ख्वाहिश: क्या हट पाया शोभा का ‘बांझ’ होने का ठप्पा

लेखिका- पुष्पा गोयल

ट्रिंग… ट्रिंग… फोन की घंटी बज रही थी. घड़ी में देखा, तो रात के साढ़े 12 बजे थे. इतनी रात में किस का फोन हो सकता है. किसी बुरी आशंका से मन कांप उठा. रिसीवर उठाया तो दूसरी ओर से अशोक की भर्राई हुई आवाज थी, “दीदी शोभा शांत हो गई. वह हम सब को छोड़ कर दिव्यलोक को चली गई.”

कुछ पल को मैं ठगी सी बैठी रही. फोन की आवाज से मेरे पति सुनील भी जाग गए थे. मैं ने उन्हें स्थिति से अवगत कराया. हम ने आपस में सलाह की और फिर मैं ने अशोक को फोन मिलाया, “अशोक, हम जल्दी ही सुबह जयपुर पहुंच जाएंगे, हमारा इंतजार करना.”

सुबह 5 बजे हम दोनों अपनी गाड़ी से जयपुर के लिए रवाना हो गए. दिल्ली से जयपुर पहुंचने में 5 घंटे लगते हैं. वैसे भी सुबहसुबह सड़कें खाली थीं. अत: 4 घंटे में ही पहुंच जाने की आशा थी. रास्तेभर शोभा का खयाल आता रहा.

अतीत की यादें चलचित्र की भांति आंखों के आगे घूमने लगीं.

शोभा मेरे छोटे भाई अशोक की पत्नी थी. वह बहुत मृदुभाषी, कार्यकुशल और खुशमिजाज की थी. याद हो आया वह दिन, जब विवाह के बाद वरवधू का स्वागत करने के लिए मां ने पूजा का थाल मेरे हाथ में पकड़ा दिया. वैसे, बड़ी भाभी का हक बनता था वरवधू को गृहप्रवेश करवाने का. किंतु बड़ी भाभी की तबियत ठीक नहीं थी, वह पेट से थीं और डाक्टर ने उन्हें बेडरेस्ट के लिए कहा हुआ था. अत: आरती का थाल सजा कर मैं ने ही वरवधू को गृहप्रवेश कराया था. बनारसी साड़ी में लिपटी हुई सिमटी सी संकुचित सी खड़ी थी.

अशोक ने उसे मेरा परिचय देते हुए कहा, “ये मेरी बड़ी दीदी हैं, मुझ से 10 साल बड़ी हैं, मेरे लिए मां समान हैं.”

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दोनों ने मेरे पैर छुए. मैं ने भी दोनों को प्यार से गले लगा लिया. विवाह के बाद की प्रथाएं संपन्न करवा कर मैं वापस दिल्ली लौट आई.
2 महीने बाद भाभी की जुड़वा बच्चियों हुईं, जिन का नाम सिया और जिया रखा गया.

प्रसव के बाद भाभी बहुत कमजोर हो गई थीं. अत: घर का सारा कार्यभार शोभा ने संभाल लिया. उसे बच्चों से बहुत प्यार था. वह बच्चों का खयाल बहुत उत्साहित हो कर रखती थी.

मां सारी रिपोर्ट विस्तार से मुझे फोन पर बतलाया करती थीं. बच्चों के प्रति शोभा का अपनत्व देख कर भाभी को बहुत अच्छा लगता था.

जब सिया और जिया का नर्सरी स्कूल में दाखिला हुआ तो शोभा उन्हें तैयार करने से ले कर उन के जूते पौलिश करती, उन्हें नाश्ता करवा के टिफिन पैक कर के उन के स्कूल बैग में रख देती और टिफिन पूरा खत्म करना है, यह भी हिदायत दे देती थी. कभीकभी उन को होमवर्क करने में भी वह मदद करती थी. घर में सब सुचारू रूप से चल रहा था.
शोभा के विवाह को 4 वर्ष हो गए थे. मां जब भी मुझे फोन करती थीं, उन की बातों में कुछ बेचैनी का आभास होता था. वे दिल की मरीज थीं. मैं ने जोर दे कर उन की बेचैनी का कारण जानना चाहा, तो उन्होंने बताया, “अब अशोक की शादी को 4 साल हो गए हैं. अगर उस को एक बेटा हो जाता तो मैं पोते का मुंह देख कर दुनिया से जाती.

“न जाने कब मुझे बुला लें,” मैं उन्हें सांत्वना देती रहती थी कि धैर्य रखो. सब ठीक हो जाएगा.

मैं ने मां की इच्छा शोभा तक पहुंचा दी तो वह हंस कर बोली, “दीदी आजकल पोता और पोती में कोई फर्क नहीं होता. सिया और जिया भी तो अपनी हैं. वही मेरे बच्चे हैं,” बच्चों के प्रति उस की आत्मीयता मुझे बहुत अच्छी लगी.

जिस बात का डर था, वही हुआ. अचानक मां को दिल का दौरा पड़ा और पोते की चाहत लिए हुए वे इस दुनिया से चल बसीं.

शोभा के विवाह को 6 वर्ष हो चुके थे. मैं ने लक्ष्य किया कि अब उस के मन में संतान की चाह प्रबल हो रही थी. अशोक ने कई डाक्टरों से संपर्क किया. कुछ डाक्टरी जांच भी हुई, किंतु नतीजा संतोषप्रद नहीं था. मेरे आग्रह पर दोनों दिल्ली भी आए. मेरी जानकार डाक्टर ने रिपोर्ट देख कर यही निष्कर्ष निकाला कि शोभा मां नहीं बन सकती.

अशोक ने सब तरह के उपचार किए, चाहे आयुर्वेदिक हो या होमियोपैथी. यहां तक कि कुछ रिश्तेदारों के कहने पर झाड़फूंक का भी सहारा लिया, किंतु निराश ही होना पड़ा. इस का असर शोभा के स्वास्थ्य पर पड़ने लगा.
शोभा प्राय: फोन कर के मुझे इधरउधर की बहुत सी खबरें देती रहती थी. उस ने एक घटना का जिक्र किया कि कुछ दिन पहले उस के किसी दूर के रिश्तेदार के यहां पुत्र जन्म का उत्सव था. वहां अशोक और शोभा के साथसाथ बड़े भैयाभाभी भी आमंत्रित थे. वहां पहुंच कर जब शोभा ने नवागत शिशु को पालने में झूलते देखा तो वह अपने को रोक ना पाई और आगे बढ़ कर बच्चे को गोद में उठा लिया. तभी पीछे से बच्चे की दादी ने उस के हाथ से बच्चे को छीन लिया और अपनी बहू को डांटते हुए कहा, “तेरा ध्यान कहां है? देख नहीं रही बच्चे को बांझ ने उठा लिया है.”

शोभा ने बताया कि बड़ी भाभी भी वहीं खड़ी थीं. यह बात बतलाते समय शोभा की आवाज में पीड़ा झलक रही थी. मेरा मन संवेदना से भर उठा.

आशोभा ने बतलाया कि अब सिया और जिया उस के पास नहीं आती हैं. या यों कहिए कि भाभी उन बच्चों को शोभा के पास नहीं आने देतीं. इस का कारण भी वह समझ गई थी.

बांझपन का एहसास शोभा को अंदर ही अंदर खोखला कर रहा था. मैं अपनी गृहस्थी में बहुत व्यस्त हो गई थी. मेरे दोनों बच्चे विवाह योग्य थे. अगले वर्ष मेरे पति रिटायर होने वाले थे. अतः हम भविष्य की योजनाओं में व्यस्त हो गए थे. कभीकभी मैं शोभा को फोन कर के उन की कुशलक्षेम जान लेती थी.
फिर एक दिन अशोक का फोन आया. बातचीत से लगा कि वह बहुत परेशान है. मैं ने 3-4 दिन के लिए जयपुर का प्रोग्राम बना लिया. फीकी मुसकराहट से शोभा ने स्वागत किया. वह बहुत कमजोर हो गई थी. अशोक उस की स्थिति से बहुत चिंतित हो गया था. मुझे लगा कि ‘बांझ’ शब्द ने उस को भीतर तक आहत कर दिया है. वह बोली, “अब तो सिया और जिया भी मेरे पास नहीं आती.”

मैं ने प्यार से शोभा को अपने पास बैठाया और कहा, “मेरी बात ध्यान से सुनो और समझने की कोशिश करो. मैं चाहती हूं कि तुम किसी नवजात शिशु को गोद ले लो या कुछ अच्छी संस्थाएं हैं, जहां से बच्चे को लिया जा सकता है. ऐसा करने से एक बच्चे का भला हो जाएगा. उसे एक प्यारी मां मिल जाएगी और तुम्हें एक प्यारा बच्चा मिल जाएगा. यह एक नेक कार्य होगा. एक बच्चे का जीवन अच्छा बन जाएगा. तुम चाहो तो इस में मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं.”

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लेकिन शोभा ने गंभीरता से उत्तर दिया, “दीदी, मैं अपनी तकदीर तो बदल नहीं सकती. यदि मेरी तकदीर में संतान का सुख लिखा ही नहीं है तो गोद ले कर भी मैं सुखी नहीं रह पाऊंगी,” कुछ रुक कर वह फिर बोली, “दीदी, मैं अपनी कोख से जन्मा बच्चा चाहती हूं, गोद लिया हुआ नहीं.”

वह अपने फैसले पर अडिग थी और मैं उस के फैसले के आगे निरुतर हो गई.

15 दिन बाद अशोक का फोन आया, वह आवाज से बहुत परेशान लग रहा था. उस ने बताया कि शोभा अब अकसर बीमार रहती है. उसे भूख नहीं लगती है और जबरदस्ती कुछ खाती है तो हजम नहीं होता उलटी हो जाती है. मैं ने सलाह दी कि तुरंत डाक्टरी जांच करवाओ. शोभा की तरफ से मुझे चिंता हो गई. अत: अशोक को सहारा देने के मकसद से मैं ने 3-4 दिन का जयपुर जाने का कार्यक्रम बना लिया.

अशोक ने शोभा के सारे टेस्ट करवा लिए थे. मेरे पहुंचने के अगले दिन वह अस्पताल से रिपोर्ट ले आया. वह बहुत उदास था. मेरे पूछने पर उस ने बताया कि शोभा की किडनी में कैंसर है, जो बहुत फैल गया है. अगर एक महीने पहले जांच करवा लेते तो शायद आपरेशन द्वारा किडनी निकाल देते, लेकिन अब तो कैंसर किडनी के बाहर तक फैल गया है. एक और विशेष बात जो डाक्टर ने बतलाई, वह यह कि शोभा प्रेग्नेंट भी है. प्रेगनेंसी की अभी शुरुआत ही है. एक हफ्ते बाद निश्चित तौर पर पता चल पाएगा. अचरज से मेरा मुंह खुला रह गया. समझ नहीं आया कि दुखी होऊं या खुशी मनाऊं.

शोभा ने मेरी और अशोक की बातें सुन ली थीं. वह मुसकराते हुए बोली, “दीदी, अशोक तो यों ही घबरा जाते हैं. मैं सहज में इन का पीछा छोड़ने वाली नहीं हूं और अब तो मुझे जीना ही है. उस की बातें आज भी मेरे कानों में गूंज रही हैं.
बाद में अशोक ने मुझे बतला दिया था कि डाक्टरों के अनुसार गर्भ को गिरा देने में ही बेहतरी है, क्योंकि कैंसर किडनी से बाहर निकल कर फैल रहा है, अगर तुरंत आपरेशन कर के किडनी निकाल भी दें, फिर भी शोभा का जीवन एक वर्ष से अधिक नहीं होगा और अगर गर्भपात नहीं करवाया तो कैंसर के आपरेशन के बाद की थेरेपी से बच्चे पर बुरा असर पड़ सकता है. या तो वह बचेगा ही नहीं और अगर बच भी जाए तो एब्नार्मल भी हो सकता है. अत: डाक्टर की राय में गर्भपात ही उचित होगा.

शोभा ने सबकुछ सुन लिया था. वह खुश नजर आ रही थी. वह बोली, ”दीदी, मुझे यही खुशी है कि अब मुझे कोई बांझ नहीं कहेगा. डाक्टरों का निर्णय ठीक ही है. मेरे जीवन का सूर्य अस्त हो रहा है. मैं बच्चे को देख पाऊंगी या नहीं, पता नहीं. अगर बच्चा बच भी गया और विकलांग हो गया तो और भी दुःख होगा. तसल्ली यही है कि अब मेरे ऊपर से ‘बांझ’ होने का लांछन हट गया. अब मैं शांतिपूर्वक मर सकूंगी.”

सहसा कार एक झटके के साथ रुक गई. सुनील ने ब्रेक मारा था, क्योंकि सामने एक बड़ा सा गड्ढा आ गया था. मेरी विचार श्रृंखला टूट गई. अब हम जयपुर की सीमा में पहुंच गए थे. बाजार के बीच से गुजरते हुए याद आया कि यहां कई बार शोभा के साथ चाट खाने आती थी, फिर खूब शौपिंग कर के हम दोनों शाम तक घर पहुंचते थे. अब तो केवल याद ही बाकी है.

ठीक साढ़े 9 बजे हम घर पहुंच गए. गाड़ी की आवाज सुन कर अशोक बाहर आ गया. सहारा दे कर उस ने गाड़ी से उतारा और मेरे गले से लग कर जोर से रो पड़ा. अंदर पहुंच कर देखा, शोभा का शव भूमि पर रखा था, बड़ी शांत मुख मुद्रा थी जैसे कुछ कहना चाहती हो. मैं अपने को ना रोक सकी और फफक कर रो पड़ी.
वह समाप्त हो गई. 2 दिन बाद बहुत बोझिल मन से हम दोनों वापस लौट आए. रास्तेभर सोचती रही कि समाज के उलाहनों ने शोभा को बहुत चोट पहुंचाई, लेकिन मरने से पहले उसे यह खुशी थी कि वह बांझ नहीं थी, पर बच्चे की ख्वाहिश अधूरी ही रह गई.

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एक मौका और : भाग 3- हमेशा होती है अच्छाई की जीत

लेखिका- मरियम के. खान

तब एक दिन नूर ने असगर, सफदर, हुमा और अहमद चारों को बैठा कर बहुत समझाया. बिजनैस की ऊंचनीच बताईं. आमदनी के गिरते ग्राफ के बारे में उन से बात की. उन चारों ने सारा दोष नूर के सिर जड़ दिया. इतना ही नहीं उन्होंने यहां तक कह दिया, ‘‘आप का काम करने का तरीका गलत है. अभी तक आप पुरानी टेक्नोलौजी से काम कर रही हैं. एक बार नए जमाने के तकाजे के मुताबिक सब कुछ बदल दीजिए, फिर देखिए आमदनी में कैसी बढ़त होती है.’’

2-3 दिन तक इस मामले को ले कर उन के बीच खूब बहस होती रही. पुराने मैनेजर भी शामिल हुए. वे नूर का साथ दे रहे थे. चौथे दिन बड़े बेटे ने फैसला सुना दिया, ‘‘अम्मी, अब आप बिजनैस संभालने के काबिल नहीं रहीं. अब आप की उम्र हो गई है. लगता है, आप का दिमाग भी काम नहीं कर रहा. ऐसे में आप आराम कीजिए, बिजनैस हम संभाल लेंगे.’’

इतना सुनते ही नूर गुस्से से फट पड़ी, ‘‘तुम में से कोई भी इस काबिल नहीं है कि इस बिजनैस के एक हिस्से को भी संभाल सके. मैं ने सब कुछ तुम्हारे बाप के साथ रह कर सीखा था. तब कहीं जा कर मैं परफेक्ट हुई. जब तुम लोग भी इस लायक हो जाओगे तो मैं सब कुछ तुम्हें खुद ही सौंप दूंगी.’’

बच्चे इस बात पर राजी नहीं थे. माहौल में तनातनी फैल गई. फिर योजना बना कर बच्चों ने नूर को पागलखाने भेजने की योजना बनाई. इस संबंध में उन्होंने डा. काशान से बात की. वह मोटा पैसा ले कर किसी को भी पागल बना देता था. नूर के बच्चों ने नशीला जूस पिला कर उसे डा. काशान के क्लिनिक पहुंचा दिया.

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सारी कहानी सुन कर सोहेल ने कहा, ‘‘यह सब एक साजिश है. तुम्हारे बच्चों ने बिजनैस हड़पने के लिए तुम्हें पागलखाने में दाखिल करा दिया और डाक्टर ने तुम्हें ऐसी दवाएं दीं कि तुम पागलों जैसी हरकतें करने लगीं. मैं डा. काशान को अच्छी तरह समझ गया हूं. तुम घबराओ मत. मैं जरूर कुछ करूंगा. मेरी कहानी भी कुछ तुम्हारे जैसी ही है, बाद में कभी सुनाऊंगा.’’

उस क्लिनिक में शमा नाम की 24-25 साल की एक खूबसूरत लड़की भी कैद थी. सोहेल ने उस के बारे में बताया कि यह एक बहुत बड़े जमींदार की बेटी है. एक दुर्घटना में इस के मांबाप का इंतकाल हो गया. मांबाप ने शमा की शादी तय कर दी थी. इस से पहले कि वह उस की शादी करते, दोनों चल बसे. उन की मौत के बाद चाचा ने उन की प्रौपर्टी पर कब्जा करने के लिए शमा को यहां भरती करा दिया.

वह जवान और मजबूत इच्छाशक्ति वाली थी. दवाएं देने के बाद भी जब उस पर पागलपन नहीं दिखा तो डा. काशान ने राहिल से कहा कि शमा को दवाएं देने के साथ बिजली के शाक भी दें.

ये सारे काम राहिल करता था. 2-4 बार शाक देने के बाद राहिल के दिल में शमा की बेबसी और मासूमियत देख कर मोहब्बत जाग उठी. उस ने उसे शाक देने बंद कर दिए.

राहिल ने शमा को बताया कि उस का सगा चाचा ही उसे नशे की हालत में यहां छोड़ गया था और उसे पूरी तरह पागल बनाने के उस ने पूरे 20 लाख दिए थे.

सारी बातें सुन कर शमा रो पड़ी. तनहाई की मोहब्बत और हमदर्दी ने रंग दिखाया और वह राहिल से प्यार करने लगी. राहिल के लिए यह मोहब्बत किसी अनमोल खजाने की तरह थी. उसे जिंदगी में कभी किसी का प्यार नहीं मिला था. उस की आंखों में एक अच्छी जिंदगी के ख्वाब सजने लगे. पर उस के लिए इस जिंदगी को छोड़ना नामुमकिन था.

वह डा. काशान को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता था. अगर जाता भी तो उसे ढूंढ कर मार दिया जाता. क्योंकि काशान के गुनाह के खेल के सारे राज वह जानता था. उस की जबान खुलते ही काशान बरबाद हो जाता. उस ने सोचा कि उसे तो मरना ही है, क्यों न शमा की जिंदगी बचा ली जाए. उस ने कहा, ‘‘सुनो शमा, मैं तुम्हें यहां से निकाल दूंगा. तुम अपने चाचा के पास चली जाओ.’’

शमा लरज गई. उस ने तड़प कर राहिल का हाथ पकड़ लिया और कहा, ‘‘मैं कहीं नहीं जाऊंगी. मैं अब आप के साथ ही जिऊंगी और मरूंगी.’’

राहिल को तो जैसे नई जिंदगी मिल गई. उस ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें एक राज की बात बता रहा हूं. डा. काशान ने इस क्लिनिक को तबाह करने का हुक्म दिया है, यहां कोई नहीं बचेगा.’’

