क्या प्रैग्नेंसी में ड्राई फ्रूट्स खा सकते हैं?

सवाल-

गर्भावस्था के दौरान क्याक्या खाना चाहिए? क्या ड्राई फ्रूट्स खा सकती हैं?

जवाब

आमतौर पर लोग यह सोचते हैं कि होने वाली मां को जो भी चीजें खाने की इच्छा होती है, वही चीजें खानी चाहिए. बात कुछ हद तक सही है, लेकिन अगर होने वाली मां को सिर्फ प्रोसैस्ड या पैकेज्ड फूड्स, जंक फूड्स खाना ज्यादा पसंद है तो संभलने की जरूरत है. मां को डाइट में जितना स्वस्थ और संतुलित आहार होगा, उतनी ही शिशु और मां दोनों की सेहत अच्छी रहेगी. मां की आहार में प्रोटीन, कैल्सियम, आयरन, आयोडीन, फौलिक ऐसिड, कार्बोहाइड्रेट, मल्टी विटामिन जैसे न्यूट्रिएंट्स की जरूरत होती है, साथ ही उसे अपनी डाइट में हर तरह के मौसमी फल, सागसब्जी या अनाज, ड्राई फू्रट्स, दूध, दही, अंडा, मछली, मांस, नट्स, बींस आदि चीजों को जरूर शामिल करना चाहिए. गर्भवती महिला को अगर बारबार भूख लगती है तो स्नैक्स में अनहैल्दी चीजें न खा कर रात को भिगो कर रखे हुए 6-7 बादाम और अखरोट ले सकती है.

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ज्यादातर भारतीय लोगों को सुबह और शाम चाय पीने की आदत  होती  है. इसे पीने के बाद वे ताजा महसूस करते हैं. वैसे देखा जाए, तो चाय गर्भवती महिलाओं सहित दुनियाभर के लोगों द्वारा सबसे ज्यादा पीऐ जाने वाले खाद्य पदार्थों में से एक  है. प्रैग्नेंसी में खासतौर से सीमित मात्रा में चाय का सेवन बहुत अच्छा माना जाता है. दरअसल, चाय की पत्तियों में पॉलीफेनॉल और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं., जो न केवल आपके ह्दय स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं बल्कि आपकी प्रतिरक्षा को भी बढ़ाते हैं. हालांकि,  इनमें कैफीन भी होता है, इसलिए इनका सेवन आपको एक दिन में 200 मिग्रा से ज्यादा नहीं करना चाहिए. वैसे विशेषज्ञ प्रैग्नेंसी में कुछ खास तरह की चाय का सेवन करने की सलाह देते हैं. उनके अनुसार, आमतौर पर ब्लैक टी, मिल्क टी, ग्रीन टी में 40 से 50 मिग्रा कैफीन होता है, जबकि हर्बल टी में कैफीन की मात्रा न के बराबर होती है. इसलिए प्रैग्नेंसी के दौरान हर्बल टी को एक स्वस्थ और बेहतरीन विकल्प माना गया है. यहां 6 तरह की हर्बल चाय हैं, जिनका प्रैग्नेंसी के दौरान सेवन करना पूरी तरह से सुरक्षित है.

1. अदरक की चाय-

अदरक की चाय में जो स्वाद है, वो किसी आम चाय में नहीं. इसे खासतौर से सर्दियों में पीया जाए, तो गर्माहट तो आती ही है ,साथ ही ताजगी का अहसास भी होता है. लेकिन किसी भी गर्भवती महिला को अपने रूटीन में अदरक की चाय जरूर शामिल करनी चाहिए. क्योंकि यह मॉर्निंग सिकनेस को कम करती है. इसे अपने रूटीन में शामिल करने के बाद सर्दी, गले की खराश और कंजेशन की समस्या से भी छुटकारा पाया जा सकता है. इसके लिए अदरक के कुछ टुकड़ों को गर्म पानी में उबाल  लें और दूध, शहद के साथ लाकर पी जाएं.

जुड़ सकता है टूटा दिल

कभी किसी के प्यार या बिछोह में दिल टूटता है, तो कभी कोई विश्वासघात कर दिल तोड़ जाता है. किसी बेहद करीबी व्यक्ति की अचानक मृत्यु की खबर भी दिल तोड़ जाती है.

दिल से जुड़ी कोई बुरी खबर जब भी अचानक मिलती है, तो दिल की मांसपेशियां कुछ देर के लिए शिथिल हो जाती हैं. अचानक कोई खुशखबरी मिलने पर भी ऐसा ही होता है. इस के लक्षण कुछकुछ हार्ट अटैक जैसे ही होते हैं, लेकिन इसे मैडिकल की भाषा में ‘ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम’ कहा जाता है. सीने, गरदन व बाएं हाथ में दर्द और सांस फूलना आदि इस के लक्षण होते हैं, लेकिन कई बार यह समझने में दिक्कत आती है कि समस्या क्या है.

डाक्टरों के अनुसार कई बार पेशैंट को हार्ट अटैक का केस मान कर लाया जाता है, लेकिन जब ईसीजी और अल्ट्रासाउंड किया जाता है, तो पता चलता है कि दिल का बायां हिस्सा काम नहीं कर रहा. जबकि न तो दिल की धमनी में कोई रुकावट है और न ही ब्लड सर्कुलेशन में प्रौब्लम. सिर्फ बाएं हिस्से की मांसपेशियां शिथिल हो जाती हैं जोकि ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम की वजह से होता है.

दिल का टूटना फिल्मी बात लगती है, लेकिन यह सच है कि चिकित्सा विज्ञान भी मानता है कि दिल टूटता है. मैडिकल साइंस में इसे ‘ताकोत्सुबो कार्डियोपैथी’ कहते हैं. ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम की शिकार 90% महिलाएं 50 से 70 वर्ष के बीच की होती हैं. डाक्टर के अनुसार महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद ऐस्ट्रोजन हारमोन के स्तर में गिरावट आ जाती है. तब कोई अति दुखद और सुखद घटना घटने पर उन का ओटोनौमस नर्वस सिस्टम अधिक सक्रिय हो उठता है. इस से शरीर में बहुत अधिक मात्रा में स्ट्रैस हारमोन का स्राव हो उठता है और इसी के कारण हृदय की मांसपेशियों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.

लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि पुरुषों का दिल पत्थर का होता है. अब वैज्ञानिक तौर पर यह बात साबित हो गई है कि पुरुषों के अंदर ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम मौजूद होता है. इस सिंड्रोम की मौजूदगी के चलते उन का दिल टूटने पर संभाले नहीं संभलता. पुरुषों में यह खतरा महिलाओं की तुलना में 6 गुना ज्यादा पाया गया है.

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क्या कहते हैं शोधकर्ता

ब्रिटिश शोधकर्ताओं के अनुसार पति या पत्नी की मृत्यु हो जाने पर 1 साल के भीतर उस के जीवनसाथी की भी मृत्यु हो जाने का खतरा बना रहता है, क्योंकि उस का दिल टूट जाता है. यह प्रभाव उन लोगों पर ज्यादा पड़ता है, जिन की शादी को काफी लंबा वक्त हो चुका होता है. लेकिन एक अच्छी बात यह है कि वियोग के 1 साल बाद मौत का खतरा घट जाता है. जापान के शोधकर्ताओं ने ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम का सब से पहली बार उल्लेख 1990 के शुरुआती दौर में किया था. प्रमुख शोधकर्ता डाक्टर रिचर्ड रेगनांटे ने कहा कि चोट खाए लोगों को संभालना और उन की पहचान करना हृदयरोग विशेषज्ञों और डाक्टरों के लिए मुश्किल हो सकता है. यह अध्ययन अमेरिकी जर्नल औफ कार्डियोलौजी में प्रकाशित हुआ है.

