सास बहू दोनों के लिए जानना जरुरी है घरेलू हिंसा कानून

मेरे महल्ले में एक वृद्ध महिला अपने घर में अकेली रहती हैं. वे बेहद मिलनसार व हंसमुख हैं. उन का इकलौता बेटा और बहू भी इसी शहर में अलग घर ले कर रहते हैं. एक दिन जब मैं ने उन से इस बारे में जानना चाहा तो उन्होंने जो कुछ भी बताया वह सुन कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए.

उन्होंने बताया, ‘‘मेरे बेटे ने प्रेमविवाह किया था. फिर भी हम ने कोई आपत्ति नहीं की. बहू ने भी आते ही अपने व्यवहार से हम दोनों का दिल जीत लिया. 2 साल बहुत अच्छे से बीते. लेकिन मेरे पति की मृत्यु होते ही मेरे प्रति अप्रत्याशित रूप से बहू का व्यवहार बदलने लगा. अब वह बेटे के सामने तो मेरे साथ अच्छा व्यवहार करती, परंतु उस के जाते ही वह बातबात पर मुझे ताने देती और हर वक्त झल्लाती रहती. मुझे लगता है कि शायद अधिक काम करने की वजह से वह चिड़चिड़ी हो गई है, इसलिए मैं ने उस के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया. मगर उस ने तो जैसे मेरे हर काम में मीनमेख निकालने की ठान रखी थी.

‘‘धीरेधीरे वह घर की सभी चीजों को अपने तरीके से रखने व इस्तेमाल करने लगी. हद तो तब हो गई जब उस ने फ्रिज और रसोई को भी लौक करना शुरू कर दिया. एक दिन वह मुझ से मेरी अलमारी की चाबी मांगने लगी. मैं ने इनकार किया तो वह झल्लाते हुए मुझे अपशब्द कहने लगी. जब मैं ने यह सबकुछ अपने बेटे को बताया तो वह भी बहू की ही जबान बोलने लगा. फिर तो मुझे अपनी बहू का एक नया ही रूप देखने को मिला. वह जोरजोर से रोनेचिल्लाने लगी तथा रसोई में जा कर आत्महत्या का प्रयास भी करने लगी. साथ ही, यह धमकी भी दे रही थी कि वह यह सबकुछ वीडियो बना कर पुलिस में दे देगी और हम सब को दहेज लेने तथा उसे प्रताडि़त करने के इलजाम में जेल की चक्की पिसवाएगी. उस समय तो मैं चुप रह गई, परंतु मैं ने हार नहीं मानी.

‘‘अगले ही दिन बिना बहू को बताए उस के मातापिता को बुलवाया. अपने एक वकील मित्र तथा कुछ रिश्तेदारों को भी बुलवाया. फिर मैं ने सब के सामने अपने कुछ जेवर तथा पति की भविष्यनिधि के कुछ रुपए अपने बेटेबहू को देते हुए इस घर से चले जाने को कहा. मेरे वकील मित्र ने भी बहू को निकालते हुए कहा कि महिला संबंधी कानून सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं, बल्कि तुम्हारी सास के लिए भी है. तुम्हारी सास भी चाहे तो तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट कर सकती है. तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम सीधी तरह से इस घर से चली जाओ. मेरा यह रूप देख कर बहू और बेटा दोनों ही चुपचाप घर से चले गए. अब मैं भले ही अकेली हूं परंतु स्वस्थ व सुरक्षित महसूस करती हूं.’’

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उक्त महिला की यह स्थिति देख कर मुझे ऐसा लगा कि अब इस रिश्ते को नए नजरिए से भी देखने की आवश्यकता है. सासबहू के बीच झगड़े होना आम बात है. परंतु, जब सास अपनी बहू के क्रियाकलापों से खुद को असुरक्षित व मानसिक रूप से दबाव महसूस करे तो इस रिश्ते से अलग हो जाना ही उचित है. बदलते समय और बिखरते संयुक्त परिवार के साथ सासबहू के रिश्तों में भी काफी परिवर्तन आया है.

एकल परिवार की वृद्धि होने के कारण लड़कियां प्रारंभ से ही सासविहीन ससुराल की ही अपेक्षा करती हैं. वे पति व बच्चे तो चाहती हैं परंतु पति से संबंधित अन्य कोई रिश्ता उन्हें गवारा नहीं होता. शायद वे यह भूल जाती हैं कि आज यदि वे बहू हैं तो कल वे सास भी बनेंगी.

फिल्मों और धारावाहिकों का प्रभाव:

हम मानें या न मानें, फिल्में व धारावाहिक हमारे भारतीय परिवार व समाज पर गहरा असर डालते हैं. पुरानी फिल्मों में बहू को बेचारी तथा सास को दहेजलोभी, कुटिल बताते हुए बहू को जला कर मार डालने वाले दृश्य दिखाए जाते थे.

कई अदाकारा तो विशेषरूप से कुटिल सास का बेहतरीन अभिनय करने के लिए ही जानी जाती हैं. आजकल के सासबहू सीरीज धारावाहिकों का फलक इतना विशाल रहता है कि उस में सबकुछ समाया रहता है. कहीं गोपी, अक्षरा और इशिता जैसी संस्कारशील बहुएं भी हैं तो कहीं गौरा और दादीसा जैसी कठोर व खतरनाक सासें हैं. कोकिला जैसी अच्छी सास भी है तो राधा जैसी सनकी बहू भी है. अब इन में से कौन सा किरदार किस के ऊपर क्या प्रभाव डालता है, यह तो आने वाले समय में ही पता चलता है.

आज के व्यस्त समाज में आशा सहाय और विजयपत सिंघानिया की स्थिति देख कर तो यही लगता है कि अब हम सब को अपनी वृद्धावस्था के लिए पहले से ही ठोस उपाय कर लेने चाहिए. कई यूरोपियन देशों में तो व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद शोक मनाने के लिए भी सारे इंतजाम करने के बाद ही मरता है. हमारे समाज का तो ढांचा ही कुछ ऐसा है कि हम अपने बच्चों से बहुत सारी अपेक्षाएं रखते हैं.

हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, बेटेबहू के हाथ से तर्पण व मोक्ष पाने का लालच इतना ज्यादा है कि चाहे जो भी हो जाए, वृद्ध दंपती बेटेबहू के साथ ही रहना चाहते हैं. बेटियां चाहे जितना भी प्यार करें, वे बेटियों के साथ नहीं रह सकते, न ही उन से कोई मदद मांगते हैं. कुछ बेटियां भी शादी के बाद मायके की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेना चाहती हैं. और दामाद को तो ससुराल के मामले में बोलने का कोई हक ही नहीं होता.

भारतीय समाज में एक औरत के लिए सास बनना किसी पदवी से कम नहीं होता. महिला को लगता है कि अब तक उस ने बहू बन कर काफी दुख झेले हैं, और अब तो वह सास बन गई है. सो, अब उस के आराम करने के दिन हैं. सास की हमउम्र सहेलियां भी बहू के आते ही उस के कान भरने शुरू कर देती हैं. ‘‘बहू को थोड़ा कंट्रोल में रखो, अभी से छूट दोगी तो पछताओगी बाद में.’’

‘‘उसे घर के रीतिरिवाज अच्छे से समझा देना और उसी के मुताबिक चलने को कहना.’’

‘‘अब तो तुम्हारा बेटा गया तुम्हारे हाथ से’’, इत्यादि जुमले अकसर सुनने को मिलते हैं. ऐसे में नईनई सास बनी एक औरत असुरक्षा की भावना से घिर जाती है और बहू को अपना प्रतिद्वंद्वी समझ बैठती है. जबकि सही माने में देखा जाए तो सासबहू का रिश्ता मांबेटी जैसा होता है. आप चाहें तो गुरु और शिष्या के जैसा भी हो सकता है और सहेलियों जैसा भी.

यदि हम कुछ बातों का विशेषरूप से ध्यान रखें तो ऐसी विपरित परिस्थितियों से निबटा जा सकता है, जैसे-

–       नई बहू के साथ घर के बाकी सदस्यों के जैसा ही व्यवहार करें. उस से प्यार भी करें और विश्वास भी, परंतु न तो चौबीसों घंटे उस पर निगरानी रखें और न ही उस की बातों पर अंधविश्वास करें.

–       नई बहू के सामने हमेशा अपने गहनों व प्रौपर्टी की नुमाइश न करें और न ही उस से बारबार यह कहें कि ‘मेरे मरने के बाद सबकुछ तुम्हारा ही है.’ इस से बहू के मन में लालच पैदा हो सकता है. अच्छा होगा कि आप पहले बहू को ससुराल में घुलमिल जाने दें तथा उस के मन में ससुराल के प्रति लगाव पैदा होने दें.

–       बहू की गलतियों पर न तो उस का मजाक उड़ाएं और न ही उस के मायके वालों को कोसें. बल्कि, अपने अनुभवों का इस्तेमाल करते हुए सहीगलत, उचितअनुचित का ज्ञान दें. परंतु याद रहे कि ‘हमारे जमाने में…’ वाला जुमला न इस्तेमाल करें.

–       बहू की गलतियों के लिए बेटे को ताना न दें, वरना बहू तो आप से चिढ़ेगी ही, बेटा भी आप से दूर हो जाएगा.

–       अपने स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दें तथा घरेलू कार्यों में आत्मनिर्भर रहने का प्रयास करें.

