चायवाय पी कर पंकज वापस चला गया. सबकुछ तो ठीक था पर एक बात थी जो अजीब लग रही थी उसे. आखिर उन लोगों को रिनी में ऐसी कौन सी खासियत नजर आ गई थी जो वे शादी के लिए एकदम तैयार हो गए. बहरहाल, शादीब्याह तो जहां होना है वहीं होगा, फिर भी चलतेचलते उस ने इतना कह ही दिया कि आप एक बार मुंबई जा कर परिवार, फैक्टरियां वगैरह देख आइए. कम से कम तसल्ली तो हो जाएगी. उन्होंने जाने का वादा किया.
अगले शनिवार रामचंदर बाबू ने पंकज को फोन किया.
‘‘अरे, कहां हो भाई? क्या हाल है?’’ मुझे उन का स्वर उत्तेजित लगा.
‘‘मैं घर पर ही हूं,’’ पंकज ने कहा, ‘‘क्या हुआ. सब ठीक तो है.’’
‘‘हां, सब ठीक है. कल का कोई प्रोग्राम तो नहीं है?’’
‘‘नहीं. पर हुआ क्या, तबीयत वगैरह तो ठीक है न?’’
‘‘तबीयत तो ठीक है. अरे, वह रिनी वाला संबंध है न. वही लोग कल आ रहे हैं.’’
‘‘आ रहे हैं? पर क्यों?’’
‘‘अरे, लड़की देखने भाई. सब ठीक रहा तो कोई रस्म भी कर देंगे.’’
‘‘जरा विस्तार से बताइए. पर रुकिए, क्या आप मुंबई हो आए, घरपरिवार देख आए क्या?’’
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‘‘अरे, कहां? मैं बताता हूं. तुम्हारे जाने के बाद उन का फोन आ गया था. काफी बातें होती रहीं. पौलिटिक्स पर भी उन की अच्छी पकड़ है. बडे़ बिजनैसमैन हैं. 2-2 फैक्टरियां हैं. पौलिटिक्स पर नजर तो रखनी ही पड़ती है. फिर मैं ने उन से कहा कि अपना पूरा पता बता दीजिए, मैं आ कर मिलना चाहता हूं. कहने लगे आप क्यों परेशान होते हैं. लेकिन आना चाहते हैं तो जरूर आइए. वर्ली में किसी से भी स्टील फैक्टरी वाले जितेंद्रजी पूछ लीजिएगा, घर तक पहुंचा जाएगा. कहने लगे कि फ्लाइट बता दीजिए, ड्राइवर एयरपोर्ट से ले लेगा.’’
‘‘बहुत बढि़या.’’
मैं ने कहा, हवाईजहाज से नहीं, मैं तो ट्रेन से आऊंगा. तो बोले टाइम बता दीजिएगा, स्टेशन से ही ले लेगा. बल्कि वे तो जिद करने लगे कि हवाईजहाज का टिकट भेज देता हूं. 2 घंटे में पहुंच जाइएगा. मैं ने किसी तरह से मना किया.’’
‘‘फिर?’’
‘‘फिर क्या. मैं रिजर्वेशन ही देखता रह गया और कल सुबहसुबह ही उन का फोन आ गया.’’
‘‘अच्छा.’’
‘‘हां. उन्होंने बताया कि वे 15 दिनों के लिए स्वीडन जा रहे हैं. वहां उन का माल एक्सपोर्ट होता है न. पत्नी भी साथ में जा रही हैं. पत्नी की राय से ही उन्होंने फोन किया था. उन की पत्नी का कहना था कि जाने से पहले लड़की देख लें. और ठीक हो तो कोई रस्म भी कर देंगे. सो, बोले हम इतवार को आ रहे हैं.’’
‘‘बड़ा जल्दीजल्दी का प्रोग्राम बन रहा है. क्या लड़का भी साथ में आ रहा है?’’
‘‘ये लो. लड़का नहीं आएगा भला. बड़ा व्यस्त था. पर जितेंद्रजी ने कहा कि आप ने भी तो नहीं देखा है. लड़कालड़की दोनों एकदूसरे को देख लें, बात कर लें, तभी तो हमारा काम शुरू होगा न.’’
‘‘यह तो ठीक बात है. कहां ठहराएंगे उन्हें.’’ पंकज जानता था कि रामचंदर बाबू का मकान बस साधारण सा ही है. एसी भी नहीं है. सिर्फ कूलर है.
‘‘ठहरेंगे नहीं. उसी दिन लौट जाएंगे.’’
‘‘पर आएंगे तो एयरपोर्ट पर ही न.’’
‘‘नहीं भाई, बड़े लोग हैं. उन की पत्नी ने कहा कि जब जा ही रहे हैं तो लुधियाना में अपने भाई के यहां भी हो लें. अब उन का प्रोग्राम है कि वे आज ही फ्लाइट से लुधियाना आ जाएंगे. ड्राइवर गाड़ी ले कर लुधियाना आ जाएगा. कल सुबह 8 बजे घर से निकल कर 11 बजे तक दिल्ली पहुंच जाएंगे व लड़की देख कर लुधियाना वापस लौट जाएंगे. वहीं से मुंबई का हवाईजहाज पकडेंगे. ड्राइवर गाड़ी वापस मुंबई ले जाएगा.’’
‘‘बड़ा अजीब प्रोग्राम है. उन के साले के पास गाड़ी नहीं है क्या, जो मुंबई से ड्राइवर गाड़ी ले कर आएगा. उस की भी तो लुधियाना में फैक्टरी है.’’
