी है. हमेशा तो मेरे पास नहीं रह सकती न,’’ भैया रुकरुक कर बोल रहे थे.

‘‘और राजू और पल्लवी कहां हैं?’’ नीलम ने पूछा.

‘‘राजू तो औफिस गया होगा और पल्लवी शायद किसी ‘किटी पार्टी’ में गई होगी,’’ भैया शर्मिंदा से लग रहे थे.

नीलम को इसी तरह के किसी जवाब की उम्मीद थी. उसे अच्छी तरह याद है वह दिन जब उस की छोटी बहन सीढि़यों से गिर गई थी तो वह हड़बड़ाहट में बिना किसी को बताए अपनी मां के घर चली गई थी. बस, इतनी सी बात पर मनोहर भैया ने बखेड़ा खड़ा कर दिया था कि ऐसा भी किसी भले घर की बहू करती है क्या कि किसी को बगैर बताए मायके चली जाए.

उन दिनों भैया ही सारा घर संभालते थे. रमन भी अपनी सारी कमाई भैया के हाथ में दे देता था और कभी भी नहीं पूछता था कि भैया उन पैसों का क्या करते हैं जबकि भैया सब से यही कहते फिरते थे कि छोटे का खर्च तो वही चलाते हैं. छोटे की तो बिलकुल भी कमाई नहीं है.

नीलम की सारी अच्छाइयां, सारी पढ़ाईलिखाई, सारे गुण सिर्फ एक कमी के नीचे दब कर रह गए कि एक तो उस का मायका गरीब था, दूसरे, पति की कमाई भी साधारण थी. सारे रिश्तेदारों, दोस्तों में शालू और मनोहर नीलम और रमन को नीचा दिखाने का प्रयास करते. नीलम को अपनी इस स्थिति से बहुत कोफ्त होती पर वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी क्योंकि रमन उसे कुछ भी बोलने नहीं देता था.

एक बड़े पेड़ के नीचे जिस तरह एक छोटा पौधा पनप नहीं सकता वैसी ही कुछ स्थिति रमन की थी. पिता की मृत्यु के बाद मनोहर घर के मुखिया तो बन गए लेकिन उन्होंने रमन को सिर्फ छोटा भाई समझा, बेटा नहीं. बड़े भाई का छोटे भाई के प्रति जो फर्ज होता है वह उन्होंने कभी नहीं निभाया.

नीलम समझ नहीं पाती थी कि क्या करे? वैसे वह बहुत समझदार और शांत स्वभाव की थी, लेकिन कभीकभी शालू और मनोहर के तानों से इतनी दुखी हो जाती कि उसे लगता कि वह रमन को ही छोड़ दे. रमन का चुप रहना उसे और परेशान कर जाता, लेकिन रमन को छोड़ना तो इस समस्या का हल नहीं था. रमन तो बहुत अच्छा था. बस, उस की एक ही कमजोरी थी कि वह बड़े भाई की हर अच्छी या बुरी बात मानता था और आंख बंद कर उन पर विश्वास भी करता था.

रमन के इसी विश्वास का मनोहर ने हमेशा फायदा उठाया. उस ने पुश्तैनी मकान भी अपने नाम करवा लिया और एक दिन नीलम और रमन को अपने ही घर से जाने को कह दिया.

इतना कुछ होने पर भी रमन कुछ नहीं बोला और अपनी 4 साल की बेटी और पत्नी को ले कर चुपचाप घर से निकल पड़ा. उस दिन नीलम को अपने पति की कायरता पर बहुत गुस्सा आया, लेकिन जब रमन ही कुछ करने को तैयार नहीं था तो वह क्या कर सकती थी, पर मन ही मन उस ने सोच लिया था कि वह इस घर में अब कभी वापस नहीं आएगी और इस घर से बाहर रह कर ही अपनी और अपने परिवार की एक पहचान बनाएगी.

अब नीलम की अग्निपरीक्षा शुरू हो गई थी. घर में पैसों की तंगी बनी रहेगी, यह तो नीलम को मालूम था क्योंकि संयुक्त परिवार में बहुत से ऐसे खर्चे होते हैं जिन का पता नहीं चलता, लेकिन एकल परिवार में उन खर्चों को निकालना मुश्किल हो जाता है. फिर भी नीलम ने हार नहीं मानी और जुट गई अपना एक समर्थ संसार बनाने में. सुबह मुंहअंधेरे उठ कर घर का कामकाज करती, उस के बाद कई बच्चों को घर पर बुला कर ‘ट्यूशन’ पढ़ाती और फिर रमन के साथ दुकान पर चली जाती.

नीलम के अंदर दुकान चलाने की गजब की क्षमता थी जो शायद अभी तक उस के अंदर सुप्त पड़ी थी. उस ने अपने मीठे व्यवहार, ईमानदारी और मेहनत से न सिर्फ अपनी दुकान को बढ़ाया बल्कि रमन का आत्मविश्वास बढ़ाने में भी उस का साथ दिया.

बड़े भाई से अलग रह कर रमन को भी एहसास हो गया था कि वह कितना बुद्धू था और बड़े भाई ने उस का कितना फायदा उठाया.

मनोहर ने सोचा था कि रमन कभी भी घर से नहीं जाएगा और अगर जाता है तो जाते वक्त उस के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाएगा या फिर नीलम ही कुछ भलाबुरा कहेगी पर वह हैरान था कि दोनों ने कुछ भी नहीं कहा बल्कि चुपचाप एकदूसरे का हाथ पकड़ कर घर से चले गए. वैसे भी वे रमन से चिढ़ते थे कि उस की पत्नी हमेशा उस का कहना मानती थी जबकि वह इतना समर्थ भी नहीं था और एक उन की पत्नी शालू है, जिस ने उन का जीना मुश्किल किया हुआ था. हर वक्त उसे कुछ न कुछ चाहिए. उस की फरमाइशें खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थीं.

मनोहर ने रमन को घर से तो निकाल दिया पर उन के अंदर आत्मग्लानि का भाव पैदा हो गया था. एक दिन रात को शराब के नशे में धुत्त हो कर मनोहर ने रमन को फोन किया, ‘चल छोटे, घर आजा, भूल जा सब कुछ.’ लेकिन नीलम और रमन ने सोच लिया था कि अब उस घर में वापस नहीं जाना है. अब मनोहर को एक नया बहाना मिल गया था अपनेआप को बहलाने का कि उस ने तो उन दोनों को वापस बुलाया था पर वे ही वापस नहीं आए और गाहेबगाहे वे अपने रिश्तेदारों को कहने लगे कि वे दोनों अपनी मरजी से घर छोड़ कर गए हैं. नीलम तो हमेशा से ही रमन को उन से दूर करना चाहती थी, पर अंदर की बात तो कोई भी नहीं जानता था कि यह सब कियाधरा मनोहर का ही है.

रमन और नीलम ने दिनरात मेहनत की. धीरेधीरे उन की दुकान एक अच्छे ‘स्टोर’ में बदल गई थी. अब उस ‘स्टोर’ की शहर में एक पहचान बन गई थी. रमन और नीलम का जीवनस्तर भी ऊंचा हो गया था. उन के बच्चे शहर के अच्छे स्कूलों में पढ़ने लगे थे. अब मनोहर उन से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करते पर वे दोनों तटस्थ रहते.

रमन के घर छोड़ने के बाद दोनों भाइयों का आमनासामना बहुत ही कम हुआ था. एक बार मनोहर के बेटे राजू की शादी में वे मिले थे, तब रमन ने महसूस किया था कि बड़े भाई की अब घर में बिलकुल भी नहीं चलती है. जो कुछ भी हो रहा था, वह बच्चों की मरजी से ही हो रहा था. बड़े भाई के बच्चे भी उन पर ही गए थे. वे बिलकुल ही स्वार्थी निकले थे. दूसरी मुलाकात मनोहर की बेटी प्रिया की शादी में हुई थी. बड़े भैया को अनेक रोगों ने घेर लिया था. वे बहुत ही कमजोर हो गए थे. तब भी उन को देख कर रमन को बहुत दुख हुआ था पर उस वक्त वह कुछ नहीं बोला था, लेकिन शालू भाभी के जाने के बाद तो जैसे भैया बिलकुल ही अकेले पड़ गए थे. उन का खयाल रखने वाला कोई भी नहीं था. शालू जैसी भी थी, पर अपने पति का तो खयाल रखती ही थी. राजू को अपने काम और क्लबों से ही फुरसत नहीं थी. वैसे भी उसे पिता के पास बैठ कर उन का हाल जानने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. अगर वह अपने पिता का ध्यान नहीं रख सकता था तो पल्लवी को क्या पड़ी थी इन सब बातों में पड़ने की? वह भी ससुर का बिलकुल ध्यान नहीं रखती थी.

एकएक बात रमन के दिमाग में चलचित्र की तरह घूम रही थी. पुरानी घटनाओं का क्रम जैसे ही खत्म हुआ तो रमन बोला, ‘‘बड़े भैया, कल ही किसी से पता चला था कि आप गुसलखाने में गिर गए हैं. मुझ से रहा नहीं गया और आप का हाल पूछने चला आया.’’

रमन का दिल रोने लगा कि खामखां ही वह इतने दिनों तक भैया से नाराज रहा और उन की खबर नहीं ली, लेकिन अब वह उन को अपने साथ जरूर ले जाएगा, लेकिन बड़े भैया ने जाने से इनकार कर दिया, ‘‘मुझे माफ कर दे छोटे, सारी जिंदगी मैं ने सिर्फ तेरा मजाक उड़ाया है और अब जब मैं बिलकुल ही मुहताज हो चुका हूं और मेरे अपने मुझे बोझ समझने लगे हैं, इस वक्त मैं तेरे ऊपर बोझ नहीं बनना चाहता.’’

‘‘नहीं भैया, ऐसा मत कहो. क्या मैं आप का अपना नहीं, मैं ने आप को अपना भाई नहीं बल्कि पिता माना है और एक बेटे का कर्तव्य है कि वह अपने पिता की सेवा करे, इसलिए आप को मेरे साथ चलना ही पड़ेगा,’’ रमन ने विनती की.

तभी नीलम भी बोल पड़ी, ‘‘भैया, आप को हमारे साथ चलना ही पड़ेगा, हम आप को इस तरह छोड़ कर नहीं जा सकते.’’

अब तक पल्लवी भी घर पहुंच चुकी थी. उस ने चाचा और चाची को देख कर इस तरह व्यवहार किया जैसे वह उन दोनों को जानती ही नहीं. उस को इस बात की भी चिंता नहीं थी कि दुनियादारी के लिए ही कुछ दिखावा कर दे. उस का व्यवहार इस बात की गवाही दे रहा था कि अगर मनोहर को कोई अपने साथ ले जाता है तो उसे कोई परवा नहीं है. अभी तक मनोहर को आशा थी कि शायद पल्लवी उसे कहीं भी जाने नहीं देगी और उसे रोक लेगी, पर उस की बेरुखी देख कर मनोहर भैया उठ खड़े हुए, ‘‘चल छोटे, मैं तेरे साथ ही चलता हूं, लेकिन उस से पहले तुझे मेरा एक काम करना पड़ेगा.’’

‘‘वह क्या, भैया?’’ रमन ने पूछा.

‘‘तुझे एक वकील लाना पड़ेगा क्योंकि मैं यह बंगला तेरे नाम करना चाहता हूं जो धोखे से मैं ने अपने नाम करवा लिया था,’’ मनोहर ने कहा.

‘‘लेकिन मुझे यह घर नहीं चाहिए भैया, मेरे पास सब कुछ है,’’ रमन ने कहा.

‘‘मैं जानता हूं छोटे, तेरे पास सब कुछ है लेकिन जिंदगी ने मुझे यह सबक सिखाया है कि किसी से भी धोखे से ली हुई कोई भी वस्तु सदैव दुख ही देती है. मैं इतने सालों तक चैन से नहीं सो पाया और अब चैन से सोना चाहता हूं इसलिए मुझे मना मत कर और अपना हक वापस ले ले.’’

यह सब सुन कर पल्लवी के तो होश उड़ गए. उसे लगता था कि उस के ससुर का तो कोई अपना है ही नहीं, जो उन्हें अपने साथ ले जाएगा, और इतना बड़ा बंगला सिर्फ उस के हिस्से ही आएगा. लेकिन ससुर की बात सुन कर उसे लगा कि इतना बड़ा घर उस के हाथ से निकल गया है. उस ने फटाफट बहू होने का फर्ज निभाया. उस ने मनोहर को रोकने की कोशिश की, पर मनोहर ने कहा, ‘‘नहीं बहू, अब नहीं, अब मैं नहीं रुक सकता. तुम ने और मेरे बेटे ने मुझे बिलकुल ही पराया कर दिया है. इस बूढ़े और लाचार इंसान को अब अपने मतलब के लिए इस घर में रखना चाहते हो. नहीं, इस घर में तड़पतड़प कर मरने से अच्छा है मैं अपने भाई के साथ कुछ दिन जी लूं, लेकिन फिर भी मैं कहता हूं कि इस में तुम्हारी गलती कम है क्योंकि मैं ने ही बबूल का पेड़ बोया है तो आम की उम्मीद कहां से करूं.’’

कुछ देर बाद नीलम और रमन मनोहर को ले कर अपने घर जा रहे थे और पल्लवी पछता रही थी कि उस ने अपने ससुर को नहीं रोका जिन के जाने से इतना बड़ा घर हाथ से निकल गया.

लेखिका- पिंकी खुराना

Pyaar Ki Kahani : बेइंतहा मोहब्बत की कहानी

Pyaar Ki Kahani : दिसंबर का पहला पखवाड़ा चल रहा था. शीतऋतु दस्तक दे चुकी थी. सूरज भी धीरेधीरे अस्ताचल की ओर प्रस्थान कर रहा था और उस की किरणें आसमान में लालिमा फैलाए हुए थीं. ऐसा लग रहा था मानो ठंड के कारण सभी घर जा कर रजाई में घुस कर सोना चाहते हों. पार्क लगभग खाली हो चुका था, लेकिन हम दोनों अभी तक उसी बैंच पर बैठे बातें कर रहे थे. हम एकदूसरे की बातों में इतने खो गए थे कि हमें रात्रि की आहट का भी पता नहीं चला. मैं तो बस, एकाग्रचित्त हो अखिलेश की दीवानगी भरी बातें सुन रही थी.

‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं रीमा, मुझे कभी तनहा मत छोड़ना. मैं तुम्हारे बगैर बिलकुल नहीं जी पाऊंगा,’’ अखिलेश ने मेरी उंगलियों को सहलाते हुए कहा.

‘‘कैसी बातें कर रहे हो अखिलेश, मैं तो हमेशा तुम्हारी बांहों में ही रहूंगी, जिऊंगी भी तुम्हारी बांहों में और मरूंगी भी तुम्हारी ही गोद में सिर रख कर.’’

मेरी बातें सुनते ही अखिलेश बौखला गया, ‘‘यह कैसा प्यार है रीमा, एक तरफ तो तुम मेरे साथ जीने की कसमें खाती हो और अब मेरी गोद में सिर रख कर मरना चाहती हो? तुम ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि मैं तुम्हारे बिना जी कर क्या करूंगा? बोलो रीमा, बोलो न.’’ अखिलेश बच्चों की तरह बिलखने लगा.

‘‘और तुम… क्या तुम उस दूसरी दुनिया में मेरे बगैर रह पाओगी? जानती हो रीमा, अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो क्या कहता,’’ अखिलेश ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘यदि तुम इस दुनिया से पहले चली जाओगी तो मैं तुम्हारे पास आने में बिलकुल भी देर नहीं करूंगा और यदि मैं पहले चला गया तो फिर तुम्हें अपने पास बुलाने में देर नहीं करूंगा, क्योंकि मैं तुम्हारे बिना कहीं भी नहीं रह सकता.’’

अखिलेश का यह रूप देख कर पहले तो मैं सहम गई, लेकिन अपने प्रति अखिलेश का यह पागलपन मुझे अच्छा लगा. हमारे प्यार की कलियां अब खिलने लगी थीं. किसी को भी हमारे प्यार से कोई एतराज नहीं था. दोनों ही घरों में हमारे रिश्ते की बातें होने लगी थीं. मारे खुशी के मेरे कदम जमीन पर ही नहीं पड़ते थे, लेकिन अखिलेश को न जाने आजकल क्या हो गया था. हर वक्त वह खोयाखोया सा रहता था. उस का चेहरा पीला पड़ता जा रहा था. शरीर भी काफी कमजोर हो गया था.

मैं ने कई बार उस से पूछा, लेकिन हर बार वह टाल जाता था. मुझे न जाने क्यों ऐसा लगता था, जैसे वह मुझ से कुछ छिपा रहा है. इधर कुछ दिनों से वह जल्दी शादी करने की जिद कर रहा था. उस की जिद में छिपे प्यार को मैं तो समझ रही थी, मगर मेरे पापा मेरी शादी अगले साल करना चाहते थे ताकि मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर लूं. इसलिए चाह कर भी मैं अखिलेश की जिद न मान सकी.

अखिलेश मुझे दीवानों की तरह प्यार करता था और मुझे पाने के लिए वह कुछ भी कर सकता था. यह बात मुझे उस दिन समझ में आ गई जब शाम को अखिलेश ने फोन कर के मुझे अपने घर बुलाया. जब मैं वहां पहुंची तो घर में कोई भी नहीं था. अखिलेश अकेला था. उस के मम्मीपापा कहीं गए हुए थे. अखिलेश ने मुझे बताया कि उसे घबराहट हो रही थी और उस की तबीयत भी ठीक नहीं थी इसलिए उस ने मुझे बुलाया है.

थोड़ी देर बाद जब मैं उस के लिए कौफी बनाने रसोई में गई, तभी अखिलेश ने पीछे से आ कर मुझे आलिंगनबद्ध कर लिया, मैं ने घबरा कर पीछे हटना चाहा, लेकिन उस की बांहों की जंजीर न तोड़ सकी. वह बेतहाशा मुझे चूमने लगा, ‘‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता रीमा, जीना तो दूर तुम्हारे बिना तो मैं मर भी नहीं पाऊंगा. आज मुझे मत रोको रीमा, मैं अकेला नहीं रह पाऊंगा.’’

