इन 3 वजहों से सर्दियों में जरूर करना चाहिए पालक का सेवन

लेखिका- दीप्ति गुप्ता

पालक एक हरी पत्तेदार सब्जी  है, जो न केवल हेल्दी और टेस्टी होती  है, बल्कि सबसे आसान साइड डिश के रूप में भी पॉपुलर है. इसे वैज्ञानिक रूप से स्पिनेशिया ओलेरासिया के नाम में जाना जाता है. यह एमोरैंथ फैमिली से संबंधित  है. पालक विटामिन ए, सी और के , पोटेशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, फोलेट आयरन जैसे पोषक तत्वों से भरपूर है. पालक जैसी हरी सब्जियों में जिंक भी अच्छी मात्रा में होता है, जो किसी भी आहार में होना बहुत जरूरी है. इसमें थोड़ी मात्रा में डायट्री फाइबर भी पाया जाता है, जो आंत के स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है. वैसे तो बहुत कम लोगों को ही पालक पसंद होती  है, लेकिन अगर आप अपने स्वास्थ्य के साथ समझौता नहीं करना चाहते, तो सर्दी के दिनों में जमकर इस पत्तेदार सब्जी का सेवन करें. यहां ऐसी 3 मुख्य वजह हैं, जो बताएंगी कि आपको पालक को अपने दैनिक आहार का हिस्सा क्यों बनाना चाहिए.

1. स्वस्थ हड्डियों के लिए पालक-

सर्दी के दिनों में लोग अक्सर जॉइंट पेन और हड्डियों से जुड़ी समस्याओं की शिकायत करते हैं. इन सबसे बचने के लिए सबसे अच्छा तरीका है पालक खाना. पालक विटामिन के का एक समृद्ध स्त्रोत है, जो ऑस्टियोकैल्क नाम के प्रोटीन के उत्पादन को बढ़ावा देता है. यह प्रोटीन हड्डियों में कैल्शियम को स्थिर करने के लिए जिम्मेदार है. विटामिन के से भरपूर होने के अलावा पालक कैल्शियम और विटामिन डी , डायट्री फाइबर , पोटेशियश्म, मैग् नीशियम और विटामिन सी का बेहतरीन स्त्रोत है. ये सभी पोषक तत्व हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए बहुत अच्छे हैं.

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2. दिल के स्वास्थ्य को बढ़ावा दे-

ऐसे में इस खतरे को रोकने के लिए सर्दियों में जितना हो सके, पालक का सेवन करें.  पालक में मौजूद विटामिन -सी झुर्रियों को रोकने, आंखों की बीमारियों और ह्दय रोगों से बचाने की क्षमता के लिए जाना जाता है. वहीं ल्यूटिन की मौजूदगी धमनियों की दीवारों को मोटा होने से रोकती हैं. इस प्रकार दिल के दौरे का जोखिम काफी हद तक कम हो जाता है. इसके अलावा पालक प्राकृतिक रूप से नाइट्रेटस नामक  यौगिकों से भरपूर  है. कुछ अध्ययन बताते हैं कि पालक जैसे नाइट्रेटयुक्त खाद्य पदार्थ भी दिल के दौरे से बचाने में मदद करते हैं.

3. आंखों की रक्षा करे-

पालक हमारी आंखों के लिए वरदान है. दरअसल, इसमें अच्छी मात्रा में बीटा कैरोटीन, जैक्सेंथिन , क्लोरोफिल  और ल्यूटिन होता है , जो आपकी दृष्टि में सुधार  करता है. ल्यूटिन और जैक्सेंथिन मैक्युला में जमा हो जाते हैं, जो रेटिना का एक हिस्सा है. ये प्राकृतिक सनब्लॉक के रूप में काम करता है, जिससे आपकी आंखों को हानिकारक प्रकाश से बचाया जा सके. कई अध्ययन बताते हैं कि ल्यूटिन और जैक्सेंथिन जैसे दोनों एंटीऑक्सीडेंट मैक्यूलर डिजनरेशन और मोतियाबिंद को रोकने का काम करते हैं, जो अंधेपन का मुख्य कारण हैं. इसलिए आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए लोगों को सबसे पहले  यह हरे पत्तेदार साग खाने की सलाह दी जाती है.

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पालक को अपने आहार में शामिल करने के आसान तरीके-

– पालक को सलाद के रूप में आहार में शामिल करना बहुत अच्छा तरीका है. इसमें अंगूर, छोले, सेब के क्यूब्स और कटे हुए अजमोद के पत्ते डालकर नियमित रूप से भोजन के साथ साइड डिश के रूप में खाएं. स्वास्थ्य को बहुत फायदा होगा.

– अपने वर्कआउट के बाद न्यूट्रिशनल बेनिफिट्स हासिल करने के लिए पालक बेरी स्मूदी का सेवन करें. इसे बनाने के लिए 300मिली पानी, पालक, ब्लूबेरी, रसबरी, दही का एक स्कूप, एक बड़ा चम्मच प्रोटीन पाउडर एक चम्मच शहद डालें और चिकना होने तक मिलाएं. इसके अलावा आप चाहें, तो कम तेल में पालक के पराठे और सब्जी बनाकर भी खा सकते हैं.

तो आखिर पालक हमें अपने आहार में क्यों शामिल करना चाहिए , ये तो आप जान ही गए हैं. तो अब सोचिए नहीं, बल्कि आज से ही अपने दिल, आंखों और हड्डियों को स्वस्थ रखने के लिए पालक का सेवन शुरू कर दीजिए.

डिप्रेशन के खतरे को बढ़ा सकती हैं 5 आदतें

आप शायद पहले से ही जानते होंगे कि बुरी आदतें आपको बीमार कर सकती हैं.  रोज सुबह पनीर सॉसेज अंडे और हर रात पिज्जा खाने से आपका कोलेस्ट्रॉल बढ़ेगा, आपकी कमर की चौड़ाई बढ़ेगी और आपको हार्ट की बीमारी भी हो सकती है.

