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 लेखक : चंद्रमोहन प्रधान

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लेखिका- प्रेमलता यदु

Romantic Story In Hindi: दलदल- नित्या को मिला प्यार में धोखा

मात्र 24 साल की छोेटी सी उम्र में वह 2 बड़े हादसे झेल चुकी थी. पहली घटना उस के साथ 20 वर्ष की उम्र में घटी थी. तब वह बीकौम कर रही थी. उम्र के इस पड़ाव में युवाओं का किसी के प्यार में पड़ना आम बात होती है. आधुनिक शिक्षा व पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण और समाज की बेडि़यों में ढीलापन होने के कारण युवा आपस में बहुत जल्दी घुलमिल जाते हैं. उन के  संबंध जितनी तीव्रता से परवान चढ़ते हैं, उतनी ही तेजी से टूटते भी हैं. कच्ची उम्र की सोच भी कच्ची होती है और इस उम्र में युवाओं के लिए सही निर्णय लेना लगभग असभंव होता है.

मिलिंद उस का पहला प्यार था. वह भी उसी के कालेज में पढ़ता था और एक साल सीनियर था. पढ़ाई के दौरान होने वाला प्यार मात्र मौजमस्ती के लिए होता है. यह सारे युवा जानते हैं. एकदूसरे को भरोसे में लेने के लिए वे बड़ेबड़े वादे करते हैं, लेकिन जब उन के बीच शारीरिक संबंध कायम हो जाते हैं, तो उस के बाद सारे वादे धरे के धरे रह जाते हैं. तब प्यार के बंधन ढीले पड़ने लगते हैं. फिर प्यार में कटुता पनपती है, दूरियां बढ़ती हैं और कई बार इस की परिणति बहुत दुखद होती है.

मिलिंद के साथ शारीरिक संबंध बनाने के बाद उसे पता चला कि वह एक बदमाश किस्म का युवक है. छोटीमोटी लूटपाट, मारपीट ही नहीं, वह युवतियों के साथ जोरजबरदस्ती भी करता था. जो युवती उस के झांसे में नहीं आती, उसे वह अपने मित्रों के माध्यम से अगवा कर उस की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करता. कालेज में वह बहुत बदनाम था, लेकिन किसी युवती ने अभी तक उस पर कोईर् दोष नहीं मढ़ा था, इसीलिए उस की हिम्मत दिनोदिन बढ़ती जा रही थी.

नित्या के लिए यह स्थिति बहुत कष्टकारी थी. न तो वह किसी को अपनी मनोस्थिति बता सकती थी और न ही किसी से सलाह ले सकती थी. मिलिंद के चंगुल से निकल भागने का कोई उपाय उसे नहीं सूझ रहा था.

लेकिन परिस्थितियों ने उस का साथ दिया. चूंकि मिलिंद नित नई युवतियों पर फिदा होने वाला युवक था, नित्या से उस ने खुद ही दूरियां बनानी शुरू कर दीं. वह मन ही मन बड़ी खुश हुई. धीरेधीरे एक साल बीत गया और नित्या ने बीकौम भी कर लिया.

अगले साल उस ने मांबाप को मना कर दूसरे शहर में एमबीए जौइन कर लिया. होस्टल में जगह न मिलने के कारण पेइंगगैस्ट के रूप में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगी. पैसा बचाने के लिए उस ने अपना रूम एक दूसरी युवती के साथ शेयर कर लिया. सुरक्षा की दृष्टि से भी यह जरूरी था.

नए शहर में आ कर नित्या ने ठान लिया था कि वह किसी लफड़े में नहीं पड़ेगी. बस, अपनी पढ़ाई पर ध्यान देगी. लेकिन जहां खुला माहौल हो, भंवरे और तितलियां एक ही बाग में स्वछंद घूमफिर रहे हों, प्रकृति का रोमांच उन के दिलों को गुदगुदा रहा हो, तो वसंत के फूलों की सुगंध से वे कैसे बच सकते हैं और मधुमास के अभिसार से अछूते कैसे रह सकते हैं. पेड़पौधों और फूलपत्तों पर जब वसंत का निखार आता है, तो जवां दिल एक हुए बिना नहीं रह सकते.

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वह बहुत सोचसमझ कर जीवन के अगले चरण में अपने कदम रख रही थी. उस की रूममेट शिखा बहुत बातूनी और चंचल थी. वह हर वक्त प्यारमुहब्बत की बातें करती रहती थी. नित्या उस की बातें सुन हलके से मुसकरा भर देती या उसे झिड़क देती, ‘‘अब बस कर, कुछ पढ़ाई की तरफ भी ध्यान दे ले.’’

‘‘पढ़ाई कर के क्या मिलेगा? अंत में शादी ही तो करनी है. अभी जवानी है, प्यार का मौसम है, तो क्यों न उस का भरपूर मजा लिया जाए?’’ वह अंगड़ाई ले कर कहती.

नित्या बस, मुसकरा कर रह जाती. प्यार के खेल की वह पुरानी खिलाड़ी थी, लेकिन उस ने शिखा को अपने पहले प्यार के बारे में कुछ नहीं बताया था. वह उन

कड़वी यादों को अपने दिल से निकाल देना चाहती थी.

यों ही हंसीमजाक में दिन गुजरते रहे. एक दिन शिखा ने पूछ ही लिया, ‘‘नित्या, सचसच बता, क्या तेरे मन में प्यार की भावना नहीं उमड़ती या तेरे साथ कोई हादसा हुआ है, जो तू प्यार के नाम से बिदकती है?’’

नित्या चौंक गई, क्या शिखा को उस के बारे में कुछ पता चल गया है या वह केवल कयास लगा रही है. उस ने कहा, ‘‘तू क्या समझती है, सारी युवतियां एकजैसी होती हैं? मेरा एक लक्ष्य है. मुझे पढ़ाईर् कर के मांबाप के सपनों को पूरा करना है.’’

‘‘बस कर, तू मुझे क्यों बना रही है? प्यार के मामले में सारी युवतियां एकजैसी होती हैं. जवान होने से पहले ही चारा खाने के लिए उतावली रहती हैं. मुझे तो लगता है, तूने चारा खा लिया है. अब बन रही है.’’

‘‘मैं ने क्या किया है या क्या करूंगी, यह तू मेरे ऊपर छोड़ दे. तू अपनी सोच,’’ नित्या ने बात को टालने का प्रयास किया.

शिखा लापरवाही से बोली, ‘‘मुझे अपने बारे में क्या सोचना? मैं ने तो अपना बौयफ्रैंड बना भी लिया है. तू अपनी फिक्र कर…’’ उस के चहरे से खुशी टपक रही थी, हृदय उछल रहा था. सपनों के उड़नखटोले में बैठ कर वह किसी और ही दुनिया में विचरण कर रही थी.

नित्या को उस के बौयफ्रैंड के बारे में जानने की कोई उत्सुकता नहीं थी, लेकिन एक कसक सी उस के मन में उठी. प्यार में ठोकर न खाई होती तो उस का भी कोई बौयफ्रैंड होता. उसे शिखा से जलन हुई. परंतु फिर उस ने अपना मन कड़ा किया. क्या फिर से आग में कूदने का इरादा है. शिखा को जो करना है, करे. वह अपने पथ पर अडिग रहेगी. पुरानी चोट क्या इतनी जल्दी भूल जाएगी?

लेकिन एक जवान युवती, जब घर से दूर अकेली रहती है, तो उस की भावनाएं बेलगाम हो जाती हैं. वह केवल अपने लक्ष्य पर ही ध्यान केंद्रित नहीं रख पाती. दूसरी चीजें भी उसे प्रलोभित करती हैं. कोई भी युवा अपने मन को चंचल होने से नहीं रोक सकता. नित्या भी अपने हृदय की भावनाओं और मन की चंचलता को दबाने का प्रयास करती, लेकिन शिखा की बातें सुनसुन कर वह मन से कमजोर पड़ने लगी थी. जब भी शिखा उस से अपने अफेयर और बौयफ्रैंड के बारे में बात करती तो उस के हृदय में कांटे से गड़ने लगते. सोचती, इतनी सुंदर दुनिया में वह अकेले ही चलने के लिए क्यों मजबूर है? यह उम्र क्या तनहाइयों में आहें भरने के लिए होती है?

कालेज में हर दूसरी युवती अपने बौयफ्रैंड के साथ नजर आती. एक बस वही अकेली थी. कितना खराब लगता था उसे. उस की फ्रैंड्स उसे चिढ़ातीं, ‘‘यह देखो, ठूंठ, इस पर जवानी का फूल अभी तक नहीं खिला है.’’

धीरेधीरे उस का मन विचलित होने लगा. पुरानी कड़वी यादें समय की परतों के नीचे दब सी गईं. नई भावनाओं ने जल की लहरों की तरह उस के हृदय में उछाल लेना शुरू कर दिया, जैसे कोई नया तूफान आने वाला था. नए तूफान को रोकने का उस ने प्रयास नहीं किया, वह कमजोर हो गई थी. प्यार के मामले में हर युवती बहुत कमजोर होती है. प्यार के नाम पर कोई भी युवक उसे किसी भी तरफ झुका सकता है. नित्या दूसरी बार झुकने के लिए अपने मन को तैयार कर रही थी.

सहेलियों के बीच वह एक ठूंठ सिद्ध हो चुकी थी. उस ने तय कर लिया, अब वह फूल की तरह कोमल बन कर दिखाएगी. उस ने अपने दिमाग को इधरउधर दौड़ाया. कई युवकों के चेहरे उस के मस्तिष्कपटल पर दौड़ने लगे, लेकिन उस ने तय किया कि वह किसी क्लासमेट या कालेज के किसी युवक से दोस्ती नहीं करेगी. मिलिंद भी उस के कालेज का लड़का था, वह कितना छिछोरा और बदमाश निकला. इस बार वह किसी नौकरीशुदा व्यक्ति से दोस्ती करेगी.

उस ने अपना मन अपने मकान में रहने वाले किराएदारों की तरफ केंद्रित किया. जिस मकान में वह रहती थी, उस में कई किराएदार थे. ज्यादातर कालेज की युवतियां थीं, कुछ आईटी प्रोफैशनल भी थे. कुछ अन्य नौकरी करने वाले थे. राहुल नित्या के कमरे के बिलकुल सामने रहता था. वह जब भी सामने पड़ता, उसे देख कर मुसकरा देता. पहले वह तटस्थ रहती थी, लेकिन जब उस के मन की भावनाओं ने पंख फैलाने शुरू किए, तो उस के होंठों पर भी मुसकान की मीठी झलक दिखाई देने लगी. युवकयुवती के बीच एक बार मुसकान का आदानप्रदान हो जाए, तो दूरियां कम होने में वक्त नहीं लगता.

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राहुल से रिश्ता बनाते समय उसे तनिक भी खयाल नहीं आया कि वह एक बार प्यार में धोखा खा चुकी है. इस बार ठोंकबजा कर राहुल को परख ले, जब प्यार की चिनगारी हृदय को जलाने लगती है, तो सारी सावधानी और समझदारी धरी की धरी रह जाती है.

बात बढ़ी, तो बढ़ती ही चली गई. दोनों एक ही बिल्डिंग में रहते थे, इसलिए उन के मिलने में कोई व्यवधान भी नहीं था. स्वच्छंद रूप से दिनरात जब भी मन करता, वे मिल लेते. उन के बीच की सारी दूरियां बिना किसी देरी के समाप्त हो गईं.

शिखा को उस के अफेयर के बारे में पता चलते देर न लगी. पूछा, ‘‘नित्या, तू तो बड़ी तेज निकली. इतनी जल्दी बौयफ्रैंड बना लिया. कल तक तो प्रेम के नाम पर नाकभौं सिकोड़ती थी.’’

नित्या ने सिर झटकते हुए कहा, ‘‘क्यों, क्या मैं प्यार नहीं कर सकती? आखिर सामान्य युवती हूं. मन में भावनाएं हैं, इच्छाएं हैं और हृदय में कामनाएं मचलती हैं. जब तक मन का दरवाजा नहीं खुलता, बाहर की हवा की सुगंध मनमस्तिष्क में नहीं घुसती, तब तक कामदेव के बाण किसी को घायल नहीं करते. मैं ने भी तुझ से सीख ले कर मन की आंखें खोल दीं, हृदयपटल को खोल कर ‘उसे’ प्रवेश करने की अनुमति दे दी. फिर तो तुम जानती ही हो, प्रेम की चिनगारी भड़कने में देर नहीं लगती.’’

‘‘पर तुम ने राहुल को क्यों पसंद किया. तुम्हारे क्सासमेट भी तो हैं?’’

‘‘तुम नहीं समझोगी. साथ में पढ़ने वाले युवकों में गंभीरता नहीं होती. उन का भविष्य अनिश्चित सा रहता है. पूरी तरह

से वे मांबाप पर निर्भर रहते हैं. राहुल नौकरीशुदा है. वह मेरा खर्च उठा सकता है.’’

‘‘क्या करता है वह?’’

‘‘शायद किसी आईटी कंपनी में ऐग्जिक्यूटिव है. मैं ने पूछा नहीं है.’’

‘‘नौकरी वाला बौयफ्रैंड पसंद किया है, तो क्या तुम उस से शादी करने की सोच रही हो?’’

‘‘क्या हर्ज है, अगर वह तैयार हो जाए,’’ नित्या ने लापरवाही से कहा.

‘‘तुम ने बात की है?’’

‘‘कर लूंगी, अभीअभी तो प्यार हुआ है. कुछ दिन एंजौय करने दो.’’

शिखा  गंभीर हो गई, ‘‘नित्या, एक बात अच्छी तरह समझ लो, प्यार अगर मौजमस्ती के लिए है, तो इस में सबकुछ जायज है, पर अगर शादी कर के घर बसाने के उद्देश्य से तुम राहुल से प्यार कर रही हो, तो संभल कर रहना. पहले शादी कर लो, फिर अपना तन उस को समर्पित करना. आजकल शादी के नाम पर युवक बहलाफुसला कर युवतियों का सालों शोषण करते हैं और जब उन का मन भर जाता है, तो युवती को ठोकर मार कर भगा देते हैं. युवतियां भावुक होती हैं. वे बहुत जल्दी युवकों की बातों पर विश्वास कर लेती हैं और बाद में पछताती हैं. तुम राहुल से साफसाफ बात कर लो कि वह क्या चाहता है और तुम भी अपने दिल की बात उस के सामने रख दो कि तुम उस से शादी करना चाहती हो, वरना बाद में पछताओगी.’’

नित्या के मन में बात खटक गई. शिखा सच कह रही थी. प्यार कोई खेल तो है नहीं, जो केवल मनोरंजन के लिए खेला जाए. ऐसा प्यार वासना का खेल बन जाता है. उस ने खुद को धिक्कारा…. उसे क्या कभी अक्ल नहीं आएगी. एक बार लुट चुकी है और दूसरी बार लुटने को तैयार है. जीवनभर क्या वह प्यार के नाम पर अलगअलग युवकों के हाथों अपने शरीर को नुचवाती रहेगी, अपनी अस्मिता तारतार करवाती रहेगी?

उसे अफसोस होने लगा कि प्यार में वह इतनी जल्दबाजी क्यों करती है, दो दिन की बातचीत और मीठीमीठी बातों में आ कर उस ने खुद को राहुल के चरणों  में समर्पित कर दिया.