‘‘राहिल, तुम इतने पत्थरदिल नहीं हो सकते. तुम इस जुर्म का हिस्सा नहीं बनोगे. यह 17 लोगों की जिंदगी का सवाल है. तुम्हें मेरी कसम है. तुम ऐसा हरगिज नहीं करना.’’ वह बोली.

‘‘मैं पूरी कोशिश करूंगा कि यह काम न करूं, पर उस से पहले मैं तुम्हें एक महफूज जगह पहुंचा देना चाहता हूं. वहां पहुंचा कर मैं तुम से मिलता रहूंगा. फोन पर बात भी करता रहूंगा.’’ राहिल ने कहा.

दूसरे दिन ही मौका देख कर उस ने बहुत खामोशी से शमा को लांड्री के कपड़े ले जाने वाली गाड़ी में कपड़ों के नीचे छिपा कर क्लिनिक से निकाल दिया. साथ ही एक फ्लैट का पता बता कर उसे उस की चाबी दे दी.

शमा सब की नजरों से बच कर उस फ्लैट तक पहुंच गई. यह फ्लैट राहिल का ही था पर इस के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था. वहां खानेपीने का सब सामान था.

राहिल की दी हुई दवाओं से अब शमा की तबीयत भी ठीक हो रही थी. राहिल ने उसे बताया कि वह डा. काशान का क्लिनिक तबाह कर के बाहर जाने की फिराक में है. डा. काशान ने मरीजों के रिश्तेदारों को सब बता कर उन से काफी पैसे ऐंठ लिए हैं. किसी को भी उन की मौत से कोई ऐतराज नहीं है.

क्लिनिक से शमा के गायब हो जाने के बाद उस की गुमशुदगी की 1-2 दिन चर्चा रही. डा. काशान वैसे ही परेशान चल रहा था. पता चला कि शमा अपने घर नहीं पहुंची है. पर उस के चाचा के पास से कोई खबर न आने पर काशान निश्चित हो कर बैठ गया.

शमा की मोहब्बत ने राहिल को पूरी तरह बदल दिया था. बचपन से वह डा. काशान के साथ था. इस बीच उस के सामने 30 मरीज दुनिया से रुखसत हो चुके थे. जिस किसी को मारना होता था, उसे एक इंजेक्शन दे दिया जाता था, वह पागलों जैसी हरकतें करने लगता था. उस के 12 घंटे बाद डा. काशान मरीज को एक और इंजेक्शन लगाता. उस इंजेक्शन के लगाने के कुछ मिनट बाद ही मरीज ऐंठ कर खत्म हो जाता.

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मौत इतनी भयानक होती थी कि राहिल खुद कांप जाता था. डा. काशान मरीज की लाश डेथ सर्टिफिकेट के साथ उस के रिश्तेदारों को सौंप देता था. जिस की एवज में वह उन से एक मोटी रकम वसूल करता था.

शमा की मोहब्बत ने राहिल के अंदर के इंसान को जगा दिया था. 17 लोगों को एक साथ मारना उस के वश की बात नहीं थी. उस ने सोचा कि अगर वह पुलिस को खबर करता है तो वह खुद भी पकड़ा जाएगा. यह दरिंदा तो पैसे दे कर छूट जाएगा.

डा. काशान ने क्लिनिक खत्म करने की सारी जिम्मेदारी राहिल को सौंप दी थी. राहिल और क्लिनिक में काम करने वालों को काशान ने अच्छीखासी रकम दे दी थी. उसी रात क्लिनिक उड़ाना था. डा. काशान ने अपनी पूरी तैयारी कर ली.

रकम वह पहले ही बाहर के बैंकों में भेज चुका था. 10 हजार डौलर वह अपने साथ ले जा रहा था. रात 2 बजे उस की फ्लाइट थी. वह बैठा हुआ बड़ी बेचैनी से तबाही की खबर मिलने का इंतजार कर रहा था. तभी 8 बजे उस के मोबाइल पर राहिल का फोन आया, ‘‘बौस, यहां एक बड़ा मसला हो गया है.’’

‘‘कैसा मसला? जो भी है तुम उसे खुद सौल्व करो.’’ डा. काशान ने उस से कहा.

‘‘मैं नहीं कर सकता. आप का यहां आना जरूरी है, नहीं तो आज रात के प्लान पर अमल नहीं किया जा सकेगा. मैं आप को फोन पर कुछ नहीं बता सकता.’’ राहिल ने बताया.

डा. काशान ने सोचा आज की रात क्लिनिक बरबाद होना जरूरी है, क्योंकि कुछ लोगों को इस की भनक मिल चुकी थी. कहीं कोई मसला न खड़ा हो जाए, सोचते हुए उस ने अपना एक सूटकेस कार में रखा और क्लिनिक की तरफ रवाना हो गया.

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लौकडाउन : मालिनी ने शांतनु को क्यों ठुकरा दिया था?

मालवा अपने इतिहास के लिए प्रसिद्ध है. जो लोग मालवा के इतिहास को जानते हैं, उन्हें आज भी यहां की मिट्टी में सौंधीसौंधी गंध आती है. इसी मालवा का सुप्रसिद्ध शहर है इंदौर.

पिछले 50-55 सालों में नगरोंमहानगरों ने बहुत तरक्की की है. स्थिति यह है कि एक नगर में 2-2 नगर बन गए हैं. एक नया, दूसरा पुराना. इंदौर की स्थिति भी यही है. शहरों या महानगरों में अंदर पुराने शहरों की स्थितियां भी अलग होती हैं. छोटेछोटे घर, पतली गलियां और इन गलियों के अपने अलग मोहल्ले.

खास बात यह कि इन गलियोंमोहल्लों में लोग एकदूसरे को जानते भी हैं और मानते भी हैं. जरूरत हो तो मोहल्ले के लोगों से हर किसी का खानदानी ब्यौरा मिल जाएगा. राय साहब का बंगला पुराने इंदौर के बीचोबीच जरूर था, लेकिन छोटा नहीं, बहुत बड़ा. बाद में बसे मोहल्ले ने बंगले को घेर जरूर लिया था. लेकिन उस की शानोशौकत में कोई कमी नहीं आई थी. वैसे एक सच यह भी था कि जो लोग बंगले के आसपास आ कर बसे थे, उन्हें जमीन राय साहब ने ही बेची थी.

राय साहब के बंगले की अपनी अलग ही खूबसूरती थी, ऐसा लगता था जैसे अथाह समुद्र में कोई टापू उग आया हो. तरहतरह के फूलों के अलावा कई किस्म के फलों के पेड़ भी थे. इस लंबेचौड़े खूबसूरत बंगलों में कुल मिला कर 3 लोग रहते थे, राय साहब, उन की पत्नी दामिनी और एक गार्ड. राय दंपति का एकलौता बेटा श्रेयस राय लंदन में पढ़ रहा था.

गार्ड का कोई खास काम नहीं था, इसलिए रात को वह घर चला जाता था. हां, राय साहब के पास 2 लग्जरी कारें थीं, जब उन्हें कहीं जाना होता था तो गार्ड ही ड्राइवर बन जाता था. वह नहीं होता तो दामिनी कार ड्राइव करती थीं.

सामाजिक और आर्थिक रूप से उच्चस्तरीय लोगों के यहां पार्टियां वगैरह होना मामूली बात है. कभीकभी ऐसी पार्टियां केवल दोस्तों तक ही सीमित होती हैं. राय साहब भी पार्टियों के शौकीन थे. वह पार्टियों में जाते भी थे और समयसमय पर बंगले पर पार्टियां करते भी थे.

एक बार दामिनी के साथ वह एक पार्टी में गए तो वहां मालिनी मिल गई. वह लंदन में उन के साथ पढ़ती थी. दोनों में अच्छीभली दोस्ती थी. हां, पारिवारिक स्तर पर दोनों में से कोई भी एकदूसरे को नहीं जानता था.

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राय साहब मन ही मन मालिनी को पसंद करते थे. उन्होंने उस से प्रेम निवेदन भी किया था, लेकिन रूपगर्विता मालिनी ने उन का प्रेम निवेदन ठुकरा दिया था. इस से राय साहब को दिली चोट पहुंची थी.

बाद में राय साहब जब भारत लौट आए तो शाही अंदाज में उन की शादी दामिनी से हो गई थी. दामिनी मालिनी से कहीं ज्यादा खूबसूरत थीं, उस में शाही नफासत भी थी. इस के बावजूद वह मालिनी को नहीं भूल सके. कभीकभी उन के दिल में मालिनी नाम का कांटा चुभ ही जाता था. यही वजह थी कि 25-30 साल बाद अचानक मालिनी को देख राय साहब को पुरानी बातें याद आ गईं.

पार्टी में राय साहब ने मालिनी को देखा जरूर, लेकिन अपनी ओर से कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. मालिनी हाथ में शराब का जाम थामे खुद ही उन के पास आ गई. राय साहब उस की ओर से अनभिज्ञ बने रहे. उसी ने नजदीक आ कर उन के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कैसे हैं शांतनु साहब?’’

मालिनी को नशा तो नहीं हुआ था, लेकिन उस की नशीली आंखों में ऐसा कुछ जरूर था, जो पल भर के लिए राय साहब को अंदर तक विचलित कर गया.

‘‘अच्छा हूं मालिनी, तुम बताओ इतने बरसों बाद यहां?’’

‘‘काम के सिलसिले में आई थी. लंबे समय बाद मुलाकात हो रही है, कभी अपने घर बुलाना.’’ मालिनी ने निस्संकोच कहा.

इस से पहले कि वह या राय साहब कुछ कहते, दामिनी ने आ कर राय साहब के हाथों में हाथ डाल दिए. फिर बोली, ‘‘अब घर चलो, कितनी देर हो गई है, आज आप ने पी ज्यादा ली है.’’

दामिनी के आने पर राय साहब ने मालिनी से दामिनी का परिचय कराया. औपचारिक बातों के बाद पतिपत्नी वहां से चले गए. राय साहब वहां से चले तो गए लेकिन मालिनी की यादों को साथ ले गए. मालिनी को भी लगा जैसे बरसों बाद कोई अपना मिला हो.

लेकिन यह जुदाई नहीं बल्कि मुलाकातों की शुरुआत थी. दोनों आए दिन पार्टियों वगैरह में मिलने लगे. एक बार मालिनी ने ताना मारा तो राय साहब ने उसे घर आने का निमंत्रण दे दिया. इस के बाद मालिनी यदाकदा बंगले पर आने लगी. अविवाहित मालिनी को राय साहब के ठाठबाठ, शानोशौकत, इतना बड़ा बंगला देख कर दामिनी की किस्मत से रश्क होने लगा. उस के मन में एक टीस सी उठी कि काश उस ने राय साहब के प्रस्ताव को ठुकराया न होता, तो आज दामिनी की जगह वह होती.

मालिनी के आनेजाने से राय साहब के दिल में दबी चिंगारी सुलगने लगी, जिसे मालिनी ने भी महसूस किया. यही भावना दोनों को एकदूसरे की तरफ खींचने लगी. नतीजतन दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं.

उम्र के इस पड़ाव पर भी दोनों पारस्परिक आकर्षण, ताजगी, रोमांस और रूमानियत से जीवन में रंग भरने लगे. धीरेधीरे मालिनी का बंगले पर आना बढ़ गया. उस ने दामिनी से भी अपनत्व भरी मित्रता कर ली थी.

बढ़ते हुए कदमों ने मालिनी व राय साहब को एकदूसरे के बिलकुल नजदीक ला दिया था. दोनों प्रेम में घायल पंछियों की तरह खुले आसमान में उड़ान भरना चाहते थे. यह जानते हुए भी कि यह संभव नहीं है. एक दिन मौका मिला तो मालिनी ने राय साहब से कहा, ‘‘शांतनु, ऐसा कब तक चलेगा, अब दूरियां बरदाश्त नहीं होतीं.’’

राय साहब ने तो कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन किस्मत ने जल्दी दोनों को मौका दे दिया.

उस दिन राय साहब ने बंगले पर छोटी सी पार्टी रखी थी, दोस्तों के लिए. मालिनी को भी बुलाया था. देर रात तक चली पार्टी का नशा पूरे शबाब पर था.

मालिनी ने चुपके से दामिनी के ड्रिंक में नींद की गोलियां मिला दीं. अधूरी तमन्नाओं और रात रंगीन करने की चाहत ने उसे अंधा बना दिया था.

जब नशे का असर शुरू होने लगा तो वह दामिनी को उस के कमरे में ले गई. राय साहब ने देखा तो पीछेपीछे आ कर पूछा, ‘‘दामिनी को क्या हुआ?’’

मालिनी ने उन्हें चुप कराते हुए कहा, ‘‘पार्टी खत्म करो, फिर बात करेंगे. सब ठीक है.’’

पलभर रुक कर उस ने राय को सब कुछ बता कर कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो. उसे कुछ नहीं होगा. बस नशा थोड़ा ज्यादा हो गया है. अब वह सुबह तक नहीं उठेगी. बस रात की ही बात है.’’ कहते हुए मालिनी राय साहब के गले लग गई.

लेकिन तभी अचानक दामिनी उठ गई, वह नशे में थी. यह देख मालिनी डर गई. जल्दी में कुछ नहीं सूझा तो उस ने दामिनी को धक्का दे दिया, जिस से वह पलंग से टकरा कर वहीं लुढ़क गई.

नशे में चूर राय साहब के लिए उस वक्त आंख और कान मालिनी बनी हुई थी, इसलिए वह इस मामले की गहराई में नहीं गए. उन्होंने वही माना जो मालिनी ने कहा.

पार्टी खत्म हो गई. विदा ले कर सब चले गए. राय साहब ने वेटरों को भी मेहनताना दे कर भेज दिया.

सुबह जब नशे की खुमारी उतरी तो राय साहब को अपनी गलती का अहसास हुआ. वह लंबे डग भरते हुए अपने कमरे की तरफ भागे. लेकिन दामिनी कमरे में नहीं थी.

उन्होंने बाथरूम का दरवाजा खोला तो मुंह से चीख निकल गई. दामिनी बाथटब के अंदर पानी में पड़ी थी. राय साहब ने उसे बाथटब से बाहर निकाल कर पेट से पानी निकालने का प्रयास किया. मुंह से सांस देने की कोशिश की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. दामिनी का शरीर ठंडा पड़ चुका था.

राय साहब की चीख सुन कर मालिनी दौड़ी आई. दामिनी को निस्तेज देख कर उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, ये सब कैसे हो गया?’’ बात उस के गले में अटक रही थी. आंखें डबडबाने को थीं.

दामिनी के शव को देख उस ने रुआंसी हो कर कहा, ‘‘मैं ने ड्रिंक में सिर्फ नींद की गोलियां मिलाई थीं. मैं इस की जान नहीं लेना चाहती थी.’’

राय साहब ने उसे गुस्से में परे धकेल दिया. फिर चीख कर बोले, ‘‘जाओ, जल्दी से किसी डाक्टर को बुलाओ. यह नहीं होना चाहिए था.’’

मालिनी के चेहरे पर भय उतर आया था. फिर भी उस ने राय साहब को शांत करने की कोशिश की.

राय साहब गुस्से में बड़बड़ा रहे थे. मालिनी ने उन के कंधे पर हाथ रख कर सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘तुम शांत हो जाओ, इस की सांस बंद हो चुकी है. डाक्टर से क्या कहोगे? पुलिस केस बनेगा. तहकीकात होगी. बात का बतंगड़ बन जाएगा. शाम को चुपचाप दाह संस्कार कर देंगे, इसी में हमारी भलाई है.

‘‘इन परेशानियों से बचने के लिए हमारा चुप रहना ही ठीक रहेगा. मैं तुम्हारे साथ हूं, चिंता मत करो. मैं रात को आऊंगी. गार्ड छुट्टी पर है, कलपरसों तक आएगा. किसी को पता नहीं चलेगा.’’ मालिनी ने राय साहब को शांत कराने की कोशिश की.

मालिनी की बात से सहमत होने के अलावा राय साहब के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था. उन्हें समझाने के बाद मालिनी बोली, ‘‘अब मैं जा रही हूं. शाम को आऊंगी. तुम्हारी गाड़ी ले जा रही हूं. चाबी दे दो.’’

राय साहब से कार की चाबी ले कर मालिनी बाहर निकल गई. राय साहब उसे छोड़ने बाहर आए. वह कार ले कर निकल गई तो मुख्य गेट उन्होंने ही बंद किया.

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राय साहब ने किसी तरह दिन काटा और शाम को मालिनी के आने का इंतजार करने लगे. मन को बहलाने के लिए वह टीवी पर समाचार सुन रहे थे, तभी एक खबर ने उन्हें चौंका दिया. देश में कोरोना महामारी फैलने की वजह से जनता कर्फ्यू लगा दिया गया था.  किसी को भी घर से बाहर निकलने की मनाही थी. बात साफ थी आज रात वे दामिनी के शव के साथ बाहर नहीं जा सकते थे.

राय साहब ने जल्दी से मालिनी को फोन किया, ‘‘तुम अभी घर आ जाओ, हमें दाह संस्कार करना होगा. लाश को ज्यादा समय तक घर में नहीं रखा जा सकता.’’

लेकिन मालिनी ने असमर्थता जाहिर करते हुए आने से इनकार कर दिया. उस ने राय साहब को समझाने की कोशिश की कि शहर भर में पुलिस तैनात है. मैं नहीं आ सकती. कल आती हूं. बस एक ही दिन की तो बात है.

राय साहब क्या करते, उन्हें दिन भर पत्नी की लाश के साथ अकेले रहना था. वह बंगले में घूमघूम कर वक्त बिताने लगे. न खाना, न पीना.

राय साहब पर बिजली तब गिरी, जब प्रधानमंत्री ने अगले 21 दिन के लिए लौकडाउन की घोषणा कर दी. मालिनी नहीं आ सकी तो राय साहब को आत्मग्लानि होने लगी. उन के दिलोदिमाग में भय के बादल मंडराने लगे थे. कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने जल्दी से बंगले की सारी खिड़की, दरवाजे बंद कर लिए. बाहर गेट पर ताला लगा दिया, जिस से कोई अंदर न आ सके.

कुछ पल शांत बैठ कर उन्होंने खुद को संभाला. एक कार मालिनी ले गई थी. गनीमत थी कि दूसरी खड़ी थी. उन्होंने सोचा रात में लाश को गाड़ी में ले जा कर ठिकाने लगा देंगे. बंगले से बाहर के लोग अंदर कुछ नहीं देख सकेंगे.

लेकिन बंगले के चारों तरफ सीसीटीवी कैमरे लगे थे, जिन से राय साहब को बंगले के बाहर सड़क पर आनेजाने वालों की जानकारी मिल जाती थी.

राय साहब ने अपने मोबाइल पर सीसीटीवी फुटेज देखे, चारों तरफ मुस्तैदी से तैनात पुलिसकर्मी नजर आए. लौकडाउन का सख्ती से पालन कराया जा रहा था. आनेजाने वालों की चैकिंग हो रही थी. ऐसे में बाहर जाना खतरे से खाली नहीं था.

इतने दिन लाश के साथ गुजारना भयावह था. वक्त का पहिया ऐसा घूमा कि जिंदगी ठहर सी गई. राय साहब की हालत खराब होने लगी. लाश के साथ रहना उन की मजबूरी थी. बारबार बैडरूम में जा कर वह चैक करते कि दामिनी का शरीर सुरक्षित है या नहीं.

पूरे बंगले में सिर्फ वह थे और दामिनी का मृत शरीर. लाश को घर में रखे रहना चिंता की बात थी. शरीर के सड़ने से बदबू फैल सकती थी. उन्होंने बैडरूम में एसी चला कर दामिनी के शरीर को पलंग पर लिटा दिया और कमरे का दरवाजा बंद कर दिया. कभी वह कमरे के बाहर जाते तो कभी खिड़कियों से झांकते. उन्हें बाहर जाने से भी डर लगने लगा था.