इस में यह भी कहा गया है कि टूटे दिल के लक्षण गरमियों और वसंत ऋतु में अधिक उभर कर सामने आते हैं, जबकि हृदयाघात अमूमन जाड़ों में होता है. इस अवस्था में रोगी को आईसीयू में कड़ी निगरानी में रखा जाता है. सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि डाक्टर को पता हो कि यह ब्रोकन हार्ट का मामला है ताकि वह हृदयाघात के लिए उपचार शुरू न कर दे. ऐसा करना खतरनाक हो सकता है. हृदय के बाएं हिस्से की मांसपेशियों में आई शिथिलता धीरेधीरे कुछ दिनों या कभीकभी कुछ सप्ताह में दूर हो जाती है. इस घटना के कारण मांसपेशी को कोई स्थायी नुकसान नहीं होता.

क्या करें

कहा जाता है खुशी बांटने से बढ़ती है और दुख बांटने से कम होता है. अपनी भावनाएं किसी के साथ शेयर करें. इस से मन में हलकापन महसूस होता है. अगर मन किसी बात से दुखी है तो रो कर अपना मन हलका करें. दर्द का गुबार आंसू बन कर बह जाएगा. तनाव की स्थिति में शौपिंग पर निकल जाएं या दोस्तों और परिवार वालों के साथ ऐंजौय करें. अगर डिप्रैशन ज्यादा महसूस हो रहा हो तो मनोचिकित्सक से संपर्क करें.

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प्यार की गरमाहट में न हो कमी

बड़े प्यार से 2 साथी मिल कर अपना जीवनसफर शुरू करते हैं. सब अच्छा चल रहा होता है. फिर भी कहीं न कहीं कुछ उदासी सी भरने लगती है. अगर मस्ती और दीवानगी जरा भी कम हो रही हो, तो यह खतरे की घंटी है. ऐसे में घबराने की नहीं, थोड़ा सतर्क होने की जरूरत है. सब से खास बात यह है कि बदलाव दोनों की तरफ से ही आता है, पर दोनों में से एक भी चौकन्ना रह कर प्रेम के इजहार में पीछे न रहे, कोई मौका न छोड़े. ऐसा करने से प्रेम की सरिता पुन: धाराप्रवाह बहने लगेगी. 1-2 दिनों के लिए कहीं घूमने का कार्यक्रम बनाया जा सकता है, ऐसा कर के मिठास को वापस लाया जा सकता है. खास अवसर की प्रतीक्षा किए बगैर कुछ अनूठा प्रयोग कर डालिए. कोई पसंदीदा डिश बनाइए या फिर साथी के पसंद के मित्रों को घर पर आमंत्रित कर लीजिए. सब कुछ नयानया लगने लगेगा. कोई छोटीमोटी शरारत भी गजब ढा सकती है. जैसे जानबूझ कर सब्जी में नमक न डालना, उन का जरूरी गैजेट खुद छिपाना, फिर खुद ही ढूंढ़ कर दे देना आदि. पुराना मजेदार किस्सा सुनाना भी बहुत असर करेगा. बस भावनाएं आहत न हों, इस का ध्यान रखना जरूरी है. साथी के पर्स या बैग में मस्ती भरी चिट्ठी लिख कर डाल दीजिए या फिर मजेदार एसएमएस कीजिए. बचपना भी बुरा नहीं है. संबंधों में ताजगी लाने के लिए यह दवा जैसा काम करेगा.

जानें क्या हैं 30+ हैल्थ सीक्रैट्स

लेखिका -अनुराधा 

आधुनिकता के इस दौर ने सभी चीजों में नएपन की एक परत चढ़ा दी है. यह नयापन युवतियों की सोच में भी आया है. अब युवतियां लंबी उम्र तक अकेले ही रहना पसंद करती हैं और अपने हिसाब से जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ाती हैं. मगर उम्र के 30वें पड़ाव पर पहुंचने के बाद महिलाओं का शरीर कई शारीरिक बदलाव की प्रक्रियाओं से गुजरता है खासतौर पर वे लड़कियां, जो सिंगल हैं उन में कुछ बदलाव विवाहित लड़कियों से कुछ अलग हो जाते हैं.

इस बाबत एक इन्फर्टिलिटी एवं डैंटल हैल्थ सैंटर की वूमन हैल्थ स्पैशलिस्ट कहती है कि युवतियां विवाहित हों या अविवाहित 30 की उम्र पार करते ही उन के शरीर में बदलाव शुरू हो जाते हैं और 40 की उम्र तक पहुंचनेपहुंचते बदलाव की प्रक्रिया तेज हो जाती है. अविवाहित युवतियों में कुछ बीमारियों का डर अधिक होता है क्योंकि वे सैक्सुअली ज्यादा ऐक्टिव नहीं होती हैं.

जो बदलाव विवाहित युवतियों में शरीर को चुस्त रखने के लिए होते हैं वे सारे बदलाव अविवाहित युवतियों के शरीर में नहीं हो पाते हैं. मगर इस उम्र में सभी युवतियों की स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें लगभग एक सी होती हैं और खुद को फिट रखने के तरीकों में भी अधिक फर्क नहीं होता है.

फैमिली हैल्थ हिस्ट्री पर दें ध्यान

इस उम्र में खुद को चुस्त रखने के लिए युवाओं के पास बहुत से तरीके होते हैं खासतौर पर व्यायाम, नियमित हैल्थ चैकअप और संतुलित एवं पोषणयुक्त आहार आदि इस उम्र की खास जरूरतों में शामिल होते हैं. युवतियों के लिए इन तीनों में सही तालमेल बैठाना बहुत जरूरी है. न्यूट्रीशनिस्ट का कहना है कि क्लीनिकल डैफिशिएंसी के मामले में इस उम्र की महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा थोड़ी कमजोर हो जाती हैं.

यही वह उम्र होती है जब महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर होने के बहुत चांसेज होते हैं. इस की वजह होती है बढ़ता वजन. इस उम्र में युवतियों का बौडी मास्क इंडैक्स यदि 30 से अधिक है तो कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के चांस और भी बढ़ जाते हैं. अब ब्रैस्ट कैंसर का सफल इलाज हो सकता है. इसलिए 35 की उम्र में आते ही महिलाओं को अपनी फैमिली हैल्थ हिस्ट्री जरूर चैक करनी चाहिए. यदि परिवार में किसी को बै्रस्ट कैंसर रहा है तो हर 2 वर्ष में मैमोग्राम जरूर करवाएं और यदि ऐसी कोई हिस्ट्री नहीं रही तो हर 3 वर्ष में एक बार मैमोग्राम जरूर करवाएं.

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कैल्सियम लैवल न होने दें डाउन

कैंसर ही नहीं इस उम्र में कैल्सियम लैवल भी डाउन हो जाता है जिस में औस्टियोपीनिया और औस्टियोपोरोसिस जैसी हड्डियों से संबंधित बीमारियों के होने का भी डर रहता है. यह दोनों ही स्थितियां गंभीर हैं क्योंकि दोनों में ही हड्डियां टूटने और चटकने का खतरा रहता है. यहां तक कि ये दोनों ही समस्याएं युवतियों को आसानी से उठनेबैठने का मुहताज बना देती हैं और खुद के ही काम न कर पाने पर विवश कर देती हैं. ‘कैल्सियम’ लैवल डाउन होने का बड़ा कारण शरीर में विटामिन डी की कमी होती है.