अगली मुलाकात में उस ने राहुल से पूछ लिया, ‘‘राहुल, तुम ने अपने बारे में कभी कुछ नहीं बताया, जबकि मैं अपने बारे में तुम्हें सबकुछ बता चुकी हूं.’’

‘‘क्या जानना चाहती हो मेरे बारे में?’’ उस ने संशय से पूछा.

‘‘मैं तुम्हारे नाम के सिवा क्या जानती हूं.’’

‘‘क्या तुम्हारे लिए इतना जानना पर्याप्त नहीं है कि मैं तुम्हारा प्रेमी हूं?’’

‘‘प्यार की अंतिम परिणति शादी होती है, इसलिए एकदूसरे के घरपरिवार के बारे में जानना भी जरूरी है,’’ नित्या ने अपने मन की बात कही.

राहुल ने टालने के भाव से कहा, ‘‘तुम कहां बेमतलब की बातों में पड़ी हो. दुनियादारी के लिए सारी उम्र पड़ी है. अभी प्यार का मौसम है, जी भर कर प्यार कर लो और उस की सुगंध अपने तनबदन में भर लो. प्यार की खुशबू से जब तनमन नहाने लगता है, तो बाकी चीजें गौण हो जाती हैं. अभी तुम केवल मेरे बारे में सोचो और मैं तुम्हारे बारे में… बस,’’ उस ने नित्या को बांहों में समेटने की कोशिश की.

नित्या ने प्यार से उसे अलग करते हुए कहा, ‘‘तुम अपनी मीठीमीठी बातों से  टालने की कोशिश मत करो. मेरे लिए यह जानना काफी अहम है कि मैं ने जिस व्यक्ति से प्यार किया, वह जीवन में कितनी दूर तक मेरा साथ देगा. पुरुष और स्त्री को बांधने का सूत्र प्रेम होता है और जब वह सूत्र शादी के बंधन में बंध जाता है तो यह अटूट हो जाता है.’’

‘‘क्या दकियानूसी बातें कर रही हो. जब हम स्वेच्छा से एकदूसरे के साथ रह रहे हैं, तो बीच में शादी कहां से आ गई?’’

‘‘राहुल, तुम बात को समझने का प्रयास करो. अब हम बच्चे या किशोर नहीं हैं, पूरी तरह से बालिग हैं. लिवइन रिलेशनशिप केवल वासना की पूर्ति का एक आधुनिक बहाना है, वरना समाज में इस तरह के कृत्य अवैध रूप से पहले भी चलते थे और आज भी चल रहे हैं. लेकिन परिवार और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के साथ अगर पतिपत्नी का रिश्ता निभाया जाए, तो सभी सुखी रहते हैं.’’

नित्या ने सोचसमझ कर बहुत गंभीर बात कही थी. उस में अब परिपक्वता झलक रही थी, क्यों न हो आखिर? ठोकर खाने के बाद तो मूर्ख भी अक्लमंद हो जाते हैं. इस के बाद भी अगर नित्या को अक्ल न आती, तो कब आती?

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राहुल चिंतित हो गया, फिर बोला, ‘‘यार, तुम ने भी अच्छाखासा रोमांटिक मूड खराब कर दिया. मैं बाद में इस मुद्दे पर बात करूंगा,’’ फिर वह अपने औफिस चला गया.

नित्या को उस की यह बेरुखी अच्छी नहीं लगी. वह समझ गई थी कि राहुल उस के साथ केवल शारीरिक संबंध बनाने तक ही रिश्ता कायम रखना चाहता है. इस के अलावा वह किसी और जिम्मेदारी के प्रति गंभीर नहीं है, पर बिना किसी जिम्मेदारी के यह रिश्ता भी कोई रिश्ता है. क्या यह एक प्रकार की वेश्यावृत्ति नहीं है? बिना प्रतिबद्धता और सामाजिक बंधन के युवती एक युवक के साथ रहे या दो के साथ, क्या फर्क पड़ता है? इस में पारिवारिक और सामाजिक प्रतिष्ठा कहां है. युवती को तो अपनी अस्मिता लुटा कर ही यह सब करना पड़ता है. बदले में उसे क्या मिलता है? युवक के चंद मीठे बोल, कुछ उपहार लेकिन सामाजिक सुरक्षा इस में कहां है? उसे लांछनों के साथ समाज में जीवित रहना पड़ता है.

 नित्या का मन खट्टा हो गया, लेकिन उस ने राहुल से दूरी बनाने का कोई प्रयास नहीं किया. उस से फायदा भी क्या होता. उच्छृंखल प्यार आज के युवाओं की नियति है.

‘‘तुम्हारा अफेयर कैसा चल रहा है?’’ एक दिन शिखा ने नित्या से पूछ लिया.

‘‘ठीक जैसा कुछ भी नहीं है,’’ उस ने उदासीनता से कहा. फिर पूछा, ‘‘एक बात बताओ शिखा, प्यार के मामले में क्या युवक अपने बारे में सबकुछ सहीसही नहीं बताते?’’

शिखा ने कुछ सोचने के बाद जवाब दिया, ‘‘हां, मुझे भी ऐसा लगता है. ज्यादातर मामलों में हम इन के नाम के सिवा और कुछ नहीं जानते. युवतियों को इंप्रैस करने के लिए ये बड़ीबड़ी बातें करते हैं. अपने घरपरिवार और बाप की आमदनी के बारे में बहुत ऊंचीऊंची हांकते हैं. अपनी हैसियत से बढ़ कर खर्च करते हैं, पर जब युवती चंगुल में फंस जाती है, तो धीरेधीरे इन की पोलपट्टी खुलने लगती है. ऐसे संबंधों में बहुत जल्दी खटास घुल जाती है, लेकिन तुम ये यह क्यों पूछ रही हो. क्या राहुल से कोईर् अनबन हुई है? ’’

‘‘नहीं, अनबन तो नहीं हुई है, परंतु मैं ने जब उस के व्यक्तिगत जीवन और परिवार के बारे में पूछा तो वह टाल गया.’’

‘‘तुम मूर्ख हो, इस उम्र के प्यार में कोई गंभीरता नहीं होती. युवक अच्छी तरह जानते हैं कि ऐसा प्यार क्षणिक मौजमस्ती के अलावा और कुछ नहीं होता. बाद में उन्हें अपने कैरियर पर ध्यान देना होता है और मांबाप की पसंद से शादी करनी पड़ती है. इसलिए कालेज में पढ़ाई के दौरान कोई भी युवक प्यार के प्रति गंभीर नहीं होता. 1-2 फीसदी को छोड़ दें, तो शेष युवक उसे शादी के अंजाम तक नहीं ले जाना चाहते. ये तो केवल युवतियां हैं, जो इस प्यार को बहुत गंभीरता से लेती हैं. तभी तो उन का संबंध थाना, कचहरी में जा कर समाप्त होता है.’’

‘‘क्या तुम भी अपने बौयफ्रैंड के बारे में कुछ नहीं जानती?’’ उस ने पूछा.

‘‘क्या जरूरत है डार्लिंग, उस की मरजी है, बताए चाहे न बताए. हम क्यों इन बेकार की बातों में अपना समय बरबाद करें. कुछ दिनों तक का साथ हैं, फिर वह अपने रास्ते, मैं अपने घर. मैं कौन सा उस के साथ शादी करने वाली हूं. कालेज के बाद कौन कहां जाता है, किस को पता? मैं तो इस बात की पक्षधर हूं, जवानी में प्यार चाहे किसी से कर लो, लेकिन शादी मांबाप की पसंद से करो, तभी सुखचैन मिलता है.’’

‘‘तो तुम प्यार में सीरियस नहीं हो?’’

‘‘प्यार में सीरियस हूं, पर शादी के लिए नहीं. हम दोनों ही यह बात अच्छी तरह जानते हैं. एक बात तुम भी जान लो नित्या कोई भी युवक लंबे समय तक किसी लड़की को प्यार के बंधन में बांध कर नहीं रख सकता. कुछ समय बाद दोनों एकदूसरे से ऊबने लगते हैं, फिर उन के बीच मनमुटाव और लड़ाईझगड़ा आरंभ होता है. ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं कि उन का प्रेमसंबंध लंबे समय तक चल नहीं पाता.

‘‘विवाह ही एक ऐसा सामाजिक बंधन है, जो जीवनभर 2 व्यक्तियों को आपस में बांध कर रखता है. शादी के बाद बच्चे पतिपत्नी को जोड़ कर रखने में अहम भूमिका निभाते हैं. इसीलिए शादी हर पुरुष और महिला के सुखमय जीवन के लिए बहुत आवश्यक है.’’

नित्या सोच में पड़ गई. भावुकता में आ कर उस ने दूसरी बार प्यार कर लिया था. पहले प्यार के दुष्परिणाम से उस ने कोई सबक नहीं सीखा. अब राहुल से प्यार कर के वह क्या प्राप्त करना चाहती थी. क्या यह प्रेम भी शारीरिक मिलन तक ही सीमित रहेगा? नहीं, इस प्यार को वह खिलवाड़ नहीं बनने देगी. इसे शादी के अंजाम तक ले कर जाएगी.

उस ने शिखा से कहा, ‘‘यार, मैं अपने प्यार को शादी के अंजाम तक पहुंचाना चाहती हूं, लेकिन मुझे नहीं लगता, राहुल इस बारे में सीरियस है. बताओ, मैं क्या करूं?’’

‘‘तब तो तुम उस से दूरी बना कर रखो. अभी तक जो किया उसे भूल जाओ. अब जब भी उस से मिलो, उसे केवल बातों में उलझा कर रखो. वह संबंध बनाने की बात करे तो साफ मना कर दो कि अब यह सब शादी के बाद ही होगा. तुम अपने मन को दृढ़ बना कर रखोगी, तो वह तुम से जबरदस्ती नहीं कर सकेगा. देखना, कुछ दिनों में ही उस के मन की बात सामने आ जाएगी. अगर वह तुम से वास्तव में प्यार करता होगा और घर बसाने के लिए जरा भी गंभीर होगा, तो तुम से संबंध बना कर रखेगा वरना खुद ही दूरी बना कर रास्ते से हट जाएगा.’’

अगली बार जब राहुल ने उस के साथ संबंध बनाने का प्रयास किया, तो उस ने कड़े शब्दों में मना कर दिया, ‘‘नहीं राहुल, रोजरोज यह ठीक नहीं है.’’

‘‘क्यों, पहले तो हम रोज यह करते थे?’’ राहुल ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘पहले नादानी थी, भावुकता थी और प्यार भी नयानया था, लेकिन अब हमें भविष्य के बारे में भी सोचना है. हम एकदूसरे को अगर वास्तव में प्यार करते हैं, तो शारीरिक मिलन कोई आवश्यक नहीं है. हम शादी होने तक इसे स्थगित रख सकते हैं.’’

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‘‘शादी, यह विचार तुम्हारे मन में कहां से आ गया?’’ राहुल तिलमिला उठा.

‘‘क्यों, प्यार की परिणति क्या शादी नहीं होती. प्यार क्या केवल वासना का खेलभर है?’’

‘‘नहीं, मेरा मतलब, तुम अभी पढ़ रही हो. मेरा कैरियर अभी शुरू हुआ है.’’

‘‘इस से क्या… मैं पढ़ते हुए प्यार के खेल में शारीरिक संबंध बना सकती हूं, तुम कैरियर की शुरूआत में मुझे पत्नी की तरह भोग सकते हो, तो हम शादी क्यों नहीं कर सकते.’’

‘‘मेरा मतलब है, तुम्हारा एमबीए का यह पहला साल है. मुझे आर्थिक रूप से जमने में 2-4 साल लग ही जाएंगे. इस के बाद ही हम शादी के बारे में सोच सकते हैं. तब तक हम अपनी भावनाओं और शारीरिक आवश्यकताओं को दबा कर कैसे रह सकते हैं?’’

‘‘जिस तरह अविवाहित युवकयुवतियां संयमित हो कर रहते हैं. क्या हम में इतना संयम नहीं है,’’ नित्या ने कहा तो राहुल तिलमिला कर रह गया.

इस के बाद लगभग रोज ही संबंध बनाने के लिए उन के बीच तकरार होती. मुसीबत यह थी कि दोनों एक ही बिल्डिंग में रहते थे. राहुल का जब मन करता, उसे अपने कमरे में बुला लेता.

नित्या के मना करने से राहुल आक्रामक होने लगा. कई बार तो वह जबरदस्ती नित्या को नोचनेखसोटने लगता. एकदो बार तो उस ने उस के कपड़े तक फाड़ दिए. नित्या किसी तरह अपने शरीर में खरोंचो के निशान ले कर बचतीबचाती बाहर निकलती. फिर कई दिनों तक उन के बीच बातचीत नहीं होती. राहुल की तरफ से मोबाइल पर धमकीभरे मैसेज आते कि वह नित्या के अश्लील वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर देगा.

यह धमकी मिलने के बाद नित्या चिंता में पड़ गई. उस ने शिखा से सलाह ली. शिखा ने पूछा, ‘‘क्या उस ने तुम्हारा कोई अश्लील वीडियो बनाया है?’’

‘‘कह नहीं सकती. मेरी जानकारी में तो नहीं, परंतु आजकल मोबाइल फोन का जमाना है. कहीं भी छिपा कर वीडियो बनाए जा सकते हैं.’’

‘‘मेरा सोचना सही था, राहुल बदमाश किस्म का युवक है. उस की मनशा पूरी नहीं हो रही है, तो वह तुम्हें बदनाम करने की धमकी दे रहा है. वह कोईर् ऐसा प्रयास करे, उस के पहले ही हमें उस के पंख कुतर कर फेंकने होंगे.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘वैसे तो अगर उस ने तुम्हारा कोई गलत वीडियो इंटरनैट पर अपलोड किया तो हम कानून का सहारा ले सकते हैं, पर यह एक लंबी प्रक्रिया है और इस में बदनामी भी हो सकती है. लेकिन तुम चिंता मत करो, मैं कुछ करती हूं,’’ उस ने नित्या को आश्वासन दिया. शिखा उस समय उस को बड़ी बहन जैसी लगी.

शिखा ने अपने बौयफ्रैंड को नित्या की समस्या के बारे में बताया, तो उस ने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिल कर शर्लाक होम्स टाइप की जासूसी की और राहुल के बारे में जो सूत्र एकत्र किए, वह नित्या के होश उड़ाने के लिए काफी थे.

राहुल किसी आईटी कंपनी में काम नहीं करता था. वह एक कूरियर कंपनी में डिलीवरी बौय था और मात्र 10वीं पढ़ा था. वे देखने में ठीकठाक और बातें बनाने में माहिर था, इसलिए वह अपने बारे में ढेर सारी अच्छी बातें बता कर युवतियों को इंप्रैस करता था. उस की आमदनी बहुत कम थी, जो एक व्यक्ति के गुजारे के लिए भी पूरी न पड़े.

नित्या को अब समझ में आ गया था कि राहुल क्यों एक छोटे से कमरे में रहता था. आईटी कंपनी में काम करता होता, तो किसी बड़े फ्लैट में रहता. पता नहीं  युवतियों को ये बातें प्यार करते समय क्यों ध्यान में नहीं आतीं.

