मेरे पैरों में बहुत दर्द और नसें बहुत उभरी हुई दिखाई देती हैं, मैं क्या करुं?

सवाल- 

मैं 48 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मेरे पैरों में बहुत दर्द रहता है. उन की नसें बहुत उभरी और सूजी हुई दिखाई देती हैं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

ऐसा लगता है आप को वैरिकोज वेंस की समस्या है. लगातार लंबे समय तक खड़े या बैठे रहने से पैरों की नसों या शिराओं पर दबाव पड़ता है, जिस से कई बार उन में खराबी आ जाती है. मोटापे या वाल्व के खराब होने से भी यह समस्या हो जाती है. कई महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान वैरिकोज वेंस की समस्या उत्पन्न हो जाती है. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें, अपना वजन कम करें, टाइट फिटिंग के कपड़े न पहनें और लगातार लंबे समय तक खड़े होने या बैठने से बचें. अगर फिर भी आराम न मिले तो डाक्टर को दिखाएं.

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आप ने अकसर अपने मित्रों, पड़ोसियों व रिश्तेदारों को पैरों में दर्द होने की शिकायत करते सुना होगा. कुछ लोगों के पैरों में दर्द चलने से शुरू हो जाता है. जब वे चलना बंद कर देते हैं तो विश्रामावस्था में पैरों से दर्द गायब हो जाता है और दोबारा चलने से फिर वही दर्द उभरता है. कभीकभी बुजुर्ग लोग अकसर पैरों में दर्द होने की शिकायत करते हैं. कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन के पैरों में दर्द चलने से कम हो जाता है पर लेटने पर दर्द की तीव्रता बढ़ जाती है. अगर आप डायबिटीज के मरीज हैं या धूम्रपान, सिगरेट, बीड़ी व हुक्का के आदी हैं या फिर तंबाकू और उस से बने पदार्थों जैसे जर्दायुक्त पान मसाला, खैनी, चैनी, मैनपुरी या जाफरानी पत्ती के आदी हैं और साथ ही साथ पैरों में दर्द को ले कर परेशान हैं तो होशियार हो जाइए, वरना देरसवेर पैर गंवाने पड़ सकते हैं.

अकसर लोगों को यह भ्रम रहता है कि मधुमेह का पैरों से कोई संबंध नहीं है, मधुमेह का रोग सिर्फ हृदय से संबंधित है. उसी तरह से धूम्रपान के आदी लोग यह समझते हैं कि धूम्रपान से सिर्फ फेफड़ों को नुकसान पहुंचता है और कैंसर हो सकता है. पर लोग यह नहीं जानते कि धूम्रपान के आदी व तंबाकू के व्यसनी लोगों में पैरों में गैंगरीन होने का खतरा हमेशा मंडराता रहता है. डायबिटीज का मरीज अगर धूम्रपान भी करता है या तंबाकू का सेवन करता है तो वह वही कहावत हो गई, ‘करेला वो भी नीम चढ़ा.’ मधुमेह व धूम्रपान दोनों मिल कर पैरों का सत्यानाश कर देते हैं. इसलिए, टांगों व पैरों को स्वस्थ व क्रियाशील रखने के लिए इन दोनों पर अंकुश रखना अत्यंत आवश्यक है. पैरों में दर्द क्यों

मेनोपोज और ब्रेस्ट कैंसर क्या अनुवांशिक है?

सवाल-

मेरे पिताजी को लिवर और मां को ब्रैस्ट कैंसर हो गया है. मैं ने सुना है कि यह आगे भी परिवार में हो सकता है. मेरी उम्र 32 वर्ष है. मुझे इस से बचने के लिए क्या सावधानी बरतनी चाहिए?

जवाब-

यह सही है कि आनुवंशिक कारण कैंसर का एक प्रमुख रिस्क फैक्टर माना जाता है. अगर आप की मां को ब्रैस्ट कैंसर है तो आप के लिए खतरा 12 से 14% तक अधिक है. इसी तरह लिवर कैंसर में भी आनुवंशिक कारण महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस से बचने के लिए आप कुछ जरूरी कदम उठा सकती हैं जैसे शारीरिक रूप से सक्रिय रहें, अपना वजन न बढ़ने दें, शराब का सेवन न करें, बच्चों को स्तनपान जरूर कराएं, गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन न करें विशेषकर 35 साल के बाद, मेनोपौज के बाद हारमोन थेरैपी न लें.

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सवाल-

मेरे परिवार में अर्ली मेनोपौज की समस्या रही है. मेरी नानी और मां को मेनोपौज 40 साल की उम्र से पहले हो गया था. मैं कैरियर के चलते अभी फैमिली प्लानिंग नहीं करना चाहती. मैं क्या करूं?

जवाब-

अर्ली मेनोपौज में आनुवंशिक कारक भी अहम भूमिका निभा सकता है. मेनोपौज की स्थिति में पहुंचने पर महिलाएं अंडोत्सर्ग नहीं कर पातीं. इस से गर्भधारण करना असंभव हो जाता है. ऐसे में आप असिस्टेड रिप्रोडक्टिव तकनीक (एआरटी) का सहारा ले सकती हैं या फिर आप अपने अंडे फ्रीज करा सकती हैं, जिन्हें आईवीएफ के दौरान इस्तेमाल किया जा सकता है अथवा आप डोनर एग का इस्तेमाल कर के भी आईवीएफ करवा सकती हैं.

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45 साल की रश्मि पिछले कुछ दिनों से अपने स्वास्थ्य में असहजता महसूस कर रही थी. इस वजह से उसे नींद अच्छी तरह से नहीं आ रही थी. ठण्ड में भी उसे गर्मी महसूस हो रही थी. पसीने छूट रहे थे. उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. बात-बात में चिडचिडापन आ रहा था. डौक्टर से सलाह लेने के बाद पता चला कि वह प्री मेनोपौज के दौर से गुजर रही है. जो समय के साथ-साथ ठीक हो जायेगा.