डॉ. प्रकृति पोद्दार, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, निदेशक पोद्दार वेलनेस के मुताबिक जिस तरह बुरी आदतें आपके शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं, उसी तरह कुछ बुरी आदतें आपके मानसिक स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं. ये आदतें आपके डिप्रेशन के खतरे को बढ़ा सकती हैं, या आपको ज्यादा चिंतित या तनावग्रस्त महसूस करा सकती हैं.

1- पर्फेक्सिनिज्म

किसी भी चीज़ को बेहतर तरीके से करने से आपकी सफलता की संभावना बढ़ सकती है, लेकिन हर समय सही होने की (परफेक्ट) ज़रूरत वास्तव में आपके प्रयासों को कमजोर कर सकती है.

साइकोलॉजिस्ट पर्फेक्सिनिज्म को सकारात्मक या नकारात्मक बताते हैं.  सकारात्मक पर्फेक्सिनिज्म आपको अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में मदद करता है- एक पर्फेक्सिनिस्ट के रूप में आप अपने काम में कोई गलती होने की गुंजाइश नहीं छोड़ते हैं.  सकारात्मक पर्फेक्सिनिज्म की आदतों में वास्तविक लक्ष्य निर्धारित करना, असफलताओं को पीछे छोड़ना, गलतियों को सुधारना, चिंता और तनाव को कम करना और प्रक्रिया के साथ-साथ परिणाम का आनंद लेना शामिल होता है.

नकारात्मक पर्फेक्सिनिज्म की आदतों में आपकी पहुंच से बाहर स्टैंडर्ड स्थापित करना, परफेक्शन से कम होने पर किसी भी चीज़ से असंतोष होना, असफलता या अस्वीकृति के साथ व्यस्तता और गलतियों को अयोग्यता का प्रमाण मानना शामिल होता है.

2- असफलता की मानसिकता

हर किसी के मन में कभी न कभी नकारात्मक विचार आते हैं, और कभी-कभी असफलता की भावनाएँ आमतौर पर कोई मानसिक स्वास्थ्य समस्या पैदा नहीं करती हैं.  हालांकि इन नकारात्मक विचारों को बढ़ावा देने से एक असफल मानसिकता पैदा हो सकती है, जो आपके सफल होने की क्षमता में बाधा डाल सकती है.  नकारात्मक विचार से आपको लग सकता है कि आपका जीवन अंधकारमय, दयनीय है, और बिना किसी आशा या मतलब के न होने से आपको नींद नही आ सकती है, और आपको दिन के दौरान आगे कोई काम करने में बाधा डाल सकता है.  अगर इसका कुछ समाधन न किया जाए तो ये असफलता के विचार आदत बन जाते हैं.

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3. एक्सरसाइज की कमी

एक आलस भरी लाइफस्टाइल आपकी कमर, आपके हार्ट और, आपके मानसिक स्वास्थ्य को नुक़सान पहुंचा सकते है.

नियमित एक्सरसाइज एंडोर्फिन और अन्य “फील गुड” केमिकल को रिलीज़ करके डिप्रेशन को कम कर सकते है, और शरीर के तापमान को बढ़ाकर एक शांत प्रभाव पैदा करता है.  नियमित रूप से एक्सरसाइज करने से आपको आत्मविश्वास भी मिल सकता है, सामाजिक संपर्क में सुधार कर सकता है और स्वस्थ तरीके से जीवन के तनावों से निपटने में आपकी मदद कर सकता है.

4. सोशल मीडिया का बहुत ज्यादा प्रयोग

चाइल्ड माइंड इंस्टीट्यूट का कहना है कि सोशल मीडिया का बहुत ज्यादा प्रयोग युवाओं में एंग्जाइटी को बढ़ा रहा है और आत्मसम्मान को कम कर रहा है.  सोशल मीडिया के उपयोग से उत्पन्न मानसिक स्वास्थ्य समास्याएं वयस्कों को भी प्रभावित कर सकते हैं.  1500 वयस्क फेसबुक और ट्विटर उपयोगकर्ताओं को लेकर एक सर्वे हुआ  था जिसमे  62 प्रतिशत लोगों ने अपर्याप्तता की फीलिंग से पीड़ित होने के बारे में बताया और 60 प्रतिशत ने खुद की तुलना अन्य सोशल मीडिया यूज़र से करने से ईर्ष्या की भावना से पीड़ित होने के बारे में बताया.  तीस प्रतिशत ने कहा कि सोशल मीडिया के इन दो रूपों (ट्विटर और फेसबुक) का उपयोग करने से उन्हें अकेलापन महसूस होता है.

5. ख़राब नींद

नींद शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में मुख्य भूमिका निभाती है.  अपने मस्तिष्क और शरीर को पिछले दिन की कठिनाइयों से उबरने का मौका प्रदान करके नींद आपको आने वाले कल की चुनौतियों का सामना करने में मदद करती है.  एक या दो रात न सोने  से आप उदास, गुस्सैल और एकाग्र होने में परेशानी महसूस कर सकते हैं, इन सबके अलावा खराब नींद की आदत आपके मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर डाल सकती है.  रिसर्च से पता चलता है कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित लोगो में  खराब नींद की समस्या देखी गई हैं.

ठोस मानसिक स्वास्थ्य होने का मतलब यह नहीं है कि आप कभी भी बुरे समय से नही गुजरेंगे या भावनात्मक समस्याओं का अनुभव नहीं करेगें.  हम सभी निराशाओं, कमियों और बदलावों से गुजरते हैं जबकि ये सभी जीवन का सामान्य हिस्सा हैं, फिर इनकी वजह से उदासी, डिप्रेशन और स्ट्रेस हो सकता हैं.  लेकिन जिस तरह शारीरिक रूप से स्वस्थ लोग बीमारी या चोट से उबरने में सक्षम होते हैं, उसी तरह मजबूत मानसिक स्वास्थ्य वाले लोग विपरीत परिस्थितियों, ट्रॉमा और तनाव से बेहतर तरीके से उबरने में सक्षम होते हैं.  इसलिए इन बुरी आदतों को छोड़ दें और कठिन परिस्थितियों का सामना करें और सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखें.

