शाम को अमन के आने पर राधिका ने देखा कि सरवैंट क्वार्टर का दरवाजा खुला है. सीमा और सतीश वहां से चुपचाप अपना सामान ले कर गायब हो चुके थे.सीमा की कलई खुल जाने से राधिका खुश तो थी पर फिर वही मेड की समस्या मुंह बाए खड़ी थी. ‘इस बार जल्दबाजी नहीं करूंगी. सोच-समझ कर फैसला लूंगी,’ सोचते हुए उस ने सिक्युरिटी गार्ड को फोन कर क्वार्टर के लिए इच्छुक लोगों को भेजते रहने को कहा.
रविवार के दिन राधिका को न अमन के औफिस जाने की चिंता होती और न खुद के कहीं इंटरव्यू के लिए जाने की. उस दिन भी रविवार था. सुबह की चाय पीते हुए वह अमन से गप्पें मार रही थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी.
‘‘अरे, सुबह के 8 बजे कौन आ गया?’’ नाक चढ़ा कर राधिका अमन को देखते हुए बोली.
‘‘देखता हूं मैं,’’ कह कर अमन दरवाजा खोलने चल दिया.
‘शायद कोई सरवैंट क्वार्टर की बात करने आया होगा.’ सोच कर राधिका भी अमन के पीछेपीछे हो ली.
अमन ने दरवाजा खोला. सामने 65-70 वर्षीय वृद्ध दंपती खड़े थे. साथ ही छोटे से कद की गौरवर्णीय 21-22 वर्षीय युवती भी थी. अमन को देखते ही वृद्ध ने हाथ जोड़ करुण स्वर में कहा, ‘‘साहब, मैं रिटायर्ड सरकारी चपरासी हूं. हम लोग बहुत सालों से बसंत रोड पर एक परिवार के साथ उन के सरवैंट क्वार्टर में रहे हैं. भाग्यश्री उन के घर का सारा काम करती है. इसी महीने उन साहब का यहां से ट्रांसफर हो गया, इसलिए घर खाली करना है. मेरी पैंशन से खानापीना तो हो जाता है, पर हम किराए पर कमरा नहीं ले सकते. मकान का किराया बहुत ज्यादा है आजकल… और फिर जवान लड़की का साथ… आप तो सब समझते ही होंगे. बहुत जरूरत है हमें सरवैंट क्वार्टर की.’’
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‘‘भाग्यश्री बेटी है तुम्हारी?’’ लड़की और दंपती के बीच उम्र के अंतराल को देख कर राधिका संदेह में थी.
‘‘मैडम न पूछो… यह भाग्यश्री नहीं, अभाग्यश्री है. पोती है हमारी. इस के पैदा होते ही इस की मां चल बसी थी. फिर कुछ साल बाद हमारा बेटा भी बीमार हो कर…’’ वृद्ध का गला रुंध गया.
‘‘अरे, आप दोनों ने अपना नाम तो बताया ही नहीं?’’ बात बदलने के इरादे से राधिका बोली.
‘‘जी मैं बनवारी और यह शारदा,’’ अपनी पत्नी की ओर इशारा करते हुए वह बोला.उन के विषय में थोड़ाबहुत और जान कर राधिका भीतर चली गई. अमन भी उस के पीछेपीछे अंदर आ गया. दोनों को ही बनवारी परिवार को कमरा देना कुछ गलत नहीं लगा. अमन बनवारी को चाबी देते हुए जल्दी आने को कहा.
रात को ही वे सामान के साथ कमरे में आ गए. कई दिन काम का बोझ उठातेउठाते राधिका भी थक गई थी, इसलिए बनवारी परिवार के आते ही उस ने भी चैन की सांस ली. भाग्यश्री के रूप में उसे एक अच्छी मेड मिलने की पूरी आशा थी.
अगले दिन सुबह बनवारी और शारदा उन के घर आ गए और काम करना शुरू कर दिया. भाग्यश्री के न आने का कारण पूछने पर बनवारी ने कहा कि उसे बुखार आ रहा है. काम निबटतेनिबटते दोपहर हो गई. बनवारी दंपती थक कर चूर दिख रहे थे.
अगले दिन भी वे दोनों ही काम करने आए. इसी तरह 15 दिन बीत गए. राधिका को इतने वृद्ध लोगों से काम करवा कर ग्लानि हो रही थी. इस के अतिरिक्त काम सफाई से भी नहीं हो पा रहा था.
‘कहीं ऐसा तो नहीं कि भाग्यश्री कहीं और काम करने जा रही हो और उस के बहाने इन लोगों ने मेरा सरवैंट क्वार्टर ले लिया हो?’ राधिका के मन में संदेह उत्पन्न हो रहा था.
‘इस तरह कब तक चलता रहेगा? क्या सच में बीमार है भाग्यश्री’ सोच कर एक दिन राधिका ने सरवैंट क्वार्टर का दरवाजा खटखटा दिया. बनवारव शारदा उस समय राधिका केघर के काम में व्यस्त थे. दस्तक होते ही भाग्यश्री दरवाजा आधा खोल कर प्रश्न भरी निगाहों से राधिका की ओर देखने लगी.
