राधा, रवि और हसीन सपने: राधा को कौनसी धमकी दे रहा था रवि

लेखक- केपी सिंह ‘किर्तीखेड़ा’

‘‘अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी, तो मैं खुद को खत्म कर लूंगी. फिर तुम मुझे कभी नहीं पा सकोगे. अगर तुम वाकई मुझ से प्यार करते हो, तो जैसा मैं कहती हूं, वही तुम्हें करना होगा.’’

रवि ने जब राधा की धमकी सुनी, तो उस के होश उड़ गए. उस ने कभी नहीं सोचा था कि राधा अपने ही भाई को मौत के घाट उतारने के लिए इस कदर बेकरार होगी.

रवि एक बार फिर उसे समझाते हुए बोला, ‘‘राधा, अगर हम ने तुम्हारे भाई उमेश की जान ली, तो हमें भी अपनी जवानी जेल की दीवारों के बीच गुजारनी पड़ सकती है.’’

रवि की बात सुनते ही राधा गुस्से में बोली, ‘‘तो ठीक है, तुम जाओ यहां से. मैं सबकुछ समझ गई. तुम्हें मेरी बात पर जरा भी भरोसा नहीं है…’’

इतना कह कर राधा ने रवि की तरफ से मुंह फेर लिया और करवट बदल कर दूसरी तरफ देखने लगी. रवि और राधा इस वक्त रवि के घर की दूसरी मंजिल पर पलंग पर बिना कपड़ों के लेटे थे. रवि का सारा मजा किरकिरा हो गया था, लेकिन वह हार मानने वाला नहीं था. रवि ने राधा को अपनी तरफ घुमा कर पहले जी भर कर चूमा और फिर जब दोनों प्यार की आग में दहकने लगे, तो एकदूसरे में समा गए.  राधा रवि को तब से चाहती थी, जब वह 12वीं जमात के इम्तिहान देने शहर के स्कूल गई थी. चूंकि राधा और रवि एक ही जगह के रहने वाले थे, इसलिए वहां उन की जानपहचान हो गई थी. राधा अगड़ी जाति की थी और रवि निचली जाति का, इसलिए दोनों के लिए परेशानी थी. लेकिन तकरीबन 3 साल तक लुकछिप कर मुहब्बत करने के बाद जब एक दिन राधा ने परिवार वालों को अपने और रवि के बीच प्यार और शादी की तमन्ना वाली बात बताई, तो उस के घर का माहौल अचानक खराब हो गया.

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राधा की 5 बहनों की शादी हो चुकी थी. वह सब से छोटी थी. उमेश इन बहनों के बीच अकेला भाई था. उसी ने राधा के इस प्यार का विरोध किया था. राधा की मां काफी बूढ़ी हो चुकी थीं. पिताजी की मौत एक हादसे में पहले ही हो चुकी थी. उमेश को पिताजी की जगह क्लर्क की नौकरी मिल चुकी थी. उमेश शादीशुदा था, लेकिन राधा का बेहद विरोधी था, इसीलिए राधा भाई उमेश और भाभी साक्षी को अपना दुश्मन मानती थी. जब एक दिन रात को राधा रवि से फोन पर बातें कर रही थी, तभी उमेश ने उसे बातें करते देख कई तमाचे जड़ दिए थे. इतना ही नहीं, राधा के हाथ से मोबाइल फोन छीन कर उसे बड़ी बहन के घर छोड़ आया था. राधा रवि को किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थी, वहीं उमेश की जिद थी कि वह राधा की शादी रवि से कभी नहीं होने देगा.

राधा चाहती थी कि रवि उमेश को जान से मार दे, ताकि उस के प्यार पर कोई पाबंदी लगाने वाला न बचे, लेकिन रवि राधा की बात मानने को तैयार नहीं था. वह जानता था कि राधा जो चाहती है, वह जुर्म है. लकिन रवि भी इश्क की चाशनी का स्वाद चख चुका था. लाख मना करने के बाद भी आखिर में वह वही करने को तैयार हो गया, जो राधा चाहती थी. तय समय और तारीख पर रवि को राधा के फोन का इंतजार था.

जब राधा का फोन आया, तब रवि तुरंत अपने मनसूबों को अंजाम देने चल दिया. राधा और रवि एकएक कदम सावधानी से आगे बढ़ा रहे थे. शायद इसीलिए जब वे दोनों एकसाथ उमेश के कमरे के पास पहुंचे, तो अचानक राधा ने रवि को हाथ से इशारा कर के रोक दिया और अकेले ही उस के कमरे में घुस गई. राधा ने सब से पहले कमरे की लाइट जलाई और देखा कि उमेश गहरी नींद में सो गया है या नहीं. जब राधा को इतमीनान हो गया कि उमेश गहरी नींद में है, तो उस ने रवि को अंदर बुलाया.

रवि ने उमेश को चादर में लपेट दिया और जोर से उस का गला दबाने लगा. उमेश छटपटा कर पलंग के नीचे गिर गया, लेकिन जल्दी ही राधा और रवि ने उस पर काबू पा लिया था. जब उन दोनों को भरोसा हो गया कि उमेश अब जिंदा नहीं है, तभी उन्होंने उसे छोड़ा था. फिर उन दोनों ने उमेश का बिस्तर ठीक किया और दोबारा चादर इस तरह ढक दी, जैसे वह गहरी नींद में सो रहा हो. फिर वे दोनों एकदूसरे को बांहों में भर कर चूमने लगे. उस समय राधा काफी सैक्सी लग रही थी. एक बार जब राधा की प्यास जाग जाती थी, तो आसानी से उसे संतुष्ट कर पाना सब के बस की बात न थी. रवि कसरती बदन का मालिक था. वह राधा को बेहद और भरपूर मजा देता था, इसीलिए राधा उसे जीजान से चाहती थी. राधा और रवि इस कदर इश्क में अंधे हो गए कि बगल में पड़ी लाश भी न दिखाई दी. दोनों वहीं पर प्यार के समुद्र में गोते लगाने लगे.

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सुबह हुई, तो राधा बिलखबिलख कर पूरे महल्ले के सामने कह रही थी, ‘‘हाय, मेरा एकलौता भाई… कहां चला गया तू…’’ उस ने उमेश की मौत को स्वाभाविक मौत मानने पर सब को मजबूर कर दिया था.

पुलिस भी यही मान कर चल रही थी कि उमेश की मौत स्वाभाविक है कि तभी थाना इंचार्ज ने कहा, ‘‘उमेश की तो शादी हो चुकी है. इस की बीवी को आ जाने दीजिए.’’ तब राधा ने बड़ी चालाकी से कहा, ‘‘अरे साहब, वह तो इस से झगड़ा कर के मायके गई है. वह आ भी जाएगी, तो क्या करेगी. कम से कम मेरे भाई का अंतिम संस्कार तो समय पर हो जाने दीजिए.’’ राधा की बारबार अंतिम संस्कार की बात पर पहले तो सभी को अटपटा लगा, लेकिन जब वह लाश के सड़नेगलने की बात करने लगी, तो पुलिस भी इस के लिए राजी हो गई. पुलिस अपना काम पूरा समझ कर वहां से जाने ही वाली थी, तभी बाजी पलट गई. उसी वक्त उमेश की पत्नी साक्षी अपने मायके वालों के साथ वहां आ गई. साक्षी ने आते ही पुलिस से लाश का पोस्टमार्टम कराने की बात कही, तो राधा के होश उड़ गए. जैसे ही पुलिस को पोस्टमार्टम की रिपोर्ट मिली, तो पुलिस तुरंत हरकत में आ गई.

शक होते ही राधा को तुरंत गिरफ्तार कर पुलिस थाने ले आई. इस के बाद पुलिस रवि की खोज में दौड़ गई और उसे भी धर दबोचा. राधा और रवि के हसीन सपने बहुत देर तक पुलिस केसामने टिक न सके.

राधा खुद अपनी जबान से काली करतूत बयान करने लगी, ‘‘साहब, हम 6 बहनें हैं. उमेश मेरा एकलौता भाई था. लेकिन केवल कहने का भाई था. उसे अपनी बीवी के अलावा किसी और की चिंता न थी. वह अपनी बीवी के कहने पर मुझ पर जुल्म ढाता था, इसलिए मैं ने उसे खत्म करने का फैसला कर लिया था.

‘‘मैं मौके की तलाश में थी, तभी इस का अपनी बीवी से झगड़ा हो गया. वह अपने मायके चली गई. मैं ने मौका पा कर रवि को फोन कर के बुलाया था. हम दोनों ने उमेश का गला दबा कर उसे मार डाला था.

‘‘साहब, मैं रवि से प्यार करती हूं और उसे मैं किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थी…’’ राधा बिना किसी झिझक के अपना बयान दे रही थी. रवि पुलिस के सामने जहां फूटफूट कर रो रहा था, वहीं राधा की आंखों में आंसू का एक भी कतरा नहीं था. उसे अपने हसीन सपनों के लिए भाई की जान लेने का जरा भी दुख नहीं था.

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इलाज : क्या मीना का सही इलाज हो पाया

राम स्नेही और जसोदा की बेटी मीना को अकसर पागलपन के दौरे पड़ते थे. वह गोरीचिट्टी और खूबसूरत थी. मातापिता को सयानी हो चली मीना की शादी की चिंता सता रही थी. शादी की उम्र आने से पहले उस की बीमारी का इलाज कराना बेहद जरूरी था.

राम स्नेही का खातापीता परिवार था. उन की अच्छीखासी खेतीबारी थी. उन्होंने गांवशहर के सभी डाक्टरों और वैद्यों के नुसखे आजमाए, पर कोई इलाज कारगर साबित नहीं हुआ.