दरअसल मेनोपौज यानी रजोनिवृत्ति एक नैचुरल बायोलौजिकल प्रक्रिया है,जो महिलाओं की 40 से 50 वर्ष के बीच में होता है. महिलाओं में कई प्रकार के हार्मोनल बदलाव इस दौरान आते है और मासिक धर्म रुक जाता है.  इस बारें में ‘कूकून फर्टिलिटी’ के डायरेक्टर, गायनेकोलोजिस्ट और इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉ.अनघा कारखानिस कहती है कि अगर कोई महिला पूरे 12 महीने बिना किसी माहवारी के गुजारती है तो उसे मेनोपौज ही कही जाती है, ऐसे में कुछ महिलाओं को लगता है कि मेनोपौज से उनकी प्रजनन क्षमता समाप्त होने की वजह से वे ओल्ड हो चुकी है, जबकि कुछ महिलाओं को हर महीने की झंझट से दूर होना भी अच्छा लगता है. इतना ही नहीं इसके बाद किसी भी महिला को बिना चाहे माँ बनने की समस्या भी चली जाती है.

इसके आगे डौ.अनघा बताती है कि मेनोपौज एक सामान्य प्रक्रिया होने के बावजूद उसे लेकर कई भ्रांतियां महिलाओं में है, जबकि कुछ महिलाओं में मूड स्विंग और बेचैनी रहती भी नहीं है, लेकिन वे मेनोपौज के बारें में सोचकर ही परेशान रहने लगती है,जिससे न चाहकर भी उनका मनोबल गिरता है और वे डिप्रेशन की शिकार होती है. जबकि ये सब मिथ है और इसका मुकाबला आसानी से किया जा सकता है, जो निम्न है,

Winter Special: ऐसे बढ़ाएं शरीर की इम्यूनिटी

जाड़े के मौसम में अकसर जिन की इम्यूनिटी कमजोर होती है वे बीमार पड़ जाते हैं. इस मौसम में पौल्यूशन भी अपने चरम पर होता है. हवाओं की ठंडक अलग शरीर के काम करने की क्षमता घटा देती है. ऐसे में इम्यूनिटी का मजबूत होना बहुत जरूरी है.

क्या है इम्यूनिटी

दरअसल, इम्यूनिटी हमारे शरीर में मौजूद टौक्सिंस से लड़ने की क्षमता होती है. शरीर में टौक्सिन के बहुत सारे कारण हो सकते हैं, मसलन बैक्टीरिया, वायरस या फिर अन्य नुकसानदेह पैरासाइट्स. शरीर के आसपास बहुत सारे बैक्टीरिया और वायरस मौजूद होते हैं जो हमें कई तरह की बीमारियों से ग्रस्त कर देते हैं. वायु प्रदूषण की वजह से फेफड़े और सांस से जुड़ी समस्याएं भी परेशान कर सकती हैं.

शरीर को इन बाहरी संक्रमणों, प्रदूषण जनित तकलीफों और बीमारियों से बचा कर रखने के लिए शरीर के अंदर एक रक्षा प्रणाली होती है जिसे इम्यून सिस्टम या रोग प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं. अगर आप की इम्यूनिटी मजबूत है तो आप बदलते मौसम और प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों से बचे रहते हैं.

आइए, जानते हैं इम्यूनिटी मजबूत करने के तरीकों के बारे में:

शारीरिक सक्रियता है जरूरी

खुद को स्वस्थ रखने और अपनी इम्यूनिटी को सुधारने के लिए शरीर का सक्रिय रहना जरूरी है. शारीरिक गतिविधि से ऐंडोर्फिन नामक हारमोन का स्राव होता है जिस से तनाव दूर होता है, मन आनंदित रहता है और शरीर की क्षमता बढ़ती है. जब आप काम नहीं करते हैं और भूख लगने पर खाना खा लेते हैं तो आप पेट से जुड़े बहुत सारे रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं. शारीरिक निष्क्रियता आप के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी प्रभावित करती है. इस से बचने के लिए नियमित व्यायाम को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं.

व्यायाम करने से आप का स्टैमिना बढ़ता है. पाचन क्षमता दुरुस्त रहती है. नियमित व्यायाम से पुरानी बीमारियों जैसे मोटापा, टाइप 2 मधुमेह और हृदय रोग के साथसाथ वायरल और बैक्टीरियल संक्रमण होने का खतरा भी कम होता है. अपने व्यायाम में योग और साइक्लिंग के साथ सैर को भी शामिल करें. वयस्कों को प्रति सप्ताह कम से कम ढाई घंटे मध्यम तीव्रता वाले.

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ऐरोबिक व्यायाम: जैसे चलना, टहलना और साइकिल चलाना और सवा घंटा, उच्च तीव्रता वाले ऐरोबिक व्यायाम जैसे दौड़ना चाहिए. इसी तरह हमें प्रतिदिन 4-5 मील चलने की आदत भी रखनी चाहिए. मार्च, 2020 में ‘जर्नल औफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन’ में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक रोज आप जितना अधिक चलते हैं आप के समय से पहले मरने की संभावना उतनी ही कम हो जाती है. चलना और व्यायाम करना आप की जिंदगी बढ़ाते हैं.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के अनुसार, सप्ताह में कम से कम 2 बार स्ट्रैंथ ट्रेनिंग भी आप के स्वास्थ्य के लिए वरदान है. यह आप की हड्डियों को मजबूत करती है, बीमारी को दूर रखती है और पाचन में सुधार करती है. क्लीनिकल ऐंड एक्सपैरिमैंटल मैडिसिन में जुलाई, 2020 में प्रकाशित एक समीक्षा के मुताबिक प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने और कोविड-19 जैसे वायरल संक्रमणों से बचाने के लिए मसल्स बिल्डिंग सहित दूसरे व्यायाम भी जरूरी हैं.

