मायूस मुसकान- भाग 1- आजिज का क्या था फैसला

‘‘मुझेअब मां की हालत देख कर दुख भी नहीं होता है. मैं स्वयं जानती हूं कि वे परेशान हैं,

तन व मन दोनों से. फिर भी न जाने क्यों मु  झे उन से मिलने, उन का हालचाल जानने की कोई इच्छा नहीं होती,’’ मुसकान आज फिर अपनी मां के बरताव को याद कर क्षुब्ध हो उठी थी. ‘‘पर फिर भी तुम्हारी मां हैं वे, उन्होंने तुम्हें पालपोस कर बड़ा किया है, तुम्हे जन्म दिया है, तुम्हारा अस्तित्व उन्हीं से है,’’ ऐशा बोली.

मैं जानती थी कि मेरी बात सुन कर तुम यही कहोगी, मैं मानती हूं मेरे मातापिता ने मु  झे जन्म दिया, मां ने मु  झे नौ माह अपनी कोख में रखा, मु  झे पालपोस कर बड़ा किया, मु  झे इस लायक बनाया कि मैं अपने पैरों पर खड़ी हो सकूं. आत्मनिर्भर बन सकें. मैं सम  झती हूं मु  झ पर उन का उपकार है कि लड़कालड़की में भेद नहीं किया, हम भाइबहिन दोनों को एकसमान पाला. कि…’’ कह कर वह चुप हो गयी थी और एकटक जमीन से अपने पैर के अंगूठे से जैसे कुछ कुरेदने की कोशिश कर रही थी.

ऐशा उसके चेहरे पर आए भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी. उस के होंठ जैसे कुछ कहना चाहते हों किन्तु आंखों का इरादा हो कि चुप ही रहो.

वह अंदर ही अंदर जैसे सुलग रही थी, उस की आंखें आंसुओं से चमक उठी थीं और नथुने फूले से दिखाई पड़ रहे थे. चेहरे के भाव दर्शा रहे थे जैसे अंतस में दबे पुराने जख्म हरे हो रहे हों. वह आंखों में चमके आंसू अपने हलक में उतार रही थी.

पिछले 1 वर्ष से एक ही दफ्तर में कार्यरत उन दोनों सहेलियों ने अपार्टमेंट शेयर किया हुआ है,ऐशा ने मुसकान को इतना उदास पहले कभी नहीं देखा था.

समझ में नहीं आ रहा उस से आगे बात करूं या नहीं, ऐशा असमंजस में थी सो वह चुप ही रही. तभी मुस्कान का मोबाइल फिर से रिंग हुआ. उस ने स्क्रीन पर देखा और नजरें घुमा लीं. फोन रिंग होता ही रहा. उस ने कौल पिक नहीं की. लेकिन उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, जिन्हें वह शायद ऐशा से छिपाने की कोशिश कर रही थी. उस की नजरें लैपटौप में गड़ी थीं, किंतु ध्यान लैपटौप स्क्रीन पर नहीं था. वह अंदर ही अंदर जैसे घुल रही थी. ऐशा चादर में आधा सा मुंह ढके उसे देखे जा रही थी.

ऐशा उठी और उस के पास गई. उस का हाथ अपने हाथों में थामा तो वह फफक कर रो पड़ी, ‘‘मैं क्या करूं, तुम ही बताओ तुम कहती हो मेरा भी मां के प्रति कुछ फर्ज होता है. मैं सभी फर्ज पूरे करना भी चाहती हूं, किंतु मेरा छत्तीस का आंकड़ा है अपनी मां से.’’

‘‘कैसी बात कर रही हो तुम मुसकान? भला ऐसे कोई बोलता है अपनी मां के लिए?’’

‘‘क्या किया मां ने मेरे लिए? मु  झे जन्म दिया, खानाकपड़ा दिया, बड़ा किया बस. उन्होंने अपना फर्ज ही तो पूरा किया.’’