–       समसामयिक जानकारियों, कानूनी नियमों, बैंक व जीवनबीमा संबंधी नियमों तथा इलैक्ट्रौनिक गैजेट्स के बारे में भी अपडेट रहें. इस के लिए आप अपनी बहू का भी सहयोग ले सकती हैं. इस से वह आप को पुरातनपंथी नहीं समझेगी, और वह किसी बात में आप से सलाह लेने में हिचकेगी भी नहीं.

–       अपने पड़ोसी व रिश्तेदारों से अच्छे संबंध रखने का प्रयास करें.

–       बेटेबहू को स्पेस दें. उन के आपसी झगड़ों में बिन मांगे अपनी सलाह न दें.

–       परंपराओं के नाम पर जबरदस्ती के रीतिरिवाज अपनी बहू पर न थोपें. उस के विचारों का भी सम्मान करें.

आखिर में, यदि आप को अपनी बहू का व्यवहार अप्रत्याशित रूप से खतरनाक महसूस हो रहा है तो आप अदालत का दरवाजा खटखटाने में संकोच न करें. याद रखिए घरेलू हिंसा का जो कानून आप की बहू के लिए है वह आप के लिए भी है.

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कानून की नजर में

केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने एक अंगरेजी अखबार के जरिए यह कहा था कि घरेलू हिंसा कानून ऐसा होना चाहिए जो बहू के साथसाथ सास को भी सुरक्षा प्रदान कर सके. क्योंकि अब बहुओं द्वारा सास को सताने के भी बहुत मामले आ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि हिंदू मैरिज कानून के मुताबिक, कोई भी बहू किसी भी बेटे को उस के मांबाप के दायित्वों के निर्वहन से मना नहीं कर सकती.

क्या कहता है समाज

भारतीय समाज के लोगों ने अपने मन में इस रिश्ते को ले कर काफी पूर्वाग्रह पाल रखे हैं. विशेषकर युवा पीढ़ी बहू को हमेशा बेचारी व सास को दोषी मानती है. युवतियां भी शादी से पहले से ही सासबहू के रिश्ते के प्रति वितृष्णा से भरी होती हैं. वे ससुराल में जाते ही सबकुछ अपने तरीके से करने की जिद में लग जाती हैं. वे पति को ममा बौयज कह कर ताने देती हैं और सास को भी अपने बेटे से दूर रखने की कोशिश करती हैं.

जब माता या पिता का हो एक्सट्रा मैरिटल अफेयर

दिल्ली के एक कौलेज में छात्रों को साइकोलौजिकल सपोर्ट देने के उद्देश्य से बनाये गए क्लिनिक में काउंसलरका एक दिन किसी छात्रा द्वारा बताई गयी ऐसी समस्या से सामना हुआ जो पहले कोई और लेकर नहीं आया था. प्रौब्लम लड़की के पिता से जुड़ी थी, लेकिन वह छात्रा अपने अन्य मित्रों के समान पिता के अनुशासनपूर्ण रवैये से परेशान नहीं थी. उसकी समस्या तो यह थी कि उसके पिता अनुशासन में नहीं हैं. लड़की के अनुसार उसके पिता समाज व परिवार के क़ायदे भूलकर अपने औफ़िस की एक महिला मित्र संग अवैध सम्बन्ध बनाये हुए हैं. एक दिन जब वहछात्रा अपनी कुछ सहेलियों के साथ एक कौफ़ी शौप में पहुंची तो पिता उस युवती के साथ सटकर बैठे थे. ग़नीमत यह रही कि सखियों में से कोई भी उसके पिता को नहीं पहचानती थी, वरना छात्रा के अनुसार वह आत्महत्या ही कर लेती.

एक अन्य घटना मध्य प्रदेश की है, जहां अपने पति के मित्र से सम्बन्ध रखने पर एक मां को जान से हाथ धोना पड़ा. 15 वर्षीय बेटे को मां के विवाहेतर सम्बन्ध का पता लगा तो वह आग-बबूला हो उठा और उसने अपनी मां की हत्या कर दी.

विवाहेतर सम्बन्ध या एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ेयर से जुड़े समाचार प्राय सुनने में आ ही जाते हैं. आज जब समाज में ‘मेरा जीवन मेरे नियम’ का चलन ज़ोर पकड़ने लगा है तो इस प्रकार की समस्याएं भी खड़ी हो रही हैं. युवा हो रहे बच्चों को जब अपने माता या पिता के विवाहेतर सम्बन्ध की जानकारी होती है तो उनके दिल पर क्या गुज़रती होगी इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है. ऐसी परिस्थिति का सामना वे किस प्रकार करें इस पर विचार तभी हो सकता है जब उन पर पड़ने वाले प्रभावों को समझ लिया जाए.

माता-पिता के एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ेयर का बच्चों पर प्रभाव

– अभिभावक की रुचि कहीं और देखकर वे स्वयं को उपेक्षित समझने लगते हैं और हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं.

– इस प्रकार के सम्बन्धों और उसके कारण माता-पिता के बीच होने वाले विवाद से वे तनाव में आ जाते हैं औरस्वयं कोअकेलामहसूस करने लगते हैं.

– माता-पिता तो एक-दूसरे से लड़ झगड़कर अपनी बात कह सकते हैं लेकिन बच्चे की यह समस्या हो जाती है कि वह क्या करे? न तो पीड़ित अभिभावक का पक्ष ले सकता है और न ही अफ़ेयर में फंसे अभिभावक को खरी-खोटी सुना सकता है.

– माता-पिता के बीच सम्बन्ध टूट जाने का भय उसमें असुरक्षा की भावना को जन्म देता है.

– विवाहेतर सम्बन्ध बनाने वाले अभिभावकों की गतिविधियों पर प्रभावित बच्चे आते-जाते नज़र रखने लगते हैं, जिससे उनके भीतर संदेह की प्रवृत्ति घर करने लगती है.

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– मित्रों को इस बात का पता लग जाएगा तो उनकी प्रतिक्रिया न जाने क्या होगी, इस बात का भय उनको दोस्तों से दूर कर देता है और वे समाज से कटना शुरू कर देते है.

– युवा बच्चों का ध्यान अपना करियर बनाने में रहता है. इस प्रकार के सम्बन्धों के विषय में जानकर उनका मन पढ़ाई या किसी परीक्षा की तैयारी आदि में नहीं लग पाता. इसका प्रभाव उनके सम्पूर्ण जीवन पर पड़ सकता है.

– बच्चे माता-पिता को अपना आदर्श मानते हैं. जब उनके रिश्ते में वे किसी तीसरे का प्रवेश देखते हैं तो उनका अभिभावकों से विश्वास उठने लगता है.

– युवा हो रहे बच्चे पर कभी-कभी इस बात का प्रभाव इतना गहरा पड़ जाता है कि क्रोध के कारण उसकी प्रवृति हिंसात्मक होने लगती है.

क्या करें जब माता या पिता के हों विवाहेतर सम्बन्ध

• यह सच है कि बच्चों को इस प्रकार का आघात सहन करना भारी पड़ता है, लेकिन इसका परिणाम घर से चले जाना या पढ़ाई से दूर हो जानानहीं होना चाहिए. एक ग़लत कदम के लिए कोई दूसरा ग़लत कदम उठा लेना समझदारी नहीं.

• माता या पिता द्वारा यदि एक भूल हो गयी तो इसका यह अर्थ नहीं कि उनका अपनी संतान के प्रति स्नेह भी समाप्त हो गया. इसलिए अपने को उपेक्षित मानकर आत्महत्या करने की बात सोचना बिल्कुल ग़लत होगा.

• इस बात की चिंता कि समाज इस बारे में क्या सोचेगा, माता या पिता को भी होगी. इसलिए अभिभावकों के अवैध सम्बन्धों को लेकर बच्चों को दिन-रात इस चिंता में घुलना कम करना चाहिए कि लोग क्या कहेंगे? अपने मित्रों से मिलना-जुलना उन्हें पूर्ववत जारी रखना चाहिए.

• संयम से काम लेना होगा. आवश्यकता पड़ने पर अभिभावकों को अपनी मनोदशा बताई जा सकती है. यदि साफ़-साफ़ कहने में संकोच हो तो लिखकर विनम्रतापूर्वक अपने दिल की बात बताना सही होगा.

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• मां या पिता के विषय में कुछ भी अप्रिय देखा अथवा सुना गया हो तोअपनी बातजल्दी ही पेरेंट्स तक पहुंचा देनी चाहिए. शुरू-शुरू में बच्चे द्वारा अपनी बात कह देने से एक लाभ तो यह होगा कि उस पीड़ित बच्चे के मन-मस्तिष्क में पनप रहा तनावहिंसात्मक रूप नहीं लेगा और दूसरा सम्बन्ध में लिप्त अभिभावक को संभलने में अधिक समय नहीं लगेगा.

• अपने मन की बात कह देने के बाद बच्चों को चाहिए कि इस विषय में अधिक न सोचें और चिंताग्रस्त होने के स्थान पर पढ़ाई में मन लगाकर अपने सपनों को पूरा करने में जुटे रहें. कोई भी समस्या दूर होने में कुछ समय तो लगता ही है.