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मानसिक स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं बुरी आदतें

“जिस तरह बुरी आदतें हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं, उसी तरह कुछ बुरी आदतें हमारे मानसिक स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं.  उदाहरण के लिए ये आदतें हमारे डिप्रेशन के खतरे को बढ़ा सकती हैं, या आपको ज्यादा चिंतित या तनावग्रस्त महसूस करा सकती हैं.  कहना है डॉ ज्योति कपूर, सीनियर साइकेट्रिस्ट एवं फाउंडर, मन:स्थली का.

यहां कुछ आदतें बताई गई हैं जिनसे हमें नए साल की शुरुआत करने से पहले छुटकारा पाने की जरूरत है.

1- खराब मुद्रा

जर्नल ऑफ बिहेवियर थेरेपी एंड एक्सपेरिमेंटल साइकियाट्री में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, सीधे बैठने से डिप्रेशन के लक्षणों को कम किया जा सकता है.

 2- दोषी मानना

किसी भी चीज़ के लिए ख़ुद को ज़िम्मेदार मानना, किसी भी समस्या के पैदा होने या हल करने के लिए खुद को जिम्मेदार मानना, जिनका आपसे बहुत कम या कोई लेना-देना नहीं था, खुद को छोटे-मोटे अपराध करने के लिए एक बुरा व्यक्ति मानना, और खुद को माफ न करना आदि ऐसी आदतें हैं जो आपको मानसिक रूप से नुक़सान पहुंचा जा सकती है.

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 3- एक्सरसाइज की कमी

नियमित एक्सरसाइज से एंडोर्फिन और अन्य “फील गुड” केमिकल को रिलीज करके डिप्रेशन को कम कर सकते है, डिप्रेशन को बदतर करने वाले इम्यूनिटी सिस्टम के के केमिकल्स को दबा सकते है, और शरीर के तापमान को बढ़ाकर एक शांत प्रभाव पैदा कर सकते है जिससे दिमागी सन्तुलन बना रह सकता है.

4- बिना सोचे-समझे खाना –

चटपटा खाना कोई बुराई नहीं है लेकिन चिप्स से लेकर कुकीज तक कुछ भी इस तरह की चीज़ें खाना कर स्वास्थ्य समस्याओं का प्रमुख कारण है. अक्सर तनावपूर्ण स्थितियों में देखा जाता है कि जब हम टीवी देखते हुए या मोबाइल चलाते हुए खाते हैं तो हमें भूख-प्यास है या नही, इसको जानें बिना ही हम खाते हैं.  इसलिए सोच-समझकर खाएं ताकि खाने का हर टुकड़ा जायकेदार हो और स्वस्थ हो.

 5- गुस्सा करना छोड़ दें:

जब हम कुछ तनावपूर्ण या अच्छा महसूस नही करते हैं तो हम गुस्सा करते हैं और धीरे-धीरे यह एक आदत बन जाती है.  हर सुबह अपने माथे पर हाथ रखें और मांसपेशियों को आराम प्रदान  करें,  मुस्कुराएं.  जल्द ही चेहरे की यह एक नई आदत बन जाएगी.

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महिलाओं के लिए खास फायदेमंद है कसूरी मेथी

हर घर में किचन के जरूरी मसालों में मेथी जरूर होती है. मेथी की खास बात ये हैं कि इसके पौधे से लेकर बीज तक का इस्तेमाल खाने का स्वाद बढ़ाने के काम आता है. सामान्य मेथी के अलावा इसकी एक और वेराइटी होती है जिसे हम कसूरी मेथी के नाम से जानते हैं.

कसूरी मेथी खाने की खूशबू बढ़ाने के काम आती है ये बात तो ज्यादातर लोग जानते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कसूरी मेथी आपकी सेहत के लिए भी बहुत कारगर है. इसका उपयोग कई तरह की बीमारियों को ठीक करने के लिए भी किया जाता है.

आइए जानते हैं आपकी सेहत के लिए कसूरी मेथी के पांच बड़े फायदों के बारे में..

1. एनीमिया

महिलाओं में खून की कमी यानि एनीमिया की बीमारी को अक्सर ही देखा जाता है. इसी समस्या को घर पर ही सही डाइट की मदद से आसानी से ठीक किया जा सकता है. मेथी को अपने खाने का हिस्सा बनाएं. मेथी का साग खाने से एनीमिया की बीमारी में लाभ मिलता है.

2. ब्रेस्टफीड कराने वाली मांओं के लिए

ब्रेस्टफीड कराने वाली महिलाओं के लिए भी कसूरी मेथी काफी फायदेमंद रहती है. कसूरी मेथी में पाया जाने वाल एक तरह का कंपाउंड, स्‍तनपान करवाने वाली महिलाओं के ब्रेस्‍ट मिल्‍क को बढ़ाने में मदद करता है.

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3. हार्मोनल चेंज को कंट्रोल करने में

कसूरी मेथी महिलाओं में होने वाली सबसे बड़ी समस्याओं में से एक मेनोपॉज में होने वाली परेशानी में भी बचाता है. कसूरी मेथी में फाइटोएस्ट्रोजन काफी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो मेनोपॉज के दौरान हो रहे हार्मोनल चेंज को कंट्रोल करता है.

4. शुगर से बचाव

स्‍वाद में थोड़ी कड़वी मेथी लोगों को डायबिटीज से बचाने के भी काम आती है. एक छोटे चम्मच मेथी दाना को रोज सुबह एक ग्लास पानी के साथ लेने से डायबिटीज में राहत मिलती है. हेल्थ एक्सपर्टस का मानना है कि कसूरी मेथी टाइप 2 डायबिटीज में ब्लड में शुगर के स्तर को कम करती है.

5. पेट के इंफेक्‍शन से बचाए

पेट की बीमारियों से बचना चाहती हैं तो इसे अपने खाने का हिस्सा बनाएं. इसी के साथ यह हार्ट, गैस्ट्रिक और आंतों की समस्‍याओं को भी ठीक करती है.

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6 TIPS: Pregnancy में पहनें मैटरनिटी बेल्ट

मैटरनिटी बेल्ट एक किस्म का पट्टा होता है जो गर्भवती महिलाओं के पेट और कमर को सहारा देता है. ये बेल्ट गर्भावस्था के बाद भी पहनी जा सकती है.  इसको पहनने से उभरी और सूजी हुई मांसपेशियां वापस अपने पुराने आकार में आ जाती हैं. यह लचीली बेल्ट गर्भवती महिलाओं को गर्भ के दूसरे और तीसरे तिमाही चरण में बहुत सहायता करती है.

