Serial Story: प्रतिदिन– भाग 2

यह पहला मौका था कि मैं दीप्ति के घर गई थी. उस का बड़ा सा घर देख कर मन खुश हो गया. मेरे अढ़ाई कमरे के घर की तुलना में उस का 4 डबल बेडरूम का घर मुझे बहुत बड़ा लगा. मैं इस आश्चर्य से अभी उभर भी नहीं पाई थी कि एक और आश्चर्य मेरी प्रतीक्षा कर रहा था.

अचानक मेरी नजर ड्राइंगरूम में कोने में बैठी अपनी पड़ोसिन पर चली गई. मैं अपनी जिज्ञासा रोक न पाई और दीप्ति के पास जा कर पूछ बैठी, ‘‘वह वृद्ध महिला जो उधर कोने में बैठी हैं, तुम्हारी कोई रिश्तेदार हैं?’’

‘‘नहीं, पापा के किसी दोस्त की पत्नी हैं. इन की बेटी ने जिस लड़के से शादी की है वह हमारी जाति का है. इन का दिमाग कुछ ठीक नहीं रहता. इस कारण बेचारे अंकलजी बड़े परेशान रहते हैं. पर तू क्यों जानना चाहती है?’’

‘‘मेरी पड़ोसिन जो हैं,’’ इन का दिमाग ठीक क्यों नहीं रहता? इसी गुत्थी को तो मैं इतने दिनों से सुलझाने की कोशिश कर रही थी, अत: दोबारा पूछा, ‘‘बता न, क्या परेशानी है इन्हें?’’

अपनी बड़ीबड़ी आंखों को और बड़ा कर के दीप्ति बोली, ‘‘अभी…पागल है क्या? पहले मेहमानों को तो निबटा लें फिर आराम से बैठ कर बातें करेंगे.’’

2-3 घंटे बाद दीप्ति को फुरसत मिली. मौका देख कर मैं ने अधूरी बात का सूत्र पकड़ते हुए फिर पूछा, ‘‘तो क्या परेशानी है उन दंपती को?’’

‘‘अरे, वही जो घरघर की कहानी है,’’ दीप्ति ने बताना शुरू किया, ‘‘हमारे भारतीय समाज को पहले जो बातें मरने या मार डालने को मजबूर करती थीं और जिन बातों के चलते वे बिरादरी में मुंह दिखाने लायक नहीं रहते थे, उन्हीं बातों को ये अभी तक सीने से लगाए घूम रहे हैं.’’

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‘‘आजकल तो समय बहुत बदल गया है. लोग ऐसी बातों को नजरअंदाज करने लगे हैं,’’ मैं ने अपना ज्ञान बघारा.

‘‘तू ठीक कहती है. नईपुरानी पीढ़ी का आपस में तालमेल हमेशा से कोई उत्साहजनक नहीं रहा. फिर भी हमें जमाने के साथ कुछ तो चलना पड़ेगा वरना तो हम हीनभावना से पीडि़त हो जाएंगे,’’ कह कर दीप्ति सांस लेने के लिए रुकी.

मैं ने बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘जब हम भारतीय विदेश में आए तो बस, धन कमाने के सपने देखने में लग गए. बच्चे पढ़लिख कर अच्छी डिगरियां लेंगे. अच्छी नौकरियां हासिल करेंगे. अच्छे घरों से उन के रिश्ते आएंगे. हम यह भूल ही गए कि यहां का माहौल हमारे बच्चों पर कितना असर डालेगा.’’

‘‘इसी की तो सजा भुगत रहा है हमारा समाज,’’ दीप्ति बोली, ‘‘इन के 2 बेटे 1 बेटी है. तीनों ऊंचे ओहदों पर लगे हुए हैं. और अपनेअपने परिवार के साथ  आनंद से रह रहे हैं पर उन का इन से कोई संबंध नहीं है. हुआ यों कि इन्होंने अपने बड़े बेटे के लिए अपनी बिरादरी की एक सुशील लड़की देखी थी. बड़ी धूमधाम से रिंग सेरेमनी हुई. मूवी बनी. लड़की वालों ने 200 व्यक्तियों के खानेपीने पर दिल खोल कर खर्च किया. लड़के ने इस शादी के लिए बहुत मना किया था पर मां ने एक न सुनी और धमकी देने लगीं कि अगर मेरी बात न मानी तो मैं अपनी जान दे दूंगी. बेटे को मानना पड़ा.

‘‘बेटे ने कनाडा में नौकरी के लिए आवेदन किया था. नौकरी मिल गई तो वह चुपचाप घर से खिसक गया. वहां जा कर फोन कर दिया, ‘मम्मी, मैं ने कनाडा में ही रहने का निर्णय लिया है और यहीं अपनी पसंद की लड़की से शादी कर के घर बसाऊंगा. आप लड़की वालों को मना कर दें.’

‘‘मांबाप के दिल को तोड़ने वाली यह पहली चोट थी. लड़की वालों को पता चला तो आ कर उन्हें काफी कुछ सुना गए. बिरादरी में तो जैसे इन की नाक ही कट गई. अंकल ने तो बाहर निकलना ही छोड़ दिया लेकिन आंटी उसी ठाटबाट से निकलतीं. आखिर लड़के की मां होने का कुछ तो गरूर उन में होना ही था.

‘‘इधर छोटे बेटे ने भी किसी ईसाई लड़की से शादी कर ली. अब रह गई बेटी. अंकल ने उस से पूछा, ‘बेटी, तुम भी अपनी पसंद बता दो. हम तुम्हारे लिए लड़का देखें या तुम्हें भी अपनी इच्छा से शादी करनी है.’ इस पर वह बोली कि पापा, अभी तो मैं पढ़ रही हूं. पढ़ाई करने के बाद इस बारे में सोचूंगी.

‘‘‘फिर क्या सोचेगी.’ इस के पापा ने कहा, ‘फिर तो नौकरी खोजेगी और अपने पैरों पर खड़ी होने के बारे में सोचेगी. तब तक तुझे भी कोई मनपसंद साथी मिल जाएगा और कहेगी कि उसी से शादी करनी है. आजकल की पीढ़ी देशदेशांतर और जातिपाति को तो कुछ समझती नहीं बल्कि बिरादरी के बाहर शादी करने को एक उपलब्धि समझती है.’ ’’

इसी बीच दीप्ति की मम्मी कब हमारे लिए चाय रख गईं पता ही नहीं चला. मैं ने घड़ी देखी, 5 बज चुके थे.

‘‘अरे, मैं तो मम्मी को 4 बजे आने को कह कर आई हूं…अब खूब डांट पड़ेगी,’’ कहानी अधूरी छोड़ उस से विदा ले कर मैं घर चली आई. कहानी के बाकी हिस्से के लिए मन में उत्सुकता तो थी पर घड़ी की सूई की सी रफ्तार से चलने वाली यहां की जिंदगी का मैं भी एक हिस्सा थी. अगले दिन काम पर ही कहानी के बाकी हिस्से के लिए मैं ने दीप्ति को लंच टाइम में पकड़ा. उस ने वृद्ध दंपती की कहानी का अगला हिस्सा जो सुनाया वह इस प्रकार है:

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‘‘मिसेज शर्मा यानी मेरी पड़ोसिन वृद्धा कहीं भी विवाहशादी का धूमधड़ाका या रौनक सुनदेख लें तो बरदाश्त नहीं कर पातीं और पागलों की तरह व्यवहार करने लगती हैं. आसपड़ोस को बीच सड़क पर खड़ी हो कर गालियां देने लगती हैं. यह भी कारण है अंकल का हरदम घर में ही बैठे रहने का,’’ दीप्ति ने बताया, ‘‘एक बार पापा ने अंकल को सुझाया था कि आप रिटायर तो हो ही चुके हैं, क्यों नहीं कुछ दिनों के लिए इंडिया घूम आते या भाभी को ही कुछ दिनों के लिए भेज देते. कुछ हवापानी बदलेगा, अपनों से मिलेंगी तो इन का मन खुश होगा.

‘‘‘यह भी कर के देख लिया है,’ बडे़ मायूस हो कर शर्मा अंकल बोले थे, ‘चाहता तो था कि इंडिया जा कर बसेरा बनाऊं मगर वहां अब है क्या हमारा. भाईभतीजों ने पिता से यह कह कर सब हड़प लिया कि छोटे भैया को तो आप बाहर भेज कर पहले ही बहुत कुछ दे चुके हैं…वहां हमारा अब जो छोटा सा घर बचा है वह भी रहने लायक नहीं है.

‘‘‘4 साल पहले जब मेरी पत्नी सुमित्रा वहां गई थी तो घर की खस्ता हालत देख कर रो पड़ी थी. उसी घर में विवाह कर आई थी. भरापूरा घर, सासससुर, देवरजेठ, ननदों की गहमागहमी. अब क्या था, सिर्फ खंडहर, कबूतरों का बसेरा.

‘‘‘बड़ी भाभी ने सुमित्रा का खूब स्वागत किया. सुमित्रा को शक तो हुआ था कि यह अकारण ही मुझ पर इतनी मेहरबान क्यों हो रही हैं. पर सुमित्रा यह जांचने के लिए कि देखती हूं वह कौन सा नया नाटक करने जा रही है, खामोश बनी रही. फिर एक दिन कहा कि दीदी, किसी सफाई वाली को बुला दो. अब आई हूं तो घर की थोड़ी साफसफाई ही करवा जाऊं.’

‘‘‘सफाई भी हो जाएगी पर मैं तो सोचती हूं कि तुम किसी को घर की चाबी दे जाओ तो तुम्हारे पीछे घर को हवाधूप लगती रहेगी,’ भाभी ने अपना विचार रखा था.

‘‘‘सुमित्रा मेरी सलाह लिए बिना भाभी को चाबी दे आई. आ कर भाभी की बड़ी तारीफ करने लगी. चूंकि इस का अभी तक चालाक लोगों से वास्ता नहीं पड़ा था इसलिए भाभी इसे बहुत अच्छी लगी थीं. पर भाभी क्या बला है यह तो मैं ही जानता हूं. वैसे मैं ने इसे पिछली बार जब इंडिया भेजा था तो वहां जा कर इस का पागलपन का दौरा ठीक हो गया था. लेकिन इस बार रिश्तेदारों से मिल कर 1 महीने में ही वापस आ गई. पूछा तो बोली, ‘रहती कहां? बड़ी भाभी ने किसी को घर की चाबी दे रखी थी. कोई बैंक का कर्मचारी वहां रहने लगा था.’