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अब क्या? नित्या के समक्ष एक बहुत बड़ा प्रश्न आ खड़ा हो गया था. उस ने शिखा और उस के मित्रों के साथ बैठ कर इस पर चर्चा की. नित्या का दिल ही नहीं टूटा था, उस का आत्मसम्मान भी बिखर गया था. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या करे? राहुल के प्रति उस के मन में घृणा का लावा उबल रहा था. वह उस का मुंह भी नहीं देखना चाहती थी.

शिखा ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘नित्या, तुम चिंता न करो. हम सब तुम्हारे साथ हैं.’’

‘‘शिखा, मुझे डर लग रहा है. उस ने अगर मेरा कोई अश्लील फोटो सोशल मीडिया पर डाल दिया तो मैं कहीं की नहीं रहूंगी. मांबाप को कैसे मुंह दिखाऊंगी. बात अगर थानापुलिस तक पहुंच गई, तब तो और भी मुश्किल में पड़ जाऊंगी. सिवा मरने के मेरे पास और कोई चारा नहीं रहेगा.’’

‘‘इतना हताश होने की जरूरत नहीं है,’’ शिखा के दोस्त अभिनव ने कहा. उसी ने राहुल के बारे में व्यक्तिगत जानकारी जुटाई थी, ‘‘वह कुछ करे, उस से पहले ही हम लोग कुछ करते हैं.’’

‘‘क्या पुलिस में रिपोर्ट लिखाओ?’’ नित्या ने सहमते हुए पूछा.

‘‘नहीं, हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे.’’

इस के बावजूद नित्या का मन अशांत था. शिखा के समझाने के बावजूद वह अपने मन को स्थिर नहीं रख पा रही थी. सोचसोच कर वह पागल हो गई थी. राहुल का उसे उतना डर नहीं था, जितना बदनामी का. यह स्थिति बहुत दुखद होती है. मनुष्य गलत काम करते समय नहीं डरता, परंतु बदनामी से बहुत डरता है.

इस हताशा भरी स्थिति में भी वह राहुल से हंसहंस कर मिलती थी, ताकि वह उस को बदनाम करने के लिए कोई गलत कदम न उठा ले, लेकिन उस के साथ बाहर नहीं जाती थी. राहुल बहुत जिद करता था, वह पढ़ाई का बहाना बना कर टाल जाती थी. केवल उस के कमरे में जाती और दोचार बातें कर के तुरंत लौट आती. राहुल को वह कोई मौका नहीं देना चाहती थी कि उस के साथ जोरजबरदस्ती करे. जितना हो चुका था, उतना ही उस की आंखें खोलने के लिए काफी था. अब वह और दलदल में नहीं धंसना चाहती थी.

एक दिन राहुल ने उसे पकड़ कर कहा, ‘‘आखिर, तुम्हारे साथ दिक्कत क्या है? बहाने बनाबना कर मुझ से दूर क्यों चली जाती हो? एक दिन था, जब मेरी बांहों से निकलने का तुम्हारा मन नहीं करता था और अब छूते ही जैसे तुम्हें करंट लग जाता है.’’

राहुल ऐसे कह रहा था, जैसे वह उस की बीवी हो. नित्या को भी गुस्सा आ गया. उस ने तीक्ष्ण दृष्टि से राहुल की आंखों में देखा और तड़पती आवाज में कहा, ‘‘यह तुम अपने दिल से पूछो. मैं क्यों तुम से दूर जाने का प्रयास कर रही हूं. तुम वह नहीं हो, जो तुम ने मुझे बताया है. क्या मैं तुम्हारा कच्चाचिट्ठा खोलूं. झूठे कहीं के… मक्कार… अपनी झूठी बातों से मुझे बहला कर लूट लिया, अब और मुझे कितना बहकाओगे,’’ यह बात उस ने ऊंची आवाज में कही थी.

अचानक राहुल के कमरे का दरवाजा भड़ाक से खुला और शिखा के साथ उस के 3 दोस्त एकसाथ कमरे में घुस आए. राहुल अब भी नित्या को बांहों से पकड़ कर अपनी तरफ खींच रहा था और नित्या खुद को उस से छुड़ाने का प्रयास कर रही थी. शिखा के दोस्तों ने इसी अवस्था में उस के कई फोटोग्राफ खींच लिए. एक दोस्त ने वीडियो बना लिया. राहुल ने हकबका कर नित्या को छोड़ दिया.

‘‘तो जनाब अकेली लड़की के साथ बलात्कार करने की कोशिश कर रहे थे,’’ शिखा ने आगे बढ़ कर राहुल के गाल पर तमाचा जड़ दिया. वह विवेकशून्य हो कर रह गया. इस स्थिति की उस ने कल्पना ही नहीं की थी. शिखा के दोस्त उस की तरफ धमकाने वाले अंदाज में देख रहे थे.

अभिनव ने उस का कौलर पकड़ते हुए कहा, ‘‘लड़कियों का बहुत शौक है न तुम्हें. तो जरा प्यार से उन्हें पटाओ. यह क्या? जोर जबरदस्ती करने लगे. यह तो बलात्कार की श्रेणी में आता है. अब तो बच्चू, तुम 10 वर्षों तक जेल में रहोगे.’’

‘‘मैं ने कुछ नहीं किया, कुछ नहीं, वो तो बस…’’ राहुल घबरा कर बोला. उस की आंखों में बेचारगी और भय के मिलेजुले भाव साफ दिखाई दे रहे थे. उस की आवाज गले में खरखराने लगी थी.

‘‘यह तो तुम थाने में जा कर सफाई देना. तुम्हारी करतूत हमारे मोबाइल में कैद हो चुकी है. तुम्हें मालूम ही होगा, दिल्ली के निर्भयाकांड के बाद बालात्कार का कानून कितना सख्त हो गया है. आसाराम जैसा तथाकथित भगवान भी अपने बेटे के साथ जेल में बंद है. तुम तो भूल ही जाओ कि मरते दम तक तुम्हारी जमानत होगी. हम सब तुम्हारे खिलाफ गवाही देंगे.’’

राहुल की घिग्घी बंध गई. वह कांपने लगा था. उस के मुंह से आवाज भी नहीं निकल रही थी. आंखों में आश्चर्य, अनिश्चय और भय की रेखाएं एकसाथ तैर रही थीं.

‘‘पुलिस बुलाने से पहले चलो बैठ कर कुछ बात कर लेते हैं,’’ वे सब इधरउधर बैठ गए, लेकिन राहुल और नित्या खड़े ही रहे.

‘‘तो तुम ने नित्या के कितने वीडियो बनाए हैं,’’ अभिनव ने पूछा.

‘‘वीडियो, नहीं तो… मैं ने इस का कोईर् वीडियो नहीं बनाया. बस, फोटो खींचे हैं, जो मेरे मोबाइल में हैं.’’

‘‘मोबाइल दिखा.’’

मोबाइल में सचमुच नित्या का कोई अश्लील वीडियो नहीं था. कुछ फोटो थे, जिन्हें अभिनव ने तुंरत डिलीट कर दिए. फिर उस के दोस्त ने पूरे कमरे की तलाशी ली. कोई दूसरा मोबाइल, मैमोरी कार्ड या कंप्यूटर भी नहीं मिला.

‘‘अब बताओ, तुम नित्या के साथ जबदस्ती क्यों कर रहे थे?’’

‘‘सर, मैं जबरदस्ती नहीं कर रहा था. मैं तो उसे प्यार करता हूं और वह भी …’’

‘‘कमीने, तूने अपनी औकात देखी है. तू एक कूरियर बौय है और वह एक सम्मानित घराने की युवती, जो एमबीए कर रही है. तू उस की हैसियत तक कैसे पहुंचेगा? अब बता तेरे साथ क्या सुलूक किया जाए?’’

‘‘सर, मैं मानता हूं, मुझसे गलती हुई. मैं ने उस से झूठ बोला था कि मैं आईटी कंपनी में इंजीनियर हूं, परंतु मुझे पुलिस में मत दीजिए, मैं बरबाद हो जाऊंगा. मैं बहुत गरीब हूं.’’

‘‘ये बातें तू ने पहले क्यों नहीं सोची थीं. अब जब फंस गए, तो तुम्हें अपनी गरीबी याद आ रही है. लेकिन आदमी जब गलत काम करता है तो उस को कष्ट, दुख और परेशानी उठानी ही पड़ती है. तुम्हें भी अपने दुष्कर्म का परिणाम भुगतना पड़ेगा,’’ अभिनव ने नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘सर, आप मुझे छोड़ दीजिए. आप जो कहेंगे, मैं करने के लिए तैयार हूं,’’ उस ने हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘जेल जाने से डर लगता है, नित्या को धमकाते हुए डर नहीं लगा, उस के साथ जोरजबरदस्ती करते हुए डर नहीं लगा. खुद की बारी आई तो जेल जाने से डर लगने लगा, वाह रे सूरमा चलो, कागजकलम निकालो और अपना बयान लिखो.’’

नित्या की समझ में नहीं आ रहा था कि शिखा और उस के दोस्त क्या करने वाले थे. उन्होंने अपनी योजना के बारे में उसे कुछ नहीं बताया था.

राहुल ने लिख कर दिया, ‘‘मैं शपथपूर्वक यह बयान करता हूं कि मैं नित्या को कभी, किसी प्रकार तंग नहीं करूंगा. मैं ने उस के साथ जो किया, उस के लिए माफी मांगता हूं. अगर उस के साथ किसी प्रकार की ज्यादती हुई, तो उस के लिए मैं जिम्मेदार होऊंगा.’’

यह परवाना लिखवाने के बाद अभिनव ने कहा, ‘‘अब आज ही यहां से कमरा खाली कर दफा हो जाओ. दोबारा इधर मुड़ कर देखने की कोशिश की तो तुम्हारे फोटोग्राफ्स और यह बयान पुलिस के हवाले कर दूंगा. इस के बाद तुम अपना परिणाम देखना. यह मत सोचना कि तुम्हारा पता नहीं चलेगा. तुम्हारी कंपनी से तुम्हारा व्यक्तिगत चिट्ठा हम ने निकलवा कर अपने पास रख लिया है.’’

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राहुल को डराधमका कर जब सब नित्या के कमरे में आए, तब भी वह गौरैया की तरह डरी हुई थी.

‘‘अगर उस ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर कोई बदमाशी की तो… ’’ नित्या ने कांपते हुए कहा.

‘‘समझदार होगा तो नहीं करेगा वरना मूर्ख और अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की कमी इस दुनिया में नहीं है. वैसे, तुम्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है. हम ने कालेज प्रबंधन से बात कर के तुम्हारे लिए कालेज होस्टल में एक कमरा अलौट करवा दिया है. कल से तुम वहीं रहोगी.’’

‘‘मेरे प्यारे दोस्तो, मैं आप लोगों का किस प्रकार शुक्रिया अदा करूं?’’

‘‘शुक्रिया तुम शिखा का अदा करो. यदि वह न होती तो पता नहीं तुम किस मुबत में फंस जातीं. वह बहुत स्ट्रौंग युवती है. अब तुम अपनी पढ़ाई की तरफ ध्यान दो. इस उम्र में प्यार होना स्वाभाविक है, लेकिन यदि सोचसमझ कर प्यार किया जाए तो अच्छा होता है. कई बार हम गलत व्यक्ति से प्यार कर बैठते हैं. अब एक बार तुम ठोकर खा चुकी हो, अगली बार ध्यान रखना.’’

‘एक बार कहां, वह तो 2-2 बार ठोकर खा चुकी है,’ नित्या ने सोचा, ‘काश प्यार सोचसमझ कर किया जा सकता. मुश्किल तो यही है कि यह अचानक हो जाता है और प्यार करने वाले को पता ही नहीं चलता कि उस का प्यार कब उसे मुसीबत और परेशानी की दलदल में धकेल देता है.’

चार सुनहरे दिन: भाग 2- प्रदीप को पाने के लिए किस हद तक गुजरी रेखा

रेखा के पिता ने चाय पी कर जम्हाई ली और भीतर चले गए. प्रदीप वहीं बैठा रहा. उस ने चाय पीतेपीते कहा, ‘‘चाय तो पीता ही रहता हूं, लेकिन सच कहूं रेखाजी, ऐसी चाय कभी नहीं पी मैं ने. आप ने ही बनाई होगी?’’

‘‘जी,’’ रेखा लजा गई, ‘‘आप को पसंद आई?’’

‘‘अजी, क्या कहती हैं, आप,’’ प्रदीप उत्साह से बोला, ‘‘काश, ऐसी चाय रोज मिल सकती.’’

रेखा ने साहस कर कहा, ‘‘तो रोज आ कर पी जाया करें. मैं रात को साढ़े 9 बजे लौटती हूं.’’

प्रदीप बोला, ‘‘मौका मिलेगा तो जरूर आऊंगा, मिस रेखा. आप जितनी भली हैं, उतनी ही…मेरा मतलब है कि उतना ही आकर्षण है आप में.’’

रेखा का चेहरा लाल हो गया. किसी ने आज तक उस से ऐसी बात नहीं कही थी, और यह सुंदर युवक.

‘‘आप जरूर आया करें. मैं इंतजार करूंगी.’’

तब से प्रदीप अकसर उस के घर आने लगा. रेखा के बूढ़े पिता और छोटी बहन शोभा से उस ने अच्छी घनिष्ठता बना ली. वह खुशमिजाज और बातचीत में चतुर था. शाम को आता तो साथ में कुछ नमकीन या मीठा लेता आता. 16 साल की शोभा उस के लिए चाय बनाती और वह रेखा के आने तक रुका रहता. रेखा के पिता इस मिलनसार, शरीफ युवक से बहुत खुश थे. रेखा जब आती तो फिर से चाय बनाती थी.

रविवार को रेखा की छुट्टी होती थी. उस दिन मैनेजर जगतियानी खुद रामलाल के साथ जा कर रुपए बैंक में जमा कराता था. रविवार को प्रदीप रेखा को मोटरसाइकिल से घुमाने ले जाता. कभी सिनेमा तो कभी किसी रैस्तरां में भी ले जाता.

प्रदीप रेखा की हर बात की बड़ी तारीफ करता था. कहता, ‘‘रेखा, तुम जैसी सम झदार और अच्छी लड़की मैं ने कहीं नहीं देखी.’’

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31वें वर्ष में कदम रख रही रेखा को अपने लिए लड़की शब्द सुन कर गुदगुदी सी होती थी. कहती, ‘‘तुम तो मु झे बना रहे हो.’’

‘‘सच कहता हूं,’’ प्रदीप गंभीर हो जाता, ‘‘तुम हीरा हो. जो तुम्हारा हाथ थामेगा, वह बहुत खुशनसीब होगा.’’

अब तक पुरुषों की प्रशंसात्मक दृष्टि या रोमांस से अपरिचित और उस के लिए तरसती रही रेखा प्रदीप की इन बातों में भूल जाती कि वह बहुत असुंदर है, 30 साल पार चुकी है और प्रदीप उस से उम्र में छोटा और स्मार्ट युवक है. वह उस की बातों पर विश्वास कर लेना चाहती थी. वह और प्रशंसा सुनने के लिए कहती, ‘‘मैं तो इतनी बदसूरत.’’

प्रदीप हंसता, ‘‘खूबसूरती और गोरी चमड़ी को देखने वाले बेवकूफ होते हैं. स्त्री का असली सौंदर्य तो उस के भीतर छिपा रहता है, रेखा. तुम देखने में भले ही बहुत सुंदर न हो लेकिन तुम में एक जबरदस्त आकर्षण और सम्मोहन है. उसे तुम क्या जानो.’’