गर्भवती महिलाओं को मैटरनिटी बेल्ट से कई फायदे होते हैं. गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद भी मैटरनिटी बेल्ट को पहनना जा सकता है.

1. दर्द कम करती है

गर्भावस्था के दौरान अधिकतर महिलाओं को पीठ, कमर और जोड़ों में दर्द होता है. इस कारण वो अपने दैनिक काम करने में भी बहुत तकलीफ महसूस करती हैं. मैटरनिटी बेल्ट उनके गर्भ और पीठ को सहारा देती है और बिना किसी दर्द के काम करने में सहायता करती है. गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कई तरह के दर्द होते हैं.

यह दर्द स्नायु, नितम्ब के अगले हिस्से और पेट के नीचे की तरफ होते हैं. इस दर्द का कारण मुख्यतः गर्भ के बढ़ने के कारण स्नायु और हड्डियों पर पड़ने वाला अतिरिक्त भार होता है. बेल्ट के कारण यह भार बंट जाता है. अतः किसी एक स्थान पर अतिरिक्त भार नहीं पड़ता. इसके साठ ही गर्भावस्था के दौरान शरीर में रिलैक्सिन नाम के होर्मोन की मात्रा बढ़ जाती है. इस कारण नितम्ब के जोड़ों पर असहाय दर्द होता है. कई बार इसी कारण पीठ के नीचले हिस्से में भी दर्द होता है. बेल्ट पहनने से जोड़ों को सहारा मिलता है और दर्द में आराम मिलता है.

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2. हल्का दबाव

यदि दिन भर के काम के दौरान पेट को हल्का-हल्का दबाव दिया जाता रहे तो यह गर्भाशय को सहारा देता है और चलने-फिरने के दौरान होने वाली मुश्किल को भी कम करता है. लेकिन यह ध्यान में रखा जाना चाहिए की दबाव बहुत ज्यादा ना हो और बेल्ट इतनी कसकर ना बांधी जाए कि पेट में खून का बहाव प्रभावित हो.

3. दैनिक क्रियाकलापों में सहायता

गर्भावस्था में नियमित रूप से चलने-फिरने से उच्च रक्तचाप, अवसाद और डायबिटीज जैसी बीमारियां दूर रहती हैं. लेकिन शारीरिक मेहनत के दौरान होने वाला दर्द और असहजता बहुत सी औरतों को टहलने-घूमने से रोक देते हैं. मैटरनिटी बेल्ट पहनने से आपका दर्द और असहजता कम होगी और आप अपनी दैनिक दिनचर्या को जी पाएंगी.

4. हर्निया के मरीजों के लिए लाभदायक

जिन महिलाओं को हर्निया की समस्या है, गर्भावस्था के दौरान यह बेल्ट उनके लिए बहुत आवश्यक और सहायक है.

5. शरीर की मुद्रा को सही रखती है

मैटरनिटी बेल्ट पहनने से आपकी पीठ को सहारा मिलता है जिस कारण शरीर की मुद्रा सही बनी रहती है. इससे नीचली पीठ जरुरत से ज्यादा खिंचने से बच जाती है. गर्भावस्था के दौरान अतिरिक्त वजन के कारण कई बार रीढ़ की मासपेशियां खिंच जाती हैं. मैटरनिटी बेल्ट इन मासपेशियों को खिंचचने से बचाती है और शरीर को सीधे रखने में सहायता करती है.

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6. प्रसव के पश्चात के फायदे

प्रसव के बाद मॉसपेशियां और स्नायु ढीले पड़ जाते है. उनको वापस अपने पुराने आकार में आने में समय लगता है. इसके साथ ही महिलाओं को अपने नवजात शिशु को भी देखना पड़ता है. प्रसव के बाद बेल्ट पहनने से यह आसान हो जाता है. नवजात शिशु के साथ ही नयी-नवेली मां के शरीर को भी स्वस्थ होने का मौका मिल जाता है.

इन सबके बावजूद, यह मैटरनिटी बेल्ट आपकी समस्याओं के समाधान का मात्र एक बाहरी सहारा है. यह भी जरूरी है कि इसपर आवश्यकता से अधिक निर्भर ना हों. जरूरी है कि मांसपेशियों और स्नायु की बेहतरी हेतु व्यायाम और खान-पान का खास ध्यान रखा जाए. यह बेल्ट पहनने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य लें.

मेरे बाद क्या बेटी को भी ब्रैस्ट कैंसर होने का खतरा है?

सवाल-

3 वर्ष पूर्व मेरे बाएं स्तन में कैंसर का पता चला था. चूंकि मुझ में बीआरसीए जीन पाया गया, इसलिए उस समय मेरे दोनों स्तनों को रिमूव कर दिया गया. मेरी 13 वर्ष की बेटी है. मुझे इस बात की चिंता है कि कहीं वह भी स्तन कैंसर के खतरे के दायरे में न आ जाए. हालांकि उस में इस का कोई लक्षण प्रकट नहीं हुआ है, लेकिन मैं इस को ले कर आश्वस्त होना चाहती हूं. बताएं इस के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

प्राय: बच्चों में जो गांठें पाई जाती हैं वे सुसाध्य (बेनाइन) होती हैं और उन के कैंसर के रूप में विकसित होने की संभावना बहुत दुर्लभ होती है. स्तन कैंसर 15 से 39 वर्ष की महिलाओं में काफी कौमन एवं आक्रामक होता है. अपने इतिहास को जानने के बाद आप की चिंता स्वाभाविक है. लेकिन जब तक आप को बेटी में कोई लक्षण न दिखाई दे तब तक भयभीत होने की जरूरत नहीं है. इस के लक्षणों में कांख अथवा स्तनक्षेत्र में गांठ, स्तन के आकारप्रकार में परिवर्तन, स्तन से रक्त का डिस्चार्ज इत्यादि शामिल हैं. हालांकि ये लक्षण अन्य बीमारियों के भी हो सकते हैं. ऐसी स्थिति में चिकित्सक से संपर्क करें. दोनों स्तनों का अल्ट्रासाउंड कराएं. यदि किसी तरह का संदेह नजर आए, तो इस की पुष्टि के लिए एमआरआई कराएं.ट