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निडर रोशनी की जगमग: भाग्यश्री को किस पुरुष के साथ देखा राधिका ने

Serial Story: निडर रोशनी की जगमग– भाग 3

शाम को अमन के आने पर राधिका ने देखा कि सरवैंट क्वार्टर का दरवाजा खुला है. सीमा और सतीश वहां से चुपचाप अपना सामान ले कर गायब हो चुके थे.सीमा की कलई खुल जाने से राधिका खुश तो थी पर फिर वही मेड की समस्या मुंह बाए खड़ी थी. ‘इस बार जल्दबाजी नहीं करूंगी. सोच-समझ कर फैसला लूंगी,’ सोचते हुए उस ने सिक्युरिटी गार्ड को फोन कर क्वार्टर के लिए इच्छुक लोगों को भेजते रहने को कहा.

रविवार के दिन राधिका को न अमन के औफिस जाने की चिंता होती और न खुद के कहीं इंटरव्यू के लिए जाने की. उस दिन भी रविवार था. सुबह की चाय पीते हुए वह अमन से गप्पें मार रही थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी.

‘‘अरे, सुबह के 8 बजे कौन आ गया?’’ नाक चढ़ा कर राधिका अमन को देखते हुए बोली.

‘‘देखता हूं मैं,’’ कह कर अमन दरवाजा खोलने चल दिया.

‘शायद कोई सरवैंट क्वार्टर की बात करने आया होगा.’ सोच कर राधिका भी अमन के पीछेपीछे हो ली.

अमन ने दरवाजा खोला. सामने 65-70 वर्षीय वृद्ध दंपती खड़े थे. साथ ही छोटे से कद की गौरवर्णीय 21-22 वर्षीय युवती भी थी. अमन को देखते ही वृद्ध ने हाथ जोड़ करुण स्वर में कहा, ‘‘साहब, मैं रिटायर्ड सरकारी चपरासी हूं. हम लोग बहुत सालों से बसंत रोड पर एक परिवार के साथ उन के सरवैंट क्वार्टर में रहे हैं. भाग्यश्री उन के घर का सारा काम करती है. इसी महीने उन साहब का यहां से ट्रांसफर हो गया, इसलिए घर खाली करना है. मेरी पैंशन से खानापीना तो हो जाता है, पर हम किराए पर कमरा नहीं ले सकते. मकान का किराया बहुत ज्यादा है आजकल… और फिर जवान लड़की का  साथ… आप तो सब समझते ही होंगे. बहुत जरूरत है हमें सरवैंट क्वार्टर की.’’

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‘‘भाग्यश्री बेटी है तुम्हारी?’’ लड़की और दंपती के बीच उम्र के अंतराल को देख कर राधिका संदेह में थी.

‘‘मैडम न पूछो… यह भाग्यश्री नहीं, अभाग्यश्री है. पोती है हमारी. इस के पैदा होते ही इस की मां चल बसी थी. फिर कुछ साल बाद हमारा बेटा भी बीमार हो कर…’’ वृद्ध का गला रुंध गया.

‘‘अरे, आप दोनों ने अपना नाम तो बताया ही नहीं?’’ बात बदलने के इरादे से राधिका बोली.

‘‘जी मैं बनवारी और यह शारदा,’’ अपनी पत्नी की ओर इशारा करते हुए वह बोला.उन के विषय में थोड़ाबहुत और जान कर राधिका भीतर चली गई. अमन भी उस के पीछेपीछे अंदर आ गया. दोनों को ही बनवारी परिवार को कमरा देना कुछ गलत नहीं लगा. अमन बनवारी को चाबी देते हुए जल्दी आने को कहा.

रात को ही वे सामान के साथ कमरे में आ गए. कई दिन काम का बोझ उठातेउठाते राधिका भी थक गई थी, इसलिए बनवारी परिवार के आते ही उस ने भी चैन की सांस ली. भाग्यश्री के रूप में उसे एक अच्छी मेड मिलने की पूरी आशा थी.

अगले दिन सुबह बनवारी और शारदा उन के घर आ गए और काम करना शुरू कर दिया. भाग्यश्री के न आने का कारण पूछने पर बनवारी ने कहा कि उसे बुखार आ रहा है. काम निबटतेनिबटते दोपहर हो गई. बनवारी दंपती थक कर चूर दिख रहे थे.

अगले दिन भी वे दोनों ही काम करने आए. इसी तरह 15 दिन बीत गए. राधिका को इतने वृद्ध लोगों से काम करवा कर ग्लानि हो रही थी. इस के अतिरिक्त काम सफाई से भी नहीं हो पा रहा था.

‘कहीं ऐसा तो नहीं कि भाग्यश्री कहीं और काम करने जा रही हो और उस के बहाने इन लोगों ने मेरा सरवैंट क्वार्टर ले लिया हो?’ राधिका के मन में संदेह उत्पन्न हो रहा था.

‘इस तरह कब तक चलता रहेगा? क्या सच में बीमार है भाग्यश्री’ सोच कर एक दिन राधिका ने सरवैंट क्वार्टर का दरवाजा खटखटा दिया. बनवारव शारदा उस समय राधिका केघर के काम में व्यस्त थे. दस्तक होते ही भाग्यश्री दरवाजा आधा खोल कर प्रश्न भरी निगाहों से राधिका की ओर देखने लगी.

‘‘तुम तो भलीचंगी हो, काम पर क्यों नहीं आती?’’ राधिका ने जानना चाहा.

‘‘वह… ऐसा है… मेरे… मुझे…’’ भाग्यश्री की जबान लड़खड़ा गई.

राधिका और कुछ बोले बिना वापस चल दी. वह अभी मुड़ी ही थी कि एक 30-35 वर्षीय व्यक्ति क्वार्टर से निकल कर लिफ्ट की ओर भागा. यह दृश्य देख कर राधिका आश्चर्यचकित रह गई. भाग्यश्री की पहेली सुलझने के स्थान पर और उलझ रही थी. परेशान सी राधिका ने इस पहेली को सुलझाने का फैसला कर लिया.

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अब प्रतिदिन बनवारी और शारदा के काम पर आते ही वह घर के बाहर जा कर सरवैंटक्वार्टर के आसपास मंडराती रहती. उस ने पाया कि लगभग प्रत्येक दिन ही उस कमरे में कोई पुरुष आता है. आश्चर्य की बात यह थी कि वह कोई एक पुरुष नहीं था. अलगअलग आयु के पुरुषों को उस ने वहां आतेजाते देखा. राधिका का दिल बैठा जा रहा था. उसे डर था कि कहीं देहव्यापार जैसा घृणित कार्य तो नहीं हो रहा यहां? जब अमन से उस ने इस विषय में चर्चा की तो दोनों ने बनवारी परिवार का परदाफाश करने का निश्चय किया.

अगले दिन अमन ने औफिस से छुट्टी ले ली थी. उस ने सरवैंट क्वार्टर में किसी को घुसता देख उसी समय बनवारी से क्वार्टर में चलने को कहा. बहाना बना दिया कि वहां एक छोटी से अलमारी रखवानी है. सुनते ही बनवारी टालमटोल करने लगा. यह देख अमन ने बनवारी को डांटना शुरू कर दिया.

राधिका ने शारदा से भाग्यश्री के अब तक काम पर न आने की असली वजह जाननी चाही.

अमन के गुस्से से भरे चेहरे को देख कर बनवारी फूटफूट कर रोने लगा. शारदा हाथ जोड़ते हुए बनवारी से बोली, ‘‘इन दोनों को सच बता दो… हम से अब सहा नहीं जाता.’’

बनवारी ने अपनेआप को संभालते हुए बोलना शुरू किया, ‘‘साहब… भाग्यश्री की शादी हो चुकी है. हमारा दामाद बहुत बुरा आदमी है. खूब शराब पीने की आदत है उसे. जब शादी की थी तब चाय की दुकान थी उस की छोटी सी. शादी के बाद उस ने हमारी लड़की की सोने की अंगूठी, चेन, झुमके सब कुछ बेच दिया. फिर जब दुकान भी बिक गई तो भाग्यश्री से गलत काम करवाने लगा. हम अपनी लड़की को वापस घर ले आए. फिर भी उस ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा. वहां भी लोगों को भेजता रहता… आप ने जब कमरा देने को हां कह दी तो हम तुरंत वहां से भाग निकले, पर उस ने पता लगा लिया और यहां भी… बनवारी फिर रोने लगा.

‘‘तुम ने पुलिस में शिकायत क्यों नहीं की?’’ अमन ने परेशान हो कर पूछा.

‘‘हमें उस ने धमकी दी थी कि पुलिस के पास जाएंगे तो वह हमारी लड़की को मरवा देगा,’’ शारदा ने भयभीत होते हुए बताया.

‘‘अरे, वह अकेला इन सब को डराता रहा और ये उस की हर बात मानते रहे, अमन राधिका की ओर देखते हुए बोला.’’

‘‘साहब, हमारा भाग्यश्री के अलावा कोई नहीं है… बहुत प्यार करते हैं हम दोनों इसे… उस पापी आदमी ने हमारा जीवन नर्क बना दिया है, बनवारी ने करुण स्वर में कहा.’’

‘‘हम अभी पुलिस में शिकायत करने चलेंगे,’’ बनवारी को आश्वस्त कर अमन पुलिस स्टेशन जाने की तैयारी करने लगा.

अमन बनवारी परिवार को साथ ले कर थाने पहुंच गया. अगले ही दिन सूचना मिली कि भाग्यश्री के पति को गिरफ्तार कर लिया गया है. बनवारी परिवार ने यह समाचार सुन कर चैन की सांस ली. उन को मानो नया जीवन मिल गया हो.

भाग्यश्री तो पिंजरे से आजाद हुई चिडि़या की तरह चहकने लगी थी अब. वह समझ गई थी कि थोड़ी सी हिम्मत जुटाने से ही उस के जीवन में बहार आई है. राधिका से उस ने वादा कि अब कभी वह भाग्य के भरोसे रह कर, स्याह डर के साए में नहीं जीएगी. अमन और राधिका ने उस का निडर रोशनी की जगमग से परिचय जो करवा दिया था.