और, रेखा के ऊपर जैसे नशा छा जाता. घर लौट कर वह आईने में खुद को निहारती रहती. क्या सच में वह आकर्षक है? आईना तो उस का वही पुराना अक्स दिखाता है. किंतु उसे लगता, वह आकर्षक हो गई है.

प्रदीप पिछले रविवार को उसे शहर के बाहर  झील के किनारे बने रैस्तरां ले गया था. वहां  झील के पास  झाड़ीनुमा पेड़ों के बीच बैठने के लिए अलगथलग मेजें लगी हुई थीं. बैरे सामने के होटल से सामान ला कर परोसते. लोग आजादी के मजे लेते हुए खातेपीते, प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते.

प्रदीप ने डोसे, चिप्स और कौफी का और्डर दिया.

‘‘यहां कितना अच्छा लग रहा है,’’ रेखा विभोर थी, ‘‘सच प्रदीप, मैं पहले कभी यहां नहीं आई, बल्कि मैं तो कहीं किसी होटल या रैस्तरां में भी नहीं जाती. अकेली…’’

‘‘छोड़ो, अब तुम अकेली नहीं हो, रेखा,’’ प्रदीप ने बड़े प्यार से कहा, ‘‘मैं तुम्हारा दोस्त हूं, अब.’’

‘‘मेरी दोस्ती से तुम्हें क्या मिलने वाला है?’’ रेखा ने उसे टटोलना चाहा.

प्रदीप हंसा, ‘‘मु झे तुम्हारा साथ ताजगी से भर देता है. सच मानो, जिंदगी में बहुत सी सुंदर लड़कियां मिलीं, लेकिन किसी से इतना प्रभावित न हुआ जितना तुम से.’’

‘‘ झूठे…’’ रेखा व्याकुलता से उसे देखने लगी.

‘‘सच, तुम मेरे लिए संसार की सब से सुंदर और योग्य लड़की हो.’’

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‘लड़की’ शब्द से रेखा रोमांचित हो उठी. प्रदीप के मुंह से वह बारबार लड़की शब्द सुनना चाहती थी. बोली, ‘‘मैं और लड़की. लड़की तो शोभा है.’’

‘‘शोभा?’’ प्रदीप हंसा, ‘‘वह बच्ची है. उस में वह सुंदर नारीत्व कहां है? छोड़ो रेखा, मैं आज तुम्हारे सिवा और किसी का नाम नहीं लेना चाहता बीच में.’’

‘‘क्या, सच?’’ रेखा कुछ आगे  झुकी, ‘‘सो, क्यों भला?’’

‘‘क्योंकि…बुरा न मानो, तो सच कहूं…’’ प्रदीप ने गंभीरता से कहा, ‘‘मैं तुम्हें प्यार करता हूं.’’

रेखा के कान सनसना उठे. कुछ देर तो जैसे उसे होश ही न रहा. प्रदीप ने उस के हाथों को दबा कर सचेत किया, ‘‘बैरा आ रहा है.’’

बैरा आया, क्या रख गया, रेखा को कुछ होश ही नहीं था. वह तो प्रदीप की बात के नशे में मस्त थी. प्रदीप ने उस का हाथ दबाया, ‘‘खाओ…’’

उस दिन का नाश्ता रेखा को अपने जीवन का सब से स्वादिष्ठ नाश्ता लगा. वह तरंगों में  झूल रही थी. उस ने सोचा भी न था कि उस के जीवन में कभी कोई ऐसा मौका आएगा, जब कोई सुंदर युवक उसे कहेगा, ‘तुम बड़ी सुंदर हो, मैं तुम्हें प्यार करता हूं,’ वही आज अचानक हो गया है.

लौटते समय प्रदीप ने कहा, ‘‘आज तुम मेरे घर चलो तो कैसा रहे?’’

रेखा बोली, ‘‘तुम्हारे घर वाले क्या सोचेंगे?’’

‘‘आज तो घर पर सिर्फ मेरे पिताजी हैं. मां और भाईबहन एक नातेदारी में शादी में गए हुए हैं. तुम्हें अपने पिताजी से मिलाऊं.’’

उस ने रेखा के जवाब का इंतजार किए बिना ही मोटरसाइकिल मोड़ दी. शहर के दूसरे किनारे बसे एक छोटे से साधारण दोमंजिला घर के आगे मोटरसाइकिल खड़ी की, ‘‘मेरा गरीबखाना.’’

रेखा के साथ बरामदे में आ कर उस ने घंटी बजाई. कई बार बटन दबाया, किंतु दरवाजा नहीं खुला. बोला, ‘‘पिताजी जरूर घूमने निकले हैं. 9 बजे रात तक लौटते हैं. खैर, कोई बात नहीं, मेरे पास भी चाबी है.’’

अपनी चाबी से दरवाजा खोल कर वह रेखा को भीतर लाया. साधारण सी बैठक. सोफा, टीवी, दीवान आदि से सजा हुआ. एक तरफ भीतर जाने का दरवाजा.

प्रदीप भीतर देख आया. बोला, ‘‘जरूर वे बाहर हैं. खैर, उन के आने तक बैठते हैं. तुम्हें जल्दी तो नहीं है?’’

रेखा ने कहा कि उसे कोई जल्दी नहीं है.

‘‘तो आज मेरी ही बनाई चाय पियो,’’ प्रदीप हंसा, ‘‘तुम्हारे जैसी तो क्या बनेगी, किंतु…’’

वह भीतर चला गया. रेखा की आंखों के आगे रंगीन सपने तैरते रहे. प्रदीप उसे प्यार करता है? अपने पिता से मिलाने लाया तो है. अगर शादी हुई तो वह इसी घर में आएगी.

प्रदीप चाय ले आया. रेखा को वह मामूली चाय भी अमृत जैसी लगी प्रदीप ने बनाई थी इसलिए. प्रदीप ने उस का हाथ अपनी हथेली में दबा कर कहा, ‘‘रेखा, तुम मु झ से प्यार करती हो?’’

रेखा शरमा गई. उस की आंखें जैसे शराब के नशे में थीं. प्रदीप बोला, ‘‘तुम्हारी आंखें सच बता रही हैं. हम दोनों जल्द शादी करेंगे.’’

‘‘सच?’’ रेखा ने ऐसे कहा जैसे बच्चे को मिठाई देने का वादा किया गया हो और वह उस पर विश्वास नहीं कर पा रहा हो.

प्रदीप बोला, ‘‘बिलकुल सच. मेरे घर वाले मेरी बात नहीं टालेंगे. हां, तुम्हारे पिताजी की राय.’’

‘‘वह तो तुम्हें बहुत अच्छा लड़का सम झते हैं. खुशी से राजी हो जाएंगे. लेकिन प्रदीप, क्या सच कहते हो या यह सब सपना है?’’

‘‘सपना?’’ प्रदीप उस के नजदीक आ गया. उसे आलिंगन में कस कर उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए. चाय पीने के बाद ही से रेखा पर अजीब सी मदहोशी छाने लगी थी. बदन में कामोत्तेजना सनसनाने लगी थी. चाहती थी, प्रदीप उसे आलिंगन में ले कर पीस डाले. 31 साल के एकाकी, शुष्क और पुरुषस्पर्श से वंचित उस के नारीत्व में बाढ़ सी आ गई. वह प्रदीप से लिपट गई. वह कब उसे भीतर के कमरे में ले गया, उसे पता ही न चला.

प्रदीप उसे रात 8 बजे घर पहुंचा गया था. उस समय तक प्रदीप के पिता घूम कर वापस नहीं लौटे थे, इसलिए उन से भेंट न हुई. प्रदीप ने रेखा के पिता के चाय पीने का अनुरोध नम्रतापूर्वक अस्वीकार करते कहा कि आज घूमतेफिरते कई बार चाय पी चुके हैं, सो माफ करें. रेखा ने रात को खाना नहीं खाया. शोभा से कह दिया कि उस ने भारी नाश्ता कर लिया है. असल में उस की आत्मा ऐसी तृप्त हो गई थी कि सिर्फ सो जाने का मन हो रहा था.

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रातभर रेखा के बदन में मीठी टूटनभरी खुमारी छाई रही. पहली बार का यह पुरुष संसर्ग उसे एक ऐसे अद्भुत लोक में ले गया, जहां वसंत के सिवा कुछ नहीं होता. रातभर मीठे सपने आते रहे.

सुबह जागी तो बदन में मीठे दर्द के साथ ताजगी भी थी. नहाधो कर वह कार्यालय पहुंची. दिनभर उस का मन घबराता रहा और सोचती रही कि शायद अब प्रदीप न मिले.

लेकिन प्रदीप मिला. वह रोज की तरह रामलाल के साथ रुपए जमा करा कर साढ़े 9 बजे आई, तो वह चौराहे पर ही खड़ा था.

‘‘रेखा…’’

रेखा चौंक पड़ी. उस का मन खिल उठा. सामने प्रदीप था. वह धीरेधीरे उस के पास आई, तो वह बोला, ‘‘कैसी हो?’’

रेखा उस से आंखें मिलाने में शरमा रही थी. प्रदीप बोला, ‘‘आओ, मोटरसाइकिल पर बैठो.’’

‘‘घर सामने ही तो है,’’ रेखा बोली.

वह धीरे से बोला, ‘‘तुम्हारा असल घर तो वह है जहां हम अभी चलेंगे, रेखा रानी. आओ, बैठो.’’

रेखा रोमांचित हो उठी. मंत्रगुग्ध सी मोटरसाइकिल के पीछे आ बैठी. प्रदीप अपने घर की तरफ चल पड़ा. रेखा का बदन बारबार सिहर रहा था. प्रदीप उसे भीतर के कमरे की ओर ले चला, तो बोली, ‘‘तुम्हारे पिताजी?’’

‘‘आज वे भी शादी में चले गए हैं. सभी लोग 15-20 दिनों बाद लौटेंगे. मेरठ में हैं. हमें बिलकुल आजादी है.’’

रेखा के अंतर्मन में कुछ खटक रहा था. लेकिन वह भी अपने भीतर की प्यास बु झाने का लोभ रोक नहीं पाई. उस दिन भी दोनों पिछले दिन की तरह ही आनंद में डूबते चले गए.

तब से जैसे रोज का यह नियम बन गया. प्रदीप का घर ऐसी जगह पर था जहां आतेजाते पड़ोसियों की नजर नहीं पड़ती थी. रेखा भी अब पुरुष संसर्ग की आदी हो गई थी. वह बहुत संतुष्ट और प्रसन्न थी. एक दिन उस ने कहा, ‘‘प्रदीप, मान लो, कुछ गड़बड़ी हुई तो?’’

प्रदीप ने उसी दिन उसे घर पहुंचाते वक्त दवा की दुकान से गोलियों का एक पैकेट खरीद दिया, और बताया, ‘‘इस में से एक गोली रोज लेनी है, फिर तो निश्चिंत…’’

एक दिन रेखा औफिस जा रही थी कि प्रदीप अपनी मोटरसाइकिल पर तेजी से जाता हुआ दिखा. वह ठिठक गई. प्रदीप के पीछे एक गोरी, सुंदर सी लड़की बैठी हंसहंस कर उस से बातें करती जा रही थी. प्रदीप ने उसे नहीं देखा. मोटरसाइकिल तेजी से आगे बढ़ गई.

उस दिन रेखा से अपने काम में कई बार भूल हुई. मैनेजर जगतियानी ने  झल्ला कर कह दिया, ‘‘तबीयत ठीक नहीं है तो घर जा कर आराम करो.’’

रेखा ने यही उचित सम झा. वह घर आ गई. उस दिन वह जैसे अंगारों पर लोटती रही. शाम को वह चौराहे पर गई जहां बस रुकती थी और जहां उसे प्रदीप मिलता था. आज वह नहीं मिला. रेखा की वह रात जागते बीती. ईर्ष्या से वह जली जा रही थी. प्रदीप उसे धोखा दे रहा है क्या? यह तो रेखा से सच्चे प्रेम की बात कहता है और वह लड़की. कहां वह स्मार्ट, खूबसूरत यौवन से छलकती हुई नवयौवना, और कहां खुद रेखा. सपाट से बदन वाली असुंदर, अधेड़ कुमारी.

अगला दिन भी उसी तरह कांटों पर लोटते बीता. रात में वह घर के पास बस से उतरी, तो प्रदीप खड़ा मिला. रेखा ने तुरंत पूछा, ‘‘कल सवेरे तुम्हारे साथ वह कौन लड़की थी, प्रदीप?’’

‘‘लड़की?’’ प्रदीप ने पलभर सिर खुजलाया. हंस कर बोला, ‘‘ओह…याद आया…ललिता. हां, वह मेरी अपनी चचेरी बहन है, ललिता. मैं ने तुम्हें बताया तो था कि मेरे छोटे चाचाजी का घर यहीं है. कल ललिता का जन्मदिन था. उस ने मु झे भी निमंत्रण दे रखा था. सवेरे ही मेरे घर आई थी और मु झे कुछ खरीदारी के लिए अपने साथ बाजार ले गई थी. वहीं तुम ने देखा होगा. कल शाम को वहीं फंसा रहा था, तभी तो तुम से नहीं मिल पाया. क्या हुआ?’’

‘‘ओह.’’

प्रदीप मुसकराया, ‘‘तुम्हें कुछ गलतफहमी हो गई है क्या?’’

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‘‘नहीं तो,’’ रेखा लज्जित हो कर बोली, लेकिन उस की आंखें कुछ और ही कह रही थीं.

प्रदीप हंस पड़ा. बोला, ‘‘रेखा, तुम निश्ंचत रहो. तुम्हारे सिवा मेरे जीवन में और कोई स्त्री न है, न रहेगी.’’

और वह उसे अपने घर ले गया. रेखा अब पुरुष संसर्ग की आदी हो चली थी. अकसर वह पूछती, ‘‘हम शादी कब करेंगे, प्रदीप? बहुत देर हो रही है…’’

प्रदीप कहता, ‘‘डार्लिंग, पिताजी ने पहले एक जगह मेरी शादी की बात चलाई थी. असल में, मेरी बड़ी बहन की शादी के लिए उन्होंने कर्ज लिया था और कर्ज पटाने के लिए उन लोगों की लड़की से मेरी शादी की बात तय कर दी थी. इस तरह वे लोग अपना रुपया छोड़ देते, अलग से दहेज भी दे रहे थे. लेकिन वह लड़की मु झे बिलकुल पसंद नहीं है. मैं ने इनकार कर दिया.’’

चार सुनहरे दिन: भाग 1- प्रदीप को पाने के लिए किस हद तक गुजरी रेखा

 लेखक : चंद्रमोहन प्रधान

रेखा ने बैग अपने कंधे पर लटकाते हुए मैनेजर से कहा, ‘‘मिस्टर जगतियानी, मुझे ही बैग ढोने की क्या जरूरत है? रामलाल भी तो…’’

‘‘नहींनहीं,’’ वह घबरा कर बोला, ‘‘बैग तो तुम्हीं रखा करो. बैंक है ही कितनी दूर,’’ फिर उस ने पुकारा, ‘‘चलो भई, रामलाल, जल्दी करो…’’

बिगड़ी पड़ी एक बस के पास मिस्त्री से तंबाकू ले रहा रामलाल लपकता हुआ आया, ‘‘आ गया, मालिक.’’