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ब्रैस्ट कैंसर तब होता है जब  कोशिका बढ़ती है और दो संतति कोशिकाओं का निर्माण करने के लिए विभाजित होकर स्तन में शुरू होता है. भारत में महिलाओं के बीच यह  एक प्रमुख कैंसर है, यह सर्वाइकल कैंसर के बाद दूसरे स्थान पर आता  है, लेकिन आश्वस्त रूप से, यदि शुरू के ही  स्टेज  (स्टेज I-II) में पता चलता है तो यह सभी प्रकार के कैंसर में से सबसे अधिक इलाज योग्य भी है. मेनोपॉज़  के बाद की महिलाएं (55 वर्ष से अधिक आयु) अधिक कमजोर होती हैं. हालांकि, कम उम्र की महिलाओं में भी इसका प्रचलन बढ़ रहा है. हर 2 साल में प्रिवेंटिव जांच अनिवार्य है, खासकर अगर तत्काल परिवार की महिला रिश्तेदार (दादी, मां, चाची या बहन) को कभी  कैंसर हुआ हो.लाइफलाइन लेबोरेटरी की एमडी (पैथ) एचओडी हेमेटोलॉजी, साइटोपैथोलॉजी और क्लिनिकल (पैथ) डॉक्‍टर मीनू बेरी के मुताबिक हालांकि यह रेयर है किन्तु  पुरुषों को भी स्तन कैंसर हो सकता है – डक्टल कार्सिनोमा और लोब्युलर कार्सिनोमा सबसे संभावित प्रकार हैं. महिला पुरुष दोनों में लक्षण कमोबेश समान होते हैं.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

गुप्त रोग लाइलाज नहीं

सैक्स का जिक्र आते ही युवा मन में एक विशेष प्रकार की सरसराहट होने लगती है. मन हसीन सपनों में खो जाता है, क्योंकि यह प्रक्रिया है 2 जवां दिलों के आपसी मिलन की.

रमेश का विवाह नेहा से तय हो गया था. रमेश नेहा की खूबसूरती देख पहली ही नजर में उस का दीवाना हो गया था. नेहा को ले कर उस ने हसीन सपने बुन रखे थे. बस, इंतजार था शादी व मिलन की रात का.

रमेश ने पहले कभी शारीरिक संबंध नहीं बनाए थे, इसलिए उस के लिए तो यह नया अनुभव था. मिलन की रात जब रमेश ने नेहा को अपने आगोश में लिया तो उस का धैर्य जवाब देने लगा. उस ने जल्दी से नेहा के कपड़े उतारे और सैक्स को तत्पर हो गया, पर अभी वे एकदूसरे में समा भी न पाए थे कि वह शांत हो गया.

नेहा अतृप्त रह गई. जिस आनंद के सपने उस ने संजो रखे थे सब धराशायी हो गए. रमेश अपने को बहुत लज्जित महसूस कर रहा था.

रमेश जैसी स्थिति किसी भी युवा के साथ आ सकती है. अकसर युवा इसे अपनी शारीरिक कमजोरी या गुप्त रोग मान लेते हैं और उन्हें लगता है कि वे कभी शारीरिक संबंध स्थापित नहीं कर पाएंगे.

बहुत से युवा अपने मन की बात किसी से संकोचवश कर नहीं पाते और हताशा का शिकार हो कर आत्महत्या तक कर लेते हैं. कुछ युवा नीमहकीमों के चक्कर में पड़ जाते हैं जो उन्हें पहले नामर्द ठहराते हैं और फिर शर्तिया इलाज की गारंटी दे कर लूटते हैं. युवाओं को समझना चाहिए कि ऐसी समस्या मानसिक स्थिति के कारण उत्पन्न होती है.

प्रसिद्ध स्किन व वीडी स्पैशलिस्ट डा. ए के श्रीवास्तव का कहना है कि ‘पहली रात में सैक्स न कर पाना एक आम समस्या है, क्योंकि युवाओं को सैक्स की जानकारी नहीं होती. वे सैक्स को भी अन्य कामों की तरह निबटाना चाहते हैं, जबकि सैक्स में धैर्य, संयम और आपसी मनुहार अत्यंत आवश्यक है.

डा. श्रीवास्तव कहते हैं कि सैक्स से पहले फोरप्ले जरूरी है, इस से रक्त संचार तेज होता है और पुरुष के अंग में पर्याप्त कसाव आता है. कसाव आने पर ही सैक्स क्रिया का आनंद आता है और वह पूर्ण होती है. इसलिए युवाओं को सैक्स को गुप्त रोग नहीं समझना चाहिए. यदि फिर भी कोई समस्या है तो स्किन व वीडी विश्ेषज्ञ की राय लें.

आइए, एक नजर डालते हैं कुछ खास यौन रोगों पर :

शीघ्रपतन

अकसर युवाओं में शीघ्रपतन की समस्या पाई जाती है. यह कोई बीमारी नहीं है बल्कि दिमागी विकारों की वजह से ऐसा होता है. इस समस्या में युवा अपने पार्टनर को पूरी तरह से संतुष्ट करने से पहले ही स्खलित हो जाते हैं. यह बीमारी वैसे तो दिमागी नियंत्रण से ठीक हो जाती है, लेकिन अगर समस्या तब भी बनी रहे तो किसी योग्य चिकित्सक से परामर्श ले कर इस समस्या से छुटकारा मिल सकता है.

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नपुंसकता

नपुंसकता एक जन्मजात बीमारी है. इस रोग से ग्रसित लोग स्त्री को शारीरिक सुख देने में सक्षम नहीं होते और न ही संतान पैदा कर पाते हैं. कुछ युवाओं में क्रोमोसोम्स की कमी भी नपुंसकता का कारण होती है. युवाओं को शादी से पहले पता ही नहीं चलता कि उन के क्रोमोसोम्स या तो सक्रिय नहीं हैं या उन में दोष है. कुछ युवा शुरू में नपुंसक नहीं होते पर अन्य शारीरिक विकारों की वजह से वे सैक्स क्रिया सही तरीके से नहीं कर पाते. इसलिए उन को नपुंसक की श्रेणी में रखा जाता है. आजकल तो इंपोटैंसी टैस्ट भी उपलब्ध हैं. अगर ऐसी कोई समस्या है तो इस टैस्ट को अवश्य कराएं.

