दिल से दिल तक: भाग 1- शादीशुदा आभा के प्यार का क्या था अंजाम

‘‘हर्ष,अब क्या होगा?’’ आभा ने कराहते हुए पूछा. उस की आंखों में भय साफसाफ देखा जा सकता था. उसे अपनी चोट से ज्यादा आने वाली परिस्थिति को ले कर घबराहट हो रही थी.

‘‘कुछ नहीं होगा… मैं हूं न, तुम फिक्र मत करो…’’ हर्ष ने उस के गाल थपथपाते हुए कहा.

मगर आभा चाह कर भी मुसकरा नहीं सकी. हर्ष ने उसे दवा खिला कर आराम करने को कहा और खुद भी उसी बैड के एक किनारे अधलेटा सा हो गया. आभा शायद दवा के असर से नींद के आगोश में चली गई, मगर हर्र्ष के दिमाग में कई उल झनें एकसाथ चहलकदमी कर रही थी…

कितने खुश थे दोनों जब सुबह रेलवे स्टेशन पर मिले थे. उस की ट्रेन सुबह 8 बजे ही स्टेशन पर लग चुकी थी. आभा की ट्रेन आने में अभी

1 घंटा बाकी था. चाय की चुसकियों के साथसाथ वह आभा की चैट का भी घूंटघूंट कर स्वाद ले रहा था. जैसे ही आभा की ट्रेन के प्लेटफौर्म पर आने की घोषणा हुई, वह लपक कर उस के कोच की तरफ बढ़ा. आभा ने उसे देखते ही जोरजोर से हाथ हिलाया. स्टेशन की भीड़ से बेपरवाह दोनों वहीं कस कर गले मिले और फिर अपनाअपना बैग ले कर स्टेशन से बाहर निकल आए.

पोलो विक्ट्री पर एक स्टोर होटल में कमरा ले कर दोनों ने चैक इन किया. अटैंडैंट के सामान रख कर जाते ही दोनों फिर एकदूसरे से लिपट गए. थोड़ी देर तक एकदूसरे को महसूस करने के बाद वे नहाधो कर नाश्ता करने बाहर निकले. हालांकि आभा का मन नहीं था कहीं बाहर जाने का, वह तो हर्ष के साथ पूरा दिन कमरे में ही बंद रहना चाहती थी, मगर हर्ष ने ही मनुहार की थी बाहर जा कर उसे जयपुर की स्पैशल प्याज की कचौरी खिलाने की जिसे वह टाल नहीं सकी थी. हर्ष को अब अपने उस फैसले पर अफसोस हो रहा था. न वह बाहर जाने की जिद करता और न यह हादसा होता…

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होटल से निकल कर जैसे ही वे मुख्य सड़क पर आए, पीछे से आई एक अनियंत्रित कार ने आभा को टक्कर मार दी. वह सड़क पर गिर पड़ी. कोशिश करने के बाद भी जब वह उठ नहीं सकी तो हर्ष ऐबुलैंस की मदद से उसे सिटी हौस्पिटल ले कर आया. ऐक्सरे जांच में आभा के पांव की हड्डी टूटी हुई पाई गई. डाक्टर ने दवाओं की हिदायत देने के साथसाथ 6 सप्ताह का प्लास्टर बांध दिया. थोड़ी देर में दर्द कम होते ही उसे हौस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया.

मोबाइल की आवाज से आभा की नींद टूटी. उस के मोबाइल में ‘रिमाइंडर मैसेज’ बजा. लिखा था, ‘से हैप्पी ऐनिवर्सरी टू हर्ष.’ आभ दर्द में भी मुसकरा दी. उस ने हर्ष को विश करने के लिए यह रिमाइंडर अपने मोबाइल में डाला था.

पिछले साल इसी दिन यानी 4 मार्च को दोपहर 12 बजे जैसे ही इस ‘रिमाइंडर मैसेज’ ने उसे विश करना याद दिलाया था उस ने हर्ष को किस कर के अपने पुनर्मिलन की सालगिरह विश की थी और उसी वक्त इस में आज की तारीख सैट कर दी थी. मगर आज वह चाह कर भी हर्ष को गले लगा कर विश नहीं कर पाई क्योंकि वह तो जख्मी हालत में बैड पर है. उस ने एक नजर हर्ष पर डाली और रिमाइंडर में अगले साल की डेट सैट कर दी. हर्ष अभी आंखें मूंदे लेटा था. पता नहीं सो रहा था या कुछ सोच रहा था. आभा ने दर्द को सहन करते हुए एक बार फिर से अपनी आंखें बंद कर लीं.

‘पता नहीं क्याक्या लिखा है विधि ने मेरे हिस्से में,’ सोचते हुए अब आभा का दिमाग भी चेतन हो कर यादों की बीती गलियों में घूमने लगा…

लगभग सालभर पहले की बात है. उसे अच्छी तरह याद है 4 मार्च की वह शाम. वह अपने कालेज की तरफ से 2 दिन का एक सेमिनार अटैंड करने जयपुर आई थी. शाम के समय टाइम पास करने के लिए जीटी पर घूमतेघूमते अचानक उसे हर्ष जैसा एक व्यक्ति दिखाई दिया. वह चौंक गई.

‘हर्ष यहां कैसे हो सकता है?’ सोचतेसोचते वह उस व्यक्ति के पीछे हो ली. एक  शौप पर आखिर वह उस के सामने आ ही गई. उस व्यक्ति की आंखों में भी पहचान की परछाईं सी उभरी. दोनों सकपकाए और फिर मुसकरा दिए. हां, यह हर्ष ही था… उस का कालेज का साथी… उस का खास दोस्त… जो न जाने उसे किस अपराध की सजा दे कर अचानक उस से दूर चला गया था…

कालेज के आखिरी दिनों में ही हर्ष उस से कुछ खिंचाखिंचा सा रहने लगा था और फिर फाइनल ऐग्जाम खत्म होतेहोते बिना कुछ कहेसुने हर्ष उस की जिंदगी से चला गया. कितना ढूंढ़ा था उस ने हर्ष को, मगर किसी से भी उसे हर्ष की कोई खबर नहीं मिली. आभा आज तक हर्ष के उस बदले हुए व्यवहार का कारण नहीं सम झ पाई थी.

धीरेधीरे वक्त अपने रंग बदलता रहा. डौक्टरेट करने के बाद आभा  स्थानीय गर्ल्स कालेज में लैक्चरर हो गई और अपने विगत से लड़ कर आगे बढ़ने की कोशिश करने लगी. इस बीच आभा ने अपने पापा की पसंद के लड़के राहुल से शादी भी कर ली. बच्चों की मां बनने के बाद भी आभा को राहुल के लिए अपने दिल में कभी प्यार वाली तड़प महसूस नहीं हुई. दिल आज भी हर्ष के लिए धड़क उठता था.

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शादी कर के जैसे उस ने अपनी जिंदगी से एक सम झौता किया था. हालांकि समय के साथसाथ हर्ष की स्मृतियां पर जमती धूल की परत भी मोटी होती चली गई थी, मगर कहीं न कहीं उस के अवचेतन मन में हर्ष आज भी मौजूद था. शायद इसलिए भी वह राहुल को कभी दिल से प्यार नहीं कर पाई थी. राहुल सिर्फ उस के तन को ही छू पाया था, मन के दरवाजे पर न तो कभी राहुल ने दस्तक दी और न ही कभी आभा ने उस के लिए खोलने की कोशिश की.

जीटी में हर्ष को अचानक यों अपने सामने पा कर आभा को यकीन ही नहीं हुआ. हर्ष का भी लगभग यही हाल था.

‘‘कैसी हो आभा?’’ आखिर हर्ष ने ही चुप्पी तोड़ी.

‘तुम कौन होते हो यह पूछने वाले?’ आभा मन ही मन गुस्साई. फिर बोली, ‘‘अच्छी हूं… आप सुनाइए… अकेले हैं या आप की मैडम भी साथ हैं?’’ वह प्रत्यक्ष में बोली.

‘अभी तो अकेला ही हूं,’’ हर्ष ने अपने चिरपरिचित अंदाज में मुसकराते हुए कहा और आभा को कौफी पीने का औफर दिया. उस की मुसकान देख कर आभा का दिल जैसे  उछल कर बाहर आ गया.

‘कमबख्त यह मुसकान आज भी वैसी ही कातिल है,’ दिल ने कहा. लेकिन दिमाग ने सहज हो कर हर्ष का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. पूरी शाम दोनों ने साथ बिताई.

थोड़ी देर तो दोनों में औपचारिक बातें हुईं. फिर एकएक कर के संकोच की दीवारें टूटने लगीं और देर रात तक गिलेशिकवे होते रहे. कभी हर्ष ने अपनी पलकें नम कीं तो कभी आभा ने. हर्ष ने अपनेआप को आभा का गुनहगार मानते हुए अपनी मजबूरियां बताईं… अपनी कायरता भी स्वीकार की… और यों बिना कहेसुने चले जाने के लिए उस से माफी भी मांगी…

आभा ने भी ‘‘जो हुआ… सो हुआ…’’ कहते हुए उसे माफ कर दिया. फिर डिनर के बाद विदा लेते हुए दोनों ने एकदूसरे को गले लगाया और अगले दिन शाम को फिर यहीं मिलने का वादा कर के दोनों अपनेअपने होटल की तरफ चल दिए.

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अगले दिन बातचीत के दौरान हर्ष ने उसे बताया कि वह एक कंस्ट्रक्शन  कंपनी में साइट इंजीनियर है और इस सिलसिले में उसे महीने में लगभग 15-20 दिन घर से बाहर रहना पड़ता है और यह भी कि उस के 2 बच्चे हैं और वह अपनी शादीशुदा जिंदगी से काफी संतुष्ट है.

‘‘तुम अपनी लाइफ से संतुष्ट हो या खुश भी हो?’’ एकाएक आभा ने उस की आंखों में  झांका.

‘‘दोनों में क्या फर्क है?’’ हर्ष ने पूछा.

‘‘वक्त आने पर बताऊंगी,’’ आभा ने टाल दिया.

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येलो और्किड: भाग 1- मधु के जीवन में सुरेंदर ने कैसे भरी खुशियां

तपा देने वाली गरमी में शौपिंग बैग संभाले एकएक पग रखना दूभर हो गया मधु के लिए. गलती कर बैठी जो घर से छाता साथ नहीं लिया. पल्लू से उस ने माथे का पसीना पोंछा. शौपिंग बैग का वजन ज्यादा नहीं था, मगर जून की चिलचिलाती धूप कहर ढा रही थी. औटो स्टैंड थोड़ी दूर ही था. वहां से औटो मिलने की आस में उस ने दोचार कदम आगे बढ़ाए ही थे कि सिर तेजी से घूमने लगा. अब गिरी तब गिरी की हालत में उस का हाथ बिजली के खंबे से जा टकराया और उस का सहारा लेने की कोशिश में संतुलन बिगड़ा और वह सड़क पर गिर पड़ी. शौपिंग बैग हाथ से छूट कर एक तरफ लुढ़क गया.

कुछ लोगों की भीड़ ने उसे घेर लिया.

‘‘पता नहीं कैसे गिर गई? शायद चक्कर आ गया हो.’’

‘‘इन को अस्पताल ले कर चलो, बेहोश है बेचारी.’’

‘‘अरे, कोई जानता है क्या, कहां रहती हैं.’’

अर्धमूर्च्छित हालत में पड़ी मधु को देख कर लोग अटकलें लगाए जा रहे थे. मगर अस्पताल या घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी कोई लेना नहीं चाहता था. तभी वहां से गुजरती एक सफेद गाड़ी सड़क के किनारे आ कर रुक गई. एक लंबाचौड़ा आदमी उस गाड़ी से उतरा और लोगों का मजमा लगा देख भीड़ को चीरता आगे आया. मधु की हालत देख कर उस ने तुरंत गाड़ी के ड्राइवर की मदद से उसे उठा कर गाड़ी में बिठा लिया.

‘‘यहां पास में कोई हौस्पिटल है क्या?’’ उस आदमी ने भीड़ की तरफ मुखातिब हो कर पूछा.

‘‘जी सर, यहीं, अगले चौक से दाहिने मुड़ कर एक नर्सिंगहोम है.’’

और गाड़ी उसी दिशा में आगे बढ़ गई जहां नर्सिंग होम का रास्ता जाता था.

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हौस्पिटल के बैड पर लेटी मधु की बांह में ग्लूकोस की नली लगी हुई थी. कमजोरी का एहसास तो हो रहा था पर हालत में कुछ सुधार था. नर्स से उसे मालूम हुआ कि उसे गाड़ी में किसी ने यहां तक पहुंचा दिया था. वह उस सज्जन का शुक्रिया अदा करना चाहती थी जिस ने उसे बीच सड़क से उठा कर अस्पताल तक पहुंचाया था. वरना कौन मदद करता है भला किसी अनजान की.