‘‘और क्या कर सकते हैं मातापिता इन सब के सिवा? तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘बच्चों के लिए खानाकपड़ा, रहने को मकान ही सबकुछ नहीं होता, उन्हें प्यार भी तो चाहिए होता है. सोशल सिक्योरिटी क्या आवश्यक नहीं बच्चों के लिए?’’

‘‘पर तुम ये सब क्यों कह रही हो? ऐसा क्या हो गया?’’

‘‘हुआ, बहुत कुछ हुआ. हम 2 भाइबहिन हमेशा अपने मातापिता के प्यार को तरसते रहे. उन दोनों के आपसी   झगड़े कभी खत्म ही नहीं होते, आज तक भी नहीं. सम  झ नहीं आता, कैसी शादी थी उन की. शायद उन्होंने एकदूसरे से प्रेम तो कभी किया ही नहीं.

‘‘पापा अपने मातापिता, छोटे भाइबहिन की जिम्मेदारियों में व्यस्त रहे. मां ब्याह कर पापा के घर में तो आ गई, किंतु पापा ने उन का कोई खयाल नहीं रखा. घर में सिर्फ 24 घंटों की नौकरानी की तरह खटती रहीं.

‘‘संयुक्त परिवार था हमारा, दादादादी, चाचाबूआ, पापा, मां, मैं और मेरा बड़ा भाई. हम सभी साथ ही रहते थे. कहने को तो भरापूरा, हंसताखेलता परिवार, लेकिन सिर्फ दुनिया के सामने, वहां आपसी प्रेम और सच्ची खुशी तो कभी नजर ही नहीं आई. मैं ने अपनी मां को पापा के साथ कभी मुसकरा कर बात करते नहीं देखा. दोनों के आपसी तनातनी भरे वार्त्तालाप घर में अकसर तनाव का माहौल बनाए रखते.

‘‘मां अकसर पिताजी को हर बात आज तक भी घुमाफिरा कर बताती हैं. न जाने अपने 25 वर्ष के विवाह में भी वे पिताजी के साथ सहज व्यवहार क्यों न कर पाईं. पापा को ऐसा महसूस होता है जैसे मां उन के मांपिताजी व पूरे परिवार का मजाक बना रही हैं. न जाने कैसी कैमिस्ट्री है दोनों की आपस में. तेरा परिवार मेरे परिवार से ऊपर ही नहीं उठे अभी तक. 5 वर्ष की थी मैं तभी से मां को दादी के साथ विभिन्न रीतिरिवाजों को ढोते देखा.

‘‘दादी को सब रीतिरिवाज अपने हिसाब से करवाने होते और मां अकसर कुछ न कुछ चूक कर ही देतीं. बस फिर क्या था दादी उन्हें खूब ताने देती. बस यही सिखाया तेरी मां ने, कोई तौरतरीका तो आता नहीं, बस बांध दी हमारे गले.

‘‘मां सबकुछ सुन कर मन मसोस कर रह जाती. कभी पलट कर जवाब भी न दिया. पलटवार करती भी किस के भरोसे. पापा ने तो जैसे उन्हें मायके के खूंटे से खोला और ससुराल के खूंटे से बांध दिया.

‘‘विवाह का पवित्र बंधन पुरुष व स्त्री का आपसी रिश्ता होता है जो प्रेम की कलियों से गुंथा होता है, जिस में भरोसे की महक  होती है जो जीवन को महका देती है, किंतु उन दोनों के बीच यह रिश्ता तो आज तक बना ही नहीं. मां व पिताजी अन्य रिश्ते निभातेनिभाते अपने रिश्ते को तो जैसे कहीं पीछे ही छोड़ आए. उन्होंने शायद ही कभी एकदूसरे के मन की सुध ली हो.

‘‘मां को ससुराल में प्यार मिला ही नहीं. आज तक वे अपने मायके के प्रति प्रेम से बंधी हैं. मैं यह नहीं कहती कि उन्हें अपने मातापिता को भूल जाना चाहिए, किंतु वे पापा के परिवार को अपना न सकीं.

‘‘पापा को महसूस होता है कि जिस तरह आज भी वे अपने मायके के रिश्तेदारों के प्रेम में बंधी है, वैसे ही पापा के परिवार से क्यों नहीं मिल जाती.’’

