अधिक उम्र में शादी कहां तक सही

शादी की सही उम्र क्या हो? यह ऐसा मुद्दा है जिस में देश के साथ ही दुनिया के तमाम मुल्कों में लड़के और लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र अलगअलग है. वैसे हमारे देश में लड़के की शादी की उम्र 21 वर्ष और लड़की की 18 वर्ष रखी गई है. देश में आज भी ज्यादातर लोग ग्रामीण इलाकों में रहते हैं. देश में पहले बालविवाह का काफी चलन था, लेकिन लोगों में जागरूकता आने से अब बालविवाह में कमी आई है.

समाज में कुछ लोगों की शादी अधेड़ उम्र में होती है. इस का एक कारण यह भी है कि लड़का पढ़ाई के बाद अपने पैरों पर खड़ा हो जाए. आज के आधुनिक दौर में लड़कियां उच्चशिक्षा हासिल करने के लिए गांवों और छोटे शहरों से जा कर देश के बड़े संस्थानों में पढ़ाई कर अपना भविष्य बना रही हैं.

यही कारण है कि अब पढ़ेलिखे ज्यादातर लोग 25 साल की उम्र के बाद ही शादी के बंधन में बंध रहे हैं. इस का सब से अहम पहलू अपने भविष्य को ले कर सुरक्षा का है. शिक्षा ने समाज में जागरूकता का काम किया और नतीजा यह निकला कि लड़का और लड़की में फर्क किया जाना कम होने लगा. अब लड़कियां भी पढ़ कर नौकरी कर रही हैं. वे अच्छी तरह सैटल हो रही हैं और जीवनसाथी चुनने में जल्दबाजी नहीं कर रही हैं. इस वजह से भी शादी की उम्र में असर देखने को मिल रहा है.

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लड़के और लड़की के बीच आमतौर पर 3 से 5 साल का अंतर हो तो उस जोड़ी को अच्छा माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि कम उम्र की लड़की बेहतर होती है, लेकिन अब जमाना बदल रहा है और उसी के साथ मान्यताएं व सोच भी. आज उम्र कोई बहुत बड़ा मसला नहीं रह गया है. आजकल तो कई पत्नियां अपने पति से उम्र में कई साल बड़ी भी हैं. बौलीवुड के स्टार शाहिद कपूर और मीरा राजपूत की शादी भी इसी तरह का एक उदाहरण है. उन के बीच 13 साल का अंतर है. जानेमाने अभिनेता सैफ अली खान ने अमृता सिंह और आमिर खान ने रीना से शादी की. दोनों जोडि़यों में उम्र का काफी फासला था. मशहूर मौडल व ऐक्टर मिलिंद सोमन ने भी 52 साल की उम्र में खुद से 25 साल छोटी गर्लफ्रैंड अंकिता कोंवर को विवाह के लिए चुना है.

इसी तरह, ज्यादा उम्र में शादी के जहां अनेक फायदे हैं तो वहीं कई नुकसान भी हैं. दुनिया के कई देशों में शादी की औसत आयु अलगअलग है. हमारे देश में शादी की औसत आयु

26 वर्ष है. सरकार ने बालविवाह रोकने के लिए कानून के साथ ही लोगों में शिक्षा का प्रसार कर के जागरूक करने का काम किया है. पहले मांबाप अपने बच्चों की कम उम्र में शादी कर के मुक्ति पा लेते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है. समाज में लड़के के साथ लड़कियों को ले कर नजरिया बदला है और इस का सकारात्मक असर भी देखने को मिल रहा है.

फायदे

बड़ी उम्र में शादी करना एक समझदारी भरा फैसला होता है. इस के कई फायदे हैं जिन का असर आप के वैवाहिक जीवन पर पड़ता है.

–               उम्रदराज पुरुष के साथ शादी करने का सब से बड़ा फायदा यह होता है कि लड़की को अपने शौक पूरे करने में परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता, क्योंकि ऐसे लोग जौब में होते हैं. उस के पति का कैरियर सैट होता है और उसे नौकरी के चक्कर में इधरउधर भागना नहीं होता. ऐसे में लड़की आराम की जिंदगी बिता सकती है. हर लड़की को ऐसी ही ससुराल की ख्वाहिश रहती है जहां उसे आर्थिक रूप से परेशानी का सामना न करना पड़े.

–       ज्यादा उम्र में शादी करने का दूसरा फायदा यह होता है कि ऐेसे लोग कम उम्र के लोगों के मुकाबले ज्यादा समझदार होते हैं. किसी भी बात को गहराई से समझ कर फैसला करते हैं और सहनशील भी होते हैं. इस से यह फायदा होता है कि वैवाहिक जीवन सफल होेने के साथ ही खुशहाल भी होता है. पतिपत्नी में अकसर किसी न किसी बात पर तकरार हो जाती है, ऐसे में अगर सोचसमझ कर फैसला न लिया जाए तो जिंदगी दुश्वार हो जाती है.

–       उम्रदराज होने का फायदा यह भी होता है कि अनुभवी होने के नाते आप के पार्टनर को सैक्सलाइफ में आने वाली परेशानियों का ज्ञान होता है, जिस से कई बातों का घर बैठे समाधान पाया जा सकता है.

–       अधिक उम्र में शादी करने से दोनों के बीच अपनी पसंद को थोपने की मंशा नहीं रहती, बल्कि  एकदूसरे की पसंद को समझ कर रिश्ते बेहतर बनाने की कोशिश होती है.

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नुकसान

हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं, एक पहलू वह होता है जिस में आप को फायदा नजर आता है और दूसरा पहलू यह है कि आप को किसी न किसी रूप में नुकसान उठाना पड़ सकता है. कुछ ऐसा ही अधिक उम्र में शादी को ले  कर है.

–       अधिक उम्र में शादी करने का पहला नुकसान यह होता है कि आप अपने पार्टनर को समय कम दे पाते हैं, जिस वजह से एकदूसरे को समझने में जिंदगी गुजर जाती है. ऐसा होने से आप के वैवाहिक जीवन पर बुरा असर पड़ता है.

–       अधिक उम्र की वजह से पति और पत्नी दोनों ही मैच्योर होते हैं, इसलिए विवाद होने पर समझने की कोशिश कम करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वही सही हैं. कोई भी अपनी बात से पीछे नहीं हटना चाहता और बात तूल पकड़ लेती है जिस का रिश्ते पर नकारात्मक असर होता है.

–       हर पतिपत्नी की दिली ख्वाहिश होती है कि शादी के बाद जल्द से जल्द मांबाप बनने का सुख मिल जाए. अनेक शोधों से यह साबित हो चुका है कि ज्यादा उम्र में शादी करने से बच्चे होने की उम्मीद कम रहती है. 35 से 40 वर्ष की उम्र में गर्भधारण करना वास्तव में एक समस्या है क्योंकि इस उम्र में बांझपन की आशंका 15 से 32 फीसदी तक बढ़ जाती है और महिलाओं के गर्भवती होने के अवसर केवल 33 फीसदी तक रह जाते हैं, जबकि 35 से कम उम्र में यह अवसर 50 फीसदी होते हैं.

–       ज्यादा उम्र में शादी करने से वैवाहिक जीवन पर सब से बुरा प्रभाव यह पड़ता है कि सैक्स की ख्वाहिश में कमी होने लगती है, जिस वजह से पतिपत्नी के बीच इन बातों को ले कर काफी तनातनी रहती है.

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कैसे पकड़ें किसी का झूठ

शाम 7 बजे प्रिया जैसे ही घर में घुसी उस की भाभी नताशा सामने खड़ी हो गई. प्रिया नजरें चुराती हुई अंदर जाने लगी, तो नताशा ने टोका, “ननद जी, जरा यह तो बताइए कि इतनी देर तक आप कहां थीं?”

“भाभी, मैं वह… एक्चुअली वह मैं… हमारी एक्स्ट्रा क्लास थी.”

“अच्छा, किस विषय की ?”

“भाभी, …वह… ‌फिजिक्स की. निभा मैम हैं न, उन्होंने कहा था कि आज शाम को एक्स्ट्रा क्लास लेंगी, तो सारी लड़कियां वहीं चली गई थीं.”

“मगर तुम्हारी सहेली तो कुछ और ही कह रही थी.”

प्रिया पर नजरें जमाए नताशा ने पूछा तो प्रिया हड़बड़ा गई. सच उस की जबान पर आ गया. “जी भाभी, मैं अपनी फ्रेंड के साथ बर्थडे पार्टी के लिए गई थी. रजनी का बर्थडे था. वही हमें जिद कर के मौल ले गई थी.”

“प्रिया, तुम मौल गई या बर्थडे पार्टी में शामिल हुई या कुछ और किया, इस से मुझे कोई प्रौब्लम नहीं है. मुझे प्रौब्लम है झूठ बोलने से. मैं कई बार पहले भी कह चुकी हूं कि मुझ से हमेशा सच बोला करो.”

“जी भाभी, आइंदा खयाल रखूंगी,” कह कर प्रिया तेजी से अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गई.

विकास ने प्यार से पत्नी नताशा को निहारते पूछा, “नताशा, तुम्हें यह पता कैसे चल जाता है कि प्रिया झूठ बोल रही है या सच? मैं होता तो तुरंत उस की बात मान लेता कि वह एक्स्ट्रा क्लास के लिए ही गई होगी. तुम ने पहले भी कई दफा उस का झूठ पकड़ा है और एकदो बार मेरा झूठ भी. पर मैं समझ नहीं पाता कि तुम्हें पता कैसे चल जाता है?”