मेरे मुंह से तो आवाज तक नहीं निकल सकी और एक बेजान लता की तरह मैं उस से लिपटती चली गई. उस की आंखों में बिछुड़ने का भय साफ झलक रहा था और मैं उन आंखों में समा कर इस भय को समाप्त कर देना चाहती थी तभी तो बंद पलकों से मैं ने अपनी सहमति जाहिर कर दी. फिर हम दोनों प्यार के उफनते सागर में डूबते चले गए और जब हमें होश आया तब तक सारी सीमाएं टूट चुकी थीं. मैं अखिलेश से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी और उस के लाख रोकने के बावजूद बिना कुछ कहे वापस आ गई.

इन 15 दिन में न जाने कितनी बार वह फोन और एसएमएस कर चुका था. मगर न तो मैं ने उस के एसएमएस का कोई जवाब दिया और न ही उस का फोन रिसीव किया. 16वें दिन अखिलेश की मम्मी ने ही फोन कर के मुझे बताया कि अखिलेश पिछले 15 दिन से अस्पताल में भरती है और उस की अंतिम सांसें चल रही हैं. अखिलेश ने उसे बताने से मना किया था, इसलिए वे अब तक उसे नहीं बता पा रही थीं.

इतना सुनते ही मैं एकपल भी न रुक सकी. अस्पताल पहुंचने पर मुझे पता चला कि अब उस की जिंदगी के बस कुछ ही क्षण बाकी हैं. परिवार के सभी लोग आंसुओं के सैलाब को रोके हुए थे. मैं बदहवास सी दौड़ती हुई अखिलेश के पास चली गई. आहट पा कर उस ने अपनी आंखें खोलीं. उस की आंखों में खुशी की चमक आ गई थी. मैं दौड़ कर उस के कृशकाय शरीर से लिपट गई.

‘‘तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं अखिलेश, सिर्फ ‘कौल मी’ लिख कर सैकड़ों बार मैसेज करते थे. क्या एक बार भी तुम अपनी बीमारी के बारे में मुझे नहीं बता सकते थे? क्या मैं इस काबिल भी नहीं कि तुम्हारा गम बांट सकूं?‘‘

‘‘मैं हर दिन तुम्हें फोन करता था रीमा, पर तुम ने एक बार भी क्या मुझ से बात की?’’

‘‘नहीं अखिलेश, ऐसी कोई बात नहीं थी, लेकिन उस दिन की घटना की वजह से मैं तुम से नजरें नहीं मिला पा रही थी.’’

‘‘लेकिन गलती तो मेरी भी थी न रीमा, फिर तुम क्यों नजरें चुरा रही थीं. वह तो मेरा प्यार था रीमा ताकि तुम जब तक जीवित रहोगी मेरे प्यार को याद रख सकोगी.’’

‘‘नहीं अखिलेश, हम ने साथ जीनेमरने का वादा किया था. आज तुम मुझे मंझधार में अकेला छोड़ कर नहीं जा सकते,’’ उस के मौत के एहसास से मैं कांप उठी.

‘‘अभी नहीं रीमा, अभी तो मैं अकेला ही जा रहा हूं, मगर तुम मेरे पास जरूर आओगी रीमा, तुम्हें आना ही पड़ेगा. बोलो रीमा, आओगी न अपने अखिलेश के पास’’,

अभी अखिलेश और कुछ कहता कि उस की सांसें उखड़ने लगीं और डाक्टर ने मुझे बाहर जाने के लिए कह दिया.

डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद अखिलेश को नहीं बचाया जा सका. मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई थी. मेरा तो सुहागन बनने का रंगीन ख्वाब ही चकनाचूर हो गया. सब से बड़ा धक्का तो मुझे उस समय लगा जब पापा ने एक भयानक सच उजागर किया. यह कालेज के दिनों की कुछ गलतियों का नतीजा था, जो पिछले एक साल से वह एड्स जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहा था. उस ने यह बात अपने परिवार में किसी से नहीं बताई थी. यहां तक कि डाक्टर से भी किसी को न बताने की गुजारिश की थी.

मेरे कदमों तले जमीन खिसक गई. मुझे अपने पागलपन की वह रात याद आ गई जब मैं ने अपना सर्वस्व अखिलेश को समर्पित कर दिया था.

आज उस की 5वीं बरसी है और मैं मौत के कगार पर खड़ी अपनी बारी का इंतजार कर रही हूं. मुझे अखिलेश से कोई शिकायत नहीं है और न ही अपने मरने का कोई गम है, क्योंकि मैं जानती हूं कि जिंदगी के उस पार मौत नहीं, बल्कि अखिलेश मेरा बेसब्री से इंतजार कर रहा होगा.

मैं ने अखिलेश का साथ देने का वादा किया था, इसलिए मेरा जाना तो निश्चित है परंतु आज तक मैं यह नहीं समझ पाई कि मैं ने और अखिलेश ने जो किया वह सही था या गलत?

अखिलेश का वादा पक्का था, मेरे समर्पण में प्यार था या हम दोनों को प्यार की मंजिल के रूप में मौत मिली, यह प्यार था. क्या यही प्यार है? क्या पता मेरी डायरी में लिखा यह वाक्य मेरा अंतिम वाक्य हो. कल का सूरज मैं देख भी पाऊंगी या नहीं, मुझे पता नहीं.

Short Stories In Hindi 2025 : अर्धांगिनी होने का एहसास

Short Stories In Hindi 2025 : आज सुधीर की तेरहवीं है. मेरा चित्त अशांत है. बारबार नजर सुधीर की तसवीर की तरफ चली जाती. पति कितना भी दुराचारी क्यों न हो पत्नी के लिए उस की अहमियत कम नहीं होती. तमाम उपेक्षा, तिरस्कार के बावजूद ताउम्र मुझे सुधीर का इंतजार रहा. हो न हो उन्हें अपनी गलतियों का एहसास हो और मेरे पास चले आएं. पर यह मेरे लिए एक दिवास्वप्न ही रहा. आज जबकि वह सचमुच में नहीं रहे तो मन मानने को तैयार ही नहीं. बेटाबहू इंतजाम में लगे हैं और मैं अतीत के जख्मों को कुरेदने में लग गई.

सुधीर एक स्कूल में अध्यापक थे. साथ ही वह एक अच्छे कथाकार भी थे. कल्पनाशील, बौद्धिक. वह अकसर मुझे बड़ेबड़े साहित्यकारों के सारगर्भित तत्त्वों से अवगत कराते तो लगता अपना ज्ञान शून्य है. मुझ में कोई साहित्यिक सरोकार न था फिर भी उन की बातें ध्यानपूर्वक सुनती. उसी का असर था कि मैं भी कभीकभी उन से तर्कवितर्क कर बैठती. वह बुरा न मानते बल्कि प्रोत्साहित ही करते.

उस दिन सुधीर कोई कथा लिख रहे थे. कथा में दूसरी स्त्री का जिक्र था. मैं ने कहा, ‘यह सरासर अन्याय है उस पुरुष का जो पत्नी के होते हुए दूसरी औरत से संबंध बनाए,’ सुधीर हंस पड़े तो मैं बोली, ‘व्यवहार में ऐसा होता नहीं.’

सुधीर बोले, ‘खूबसूरत स्त्री हमेशा पुरुष की कमजोरी रही. मुझे नहीं लगता अगर सहज में किसी को ऐसी औरत मिले तो अछूता रहे. पुरुष को फिसलते देर नहीं लगती.’

‘मैं ऐसी स्त्री का मुंह नोंच लूंगी,’ कृत्रिम क्रोधित होते हुए मैं बोली.

‘पुरुष का नहीं?’ सुधीर ने टोका तो मैं ने कोई जवाब नहीं दिया.

कई साल गुजर गए उस वार्त्तालाप को. पर आज सोचती हूं कि मैं ने बड़ी गलती की. मुझे सुधीर के सवाल का जवाब देना चाहिए था. औरत का मौन खुद के लिए आत्मघाती होता है. पुरुष इसे स्त्री की कमजोरी मान लेता है और कमजोर को सताना हमारे समाज का दस्तूर है. इसी दस्तूर ने ही तो मुझे 30 साल सुधीर से दूर रखा.

सुधीर पर मैं ने आंख मूंद कर भरोसा किया. 2 बच्चों के पिता सुधीर ने जब इंटर की छात्रा नम्रता को घर पर ट्यूशन देना शुरू किया तो मुझे कल्पना में भी भान नहीं था कि दोनों के बीच प्रेमांकुर पनप रहे हैं. मैं भी कितनी मूर्ख थी कि बगल के कमरे में अपने छोटेछोटे बच्चों के साथ लेटी रहती पर एक बार भी नहीं देखती कि अंदर क्या हो रहा है. कभी गलत विचार मन में पनपे ही नहीं. पता तब चला जब नम्रता गर्भवती हो गई और एक दिन सुधीर अपनी नौकरी छोड़ कर रांची चले गए.

मेरे सिर पर तब दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. 2 बच्चों को ले कर मेरा भविष्य अंधकारमय हो गया. कहां जाऊं, कैसे कटेगी जिंदगी? बच्चों की परवरिश कैसे होगी? लोग तरहतरह के सवाल करेंगे तो उन का जवाब क्या दूंगी? कहेंगे कि इस का पति लड़की ले कर भाग गया.

पुरुष पर जल्दी कोई दोष नहीं मढ़ता. उन्हें मुझ में ही खोट नजर आएंगे. कहेंगे कि कैसी औरत है जो अपने पति को संभाल न सकी. अब मैं उन्हें कैसे समझाऊं कि मैं ने स्त्री धर्म का पालन किया.

बनारस रहना मेरे लिए मुश्किल हो गया. लोगों की सशंकित नजरों ने जीना मुहाल कर दिया. असुरक्षा की भावना के चलते रात में नींद नहीं आती. दोनों बच्चे पापा को पूछते. इस बीच भैया आ गए. उन्हें मैं ने ही सूचित किया था. आते ही हमदोनों को खरीखोटी सुनाने लगे. मुझे जहां लापरवाह कहा, वहीं सुधीर को लंपट. मैं लाख कहूं कि मैं ने उन पर भरोसा किया, अब कोई विश्वासघात पर उतारू हो जाए तो क्या किया जा सकता है. क्या मैं उठउठ कर उन के कमरे में झांकती कि वह क्या कर रहे हैं? क्या यह उचित होता? उन्होंने मेरे पीठ में छुरा भोंका. यह उन का चरित्र था पर मेरा नहीं जो उन पर निगरानी करूं.

‘तो भुगतो,’ भैया गुस्साए.

भैया ने भी मुझे नहीं समझा. उन्हें लगा मैं ने गैरजिम्मेदारी का परिचय दिया. पति को ऐसे छोड़ देना मूर्ख स्त्री का काम है. मैं रोने लगी. भैया का दिल पसीज गया. जब उन का गुस्सा शांत हुआ तो उन्होंने रांची चलने के लिए कहा.

‘देखता हूं कहां जाता है,’ भैया बोले.

हम रांची आए. यहां शहर में मेरे एक चचेरे भाई रहते थे. मैं वहीं रहने लगी. उन्हें मुझ से सहानुभूति थी. भरसक उन्होंने मेरी मदद की. अंतत: एक दिन सुधीर का पता चल गया. उन्होंने नम्रता से विवाह कर लिया था. सहसा मुझे विश्वास नहीं हुआ. सुधीर इतने नीचे तक गिर सकते हैं.

उस रोज भैया भी मेरे साथ जाना चाहते थे. पर मैं ने मना कर दिया. बेवजह बहसाबहसी, हाथापाई का रूप ले सकता था. घर पर नम्रता मिली. देख कर मेरा खून खौल गया. मैं बिना इजाजत घर में घुस गई. उस में आंख मिलाने की भी हिम्मत न थी. वह नजरें चुराने लगी. मैं बरस पड़ी, ‘मेरा घर उजाड़ते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई?’

उस की निगाहें झुकी हुई थीं.

‘चुप क्यों हो? तुम ने तो सारी हदें तोड़ दीं. रिश्तों का भी खयाल नहीं रहा.’

‘यह आप मुझ से क्यों पूछ रही हैं? उन्होंने मुझे बरगलाया. आज मैं न इधर की रही न उधर की,’ उस की आंखें भर आईं. एकाएक मेरा हृदय परिवर्तित हो गया.

मैं विचार करने लगी. इस में नम्रता का क्या दोष? जब 2 बच्चों का पिता अपनी मर्यादा भूल गया तो वह बेचारी तो अभी नादान है. गुरु मार्गदर्शक होता है. अच्छे बुरे का ज्ञान कराता है. पर यहां गुरु ही शिष्या का शोषण करने पर तुला है. सुधीर से मुझे घिन आने लगी और खुद पर शर्म भी. कितना फर्क था दोनों की उम्र में. सुधीर को इस का भी खयाल नहीं आया. इस कदर कामोन्मत्त हो गया था कि लाज, शर्म, मानसम्मान सब को लात मार कर भाग गया. कायर, बुजदिल…मैं ने मन ही मन उसे लताड़ा.

‘तुम्हारी उम्र ही क्या है,’ कुछ सोच कर मैं बोली, ‘बेहतर होगा तुम अपने घर चली जाओ और नए सिरे से जिंदगी शुरू करो.’

‘अब संभव नहीं.’

‘क्यों?’ मुझे आश्चर्य हुआ.

‘मैं उन के बच्चे की मां बनने वाली हूं.’

‘तो क्या हुआ. गर्भ गिराया भी तो जा सकता है. सोचो, तुम्हें सुधीर से मिलेगा क्या? उम्र का इतना बड़ा फासला. उस पर रखैल की संज्ञा.’

‘मुझे सब मंजूर है क्योंकि मैं उन से प्यार करती हूं.’

यह सुन कर मैं तिलमिला कर रह गई पर संयत रही.

‘अभीअभी तुम ने कहा कि सुधीर ने तुम्हें बरगलाया है. फिर यह प्यारमोहब्बत की बात कहां से आ गई. जिसे तुम प्यार कहती हो वह महज शारीरिक आकर्षण है. एक दिन सुधीर का मन तुम से भी भर जाएगा तो किसी और को ले आएगा. अरे, जिसे 2 अबोध बच्चों का खयाल नहीं आया वह भला तुम्हारा क्या होगा,’ मैं ने नम्रता को भरसक समझाने का प्रयास किया. तभी सुधीर आ गया. मुझे देख कर सकपकाया. बोला, ‘तुम, यहां?’

‘हां मैं यहां. तुम जहन्नुम में भी होते तो खोज लेती. इतनी आसानी से नहीं छोड़ूंगी.’

‘मैं ने तुम्हें अपने से अलग ही कब किया था,’ सुधीर ने ढिठाई की.

‘बेशर्मी कोई तुम से सीखे,’ मैं बोली.

‘इन सब के लिए तुम जिम्मेदार हो.’

‘मैं…’ मैं चीखी, ‘मैं ने कहा था इसे लाने के लिए,’ नम्रता की तरफ इशारा करते हुए बोली.

‘मेरे प्रति तुम्हारी बेरुखी का नतीजा है.’

‘चौबीस घंटे क्या सारी औरतें अपने मर्दों की आरती उतारती रहती हैं? साफसाफ क्यों नहीं कहते कि तुम्हारा मन मुझ से भर गया.’

‘जो समझो पर मेरे लिए तुम अब भी वैसी ही हो.’

‘पत्नी.’

‘हां.’

‘तो यह कौन है?’

‘पत्नी.’

‘पत्नी नहीं, रखैल.’

‘जबान को लगाम दो,’ सुधीर तनिक ऊंचे स्वर में बोले. यह सब उन का नम्रता के लिए नाटक था.

‘मुझे नहीं मालूम था कि तुम इतने बड़े पाखंडी हो. तुम्हारी सोच, बौद्धिकता सिर्फ दिखावा है. असल में तुम नाली के कीड़े हो,’ मैं उठने लगी, ‘याद रखना, तुम ने मेरे विश्वास को तोड़ा है. तुम इस के साथ कभी सुखी नहीं रहोगे,’ भर्राए गले से कहते हुए मैं ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा और भरे कदमों से घर आ गई.

इस बीच मैं ने परिस्थितियों से मुकाबला करने का मन बना लिया था. सुधीर मेरे चित्त से उतर चुका था. रोनेगिड़गिड़ाने या फिर किसी पर आश्रित रहने से अच्छा है मैं खुद अपने पैरों पर खड़ी हूं. बेशक भैया ने मेरी मदद की. मगर मैं ने भी अपने बच्चों के भविष्य के लिए भरपूर मेहनत की. इस का मुझे नतीजा भी मिला. बेटा प्रशांत सरकारी नौकरी में आ गया और मेरी बेटी सुमेधा का ब्याह हो गया.

बेटी के ब्याह में शुरुआती दिक्कतें आईं. लोग मेरे पति के बारे में ऊलजलूल सवाल करते. पर मैं ने हिम्मत नहीं हारी. एक जगह बात बन गई. उन्हें हमारे परिवार से रिश्ता करने में कोई खोट नहीं नजर आई. अब मैं पूरी तरह बेटेबहू में रम गई. सुधीर नहीं रहे तो क्या सारे रास्ते बंद हो गए. एक बंद होगा तो सौ खुलेंगे. इस तरह कब 60 की हो गई पता ही न चला.

एक रोज भैया ने खबर दी कि सुधीर आया है. वह मुझ से मिलना चाहता है. मुझे आश्चर्य हुआ. भला सुधीर को मुझ से क्या काम. मैं ने ज्यादा सोचविचार करना मुनासिब नहीं समझा. वर्षों बाद सुधीर का आगमन मुझे भावविभोर कर गया. अब मेरे दिल में सुधीर के लिए कोई रंज न था. मैं जल्दीजल्दी तैयार हुई. बाल संवार कर जैसे ही मांग भरने के लिए हाथ ऊपर किया कि प्रशांत ने रोक लिया.

‘मम्मी, पापा हमारे लिए मर चुके हैं.’

‘नहीं,’ मैं चिल्लाई, ‘वह आज भी मेरे लिए जिंदा हैं. वह जब तक जीवित रहेंगे मैं सिं?दूर लगाना नहीं छोड़ूंगी. तू कौन होता है मुझे यह सब समझाने वाला.’

‘मम्मी, उन्होंने क्या दिया है हमें, आप को. एक जिल्लत भरी जिंदगी. दरदर की ठोकरें खाई हैं हम ने तब कहीं जा कर यह मुकाम पाया है,’ प्रशांत भावुक हो उठा.

‘वह तेरे पिता हैं.’

‘सिर्फ नाम के.’