‘‘लेकिन कोई भी संबंध एकतरफा तो नहीं हो सकता न?’’ ऐशा ने कहा.

‘‘हमारे रीतिरिवाज, परंपराएं जो जोड़ने और खुशियां बढ़ाने का एक माध्यम होती हैं, किंतु यहां तो परंपराओं ने दोनों परिवारों को कभी एक न होने दिया. पापा के परिवार ने सदा ही मां के परिवार को कमतर सम  झा व मां का बारबार अपमान किया.

‘‘दादी जबतब मां को उन के मायके का उलाहना देती रहतीं. मां कभीकभी पापा से शिकायत भी करतीं, किंतु वे कुछ कर ही न पाते. एक तरफ मां व दूसरी तरफ पापा का पूरा परिवार.

‘‘जब मैं छोटी थी शायद पांच या छ: साल की. मां मु  झे खूब मारतींपीटतीं. मु  झे सम  झ ही न आता कि मेरी गलती क्या है. बस पिट जाती, रोतीचीखती. जाती भी कहां फिर अपनी ही मां के पास ही जा कर चिपक जाती,’’ मुसकान फिर से सिसकने लगी थी.

‘‘क्यों बात का बतंगड़ बना रही हो मुसकान. ये सब बातें तो बहुत मामूली सी हैं. शायद हर घर में होती हैं. वह जमाना ऐसा ही था. लोग रीतिरिवाज, रिश्तेनाते और परंपराओं को निभाते थे. इस में तुम्हारी मां का क्या दोष? क्यों  तुम उन से किनारा कर बैठी हो?’’ ऐशा ने कड़क लहजे में कहा.

‘‘होगा जमाना ऐसा. मेरी मां तो अपना घर छोड़ आईं और पापा के परिवार से रिश्ता जोड़ा, किंतु उन्होंने मां को दिल से अपनाया भी तो नहीं, सिर्फ इस्तेमाल किया.

‘‘लेकिन मेरी मां पढ़ीलिखी थीं उस जमाने में भी. नौकरी भी करती थीं विवाहपूर्व.

नथनी: भाग 2- क्या खत्म हुई जेनी की सेरोगेट मदर की तलाश

शादी का बोझ बढ़ जाने के साथ ही घर से अलग होना कुछ ज्यादा ही महंगा पड़ा. जल्द ही एक नन्ही सी बेटी ने खर्च और बढ़ा दिया. 1-2 बार तो सलमा ने अपने बाप से पैसे मंगवा कर कमल की मदद भी की पर हालात बिगड़ने लगे तो सलमा ने अपनी पड़ोसिन रोमी से किसी काम के लिए राय मांगी तो उस ने सिलाईकढ़ाई का काम भी सिखाया और कमाई का जरिया भी बनवा दिया.

सलमा बहुत खुश थी कि अब वह गृहस्थी का बोझ संभालने में कमल की अच्छीखासी मदद कर सकेगी पर फिर भी ऐसा हो नहीं सका, क्योंकि जैसेजैसे सलमा ने आर्थिक स्थिति मजबूत करनी शुरू की कमल ने दारू पीना शुरू कर दिया.

सलमा ने जल्द ही महसूस किया कि उस ने कमल से शादी कर के बहुत बड़ी भूल कर डाली थी. जो आदमी एक मामूली सी नथनी का वादा पूरा नहीं कर सका वह जिंदगी भर का साथ कैसे निभा पाएगा. बजाय आमदनी बढ़ाने के उस ने दारू पीनी शुरू कर के एक और चिंता बढ़ा दी थी, मायके व ससुराल दोनों के रास्ते पहले ही बंद हो चुके थे.

सलमा का सहारा बनने के बजाय कमल उस पर और अधिक कमाने के लिए दबाव बनाने लगा.

