जिद्दी बच्चे को बनाएं समझदार

कुछ दिन पहले हमारे घर मेहमान आए थे. साथ में उन का 6 साल का बेटा नंदन भी था. उस ने आइसक्रीम की मांग की जबकि वह जाड़े का मौसम था. मेरे मना करने पर उस ने गुस्से में खाने की मेज पर रखी कीमती प्लेटें तोड़ दीं और अपनी मां के आगे लोटलोट कर आइसक्रीम की जिद करने लगा. मु  झे उस की यह हरकत बहुत नागवार गुजरी. मेरा बच्चा होता तो मैं कब का उस की पिटाई कर देती, मगर वह मेहमान था, इसलिए चुप रह गई. मु  झे अचरज तो तब हुआ जब उस की इस तोड़फोड़ को शरारत मान कर उस की मां मुसकराती रही.

अचानक मेरे मुंह से निकल गया कि बच्चे को इतनी छूट नहीं देनी चाहिए कि वह अपनी जिद की वजह से तोड़फोड़ करने लगे या दूसरों के आगे शर्मिंदा करे.

तब मेरी रिश्तेदार ने प्यार से बच्चे को गोद में लेते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं बहनजी, मेरे इकलौते बच्चे ने कुछ तोड़ दिया तो क्या हुआ? हम आप के घर में ये प्लेटें भिजवा देंगे. इस के पापा अपने लाडले के लिए ही तो कमाते हैं.’’

उन की बात सुन कर मैं सम  झ गई कि बच्चे के जिद्दी होने का कुसूरवार वह बच्चा नहीं, बल्कि उस के मातापिता हैं, जिन्होंने उसे इतना सिर पर चढ़ा रखा है. दरअसल, हमारे समाज में ऐसे मातापिता भी होते हैं जिन के लिए अपने बच्चों से प्यारा कोई नहीं होता. गलती अपने बच्चे की हो, लेकिन उस के लिए अपने दोस्तों और परिवार के लोगों से भी   झगड़ पड़ते हैं. जब मातापिता अपने बच्चे की हर उचितअनुचित मांग पूरी करते हों तो परिणाम यह होता है कि बच्चा जिद्दी हो जाता है. बच्चे को बिगाड़ने और जिद्दी बनाने में मातापिता की भूमिका सब से ज्यादा होती है. दरअसल, यह एक तरह से उन की परवरिश की असफलता का सूचक होता है.

ध्यान रखें

यहां उल्लेखनीय बात यह है कि ऐसे बच्चे जो बचपन से जिद्दी होते हैं आगे चल कर अपना स्वभाव नहीं बदल पाते. मातापिता प्यारदुलार में उन की जिद पूरी करते रहते हैं पर समाज उन्हें सहन नहीं कर पाता. ऐसे बच्चे बड़े हो कर क्रोधी और   झगड़ालू स्वभाव के हो जाते हैं. इसलिए अगर आप चाहते हैं कि आप के बच्चे का भविष्य खुशहाल रहे और जीवनभर व्यवहार कुशल बना रहे तो आप उसे जिद्दी बनने से रोकें.

मातापिता यह सोच कर कि बच्चा गुस्सा हो जाएगा, उस की मांग पूरी कर देते हैं. लेकिन फिर बच्चे को ऐसा ही करने के आदत लग जाती है. वह रो कर अथवा नाराजगी दिखा कर अपनी मांगों को मनवाना सीख जाता है. मान लीजिए आप बाजार से चौकलेट ले कर आते हैं. घर में 3 बच्चे हैं आप सभी को 1-1 चौकलेट देते हैं पर आप का बच्चा एक और चौकलेट मांगने लगता है और न मिलने पर गुस्सा हो कर एक कोने में बैठ जाता है. आप उसे खुश करने के लिए उस की मांग पूरी कर देते हैं. ऐसे में बच्चा मन ही मन में मुसकराता है क्योंकि वह आप की कमजोरी पकड़ लेता है और अपनी हर मांग पूरी कराने का उसे हथियार मिल जाता है. वह सम  झ जाता है कि आप उसे रोता हुआ नहीं देख सकते.

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बच्चों के जिद्दी होने की वजह

मातापिता का व्यवहार: अगर पेरैंट्स बच्चे के साथ सही से व्यवहार नहीं करते और उसे बातबात पर डांटतेफटकारते रहते हैं तो वह जिद्दी हो सकता है. अभिभावकों का बच्चे के साथ रिश्ता उस के दिमाग पर असर डालता है. बच्चे को नजरअंदाज करना और उस की बातों को अनसुना करना भी उसे जिद्दी बना सकता है. ऐसे में वह पेरैंट्स का ध्यान खींचने के लिए इस तरह की हरकतें करता है. यही नहीं पेरैंट्स द्वारा अपने बच्चे को हद से ज्यादा प्यार करना भी उसे जिद्दी बना देता है.

परिवेश: छोटे बच्चों के जिद्दी होने का कारण कोई शारीरिक समस्या, भूख लगना या फिर अपनी ओर सब का आर्कषण खींचने का मकसद हो सकता है. मगर बड़े होते बच्चे के जिद्दी होने के पीछे अकसर पारिवारिक परिवेश, ज्यादा लाड़प्यार, हर समय की डांटफटकार या फिर पढ़ाई का अनावश्यक दबाव होता है.

शारीरिक शोषण: कई बार कुछ बच्चों को अपने जीवन में शारीरिक शोषण जैसी अप्रिय घटनाओं से गुजरना पड़ता है जिस बारे में उन के मातापिता को भी पता नहीं होता है. ऐसी घटनाओं का बच्चों के मन पर काफी बुरा असर पड़ता है. ऐसे बच्चे लोगों से कटने लगते हैं, चिड़चिड़े रहने लगते हैं और मातापिता की बातों को मानने से इनकार करना शुरू कर देते हैं. वे हर बात पर जिद करते हैं या फिर खामोश हो जाते हैं.

तनाव: बच्चों को स्कूल, दोस्तों या घर से मिलने वाला तनाव भी जिद्दी बनाता है. वे ऐसा व्यवहार करने लगते हैं कि उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है.

गर्भावस्था के दौरान स्मोकिंग: कभीकभी बच्चों के जिद्दी होने के पीछे मां का गर्भधारण करने के बाद सिगरेट और अलकोहल का सेवन करना भी वजह बन जाता है.

मातापिता को क्या करना चाहिए

दिल्ली में रहने वाली 36 साल की प्रिया गोयल बताती हैं, ‘‘पिछले दिनों मेरी एक सहेली अपने बेटे प्रत्यूष को ले कर मु  झ से मिलने मेरे घर आई. प्रत्यूष दिनभर मेरी बेटी की साइकिल चलाता रहा. लौटते समय वह साइकिल पर जम कर बैठ गया और उसे अपने घर ले जाने की जिद्द करने लगा. उस की मां ने थोड़ी सख्ती से काम लिया और उस से कहा कि वह बात नहीं मानेगा तो उसे अपने घर वापस नहीं ले जाएगी. बच्चे ने तुरंत साइकिल छोड़ दी और मां की गोद में आ गया.’’

बच्चा जिद्दी न बने इस के लिए कभीकभी हमें सख्ती भी करनी चाहिए. बचपन से ही बच्चों को आदत डलवाएं कि उन की हर जिद पूरी नहीं की जाएगी और वे न मानें तो उन्हें डांट भी पड़ सकती है.

सम  झना होगा जिद्दी बच्चों का मनोविज्ञान

पेरैंट्स के लिए यह जरूरी है कि वे अपने बच्चे को सम  झें. दरअसल, बच्चा पहले ही अपने मन में यह विचार कर लेता है कि अगर वह अपने पिता से इस बारे में बात करेगा तो उन का जवाब क्या होगा और मां से बोलेगा तो वे कैसी प्रतिक्रिया देंगी. बच्चा अपनी पिछली सारी हरकतों और उन के परिणाम के बारे में सोच कर ही नई हरकत करता है. ऐसे में मातापिता को भी पहले से सम  झ कर रिएक्शन देना होगा कि बच्चे को सही बातें कैसे सिखाएं. साधारण रूप में बच्चा मां के आगे ही जिद करता है या फिर मेहमानों के आगे भी वह जिद करने लगता है क्योंकि उन्हें पता होता है कि इस वक्त उस की जिद मान ली जाएगी.

ध्यान रखें आप को उस की गलत हरकतों पर ज्यादा नहीं चिल्लाना चाहिए खासकर दूसरों के सामने डांटनाडपटना या मारना नहीं चाहिए. आखिर उस की भी इज्जत है वरना वह आप को परेशान करने के लिए उस हरकत को दोहरा सकता है.

जिद्दी बच्चों को कैसे संभालें

येल यूनिवर्सिटी की सर्टिफाइड ऐक्सपर्ट सागरी गोंगाला के अनुसार जिद्दी बच्चे बहुत ज्यादा सैंसिटिव होते हैं. वे इस बात के प्रति बहुत सैंसिटिव होते कि आप उन्हें कैसे ट्रीट कर रहे हैं. इसलिए अपनी टोन, बौडी लैंग्वेज और शब्दों के प्रयोग पर ध्यान दीजिए. आप से बात करते समय यदि वे कंफर्टेबल महसूस करेंगे तो उन का व्यवहार आप के प्रति अच्छा होगा. मगर कंफर्टेबल महसूस कराने के लिए कभीकभी उन के साथ फन ऐक्टिविटीज में भी शामिल हों.

उसे सुनें और संवाद स्थापित करें

अगर आप चाहते हैं कि आप का बच्चा आप की बात माने तो पहले आप उस की बात सुनें. ध्यान रखें एक जिद्दी बच्चे की सोच काफी मजबूत होती है. वह अपना पक्ष रखने के लिए बहस करना चाहता है. अगर उसे लगता है कि उस की बात सुनी नहीं जा रही तो उस की जिद और बढ़ जाती है. अगर बच्चा कुछ करने से मना कर रहा है तो पहले यह सम  झने का प्रयास करें कि वह ऐसा क्यों कह रहा है. हो सकता है उस की जिद सही हो.

अपने बच्चे के साथ कनैक्ट करें

अपने बच्चे पर कोई काम करने को दबाव न डालें. जब आप बच्चे पर दबाव डालते हैं तो एकदम से उस का विरोध और बढ़ जाता है और वह वही करता है जो वह करना चाहता है. सब से अच्छा है कि आप बच्चे को सम  झने का प्रयास करें. जब आप बच्चे को एहसास दिलाएंगे कि आप उस की केयर करते हैं, आप उस के बारे में सोच रहे हैं, वह जो चाहता है उसे पूरा कर रहे हैं तो वह भी आप की बात मानेगा.

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उसे औप्शन दें

आप सीधे अगर बच्चे को मना कर देंगे कि यह नहीं करना है या वैसा करने पर उसे सजा मिलेगी तो वह उस बात का विरोध करेगा. इस के विपरीत अगर आप उसे सम  झाते हुए औप्शन दें तो वह बात मानेगा. उदाहरण के लिए आप अपने बच्चे को अगर यह कहेंगे कि 9 बजे सो जाओ तो वह सीधा मना कर देगा. मगर यदि आप यह कहेंगे कि चलो सोने चलते हैं और आज तुम्हें शेर वाली कहानी सुननी है या राजकुमार वाली, बताओ तुम्हें कौन से कहानी सुननी है? ऐसे में बच्चा कभी भी मना नहीं करेगा, बल्कि आप के पास खुशीखुशी सोने आ जाएगा.

सही उदाहरण पेश करें

बच्चा जैसा देखता है वैसा ही करता है. इसलिए आप को यह सुनिश्चित करना होगा कि आप उसे सही माहौल दें. अगर आप घर के बड़ेबुजुर्ग पर किसी बात को ले कर चिल्ला रहे हैं तो आप का बच्चा भी वही सीखेगा. ऐसे में आप को जिद्दी बच्चे को संभालने के लिए अपने घर का माहौल ऐसा बनाना होगा जिस से वह सम  झ सके कि बड़ों की बातों को मानना चाहिए.

प्रशंसा करें

बच्चों को सिर्फ डांटने और नियमकायदे बताने की जगह अच्छे कामों के लिए उन की प्रशंसा भी करें. इस से उन का मनोबल बढ़ेगा और वे जिद्दी बनने के बजाय मेहनत करना सीखेंगे. मेहमानों और अन्य लोगों के सामने भी उन के बारे में अच्छा कहें. इस से वे आप के लिए जुड़ाव महसूस करेंगे.

जिद पूरी न करें: अकसर जिद पूरी होने के कारण बच्चे अधिक जिद्दी हो जाते हैं. बच्चों को यह एहसास दिलाएं कि उन की जिद हमेशा पूरी नहीं की जा सकती. अगर आप का बच्चा किसी दुकान में या किसी और के घर जा कर किसी खिलौने की मांग करता है और खिलौना न मिलने पर चीखनेचिल्लाने लगता है तो उस की ओर ध्यान ही न दें. इस से बच्चे को यह सम  झ आ जाएगा कि उस की जिद से उसे कुछ हासिल नहीं होने वाला है.