मीना को पागलपन के दौरे थमे नहीं. दौरा पड़ने पर उस की आवाज अजीब सी भारी हो जाती थी. वह ऊटपटांग बकती थी. चीजों को इधरउधर फेंकती थी. कुछ देर बाद दौरा थम जाता था और मीना शांत हो जाती थी और उसे नींद आ जाती थी. नींद खुलने पर उस का बरताव ठीक हो जाता था, जैसे कुछ हुआ ही नहीं था. उसे कुछ याद नहीं रहता था.

सरकारी अस्पताल का कंपाउंडर छेदीलाल राम स्नेही के घर आया था. राम स्नेही ने पिछले साल सरकारी अस्पताल के तमाम चक्कर लगाए थे. अस्पताल में डाक्टर हफ्ते में केवल 3 दिन आते थे. डाक्टर की लिखी परची के मुताबिक छेदीलाल दवा बना कर देता था.

छेदीलाल लालची था. वह मनमानी करता था. मरीजों से पैसे ऐंठता था. पैसे नहीं देने पर वह सही दवा नहीं देता था. वह मीना की बीमारी से वाकिफ था. उसे मालूम था कि मीना की हालत में कोई सुधार नहीं हो पाया है.

राम स्नेही ने डाक्टरी इलाज में पानी की तरह रुपया बहाया था, लेकिन निराशा ही हाथ लगी थी. छेदीलाल को इस बात की भी खबर थी. ‘‘मीना को तांत्रिक को दिखाने की जरूरत है. यह सब डाक्टर के बूते के बाहर है,’’ छेदीलाल ने जसोदा को सलाह दी.

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‘‘झाड़फूंक जरूरी है. मैं कब से जिद कर रही हूं, इन को भरोसा ही नहीं है,’’ जसोदा ने हामी भरी.

‘‘मैं ने एक तांत्रिक के बारे में काफी सुना है. उन्होंने काफी नाम कमाया है. वे उज्जैन शहर से ताल्लुक रखते हैं. गांवशहर घूमते रहते हैं. अब उन्होंने यहां पहाड़ी के पुराने मंदिर में धूनी रमाई है,’’ ऐसा कहते हुए छेदीलाल ने एक छपीछपाई परची जसोदा को थमाई.

उस समय राम स्नेही अपने खेतों की सैर पर निकले थे. जब वे घर लौटे, तो जसोदा ने उन को छेदीलाल की दी हुई परची थमाई और मीना को तांत्रिक के पास ले जाने की जिद पर अड़ गईं.

दरअसल, जब मीना को दौरे पड़ते थे, तब जसोदा को ही झेलना पड़ता था. वे मीना के साथ ही सोती थीं. चिंता से देर रात तक उन्हें नींद नहीं आती थी. वे बेचारी करवटें बदलती रहती थीं.

जसोदा की जिद के सामने राम स्नेही को झुकना पड़ा. जसोदा और मीना को साथ ले कर वे पहाड़ी के एक पुराने मंदिर में पहुंचे. मंदिर के साथ 3 कमरे थे. वहां बरसों से पूजापाठ बंद था. तांत्रिक के एक चेले, जो तांत्रिक का सहयोगी और सैके्रटरी था, ने उन का स्वागत किया.

तांत्रिक के सैक्रेटरी ने अपनी देह पर सफेद भभूति मल रखी थी और चेहरे पर गहरा लाल रंग पोत रखा था. सैके्रटरी ने फीस के तौर पर एक हजार रुपए वसूले और तांत्रिक से मिलने की इजाजत दे दी.

तांत्रिक ने भी अपनी देह पर भभूति मल रखी थी. चेहरे पर काला रंग पोत रखा था. दाएंबाएं दोनों तरफ नरमुंड और हड्डियां बिखेर रखी थीं. वह हवन कुंड में लगातार कुछ डाल रहा था और मन ही मन कुछ बुदबुदा भी रहा था.

‘‘जल्दी बता, क्या तकलीफ है?’’ तांत्रिक ने सवाल किया.

‘‘बेटी को अकसर मिरगी के दौरे पड़ते हैं. इलाज से कोई फायदा नहीं हुआ,’’ जसोदा ने बताया.

‘‘शैतान दवा से पीछा नहीं छोड़ता. अतृप्त आत्मा का देह में बसेरा है. सब उसी के इशारे पर होता है,’’ कह कर तांत्रिक ने मीना को सामने बिठाया. हाथ में हड्डी ले कर उस के चेहरे पर घुमाई और जोरजोर से मंत्र बोले.

‘‘शैतान से कैसे नजात मिलेगी बाबा?’’ पूछते हुए जसोदा ने हाथ जोड़ लिए.

‘‘अतृप्त आत्मा है. उसे लालच देना होगा. बच्ची की देह से निकाल कर उसे दूसरी देह में डालना होगा,’’ तांत्रिक ने बताया.

‘‘हमें क्या करना होगा?’’ इस बार राम स्नेही ने पूछा.

‘‘अनुष्ठान का खर्च उठाना पड़ेगा… दूसरी कुंआरी देह का जुगाड़ करना होगा… आत्मा दूसरी देह में ही जाएगी,’’ तांत्रिक ने बताया और दोबारा पूरी तरह से तैयार हो कर आने को कहा.

राम स्नेही सुलझे विचारों के थे. उन्होंने अपनी ओर से मना कर दिया. वैसे, वे खर्च उठाने को तो तैयार थे, लेकिन दूसरी देह यानी दूसरे की बेटी लाने का जोखिम उठाने को तैयार नहीं थे. उन की मीना की बीमारी किसी दूसरे की बेटी को लगे, वे ऐसा नहीं चाहते थे.

लेकिन जसोदा जिद पर अड़ी थीं. अपनी बेटी के लिए वे हर तरह का जोखिम उठाने को तैयार थीं. राम स्नेही ने इस बाबत सोच कर जल्दी ही कुछ करने की बात कही.

एक रात को राम स्नेही और जसोदा अपनी बेटी मीना को साथ लिए बैलगाड़ी में सवार हो कर पहाड़ी मंदिर की ओर निकल पड़े. गाड़ी में उन के साथ एक कुंआरी लड़की और थी. बैलगाड़ी में टप्पर लगा था, जिस से सवारियों की जानकारी नहीं हो सकती थी. दोनों लड़कियों को चादर से लपेट कर बिठाया गया था.

तांत्रिक के सैक्रेटरी ने देह परिवर्तन अनुष्ठान के खर्च के तौर पर 10 हजार रुपए की मांग की. राम स्नेही तैयार हो कर आए थे. उन्होंने रुपए जमा करने में कोई आनाकानी नहीं की.

‘‘अनुष्ठान देर रात को शुरू होगा और यह 3 रातों तक चलेगा…’’ सैक्रेटरी ने बताया और अनुष्ठान पूरा होने के बाद आने को कहा.

राम स्नेही और जसोदा अपने घर वापस लौट आए. जसोदा को उम्मीद थी कि तांत्रिक के अनुष्ठान से मीना ठीक हो जाएगी.

दोनों लड़कियों को एक कमरे में बिछे बिस्तरों पर बिठाया गया. अनुष्ठान से पहले उन्हें आराम करने को कहा गया. तांत्रिक ने लड़कियों के सेवन के लिए नशीला प्रसाद और पेय भिजवाया. नशीले पेय के असर में दोनों लड़कियों को अपने देह की सुध नहीं रही. वे अपने बिस्तरों पर बेसुध लेट गईं.

तांत्रिक और उस के सैक्रेटरी ने देर तक दारूगांजे का सेवन किया. नशे में धुत्त वे दोनों लड़कियों के कमरे में घुस आए. अनुष्ठान के नाम पर उन का लड़कियों के साथ गंदा खेल खेलने का इरादा था. उन को कुंआरी देह की भूख थी. वे ललचाई आंखों से बेसुध लेटी कच्ची उम्र की लड़कियों को घूर रहे थे. थोड़ी ही देर में वे उन की देह पर टूट पड़े.

मीना के साथ आई दूसरी लड़की झटके से उठी. उस ने तांत्रिक के सैक्रेटरी को जोरदार घूंसा जमाया और जोरजोर से चिल्लाना शुरू किया.

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मीना ने भी तांत्रिक को झटक कर जमीन पर गिरा दिया. नशे में धुत्त तांत्रिकों को निबटने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई. मौके पर पुलिस के कई जवान भी आ गए. उन्होंने उन दोनों को हथकड़ी पहना दी.

राम स्नेही को इस तरह के फरेब का पहले से ही डर था. उन्होंने थाने जा कर पूरी रिपोर्ट दी थी. थानेदार ने ही दूसरी देह का इंतजाम किया था. दूसरी लड़की सुनैना थाने में काम करने वाली एक महिला पुलिस की बेटी थी. उस ने जूडोकराटे की ट्रेनिंग ली हुई थी. वह इस मुहिम से जुड़ने के लिए फौरन तैयार हो गई थी.

सुनैना को नशीली चीज व पेय से बचने की हिदायत दी गई थी. उसे हमेशा सतर्क रहने और तांत्रिकों को भरमाने के लिए जरूरी स्वांग भरने की भी सलाह दी गई थी.

हथियारबंद जवानों को पहाड़ी मंदिर के आसपास तैनात रहने के लिए भेजा गया था. जवानों ने वरदी नहीं पहनी थी. जसोदा को इस मुहिम की कोई खबर नहीं थी.