यह सच है कि युवा बच्चे अपनी समझदारी दिखाते हुए विवाहेतर सम्बन्धों में रुचि ले रहे अभिभावकों को अपनी दुर्गति से परिचित करवा सकते हैं, लेकिन एक अहम् बात जो समझना आवश्यक है कि माता-पिता पेरेंट्स होने के साथ-साथ एक इंसान भी हैं और भूल तो किसी भी व्यक्ति से हो सकती है.समस्या कोई भी हो उसका समाधान ढूंढा जा सकता है. इसलिए यह याद रखना होगा कि माता या पिता को कहीं सम्बन्ध बढ़ाते देख अपना आपा खोकर कुछ भी अनुचित करने से बचना होगा.

पापा मेरे प्यार के खिलाफ हैं, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं एक युवक से बहुत प्यार करती हूं. वह भी मुझ से प्यार करता है. हम दोनों इस बारे में अपनी फैमिली को बता चुके हैं. हम आगे की पढ़ाई साथ करना चाहते थे, लेकिन मुझे पटना भेज दिया गया और उसे कोटा. उस की फैमिली मुझे स्वीकार करती है लेकिन मेरी फैमिली कहती है कि वह मांसाहारी है और मुझे उस से बात करने से भी मना करते हैं. मेरे पापा कहते हैं कि यदि मैं ने उस युवक से बात की तो वे अपना गला काट लेंगे. मैं किसी को खोना नहीं चाहती. क्या करूं?

जवाब

‘जब मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी,’ लेकिन जब बात अपने अजीज की हो तो दुविधा होती ही है. आप की स्थिति भी कुछकुछ ऐसी ही है. यह अच्छी बात है कि आप पेरैंट्स की इज्जत समझती हैं, लेकिन उन का आप पर उस युवक को छोड़ने हेतु आत्महत्या की धमकी देते हुए दबाव बनाना एकदम गलत है. ऐसे में आप को अपने प्रेम की परीक्षा देनी होगी.

अपने प्रेमी से कुछ दिन अगर दूर रहना पड़े तो कोई हर्ज नहीं. इस बीच अपने पिता को कौन्फिडैंस में लीजिए. जब उन्हें लगे कि वाकई युवक अच्छा है तभी बात बढ़ाइए. किसी अन्य के जरिए उन से बात करेंगी तो अच्छा रहेगा.

साथ ही अपने प्रेमी से कहें कि अच्छा कैरियर बनाए और सब को इंप्रैस करे. फिर तो जीत आप की ही होगी, क्योंकि युवती के पिता सिर्फ यही चाहते हैं कि युवक पढ़ालिखा और अच्छी कमाई व ओहदे वाला हो. जब समाज में उस की इज्जत होगी तो पिता भी स्टेटस व मांसाहारी होने पर एतराज नहीं करेंगे और आप का प्यार भी परवान चढ़ेगा.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बेटे नहीं बेटियां हैं बुढ़ापे की लाठी

कुछ अरसा पहले दिल्ली से सटे गे्रटर नोएडा की यह खबर अखबारों की सुर्खियां बनी कि मां के शव को ले कर 4 बेटियां भाई के दरवाजे पर 3 घंटे तक अंतिम संस्कार के लिए रोती रहीं, लेकिन भाई ने दरवाजा नहीं खोला. सैक्टरवासियों और पुलिस के समझाने पर भी उस का दिल नहीं पसीजा, तो अंतत: बेटियों ने ही मां के शव को मुखाग्नि दी. भाई के अपनी मां को मुखाग्नि न देने का कारण चाहे जो भी हो, मगर आज भी घर में बेटा पैदा होने पर मातापिता बेहद खुश होते हैं, क्योंकि आज भी समाज में ज्यादातर लोग यही मानते हैं कि बेटा घर का कुलदीपक होता है और वही वंश को आगे बढ़ाता है. जबकि आज के बदलते परिवेश में बेटों की संवेदनाएं अपने मातापिता के प्रति दिनबदिन कम होती जा रही हैं. बेटियां जिन्हें पराया धन कहा जाता है, जिन के पैदा होने पर न ढोलनगाड़े बजते हैं, न जश्न मनाया जाता है और न ही लड्डू बांटे जाते हैं. डोली में बैठ कर वे ससुराल जरूर जाती हैं पर वही आज के परिवेश में मांबाप के बुढ़ापे की लाठी बन रही हैं.

बेटियों ने दिया सहारा

कुछ महीने पहले बरेली की रहने वाली कृष्णा जिन की उम्र 80 वर्ष है, रात सोते समय पलंग से गिर गईं. डाक्टरों ने कहा कि कौलर बोन टूट गई है अत: इन्हें बैड रैस्ट पर रहना पड़ेगा. वकील बेटे की पत्नी को उन की देखरेख यानी कपड़े बदलवाना, खाना खिलाना आदि करना ठीक नहीं लगा, तो रोज पतिपत्नी के बीच झगड़ा होने लगा. अंतत: लखनऊ से बेटीदामाद ऐंबुलैंस ले कर आए और मां को अपने घर ले गए. अब बेटी के घर उन की अच्छी तीमारदारी हो रही है. पर बेटे ने वहां जाना तो दूर एक बार फोन कर के भी मां का हालचाल नहीं पूछा. जबकि मां की नजरें हर समय बेटे को खोजती रहती हैं.

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ऐसे न जाने कितने मांबाप होंगे जिन्हें उन के बेटे अपने पास नहीं रखना चाहते. अब रामकुमारजी को ही लें. 10 साल पहले रिटायर हो गए थे. सरकारी नौकरी में अच्छे पद पर थे. पत्नी रही नहीं. बेटे की शादी की. फिर घर के एक कोने में पड़े रहते थे. बेटे ने पूरे घर में अपना कब्जा कर रखा था. बहू उन से बात नहीं करती थी. हाल ही में उन्हें कैंसर होने का पता चला तो बेटी आ कर ले गई. वह पिता का इलाज करवा रही है. बेटे को इस से कोई मतलब नहीं है. घर रामकुमारजी का पर अधिकार बेटे का. रामकुमारजी बताते हैं कि बेटी ने जब लव मैरिज की थी तो वे उस से काफी समय तक नाराज रहे थे. फिर भी आज वही बेटी मेरे बुढ़ापे का सहारा बन रही है. कई महिलाएं तो वृद्धाश्रम में इसलिए रह रही हैं कि उन के बेटे उन की देखभाल नहीं करते और बेटी कोई है नहीं. कर्नाटक की रहने वाली 73 वर्षीय शकुंतला बताती हैं कि उन के पति का बिजनैस था. पति के निधन के बाद इकलौते बेटे ने बिजनैस संभाला. फिर वह गुड़गांव आ कर रहने लगा और घर में पोते के लिए जगह कम होने का हवाला दे कर उसे वृद्धाश्रम में छोड़ गया. इसी तरह केरल की रहने वाली 65 वर्षीय विजयलक्ष्मी का बेटा उन्हें अपने परिवार के साथ मस्कट ले गया. वहां वे घर का काम करती थीं व बेटे के छोटे बच्चे को संभालती थीं. पर जब वे बीमार हुईं और घर का काम करने में असमर्थ हो गईं तो बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया. तब केरल के ही रहने वाले एक व्यक्ति को उन पर दया आई और उस ने उन की भारत वापसी का इंतजाम कराया. अब वे अपनी बेटी के पास हैं. वही उन की देखभाल कर रही है.

इसी तरह एटा के रहने वाले शर्माजी की पत्नी नहीं रहीं तो वे अपने इंजीनियर बेटे के पास नोएडा आ गए. उन के आते ही बहू ने भी जौब शुरू कर दी और अपने बच्चे को क्रैच में न भेज कर उसे सुबह स्कूल की बस में चढ़ाना, दोपहर को घर लाना और खाना खिलाना आदि सभी काम शर्माजी पर डाल दिए. एक दिन वे गिर पडे़ और पैर की हड्डी टूट गई. बस तभी से बेटेबहू ने उन से मुंह मोड़ लिया. अपनी बेटी से मोबाइल पर बात करते थे तो मोबाइल भी उन्होंने ले लिया. वे उन से बात नहीं करते थे. खाना भी मुश्किल से एक समय और वह भी बेसमय मिलता. अंतत: बेटी आई और अपने पिता को देहरादून अपने साथ ले गई. अब वे ठीक हैं. बेटे ने तो उन का हालचाल भी नहीं पूछा. ऐसे किस्से आज समाज के हर वर्ग में और हर दूसरेतीसरे घर में घट रहे हैं.

बेटों के विचार

सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है जो बेटे अपने जन्म देने वाले मांबाप की देखभाल करना नहीं चाहते? क्या उन की संवेदनाएं मर गई हैं अथवा अपनी जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ाना चाहते हैं? आइए, जानें कुछ बेटों ने इस संबंध में क्या बताया: बेटे चाहते हैं कि बुढ़ापे में अपने मातापिता की देखभाल करें, पर नौकरी के कारण दूसरे शहर में जाना, बारबार ट्रांसफर होना, छोटा घर, बच्चों की पढ़ाई का बढ़ता खर्चा और सब से मुख्य बात पत्नी का भी नौकरीपेशा होना अथवा सहयोग न देना, जिस की वजह से वे ऐसा नहीं कर पाते. फिर बड़े शहरों में एक तो विश्वासपात्र नौकर नहीं मिलते और अगर कोई मिल भी जाता है तो मोटा वेतन मांगता है. तो भी डर बना रहता है कि कहीं घर में कोई दुर्घटना न घट जाए. उस पर मातापिता का जिद्दी होना, हर समय की टोकाटोकी, खानपान में नुक्ताचीनी जैसी कई समस्याएं हैं. घर आने पर हर व्यक्ति सुकून चाहता है, पर ऐसे हालात में यह संभव नहीं हो पाता. कई बार मातापिता स्वयं भी साथ नहीं रहना चाहते. फिर आज के माहौल में छोटा परिवार की धारणा को भी बढ़ावा मिल रहा है.