तभी दरवाजा खोल कर एक आदमी वार्ड में आया. ‘‘कैसी तबीयत है आप की अब? वैसे डाक्टर ने कहा है कि खतरे की कोई बात नहीं है, आप को कुछ देर में डिस्चार्ज कर दिया जाएगा.’’ रोबदार चेहरे पर सजती हुई मूंछों वाला वह आदमी बड़ी शालीनता से मधु के सामने खड़ा था. मधु कुछ सकुचाहट और एहसान से भर उठी.

‘‘आप ने बड़ी मदद की, आप का धन्यवाद कैसे करूं समझ नहीं आ रहा,’’ वह कुछ और भी जोड़ना चाह रही थी कि उस आदमी ने उसे टोक दिया.

‘‘इस सब की चिंता मत कीजिए, इंसानियत भी एक चीज है. लेकिन हां, आप को एक बात जरूर कहना चाहूंगा, जब आप को शुगर की गंभीर समस्या है तो आप को अपनी सेहत का खास ध्यान रखना चाहिए. यह आप के लिए बड़ा खतरनाक हो सकता है.’’

मधु से कुछ कहते न बना, गलती उस की ही थी. सुबह शुगर की दवा खाना भूल गई थी. उस पर से धूप में इतना पैदल चली. शुगर लैवल बिलकुल कम होने से वह चक्कर खा कर गिर पड़ी थी. उस की खुद की लापरवाही का नतीजा उसे भुगतना पड़ा था. किसी अजनबी का एहसान लेना पड़ गया.

मगर वह अजनबी उस पर एहसान पर एहसान किए जा रहा था. अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर मधु को उस ने घर तक अपनी गाड़ी में छोड़ा और मधु उस का नाम तक नहीं जान पाई. वह पछताती रह गई कि मेहमान को एक कप चाय के लिए भी नहीं पूछ पाई.

थोड़ा फारिग होते ही उस ने अपनी बेटी को फोन लगाया. मोबाइल पर उस की कई मिसकौल्स थीं. फोन पर्स के अंदर ही था. अब घर आ कर वह देख पाई थी.

सुरभि ने उस का फोन रिसीव करते

ही प्रश्नों की झड़ी लगा दी. मधु

के फोन न उठाने की वजह से वह बेहद चिंतित हो रही थी. उस ने बताया कि वह अभी विकास को फोन कर के बताने ही वाली थी.

‘‘अच्छा हुआ जो तू ने विकास को फोन नहीं किया, नाहक ही परेशान होता, बेचारा इतनी दूर बैठा है.’’

‘‘मां, आप को सिर्फ भैया की फिक्र है और मेरा क्या, जो मैं इतनी देर से परेशान हो रही थी आप के लिए. जानती हो, अभी सुमित से कह कर गाड़ी ले के आ जाती आप के पास.’’

मधु ने सुरभि को पूरा किस्सा बताया और यह भी कि कैसे एक अनजान शख्स ने उस की सहायता की. पूरी बात सुन कर सुरभि की जान में जान आई. मुंबई से पूना कोई इतना पास भी नहीं था, अगर चाहती भी तो इतनी जल्दी नहीं पहुंच सकती थी मधु के पास.

‘‘मां, तुम ठीक हो, यही खुशी की बात है. मगर आइंदा इस तरह लापरवाही की, तो मैं भैया को सच में बता दूंगी कि तुम अपना ध्यान नहीं रखती हो.’’

मधु उसे आश्वस्त करती जा रही थी कि वह अब पूरी तरह ठीक है.

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एकलौता बेटा बीवीबच्चों के साथ सात समंदर पार जा कर बस गया था और बेटी अपने भरेपूरे ससुराल में खुश थी. मधु अकेली रहते हुए भी बच्चों की यादों से घिरी रहती थी हमेशा. विकास जब नयानया विदेश गया तो हर दूसरे दिन मां से फोन पर बातें कर लेता था, मगर अब महीने में एक बार फोन आता था तो भी मधु इसे गनीमत समझती थी. खुद को ही तसल्ली दे देती कि बच्चे मसरूफ हैं अपनी जिंदगी में.

दिल की बीमारी से उस के पति की जब असमय ही मौत हो गई थी तो कालेज में लाईब्रेरियन की नौकरी उस का सहारा बनी थी. नौकरी के साथ घर और बच्चों को संभालने में ही कब उम्र गुजर गई, वह जान ही न पाई. अब जब बेटेबेटी का संसार बस गया, तो मधु के पास अकेलापन और ढेर सारा वक्त था जो काटे नहीं कटता था. स्टाफ में सब लोग मिलनसार और मददगार थे, सारा दिन किसी तरह किताबों के बीच गुजर जाता था मगर शाम घिरते ही उसे उदासी घेर लेती. कभी उस अकेलेपन से वह घबरा उठती तो फैमिली अलबम के पन्ने टटोल कर उन पुरानी यादों में खो जाती जब पति और बच्चे साथ थे.

बेटा विकास और बहू मोनिका कनाडा में बस गए थे. उस की 2 बेटियां भी विदेशी परिवेश में पल रही थीं. 2 बार मधु भी उन के पास जा कर रह आई थी. मोनिका और विकास दोनों नौकरी करते थे. दोनों पोतियां विदेशी संस्कृति के रंग में रंगी तेजरफ्तार जिंदगी जीने की शौकीन थीं. उन की अजीबोगरीब पोशाक और रहनसहन देख कर मधु को चिंता होने लगती. आखिर कुछ तो अपने देश के संस्कार सीखें बच्चे, यही सोच कर मधु कुछ समझाने और सिखाने की कोशिश करती, तो दोनों पोतियां उसे ओल्ड फैशन बोल कर तिरस्कार करने लगतीं. उस ने जब बहू और बेटे से शिकायत की तो वे उलटा मधु को ही समझाने लग गए.

‘मां, यह इंडिया नहीं है, यहां तो यही सब चलता है.’

मधु चुप हो गई. घर में बड़ों का फर्ज छोटों को समझाना, उन्हें सहीगलत का भेद बताना होता है, लेकिन, उस की बातों का उपहास उड़ाया जाता था.

बेटाबहू छुट्टी वाले दिन अपने दोस्तों के साथ क्लब या पार्टी में चले जाते. किसी के पास मधु से दो बातें करने की फुरसत नहीं थी.

ठंडे देश के लोग भी ठंडे थे. बाहर गिरती बर्फ को खिड़की से देखती मधु और भी उदास हो जाती. अपने देश की तरह यहां पासपड़ोस का भी सहारा नहीं था, सब साथ रहते हुए भी अकेले थे. उस मशीनी दिनचर्या में मधु का मन न रम पाया और कुछ ही दिनों के भीतर वह अपने देश लौटने को तड़प उठी.

विकास ने उस के बाद कई बार उसे अपने पास बुलाया, मगर मधु जाने को राजी न हुई.

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‘न भाई, ऐसी भागदौड़भरी जिंदगी तुम्हें ही मुबारक हो. तुम लोग तो बिजी रहते हो, अपने काम में. मैं क्या करूंगी सारा दिन अकेले. इस से भली मेरी नौकरी है, कम से कम सारा दिन लोगों से बतियाते मन तो बहल जाता है.’

ठीक ही कहती थी उस की सहेली पम्मी कि दूर के ढोल हमेशा सुहाने लगते हैं.

‘कुछ नहीं रखा है, पम्मी, वहां की जिंदगी में हम जैसे बूढ़ों के लिए.’

‘सही गल है मधु, पर तू बड़ा किसनू दस रई है? खुद को कह रही है तो ठीक है, मैं तो अभी जवान ही हूं,’ और दोनों सहेलियां चुहल कर के ठहाके मार कर हंस पड़तीं.

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कर्फ्यू: क्या हुआ था सांची के साथ

लेखिका- सुरभि शर्मा

मुझे पूरे चौबीस घंटे हो चुके थे उस दुकान में छिपे हुए. सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ था. इतनी शांति थी कि हवा की आवाज साफ सुनाई दे रही थी जो आम दिनों में दोपहर के इस वक्त सुनाई देना नामुमकिन था. बस, बीचबीच में दंगाइयों का शोर आता था और जैसेजैसे आवाजें पास आती जातीं, दिल की धड़कनें बढ़ने लगतीं और लगता जीवन का अंत अब बस करीब ही है. फिर, वे आवाजें दुकान के सामने से होते हुए दूर निकल जातीं.

हमारा शहर हमेशा ऐसा नहीं था या यह कहें कि कभी ऐसा नहीं था. पर चौबीस घंटे पहले हुई छोटी सी बात यह विकराल रूप ले लेगी, यह तो सोच से भी परे है.

मैं अपने घर से दुकान से सामान लाने के लिए निकली थी जो सिर्फ 5 मिनट की दूरी पर है. दुकान पहुंचने पर पता चला कि मेन मार्केट में झगड़ा हुआ है और एक लड़के की मौत हो गई है. पूरी बात पता करने पर यह बात सामने आई कि 2 लड़कों में किसी बात को लेकर झगड़ा हो रहा था. धीरेधीरे बात इतनी बढ़ गई कि हाथापाई होने लगी. भीड़ इकट्ठी होने लगी और 2 गुटों में बंट गई. उन्हीं में से एक लड़का इतना लहूलुहान हुआ कि उस की मौके पर ही मौत हो गई. उस लड़के को मरा देख दूसरे गुट के लोग वहां से भाग निकले. तब से ही दंगाई उन सब को ढूंढ़ रहे हैं और बीच में आने वाले हर किसी को मार रहे हैं.

मैं दुकान पर खड़ी बातें सुन ही रही थी कि कहीं से शोर सुनाई दिया, जिस की आवाज बढ़ती जा रही थी. दुकानदार को लगा कि दंगाई हैं. उस ने बाहर खड़े लोगों को दुकान के अंदर ले कर शटर बंद कर दिया. मैं भी तेजी से दुकान के अंदर घुस गई और तब से इसी इंतजार में हूं कि यह सब कब खत्म होगा और हम सब अपने घर जा सकेंगे.

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तब से कभी दंगाइयों की आवाजें आती हैं तो कभी फौजियों की जो आगाह करते हैं कि जो जहां है वहीं रहे, बाहर न निकले. और ऐसे ही बैठेबैठे चौबीस घंटे निकल गए पर हालात में कोई सुधार नहीं हुआ.

घरवालों के बारे में सोचती, तो चिंता बढ़ जाती. न मुझे उन की खबर थी, न उन्हें मेरी. जब घर से निकली थी तो घर पर कोई नहीं था. सब अपनेअपने काम से बाहर गए हुए थे. पता नहीं कोई घर लौटा भी होगा या नहीं. कहां होंगे सब, उन्हें कुछ हो न गया हो, ऐसी बातें सोच कर मैं सहम जाती. मन होता,  अभी घर जा कर उन्हें देख लूं, ज्यादा दूर तो है नहीं, पर जान की सलामती की सोच कर जहां की तहां बैठी रही.

शाम के 5 बज रहे थे. 28 घंटे हो चुके थे. पर बाहर के हालात में कोई सुधार नहीं था. बढ़ते वक्त के साथ मन भी ज्यादा विचलित होता जा रहा था. दुकान वाले भैया से जब शहर के हालात पता करने को कहा, तो उन्होंने फिर वही जवाब दिया, ‘‘बेटी, फोन अभी चालू नहीं हुए हैं, सारी लाइनें बंद हैं.’’

‘‘पर, यहां पर कब तक ऐसे ही बैठे रहेंगे?’’ एक ग्राहक ने दुकानदार से कहा.

‘‘बाहर जाना तो मौत को बुलाना है, ऐसा करने की तो सोच भी नहीं सकते,’’ एक महिला ने कहा जो मेरी मां की उम्र की होंगी. बीचबीच में अपने घरवालों के बारे में याद कर के रो लेतीं, फिर थोड़ी देर में चुप हो जातीं. सब अपने में इतना खोए हुए थे कि किसी ने किसी को चुप कराने का जतन नहीं किया.

‘‘पर अब तो सड़कों पर फौज आ गई है, अब तक तो सब ठीक हो गया होगा,’’ मैं ने कहा.

‘‘जल्दबाजी ठीक नहीं है, कहीं रास्ते में दंगाई मिल गए तो जान जा सकती है,’’ दुकान वाले भैया ने आगे कहा, ‘‘जैसे ही लाइनें चालू होंगी, मैं तुम्हारे घर फोन कर दूंगा. तब तक तुम यहां रहो. तुम यहां पूरी तरह महफूज हो.’’

‘‘मुझे घरवालों से मिलना है, पता नहीं किस हाल में होंगे, घर पहुंचे भी होंगे या नहीं,’’ मैं फफकफफक कर रोने लगी.

शाम को 6 बजे मैं ने तय कर लिया कि कुछ भी हो, मुझे अब घर पहुंचना ही होगा. मैं ने सब को समझाया कि मुझे जाने दें, मैं अब और हालात सुधरने का इंतजार नहीं कर सकती. सब से विदा ले कर और दुकान वाले भैया को धन्यवाद कर के मैं वहां से निकल कर सड़क पर आ गई. दुकान के बाहर आते ही सड़क पर पसरे सन्नाटे को देख कर एक बार तो मेरी सांसें रुक गईं और मैं जहां की तहां खड़ी रह गई. समझ नहीं आया कि कदम आगे बढ़ाऊं या नहीं. फिर घरवालों को याद कर के आंखें नम हो गईं.