हंसते हुए नताशा ने कहा,” देखो विकास, झूठ पकड़ना बहुत आसान है. सामने वाला बंदा झूठ बोल रहा है या सच, इस का इशारा वह खुद देता है.”

“इशारा, वह कैसे?”

“दरअसल, सच या झूठ का अंदाजा आप उस की बौडी लैंग्वेज यानी शरीर के हावभाव से लगा सकते हैं. इस के लिए सामने वाले बंदे की बौडी लैंग्वेज पर गौर करना पड़ता है. साधारणतया बंदा सच बोल रहा है, तो बात करते समय कुछ समझाने के लिए वह अपने हाथों का उपयोग करता है. इस समय उस के हाथ काफी हिलते हैं. मगर झूठा इंसान अपने हाथों के साथसाथ पूरे शरीर को स्थिर कर लेता है.”

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नताशा की कही इस बात में काफी सचाई है. वाकई, हम झूठे इंसान को उस के हावभाव से पहचान सकते हैं. झूठ पकड़ने के लिए हाथों के अलावा कुछ और भी हावभाव हैं जिन पर गौर करना जरूरी है.

अमेरिकन बिहेवियरल एनालिस्ट (बौडी लैंग्वेज एक्सपर्ट) और ‘बौडी लैंग्वेज औफ लायर्स’ की औथर डाक्टर लिलियन ग्लास कहती हैं कि जब कोई आप से झूठ बोलता है तो उस की सांसें भारी हो जाती हैं. जब सांस की गति बदलती है तो उस का कंधा ऊपर उठता है और आवाज धीमी हो जाती है. संक्षेप में कहा जाए तो उस का अपनी सांसों पर नियंत्रण नहीं रह जाता. ऐसा उस के हार्टरेट और ब्लडफ्लो में आए परिवर्तन के कारण होता है. इस तरह के परिवर्तन नर्वस होने या तनाव में रहने पर होता है.

शरीर स्थिर कर लेना

सामान्य रूप से माना जाता है कि नर्वस व्यक्ति का शरीर अधिक हरकतें करता है, यानी वह चंचल होता है. मगर डाक्टर ग्लास कहती हैं कि आप को ऐसे लोगों पर भी ध्यान देना चाहिए जो बिलकुल स्थिर हो कर बात कर रहे हों. इसे एक तरह के न्यूरोलौजिकल फाइट का साइन माना जा सकता है, यानी व्यक्ति अंदर ही अंदर खुद से लड़ रहा है.

जब व्यक्ति सामान्य अवस्था में बातें करता है तो यह स्वभाविक है कि उस के शरीर के कुछ हिस्से खासकर हाथों में स्वत ही मूवमेंट होते हैं. मगर जब किसी शख्स ने खुद को कंट्रोल किया हुआ हो और वह बिलकुल भी हिलडुल नहीं रहा और अपने हाथों को बांध कर रखा हो तो समझ जाइए कि दाल में कुछ काला है.

विस्तार से बताना

जब कोई शख्स बिना जरूरत किसी चीज के बारे में आप को बहुत विस्तार से बताए और तो बहुत संभावना है कि वह सच नहीं बोल रहा है. डाक्टर ग्लास कहती हैं कि झूठे अकसर बहुत ज्यादा बातें करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि खुद को काफी ओपन दिखाने से सामने वाला शख्स उन पर विश्वास कर लेगा.

लगातार देखना

जब इंसान झूठ बोलता है तो नजरें नहीं मिलाता, मगर कई दफा झूठा इंसान आप से और भी ज्यादा आई कांटेक्ट बनाता है और लगातार देखता है ताकि वह आप को कंट्रोल और मैनिपुलेट कर सके. डाक्टर ग्लास कहती हैं कि जब इंसान सच कहता है तो वह कभी आप की तरफ देखता है और कभी इधरउधर. मगर एक झूठा शख्स लगातार आप की तरफ देख कर बात करेगा ताकि वह आप को काबू में कर सके.

अपने हाथ पॉकेट में रखना

वर्ष 2015 में यूनिवर्सिटी औफ मिशिगन द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि झूठे लोग अपने हाथों को आप से दूर रखते हैं. हो सकता है कि वे अपने हाथ पौकेट के अंदर या टेबल के भीतर छिपा लें. यह भी एक सिग्नल है यह समझने के लिए कि सामने वाला शख्स आप से अपनी फीलिंग्स और जानकारियां छिपा रहा है, यानी वह आप से झूठ बोल रहा है.

सहजता की कमी

अकसर देखा गया है कि झूठा व्यक्ति सहजता से नहीं बोल पाता. वह ठहरठहर कर बोलता है. दरअसल, तनाव के समय हमारा औटोमेटिक नर्वस सिस्टम लार का स्राव घटा देता है जिस से मुंह सूखने लगता है. कई बार व्यक्ति होंठों को दांतों से काटने लगता है.

शब्दों को बारबार दोहराना

अगर कोई व्यक्ति आप को कनविंस करने के लिए कुछ खास शब्दों या बात को बारबार दोहराता है तो समझ जाइए कि मामला गड़बड़ है.

हाथ फिराना

झूठ बोलने वाले व्यक्ति की पहचान यह भी होती है कि वह झूठ बोलते समय अपने गले, सिर या सीने पर बारबार हाथ फिराता है. वह अपने मुंह पर भी हाथ रखता है.

पैरों की पोजीशन में बदलाव

इंसान झूठ तभी बोलता है जब वह कुछ छिपा रहा होता है. ऐसे में जब उस से कोई सवाल पूछा जाता है तो वह झूठ बोल कर उस स्थिति से बचने की कोशिश करता है. इस दौरान वह काफी नर्वस रहता है जिस के कारण वह अपने पैरों की पोजीशन लगातार बदलता रहता है.

यह सच है कि कई दफा एक छोटा सा झूठ भी किसी रिश्ते को खत्म करने के लिए काफी होता है. फिर भी हम आमतौर पर किसी न किसी परिस्थिति में फंस कर या किसी कारणवश झूठ बोल जाते हैं. वहीँ, यह भी देखा गया है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष ज्यादा झूठ बोलते हैं.

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यूनिवर्सिटी एम्‍हर्स्ट मैसेचेट ने 2002 में एक रिपोर्ट जारी की थी. उस के मुताबिक, 10 मिनट की बातचीत के दौरान करीब 60 फीसदी लोग झूठ बोलते हैं. इस दौरान उन की 2 या 3 बातें झूठी निकलती हैं.

ब्रिटेन की पोर्ट्समाउथ यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जब झूठ बोलने की बात आती है तो महिलाओं के मुकाबले पुरुष अधिक झूठ बोलते हैं. झूठ बोलने में माहिर पुरुष आमनेसामने ज्यादा झूठ बोलते हैं, लेकिन वे सोशल मीडिया पर ऐसा बहुत कम करते हैं.

वजह कुछ भी हो और झूठ कोई भी बोल रहा हो, सीधी सी बात है कि सच सामने आ ही जाता है. और तब व्यक्ति सामने वाले की नजरों में अपना सम्मान खो देता है. इसलिए, हमें झूठ बोलने से हमेशा बचना चाहिए.

क्या है इमोशनल एब्यूज

‘‘तुम्हें क्या बिलकुल अक्ल नहीं है कि किसी के सामने क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं? यू आर सिंपली स्टूपिड रोहित,’’ नेहा जब अपनी सहेली के सामने अपने पति पर चिल्लाई तो बहुत आहत हुआ रोहित. यह कोई आज की बात नहीं थी. नेहा इसी तरह सब के सामने उस की बेइज्जती करती थी. कोई गलती न होने पर भी उस को गलत ठहराती थी. सब के सामने उस की बात काट देती. यहां तक कि बच्चों से जुड़े मुद्दों पर भी वह उस से रायमशवरा नहीं करती थी.

नेहा ने रोहित के बहुत कहने पर भी अपनी नौकरी नहीं छोड़ी. अपना ही नहीं उस का भी सारा पैसा वह अपनी मरजी से खर्च करती और रोहित को सिर्फ रोज के आनेजाने का किराया ही देती.

रोहित कमतर नहीं था पर फिर भी नेहा के अमानवीय व्यवहार, गालियों व असम्मानजनक शब्दों को उसे झेलना पड़ रहा था और यह भी सच था कि नेहा ने कभी उसे मन से नहीं अपनाया था.

1. भावनात्मक रूप से आहत किया जाना

रोहित इमोशनल एब्यूज का शिकार है. भावनात्मक रूप से जब कोई आहत होता है तो उसे समझ पाना ज्यादा कठिन होता है. ऐसी यातनाओं के लिए कानून की मदद भी नहीं ली जा सकती. यह शिकायत दर्ज कराना मुश्किल होता है कि आप की पत्नी आप के पैसे पर पूरा अधिकार रखती है और वह आप को जेबखर्च तक के लिए पैसे नहीं देती. उस ने आप को आप के परिवार वालों, मित्रों आदि से भी दूर कर दिया है या वह हमेशा आप पर अपनी बात थोपने की कोशिश करती है.

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2. प्यार न जताना

यह माना जाता है कि प्यार न जताना या साथी की हर बात से असहमत होना भी एक तरह का इमोशनल एब्यूज ही है. यह शारीरिक यातना से ज्यादा पीड़ादायक होता है. इसे केवल सहने वाला ही समझ सकता है. 32% पुरुष इस समस्या के शिकार हैं जिन्हें उन की पत्नियां बेइज्जत करती हैं, गालियां देती हैं व उन्हें नजरअंदाज भी करती हैं. यही नहीं अकसर वे चुप्पी को अपना हथियार बना लेती हैं, रिश्ते को कायम रखने के लिए किसी भी तरह के योगदान से मना कर देती हैं. फिर चाहे वह घर संभालना हो, पैसे का मामला हो या सैक्स संबंध हों.