सरकारी अस्पताल के कंपाउंडर छेदीलाल ने यह सारी साजिश रची थी. उस ने अपने ससुराल के गांव के 2 नशेड़ी आवारा दोस्तों चंदू लाल और मनोहर को नशे के लिए पैसे का जुगाड़ करने और जवानी के मजे लेने का आसान तरीका समझाया था.

थाने में पिटाई हुई, तो चंदू लाल और मनोहर ने सच उगल दिया. छेदीलाल को नशीली दवाओं व दिमागी मरीजों को दी जाने वाली दवाओं की अधकचरी जानकारी थी. उसे अस्पताल से गिरफ्तार कर लिया गया. तीनों को इस प्रपंच के लिए जेल की हवा खानी पड़ी. छेदीलाल को नौकरी से बरखास्त कर दिया गया. राम स्नेही को उन के रुपए वापस मिल गए.

थानेदार ने जयपुर के एक नामी मनोचिकित्सक का पता बताया. उन की सलाह के मुताबिक राम स्नेही ने मीना का इलाज जयपुर में कराने का इरादा किया. जसोदा ने हामी भरी. इस से मीना के ठीक होने की उम्मीद अब जाग गई थी.

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अनजाना बोझ: एसपी अमित का क्या था अतीत

‘‘देखिए, सब से पहले आवश्यक है आप का अपने ऊपर विश्वास का होना. स्वयं को अबला नहीं, बल्कि दुनिया का सब से सशक्त इंसान समझने का वक्त है. यदि आप मानसिक और भावनात्मक रूप से मजबूत हैं तो विश्वास कीजिए कि कोई आप को हाथ तक नहीं लगा सकता. मैं शिक्षकों से भी कहना चाहूंगा कि वे बालिकाओं को मानसिक रूप से इतना मजबूत बनाएं कि अपने साथ होने वाले हर अनुचित व्यवहार का वे दृढ़ता से मुकाबला कर सकें. यदि कभी कोई आप के साथ किसी प्रकार की हरकत करता है तो आप उसे मुंहतोड़ जवाब दें. यदि फिर भी मसला न सुल झे, तो हमारे पास आइए, हम आप की मदद करेंगे.’’

‘‘पर सर, यदि कभी हमारे शिक्षक ही हमारे साथ कुछ ऐसावैसा करें तो? क्योंकि न्यूजपेपर में तो अकसर ऐसा ही कुछ पढ़ने में आता है.’’

‘‘तो…तो…उसे भी छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है. शिक्षक है तो क्या हुआ, आप उस के सौ खून माफ कर देंगी? ऐसे व्यक्ति को शिक्षक बनने का अधिकार नहीं है.’’ सिटी एसपी अमित ने कुछ उत्तेजना से 12वीं में पढ़ने वाली बच्ची के प्रश्न का जवाब तो दे दिया परंतु इस प्रश्न ने उन्हें अंदर तक  झक झोर भी दिया. उन के हाथपांवों में कंपन महसूस होने लगा और भरी सर्दी में भी माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं. स्कूल स्टाफ के सामने बड़ी मुश्किल से वे स्वयं को संयत कर पाए और तय समय से आधे घंटे पूर्व ही अपना लैक्चर समाप्त कर के फुरती से गाड़ी में आ कर बैठ गए. खिड़की से बाहर की ओर वे गंभीर मुद्रा में देखने लगे.

हमेशा जोशखरोश से भरे रहने वाले और खुशमिजाज एसपी साहब को यों शांत और गंभीर देख कर ड्राइवर रमेश कुछ डरेसहमे से स्वर में बोला, ‘‘सर, कहां चलना है?’’

‘‘घर चलो,’’ एसपी अमित ने कहा.

जैसे ही उन के बंगले के सामने गाड़ी रुकी, वे तेजी से चलते हुए अपने बैडरूम में पहुंचे और दरवाजा बंद कर के अपने बैड पर निढाल से पड़ गए. यह तो अच्छा था कि पत्नी सृष्टि अभी घर पर नहीं थी, वरना उन का यह हाल देख कर परेशान हो जाती. आज उन के विवाह को 3 वर्ष और नौकरी को 5 वर्ष हो गए थे. वे 2 साल की बेटी के पिता भी थे. पत्नी सृष्टि एक सरकारी कालेज में प्रोफैसर और बहुत ही सुल झी हुई महिला थी. वह घरबाहर और नातेरिश्तेदारों की जिम्मेदारियां भलीभांति निभा रही थी. कुल मिला कर बड़ा ही खुशगवार जीवन जी रहे थे वे.

कुछ समय पूर्व ही उज्जैन जिले में तबादला हो कर वे आए थे. एक सरकारी स्कूल में आयोजित बालिका सुरक्षा सप्ताह के दौरान उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था. वे बहुत खुशीखुशी आए थे. परंतु एक बालिका के प्रश्न ने उन के भूले साल सामने ला खड़े किए थे.

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उस समय एमएससी करने के बाद वे अपने गांव से दूर छोटी बहन के साथ भोपाल में ही रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे. घर की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी. सो, अपने खर्चे के लिए कुछ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ा दिया करते थे. एक दिन उन की एक सहपाठी का फोन आया, ‘अमित, मेरी आंटी की बेटी 11वीं में है जिसे मैथ्स पढ़ना है. अगर तेरे पास टाइम हो तो देख ले.’

‘हांहां, ठीक है, मैं पढ़ा दूंगा. मेरे पास अभी एक भी ट्यूशन नहीं है.’

सहपाठी ने अपनी आंटी का पता और मोबाइल नंबर उन्हें भेज दिया. उन से बातचीत होने के बाद अगले दिन से उन्होंने बड़ी लगन से उस बच्ची को पढ़ाना प्रारंभ भी कर दिया. बच्ची होनहार थी. मातापिता भी शिक्षित थे. कुल मिला कर अच्छा संस्कारी परिवार था. आंटीअंकल दोनों ही उन से बहुत स्नेह रखते थे. उन की लगन और बच्ची की मेहनत ने असर दिखाया और बच्ची धीरेधीरे अपनी कक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने लगी थी, जिस से आंटीअंकल दोनों ही उन से बहुत खुश थे.

आंटी अकसर उन से प्रतियोगी परीक्षा की तैयारियों के बारे में बातचीत करती रहती थीं. उन से बात कर के उन्हें भी बहुत अच्छा लगता था, क्योंकि उन की सकारात्मक बातें सुन कर वे स्वयं उत्साह से भर उठते थे. एक वर्ष में ही उन्होंने अपना विश्वास सब पर भलीभांति जमा लिया था.

बच्ची की अब वार्षिक परीक्षाएं आने वाली थीं, सो, कोर्स पूरा करवा कर रिवीजन वर्क चल रहा था. इन दिनों पढ़ाने को तो कुछ खास नहीं होता था, वे बैठेबैठे पेपर या पत्रिकाएं पलटते रहते. बीचबीच में बच्ची के द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दे देते. कई बार उन का युवा मन बच्ची की ओर आकर्षित भी होने लगता. परंतु अगले ही पल अपनी बहकी भावनाओं पर वे काबू पा लेते. पर शायद बेरोजगारी व्यक्ति की विचारधारा, मानसिकता और सोचनेसम झने की शक्ति सभी का हरण कर लेती है, वे 2 वर्ष से बेरोजगार थे.

उस दिन उन की भावनाओं पर से उन का नियंत्रण ही मानो समाप्त हो गया. उस दिन आंटी अर्थात बच्ची की मां की तबीयत खराब थी और डाक्टर ने 6 बजे का टाइम दिया था. सो, वे अंकल के साथ चली गईं. उन के जाते ही उन की अभी तक सुसुप्त भावनाएं मानो कुलांचें भरने लगीं. उन्हें याद ही नहीं कि उन्होंने कब और कैसे बच्ची का हाथ जोर से पकड़ कर अपने सीने से लगा लिया और आंखें बंद कर लीं.

उन की चेतना कानों में पड़ी बच्ची की आवाज से लौटी, ‘सर, व्हाट आर यू डूइंग?’ बच्ची इस अप्रत्याशित सी घटना से सहम गई थी.  झटके से अपना हाथ छुड़ा कर वह कोने में जा कर खड़ी हो गई. बच्ची की आवाज सुन कर वे मानो सोते से जाग गए और सौरी कह कर एक गिलास पानी पी कर अपना सिर नीचा कर के वापस घर की ओर चल दिए.

क्षणिक आवेग ने उन का चरित्र, संस्कार और आत्मनियंत्रण सब तारतार कर दिया. आत्मग्लानि से मन स्वयं के प्रति ही वितृष्णा से भर उठा. पूरे रास्ते वे सिर  झुका कर चलते रहे, मानो सड़क पर चलने वाले हर शख्स की नजरें उन्हें ही घूर रही हों. जैसे ही वे घर में घुसे, उन के चेहरे का उड़ा रंग देख कर छोटी बहन बोली, ‘क्या हुआ भैया, इतने घबराए हुए क्यों हो?’

‘नहीं, कुछ नहीं. तुम अपना काम करो. मैं छत पर हूं,’ कह कर वे छत पर आ गए थे.

छत पर खुली हवा में आ कर लंबी सांस ली. मानसिक अंतर्द्वंद्व चरम पर था. ‘कैसे अपना आपा खो दिया मैं ने. यदि उन लोगों ने एफआईआर लिखा दी तो कहीं का नहीं रहूंगा. आजकल तो घूरने तक पर कड़ी सजा का प्रावधान है. मेरी तो जिंदगी ही बरबाद हो जाएगी.’ यह सब सोचतेसोचते वे बेचैन हो उठे.

हालात जानने के लिए बच्ची की मां को फोन लगा दिया और बड़ी ही मासूमियत से बोले, ‘आंटी, शुक्रवार को कितने बजे आना है?’