‘हमारे संस्कारों की जड़ें अभी इतनी कमजोर नहीं हैं बेटा कि मांबाप को मांबाप का दर्जा लेखाजोखा कर के दिया जाए. उन्होंने तुझे अपनी बांहों में खिलाया है. तुझे कहानी सुना कर वही सुलाते थे, इसे तू भूल गया होगा पर मैं नहीं. कितनी ही रात तेरी बीमारी के चलते वह सोए नहीं. आज तू कहता है कि वह सिर्फ नाम के पिता हैं,’ मैं कहती रही, ‘अगर तुझे उन्हें पिता नहीं मानना है तो मत मान पर मैं उन्हें अपना पति आज भी मानती हूं,’ प्रशांत निरुत्तर था.

मैं भरे मन से सुधीर से मिलने चल पड़ी.

सुधीर का हुलिया काफी बदल चुका था. वह काफी कमजोर लग रहे थे. मानो लंबी बीमारी से उठे हों. मुझे देखते ही उन की आंखें नम हो गईं.

‘मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम सब को बहुत दुख दिए.’

जी में आया कि उन के बगैर गुजारे एकएक पल का उन से हिसाब लूं पर खामोश रही. उम्र के इस पड़ाव पर हिसाबकिताब निरर्थक लगे.

सुधीर मेरे सामने हाथ जोड़े खड़े थे. इतनी सजा काफी थी. गुजरा वक्त लौट कर आता नहीं पर सुधीर अब भी मेरे पति थे. मैं अपने पति को और जलील नहीं देख सकती. बातोंबातों में भैया ने बताया कि सुधीर के दोनों गुरदे खराब हो गए हैं. सुन कर मेरे कानों को विश्वास नहीं हुआ.

वर्षों बाद सुधीर आए भी तो इस स्थिति में. कोई औरत विधवा होना नहीं चाहती. पर मेरा वैधव्य आसन्न था. मुझ से रहा न गया. उठ कर कमरे में चली आई. पीछे से भैया भी चले आए. शायद उन्हें आभास हो गया था. मेरे सिर पर हाथ रख कर बोले, ‘इन आंसुओं को रोको.’

‘मेरे वश में नहीं…’

‘नम्रता दवा के पैसे नहीं देती. वह और उस के बच्चे उसे मारतेपीटते हैं.’

‘बाप पर हाथ छोड़ते हैं?’

‘क्या करोगी. ऐसे रिश्तों की यही परिणति होती है.’

भैया के कथन पर मैं सुबकने लगी.

‘भैया, सुधीर से कहो, वह मेरे साथ ही रहें. मैं उन की पत्नी हूं…भले ही हमारा शरीर अलग हुआ हो पर आत्मा तो एक है. मैं उन की सेवा करूंगी. मेरे सामने दम निकलेगा तो मुझे तसल्ली होगी.’

भैया कुछ सोचविचार कर बोले, ‘प्रशांत तैयार होगा?’

‘वह कौन होता है हम पतिपत्नी के बीच में एतराज जताने वाला.’

‘ठीक है, मैं बात करता हूं…’

सुधीर ने साफ मना कर दिया, ‘मैं अपने गुनाहों का प्रायश्चित्त करना चाहता हूं. मुझे जितना तिरस्कार मिलेगा मुझे उतना ही सुकून मिलेगा. मैं इसी का हकदार हूं,’ इतना बोल कर सुधीर चले गए. मैं बेबस कुछ भी न कर सकी.

आज भी वह मेरे न हो सके. शांत जल में कंकड़ मार कर सुधीर ने टीस, दर्द ही दिया. पर आज और कल में एक फर्क था? वर्षों इस आस से मांग भरती रही कि अगर मेरे सतीत्व में बल होगा तो सुधीर जरूर आएंगे. वह लौटे. देर से ही सही. उन्होंने मुझे अपनी अर्धांगिनी होने का एहसास कराया तो. पति पत्नी का संबल होता है. आज वह एहसास भी चला गया.

Sachi Kahaniyan : कारीगरी

Sachi Kahaniyan : ‘‘नहीं अम्मी, बिलकुल नहीं. अपने निकाह में मैं तुम्हें साउथहौल की दुकान के कपड़े नहीं पहनने दूंगी’’, नाहिद काफी तल्ख आवाज में बोली, ‘‘जानती भी हो ज्योफ के घर वाले कितने अमीर हैं? उन का महल जितना बड़ा तो घर है.’’

‘‘हांहां, मैं समझती हूं. जैसा तू चाहेगी,

वैसा ही होगा,’’ जोया ने दबी आवाज में जवाब दिया.

‘‘और हां, प्लीज उन लोगों से यह मत कह डालना कि तुम उस फटीचर दुकान को चलाती हो. मैं ने उन से कहा है कि तुम फैशन डिजाइनिंग की दुनिया से सरोकार रखती हो.’’

नाहिद के कथन पर जोया ने सिर्फ एक आह भरी. 20 बरस पहले जिस दुकान ने उन की लड़खड़ाती गृहस्थी को संभाला था, वही आज उस के बच्चों के लिए शर्मिंदगी का कारण बन गई थी. आज भी वे उन दिनों को भुला नहीं पातीं जब उन की शादी इरफान से हुई थी. सहारनपुर की लड़की का निकाह लंदन में कार्यरत लड़के के साथ होना सभी के लिए फख्र की बात थी. बड़े धूमधाम से निकाह होने के बाद इरफान 15 दिन जोया के पास रह कर लंदन चला गया था और जोया के पिता उस का पासपोर्ट, वीजा बनवाने में जुट गए थे. पड़ोस की लड़कियां जोया से रश्क करने लगी थीं.

लंदन आ कर जोया को वहां की भाषा और संस्कृति को अपनाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा था. एबरडीन में एक छोटे से घर से उन्होंने अपनी गृहस्थी की शुरुआत की थी. इरफान की तनख्वाह लंदन की महंगी जिंदगी में गुजारा करने लायक नहीं थी, किंतु जोया की कुशलता से इरफान की गृहस्थी ठीकठाक चलने लगी थी.

2  लोगों का गुजारा तो हो जाता था लेकिन तीसरे से तंगी बढ़ सकती थी. नाहिद के जन्म के बाद जब ऐसा ही हुआ तो इरफान कुछ उदास रहने लगा. उस की अपनी तनख्वाह पूरी नहीं पड़ती थी और जोया दूसरे मर्दों के साथ काम करे, यह उसे बरदाश्त न था.

नाहिद जब 3 वर्ष की थी और ओमर 8 महीने का, तभी इरफान यह कह कर चला गया कि घरगृहस्थी का झंझट उस के बस की बात नहीं. कुल 5 वर्ष ही तो हुए थे जोया को वहां बसे और फिर इरफान कहां गया, इस की उन्हें आज तक खबर नहीं हुई. उन दिनों घर का सामान बेचबेच कर जोया ने काम चलाया था. पर ऐसा कब तक चलता? यदि नौकरी करने की सोचतीं तो दोनों बच्चों को किस के सहारे छोड़तीं?

‘‘ज्योफ की मां एक कंप्यूटर कंपनी में काम करती हैं, डैरीफोर्ड रोड पर’’, नाहिद बोली, ‘‘और उस के पिता सहकारी दफ्तर में अधीक्षक हैं.’’

जोया ने कोई उत्तर न दिया. ‘यदि उन की साउथहौल वाली दुकान न होती तो नाहिद ज्योफ से कहां टकराती? 6 महीने पहले नाहिद दुकान आई थी तो वहीं उसे ज्योफ मिला था. वह पास की दुकान में पड़े ताले की पूछताछ करने आया था.’

‘‘यह दुकान आप की है?’’ उस ने काफी अदब से नाहिद से पूछा था.

‘‘नहींनहीं, मैं तो यहां बस यों ही…’’, नाहिद फौरन बात टाल गई थी.

दुकान से जाते वक्त ज्योफ ने नाहिद से अपनी गाड़ी में चलने का प्रस्ताव रखा था, जिसे नाहिद ने स्वीकार कर लिया था.

‘‘उस के दादा पुरानी चीजों की दुकान चलाते हैं,’’ नाहिद ने कहा.

‘‘पुरानी चीजों की दुकान तो मैं भी चलाती हूं,’’ नाहिद की बात पर जोया बोल पड़ी, ‘‘पुराने कपड़े…’’

‘‘बेवकूफी की बात मत करो, अम्मी.’’

बरसों पहले जब गृहस्थी खींचने के जोया के सभी तरीके खत्म हो चुके थे और वे इसी उधेड़बुन में रहती थीं कि क्या करें, तभी एक दिन एक पड़ोसिन के साथ वे यों ही फैगन बाजार चली गई थीं अपनी पड़ोसिन के लिए ईवनिंग ड्रैस लेने. वहां पहुंच कर वे तो जैसे हतप्रभ रह गई थीं. इस कबाड़ी बाजार में क्याक्या नहीं बिकता. बिना इस्तेमाल किए हुए तोहफे, पहने जूते, कपड़े, स्वैटर वगैरह. इस के अलावा और भी बहुत कुछ.

बस फिर क्या था जोया ने साउथहौल में एक दुकान किराए पर ले ली. हर शाम वे फैगन बाजार से कपड़े खरीद लातीं, फिर उन कपड़ों को घर ला कर धोतीं, सुखातीं और प्रैस कर के नया बना देतीं. जोया की इस कारीगरी का अंजाम यह होता कि कौडि़यों के दाम की चीजें कई पौंड की हो जातीं.

‘‘और हां, तुम्हें उन का घर देखना चाहिए. हमारा पूरा घर उन की बैठक में समा जाएगा,’’ नाहिद बोली.

उस के स्वर के उतारचढ़ाव ने जोया को यह सोचने पर विवश कर दिया कि आज तक उन्होंने हजारों कपड़े सिर्फ इसलिए खरीदे बेचे थे कि नाहिद और ओमर को अपने दोस्तों को घर लाने में शर्मिंदगी न महसूस हो. और सिर्फ अपनी बेटी की खुशी के लिए जोया ने उस के एक ईसाई से शादी करने के फैसले पर कोई आपत्ति नहीं की थी. शादी भी ईसाई ढंग से हो रही थी और शादी की दावत ज्योफ के घर ही निश्चित हुई थी. ज्योफ की मां ने एक पत्र द्वारा जोया से यह पूछा था कि इस पर उन्हें कोई एतराज तो नहीं? इस पर जोया का उत्तर था कि दावत भले ही वहां हो, भोजन का खर्च वे उठाएंगी.

‘‘अब इस छोटे से घर में तुम्हें अधिक दिन तो रहना नहीं है,’’ जोया ने नाहिद से कहा.

‘‘नहीं अम्मी, यह बात नहीं है. आप ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है. वह तो बस…’’

‘‘बस मुझे अपनी मां कहने में तुम्हें शर्म आती है,’’ जोया बीच में ही बोल पड़ीं.

‘‘अम्मी, ऐसी बात नहीं है,’’ कह कर नाहिद ने जोया के गले में बांहें डाल दीं, ‘‘तुम तो सब से अच्छी अम्मी हो, ज्योफ की मां से कहीं ज्यादा खूबसूरत. बस वह दुकान…’’

‘‘दुकान क्या घटिया है?’’

‘‘हां,’’ कह कर नाहिद हंसने लगी.

‘‘जोया की दुकान से बहुत सी मध्यवर्गीय परिवार की स्त्रियां कपड़े खरीदती थीं. मैडम ग्रांच तो वहां जब भी किसी धारियों वाली ड्रैस को देखतीं, फौरन खरीद लेतीं. इतने वर्षों में अपनी ग्राहकों की नाप, चहेते रंग और पसंद जानने के बाद जोया ऐसी ही पोशाकें लातीं जिन्हें वे पसंद करतीं. उन में से कुछ किसी जलसे या पार्टी से पहले जोया को अपने लिए अच्छी डै्रस लाने को कह जातीं. एक बार तो अखबार में शहर के मेयर के घर हुए जलसे की तसवीर में उन की एक ग्राहक का चित्र भी था, जिस ने उन्हीं की दुकान की डै्रस पहनी हुई थी. वह ड्रैस जोया केवल 15 पैन्स में लाई थीं और उस पर थोड़ी मेहनत के बाद वही पोशाक 10 पौंड की थी.’’

सहारनपुर में जब भी कोई निकाह होता तो सभी सहेलियों के कपड़ों पर सजावट जोया ही तो करतीं. फिर चाहे वह तल्हा का शरारा हो या समीना की कुरती, सभी को जरीगोटे से सुंदर बनाने की कला सिर्फ जोया ही दिखातीं. और इतनी मेहनत के बाद भी जो कारीगरी जोया के कपड़ों पर होती, वही नायाब होती.

‘‘वे लोग ईसाई हैं और शादी भी ईसाई ढंग से होगी. यह तुम जानती ही हो. इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम कोई बढि़या सा ईवनिंग गाउन खरीद लो अपने लिए. सभी औरतें अच्छी से अच्छी पोशाकों में होंगी. आखिर इतने अमीर लोग हैं वे. ऐसे में तुम्हारा सूट या शरारा पहनना कितना खराब लगेगा.’’

नाहिद की हिदायत पर जोया ने अपने लिए एक विदेशी गाउन तैयार करने की सोची. नाहिद को बताए बिना ही जोया ने अपनी दुकान की एक पोशाक चुनी. वे जानती थीं कि नाहिद कभी उन्हें अपनी दुकान की पोशाक नहीं पहनने देगी. लेकिन सिर्फ एक शाम के लिए पैसे बरबाद करने के लिए जोया कतई तैयार न थीं. और फिर जब उन जैसे अमीर घरों की औरतें उन की दुकान से पोशाकें खरीदती हैं, तो यह कहां की अक्लमंदी होगी कि वे खुद दूसरी दुकान से पोशाक खरीदें.

काफी सोचविचार के बाद उन्होंने अपने लिए एक नीली ड्रैस चुनी, जो कुछ महीने पहले फैगन बाजार से ली थी. पर वह इतनी घेरदार थी कि तंग कपड़ों का फैशन की वजह से उसे किसी ने हाथ तक न लगाया था. जोया ने उसे काट कर काफी छोटा और अपने नाप का बनाया. फिर बचे हुए कपड़े की दूधिया सफेदी हैट के चारों तरफ छोटी झालर लगा दी.

शादी के बाद जोया दावत के लिए ज्योफ के घर पहुंचीं. वहां की चमकदमक देख वे काफी प्रभावित हुईं. भव्य, आलीशान बंगले के चारों तरफ खूबसूरती व करीने से पेड़ लगे हुए थे. उन पर बल्बों की झालर यों पड़ी थी मानो नाहिद के साथसाथ आज उन की भी शादी हो.

जोया अपनी बेटी की पसंद पर खुश हो ही रही थीं कि ज्योफ की मां मौरीन वहां आ पहुंचीं, ‘‘जोया, क्या खूब शादी थी न. नाहिद कितनी खूबसूरत लग रही है. आप को गर्व होता होगा अपने बच्चों पर. बच्चों को अकेले ही पालपोस लेना कोई छोटी बात नहीं. नाहिद से पता चला कि आप के पति सालों पहले ही… मुझे खेद है.’’

मौरीन बातचीत और हावभाव से एक बड़े घराने की सभ्य स्त्री मालूम पड़ती थीं, ‘‘मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकती विदेश में अपने पति की गैरमौजूदगी में बच्चों को अकेले पालने की. मैं वाकई आप से बहुत प्रभावित हूं. कैसे संभाल लिया आप ने सब कुछ? आप के बच्चे आप की कुशलता के तमगे हैं.’’

‘‘शुक्रिया मौरीन’’, जोया खुश अवश्य थीं किंतु कुछ असंतुष्ट भी. कहीं न कहीं उन का मन यह मना रहा था कि उन की कोई ग्राहक ज्योफ की रिश्तेदार निकल आए. ऐसे में वे अपने कार्य के प्रति नाहिद के दृष्टिकोण को बदल पातीं. किंतु ऐसा हुआ नहीं.

तभी मौरीन जोया की बांह में बांह डालते हुए कहने लगीं, ‘‘नाहिद ने मुझे बताया था कि आप फैशन की दुनिया से सरोकार रखती हैं. कितना आकर्षक लगता है यह सब. यह ड्रैस जो आप ने पहनी है ‘हिलेयर बैली’ से ली है न?’’

जोया ने खामोशी से सिर हिला हामी भर दी.

‘‘क्या खूब फब रही है आप पर. मुझे नहीं पता था कि वे घेरदार के अलावा तंग नाप की भी ड्रैसेज बेचते हैं या इस के साथ हैट भी मिलती है. कितने आश्चर्य की बात है कि मेरे पास भी ऐसी एक घेरदार ड्रैस थी, रंग भी बिलकुल यही. लेकिन वह इतनी घेरदार थी कि आजकल उसे पहनना मुमकिन नहीं था. आप से क्या कहना, आजकल का फैशन आप से बेहतर भला कौन जानेगा,’’ फिर कुछ सोचते हुए मौरीन बोलीं, ‘‘पता नहीं मैं ने उस ड्रैस के साथ क्या किया.’’

‘‘हां, पता नहीं…’’ जोया ने अपनी भोलीभाली आंखों को मटकाते हुए कहा

और इतना कह कर अपनी कारीगरी पर मुसकरा उठीं.

New Hindi Kahani : सौंदर्य बोध

New Hindi Kahani : रौयल मिशन स्कूल के वार्षिकोत्सव काआज अंतिम दिन था. छात्राओं का उत्साह अपनी चरम सीमा पर था, क्योंकि पुरस्कार समारोह की सब को बेचैनी से प्रतीक्षा थी. खेलकूद, वादविवाद, सामान्य ज्ञान के अतिरिक्त गायन, वादन, नृत्य, अभिनय जैसी अनेक प्रतियोगिताएं थीं. पर सब से अधिक उत्सुकता ‘कालेज रत्न‘ पुरस्कार को ले कर थी, क्योंकि जिस छात्रा को यह पुरस्कार मिलता, उसे अदलाबदली कार्यक्रम के अंतर्गत विदेश जाने का अवसर मिलने वाला था.

कालेज में कई मेधावी छात्राएं थीं और सभी स्वयं को इस पुरस्कार के योग्य समझती थीं पर जब कालेज रत्न के लिए सुजाता के नाम की घोषणा हुईर् तो तालियों की गड़गड़ाहट के साथ ही एक ओर से आक्रोश के स्वर भी गूंज उठे.