बच्चों को भी पति को इमोशनल एब्यूज करने का माध्यम बनाया जाता है. बच्चों को ले कर चले जाने की धमकी पत्नियां अकसर देती हैं.

3. मजाक उड़ाना

‘‘मेरी पत्नी सब के सामने मुझे बेवकूफ कहती है. बारबार घर छोड़ कर जाने की धमकी देती है. मेरी पढ़ाई और मेरे मातापिता का मजाक उड़ाती है. मेरी नौकरी का मजाक उड़ाती है, क्योंकि वह अमीर घर से है. वह मुझे एब्यूज करती है और बारबार मुझ से कहती है कि मैं उस का एहसान मानूं कि उस ने मुझ जैसे आदमी से शादी की है,’’ यह कहना है 39 वर्षीय एक युवक का जो एक प्राइवेट कंपनी में ऐग्जीक्यूटिव के पद पर कार्यरत है.

किसी को बेकार कहना या उस के वजूद को नकारना कहीं न कहीं एक तरह से हीन भावना की ही अभिव्यक्ति होती है. ऐसी पत्नियां खुद को तो सुपीरियर साबित करने की कोशिश करती ही है, साथ ही साथी का अपमान कर उन का ईगो भी संतुष्ट होता है.

4. नियंत्रण करने की भावना

विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी को मानसिक रूप से आहत करने के पीछे एक ही वजह होती है दूसरे पर कंट्रोल करने की इच्छा. अकसर एब्यूज करने वाला व्यक्ति अपने साथी पर इसलिए नियंत्रण करता है, ताकि केवल वही उस के जीवन का केंद्र बना रहे. उस के दोस्तों व परिवारजनों के साथ बुरा व्यवहार करने के पीछे भी कारण यही है कि वह उन से मिल न सके और सब से दूर हो जाए.

एब्यूज करने वाली पत्नी साथी पर कंट्रोल करने के लिए उस की हर गतिविधि पर नजर रखती है. वह कहां जा रहा है? किस से बात कर रहा है या फिर क्या कर रहा है?

उस के मित्रों व परिवार के लोगों से भी उसे मिलने नहीं देगी और उस के हर काम में कोई न कोई गलती निकाल उस के अंदर लगातार गलत होने की गिल्ट भरती रहेगी. उस की सोशल लाइफ को भी बाधित कर देती है. एब्यूज करने वाली पत्नी साथी के टाइम, स्पेस, इमोशंस, फ्रैंडशिप और फाइनैंस सब पर कंट्रोल कर लेती है या कर लेना चाहती है. पूरी तरह से अपने ऊपर निर्भर करने की इच्छा उसे पति को हर तरह के सपोर्ट सिस्टम से काट लेने को प्रेरित करती है.

5. इमोशनल एब्यूज का शिकार

अधिकांश पुरुषों को यह समझाने में बहुत देर लग जाती है कि वे इमोशनल एब्यूज का शिकार हैं. वे जैसे भी जिंदगी काटते हैं उसी में संतुष्ट रहते हैं. महसूस होने पर या परिवार वालों को पता लगने पर भी उन में खिलाफ जाने या पत्नी को छोड़ देने की हिम्मत नहीं होती, क्योंकि वे चीजों के ठीक होने का इंतजार करते हैं.

6. लक्षण

अवसाद, लगातार सिरदर्द रहना, कमर में दर्द व पेट की समस्याएं उन्हें घेरे रहती हैं. जिस के कारण जीने व कुछ करने की इच्छा ही उन के अंदर से मिट जाती है. काबिल आदमी कई बार गुमनामी के अंधेरों में खो जाता है या अपने अस्तित्व को ही नकारने लगता है. बारबार उस का आत्मसम्मान आहत होने से वह अपने होने पर ही सवाल करने लगता है.

7. खुद से करें ये सवाल

पत्नी हमेशा आप की आलोचना करती है, अपमान करती है, आप की काबिलियत का मजाक उड़ाती है?

आप की भावनाओं को नजरअंदाज करती है?

आप को आप के मित्रों व परिवार के लोगों से संपर्क न रखने के लिए बाध्य करती है?

कई बार आप को लगता है कि उस का मूड अकसर बदलता रहता है.

क्या आप को लगता है कि आप का दूसरों से मिलनाजुलना और मजाक करना उसे नागवार गुजरता है?

8. आप मानसिक रूप से छले तो नहीं गए

देखा गया है कि हमारा समाज आसानी से इस बात को गले से नहीं उतार पाता कि एक मर्द एक औरत से दब गया या उस की ज्यादतियों का शिकार हो गया. दरअसल, हमारा भारतीय कानून महिलाओं के अधिकारों के लिए अधिक सशक्त है. यदि ऐसा पुरुष की तरफ से होता है तो समाज तुरंत उस पर प्रतिक्रिया करता है और यह बात चर्चा का विषय भी बन जाती है.

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9. इमोशनल एब्यूज है क्या

डाक्टर अंशु लहरी ने इमोशनल एब्यूज को ले कर कुछ बातें स्पष्ट की हैं:

बातों से या बिना कुछ कहे, अपने व्यवहार से साथी को दिया जाने वाला मानसिक तनाव या उसे तंग करने जैसी स्थिति पैदा करना भी इमोशनल एब्यूज है.

जब रिश्ते में यह स्थिति आ जाती है तो इस का अर्थ होता है कि युगल के बीच आपसी विश्वास नहीं रहा है, क्योंकि अगर एक साथी दूसरे साथी को भावनात्मक रूप से परेशान करता है तो उन के बीच सम्मान का सेतु टूट जाता है. यह इमोशनल एब्यूज नियंत्रण करने, अपने व्यवहार से उसे चिढ़ाने या अपनी तरह से उसे जीने के लिए बाध्य करने, अपेक्षा से अधिक उस से इच्छाएं रखने, अत्यधिक पजेसिव होने के रूप में हो सकता है.

इस से साथी के मन में अवसाद, अस्वीकृत व असहाय होने की भावना या एकाकीपन समा जाता है.

देखा गया है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं इस का अधिक शिकार होती हैं. घरेलू हिंसा व धमकियों के साथ ही अकसर इमोशनल एब्यूज किया जाता है.

युगल को किसी हैल्थ प्रोफैशनल से इस के बारे में सलाह लेनी चाहिए. तभी यह पता लगाया जा सकता है कि ऐसा होने की मुख्य वजह क्या है.

5 टिप्स: इन तरीकों से बनाए रखे लौन्ग-डिस्टेन्स रिलेशनशिप में करीबियां

अक्सर ऐसा होता है की आप अपने पार्टनर के साथ रहना चाहते हैं पर पढ़ाई, जॉब या किसी और मजबूरी के कारण आप ऐसा नहीं कर पाते. ये दूरी आपके रिश्ते में दूरी ना बना पाए इस बात पर आपको ध्यान देना चाहिए. वो लोग जो लौन्ग-डिस्टेन्स रिलेशनशिप में हैं वो भी अपने रिश्ते का आनंद उठा सकते हैं. रात-रात भर चैट करना या बहुत दिन के बाद मिलना भी रोमांटिक हो सकता है. अगर आपके साथ भी यहीं स्थिति है और आप परेशान हैं कि रिश्ते को कैसे बना के रखें कि दूरियां ना आएं तो ये 5 टिप्स आपकी मदद कर सकते हैं.

  1. रोजाना करे बात….

अगर आप अपने रिश्ते को टूटने नहीं देना चाहते हैं तो आप हमेशा एक-दूसरे से संपर्क में रहें. आप अपने साथी से हर रोज बात करें चाहे मैसेज के जरिये, वीडियो कॉल के जरिये या फिर फोन के जरिए. जितना हो सके एक-दूसरे से बात करते रहें. बात करने का ये मतलब भी नहीं है कि आप हर मिनट उन्हें फोन करके परेशान करें इससे आपका और उनका दोनों के काम में बाधा पड़ेगी इसलिए जब भी आप दोनों फ्री हों तो एक दूसरे से बात करके खुश रहें.

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2. समय-समय पर मिलते रहें…

लौन्ग-डिस्टेन्स रिलेशनशिप में ऐसा होता है कि बहुत समय तक आपका मिलना नहीं हो पाता है. समय-समय पर मिलने कि योजना बनाते रहें और ध्यान रहे कि जब भी मिले तो कुछ नया करें या फिर कुछ अच्छा सरप्राइज दें जिससे आपका पार्टनर खुश हो जाएं. किसी अच्छी जगह पर जाएं और खूबसूरत पल साथ में बिताए जो आपके दूर होने पर भी याद आए.

3. हर बात शेयर करें…

दिनभर में आपने क्या किया, वो शेयर करें और अपने साथी से भी पूछें. इससे आप अपने साथी के साथ होने का एहसास कर पाएंगे. छोटी-छोटी बातें शेयर करना भी बहुत अच्छा है इससे आप अपने पार्टनर को ये एहसास दिलाते हैं कि आप उनके लिए कितने जरूरी हैं. अगर आपके पास समय नहीं है फोन पर बात करने का तो ईमेल या मैसेज क जरिये अपनी बातों को शेयर करें.