भरपूर नींद लें

नींद एक ऐसा समय है जब आप का शरीर प्रमुख प्रतिरक्षा कोशिकाओं और अणुओं जैसे साइटोकिंस (एक प्रकार का प्रोटीन जो सूजन से लड़ सकता है, या बढ़ावा दे सकता है), टी कोशिका (एक प्रकार की सफेद रक्त कोशिका जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को नियंत्रित करती है) और इंटरल्यूकिन 12 को नियंत्रित करती है. पर्याप्त आराम पाने से हमारे शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा मजबूत हो जाती है.

जब आप पर्याप्त नींद नहीं लेते हैं तो प्रतिरक्षा प्रणाली ठीक से अपने ये काम नहीं कर पाती और आप के बीमार होने की संभावना अधिक होती है.

बिहेवियरल स्लीप मैडिसिन के जुलाईअगस्त, 2017 अंक में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि स्वस्थ युवा वयस्कों की तुलना में (जिन्हें नींद की समस्या नहीं थी), अनिद्रा से पीडि़त स्वस्थ युवा वयस्कों में टीका लगवाने के बाद भी फ्लू की आशंका अधिक थी.

नींद की कमी भी कोर्टिसोल के स्तर को बढ़ाती है जो निश्चित रूप से इम्यून सिस्टम के लिए भी अच्छा नहीं है. नींद की कमी से हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली खराब हो जाती है और हमारे पास बीमारी से लड़ने या ठीक होने की क्षमता कम हो जाती है.

‘नैशनल स्लीप फाउंडेशन’ सभी वयस्कों को अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रति रात 7 से 9 घंटे की नींद लेने की सलाह देता है. सोने से कम से कम 2 से 3 घंटे पहले इलैक्ट्रौनिक्स बंद करना, फोन से दूरी रखना और हिंसक या तनावपूर्ण सीरियल्स अथवा बातचीत से बचना जरूरी है.

खानपान में बदलाव

अपनी दिनचर्या और खानपान में थोड़ा बदलाव कर आप खुद को स्वस्थ रखने के साथसाथ अपनी इम्यूनिटी को भी सुधार सकते हैं. अपने आहार में उन चीजों को शामिल करें जो आप के शरीर को पोषण प्रदान करने के साथसाथ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली हों. चिप्स, मैगी, फ्रैंचफ्राइज, पास्ता, पिज्जा, डब्बाबंद आहार, सोडा ड्रिंक आदि को भूल कर भी शामिल न करें. उबले अंडे, मौसमी ताजे फल, दलिया, नट्स, अंकुरित अनाज, सीड्स, मेवे आदि के साथसाथ जूस, लस्सी वगैरह शामिल करें.

इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए अपने आहार में टमाटरों को जरूर शामिल करें. इन में मौजूद लाइकोपीन, विटामिन के, विटामिन सी और फाइबर इम्यूनिटी सुधारने में मददगार साबित होते हैं. इसी तरह संतरा, नीबू, आंवला जैसे खट्टे फलों में विटामिन सी की भरपूर मात्रा होती है, जो हर तरह के संक्रमण से लड़ने वाली श्वेत रक्त कणिकाओं का निर्माण करने में सहायक होती है.

इन सारी चीजों को अपने आहार का नियमित हिस्सा बनाएं. लहसुन भरपूर मात्रा में ऐंटीऔक्सिडैंट बना कर हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली को बीमारियों से लड़ने की शक्ति देता है. इस में एलिसिन नामक ऐसा तत्त्व पाया जाता है जो शरीर को किसी भी प्रकार के संक्रमण और बैक्टीरिया से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है. इसी तरह पालक, मशरूम, स्प्राउट्स आदि भी आप को अंदर से मजबूत बनाते हैं.

खुश रहें

जब भी मौका मिले खुल कर हंसने का प्रयास करें. ऐसा करने से आप तनाव को कम कर सकती हैं और लंबे समय तक बीमारी के प्रति कम संवेदनशील हो जाते हैं. इस के अलावा अपने रिश्तों को समय दें. सामाजिक संबंधों से सामाजिक समर्थन की भावना बढ़ सकती है. दिल से खुश रहेंगे तो शरीर मजबूत रहेगा और वातावरण में मौजूद बीमारियों के वायरस आप पर आक्रमण नहीं कर सकेंगे.

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प्रकृति के साथ समय बिताएं

अपने इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए प्रकृति के साथ अधिक समय बिताएं. प्राकृतिक वातावरण हमें शुद्ध वायु और प्रसन्न मन देता है. पेड़पौधों का सामीप्य हमें कई तरह से रोगमुक्त करता है, हमारे श्वसनतंत्र को मजबूत बनाता है. रोजाना थोड़ी देर धूप में बैठें ताकि आप का सामना सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से हो. धूम विटामिन डी का बेहतरीन स्रोत होती है जो हड्डियों को मजबूती देने के साथसाथ प्रतिरक्षा प्रणाली को भी दुरुस्त करती है.

गंदगी से रहें दूर

अपने आसपास का वातावरण साफसुथरा रखने के अलावा अपनी शारीरिक स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें क्योंकि बहुत सारी बीमारियों का कारण गंदगी होती है.

मेरी माहवारी बंद होने वाली है, इसके कारण किन दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा?

सवाल-

मुझे लगता है मेरी माहवारी बंद होने वाली है. इस में मुझे किस प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा?

जवाब- 

माहवारी बंद होना यानी मेनोपौज के बाद आप को हौट फ्लैशेज और वैजाइनल ड्राईनैस जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. हौट प्लैशेज के कारण रात को अत्यधिक पसीना आने से आप की नींद खराब हो सकती है. वैजाइनल ड्राईनैस से बचने के लिए आप वाटर बेस्ड ल्यूब्रिकैंट या वैजाइनल ऐस्ट्रोजन क्रीम का इस्तेमाल कर सकती हैं. कुछ महिलाओं में मूड स्विंग और वजन बढ़ने जैसी समस्याएं भी देखी जाती हैं. इन से बचने के लिए संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें, शारीरिक रूप से सक्रिय रहें और अनुशासित दिनचर्या का पालन करें.