कभीकभी सजा भी दें

बच्चों को अनुशासित रखने के लिए नियम बनाने की बहुत जरूरत होती है. अगर वे कुछ गलत करते हैं या जिद करते हुए उलटासीधा व्यवहार करते हैं तो उन्हें सजा देने से न चूकें. आप उन्हें पहले से ही बता दें कि अगर ऐसा किया तो इस तरह के परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. जैसे मान लीजिए कि बच्चा सोने के समय टीवी देखने की जिद कर रहा है तो उसे पता होना चाहिए कि ऐसा करने पर उसे कई दिनों तक टीवी में पसंदीदा प्रोग्राम देखने को नहीं मिलेगा. बच्चे को सजा देने का मतलब यह नहीं है कि आप उस पर चिल्लाएं या उस की पिटाई करें, बल्कि उसे किसी चीज या सुविधा से वंचित कर के भी आप उसे सजा दे सकते हैं.

  बच्चों की अलगअलग तरह की जिद

अगर बच्चों की एक जिद पूरी हो जाती है तो वे दूसरी जिद करने लगते हैं. जब मातापिता इसे भी पूरी कर देते हैं तो वे तीसरी जिद पकड़ कर बैठ जाते हैं यानी बच्चों की जिद का अंत नहीं होता. जिद कई चीजों को ले कर हो सकती है. उन्हें कैसे टैकल करना है यह सम  झना जरूरी है.

मोबाइल की जिद: बच्चे अकसर बड़ों को मोबाइल इस्तेमाल करते देख उस की मांग करने लगते हैं. ऐसे में आप को बच्चों को सम  झाना चाहिए कि यह उन के काम की चीज नहीं है. अगर वे रोने और चिल्लाने लगें तो भी उन्हें मोबाइल न दें. इस से वे सम  झ जाएंगे कि उन के रोने और चिल्लाने से उन्हें मोबाइल नहीं मिलने वाला. अगर आप उन की जिद पूरी करने के लिए उन्हें कुछ देर के लिए मोबाइल दे देंगे तो इस से उन की जिद करने की आदत और बढ़ जाएगी. कई मातापिता बच्चों को व्यस्त रखने के लिए मोबाइल पकड़ा देते हैं. ऐसे में स्वाभाविक है कि थोड़े बड़े होते ही वे अपने लिए एक अलग और बढि़या मोबाइल खरीदने की जिद करने लगते हैं.

जंक फूड खाने की जिद: बच्चे अकसर घर का खाना खाने में नखरे दिखाते हैं और रैस्टोरैंट से कुछ अच्छा या जंक फूड मंगाने की जिद करने लगते हैं. ऐसे में आप उन्हें अपने साथ बैठा कर थोड़ाथोड़ा घर का बना खाना खिलाने की आदत डालें. उन्हें हरी सब्जियां और पौष्टिक खाना खिलाएं. किचन में ऐक्सपैरिमैंट करें. इस से वे जिद करना कम कर देंगे और घर का बना खाना भी स्वाद से खाना सीख जाएंगे.

अधिक जेबखर्च की जिद: कभी चौकलेट, कभी पिज्जा, कभी आइसक्रीम तो कभी कुरकुरे खाने के लिए बच्चे अकसर पैसों की जिद करते हैं. आप उन की इस जिद को भूल कर भी पूरा न करें. यह जिद उन्हें कई बुरी आदतों की ओर धकेल सकती है. कोशिश करें कि बच्चों को पैसा देने की जगह लंच में कुछ स्वादिष्ठ चीजें पैक कर दें ताकि उन्हें जेब खर्च की जरूरत न पड़े.

नए खिलौने या गैजेट्स की जिद: पासपड़ोस के बच्चों के पास या टीवी में आने वाले विज्ञापनों को देख कर बच्चे अकसर नए खिलौने या गैजेट्स खरीदने की जिद करते हैं. ऐसे में आप उन्हें इन चीजों के बजाय उन के दिमागी विकास और पढ़ाई से संबंधित चीजें या किताबें ला कर दे सकते हैं. शतरंज, बैडमिंटन जैसे स्पोर्ट्स खेलने को प्रोत्साहित कर सकते हैं.

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पढ़ाई न करने की जिद: अकसर बच्चे अपने होम वर्क से भागने की कोशिश करते हैं और न पढ़ने के लिए बहाने बनाते हैं. बहाने नहीं माने जाएं तो वे जिद पर बैठ जाते हैं कि आज पढ़ना ही नहीं है. ऐसे में आप को बैठ कर सम  झना चाहिए कि आखिर वे पढ़ाई से जी क्यों चुरा रहे हैं. उन्हें अगर क्लास में कुछ सम  झने में दिक्कत आई है तो आप उन्हें सम  झा कर उन की समस्या का समाधान कर सकते हैं.

  जिद्दी बच्चे प्रोफैशनल लाइफ में हो सकते हैं ज्यादा सक्सैसफुल

बच्चों के जिद्दी स्वभाव और भविष्य में कैरियर के क्षेत्र में उन की परफौर्मैंस में कोई संबंध है या नहीं इस संदर्भ में 2015 में एक अध्ययन किया गया. यह अध्ययन ‘नैशनल लाइब्रेरी औफ मैडिसिन’ में पब्लिश किया गया था. इस के मुताबिक जिद्दी बच्चे भविष्य में ज्यादा सफल होते हैं. जो बच्चे कम उम्र में नियमों को तोड़ने में माहिर होते हैं वे बड़े हो कर पैसे भी उतना ही ज्यादा कमाते हैं और अपने दोस्तों के मुकाबले ज्यादा सफल होते हैं. यानी जिद्दी स्वभाव उन का एक सकारात्मक गुण माना जा सकता है.

शोधकर्ताओं ने 742 बच्चों पर अध्ययन किया. ये 8 से 12 वर्ष की उम्र के थे. उन के कुछ स्वाभाविक गुणों को देखा गया जैसे वे पढ़ाई में कितने गंभीर हैं, उन की कर्तव्यनिष्ठा, योग्यता और टीचर या पेरैंट्स की बात मानने की आदत आदि को ध्यान में रखा गया. जब 40 साल बाद शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया कि वे अब कहां पहुंचे और क्या बने तो एक बहुत ही आश्चर्यजनक ट्रैंड उभर कर सामने आया.

अध्ययन में पाया गया कि जो बच्चे बचपन में पेरैंट्स और टीचर की आज्ञा नहीं मानते थे, उन की बातों और नियमों का उल्लंघन करते थे और बहस करते थे, वे बड़े हो कर ज्यादा सफल और संपन्न जिंदगी जी रहे हैं. दूसरों के मुकाबले उन की सैलरी भी काफी अच्छी है.

दरअसल, जिद्दी बच्चों के अंदर कुछ विशेषताएं ऐसी होती हैं जो उन्हें खास बनाती हैं. मसलन वे कभी गिव अप नहीं करते, सामने परिस्थिति कितनी ही कठिन क्यों न हो वे अपनी बात पर टिके रहते हैं और कभी कुछ करने की ठान लें तो कर के गुजरते हैं. उन के अंदर हौसला और साहस कूटकूट कर भरा होता है. वे खुद से हर बात सीखने की कोशिश करते हैं. अगर उन्हें लगता है कि वे सही हैं तो अपनी बात मनवाने के लिए किसी से भी उल  झ पड़ते हैं. ये विशेषताएं प्रोफैशनल लाइफ में सफल होने में उन की मददगार बनती हैं.

मगर बात जब सामान्य जीवन की आती है तो कोई नहीं चाहता कि उन का बच्चा जिद्दी या क्रोधी स्वभाव का हो क्योंकि जिद करने की आदत कई बार बच्चे के साथसाथ उस के पेरैंट्स के लिए भी भारी पड़ जाती है. अकसर बच्चे अपनी बात मनवाने के लिए पेरैंट्स से जिद करते हैं. कई बार जब उन की बात नहीं मानी जाती तो वे रूठ जाते हैं और बातचीत बंद कर देते हैं. कुछ बच्चे विद्रोही भी हो जाते हैं. यह स्थिति किसी भी मातापिता के लिए असहनीय होती है.

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बैडरूम की मस्ती भरी शारीरिक हरकतें 

लेखक- वीरेन्द्र बहादुर सिंह 

घर में बैडरूम ही एक ऐसी जगह है, जहां पति-पत्नी अपना कीमती समय व्यतीत कर सकते हैं. उनके यादगार और प्रेमिल क्षणों का संग्रह इसी जगह होता है. यहां होने वाली खटपट और प्रेम तो कभी होने वाली छेड़छाड़ और हरकतें दोनों को ही हमेशा याद रहती हैं. बेडरूम में होने वाली प्रत्येक क्रिया में मौजमस्ती और शारीरिक हरकतें कभी नहीं भूली जा सकतीं. जीवन हमेशा संघर्ष और तकलीफों से भरा रहता है. ऐसे में अगर पति-पत्नी दोनों अपने बेडरूम में थोड़ी मस्तीमजाक और तूफानी पलों का आनंद प्राप्त कर लें तो तन और मन दोनों थोड़ी देर के लिए हल्का और कूल हो जाता है. हर दंपत्ति के लिए ऐसे पलों का आनंद लेना जरूरी है.

इससे उनके बीच एकदूसरे के प्रति आकर्षण बना रहता है, साथ ही दोनों को एकदूसरे के साथ थोड़ा अपना कह सकें, इस तरह का मस्तीभरा समय बिताने का मौका भी मिल जाता है. कभी दोनों में से एक भी अनुपस्थित रहता है तो इस समय की यादें प्रेम का अनुभव कराती रहती हैं.

जयदीप और बीना की शादी को 7 साल हो गए हैं. दोनों नौकरी करते हैं. रात को डिनर के समय दोनों साथ खाते हुए बातचीत करते हैं. इसके अलावा उनके पास समय निकालना बहुत मुश्किल था. धीरे-धीरे बीना पर काम का बोझ बढ़ता गया. अब वह घर देर से आने लगी. जयदीप उसकी स्थिति को समझता था. वह जानता था कि बीना खूब थक जाती है और तनाव महसूस करती है. रात को खाने के बाद बीना बेडरूम में आती तो भी भी लैपटाप ले कर काम करती रहती. कभी-कभी जयदीप को लगता कि उसकी पत्नी उसे समय नहीं दे रही है. दूसरी ओर वह यह भी देख रहा था कि वह सचमुच काम में व्यस्त रहती है. बीना पहले इतनी सीरियस नहीं थी. शादी के बाद वह आफिस के काम को ले कर बहुत ज्यादा व्यस्त हो गई थी. जयदीप जिसे कालेज के समय से प्यार करता था, वह मस्तीखोर बीना कहीं खो गई थी.

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रविवार को बीना सुबह देर तक सोती रही. जयदीप उसके लिए चायनाश्ता तैयार कर के कमरे में आया. बीना फिर सो गई तो जयदीप ने उसके गाल पर किस किया. बीना करवट बदल कर फिर सो गई. जयदीप ने दूसरे गाल पर किस किया तो बीना ने आंखें खोलीं. जयदीप ने हल्के से उसके सिर पर चुंबन किया और उसी तरह उसके होठों पर चुंबन करने जा रहा था कि बीना ने उसे हल्के हाथ से धक्का मार दिया तो वह बेड से नीचे गिर गया. उसे देख कर बीना हंसने लगी तो जयदीप तुरंत उठ कर उसकी ओर बढ़ा. बीना तकिया ले कर उसे मस्ती से मारने लगी. दूसरी ओर दूसरी तकिया ले कर जयदीप भी उसे मारने लगा. इस बीच दोनों एकदूसरे के साथ मस्ती के मूड में आ गए.

बीना उठ कर भागने लगी तो जयदीप ने लपक कर उसकी कमर पकड़ी और धीरे से बिस्तर पर धकेल दिया. दोनों ही एकदूसरे के साथ पूरी तरह मस्ती के मूड में थे. बीना इस तरह खिलखिला कर हंस रही थी जैसे खिल रही हो.

अंत में दोनों थक कर बिस्तर पर लेट गए. बीना ने जयदीप के गाल पर हल्के से चुंबन किया और अपना सिर उसके सीने पर रख दिया. बीना का यह प्रेमिल स्पर्श पा कर जयदीप उसकी ओर झुका. एक लंबे समय के बाद दोनों के बीच प्रेमक्रीडा हुई. इस शारीरक संबंध में दोनों को हो  संतोषजनक आनंद मिला. बीना के मन में काम का बोझ होने के बावजूद वह खुद को काफी फ्रेश महसूस कर रही थी. केवल शारीरिक सुख से नहीं, जयदीप और उसके बीच के संबंध और संबंध में घुले प्यार और मस्ती से उन्हें संपूर्ण संतोष का अनुभव हो रहा था. जीवन में केवल शारीरिक संबंध ही नहीं, शारीरिक मस्ती भी एकदूसरे को नजदीक होने का अनुभव कराती है.

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क्या पहली बार शारीरिक संबंध बनाते समय आने वाली परेशानियों के बारे में बताएं?

सवाल

मैं 18 वर्षीय युवती हूं. मैं ने सुना है कि जब भी कोई युवती किसी युवक से पहली बार शारीरिक संबंध स्थापित करती है, तो बहुत दर्द होता है. क्या यह सच है और ऐसा क्यों होता है?

जवाब

कुंआरी युवतियों के यौनांग में एक पतली सी झिल्ली होती है, जिसे कौमार्य झिल्ली कहते हैं. जब कोई युवती पहली बार संबंध बनाती है तो वह झिल्ली फट जाती है, जिस से थोड़ा सा रक्तस्राव और हलका सा दर्द होता है.

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कामुकता का राज और स्त्री की संतुष्टि को कुछ इस तरह समझिए

मेरठ का 30 वर्षीय मनोहर अपने वैवाहिक जीवन से खुश नहीं था, कारण शारीरिक अस्वस्थता उस के यौन संबंध में आड़े आ रही थी. एक वर्ष पहले ही उस की शादी हुई थी. वह पीठ और पैर के जोड़ों के दर्द की वजह से संसर्ग के समय पत्नी के साथ सुखद संबंध बनाने में असहज हो जाता था. सैक्स को ले कर उस के मन में कई तरह की भ्रांतियां थीं.