घबराहट धीरेधीरे कुंठा में परिवर्तित होने लगी थी. चेहरे पर भय और ग्लानि के भाव नजर आने लगे थे. वह जितना खुद को संयत करते, दामिनी की मौत को ले कर उन्हें उतना ही अपराधबोध होता. ऐसी स्थिति में उन्हें एकएक दिन गुजारना मुश्किल हो रहा था.

एक दिन वह कमरे में दामिनी को देखने गए तो न जाने किस भावावेश में पत्नी के मृत शरीर से लिपट गए और पागलों की तरह रोने लगे. उन के मुंह से खुदबखुद अपराधबोध के शब्द निकल रहे थे.

‘‘दामिनी, मुझे माफ कर दो. तुम्हें मेरी गलती की इतनी सजा मिली. इस घर के कोनेकोने में तुम्हारी यादें बसी हैं. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता, प्लीज वापस आ जाओ. मैं ने मालिनी पर विश्वास कर के गलती की. मुझे माफ कर दो,’’ रोतेरोते उन की आंखें लाल हो गईं.

थोड़ी देर बाद राय साहब ने महसूस किया जैसे कोई उन के हाथ को सहला रहा हो. किसी की गर्म सांसें उन के चेहरे पर महसूस हुईं. उन के आगोश में कोई खास लिपटा था. वह मदमस्त से उस निश्चल धारा में बहने लगे. तभी अचानक न जाने कहां से उन के पालतू कुत्ते आ गए और उन के साथ खेलने लगे.

खेलतेखेलते कुत्तों ने अचानक उन के हाथों की अंगुलियों को मुंह में दबा लिया. राय साहब अंगुलियों को छुड़ाना चाहते थे, लेकिन उन की पकड़ मजबूत थी. कुत्तों के पैने दांतों के बीच दबी अंगुलियां कट सकती थीं. इस डर से वह जोर से चिल्लाने लगे. भयभीत हो कर उन्होंने आंखें खोलीं तो खुद को बिस्तर पर पाया. यह स्वप्न था. याद आया, उन के कुत्ते तो एक महीना पहले ही मर गए थे. शायद उन्हें जहर दिया गया था.

राय साहब की हालत पागलों वाली हो गई थी. खाने की चिंता तक नहीं रहती थी. सुबह को डिलिवरी बौय गेट के बाहर दूध और ब्रेड रख जाता था, उसी से काम चलाना होता था. उन्होंने देखा कि दामिनी के हाथ में उन का हाथ फंसा हुआ है. वह उन के शरीर से लिपटी हुई थी.

डर से राय साहब की चीख निकल गई. वह पसीने से तरबतर थे. भय से कांपते हुए वह जमीन पर बैठ गए. सांस उखड़ने लगी, गला सूख रहा था. किसी तरह उठ कर लड़खड़ाते कदमों से वह किचन की तरफ भागे. वहां खड़े हो कर उन्होंने 2-3 गिलास पानी पी कर खुद को संयत किया.

एक दिन राय साहब मानसिक उद्विग्नता की स्थिति में दामिनी की लाश के पास बैठे थे. तभी उन्होंने महसूस किया कि कोई मजबूती से उन का हाथ पकड़े है, लेकिन दिखा कोई नहीं. वह सोचने लगे, दामिनी ही होगी. इस तरह हाथ वही पकड़ती थी.

राय साहब को पत्नी की लाश के साथ घर में रहते हुए 15-20 दिन हो गए थे. हर एक दिन एकएक साल की तरह लग रहा था. बढ़ी हुई दाढ़ी, बिखरे बाल, भयग्रस्त चेहरा उन के सुंदर चेहरे को डरावना बना रहे थे.

घर में जो मिला, खा लिया. अब वह खाने से ज्यादा पीने लगे थे. गनीमत थी कि उस रोज की पार्टी की काफी शराब बच गई थी, वरना वह भी नहीं मिलती.

धीरेधीरे राय साहब को इन बातों की आदत सी पड़ने लगी. पहले वह लाश को देख कर डरते थे. लेकिन अब उस से बातें भी करने लगे थे. उन की मानसिक स्थिति अजीब सी हो गई थी.

दामिनी उन की कल्पना में फिर से जी उठी. उस की अच्छाई, उस का निस्वार्थ प्रेम अकल्पनीय था. उन की दुनिया, भले ही वह खयालों में हो, फिर से दामिनी के इर्दगिर्द सिमटने लगी. काल्पनिक दुनिया में उन्होंने दामिनी से अपने सारे गिलेशिकवे दूर कर लिए.

अब उन की काल्पनिक दामिनी हर समय उन के साथ रहने लगी. नशे में धुत राय साहब घंटों तक दामिनी से बातें करने लगे. रोजाना दामिनी का शृंगार करना और उस के पास ही सो जाना, उन की दिनचर्या में शामिल हो गया.

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आत्मग्लानि, अकेलापन और दुख राय साहब को मानसिक रूप से विक्षिप्त बना रहा था. बिछोह की अग्नि प्रबल होती जा रही थी. एक दिन वह पागलों जैसी हरकतें करने लगे. दामिनी के सड़ते हुए शरीर को गंदा समझ कर वह गीले कपड़े से साफ करने लगे तो शरीर से चमड़ी निकलने लगी.

तेज बदबू आ रही थी. फिर भी राय साहब किसी पागल दीवाने की तरह उस का शृंगार करने लगे. फिर उन्होंने अलमारी से शादी वाली साड़ी निकाली और दामिनी के शरीर पर डाल कर उसे दुलहन जैसा सजाने की कोशिश की. फिर मांग में सिंदूर भर कर निहारने लगे.

उन की नजर में वह वही सुंदर दामिनी थी. वह दामिनी से बातें करने लगे, ‘‘देखो दामिनी, कितनी सुंदर लग रही हो तुम.’’

राय साहब ने उस के माथे पर अपने प्यार की मुहर लगाई, फिर गले लग कर बोले, ‘‘अब तुम आराम करो, तुम तैयार हो गई हो. मैं भी नहा कर आता हूं. हमें बाहर जाना है.’’

राय साहब किसी पागल की तरह मुसकराए. वह कई दिनों से सोए नहीं थे. अब सुकून से सोना चाहते थे. आंखों में नींद भरी थी. पर आंखें थीं कि बंद नहीं हो रही थीं. गला सूख रहा था, उन्होंने उठ कर पानी पीया.

फिर न जाने किस नशे के अभिभूत हो कर नींद की ढेर सारी गोलियां खा लीं. उस के बाद वह बाथरूम में गए और टब में लेट गए. उन के मुंह से अस्फुट से शब्द निकल रहे थे कि आज उन का और दामिनी का पुनर्मिलन होगा.

एक महीने बाद जब लौकडाउन खत्म हुआ तो घर का गार्ड काम पर लौट आया. उस ने घर का दरवाजा देखा, वह अंदर से बंद था. फिर फोन लगाया, लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया. काफी देर तक घंटी बजाने के बाद भी किसी ने दरवाजा नहीं खोला.

कोई रास्ता न देख गार्ड ने पुलिस को बुलाया. बंगले के अंदर जाने पर तेज बदबू आ रही थी. सभी को किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. अंदर जा कर देखा तो राय साहब और दामिनी की लाशें पड़ी थीं. लाशें सड़ चुकी थीं. एक लाश पलंग पर सुंदर कपड़ों में थी तो दूसरी वहीं जमीन पर तकिए के साथ पड़ी थी.

वहां की हालत देख कर सब का कलेजा मुंह को आ गया. दोनों का पोस्टमार्टम कराया गया. रिपोर्ट आने पर पता चला कि दोनों की दम घुटने के कारण मौत हुई थी. यानी दोनों का कत्ल किया गया था, लेकिन किस ने? यह बात हर किसी को परेशान कर रही थी कि जब सारे दरवाजे बंद थे तो घर के अंदर 2 कत्ल कैसे हुए.

पुलिस ने जांच में आत्महत्या वाले एंगल पर भी गौर किया. इस दिशा में जांच की गई तो एक बुक रैक के पास एक मेज पर दामिनी की तसवीर रखी मिली, जिस के पास अगरबत्तियों की राख पड़ी थी. वहीं फोल्ड किया एक पेपर रखा था.

पुलिस ने खोल कर देखा. उस में राय साहब ने अपने मन के उद्गार लिखे थे. लिखा था, ‘मेरी दामिनी की हत्यारी मालिनी है. मुझे मालूम है, मालिनी मुझे भी मार डालेगी. मैं खुद भी यही चाहता हूं, क्योंकि मैं दामिनी का गुनहगार बन कर पुलिस और जेल की जलालत नहीं सह पाऊंगा. उस के पास मेरे बंगले की डुप्लीकेट चाबियां हैं. दामिनी के बिना मैं भी जीना नहीं चाहता.

‘बस एक चाहत है कि मालिनी मेरे बंगले को बेच न पाए. यह मेरे बेटे श्रेयस का है. अगर ऐसा नहीं हो पाया तो उस के इस कमीने बाप की आत्मा को कभी शांति नहीं मिल पाएगी.’

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और सीता जीत गई

बीच में एक छोटी सी रात है और कल सुबह 10-11 बजे तक राकेश जमानत पर छूट कर आ जाएगा. झोंपड़ी में उस की पत्नी कविता लेटी हुई थी. पास में दोनों छोटी बेटियां बेसुध सो रही थीं. पूरे 22 महीने बाद राकेश जेल से छूट कर जमानत पर आने वाला है. जितनी बार भी कविता राकेश से जेल में मिलने गई, पुलिस वालों ने हमेशा उस से पचास सौ रुपए की रिश्वत ली. वह राकेश के लिए बीड़ी, माचिस और कभीकभार नमकीन का पैकेट ले कर जाती, तो उसे देने के लिए पुलिस उस से अलग से रुपए वसूल करती.

ये 22 महीने कविता ने बड़ी परेशानियों के साथ गुजारे. पारधियों की जिंदगी से यह सब जुड़ा होता है. वे अपराध करें चाहे न करें, पुलिस अपने नाम की खातिर कभी भी किसी को चोर, कभी डकैत बना देती है. यह कोई आज की बात थोड़े ही है. कविता तो बचपन से देखती आ रही है. आंखें रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर खुली थीं, जहां उस के बापू कहीं से खानेपीने का इंतजाम कर के ला देते थे. अम्मां 3 पत्थर रख कर चूल्हा बना कर रोटियां बना देती थीं. कई बार तो रात के 2 बजे बापू अपनी पोटली को बांध कर अम्मां के साथ वह स्टेशन छोड़ कर कहीं दूसरी जगह चले जाते थे. कविता जब थोड़ी बड़ी हुई, तो उसे मालूम पड़ा कि बापू चोरी कर के उस जगह से भाग लेते थे और क्यों न करते चोरी? एक तो कोई नौकरी नहीं, ऊपर से कोई मजदूरी पर नहीं रखता, कोई भरोसा नहीं करता. जमीन नहीं, फिर कैसे पेट पालें? जेब काटेंगे और चोरी करेंगे और क्या…

लेकिन आखिर कब तक ऐसे ही सबकुछ करते रहने से जिंदगी चलेगी? अम्मां नाराज होती थीं, लेकिन कहीं कोई उपाय दिखलाई नहीं देता, तो वे भी बेबस हो जाती थीं. शादीब्याह में वे महाराष्ट्र में जाते थे. वहां के पारधियों की जिंदगी देखते तो उन्हें लगता कि वे कितने बड़े नरक में जी रहे हैं. कविता ने बापू से कहा भी था, ‘बापू, हम यहां औरंगाबाद में क्यों नहीं रह सकते?’

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‘इसलिए नहीं रह सकते कि हमारे रिश्तेदार यहां कम वहां ज्यादा हैं और यहां की आबोहवा हमें रास नहीं आती,’ बापू ने कहा था. लेकिन, शादी के 4-5 दिनों में खूब गोश्त खाने को मिलता था. बड़ी खुशबू वाली साबुन की टिकिया मिलती थी. कविता उसे 4-5 बार लगा कर खूब नहाती थी, फिर खुशबू का तेल भी मुफ्त में मिलता था. जिंदगी के ये 4-5 दिन बहुत अच्छे से कटते थे, फिर रेलवे स्टेशन पर भटकने को आ जाते थे. इधर जंगल महकमे वालों ने पारधी जाति के फायदे के लिए काम शुरू किया था, वही बापू से जानकारी ले रहे थे, जिस के चलते शहर के पास एक छोटे से गांव टूराखापा में उस जाति के 3-4 परिवारों को बसा दिया गया था. इसी के साथ एक स्कूल भी खोल दिया गया था. उन से कहा जाता था कि उन्हें शिकार नहीं करना है. वैसे भी शिकार कहां करते थे? कभी शादीब्याह में या मेहमानों के आने पर हिरन फंसा कर काट लेते थे, लेकिन वह भी कानून से अपराध हो गया था.

यहां कविता ने 5वीं जमात तक की पढ़ाई की थी. आगे की पढ़ाई के लिए उसे शहर जाना था. बापू ने मना कर दिया था, ‘कौन तुझे लेने जाएगा?’

अम्मां ने कहा था, ‘औरत की इज्जत कच्ची मिट्टी के घड़े जैसी होती है. एक बार अगर टूट जाए, तो जुड़ती नहीं है.’ कविता को नहीं मालूम था कि यह मिट्टी का घड़ा उस के शरीर में कहां है, इसलिए 5 साल तक पढ़ कर घर पर ही बैठ गई थी. बापू दिल्ली या इंदौर से प्लास्टिक के फूल ले आते, अम्मां गुलदस्ता बनातीं और हम बेचने जाते थे. 10-20 रुपए की बिक्री हो जाती थी, लेकिन मौका देख कर बापू कुछ न कुछ उठा ही लाते थे. अम्मां निगरानी करती रहती थीं. कविता भी कभीकभी मदद कर देती थी. एक बार वे शहर में थे, तब कहीं कोई बाबाजी का कार्यक्रम चल रहा था. उस जगह रामायण की कहानी पर चर्चा हो रही थी. कविता को यह कहानी सुनना बहुत पसंद था, लेकिन जब सीताजी की कोई बात चल रही थी कि उन्हें उन के घर वाले रामजी ने घर से निकाल दिया, तो वहां बाबाजी यह बतातेबताते रोने लगे थे. उस के भी आंसू आ गए थे, लेकिन अम्मां ने चुटकी काटी कि उठ जा, जो इशारा था कि यहां भी काम हो गया है.

बापू ने बैठेबैठे 2 पर्स निकाल लिए थे. वहां अब ज्यादा समय तक ठहर नहीं सकते थे, लेकिन कविता के कानों में अभी भी वही बाबाजी की कथा गूंज रही थी. उस की इच्छा हुई कि वह कल भी जाएगी. धंधा भी हो जाएगा और आगे की कहानी भी मालूम हो जाएगी. बस, इसी तरह से जिंदगी चल रही थी. वह धीरेधीरे बड़ी हो रही थी. कानों में शादी की बातें सुनाई देने लगी थीं. शादी होती है, फिर बच्चे होते हैं. सबकुछ बहुत ही रोमांचक था, सुनना और सोचना. उन का छोटा सा झोंपड़ा ही था, जिस पर बापू ने मोमजामा की पन्नी डाल रखी थी. एक ही कमरे में ही वे तीनों सोते थे. एक रात कविता जोरों से चीख कर उठ बैठी. बापू ने दीपक जलाया, देखा कि एक भूरे रंग का बिच्छू था, जो डंक मार कर गया था. पूरे जिस्म में जलन हो रही थी. बापू ने जल्दी से कहीं के पत्ते ला कर उस जगह लगाए, लेकिन जलन खूब हो रही थी. कविता लगातार चिल्ला रही थी. पूरे 2-3 घंटे बाद ठंडक मिली थी. जिंदगी में ऐसे कई हादसे होते हैं, जो केवल उसी इनसान को सहने होते हैं, कोई और मदद नहीं करता. सिर्फ हमदर्दी से दर्द, परेशानी कम नहीं होती है.

आखिर पास के ही एक टोले में कविता की शादी कर दी गई थी. लड़का काला, मोटा सा था, जो उस से ज्यादा अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन था तो वह उस का घरवाला ही. फिर वह बापू के पास के टोले का था, इसलिए 5-6 दिनों में अम्मां के साथ मुलाकात हो जाती थी. यहां कविता के पति की आधा एकड़ जमीन में खेती थी. 8-10 मुरगियां थीं. लग रहा था कि जिंदगी कुछ अच्छी है, लेकिन कभीकभी राकेश भी 4-5 दिनों के लिए गायब हो जाता था. बाद में पता चला कि राकेश भी डकैती या बड़ी चोरी करने जाता है. हिसाब होने पर हजारों रुपए उसे मिलते थे. कविता भी कुछ रुपए चुरा कर अम्मां से मिलने जाती, तो उन्हें दे देती थी.

लेकिन कविता की जिंदगी वैसे ही फटेहाल थी. कोई शौक, घूमनाफिरना कुछ नहीं. बस, देवी मां की पूजा के समय रिश्तेदार आ जाते थे, उन से भेंटमुलाकात हो जाती थी. शादी के 4 सालों में ही वह 2 लड़कियों की मां बन गई थी. इस बीच कभी भी रात को पुलिस वाले टोले में आ जाते और चारों ओर से घेर कर उन के डेरों की तलाशी लेते थे. कभीकभी उन के कंबल या कोई जेवर ही ले कर वे चले जाते थे. अकसर पुलिस के आने की खबर उन्हें पहले ही मिल जाती थी, जिस के चलते रात में सब डेरे से बाहर ही सोते थे. 2-4 दिनों के लिए रिश्तेदारियों में चले जाते थे. मामला ठंडा होने पर चले आते थे. इन्हें भी यह सबकुछ करना ठीक नहीं लगता था, लेकिन करें तो क्या करें? आधा एकड़ जमीन, वह भी सरकारी थी और जोकुछ लगाते, उस पर कभी सूखे की मार और कभी ओलों की बौछार हो जाती थी. सरकारी मदद भी नहीं मिलती थी, क्योंकि जमीन का कोई पट्टा भी उन के पास नहीं था. जोकुछ भी थोड़ाबहुत कमाते, वह जमीन खा जाती थी, लेकिन वे सब को यही बताते थे कि जमीन से जो उग रहा है, उसी से जिंदगी चल रही है. किसी को यह थोड़े ही कहते कि चोरी करते हैं.

पिछले 7-8 महीनों से बापू ने महुए की कच्ची दारू भी उतारना चालू कर दी थी. अम्मां उसे शहर में 1-2 जगह पहुंचा कर आ जाती थीं, जिस के चलते खर्चापानी निकल जाता था. कभीकभी राकेश रात को सोते समय कहता भी था कि यह सब उसे पसंद नहीं है, लेकिन करें तो क्या करें? सरकार कर्जा भी नहीं देती, जिस से भैंस खरीद कर दूध बेच सकें. एक रात वे सब सोए हुए थे कि किसी ने दरवाजे पर जोर से लात मारी. नींद खुल गई, तो देखा कि 2-3 पुलिस वाले थे. एक ने राकेश की छाती पर बंदूक रख दी, ‘अबे उठ, चल थाने.’

‘लेकिन, मैं ने किया क्या है साहब?’ राकेश बोला.

‘रायसेन में बड़े जज साहब के यहां डकैती डाली है और यहां घरवाली के साथ मौज कर रहा है,’ एक पुलिस वाले ने डांटते हुए कहा.