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Serial Story: निडर रोशनी की जगमग– भाग 2

राधिका को उस का व्यवहार बहुत खटक रहा था. थोड़ी देर बाद बिमला हाथ में एक पैकेट लिए आई और राधिका को थमाते हुए बोली, ‘‘लो, जल्दी पकड़ो मैडमजी… हमें भी काम खत्म करना है…सारा दिन यहीं लगा देंगे क्या?’’

राधिका को बुरा तो बहुत लगा पर गुस्से को पीते हुए उस ने पैकेट खोल कर अपनी नई चप्पलें निकालीं, जो औनलाइन मंगवाई थीं.

चप्पलें देखते ही बिमला बोली, ‘‘लो, शू रैक तो पहले ही भरा पड़ा है. एक और मंगवा ली आप ने. फालतू खर्च. पैसा तो आप लोगों के पास बहुत है पर गरीब जरा सा कुछ ले ले तो जान निकल जाती है.’’

राधिका का गुस्सा अब 7वें आसमान पर था. बिमला के बदलते व्यवहार से पहले ही परेशान राधिका ने उसे तुरंत काम छोड़ने और क्वार्टर खाली करने का आदेश सुना दिया.

बिमला गुस्सा दिखाते हुए बोली, ‘‘आज ही कमरा खाली कर हम अपनी लड़की के पास चले जाएंगे… रखना किसी और को… पता लग जाएगा आप को और फिर दनदनाती हुई घर से निकाल कर सरवैंट क्वार्टर में घुस गई. कुछ देर बाद ही उस ने अपनी बेटी और दामाद को बुला कर सामान समेटा और 2 घंटे के भीतर कमरा खाली कर दिया.

राधिका का गुस्से और परेशानी से बुरा हाल था. किसी तरह उस ने अधूरा काम निबटाया और आराम करने लेट गई. थकान के कारण जल्द ही उस की आंख लग गई. शाम को डोरबैल की आवाज से ही नींद टूटी.

दरवाजा खोला तो बाहर एक लजाती हुई 23-24 वर्षीय युवती खड़ी थी. देखने से वह नवविवाहिता लग रही थी. उस की कमसिन मुसकराहट देख कर राधिका अपनी सारी परेशानी भूल गई. उस के पास ही युवक भी खड़ा था, जो उस का पति जान पड़ता था.

‘‘मेम साहब, मेरा नाम सीमा है, ये सतीश… मेरे… हम कमरे के लिए आए हैं.’’

सीमा का वाक्य पूरा होते ही सतीश ने नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़ दिए.

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‘‘ओके. पर तुम्हें कैसे पता लगा कि मुझे काम पर रखना है किसी को? आज ही तो गई है मेरी मेड. अभी तो कमरे को ले कर मैं ने किसी से कुछ कहा ही नहीं,’’ राधिका ने दोनों को अंदर बुलाते हुए कहा.

दोनों अंदर आ कर दीवार से सट कर खड़े हो गए.

‘‘मेम साहब, वे मेरी बूआजी हैं, जो आप के यहां काम करती थीं. आज वे गुस्से में कुछ ज्यादा बोल गई थीं, अब पछता रही हैं. आप तो दोबारा उन्हें रखेंगी नहीं, इसलिए मुझे भेजा है उन्होंने,’’ बिना किसी लागलपेट के सीमा ने सब सच बोल दिया.

‘‘अच्छा, बिमला ने भेजा है तुम्हें… चलो ठीक है… काम कर तो पाओगी न सब?’’ राधिका उस की साफगोई से खुश हो कर उसे सरवैंट क्वार्टर में रखने का निर्णय कर चुकी थी.

‘‘मेम साहब, अपनी जेठानी के पास रह रही हूं आजकल. वे भी इसी कालोनी के एक सरवैंट क्वार्टर में रहती है… आप को सच्ची बताऊं तो काम तो सारा वहां भी मैं ही कर रही हूं… काम की परेशानी नहीं है मुझे बस सोने

में बहुत दिक्कत हो रही है वहां हमें. कमरा एक है और जेठजेठानी, उन के 2 बच्चे और ऊपर से 2 जने हम. 1 महीना बीत गया वहीं सब के साथ सोतेसोते…’’

दोनों को प्यार के कुछ पल साथसाथ बिताने को तरसते देख कर राधिका को उन पर ही प्यार आ गया. दोनों की ओर देख मुसकराते हुए राधिका ने क्वार्टर की चाबी सीमा को थमा दी. वे दोनों एक फोल्डिंग पलंग और कुछ कपड़ों के साथ रात को क्वार्टर में आ गए.

अगले दिन सतीश सुबहसुबह अपने काम पर चला गया और सीमा राधिका के पास आ गई. आते ही गुनगुनाते हुए उस ने काम करना शुरू कर दिया. बीचबीच में वह राधिका से बातें भी करने लगती थी.

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सीमा के व्यवहार और काम से आश्वस्त राधिका लैपटौप ले कर नौकरी की नई संभावनाओं की खोज में लगी रहती. सीमा और राधिका को एकदूसरे का साथ बहुत अच्छा लग रहा था.

रविवार को सीमा अकसर आधे दिन की छुट्टी ले कर सतीश के साथ घूमने, फिल्म देखने या किसी रिश्तेदार से मिलने चली जाती थी. उस दिन वह खूब मेकअप करती. जब वह तैयार होती तो उसे देख कर कोई कह नहीं सकता था कि वह बाई है. तरहतरह के शेड्स की लिपस्टिक, मसकारा, स्टोन की बिंदियां… बहुत कुछ था उस के पास. ब्लाउज भी अच्छीअच्छी डिजाइन के पहनती थी वह… उस का इतना खर्च देख कर राधिका कभीकभी अचरज में पड़ जाती थी.

सीमा इस विषय में कभी बात करती तो वह कहती, ‘‘अभी नईनई शादी हुई है. खर्चा है ही क्या हमारा… थोड़ा सजसंवर लेते हैं तो हमारे इन को भी अच्छा लगता है. यही सारा सामान खरीदने की जिद करते हैं.’’

सीमा को घर का सारा काम सौंप कर राधिका पूरी तरह निश्चिंत थी. अब जल्द ही वह नई जौब पा लेना चाहती थी.

उस दिन नौकरी की साइट्स देखतेदखते वह बोर हो गई तो औनलाइन शौपिंग की साइट पर चली गई. ‘कोई चीज पसंद आए इस से पहले ही क्रैडिटकार्ड ले आती हूं’, सोचती हुई राधिका ड्राइंगरूम की ओर चल दी, जहां टेबल पर कल से उस का पर्स रखा था.

ड्राइंगरूम में पहुंचते ही वह सन्न रह गई. सोफे पर बैठी सीमा उस के पर्स की छानबीन में लगी थी. उस की पीठ राधिका की ओर थी, इसलिए वह राधिका को देख नहीं पाई. जब

तक राधिका वहां पहुंचती, सीमा ने कुछ निकाल कर अपने ब्लाउज में रख लिया. राधिका दबे पांव वहां पहुंची और सीमा को पीछे से पकड़ लिया. इस प्रकार रंगे हाथों पकड़े जाने से सीमा हड़बड़ा गई.

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‘‘मेम साहब, मुझे माफ कर दो… मैं कभी चोरी नहीं करती… आज तबीयत ठीक नही थी… डाक्टर को दिखाना था, इसलिए ये पैसे… अब कभी ऐसा नही करूंगी,’’ सीमा क्व5 सौ का नोट अपने ब्लाउज से निकाल कर राधिका को देती हुई बोली.

‘‘बीमार हो तुम? फिर बताया क्यों नहीं मुझे… सुबह से तो खूब खुश लग रही थी… उफ,  अब मेरी समझ आ रहा है कि मेरे शैंपू और कंडीशनर्स इतनी जल्दी क्यों खत्म होने लगे थे? मेरी कुछ लिपस्टिक्स कुछ दिनों से क्यों नहीं मिल रहीं और काम के बीच में बहाने बना कर कुछ देर के लिए तुम क्वार्टर में क्यों चली जाती थी. मैं अब कुछ नहीं सुनूंगी, तुम बस अभी मेरे घर से चली जाओ,’’ राधिका गुस्से से आगबबूला हो रही थी, वह सोच नहीं पा रही थी कि इस गुनाह के लिए सीमा की शिकायत पुलिस में करनी चाहिए या नहीं.

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Serial Story: निडर रोशनी की जगमग– भाग 1

धारा सोसाइटी के फ्लैट को देख कर राधिका ने वहां शिफ्ट करने के लिए तुरंत हामी भर दी. अमन को भी वह मकान पसंद आ गया था. दिल्ली आने के बाद कई दिनों से वे मकान के लिए इधरउधर भटक रहे थे. कब तक होटल के कमरे में कैद हो कर रहते. बैंगलुरु में औफिस के पास ही अच्छा सा फर्निश्ड मकान किराए पर ले रखा था उन्होंने. दिल्ली में भी ऐसे ही मकान की तलाश में थे वे दोनों. अमन को यहां एक कंपनी में अच्छा पैकेज मिल गया था. राधिका ने उस के साथ आने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी थी. उस का विचार दिल्ली आ कर अपने लिए भी एक नई नौकरी की तलाश करना था. होटल में 15 दिन से ज्यादा हो गए थे. घर किराए पर ले कर अब वे होटल से बाहर आने को बेचैन थे.

कई जगह मकान देख कर निराश होने के बाद इस फ्लैट को देख कर उन्हें तसल्ली हो गई. अमन को 2 बैडरूम के इस मकान का सलीके से लगा फर्नीचर और कमरों तथा बाथरूम की साजसज्जा आकर्षित कर रही थी, तो राधिका को मौडरेट किचन. पर इन सब से बढ़ कर जल्द ही नई नौकरी ढूंढ़ कर जौइन करने की इच्छुक राधिका को घर के साथ एक ‘सरवैंट क्वार्टर’ भी होना बेहद सुखद लग रहा था. यहां की सोसाइटी के सभी फ्लैट्स में यह व्यवस्था थी.

फ्लैट से सटा 1 कमरे का छोटा सा क्वार्टर, जिस में बाथरूम और रसोई भी. प्रवेशद्वार भी पूरी तरह अलग था सरवैंट क्वार्टर का. उन क्वार्टर्स में कामवालियां अपने परिवार सहित रही थीं. क्वार्टर के बदले में उन्हें उसी घर का काम कम पैसों में करना होता था. राधिका यह सोच कर बेहद खुश थी कि वह भी अपने फ्लैट के सरवैंट क्वार्टर में मेड को रख लेगी. फिर जौब लगने पर औफिस में निश्चिंत हो कर काम करने के साथसाथ औफिस से आते ही किचन में जुट जाने के झंझट से मुक्त हो जाएगी.