4. मुश्किल समय में साथ दें…

अगर आपको पता है कि आपका पार्टनर परेशान है तो आप ऐसा कुछ करें कि उससे उनकी परेशानी कम हो जाए और वो थोड़ा रिलैक्स हो जाए. ऐसे समय में आपका उनको समझना बहुत जरूरी है. अगर आप पार्टनर कि परेशानी में साथ नहीं देंगे तो धीरे-धीरे वो अपनी परेशानी शेयर करना भी बंद कर देंगे. उन्हें लगेगा कि वो अकेले हैं इसलिए उन्हें ऐसा महसूस कराएं कि आप उनके साथ हैं.

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5. भरोसा बनाए रखें…

एक रिश्ते में भरोसे का होना बहुत जरूरी है. अगर आपके रिश्ते में भरोसा न हो तो वो रिश्ता किसी काम का नहीं होता है. अगर आपसे कभी कोई गलती हो भी जाए तो भी आप हिम्मत करके अपने पार्टनर को सब सच बता दें. थोड़ी देर के लिए उन्हें बुरा जरूर लगेगा पर भरोसा नहीं टूटेगा. हर समय आप अपने पार्टनर के बारे में पता नहीं करते रहें, कि वह कहां है, किसके साथ है, कॉल क्यों नहीं कर रहा या कुछ और भी. ऐसा करने से आप अपने पार्टनर के नजदीक जाने के बजाय और दूर हो जाएंगे.

बदलती जीवनशैली में हर उम्र की महिलाओं को चाहिए पुरुष दोस्त

..तो क्या भारतीय पुरुष बदल गए हैं? या वक्त ने उन्हें बदलने पर मजबूर कर दिया है. आज जीवनषैली काफी कुछ बदल गई है जिसमें आपोजिट सेक्स के दोस्त जिंदगी का जरूरी हिस्सा बन गए हैं. फिर चाहे बात पुरुषों की हो या महिलाओं की. पर चूंकि पुरुष हमेषा से महिलाओं से दोस्ती की फिराक में रहते रहे हैं इसलिए उनके संबंध में यह कोई चैंकाने वाली बात नहीं है. लेकिन महिलाओं के नजरिये से देखें तो यह वाकई क्रांतिकारी दौर है. जब हर उम्र की महिलाओं को पुरुष दोस्तों की जरूरत महसूस हो रही है और सहज बात यह है कि उसके सगे संबंधी पुरुष चाहे वह पिता हो, भाई हो या पति सब इस जरूरत को जानते हैं और इसे महसूस करते हैं.

दरअसल आज की इस तेज रफ्तार जीवनषैली में समस्याओं का वैसा वर्गीकरण नहीं रहा है जैसा वर्गीकरण आधी सदी पहले तक हुआ करता था. मगर जमाना बदल गया है. कामकाज के तौरतरीके और ढंग बदल गए हैं, भूमिकाएं बदल गई हैं इसलिए अब समस्याओं का बंटवारा या कहें वर्गीकरण महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग तरह का नहीं रह गया है बल्कि जो समस्याएं आज के कॅरिअर लाइफ में पुरुषों की हैं, वही समस्याएं महिलाओं की भी हैं. ऐसा होना आष्चर्य की बात भी नहीं हैै. जब महिलाएं हर जगह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हों तो भला समस्याएं कैसे अलग-अलग किस्म की हो सकती हैं. तनाव और खुशियां दोनों ही मामलों में पुरुष और महिलाएं करीब आ गए हैं. नई कामकाज की शैली में देर रात तक पुरुष और महिलाएं विषेषकर आईटी और इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में साथ-साथ काम करते हैं. ..तो दोनों के बीच इंटीमेसी विकसित होना भी आम बात है.

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स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक होते हैं. मगर पहले चूंकि पुरुषों और महिलाओं के काम अलग-अलग थे इसलिए पूरक होने की उनकी परिस्थितियां भी अलग-अलग थीं. आज जो काम वर्षाें से सिर्फ पुरुष करते रहे हैं, महिलाएं भी उन कामों में हाथ आजमा रही हैं तो फिर महिलाओं को इन कामों में मास्टरी हासिल करने के लिए दिषा-निर्देष किससे मिलेगा? पुरुषों से ही न? ठीक यही बात पुरुषों पर भी लागू होती है. वेलनेस और सौंदर्य प्रसाधन क्षेत्र में पहले इस तरह पुरुष कभी नहीं थे जैसे आज हैं. तो फिर भला इन क्षेत्रों में वह महिलाओं से ज्यादा कैसे जान सकते हैं? ऐसे में कामकाज के लिहाज से उनकी स्वाभाविक दोस्त कौन होंगी? महिलाएं ही न! चूंकि दोनों ने एक दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप किया है, प्रवेष किया है इसलिए दोनों ही एक दूसरे के भावनात्मक और सहयोगात्मक स्तर पर भी नजदीक आ गए हैं. यह जरूरत भी है और चाहत भी. इसलिए पुरुषों और महिलाओं की दोस्ती आज शक के घेरों से बाहर निकलकर सहज स्वाभाविक पूरक होने के दायरे में आ गई है.

सिग्मंड फ्रायड ने 19वीं सदी में ही कहा था ‘आॅपोजिट सेक्स’ न सिर्फ एक दूसरे को आकर्षित करते हैं बल्कि प्रेरित भी करते हैं; क्योंकि दोनों कुदरती रूप से एक दूसरे के पूरक होते हैं. हालांकि इंसानों में यह भाव हमेषा से रहा है; लेकिन सामाजिक झिझक और मान्यताओं के दायरे में फंसे होने के कारण पहले स्त्री या पुरुष एक दूसरे की नजदीकी हासिल करने की स्वाभाविक इच्छा का खुलासा नहीं करते थे. मगर कामकाज के आधुनिक तौर-तरीकों ने जब एक दूसरे के बीच जेंडर भेद बेमतलब कर दिया तो इस मानसिक चाहत के खुलासे में भी न तो पुरुषों को ही, न ही महिलाओं को किसी तरह की दिक्कत नहीं रही.

पढ़ाई चाहे गांव में हो या शहरों में, अब आमतौर पर सहषिक्षा के रूप में ही हो रही है. पढ़ाई के बाद फिर साथ-साथ कामकाज और साथ-साथ कामकाज के बाद लगभग इसी तरह की जीवनषैली यानी ऐसे समाज में जीवन गुजारना, जहां स्त्री और पुरुष के बीच मध्यकालीन भेद नहीं होता. ऐसे में पुरुष स्त्री एक दूसरे के दोस्त सहज रूप से बनते हैं. मगर यह बात तो दोनों पर ही लागू होती है फिर पुरुषों के बजाय महिलाओं के मामले में ही यह क्यों चिन्हित हो रहा है या देखने में आ रहा है कि आज हर उम्र की महिलाओं को पुरुष दोस्तों की जरूरत है? इसके पीछे वजह यह है कि महिलाओं के संदर्भ में यह नई बात है. यह पहला ऐसा मौका है जब महिलाएं खुलकर अपनी इस जरूरत को रेखांकित करने लगी हैं. जबकि इसके पहले तक वह घर-परिवार, समाज और जमाने की नाखुषी से अपनी इस चाहत और जरूरत को रेखांकित करने में झिझकती रही हैं. लेकिन इंटरनेट, भूमंडलीकरण और तेजी से आर्थिक और कामकाजी दुनिया मंे परिवर्तन के चलते जो आध्ुनिकता आयी है उसने यह वातावरण बनाया है कि महिलाएं अपनी बात खुलकर कह सकें, अपनी जरूरत को सहजता से सबके सामने रख सकें.

समाजषास्त्रियों को यह सवाल परेषान कर सकता है कि महिलाएं तो हमेषा से पुरुषों के साथ ही रही हैं. पति, पिता, पुत्र और भाई के रूप में हमेषा महिलाओं के साथ पुरुषों की मौजूदगी रही है. फिर उन्हें अपनी मन की बात शेयर करने के लिए या तनाव से राहत पाने के लिए अथवा कामकाज सम्बंधी सहूलियतें व जानकारियां पाने के लिए पुरुष दोस्तों की इतनी जरूरत क्यों पड़ रही है? दरअसल पति, पिता, पुत्र और भाई जैसे रिष्ते महिलाओं के पास सदियों से मौजूद रहे हैं और सदियों की परम्परा ने इनके कुछ मूल्यबोध भी निष्चित कर दिये हैं. इसलिए रातोंरात उन मूल्यों या बोधों को उलटा नहीं जा सकता. कहने का मतलब यह है कि पुरुष होने के बावजूद भाई, पिता, पति और पुत्र अपने सम्बंधों की भूमिका में ज्यादा प्रभावी होते हंै. इसलिए कोई भी महिला इन तमाम पुरुषों से सब कुछ शेयर नहीं कर सकती या अपनी चाहत या जिंदगी, महत्वाकांक्षाओं और दुस्साहसों को साझा नहीं कर सकती जैसा कि वह किसी पुरुष दोस्तों से कर सकती है.