‘सच साहब, मुझे नहीं मालूम,’ घबराई आवाज में राकेश ने कहा. कविता भी कपड़े ठीक कर के रोने लगी थी.

‘ज्यादा होशियारी मत दिखा, उठ जल्दी से,’ और कह कर बंदूक की नाल उस की छाती में घुसा दी थी. कविता रो रही थी, ‘छोड़ दो साहब, छोड़ दो.’

पुलिस के एक जवान ने कविता के बाल खींच कर राकेश से अलग किया और एक लात जमा दी. चोट बहुत अंदर तक लगी. 3-4 टोले के और लोगों को भी पुलिस पकड़ कर ले आई और सब को हथकड़ी लगा कर लातघूंसे मारते हुए ले गई. कविता की दोनों बेटियां उठ गई थीं. वे जोरों से रो रही थीं. वह उन्हें छोड़ कर नहीं जा सकती थी. पूरी रात जाग कर काटी और सुबह होने पर उन्हें ले कर वह सोहागपुर थाने में पहुंची. टोले से जो लोग पकड़ कर लाए गए थे, उन सब की बहुत पिटाई की गई थी. सौ रुपए देने पर मिलने दिया. राकेश ने रोरो कर कहा, ‘सच में उस डकैती की मुझे कोई जानकारी नहीं है.’ लेकिन भरोसा कौन करता? पुलिस को तो बड़े साहब को खुश करना था और यहां के थाने से रायसेन जिले में भेज दिया गया. अब कविता अकेली थी और 2-3 साल की बेटियां. वह क्या करती? कुछ रुपए रखे थे, उन्हें ले कर वह टोले की दूसरी औरतों के साथ रायसेन गई. वहां वकील किया और थाने में गई. वहां बताया गया कि यहां किसी को पकड़ कर नहीं लाए हैं.

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वकील ने कहा, ‘मारपीट कर लेने के बाद वे जब कोर्ट में पेश करेंगे, तब गिरफ्तारी दिखाएंगे. जब तक वे थाने के बाहर कहीं रखेंगे. रात को ला कर मारपीट करने के बाद जांच पूरी करेंगे.’ हजार रुपए बरबाद कर के कविता लौट आई थी. बापू के पास गई, तो वे केवल हौसला ही देते रहे और क्या कर सकते थे. आते समय बापू ने सौ रुपए दे दिए थे. कविता जब लौट रही थी, तब फिर एक बाबाजी का प्रवचन चल रहा था. प्रसंग वही सीताजी का था. जब सीताजी को लेने राम वनवास गए थे और अपमानित हुई सीता जमीन में समा गई थीं. सबकुछ इतने मार्मिक तरीके से बता रहे थे कि उस की आंखों से भी आंसू निकल आए, तो क्या सीताजी ने आत्महत्या कर ली थी? शायद उस के दिमाग ने ऐसा ही सोचा था. जब कविता अपने टोले पर आई, तो सीताजी की बात ही दिमाग में घूम रही थी. कैसे वनवास काटा, जंगल में रहीं, रावण के यहां रहीं और धोबी के कहने से रामजी ने अपने से अलग कर के जंगल भेज दिया गर्भवती सीता को. कैसे रहे होंगे रामजी? जैसे कि वह बिना घरवाले के अकेले रह रही है. न जाने वह कब जेल से छूटेगा और उन की जिंदगी ठीक से चल पाएगी.

इस बीच टोले में जो कागज के फूल और दिल्ली से लाए खिलौने थोक में लाते, उन्हें कविता घरघर सिर पर रख कर बेचने जाती थी. जो कुछ बचता, उस से घर का खर्च चला रही थी. अम्मांबापू कभीकभी 2-3 सौ रुपए दे देते थे. जैसे ही कुछ रुपए इकट्ठा होते, वह रायसेन चली जाती. पुलिस ने राकेश को कोर्ट में पेश कर दिया था और कोर्ट ने जेल भेज दिया था. जमानत करवाने के लिए वकील 5 हजार रुपए मांग रहा था. कविता घर का खर्च चलाती या 5 हजार रुपए देती? राकेश का बड़ा भाई, मेरी सास भी थीं. वे घर पर आतीं और कविता को सलाह देती रहती थीं. उस ने नाराजगी भरे शब्दों में कह दिया, ‘क्यों फोकट की सलाह देती हो? कभी रुपए भी दे दिया करो. देख नहीं रही हो कि मैं कैसे बेटियों को पाल रही हूं,’ कहतेकहते वह रो पड़ी थी. जेठ ने एक हजार रुपए दिए थे. उन्हें ले कर कविता रायसेन गई, जो वकील ने रख लिए और कहा कि वह जमानत की अर्जी लगा देगा. उस वकील का न जाने कितना बड़ा पेट था. कविता जो भी देती, वह रख लेता था, लेकिन जमानत किसी की नहीं हो पाई थी. बस, जेल जा कर वह राकेश से मिल कर आ जाती थी. वैसे, राकेश की हालत पहले से अच्छी हो गई थी. बेफिक्री थी और समय से रोटियां मिल जाती थीं, लेकिन पंछी पिंजरे में कहां खुश रहता है. वह भी तो आजाद घूमने वाली कौम थी. कविता रुपए जोड़ती और वकील को भेज देती थी. आखिर पूरे 22 महीने बाद वकील ने कहा, ‘जमानतदार ले आओ, साहब ने जमानत के और्डर कर दिए हैं.’

फिर एक परेशानी. जमानतदार को खोजा, उसे रुपए दिए और जमानत करवाई, तो शाम हो गई. जेलर ने छोड़ने से मना कर दिया. कविता सास के भरोसे बेटियां घर पर छोड़ आई थी, इसलिए लौट गई और राकेश से कहा कि वह आ जाए. सौ रुपए भी दे दिए थे. रात कितनी लंबी है, सुबह नहीं हुई. सीताजी ने क्यों आत्महत्या की? वे क्यों जमीन में समा गईं? सीताजी की याद आई और फिर कविता न जाने क्याक्या सोचने लगी. सुबह देर से नींद खुली. उठ कर जल्दी से तैयार हुई. बच्चियों को भी बता दिया था कि उन का बाप आने वाला है. राकेश की पसंद का खाना पकाने के लिए मैं जब बाजार गई, तो बाबाजी का भाषण चल रहा था. कानों में वही पुरानी कहानी सुनाई दे रही थी. उस ने कुछ पकवान लिए और टोले पर लौट आई.

दोपहर तक खाना तैयार कर लिया और कानों में आवाज आई, ‘राकेश आ गया.’ कविता दौड़ते हुए राकेश से मिलने पहुंची. दोनों बेटियों को उस ने गोद में उठा लिया और अपने घर आने के बजाय वह उस के भाई और अम्मां के घर की ओर मुड़ गया. कविता तो हैरान सी खड़ी रह गई, आखिर इसे हो क्या गया है? पूरे 22 महीने बाद आया और घर छोड़ कर अपनी अम्मां के पास चला गया.

कविता भी वहां चली गई, तो उस की सास ने कुछ नाराजगी से कहा, ‘‘तू कैसे आई? तेरा मरद तेरी परीक्षा लेगा. ऐसा वह कह रहा है, सास ने कहा, तो कविता को लगा कि पूरी धरती, आसमान घूम रहा है. उस ने अपने पति राकेश पर नजर डाली, तो उस ने कहा, ‘‘तू पवित्तर है न, तो क्या सोच रही है?’’

‘‘तू ऐसा क्यों बोल रहा है…’’ कविता ने कहा. उस ने बेशर्मी से हंसते हुए कहा, ‘‘पूरे 22 महीने बाद मैं आया हूं, तू बराबर रुपए ले कर वकील को, पुलिस को देती रही, इतना रुपया लाई कहां से?’’ कविता के दिल ने चाहा कि एक पत्थर उठा कर उस के मुंह पर मार दे. कैसे भूखेप्यासे रह कर बच्चियों को जिंदा रखा, खर्चा दिया और यह उस से परीक्षा लेने की बात कह रहा है. उस समाज में परीक्षा के लिए नहाधो कर आधा किलो की लोहे की कुल्हाड़ी को लाल गरम कर के पीपल के सात पत्तों पर रख कर 11 कदम चलना होता है. अगर हाथ में छाले आ गए, तो समझो कि औरत ने गलत काम किया था, उस का दंड भुगतना होगा और अगर कुछ नहीं हुआ, तो वह पवित्तर है. उस का घरवाला उसे भोग सकता है और बच्चे पैदा कर सकता है.

राकेश के सवाल पर कि वह इतना रुपया कहां से लाई, उसे सबकुछ बताया. अम्मांबापू ने दिया, उधार लिया, खिलौने बेचे, लेकिन वह तो सुन कर भी टस से मस नहीं हुआ.

‘‘तू जब गलत नहीं है, तो तुझे क्या परेशानी है? इस के बाप ने मेरी 5 बार परीक्षा ली थी. जब यह पेट में था, तब भी,’’ सास ने कहा. कविता उदास मन लिए अपने झोंपड़े में आ गई. खाना पड़ा रह गया. भूख बिलकुल मर गई.

दोपहर उतरतेउतरते कविता ने खबर भिजवा दी कि वह परीक्षा देने को तैयार है. शाम को नहाधो कर पिप्पली देवी की पूजा हुई. टोले वाले इकट्ठा हो गए. कुल्हाड़ी को उपलों में गरम किया जाने लगा. शाम हो रही थी. आसमान नारंगी हो रहा था. राकेश अपनी अम्मां के साथ बैठा था. मुखियाजी आ गए और औरतें भी जमा हो गईं. हाथ पर पीपल के पत्ते को कच्चे सूत के साथ बांधा और संड़ासी से पकड़ कर कुल्हाड़ी को उठा कर कविता के हाथों पर रख दिया. पीपल के नरम पत्ते चर्रचर्र कर उठे. औरतों ने देवी गीत गाने शुरू कर दिए और वह गिन कर 11 कदम चली और एक सूखे घास के ढेर पर उस कुल्हाड़ी को फेंक दिया. एकदम आग लग गई. मुखियाजी ने कच्चे सूत को पत्तों से हटाया और दोनों हथेलियों को देखा. वे एकदम सामान्य थीं. हलकी सी जलन भर पड़ रही थी. मुखियाजी ने घोषणा कर दी कि यह पवित्र है. औरतों ने मंगलगीत गाए और राकेश कविता के साथ झोंपड़े में चला आया. रात हो चुकी थी. कविता ने बिछौना बिछाया और तकिया लगाया, तो उसे न जाने क्यों ऐसा लगा कि बरसों से जो मन में सवाल उमड़ रहा था कि सीताजी जमीन में क्यों समा गईं, उस का जवाब मिल गया हो. सीताजी ने जमीन में समाने को केवल इसलिए चुना था कि वे अपने घरवाले राम का आत्मग्लानि से भरा चेहरा नहीं देखना चाहती होंगी. राकेश जमीन पर बिछाए बिछौने पर लेट गया. पास में दीया जल रहा था. कविता जानती थी कि 22 महीनों के बाद आया मर्द घरवाली से क्या चाहता होगा?

राकेश पास आया और फूंक मार कर दीपक बुझाने लगा. अचानक ही कविता ने कहा, ‘‘दीया मत बुझाओ.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘मैं तेरा चेहरा देखना चाहती हूं.’’

‘‘क्यों? क्या मैं बहुत अच्छा लग रहा हूं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो फिर?’’

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‘‘तुझे जो बिरादरी में नीचा देखना पड़ा, तू जो हार गया, वह चेहरा देखना चाहती हूं. मैं सीताजी नहीं हूं, लेकिन तेरा घमंड से टूटा चेहरा देखने की बड़ी इच्छा है.’’ उस की बात सुन कर राकेश भौंचक्का रह गया. कविता ने खुद को संभाला और दोबारा कहा, ‘‘शुक्र मना कि मैं ने बिरादरी में तेरी परीक्षा लेने की बात नहीं कही, लेकिन सुन ले कि अब तू कल परीक्षा देगा, तब मैं तेरे साथ सोऊंगी, समझा,’’ उस ने बहुत ही गुस्से में कहा.

‘‘क्या बक रही है?’’

‘‘सच कह रही हूं. नए जमाने में सब बदल गया है. पूरे 22 महीनों तक मैं ईमानदारी से परेशान हुई थी, इंतजार किया था.’’ राकेश फटी आंखों से उसे देख रहा था, क्योंकि उन की बिरादरी में मर्द की भी परीक्षा लेने का नियम था और वह अपने पति का मलिन, घबराया, पीड़ा से भरा चेहरा देख कर खुश थी, बहुत खुश. आज शायद सीता जीत गई थी.

बदबू : कमली की अनोखी कहानी

‘‘इतनी रात गए कहां से आ रहा है? हम सब परेशान हो रहे थे कि शाम से तू किधर है…’’ बापू की यह पूछताछ किसना को अखर गई.

‘‘तुम से चुपचाप सोया भी नहीं जाता है? अरे, जरा मुझे भी सुकून से अपने हिसाब से जीने दो,’’ किसना की तल्खी देख बापू समझ गए कि उन का बेटा जरूर कोई तीर मार कर आया है.

‘चलो, इस निखट्टू ने आज कुछ तो किया,’ यह सोचते हुए बापू नींद के आगोश में गुम हो गए.

कमरे में कमली अधनींदी सी लेटी हुई थी. आहट सुन कर वह उठ बैठी. देखा कि किसना ने कुछ नोट निकाले और उन्हें अलमारी में रखने लगा. कमली की आंखें खुशी से चमक उठीं. उसे लगा कि 2 महीने ईंटभट्ठे पर काम करने की तनख्वाह आखिरकार किसना को मिल ही गई. कमली को पलभर में जरूरतों की झिलमिल करती लंबी फेहरिस्त पूरी होती दिखने लगी.

‘‘लगता है कि रज्जाक मियां ने आखिरकार तुम्हारी पूरी तनख्वाह दे ही दी. मैं तो सोच रही थी कि हर बार की तरह इस बार भी आजकल कर के 6 महीने में आधी ही तनख्वाह देगा,’’ कमली ने चहकते हुए पूछा.

‘‘अरे, वह क्यों देने लगा? इतना ही सीधा होता, तो हमारा खून क्यों पीता?’’ किसना ने खाट पर पसरते हुए कहा.

कमली ने देखा कि किसना पसीने से भीगा हांफ रहा था.

‘बेचारा दिनभर मजदूरी और काम की तलाश में भटकतादौड़ता रहता है,’ कमली ने सोचा.

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कोई और दिन होता, तो कमली भी किसना को काट खाने ही दौड़ती कि कुछ कमा कर लाओ नहीं तो घर कैसे चलेगा, पर आज तो अलमारी में रखे नोट उस के दिल में हलचल मचा रहे थे.

कमली गुनगुनाती हुई एक लोटा पानी ले आई.

‘‘लो, पानी पी लो. लग रहा है कि तुम बहुत थक गए हो…

‘‘क्या हुआ… तुम्हारी छाती धौंकनी सी क्यों चल रही है?

‘‘अरे, रज्जाक भाई ने पैसा नहीं दिया, तो फिर किस ने दिया पैसा?’’ कमली ने लाड़ जताते हुए पूछा.

‘‘जब से आया हूं, पहले बापू ने, फिर तुम ने मेरा दिमाग चाट कर रख दिया है. क्या कुछ देर शांति नहीं मिल सकती मुझे?’’ लोटा फेंकते हुए किसना ने कहा और करवट ले कर सोने की कोशिश करने लगा.

कमली ने चुपचाप किसना को एक चादर ओढ़ा दी और बगल में लेट गई.

किसना बेचैन सा रातभर करवटें बदलते रहा. वह कभी उठ बैठता, तो कभी लेट जाता.

सुबह के 5 बजे कमली उठी और तैयार हो कर उस ने ग्रेटर नोएडा की बस पकड़ी, जहां वह कुछ घरों मेंझाड़ूपोंछा और बरतन धोने का काम करती थी.

बिजली की फुरती से काम निबटाती कमली 5वें घर में जा पहुंची. वहां वह चायनाश्ता बनाती थी. साहब और बीबीजी को दे कर वह खुद भी खाती थी. कमली के वे साहब और बीबीजी नौकरी से रिटायर हो चुके थे. सो, वहां सुबह की हड़बड़ी नहीं रहती थी. वे दोनों देर तक सोने के आदी थे. आज भी सवा 10 बज गए थे. डोरबैल की आवाज से ही बीबीजी जागी थीं.

‘‘आओ कमली… पहले चाय बना ले… मैं तुम्हारे साहब को जगाती हूं…’’ कह कर बीबीजी बाथरूम में हाथमुंह धोने चली गईं.

जब तक चाय उबली, फुरतीली कमली ने सब्जीभाजी काट ली और कुकर में छौंक दी. इस के बाद कमली ने साहबजी और बीबीजी को चाय थमा दी और खुद भी वहीं फर्श पर बैठ कर चाय पीने लगी. लगातार 4-5 घंटे काम करने के बाद वह हर दिन यहीं पलभर के लिए आराम करती थी.

साहबजी ने टैलीविजन चला दिया था. बारबार ‘दादरी दादरी’ सुन कर कमली के कान खड़े हुए, चाय हाथ से छलकतेछलकते बची.

जब दादरी के बिसाहड़ा गांव का नाम भी सुना, तो बीबीजी ने पूछा, ‘‘कमली, तुम भी तो काम करने दादरी से ही आती हो न? क्या तुम इन को जानती हो? रात एक भीड़ ने इन की हत्या कर दी…’’ मारे गए आदमी के फोटो को दिखाते हुए बीबीजी ने पूछा.

‘‘हाय… हम तो इन के पीछे वाली बस्ती में ही रहते हैं. इन्हें किस ने मारा?’’ कमली एकदम से चिल्लाई.

अब कमली के हलक से चाय नहीं उतर रही थी. वह गुमसुम सी वहीं खड़ी हो गई.

‘‘बीबीजी, आज मुझे जल्दी जाने दो. मैं ने सब्जी बना दी है… रोटी आप बना लेना…’’ कहते हुए कमली घर लौटने को बेचैन हो उठी.

जैसेतैसे कमली अपनी बस्ती के पास पहुंची, तो देखा कि वहां जमघट लगा हुआ था. टैलीविजन पर रिपोर्ट दिखाने वाले, पुलिस और भी न जाने कौनकौन से लोग दिख रहे थे. आज तक इस जगह कोई नेता नहीं पहुंचा था, वहीं आज पूरी भीड़ लगी हुई थी.

कमली की आंखों के सामने बारबार मरने वाले का चेहरा आ रहा था.

माहौल की गरमी से डरतीझुलसती कमली अपनी झोंपड़ी तक पहुंची, पर पता नहीं क्यों अंदर का माहौल बड़ा ही ठंडा सा था. किसना उसे देखते ही खुश हो गया. वह बोला ‘‘अरे वाह. अच्छा हुआ, जो तू जल्दी आ गई. मैं चिकन लाया हूं, झट से पका दे. मुझे तो बड़े जोरों की भूख लगी है. मैं ने मसाला पीस रखा है.’’

कमली नाक और मुंह पर कपड़ा बांध कर चिकन बनाने में जुट गई. शुद्ध शाकाहारी कमली अभी भी हाथ से चिकन छू नहीं पाती थी, सो चमचे की मदद से उठाउठा कर पकाने में जुट गई.

‘उफ, आज तो मेरा उपवास हो गया,’ कमली ने सोचा, क्योंकि जिस दिन मांस पकता था, उस दिन वह खाना नहीं खा पाती थी. पर पति और ससुर की खुशी के लिए वह बना जरूर देती.