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जल्द ही वे उस फ्लैट में शिफ्ट हो गए. आसपड़ोस के लोग अच्छे थे. उन से पता लगा कि मेड रखने के लिए वहां के सिक्युरिटी गार्ड से संपर्क करना अच्छा होगा, क्योंकि उस के पास वे लोग अपना मोबाइल नंबर दे जाते हैं, जो सरवैंट क्वार्टर्स में रह कर घर के काम करने के इच्छुक होते हैं.

सिक्युरिटी गार्ड को मेड के लिए सूचित करते ही उन के यहां क्वार्टर लेने वालों का तांता लग गया. बाहर बस्ती में छोटे से कमरे के लिए भी इन लोगों को क्व5-6 हजार तक किराया देना पड़ता था और वह भी सुविधारहित मकान का. अत: साफसुथरी सोसाइटी में क्वार्टर और बदले में केवल एक ही घर का काम, इसलिए बहुत सी कामवालियां तैयार थीं आने को.

राधिका की कई लोगों से बात हुई. पर उसे संतुष्टि नहीं हो पा रही थी. एक महिला उसे जंची भी, पर उस का अपना बच्चा ही 2 महीने का था. अत: राधिका को लग रहा था कि न जाने वह काम में पूरा ध्यान लगा पाएगी या नहीं?

‘‘इतने लोग आ चुके हैं अब तक, पर कोई भी ढंग का नहीं… पता नहीं दिल्ली में उसे मनपसंद बाई मिल पाएगी या नहीं’ सोच कर निराश हुई राधिका रसोई में घुसी ही थी कि एक बार फिर डोरबैल बज उठी. कुछ उत्सुक, कुछ परेशान सी राधिका ने दरवाजा खोला.

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सामने एक अधेड़ उम्र की स्त्री, लंबी सी चोटी आगे किए. साफसुथरी सूती साड़ी पहने खड़ी हुई दिखाई दी. राधिका की ओर देख कर उस ने मुसकराते हुए नमस्ते की.

राधिका उस स्त्री से कुछ पूछती उस से पहले ही वह बोल उठी, ‘‘मैडम हम बिमला हैं. हमें बहुत जरूरत है कमरे की. हमारा आदमी तो इस दुनिया में नहीं. बस 2 लड़कियां हैं. दोनों की शादी हो चुकी है. हम पास ही किराए के कमरे में रहते हैं. अभी तक हम कई घरों का काम करते आए हैं, पर अब घूमघूम कर काम नहीं होता हम से. एक घर में रहेंगे और वहीं का काम करेंगे… काम को ले कर कोई शिकायत नहीं होगी हम से. हम खूब काम करते हैं.’’

राधिका को वह तौरतरीके से सरल स्वभाव की लगी. पूरी तरह आश्वस्त होने से पहले उस ने अपने मन में उठ रही शंका को शांत करने के उद्देश्य से पूछ लिया, ‘‘एक बात बताओ, तुम तो जानती हो न कि सरवैंट क्वार्टर तुम्हें मिलेगा तो उस के बदले काम के पैसे कम मिलेंगे. फिर रोज का अपना खर्चा कैसे चलाओगी तुम?’’

‘‘आप उस की चिंता न करो मैडम… हमें तो एक भी पैसा नहीं चाहिए. आप कमरा दे दो बस. हमारे गांव से हर 6 महीने बाद अनाज आता है. फिर हमारे दोनों दामाद भी बहुत अच्छे हैं, रुपयोंपैसों से वे भी मदद करते रहते हैं हमारी.’’

राधिका को बिमला काम पर रखने के लिए अनुकूल लगी. ‘सारा दिन अकेली ही होगी बिमला… अपने घर का ज्यादा काम तो होगा नहीं उसे…इसलिए मेरा घर ठीक से देख लेगी,’ सोच कर प्रसन्न होती हुई राधिका ने क्वार्टर की चाबी बिमला को थमा दी.

2 दिन बाद बिमला अपना सामान ले कर आ गई और राधिका से काम समझ कर सब काम ठीक से करने लगी. राधिका के 15 दिन बहुत चैन से बीते. इसी बीच वह 2 कंपनियों में इंटरव्यू भी दे आई. पर कुछ दिनों बाद ही बिमला की कुछ बातें उसे खटकने लगीं.

गांव से अनाज आने की बात कहने वाली बिमला ने लगभग रोज राधिका से कुछ न कुछ मांगना शुरू कर दिया. धीरेधीरे उस की हिम्मत बढ़ने लगी और वह अपनेआप ही डब्बे में से आटा, चावल, दाल और फ्रिज में से दूध और सब्जियां निकाल लेती.

एक दिन राधिका से रहा नहीं गया. उस ने विरोध किया तो बिमला तपाक से बोली, ‘‘हम कोई चोरी थोड़े ही कर रहे हैं. आप के सामने ही तो निकाला है. अब यहां काम कर रहे हैं और गांव से कोई सामान देने नहीं आया तो यहीं से लेंगे और कहां जाएंगे?’’

राधिका को गुस्सा तो बहुत आया पर वह चुप हो गई.

कुछ दिन और बीते. फिर बिमला की मांगें बढ़ने लगीं. कभी उसे आने वाले मेहमानों के सामने बिछाने के लिए नई चादर चाहिए होती तो कभी शादी में जाने के लिए साड़ी. इतना ही नहीं राधिका पर वह रोब भी गांठने लगी. प्रतिदिन किसी न किसी बात पर वह राधिका को पुराने रीतिरिवाजों का महत्त्व समझाने लगती. कभी वह उसे मांग में सिंदूर न भरने के लिए टोकती तो कभी किसी त्योहार पर पूजापाठ न करने पर. राधिका काम के विषय में कुछ कहती तो वह अनसुना कर देती. धीरेधीरे किसी न किसी बहाने वह पैसे भी मांगने लगी. मना करने पर उस की त्योरियां चढ़ जातीं. राधिका समझ नहीं पा रही थी कि क्या किया जाए?

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उस दिन राधिका ने फेसपैक लगाया हुआ था और नहाने के लिए बाथरूम में घुस ही रही थी कि डोरबैल बज उठी. बिमला के पास रसोई में जा कर राधिका ने उसे दरवाजा खोल कर देखने को कहा. बिमला ने तुरंत हाथ में ली हुई कटोरी जोर से सिंक में फेंकी और हाथ धो कर दनदनाती हुई दरवाजा खोलने चल दी.

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Serial Story: मैट्रिमोनियल– भाग 2

चायवाय पी कर पंकज वापस चला गया. सबकुछ तो ठीक था पर एक बात थी जो अजीब लग रही थी उसे. आखिर उन लोगों को रिनी में ऐसी कौन सी खासियत नजर आ गई थी जो वे शादी के लिए एकदम तैयार हो गए. बहरहाल, शादीब्याह तो जहां होना है वहीं होगा, फिर भी चलतेचलते उस ने इतना कह ही दिया कि आप एक बार मुंबई जा कर परिवार, फैक्टरियां वगैरह देख आइए. कम से कम तसल्ली तो हो जाएगी. उन्होंने जाने का वादा किया.

अगले शनिवार रामचंदर बाबू ने पंकज को फोन किया.

‘‘अरे, कहां हो भाई? क्या हाल है?’’ मुझे उन का स्वर उत्तेजित लगा.

‘‘मैं घर पर ही हूं,’’ पंकज ने कहा, ‘‘क्या हुआ. सब ठीक तो है.’’

‘‘हां, सब ठीक है. कल का कोई प्रोग्राम तो नहीं है?’’

‘‘नहीं. पर हुआ क्या, तबीयत वगैरह तो ठीक है न?’’

‘‘तबीयत तो ठीक है. अरे, वह रिनी वाला संबंध है न. वही लोग कल आ रहे हैं.’’

‘‘आ रहे हैं? पर क्यों?’’

‘‘अरे, लड़की देखने भाई. सब ठीक रहा तो कोई रस्म भी कर देंगे.’’

‘‘जरा विस्तार से बताइए. पर रुकिए, क्या आप मुंबई हो आए, घरपरिवार देख आए क्या?’’

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‘‘अरे, कहां? मैं बताता हूं. तुम्हारे जाने के बाद उन का फोन आ गया था. काफी बातें होती रहीं. पौलिटिक्स पर भी उन की अच्छी पकड़ है. बडे़ बिजनैसमैन हैं. 2-2 फैक्टरियां हैं. पौलिटिक्स पर नजर तो रखनी ही पड़ती है. फिर मैं ने उन से कहा कि अपना पूरा पता बता दीजिए, मैं आ कर मिलना चाहता हूं. कहने लगे आप क्यों परेशान होते हैं. लेकिन आना चाहते हैं तो जरूर आइए. वर्ली में किसी से भी स्टील फैक्टरी वाले जितेंद्रजी पूछ लीजिएगा, घर तक पहुंचा जाएगा. कहने लगे कि फ्लाइट बता दीजिए, ड्राइवर एयरपोर्ट से ले लेगा.’’

‘‘बहुत बढि़या.’’

मैं ने कहा, हवाईजहाज से नहीं, मैं तो ट्रेन से आऊंगा. तो बोले टाइम बता दीजिएगा, स्टेशन से ही ले लेगा. बल्कि वे तो जिद करने लगे कि हवाईजहाज का टिकट भेज देता हूं. 2 घंटे में पहुंच जाइएगा. मैं ने किसी तरह से मना किया.’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर क्या. मैं रिजर्वेशन ही देखता रह गया और कल सुबहसुबह ही उन का फोन आ गया.’’

‘‘अच्छा.’’

‘‘हां. उन्होंने बताया कि वे 15 दिनों के लिए स्वीडन जा रहे हैं. वहां उन का माल एक्सपोर्ट होता है न. पत्नी भी साथ में जा रही हैं. पत्नी की राय से ही उन्होंने फोन किया था. उन की पत्नी का कहना था कि जाने से पहले लड़की देख लें. और ठीक हो तो कोई रस्म भी कर देंगे. सो, बोले हम इतवार को आ रहे हैं.’’