दूसरी तरफ उस की 24 वर्षीय पत्नी उसे सैक्स के मामले में कमजोर समझ रही थी, क्योंकि वह उस सुखद एहसास को महसूस नहीं कर पाती थी जिस की उस ने कल्पना की थी. उन दोनों ने अलगअलग तरीके से अपनी समस्याएं सुलझाने की कोशिश की. वे दोस्तों की सलाह पर सैक्सोलौजिस्ट के पास गए. उस ने उन से तमाम तरह की पूछताछ के बाद समुचित सलाह दी.

क्या आप जानते हैं कि सैक्स का संबंध जितना दैहिक आकर्षण, दिली तमन्ना, परिवेश और भावनात्मक प्रवाह से है, उतना ही यह विज्ञान से भी जुड़ा हुआ है. हर किसी के मन में उठने वाले कुछ सामान्य सवाल हैं कि किसी पुरुष को पहली नजर में अपने जीवनसाथी के सुंदर चेहरे के अलावा और क्या अच्छा लगता है? रिश्ते को तरोताजा और एकदूसरे के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए क्या तौरतरीके अपनाने चाहिए?

सैक्स जीवन को बेहतर बनाने और रिश्ते में प्यार कायम रखने के लिए क्या कुछ किया जा सकता है? रिश्ते में प्रगाढ़ता कैसे आएगी? हमें कोई बहुत अच्छा क्यों लगने लगता है? किसी की धूर्तता या दीवानगी के पीछे सैक्स की कामुकता के बदलाव का राज क्या है? खुश रहने के लिए कितना सैक्स जरूरी है? सैक्स में फ्लर्ट किस हद तक किया जाना चाहिए?

इन सवालों के अलावा सब से चिंताजनक सवाल अंग के साइज और शीघ्र स्खलन की समस्या को ले कर भी होता है. इन सारे सवालों के पीछे वैज्ञानिक तथ्य छिपा है, जबकि सामान्य पुरुष उन से अनजान बने रह कर भावनात्मक स्तर पर कमजोर बन जाता है या फिर आत्मविश्वास खो बैठता है.

वैज्ञानिक शोध : संसर्ग का संघर्ष

हाल में किए गए वैज्ञानिक शोध के अनुसार, यौन सुख का चरमोत्कर्ष पुरुषों के दिमाग में तय होता है, जबकि महिलाओं के लिए सैक्स के दौरान विविध तरीके माने रखते हैं. चिकित्सा जगत के वैज्ञानिक बताते हैं कि पुरुष गलत तरीके के यौन संबंध को खुद नियंत्रित कर सकता है, जो उस की शारीरिक संरचना पर निर्भर है.

पुरुषों के लिए बेहतर यौनानंद और सहज यौन संबंध उस के यौनांग, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी पर निर्भर करता है. पुरुषों में यदि रीढ़ की हड्डी की चोट या न्यूरोट्रांसमीटर सुखद यौन प्रक्रिया में बाधक बन सकता है, तो महिलाओं के लिए जननांग की दीवारें इस के लिए काफी हद तक जिम्मेदार होती हैं और कामोत्तेजना में बाधक बन सकती हैं.

शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि एक पुरुष में संसर्ग सुख तक पहुंचने की क्षमता काफी हद तक उस के अपने शरीर की संरचना पर निर्भर है, जिस का नियंत्रण आसानी से नहीं हो पाता है. इस के लिए पुरुषों में मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी और शिश्न जिम्मेदार होते हैं.

मैडिसन के इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल और मायो क्सीविक स्थित वैज्ञानिकों ने सैक्सुअल और न्यूरो एनाटोमी से संबंधित संसर्ग के प्रचलित तथ्यों का अध्ययन कर विश्लेषण किया. विश्लेषण के अनुसार,

डा. सीगल बताते हैं, ‘‘पुरुष के अंग के आकार के विपरीत किसी भी स्वस्थ पुरुष में संसर्ग करने की क्षमता काफी हद तक उस के तंत्रिकातंत्र पर निर्भर है. शरीर को नियंत्रित करने वाले तंत्रिकातंत्र और सहानुभूतिक तंत्रिकातंत्र के बीच संतुलन बनाया जाना चाहिए, जो शरीर के भीतर जूझने या स्वच्छंद होने की स्थिति को नियंत्रित करता है.’’

डा. सीगल अपने शोध के आधार पर बताते हैं कि शारीरिक संबंध के दौरान संवेदना मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी द्वारा पहुंचती है और फिर इस के दूसरे छोर को संकेत मिलता है कि आगे क्या करना है. इस आधार पर वैज्ञानिकों ने पाया कि उत्तेजना 2 तथ्यों पर निर्भर है.

एक मनोवैज्ञानिक और दूसरी शारीरिक, जिस में शिश्न की उत्तेजना प्रत्यक्ष तौर पर बनती है.

इन 2 कारणों में से सामान्य मनोवैज्ञानिक तर्क की मान्यता में पूरी सचाई नहीं है. डा. सीगल का कहना है कि रीढ़ की हड्डी की चोट से शिश्न की उत्तेजना में कमी आने से संसर्ग सुख की प्राप्ति प्रभावित हो जाती है. इसी तरह से मस्तिष्क में मनोवैज्ञानिक समस्याओं में अवसाद आदि से तंत्रिका रसायन में बदलाव आने से संसर्ग और अधिक असहज या कष्टप्रद बन जाता है.

स्त्री की यौन तृप्ति

कोई युवती कितनी कामुक या सैक्स के प्रति उन्मादी हो सकती है? इस के लिए बड़ा सवाल यह है कि उसे यौन तृप्ति किस हद तक कितने समय में मिल पाती है? विश्लेषणों के अनुसार, शोधकर्ता वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि ऐसे लोगों को चिकित्सकीय सहायता मिल सकती है और वे सुखद यौन संबंध में बाधक बनने वाली बहुचर्चित भ्रांतियों से बच सकते हैं.

इस शोध में यह भी पाया गया है कि युवतियों के लिए यौन तृप्ति का अनुभव कहीं अधिक जटिल समस्या है. इस बारे में पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने माइक्रोस्कोप के जरिए युवतियों के अंग की दीवारों में होने वाले बदलावों और असंगत प्रभाव बनने वाली स्थिति का पता लगाया है.

वैज्ञानिकों ने एमआरआई स्कैन के जरिए महिला के दिमाग में संसर्ग के दौरान की  सक्रियता मालूम कर उत्तेजना की समस्या से जूझने वाले पुरुषों को सुझाव दिया है कि वे अपनी समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं. उन्हें सैक्सुअल समस्याओं के निबटारे के लिए डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए, न कि नीम हकीम की सलाह या सुनीसुनाई बातों को महत्त्व देना चाहिए. इस अध्ययन को जर्नल औफ क्लीनिकल एनाटौमी में प्रकाशित किया गया है.

महत्त्वपूर्ण है संसर्ग की शैली

डा. सीगल के अनुसार, महिलाओं के लिए संसर्ग के सिलसिले में अपनाई गई पोजिशन महत्त्वपूर्ण है. विभिन्न सैक्सुअल पोजिशंस के संदर्भ में शोधकर्ताओं द्वारा किए गए सर्वेक्षणों में भी पाया गया है कि स्त्री के यौनांग की दीवारों को विभिन्न तरीके से उत्तेजित किया जा सकता है.

आज की भागदौड़भरी जीवनशैली में मानसिक तनाव के साथसाथ शारीरिक अस्वस्थता भी सैक्स जीवन को प्रभावित कर देती है. ऐसे में कोई पुरुष चाहे तो अपनी सैक्स संबंधी समस्याओं को डाक्टरी सलाह के जरिए दूर कर सकता है.

कठिनाई यह है कि ऐसे डाक्टर कम होते हैं और जो प्रचार करते हैं वे दवाएं बेचने के इच्छुक होते हैं, सलाह देने में कम. वैसे, बड़े अस्पतालों में स्किन व वीडी रोग (वैस्कुलर डिजीज) विभाग होता है. अगर कोई युगल किसी सैक्स समस्या से जूझ रहा है तो वह इस विभाग में डाक्टर को दिखा कर सलाह ले सकता है.

 

कौन संभाले बच्चा : पति या पत्नी

एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली सुधा का पति नीरज हमेशा अपनी बेटी की देखभाल में सुधा की मदद करता है. दरअसल, सुधा सुबह जल्दी उठती है व घर का काम निबटा कर औफिस चली जाती है. नीरज बेटी को स्कूल छोड़ता है और शाम को औफिस से आते हुए बेटी को ‘बेबी सिटर’ से साथ ले कर आता है. घर आ कर वही बच्चे के खानपान व अन्य बातों पर ध्यान देता है. सुधा घर आ कर रात का खाना बना लेती है. इस तरह पतिपत्नी दोनों ने अपने काम को आपस में बांट लिया है, जिस से उन की सामंजस्यता हमेशा बनी रहती है. यह सच है कि बच्चों का लगाव मां से अधिक होता है. पर इस का मतलब यह तो नहीं कि उन्हें पिता के स्नेह व प्रोटैक्शन की आवश्यकता नहीं होती. अब अधिकतर लोग यह मानते हैं कि बच्चों को पालने में मां और पिता की समान भागीदारी होनी चाहिए.

हालांकि पहले यह धारणा थी कि मां घर पर रह कर बच्चों की देखभाल करे और पिता वित्तीय व्यवस्था को संभाले. लेकिन आजकल बढ़ती महंगाई और आर्थिक व्यवस्था के बीच संतुलन के लिए महिलाएं भी कामकाजी हो चुकी हैं. महिलाएं अब केवल मां की भूमिका नहीं निभातीं. वे औफिस गोइंग भी हैं. ऐसे में बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी केवल मां की नहीं, बल्कि पिता की भी होती है. लेकिन यह बात मातापिता की सोच पर निर्भर करती है, जो हरेक की अलगअलग होती है.

मातापिता दोनों की हो भागीदारी

मैरिज काउंसलर राशिदा कपाडि़या कहती हैं कि बच्चों को पालने में मातापिता दोनों की भागीदारी होनी चाहिए. मां की केयरिंग और पिता का प्रोटैक्शन दोनों से बच्चा अपनेआप को सुरक्षित महसूस करता है. अधिकतर देखा गया है कि जो बच्चा केवल मां या पिता के संरक्षण में बड़ा होता है, वह हमेशा अपनेआप को अकेला महसूस करता है. वह आगे चल कर किसी के साथ रिश्ता निभा नहीं पाता. क्योंकि वह रिश्तों की बौंडिंग समझ नहीं पाता. इसलिए मांपिता दोनों को ही अपना खाली समय बच्चे के साथ किसी न किसी रूप में बिताना चािहए.

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लेखिका सूर्यबाला कहती हैं कि आज के युवा अभिभावक अपने बच्चों की परवरिश पर अधिक ध्यान देते हैं, जो अच्छी बात है. लेकिन दोनों के लिए यह भी आवश्यक है कि बच्चों का बचपना वे भरपूर ऐंजौय करें क्योंकि छोटी उम्र में बच्चे का हर पल रोमांचक होता है. और चूंकि आजकल पतिपत्नी दोनों कामकाजी होते हैं और बच्चे 1 या 2 ही होते हैं, ऐसे में मां के साथ पिता को भी बच्चे के लालनपालन, किचन व रोजमर्रा के काम में हाथ बंटाना चाहिए ताकि काम का तनाव पत्नी के मन से दूर हो जाए और बच्चे को एक खुशनुमा वातावरण मिले.

जिम्मेदारी को समझें

मां बनते ही स्त्री की जिंदगी बदल जाती है. बच्चा उस की प्राथमिकता हो जाता है. उस का ध्यान हमेशा बच्चे के इर्दगिर्द रहता है. कई बार ऐसा होता है कि बच्चे को सुलातेसुलाते मां खुद भी सो जाती है. बच्चा छोटा होने पर रात में कई बार उठता है. ऐसे में पति को भी पत्नी के साथ अपनी नींद कुरबान करनी होती है. इस समय मातापिता दोनों को धैर्य की आवश्यकता होती है. कई बार अगर बच्चा बीमार हो जाए, तो वह रात भर जागता है. तब बिना परेशान हुए पति को अतिरिक्त सूझबूझ दिखाने की जरूरत होती है. मातापिता के बीच बच्चा अपनी जगह पूरे अधिकार के साथ बनाता है, इसलिए मातापिता दोनों को बच्चे की जिम्मेदारियों को बांट लेना चाहिए. एक सर्वे के अनुसार, अमेरिका में एक तिहाई पुरुष अपने बच्चे के साथ उतना ही समय बिताते हैं, जितना उस की मां. भारत में महिलाएं ही घर संभालती हैं इसलिए पुरुषों पर बच्चे की जिम्मेदारी अपेक्षाकृत कम होती है. अमेरिका में तो वहां की सरकार भी पिता को बच्चे संभालने की हिदायत देती है. जहां स्त्रीपुरुष दोनों कमाते हैं, वहां बच्चे की परवरिश का दायित्व दोनों पर होना चाहिए. मनोचिकित्सक डा. मालिनी कृष्णन कहती हैं कि पिता की जिम्मेदारी बड़े शहरों में बहुत अधिक बढ़ गई है. बच्चे के साथसाथ मां के खानपान, व्यायाम और नींद की जरूरतों पर भी पुरुष ध्यान देने लगे हैं, क्योंकि बच्चा होने के बाद मां कई बार पोस्टपार्टम डिप्रैशन की शिकार हो जाती है. ऐसे में पिता की भूमिका इस दृष्टि से काफी बड़ी होती है कि वह परिस्थिति को सामान्य बनाए. बच्चे के जन्म के बाद लगभग 2 से 3 साल तक मातापिता बच्चे की सही परवरिश को ले कर परेशान रहते हैं, इसलिए मानसिक रूप से दोनों तैयार होने के बाद ही स्त्री को गर्भधारण करना चाहिए क्योंकि बच्चे के साथ पूरी दिनचर्या बदल जाती है. उस समय सेहत और खानपान पर ध्यान देना भी आवश्यक होता है. साथ ही जीवनशैली को भी बदलना पड़ता है. कामकाजी महिला है तो मैटरनिटी लीव के बाद उसे काम पर जाना पड़ता है. ऐसा होने पर उसे पति का सहयोग मिले तो वह बेफिक्र हो कर दोबारा काम पर जा सकती है.