‘‘अरे, तुम ने कुछ सुना क्या… कल किस की हत्या हो गई बस्ती में? टैलीविजन पर देख कर मैं 5 नंबर वाली के यहां से काम छोड़ कर दौड़ी चली आई,’’ कमली बारबार पूछ रही थी, पर मानो किसना के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही थी.

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तभी बाहर से ससुरजी भी झोंपड़ी में आ गए. उन के चेहरे की हालत बाहर के मौसम से बड़ी मेल खा रही थी. दोनों बापबेटे आपस में खुसुरफुसुर करने लगे. कमली अपने काम में लगी रही. मांस की बदबू बरदाश्त के बाहर थी, फिर भी कमली ने चिकन बनाया, फिर चावल भी बना दिए.

अब कमली को उबकाई आ रही थी. पिछवाड़े में जा कर वह टाट की आड़ में हथेलियों को रगड़रगड़ कर धोने लगी, फिर नहाई भी. नहाने के बाद उस का मन थोड़ा ठीक लग रहा था. बापबेटे दोनों खाने पर टूटे पड़े थे. उसे दया आ गई कि हाथ हमेशा तंग रहने के चलते कहां इन्हें मांस नसीब होता है जल्दी. वह तो कल रात किसना पैसे लाया तो…

घर में भर गई मांस की बदबू से बचने के लिए कमली बाहर निकल गई, पर बाहर तो उस से भी ज्यादा बदबू फैली हुई थी. आबोहवा में फैली ताजा मौत की बदबू, अफवाहों की बदबू, उस प्रतिबंधित मांस के जिक्र की बदबू, सब से बढ़ कर अपनों द्वारा अपनों को दिए गए दर्द की बदबू, उस ताजा बेवा के बिलखने की बदबू… रिश्तों के सड़ने की बदबू.

यह सोच कर कमली का सिर घूमने लगा. काफी देर से रोकी गई उबकाई निकल ही गई. हार कर उसे घर में फिर वापस आना ही पड़ा. बापबेटे दोनों आज खुश दिख रहे थे. ‘‘मेरे बारबार पूछने पर भी तुम ने क्यों नहीं बताया कि कल रात हुआ क्या था?’’ कमली ने नाक पर आंचल रखते हुए पूछा.

‘‘अरे, जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा ही. इस में बताने वाली कौन सी बात थी? हमें वैसे भी चुप रहने को कहा गया है,’’ किसना ने कहा.

उबकाई आने के बाद कमली का जी मिचलाना भले ठीक हो गया था, पर भड़ास अभी बाकी थी. ‘‘वह जो मैं ने अभी पकाया था, क्या मांस नहीं था?’’ कमली ने पूछा. ‘‘अगर जीव हत्या की बात करती हो, तो सिर्फ वही जीव होता है, जो दूसरों के घर में पकता है. तुम्हारे घर जो पका था, वह क्या था फिर?’’

‘‘मैं तो शुद्ध शाकाहरी घर से हूं, यहां तुम्हारी खुशी के लिए सबकुछ पकाती हूं या नहीं? तो क्या पड़ोसी की थोड़ी पसंद को बरदाश्त नहीं किया जा सकता है?’’ ‘‘अरे, जीवजंतु से रिश्ते जोड़ते हो, फिर पेट में मेरी बेटी है, पता लगवा कर क्यों मरवाया था पिछले साल उसे? क्या बेटी मां से कमतर होती है?’’ ऐसा कहते हुए कमली हांफने लगी थी. उसे कल रात के रुपए याद आ गए. अलमारी खोली, तो सामने ही दिख गए, ऐसा लगा जैसे उस ने फिर से मांस देख लिया.

वह रसोई से चिकन वाला चमचा उठा लाई और उसी से नोटों को ठेलते हुए घर के बाहर निकालने लगी. ‘‘पागल हो गई हो क्या? पैसे को फेंक रही हो,’’ कहते हुए किसना ने पैसे उठाए, झाड़े और उन्हें चूमता हुआ वापस अलमारी में रख आया.

हार कर कमली वहीं पसर गई और आंख बंद कर सोने की कोशिश करने लगी थी. वैसे भी आज उस का बिना मतलब उपवास हो गया था. उबकाई आने के बाद अंतडि़यां अब मरोड़ मार रही थीं. कमली की आधी रात को आंख खुली. सड़क से छन कर आ रही रोशनी में उसे अधखुली अलमारी से झांकते नोटों की तरफ नजर पड़ी. लेकिन वहां नोट कहां थे, वहां तो किसी के जले हुए मांस के टुकड़े पड़े थे, उस की बदबू से फिर मन बेचैन हो गया.

वह कोने में रखे चिकन पकाने वाले चमचे को फिर से उठा लाई और अलमारी से पैसे गिराने लगी. खटपट की आवाज से किसना की नींद खुल गई, पर अब की बार वह चिल्लाया नहीं, धीरे से नोटों को फिर से उठा कर चारपाई के नीचे रखे टिन के डब्बे में सहेज दिए. किसना उकड़ू बैठ कर कमली को देखने लगा. वह दिनभर में कैसी बीमार सी हो गई थी.

कमली उसे ही घूरे जा रही थी. उस की आंखों में तैरते सवालों के सैलाब में वह खुद को डूबता सा महसूस कर रहा था.

‘‘मुझे ऐसे न देखो, कमली. 2 दिन पहले तारिक भाई ने मुझे और कुछ और लोगों को अपने घर पर बुलाया था और हमें ये पैसे दिए थे. वह बोला था कि चाचा को मारने के बाद और पैसे मिलेंगे. घर में फूटी कौड़ी नहीं थी…’’ बमुश्किल किसना ने थूक गटकते हुए अपना मुंह खोला.

‘‘पर, तारिक तो चाचा की ही बिरादरी का…’’ चौंकते हुए कमली ने पूछा.

‘‘हां. अब तो जो होना था सो हो गया. खराब तो मुझे भी बहुत लग रहा है, वरना मुझे क्या मालूम था कि वे क्या खाते हैं, क्या नहीं खाते हैं. मुझे तो बस इतना पता था कि हमारे घर खाने को कुछ नहीं था,’’ पैरे के अंगूठे से जमीन कुरेदता किसना बोला.

‘‘मैं इतने घरों में काम करती हूं. मैं ने कभी उन की चीजों की तरफ आंख उठा कर नहीं देखा और तू ने चंद रुपयों के लिए किसी की जान ले ली.

‘‘कल मैं कितना खुश हो रही थी कि मेरा मरद पैसे कमा कर लाया है. जाने कितने सपने संजो लिए थे मैं ने कि कैसे कहां खर्च करूंगी, किसी के खून से रंगे ये नोट हमें नहीं पचेंगे रे किसना,’’ कमली ने उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

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‘‘मैं ने अकेले तो नहीं मारा उन्हें. और भी तो बहुत लोग थे,’’ किसना ने कमली को बताया. वे दोनों ही अगले 2 दिनों तक गुनाह के झंझावातों से जूझते रहे. रातदिन बड़ी मुश्किल से बिना खाए ही कट रहे थे, क्योंकि फिर उन रुपयों पर इन की लाली किसना ने भी महसूस की थी.

राजनीति की बिसात पर चालें चली जा चुकी थीं. शतरंज के पैदल सिपाही की कुरबानी दी जा चुकी थी. सत्ता और शतरंज सब से पहले आम नागरिकों की ही कुरबानी मांगते हैं. तीसरे दिन ही पुलिस की जीप चुनचुन कर 2 दिनों के लिए बादशाह बने तथाकथितों को अपने साथ लिए जा रही थी और उन पैसों को भी, जिस के लालच ने इन्हें ‘गरीब’ से सीधे ‘दंगाई’ बना दिया था.

बीच चौराहे पर अपनी बिखरी जिंदगी की किरचें चुनती कमली ने देखा कि तारिक भाई मारे गए शख्स के बेटे के कंधे पर हाथ रख रहे थे. कहीं से आवाज आई, ‘हमारा नेता कैसा हो, तारिक भाई जैसा हो.’ इस शोर तले कमली धुंधली आंखों से किसना को जीप में हथकड़ी पहने जाते देखती रह गई.

वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गई

लेखक- साधना जैन

कभी कभी जिंदगी में कुछ घटनाएं ऐसी भी घटती हैं, जो अपनेआप में अजीब होती हैं. ऐसा ही वाकिआ एक बार मेरे साथ घटा था, जब मैं दिल्ली से हैदराबाद जा रहा था. उस दिन बारिश हो रही थी, जिस की वजह से मुझे एयरपोर्ट पहुंचने में 10 मिनट की देरी हो गई थी और काउंटर बंद हो चुका था. आज पूरे 2 साल बाद जब मैं दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरा और बारिश को उसी दिन की तरह मदमस्त बरसते देखा, तो अचानक से वह भूला हुआ किस्सा न जाने कैसे मेरे जेहन में ताजा हो गया.

मैं खुद हैरान था, क्योंकि पिछले 2 सालों में शायद ही मैं ने इस किस्से को कभी याद किया होगा.

एक बड़ी कंपनी में ऊंचे पद पर होने के चलते काम की जिम्मेदारियां इतनी ज्यादा हैं कि कब सुबह से शाम और शाम से रात हो जाती है, इस का हिसाब रखने की फुरसत नहीं मिलती. यहां तक कि मैं इनसान हूं रोबोट नहीं, यह भी खुद को याद दिलाना पड़ता है.

लेकिन आज हवाईजहाज से उतरते ही उस दिन की एकएक बात आंखों के सामने ऐसे आ गई, जैसे किसी ने मेरी जिंदगी को पीछे कर उस दिन के उसी वक्त पर आ कर रोक दिया हो. चैकआउट करने के बाद भी मैं एयरपोर्ट से बाहर नहीं निकला या यों कहें कि मैं जा ही नहीं पाया और वहीं उसी जगह पर जा कर बैठ गया, जहां 2 साल पहले बैठा था.

मेरी नजरें भीड़ में उसे ही तलाशने लगीं, यह जानते हुए भी कि यह सिर्फ मेरा पागलपन है. मेन गेट की तरफ देखतेदेखते मैं हर एक बात फिर से याद करने लगा.

टिकट काउंटर बंद होने की वजह से उस दिन मेरे टिकट को 6 घंटे बाद वाली फ्लाइट में ट्रांसफर कर दिया गया था. मेरा उसी दिन हैदराबाद पहुंचना बहुत जरूरी था. कोई और औप्शन मौजूद न होने की वजह से मैं वहीं इंतजार करने लगा.

बारिश इतनी तेज थी कि कहीं बाहर भी नहीं जा सकता था. बोर्डिंग पास था नहीं, तो अंदर जाने की भी इजाजत नहीं थी और बाहर ज्यादा कुछ था नहीं देखने को, तो मैं अपने आईपैड पर किताब पढ़ने लगा.

अभी 5 मिनट ही बीते होंगे कि एक लड़की मेन गेट से भागती हुई आई और सीधा टिकट काउंटर पर आ कर रुकी. उस की सांसें बहुत जोरों से चल रही थीं. उसे देख कर लग रहा था कि वह बहुत दूर से भागती हुई आ रही है, शायद बारिश से बचने के लिए. लेकिन अगर ऐसा ही था तो भी उस की कोशिश कहीं से भी कामयाब होती नजर नहीं आ रही थी. वह सिर से पैर तक भीगी हुई थी.

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यों तो देखने में वह बहुत खूबसूरत नहीं थी, लेकिन उस के बाल कमर से 2 इंच नीचे तक पहुंच रहे थे और बड़ीबड़ी आंखें उस के सांवले रंग को संवारते हुए उस की शख्सीयत को आकर्षक बना रही थीं.

तेज बारिश की वजह से उस लड़की की फ्लाइट लेट हो गई थी और वह भी मेरी तरह मायूस हो कर सामने वाली कुरसी पर आ कर बैठ गई. मैं कब किताब छोड़ उसे पढ़ने लगा था, इस का एहसास मुझे तब हुआ, जब मेरे मोबाइल फोन की घंटी बजी.

ठीक उसी वक्त उस ने मेरी तरफ देखा और तब तक मैं भी उसे ही देख रहा था. उस के चेहरे पर कोई भाव नहीं था. मैं सकपका गया और उस पल की नजर से बचते हुए फोन को उठा लिया.

फोन मेरी मंगेतर का था. मैं अभी उसे अपनी फ्लाइट मिस होने की कहानी बता ही रहा था कि मेरी नजर मेरे सामने बैठी उस लड़की पर फिर से पड़ी. वह थोड़ी घबराई हुई सी लग रही थी. वह बारबार अपने मोबाइल फोन पर कुछ चैक करती, तो कभी अपने बैग में.

मैं जल्दीजल्दी फोन पर बात खत्म कर उसे देखने लगा. उस ने भी मेरी ओर देखा और इशारे में खीज कर पूछा कि क्या बात है? मैं ने अपनी हरकत पर शर्मिंदा होते हुए उसे इशारे में ही जवाब दिया कि कुछ नहीं.

उस के बाद वह उठ कर टहलने लगी. मैं ने फिर से अपनी किताब पढ़ने में ध्यान लगाने की कोशिश की, पर न चाहते हुए भी मेरा मन उस को पढ़ना चाहता था. पता नहीं, उस लड़की के बारे में जानने की इच्छा हो रही थी.

कुछ मिनट ही बीते होंगे कि वह लड़की मेरे पास आई और बोली, ‘सुनिए, क्या आप कुछ देर मेरे बैग का ध्यान रखेंगे? मैं अभी 5 मिनट में चेंज कर के वापस आ जाऊंगी.’

‘जी जरूर. आप जाइए, मैं ध्यान रख लूंगा,’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.

‘थैंक यू. सिर्फ 5 मिनट… इस से ज्यादा टाइम नहीं लूंगी आप का,’ यह कह कर वह बिना मेरे जवाब का इंतजार किए वाशरूम की ओर चली गई.

10-15 मिनट बीतने के बाद भी जब वह नहीं आई, तो मुझे उस की चिंता होने लगी. सोचा जा कर देख आऊं, पर यह सोच कर कि कहीं वह मुझे गलत न समझ ले. मैं रुक गया. वैसे भी मैं जानता ही कितना था उसे. और 10 मिनट बीते. पर वह नहीं आई.

अब मुझे सच में घबराहट होने लगी थी कि कहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया. वैसे, वह थोड़ी बेचैन सी लग रही थी. मैं उसे देखने जाने के लिए उठने ही वाला था कि वह मुझे सामने से आती हुई नजर आई. उसे देख कर मेरी जान में जान आई. वह ब्लैक जींस और ह्वाइट टौप में बहुत अच्छी लग रही थी. उस के खुले बाल, जो शायद उस ने सुखाने के लिए खोले थे, किसी को भी उस की तरफ खींचने के लिए काफी थे.

वह अपना बैग उठाते हुए एक फीकी सी हंसी के साथ मुझ से बोली, ‘सौरी, मुझे कुछ ज्यादा ही टाइम लग गया. थैंक यू सो मच.’

मैं ने उस की तरफ देखा. उस की आंखें लाल लग रही थीं, जैसे रोने के बाद हो जाती हैं. आंखों की उदासी छिपाने के लिए उस ने मेकअप का सहारा लिया था, लेकिन उस की आंखों पर बेतरतीबी से लगा काजल बता रहा था कि उसे लगाते वक्त वह अपने आपे में नहीं थी. शायद उस समय भी वह रो रही हो.

यह सोच कर पता नहीं क्यों मुझे दर्द हुआ. मैं जानने को और ज्यादा बेचैन हो गया कि आखिर बात क्या है.

मैं ने अपनी उलझन को छिपाते हुए उस से सिर्फ इतना कहा, ‘यू आर वैलकम’.

कुछ देर बाद देखा तो वह अपने बैग में कुछ ढूंढ़ रही थी और उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. शायद उसे अपना रूमाल नहीं मिल रहा था.

उस के पास जा कर मैं ने अपना रूमाल उस के सामने कर दिया. उस ने बिना मेरी तरफ देखे मुझ से रूमाल लिया और उस में अपना चेहरा छिपा कर जोरजोर से रोने लगी.

वह कुरसी पर बैठी थी. मैं उस के सामने खड़ा था. उसे रोते देख जैसे ही मैं ने उस के कंधे पर हाथ रखा, वह मुझ से चिपक गई और जोरजोर से रोने लगी. मैं ने भी उसे रोने दिया और वे कुछ पल खामोश अफसानों की तरह गुजर गए.

कुछ देर बाद जब उस के आंसू थमे, तो उस ने खुद को मुझ से अलग कर लिया, लेकिन कुछ बोली नहीं. मैं ने उसे पीने को पानी दिया, जो उस ने बिना किसी झिझक के ले लिया.

फिर मैं ने हिम्मत कर के उस से सवाल किया, ‘अगर आप को बुरा न लगे, तो एक सवाल पूछं?’

उस ने हां में अपना सिर हिला कर अपनी सहमति दी.

‘आप की परेशानी का सबब पूछ सकता हूं? सब ठीक है न?’ मैं ने डरतेडरते पूछा.

‘सब सोचते हैं कि मैं ने गलत किया, पर कोई यह समझने की कोशिश नहीं करता कि मैं ने वह क्यों किया?’ यह कहतेकहते उस की आंखों में फिर से आंसू आ गए.

‘क्या तुम्हें लगता है कि तुम से गलती हुई, फिर चाहे उस के पीछे की वजह कोई भी रही हो?’ मैं ने उस की आंखों में आंखें डालते हुए पूछा.

‘मुझे नहीं पता कि क्या सही है

और क्या गलत. बस, जो मन में आया वह किया?’ यह कह कर वह मुझ से अपनी नजरें चुराने लगी.

‘अगर खुद जब समझ न आए, तो किसी ऐसे बंदे से बात कर लेनी चाहिए, जो आप को नहीं जानता हो, क्योंकि वह आप को बिना जज किए समझने की कोशिश करेगा?’ मैं ने भी हलकी मुसकराहट के साथ कहा.

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‘तुम भी यही कहोगे कि मैं ने गलत किया?’

‘नहीं, मैं यह समझने की कोशिश करूंगा कि तुम ने जो किया, वह क्यों किया?’

मेरे ऐसा कहते ही उस की नजरें मेरे चेहरे पर आ कर ठहर गईं. उन में शक तो नहीं था, पर उलझन के बादलजरूर थे कि क्या इस आदमी पर यकीन किया जा सकता है? फिर उस ने अपनी नजरें हटा लीं और कुछ पल सोचने के बाद फिर मुझे देखा.

मैं समझ गया कि मैं ने उस का यकीन जीत लिया है. फिर उस ने अपनी परेशानी की वजह बतानी शुरू की.

दरअसल, वह एक मल्टीनैशनल कंपनी में बड़ी अफसर थी. वहां उस के 2 खास दोस्त थे रवीश और अमित. रवीश से वह प्यार करती थी. तीनों एकसाथ बहुत मजे करते. साथ ही, आउटस्टेशन ट्रिप पर भी जाते. वे दोनों इस का बहुत खयाल रखते थे.

एक दिन उस ने रवीश से अपने प्यार का इजहार कर दिया. उस ने यह कह कर मना कर दिया कि उस ने कभी उसे दोस्त से ज्यादा कुछ नहीं माना. रवीश ने उसे यह भी बताया कि अमित उस से बहुत प्यार करता है और उसे उस के बारे में एक बार सोच लेना चाहिए.

उसे लगता था कि रवीश अमित की वजह से उस के प्यार को स्वीकार नहीं कर रहा, क्योंकि रवीश और अमित में बहुत गहरी दोस्ती थी. वह अमित से जा कर लड़ पड़ी कि उस की वजह से ही रवीश ने उसे ठुकरा दिया है और साथ में यह भी इलजाम लगाया कि कैसा दोस्त है वह, अपने ही दोस्त की गर्लफ्रैंड पर नजर रखे हुए है.

इस बात पर अमित को गुस्सा आ गया और उस के मुंह से गाली निकल गई. बात इतनी बढ़ गई कि वह किसी और के कहने पर, जो इन तीनों की दोस्ती से जला करता था, उस ने अमित के औफिस में शिकायत कर दी कि उस ने मुझे परेशान किया. इस वजह से अमित की नौकरी भी खतरे में पड़ गई.

इस बात से रवीश बहुत नाराज हुआ और अपनी दोस्ती तोड़ ली. यह बात उस से सही नहीं गई और वह शहर से कुछ दिन दूर चले जाने का मन बना लेती है, जिस की वजह से वह आज यहां है.

यह सब बता कर उस ने मुझ से पूछा, ‘अब बताओ, मैं ने क्या गलत किया?’

‘गलत तो अमित और रवीश भी नहीं थे. वह थे क्या?’ मैं ने उस के सवाल के बदले सवाल किया.

‘लेकिन, रवीश मुझ से प्यार करता था. जिस तरह से वह मेरी केयर करता था और हर रात पार्टी के बाद मुझे महफूज घर पहुंचाता था, उस से तो यही लगता था कि वह भी मेरी तरह प्यार में है.’

‘क्या उस ने कभी तुम से कहा कि वह तुम से प्यार करता है?’

‘नहीं.’

‘क्या उस ने कभी अकेले में तुम से बाहर चलने को कहा?’

‘नहीं. पर उस की हर हरकत से

मुझे यही लगता था कि वह मुझे प्यार करता है.’

‘ऐसा तुम्हें लगता था. वह सिर्फ तुम्हें अच्छा दोस्त समझ कर तुम्हारा खयाल रखता था.’

‘मुझे पता था कि तुम भी मुझे ही गलत कहोगे,’ उस ने थोड़ा गुस्से से बोला.

‘नहीं, मैं सिर्फ यही कह रहा हूं कि अकसर हम से भूल हो जाती है यह समझने में कि जिसे हम प्यार कह रहे हैं, वो असल में दोस्ती है, क्योंकि प्यार और दोस्ती में ज्यादा फर्क नहीं होता.’

‘लेकिन, उस की न की वजह अमित भी तो सकता है न?’

‘हो सकता है, लेकिन तुम ने यह जानने की कोशिश ही कहां की. अच्छा, यह बताओ कि तुम ने अमित की शिकायत क्यों की?’

‘उस ने मुझे गाली दी थी.’

‘क्या सिर्फ यही वजह थी? तुम ने सिर्फ एक गाली की वजह से अपने दोस्त का कैरियर दांव पर लगा दिया?’

‘मुझे नहीं पता था कि बात इतनी बढ़ जाएगी. मैं सिर्फ उस से माफी मंगवाना चाहती थी?

‘बस, इतनी सी ही बात थी?’ मैं ने उस की आंखों में झांक कर पूछा.

‘नहीं, मैं अमित को हर्ट कर के रवीश से बदला लेना चाहती थी, क्योंकि उस की वजह से ही रवीश ने मुझे इनकार किया था.’

‘क्या तुम सचमुच रवीश से प्यार करती हो?’

मेरे इस सवाल से वह चिढ़ गई और गुस्से में खड़ी हो गई.

‘यह कैसा सवाल है? हां, मैं उस से प्यार करती हूं, तभी तो उस के यह कहने पर कि मैं उस के प्यार के तो क्या दोस्ती के भी लायक नहीं. यह सुन कर मुझे बहुत हर्ट हुआ और मैं घर क्या अपना शहर छोड़ कर जा रही हूं.’

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‘पर जिस समय तुम ने रवीश से अपना बदला लेने की सोची, प्यार तो तुम्हारा उसी वक्त खत्म हो गया था, प्यार में सिर्फ प्यार किया जाता है, बदले नहीं लिए जाते और वह दोनों तो तुम्हारे सब से अच्छे दोस्त थे?’

मेरी बात सुन कर वह सोचती हुई फिर से कुरसी पर बैठ गई. कुछ देर तक तो हम दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला. कुछ देर बाद उस ने ही चुप्पी तोड़ी और बोली, ‘मुझ में क्या कमी थी, जो उसे मुझ से प्यार नहीं हुआ?’ और यह कहतेकहते वह मेरे कंधे पर सिर रख कर रोने लगी.

‘हर बार इनकार करने की वजह किसी कमी का होना नहीं होता. हमारे लाख चाहने पर भी हम खुद को किसी से प्यार करने के लिए मना नहीं सकते. अगर ऐसा होता तो रवीश जरूर ऐसा करता,’ मैं ने भी उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘सब मुझे बुरा समझते हैं,’ उस ने बच्चे की तरह रोते हुए कहा.

‘नहीं, तुम बुरी नहीं हो. बस टाइम थोड़ा खराब है. तुम अपनी शिकायत वापस क्यों नहीं ले लेतीं?’

‘इस से मेरी औफिस में बहुत बदनामी होगी. कोई भी मुझ से बात तक नहीं करेगा?’

‘हो सकता है कि ऐसा करने से तुम अपनी दोस्ती को बचा लो और क्या पता, रवीश तुम से सचमुच प्यार करता हो और वह तुम्हें माफ कर के अपने प्यार का इजहार कर दे,’ मैं ने उस का मूड ठीक करने के लिए हंसते हुए कहा.

यह सुन कर वह हंस पड़ी. बातों ही बातों में वक्त कब गुजर गया, पता ही नहीं चला. मेरी फ्लाइट जाने में अभी 2 घंटे बाकी थे और उस की में एक घंटा.

मैं ने उस से कहा, ‘बहुत भूख लगी है. मैं कुछ खाने को लाता हूं,’ कह कर मैं वहां से चला गया.

थोड़ी देर बाद मैं जब वापस आया, तो वह वहां नहीं थी. लेकिन मेरी सीट पर मेरे बैग के नीचे एक लैटर था, जो उस ने लिखा था:

‘डियर,

‘आज तुम ने मुझे दूसरी गलती करने से बचा लिया, नहीं तो मैं सबकुछ छोड़ कर चली जाती और फिर कभी कुछ ठीक नहीं हो पाता. अब मुझे पता है कि मुझे क्या करना है. तुम अजनबी नहीं होते, तो शायद मैं कभी तुम्हारी बात नहीं सुनती और मुझे अपनी गलती का कभी एहसास नहीं होता. अजनबी ही रहो, इसलिए अपनी पहचान बताए बिना जा रही हूं. शुक्रिया, सहीगलत का फर्क समझाने के लिए. जिंदगी ने चाहा, तो फिर कभी तुम से मुलाकात होगी.’

मैं खत पढ़ कर मुसकरा दिया. कितना अजीब था यह सब. हम ने घंटों बातें कीं, लेकिन एकदूसरे का नाम तक नहीं पूछा. उस ने भी मुझ अजनबी को अपने दिल का पूरा हाल बता दिया. बात करते हुए ऐसा कुछ लगा ही नहीं कि हम एकदूसरे को नहीं जानते और मैं बर्गर खाते हुए यही सोचने लगा कि वह वापस जा कर करेगी क्या?

फोन की घंटी ने मुझे मेरे अतीत से जगाया. मैं अपना बैग उठा कर एयरपोर्ट से बाहर निकल गया. लेकिन निकलने से पहले मैं ने एक बार फिर चारों तरफ इस उम्मीद से देखा कि शायद वह मुझे नजर आ जाए. मुझे लगा कि शायद जिंदगी चाहती हो मेरी उस से फिर मुलाकात हो. यह सोच कर मैं पागलपन पर खुद ही हंस दिया और अपने रास्ते निकल पड़ा.

अच्छा ही हुआ, जो उस दिन हम ने अपने फोन नंबर ऐक्सचेंज नहीं किए और एकदूसरे का नाम नहीं पूछा. एकदूसरे को जान जाते, तो वह याद आम हो जाती या वह याद ही नहीं रहती.

अकसर ऐसा होता है कि हम जब किसी को अच्छी तरह जानने लगते हैं, तो वो लोग याद आना बंद हो जाते हैं. कुछ रिश्ते अजनबी भी तो रहने चाहिए, बिना कोई नाम के.

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नामर्द: तहजीब का इल्जाम क्या सह पाया मुश्ताक

तहजीब के अब्बा इशरार ने अपनी लड़की को दिए जाने वाले दहेज को गर्व से देखा. फिर अपने साढ़ू तथा नए बने समधी से पूछा, ‘‘अल्ताफ मियां, कुछ कमी हो तो बताओ?’’

‘‘भाई साहब, आप ने लड़की दी, मानो सबकुछ दे दिया,’’ तहजीब के मौसा व नए रिश्ते से बने ससुर अल्ताफ ने कहा, ‘‘बस, जरा विदाई की तैयारी जल्दी कर दें.’’

शीघ्र ही बरात दुलहन के साथ विदा हो गई. तहजीब का मौसेरा भाई मुश्ताक अपनी मौसेरी बहन के साथ शादी करने के पक्ष में नहीं था. उस का विचार था कि यह व्यवस्था उस समय के लिए कदाचित ठीक रही होगी जब लड़कियों की कमी रही होगी. परंतु आज की स्थिति में इतने निकट का संबंध उचित नहीं. किंतु उस की बात नक्कारखाने में तूती के समान दब कर रह गई थी. उस की मां अफसाना ने सपाट शब्दों में कहा था, ‘‘मैं ने खुद अपनी बहन से उस की लड़की को मांगा है. अगर वह इस घर में दुलहन बन कर नहीं आई तो मैं सिर पटकपटक कर अपनी जान दे दूंगी.’’

विवश हो कर मुश्ताक को चुप रह जाना पड़ा था. तहजीब जब अपनी ससुराल से वापस आई तो वह बहुत बुझीबुझी सी थी. वह मुसकराने का प्रयास करती भी तो मुसकराहट उस के होंठों पर नाच ही न पाती थी. वह खोखली हंसी हंस कर रह जाती थी. तहजीब पर ससुराल में जुल्म होने का प्रश्न न था. दोनों परिवार के लोग शिक्षित थे. अन्य भी कोई ऐसा स्पष्ट कारण नहीं था जिस में उस उदासी का कारण समझ में आता.

‘‘तुम तहजीब का दिल टटोलो,’’ एक दिन इशरार ने अपनी पत्नी रुखसाना से कहा, ‘‘उसे जरूर कोई न कोई तकलीफ है.’’

‘‘पराए घर जाने में शुरू में तकलीफ तो होती ही है, इस में पूछने की क्या बात है?’’ रुखसाना बोली, ‘‘धीरेधीरे आदत पड़ जाएगी.’’ ‘‘जी हां, जब आप पहली बार इस घर से गई थीं तब शायद ऐसा ही मुंह फूला हुआ था, खिली हुई कली के समान गई थीं. तहजीब बेचारी मुरझाए हुए फूल के समान वापस आई है,’’ इशरार ने शरारत के साथ कहा.

‘‘हटो जी, आप तो चुहलबाजी करते हैं,’’ रुखसाना के गालों पर सुर्खी दौड़ गई, ‘‘मैं तहजीब से बात करती हूं.’’

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रुखसाना ने बेटी को कुरेदा तो वह उत्तर देने की अपेक्षा आंखों में आंसू भर लाई. ‘‘तुझे वहां क्या तकलीफ है? मैं आपा को आड़े हाथों लूंगी. उन्हीं के मांगने पर मैं ने तुझे उन की झोली में डाला है. मैं ने उन से पहले ही कह दिया था कि मेरी बिटिया नाजों से पली है. किसी ने उस के काम में नुक्ताचीनी निकाली तो ठीक नहीं होगा.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है, अम्मीजान, मुझ से किसी ने कुछ कहा नहीं है,’’ तहजीब ने धीमे से कहा.

‘‘फिर?’’

कुछ कहने की अपेक्षा तहजीब फिर आंसू बहाने लगी. नकविया तहजीब की सहेली थी. वह एक संपन्न घराने की थी. जिस समय तहजीब की शादी हुई थी उस समय वह लंदन में डाक्टरी की पढ़ाई कर रही थी. उसे शादी में बुलाया गया था परंतु यात्रा की किसी कठिनाई के कारण वह समय पर नहीं आ सकी थी. उस का आना कुछ दिन बाद हो पाया था. भेंट होने पर रुखसाना ने उस से कहा, ‘‘बेटी, तहजीब ससुराल से आने के बाद से बहुत उदास है. कुछ पूछने पर बस रोने लगती है. जरा उस के दिल को किसी तरह टटोलो.’’

‘‘आप फिक्र न करें, अम्मीजान, मैं सबकुछ मालूम कर लूंगी,’’ नकविया ने कहा और फिर वह तहजीब के कमरे में घुस गई.

‘‘अरे यार, तेरा चेहरा इतना उदासउदास सा क्यों है?’’ उस ने तहजीब से पूछा.

‘‘बस यों ही.’’

‘‘यह तो कोई बात न हुई. साफसाफ बता कि क्या बात है? कहीं दूल्हा भाई किसी दूसरी से तो फंसे हुए नहीं हैं.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. वे कहीं फंसने लायक ही नहीं हैं,’’ तहजीब बहुत धीमे से बोली, ‘‘वे तो पूरी तरह ठंडे हैं.’’

‘‘क्या?’’ नकविया ने चौंक कर कहा, ‘‘तू यह क्या कह रही है?’’

‘‘हां, यही तो रोना है, तेरे दूल्हा भाई पूरी तरह ठंडे हैं, वे नामर्द हैं.’’ नकविया सोच में डूब गई, ‘भला वह पुरुष नामर्द कैसे हो सकता है जो कालेज के दिनों में घंटों एक लड़की के इंतजार में खड़ा रहता था और कालेज आतेजाते उस लड़की के तांगे का पीछा किया करता था.’

‘‘नहीं, वह नामर्द नहीं हो सकता,’’ नकविया के मुख से अचानक निकल गया.

‘‘तू दावे के साथ कैसे कह सकती है? भुगता तो मैं ने उसे है. एकदो नहीं, पूरी 5 रातें.’’

‘‘अरे यार, मैं डाक्टर हूं. मैं जानती हूं कि ऐसे 99 प्रतिशत मामले मनोवैज्ञानिक होते हैं. लाखों में कोई एकाध आदमी ही कुदरती तौर पर नामर्द होता है.’’

‘‘तो शायद तेरे दूल्हा भाई उन एकाध में से ही हैं,’’ तहजीब मुसकराई.

‘‘अच्छा, क्या तू उन्हें मेरे पास भेज सकती है? मैं जरा उन का मुआयना करना चाहती हूं.’’

‘‘भिजवा दूंगी, जरा क्या, पूरा मुआयना कर लेना. तेरी डाक्टरी कुछ नहीं करने की.’’

‘‘तू जरा भेज तो सही,’’ नकविया ने इतना कहा और उठ खड़ी हुई. तहजीब की मां ने जब नकविया से तहजीब की उदासी का कारण जाना तो वह सनसनाती हुई अपनी बहन के घर जा पहुंची. उस ने उन को आड़े हाथों लिया, ‘‘आपा, तुम्हें अपने लड़के के बारे में सबकुछ पता होना चाहिए था. ऐसी कोई कमी थी तो उस की शादी करने की क्या जरूरत थी? मेरी लड़की की जिंदगी बरबाद कर दी तुम ने.’’

‘‘छोटी, तू कहना क्या चाहती है?’’ मुश्ताक की मां अफसाना ने कुछ न समझते हुए कहा.

‘‘अरे, जब लड़का हिजड़ा है तो शादी क्यों रचा डाली? कम से कम दूसरे की लड़की का तो खयाल किया होता,’’ रुखसाना हाथ नचा कर बोली.

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‘‘छोटी, जरा मुंह संभाल कर बात कर. मेरी ससुराल में ऐसे मर्द पैदा हुए हैं जिन्होंने 3-3 औरतों को एकसाथ खुश रखा है. यहां शेर पैदा होते हैं, गीदड़ नहीं.’’ बातों की लड़ाई हाथापाई में बदल गई. अल्ताफ ने बड़ी मुश्किल से दोनों को अलग किया.

रुखसाना बड़बड़ाती हुई चली गई. इस प्रकरण को ले कर दोनों परिवारों के मध्य बहुत कटुता उत्पन्न हो गई. एक दिन अल्ताफ और इशरार भी परस्पर भिड़ गए, ‘‘मैं तुम्हें अदालत में खींचूंगा. तुम पर दावा करूंगा. दहेज के साथसाथ और सारे खर्चे न वसूले तो नाम पलट कर रख देना,’’ इशरार ने गुस्से से कहा तो अल्ताफ भी पीछे न रहा. दोनों में हाथापाई की नौबत आ गई. कुछ लोग बीच में पड़ गए और उन्हें अलगअलग किया. दोनों तब वकीलों के पास दौड़े. तहजीब मुश्ताक के पास यह संदेश भेजने में सफल हो पाई कि उसे उस की सहेली नकविया याद कर रही है. एक दिन मुश्ताक नकविया के घर जा पहुंचा.

‘‘आइए, आइए,’’ नकविया ने मुश्ताक का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘मेरे कालेज जाने से पहले और लौट कर आने से पहले तो मुस्तैदी से रास्ते में साइकिल लिए तांगे का पीछा करने को तैयार खड़े मिलते थे, और अब बुलाने के इतने दिन बाद आए हो.’’

नकविया ने मुसकरा कर यह बात कही तो मुश्ताक झेंप गया. फिर दोनों इधरउधर की बातें करते रहे. ‘‘तहजीब के साथ क्या किस्सा हो गया? मैं उस की सहेली होने के साथसाथ तुम्हारे लिए भी अनजान नहीं हूं. मुझे सबकुछ साफसाफ बताओ जिस से 2 घरों के बीच खिंची तलवारों को म्यानों में पहुंचाया जा सके?’’

‘‘मैं बचपन से तहजीब को अपनी बहन मानता रहा हूं. वह भी मुझे ‘भाईजान’ कहती रही है. उस के साथ जिस्मानी ताल्लुक रखना मेरे लिए बहुत ही मुश्किल काम है. तुम ही बताओ, इस में मेरा क्या कुसूर है?’’ नकविया मुश्ताक को कोई उत्तर नहीं दे सकी. तब उस ने बात का पहलू बदल लिया, वह दूसरी बातें करने लगी. जब मुश्ताक जाने लगा तो उस ने वादा किया कि वह रोज कुछ देर के लिए आएगा जब तक कि वह इंगलैंड नहीं चली जाती.

फिर नकविया तथा मुश्ताक दोनों एकदूसरे के निकट आते चले गए. एक दिन नकविया ने तहजीब को बताया, ‘‘सुन, तेरा पति तो पूरा मर्द है. उस में कोई कमी नहीं है. उस के दिल में तेरे लिए जो भावना है, उसे मिटाना बड़ा मुश्किल काम है,’’ फिर नकविया ने सबकुछ बता दिया. तहजीब बहुत देर तक कुछ सोचती रही. फिर बोली, ‘‘उन का सोचना ठीक लगता है. सचमुच, इतने नजदीकी रिश्तों में शादी नहीं होनी चाहिए. अब कुछ करना ही होगा.’’ फिर तहजीब और मुश्ताक परस्पर मिले और उन के बीच एक आम सहमति हो गई. कुछ दिन बाद मुश्ताक ने तहजीब को तलाक के साथ मेहर का पैसा तथा सारा दहेज भी वापस भेज दिया.

‘‘मैं दावा करूंगा. क्या समझता है अल्ताफ अपनेआप को. जब लड़का हिजड़ा था तो क्यों शादी का नाटक रचा,’’ तहजीब के अब्बा गुस्से से बोले.

‘‘नहीं अब्बा, नहीं. अब हमें कुछ नहीं करना है. मुश्ताक में कोई कमी नहीं थी. दरअसल, मैं ही उस से पिंड छुड़ाना चाहती थी,’’ तहजीब ने बात समाप्त करने के उद्देश्य से इलजाम अपने ऊपर ले लिया.

‘‘लेकिन क्यों?’’ उस की मां ने हस्तक्षेप करते हुए पूछा.

‘‘मुझे वे पसंद नहीं थे.’’

‘‘अरे बेहया,’’ मां चिल्लाईं, ‘‘तू ने झूठ बोल कर पुरानी रिश्तेदारी को भी खत्म कर दिया,’’ उन्होंने तहजीब के सिर के बालों को पकड़ कर झंझोड़ डाला. फिर उस के सिर को जोर से दीवार पर दे मारा. कुछ दिनों बाद नकविया लंदन वापस चली गई. लगभग 5 माह बाद नकविया फिर भारत आई. वह अपने साथ 1 व्यक्ति को भी लाई थी. उस को ले कर वह तहजीब के घर गई. तहजीब के मांबाप से उस व्यक्ति का परिचय कराते हुए नकविया ने कहा, ‘‘ये मेरे साथ लंदन में डाक्टरी पढ़ते हैं. लखनऊ में इन का घर है. आप चाहें तो लखनऊ जा कर और जानकारी ले सकते हैं. तहजीब के लिए मैं बात कर रही हूं.’’ लड़का समझ में आ जाने पर अन्य बातें भी देखभाल ली गईं, फिर शादी भी पक्की हो गई.

‘‘बेटी, तुम शादी कहां करोगी, हिंदुस्तान में या इंगलैंड में?’’ एक दिन तहजीब की मां ने नकविया से पूछा.

‘‘अम्मीजान, मैं अपने ही देश में शादी करूंगी. बस, जरा मेरी पढ़ाई पूरी हो जाए.’’

‘‘कोई लड़का देख रखा है क्या?’’

‘‘हां, लड़का तो देख लिया है. यहीं है, अपने शहर का.’’

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‘‘कौन है?’’

‘‘आप का पहले वाला दामाद मुश्ताक,’’ नकविया ने मुसकरा कर कहा.

‘‘हाय, वह… वह नामर्द. तुम्हें उस से शादी करने की क्या सूझी?’’

‘‘अम्मीजान, वह नामर्द नहीं है,’’ नकविया ने तब उन्हें सारा किस्सा कह सुनाया. ‘‘हम ही गलती पर थे. हमें इतनी नजदीकी रिश्तेदारी में बच्चों की शादी नहीं करनी चाहिए. सच है, जहां भाईबहन की भावना हो वहां औरतमर्द का संबंध क्यों बनाया जाए,’’ तहजीब की मां ने अपनी गलती मानते हुए कहा.

बकरा: भाग 3- क्या हुआ था डिंपल और कांता के साथ

लेखक- कृष्ण चंद्र महादेविया

सब से पहले गुर ने पिंडी की पूजा की, फिर दूसरे खास लोगों को पूजा करने को कहा गया. चेला और मौहता व दूसरे कारदार जोरजोर से जयकारा लगाते थे. ढोलनगाड़ातुरही बजने लगे थे. गुर खालटू कनखियों से चारों ओर भी देख लेता था और गंभीर चेहरा बनाए खास दिखने की पूरी कोशिश करता था. माधो डिंपल के साथ मंदिर से थोड़ी दूर अपराधी की तरह खड़ा था. कांता भी अपनी दादी के साथ एक पेड़ के नीचे खड़ी थी. माधो के बकरे को पिंडी के पास लाया गया था. उस की पीठ पर गुर ने पानी डाला, तो बकरे ने जोर से पीठ हिलाई. चारों ओर से लटूरी देवता की जयजयकार गूंज गई.

छांगू चेले ने सींगों से बकरे को पकड़ा था. एक मोटे गांव वाले ने दराट तेज कर पालकी के पास रखा था. उसे बकरा काटने के लिए गुर के आदेश का इंतजार था. अचानक कांता जोरजोर से चीखने. गरदन हिलाते हुए उछलने भी लगी. उस के बाल बिखर गए. दुपट्टा गिर गया था. सभी लोग उस की ओर हैरानी से देखने लगे थे. कांता की दादी बड़े जोर से बोली, ‘‘लड़की में कोई देवी या फिर कोई देवता आ गया है. अरे, कोई पूछो तो सही कि कौन लड़की में प्रवेश कर गया है?’’ गुर, चेला और दूसरे कारदार बड़ी हैरानी और कुछ डरे से कांता की ओर देखने लग गए. गुर पूजापाठ भूल गया था.

एक बूढ़े ने डरतेडरते पूछा, ‘‘आप कौन हैं जो इस लड़की में आ गए हैं? कहिए महाराज…’’

‘‘मैं काली हूं. कलकत्ते वाली. लटूरी देवता से बड़ी. सारे मेरी बात ध्यान से सुनो. आदमी के चलने से रास्ते कभी अपवित्र नहीं होते, न कोई देवता नाराज होता है. मैं काली हूं काली. आज में झूठों को दंड दूंगी. माधो और उस की बेटी पर झूठा इलजाम लगाया गया है. सुनो, लटूरी देवता कोई बलि नहीं ले सकता. अभी मेरी बहन महाकाली भी आने वाली है. आज सब के सामने सच और झूठ का फैसला होगा,’’ कांता उछलतीकूदती चीखतीचिल्लाती पिंडी के पास पहुंच गई.

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अचानक तभी डिंपल भी जोर से चीखने और हंसने लगी. उस के बाल खुल कर बिखर गए. अब तो गांव वाले और हैरानपरेशान हो गए. इस गांव के ही नहीं, बल्कि आसपास के बीसियों गांवों में कभी ऐसा नहीं हुआ था कि किसी औरत में देवी आई हो. डिंपल की आवाज में फर्क आ गया था. एक बुढि़या ने डरतेडरते पूछा, ‘‘आप कौन हैं, जो इस सीधीसादी लड़की में प्रवेश कर गए हो? हे महाराज, आप देव हैं या देवी?’’ डिंपल भी चीखतीउछलती लटूरी देवता की पिंडी के पास पहुंच गई थी. वह जोर से बोली, ‘‘मैं महाकाली हूं. आज मैं पाखंडियों को सजा दूंगी. अब काली और महाकाली आ गई हैं, अब दुष्टों को दंड जरूर मिलेगा,’’ कह कर उस ने पिंडी के पास से दराट उठाया और बकरे का सींग पकड़े छांगू के हाथ पर दे मारा.

छांगू चेले की उंगलियों की 2 पोरें कट कर नीचे गिर गईं. वह दर्द के मारे चिल्लाने और तड़पने लगा. ‘‘बकरे, जा अपने घर, तुझे कोई नहीं काट सकता. जा, घर जा,’’ डिंपल ने उछलतेकूदते कहा.

बकरा भी माधो के घर की तरफ दौड़ गया. यह सब देख कर लोग जयकार करने लगे. अब तक तो सभी ने हाथ भी जोड़ लिए थे. बच्चे तो अपने मांओं से चिपक गए थे.

डिंपल ने दराट लहराया फिर चीखते और उछलते बोली, ‘‘बहन काली, गुर और उस के झूठे साथियों से पूछ सच क्या है, वरना इन्हें काट कर मैं इन का खून पीऊंगी.’’ ‘‘जो आज्ञा. खालटू गुर, जो पूछूंगी सच कहना. अगर झूठ कहा, तो खाल खींच लूंगी. आज सारे गांव के सामने सच बोल.’’

डिंपल ने एक जोर की लात खालटू को दे मारी. दूसरी लात कांता ने मारी, तो वह गिरतेगिरते बचा. गलत आदमी भीतर से डराडरा ही रहता है. डर के चलते ही खालटू ने सीधीसादी लड़कियों में काली और महाकाली का प्रवेश मान लिया था. छांगू की कटी उंगलियों से बहते खून ने उसे और ज्यादा डरा दिया था, जबकि वह खुद में तो झूठमूठ का देवता ला देता था. लातें खा कर मारे डर के वह उन के पैर पड़ गया और गिड़गिड़ाया ‘‘मुझे माफ कर दीजिए माता कालीमहाकाली, मुझे माफ कर दीजिए.’’

दर्द से तड़पते छांगू चेले ने अपनी उंगलियों पर रुमाल कस कर बांध लिया था. गुर को लंबा पड़ देख कर डर और दर्द के मारे वह भी रोते हुए उन के पैर पड़ गया, ‘‘मुझे भी माफी दे दो माता.’’ डिंपल ने गुर की पीठ पर कस कर लात मारी, ‘‘मैं महाकाली खप्पर वाली हूं. सच बता रे खालटू या तेरी गरदन काट कर तेरा सारा खून पी जाऊं,’’ डिंपल ने हाथ में पकड़ा दराट लहराया, तो वह डर के मारे कांप गया.

‘‘बताता हूं माता, सच बताता हूं. गांव वालो, माधो का बकरा खाने के लिए हम ने झूठमूठ की अफवाहें फैला कर माधो और डिंपल पर झूठा आरोप लगाया था. मुझ में कोई देवता नहीं आता है. मैं, चेला छांगू, मौहता भागू, कारदार सब से ठग कर माल ऐंठते थे. हम सारे दूसरों की औरतों पर बुरी नजर रखते थे. मुझे माफ कर दीजिए. आज के बाद मैं कभी बुरे काम नहीं करूंगा. मुझे माफ कर दीजिए.’’

डिंपल और कांता की 2-4 लातें और खाने से वह रो पड़ा. अब तो कारदार भी उन दोनों के पैरों में लौटने लगे थे.

‘‘तू सच बता ओ छांगू चेले, नहीं तो तेरा सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा,’’ कांता ने जोर की ठोकर मारी तो वह नीचे गिर पड़ा, फिर उठ कर उस के पैर पकड़ लिए.

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‘‘गांव के भाईबहनो, मैं तो चेला बन कर तुम सब को ठगता था. कई लड़कियों और औरतों को अंधविश्वास में डाल कर मैं ने उन से कुकर्म किया, उन से रुपएपैसे ऐंठे. मुझे माफ कर दीजिए माता महाकाली. आज के बाद मैं कभी बुरे काम नहीं करूंगा.’’

गुर, चेले, मौहता और कारदारों ने सब के सामने सच उगल दिया. डिंपल और कांता ने उछलतेचीखते उन्हें लातें मारमार कर वहां से भागने पर मजबूर कर दिया.

एक नौजवान ने पेड़ से एक टहनी तोड़ कर कारदार और मौहता भागू को पीट दिया. डिंपल और जोर से चीखी, ‘‘जाओ दुष्टो, भाग जाओ, अब कभी गांव मत आना.’’ वे सिर पर पैर रख कर भाग गए और 2 मील नीचे लंबा डग नदी के तट पर जीभ निकाले लंबे पड़ गए. उन की पूरे गांव के सामने पोल खुल गई थी. वे एकदूसरे से भी नजरें नहीं मिला पा रहे थे.

कांता ने उछलतेचीखते जोर की किलकारी मारते हुए गुस्से से कहा, ‘‘गांव वालो, ध्यान से सुनो. खशलोहार के नाम पर रास्ते मत बांटो, वरना मैं अभी तुम सब को शाप दे दूंगी.’’ ‘माफी काली माता, शांत हो जाइए. आप की जय हो. हम रास्ते नहीं बांटेंगे. माफीमाफी,’ सैकड़ों मर्दऔरत एक आवाज में बोल उठे. बच्चे तो पहले ही डर के मारे रोने लगे थे.

काली और महाकाली के डर से अब खशखश न थे और लोहार लोहार न थे, लेकिन वे सारे गुर खालटू, चेले, मौहता व कारदारों से ठगे जाने पर दुखी थे. ‘माफी दे दो महाकाली माता. आप दोनों देवियां शांत हो जाइए. हमारे मन का मैल खत्म हो गया है. शांत हो जाइए माता,’ कई औरतें हाथ जोड़े एकसाथ बोलीं.

‘‘क्या माफ कर दें बहन काली?’’

‘‘हां बहन, इन्हें माफ कर दो. पर ये सारे भविष्य में झूठे और पाखंडी लोगों से सावधान रहें.’’

‘हम सावधान रहेंगे.’ कई आवाजें एकसाथ गूंजी. कुछ देर उछलनीचीखने और दराट लहराने के बाद डिंपल ने कहा, ‘‘काली बहन, अब लौट चलें अपने धाम. हमारा काम खत्म.’’

‘‘हां दीदी, अब लौट चलें.’’

डिंपल और कांता कुछ देर उछलींचीखीं, फिर ‘धड़ाम’ से धरती पर गिर पड़ीं. काफी देर तक चारों ओर सन्नाटा छाया रहा. सब की जैसे बोलती बंद हो गई थी.

जब काफी देर डिंपल और कांता बिना हिलेडुले पड़ी रहीं, तो कांता की दादी ने मंदिर के पास से पानी भरा लोटा उठाया और उन के चेहरे पर पानी के छींटे मारे. वे दोनों धीरेधीरे आंखें मलती उठ बैठीं. वे हैरानी से चारों ओर देखने लगी थीं. फिर कांता ने बड़ी मासूमियत से अपनी दादी से पूछा, ‘‘दादी, मुझे क्या हुआ था?’’ ‘‘और मुझे दादी?’’ भोलेपन से डिंपल ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं. आज सच और झूठ का पता चल गया है. लूट और पाखंड का पता लग गया है. जाओ भाइयो, सब अपनेअपने घर जाओ.’’

धीरेधीरे लोग अपने घरों को लौटने लगे. दादी कांता का हाथ पकड़ कर बच्ची की तरह उसे घर ले गईं. डिंपल को उस की मां और बापू घर ले आए. शाम गहराने लगी थी और हवा खुशबू लिए सरसर बहने लगी थी. एक बार फिर डिंपल और कांता सुनसान मंदिर के पास बैठ कर ठहाके लगने लगी थीं.

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‘‘बहन महाकाली.’’

‘‘बोलो बहन काली.’’

‘‘आज कैसा रहा सब?’’

‘‘बहुत अच्छा. बस, अब कदम रुकेंगे नहीं. पहली कामयाबी की तुम्हें बधाई हो कांता.’’

‘‘तुम्हें भी.’’

दोनों ने ताली मारी, फिर वे अपने गांव और आसपास के इलाकों को खुशहाल बनाने के लिए योजनाएं बनाने लगीं. आकाश में चांद आज कुछ ज्यादा ही चांदनी बिखेरने लगा था.

मोबाइल पर फिल्म : सूरज ने कैसे दिखाई धन्नो को फिल्म

ऐसे टुकुरटुकुर क्या देख रहा है?’’ अपना दुपट्टा संभालते हुए धन्नो ने जैसे ही पूछा, तो एक पल के लिए सूरज सकपका गया.

‘‘तुझे देख रहा हूं. सच में क्या मस्त लग रही है तू,’’ तुरंत संभलते हुए सूरज ने जवाब दिया. धन्नो के बदन से उस की नजरें हट ही नहीं रही थीं.

‘‘चल हट, मुझे जाने दे. न खुद काम करता है और न ही मुझे काम करने देता है…’’ मुंह बनाते हुए धन्नो वहां से निकल गई.

सूरज अब भी उसे देख रहा था. वह धन्नो के पूरे बदन का मुआयना कर चुका था.

‘‘एक बार यह मिल जाए, तो मजा आ जाए…’’ सूरज के मुंह से निकला.

सूरज की अकसर धन्नो से टक्कर हो ही जाती थी. कभी रास्ते में, तो कभी खेतखलिहान में. दोनों में बातें भी होतीं. लेकिन सूरज की नीयत एक ही रहती… बस एक बार धन्नो राजी हो जाए,

फिर तो…

धन्नो को पाने के लिए सूरज हर तरह के हथकंडे अपनाने को तैयार था.

‘‘तू कुछ कामधंधा क्यों नहीं करता?’’ एक दोपहर धन्नो ने सूरज से पूछा.

‘‘बस, तू हां कर दे. तेरे साथ घर बसाने की सोच रहा हूं,’’ सूरज ने बात छेड़ी, तो धन्नो मचल उठी.

‘‘तू सच कह रहा है,’’ धन्नो ने खुशी में उछलते हुए सूरज के हाथ पर अपना हाथ रख दिया.

सूरज को तो जैसे करंट मार गया. वह भी मौका खोना नहीं चाहता था. उस ने झट से उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘सच धन्नो, मैं तुम्हें अपनी घरवाली बनाना चाहता हूं. तू तो जानती है कि मेरा बाप सरपंच है. नौकरी चाहूं, तो आज ही मिल जाएगी.’’

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सूरज ने भरोसा दिया, तो धन्नो पूछ बैठी, ‘‘तो नौकरी क्यों नहीं करते? फिर मेरे मामा से मेरा हाथ मांग लेना. कोई मना नहीं करेगा.’’

सूरज ने हां में सिर हिलाया. धन्नो उस के इतना करीब थी कि वह अपनी सुधबुध खोने लगा.

‘‘यहां कोई नहीं है. आराम से लेट कर बातें करते हैं,’’ सूरज ने इधरउधर देखते हुए कहा.

‘‘मैं सब जानती हूं. तुम्हारे दिमाग का क्या भरोसा, कुछ गड़बड़ कर बैठे तो…’’ धन्नो ने तपाक से जवाब दिया, ‘‘ब्याह से पहले यह सब ठीक नहीं… मरद जात का क्या भरोसा?’’ इतना कहते हुए वह तीर की मानिंद निकल गई. जातेजाते उस ने सूरज के हाथ को कस कर दबा दिया था. सूरज इसे इशारा समझने लगा.

‘‘फिर निकल गई…’’ सूरज को गुस्सा आ गया. उसे पूरा भरोसा था कि आज उस की मुराद पूरी होगी. लेकिन धन्नो उसे गच्चा दे कर निकल गई.

अब तो सूरज के दिलोदिमाग पर धन्नो का नशा बोलने लगा. कभी उस का कसा हुआ बदन, तो कभी उस की हंसी उसे पागल किए जा रही थी. वैसे तो वह सपने में कई बार धन्नो को पा चुका था, लेकिन हकीकत में उस की यह हसरत अभी बाकी थी.

सरपंच मोहन सिंह का बेटा होने के चलते सूरज के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. सो, उस ने एक कीमती मोबाइल फोन खरीदा और उस में खूब ब्लू फिल्में भरवा दीं. उन्हें देखदेख कर धन्नो के साथ वैसे ही करने के ख्वाब देखने लगा.

‘‘अरे, तू इतने दिन कहां था?’’ धन्नो ने पूछा. उस दिन हैंडपंप के पास पानी भरते समय दोनों की मुलाकात हो गई.

‘‘मैं नौकरी ढूंढ़ रहा था. अब नौकरी मिल गई है. अगले हफ्ते से ड्यूटी पर जाना है,’’ सूरज ने कुछ सोच कर कहा, ‘‘अब तो ब्याह के लिए हां कर दे.’’

‘‘वाह… वाह,’’ नौकरी की बात सुनते ही धन्नो उस से लिपट गई. सूरज की भावनाएं उफान मारने लगीं. उस ने तुरंत उसे अपनी बांहों में भर लिया.

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‘‘हां कर दे. और कितना तरसाएगी,’’ सूरज ने उस की आंखों में आंखें डाल

कर पूछा.

‘‘तू गले में माला डाल दे… मांग भर दे, फिर जो चाहे करना.’’

सूरज उसे मनाने की जीतोड़ कोशिश करने लगा.

‘‘अरे वाह, इतना बड़ा मोबाइल फोन,’’ मोबाइल फोन पर नजर पड़ते ही धन्नो के मुंह से निकला, ‘‘क्या इस में सिनेमा है? गानेवाने हैं?’’

‘‘बहुत सिनेमा हैं. तू देखेगी, तो चल उस झोंपड़े में चलते हैं. जितना सिनेमा देखना है, देख लेना,’’ सूरज धन्नो के मांसल बदन को देखते हुए बोला, तो

वह उस के काले मन के इरादे नहीं भांप सकी.

धन्नो राजी हो गई. सूरज ने पहले तो उसे कुछ हिंदी फिल्मों के गाने दिखाए, फिर अपने मनसूबों को पूरा करने के लिए ब्लू फिल्में दिखाने लगा.

‘‘ये कितनी गंदी फिल्में हैं. मुझे नहीं देखनी,’’ धन्नो मुंह फेरते हुए बोली.

‘‘अरे सुन तो… अब अपने मरद से क्या शरमाना? मैं तुम से शादी करूंगा, तो ये सब तो करना ही होगा न, नहीं तो हमारे बच्चे कैसे होंगे?’’ उसे अपनी बाजुओं में भरते हुए सूरज बोला.

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन शादी करोगे न? नहीं तो मामा मेरी चमड़ी उतार देगा,’’ नरम पड़ते हुए धन्नो बोली.

‘‘मैं कसम खाता हूं. अब जल्दी से घरवाली की तरह बन जा और चुपचाप सबकुछ उतार कर लेट जा,’’ इतना कहते हुए सूरज अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा. उस के भरोसे में बंधी धन्नो विरोध न कर सकी.

‘‘तू सच में बहुत मस्त है…’’ आधा घंटे बाद सूरज बोला, ‘‘किसी को कुछ मत बताना. ले, यह दवा खा ले. कोई शक नहीं करेगा.’’

‘‘लेकिन, मेरे मामा से कब बात करोगे?’’ धन्नो ने पूछा, तो सूरज की आंखें गुस्से से लाल हो गईं.

‘‘देख, मजा मत खराब कर. मुझे एक बार चाहिए था. अब यह सब भूल जा. तेरा रास्ता अलग, मेरा अलग,’’ जातेजाते सूरज ने कहा, तो धन्नो पर जैसे बिजली टूट गई.

अब धन्नो गुमसुम सी रहने लगी. किसी बात में उस का मन ही नहीं लगता.

‘‘अरे, तेरे कपड़े पर ये खून के दाग कैसे?’’ एक दिन मामी ने पूछा, तो धन्नो को जैसे सांप सूंघ गया. ‘‘पिछले हफ्ते ही तेरा मासिक हुआ था, फिर…’’

धन्नो फूटफूट कर रोने लगी. सारी बातें सुन कर मामी का चेहरा सफेद पड़ गया. बात सरपंच मोहन सिंह के पास पहुंची. पंचायत बैठी.

मोहन सिंह के कड़क तेवर को सभी जानते थे. उस के लिए किसी को उठवाना कोई बड़ी बात नहीं थी.

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‘‘तो तुम्हारा कहना है कि सूरज ने तुम्हारे साथ जबरदस्ती की है?’’ सरपंच के आदमी ने धन्नो से पूछा.

‘‘नहीं, सूरज ने कहा था कि वह मुझ से ब्याह करेगा, इसलिए पहले…’’

‘‘नहींनहीं, मैं ने ऐसा कोई वादा नहीं किया था…’’ सूरज ने बीच में टोका, ‘‘यह झूठ बोल रही है.’’

‘‘मैं भी तुम से शादी करूंगा, तो क्या तू मेरे साथ भी सोएगी,’’ एक मोटे से आदमी ने चुटकी ली.

‘‘तू है ही धंधेवाली…’’ भीड़ से एक आवाज आई.

‘‘चुप करो,’’ मोहन सिंह अपनी कुरसी से उठा, तो वहां खामोशी छा गई. वह सीधा धन्नो के पास पहुंचा.

‘‘ऐ छोकरी, क्या सच में मेरे सूरज ने तुझ से घर बसाने का वादा किया था?’’ उस ने धन्नो से जानना चाहा.

मोहन सिंह के सामने अच्छेअच्छों की बोलती बंद हो जाती थी, लेकिन न जाने क्यों धन्नो न तो डरी और न ही उस की जबान लड़खड़ाई.

‘‘हां, उस ने मुझे घरवाली बनाने की कसम खाई थी, तभी तो मैं राजी…’’ यह सुनते ही सरपंच का सिर झुक गया. भीड़ अब भी शांत थी.

‘‘बापू, तू इस की बातों में न आ…’’ सूरज धन्नो को मारने के लिए दौड़ा.

‘‘चुप रह. शर्म नहीं आती अपनी घरवाली के बारे में ऐसी बातें करते हुए. खबरदार, अब धन्नो के बारे में कोई एक शब्द कहा तो… यह हमारे घर की बहू है. अब सभी जाओ. अगले लगन में हम सूरज और धन्नो का ब्याह रचाएंगे.’’

धन्नो मोहन सिंह के पैरों पर गिर पड़ी. उस के मुंह से इतना ही निकला, ‘‘बापू, तुम ने मुझे बचा लिया.’’

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अंधा मोड़

‘‘सौरभ, ऐसे कब तक चलेगा?’’

‘‘तुम्हारा क्या मतलब है माधवी?’’

‘‘मेरा मतलब यह है कि सौरभ…’’ माधवी ने एक पल रुक कर कहा, ‘‘अब हम ऐसे कब तक छिपछिप कर मिला करेंगे?’’

‘‘जब तक तुम्हारा और मेरा सच्चा प्यार है…’’ समझाते हुए सौरभ बोला, ‘‘फिर तुम क्यों घबराती हो?’’

‘‘मैं घबराती तो नहीं हूं सौरभ, मगर इतना कहती हूं कि अब हमें शादी कर लेनी चाहिए,’’ माधवी ने जब यह प्रस्ताव रखा, तब सौरभ सोचने पर मजबूर हो गया.

हां, सौरभ ने माधवी से प्यार किया है, शादी भी करना चाहता है, मगर इस के लिए उस ने अपना मन अभी तक नहीं बनाया है. उस के इरादे कुछ और ही हैं, जो वह माधवी को बताना नहीं चाहता है. उस ने माधवी को अपने प्रेमजाल में पूरी तरह से फांस लिया है. अब मौके का इंतजार कर रहा है. उसे चुप देख कर माधवी फिर बोली, ‘‘क्या सोच रहे हो सौरभ?’’ ‘‘सोच रहा हूं कि हमें अब शादी कर लेनी चाहिए.’’

‘‘बताओ, कब करें शादी?’’

‘‘तुम तो जानती हो माधवी, मेरे मांबाप बचपन में ही गुजर गए थे. अंकल ने मुझे पालापोसा और पढ़ाया, इसलिए वे जैसे ही अपनी सहमति देंगे, हम शादी कर लेंगे.’’

‘‘मगर, डैडी मेरी शादी के लिए जल्दी कर रहे हैं…’’ समझाते हुए माधवी बोली, ‘‘मैं टालती जा रही हूं. आखिर कब तक टालूंगी?’’

‘‘बस माधवी, अंकल हां कर दें, तो हम फौरन शादी कर लेंगे.’’

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‘‘पता नहीं, तुम्हारे अंकल न जाने कब हां करेंगे.’’

‘‘जब हम ने इतने दिन निकाल दिए, थोड़े दिन और निकाल लो. मुझे पक्का यकीन है कि अंकल जल्दी ही हमारी शादी की सहमति देंगे,’’ कह कर सौरभ ने विश्वास जताया, मगर माधवी को उस के इस विश्वास पर यकीन नहीं हुआ. यह विश्वास तो सौरभ उसे पिछले 6-7 महीनों से दे रहा है, मगर हर बार ढाक के तीन पात साबित होते हैं. आखिर लड़की होने के नाते वह कब तक सब्र रखे. माधवी जरा नाराजगी से बोली, ‘‘नहीं सौरभ, तुम ने मुझ से प्यार किया है और मैं प्यार में धोखा नहीं खाना चाहती हूं. आज मैं अपना फैसला सुनना चाहती हूं कि तुम मुझ से शादी करोगे या नहीं?’’

‘‘देखो माधवी, मैं ने तो तुम से उतना ही प्यार किया है, जितना कि तुम ने मुझ से किया है…’’ समझाते हुए सौरभ बोला, ‘‘मगर, तुम मेरे हालात को क्यों नहीं समझ रही हो.’’ ‘‘मगर मेरे हालात को तुम क्यों नहीं समझ रहे हो सौरभ. तुम लड़के हो, मैं एक लड़की हूं. मुझ पर मांबाप का कितना दबाव है, यह तुम नहीं समझोगे…’’

एक बार फिर माधवी समझाते हुए बोली, ‘‘कितना परेशान कर रहे हैं वे शादी के लिए, यह तुम नहीं समझोगे.’’ ‘‘अपने पिता को जोर दे कर क्यों नहीं कह देती हो कि मैं ने शादी के लिए लड़का देख लिया है,’’ सौरभ बोला. ‘‘बस यही तो मैं नहीं कर सकती हूं सौरभ. तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रहे हो?’’

‘‘और तुम मेरे हालात को समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रही हो…’’ सौरभ जरा नाराजगी से बोला. माधवी ने भी उसी नाराजगी में जवाब दिया, ‘‘ठीक है, तुम लड़के हो कर डरपोक बन कर रहते हो, तो मैं तो लड़की हूं. फिर भी मैं तुम्हारे फैसले का इंतजार करूंगी,’’ कह कर माधवी चली गई. सौरभ भी उसे जाते हुए देखता रहा. दोनों का प्यार कब परवान चढ़ा, यह उन को अच्छी तरह पता है. वैसे, सौरभ एक बिगड़ा हुआ नौजवान था, जबकि माधवी गरीब परिवार की लड़की. वह अपने मातापिता की एकलौती बेटी थी. उस से 2 छोटे भाई जरूर थे.

माधवी अब जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. जब लड़की जवान हो जाती है, तब हर मातापिता के लिए चिंता की बात हो जाती है. माधवी के लिए लड़के की तलाश जारी थी. कुछ लड़के मिले, मगर वे दहेज के लालची मिले. माधवी के पिता रघुनाथ इतना ज्यादा दहेज नहीं दे सकते थे. वे चाहते थे कि माधवी का साधारण घर में ब्याह कर दें, जहां वह सुख से रह सके. मगर ऐसा लड़का उन्हें कई सालों तक नहीं मिला. माधवी सौरभ से शादी करना चाहती थी. वह बिना सोचेसमझे उसे अपना दिल दे बैठी थी. इन 6-7 महीनों में वह सौरभ के बहुत करीब आई, मगर उसे समझ नहीं पाई. उस ने उस पर प्यार भी खूब जताया. जरूरत की चीजें भी उसे खरीद कर दीं, मगर इस की हवा अपने मांबाप तक को नहीं लगने दी. इस के लिए उस ने 2-3 ट्यूशनें भी कर रखी थीं, ताकि मांबाप को यह एहसास हो कि वह ट्यूशन के पैसों से चीजें खरीद कर ला रही है. जब भी सौरभ का फोन आता, वह फौरन उस से मिलने चली जाती. तब घंटों बातें करती.

शादी के बाद क्याक्या करना है, सपनों के महल बनाती, मगर कभीकभी वह यह भी सोचती कि यह सब फिल्मों में होता है, असली जिंदगी में यह सब नहीं चलता है. मगर जब भी वह उस से शादी की बात करती, वह अंकल का बहाना बना कर टाल देता. आखिर ये अंकल थे कौन? इस का जवाब उस के पास नहीं था. तभी माधवी को एहसास हुआ कि कोई उस के पीछेपीछे बहुत देर से चला आ रहा है. उस ने पीछे मुड़ कर देखा, तो एक बूढ़ा आदमी था. माधवी ने ऊपर से नीचे तक घूरा, फिर गुस्से से बोली, ‘‘आप मेरे पीछेपीछे क्यों चल रहे हैं?’’ ‘‘मैं जानना चाहता हूं बेटी, जिस लड़के को तुम ने छोड़ा है, उस के बारे में क्या जानती हो?’’ उस बूढ़े ने यह सवाल पूछ कर चौंका दिया.

माधवी पलभर के लिए यह सोचती रही, ‘यह आदमी कौन है? और यह सवाल क्यों पूछ रहा है?’ कुछ देर तक माधवी कुछ जवाब नहीं दे सकी. तब उस बूढ़े ने फिर पूछा, ‘‘तुम ने जवाब नहीं दिया बेटी.’’

‘‘मगर, आप यह क्यों पूछना चाहते हैं बाबा?’’

‘‘इसलिए बेटी कि तुम्हारी जिंदगी बरबाद न हो जाए.’’

‘‘क्या मतलब है आप का? वह मेरा प्रेमी है और जल्दी ही हम शादी करने जा रहे हैं.’’

‘‘बेटी, मैं ने तुम्हारी सारी बातें सुन ली थीं, आड़ में रह कर…’’ वह बूढ़ा आदमी जरा खुल कर बोला, ‘‘जैसे ही तुम वहां से चली थीं, तभी से मैं तुम्हारे पीछेपीछे चला आ रहा हूं.

‘‘बेटी, जिस लड़के से तुम शादी करना चाहती हो, वह ठीक नहीं है.’’

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‘‘यह आप कैसे कह सकते हैं?’’

‘‘क्योंकि मैं उस का बाप हूं.’’

‘‘इस बुढ़ापे में झूठ बोलते हुए आप को शर्म नहीं आती? क्यों हमारे प्यार के बीच दुश्मन बन कर खड़े हो गए,’’ झल्ला पड़ी माधवी. ‘‘मुझे तो सौरभ ने बताया है कि उस के मांबाप बचपन में ही गुजर गए. एक अंकल ने उन्हें पालापोसा और आप उस के बाप बन कर कहां से टपक पड़े?’’ माधवी गुस्से से बोली. ‘‘तुझे कैसे यकीन दिलाऊं बेटी…’’ उस बूढ़े की बात में दर्द था. वह आगे बोला, ‘‘मगर, मैं सच कह रहा हूं बेटी, सौरभ मेरा नालायक बेटा है, जिसे मैं ने अपनी जमीनजायदाद से भी कानूनन अलग कर दिया है.  ‘वह तुम से शादी नहीं करेगा बेटी, बल्कि शादी के नाम पर तुम्हें कहीं ले जा कर किसी कोठे पर बेच देगा. सारे गैरकानूनी धंधे वह करता है. अफीम की तस्करी में वह जेल की हवा भी खा चुका है. तुम से प्यार का नाटक कर के तुम्हारे पिता को ब्लेकमैल करेगा.

‘‘जिसे तुम प्यार समझ रही हो, वह धोखा है. छोड़ दे उस नालायक का साथ. वहीं शादी कर बेटी, जहां तेरे पिता चाहते हैं. ‘‘एक बार फिर हाथ जोड़ कर कह रहा हूं कि बेटी, छोड़ दे उसे. मैं तुझे बरबादी के रास्ते से बचाना चाहता हूं.’’ इतना कह कर वह बूढ़ा रो पड़ा. माधवी को लगा कि कहीं बूढ़ा नाटक तो नहीं कर रहा है. इतने में वह बूढ़ा आगे बोला, ‘‘बेटी, तुझे विश्वास न हो, तो घर जा कर सारे सुबूत मैं दिखा सकता हूं.’’ ‘‘आप मेरे पिता समान हैं बाबा, झूठ नहीं बोलेंगे. मगर…’’ कह कर माधवी पलभर के लिए रुकी, तो वह बूढ़ा बोला, ‘‘मगर बेटी, न तुम मुझे जानती हो और न मैं तुम्हें जानता हूं. मगर जब मैं ने तुम को अपने नालायक बेटे के साथ देखा, तब मैं ने तुम्हें उस के चंगुल से छुड़ाने का सोच लिया. तभी से मैं ने तुम्हारे घर आने की योजना बनाई थी, ताकि तुम्हारे मांबाप को सारी हकीकत बता सकूं. ‘‘मेरा विश्वास करो, कहीं ऐसा न हो कि तुम प्यार में धोखा खा जाओ. मैं ने इसलिए पूछा था कि जिस लड़के से तुम प्यार करती हो, उसे अच्छी तरह परख लिया होगा. मगर तुम ने उस का केवल बाहरी रूप देखा है, भीतरी रूप तुम नहीं समझ सकी.’’

‘‘आप झूठ तो नहीं बोल रहे हैं बाबा? शायद आप मुझे अपनी बहू नहीं बनाना चाहते हैं. आप को भी दहेज वाली बहू चाहिए, इसलिए आप भी मेरे और सौरभ के बीच दीवार खड़ी करना चाहते हैं,’’ माधवी ने यह सवाल पूछा.

‘‘तू अच्छे घराने की है. मैं तेरी जिंदगी बचाना चाहता हूं. मेरी बात पर यकीन कर बेटी. जिस के प्यार के जाल में तू उलझी हुई है, वह शिकारी एक दिन तुझे बेच देगा.’’ बाबा ने माधवी को बड़ी दुविधा में डाल दिया था. वे उसे सौरभ के अंधे प्रेमजाल से क्यों निकालना चाहते हैं? वह किसी अनजान आदमी की बातों को क्यों मान ले? उसे चुप देख कर बाबा फिर बोले, ‘‘क्या सोच रही हो बेटी?’’ ‘‘मैं आप पर कैसे यकीन कर लूं कि आप सच कह रहे हैं. यह आप का नाटक भी तो हो सकता है?’’ एक बार माधवी फिर बोली, ‘‘मैं सौरभ का दिल नहीं तोड़ सकती हूं. इसलिए अगर आप मेरे पीछे आएंगे, तो मैं पुलिस में शिकायत कर दूंगी.’’

इतना कह कर बुरा सा मुंह बना कर माधवी चली गई. बूढ़ा चुपचाप वहीं खड़ा रह गया. कुछ दिनों बाद सौरभ ने माधवी को ऐसी जगह बुलाया, जहां से वे भाग कर किसी मंदिर में शादी करेंगे. वह भी अपनी तैयारी से तय जगह पर पहुंच गई. वहां सौरभ किसी दूसरे लड़के के साथ बात करता हुआ दिखाई दे रहा था. वह चुपचाप आड़ में रह कर सब सुनने लगी. वह लड़का सौरभ से कह रहा था, ‘‘माधवी अभी तक नहीं आई.’’

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‘‘वह अभी आने वाली है. अरे, इन 6-7 महीनों में मैं ने उस से प्यार कर के विश्वास जीता है. अब तो वह आंखें मूंद कर मुझे चाहती है. शादी के बहाने उसे ले जा कर चंपाबाई के कोठे पर बेच आऊंगा.’’ ‘‘ठीक है, तुम अपनी योजना में कामयाब रहो,’’ कह कर वह लड़का दीवार फांद कर कूद गया. सौरभ बेचैनी से माधवी का इंतजार करने लगा. अब माधवी सौरभ की सचाई जान चुकी थी. इस समय उसे बाबा का चेहरा याद आ रहा था. बाबा ने जो कुछ कहा था, सच था. अब सौरभ के प्रति उसे नफरत हो गई. सौरभ बेचैनी से टहल रहा था, मगर वह उस से नजर बचा कर बाहर निकल गई. वह सचमुच आज अंधे मोड़ से निकल गई थी.

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