‘‘बड़ा जल्दीजल्दी का प्रोग्राम बन रहा है. क्या लड़का भी साथ में आ रहा है?’’

‘‘ये लो. लड़का नहीं आएगा भला. बड़ा व्यस्त था. पर जितेंद्रजी ने कहा कि आप ने भी तो नहीं देखा है. लड़कालड़की दोनों एकदूसरे को देख लें, बात कर लें, तभी तो हमारा काम शुरू होगा न.’’

‘‘यह तो ठीक बात है. कहां ठहराएंगे उन्हें.’’ पंकज जानता था कि रामचंदर बाबू का मकान बस साधारण सा ही है. एसी भी नहीं है. सिर्फ कूलर है.

‘‘ठहरेंगे नहीं. उसी दिन लौट जाएंगे.’’

‘‘पर आएंगे तो एयरपोर्ट पर ही न.’’

‘‘नहीं भाई, बड़े लोग हैं. उन की पत्नी ने कहा कि जब जा ही रहे हैं तो लुधियाना में अपने भाई के यहां भी हो लें. अब उन का प्रोग्राम है कि वे आज ही फ्लाइट से लुधियाना आ जाएंगे. ड्राइवर गाड़ी ले कर लुधियाना आ जाएगा. कल सुबह 8 बजे घर से निकल कर 11 बजे तक दिल्ली पहुंच जाएंगे व लड़की देख कर लुधियाना वापस लौट जाएंगे. वहीं से मुंबई का हवाईजहाज पकडेंगे. ड्राइवर गाड़ी वापस मुंबई ले जाएगा.’’

‘‘बड़ा अजीब प्रोग्राम है. उन के साले के पास गाड़ी नहीं है क्या, जो मुंबई से ड्राइवर गाड़ी ले कर आएगा. उस की भी तो लुधियाना में फैक्टरी है.’’

‘‘बड़े लोग हैं. क्या मालूम अपनी गाड़ी में ही चलते हों.’’

‘‘क्या मालूम. लेकिन आप जरा घर ठीक से डैकोरेट कर लीजिएगा.’’

‘‘अरे, मैं बेवकूफ नहीं हूं भाई, मेरा घर उन के स्तर का नहीं है. होटल रैडिसन में 6 लोगों का लंच बुक कर लिया है. पहला इंप्रैशन ठीक होना चाहिए.’’

‘‘चलिए, यह आप ने अच्छा किया. नीरज तो है ही न.’’

‘‘वह तो है, पर भाई तुम आ जाना. बड़े लोग हैं. तुम ठीक से बातचीत संभाल लोगे. मैं क्या बात कर पाऊंगा. तुम रहोगे तो मुझे सहारा रहेगा. तुम साढ़े 10 बजे तक रैडिसन होटल आ जाना. हम वहीं मिल जाएंगे.’’

‘‘मैं समय से पहुंच जाऊंगा. आप निश्चित रहें.’’

सारी बातें उसे कुछ अजीब सी लग रही थीं. पंकज ने मन ही मन तय किया कि रामचंदर बाबू से कहेगा कि कल कोई रस्म न करें. जरा रुक कर करें और हो सके तो मुंबई से लौट कर करें.

पंकज घर से 10 बजे ही होटल रैडिसन के लिए निकल गया. आधा घंटा तो लग ही जाना था. आधे रास्ते में ही था कि मोबाइल की घंटी बजी. नंबर रामचंदर बाबू का ही था.

‘‘क्या हो गया रामचंदर बाबू. मैं रास्ते में हूं, पहुंच रहा हूं.’’

‘‘अरे, जल्दी आओ भैया, गजब हो गया.’’

‘‘गजब हो गया? क्या हो गया.’’

‘‘तुम आओ तो. लेकिन जल्दी आओ.’’

‘‘मैं बस 10 मिनट में रैडिसन पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘रैडिसन नहीं, रैडिसन नहीं. घर आओ, जल्दी आओ.’’

‘‘मैं घर ही पहुंचता हूं, पर आप घबराइए नहीं.’’

अगले स्टेशन से ही उस ने मैट्रो बदल ली. क्या हुआ होगा. फोन उन्होंने खुद किया था. घबराए जरूर थे पर बीमार नहीं थे. कहीं रिनी ने तो कोई ड्रामा नहीं कर दिया.

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दरवाजा नीरज ने खोला. सामने ही सोफे पर रामचंदर बाबू बदहवास लेटे थे. उन की पत्नी पंखा झल रही थीं व रिनी पानी का गिलास लिए खड़ी थी. पंकज को देखते ही झटके से उठ कर बैठ गए.

‘‘गजब हो गया भैया, अब क्या होगा.’’

‘‘पहले शांत हो जाइए. घबराने से क्या होगा. हुआ क्या है?’’

‘‘ऐक्सिडैंट…ऐक्सिडैंट हो गया.’’

‘‘किस का ऐक्सिडैंट हो गया?’’

‘‘जितेंद्रजी का ऐक्सिडैंट हो गया भैया. अभी थोड़ी देर पहले फोन आया था. अरे नीरज, जल्दी जाओ बेटा. देरी न करो.’’

नीरज ने जाने की कोई जल्दी नहीं दिखाई.

‘‘एक मिनट,’’ पंकज ने रामचंदर बाबू को रोका. ‘‘पहले बताइए तो क्या ऐक्सिडैंट हुआ, कहां हुआ. कोई सीरियस तो नहीं है?’’

‘‘अरे, मैं क्या बताऊं,’’ रामचंदर बाबू जैसे बिलख पड़े, ‘‘कहीं वे मेरी रिनी को मनहूस न समझ लें. अब क्या होगा भैया.’’

‘‘मैं बताता हूं अंकल,’’ नीरज बोला जो कुछ व्यवस्थित लग रहा था, ‘‘अभी साढ़े 9-10 बजे के बीच में जितेंद्र अंकल का फोन आया था. उन्होंने बताया कि ठीक 8 बजे वे लुधियाना से दिल्ली अपनी कार से निकल लिए थे. उन की पत्नी व बेटा भी उन के साथ थे. दिल्ली से करीब 45 किलोमीटर दूर शामली गांव के पहले उन की विदेशी गाड़ी की किसी कार से साइड से टक्कर हो गई. कोई बड़ा एक्सिडैंट नहीं है. सभी लोग स्वस्थ हैं. किसी को कोई चोट नहीं आई है.’’

‘‘तब समस्या क्या है, वे आते क्यों नहीं?’’

‘‘कार वाले ने समस्या खड़ी कर दी. वह पैसे मांग रहा है. कोई दारोगा भी आ गया है.’’

‘‘फिर?’’

‘‘कार वाले से 50 हजार रुपए में समझौता हुआ है.’’

‘‘तो उन्होंने दे दिया कि नहीं.’’

‘‘उन के पास नकद 25 हजार रुपए ही हैं. उन्होंने बताया कि पास में ही एक एटीएम है. पर अंकल का कार्ड चल ही नहीं रहा है.’’

‘‘अरे, तुम जा कर उन के खाते में 25 हजार डाल क्यों नहीं देते बेटा.’’ रामचंदर बाबू कलपे, ‘‘अब तक तो डाल कर आ भी जाते.’’

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Serial Story: मैट्रिमोनियल– भाग 3

पंकज ने प्रश्नसूचक दृष्टि से नीरज की तरफ देखा.

‘‘अंकल के ड्राइवर का एटीएम कार्ड चल रहा है. पर उस के खाते में रुपए नहीं हैं. अंकल ने पापा से कहा है कि वे ड्राइवर के खाते में 25 हजार रुपए जमा कर दें, वे दिल्ली आ कर मैनेज कर देंगे. ड्राइवर का एटीएम कार्ड भारतीय स्टेट बैंक का है. मैं वहीं जमा कराने जा रहा हूं.’’

‘‘एक मिनट रुको नीरज. मुझे मामला कुछ उलझा सा लग रहा है. रामचंदर बाबू आप को कुछ अटपटा नहीं लग रहा है?’’

‘‘कैसा अटपटा?’’

‘‘उन्होंने अपने साले से लुधियाना, जहां रात में रुके भी थे, रुपया जमा कराने के लिए क्यों नहीं कहा?’’

‘‘शायद रिश्तेदारी में न कहना चाहते हों.’’

‘‘तो आप से क्यों कहा? आप से तो नाजुक रिश्तेदारी होने वाली है.’’

‘‘शायद मुझ पर ज्यादा भरोसा हो.’’

‘‘कैसा भरोसा? अभी तो आप लोगों ने एकदूसरे का चेहरा भी नहीं देखा है. फिर 2-2 फैक्टरियों के किसी मैनेजर को फोन कर के रुपया जमा करने को क्यों नहीं कहा?’’

‘‘अरे, दिल्ली से 45 किलोमीटर दूर ही तो हैं वे. मुंबई दूर है.’’

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‘‘क्या बात करते हैं? कंप्यूटर के लिए क्या दिल्ली क्या मुंबई. लड़का भी तो साथ है. उस का भी कोई कार्ड नहीं चल रहा है. आजकल तो कईकई क्रैडिटडैबिट कार्ड रखने का फैशन है.’’

‘‘क्या मालूम?’’ रामचंदर बाबू भी सोच में पड़ गए.

‘‘किसी का कार्ड नहीं चल रहा है. सिर्फ ड्राइवर का कार्ड चल रहा है. बात जरा समझ में नहीं आ रही है.’’

‘‘तो क्या किया जाए भैया. बड़ी नाजुक बात है. अगर सच हुआ तो बात बिगड़ी ही समझो.’’

‘‘इसीलिए तो मैं कुछ बोल नहीं पा रहा हूं?’’

‘‘नहीं. तुम साफ बोलो. अब बात फंस गई है.’’

‘‘यह फ्रौड हो सकता है. आप रुपया जमा करा दें और फिर वे फोन ही न उठाएं तो आप उन्हें कहां ढूंढ़ेंगे?’’

‘‘25 हजार रुपए का रिस्क है,’’ नीरज धीरे से बोला.

‘‘मेरा तो दिमाग ही नहीं चल रहा है. इसीलिए तो तुम्हें बुलाया है. बताओ, अब क्या किया जाए?’’

‘‘नीरज, तुम्हें अकाउंट नंबर तो बताया है न.’’

‘‘हां, ड्राइवर का अकाउंट नंबर बताया है. स्टेट बैंक का है. इसी में जमा करने को कहा है.’’