सड़क पर हर तरफ ईंट, पत्थर और कांच के टुकड़े बिखरे हुए थे. मैं दुकानों के सहारे चलते हुए चुपके से गली के कोने तक आई. मैं ने चारों तरफ ध्यान से देखा, हर गली में एक ही मंजर था. अंधेरा भी थोड़ाथोड़ा घिरने लगा था.

मैं ने कदम आगे बढ़ाए और दूसरी गली में पहुंच गई. मैं ने  झांक कर देखा, वह गली भी खाली थी. मैं उस गली में आगे बढ़ गई और गली के दूसरे कोने पर पहुंच कर आगे का जायजा ले ही रही थी कि मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मेरे पीछे कोई है. मैं ने शायद किसी के पैरों की आवाज सुनी है. मैं इतना डर गई कि पीछे मुड़ कर देखने की भी मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी. बुत सी बन वहीं खड़ी रह गई. वह आवाज मेरे और पास आई. अब मुझे यकीन हो चला था कि मेरे पीछे कोई तो है. में ने डरते हुए पीछे देखा. वहां वाकई कोई था.

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‘‘डरना मत, चिल्लाना मत, मैं कुछ नहीं करूंगा.’’

वह मेरी ही हमउम्र लड़का था. लंबा, अच्छी कदकाठी का, काली आंखों वाला. चिल्लाने की मुझ में हिम्मत थी भी नहीं. डर से मेरे हाथपैर ठंडे हो चुके थे.

‘‘मैं दंगाई नहीं हूं. मैं बाजार में फंसा था. घर जाना चाहता हूं. क्या तुम भी घर जा रही हो?’’

मुझ से कुछ भी बोलते नहीं बना, तो उस ने फिर पूछा.

‘‘कुछ तो बोलो. डरो मत. मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा.’’

मैं जवाब में सिर्फ ‘हां’ कह पाई.

‘‘तुम्हारा घर कहां है. मेरे साथ चलो. इस तरह अकेले पकड़ी जाओगी,’’ कह कर उस ने अपना हाथ बढ़ा कर मेरा हाथ पकड़ना चाहा. मैं ने अपना हाथ पीछे खींच लिया.

‘‘अच्छा ठीक है. बस, मेरे साथ रहो,’’ वह बोला.

पहली बार मैं ने हिम्मत कर के, बस, इतना कहा, ‘‘मैं खुद से चली जाऊंगी.’’ और अगली गली में जाने के इरादे से नजर डाली.

‘‘तुम जहां जाने की सोच रही हो वहां से मैं बड़ी मुश्किल से बच कर आया हूं, वहां लोग खड़े हैं, पकड़ी गई तो मारी जाओगी. बेहतर यही है कि मेरे साथ चलो. मैं तुम्हें घर पहुंचा दूंगा, भरोसा रखो.’’

मैं ने एक नजर उस की आंखों में डाली, क्या वह सच बोल रहा है? क्या उस पर भरोसा किया जा सकता है? मुझे इस तरह अपनी तरफ देखते हुए उस ने कहा, ‘‘मैं मनसुख चाचा की दुकान के बाद 2 दुकानें छोड़ कर जो घर है, उस में रहता हूं. तुम कहां रहती हो?’’

मनसुख चाचा की दुकान सब से मशहूर हलवाई की दुकान है. मैं समझ नहीं पाई कि जवाब दूं या नहीं, जवाब न पा कर उस ने दोबारा पूछा, ‘‘तुम कहां रहती हो?’’ तो मैं ने बता दिया, ‘‘तुम दरी वालों का घर जानते हो, वह घर हमारा है. मनसुख चाचा की दुकान के 2 गली पीछे. हमारे घर में दरी बनाने का काम किया जाता है, इसलिए सब दरीवालों का घर कहते हैं.’’

‘‘हां, जानता हूं, मैं तुम्हें पहुंचा दूंगा. बस मेरे साथ रहो.’’

डर से मेरे सोचने समझने की शक्ति खत्म हो गई थी. सहीगलत समझ नहीं आ रहा था. बस, इतना समझ आया कि वह मुझे मेरे घर पहुंचाने की बात कह रहा था.

वह सड़क के दूसरी तरफ जाने लगा और मैं उस के पीछे चल दी. चलतेचलते उस ने बताया कि उस का नाम अखिल है. उस ने कहा, ‘‘कल से मेन बाजार में फंसा हुआ था. वहां हालात इस से बदतर हैं. आज हिम्मत कर के घर के लिए निकला हूं.’’ फिर बोला, ‘‘देखो, मेरा घर तुम्हारे घर से पहले आएगा, इसलिए मैं अपने घरवालों को सूचित कर के कि मैं सहीसलामत हूं, फिर तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊंगा. तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘सांची.’’ मैं हां या न कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थी. बस, इतना ही कह पाई और चुपचाप पीछे चलती रही.

कुछ दूर छिपतेछिपाते गलियों से निकलते हुए हम एक घर के सामने रुके. उस ने दरवाजे पर दस्तक दी. अंदर से कोई जवाब नहीं आया. उस ने फिर से दस्तक दी. और अपना नाम बताया. जैसे ही दरवाजा खुला, हम तूफान के जैसे अंदर दाखिल हुए और दरवाजा बंद हो गया. अंदर अखिल का परिवार था. सब उसे सहीसलामत देख कर बहुत खुश थे. फिर सब ने मेरी तरफ देखा. अखिल ने सारी कहानी कह सुनाई.

‘‘तुम आज रात यहीं रुक जाओ. अंधेरा भी हो गया है. कल सुबह हम तुम्हें छोड़ आएंगे,’’ अखिल की मां ने कहा.

‘‘जी शुक्रिया, मेरा घर अब पास ही है, मैं चली जाऊंगी,’’ मैं ने कहा और चलने के लिए दरवाजे की तरफ मुड़ी.

मैं चाहती थी कि अखिल मेरे साथ जाए पर जब उस की मां ने रात रुकने के लिए कहा तो मैं कुछ कह नहीं पाई.‘‘नहीं, अकेले मत जाओ. अखिल तुम्हें छोड़ आएगा,’’ अखिल के पिता ने कहा.

हम ने घरवालों से विदा ली और फिर से सड़क पर आ गए.

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हम कुछ दूर चले ही थे कि अखिल ने मेरा हाथ पकड़ लिया. मैं ने गुस्से से उस की तरफ देखा, तो उस ने समझते हुए कहा, ‘‘तुम पीछे रह जाती हो, इसलिए. और अब हमें सड़क पार करनी है, पीछे रह गई, तो हम अलग हो जाएंगे.’’

मैं ने चुप रहना ही बेहतर समझा. हम ने कुछ कदम आगे बढ़ाए ही थे कि हमें हमारी तरफ आती हुई कुछ आवाजें सुनाई दीं. हम ने अपने कदम वापस लिए और भाग कर एक टूटी हुई कार के पीछे शरण ली. अखिल ने मेरा हाथ अपने दोनों हाथों से पकड़ा हुआ था और मैं अपना चेहरा उस के सीने में छिपाए बैठी थी. वे 3-4 लोग थे जो भाग रहे थे. उन के पीछे 3-4 पुलिस वाले भाग रहे थे.

अखिल के मैं इतना करीब बैठी थी कि मुझे उस की धड़कनें साफ सुनाई दे रही थीं. उस का दिल जोरों से धड़क रहा था और सांसें बहुत तेज चल रही थीं. यह अखिल की जिम्मेदारी नहीं थी कि वह मुझे  घर पहुंचाए, पर फिर भी न जाने क्यों उस ने अपनी जान का जोखिम लिया. मैं पहली बार अपनेआप को महफूज महसूस कर रही थी.

वे आवाजें दूर चली गईं. फिर सुनाई देना बंद हो गईं. हम ने एकदूसरे की तरफ देखा और हमारी नजरें उलझ कर रह गईं.

अपनेआप को संयत कर के उस ने कहा, ‘‘चलो, हमें निकलना होगा.’’ पर अब मुझे पहुंचने की जल्दी नहीं थी.

वे आवाजें फिर नहीं आईं और हम छिपतेछिपाते, रुकतेरुकाते हुए घर पहुंचे. घर के दरवाजे पर मैं ने धीरे से मां को आवाज लगाई. कुछ ही पलों में दरवाजा खुल गया. हम अंदर चले गए. सब सहीसलामत घर पर ही थे. उन्हें सिर्फ मेरी फिक्र थी. मैं ने उन्हें बताया कि किस तरह अखिल ने अपनी परवा न करते हुए मुझे घर तक पहुंचाया.

सब अखिल के बहुत शुक्रगुजार थे. अखिल हम से उसी वक्त विदा ले कर अपने घर के लिए निकल गया. हम उसे रोक नहीं पाए. खाना खा कर मैं सोने चली गई. घर में सब बहुत खुश थे. पर मुझे फिक्र थी अखिल की, क्या वह ठीक से घर पहुंचा होगा? क्या वे दंगाई फिर आए होंगे? मेरे सामने अखिल का चेहरा घूम रहा था. मेरा मन उसी की फिक्र कर रहा था. मन बारबार सोच रहा था कहीं उसे कुछ हो न गया हो. लगता था उस से कोई अनकहा रिश्ता जुड़ गया था.

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प्यार का विसर्जन : भाग 1- क्यों दीपक से रिश्ता तोड़ना चाहती थी स्वाति

अलसाई आंखों से मोबाइल चैक किया तो देखा 17 मिस्ड कौल्स हैं. सुबह की लाली आंगन में छाई हुई थी. सूरज नारंगी बला पहने खिड़की के अधखुले परदे के बीच से झंक रहा था. मैं ने जल्दी से खिड़कियों के परदे हटा दिए. मेरे पूरे कमरे में नारंगी छटा बिखर गई थी. सामने शीशे पर सूरज की किरण पड़ने से मेरी आंखें चौंधिया सी गई थीं. मिचमिचाई आंखों से मोबाइल दोबारा चैक किया. फिर व्हाट्सऐप मैसेज देखे पर अनरीड ही छोड़ कर बाथरूम में चली गई. फिर फै्रश हो कर किचन में जा कर गरमागरम अदरक वाली चाय बनाई और मोबाइल ले कर चाय पीने बैठ गई.

ओह, ये 17 मिस्ड कौल्स. किस की हैं? कौंटैक्ट लिस्ट में मेरे पास इस का नाम भी नहीं. सोचा कि कोई जानने वाला होगा वरना थोड़े ही इतनी बार फोन करता. मैं ने उस नंबर पर कौलबैक किया और उत्सुकतावश सोचने लगी कि शायद मेरी किसी फ्रैंड का होगा.

तभी वहां से बड़ी तेज डांटने की आवाज आई, ‘‘क्या लगा रखा है साक्षी, सारी रात मैं ने तुम को कितना फोन किया, तुम ने फोन क्यों नहीं उठाया? हम सब कितना परेशान थे. मम्मीपापा तुम्हारी चिंता में रातभर सोए भी नहीं. तुम इतनी बेपरवाह कैसे हो सकती हो?’’

‘‘हैलो, हैलो, आप कौन, मैं साक्षी नहीं, स्वाति हूं. शायद रौंग नंबर है,’’ कह कर मैं ने फोन काट दिया और कालेज जाने के लिए तैयार होने चली गई.ॉ

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आज कालेज जल्दी जाना था. कुछ प्रोजैक्ट भी सब्मिट करने थे, सो, मैं ने फोन का ज्यादा सिरदर्द लेना ठीक नहीं समझ. बहरहाल, उस दिन से अजीब सी बातें होने लगीं. उस नंबर की मिस्ड कौल अकसर मेरे मोबाइल पर आ जाती. शायद लास्ट डिजिट में एकदो नंबर चेंज होने से यह फोन मुझे लग जाता था. कभीकभी गुस्सा भी आता, मगर दूसरी तरफ जो भी था, बड़ी शिष्टता से बात करता, तो मैं नौर्मल हो जाती. अब हम लोगों के बीच हाय और हैलो भी शुरू हो गई. कभीकभी हम लोग उत्सुकतावश एकदूसरे के बारे में जानकारी भी बटोरने लगते.

एक दिन मैं क्लास से बाहर आ रही थी. तभी वही मिस्ड कौल वाले का फोन आया. साथ में मेरी फ्रैंड थी, तो मैं ने फोन उठाना उचित न समझ. जल्दी से गार्डन में जा कर बैठ कर फोन देखने लगी कि कहीं फिर दोबारा कौल न आ जाए. मगर अनायास उंगलियां कीबोर्ड पर नंबर डायल करने लगीं. जैसे ही रिंग गई, दिल को अजीब सा सुकून मिला. पता नहीं क्यों हम दोनों के बीच एक रिश्ता सा कायम होता जा रहा था. शायद वह भी इसलिए बारबार यह गलती दोहरा रहा था. तभी गार्डन में सामने बैठे एक लड़के का भी मोबाइल बजने लगा.