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मासिकधर्म लड़कियों व महिलाओं में होने वाली एक सामान्य प्रक्रिया है. इस दौरान शरीर में अनेक हारमोनल बदलाव होते हैं, जो शारीरिक और भावनात्मक रूप से प्रभाव डालने के कारण तनाव का कारण बन सकते हैं. कई कारण इस के जिम्मेदार हो सकते हैं.

कई महिलाएं मासिकधर्म शुरू होने से पहले या इस दौरान तनाव की ऐसी स्थिति से गुजरती हैं, जिस में उन्हें चिकित्सकीय इलाज की भी जरूरत होती है. यह सामान्य बात है कि तनाव, चिंता और चिड़चिड़ापन जिंदगी और रिश्तों को प्रभावित कर सकता है.

पीरियड्स के दौरान अगर थोड़ाबहुत तनाव महसूस हो, तो यह एक सामान्य स्थिति मानी जाती है. प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम के लक्षणों का मुख्य कारण ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन हारमोंस के लैवल में बदलाव आना होता है.

सामान्य तौर पर पुरुषों की तुलना में महिलाओं में तनाव से ग्रस्त होने की आशंका ज्यादा होती है, जो मासिकधर्म के दौरान और बढ़ सकती है, क्योंकि ये हारमोनल ‘रोलर कोस्टर’ आप के ब्रेन में न्यूरोट्रांसमीटर्स, जिन में सैरोटोनिन और डोपामाइन हैं, पर प्रभाव डाल सकते हैं, जो मूड को ठीक रखने का काम करते हैं. इस के अलावा जिन लड़कियों या महिलाओं को पहले पीरियड्स के दौरान बहुत अधिक ऐंठन या ब्लीडिंग होती है, वे पीरियड्स शुरू होने से पहले दर्द व असुविधा को ले कर चिंतित हो सकती हैं, जो तनाव का कारण बनता है.

ये लक्षण आप के दैनिक जीवन को प्रभावित करने के लिए काफी गंभीर होते हैं, जिन में चिड़चिड़ापन या क्रोध की भावना, उदासी या निराशा, तनाव या चिंता की भावना,मूड स्विंग या बारबार रोने को मन करना, सोचने या ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत, थकान या कम ऊर्जा, फूड क्रेविंग या ज्यादा खाने की इच्छा, सोने में दिक्कत, भावनाओं को कंट्रोल करने में परेशानी और शारीरिक लक्षण, जिन में ऐंठन, पेट फूलना, स्तनों का मुलायम पड़ना, सिरदर्द और जोड़ों व मांसपेशियों में दर्द शामिल है.

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क्या सर्जरी के बाद फाइब्रौयड्स दोबारा हो सकता है?

सवाल-

क्या फाइब्रौयड्स की सर्जरी के बाद यह दोबारा हो सकता है?

जवाब-

फाइब्रौयड्स गर्भाशय में विकसित होने वाले कैंसररहित पिंड होते हैं जो इस की दीवार की मांसपेशियों और संयोजी ऊतकों से बनते हैं. इन्हें सर्जरी के द्वारा निकाल दिया जाता है, जिसे मायोमेक्टोमी कहते हैं. इस सर्जरी के बाद भी फाइब्रौयड्स के पुन: विकसित होने की आशंका 25-30% तक होती है. इन से बचने के लिए नमक कम खाएं, रक्तदाब को नियंत्रित रखें, ऐक्सरसाइज करें, कमर के आसपास चरबी न बढ़ने दें, पोटैशियम का सेवन बढ़ा दें.

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20से 50 % महिलाओं को फाइब्रौयड की प्रौब्लम होती है, लेकिन केवल 3% मामलों में ही यह बांझपन का कारण बनता है. जो महिलाएं इस के कारण बांझपन से जूझ रही होती हैं, वे भी इस के निकलने के बाद सफलतापूर्वक गर्भधारण कर सकती हैं. बहुत ही कम मामलों में स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि गर्भाशय निकालना पड़ता है. वैसे जिन महिलाओं को बांझपन की प्रौब्लम होती है उन में फाइब्रौयड्स अधिक बनते हैं. जानिए फाइब्रौयड के कारण बांझपन की प्रौब्लम क्यों होती है और उससे कैसे निबटा जाए:

क्या होता है फाइब्रौयड

यह एक कैंसर रहित ट्यूमर होता है, जो गर्भाशय की मांसपेशीय परत में विकसित होता है. जब गर्भाशय में केवल एक ही फाइब्रौयड हो तो उसे यूटराइन फाइब्रोमा कहते हैं. फाइब्रौयड का आकार मटर के दाने से ले कर तरबूज बराबर हो सकता है.

इंट्राम्युरल फाइब्रोयड्स

ये गर्भाशय की दीवार में स्थित होते हैं. यह फाइब्रौयड्स का सब से सामान्य प्रकार है.

सबसेरोसल फाइब्रौयड्स

ये गर्भाशय की दीवार के बाहर स्थित होते हैं. इन का आकार बहुत बड़ा हो सकता है.