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इसलिए इन तमाम पुरुषों के बावजूद महिलाओं को आज की तनावभरी जीवनषैली में सफलता से आगे बढ़ने के लिए घर के पुरुषों से इतर पुरूष दोस्तों की षिद्दत से जरूरत महसूस होती है. 10 या 12 घंटे तक लगातार पुरूषों के साथ काम करने वाली महिलाएं उनके साथ वैसा ही बर्ताव नहीं कर सकतीं जैसा बर्ताव वह अपनी निजी सम्बधों वाले जीवन में करती हैं. 8 से 12 घंटे तक लगातार काम करने वाली कोई महिला सिर्फ सहकर्मी होती है और उतनी ही बराबर जितना कोई भी दूसरा पुरुष सहकर्मी यानी वह पूरी तरह से सहकर्मी के साथ स्त्री के रूप में भी होती है और पुरूष के रूप में भी. यही ईमानदारी दोनों को आकर्षित भी करती है और प्रेरित भी करती है. जिससे काम, बोझ की बजाय रोमांच का हिस्सा बन जाता है. इसलिए तमाम सगे संबंधी पुरुषों के बावजूद महिलाओं को आज की जिंदगी में सहजता से संतुष्ट जीवन जीने के लिए हर मोड़ पर, हर कदम पर पुरुषों के साथ और उनसे दोस्ती की दरकार होती है.

यह देखा गया है कि जहां पुरुष-पुरूष काम करते हैं या सिर्फ महिला-महिला काम करती हैं, वहां न तो काम का उत्साहवर्धक माहौल होता है और न ही काम की मात्रा और गुणवत्ता ही बेहतर होती है. इसके विपरीत जहां पुरूष और महिलाएं साथ-साथ काम करते हों, वहां का माहौल काम के लिए ज्यादा सहज, अनुकूल और उत्पादक होता है. इसलिए तमाम कारपोरेट संगठन न सिर्फ पुरुषों और महिलाओं को साथ-साथ काम में रखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं बल्कि उनमें दोस्ती पैदा हो, गाढ़ी हो इसके लिए भी माहौल का सृजन करते हैं. यही कारण है कि आज चाहे वह स्कूल की किषोरी हो, काॅलेज की युवती हो, दफ्तर की आकर्षक सहकर्मी हो या कोई भी हो. हर महिला को अपनी दुनिया में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए पुरुषों का साथ चाहिए. यह बुरा कतई नहीं है बल्कि बेहतर समाज का बुनियादी रुख ही दर्षाता है. अगर पुरुष और महिला एक दूसरे के दोस्त होंगे, एक दूसरे के ज्यादा नजदकी होंगे तो वह एक दूसरे को ज्यादा बेहतर समझेंगे और ज्यादा बेहतर समझेंगे तो दुनिया ज्यादा रंगीन होगी.

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ब्रेकअप के कारण में डिप्रेशन में आ गई हूं, मैं क्या करूं?

सवाल-

मैं अपने दोस्तों से अपनी रिलेशनशिप्स के बारे में बात करने में कम्फर्टेबल नहीं हूं और यही कारण है कि मैं अपनी परेशानी यहां कह रही हूं. मैं अपने बौयफ्रैंड से ब्रेकअप करना चाहती थी और इसी कारण मैं ने जानबूझ कर उस से लड़ाई कर ली. वह और मैं भविष्य में एकसाथ नहीं रह सकते, इसलिए मुझे लगा कि हमें ब्रेकअप कर लेना चाहिए. लड़ाई के 2 दिन बाद तक मैं ने उस से बात नहीं की और मैं समझ भी नहीं पा रही थी कि अगर वह मुझे मनाने आया तो मैं क्या कहूंगी. हुआ यह कि उस ने मुझे नहीं मनाया और उस के बिना मेरा मन नहीं लगा तो मैं ने खुद ही उसे मैसेज कर दिया. वह मुझ से गुस्सा हो गया. मैं ने उस से बात करने की कोशिश की तो समझ आया कि अब वह मुझ से बात नहीं करना चाहता. मुझे पिछले कई दिनों से डिप्रैशन जैसा लग रहा है और अब यह दुख भी सहन नहीं हो रहा. क्या करूं, समझ नहीं आ रहा?

जवाब-

आखिर हुआ वही जो आप चाहती थीं तो अब इस तरह भागना कैसा. आप चाहती थीं कि आप का ब्रेकअप हो जाए और हो गया. आप चाहती थीं कि वह आप को मनाने न आए क्योंकि आप के पास जवाब नहीं है देखिए वह नहीं आया. हो सकता है वह समझ गया हो कि आप के मन में क्या चल रहा है, इसलिए उस ने आप के फैसले को नकारने के बजाय उसे चुपचाप मान लिया. आप अगर जानती हैं कि आप दोनों का एकसाथ कोई भविष्य नहीं है और आप को आज या कल ब्रेकअप करना ही है तो यह मौका बारबार नहीं आएगा. दुखदर्द होगा, आप को सहना भी होगा और यह मौका आप के पास खुद चल कर आया है, इसे इस तरह जाने देना सही नहीं होगा. आप को आज या कल इस से गुजरना ही है तो अभी क्यों नहीं. आगे फैसला आप का खुद का है.

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आखिर अच्छे लोग ही क्यों हमेशा रिश्तों में मात खाते हैं, जानें 5 कारण

एक बहुत अच्छे साइकायट्रिस्ट और लेखक ने कहा है कि दुनिया का सबसे खूबसूरत इंसान वह होता है जिसने हार,  मुश्किलें,  संघर्ष,  हानि और पीड़ा आदि सबको करीब से जाना है और फिर भी गहराई से बाहर निकलने के लिये रास्ता बनाया हो. इन लोगों में प्रशंसा,  नम्रता, संवेदनशीलता और जीवन को जीने की एक समझ होती है. वो लोग हर दिन अपनी जिंदगी एक नई लड़ाई के साथ शुरू करते हैं लेकिन फिर भी कभी शिकायत नहीं करते. अच्छे इंसान जन्म से ही अच्छे हो ऐसा नहीं है, उन्हें जिंदगी के उतार-चढ़ाव ऐसा बना देते हैं. अच्छे इंसान बाकी लोगों की जिंदगी में रोशनी लाते हैं क्योंकि वे खुद अंधेरों का मतलब समझते हैं. अक्सर ऐसा होता है कि जो इंसान अच्छे होते हैं, हमेशा दूसरों के बारे में सोचते हैं, लेकिन उन्हें ही सबसे ज्यादा मुसीबत झेलनी पड़ती हैं. आखिर क्यों होता है ऐसा चलिए जानते हैं.

1. किस्मत की मार…

बहुत बार अच्छे लोग किस्मत के सामने हार जाते हैं. वो जो चाहते हैं उन्हें कभी नहीं मिलता. हालांकि, वो परेशानियों से लड़ना जानते हैं. सफलता कैसे मिलनी है उन्हें पता हैं और इस तरह की परेशानी से निकलना भी जानते हैं लेकिन उनकी भावनाएं कोई समझ नहीं पाता. उनमें ये हुनर होता है कि वे कुछ भी ना होने का बहाना नहीं बनाते बल्कि जो है उसका सम्मान करते हैं और इसलिए वो रास्ते बनने का इंतजार नहीं करते, बल्कि रास्ते बना लेते हैं.

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2. उन्हें ‘ना’ बोलना नहीं आता है…

अच्छे इंसान आपको कभी किसी चीज़ के लिए ना नहीं बोलते हैं. चाहे उसके लिये उन्हें कितनी भी मेहनत करनी पड़े. वे हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहते हैं. इसी कारण लोग उनसे काम निकलवाने के लिये सोचते हैं. आप चाहे उनके काम आएं या न आएं वो आपके काम जरूर आते हैं. इससे ये होता है कि वो खुद भी कभी-कभी मुसीबत में पड़ जाते हैं.

3. किसी पर भी जल्दी भरोसा कर लेना…

जो इंसान किसी पर भी जल्दी भरोसा कर लेते हैं उन्हें हमेशा लोगों से धोखा ही मिलता है मगर फिर भी वो आपको धोखा देने के बारे में नहीं सोचते हैं. बल्कि धोखे के बावजूद भी वो आपकी हमेशा मदद करते हैं इसलिए आज के जमाने में इंसान को आंख बंद करके किसी पर भी भरोसा नहीं करनी चाहिए. वरना उन्हें दुख के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा.

4. दूसरों को कभी दुख नहीं पहुंचाते…

अच्छे लोग दुख का मतलब जानते हैं इसलिए वो सोचते हैं कि कभी किसी को हर्ट ना करें हालांकि उनके लिए भी लोग यही सोचे ऐसा जरुरी नहीं होता है. जो लोग सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं, वो दूसरो को हर्ट करने से पहले एक बार भी नहीं सोचते हैं. जो इंसान अच्छे होते हैं वो इस बात का ध्यान जरूर रखते हैं की उनकी किसी बात का लोगों को बुरा न लग जाए. साफ दिल के इंसान अपनी खुशी से पहले दूसरों की खुशी के बारे में सोचते हैं. अपनी जरूरतों को पूरा करने से पहले दूसरों की जरूरतों को पूरा करते हैं. अच्छे इंसान हमेशा आपको आगे बढ़ने की हिम्मत देते हैं.

5. अपनी भावनाओं को नहीं दिखाना…

जो अपने से ज्यादा दूसरों के बारे में सोचते हैं वो इंसान कभी भी अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी भावनाओं से शायद कोई परेशान न हो जाए या अपनी परेशानी से दूसरों को और परेशान नहीं करना चाहते हैं.

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क्या आप की दोस्ती खतरे में है

संभव है कि किन्हीं कारणों से आप की दोस्ती अब पहले जैसी नहीं रह गई हो. आप के दोस्त के बरताव में आप कुछ बदलाव महसूस कर सकते हैं या आप में उस की दिलचस्पी अब न रही हो या कम हो गई हो. कुछ संकेतों से आप पता लगा सकते हैं कि अब यह दोस्ती ज्यादा दिन निभने वाली नहीं है और बेहतर है कि इस दोस्ती को भूल जाएं.