जैसेजैसे कमल पर दारू का नशा तेज होने लगा, सलमा के प्यार का नशा उतरने लगा. वह अधिक से अधिक कमाई करने की होड़ में अपनी सेहत और खूबसूरती खोने लगी. कमल दिन भर इधरउधर मटरगश्ती करता, देर रात आता और सुबह फिर कुछ पैसे ले कर ठेला लगाने का बहाना कर के गायब हो जाता.

पहली बेटी एक साल की मुश्किल से हुई होगी कि एक और हो गई. मुश्किलें और बढ़ गईं. सलमा ने कमल को कई बार विश्वास में ले कर समझाना चाहा पर वह एक ही बात कहता कि वह बड़े धंधे की कोशिश में लगा हुआ है. सलमा चुप हो जाती. फल का ठेला कम ही लग पाता. जो कमाई होती वह दारू के लिए कम पड़ जाती. मकान का किराया चढ़ने लगा. सलमा परेशान रहने लगी.

एक दिन सलमा घर पर बैठी यही सब सोच रही थी कि उस की पड़ोसिन रोमी ने उसे एक अजीब खबर दे कर उस का ध्यान बंटा दिया कि अखबार में ‘सेरोगेट मदर’ की मांग हुई है.

सलमा ने पूछा, ‘‘यह क्या होती है?’’

‘‘इस में किसी मियांबीवी के बच्चे को किसी अन्य औरत को अपने पेट में पालना होता है. बच्चा होने पर उस जोड़े को वह बच्चा देना होता है, इस के एवज में काफी पैसे मिल सकते हैं.’’

सलमा ने हंस कर पूछा, ‘‘रोमी, तू इस के लिए तैयार है?’’

‘‘नहीं, यही तो गम है कि मेरे पति ने मना कर दिया है.’’

‘‘और मेरे पति मान जाएंगे?’’ सलमा ने उलाहना दिया.

‘‘देखो, यह मानने न मानने की बात नहीं है, हालात की बात है. तुम्हारे 2 बच्चे हो चुके हैं, तुम्हारी आर्थिक स्थिति खराब चल रही है. तुम्हारी उम्र भी कम है. अगर तुम तैयार हो जाओ तो वारेन्यारे हो सकते हैं. सारी मुसीबत एक झटके में ठीक हो सकती है.’’

‘‘कितने पैसे मिल सकते हैं कि वारेन्यारे हो जाएंगे?’’

‘‘मामला लाखों का है, 2-3 से बात शुरू होती है, तयतोड़ करने पर अधिक तक पहुंचा जा सकता है.’’

‘‘सच? तू मजाक तो नहीं कर रही है? किसी पराए आदमी के साथ हमबिस्तर तो नहीं होना पड़ता है?’’

‘‘कतई नहीं, ऐसा भी हो सकता है कि तुम उस आदमी को देख भी न पाओ.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘वह ऐसे कि उस जोड़े के साथ एक वकील एक डाक्टर और कुछ नर्सें भी होंगी. डाक्टर तुम्हें सिर्फ एक इंजेक्शन देगा. वकील एक एग्रीमेंट लिखाएगा. उस के बाद 9 महीने तक नर्सें और डाक्टर तुम्हारी जांच करते रहेंगे, तुम्हें अच्छी से अच्छी खुराक और दवाएं भी मिला करेंगी. कुछ रुपए एडवांस भी मिलेंगे. शेष बच्चा उन को सौंपने पर मिलेंगे. एक गोद भरने का संतोष मिलेगा वह अलग से. उस की तो कीमत ही नहीं आंकी जा सकती.’’

सलमा बेसब्री से कमल के आने का इंतजार करने लगी. वह काफी दिनों से उदास भी चल रही थी पर रोमी के इस सुझाव ने उस की आंखों में चमक सी ला दी थी. उस के मन में एक बवंडर सा उठ खड़ा हुआ था. काश, 3 लाख का भी इंतजाम हो जाए तो अपना एक घर हो जाए. कमल को कोई अच्छा सा धंधा शुरू करवा दे, बेटियों के भविष्य के लिए कुछ पैसा जमा कर दे, थोड़ा सा पैसा बाप को भेज दे, क्योंकि उन्होंने भी आड़े वक्त में साथ दिया था.