सबम्युकोसल फाइब्रौयड्स

ये गर्भाशय की दीवार की भीतरी परत के नीचे स्थित होते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- जानें क्यों महिलाओं के लिए खतरनाक हो सकता है फाइब्रौयड

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इन 5 healthy foods से एनर्जी को करें बूस्ट 

आज ये बहुत कॉमन प्रोब्लम हो गई है कि लोग खुद को हर समय थकाथका सा महसूस करने लगे हैं. जिसके कारण छोटेछोटे टास्क भी उन्हें बोझिल से लगने लगे हैं , जो सीधे तौर पर उनकी प्रोडक्टिविटी पर असर डालने का काम कर रहा है. अकसर हम थकान को सीधे तौर पर बढ़ती उम्र से जोड़कर देखने लगते हैं , जबकि इसके लिए हर बार उम्र को जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं है. क्योंकि थकान , कमजोरी का सीधा संबंध हमारे खानपान से जुड़ा हुआ है, जो हमारे एनर्जी लेवल को भी डाउन करने का काम करता है. इसलिए शरीर की ईंधन संबंधित जरूरतों की पूर्ति के लिए हैल्दी फूड के ओप्शन को अपनाना बहुत जरूरी है. जो हमारी काम के प्रति अलर्टनेस व फोकस को बढ़ाने के साथसाथ हमारे एनर्जी लेवल को बढ़ाता है. तो आइए जानते हैं इस संबंध में, हेआ बूस्टर्स की फाउंडर एंड सीईओ झूमर सिन्हा से.

सब्जियां फल 

सब्जियां व फल सभी जरूरी न्यूट्रिएंट्स में हाई होने के कारण ये हैल्दी मेटाबोलिज़म को मैंटेन करने के साथ हमारे एनर्जी लेवल को बूस्ट करने का काम करते हैं. साथ ही इसमें मैक्रोन्यूट्रिएंट्स जैसे कार्ब्स व गुड फैट्स का हैल्दी बैलेंस होता है , जो शरीर को फ्यूल प्रदान करने का काम करते हैं , साथ ही एनर्जी में बदल कर हमें पूरे दिन ऊर्जावान बनाए रखने का काम करते हैं.  साथ ही ये फाइबर के अच्छे स्रोत्र होने के कारण ये पाचन तंत्र के लिए भी काफी अच्छे माने जाते हैं. लेकिन फलों में चीनी की मात्रा का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है. क्योंकि रोजाना अगर आप जरूरत से ज्यादा फलों का सेवन करते हैं तो ये आपकी रक्त में सकरा की मात्रा को बड़ा सकता है, जो आपके एनर्जी लेवल को डाउन करने का काम करेगा. इसलिए अगर आपको डायबिटीज की शिकायत है तो आप रोजाना एक फल ही खाएं. और आपके लिए इन फलों को शामिल करना होगा ज्यादा फायदेमंद.

– एक मीडियम साइज के एप्पल में कार्ब्स व कैलोरीज बहुत कम होती है. और ये ढेरों न्यूट्रिएंट्स फाइबर, विटामिन सी व एन्टिओक्सीडैंट्स से भरा होता है.

– एक कीवी में 10 ग्राम कार्ब्स व 42 कैलोरीज होने के कारण आप इसे स्मार्टली डायबिटीज डाइट में शामिल कर सकते हैं. इसमें फाइबर, पोटेशियम, विटामिन सी बड़ी मात्रा में होता है, जो सेहत के लिए फायदेमंद होता है.

– एक मीडियम साइज के ऑरेंज से आप एक दिन में 70 पर्सेंट के करीब विटामिन सी प्राप्त कर सकते हैं. साथ ही इसमें फोलेट , पोटैशियम व विटामिन सी होने के कारण ये आपको हैल्दी रखने के साथसाथ आपके ब्लड प्रेशर को भी कंट्रोल में रखने में मदद करता है.

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– स्ट्रॉबेरी डायबिटीज के लिए सुपरफूड माना जाता है. क्योंकि ये एन्टिओक्सीडैंट्स व फाइबर में रिच जो होता है.

2. मशरूम 

मशरूम को अगर ऊर्जा का पावरहाउस कहा जाए तो गलत नहीं होगा. ये फोलेट और विटामिन बी जैसे राइबोफ्लेविन, नियासिन और पैंटोथेनिक एसिड में रिच होता है, जो शरीर को हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन से ऊर्जा प्रदान करने में मदद करता है. ये माइटोकांड्रिया को फ्यूल देने में मदद करता है, जो सेल्स के पावरहाउस कहलाते हैं और साथ ही रेड ब्लड सेल्स के उत्पादन में भी मदद करता है. आप इसे सब्जी , सलाद, सैंडविच या फिर इसे स्नैक के रूप में शामिल करके खुद को हैल्दी रख सकते हैं.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन बाउल रो मशरूम 

– आयरन- 0.4 मिलीग्राम

– फैट- 0.2 ग्राम

– कार्ब्स- 2.3 ग्राम

– फाइबर – 0.7 ग्राम

– प्रोटीन- 2.2 ग्राम

– पोटेशियम- 223 मिलीग्राम

– कॉपर- 0.2 मिलीग्राम

3. शकरकंद

जब शारीरिक कार्यों को बनाए रखने के लिए  उत्कृष्ट कार्ब्स की बात आती है तो शकरकंद को आलू से बेहतर व स्वस्थ ओप्शन माना जाता है. क्योंकि न सिर्फ ये स्वाद में बेहतर होता है बल्कि ये फाइबर व पोटेशियम से भरपूर होता है. बता दें कि पोटेशियम इलेक्ट्रोलाइट के संतुलन को बनाए रखने व ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद करता है, जो आपके तनाव व थकावट को कम करके आपको रिलैक्स फील करवाने का काम करता है.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन बिग साइज शकरकंद

– सोडियम- 69 मिलीग्राम

– कार्ब्स- 25  ग्राम

– फाइबर- 3.2 ग्राम

– पोटेशियम – 438 मिलीग्राम

– प्रोटीन- 3.6 ग्राम

– 100 ग्राम शकरकंद में 400 फीसदी से अधिक विटामिन ए पाया जाता है.