सब को धन्यवाद दे कर सुजाता स्टेज से नीचे उतरी तो उस की परम मित्र रोमा उसे मुबारकबाद देती हुई, उस के गले से लिपटती हुई बोली, ‘‘आज मैं तेरे लिए बहुत खुश हूं. तू ने असंभव को भी संभव कर दिखाया.‘‘

‘‘इस में तेरा योगदान भी कम नहीं है. तेरा सहयोग न होता तो यह कभी संभव न होता,‘‘ सुजाता कृतज्ञ स्वर में बोली. तभी सुजाता को उस के अन्य प्रशंसकों ने घेर लिया. उस के मातापिता भी व्याकुलता से उस की प्रतीक्षा कर रहे थे पर रोमा के मनमस्तिष्क पर तो पिछले कुछ दिनों की यादें दस्तक दे रही थीं.

‘सुजाता नहीं आई अभी तक?‘ रोमा ने उस दिन सत्या के घर पहुंचते ही पूछा.

‘नहीं, तुम्हारी प्रिय सखी नहीं आई अभी तक,‘ सत्या बड़े ही नाटकीय अंदाज में बोली और वहां उपस्थित सभी युवतियों ने जोरदार ठहाका लगाया.

‘सौरी, तेरी हंसी उड़ाने का हमारा कोई इरादा नहीं था,‘ सत्या क्षमा मांगती हुई बोली.

‘तो किस की हंसी उड़ाने का इरादा था, सुजाता की?‘

‘तू तो जानती है. हमें सुजाता का नाम सुनते ही हंसी आ जाती है. एक तो उस का रूपरंग ही ऐसा है. काला रंग, स्थूल शरीर, चेहरा ऐसा कि कोई दूसरी नजर डालना भी पसंद न करे. ऊपर से सिर में ढेर सारा तेल डाल कर 2 चोटियां बना लेती है. उस पर आंखों पर मोटा चश्मा. क्या हाल बना रखा है उस ने,‘ सत्या ने आंखें मटकाते हुए कहा.

‘मुझे तो वह बहुत सुंदर लगती है, उस की आंखों में अनोखी चमक है. तुम्हें तो उस की 2 चोटियों से भी शिकायत है. पर हम में से कितनों के उस के जैसे घने, लंबे बाल हैं. मोटा चश्मा तो बेचारी की मजबूरी है. आंखें कमजोर हैं उस की, तो चश्मा तो पहनेगी ही.‘

‘कौंटैक्ट लैंस भी तो लगा सकती है. अपने रखरखाव पर थोड़ा ध्यान दे सकती है,‘ सत्या ने सुझाव दिया था.

‘हम होते कौन हैं, यह सुझाव देने वाले. वह जैसी है, अच्छी है. मुझे तो उस में कोई बुराई नजर नहीं आती.‘

‘बुराई तो कोईर् नहीं है पर इस हाल में शायद ही उस का कोई मित्र बने. हम सब के बौयफ्रैंड हैं पर उस की तो तुझे छोड़ कर किसी लड़की से भी मित्रता नहीं है.‘

‘वह इसलिए कि वह हमारी तरह नहीं है. कितनी व्यस्त रहती है वह. खेलकूद, पढ़ाईलिखाई और हर तरह की प्रतियोगिता में क्या हम में से कोई उस की बराबरी कर सकता है. मेरी बचपन की सहेली है वह और मैं उस के गुणों के लिए उस का बहुत सम्मान करती हूं. बस एक विनती है कि उस के सामने ऐसा कुछ मत करना या कहना कि उसे दुख पहुंचे. ऐसा कुछ हुआ तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा.‘

‘तुम्हारी इतनी घनिष्ठ मित्र है, तो कुछ समझाओ उसे,‘ सत्या ने सलाह दी. ‘हम होते कौन हैं, उसे समझाने वाले. सुजाता बुद्धिमान और समझदार लड़की है. अपना भलाबुरा खूब समझती है,‘ रोमा ने समझाना चाहा.

‘अपनीअपनी सोच है. मेरी मम्मी तो कहती हैं कि लड़कियों को सब से अधिक ध्यान अपने रूपरंग पर देना चाहिए, पता है क्यों?‘ आभा भेद भरे स्वर में बोली.

‘क्यों?‘ सब ने समवेत स्वर में प्रश्न किया, मानो वह कोई राज की बात बताने जा रही हो.

‘क्योंकि लड़कों की बुद्धि से अधिक उन की आंखें तेज होती हैं,‘ आभा की भावभंगिमा और बात पर समवेत स्वर में जोरदार ठहाका लगा. ‘ऐसी बुद्धि वाले युवकों से दूर रहने में ही भलाई है, यह नहीं बताया तेरी मम्मी ने, रोमा ने आभा के उपहास का उत्तर उसी स्वर में दिया.

‘पता है, हमें सब पता है. अब छोड़ो यह सब और कल की पिकनिक की तैयारी करो,‘ सत्या ने मानो आदेश देते हुए कहा. सभी सखियां अपने विचार प्रकट करने को उत्सुक थीं कि तभी द्वार पर दस्तक हुई. सुजाता को सामने खड़े देख कर सत्या सकपका गई. लगा, जैसे सुजाता दरवाजे के बाहर ही खड़ी उन की बातें सुन रही थी. पर दूसरे ही क्षण उस ने वह विचार झटक दिया. सुजाता ने उन की बातें सुनी होतीं, तो क्या उस के चेहरे पर इतनी प्यारी मुसकान हो सकती थी. रोमा तो उसे देखते ही खिल उठी.

‘मिलो मेरे बचपन की सहेली सुजाता से. कुछ दिनों पहले ही हमारे कालेज में दाखिला लिया है,‘ रोमा ने सब से सुजाता का औपचारिक परिचय कराया.

‘हमें पता है,‘ वे बोलीं. हैलो, हाय और गर्मजोशी से हाथ मिला कर सब ने उस का स्वागत किया और पुन: पिकनिक की बातों में खो गईं. किस को क्या लाना है. यह निर्णय लिया गया. सुबह 5 बजे सब को मंदिर वाले चौराहे पर एकत्रित होना था.

‘सुजाता, तुम क्या लाओगी?‘ तभी सत्या ने प्रश्न किया.

‘पता नहीं, मैं आऊंगी भी या नहीं. मेरी मम्मी ने अभी अनुमति नहीं दी है. यदि आई तो तुम लोग जो कहोगी मैं ले आऊंगी.‘ सुजाता ने अपनी बात स्पष्ट की.

‘लो तुम आओगी ही नहीं तो लाओगी कैसे,‘ आभा ने प्रश्न किया.

‘उस की चिंता मत करो. सुजाता नहीं आई तो मैं ले आऊंगी,‘ रोमा ने आश्वासन दिया.

‘ठीक है, तुम दोनों मिल कर पूरियां ले आओ. सुजाता नहीं आ रही हो, तो थोड़ी अधिक ले आना. पर तुम्हारी मम्मी ने अभी तक अनुमति क्यों नहीं दी.‘

‘मेरी मम्मी बड़ी जांचपरख के बाद ही अनुमति देती हैं. वे कुछ जानकारी चाहती हैं, तभी अनुमति देंगी,‘ सुजाता ने स्पष्ट किया.

‘कैसी जानकारी?‘

‘यही कि पिकनिक में लड़के तो नहीं आ रहे हैं. हम पर नजर रखने के लिए कोई बड़ा हमारे साथ जा रहा है या नहीं.‘

‘तो सुनो, मम्मी को तुरंत सूचित कर दो कि हमारी पिकनिक में छात्रों को आने की अनुमति नहीं है. हमारे कालेज में छात्र हैं ही नहीं. हम पर नजर रखने के लिए आभा की बूआजी आ रही हैं. आभा के घर में भी तेरे घर की तरह शेरनी है यानी कि उस की मां‘.

‘क्या कह रही हो तुम, मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा,‘ सुजाता बोली.

‘हमारे साथ रहेगी तो धीरेधीरे सब समझ जाएगी,‘ आभा सयानों की तरह बोली और वहां उपस्थित सभी छात्राओं ने ऐसा ठहाका लगाया जैसे आभा ने कोई चुटकुला सुना दिया हो. सुजाता रोमा के बुलाने पर पहली बार इस समूह में शामिल हुई थी. अत: उस ने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी.

सुजाता और रोमा एकसाथ ही सत्या के घर से निकली थीं. ‘तूने तो कहा था कि आंटी ने अनुमति दे दी है,‘ बाहर निकलते ही रोमा ने प्रश्न किया.

‘वह तो मैं उन सब को टालने के लिए कह रही थी. सच तो यह है कि मैं स्वयं ही सोच रही थी कि पिकनिक पर जाऊं या नहीं.‘ कहीं मुझ जैसी साधारण रंगरूप वाली लड़की के साथ जाने से अत्याधुनिक सुंदरियों की नाक ही न कट जाए,‘ सुजाता मुसकराई.

‘समझी, तो तूने छिप कर सब सुन लिया.‘

‘मैं न तो छिप कर सुनने में विश्वास करती हूं न ही छिप कर कुछ कहने में, पर क्या करूं, मैं वहां पहुंची तो वहां मेरी ही प्रशंसा के पुल बांधे जा रहे थे. अत: मैं वह वार्त्तालाप सुनने का लोभ संवरण नहीं कर पाई. तू जिस तरह मेरा बचाव कर रही थी, वह भी सुना.‘

‘बहुत बुरा लगा होगा न.‘ रोमा ने सुजाता का हाथ थामते हुए भीगे स्वर में कहा.

‘उतना बुरा भी नहीं लगा. बहुत साधारण रूपरंग है मेरा, यह तो मैं बचपन से जानती हूं. पर जिस ढंग से पीठ पीछे ये बातें कही जा रही थीं, वह थोड़ा अखर गया. पर हर घने, काले बादल के पीछे चमकीली श्वेत किरण भी छिपी होती है, यह भी आज पता  चल गया.‘

‘कौन सी श्वेत किरण दिख गई तुझे.‘

‘है एक रोमा नाम की मेरी प्यारी सी दोस्त, जो अकेली ही मेरी वकालत कर रही थी. तेरे जैसी एक दोस्त ही काफी है.‘

‘तो तू आ रही है न. रोमा घूमफिर कर वहीं आ गई. कम से कम मेरे लिए.‘

‘मम्मी के सवालों की बौछारों का सामना तो कर लूं फिर तुझे फोन करूंगी,‘ सुजाता ने चतुराई से बात टाल दी थी.

‘कहां गई थी सुजी, इतनी देर हो गई,‘ घर पहुंचते ही उस की मम्मी मीना ने उस की खबर ली. ‘आप को बता कर तो गई थी,‘ सुजाता हंसी थी. ‘कल रोमा और उस के दोस्त पिकनिक पर जा रहे हैं. रोमा चाहती है कि मैं भी उन के साथ जाऊं.‘

‘दोस्त या सहेलियां?‘

‘सब लड़कियां हैं मां. लड़के जा भी रहे हों, तो क्या फर्क पड़ता है.‘

‘फर्क पड़ता है. जब तक तू घर से बाहर रहती है, मन घबराता रहता है. जमाना बहुत खराब आ गया है.‘

‘मम्मी, आप की बेटी कराटे में ब्लैक बैल्ट है, इसलिए डरना छोड़ दो. फिर आप ही तो कहती हैं कि व्यक्तित्व को सजानेसंवारने के लिए घर से बाहर निकलना और नए दोस्त बनाना बहुत आवश्यक है.‘

‘क्या सचमुच वह इतनी बदसूरत है,‘ वह देर तक सोचती रही. ‘कौन कहता है वह तो स्वयं को संसार की सब से सुंदर लड़की समझती है‘, सोचते हुए वह उदासी में भी मुसकरा दी.

‘ठीक है सुजाता, बहस में तो मैं तुम से कभी जीत ही नहीं सकती. मैं सारी तैयारी कर दूंगी. चली जाओ पिकनिक पर, पर सावधान रहना,‘ मीना ने हथियार डाल दिए. पर सुजाता देर तक स्वयं को दर्पण में निहारती रही.

पिकनिक में सुजाता का व्यवहार देख कर सब से अधिक आश्चर्य रोमा को ही हुआ. सब कुछ जानते हुए भी वह सब से सामान्य व्यवहार कैसे कर पा रही थी.

एक लोकप्रिय गीत की धुन पर सुजाता को थिरकते देख कर तो सभी हैरान रह गए. उस का रंगरूप देख कर तो वे सोच भी नहीं सकते थे कि सुजाता इतना अच्छा नृत्य करती है, लगता था मानो वह हवा की लहरों पर तैर रही हो. सुजाता के प्रति अन्य छात्राओं का व्यवहार धीरेधीरे बदलने लगा. कुछ छात्राएं तो जैसे उस की दीवानी हो गई थीं. अन्य सभी का ध्यान भी अब रूपरंग से अधिक सुजाता के गुणों पर था. पर सुजाता के पीठपीछे उस की आलोचना अब भी चल रही थी.

‘क्या नाचती है, तुम्हारी सहेली?‘ आभा रोमा से बोली. ‘मेरी ही क्यों, तुम्हारी भी तो सहेली है वह,‘ रोमा हंसते हुई बोली.

‘नो, थैंक्स. पिकनिक के लिए साथ आने से कोईर् किसी का दोस्त नहीं हो जाता. मैं अपने दोस्त और सहेलियां बहुत ध्यान से चुनती हूं और मेरे दोस्त देखनेसुनने में अच्छे हों यह बेहद जरूरी है. तुम्हें एक राज की बात बताऊं, मुझे बदसूरती बिलकुल पसंद नहीं है. मैं तो अपने आसपास केवल वृक्ष, फूल और सौंदर्य देखना चहती हूं,‘ आभा अपने मन की बात बताते हुए नृत्य की मुद्रा में लहराने लगी और रोमा मुसकरा कर रह गई.

पिकनिक तो समाप्त हो गई पर सुजाता की त्रासदी चलती रही. पहले तो सुजाता ने सोचा कि रैगिंग की इस प्रक्रिया से हर छात्र या छात्रा को गुजरना पड़ता है पर शीघ्र ही वह समझ गई कि सारा उलाहना केवल उस के लिए ही था. बाहर से वह दिखाने का प्रयत्न करती, मानो इन सब बातों का उस पर कोई असर नहीं पड़ता पर एक दिन जब स्वयं को रोक नहीं पाई, तो रोमा के कंधे पर सिर रख कर सिसकने लगी थी.

‘बहुत हो गया, अब मैं तुझे और नहीं सहने दूंगी. हम दोनों कल ही प्राचार्या के पास चलेंगे. इन लोगों की अक्ल तभी ठिकाने आएगी, जब हमारी शिकायत पर इन के विरुद्ध कार्यवाही होगी,‘ रोमा क्रोधित स्वर में बोली.

‘रहने दे रोमा. उन्हें सजा मिल भी गई तो क्या फर्क पड़ जाएगा, उन की नजर में तो मैं वही कुरूप, भद्दी सी लड़की रहूंगी न, जिस का केवल मजाक बनाया जा सकता है,‘ सुजाता सिसकियों के बीच बोली.

‘क्या हो गया है तुझे?‘ कैसे तेरे मुंह से ऐसी बातें निकल सकती हैं. उन्होंने कह दिया कि तू बदसूरत है और तू ने मान लिया. इस से अधिक विडंबना और क्या होगी. क्या हो गया है, तेरे आत्मविश्वास को? हम में से किसी को ऐसे सिरफिरे लोगों से प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है. इन के अहंकार की तो कोई सीमा ही नहीं है. पर तुम उन की बातों से इस तरह आहत हो जाओगी तो कैसे चलेगा. यही तो वे चाहती हैं कि तुम उन की बातों से आहत हो कर स्वयं पर ही तरस खाने लगो. यदि ऐसा हुआ तो सब से अधिक निराशा मुझे ही होगी. इसलिए नहीं कि तुम्हारी मित्रता ने मेरी आंखों पर परदा डाल दिया है बल्कि इसलिए कि तुम्हारे गुण ही हमारी मित्रता की आधारशिला हैं.‘ रोमा भीगे स्वर में बोली.

सुजाता कुछ क्षणों तक रोमा को अपलक निहारती रही, फिर मुसकरा दी.

‘अब क्या हुआ?‘ रोमा ने प्रश्न किया.

‘कुछ नहीं, मैं तो बस सोच रही थी कि मैं भी कितनी बड़ी मूर्ख हूं, तेरी जैसी सहेली मेरा साथ दे तो मैं तो सारी दुनिया से भिड़ सकती हूं.‘

‘यह हुई न बात. तो वादा कर कि इन की बातों पर न ही ध्यान देगी और न ही इन्हें स्वयं पर हावी होने देगी.‘

‘ठीक है, मैं वादा करती हूं कि मैं ईंट का जवाब पत्थर से दूंगी.‘

सत्या, आभा और उन के दल की अन्य छात्राओं का व्यवहार तो नहीं बदला पर सुजाता बदल गई. उस ने हर ओर से स्वयं को समेट कर खुद को पढ़ाई में झोंक दिया. सुजाता प्रथम आई तो सौंदर्य की पुजारिनों को कोई अंतर नहीं पड़ा बल्कि उन्होंने अपने अमूल्य विचार प्रकट करने में देरी नहीं की. ‘हम यहां किताबी कीड़े बनने नहीं आए हैं. हम तो यहां जीवन का आनंद उठाने आए हैं. डिग्री मिल जाए, वही बहुत है,‘ सत्या बोली.

‘और नहीं तो क्या हमें इस छोटी सी उम्र में मोटा चश्मा चढ़वाने का कोई शौक नहीं है,‘ आभा ने उस की हां में हां मिलाई.

सुजाता ने उन की बात सुन कर भी अनसुनी कर दी. ‘तुम लोगों ने शायद अंगूर खट्टे हैं वाली कहावत नहीं सुनी,‘ रोमा मुसकरा दी.

‘सुनी है पर हमें अंगूर पसंद ही नहीं हैं न खट्टे और न ही मीठे,‘ आभा तीखे स्वर में बोली. पर जैसे ही यह सूचना मिली कि वार्षिकोत्सव में विभिन्न प्रतियोगिताओं के आधार पर ‘कालेज रत्न‘ छात्रा का चुनाव होगा और उसी छात्रा को अदलाबदली कार्यक्रम के अंतर्गत जरमनी और फ्रांस के कुछ कालेजों में रहने और वहां के छात्रछात्राओं से अपने विचारों के आदानप्रदान के साथ ही उन के तौरतरीकों को जाननेसमझने का अवसर भी प्राप्त होगा, कालेज में भूचाल सा आ गया. छात्राओं में इन प्रतियोगिताओं में भाग लेने और ‘कालेज रत्न‘ बनने की होड़ लग गई. हलचल तो तब मची जब सुजाता ने भी सभी प्रतियोगिताओं में भाग ले कर ‘कालेज रत्न‘ बनने की दौड़ में कूदने की घोषणा कर दी.