इस कमी को केवल विटामिन डी युक्त आहार ले कर पूरा नहीं किया जा सकता बल्कि इस के लिए सन ऐक्सपोजर बहुत ही जरूरी है, जिस से आधुनिक जमाने की महिलाएं घबराती हैं. उन्हें अपनी खूबसूरती बिगड़ जाने का डर होता है. त्वचा में रिंकल्स न पड़ें, इसलिए महिलाएं धूप में निकालने से पूर्व शरीर के पूरे हिस्से को ढक लेती हैं जबकि त्वचा में यूवी किरणों का पैनीट्रेट होना जरूरी है क्योंकि यह विटामिन डी का सब से अच्छा स्रोत है.

इतना ही नहीं जो युवतियां टैनिंग के डर से धूप में जाने से बचती हैं या फिर सनस्क्रीन का इस्तेमाल करती हैं, वे अपने स्किन पोर्स को ब्लौक कर देती हैं जिस से विटामिन डी त्वचा के अंदर पैनीट्रेट नहीं होता है. इसलिए खूबसूरती के चक्कर में अपनी फिटनैस से हाथ न धोएं.

विटामिन बी 12 युक्त आहार जरूरी

30 साल से ज्यादा उम्र की युवतियों के शरीर में विटामिन बी 12 की भी कमी पाई जाती है, जिस की वजह से बाल  झड़ने, कमजोरी, आने, अवसाद होने और याददाश्त कमजोर होने जैसी बीमारियों का सामना करना पड़ता है. साथ ही इस की कमी से त्वचा संबंधी रोग भी हो जाते हैं. डर्मैटोलौजिस्ट कहते हैं कि 90% महिलाओं को 35 से 40 की उम्र में विटामिन बी 12 की कमी हो जाती है, दरअसल यह एक ऐसी उम्र होती है जब डाइट थोड़ी कम हो जाती है और यदि डाइट में औप्टिमल प्रोटीन न लिया जाए या विटामिन बी 12 युक्त आहार का सेवन न किया जाए तो त्वचा और बाल संबंधी कई परेशानियां हो सकती हैं. विटामिन बी 12 की कमी को सही आहार ले कर पूरा किया जा सकता है.

यह समस्या अधिकतर उन युवतिओं को होती है जो शाकाहारी होती हैं क्योंकि विटामिन बी 12 केवल ऐनिमल फूड जैसे अंडा, मांस और मछली में ही पाया जाता है, मगर डेयरी प्रोडक्ट्स में भी विटामिन बी 12 होता है. इस के साथ ही बाजरा, रागी, ज्वार के आटे से बनी रोटियां भी कुछ हद तक शरीर में विटामिन बी 12 की कमी को पूरा करती हैं.

व्यायाम भी करें

वैसे तो व्यायाम हर उम्र में जरूरी है, मगर उम्र के 30वें पड़ाव में आ कर व्यायाम शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यकता बन जाता है. इस उम्र की महिलाओं का मैटाबोलिज्म स्लो हो जाता है, जिस से वजन बढ़ने लगता है. मगर वजन को नियंत्रित रखना भी इस उम्र में बेहद जरूरी है नहीं तो थायराइड एवं हृदय और श्वास संबंधी रोग होने का डर रहता है.

दरअसल, एक समय था जब औरतें सारा कार्य हाथों से करती थीं इस से उन की मांसपेशियों में फ्लूइड बना रहता था. वर्तमान में भी जो युवतियां कामकाजी हैं उन में बहुत ही शारीरिक गतिविधियां होती हैं और इस का उन्हें स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है. पर आज घरेलू कामकाज अब तकनीक की सहायता से हो जाते हैं और इस में शारीरिक श्रम कम लगता है.

30-40 की उम्र में शरीर को ऐक्टिव रखने के लिए बहुत जरूरी है कि युवतियां 45 मिनट से ले कर 1 घंटा मौर्निंग वाक पर जरूर जाएं और कार्डियो ऐक्सरसाइज करें. यह मैटाबोलिज्म को सही रखती है. जौगिंग भी इस उम्र की महिलाओं के लिए एक अच्छा व्यायाम है. लेकिन ये सारे व्यायाम सुबह के वक्त ही करने चाहिए क्योंकि इस वक्त शरीर ज्यादा गतिशील रहता है.

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अकेलेपन से लड़ने के हैं कई तरीके

30-40 की उम्र में सिंगल रहने वाली अधिकतर युवतियों को अकेलेपन से जू झना पड़ता है. यह अकेलापन महिलाओं को अवसाद जैसी गंभीर बीमारी की ओर ले जाता है. यह ऐसी उम्र होती है जब अपनी उम्र के लगभग सभी दोस्त अपनेअपने परिवार में व्यस्त हो चुके होते हैं और भाईबहन का भी अपना गृहस्थ जीवन शुरू हो चुका होता है. मातापिता से बात करने को ज्यादा कुछ नहीं होता.

इस स्थिति में सिंगल युवती को एक साथी की कमी खलती है. अकेलापन केवल कोई व्यक्ति ही नहीं बांट सकता. इस के अतिरिक्त कई चीजें होती हैं जो अकेलेपन को दूर करती हैं. किताबें इस में बड़ी भूमिका निभाती हैं. इस के अलावा ट्रैवल का शौक भी अकेलेपन को दूर करता है.

30-40 की उम्र में भी सिंगलहुड का

लुत्फ महिलाएं उठा सकती हैं बशर्ते वे अपनी फिटनैस को नजरअंदाज न करें और अपनी जीवनशैली में थोड़े से बदलाव स्वीकार कर लें और हां यदि टैंपरेरी साथी लड़की या लड़का मिले तो उस का साथ इसलिए न छोड़ें कि इस के साथ कौन सी जिंदगी निभानी है जैसे हर पतिपत्नी एकदूसरे को देख कर अपने को बदलते हैं. सिंगल वूमन को भी खुद को साथी के अनुसार बदलने की आदत डालनी चाहिए. सेम सैक्स या हैट्री सैक्स दोनों को वर्जित न मानें और नफरत पड़ने पर हिचकें नहीं पर इस में सावधानियां बहुत बरतनी होती हैं.

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Pregnancy में हील पहनना और सफर करना क्या खतरनाक है?

सवाल-

मैं 3 महीने की प्रैगनैंट हूं, क्या मैं हाई हील सैंडल पहन सकती हूं?

जवाब-

प्रैगनैंसी के दौरान हाई हील सैंडल पहनना आप के लिए ही सब से ज्यादा तकलीफ देह साबित होगा, इसलिए हाई हील सैंडल पहनने की इच्छा को 9 महीने दिल से निकाल दें. प्रैगनैंसी के दौरान शरीर से रिलैक्सएक्स नाम का हारमोन निकलता है जो शिशु के जन्म लेने की प्रक्रिया को आसान बनाने में मदद करता है. लेकिन इस हारमोन के कारण पैरों में दर्द, जोड़ों में अकड़न जैसी समस्याएं होने लगती हैं. हाई हील सैंडल पहनने से पैरों में सूजन आ सकती है, पेट लटक सकता है क्योंकि पैरों पर भार ज्यादा पड़ने लगता है यानी शरीर का आकार बेढंगा बन सकता है. इसलिए प्रैगनैंसी के दौरान ब्लौक या प्लैटफौर्म हील पहनना सब से सेफ होता है.