???‘रोज के समय पर ही आ जाना बेटे.’ आंटी को उतने ही प्यार से बात करते देख वे आश्वस्त हो गए कि बच्ची ने आंटी को कुछ नहीं बताया है क्योंकि चलते समय उन्होंने बच्ची से सौरी बोल कर मां को कुछ न बताने की विनती की थी.

2 दिनों तक जब उधर से कोई फोन नहीं आया तो वे आश्वस्त हो गए कि मामला शांत हो गया है. तीसरे दिन सुबहसुबह जब वे नाश्ता कर के उठे ही थे कि मोबाइल बज उठा. मोबाइल स्क्रीन पर आंटी का नाम देखते ही उन के हाथ कांप उठे. किसी तरह साहस कर के उन्होंने ‘हैलो’ बोला. उधर से कड़कती आवाज आई, ‘तुम्हारे मातापिता ने संस्कार नाम की चीज से परिचित कराया है या नहीं. तुम्हें ऐसी हरकत करते हुए खुद पर शर्म नहीं आई?’

सामने छोटी बहन बैठी थी. सो, वे एकदम हड़बड़ा गए और कड़क स्वर में बोले, ‘क्या, क्या किया क्या है मैं ने. अपने शब्दों को लगाम दीजिए.’

‘यह भी मु झे ही बताना पड़ेगा कि तुम ने किया क्या है. बेशर्मी की भी हद होती है.’

‘नहींनहीं आंटी, वह मेरी बहन थी सामने, इसलिए. अब मैं छत पर आ गया हूं. सौरी आंटी, गलती हो गई. मैं हाथ जोड़ कर माफी मांगता हूं.’

‘क्यों, अपनी बहन की इतनी चिंता हो रही है. अपनी सगी बहन के अलावा दूसरी हर लड़की तुम लड़कों को अपनी इच्छापूर्ति का साधन लगती है और तुम उन्हें छेड़ना शुरू कर देते हो. कितनी गंदी मानसिकता है तुम्हारी. तुम्हारे जैसे आवारा कुछ नहीं कर सकते अपनी जिंदगी में. मैं अभी थाने जा रही हूं तुम्हारी रिपोर्ट करने. तुम्हें तो मैं कहीं का नहीं छोड़ूंगी.’

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आंटी के क्रोध से वे बुरी तरह घबरा गए. और जब वे कुछ शांत हुईं तो धीरे से अपना बचाव करते हुए वे बोले, ‘आंटी, मैं आप के हाथ जोड़ता हूं, आप जो चाहे सजा दे लें. आप ही बताइए 2 वर्षों से मैं उसे पढ़ा रहा हूं, कभी ऐसा नहीं हुआ. दरअसल, आज उस ने कुछ अलग, अजीब से कपड़े पहने थे, सो, मैं डिस्ट्रैक्ट हो गया था.’

‘क्या कहा? कपड़े ऐसे पहने थे? तुम्हारा दिमाग खराब है क्या? अब क्या लड़कियां अपनी मरजी के कपड़े भी नहीं पहन सकतीं, क्योंकि उन्हें देख कर लड़के अपनेआप पर काबू नहीं रख पाते. खुद को काबू नहीं कर सकते तो सड़क पर नजरें नीचे कर के चला करो या घर में बैठो. पर मेरी बेटी वही पहनेगी जो उस का दिल करेगा. क्या तुम्हारी बहन तुम से पूछ कर कपड़े पहनती है? क्या अपनी बेटी को भविष्य में तुम ऊपर से नीचे तक तन ढकने वाले कपड़े पहनाओगे?’

आंटी की तर्कयुक्त बातों के आगे उन की तो बोलती ही बंद हो गई. वे दबी आवाज में बोले, ‘नहीं आंटी, ऐसी बात नहीं है. मैं अपनी गलती मानता हूं. मैं बहक गया था. पर मेरा यकीन मानिए मैं ने ऐसावैसा कुछ नहीं किया.’

इतना सुनते ही आंटी फिर भड़क गईं और दहाड़ते हुए बोलीं, ‘और क्या करना चाहते थे मेरी बेटी के साथ? मन तो कर रहा है तुम्हें अभी ही पुलिस के हवाले कर दूं. जेल की सलाखों के पीछे सड़ोगे, तभी सम झ आएगा. मु झे शर्म आती है तुम्हारे मातापिता के संस्कारों पर. यदि उन्हें पता चल जाए तो अपनी परवरिश पर ही शर्म आने लगेगी उन्हें. तुम जानते हो तुम्हारे जैसे सैकड़ों, हजारों युवक बेरोजगार सड़कों पर क्यों घूम रहे हैं, क्योंकि उन के अंदर आत्मबल, आत्मविश्वास और आत्मनियंत्रण ही नहीं है. जिस दिन इन पर विजय पा लोगे, जिंदगी में कुछ बन जाओगे.’ यह कह कर आंटी ने फोन काट दिया.

वे बदहवास से मोबाइल को ही घूरने लगे. उन्हें काटो तो खून नहीं. आंटी ने कुछ ही मिनटों में उन्हें जमीन पर ला पटका था. सच पूछो तो वे घबरा कर रोने लगे थे. ‘क्या करूं, क्या जवाब दूंगा मातापिता को. मु झे क्या हो गया. मेरी एक बेवकूफी ने आज मेरे चरित्र को ही बरबाद कर दिया. यह मैं ने क्या कर दिया,’ सब सोचतेसोचते उन का सिर दर्द करने लगा. तभी बहन ने आवाज लगाई और वे नीचे आ गए.

बहन ने उन के सामने भोजन की थाली लगा दी थी. उन के हलक में तो थूक तक निगलने की गुंजाइश नहीं थी तो खाना कहां नीचे उतरता. सो, ‘भूख नहीं है बाद में खा लूंगा’ कह कर बहन से थाली उठाने को कह दिया. उसी समय उन के फोन की घंटी फिर बजी. फोन आंटी का ही था.

‘तुम्हारी बदतमीजी का फल तुम्हें खुद मिलेगा. मैं क्यों तुम्हारा वह जीवन खराब करूं जिस की अभी शुरुआत ही नहीं हुई है. जाओ, मैं ने तुम्हें अभयदान दिया. पर ध्यान रखना, अपने जीवन में सभी लड़कियों और महिलाओं की उतनी ही इज्जत करना जितनी अपनी मांबहन की करते हो. जीवन में यदि कुछ बन सकोगे तो समाज में इज्जत की दो रोटी खा पाओगे. वरना ऐसे ही सड़क पर चप्पलें चटकाते और लड़कियों को छेड़ते रहोगे,’ यह कह कर आंटी ने फोन काट दिया था.

उस के बाद की कई रातों तक ठीक से सो ही नहीं पाए वे. बारबार आंटी की बातें कानों में गूंजतीं. पर वह घटना उन के जीवन की टर्निंग पौइंट बन गई. उस के बाद के 2 साल तक उन्होंने जम कर मेहनत की. उसी मेहनत के परिणामस्वरूप अपने पहले ही प्रयास में उन्होंने आईपीएस की परीक्षा पास की और एसपी बने. 8 वर्ष पुरानी उस घटना को सोचतेसोचते उन का सिर दर्द से फटने लगा. मन एक बार फिर आत्मग्लानि से भर उठा.

तभी अचानक सृष्टि की आवाज उन के कानों में गूंज उठी.

‘‘क्या हुआ एसपी साहब, आज बड़ी जल्दी घर आ गए. तबीयत तो ठीक है न,’’ कह कर सृष्टि ने उन के माथे पर हाथ रख दिया और घबरा कर बोली, ‘‘अरे, तुम्हें तो तेज बुखार है. क्या हुआ, सुबह तो एकदम ठीक थे. अभी मैं डाक्टर को बुलाती हूं.’’ कह कर वह मोबाइल में नंबर खोजने लगी तो अमित ने उस का हाथ पकड़ लिया और बोले, ‘‘कोई जरूरत नहीं है. चाय पिला कर, बस दवाई दे दो, ठीक हो जाऊंगा.’’

सृष्टि चाय बनाने किचन में चली गई, तो वे फिर बेचैन हो उठे. तभी सृष्टि ने हाथ में चायनाश्ते की ट्रे के साथ कमरे में प्रवेश किया. चाय का कप हाथ में पकड़ाते हुए वह उन के चेहरे की तरफ देखते हुए बोली, ‘‘क्या बात है, कुछ बेचैन और परेशान से लग रहे हो. औफिस की कोई परेशानी है क्या. मु झे बताओ, शायद मैं कोई हल निकाल सकूं.’’

‘‘नहींनहीं, कुछ नहीं. बस, ऐसे ही मन कुछ उदास था. गोलू सो गई क्या? लाओ, उसे मेरे पास सुला दो.’’ कह कर अमित ने बात के रुख को बदलना चाहा. कुछ ही देर में सृष्टि गोलू को अमित की बगल में सुला कर चली गई. जैसे ही उन्होंने बगल में लेटी गोलू की तरफ देखा, तो सोचने लगे, ‘यदि कोई लड़का कभी मेरी गोलू के साथ ऐसी हरकत करेगा तो…तो मैं उसे जान से मार दूंगा. तो क्या मु झे भी उसी समय जान से मार दिया जाना चाहिए था?’ सोचतेसोचते कब आंख लग गई उन्हें भी नहीं पता.