4. अंडा 

बता दें कि एक अंडे में उच्च गुणवत्ता का प्रोटीन व हैल्दी फैट्स होते हैं , जो हमें फुल रखने के साथसाथ लंबे समय तक ऊर्जा प्रदान करने का काम करते हैं. अंडे में पाए जाने वाले कुछ विटामिन्स व मिनरल्स में शामिल हैं , आयरन, कोलाइन , विटामिन डी व बी – 12. अंडे का पीला भाग सबसे ज्यादा फायदेमंद व न्यूट्रिएंट्स से भरा होता है. इसलिए रोजाना 1 या 2 उबले हुए अंडे जरूर खाने चाहिए.  ये शरीर की सारी थकान को भी दूर करने का काम करता है.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन बोयल एग 

– प्रोटीन – 12 ग्राम के करीब

– फास्फोरस – 90 मिलीग्राम

–  सेलेनियम- 20 माइक्रोग्राम

– कार्ब्स- 0.5 ग्राम

5. पालक 

पालक एक ऐसी हरी पत्तेदार सब्जी है, जो आयरन, मैग्नीशियम और पोटेशियम में रिच होती है. साथ ही आयरन एक महत्वपूर्ण खनिज है, जो फेफड़ों से शरीर के बाकी हिस्सों में स्वस्थ तरीके से ओक्सीजन पहुंचाने में मदद करता है. परिवहन का ये प्रभावी तरीका आपके शरीर में ऊर्जा के बेहतर स्तर और एकाग्रता को बनाए रखने में सहायता कर सकता है. शरीर के आयरन के क्या फायदे होते हैं ये अकसर लोग तब जानते हैं , जब उनके शरीर में इसकी कमी हो जाती है. इसलिए शरीर में भरपूर आयरन के लिए पालक को अपनी डाइट में जरूर शामिल करें.

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100 ग्राम पालक में न्यूट्रिशन वैल्यू 

– आयरन- 0.81 ग्राम

– मैग्नीशियम – 24 मिलीग्राम

– पोटेशियम – 150 मिलीग्राम

– फाइबर – 2.4 ग्राम

– प्रोटीन- 2.5 ग्राम

– कैल्शियम- 30 मिलीग्राम

टिप्स 

– आपका शरीर सही ढंग से कार्य करे , इसके लिए जरूरी है कि आप पर्याप्त मात्रा में पानी पियें. पानी कैलोरी के रूप में ऊर्जा नहीं देता है, लेकिन ये शरीर में ऊर्जा के उत्पादन में सहायता प्रदान करता है. दिनभर खूब पानी पिएं , लेकिन सोडा, कॉफ़ी व अन्य कैफीनयुक्त पेय से बचें.

– कैफीन ड्रिंक शार्ट टर्म एनर्जी बूस्टर होती है. इसलिए इससे जितना हो सके दूरी बनाकर ही रहें.

– प्रोसेस्ड फ़ूड आसानी से उपलब्ध होने के कारण जब मन करे खा सकते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इनमें बहुत सारे प्रीज़रवेटिव्स , नमक , ट्रांस फैट्स और अर्टिफिशियल केमिकल्स को डाला जाता है, जो आपके मेटाबोलिज़म को कमजोर बनाने के साथ आपके एनर्जी लेवल को भी डाउन करने का काम करते हैं.

– जब भी प्रोसेस्ड फ़ूड खाने का मन करें तो उसकी बजाय आप मुट्ठी भर कर ड्राईफ्रूट्स खा लें , क्योंकि ये आपके एनर्जी लेवल को बढ़ाने के साथसाथ आपकी भूख को भी शांत करने का काम करता है. जिससे आप अपनी फिटनेस का भी खास खयाल रख सकते हैं.

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क्या सी सैक्शन डिलिवरी की आशंका को कम किया जा सकता है?

सवाल-

मैं 3 महीने की गर्भवती हूं. मुझे सी सैक्शन डिलिवरी का नाम सुन कर ही डर लगता है. क्या कोई ऐसे उपाय है, जिस से सी सैक्शन डिलिवरी की आशंका को कम किया जा सकता है?

जवाब-

मां बनना हर महिला के लिए जीवन का सब से सुखद अनुभव होता है. लेकिन जैसेजैसे प्रसव का समय नजदीक आने लगता है, उसे इस बात की चिंता सताने लगती है कि प्रसव सामान्य होगा या सी सैक्शन. वैसे तो पहले से कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन कुछ बातें हैं जिन का ध्यान रख कर आप सामान्य प्रसव की संभावना को बढ़ा सकती हैं. अपने खानपान का विशेषतौर पर ध्यान रखें, पर्याप्त मात्रा में पानी पीएं, तनाव से दूर रहें, मानसिक शांति के लिए ध्यान करें. सही डाक्टर का चुनाव करें. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें. उपयुक्त व्यायाम करने से आप का शरीर सामान्य प्रसव की पीड़ा को सहने के लिए तैयार होता है. लेकिन ऐक्सरसाइज हमेशा अपने डाक्टर की सलाह से करें.

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गर्भावस्था की कुछ सामान्य जटिलताएं मोटी महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी होती हैं, जिन में सम्मिलित हैं- गर्भपात. जैस्टेशनल डायबिटीज, उच्च रक्त दाब (इसे जैस्टेशनल हाइपरटैंशन भी कहा जाता है), प्रीऐक्लैंप्सिया, प्रसव के दौरान सामान्य से अधिक रक्तस्राव आदि. हालांकि ये समस्याएं किसी भी गर्भवती महिला को हो सकती हैं. इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह मोटापे की शिकार है या नहीं, लेकिन बीएमआई (बौडी मास इन्डैक्स) अधिक होने से खतरा बढ़ जाता है.

मोटापे का डायग्नोसिस बीएमआई की गणना कर के किया जाता है, जो वजन और लंबाई पर आधारित होता है. बीएमआई 30 या उस से अधिक होना यकीनन मोटापे को परिभाषित करता है.

बीएमआई जितना अधिक होगा, उतना ही गर्भावस्था के दौरान जटिलताएं होने का खतरा अधिक होगा. अगर किसी महिला का बीएमआई 30 या उस से अधिक है, तो इस की संभावना है कि उसे प्रसव पीड़ा के लिए प्रेरित करना पड़ेगा या उसे सिजेरियन सैक्शन का विकल्प चुनना होगा. अगर किसी महिला का बीएमआई 40 से अधिक है, तो डाक्टरों के लिए बच्चे के विकास के बारे में जानकारी प्राप्त करना कठिन हो जाएगा.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- बढ़ता बीएमआई प्रैगनैंसी के लिए हो सकता है खतरा

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

3 बार अबौर्शन होने के बाद क्या मैं मां बन सकती हूं?

सवाल-

मेरी शादी को 5 साल हो गए हैं. इस दौरान मेरा 3 बार गर्भपात हो चुका है. क्या मैं कभी मां नहीं बन पाऊंगी?

जवाब-

बारबार गर्भपात होने का मतलब कभी भी बांझपन नहीं होता है. आप मां बन सकती हैं. गर्भपात होने के कई कारण होते हैं जैसे आनुवंशिक समस्याएं, हारमोन असंतुलन, संक्रमण, भू्रण निर्माण में विकृति और इम्युनोलौजिकल व पर्यावरणीय कारक. कारणों का पता कर के, सही जीवनशैली अपना कर और सही उपचार के द्वारा आप मां बन सकती हैं.

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जुलाई की सुबह थी. नाश्ते के दौरान प्रिंस हैरी की पत्नी, डचेस औफ़ ससेक्स मेगन मर्केल अपने डेढ़ वर्षीय पुत्र आर्ची का डायपर बदल रही थीं. तभी पेट में ऐंठन हुई और वे आर्ची को बांहों में लिए हुए ही गिर गईं. इस से उन के दूसरे बच्चे का अबौर्शन हो गया था.

39 वर्षीया पूर्व अमेरिकन ऐक्ट्रेस मेगन ने अपने इस दर्द को ‘द लूजेस, वी शेयर’ टाइटल से लेख लिखते हुए शेयर किया है. वे लिखती हैं, ”गिरते ही असहनीय दर्द के दौरान मैं समझ गई थी कि मैं ने पेट में पल रहे अपने दूसरे बच्चे को खो दिया है. कुछ समय बाद मैं हौस्पिटल में थी और जब मुझे होश आया तो प्रिंस हैरी मेरा हाथ थामे हुए थे. एक बच्चा खोने का मतलब है असहनीय दुख जिसे बहुत सी महिलाओं ने अनुभव किया है, लेकिन इस दर्द को बहुत कम ने शेयर किया है. जब मैं हौस्पिटल में लेटी हुई थी तब मेरी और मेरे पति की आंखों में आंसू थे. हौस्पिटल में सौ से अधिक महिलाएं थीं जिन में तकरीबन 20 महिलाएं अबौर्शन का दर्द सह रही थीं.‘’

अबौर्शन ऐसा शब्द है जिस का शाब्दिक अर्थ तो सब जानते हैं लेकिन इस का असली मतलब सिर्फ वही महिलाएं जानती हैं जो इसे झेल चुकी हैं. 35 साल की भारती अनचाहे अबौर्शन का दर्द अच्छी तरह समझती हैं. उन की मीठी आवाज में अपने अजन्मे बच्चे को खोने का दर्द साफ़ झलकने लगता है. वे बताती हैं, ”मैं ने अपने बच्चे का नाम भी सोच लिया था. उस की हलचल भी महसूस करने लगी थी. मन ही मन बच्चे से बातें भी करती रहती थी. शादी के 4 वर्षों बाद वह मेरी पहली प्रैग्नैंसी थी. मेरे पेट में जुड़वां बच्चे थे. मगर वे सहीसलामत इस दुनिया में नहीं आ पाए. मैं ने औफिस के काम से छुट्टी ले ली थी और अपना पूरा ध्यान रख रही थी. सब ठीक चल रहा था.

सर्दियों में भी Skin के लिए जरूरी है Sunscreen, होते हैं ये 6 फायदे

लेखिका- दीप्ति गुप्ता

घर के बाहर निकलने से पहले गर्मियों में सनस्क्रीन लगाना बहुत मायने रखता है. आखिरकार गर्मी के महीनों में तेज धूप आपकी त्वचा को झुलसा जो देती है. ऐसे में सनस्क्रीन त्वचा को सनबर्न, टैनिंग और यूवी रेज से बचाता है. इसलिए गर्मियों में हमेशा 15 एसपीएफ वाला सनस्क्रीन लगाने की सलाह दी जाती है. हालांकि, सनस्क्रीन के बारे में कई तरह के भ्रम फैले हुए हैं कि घर के अंदर इनकी जरूरत नहीं होती या सर्दियों में इन्हें लगाना जरूरी नहीं होता. लेकिन ऐसा नहीं है. हर मौसम में त्वचा पर सनस्क्रीन का इस्तेमाल बेहद जरूरी है. एक गाढ़ा और क्रीमी मॉइश्चराइजर के बाद सनस्क्रीन लगाना आपके विंटर स्किनकेयर रूटीन का हिस्सा होना चाहिए. विशेषज्ञों के अनुसार, यह न केवल त्वचा को कवर करता है, बल्कि इसे स्वस्थ और जवां भी बनाए रखता है. फिर भी आप सोच रहे हैं कि ऐसा क्यों हैं, तो यहां हम आपको बताएंगे कि सर्दियों में सनस्क्रीन लगाने के क्या फायदे होते हैं.

1. नमी का स्तर बनाए रखे-

सर्दियों के दौरान कम नमी और तेज हवाओं के चलते त्वचा रूखी हो जाती है. जिससे त्वचा में दरारें, झुर्रियां और संक्रमण बढ़ जाता है. ऐसे में सनस्क्रीन का प्रयोग त्वचा की नमी के स्तर को बनाए रखने में मदद करता है.

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2. सर्दियों में ओजोन लेयर सबसे पतली होती है –

सर्दी के महीनों में ओजोन लेयर बहुत पतली हो जाती है. जिसका मतलब है कि यह कम अल्ट्रावायलेट रेज को अवशोषित करती है . मतलब यह कि भले ही सर्दियों में सूरज इतना गर्म महसूस न हो, लेकिन आप वास्तव में ज्यादा तीव्रता वाली यूवी रेज के संपर्क में रहते हैं .यह रेडिएशन त्वचा को नुकसान पहुंचाती है और समय से पहले चेहरे पर बुढ़ापा, झुर्रियां और पिगमेंटेशन का कारण बनती हैं. इसलिए हाई SPF वाला सनस्क्रीन सर्दियों के दौरान लगाना बहुत अच्छा विकल्प है.

3. कैंसर का रिस्क कम करे-

सर्दियों में दिनों में यूवी किरणों का एक्सपोजर बहुत ज्यादा होता है. जिससे सनबर्न और स्पॉट का खतरा बढ़ जाता है इसलिए स्किन कैंसर की संभावना भी बढ़ सकती है. बता दें कि यूवी एक्सपोजर मेलेनोमा से जुड़ा है, जो स्किन कैंसर का सबसे घातक रूप है. सनस्क्रीन की मोटी लेयर लगाने से इन जोखिमों को काफी हद तक कम किया जा सकता है.

4. जलन दूर करे-

सर्दियों में त्वचा पर जलन और लाली की समस्या बहुत लोगों में देखी जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि इन दिनों में त्वचा पानी बनाए रखने की क्षमता खो देती है , जिससे ड्रायनेस बढ़ जाती है. ऐसे में अगर सनस्क्रीन का उपयोग न किया जाए, तो त्वचा पर जलन का अहसास होने लगता है.

5. गैजेट्स की नीली रोशनी से सुरक्षा दे-

न केवल घर के बाहर बल्कि हमारी त्वचा घर के अंदर भी हानिकारक गैजेट्स की ब्लृू लाइट के संपर्क में आती है. इसलिए चाहे धूप हो या न हो, त्वचा को ब्लू लाइट से बचाने के लिए स्किन पर सनस्क्रीन जरूर अप्लाई करना चाहिए.

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6. उम्र बढ़ने के संकेतों को रोके-

सूरज और नीली रोशनी के लंबे समय तक संपर्क में रहने के कारण त्वचा को फ्री रेडिकल्स से होने वाले नुकसान का सामना करना पड़ता है, जिस कारण चेहरे पर समय से पहले बुढ़ापा झलकने लगता है. ऐसे में सनस्क्रीन उम्र बढऩे के शुरूआती लक्षणों को कम करने में मदद करता है.

अगर आप भी उन लोगों में से हैं, जो सर्दियों में त्वचा पर सनस्क्रीन लगाना जरूरी नहीं समझते , तो यहां इसे लगाने के फायदे जरूर जान लीजिए और इसे अपने विंटर स्किनकेयर रूटीन का हिस्सा बना लीजिए.

ओवरी में बारबार सिस्ट बनना क्या कैंसर होने का रिस्क होता है?

सवाल-

मेरी ओवरी में बारबार सिस्ट  बन जाता है. इस का क्या कारण है और क्या इस से कैंसर का भी रिस्क हो सकता है?

जवाब- 

ओवरी में सिस्ट कई कारणों से बन सकता है. मेनोपौज इस का सब से प्रमुख कारण है. इस के अलावा पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, ऐंडोमैट्रियोसिस, हारमोन असंतुलन, क्रोनिक पेल्विक इनफ्लैमेशन, ट्यूमर भी इस के कारण हो सकते हैं. सामान्य सिस्ट जिन का आकार 4 सैंटीमीटर से कम होता है, ज्यादातर अपनेआप खत्म हो जाते हैं. बड़े और जटिल सिस्टों को उपचार की जरूरत पड़ती है. वैसे तो ओवेरियन सिस्ट कैंसर रहित होते हैं, लेकिन कई मामलों में ये कैंसरयुक्त भी हो सकते हैं, विशेषकर उम्र बढ़ने के साथ. मेनोपौज के बाद जिन महिलाओं में ओवेरियन सिस्ट बनते हैं उन में ओवेरियन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.

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ओवेरियन सिस्ट महिलाओं में होने वाली एक आम समस्या है. यह हर महीने मासिकचक्र के दौरान हो सकती है, जिस के बारे में महिलाओं को जानकारी नहीं होती. कई बार यह सिस्ट अपनेआप ठीक हो जाती है, लेकिन अगर समय के साथ इस का आकार बढ़ता है, तो इस का इलाज करवा लेना जरूरी हो जाता है. मुंबई के ‘वर्ल्ड औफ वूमन’ की स्त्री और प्रसूति रोग विशेषज्ञा डा. बंदिता सिन्हा के अनुसार कुछ सिस्ट निम्न हैं:

सिंपल फौलिक्युलर सिस्ट: यह नौर्मल सिस्ट है और हर महिला में होती है. यह ओवुलेशन की प्रक्रिया में होती है. यह एग फौर्मेशन में बनती है. यह नैचुरल होती है और इस से नुकसान नहीं होता. अगर यह 4 सैंटीमीटर से अधिक बड़ी हो जाती है, तो यह दवा से गला कर निकाल दी जाती है, क्योंकि सिस्ट बड़ी होने के बाद कई बार दर्द होता है और यह पीरियड को भी अनियमित कर सकती है, मगर प्रैगनैंसी में समस्या नहीं होती.

पौलिसिस्टिक ओवरी सिस्ट: इस में कई सिस्ट होती हैं, जिस से नियमित ओवुलेशन नहीं होता. इस में ओवरी काम नहीं करती. हारमोनल असंतुलन की वजह से एग नहीं बनते और बच्चा होना मुश्किल हो जाता है. इस सिस्ट को ठीक तरह से ट्रीट करना जरूरी होता है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- ओवेरियन सिस्ट न करें नजरअंदाज

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