सुबह राशन लाने को कह कर कमल दिनभर गायब रहा था. देर रात जब कमल आया तो नशे में धुत. उस ने देखा कि सलमा बच्चियों को सुला चुकी थी. उस ने धीरे से दरवाजा खोला, अंदर गया, कपड़े बदले और सलमा की चादर में जा पहुंचा. कमल के हाथ जब सलमा के शरीर पर रेंगने लगे तो वह सकपका कर जाग उठी, ‘‘कमल…खाना खा लिया…’’

‘‘खा के आया हूं, इधर मुंह करो,’’ कमल ने उसे अपनी तरफ करवट लेने के लिए कहा.

‘‘कुछ राशन लाए हो क्या…’’ सलमा ने उस की ओर मुड़ते हुए सवाल दाग दिया.

कमल ने उस के सवाल का कोई जवाब न देते हुए उस की ओर से अपना मुंह दूसरी ओर कर लिया और चादर से मुंह को पूरी तरह से ढक लिया.

फिर सलमा को रात भर नींद नहीं आई. वह सारी रात अपने और अपनी बेटियों के भविष्य के बारे में सोचती रही.

सुबह सलमा ने जब कमल के लिए चाय बनाई तब वह बिस्तर से उठा. मुंहहाथ धो कर आया तो बजाय चाय पर बैठने के उस ने सलमा को बांहों में भर लिया, ‘‘मेरी प्यारी सलमा…’’

सलमा ने किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, न ही सहमति और न विरोध.

सलमा के इस रुख से कमल आहत हुआ.

‘‘क्या बात है? बहुत गुस्से में दिखाई पड़ रही हो. कहीं मुझे छोड़ने तो नहीं जा रही हो? तुम्हारी कसम…दरिया में कूद कर जान दे दूंगा,’’ कहते हुए कमल ने चाय का कप उठा लिया.

‘‘बात बीच में मत काटना, पूरी सुन लेना तब जो कहोगे मैं मानूंगी,’’ कहते हुए सलमा ने रोमी की बात पूरी विस्तार से कमल को बताई तो उस की आंखों में चमक सी आ गई. उस ने सलमा को बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘मेरे खयाल से इस में कोई बुराई नहीं है, बल्कि मैं एक गलत धंधे में पड़ने वाला था. अच्छा हुआ तुम ने मेरी आंखें खोल दीं. पर सुनो, तुम मेरे प्यार में कमी तो नहीं आने दोगी न?’’

‘‘तुम्हारे एक इशारे पर सबकुछ छोड़ दिया. बिना तुम को विश्वास में लिए मैं कोई काम नहीं करूंगी. यह भी तुम अच्छी तरह सोचसमझ लो. अगर मना कर दोगे तो नहीं करूंगी,’’ सलमा की आंखों में कुछ लाल डोरे से दिखाई पड़े.

बात आगे बढ़ी. न्यूजर्सी से चल कर जेनी और डेविड मय अपने वकील के हिंदुस्तान आए. कमल के साथ कई बैठकें हुईं. सारी शर्तें ठीक से समझाई गईं. रोमी उन सब में शामिल रही. तमाम शंकाओं के समाधान के बाद मामला 4 लाख पर तय हुआ. कमल व सलमा ने, समझौते पर अपने दस्तखत किए. वादे के अनुसार 50 हजार रुपए का भुगतान पहले कर दिया गया.

सलमा को केवल जेनी ने ही देखा, डेविड ने नहीं. 3  लाख 50 हजार बाद में देने का करार हुआ. यह 9 महीने के दौरान चेकअप, दवाओं व खुराक के खर्च के अलावा था. शहर के एक बड़े नर्सिंग होम पर यह जिम्मा छोड़ा गया कि वह एक फोन पर सेवाएं मुहैया कराया करेगा. 1 महीने बाद आने को कह कर डेविड और जेनी अमेरिका चले गए.