1. दोस्ती एकतरफा रह गई है

दोस्ती नौर्मल हो, प्लुटोनिक या रोमांटिक, किसी तरह की भी दोस्ती एकतरफा नहीं निभ सकती है. अगर आप का पार्टनर आप की दोस्ती का उत्तर नहीं दे रहा है तो इस का मतलब है कि उस की दिलचस्पी आप में नहीं रही. इस दोस्त को गुड बाय कहें.

2. आप के राज को राज न रखता हो

आप अपने फ्रैंड पर पूरा भरोसा कर उस से सभी बातें शेयर करते हों और उस से यह अपेक्षा करते हों कि वह आप के राज को किसी और को नहीं बताए पर यदि वह आप के राज को राज न रहने दे तो ऐसी दोस्ती से तोबा करें.

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3. विश्वासघात

विश्वास मित्रता का स्तंभ है. कभी दोस्त की छोटीमोटी विश्वासघात की घटनाओं से आप आहत हो सकते हैं पर उसे विश्वास प्राप्त करने का एक और मौका दे सकते हैं. पर यदि वह जानबूझ कर चोरी करे, आप के निकटतम संबंधी या प्रेमी या प्रेमिका के मन में आप के विरुद्ध झूठी बातों से घृणा पैदा करे तो समझ लें अब और नहीं, बस, बहुत हुआ.

4. लंबी जुदाई

कभी आप घनिष्ठ मित्र रहे होंगे. ट्रांसफर या किसी अन्य कारण से आप का दोस्त बहुत दूर चला गया है और संभव है कि आप दोनों में पहले वाली समानता न रही हो. आप के प्रयास के बावजूद आप को समुचित उत्तर न मिले तो समझ लें अब वह आप में दिलचस्पी नहीं रखता है. उसे अलविदा कहने का समय आ गया है.

5. अगर वह आप के न कहने से आक्रामक हो

कभी ऐसा भी मौका आ सकता है जब आप उस की किसी बात या मांग से सहमत न हों और उसे ठुकरा दें. जैसे किसी झूठे मुकदमे में आप को अपने पक्ष से सहमत होने को कहे या झूठी गवाही देने को कहे और आप न कह दें. ऐसे में अगर वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आक्रामक रुख अपनाता है तो समझ लें कि इस दोस्ती से ब्रेक का समय आ गया है.

6. आपसी भावनाओं का सम्मान

मित्रता बनी रहे. इस के लिए जरूरी है कि दोनों भावनाओं का सम्मान करें. अगर आप की भावनाओं का सम्मान दूसरा मित्र न करे या आप की भावनाओं का निरादर कर लोगों के बीच उस का मजाक बनाए या अवांछित सीन पैदा करे तो समझ लें कि अब यह दोस्ती निभने वाली नहीं है.

7. जब आप की चिंता की अनदेखी करे

दोस्ती में जरूरी है कि दोनों एकदूसरे की चिंताओं या समस्याओं के प्रति संवेदनशील हों और उन के समाधान में अपने पार्टनर की सहायता करें. अगर आप की मित्रता में ऐसी बात नहीं है तो फिर यह अच्छा संकेत नहीं है.

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8. आप को नीचा दिखाने की कोशिश न हो 

कभी अन्य लोगों के बीच अगर आप का दोस्त आप को नीचा दिखा कर आप में हीनभावना पैदा करे या करने की कोशिश करे तो यह दोस्त दोस्ती के लायक नहीं रहा.

9. दोस्त से मिल कर कहीं आप नाखुश तो नहीं हैं

अकसर आप दोस्तों से मिल कर खुश होते हैं. अगर किसी दोस्त से मिलने के बाद आप प्रसन्न न हों और बारबार दुखी हो कर लौटते हैं, तो कट इट आउट.

 6 संकेत: कहीं आपका पार्टनर चीटर तो नहीं

इस दुनिया में किसी के लिए भी सब से मीठा एहसास होता है प्यार. आप किसी शख्स को दिल से चाहें और वह भी आप को उतनी ही निष्ठा के साथ प्रेम करे, तो इस से अच्छी और कोई फिलिंग हो ही नहीं सकती. प्रेम करने वाला बदले में प्रेम की ही आस रखता है. लेकिन इंसान प्यार में हमेशा वफादार रहे यह जरूरी नहीं है. विश्वासघात, बेवफाई, धोखा, चीटिंग ये सब सिर्फ शब्द नहीं हैं, बल्कि मजबूत से मजबूत रिश्ते की नींव हिलाने के लिए काफी हैं. कई लोग अपने पार्टनर को चीट करते हैं. एक स्टडी के मुताबिक, कुछ सालों में ऐसे काफी सारे केसेस सामने आए हैं, जिन में अकसर शादी के बाद पार्टनर चीट करते हैं और आज के समय तो ये समस्या बेहद आम हो गई है.

लेकिन इस बात का पता लगाना कि आप का पार्टनर वास्तव में आप के साथ चीट कर रहा है या नहीं, जानना थोड़ा मुश्किल है. कटाकटा रहना, आदतों में एकदम से बदलाव, काफी हद तक रिलेशनशिप में चीटिंग को दर्शाता है. आप का पार्टनर विश्वासपात्र है या नहीं और कहीं वह आप को धोखा तो नहीं दे रहा. जानिए इन संकेतों से जो बताते हैं कि कहीं आप का पार्टनर आप के साथ चीटिंग तो नहीं कर रहा.

1. व्यवहार में बदलाव:

सब से बड़ी पहचान यही है कि पार्टनर के व्यवहार में बदलाव होने लगता है. ‘मैं बोर हो गया हूं’ जैसे शब्दों से समझ में आने लगता है कि कहीं कुछ तो गड़बड़ है. दीप्ति माखीजा के अनुसार, पार्टनर जब चीट करने लगता है तो अपनेआप ही कुछ क्लू या बातें सामने आने लगती हैं, जिन्हें बस समझने की देरी है. जैसे उस के बोल होने लगते हैं, ‘तुम्हें बोलने का तरीका नहीं है? अपना वजन कम करो, मोटी हो गई हो. साथ ही, आप के पार्टनर आप की तुलना किसी दूसरेतीसरे से करने लगते हों. बेवजह आप की गलती निकालने लगे हों, आप की किसी एक छोटी सी गलती पर आप को गैरजिम्मेदार ठहराने लगे हों, तो आप को सचेत हो जाना चाहिए. खास कर तब जब ऐसा पहले कभी नहीं होता था. यह न समझें कि अब वह ऐसा कर के आप को शर्मिंदा महसूस कराने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा कोई इंसान तभी करता है जब वह अपने पुराने रिश्ते को तोड़ कर किसी और के साथ रिश्ते बनाना चाहता है.

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2. दिनचर्या में बदलाव:

दैनिक दिनचर्या में लगातार आने वाले बदलाव भी पार्टनर के आप को धोखा देने के संकेत हो सकते हैं. जैसे, अचानक अपने वार्डरोब में कपड़ों को बदलना, खुद पर ज्यादा ध्यान देने लगना. आईने में खुद को निहारते रहना, आप के आने पर सतर्क हो जाना इत्यादि यदि ऐसा होता है तो समझा जाए कि कुछ तो गड़बड़ है. पहले की तरह आप में रुचि न दिखाना, क्योंकि पहले आप दोनों एकदूसरे के नजदीक जाने के बहाने ढूंढा करते थे और अब आप का पार्टनर आप से दूर जाने के बहाने ढूंढने लगें. कमिटमैंट से घबराने लगे तो समझिए वह आप को धोखा दे रहे हैं. इस के अलावा आप से बेवजह लड़ाइयां होने लगना. आप के हर काम में नुक्स निकालने लगना. पहले की तरह व्यक्तिगत बातें, कैरियर संबंधित बातें आदि आप से साझा न करने लगें, तो समझ लीजिए कि वह आप से दूर होने की कोशिश कर रहे हैं.

3. आप के प्रति प्यार कम होना:

पहले जहां आप की हर बातें उन्हें प्यारी लगती थी. पर अब आप की हर बात पर वह झल्लाने लगें. मूवी देखने या कहीं बाहर जाने में आनाकानी करने लगें. ज्यादा समय औफिस में बिताने लगें. इन बातों से साफ पता चलता है कि आप का पार्टनर आप को चीट कर रहा है. हो सकता है आप का पार्टनर किसी और बात को ले कर परेशान हो या कुछ और वजह हो सकती है. लेकिन इस सब के साथ आप का पार्टनर कोई फैसला लेने में आप से आप की राय नहीं पूछते या आप से अपनी बातें शेयर नहीं करते, तो यह धोखे का संकेत हो सकता है.

4. फोन से जुड़े सवाल:

यदि आप अपने पार्टनर की फोन से जुड़ी गतिविधियों में बदलाव को नोटिस करते हैं, तो यह धोखा देने का संकेत हो सकता है. जैसे आप का पार्टनर जरूरत से ज्यादा फोन पर व्यस्त रहने लगे. औफिस में उन का फोन कईकई घंटों तक व्यस्त आता हो. आप से अपने फोन और मैसेज छिपाने लगे हों. फोन का पासवोर्ड बदल दिया हो और आप को अपना पासवोर्ड न बताएं और न ही अपना फोन छूने दें, तो यह धोखे का संकेत हो सकता है. इस के अलावा उन की सोशल मीडिया की आदतों में भी बदलाव हो सकता है, जैसे ज्यादा फोटो अपलोड करना या बारबार अपनी प्रोफाइल बदलते रहना, बारबार मैसेज अलर्ट चेक करना, जैसे कई छोटेछोटे बदलाव धोखे का संकेत हो सकते हैं.