रोज की तरह वह रेखा के पीछेपीछे चल पड़ा. रेखा को उतना भारीभरकम बैग रोज ढो कर ले जाना अखरता था, किंतु मिस्टर जगतियानी को और किसी भी कर्मचारी पर भरोसा नहीं था. सुरक्षा के लिए रामलाल को वह जरूर साथ कर देता था.

रामलाल बड़ा हट्टाकट्टा, तगड़ी कदकाठी का अधेड़ आदमी था. बड़ीबड़ी मूंछें रखता था. कद 6 फुट के आसपास था, लेकिन अक्ल का कोरा था. मालिक का सब से वफादार आदमी था. सांड़ से भिड़ जाने की हिम्मत रखता था, लेकिन कोई भी उसे आसानी से बेवकूफ बना सकता था. इसलिए मैनेजर ने रेखा के साथ पहलवान जैसे रामलाल को लगा रखा था. वह दोनों के काम से संतुष्ट था.

दि रोज ट्रांसपोर्ट कंपनी के पास 20 से ज्यादा बसें थीं. अकसर कुछ खराब हो जातीं, लेकिन ज्यादातर के चलते रहने से रोज लगभग 20-25 हजार रुपए की रकम आ जाती थी. त्योहार वगैरह के दिनों में तो यह रकम 40 हजार से ऊपर पहुंच जाती थी. जगतियानी बड़ा डरपोक था. वह रात को रकम औफिस की तिजोरी में रखना नहीं चाहता था. रोज रात को चौक वाले भारतीय स्टेट बैंक की शाखा में रुपए जमा करा दिया करता था.

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इस तरफ बसस्टैंड तथा एक बड़ा व्यावसायिक केंद्र होने के कारण स्टेट बैंक ने सुविधा के लिहाज से खासतौर से यह शाखा खोली थी, जो दोपहर बाद से रात के 9 बजे तक खुली रहती थी. रेखा रोज 8.50 बजे तक बैंक पहुंच जाती थी और रुपए जमा करा देती थी.

बसअड्डा होने के कारण सड़क थोड़ी चौड़ी और साफ थी. बसअड्डे के पास ही चाय और पान की कई दुकानें थीं. आगे चल कर एक अच्छा सा चायखाना भी था. फिर बैंक तक का रास्ता सूना था. रास्ता लगातार आतीजाती गाडि़यों की रोशनी से प्रकाशित होता रहता था. रेखा शुरू से बहुत डरती थी कि कोई उस का गला दबा कर या छुरा मार कर बैग छीन ले तो? किंतु अब वह अभ्यस्त हो गई थी. रामलाल के कारण उसे इत्मीनान रहता था.

चलतेचलते रेखा ने बैग को दूसरे कंधे पर रखते हुए कहा, ‘‘भई रामलाल, अगर कोई गुंडाबदमाश छुरा या पिस्तौल ले कर…’’

‘‘गुंडाबदमाश?’’ रामलाल मूंछों पर ताव देता हुआ हंसा, ‘‘बिटिया, हम एक ही हाथ में पिस्तौल, छुरा सब  झाड़ देंगे उस का. तुम चिंता न करो.’’

बैंक का कैशियर उन्हीं का इंतजार कर रहा था. रेखा के बैग से नोटों की गड्डियां निकाल कर उस ने फुरती से गिनीं. कुल 21 हजार 9 सौ रुपए मात्र. उस ने मुहर लगा कर रसीद रेखा को दे दी.

लौटते वक्त रेखा चौराहे के इधर वाले चायखाने में रोज की तरह चाय पीने चली आई. रामलाल चाय पीते वक्त बोला, ‘‘बिटिया, तुम किसी तरह की चिंता न करो. रामलाल के रहते कोई पंछी पंख भी नहीं फड़फड़ा सकता है. यहां हम को सब लोग जानते हैं. किसी ने कुछ करने की कोशिश भी की तो उठा के पटक दूंगा. हड्डीपसली सब बराबर हो जाएगी.’’

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रेखा इस सीधे पर अनपढ़गंवार को कैसे सम झाती कि यह गांव का अखाड़ा नहीं है. यहां गुंडेबदमाश कुश्ती नहीं लड़ते. पीछे से कोई छुरा या गोली मार दे. वह बहुत डरती थी. लेकिन इस काम के लिए मैनेजर उसे कंपनी से 5 सौ रुपए का अतिरिक्त बोनस दिलाता था, क्योंकि उसे वह अच्छी लड़की सम झता था और उस की मदद करना चाहता था. मैनेजर जगतियानी जानता था कि रेखा पर बूढ़े पिता, एक छोटी बहन और एक लापरवाह और आवारा किस्म के छोटे भाई की जिम्मेदारी है. जगतियानी यह भी जानता था कि 30 साल की उम्र पार कर चुकी रेखा की शादी हो पाने की उम्मीद कम ही है, क्योंकि वह देखने में सुंदर नहीं है. न चेहरे से, न शरीर से. संकरा माथा, दबी नाक, भीतर धंसी छोटीछोटी आंखें. मोटे होंठ, रंग सांवला, सपाट सा शरीर, न वक्ष उभरते हुए न नितंब. देखने में लड़कों जैसी लगती थी. उम्र के असर से चेहरे पर कुछ रेखाएं भी बनने लगी थीं. वैसे लड़की कमाऊ हो तो शादी किसी तरह हो भी जाती है, किंतु रेखा अपने परिवार के भरणपोषण के खयाल से खुद ही शादी नहीं करना चाहती थी. लेकिन उस के हिसाबकिताब, अकाउंटैंसी, फाइलिंग आदि की दक्षता का जगतियानी प्रशंसक था.

लौट कर रेखा ने रसीद जगतियानी को दी और साढ़े 9 बजे की बस से घर लौट चली. वह बस उसे घर के पास के चौराहे पर ही उतार देती थी.

बस से उतर कर वह जैसे ही घर की तरफ चली थी कि अचानक पीछे से धक्का लगा और वह गिर पड़ी. धक्का एक मोटरसाइकिल से लगा था. मोटरसाइकिल वाले ने उसे उठा कर खड़ा किया और माफी मांगने लगा, ‘‘बड़ी गलती हुई. माफ कीजिए, मैडम.’’

रेखा कराहती हुई उठी. उस ने देखा, सामने एक सुंदर युवक खड़ा था. रंग गोरा, अच्छे नाकनक्श वाला, सुंदर कपड़े पहने, तंदुरुस्त. वह बोला, ‘‘आप का घर कहां है, चलिए पहुंचा दूं.’’

वैसे तो रेखा का घर पास में ही था और उसे चोट भी ज्यादा नहीं लगी थी कि किसी को पहुंचाने जाना जरूरी होता, लेकिन पता नहीं क्यों वह उस लड़के को मना नहीं कर सकी. वह उस के साथ घर तक आई.

‘‘आइए,’’ रेखा ने कहा, ‘‘चाय पी कर जाइएगा.’’

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युवक तुरंत तैयार हो गया. रेखा ने उसे बैठक में बिठा दिया. बैठक बहुत सामान्य थी. जहां एक पुराना सा बदरंग सोफा पड़ा था. एक चौकी पर दरी बिछी थी. दीवारों पर पुराने कैलेंडर लगे थे. रेखा उसे बिठा कर भीतर चली गई.

चाय के 2 प्याले ले कर वह लौटी. युवक उस के बूढ़े पिता से बातें कर रहा था. बूढ़े पिता ने खोदखोद कर उस के बारे में पूछताछ की. रेखा ने सुना, नाम प्रदीप कुमार. उस के पिता हेडक्लर्क हो कर रिटायर्ड हो चुके हैं. परिवार में मां और 2 छोटे भाईबहन हैं. वह खुद एमए पास कर चुका है और नौकरी तलाश रहा है. रेखा ने दोनों को चाय दी.

चार सुनहरे दिन: भाग 3- प्रदीप को पाने के लिए किस हद तक गुजरी रेखा

रेखा सन्न रह गई. बोली, ‘‘तुम्हारे पिताजी यदि तुम पर जोर दे कर…’’

‘‘नहीं, मैं ने साफ इनकार कर दिया है. लेकिन पिताजी का कहना है कि वे उन लोगों का कर्ज अपनी पैंशन से नहीं चुका सकेंगे, वे लोग हमारा घर नीलाम कराने की धमकियां दे रहे हैं.’’

रेखा ने सूखे गले से पूछा, ‘‘तब तुम क्या करोगे?’’

इसीलिए तो मैं नौकरी ढूंढ़ रहा हूं. मैं ने पिताजी से कह दिया है कि नौकरी कर के उन्हें हर महीने अपना वेतन देता रहूंगा और कर्ज पट जाएगा. लेकिन नौकरी मिले तब तो.’’

रेखा चिंता में पड़ गई थी. प्रदीप को यदि नौकरी न मिली, और कर्ज के दबाव में वह वहां शादी के लिए राजी हो गया, तो…

3 दिनों के बाद प्रदीप वहीं मिला, बस स्टौप पर. घबराया हुआ सा था. बोला, ‘‘डार्लिंग, कुछ जरूरी बातें करनी हैं. चलो…’’

वह उसे अपने घर नहीं, पास के एक रैस्तरां में ले गया. एक केबिन में बैठ कर सैंडविच और चाय का और्डर दिया और धीरेधीरे कहने लगा, ‘‘डार्लिंग, मैं आज तुम से विदा लेने आया हूं.’’

रेखा सन्न रह गई, ‘‘विदा लेने…’’

‘‘हां, बात बिगड़ गईर् है. लड़की वालों ने अपनी बेटी की शादी कहीं और तय कर दी है. यह तो मेरे सिर से एक बला टली, लेकिन अब वे लोग सख्ती से अपना रुपया मांग रहे हैं. पिताजी पर दबाव डाल रहे हैं. दबंग आदमी हैं, बड़ी विनतीचिरौरी करने पर 3 दिनों का समय दिया है. वरना घर नीलाम करा लेंगे.’’

‘‘तो?’’ सूखे गले से रेखा ने पूछा.

‘‘मैं ने सोचा है कि मैं कहीं भाग जाऊं. पिताजी उन लोगों पर मेरे अपहरण का केस दायर कर देंगे. यों वे हमारा घर नहीं ले सकेंगे. मामला चलेगा, और फिर देखा जाएगा. शायद मु झे बाहर नौकरी मिल जाए. तब सब ठीक हो जाएगा.’’

रेखा ने कांपते स्वर में पूछा, ‘‘फिर कब लौटोगे?’’

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‘‘फिलहाल तो भागना ही पड़ेगा, लौटने का कुछ ठीक नहीं. शायद न भी लौटूं. नौकरी के बिना या रुपए की व्यवस्था के बिना लौटने पर तो अपहरण का केस भी टिक न सकेगा. इसलिए अलविदा.’’

रेखा चुप रही. उस के दिल में तूफान चल रहा था. इधर पुरुष सहवास का जो अनोखा आनंद उसे मिला था वह उस के लिए एक अनिवार्य नशा जैसा हो गया था. वह इतने सुख के दिन बिताने के बाद अब इसे हाथ से नहीं जाने देना चाहती थी. भागने के बाद प्रदीप का उस से शादी कर पाना मुश्किल हो जाएगा. न जाने कहांकहां छिपता फिरेगा. वह सोचने लगी कि क्या उस को फिर से अकेले जीवन गुजारना पड़ेगा? सवेरे से शाम तक सूखे रजिस्टरों, लेजरों में सिर खपा कर पैसे बैंक पहुंचाना, लौट कर थके शरीर से अकेली बिस्तर पर रात काट देना और सवेरे उठ कर फिर उसी एकरस दिनचर्या की तैयारी. उस का मन जैसे हाहाकार कर उठा. कांपते स्वर में बोली, ‘‘कितने पैसे देने हैं उसे?’’

‘‘ठीक से पता नहीं,’’ प्रदीप लापरवाही से बोला, ‘‘लेकिन पिछले साल तक यह 32 हजार रुपए के लगभग था. सूद की मोटी राशि जुड़ती रहती है. सो, अब 40 हजार रुपए से कम क्या होगा. लेकिन क्या फायदा इस गिनती से. न मैं यह जुटा सकता हूं न पिताजी. ये लोग इतने खूंखार हैं और कह चुके हैं कि 3 दिनों में रुपया न मिला तो मेरे हाथपैर तोड़ देंगे. मु झे तो भागना पड़ेगा ही.’’

रेखा कांप गई. इस बीच बैरे ने खाने का सामान ला कर रख दिया. रेखा ने उसे छुआ भी नहीं. बोली, ‘‘क्या तुम्हारे चाचाजी कुछ मदद नहीं करेंगे?’’

‘‘चाचा.’’ प्रदीप फीकी मुसकान से बोला, ‘‘वे तो उड़ाऊखाऊ आदमी हैं. उन के पास पैसा कहां. उन्हें इस साल ललिता की शादी भी करनी है. उस के लिए कर्ज लेने वाले हैं.’’

प्रदीप आगे बोला, ‘‘खाओ, चिंता मत करो. वही तरीका ठीक है कि मैं यहां से भाग जाऊं. यहीं से चला जाऊंगा. मोटरसाइकिल एक दोस्त के घर पर रख कर मैं स्टेशन चला जाऊंगा.’’

‘‘क्या पैसे की कुछ भी व्यवस्था नहीं कर सकते?’’ रेखा बोली, ‘‘मेरे पास 3 हजार रुपए हैं.’’

प्रदीप फीकी हंसी हंसा, ‘‘कभी शौक से मोटरसाइकिल ली थी. आज बेच दूं तो शायद 7-8 हजार रुपए मिलें. ये 10 हजार रुपए हुए. लेकिन 30 हजार रुपए का सवाल रह जाता है. नहीं भई, यों नहीं होगा. मु झे भागना पड़ेगा.’’

रेखा कुछ सोच कर बोली, ‘‘मैं रुपए की व्यवस्था कर दूं तो?’’

‘‘तुम?’’ प्रदीप चौंका, ‘‘तुम कहां से लाओगी 30 हजार रुपए?’’

‘‘मैं ला दूंगी.’’

‘‘क्या अपने पिताजी से मांगोगी? तब तो.’’

‘‘ उन से मतलब नहीं, और न उन के पास हैं. मैं इंतजाम कर दूंगी. मु झे जरा सोचने दो.’’

‘‘जरूर औफिस से लोन लोगी, लेकिन वे इतनी रकम दे देंगे? 3 दिनों में ही चाहिए.’’

‘‘मैं तुम्हें ला दूंगी रुपए, बस. फिर तो तुम्हें घर छोड़ने की जरूरत न होगी?’’

‘‘नहीं तो,’’ प्रदीप खुश हो कर बोला, ‘‘तब क्यों कहीं जाऊंगा. रुपए उन हरामियों को सूद समेत चुका कर निश्ंिचत हो जाएंगे हम लोग. फिर तो ठाट से हमारी शादी अगले लगन में ही पक्की सम झो.’’

‘‘क्या सच में?’’ रेखा उत्सुक हुई.

‘‘बिलकुल सच. तब बाधा ही क्या रहेगी भला. लेकिन मैं नहीं सम झ सकता कि कैसे.’’