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ऐसा क्यों हो रहा

सवाल यह उठता है कि आज के समय में ऐसा क्यों हो रहा है, जबकि मातापिता भी शिक्षित हैं और बच्चे भी?

मनोचिकित्सक दिव्या बताती हैं कि बेटा और बेटी के साथ समान व्यवहार करना व बेटी को भी प्रौपर्टी में समान हिस्सा देने से लड़कों के मन में यह विचार आने लगा है कि मांबाप के देखभाल की जितनी जिम्मेदारी उन की है उतनी ही बेटी की भी यानी मांबाप की देखभाल की जिम्मेदारी अकेले उन की नहीं है. वैसे भी भावनात्मक रूप से लड़कियां अपने मातापिता से ज्यादा जुड़ी रहती हैं. दूसरे अब वे भी आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो रही हैं, अत: ससुराल वाले भी उन से कुछ नहीं कह पाते. अब पतियों को भी यह समझ में आने लगा है कि पत्नी के मातापिता भी उतने ही जरूरी हैं जितने अपने. इसी कारण वे पत्नी को पूरापूरा सहयोग देते हैं.

मातापिता स्वयं भी जिम्मेदार होते हैं. बहू में हर समय कमी देखते हैं, उस के साथ जुड़ाव नहीं कर पाते. कोई बात करनी हो तो भी बेटे से अलग करते हैं. बहू के सामने नहीं. दूसरे हर बात में अपनी बेटी को बहू के मुकाबले ज्यादा आंकते हैं. गाहेबगाहे बेटी को तो तोहफे देते रहते हैं पर बहू को नहीं. यह सच है कि उम्र के साथ कुछ बीमारियों का लगना आम बात है तो भी वे मांबाप हैं और उन्हें भावनात्मक सहारा अपने बच्चों से मिलना ही चाहिए ताकि वे उम्र के आखिरी पड़ाव पर खुद को उपेक्षित न महसूस करें.

तोलमोल कर बोलने के फायदे

अपने अच्छे व्यवहार व प्यार से कोई भी किसी का दिल जीत सकता है, उसे अपने अनुरूप बना सकता है. जरूरत होती है सिर्फ खुद को टटोलने की कि कहीं खुद में कुछ खामियां तो नहीं? कहीं छोटीछोटी बातों पर झगड़े तो नहीं होते? अगर आप इस पर गौर करेंगे, तो यकीन मानिए कि झगड़े बंद हो जाएंगे. वैसे हम सब की यही कहानी है. कितना पढ़लिख लिया है पर गुस्सा कंट्रोल में नहीं रहता. जानेअनजाने जबान फिसल ही जाती है. भले ही मन में सामने वाले के लिए कुछ नहीं है पर दिल को छलनी करने वाली बात जबान पर क्यों आ जाती है? यही आदत रिश्तों के दरमियान दूरियां ले आती है, जिन्हें फिर संजोना मुश्किल ही नहीं असंभव होता है.

मैं ने अपने पड़ोस कि नईनवेली दुलहन ओजल को पिछले कुछ दिनों से गंभीर हावभाव लिए देखा. हरदम खिलखिलाती, चंचल व मस्तमौला रहने वाली ओजल का यों गंभीर देखा नहीं गया. बहुत पूछने पर उस ने बताया कि उस की हसबैंड से कोल्ड वार चल रही है. ताज्जुब हुआ कि प्यार में साथ जीनमरने की कसमें खाने के बाद मांबाप की रजामंदी व आशीर्वाद से वंचित इस कपल ने कोर्ट मैरिज की और आज महज 3 महीने शादी में टूटने की कगार पर आ खड़ी हुई. उन के अटूट प्यार का यह अंजाम, ओजल का पति से यों रूठना और 2 सप्ताह से बातचीत बंद रहना मुझ से देखा न गया. मैं ने उस की मुलाकात पड़ोस में रहने वाले फैमिली कांउसर व सुप्रीम कोर्ट के वकील सरफराज सिद्दीकी से करवाई, ताकि उस की नई जिंदगी के आगाज में यों गाठें नहीं आएं और प्यार की सौंधी महक से घरआंगन ताउम्र महकता रहे. सरफराज ने उन्हें समझाया तो बिगड़ते हालात संभल गए और अब खुशहाल है उन की जिंदगी.

सोचसमझ कर बोलो

सरफराज कहते हैं कि तीर कमान से और बात जबान से एक बार निकलने के बाद वापस नहीं आती, इसलिए जो भी बोलो सोचसमझ कर बोलो. पतिपत्नी के बीच तूतू मैंमैं असामान्य नहीं है. उन में लड़ाईझगड़ा होना तो आम बात है. माना कि पतिपत्नी के प्यारे रिश्ते का ठोस बनाने के लिए कभीकभार की मीठी नोकझोंक बहुत अहम है, लेकिन एक सीमा तक. वरना रिश्ते में जहर घुलते देर नहीं लगती. वैसे लड़ाई के बाद प्यार पतिपत्नी के रिश्ते को और मीठा कर देता है. पर इसे आदतन मैरिज लाइफ में शामिल करना अलगाव, तलाक जैसी गंभीर स्थितियां तक रिश्ते में ले आता है. सोचो कि झगड़ा होता क्यों है? इस की मुख्य वजह क्या है? कभीकभी तो पति या पत्नी पता भी नहीं चलता कि उस ने ऐसा क्या बोला कि नाराजगी हो गई? लेकिन सच तो यह है कि आप ने अनजाने में ही सही, कुछ ऐसा बोल दिया जो उन के  दिल को लग गया. ये गलतियां आप से अकसर होती हैं.

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आइए जानते हैं कुछ ऐसी बातें जिन पर चुप्पी लगाना आप के और उन के लिए जरूरी है. कारण, शरीर पर लगे घाव तो भर जाते हैं, लेकिन दिल पर लगे घाव जीवन भर दर्द का एहसास देते रहते हैं. रिश्ते में नाराजगी न हो, इस के लिए कुछ बातों से दूरी और कुछ बातों का खयाल रखना नितांत आवश्यक है.

मेरा बौयफ्रैंड मेरी गर्लफैंड

याद रहे कि जो बात बीत गई सो बीत गई. पुरानी बातों पर चर्चा करने से रिश्ते में खटास और नाराजगी ही हाथ आएगी. अगर आप पार्टनर के दिल में बस चुकी हैं या पार्टनर आप के दिल में बस चुका है या यों कहें कि आप दोनों एकदूजे के दिल की धड़कनों को पहचानते हैं, तो ऐसे में आप की या उन की ऐक्स बौयफ्रैड या गर्लफ्रैंड पर चर्चा नाराजगी लाने के सिवा कुछ और नहीं करेगी. इस के अलावा नई और पुरानी गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड की तुलना भी रिश्ते में दरार ले आएगी. इसलिए पुराने याराने की भूलवश भी चर्चा नहीं करें.

जादुई वाक्य

आई लव यू’ वाक्य में तो जैसे शहद घुला है. आइए एक पुराना दिन याद करते हैं. मिलने का समय शाम 5 बजे तय हुआ था और आप किसी कारणवश सही समय पर नहीं पहुंचे. ऐसे में उन का गुस्से से लालपीला होना लाजिम था. लाख समझाने के बावजूद गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा था. लेकिन आप के जादुई वाक्य ने सब भुला दिया. आप ने उन का हाथ अपने हाथों में लिया और बोल दिया, ‘आई लव यू’. बस फिर क्या था, गुस्सा काफूर और प्यार में इजाफा होता गया. न कोई सवाल न कोई जवाब. यह एक जादुई वाक्य है. परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, यह एक वाक्य ही काफी होता है, उसे ठीक करने के लिए. पर एक बात का खयाल रखने की जरूरत है. जब आप यह बोलते हैं कि ‘आई लव यू’, तो महिला के भीतर भावनाओं का सागर उमड़ पड़ता है. वह आप से पलट कर सवाल करती है कि क्या वाकई आप शिद्दत से ऐसा महसूस करते हैं? इस के साथ ही कई और सवाल भी वह आप से करेगी. अगर ऐसे सवालों का सामना करने के लिए आप तैयार नहीं हैं, तो बेहतर

यही होगा कि आप ऐसा कुछ कहने की बजाय कुछ और कह कर उन का दिल जीतने की कोशिश करें.