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शारीरिक व मानसिक मजबूती

दरअसल, मां बनने के बाद हर महिला चाहती है कि उसे परिवार या पति का सहयोग मिले ताकि वह अपनी जिम्मेदारी आसानी से निभा सके. हमारे सैलिब्रिटीज भी इस बात को मानते हैं. अभिनेत्री जेनेलिया डिसूजा देशमुख कहती हैं कि जब उन का बेटा हुआ तो उन के पति रितेश देशमुख बहुत खुश हुए. वे बच्चे से जुड़ी जिम्मेदारियां पहले भी निभाते थे और अब भी निभाते हैं. वे डायपर बदलना, दूध पिलाना, कपड़े बदलना, नहलाना आदि सब करते हैं. आखिर बच्चा दोनों का है तो जिम्मेदारी भी दोनों की होती है. अभिनेत्री तनाज ईरानी का कहना है कि उन के दोनों छोटे बच्चों को संभालने में उन के पति की खास भूमिका है. जब वे शूटिंग पर जाती हैं, तो वे उन के बेटों जियूस और जारा को संभालते हैं. उन के स्कूल का होमवर्क भी वे ही करवाते हैं. वैसे काम हम दोनों के बीच बंटा नहीं है. जिसे जब समय मिलता है वह काम कर लेता है. मुझे लगता है कि बिना दोनों की भागीदारी के बच्चों को संभालना और बाहर काम करना संभव नहीं. अभिनेत्री लारा दत्ता कहती हैं कि जब उन की बेटी सायरा हुई, तो महेश विदेश में खेल रहे थे. घर आए तो सब से पहले बेटी को गोद में ले कर खिलाया. आज भी जब मैं शूट या किसी काम से बाहर जाती हूं, तो महेश बेटी का पूरा ध्यान रखते हैं. बच्चे को संभालने में मातापिता दोनों की जिम्मेदारी होती है. जब ऐसा होता है तभी बच्चा खुशी महसूस करता है और उस का विकास अच्छा होता है. वह मानसिक रूप से भी मजबूत रहता है.

कहीं महंगा न पड़ जाए असलियत छिपाना

गृहस्थ जीवन में पदार्पण यानी शादी के बंधन में बंध जाने का फैसला स्त्रीपुरुष दोनों ही यह सोचसमझ कर करते हैं कि यह बंधन उम्र भर का है और यह अटूट बना रहे. स्त्रियों के लिए तो शादी का बंधन खास माने रखता है क्योंकि आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा उन के लिए अति महत्त्वपूर्ण है. आज के युग में भले ही स्त्री आर्थिक तौर पर स्वयं को सुरक्षित कर ले, सामाजिक तौर पर सुरक्षा के लिए उसे पुरुष पर ही निर्भर रहना पड़ता है. फिर वह चाहे पिता हो, भाई हो या पति. शादी से पहले वह अपने पिता के घर में सुरक्षित होती है, शादी के बाद पति के घर में सुरक्षित रहने की मनोकामना ले कर ही वह ससुराल जाती है.

आजकल शादी के समय वरवधू की उम्र आमतौर पर 22-23 साल से ज्यादा ही होती है, इसलिए शिक्षा और अर्थोपार्जन वगैरह की समस्याएं काफी हद तक हल हो चुकी होती हैं. फिर चाहे लव मैरिज हो या अरेंज मैरिज, शादी को एक पवित्र बंधन माना जाता है. 2 परिवारों को एकसूत्र में बांधने का नेक कार्य भी शादी के बंधन में बंधने वाले लड़कालड़की करते हैं.

छिपाना महंगा पड़ा

जिस के साथ उम्र भर रहना हो, उस साथी की योग्यता भी परखी जाती है. लड़की की योग्यता में देखा जाता है कि वह सुंदर, सुशील हो, उस का स्वास्थ्य अच्छा हो. वह पढ़ीलिखी तो हो, मगर खाना बनाने से ले कर गृहस्थी के सभी कार्यों में ससुराल वालों की मरजी पर निर्भर करे. स्वतंत्र हो कर किसी भी मामले में निर्णय लेने से पहले पति या ससुराल वालों की अनुमति जरूर ले, यह पति और ससुराल वालों को इज्जत देने के लिए अपेक्षित माना जाता है.

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शादी के बंधन में बंधने जा रही लड़की की तरह, कुछ जांचपड़ताल लड़के के बारे में भी की जाती है. जैसे उस का शैक्षणिक स्तर क्या है, उस की नौकरी या बिजनैस से होने वाली कमाई कितनी है, उस के ऊपर निर्भर रहने वाले परिवारजनों की संख्या कितनी है इत्यादि. जब लड़की वालों को वह अपने स्टेटस के अनुकूल जान पड़ता है, तभी विवाह के लिए उन की तरफ से रजामंदी मिलती है. लड़की या लड़के बारे में जो जानकारी आपस में दी जाती है, उस की सचाई पर विश्वास करने के बाद ही विवाह संपन्न होता है. यहां विश्वास एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है, इसलिए किसी बात को छिपाना अच्छा नहीं होता, जैसा कविता ने किया.

कविता वैसे दिखने में सुंदर है और उस ने बी.कौम. तक पढ़ाई की हुई है. उस की शादी मयंक के साथ बड़ी धूमधाम से हुई. मयंक इंजीनियर है और एक मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत है. कविता के मामाजी उस के पड़ोसी हैं. उन की तरफ से प्रस्ताव आया तो उन पर विश्वास कर और कविता को देख कर मयंक ने शादी के लिए हामी भर दी. उस के मातापिता को भी यह रिश्ता अच्छा लगा.

बिखराव के कगार पर शादी

लेकिन शादी के बाद सुहागरात को ही मंयक को पता चला कि कविता की पीठ और जांघों पर सफेद दाग हैं. यह तथ्य मयंक से छिपाया गया था. कविता ने उसे समझाने की लाख कोशिश की कि इलाज चल रहा है और डाक्टर ने यह बीमारी ठीक हो जाने की गारंटी दी है, लेकिन मयंक माना नहीं. उस का कहना था कि इस बीमारी की बात छिपाई क्यों गई? यह विश्वासघात है. अब कविता मायके में ही रह रही है और मयंक उस से डिवोर्स लेने पर आमादा है.

कविता और उस के मामाजी ने, उस की बीमारी की बात छिपा कर गलत काम किया. अब वह जमाना नहीं रहा कि ‘भाग्य में जो था वही हुआ’ सोच कर लोग अपनी आंखें मूंद लें. भुगतना तो कविता को ही पड़ रहा है.

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टूट गया भरोसा

राकेश लगभग 10 साल से अमेरिका में रह रहा है. उस की पहली शादी अमेरिकन युवती से हुई थी, जिस से उस का एक बेटा हुआ था. लेकिन यह शादी ज्यादा चली नहीं. पतिपत्नी में अनबन हो गई. परिणामस्वरूप डिवोर्स हो गया. अपने 6 साल के बेटे को राकेश ने अपने पास ही रख लिया और बाद में अपनी बहन के घर रहने के लिए भेज दिया. राकेश ने भारत आ कर दोबारा शादी की. पत्नी सुजाता को पहले डिवोर्स के बारे में तो बताया, लेकिन संतान होने की बात छिपा गया. डिवोर्स के कुछ ऐसे पेपर भी दिखा दिए जिस में उस के बेटे के बारे में कोई उल्लेख नहीं था. सुजाता और उस के परिवार को राकेश योग्य लगा और शादी हो गई. शादी के बाद सुजाता अमेरिका  चली गई. उस के जाने के 2 महीने बाद ही राकेश की बहन राकेश के बेटे को ले कर उस के घर आ धमकी. उस ने उस के बेटे को अपने साथ अपने घर पर रखने से साफ मना कर दिया. सुजाता के सामने भेद खुल गया कि राकेश का पहली शादी से एक बेटा भी है.

सुजाता के साथ विश्वासघात हुआ था, इसलिए सुजाता को बहुत दुख हुआ. राकेश ने जो भी कहा था उस पर विश्वास कर के उस ने शादी रचाई थी. मगर अब वह राकेश से डिवोर्स लेने के लिए मन बना चुकी है. हालांकि भारत में रहने वाले उस के मातापिता उसे ऐसा न करने की सलाह दे रहे हैं मगर अब यह शादी बनी रहेगी या डिवोर्स में बदल जाएगी, कुछ कहा नहीं जा सकता.

विश्वास कायम रखना जरूरी

शादी के बाद आपसी विश्वास कायम रखना बेहद जरूरी है. शादी के बाद स्नेहा एक अच्छी पत्नी साबित हुई. औफिस जाने से पहले सुबह उठ कर घर के काम अच्छे से निबटाना और शाम को औफिस से आने के बाद भी घर संभालने का काम वह बखूबी करती थी. उस का पति अश्विन तो उस की प्रशंसा करते अघाता नहीं था. अपनी मित्रमंडली और रिश्तेदारों के सामने वह स्नेहा को ले कर गर्व महसूस करता था कि उसे स्नेहा जैसी नेक और सुशील पत्नी मिली है. लेकिन स्नेहा के साथ कालेज में पढ़ने वाला और उस का प्रेमी रह चुका निकुंज उस के नए बौस के तौर पर नियुक्त हुआ तो उन दोनों की नजदीकियां फिर बढ़ती गईं.

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बात ज्यादा दिनों तक छिपी न रह सकी. अश्विन ने उन दोनों को एक सिनेमा हौल में एकसाथ फिल्म देखते हुए पाया. अश्विन के पूछने पर स्नेहा ने सफाई देने की बहुत कोशिश की कि उस दिन औफिस के बहुत से कर्मचारी छुट्टी पर थे इस वजह से काम कम था, इसलिए मैं निकुंज के साथ फिल्म देखने चली गई. लेकिन अश्विन के ज्यादा जोर दे कर पूछने पर स्नेहा ने बताया कि निकुंज से उस का प्रेम संबंध कालेज के जमाने से ही था. एक बार वह निकुंज के साथ घर से भाग भी चुकी थी. लेकिन उस के परिवार वालों ने निकुंज के विजातीय होने की वजह से उस से शादी नहीं होने दी. अश्विन का अब स्नेहा पर से विश्वास उठ चुका था, क्योंकि उस ने अपने पहले प्रेम संबंध को न सिर्फ छिपाया था, बल्कि पहले प्रेमी के साथ फिर से संबंध बना लिए थे.

अब अश्विन ने अपना तबादला दूसरे शहर में करवा लिया है और स्नेहा से बोलचाल बंद है. स्नेहा अकेली रह गई है. उस की शादी टूटने की कगार पर है. अपने जीवनसाथी के साथ धोखाधड़ी करना और असलियत को छिपाना शादी के लिए घातक है. डिवोर्स होना जीवन की एक बेहद दुखद घटना है.

Adolescence में बदलते रहते हैं मूड

रमा कालेज में पढ़ती है और अपनी पढ़ाई व कैरियर के प्रति जितनी सजग है, उतनी ही अपने दायित्वों के प्रति गंभीर भी है. इसीलिए उस के पेरैंट्स को उसे न तो कभी किसी बात के लिए टोकना पड़ा, न ही उन्हें उस के व्यवहार से कोई शिकायत है, लेकिन फिर भी अचानक उसे कभीकभी न जाने क्या हो जाता है. वह पढ़ाई करतेकरते बीच में ही उठ जाती है, उस का खाना खाने का मन नहीं करता. बस, वह एकांत चाहती है और बिना किसी कारण के उस का रोने का मन करता है.

वह सुबह जब भी उठती है तो उस का मूड बहुत अच्छा रहता है, वह सारा दिन खिलखिलाती रहती है पर शाम को उसे लगता है कि कुछ भी ठीक नहीं हुआ. अब छोटीछोटी बातों को ले कर उसे गुस्सा आने लगता है. किसी ने कुछ पूछा नहीं कि वह झुंझला पड़ती है, मानो सब उसे तंग करना चाहते हैं. उसे लगता है कि कोई उसे समझना ही नहीं चाहता.