सफर का शौक: क्या सोनल के सपने हकीकत बन पाए

अपनी सहेलियों आंचल, कावेरी और वंदना के साथ सोनल कालेज के लौन में आ कर बैठी ही थी कि आंचल ने अपने बैग से एक किताब निकाली और सब को दिखाते हुए बोली, ‘‘यह जानेमाने पामिस्ट कीरो की किताब है. इसे मैं ने कुछ दिनों पहले खरीदा था. इस किताब को पढ़ कर मैं भी कीरो से कम नहीं हूं. आप में से कोई अपना हाथ दिखा कर अपना भविष्य जानना चाहता है, तो आज यह सेवा बिलकुल फ्री है.’’

सोनल की सहेलियों ने फौरन अपने हाथ आंचल के सामने बढ़ा दिए.

कावेरी और वंदना की हथेली देखने के बाद आंचल, सोनल की हथेली देख कर बोली, ‘‘तेरी लव मैरिज होगी.’’

लव मैरिज के नाम पर सोनल का अजीब सा मुंह बन गया. वह बोली, ‘‘आंचल, तेरी यह भविष्यवाणी बिलकुल झूठी निकलेगी. तू तो हमारे घर के हालात जानती ही है. मेरे मम्मीपापा मुझे कालेज भेज रहे हैं, तो यह उन की ओर से मेरे लिए बहुत बड़ी आजादी है. देख लेना, जैसे ही मेरी पढ़ाई पूरी होगी वे मेरी शादी कर देंगे.’’

‘‘लेकिन मुझे लगता है कि मेरी यह भविष्यवाणी झूठी नहीं निकलेगी. अपनी

शादी के बाद तू बहुत लंबेलंबे सफर करेगी और ये सफर मामूली न हो कर विदेश से संबंधित होंगे.’’

‘‘वाह, यह की न तू ने दिल को खुश करने वाली बात,’’ सोनल खुशी से झूमते हुए बोली. फिर एकाएक उस का चेहरा बुझ गया. वह मायूस हो कर बोली, ‘‘आंचल, तेरी यह भविष्यवाणी भी झूठी निकलेगी. मैं ने तो अभी अपने दिल्ली शहर को ही पूरी तरह से नहीं देखा है, जबकि तू मेरे विदेशों में घूमने की बात कर रही है.’’

‘‘तू दिल छोटा मत कर. तू बस यह जान ले कि तेरे विदेश घूमने को कोई रोक नहीं सकता.’’

इतने में अगले पीरियड की घंटी बज गई और वह चौकड़ी अपनी क्लास की तरफ बढ़ गई.

फाइनल परीक्षा के बाद वे सब बिछड़ गईं.सोनल ने पढ़ाई छोड़ कर घर की जिम्मेदारी संभाल ली, क्योंकि उस के मातापिता उसे आगे पढ़ाने के हक में नहीं थे. आंचल और वंदना ने आगे पढ़ने के लिए यूनिवर्सिटी जौइन कर ली, जबकि कावेरी की शादी हो गई.

वक्त गुजरता गया, सोनल आंचल की वे बातें, जो उस ने हाथ देख कर बताई थीं, खासतौर पर सफर करने वाली बात न भूली थी. दरअसल, वह ख्वाबोंखयालों की दुनिया में खोई रहने वाली लड़की थी. वह हरदम सपनों के सुनहरे तानेबाने बुनती रहती और हर पल किसी ऐसे शहजादे का इंतजार करती, जो खूब ऊंची पोस्ट पर हो और वह उस के संग हवाओं में उड़े और खूब घूमे.

एक दिन शाम को सोनल अपनी किसी सहेली से मिल कर आई तो उस की छोटी बहन पूजा ने उसे बताया, ‘‘अब आप दुलहन बनने की तैयारी शुरू कर दीजिए. पड़ोस की चाची आप के लिए बहुत अच्छा रिश्ता लाई हैं, जो मम्मीपापा को भी पसंद आ गया है.’’

यह सुनते ही सोनल उमंगों से भर उठी. लेकिन अगले ही पल जब पूजा ने बताया कि उस का होने वाला पति एक सरकारी महकमे में क्लर्क है, तो उस के अरमानों पर जैसे पानी फिर गया हो.