जैसे मैं ने हैलो कहा तो उस ने भी हैलो कहा. मैं ने उस से कहा, ‘‘क्या कर रहे हो?’’ तो उस ने जवाब दिया, ‘‘गार्डन में खड़ा हूं और तुम से बात कर रहा हूं और मेरे सामने एक लड़की भी किसी से बात कर रही है.’’ दोनों एकसाथ खुशी से चीख पड़े, ‘‘स्वाति, तुम?’’ ‘‘दीपक, तुम?’’

‘‘अरे, हम दोनों एक ही कालेज में पढ़ते हैं. क्या बात है, हमारा मिलना एकदम फिल्मी स्टाइल में हुआ. मैं ने तुम को बहुत बार देखा है.’’

‘‘पर मैं ने तो तुम्हें फर्स्ट टाइम देखा है. क्या रोज कालेज नहीं आती हो?’’

‘‘अरे, ऐसा नहीं. मैं तो रोज कालेज आती हूं. मैं बीए फर्स्ट ईयर की स्टूडैंट हूं.’’

‘‘और मैं यहां फाइन आर्ट्स में एमए फाइनल ईयर का स्टूडैंट हूं.’’

‘‘ओह, तब तो मुझे आप को सर कहना होगा,’’ और दोनों हंसने लगे.

‘‘अरे यार, सर नहीं, दीपक ही बोलो.’’

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‘‘तो आप को पेंटिंग का शौक है.’’

‘‘हां, एक दिन तुम मेरे घर आना, मैं तुम्हें अपनी सारी पेंटिंग्स दिखाऊंगा. कई बार मेरी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी भी लग चुकी है.’’

‘‘कोई पेंटिंग बिकी या लोग देख कर ही भाग गए.’’

‘‘अभी बताता हूं.’’ और दीपक मेरी तरफ बढ़ा तो मैं उधर से भाग गई.

कुछ ही दिनों में हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए. कभीकभी दीपक मुझे पेंटिंग दिखाने घर भी ले जाया करता. मेरे मांबाप तो गांव में थे और मेरा दीपक से यों दोस्ती करना अच्छा भी न लगता. कभी हम दोनों साथ फिल्म देखने जाते तो कभी गार्डन में पेड़ों के झरमुट के बीच बैठ कर घंटों बतियाते रहते और जब अंधेरा घिरने लगता तो अपनेअपने घोंसलों में लौट जाते.

एक जमाना था कि प्रेम की अभिव्यक्ति बहुत मुश्किल हुआ करती थी. ज्यादातर बातें इशारों या मौन संवादों से ही समझ जाती थीं. तब प्रेम में लज्जा और शालीनता एक मूल्य माना जाता था. बदलते वक्त के साथ प्रेम की परिभाषा मुखर हुई. और अब तो रिश्तों में भी कई रंग निखरने लगे हैं. अब तो प्रेम व्यक्त करना सरल, सहज और सुगम भी हो गया है. यहां तक कि फरवरी का महीना प्रेम के नाम हो गया है.

अगले भाग में पढ़ें – घर में सभी समझते कि उस के पास काम का बोझ ज्यादा है…

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सैकंड चांस: क्या मिल पाया शिवानी को दूसरा मौका

रोज की तरह ठीक 6 बजे अलार्म की तेज आवाज गूंज उठी. उनींदी सी शिवानी ने साइड टेबल पर रखे अलार्म क्लॉक को बंद किया और फिर से करवट बदल कर सो गई. बगल के कमरे में अवनीश भी गहरी नींद में सोया हुआ था. अलार्म की आवाज सुन कर वह कभी नहीं उठता. शिवानी ही उसे उठाती है. पर आजकल शिवानी को उठने या उठाने की कोई हड़बड़ी नहीं होती. पिछले सप्ताह ही देश में प्रधानमंत्री ने तेजी से फैलते कोरोना वायरस के मद्देनजर पूरे देश में 21 दिन के लौकडाउन की घोषणा जो कर दी थी. अब वह वर्क फ्रॉम होम कर रही थी.

शिवानी के लिए वर्क फ्रॉम होम का मतलब था आनेजाने में बर्बाद होने वाले समय को नींद पूरी करने में लगाना.

शिवानी करीब 8 बजे उठी और फ्रेश हो कर नाश्ता बनाने लगी. अवनीश अब तक टांग पसार कर सो रहा था. शिवानी दोतीन बार अवनीश के कमरे का चक्कर लगा आई थी. आज उसे सोता हुआ अवनीश बहुत ही प्यारा और सीधासाधा सा लग रहा था. अपनी सोच पर उसे खुद ही हंसी आ गई. सीधासाधा और अवनीश, हो ही नहीं सकता.

पुरानी बातें याद आते ही उस का मन कसैला हो उठा. पिछले दोतीन महीने से दोनों के बीच कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा था. शिवानी तो दिल से तलाक का फैसला भी ले चुकी थी. इसी वजह से उस ने अलग कमरे में सोना शुरू कर दिया था. मगर तलाक की बात उस ने अब तक अवनीश से कही नहीं थी. वह कहीं न कहीं खुद को पूरी तरह से श्योर कर लेना चाहती थी कि वाकई अवनीश बेवफा है.

नाश्ता बनाते समय शिवानी की सहेली प्रिया का फोन आ गया,

“हाय कैसी है शिवानी डार्लिंग?” प्रिया की चहकती हुई सी आवाज सुन कर शिवानी के चेहरे पर मुस्कान खिल गई.

“अच्छी हूं. तू बता.”

“बस अच्छी हूं ? इतना शानदार मौका है. पूरे दिन तुमदोनों को घर में साथ रहने का मौका मिल रहा है और यार तुम दोनों के मिलन की पहली सालगिरह भी तो है. पर तेरी आवाज में तो कोई तड़प, कोई जोश नहीं ?”

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“ओह सॉरी मैं तो भूल ही गई थी.” शिवानी सकपकाती हुई सी बोली.

“सॉरी ? अरे यार इस में सॉरी की क्या बात है? याद कर मेरे प्रमोशन की वह पार्टी. जब तुम दोनों ने पहली दफा एकदूसरे को देखा था और फिर देखते ही रह गए थे. कई महीने डेटिंग करने और एकदूसरे को अच्छी तरह समझने के बाद तुम दोनों ने शादी का फैसला लिया था. तुम्हारे इस फैसले पर सब से ज्यादा खुश मैं ही थी.”

“मगर यार आज मुझ को अपने इस फैसले पर ही अफसोस होने लगा है.” शिवानी की आवाज में दर्द उभर आया था.

“क्या ? यह क्या कह रही है शिवानी? कोई वजह ?” प्रिया भी गंभीर हो उठी थी.

“वजह बहुत बड़ी नहीं. दरअसल मुझे पता लगा कि अवनीश की जिंदगी में एक और लड़की है जिसे वह बहुत प्यार करता है. यह बात मुझे अवनीश के ही ऑफिस कूलीग और दोस्त पीयूष ने बताई. पीयूष एकदो बार अवनीश के साथ घर भी आ चुका है और अवनीश पियूष से अपनी हर बात शेयर भी करता है. ऐसे में मेरे लिए इस बात पर विश्वास न करने की कोई वजह नहीं थी.”

“अरे यार यह सब क्या कह रही है तू? अवनीश ऐसा नहीं हो सकता.”

“शायद ऐसा नहीं या फिर ऐसा हो. इसलिए कोई बड़ा फैसला लेने से बच रही हूं. बस दूरी बढ़ा ली है. अपने ही घर में हमदोनों अलगअलग कमरों में रहते हैं. अब तक अलगअलग समय पर ऑफिस जाते थे ताकि एकदूसरे के साथ कम से कम वक्त गुजारना पड़े. उस ने रात की शिफ्ट ज्वाइन की और मैं दिन में जाती थी. जरूरी बातचीत के अलावा हमारे बीच कोई कनेक्शन नहीं है. बस यही कहानी है फिलहाल मेरी जिंदगी की. पर अब इस लॉकडाउन में न चाहते हुए भी हमें पूरे दिन एकदूसरे को सहना पड़ेगा. एक ही छत के नीचे रहना होगा.”

“ऐसा क्यों कह रही है? हो सकता है लॉकडाउन के ये दिन तेरी जिंदगी को फिर से खूबसूरत बना जाएं. चल इसी विश के साथ अब फोन रख रही हूं. लगता है मेरे पति महोदय उठ गए हैं.”

“ओके बाय डियर.” प्रिया का फोन रख कर शिवानी मुड़ी तो देखा सामने अवनीश मास्क लगाए खड़ा है.

“जरा नीचे ग्राउंड में वाक कर के आता हूं. थोड़ी देर मनीष से बातें भी करनी हैं. कुछ ऑफिशियल काम है.”

“ओके” सपाट आवाज में जवाब दे कर शिवानी फिर से किचन के काम में लग गई.

नाश्ता बनाते हुए उसे याद आ रहा था वह दिन जब सब जानने के बाद भी उस ने दिल की तसल्ली के लिए अवनीश से पूछा था,” रागिनी नाम है न उस का, तुम्हारी फ्रेंड का, क्लोज फ्रेंड का जो हर समय तुम्हारे साथ रहती है?”

शिवानी के कहने के अंदाज से अवनीश समझ गया था कि उस मतलब क्या है. अपनी नजरें फेरता हुआ बोला था उस ने,” हां मेरी फ्रेंड है. क्लोज फ्रेंड. वैसे किस ने बताया तुम्हें?”

अवनीश की बेशर्मी से आहत शिवानी फूट पड़ी थी,”किसी ने भी बताया, मुझे उस से कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं बस यह जानना चाहती हूं कि ऐसा है या नहीं?”

“ऐसा है मगर इस में क्या बात हो गई? तुम्हारे मेल फ्रेंड्स नहीं हैं क्या?”

“मेल फ्रेंड्स हैं पर कोई क्लोज नहीं.”

“अरे यार वह मेरी स्कूल फ्रेंड है. हम स्कूल से एकदूसरे के क्लोज हैं. चारपांच महीने हुए, उस ने ज्वाइन किया तो हमें एकदूसरे की कंपनी मिल गई.” अवनीश ने सफाई दी.

“कंपनी…. बहुत अच्छे. तुम उस के इतने ही क्लोज थे तो उसी से शादी कर लेते न. मेरी जिंदगी क्यों खराब की?” कहते हुए शिवानी ने गुस्से में अपने हाथ में पकड़ा हुआ गिलास जमीन पर दे मारा.

शिवानी के तेवर देख कर अवनीश चिढ़ता हुआ बोला,” खबरदार मेरे ऊपर ऐसे गंदे इल्जाम लगाने की सोचना भी मत. आज के बाद तुम ने रागिनी और मुझे ले कर कोई कहानी गढ़ी तो अच्छा नहीं होगा.”

कह कर वह पैर पटकता हुआ बाहर चला गया और शिवानी देर तक सिसकसिसक कर रोती रही. वह दिन था और आज का दिन, दोनों के बीच एक अदृश्य दीवार खड़ी हो गई जिसे तोड़ने का प्रयास न तो अवनीश ने किया और न शिवानी ने.

दोनों छोटीछोटी बातों पर झगड़ने लगे. शिवानी को भी हर बात पर गुस्सा आ जाता. अवनीश भी चिल्लाचिल्ला कर जवाब देता. कितनी ही दफा दोनों के बीच भारी लड़ाई हो चुकी है. एकदूसरे के लिए दिल में कोई भाव नहीं रह गए हैं. बस अपने इस रिश्ते को किसी तरह ढोए जा रहे हैं .आपस में जरूरत की बातें करते हैं और अपनेअपने कमरे में अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त रहते हैं.

कई बार शिवानी ने अवनीश के फोन पर रागनी की कॉल आती देखी. काफी देर तक अवनीश को उस से हंसहंस कर बातें करते भी देखा.

नाश्ता बना कर शिवानी घर की सफाई करने लगी. अवनीश अब तक लौटा नहीं था. काफी समय से उस ने अवनीश के कमरे का रुख भी नहीं किया था. कामवाली ही सफाई कर के चली जाती थी. वैसे भी ऑफिस से थक कर आने के बाद उसे अपने कमरे और किचन के अलावा कहीं जाने की सुध नहीं रहती थी.

पर आज कुछ सोचकर शिवानी अवनीश के कमरे में घुस गई.

उम्मीद के अनुरूप अवनीश का कमरा बुरी तरह बिखरा हुआ मिला. कमरा साफ करते हुए शिवानी को वह दिन याद आ गया जब पहली दफा वह अवनीश के घर गई थी. अवनीश उस की खातिर किचन में कुछ बनाने घुसा और शिवानी ने पूरा कमरा साफ कर दिया. अवनीश को शिवानी की यह हरकत बहुत पसंद आई थी.