‘लोग कैसेकैसे भ्रम पाल लेते हैं,‘ कक्षा में स्वयं को स्मार्ट समझने वाली छात्राएं ताने देतीं. रोमा तुम अपनी दोस्त को समझाती क्यों नहीं. ‘कालेज रत्न‘ बनने का सपना देखना अच्छा है पर वास्तविकता के धरातल से कोसों दूर है. सुजाता से कहो कि अपनी किताबों में खोई रहे और ‘कालेज रत्न‘ जैसी पदवी हमारे लिए छोड़ दे. सत्या की समवेत हंसी से पूरी कक्षा गूंज उठी. रोमा मूर्ति बनी बैठी रह गई.

‘हाथियों को देख कर जब कुत्ते भौंकते हैं, तो हाथी उन की अवहेलना कर आगे बढ़ जाते हैं,‘ रोमा ने सुजाता को समझाते हुए कहा.

‘कुत्ता किसे कहा तू ने, समझ क्या रखा है. हम इस अपमान कोचुपचाप सह लेंगे? हम प्राचार्या महोदया से तुम दोनों की शिकायत करेंगे,‘ आभा भड़क उठी.

‘चलो न यहां कौन डरता है. उन्हें भी तो पता चले कि कौन किस का अपमान कर रहा है,‘ रोमा भी उठ खड़ी हुई. पहली बार सुजाता सब के सामने फूटफूट कर रो पड़ी थी. पर इस से पहले कि कोई कहीं जा पाता अंगरेजी की व्याख्याता ऋचा मैडम कक्षा में आ पहुंचीं.

‘क्या बात है, कहां जा रही हो तुम लोग और सुजाता तुम क्यों रो रही हो?‘ व्याख्याता ऋचा मैडम ने प्रश्न किया था. उत्तर में रोमा ने सारी बात कह सुनाई. सुन कर ऋचा मैडम के आश्चर्य की सीमा न रही. उन्होंने दोनों पक्षों को समझाबुझा कर शांत किया. सुजाता को चुप कराया और बात आईगई हो गई. पर आज ‘कालेज रत्न‘ पुरस्कार की घोषणा होते ही दोनों पक्षों में तलवारें खिंच गईं.

आभा, नीरू, मुक्ता अपनी अन्य सहेलियों के साथ सत्या के घर पर मिलीं और आगे की रणनीति तैयार की. सब ने अपनी शिकायत ले कर प्राचार्या महोदया के पास जाने का निर्णय लिया.

प्राचार्या महोदया ने अगले दिन केवल 2 छात्राओं को मिलने का समय दिया तो सत्या व आभा एक शिकायती पत्र ले कर उन के पास जा पहुंचीं.

प्राचार्याजी ने उन की बातें ध्यान से सुनीं, शिकायती पत्र पढ़ा और आंखें मूंद कर सोचनेविचारने की मुद्रा में आ गईं. सत्या और आभा उन के नेत्र खुलने की प्रतीक्षा करती रहीं. धीरेधीरे उन्होंने नेत्र खोले.

‘तो तुम दोनों को शिकायत है कि सुजाता को ‘कालेज रत्न‘ की उपाधि दे कर न केवल अन्य छात्राओं के साथ अन्याय हुआ है बल्कि कालेज का नाम भी मिट्टी में मिल गया है.‘

‘जी देखिए, न तो सुजाता का व्यक्तित्व प्रभावशाली है, न ही रूपरंग,‘ आभा डरते हुए बोली.

‘आज पहली बार स्वयं पर शर्म आ रही है मुझे. तुम्हें सही संस्कार तक नहीं दे सके हम. दूसरों के रूपरंग पर छींटाकशी करने का अधिकार किस ने दिया तुम्हें? शिक्षा मनुष्य को संस्कार देती है, उसे अहंकारी नहीं बनाती. शिक्षा की सार्थकता केवल डिग्री प्राप्त करना ही नहीं है बल्कि सहीगलत का ज्ञान होना भी है. हो सके तो सच्चा इंसान बनने का प्रयत्न करो, तभी तुम्हारी शिक्षा सार्थक होगी.‘

‘हमारे मन में सुजाता के लिए कोई दुर्भावना नहीं है, मैम. पर उसे यह पुरस्कार दिए जाने से सभी को निराशा हुई है,‘ आभा ने फिर अपना पक्ष रखा.

‘इस प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल के सभी सदस्य कालेज के बाहर के हैं और वे सभी समाज के सम्मानित सदस्य हैं. उन के निर्णय पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता. मेरी मानो तो सुजाता का विरोध करने के स्थान पर तुम सब भी उस के जैसी बनने का प्रयत्न करो.‘

‘निर्णायक मंडल ने हर क्षेत्र में सुजाता को जितने अंक दिए हैं कोई दूसरी छात्रा उस के आसपास भी नहीं ठहरती और हां मैं तो यह कहूंगी कि बाहर जा कर सुजाता को मुबारकबाद देना मत भूलना, हम सब को अच्छा लगेगा,‘ प्राचार्या ने समझाया.

‘जी मैम,‘ दोनों किसी प्रकार बोलीं और प्राचार्याजी के कक्ष से बाहर निकल आईं.

बाहर तो सारा दृश्य ही बदला हुआ था, सभी छात्राएं सुजाता को घेर कर खड़ी उसे बधाई दे रही थीं. उस के चेहरे पर अनोखी चमक थी. पहली बार उन्हें सुजाता बहुत सुंदर लगी.

‘‘रोमा ठीक कहती थी, सौंदर्य तो देखने वाले की आंखों में होता है,‘‘ आभा बोली और सत्या के साथ उसे बधाई देने चल पड़ी.

Storytelling 2025 : जय बाबा सैम की

Storytelling 2025 : अंकिता ने अमित को अपने खास दोस्तों से मिलवाने के लिए अपनी सहेली महक के घर लंच पर बुलाया था. उन दोनों को वहां पहुंचे चंद मिनट ही हुए होंगे कि अंकिता की दूसरी प्रिय सहेली रिया भी अपने पति राजीव के साथ आ पहुंची.

महक के पति मोहित ने रिया पर नजर पड़ते ही उस की तारीफ की, ‘‘रिया, आज तो तुम्हें देख रास्ते में न जाने कितने लड़के गश खा कर गिरे होंगे.’’

‘‘एक भी नहीं गिरा,’’ रिया ने उदास दिखने का अभिनय किया.

‘‘मैं नहीं मान सकता. देखो, संसार की सब से खूबसूरत स्त्री को सामने देख कर मेरा दिल कितना तेज धड़क रहा है,’’ अपनी छाती पर रखने के लिए मोहित ने अचानक रिया का हाथ पकड़ लिया.

‘‘जय बाबा सैम की…’’ रिया ने अपना हाथ छुड़ाने का प्रयास करने के बजाय शरारती अंदाज में नारा लगाया.

‘‘जय…’’ अंकिता और महक ने हाथ उठा कर जोशीली आवाज में नारा पूरा किया तो मोहित ने झेंपते हुए रिया का हाथ छोड़ दिया.

अमित को इन तीनों सहेलियों का व्यवहार अटपटा लगा.

‘‘यार, इस नए बंदे के सामने तो अपने बाबा सैम का गुणगान इतनी जल्दी शुरू मत करो,’’ मोहित ने बुरा सा मुंह बना कर टिप्पणी की.

‘‘हम मरते दम तक भी बाबा का गुणगान करना बंद नहीं करेंगे,’’ महक ने अपने पति के गाल पर प्यार से चिकोटी काटी.

‘‘उन्होंने हमें जो ज्ञान दिया है, उसे हम तीनों ने हमेशा के लिए गांठ बांध लिया है,’’ अंकिता ने महक की बात का समर्थन किया.

‘‘यह बाबा सैम कौन हैं?’’ अमित ने उत्सुकता दर्शाते हुए अंकिता से सवाल पूछा.

‘‘सैम का किस्सा तुम्हें जरा फुरसत में सुनाऊंगी अमित, पहले यह बताओ कि चाय पियोगे या कौफी?’’ महक ने टालते हुए कहा.

‘‘मैं चाय पिऊंगा.’’

सालभर पहले अंकिता अपनी इन दोनों करीबी सहेलियों महक और रिया से परिचित नहीं थी. एक रविवार की सुबह ये दोनों बिना कोई सूचना दिए पहली बार उस से मिलने कामकाजी महिलाओं के होस्टल में आ पहुंची थीं. महक ने अपना परिचय दिया तो पता चला कि वह मेरठ की रहने वाली है और वहां कालेज में समीर के साथ पढ़ा करती थी. समीर जौब करने दिल्ली आ गया था जबकि महक मेरठ में एक पब्लिक स्कूल में पढ़ा रही थी.

उस दिन महक ने गंभीर लहजे में अंकिता को बताया था, ‘‘किसी जानकार ने मुझे महीनाभर पहले बताया कि उस ने समीर को एक सुंदर लड़की के साथ फिल्म देख कर बाहर निकलते देखा था. यह सुन कर मेरा माथा ठनका, क्योंकि समीर ने मुझ से शादी करने का वादा कर रखा है. हम दोनों के बीच प्रेम का रिश्ता करीब 4 साल से चल रहा है. कहीं वह मुझे धोखा तो नहीं दे रहा, यह जानने के लिए मैं ने जब उस के पीछे एक प्राइवेट डिटैक्टिव लगाया तो पता चला कि जनाब दिल्ली में एक नहीं बल्कि 2-2 लड़कियों से चक्कर चला रहे हैं.’’

उस का इशारा अंकिता और रिया की तरफ था. अंकिता समीर की कंपनी में जौब कर रही थी जबकि रिया से उस का परिचय किसी दोस्त के माध्यम से एक विवाह समारोह में हुआ था.

उन तीनों ने आपस में खुल कर बातें कीं तो समीर की बेवफाई सामने आ गई. वह अंकिता और रिया के साथ भी प्यार का खेल खेल रहा था.

बहुत ज्यादा परेशान और गुस्से में नजर आ रही महक बोली, ‘‘हमारे लिए सब से पहले यह जानना जरूरी है कि समीर हम में से किसी का जीवनसाथी बनने लायक है भी या नहीं. अगर वह हम तीनों को बेवकूफ बना कर हमारी भावनाओं से खेल रहा है तो हिसाब बराबर करने के लिए हमें उसे तगड़ा सबक सिखाना चाहिए.’’

उन तीनों ने साथ बैठ कर समीर की असलियत उजागर करने के लिए योजना बनाई. फिर योजनानुसार पहले अंकिता ने फोन कर के समीर से कहा कि वह आज शाम उस के साथ गुजारना चाहती है. उस ने 6 बजे नेहरू पार्क में उसे मिलने के लिए बुलाया.

रिया ने भी उसी शाम समीर को अपने घर में 6 बजे चाय पीने के लिए बुलाया. बातोंबातों में वह उसे यह बताना नहीं भूली कि उस शाम उस के मातापिता भी घर पर नहीं होंगे.

आखिर में महक ने समीर को फोन कर के जानकारी दी कि वह एक रिश्तेदार को देखने आज दिल्ली आ रही है और रात 8 बजे के करीब वापस मेरठ लौट जाएगी. अत: उस ने 6 बजे उसे अपने मामा के घर मिलने के लिए बुलाया.

समीर ने उन तीनों से ही शाम 6 बजे मिलने का वादा कर लिया.

अमित ने चाय का पहला घूंट भरने के बाद जायकेदार चाय बनाने के लिए महक की दिल खोल कर तारीफ की.

महक ने प्रसन्न अंदाज में अमित से पूछा, ‘‘अब तुम यह बताओ कि हमारी अंकिता के साथ तुम ने इश्क का चक्कर कब, कहां और कैसे चलाया?’’

‘‘यह मेरे दोस्त नीरज की शादी में आई हुई थी. मैं तो पहली ही नजर में इसे अपना दिल दे बैठा था,’’ अमित ने कुछ शरमाते हुए सब को जानकारी दी.

‘‘पहली बार अंकिता को देख कर मुझ पर भी कुछ ऐसा ही प्रभाव पड़ा था, पर अफसोस कि तब तक मेरी बरात रिया के फार्म हाउस तक पहुंच चुकी थी,’’ राजीव के इस मजाक पर सब दिल खोल कर हंसे तो रिया ने चिढ़ाने वाले अंदाज में अपनी जीभ निकाली.

‘‘अच्छा, एक बात बताओ. क्या तुम किसी भी सुंदर लड़की को देख कर लाइन मारना शुरू कर देते हो?’’ महक ने एक ही झटके से यह टेढ़ा सवाल अमित से पूछा.

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है,’’ अमित की आवाज में लड़खड़ाहट थी.

‘‘ऐसी बात हो भी तो फिक्र नहीं,’’ महक ने उस की टांग खींचना जारी रखा, ‘‘किसी भी सुंदर लड़की को देखते ही अगर तुम्हारे सिर पर लाइन मारने का भूत सवार हो जाता हो तो अपना यह शौक तुम रिया और मेरे साथ फ्लर्ट कर के पूरा कर लेना. हम दोनों ऐसी किसी छेड़छाड़ का बिलकुल बुरा नहीं मानेंगी.’’

‘‘वाह, क्या खुलेआम झूठ बोला जा रहा है यहां,’’ मोहित ने हंसते हुए अपनी पत्नी की बात का विरोध किया, ‘‘बहुत अच्छी हैं ये सालियां, हंसीमजाक करो और खाओ इन से गालियां… कितनी शानदार और बढि़या तुकबंदी की है न मैं ने, राजीव?’’ मोहित ने खुद ही अपनी तारीफ कर डाली.

राजीव के बोलने से पहले ही रिया ने उस की बात को खारिज करते हुए कहा, ‘‘बिलकुल झूठी बात है यह. सहेलियो, हम स्वस्थ हंसीमजाक का जवाब गालियों से बिलकुल नहीं देतीं लेकिन जब मामला शालीनता की सीमा तोड़ता नजर आए तो ही मजबूर हो कर यह नारा लगाती हैं, ‘‘बोलो, बाबा सैम की…’’

‘‘जय…’’ तीनों सहेलियों ने एकसाथ जोशीले अंदाज में ‘जय’ कहा, तो राजीव और मोहित से आगे कुछ कहते नहीं बना.

समीर के मन में खोट था और वह शाम को 6 बजे रिया या महक के बजाय अंकिता से मिलने पहुंच गया. घर में किसी और के न होने का फायदा उठाते हुए जब वह जबरदस्ती उस के कपड़े उतारने की कोशिश करने लगा तो बैडरूम में छिपी महक और रिया वहां से निकल कर उस के सामने ड्राइंगरूम में आ गईं. उन तीनों को एकसाथ सामने देख समीर की हालत एकदम से बेहद खस्ता हो गई. उस ने महक को सफाई देने की कोशिश की, पर उस का झूठ चला नहीं.

उन तीनों के तेज गुस्से को भांप उस ने अपनी जान बचा कर वहां से भागने की कोशिश की, पर तीनों गुस्साई शेरनियों के चंगुल से वह कैसे बच सकता था. तीनों ने उस चालबाज इंसान की पहले जम कर चप्पल व सैंडिलों से धुनाई की और फिर उसे एक झटके में अपनीअपनी जिंदगियों से निकाल कर फेंका.

महक और रिया उस रात अंकिता के घर में ही रुकीं. उस रात साथसाथ हंस और आंसू बहा कर सुबह तक वे तीनों अच्छी सहेलियां बन गई थीं. महक ने वार्त्तालाप को फिर से रास्ते पर लौटाते हुए इस बार अंकिता से पूछा, ‘‘क्या तू ने भी अमित को अपना भावी जीवनसाथी बनाने का फैसला उसी रात कर लिया था?’’

अंकिता ने प्यार से अमित का हाथ पकड़ कर जवाब दिया, ‘‘नहीं, मुझे तो इन जनाब को अपना भावी जीवनसाथी स्वीकार करने में महीना लग गया. वैसे मुझे नहीं लगता कि अमित दिलफेंक इंसान है. इसलिए तुम दोनों इसे ज्यादा तंग मत करो.’’

‘‘क्या हम तुम्हें तंग कर रही हैं?’’ महक ने अमित का हाथ थाम कर बड़ी अदा से पूछा.

‘‘नहीं तो,’’ उस के खुले व्यवहार ने अमित को शरमाने पर मजबूर कर दिया था.

‘‘शरमाओ मत, अमित. मौका मिलते ही अपनी इन दोनों सालियों से फ्लर्ट किया करो, क्योंकि किसी और लड़की के साथ फ्लर्ट करना तुम्हारे लिए अब ख्वाब बन कर रह जाएगा,’’ मोहित ने शरारती अंदाज में मुसकराते हुए अमित को सलाह दी.

‘‘लगे हाथ तुम्हें एक किस्सा और सुना देती हूं,’’ महक ने एकाएक संजीदा हो कर बोलना शुरू किया, ‘‘तुम्हें नेक सलाह देने वाले मेरे पति पर भी मात्र 6 महीने पहले शिखा नाम की एक खूबसूरत तितली से रोमांस करने का भूत चढ़ा था. जब हम तीनों को इन के रोमांस के बारे में पता चला…’’

मोहित ने अपनी पत्नी को टोकते हुए सफाई दी, ‘‘मुझ पर उस से इश्क लड़ाने का भूत नहीं चढ़ा था बल्कि शिखा ही इस स्मार्ट बंदे के पीछे हाथ धो कर पड़ गई थी.’’

उस के कहे कोअनसुना कर महक ने बोलना जारी रखा, ‘‘…तो हम तीनों शिखा से मिलने उस के फ्लैट पर पहुंच गईं. तुम अंदाजा लगा सकते हो कि हम तीनों गुस्साई शेरनियों ने शिखा का क्या हाल किया होगा. हम से उस ने थप्पड़ भी खाए और कुछ कीमती सामान भी हमारे हाथों तुड़वाया. मुझे विश्वास है कि हमारी शक्लें याद कर उसे महीनों ढंग से नींद नहीं आई होगी,’’ रिया अमित को यह बताते हुए काफी खुश लग रही थी.

मोहित ने झेंपे से अंदाज में मुसकराते हुए अमित को सफाईर् दी, ‘‘मेरे मन में कोई खोट नहीं था, पर इन्हें कौन समझाए. तुम ही बताओ कि किसी से मारपीट करना अच्छी बात है क्या?’’