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सवाल-

मेरा 5वां महीना चल रहा है, मैं मां के पास जाना चाहती हूं. ट्रेन, हवाईजहाज या कार किस से सफर करना मेरे और मेरे बच्चे के लिए सुरक्षित रहेगा?

जवाब-

आप का 5वां महीना चल रहा है, इस का मतलब आप को दूसरी तिमाही है. इस दौरान ट्रेन, प्लेन या कार से ट्रेन से सफर करना मां और शिशु दोनों के लिए सुरक्षित होता है. ट्रेन उबड़खाबड़ नहीं समतल रेल लाइन पर चलती है, जिस से हिचकोले खाने का डर नहीं रहता. अगर आप को पानी पीना है या आराम करना है तो आप आसानी

से कर सकती हैं. जबकि प्लेन में 32 हफ्ते बाद सफर करने की अनुमति नहीं मिलती और कार में धक्का या हिचकोले खाने की आशंका भी रहती है. यहां तक कि हवाईजहाज में सांस लेने में परेशानी हो सकती है, इसलिए 32 महीने पहले यदि सफर करना चाहती हैं तो डाक्टर से जरूर सलाह ले लें.

अगर कार से सफर करेंगी तो बीचबीच में पेशाब करने के लिए जाना पड़ सकता है, जो हाइजीन के नजरिए से भी सेफ नहीं होता है. इस के अलावा अगर किसी को उलटियां करने की समस्या है तो उन के लिए कार से सफर करना मुश्किल हो सकता है. इसलिए अगर सुरक्षित और आराम से सफर करना है तो ट्रेन से ही सफर करना अच्छा होता है. इस से पैर फैला कर आराम से खातेपीते सफर का आनंद मां और शिशु दोनों उठा सकते हैं.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

एक्सपर्ट के अनुसार कब की जाए सरोगेसी

भारत में कुछ सालों से बच्चे का सुख पाने के लिए पैरेंट्स सरोगेसी का सहारा ले रहे हैं. सरोगेसी बच्चा पैदा करने की एक आधुनिक तकनीक है. इसके जरिए कोई भी कपल या सिंगल पैरेंट बच्चा पैदा करने के लिए किसी महिला की कोख किराए पर ले सकता है. बॉलीवुड में इस तकनीक का फैशन बन गया है सेलेब्रिटीज इस तकनीक का खूब सहारा ले रही है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि क्या होती है सरोगेसी और कब की जानी चाहिए . इस बारे में बता रहीं है,

Dr. Sonu Balhara Ahlawat, Head Unit I, Reproductive Medicine, Artemis Hospital, Gurugram.

क्या होती है सरोगेसी

सरोगेसी के जरिये कोई महिला अपने या फिर डोनर के एग्स के जरिये किसी दूसरे कपल के लिए प्रेगनेंट होती है. जो महिला अपनी कोख में दूसरे का बच्चा पालती है, वो सेरोगेट मदर कहलाती है.

सरोगेसी भी दो तरह की होती है. पहली है ट्रेडिशनल सरोगेसी तो दुसरी जेस्टेशनल सरोगेसी.

ट्रेडिशनल सरोगेसी में होने वाले पिता या डोनर का स्पर्म  सरोगेट महिला के एग्स से मैच कराया जाता है. इस सरोगेसी में सरोगेट मां ही बच्चे की बायोलॉजिकल मां होती है.

वहीं दूसरी तरफ जेस्टेशनल सेरोगेसी में सरोगेट मां का बच्चे से कोई जेनेटिक संबंध नहीं होता है. इस सरोगेसी में सरोगेट मां के एग्स का इस्तेमाल नहीं किया जाता है और वो बच्चे को जन्म देती हैं. इसमें होने वाले माता पिता के स्पर्म और एग्स का मेल टेस्ट ट्यूब बेबी (ivf तकनीक) के जरिये कराने के बाद इसे सरोगेट मदर के यूट्रस में इम्प्लांट किया जाता है.

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सरोगेसी एग्रीमेंट

सरोगेसी में एक महिला और एक बच्चे की चाह रखने वाले कपल के बीच एक तरह का एग्रीमेंट किया जाता है. जिसमें सरोगेसी कराने वाला कपल ही कानूनी रूप से बच्चे के असली पैरेंट्स होते हैं. वहीं जो सरोगेट मां होती है, उसे सरोगेस  कराने वाले कपल की तरफ से प्रेग्नेंसी के दौरान अपना ख्याल रखने और मेडिकल जरूरतों के लिए रुपये भी दिए जाते हैं.

कब की जाए सरोगेसी

सरोगेसी कई कारणों से की जाती है जैसे किसी महिला की बच्चेदानी है ही नहीं या तो जन्मजात या किसी कारण से जैसे कैंसर या किसी दुर्घटना की वजह से उसकी बच्चेदानी निकाल दी गई हो. यह एक कारण हो सकता है. इसके अलावा किसी संक्रमण की वजह से बच्चेदानी खराब हो गई हो.बच्चेदानी की दीवारों में कोई संक्रमण हो जैसे हमारे देश में टीवी की बीमारी बहुत ज्यादा होती है. यदि बच्चेदानी की दीवारें आपस में चिपक जाती हैं तो महिला गर्भधारण नहीं कर पाती है. बच्चेदानी है ही नहीं या लगातार आईवीएफ असफल होता है या महिला किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हो जिससे उसकी जान पर खतरा है जिसमें वह गर्भधारण नहीं कर सकती है तो वैसी स्थिति में भी सरोगेसी का विकल्प चुनना पड़ता है.

इसके अलावा और भी कई स्वास्थ्य से जुड़ी जटिलताएं होती हैं जैसे कैंसर के इलाज में महिला की कीमोथेरेपी चल रही हो या अन्य स्वास्थ्य जटिलताएं हों तो सरोगेसी करनी पड़ती है. इसके अलावा सिंगल मेल संतान चाहता है तो उसे भी सरोगेसी करनी पड़ती है.

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अब जुड़वां बच्चे पाना हुआ आसान

कोलकाता की रहने वाली 32 साल की रिया की शादी हुए 7 साल बीत चुके थे,लेकिन बच्चा नहीं हुआ, सबकी ताने से अधिक, उसे ही अपने बच्चे की चाहत थी. उन्होंने हर जगह लेडी डॉक्टर से जांच करवाई, पर वजह कोई भी नहीं बता पाया, क्योंकि सबकुछ नार्मल था. उसकी इस हालत को देख, पति राजीव ने रिया से अनाथ आश्रम से किसी अनाथ बच्चे को गोद लेने की सलाह दी. इससे उसका ये तनाव दूर हो सकेगा, लेकिन रिया अपना बच्चा चाहती थी, ऐसे में रिया की सहेली ने आईवीऍफ़ यानि इन विट्रो फ़र्टिलाईजेशन से उन्हें अपना बच्चा पाने की सलाह दी. रिया ने अपने पति से इस बारें में चर्चा की और अगले एक साल में ही रिया और राजीव, जुड़वाँ बच्चे, एक बेटी और एक बेटे के पेरेंट्स बने. दोनों को अब ख़ुशी का ठिकाना न रहा.