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आज अवनीश का कमरा साफ करते हुए शिवानी को निचले दराज में अपनी छोटी सी फोन डायरी पड़ी मिल गई जिसे वह रख कर भूल गई थी. वैसे भी मोबाइल के इस समय में सारे कांटेक्ट फोन में ही सेव रहते हैं.‌

वह यूं ही डायरी पलटने लगी कि उसे अपनी कॉलेज फ्रेंड निशा का नंबर दिखा. वह खुशी से चहक उठी. निशा से बात करना उसे शुरू से बहुत पसंद था. पर इन सालों में जिंदगी इतनी व्यस्त हो गई थी कि निशा उस के दिमाग से निकल ही गई थी.

अब लौकडाउन के इन दिनों में समय की कमी नहीं तो क्यों न पुरानी सहेली से बातें हो जाए, सोचते हुए शिवानी अपने कमरे में आ गई और बिस्तर पर पसर कर निशा को फोन लगाने लगी.

“हाय शिवानी कैसी है डियर ? इतने साल बाद तेरी आवाज सुन कर मुझे कितनी खुशी हो रही है बता नहीं सकती.”

आई नो. हम दोनों की दोस्ती है ही इतनी प्यारी. यार तुझ से बात कर के दिल को बहुत सुकून मिलता है. तुझ से ज्यादा कोई नहीं समझता मुझे.”

कोई की बात न कर. तेरा मियां तो तुझे समझता ही होगा.” कहते हुए ठठा कर हंस पड़ी वह.

शिवानी की आवाज में थोड़ी सुस्ती आ गई,” अरे कहां यार, सहेली से बढ़ कर कोई नहीं होता. तू बता, तू कहां है आजकल ? कहां जॉब कर रही है?”

“मैं तो आजकल दिल्ली में हूं, एलजी मैं काम कर रही हूं.”

“क्या बात है यार, मैं भी दिल्ली में ही हूं और मेरे हसबैंड एलजी में ही तो काम करते हैं ”

“अच्छा क्या नाम है उन का ? किस पोजीशन पर हैं? मैं तो डेढ़ साल से यहां हूं.”

“मेरे हसबैंड 4 साल से एलजी में हैं. अवनीश नाम है उन का. अवनीश शेखर.”

ओ हो तो तू उस हैंडसम, डीसेंट और स्मार्टी अवनीश की बीवी है. यार मुझे तो जलन होने लगी तुझ से.”

“चुप कर. जलन की बात छोड़ और यह बता कि ऑफिस में वे किस वजह से मशहूर हैं? यार सच्चाई बताना. उन की कोई गर्लफ्रेंड भी है जिस के साथ वे घूमतेफिरते हैं?”

“यार गर्लफ्रेंड तो नहीं पर हां दोस्त जरूर है . रागिनी नाम है उस का. बहुत प्यारी दोस्ती है दोनों की. स्कूल के दोस्त हैं दोनों और हाल ही में रागिनी ने ऑफिस ज्वाइन किया तो उसे अवनीश की कंपनी मिल गई. करीब 10 साल बाद एकदूसरे से मिले थे वे. ज्यादा समय नहीं हुआ इस बात को.”

“पर क्या उन के बीच चक्कर नहीं चल रहा? शिवानी ने अपनी शंका जाहिर की तो निशा उबल पड़ी,

“क्या यार, शक्की बीवी वाली बातें मत कर. वह इतना डीसेंट बंदा है. उस के लिए कोई ऐसी बात सोच भी नहीं सकता. तूने कैसे सोच लिया?”

“मगर अवनीश का दोस्त पीयूष तो कुछ और ही कह रहा था. उसी ने बताया मुझे कि दोनों रिलेशनशिप में हैं. पीयूष गहरा दोस्त है अवनीश का तो मुझे लगा कि वह सच कह रहा होगा…”

“दोस्त ? यार 6 महीने हो चुके दोनों की दोस्ती टूटे. जितने गहरे दोस्त थे अब उतने ही गहरे दुश्मन है.”

सहेली की बातें सुन कर शिवानी को बहुत तसल्ली हुई. निशा ने आगे कहा,

“ऑफिस में पीयूष को छोड़ कर हर बंदा अवनीश की शराफत के गीत गाता है. कभी अवनीश ने रागिनी को उस तरह से टच भी नहीं किया. तू भी यार किस की बातों में आ गई.”

थोड़ा सोच कर निशा ने फिर कहा,

“तू रुक, मैं अभी कॉन्फ्रेंस कॉल कर के पियूष को भी इस में ऐड करती हूं. तुझे सब पता चल जाएगा. बात मैं करूंगी .. तू केवल सुनना.” निशा ने कहा तो शिवानी ने स्वीकृति दे दी,

निशा ने पीयूष का नंबर मिलाया, ” हाय पीयूष कैसे हो?”

“अच्छा हूं निशा तुम बताओ. आज हमें कैसे याद कर लिया?”

“हम तो सब को याद करते हैं. आप ही जरा उखड़ेउखड़े से रहते हैं.”

“क्या बात है आज बड़ी शायरी के मूड में हो.”

इसीतरह इधरउधर की कुछ बातें और ऑफिस से जुड़ी गॉसिप करते हुए निशा मेन मुद्दे पर आई,” यार पीयूष तुझे क्या लगता है, रागिनी कैसी लड़की है? उस पर विश्वास किया जा सकता है?”

“एक्चुअली रागिनी काफी फनी है. माहौल में रंग जमा देती है. ” उस ने जवाब दिया.

“…और यार यह रागिनी और अवनीश के बीच कुछ चल रहा है क्या ? हमेशा साथ ही दिखते हैं.”

“नहीं यार रागिनी और अवनीश के बीच कुछ हो ही नहीं सकता. बस दोस्त हैं दोनों. मैं जानता हूं अवनीश अपनी वाइफ से बहुत प्यार करता है.”

“मगर मैं ने सुना है कि तुम ने उस की वाइफ से कहा है कि इन दोनों के बीच कोई चक्कर चल रहा है.”

“अरे यार वह तो बस मस्ती में कहा था मैं ने ताकि उस के मन में अवनीश को ले कर शक पैदा हो जाए. अवनीश ज्यादा बनने लगा था न पर तुझे किस ने कहा?

अचानक पियूष चौंका तो निशा हंस पड़ी और बोली, अवनीश की बीवी  ने ही कहा. चल मैं तुझ से बाद में बात करती हूं. बट थैंक्स यार सच बताने के लिए.”

कह कर निशा ने कॉल काट दी और वापस शिवानी की तरफ मुखातिब हुई,” अब बता कैसा लग रहा है सच जान कर?”

शिवानी की आंखें भर आई थीं. रुंधे हुए कंठ से इतना ही कह पाई,” थैंक्स यार तूने आज मेरा बहुत बड़ा काम किया है. मुझे सच से वाकिफ कराया है.”

“तेरी तसल्ली के लिए रागिनी की पिक भी भेजती हूं. तू खुद समझ जाएगी कि उसे ले कर तेरे मन में इनसिक्योरिटी आने की जरूरत ही नहीं. बहुत फनी और प्यारी सी है रागिनी. गोलूमोलू टाइप. इसीलिए तो अवनीश को उस से बातें करने में मजा आता है. वह उस तरह की नहीं है जैसी तू सोच रही थी.” कहते हुए निशा ने शिवानी को रागिनी और अवनीश की ऑफिस ग्रुप वाली कुछ तस्वीरें भेजी.

शिवानी रागिनी की फोटो देख कर दंग रह गई. सांवली, खूब फैटी और थोड़ी कम हाइट वाली रागिनी हर फोटो में खिलखिला कर हंसती दिखी.

शिवानी देर तक बैठी रही. एक गलतफहमी ने किस कदर उस की जिंदगी नीरस और बोझिल बना दी थी. पीयूष की बात सुनने के बाद वह कितना शक करने लगी थी अवनीश पर. हर छोटीछोटी बात पर झगड़ने लगी थी. उस की केयर करनी छोड़ दी थी. नाहक ही कितनी दूरी बढ़ा ली थी उस ने. मगर अवनीश ने कभी भी उस से कड़ी शब्दों में बात नहीं की. न ही कभी कोई शिकायत किया या सफाई दी. बस खामोश हो गया था वह.

शिवानी ने अपने आंसू पोंछ लिए और उठ गई. आज वह अपने अवनीश के लिए कुछ उस की पसंद का बनाना चाहती थी. नहा कर उस की पसंद की ड्रेस पहनना चाहती थी. शरमा कर उस की बांहों में समा जाना चाहती थी. सच था कि वह अपने बिखर रहे रिश्ते को सेकंड चांस देना चाहती थी. समेट लेना चाहती थी खुशियां फिर से अपने दामन में.

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खुशियों का उजास: भाग 1- बानी की जिंदगी में कौनसा आया नया मोड़

“मम्मा… मम्मा…,” नन्हे की घुटीघुटी चीखें सुन कर मां बानी दौड़ीदौड़ी ड्राइंगरूम में आई, जहां वह अपने 4 साल के बेटे को आया की निगरानी में छोड़ कर गई थी. उस ने वहां जो दृश्य देखा, सदमे से उस की खुद की चीख निकल गई.

उस के सगे बड़े भाई और पिता कमरे में थे. भाई ने एक तकिए से नन्हे के मुंह को दबाया हुआ था, साथ खड़े पिता क्रोध से जलती लाल अंगारा आंखों से दांत पीसते हुए उस से कह रहे थे, “ज़ोर से भींच, और जोर से कि इस संपोले का काम आज तमाम हो ही जाए.”

एक क्षण को तो बानी में समझ ही नहीं आया कि वह क्या करे, लेकिन अगले ही पल वह भाई के हाथों से तकिया छीनते हुए जोर से चीखी, “बचाओ… बचाओ…” कि तभी बिजली की गति से एक लंबा व तगड़ा शख्स ड्राइंगरूम के खुले दरवाजे से कमरे में घुसा. उस ने भाई के हाथों से तकिया जबरन छीन कर एक ओर पटक दिया और नन्हे को उस के चंगुल से मुक्त करा बानी को थमा कर उस से बोला, “आप इसे ले कर भीतर जाइए. कमरे का दरवाजा बंद कर लीजिएगा. मैं इन से निबटता हूं.”

इस दौरान पिता उस की ओर मुखातिब हो चीख रहे थे, “पंडितजी ने कहा है, तूने हमारे घर पर अपने पाप की काली छाया डाल रखी है. तेरी वजह से हमारा घर फलफूल नहीं रहा. मेरी नौकरी नहीं रही. इस बड़के की नौकरी भी बारबार चली जाती है. छुटकी का रिश्ता नहीं हो रहा. तेरी और तेरे इस मनहूस की वजह से ही घर पर विपदा आई हुई है, कुलक्षणी.”

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वह खौफ़ और दहशत से थरथर कांपती हुई रोतेगर्राते नन्हे को अपने धड़कते सीने से चिपकाए अंदर के कमरे में जातेजाते थोड़ा ठहर कर पिता पर रोती हुई गरजी, “किस के कहने पर आप एक नन्हे से बच्चे की जान लेने चले आए? यह भी नहीं सोचा कि यह आप का अपना खून है. मैं ने अपनेआप अपनी ज़िंदगी बनाई है. खुद के दम पर पढ़लिख कर आज मैं इस मुकाम पर पहुंची हूं कि मैं अपने बेटे को एक बढ़िया जिंदगी दे पा रही हूं. एक बेहतरीन ज़िंदगी जी रही हूं. और आप कहते हैं, मेरे पाप की काली छाया आप लोगों पर पड़ रही है.

“आप की परेशानियों का कारण मैं नहीं, आप खुद हैं. आप और भैया को अपने दोस्तों के साथ अड्डेबाजी और गांजे से फुरसत मिले, तब तो आप लोग किसी नौकरी में टिकेंगे. आप दोनों का काहिलपना आप की समस्या की वजह है, न कि इतनी दूर बैठी मैं.” यह कह कर उस ने कमरे में घुस कर दरवाजा बंद कर लिया, और नन्हे को बेहताशा चूमती हुई, अर्धविक्षिप्त सी आंसू बहाती, मुंह ही मुंह में बुदबुदाई, ‘मेरा बेटा… मेरा सोना… मेरा राजा… आज अगर वह लड़का समय पर नहीं आता तो क्या होता? तुझे कुछ हो जाता, तो मैं कहीं की न रहती.’

बाहर से उस युवक और भाई के बीच हाथापाई की आवाजें आ रही थीं. पिता गुस्से में उस युवक पर गरज रहे थे, “तू होता कौन है हमारे निजी मामलों में टांग अड़ाने वाला. यह मेरी बेटी है. मैं चाहे जो करूं.”

उधर शायद एक बार को उस का भाई उस युवक की गिरफ्त से छूट उस के बंद कमरे के दरवाजे को पीटने लगा, लेकिन शायद तभी उस युवक ने फिर से उसे काबू कर लिया. करीब दस मिनट तक पिता का चीखनाचिल्लाना जारी रहा.