‘‘बाबा सैम के साथ हुए अनुभव ने हमें उस मामले में बिलकुल सही राह दिखाई थी. बोलो, बाबा सैम की…’’

‘‘जय…’’ महक की आवाज में अपनी आवाज मिलाते हुए तीनों सहेलियों ने नारा लगाया और फिर जोर से हंसने लगीं.

समीर वाली घटना से सबक ले कर उस रात वे तीनों इस नतीजे पर पहुंचीं कि अधिकतर स्मार्ट, सुंदर और सफल युवक शादी होने के बाद भी अन्य खूबसूरत लड़कियों के साथ फ्लर्ट करेंगे. समस्या यह थी कि वे तीनों अपने भावी जीवनसाथी के रूप में ऐसे ही स्मार्ट, सुंदर और सफल  युवकों के सपने देखती थीं.

‘‘हमारे जीवनसाथी हमें अंधेरे में रख कर समीर की तरह मूर्ख बनाएं, हम ऐसी नौबत कभी आने ही नहीं देंगी. हम अपने पतियों की किसी गलत हरकत को कभी एकदूसरे से नहीं छिपाएंगी. उन्होंने अगर किसी अन्य लड़की से गलत रिश्ता बनाने की कोशिश की तो हम तीनों मिल कर उस अवैध प्रेम संबंध का समूल नाश करेंगी. चालाक और चरित्रहीन समीर आज से हमारे लिए ‘बाबा सैम’ हुआ और उस से मिले सबक को हम तीनों कभी नहीं भूलेंगी,’’ तीनों सहेलियों ने उस दिन से एकदूसरे के हितों का हमेशा ध्यान रखने की कसम खाई थी.

हंसी का दौर थम जाने के बाद महक ने अमित को बताया, ‘‘शिखा का हम ने जो बुरा हाल किया था, उस की खबर इश्क लड़ाने की शौकीन अन्य खूबसूरत तितलियों तक हम ने ही पहुंचाई. आज की तारीख में वे सब इन दोनों कामदेव के अवतारों से फ्लर्ट करने से डरती हैं.’’

राजीव ने अमित को भावुक लहजे में समझाने का नाटक करना शुरू किया, ‘‘अमित, मेरी मानो तो अंकिता के साथ शादी करने से बचो. शादी के बाद तुम्हें मन मार कर जीना पड़ेगा. जब भी कोई सुंदर लड़की तुम से हंसनाबोलना शुरू करेगी तो इन तीनों की सैम बाबा का नारा लगाती सूरतें आंखों के सामने आ कर तुम्हारी जबान को लकवा मार देंगी.’’

‘‘मेरे दिल में न अब खोट है, न कभी आएगा. अंकिता से शादी कर के मैं खुशीखुशी इन तीनों शेरनियों के साथ रिश्ता जोड़ने को तैयार हूं,’’ खुल कर मुसकराते अमित ने उस की सलाह को नजरअंदाज करते हुए अंकिता का हाथ चूम लिया.

अमित की आंखों में अपने लिए प्यार का सागर लहराते देख अंकिता खुश हो कर उस के गले लग गई.

‘‘मैं ने गाजर का हलवा बनाया है. हमारे गु्रप में एक समझदार इंसान के शामिल होने की खुशी में मैं सब का मुंह मीठा कराती हूं,’’ महक किचन की तरफ चली गई थी.

‘‘अमित, हमारे इतना समझाने के बावजूद तुम ने ‘आ बैल मुझे मार’ वाली कहावत सच साबित कर दी है,’’ मोहित ने यों अपना चेहरा लटका लिया मानो सचमुच बहुत दुखी हो, तो बाकी सब ने उस के इस बढि़या अभिनय पर जोरदार ठहाका लगाया.

कुछ देर बाद गाजर के हलवे का स्वाद चखते ही राजीव ने महक से कहा, ‘‘महक, जरा अपना हाथ इधर करो, मैं उसे चूमना चाहता हूं.’’

‘‘किस खुशी में?’’

‘‘बहुत स्वादिष्ठ हलवा बनाया है तुम ने.’’

‘‘मुंह से मेरी तारीफ कर देने से काम चल जाएगा.’’

‘‘पर हाथ चूम कर तारीफ करने का मजा ही कुछ और है,’’ कहते हुए राजीव ने महक का हाथ पकड़ लिया.

‘‘बोलो, बाबा सैम की…’’ महक ने हाथ छुड़ाने की कोशिश किए बिना नारा लगाने की शुरुआत की.

‘‘जय…’’ रिया और अंकिता नाटकीय अंदाज में आंखें तरेरती हुईं अपनी सहेली की सहायता करने को उठ खड़ी हुईं.

राजीव ने महक का हाथ छोड़ा और मोहित की तरफ देख कर मरे से स्वर में बोला, ‘‘बाबा सैम…’’

‘‘हाय… हाय…’’ मोहित ने बेहद दुखी इंसान की तरह अपना माथा ठोंकते हुए नारा पूरा करने में उस का साथ दिया तो बाकी सभी हंसतेहंसते लोटपोट हो गए.

Online Hindi Story 2025 : तिकड़ी और पंच

Online Hindi Story 2025 : आज कालेज का पहला दिन था. चारों तरफ चहलपहल और गहमागहमी का माहौल एहसास करा रहा था कि आज से कालेज का नया सत्र शुरू हो गया है. छात्रछात्राएं एकदूसरे का इंट्रोडक्शन लेने में व्यस्त थे.

स्कूल से निकल कर कालेज लाइफ में प्रवेश करने पर जहां छात्रछात्राओं में एक अलग ही आत्मविश्वास और उत्साह नजर आ रहा था, वहीं पुराने छात्र खुद को सीनियर्स की श्रेणी में पा कर फूले नहीं समा रहे थे.

‘‘हाय, आई एम दिवाकर…दिवाकर सक्सेना… ऐंड यू?’’ उस ने एक खूबसूरत छात्रा की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘आई एम केपी… केपी, आई मीन कुनिका पांडे. फर्स्ट ईयर कौमर्स,’’ जवाब आया.

‘‘आई एम फर्स्ट ईयर इंगलिश औनर्स,’’ दिवाकर ने हाथ मिलाते हुए कहा.

वहीं इसी कालेज के कुछेक छात्र पिछले 4-5 साल से सीनियर्स का तमगा गले में लटकाए अपनी सीनियौरिटी की धौंस जमाते फिर रहे थे, दरअसल, पढ़ाई से उन का कोई लेनादेना नहीं था. वे अमीरजादे थे इसलिए मांबाप की दौलत पर ऐश कर रहे थे.

विशाल, कमल और मुन्ना की तिकड़ी ने अपने गैंग का नाम रखा था त्रिशंकु और तीनों के गले में टी आकार का लौकेट लटका रहता था. कालेज परिसर में मोटरसाइकिलें धड़धड़ाते हुए घुसना, छेड़छाड़ करना, मारपीट, छीनाझपटी, मुफ्तखोरी कर घर चले जाना यही इन का सिलेबस था.

कालेज प्रशासन, अभिभावक, छात्रछात्राएं, स्टाफ, कैंटीनकर्मी सभी इन से परेशान थे. चिकने घड़े पर गिरे पानी की तरह इन पर किसी की बात का असर ही नहीं होता था.

आज कालेज का पहला दिन होने के कारण यह तिकड़ी रैगिंग के मूड में छटपटा रही थी. कालेज लौन में लगे बरगद के घने छायादार पेड़ के नीचे बैठे ये माहौल को कुछ गरमाने की ताक में थे. ये गिद्ध दृष्टि लगाए सोच रहे थे कि शुरुआत कहां और किस से की जाए.

त्रिशंकु के इन गिद्धों को पता नहीं था कि उन की टक्कर का और शायद उन से अधिक खुर्राट कोई और भी कालेज में आ चुका है. इसी साल तिकड़ी के सरकिट विशाल की छोटी बहन अनुष्का ने भी बीए फर्स्ट ईयर में ऐडमिशन लिया था.

त्रिशंकु के कौमेडियन मुन्ना ने ठहाका लगाते हुए विशाल से कहा, ‘‘बौस, एक बात और भी है, जिस की तरफ अभी तक हमारा ध्यान ही नहीं गया.’’

‘‘वह क्या है?’’ विशाल ने अपने चिरपरिचित दादागीरी वाले अंदाज में पूछा.

‘‘बौस, इस साल हमें संभल कर चलना होगा, क्योंकि तुम्हारी बहन ने भी तो कालेज में ऐडमिशन लिया है.’’

‘‘तो फिर?’’ विशाल उसे घूरता हुआ बोला.

‘‘यार, तुम समझते क्यों नहीं कि तुम्हारी हरकतों का आंखों देखा हाल तुम्हारे मम्मीपापा को अब हर शाम मिलेगा,’’ मुन्ना अचानक समझदार हो गया था.

‘‘अरे, तू घबरा मत, कुछ नहीं होगा. उन्हें सब पता है. अपना तो बस, एक ही फंडा है और रहेगा, खाओपीओ, मौज करो, पेमैंट करेंगे जूनियर्स,’’ खोखली सी हंसी हंसता हुआ वह बोला.

उधर नए छात्र दिवाकर की भी 4 लोगों की एक टीम थी, जो स्कूल से ही उस के साथ आई थी यानी 5 का पंच. ये सभी पढ़ाकू, मेहनती, ईमानदार और मध्यवर्गीय परिवारों से आए थे, जिन का लक्ष्य था पढ़ाई के अलावा परिसर में किसी किस्म की बदतमीजी और गुंडागर्दी नहीं चलने देना और किसी के साथ हो रही ज्यादती को रोकना. पहले प्यार से और फिर मार से. इन्हें त्रिशंकु दल की खुराफातों के बारे में सबकुछ पता था.

दरअसल, त्रिशंकु की इस दादागीरी के पीछे एक राज था और वह यह कि विशाल के पिता कालेज के ट्रस्टीज में से  एक थे, जिस का वह नाजायज फायदा उठा रहा था.

तभी इंटरवल का सायरन बजा, जैसा होता आया था तिकड़ी कैंटीन में घुसी और एक टेबल पर बैठे फ्रैशर्स को देख कर हुक्म दिया, ‘‘अबे, देखते नहीं सीनियर्स आए हैं, टेबल खाली करो और हमारे लिए 3 कौफी और आमलेट ले कर आओ.’’

‘‘अरे, सीनियर्स हैं तो क्या हुआ, इन्होंने कैंटीन का फर्नीचर खरीद लिया है?’’ नए आए छात्र अशफाक ने कहा.

‘तड़ाक,’ उसे शायद थप्पड़ की उम्मीद नहीं थी. वह कुरसी से गिर पड़ा. बाकी बैठे छात्र भी टेबल छोड़ कर खड़े हो गए.

‘‘अरे…अरे, खड़े क्यों हो गए बैठोबैठो. वाकई कैंटीन का फर्नीचर किसी के बाप की बपौती नहीं है. बैठ जाओ,’’ पीछे से आई रौबदार आवाज की ओर सभी का सिर घूमा.

कैंटीन के दरवाजे पर दिवाकर अपने साथियों के साथ खड़ा था. उस ने आगे बढ़ कर अशफाक को सहारा दे कर उठाया और उसी टेबल पर बैठा दिया जहां न बैठने की धौंस तिकड़ी दे रही थी. वह विशाल की ओर देख कर मुसकराया. इस पर तिकड़ी आगबबूला हो गई. विशाल ने दिवाकर को ललकारते हुए कहा, ‘‘अबे, ओ चिकने, हम से मत उलझ, तू मुझे जानता नहीं.’’

बजाय उस की बात पर ध्यान देने के दिवाकर ने नए आए छात्रों को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘आज के बाद या कहूं अभी से इन लफंगों को कोई अपनी सीट नहीं देगा, कोई इन के लिए कौफी, ठंडा या आमलेट नहीं लाएगा. अब तक जो होता आया है वह आगे नहीं होगा. आप सब लोग अपनीअपनी जगह पर बैठें और ऐंजौय करें. वैसे भी लंच टाइम के 15 मिनट बचे हैं,’’ दिवाकर ने समझाया.

तभी तिकड़ी का कौमेडियन मुन्ना चहका, ‘‘बौस, इस ने तो आप का हुक्म मानने से इनकार कर दिया. कहो तो धो दूं.’’

इस से पहले कि कोई कुछ समझ पाता एक झन्नाटेदार थप्पड़ ने उसे 5 फुट दूर फेंक दिया. फिर क्या था, पंच ने तिकड़ी को जम कर धोया.

‘‘तू समझता है कि हाथ सिर्फ तेरे पास ही हैं. जो कुछ तू करता आया है, वह हम भी कर सकते हैं. मगर न तो ये हमारी फितरत है और न आदत. अपनी इज्जत का खयाल नहीं तो अपनी बहन की इज्जत का खयाल कर ले,’’ विशाल को कौलर से पकड़ कर उठाते हुए दिवाकर ने कहा.

विशाल की बहन अनुष्का यह सब दूर खड़ी देख रही थी. उस के चेहरे पर संतोष के भाव थे कि चलो, ‘सेर को कोई तो सवा सेर मिला.’

‘‘कोई तेरी बहन को तंग करे तो तुझे कैसा लगेगा,’’ दिवाकर ने चुटकी लेते हुए कहा.

‘‘कोई उसे कुछ कह कर तो देखे, अपने पैरों से चल कर घर नहीं जा पाएगा,’’ पिट कर भी उस के तेवर ज्यों के त्यों थे.

‘‘अरे, तो इस में बड़ी बात क्या है, हम ही उसे कुछ कहे देते हैं,’’ कह कर दिवाकर ने अनुष्का को अपने पास बुलाते हुए कहा, ‘‘हैलो, अनु आई एम दिवाकर… दिवाकर सक्सेना, फ्रौम इंगलिश औनर्स,’’ दोनों ने हाथ मिलाया.

उस ने एक बार भाई की तरफ देखा और अपना हाथ खींच लिया. ‘‘घबराओ मत, मैं ऐंगेज्ड हूं, मेरी सगाई हो चुकी है. यों भी मुझे आप से दोस्ती या अफेयर में कोई दिलचस्पी नहीं है. ये सब इस सिरफिरे को सबक सिखाने के लिए जरूरी था. तुम मेरी भी बहन की तरह हो. मेरी तुम पर पूरे 3 साल नजर रहेगी. कोई प्रौब्लम हो तो बताना.’’

विशाल चुपचाप उठ कर कैंटीन से बाहर जाने लगा तो दिवाकर ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘विशाल, मेरी तुम से कोई दुश्मनी नहीं है, लेकिन ये समझ लो कि तुम्हारी दादागीरी के दिन लद गए. तुम पढ़ो या न पढ़ो, मुझे इस से कोई मतलब नहीं, मगर आज से सबकुछ बंद.’’

विशाल सचाई समझ चुका था. अगले 3 साल तिकड़ी और पंच दोस्त बन कर रहे. इस दौरान कालेज में न तो कोई मारपीट हुई और न ही रैगिंग.

Best Story Online : कुंआरे बदन का दर्द

लेखक- जैनुल आबेदीन खां      

Best Story Online : शबनम अकेले ही एक टेबल पर बैठ कर खाना खा रही थी और जावेद अलग टेबल पर. 5 सालों के बाद उन के चेहरों में कोई खास फर्क नहीं आया था.

शबनम को खातेखाते कुछ याद आया और वह खाना छोड़ कर जावेद के टेबल की तरफ बढ़ी. शायद उसे 5 साल पहले की कोई बात याद आई थी.

‘‘आप ने खाने से पहले इंसुलिन

का इंजैक्शन लिया है कि नहीं?’’ शबनम ने जावेद से पूछा.

‘‘इंजैक्शन लिया है. लेकिन 5 साल तक तलाकशुदा जिंदगी गुजारने के बाद तुम्हें कैसे याद है?’’ जावेद ने पूछा.

‘‘जावेद, मैं एक औरत हूं.’’

‘‘तुम्हारे जाने के बाद, इतना मेरा किसी ने खयाल नहीं रखा,’’ जावेद

ने कहा.

‘‘अगर ऐसी बात थी तो तुम ने मुझे तलाक क्यों दिया?’’

‘‘वह तो तुम जानती हो…

5 साल साथ रहने के बाद भी तुम मां नहीं बन पाई और बच्चा तो हर किसी को चाहिए.’’

‘‘अगर तुम बच्चा पैदा करने के लायक होते तो क्या मैं नहीं देती?’’ शबनम ने कहा और अपनी टेबल की तरफ बढ़ गई.

जब वे दोनों होटल से बाहर निकले तो फिर मेन गेट पर उन की मुलाकात

हो गई.

‘‘चलो, कुछ दूर साथ चलते हैं,’’ जावेद ने कहा.

‘‘जिंदगीभर साथ चलने का वादा था लेकिन तुम ने ही मुझे तलाक दे कर घर से निकाल दिया,’’ शबनम बोली.

‘‘जो होना था, हो गया. अब यह बताओ कि तुम यहां आई कैसे?’’

‘‘जब तुम ने तलाक दिया तो मैं अपने मांबाप के पास गई. वे इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर सके और 6 महीने के अंदर ही दोनों चल बसे. मैं तो उन की कब्र पर भी नहीं जा सकी क्योंकि औरतों का कब्रिस्तान में जाना सख्त मना है.

‘‘उस के बाद मैं भाई के पास रही थी. भाई तो कुछ नहीं बोलता था, लेकिन भाभी के लिए मैं बोझ बन गई थी. वह रातदिन मेरे भाई के पीछे पड़ी रहती और मुझे जलील करते हुए कहती थी कि इस की दूसरी शादी कराओ, नहीं तो किसी के साथ भाग जाएगी.

‘‘तुम नहीं जानते कि कोई मर्द तलाकशुदा औरत से शादी नहीं करता. सब को कुंआरी लड़की और कुंआरा बदन चाहिए.

‘‘भाई बहुत इधरउधर भागा, पर कहीं कोई मेरा हाथ थामने वाला नहीं मिला. आखिरकार उस ने एक बूढ़े आदमी से मेरी शादी करा दी. वह दिनभर बिस्तर पर पड़ा रहता और मैं उस की एक नर्स हूं. उसे समय से दवा देना, खाना खिलाना या बाथरूम ले जाना, यही मेरी ड्यूटी?थी.