‘‘बड़े लोग हैं. क्या मालूम अपनी गाड़ी में ही चलते हों.’’
‘‘क्या मालूम. लेकिन आप जरा घर ठीक से डैकोरेट कर लीजिएगा.’’
‘‘अरे, मैं बेवकूफ नहीं हूं भाई, मेरा घर उन के स्तर का नहीं है. होटल रैडिसन में 6 लोगों का लंच बुक कर लिया है. पहला इंप्रैशन ठीक होना चाहिए.’’
‘‘चलिए, यह आप ने अच्छा किया. नीरज तो है ही न.’’
‘‘वह तो है, पर भाई तुम आ जाना. बड़े लोग हैं. तुम ठीक से बातचीत संभाल लोगे. मैं क्या बात कर पाऊंगा. तुम रहोगे तो मुझे सहारा रहेगा. तुम साढ़े 10 बजे तक रैडिसन होटल आ जाना. हम वहीं मिल जाएंगे.’’
‘‘मैं समय से पहुंच जाऊंगा. आप निश्चित रहें.’’
सारी बातें उसे कुछ अजीब सी लग रही थीं. पंकज ने मन ही मन तय किया कि रामचंदर बाबू से कहेगा कि कल कोई रस्म न करें. जरा रुक कर करें और हो सके तो मुंबई से लौट कर करें.
पंकज घर से 10 बजे ही होटल रैडिसन के लिए निकल गया. आधा घंटा तो लग ही जाना था. आधे रास्ते में ही था कि मोबाइल की घंटी बजी. नंबर रामचंदर बाबू का ही था.
‘‘क्या हो गया रामचंदर बाबू. मैं रास्ते में हूं, पहुंच रहा हूं.’’
‘‘अरे, जल्दी आओ भैया, गजब हो गया.’’
‘‘गजब हो गया? क्या हो गया.’’
‘‘तुम आओ तो. लेकिन जल्दी आओ.’’
‘‘मैं बस 10 मिनट में रैडिसन पहुंच जाऊंगा.’’
‘‘रैडिसन नहीं, रैडिसन नहीं. घर आओ, जल्दी आओ.’’
‘‘मैं घर ही पहुंचता हूं, पर आप घबराइए नहीं.’’
अगले स्टेशन से ही उस ने मैट्रो बदल ली. क्या हुआ होगा. फोन उन्होंने खुद किया था. घबराए जरूर थे पर बीमार नहीं थे. कहीं रिनी ने तो कोई ड्रामा नहीं कर दिया.
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दरवाजा नीरज ने खोला. सामने ही सोफे पर रामचंदर बाबू बदहवास लेटे थे. उन की पत्नी पंखा झल रही थीं व रिनी पानी का गिलास लिए खड़ी थी. पंकज को देखते ही झटके से उठ कर बैठ गए.
‘‘गजब हो गया भैया, अब क्या होगा.’’
‘‘पहले शांत हो जाइए. घबराने से क्या होगा. हुआ क्या है?’’
‘‘ऐक्सिडैंट…ऐक्सिडैंट हो गया.’’
‘‘किस का ऐक्सिडैंट हो गया?’’
‘‘जितेंद्रजी का ऐक्सिडैंट हो गया भैया. अभी थोड़ी देर पहले फोन आया था. अरे नीरज, जल्दी जाओ बेटा. देरी न करो.’’
नीरज ने जाने की कोई जल्दी नहीं दिखाई.
‘‘एक मिनट,’’ पंकज ने रामचंदर बाबू को रोका. ‘‘पहले बताइए तो क्या ऐक्सिडैंट हुआ, कहां हुआ. कोई सीरियस तो नहीं है?’’
‘‘अरे, मैं क्या बताऊं,’’ रामचंदर बाबू जैसे बिलख पड़े, ‘‘कहीं वे मेरी रिनी को मनहूस न समझ लें. अब क्या होगा भैया.’’
‘‘मैं बताता हूं अंकल,’’ नीरज बोला जो कुछ व्यवस्थित लग रहा था, ‘‘अभी साढ़े 9-10 बजे के बीच में जितेंद्र अंकल का फोन आया था. उन्होंने बताया कि ठीक 8 बजे वे लुधियाना से दिल्ली अपनी कार से निकल लिए थे. उन की पत्नी व बेटा भी उन के साथ थे. दिल्ली से करीब 45 किलोमीटर दूर शामली गांव के पहले उन की विदेशी गाड़ी की किसी कार से साइड से टक्कर हो गई. कोई बड़ा एक्सिडैंट नहीं है. सभी लोग स्वस्थ हैं. किसी को कोई चोट नहीं आई है.’’
‘‘तब समस्या क्या है, वे आते क्यों नहीं?’’
‘‘कार वाले ने समस्या खड़ी कर दी. वह पैसे मांग रहा है. कोई दारोगा भी आ गया है.’’
‘‘फिर?’’
‘‘कार वाले से 50 हजार रुपए में समझौता हुआ है.’’
‘‘तो उन्होंने दे दिया कि नहीं.’’
‘‘उन के पास नकद 25 हजार रुपए ही हैं. उन्होंने बताया कि पास में ही एक एटीएम है. पर अंकल का कार्ड चल ही नहीं रहा है.’’
‘‘अरे, तुम जा कर उन के खाते में 25 हजार डाल क्यों नहीं देते बेटा.’’ रामचंदर बाबू कलपे, ‘‘अब तक तो डाल कर आ भी जाते.’’
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