खाने को ऐंजौय करें

अगर आप खाने के शौकीन हैं, तो वे भला क्यों नहीं हो सकतीं? माना छरहरी दिखने के लिए वे काफी मेहनत करती हैं, लेकिन आप को बता दें कि नए स्वाद चखना लड़कियों को बहुत लुभाता है. शादी से पहले या शादी के बाद आप दोनों डिनर के लिए होटल गए हैं. मैन्यू कार्ड देख कर पार्टनर ने भारीभरकम और्डर दे दिया, जिसे देखते ही आप हैरानपरेशान हो गए. यह सब देख आप शांत रहिए. भूल कर भी उस से यह सवाल न कीजिए कि क्या वाकई तुम इतना सब खा सकोगी? वरना आप का नतीजा भुगतना पड़ सकता है. अच्छा होगा कि आप खाने पर  कोई चर्चा ही न करें. गौरतलब है कि खानेपीने को ले कर लड़कियां काफी इमोशनल होती हैं. नएनए स्वाद चखना एक तरह से उन का जनून होता है. खानेपीने के बात पर टीकाटिप्पणी से नाराजगी की आलम इतना बढ़ सकता है कि रिश्ते में चुप्पी पसर जाए. अगर आप दोनों टेबल पर हों, तो उन पलों को ऐंजौए करें. साथ ही पार्टनर को नाराज नहीं करना चाहते, तो खानेपीने के लंबे और्डर पर कोई सवाल न करें.

आदत हो गई तुम्हारी

कोई भी काम गलत हो या आप के कहे अनुसार न हो, तो आप बिना कुछ सोचे यह बोल देते हैं कि तुम्हारी ऐसी आदत हो गई है. भले ही सुनने में यह बात छोटी लगे, लेकिन यह बात चिनगारी की तरह आग को बढ़ाती है. यही नहीं, उन की आदत का रोना रो कर आप उन्हें खुद को गलत साबित करने का मौका दे रहे हैं. और यहीं से छोटी सी बात तूतू मैंमैं फिर मनमुटाव की स्थिति उत्पन्न कर देती है.

मां बहन जैसी हो

गर्लफ्रैंड या पार्टनर की कभी उस की मां या बहन से तुलना न करें. आप उन्हें उतना बेहतर नहीं जानते हैं, जितना कि वे जानती हैं. आप यह भी नहीं जानते कि दोनों के बीच वास्तव में कैसा रिश्ता है. इन सब बातों के अलावा सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हर शख्स अपनी एक अलग पहचान चाहता है, तो फिर उस की तुलना किसी से क्यों की जाए?

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टटोलिए स्वयं को

सिर्फ कटु आलोचना व दूसरों के सामने उपहास कर के तो हम किसी को बदल नहीं सकते. उस के लिए आवश्यकता है कि हम सामने वाले की भी भावनाओं को समझें. अपने अच्छे व्यवहार व प्यार से जब हम औरों का दिल जीत सकते हैं, तो पार्टनर को बहुत कुछ अपने अनुरूप भी बना सकते हैं. जरूरत है सिर्फ अपनेआप को टटोलने की कि कहीं हम में ही तो कुछ खामियां नहीं? पतिपत्नी के संदर्भ में यह बात और भी जरूरी है. हमारा सही सोचने का ढंग ही हमें सही दिशा में ले चलने के लिए सहायक होगा. फिर हमें औरों से शिकायत नहीं होगी.

शादी के लिए हां करने से पहले जाननी जरुरी हैं ये 5 बातें

‘शादी,’ यह शब्द सुनते ही किसी के चेहरे पर मुसकराहट आ जाती है तो किसी के चेहरे पर टैंशन. कई लोगों के साथ ये दोनों चीजें होती हैं. मतलब वे कभी खुश होते हैं तो कभी चिंता में पड़ जाते हैं. एक तरफ नए रिश्ते की एक्साइटमैंट होती है तो दूसरी तरफ जिम्मेदारियों का एहसास. कहते हैं न ‘शादी का लड्डू, जो खाए पछताए जो न खाए वह भी पछताए.’ भई, जब पछताना ही है तो क्यों न खा कर ही पछताया जाए. तो अब जब आप ने शादी करने का मन बना ही लिया है तो कुछ सवालों के जवाब जानना आप के लिए बेहद जरूरी हैं. चाहें आप लव मैरिज कर रही हों या फिर अरेंज.

शादी के बाद आप रोज कुछ न कुछ अपने पार्टनर के बारे में नई बातें जान सकती हैं लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जो शादी से पहले ही आप दोनों को जानना जरूरी है. इन के जवाब जानने के बाद आप को यह पता चल जाता है कि आप उन से शादी कर सकती हैं या नहीं. साथ ही, इस बात का एहसास हो जाता है कि आप दोनों के लिए आने वाली लाइफ कैसी हो सकती है.

घर के काम की जिम्मेदारी

अब वह समय नहीं रहा कि किसी एक पर काम का पूरा बोझ दे दिया जाए. शादी के बाद ज्यादातर लड़ाई इसी बात की होती है कि झाड़ ूपोंछा, बरतन, कपड़े धोने और खाना बनाने का काम कौन करेगा. अगर होने वाला लाइफपार्टनर आप से यह कहता है कि वह तो पानी भी नहीं उबाल सकता, घर के काम करना तो दूर की बात है. फिर आप सोच लीजिए. अगर आप मैनेज कर सकती हैं तो इस रिश्ते को आगे बढ़ाने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन अगर आप को लगता है कि घर के कामों में उन्हें भी मदद करनी चाहिए तो यह बात उन को बता दें.

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अगर वे यह जवाब देते हैं कि वे इस के लिए तैयार हैं तब तो रिश्ते को आगे ले जाइए लेकिन अगर वे यह जताते हैं कि घर के काम की जिम्मेदारी सिर्फ औरत की है तो ऐसे रिश्ते में संभल जाना ही बेहतर है.

शादी के बाद का कैरियर

अपने कैरियर के बारे में अपने होने वाले लाइफपार्टनर से पहले ही बता दें. जैसे, आप कैरियर को ले कर काफी सीरियस और प्रोफैशनल हैं. इस के लिए आप काफी मेहनत भी कर रही हैं और शादी के बाद भी बाहर जा कर काम करना चाहती हैं. वहीं अगर शादी के बाद आप काम नहीं करना चाहतीं तो भी उन से साफसाफ बता दें. साथ ही, उन से यह भी पूछें कि आगे चल कर कैरियर प्लानिंग क्या है. अगर वे ट्रांसफर लेना चाहते हैं तो क्या आप के लिए यह पौसिबल है, यह शादी से पहले ही क्लीयर कर लेना चाहिए.

कर्ज तो नहीं

शादी के कई साल बाद अगर पता चलता है कि पार्टनर ने लाखों का कर्जा लिया है तो बसीबसाई गृहस्थी खराब हो जाती है. इसलिए उन से पहले ही पूछ लें कि क्या कोई उधार या क्रैडिट कार्ड का बड़ा बकाया बिल तो नहीं है. उन के जवाब के बाद सोचसमझ कर अगला कदम बढ़ाएं, क्योंकि आर्थिक वजह से भी बड़ेबड़े झगड़े होते हैं.

बच्चों के बारे में

आज के दौर में बहुत सारे कपल ऐसे हैं जो बच्चे पैदा नहीं करना चाहते. वे एडौप्शन या आईवीएफ को बेहतर मानते हैं. इसलिए शादी के पहले ही एकदूसरे के विचार जानना जरूरी है. क्या पता आप बच्चा चाहती हों और वे नहीं या यह भी हो सकता है कि वे बच्चा चाहते हों लेकिन आप नहीं. इसलिए इस पर खुल कर बात कर लें.

धार्मिक, राजनीतिक विचार और रिस्पैक्ट

आप दोनों एकदूसरे से अपने धार्मिक व राजनीतिक विचार शेयर करें. आजकल हर किसी की अपनी राजनीतिक विचारधारा और धार्मिक नजरिया होता है. कुछ लोग ऐसे होते हैं जो धार्मिक या नास्तिक होते हुए भी किसी और पर अपनी सोच नहीं थोपते और कुछ ऐसे भी होते हैं जो दूसरे पर बहुत ज्यादा हावी हो जाते हैं. तो आप उन के सामने अपनी बात रखिए. हो सकता है कि आप दोनों की सोच एक हो और अगर एक न भी हो तो भी उन से पूछिए कि फ्यूचर में आप दोनों एकदूसरे की विचारधाराओं का सम्मान कर पाएंगे या नहीं. क्या एकदूसरे को इस की आजादी दे पाएंगे. कहीं यह आप के बीच दूरी की वजह तो नहीं बनेगी.

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हैल्थ प्रौब्लम

वैसे तो होने वाले पार्टनर से शादी करने से पहले कोई ऐसी बात नहीं छिपानी चाहिए जिस से आगे चल कर आप दोनों के रिश्ते में दरार पड़े लेकिन आज के दौर में एक अहम सवाल का जवाब जानना बेहद जरूरी हो गया है, वह है हैल्थ प्रौब्लम. जरूरी नहीं है कि बीमारी बड़ी हो. आप दोनों को अपनी स्वास्थ्य समस्याओं पर बात कर लेनी चाहिए, भले ही वह छोटी बीमारी क्यों न हो. आप दोनों अगर मैनेज कर सकते हैं तो रिश्ते को आगे बढ़ाने में कोई बुराई नहीं है.

जब फ्लर्ट करने लगे मां का फ्रैंड  

20वर्षीय सेजल अपनी मां शेफाली के बौयफ्रैंड राजीव मलिक से बेहद परेशान है. 45 वर्षीय शेफाली 10 साल से अपने पति रवि से अलग रह रही हैं. ऐसे में पुरुषों का आनाजाना उस की जिंदगी में लगा रहता है. राजीव मलिक शेफाली के घरबाहर दोनों के काम देखता है और इस कारण राजीव का हस्तक्षेप शेफाली की जिंदगी में बढ़ने लगा था. हद तो तब हो गई जब राजीव 48 वर्ष की उम्र में भी खुलेआम सेजल से फ्लर्ट करने लगा था.