‘‘छोड़ो. तुम ऐसा करना कि कल सवेरे ठीक साढ़े 9 बजे वहीं मिलना जहां बस खड़ी होती है.’’

रात में रेखा गंभीरता से विचार करती रही. रोज वह कंपनी का जो रुपया जमा कराती है, वह आजकल 30 हजार रुपए से ज्यादा ही होता है. दीवाली नजदीक है, बसों में भीड़ होने लगी है.

2 दिनों बाद भीड़ और बढ़ जाएगी. उसे वही रुपया हथियाना होगा. कंपनी बहुत बड़ी है और रोज इतना रुपया जमा होता है. एक दिन की आमदनी यदि न भी जमा हो तो क्या फर्क पड़ता है.

रेखा के जीवन का सवाल है. 8 साल से उस ने यहां मेहनत की है. वेतन सिर्फ

3 हजार रुपए मिलता है, जबकि रेखा 2-3 लोगों के बराबर काम अकेली कर देती है. अकाउंटैंसी, फाइलिंग, कौरेस्पौंडेंस, रुपए जमा कराना. उस के परिश्रम से कंपनी को लाखों रुपए का लाभ होता रहता है. क्या उसे 8 साल के कुछ बोनस का अधिकार नहीं? कंपनी को तो चाहिए कि उसे कम से कम 4 हजार रुपए वेतन दे. इसी बहाने वह अपना घाटा भी पूरा कर लेगी. इस में कुछ दोष या पाप बिलकुल नहीं. रेखा का जीवन बनेगा, एक परिवार का बचाव होगा, और कंपनी का कुछ खास नहीं बिगड़ेगा.

रातभर वह इसी उधेड़बुन में रही. सवाल केवल रामलाल का था. उस सीधे आदमी को आसानी से उल्लू बनाया जा सकता है. उस ने एक उपाय सोचा.

सवेरे देर से जागी. उस का मुर झाया चेहरा देख कर शोभा ने पूछा, ‘‘क्या तबीयत खराब है?’’ उसे टाल कर वह समय पर औफिस के लिए चल दी. साढ़े 9 बजे बसस्टौप पर प्रदीप पहले से मौजूद था.

रेखा ने कहा, ‘‘मेरे साथ थोड़ी दूर तक टहलने चलो. राह में बातें करेंगे.’’

चलते हुए उस ने प्रदीप को धीरेधीरे अपनी योजना बतानी शुरू की. फिर कहा, ‘‘बैंक और उस चाय की दुकान को तो जानते ही हो. चाय की दुकान और बैंक के बीच नीम का एक बड़ा मोटा सा पेड़ है. रात में वह सड़क सूनी रहती है. बैंक के पास 1-2 दुकानें हैं, जिन की रोशनी वहां तक आती है. पेड़ से बैंक का फासला मुश्किल से सौडेढ़सौ कदम होगा. तुम पेड़ के पीछे रहना. और जो सम झाया है, वही करना. हां, वह चीज आज मु झे किसी तरह औफिस में दे देना.’’

‘‘कुछ मुश्किल नहीं,’’ प्रदीप बोला, ‘‘मैं पेड़ के पास रहूंगा. मोटरसाइकिल भी है. ठीक से चेक किए रखूंगा. वह चीज तुम्हें आज किसी के हाथों पहुंचा दूंगा.’’

‘‘तुम खुद औफिस क्यों नहीं आते? तुम्हें कौन जानता है वहां?’’

‘‘असल में, मु झे दिन में कुछ जरूरी काम है, डार्लिंग. लेकिन, मैं पहुंचा दूंगा, तुम निश्चिंत रहो.’’

रेखा को उस दिन भी उखड़े मूड में काम करते देख जगतियानी ने पूछा, ‘‘क्या आज भी तबीयत खराब है, रेखा? तब तो भई, घर जा कर…’’

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‘‘नहीं सर, बस यों ही.’’ वह चुस्ती दिखाती हुई काम करने लगी. हिसाब निबटाते हुए दिमाग उस तरफ लगा था जो प्रदीप को सम झाया था. अब होथियारी रखनी है.

12 बजे छोकरे से उस ने चाय मंगवाई. चाय आईर् ही थी कि एक बाहरी लड़के ने आ कर कहा, ‘‘आप रेखाजी हैं?’’

‘‘हां,’’ वह सतर्क हुई, ‘‘क्या बात है?’’

‘‘यह लीजिए,’’ लड़के ने उसे एक पुडि़या दी और तुरंत लौट गया. मैनेजर 2-3 लोगों से बातें कर रहा था. अपनी जगह से ही पूछा, ‘‘क्या बात है? कौन छोकरा….’’

‘‘किसी रमेश के बारे में पूछ रहा था, सर,’’ उसे विश्वास था जगतियानी ने पुडि़या लेते देखा नहीं है, ‘‘मैं ने कह दिया यहां कोई रमेश नहीं रहता.’’

धीरे से पुडि़या मुट्ठी में दबा कर वह बाथरूम चली गई. वहां उसे खोला, 2 सफेद गोलियां थीं. पुडि़या ठीक से लपेट कर ब्रा में छिपा ली और निकल आई.

समय बीत नहीं रहा था. किसी तरह साढ़े 8 बजे. नोट गिने गए. आज तो पूरे 38 हजार 3 सौै रुपए हुए. रजिस्टर पर हिसाब चढ़ा कर रुपयों को बैग में रख कर वह रामलाल के साथ निकल गई.

रेखा का मन कांप रहा था. उसे हलका पसीना आने लगा था. वह पहली बार ऐसा काम करने जा रही थी, जो उसे वर्षों के लिए जेल भिजवा सकता था. नौकरी तो जाती ही. लेकिन जिंदगी में ऐसे भी क्षण आते हैं जब आदमी जुआ खेलने को मजबूर हो जाता है.

अब पीछे कदम हटाना कठिन था.

बसअड्डे पर चाय और पान की दुकानें थीं, किंतु रेखा थोड़ा आगे वाली दुकान पर बैंक से लौटते वक्त रोज चाय पीती थी. वहां पहुंची तो बोली, ‘‘भई रामलाल, आज मेरे सिर में दर्द है. अभी चाय पीते चलें, अभी टाइम है.’’

रामलाल आसानी से मान गया, ‘‘चलो बिटिया, मु झे भी भूख लगी है. एकाध बिस्कुट भी ले लेना.’’

वे चायखाने में आए तो 2-3 लोग ही थे. रेखा ने जल्दी 2 चाय लाने को कहा. चाय तुरंत आ गई. वह रामलाल से बोली, ‘‘खुद ही जा कर बिस्कुट ले लो. नौकर गंदे हाथ से निकालता है.’’

रेखा ने कोने की जगह चुनी थी. रामलाल बिस्कुट लाने काउंटर की ओर गया तो उस ने वे गोलियां निकाल कर चाय में डाल दीं. ऐसा करते उसे किसी ने नहीं देखा. बिस्कुट ले कर रामलाल लौटा तो बोली, ‘‘जल्दी करो.’’

रामलाल ने बिस्कुट खा कर जल्दी से चाय पी ली. पैसे चुका कर रेखा चली तो बैंक बंद होने में कुल 7 मिनट बाकी थे. थोड़ी दूर आगे बैंक था. चायखाने के आगे कुछ बढ़ कर नीम का वह पेड़ था. रेखा ने गौर से देखा. उधर कोई था.

रामलाल ने कहा, ‘‘बिटिया, मेरा सिर चकरा रहा है.’’

‘‘खाली पेट थे, सो, गैस चढ़ी होगी,’’ रेखा बोली.

कांपते गले से रामलाल बोला, ‘‘हाथपैर सनसना रहे हैं, बिटिया. मु झे तो नींद आने लगी है.’’

‘‘कोईर् बात नहीं, अभी बैंक पहुंचते हैं. आराम कर लेना, ठीक हो जाओगे.’’

पेड़ के पास पहुंचने के लिए उस का कलेजा उछल रहा था. जैसे ही वे पेड़ के नीचे आए. उस के पीछे से कोई उछल कर निकला और रामलाल के सिर पर किसी चीज से चोट की. रामलाल लड़खड़ा कर गिर पड़ा. वह आदमी रेखा की ओर  झपटा, उस ने देख लिया प्रदीप था. कुछ कहने ही वाली थी कि प्रदीप ने  झटके के साथ उस के कंधे से बैग ले लिया और भिंचे गले से बोला, ‘‘धन्यवाद.’’

रेखा हतबुद्धि थी. उसे खुद बैग प्रदीप को देना था, लेकिन यह गुंडों, अपराधियों की तरह छीन लेना. उस ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला कि प्रदीप के पीछे खड़ी मोटरसाइकिल पर उस की नजर पड़ी पिछली सीट पर एक लड़की. रेखा ने पलक मारते उसे पहचान लिया. वही लड़की, जिसे प्रदीप ने अपनी चचेरी बहन बताया था. तब तक प्रदीप ने बैग उस लड़की को थमा दिया, और पीछे मुड़ा, ‘‘अब.’’

पलक  झपकते उस का हाथ उठा, रेखा को पता नहीं चला कि किस चीज से उस पर जोरदार चोट की गई है. उस की आंखों के आगे सितारे नाच उठे, वह नीचे गिर पड़ी.

उसे होश आया तो औफिस में बैंच पर लेटी थी. मैनेजर जगतियानी वहीं खड़ा था. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. नीचे चटाई पर रामलाल पड़ा हुआ था. उस के माथे पर पट्टी थी और डाक्टर उसे इंजैक्शन दे रहा था. रेखा का सिर फोड़े की तरह दुख रहा था. टटोला, माथे पर पट्टी लपेटी हुई थी.

‘‘क…क्या हुआ?’’ रेखा ने कमजोर आवाज में पूछा.

हाथ मलता जगतियानी बोला, ‘‘रास्ते में बदमाशों ने तुम लोगों पर हमला कर रुपए छीन लिए, और क्या. ताज्जुब तो है, रामलाल 5-6 पर भारी पड़ता है, लेकिन यह भी मार खा गया. पुलिस को फोन किया है मैं ने.’’

‘‘सब रुपए ले गए?’’

‘‘सब. यह दूसरी बार कंपनी को चूना लगा है. 2 साल पहले की बात तुम्हें याद होगी. जब दि प्रीमियर ट्रांसपोर्ट कंपनी के मैनेजर के नाम से किसी ने  झूठा फोन किया था. जब मैं 4 दिनों की छुट्टी पर गया था और मेरा असिस्टैंट मेरा काम संभाल रहा था. उस बदमाश ने  झूठा फोन किया, और जाली हुंडी मैनेजर के नकली दस्तखत बना कर ले आया था और नकद 10 हजार रुपए ले गया था. यह काम प्रीमियर ट्रांसपोर्ट के ही एक आदमी अजीत का था. पुलिस ने जांचपड़ताल की तो उसी का नाम सामने आया था लेकिन, सुबूत की कमी से वह छूट गया था. मैं छुट्टी के बीच से ही दौड़ा आया था. तुम्हें याद होगा. मैं ने उस पाजी को कोर्ट में अच्छी तरह देखा था. मामूली सूरत बदल कर उस ने जाली हुंडी से पैसे लिए और मेरे असिस्टैंट ने रुपए दे भी दिए. प्रीमियर वालों ने अजीत को नौकरी से निकाल दिया है. वह कभीकभी शहर में घूमता दिखाई देता है. मोटरसाइकिल पर घूमता है बदमाश. तुम ने शायद उसे न देखा हो. माथे पर कटे का निशान है और एक दांत आधा टूटा हुआ…’’

प्रदीप का हुलिया सुन कर रेखा का माथा घूम गया.

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डाक्टर बोला, ‘‘दवाएं लिख देता हूं, मिस्टर जगतियानी.’’

डाक्टर के जाने के बाद जगतियानी ने बताया, ‘‘चाय की दुकान वाला तो बताता है कि रात में उसे मोटरसाइकिल स्टार्ट होने की आवाज सुनाई दी थी. यह काम भी उसी बदमाश का हो सकता है. अब तो पुलिस ही पता लगाएगी, आने दो.’’

रेखा का दिमाग ही सुन्न हो रहा था. प्रदीप…अजीत उस लड़की के साथ रुपए ले कर चंपत हो गया. उसे उल्लू बना गया. वह मैनेजर को कुछ नहीं बता सकती. उस की अपनी इज्जत और नौकरी का सवाल है. जो सोचा था सब उलटा हो गया. जिंदगी में हवा के  झोंके की तरह आए सुख के ये चार सुनहरे दिन चले गए. उन दिनों की बहुत बड़ी कीमत ले गया है वह.

तू आए न आए : भाग 1- शफीका को क्यों मिला औरत का बदनुमा दाग

मैं इंगलैंड से एमबीए करने के लिए श्रीनगर से फ्लाइट पकड़ने को घर से बाहर निकल रहा था तो मुझे विदा करने वालों के साथसाथ फूफीदादी की आंखों में आंसुओं का समंदर उतर आया. अम्मी की मौत के बाद फूफीदादी ने ही मुझे पालपोस कर बड़ा किया था. 2 चाचा और 1 फूफी की जिम्मेदारी के साथसाथ दादाजान की पूरी गृहस्थी का बोझ भी फूफीदादी के नाजुक कंधों पर था. ममता का समंदर छलकाती उन की बड़ीबड़ी कंटीली आंखों में हमारे उज्ज्वल भविष्य की अनगिनत चिंताएं भी तैरती साफ दिखाई देती थीं. उन से जुदाई का खयाल ही मुझे भीतर तक द्रवित कर रहा था.

कार का दरवाजा बंद होते ही फूफीदादी ने मेरा माथा चूम लिया और मुट्ठी में एक परचा थमा दिया, ‘‘तुम्हारे फूफादादा का पता है. वहां जा कर उन्हें ढूंढ़ने की कोशिश करना और अगर मिल जाएं तो बस, इतना कह देना, ‘‘जीतेजी एक बार अपनी अम्मी की कब्र पर फातेहा पढ़ने आ जाएं.’’

फूफीदादी की भीगी आवाज ने मुझे भीतर तक हिला कर रख दिया. पूरे 63 साल हो गए फूफीदादी और फूफादादा के बीच पैसिफिक अटलांटिक और हिंद महासागर को फैले हुए, लेकिन आज भी दादी को अपने शौहर के कश्मीर लौट आने का यकीन की हद तक इंतजार है.

इंगलैंड पहुंच कर ऐडमिशन की प्रक्रिया पूरी करतेकरते मैं फूफीदादी के हुक्म को पूरा करने का वक्त नहीं निकाल पाया, लेकिन उस दिन मैं बेहद खुश हो गया जब मेरे कश्मीरी क्लासफैलो ने इंगलैंड में बसे कश्मीरियों की पूरी लिस्ट इंटरनैट से निकाल कर मेरे सामने रख दी. मेरी आंखों के सामने घूम गया 80 वर्षीय फूफीदादी शफीका का चेहरा.

मेरे दादा की इकलौती बहन, शफीका की शादी हिंदुस्तान की आजादी से ठीक एक महीने पहले हुई थी. उन के पति की सगी बहन मेरी सगी दादी थीं. शादी के बाद 2 महीने साथ रह कर उन के शौहर डाक्टरी पढ़ने के लिए लाहौर चले गए. शफीका अपने 2 देवरों और सास के साथ श्रीनगर में रहने लगीं.