‘‘तुम तो भलीचंगी हो, काम पर क्यों नहीं आती?’’ राधिका ने जानना चाहा.
‘‘वह… ऐसा है… मेरे… मुझे…’’ भाग्यश्री की जबान लड़खड़ा गई.
राधिका और कुछ बोले बिना वापस चल दी. वह अभी मुड़ी ही थी कि एक 30-35 वर्षीय व्यक्ति क्वार्टर से निकल कर लिफ्ट की ओर भागा. यह दृश्य देख कर राधिका आश्चर्यचकित रह गई. भाग्यश्री की पहेली सुलझने के स्थान पर और उलझ रही थी. परेशान सी राधिका ने इस पहेली को सुलझाने का फैसला कर लिया.
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अब प्रतिदिन बनवारी और शारदा के काम पर आते ही वह घर के बाहर जा कर सरवैंटक्वार्टर के आसपास मंडराती रहती. उस ने पाया कि लगभग प्रत्येक दिन ही उस कमरे में कोई पुरुष आता है. आश्चर्य की बात यह थी कि वह कोई एक पुरुष नहीं था. अलगअलग आयु के पुरुषों को उस ने वहां आतेजाते देखा. राधिका का दिल बैठा जा रहा था. उसे डर था कि कहीं देहव्यापार जैसा घृणित कार्य तो नहीं हो रहा यहां? जब अमन से उस ने इस विषय में चर्चा की तो दोनों ने बनवारी परिवार का परदाफाश करने का निश्चय किया.
अगले दिन अमन ने औफिस से छुट्टी ले ली थी. उस ने सरवैंट क्वार्टर में किसी को घुसता देख उसी समय बनवारी से क्वार्टर में चलने को कहा. बहाना बना दिया कि वहां एक छोटी से अलमारी रखवानी है. सुनते ही बनवारी टालमटोल करने लगा. यह देख अमन ने बनवारी को डांटना शुरू कर दिया.
राधिका ने शारदा से भाग्यश्री के अब तक काम पर न आने की असली वजह जाननी चाही.
अमन के गुस्से से भरे चेहरे को देख कर बनवारी फूटफूट कर रोने लगा. शारदा हाथ जोड़ते हुए बनवारी से बोली, ‘‘इन दोनों को सच बता दो… हम से अब सहा नहीं जाता.’’
बनवारी ने अपनेआप को संभालते हुए बोलना शुरू किया, ‘‘साहब… भाग्यश्री की शादी हो चुकी है. हमारा दामाद बहुत बुरा आदमी है. खूब शराब पीने की आदत है उसे. जब शादी की थी तब चाय की दुकान थी उस की छोटी सी. शादी के बाद उस ने हमारी लड़की की सोने की अंगूठी, चेन, झुमके सब कुछ बेच दिया. फिर जब दुकान भी बिक गई तो भाग्यश्री से गलत काम करवाने लगा. हम अपनी लड़की को वापस घर ले आए. फिर भी उस ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा. वहां भी लोगों को भेजता रहता… आप ने जब कमरा देने को हां कह दी तो हम तुरंत वहां से भाग निकले, पर उस ने पता लगा लिया और यहां भी… बनवारी फिर रोने लगा.
‘‘तुम ने पुलिस में शिकायत क्यों नहीं की?’’ अमन ने परेशान हो कर पूछा.
‘‘हमें उस ने धमकी दी थी कि पुलिस के पास जाएंगे तो वह हमारी लड़की को मरवा देगा,’’ शारदा ने भयभीत होते हुए बताया.
‘‘अरे, वह अकेला इन सब को डराता रहा और ये उस की हर बात मानते रहे, अमन राधिका की ओर देखते हुए बोला.’’
‘‘साहब, हमारा भाग्यश्री के अलावा कोई नहीं है… बहुत प्यार करते हैं हम दोनों इसे… उस पापी आदमी ने हमारा जीवन नर्क बना दिया है, बनवारी ने करुण स्वर में कहा.’’
‘‘हम अभी पुलिस में शिकायत करने चलेंगे,’’ बनवारी को आश्वस्त कर अमन पुलिस स्टेशन जाने की तैयारी करने लगा.
अमन बनवारी परिवार को साथ ले कर थाने पहुंच गया. अगले ही दिन सूचना मिली कि भाग्यश्री के पति को गिरफ्तार कर लिया गया है. बनवारी परिवार ने यह समाचार सुन कर चैन की सांस ली. उन को मानो नया जीवन मिल गया हो.
भाग्यश्री तो पिंजरे से आजाद हुई चिडि़या की तरह चहकने लगी थी अब. वह समझ गई थी कि थोड़ी सी हिम्मत जुटाने से ही उस के जीवन में बहार आई है. राधिका से उस ने वादा कि अब कभी वह भाग्य के भरोसे रह कर, स्याह डर के साए में नहीं जीएगी. अमन और राधिका ने उस का निडर रोशनी की जगमग से परिचय जो करवा दिया था.
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