पुरुष हारमोंस की कमी

पुरुषों में टैस्टेटोरोन नाम का हारमोन बनता है. यही हारमोन पुरुष होने का प्रमाण है. कभीकभी किन्हीं वजहों से टैस्टेटोरोन स्रावित होना बंद हो जाता है तो वह व्यक्ति गुप्त रोग का शिकार हो जाता है. 50 से 55 वर्ष की आयु के बाद इस हारमोन के बनने की गति धीमी पड़ जाती है इसलिए ऐसे व्यक्ति सैक्स क्रिया में जोश से वंचित रह जाते हैं.

सिफलिस

यह वाकई एक गुप्त रोग है जो किसी अनजान के साथ यौन संबंध बनाने से होता है. अकसर यह रोग सफाई न रखने या ऐसे पार्टनर से सैक्स संबंध कायम करने से होता है जो अलगअलग लोगों से सैक्स संबंध बनाता है. इस रोग में यौनांग पर दाने निकल आते हैं. कभीकभी इन दानों से खून या मवाद का रिसाव तक होता रहता है. यदि आप के यौन अंग पर ऐसे दाने उभरते हैं तो तुरंत त्वचा व गुप्त रोग विशेषज्ञ से राय लें और इलाज कराएं. इस का इलाज संभव है.

जिस तरह पुरुषों में यौन या गुप्त रोग होते हैं, उसी तरह महिलाओं में भी गुप्त रोग हो सकते हैं. अकसर बहुत सी युवतियों की सैक्स में रुचि नहीं होती. सैक्स के नाम से वे घबरा जाती हैं ऐसी युवतियां या तो बचपन में किसी हादसे का शिकार हुई होती हैं या फिर किसी गुप्त रोग से पीडि़त होती हैं, यहां तक कि वे शादी करने तक से घबराती हैं.

महिलाओं के कुछ खास गुप्त रोग

बांझपन

युवतियों में 12-13 वर्ष की उम्र से माहवारी आनी शुरू हो जाती है. कभीकभी यह 1-2 साल आगेपीछे भी हो जाती है पर ऐसी भी युवतियां हैं जिन के माहवारी होती ही नहीं. ऐसी युवतियां बांझपन का शिकार हो जाती हैं. स्त्री बांझपन भी पुरुष नपुंसकता की तरह जन्मजात रोग है. बहुतों में अनेक शारीरिक व्याधियों के चलते भी हो जाती है लेकिन वह अस्थायी होती है और इलाज से ठीक भी हो जाता है. अगर किसी किशोरी को माहवारी की समस्या है तो उसे तुरंत किसी योग्य स्त्रीरोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए.

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जननांगों में खुजली

जब से समाज में खुलापन आया है युवा मस्ती में कब हदें पार कर देते हैं पता ही नहीं चलता. चूंकि इन्हें जननांगों की साफसफाई कैसे रखी जाए, यह पता नहीं होता इसलिए ये खुजली जैसे यौन संक्रमणों का शिकार हो जाते हैं. यदि बौयफ्रैंड को कोई यौन संक्रमण है तो गर्लफ्रैंड को इस यौन संक्रमण से बचाया नहीं जा सकता. अत: दोनों को ही शारीरिक संबंध बनाने से पहले अपने यौनांगों की अच्छी तरह सफाई कर लेनी चाहिए.

एंड्रोजन हारमोन का अभाव

जिस तरह पुरुषों में पुरुष हारमोन टैस्टेटोरोन होता है, उसी तरह युवतियों में एंड्रोजन हारमोन होता है. जिन युवतियों में इस हारमोन की कमी होती है, उन में सैक्स के प्रति उत्साह कम देखा गया है, क्योंकि यही हारमोन सैक्स क्रिया को भड़काता है. यदि कोई युवती एंड्रोजन हारमोन की कमी का शिकार है तो उसे तुरंत गाइनोकोलौजिस्ट से राय लेनी चाहिए. यह कोई लाइलाज रोग नहीं है.

लिकोरिया

लिकोरिया गंदगी की वजह से होने वाला एक महिला गुप्त रोग है. इस रोग में योनि से सफेद बदबूदार पानी का स्राव होता रहता है, जिस से शरीर में कैल्शियम व आयरन की कमी हो जाती है. इस रोग से बचने के लिए युवतियों को अपने गुप्तांगों की नियमित सफाई रखनी चाहिए और किसी दूसरी युवती के अंदरूनी वस्त्र नहीं पहनने चाहिए. लिकोरिया की शिकार युवतियों को तुरंत लेडी डाक्टर से सलाह लेना चाहिए, वरना यह रोग बढ़ कर बेकाबू हो सकता है.

सैक्स में भ्रांतियां न पालें

सैक्स की अज्ञानता की वजह से अकसर युवकयुवतियां सैक्स को ले कर तरहतरह की भ्रांतियां पाल लेते हैं.

हस्तमैथुन

यह एक स्वाभाविक क्रिया है. अकसर युवकों को हस्तमैथुन की आदत पड़ जाती है. ज्यादा हस्तमैथुन करने वाले युवकों को लगता है कि उन का अंग छोटा या टेढ़ा हो गया है और वे विवाह के बाद अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने में कामयाब नहीं होंगे. कई नीमहकीम भी युवकों को डरा देते हैं कि हस्तमैथुन से अंग की नसें कमजोर पड़ जाती हैं और वे अपनी पत्नी को खुश नहीं रख सकेंगे, पर वास्तव में ऐसा नहीं है. हस्तमैथुन शरीर की आवश्यकता है. शरीर में वीर्य बनने पर उस का बाहर आना भी जरूरी है. इस में किसी प्रकार की कोई बुराईर् नहीं है. युवक ही नहीं युवतियां भी हस्तमैथुन करती हैं. डाक्टरों का भी मत है कि हस्तमैथुन का कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ता.