उसे यह रिश्ता बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था, मगर उस के लाख रोनेपीटने पर भी उस की एक न सुनी गई. उस के मम्मीपापा इतने बेवकूफ नहीं थे कि इतने अच्छे रिश्ते को हाथ से जाने देते. फिर उस की दूसरी बहन भी शादी लायक हो रही थी. उन्हें उस की भी फिक्र थी.

सोनल विवाह के बाद अपनी ससुराल आ गई. शुरूशुरू में उसे लगा कि उस की तमाम ख्वाहिशों का गला घोट दिया गया है पर विनय उस की उम्मीदों के खिलाफ उसे बहुत प्यार करने वाला पति साबित हुआ. बिलकुल ख्वाबों के शहजादे की तरह. फर्क सिर्फ इतना था कि वह उस के साथ सैरसपाटे पर नहीं जा सकता था, क्योंकि हालात उसे इजाजत नहीं देते थे. इधर सोनल ने भी वक्त के साथ समझौता कर लिया.

एक दिन सोनल पड़ोस में रहने वाली मिसेज मेहरा से मिलने गई तो वे उसे बहुत खुश दिखाई दीं.

‘‘मिसेज मेहरा, आज आप बड़ी खुश दिखाई दे रही हैं?’’

‘‘बात ही कुछ ऐसी है सोनल,’’ मिसेज मेहरा खुशी से झूमते हुए बोलीं, ‘‘असल में मेहरा साहब औफिस के काम से पैरिस जा रहे हैं, मैं भी उन के साथ जाऊंगी. कितना मजा आएगा पैरिस घूमने में.’’

‘‘बहुतबहुत मुबारक हो,’’ सोनल ने मिसेज मेहरा को बुझे मन से बधाई दी और उन के लाख रोकने के बाद भी अपने घर आ गई.

शाम को विनय औफिस से घर लौटा, तो वह चुपचुप सी थी.

‘‘क्या बात है सोनल, बड़ी खामोश हो? आज तुम ने मुसकरा कर वैलकम डियर भी नहीं कहा.’’

विनय का इतना ही कहना था कि जो लावा सोनल के दिल में कई दिनों से उबल रहा था, वह एकदम फट पड़ा.

वह बोली, ‘‘आप कोई अच्छी जौब नहीं देख सकते क्या, जिस में घूमनेफिरने के चांस हों?’’

‘‘अरे, इतनी सी बात पर तुम खफा हो गईं,’’ विनय मुसकरा कर बोला, ‘‘असल में मैं कई दिनों से बिजी रहा, इसलिए तुम्हें कहीं घुमाने नहीं ले जा सका. नो प्रौब्लम. तुम तैयार हो जाओ. हम अभी तुम्हारे पसंदीदा हीरो शाहरुख खान की फिल्म देखने चलते हैं.’’

‘‘मुझे फिल्मविल्म देखने नहीं जाना,’’ वह गुस्से से बोली.

‘‘फिर?’’

‘‘विनय, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम किसी सफर पर चलें. एक लंबा सा सफर… फौरेन का न सही, अपने देश का ही सही. पता है, मिसेज मेहरा अपने पति के साथ पैरिस जा रही हैं.’’

‘‘तुम भी क्या बात करती हो. अपने हालात तो तुम अच्छी तरह से जानती हो. मैं मिस्टर मेहरा की तरह ऊंची पोस्ट पर नहीं हूं. हमारे हालात ऐसे खर्चों की इजाजत नहीं देते.’’

‘‘मैं फौरेन टूर पर जाने के लिए नहीं

कह रही.’’

‘‘ऐसी बात है तो मैं कोशिश करूंगा कि कुछ रकम का इंतजाम हो जाए. फिर मैं तुम्हें पूरी दिल्ली घुमा दूंगा. उस के बाद मैं तुम्हें तुम्हारे मायके छोड़ दूंगा, वहां तुम कुछ दिन रह लेना. तुम्हारा दिल भी बहल जाएगा.’’