सही उम्र में शादी न कर पाना

दरअसल आज की भागदौड़ की जिंदगी में खुद को स्टाब्लिश करने की कोशिश में लड़के और लड़कियां सभी की शादी की उम्र अधिक हो जाती है, ऐसे में शादी के बाद वे नार्मल तरीके से बच्चा पैदा करने में असमर्थ होते है. बच्चा न हो, तो भी जिंदगी वीरान लगने लगती है, पति-पत्नी दोनों सहजता महसूस नहीं करते,आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है,दोनों तनावग्रस्त होते है,इससे गर्भधारण में समस्या आने लगती है, बात काउंसलर तक पहुँचने के बाद उन्हें पता चलता है कि उनके बीच में एक बच्चे की कमी है, जिसे एडॉप्शन,असिस्टेड कन्सेप्शन या आईवीऍफ़ के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है. इसके अलावा आईवीऍफ़ बेहद खर्चीला प्रोसेस है, इसलिए एक बार में ही दो बच्चे पा लेने को पेरेंट्स बेहतर मानते है और इसके लिए ही वे डॉक्टर के पास आते है. साथ ही देर से बच्चे होने की वजह से दोनों बच्चे एक ही समय में पल जाते है, जो पेरेंट्स के लिए भी आसान होती है.

एक इंटरव्यू में निर्माता, निर्देशक और एक्ट्रेस फरहा खान ने कहा था कि मेरी शादी 32 साल की उम्र में हुई है, जबकि शिरीष कुंदर 25 साल के थे. मैंने सोच लिया था कि मेरा प्राकृतिक रूप से इस उम्र में गर्भधारण करना आसान नहीं, इसलिए मैंने आइवीऍफ़ का सहारा लिया और शादी के 4 साल बाद तीन बच्चों, एक बेटा और दो बेटी की माँ बनी. मैंने और शिरीष ने उस पल को बहुत एन्जॉय किया था, जब हमें एक नहीं बल्कि तीन बच्चों के पेरेंट्स बनने का मौका मिला.

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मल्टीपल प्रेगनेंसी

इस बारें में मुंबई की कोकिलाबेन धीरूबाई अंबानी हॉस्पिटल की आईवीऍफ़ कंसल्टेंट डॉ. पल्लवी प्रियदर्शिनी कहती है कि आईवीऍफ़ या असिस्टेड कन्सेप्शन, गर्भधारण का ऐसा तरीका है, जिसमें प्रकृति की मदद की जाती है. कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि प्राकृतिक रूप से गर्भधारण से जुड़वा बच्चें कम पैदा होतेहै,जबकि आईवीएफ में मल्टिपल प्रेगनेंसी होने की संभावना अधिक होती है, लेकिन सिंगल एम्ब्रायो ट्रांसफर को विकास कर सिर्फ एक रेसल्टिंग एम्ब्रायो को स्थानांतरित करने की कोशिश की जा रही है,जिससे एक बच्चा पाना आसान हो सकेगा. इसके अलावा एक बार किसी को जुड़वाँ बच्चे होने पर, प्राकृतिक रूप से भी अगली जेनरेशन में जुड़वां बच्चे होने की संभावना अधिक होती है.साथ ही किसी परिवार में बिना आईवीऍफ़ के भी जुड़वां बच्चें होने की प्रवृत्ति होती है,तो प्राकृतिक रूप से भी जुड़वां गर्भधारण करने की संभावना थोड़ी बढ़ जाती है.

सही उम्र है जरुरी

इसके आगे डॉ. पल्लवी कहती है कि अधिकतर महिलाएं आईवीऍफ़ की सही उम्र के बारें में पूछती है. मेरे हिसाब से आईवीऍफ़ हर किसी के लिए नहीं होता,इसके लिए उम्र बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि एक महिला में खासतौर से 35 वर्ष की आयु के बाद, ओवेरियन रिज़र्व कम हो जाता है. साथ ही सफल प्रत्यारोपण की संभावना भी उम्र के साथ कम हो जाती है. 35 वर्ष से कम उम्र की महिला में सिंगलटन प्रेगनेंसी (एक गर्भधारण में एक बच्चा पैदा होना) की संभावना 38 से 40 प्रतिशत अधिक हो सकती है, लेकिन 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिला में गर्भधारण की संभावना 11प्रतिशत से भी कम हो सकती है.

है कुछ भ्रांतियां

आईवीएफ के बारे में कई गलतफहमियां हैऔर कुछ दम्पतियों को काफी चिंता भी रहती है. इस बारें में डॉक्टर कहती है कि कुछ पति-पत्नी को आईवीऍफ़ नैचुरल प्रोसेस न होने की वजह से वे इसे करने से डरती है, उन्हें लगता है कि इससे उनके बच्चे में कुछ न कुछ समस्या अवश्य आएगी. मैं इनमें से कुछ शंकाओं को दूर करने का प्रयास करूंगी, ताकि जरूरतमंद दंपतियों को आईवीऍफ़ के बारे में अपना निर्णय सही समय पर सही तरीके से ले सकें, उनके मन में किसी प्रकार की दुविधा न हो.

  • आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि आईवीएफ से होने वाला गर्भधारण और उससे होने वाला बच्चा मानसिक रूप से असामान्य होने की संभावना बढ़ सकती है,लेकिन सबूतों से पता चलता है कि आईवीएफ या आईसीएसआई के ज़रिए पैदा हुए बच्चों को बचपन मेंसाइकोसोशल बीमारी का कोई बड़ा खतरा नहीं होता. कुछ न्यूरोडेवलपमेंटल में देर हो सकती है, लेकिन इसका कारण आईवीएफ या आईसीएसआई की प्रक्रिया नहीं, बल्कि समय से पहले प्रसव (प्रीमैच्यूअर डिलीवरी) हो सकता है.

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करें डॉक्टर से संपर्क 

डॉ. पल्लवी आगे कहती है कि अगर किसी दंपति ने एक वर्ष से अधिक समय तक प्राकृतिक रूप से गर्भधारण करने की कोशिश की है, यदि महिला की उम्र 35 से कम है या 6 महीने के बाद उसकी उम्र 35 से ज़्यादा होने वाली है, तो उन्हें फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट से सलाह लेनी चाहिए, ताकि उनके अनुसार हर दंपति की व्यक्तिगत इलाज की जा सकें. अधिक देर होने पर आईवीऍफ़ भी अपनी पूरी क्षमता से मदद नहीं कर सकता.

काले धब्बे वाला केला है हेल्थ के लिए फायदेमंद

लेखिका- दीप्ति गुप्ता

कई लोग हाइजीन को ध्यान में रखते हुए काले धब्बे वाले केले नहीं खाते, जबकि कुछ लोग इसे सड़ा गला समझकर फेंक देते हैं. अगर आप भी कुछ ऐसा ही करते हैं, तो जरा रूक जाएं. क्योंकि इस तरह के केले साफ सुथरे केले के मुकाबले  न केवल ज्यादा पौष्टिक होते हैं, बल्कि यह प्राकृतिक तरह से पके हुए भी होते हैं. जब केले ज्यादा पक जाते हैं, तब इनके गुण आठ गुना ज्यादा बढ़ जाते हैं. इस तरह से आप पके केले के जरिए भरपूर पोषण तत्व प्राप्त कर सकते हैं. एक रिसर्च के अनुसार, ऐसे केलों में कैंसर से लड़ने की ताकत बहुत होती  है. इनमें एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा और व्हाइट ब्लड सेल्स बढ़ाने की क्षमता में भी इजाफा होता है. इसके अलावा आप केवल एक केला खाकर भी घंटों तक आप बिना कुछ खाए बहुत देर तक एनर्जेटिक रह सकते हैं. तो चलिए आज के हमारे इस आर्टिकल में जानते हैं काले धब्बे वाले केले खाने के अन्य लाभों के बारे में.