ज्यादा सैक्स सेहत के लिए हानिकारक

अकसर लोगों को यह कहते सुना जाता है कि ज्यादा सैक्स सेहत के लिए हानिकारक है पर ऐसा बिलकुल भी नहीं है. बल्कि सैक्स से महरूम रहना सेहत पर असर डालता है. सैक्स से मानसिक थकावट कम होती है, चित्त प्रफुल्लित रहता है जो सेहत के लिए अत्यंत जरूरी है.

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साइनोसाइटिस के कारण मैं काफी परेशान हूं, कृपया बताएं मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल-

मैं 22 वर्षीय युवती हूं. बी.एससी. कर रही हूं. काफी समय से साइनोसाइटिस से परेशान हूं. मेरी नाक अकसर बंद रहती है, जिस का असर मेरे कानों पर भी होने लगा है. मुझे कम सुनाई देने लगा है. एक डाक्टर की देखरेख में काफी समय से दवा चल रही है पर आराम नहीं आ रहा. कृपया बताएं मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

हमारी नाक के पीछे के हिस्से और कानों के बीच एक लंबी नली होती है, जिसे यूसटेशियन ट्यूब कहते हैं. संक्रमण, ऐलर्जी, बारबार सर्दीजुकाम या फिर साइनोसाइटिस होने पर यह नली कभीकभी बंद हो जाती है. इस से कानों के भीतर हवा का संतुलन बिगड़ जाता है और सुनने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है.

साइनोसाइटिस के समुचित इलाज और कान के एक छोटे से औपरेशन से इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है. अच्छा होगा कि आप इस संबंध में किसी योग्य ई.एन.टी. विशेषज्ञ से संपर्क करें.

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बड़े और बच्चों, सभी में साइनस के लक्षण एक जैसे ही होते हैं. इसके अलावा, सर्दी-जुकाम, फ्लू, अस्थमा, क्रौनिक औबस्ट्रक्टिव पल्मनरी डिजीज़ (COPD) और साइनस के काफी लक्षण करीब-करीब एक जैसे होते हैं. हालांकि इन सभी बीमारियों में कुछ फर्क भी होता है:

किसी को साइनस की प्रौब्लम अगर कुछ बरसों तक रहे तो वह आगे चलकर अस्थमा में बदल सकती है. हालांकि बच्चों में यह समय 8 से 10 साल का होता है.

ऐसे करें बचाव

1- एलर्जी से बचने के लिए बहुत ज्यादा भारी-भरकम और गद्देदार फर्नीचर से परहेज करें. अपने तकियों, बिस्तरों और कारपेट की नियमित सफाई करें. गलीचों और पायदानों की सफाई का भी ध्यान रखें. परफ्यूम आदि की गंध से दूर रहें. एयर पलूशन से बचें.

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ओवेरियन कैंसर क्या आनुवंशिक रोग है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी मां को डिंबाशय का कैंसर था. लेकिन अब वे उपचार से ठीक हो चुकी हैं. हाल ही में मेरी चाची को भी डिंबाशय के कैंसर का पता चला है. मैं ने सुना है कि डिंबाशय का कैंसर आनुवंशिक रोग है, जिस के कारण मुझे इस की चपेट में आने की आशंका है. कृपया बताएं कि मुझे किन लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए और क्या मुझे किस प्रकार की जांच करानी चाहिए?

जवाब-

डिंबाशय के कैंसर के कुल मामलों में 5 से 10% मामले ही आनुवंशिक होते हैं. इस रोग का पारिवारिक इतिहास होने के कारण आप के समक्ष जीन के उत्परिवर्तित होने का उच्चस्तरीय खतरा रहता है. कैंसर के शीघ्र डाइग्नोसिस के लिए कुछ जांचें कराना जरूरी होता है. डिंबाशय के कैंसर के शुरू के चरणों में कोई लक्षण प्रकट नहीं होता, लेकिन यदि आप श्रोणिक्षेत्र अथवा आमाशय अथवा गैस, पेट फूलने जैसी आंत्रजठरीय समस्याओं जैसे लक्षणों को महसूस करती हैं, तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें. अल्ट्रासाउंड के जरीए इस का डाइग्नोसिस किया जा सकता है.

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भारत में हर वर्ष करीब 1,60,00 महिलाओं में स्त्री रोग संबंधी कैंसर का पता चलता है. सब से व्यापक सर्वाइकल कैंसर है लेकिन इस के अन्य प्रकार भी हैं- अंडाशय, गर्भाशय, योनी या जननांग संबंधी. कैंसर की वजह से ज्यादातर मौतें गैरजरूरी रूप से लक्षणों व जांच की जरूरत के बारे में जागरूकता की कमी के चलते होती हैं. ऐसे में इन कैंसरों के बारे में अपनी समझ को बड़े पैमाने पर बढ़ाने की जरूरत है.

क्या है कैंसर

कैंसर एक भयावह शब्द है लेकिन इसे अच्छी तरह समझा नहीं जाता है. कैंसर शब्द का प्रयोग बीमारियों के एक संग्रह को परिभाषित करने के लिए किया जाता है जिस में एक अनोखी बात होती है-कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि जिस में शरीर के अन्य हिस्से तक फैलने की क्षमता होती है. प्रसूति संबंधी कैंसर महिलाओं के जननांगों से फैलता है. जब कैंसर की शुरुआत अंडाशय से होती है तो इसे अंडाशय के कैंसर के तौर पर जाना जाता है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- ओवेरियन कैंसर : जानें, समझें और बने जागरूक

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कैसे बढ़ती उम्र हड्डियों की सेहत पर डालती है असर

उम्र और हड्डियों का अनोखा खट्टा-मीठा रिश्ता होता है. जब हम छोटे होते हैं तो हमारी हड्डियां सबसे बेहतर आकार में होती हैं. लेकिन जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, हड्डियों का स्वास्थ्य प्रभावित होने लगता है. इसलिये, हम सबको अपने जीवन के हर पड़ाव में हड्डियों के स्वास्थ्य के महत्व के बारे में सजग होना चाहिये. डॉ आर एस वशिष्ट के मुताबिक जब हमारी उम्र कम होती है हम हड्डियों की मजबूती को उतना महत्व नहीं देते हैं, लेकिन बढ़ती उम्र के साथ इसे प्राथमिकता देनी चाहिये. खासकर महिलाओं को, क्योंकि 30 साल की उम्र के बाद इनमें हड्डियों से जुड़ी समस्याओं के बढ़ने की आशंका अधिक होती है.