सुबह जब सृष्टि ने उन्हें  झक झोरा, तो उन की आंख खुली. चाय पीतेपीते सृष्टि बोली, ‘‘अमित, तुम कल से कुछ परेशान हो, बताओ तो हुआ क्या है? रात में भी तुम बड़बड़ा रहे थे. ‘नहीं, मु झे माफ कर दो. मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं. आंटी, मु झे माफ कर दो.’ प्लीज, मु झे बताओ इस तरह अकेले मत घुटो, हुआ क्या है. मैं साइकोलौजी की प्रोफैसर हूं, अवश्य तुम्हारी कुछ मदद कर पाऊंगी.’’

अमित की आंखें भर आईं और वे दुखी स्वर में बोले, ‘‘सृष्टि मेरे जीवन की एक घटना है जिस ने मेरा जीवन तो बना दिया परंतु वह मेरे अब तक के सफल जीवन का एक काला धब्बा भी है. कल कुछ ऐसा हुआ कि मैं स्वयं की ही नजरों में गिरता जा रहा हूं. पहले तुम मु झ से वादा करो कि तुम मु झे गलत नहीं सम झोगी और मु झे इस  झं झावात से निकलने का कोई उपाय बताओगी.’’

‘‘हां भई, पक्का वादा. अब 3 साल में तुम मु झ पर इतना भरोसा तो कर ही सकते हो न,’’ सृष्टि ने अमित का हाथ अपने हाथ में ले कर उस की आंखों में  झांकते हुए कहा.

सृष्टि की आंखों में अपने लिए विश्वास देख कर अमित ने रुंधे गले से 8 वर्ष पूर्व का पूरा घटनाक्रम जस का तस सृष्टि को सुना दिया. ‘‘इस दौरान मैं उस घटना को भूल सा गया था पर आज स्कूल में उस बच्ची के एक प्रश्न ने मु झे फिर मेरी ही नजरों के कठघरे में ला खड़ा किया है,’’ कहते हुए अमित शांत हो कर सृष्टि के चेहरे के भाव पढ़ने का प्रयास करने लगे.

‘‘अमित, तुम्हें पता है हमारे समाज में हो रहे अपराधों का सब से बड़ा कारण आज के युवा की बेरोजगारी है. घर और मातापिता की जिम्मेदारियों के बीच में जब एक युवाओं अथक प्रयास के बाद भी नौकरी प्राप्त नहीं कर पाता या आर्थिक जिम्मेदारियों को उठाने के लायक नहीं हो जाता, तो वह स्वयं को असहाय सा महसूस करने लगता है. और जब यह काफी समय तक होता है तो वह युवा अवसाद से घिरने लग जाता है और उस की यह फ्रस्टे्रशन ही उसे गलत दिशा में मोड़ देती है.

‘‘मैं तुम्हारे इस व्यवहार को सही तो नहीं कह सकती क्योंकि आप कितने ही परेशान क्यों न हो, गलत मार्ग को अपना कर स्वयं पर से नियंत्रण खो देना तो सरासर गलत ही है. पर हां, अपनी गलती की स्वीकारोक्ति ही व्यक्ति की सब से बड़ी सजा होती है. वह तुम्हारा सैल्फरियलाइजेशन ही था जिस के परिणामस्वरूप तुम आज एक आला दर्जे के अधिकारी बन पाए हो. हां, तुम्हें जो आत्मग्लानि है उस से निकलने का एकमात्र रास्ता है कि तुम जा कर उन आंटी से मिल कर माफी मांग लो और उन्हें बताओ कि उस दिन उन के द्वारा तुम्हें दिया गया अभयदान बेकार नहीं गया.’’

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‘‘हां, तुम सही कह रही हो. मैं जब तक उन से मिलूंगा नहीं, चैन से सो नहीं पाऊंगा,’’ कह कर अमित अपनी पुरानी डायरी में आंटी का मोबाइल ढूंढ़ने लगे. उज्जैन से भोपाल की दूरी ही कितनी थी, सो, रविवार के दिन वे भोपाल की अरेरा कालोनी में थे.

‘न जाने वे मु झे माफ करेंगी भी, या नहीं. क्या प्रतिक्रिया होगी उन की मु झे देख कर? पता नहीं उन्हें मैं याद भी होऊंगा या नहीं. परंतु जब तक मैं उन से मिल कर अपने दिल का हाल कह कर माफी नहीं मांग लेता, मेरा प्रायश्चित्त ही नहीं हो पाएगा और मैं ताउम्र तिलतिल कर मरता रहूंगा. एक बार मिलना तो होगा ही. शायद वे मु झे माफ कर सकें,’ सोचतेसोचते वे कब अरेरा कालोनी के ई 7 के कामायनी परिसर में एक एचआईजी मकान के सामने आ कर खड़े हो गए, उन्हें पता ही न चला.

उन्होंने धड़कते दिल से घंटी बजाई. दरवाजा आंटी ने ही खोला. अमित ने  झुक कर उन के पैर छू लिए. वे बोलीं, ‘‘अरे, कौन हो भाई? मैं पहचान नहीं पा रही हूं.’’

‘‘आंटी, मैं, अमित.’’

‘‘ओहो अमित, कुछ बन पाए या आज भी…’’ आंटी अपनी याददाश्त पर कुछ जोर डालते हुए बोलीं.

‘‘आंटी, मैं आईपीएस हो गया हूं. पर यकीन मानिए कि आज मैं जो कुछ भी हूं आप के कारण हूं. पर 8 वर्ष पुरानी उस घटना के लिए मैं आज भी क्षमाप्रार्थी हूं. आप ने उस दिन क्रोध में मु झे मेरी असलियत, कर्तव्य और जीवन के मूल्य सम झाए थे. पर आज आप प्यारभरा आशीष मु झे दीजिए तो मैं सम झूंगा कि आप ने सच्चे मानो में मु झे माफ कर दिया है.’’

‘‘वैल डन, वैल डन. उस दिन तुम्हारी आत्मग्लानि देख कर मु झे सम झ आ गया था कि तुम बहक गए हो. तुम्हें माफ कर के मैं ने तुम्हें तुम्हारे हाल पर छोड़ दिया था कि यदि तुम्हें अपने ऊपर वास्तव में पछतावा होगा तो अवश्य जीवन में कुछ बन सकोगे. दरअसल, कभीकभी सजा से अधिक माफ करना आवश्यक होता है क्योंकि हर अपराधी को सजा से नहीं सुधारा जा सकता और न ही हरेक को माफी से. उस समय मैं ने वही किया जो मु झे ठीक लगा.

‘‘मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है. खूब उन्नति करो. पर महिलाओं का सम्मान करना कभी मत छोड़ना,’’ कह कर आंटी ने खुश हो कर उन के ऊपर अपना वरदहस्त रख दिया.

आंटी का प्यारभरा आशीष पा कर अपनी आंखों की कोरों में आए आंसुओं को सिटी एसपी अमित ने धीरे से पोंछ लिया और एक अनजाने बो झ से मुक्त हो कर खुशीखुशी अपने कर्तव्यस्थल की ओर चल दिए.

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दरार: भाग 3- रमेश के कारण क्यों मजबूर हो गई थी विभा

रमेश ने सोचा क्यों न सब से पहले विभा के आशिक की पत्नी को सच बताया जाए. जब उस की पत्नी को अपने पति की करतूतों के बारे में पता चलेगा तो वह अपने पति के विरुद्ध कठोर कदम उठाएगी. हो सकता है इस से विभा और उस के आशिक के संबंध टूट जाएं. नहीं भी टूटते, तो कम से कम जो तकलीफ मैं ने सही है, यही उस के आशिक को भी भुगतनी पड़ेगी. उस ने मेरा घर तोड़ने की कोशिश की, मैं उस का घर तोड़ कर कुछ तसल्ली तो महसूस करूंगा. और वह जासूस के दिए पते पर विभा के आशिक के घर पहुंचा.

विभा के आशिक का नाम सुमेरचंद था. कालेज में वह विभा के साथ पढ़ता था. उस की पत्नी घरेलू महिला थी. उस की 2 बेटियां थीं. वह कालेज में प्रोफैसर था. विभा से उस का प्रेम कालेज में था. शादी के बहुत बाद फेसबुक के जरिए यह प्रेम, अवैध संबंधों में परिणत हो चुका था. रमेश को टाइगर द्वारा दी गई जानकारी से यह भी पता चला था कि दोपहर में सुमेरचंद कालेज में या उस के घर में होता है. बैंक में एक घंटे काम करने के बाद रमेश सुमेरचंद के घर पहुंचा.

दरवाजा सुमेरचंद की पत्नी ने खोला. रमेश ने अपना परिचय दे कर थोड़ा समय मांगा. इस थोड़े से समय में उस ने सीडी दिखाई और सारी जानकारी दी. सुमेरचंद की पत्नी विभा से अधिक सुंदर और शिक्षित थी. रमेश द्वारा दी गई जानकारी से उस का चेहरा उदास और गुस्से में बदल गया.रमेश और रमन वापस आ गए. दूसरे दिन रमेश टाइगर को अपना मित्र बना कर घर ले गया. उस की पत्नी विभा जब किचन में गई, तब टाइगर ने खुफिया कैमरा लगा दिया. दूसरे दिन की शाम को रमेश ने कैमरा टाइगर को सौंप दिया. तीसरे दिन टाइगर ने सुबूत बना कर रमेश को सीडी सौंप दी. उस के आशिक का नाम, कामधाम सब का ब्योरा बना कर दिया. रमेश ने बकाया 30 हजार रुपए धन्यवाद सहित जासूस टाइगर को सौंपे. सुबूत और जानकारी हाथ लगते ही रमेश को अंदर ही अंदर तसल्ली मिली और साथ में ताकत भी.