बानी पत्ते की तरह थरथर कांपती, तेजी से धड़कते दिल के साथ नन्हे को कलेजे से चिपकाए बैठी थी, कि तभी उस ने सुना, वह युवक तेज आवाज में पापा को धमका रहा था, “आप दोनों यहां से फौरन नहीं गए, तो मुझे मजबूरन सौ नंबर डायल करना पड़ेगा. इसलिए बेहतर यही होगा कि आप दोनों यहां से फौरन चले जाएं. यह मत समझिए कि वे अकेली हैं. मैं यहां जस्ट बगल वाले फ्लैट में रहता हूं, इसलिए अगली बार यहां पैर रखने से पहले दस बार सोच लीजिएगा. अगर आप लोगों ने फिर से इन्हें या बच्चे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की, तो मैं आप के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाने में बिलकुल नहीं हिचकूंगा. आप इन के पिता हैं, उस का लिहाज कर मैं अभी कुछ नहीं कर रहा.”

कुछ ही देर में बाहर सन्नाटा छा गया. शायद पिता और भाई चले गए थे. तभी उस युवक ने उस का दरवाजा खटखटाया, “दरवाजा खोलिए, वे लोग चले गए हैं.”

डरीसहमी बैठी बानी ने अपनी गोद में सोए नन्हे को पलंग पर लिटा दिया और उठ कर दरवाजा खोला.

“आप ऐन समय पर नहीं आते तो आज अनर्थ हो जाता. मैं आप का किन शब्दों में शुक्रिया अदा करूं, मेरे पास शब्द नहीं हैं. थैंक यू, थैंक यू सो वैरी मच,” उस ने हाथ जोड़ते हुए उस युवक से कहा, “आप बगल वाले फ्लैट में रहते हैं, मैं ने आप को पहले तो कभी नहीं देखा.”

“जी, मैं पिछले हफ्ते ही मुंबई से ट्रांसफ़र हो कर यहां आया हूं. मैं उमंग हूं, एक डाक्टर हूं. आप का गुड नेम, प्लीज.”

“मैं बानी हूं.”

“आप क्या करती हैं बानीजी?”

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“जी, मैं अभिज्ञान यूनिवर्सिटी में मैथ्स की लैक्चरर हूं.”

“लैक्चरर, ओह, ओके.”

“चलिए बानीजी, मैं अपने बाहर के कमरे में खिड़की के पास ही बैठता हूं. रात को वहीं सोऊंगा भी. कभी भी आधी रात को भी कोई जरूरत हो तो आप बेहिचक एक मिस्डकौल दे दीजिएगा. मैं हाजिर हो जाऊंगा. वैसे तो अब वे लोग दोबारा आने की ज़ुर्रत नहीं करेंगे, फिर भी आप मेरा नंबर ले लीजिए.”

“जी, एक बार फिर से आप का बहुतबहुतबहुत शुक्रिया, डाक्टर उमंग.”

“अरे, हम पड़ोसी हैं. इन शुक्रिया और थैंक्स के चक्कर में मत पड़िए. चलिए, दरवाजा ठीक से बंद कर लीजिएगा.”

“जी, बहुत अच्छा.”

उस रात बानी को बहुत देर तक नींद नहीं आई. नन्हे को सीने से लगाए हुए कब बरबस उस के जेहन में बीते दिनों की मीठीकसैली यादों की गिरहें एकएक कर खुलने लगीं, उसे एहसास तक न हुआ.

‘वह एक निम्नमध्यवर्गीय परिवार में कट्टर, पुरातनपंथी मान्यताओं वाले अल्पशिक्षित मातापिता की बेटी थी. उस का एक बड़ा भाई और एक छोटी बहन थी. पिता निठल्ले स्वाभाव के थे. कहीं टिक कर नौकरी नहीं करते. काम के बजाय यारीदोस्ती और गांजे का नशा करने में उन का मन ज्यादा रमता. आएदिन नौकरी छोड़ देते. घर में हर वक्त तंगी ही रहती. सो, घरखर्च चलाने के लिए मां लोगों के घरों में खाना बनातीं.

मां और पिता दोनों सुबह जल्दी घर से निकलते और देररात घर में घुसते. उपयुक्त नियंत्रण और मार्गदर्शन के अभाव में उन की बड़ी संतान, उन का एकमात्र बेटा ज्यादा नहीं पढ़ पाया. उस ने 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी. वह साड़ियों के एक शोरूम में काम करने लगा.

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वह शुरू से ही कुशाग्रबुद्धि थी, हमेशा पढ़ाई में अच्छा परिणाम देती और सीढ़ीदरसीढ़ी आगे बढ़ती गई. अपनी कड़ी मेहनत के दम पर उस ने मैथ्स जैसे कठिन विषय में एमएससी कर नैट की प्रतियोगी परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली और पीएचडी पूरी कर स्थानीय यूनिवर्सिटी में लैक्चरर बन गई.

आगे पढ़ें- कालेज के स्टाफरूम में बानी की टेबल…

खुशियों का उजास: भाग 2- बानी की जिंदगी में कौनसा आया नया मोड़

नन्हे के पिता पार्थ से उस की मुलाकात उसी कालेज में हुई. वह उस से लगभग 3 साल सीनियर था. वह भी यूनिवर्सिटी के मैथ्स डिपार्टमैंट में ही लैक्चरर था.

कालेज के स्टाफरूम में बानी की टेबल पार्थ की टेबल के साथ ही लगी हुई थी. सो, दिनभर साथ उठते बैठते दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए, इतने कि घर जा कर भी दोनों एकआध बार एकदूसरे से बात किए बिना न रहते. उन के प्रेम का बिरवा उन की प्रगाढ़ दोस्ती की माटी में फूटा.

वह यह सब सोच ही रही थी कि तभी घर के बाहर गली के चौकीदार के डंडे की खटखटाहट उसे सुनाई दी. उस के सीने से चिपका नन्हे कुनमुनाया. गले में उमड़ती रुलाई के साथ बानी ने सोचा, ‘उफ़, पार्थ तुम कहां चले गए अपनी बानी को छोड़ कर.’ और वह फिर से एक बार पार्थ के साथ बिताए हंसीं दिनों की मीठी यादों के प्रवाह में डूबनेउतराने लगी.

उस दिन वह और पार्थ कालेज की लाइब्रेरी के लिए मैथ्स की कुछ किताबें खरीदने एक बुक एग्ज़िबिशन में आए थे. किताबें खरीदने के बाद पार्थ उसे एग्ज़िबिशन ग्राउंड के साथ लगे पार्क में ले गया, जहां पार्क के एक सूने कोने में रंगबिरंगे गुलाब के पौधों के बीच लगी बैंच पर बैठ उसे एक सुर्ख गुलाब का खूबसूरत फूल तोड़ कर उसे थमाते हुए अनायास उस ने उस से कहा, ‘बानी, हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए हैं. तुम्हारे बिना जीने की सोच ही मुझे घबराहट से भर देती है. घर पर भी तुम से बात करने की इच्छा होती रहती है. मन करता है, तुम हर लमहा मेरी आंखों के सामने रहो. अब मैं अपनी जिंदगी का हर पल तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं. जिंदगी की आखिरी सांस तक तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं. मुझे रोमांटिक फिल्मी बातें करना नहीं आता. सीधेसाधे शब्दों में तुम से पूछ रहा हूं, मुझ से शादी करोगी?’

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इतने दिनों की करीबी से बानी भी पार्थ को बेहद पसंद करने लगी थी. सो, उस ने एक सलज़्ज़ मुसकान के साथ उसे इस विवाह प्रस्ताव के जवाब में अपनी सहमति दे दी.

दोनों के प्यार की दास्तां रफ्तारफ्ता आगे बढ़ चली.

उसे आज तक अच्छी तरह से याद है, उस दिन उस ने अपनी मां और पिता को पार्थ से अपनी शादी करने की इच्छा के बारे में बताया, लेकिन उस की अपेक्षा के विपरीत मां और पापा उस के एक विजातीय लड़के से विवाह की इच्छा पर बुरी तरह भड़क गए. उस के मातापिता दोनों ही बेहद पुराने रूढ़िवादी खयालों के थे. उन्हें अपनी बेटी का हाथ किसी अयोग्य, अल्पशिक्षित सजातीय पात्र के हाथ में देना मंजूर था, लेकिन पार्थ जैसे सुशिक्षित, सुयोग्य मगर विजातीय पात्र के हाथ में देना गवारा न था. बानी को एहसास था कि उस की जाति में उस जैसी निम्नमध्यवर्गीय व अल्पशिक्षित परिवार की लड़की को पार्थ जैसा योग्य और उच्चशिक्षित मैच मिलना मुश्किल ही नहीं, असंभव था.

सो, उस ने बहुत सोचविचार कर घर वालों की मरजी के खिलाफ़ जा कर पार्थ को अपना जीवनसाथी बनाने का फैसला ले लिया. एक दिन घर वालों को बिना बताए उस ने कुछ करीबी दोस्तों के समक्ष एकदूसरे को अंगूठी पहना कर सगाई कर ली. फिर 5 माह बाद कोर्ट मैरिज करने के लिए औपचारिक कार्यवाही भी कर डाली.

लेकिन, यदि कुदरती और इंसानी मंशाओं की मंजिल एक होती, तो दुर्भाग्य जैसी आपदा का वज़ूद न होता.

उन दिनों कोविड की बीमारी का प्रकोप चल रहा था. पार्थ को कोविड का भयंकर संक्रमण हुआ. पार्थ ने लापरवाही में शुरुआत में ही कोविड का इलाज किसी योग्य डाक्टर से नहीं करवाया. उस की बीमारी बिगड़ती गई और जब तक उस के घर वाले चेते, उस की बीमारी भयावह रूप लेते हुए उस के सभी अंगों को प्रभावित कर चुकी थी.

लगभग 20 दिनों तक कोविड से जूझने के बाद वह अपनी अंतिमयात्रा पर निकल पड़ा.

भाग्य का खेल, उस की मौत के बाद बानी को पता चला कि पार्थ का अंश उस की कोख में पल रहा था. बानी की दुनिया उलटपुलट हो गई. उस के पांवतले जमीन न रही.

कोविड के प्रकोप के बाद पूरे देश में कंप्लीट लौकडाउन चल रहा था. एक तरफ घर से निकलने की बंदिश, दूसरी ओर प्राइवेट क्लीनिकों के डाक्टरों ने मैडिको-लीगल कारणों से उस के अनमैरिड होने की वजह से अबौर्शन करने के लिए मना कर दिया और उसे उस के लिए उस से सरकारी अस्पताल में जाने को कहा. परंतु सरकारी अस्पताल में कोविड-19 के संक्रमण के खतरे को देखते हुए वह वहां नहीं गई. इन सब की वजह से उस का गर्भ 3 माह का होने को आया. सो, उसे विवश हो अपने गर्भ को रखने का फैसला लेना पड़ा.

इधर प्रैग्नैंसी के लक्षण जाहिर होते ही उस के मातापिता ने उस के खिलाफ़ मोरचाबंदी कर ली. वे दिनरात उसे बिनब्याही मां बनने पर कटु ताने और व्यंग्यबाण सुनाते. परेशान हो कर बानी ने एक दिन चुपचाप मांबाप का घर छोड़ दिया और अपनी यूनिवर्सिटी के पास किराए पर घर ले कर रहने लगी. यूनिवर्सिटी की बढ़िया नौकरी थी, आर्थिक रूप से वह ख़ासी मजबूत थी, तो उसे अकेले रहने में कोई खास दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा.

समय अपनी चाल से चलता गया. नियत समय पर बानी ने एक बेटे को जन्म दिया.

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बानी की नौकरी बदस्तूर जारी थी. नन्हे 4 बरस का होने आया. लेकिन इतना समय गुजर जाने पर भी उस के बिनब्याही मां बनने पर पिता और भाई का गुस्सा कम न हुआ. उन के खानदानी पंडितजी ने आग में घी डालते हुए उसे उन के लिए अपशगुनी करार दिया था. उस की छोटी बहन उस के संपर्क में थी. उस के माध्यम से उसे अपने घर की खबरें मिलती रहती थीं. कि तभी उसे अपने विचारों से नजात दिलाते हुए झपकी आ गई और उस का क्लांत तनमन नींद की आगोश में समा गया.

अगली सुबह जब बानी उठी, तो नन्हे तेज बुखार से तप रहा था. वह उसे ले कर डाक्टर के यहां ले जाने के लिए घर से निकल ही रही थी कि डाक्टर उमंग अपने घर के बाहर चहलकदमी करते हुए मिल गए.

“हैलो, गुडमौर्निंग, बानी. सुबहसवेरे कहां चल दीं?”

“नन्हे को बुखार आ रहा है. रातभर बुखार में भुना है. इसे डाक्टर के यहां ले जा रही हूं.”

