अगर मुझे अपनी बेटी ही बनाये रखना था तो मुझे किसी की पत्नी क्यों बनने दिया?

इस लेख के माध्यम से आपको यह बताना चाहती हूं कि लड़की की शादी के बाद उसके मायके वालों की उसके वैवाहिक जीवन में क्या भूमिका होनी चाहिए. ये बताने से पहले मै आपको ये कहानी सुनाना चाहती हूँ .शायद बहुत से लोगों ने ये कहानी सुनी होगी. मेरी आप सबसे गुज़ारिश है की आप मेरा ये लेख पढ़े और इस पर अमल भी करें-

दोस्तों भारत में नियमित सास-बहू गाथा सुनना आम है और उनमें से अधिकांश एक बहू की तरफ से होती है.  जिसकी सास हस्तक्षेप करती है. इस रिश्ते के टूटने और इसे सुधारने के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है. यह किस्सा एक दामाद के बारे में है जिसे अपनी सास से परेशानी है और वह उसके वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप करती है.

“रोमा और शोभित एक दूसरे को बहुत चाहते थे .उन दोनों के परिवारों ने भी ख़ुशी-ख़ुशी उनकी इस चाहत पर शादी की मुहर  लगा दी .दोनों शादी के बाद सुखी जीवन बिता रहे थे. रोमा शोभित के साथ खुश तो थी पर उसे अपने ससुराल में एडजस्ट होने में बहुत प्रॉब्लम हो रही थी.वो अपनी सारी बातें अपनी माँ को बताती थी.आज साँस ने क्या कहा….आज नन्द ने क्या comment किया….यहाँ तक की अपने और शोभित की छोटी छोटी बातें भी अपनी माँ को बताती थी.और उसकी माँ उसको समझाने के बजाय बहुत emotional सपोर्ट करती थी. वो उसकी हर गलत बात में अपनी सहमती दिखाती थी.

शादी को अभी 3  महीने  ही हुए थे ,की रोमा और शोभित के बीच किसी बात को लेकर बहसा-बहसी हो गयी.रोमा ने तुरंत अपनी माँ को phone किया और रो रोकर सारी बातें अपनी माँ को बताई .उसकी माँ ने कहा-की तुम तुरंत अपना सामान पैक करो और मेरे पास आ जाओ. तब इनको सबक मिलेगा और फिर  ये तुमसे कभी भी ऊँची आवाज़ में बात करने की कोशिश नहीं करेंगे.

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रोमा ने ऐसा ही किया.सब उसको रोकते रह गए ,यहाँ तक की शोभित की आँखों में आंसू भी आ गए .पर रोमा कहाँ रुकने वाली थी उसके दिमाग में तो अपनी माँ के कहे हुए शब्द गूँज रहे थे.उसने तो शोभित को सबक सिखाने की ठान रखी थी.

अब रोमा अपने मायके में थी . रोमा शोभित को छोड़कर अपने मायके  आ तो  गयी थी पर न जाने क्यूँ उसे एक बेचैनी सी हो रही थी .जिस शोभित से बात किये बगैर वो रह नहीं सकती थी आज वो उसे छोड़ कर आ गयी थी.वो बार -बार अपना phone उठाती .शोभित का नंबर डायल करती और फिर phone काट देती.

शोभित भी रोमा के बगैर रह नहीं पा रहा था. वो बहुत दुखी था उसके इस कदम से क्यूंकि ये कोई पहली बार नहीं हुआ था ,शादी से पहले भी वो एक दूसरे से रूठते रहते थे पर एक दूसरे के बिना रह भी नहीं पाते थे .पर उसको समझ नहीं आ रहा था की आखिर ऐसा क्या हो गया की रोमा ने इतना बड़ा कदम उठा लिया.

उधर रोमा की माँ की कुछ दोस्तों ने उन्हें सलाह दी की एक बार इन सबकी पुलिस में रिपोर्ट करा दो फिर सब अपनी लिमिट में रहेंगे और दोबारा  हिम्मत नहीं करेंगे रोमा से तेज़ आवाज़ में बात करने की.

रोमा की माँ  ने रोमा को अपने साथ पुलिस स्टेशन चलने को कहा .रोमा भौचक्की रह गयी .उसने पूछा -किसलिए?रोमा की माँ ने कहा की तुम्हारे पति और ससुराल वालों के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट करनी है .जब पुलिस स्टेशन आना पड़ेगा न तब उन्हें पता चलेगा .फिर वो अपनी लिमिट में रहेंगे .

रोमा का दिल बैठा जा रहा था वो सबकुछ छोड़ कर अपने शोभित के पास लौटना चाह रही थी.उसने अपनी माँ से कहा की माँ इसकी क्या जरूरत है?

उसकी माँ ने कहा –अगर तुझे नहीं चलना है तो ठीक है,फिर मत आना मेरे पास रोते हुए. देख क्या शोभित ने तुझे एक भी बार phone किया?उसे तेरी कोई पड़ी ही नहीं है.वो तो अपने माँ बाप के हाथों की कठपुतली है.तू इन लोगों को नहीं जानती .आज बहस हुई है कल को हाथ भी उठा सकते है.तू मेरी बेटी है .इतने नाजों से पाला है तुझको.मुझसे ज्यादा तेरा कोई ख्याल नहीं रखेगा.

रोमा न चाहते हुए भी  अपनी मां के साथ पुलिस स्टेशन जाने को तैयार हो गयी . रास्ते  भर रोमा का मन बेचैन था.पूरे रास्ते  उसका ध्यान सिर्फ अपने mobile पर था.वो सोच रही थी कि –काश !शोभित एक बार मुझे कॉल कर लो .मै तुम्हारे बिना नहीं रह सकती.

अब रोमा पुलिस स्टेशन पहुँच चुकी थी.उसकी दिल की धडकने बहुत तेज़ हो रही थी.वहां की ऑफिसर ने रोमा  से पूछा ….

क्या तुम्हारा पति तुम्हें मारता है ?

क्या वह तुमसे अपने मां- बाप से कुछ मांग कर लाने को कहता है ?

क्या वह तुम्हें खाने पहनने को नहीं देता ?

क्या तुम्हारे ससुराल वाले तुम्हे कुछ भला बुरा कहते हैं ?

क्या वह तुम्हारा ख्याल नहीं रखता?

इन सब सवालों का जवाब रोमा  ने नहीं में दिया !

इस पर रोमा  की मां बोली कि मेरी बेटी बहुत परेशान है !

इसके ससुराल वाले इसे  घर की हर छोटी-छोटी बातों पर टोका टोकी करते हैं .मोबाइल पर बात करने पर भी आपत्ति करते हैं. वह इसे टॉर्चर करते हैं !

पुलिस अफसर समझ गई! उसने रोमा  की मां से पूछा- क्या आप बेटी से दिन में 4-5 बार फोन पर बात करती  हैं?

मां ने कहा- हां, मैं अपनी बेटी का पराए घर में ध्यान तो रखूंगी न , कितने नाजों  से पाला है उसे!!

पुलिस अफसर सारा मामला समझ गई और फिर उसने पूछा -बहन जी क्या आप घर में दही जमातीं  हैं?

रोमा  की मां ने कहा -हां इसमें कौन सी बड़ी बात है!

अफसर बोली : तो जब आप दही जमाती हैं  तो बार-बार दही को उंगली मार कर जांचती है .

रोमा  की मां बोली: जी अगर मैं बार-बार उंगली मार करजाचूंगी   तो दही कैसे जमेगा? वो तो खराब हो जाएगा

तो बहन जी इस बात को समझिए शादी से पहले लड़की दूध थी! अब उसको जमकर दही बनना है ! आप बार-बार उंगली मारेगी तो  आपकी लड़की ससुराल में कैसे बसेगी  ?वहां के रहन-सहन को सीखेगी  कैसे? आप की लड़की ससुराल में परेशान नहीं है! आप की दखलअंदाजी ही उसके घर की परेशानी का कारण है!

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उसे उसके ससुराल में एडजस्ट होने की शिक्षा दीजिए ! उसको वहां के हिसाब से रचने -बसने दीजिए.

रोमा ये सब सुनकर पुलिस स्टेशन से बहार आ गयी .पीछे से उसकी माँ ने आकर कहा ,”चलो अन्दर रिपोर्ट नहीं लिखवानी है क्या? फिर मत आना मेरे …… ! ये शब्द पूरे होने से पहले ही रोमा ने कहा ,”नहीं आऊँगी  माँ… कभी नहीं आउंगी.

बस मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहती हूँ की ‘अगर मुझे अपनी लड़की ही बनाये रखना था तो मुझे किसी की पत्नी क्यों  बनने दिया’?

शायद रोमा की माँ ये बात समझ चुकी थी .रोमा की माँ रोमा को उसके ससुराल ले गयी . रोमा के दिल में एक सुकून का भाव था. अब वो अपने घर पहुँच चुकी थी.वो जाकर शोभित के गले लग गयी.शोभित बहुत खुश  था क्योंकि उसने जिसको दिल से चाहां था आज वो सही रूप में उसके पास थी….”

दोस्तों ये तो सिर्फ एक कहानी थी.शोभित और रोमा की तरह सभी लोग सौभाग्शाली नहीं होते हैं.

एक कहावत है कि “विवाह दो लोगों का मिलन नहीं है बल्कि दो परिवारों का मिलन  है”. जब एक लड़की  और एक लड़के  की शादी होती है, तो दोनों परिवारों के बीच एक नया बंधन बनता है. यह बंधन दूल्हा और दुल्हन दोनों के जीवन में नए अध्याय की शुरुआत का संकेत देता है, जिसमें एक-दूसरे के प्रति प्रतिबद्धता और जिम्मेदारी होती है. दुल्हन के लिए, यह उसके जीवन में  अपने साथी के साथ एक पूरी नई ज़िंदगी की शुरुआत है, जब वह दुल्हन अपने ससुराल की दहलीज़ पर  कदम रखती है न ,तब उसके नाज़ुक कंधो पर -एक बहू की – एक पत्नी की  और कुछ समय  बाद एक माँ की ज़िम्मेदारी आ जाती है. उसे एक साथ बहुत सारे रिश्ते निभाने होते है.

ऐसे में उस लड़की को उन रिश्तों की सबसे ज्यादा ज़रुरत होती है जो उसका आत्मविश्वास बढ़ाएं और उसको सही और गलत के बीच का फर्क बताये.

इसलिए आप न केवल  अपनी लड़की को  एक अच्छी पत्नी या बहू बनने के लिए सशक्त बनाएं, बल्कि एक समझदार दोस्त, एक साथी, एक अच्छी माँ के दायित्वों को भी समझाए.

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औफिस में इन 5 चीजों को करें इग्नोर

अक्सर कुछ ऐसी बातें या कुछ मैटर होते रहते हैं ऑफिस में जिस पर आपका ध्यान जाता रहता है लेकिन आप इन चीजों को इग्नोर करें. क्योंकि ऐसी चीजें आपका ध्यान काम से भटकाती हैं और काफी दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है.ऑफिस में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो आपको पीछे करना चाहते हैं और अगर आप आगे बढ़ रहे हैं तो वो आपसे आगे निकलने की होड़ में आपको दूसरों की नजरों में गिरा भी सकते हैं..लेकिन कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें आपको वर्किंग प्लेस पर इग्नोर करना चाहिए यही आपके लिए बेहतर होगा.

1. किसी के दबाव में काम ना करें

कभी भी किसी के दबाव में आकर कोई काम ना करें.अक्सर कुछ सीनियर आपको जबरदस्ती कहते हैं ये काम करो लेकिन अगर वो काम आपका है ही नहीं तो सीधा मना करें लेकिन वो भी सलीके से ताकि सामने वाले को बुरा भी ना लगे.अक्सर कुछ बॉस आप पर दबाव बनाना चाहते हैं लेकिन फिर भी आप उनकी बातों को इग्नोर करें आपना काम करें ऐसा करें कि आपके काम को लेकर कोई आपर उंगली ना उठा सके.

2. दूसरे की गॉसिप से दूर रहें

अक्सर कुछ लोग दूसरों की बातें करते हैं उन्हें दूसरों की गॉसिप्स में बड़ा मज़ा आता है.लेकिन ये चीजें आपको भारी पड़ सकती हैं और आपकी जॉब पर भी खतरा पड़ सकता है.क्योंकि कब कौन आपकी बातें कहां पहुंचा दें ये कोई जानता और कब आपकी कही हुई बात आप पर ही भारी पड़ जाए तो सावधान रहें.

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3. स्मार्ट वर्क

मेहनत तो बहुत लोग करते हैं लेकिन आपको स्मार्ट वर्क करना चाहिए ताकि लोग आपके काम की तारीफ करें उसकी सराहना करें.मेहनत तो हर कोई करता है जो पैसे कमाना चाहता हैं ऑफिस में भी कुछ लोग लगे रहते हैं इसी तरह लेकिन अगर आप स्मार्टनेेस के साथ काम करेंगे तो लोग आपके काम को देखेंगे ये नहीं कि आपने कितने घंटे दिए हैं ऑफिस में इसलिए स्मार्ट वर्क पर ज्यादा ध्यान दें फालतू की मेहनत को इग्नोर करें.

4. दूसरों के काम में ना पड़ें

हमेशा एक बात का ध्यान रखें कि कभी भी दूसरों के काम में ज्यादा उंगली ना करें.उसकी मदद करना अलग बात होती है लेकिन उसके काम में पड़ना अलग बात होती है.क्योंकि कई बार ऐसा भी होता कोई गलती हो जाती है तो सामने वाला आप पर ही इल्जाम लगा सकता है कि आपने मेरा काम बिगाड़ा.इसलिए कोशिश करें कि आपको जो काम दिया जाए जो काम असाइन किया जाए वहीं करें.

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5. दूसरों की बातों को इग्नोर करें

यहां पर दूसरों की बातों को इग्नोर करने का मतलब ये है कि लोग आपके बारें में क्या कह रहें हैं ये क्या सोच रहें हैं इससे आपको कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि बहुत से लोग आपके बारे में बहुत कुछ बोलते हैं अगर आप उनपर ध्यान देंगे तो आप अपने काम में मन नहीं लगा पाएंगे इसलिए सिर्फ अपना काम करें लेकिन साथ ही ऐसा काम करें कि लोगों को आपके बारें में कुछ बोलने का मौका ही ना मिले.

ई मेल और व्हाट्सअप के युग में क्यों तड़पाती है चिट्ठियों की याद 

बौलीवुड में पचास के दशक की सबसे खूबसूरत अभिनेत्रियों में से एक नर्गिस और राजकपूर की लव स्टोरी के किस्से हर किसी की जुबान में रहा करते थे.लेकिन जब नर्गिस को यह बात समझ में आ गयी कि राजकपूर से उन्हें झूंठी दिलासा के अलावा कुछ नहीं मिलेगा और दूसरी तरफ सुनील दत्त उनके लिए सब कुछ कुर्बान कर देने के लिए तैयार थे.तो अंततः नर्गिस भी सुनील दत्त को प्यार करने लगीं.अब क्या था राजकपूर परेशान हो गए.वह चाहते थे नर्गिस और सुनील में किसी भी तरह से दूरियां पैदा हों.इसलिए वह खुद और उनके साथी संगी सुनील दत्त को नर्गिस के खिलाफ एक से एक बातें कहकर भड़काने लगे.यहां तक कि उन्हें एक हद तक इसमें सफलता भी मिलती दिखने लगी.सुनील दत्त काफी परेशान से रहने लगे थे.नर्गिस को यह सब समझते देर न लगी कि आखिर माजरा क्या है ? लेकिन उन्हें यह सूझ नहीं रहा था कि आखिर कैसे वह सुनील को इस परेशानी से बाहर निकालें.अंत में उन्होंने इसके लिए चिट्ठी का सहारा लिया.

नर्गिस ने सुनील दत्त को लिखा, ‘डार्लिगजी आपको मेरे बारे में राजकपूर या किसी और ने जो भी कहा है,उससे गमगीन होने की जरूरत नहीं है.वो आपका ध्यान मुझसे हटाने के लिए कुछ भी कह सकते हैं.यह बात केवल मैं ही जानती हूं कि मैंने अपनी जिंदगी कितनी साफगोई से गुजारी है. मैं चाहती हूं कि आप मुझ पर विश्वास रखें, मैं ऐसा कोई काम नहीं करूंगी, जिससे आपको शर्मिंदा होना पड़े.’ कहते हैं नर्गिस के ख़त की इन पंक्तियों ने जादू कर दिया.इसके बाद सुनील पूरी जिंदगी में नर्गिस को लेकर कभी भी असुरक्षित महसूस किया.

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ख़त से जुड़ा एक ऐसा ही किस्सा दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमरीका के प्रथम नागरिक यानी पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन का भी है. शादी की 31वीं वर्षगांठ पर रीगन की पत्नी नैंसी रीगन उनसे दूर थीं.इस पर  4 मार्च,1983 को रीगन ने प्यारी पत्नी को एक पत्र लिखा.उसमें उन्होंने इस दिन को लेकर अपनी भावनाएं कुछ इस प्रकार व्यक्त कीं, ‘सालों से मैं तुम्हें शादी की वर्षगांठ पर अपनी शादी का कार्ड ब्रेकफास्ट की ट्रे पर सजाकर पेश करता रहा हूँ.लेकिन इस बार मैं तुम्हें एक खास तोहफा भेज रहा हूं.वो है 31 साल पहले जुड़े इस रिश्ते की खुशी का शब्दों में उकेरा एहसास.यह एहसास दुनिया में कुछ ही पुरुषों को हासिल होता है.सच मैं तुम्हारे बिना बिलकुल अधूरा हूं .तुम मेरी जिंदगी हो क्योंकि तुम्हारे आने से ही मैं फिर से जी सकूंगा.’

दुनिया में न जाने कितनी विख्यात शख्सियतें हैं जिन्होंने अपने प्रेम का इजहार करने के लिए एक दूसरे को अजर अमर ख़त लिखे हैं. अमृता ने साहिर को,विक्रम साराभाई ने मृणालिनी साराभाई को, जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने ब्रिटिश अभिनेत्री एलेन टैरी को, ऑस्कर वाइल्ड ने  अल्फ्रेड डगलर को और ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ ने रॉबर्ट ब्राउनिंग को जो पत्र लिखे हैं,वे महज व्यक्तिगत पत्र नहीं बल्कि साहित्य और संवेदना का एक समूचा कालखंड हैं.दुनिया में हजारों मशहूर लोग खासकर फाइन आर्ट्स के क्षेत्र के मशहूर लोगों के लरजते हुए प्रेम पत्र आज भी खूब चाव से पढ़े जाते हैं.बॉलीवुड की तमाम फिल्मों में प्रेम पत्रों पर खूबसूरत गीत लिखे गए हैं.

भावनाओं को प्रगाढ़ करने वाले पत्रों की चाहत आज भी हम लोगों के मन में बसती है.मगर चूँकि यह कम्युनिकेशन की अपार सुविधाओं वाला युग है.इसलिए लोग आज चाहकर भी एक दूसरे की कुशलक्षेम पूछने के लिए या अपना इश्क जाहिर करने के लिए पत्र नहीं लिख पाते.चाहत तो खूब रखते हैं,खासकर हर प्रेमी जोड़ा एक दूसरे से प्रेम पत्र पाने की रोमांच से भरी नास्टैल्जिक उम्मीद रखता है.लेकिन इस तेज से तेजतर हो रहे जीवन में ज्यादातर की यह उम्मीद,उम्मीद ही बनी रहती है. शायद इसके पीछे एक कारण यह है कि हम सबको लगने लगा है कि हमारा समय बहुत कीमती है,फिर चाहे हम बेरोजगार ही क्यों न हों.इसलिए अपनी प्रकृति से ही ठहरे भावों का स्पंदन करने वाला खत निजी जीवन की भूमिका में पिछड़ गया है.जबकि आधिकारिक लेनदेन या कारोबार में आज भी खतों की ही निर्णायक भूमिका है.

दिल की गहराई में उतरने वाले चिट्ठियों के शब्द आज फोन की आवाज या वाइस कॉल में बदल गए हैं. लोग फोन में  ही आवश्यक बातें कर संवाद कायम रखने की औपचारिकता पूरी कर लेते हैं. हालांकि इससे लोगों को औपचारिक  संपर्क बनाए रखना सरल और सहज हो गया है. लोगों का पलक झपकते ही किसी परिचित से बात करना आसान हो गया है,लेकिन निजी पत्रों की कमी के चलते भावनाओं की संदूक खाली हो गई है. आज इंटरनेट के जरिये किसी से आसानी से मुखातिब हुआ जा सकता है. ऐसे में खत का चलन खत्म न भी हो तो भी कम तो होना ही था.आज पत्रों की जगह व्हाट्सअप और मैसेजिंग ने ले ली है . लेकिन ये तमाम माध्यम तेज कितने ही क्यों न हों मगर भावनाओं के स्तर पर वह असर नहीं दिखाते जो कभी पत्र दिखाया करते थे.

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वास्तव में सन्देश देने और पाने के तमाम मशीनी जरिये एक किस्म से सूचना पाने या देने का जरियाभर हैं . जबकि किसी भी चिट्ठी या पत्र में एक छोटी सी कथा, छोटी सी घटना या जीवन का एक टुकड़ा समाया रहता था.चिट्ठी लिखने वाला और उसे पढने वाला,एक दूसरे से चाहे कितना ही दूर क्यों न हों लेकिन चिट्ठियों के माध्यम से वे एक-दूसरे की नजरों के सामने होते थे. यही कारण है कि पत्र पढ़ते-पढ़ते कभी आंख भर जाती है, तो पत्र लिखते-लिखते कोई व्यक्ति भावना में बहकर अपने मन पर से पीड़ा या खुशी के बोझ को हटा लेता है. पत्र में संबंधों की प्रागाढ़ता जहां खुशनुमा सुबह होती है, तो गिले-शिकवे भी किसी लरजती हुई शाम से कम का एहसास नहीं देती. चिट्ठियों की यही तरलता है जिसके लिए सूचना-संचार का यह क्रांतियुग तरसता है.

Valentine’s Special: तेरी-मेरी बनती नहीं पर तेरे बिना चलती भी नहीं

तनिशी 3 साल की थी जब उसके घर एक नन्हा मेहमान आया था .माता पिता ने पहली बार उसके भाई से उसे मिलवाया था. तनिशी ने अपने भाई का नाम शिबू  रखा था . जो उसने बहुत पहले से सोच रखा था .तनिशी के लिए वो सिर्फ उसका भाई ही नहीं था उसकी पूरी दुनिया था.उन दोनों में बहुत प्यार था .तनिशी थी तो उसकी बहन पर प्यार वो उसे माँ जैसा प्यार करती थी. साथ खाना-पीना ,साथ उठना -बैठना ,एक पल को कभी वो उसे अपनी आँखों से ओझल नहीं होने देती थी. अगर एक पल को भी वो उसकी आँखों के सामने से ओझल हो जाता तो रो-रोकर पूरा घर भर देती थी.

अब तनिशी  10 साल की हो चुकी थी और शिबू 7 साल का.एक बार शिबू स्कूल ट्रिप पर गया था .ट्रिप 3 दिन की थी.तनिशी बहुत परेशान थी की कहीं उसका भाई खो न जाये या उसे कहीं चोट न लग जाये.मम्मी पापा ने उसे बहुत समझाया पर वो कहाँ सुनने वाली थी.वो रोरोकर भगवन जी से कहती थी की “भगवन जी मेरे भाई को जल्दी से घर भेज दो”. जब शिबू ट्रिप से घर लौटा तब जाकर तनिशी की जान में जान आई.

समय बीतता गया, तनिशी  और शिबू बड़े होने लगे .दोनों की पढाई कम्पलीट हो गयी थी.तनिशी डॉक्टर बन चुकी थी और शिबू इंजिनियर .कुछ समय बाद तनिशी  की शादी तय हो गयी. तनिशी को ये चिंता सताने लगी की वो अपने परिवार के बिना कैसे रहेगी खास कर अपने भाई के बिना.तनिशी शिबू को चिढाती थी और कहती थी की देखूँगी की मेरी शादी के बाद तेरा काम कौन करेगा?शिबू भी कह देता था की “शादी करके कब जाओगी  तुम इसकी राह देख रहा  हूँ मै ,मै तुम्हारी शादी में ज़रा सा भी नहीं रोने वाला हूँ .“

शादी का दिन आया.पूरी शादी भर शिबू शांत- शांत सा था. तनिशी भी बहुत दुखी थी .अब विदाई का टाइम आया. तब शिबू ने सबसे कहा की मैंने अपनी बहन के लिए कुछ लिखा है .मै वो सब सुनाना  चाहता हूँ .उसने अपनी डायरी निकाली और उसे पढना शुरू किया ,”मैं थोड़ा introvert टाइप का लड़का हूँ .ज्यादा अपनी feeling एक्सप्रेस नहीं कर पता.ज्यादा बाते भी नहीं करता हूँ. लेकिन  मैंने आज अपनी बहन के लिए कुछ लाइन्स लिखी है ;-

मुझसे मेरे दोस्त पूछते थे की बड़ी बहन का होना कैसा लगता है?

मैंने कहा एक साथ तुम्हे 2 माँ का प्यार मिलता है,सिर्फ बहन ही नहीं माँ की तरह भी ख्याल रखती है वो

कभी डांटती है तो कभी प्यार करती है वो

वैसे तो जानती थोड़ा कम  है मुझे, पर समझती ज्यादा है मुझे

मेरी छोटी छोटी गलतियों को पापा से छुपा कर रखने वाली एक वही तो थी

जब मैं सभी से लड़ झगड़ कर एक कोने में बैठ जाता था ,तब मुझे प्यार से खाना लाकर देने वाली वही तो थी

वैसे तो 3 साल का फर्क है हमारी उम्र में लेकिन न तो मैंने इसे कभी दीदी कहा और न ही इसने कभी शिकायत की

स्कूल ,ट्यूशन ,कॉलेज सब साथ किया है हमने ,एक बॉडीगार्ड की तरह मेरा ख्याल रखा है तुमने

कभी कभी ऐसी उलझनों में फंसा था मै  ,अगर तुम न होती तो शायद कभी न निकल पाता मै

जब भी लाइफ में रोया हूँ तुमने मुझे संभाला है ,वरना तुम्हारे बिना कौन मुझे झेलने वाला है

तुम्ही तो थी एक जिसे मैं अपनी प्रॉब्लम बताता था, वरना ऐसी सिचुएशन से निकलना मुझे कहाँ आता था

तुम बोली सामान मेरा पैक हो गया है ,ये सुनकर न जाने तुम्हारा भाई कितना रोया है

आज छोड़कर हमें चली जाओगी तुम, एक खूबसूरत सी नयी दुनिया बसाओगी  तुम

दूर मत समझना खुद को कभी हमसे ,जब याद करोगी मिलने पहुँच जायेंगे हम तुमसे

तुम सिर्फ बहन नहीं ,दुनिया हो मेरी ,कुछ भी करूंगा देखने को खुशियाँ मैं तेरी

i love you बहना .मैंने कभी ये बोला नहीं but i know  की तुम ये जानती हो “

तालियों से कमरा भर गया. सभी की आँखे नाम थी .तनिशी ये सब सुनकर स्तब्ध थी .वो सोच रही थी की आज मेरा भाई कितना बड़ा हो गया उसने शिबू को अपने गले से लगा लिया.

जी हाँ दोस्तों ये सच है भाई-बहन का रिश्ता दुनिया के सबसे खूबसूरत रिश्तों में से एक है. दोस्तों भाई बहन चाहे जितना भी लड़ झगड़ ले ये रिश्ता ऐसा होता है जो कभी नहीं टूटता .भाई की नज़रों में अपनी बहन से अच्छी कोई लड़की नहीं होती . वो भाई ही तो है जो मुंह पर कड़वा  बोले और पीठ पीछे दुनिया के सामने बहन की तारीफ़ करे .जो सबके कपडे खुद चॉइस करके दे लेकिन खुद के कपडे बहन की चॉइस के ले.ये स्टाइल मुझ पर सूट हो रही है क्या?ये बात गर्लफ्रेंड से पहले 100 बार अपनी बहन से पूछे .खुद के phone को हाथ न लगाने दे पर बहन का phone हक से मांगे .

दोस्तों भाई बहन का रिश्ता आपकी पहचान का इतना गहरा हिस्सा हैं कि उनके  मौजूद नहीं होने के बावजूद भी मिटाया  नहीं जा सकता .भाई -बहन का रिश्ता आपका  सबसे बड़ा मेमोरी बैंक है इसमें न जाने कितनी यादे संजोई रहती है जिन्हें याद करके हमारे चेहरे पर हमेशा मुस्कान  आ जाती है.ये  वह व्यक्ति हैं जो आपको किसी और से बेहतर जानते हैं  .

पर पता नहीं क्यों बचपन में जिनको छोटी छोटी बात बताये बिना वो  रह नहीं पाते थे .अब बड़ी बड़ी मुश्किलों से वो  अकेले जूझते जाते हैं.ऐसा नहीं की उनको अहमियत नहीं है हमारी पर शायद हम  परेशान न हो इसलिए वो  अपनी तकलीफे छुपा जाते हैं.पता नहीं कब वो इतने बड़े हो जाते हैं.

“मैं वो नहीं जो तुम्हे अकेला छोड़ दूंगा ,मैं वो नहीं जो तुमसे नाता तोड़ लूँगा ,मै हूँ तेरा भाई ,हर खुशी  को तुम्हारी तरफ मोड़ दूंगा”

परिवार में अब दामाद हुए बेदम

भारतीय समाज में कोई 4 दशक पहले की बात करें तो उन दिनों ‘दामाद’ को बड़ा आदरसम्मान प्राप्त होता था. दामादजी ससुराल आएं तो सास से ले कर सालियां तक उन की सेवा में जुट जाती थीं. ससुराल में दामादजी की आवभगत में कोई कमी न रह जाए, दामादजी के मुख से बात निकले नहीं कि पूरी हो जाए, किसी बात पर कहीं वे नाराज न हो जाएं, हर छोटीछोटी बात का ध्यान रखा जाता था. उन की आवभगत में हर छोटाबड़ा सदस्य अपने हाथ बांधे आगेपीछे लगा रहता था. उन के खानेपीने, रहनेघूमने की उच्चकोटि की व्यवस्था घर के मुखिया को करनी होती थी और जब ससुराल में सुखद दिन गुजार कर दामादजी अपने घर को प्रस्थान करते थे, तो भरभर चढ़ावे के साथ उन को विदा दी जाती थी. उन से यह आशा की जाती थी कि इस आदरसत्कार से दामादजी प्रसन्न हुए होंगे और उन के घर में हमारी कन्या को कभी कोई दुख नहीं मिलेगा.उत्तर भारत में दामाद की खातिरदारी की खातिर कुछ भी करगुजरने की परंपरा रही है. भले ही गैरकानूनी हो, पर दामाद को खुश करने का यह सिलसिला विवाह के समय दहेज से शुरू हो कर आगे तक चलता ही रहता है. फिर आंचलिक परंपरा तो किसी एक घर के दामाद को गांवभर का दामाद मान कर उस की खातिरदारी करने की भी रही है.

भारतीय समाज में दामाद से ज्यादा महत्त्वपूर्ण परिवार का कोई अन्य सदस्य नहीं होता. दामाद सिर्फ आदमी नहीं है. एक परंपरा है. एक उत्सव है. दामाद आता है तो पूरा घर मुसकराने लगता है. गरीब घर का बच्चा भी उछलनेकूदने लगता है. जिस घर में दालरोटी भी मुश्किल से जुटती है, और दालरोटी के साथ भाजी शायद ही कभी बनती है, उस घर में भी दामाद के आने पर पकवान बनते हैं. खीरपूरी बनती है. फलमिठाइयां आती हैं. इस सब के लिए साधन किधर से आता है, इस का खुलासा भी कभी दामाद के सामने नहीं होता. दामाद बेटे से भी बढ़ कर होता है. आप अपने बेटे के नाम के आगे कभी ‘जी’ लगा कर नहीं बुलाते, मगर झोंपड़ी में रहने वाला ससुर भी अपने दामाद को ‘कुंवरजी’ बोलता है. भीखू, ननकू, छोटेलाल का सीना गर्व से फूल कर56 इंची हो जाता है जब ससुरजी उन को ‘कुंवरजी’ के संबोधन से पुकारते हैं.

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औरत की आर्थिक मजबूरी ने दामाद को हौआ बनाया

बचपन की एक घटना मुझे याद है. उम्र रही होगी यही कोई 8-9 बरस की. पिताजी मुझे और मां को ले कर हमारे ननिहाल गए थे. पिताजी अपनी ससुराल बहुत मुश्किल से ही जाते थे. मां को बड़ी चिरौरी करनी पड़ती थी, तब जा कर कहीं 2-3 साल में एकबार पिताजी का मन बनता था कि चलो, कुछ दिनों के लिए सब को लिए चलते हैं. गोरखपुर जिले के एक गांव में नाना बसते थे. खेतीखलिहानी काफी थी. गांव में दोचार पक्के मकान थे, जिन में से एक नाना का भी था. मेरे 2 मामा थे और उन के बीवीबच्चों से नाना का घर गुलजार रहता था.मुझे याद है कि जिस वक्त हम वहां पहुंचे, शाम के कोई 5 बजे होंगे. घर की देहरी पर ही खाट बिछी थी. जिस पर मोटे से गद्दे पर रेशमी चादर बिछी थी. पिताजी को नाना ने वहां बड़े सत्कार से बिठाया. मैं भी पिताजी की बगल से सट कर बैठ गई. मां दोनों हाथों में संदूकची उठाए भीतर चली गईं. इतने में नानी बड़ी सी परात में पानी ले कर आईं और पिताजी के सामने जमीन पर बैठ कर उन्होंने उन के जूतेमोजे अपने हाथों से उतारे और उन के पैर ठंडे पानी की परात में डाल कर अपने हाथों से मलमल कर धोने लगीं. नानी घूंघट में रोए जातीं, बारबार पिताजी के पैर चूमें जातीं और धोए जातीं. मैं हैरान कि ऐसा क्या हो गया कि नानी इतनी जोरजोर से रो रही हैं. मेरे मन में आशंका उठी कि ऐसा तो नहीं कि हमारे आने से नानी खुश नहीं हैं. मैं पिताजी से जरा और सट गई कि कहीं ऐसा न हो कि यहीं से वापसी हो जाए.मगर पिताजी का नानी के क्रियाकलापों की तरफ कोई खास ध्यान नहीं था. वे आराम से बगल में खड़े नानाजी से बातें कर रहे थे. आने वालों से दुआसलाम कर रहे थे. हालचाल पूछ रहे थे. थोड़ी देर में नानी ने उन के पैरों के नीचे से पानी की परात हटाई और अपने पल्लू से पिताजी के पैर पोंछे. इस के बाद मेरी बड़ी मामी अपनी पानी की परात ले कर सामने जमीन पर बैठ गईं और उन्होंने भी रोरो कर पिताजी के पैर धोए, फिर छोटी मामी और गांव की कुछ और औरतों ने भी यही क्रम दोहराया. कोई आधेपौने घंटे तक तो पिताजी के पैर धुलते रहे, पानी से भी और आंसुओं से भी, और उस के बाद वे घर के भीतर गए.इस क्रिया के बारे में बाद में बड़े होने पर मां से पता चला कि यह उन के ही नहीं, बल्कि पूर्वांचल के अनेक गांवों की रीत है कि दामाद के आगमन पर घर की औरतें उन के आने की खुशी को आंसुओं से व्यक्त करती हैं और उन के पैर पानी से ही नहीं, वरन अपने आंसुओं से भी धो कर इस बात की प्रसन्नता प्रकट करती हैं कि उन का दामाद उन की लड़की को सुखी रख रहा है और वह उस को उस के मातापिता से मिलवाने लाया है.हम करीब 15 दिन वहां रहे. अच्छाअच्छा खाने को मिला. दूधदही, मट्ठा, खीर, मांसाहार क्या नहीं खाया. खूब नईनई पोशाकें मिलीं. मुझे याद है कि जब हम वहां गए थे तो हमारे पास2 संदूक थे, मगर वापसी में हमारे पास4 संदूक, एक बड़ा बैग और 2 बड़े फल के टोकरे थे. साथ में, घी का कनस्तर, लड्डुओं और गुड़ का डब्बा, अपने खेत में उगे चावल का बोरा, मोरपंख से बने4 सुंदर पंखे, मामियों द्वारा हाथ की कढ़ी चादरें और न जाने क्याक्या सामान दिया था नानानानी ने.  मेरे 40 वर्षों के जीवनकाल में मैं4 चार बार ही अपने ननिहाल गई होऊंगी. हां, बहुत चिरौरी करने पर पिताजी मां को ले कर जरूर 5-6 बार गए होंगे, ज्यादा नहीं. मगर हर बार उन की आवभगत वैसी ही होती रही, जैसी मैं ने अपनी याददाश्त में पहली बार देखी थी. नानी की मृत्यु के बाद भी मेरी दोनों मामियां उस परिपाटी का पालन करती रहीं. आज यह पीढ़ी अपने उम्र के चौथे पड़ाव पर है, मगर आज भी अगर पिताजी मां को ले कर चले जाएं तो मुझे विश्वास है कि मेरी मामियां उसी तरह उन के पैर पानी के साथसाथ अपने आंसुओं से धोएंगी, उसी तरह उन की आवभगत करेंगी, जैसी नानी के वक्त में होती थी.मैं कभीकभी मां को उलाहना देती हूं कि तुम तो वैसी आवभगत अपने दामाद की नहीं करतीं, जैसी नानी पापा की किया करती थीं. तो वे हंस देती हैं. उन की हंसी में एक पीड़ा छिपी है. दरअसल, मां आर्थिक रूप से पिताजी पर आश्रित थीं, इसलिए उन की हर इच्छा पिताजी की हां, ना पर ही निर्भर होती थी. वे सालों अपने मायके जाने के लिए तरसती रहती थीं. यहां तक कि नानी की मृत्यु का समाचार मिलने पर भी वे उस वक्त नहीं जा पाईं, 2 माह बाद जब पिताजी को काम से थोड़ी फुरसत हुई, तब गईं. मगर मैं आर्थिक रूप से आजाद हूं. इसलिए अपनी मरजी की मालिक हूं.आज मुझे अपने मातापिता से मिलना होता है तो उस के लिए मुझे अपने पति की मिन्नतें करने की आवश्यकता नहीं होती. मेरे पति साथ जाना चाहें तो ठीक, वरना मैं अकेले ही सक्षम हूं. जब चाहती हूं, टिकट कटा कर मांपिताजी के पास पहुंच जाती हूं. औरत की आर्थिक आजादी ने बीते दशकों में जहां औरत को मजबूत बनाया है, वहीं ससुराल में दामाद की आवश्यकता से अधिक आवभगत और सत्कार, जो पहले इज्जत से ज्यादा एक डर की वजह से हुआ करता था, को खत्म किया है.औरत की आर्थिक आजादी ने उस के मायके वालों पर उस बड़े आर्थिक दबाव को भी खत्म कर दिया है, जो उन्हें मजबूरन दामादजी और उन के परिवार को खुश रखने के लिए झेलना पड़ता था.

बेटा बनने को मजबूर दामाद

लड़कियों की आर्थिक आजादी ने लड़कों की मनमरजी पर रोक लगाई है, तो उन को भी ससुराल में अपने मानसम्मान को बचाए रखने के लिए अपनी भूमिका में परिवर्तन के लिए मजबूर होना पड़ा है. पहले जहां दामाद अपनी ससुराल में एक मेहमान की तरह जाता था और मेहमान की तरह उस का सादरसत्कार होता था, वहीं आज वह घर के बेटे की तरह देखा जाता है. इसलिए दिखावे के आदरसत्कार में कमी आई है और प्रेम व विश्वास में बढ़ोतरी हुई है. कहींकहीं तो इकलौता दामाद सासससुर का ऐसा लाड़ला हो गया है कि वह अपनी बेटी से घर की बातें इतनी डिस्कस नहीं करते, जितनी दामाद के साथ कर लेते हैं. कई घरों में तो ससुरजी बिजनैस संबंधी सलाह बेटे से ज्यादा दामाद से करते नजर आते हैं. वहीं, सासें भी बेटे से ज्यादा प्यार दामाद पर लुटाती दिखाई देती हैं.अब फिल्म ऐक्टर अक्षय कुमार को ही ले लीजिए. उन की पत्नी ट्विंकल खन्ना से ज्यादा उन की सास डिंपल कपाडि़या अक्षय को प्यार करती हैं. अक्षय और उन की सासुमां का रिश्ता बेहद खास है. खुद अक्षय यह बात कई बार कह चुके हैं कि उन की लाइफ में उन की बीवी, बेटी के अलावा उन की सासुमां बहुत अहम स्थान रखती हैं. इन दोनों को अकसर इवैंट्स पर साथ देखा जाता है और दोनों की कैमिस्ट्री देख कर लगता है कि ये असल जिंदगी में सासदामाद नहीं, बल्कि मांबेटे हैं.वहीं, शर्मिला टैगोर अपने दामाद कुणाल खेमू को अपना दूसरा बेटा मानती हैं. कुणाल की शादी शर्मिला टैगोर की छोटी बेटी सोहा अली खान से हुई है. फैमिली के हर पार्टी फंक्शन में भले शर्मिला का बेटा सैफ मौजूद न हो, मगर दामादजी जरूर मौजूद होते हैं.साउथ के सुपरस्टार रजनीकांत और उन के दामाद धनुष की बौडिंग भी जबरदस्त है. धनुष की शादी रजनीकांत की बेटी ऐश्वर्या से हुई है, मगर धनुष और रजनीकांत को साथ देख कर अकसर लोग उन्हें बापबेटा समझ लेते हैं.वहीं करीना के पापा रणधीर कपूर का अपने छोटे दामादजी यानी सैफ अली खान से रिश्ता काफी करीबी है. इन दोनों की आपस में खूब बनती है. इसीलिए ससुरदामाद की यह जोड़ी भी अकसर फैमिली फंक्शन में साथ पोज देते देखी जाती है.ये तो हुई बौलीवुड की बातें, छोटे शहरों के मध्यवर्गीय और निम्नवर्गीय परिवारों में भी अब दामाद अपनी ससुराल में बेटे की जगह लेते जा रहे हैं. खासतौर पर वे दामाद जिन की पत्नियां अपने मांबाप की इकलौती हैं, या जिन की सिर्फ बहनें ही हैं, भाई नहीं हैं. इस बदलाव की बड़ी वजहें हैं औरत का पढ़ालिखा होना, नौकरीपेशा होना, अपने पैरों पर खड़ा होना और अपनी मरजी को पूरा करने के लिए पति पर आश्रित  न होना. इस बदलाव के चलते ही दामाद को ससुराल वालों के प्रति अपना व्यवहार और भूमिका में चेंज लाने के लिए मजबूर होना पड़ा है. मगर इस मजबूरी ने रिश्तों को नए रंगरूप भी दिए हैं. इस से दिखावा, डर और पराएपन की भावना खत्म हुई है और रिश्तों में निकटता आई है, तो साथ ही, दामाद पर 2 परिवारों की जिम्मेदारी और दोनों परिवारों के बुजुर्गों की देखभाल का बोझ भी आन पड़ा है.

दामाद निभा रहे बेटे का फर्ज

नेहा अपने मांबाप की इकलौती बेटी थी. उस की शादी के बाद उस के मांबाप अकेले हो गए. नेहा की शादी दूसरे शहर में हुई थी. उस का पति विकास भी अपने मातापिता का इकलौता बेटा था. नेहा और विकास दोनों नौकरीपेशा थे. कई सालों तक तो कोई परेशानी नहीं हुई, मगर जैसेजैसे नेहा और विकास के मातापिता की उम्र बढ़ती गई, अनेक रोगों ने बूढ़े शरीरों में अपनी जड़ें जमानी शुरू कर दीं. ऐसे में नेहा कभी अपनी ससुराल में तो कभी अपने मातापिता की देखभाल के लिए मायके में रहने लगी. उस की 11 साल की बेटी की पढ़ाई बहुत प्रभावित हुई. बारबार लंबी छुट्टियां लेने से नेहा की नौकरी भी जाती रही. मगर मांबाप को बीमारी में अकेले कैसे छोड़ती, लिहाजा बेटी को ले कर वह अपने मायके में ही रहने लगी. उधर, ससुराल में उस के सासससुर के साथ भी दिक्कतें शुरू हो गईं. ऐसे में विकास ने एक रास्ता निकाला. उस ने नेहा के मातापिता को अपने साथ रहने के लिए किसी तरह मना लिया. नेहा ने अपना घर बेच कर पहले से बड़ा घर खरीदा, जहां दोनों के मातापिता पूरी आजादी के साथ भी रहें और नेहा और विकास की आंखों के सामने भी रहें. अब विकास और नेहा चारों बुजुर्गों की देखभाल ठीक से कर पाते हैं. नेहा ने नई नौकरी भी जौइन कर ली है. आसिमा का निकाह फैज से हुआ था. आसिमा का कोई भाई नहीं था, मगर उस से छोटी 2 बहनें और थीं, जिन की शादी की जिम्मेदारी उसे निभानी थी. ससुराल आने के बाद वह इसी चिंता में घुली जाती थी कि बहनों के लिए रिश्ता कैसे ढूंढे़. आखिरकार एक दिन उस ने फैज को अपनी परेशानी बताई. फैज को आसिमा की मां अपने बेटे की तरह चाहती थीं, लिहाजा फैज ने भी बेटा होने का फर्ज अदा किया और उस की मेहनत से आसिमा की दोनों बहनों के घर भी बस गए.आज आसिमा बहुत खुश है क्योंकि उस का पति जितना प्यार अपने परिवार के सदस्यों को देता है, जो जिम्मेदारी उन के प्रति निभाता है, वैसा ही प्यार, सम्मान और जिम्मेदारी वह आसिमा की फैमिली के लिए भी प्रकट करता है. यही वजह है कि आसिमा के मन में भी अपने पति और अपने ससुराल वालों के लिए उतनी ही इज्जत और प्यार है, जितनी अपने परिवार के लिए है. जिन परिवारों में बेटे नहीं होते, वहां दामाद ही ससुर के बाद मुखिया बन जाते हैं और उन्हें ही सारी पारिवारिक जिम्मेदारियां वहन करनी होती हैं.

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दोहरी जिम्मेदारी में पिस रहे दामाद

बदलाव के असर अगर अच्छे हैं, तो बुरे भी हैं. मदनलाल की आमदनी बहुत ज्यादा नहीं है. छोटी सी किराने की दुकान है, जिस से उस का 5 जनों का परिवार चलता है. ऐसे में जब उस पर उस के सासससुर की देखभाल और इलाज का बोझ भी पड़ने लगा तो घर में आएदिन पत्नी के साथ लड़ाईझगड़े शुरू हो गए. पत्नी कहती कि अपने बीमार मांबाप की देखभाल और इलाज मैं न करवाऊं तो कौन करवाएगा? वहीं मदनलाल कहता है कि इलाज के लिए मैं तो पैसे नहीं दूंगा. पत्नी कहती, मत दो, मैं अपने गहने बेच दूंगी, मगर तुम ने अगर अपने मांबाप पर भी रुपया खर्च किया तो मैं तुम को थाने तक घसीटूंगी. वह मदनलाल पर चीखती कि मेरे बाप ने इतना दहेज दिया, हर तीजत्योहार पर तुम्हारी जेबें भरीं, तब उन से पैसा लेते तुम्हें कभी झिझक नहीं हुई, अब जब उन को बुढ़ापे में देखभाल की, दवाइलाज की जरूरत है तो तुम पीठ दिखा रहे हो?मदनलाल जैसे दामादों की भी समाज में कमी नहीं है जो दोहरी जिम्मेदारी की चक्की में पिस रहे हैं. ऐसी स्थिति में वे पुरुष ज्यादा फंसे हैं, जिन की आय कम है और जिन की ससुराल में बुजुर्गों की देखभाल व जिम्मेदारी उठाने के लिए कोई मर्द नहीं है. जब तक सासससुर की सेहत ठीक रहती है, तब तक तो कोई परेशानी नहीं होती, मगर बुढ़ापा और बीमारी उन्हें अपने दामाद पर बोझ बना देते हैं.

बौयफ्रैंड पर इकोनौमिक डिपैंडैंस नो…नो…नो…

लड़के-लड़कियों का रिलेशनशिप में होना कोई नई बात नहीं हैं और न ही लड़कियों का अपने बौयफ्रैंड्स से छोटेमोटे गिफ्ट्स की उम्मीद लगाना नया है. लड़कियों की अपने बौयफ्रैंड्स से कई तरह की अपेक्षाएं होती हैं. कुछ के लिए रिलेशनशिप में आने का मतलब ही यह होता है कि आज तक जो इच्छाएं पूरी न हो सकीं, अब करेंगे. लेकिन, ये लड़कियां या तो स्कूलगोइंग होती हैं या फिर कालेजगोइंग, और उन के खुद के पास इतने पैसे नहीं होते जो उन के अरमानों को पूरा करने के लिए पर्याप्त हों.

ऐसे में उन की जरूरतें पूरी करने के लिए प्रकट होते हैं उन के बौयफ्रैंड्स जिन्हें शरूशुरू में तो पैसा लुटाने और अपनी धाक जमाने में बड़ा मजा आता है, लेकिन जैसेजैसे उन के हाथ से पैसा जाने लगता है यह मजा सजा बन कर रह जाता है. डेट्स का बिल, मूवी टिकट, महंगे कैफे में खाना, मिलने पर फूल या चौकलेट, फोन का रिचार्ज विद ऐक्स्ट्रा डाटा पैक, फैस्टिवल और वेलैंटाइन पर अलग तोहफे और बर्थडे पर तो सम झो दीवाला निकल जाता है.

कहीं आनाजाना हो, तब भी रिकशे से ले कर पानी खरीदने तक का बिल बौयफ्रैंड की जेब से ही खर्च होता है, क्योंकि गर्लफ्रैंड का हाथ बैग में लिपस्टिक के लिए तो हर घंटे जाता है लेकिन पैसों के लिए नहीं. लड़कियों का पैसों के मामले में पूरी तरह से बौयफ्रैंड पर आश्रित हो जाना और हर छोटीबड़ी चीज के लिए उस का मुंह ताकना एक आदत बन जाती है जो समय के साथ पहले से ज्यादा गहराती जाती है.

लड़कियों की प्यार के नाम पर अपने बौयफ्रैंड्स पर यह इकनौमिक डिपैंडैंस लड़कों का जीना मुश्किल कर देती है या यों कहें कि उन्हें बरबाद कर देती है. ये वही लड़के हैं जो बेचारे बाबू, जानु, शोनामोना करते रह जाते हैं और रिलेशनशिप खत्म होने पर इन्हीं गर्लफ्रैंड्स को गोल्डडिग्गर होने का टैग देते फिरते हैं. सोशल मीडिया पर तो ऐसे लड़कों की भरमार है. असल में देखा जाए तो इस में पूरी तरह लड़कियों की गलती नहीं कही जा सकती. लड़कों को खुद को एक लैवल अप दिखाने का कोई मौका छोड़ना पसंद नहीं. ऐसे में पैसा, रुतबा दिखाने से बेहतर क्या होगा?

1. बौयफ्रैंड खर्च करने को शान मानते हैं

पीयूष एक अमीर घराने का लड़का था जिसे दिन के 700-800 रुपए लुटाना आम बात लगती थी. उस की गर्लफ्रैंड नीता भी खूब खर्चीली थी और आएदिन पापा से पैसे मांग कर खर्च करती थी. पीयूष और नीता रिलेशनशिप में थे और काफी खुश भी थे. लेकिन जब भी दोनों डेट पर जाते तो सारा खर्च पीयूष उठाता. उसे नीता का पैसे खर्च करना खुद की बेइज्जती लगता था. नीता के पास भी पैसे होते थे लेकिन पीयूष ही सारे बिल भरता था.

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कालेज के थर्ड ईयर तक आतेआते पीयूष को पैसों की तंगी होने लगी, जिस के चलते अब वह नीता पर खर्च नहीं कर पाता था. नीता के सामने  झुकना और ‘लड़की के पैसों पर जीना’ वाली धारणा लिए रिलेशनशिप में रहना पीयूष को कतई मंजूर नहीं था. उस ने डेट्स पर जाना, नीता के साथ फिल्म देखना, घूमनाफिरना सब कम कर दिया. फिर क्या होना था, नीता और पीयूष के बीच अनबन होने लगी. पीयूष हमेशा टैंशन में रहने लगा, नीता को टाइम भी नहीं देता था. आखिर, कुछ ही दिनों में दोनों का ब्रेकअप हो गया.

2. गर्लफ्रैंड को इंप्रैस करने के लिए करते हैं खर्च

काव्या रोहित को कालेज में मिली थी. रोहित उसे देख कर मानो हवा में उड़ने लगा. जब वे दोनों रिलेशनशिप में आए तो रोहित जबतब उसे अपनी स्कूटी पर घुमाने ले जाता. वह उसे उस की मनपसंद आइसक्रीम खिलाने ले जाता था. काव्या के पास इतने पैसे नहीं होते थे कि वह महंगे कपड़े खरीद पाती. वह रोहित के सामने जानबू झ कर कहा करती थी कि उसे यह या वह ड्रैस लेने का बहुत मन है लेकिन पैसे नहीं हैं अभी. रोहित यह सुन कर सम झ जाता कि उसे काव्या को गिफ्ट में अगली बार क्या देना है. काव्या और रोहित एक ही ग्रुप में थे. कोई और दोस्त काव्या को यह न कहे कि वह रोहित के पैसों पर जी रही है, रोहित उस के साथसाथ गु्रप की बाकी लड़कियों को भी शौपिंग करा आता. वे सभी कहीं कुछ खाने जाते तो काव्या खाने से इसलिए मना कर देती कि उस के पास पैसे नहीं हैं. इस पर रोहित अपने साथसाथ उस के पैसे भी दे देता.

रोहित हर दूसरे दिन अपनी मम्मी से पैसे मांगता था. मम्मी के मना करने पर उन से लड़ भी पड़ता. अपनी गर्लफ्रैंड का दिल जीतने के लिए उसे जो कुछ भी करना पड़ता, वह करता था. पर वह दिन दूर नहीं था जब दोनों का ब्रेकअप हो गया. रोहित और काव्या दोनों को ही ब्रेकअप का दुख था लेकिन ब्रेकअप के बाद रोहित को काव्या पर बहुत गुस्सा आया था. वह अब उस के बारे में किसी को भी कुछ बताता तो यह जरूर कहता कि वह एक पैसा खाने वाली लड़की है जिस ने उस का पैसों के लिए खूब इस्तेमाल किया. ऐसे में यह सम झना बहुत जरूरी हो जाता है कि चाहे आप का बौयफ्रैंड खुद आप पर पैसे लुटाना चाहे, फिर भी आप को उसे खुद पर खर्च करने से रोक देना चाहिए.

3. गर्लफ्रैंड्स खुद के खर्चे उठाना सीखें

ऐसा नहीं है कि हर लड़की अपने बौयफ्रैंड पर ही निर्भर रहती है. ऐसी लड़कियां भी हैं जो अपने खर्चे खुद उठाती हैं. फिर भी जिन लड़कियों को अपने पैसे खर्च करने के बजाय अपने बौयफ्रैंड की जेब ढीली करने में आनंद आता हो उन्हें यह सम झना बहुत जरूरी है कि वे अपने रिलेशनशिप को तो डिसबैलेंस्ड कर ही रही हैं, साथ ही, अपने बौयफ्रैंड की टैंशन और अजीब व्यवहार का कारण भी बन रही हैं.

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4. हर समय तोहफों की अपेक्षा न करें

लड़कियों का हर समय तोहफे मांगते रहना या अपने बौयफ्रैंड से महंगे तोहफे लेने की अपेक्षाएं असल में लड़कों के लिए परेशानी का सबब बन जाती हैं. वे कभी दोस्तों से पैसे उधार मांगते हैं तो कभी बड़े भाईबहन से. मम्मीपापा अगर पैसे के लिए मना कर दें तो वे उन से लड़ाई झगड़े पर उतर आते हैं. पैसों को ले कर बौयफ्रैंड की यह टैंशन गर्लफ्रैंड अपनी अपेक्षाएं कम कर आसानी से दूर कर सकती है.

5. अपने बिल खुद भरें

हर चीज में लड़कियां लड़कों से आगे हैं तो इस में क्यों पीछे रहें. लड़कियों को जरूरत है कि वे डेट्स या मूवीज का पूरा बिल न सही पर अपने हिस्से का तो दे ही दें. इस से बेचारे बौयफ्रैंड का कम से कम थोड़ा बो झ तो कम होगा.

6. मनपसंद चीजों के लिए पैसे बचाना सीखें

लड़कियों को भी अपने घर से अच्छाखासा जेबखर्च तो मिल ही जाता है. और अगर किसी महंगी चीज को खरीदने का मन करे तो उस के लिए पैसे बचाएं. अपने खुद के पैसों से खरीदी हुई चीज का मोल कहीं ज्यादा होता है.

7. पैसे नहीं हैं तो इच्छाएं कम रखें

हर सुंदर चीज पर दिल आ जाना और अपने बौयफ्रैंड की तरफ नजर घुमा लेना बहुत सी लड़कियों की आदत होती है. यह एक बुरी आदत है क्योंकि आप की इच्छाएं पूरी करना आप के बौयफ्रैंड का काम नहीं है. अगर पैसे नहीं हैं तो ऐसी इच्छाएं रखना कम कर दीजिए. यानी, रिलेशनशिप में खर्च केवल लड़का ही उठाए, यह सरासर गलत है. लड़कालड़की दोनों ही रिलेशनशिप में बराबर की हिस्सेदारी रखते हैं, तो बिल्स के भी बराबर हिस्से होने चाहिए.

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माता-पिता के विवाद का बच्चे पर असर

8 साल के कृष का व्यवहार कहीं से भी उस के हमउम्र दोस्तों सा नहीं है. खेलते समय अकसर अपने साथी दोस्तों को डरानाधमकाना और उन्हें मार बैठना उस की आदतों में शामिल है. इस बात के लिए उस के स्कूल और पासपड़ोस से कई बार शिकायतें भी आ चुकी थीं. उस के मम्मीपापा ने प्यार से, डांट कर समझाया पर वह उन की एक भी नहीं सुनता, बल्कि उन्हें भी आंखें दिखाने लगता है. जब डांट फटकार ज्यादा लगती है, तो घर की चीजें उठाउठा कर फेंकने लगता है.

दरअसल, कृष के मम्मीपापा दोनों कामकाजी हैं. तनावभरी जिंदगी में अकसर दोनों के बीच कहासुनी हो जाती है. कभीकभी तो लड़ाई इतनी बढ़ जाती है कि दोनों चीखनेचिल्लाने लगते हैं. कोई किसी की बात सुननेसमझने को तैयार नहीं होता. कई बार कृष अपने पापा को अपनी मम्मी पर हाथ उठाते भी देखता जिसे देख कर वह सहम उठता. धीरेधीरे फिर वह भी उसी प्रकार आचरण करने लगा. अपने मां, पापा से कोई भी बात वह चीखचिल्ला कर बोलता. गुस्से में घर की चीजें पटकता और वही सब फिर अपने दोस्तों के साथ करने लगा.

इस के लिए उस के मां, पापा जिम्मेदार हैं, क्योंकि कितनी बार कभी रो कर, कभी खामोश रह कर कृष ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की, लेकिन उस के मां, पापा ने कभी उस की बातों को नहीं समझा और उस के सामने ही आपस में लड़तेझगड़ते रहे. नतीजा, आज कृष एक जिद्दी और गुस्सैल बच्चा बन चुका है.

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13 साल की तन्वी स्कूल में एकदम चुपचाप रहती है. किसी से ज्यादा बातचीत नहीं करती और न ही स्कूल की किसी ऐक्टिविटी में भाग लेती है. कारण, 2 साल पहले उस के मां,पापा का तलाक हो गया. दोनों में इतनी लड़ाई होती थी कि आखिरकार दोनों ने अलग होने का फैसला कर लिया. तन्वी रहती तो अपनी मां के साथ है, लेकिन छुट्टियों में अपने पापा के पास भी जाती रहती है. लेकिन अब उस का हंसनाखिलखिलाना सब खत्म हो चुका है. पढ़ाई में भी वह पहले जैसी होशियार नहीं रही. दोस्त भी उस के कम हो गए हैं.

फिर भी उस के मातापिता को समझ नहीं आ रहा है कि ये सब उन के कारण ही हुआ है. उन्होंने एक बार भी नहीं सोचा कि उन के खराब रवैए का उन की बेटी पर क्या असर हो रहा है. बस, दोनों ने अपनाअपना स्वार्थ देखा और अलग हो गए.

हर बच्चे के लिए उस के मां, पापा उस के रोल मौडल होते हैं. उन की नजरों में वे सब से बेहतरीन इंसान होते हैं. ऐसे में जब मातापिता बच्चों के सामने ही लड़नेझगड़ने लगते हैं, तो बच्चा ठगा सा महसूस करने लगता है. उस ने अपने दिल में अपने मांपापा की जो छवि बनाई होती है वह टूटनेबिखरने लगती है और फिर या तो वह चुप रहने लगता है या फिर अपने मातापिता की तरह ही बन जाता है.

साइकोलौजी की इमिटेशन थ्योरी से यह साबित भी होता है कि बच्चे सामाजिक व्यवहार अपने मातापिता से ही सीखते हैं. वैसे तो हर मातापिता की यही कोशिश होती है कि वे कुछ भी ऐसा न करें, जिस का बच्चे पर गलत असर हो. लेकिन कई बार उन से बच्चों के सामने ही कुछ ऐसा व्यवहार हो जाता है, जिस का असर बच्चों पर पड़ने लगता है और फिर बच्चे भी वैसा ही करने लगते हैं.

पटना के हाई कोर्ट के एक वकील का कहना है कि पतिपत्नी झगड़ा करने के बाद बच्चों की नजरों में खुद को सही साबित करने के लिए एकदूसरे के खिलाफ जहर भरने लगते हैं. दोनों एकदूसरे पर दोषारोपण करने लगते हैं, जिस से बच्चे दुविधा में पड़ जाते हैं.

लड़ाई-झगड़े का बच्चों पर असर

अवसाद यानी डिप्रैशन

जो बच्चे अपने मातापिता को लड़तेझगड़ते देख  कर बड़े होते हैं उन में डिप्रैशन की समस्या हो जाती है, क्योंकि उन्हें खुशनुमा माहौला नहीं मिलता है, जिस के कारण वे डिप्रैशन का शिकार हो जाते हैं.

डरासहमा रहना

बच्चों के सामने लड़ाईझगड़ा, गालीगलौज, मारपीट करते वक्त मातापिता यह भूल जाते हैं कि उन की इन हरकतों का बच्चों पर क्या असर हो रहा है. अकसर अपने मांपापा को लड़तेझगड़ते देख बच्चों में डर पैदा होने लगता है.

मानसिक रूप से परेशान: बहुत ज्यादा तंग माहौल में रहने से बच्चों में मानसिक समस्या हो जाती है. उन की मासूमियत खोने लगती है और वे जिद्दी और चिड़चिड़े होने लगते हैं. लेकिन मातापिता नहीं समझ पाते कि ये सब उन के ही कारण हो रहा है. जब तक उन्हें समझ आती है बहुत देर हो चुकी होती है.

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जिंदगी में बहुत कुछ खो देना

जिन बच्चों के घर में हमेशा कलह, अशांति का वातावरण बना रहता है उन का मानसिक विकास सही नहीं हो पाता है और वे दूसरे बच्चों के मुकाबले खेलकूद, पढ़नेलिखने में भी पीछे रह जाते हैं.

खुद को जिम्मेदार समझना

मातापिता की लड़ाई  जब रोज होने लगती है तब बच्चे को लगता है वही इस लड़ाई की वजह है और फिर वह गुमसुम सा रहने लगता है. कई बच्चे तो आत्मघाती कदम तक उठा लेते हैं.

भरोसा टूटने लगता है

लड़तेझगड़ते मांबाप को देख कर बच्चा अपनी जिंदगी से निराश होने लगता है. उसे कुछ भी अच्छा लगना बंद हो जाता है. वह किसी पर जल्दी भरोसा नहीं कर पाता. हर किसी का प्यार उसे झूठा लगता है.

कम आयु के बच्चों पर लड़ाईझगड़े का असर

बाल विशेषज्ञ के अनुसार छोटे बच्चे जहां मातापिता की बातों को समझ नहीं सकते, वहीं वे उन की भावनाओं को भलीभांति समझते हैं. इसलिए देखा गया है कि जिन परिवारों में मातापिता में लड़ाईझगड़े होते हैं, उन के  बच्चे सहम से जाते हैं. उन्हें लगने लगता है अब उन के मम्मीपापा अलग हो जाएंगे और उन के साथ नहीं रहेंगे. वे खुद को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं. यहां तक कि वे लोगों से मिलनेजुलने और कहीं आनेजाने से भी कतराने लगते हैं.

बड़ी उम्र के बच्चों पर लड़ाईझगड़े का असर

बड़ी उम्र के बच्चों से अकसर मातापिता लड़ाई में उन का पक्ष लेने की उम्मीद रखते हैं. लेकिन ऐसी स्थिति में बच्चे खुद को फंसा महसूस करते हैं. कई बार बच्चे ग्लानि से भी भर जाते हैं और मांपिता की लड़ाई के लिए खुद को जिम्मेदार मानने लगते हैं.

अमेरिका में हुई एक रिसर्च के अनुसार, शरीर के इम्यून सिस्टम पर लड़ाईझगड़ों का गहरा असर होता है और उन की बीमारियों से लड़ने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है. अगर बचपन में मातापिता के बीच लड़ाईझगड़े हुए हों, वे एकदूसरे से बोलते न हों, तलाक का केस लंबे समय तक चलता रहे, तो इस का असर बच्चों के कोमल मन पर बहुत बुरा पड़ता है और सिर्फ बचपन में ही नहीं, इस का नकारात्मक असर उन के पूरे जीवन पर रहता है.

मातापिता के झगड़ों का असर बच्चों की पढ़ाई पर भी पड़ने लगता है, जिस की वजह से वे स्कूल में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते. रोवेस्टर, सिरैफ्यूज और नोट्रेडम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 3 साल की अवधि के दौरान 216 बच्चों, उन के अभिभावकों और शिक्षकों के बीच अध्ययन किया. मातापिता के संबंधों को ले कर बच्चों की चिंता पर हुए इस अध्ययन में पाया गया कि मातापिता के तनावभरे संबंधों का बच्चों पर नकारात्मक असर पड़ता है.

पतिपत्नी के बीच लड़ाईझगड़ा होना स्वाभाविक बात है, क्योंकि दोनों अलगअलग पृष्ठभूमियों से होते हैं, सो ऐसे में दोनों के विचारों में मतभेद होना लाजिम है. लेकिन विवाद बढ़ कर मारपीट तक पहुंच जाना और फिर तलाक होना सही नहीं है. कहने को तो यह पतिपत्नी के बीच का मामला है, लेकिन इस से बच्चों की जिंदगी बिखरने लगती है.

एक अध्ययन से पता चला है कि पतिपत्नी के बीच होने वाले झगड़े न केवल बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं, बल्कि उन के मानसिक विकास पर भी बहुत बुरा असर डालते हैं. इस से बच्चों में कई तरह के मानसिक विकार उत्पन्न हो सकते हैं. वे या तो डरपोक बन जाते हैं या फिर जीवन की सही दिशा से भटक कर बिगड़ने लगते हैं. इसलिए मांबाप भले लड़ेंझगड़ें, पर इतना खयाल रखें कि उन की लड़ाई का असर उन के बच्चों पर न पड़े. अपने बच्चों का वे उसी प्रकार पालनपोषण करें जैसे हर मांबाप करते हैं.

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माता-पिता के लिए टिप्स

– अपने अहम को दरकिनार करते हुए बच्चों के बारे में सोचें.

– लड़ाईझगड़ा हर पतिपत्नी के बीच होता है, लेकिन जब एक गुस्से में हो, तो दूसरे को चुप हो जाना चाहिए. इस से बात

नहीं बढ़ती.

– बच्चों को अपनी लड़ाई का हिस्सा न बनाएं.

– अगर पतिपत्नी किसी बात पर सहमत नहीं हैं, तो बच्चों के सामने ही एकदूसरे की बेइज्जती न करें.

– बच्चों के सामने गलत और नकारात्मक प्रभाव वाली भाषा का इस्तेमाल न करें.

– बच्चों के सामने चिल्लाचिल्ला कर गालीगलौज से बात न करें.

– इस बात का ध्यान रखें कि जो बातें आप को कष्ट पहुंचा सकती हैं वे बालमन पर भी बुरा असर डालेंगी.

– अगर पतिपत्नी के बीच विवाद रुक नहीं रहा है, तो किसी काउंसर से संपर्क करें.

 

जानें क्या है इनसिक्योरिटी का कारण

अगर आप किसी रिलेशनशिप में हैं तो आपके पार्टनर का असुरक्षित महसूस करना एक आम बात है. लेकिन वह असुरक्षित क्यों महसूस कर रहा हैं ,कभी-कभी यह समझना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. और जब यही गलतफहमियां बढ़ने लगती हैंं तो रिश्ते को आगे बढ़ाने में मुश्किलेंं होती हैं.

अगर आपको लगता है कि इस  तरह की भावना के लिए केवल आपका पार्टनर जिम्मेदार है तो आप गलत सोच रही हैं. आपको भी अपने पार्टनर के मन में झांक उसे समझना होगा. आइए जानते हैं कैसे.

1. पुरुष मित्र की तारीफ

जब औरतें अपने पुरुष सहकर्मी की तारीफ करती हैं तब  मर्दों को इससे बहुत ज्यादा असुरक्षा का एहसास होता है. भले वह मुंह सेेे खुलकर  बोले लेकिन उनके मन में यह बात घर करने लगतीी है कि उनकी पत्नी या प्रेमिका अपने सहकर्मी से प्रभावित है. आप  उनको बात बात में बतायें कि जब आप उनके साथ  कमिटेड हैं तो वे इससे घबराएं नहीं. ये सिर्फ उनके काम  का कामयाबी  की सराहना है .जो काफी साधारण बात है.

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2. शारीरिक क्षमता नहीं भावनात्मक

अपने पार्टनर को बतायें कि सिर्फ शारीरिक संबंध ही नहीं आप उनसे भावनात्मक रिश्ते में भी उसी मजबूती से जुड़ना चाहती हैं. इस  तरह वे आप के प््रति मन से आप के लिए नकारात्मक भाव लाने के बजाय आपके साथ रोमांटिक पलों को एंजॉय करेंगे.

3. ब्रेकअप की कड़वाहट को भूलें

महिला हो या पुरुष जब एक बार धोखा खा चुके होते हैं तो नए सिरे से दूसरे रिश्तेके साथ एडजस्ट करने में समय लगता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप पुरानी कड़वाहट  को अपने नए रिश्ते के बीच में भी लाएं. जरूरी नहीं यदि पहले साथी ने धोखा दिया है तो, आपको  नया पार्टनर भी धोखा देगा. जो बीत गया उसे जाने दो आप अपना आज न खराब करें.

4. पति- पत्नी के बीच में स्टेटस सिंबल क्यों 

आज के समय में महिलाएं किसी से कम नहीं. वे आत्म निर्भर है और अच्छी पोस्ट पर कार्यरत भी .लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पति पत्नी के बीच में स्टेटस सिंबल को लेकर रोज युद्ध का मैदान तैयार हो जाए.अगर किसी पुरुष के मुकाबले में उसकी पत्नी या गर्लफ्रेंड ज्यादा सफल है तो इसमें असुरक्षा की भावना क्यों? अपने पार्टनर को प्यार से समझाएं.

5. एक्स-पार्टनर हो आफिस में

यदि आपके पार्टनर ने आपको बोला भी हो  कि उसको आपके एक्स के आफिस में होने से फर्क नहीं पड़ता. मतलब सीधा और साफ है उनको फर्क पड़ता है .अब  आपको ये समझने की जरूरत है.  पार्टनर को कैसे समझाए.

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6. फ्रेंड सर्कल में पुरुष मित्र

यदि आपके सर्कल में पुरुष मित्र भी है तो कोई बात नहीं. बस जरूरी है कि आप अपने पति या बॉयफ्रेंड को अपने दोस्तों के बारे में सच सच बताएं. यदि आप छिपायेंगी तो उनको शक होगा.  पुरुष दोस्तों का होना गलत  नहीं , लेकिन इसके लिए अपने पार्टनर से झूठ बोलना या धोखे में रखना गलत है.

7. कहीं आप सीक्रेटिव तो नहीं

अगर आप चुप चुप रहती हैं और अपने पार्टनर से  खुलकर  नहीं बोलतीं. तो ये बात आपके पार्टनर को खलती होगी. उनको लगेगा कि आप उनके साथ खुश नहीं. अपने मन की बात शेयर करें और उनको समझायें कि ये आपका स्वभाव है न कि आप कुछ सीक्रेट रख रही हैं.

जिम्मेदारियों के बीच न भूलें जीवनसाथी को वरना हो सकता है ये अफसोस

घर से ऑफिस ,ऑफिस से घर ये रूटीन बन गया .2 से 3 साल और निकल गए. मेरी उम्र 25 की हो गयी और फिर शादी हो गयी. मेरे जीवन की कहानी शुरू हो गयी. अपने जीवनसाथी के हाथों में हाथ डालकर घूमना -फिरना ,रंग बिरंगे सपने  देखना ,जीवन से एक अलग सा ही लगाव महसूस होने लगा.पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए .फिर बच्चे के आने की आहट  हुई.अब हमारा सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया. उठाना-बैठाना ,खिलाना-पिलाना ,लाड-दुलार ,समय कैसे फटाफट निकल गया मुझे पता ही नहीं चला.

इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया ,बातें करना ,घूमना -फिरना कब बन्द हो गया दोनों को पता ही नहीं चला. वो बच्चे में व्यस्त हो गयी और मैं अपने काम में.

घर और गाडी की क़िस्त ,बच्चे की पढाई लिखी और भविष्य की जिम्मेदारी और साथ ही साथ बैंक में शून्य बढ़ाने  की चिंता ने मुझे घेर लिया .उसने भी अपने आपको काम में पूरी तरह झोंक दिया और मैंने भी.

इतने में मै  35 साल का हो गया .इसी बीच दिन बीतते गए,समय गुजरता गया ,बच्चा बड़ा होता गया .एक नितांत, एकांत पल में मुझे वो गुज़रे दिन याद आये और मौका देखकर मैंने अपने जीवन साथी से कहा “अरे यहाँ आकर मेरे पास बैठो ,चलो हाथ में हाथ डालकर कहीं घूम कर आते है .” उसने अजीब नज़रों से मुझे देखा और कहा ‘आपको  घूमने की पड़ी है और यहाँ इतना सारा काम पड़ा है आप  भी हद करते हो ‘.मैं शांत हो गया .

बेटा उधर कॉलेज में था इधर बैंक में शून्य बढ़ रहे थे .देखते ही देखते उसका कॉलेज ख़त्म हो गया और वो परदेश चला गया.

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मैं भी बूढा हो गया वो  भी उम्रदराज़ लगने लगी .दोनों 55 से 60 की ओर बढ़ने लगे .बैंक में शून्य बढ़ रहे थे और हमारे जीवन के भी.

बाहर आने जाने के कार्यक्रम बन्द होने लगे.अब तो गोली ,दवाइयों के दिन और समय निश्चित होने लगे.जब बच्चे बड़े होंगे तब हम सब साथ रहेंगे ये सोचकर बनाया गया घर बोझ लगने लगा.बच्चे कब वापस आयेंगे यही सोचते-सोचते बाकी के दिन गुजरने लगे.

एक शाम ठंडी हवा का झोका चल रहा था .वो भी दिया- बाती कर रही थी और मैं अपनी  कुर्सी पर बैठा अपने अतीत के कुछ खुशनुमा पल याद कर रहा था . आज भी उस पल  को याद करके मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है जब हमारी शादी की बारहवी  सालगिरह पर उसने मुझसे सालगिरह का तोहफा माँगा. उसने मुझसे कहा की मैं  जो भी मांगूंगी आप मुझे दोगे . मैंने हाँ में सिर हिला दिया .वो अन्दर कमरे से जाकर 2 डायरी ले आई और मुझसे बोली कि मुझे आपसे बहुत कुछ कहना रहता है लेकिन हमारे पास एक दूसरे के लिए समय ही नहीं होता.इसलिए हमारी जो भी शिकायतें होंगी हम पूरा साल अपनी -अपनी डायरी में लिखेंगे और अगली सालगिरह पर हम एक दूसरे की डायरी पढेंगे .मैं भी सहमत हो गया की विचार तो अच्छा है.

देखते ही देखते साल बीत गए. शादी की अगली सालगिरह आई .हम दोनों ने एक दूसरे की डायरी ली.उसने कहा की पहले आप पढ़िए.मैंने पढना शुरू किया.पहला पन्ना,दूसरा पन्ना, तीसरा पन्ना शिकायते ही शिकायते “आज शादी की वर्षगांठ पर मुझे ढंग का तोहफा नहीं दिया ”.

“आज होटल में खाना खिलाने का वादा करके भी नहीं ले गए “.

“आज जब शौपिंग के लिए कहा तो जवाब मिला की मैं बहुत थक गया हूँ “ ऐसी अनेक रोज़ की छोटी छोटी फरियादें लिखी हुई थी.ये सब पढ़कर मेरी आँखों में आंसू आ गए. मुझे एहसास हुआ की वाकई में इन औरतों की ज़िन्दगी हमारे इर्द-गिर्द ही घूमती है.मैंने कहा की मुझे पता ही नहीं था मेरी गलतियों का .मै ध्यान रखूंगा की आगे से  ऐसा न हो.

अब बारी उसकी थी .उसने मेरी डायरी खोली .

पहला पन्ना कोरा? दूसरा पन्ना कोरा? अब उसने दो,चार पन्ने साथ में पलटे  वो भी कोरे? फिर पचास –सौ पन्ने साथ में पलटे  वो भी कोरे?

उसने कहा कि मुझे पता था की आप  मेरी इतनी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकेंगे .मैंने पूरा साल इतनी मेहनत से आपकी सारी  कमियां लिखी ताकि आप  उन्हें सुधार सको.

मै मुस्कुराया और मैंने कहा की मैंने सबकुछ अंतिम पन्ने पर लिख दिया है.उसने उत्सुकता से अंतिम पन्ना खोला उसमे मैंने लिखा था;- “मैं तुम्हारे मुंह पर तुम्हारी जितनी भी शिकायत कर लूं लेकिन तुमने मेरे और मेरे परिवार के लिये जो  त्याग किये है मैं उनकी भरपाई कभी नहीं कर सकता.

मैं इस डायरी में लिख सकूं ऐसी कोई कमी मुझे तुममे दिखाई नहीं दी.ऐसा नहीं है की तुममे कोई कमी नहीं है, लेकिन तुम्हारा प्रेम,तुम्हारा समर्पण,तुम्हारा त्याग उन सब कमियों से ऊपर है.मेरी अनगिनत भूलों के बाद भी तुमने जीवन के हर समय में मेरी छाया  बनकर मेरा साथ निभाया है.अब अपनी ही छाया में कोई दोष कैसे निकाल सकता है.” अब रोने की बारी उसकी थी .वो मेरे गले लगकर  बहुत रोई .शायद अब उसके सारे गिले शिकवे दूर हो चुके थे.

तभी अचानक phone की घंटी बजी . मैं अपने अतीत के उस खुशनुमा पल से बाहर आ चुका था .मैंने लपक कर phone उठाया .बेटे का phone था जिसने कहा की उसने शादी कर ली है अब वो परदेश में ही रहेगा.उसने कहा’पिताजी आपके बैंक के शून्य आप दोनों के लिए पर्याप्त होंगे ,आप आराम से अपना जीवन बिता लीजियेगा और अगर जरूरत पड़े तो वृदाश्रम चले जाइएगा  वहां आप लोगों की देखभाल हो जाएगी.’ और भी कुछ ओपचारिक बातें करके उसने phone रख दिया.

मैं वापस आकर कुर्सी पर बैठ गया उसकी भी दिया- बाती ख़त्म होने को आई थी .मैंने उसे आवाज़ दी “चलो आज फिर हाथों में हाथ लेकर बातें करते है.” वो तुरंत बोली “अभी आई “.उसने शेष पूजा की और मेरे पास आकर बैठ गयी.”बोलो क्या कह रहे थे “लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा.उसने मेरे शरीर को छूकर देखा शरीर बिलकुल ठंडा पड़  गया था. “मैं उसकी ओर एक टक  देख रहा था “.

उसने मेरा ठंडा हाथ अपने हाथों में  लिया और बोली “चलो कहाँ घूमने चलना है तुम्हे?क्या बातें करनी है तुम्हे? “

बोलो !! ऐसा कहते हुए उसकी आँखे भर आई !! वो एकटक मुझे देखती रही.उसकी आँखों से आंसू बह निकले .मेरा सर उसके कंधे पर गिर गया . ठंडी हवा का झोका अब भी चल रहा था.

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जी हाँ दोस्तों ये तो सिर्फ एक कहानी है पर शायद ये बहुत से लोगों के जीवन ही हकीकत भी है . हम अपनी जिम्मेदारियों को निभाते -निभाते अपने जीवन साथी के लिए समय निकालना ही भूल जाते है .

पति पत्नी का रिश्ता बहुत ही प्यार भरा रिश्ता होता है. इसमें कई तरह की भावनाएँ होती हैं जैसे की प्यार, देखभाल, परवाह, लड़ना-मनाना व छोटी मोटी नोंक-झोंक. यह नोंक झोंक भी वहां होती हैं जहाँ प्यार होता है.

जीवनसाथी, जीवन की ऐसी आवश्यकता है, जिसे किसी भी कीमत पर नकारा नहीं जा सकता . वह आपको सहज महसूस कराने के लिए सब कुछ करेगा. आपका साथी हमेशा आपके मुश्किल समय में आपके साथ रहेगा . वो  हर कठिन परिस्थिति में आपके ठीक पीछे खड़ा होगा . आपका जीवनसाथी मृत्यु तक आपकी हर चीज का ख्याल रखेगा. सच्चाई ये है की जीवनसाथी के बिना जीवन बिलकुल अधूरा है

सब अपना अपना नसीब साथ लेकर आते हैं .इसलिए कुछ समय अपने लिए भी निकालो . जीवन अपना है ,जीने के तरीके भी अपने रखो .शुरुआत आज से करो क्यूंकि कल कभी नहीं आएगा.

“कभी कभी किसी से ऐसा रिश्ता बन जाता है कि हर चीज़ से पहले उसी का ख्याल आता  है”

कही ईगो न बन जाए आपके रिश्ते के टूटने का कारण

“राजेश क्या तुम अपने पहने कपड़ों को सही जगह नहीं रख सकते? लांड्री बैग है, फिर क्यों सब बिखरा पड़ा है? मैं और कितना करूँगी”!

राजेश  कहता है, “अजीब बात है, मैं ऑफिस से थका हुआ घर आया हूँ, तो एक कप चाय पूछने के बजाए तुम कपड़ों को लेकर झगड़ रही हो! माँ सही कहती थी, तुम कभी मेरी सही पत्नी नहीं बन सकती!”

ऐसे छोटे छोटे झगड़ों से ही रिश्ते में तनाव आता है. गौर करें ‘सही’ शब्द पर. आखिर ‘सही’ की परिभाषा क्या है? ये समझ ना पाने की वजह से ही रिश्ते टूटते हैं. इंसान क्यों शादी जैसे पाक रिश्ते को तोड़ना चाहता है, और कैसे हम इसे बचा सकते हैं?

1. क्रोध बुरा है

अपने गुस्से को खुद पर हावी न होने दें. मतभेद होंगे, झगड़ा होगा, एक दूसरे पर कभी कभी गुस्सा भी आएगा, पर अपने गुस्से से अपने प्यार को मिटने न दें.

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2. बात करना ज़रूरी है

अगर आप बात नहीं करेंगे, तो एक दूसरे के नज़रिये को समझ नहीं पाएंगे, और इससे, गलतफहमियां बढ़ सकती है. इसलिए, समस्या जो भी है, गुस्सा है, मलाल है, तो बता दीजिये. बैठ कर उस पर विचार करें, तो मन हल्का हो जाएगा, और मुश्किलें आसान हो जाएँगी.

3. सुनने और समझने की कोशिश करें

नमन वैसे तो शांत इंसान था, लेकिन हर दिन घरवालों की शिकायत से वह तंग आ गया था. वह अपने घरवालों को जानता था, उनसे जुड़ी समस्या को भी समझता था, पर सपना की बात को सुनना नहीं चाहता था. समस्या से मुंह फेरना, समस्या का हल नहीं है. सपना गलत नहीं थी. वह घर में नई थी, और उसे कई नई परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा था, और ऐसे में वह नमन को छोड़ किसे बताती? इसलिए अपने साथी की बात को सुने, उनका सहारा बने. उनसे बहस करना ज़रूरी नहीं है, समझाया बाद में भी जा सकता है.

4. खुद को उनकी जगह रख कर सोचें

ये पति पत्नी दोनों पर लागू होता है, कि बहस के वक़्त, वे खुद को एक दूसरे की जगह रख कर सोचें. अगर सपना ऐसा करती तो वह समझ पाती कि घरवालों की निंदा हमेशा नमन को सुनना पसंद नहीं होगा.

5. अपने साथी पर का दबाव न डालें

हम अकसर अपने साथी को सर्वोत्तम समझने लगते हैं, और चाहते हैं, की वह हमारी तरह सोचें और करें, पर सब अलग व्यक्ति है, मत अलग है, तो ये आशा न करें कि आपका साथी आपकी तरह सोचेगा.

6. साथी बने, अभिभावक नहीं

पत्नियां सोचती हैं, कि वे अपने पति को बदल देंगी, पर इसकी ज़रूरत क्या है? मोबाइल चेक करना, हर बात पर टोकना, घर से बाहर जाते वक़्त रोकना, ये हरकतें, आपको उनके दिल से  दूर कर सकती हैं . उन्हें अपनी ज़िन्दगी जीने दें, अगर कोई आदत उनके लिए हानिकारक है, तो उन्हें सही तरह से समझाएं.

पति को भी समझना चाहिए की उनकी पत्नी एक पूर्ण महिला हैं, और उन्हें अपनी जिम्मेदारी और फैसले लेना आता है. तो उनके साथी बने, अभिभावक नहीं.

7. साथ में फैसले करें

इससे हर साथी खुद को ख़ास और महत्वपूर्ण महसूस करेगा, और आपके रिश्ते पर अच्छा असर पड़ेगा.

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8. ईगो को छोड़ दें

“मैं क्यों आगे जा कर बात करूँ, उसने झगड़ा किया है, उसे माफ़ी मांगनी चाहिए, अगर उसे परवाह नहीं, तो मुझे भी नहीं”, ऐसी मनोवृत्ति रखने का कोई फायदा नहीं. उन्हें हो न हो, आपको उनकी ज़रूरत है, ये आप समझें, अगर आप कहते हैं, “परवाह नहीं”, तो आप खुद को धोखा  दे रहे हैं.

इस लिए ईगो को छोड़ दें, और खुद आगे बढ़ कर रिश्ते में सुधार लाएं, और अपनी शादी को बचाएं.

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