काले धब्बे वाले केले खाने के लाभ-

केला कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, मिनरल, कैल्शियम, फाइबर आदि से भ्रपूर हारेता है. ये सभी तत्व मिलकर इसे सुपरफूड बनाते हैं. दुनिया में केले की 300 से ज्यादा किस्मे हैं. कच्चे केले या अधपके केले को खाने से बेहतर है कि काले धब्बे वाले केले को खाया जाए. यहां आप जान सकते हैं काले धब्बे वाले केले कैसे आपके लिए फायदेमंद हैं.

शरीर में ठंडक बनाए रखें-

गर्मी के दिनों में ज्यादा पके या काले धब्बे वाले केले खाने से शरीर को ठंडक मिलती है. इसे आप चाहें, तो बुखार में भी खा सकते हैं. अच्छा परिणाम मिलेगा.

तनाव दूर करे- 

महिलाओं में मासिक चक्र धर्म के दौरान तनाव होना आम है. ऐसे में कई उपाय भी उनकी मदद नहीं कर पाते. लेकिन एक बार काले धब्बे वाले केले खाकर देखें. इससे आपका खराब मूड सही हो जाएगा.

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खून की कमी दूर करे- 

खून की कमी को दूर करने के लिए काले धब्बे वाले केले बहुत अच्छे होते हैं. महिलाओं में खासतौर से एनीमिया की बहुत कमी पाई जाती है, ऐसे में अक्सर डॉक्टर्स काले धब्बे वाले केले खाने के लिए कहते हैं. वहीं ऐसे केले कमजोर हड्डियों को मजूबती प्रदान करने का काम  करते हैं.

एसिडिटी से राहत दिलाए- 

केला वैसे तो एसिडिटी से छुटकारा दिलाने के लिए अच्छा माना जाता है, लेकिन काले धब्बे वाला केले में एंटीएसिड गुण होने से एसिडिटी से तुरंत राहत  दिलाने की क्षमता अच्छी होती है. इससे सीने की जलन से भी राहत मिलती है. इसके लिए केले को चीनी के साथ मिलाकर खाना चाहिए. मैग्नीशियम की पर्याप्त मात्रा के कारण केले को आसानी से पचाया जा सकता है.

बीपी करे कंट्रोल-

काले धब्बे वाला केला खाने से बीपी कंट्रोल में रहता है. दरअसल, इसमें पोटेशियम ज्यादा होता है, जबकि सोडियम की मात्रा न के बराबर होती है. लेकिन दाग रहित केलों में पोटेशियम की मात्रा कम और सोडियम की मात्रा ज्यादा होती है. इसलिए बीपी कंट्रोल करने के लिए हमेशा काले धब्बे वाला केला ही खाएं.

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वजन बढ़ाए- 

चित्तेदार केला वजन बढ़ाने के लिए भी जाना जाता है. जिन लोगों का वजन तमाम कोशिशों के बाद भी नहीं बढ़ रहा, उन्हें रोज सुबह दूध के साथ एक केला खाना चाहिए. कुछ ही दिनों में वजन तेजी से बढ़ जाएगा.

प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करें-

जैसे-जैसे केला पकता है, इसमें मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट का स्तर भी बढ़ता जाता है. इसके साथ ही यह आपके प्रतिरक्षा तंत्र को मजूबत कर सफेद रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भी मदद करता है.

बच्चे को बचाएं Allergy से

बच्चों में विभिन्न प्रकार की ऐलर्जी होने की प्रवृत्ति होती है और ऐलर्जी उत्पन्न करने वाले कारण कई होते हैं. जैसे- धूल के कण, पालतू जानवर की रूसी और कुछ भोज्य पदार्थ. कुछ बच्चों को कौस्मैटिक्स मिलाए जाने वाले सौंदर्य प्रसाधनों, कपड़े धोने वाले साबुन, घर में इस्तेमाल होने वाले क्लीनर्स से भी ऐलर्जी हो जाती है. ऐलर्जी अकसर जींस के कारण भी पनपती है. लेकिन आप अगर इस के उपचार का पहले से पता लगा लें तो इस की रोकथाम कर सकती हैं.

ऐलर्जी के लक्षण

लगातार छींकें आना, नाक बहना, नाक में खुजली होना, नाक का बंद होना, कफ वाली खांसी, सांस लेने में परेशानी और आंखों में होने वाली कंजंक्टिवाइटिस. अगर बच्चे की सांस फूलती है या सांस लेने में बहुत ज्यादा तकलीफ होने लगे तो वह श्वास रोग का शिकार हो सकता है.

ऐलर्जी का इलाज

यदि बच्चे में 1 हफ्ते से अधिक समय तक ये लक्षण नजर आएं अथवा साल में किसी एक खास समय में लक्षण दिखाई दें तो डाक्टर की सलाह लें. डाक्टर आप से इन लक्षणों के बारे में कुछ प्रश्न पूछेगा और उन के जवाब पर बच्चे के शारीरिक परीक्षण के आधार पर उसे दवाएं देगा. अगर जरूरत पड़े तो ऐलर्जी के विशेषज्ञ डाक्टर से परामर्श व दवा लेने के लिए कहेगा या रेफर करेगा.

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ऐलर्जी की तकलीफ का वास्तव में कोई इलाज नहीं है. लेकिन इस के लक्षण को कम कर के आराम मिल सकता है. मातापिता को अपने बच्चों को ऐलर्जी से मुकाबला करने के लिए शिक्षित करना होगा और उन के शिक्षकों, परिवार के सदस्यों, भाईबहन, दोस्तों आदि को इन के लक्षणों से अवगत करा कर निबटने की अनिवार्य जानकारी देनी होगी.

ऐलर्जी से बचाव

अपने बच्चों के कमरे से पालतू जानवर को दूर रखें और ऐसे कौस्मैटिक्स वगैरह को भी दूर रखें, जिन से ऐलर्जी की संभावना हो. कालीन को हटाएं जिस से मिट्टी न जमा हो. ज्यादा भारी परदे न टांगें जिन में धूल जमा हो. तकिया के सिरों को ठीक से सिल कर रखें. जब पराग का मौसम हो तो अपने कमरे की खिड़कियां बंद रखें. बाथरूम को साफ और सूखा रखें और उन्हें ऐसे खाद्यपदार्थ न दें जिन से उन्हें ऐलर्जी होती हो.

-डा. अरविंद कुमार

 एचओडी, पीडिएट्रिक्स विभाग, फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग 

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किशमिश ही नहीं, इसका पानी भी है सेहत के लिए फायदेमंद

लेखिका- दीप्ति गुप्ता

सूखे मेवों में शामिल किशमिश न केवल अपने स्वाद बल्कि गुणों के लिए भी खूब जानी जाती है. किशमिश से होने वाले स्वास्थ्य लाभ के बारे में हर कोई जानता है. यही वजह है कि, अक्सर लोग वजन कम करने और शरीर में खून बढ़ाने के लिए इसका सेवन करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं केवल किशमिश से ही नहीं, बल्कि इसका पानी पीने से भी हेल्द को बहुत फायदा होता है. हर रोज सुबह खाली पेट किशमिश का पानी पीने से एक दर्जन बीमारियों का इलाज हो सकता है. यह न केवल आपको एसिडिटी से बचाता है, बल्कि एंटी एजिंग का बेहतरीन घरेलू उपाय भी है. तो चलिए, जानते हैं किशमिश का पानी पीने के फायदों के बारे में.