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‘‘जैसे आप बैंक में मैनेजरी करते हैं. अरे भाई, मेरा यही तो काम है. यही मेरा पेशा है. आप मु झे अपने घर किसी बहाने से ले जाएंगे. मैं घर में, तुम्हारे बैडरूम में कैमरा लगा दूंगा, गोपनीय तरीके से. फिर दूसरे दिन तुम्हें कैमरा निकाल कर मु झे वापस करना है. मैं तुम्हें, तुम्हारी पत्नी और उस के आशिक की पूरीपूरी जानकारी दूंगा. इस सुबूत के आधार पर तुम्हें जो कदम उठाना हो, उठा सकते हो. तलाक लेना हो, चाहे पत्नी को सुबूत दे कर सुधरने के लिए एक मौका देना हो.’’

‘‘एक बात पूछूं टाइगर भाई,’’ रमेश ने दीनता से कहा, ‘‘ऐसा कोई कानून नहीं है जिस में पत्नी को चरित्रहीनता के आधार पर सजा दिलवाई जा सके?’’

टाइगर ने रमेश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘नहीं, दोस्त. ऐसा कोई कानून नहीं है जिस में शादीशुदा स्त्री की चरित्रहीनता पर कानून की कोई धारा लग सके.’’

‘‘आप अपने पति को क्या सजा देंगी, मैडम?’’ रमेश ने मासूमियत से पूछा.

कुछ देर शांत रह कर सुमेरचंद की पत्नी रीमा ने कहा, ‘‘घरवालों की मरजी के खिलाफ मैं ने लवमैरिज की थी. अब किस मुंह से अपने पति की करतूत बताऊंगी. शादी के कुछ समय बाद ही मु झे अपने पति के चरित्र के बारे में पता चल गया था, लेकिन मैं क्या कर सकती थी और अभी भी क्या कर सकती हूं. मेरी 2 बेटियां हैं. मु झे अपना घर भी बचाना है.’’

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‘‘आप तलाक दे सकती हैं,’’ रमेश ने कहा.

‘‘मैं अपने पति को तलाक की गोली से मारूं या बंदूक की गोली से, घर तो मेरा ही टूटना है. मेरा विवेक तो यही कहता है कि सुबह का भूला शाम को घर आ ही जाएगा. ज्यादा से ज्यादा मैं कुछ दिन नाराज रह सकती हूं, पति को मार तो नहीं सकती. तलाक के बाद मैं क्या करूंगी? 2 बेटियों को अकेले पालना संभव नहीं है मेरे लिए. किंतु आप तो मर्द हैं. अच्छीखासी नौकरी है आप के पास. आप क्यों नहीं छोड़ देते अपनी पत्नी को.’’

‘‘मेरा भी एक बेटा है,’’ रमेश ने कहा.

‘‘जब आप पुरुष हो कर सह सकते हैं अपने बेटे की खातिर, तो मैं तो स्त्री हूं.’’

बातचीत का जो नतीजा रमेश चाहता था, वह नहीं निकला. रमेश इस वादे के साथ विदा हुआ कि उन के मध्य जो बातचीत हुई, उस के जिक्र में रमेश का नाम न आए, क्योंकि उसे कुछ तो करना ही है अपनी पत्नी को सजा देने के लिए. मालूम पड़ने पर कहीं वे सतर्क और बेरहम न बन जाएं उस के प्रति.

रमेश जैसे लोग बंदूक चलाने के लिए दूसरे का कंधा तलाशते हैं. ऐसे लोग प्रत्यक्ष हमला करने से डरते हैं चाहे उस की जान पर क्यों न बन आए. सुमेरचंद की पत्नी रीमा से उस के मिलने की यही वजह थी कि रीमा कुछ ऐसा करे पति की बेवफाई से नाराज हो कर सुमेरचंद का घर टूट जाए. लेकिन रीमा के उत्तर से उस का यह दांव खाली गया. अब उस ने दूसरा तरीका यह अपनाया कि वह अपने ससुर लखनपाल से इस बाबत बात करने पहुंचा. सब से पहले उस ने सीडी की एक कौपी थमा कर कहा, ‘‘बाबूजी, यह रहा विभा के विरुद्ध ठोस सुबूत. आप की बेटी ने मु झे धोखा दिया है. मेरे साथ विश्वासघात किया है. आप बताइए, मैं क्या करूं?’’

अगले भाग में पढ़ें- ‘‘क्या तुम मु झ से शादी कर सकते हो?’’

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दरार: भाग 1- रमेश के कारण क्यों मजबूर हो गई थी विभा

ऐसे आदमी पर क्या गुजरती होगी जो अपनी पत्नी को किसी गैरमर्द के साथ रंगेहाथ पकड़ ले और रंगेहाथ भी इस तरह कि पत्नी यह बहाना भी न कर सके कि उस के साथ जबरदस्ती हो रही थी. पहलेपहल उस के पास जब फोन आया तो उसे लगा कि कोई उस के साथ भद्दा मजाक कर रहा है. उस ने फोन करने वाले को डांटाफटकारा भी. उसे कौल ट्रैस करवा कर पुलिस में देने की धमकी भी दी. लेकिन खबर देने वाला पूरी तरह गंभीर था. उस ने कहा, ‘‘आप की पत्नी के अवैध संबंध आज नहीं तो कल उजागर होंगे ही. मैं आप को पहले सूचित कर रहा हूं ताकि आप समय से पहले सचेत हो जाएं. फैलतेफैलते खबर आप तक पहुंची तो आप की ही बदनामी होगी.’’

‘‘क्या सुबूत है तुम्हारे पास?’’ उस ने प्रश्न किया.

‘‘सुबूत तलाशना मेरा काम नहीं है. आप का घर ऐयाशी का अड्डा बन चुका है. सुबूत तुम खुद तलाश करो.’’ और फोन काट दिया गया.

फोन करने वाले की बात पर उसे यकीन न आना स्वाभाविक था. 14 वर्ष हो चुके थे उस के विवाह को. एक बेटा भी था जो अभी स्कूल में पढ़ रहा था. सुखी दांपत्य था उन का. ऐसे में उस की पत्नी के बहकने का कोई कारण नहीं था. घर में सारी सुखसुविधाएं मौजूद थीं. स्वयं का घर था. अच्छा वेतन था. अच्छी नौकरी थी उस के पास. बैंक में मैनेजर था वह. लेकिन कोई उसे इस तरह फोन क्यों करेगा? उस की तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है. 13 वर्ष का बेटा था उस का. पत्नी की उम्र भी 35 वर्ष के लगभग थी. स्वयं उस की आयु 45 वर्ष थी. सुना था उस ने कि इस उम्र में औरत एक बार फिर से युवा होती है. औरत में वही लक्षण उभरते हैं जो 17-18 की उम्र में. लेकिन वह इस बात का पता कैसे लगाए? दिमाग में बैठे शक को कैसे साबित करे? पत्नी के हावभाव, व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं था. जैसी वह पहले थी वैसी अब भी है.

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उस के चेहरे पर परेशानी के भाव देख कर उस के सब से घनिष्ठ मित्र रमन ने पूछा, ‘‘क्या बात है रमेश? कोई परेशानी हो तो कहो?’’

रमन उस का सब से निकटवर्ती मित्र था. दोनों अपनी परेशानियां, अपने दुख एकदूसरे को बता कर मन हलका करते थे. बचपन से साथ में पढ़ेलिखे, साथ में खेले और आज एक ही बैंक में कार्यरत थे. फर्क सिर्फ इतना था कि वह जिस बैंक में मैनेजर था, रमन उसी बैंक में अकाउंटैंट था.

‘‘कुछ नहीं, पारिवारिक कारण है,’’ रमेश ने टालने के अंदाज में कहा. बता कर करता भी क्या? थोड़ी देर के लिए मन हलका हो जाता और यह डर बढ़ जाता कि उसे बात पता चली तो वह किसी न किसी से कहेगा जरूर चाहे वह कितना भी घनिष्ठ मित्र हो. किसी से न कहने की कसम भी उठा ले तो भी ऐसी बातें आदमी अपने तक रख नहीं सकता.

रमेश दुखी था, उदास था. उस के दिलोदिमाग में भयंकर  झं झावात चल रहे थे. न घर में मन लग रहा था न औफिस में. वह करे तो क्या करे? इस सचाई का पता कैसे लगाए? किसी को तो बताना पड़ेगा. तभी तो कोई रास्ता मिलेगा और मन हलका भी होगा. आखिर कब तक वह अंदर ही अंदर घुटता रहेगा. फिर समाधान निकलेगा कैसे? नहीं… किसी को बताने, पूछने से पहले उसे इस बात को प्रत्यक्ष देखना होगा. कभीकभी आंखें भी धोखा खा जाती हैं, फिर यह तो किसी की फोन पर दी गई खबर मात्र है जो गलत हो सकती है.

रमेश अब बिना बताए टाइमबेटाइम घर आने लगा और घर भी इस तरह आता जैसे दबेपांव कोई चोर घुसता है. अचानक घर आने से रमेश की पत्नी के चेहरे पर बेचैनी सी दिखाई देने लगी. हालांकि घर में उस समय कोई नहीं था. लेकिन पत्नी विभा के चेहरे पर आई हड़बड़ाहट ने उस के शक को यकीन में बदल दिया. विभा ने पूछा, ‘‘अचानक, कैसे? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’

‘‘क्यों, क्या मु झे अपने घर आने के लिए इजाजत लेनी पड़ेगी?’’

‘‘पहले तो कभी नहीं आए दोपहर में. वह भी बैंक के समय पर.’’

‘‘मेरे आने से तुम्हें कोई तकलीफ है?’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. पहले कभी नहीं हुआ ऐसा, इसलिए पूछ लिया.’’