बदलाव की उम्र

ऐसा केवल रमा के साथ ही नहीं, हर टीनएजर के साथ होता है. किशोरावस्था उम्र ही ऐसी है इस दौरान शरीर और मन दोनों में इतने बदलाव आते हैं कि मूड बदलना यानी मूड स्विंग होना नैचुरल है. अपनी आइडैंटिटी को ले कर चिंता, कालेज का उन्मुक्त वातावरण, अचानक ढेर सारी आजादी मिलने से सारी सोच में बदलाव आना, अपनी फिटनैस और ब्यूटी को ले कर सजगता आना और फ्रैंडशिप को अलग ढंग से जीना कुछ ऐसी बातें हैं जो उस समय किशोरों पर हावी हो जाती हैं. उन के साथ हारमोंस में होने वाले परिवर्तन की वजह से भी उन के स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है. कभी वे खूब प्रफुल्लित दिखते हैं तो कभी अकारण उदास.

किशोरावस्था जिंदगी का सब से उथलपुथल मचाने वाला समय होता है. जब सारे शारीरिक हारमोनल और इमोशनल बदलाव होते हैं और अगर इस समय उन पर उचित ध्यान न दिया जाए या उन के मूड को समझते हुए उन से व्यवहार न किया जाए तो इमोशनल इंबैलेंस हो जाता है.

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काउंसलर हरमन सैनी का मानना है कि किशोरावस्था एक बहुत ही खतरनाक उम्र है क्योंकि इस समय बच्चे न तो बच्चे रह जाते हैं न ही वयस्क हुए होते हैं. अपने शरीर में आने वाले शारीरिक, हारमोनल और इमोशनल परिवर्तनों को वे न तो समझ पाते हैं न ही पहचान पाते हैं और इसी वजह से मूड स्विंग होते हैं, जो एक तरह से प्राकृतिक प्रक्रिया है. इस उम्र में उन के व्यवहार में भी अजीब सा बदलाव आ जाता है. कभी वे निर्णय नहीं ले पाते तो कभी अत्यधिक अधीर हो जाते हैं. आत्मविश्वास की कमी महसूस होती है और दूसरों की कोईर् भी बात सुनना उन्हें अच्छा नहीं लगता.

अधिकांश अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि बायोलौजिकल व इमोशनल परिवर्तन किशोरों के बदलते स्वभाव के कारण होते हैं. अगर आप के किशोर बेटेबेटी के अंदर कुछ अंतर आ रहा है और वह घर देर से आने लगा है या उस के स्वभाव का कोईर् पता नहीं होता कि कब क्या हो जाए तो संभवत: यह भी हो सकता है कि उसे किसी से प्यार हो गया है. साइकियाट्रिक यूनिवर्सिटी क्लीनिक के स्विट्जरलैंड के अनुसंधानकर्ताओं ने यह पता लगाया है कि जो किशोर रोमांटिक किस्म के होते हैं, उन में मूड स्विंग की समस्या ज्यादा रहती है,

उन्हें नींद भी कम आती है और एकाग्रता बनाए रखना भी मुश्किल होता है. उन्होंने यह भी पाया कि इस दौरान किशोरों के अंदर जो मनोवैज्ञानिक परिवर्तन आते हैं, उन से उन की हथेलियों पर पसीना आता है, दिल की धड़कनें बेकाबू रहती हैं और जब वे उस के साथ होते हैं, जिसे वे प्यार करते हैं, तो उन का एनर्जी लैवल घटताबढ़ता रहता है. इमोशनल लैवल पर उन में पजैसिवनैस, उस की हर बात जानने की इच्छा व उस के बारे में ही हर वक्त सोचते रहना अच्छा लगने लगता है. यहां तक कि वे उस पर भावनात्मक रूप से अत्यधिक निर्भर भी हो जाते हैं.

अलग पहचान बनाने की चाह

बच्चों और बड़ों में तनाव को कम करने वाले जिस हारमोन को शरीर पैदा करता है, वह एक नैचुरल नींद की दवा की तरह काम करता है, इस का किशोरों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. इस वजह से वे बहुत मूडी हो जाते हैं. यही नहीं इस दौरान जब शरीर सैक्स हारमोंस बनाता है तो शारीरिक बदलावों के कारण भी किशोर परेशान रहने लगते हैं. वे एक तरह की दुविधा में रहते हैं जो उन के अंदर सुरक्षा की भावना भर देती है, जिस से वे एक ओर तो अपनेआप से लड़ते हैं और दूसरी ओर वयस्कों के जवाबों से परेशान रहते हैं इसीलिए उन की मन:स्थिति पलपल बदलती रहती है.

किशोरावस्था वह अवस्था है जब वे वयस्कों की दुनिया से हट कर अपनी एक पहचान बनाने की चाह रखने लगते हैं, यह वजह भी उन के भीतर पैदा होने वाली दुविधा का एक कारण है. उन के आसपास की दुनिया लगातार बदलती रहती है और उस प्रैशर का सामना करना कठिन लगने लगता है तो परेशान रहने लगते हैं. मूड के बदलते रहने से उन्हें लगता है कि कुछ भी चीज उन के नियंत्रण में नहीं है जो किसी के लिए भी एक असहज स्थिति हो सकती है.

काउंसलर पल्लवी गिलानी का कहना है, ’’वयस्कों को किशोरों के सामने आदर्श व उदाहरण बनाना होगा. उन के साथ जैसे को तैसा वाली नीति वाला व्यवहार करना ठीक नहीं होगा. पानी की बनिस्बत उन के साथ बहें. उन्हें उचित व्यवहार करना सिखाएं और उन के अनुचित व्यवहार पर कोईर् गलत टिप्पणी न करें. टीनएजर जानते हैं कि क्या गलत है और क्या सही. केवल उन्हें ऐक्सपैरिमैंट करना पसंद होता है. इसलिए उन्हें ऐसा आजादी वाला माहौल दें कि वे अपने ऐक्सपैरिमैंट्स को आप के साथ बांटें. याद रखें कि यह एक अस्थायी दौर है और जल्द ही बीत जाएगा.’’

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पेरैंट्स के लिए यह समझना आवश्यक है कि किशोरावस्था में मूड स्विंग होना एक नैचुरल प्रक्रिया है. उन के लिए इस समय धैर्य रखना और समस्या की तह तक जाना आवश्यक है. उन्हें इस समय अपने बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहिए, हालांकि इस समय किशोर अकेला रहना या अपने मित्रों के साथ रहना ज्यादा पसंद करते हैं पेरैंट्स का उन से कुछ भी पूछना उन्हें किसी हस्तक्षेप से कम नहीं लगता. उन के साथ कम्यूनिकेशन बनाए रखें और बिना किसी विवाद में पड़े खुले मन से उन की बातों व विचारों को सुनें. इस समय उन के मन में क्या चल रहा है, यह जानना जरूरी है, तभी आप उन का विश्वास जीत कर उन से हर बात शेयर करने को कह सकते हैं.

चेज़ योर ड्रीम्स

अभी हाल ही में मिसेज शाह से मिलना हुआ तो कहने लगी “क्या करें बेटी को समय ही नहीं मिलता”.

कहाँ व्यस्त रहती है इतना वह ? मैं ने पूछा.

क्या बताऊँ आजकल ऑनलाइन पर्सनैलिटी डवलपमेंट और सेल्फ ग्रूमिंग कोर्स जॉइन किया हुआ है. उसके अलावा एक घंटा एरोबिक्स एवं योगा. इतने समय से जिम बंद थे अब वे भी खुल गए सो एक घंटा सुबह जिम जाती है. इसके अलावा पढाई तो है ही सही.

इतना कुछ आखिर क्यूँ ?

अब ज़िंदगी में कुछ करना है तो मेहनत तो अभी से ही करनी होगी न.

मिसेज शाह का जवाब सुन मैं चुप रह गयी किन्तु मन  ही मन सोचने लगी “ऐसा भी क्या करना है इन्हें मेरी बेटी भी तो उसी के साथ पढ़ती है, उसे तो बहुत समय मिलता है”

बहुत कुछ इन्फार्मेटिव है इंटरनेट पर

घर आ कर मैं और मेरी बेटी जब रसोई में एक साथ काम कर रहे थे तो बातों ही बातों में मैं ने कहा “आज मिसेज शाह मिली थीं बता रही थीं कि उनकी बिटिया मायरा पूरा दिन कुछ न कुछ सीखती ही रहती है, बहुत व्यस्त रहती है और तुम हो कि इन्स्टा, यूं ट्यूब में समय गँवा रही हो”

ऐसा क्यूँ सोचती हैं आप मॉम ? मैं क्या सारा समय इन्स्टा और यू ट्यूब पर फ़ालतू समय बिताती हूँ ?

इंटरनेट पर भी बहुत सारे इन्फार्मेटिव वीडियों आते हैं वो देखती हूँ. इन्स्टा पर अपने पहचान के लोगों से मिलती हूँ आखिर मुझे भी तो अपनी ज़िंदगी जीनी है या टाइम मशीन बन कर रह जाऊं ?

तुलना करना उचित नहीं

उफ़ ! मॉम आप कम्पेयर क्यूँ कर रही हैं ? यह कोई नई बात नहीं कि मायरा हर समय व्यस्त रहती है हम सभी जानते हैं यह तो पहले से ही, पर उसकी ज़िंदगी कोई ज़िन्दगी है ?

क्या मतलब ? मैं ने पूछा.

मतलब यह कि मॉम न तो वह किसी से मिलती है और न ही किसी से कभी बात करने को फुर्सत है उसके पास ? और सबसे जरूरी बात यह कि क्या वह स्वयं खुश है ऐसी ज़िंदगी से.

“क्यूँ खुश होगी तभी तो इतना कुछ कर लेती है वह”

चक्की के दो पाटों में पिसती ज़िंदगी

नहीं मॉम  आपको कुछ भी नहीं पता वह तो चक्की के दो पाटों में पिस रही है.

कैसे ?

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कैसे क्या उसके डैड तो उसे सी.ऐ., एम्, बी. ऐ. करवा कर अफसर बनाना चाहते हैं और उसकी मॉम उसे मॉडलिंग करने को फ़ोर्स करती हैं. वो बेचारी अपने दिन का सारा समय सिर्फ उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने में बिताती है. जैसे उसकी तो कोई लाइफ ही नहीं.

पैरेंट्स बंदिश देते हैं

पर उसके पैरेंट्स भी तो उसी के भले के लिए सोचते हैं.

ह्म्म्म सोचते होंगे, पर पहले वे दोनों तो आपस में मिल-बैठ कर बातचीत कर तय कर लें कि उन्हें अपनी बेटी को क्या बनाना है. बेचारी दो नावों की कश्ती में सवार न तो हंस-बोल पाती है और न ही कुछ तय कर पाती है कि आखिर उसे अपनी ज़िंदगी में क्या करना है.

ज़रा वज़न बढे तो उसकी मॉम उसका घी-पनीर बंद कर देती हैं. दो नंबर भी कट जाएँ किसी विषय में तो डैड ट्यूशन टीचर के पीछे पड़ जाते हैं. उसकी एक्स्ट्रा वीकेंड क्लासेज़ शुरू करवा देते हैं और हरेक क्लास की फीस बताऊँ ?

“हाँ-हाँ बताओ तो” मैं ने कहा.

मॉम साढे बारह सौ रुपये प्रति घंटा. सोचो हर महीने उस की ट्यूशन पर कितना खर्च करते होंगे. उसके अलावा योगा, एरोबिक्स एवं अन्य कोर्सेज़ का खर्चा सो अलग.

तुम्हें किस ने बताया कि इतनी फीस  देते हैं वे.

उसी ने स्वयं ने बताया और यह भी बताया कि उसे ये सारे दिन के कोर्सेज़ और पढाई अच्छी भी नहीं लगती है, बोर हो जाती है वह ये सब करके.

पर उसके नंबर तो अच्छे ही आते हैं हमेशा और कितनी सुन्दर लगती है बिलकुल फिट एंड ग्लोइंग .

तो वो तो लगेगी ही न मॉम सारा ध्यान इन्हीं चीज़ों पर रखो हर वक़्त सोचो क्या खाऊँ क्या नहीं, चेहरे पर क्या लगाऊँ कि स्किन ग्लो करे . ननिहाल से पसंद की मिठाई आये पर उसे फ्रूट्स जूस पीने पड़ें. हम सभी पिज्जा खाएं पर उसे ग्रीन सैलेड खाना पड़े तो भूख तो खुद ही मर जायेगी न. कैसे बढेगा उसका वज़न ? फिट ही रहेगी न.

लेकिन ये सब सेहत के लिए फायदेमंद भी तो है अभी से ख्याल रखेगी तो चुस्त-तंदरुस्त रहेगी.

तन के साथ मन का स्वास्थ्य है जरूरी

वो ठीक है माँ पर सिर्फ तन ही तो सब कुछ नहीं होता मन की खुशी भी तो कोई चीज़ होती है न. आखिर कब तक वह अपने माता-पिता के अरमानों के बोझ तले दब कर ऐसी ज़िन्दगी जी सकेगी ?  जब कि वह स्वयं तो वाइल्ड लाइफ सफारी गाइड बनना चाहती है.

उसने स्वयं बताया तुम्हें कि वह गाइड बनना चाहती है ?

हाँ मॉम, कभी-कभी जब लेक्चर ख़त्म होने के बाद दूसरे लेक्चर के बीच गैप होता है तब वह हमसे बात करती है और अपने मन की बताती है.

ह्म्म्म , पर बेटी आज जो सैक्रिफाइस वह कर रही है इसका उसे भविष्य में फ़ायदा होगा.

मन मारकर कोई कैसे जिए

पर मॉम किसे पता वह जितनी मेहनत कर रही है इसका उसे फायदा ही न हो क्यूंकि उसका मन तो कुछ और करने का है, वह सिर्फ अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन कर रही है.  आखिर कब तक अपना मन मारकर यह सब सीखती रहेगी ? अभी तो समय कम पड़ रहा है वर्ना उसकी मॉम उसे कत्थक डांस क्लास और जॉइन करवाएंगी.