फैक्ट: जन्म के समय और नवजातों, शिशुआ की हड्डियां नरम तथा लचीली होती हैं

बच्चों की हड्डियां नरम और लचीले मटेरियल से बनी होती हैं, जिन्हें कार्टिलेज कहते हैं. यह बच्चे को बढ़ने और वयस्क कद तक पहुँचने में मदद करती हैं. जैसा कि हम जानते हैं कि इसके बाद इस कार्टिलेज में कैल्शियम जमा होने लगता है और मजबूत हड्डियों के रूप में यह सख्त होने लगता है.

फैक्ट : बचपन (1-9 वर्ष): यह बेहद महत्वपूर्ण समय होता है क्योंकि स्‍केलेटन विकसित होता है और उसका घनत्व बढ़ता है

बचपन में हमारी हड्डियां आकार और घनत्व में बढ़ती हैं, क्योंकि हड्डियों में कैल्शियम और अन्य खनिज जमा हो रहे होते हैं. जिन छोटे बच्चों को कैल्शियम और विटामिन डी3 नहीं मिल रहा है, उनमें हड्डियों में कमजोरी, पैर मुड़े हुए और अन्य समस्याएं हो सकती हैं.

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फैक्ट 3: किशोरावस्था (10-20 वर्ष): यह बढ़ने का समय होता है. इस समय हड्डियां विकसित हो रही होती हैं, जीवन के आखिरी समय तक के लिये

हड्डियों के विकास के लिये किशोरावस्था एक महत्वपूर्ण समय है. लड़कियों की ऊंचाई 11-12 साल के बीच बढ़ती है और लड़कों को 13-14 साल में इसका अनुभव होता है. किशोरावस्था के दौरान हड्डियों की ताकत का लगभग 90% हासिल कर लिया जाता है, इससे भविष्य में हड्डियों की सेहत तय होती है.

फैट 4: वयस्क अवस्था (20-30 वर्ष): हड्डियों की अच्छी सेहत का एक और मौका होता है

इस उम्र तक, शरीर अब इतनी आसानी से नई हड्डी नहीं बना रहा होता है, लेकिन तीस की उम्र के पहले तक यह हड्डी के घनत्व और ताकत के चरम तक पहुँचने का समय होता है. इन वर्षों के दौरान महिलाओं को गर्भावस्था और स्तनपान का भी अनुभव होता है. गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान कैल्शियम की उच्च मांगों को पूरा करने के लिये एक अच्छा आहार महत्वपूर्ण है. चूँकि, आपका दैनिक आहार आपकी कैल्शियम की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता, इसलिये कैल्शियम सप्लीमेंट और विटामिन डी के साथ आने वाला विकल्प चुनना महत्वपूर्ण है. कई ऐसे ब्रांड भी हैं जो कैल्शियम की चबाने योग्य गोलियाँ देते हैं जिनका स्वाद अच्छा होता है और इनका आसानी से सेवन किया जा सकता है. पुरुषों की तुलना में महिलाओं में हड्डियों के कमजोर होने का खतरा अधिक होता है. इसलिये, हड्डी से जुड़ी कोई भी समस्या होने से पहले उससे निपटने के लिये हमेशा तैयार रहना बेहतर होता है.

फैक्ट 5: प्रौढ़ावस्था (30-50 वर्ष): जब उम्र हड्डी की सेहत पर धीरे-धीरे और धीमी गति से प्रभाव डालने लगती है

30 साल की उम्र से पुरुषों और महिलाओं दोनों में हड्डियों की ताकत और यहां तक कि मांसपेशियों की टोन में लगातार कमी आने लगती है. हमारे पूरे जीवनकाल में हड्डियां बदलती रहती हैं. हालांकि, 40 की उम्र के बाद, हड्डियों में बदलाव कम होता है. इसलिये, रीमॉडलिंग के बाद ना केवल मजबूत हड्डियों के लिये बल्कि हड्डियों के नुकसान को रोकने के लिये भी डाइट में कैल्शियम और विटामिन डी3 महत्वपूर्ण होता है.

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फैक्ट 6: 50 वर्ष के बाद: हड्डियां पतली होने लगती हैं और खनिज खोने लगती हैं

महिलाओं को 42-55 साल के बीच मेनोपॉज का अनुभव होता है, जो उनमें हड्डियों के नुकसान की गति को बढ़ा देता है. हड्डियां खनिजों को खोने लगती हैं और संरचना में परिवर्तन होने लगता है. फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है. ऑस्टियोपोरोसिस, एक ऐसी बीमारी है जिसमें हड्डियों के खनिज घनत्व में कमी के कारण हड्डियां आसानी से टूट सकती हैं, यह आम है. झुकने या छींकने जैसी छोटी गतिविधियाँ भी ऑस्टियोपोरोसिस वाले व्यक्ति में फ्रैक्चर का कारण बन सकती हैं.

फैक्ट 7: 70 वर्ष की उम्र के बाद हड्डी की सेहत: हड्डियां काफी कमजोर होती हैं और फ्रैक्चर आम होता है

70 साल की उम्र के बाद हड्डियों की मजबूती कम होती जाती है. बुजुर्गों में हड्डी की चोट का एक सामान्य कारण नीचे गिरना है और इसलिये गिरने से बचाव जरूरी है. व्यायाम की एक सामान्य दिनचर्या, संतुलन और लचीलेपन को बनाये रखने में मदद कर सकती है.

कुल मिलाकर, भरपूर मात्रा में कैल्शियम और विटामिन डी3 के साथ संतुलित आहार लेना, विशेष रूप से बढ़ती उम्र के साथ महत्वपूर्ण होता है. 30 की उम्र के बाद की महिलाओं को आहार के साथ पर्याप्त कैल्शियम का सप्लीमेंट लंबे समय तक एक सक्रिय जीवन जीने में मददगार होता है.

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