कभी पीठ पर चपत लगा देता, कभी गालों को प्यार से छूना, कभी सेजल के बौयफ्रैंड्स के बारे में तहकीकात करना इत्यादि से सेजल के साथ ये सब उस की अपनी सगी मां के सामने हो रहा था जो मूर्खों की तरह अपने बौयफ्रैंड के ऊपर आंखें मूंद कर विश्वास कर बैठी थी. सेजल एक अजीब सी कशमकश से गुजर रही है. उसे सम झ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, किस के साथ अपनी बात सा झा करे?

सेजल ने जब यह बात अपने बौयफ्रैंड संचित को बताई तो उस ने सेजल को सपोर्ट न कर के इस बात का फायदा उठाया. एक तरफ संचित तो दूसरी तरफ राजीव, सेजल का इन दोनों के बाद पुरुषों से विश्वास ही उठ गया है. काश सेजल ने बात अपनी मौसी या नानी को बताई होती.

उधर काशवी के मम्मी के दोस्त आलोक अंकल कब अंकल की परिधि से निकल कर कब उस के जीवन में आ गए खुद काशवी भी न जान पाई थी. आलोक अंकल का खुल कर पैसा खर्च करना, रातदिन उस से चैट करना सबकुछ काशवी को पसंद आता था. काशवी की मम्मी रश्मि उधर  यह सोच कर खुशी थी कि उन की बेटी को फ्रैंड फिलौसफर और गाइड मिल गया है. आलोक को और क्या चाहिए एक तरफ रश्मि की दोस्ती और दूसरी तरफ काशवी की अल्हड़ता.

काशवी के साथ छिछोरेबाजी करते हुए आलोक को यह भी याद नहीं रहता कि उस की अपनी बेटी काशवी की ही  हमउम्र है.

मगर कुछ लड़कियां सम झदार भी होती हैं. जब बिनायक ने अपनी फ्रैंड सुमेधा की बेटी पलक के साथ फ्लर्ट करने की कोशिश की तो पलक ने भी अपना काम निकाला और जैसे ही विनायक ने फ्लर्टिंग के नाम पर सीमा लांघनी चाही तो पलक ने बड़ी होशयारी से अपनी मम्मी सुमेधा को आगे कर दिया. विनायक और सुमेधा आज भी दोस्त हैं, परंतु विनायक अब भूल कर भी पलक के आसपास नहीं फटकते हैं.

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आज के आधुनिक युग की ये कुछ  अलग किस्म की समस्याएं हैं. जब महिलापुरुष एकसाथ काम करेंगे तो स्वाभाविक सी बात है  कि उन में दोस्ती भी होगी और ये पुरुष मित्र घर भी आएंगेजाएंगे.

मगर इन पुरुष मित्रों की सोच कैसी है यह आप की मम्मी या आप को भी नहीं पता होता है. इसलिए अगर आप की मम्मी का पुरुष मित्र आप से फ्लर्टिंग करने की कोशिश करे तो उसे हलके में न लें. आप आज की पढ़ीलिखी स्वतंत्र युवा हैं. हलकेफुलके मजाक और भोंडे़ मजाक में फर्क करना सीखें.

मौसी या आंटी को बनाएं राजदार

आप की मौसी या आंटी को आप से अधिक जिंदगी के अनुभव हैं. वे अपने अनुभवों के आधार पर अवश्य ही आप को सही सलाह देंगी. अपने तक ही ऐसी बात को सीमित रखें, बातचीत अवश्य करें.

फ्रैंड के बच्चों से कर लें दोस्ती

यदि मम्मी के फ्रैंड अपनी सीमा रेखा को भूलने की कोशिश करें तो उन्हें मर्यादा में रखने के लिए उन के बच्चों से दोस्ती कर लें. उन के घर जाएं, उन के परिवार को अपने घर पर बुलाएं.

अपने पापा को भी साथ ले कर जाना मत भूलें. जैसे ही परिवार की बात आती है अच्छेअच्छे सूरमाओं के पसीने छूट जाते हैं. वे भूल से भी आप को तंग नहीं करेंगे.

गलत बात का करें विरोध

बहुत बार देखने में आता है कि हम  अपने बड़ों की गलत बात को जानबू झ कर नजरअंदाज कर देते हैं. इस के पीछे बस उन की उम्र का लिहाज होता है, परंतु ये आप के मम्मी  या पापा नहीं हैं कि आप को उन का लिहाज करना पड़े. उन की गलत बात का डट कर  विरोध करें और अगर जरूरी लगे तो अपनी  मम्मी को भी उन के फ्रैंड के व्यवहार से अवगत अवश्य कराएं.

लक्ष्मण रेखा खींच कर रखें

अपनी मम्मी के फ्रैंड से बातचीत करने में कोई बुराई नहीं है, परंतु अपने व्यवहार को मर्यादित रखें. अगर आप खुद ही फौर्मल रहेंगी तो आप के अंकल भी कैजुअल नहीं हो पाएंगे. हलकाफुलका मजाक करने में बुराई नहीं है पर इन हलकेफुलके पलों में यह याद रखें कि आप की मम्मी भी शामिल हो.

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दिखाएं उम्र का आईना

यह सब से अचूक और कारगर उपाय है, जो कभी खाली नहीं जाता है. अगर मम्मी के फ्रैंड ज्यादा तफरीह करने की कोशिश करें तो उन्हें उन की उम्र का आईना दिखाने से गुरेज न करें. अपने को उम्रदराज मनाना किसी को भी पसंद नहीं है. एक बार आप अपने और उन के बीच उम्र का फासला महसूस करवाएंगी तो भूल से भी वे दोबारा आसपास नहीं फटकेंगे.

ब्रेकअप : जमूरे का खेल नहीं  

लेखिका- स्नेहा सिंह 

“हम ने अपने संबंधों पर काफी सोचाविचारा. काफी सोचने के बाद हमें ऐसा लगा कि हम एक साथ आगे नहीं बढ़ सकते, इसलिए हम ने इस संबंध को खत्म करने का निर्णय लिया.” मेलिंडा से अलग होने के बाद बिल गेट्स ने यह ट्वीट किया था. एक संबंध का यह एक अद्भुत एक्जिट नोट था. जिसमें कोई एलिगेंस नहीं था. कोई शिकायत नहीं थी. मात्र समझदारी थी. बिल गेट्स के इस ट्वीट के बाद सभी ने मिल कर उनके टूट ग्ए संबंध का पिष्टपेषण किया. किसी ने कहा कि उन दोनों के बीच अनबन इस हद तक बढ़ गई थी कि उनके पास अलग होने के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं था.किसी ने यह भी कहा कि बिल गेट्स का किसी दूसरी महिला के साथ अफेयर था. किसी नै मेलिंडा को मिलने वाली भारी भरकम एलिमनी की रकम में रुचि दिखाई. हमने जेफ बेजोस के मामले में भी कुछ ऐसा ही सोचाविचारा था. हम टूटते हुए संबंधों के बारे में कुछ ऐसा ही सोचते हैं. टूटता हुआ संबंध कोई जमूरे का खेल नहीं. टूटता हुआ संबंध मेले में लगा कोई चरखी वाला झूला भी नही है कि जिसका मन हो, वह आ कर उसके हिंडोले में बैठ कर झूल ले. टूटता हुआ संबंध मल्टीप्लेक्स की स्क्रीन पर लगी कोई फिल्म भी नही है. ये वे संबंध हैं, जिन्हें बचाने के लिए भावनाएं भी मदद में नहीं आतीं. यह वह संबंध है, जिसका अस्तित्व पहले की तरह अनिवार्य नहीं रहा. ‘तुम्हारे बिना जी नहीं सकता”,  इस पूरे वाक्य से ‘नहीं’ शब्द गायब हो गया है. यह संबंध अब न फेविकोल से चिपकाया जा सकता है और न सेलोटेप से जोड़ा जा सकता है और न ही स्टेपलर से इकट्ठा किया जा सकता है. ब्रेनडेड आदमी के वेंटिलेटर का स्विच बंद कर दिया जाए तो उसकी कोई चर्चा नहीं होती, सिर्फ आंसू होते हैं, स्तब्धता होती है और मौन होता है. दो व्यक्ति जब एकदूसरे से अलग होने का निर्णय लेते हैं तो उनके दर्द के बारे में सोचना चाहिए. उनके अलग होने के कारण के बारे में भी नही.