“अगर आप चाहें तो मैं उसे एग्जामिन कर सकता हूं. मैं ने शायद आप को बताया नहीं, मैं यहां विनायक चिल्ड्रंस हौस्पिटल में पीडियाट्रिशियन हूं.”

“ओह, फिर तो आप प्लीज़ इसे एग्ज़ामिन कर लीजिए डाक्टर. आइए डाक्टर, प्लीज़, भीतर आ जाइए.”

डाक्टर उमंग ने नन्हे को एग्जामिन करने के बाद बानी से कहा, “चिंता की कोई बात नहीं है. कल की घटना से वह बेहद शाक में है. उसे कुछ मैडिसिन्स और इंजैक्शन लगाने पड़ेंगे.”

नन्हे को दवाई दे कर और इंजैक्शन लगाने के बाद वे जाने के लिए उठे ही थे कि बानी बोल पड़ी, “डाक्टर, चाय पी कर जाइएगा.”

चाय पी कर शाम को नन्हे का चैकअप करने के लिए घर आने का वादा कर के डाक्टर उमंग अपने घर चले गए.

आगे पढ़ें- करीब एक महीने बाद उस दिन भी…

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खुशियों का उजास: भाग 3- बानी की जिंदगी में कौनसा आया नया मोड़

अगले एक माह तक डाक्टर उमंग नन्हे को एग्जामिन करने सुबहशाम उस के घर आते रहे. इस अवधि में डाक्टर उमंग और बानी के मध्य बहुत अच्छी फ्रैंडशिप हो गई.

करीब एक महीने बाद उस दिन भी डाक्टर उमंग बानी के यहां बैठे थे कि तभी बानी को अपनी यूनिवर्सिटी की परीक्षाओं के लिए मैथ्स के प्रश्नपत्र बनाते देख वे तनिक मुसकराते हुए बोले, “बानी, आप ने इतने मुश्किल सब्जैक्ट में कैरियर कैसे बनाया? मुझे तो मैथ्स शब्द से अभी तक डर लगता है.”

बानी यह सुन कर खिलखिला कर हंस दी, बोली, “ओह डाक्टर उमंग, मुझे यह सब्जैक्ट इतना चैलेंजिंग लगता है कि क्या बताऊं, किसी मुश्किल सवाल को हल करने की खुशी अनोखी होती है, डाक्टर. आप को याद है, आप ने कैसा महसूस किया था जब आप ने पहली बार साइकिल चलानी सीखी थी. आप बिलकुल वही फ़ील करते हैं. और किसी डिफिकल्ट क्वेश्चन को सौल्व करने की खुशी आप को अपनी क्षमता में जबरदस्त सैल्फ कौन्फिडैंस देती है.”

“ओह, यह बात है. अपनी बात बताऊं तो क्या आप विश्वास करेंगी कि मैथ्स के टीचर की क्लास में घुसते ही उन के डर से मेरे दिल की धड़कन तेज हो जाया करती थी. टैंथ क्लास तक हमारे मैथ्स टीचर मुझे मैथ्स का होमवर्क पूरा कर के नहीं लाने पर पूरी क्लास के सामने मुरगा बना दिया करते थे,” डाक्टर उमंग ने जोर से ठहाका लगाते हुए बताया.

“मुरगा और आप डाक्टर,” यह कहते हुए बानी भी खिलखिला कर हंस दी.

वक्त के साथ बानी और उमंग की दोस्ती गहराती गई.

डाक्टर उमंग को बानी के संपर्क में आए ढाईतीन साल बीत चले.

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इतने से समय में बानी ने उमंग के दिल में अपनी एक खास जगह बना ली थी. डाक्टर उमंग बानी से 2 साल छोटे थे. 33 वर्ष के होने को आए थे. उन के घरवाले उन से शादी के लिए कहकह कर हार गए थे. उन की मां उन्हें हर हफ्ते एक नई लड़की का फ़ोटो और बायोडाटा भेजती, लेकिन डाक्टर उमंग उन पर एक नजर तक न डालते. उन के अंतर्मन में तो बानी ने कब्ज़ा कर रखा था.

दिन बीतने के साथसाथ वे बानी की सहृदयता, शीशे जैसा साफ निश्छल दिल और मीठे स्वभाव के कायल हो उठे थे. जबजब दूसरे शहर में रहने वाली उन की मां फ़ोन पर उन से शादी की बात छेड़ती, बानी की सौम्य, गंभीर छवि उन के कल्पनाचक्षुओं के सामने आ जाती.

पिछली बार जब वे मां के पास गए थे और मां ने उन के विवाह की चर्चा छेड़ी, तो उन्होंने साफ़साफ़ लफ़्ज़ों में उन से कह दिया, “मां, मेरे लिए लड़की ढूंढना बंद करो. मेरी निगाह में एक लड़की है. मैं उसी से शादी करूंगा.”

मां के बहुत कुरेदने पर उन्होंने उन्हें बानी के बारे में खुल कर बताया.

उन की बात सुन कर मां जैसे आसमान से गिरीं. अपने इकलौते, सुयोग्य, कुंआरे डाक्टर बेटे की शादी एक बिनब्याही बच्चे वाली औरत से करने की बात उन के लिए सदमे से कम न थी. इस खबर से उन्हें गहन मानसिक आघात पहुंचा और उन का ब्लडप्रैशर शूट कर गया. वे पलंग पर आ गईं.

मां की यह हालत देख उमंग बेहद पसोपेश में थे. जिंदगी के इस मुकाम पर पहुंच वे बानी के बिना अपनी भावी जिंदगी की कल्पना तक नहीं कर सकते थे. सो, उन्होंने सोचा कि वे अपने घर जा कर बानी से आर्य समाज में शादी कर उसे दुलहन बना कर अपने घर ले जाएंगे. एक बार बानी से शादी हो जाए, तो उसे देख कर मां के पास उसे स्वीकार करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होगा. बानी अपनी नर्मदिली और मृदु स्वभाव से देरसवेर उन का दिल जीत ही लेगी. और वे वापस अपने शहर आ गए.

अपने घर पहुंच कर उमंग शाम को बानी के घर गए और फ़रमाइश कर रात का डिनर उस के साथ किया.

रात के साढ़े 10 बजने को आए थे, लेकिन आज वे उठने का नाम नहीं ले रहे थे. थोड़ी ही देर में नन्हे भी सो गया.

उस के सोते ही उमंग ने बानी से कहा, “बानी, आज मैं बिना किसी लागलपेट के आप से एक खास बात कहना चाहता हूं. मैं आप को बेहद पसंद करता हूं और जिंदगी का बाकी का सफ़र आप के साथ काटना चाहता हूं. मेरी मां सख्त बीमार है. उन की वजह से ही मैं यह शादी इतनी जल्दी करना चाहता हूं. मैं कल या ज्यादा से ज्यादा परसों आर्य समाज में आप से शादी करना चाहता हूं. एक बार यह शादी हो जाए तो मां को हमारे इस रिश्ते को ऐक्सेप्ट करना ही होगा.”

उमंग के इस प्रस्ताव से हतप्रभ बानी उमंग से बोली, “यह आप क्या कह रहे हैं उमंग? शादी, आप से, और वह भी कल या परसों?”

“हां, कल या परसों. मां बिस्तर पर हैं, लेकिन मुझे पूरा पूरा यकीन है कि आप को बहू के रूप में देख कर वह फिर से हिरण हो उठेंगी.”

“उमंग, आप ने तो मुझे दुविधा में डाल दिया. मेरा पास्ट जान कर भी क्या वे मुझे ऐक्सेप्ट कर लेंगी? नहीं, नहीं, मैं आप से शादी करने की सोच भी नहीं सकती.”

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“चलिए, मैं आप की दुविधा आसान कर देता हूं. आप मुझे यह बताइए, क्या आप किसी भी वजह से मुझे नापसंद करती हैं?”

“नहींनहीं, उमंग, आप इतने अच्छे हैं, आप को नापसंद करने का तो कोई सवाल ही नहीं पैदा होता.”

“तो फिर दिक्कत क्या है?”

“मेरा पास्ट, आप से 2 साल बड़ी हूं, ऊपर से एक बच्चे की बिनब्याही मां भी.”

“तो क्या हुआ? आप दोनों की सगाई हो चुकी थी और आप दोनों शादी करने वाले थे. अब अगर आप के भावी पति की मौत हो गई तो इस में आप का क्या कुसूर?”

“नहींनहीं उमंग, अभी भावनाओं में बह कर आप मेरा हाथ थाम लेंगे, लेकिन वक्त के साथ जब हमारे अपने बच्चे होंगे तो शायद आप नन्हे को अपने बच्चे जैसा प्यार नहीं कर पाएंगे.”

“ओह बानी, इन फुजूल की आशंकाओं के चलते मेरा दिल मत तोड़िए.”

“उमंग, यह फुजूल की शंकाएं नहीं, वरन प्रैक्टिकल रियलिटी है जिस से आप मुंह मोड़ रहे हैं.”

“बानी, अब आप और नन्हे मेरी लाइफ़ का एक हिस्सा बन चुके हैं. मैं आप दोनों के बिना जीने की सोच तक नहीं सकता. चलिए, एक बात बताइए, क्या आप अब मेरे बिना जी सकती हैं? बताइए बानी, उधर मां का ब्लडप्रैशर खतरनाक तरीके से हाई हुआ पड़ा है. मुझे आप का निर्णय सुनना है. इतने वर्षों तक हम ने साथसाथ जिंदगी की हर परिस्थिति का मुकाबला साथ मिल कर किया है. क्या आप की जिंदगी में मेरी कोई अहमियत नहीं? बताइए बानी,” इस बार उमंग ने तनिक आवेश में आते हुए बानी के कंधों को झकझोरते हुए उस से पूछा.

“उमंग, मेरी जिंदगी में आप की बहुत अहमियत है. आप ने हर कदम पर मेरा बेशर्त साथ दिया है, लेकिन लोग तो यही कहेंगे न कि एक बिनब्याही मां ने अपने से छोटी उम्र के कुंआरे डाक्टर को फ़ांस लिया. दुनिया दस बातें बनाएगी.”

“अगर ऐसा है तो मुझ पर यकीन रखिए, मुझ से शादी के बाद कोई आप से कुछ भी उलटासीधा कहने की ज़ुर्रत न करेगा. चलिए तो बानी, हम कल ही आर्य समाज में शादी कर रहे हैं. ठीक है न,” उमंग ने बेहद अधीरता से बानी से कहा.

“मुझे थोड़ा वक्त चाहिए उमंग, मैं अपनी हां या न आप को मैसेज कर दूंगी.”

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‘ओ बानी, क्यों इतना सोच रही हैं? बिना बात के आप इतना परेशान हो रही हैं. आप को बस हां भर कहने की देर है. निश्चिंत रहिए. और सब बातें मैं संभाल लूंगा. मेरा यकीन करिए बानी, आप को कोई कुछ नहीं कहेगा.” यह कहते हुए उमंग ने बानी के दोनों हाथ थाम लिए और उस से बोले, “क्या आप को मुझ पर विश्वास नहीं है? मुझ पर भरोसा रखिए. मैं आप को बेहद चाहने लगा हूं. मैं किसी और के साथ जिंदगी गुज़ारने की सोच नहीं सकता. हां कह दीजिए बानी, प्लीज, आई बैग यू. आप ने हां नहीं की तो मैं मर जाऊंगा.” यह सुन बानी ने नम आंखों से उमंग के होठों पर अपना हाथ रख दिया.

उमंग ने बानी की हथेली हौले से चूम ली.

खुशियों के उजास से दोनों के चेहरे दमक उठे.

उपहार: आनंद ने कैसे बदला फैसला?

लेकिन मोहिनी थी कि उसे एक भी तोहफा न पसंद आता. आखिर में जब सत्या की मेहनत की कमाई से खरीदे छाते को भी नापसंद कर के मोहिनी ने फेंका तो…

‘‘सिर्फ एक बार, प्लीज…’’

‘‘ऊं…हूं…’’

‘‘मोहिनी, जानती हो मेरे दिल की धड़कनें क्या कहती हैं? लव…लव… लेकिन तुम, लगता है मुझे जीतेजी ही मार डालोगी. मेरे साथ समुद्र किनारे चलते हुए या फिर म्यूजियम देखते समय एकांत के किसी कोने में तुम्हारा स्पर्श करते ही तुम सिहर कर धीमे से मेरा हाथ हटा देती हो. एक बार थिएटर में…’’

‘‘सत्या प्लीज…’’

‘‘मैं ने ऐसी कौन सी अनहोनी बात कह दी. मैं तो केवल इतना चाहता हूं कि तुम एक बार, सिर्फ एक बार ‘आई लव यू’ कह दो. अच्छा यह बताओ कि तुम मुझे प्यार करती हो या नहीं?’’

‘‘नहीं जानती.’’

‘‘यह भी क्या जवाब हुआ भला? हम दोनों एक ही बिरादरी के हैं. हैसियत भी एक जैसी ही है. तुम्हारी और मेरी मां इस रिश्ते के लिए मना भी नहीं करेंगी. हां, तुम मना कर दोगी, दिल तोड़ दोगी, तो मैं…तो मर जाऊंगा, मोहिनी.’’