वो क्यूँ ?

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अरे ! मॉम माधुरी दीक्षित और ऐश्वर्या राय की छवि देखती हैं उसकी मॉम उसमें.

विद्रोह करना चाहिए

तो तुम्हारे हिसाब से उसे यह सब नहीं करना चाहिए ? अपने माता-पिता के सामने विद्रोह करना चहिये ?

हाँ बिलकुल करना चाहिए . माना कि उसके माता-पिता पढ़े-लिखे हैं, अच्छा कमाते हैं दोनों वर्किंग हैं, किसी चीज़ की कोई कमी नहीं लेकिन वे अपने सपनों का बोझ अपनी बेटी पर नहीं लाद सकते.

मैं ये कहूंगी कि वे पढ़े लिखे हैं, लेकिन समझदार नहीं.

ये क्या कह रही हो तुम ? मैं ने कहा.

छुप-छुप कर शौक पूरे करते हैं

मॉम यदि वे समझदार होते तो अपनी बेटीकी खूबियों को पहचानते. मालूम है वह फ्री पीरियड में लायब्रेरी जाती है और वहां अफ्रीका के जंगलों और जानवरों के बारे में पढ़ती है, हम लोगों से फोन लेकर इंटरनेट पर वाइल्ड लाइफ सर्फ़ करती है. वह सब करते समय उसके चेहरे पर अलग ही मुस्कराहट होती है. हम सभी सहेलियां उसकी इस मामले में बहुत मदद करती हैं. हम अपने फोन उसे दिया करते हैं ताकि वह इंटरनेट का इस्तेमाल कर सके. उसके पैरंट्स ने उसके फोन पर तो ट्रैकर लगा रखा है कहीं वह उनकी मर्जी के खिलाफ कुछ देख-पढ़ न ले.

ओह ! यह तो बहुत गलत है, आखिर वह भी तो फ्री पीरियड में अपनी मर्जी का कुछ तो करना  चाहती होगी.

वही तो मैं कह रही हूँ, मॉम आप कहती है कि वह सुन्दर है फिट है मैं कहती हूँ वह ताश के पत्तों में जो गुलाम का पत्ता है वह है. क्या आप उसके चेहरे की उदासी नहीं पढ़ पातीं ?

तो तुम क्या कहती हो उसे अपने माता-पिता से झगड़ा करना चाहिए ?

मेरी ज़िंदगी मेरी मर्जी

नहीं मॉम, उसे झगड़ा नहीं करना चहिये लेकिन उनके सपनों के बोझ तले अपने जीवन को नष्ट भी नहीं करना चाहिए.बल्कि अपने  पसंद के फील्ड की पूरी जानकारी लेकर अपने माता-पिता से बातचीत करनी चाहिए. वह जंगल और जानवरों से प्रेम करती है, माना कि यह फील्ड नया है जिसकी जानकारी उसके माता-पिता को नहीं. शायद हम जैसे लोग आमतौर पर इस फील्ड में नहीं जाते. पर वे स्वयं ही तो उसे खास बनाना चाहते हैं.

हर फील्ड में है स्कोप

नया है शायद इसलिए वे डरते हों कि भविष्य में वह क्या करेगी ? लेकिन हर फील्ड में कुछ न कुछ स्कोप तो होता ही है. फिर आजकल तो टूरिज्म इंडस्ट्री खूब फल-फूल रही है. नैशनल जियोग्राफिक चैनल, डिस्कवरी चैनल पर यह सब कितना आता है. वह किसी ख़ास विषय या जानवर पर रिसर्च भी कर सकती है. किन्तु आप लोगों को यह सब बताना फ़िज़ूल है. आप लोग तो  लकीर के फ़कीर बने रहना चाहते हैं. जैसे जो सब आपने किया या सोचा उसके अलावा दुनिया में कुछ और अच्छा है ही नहीं.

अच्छी लडकी की परिभाषा 

मुझे तो डर है कि मायरा कभी स्ट्रेस और फ्रस्टेशन में पढ़ना-लिखना ही न छोड़ दे.

नहीं वह अच्छी लडकी है वह ऐसा नहीं करेगी कभी.

“अच्छी लडकी माय फुट” मॉम बस पैरेंट्स कहें वो ही करो तब ही अच्छी लड़की होती है ? मैं क्या बुरी लडकी हूँ. लेकिन मेरी अपनी ओपिनियन होती है, मैं रेस्पेक्ट करती हूँ अपनी ओपिनियन और अपनी चॉइस को. मैं अपने सपनों को साकार करने के लिए जब आँखें मूंदती हूँ मन ही मन कहती हूँ “यस आय विल डू इट” और उसके लिए निरंतर प्रयासरत हूँ. लेकिन आप लोगों ने अपने सपने मुझ पर लादे नहीं. मैं जो पढना चाहती हूँ उसकी छूट दी, हकीकत तो यह है कि सबकुछ मैं ने ही तय किया. जो मुझे कॉलेज में पढ़ाया जाता है मैं उसे एक दिन पहले ही घर में पढ़ लेती हूँ क्यूंकि मुझे वह सब अच्छा लगता है. क्यूंकि मुझे अपने विषय को जानने के लिए क्युसिओसिटी भी है. मुझे अपने विषय में ज्यादा सर नहीं खपाना पड़ता. इसीलिए आपको मेरी मेहनत नज़र भी नहीं आती और मैं समय निकाल कर मौज-मस्ती भी कर लेती हूँ.

समझना होगा माता-पिता को

हम्म बात तो तुम्हारी सही है, तुम अपनी सहेली को क्यूँ नहीं  समझाती कि वह अपने माता-पिता से बात करे और उन्हें बताये कि वह अपने पसंद का करियर चुनना चाहती है.

उन्हें समझा कर कोई फ़ायदा नहीं मॉम क्यूंकि उसके माता और पिता दोनों आपस में ही नहीं समझा पाए एक दूसरे को. बस दोनों अपनी जिद पर अड़े हैं कि एक के अनुसार बेटी मॉडलिंग करे और दूसरे के अनुसार हर वक़्त किताबों में सर घुसाए रखे. पहले उन्हें आपस में समझना जरूरी है और यह जानना जरूरी है कि उनकी बेटी क्या करना चाहती है पर वे दोनों इतने नासमझ हैं कि इस विषय पर बेटी से बातचीत ही नहीं करते, बस उसके लिए एक पगडंडी बना दी है और जैसे घोड़े की आँखों पर कुछ बाँध दिया जाता है कि वह साइड में न देखे बस आगे देखे वैसे ही उसे अपने माता-पिता की ऑंखें लेकर उस पगडंडी पर चलना है.

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“ह्म्म्म बात तो तुम सही कहती हो” मैं ने कहा.

तुम्हें लगता है कि मैं सही कहती हूँ तो तुम ही समझाओ उसकी मॉम व डैड को वर्ना किसी दिन वह कुछ गलत न कर बैठे और यदि विद्रोह कर दिया तो फिर वह उन दोनों से बहुत दूर न चली जाये. हो सकता है वह मॉडल या अफसर बन जाए किन्तु उसके माता-पिता की आँखें कब तक उसे राह दिखाएंगी. वह तो छुप-छुप कर वाइल्ड लाइफ सफारी को सर्च करती है और सोचती है एक बार माँ-बाप का सपना पूरा कर दे फिर अपना सपना पूरा करेगी. एक बार मॉडलिंग में चली भी जायेगी तो छोड़ देगी. या फिर किसी बड़ी कंपनी में अफसर बन गयी तो नौकरी छोड़ देगी. और यदि ये भी न हुआ तो पूरी ज़िंदगी कसमसाती रहेगी अपने अधूरे ख़्वाबों के साथ.

अपने सपनों को जिओ

मैं तो कहूंगी आखिर ज़िंदगी उस की है और उसे ही जीनी है उसे अपने सपने को पूरा करने के लिए प्रयास करना चाहिए न कि अपने माता-पिता के अरमानों को जीना चाहिए.

भाई को बनाएं जिम्मेदार

अर्चित 3 भाइयों में सब से छोटा होने के कारण घर में सब का लाड़ला था. यही वजह थी कि वह कुछ ज्यादा ही सिर चढ़ गया था. यदि उसे कोई काम करने को कह दिया जाता तो वह उसे पूरा नहीं करता था या फिर इतने बुरे ढंग से तब करता था जब उस की कोई वैल्यू ही नहीं रह जाती थी. शुरू में तो सभी उस की इन बातों को नजरअंदाज करते रहे, लेकिन अब वह कालेज में था और उस की इन हरकतों से परिवार वालों को सब के सामने शर्मिंदा होना पड़ता था.

इसी तरह रमेश को अगर कुछ काम करने जैसे कि बिजली का बिल जमा करने या बाजार से कुछ लाने को कहो तो वह कोई न कोई बहाना बना देता था. यह समस्या लगभग हर घर में देखने को मिल जाएगी. अकसर छोटे भाईबहन लापरवाह हो जाते हैं. दरअसल, आजकल के युवा कोई जिम्मेदारी लेना ही नहीं चाहते. ऐसे ही युवा आगे चल कर हर तरह की जिम्मेदारी से भागते हैं. फिर धीरेधीरे यह उन की आदत बन जाती है. फिर वह अपने मातापिता की, औफिस की व समाज की जिम्मेदारियों से खुद को दूर कर लेते हैं. लेकिन यदि कोशिश की जाए तो उन्हें भी जिम्मेदार बनाया जा सकता है. इस के लिए बड़े भाई को ही प्रयास करना होगा, क्योंकि वह आप की बात जल्दी मानेगा.

ऐसे बनाएं भाई को जिम्मेदार

घर की परेशानियों में शामिल करें :

अकसर हम अपने छोटे भाईबहनों को घर में आने वाली छोटीमोटी परेशानियों से दूर रखते हैं. घर में आने वाली मुश्किलों की भनक तक उन्हें नहीं लगने देते. ऐसे में घर के छोटों को पता ही नहीं होता कि उन के बड़े किस समस्या से जूझ रहे हैं. बस, वे अपनी फरमाइशें पूरी करवाने में ही लगे रहते हैं. ऐसा करना ठीक नहीं है, क्योंकि इस से छोटे भाईबहन जिंदगी के अच्छे और बुरे पहलू देखने और समझने से वंचित रह जाते हैं. उन्हें भी अपनी परेशानियों में शामिल करें ताकि वे भी इन का सामना कर सकें.

जरूरी काम भाई को भी सौंपें :

भाई को भी काम करने को दें. यह न सोचें कि इस के बस का नहीं है. यह कहां करेगा, मैं तो इसे मिनटों में कर लूंगा और भाई की समझ से बाहर हो जाएगा. अगर आप ऐसे करेंगे तो भाई सीखेगा कैसे? उसे भी कुछ काम करने दें. फिर चाहे वह उसे करने में ज्यादा समय ले या फिर गलत करे, लेकिन उसे करने दें. इस तरह धीरेधीरे उसे इन कामों को करने की आदत हो जाएगी, लेकिन अगर आप उसे काम सौंपेंगे ही नहीं, तो वह करेगा कैसे?

भाई को छोटा न समझें :

‘अभी तो यह छोटा है,’ अगर आप ऐसे समझते रहेंगे तो वह कभी बड़ा नहीं होगा. वैसे भी वह हमेशा आप से छोटा ही रहेगा. उसे बड़ा बनाने की जिम्मेदारी आप की ही है.

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पैसे की कीमत समझाएं :

यदि भाई हर वक्त मातापिता से किसी न किसी बात की डिमांड करता रहता है और पेरैंट्स को तंग करता है तो उसे घर की आर्थिक स्थिति के बारे में बताएं. उसे बताएं कि पैसा कितनी मुश्किल से कमाया जाता है. घरखर्च में उस का भी सहयोग लें और घर का सामान आदि उस से मंगाए. जब वह अपने हाथ से खर्च करेगा तो उसे पैसे की वैल्यू पता चलेगी.

रिश्ते निभाना भी सिखाएं :

छोटी बहन को राखी पर अपनी पौकेटमनी से या अपने कमाए हुए पैसे से गिफ्ट देने की आदत डालें. कभीकभी घर के छोटे बच्चों से कहें कि आज चाचा ही बच्चों को आइस्क्रीम खिला कर आएंगे. घर में आए मेहमान को भी सब के बीच बैठने को कहें और बातचीत में उसे भी शामिल करें.

खुद मिसाल बनें :

आप खुद भाई के सामने मिसाल बनें. जब वह घर और बाहर का सभी काम आप को जिम्मेदारी से निभाते हुए देखेगा तो आप को अपना रोलमौडल समझने लगेगा और खुद भी आप के जैसा बनने की पूरी कोशिश करेगा. आप जो भी गुण अपने भाई में देखना चाहते हैं पहले उन्हें आप खुद में लाएं और फिर भाई को सिखाएं.

उस के काम को आप भी टाल जाएं : अगर भाई आप का कहना नहीं मानता, कोई भी काम जिम्मेदारी से नहीं करता और आप उस की इस आदत से परेशान हैं, तो आप उसे उसी की भाषा में समझाएं. जब वह आप से या घर के किसी मैंबर से अपने किसी जरूरी काम को वक्त पर करने को कहे तो आप भी टालमटोल करें और काम समय पर न करें. इस के बाद उसे गुस्सा आएगा और उलझन होगी तब उसे प्यार से समझाएं कि जब वह खुद ऐसा करता है तो अन्य लोगों को भी ऐसी ही परेशानी होती है.