हमारे यहां जितनी धूमधाम से शादी की जाती है, उतने ही शोरशराबे के साथ अलगाव भी होते हैं. शादी में हम डेकोरेशन के बारे में, चढ़ाव में आए गहनों के बारे में, खाने के बारे में,  लड़की द्वारा पहनी गई साड़ी के बारे में बातें करते हैं. जबकि अलगाव के समय ‘सास बहुत जबरदस्त थी, पति से कोई लड़की नियमित मिलने आती थी, लड़की का पूरा कैरियर ही बरबाद कर दिया, बच्चों से कोई लगाव नहीं था, वह थी ही ऐसी, खाना भी बनाने नहीं आता था, आदि बातें करते हैं. ब्रेकअप दो लोगों के बीच घटने वाली व्यक्तिगत घटना है और इसे हमें व्यक्तिगत ही रहने देना चाहिए. दो लोग एकदूसरे से ऊब जाते हैं, तब ऐसा होता है. साथ चलने का वादा कर के कोई एक पीछे रह जाता है, तब ऐसा होता है. वेवलेंथ मैच नहीं होता, अपेक्षाएं अधूरी रह गईं हों, उद्देश्य बदल गया हो, रास्ते अलग हो गए हों, दो लोगों के बीच कोई तीसरा आ गया हो, कारण कोई भी हो, उनसे हमारा कोई सामान्य ज्ञान नहीं बढ़ने वाला है. दस साल, बीस साल या पच्चीस साल साथ रहने के बावजूद ऐसी कोई जबरदस्ती नहीं है कि आगे भी साथ ही रहना है. बच्चे हैं, इसलिए अलग नहीं हो सकते, इस तरह का भी कोई बंधन नहीं बांध सकता. हाथ से कांच की बरनी छूट जाए तो वह आवाज के साथ बिखर गए कांच के टुकड़ों को इकट्ठा करने लगेंगे तो हाथ लहूलुहान हो जाएगा. मानलीजिए कि कांच के टुकड़े इकट्ठा कर भी लेंगे तो उससे पहले जैसी बरनी बन तो नहीं सकती न. इसलिए वे टुकड़े लगे नहीं,  हाथ के बजाय झाड़ू से कचरा उठाने वाली ट्रे से उन टुकड़ों को उठा कर कचरे के डिब्बे में डालना चाहिए. संबंधों का भी कुछ ऐसा ही है.

शादी मंडप में होती है, पर अलगाव कोर्ट में लेना पड़ता है. पंडितजी के मंत्रोच्चार के साथ शुरू हुआ विवाह वकीलों की दलील और संपत्ति के बंटवारे के साथ पूरा हो जाता है. सड़ गए संबंधों की अपेक्षा मर चुकी अपेक्षाएं, रुढ़िया गई इच्छाएं अधिक बदबू मारने लगती हैं. रोमांचित करने वाला स्पर्श छाती में नश्तर की तरह चुभने लगता है. जो आदमी एक साथ  एक घर में, चार-छह दीवालों के बीच कुछ सालों तक जिए हों, उन सालों को अब भुला देना है. कुछ भी ‘वर्कआउट’ न कर सकने की असफलता काटने दौड़ती है. संतानों को अब हिस्से में मिलना है. आदतें बदलनी हैं, जो आसान नहीं है. आदमी अस्पताल में, घर में, कमरे में, अकेले या चार लोगों के बीच से गुजर जाता हो, पर विवाह कभी रसोई में, कभी बैडरूम में, कभी ड्राइंगरूम में, कभी छींटवाली चादर पर, कभी बाथरूम में, कभी होटल में अनगिनत बार टूटता है. सुबह की गुडमार्निंग से ले कर रात की गुडनाइट की किस के बीच फैली विवाह की मर गई भावनाओं की चिता पर सुला कर देना होता है और सीने के किसी एक कोने में एकदम अकेले चुपचाप उसका मातम मनाना होता है.

मेलिंडा ने जब विवाह किया होगा, तब दिल में सिर्फ बिल गेट्स के लिए ही जगह रही होगी. बिल गेट्स ने भी मेलिंडा को दिल में बसा कर विवाह किया होगा. उस समय उनके लिए न पैसे का महत्व रहा होगा न लाइफस्टाइल का. तब जब ये लोग अलग हुए तो हम पैसे की या लाइफस्टाइल की बात क्यों करते हैं? हम भावनाओं के बारे में क्योँ नहीं बात करते? हर ब्रेकअप चर्चा का विषय क्यों बन जाता है. हर ब्रेकअप को हम सनसनीखेज क्यों बना देते हैं?

हमें ब्रेकअप के बारे में सोचना सीखना होगा. हमें समझना होगा कि आदमी मर जाता है तो हम शोक संवेदना व्यक्त करने जाते हैं. अगर संबंध मर जाए तो हम उसकी संवेदना व्यक्त करने नहीं जा सकते? हमें यह भी समझना होगा कि आदमी मर जाता है तो हम पूछते हैं कि ‘क्या हुआ था?’ तो क्या संबंध मर जाता है तो हमें यह पूछने का अधिकार नहीं है कि ‘क्या हुआ था?’

फोन पर लंबी बातचीत करना किशोरों में विकास का है एक तरीका

टीनएजर और उनके फोन पर देर तक बातचीत करने के बारे में कई किस्से कहानियां होती हैं. माता पिता द्वारा कई शिकायतें की जाती हैं और इसके बारे में वे एक दूसरे से चुटकुले भी शेयर करते हैं. चूंकि इन दिनों परिवार के ज्यादातर सदस्य कोरोना संक्रमण के कारण ज्यादातर समय घर मंे रह रहे हैं, इसलिए किशोरों की फोन पर की जाने वाली लंबी लंबी बातचीतें कुछ ज्यादा दिख भी रही हैं और सुनने में भी आ रही हैं. लेकिन यह कोरोना संकट न हो तो भी इस उम्र के बच्चे (टीनएजर) अकसर फोन पर बहुत देर तक बातें करते हैं. दरअसल बच्चे जब छोटे होते हैं तो जिस फोन पर बातचीत करने में उन्हें दिक्कत होती है, वही अब इस उम्र के उनके हाथ में होता है. इसलिए भी वे लंबे समय तक इससे चिपके रहते हैं. जाहिर है इस बातचीत में लड़के लड़कियां डेटिंग भी करते हैं अगर सब कुछ सही हो तो ये बातें भी होती हैं कि आज पार्टी कहां पर होनी है, क्या पहनना है, फलां क्या पहनकर आ रही है या आ रहा है वगैरह वगैरह.

विशेषज्ञों का मानना है कि इस उम्र मंे बच्चों का फोन के साथ लगाव बढ़ जाता है; क्योंकि उनके पास कहने के लिए बहुत कुछ होता है. भले ही उनके माता पिता उन्हें वक्त गुजारने का एक जरिया भर समझें. कुछ हद तक यह उनके लिए फायदेमंद होता है और काफी हद तक नुकसानदायक भी क्योंकि इससे कई बार उनके आॅनलाइन पढ़ाई और होमवर्क पर भी बुरा असर होता है. वास्तव मंे टीनएजर फोन का इस्तेमाल बड़ों और बच्चों की तुलना में अलग तरह से करते हैं. घर के बड़े सदस्य जरूरत हो तभी फोन पर बातें करते हैं. लेकिन टीनएजर कोई काम न हो तो भी लंबे समय तक बातचीत करते हैं. अगर आपस में बातचीत किये काफी वक्त बीत गया है, तो इसलिए भी लंबी बातचीत करते हैं. पैरेंट्स को यह समझ ही नहीं आता कि स्कूल से तुरंत घर लौटने के बाद वे अपने उन्हीं दोस्तों से इतनी लंबी लंबी बातें कैसे कर लेते हैं, जिनके साथ अभी घंटों बिताकर आये हैं.

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पैरेंट्स इस बात को लेकर कई बार बहुत सोच में भी चले जाते हैं कि आखिर स्कूल से घर लौटने के बीच ऐसा उनके साथ क्या घटित होता है कि जिसके बारे में उन्हें अपने दोस्तों के साथ फोन पर लंबी बातचीत करनी पड़ती है. विशेषज्ञों की मानें तो इस सवाल का जवाब टीनएजर्स के जीवन में आने वाली उन मानसिक समस्याओं में है, जिन्हें वे अपने दोस्तों के साथ फोन पर छोटी छोटी बातों और अनुभवों के रूप में साझा करते हैं. वह उनसे पूछ सकते हैं कि उन्होंने जो चीज देखी क्या उसके दोस्त ने भी उसे उसी ढंग से देखा? जो उसने समझा है क्या वह भी वही समझ रहा है? बच्चों के लिए अपने इस तरह के सवालों का जवाब पाने के लिए उनके पास टेलिफोन या मोबाइल फोन, एक ऐसी चीज होती है जो उन्हें उसके साथ जोड़े रहती है या वह फोन पर उसके साथ जो बातचीत करते हैं, वह दोनो के बीच रहती है. इसके अलावा फोन ही उनके लिए एकमात्र वह जरिया होता है, जिसके द्वारा वे सामने जो बात नहीं कह सकते वह इस माध्यम से कह सकते हैं.

इससे दोस्ती बढ़ती है- फोन पर लंबी बातचीत के द्वारा टीनएजर एक दूसरे के साथ फ्रेंडशिप बनाते हैं और इससे उनमें विपरीत सेक्स के प्रति रिलेशनशिप बनाने में भी मदद मिलती है. टीनएजर अपने दोस्तों के साथ अपने विचार साझा करते हैं. यह वह उम्र होती है, जब उनके जीवन में फ्रेंडशिप के मायने बदल जाते हैं. अब वह वयस्क वाली दोस्ती होती है. इस दोस्ती को बनने और इसे मजबूती देने के लिए फोन ही उनके पास जरिया होता है.

अनुभव साझा करने में मदद मिलती है- इस उम्र में बच्चों के पास पर्याप्त समय होता है और उनमें कम्युनिकेशन स्किल का तेजी से विकास हो रहा होता है. इसलिए वह एक दूसरे के साथ खुलकर बातें करते हैं. छोटे बच्चे जहां खेलकूद की गतिविधियों में और एक दूसरे के साथ गप्पबाजी करने में अपना समय गुजारते हैं, वही टीनएजर इस गपशप में जल्द ही फ्रेंडशिप का एंगल जोड़ देते हैं. इस उम्र में उन्हें अपने अनुभव बड़े यूनीक लगते हैं और वह चाहते हैं कि उनके ये अनुभव उनके दोस्तों को भी पता चले. इसलिए भी वे फोन के जरिये इन्हें दोस्तों से साझा करते रहते हैं.