‘‘मुझे यह भी मालूम है कि तुम ने दूसरी शादी कर ली और तुम को दोबारा एक कुंआरी लड़की मिल गई. लेकिन मेरी जिंदगी को तो तुम ने सीधे आग की लपटों में फेंक दिया. और मैं नामुराद दूसरी शादी के बाद भी जल रही हूं.

‘‘तुम ने मुझे तलाक दे दिया और मेरे कुंआरे बदन का सारा रस निचोड़ लिया. एक औरत की जिंदगी क्या होती?है, तुम्हें मालूम नहीं है,’’ शबनम ने अपना दर्द बताया. उस की आंखों में आंसू आ गए. वह रोतेरोते पत्थर की बनी एक कुरसी पर बैठ गई.

जावेद सबकुछ एक बुत की तरह सुनता रहा और फिर अपना वही सवाल दोहराया, ‘‘तुम इस शहर में कैसे आई?’’

‘‘मेरा बूढ़ा पति बहुत बीमार है. मैं ने उसे एक अस्पताल में भरती कराया है.’’

‘‘उस की उम्र क्या है?’’ जावेद

ने पूछा.

‘‘70 साल से भी ऊपर?है,’’ शबनम ने जवाब दिया.

‘‘फिर तो उम्र का बहुत फर्क है,’’ जावेद बोला.

जब शबनम वहां से उठ कर जाने लगी तो जावेद ने आगे बढ़ कर उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘मुझे माफ कर दो.’’

‘‘तलाक माफी मांगने से नहीं खत्म होता है. तुम ने मुझे तलाक दे कर जैसे किसी ऊंची पहाड़ी से नीचे धकेल दिया और मैं नरक में चली गई,’’ और फिर शबनम अपना हाथ छुड़ा कर वहां से चली गई.

दूसरे दिन जावेद शाम को उसी होटल के सामने शबनम का इंतजार करता रहा. वह आई और बगैर कुछ बोले ही होटल के अंदर चली गई.

जावेद पीछेपीछे गया और उस के पास बैठ गया. दोनों ने एकदूसरे को

देखा और उन के बीच रस्मी बातचीत शुरू हो गई.

‘‘तुम्हारी मम्मी कैसी हैं?’’ शबनम ने पूछा.

‘‘ठीक हैं. अब वे भी काफी बूढ़ी हो चुकी हैं.’’

‘‘उन को मेरी याद तो नहीं आती होगी. मुझे 5 साल तक बच्चा नहीं हुआ तो उन्होंने मेरा तुम से तलाक करा दिया और तुम्हारी बहन जरीना को 7 साल से बच्चा नहीं हुआ तो कोई बात नहीं, क्योंकि जरीना उन की अपनी बेटी है, बहू नहीं.’’

‘‘चलो जो होना था हो गया. यह हम दोनों का नसीब था,’’ जावेद ने अफसोस जताते हुए कहा.

‘‘नसीब बनाया भी जाता है और बिगाड़ा भी जाता है. अगर औरतों की सोच गलत होती?है तो घर के मर्द एक लोहे की दीवार की तरह खड़े हो जाते हैं. वैसे, औरतें ही औरतों की दुश्मन होती हैं.’’

जावेद के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था. वह होटल की छत की तरफ देखने लगा. फिर उस ने बात को बदलते हुए कहा, ‘‘क्या मेरी मम्मी से बात करोगी?’’

‘‘हां, लगाओ फोन. मैं बात कर लेती हूं.’’

जावेद ने अपनी मां को फोन लगा कर कहा, ‘‘मम्मी, शबनम आप से बात करना चाहती है.’’

‘‘तोबातोबा, तुम अपनी तलाकशुदा औरत के साथ हो. यह हमारे मजहब के खिलाफ है. मैं उस से बात नहीं करूंगी,’’ उस की मां की आवाज स्पीकर पर शबनम को भी सुनाई दी.

‘‘जावेद, तुम उन का नंबर दो. मैं अपने मोबाइल फोन से बात करूंगी.’’

जावेद ने शबनम का मोबाइल फोन ले कर खुद ही नंबर लगा दिया. घंटी बजने लगी. उधर से आवाज आई, ‘कौन?’

‘‘मैं आप की बहू शबनम बोल रही हूं. आप ने अपने लड़के से मुझे तलाक दिलवाया, वह एकतरफा तलाक था. मेरे मांबाप को इस का इतना दुख हुआ कि वे मर गए. अब मैं तुम्हारे लड़के जावेद को ऐसा तलाक दूंगी कि वह भी तुम्हारी जिंदगी से चला जाएगा.’’

उधर से टैलीफोन कट गया, लेकिन जावेद के चेहरे पर सन्नाटा छा गया. उस ने कहा, ‘‘तुम मेरी मम्मी से क्या फालतू बात करने लगी थी…’’

शबनम ने जावेद की बात का कोई जवाब नहीं दिया.

अब भी वे दोनों कई दिनों तक रात का खाना खाने उस होटल में आए लेकिन अलगअलग टेबलों पर बैठ कर चले गए, क्योंकि रिश्ता तो टूट ही गया था और अब बातों में कड़वाहट भी आ गई थी.

एक दिन होटल में शबनम जल्दी आई, खाना खा कर बाहर पत्थर की बनी कुरसी पर बैठ गई और जावेद का इंतजार करने लगी. जावेद जब खाना खा कर निकला तो शबनम ने उसे आवाज दी, ‘‘आओ, कहीं दूर तक इन पहाड़ों में घूम कर आते हैं. मेरे बूढ़े पति की अस्पताल से छुट्टी हो गई है. मैं अब चली जाऊंगी. इस के बाद यहां नहीं मिलूंगी.’’

वे दोनों एकदूसरे के साथ गलबहियां करते हुए टाइगर हिल के पास चले आए जहां ऐसी ढलान थी कि अगर किसी का पैर फिसल जाए तो सीधे कई गहरे फुट नीचे नदी में जा गिरे.

शबनम ने साथ चलतेचलते जावेद से कहा, ‘‘मैं तुम्हारा अपने मोबाइल फोन से फोटो लेना चाहती हूं क्योंकि अब हम नहीं मिलेंगे. तुम इस ढलान पर खड़े हो जाओ ताकि पीछे पहाड़ों का सीन फोटो में अच्छा लगे.’’

जावेद मुसकराया और फोटो खिंचवाने के लिए खड़ा हो गया. शबनम उस के पास आई, मानो वह सैल्फी लेगी. तभी उस ने जावेद को जोर से धक्का दिया और चिल्लाई, ‘‘तलाक… तलाक… तलाक…’’ जावेद ढलान से गिरा, फिर नीचे नदी में न जाने कहां गुम हो गया.

Best Hindi Story 2025 : रिलेशनशिप स्टेटस

राइटर- मधु शर्मा कटिहा

Best Hindi Story 2025 : ‘‘तुम ने अभी तक अपना फेसबुक स्टेटस अपडेट नहीं किया. मैं ने तो कब का सिंगल से बदल कर ‘इन ए रिलेशनशिप’ कर लिया. देख लो चाहे,’’ अपना मोबाइल सिमरन की ओर बढ़ाते हुए चेतन उसे छेड़ने के अंदाज में बोल खिलखिला कर हंस पडा. मोबाइल पर फेसबुक ऐप खुला था.

‘‘हां… हां… क्यों नहीं, कर लेती हूं मैं भी. जब मेरे मम्मीपापा आएंगे न हमें मारने सीधा शिमला से दिल्ली डंडा ले कर तब भूल जाओगे यह इश्कविश्क,’’ सिमरन भौंहें नचाते हुए होंठों पर टेढ़ी मुसकान लिए बोली.’’

‘‘विश्क का तो पता नहीं लेकिन इश्क करना कभी नहीं भूलूंगा. अरे, सच्चा आशिक  हूं तुम्हारा,’’ सिमरन को कमर से पकड़ कर चेतन ने अपने पास खींच लिया.

‘‘यह कैसी आशिकी कि शादी करने से डरते हो?’’ सिमरन मासूमियत से बोली.

‘‘डरता हूं कि मेरे मम्मीपापा की तरह तलाक न हो जाए हमारा. प्रेमीप्रेमिका बन कर रहेंगे तो बस प्यार ही प्यार होगा जीवन में. न कोई लड़ाईझगड़ा न मांग और जब कोई डिमांड नहीं तो उम्मीद के टूटने का सवाल ही नहीं. पता है तलाक तभी होता है जब रिश्ते में उम्मीदें तारतार हो जाती हैं.’’

‘‘अच्छा बहाना है शादी से बचने का,’’ आवाज में शिकायती लहजा लाने का प्रयास करते हुए सिमरन बोली.

‘‘नहीं सिमरन, सच यही है कि मैं नहीं चाहता इस रिश्ते का रूप बदले, मैं तो हमेशा ही प्यार में डूबे रहना चाहता हूं.’’

‘‘लेकिन…’’ सिमरन के मुंह से निकला ही था कि बस कहते हुए चेतन ने अपनी तरजनी उंगली सिमरन के होंठों पर रख दी, ‘‘इन नर्म, गुलाबी होंठों पर शिकायत नहीं, सिर्फ मेरा नाम अच्छा लगता है. अब कोई सवाल नहीं. ये होंठ तो सिर्फ प्यार करने और पाने के लिए बने हैं. भूल जाओ सबकुछ, ये शिकवे, ये शिकायतें. बस मैं, तुम और प्यार.’’

हिमाचल प्रदेश के एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी सिमरन ने आईएचएम शिमला से होटल मैनेजमैंट में बैचलर्स किया था. कैंपस प्लेसमैंट के दौरान दिल्ली के एक फाइवस्टार होटल द्वारा बतौर डैस्क ऐग्जिक्यूटिव चुनी गई थी. शिमला

में मातापिता और एक छोटा भाई था. पिता एक दवा बनाने वाली कंपनी में कार्यरत थे, मां हाउसवाइफ थीं.

चेतन जयपुर अपने ननिहाल में रह कर पला था क्योंकि उस की मां पति से तलाक के बाद अपने मायके आ गई थीं. चेतन के मामा बड़े व्यापारी थे लेकिन वह नौकरी करना चाहता था. जयपुर से 12वीं पास कर बिट्स पिलानी से कंप्यूटर में बी. टैक कर अपने मित्र कुणाल के साथ वह दिल्ली आ गया था. वहां कुणाल के स्टार्टअप में काम करने के बाद इन दिनों एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पैकेज पर बड़ा प्रौजेक्ट लीड कर रहा था.

कुणाल की बहन प्रगति सिमरन के साथ काम करती थी. लगभग 1 वर्ष पूर्व प्रगति के विवाह में सिमरन और चेतन की भेंट हुई थी. दोनों उसी दिन से एकदूसरे के मोह धागे में बंधने लगे थे. मुलाकातों का दौर शुरू हुआ तो चाहत बढ़ने लगी. एकदूजे के बिना रहना मुश्किल सा लगने लगा. दोनों के बीच सहमति हुई और लिव इन में रहने का फैसला हो गया. सिमरन जानती थी कि उस के पेरैंट्स यह सहन नहीं कर पाएंगे कि बेटी किसी के साथ एक पत्नी की तरह बिना विवाह के रह रही है. मातापिता के कानों तक यह समाचार पहुंचा तो रिश्ता टूटने की नौबत आ जाएगी इस डर से सिमरन चेतन पर शादी के लिए दबाव बनाया करती थी, लेकिन चेतन साफ इनकार कर देता. उस का विचार था कि विवाह प्रेम का प्रारंभ नहीं अंत होता है.

सिमरन और चेतन ने मिल कर एक घर किराए पर ले लिया. प्रगति विवाह के बाद एक दिन उन दोनों से मिलने आई तो करीने से सजे ड्राइंगरूम को देख ठगी सी रह गई. खूबसूरत गुलाबी परदे, क्रीम रंग के सोफे जिन पर गुलाब के फूलों का आकार लिए रूबी कलर के कुशन लगे थे. सोफे के एक ओर चौड़े गमले में एशियाई लिली के गुलाबी फूल कमरे की शोभा में चार चांद लगा रहे थे.

‘‘वाऊ सिमरन, मुझे पता था तुम्हें पिंक कलर बहुत पसंद है. गुलाबी के साथ बाकी रंगों का मेल भी बहुत ही खूबसूरती से किया है तुम ने. गुलाबी रंग से रंगत निखार दी कमरे की,’’ प्रगति कमरे के सौंदर्य से प्रभावित हो कर बोली.

‘‘मैं ने नहीं, चेतन ने. उस ने पता लगा लिया था कि पिंक मेरा पसंदीदा रंग है. मेरे यहां आने से पहले ही इस कमरे को सजा कर बहुत क्यूट सरप्राइज दिया था मुझे उस ने,’’ कहते हुए सिमरन के चेहरे पर गुलाबी निखार आ गया.

चेतन हंसते हुए बोला, ‘‘और यहां आने के बाद सिमरन ने बैडरूम को मेरी पसंद से रंग दिया.’’

‘‘देखूं तो,’’ कहते हुए प्रगति उठ कर चल दी. बैडरूम में हलका नीला प्रकाश बिखराता स्मार्ट बल्ब लगा था, जिस की रोशनी मंद या तेज हो सकती थी. कमरे की सजावट समुद्रतट का आभास दे रही थी.

‘‘चेतन को समंदर का किनारा बहुत अच्छा लगता है. जब मुझे उस की सी बीच को ले कर दीवानगी का पता लगा तो मैं ने बैडरूम उसी थीम को ध्यान में रखते हुए सजाने की कोशिश की,’’ सिमरन प्रगति को बताने लगी.

दीवार पर समुद्र से उठती नीली लहरों और किनारे पर नारियल के लंबेलंबे पेड़ों वाला विशाल वालस्टीकर लगा था. भूरे रंग का मखमली कालीन समुद्र किनारे बिखरी रेत सा लग रहा था. सिमरन ने बल्ब जला कर प्रगति को कमरे की सीलिंग पर देखने को कहा. वहां लगे चांदसितारों के अंधेरे में चमकने वाले थ्रीडी स्टिकर्स को देख लग रहा था जैसे सी बीच पर कोई रोमैंटिक रात किसी जोड़े का स्वागत करने के लिए तैयार है. रिमोट से बल्ब का रंग सिमरन ने दूधिया किया तो कमरा चांदनी में नहाया हुआ समुद्री किनारे सा दिखने लगा.

बैड पर आसमानी रंग की चादर और उस पर गहरे नीले रंग से बनी मरमेड की लुभावनी आकृति देख प्रगति आराम से पैर फैला कर वहां ऐसे जा बैठी जैसे समुद्र किनारे आराम करने बैठ गई हो. बैड से कुछ दूरी पर फीरोजी रंग के नैट से बने झोले और उस पर 2 सफेद रंग के तकिए देख मंत्रमुग्ध प्रगति उन पलों की कल्पना कर सकती थी जब चेतन और सिमरन उस पर लेटे, दाएंबाएं झुलते हुए भविष्य के सपने बुनते होंगे.

‘‘बस अब दोनों शादी कर डालो. इस कमरे की शान दोगनी हो जाएगी,’’ प्रगति दोनों को प्रशंसापूर्ण दृष्टि से देखते हुए बोली.

इस से पहले कि सिमरन कुछ कहती चेतन बोल उठा, ‘‘क्यों हमें जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा कर मार डालना चाहती हो मैडम प्रगति?’’

‘‘कौन सी जिम्मेदारियां बढ़ जाएंगी शादी के बाद? फैमिली जब चाहे बढ़ाना. उलटा सोच रहे हो चेतन तुम. शादी के बाद सिक्योर महसूस करोगे रिश्ते में दोनों,’’ प्रगति अपनी बात पूरी होते ही सिमरन की ओर समर्थन की आशा से देखने लगी.

सिमरन ने भी सिर हिला कर सहमति जता दी.

चेतन मुंह बनाते हुए बोला, ‘‘पता है हम दोनों कितने टैंशन फ्री हैं. एकसाथ रहने से पहले ही डिसाइड कर लिया था कि कोई नियमबंधन नहीं होंगे हमारे रिश्ते में. जो जब चाहे रिश्ते से अलग हो सकता है. देखो न फिर भी पूरा 1 साल होने वाला है एकसाथ रहते हुए हमें.’’

सिमरन और प्रगति जब शौपिंग संबंधी बातें करने लगीं तो चेतन कौफी बना कर ले आया. कौफी का मग सिमरन के हाथ में देते हुए वह कान में बुदबुदाया, ‘‘तुम ने आज ‘वर्जिन आइलैंडवाटर’ परफ्यूम क्यों लगा लिया? अपने बैडरूम से बिलकुल मैच कर रहा है, सीबीच की सोंधीसोंधी गंध में डूब रहा हूं. बेसब्र कर रही हो जान. प्रगति को वापस भेजो न जल्दी से.’’

अपना मग हाथ में ले कर चेतन प्रगति के पास जा कर बैठ गया. सिमरन और उस का चेहरा आमनेसामने था. प्रगति चेतन का चेहरा सीधेसीधे नहीं देख पा रही थी. इस का पूरा लाभ उठाते हुए चेतन सिमरन को छेड़ रहा था. कभी फ्लाइंग किस कर तो कभी नाक से खुशबू सूंघ कर दीवाना होने का अभिनय करते हुए लगातार सिमरन को देख रहा था. सिमरन बहुत मुश्किल से हंसी दबाते हुए उसे आंखें तरेर कर देख लेती थी.

प्रगति को विदा कर दोनों जैसे ही घर में घुसे चेतन ने सिमरन को अपने अंक में भर लिया. अपनी नाक उस के गालों पर फिसलाते हुए गले तक पहुंच चेतन परफ्यूम और सिमरन की मिलीजुली सुगंध में डूबनेउतराने लगा. सिमरन पर भी इस प्रेम का भरपूर प्रभाव दिख रहा था. चेतन के गले में बाहें डाल उस के गालों से अपने गाल सटाकर कुछ देर वह पलकें मूंदे मुसकराती रही. लव यू चेतन कहते हुए उस ने अपना चेहरा चेतन के सीने में छिपाया तो चेतन की बलिष्ठ भुजाएं उसे जमीन से उठा कर बैड तक पहुंचाने को अधीर हो गईं. सिमरन को अपनी गोद में ले कर बैडरूम तक पहुंचते हुए चेतन उसे हौलेहौले चूम रहा था. सिमरन को चेतन का यह अंदाज मदहोश कर रहा था.

‘मेड फौर ईचअदर’ शायद ऐसे ही जोड़ों के लिए कहा जाता होगा. हुस्न और इश्क ने इस जहां में सिमरन और चेतन बन कर जन्म लिया था.