किशमिश का पानी पीने से मिलेंगे ये  फायदे

खून की कमी दूर करे- 

कई लोगों के शरीर में खून की कमी होती हैं, खासतौर से यह समस्या महिलाओं से जुड़ी होती है. इसकी कमी को पूरा करने के लिए कई महिलाएं दवाओं का सहारा लेती हैं, लेकिन हर रोज सुबह अगर वे किशमिश का पानी पीना शुरू कर दें, तो ये उनके शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ा देगा. दरअसल, किशमिश के पानी में आयरन, कॉपर और बी-कॉम्प्लेक्स भरपूर मात्रा में होता है. ये खून की कमी को दूर करके रेड ब्लड सेल्स को हल्दी बनाता है.

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किडनी बनाए हेल्दी- 

शरीर के ठीक से काम करने के लिए किडनी का स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है. ऐसे में इसे हेल्दी बनाने के लिए किशमिश का पानी बहुत फायदेमंद साबित होता है. किशमिश के पानी में पोटैशियम और मैग्रीशियम जैसे मिनरल्स पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं. ये बॉडी से विषाक्त टॉक्सिन को निकालकर किडनी को हेल्दी बनाने का काम करते हैं.

कब्ज से बचाए- 

अगर आपको अक्सर ही कब्ज की समस्या रहती है, तो रोज सुबह उठकर सबसे पहले किशमिश का पानी पीना आपके लिए बहुत लाभदायक हो सकता है. दरअसल, जब आप किशमिश को पानी में भिगोते हैं, इसके बाद किशमिश पानी में फूलकर नेचुरल लेक्सेटिव का काम करती है. विशेषज्ञों की मानें, तो नियमित रूप से रोज सुबह इसका पानी पीने से पेट की अच्छी सफाई हो जाती है और लंबे समय तक कब्ज से भी छुटकारा मिलता है.

एसिडटी की समस्या करे दूर-

जिन लोगों को एसिडिटी रहती है, उनके लिए किशमिश का पानी बहुत अच्छा घरेलू उपाय है. किशमिश में मौजूद सॉल्यूबल फाइबर्स पेट की सफाई करके गैस और एसिडिटी से बहुत राहत दिलाते हैं.

आंखों की रोशनी तेज करे-

प्रतिदिन सुबह किशमिश का पानी पीने से आंखों की रोशनी बहुत तेज होती है. अगर आपकी नजर  कमजोर हैं, तो आपको ये घरेलू उपाय तो जरूर आजमाना चाहिए. दरअसल, इस पानी में विटामिन ए, बीटा कैरोटीन और आंखों के लिए फायदेमंद फाइटोन्यूट्रिएंट्स होते हैं. इससे नजर की कमजोरी दूर करने में मदद मिलती है.

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सर्दी-जुकाम से बचाए- 

सर्दी-जुकाम होने पर आप किशमिश का पानी पी सकते हैं. इसके एंटी बैक्टीरियल गुण सर्दी-जुकाम के साथ बुखार से बचाने में भी बहुत मददगार हैं. इस पानी में पॉलीफेनिक फाइटोन्यूट्रिएंट्स होते हैं, जो संक्रमण से भी आपका बचाव करते हैं.

ऐसे तैयार करें किशमिश का पानी-

किशमिश खाने से उम्र बढ़ती है, लेकिन इसका पानी पीने से आपको और ज्यादा लाभ मिलता है. किशमिश का पानी आप कैसे बना सकते हैं, जानिए यहां-

– सबसे पहले मीडियम आंच पर एक बर्तन में पानी गर्म करें.

– एक उबाल आने पर गैस बंद कर दें.

– अब इस पानी में 150 ग्राम किशमिश इस पानी में रातभर भिगोने के लिए छोड़ दें.

– अगले दिन सुबह पानी को छान लें और दोबारा हल्की आंच पर गर्म करें इसे खाली पेट पी जाएं. ध्यान रखें, किशमिश का पानी पीने के आधे घंटे तक नाश्ता न करें.

किशमिश एक बेहतर सुपरफूड है. भले ही किशमिश का पानी आपके स्वस्थ रहने के लिए अच्छा है, लेकिन यह किसी दवा का विकल्प नहीं है. यदि आपको ह्दय, रक्तचाप या शरीर के किसी अंग में समस्या है, तो डॉक्टर से संपर्क जरूर करें.

मदहोश कर देगी सांसों की खुशबू

‘सांसों को सांसों में ढलने दो जरा, धीमी सी धड़कन को बढ़ने दो जरा, लम्हों की गुजाइश है ये पास आ जाएं, हम तुम…’

हम तुम तुम हम टीवी पर चले रहे फिल्म ‘हमतुम’ के इस गाने में सैफ अली खान और रानी मुखर्जी बहुत ही रोमांटिक अंदाज में करीब आते हुए दिलों की धड़कनें बढ़ा रहे थे. रिया को गाने सुनने का शौक नहीं था. इस गाने के बोल उसे कुछ इस कदर भा गये कि वह पूरा गाना सुनने लगी.

वह सोचने लगी कि अपने हनीमून में वह खुद भी कुछ इसी तरह खुल कर रोमांटिक होगी और पति के साथ मजे लेगी, वह अपनी शादी की सारी तैयारियां कर चुकी थी. हनीमून में क्या पहनेगी, कैसे रहेगी सब सोच लिया था.

इस गाने को सुनने के बाद रिया को लगा कि सब से जरूरी काम तो रह ही गया. वह अपनी सांसों की खुशबू को ऐसे महकाना चाहती थी कि उस का पति सांसों की खुशबू में मदहोश हो कर पूरी दुनिया भूल जाये. रिया ने कुछ समय पहले अपने दांतों में कैविटी की फिलिंग करवाई थी. इस में उसे कई बार अजीब सी गंध महसूस होती थी.

फिल्म ‘हमतुम’ के गाने को सुनने के बाद रिया को लगा कि जब तक सांसों की परेशानी दूर नहीं होगी तब तक उस की फस्ट नाइट की तैयारी अधूरी रहेगी.

बात केवल रिया की ही नहीं है. ऐसे बहुत सारे लड़केलड़कियां होते है, जो शादी की हर तैयारीकर लेंगे केवल सांसों की खुशबू की तरफ ध्यान नहीं देंगे. सही मानों में देखें तो फर्स्ट नाइट की शुरुआत सब से पहले इसी करीबी से शुरू होती है. शारीरिक संबंधों की शुरुआत ही चुबन यानी किस से होती है.

किस करते समय अगर मुंह से बदबू आती है तो रोमांस का पूरा मजा ही जाता है. ऐसा किसी के भी मुंह से आने वाली बदबू से हो सकता है. यही वजह है कि रात में सोने से पहले सौंफ, मीठा पान या इलायची खाने का रिवाज बहुत पहले से चला आ रहा है. बदलते समय में माउथ फ्रैशनर आदि से सांसों में ताजगी का एहसास हो जाता है.

फ्रैशनैस से आती है करीबी

कई विज्ञापनों में यह देखने को मिलता है कि करीब आने के लिए फ्रैशनैस की जरूरत होती है. कई विज्ञापनों में तो इस तरह से दिखाया जाता है कि फ्रैशनैस से दोस्ती और करीबी होती है. माउथवाश के विज्ञापनों में भी इस करीबी को बहुत ही सैक्सुअल तारीके से दिखाया जाता है.