बातों से लड़कियां होती हैं परिपक्व- यदि आपकी बेटी टीनएजर है तो इस बात में कोई दो राय नहीं है कि आपका लैंडलाइन या उसका मोबाइल ज्यादातर समय व्यस्त रहते होंगे. जानकारों का मानना है कि लड़कियां अपने विचारों को एक दूसरे के साथ, लड़कों की तुलना में ज्यादा साझा करती हैं. लेकिन इसका यह भी मतलब नहीं है कि लड़कों को अपनी फीलिंग्स को शेयर करने की जरूरत नहीं होती. हकीकत यही है कि लड़कियां अपनी भावनाओं का इजहार ज्यादा तेजी से करती हैं, शायद इसीलिए वे लड़कों की अपेक्षा जल्दी परिपक्व होती हैं.

उलझन में पड़ते हैं पैरेंट्स- अकसर टीनएजर बच्चों के पैरेंट्स की शिकायत होती है कि जब वह अपने फ्रेंड्स के साथ फोन पर इतनी बातें करते हैं तो वह अपने पैरेंट्स से इतने कम शब्दों में ही काम कैसे चला लेते हैं. दरअसल टीनएजर के जीवन में ऐसी बहुत सारी चीजें होती हैं जिन्हें अपने पैरेंट्स के साथ शेयर करने में वह खुद को अनकंफर्टेबल महसूस करते हैं. यह बुरी बात नहीं है. ऐसा होता है. इसलिए माता पिता को चाहिए कि बच्चों में आने वाले बदलाव को समझें और उनकी प्राइवेसी का सम्मान करे. क्योंकि एक बच्चा अपनी मां को यह बताने में शर्म महसूस कर सकता है कि उसे उसकी क्लास में पढ़ने वाली कोई खास लड़की बहुत अच्छी लगती है. वह अपनी मां से इसके बारे में कुछ बताने की बजाय अपने दोस्तों से ही बात करता है.

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बदलावों को समझने में मिलती है मदद- टीनएजर जब फोन पर लंबी लंबी बातें करते हैं तो उसकी एक वजह कई तरह के शारीरिक बदलावों को समझने में मदद हासिल करना भी होता है. क्योंकि वे अपने मम्मी-पापा से उन बातों में बात करते हुए तो असहज होते ही हैं, दोस्तों से भी आमने सामने ऐसी बातें करते हुए सहज नहीं होते. लेकिन फोन में उन सभी बातों को वे ईमानदारी से एक दूसरे के सामने रखते हैं और डिस्कस करते हैं. इससे उन्हें अपने ही बदलावों को समझने में मदद मिलती है.

इन बातों से साफ है कि टीनएजर आपस में फोन पर लंबी बातचीत किसी बुरी आदत के कारण नहीं करते बल्कि यह ज्यादा से ज्यादा बातचीत करना भी उनके जीवन विकास का हिस्सा है. इसलिए मां-बाप को चाहिए उन्हें फोन पर कम से कम या बिल्कुल ही बातचीत करने का लैक्चर न दें. हां, अगर वे ऐसा चाहते हों तो बच्चों को परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ समय बिताने के लिए प्रेरित करना चाहिए.

बच्चा सब सीख लेता है

बच्चा तो एक कोरी स्लेट की तरह होता है वो बहुत सारी चीजों के बारे में तब तक जागरूक नहीं हो सकता जब तक कि माता पिता उसको न समझायें. इसी लिए बच्चे की पहली पढाई तो उसके घर पर ही होती है. माता पिता को इसके लिए बहुत पहाड़ नहीं तोड़ना पड़ता है बस कोशिश करते रहना चाहिए कि

बच्चे को जब समय मिले अच्छी आदते सिखाई जाएं मिसाल के तौर पर हाथ साफ रखने की आदत सिखाना. बच्चों पर एक शोध किया गया तो देखा गया कि वो जीभ से हथेली को चाटना और उस पर दांत लगाने में बहुत आनंद महसूस कर रहे थे. यही बच्चे पेट मे कृमि की तथा पेचिश और अतिसार की समस्या से भी पीड़ित हो रहे थे. इन बच्चों को बार बार हाथ धोने के लिए प्रेरित किया गया. इसका परिणाम यह हुआ कि पंद्रह दिन बाद वो पेट की बीमारी से मुक्त हो चुके थे.

इसके लिए उनको कुछ जानवरों की कहानियाँ सुनाई जो हाथ नहीं धोते थे और हमेशा डाक्टर के पास जाते थे. यह कहानी बहुत काम की साबित हुई.

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आजकल तो बच्चो को सड़क पर कचरा न फैलाने की , कूड़ा सदैव कूडे़दान मे डालने की , हमेशा किनारे चलने की आदतें कहानी बनाकर सिखाई जाती हैं जो उनको बहुत भाती हैं. यह बहुत जरूरी भी है कि जितना हो सके बच्चे को सफाई पसंद और जागरूक बनाना चाहिए इससे उसका अपना भविष्य बहुत उज्जवल होगा. किसी बाल मनोवैज्ञानिक ने यह बिलकुल सच ही कहा है कि बच्चों को अगर उनकी रुचि के हिसाब से कुछ भी समझाया जाता है तो उसे सारी जिंदगी यह चीजें नहीं भूलती. लेकिन यह बात भी सही है कि छोटे बच्चे को कुछ सिखाना आसान काम नही है. इसके लिए मां को बहुत मेहनत करनी पड़ती है. हर समय बच्चे का ध्यान रखना पड़ता है, बच्चे ने खाना खाने से पहले हाथ धोए या नहीं,गंदे हाथ साफ किए या नहीं आदि क्योंकि छोटे से मासूम बच्चे यह समझ नहीं पाते कि क्या ठीक है और क्या गलत. इसके लिए उन्हें कुछ खास चीजों को सिखाना बहुत जरूरी है.

बच्चे का एक प्रमुख स्वभाव यह होता है कि वो हर अच्छी और बुरी चीज को बिलकुल पास जाकर अपने हाथों से छूते हैं वो जानना चाहते हैं कि यह क्या है. फिर चाहे वो कोई खाने की चीज हो, कोई भी सामान हो , मिट्टी हो, कोई पालतू जानवर या फिर कंकड पत्थर वो बहुत ही जिज्ञासु होते हैं उन पर पूरी नजर रखनी ही चाहिए . बच्चों को समय-समय पर उसकी गलती बताएं कि जो चीज वे छू रहे हैं, उसमें कीटाणु हो सकते हैं. इनके के बारे में बच्चे को सही जानकारी देना और गंदगी से कितनी खुजली हो सकती है बीमारी हो सकती है यह सब समझाना बहुत जरूरी है.

उठने-बैठने के कायदे क्या होते हैं और हमको अपनी गरदन झुकानी नहीं चाहिए और बहुत खुश होकर बातचीत करनी चाहिए बहुत सारे बच्चे किसी कारण से शर्मीले हो जाते हैं उनको यह सिखाना चाहिए कि किसी की बात का जवाब देते समय उनसे आंखें मिलाकर हंसकर बात कीजिये .

बच्चे को खांसते हुए रूमाल या टिशू रखने और किसी के सामने नहीं दूर हटकर छींकने,टेबल पर बगैर हिले डुले बैठने और चम्मच से खाने और बगैर सुडुक बुडुक की आवाज के पीने की चीजें कैसे उपयोग मे लेते है यह सब करके ही बताएं. बच्चे किसी को देखने के बाद आंख,नाक कान आदि में अंगुलिया डालते हैं तो उन्हें बताएं कि नाक साफ करना कोई गलत बात नहीं है लेकिन इसे किसी के सामने नहीं बल्कि बाथरूम में जाकर टीशू से साफ करें और नाक कान, आंख, दांत आदि को उंगली से छू लिया है तो साफ करने के बाद हाथ जरूर धो लें. यह भी एक प्रमाणित तथ्य है कि बच्चे बहुत ही जल्दी सीख लेते हैं जरा सा उनकी तारीफ कर दी जाती है तो वह आगे बढ़कर अपना काम खुद करेंगे. जैसे टॉयलेट जाने के बाद खुद को साफ करना. जब बच्चा ऐसा करने लगे तो समझ जाएं कि यही वह समय है जब आप उन्हें टॉयलेट जाने का सलीका सीखा सकते हैं. पहले-पहले अभिभावक और बच्चे को यह काम बहुत अटपटा और जटिल जरूर लगेगा लेकिन धीरे-धीरे बच्चा जल्दी सीख जाएगा.

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बच्चे को कुछ गुनगुनाकर या फिर किसी कहानी से जोड़कर यह बता सकते हैं कि हर रोज दांतों को साफ करना बहुत जरूरी है. बच्चों के लिए शुरू में यह काम आलस वाला जरूर लगता है. मगर वो बस एक बार भी यह समझ जायें कि दांत न होने से कुछ भी नहीं खाया जा सकता तो दिन में दो बार दांत साफ करने की आदत वो अपने आप ही पक्की कर डालेंगे.

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