‘‘चलो, सामने वाले पीसीओ पर चलते हैं. तुम उन को वहीं से फोन करो और कहो कि बैंक वाले बिना खाता होल्डर की आईडी प्रूफ के रुपया जमा नहीं कर रहे हैं. कह देना मैं मैनेजर साहब के केबिन से बोल रहा हूं. आप इन्हीं के फैक्स पर ड्राइवर की आईडी व अकाउंट नंबर फैक्स कर दें. वैसे, ऐसा कोई नियम नहीं है. 25 हजार रुपए तक जमा किया जा सकता है. हो सकता है वे ऐसा कुछ कहें. तो कहना, लीजिए, मैनेजर साहब से बात कर लीजिए. तब फोन मुझे दे देना. मैं कह दूंगा कि अब यह नियम आ गया है.’’

‘‘इस से क्या होगा?’’

‘‘आईडी और अकाउंट नंबर का फैक्स पर आ गया तो रुपया जमा कर देंगे, वरना तो समझना फ्रौड है.’’

‘‘अगर वहां फैक्स सुविधा न हुई तो?’’ रामचंदर बाबू बोले.

‘‘जब एटीएम है तो फैक्स भी होगा. फिर उन्हें तो कहने दीजिए न.’’

‘‘ठीक है. ऐसा किया जाए. इस में कोई बुराई नहीं है.’’ रामचंदर बाबू के दिमाग में भी शक की सूई घूमी. पंकज व नीरज पीसीओ पर आए. उस का फैक्स नंबर नोट किया व फिर नीरज ने फोन मिलाया.

‘‘अंकल नमस्ते,’’ नीरज बोला, ‘‘मैं रामचंदरजी का बेटा नीरज बोल रहा हूं.’’

उधर से कुछ कहा गया.

‘‘नहीं अंकल, बैंक वाले रुपए जमा नहीं कर रहे हैं. कह रहे हैं अकाउंट होल्डर का आईडी प्रूफ चाहिए. मैं बैंक से ही बोल रहा हूं,’’ नीरज उधर की बात सुनता रहा.

‘‘लीजिए, आप मैनेजर साहब से बात कर लीजिए,’’ नीरज ने फोन काट दिया.

‘‘क्या हुआ,’’ मैं ने दोबारा पूछा.

‘‘उन्होंने फोन काट दिया,’’ नीरज बोला.

‘‘काट दिया? पर कहा क्या?’’

‘‘मैं ने अपना परिचय दिया तो अंकल ने पूछा कि रुपया जमा किया कि नहीं. मैं ने बताया कि बैंक वाले जमा नहीं कर रहे हैं, तो अंकल बिगड़ गए, बोले कि इतना सा काम नहीं हो पा रहा है. मैं ने जब कहा कि लीजिए बात कर लीजिए तो फोन ही काट दिया.’’

‘‘फिर मिलाओ.’’

नीरज ने फिर से फोन मिलाया लेकिन लगातार स्विच औफ आता रहा.

पंकज ने राहत की सांस ली. ‘‘अब चलो.’’

वे दोनों वापस घर आ गए व रामचंदर बाबू को विस्तार से बताया.

‘‘हो सकता है गुस्सा हो गए हों, परेशान होंगे,’’ वे सशंकित थे.

‘‘आप मिलाइए.’’ रामचंदर बाबू ने भी फोन मिलाया पर स्विच औफ आया.

‘‘15 मिनट रुक कर मिलाइए.’’

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15-15 मिनट रुक कर 4 बार मिलाया गया. हर बार स्विच औफ ही आया.

‘‘ये साले वाकई फ्रौड थे,’’ आखिरकार रामचंदर बाबू खुद बोले, ‘‘नहीं तो हमारी रिनी कौन सी ऐसी हूर की परी है कि वे लोग शादी के लिए मरे जा रहे थे. उन का मतलब सिर्फ 25 हजार रुपए लूटना था.’’

‘‘ऐसे नहीं,’’ पंकज ने कहा, ‘‘अभी और डिटेल निकालता हूं.’’

उस ने अपने दोस्त अखिल को फोन किया जो एसबीआई की एक ब्रांच में था. उस ने उस अकाउंट नंबर बता कर खाते की पूरी डिटेल्स बताने को कहा. उस ने देख कर बताया कि उक्त खाता बिहार के किसी सुदूर गांव की शाखा का था.

‘‘जरा एक महीने का स्टेटमैंट तो निकालो,’’ पंकज ने कहा.

‘‘नहीं यार, यह नियम के खिलाफ होगा.’’

पंकज ने जब उसे पूरा विवरण बताया तो वह तैयार हो गया. ‘‘बहुत बड़ा स्टेटमैंट है भाई. कई पेज में आएगा.’’

‘‘एक हफ्ते का निकाल दो. मैं नीरज नाम के लड़के को भेज रहा हूं. प्लीज उसे दे देना.’’

‘‘ठीक है.’’

नीरज मोटरसाइकिल से जा कर स्टेटमैंट ले आया. एक सप्ताह का स्टेटमैंट 2 पेज का था. 6 दिनों में खाते में 7 लाख 30 हजार रुपए जमा कराए गए थे व सभी निकाल भी लिए गए थे. सारी जमा राशियां 5 हजार से 35 हजार रुपए की थीं. उस समय खाते में सिर्फ 1,300 रुपए थे. स्टेटमैंट से साफ पता चल रहा था कि सारे जमा रुपए अलगअलग शहरों में किए गए थे. रुपए जमा होते ही रुपए एटीएम से निकाल लिए गए थे. अब तसवीर साफ थी. रामचंदर बाबू सिर पकड़ कर बैठ गए.

‘‘देख लिया आप ने. एक ड्राइवर के खाते में एक हफ्ते में 7 लाख से ज्यादा जमा हुए हैं. फैक्टरियां तो उसी की होनी चाहिए.’’

‘‘मेरे साथ फ्रौड हुआ है.’’

‘‘बच गए आप. कहीं कोई लड़का नहीं है. कोई बाप नहीं है. कोई फैक्टरी नहीं है. यहीं कहीं दिल्ली, मुंबई या कानपुर, जौनपुर जगह पर कोई मास्टरमाइंड थोड़े से जाली सिमकार्ड वाले मोबाइल लिए बैठा है और सिर्फ फोन कर रहा है. सब झूठ है.’’

‘‘मैं महामूर्ख हूं. उस ने मुझे सम्मोहित कर लिया था.’’

‘‘यही उन का आर्ट है. सिर्फ बातें कर के हर हफ्ते लाखों रुपए पैदा

कर रहे हैं. इस की तो एफआईआर होनी चाहिए.’’

रामचंदर बाबू सोच में पड़ गए और बोले, ‘‘जाने दो भैया. लड़की का मामला है. बदनामी तो होगी ही, थाना, कोर्टकचहरी अलग से करनी पड़ेगी. फिर हम तो बच गए.’’

‘‘आप 25 हजार रुपए लुटाने पर भी कुछ नहीं करते. कोई नहीं करता. किसी ने नहीं किया. लड़की का मामला है सभी के लिए. कोई कुछ नहीं करेगा. यह वे लोग जानते हैं और इसी का वे फायदा उठा रहे हैं.’’

‘‘हम लोग तुम्हारी वजह से बच गए.’’

‘‘एक बार फोन तो मिलाइए रामचंदर बाबू. हो सकता है वे लोग रैडिसन में इंतजार कर रहे हों.’’

रामचंदर बाबू ने फोन उठा कर मिलाया व मुसकराते हुए बताया, ‘‘स्विच औफ.’’

बाद में पंकज ने अखिल को पूरी बात बता कर बैंक में रिपोर्ट कराई व खाते को सीज करा दिया. पर एक खाते को सीज कराने से क्या होता है.

और बाद में, करीब 6 महीने बाद रिनी की शादी एक सुयोग्य लड़के से हो गई. मजे की बात विवाह इंटरनैट के मैट्रिमोनियल अकाउंट से ही हुआ. रिनी अपनी ससुराल में खुश है.

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Serial Story: मैट्रिमोनियल– भाग 1

पंकज कई दिनों से सोच रहा था कि रामचंदर बाबू के यहां हो आया जाए, पर कुछ संयोग ही नहीं बना. दरअसल, महानगरों की यही सब से बड़ी कमी है कि सब के पास समय की कमी है. दिल्ली शहर फैलता जा रहा है.

15-20 किलोमीटर की दूरी को ज्यादा नहीं माना जाता. फिर मैट्रो ने दूरियों को कम कर दिया है. लोगों को आनाजाना आसान लगने लगा है. पंकज ने तय किया कि  कल रविवार है, हर हाल में रामचंदर बाबू से मुलाकात करनी ही है.

किसी के यहां जाने से पहले एक फोन कर लेना तहजीब मानी जाती है और सहूलियत भी. क्या मालूम आप 20 किलोमीटर की दूरी तय कर के पहुंचें और पता चला कि साहब सपरिवार कहीं गए हैं. तब आप फोन करते हैं. मालूम होता है कि वे तो इंडिया गेट पर हैं. मन मार कर वापस आना पड़ता है. मूड तो खराब होता ही है, दिन भी खराब हो जाता है. पंकज ने देर करना मुनासिब नहीं समझा, उस ने मोबाइल निकाल कर रामंचदर बाबू को फोन मिलाया.

रामचंदर बाबू घर पर ही थे. दरअसल, वे उम्र में पंकज से बड़े थे. वे रिटायर हो चुके हैं. उन्होंने 45 साल की उम्र में वीआरएस ले लिया था. आज 50 के हो चुके हैं.

‘‘हैलो, मैं हूं,’’ पंकज ने कहा.

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‘‘अरे वाह,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘काफी दिनों बाद तुम्हारी आवाज सुनाई दी. कैसे हो भाई.’’

‘‘मैं ठीक हूं. आप कैसे हैं?’’

‘‘मुझे क्या होना है. बढि़या हूं. कहां हो?’’

‘‘अभी तो औफिस में ही हूं, कल क्या कर रहे हैं, कहीं जाना तो नहीं है?’’

‘‘जाना तो है. पर सुबह जाऊंगा. 10-11 बजे तक वापस आ जाऊंगा. क्यों, तुम आ रहे हो क्या?’’

‘‘हां, बहुत दिन हो गए.’’

