Best Story Online : कुंआरे बदन का दर्द

लेखक- जैनुल आबेदीन खां      

Best Story Online : शबनम अकेले ही एक टेबल पर बैठ कर खाना खा रही थी और जावेद अलग टेबल पर. 5 सालों के बाद उन के चेहरों में कोई खास फर्क नहीं आया था.

शबनम को खातेखाते कुछ याद आया और वह खाना छोड़ कर जावेद के टेबल की तरफ बढ़ी. शायद उसे 5 साल पहले की कोई बात याद आई थी.

‘‘आप ने खाने से पहले इंसुलिन

का इंजैक्शन लिया है कि नहीं?’’ शबनम ने जावेद से पूछा.

‘‘इंजैक्शन लिया है. लेकिन 5 साल तक तलाकशुदा जिंदगी गुजारने के बाद तुम्हें कैसे याद है?’’ जावेद ने पूछा.

‘‘जावेद, मैं एक औरत हूं.’’

‘‘तुम्हारे जाने के बाद, इतना मेरा किसी ने खयाल नहीं रखा,’’ जावेद

ने कहा.

‘‘अगर ऐसी बात थी तो तुम ने मुझे तलाक क्यों दिया?’’

‘‘वह तो तुम जानती हो…

5 साल साथ रहने के बाद भी तुम मां नहीं बन पाई और बच्चा तो हर किसी को चाहिए.’’

‘‘अगर तुम बच्चा पैदा करने के लायक होते तो क्या मैं नहीं देती?’’ शबनम ने कहा और अपनी टेबल की तरफ बढ़ गई.

जब वे दोनों होटल से बाहर निकले तो फिर मेन गेट पर उन की मुलाकात

हो गई.

‘‘चलो, कुछ दूर साथ चलते हैं,’’ जावेद ने कहा.

‘‘जिंदगीभर साथ चलने का वादा था लेकिन तुम ने ही मुझे तलाक दे कर घर से निकाल दिया,’’ शबनम बोली.

‘‘जो होना था, हो गया. अब यह बताओ कि तुम यहां आई कैसे?’’

‘‘जब तुम ने तलाक दिया तो मैं अपने मांबाप के पास गई. वे इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर सके और 6 महीने के अंदर ही दोनों चल बसे. मैं तो उन की कब्र पर भी नहीं जा सकी क्योंकि औरतों का कब्रिस्तान में जाना सख्त मना है.

‘‘उस के बाद मैं भाई के पास रही थी. भाई तो कुछ नहीं बोलता था, लेकिन भाभी के लिए मैं बोझ बन गई थी. वह रातदिन मेरे भाई के पीछे पड़ी रहती और मुझे जलील करते हुए कहती थी कि इस की दूसरी शादी कराओ, नहीं तो किसी के साथ भाग जाएगी.

‘‘तुम नहीं जानते कि कोई मर्द तलाकशुदा औरत से शादी नहीं करता. सब को कुंआरी लड़की और कुंआरा बदन चाहिए.

‘‘भाई बहुत इधरउधर भागा, पर कहीं कोई मेरा हाथ थामने वाला नहीं मिला. आखिरकार उस ने एक बूढ़े आदमी से मेरी शादी करा दी. वह दिनभर बिस्तर पर पड़ा रहता और मैं उस की एक नर्स हूं. उसे समय से दवा देना, खाना खिलाना या बाथरूम ले जाना, यही मेरी ड्यूटी?थी.

‘‘मुझे यह भी मालूम है कि तुम ने दूसरी शादी कर ली और तुम को दोबारा एक कुंआरी लड़की मिल गई. लेकिन मेरी जिंदगी को तो तुम ने सीधे आग की लपटों में फेंक दिया. और मैं नामुराद दूसरी शादी के बाद भी जल रही हूं.

‘‘तुम ने मुझे तलाक दे दिया और मेरे कुंआरे बदन का सारा रस निचोड़ लिया. एक औरत की जिंदगी क्या होती?है, तुम्हें मालूम नहीं है,’’ शबनम ने अपना दर्द बताया. उस की आंखों में आंसू आ गए. वह रोतेरोते पत्थर की बनी एक कुरसी पर बैठ गई.

जावेद सबकुछ एक बुत की तरह सुनता रहा और फिर अपना वही सवाल दोहराया, ‘‘तुम इस शहर में कैसे आई?’’

‘‘मेरा बूढ़ा पति बहुत बीमार है. मैं ने उसे एक अस्पताल में भरती कराया है.’’

‘‘उस की उम्र क्या है?’’ जावेद

ने पूछा.

‘‘70 साल से भी ऊपर?है,’’ शबनम ने जवाब दिया.

‘‘फिर तो उम्र का बहुत फर्क है,’’ जावेद बोला.

जब शबनम वहां से उठ कर जाने लगी तो जावेद ने आगे बढ़ कर उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘मुझे माफ कर दो.’’

‘‘तलाक माफी मांगने से नहीं खत्म होता है. तुम ने मुझे तलाक दे कर जैसे किसी ऊंची पहाड़ी से नीचे धकेल दिया और मैं नरक में चली गई,’’ और फिर शबनम अपना हाथ छुड़ा कर वहां से चली गई.

दूसरे दिन जावेद शाम को उसी होटल के सामने शबनम का इंतजार करता रहा. वह आई और बगैर कुछ बोले ही होटल के अंदर चली गई.

जावेद पीछेपीछे गया और उस के पास बैठ गया. दोनों ने एकदूसरे को

देखा और उन के बीच रस्मी बातचीत शुरू हो गई.

‘‘तुम्हारी मम्मी कैसी हैं?’’ शबनम ने पूछा.

‘‘ठीक हैं. अब वे भी काफी बूढ़ी हो चुकी हैं.’’

‘‘उन को मेरी याद तो नहीं आती होगी. मुझे 5 साल तक बच्चा नहीं हुआ तो उन्होंने मेरा तुम से तलाक करा दिया और तुम्हारी बहन जरीना को 7 साल से बच्चा नहीं हुआ तो कोई बात नहीं, क्योंकि जरीना उन की अपनी बेटी है, बहू नहीं.’’

‘‘चलो जो होना था हो गया. यह हम दोनों का नसीब था,’’ जावेद ने अफसोस जताते हुए कहा.

‘‘नसीब बनाया भी जाता है और बिगाड़ा भी जाता है. अगर औरतों की सोच गलत होती?है तो घर के मर्द एक लोहे की दीवार की तरह खड़े हो जाते हैं. वैसे, औरतें ही औरतों की दुश्मन होती हैं.’’

जावेद के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था. वह होटल की छत की तरफ देखने लगा. फिर उस ने बात को बदलते हुए कहा, ‘‘क्या मेरी मम्मी से बात करोगी?’’

‘‘हां, लगाओ फोन. मैं बात कर लेती हूं.’’

जावेद ने अपनी मां को फोन लगा कर कहा, ‘‘मम्मी, शबनम आप से बात करना चाहती है.’’

‘‘तोबातोबा, तुम अपनी तलाकशुदा औरत के साथ हो. यह हमारे मजहब के खिलाफ है. मैं उस से बात नहीं करूंगी,’’ उस की मां की आवाज स्पीकर पर शबनम को भी सुनाई दी.

‘‘जावेद, तुम उन का नंबर दो. मैं अपने मोबाइल फोन से बात करूंगी.’’

जावेद ने शबनम का मोबाइल फोन ले कर खुद ही नंबर लगा दिया. घंटी बजने लगी. उधर से आवाज आई, ‘कौन?’

‘‘मैं आप की बहू शबनम बोल रही हूं. आप ने अपने लड़के से मुझे तलाक दिलवाया, वह एकतरफा तलाक था. मेरे मांबाप को इस का इतना दुख हुआ कि वे मर गए. अब मैं तुम्हारे लड़के जावेद को ऐसा तलाक दूंगी कि वह भी तुम्हारी जिंदगी से चला जाएगा.’’

उधर से टैलीफोन कट गया, लेकिन जावेद के चेहरे पर सन्नाटा छा गया. उस ने कहा, ‘‘तुम मेरी मम्मी से क्या फालतू बात करने लगी थी…’’

शबनम ने जावेद की बात का कोई जवाब नहीं दिया.

अब भी वे दोनों कई दिनों तक रात का खाना खाने उस होटल में आए लेकिन अलगअलग टेबलों पर बैठ कर चले गए, क्योंकि रिश्ता तो टूट ही गया था और अब बातों में कड़वाहट भी आ गई थी.

एक दिन होटल में शबनम जल्दी आई, खाना खा कर बाहर पत्थर की बनी कुरसी पर बैठ गई और जावेद का इंतजार करने लगी. जावेद जब खाना खा कर निकला तो शबनम ने उसे आवाज दी, ‘‘आओ, कहीं दूर तक इन पहाड़ों में घूम कर आते हैं. मेरे बूढ़े पति की अस्पताल से छुट्टी हो गई है. मैं अब चली जाऊंगी. इस के बाद यहां नहीं मिलूंगी.’’

वे दोनों एकदूसरे के साथ गलबहियां करते हुए टाइगर हिल के पास चले आए जहां ऐसी ढलान थी कि अगर किसी का पैर फिसल जाए तो सीधे कई गहरे फुट नीचे नदी में जा गिरे.

शबनम ने साथ चलतेचलते जावेद से कहा, ‘‘मैं तुम्हारा अपने मोबाइल फोन से फोटो लेना चाहती हूं क्योंकि अब हम नहीं मिलेंगे. तुम इस ढलान पर खड़े हो जाओ ताकि पीछे पहाड़ों का सीन फोटो में अच्छा लगे.’’

जावेद मुसकराया और फोटो खिंचवाने के लिए खड़ा हो गया. शबनम उस के पास आई, मानो वह सैल्फी लेगी. तभी उस ने जावेद को जोर से धक्का दिया और चिल्लाई, ‘‘तलाक… तलाक… तलाक…’’ जावेद ढलान से गिरा, फिर नीचे नदी में न जाने कहां गुम हो गया.

Best Hindi Story 2025 : रिलेशनशिप स्टेटस

राइटर- मधु शर्मा कटिहा

Best Hindi Story 2025 : ‘‘तुम ने अभी तक अपना फेसबुक स्टेटस अपडेट नहीं किया. मैं ने तो कब का सिंगल से बदल कर ‘इन ए रिलेशनशिप’ कर लिया. देख लो चाहे,’’ अपना मोबाइल सिमरन की ओर बढ़ाते हुए चेतन उसे छेड़ने के अंदाज में बोल खिलखिला कर हंस पडा. मोबाइल पर फेसबुक ऐप खुला था.

‘‘हां… हां… क्यों नहीं, कर लेती हूं मैं भी. जब मेरे मम्मीपापा आएंगे न हमें मारने सीधा शिमला से दिल्ली डंडा ले कर तब भूल जाओगे यह इश्कविश्क,’’ सिमरन भौंहें नचाते हुए होंठों पर टेढ़ी मुसकान लिए बोली.’’

‘‘विश्क का तो पता नहीं लेकिन इश्क करना कभी नहीं भूलूंगा. अरे, सच्चा आशिक  हूं तुम्हारा,’’ सिमरन को कमर से पकड़ कर चेतन ने अपने पास खींच लिया.

‘‘यह कैसी आशिकी कि शादी करने से डरते हो?’’ सिमरन मासूमियत से बोली.

‘‘डरता हूं कि मेरे मम्मीपापा की तरह तलाक न हो जाए हमारा. प्रेमीप्रेमिका बन कर रहेंगे तो बस प्यार ही प्यार होगा जीवन में. न कोई लड़ाईझगड़ा न मांग और जब कोई डिमांड नहीं तो उम्मीद के टूटने का सवाल ही नहीं. पता है तलाक तभी होता है जब रिश्ते में उम्मीदें तारतार हो जाती हैं.’’

‘‘अच्छा बहाना है शादी से बचने का,’’ आवाज में शिकायती लहजा लाने का प्रयास करते हुए सिमरन बोली.

‘‘नहीं सिमरन, सच यही है कि मैं नहीं चाहता इस रिश्ते का रूप बदले, मैं तो हमेशा ही प्यार में डूबे रहना चाहता हूं.’’

‘‘लेकिन…’’ सिमरन के मुंह से निकला ही था कि बस कहते हुए चेतन ने अपनी तरजनी उंगली सिमरन के होंठों पर रख दी, ‘‘इन नर्म, गुलाबी होंठों पर शिकायत नहीं, सिर्फ मेरा नाम अच्छा लगता है. अब कोई सवाल नहीं. ये होंठ तो सिर्फ प्यार करने और पाने के लिए बने हैं. भूल जाओ सबकुछ, ये शिकवे, ये शिकायतें. बस मैं, तुम और प्यार.’’

हिमाचल प्रदेश के एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी सिमरन ने आईएचएम शिमला से होटल मैनेजमैंट में बैचलर्स किया था. कैंपस प्लेसमैंट के दौरान दिल्ली के एक फाइवस्टार होटल द्वारा बतौर डैस्क ऐग्जिक्यूटिव चुनी गई थी. शिमला

में मातापिता और एक छोटा भाई था. पिता एक दवा बनाने वाली कंपनी में कार्यरत थे, मां हाउसवाइफ थीं.

चेतन जयपुर अपने ननिहाल में रह कर पला था क्योंकि उस की मां पति से तलाक के बाद अपने मायके आ गई थीं. चेतन के मामा बड़े व्यापारी थे लेकिन वह नौकरी करना चाहता था. जयपुर से 12वीं पास कर बिट्स पिलानी से कंप्यूटर में बी. टैक कर अपने मित्र कुणाल के साथ वह दिल्ली आ गया था. वहां कुणाल के स्टार्टअप में काम करने के बाद इन दिनों एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पैकेज पर बड़ा प्रौजेक्ट लीड कर रहा था.

कुणाल की बहन प्रगति सिमरन के साथ काम करती थी. लगभग 1 वर्ष पूर्व प्रगति के विवाह में सिमरन और चेतन की भेंट हुई थी. दोनों उसी दिन से एकदूसरे के मोह धागे में बंधने लगे थे. मुलाकातों का दौर शुरू हुआ तो चाहत बढ़ने लगी. एकदूजे के बिना रहना मुश्किल सा लगने लगा. दोनों के बीच सहमति हुई और लिव इन में रहने का फैसला हो गया. सिमरन जानती थी कि उस के पेरैंट्स यह सहन नहीं कर पाएंगे कि बेटी किसी के साथ एक पत्नी की तरह बिना विवाह के रह रही है. मातापिता के कानों तक यह समाचार पहुंचा तो रिश्ता टूटने की नौबत आ जाएगी इस डर से सिमरन चेतन पर शादी के लिए दबाव बनाया करती थी, लेकिन चेतन साफ इनकार कर देता. उस का विचार था कि विवाह प्रेम का प्रारंभ नहीं अंत होता है.

सिमरन और चेतन ने मिल कर एक घर किराए पर ले लिया. प्रगति विवाह के बाद एक दिन उन दोनों से मिलने आई तो करीने से सजे ड्राइंगरूम को देख ठगी सी रह गई. खूबसूरत गुलाबी परदे, क्रीम रंग के सोफे जिन पर गुलाब के फूलों का आकार लिए रूबी कलर के कुशन लगे थे. सोफे के एक ओर चौड़े गमले में एशियाई लिली के गुलाबी फूल कमरे की शोभा में चार चांद लगा रहे थे.

‘‘वाऊ सिमरन, मुझे पता था तुम्हें पिंक कलर बहुत पसंद है. गुलाबी के साथ बाकी रंगों का मेल भी बहुत ही खूबसूरती से किया है तुम ने. गुलाबी रंग से रंगत निखार दी कमरे की,’’ प्रगति कमरे के सौंदर्य से प्रभावित हो कर बोली.

‘‘मैं ने नहीं, चेतन ने. उस ने पता लगा लिया था कि पिंक मेरा पसंदीदा रंग है. मेरे यहां आने से पहले ही इस कमरे को सजा कर बहुत क्यूट सरप्राइज दिया था मुझे उस ने,’’ कहते हुए सिमरन के चेहरे पर गुलाबी निखार आ गया.

चेतन हंसते हुए बोला, ‘‘और यहां आने के बाद सिमरन ने बैडरूम को मेरी पसंद से रंग दिया.’’

‘‘देखूं तो,’’ कहते हुए प्रगति उठ कर चल दी. बैडरूम में हलका नीला प्रकाश बिखराता स्मार्ट बल्ब लगा था, जिस की रोशनी मंद या तेज हो सकती थी. कमरे की सजावट समुद्रतट का आभास दे रही थी.

‘‘चेतन को समंदर का किनारा बहुत अच्छा लगता है. जब मुझे उस की सी बीच को ले कर दीवानगी का पता लगा तो मैं ने बैडरूम उसी थीम को ध्यान में रखते हुए सजाने की कोशिश की,’’ सिमरन प्रगति को बताने लगी.

दीवार पर समुद्र से उठती नीली लहरों और किनारे पर नारियल के लंबेलंबे पेड़ों वाला विशाल वालस्टीकर लगा था. भूरे रंग का मखमली कालीन समुद्र किनारे बिखरी रेत सा लग रहा था. सिमरन ने बल्ब जला कर प्रगति को कमरे की सीलिंग पर देखने को कहा. वहां लगे चांदसितारों के अंधेरे में चमकने वाले थ्रीडी स्टिकर्स को देख लग रहा था जैसे सी बीच पर कोई रोमैंटिक रात किसी जोड़े का स्वागत करने के लिए तैयार है. रिमोट से बल्ब का रंग सिमरन ने दूधिया किया तो कमरा चांदनी में नहाया हुआ समुद्री किनारे सा दिखने लगा.

बैड पर आसमानी रंग की चादर और उस पर गहरे नीले रंग से बनी मरमेड की लुभावनी आकृति देख प्रगति आराम से पैर फैला कर वहां ऐसे जा बैठी जैसे समुद्र किनारे आराम करने बैठ गई हो. बैड से कुछ दूरी पर फीरोजी रंग के नैट से बने झोले और उस पर 2 सफेद रंग के तकिए देख मंत्रमुग्ध प्रगति उन पलों की कल्पना कर सकती थी जब चेतन और सिमरन उस पर लेटे, दाएंबाएं झुलते हुए भविष्य के सपने बुनते होंगे.

‘‘बस अब दोनों शादी कर डालो. इस कमरे की शान दोगनी हो जाएगी,’’ प्रगति दोनों को प्रशंसापूर्ण दृष्टि से देखते हुए बोली.

इस से पहले कि सिमरन कुछ कहती चेतन बोल उठा, ‘‘क्यों हमें जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा कर मार डालना चाहती हो मैडम प्रगति?’’

‘‘कौन सी जिम्मेदारियां बढ़ जाएंगी शादी के बाद? फैमिली जब चाहे बढ़ाना. उलटा सोच रहे हो चेतन तुम. शादी के बाद सिक्योर महसूस करोगे रिश्ते में दोनों,’’ प्रगति अपनी बात पूरी होते ही सिमरन की ओर समर्थन की आशा से देखने लगी.

सिमरन ने भी सिर हिला कर सहमति जता दी.

चेतन मुंह बनाते हुए बोला, ‘‘पता है हम दोनों कितने टैंशन फ्री हैं. एकसाथ रहने से पहले ही डिसाइड कर लिया था कि कोई नियमबंधन नहीं होंगे हमारे रिश्ते में. जो जब चाहे रिश्ते से अलग हो सकता है. देखो न फिर भी पूरा 1 साल होने वाला है एकसाथ रहते हुए हमें.’’

सिमरन और प्रगति जब शौपिंग संबंधी बातें करने लगीं तो चेतन कौफी बना कर ले आया. कौफी का मग सिमरन के हाथ में देते हुए वह कान में बुदबुदाया, ‘‘तुम ने आज ‘वर्जिन आइलैंडवाटर’ परफ्यूम क्यों लगा लिया? अपने बैडरूम से बिलकुल मैच कर रहा है, सीबीच की सोंधीसोंधी गंध में डूब रहा हूं. बेसब्र कर रही हो जान. प्रगति को वापस भेजो न जल्दी से.’’

अपना मग हाथ में ले कर चेतन प्रगति के पास जा कर बैठ गया. सिमरन और उस का चेहरा आमनेसामने था. प्रगति चेतन का चेहरा सीधेसीधे नहीं देख पा रही थी. इस का पूरा लाभ उठाते हुए चेतन सिमरन को छेड़ रहा था. कभी फ्लाइंग किस कर तो कभी नाक से खुशबू सूंघ कर दीवाना होने का अभिनय करते हुए लगातार सिमरन को देख रहा था. सिमरन बहुत मुश्किल से हंसी दबाते हुए उसे आंखें तरेर कर देख लेती थी.

प्रगति को विदा कर दोनों जैसे ही घर में घुसे चेतन ने सिमरन को अपने अंक में भर लिया. अपनी नाक उस के गालों पर फिसलाते हुए गले तक पहुंच चेतन परफ्यूम और सिमरन की मिलीजुली सुगंध में डूबनेउतराने लगा. सिमरन पर भी इस प्रेम का भरपूर प्रभाव दिख रहा था. चेतन के गले में बाहें डाल उस के गालों से अपने गाल सटाकर कुछ देर वह पलकें मूंदे मुसकराती रही. लव यू चेतन कहते हुए उस ने अपना चेहरा चेतन के सीने में छिपाया तो चेतन की बलिष्ठ भुजाएं उसे जमीन से उठा कर बैड तक पहुंचाने को अधीर हो गईं. सिमरन को अपनी गोद में ले कर बैडरूम तक पहुंचते हुए चेतन उसे हौलेहौले चूम रहा था. सिमरन को चेतन का यह अंदाज मदहोश कर रहा था.

‘मेड फौर ईचअदर’ शायद ऐसे ही जोड़ों के लिए कहा जाता होगा. हुस्न और इश्क ने इस जहां में सिमरन और चेतन बन कर जन्म लिया था.

शाम को दोनों साथसाथ बैठे अपनेअपने लैपटौप में खोए थे. एक मेल खोलते ही सिमरन चहक उठी, ‘लीला पैलेस में पोस्ट निकली है, अच्छा पैकेज दे रहे हैं. मैं अप्लाई कर देती हूं. हां, लेकिन रोज की तरह 6 बजे घर नहीं आ सकूंगी. रात 10 बजे तक रुकना पड़ेगा. फिर सुबह देर तक सोती रहूंगी. कोई ऐतराज.’’

‘‘स्वीटहार्ट, मैं तुम्हारा पति तो हूं नहीं कि पत्नी को आगे बढ़ता देख लूं. मैं तो आशिक हूं, अपनी महबूबा को फूलताफलता देखूंगा तो और जी चाहेगा प्यार करने का. रात 10 बजे के बाद लौटोगी तो खाना तैयार रखूंगा, सोने से पहले पैर भी दबा दिया करूंगा, सुबह बैडटी दे कर जगाएगा तुम्हें यह गुलाम,’’ अपना एक हाथ दिल पर रख सिर झुकाते हुए चेतन बोला.

‘‘सच में ऐसा सोचते हो या मैं शादी करने को न कह दूं इसलिए मीठे से प्रेमी बने रहते हो?’’

‘‘एक बात कहूं सिमरन? हम तो लिव इन में रह कर पतिपत्नी भी हैं लेकिन पतिपत्नी कभी प्रेमीप्रेमिका बन कर नहीं रह सकते. पूछ लेना अपनी किसी शादीशुदा सहेली से उस का अनुभव.’’

सिमरन का इंटरव्यू हुआ और उसे चुन लिया गया. दोनों ने घर की बदली हुई दिनचर्या में अपने को जल्दी ही ढाल लिया.

उस रविवार की सुबह हमेशा की तरह सिमरन अपने मम्मीपापा के फोन का इंतजार कर रही थी. फोन नहीं आया तो सिमरन ने उन को कौल कर लिया. बात खत्म होते ही दौड़ती हुई चेतन के पास आ कर खड़ी हो गई.

उस का उड़ा रंग देख कर चेतन घबरा गया, ‘‘क्या हुआ? सब ठीक तो है न?’’

‘‘चेतन मम्मीपापा शाम को यहां आ रहे हैं. घर से निकल चुके हैं. मुझे सरप्राइज देना चाह रहे थे. अच्छा हुआ मैं ने फोन कर लिया. बस की खड़खड़ और कंडक्टर की आवाज मुझे सुनाई दी तो उन्हें बताना पड़ा.’’

‘‘क्या कहोगी मेरे बारे में? कह देना कि सहेली का भाई है, कुछ दिनों के लिए आया हुआ है.’’

‘‘बुद्धू हो क्या? ऐसा कहूंगी तो साफ हो जाएगा कि हमारा क्या रिश्ता है. तुम मेरा हाथ मांग लो तो मिलवा सकती हूं उन से.’’

‘‘मजाक मत करो यार. सोचो क्या करना है?’’

‘‘मुझे एक उपाय सूझ रहा है,’’ कुछ सोचती सी सिमरन बोली, ‘‘ऐसा करते हैं कि तुम कुछ दिनों के लिए कुणाल के घर चले जाओ. वह तो सब जानता है, समझ सकेगा हमारी मजबूरी.’’

‘‘हां यह ठीक रहेगा,’’ चेतन राहत का अनुभव कर रहा था.

‘‘हम आज शाम के बाद न फोन पर बात करेंगे और न कोई मैसेज भेजेंगे एकदूसरे को. मम्मी के पास अपना मोबाइल नहीं है, पापा का यूज करती हैं और जब मैं साथ होती हूं तब मेरा भी. किसी को शक हो गया तो हमारी मुश्किलें बढ़ जाएंगी. उन के जाने के बाद मैं कौल कर लूंगी तुम को.’’

‘‘ओके. मैं अपना सारा सामान ले कर चला जाता हूं अभी. एक भी चीज रह गई तो पता नहीं क्या होगा.’’

कुणाल को फोन कर चेतन सामान पैक करने लगा. बैग तैयार हो गए तो पूरा घर देख लिया कि कोई निशानी छूट न जाए.

सिमरन ने नाश्ते में सैंडविच बना लिए. दोपहर हुई तो चेतन ने कुछ भी खाने से मना कर दिया. सिमरन से न जाने कितने दिन दूर रहना पड़े, सोच कर वह उदास हो रहा था. बैड पर बैठी सिमरन भी अन्यमनस्क सी हो रही थी. चेतन चुपचाप आ कर उस के पास बैठ गया. उस की रोनी सूरत देख सिमरन ने उस के बालों में अपनी उंगलियां फिराते हुए उस का सिर अपनी गोद में रख लिया. अपना मुख चेतन के चेहरे के समीप ला उस ने माथे पर चुंबन अंकित किया तो चेतन गुजारिश करते हुए बोला, ‘‘जाने से पहले एक बार…’’

‘‘हटो, बस एक ही बात,’’ चेतन का सिर गोद से हटा कर कृत्रिम क्रोध दिखाते हुए सिमरन बोली, ‘‘जुदाई के बारे में सोच कर मेरा कलेजा मुंह को आ रहा है और तुम्हें यह सब सूझ रहा है.’’

‘‘अरे मैं भी तो तुम से दूर होने की बात से परेशान हूं. कुछ देर रोमांस करेंगे तो टैंशन दूर होगी न.’’

‘‘तुम्हें टैंशन दूर करने का एक ही तरीका आता है. जब तक मम्मीपापा मेरे साथ रहेंगे क्या टैंशन में नहीं रहोगे? तब कहां जाओगे इस टैंशन को दूर करने?’’

सिमरन की बात सुन चेतन शरारती मूड में आ गया, ‘‘कहीं भी चला जाऊंगा. हम ने तो अपने रिश्ते को बंधनों से दूर रखने की शर्त रखी हुई है न.’’

‘‘यही होगा एक दिन. मैं जानती हूं,’’ सिमरन फूटफूट कर रोने लगी.

‘‘अरेअरे, तुम मजाक का कब से बुरा मानने लगीं? न न आंसू नहीं,’’ सिमरन के आंसुओं को अपनी हाथ से पोंछ आंखों को चूमते हुए चेतन बोला.

चेतन से सटी, नम आंखें और लाल नाक लिए सिमरन की रुलाई रोके नहीं रुक रही थी. अपने स्वर को मार्मिक सा बनाते हुए चेतन ने राजेश खन्ना स्टाइल में ‘पुष्पा आई हेट टीयर्स’ कहा तो वह खिलखिला कर हंस दी.

शाम होने से पहले ही चेतन कुणाल के घर चला गया. वहां एक अन्य मित्र भी उपस्थित था. दोस्तों संग बतियाते हुए चेतन को पता ही नहीं लगा कि रात के 11 बज गए हैं. बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गए.

अगले दिन सुबह उठा तो सिमरन के खयाल ने घेर लिया. बिस्तर पर, कमरे में यहां तक कि चाय के कप में भी वही दिख रही थी. फोन पर आवाज सुनने को जी ललचा रहा था लेकिन सिमरन की सख्त हिदायत के कारण मन मार लिया.

‘‘उसे इतना प्यार करता है तो शादी क्यों नहीं कर लेता? देख रहा हूं मुंह लटकाएलटकाए घूम रहा है,’’ चेतन को गुमसुम देख कुणाल बोल उठा.

‘‘कैसा दोस्त है तू कि शादी करवा कर मेरी जिंदगी बरबाद करना चाहता है. एक किस्सा सुन. एक बार मैं और सिमरन एक फिल्म देखने गए थे. फिल्म के शुरू में ही हीरोहीरोइन की शादी हो जाती है. सिनेमाहौल में पीछे से लोगों की आवाजें आने लगी कि हम तो सोच कर आए थे रोमांटिक फिल्म देखने जा रहे हैं, लेकिन लगता है इस फिल्म में तो बस लड़ाई?ागड़ा ही होगा. अब बोल. शादी में रखा ही क्या है?’’

‘‘तो मत करना कभी भी शादी. मेरा अरमान अधूरा ही रहने दे, ‘आज मेरे यार की शादी है…’ ‘‘गाने पर नाचने का. बना रह लवर बौय,’’ हाथ जोड़ कर कुणाल बोला तो चेतन का जोरदार ठहाका कमरे में गूंज उठा.

चेतन का समय कुणाल के साथ यों तो हंसीखुशी बीत रहा था लेकिन सिमरन के लिए तड़पन बड़ी शिद्दत से महसूस हो रही थी. इंतजार था तो सिमरन के उस फोन का जब वह बताएगी कि मम्मीपापा जा चुके हैं.

उस दिन कुणाल घर का सामान लेने बाजार गया हुआ था. चेतन घर पर ही था क्योंकि उसे औफिस का एक जरूरी काम निबटाना था. लौटने पर घर में घुसते ही कुणाल चेतन के सामने आ खड़ा हुआ और भेदती नजरों से उसे घूरते हुए बोला, ‘‘यार, सचसच बता तू यहां क्यों आया है? तेरा और सिमरन का झगड़ा हुआ है न?’’

‘‘नहीं भाई, पर तुझे क्या हो गया अचानक?’’ चेतन भौचक्का सा कुणाल को देख रहा था.

‘‘सिमरन ने यही कहा था न तुझ से कि उस  के मम्मीपापा आने वाले हैं?’’

‘‘पहेलियां मत बुझ. साफसाफ बता बात क्या है?’’ कुणाल के साथ उस का स्वर भी व्याकुल हो रहा था.

‘‘अभीअभी मैं ने बाजार में सिमरन को एक लड़के के साथ देखा. दोनों मेरे सामने कैब से उतर कर एक रैस्टोरैंट में जा कर बैठ गए,’’ बोलतेबोलते कुणाल का मुंह कसैला हो रहा था.

एकबारगी चेतन को विश्वास ही नहीं हुआ. कुछ कहने के लिए उस ने मुंह खोला ही था कि कुणाल ने अपना मोबाइल निकाल लिया. एक तसवीर दिखाते हुए बोला, ‘‘देख, दूर से ली है, वही तो है. कहा था न मैं ने कि कर ले शादी. पर तेरा जुमला तो हमेशा यही होता था न कि आई वांट टु लिव ए स्ट्रैस फ्री लाइफ. देखा न हुआ सब उलटा. अब झेलना सिर्फ स्ट्रैस, केवल दबाव, तनाव. मुझे क्या.’’

चेतन का जी तो नहीं चाह रहा था कि वह सिमरन का किसी और के साथ देखा जाना स्वीकार कर ले, लेकिन धुंधली सही तसवीर तो यही बयां कर रही थी. शांत बैठ कर अपनी उंगलियां चटकाते हुए सोच में पड़ गया कि अब क्या किया जाए?

2-3 दिन बाद औफिस की एक सहकर्मी ने सिमरन की चर्चा शुरू करते हुए उस के किसी लड़के के साथ दिखने की बात कह दी. चेतन अंदर से टूट रहा था. कुछ सोचते हुए उस ने मोबाइल हाथ में लिया लेकिन सिमरन को कौल करने के स्थान पर फेसबुक खोल ली और अपना स्टेटस अपडेट कर दिया. गुस्से, अपमान और बेबसी से भरे चेतन का फेसबुक रिलेशनशिप स्टेटस अब ‘इट्स कंप्लिकेटेड’ हो गया.

ऐसे ही 15 दिन बीत गए. न सिमरन का फोन आया और न ही चेतन को कुछ और पता लग सका. चेतन को परेशान देख कुणाल ने एक दिन कहा, ‘‘मैं जाऊं सिमरन के घर, देखूं क्या हो रहा है?’’

‘‘नहीं, अब कोई फायदा नहीं. शायद मैं ही गलत था. सिमरन जब रिश्ते में बंधना चाह रही थी तो मुझे मान लेना चाहिए था. जब से सिमरन की नई जौब लगी थी वह अपने मैनेजर का अकसर जिक्र करती थी. सिमरन ने बताया था कि वह बातोंबातों में उसे शादी के लिए इशारा कर चुका है. शायद सिमरन को ऐसे साथी की जरूरत थी जो प्यार के साथसाथ ऐसा रिश्ता भी दे पाए जिसे दुनिया के सामने छिपाना न पड़े. मम्मीपापा के आने का बहाना बना कर सिमरन ने सामान समेत मुझ से घर खाली करवा लिया शायद. अब मैं कहीं और रहने की जगह तलाश लूंगा,’’ चेतन के स्वर में हताशा और निराशा स्पष्ट झलक रही थी.

‘‘जगह क्यों?  नया रिश्ता भी तलाश लेना. तुम ने तो एकदूसरे को छूट दी थी न कि जो जब चाहे रिश्ते से अलग हो सकता है,’’ कुणाल के शब्दों में व्यंग्य कम लाचारी अधिक दिख रही थी.

कुछ देर दोनों के बीच मौन पसरा रहा. कुणाल के मोबाइल की रिंगटोन से चुप्पी टूट गई. मोबाइल पर प्रगति का नंबर चमक रहा था. कुणाल के हैलो कहते ही प्रगति रोष भरी आवाज में बोली, ‘‘भैया यह तुम्हारा दोस्त चेतन किस किस्म का प्राणी है? मेरे पास अभी सिमरन का फोन आया था. पता है कितना रो रही थी बेचारी. कुछ दिनों पहले उस के पेरैंट्स आए थे तो उस ने चेतन को तुम्हारे पास आने को कह दिया था. जनाब ऐसे आजाद हुए कि फेसबुक स्टेटस ही बदल डाला. 10-15 दिन दूर क्या रहा रिश्ते से कि इसे उल?ानें दिखने लगीं उस में. 1 साल से तो सब ठीक चल रहा था. है कहां है वह? आप के पास है अभी या कहीं और मौजमस्ती करने भाग गया?’’

जब कुणाल ने प्रगति को सिमरन और लड़के वाली बात बताई तो प्रगति झल्लाते हुए बोली, ‘‘उफ, तुम भी न भैया…क्या कहूं अब? पता तो कर लिया होता सिमरन से. भैया, उस के पेरैंट्स ही ले कर आए थे अपने साथ सुशील,  संस्कारी, जेठालाल टाइप के एक लड़के को. उस लड़के से रिश्ता पक्का करने के लिए वे सिमरन के पीछे पड़े थे. दोनों को एकसाथ घूमने के लिए भी वे ही कहते थे. न जाने कैसेकैसे बहाने बना कर बहुत मुश्किल से पीछा छुड़ाया है सिमरन ने उन सब से. अब जल्दी से चेतन को भेजो सिमरन के पास. वह तो सोच रही है कि चेतन ने उस से मुंह मोड़ लिया है. मैं अभी उसे कौल करती हूं.’’

कुणाल ने चेतन को प्रगति से हुई बातचीत के विषय में बता कर उसे फौरन सिमरन के पास जाने को कहा. चेतन बिना देरी किए चल दिया.

सिमरन के दरवाजा खोलते ही चेतन ने शिकायती लहजे में पूछा, ‘‘मम्मीपापा के वापस जाने पर मुझे इन्फौर्म क्यों नहीं किया?’’

‘‘कैसे करती? तुम ने तो अपना फेसबुक स्टेटस ही चेंज कर दिया था.’’

‘‘कुणाल ने तुम्हारे बारे में बताया तो मैं…’’ अपनी बात बीच में ही छोड़ चेतन सिर पकड़ कर बैठ गया.

‘‘मैं प्रगति को अपना दर्द न सुनाती तो जाने क्या होता?’’ कहते हुए सिमरन उस से सट कर बैठ गई.

दोनों के मन शांत हुए तो चेतन ने सिमरन को कस कर पकड़ लिया, ‘‘अब तुम से दूर नहीं जाऊंगा एक दिन के लिए भी नहीं, कभी भी नहीं, तुम कहोगी तो भी नहीं,’’ शब्दशब्द के साथ चेतन अपने अधरों से सिमरन के तन पर प्रेम की मुहर लगा रहा था.

सिमरन छुईमुई सी उस के बाहुपाश में सिमटी इस प्रेम को आत्मसात कर पिघली जा रही थी. कुछ देर एकदूसरे की निकटता को भरपूर जी लेने के बाद चेतन झट से उठ कर चल दिया.

‘‘कहां जा रहे हो? यहीं रहो न मेरे पास,’’ चेतन का हाथ खींचते हुए मादक स्वर में सिमरन बोली.

‘‘एक मिनट,’’ पास रखे अपने बैग से एक लाल, वैलवेट की डब्बी निकालते हुए चेतन बोला.

डिब्बी खुली तो उस में से एक चमचमती डायमंड रिंग झांक रही थी.

‘‘यह मैं ने अगले महीने तुम्हारे बर्थडे पर गिफ्ट देने के लिए बनवाई थी. आज ही पहनाना चाहता हूं तुम्हें इंगेजमैंट रिंग के तौर पर,’’ चेतन का स्वर चाहत से भरा हुआ था.

हौले से अंगूठी पहना कर चेतन ने सिमरन का गोरा नाजुक हाथ प्यार से अपने हाथ में ले कर चूम लिया और फिर नमकीन आंखों से उस की ओर देखते हुए बोला, ‘‘आई प्रौमिस टू लव यू फौरएवर, सिमरन. विल यू मैरी मी?’’

‘‘ओह चेतन,’’ कहते हुए सिमरन उस के गले लग गई.

चेतन उस के बालों को सहलाते हुए बोला, ‘‘सिमरन, यह सच है कि लिव इन में रहते हुए कभी तलाक नहीं हो सकता लेकिन तुम्हें कोई मुझ से छीन सकता है. तुम्हारे पेरैंट्स तुम पर शादी के लिए दबाव डालने लगे हैं. कब तक बहाने बनाती रहोगी तुम? मैं नहीं रह सकता तुम्हारे बिना. एकदूसरे से वादा करते हैं कि मैरिज के बाद हम पतिपत्नी नहीं लिव इन पार्टनर्स बन कर रहेंगे. मैं मिलना चाहता हूं अब तुम्हारे मम्मीपापा से,’’ चेतन ने बात पूरी होते ही फेसबुक खोल कर अपना रिलेशनशिप स्टेटस बदल दिया. अब उस का स्टेटस था, ‘इंगेज्ड.’ जल्द ही वह उसे अपडेट कर ‘मैरिड’ में बदल देना चाहता था.

Best Story : उतरन

लेखिका- कात्यायनी सिंह

Best Story : रहरहकर उस का दिल धड़क रहा था. मन में उठते कई सवाल उस के सिर पर हथौड़े की तरह चोट कर रहे थे. यह क्या हो गया? भूल किस से हुई? या भूल हुई भी तो क्यों हुई? मन में उभरते इन सवालों का दंश झेल पाना मुश्किल हो रहा था. अभी बेटी के होस्टल में पहुंचने में तकरीबन 3 घंटे का समय था. बस का झेलाऊ सफर और उस पर होस्टल से किया गया फोन कि आप की बेटी ने आत्महत्या करने की कोशिश की है…

अपने अंदर झांकने की हिम्मत नहीं हुई. स्मृति पटल पर जमी कई परतें, परत दर परत सामने आने और ओझल होने लगीं. दिल बैठा जा रहा था. अवसाद गहरा होता जा रहा था. तन का बोझ भी सहना मुश्किल और आंखों से बहती अविरल धारा…

वह खिड़की के सहारे आंखें मूंदे, दिल

और दिमाग को शांत करने की कोशिश करने लगी. पर एकएक स्मृति आंखों में चहलकदमी करती हुई सजीव होने लगी. वह घबरा कर खिड़की से बाहर देखने लगी. आंखों की कोरों पर बांधा गया बांध एकाएक टूट कर प्रचंड धारा बन गया. यों तो जिंदगी करवट लेती है, पर इस तरह की उस का पूरा वजूद दूसरी शादी के नाम पर स्वाह हो जाए. क्योंकि उस ने दूसरी शादी? क्या मिला उसे? स्वतंत्र वजूद की चाहत भी तो अस्तित्वहीन हो गई?

पर समाज का तो एक अलग ही नजरिया होता है. तलाकशुदा स्त्री को देख लोगों की

आंखों में हिकारत का कांटा चुभ सा जाता है. और उस कांटे को निकालने के लिए ही तो रूपा ने दूसरी शादी की.

पहली शादी और तलाक को याद कर मन कसैला नहीं करना चाहती

अब. पर न चाहने से क्या होता है. तलाक के 10 साल पहले ही बेटी उस की गोद में आ चुकी थी. शादी के 2 दिन बाद ही सपने बिखरने की आहट सुनाई देने लगी थी. सुनहरे दिन और सपनों में नहाई रात, सब इतनी भयावह कैसे हो गई? वह आज तक समझ नहीं पाई.

हर रोज की मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना उसे जिंदगी से बेजार करने लगी थी और उस के नीचे कराहता उमंगों भरा मन. पहलेपहल भरपूर विरोध किया रूपा ने. पर दिन, महीने और 7 साल बीतते चले गए और उस का धैर्य क्षीण होता रहा. पर एक दिन… उसी विरोध के महीन परतों के नीचे ज्वालामुखी के असंख्य कण फूट पड़े. और अंतत: उसे तलाक की पहल भी करनी पड़ गई…

2 साल लगे इस अनचाही पीड़ादायी परिस्थिति से नजात पाने में. तलाक के बाद बेटी को साथ ले कर वो एक अनजान सफर पर निकल गई. मंजिल उस को पता नहीं थी. इस असमंजस की स्थिति के बावजूद वह तनावमुक्त महसूस कर रही थी खुद को. आखिर

2 सालों के संघर्ष ने नारकीय जीवन से मुक्ति जो दिलाई थी. कुदरत ने मेहरबानी दिखाई और 1 हफ्ते में ही रेडियो स्टेशन में नौकरी लग जाने के कारण

उसे कोई आर्थिक तंगी का एहसास नहीं हुआ. और फिर मायके का सहारा भी संबल बना.

उगते सूरज की लालिमा उस के गालों पर उतरने लगती थी, जब रेडियो स्टेशन में उसे एक पुरुष प्यार से देखता था. अच्छा लगता था उसे यों किसी का देखना. 2 वर्ष का अकेलापन ही था, जो अनजान पुरुष को देख कर पिघलने लगा.

पिछली यादों में तड़पता उस का मन कहता कि मुझे इस सुख की आशा नहीं करनी चाहिए अब. मेरे हिस्से में कहां है सुख… और अजीब सी उदासी मन को उद्वेलित करने लगती.

उफ्फ, यह अचानक आज मुझे क्या हो रहा है? 2 सालों के अकेलेपन में कभी भी इस तरह का खयाल नहीं आया. अकेलापन, उदासी, सबकुछ अपनी बेटी की मुसकान तले दब चुकी थी. फिर आज क्यों? जबकि उस ने तलाक के बाद किसी भी पुरुष को अपने दायरे के बाहर ही रखा. अंदर आने की इजाजत नहीं दी किसी को. पर आज इस पुरुष को देख कर क्यों तपते रेगिस्तान में बारिश की बूंदों जैसा महसूस हो रहा है.

‘क्या ये कोई स्वप्न है या फिर पिछले जन्म का साथ. क्यों मेरी नजरें बारबार उस की ओर उठ रही हैं? क्यों वह उसे अनदेखा नहीं कर पा रही है? मन में एक सवाल- क्या कुदरत को कुछ और खेल खेलना है? इसी उधेड़बुन में शाम हो गई,’ उस ने अपने बैग को कंधे पर लटकाया और बाहर निकल आई.

पूस की सर्दी में भी उस के माथे पर पसीने की बूंदें झिलमिला रही थीं. चेहरे पर शर्म भरी मुसकराहट खिल उठी. तो क्या उसे प्यार हो गया है? एकाएक उस की मुद्रा ने गंभीरता का आवरण ओढ़ लिया. सोचने लगी, ‘उस का मकसद तो सिर्फ और सिर्फ अपनी बेटी का भविष्य बनाना है. नहींनहीं, वह इन फालतू के बातों में नहीं पड़ेगी.’

तभी उसे एक आवाज ने चौंका दिया, ‘‘चलिए मैं आप को घर छोड़ देता हूं. कब तक यहां खड़ी रह कर रिकशे का इंतजार करेंगी. अंधेरा भी तो गहरा रहा है.’’

पलट कर देखा तो वही पुरुष था, जो उस के दिलोदिमाग पर छाया हुआ था. वैसे अंधेरे की आशंका तो उस के मन में भी थी. वह बिना कुछ जवाब दिए उस की कार में बैठ गई. मध्यम स्वर में गाना बज रहा था-

धीरेधीरे से मेरी जिंदगी में आना

धीरेधीरे से दिल को चुराना…

वह चुपचाप बैठ बाहर के अंधेरे में झांकने की असफल कोशिश रही थी. तभी उस ने हंस कर पूछा, ‘‘अंधेरे से लड़ रही हैं या मुझे अनदेखा कर रही हैं?’’

वह भी मुसकरा दी, ‘‘अपने वजूद को तलाश रही हूं. आप घुसपैठिए की तरह

जबरदस्ती घुस आए हैं, इसी समस्या के निवारण में जुटी हूं.’’

खिलखिला कर हंस पड़ा वह. लगा जैसे चारों तरफ हरियाली बिखर गई हो. इन्हीं बातों के दरमियान घर आ गया और वह बिना कुछ कहे गाड़ी से उतर कर जाने लगी. तभी उस ने विनती भरे स्वर में उस का मोबाइल नंबर मांगा. पहले तो वह झिझकी, लेकिन फिर कुछ सोच कर नंबर दे दिया.

दिन बीतने के साथ बातों का और फिर मिलने का सिलसिला शुरू हो गया. वह नहीं चाहती थी कि रचित हर शाम उस से मिलने आए. क्योंकि एक तो बदनामी का डर और दूसरी तरफ बेटी जिस की नजरों का सामना करना मुश्किल होता. मन की आशंकाएं उसे परेशान करती कि उस के जानने के बाद, क्या वह बेझिझक उस के सामने जा पाएगी? पर दफ्तर के बाद का खाली समय उसे काटने दौड़ता. झिझक और असमंजस के बीच वह मिलने का समय होते ही उस के आने की राह भी देखती.

तेरे वादों पर हम एतबार कर बैठे

ये क्या कर बैठे, हाय क्या कर बैठे

एक बार मुसकरा कर देख क्या लिए

सारी जिंदगी हम तेरे नाम कर बैठे…

सपनों के साये तले रात और दिन बीतते रहे. समय पंख लगा कर उड़ रहा

था. पर उस के दिमाग में रहरह कर यही सवाल कौंधता कि कौनकौन होगा उस के घर में… सोचती… पूछूं या नहीं?

परएक दिन उस ने पूछ ही लिया, ‘‘रचित, हम एकदूसरे के इतने करीब आ गए हैं, पर अभी तक मैं तुम्हारे बारे में कुछ नहीं जानती. अपने परिवार के बारे में कुछ बताओ न?’’

‘‘क्या जानना चाहती हो? यही न कि मैं शादीशुदा हूं या नहीं, बच्चे हैं या नहीं…? हां बच्चे हैं. पर शादीशुदा होते हुए भी मैं अकेला हूं, क्योंकि पत्नी अब इस दुनिया में नहीं है. मेरे साथ मेरी मां और मेरा बेटा रहता है.’’

रूपा ने आंखें बंद कर लीं. यह सुख का क्षण था. सपने अभी जिंदा हैं… कुछ देर की मौन के बाद रचित ने पूछा, ‘‘क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

‘‘क्या तुम्हें पता है कि मेरी भी एक बेटी है? मैं एक तलाकशुदा हूं. क्या तुम्हारी फैमिली मुझे और मेरी बेटी को स्वीकार करेगी? सपनों की दुनिया बहुत कोमल होती है रचित. पर वास्तविकता का धरातल बहुत कठोर. अच्छी तरह सोच लो. फिर कोई निर्णय लेना,’’ इतना कहती गई, पर मन के किसी कोने में कुछ नया जन्म लेती महसूस कर रही थी रूपा.

कुछ तेरी कहानी है, कुछ मेरी कहानी है

हर बात खयाली है, हर बात रूहानी है

मिल जाए कभी जो हम, तो हर बात सुहानी है…

रूपा के गोरे से मुखड़े पर अठखेलियां करती लटों को हाथों हटाते हुए रचित ने उस के गालों को अपनी हथेलियों में समेट लिया और उस की मदभरी आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मैं अब तुम्हारे बगैर नहीं रह सकता रूपा. मैं सब ठीक कर दूंगा. बस तुम हां कर दो.’’

महीनों से चल रही मुलाकातों की फुहारें रूपा को आश्वासन की मधुर चासनी में सराबोर कर चुकी थीं. वह अपनेआप से अजनबी होती जा रही थी. कभी तो मन मचलता कि बारिश की बूंदों को अपनी हथेली में समेट ले. और कभी समंदर की लहरों के साथ विलीन हो जाने की विकलता. भावनाएं तूफान की तरह प्रचंड, उद्वेलित अंतर्मन की छटपटाहट ने आंखों में पानी का उबाल ला दिया. सामान्य गति से बीतते वक्त की चाल बहुत धीमी लग रही थी रूपा को, और सांसें धौंकनी की तरह तेज.

सांसों में बसे हो तुम

आंखों में बसे हो तुम

छूओ तो मुझे एकबार

धड़कन में बसे हो तुम…

समय गुजरते देर नहीं लगती. दोनों ने शादी कर ली. हालांकि रचित की मां बहुत मानमनुहार के बाद राजी हुई थीं और इस शर्त पर कि रूपा की बेटी कभी इस घर में नहीं आएगी. रूपा को बहुत बड़ा झटका लगा था. एक बार फिर से पुराने घावों का दर्द हरा हो गया था.

अचानक ही आए इस झंझावात ने रूपा के सपनों को चकनाचूर कर दिया. विचलित सी वह सन्न रह गई. पर रचित ने यह समझा कर शांत कर दिया कि वक्त के साथ सब बदल जाते हैं. मां को हम दोनों मिल कर मना लेंगे. रूपा ने गहरी सांस ली. उस ने बड़ी मुश्किल से दिल को समझाया, होस्टल से तो बच्ची महफूज है ही. जब मन करेगा जा कर उस से मिल लूंगी. सुखद भविष्य की कामना लिए रूपा को क्या पता था कि नियति क्याक्या रंग दिखाने वाली है.

डूबता हुआ सुर्ख लाल सूरज उसे माथे की बिंदिया सी लग रही थी. एक बार फिर से सब भूल कर उस ने रचित के प्यार भरोसा कर लिया. सुख की अनुभूतियां वक्त का पता ही नहीं चलने देती. सपनों के हिंडोले में झूलते 10 दिन कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला.

‘‘कल घर लौटने का दिन है रूपा,’’ रचित ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘प्यार ने हम दोनों को बांध रखा है, वरना हम तो नदी के दो किनारे थे.’’

रूपा आसमान की ओर देखती हुई बुदबुदाई.

रचित उस की आंखों में देखता कुछ पढ़ने की कोशिश करता रहा. फिर उस ने मन में अंदर चल रहे द्वंद्व को परे झटक कर रूपा की खूबसूरती को निहारने लगा. पलभर के लिए तो लगा कि काश, यह वक्त यही ठहर जाता. पर वक्त भी कभी ठहरता है भला.

साथ तुम्हारे चल कर यह अहसास हुआ

दरमियां हमारे सिर्फ प्यार, और कुछ नहीं…

अंधेरा चढ़ता गया और दोनों महकते एहसास के साथ सपनों सरीखे पलों की नशीली मादकता में विलीन. थकान से चूर कब दोनों की आगोश में समा गए, महसूस भी न हुआ. सुबह का सूरज नया दिन ले कर हाजिर हो गया. जल्दीजल्दी तैयार हो कर दोनों गाड़ी में बैठ गए और चल दिए घर की ओर.

घर पहुंचते ही सब से पहला सामना रचित के बेटे प्रथम से हुआ. उस की नजरें क्रोध और हिकारत से भरी हुई थीं. दोनों को देखते ही वह अंदर के कमरे में चला गया. रूपा के चेहरे पर सोच की लकीरें उभर आईं. तो क्या प्रथम की रजामंदी के बगैर शादी हुई है? जबकि मैं ने तो अपनी बेटी को बताया था कि रचित की मम्मी शादी के लिए तैयार हैं, पर शर्त रखी है कि तुम मेरे साथ उन लोगों के साथ नहीं रहोगी. ये सुन कर भी मेरी बेटी ने तो नाराजगी नहीं जताई. बल्कि उम्मीद से कहीं आगे बढ़ कर बोली, ‘‘मां, अभी भी तो हम साथ नहीं रहते. तुम मुझ से मिलने होस्टल तो वैसे भी आती रहती हो.’’

बच्ची को याद कर के रूपा की आंखें भर आईं. धीरेधीरे खुद को सामान्य कर सास के पास गई. लेकिन सास की बेरुखी ने तो दिल ही बैठा दिया. एक बार फिर से रूपा ने दिल को बहलाया. कोई बात नहीं. रचित तो समझता है न मुझे. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.

रूपा एक सपना देख रही है. वह है, उस की बच्ची है, रचित और प्रथम है. एक बहुत ही प्यारा सा, रंगीन सा प्रथम और बच्ची गोद में सोई है. रचित और मां उस के बगल में बैठे हैं. सभी बहुत खुश हैं.

अचानक नींद से जग जाती है रूपा. चारों तरफ देखती है…

ऐसा सपना, जिस का जाग्रत अवस्था से कोई संबंध नहीं. लेकिन सपने की खुशी उस के चेहरे पर झलक आती है. कभी न कभी यह सपना भी सच होगा, जरूर होगा.

देखती है पलट कर रचित को. नींद में बच्चों सा मासूम, प्यार से अपने गुलाबी होंठ उस के माथे पर टिका देती है. रचित के माथे पर भावनाओं का गुलाबी अंकन देख कर खुद शरमा भी जाती है रूपा. फिर उठ कर चल देती है किचन की ओर. नजदीक पहुंचते ही बरतनों की आवाज सुन कर चौंक गई. अंदर घुसते ही देखती है कि रचित की मां नाश्ता बना रही हैं.

‘‘मां, मैं बना देती हूं न…’’ सुनते ही सास किचन से बाहर निकल गई. सब समझते हुए भी रूपा ने खुद को संयत रख कर बाकी काम निबटाया और नाश्ता ले कर प्रथम के कमरे में दाखिल हुई. बेखबर सो रहे प्रथम को कुछ देर अपलक देखती रही. फिर बड़े प्यार से धीरेधीरे बाल सहलाते हुए बोली, ‘‘उठो प्रथम बेटा, स्कूल नहीं जाना क्या आज?’’ रूपा की आवाज कानों में पड़ते ही वह घबरा कर जाग गया और अजीब सी नजरों से घूरने लगा. पता नहीं क्यों इतना असहज कर रहा था उस का इस तरह घूरना? नफरत ऐसी कि आंखों में अंगारे दहक रहे हों.

‘‘आप फिर से मेरे कमरे में आ गईं? एक बात हमेशा याद रखिए कि आप सिर्फ पापा की पत्नी हैं, मेरी मम्मी नहीं. मेरी मम्मी की जगह कोई नहीं ले सकता. कोई भी नहीं.’’

स्तब्ध रह गई थी रूपा. रात का सुनहरा सपना ताश के पत्तों की तरह बिखरता नजर आ रहा था उसे. लगभग दौड़ती हुई वह कमरे से बाहर निकल गई.

ऊपर से सब कुछ सामान्य दिख रहा था, पर समय के साथ रचित में भी बदलाव आने लगा. दिनभर औफिस और घर के काम से थक कर चूर हो जाने के बावजूद रात में बिस्तर पर नींद का नामोनिशान तक नहीं. रचित से भी वो अब कुछ नहीं कहती. बस अपनी एक बात उसे अचंभित कर जाती थी. जिस घुटन और प्रताड़ना के विरुद्ध वह महीनों लड़ी, वह घुटन और प्रताड़ना अब उसे उतना विचलित नहीं करती थी. समय और उम्र समझौता करना सिखा देता है शायद.

आज सुबह से मन उद्विग्न हो रहा था बारबार. रहरह कर दिल में एक अजीब सी टीस महसूस हो रही थी. जैसेतैसे काम खत्म कर के चाय पीने बैठी ही थी कि दीया के होस्टल से फोन आ गया. चकोर को चांद मिल जाने खुशी मिल गई हो जैसे.

लेकिन यह क्या, मोबाइल से बात करते हुए उस के चेहरे पर दर्द का प्रहार महसूस कर सकता था कोई भी. कुछ देर के लिए तो वह मोबाइल लिए हतप्रभ सी बैठी रही. फिर अचानक बदहवास सी उठी और निकल गई बस स्टैंड की ओर.

होस्टल के गेट पर पहुंची तो काफी भीड़ दिखी. अनहोनी की आशंका उस के दिलोदिमाग को आतंकित करने लगी. अंदर जा कर देखा तो बेटी को जमीन पर लिटाया गया था. बेसब्री के साथ पास में बैठ गई और बड़े प्यार से पुकारी,

‘‘दीया बेटे.’’

कोई जवाब नहीं…

शरीर पकड़ कर हिलाया.

रूपा को तो जैसे करंट लग गया हो. इतना ठंडा और अकड़ा हुआ क्यों लग रहा है दीया का बदन. तो क्या?

नहीं…

ऐसा कैसे हो सकता है?

क्यों…?

किंतु अशांत धड़कता दिल आश्वस्त नहीं हो पा रहा था. वह निर्निमेष भाव से अपनी प्यारी परी को देखे जा रही थी. वही मोहक चेहरा…

तभी किसी ने उस के हाथों में एक कागज का टुकड़ा थमा दिया. यह कह कर कि आप की बेटी ने आप के नाम पत्र लिखा है.

डबडबाई आंखों से पत्र पढ़ने लगी-

‘दुनिया की सब से प्यारी ममा…’

आप को खूब सारा प्यार

आप को खूब सारी खुशियां मिले. सौरी ममा, मैं आप से मिले बगैर जा रही हूं. ये दुनिया बहुत खराब है ममा. तुम्हारे तलाक और शादी को ले कर बहुत गंदीगंदी बातें करते थे स्कूल के स्टूडैंट्स. कहते थे तेरी मां… छोड़ न मां.

मैं जानती हूं तुम्हारे बारे में.

लेकिन मां, मैं तंग आ गई थी उन के तानों से.

तुझ से नहीं बताया कि तू इतनी खुश है, परेशान हो जाओगी ये सब जान कर. मां, अब मुझे कोई परेशान नहीं करेगा. और तुम भी शांति से रह पाओगी.

हमेशा खुश रहना मां.

‘-तुम्हारी परी दीया.’

वह अपनेआप को रोक नहीं पाई. अचेत हो कर लुढ़क गई रूपा. पर उस अर्ध चेतनावस्था में भी वह मंदमंद मुसकरा रही थी.

वह अचानक उठ कर बैठ गई और खूब जोर से हंस पड़ी. उसे लगा वह तो न नए पति और उस के बच्चे की बन पाई न ही अपनी वाली को संभाल पाई. मां बनने की इतनी बड़ी कीमत देनी होगी इस का अंदाजा नहीं था.

दिल चिथड़े कर डालने वाली हंसी…

अगला दिन…

दुनिया के लिए एक सामान्य दिन जैसा ही सवेरा था.

सिवाय रूपा के…

Stories 2025 : मेरी मां का नया प्रेमी

Stories 2025 : श्वेता ने मां को फोन लगाया तो फोन पर किसी पुरुष की आवाज सुन कर वह चौंक गई…कौन हो सकता है? एक क्षण को उस के दिमाग में सवाल कौंधा. अमन अंकल तो होने से रहे. मां ने ही एक दिन बताया था, ‘तुम्हारे अमन अंकल को बे्रन स्ट्रोक हुआ था. अचानक ब्लडप्रेशर बहुत बढ़ गया था. आधे धड़ को लकवा मार गया. उन के लड़के आए थे, अपने साथ उन्हें हैदराबाद लिवा ले गए.’

‘‘हैलो…बोलिए, किस से बात करनी है आप को?’’ सहसा वह अपनी चेतना में वापस लौटी. संयत आवाज में पूछा, ‘‘आप…आप कौन? मां से बात करनी है. मैं उन की बेटी श्वेता बोल रही हूं.’’ स्थिति स्पष्ट कर दी.

‘‘पास के जनरल स्टोर तक गई हैं. कुछ जरूरी सामान लाना होगा. रोका था मैं ने…कहा भी कि लिख कर हमें दे दो, ले आएंगे. पर वह कोई स्पेशल डिश बनाना चाहती हैं शाम को. तुम्हें तो पता होगा, पास में ही सब्जी की दुकान है. वहां वह अपनी स्पेशल डिश के लिए कुछ सब्जियां लेने गई हैं…पर यह सब मैं तुम से बेकार कह रहा हूं. तुम मुझे जानती नहीं होगी. इस बीच कभी आई नहीं तुम जो मुझे देखतीं और हमारा परिचय होता… बस, इतना जान लो…मेरा नाम प्रभुनाथ है और तुम्हारी मां मुझे प्रभु कहती हैं. तुम चाहो तो प्रभु अंकल कह सकती हो.’’

‘‘प्रभु अंकल…जब मां आ जाएं, बता दीजिएगा…श्वेता का फोन था.’’ और इतना कह कर उस ने फोन काट दिया. न स्वयं कुछ और कहा, न उन्हें कहने का अवसर दिया.

श्वेता की बेचैनी उस फोन के बाद बहुत बढ़ गई. कौन हो सकते हैं यह महाशय? क्या अमन अंकल की तरह मां ने किसी नए…आगे सोचने से खुद हिचक गई श्वेता. कैसे सोचे? मां आखिर मां होती है. उन के बारे में हमेशा, हर बार, हर पुरुष को ले कर हर ऐसीवैसी बात कैसे सोची जा सकती है?

फिर भी यह सवाल तो है ही कि प्रभुनाथ अंकल कौन हैं? कैसे होंगे? कितनी उम्र होगी? मां से कब, कहां, कैसे, किन हालात में मिले होंगे और उन का संबंध मां से इतना गहरा कैसे बन गया कि मां अपना पूरा घर उन के भरोसे छोड़ कर पास के जनरल स्टोर तक चली गईं… सामान और स्पेशल डिश के लिए सब्जियां लेने…

इस का मतलब हुआ प्रभु अंकल मां के लिए कोई स्पेशल व्यक्ति हैं…लेकिन यह नाम पहले तो कभी मां से सुना नहीं. अचानक कहां से प्रकट हो गए यह अंकल? और इन का मां से क्या संबंध होगा…जिन के लिए मां स्पेशल डिश बनाती हैं…कह रहे थे कि जब वह आते हैं तो मां जरूर कोई न कोई स्पेशल डिश बनाती हैं…इस का मतलब हुआ यह महाशय वहां नहीं, कहीं और रहते हैं और कभीकभार ही मां के पास आते हैं.

अड़ोसपड़ोस के लोग अगर देखते होंगे तो मां के बारे में क्या सोचते होंगे? कसबाई शहर में इस तरह की बातें पड़ोसियों से कहां छिपती हैं? मां ने क्या कह कर उन का परिचय पड़ोसियों को दिया होगा? और उस परिचय पर क्या सब ने यकीन कर लिया होगा?

स्थिति पर श्वेता जितना सोचती जाती, उतने ही सवालों के घेरे में उलझती जाती. पिछली बार जब वह मां से मिलने गई थी तो उन की लिखनेपढ़ने की मेज पर एक नई डायरी रखी देखी थी. मां को डायरी लिखने का शौक है और महिला होने के नाते उन की वह डायरी अकसर पत्रपत्रिकाओं में छपती भी रहती है, अखबारों के साहित्य संस्करणों से ले कर साहित्यिक पत्रिकाओं तक में उन के अंश छपते हैं. चर्चा भी होती है. शहर में सब इसलिए भी उन्हें जानते हैं कि वहां के महाविद्यालय में हिंदी की प्रवक्ता थीं. लंबी नौकरी के बाद वहीं से रिटायर हुईं. मकान पिता ही बना गए थे. अवकाश प्राप्त जिंदगी आराम से वहीं गुजार रही हैं. भाई विदेश में है. श्वेता के पास आ कर वह रहना नहीं चाहतीं. बेटीदामाद के पास आ कर रहना उन्हें अपनी स्वतंत्रता में बाधक ही नहीं लगता बल्कि अनुचित भी लगता है.

इंतजार करती रही श्वेता कि मां अपनी तरफ से फोन करेंगी पर उन का फोन नहीं आया. मां की डायरी में एक अंगरेजी कवि का वाक्य शुरू में ही लिखा हुआ पढ़ा था ‘इन यू ऐट एव्री मोमेंट, लाइफ इज अबाउट टू हैपन.’ यानी आप के भीतर हर क्षण, जीवन का कुछ न कुछ घटता ही है…जीवन घटनाविहीन नहीं होता.

महाविद्यालय में पढ़ते समय भी श्वेता अपनी सहेलियों से मां की प्रशंसा सुनती थी. बहुत अच्छा बोलती हैं. उन की स्मृति गजब की है. ढेरों कविताओं के उदाहरण वह पढ़ाते समय देती चली जाती हैं. भाषा पर जबरदस्त अधिकार है. कालिज में शायद ही कोई उन जैसे शब्दों का चयन अपने व्याख्यान में करता है. पुरुष अध्यापक प्रशंसा में कह जाते हैं कि प्रो. कुमुदजी पता नहीं कहां से इतना वक्त निकाल लेती हैं यह सब पढ़नेलिखने का?

कुछ मुंहफट जड़ देते कि पति रेलवे में स्टेशन मास्टर हैं. अकसर इस स्टेशन से उस स्टेशन पर फेंके जाते रहते हैं. बाहर रहते हैं और महीने में दोचार दिन के लिए ही आते हैं. इसलिए पति को ले कर उन्हें कोई व्यस्तता नहीं है. रहे बच्चे तो वे अब बड़े हो गए हैं. बेटा आई.आई.टी. में पढ़ने बाहर चला गया है. कल को वहां से निकलेगा तो विदेश के दरवाजे उसे खुले मिलेंगे. लड़की पढ़ रही है. योग्य वर मिलते ही उस की शादी कर देंगी. फुरसत ही फुरसत है उन्हें…पढ़ेंगीलिखेंगी नहीं तो क्या करेंगी?

श्वेता एम.ए. के बाद शोधकार्य करना चाहती थी पर पिता को अपने एक मित्र का उपयुक्त लड़का जंच गया. रिश्ता तय कर दिया और श्वेता की शादी कर दी. बी.एड. उस ने शादी के बाद किया और पति की कोशिशों से उसे दिल्ली में एक अच्छे पब्लिक स्कूल में नौकरी मिल गई. पति एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर थे. व्यस्तता के बावजूद श्वेता अपने संबंध और कार्य से खुश थी. छुट्टियों में जबतब मां के पास हो आती, कभी अकेली, कभी बच्चों के साथ, तो कभी पति भी साथ होते.

आई.आई.टी. के तुरंत बाद भाई अमेरिका चला गया था. इधर मंदी के चलते अमेरिका से भारत आना उस के लिए अब संभव न था. कहता है अगर नौकरी से महीने भर बाहर रहा तो कंपनी समझ लेगी कि बिना इस आदमी के काम चल सकता है तो क्यों व्यर्थ में एक आदमी की तनख्वाह दी जाए. वैसे भी अमेरिका में जौब की बहुत मारामारी चल रही है.

फिर भी भाई को पिता की एक हादसे में हुई मृत्यु के बाद आना पड़ा था और बहुत जल्दी क्रियाकर्म कर के वापस चला गया था. पिता उस दिन अपने नियुक्ति वाले स्टेशन से घर आ रहे थे लेकिन टे्रन को एक छोटे स्टेशन पर भीड़ ने आंदोलन के चलते रोक लिया था. टे्रन पर पत्थर फेंके गए तो कुछ दंगाइयों ने टे्रन में आग लगा दी. जिस डब्बे में पिताजी थे उस डब्बे को लोगों ने आग लगा दी थी. सवारियां उतर कर भागीं तो उन पर दंगाइयों ने ईंटपत्थर बरसाए.

पत्थर का एक बड़ा टुकड़ा पिता के सिर में आ कर लगा तो वह वहीं गिर पड़े. साथ चल रहे अमन अंकल ने उन्हें उठाया. सिर से खून बहुत तेजी से बह रहा था. लोगों ने उन्हें ले कर अस्पताल तक नहीं जाने दिया. रास्ता रोके रहे. हाथपांव जोड़ कर अमन अंकल ने किसी तरह पिताजी को कहीं सुरक्षित जगह ले जाने का प्रयास किया पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उन की मृत्यु हो गई थी.

भाई ने पिता के फंड, पेंशन आदि की सारी जिम्मेदारी अमन अंकल को ही सौंप दी थी, ‘‘अंकल आप ही निबटाइए ये सरकारी झमेले. आप तो जानते हैं, इन कामों को निबटाने में महीनों लगेंगे, अगर मैं यहां रुक कर यह सब करता रहा तो मेरी नौकरी चली जाएगी.’’

‘‘तुम चिंता न करो. अपनी नौकरी पर जाओ. यहां मैं सब संभाल लूंगा. इसी रेलवे विभाग में हूं. जानता हूं. ऊपर से नीचे तक लेटलतीफी का राज कायम है.’’

अमन अंकल ने ही फिर सब संभाला था. बाद में उन का ट्रांसफर वहीं हो गया तो काम को निबटाने में और अधिक सुविधा रही. तब से अमन अंकल का हमारे परिवार से संबंध जुड़ा. वह अरसे तक जारी रहा. उन का एक ही लड़का था जो आई.टी. इंजीनियर था. पहले बंगलौर में नौकरी पर लगा था. बाद में ऊंचे वेतन पर हैदराबाद चला गया.

अमन अंकल की पत्नी की मृत्यु कैंसर से हो गई थी. नौकरी शेष थी तो अमन अंकल वहीं रह कर नौकरी निभाते रहे. इस बीच उन का हमारे परिवार में आनाजाना जारी रहा. मां की उन्होंने बहुत देखरेख की. पिता की मृत्यु का सदमा वह उन्हीं के कारण सह सकीं. यह उन का हमारे परिवार पर उपकार ही रहा. बाकी मां से उन के क्या और कैसे संबंध रहे, वह अधिक नहीं जानती.

कुछकुछ आभास श्वेता को उन की डायरी से ही हुआ था. एक बार उन की डायरी में कुछ कविताओं के अंश नोट किए हुए मिले थे.

‘तुम चले जाओगे पर थोड़ा सा यहां भी रह जाओगे, जैसे रह जाती है पहली बारिश के बाद हवा में धरती की सोंधी सी गंध.’

एक पृष्ठ पर लिखी ये पंक्तियां पढ़ कर तो श्वेता भौचक ही रह गई थी…सब कुछ बीत जाने के बाद भी बचा रह गया है प्रेम, प्रेम करने की भूख, केलि के बाद शैया में पड़ गई सलवटों सा… सबकुछ नष्ट हो जाने के बाद भी बचा रहेगा प्रेम, …दीपशिखा ही नहीं, उस की तो पूरी देह ही बन गई है दीपक, प्रेम में जलती हुई अविराम…

मम्मी अचानक ही आ गई थीं और डायरी पढ़ते देख एक क्षण को सिटपिटा गई थीं. बात को टालने और स्थिति को बिगड़ने से बचाने के लिए श्वेता खिसियायी सी हंस दी थी, ‘‘यह कवि आप को बहुत पसंद आने लगे हैं क्या, मम्मी?’’

‘‘नहीं, तुम गलत समझ रही हो,’’ मम्मी ने व्यर्थ हंसने का प्रयत्न किया था, ‘‘एक छात्रा को शोध करा रही हूं नए कवियों पर…उन में इस कवि की कविताएं भी हैं. उन की कुछ अच्छी पंक्तियां नोट कर ली हैं डायरी में. कभी कहीं भाषण देने या क्लास में पढ़ाने में काम आती हैं ऐसी उजली और दो टूक बात कहने वाली पंक्तियां.’’ फिर मां ने स्वयं एक पृष्ठ खोल कर दिखा दिया था, ‘‘यह देखो, एक और कवि की पंक्तियां भी नोट की हैं मैं ने…’’ वह बोली थीं.

उस पृष्ठ को वह एक सांस में पढ़ गई थी, ‘‘धीरेधीरे जाना प्यार की बहुत सी भाषाएं होती हैं दुनिया में, देश में और विदेश में भी लेकिन कितनी विचित्र बात है प्यार की भाषा सब जगह एक ही है और यह भी जाना कि वर्जनाओं की भी भाषा एक ही होती है…प्यार की भाषा में शब्द नहीं होते सिर्फ अक्षर होते हैं और होती हैं कुछ अस्फुट ध्वनियां और उन्हीं को जोड़ कर बनती है प्यार की भाषा…’’

मां के उत्तर से वह न सहमत हुई थी, न संतुष्ट पर वह व्यर्थ उन से और इस मसले पर उलझना नहीं चाहती थी. शायद यह सोच कर चुप लगा गई थी कि मां भी आखिर हैं तो एक स्त्री ही और स्त्री में प्रेम पाने की भूख और आकांक्षा अगर आजीवन बनी रह जाए तो इस में आश्चर्य क्या है?

पिता के साथ मां ने एक लंबा वैवाहिक जीवन जिया था. उस दुर्घटना में वह अचानक मां को अकेला छोड़ कर चले गए थे. शरीर की कामनाएंइच्छाएं तो अतृप्त रह ही गई होंगी…55-56 साल की उम्र थी तब मम्मी की. इस उम्र में शरीर पूरी तरह मुरझाता नहीं है. फिर पिता महीने 2 महीने में ही घर आ पाते थे. पूरा जीवन तो मां ने एक अतृप्ति के साथ बियाबान रेगिस्तान में प्यासी हिरणी की तरह मृगतृष्णा में काटा होगा…आगे और आगे जल की तलाश में भटकी होंगी…और वह जल उन्हें मिला होगा अमन अंकल में या हो सकता है मिल रहा हो प्रभु अंकल में.

एक शहर के महाविद्यालय में किसी व्याख्यान माला में भाषण देने गई थीं मम्मी. उन के परिचय में जब वहां बताया गया कि साहित्य में उन का दखल एक डायरी लेखिका के रूप में भी है तो उन के भाषण के बाद एक सज्जन उन से मिलने उन के निकट आ गए, ‘‘आप ही

डा. कुमुदजी हैं जिन की डायरियों के कई अंश…’’ मम्मी उठ कर खड़ी हो गई थीं, ‘‘आप का परिचय?’’

‘‘यहां निकट ही एक नेशनल पार्क है… मैं उस में एक छोटामोटा अधिकारी हूं.’’ इसी बीच महाविद्यालय के एक प्राध्यापकजी टपक पड़े थे, ‘‘हां, कुमुदजी यह छोटे नहीं मोटे अधिकारी हैं. वन्य जीवों पर इन्होंने अनेक शोध कार्य किए हैं. हमारे जंतु विज्ञान विभाग में यह व्याख्यान देने आते रहते हैं. यह विद्यार्थियों को जानवरों से संबंधित बड़ी रोचक जानकारियां देते हैं. अगर आप के पास समय हो तो आप इन का नेशनल पार्क अवश्य देखने जाएं… आप को वहां कई नए अनुभव होंगे.’’

श्वेता को मां ने बताया था, ‘‘यह महाशय ही प्रभुनाथ हैं.’’

मां की डायरी में बाद में श्वेता ने पढ़ा था.

‘किसीकिसी आदमी का साथ कितना अपनत्व भरा होता है और उस के साथ कैसे एक औरत अपने को भीतर बाहर से भरीभरी अनुभव करती है. क्या सचमुच आदमी की उपस्थिति जीवन में इतनी जरूरी होती है? क्या इसी जरूरीपन के कारण ही औरत आदमी को आजीवन दुखों, परेशानियों के बावजूद सहती नहीं रहती?’

खालीपन और अकेलेपन, भीतर के रीतेपन को भरने के लिए जीवन में क्या सचमुच किसी पुरुष का होना नितांत आवश्यक नहीं है…कहीं कोई आदमी आप के जीवन में होता है तो आप को लगता रहता है कि कहीं कोई है जिसे आप की जरूरत है, जो आप की प्रतीक्षा करता है, जो आप को प्यार करता है…चाहता है, तन से भी, मन से भी और शायद आत्मा से भी…

प्रभुनाथ के साथ पूरे 7 दिन तक नेशनल पार्क के भीतर जंगल के बीच में बने आरामदेय शानदार हट में रही… तरहतरह के जंगली जंतु तो प्रभुनाथ ने अपनी जीप में बैठा कर दिखाए ही, थारू जनजाति के गांवों में भी ले गए और उन के बारे में अनेक रोचक और विचित्र जानकारियां दीं, जिन से अब तक मैं परिचित नहीं थी.

‘दुनिया में कितना कुछ है जिसे हम नहीं जानते. दुनिया तो बहुत बड़ी है, हम अपने देश को ही ठीक से नहीं जानते. इस से पहले हम ने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि यह नेशनल पार्क…यह मनोरम जंगल, जंगल में जानवरों, पेड़पौधों की एक भरीपूरी विचित्र और अद्भुत आनंद देने वाली एक दुनिया भी होती है, जिसे हर आदमी को जीवन में जरूर देखना और समझना चाहिए.’

प्रभुनाथ ने चपरासी को मोटर- साइकिल से भेज कर भोजन वहीं उसी आलीशान हट में मंगा लिया था. साथ बैठ कर खाया. खाने के बाद प्रभुनाथ उठे और बोले, ‘‘तो ठीक है मैडम…आप यहां रातभर आराम करें. हम अपने क्वार्टर में जा कर रहेंगे.’’

‘‘नहीं. मैं अकेली हरगिज इस जंगल में नहीं रहूंगी,’’ मैं हड़बड़ा गई थी, ‘‘रात हो आई है और जानवरों की कैसी डरावनीभयावह आवाजें रहरह कर आ रही हैं. कहीं कोई आदमखोर यहां आ गया और उस ने इस हट के दरवाजे को तोड़ कर मुझ पर हमला कर दिया तो?’’

‘‘क्या आप को इस हट का कोई दरवाजा टूटा या कमजोर नजर आता है? हर तरह से इसे सुरक्षित बनाया गया है. इस में देश और प्रदेश के मंत्री, सचिव और आला अफसर, उन के परिवार आ कर रहते हैं. मैडम, आप चिंता न करें. बस रात को कोई जानवर या आदमी दरवाजे को धक्का दे, पंजों से खरोंचे तो आप दरवाजा न खोलें. यहां आप को पीने के लिए पानी बाथरूम में मिलेगा. चाय-कौफी बनाना चाहेंगी तो उस के लिए गैसस्टोव और सारी जरूरी क्राकरी व सामग्री किचन में मिलेगी. बिस्तर आरामदेय है. हां, रात में सर्दी जरूर लगेगी तो उस के लिए 2 कंबल रखे हुए हैं.’’

‘‘वह सब ठीक है प्रभु…पर मैं यहां अकेली नहीं रहूंगी या तो आप साथ रहें या फिर हमें भी अपने क्वार्टर की तरफ के किसी क्वार्टर में रखें.’’

‘‘नहीं मैडम,’’ वह मुसकराए, ‘‘आप डायरी लेखिका हैं. हिंदी की अच्छी वक्ता और प्रवक्ता हैं. हम चाहते हैं कि आप यहां के वातावरण को अपने भीतर तक अनुभव करें. देखें कि कैसा लगता है. बिलकुल नया सुख, नया थ्रिल, नया अनुभव होगा…और वह नया थ्रिल आप अकेले ही महसूस कर पाएंगी…किसी के साथ होने पर नहीं.

‘‘आप देखेंगी, जीवन जब खतरों से घिरा होता है…तो कैसाकैसा अनुभव होता है…जान बचे, इस के लिए ऐसेऐसे देवता आप को मनाने पड़ते हैं जिन की याद भी शायद आप को अब तक कभी न आई हो…बहुत से लेखक इस अनुभव के लिए ही यहां इस हट में आ कर रहना पसंद करते हैं.’’

‘‘वह तो सब ठीक है…पर आप को मैं यहां से जाने नहीं दूंगी.’’ फिर कुछ सोच कर पूछ बैठीं, ‘‘बाहर गेट के क्वार्टरों में आप की प्रतीक्षा पत्नीबच्चे भी तो कर रहे होंगे? अगर ऐसा है तो आप जाएं पर हमें भी वहीं किसी क्वार्टर में रखें.’’

गंभीर बने रहे काफी देर तक प्रभुनाथ. फिर एक लंबी सांस छोड़ते हुए बोले, ‘‘अपने बारे में किसी को मैं कम ही बताता हूं. यहां बाईं तरफ जो छोटा कक्ष है उस में एक अलमारी में जहां वन्य जीवजंतुओं से संबंधित पुस्तकें हैं वहीं मेरे द्वारा लिखी गई और शोध के रूप में तैयार पुस्तक भी है. अकसर यहां मंत्री लोग और अफसर अपनी किसी न किसी महिला मित्र को ले कर आते हैं और 2-3 दिन तक उस का जम कर देह सुख लेते हैं. उन के लिए हम लोग यहां हर सुविधा जुटा कर रखते हैं. क्या करें, नौकरी करनी है तो यह सब भी इंतजाम करने पड़ते हैं…’’

झेंप गईं डा. कुमुद, ‘‘खैर, वह सब छोडि़ए. आप अपने परिवार के बारे में बताइए.’’

‘‘एक बार हम पिकनिक मनाने यहां इसी हट पर अपने परिवार के साथ आए हुए थे. अधिक रात होने पर पता नहीं पत्नी को क्या महसूस हुआ कि बोली, ‘यहां से चलिए, बाहर के क्वार्टरों में ही रहेंगे. यहां न जाने क्यों आज अजीब सा भय लग रहा है.’ हम जीप में बैठ कर वापस बाहर की तरफ चल दिए. पत्नी, लड़की और लड़का. हमारे 2 ही बच्चे थे. अभी कुछ ही दूर चले होंगे कि खतरे का आभास हो गया. एक शेर बेतहाशा घबराया हुआ भागता हमारे सामने से गुजरा. पीछे कुछ बदमाश, जिन्हें हम लोग पोचर्स कहते हैं. जंगली जानवरों का चोरीछिपे शिकार करने वाले उन पोचरों से हमारा सामना हो गया.’’

‘‘निहत्थे नहीं थे हम. एक बंदूक साथ थी और साहसी तो मैं शुरू से रहा हूं इसीलिए यह नौकरी कर रहा हूं. बदमाशों को ललकारा कि अगर किसी जानवर को तुम लोगों ने गोली मारी तो हम आप को गोली मार देंगे. जीप को चारों ओर घुमा कर हम ने उस की रोशनी में बदमाशों की पोजीशन जाननी चाही कि तभी उन्होंने हम पर अपने आधुनिक हथियारों से हमला बोल दिया. हम संभल तक नहीं पाए… पत्नी और बेटी की मौत गोली लगने से हो गई. लड़का बच गया क्योंकि वह जीप के नीचे घुस गया था.

‘‘मैं उन्हें ललकारता हुआ अपनी बंदूक से फायर करने लगा. गोलियों की आवाज ने गार्डों को सावधान कर दिया और वे बड़ीबड़ी टार्चों और दूसरी गाडि़यों को ले कर तेजी से इधर की तरफ हल्ला बोलते आए तो बदमाश नदी में उतर कर अंधेरे का लाभ उठा कर भाग गए.’’

‘‘फिर दूसरी शादी नहीं की,’’ उन्होंने पूछा.

‘‘लड़के को हमारी ससुराल वालों ने इस खतरे से दूर अपने पास रख कर पाला…साली से मेरी शादी उन लोगों ने तय की पर एकांत में साली ने मुझ से कहा कि वह किसी और को चाहती है और उसी से शादी भी करना चाहती है. मैं बीच में न आऊं तो ही अच्छा है. मैं ने शादी से इनकार कर दिया…’’

‘‘लड़का कहां है आजकल?’’

डा. कुमुद ने पूछा.

‘‘बस्तर के जंगलों में अफसर है. उस की शादी कर दी है. अपनी पत्नी के साथ वहीं रहता है.’’

‘‘मैं ने तो सुना है कि बस्तर में अफसर अपनी पत्नी को ले कर नहीं जाते. एक तो नक्सलियों का खतरा, दूसरे आदिवासियों की तीरंदाजी का डर… तीसरे वहां आदमी को बहुत कम पैसों में औरत रात भर के लिए मिल जाती है.’’ इतना कह कर डा. कुमुद मुसकरा दीं.

‘‘जेब में पैसा हो तो औरत सब जगह उपलब्ध है…यहां भी और कहीं भी… इसलिए मैं ने शादी नहीं की. जरूरत पड़ने पर कहीं भी चला जाता हूं.’’ प्रभु मुसकराए.

‘‘हां, पुरुष होने के ये फायदे तो हैं ही कि आप लोग बेखटके, बिना किसी शर्म के, बिना लोकलाज की परवा किए, कहीं भी देहसुख के लिए जा सकते हैं…पैसों की कमी होती नहीं है आप जैसे बड़े अफसरों को…अच्छी से अच्छी देह आप प्राप्त कर सकते हैं. मुश्किल तो हम संकोचशील औरतों की है. हमें अगर देह- सुख की जरूरत पड़े तो हम बेशर्मी लाद कर कहां जाएं? किस से कहें?’’

‘‘वक्त बहुत बदल गया है कुमुदजी…अब औरतें भी कम नहीं हैं. वह बशीर बद्र का शेर है न… ‘जी तो बहुत चाहता है कि सच बोलें पर क्या करें हौसला नहीं होता, रात का इंतजार कौन करे आजकल दिन में क्या नहीं होता.’’’

मुसकराती रहीं कुमुद देर तक, ‘‘बड़े दिलचस्प इनसान हैं आप भी, प्रभुनाथजी.’’

श्वेता डायरी के अगले पृष्ठ को पढ़ कर अपने धड़कते दिल को मुश्किल से काबू में कर पाई थी…

मां ने लिख रखा था… ‘7 दिन रही उस नेशनल पार्क में और जो देहसुख उन 7 दिनों में प्राप्त किया शायद अगले 7 जन्मों में प्राप्त न हो सके. आदमी का सुख वास्तव में अवर्णनीय, अव्याख्य और अव्यक्त होता है…इस सुख को सिर्फ देह ही महसूस कर सकती है…उम्र और पदप्रतिष्ठा से बहुत दूर और बहुत अलग…’.

Broken Family Story : पतिहंत्री

लेखक- विनय कुमार पाठक

Broken Family Story : काश,जो बात अनामिका अब समझ रही है वह पहले ही समझ गई होती. काश, उस ने अपने पड़ोसी के बहकावे में आ कर अपने ही पति किशन की हत्या नहीं की होती. आज वह जेल के सलाखों के पीछे नहीं होती. यह ठीक है कि उस का पति साधारण व्यक्ति था. पर था तो पति ही और उसे रखता भी प्यार से ही था. उस का छोटा सा घर, छोटा सा संसार था. हां, अनावश्यक दिखावा नहीं करता था किशन.

अनावश्यक दिखावा करता था समीर, किशन का दोस्त, उसे भाभी कहने वाला व्यक्ति. वह उसे प्रभावित करने के लिए क्याक्या तिकड़म नहीं लगाता था. पर उस समय उसे यह तिकड़म न लग कर सचाई लगती थी. उस का पति किशन समीर का पड़ोसी होने के साथसाथ उस का मित्र भी था. अत: घर में आनाजाना लगा रहता था.

समीर बहुत ही सजीला और स्टाइलिश युवक था. अनामिका से वह दोस्त की पत्नी के नाते हंसीमजाक भी कर लिया करता था. धीरेधीरे दोनों में नजदीकियां बढ़ती गईं. अनामिका को किशन की तुलना में समीर ज्यादा भाने लगा. समय निकाल कर समीर अनामिका से फोन पर बातें भी करने लगा. शुरू में साधारण बातें. फिर चुटकुलों का आदानप्रदान. फिर कुछकुछ ऐसे चुटकुले जो सिर्फ काफी करीबी लोगों के बीच ही होती हैं. फिर अंतरंग बातें. किशन को संदेह न हो इसलिए वह सारे कौल डिटेल्स को डिलीट भी कर देती थी. समीर का नंबर भी उस ने समीरा के नाम से सेव किया था ताकि कोई देखे तो समझे कि किसी सखी का नंबर है. समीर ने अपने डीपी भी किसी फूल का लगा रखा था. कोई देख कर नहीं समझ सकता था कि वह किस का नंबर है.

धीरेधीरे स्थिति यह हो गई कि अनामिका को समीर के अलावा कुछ भी अच्छा नहीं लगने लगा. समीर भी उस से यही कहता था कि उसे अनामिका के अलावा कोई भी अच्छा नहीं लगता. कई बार जब वह घर में अकेली होती तो समीर को कौल कर बुला लेती और दोनों जम कर मस्ती करते थे. घर के अधिकांश सदस्य निचले माले पर रहते थे अत: सागर के छत के रास्ते से आने पर किसी को भनक भी नहीं लगती थी.

न जाने कैसे किशन को भनक लग गई.

उस ने अनामिका से कहा, ‘‘तुम जो खेल खेल रही हो उस से तुम्हें भी नुकसान है, मुझे भी

और समीर को भी. यह खेल अंत काल तक तो चल नहीं सकता. तुम चुपचाप अपना लक्षण सुधार लो.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हो? समीर तुम्हारा

दोस्त है. इस नाते मैं उस से बातें कर लेती हूं

तो इस में तुम्हें खेल नजर आ रहा है? अगर तुम नहीं चाहते तो मैं उस से बातें नहीं करूंगी,’’ अनामिका ने प्रतिरोध किया पर उस की आवाज में खोखलापन था.

बात आईगई तो हो गई, लेकिन इतना तय था कि अब अनामिका और समीर का मिलनाजुलना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर हो गया था. पर अनामिका समीर के प्यार में अंधी हो चुकी थी. समीर को शायद अनामिका से प्यार तो न था पर वह उस की वासनापूर्ति का साधन थी. अत: वह अपने इस साधन को फिलहाल छोड़ना नहीं चाहता था.

एक दिन समीर ने मौका पा कर अनामिका को फोन किया.

‘‘हैलो’’

‘‘कहां हो डार्लिंग? और कब मिल रही हो?’’

‘‘अब मिलना कैसे संभव होगा? किशन को पता चल गया है.’’

‘‘किशन को अगर रास्ते से हटा दें तो?’’

‘‘इतना आसान काम है क्या? कोई फिल्मी कहानी नहीं है यह. वास्तविक जिंदगी है.’’

‘‘आसान है अगर तुम साथ दो. फिल्मी कहानी भी हकीकत के आधार पर ही बनती है. उसे रास्ते से हटा देंगे. यदि संभव हुआ तो लाश को ठिकाने लगा देंगे अन्यथा पुलिस को तुम खबर करोगी कि उस की हत्या किसी ने कर दी है. पुलिस अबला विधवा पर शक भी नहीं करेगी. फिर हम भाग चलेंगे कहीं दूर और नए सिरे से जिंदगी बिताएंगे.’’

अनामिका समीर के प्यार में इतनी अंधी हो चुकी थी कि उस के सोचनेसमझने की क्षमता जा चुकी थी. समीर ने जो प्लान बताया उसे सुन पहले तो वह सकपका गई पर बाद में वह इस पर अमल करने के लिए राजी हो गई.

प्लान के अनुसार उस रात अनामिका किशन को खाना खिलाने के बाद कुछ देर

उस के साथ बातें करती रही. फिर दोनों सोने चले गए. अनामिका किशन से काफी प्यार से बातें कर रही थी. दोनों बातें करतेकरते आलिंगनबद्ध हो गए. आज अनामिका काफी बढ़चढ़ कर सहयोग कर रही थी. किशन को भी यह बहुत ही अच्छा लग रहा था.

उसे महसूस हुआ कि अनामिका सुबह की भूली हुई शाम को घर आ गई है. वह भी काफी उत्साहित, उत्तेजित महसूस कर रहा था. देखतेदेखते उस के हाथ अनामिका के शरीर पर फिसलने लगे. वह उस के अंगप्रत्यंग को सहला रहा था, दबा रहा था. अनामिका भी कभी उस के बालों पर हाथ फेरती कभी उस पर चुंबन की बौछार कर देती. प्यार अपने उफान पर था. दोनों एकदूसरे में समा जाएंगे. थोड़ी देर तक दोनों एकदूसरे में समाते रहे फिर किशन निढाल हो कर हांफते हुए करवट बदल कर सो गया.

अनामिका जब निश्चिंत हो गई कि किशन सो गया है तो वह रूम से बाहर आ कर अपने मोबाइल से समीर को मैसेज किया. समीर इसी ताक में था. समीर के घर की छत किशन के घर की छत से मिला हुआ था. अत: उसे आने में कोई परेशानी नहीं होनी थी. जैसे ही उसे मैसेज मिला वह छत के रास्ते ही किशन के घर में चला आया. अनामिका उस की प्रतीक्षा कर ही रही थी. वह उसे उस रूम में ले कर गई जिस में किशन बेसुध सोया हुआ था.

सागर अपने साथ रस्सी ले कर आया था. उस ने धीरे से रस्सी को सागर के गरदन के नीचे से डाल कर फंदा बनाया और फिर जोर से दबा दिया. नींद में होने के कारण जब तक किशन समझ पाता स्थिति काबू से बाहर हो चुकी थी. तड़पते हुए किशन अपने हाथपैर फेंक रहा था. अनामिका ने उस के पैर को अपने हाथों से दबा दिया. उधर सागर ने रस्सी पर पूरी शक्ति लगा दी. मुश्किल से 5 मिनट के अंदर किशन का शरीर ढीला पड़ गया.

अब आगे क्या किया जाए यह एक मुश्किल थी. लाश को बाहर ले जाने से लोगों के जान जाने का खतरा था. सागर छत के रास्ते वापस अपने घर चला गया. अनामिका ने रोतेकलपते हुए निचले माले पर सोए घर के सदस्यों को जा कर बताया कि किसी ने किशन की हत्या कर दी है. पूरे घर में कोहराम मच गया. पुलिस को सूचना दी गई. योजना यही थी कि कुछ दिनों के बाद अनामिका सागर के साथ कहीं दूर जा कर रहने लगेगी.

पर पुलिस को एक बात नहीं पच रही थी कि पत्नी के बगल में सोए पति की कोई हत्या कर जाएगा और पत्नी को पता नहीं चलेगा. पुलिस अनामिका से तथा आसपास के अन्य लोगों से तहकीकात करती रही. किसी ने पुलिस को सागर और अनामिकाके प्रेम प्रसंग की बात बता दी. पुलिस ने सागर से भी पूछताछ की. उस का जवाब कुछ बेमेल सा लगा तो उस के मोबाइल कौल की डिटेल ली गई. स्पष्ट हो गया कि दोनों के बीच कई हफ्तों से बातें होती रही हैं. कड़ी पूछताछ हुई तो अनामिका टूट गई. उस ने सारी बातें पुलिस को बता दी. सागर और अनामिका दोनों जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए. अब अनामिका को एहसास हुआ कि उस ने समीर के बहकावे में आ कर गलत कदम उठा लिया था.

अब उन के पास पछताने के सिवा कोई चारा नहीं था.

Beautiful Story : पीठ पीछे

Beautiful Story : दिनेश हर सुबह पैदल टहलने जाता था. कालोनी में इस समय एक पुलिस अफसर नएनए तबादले पर आए हुए थे. वे भी सुबह टहलते थे. एक ही कालोनी का होने के नाते वे एकदूसरे के चेहरे पहचानने लगे थे.

आज कालोनी के पार्क में उन से भेंट हो गई. उन्होंने अपना परिचय दिया और दिनेश ने अपना. उन का नाम हरपाल सिंह था. वे पुलिस में डीएसपी थे और दिनेश कालेज में प्रोफैसर.

वे दोनों इधरउधर की बात करते हुए आगे बढ़ रहे थे कि तभी सामने से आते एक शख्स को देख कर हरपाल सिंह रुक गए. दिनेश को भी रुकना पड़ा.

हरपाल सिंह ने उस आदमी के पैर छुए. उस आदमी ने उन्हें गले से लगा लिया.

हरपाल सिंह ने दिनेश से कहा,

‘‘मैं आप का परिचय करवाता हूं. ये हैं रामप्रसाद मिश्रा. बहुत ही नेक, ईमानदार और सज्जन इनसान हैं. ऐसे आदमी आज के जमाने में मिलना मुश्किल हैं.

‘‘ये मेरे गुरु हैं. ये मेरे साथ काम कर चुके हैं. इन्होंने अपनी जिंदगी ईमानदारी से जी है. रिश्वत का एक पैसा भी नहीं लिया. चाहते तो लाखोंकरोड़ों रुपए कमा सकते थे.’’

अपनी तारीफ सुन कर रामप्रसाद मिश्रा ने हाथ जोड़ लिए. वे गर्व से चौड़े नहीं हो रहे थे, बल्कि लज्जा से सिकुड़ रहे थे.

दिनेश ने देखा कि उन के पैरों में साधारण सी चप्पल और पैंटशर्ट भी सस्ते किस्म की थीं.

हरपाल सिंह काफी देर तक उन की तारीफ करते रहे और दिनेश सुनता रहा. उसे खुशी हुई कि आज के जमाने में भी ऐसे लोग हैं.

कुछ समय बाद रामप्रसाद मिश्रा ने कहा, ‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूं.’’

उन के जाने के बाद दिनेश ने पूछा, ‘‘क्या काम करते हैं ये सज्जन?’’

‘‘एक समय इंस्पैक्टर थे. उस समय मैं सबइंस्पैक्टर था. इन के मातहत काम किया था मैं ने. लेकिन ऐसा बेवकूफ आदमी मैं ने आज तक नहीं देखा. चाहता तो आज बहुत बड़ा पुलिस अफसर होता लेकिन अपनी ईमानदारी के चलते इस ने एक पैसा न खाया और न किसी को खाने दिया.’’

‘‘लेकिन अभी तो आप उन के सामने उन की तारीफ कर रहे थे. आप ने उन के पैर भी छुए थे,’’ दिनेश ने हैरान हो कर कहा.

‘‘मेरे सीनियर थे. मुझे काम सिखाया था, सो गुरु हुए. इस वजह से पैर छूना तो बनता है. फिर सच बात सामने तो नहीं कही जा सकती. पीठ पीछे ही कहना पड़ता है.

‘‘मुझे क्या पता था कि इसी शहर में रहते हैं. अचानक मिल गए तो बात करनी पड़ी,’’ हरपाल सिंह ने बताया.

‘‘क्या अब ये पुलिस में नहीं हैं?’’ दिनेश ने पूछा.

‘‘ऐसे लोगों को महकमा कहां बरदाश्त कर पाता है. मैं ने बताया न कि न किसी को घूस खाने देते थे, न खुद खाते थे. पुलिस में आरक्षकों की भरती निकली थी. इन्होंने एक रुपया नहीं लिया और किसी को लेने भी नहीं दिया. ऊपर के सारे अफसर नाराज हो गए.

‘‘इस के बाद एक वाकिआ हुआ. इन्होंने एक मंत्रीजी की गाड़ी रोक कर तलाशी ली. मंत्रीजी ने पुलिस के सारे बड़े अफसरों को फोन कर दिया. सब के फोन आए कि मंत्रीजी की गाड़ी है, बिना तलाशी लिए जाने दिया जाए, पर इन पर तो फर्ज निभाने का भूत सवार था. ये नहीं माने. तलाशी ले ली.

‘‘गाड़ी में से कोकीन निकली, जो मंत्रीजी खुद इस्तेमाल करते थे. ये मंत्रीजी को थाने ले गए, केस बना दिया. मंत्रीजी की तो जमानत हो गई, लेकिन उस के बाद मंत्रीजी और पूरा पुलिस महकमा इन से चिढ़ गया.

‘‘मंत्री से टकराना कोई मामूली बात नहीं थी. महकमे के सारे अफसर भी बदला लेने की फिराक में थे कि इस आदमी को कैसे सबक सिखाया जाए? कैसे इस से छुटकारा पाया जाए?

‘‘कुछ समय बाद हवालात में एक आदमी की पूछताछ के दौरान मौत हो गई. सारा आरोप रामप्रसाद मिश्रा यानी इन पर लगा दिया गया. महकमे ने इन्हें सस्पैंड कर दिया.

‘‘केस तो खैर ये जीत गए. फिर अपनी शानदार नौकरी पर आ सकते थे, लेकिन इतना सबकुछ हो जाने के बाद भी ये आदमी नहीं सुधरा. दूसरे दिन अपने बड़े अफसर से मिल कर कहा कि मैं आप की भ्रष्ट व्यवस्था का हिस्सा नहीं बन सकता. न ही मैं यह चाहता हूं कि मुझे फंसाने के लिए महकमे को किसी की हत्या का पाप ढोना पड़े. सो मैं अपना इस्तीफा आप को सौंपता हूं.’’

हरपाल सिंह की बात सुन कर रामप्रसाद के प्रति दिनेश के मन में इज्जत बढ़ गई. उस ने पूछा, ‘‘आजकल क्या कर रहे हैं रामप्रसादजी?’’

हरपाल सिंह ने हंसते हुए कहा,

‘‘4 हजार रुपए महीने में एक प्राइवेट स्कूल में समाजशास्त्र के टीचर हैं. इतना नालायक, बेवकूफ आदमी मैं ने आज तक नहीं देखा. इस की इन बेवकूफाना हरकतों से एक बेटे को इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में छोड़ कर आना पड़ा. अब बेचारा आईटीआई में फिटर का कोर्स कर रहा है.

‘‘दहेज न दे पाने के चलते बेटी की शादी टूट गई. बीवी आएदिन झगड़ती रहती है. इन की ईमानदारी पर अकसर लानत बरसाती है. इस आदमी की वजह से पहले महकमा परेशान रहा और अब परिवार.’’

‘‘आप ने इन्हें समझाया नहीं. और हवालात में जिस आदमी की हत्या कर इन्हें फंसाया गया था, आप ने कोशिश नहीं की जानने की कि वह आदमी कौन था?’’

हरपाल सिंह ने कहा, ‘‘जिस आदमी की हत्या हुई थी, उस में मंत्रीजी समेत पूरा महकमा शामिल था. मैं भी था. रही बात समझाने की तो ऐसे आदमी में समझ होती कहां है दुनियादारी की? इन्हें तो बस अपने फर्ज और अपनी ईमानदारी का घमंड होता है.’’

‘‘आप क्या सोचते हैं इन के बारे में?’’

‘‘लानत बरसाता हूं. अक्ल का अंधा, बेवकूफ, नालायक, जिद्दी आदमी.’’

‘‘आप ने उन के सामने क्यों नहीं कहा यह सब? अब तो कह सकते थे जबकि इस समय वे एक प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं और आप डीएसपी.’’

‘‘बुराई करो या सच कहो, एक ही बात है. और दोनों बातें पीठ पीछे ही कही जाती हैं. सब के सामने कहने वाला जाहिल कहलाता है, जो मैं नहीं हूं.

‘‘जैसे मुझे आप की बुराई करनी होगी तो आप के सामने कहूंगा तो आप नाराज हो सकते हैं. झगड़ा भी कर सकते हैं. मैं ऐसी बेवकूफी क्यों करूंगा? मैं रामप्रसाद की तरह पागल तो हूं नहीं.’’

दिनेश ने उसी दिन तय किया कि आज के बाद वह हरपाल सिंह जैसे आदमी से दूरी बना कर रखेगा. हां, कभी हरपाल सिंह दिख जाता तो वह अपना रास्ता इस तरह बदल लेता जैसे उसे देखा ही न हो.

Sad Hindi Story : स्वाद

Sad Hindi Story : हलकी-हलकी बरसात से मौसम ठंडा हो चला था. हवा तेज नहीं थी. शाम गहराती जा रही थी. दिल्ली से पंजाब जाने वाली बसें एकएक कर के रवाना हो रही थीं.

दिल्ली बसअड्डे पर आज भीड़ नहीं थी. दिल्ली से संगरूर जाने वाली बस आधी ही भरी थी. पौने 7 बज चुके थे. सूरज डूब चुका था. बस की रवानगी का समय हो चला था. 10 मिनट और इंतजार करने के बाद बस कंडक्टर ने सीटी बजाई. ड्राइवर ने इंजन स्टार्ट किया. गियर लगते ही बस लहरा कर भीड़ काटते हुए बसअड्डे का गेट पार कर बाहर आई और रिंग रोड की चौड़ी सड़क पर तेजी से दौड़ने लगी.

बस की रफ्तार बढ़ने के साथसाथ हलकीहलकी बरसात भी तेज बरसात में बदल गई. बस के सामने के शीशों पर लगे वाइपर भी तेजी से चलने लगे. पीरागढ़ी चौक तक आतेआते साढ़े 7 बज चुके थे. वहां पर आधा मिनट के लिए बस रुकी. 4-5 सवारियां भी चढ़ीं, पर बस अभी भी पूरी तरह से नहीं भरी थी.

बस आगे बढ़ी. नांगलोई, फिर बहादुरगढ़ और फिर रोहतक. बरसात बदस्तूर जारी थी. हवा भी तेज होती

जा रही थी. रोहतक बसस्टैंड पर बस

5 मिनट के लिए रुकी. भारी बरसात के चलते बसस्टैंड सुनसान था.

रोहतक पार होतेहोते बरसात भयंकर तूफान में बदल गई. 20 मिनट बाद बस लाखनमाजरा नामक गांव के पास पहुंची. वहां बड़ेबड़े ओले गिरने लगे थे. साथ ही, आंधी भी चलने लगी थी. सड़क के दोनों किनारे खड़े कमजोर पेड़ हवा के जोर से तड़तड़ कर टूटे और सड़क पर गिरने लगे.

बस का आगे बढ़ना मुमकिन नहीं था. सारा रास्ता जो बंद हो गया था. ड्राइवर ने बस रोक दी और इंजन भी बंद कर दिया.

जल्दी ही बस के पीछे तमाम दूसरी गाडि़यों की कतार भी लग गई.

अब भीषण बरसात तूफान में बदल गई. क्या करें? कहां जाएं? दिल्ली से संगरूर का महज 6 घंटे का सफर था. ज्यादातर मुसाफिर यही सोच कर चले थे कि रात के 12 बजे तक वे अपनेअपने घर पहुंच जाएंगे, इसलिए उन्होंने खाना भी नहीं खाया था. अब तो यहीं रात के 12 बज गए थे और उन के पेट भूख से बिलबिला रहे थे.

सब ने मोबाइल फोन से अपनेअपने परिवार वालों को कहा कि वे खराब मौसम के चलते रास्ते में फंसे हुए हैं.

मगर, बस के मुसाफिर कब तक सब्र करते. खाने का इंतजाम नहीं था. पानी

के लिए सब का गला सूख रहा था. लाखनमाजरा गांव था. खराब मौसम के चलते वहां रात को कोई दुकान नहीं खुली थी. कहीं कोई हैंडपंप, प्याऊ वगैरह भी नजर नहीं आ रहा था.

‘‘यहां एक गुरुद्वारा है. इस में कभी गुरु तेग बहादुर ठहरे थे. गुरुद्वारे में

हमें जगह मिल जाएगी,’’ एक मुसाफिर ने कहा.

बस की सवारियों का जत्था गुरुद्वारे के मेन फाटक पर पहुंचा. मगर फाटक खटकाने के बाद जब सेवादार बाहर आया तो उस ने टका सा जवाब देते हुए कहा, ‘‘रात के 11 बजे के बाद गुरुद्वारे का फाटक नहीं खुलता है. नियमों को मानने के लिए गुरुद्वारा कमेटी द्वारा सख्त हिदायत दी गई है.’’

सब मुसाफिर बस में आ कर बैठ गए. बस में सत्यानंद नामक संगरूर का एक कारोबारी भी मौजूद था. वह अपने 4-5 कारोबारी साथियों के साथ दिल्ली माल लेने के लिए आया था.

हर समस्या का समाधान होता है. इस बात पर यकीन रखते हुए सत्यानंद बस से उतरा और सुनसान पड़े गांव के बंद बाजार में घूमने लगा.

2 शराबी शराब पीने का लुत्फ उठाते हुए एक खाली तख्त पर बैठे उलटीसीधी बक रहे थे.

‘‘क्यों भाई, यहां कोई ढाबा या होटल है?’’ सत्यानंद ने थोड़ी हिम्मत कर के पूछा.

‘‘क्या कोई इमर्जैंसी है?’’ नशे में धुत्त एक शराबी ने सवाल किया.

‘‘तूफान में हमारी बस फंस गई है. हम शाम को दिल्ली से चले थे. अब यहीं आधी रात हो गई है. कुछ खाने को मिल जाता तो…’’ सत्यानंद ने अपनी मजबूरी बताई.

‘‘यह ढाबा है. इसे एक औरत चलाती है. मैं उसे जगाता हूं,’’ वह शराबी बोला.

‘‘साहब, इस समय रोटी, अचार और कच्चे प्याज के सिवा कुछ नहीं मिलेगा,’’ थोड़ी देर में एक जवान औरत ने बिजली का बल्ब जलाते हुए कहा.

‘‘ठीक है, आप रोटी और अचार

ही दे दें.’’

थोड़ी देर में बस के सभी मुसाफिरों ने रोटी, अचार और प्याज का

लुत्फ उठाया. अपने पैसे देने के बाद सत्यानंद ने पूछा, ‘‘चाय मिलेगी क्या?’’

‘‘जरूर मिलेगी,’’ उस औरत ने कहा.

तब तक दूसरे मुसाफिर बस में चले गए थे.

चाय सुड़कते हुए सत्यानंद ने उस औरत की तरफ देखा. वह कड़क जवान देहाती औरत थी.

‘‘साहब, कुछ और चाहिए क्या?’’ उस औरत ने अजीब सी नजरों से देखते हुए पूछा.

‘‘क्या मतलब…’’

‘‘आप आराम करना चाहो तो अंदर बिस्तर लगा है,’’ दुकान के पिछवाड़े की ओर इशारा करते हुए उस औरत ने कहा.

सत्यानंद अधेड़ उम्र का था. उसे अपनी पूरी जिंदगी में ऐसा ‘न्योता’ नहीं मिला था.

एक घंटा ‘आराम’ करने के बाद उन्होंने उस औरत से पूछा, ‘‘क्या दूं?’’

‘‘जो आप की मरजी,’’ उस औरत ने कपड़े पहनते हुए कहा.

100 रुपए का एक नोट उसे थमा कर सत्यानंद बस में आ बैठा. इतनी देर बाद लौटने पर दूसरे मुसाफिर उसे गौर से देखने लगे.

सुबह होने के बाद ही बस आगे बढ़ी. सत्यानंद ने संगरूर बसस्टैंड से घर के लिए रिकशा किया. भाड़ा चुकाने के लिए जब उस ने अपनी कमीज की जेब में हाथ डाला तो जेब में कुछ भी नहीं था. पैंट की जेब में से पर्स निकाला, पर वह भी खाली था. हाथ में बंधी घड़ी भी नदारद थी.

सत्यानंद ने पत्नी से पैसे ले कर रिकशे का भाड़ा चुकाया. उस भोलीभाली दिखती देहाती औरत ने पता नहीं कब सब पर हाथ साफ कर दिया था. जेब में 500 रुपए थे. पर्स में 7,000 रुपए और 5,000 रुपए की घड़ी थी.

कड़क रोटियों के साथसाथ उस कड़क औरत के जिस्म का स्वाद सत्यानंद जिंदगी में कभी भूल नहीं पाएगा.

Online Hindi Kahani : पुनर्जन्म

Online Hindi Kahani : ‘‘आप को मालूम है मां, दीदी का प्रोमोशन के बाद भी जन कल्याण मंत्रालय से स्थानांतरण क्यों नहीं किया जा रहा, क्योंकि दीदी को व्यक्ति की पहचान है. वे बड़ी आसानी से पहचान लेती हैं कि किस समाजसेवी संस्था के लोग समाज का भला करने वाले हैं और कौन अपना. फिर आप लोग इतनी पारखी नजर वाली दीदी की जिंदगी का फैसला बगैर उन्हें भावी वर से मिलवाए खुद कैसे कर सकती हैं?’’ ऋचा ने तल्ख स्वर से पूछा, ‘‘पहले दीदी के अनुरूप सुव्यवस्थित 2 लोगों को आप ने इसलिए नकार दिया कि वे दुहाजू हैं और अब जब एक कुंआरा मिल रहा है तो आप इसलिए मना कर रही हैं कि उस में जरूर कुछ कमी होगी जो अब तक कुंआरा है. आखिर आप चाहती क्या हैं?’’

‘‘शिखा की भलाई और क्या?’’ मां भी चिढ़े स्वर में बोलीं.

‘‘मगर यह कैसी भलाई है, मां कि बस, वर का विवरण देखते ही आप और यश भैया ऐलान कर दें कि यह शिखा के उपयुक्त नहीं है. आप ने हर तरह से उपयुक्त उस कुंआरे आदमी के बारे में यह पता लगाने की कोशिश नहीं की कि उस की अब तक शादी न करने की क्या वजह है?’’

‘‘शादी के बाद यह कुछ ज्यादा नहीं बोलने लगी है, मां?’’ यश ने व्यंग्य से पूछा.

‘‘कम तो खैर मैं कभी भी नहीं बोलती थी, भैया. बस, शादी के बाद सही बोलने की हिम्मत आ गई है,’’ ऋचा व्यंग्य से मुसकराई.

‘‘बोलने की ही हिम्मत आई है, सोचने की नहीं,’’ यश ने कटाक्ष किया, ‘‘सीधी सी बात है, 35 साल तक कुंआरा रहने वाला आदमी दिलजला होगा…’’

‘‘फिर तो वह दीदी के लिए सर्वथा उपयुक्त है,’’ ऋचा ने बात काटी, ‘‘क्योंकि दीदी भी अपने बैचमेट सूरज के साथ दिल जला कर मसूरी की सर्द वादियों में अपने प्रणय की आग लगा चुकी हैं.’’

‘‘तुम तो शादी के बाद बेशर्म भी हो गई हो ऋचा, कैसे अपने परिवार और कैरियर के प्रति संप्रीत दीदी पर इतना घिनौना आरोप लगा रही हो?’’ यश की पत्नी शशि ने पूछा.

‘‘यह आरोप नहीं हकीकत है, भाभी. दीदी की सगाई उन के बैचमेट सूरज से होने वाली थी लेकिन उस से एक सप्ताह पहले ही पापा को हार्ट अटैक पड़ गया. पापा जब आईसीयू में थे तो मैं ने दीदी को फोन पर कहते सुना था, ‘पापा अगर बच भी गए तो सामान्य जीवन नहीं जी पाएंगे, इसलिए बड़ी और कमाऊ होने के नाते परिवार के भरणपोषण की जिम्मेदारी मेरी है. सो, जब तक यश आईएएस प्रतियोगिता में उत्तीर्ण न हो जाए और ऋचा डाक्टर न बन जाए, मैं शादी नहीं कर सकती, सूरज. इस सब में कई साल लग जाएंगे, सो बेहतर होगा कि तुम मुझे भूल जाओ.’

‘‘उस के बाद दीदी ने दृढ़ता से शादी करने से मना कर दिया, रिश्तेदारों ने भी उन का साथ दिया क्योंकि अपाहिज पापा की तीमारदारी का खर्च तो उन के परिवार का कमाऊ सदस्य ही उठा सकता था और वह सिर्फ दीदी थीं. पापा ने अंतिम सांस लेने से पहले दीदी से वचन लिया था कि यश भैया और मेरे व्यवस्थित होने के बाद वे अपनी शादी के लिए मना नहीं करेंगी. आप को पता ही है कि मैं ने डब्लूएचओ की स्कालरशिप छोड़ कर अरुण से शादी क्यों की, ताकि दीदी पापा की अंतिम इच्छा पूरी कर सकें.’’

‘‘हमारे लिए उस के पापा की अंतिम इच्छा से बढ़ कर शिखा की अपनी इच्छा और भलाई जरूरी है,’’ मां ने तटस्थता से कहा.

‘‘पापा की अंतिम इच्छा पूरी करना दीदी की इच्छाओं में से एक है,’’ ऋचा बोली, ‘‘रहा भलाई का सवाल तो आप लोग केवल उपयुक्त घरवर सुझाइए, उस के अपने अनुरूप या अनुकूल होने का फैसला दीदी को करने दीजिए.’’

‘‘और अगर हम ने ऐसा नहीं किया न मां तो यह दीदी की परम हितैषिणी स्वयं दीदी के लिए घरवर ढूंढ़ने निकल पड़ेगी,’’ यश व्यंग्य से हंसा.

‘बिलकुल सही समझा आप ने, भैया. इस से पहले कि मैं और अरुण अमेरिका जाएं मैं चाहूंगी कि दीदी का भी अपना घरसंसार हो. आज मैं जो हूं दीदी की मेहनत और त्याग के कारण. सच कहिए, अगर दीदी न होतीं तो आप लोग मेरी डाक्टरी की पढ़ाई का खर्च उठा सकते थे?’’ ऋचा ने तल्ख स्वर में पूछा, ‘‘आप के लिए तो पापा की मृत्यु मेहनत से बचने का बहाना बन गई भैया. बगैर यह परवा किए कि पापा का सपना आप को आईएएस अधिकारी बनाना था, आप ने उन की जगह अनुकंपा में मिल रही बैंक की नौकरी ले ली क्योंकि आप पढ़ना नहीं चाहते थे. मां भी आप से मेहनत करवाना नहीं चाहतीं. और फिर पापा के समय की आनबान बनाए रखने को आईएएस अफसर दीदी तो थीं ही. नहीं तो आप के बजाय यह नौकरी मां भी कर सकती थीं, आप पढ़ाई और दीदी शादी.’’

‘‘ये गड़े मुर्दे उखाड़ कर तू कहना क्या चाहती है?’’ मां ने झल्लाए स्वर में पूछा.

‘‘यही कि पुत्रमोह में दीदी के साथ अब और अन्याय मत कीजिए. भइया की गृहस्थी चलाने के बजाय उन्हें अब अपना घरसंसार बसाने दीजिए. फिलहाल उस डाक्टर का विवरण मुझे दे दीजिए. मैं उस के बारे में पता लगाती हूं,’’ ऋचा ने उठते हुए कहा.

‘‘वह हम लगा लेंगे मगर आप चली कहां, अभी बैठो न,’’ शशि ने आग्रह किया.

‘‘अस्पताल जाने का समय हो गया है, भाभी,’’ कह कर ऋचा चल पड़ी. मां और यश ने रोका भी नहीं जबकि मां को मालूम था कि आज उस की छुट्टी है.

ऋचा सीधे शिखा के आफिस गई.

‘‘आप से कुछ जरूरी बात करनी है, दीदी. अगर आप अभी व्यस्त हैं तो मैं इंतजार कर लेती हूं,’’ उस ने बगैर किसी भूमिका के कहा.

‘‘अभी मैं एक मीटिंग में जा रही हूं, घंटे भर तक तो वह चलेगी ही. तू ऐसा कर, घर चली जा. मैं मीटिंग खत्म होते ही आ आऊंगी.’’

‘‘घर से तो आ ही रही हूं. आप ऐसा करिए मेरे घर आ जाइए, अरुण की रात 10 बजे तक ड्यूटी है, वह जब तक आएंगे हमारी बात खत्म हो जाएगी.’’

‘‘ऐसी क्या बात है ऋचा, जो मां और अरुण के सामने नहीं हो सकती?’’

‘‘बहनों की बात बहनों में ही रहने दो न दीदी.’’

‘‘अच्छी बात है,’’ शिखा मुसकराई, ‘‘मीटिंग खत्म होते ही तेरे घर पहुंचती हूं.’’

उसे लगा कि ऋचा अमेरिका जाने से पहले कुछ खास खरीदने के लिए उस की सिफारिश चाहती होगी. मीटिंग खत्म होते ही वह ऋचा के घर आ गई.

‘‘अब बता, क्या बात है?’’ शिखा ने चाय पीने के बाद पूछा.

‘‘मैं चाहती हूं दीदी कि मेरे और अरुण के अमेरिका जाने से पहले आप पापा को दिया हुआ अपना वचन कि जिम्मेदारियां पूरी होते ही आप शादी कर लेंगी, पूरा कर लें,’’ ऋचा ने बगैर किसी भूमिका के कहा, ‘‘वैसे आप की जिम्मेदारी तो मेरे डाक्टर बनते ही पूरी हो गई थी फिर भी आप मेरी शादी करवाना चाहती थीं, सो मैं ने वह भी कर ली…’’

‘‘लेकिन मेरी जिम्मेदारियां तो खत्म नहीं हुईं, बहन,’’ शिखा ने बात काटी, ‘‘यश अपना परिवार ही नहीं संभाल पाता है तो मां को कैसे संभालेगा?’’

‘‘यानी न कभी जिम्मेदारियां पूरी होंगी और न पापा की अंतिम इच्छा. जीने वालों के लिए ही नहीं दिवंगत आत्मा के प्रति भी आप का कुछ कर्तव्य है, दीदी.’’ शिखा ने एक उसांस ली.

‘‘मैं ने यह वचन पापा को ही नहीं सूरज को भी दिया था ऋचा, और जो उस ने मेरे लिए किया है उस के बाद उसे दिया हुआ वचन पूरा करना भी मेरा फर्ज बनता है लेकिन महज वचन के कारण जिम्मेदारियों से मुंह तो नहीं मोड़ सकती.’’

‘‘मां के लिए पापा की पेंशन काफी है, दीदी, और जरूरत पड़ने पर पैसे से मैं और आप दोनों ही उन की मदद कर सकते हैं, उन्हें अपने पास रख सकते हैं. यश का परिवार उस की निजी समस्या है, मेहनत करें तो दोनों मियांबीवी अच्छाखासा कमा सकते हैं, उन के लिए आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है,’’ ऋचा ने आवेश से कहा और फिर हिचकते हुए पूछा, ‘‘माफ करना, दीदी, मगर मुझे याद नहीं आ रहा कि सूरज ने आप के लिए क्या किया?’’

‘‘मुझे रुसवाई से बचाने के लिए सूरज ने मेहनत से मिली आईएएस की नौकरी छोड़ दी क्योंकि हमारे सभी साथियों को हमारी प्रेमकहानी और होने वाली सगाई के बारे में मालूम था. एक ही विभाग में होने के कारण गाहेबगाहे मुलाकात होती और अफवाहें भी उड़तीं, सो मुझे इस सब से बचाने के लिए सूरज नौकरी छोड़ कर जाने कहां चला गया.’’

‘‘आप ने उसे तलाशने की कोशिश नहीं की?’’

‘‘उस के किएकराए यानी त्याग पर पानी फेरने के लिए?’’

‘‘यह बात भी ठीक है. देखिए दीदी, जब आप वचनबद्ध हुई थीं तब आप की जिम्मेदारी केवल भैया और मेरी पढ़ाई पूरी करवाने तक सीमित थी, लेकिन आप ने हमारी शादियां भी करवा दीं. अब उस के बाद की जिम्मेदारियां आप के वचन की परिधि से बाहर हैं और अब आप का फर्ज केवल अपना वचन निभाना है. बहुत जी लीं दूसरों के लिए और यादों के सहारे, अब अपने लिए जी कर देखिए दीदी, कुछ नए यादगार क्षण संजोने की कोशिश करिए.’’

‘‘कहती तो तू ठीक है…’’

‘‘तो फिर आज से ही इंटरनेट पर अपने मनपसंद जीवनसाथी की तलाश शुरू कर दीजिए. मां तो पुत्रमोह में आप की शादी करवाएंगी नहीं.’’

‘‘यही सब सोच कर तो मैं शादी नहीं करना चाहती, लेकिन तेरा यह कहना भी ठीक है कि पैसे से तो उन लोगों की मदद हमेशा की जा सकती है.’’

‘‘मैं आप को इंटरनेट पर उपलब्ध…’’

‘‘थोड़ा सब्र कर, ऋचा,’’ शिखा ने बात काटी, ‘‘उस से पहले मुझे स्वयं को किसी नितांत अजनबी के साथ जीने के लिए मानसिक रूप से तैयार करना होगा और मुझे यह भी मालूम नहीं है कि मेरी उस से क्या अपेक्षाएं होंगी या व्यक्तिगत जीवन में मेरी अपनी मान्यताएं क्या हैं? इन सब के लिए चिंतन की आवश्यकता है.’’

‘‘और उस के लिए एकांत की, जो आप को दफ्तर और घर की जिम्मेदारियों के चलते तो मिलने से रहा. आप लंबी छुट्टी ले कर या तो सुदूर पहाडि़यों में या समुद्रतट पर एकांतवास कीजिए.’’

‘‘सुझाव तो अच्छा है, सोचूंगी.’’

‘‘मगर आज ही रात को,’’ ऋचा ने जिद की.

शिखा ने सोचा जरूर लेकिन अपनी पिछली जिंदगी के बारे में. पापा बैंक अधिकारी थे लेकिन चाहते थे कि उन के बच्चे उन से बढ़ कर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बनें. शिखा का तो प्रथम प्रयास में ही चयन हो गया. ऋचा ने हाईस्कूल में ही बता दिया था कि उस की रुचि जीव विज्ञान में है और वह डाक्टर बनेगी. पापा ने सहर्ष अनुमति दे दी थी. मां के लाड़ले यश का दिल पढ़ाई में नहीं लगता था फिर भी पापा के डर से पढ़ रहा था लेकिन पापा के जाते ही उस ने पढ़ाई छोड़ कर अनुकंपा में मिली बैंक की नौकरी कर ली.

मां ने भी उस का यह कह कर साथ दिया कि वह तेरा हाथ बटाना चाह रहा है शिखा, बैंक की प्रतियोगी परीक्षाएं दे कर तरक्की भी करता रहेगा, लेकिन हाथ बटाने के बजाय यश ने अपना भार भी उस पर डाल दिया था. जहां उस की नियुक्ति होती थी, वहीं यश भी अपना तबादला करवा लेता था आईएएस अफसर बहन का रोब डाल कर. तरक्की पाने की न तो लालसा थी और न ही जरूरत, क्योंकि शिखा को मिलने वाली सब सुविधाओं का उपभोग तो वही करता था.

यश और उस के परिवार की जरूरतों के लिए मां शिखा को उसी स्वर में याद दिलाया करती थीं जिस में वह कभी पापा से घर के बच्चों की जरूरतें पूरी करने को कहती थीं यानी मां के खयाल में यश का परिवार शिखा का उत्तरदायित्व था. शिखा को इस से कुछ एतराज भी नहीं था. उस की अपनी इच्छाएं तो सूरज से बिछुड़ने के साथ ही खत्म हो गई थीं. उसे यश या उस के परिवार से कोई शिकायत भी नहीं थी, बस, बीचबीच में पापा के अंतिम शब्द, ‘जब ये दोनों अपने घरपरिवार में व्यवस्थित हो जाएंगे तो तू अकेली क्या करेगी, बेटी? जिन सपनों की तू ने आज आहुति दी है उन्हें पुनर्जीवित कर के फिर जीएगी तो मेरी भटकती आत्मा को शांति मिल जाएगी. जिस तरह तू मेरी जिम्मेदारियां निभाने को कटिबद्ध है, उसी तरह मेरी अंतिम इच्छा पूरी करने को भी रहना,’ याद आ कर कचोट जाते थे.

ऐसा ही कुछ सूरज ने भी कहा था, ‘जिस तरह अपने परिवार के प्रति तुम्हारा फर्ज तुम्हें शादी करने से रोक रहा है उसी तरह अपने मातापिता की इच्छा के विरुद्ध कुछ साल तक तुम्हारी जिम्मेदारियां पूरी होने के इंतजार में शादी न करने के फैसले पर मैं चाह कर भी अडिग नहीं रह पा रहा. कैसे जी पाऊंगा किसी और के साथ, नहीं जानता, लेकिन फिलहाल दफ्तर और घर के दायित्व निभाने में मेरा और तुम्हारा समय कट ही जाया करेगा लेकिन जब तुम दायित्व मुक्त हो जाओगी तब क्या करोगी, शिखा? मैं यह सोचसोच कर विह्वल हो जाया करूंगा कि तुम अकेली क्या कर रही होगी.’

‘फुरसत से तुम्हारी यादों के सहारे जी रही हूंगी और क्या?’

‘जीने के लिए यादों के सहारे के अलावा किसी अपने के सहारे की भी जरूरत होती है. मैं तो खैर सहारे के लिए नहीं मांबाप की जिद से मजबूर हो कर शादी कर रहा हूं लेकिन तुम जीवन की सांध्यवेला में अकेली मत रहना. मेरे सुकून के लिए शादी कर लेना.’

यश के परिवार के रहते अकेली होने का तो सवाल ही नहीं था लेकिन घर में अपनेपन की ऊष्मा ऋचा के जाते ही खत्म हो गई थी और रह गया था फरमाइशों और शिकायतों का अंतहीन सिलसिला. शिकायत करते हुए यश और मां को अपनी फरमाइश की तारीख तो याद रहती थी लेकिन यह पूछना नहीं कि शिखा किस वजह से वह काम नहीं कर सकी.

वैसे भी लगातार काम करतेकरते वह काफी थक चुकी थी और छुट्टियां भी जमा थीं सो उस ने सोचा कि कुछ दिन को कहीं घूम ही आएं. उस की सचिव माधवी मेनन जबतब केरल की तारीफ करती रहती थी, ‘तनमन को शांति और स्फूर्ति से भरना हो तो कभी भी केरल जाने पर ऐसा लगेगा कि आप का पुनर्जन्म हो गया है.’

अगले रोज उस ने माधवी से पूछा कि वह काम की थकान उतारने को कुछ दिन शोरशराबे से दूर प्रकृति के किसी सुरम्य स्थान पर रहना चाहती है, सो कहां जाए?

‘‘वैसे तो केरल में ऐसी जगहों की भरमार है,’’ माधवी ने उत्साह से बताया, ‘‘लेकिन आप को त्रिचूर का अथरियापल्ली वाटरफाल बहुत पसंद आएगा. वहां वन विभाग का सभी सुखसुविधाओं से युक्त गेस्ट हाउस भी है. तिरुअनंतपुरम के अपने आफिस वाले त्रिचूर के जिलाध्यक्ष से कह कर आप के रहने का प्रबंध करवा देंगे.’’

‘‘लेकिन वहां तक जाना कैसे होगा?’’

‘‘तिरुअनंतपुरम तक प्लेन से, उस के बाद आप को एअरपोर्ट से अथरियापल्ली तक पहुंचाने की जिम्मेदारी अपने आफिस वालों की होगी. आप अपने जाने की तारीख तय करिए, बाकी सब व्यवस्था मुझ पर छोड़ दीजिए.’’

लंच ब्रेक में ऋचा का फोन आया.‘‘हां भई, छुट्टी के लिए आवेदन कर दिया है केरल जाने को,’’ शिखा ने उसे सब बताया.

‘‘लेकिन घर वालों के लिए आप छुट्टी पर नहीं टूर पर जा रही हैं दीदी, वरना सभी आप के साथ केरल घूमने चल पड़ेंगे,’’ ऋचा ने आगाह किया.

ऋचा का कहना ठीक था. सब तैयारी हो जाने से एक रोज पहले उस ने सब को बताया कि वह केरल जा रही है.

‘‘केरल घूमने तो हम सब भी चलेंगे,’’ शशि ने कहा.

‘‘मैं केरल प्लेन से जा रही हूं सरकारी गाड़ी से नहीं, जिस में बैठ कर तुम सब मेरे साथ टूर पर चल पड़ते हो.’’

‘‘हम क्या प्लेन में नहीं बैठ सकते?’’ यश ने पूछा.

‘‘जरूर बैठ सकते हो मगर टिकट ले कर और फिलहाल मेरा तो कल सुबह 9 बजे का टिकट कट चुका है,’’ कह कर शिखा अपने कमरे में चली गई.

अगली सुबह सब के सामने ड्राइवर को कुछ फाइलें पकड़ाते हुए उस ने कहा, ‘‘मुझे एअरपोर्ट छोड़ कर, मेहरा साहब के घर चले जाना, ये 2 फाइलें उन्हें दे देना और ये 2 आफिस में माधवी मेनन को.’’

प्लेन में अपनी बराबर की सीट पर बैठी युवती से यह सुन कर कि वह एक प्रकाशन संस्थान में काम करती है और एक लेखक के पास एक किताब की प्रस्तावना पर विचारविमर्श करने जा रही है, शिखा ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘अपने यहां लेखकों को कब से इतना सम्मान मिलने लगा?’’

‘‘मैडम, आप शायद नहीं जानतीं,’’ युवती खिसिया कर बोली, ‘‘बेस्ट सेलर के लेखक के लिए कुछ भी करना पड़ता है. ये महानुभाव केरल से बाहर आने को तैयार नहीं होते, सो बात करने के लिए हमें ही यहां आना पड़ता है.’’

इस से पहले कि शिखा पूछती कि वे महानुभाव हैं कौन, युवती ने उस का परिचय पूछ लिया और यह जानने पर कि वह आईएएस अधिकारी है और एकांत- वास करने के लिए अथरियापल्ली जा रही है, बड़ी प्रभावित हुई और उस के बारे में अधिक से अधिक पूछने लगी. शिखा ने उसे अपना कार्ड दे दिया.

माधवी का कहना ठीक था. अथरियापल्ली वाटरफाल वैसी ही जगह थी जैसी वह चाहती थी. गेस्ट हाउस में भी हर तरह का आराम था. बगैर अपने बारे में सोचे वह अभी प्रकृति की छटा और निरंतर बदलते रंग निहारने का आनंद ले रही थी कि अगली सुबह ही सूरज को देख कर हैरान रह गई.

‘‘तुम…यहां?’’ वह इतना ही कह सकी.

‘‘हां, मैं,’’ सूरज हंसा, ‘‘वैसे तो कहीं आताजाता नहीं, लेकिन यह जान कर कि तुम यहां हो, तुम से मिलने का लोभ संवरण न कर सका.’’

‘‘लेकिन तुम्हें किस ने बताया कि मैं यहां हूं?’’

‘‘पल्लवी यानी उस युवती ने जो कल तुम्हारे साथ प्लेन में थी,’’ सूरज ने सामने पत्थर पर बैठते हुए कहा, ‘‘असल में मैं उस के प्रकाशन संस्थान के लिए आईएएस प्रतियोगिता के लिए उपयोगी किताबें लिखता हूं. पल्लवी चाहती है कि प्रतियोगिता में सफल होने के बाद सफलता बनाए रखने के लिए क्या करें, इस विषय पर मैं कुछ लिखूं तो मैं ने कहा कि मुझे नौकरी छोड़े कई साल हो चुके हैं और आज के प्रशासन के बारे में अधिक जानकारी नहीं है तो उस ने तुम्हारे बारे में बताया और कहा कि आप से मिल कर आजकल के हालात के बारे में जानकारी ले लूं. पल्लवी को तो तुम्हारे एकांतवास में खलल न डालने को मना कर दिया लेकिन खुद को आने से न रोक सका. ऐसे हैरानी से क्या देख रही हो, मैं सूरज ही हूं, शिखा.’’

‘‘उस में तो कोई शक नहीं है लेकिन तुम और लेखन. यकीन नहीं होता, सूरज.’’

‘‘यकीन न होने लायक ही तो अब तक मेरी जिंदगी में होता रहा है, शिखा,’’ सूरज उसांस ले कर बोला, ‘‘पुराने परिवेश से कटने के लिए मैं ने तिरुअनंतपुरम यूनिवर्सिटी में प्रवक्ता की नौकरी कर ली थी और वक्त काटने के लिए आईएएस प्रतियोगी परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों को पढ़ाया करता था. उन के सफल होने पर इतने विद्यार्थी आने लगे कि मुझे नौकरी छोड़ कर कोचिंग क्लास खोलनी पड़ी. मेरे एक शिष्य ने मेरे दिए क्लास नोट्स का संकलन कर प्रकाशन करवा दिया, वह बहुत ही लोकप्रिय हुआ और प्रकाशक इस विषय की और किताबों के लिए मेरे पीछे पड़ गए और इस तरह मैं सफल लेखक बन गया. अब तो पढ़ाना भी छोड़ दिया है. बस, लिखता हूं.’’

‘‘लिखने भर से घर का खर्च चल जाता है?’’

‘‘बड़े आराम से. अकेले आदमी का ज्यादा खर्च भी नहीं होता.’’

‘‘यानी तुम ने मातापिता की खुशी की खातिर शादी नहीं की?’’

‘‘शादी करने से मना भी नहीं किया,’’ सूरज हंसा, ‘‘जो लोग मुझे अपना दामाद बनाने के लिए हाथ बांधे पापा के आगेपीछे घूमते थे, वे तो मेरी नौकरी छोड़ते ही बरसात की धूप की तरह गायब हो गए, जो लोग प्रवक्ता को लड़की देने के लिए तैयार थे वे मांपापा की कसौटी पर खरे नहीं उतरे. उन की तलाश अभी भी जारी है लेकिन सुदूर केरल में बसे लेखक को कौन दिल्ली वाला लड़की देगा? और तुम बताओ यह एकांतवास किसलिए? संन्यासवन्यास लेने का इरादा है?’’

शिखा हंस पड़ी, ‘‘असलियत तो इस के विपरीत है, सूरज,’’ और उस ने ऋचा के सुझाव के बारे में विस्तार से बताया.

‘‘दूसरे शब्दों में कहें तो मांपापा की तलाश खत्म हो गई,’’ सूरज हंसा, ‘‘वैसे तो मैं यहां से वापस जाने वाला नहीं था लेकिन तुम्हारे साथ कहीं भी चल सकता हूं.’’

‘‘मैं भी यहां आ सकती हूं, सूरज, लेकिन क्या गुजरे कल को आज बनाना संभव होगा?’’

‘‘अगर तुम मुझे जिलाना और खुद जिंदा होना चाहो तो…’’

शिखा के मोबाइल की घंटी बजी. यश का फोन था.

‘‘दीदी, गुरमेल सिंह जब परसों दोपहर तक गाड़ी ले कर नहीं आया तो मैं ने उस के मोबाइल पर उसे आने के लिए फोन किया, लेकिन उस ने कहा कि वह मेहरा साहब की ड्यूटी में है और उन के कहने पर ही हमारे यहां आ सकता है, सो मैं ने उन से बात करनी चाही. परसों तो मेहरा साहब से बात नहीं हो सकी, वे मीटिंग में थे. कल बड़ी मुश्किल से शाम को मिले तो बोले कि वे इस विषय में कुछ नहीं कह सकते. बेहतर है कि मैं माधवी से बात करूं. माधवी कहती है कि छुट्टी पर गए किसी भी अधिकारी को गाड़ी उस के कार्यभार संभालने वाले अधिकारी को दी जाती है और परिवार के लिए गाड़ी भेजने का नियम तो नहीं है लेकिन शिखा मैडम कहेंगी तो भिजवा देंगे. आप तुरंत माधवी को फोन कीजिए गाड़ी भिजवाने को.’’

‘‘जब परिवार के लिए गाड़ी भेजने का नियम नहीं है तो मैं उस का उल्लंघन करने को कैसे कह सकती हूं?’’ शिखा ने रुखाई से कहा.

‘‘चाहे गाड़ी के बगैर परिवार को कितनी भी परेशानी हो रही हो?’’

‘‘इतनी ही परेशानी है तो खुद ही गाड़ी का इंतजाम कर ले न भाई मेरे…’’

‘‘यह आप को हो क्या गया है दीदी? आप मां से बात कीजिए…’’

मां एकदम बरस पड़ीं, ‘‘यह क्या लापरवाही है, शिखा? हमारे लिए बगैर गाड़ीड्राइवर का इंतजाम किए, टूर का बहाना बना कर तुम छुट्टी मनाने निकल गई हो, शर्म नहीं आती?’’ शिखा तड़प उठी.

‘‘मैं ने कब कहा था मां कि मैं टूर पर जा रही हूं और काम की थकान उतारने को छुट्टी मनाने में शर्म कैसी? अगर गाड़ी के बगैर आप को दिक्कत हो रही है तो यश से कहिए, इंतजाम करे, परिवार के प्रति उस का भी तो कुछ दायित्व है.’’

‘‘यह तुझे क्या हो गया है, शिखा? यश कह रहा है, तू एकदम बदल गई है…’’

‘‘यश ठीक कह रहा है, मां,’’ शिखा ने बात काटी, ‘‘मेरा पुनर्जन्म हो रहा है, उस में आप को कुछ तकलीफ तो झेलनी ही पड़ेगी.’’

और वह सूरज की फैली बांहों में सिमट गई.

Story Of The Day : जब मियांबीवी राजी तो… क्यों करें रिश्तेदार दखलबाजी

Story Of The Day : ‘‘दादू …’’ लगभग चीखती हुई झूमुर अपने दादू से लिपट गई.

‘‘अरेअरे, हौले से भाई,’’ दादू बैठे हुए भी झूमुर के हमले से डगमगा गए, ‘‘कब बड़ी होगी मेरी बिटिया?’’

‘‘और कितना बड़ी होऊं? कालेज भी पास कर लिया, अब तो नौकरी भी लग गई है मुंबई में,’’ झूमुर की अपने दादू से बहुत अच्छी घुटती थी. अब भी वह मातापिता व अपने छोटे भाई के साथ सपरिवार उन से मिलने अपने ताऊजी के घर आती, झूमुर बस दादू से ही चिपकी रहती. ‘‘अब की बार मुझे बीकानेर भी दिल्ली जितना गरम लग रहा है वरना यहां की रात दिल्ली की रात से ठंडी हुआ करती है.’’

‘‘चलो आओ, खाना लग गया है. आप भी आ जाएं बाबूजी,’’ ताईजी की पुकार पर सब खाने की मेज पर एकत्रित हो गए. मेज पर शांति से सब ने भोजन किया. अकसर परिवारों में जब सब भाईबहन इकट्ठा होते हैं तो खूब धमाचौकड़ी मचती है. लेकिन यहां हर ओर शांति थी. यहां तक कि पापड़ खाने में भी आवाज नहीं आ रही थी. ऐसा रोब था राधेश्याम यानी सब से बड़े ताऊजी का. यों देखने में उन्हें कोई इतना सख्त नहीं मान सकता था- साधारण कदकाठी, पतली काया. किंतु रोब सामने वाले के व्यक्तित्व में होता है, शरीर में नहीं. राधेश्याम का रोब पूरे परिवार में प्रसिद्घ था. न कोई उन से बहस कर सकता था और न ही कोई उन के विरुद्घ जा सकता था. कम बोलने वाले मगर अमिताभ बच्चन की स्टाइल में जो बोल दिया, सो बोल दिया.

हर साल एक बार सभी ताऊ, चाचा व बूआ अपनेअपने परिवार सहित बीकानेर में एकत्रित हुआ करते थे. पूरे परिवार को एकजुट रखने में इस एक हफ्ते की छुट्टियों का बड़ा योगदान था. चूंकि दादाजी यहीं रहते थे राधेश्याम के परिवार के साथ, इसलिए यही घर सब का हैड औफिस जैसा था. राधेश्याम के फैक्टरी जाते ही सब भाईबहन अपने असली रंग में आ गए. शाम तक खूब मस्ती होती रही. सारी महिलाएं कामकाज निबटाने के साथ ढेर सारी गपें भी निबटाती रहीं. झूमुर के पापा व चाचा अखबार की सुर्खियां चाट कर, थोड़ी देर सुस्ता लिए.  इसी बीच झूमुर फिर अपने दादू के पास हो ली,  ‘‘कुछ बढि़या से किस्से सुनाओ न दादू.’’ बुजुर्गों को और क्या चाहिए भला. पोतेपोतियां उन के जमाने के किस्से सुनना चाहें तो बुजुर्गों में एक नूतन उमंग भर जाती है.

‘‘बात 1950 की है जब मैं हाईस्कूल में पढ़ता था. हमारे एक मास्साब थे, मतलब टीचर हरगोविंद सर. एक बार…,’’ इस से पहले कि दादू आगे किस्सा सुनाते, झूमुर बीच में ही कूद पड़ी, ‘‘स्कूल का नहीं दादू, कोई और किस्सा. अच्छा यह बताइए, आप दादी से कैसे मिले थे. आप ठहरे राजस्थानी और दादी तो बंगाल से थीं. तो आप दोनों की शादी कैसे हुई?’’ ‘‘अच्छा, तो आज दादूदादी की प्रेमकहानी सुननी है?’’ कह दादू हंसे. दादी को इस जग से गए काफी समय बीत चुका था. कई वर्षों से वे अकेले थे, बिना जीवनसाथी के. अब केवल दादी की यादें ही उन का साथ देती थीं. पूर्ण प्रसन्नता से उन्होंने अपनी कहानी आरंभ की, ‘‘बात 1957 की है. मैं ने अपना नयानया कारोबार शुरू किया था. बाजार से ब्याज पर 3,500 रुपए उठा कर मैं ने यहीं बीकानेर में बंधेज के कपड़ों का कारखाना शुरू किया था. लेकिन राजस्थान का काम राजस्थान में कितना बिकता और मैं कितना  मुनाफा कमा लेता? फिर मुझे बाजार से उठाया असल और सूद भी लौटाना था, और अपने पैरों पर खड़ा भी होना था…’’

‘‘ओहो दादू, आप तो अपने कारोबार के किस्सों में उलझ गए. असली मुद्दे पर आओ न,’’ झूमुर खीझ कर बोली.

‘‘थोड़ा धीरज रख, उसी पर आ रहा हूं. कारोबार को आगे बढ़ाने हेतु मैं कोलकाता पहुंचा. वहां तुम्हारी दादी के पिताजी की अपनी बहुत बड़ी दुकान थी कपड़ों की, लाल बाजार में. उन से मुलाकात हुई. मैं ने अपना काम दिखाया, बंधेज की साडि़यों व चुन्नियों के कुछ सैंपल उन के पास छोड़े. कुछ महीनों में वहां भी मेरा काम चल निकला.’’

‘‘और दादी? वे तो अभी तक पिक्चर में नहीं आईं,’’ झूमुर एक बार फिर उतावली हो उठी. ‘‘तेरा नाम शांति रखना चाहिए था. जरा भी धैर्य नहीं. आगे सुन, दादी के पिताजी ने ही हमारी शादी की बात चलाई. मेरे पिताजी को रिश्ता भा गया और हमारी शादी हो गई.’’

‘‘धत्त तेरे की. इस कहानी में तो कोई थ्रिल नहीं- न कोई विलेन आया और न ही कोई व्हाट नैक्स्ट मोमैंट. इतनी सहजता से हो गया सब? और जो कोई न मानता तो?’’ पूछने के साथ झूमुर का उत्साह कुछ फीका पड़ गया.

‘‘ओहो बिटिया, तू तो अपने दादू के किस्सों में उलझ गई. असली मुद्दे पर आ,’’ दादू झूमुर की नकल उतारते हुए बोले. आखिर उन्होंने बाल धूम में सफेद नहीं किए थे. उन के पास वर्षों का अनुभव तथा पारखी नजर थी. ‘‘तेरे दादू उड़ती चिरैया के पर गिन लेते हैं, समझी?’’ झूमुर की उत्सुकता, उस का अचानक दादूदादी की कहानी में रुचि दिखाना देख दादू भांप गए थे कि झूमुर उन से कुछ कहना चाहती है, ‘‘बात क्या है?’’

शाम ढलने को थी. राधेश्याम फैक्टरी से घर लौट चुके थे. हर तरफ फिर शांति थी. रात के भोजन के समय एक बार फिर ताईजी की पुकार पर सब मेज पर पहुंच गए. इस पूरे परिवार में झूमुर सब से निकट अपने दादू से थी. शुरू से ही उस ने दादू को सब से सरल , समझदार और खुले विचारों का पाया था. कैसी अजीब बात है कि ऐसे दादू के बेटे, अगली पीढ़ी के होते हुए भी संकीर्ण सोच के वारिस थे. उसे याद है कि छोटे ताऊजी की बेटी, रेणु दीदी, ने अपने कालेज के एक जाट लड़के को पसंद कर लिया था किंतु परिवार का कोई सदस्य नहीं माना था. उन्हें समाज में कमाई गई अपनी इज्जत और रुतबे की चिंता ज्यादा थी. राधेश्याम के कहने पर आननफानन रेणु की शादी अपनी जाति के एक परिवार में तय कर दी गई थी. हालांकि उस की शादी परिवार की इच्छा से की गई थी, फिर भी आज तक उसे माफ नहीं किया गया था. परिवार में सब ओर उस की बेशर्मी के किस्से बांचे जाते थे. उस ने भी कभी इस परिवार के किसी समारोह में हिस्सा नहीं लिया था.

अगली सुबह झूमुर बगीचे में झूले पर गुमसुम बैठी थी कि वहां दादू पहुंच गए, ‘‘बताई नहीं तूने मुझे असली बात.’’ वे भी झूमुर के साथ झूले पर बैठ गए.

‘‘एक आप ही हो दादू जिस से मैं अपने मन की बात…’’

‘‘जानता हूं. असली बात पर आ, वरना फिर कोई आ धमकेगा और हमारी बात बीच में ही रह जाएगी.’’

‘‘कालेज में मेरे साथ एक लड़का पढ़ता था- रिदम.  अच्छा लड़का है, नौकरी भी बहुत अच्छी लग गई है हैदराबाद में.’’

‘‘समझ गया. तुझे वह लड़का पसंद है. तो दिक्कत क्या है?’’

‘‘वह लड़का हमारे धर्म का नहीं है, ईसाई है.’’

‘‘हूं…’’ कुछ क्षण दोनों के बीच चुप्पी छाई रही. मुद्दा वाकई गंभीर था. दूसरे प्रांत या दूसरी जाति का ही नहीं, बल्कि दूसरे धर्म का प्रश्न था. उस पर इन के परिवार की गिनती शहर के जानेमाने रईस, इज्जतदार खानदानों में होती है.

‘‘हम ने अपने कालेज के दीक्षांत समारोह में दोनों परिवारों को मिलवाया. रिदम के परिवार को कोई एतराज नहीं है. मम्मी को रिदम व उस का परिवार बहुत पसंद आया है. किंतु पापा राजी नहीं हैं. उन की मजबूरी है- परिवार जो रजामंद नहीं होगा.’’ झूमुर की चिंता का कारण वाजिब था, ‘‘मैं ने पापा की काफी खुशामद की, काफी समय से उन्हें मना रही हूं. दादू, यदि रिदम नहीं तो कोई नहीं-यह बात मैं ने पापामम्मी से कह भी दी है.’’ आजकल की पीढ़ी अपनी बात रखने में कोई झिझक, कोई संकोच नहीं दिखाती है. झूमुर ने भी साफतौर से अपने दादू को सब बता दिया.

‘‘तो मामला गंभीर है. देख बिटिया, वैसे तो उम्र के इस पड़ाव में, सबकुछ देख चुकने के बाद मैं यह मानता हूं कि जो कुछ है, यही जीवन है. इसे अच्छे से जियो, खुश रहो, बस. यदि तुझे विश्वास है कि तू उस लड़के के साथ खुश रहेगी तो मैं दूंगा तेरा साथ किंतु तुझे मेरी एक बात माननी होगी-एकदम चुप रहना होगा.’’ दादू की बात मान कर झूमुर ने अपने होंठ सिल लिए. उसे अपने दादू पर पूरा विश्वास था. दादू ने भी बिना समय गंवाए अपने बेटे बृजलाल से इस विषय में बात की. बृजलाल अचरज में थे कि पिताजी को यह बात किस ने बता दी. ‘‘मुझ से यह बात स्वयं झूमुर ने साझा की है. अब तू यह बता कि परिवार की खुशी के आगे क्या अपनी इकलौती बिटिया की खुशी खोने को तैयार है?’’

‘‘पिताजी, यही तो दुविधा है. मैं झूमुर को उदास भी नहीं देख सकता हूं और अपने परिवार को नाराज भी नहीं कर सकता हूं.’’

‘‘और यदि दोनों ही न रूठें तो?’’ दादू के दिमाग में खिचड़ी पक रही थी. उन्होंने बृजलाल से अपना आइडिया बांटा. उन के कहने पर झूमुर ने उसी शाम परिवार वालों के लिए फिल्म की टिकटें मंगवा दीं. जब सभी खुशीखुशी फिल्म देखने चल पड़े तो अचानक दादू ने तबीयत नासाज होने की बात कर अपने संग राधेश्याम और बृजलाल को घर में रोक लिया. अब सब जा चुके थे. सो, दादू चैन से अपने दोनों बेटों से बात कर सकते थे. ‘‘देखो भाई, मुझे तुम दोनों से एक बहुत ही गंभीर विषय में बात करनी है. मेरी एक समस्या है और इस का उपाय तुम दोनों के पास है,’’ कहते हुए उन्होंने पूरी बात राधेश्याम और बृजलाल के समक्ष रख दी.  दोनों मुंह खोले एकदूसरे को ताकने लगे. इस से पहले कि कोई कुछ बोलता, दादू आगे बोले, ‘‘मैं पहले ही एक पोती को अपनी जिंदगी से खो चुका हूं सिर्फ इसी सिलसिले में. झूमुर मेरी सब से प्यारी पोती है और सब जानते हैं सूद असल से प्यारा होता है. मैं नहीं चाहता हूं कि झूमुर को भी खो दूं या हमारी झूठी शान और इज्जत के चक्कर में झूमुर अपनी हंसीखुशी खो बैठे. इस परेशानी का हल तुझे निकालना है राधे, और वह भी ऐसे कि किसी को कानोंकान खबर न हो.’’

‘‘मैं, पिताजी?’’ राधेश्याम हतप्रभ रह गए. एक तो विधर्म विवाह की बात से वे परेशान थे, ऊपर से पिताजी इस का हल निकालने का बीड़ा उन्हें ही दे बैठे थे.

‘‘बस, यह समझ ले कि मेरे परिवार के हित में मेरी यह आखिरी इच्छा है. मेरी पोती की खुशी और घरपरिवार की इज्जत-दोनों का खयाल रखना है,’’ पिताजी की आज्ञा सर्वोपरि थी. राधेश्याम ने बहुत सोचा-पहले तो बृजलाल से आंखोंआंखों में मूक शिकायत की लेकिन उस की झुकी गरदन के आगे वे भी बेबस थे. दोनों भाइयों ने मिल कर सोचा कि रिदम के परिवार से मिला जाए और आगे की बात तय की जाए. परिवार के बाकी सदस्यों को बिना खबर किए दोनों दूसरे शहर रिदम के घर चले गए. वहां बातचीत वगैरा हो गई और अपने घर लौट कर दोनों भाइयों ने बताया कि एक अच्छा रिश्ता मिल गया. सो, बात पक्की कर दी गई. शादी की तैयारियां आरंभ हो गईं.

किंतु रिश्तेदारों से कोई बात छिपाना ऐसे है जैसे धूप में बर्फ जमाना. रिश्तेनाते मकड़ी के जालों की भांति होते हैं. बड़े ताऊजी ने बूआ को कह डाला, साथ ही ताकीद की कि वह आगे किसी से कुछ नहीं बताएगी. बूआ के पेट में मरोड़ उठी तो उन्होंने अपनी बेटी को बता दिया. और सब रिश्तेदारों में बात फैल गई कि यह रिश्ता झूमुर की पसंद का है, तथा लड़का ईसाई है लेकिन सभी चुप थे. यह बवाल अपने सिर कौन लेता कि बात किस ने फैलाई.

बड़े संयुक्त परिवारों की यह खासीयत होती है कि मुंह के सामने ‘हम साथसाथ हैं’ और पीठ फिरते ही ‘हम आप के हैं कौन?’ सभी रिश्तेदार शादी वाले घर में एकदूसरे का काम में हाथ बंटवाते, स्त्रियां बढ़चढ़ कर रीतिरिवाज निभाने में लगी रहतीं, कोई न कोई रिवाज बता कर उलझउलझाती रहतीं परंतु जहां मौका पड़ता, कोई न कोई कह रहा होता, ‘‘अब हमारे बच्चों पर इस का क्या असर होगा, आखिर हम कैसे रोक पाएंगे आगे किसी को अपनी मनमानी करने से. ऐसा ही था तो छिपाने की क्या आवश्यकता थी. बेचारी रेणु के साथ ऐसा क्यों किया था फिर…’’ दादू के कानों में भी खुसुरफुसुर पड़ गई. यह तो अच्छा नहीं है कि पता सब को है, सब पीठ पीछे बातें भी बना रहे हैं किंतु मुंह पर मीठे बने हुए हैं. दादू को पारिवारिक रिश्तों में यह दोगलापन नहीं भाया. उन के अनुभवी मस्तिष्क में फिर एक विचार आया किंतु इस बार उन्होंने स्वयं ही इसे परिणाम देने की ठानी. न किसी दूसरे को कुछ करने हेतु कहेंगे, न वह किसी और से कहेगा, और न ही बात फैलेगी.

नियत दिन पर बरात आई. धूमधाम से विवाह संपन्न हुआ. फिर कुछ ऐसा हुआ जिस की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. अचानक विवाह समारोह में एक व्यक्ति आए हाथ में रजिस्टर कलम पकड़े. उन के लिए एक कुरसी व मेज लगवाई गई. और दादू ने हाथ में माईक पकड़ घोषणा करनी शुरू कर दी, ‘‘मेरी पौत्री के विवाह में पधारने हेतु आप सब का बहुतबहुत आभार…आप सब ने मेरी पौत्री को पूरे मन से आशीष दिए. हम सब निश्चितरूप से यही चाहते हैं कि झूमुर तथा रिदम सदैव प्रसन्न रहें. इस अवसर पर मैं आप सब को एक खुशखबरी और देना चाहता हूं. मेरा परिवार इस पूरे शहर में, बल्कि आसपास के शहरों में भी काफी प्रसिद्ध श्रेणी में आता है किंतु मेरे परिवार के ऊपर एक कलंक है, अपनी एक बेटी की इच्छापालन न करने का दोष. आज मैं वह कलंक धोना चाहता हूं. हम कब तक अपनी मर्यादाओं के संकुचित दायरों में रह कर अपने ही बच्चों की खुशियों का गला घोंटते रहेंगे? जब हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षादीक्षा प्रदान करते हैं तो उन के निर्णयों को मान क्यों नहीं दे सकते?’’

‘‘मेरी झूमुर ने एक ईसाई लड़के  को चुना. हमें भी वह लड़का व उस का परिवार बहुत पसंद आया. और सब से अच्छी बात यह है कि न तो झूमुर अपना धर्म बदलना चाहती है और न ही रिदम. दोनों को अपने संस्कारों, अपनी संस्कृतियों पर गर्व है. कितना सुदृढ़ होगा वह परिवार जिस में 2-2 धर्मों, भिन्न संस्कृतियों का मेल होगा. लेकिन कानूनन ऐसी शादियां सिविल मैरिज कहलाती हैं जिस के लिए आज यहां रजिस्ट्रार साहब को बुलाया गया है.’’ दादू के इशारे पर झूमुर व रिदम दोनों रजिस्ट्रार के पास पहुंचे और दस्तखत कर अपने विवाह को कानूनी तौर पर साकार किया.

इस प्रकार खुलेआम सारी बातें स्पष्ट रूप से कहने और स्वीकारने से रिश्तेदारों द्वारा बातों की लुकाछिपी बंद हो गई तथा आगे आने वाले समय के लिए भी बात खुलने का डर या किसी प्रकार की शर्मिंदगी का प्रश्न समाप्त हो गया. दादू की दूरंदेशी और समझदारी ने न केवल झूमुर के निर्णय की इज्जत बनाई बल्कि परिवार में भी एकरसता घोल दी. पूरे शहर में इस परिवार की एकता व हौसले के चर्चे होने लगे. विदाई के समय झूमुर सब के गले मिल कर रो रही थी. किंतु दादू के गले मिलते ही, उन्होंने उस के कान में ऐसा क्या कह दिया कि भीगे गालों व नयनों के बावजूद वह अपनी हंसी नहीं रोक पाई. जब मियांबीवी राजी तो क्यों करें रिश्तेदार दखलबाजी.

Romantic Hindi Kahani : नादान दिल

Romantic Hindi Kahani : जबसे ईशा यहां आई थी उस ने जी भर कर चिनार के पेड़ देख लिए थे. उन की खुशबू को करीब से महसूस किया था. उसे बहुत भाते थे चिनार के पत्ते. जहां भी जाती 1 अपनी डायरी में रखने के लिए ले आती. बहुत ही दिलकश वादियां थीं. उस ने आंखों ही आंखों में कुदरत की मनमोहक ठंडक अपने अंदर समेटनी चाही.

‘‘ईशा…’’ अपना नाम सुन कर उस की तंद्रा भंग हुई और फिर छोटी सी पगडंडी से कूदतीफांदती होटल के सामने की सड़क पर आ गई.

‘‘बहुत देर हो गई है… अब चला जाए,’’ पास आती शर्मीला ने कहा, ‘‘सुबह पहलगाम के लिए जल्दी निकलना है. थोड़ा आराम कर लेंगे.’’

‘‘ईशा भाभी तो यहां आ कर एकदम बच्ची बन गई हैं, मैं ने अभी देखा पहाड़ी में दौड़ती फिर रही थीं,’’ विरेन भाई ने चुटकी ली.

ईशा झेंप गई. वह खुद में इतनी गुम थी कि पति परेश और उस के दोस्तों की मौजूदगी ही भूल गई थी. इन हसीन वादियों ने उस के पैरों में जैसे पंख लगा दिए थे. ईशा ने कश्मीर की खूबसूरती के बारे में बहुत पढ़ा और सुना था. अकसर फिल्मों में लव सौंग गाते हीरोहीरोइन के पीछे दिखती बर्फ से ढकी पहाडि़यों पर उस की नजरें ठहर जाती थीं और फिर रोमानी खयालात मचल उठते.

कभी सोचा नहीं था कि गुजरात से इतनी दूर यहां घूमने आएगी और इन वादियों में आजाद पंछी की तरह उड़ती फिरेगी. उस ने खुद को एक अरसे बाद इतना खुश पाया था. वे लोग देर तक बस घूम ही रहे थे. अब अंधेरा गहराने लगा तो वापस होटल चल पड़े. शाम से ही पहाड़ों पर हलकी बारिश होने लगी थी. ठंड कुछ और बढ़ गई थी. होटल के अपने नर्म बिस्तर पर करवटें बदलती ईशा की नींद आंखमिचौली खेल रही थी. बगल में सोया परेश गहरी नींद में डूबा था. रात काफी बीत चुकी थी. उस ने एक बार फिर घड़ी पर नजर डाली. वक्त जैसे कट ही नहीं रहा था. हैरत की बात थी कि दिन भर घूमने के बाद भी थकान का नामोनिशान न था.

खयालों का काफिला गुजरता जा रहा था कि एकाएक 2 नीली आंखें जैसे सामने आ गईं. झील सा नीला रंग लिए रशीद की आंखें… वह  2 दिनों से उन लोगों का ड्राइवर एवं गाडड बना था. जिस दिन वे लोग होटल पहुंचे थे, परेश ने घूमने के लिए रशीद की ही गाड़ी बुक कराई थी. किसी विदेशी मौडल सा दिखने वाला गोराचिट्टा रशीद स्वभाव से भी बड़ा मीठा था. उस के बारे में एक और बात उन लोगों को पसंद आई कि वह कहीं पास ही रहता था. वे जब भी बुलाते तुरंत हाजिर हो जाता.

2 दिनों में ही रशीद ने उन्हें करीब हर घूमने लायक जगह दिखा दी थी. ईशा रशीद से उन जगहों के बारे में बहुत सी बातें पूछती और पूरी जानकारी अपनी डायरी में लिख लेती. ईशा को डायरी लिखने का शौक था. उस के हर अच्छेबुरे अनुभव की साक्षी थी उस की डायरी. बाकी लोग अपने काम से काम रखने वाले थे, मगर ईशा के बातूनीपन की वजह से रशीद और ईशा के बीच खूब बातें होतीं और लगभग एक ही उम्र के होने की वजह से बहुत सी बातों में दोनों की पसंद भी मिलती थी. अकसर ड्राइवर के ठीक पीछे वाली सीट पर बैठी ईशा जब कभी अचानक सामने देखती, शीशे में उस की और रशीद की नजरें टकरा जातीं. झेंप कर ईशा नजरें झुका लेती. रशीद भी थोड़ा शरमा जाता. उस के साथ हुई बातों से ईशा को पता चला कि वह पढ़ालिखा है और किसी बेहतर काम की तलाश में है. छोटी बहन की शादी की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी, जिस के लिए उसे पैसों की जरूरत थी. उस की सादगी भरी बातों से ईशा के दिल में उस के प्रति हमदर्दी पैदा हो गई थी, जिस में दोस्ती की महक भी शामिल थी.

अहमदाबाद के रहने वाले परेश और ईशा की शादी को कम ही अरसा हुआ था. मरजी के खिलाफ हुई इस शादी से ईशा खुश नहीं थी. पारंपरिक विचारों वाले परिवार में पलीबढ़ी ईशा अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहती थी. मगर जब मैनेजमैंट की पढ़ाई के बीच ही घर वालों ने एक खातेपीते व्यापारी परिवार के लड़के परेश से रिश्ता तय कर दिया तो ईशा के कुछ कर दिखाने के सपने अधूरे ही रह गए.

वह किसी बड़ी नौकरी में अपनी काबिलीयत साबित करना चाहती थी. बहुत झगड़ी थी घर वालों से पर पिता ने बीमार होने का जो जबरदस्त नाटक खेला था उस दबाव में आ कर ईशा ने हथियार डाल दिए थे. ऊपर से मां ने भी पिता का ही साथ दिया. ईशा को समझाया कि उसे कौन सी नौकरी करनी है. व्यापारी परिवार की बहुएं तो बस घर संभालती हैं.

शादी के बाद पति परेश के स्वभाव का विरोधाभास भी दोनों के बीच की दीवार बना. दोनों मन से जुड़ ही नहीं पाए थे. एक फासला हमेशा बरकरार रहता जिसे न कभी ईशा भर पाई न ही परेश. जिस मलाल को ले कर ईशा का मन आहत था, परेश ने कभी उस पर प्यार का मरहम तक लगाने की कोशिश नहीं की. घर का इकलौता बेटा परेश अपने पिता के साथ खानदानी कारोबार में व्यस्त रहता. सुबह का निकला देर रात ही घर लौटता था.

एक बंधेबंधाए ढर्रे पर जिंदगी बिताते परेश और ईशा नदी के 2 किनारों जैसे थे, जो साथ चलते तो हैं, मगर कभी एक नहीं हो पाते. ईशा पैसे की अहमियत समझती थी, मगर जिंदगी के लिए सिर्फ पैसा ही तो सब कुछ नहीं होता. परेश उस के लिए वक्त निकालने की कोई जरूरत तक नहीं समझता था. यह और बात थी कि दोनों हमबिस्तर होते, मगर वह मिलन सूखी रेत पर पानी की बूंदों जैसा होता, जो ऊपर ही ऊपर सूख जाता अंदर तक भिगोता ही नहीं था.

चुलबुली और बातूनी ईशा शादी के बाद उत्साहहीन रहने लगी. आम पतियों की तरह परेश उस पर जबतब रोब नहीं गांठता था. दोनों के बीच कोई खटास या मनमुटाव भी नहीं था, मगर वह कशिश भी नहीं थी, जो 2 दिलों को एकदूजे के लिए धड़काती है.  विरेन और परेश की दोस्ती पुरानी थी. विरेन को दोस्त का हाल खूब पता था. विरेन ने एक दिन परेश को सुझाव दिया कि ईशा के साथ कुछ वक्त अकेले में बिताने के लिए दोनों को घर से कहीं दूर घूम आना चाहिए.

ईशा जानती थी कि विरेन भाई उन के हितैषी हैं, मगर परेशानी यह थी कि परेश के मन की थाह ईशा अभी तक नहीं लगा पाई थी. परेश उस से कितना तटस्थ रहता पर ईशा कोई कदम नहीं उठाती उस दूरी को मिटाने के लिए. अपने घर वालों की मनमरजी का बदला एक तरह से वह अपनी शादी से ले रही थी. यह बात उस के मन में घर कर गई थी कि कहीं न कहीं परेश भी उतना ही दोषी है जितने ईशा के मांबाप. वह सब को दिखा देना चाहती थी कि वह इस जबरदस्ती थोपे गए रिश्ते से खुश नहीं है.

शादी के बाद कुछ कारोबारी जिम्मेदारियों के चलते दोनों कहीं नहीं जा पाए थे और ईशा ने भी कभी कहीं जाने की उत्सुकता नहीं दिखाई. इस तरह से उन का हनीमून कभी हुआ ही नहीं. अब जब अकेले घूम आने की चर्चा हुई तो ईशा को लग रहा था कि परेश और वह एकदूसरे के साथ से जल्दी ऊब जाएंगे. अत: उस ने विरेन और उस की पत्नी शर्मीला को साथ चलने को कहा. सब ने मिल कर जगह का चुनाव किया और कश्मीर आ गए.  रात के अंधेरे में हाउस बोटों की रोशनी जब पानी पर पड़ती तो किसी नगीने सी

झिलमिलाती झील और भी खूबसूरत लगती. ईशा पानी में बनतीमिटती रंगीन रोशनी को घंटों निहारती रही. कदमकदम पर अपना हुस्न बिछाए बैठी कुदरत ने उस के दिल के तार झनझना दिए. उस का मन किया कि परेश उस के करीब आए, उस से अपने दिल की बात करे. अपने अंह को कुचल कर वह खुद पहल नहीं करना चाहती थी. उन के पास बेशुमार मौके थे इन खूबसूरत नजारों में एकदूसरे के करीब आने के बशर्ते परेश भी यही महसूस करता. शर्मीला और ईशा दोस्त जरूर थीं, मगर दोस्ती उतनी गहरी भी नहीं थी कि ईशा उस से अपना दुखड़ा रोती. ऐसे में वह खुद को और भी तनहा महसूस करती.

बहुत देर तक यों ही अकेले बैठी ईशा का मन ऊब गया तो वह कमरे में आ गई. परेश वहां नहीं था. शायद जाम का दौर अभी और चलेगा. उस ने उकता कर एक किताब खोली, पर फिर झल्ला कर उसे भी बंद कर दिया.

‘चलो शर्मीला से गप्पें लड़ाई जाएं’ उस ने सोचा. शर्मीला और विरेन का कमरा बगल में ही था. कमरे के पास पहुंच कर उस ने दरवाजे पर दस्तक दी. कुछ देर इंतजार के बाद कोई जवाब न पा कर उलटे पैर लौट आई अपने कमरे में और बत्ती बुझा कर उस तनहाई के अंधेरे में बिस्तर पर निढाल हो गई. आंसुओं की गरम बूंदें तकिया भिगोने लगीं. नींद आज भी खफा थी.

दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ कर सब घूमने निकल गए. रशीद हमेशा की तरह समय पर आ गया था. रास्ता पैदल चढ़ाई का था. पहाड़ी रास्तों को तेज कदमों से लांघतीफांदती ईशा जब ऊपर चोटी पर पहुंच कर किसी उत्साही बच्चे की तरह विजयी भाव से खिलखिलाने लगी तो रशीद ने उसे पानी की बोतल थमाई. ईशा ने ढलान की ओर देखा सब कछुए की चाल से आ रहे थे. घने जंगल से घिरी छोटी सी यह घाटी बहुत लुभावनी लग रही थी. ‘‘आप तो बहुत तेज चलती हैं मैडमजी,’’ रशीद हैरान था उसे देख कर कि शहर की यह कमसिन लड़की कैसे इन पहाड़ी रास्तों पर इतनी तेजी से चल रही है. ईशा ने अपनी दोनों बांहें हवा में लहरा दीं और फिर आंखें बंद कर के एक गहरी सांस ली. ताजा हवा में देवदार और चीड़ के पेड़ों की खुशबू बसी थी.

‘‘रशीद तुम कितनी खूबसूरत जगह रहते हो,’’ ईशा मुग्ध स्वर में बोली. रशीद ने उस पर एक मुसकराहट भरी नजर फेंकी. आज से पहले किसी टूरिस्ट ने उस से इतनी घुलमिल कर बातें नहीं की थीं. ईशा के सवाल कभी थमते नहीं थे और रशीद को भी उस से बातें करना अच्छा लगता था.

अब तक बाकी लोग भी ऊपर आ चुके थे. उस सीधी चढ़ाई से परेश, विरेन और शर्मीला बुरी तरह हांफने लगे थे. थका सा परेश एक बड़े पत्थर पर बैठ गया तो ईशा को न जाने क्यों हंसी आ गई. काम में उलझा परेश खुद को चुस्त रखने के लिए कुछ नहीं करता था. विरेन कैमरा संभाल सब के फोटो खींचने लगा. वे लोग अभी मौसम का लुत्फ ले ही रहे थे कि एकाएक आसमान में बादल घिर आए और देखते ही देखते चमकती धूप में भी झमाझम बारिश शुरू हो गई. जिसे जहां जगह दिखी वहीं दौड़ पड़ा बारिश से बचने के लिए. बारीश ने बहुत देर तक रुकने का नाम नहीं लिया तो उन लोगों ने घोड़े

किराए पर ले लिए होटल लौटने के लिए. पहली बार घोड़े पर बैठी ईशा बहुत घबरा रही थी. बारिश के कारण रास्ता बेहद फिसलन भरा हो गया था. बाकी घोड़े न जाने कब उस बारिश में आंखों से ओझल हो गए. रशीद ईशा के घोड़े की लगाम पकड़े साथ चल रहा था. ईशा का डर दूर करने के लिए वह घोड़े को धीमी रफ्तार से ले जा रहा था.

‘‘और धीरे चलो रशीद वरना मैं गिर जाऊंगी,’’ ईशा को डर था कि जरूर उस का घोड़ा इस पतली पगडंडी में फिसल पड़ेगा और वह गिर जाएगी.

‘‘आप फिक्र न करो मैडमजी. आप को कुछ नहीं होगा. धीरे चले तो बहुत देर हो जाएगी,’’ रशीद दिनरात इन रास्तों का अभ्यस्त था. उस ने घोड़े की लगाम खींच कर थोड़ा तेज किया ही था कि वही हुआ जिस का ईशा को डर था. घोड़ा जरा सा लड़खड़ा गया और ईशा संतुलन खो कर उस की पीठ से फिसल गई. एक चीख उस के मुंह से निकल पड़ी.

रशीद ने लपक कर उसे थाम लिया और दोनों ही गीली जमीन पर गिर पड़े. ईशा के घने बालों ने रशीद का चेहरा ढांप लिया. दोनों इतने पास थे कि उन की सांसें आपस में टकराने लगीं. रशीद का स्पर्श उसे ऐसा लगा जैसे बिजली का तार छू गया हो. रशीद की बांहों ने उसे घेरा था. उस अजीब सी हालत में दोनों की आंखें मिलीं तो ईशा के तनबदन में जैसे आग लग गई. चिकन की कुरती भीग कर उस के बदन से चिपक गई थी. मारे शर्म के ईशा का चेहरा लाल हो उठा. उस की पलकें झुकी जा रही थीं. उस ने खुद को अलग करने की पूरी कोशिश की. दोनों को उस फिसलन भरी डगर पर संभलने में वक्त लग गया. पूरा रास्ता दोनों खामोश रहे. उस एक पल ने उन की सहज दोस्ती को जैसे चुनौती दे दी थी. बेखुदी में ईशा को कुछ याद नहीं रहा कि कब वह होटल पहुंची. गेट से अंदर आते ही उस ने देखा परेश, विरेन और शर्मीला होटल की लौबी में बेसब्री से उस का इंतजार कर रहे थे.

परेश लपक कर उस के पास आया. ईशा के कपड़ों में मिट्टी लगी थी. उस ने बताया कि वह घोड़े से फिसल गई थी. परेश चिंतित हो उठा. शर्मीला और विरेन को भी फिक्र हो गई. ईशा ने जब तीनों को आश्वस्त किया कि वह एकदम ठीक है तब सब को तसल्ली हुई. ईशा शावर की गरम बौछार में बड़ी देर तक बालों से मिट्टी छुड़ती रही. जितना ही खुद को संयत करने की कोशिश करती उतनी ही और बेचैन हो जाती. आज की घटना रहरह कर विचलित कर रही थी. आंखें बंद करते ही रशीद का चेहरा सामने आ जाता. उन बांहों की गिरफ्त अभी तक उसे महसूस हो रही थी. ऐसा क्यों हो रहा था उस के साथ, वह समझ नहीं पा रही थी. पहले तो कभी उसे यह एहसास नहीं हुआ था. तब भी नहीं जब परेश रात के अंधेरे में बिस्तर पर उसे टटोलता. परेश ने उस के लिए सूप का और्डर दे दिया था और खाना भी कमरे में ही मंगवा लिया था.

‘‘ईशा घर से फोन आया था… मुझे कल वापस जाना होगा,’’ परेश ने खाना खाते हुए बताया.

‘‘अचानक क्यों? हम 2 दिन बाद जाने ही वाले हैं न?’’ ईशा ने पूछा.

‘‘तुम नहीं बस मैं जाऊंगा… कोई जरूरी काम आ गया है. मेरा जाना जरूरी है.

मगर तुम फिक्र मत करो. मैं ने सब ऐडवांस बुकिंग करवाई है. कल सुबह हम लोग श्रीनगर जा रहे हैं जहां से मैं एअरपोर्ट चला जाऊंगा.’’

‘‘तो फिर मैं वहां अकेली क्या करूंगी.

2 दिन बाद चलेंगे… क्या फर्क पड़ेगा?’’ ईशा को यह बात अटपटी लग रही थी कि दोनों साथ में छुट्टियां बिताने आए थे और अब इस तरह परेश अकेला वापस जा रहा है.

‘‘मैं अगर कल नहीं पहुंचा तो बहुत नुकसान हो जाएगा… यह डील हमारे बिजनैस के लिए बहुत जरूरी है… देखो, तुम समझने की कोशिश करो. वैसे भी तुम कुछ दिन और रुकना चाहती थी, घूमना चाहती थी और फिर तुम अकेली नहीं हो, विरेन और शर्मीला भाभी तुम्हारे साथ हैं. तब तक घूमोफिरो, यहां काफी कुछ है देखने के लिए,’’ परेश ने बात खत्म की.

परेश के स्वभाव की यही खासीयत थी कि वह दिल का बहुत उदार था. परेश को आराम से खाना खाते देख कर ईशा को उस के प्रति अपनी बेरुखी कहीं कचोटने लगी. बेशक वह चाहता तो ईशा को अपने साथ चलने के लिए मजबूर कर सकता था, लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया. यह ईशा की ही जिद थी कि कुछ दिन और रुका जाए जिसे परेश ने मान भी लिया था. वजह क्या थी उस की समझ नहीं आ रहा था पर अब परेश का इस तरह बीच में ही उसे अकेला यहां छोड़ कर जाना भी अच्छा नहीं लग रहा था. एक शाल लपेट कर ईशा बालकनी में आ गई. ठंडी हवा ने बदन को सिहरा दिया. बाहर सड़क पर इक्कादुक्का लोग ही दिख रहे थे… होटल में रुके टूरिस्ट दिन भर की थकान के बाद आराम कर रहे थे. चारों तरफ नीरवता पसरी थी.

ईशा का ध्यान गेट के पास टिमटिमाती रोशनी पर गया. यह उन की गाड़ी थी जो उन लोगों ने किराए पर ली थी. सुबह उन्हें जल्दी निकलना था तो रशीद ने गाड़ी वहीं खड़ी कर दी थी. उस अंधेरे में भी ईशा ने रशीद की आंखें पहचान लीं. वह ईशा को ही देख रहा था. उस ने हाथ से कुछ इशारा किया.

परेश टीवी पर खबरें देखने में व्यस्त था, ईशा कमरे से निकल कर बालकनी से गेट पर आई. बोली, ‘‘क्या बात है?’’ ईशा के लहजे में संकोच था. कितनी नादान थी वह… रशीद के एक इशारे पर दौड़ी चली आई. रशीद करीब आया और अपनी जींस की जेब से कुछ निकाल कर उस की ओर बढ़ा दिया. होटल के गेट से आती रोशनी में ईशा ने देखा. उस के कान का झुमका था. अनायास हाथ कान पर चला गया. एक झुमका गायब था. जब वह घोड़े से फिसली थी तब गिर गया होगा. मगर एक मामूली झुमके के लिए रशीद इतनी देर से क्यों उस का इंतजार कर रहा था. अब तक तो उसे चले जाना चाहिए था. ईशा ने रशीद की तरफ देखा जो न जाने कब से टकटकी लगाए उसे ही देख रहा था.

‘‘इसे तुम सुबह भी दे सकते थे, न चाहते हुए भी उस की आवाज में तलखी आ गई.’’

‘‘मुझे लगा आप इसे ढूंढ़ रही होंगी,’’ रशीद बोला और फिर पलट कर तेज कदमों से सड़क के उस पार चला गया. नींद फिर उस के साथ आंखमिचौली करने लगी थी. उस ने अपनी तरफ के साइड लैंप को जला कर डायरी निकाल ली और बड़ी देर तक कुछ लिखती रही. जब लिखना बंद किया तो खयालों ने आ घेरा…

उसे शादी के दिन से अब तक परेश के साथ बिताए लमहे याद आने लगे. परेश उस की खुशी का ध्यान रखता था, यह बात उस ने जान कर भी कभी नहीं मानी. उस के अहं ने एक पत्नी को कभी समर्पण नहीं करने दिया. परेश ने कभी उस पर अपनी इच्छा नहीं थोपी और ईशा इस बात से और भी परेशान हो जाती.

आखिर वह किस बात का बदला ले परेश से. अपने सपनों के बारे में उस ने परेश को तो कभी बताया ही नहीं था तो उसे कैसे मालूम होता कि ईशा क्यों खफा है जिंदगी से… आज उस के अंदर यह परिवर्तन अचानक कैसे आ गया… परेश के लिए उस के दिल में कोमल भावनाएं जाग गई थीं, जो अब तक निष्ठुर सो रही थीं. जो रिश्ता सूखे ठूंठ सा था, वहीं से एक कोपल फूट निकली थी आज. सुबह के न जाने किस पहर में ईशा को नींद आई और वह बेसुध सो रही थी. परेश उसे बारबार जगाने की कोशिश कर रहा था. हड़बड़ी में उठ कर ईशा जल्दी से तैयार हो कर सब के साथ गाड़ी में जा बैठी. गाड़ी तेज रफ्तार से भाग रही थी. दिलकश नजारे पीछे छूटते जा रहे थे. ईशा जितनी बार सामने की तरफ देखती, 2 नीली आंखें उसे ही देख रही होतीं. यह हर बार इत्तेफाक नहीं हो सकता था. सब खामोश थे, रेडियो पर एक रोमांटिक गाना बज रहा था, ‘प्यार कर लिया तो क्या…प्यार है खता नहीं…’ किशोर कुमार की नशीली आवाज में गाने के बोल और भी मुखर हो उठे. रशीद ने जानबूझ कर वौल्यूम बढ़ा दिया और एक बार फिर शीशे में दोनों की आंखें मिलीं, सब की नजरों से बेखबर.

ईशा का दिल जैसे चोर बन गया था. उसे खुद पर ही शर्म आने लगी. परेश को अभी निकलना था अहमदाबाद के लिए. अभी 2 दिन और ईशा को यहीं रहना था और इन 2 दिनों में वह इसी तरह रशीद की गाड़ी में घूमते रहेंगे. बारबार एक खयाल उस के दिल में चुभ रहा था कि कुछ गलत हो रहा है.

बीती शाम की बातें ईशा भूली नहीं थी और रात को जब वह रशीद से मिली थी तो उस की आंखों में अपने लिए जो कुछ भी महसूस किया था, उसे यकीन था इन 2 दिनों का साथ उस आग को और भड़का देगा. अचानक उसे परेश की जरूरत महसूस होने लगी. वह परेश की पत्नी है और किसी को भी हक नहीं है उस के बारे में इस तरह सोचने का.

उस ने अपना सिर झटक कर इन खयालों को भी झटक देना चाहा कि नहीं, इन सब बातों का उस के लिए कोई मतलब नहीं है. माना कि उस के और परेश के बीच प्यार नहीं है मगर किसी और के लिए भी वह अपने दिल को इस तरह नादान नहीं बनने देगी, हरगिज नहीं. उस ने खुद को ही यकीन दिलाया.

एअरपोर्ट पहुंच कर जब सब गाड़ी से उतरे तो ईशा ने परेश के साथ ही अपना बैग भी उतरवा लिया. ‘‘तुम क्यों अपना सामान निकाल रही हो?’’ परेश ने उसे चौंक कर देखा.

‘‘मैं आप के साथ ही चल रही हूं. टिकट मिल जाएगा न?’’

उस के अचानक लिए इस फैसले से विरेन और शर्मीला भी चौंक गए कि कल तक तो वह बहुत उतावली हो रही थी यहां कुछ और दिन बिताने के लिए.

‘‘ईशा भाभी परेश भाई के बिना एक दिन भी नहीं रह सकती…आज पता चला इन के दिल का हाल…बहुत चाहने वाली पत्नी पाई है परेश भाई,’’ शर्मीला ने ईशा और परेश को छेड़ा. परेश भी एक सुखद आश्चर्य से भर उठा कि क्या सच में ईशा के दिल में उस के लिए प्यार छिपा था? धूप का चश्मा आंखों पर लगा ईशा ने आंखों के कोनों से देखा. रशीद अपनी नीली आंखों से निहारता हुआ गाड़ी के बाहर खड़ा उन का इंतजार कर रहा था.

फ्लाइट का वक्त हो चला था. दोनों गेट की ओर बढ़ने लगे तो शर्मीला और विरेन ने हाथ हिला कर उन्हें विदाई दी. ईशा ने मुड़ कर देखा, रशीद के चेहरे पर हैरानी और उदासी थी, मगर ईशा का दिल शांत था. फिर अचानक उसे कुछ याद आया. वह पलटी और रशीद के पास आई.

‘‘आप जा रही हैं, आप ने बताया नहीं?’’ आहत से स्वर में रशीद ने पूछा. अपना हैंडबैग खोल कर उस ने एक लिफाफा निकाल कर रशीद की तरफ बढ़ा दिया. रशीद ने उसे सवालिया नजरों से देखा. ‘‘तुम्हारी बहन की शादी में तो मैं आ नहीं पाऊंगी इसलिए मेरी तरफ से यह उस के लिए है.’’ रशीद ने इनकार किया तो ईशा ने बड़े अधिकार से उस का हाथ पकड़ कर लिफाफा हाथ में थमा दिया. आखिरी बार फिर 2 जोड़ी आंखें मिलीं और फिर एक प्यारी मुसकराहट के साथ ईशा ने विदा ली.

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