गैरजिम्मेदारी के नुकसान बताएं

–       अगर आप गैरजिम्मेदार होंगे तो लोग आप को गंभीरता से नहीं लेंगे.

–       पीठ पीछे आप के बचपने की लोग बुराइयां करेंगे.

–       मांबाप भी आप पर भरोसा करने में कतराएंगे.

–       बाहर ही नहीं घर में भी कोई आप की इज्जत नहीं करेगा.

–       एक बार यदि काम करने का समय निकल गया तो यह लौट कर दोबारा नहीं आएगा और फिर आप के हाथ सिवा पछतावे के कुछ नहीं बचेगा.

–       लड़कियां आप से दूर भागेंगी कि यह तो किसी काम का नहीं, इस से दोस्ती बढ़ा कर आगे कोई फ्यूचर नहीं है.

इन बातों का भी रखें खयाल

– अगर आप रोब दिखा कर काम करवाने की कोशिश करेंगे तो वह कोई काम नहीं करेगा इसलिए प्यार से बात करें, रोब से नहीं.

– छोटे भाईबहन पर जिम्मेदारी धीरेधीरे डालें, एकदम से सारा काम न सौंपें, क्योंकि इस से वह इरीटेट होने लगेगा.

– आप का मकसद काम निकलवाना नहीं बल्कि काम सिखाना होना चाहिए इसलिए बस आज का काम किसी तरह हो जाए इस मानसिकता के साथ काम करवाएंगे तो वह कभी नहीं सीख पाएगा.

– यदि भाई को काम करने में कोई परेशानी है और वह काम ढंग से नहीं कर पा रहा है, तो उस का हौसला बढ़ाएं. वह घबराए तो उसे समझाएं कि वह यह काम इस ढंग से कर सकता है.

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– अगर वह अपनी कोई जिम्मेदारी बखूबी निभाता है, तो उस की तारीफ की जानी चाहिए. इस से उस में आगे भी अच्छा करने की इच्छा पैदा होगी.

– अगर भाई ने कोई काम अच्छा किया है, तो उस का क्रैडिट खुद न लें, बल्कि सब को बताएं कि यह भाई की अपनी मेहनत है.

– जो जिम्मेदारी या काम आप उसे सौंपना चाहते हैं पहले उसे खुद करें ताकि आप को काम करता देख वह भी सीखे और उस काम में उस का भी मन लगे. फिर चाहे वह काम घर के छोटे बच्चों को पढ़ाने का ही क्यों न हो. जब आप उन्हें पढ़ाएंगे तो एक दिन भाई भी खुद ब खुद पढ़ाने लगेगा.

– शुरूशुरू में भाई को वही काम दें, जिस में उस का इंट्रस्ट है. जब उसे उस काम को करने में मजा आने लगे और वह अपनी जिम्मेदारी सही से निभाने लगे, तो उसे अन्य काम करने की जिम्मेदारी देना शुरू करें.

जब कोई आप को इस्तेमाल करे

भले ही सदियों से यही कहा जाता रहा हो कि रिश्तों को निभाओ, रिश्तों को रोजाना प्यार के जल से सींचते रहें. पर क्या हमारी जिंदगी के सभी रिश्ते इतनी अटैंशन के लायक होते हैं? ऐसे रिश्तों को पहचानना बहुत जरूरी है जो आप को खुशियां नहीं बल्कि टैंशन देते हैं और जिस रिश्ते में आप का केवल इस्तेमाल किया जाता है, ऐसे रिश्ते को अलविदा कहना ही अच्छा होता है.

अपनी किताब ‘सिंगल वूमन लाइफ, लव ऐंड अ डैश औफ सैंस’ में रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट मैंडी हेल इस सचाई की ओर इशारा करती लिखती हैं, ‘‘हम वाकई क्या चाहते हैं बनाम हम किस चीज के लिए सैटल होने के लिए तैयार हैं, इस बात को सम?ाने का एक मौका है ब्रेकअप. जीवन और प्यार में चीजों को सैटल करने की सोच से ऊपर उठिए और अगली बार जब कोई आप से यह कहे कि आप का स्टैंडर्ड बहुत ऊंचा है तो माफी मत मांगिए क्योंकि यह स्टैंडर्ड ही तो तय करता है कि हमें कैसा जीवन मिलेगा.’’

कई महिलाओं की आदत होती है कि वे यह देखना ही नहीं चाहती कि इस रिश्ते से उन्हें मिल क्या रहा है?

मगर जीवन और रिश्तों के प्रति यह नजरिया उचित नहीं. आप के पास हक है कि आप खुद को इस्तेमाल होने देने से इनकार करें और वह पाएं जिस की आप हकदार हैं.

उस रिश्ते को तोड़ने में जरा भी संकोच न करें जहां आप को जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा हो. किसी को इस्तेमाल कई तरह से किया जा सकता है:

रुतबे और ओहदे का इस्तेमाल

नीता आईएएस अफसर थी जबकि उस का भाई एक साधारण क्लर्क था. पिता की आकस्मिक मौत के बाद अपने छोटे भाईबहन को पढ़ाने के लिए नीता ने शादी नहीं की. नीता का भाई प्रेम शुरू से मेहनत करने में विश्वास नहीं रखता था. उसे सब पकापकाया खाने की आदत हो गई थी.

प्रेम अपनी बहन के रुतबे का जी भर कर इस्तेमाल करता था. बहन की गाड़ी में घूमता और बहन के ही आलिशान बंगले में रहता. किसी से कोई काम होता तो झट बहन के नाम की मदद ले लेता.

नीता कई साल चुप रही और भाई को हर तरह से फायदे देती रही. मगर फिर उसे भाई के स्वार्थी स्वभाव का एहसास हुआ और उस ने अपना घर बसाने की सोची. इस से पहले उस ने भाई से संबंध तोड़ते हुए उस को अपना घर अलग लेने और अपने बल पर जीने की सलाह दे डाली. भाई का चेहरा उतर गया क्योंकि उसे पता था कि बहन के रुतबे की उसे कैसी आदत हो गई है. वह बहुत गिड़गिड़ाया मगर नीता फैसला ले चुकी थी.

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कई दफा लोग हम से रिश्ता बना कर इसलिए रखना चाहते हैं ताकि वे हमारे रुतबे और ओहदे का इस्तेमाल करते हुए अपना भला कर सकें. ऐसे में हम से रिश्ता बना कर रखने के पीछे उन की मंशा यह होती है कि वे हमारे नाम का इस्तेमाल कर अपने लिए सुविधाएं या फिर फेवर पा सकें.

अकसर आप ने भी गौर किया होगा कि ऐसे लोग परिचय होते ही सब से पहले आप का ओहदा जानना चाहते हैं. यदि आप किसी अच्छी पोस्ट पर हैं या ऊंचे खानदान से ताल्लुक रखते हैं तो उन का रवैया ही बदल जाता है. दुनिया ऐसी ही है पर ऐसे लोग आप का खराब समय आते ही अपना रास्ता बदलने से गुरेज नहीं करते. इसलिए इन से बच कर रहना बहुत जरूरी है.

धनसंपत्ति का इस्तेमाल

जैसे चीनी के साथ चीटियों का रिश्ता है वैसा ही कुछ पैसों के साथ स्वार्थी लोगों का होता है. ऐसे लोग कोई भी हो सकते हैं, भाईबहन, रिश्तेदार, दोस्त, पड़ोसी जिन्हें आप से नहीं बल्कि आप की दौलत से प्यार होता है. एक बार जब आप ऐसे लोगों की पहचान कर लें तो उन से दूरी बढ़ाने में गुरेज न करें.

34 साल की सीमा बताती है कि उस की एक सहेली निशा हमेशा उस से बहुत प्यार से बातें करती थी. उस ने हमेशा सीमा के पैसों का इस्तेमाल किया. सीमा करोड़पति पिता की बेटी थी, इसलिए उसे कोई समस्या नहीं थी. सीमा कहीं भी घूमने जाती या शौपिंग के लिए निकलती तो निशा साथ हो लेती और फिर सारे रुपए सीमा के क्रैडिट कार्ड से खर्च होते.

एक बार सीमा अपने पापा से रूठ कर अकेली निशा के घर रहने आ गई. पापा ने उस का क्रैडिट कार्ड भी ब्लौक कर दिया. ऐसे में वह निशा के घर पहुंची तो 2 दिन के अंदर निशा के व्यवहार की कलई खुल गई. सीमा ने उसी वक्त उस से संबंध समाप्त कर लिए.

दिखावे के लिए इस्तेमाल

अकसर पति अपनी खूबसूरत बीवी को अपनी शान का दिखावा करने के लिए इस्तेमाल करते हैं. वे औफिशियल पार्टीज में पत्नी को सजाधजा कर ले जाते हैं ताकि बौस या दोस्तों पर अच्छा इंप्रैशन पड़े. रिश्तेदारों को जलाने और अपना कद ऊंचा दिखाने के लिए भी वे बखूबी बीवी का इस्तेमाल करते हैं. वे चाहते हैं कि उन की बीवी इंग्लिश में बातें करें और हौट ड्रैसेज पहने ताकि वह आधुनिक दिखे और पति का स्टेटस ऊंचा नजर आए.

इमोशंस का इस्तेमाल

प्रमोद जब भी शराब पी कर घर लौटता तो पत्नी को बहुत गालियां देता, घर में तोड़फोड़ करता और जुए में रुपए हार कर आता वह अलग. उस के कारनामे देख कर उस का पिता बहुत नाराज होता और उसे एक कमरे में बंद कर ताला लगा देता और खाने को भी नहीं देता. तब प्रमोद अपनी पत्नी के इमोशंस का इस्तेमाल करता.

पत्नी के आगे भोला सा चेहरा बना कर शराब पीने के पीछे कोई न कोई बहाना बना देता और वादा करता कि अब कभी नहीं पीएगा. वह पत्नी से कहता कि पिता को मना ले. पत्नी भावनाओं में बह कर उस का काम कर देती. एक बार तो वह एक औरत को ले आया और कहने लगा कि यह मेरे साथ रहेगी. पिता ने पिटाई की तो पत्नी के आंसुओं का सहारा ले कर पिता से बच पाया. पत्नी धीरेधीरे सम?ाने लगी थी कि पति केवल उस का इस्तेमाल करता है.

एक बार वह सच में किसी के साथ सात फेरे ले कर आ गया. पिता ने उसे जायदाद से बेदखल कर दिया तब उसे होश आया. वह फिर पत्नी के पास सहायता मांगने आया. मगर इस बार पत्नी इमोशनल नहीं हुई उलटे उस ने दो टूक कह दिया कि अब हमारा कोई रिश्ता नहीं. मैं इस घर की बहू हूं, मगर तुम्हारी कुछ नहीं. प्रमोद बिचारा घरपरिवार और जायदाद से तो बेदखल हुआ ही पत्नी ने भी दुत्कार दिया. नई पत्नी पहले ही उस की हालत देख कर जा चुकी थी.

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कमियां छिपाने के लिए इस्तेमाल

कई पुरुष अपनी खूबसूरत बीवी का इस्तेमाल कर बौस के आगे अपनी गलतियां और कमियां छिपाने का प्रयास करते हैं. वे यह नहीं सम?ाते कि बीवी के मन में क्या है. वे बस किसी भी तरह बौस को अपनी बीवी की खूबसूरती से बांधे रखना चाहते हैं ताकि बौस उस की गलतियां दिखाना भूल जाए. इसी तरह कुछ पुरुष घर में भी अपनी गलतियां छिपाने के लिए पत्नी को आगे कर देते हैं.

ऐसे पति अपने मांबाप के आगे बहुत भोले बन कर खड़े हो जाते हैं और सारा दोष अपनी पत्नी पर डाल देते हैं. बात सिर्फ पतिपत्नी की नहीं है बल्कि कई भाईबहन भी इस हथियार को अपनाते हैं. अकसर भाई बचपन से ही हर गलती की जिम्मेदारी बहन पर थोपने से नहीं हिचकते. बड़े होने या बहन के ससुराल जाने के बाद भी वे अपनी आदत से बाज नहीं आते. यदि आप के साथ भी कुछ ऐसा हो रहा है तो उस रिश्ते में बने रहने की मजबूरी छोडि़ए और देखिए आप के लिए जीवन कितना आसान हो जाता है.

शारीरिक जरूरतें पूरी करने के लिए इस्तेमाल

कुछ पति ऐसे होते हैं जो पत्नी का इस्तेमाल महज अपनी शारीरिक जरूरतों की पूर्ति के लिए करते हैं. उन्हें पत्नी की खुशी या उस की इच्छा से कोई मतलब नहीं होता. वे अपनी पत्नी से भावनात्मक रूप से बिलकुल भी जुड़े नहीं होते और उन्हें पत्नी की कोई परवाह नहीं होती.

प्रमोशन के लिए इस्तेमाल

हाल ही में कोच्चि में नौसेना के एक अधिकारी की पत्नी ने अपने पति पर आरोप लगाया कि उस के पति ने अपनी प्रमोशन कराने के लिए उस का इस्तेमाल किया और उसे अपने अधिकारियों के साथ हमबिस्तर होने को मजबूर किया. महिला ने आरोप लगाया कि इस का विरोध करने पर उस का पति और अधिकारियों ने उस के साथ मारपीट भी की. उस की शिकायत के आधार पर उस के पति सहित 10 लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 498 के तहत मामला दर्ज किया गया.