‘‘तो आ जाओ. मैं बाद में चला जाऊंगा या नहीं जाऊंगा. जरूरी नहीं है.’’

‘‘नहीं, नहीं. मैं तो लंच के बाद ही आऊंगा. आप आराम से जाइए. वैसे जाना कहां है?’’

‘‘वही, रिनी के लिए लड़का देखने. नारायणा में बात चल रही थी न. तुम्हें बताया तो था. फोन पर साफ बात नहीं कर रहे हैं, टाल रहे हैं. इसलिए सोचता हूं एक बार हो आऊं.’’

‘‘ठीक है, हो आइए. पर मुझे नहीं लगता कि वहां बात बनेगी. वे लोग मुझे जरा घमंडी लग रहे हैं.’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो. मुझे भी यही लगता है. कल फाइनल कर ही लेता हूं. फिर तुम अपनी भाभी को तो जानते ही हो.’’

‘‘ठीक है, बल्कि यही ठीक होगा. भाभीजी कैसी हैं, उन का घुटना अब कैसा है?’’

‘‘ठीक ही है. डाक्टर ने जो ऐक्सरसाइज बताई है वह करें तब न.’’

‘‘और नीरज आया था क्या?’’

‘‘अरे हां, आजकल आया हुआ है. एकदम ठीक है. तुम्हारे बारे में आज ही पूछ भी रहा था. खैर, तुम कितने बजे तक आ जाओगे?’’

‘‘मैं 4 बजे के करीब आऊंगा.’’

‘‘ठीक है. चाय साथ पिएंगे. फिर खाना खा कर जाना.’’

‘‘रिनी की कहीं और भी बात चल रही है क्या? देखते रहना चाहिए. एक के भरोसे तो नहीं बैठे रहा जा सकता न.’’

‘‘चल रही है न. अब आओ तो बैठ कर इत्मीनान से बात करते हैं.’’

‘‘ठीक है. तो कल पहुंचता हूं. फोन रखता हूं, बाय.’’

मोबाइल फोन का यही चलन है. शुरुआत में न तो नमस्कार, प्रणाम होता है और न ही अंत में होता है. बस, बाय कहा और बात खत्म.

रामचंदर बाबू के एक लड़का नीरज व लड़की रिनी है. रिनी बड़ी है. वह एमबीए कर के नौकरी कर रही है. साढे़ 6 लाख रुपए सालाना का पैकेज है. नीरज बीटैक कर के 3 महीने से एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब कर रहा है. रामचंदर बाबू रिनी की शादी को ले कर बेहद परेशान थे. दरअसल, उन के बच्चे शादी के बाद देर से पैदा हुए थे. पढ़ाई, नौकरी व कैरियर के कारण पहले तो रिनी ही शादी के लिए तैयार नहीं थी, जब राजी हुई तब उस की उम्र 28 साल थी. देखतेदेखते समय बीतता गया और रिनी अब 30 वर्ष की हो गई, लेकिन शादी तय नहीं हो पाई. नातेरिश्तेदारों व दोस्तों को भी कह रखा था. अखबारों में भी विज्ञापन दिया था. मैट्रिमोनियल साइट्स पर भी प्रोफाइल डाल रखा था. अब जब अखबार ने उन का विज्ञापन 30 प्लस वाली श्रेणी में रखा तब उन्हें लगा कि वाकई देर हो गई है. वे काफी परेशान हो गए.

पंकज जब उन के यहां पहुंचा तो 4 ही बजे थे. रामचंदर बाबू घर पर ही थे. पंकज का उन्होंने गर्मजोशी से स्वागत किया. उन के चेहरे पर चमक थी. पंकज को लगा रिनी की बात कहीं बन गई है.

‘‘क्या हाल है रामचंदर बाबू,’’ पंकज ने सोफे पर बैठते हुए पूछा.

‘‘हाल बढि़या है. सब ठीक चल रहा है.’’

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‘‘रिनी की शादी की बात कुछ आगे बढ़ी क्या?’’

‘‘हां, चल तो रही है. देखो, सबकुछ ठीक रहा तो शायद जल्द ही फाइनल हो जाएगा.’’

‘‘अरे वाह, यह तो बहुत अच्छा हुआ. नारायणा वाले तो अच्छे लोग निकले.’’

‘‘नारायणा वाले नहीं, वे लोग तो अभी भी टाल रहे हैं. मैं गया था तो बोले कि 2-3 हफ्ते में बताएंगे.’’

‘‘फिर कहां की बात कर रहे हैं?’’

रामचंदर बाबू खिसक कर उस के नजदीक आ गए.

‘‘बड़ा बढि़या प्रपोजल है. इंटरनैट से संपर्क हुआ है.’’

‘‘इंटरनैट से? वह कैसे?’’

‘‘मैं तुम्हें विस्तार से बताता हूं. इंटरनैट पर मैट्रिमोनियल की बहुत सी साइट्स हैं. वे लड़के और लड़कियां की डिटेल रखते हैं. उन पर अकाउंट बनाना होता है, मैं ने रिनी का अकाउंट बनाया था. मुंबई के बड़े लोग हैं. बहुत बड़े आदमी हैं. अभी पिछले हफ्ते ही तो मैं ने उन का औफर एक्सैप्ट किया था.’’

‘‘लड़का क्या करता है?’’

‘‘लड़का एमटैक है आईआईटी मुंबई से. जेट एयरवेज में चीफ इंजीनियर मैंटिनैंस है. 22 लाख रुपए सालाना का पैकेज है. तुम तो उस का फोटो देखते ही पसंद कर लोगे. एकदम फिल्मी हीरो या मौडल लगता है. अकेला लड़का है. कोई बहन भी नहीं है.’’

‘‘चलिए, यह तो अच्छी बात है. उस का बाप क्या करता है?’’

‘‘बिजनैसमैन हैं. मुंबई में 2 फैक्टरियां हैं.’’

‘‘2 फैक्टरियां? फिर तो बहुत बड़े आदमी हैं.’’

‘‘बहुत बड़े. कहने लगे इतना कुछ है उन के पास कि संभालना मुश्किल हो रहा है. लड़के का मन बिजनैस में नहीं है, नहीं तो नौकरी करने की कोई जरूरत ही नहीं है. कह रहे थे बिजनैस तो रिनी ही संभालेगी, एमबीए जो है. घर में 3-3 गाडि़यां हैं,’’ रामचंदर बाबू खुशी में कहे जा रहे थे.

‘‘इस का मतलब है कि आप की बात हो चुकी है.’’

‘‘बात तो लगभग रोज ही होती है. एक्सैप्ट करने के बाद साइट वाले कौंटैक्ट नंबर दे देते हैं. जितेंद्रजी कहने लगे कि जब से आप से बात हुई है, दिन में एक बार बात किए बिना चैन ही नहीं मिलता. कई बार तो रात के 12 बजे भी उन का फोन आ जाता है. व्यस्त आदमी हैं न.’’

‘‘कुछ लेनदेन की बात हुई है क्या?’’

‘‘मैं ने इशारे में पूछा था. कहने लगे, कुछ नहीं चाहिए. न सोना, न रुपया, न कपड़ा. बस, सादी शादी. बाकी वे लोग बाद में किसी होटल में पार्टी करेंगे. होटल का नाम याद नहीं आ रहा है. कोई बड़ा होटल है.’’

‘‘घर में और कौनकौन है?’’

‘‘बस, मां हैं और कोई नहीं है. नौकरचाकरों की तो समझो फौज है.’’

‘‘आप ने रिश्तेदारी तो पता की ही होगी. कोई कौमन रिश्तेदारी पता चली क्या?’’

‘‘मैं ने पूछा था. दिल्ली में कोई नहीं है. मुंबई में भी सभी दोस्तपरिचित ही हैं. वैसे बात तो वे सही ही कह रहे हैं. अब हमारी ही कौन सी रिश्तेदारियां बची हैं. एकाध को छोड़ दो तो सब से संबंध खत्म ही हैं. मेरे बाद नीरज और रिनी क्या रिश्तेदारियां निबाहेंगे भला. खत्म ही समझो.’’

‘‘चलिए, ठीक ही है. बात आगे तो बढ़े.’’ वैसे मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है, ‘‘शादीब्याह का मामला है, कुछ सावधानियां तो बरतनी ही पड़ती हैं.’’

‘‘हां, सो तो है ही. मैं सावधान तो हूं ही. पर सावधानी के चक्कर में इतना अच्छा रिश्ता कैसे छोड़ दूं. रिनी की उम्र तो तुम देख ही रहे हो.’’

‘‘नहीं, मेरा यह मतलब नहीं था. फिर भी जितना हो सके बैकग्राउंड तो पता कर ही लेना चाहिए.’’

‘‘वो तो करूंगा ही भाई.’’

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जूठन: क्या प्रेमी राकेश के साथ गृहस्थी बसा पाई सीमा?

Serial Story: जूठन– भाग 3

वंदना को 2 प्लेटों में खाना लगाते देख सीमा ने पूछा, ‘‘तुम्हारे अलावा और किस ने खाना नहीं खाया है, वंदना?’’

‘‘यह दूसरी प्लेट का खाना सामने रहने वाली मेरी सहेली निशा के लिए है,’’ वंदना ने खिड़की की तरफ उंगली उठा कर सीमा को अपनी सहेली का घर दिखाया.

‘‘वह यहीं आएगी क्या?’’

‘‘नहीं, मेरा बड़ा बेटा सोनू प्लेट उस के घर दे आएगा.’’

‘‘तुम्हारे दोनों बेटों से तो मैं मिली ही नहीं हूं. कहां हैं दोनों?’’

‘‘छोटे भानू को खांसीबुखार है. वह अंदर कमरे में सो रहा है. सोनू को मैं बुलाती हूं. वह सुबह से निशा के यहां गया हुआ है.’’

वंदना ने पीछे का दरवाजा खोल कर सोनू को आवाज दी. कुछ मिनट बाद सोनू निशा के घर से भागता हुआ बाहर आया.

अपनी मां के कहने पर उस ने सीमा आंटी को नमस्ते करी. बड़ी सावधानी से निशा के लिए लगाई गई खाने की प्लेट दोनों हाथों में पकड़ कर वह फौरन निशा के घर लौट गया.

‘‘बहुत प्यारा बच्चा है,’’ सीमा ने सोनू की तारीफ करी.