शाम को दोनों साथसाथ बैठे अपनेअपने लैपटौप में खोए थे. एक मेल खोलते ही सिमरन चहक उठी, ‘लीला पैलेस में पोस्ट निकली है, अच्छा पैकेज दे रहे हैं. मैं अप्लाई कर देती हूं. हां, लेकिन रोज की तरह 6 बजे घर नहीं आ सकूंगी. रात 10 बजे तक रुकना पड़ेगा. फिर सुबह देर तक सोती रहूंगी. कोई ऐतराज.’’

‘‘स्वीटहार्ट, मैं तुम्हारा पति तो हूं नहीं कि पत्नी को आगे बढ़ता देख लूं. मैं तो आशिक हूं, अपनी महबूबा को फूलताफलता देखूंगा तो और जी चाहेगा प्यार करने का. रात 10 बजे के बाद लौटोगी तो खाना तैयार रखूंगा, सोने से पहले पैर भी दबा दिया करूंगा, सुबह बैडटी दे कर जगाएगा तुम्हें यह गुलाम,’’ अपना एक हाथ दिल पर रख सिर झुकाते हुए चेतन बोला.

‘‘सच में ऐसा सोचते हो या मैं शादी करने को न कह दूं इसलिए मीठे से प्रेमी बने रहते हो?’’

‘‘एक बात कहूं सिमरन? हम तो लिव इन में रह कर पतिपत्नी भी हैं लेकिन पतिपत्नी कभी प्रेमीप्रेमिका बन कर नहीं रह सकते. पूछ लेना अपनी किसी शादीशुदा सहेली से उस का अनुभव.’’

सिमरन का इंटरव्यू हुआ और उसे चुन लिया गया. दोनों ने घर की बदली हुई दिनचर्या में अपने को जल्दी ही ढाल लिया.

उस रविवार की सुबह हमेशा की तरह सिमरन अपने मम्मीपापा के फोन का इंतजार कर रही थी. फोन नहीं आया तो सिमरन ने उन को कौल कर लिया. बात खत्म होते ही दौड़ती हुई चेतन के पास आ कर खड़ी हो गई.

उस का उड़ा रंग देख कर चेतन घबरा गया, ‘‘क्या हुआ? सब ठीक तो है न?’’

‘‘चेतन मम्मीपापा शाम को यहां आ रहे हैं. घर से निकल चुके हैं. मुझे सरप्राइज देना चाह रहे थे. अच्छा हुआ मैं ने फोन कर लिया. बस की खड़खड़ और कंडक्टर की आवाज मुझे सुनाई दी तो उन्हें बताना पड़ा.’’

‘‘क्या कहोगी मेरे बारे में? कह देना कि सहेली का भाई है, कुछ दिनों के लिए आया हुआ है.’’

‘‘बुद्धू हो क्या? ऐसा कहूंगी तो साफ हो जाएगा कि हमारा क्या रिश्ता है. तुम मेरा हाथ मांग लो तो मिलवा सकती हूं उन से.’’

‘‘मजाक मत करो यार. सोचो क्या करना है?’’

‘‘मुझे एक उपाय सूझ रहा है,’’ कुछ सोचती सी सिमरन बोली, ‘‘ऐसा करते हैं कि तुम कुछ दिनों के लिए कुणाल के घर चले जाओ. वह तो सब जानता है, समझ सकेगा हमारी मजबूरी.’’

‘‘हां यह ठीक रहेगा,’’ चेतन राहत का अनुभव कर रहा था.

‘‘हम आज शाम के बाद न फोन पर बात करेंगे और न कोई मैसेज भेजेंगे एकदूसरे को. मम्मी के पास अपना मोबाइल नहीं है, पापा का यूज करती हैं और जब मैं साथ होती हूं तब मेरा भी. किसी को शक हो गया तो हमारी मुश्किलें बढ़ जाएंगी. उन के जाने के बाद मैं कौल कर लूंगी तुम को.’’

‘‘ओके. मैं अपना सारा सामान ले कर चला जाता हूं अभी. एक भी चीज रह गई तो पता नहीं क्या होगा.’’

कुणाल को फोन कर चेतन सामान पैक करने लगा. बैग तैयार हो गए तो पूरा घर देख लिया कि कोई निशानी छूट न जाए.

सिमरन ने नाश्ते में सैंडविच बना लिए. दोपहर हुई तो चेतन ने कुछ भी खाने से मना कर दिया. सिमरन से न जाने कितने दिन दूर रहना पड़े, सोच कर वह उदास हो रहा था. बैड पर बैठी सिमरन भी अन्यमनस्क सी हो रही थी. चेतन चुपचाप आ कर उस के पास बैठ गया. उस की रोनी सूरत देख सिमरन ने उस के बालों में अपनी उंगलियां फिराते हुए उस का सिर अपनी गोद में रख लिया. अपना मुख चेतन के चेहरे के समीप ला उस ने माथे पर चुंबन अंकित किया तो चेतन गुजारिश करते हुए बोला, ‘‘जाने से पहले एक बार…’’

‘‘हटो, बस एक ही बात,’’ चेतन का सिर गोद से हटा कर कृत्रिम क्रोध दिखाते हुए सिमरन बोली, ‘‘जुदाई के बारे में सोच कर मेरा कलेजा मुंह को आ रहा है और तुम्हें यह सब सूझ रहा है.’’

‘‘अरे मैं भी तो तुम से दूर होने की बात से परेशान हूं. कुछ देर रोमांस करेंगे तो टैंशन दूर होगी न.’’

‘‘तुम्हें टैंशन दूर करने का एक ही तरीका आता है. जब तक मम्मीपापा मेरे साथ रहेंगे क्या टैंशन में नहीं रहोगे? तब कहां जाओगे इस टैंशन को दूर करने?’’

सिमरन की बात सुन चेतन शरारती मूड में आ गया, ‘‘कहीं भी चला जाऊंगा. हम ने तो अपने रिश्ते को बंधनों से दूर रखने की शर्त रखी हुई है न.’’

‘‘यही होगा एक दिन. मैं जानती हूं,’’ सिमरन फूटफूट कर रोने लगी.

‘‘अरेअरे, तुम मजाक का कब से बुरा मानने लगीं? न न आंसू नहीं,’’ सिमरन के आंसुओं को अपनी हाथ से पोंछ आंखों को चूमते हुए चेतन बोला.

चेतन से सटी, नम आंखें और लाल नाक लिए सिमरन की रुलाई रोके नहीं रुक रही थी. अपने स्वर को मार्मिक सा बनाते हुए चेतन ने राजेश खन्ना स्टाइल में ‘पुष्पा आई हेट टीयर्स’ कहा तो वह खिलखिला कर हंस दी.

शाम होने से पहले ही चेतन कुणाल के घर चला गया. वहां एक अन्य मित्र भी उपस्थित था. दोस्तों संग बतियाते हुए चेतन को पता ही नहीं लगा कि रात के 11 बज गए हैं. बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गए.

अगले दिन सुबह उठा तो सिमरन के खयाल ने घेर लिया. बिस्तर पर, कमरे में यहां तक कि चाय के कप में भी वही दिख रही थी. फोन पर आवाज सुनने को जी ललचा रहा था लेकिन सिमरन की सख्त हिदायत के कारण मन मार लिया.

‘‘उसे इतना प्यार करता है तो शादी क्यों नहीं कर लेता? देख रहा हूं मुंह लटकाएलटकाए घूम रहा है,’’ चेतन को गुमसुम देख कुणाल बोल उठा.

‘‘कैसा दोस्त है तू कि शादी करवा कर मेरी जिंदगी बरबाद करना चाहता है. एक किस्सा सुन. एक बार मैं और सिमरन एक फिल्म देखने गए थे. फिल्म के शुरू में ही हीरोहीरोइन की शादी हो जाती है. सिनेमाहौल में पीछे से लोगों की आवाजें आने लगी कि हम तो सोच कर आए थे रोमांटिक फिल्म देखने जा रहे हैं, लेकिन लगता है इस फिल्म में तो बस लड़ाई?ागड़ा ही होगा. अब बोल. शादी में रखा ही क्या है?’’

‘‘तो मत करना कभी भी शादी. मेरा अरमान अधूरा ही रहने दे, ‘आज मेरे यार की शादी है…’ ‘‘गाने पर नाचने का. बना रह लवर बौय,’’ हाथ जोड़ कर कुणाल बोला तो चेतन का जोरदार ठहाका कमरे में गूंज उठा.

चेतन का समय कुणाल के साथ यों तो हंसीखुशी बीत रहा था लेकिन सिमरन के लिए तड़पन बड़ी शिद्दत से महसूस हो रही थी. इंतजार था तो सिमरन के उस फोन का जब वह बताएगी कि मम्मीपापा जा चुके हैं.

उस दिन कुणाल घर का सामान लेने बाजार गया हुआ था. चेतन घर पर ही था क्योंकि उसे औफिस का एक जरूरी काम निबटाना था. लौटने पर घर में घुसते ही कुणाल चेतन के सामने आ खड़ा हुआ और भेदती नजरों से उसे घूरते हुए बोला, ‘‘यार, सचसच बता तू यहां क्यों आया है? तेरा और सिमरन का झगड़ा हुआ है न?’’

‘‘नहीं भाई, पर तुझे क्या हो गया अचानक?’’ चेतन भौचक्का सा कुणाल को देख रहा था.

‘‘सिमरन ने यही कहा था न तुझ से कि उस  के मम्मीपापा आने वाले हैं?’’

‘‘पहेलियां मत बुझ. साफसाफ बता बात क्या है?’’ कुणाल के साथ उस का स्वर भी व्याकुल हो रहा था.

‘‘अभीअभी मैं ने बाजार में सिमरन को एक लड़के के साथ देखा. दोनों मेरे सामने कैब से उतर कर एक रैस्टोरैंट में जा कर बैठ गए,’’ बोलतेबोलते कुणाल का मुंह कसैला हो रहा था.

एकबारगी चेतन को विश्वास ही नहीं हुआ. कुछ कहने के लिए उस ने मुंह खोला ही था कि कुणाल ने अपना मोबाइल निकाल लिया. एक तसवीर दिखाते हुए बोला, ‘‘देख, दूर से ली है, वही तो है. कहा था न मैं ने कि कर ले शादी. पर तेरा जुमला तो हमेशा यही होता था न कि आई वांट टु लिव ए स्ट्रैस फ्री लाइफ. देखा न हुआ सब उलटा. अब झेलना सिर्फ स्ट्रैस, केवल दबाव, तनाव. मुझे क्या.’’

चेतन का जी तो नहीं चाह रहा था कि वह सिमरन का किसी और के साथ देखा जाना स्वीकार कर ले, लेकिन धुंधली सही तसवीर तो यही बयां कर रही थी. शांत बैठ कर अपनी उंगलियां चटकाते हुए सोच में पड़ गया कि अब क्या किया जाए?

2-3 दिन बाद औफिस की एक सहकर्मी ने सिमरन की चर्चा शुरू करते हुए उस के किसी लड़के के साथ दिखने की बात कह दी. चेतन अंदर से टूट रहा था. कुछ सोचते हुए उस ने मोबाइल हाथ में लिया लेकिन सिमरन को कौल करने के स्थान पर फेसबुक खोल ली और अपना स्टेटस अपडेट कर दिया. गुस्से, अपमान और बेबसी से भरे चेतन का फेसबुक रिलेशनशिप स्टेटस अब ‘इट्स कंप्लिकेटेड’ हो गया.

ऐसे ही 15 दिन बीत गए. न सिमरन का फोन आया और न ही चेतन को कुछ और पता लग सका. चेतन को परेशान देख कुणाल ने एक दिन कहा, ‘‘मैं जाऊं सिमरन के घर, देखूं क्या हो रहा है?’’

‘‘नहीं, अब कोई फायदा नहीं. शायद मैं ही गलत था. सिमरन जब रिश्ते में बंधना चाह रही थी तो मुझे मान लेना चाहिए था. जब से सिमरन की नई जौब लगी थी वह अपने मैनेजर का अकसर जिक्र करती थी. सिमरन ने बताया था कि वह बातोंबातों में उसे शादी के लिए इशारा कर चुका है. शायद सिमरन को ऐसे साथी की जरूरत थी जो प्यार के साथसाथ ऐसा रिश्ता भी दे पाए जिसे दुनिया के सामने छिपाना न पड़े. मम्मीपापा के आने का बहाना बना कर सिमरन ने सामान समेत मुझ से घर खाली करवा लिया शायद. अब मैं कहीं और रहने की जगह तलाश लूंगा,’’ चेतन के स्वर में हताशा और निराशा स्पष्ट झलक रही थी.

‘‘जगह क्यों?  नया रिश्ता भी तलाश लेना. तुम ने तो एकदूसरे को छूट दी थी न कि जो जब चाहे रिश्ते से अलग हो सकता है,’’ कुणाल के शब्दों में व्यंग्य कम लाचारी अधिक दिख रही थी.

कुछ देर दोनों के बीच मौन पसरा रहा. कुणाल के मोबाइल की रिंगटोन से चुप्पी टूट गई. मोबाइल पर प्रगति का नंबर चमक रहा था. कुणाल के हैलो कहते ही प्रगति रोष भरी आवाज में बोली, ‘‘भैया यह तुम्हारा दोस्त चेतन किस किस्म का प्राणी है? मेरे पास अभी सिमरन का फोन आया था. पता है कितना रो रही थी बेचारी. कुछ दिनों पहले उस के पेरैंट्स आए थे तो उस ने चेतन को तुम्हारे पास आने को कह दिया था. जनाब ऐसे आजाद हुए कि फेसबुक स्टेटस ही बदल डाला. 10-15 दिन दूर क्या रहा रिश्ते से कि इसे उल?ानें दिखने लगीं उस में. 1 साल से तो सब ठीक चल रहा था. है कहां है वह? आप के पास है अभी या कहीं और मौजमस्ती करने भाग गया?’’

जब कुणाल ने प्रगति को सिमरन और लड़के वाली बात बताई तो प्रगति झल्लाते हुए बोली, ‘‘उफ, तुम भी न भैया…क्या कहूं अब? पता तो कर लिया होता सिमरन से. भैया, उस के पेरैंट्स ही ले कर आए थे अपने साथ सुशील,  संस्कारी, जेठालाल टाइप के एक लड़के को. उस लड़के से रिश्ता पक्का करने के लिए वे सिमरन के पीछे पड़े थे. दोनों को एकसाथ घूमने के लिए भी वे ही कहते थे. न जाने कैसेकैसे बहाने बना कर बहुत मुश्किल से पीछा छुड़ाया है सिमरन ने उन सब से. अब जल्दी से चेतन को भेजो सिमरन के पास. वह तो सोच रही है कि चेतन ने उस से मुंह मोड़ लिया है. मैं अभी उसे कौल करती हूं.’’

कुणाल ने चेतन को प्रगति से हुई बातचीत के विषय में बता कर उसे फौरन सिमरन के पास जाने को कहा. चेतन बिना देरी किए चल दिया.

सिमरन के दरवाजा खोलते ही चेतन ने शिकायती लहजे में पूछा, ‘‘मम्मीपापा के वापस जाने पर मुझे इन्फौर्म क्यों नहीं किया?’’

‘‘कैसे करती? तुम ने तो अपना फेसबुक स्टेटस ही चेंज कर दिया था.’’

‘‘कुणाल ने तुम्हारे बारे में बताया तो मैं…’’ अपनी बात बीच में ही छोड़ चेतन सिर पकड़ कर बैठ गया.

‘‘मैं प्रगति को अपना दर्द न सुनाती तो जाने क्या होता?’’ कहते हुए सिमरन उस से सट कर बैठ गई.

दोनों के मन शांत हुए तो चेतन ने सिमरन को कस कर पकड़ लिया, ‘‘अब तुम से दूर नहीं जाऊंगा एक दिन के लिए भी नहीं, कभी भी नहीं, तुम कहोगी तो भी नहीं,’’ शब्दशब्द के साथ चेतन अपने अधरों से सिमरन के तन पर प्रेम की मुहर लगा रहा था.

सिमरन छुईमुई सी उस के बाहुपाश में सिमटी इस प्रेम को आत्मसात कर पिघली जा रही थी. कुछ देर एकदूसरे की निकटता को भरपूर जी लेने के बाद चेतन झट से उठ कर चल दिया.

‘‘कहां जा रहे हो? यहीं रहो न मेरे पास,’’ चेतन का हाथ खींचते हुए मादक स्वर में सिमरन बोली.

‘‘एक मिनट,’’ पास रखे अपने बैग से एक लाल, वैलवेट की डब्बी निकालते हुए चेतन बोला.

डिब्बी खुली तो उस में से एक चमचमती डायमंड रिंग झांक रही थी.

‘‘यह मैं ने अगले महीने तुम्हारे बर्थडे पर गिफ्ट देने के लिए बनवाई थी. आज ही पहनाना चाहता हूं तुम्हें इंगेजमैंट रिंग के तौर पर,’’ चेतन का स्वर चाहत से भरा हुआ था.

हौले से अंगूठी पहना कर चेतन ने सिमरन का गोरा नाजुक हाथ प्यार से अपने हाथ में ले कर चूम लिया और फिर नमकीन आंखों से उस की ओर देखते हुए बोला, ‘‘आई प्रौमिस टू लव यू फौरएवर, सिमरन. विल यू मैरी मी?’’

‘‘ओह चेतन,’’ कहते हुए सिमरन उस के गले लग गई.

चेतन उस के बालों को सहलाते हुए बोला, ‘‘सिमरन, यह सच है कि लिव इन में रहते हुए कभी तलाक नहीं हो सकता लेकिन तुम्हें कोई मुझ से छीन सकता है. तुम्हारे पेरैंट्स तुम पर शादी के लिए दबाव डालने लगे हैं. कब तक बहाने बनाती रहोगी तुम? मैं नहीं रह सकता तुम्हारे बिना. एकदूसरे से वादा करते हैं कि मैरिज के बाद हम पतिपत्नी नहीं लिव इन पार्टनर्स बन कर रहेंगे. मैं मिलना चाहता हूं अब तुम्हारे मम्मीपापा से,’’ चेतन ने बात पूरी होते ही फेसबुक खोल कर अपना रिलेशनशिप स्टेटस बदल दिया. अब उस का स्टेटस था, ‘इंगेज्ड.’ जल्द ही वह उसे अपडेट कर ‘मैरिड’ में बदल देना चाहता था.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें