फूल सा नाजुक और खूबसूरत है सास बहू का रिश्ता

सास बहू का रिश्ता हमेशा से ही थोड़ा उलझा माना गया है मगर ऐसा है नहीं. बाकी सभी रिश्तों की तरह यहां भी समझदारी की ही जरूरत होती है. जितना एक लड़की के लिए ससुराल नया होता है उतना ही ससुराल वालों के लिए बहू को समझना.. सभी के लिए एक नयी शुरुआत होती है और समझने के लिए वक़्त चाहिए होता है.

हर व्यक्ति की सोच और व्यवहार अलग होता है और ये सब कुछ परिवार पर निर्भर करता है. जब भी हम बहू लाते हैं या बेटी देते हैं तो ये भी ध्यान में रखना चाहिए कि नए परिवार की सोच समझ कुछ न कुछ जरूर मिलती हो तो सामंजस्य करने में आसानी होती है और आने वाले नए मेहमान को पूरा समय देना चाहिए कि वो बेहतर समझ बना सकें.

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बहू जब ससुराल आती है तो उसकी बहुत सारी उम्मीदें और इच्छाएं होती है और साथ ही अंजाना डर भी.. ठीक उसी तरह सास और परिवार के अन्य लोग भी उम्मीदे लगाए होते हैं कि बहू उनके सोच और समझ के अनुसार ही रहे, खाए पिये.. यही उम्मीदें कभी कभी अनबन का कारण भी बन जाती है.. एक लड़की जिसने अपने 25-26 साल अपने हिसाब से परिवार में लाड़ दुलार में जिए है वो रातों इतनी समझदार नहीं हो सकती कि एक नए परिवार और उनकी तौर तरीके को सीख कर उनके अनुसार जिम्मेदारी ले ले. किसी भी नयी चीजें को समझने और उसे आत्मसात करने में वक़्त लगता है ठीक उसी तरह नए रिश्तों को समझने और महसूस करने में भी समय लगता है.

वैसे तो टेक्नोलॉजी और बदलते समय के साथ शादी से पहले न केवल लड़का लड़की बल्कि परिवार वाले भी मिलते जुलते रहते हैं तो थोड़ा समझ एक दूसरे के लिए विकसित हो जाती है मगर फिर भी घर में सभी को शुरू में सरल और सहज बर्ताव करना चाहिए. ये बात समझने की है कि जितना अटपटा बहू की बातों और आदतों से ससुराल पक्ष को लगता है उतना ही लड़की को भी सभी कुछ नया और अलग देखकर लगता है. दोनों ही पक्ष को समझने और एक दूसरे को वक़्त देने की जरूरत होती है.. घर का माहौल सरल रखें ताकि किसी को भी असुविधा होने पर स्वस्थ्य बात की जा सकें. सभी की अपनी कुछ आदतें होती है जिसे हम हमेशा फालो करना चाहते हैं.. बहू अगर कुछ ऐसा करती है तो जबरन दबाव डालकर न रोके अगर उसकी कोई खास इच्छा या शौक हो तो उसे पूरा करने दे तभी वो सबको अपना समझ पाएगी.. . ठीक उसी तरह हर परिवार के अपने कुछ मान्यताएं, रिवाज होते हैं जिसे सभी करते हैं और बहू से भी सीखने की उम्मीद की जाती है.. बहू को इसे सीखने, समझने की कोशिश करनी चाहिए ताकि वो खुद परिवार का हिस्सा बनकर पारिवारिक परंपराओं को आगे बढ़ा सकें.

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रिश्तों में स्पेस देना भी बहुत जरूरी है, एक बेटा जो अभी तक मां के अनुसार ही चल रहा होता है शादी के बाद एक लड़की के आ जाने से काफी वक़्त साथ ही गुज़ारतेहैं.. इससे कभी कभी मां के मन में असुरक्षा की भावना आने लगती है और ये चिढ़ कई  बार बात बात पर टोक कर या तानें के रूप में बाहर आती है.. यहाँ मां के साथ साथ बहू को भी समझना होगा.. माँ को अब लाड़ प्यार बहू बेटे को साथ करना चाहिए वहीं बहू को ध्यान रखना चाहिए कि माँ बेटे के बीच वो दरार की वजह न बनें और माँ बेटे की आपसी बातचीत को न बुरा माने और न ही हस्तक्षेप करें.. अगर कुछ मन मुटाव होता भी है तो इस पर खुल कर बातचीत कर लेनी चाहिए. नए घर में रहने और परिवार के रख रखाव और जिम्मेदारियों को जितना बेहतर सास बता, समझा सकती है उतना कोई भी नहीं.. नए परिवार में सास बहू का रिश्ता माँ बेटी से बढ़कर ही होना चाहिए जिसमें प्यार दुलार, नोक झोक और एक दूसरे को सुविधा देने की भावना होनी चाहिए.

बेवजह शक के 6 साइड इफैक्ट्स

पार्टी खत्म होते ही कावेरी हमेशा की तरह मुंह फुलाए पति संदीप के आगेआगे चलने लगी. कार में बैठते ही उस ने संदीप के सामने सवालों की झड़ी लगा दी, ‘‘मिसेज टंडन जब भी मिलती हैं, तब आप को देख कर इतना क्यों मुसकराती हैं? टंडन साहब के सामने तो वे मुंह बनाए रखती हैं… नेहा ने आप को मिस्टर हैंडसम क्यों कहा और अगर कह भी दिया था तो आप को क्या जरूरत थी सीने पर हाथ रख मुसकराते हुए सिर झुकाने की? और ये जो आप की असिस्टैंट सोनाली है न उस की तो किसी दिन उस के ही घर जा कर अच्छी तरह खबर लूंगी. अपने हसबैंड को घर छोड़ कर पार्टी में आ जाती है और बहाना यह कि उन की तबीयत ठीक नहीं रहती. दूसरों के पति ही मिलते हैं इसे चुहलबाजी करने के लिए?’’ कावेरी का बड़बड़ाना लगातार जारी था.

2 साल पहले कावेरी की शादी हुई थी तो संदीप जैसे स्मार्ट और हैंडसम पति को पा कर उस के पांव जमीन पर नहीं टिकते थे. मगर कुछ दिनों बाद ही उस की सारी खुशी हवा हो गई. अब संदीप के इर्दगिर्द किसी महिला को देख तिलमिला उठती है. असुरक्षा की भावना से घिर कर संदीप से ही झगड़ा करने लगती है.

कावेरी की ही तरह नताशा भी अपने पति रितेश की स्मार्टनैस को अपनी सौतन समझने लगी है, क्योंकि रितेश की स्मार्टनैस ने उस का चैन छीन लिया है. उसे लगता है कि रितेश अपने स्मार्ट होने का फायदा उठा रहा है. कोई चाहे कुंआरी हो या शादीशुदा सब से मेलजोल बढ़ाता है.

नताशा तो रितेश को किसी महिला से बात करता देख सब के सामने ही झगड़ना शुरू कर देती है. अपनी इज्जत बचाने की खातिर रितेश अपने मित्रों  की पत्नियों द्वारा की गई ‘हैलो,’ ‘नमस्ते’ का जवाब देने से भी कतराता है. जब वह नताशा के साथ होता है तो उसे बेहद सतर्क रहना पड़ता है. नताशा के बेबुनियाद शक ने रितेश की सोशल लाइफ लगभग समाप्त कर दी है.

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नताशा और कावेरी की तरह ही न जाने ऐसी कितनी पत्नियों के उदाहरण मिल जाएंगे जो अपने पति पर किसी महिला की नजर केवल इसलिए सहन नहीं कर पातीं कि उन का पति उन के मुकाबले अधिक आकर्षक दिखाई देता है. ऐसे में किसी भी महिला के करीब आने का दोषी वे पति को भी मानते हुए उस पर शक करने लगती हैं.

संदेह के दुष्प्रभाव

1. दांपत्य जीवन तनावग्रस्त:

कोई भी पति अपनी पत्नी द्वारा बिना वजह लगाए गए लांछन सहन नहीं करेगा. इस का परिणाम यह होगा कि दोनों के बीच लड़ाईझगड़े होते रहेंगे. ऐसे में दांपत्य जीवन में प्रेम व शांति के स्थान पर तनाव हावी हो जाएगा.

2. आत्मविश्वास में कमी:

यदि पतिपत्नी आत्मविश्वास से लबरेज होंगे तो दोनों का मन खुश रहेगा और वे एकदूसरे के साथ सुखद समय व्यतीत कर पाएंगे. किंतु पत्नी द्वारा बेबुनियाद शक पति के आत्मविश्वास में कमी ले कर आएगा. वह समझ ही नहीं पाएगा कि उस ने क्या गलत किया जो क्लेश का कारण बन गया. पत्नी भी स्वयं को अन्य महिलाओं की तुलना में हीन आंक कर कुंठाग्रस्त हो जाएगी.

3. बच्चों की मानसिकता पर प्रभाव:

बच्चों की उचित देखभाल के लिए मातापिता में समयसमय पर सलाहमशवरा बेहद जरूरी है, किंतु निरंतर शक के कारण पतिपत्नी के बीच बढ़ी दूरी बच्चों के विषय में चर्चा करने के अवसर न दे कर आपस के निराधार मसले सुलझाने को बाध्य करती रहेगी, जिस से बच्चों की मानसिकता प्रभावित होगी.

4. सामाजिक मेलजोल में कमी:

बेकार का शक पति को किसी भी सामाजिक समारोह में जाने से रोक देगा. वह इस बात से डरता रहेगा कि किसी भी महिला का उस की और मुसकरा कर देखना घर में तूफान ला सकता है. इसी तरह पत्नी भी सोशल गैदरिंग से बचने लगेगी. पति का हैंडसम होना उस की नजरों में अपने लिए एक नई परेशानी खड़नी करने जैसा हो जाएगा.

5. पति लेने लगता है झूठ का सहारा:

शक के कारण कुछ पत्नियां औफिस तक पति का पीछा करती हैं. वहां वह किस महिला सहकर्मी को कितनी अहमियत देता है, किसकिस के साथ हंस कर बातें करता है तथा अपनी सैके्रटरी के साथ कितना समय बिताता है, इन सब बातों की जानकारी बातोंबातों में पति से लेती रहती हैं. आपस में किसी भी बात पर जब जरा सी भी बहस होती है तो वे उन सब के नाम पति के साथ जोड़ कर उसे नीचा दिखने लगती हैं. परेशान हो कर धीरेधीरे पति सबकुछ सच न बता कर झूठ बोलने लगते हैं.

6. आत्महत्या की नौबत:

लखनऊ में एक भूतपूर्व सैनिक ओमप्रकाश की पत्नी को शक रहता था कि उस के पति का किसी अन्य महिला के साथ अनैतिक संबंध है. पति ने इस बेबुनियाद शक को दूर करने का पूरापूरा प्रयास किया. मगर पत्नी का शक दूर न कर पाया तो खुद को गोली मार कर उस ने अपना जीवन समाप्त कर लिया.

स्वयं को समाप्त कर देने का विचार पतिपत्नी के मन में आए या न आए, किंतु यह तो सत्य है कि संदेह से जन्मा क्लेश दांपत्य जीवन को नर्क अवश्य बना देता है. जब मन में संदेह के बीज पनप रहे हों तो पत्नी को ये बातें ध्यान में रखनी चाहिए.

एक स्मार्ट पति पा कर पत्नी को खुश होना चाहिए. यदि ऐसे व्यक्ति ने उसे पसंद किया है तो यकीनन उस में कुछ खासीयत तो होगी ही. इस बात को वह मन में बैठा ले तो स्वयं को किसी से कम नहीं आंकेगी और तब पति का किसी महिला से बात करना उसे नहीं खलेगा.

पति के हैंडसम होने पर हीनभावना से ग्रस्त होने के बजाय पत्नी को चाहिए कि वह अपने सौंदर्य को निखारने का प्रयास करे. इस के लिए विभिन्न पत्रपत्रिकाओं व यूट्यूब के माध्यम से मेकअप के नएनए टिप्स जान कर उन्हें अपनाया जा सकता है. भिन्नभिन्न प्रकार के नएनए ब्यूटी प्रोडक्ट्स बाजार में व औनलाइन उपलब्ध हैं, जिन की मदद से खुद को आकर्षक बनाया जा सकता है.

अपने पति के आसपास मंडराती हुई महिलाओं की ओर मुंह फुला कर देखते हुए पति को मन ही मन कोसने से अच्छा है कि उन महिलाओं से खुल कर हंसते हुए बातचीत करने का प्रयास किया जाए. इस प्रकार घुलनेमिलने से वे महिलाएं एक पारिवारिक मित्र की तरह लगने लगेंगी.

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अपने गुणों को पहचान कर उन्हें निखारना शुरू करें. मसलन, यदि पत्नी खाना अच्छा बनाती है तो मेहमानों, अपने व पति के मित्रों के आने पर नईनई डिशेज बना कर खिला सकती है. जब उस के स्वादिष्ठ खाने की चर्चा सब के बीच होगी तो वह स्वयं को उच्चतर महसूस करेगी. इसी प्रकार आवाज अच्छी होने पर किसी भी गैटटूगैदर में गाना गाने में हिचक महसूस न करें.

यदि संदेह से घिरी पत्नी टच में रहना ही चाहती है, तो पति की महिलामित्रों की जानकारी देने वाले लोगों के स्थान पर अच्छीअच्छी पत्रिकाओं, ज्ञानवर्धक व मनोरंजक वैबसाइट्स तथा व्हाट्सऐप पर अपने पुराने दोस्तों के टच में रहे. इस से नईनई जानकारी मिलने से उस की पर्सनैलिटी में निखार आएगा तथा मन खुश रहने से तनाव भी नहीं होगा.

इसी तरह अपनी पत्नी के शक्कीमिजाज का सामना करने के लिए पति भी रखे इन बातों का ध्यान:

पत्नी द्वारा बिना वजह शक व्यक्त किए जाने पर स्वयं को नियंत्रित रखें. गुस्से में या चिल्ला कर जवाब देने से पत्नी को लगेगा कि पति उसे कोई महत्त्व ही नहीं देना चाहता. यदि पत्नी सब के सामने झगड़ा करने लगे तो वहां चुप रह कर उसे बाद में समझाए और एहसास करवाए कि  वह सब के सामने उसे बेइज्जत नहीं करना चाहता. शक से घिरी पत्नी को पति से मिला सम्मान अपना नजरिया बदलने में मदद करेगा.

पत्नी की प्रशंसा करने में कंजूसी न करें. जब वह कुछ नया पहने या बाहर जाने के लिए तैयार हो तो तारीफ के 2 बोल जरूर बोलें.

पत्नी को समयसमय पर याद दिलाते रहना चाहिए कि शारीरिक सौंदर्य ही सबकुछ नहीं है. पत्नी के कुछ खास गुणों की तारीफ करते हुए कहें कि उस में सच में ऐसे गुण हैं, जो उस ने आज तक किसी भी सुंदरी में नहीं देखे.

समयसमय पर पत्नी के साथ घूमने का कार्यक्रम बनाएं. कभी रैस्टोरैंट में डिनर आदि का तो कभी वीकैंड पर आसपास की जगह जा कर 1-2 दिन बिताने का. वहां मस्ती के मूड में डूब कुछ तस्वीरें खींच कर फेसबुक पर पोस्ट की जा सकती हैं या व्हाट्सऐप स्टेटस के रूप में भी डाली जा सकती हैं. यदि कैप्शन ‘माई लवली वाइफ ऐंड आई’ जैसी हो तो सोने में सुहागा हो जाएगा.

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बौलीवुड मौम्स से जानें कैसे रखें प्रौफेशन और फैमिली लाइफ में बैलेंस

बौलीवुड एक्ट्रेसेस जितना अपने काम के लिए समय निकालना जानती हैं उतनी ही अपनी फैमिली के साथ क्वौलिटी टाइम भी बिताना जानती हैं. वहीं आम महिलाओं की बात करें तो वे अपने बच्चों और घरगृहस्थी के बीच बैलेंस बनाने में लगी रहती है. इस कशमकश में कई बार वह मेंटली डिस्टर्ब हो जाती हैं. उनमें चिड़चिड़ापन बढ़ने लगता है, जो कई बार उसे परिवार और बच्चों से दूर ले जाता है. पर आज हम आपको कुछ ऐसी सेलेब्स मौम्स के बारे में बताएंगे जो फिट रहने के साथ-साथ अपनी फैमिली को भी समय देती हैं. साथ ही अपनी खुबसूरती का भी ख्याल रखती हैं.

1. करीना और तैमूर का रिश्ता है अनमोल

 

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Celebrate lolo’s birthday ??? @therealkarismakapoor @thesamairakapur

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बौलीवुड मौम्स में इन दिनों एक्ट्रेस करीना कपूर खान और उनके बेटे तैमूर खान लोगों के बीच काफी पौपुलर हैं. करीना अपनी फिल्मों को लेकर जितना बिजी रहती हैं उतना ही वह अपनी फैमिली और बेटे तैमूर के साथ वक्त बिताती हैं. हाल ही में करीना अपने पति सैफ अली खान के साथ बेटे को लेकर वेकेशन मनाती नजर आईं थीं. इसीलिए हर फैमिली को थोड़े-थोड़े वक्त में घर से बाहर घूमने जाना चाहिए ताकि उनकी फैमिली में एक खास रिश्ता हमेशा कायम रहे.

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2.  सोहा भी देती है फैमिली को महत्व

 

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A very happy mother ?❤️#happymothersday

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एक्ट्रेस सोहा अली खान भले ही बौलीवुड फिल्मों से दूर हों, लेकिन वे फिटनेस और रैम्प वौक का भी हिस्सा बनी रहती हैं. इसके बावजूद वे अपनी बेटी और पति के साथ टाइम स्पैंड करना नही भूलती. वे हर कोशिश करती हैं कि अपनी बेटी के साथ वे हर कदम पर रहें. इसीलिए महिलाओं को अपने बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहिए ताकि वे तनाव से दूर रह सकें.

3. समीरा रेड्डी रहती हैं हमेशा एक्टिव

समीरा रेड्डी हाल ही में एक बेटी की मां बनी हैं, लेकिन इस बजह से वह अपने बेटे से बिल्कुल भी दूर नही हुईं हैं. वे हर तरह से अपने बेटे के साथ समय बिताना पसंद करती हैं ताकि उनके बेटे के अंदर अपनी बहन के लिए जलन का इमोशन न आए. इसीलिए अगर आप मा बनने वाली हैं तो भी अपने पहले बच्चे पर जरूर ध्यान देना चाहिए ताकि वे आपसे या फैमिली से दूर न हो जाए.

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जानें वो 9 बातें जिन्हें पुरुषों को भी समझना चाहिए

आज भले ही महिलाएं आत्मनिर्भर हो गई हों, पुरुषों के साथ कदम से कदम मिला कर चलने लगी हों, लेकिन कुछ मामलों में आज भी उन की वही धारणा है, जो पहले हुआ करती थी, जैसे पैसे को ही ले लीजिए. महिलाएं आज भी खर्च से ज्यादा बचत करने पर विश्वास रखती हैं. अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना उन्हें आज भी आता है. अब तो कुछ जगहों पर महिलाएं पूंजी निवेश में भी विश्वास रखती हैं.

इस संबंध में श्री बालाजी ऐक्शन अस्पताल की वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. शिल्पी आष्टा का कहना है, ‘‘आज भी महिलाओं की सोच कुछ मामलों में पुरुषों से बिलकुल विपरीत है. पुरुष भविष्य से ज्यादा खुशहाल वर्तमान पर विश्वास रखते हैं, जबकि महिलाएं हर काम भविष्य को ध्यान में रख कर करती हैं और पुरुषों से भी यही अपेक्षा करती हैं कि वे भी इस बात को समझें.

‘‘महिलाएं जोखिम भरे काम से बचना चाहती हैं, खासतौर पर पूंजी को ले कर. इसीलिए वे पूंजी को सोने या चांदी जैसी चीजों पर निवेश करना ज्यादा उचित समझती हैं, जबकि पुरुष ज्यादा मुनाफे के लिए शेयर मार्केट या म्यूचुअल फंड जैसे प्लान में पैसे इनवैस्ट करना ज्यादा उचित समझते हैं, जोकि जोखिम भरा होता है. इसीलिए महिलाएं पुरुषों से चाहती हैं कि वे प्रौपर्टी, सोना या चांदी में पूंजी निवेश करें अथवा बैंक में पैसा जमा कर के लाभ उठाएं.’’

1. पुरुष भी अपनाएं बजट प्लान

महिलाओं को होम फाइनैंस मिनिस्टर भी कहा जाता है और यह सच भी है, क्योंकि भले ही एक पुरुष पैसा कमा कर अपनी मां या पत्नी को देता हो, लेकिन उसे संभालने का गुण महिलाओं के ही हाथ में है. इसलिए महिलाएं चाहे कामकाजी महिलाएं हों या फिर गृहिणियां, वे अपने परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत बनाए रखने के लिए बजट के अनुसार चलना पसंद करती हैं, ताकि भविष्य में उन की आर्थिक स्थिति गड़बड़ाए नहीं. इसीलिए महिलाएं पुरुषों से भी यही चाहती हैं कि वे भी बजट के अनुरूप चलें.

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2. बच्चों की ऐजुकेशन प्लानिंग हो

शिक्षा इतनी महंगी हो चुकी है कि हर मातापिता के लिए उसे अफोर्ड कर पाना आसान नहीं है. पुरुषों से ज्यादा यह डर महिलाओं को सताता है कि कहीं वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने से पीछे न रह जाएं. आजकल बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए यह जरूरी हो गया है कि पहले से योजना बना कर चला जाए.

3. शादी की प्लानिंग

बढ़ती महंगाई में बच्चों की शादी भी महिलाओं के लिए चिंता का विषय है, खासतौर पर बेटियों की. यह चिंता कामकाजी महिलाओं से ले कर गृहिणियों तक की होती है. इस बारे में इंटरनैशनल मार्केटिंग मैनेजर के पद पर कार्य कर रही रविता बालियान का मानना है, ‘‘भले ही आज महिलाएं पुरुषों के कदम से कदम मिला कर चल रही हों, फिर भी अपनी जिम्मेदारियों को ले कर आज भी उन की वही भूमिका है, जो पहले हुआ करती थी. लेकिन बच्चों के जन्म के साथ उन की शादी की चिंता केवल मां को ही नहीं, बल्कि पिता को भी होनी चाहिए. बच्चों की शादी को ले कर कई ऐसे इंश्योरैंस प्लान भी मौजूद हैं, जिन्हें करा लिया जाए, तो उन की शादी के समय काफी आसानी होगी.’’

4. प्राथमिकताओं को महत्त्व दें

29 वर्षीय जयश्री रस्तोगी हाउसवाइफ हैं. पिछले 5 सालों से पूरे परिवार के साथ किराए के मकान में रह रही हैं. हर महिला की तरह उन का भी यह सपना है कि खुद का मकान हो, लेकिन उन के पति की इच्छा है कि पहले उन्हें कार लेनी चाहिए. जयश्री का मानना है कि अगर वे ईएमआई पर अभी घर ले लेंगे, तो भविष्य में किराए के पैसे बच जाएंगे, जिन्हें वे अपने बच्चों की पढ़ाईलिखाई पर खर्च कर सकते हैं. इस तरह की विपरीत सोच कई बार उन के बीच बहस का मुद्दा भी बन चुकी है.

महिलाएं यह बात भलीभांति समझती हैं कि भविष्य में बढ़ने वाली जिम्मेदारियों के साथ घर खरीदना मुश्किल होता जाता है. इसलिए वे पुरुषों से भी यही अपेक्षा रखती हैं कि वे भी इस बात को समझें.

5. निवेश में महिलाओं की भी राय लें

डा. शिल्पी का कहना है, ‘‘महिलाएं खुद के भविष्य के बारे में भी सोचने लगी हैं. इसीलिए वे चाहती हैं कि पुरुष जहां भी पैसे निवेश कर रहे हों, उस के बारे में उन्हें भी पता होना चाहिए ताकि भविष्य में किसी भी तरह की जरूरत पड़ने या पति के न रहने पर वे उन चीजों को संभाल सकें, अपने बच्चों का भविष्य खराब होने से बचा सकें.’’

6. होम मैंटेनैंस

जब बात होम मैंटेनैंस की आती है, तो महिलाएं इस में पैसे खर्च करने से पीछे नहीं हटती हैं, लेकिन पुरुषों को उन की यह आदत उन का शौक लगता है. लेकिन यह उन के शौक से ज्यादा जरूरत होती है, क्योंकि हर महिला चाहती है कि भले हाईफाई नहीं, फिर भी उन के परिवार का कुछ तो लाइफस्टाइल मैंटेन हो. इस सब का बच्चों के जीवन पर भी प्रभाव पड़ता है.

7. घर खर्च पुरुष ही उठाएं

महिलाएं अपना पैसा भविष्य के लिए जमा कर के रखती हैं ताकि भविष्य में आने वाली जरूरतों को आसानी से पूरा कर सकें. लेकिन कई बार महिलाओं के इस व्यवहार को पुरुष उन का लालच समझने लगते हैं. कई पुरुषों का तो यह भी कहना होता है कि जब पैसा दोनों ही कमा रहे हैं, तो फिर घर खर्च कोई एक ही क्यों उठाए? पुरुषों की इस तरह की सोच दांपत्य जीवन के लिए गलत भी साबित हो सकती है.

8. पर्सनल हैल्थ पौलिसी भी है जरूरी

25 वर्षीय एकता त्रिवेदी जोकि स्नैपडिल कंपनी, दिल्ली में एचआर के पद पर कार्य कर रही हैं, का कहना है, ‘‘जब से ईएसआई या नौकरी के दौरान मिलने वाली मैडिकल पौलिसियां आई हैं, तब से पुरुषों का पर्सनल हैल्थ पौलिसी की तरफ रुझान बहुत कम हो गया है. भले ही इन पौलिसियों में पूरे परिवार के लिए सुविधा हो, लेकिन वे इस बात को भूल जाते हैं कि ये पौलिसियां केवल तब तक हैं, जब तक कि आप की नौकरी है. इसलिए पुरुषों को अपने परिवार के भविष्य को ध्यान में रखते हुए पर्सनल हैल्थ पौलिसी में भी पैसा निवेश करना चाहिए ताकि बुढ़ापा सुखदायी हो.’’

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9. जरूरी नहीं हैं महंगी चीजें

आंचल गुप्ता, जो ल्यूपिन में मार्केटिंग ऐग्जीक्यूटिव के पद पर काम कर रही हैं, उन का कहना है, ‘‘मेरे पति को घूमने का बहुत ही ज्यादा शौक है. इसीलिए वे पूरे परिवार के साथ हर साल लंबे ट्रिप पर जाते हैं, जिस में अच्छाखासा पैसा खर्च हो जाता है. कम पैसों में हम अपने शहर या उस के आसपास की जगहों पर भी जा कर घूमने का मजा ले सकते हैं. इस से मौजमस्ती के साथसाथ पैसे भी बच जाएंगे. लेकिन मेरे पति को मेरी यह बात कंजूसी लगती है. जबकि पुरुषों को इस बात को समझना चाहिए, क्योंकि महिलाएं बचत खुद के लिए नहीं, बल्कि अपने परिवार के लिए करती हैं.’’

करते हैं प्यार पर शादी से इनकार क्यों?

4साल की लंबी कोर्टशिप के बाद जब नेहा और शेखर ने अचानक अपनी दोस्ती खत्म कर ली तो सभी को बहुत आश्चर्य हुआ. ‘‘हम सब तो उन की शादी के निमंत्रण की प्रतीक्षा में थे. आखिर ऐसा क्या घटा उन दोनों में जो बात बनतेबनते बिगड़ गई?’’ जब नेहा से पूछा तो वह बिफर पड़ी, ‘‘सब लड़के एक जैसे ही होते हैं. पिछले 2 साल से वह मुझे शादी के लिए टाल रहा है. कहता है, इसी तरह दोस्ती बनाए रखने में क्या हरज है? असल में वह जिम्मेदारियों से दूर भागने वाला, बस, मौजमस्ती करने वाला एक प्लेबौय किस्म का इनसान है. आखिर मुझे भी तो कोई सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा चाहिए.’’

दूसरी ओर शेखर का कुछ और ही नजरिया था, ‘‘मैं ने शुरू से ही नेहा से कह दिया था कि हम दोनों बस, इसी तरह एकदूसरे को प्यार करते हुए दोस्ती बनाए रखेंगे. मुझे शादी और परिवार जैसी संस्थाओं में विश्वास नहीं है. उस वक्त तो नेहा ने खुशी से सहमति दे दी थी, लेकिन मन ही मन वह शादी और बच्चों की प्लानिंग करती रही और जबतब मुझ पर शादी के लिए दबाव डालना शुरू किया तो मैं ने उस से संबंध तोड़ लिया.’’

पुरुषों के बारे में धारणा

आमतौर पर पुरुषों के बारे में स्त्रियों का यही नजरिया रहा है कि वे किसी एक के प्रति निष्ठावान हो कर समर्पित नहीं होते हैं. वे एक गैरजिम्मेदार, मौजमस्ती में यकीन करने वाले मदमस्त भौंरे होते हैं, किंतु अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि इस आरोप की जड़ें बहुत गहरी हैं. इस की मुख्य वजह है पुरुष और स्त्री की बुनियादी कल्पनाओं का परस्पर भिन्न होना. पुरुष की प्रथम कल्पना होती है अधिक से अधिक सुंदर स्त्रियों के साथ दोस्ती करना. दूसरी ओर अधिकांश स्त्रियों की कल्पना होती है किसी एक ऐसे पुरुष के साथ निष्ठापूर्वक संबंध बनाना, जो उन्हें आर्थिक और सामाजिक संरक्षण दे सके. विवाह के बाद जहां एक स्त्री की प्रथम कल्पना को और पोषण मिलता है वहीं पुरुष को अपनी कल्पना को साकार करने का अवसर जाता दिखता है. अत: एक पुरुष के लिए जहां समर्पण का अर्थ अपनी प्यारी कल्पना का त्याग करना है वहीं स्त्री के लिए समर्पण का अर्थ है अपनी बुनियादी कल्पना को साकार करना. शायद इसीलिए समर्पित होना या किसी बंधन में बंधना पुरुषों के लिए उतना आसान नहीं होता जितना स्त्रियों के लिए.

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कुछ तो मजबूरियां

एक औरत, जो स्वावलंबी हो उसे हम कैरियर विमन कहते हैं, लेकिन यदि पुरुष स्वावलंबी हो तो उसे हम प्लेबौय, जिम्मेदारियों से कतराने वाला कहते हैं. यह जो धारणा बनी है, उस के पीछे पुरुषों के विकास और उन के मनोविज्ञान को समझना बहुत जरूरी है. हमारे यहां लाखों रुपए ऐसे विज्ञापनों पर खर्च किए जाते हैं, जो एक किशोर बालक के अर्धविकसित मस्तिष्क में एक जवान खूबसूरत और विकसित औरत की चाहत भर देते हैं. नतीजतन 14-15 साल की उम्र तक पहुंचतेपहुंचते वह सुंदरियों की कल्पनाओं का आदी हो जाता है और फिर उसे एक नशीली लत लग जाती है. ऐसे में वह अपनी कल्पना की परी से अपनेआप को बहुत हीन महसूस करने लगता है. फिर जद्दोजहद शुरू होती है अपनेआप को बेहतर बनाने की. स्कूल में वह देखता है कि जो विजेता है, हीरो है, लड़कियां उसी के आसपास होती हैं. अत: उन का सामीप्य पाने के लिए वह हर क्षेत्र में हीरो बनने के लिए हाथपैर मारता है. इस कोशिश में वह बहुत मानसिक दबाव में रहता है. एक उम्र तक पहुंचतेपहुंचते वह समझने लगता है कि उसे लड़कियों का दिल जीतने के लिए या तो आर्थिक रूप से सबल बनना है या किसी और क्षेत्र में ‘हीरो’ बनना है. धीरेधीरे वह यह भी समझने लगता है कि ‘प्यार’ शब्द काफी महंगा है. प्यार जहां एक ओर अस्वीकार होने के भय को कम करता है वहीं दूसरी ओर यह पुरुष की जेबों पर आजीवन भार बनने वाला भी होता है. अत: समर्पित होने से पहले उसे बहुत कुछ सोचना पड़ता है.

अस्वीकृत होने का भय

सेक्स के मामले में यदि पुरुष पहल करते भी हैं तो स्त्री द्वारा अस्वीकार कर दिए जाने का भय भी उन्हें लगातार बना रहता है, क्योंकि अमूमन जब कोई पुरुष किसी महिला के प्रति आकर्षित होता है तो उसे (स्त्री को) समझने में देर नहीं लगती कि यह लड़का उस में रुचि रखता है, किंतु पुरुष के लिए अकसर यह समझना कठिन होता है कि उसे स्वीकार किया जाएगा या नहीं. वह इसी दुविधा में रहता है कि हो सकता है उस की महिला मित्र ने उसे इसलिए इनकार न किया हो, क्योंकि वह ‘न’ नहीं कह पाई हो या उसे सिर्फ उस से सहानुभूति हो.

स्त्री चरित्र

हमारे यहां ज्यादातर स्त्रियां दोस्ती तो कर लेती हैं, लेकिन प्रेम के इजहार में वे बहुत कंजूसी बरतती हैं. अकसर पुरुष के प्रत्येक प्रस्ताव पर उन के मुंह से ‘न’ ही निकलता है, चाहे मन में जितनी ही ‘हां’ हो. और जब कोई स्त्री ‘न’ कहती है तो उस के लिए यह अंदाजा लगाना मुश्किल होता है कि उस की प्रेमिका की किस ‘न’ का मतलब ‘हां’ है और फिर उस की ‘न’ को ‘संभावनाओं’ में और ‘संभावनाओं’ को ‘संभवों’ में बदलने की नैतिक जिम्मेदारी बेचारे पुरुष की होती है. वैसे यदि महिलाओं की मूक भाषा का अनुवाद किया जा सके तो पुरुषों के लिए अस्वीकार किए जाने का खतरा शायद कम हो जाए. एक तरफ तो पुरुष लगातार अपनी महिला मित्र की ‘अस्वीकृतियों’ को ‘स्वीकृतियों’ में बदलने की उलझन में रहता है तो दूसरी तरफ उसे यह भी डर लगा रहता है कि यदि वह उस पर ज्यादा दबाव डालता है तो उसे ‘चरित्रहीन’, ‘सेक्सी’ और न जाने क्याक्या समझा जाएगा. साथ ही वह इस उलझन में भी रहता है कि यदि वह उस पर ज्यादा दबाव डालता है तो कहीं वह उस से विरक्त न हो जाए.

महिलाओं की गुप्त योजनाएं

अधिकांश महिलाएं सोचती हैं कि शादी के बाद पुरुष बदल जाएगा, जबकि वह कम ही बदलता है. इसलिए वे मन ही मन अपने हिसाब से भविष्य के कार्यक्रम बनाती रहती हैं. नेहा और शेखर के केस में यही बात थी. शेखर के शादी न करने के निर्णय के बावजूद नेहा ने मन ही मन शादी की सारी तैयारी यह सोच कर डाली कि वह बाद में मान जाएगा. जब नेहा ने उस पर दबाव डाला तो शेखर को लगा कि नेहा ने पूरी तरह से न सिर्फ उस की भावनाओं की अपेक्षा की है बल्कि अपने वादे को भी तोड़ा है. ऐसे में भविष्य के प्रति नेहा के व्यवहार को ले कर आशंकित होना शेखर के लिए स्वाभाविक ही था. आज यद्यपि स्त्रियों की आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियां बदल चुकी हैं, अधिकांश महिलाएं आत्मनिर्भर होती जा रही हैं, फिर भी ज्यादातर मामलों में पुरुषों से उन की अपेक्षाएं नहीं बदली हैं. एक स्त्री जितनी अधिक आर्थिक परेशानियों में रहती है वह पुरुष से उतने ही अधिक आर्थिक संरक्षण की अपेक्षा रखती है. ऐसे में एक पुरुष जब अपनी प्रेमिका को यह हिसाब लगाते देखता है कि वह शादी के बाद काम करे या न करे, तब वह सोचता है कि यह लड़की शायद एक खास वजह से शादी करना चाहती है. शायद वह काम करतेकरते थक गई है और नौकरी से छुटकारा पाने के लिए विवाह के रूप में आर्थिक सुरक्षा की चादर ओढ़ना चाहती हो या उस की नौकरी छूटने वाली हो या वह अपने कैरियर से तंग आ कर मां बनना चाहती हो वगैरहवगैरह. ऐसी हालत में पुरुषों के जस्ट इन केस सिंड्रोम से पीडि़त हो कर अपनी महिला मित्र से संबंध खत्म कर लेना कोई अस्वाभाविक बात नहीं है.

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समर्पित पुरुषों की कमी

जहां स्त्रियां पुरुषों पर प्रेम में समर्पित न होने का आरोप लगाती हैं वहीं पुरुषों को भी महिलाओं से बहुत गंभीर शिकायतें होती हैं. उन का मानना है कि अधिकांश महिलाएं अपनी दूरबीन हमेशा कामयाब पुरुषों पर ही रखती हैं. स्कूलकालेज के समय से ही लड़के पाते हैं कि जो लड़के पढ़ाई में अच्छे होते हैं, खेल में भी आगे होते हैं, देखने में भी स्मार्ट होते हैं, साथ ही उन के पास अच्छी बाइक या कार होती है, लड़कियां उन्हीं के इर्दगिर्द चक्कर लगाती हैं. वे चाहती हैं कि पुरुष हर क्षेत्र में कामयाब भी हो और उन के प्रति पूरी तरह समर्पित भी हो. ऐसे में यकीन निष्ठावान पुरुषों की कमी तो होगी ही, क्योंकि अगर पुरुष भी इसी तरह की शर्त रख कर स्त्रियों का चयन करें तो उन्हें भी वफादार स्त्रियों की कमी खलेगी. मसलन, कोई पुरुष यदि ऐसी स्त्री की तलाश में हो जिस की कमाई वह खुद इस्तेमाल कर सके, वह खूबसूरत और आकर्षक भी हो, वह स्वयं प्रस्ताव भी ले कर आए और सेक्स में भी पहल करे तो क्या पुरुषों को ऐसी निष्ठावान स्त्रियों की समस्या नहीं रहेगी? चूंकि पुरुष के लिए समर्पण का अर्थ होता है अपनी बुनियादी कल्पनाओं का त्याग. अत: यदि वह अपनी प्रेमिका में ही अपने सारे सपने साकार कर सके तो वह काफी कुछ परेशानियों से बच सकता है.

इमोशन पर कंट्रोल करना है जरूरी

आज की महिला मल्टी टैलेनटिड है, लेकिन जहां एक ओर दफ्तर में उससे उम्मीद रखी जाती है, वहीं घर को अच्छे ढंग से रखना, बच्चों को समुचित मार्गदर्शन देना, उन्हें प्यार व देखभाल से पालना, पढ़ाई-लिखाई व खेलकूद में सहयोग देना, सोसायटी में पति के कंधे से कंधा मिलाकर चलना, फैमिली और फ्रैंड्स के रिलेशनशिप निभाना जैसे कार्य भी उसी से अपेक्षित होते हैं. ऐसे में शारीरिक व मानसिक थकावट कब तनाव का रूप ले लेती है, पता ही नहीं चलता.

परिस्थिति का मुकाबला

आज जब आप इंटैलिजैंस और अवेयरनैस यानी बुद्धिमत्ता व जागरूकता को अपने व्यक्तित्व का एक अहम पहलू मानती हैं, तो यह अति आवश्यक है कि इमोशनल स्मार्टनैस का भी ध्यान रखें. घर हो या दफ्तर, आप को हर रोज कई तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. याद रखें की विपरीत परिस्थितियां तो रहेंगी, कहीं न कहीं ऐसे लोग भी आप के आसपास रहेंगे, जो सिर्फ दूसरों के लिए परेशानियां और कठिनाइयां उत्पन्न करना ही अपना फर्ज मानते हैं. दफ्तर में बौस अगर आप को बेवजह डांटते हैं या आप के सहकर्मी आप से व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा रखते हैं अथवा किसी प्रोजैक्ट की डैड लाइन तक आप काम पूरा नहीं कर पा रही हैं, तो समस्या की जड़ पर ध्यान दें. यह आप का नितांत व्यक्तिगत निर्णय होता है कि दुख, तनाव और परेशानी में घिर कर रोनाबिसूरना है या शांत व तटस्थ रह कर समस्या का हल ढूंढ़ना है.

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यही इमोशनल स्मार्टनैस है, जिस के अभाव में आप अपनी अक्षमताओं, असफलताओं और बेबसी पर बैठ कर आंसू बहाते हुए सब के सामने ‘इमोशनल फूल’ बन कर रह जाएंगी.

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने वर्ष 2001-2011 के बीच किए अध्ययन में पाया है कि 30 से 45 साल की 36% कामकाजी महिलाएं तनाव और हाई ब्लडप्रैशर की शिकार हैं. इतना ही नहीं, 31% कामकाजी युवा महिलाएं माइग्रेन के अथवा किसी अन्य प्रकार के दर्द की शिकार हैं. 65% दर्द के कारण 6 से 8 घंटे की सामान्य नींद नहीं ले पातीं. 49% पर दर्द की वजह से मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर हो रहा है. वहीं 13% को क्रौनिक दर्द की वजह से नौकरी तक छोड़नी पड़ी है.

नैशनल इंस्टिट्यूट औफ औक्युपेशनल हैल्थ की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 5 सालों में युवाओं की कार्यक्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ा है. मैट्रो शहरों में काम करने वाले पुरुष ही नहीं महिलाएं भी तनाव, अनिद्रा, डायबिटीज और मोटापे का शिकार पाई गई हैं.

आप क्या करें

आप ई क्यू के प्रयोग से कार्यक्षेत्र का तनाव कम करें और इस के लिए अपनाएं आगे बताए जा रहे तरीके:

न कहना सीखें

यह सत्य है कि अधिक योग्य व्यक्ति को ही अधिक जिम्मेदारियां सौंपी जाती हैं. बेशक आप योग्य हैं और सभी कार्य पूर्ण कुशलता से कर सकती हैं. पर कभीकभी ‘न’ कहने की कला भी सीखें. कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता, इस बात को स्वीकारें. बौस की नजरों में ऊपर उठने के लिए क्षमता से अधिक स्ट्रैस लेना ठीक नहीं.

रखें सकारात्मक सोच

कार्यक्षेत्र से जुड़ी समस्याओं से जूझने के लिए हमेशा अपनी सोच को आशावादी और सकारात्मक रखें. दूसरों से मिली आलोचनाओं और अतीत में मिली असफलताओं को स्वयं पर हावी न होने दें.

एकाग्रता बढ़ाएं

जब आप तनावमुक्त और शांत हो कर कोई कार्य करेंगी तभी उस कार्य की गुणवत्ता प्रभावशाली होगी. इसलिए अपने लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित करें और एकाग्रचित्त हो कर बिना इधरउधर की व्यर्थ की बातों पर ध्यान दिए लगन से अपना कार्य करें.

कार्यक्षेत्र की राजनीति से दूर रहें

अकसर कार्यस्थलों में वैचारिक एवं कार्यप्रणाली संबंधी राजनीति हावी रहती है. आप बिना तनाव में आए ध्यानपूर्वक अपना कार्य करें. इमोशनल ब्लैकमेलिंग की राजनीति से बच कर रहें.

बौस के साथ संपर्क में रहें

कार्यक्षेत्र की किसी भी प्रकार की शारीरिक अथवा मानसिक परेशानी सदैव बौस के साथ शेयर करें. अपने क्रियात्मक और व्यावहारिक सुझाव भी बौस के साथ बांटने की हिम्मत रखें. इस से आप की कार्यशैली का पता चलता है.

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यह सदैव याद रखें कि तनाव तो हर कार्यक्षेत्र में होता ही है, किंतु अपनी योग्यता एवं इमोशनल स्मार्टनैस से आप अपने कार्य को सरल एवं तनावमुक्त बना सकती हैं. उसी कार्यकुशलता से आप घर में भी छोटेछोटे प्रयोगों द्वारा अपने कामकाज को सहजता से कर पाने में सक्षम होंगी.

नियमित करें व्यायाम

फिजियोथेरैपिस्ट रजनी कहती हैं कि व्यायाम से ऐंडोर्फिंस में वृद्धि होती है. यह रसायन दिमाग में उल्लास का संचार करता है, जिस से शारीरिक तनाव अपनेआप ही कम हो जाता है. व्यायाम शरीर की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को निर्मित करता है. याद रखें कि मोटापा और वजन कम करना ही व्यायाम का एकमात्र कार्य नहीं होता. इम्यून सिस्टम में सुधार के साथसाथ व्यायाम तनाव के नकारात्मक असर को भी समाप्त करता है.

यदि हम इमोशनली स्मार्ट व सुदृढ़ होंगे तो अपनी कार्यशैली व जीवनशैली में सकारात्मक परिवर्तन ला कर तनाव को दफ्तर ही नहीं घरेलू कामकाज में अड़चन बनने से भी रोक पाएंगे.

मान लीजिए कि आप को दफ्तर समय पर पहुंचना है किंतु आप की कामवाली बाई बिना पूर्व सूचना के छुट्टी पर चली गई है. सारा घर व रसोई फैली पड़ी है. नाश्ता बनाना, सब का लंच पैक करना, बच्चों को स्कूल भेजना आदि अंतहीन कामों में आप की चिड़चिड़ाहट सातवें आसमान को छूने लगती है. तनाव और बौखलाहट में आप अपना सारा क्रोध पति और बच्चों पर निकालेंगी. स्वयं पर तरस खाएंगी कि सब कुछ आप को अकेले ही झेलना पड़ता है. यह स्थिति वास्तव में विकट होती है किंतु इस से जूझने का जो तरीका आप चुनती हैं, वह आप की इमोशनल दृढ़ता व स्मार्टनैस पर ही निर्भर करता है.

आप स्मार्ट हैं तो सुबहसुबह क्रोध व तनाव से घिरीं रोतेझींकते हुए दिन की शुरुआत करने के बजाय धैर्य से काम लेंगी. पति को मुसकरा कर एक कप गरम चाय का प्याला पकड़ाएंगी और प्यार से उन्हें रसोई में अपनी सहायता के लिए बुलाएंगी. बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार करते हुए उन्हें अपना स्कूल बैग, यूनिफौर्म और जूते इत्यादि स्वयं तैयार करने को प्रेरित करेंगी. लंच यदि न भी पैक हो पाया तो कोई बात नहीं. चिकचिक करने से कहीं बेहतर होगा कि बच्चे स्कूल कैंटीन से ले कर कुछ खा लें. एकाध दिन बाहर खा लेने में कोई हरज नहीं. आप भी खुश और बच्चे भी.

रिश्तों का तनाव

कहते हैं कि रिश्ते बनाए नहीं निभाए जाते हैं. यदि आप इमोशनली स्मार्ट हैं, तो इस बात को आप बेहतर ढंग से समझ पाएंगी कि 2 व्यक्तियों में वैचारिक मतभेद होता ही है. अत: छोटीछोटी बातों से घबरा कर रिश्तों में कड़वाहट और तनाव लाने से बेहतर है उन्हें नजरअंदाज कर देना. कभीकभी ऐसा भी होता है कि न चाहते हुए भी आप स्वयं को भावनात्मक रूप से टूटा व हारा हुआ पाती हैं. घर का कोई न कोई सदस्य बेवजह आप को कुछ चुभने वाली बातें सुना जाता है. सास, जेठानी या ननद आप के हर काम में मीनमेख निकालती हैं, पति की अपेक्षाओं पर आप खरी नहीं उतरती हैं, इसलिए उन के क्रोध का पात्र बनी रहती हैं.

घबराएं नहीं, धैर्य से काम लें. एकांत में बैठ कर एकाग्रचित्त हो कर अपने व्यवहार और कार्यों का निष्पक्षता से विश्लेषण करें. यदि वास्तव में आप को अपने व्यवहार में कुछ गलत लगे तो बिना किसी पूर्वाग्रह व अहं को आड़े लाए स्वयं को बदलने की कोशिश करें और संबंधित व्यक्ति से माफी मांग लें. वार्त्तालाप कभी बंद नहीं होना चाहिए. ऐसा होने पर गलतफहमियां और बढ़ जाती हैं. आप स्मार्ट हैं, स्ट्रौंग हैं, आप में आत्मविश्वास भरा है, तो आप ये सब निश्चित रूप से कर पाएंगी, क्योंकि आप जानती हैं कि तनाव और परेशानियों में जीना स्वयं की गलतियां सुधार लेने से कहीं कठिन होता है.

यदि आप सही हैं तो अनर्गल और व्यर्थ की बातों से व्यथित होने की कतई आवश्यकता नहीं. स्वयं को भावनात्मक रूप से सबल बनाएं और परिवार वालों को अपना दृष्टिकोण प्यार से समझाएं. सामने वाला गरम हो रहा हो तो आप ठंडी रहें. पहले उसे ठंडा होने दें फिर स्नेह से उसे पिघला कर अपने सांचे में ढाल लें. बात बन जाएगी.

ये सब मेरे साथ ही क्यों होता है? सब मुझे ही गलत क्यों समझते हैं? सब मिल कर मेरे लिए सिर्फ समस्याएं ही क्यों बढ़ाते हैं? हर बार सिर्फ मैं ही क्यों झुकूं? यह सब सोचते ही आप स्वयं को बेचारी और शक्तिहीन मानने लगती हैं. ‘मैं ही क्यों’ आप को एहसास दिलाता है कि आप लोगों एवं परिस्थितियों की सताई हुई हैं. ‘बेचारी मैं’ का भाव आप को आत्मदया के अंधे कुएं में धकेल देता है.

समस्याओं का हल

परीक्षा में बच्चों के परिणाम अच्छे न आना अथवा युवा होते बच्चों के साथ वैचारिक संघर्ष होना अथवा बच्चों की समुचित देखभाल की कमी के चलते बच्चों में असंयमित और असंतुलित व्यवहार का बढ़ना भी महिलाओं के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द बन जाता है. ऐसे में आप क्या करेंगी? संयम खो कर अनापशनाप डांटफटकार एवं टोकाटाकी और रोकटोक शुरू कर करेंगी या स्वयं पर काबू रख कर बच्चों के मनोविज्ञान को समझते हुए अपने मित्रवत व्यवहार से उन्हें अपने विश्वास में ले कर समस्याओं का युक्तिपूर्ण हल निकालने की चेष्टा करेंगी? बच्चों के सामने कभी भी ‘परफैक्ट’ या ‘रोल मौडल’ बनने की चेष्टा न करें. अपनी समस्याओं, सफलताओं, कठिनाइयों, अपने डर, सपने, उम्मीदों और असफलताओं को खुल कर बच्चों के साथ बांटें.

इमोशनल ब्लास्ट’ का शिकार

कई बार महिलाओं के साथ ऐसा भी होता है कि सब कुछ जानतेसमझते हुए भी वे अपनी भावनाओं पर काबू पाने में असमर्थ रहती हैं और ‘इमोशनल ब्लास्ट’ का शिकार हो जाती हैं. इस की परिणिति डर, निराशा, अवसाद, हीनभावना, डिप्रैशन और आत्मविश्वास की कमी जैसी समस्याओं में होती है. हारमोनल परिवर्तन इस समस्या का कारण हो सकते हैं. बड़ी उम्र में मेनोपौज के समय में ऐसे लक्षण अकसर महिलाओं में दिखने लगते हैं. ऐसे में अच्छे डौक्टर की सलाह लेना सही रहेगा. खानपान और लाइफस्टाइल जीवनशैली में अच्छा चेंज लाएं. अच्छी और आशावादी सोच को बढ़ाने वाली पुस्तकें पढ़ें और छोटी-छोटी बातों में खुश रहना सीखें.

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कहीं आ न जाए रिश्तों में खटास

रिश्तें टूटने के कई कारण होते हैं. लेकिन हमारी हर रोज की कुछ आदतें भी हैं जो हमारे रिश्तों को रोजाना थोड़ा-थोड़ा कमजोर करती हैं. इन छोटी मोटी बातों पर हम ध्यान नहीं देते लेकिन ये बातें हमारे रिश्तों के लिये झूठ और धोखे से भी खतरनाक साबित होती है.

अपने आपसी संबंघ को खुश और स्वस्थ बनाए रखने के लिये हर कपल को जानना चाहिए कि वो कौन सी आदतें हैं जो उनके रिश्ते के लिये हानिकारक हो सकती है.

आप एक-दूसरे को जानते हैं – वो कपल जो कई सालों से रिलेशन में हैं, ऐसा मान लेते हैं कि वो अपने साथी को बहुत अच्छे से जानते हैं. डेटिंग के दौरान भी लोग अपने पार्टनर से उनके बारे में सवाल नहीं करते और ना ही उनके बारे में जानने की कोशिश करते हैं. इसे रिलेशन में जिज्ञासा की कमी कहा जाता है और यह कमी आपके रिश्ते के लिये हानिकारक हो सकती है.

समाधान – किसी भी रिश्ते में खुश रहने के लिये पार्टनर्स को हर रोज एक-दूसरे से बात करने की जरुरत है, चाहे फिर 10 मिनट के लिए ही करें. बात करते वक्त ध्यान रखें कि आप हर दिन किसी अलग विषय पर बात करें.

छोटी-छोटी नाराजगी को दबा लेना – बहुत से कपल अक्सर अपनी छोटी-छोटी नाराजगी और झुंझलाहट को दबा लेते हैं. समय के साथ ये हर रोज की छोटी परेशानियां इकट्ठी होकर आपके रिश्ते को नुकसान पहुंचा सकती है. कोई झगड़ा होने के बाद अगर आप नाराज होते है और अपनी नाराजगी को जाहिर नहीं करते तो यह आपके अंदर घर कर लेती है जिससे बाद में बड़ी परेशानी हो सकती है.

समाधान – सही समय और स्थिति का चुनाव करके अपनी सारी दिक्कतों और नाराजगी को साथी के साथ साझा करें.

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‘मी टाइम’ को अहमियत ना देना – मी टाइम का तात्पर्य खुद के लिए निजी समय से है. जब आप किसी रिश्ते में है तो आपको अपने लिये निजी वक्त की अहमियत भी समझनी होगी. यह वो समय है जब आप नए विचारों को बुनते हैं, अपने शौक को पूरा करते हैं, या बातें करने के लिये नए विषय खोजते हैं. अधिक स्पेस देना या अधिक समय के लिये अलग हो जाना भी ठीक नहीं है लेकिन वो लोग जो रिलेशनशिप में होते हुए भी निजी वक्त, अपने शौक, आदतें, रुचि और अपने दोस्तों को अहमियत देते हैं, वो बाकी लोगों की तुलना में अधिक खुश रहते हैं.

समाधान – अपने साथी से भी निजी समय के फायदों के बारे में बात करें और इस बात पर जोर दे कि आपका साथी अपने लिए समय जरूर निकाले और अपनी इच्छाओं को जरूर पूरा करे. अपने साथी से कोई राज़ ना रखें और उन बातों को साझा करें जो आपने अकेले समय बिताते वक्त की.

प्यार इजहार करने के लिये किसी विशेष अवसर का इंतजार करना – बहुत कपल ये गलतियां करते है कि वो अपना प्यार जाहिर करने के लिये किसी विशेष अवसर का इंतजार करते हैं जैसे जन्मदिन, सालगिरह, या कोई और विशेष दिन. कई शोधों में पता चला है कि जब किसी रिश्ते में लोग अपनी भावनाओं और साथी के लिये लगाव को जाहिर नहीं करते तो उनके रिश्ते के टूटने की संभावनाएं अधिक होती हैं.

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समाधान – समय-समय पर अपने साथी को कुछ ऐसा कहे जिससे उसे लगें कि वो आपके लिये महत्व रखता है. कभी कभी एक तारीफ भी अपने साथी की सराहना करने के लिये काफी होती है.

मैं एक युवक से 4 साल से प्यार करती हूं?

सवाल

मैं एक युवक से 4 साल से प्यार करती हूं. पहले वह भी मुझ से बहुत प्यार करता था हमारे बीच सबकुछ हो चुका है. पहले वह बारबार मिलने आता था पर अब झूठ बोल कर मना करता है. क्या करूं?

जवाब

आप का रिलेशन 4 साल से है और आप अभी तक उसे नहीं समझ पाईं, हैरानी की बात है. आप ने बताया कि आप के बीच सबकुछ हो चुका है. अकसर प्रेमी शारीरिक संबंध बनाने के बाद विमुख हो जाते हैं कहीं आप के मामले में भी ऐसा ही तो नहीं?

याद कीजिए कि वह सबकुछ होने के बाद कटना शुरू हुआ या पहले से. उस के कटने की वजह जानने की कोशिश कीजिए. अगर अपने में सुधार लाने की आवश्यकता हो तो सुधार कीजिए. अगर उस की कोई कमी है तो उसे बताइए. आप का प्यार है प्यार से मनाइए मान जाएगा.

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पहले सेक्स करने के ये हैं फायदे

आपको इस नए रिश्ते में अभी कुछ ही महीने हुए हैं. अभी तक आप लोग एक दूसरे को ढंग से जान भी नहीं पाए हैं कि अचानक ही एक मुलाकात में आप दोनों की चर्चा इस दिशा में बढ़ जाती है कि पूर्व में आप दोनों के कितने रिश्ते रहे हैं. ना सिर्फ आपको अतीत में रहे आपकी गर्लफ्रेंड के बौयफ्रेंडों की संख्या जानकर आश्चर्य होता है, आपकी साथी की प्रतिक्रिया भी आपके पुराने रिश्तों के बारे में जानकर कुछ अजीब ही होती है.

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कई बार देखा गया है कि जब भी कोई नया रिश्ता शुरू होता है तो दोनों ही साथियो के पूर्व में शारीरिक सम्बन्ध भी रहे होते हैं. फिर चाहे वो सम्बन्ध गंभीर रिश्तों के दौरान बने हो या फिर वो एक रात के रिश्ते हो. ऐसा हो सकता है कि होने वाले साथी के पूर्व में रहे रिश्तों के बारे में जानना किसी के लिए कामोत्तेजक हो या फिर यह भी हो सकता है कि किसी को इस बारे में जानकर बिलकुल भी अच्छा नहीं लगे. लेकिन शोधकर्ता अभी भी निश्चित रूप से किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं कि स्पष्ट रूप से कह सकें कि आखिरकार अपने साथी के पूर्व में रहे रिश्तों के बारे में जानकर लोगों को कैसा लगता है.

सेक्स का अनुभव – कितना फायदेमंद?

यूके के शोधकर्ताओं के एक समूह ने इस बारे में जानने के लिए 18 से 35 साल के 188 युवाओं को इकठ्ठा किया. उन्हें कुछ काल्पनिक लोगों की एक सूची दी गयी जिनके पूर्व में शून्य से लेकर 60 तक या उससे ज्यादा रिश्ते रहे थे. फिर उनसे पूछा गया कि वो उन लोगों के साथ रिश्ता जोड़ने में कितने तैयार होंगे. उन्हें अपने जवाब में 1 से लेकर 9 तक अंक देने थे.

जो लंबे चलने वाले रिश्ते चाहते थे उनकी नजर में वो लोग पहली पसंद थे जिनके पूर्व में दो साथी रहे थे. ऐसे लोगों की औसतन उम्र 21 साल थी. जब सूचना को अलग तरीके से आयोजित किया गया तो यह साफ हो गया कि अधिक उम्र के सहभागियों की नजर में आदर्श साथी वो था जिसके पूर्व में दो से ज्यादा रिश्ते रहे थे.

लेकिन उम्र पर ध्यान दिए बिना गौर किया गया तो एक बात स्पष्ट हो गयी थी, खासकर यूके के नागरिकों के लिए. लोगों को यह तो अच्छा लगता है कि उनके संभावित साथी के पास थोड़ा बहुत यौनिक अनुभव हो, लेकिन अगर किसी के पूर्व में बहुत ज्यादा साथी रहे हों तो यह बात ज्यादातर लोगों को आकर्षित नहीं करती और यह अध्ययन में हिस्सा लेने आये पुरुषों और महिलाओं, दोनों के ही जवाबों से स्पष्ट थी.

लेकिन जब बात हो लघु अवधि के रोमांस के लिए साथी ढूंढने की तो पुरुष और महिलाओं के जवाबों में असमानता पायी गयी. पुरुषों को वो महिलाएं पसंद आयी जिनके पूर्व में दो से लेकर 10 साथी रहे हों, जबकि दूसरी और महिलाएं उन पुरुषों के साथ रिश्ता बनाने की इच्छुक थी जिनके पूर्व में दो से लेकर पांच महिलाओं के साथ शारीरिक सम्बंध रहे हों.

सेक्स और संस्कृति

तो पुरुषों और महिलाओं को दीर्घ-कालिक रिश्तों के लिए ऐसे साथी क्यों पसंद आते हैं जिनको सेक्स का बहुत ज्यादा नहीं, बस थोड़ा बहुत अनुभव हो?

शोधकर्ताओं का कहना था कि अध्ययन से निकले निष्कर्ष उन्हीं संस्कृतियों के लिए उपयुक्त होंगे जहाँ शादी से पहले सेक्स करना स्वीकार्य है. जाहिर सी बात है कि विश्व के उन हिस्सों में जहां शादी से पहले सेक्स को गलत समझा जाता है, वहां एक प्रतिबद्ध रिश्ते से पहले किसी भी प्रकार के यौनिक अनुभव का होना कतई वांछनीय नहीं है.

लेकिन शोधकर्ता यह भी कहते हैं कि ब्रिटैन जैसी कुछ उदार संस्कृतियों में बिलकुल भी यौन अनुभव नया होने का अर्थ यह निकाला जा सकता है कि शायद उस व्यक्ति में सामाजिक कौशल और रिश्तों की समझ की कमी है. अगर आपका अभी तक कोई बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड नहीं है तो हो सकता है कि आप में कोई कमी है!

इसके साथ-साथ कई बार यह भी देखा गया है कि लोग दूसरो के प्रति सिर्फ इसलिए आकर्षित हो जाते हैं क्योंकि और लोग भी उनकी तरफ आकर्षित हैं. इसे ‘मेट-चॉइस कोपयिन्ग’ का नाम दिया गया है. आपके पास यौन अनुभव है तो इसका मतलब है कि लोग आपको पसंद करते हैं और इसलिए किसी को आप अच्छे लग सकते हैं.

धोखेबाज?

संस्कृति चाहे कोई भी हो, शोधकर्ताओं को लगता है कि जिन लोगों के पूर्व में बहुत सारे प्रेमी रहे हैं, वो उन लोगों की पहली पसंद कभी नहीं बन पाते जो अपने साथी के साथ दीर्घ-कालिक रिश्ता बनाना चाहते हैं. शायद उन्हें यह लगता हो कि जिस व्यक्ति के इतने सारे साथी हो उससे यौन संक्रमण का ख़तरा हो सकता है. शोधकर्ता कहते हैं कि आंकड़ों पर नज़र डालें तो जिस व्यक्ति के कई साथी रहे हों, उसके लिए किसी दीर्घकालिक रिश्ते में रहना या किसी रिश्ते में ईमानदार रहना मुश्किल हो सकता है.

बड़े धोखे हैं इस राह में

जल्दबाजी करने से बचें 

एक उम्र आने पर हमारे मन में विपरीत सैक्स के प्रति फीलिंग्स बढ़ जाती हैं. तब भले ही हमें अपनों से कितना भी प्यार क्यों न मिले, लेकिन हमें तो हमसफर के साथ की ही जरूरत होती है. ऐसे में हमसफर की तलाश में जल्दबाजी में औनलाइन पार्टनर सर्च करने के चक्कर में कहीं आप के साथ धोखा न हो जाए, क्योंकि इस के जरीए बहुत धोखे जो होते हैं. कई बार पैसा ऐंठने के चक्कर में बहुत बड़ा सच छिपाया जाता है, कई बार दोबारा शादी कर दी जाती है. कई बार पूरा रिश्ता ही झूठ पर टिका होता है. ऐसे में भले ही आप को थोड़ा इंतजार करना पड़े, जांचपड़ताल करनी पड़े, लेकिन जल्दबाजी न करें.

अब औनलाइन का जमाना है. आप के एक और्डर करते ही सामान आप के दरवाजे पर पहुंच जाता है. मगर आप ने अपने लिए किसी भी औनलाइन साइट पर ड्रैस और्डर की, जो इमेज में तो बढि़या दिख रही है, कलर भी मस्त है, साइज भी परफैक्ट है, लेकिन जैसे ही ड्रैस घर आई और आप ने उसे ट्राई कर के देखा तो आप का सारा मूड औफ हो गया या फिर आप ने उसे देख कर मूड बदल लिया, क्योंकि जैसी वह खरीदते वक्त दिख रही थी, वास्तव में वैसी नहीं है.

तो ऐसे में भी आप को परेशान होने की जरूरत नहीं होती, क्योंकि आप के पास उसे बदलने या फिर उसे वापस करने का विकल्प जो है. इस की पूरी प्रक्रिया बहुत आसान होती है और आप का पैसा भी कुछ ही दिनों में वापस आ जाता है. लेकिन यह बात औनलाइन दूल्हादुलहन और्डर के मामले में सही नहीं होती है, क्योंकि कोरोना के संकट के समय में जब पार्टनर का चयन औनलाइन ही संभव है, वहां पर पार्टनर की अदलाबदली वाला औप्शन नहीं चलेगा. एक बार सामान और्डर कर दिया यानी आप का हमसफर घर आ गया फिर तोउस से समझौता करना ही पड़ेगा, नहीं तो भारी पड़ेगा.

ट्रैडिशनल तरीका वीएस नया रूप

पहले जहां पार्टनर के चयन करने में दोनों परिवारों के लोग आपस में कई बार मिलते थे, पासपड़ोस से पूछताछ होती थी. जीवनसाथी बनने जा रहे पार्टनर भी खुल कर आमनेसामने काफी बातें करते थे, खूब मिलनाजुलना होता था ताकि अच्छी तरह जान पाएं और जीवन के इस अटूट रिश्ते में बंधने के बाद ज्यादा दिक्कतें न हों. दोनों परिवार भी एकदूसरे को जानने की कोशिश करते थे ताकि आगे किसी तरह के मनमुटाव की गुंजाइश न रहे.

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मगर अब जब पूरी दुनिया में कोविड-19 फैला हुआ है और इस कारण काफी समय तक शादियां टाली भी जा चुकी हैं, लेकिन अब जब संकट लंबा चलने वाला है तो अब और मैरिज डिले करना समझदारी नहीं है. ऐसे में न चाहते हुए भी अब औनलाइन ही पार्टनर सर्च करना पड़ रहा है. सिर्फ सर्च ही नहीं, बल्कि मिलनाजुलना भी वर्चुअल ही हो गया है. एक बार लड़के को लड़की और लड़की को लड़का सही लगने पर फोन पर, वीडियो कौलिंग पर ही बातचीत का सिलसिला चल निकलता है. यहां तक कि परिवार भी एकदूसरे से फोन या वीडियो कौलिंग के जरीए ही शादी की सारी बातचीत करते हैं, क्योंकि इस समय बारबार घर बुलाना या बाहर मिलना सेफ जो नहीं है. ऐसे में औनलाइन ही सारी शादी की तैयारी की जाती है, जबकि पुराने तरीके में हर चीज के लिए आमनेसामने बैठ कर बात करना ही उचित समझा जाता था. ऐसे में नया तरीका हमारे बीच नए रूप में सामने आ रहा है. जिस में कदमकदम पर सावधानी बरतने की भी जरूरत है.

औनलाइन सर्च में रिस्क आप ही

कहते हैं न कि जोडि़यां पहले से ही बनी होती हैं, इसलिए कौन किस के लिए बना है, इस बारे में समय आने पर ही पता चलता है. जरूरी नहीं कि आप जिस शहर में रह रहे हों आप का पार्टनर भी उसी शहर में हो. ऐसे में जब पार्टनर सर्चिंग का औनलाइन चलन चल गया है तो सर्च के दौरान आप को नहीं पता कि आप का पार्टनर आप को किस जगह, किस देश में मिले. अगर इस दौरान दिल मिल गए, लेकिन दोनों के बीच जगह की दूरियां हैं तो शादी तक चैटिंग से ले कर डेटिंग तक सब औनलाइन के माध्यम से ही होगा. ऐसे में रिस्क तो ज्यादा है, क्योंकि आप उसे औनलाइन माध्यम से ही जो देख रहे हैं. हो सकता है कि आप को जो वीडियो कौलिंग के दौरान अच्छा लगे, वह सामने नहीं, क्योंकि आज ढेरों ऐसे ऐप्स आ गए हैं, जिन के जरीए आप अपने लुक को चेंज कर सकते हैं. हो सकता है कि कौलिंग के दौरान भी इसी के जरीए अपने लुक में बदलाव लाया गया हो. ऐसे में बाद में समझौता भी करना पड़ सकता है. इसलिए सोचसमझ कर ही आगे बढ़ें. आमनेसामने इन चीजों को करीब से देखने का मौका मिलता है.

फोटो में रूप बदलते हैं

अकसर फोटो से असली चेहरे को छिपाने की कोशिश की जाती है. तभी तो फोटो में पसंद आने वाले चेहरे सामने आने पर कई बार पसंद नहीं आते, क्योंकि फोटो में वास्तविक रूप को छिपाने की कोशिश जो की जाती है, जबकि असलियत में रूप अलग होता है. तभी तो शादी के मामले में आमनेसामने आने पर कई बार हां न में बदल जाती है. लेकिन औनलाइन में नजदीक से देखने का औप्शन जो नहीं है, इसलिए गड़बड़ के चांसेज ज्यादा रहते हैं.

वर्चुअल रिश्तेदारों में वह बात कहां

एक बार शादी तय हो जाने के बाद परिवार के हर सदस्य को ऐक्साइटमैंट रहती है कि हम होने वाले ब्राइड या ग्रूम को देखें. इस के लिए फोन या वीडियो कौल या कौन्फ्रैंस के जरीए ही बातचीत की जा सकती है. ऐसे में दूर से बात कर के एकदूसरे के करीब आने वाली फीलिंग थोड़ी कम होती है. उस में भले ही सामने से थोड़ा सा बातों का तड़का भी लगा दिया जाए, फिर भी वह बात नहीं आ पाती जो आनी चाहिए. ऐसे में आमनेसामने कंफर्टेबल जोन नहीं मिलने के कारण सब बस यही मौका ढूंढ़ते हैं कि जल्दी से कौल खत्म हो और हमारा पीछा छूटे. ऐसे में फोन पर करीब से दिल के तार नहीं जुड़ पाते, जबकि आमनेसामने परिवार के लोग जब बातें करते हैं तब एकदूसरे को करीब से देखने के कारण ज्यादा करीबी महसूस होती है, जो एकदूसरे को करीब लाने का काम करती है, क्योंकि फेस ऐक्सप्रैशन से व आमनेसामने होने से चीजें ज्यादा अच्छी तरह समझ आ पाती हैं.

रिटर्न का कोई चांस नहीं

यह मान लें कि यह कोई सामान नहीं है कि पसंद नहीं आने पर बदल जाएगा. एक बार घर में आ गया फिर तो आप को उसे एडजस्ट ही नहीं, बल्कि परिवार का सदस्य भी मानना ही होगा. उस की हर बुराई को अपनाना होगा, उस का लुक चाहे आप को अच्छा न भी लगे फिर भी उसे अपनाना होगा. उस की ईटिंग हैबिट्स आप के मुताबिक न भी हों तो भी उसे हंस कर स्वीकारना ही होगा, क्योंकि भले ही आप ने उस से औनलाइन ही सही, लेकिन साथ जीनेमरने के वादे किए होते हैं और यह बात लड़कालड़की दोनों पर ही लागू होती है, साथ ही उस के परिवार को भी स्वीकार करना होगा वरना आए दिन घर में कलह का माहौल बनने में देर नहीं लगेगी.

मजेदार डेटिंग नहीं औनलाइन मिलाप

एक बार शादी तय होने के बाद कपल्स के दिल उफान पर होते हैं. बस हर दम यही मौका तलाशते हैं कि कब एकदूसरे के करीब आएं, इस के लिए रोज डेटिंग प्लान होती है ताकि खुल कर मस्ती के पल बिता सकें. एकदूसरे की आंखों में आंखें डाल कर खो सकें. अपनी बातों को शेयर कर सकें ताकि सामने से आई प्रतिक्रिया से जानने में आसानी हो कि हमारा पार्टनर किस हद तक हमें सपोर्ट कर सकता है. एकदूसरे के स्वभाव को जान पाएं, क्योंकि आमनेसामने होने पर भले ही आप शब्दों पर कंट्रोल कर जाएं, लेकिन आंखें तो सब बयां कर देती हैं. ऐसे में समझने में काफी आसानी होती है, जबकि औनलाइन डेटिंग में गपशप पर कोई पाबंदी नहीं होती, लेकिन सही ऐक्सप्रैशन के पता नहीं चलने के कारण बाद में काफी दिक्कत हो सकती है. इसलिए इस में रिस्क तो है.

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सीक्रेट्स पता लगाने में भी मुश्किल

एक बार शादी तय होने के बाद जब मिलनाजुलना शुरू होता है, तब बहुत सारे ऐसे पहलू भी उजागर हो जाते हैं, जिन पर अभी तक परदा डाला हुआ होता है जैसे डेटिंग के दौरान बारबार कौल आना और फिर एकदम से फोन की स्क्रीन को छिपाते हुए काट देना और पूछने पर घबराहट के साथ जवाब देना कि औफिस से कौल थी. 1-2 बार तो ये बहाना चलता है, लेकिन बारबार आप के सामने ऐसा होने पर आप के मन में जब शक पैदा होगा तो हो सकता है कि बातबात में या गुस्से में कोई राज सामने आ ही जाए. ऐसे में तब आप इस रिश्ते में बंधने से बच सकते हैं. लेकिन औनलाइन डेटिंग में इस तरह की चीजों पर बड़ी आसानी से परदा डाल कर आप को बेवकूफ बनाया जा सकता है और फिर जब राज खुलेगा तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.

वापस किया तो भुगतना पड़ेगा

शादी कोई मजाक नहीं है, जो मन बहलाने के लिए कुछ पलों के लिए ले आए और जब मन नहीं किया तो वापस करने का मूड बना लिया. ऐसा करने से जहां भावनाओं को ठेस पहुंचती है वहीं आप को इस का भारी भुगतान भी करना पड़ा सकता है. इस के लिए आप को जेल भी जाना पड़ सकता है और मोटी रकम भी देनी पड़ सकती है. इसलिए सोचसमझ कर फैसला लेने की जरूरत है.

इस संबंध में सारथी काउंसलिंग सर्विसेज की फाउंडर, डाइरैक्टर शिवानी मिश्री साधु का कहना है, ‘‘अगर हम बात करें औफलाइन और औनलाइन पार्टनर सर्च करने की तो दोनों में ही गारंटी नहीं है कि सैपरेशन न हो या फिर तलाक तक बात न पहुंचे, क्योंकि ये सब आपसी समझदारी या पहले से चीजों की जांचपड़ताल पर निर्भर करता है. हां, बस औफलाइन पार्टनर सर्च करने में रिस्क थोड़ा कम होता है, क्योंकि पूछताछ के साथसाथ मिलनेजुलने से थोड़ी चीजें समझ आ जाती हैं कि जिस परिवार से हम जुड़ने जा रहे हैं उस से हमारा मेल हो पाएगा या नहीं, क्योंकि बातों के तरीकों से काफी हद तक आप सामने वाले के नजरिए को जान पाते हैं. लेकिन औनलाइन प्लेटफौर्म में वीडियो और वैब कौल से यह ज्यादा संभव नहीं है.’’

‘‘आज जिस तरह का समय है उस में औनलाइन सर्चिंग में फिजिकल वैरिफिकेशन करना काफी मुश्किल है, क्योंकि इस समय कोई भी अपनी जान जोखिम में डालना पसंद नहीं करेगा. ऐसे में सोशल प्लेटफौर्म के जरीए ही संबंधित विरक्ति और परिवार की जानकारी जुटाने का प्रयास किया जा रहा है. और अगर सोशल मीडिया पर कोई डीटेल हासिल नहीं होती तो उसे रैड फ्लैग ही समझें यानी जानकारी छिपाने की कोशिश की जा रही है और अगर बात आगे बढ़ती है तो उन के सोशल प्लेटफौर्म के जरीए उन के फ्रैंड्स से भी उन के कैरियर, उन की जौब व उन के व परिवार के बारे में जानकारी लेने की कोशिश करें और इस में जरा भी झिझकें नहीं कि पता चलेगा कि हम उन की पड़ताल कर रहे हैं तो कैसा लगेगा. आखिर यह पूरी जिंदगी का सवाल है.

‘‘अगर सोशल मीडिया पर लेनदेन संबंधित मैसेज दिखते हैं तो वे सही संकेत नहीं होते. ऐसे में उस परिवार से वहीं बात खत्म कर देनी चाहिए ताकि आगे कोई दिक्कत न हो, क्योंकि ये जीवन का बहुत ही अहम फैसला होता है, जिस के लिए आप खुद ही जिम्मेदार होते हैं. इसलिए बारबार जितना हो सके क्रौस चैक करना सही रहता है.’’

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प्रेम के लिए दिल से समय निकालें

किसी शायर ने अपनी शायरी में कहा है, ‘तुम्हें जब कभी मिलें फुरसतें मेरे दिल से बोझ उतार दो. मैं बहुत दिनों से उदास हूं मुझे कोई शाम उधार दो.’

आज के संदर्भ में यह शायरी रिश्तों को समझने के लिए सटीक है. दौड़तीभागती जिंदगी में फुरसत ही है जो रिश्तों को समेटने में मदद करती है. लेकिन फुरसत है ही कहां? अगर है भी तो लोग लाइक और कमैंट में उलझ कर रह गए हैं. आज वास्तविक दुनिया में हमारा एकदूसरे से टच खोता जा रहा है. ऐसी वर्चुअल दुनिया से हम खुशी मना रहे हैं जो झठी और बनावटी है. और 4 इंच के मोबाइल स्क्रीन के माध्यम से नकली रिश्ते ढूंढ़े जा रहे हैं. ऐसे में वे सारे रिश्ते दम तोड़ रहे हैं जो हमारे आसपास हकीकत में हैं.

इस का असर खासकर प्रेमसंबंधों और शादी के बाद पतिपत्नी के रिश्तों में पड़ रहा है. रिश्ते बिखर रहे हैं. पार्टनर का मतलब सैक्सुअल प्लेजर हो गया है, जहां बिस्तर पर संबंध बनाते हुए ‘आज कैसा लगा’ तक पूछने कि जहमत नहीं उठाई जाती. अब जब रिश्ते में बने रहने का एकमात्र कारण सैक्स ही है तो इस की पूर्ति तो कहीं से भी की जा सकती है, फिर प्रेमसंबंध या रिलेशनशिप का नाम क्यों?

यानी, प्रेमसंबंध या मजबूत रिश्ते के बीच सैक्स एक हद तक काम कर सकता है लेकिन मजबूत रिश्ते को बनाए रखने के लिए यह सबकुछ नहीं होता. इस के लिए एकदूसरे के साथ ऐसा समय बिताना जरूरी है जिस में आप का जुड़ाव सिर्फ शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक भी हो, भावनात्मक भी हो, और वैचारिक भी हो.

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जाहिर सी बात है प्रेम एक प्रक्रिया है जो लगातार बढ़ती रहती है, जिसे जितना बढ़ाना चाहोगे उतना बढ़ेगा. इस की कोई सीमा नहीं. जिस के लिए हर इंसान को चाहिए कि उसे ऐसा फ्री टाइम मिले जिस में वह अपने पार्टनर के साथ मिल कर अपने रिश्ते को आगे बढ़ा सके और मजबूती दे सके. यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप इस के लिए कितनी कोशिश करते हैं और कितना अपने पार्टनर के लिए समय निकालते हैं. लेकिन आज के व्यस्त समय में सब से बड़ा सवाल यह होता है कि आप अपने पार्टनर के लिए क्वालिटी टाइम कहां से निकालेंगे? तो इस का सीधा सा जवाब है, क्वालिटी टाइम अलग से निकालना नहीं पड़ता, बल्कि जब भी आप अपने पार्टनर के साथ रह रहे हैं उसे ही क्वालिटी टाइम बनाया जा सकता है. इस के लिए जरूरी नहीं कि आप कोई विशेष दिन या समय चुनें, बल्कि अपने पार्टनर को खास महसूस कराने के लिए हर समय को खास बनाया जा सकता है.

क्वालिटी टाइम लव लैंग्वेज

क्वालिटी टाइम और कुछ नहीं, बल्कि एक तरह की प्यार वाली भाषा है जिस का सैंटर इमोशन होता है. इस का सीधा सा मतलब बिना किसी भटकाव के अपने पार्टनर के प्रति भावुक प्रेम जाहिर करना होता है. ऐसे में उन सभी गैरजरूरी चीजों, चाहे वह सैलफोन हो, लैपटौप हो या टीवी हो, दोस्तों के साथ घूमना हो, को साइड रख कर अपने पार्टनर पर फोकस करना होता है. जब आप ऐसा करते हैं तो ये चीजें सीधे दिल को छूती हैं जो आप के पार्टनर पर प्रभाव डालता है. ऐसे में वह खुद को स्पैशल फील करता/ती है कि आप उसे अपना खास टाइम दे रहे हो और आप के जीवन में उस की अहमियत है. इस से फर्क नहीं पड़ता कि आप अपना कितना समय उसे दे रहे हो, लेकिन अगर थोड़ा टाइम भी दे पा रहे हो, उतने में ही आप के पार्टनर को यह महसूस होना चाहिए कि यह उस के लिए आज का बैस्ट टाइम था. ऐसे में जरूरी है कि उस समय आप इन खास टिप्स से अपने पार्टनर के लिए समय निकाल कर उसे खास टाइम बनाएं.

आई कौंटैक्ट बनाएं

नजरें अपनेआप में बहुत चीजें कहती हैं. यह कहा जा सकता है कि दिल के लिए रास्ता आंखों से हो कर गुजरता है. बहुत बार 2 लोगों की आपसी बातचीत में अगर कोई एक नजर हटा कर बात करता है तो समझ जाता है कि वह आप की बातों पर ध्यान नहीं दे रहा. इसलिए बात करते हुए आंखों के बीच संपर्क जरूरी होता है, और जब बात रोमांस की हो तो यह बहुत जरूरी हो जाता है. इस से यह समझ आता है कि आप अपने पार्टनर के साथ बात करते हुए पूरा अटैंशन दे रहे हैं, जिस से उसे खुद के खास होने का एहसास होगा. वहीं, इस की जगह अगर आपस में बात करते हुए आप अपने फोन को साथ में चलाने लगते हैं, या लैपटौप पर कोई काम करने लगते हैं तो उसे लगेगा आप उस की बात पर ध्यान नहीं दे रहे.

पार्टनर की बातें ध्यान से सुनें

आमतौर पर बात करते हुए कुछ चीजें जो सब से ज्यादा इरिटेट करती हैं उन में से एक बातों पर ध्यान न दिया जाना होता है. अधिकतर समय बात करते हुए दिमाग में कुछ दूसरे खयाल चल रहे होते हैं, जैसे औफिस का बचा हुआ काम, दोस्तों की मस्ती या उसी बात पर खुद की अलग ओपिनियन. इस कारण कम्युनिकेशन कोलैप्स हो जाता है और बातें हांहूं तक सीमित हो जाती हैं. बहुत बार बात करते हुए प्रेजैंस औफ माइंड गड़बड़ा जाता है और क्याक्या बारबार सुनने को मिलता है.

ये चीजें आप के पार्टनर को शर्मिंदा कर सकती हैं. इसलिए जरूरी है कि जब आप के और आप के पार्टनर के बीच में कोई बातचीत चल रही हो तो उस दौरान ध्यान से उन की बातों को सुना जाए. अगर वह आप की ओपिनियन मांगे तो आप उस पर अपनी राय रख सकें.

कुछ नया ट्राई करें

नया मतलब, जो खास हो. भारतीय तौरतरीकों में आमतौर पर लड़केलड़की के बीच चीजें पहले से ही निर्धारित होती हैं, जिस में घर का काम लड़की और बाहर का काम लड़के करते हैं. यहां तक कि वर्किंग वूमन तक को घर पर आ कर घरेलू काम संभालना पड़ता है. ऐसे में उन के लिए तनाव वाला माहौल होता है. ऐसी स्थिति में जरूरी है कि काम को आपस में बांटा जाए और कोशिश की जाए कि दोनों काम में हैल्प करें. इस से एकदूसरे के प्रति प्रेम व सम्मान बढ़ता है. साथ ही, काम में एकदूसरे का हाथ बंटाते हुए इंटिमेसी लैवल भी बढ़ता है.

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बात करते हुए एक्साइटिंग प्लान बनाएं

हर दिन कुछ नया प्लान बने तो बढि़या है लेकिन अगर हफ्ते में भी कोई खास दिन चुन कर किसी तरह की एक्टिविटी या कोई प्लान आप तैयार करते हैं तो यह आपसी अंडरस्टैंडिंग बढ़ाएगा. जैसे, हफ्ते में एक दिन मूवी प्लान या घर में बैठ कर ही साथ में मूवी देखना, वीकैंड हौलिडे पर साथ में बाहर घूमने जाना, साथ में किताब पढ़ना या काम के बाद वाक पर निकलना, रैस्टोरैंट में नई डिश ट्राई करना, अनुभव साझ करना इत्यादि.

मुश्किल समय में साथ रहना

बहुत बार ऐसे मौके आते हैं जब कोई दुखद घटना घटती है और हो सकता है उस दौरान आप के पार्टनर को उस घटना को ले कर एक तरह की घबराहट या चिंता हो. ऐसे में जरूरी नहीं कि सुख के पल ही आप के लिए क्वालिटी टाइम हो, बल्कि सुख से अधिक दुख के पलों में आप कैसा व्यवहार करते हैं, यह आप के रिश्ते का आधार बनता है. इसलिए यह जरूरी है कि अपने पार्टनर को इस बात का एहसास करवाया जाए कि खराब से खराब समय में आप उस के साथ हैं. इस से आप के पार्टनर का हौसला बढ़ेगा और  उस के मन में आप के प्रति प्रेम व विश्वास जागेगा.

अकसर जब क्वालिटी टाइम की बात आती है तो लोगों का मानना होता है कि यह ऐसा समय होता है जब आप अपने पार्टनर के लिए कोई स्पैशल प्लान करते हैं या जब आप उन्हें बहुत सा समय देते हैं. यह सही है कि स्पैशल प्लान करना या पार्टनर के लिए ज्यादा टाइम निकालना अच्छा लगता है. लेकिन क्वालिटी टाइम किसी विशेष समय का मुहताज नहीं होता, बल्कि इसे हर वक्त जिया जा सकता है. इस के लिए खासतौर पर ध्यान रखा जाना जरूरी होता है कि ऐसी चीजों को किया जाए जिन से आप का पार्टनर अच्छा महसूस करे. जैसे, जब आप एकदूसरे के साथ टाइम स्पैंड करें तो शिकायत या नुक्ताचीनी कम हो, अपने पार्टनर के साथ बात करते हुए गैरजरूरी किसी और चीज पर ध्यान न जाए, उन बातों को न भूलें जो आप का पार्टनर क्वालिटी टाइम में आप से करे.

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