‘‘निशा भी उसे अपनी जान से ज्यादा चाहती है… बिलकुल एक मां की तरह. सोनू को 2 मांओं का प्यार मिल रहा है,’’ वंदना ने सीमा की आंखों में झांकते हुए गंभीर लहजे में कहा.

पीछे के बरामदे में एक गोल मेज के इर्दगिर्द 4 कुरसियां रखी थीं. वे दोनों वहीं बैठ गईं. वंदना ने धीरेधीरे खाना खाना शुरू कर दिया.

‘‘क्या निशा के पास अपना बेटा नहीं है?’’ सीमा ने वार्त्तालाप आगे बढ़ाया.

‘‘उस ने तो शादी ही नहीं करी है… तुम्हारी तरह अविवाहित रहने का फैसला कर रखा है

उस ने. हर औरत के सीने में मां का दिल मौजूद होता है. निशा उस दिल में भरी ममता खुले हाथों मेरे सोनू पर लुटाती है, ’’ वंदना ने मुसकराते हुए कहा.

कुछ देर खामोश रह कर सीमा बोली, ‘‘यह सच है कि कभी मैं ने शादी न करने का

फैसला किया था, लेकिन अब मैं किसी के साथ मैं अपनी बाकी जिंदगी गुजारना चाहती हूं. इसी सिलसिले में तुम से कुछ बातें करने आई हूं.’’

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‘‘मैं निशा को भी हमेशा कहती हूं कि शादी कर ले, पर वह सुनती ही नहीं. कहती है कि शादी किए बिना ही मुझे सोनू जैसा प्यारा बेटा मिल गया है, तो मैं बेकार किसी अनजान आदमी से जुड़ कर अपनी स्वतंत्रता क्यों खोऊं. मेरा सोनू उस के बुढ़ापे का सहारा बनेगा, यह विश्वास उस के मन में बहुत मजबूती से बैठ गया है,’’ सीमा के कहे को अनसुना कर वंदना ने निशा और सोनू के संबंध में बोलना जारी रखा.

‘‘राकेश और मैं एकदूसरे को साल भर से ज्यादा समय से जानते हैं. उन से मिलने के बाद ही मेरे जीवन में खुशियां लौटीं, नहीं तो बड़ी नीरस हुआ करती थी मेरी जिंदगी,’’ वंदना के कहे में दिलचस्पी न दिखा कर सीमा ने भी

अपने मन की बातें उसे बताने का सिलसिला

जारी रखा.

‘‘इस निशा की जिंदगी में खुशियों का उजाला मेरे सोनू के कारण है. आए दिन कुछ न कुछ उपहार सोनू को उस से मिल जाता है.’’

‘‘राकेश और मेरे संबंध अच्छी दोस्ती की सीमा को लांघ कर और ज्यादा गहरे हो चुके हैं. वे मुझे बहुत प्रेम करते हैं,’’ सीमा ने वंदना से एक झटके में अपने दिल की बात कह ही दी.

वंदना उदास सी मुसकान अपने होंठों पर ला कर बोली, ‘‘मेरे सोनू का दिल

जीतने को इस निशा ने उसे बहुत बड़ा लालच दे रखा है. खूब पैसे खर्च कर के उस ने सोनू को बाजार की चटपटी चीजें खाने का चसका लगवा दिया है. अब मेरे बेटे को घर का खाना फीका लगता है.’’

‘‘सोनू की बात छोड़ कर तुम राकेश के बारे में मुझ से बातें क्यों नहीं कर रही हो?’’ सीमा चिढ़ उठी.

बड़े अपनेपन से सीमा का कंधा दबाने के बाद वंदना ने उसी सुर में बोलना जारी रखा, ‘‘निशा को अच्छा खाना बनाना नहीं आता है. उस के घर की रसोई सूनी पड़ी रहती है. सोनू अगर उस का अपना बेटा होता, तो क्या वह अपनी घरगृहस्थी को सजानेसंवारने की जिम्मेदारियों से यों बचती? अपने बेटे को अपने हाथों से बढि़या खाना बना कर खिलाना क्या उसे तब बोझ लगता?’’

‘‘एक मां को अपने बेटे की इच्छाएं पूरा करना बोझ नहीं लगता है.’’

‘‘जिस से प्रेम हो, उस की खुशी के लिए कुछ भी करना बोझ नहीं हो सकता. यह निशा तो मेरे सोनू को कानूनन गोद लेने को भी मुझ पर आएदिन दबाव डालती रहती है.’’

‘‘और इस विषय में तुम्हारा जवाब क्या है, वंदना?’’

वंदना धीमे से हंसने के बाद बोली, ‘‘बिना प्रसव पीड़ा भोगे क्या कोई स्त्री सच्चे अर्थों में मां बन सकती है? घरगृहस्थी के झंझटों व चुनौतियों का सामना करने की शक्ति, खुद कष्ट उठा कर अपने बच्चों की हर सुखसुविधा का ध्यान रखने का जज्बा एक मां के ही पास होता है… किसी मौसी, चाची, आंटी या आया के बस का नहीं है दिल से उतनी मेहनत करना.’’

‘‘यह तो तुम ठीक ही कह रही हो. मैं भी अब अपनी घरगृहस्थी बसाने…’’

वंदना ने उसे टोक कर चुप किया और गंभीर लहजे में आगे बोली, ‘‘मेरे सोनू को निशा कितना भी प्यार करे, पर वह हमेशा मेरा बेटा ही रहेगा… सारा समाज उसे मेरे बेटे के नाम से ही जानता है. निशा के गिफ्ट, उस का सोनू के लिए खूब खर्चा करना, सोनू की उस के घर पर जाने की चाह जैसी बातें इस तथ्य को कभी बदल नहीं सकतीं कि वह मेरा बेटा है. मैं तुम से एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो,’’ सीमा अचानक गंभीर हो गई, क्योंकि उसे पहली बार यह एहसास हुआ कि वंदना सोनू और निशा की बातें कर के उस से कुछ खास कहना चाह रही है.

‘‘मैं अपने कलेजे के टुकड़े को निशा को गोद देने के लिए मजबूरन राजी भी हो जाऊं, तो क्या वह सचमुच मेरे बेटे की मां बन जाएगी? सोनू को जन्म देने का आनंद उसे कैसे मिलेगा? उस के साथ अब तक बिताए 8 सालों की पीड़ा व खुशियां देने वाली जो यादें मेरे पास हैं, उन्हें निशा कहां से लाएगी? क्या मुझे रुला कर वह हंस पाएगी?’’ वंदना की आंखों में अचानक आंसू छलक आए.

सीमा एक गहरी सांस खींच कर बोली, ‘‘तुम्हारा दिल दुखाए बिना निशा सोनू को नहीं पा सकती है और तुम्हारी सहेली होने के नाते उसे सोनू को बेटा बनाने की चाह छोड़ देनी चाहिए. मुझे भी तुम से मिलने नहीं आना चाहिए था. तुम्हारे व्यक्तित्व को जानने के बाद मेरे मन की बेचैनी व असंतोष और ज्यादा बढ़ा है.’’

वंदना ने उस के हाथ पर हाथ रखा और भरे गले से बोली, ‘‘सीमा, तुम्हें अपनी छोटी बहन मान कर कुछ अपने दिल की बातें कहती हूं. मुझे अपने बच्चों, पति व घरगृहस्थी से ज्यादा प्यारा और कुछ नहीं है. राकेश को छोड़ने की कल्पना करना भी मेरे लिए असहनीय है.

‘‘राकेश मुझ से ज्यादा तुम्हें चाहते हैं, जो मेरे लिए ठीक नहीं है, उन की हर सुखसुविधा का खयाल मैं खुशीखुशी रखती हूं. अपने बेटों को वे अपनी जान से ज्यादा चाहते हैं. उन के कारण वे सदा इस घर से जुड़े रहेंगे, यह बात मेरे मन को गहरा संतोष और सुरक्षा देती है.’’

‘‘तुम उतनी सीधीसादी हो नहीं, जितना दिखती हो. मैं तुम्हारे पास और ज्यादा देर नहीं बैठना चाहती,’’ सीमा अचानक उठ खड़ी हुई.

वंदना ने उदास लहजे में जवाब दिया, ‘‘अगर तुम मेरे दिल में झांकने की क्षमता पैदा

कर सको, तो तुम्हें मुझ से सहानुभूति होगी.

मुझ पर दया आएगी. प्रेम के बदले प्रेम न पाने

की पीड़ा में लाख कोशिश कर के भी नहीं भुल पाती हूं.’’

‘‘राकेश और सोनू के व्यवहार में बड़ी समानता है. मेरे पति तुम से और बेटा निशा से अपनी खुशियों की खातिर जुड़े हुए हैं, लेकिन इस घर से संबंध तोड़ने में दोनों की कतई दिलचस्पी नहीं है.

बाजार का खाना मेरे बेटे की सेहत के लिए बुरा है, यह जानते हुए भी मैं

सोनू की खुशी की खातिर चुप रहती हूं. राकेश तुम से जुड़े हैं, इस की शिकायत भी मैं कभी उन से नहीं करूंगी.

‘‘मेरे बेटे व मेरे पति से मेरा संबंध मेरी मौत ही तोड़ सकती है. मैं तो हर हाल में इन के साथ संतुष्ट रह लूंगी, पर निशा को या तुम्हें इन के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ कर क्या मिल रहा है? उसे बेटा या तुम्हें जीवनसाथी चाहिए, तो दोनों बिलकुल नई शुरुआत क्यों नहीं करती हो? दूसरे की कितनी भी स्वादिष्ठ जूठन खाने की तुम दोनों को जरूरत ही क्या है?’’

कई पलों तक खामोश खड़ी रह कर सीमा वंदना को आंसू बहाते देखती रही. फिर आगे बढ़ कर उस ने वंदना का माथा चूम कर एक शब्द मुंह से निकाला, ‘‘थैंक यू.’’

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आगे और कुछ बोले बिना सीमा झटके से मुड़ी और ड्राइंगरूम की दिशा में बढ़ गई.

ड्राइंगरूम में राकेश अभी भी दीवान पर सो रहा था. सीमा ने अपना पर्स मेज पर से उठाया और राकेश से अलविदा कहे बिना उस के घर से बाहर चली आई.

राकेश से हमेशा के लिए अपना अवैध प्रेम संबंध समाप्त करने का फैसला पलपल उस के मन में अपनी जड़ें मजबूत करता जा रहा था.

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