5. छोटीछोटी बातों पर झूठ बोलने लगना:

यदि आप का साथी आप से हर छोटीछोटी बात पर झूठ बोलने लगे, बातें छिपाने लगे, तो समझिए जरूर कुछ गड़बड़ है.

6. आंखें चुराने लगे:

यदि आप का साथी आप से बात करने से बचने लगे या बात करते वक्त अपनी आंखें न मिला पाए, इधरउधर देखने लगे, आप की बातों को अनसुना करने लगे, आप की किसी भी बात को गंभीरता से न ले, वही काम करे जो आप को पसंद नहीं है, अपनी गलती न मानने के बजाए आप की ही गलती निकालने लगे, आप का फोन न उठाए और न ही आप के किसी मैसेज का जवाब दे, तो समझ लेना चाहिए कि आप का पार्टनर आप को नजरअंदाज करने की कोशिश कर रहा है.

धोखा देने वाला हमेशा कोई करीबी ही होता है और शायद यही वजह है कि जब इंसान को धोखा मिलता है तो सबकुछ बिखर जाता है. खासतौर पर जब धोखा देने वाला आप का पार्टनर हो.

फिर क्या करें जब पार्टनर के धोखे का पता चल जाए:

पूरा समय लें: अगर आप अपने पार्टनर के धोखा देने की बात से परेशान हैं तो जल्दबाजी करने से बचें. पूरा समय लें. आप को किसी से भी इस बारे में बात करने की जरूरत नहीं है. अपने पार्टनर से तो बिलकुल नहीं. आप को गुस्सा तो आ रहा होगा, लेकिन नाराजगी में कहे शब्द नुकसान अधिक पहुंचाते हैं.

न बहस करे न लड़े: विरोध दर्ज करना जरूरी है और सामने वाले को भी तो पता चलना चाहिए कि कुछ ऐसा हुआ है जिस की वजह से आप परेशान हैं. लेकिन अपनी आवाज और शब्दों पर संयम रखें. पार्टनर को यह जरूर बताएं कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं.

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‘वो’ को दोष न दें: ज्यादातर मामलों में धोखा देने वाले पार्टनर को दोषी मानने के बजाए उस लड़की या लड़के को दोषी मान लिया जाता है, जिस की वजह से धोखा दिया गया. ऐसा करना सही नहीं है. क्योंकि जो शख्स आप के प्यार को झुठला कर आगे निकल गया, तो गलती उस की ही है.

अपने मामले में किसी और को बोलने न दे: अगर आप चाहते हैं कि आप के और आप के पार्टनर के बीच सब कुछ ठीक हो जाए तो बेहतर यह होगा कि आप इस बात की चर्चा किसी और से न करें. किसी तीसरे को इन बातों में शामिल करना आप के लिए ही खतरनाक हो सकता है.

एक मौका और दें: अगर आप को लगे कि आप के पार्टनर को अपनी गलती का एहसास हो गया है और वह सब कुछ ठीक करना चाहता है तो उसे वक्त दें. हो सकता है सब फिर पहले जैसा हो जाए. इस के लिए आप दोनों का साथ रहना और साथ वक्त बिताना जरूरी है, ताकि आप दोनों के बीच की गलतफहमी खत्म हो सके.

मायके की नासमझी से बेटियों के उजड़ते घर

‘‘मां,अगर मुझे पता होता कि मैं न घर की रहूंगी न घाट की तो कभी यहां नहीं आती. आप को तो मैं ने हमेशा यही कहते सुना कि लड़कियों को शादी के बाद यदि ससुराल में अपना महत्त्व रखना है तो पति को ममाज बौय बनने से हर हाल में बचाना चाहिए. यहां तक कि अपने घर में भी मैं ने कभी आप को पापा के यहां के लोगों की इज्जत करते नहीं देखा. इसीलिए आप की दी हुई शिक्षा पर अमल कर के शादी के दूसरे दिन से ही मैं ने भी यही चाहा कि रवि हर काम मुझ से पूछ कर ही करे, जबकि रवि सदा अपने मांपापा को ही आगे रखता था. जब भी मैं आप को यहां की समस्याएं बताती आप यही कहती थीं कि तू भी कमाती है दबने की कोई जरूरत नहीं है. यदि वे तेरी कोई वैल्यू नहीं समझते तो मायके के दरवाजे हमेशा तेरे लिए खुले हैं आ जाना. आप का अनुसरण करते हुए मैं ने भी घर में छोटीछोटी बातों पर झगड़ा करना शुरू कर दिया. रवि भी कब तक मेरी मनमानी सुनता सो बात बिगड़ती ही चली गई. मायके के इसी झूठे दंभ में आ कर मैं ने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार ली,’’ एक कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर सुवर्णा रोती हुई मां से बोले जा रही थी.

‘‘तू ही तो कहती थी कि रवि तेरी नहीं अपनी मां की सुनता है. जिस घर में तेरी बात को तवज्जो नहीं दी जाती उस घर में रहने का भी क्या लाभ. अभी तो शुरूआत थी आगे चल कर तो स्थिति और खराब होती न. कितनी नाजों से पाला है हम ने तुझे, तो क्या तेरी ऐसी उपेक्षा देख कर हमें बुरा नहीं लगेगा,’’ सुवर्णा की मां ने अपनी ओर से सफाई देते हुए कहा.

‘‘तो यहां कौन सी मैं महत्त्वपूर्ण हूं. आप सब भी तो बातबात पर सुनाते हो. वहां रवि को मेरी सैलरी से कोई मतलब नहीं रहता था यहां तो सब जैसे हर समय मेरे पैसे पर ही नजरें गड़ाए रहते हो. मां मैं तो अनाड़ी थी पर आप को तो समझाना था कि कुछ दिनों की बात है धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’’

सुवर्णा और उस की मां में इस प्रकार की बहस होना आम बात थी. अपनी मां, बहनों की सलाहों पर अमल कर के सुवर्णा अपने प्रोफैसर पति और सासससुर को विवाह के 1 साल के भीतर ही छोड़ कर आ गई थी. अब 4 साल बाद उसे लगता है कि मां की सलाह मान कर उस ने गलती कर दी. अब वह वापस अपनी ससुराल जाने का मन बना रही है.

ऐसा ही कुछ 40 वर्षीया सविता के साथ हुआ. वह बताती है, ‘‘मैं अपने घर की इकलौती संतान हूं. मेरी मां ने मुझ से कभी घर का कोई विशेष काम नहीं करवाया. मैं ससुराल में बड़ी बहू थी. एकदम कंधों पर आई जिम्मेदारी को देख कर मैं घबरा गई. दिन में जब भी मां को अपनी परेशानी बताती तो वे बस यही कहतीं, ‘‘कोई जरूरत नहीं ज्यादा काम करने की. एक बार कर दिया तो हमेशा करना पड़ेगा. तू क्या उस घर की नौकरानी है?’’

मेरी मां ने मेरे मन में मेरे ससुराल वालों के खिलाफ इतना जहर भर दिया था कि मैं उन्हें कभी अपना मान ही नहीं पाई. बस यहीं से मेरे पति के साथ मतभेद शुरू हो गए. किसी तरह 3 साल ससुराल में काटने के बाद मैं मातापिता की सलाह पर मायके आ गई.

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शुरूआत में जब भी पति ने लेने आना चाहा मातापिता और भाई ने उन्हें बुराभला कहा और उन के सामने बहुत सारी शर्तें रखीं. मैं भी जवान थी भाभी पूरा घर मेरे ऊपर छोड़ कर औफिस चली जाती थी. मैं स्वयं को उस घर की महारानी समझती थी. अब मेरा शरीर भी ढलान पर है. मातापिता के जीवित रहते फिर भी ठीक था पर अब मैं भाईभाभियों और भतीजेभतीजियों की गुलाम मात्र हूं, जिसे हरकोई अपने अनुसार चलाना चाहता है. भावावेश और नासमझी में लिए गए अपने निर्णय पर बेहद पछतावा होता है पर अब ये सब सहना मेरी मजबूरी है.

इस प्रकार की घटनाएं अकसर देखने को मिलती हैं जहां लड़की के मायके वालों के अनावश्यक हस्तक्षेप के कारण बेटी की हंसतीखेलती गृहस्थी तबाह हो जाती है. आश्चर्यजनक बात यह है कि ऐसे मामले अकसर अपनी बेटी का सर्वाधिक हित चाहने वाले मातापिता के हस्तक्षेप के कारण होते हैं. विवाहोपरांत जब बेटी अपनी ससुराल जाती है तो मातापिता अपनी बेटी को ले कर बहुत अधिक पजैसिव होते हैं. आखिर उन की नाजों से पाली गई बेटी पहली बार उन से दूर जो हो रही होती है, इसलिए उन की चिंता और अधिक बढ़ जाती है अपनी इकलौती बेटी के प्रति. इसी अत्यधिक चिंता के कारण अकसर वे अपनी बेटी को अनुचित सलाहें देना शुरू कर देते हैं और अपने मातपिता पर स्वयं से भी अधिक भरोसा करने वाली बेटी बिना कुछ सोचेविचारे उस सलाह पर अमल करना शुरू कर देती है, जबकि ससुराल का वातावरण और परिस्थितियां उस के मायके से एकदम अलग होती है.