लाहौर पहुंचने के बाद दोनों के बीच खतों का सिलसिला लंबे वक्त तक चलता रहा. खत क्या थे, प्यार और वफा की स्याही में डूबे प्रेमकाव्य. 17 साल की शफीका की मुहब्बत शीर्ष पर थी. हर वक्त निगाहें दरवाजे पर लगी रहतीं. हर बार खुलते हुए दरवाजे पर उसे शौहर की परछाईं होने का एहसास होता.

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मुहब्बत ने अभी अंगड़ाई लेनी शुरू ही की थी कि पूरे बदन पर जैसे फालिज का कहर टूट पड़ा. विभाजन के बाद हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच खतों के साथसाथ लोगों के आनेजाने का सिलसिला भी बंद हो गया.

शफीका तो जैसे पत्थर हो गईं. पूरे 6 साल की एकएक रात कत्ल की रात की तरह गुजारी और दिन जुदाई की सुलगती भट्टी की तरह. कानों में डाक्टर की आवाजें गूंजती रहतीं, सोतीजागती आंखों में उन का ही चेहरा दिखाई देता था. रात को बिस्तर की सिलवटें और बेदारी उन के साथ बीते वक्त के हर लमहे को फिर से ताजा कर देतीं.

अचानक एक दिन रेडियो में खबर आई कि हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच होगा. इस मैच को देखने जाने वालों के लिए वीजा देने की खबर इक उम्मीद का पैगाम ले कर आई.

शफीका के दोनों भाइयों ने रेलवे मिनिस्टर से खास सिफारिश कर के अपने साथसाथ बहन का भी पाकिस्तान का 10 दिनों का वीजा हासिल कर लिया. जवान बहन के सुलगते अरमानों को पूरा करने और दहकते जख्मों पर मरहम लगाने का इस से बेहतरीन मौका शायद ही फिर मिल पाता.

पाकिस्तान में डाक्टर ने तीनों मेहमानों से मिल कर अपने कश्मीर न आ सकने की माफी मांगते हुए हालात के प्रतिकूल होने की सारी तोहमत दोनों देशों की सरकारों के मत्थे मढ़ दी. उन के मुहब्बत से भरे व्यवहार ने तीनों के दिलों में पैदा कड़वाहट को काई की तरह छांट दिया. शफीका के लिए वो 9 रातें सुहागरात से कहीं ज्यादा खूबसूरत और अहम थीं. वे डाक्टर की मुहब्बत में गले तक डूबती चली जा रही थीं.

उधर, उन के दोनों भाइयों को मिनिस्टरी और दोस्तों के जरिए पक्की तौर पर यह पता चल गया था कि अगर डाक्टर चाहें तो पाकिस्तान सरकार उन की बीवी शफीका को पाकिस्तान में रहने की अनुमति दे सकती है. लेकिन जब डाक्टर से पूछा गया तो उन्होंने अपने वालिद, जो उस वक्त मलयेशिया में बड़े कारोबारी की हैसियत से अपने पैर जमा चुके थे, से मशविरा करने के लिए मलयेशिया जाने की बात कही.

साथ ही, यह दिलासा भी दिया कि मलयेशिया से लौटते हुए वे कश्मीर में अपनी वालिदा और भाईबहनों से मिल कर वापसी के वक्त शफीका को पाकिस्तान ले आएंगे. दोनों भाइयों को डाक्टर की बातों पर यकीन न हुआ तो उन्होंने शफीका से कहा, ‘बहन, जिंदगी बड़ी लंबी है, कहीं ऐसा न हो कि तुम्हें डाक्टर के इंतजार के फैसले पर पछताना पड़े.’

‘भाईजान, तलाक लेने की वजह दूसरी शादी ही होगी न. यकीन कीजिए, मैं दूसरी शादी तो दूर, इस खयाल को अपने आसपास फटकने भी नहीं दूंगी.’ 27 साल की शफीका का इतना बड़ा फैसला भाइयों के गले नहीं उतरा, फिर भी बहन को ले कर वे कश्मीर वापस लौट आए.

वापस आ कर शफीका फिर अपनी सास और देवरों के साथ रहने लगीं. डाक्टर की मां अपने बेटे से बेइंतहा मुहब्बत करती थीं. बहू से बेटे की हर बात खोदखोद कर पूछती हुई अनजाने ही बहू के भरते जख्मों की परतें उधेड़ती रहतीं.

शफीका अपने यकीन और मुहब्बत के रेशमी धागों को मजबूती से थामे रहीं. उड़तीउड़ती खबरें मिलीं कि डाक्टर मलयेशिया तो पहुंचे, लेकिन अपनी मां और बीवी से मिलने कश्मीर नहीं आए. मलयेशिया में ही उन्होंने इंगलैंड मूल की अपनी चचेरी बहन से निकाह कर लिया था. शफीका ने सुना तो जो दीवार से टिक कर धम्म से बैठीं तो कई रातें उन की निस्तेज आंखें, अपनी पलकें झपकाना ही भूल गईं. सुहागिन बेवा हो गईं, लेकिन नहीं, उन के कान और दिमाग मानने को तैयार ही नहीं थे.

‘लोग झूठ बोल रहे हैं. डाक्टर, मेरा शौहर, मेरा महबूब, मेरी जिंदगी, ऐसा नहीं कर सकता. वफा की स्याही से लिखे गए उन की मुहब्बत की शीरीं में डूबे हुए खत, उस जैसे वफादार शख्स की जबान से निकले शब्द झूठे हो ही नहीं सकते. मुहब्बत के आसमान से वफा के मोती लुटाने वाला शख्स क्या कभी बेवफाई कर सकता है? नहीं, झूठ है. कैसे यकीन कर लें, क्या मुहब्बत की दीवार इतनी कमजोर ईंटों पर रखी गई थी कि मुश्किल हालात की आंधी से वह जमीन में दफन हो जाए? वो आएंगे, जरूर आएंगे,’ पूरा भरोसा था उन्हें अपने शौहर पर.

शफीका के दिन कपड़े सिलते, स्वेटर बुनते हुए कट जाते लेकिन रातें नागफनी के कांटों की तरह सवाल बन कर चुभतीं. ‘जिन की बांहों में मेरी दुनिया सिमट गई थी, जिन के चौड़े सीने पर मेरे प्यार के गुंचे महकने लगे थे, उन की जिंदगी में दूसरी औरत के लिए जगह ही कहां थी भला?’ खयालों की उथली दुनिया के पैर सचाई की दलदल में कईकई फुट धंस गए. लेकिन सच? सच कुछ और ही था. कितना बदरंग और बदसूरत? सच, डाक्टर शादी के बाद दूसरी बीवी को ले कर इंगलैंड चला गया. मलयेशिया से उड़ान भरते हुए हवाईजहाज हिमालय की ऊंचीऊंची प्रहरी सी खड़ी पहाडि़यों पर से हो कर जरूर गुजरा होगा? शफीका की मुहब्बत की बुलंदियों ने तब दोनों बाहें फैला कर उस से कश्मीर में ठहर जाने की अपील भी की होगी. मगर गुदाज बीवी की आगोश में सुधबुध खोए डाक्टर के कान में इस छातीफटी, दर्दभरी पुकार को सुनने का होश कहां रहा होगा?

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शफीका को इतने बड़े जहान में एकदम तनहा छोड़ कर, उन के यकीन के कुतुबमीनार को ढहा कर, अपनी बेवफाई के खंजर से शफीका के यकीन को जख्मी कर, उन के साथ किए वादों की लाश को चिनाब में बहा दिया था डाक्टर ने, जिस के लहू से सुर्ख हुआ पानी आज भी शफीका की बरबादी की दास्तान सुनाता है.

शफीका जारजार रोती हुई नियति से कहती थी, ‘अगर तू चाहती, तो कोई जबरदस्ती डाक्टर का दूसरा निकाह नहीं करवा सकता था. मगर तूने दर्द की काली स्यायी से मेरा भविष्य लिखा था, उसे वक़्त का ब्लौटिंगपेपर कभी सोख नहीं पाया.’

शफीका के चेहरे और जिस्म की बनावट में कश्मीरी खूबसूरती की हर शान मौजूद थी. इल्म के नाम पर वह कश्मीरी भाषा ही जानती थी. डाक्टर की दूसरी बीवी, जिंदगी की तमाम रंगीनियों से लबरेज, खुशियों से भरपूर, तनमन पर आधुनिकता का पैरहन पहने, डाक्टर के कद के बराबर थी.

इंगलैंड की चमकदमक, बेबाकपन और खुद की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए हाथ आई चाचा की बेशुमार दौलत ने एक बेगर्ज मासूम मुहब्बत का गला घोंट दिया. शफीका ने 19 साल, जिंदगी के सब से खूबसूरत दिन, सास के साथ रह कर गुजार दिए. दौलत के नशे में गले तक डूबे डाक्टर को न ही मां की ममता बांध सकी, न बावफा पत्नी की बेलौस मुहब्बत ही अपने पास बुला सकी.

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तू आए न आए : भाग 2- शफीका को क्यों मिला औरत का बदनुमा दाग

डाक्टर की वादाखिलाफी और जवान बहन की जिंदगी में फैलती वीरानी और तनहाई के घनघोर अंधेरे के खौफ से गमगीन हो कर शफीका के बड़े भाई ने अपनी बीवी को तलाक देने का मन बना लिया जो डाक्टर की सगी बहन थी. लेकिन शफीका चीन की दीवार की तरह डट कर सामने खड़ी हो गई, ‘शादी के दायित्व तो इन के भाई ने नहीं निभाए हैं न, दगा और फरेब तो उन्होंने मेरे साथ किया है, कुसूर उन का है तो सजा भी उन्हें ही मिलनी चाहिए. उन की बहन ने आप की गृहस्थी सजाई है, आप के बच्चों की मां हैं वे, उस बेकुसूर को आप किस जुर्म की सजा दे रहे हैं, भाई जान? मेरे जीतेजी यह नहीं होगा,’ कह कर भाई को रोका था शफीका ने.

खौफजदा भाभी ने शफीका के बक्से का ताला तोड़ कर उस का निकाहनामा और डाक्टर के साथ खींची गई तसवीरों व मुहब्बतभरे खतों को तह कर के पुरानी किताबों की अलमारी में छिपा दिया था. जो 15 साल बाद रद्दी में बेची जाने वाली किताबों में मिले. भाभी डर गई थीं कि कहीं उन के भाई की वजह से उन की तलाक की नौबत आ गई तो कागजात के चलते उन के भाई पर मुकदमा दायर कर दिया जाएगा. लेकिन शफीका जानबूझ कर चुपचाप रहीं.

लंबी खामोशी के धागे से सिले होंठ, दिल में उमड़ते तूफान को कब तक रोक पाते. शफीका के गरमगरम आंसुओं का सैलाब बड़ीबड़ी खूबसूरत आंखों के रास्ते उन के गुलाबी गालों और लरजाते कंवल जैसे होंठों तक बह कर डल झील के पानी की सतह को और बढ़ा जाता. कलैंडर बदले, मौसम बदले, श्रीनगर की पहाडि़यों पर बर्फ जमती रही, पिघलती रही, बिलकुल शफीका के दर्दभरे इंतजार की तरह.

फूलों की घाटी हर वर्ष अपने यौवन की दमक के साथ अपनी महक लुटा कर वातावरण को दिलकश बनाती रही, लेकिन शफीका की जिंदगी में एक बार आ कर ठहरा सूखा मौसम फिर कभी मौसमेबहार की शक्ल न पा सका. शफीका की सहेलियां दादी और नानी बन गईं. आखिरकार शफीका भी धीरेधीरे उम्र के आखिरी पड़ाव की दहलीज पर खड़ी हो गईं.

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बड़े भाईसाहब ने मरने से पहले अपनी बहन के भविष्य को सुरक्षित कर दिया. अपनी पैंशन शफीका के नाम कर दी. पूरे 20 साल बिना शौहर के, सास के साथ रहने वाली बहन को छोटे भाईभाभी ले आए हमेशा के लिए अपने घर. बेकस परिंदे का आशियाना एक डाल से टूटा तो दूसरी डाल पर तिनके जोड़तेजोड़ते

44 साल लग गए. चेहरे की चिकनाई और चमकीलेपन में धीरेधीरे झुर्रियों की लकीरें खिंचने लगीं.

प्यार, फिक्र और इज्जत, देने में भाइयों और उन के बच्चों ने कोई कमी नहीं छोड़ी. भतीजों की शादियां हुईं तो बहुओं ने सास की जगह फूफीसास को पूरा सम्मान दिया. शफीका के लिए कभी भी किसी चीज की कमी नहीं रही, मगर अपने गर्भ में समाए नुकीले कंकड़पत्थर को तो सिर्फ ठहरी हुई झील ही जानती है. जिंदगी में कुछ था तो सिर्फ दर्द ही दर्द.

अपनी कोख में पलते बच्चे की कुलबुलाहट के मीठे दर्द को महसूस करने से महरूम शफीका अपने भतीजों के बच्चों की मासूम किलकारियों, निश्छल हंसी व शरारतों में खुद को गुम कर के मां की पहचान खो कर कब फूफी से फूफीदादी कहलाने लगीं, पता ही नहीं चला.

शरीर से एकदम स्वस्थ 80 वर्षीया शफीका के चमकते मोती जैसे दांत आज भी बादाम और अखरोट फोड़ लेते हैं. यकीनन, हाथपैरों और चेहरे पर झुर्रियों ने जाल बिछाना शुरू कर दिया है लेकिन चमड़ी की चमक अभी तक दपदप करती हुई उन्हें बूढ़ी कहलाने से महफूज रखे हुए है.

पैरों में जराजरा दर्द रहता है तो लकड़ी का सहारा ले कर चलती हैं, लेकिन शादीब्याह या किसी खुशी के मौके पर आयोजित की गई महफिल में कालीन पर तकिया लगा कर जब भी बैठतीं, कम उम्र औरतों को शहद की तरह अपने आसपास ही बांधे रखतीं.

उन के गाए विरह गीत, उन की आवाज के सहारेसहारे चलते चोटखाए दिलों में सीधे उतर जाते. शफीका की गहरी भूरी बड़ीबड़ी आंखों में अपना दुलहन वाला लिबास लहरा जाता, जब कोई दुलहन विदा होती या ससुराल आती. उन की आंखों में अंधेरी रात के जुगनुओं की तरह ढेर सारे सपने झिलमिलाने लगते. सपने उम्र के मुहताज नहीं होते, उन का सुरीला संगीत तो उम्र के किसी भी पड़ाव पर बिना साज ही बजने लगता है.

एक घर, सजीधजी शफीका, डाक्टर का चंद दिनों का तिलिस्म सा लगने वाला मीठा मिलन, बच्चों की मोहक मुसकान, सुखदुख के पड़ाव पर ठहरताबढ़ता कारवां, मां, दादी के संबोधन से अंतस को सराबोर करने वाला सपना…हमेशा कमी बन कर चुभता रहता. वाकई, क्या 80 साल की जिंदगी जी या सिर्फ जिंदगी की बदशक्ल लाश ढोती रहीं? यह सवाल खुद से पूछने से डरती रहीं शफीका.

शफीका ने एक मर्द के नाम पूरी जिंदगी लिख दी. जवानी उस के नाम कर दी, अपनी हसरतों, अपनी ख्वाहिशों के ताश के महल बना कर खुद ही उसे टूटतेबिखरते देखती रहीं. जिस्म की कसक, तड़प को खुद ही दिलासा दे कर सहलाती रहीं सालों तक.