‘‘पहले तो बहुतकुछ नहीं हुआ, जो अब हो रहा है,’’ रमेश ने कड़वाहटभरे स्वर में कहा. विभा ने कोई उत्तर नहीं दिया.

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रमेश ने बारीकी से बैडरूम का आंखों से मुआयना किया. लेकिन सबकुछ ठीक था अपनी जगह पर. वह पलंग पर लेट गया. शायद किसी अन्य व्यक्ति का, कुछ देर पहले होने का, उस के जिस्म की गंध का कुछ अनुमान मिले. किंतु वह स्त्री नहीं था. इन बातों को औरत की छठी इंद्रिय भाप लेती है. तभी उसे तकिए के पास एक मोबाइल नजर आया. यह मोबाइल किस का हो सकता है. रमेश ने मोबाइल उठाया ही था कि अचानक चाय ले कर विभा कमरे में आ गई. उस ने तीव्रता से मोबाइल यह कह कर ले लिया कि मेरी सहेली का मोबाइल है. जल्दी में छोड़ गई होगी.

‘‘अगर तुम्हारी सहेली का मोबाइल है तो चील की तरह  झपट्टा मार कर क्यों छीना?’’

‘‘मैं ने  झपट्टा नहीं मारा. सहज ही लिया है. तुम तिल का ताड़ बनाने लगे हो आजकल,’’ विभा ने संभल कर उत्तर दिया.

‘‘तुम्हारी सहेली आई थी?’’

‘‘हां.’’

‘‘तुम ने बताया नहीं?’’

‘‘वह तो अकसर आती है. इस में बताने वाली क्या बात है?’’ विभा ने सहज हो कर उत्तर दिया. रमेश पूछने ही वाला था कि तुम्हारी सहेली का नाम क्या है? लेकिन वह यह सोच कर चुप हो गया कि पूछताछ से पत्नी को शक हो सकता है. फिर वह सावधान हो जाएगी.

रमेश बैंक में अपनी सीट पर काम कर रहा था. तभी मोबाइल की घंटी बजी. उस तरफ से वही स्वर सुनाई दिया.

‘‘बहुत चालाक है तुम्हारी बीवी. उसे पकड़ना है तो ऐसा समय चुनो जब तुम्हारा बेटा स्कूल में हो.’’

‘‘यदि इतने शुभचिंतक हो तो तुम्हीं बता दो कि कौन, कब आता है?’’

‘‘बीवी तुम्हारी बेवफाई करे और जानकारी मैं दूं?’’

‘‘तो फिर फोन कर के खबर क्यों देते हो?’’

‘‘रंगेहाथ पकड़ोगे तो कोई बहाना नहीं बना पाएगी, वरना स्त्री चरित्र है, रोधो कर स्वयं को सच्चा और जमाने को  झूठा साबित कर देगी.’’

अगले भाग में पढ़ें- ‘‘तुम हत्या कर दोगे? इतना प्यार करते हो मुझे…

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दरार: भाग 2- रमेश के कारण क्यों मजबूर हो गई थी विभा

‘‘तुम क्या मेरे घर की चौकीदारी करते हो? तुम्हें कैसे पता कि मेरे घर में कौन आता है, क्यों आता है?’’ रमेश ने चिढ़ कर कहा. दूसरी तरफ से हंसी की आवाज आई और फोन कट गया.

रमेश सोचता रहा, सोचता रहा और एकदम से उस के दिमाग में आइडिया आया. विभा को लगे कि वह घर पर नहीं है, किंतु हो वह घर पर ही.

दूसरे दिन सुबह उस ने अपनी   योजना को अमलीजामा पहनाना  शुरू कर दिया. उस ने कार स्टार्ट की, फिर बंद की. फिर स्टार्ट की, फिर बंद की. इस तरह उस ने कई बार किया. फिर  झल्ला कर कहा, ‘‘कार स्टार्ट नहीं हो रही है. मैं बाहर सड़क से औटो ले लूंगा.’’

विभा उस वक्त बाथरूम में पहुंच चुकी थी. उस ने कहा, ‘‘दरवाजा अटका कर चले जाना. मैं बाद में बंद कर लूंगी. रमेश ने जोर से दरवाजा खोला, फिर जोर से खींच कर बंद किया और बाहर जाने के बजाय बैडरूम में रखी बड़ी अलमारी के पीछे छिप गया. अपने ही घर में छिपना कितना पीड़ादायक होता है अपनी पत्नी को गैरपुरुष के साथ रंगेहाथ पकड़ना. बेटा तरुण पहले ही स्कूल जा चुका था. अब उसे सांस रोके छिप कर खड़े इंतजार करना था उस भीषण दृश्य का.

रमेश ने मन ही मन सोचा यदि उस की पत्नी ने उसे देख लिया तो क्या सोचेगी उस के बारे में. और यदि यह सच न हुआ, तो वह अपनी ही नजरों में गिर जाएगा. विचारों के ऊहापोह में उसे पता भी न चला कि उसे दम साधे खड़े हुए कितना वक्त गुजर चुका है. काफी समय तक उसे अपनी पत्नी के इस कमरे में आनेजाने की आहट मिलती रही. फिर पत्नी के मोबाइल की रिंगटोन सुनाई दी. विभा ने मोबाइल उठाया. उस तरफ से कौन बोल रहा था, क्या बोल रहा था, यह उसे विभा की बात से सम झ आ गया.

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‘‘रास्ता साफ है. गाड़ी चालू नहीं हो रही थी. पैदल ही निकल गए. लेकिन जरा चौकस रहना. मु झे लगता है उसे शक हो गया है. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’

फिर विभा गुनगुनाने लगी. थोड़ी देर बाद दरवाजे की घंटी बजी. फिर एक  30-32 वर्ष के आकर्षक गौरवर्ण युवक ने बैडरूम में प्रवेश किया. दोनों लिपट गए. फिर दोनों के मध्य रतिक्रिया आरंभ हुई. दोनों निढाल हो कर बिस्तर पर लेट गए.

‘तुम घबराना मत,’’ युवक ने उसे धैर्य बंधाया, ‘‘रास्ते का कांटा बनेगा तो कांटे को निकाल फेंकना मु झे आता है.’’

‘‘तुम हत्या कर दोगे? इतना प्यार करते हो मुझे,’’ विभा ने लिपटते हुए कहा.

रमेश का खून खौलने लगा. उस के दिल में आया कि कहीं से एक रिवौल्वर का इंतजाम करे और दोनों को गोली से उड़ा दे. यही सजा है दोनों की. किंतु खौलता हुआ रक्त उसे जमता हुआ जान पड़ा. उस के हाथपैर कांपने लगे.  झूठ की ताकत का भी जवाब नहीं, कितनी बेवफाई और ताकत से भरा हुआ था. बेचारा सच अपने ही घर में छिपा हुआ दोनों की प्रणयलीला देख रहा था. फिर मिलने का वादा कर के युवक चला गया और विभा ने कमरा ठीकठाक किया व बिस्तर पर लेट गई. लेटते ही उस के खर्राटे कमरे में गूंजने लगे.

दरवाजे को आहिस्ता से खोल कर रमेश बाहर निकल गया. जो उस ने देखा, जो उस ने भोगा, उस मृत्युतुल्य कष्ट में उस की सम झ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. खत्म कर दे दोनों को और जेल चला जाए जीवनभर के लिए या खुद को खत्म कर ले और पीछा छुटाए अपने इस टूटे, हारे, धोखा खाए जीवन से? किंतु दोनों ही स्थितियों में उस के बेटे का क्या होगा? इन लोगों का क्या है इन्हें तो खुली छूट मिल जाएगी किंतु सजा भुगतेगा उस का बेटा. नष्ट हो जाएगा उस के बेटे का भविष्य.

उसे लगा कि अब चाहे जो भी हो, उसे रमन से बात करनी चाहिए कि वह आगे क्या करे? ऐसा ही चलने दे? आंख पर पट्टी बांध कर जीना शुरू कर दे? सब बातों से अनजान बना रहे? उसे लगा कि रमन को बता देना चाहिए. कोई तो हो इस दुर्दांत घड़ी में अपना. उस ने रमन को सबकुछ बता दिया. उस की आंखों से आंसू बहते रहे. उस का कहना जारी रहा और रमन ने सब सुनने के बाद अफसोस जताते हुए कहा, ‘‘हर समस्या का हल है. तुम क्या चाहते हो?’’

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‘‘मु झे कुछ सम झ में नहीं आ रहा है,’’ रमेश ने विषादभरे स्वर में कहा.

‘‘तो, चलो मेरे साथ,’’ रमन ने कहा और बिना प्रश्न पूछे रमेश उस के पीछे छोटे बच्चे की तरह चल पड़ा. रमेश को रमन एक कौफीहाउस में ले गया और उस से कहा, ‘‘मैं जो पूछूं, सचसच बताना. मैं तुम्हारा दोस्त हूं, एक अच्छा समाधान निकालने की कोशिश करूंगा.’’

‘‘पूछो.’’

‘‘तुम्हारे अंदर कोई कमी है. मेरा मतलब…’’

‘‘कमी होती तो मेरे साथ वह इतना लंबा समय न बिताती. मत भूलो कि मैं एक बच्चे का बाप हूं.’’

‘‘यह सब कब से चल रहा है.’’

‘‘मु झे पता नहीं.’’

‘‘तुम्हें शक कैसे हुआ?’’

‘‘किसी ने फोन पर जानकारी दी.’’

‘‘जो सही निकली.’’

‘‘हां.’’

‘‘तुम क्या चाहते हो?’’