इसी तरह गुजरात में पति ने प्रमोशन पाने के लिए अपनी पत्नी को बौस के सामने परोस दिया. यह घटना अहमदाबाद के नारानपुरा इलाके की है. पति ने पत्नी को अपने बौस के साथ सोने के लिए मजबूर कर दिया. वह पत्नी और बौस को कमरे में बंद कर बाहर से कुंडी लगा कर बाहर निकल गया.

जानकारी के मुताबिक युवक ने पत्नी पर जबरन संबंध बनाने के लिए दबाव डाला और ऐसा नहीं करने पर उस के साथ मारपीट भी की. महिला ने पति और ससुराल वालों के खिलाफ थाने में केस दर्ज कराया. महिला का कहना था कि शादी के 4 साल तक सब ठीक चलता रहा. लेकिन फिर धीरेधीरे उस के पति ने उस के साथ गंदी हरकतें शुरू कर दीं और दूसरों के साथ जबरन संबंध बनाने के लिए दबाव डालने लगा. इनकार करने पर वह पत्नी को पीटता भी था.

एकतरफा हो जब रिश्ता

याद रखिए जब आप दोनों के बीच हर फैसले या बातचीत की वजह उन की सुविधा या फायदा है, आप की सोच हमेशा उन के बारे में रहती है, मगर वे कभी आप के बारे में बात नहीं करते तो जाहिर है कि वे आप के रिश्ते का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर रहे हैं. हालांकि उन के साथ एक ईमानदार बातचीत करने से कभीकभी मुद्दों को सुल?ाने में मदद मिल सकती है. मगर यदि आप को यह विश्वास हो जाता है कि आप के रिश्ते में सबकुछ एकतरफा है तो इसे नजरअंदाज करना लंबे समय में आप के लिए मुश्किल बढ़ा देगा.

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आर्थिक मसलों पर चर्चा

एक खुशहाल रिश्ते के लिए आवश्यक है कि सामने वाला आप से खुल कर रुपएपैसों के बारे में चर्चा करे, कुछ छिपाए नहीं. रिश्ते को परखने के लिए आप ध्यान दें कि क्या आप के पति या रिश्तेदार आप के साथ पैसों का हिसाबकिताब करने में कंफर्टेबल हैं? क्या वे निश्चिंत हो कर आप से इनवैस्टमैंट्स और प्रौफिट आदि के बारे में बात करते हैं? यदि वे रिश्ते को वैल्यू देते हैं और आप से गहराई से जुड़े हैं तो सबकुछ डिसकस करेंगे और ऐसा नहीं है तो जाहिर है उन्होंने आप को महज इस्तेमाल करने के लिए रखा है, आप से कोई जुड़ाव नहीं है.

हैप्पी लाइफ के लिए बनिए स्मार्ट वूमन

रक्षिता एक संयुक्त परिवार की छोटी बहू है. परिवार का रैडीमेड कपड़ों का बड़ा व्यवसाय है, पढ़ीलिखी तो थी ही, सो शादी के बाद वह भी व्यवसाय में मदद करने लगी. जहां उस की 2 जेठानियां घर पर रहतीं, वह हर दिन तैयार हो कर दुकान जाती और बिजनैस में सहभागी होती. परंतु उस की आर्थिक स्वतंत्रता बिलकुल अपनी जेठानियों के ही स्तर की रही. वह एक कर्मचारी की ही तरह काम करती और वित्तीय मामलों में उस के सुझवों को उस के अधिकारों का अतिक्रमण माना जाता है.

रक्षिता को भी इस व्यवस्था में कोई खामी नजर नहीं आती है और घर से बाहर जाने के मिले अधिकार की खुशी में ही संतुष्ट रहती है. उस के ससुर, जेठ या उस के पति यह सोच भी नहीं सकता कि घर की औरतों को आयव्यय, बचत, हिसाब जानने की कोई जरूरत भी है. वहीं कुछ महिलाएं खुद ही यह मान कर चलती हैं कि घर के वित्तीय मामले उन के लिए नहीं हैं.

शर्माजी कोविडग्रस्त हो 75 साल की उम्र में गुजर गए. सबकुछ इतना अचानक हुआ कि उन की पत्नी जिंदगी में आए इस बदलाव से भौचक सी रह गई. आर्थिक रूप से शर्मा दंपती बेहद संपन्न थे. शर्माजी के गुजरने के बाद भी मजबूत बैंक बैलेंस, पैंशन और इंश्योरैंस की मजबूत आर्थिक सुरक्षा थी. परंतु अफसोस यह है कि शर्माजी की पत्नी अपनी आर्थिक सुदृढ़ता से पूरी तरह से अनभिज्ञ हैं.

विवाह के शुरुआती दिनों से उन्होंने कभी भी यह सीखने या जानने की कोशिश नहीं की कि घर में कितने पैसे आ रहे हैं, कहां खर्च हो रहे हैं या फिर कहां क्या बचत हो रही है. शर्माजी उन के लिए सदा एटीएम बने रहे.

बच्चों पर निर्भरता

बेटे के बड़े होने और अवकाशप्राप्ति के बाद शर्माजी ने बड़ी कोशिश करी उर्मला को अपना वित्तीय स्टैटस समझने की, बैंक और औनलाइन ट्रांजैक्शन समझने की, परंतु उर्मला को यही लगता कि कौन इस झमेले में पड़े, जब उन के पति सब कर ही लेते हैं.

अब जब शर्माजी नहीं रहें तो अचानक वे पूरी तरह अपने बेटे पर निर्भर हो गईं, अकेले रहने लायक वे थी ही नहीं. अब पाईपाई के लिए बेटे पर निर्भरता उन्हें बेहद खलती है पर अब कोई चारा नहीं है.

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उर्मला के विपरीत कंचन बाजपेयी ने देर से ही सही पर सबकुछ सीखा और अपने आत्मसम्मान के साथ एक आत्मनिर्भर जीवन व्यतीत कर रही हैं. यदाकदा जरूरत पड़ने पर बच्चों या किसी और की मदद लेती हैं. वे भी उर्मला की ही तरह गृहिणी थीं और वित्तीय जानकारी उन की भी शून्य ही थी.

यहां बाजपेयी ने कभी बताने की भी जरूरत नहीं समझ थी कि ‘मैं तो हूं’ ही. परंतु मरने से 10 वर्ष पहले जब उन्हें पहली बार हार्टअटैक आया तो अपनी पत्नी की अनभिज्ञता के चलते उन्हें रिश्तेदारों और दोस्तों पर निर्भर होना पड़ा. अस्पताल के बिल चुकाने से ले कर अन्य बातों के लिए. बाद में स्वस्थ होने पर उन्होंने ठान लिया कि पत्नी को सब सिखाना है.

60 वर्षीय कंचन बाजपेयी न सिर्फ एटीएम से पैसे निकालना जानती हैं बल्कि विभिन्न औनलाइन पोर्टल से ट्रांजैक्शन करना भी उन्हें आता है. कहां किस बैंक में कितने पैसे हैं, कौन नौमिनी है, खर्चों के पैसों को किस अकाउंट से निकालना है इत्यादि उन्हें सब पता है. अपनी इस वित्तीय जागरूकता के चलते वे निर्णय लेने की क्षमता भी रखती हैं और बच्चों के घर में एक फर्नीचर की तरह रहने की जगह वे अपने घर में अपनी इच्छानुसार रहती हैं.

आर्थिक गुलामी

आर्थिक आत्मनिर्भरता हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है. अब दिनोंदिन कामकाजी और आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिलाओं की गिनती बढ़ रही है पर अब भी उन महिलाओं की गिनती अधिक है जो आर्थिक स्वावल?ंबन से दूर हैं. यह लेख मूलतया उन्हीं महिलाओं के लिए है, जो संपन्न होने के बावजूद आर्थिक गुलामी की जिंदगी चुन लेती हैं.

अधिकतर महिलाएं आर्थिक रूप से निर्भर होती हैं चाहे पिता पर, पति पर या फिर पुत्र पर. माइंड कंडीशनिंग कुछ ऐसी होती है महिलाओं

की कि उन्हें बुरा भी नहीं महसूस होता है. मगर उन्हें मालूम होना चाहिए कि यह गुलामी का ही प्रतीक है.

बेटियों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाना हर मातापिता का फर्ज है. फिर भी यदि किसी कारणवश एक लड़की आर्थिक आत्मनिर्भरता नहीं प्राप्त कर पाती है तो भी उस का यह हक है कि अपनी गृहस्थी के फाइनैंशियल स्टेटस को पूरी तरह सम?ो.

जरूरतें और मुसीबतें कभी बता कर नहीं आती हैं. हर परिस्थिति के लिए पतिपत्नी को शुरू से प्लानिंग करनी चाहिए और महत्त्वपूर्ण बातों को आपस में शेयर करना चाहिए. पतिपत्नी दोनों को मिल कर अपने भविष्य की तैयारी करनी चाहिए, न कि पति अपनी घरवाली को सिर्फ घरेलू काम की ही इंसान सम?ो. बहुत लोग दोस्तों से, रिश्तेदारों से अपनी वित्तीय जानकारी शेयर करते हैं पर अपनी घरवाली को अनभिज्ञ रखेंगे. घर की महिलाओं को पता ही नहीं रहता है कि आड़े वक्त में पैसे कहां से आएंगे.

कदमकदम पर धोखा

रामकली घर पर ब्लाउज सिलने का काम करती थी. वह कुछ दर्जियों से जुड़ी हुई थी जो उस से सिलवा कर अपने ग्राहकों को देते थे. ठीकठाक कमा लेती थी. वह जो कमाती अपने पति रणबीर के हाथों में दे कर निश्चिंत हो जाती थी जो खुद टैंपो चलाता था. एक दिन रणबीर टेम्पो सहित दुर्घटनाग्रस्त हो गया. आसपास के लोगों की मदद से उसे पास के अस्पताल में भरती करवाने के बाद रामकली को समझ नहीं आ रहा था कि अब वह अस्पताल के बिल कैसे और कहां से भरे.

उस ने पूरा घर छान मारा पर कुछ हजार रुपयों के अलावा उसे कुछ नहीं मिला. रणबीर तो बेहोश था. इसलिए वह कैसे पूछती कि पैसे कहां रखे हैं. नतीजा समय पर पैसे नहीं जमा करने के कारण उस के इलाज में देरी हो गई. सिलाईमशीन छोड़ वह घर का 1-1 समान बेच कर किसी तरह इलाज करवा और सदा के लिए अपंग हो गए पति को घर ला पाई.

बाद में पता चला कि रणबीर अपनी और रामकली की सारी कमाई अपने दोस्त को ब्याज पर उधार दे रखी थी, जिस ने पूरी रकम डकार ली. इस धोखे के बाद रामकली ने फिर से ब्लाउज सिलने शुरू किए तो खुद अपनी कमाई का हिसाबकिताब रखने लगी.

गलती किस की

बिल गेट्स की एक प्रसिद्ध उक्ति है कि यदि आप गरीब परिवार में जन्म लेते हैं तो यह आप की गलती नहीं है पर यदि आप गरीब ही मर जाते हैं तो यह आप की गलती है.

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इसी तर्ज पर यदि कोई महिला पूर्णरूपेण समृद्ध होते हुए भी अपनी नासमझ और अज्ञानता के कारण किसी पर आश्रित हो कर जीती है तो यह उस की गलती है. अपने आसपास ऐसी कई औरतें दिख जाएंगी जो हर तरह से समृद्ध होते हुए भी पति के गुजरने पर बेबस और पराश्रित हो जाती हैं. अफसोस होता है उन की पराधीनता पर. अकसर घरेलू और कई बार कामकाजी कमाऊ पत्नियां भी पति के बताने के बावजूद फाइनैंशियल ज्ञान से बेखबर रहना पसंद करती  हैं. यह गलत है. शुरू से ही पति की सहायिका बन कर सारी जानकारी रखनी चाहिए. बदलते वक्त के साथ खुद को अपडेट भी करते रहना चाहिए. बैंकिंग और टैक्नोलौजी के प्रति आप  की थोड़ी सी जागरूकता भविष्य में बहुत  सहायक होगी.

सरला माथुर 72 वर्ष की आयु में भी काफी सक्रिय रहती हैं. माथुर साहब कुछ वर्षों से बहुत बीमार रहने लगे तो न सिर्फ सरलाजी ने सारी जिम्मेदारियों को अपने पर ले लिया बल्कि बैंक, पोस्ट औफिस, पैंशन और मैडिकल इंश्योरैंस सहित सभी वित्तीय मामलों की लगाम अपने हाथों में थाम लिया. कभी बच्चों के घर जा कर रहने पर भी वे उन पर आश्रित नहीं रहतीं. गृहस्थी की शुरुआत से ही पतिपत्नी के बीच एक मधुर सामंजस्य रहा. जब जिंदगी में जैसी जरूरत पड़ी रोल बदल कर उन्होंने जिंदगी आसान और खुशनुमा बनाए रखी.

यह एक कड़वा सत्य है कि पतिपत्नी में एक को पहले गुजरना है, उम्र में कम होने के चलते ज्यादातर पत्नियां रह जाती हैं. एक तो जुदाई का गम दूसरा अपनी परतंत्रता स्त्रियों पर दोहरी गाज बन गिरती है, इसलिए स्मार्ट वूमन बनिए और जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीते रहने की कला से वाकिफ रहिए. आर्थिक स्वतंत्रता ही सुखद, उन्मुक्त जीवन की कुंजी है ताउम्र. -रीता गुप्ता द्य

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