‘‘मुझे एक छाता चाहिए सत्या. धूप में, बारिश में, बाहर जाते समय काफी तकलीफ होती है. ला दोगे न?’’

‘‘बातों का रुख मत बदलो. छाता दिला दूं तो ‘आई लव यू’ कह दोगी न?’’

मोहिनी के जिद्दी स्वभाव के बारे में सोच कर सत्या तिलमिला उठा पर वह दिल के हाथों मजबूर था. मोहिनी के बिना वह अपनी जिंदगी सोच ही नहीं सकता था. लगा, मोहिनी न मिली तो दिल के टुकड़ेटुकड़े हो जाएंगे.

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सत्या ने पहली बार जब मोहिनी को देखा तो उसे दिल में तितलियों के पंखों की फड़फड़ाहट महसूस हुई थी. उस की बड़ीबड़ी आंखें, सीधी नाक, ठुड्डी पर छोटा सा तिल, नमी लिए सुर्ख गुलाबी होंठ, लगा मोहिनी की खूबसूरती का बयान करने के लिए उस के पास शब्दों की कमी है.

मोहिनी से पहली मुलाकात सत्या की किसी इंटरव्यू देने के दौरान हुई थी. मिक्सी कंपनी में सेल्समैन व सेल्स गर्ल की आवश्यकता थी. वहां दोनों को नौकरी नहीं मिली थी.

कुछ दिनों बाद ही एक दूसरी कंपनी के साक्षात्कार के समय उस ने दोबारा मोहिनी को देखा था. गुलाबी सलवार कमीज में वह गजब की लग रही थी. कहीं यह वो तो नहीं? ओफ…वही तो है. उस के दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं.

मोहिनी ने भी उसे देखा.

‘बेस्ट आफ लक,’ सत्या ने कहा.

उस की आंखें चमक उठीं. गाल सुर्ख गुलाबी हो उठे.

‘थैंक यू,’ मोहिनी के होंठों से ये दो शब्द फूल बन कर गिरे थे.

यद्यपि वहां की नौैकरी को वह खुद न पा सका पर मोहिनी पा गई. माइक्रोओवन बेचने वाली कंपनी… प्रदर्शनी में जा कर लोगों को ओवन की खूबियों से परिचित करवा कर उन्हें ओवन खरीदने के लिए प्रेरित करने का काम था.

सत्या ने नौकरी मिलने की खुशी में मोहिनी को आइसक्रीम पार्टी दे डाली. मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता गया. छुट्टी के दिन व काम पूरा करने के बाद मोहिनी की शाम सत्या के साथ गुजरती. सत्या का हंसमुख चेहरा, मजाकिया बातें, दिल खोल कर हंसने का अंदाज मोहिनी को भा गया था. वह उस से सट कर चलती, उस की बातों में रस लेती. एक बार सिनेमाहाल में परदे पर रोमांस दृश्य देख विचलित हो कर अंधेरे में सत्या ने झट मोहिनी का चेहरा अपने हाथों में ले कर उस के होंठों पर अपने जलतेतड़पते होंठ रख दिए थे.

यह प्यार नहीं तो और क्या है? हां, यही प्यार है. सत्या के दिल ने कहा तो फिर ‘आई लव यू’ कहने में क्या हर्ज है?

पिछली बार मोहिनी के जन्म-दिन पर सत्या चाहता था कि वह अपने प्यार का इजहार करे. जन्मदिन पर मोहिनी ने उस से सूट मांगा. 500 रुपए का एक सूट उस ने दस दुकानों पर देखने के बाद पसंद किया था पर खरीदने के लिए उस के पास रुपए नहीं थे क्योंकि प्रथम श्रेणी में स्नातक होने के बाद भी वह बेरोजगार था.

घर के बड़े ट्रंक में एक पान डब्बी पड़ी थी. पिताजी की चांदी की… पुरानी…भीतर रह कर काली पड़ गई थी. मां को भनक तक लगे बिना सत्या ने चालाकी से उसे बेच दिया और मोहिनी के लिए सूट खरीदा.

आसमानी रंग के शिफान कपड़े पर कढ़ाई की गई थी. सुंदर बेलबूटे के साथ आगे की तरफ पंख फैलाया मोर. सत्या को भरोसा था कि इस उपहार को देख कर मोर की तरह मोहिनी का मन मयूर भी नाच उठेगा. उस से लिपट कर वह थैंक्यू कहेगी और ‘आई लव यू’ कह देगी. इन शब्दों को सुनने के लिए उस के कान कितने बेकरार थे पर उस के उपहार को देख कर मोहिनी के चेहरे पर कड़वाहट व झुंझलाहट के भाव उभरे थे.

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‘यह क्या सत्या? इतना घटिया कपड़ा. और देखो तो…कितना पतला है, नाखून लगते ही फट जाएगा. यह देखो,’ कहते हुए उस ने अपने नाखून उस में गड़ाए और जोर दे कर खींचा तो कपड़ा फट गया. सत्या को लगा था यह कपड़ा नहीं, उस के पिताजी की पान डब्बी व मां के सेंटिमेंट दोनों तारतार हो गए हैं.

‘कितने का है?’ मोहिनी ने पूछा.

‘तुम्हें इस से क्या?’

‘रुपए कहां से मिले?’

‘बैंक से निकाले,’ सत्या ने सफाई से झूठ बोल दिया.

और इस बार छाता…उस ने मोलभाव किया. अपनेआप खुलने व बंद होने वाला छाता 2 सौ रुपए का था. दोस्तों से रुपए मिले नहीं. घर में जो कुछ ढंग की चीज नजर आई मां की आंखें बचा कर उसे बेच कर सिनेमा, ड्रामा, होटल के खर्चे में वह पहले से पैसे फूंक चुका था.

काश, एक नौकरी मिल गई होती. इस समय वह कितना खुश होता. मोहिनी के मांगने के पहले उस की आवश्यकताओं की वस्तुओं का अंबार लगा देता. चमचमाते जूते पर धूल न जमे, कपड़ों की क्रीज न बिगड़े, एक अदद सी नौकरी, बस, उसे और क्या चाहिए. पर वह तो मिल नहीं रही थी.

नौकरी तो दूर की बात, अब उस की प्रेमिका, उस की जिंदगी मोहिनी एक छाता मांग रही है. क्या करे? अचानक उसे रवींद्र का ध्यान आया जो बचपन में उस का सहपाठी था. बड़ा होने पर वह अपने पिता के साथ उन के प्रेस में काम करने लगा. बाद में पिता के सहयोग से उस ने प्रिंटिंग इंक बनाने की फैक्टरी लगा ली थी. बस, दिनरात उसी फैक्टरी में कोल्हू के बैल की तरह लगा रहता था.

एक दोस्त से पैसा मांगना सत्या को बुरा तो लग रहा था पर क्या करे दिल के हाथों मजबूर जो था.

‘‘उधार पैसे मांग रहे हो पर कैसे चुकाओगे? एक काम करो. ग्राइंडिंग मशीन के लिए आजकल मेरे पास कारीगर नहीं है. 10 दिन काम कर लो, 200 रुपए मिलेंगे. साथ ही कुछ सीख भी लोगे.’’

इंक बनाने के कारखाने में ग्राइंडिंग मशीन पर काम करने की बात सोच कर ही सत्या को घिन आने लगी थी. पर क्या करे? 200 रुपए तो चाहिए. किसी भी हाल में…और कोई चारा भी तो नहीं.

10 दिन के लिए वह जीजान से जुट गया. मशीनों की गड़गड़ाहट… पसीने से तरबतर…मैलेकुचैले कपड़े… थका देने वाली मेहनत, उस ने सबकुछ बरदाश्त किया. 10वें दिन उस ने छाता खरीदा. मोलभाव कर के उस ने 150 रुपए में ही उसे खरीद लिया. 50 रुपए बचे हैं, मोहिनी को ट्रीट भी दूंगा, उस की मनपसंद आइसक्रीम…उस ने सोचा.

तालाब के किनारे बना रेस्तरां. खुले में बैठे थे मोहिनी और सत्या. वह अपलक अपने प्यार को देख रहा था. हवा के झोंके मोहिनी की लटों को उलझा देते और वह उंगलियों से उन्हें संवार लेती. मोहिनी के चेहरे की खुशी, उस की सुंदरता का जादू, वातावरण की मादकता को बढ़ाए जा रही थी. सत्या का मन उसे भींच कर अपनी अतृप्त इच्छाओं को तृप्त कर लेने का था, किंतु बरबस उस ने अपनी कामनाओं को काबू में कर रखा था.

कटलेट…फिर मोहिनी की मनपसंद आइसक्रीम…सत्या ने बैग से छाता निकाला. वह मोहिनी की आंखों में चमक व चेहरे पर खुशी देखने के लिए लालायित था.

‘‘सत्या, यह क्या है?’’ मोहिनी ने पूछा.

‘‘तुम ने एक छाता मांगा था न…यह कंचन काया धूप में सांवली न पड़ जाए, बारिश में न भीगे, इसीलिए लाया हूं.’’ मोहिनी ने बटन दबाया. छाता खुला तो उस का चेहरा ढक गया. छाते के बारीक कपड़े से रोशनी छन कर भीतर आई.

‘‘छी…तुम्हें तो कुछ खरीदने की तमीज ही नहीं सत्या. देखो तो कितनी घटिया क्वालिटी का छाता है. इसे ले कर मैं कहीं जाऊं तो चार लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे? छाते को झल्लाहट के साथ बंद कर के पूरे वेग से उस ने तालाब की ओर उसे फेंका. छाता नाव से टकरा कर पानी में डूब गया.’’

सत्या उसे भौंचक हो कर देखता रहा. क्षण भर…वह खड़ा हुआ, कुरसी ढकेल कर दौड़ पड़ा. सीढि़यां उतर कर नाव के समीप गया. नाव को हटा कर उस ने पानी में हाथ डाल कर टटोला. छाता पूरी तरह डूब गया था. हाथपैर से टटोल कर थोड़ी देर की मशक्कत के बाद वह उसे ले आया. उस के चेहरे पर क्रोध व निराशा पसरी हुई थी.

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‘‘मोहिनी, इस छाते को खरीदने के लिए 10 दिन…पूरे 10 दिन मैं ने खूनपसीना एक किया है, हाथपैर गंदे किए हैं, इंक फैक्टरी में काम सीखा है. सोच रहा था कुछ दिनों में रुपए का जुगाड़ कर के क्यों न एक छोटी सी इंक फैक्टरी मैं भी खोल लूं. कितने अरमानों से इसे खरीद कर लाया था. तुम ने मेरी मेहनत को, मेरे अरमानों को बेकार समझ कर फेंक दिया. आई एम सौरी…वेरीवेरी सौरी मोहिनी…जिसे पैसों का महत्त्व नहीं मालूम ऐसी मूर्ख लड़की को मैं ने चाहा. लानत है मुझ पर…गुड बाय…’’

‘‘एक मिनट सत्या,’’ मोहिनी ने कहा.

‘‘क्या है?’’ सत्या ने मुड़ कर पूछा तो उस की आवाज में कड़वाहट थी.

‘‘तुम ने सूट खरीद कर दिया था, उसे भी मैं ने फाड़ दिया था, तब तो तुम ने कुछ कहा नहीं. क्यों?’’

‘‘बात यह है कि…’’

‘‘…कि वह तुम्हारी मेहनत के पैसों से खरीदा हुआ नहीं था. मैं तुम्हारी मां से मिली थी. तुम मेहनत से डरते हो, यह मैं ने उन की बातों से जाना. 500 रुपए के सूट को मैं ने फाड़ा तब तो तुम ने कुछ नहीं कहा और अब इस छाते के लिए कीचड़ में भी उतर गए, जानते हो क्यों? क्योंकि यह तुम्हारी मेहनत की कमाई का है.’’

‘‘मैं इसी सत्या को देखना चाहती थी कि जो मेहनत से जी न चुराए, किसी भी काम को घटिया न समझे, मेहनत कर के कमाए और मेहनत की खाए?’’

मोहिनी उस के समीप गई. उस के हाथों से उस छाते को लिया और बोली, ‘‘सत्या, यह मेरे जीवन का एक कीमती तोहफा है. इस के सामने बाकी सब फीके हैं. अब तुम मुझ से नाराज तो नहीं हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘उस के समीप जा कर मोहिनी ने उसे गले लगाया.’’

‘‘उफ्, मेरे हाथपैर कीचड़ से सने हैं, मोहिनी.’’

‘‘कोई बात नहीं. एक चुंबन दोगे?’’

‘‘क्या?’’

‘‘आई लव यू सत्या.’’

सत्या के दिल में तितलियों के पंखों की फड़फड़ाहट का एहसास उसी तरह से हो रहा था जैसे उस ने पहली बार मोहिनी को देखने पर अपने दिल में महसूस किया था.

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