‘‘मैं उन दोनों का कत्ल करना चाहता हूं.’’

‘‘यह मूर्खता होगी.’’

‘‘तो तुम बताओ, क्या करूं मैं?’’

‘‘मेरे खयाल से तुम्हारा इस संबंध में अपनी पत्नी से बात करना उचित नहीं होगा. यदि तुम बिना सुबूत के तलाक देने की बात करोगे, तो हो सकता है तुम्हारी पत्नी तुम्हें दहेज प्रताड़ना के केस में अंदर करवा दे. मेरा एक मित्र है जो जासूसी का काम करता है. उस के पास चलते हैं. एक बार सुबूत हाथ लग गए तो फिर तुम जैसा चाहे, करो.’’

‘‘तो चलते हैं तुम्हारे जासूस मित्र के पास.’’

इस समय रमेश और रमन टाइगर डिटैक्टिव एजेंसी में बैठ कर जासूस टाइगर को सारी बात सुना रहे थे. पूरी बात सुनने के बाद जासूस टाइगर ने अपनी फीस 10 हजार रुपए एडवांस बताई और सुबूत मिलने के बाद 30 हजार रुपए. जो रमेश ने मंजूर कर ले…

‘‘लेकिन आप सुबूत जुटाएंगे कैसे?’’ रमेश ने पूछा.

अगले भाग में पढ़ें-  अपने बेटे की खातिर, तो मैं तो स्त्री हूं…

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दरार: भाग 4- रमेश के कारण क्यों मजबूर हो गई थी विभा

लखनपाल ने कहा, ‘‘तुम मेरे दामाद हो. मैं तुम से अपनी बेटी की हरकतों के लिए माफी मांगता हूं. किंतु बेवफाई मेरी बेटी ने नहीं, तुम्हारी पत्नी ने की है. शादी के बाद बेटी पराई हो जाती है. मैं अपनी बेटी तुम्हें सौंप चुका हूं और इस बात को 15 वर्ष हो चुके हैं. तुम्हारी सास अब इस दुनिया में नहीं है. नहीं तो उस से कहता बेटी से बात करने को. मैं पिता हूं, मेरा इस मसले को ले कर बेटी से कुछ कहना ठीक नहीं होगा. अपनी पत्नी को कैसे राह पर लाना है, उस के बहके हुए कदमों को कैसे संभालना है, यह तुम्हारी जिम्मेदारी है. फिर भी तुम कहते हो, तो मैं उसे सम झाऊंगा.’’

रमेश को यहां से भी निराशा हाथ लगी. पिता ने अपनी बेटी को फोन पर सम झाया कि अपना घर, अपना पति, बच्चे, एक औरत के लिए सबकुछ होना चाहिए. तुम जिस रास्ते पर चल रही हो, वह विनाश का रास्ता है. अभी भी वक्त है, मृगतृष्णा के पीछे मत दौड़ो. लेकिन वासना में डूबा व्यक्ति कहां सम झ पाता है? विभा को सम झ में आ गया कि उस के पति को उस के अवैध संबंधों की पूरी जानकारी है. उस ने अंतिम फैसले के उद्देश्य से सुमेरचंद को फोन लगा कर संबंधों की खुलती पोल के विषय में जानकारी देते हुए कहा, ‘‘तुम मु झ से कितना प्यार करते हो?’’

‘‘बहुत.’’

‘‘क्या तुम मु झ से शादी कर सकते हो?’’

‘‘मैं शादीशुदा हूं. मेरी 2 बेटियां हैं. तुम भी शादीशुदा हो और एक बच्चे की मां. मेरी पत्नी को भी हमारे संबंधों की जानकारी हो चुकी है.’’

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‘‘तुम अगर सच में मु झ से प्यार करते हो तो मेरे प्यार की खातिर छोड़ दो सबकुछ. मैं भी तुम्हारे लिए सब छोड़ने को तैयार हूं. भगा ले जाओ मु झे और कर लो मु झ से शादी.’’

‘‘मैं अपनी पत्नी और बेटियों को नहीं छोड़ सकता. हां, मैं तुम से प्यार करता हूं, लेकिन शादी नहीं कर सकता.’’

‘‘जब शादी नहीं कर सकते, तो संबंधों को आगे बढ़ाया क्यों?’’

‘‘मैं ने शादी का कभी तुम से वादा नहीं किया. न हमारे बीच में कभी कोई शादी की बात हुई. संबंध रखना हो तो ठीक. अन्यथा ऐसे रिश्ते को समाप्त कर लो.’’

‘‘फिर मैं तुम्हारी क्या हुई? रखैल? मन बहलाने का साधन?’’

‘‘जैसा तुम सम झो. तुम्हारे लिए मैं अपना घर नहीं तोड़ सकता. दिल बहलाना और बात है, शादी करना बहुत बड़ी बात है.’’

‘‘तुम मु झे धोखा दे रहे हो?’’

‘‘मैं तुम्हें नहीं. अपनी पत्नी को धोखा दे रहा हूं और तुम अपने पति को. जब तुम अपने पति की नहीं हुईं तो मैं तुम से कैसे वफा की उम्मीद रखूं. मैं तुम से अभी और इसी वक्त संबंध तोड़ता हूं,’’ इतना कह कर सुमेरचंद ने अपना मोबाइल बंद कर दिया.

उफ, यह मैं ने क्या कर दिया? बहके हुए जज्बातों ने पूरे जीवन पर ग्रहण लगा दिया. कैसे सामना करूंगी अपने पति का. एक गलत कदम ने अर्श से फर्श पर ला पटका मु झे. न मैं अच्छी मां बन सकी, न अच्छी पत्नी. अब क्या होगा? कौन सी विपत्ति आती है, इस का, बस, इंतजार किया जा सकता है. पति के पास मेरी चरित्रहीनता के पूरे सुबूत हैं. यह क्या कर दिया मैं ने. अपने हाथों से अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार दी. अपने हाथों से अपना ही घर जला दिया.

तभी फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठाया, ‘‘हैलो.’’

दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘पति छोड़ दे, तो मैं तुम्हें रखने को तैयार हूं.’’

उस ने फोन जोरों से पटक दिया और चीखी, ‘‘मैं वेश्या नहीं हूं.’’

‘‘तो क्या हो?’’ आवाज की दिशा में पलट कर देखा विभा ने. सामने रमेश खड़ा था और पूछ रहा था, ‘‘तो क्या हो?’’

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विभा पति के पैरों पर गिर गई. उस ने रोते हुए कहा, ‘‘मु झे बहका दिया था सुमेर ने. माफ कर दो मु झे.’’

‘‘तुम कोई दूध पीती बच्ची नहीं हो, जो किसी ने कहा और तुम ने मान लिया,’’ रमेश ने क्रोध से चीख कर कहा, ‘‘तुम ने जो किया, अपनी मरजी से किया.’’

‘‘मु झे माफ कर दीजिए. मु झे एक मौका दीजिए,’’ विभा गिड़गिड़ाई.

‘‘तुम ने मेरे घर को अपनी ऐयाशी का अड्डा बना दिया. मैं तुम्हें कभी माफ नहीं कर सकता.’’

‘‘अपने बेटे की खातिर मु झे माफ कर दीजिए.’’

‘‘बेटे का खयाल होता तो ऐसी गिरी हुई हरकत न करतीं.’’

‘‘मैं आप से माफी मांगती हूं. आप के पैर पड़ती हूं.’’

‘‘तुम ने मेरा विश्वास तोड़ा है. तुम ने बेवफाई की है मु झ से. तुम ने प्रेम की, घर की, परिवार की मर्यादा को नष्ट किया है. तुम क्षमा के योग्य नहीं हो.’’

विभा क्षमा मांगती रही. रमेश उसे खरीखोटी सुनाता रहा. तभी बेटा स्कूल से आ गया. पिता को गुस्से में और मां को रोते देख बेटा रोने लगा, ‘‘क्या हुआ मम्मी? पापा आप क्यों गुस्से में हैं?’’

बेटे का चेहरा सामने पड़ते ही रमेश का गुस्सा शांत हो गया. विभा ने बेटे को सीने से लगाते हुए कहा, ‘‘बेटा, अपने पापा से कहो, मु झे माफ कर दें. पत्नी को न सही, मां को ही माफ कर दें.’’ मां को रोते देख बेटे ने अपने पिता से रोते हुए कहा, ‘‘पापा, मम्मी को माफ कर दीजिए. अगर आप का गुस्सा शांत न हो तो मेरी पिटाई कर दीजिए. मु झे डांट लीजिए.’’

बेटे को रोता देख पिता पिघल गया. विभा बेटे को खाना खिलाने ले गई. थोड़ी देर बाद चाय बना कर पति को दी. रमेश ने कहा, ‘‘हमारा बेटा हम दोनों के बीच सेतु है. एक छोर पर तुम, दूसरे छोर पर मैं. मैं तुम्हें बेटे की खातिर तलाक नहीं दूंगा. क्योंकि मैं जानता हूं बेटे को हम दोनों की जरूरत है. लेकिन, मैं तुम्हारी बेवफाई भूल नहीं सकता. मैं तुम्हारी चरित्रहीनता को चाह कर भी नहीं भूल पाऊंगा. हम एक ही छत के नीचे तो रहेंगे, लेकिन वह प्रेम, वह विश्वास अब संभव नहीं है मेरे लिए.’’

विभा फिर से घर को घर बनाने में जुट गई. गुजरते वक्त के साथ मन के भेद मिटे तो सही काफी मात्रा में, लेकिन रमेश के मनमस्तिष्क में एक दरार बन गई हमेशा के लिए.

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