रिश्तेदार, शफीका से मिलते लेकिन कोई भी उन के दिल में उतर कर नहीं देख पाता कि हर खुशी के मौके पर गाए जाने वाले लोकगीतों के बोलों के साथ बजते हुए कश्मीरी साजों, डफली की हर थाप पर एक विरह गीत अकसर शफीका के कंपकंपाते होंठों पर आज भी क्यों थिरकता जाता है-

‘तू आए न आए

लगी हैं निगाहें

सितारों ने देखी हैं

झुकझुक के राहें

ये दिल बदगुमां है

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नजर को यकीं है

तू जो नहीं है

तो कुछ भी नहीं है

ये माना कि महफिल

जवां है हसीं है.’

अब आज पूरे 3 महीनों बाद मुझे अचानक डायरी में फूफीदादी का दिया हुआ परचा दिखाई दिया तो इंटरनैट पर कश्मीरी मुसलमानों के नाम फिर से सर्च कर डाले. पता वही था, नाम डा. खालिद अनवर, उम्र 90 साल. फोन मिलाया तो एक गहरी लेकिन थकी आवाज ने जवाब दिया, ‘‘डाक्टर खालिद अनवर स्पीकिंग.’’

‘‘आय एम फ्रौम श्रीनगर, इंडिया, आई वांट टू मीट विद यू.’’

‘‘ओ, श्योर, संडे विल बी बैटर,’’ ब्रिटिश लहजे में जवाब मिला.

जी चाहा फूफीदादी को फोन लगाऊं, दादी मिल गया पता…वैसे मैं उन से मिल कर क्या कहूंगा, अपना परिचय कैसे दूंगा, कहीं हमारे खानदान का नाम सुन कर ही मुझे अपने घर के गेट से बाहर न कर दें, एक आशंका, एक डर पूरी रात मुझे दीमक की तरह चाटता रहा.

निश्चित दिन, निश्चित समय, उन के घर की डौरबैल बजाने से पहले, क्षणभर के लिए हाथ कांपा था, ‘तुम शफीका के भतीजे के बेटे हो. गेटआउट फ्रौम हियर. वह पृष्ठ मैं कब का फाड़ चुका हूं. तुम क्या टुकड़े बटोरने आए हो?’ कुछ इस तरह की ऊहापोह में मैं ने डौरबैल पर उंगली रख दी.

‘‘प्लीज कम इन, आई एम वेटिंग फौर यू.’’ एक अनौपचारिक स्वागत के बाद उन के द्वारा मेरा परिचय और मेरा मिलने का मकसद पूछते ही मैं कुछ देर तो चुप रहा, फिर अपने ननिहाल का पता बतलाने के बाद देर तक खुद से लड़ता रहा.

अनौपचारिक 2-3 मुलाकातों के बाद वे मुझ से थोड़ा सा बेबाक हो गए. उन की दूसरी पत्नी की मृत्यु 15 साल पहले हो चुकी थी. बेटों ने पाश्चात्य सभ्यता के मुताबिक अपनी गृहस्थियां अलग बसा ली थीं. वीकैंड पर कभी किसी का फोन आ जाता, कुशलता मिल जाती. महीनों में कभी बेटों को डैड के पास आने की फुरसत मिलती भी तो ज्यादा वक्त फोन पर बिजनैस डीलिंग में खत्म हो जाता. तब सन जैसी सफेद पलकें, भौंहें और सिर के बाल चीखचीख कर पूछने लगते, ‘क्या इसी अकेलेपन के लिए तुम श्रीनगर में पूरा कुनबा छोड़ कर यहां आए थे?’

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हालांकि डाक्टर खालिद अनवर की उम्र चेहरे पर हादसों का हिसाब लिखने लगी थी मगर बचपन से जवानी तक खाया कश्मीर का सूखा मेवा और फेफड़े में भरी शुद्ध, शीतल हवा उन की कदकाठी को अभी भी बांस की तरह सीधा खड़ा रखे हुए है. डाक्टर ने बुढ़ापे को पास तक नहीं फटकने दिया. अकसर बेटे उन के कंधे पर हाथ रख कर कहते हैं, ‘‘डैड, यू आर स्टिल यंग दैन अस. सो, यू डौंट नीड अवर केयर.’’ यह कहते हुए वे शाम से पहले ही अपने घर की सड़क की तरफ मुड़ जाते हैं.

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तू आए न आए : भाग 3- शफीका को क्यों मिला औरत का बदनुमा दाग

शरीर तो स्वस्थ है लेकिन दिल… छलनीछलनी, दूसरी पत्नी से छिपा कर रखी गई शफीका की चिट्ठियां और तसवीरों को छिपछिप कर पढ़ने और देखने के लिए मजबूर थे. प्यार में डूबे खतों के शब्द, साथ गुजारे गिनती के दिनों के दिलकश शाब्दिक बयान, 63 साल पीछे ले जाता, यादों के आईने में एक मासूम सा चेहरा दिखलाई देने लगता. डाक्टर हाथ बढ़ा कर उसे छू लेना चाहते हैं जिस की याद में वे पलपल मरमर कर जीते रहे. बीवी एक ही छत के नीचे रह कर भी उन की नहीं थी. दौलत का बेशुमार अंबार था. शानोशौकत, शोहरत, सबकुछ पास में था अगर नहीं था तो बस वह परी चेहरा, जिस की गरम हथेलियों का स्पर्श उन की जिंदगी में ऊर्जा भर देता.

मेरे अपनेपन में उन्हें अपने वतन की मिट्टी की खुशबू आने लगी थी. अब वे परतदरपरत खुलने लगे थे. एक दिन, ‘‘लैपटौप पर क्या सर्च कर रहे हैं?’’

‘‘बेटी के लिए प्रौपर मैच ढूंढ़ रहा हूं,’’ कहते हुए उन का गला रुंधने लगा. उन की यादों की तल्ख खोहों में उस वक्त वह कंपा देने वाली घड़ी शामिल थी, जब उन की बेटी का पति अचानक बिना बताए कहीं चला गया. बहुत ढूंढ़ा, इंटरनैशनल चैनलों व अखबारों में उस की गुमशुदगी की खबर छपवाई, लेकिन सब फुजूल, सब बेकार. तब बेटी के उदास चेहरे पर एक चेहरा चिपकने लगा. एक भूलाबिसरा चेहरा, खोयाखोया, उदास, गमगीन, छलछला कर याचना करती 2 बड़ीबड़ी कातर आंखें.

किस का है यह चेहरा? दूसरी बीवी का? नहीं, तो? मां का? बिलकुल नहीं. फिर किस का है, जेहन को खुरचने लगे, 63 साल बाद यह किस का चेहरा? चेहरा बारबार जेहन के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. किस की हैं ये सुलगती सवालिया आंखें? किस का है यह कंपकंपाता, याचना करता बदन, मगर डाक्टर पर उस का लैशमात्र भी असर नहीं हुआ था. लेकिन आज जब अपनी ही बेटी की सिसकियां कानों के परदे फाड़ने लगीं तब वह चेहरा याद आ गया.

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दुनियाभर के धोखों से पाकसाफ, शबनम से ज्यादा साफ चेहरा, वे कश्मीर की वादियां, महकते फूलों की लटकती लडि़यों के नीचे बिछी खूबसूरत गुलाबी चादर, नर्म बिस्तर पर बैठी…खनकती चूडि़यां, लाल रेशमी जोड़े से सजा आरी के काम वाला लहंगाचोली, मेहंदी से सजे 2 गोरे हाथ, कलाई पर खनकती सोने की चूडि़यां, उंगलियों में फंसी अंगूठियां. हां, हां, कोई था जिस की मद्धम आवाज कानों में बम के धमाकों की तरह गूंज रही थी, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी खालिद, हमेशा.

लाहौर एयरपोर्ट पर अलविदा के लिए लहराता हाथ, दिल में फांस सी चुभी कसक इतनी ज्यादा कि मुंह से बेसाख्ता चीख निकल गई, ‘‘हां, गुनहगार हूं मैं तुम्हारा. तुम्हारे दिल से निकली आह… शायद इसीलिए मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद हो गई. मेरे चाचा के बहुत जोर डालने पर, न चाहते हुए भी मुझे उन की अंगरेज बेटी से शादी करनी पड़ी. दौलत का जलवा ही इतना दिलफरेब होता है कि अच्छेअच्छे समझदार भी धोखा खा जाते हैं.

‘‘शफीका, तुम से वादा किया था मैं ने. तुम्हें लाहौर ला कर अपने साथ रखने का. वादा था नए सिरे से खुशहाल जिंदगी में सिमट जाने का, तुम्हारी रातों को हीरेमोती से सजाने का, और दिन को खुशियों की चांदनी से नहलाने का. पर मैं निभा कहां पाया? आंखें डौलर की चमक में चौंधिया गईं. कटे बालों वाली मोम की गुडि़या अपने शोख और चंचल अंदाज से जिंदगी को रंगीन और मदहोश कर देने वाली महक से सराबोर करती चली गई मुझे.’’

अचानक एक साल बाद उन का दामाद इंगलैंड लौट आया, ‘‘अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा. आप की बेटी के साथ ही रहूंगा. वादा करता हूं.’’

दीवानगी की हद तक मुहब्बत करने वाली पत्नी को छोड़ कर दूसरी अंगरेज औरत के टैंपरेरी प्यार के आकर्षण में बंध कर जब वह पूरी तरह से कंगाल हो गया तो लौटने के लिए उसे चर्चों के सामने खड़े हो कर वायलिन बजा कर लोगों से पैसे मांगने पड़े थे.

पति की अपनी गलती की स्वीकृति की बात सुन कर बेटी बिलबिला कर चीखी थी, ‘‘वादा, वादा तोड़ कर उस फिनलैंड वाली लड़की के साथ मुझ पत्नी को छोड़ कर गए ही क्यों थे? क्या कमी थी मुझ में? जिस्म, दौलत, ऐशोआराम, खुशियां, सबकुछ तो लुटाया था तुम पर मैं ने. और तुम? सिर्फ एक नए बदन की हवस में शादी के पाकीजा बंधन को तोड़ कर चोरों की तरह चुपचाप भाग गए. मेरे यकीन को तोड़ कर मुझे किरचियों में बिखेर दिया.

‘‘तुम को पहचानने में मुझ से और मेरे बिजनैसमैन कैलकुलेटिव पापा से भूल हो गई. मैं इंगलैंड में पलीपढ़ी हूं, लेकिन आज तक दिल से यहां के खुलेपन को कभी भी स्वीकार नहीं कर सकी. मुझ से विश्वासघात कर के पछतावे का ढोंग करने वाले शख्स को अब मैं अपना नहीं सकती. आई कांट लिव विद यू, आई कांट.’’ यह कहती हुई तड़प कर रोई थी डाक्टर की बेटी.

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आज उस की रुलाई ने डाक्टर को हिला कर रख दिया. आज से 50 साल पहले शफीका के खामोश गरम आंसू इसी पत्थरदिल डाक्टर को पिघला नहीं सके थे लेकिन आज बेटी के दर्द ने तोड़ कर रख दिया. उसी दम दोटूक फैसला, दामाद से तलाक लेने के लिए करोड़ों रुपयों का सौदा मंजूर था क्योंकि बेटी के आंसुओं को सहना बरदाश्त की हद से बाहर था.

डाक्टर, शफीका के कानूनी और मजहबी रूप से सहारा हो कर भी सहारा न बन सके, उस मजलूम और बेबस औरत के वजूद को नकार कर अपनी बेशुमार दौलत का एक प्रतिशत हिस्सा भी उस की झोली में न डाल सके. शफीका की रात और दिन की आह अर्श से टकराई और बरसों बाद कहर बन कर डाक्टर की बेटी पर टूटी. वह मासूम चेहरा डाक्टर को सिर्फ एक बार देख लेने, एक बार छू लेने की चाहत में जिंदगी की हर कड़वाहट को चुपचाप पीता रहा. उस पर रहम नहीं आया कभी डाक्टर को. लेकिन आज बेटी की बिखरतीटूटती जिंदगी ने डाक्टर को भीतर तक आहत कर दिया. अब समझ में आया, प्यार क्या है. जुदाई का दर्द कितना घातक होता है, पहाड़ तक दरक जाते हैं, समंदर सूख जाते हैं.

मैं यह खबर फूफीदादी तक जल्द से जल्द पहुंचाना चाहता था, शायद उन्हें तसल्ली मिलेगी. लेकिन नहीं, मैं उन के दिल से अच्छी तरह वाकिफ था. ‘मेरे दिल में डाक्टर के लिए नफरत नहीं है. मैं ने हर लमहा उन की भलाई और लंबी जिंदगी की कामना की है. उन की गलतियों के बावजूद मैं ने उन्हें माफ कर दिया है, बजी,’ अकसर वे मुझ से ऐसा कहती थीं.

मैं फूफीदादी को फोन करने की हिम्मत जुटा ही नहीं सका था कि आधीरात को फोन घनघना उठा था, ‘‘बजी, फूफीदादी नहीं रहीं.’’ क्या सोच रहा था, क्या हो गया. पूरी जिंदगी गीली लकड़ी की तरह सुलगती रहीं फूफीदादी.

सुबह का इंतजार मेरे लिए सात समंदर पार करने की तरह था. धुंध छंटते ही मैं डाक्टर के घर की तरफ कार से भागा. कम से कम उन्हें सचाई तो बतला दूं. कुछ राहत दे कर उन की स्नेहता हासिल कर लूं मगर सामने का नजारा देख कर आंखें फटी की फटी रह गईं. उन के दरवाजे पर एंबुलैंस खड़ी थी. और घबराई, परेशान बेटी ड्राइवर से जल्दी अस्पताल ले जाने का आग्रह कर रही थी. हार्टअटैक हुआ था उन्हें. हृदयविदारक दृश्य.

मैं स्तब्ध रह गया. स्टेयरिंग पर जमी मेरी हथेलियों के बीच फूफीदादी का लिखा खत बर्फबारी में भी पसीने से भीग गया, जिस पर लिखा था, ‘बजी, डाक्टर अगर कहीं मिल जाएं तो यह आखिरी अपील करना कि वे मुझ से मिलने कश्मीर कभी नहीं आए तो मुझे कोई शिकवा नहीं है लेकिन जिंदगी के रहते एक बार, बस एक बार, अपनी मां की कब्र पर फातेहा पढ़ जाएं और अपनी सरजमीं, कश्मीर की खूबसूरत वादियों में एक बार सांस तो ले लें. मेरी 63 साल की तपस्या और कुरबानियों को सिला मिल जाएगा. मुझे यकीन है तुम अपने वतन से आज भी उतनी ही मुहब्बत करते हो जितनी वतन छोड़ते वक्त करते थे.’

गुनाहों की सजा तो कानून देता है, लेकिन किसी का दिल तोड़ने की सजा देता है खुद का अपना दिल.

‘तू आए न आए,

लगी हैं निगाहें

सितारों ने देखी हैं

झुकझुक के राहें…’

इस गजल का एकएक शब्द खंजर बन कर मेरे सीने में उतरने लगा और मैं स्टेयरिंग पर सिर पटकपटक कर रो पड़ा.

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