क्या करे लड़की

न पालें कोई पूर्वाग्रह: विवाह से पूर्व अपनी सहेलियों या सुनीसुनाई बातों पर भरोसा कर के ससुरालवालों के प्रति किसी भी प्रकार का पूर्वाग्रह न पालें. आस्था का ही उदाहरण ले लीजिए- उस का रोमिल से प्रेम विवाह हुआ था. विवाहपूर्व उस के मायके वालों और सहेलियों ने समझाया, ‘‘कायस्थ लड़की ब्राह्मण परिवार में जा रही है. ये ब्राह्मण धार्मिक रूप से बहुत कट्टर, दकियानूसी, छुआछूत और पूजापाठ में विश्वास करने वाले होते हैं कैसे निभेगी तेरी?

‘‘सब की बातें सुनसुन कर रोमिल के परिवार वालों को ले कर आस्था बहुत डरी हुई थी परंतु वहां पहुंच कर उस ने पाया कि उस के सारे पूर्वाग्रह निराधार हैं. ससुराल का प्रत्येक सदस्य बहुत ही सुलझा, समझदार, उदार और प्यारा है.

अच्छाइयां ही करें साझा:

विवाह बाद के प्रारंभिक दिनों में नवविवाहिताएं ससुराल की प्रत्येक छोटीबड़ी और अच्छीबुरी बात को मायके में साझा करती हैं. ऐसा करना गलत है, क्योंकि आप के मायके वाले आप के कथनानुसार ही आप के ससुराल के प्रति धारणा बनाएंगे.

ससुराल और मायके के प्रत्येक सदस्य का भरपूर प्यार प्राप्त करने वाली मेरी एक सहेली कहती है, ‘‘विवाह के प्रथम दिन से ही मैं ने सदैव मायके में ससुराल की केवल अच्छी बातें ही साझा कीं, उस का परिणाम यह हुआ कि आज विवाह के 5 साल बाद मेरे मायके और ससुराल वाले भी एकदूसरे के अच्छे दोस्त बन गए हैं और मैं स्वयं एक सुखद गृहस्थ जीवन जी रही हूं. मेरा मानना है कि कमियां या गलतियां कहां नहीं होती पर मैं ने कभी उन्हें तूल न दे कर केवल अच्छाइयों पर ही ध्यान दिया.’’

सीमित करें फोन का उपयोग: तकनीक के युग में बसेबसाए परिवारों को तोड़ने में मोबाइल फोन की भूमिका भी कुछ कम नहीं है. आजकल दिन में 10 बार मांबेटी की बातचीत होती है, जिस से अपनी बेटी के घर में होने वाली हर छोटीबड़ी गतिविधि से मातापिता अवगत रहते हैं, जिस के परिणामस्वरूप प्रत्येक बात में टोकाटोकी करना और राय देना वे अपना अधिकार समझने लगते हैं.

एक दिन रवि और नमिता में छोटी सी बात पर झड़प हो गई. उसी समय नमिता की मां का फोन आ गया. नमिता ने रोतेरोते पूरी कहानी कह सुनाई, जिस से नमिता की मां को लगा कि उन की बेटी पर दामाद बहुत अत्याचार कर रहा है. अत: उन्होंने भी बिना सोचेसमझे रवि को फोन पर खूब खरीखोटी सुनाई, जिस से नमिता और रवि के संबंध तलाक तक जा पहुंचे. नमिता ने बड़ी मुश्किल से अपने टूटते रिश्ते को बचाया. अत: क्रोध और आवेश के अवसर पर मायके वालों से बात करने से बचें ताकि घर की बात घर में ही रहे और आप उसे अपने तरीके से सुलझा सकें, क्योंकि एक बार तरकस से बाहर गया तीर फिर वापस नहीं आता.

समझदारी से काम लें:

मातापिता की किसी बात या राय का विरोध कर के उन का अपमान करने की जगह उन की बात सुन लें, परंतु उसे अमल में लाने से पहले 10 बार सोचें कि इस से आप के वैवाहिक जीवन और आप के पति के परिवार पर क्या असर पड़ेगा. ऐसी किसी भी राय को अमल में लाने का प्रयास न करें जिस से आप के पति के परिवार के सम्मान को ठेस लगे.

अनीता कहती है, ‘‘कुछ समय पूर्व मैं अपनी बीमार ननद का इलाज कराने अपने साथ ले आई. छोटेछोटे बच्चों के साथ उन की देखभाल में परेशानी तो आती थी. इसी दौरान मेरी मां ने मुझे फोन कर सलाह दी कि तुम्हारा घर ननद के लिए नई जगह है. उन्हें वहीं जेठ के पास छोड़ दो. हर माह कुछ रुपया भेज दिया करो इलाज के लिए. तुम नौकरी करो और अपना परिवार देखो.’’

अनीता को अपनी मां की यह सलाह जरा भी पसंद नहीं आई और उस ने अपनी मां से कहा, ‘‘मां, जरा एक बार सोचिए कि यदि आज ननद के स्थान पर मेरी अपनी बहन होती तो भी क्या आप यही सलाह देंती?

अनीता की बात सुन कर उस की मां को कोई जवाब नहीं सूझा और उसी दिन से उन्होंने उस की ससुराल के मामलों में हस्तक्षेप करना बंद कर दिया.

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पारदर्शिता रखें:

पति से छिपा कर मायके के लिए कभी कोई काम न करें. प्रतिमा का मायका आर्थिक रूप से कमतर है. वह जबतब अपने पति से छिपा कर अपने भाई और मां को आर्थिक मदद करती. एक दिन जब इस के बारे में उस के पति को पता चला तो दोनों में जम कर कहासुनी हुई नतीजतन उस के अपने मायके और पति दोनों से ही संबंध खराब हो गए. इसलिए अपने मायके के लिए आर्थिक मदद करने से पूर्व पति को अवश्य विश्वास में लें. ध्यान रखें कि पतिपत्नी के संबंधों में पारदर्शिता होना बेहद जरूरी है. परस्पर दुरावछिपाव संबंधों में खटास पैदा करता है.

सीमा निर्धारित करें:

सब से महत्त्वपूर्ण बात है कि आप अपने घरपरिवार के मामलों में किसी को भी दखल देने का एक निश्चित सीमा तक ही अधिकार दें और जब भी इस का अतिक्रमण होता दिखे तो तुरंत ब्रेक लगाएं, क्योंकि अपने परिवार के मामलों को आप और आप के पति ही सहजता से सुलझा सकते हैं. अपने मायके और ससुराल के सदस्यों के साथ कभी दोहरा व्यवहार न करें.

क्या करें मातापिता:

यह सही है कि आजकल अधिकांश मातापिता बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं करते. मायके में नाजों से पलीबढ़ी अपनी बेटी के जीवन में दुख का साया भी उन्हें बेचैन कर देता है, परंतु आप को यह याद रखना होगा कि आप की बेटी अब किसी की बहू और पत्नी भी है और उस के पति के परिवार वालों ने भी अपने बेटे को भी उतने ही नाजों से पाला है, इसलिए आवश्यक है कि ससुराल के मुद्दे उसे स्वयं अपनी समझदारी से ही सुलझाने दें. हां, यदि किसी मोड़ पर सलाह देना आवश्यक हो तो तटस्थ रुख अपनाएं.

बेटी को यह एहसास अवश्य कराएं कि जीवन के किसी भी मोड़ पर मुसीबत होने पर आप सदैव उस के साथ हैं. मायके के दरवाजे सदैव उस के लिए खुले हैं, परंतु बातबात पर पति का घर छोड़ कर मायके आ जाने की सलाह कभी न दें. ससुराल के छोटेमोटे मुद्दे उसे अपनी समझ से स्वयं ही सुलझाने को कहें.

बेटी की ससुराल की गतिविधियों में अनावश्यक हस्तक्षेप करने से बचें. बेटी को किसी भी मुद्दे पर अपनी राय देते समय सोचें कि यदि यही राय आप की बहू के मायके वालों ने दी होती तो आप पर क्या असर होता.

वीडियो कौलिंग, मोबाइल फोन जैसी आधुनिक तकनीक का प्रयोग बेटी की कुशलता जानने के लिए करें न कि उस की ससुराल वालों पर कटाक्ष करने, हंसी उड़ाने और ससुराल के प्रत्येक सदस्य का हालचाल जानने के लिए.

आप की आर्थिक स्थिति भले ही समधियों से बेहतर हो, परंतु उन्हें कभी अपने से कमतर न समझें और न ही कभी नीचा दिखाएं. ध्यान रखिए कि जब आप उन्हें इज्जत देंगी तभी आप की बेटी भी उन का सम्मान कर पाएगी.

अपनी बेटी को केवल पति का ही नहीं उस के पूरे परिवार का सम्मान और प्यार करना तथा परिवार के साथ तालमेल बैठाना सिखाएं न कि परिवार तोड़ कर अलग रहने की शिक्षा दें.

अनुजा ने विवाह से दो दिन पूर्व अपनी बेटी को उस के गहने दिखाते हुए कहा कि देख, अपने गहने अपनी सास को भूल कर भी मत देना. एक बार दे दिए तो वापस नहीं मिलेंगे.

इस प्रकार की अव्यावहारिक सलाह की जगह अपनी बेटी को ससुराल के प्रति प्यार और अपनत्व की सलाह दें ताकि उस का विवाहित जीवन सुखद रहे.

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विवाह के बाद विदा हो कर गई बेटी को स्पेस दें. हर पल उस के हालचाल पूछ कर उसे बारबार परेशान करने की अपेक्षा उसे पति के परिवार वालों के साथ घुलनेमिलने का अवसर दें ताकि वह वहां के वातावरण में सहजता से एडजस्ट हो सके.

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