इन विज्ञापनों देखने से कई बार लगता है कि फ्रैशनैस से ही रिश्ते मजबूत होते हैं, नए संबंध बनते हैं. इस तरह के विज्ञापनों को देखने से सांसों की ताजगी का एहसास हो जाता है, जिस से पता चलता है कि संबंधों में करीबी के लिए सांसों की ताजगी कितनी जरूरी होती है.

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मुंह के अंदर की सफाई

टूथपेस्ट के बिजनैस में माउथ फ्रैशनैस का बड़ा रोल होता है. हर टूथपेस्ट इस बात का प्रचारकरता है कि उस के टूटपेस्ट के प्रयोग से सांसों में जो फ्रैशनैस आएगी वह रिश्तों में आने वाली दूरियों को भी खत्म कर देगी.

‘रियलटूथ डैंटल क्लीनिक’ लखनऊ के डाक्टर अमित आनंद करते हैं, ‘‘शादी से पहले कई युवा अपनी सांसों की परेशानी ले कर आते हैं. इन में घबराहट होती है कि कहीं पहली रात को सांसों की बदबू इन के साथी के मूड को औफ न कर दे. सांसों की परेशानी के चलते इस में आत्मविश्वास की कमी आती है. आमतौर पर सांसों में बदबू के 3 कारण होते हैं- मुंह की ठीक से सफाई न होना, दांतों में सड़न और पानमसाला खाने से होने वाली गंदगी. सामान्यतौर पर डैंटल स्पा के द्वारा इसे ठीक किया जाता है.

‘‘डैंटल स्पा में मुंह के अंदर की सफाई कैमिकल से की जाती है. बाद में फ्रैशनैस के जरीए होने वाली दुर्गंध को ठीक किया जाता है. इस का असर कुछ दिनों तक रहता है. अगर डैंटल स्पा के बाद माउथ फ्रैशनैस का सही तरह से रोज प्रयोग किया जाये तो सालभर तक यह प्रभावी बना रहता है.’’

सांसों की ताजगी

डाक्टर अमित आनंद आगे कहते हैं, ‘‘कई बार हम कैविटी होने, मसूढ़ों में सूजन, खून आना और ऐसी ही तमाम अन्य बीमारियों को भूल जाते हैं. ये बीमारियां ही मुंह से दुगंर्ध आने का कारण बनती है. दांतों में होने वाली परेशानी का इलाज समय पर न किया जाए तो यह बढ़ती है और दूसरी परेशानियों को जन्म देती है.

बड़ी संख्या में लड़के पान मसाले का सेवन करते हैं. पान मसाले के सेवन से मुंह में गंदगी बढ़ती है. शादी के समय लड़के को इस बात का अफसोस होता है कि उस के मुंह से बदबू आ रही है. वह दांतों की इस गंदगी को दूर कर के सांसों में ताजगी लाना चाहता है. पहले यह संभव नहीं था मगर अब डैंटल की तमाम सुविधाएं आने के बाद दांतों की हर तरह की बीमारी को दूर कर के सांसों में तजागी लाई जा सकती है. फर्स्ट नाइट के लिए केवल लड़की ही नहीं लड़के को भी सांसों की ताजगी का खयाल रखना चाहिए. सांसों की बदबू निजी क्षणों में बाधा न बने इस का पूरा खयाल रखना चाहिए.

ट्रीटमैंट फौर ब्राइड ऐंड ग्रूम

दूल्हादुलहन की वैडिंग स्माइल के लिए कई तरह के ट्रीटमैंट उपलब्ध हैं, जिन्हें जरूरत के हिसाब से लिया जाता है. ये 4 तरह के पैकेज होते हैं:

सिल्वर पैकेज में ₹15 सौ से ₹25 सौ का खर्च होता है. इस में दांतों की स्कैलिंग और पौलिशिंग शामिल होती है.

गोल्ड पैकेज में ₹25 सौ से ₹35 सौ के बीच खर्च आता है. गोल्ड पैकेज में दांतों की स्कैलिंग और पौलिशिंग के साथसाथ ब्लीचिंग भी की जाती है.

डायमंड पैकेज में ₹9 हजार तक का खर्च आता है. इस में स्कैलिंग, पौलिशिंग और ब्लीचिंग के साथसाथ होती है.

प्लैटिनम पैकेज में ₹10 से ₹20 हजार से ऊपर खर्च आता है. इस में स्कैलिंग, पौलिशिंग, ब्लीचिंग, डैंटल ज्वेलरी के साथसाथ स्माइल डिजाइनिंग भी की जाती है.

परफैक्ट स्माइल फौर परफैक्ट डे

सांसों की खुशबू के साथ ही साथ यह भी जरूरी होता है कि उस खास दिन आप की स्माइल उन के साथ दूसरे लोगों के दिल में भी उततर जाए. शादी का यह दिन जिंदगी का सब से खास दिन होता है. ऐसे में जब आप की ड्रैस और ब्यूटी परफैक्ट रहे तो स्माइल फीकी क्यों लगे? डाक्टर अमित आनंद कहते हैं, ‘‘दुलहन ही नहीं दूल्हा भी चाहता है कि यह दिन सब से खास रहे. इस के लिए वह डैंटल डाक्टर के पास जा कर अपना सही इलाज कराता है.

सब से ज्यादा लोग चाहते हैं कि शादी के दिन उन के दांत चमकदार पौलिश किए नजर आएं. चाय, कौफी और पान मसाला से बदरंग हो चुके दांत उस दिन खराब लगते हैं. शादी करने जा रहे दूल्हादुलहन चाहते हैं कि उन के दांत पहले की तरह चमकदार दिखे.’’

कई लोगों के दांत परमानैंट गंदे होते हैं. लेजर ब्लीचिंग के द्वारा इन का इलाज किया जाता है. कुछ लोगों के मसूढ़ों में खाली जगह बन जाती है. यह भी देखने में खराब लगती है. इस का इलाज भी संभव होने लगा है.

इसी तरह मसूढ़ों का कालापन, हंसते समय मसूढ़ों का ज्यादा दिखना और टूटे दांतों का इलाज भी संभव हो गया है. इन का इलाज कराने के बाद परफैक्ट दिन पर आप की स्माइल परफैक्ट दिखेगी. शादी में हरकोई खूबसूरत दिखना चाहता है. ऐसे में मुंह की साफसफाई और दांतों को ठीक करना भी जरूरी हो जाता है.

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चमक बिखेरती डैंटल ज्वैलरी

चमकते दांतों के बीच ज्वैलरी का चलन अब तेजी से बढ़ने लगा है. क्रिस्टल सी चमक बिखेरने वाली ज्वैलरी आप की मुसकान को और भी कातिल बना देती है. यह ज्वैलरी दांतों में लगाने के बाद इसे निकाला भी जा सकता है. लगाने और निकालने का काम डैंटल ऐक्सपर्ट के द्वारा ही हो सकता है. डैंटल ज्वैलरी का चलन सभी उम्र की महिलाओं में समान रूप है.

इस ज्वैलरी की चमक स्माइल को और भी मादक बना देती है. इसे लगाने और हटाने में 15 मिनट का समय लगता है. ज्वैलरी लगाने के बाद कुछ सावधानियां बरतने की जरूरत होती है. डैंटल ज्वैलरी आप की स्माइल को नया रंग देती है.

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