‘‘नहीं, मुझे दिल्ली नहीं घूमना और न ही मुझे अपने घर जाना.’’

‘‘फिर?’’

‘‘क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम कुछ दिनों के लिए शिमला और कुफरी घूम आएं?’’

‘‘होने को क्या नहीं हो सकता, लेकिन इस के लिए मुझे अलग से मेहनत कर के कुछ पैसों का इंतजाम करना पड़ेगा. अब तुम ने जब घूमने का फैसला कर ही लिया है, तो मैं तुम्हें रोकने वाला कौन होता हूं. तुम कुछ दिन इंतजार करो. 1-2 महीने मैं पार्टटाइम काम कर के पैसों का इंतजाम कर लूंगा. अब तो खुश हो जाओ,’’ कहते हुए विनय ने उस के केश बिखेर दिए.

‘‘सच, तुम कितने अच्छे हो,’’ सोनल उस के कंधे पर सिर टिका कर ख्वाबों की दुनिया में पहुंच गई.

फिर विनय बहुत व्यस्त हो गया. वह सुबह का गया देर रात को घर आता और खाना खा कर बेसुध हो कर सो जाता. सोनल भी घर के खर्चों में कमी की कोशिश करती रहती. कुछ दिनों बाद उन के आंगन में एक फूल खिला और जोड़जोड़ कर जमा की हुई सारी रकम डिलीवरी के खर्चे में खत्म हो गई और सोनल की ख्वाहिश पूरी न हो सकी.

जब कभी उन के पास इतने पैसे हो भी जाते कि वे कहीं घूमफिर आएं और अपनी इस ख्वाहिश को पूरा कर सकें, तो कोई न कोई ऐसा मसला आ खड़ा होता, जिस में जोड़ी रकम खर्च हो जाती और वे कहीं घूमने न जा पाते.

उस दिन वह अपने बेटे अरमान के साथ पास के शौपिंग मौल में गई तो उस का सामना आंचल से हो गया. उसे देखते ही कई पुरानी यादें ताजा हो गईं.

वह आंचल को अपने साथ अपने घर ले आई. बातोंबातों में उस ने उस से पूछा, ‘‘आंचल, याद है कालेज में तू ने एक बार मेरा हाथ देख कर बताया था कि शादी के बाद मैं कई सफर करूंगी. मेरी शादी को 2 साल हो गए, लेकिन मैं आज तक कहीं घूमने नहीं गई. तेरी यह भविष्यवाणी तो गलत निकली.’’

‘‘मेरी भविष्यवाणी को झूठ निकलना ही था,’’ आंचल मुसकरा कर बोली.

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यही मेरी बिल्लो रानी कि उस दिन मैं ने तुम लोगों से सरासर झूठ बोला था. यह बात सच है कि मैं उन दिनों हाथों की लकीरें देख कर भविष्य बताने वाली किताब जरूर पढ़ रही थी, लेकिन वह सरासर बकवासबाजी थी. भला ऐसा भी कहीं होता है कि आदमी मेहनतमशक्कत न करे और तकदीर उसे बैठेबिठाए सब कुछ दे दे.’’

सोनल को ऐसा महसूस हुआ जैसा आंचल ने यह बात कह कर उस के माथे पर वजनी हथौड़ा दे मारा हो. कई पलों तक तो वह आंचल को फटीफटी निगाहों से देखती रही.

‘‘तो उस दिन तू ने जो कुछ कहा था वह सब अपने मन से कहा था?’’

‘‘और नहीं तो क्या. उस दिन मुझे बेवकूफ बनाने के लिए कोई नहीं मिला था, इसलिए मैं ने तुम लोगों से तुम्हारे हाथ देखने के बहाने सब कुछ झूठ बोला था.’’

बरसों से सफर के बारे में देखे गए उस के सपने ताश के महल की तरह ढह गए. उसे एकएक कर के वे तमाम बातें याद आने लगीं, जो उस ने सफर के लिए सोची थीं. विनय का पार्टटाइम जौब करना. उस का घरेलू खर्चों में कंजूसी की हद तक तंगी करना और दिनरात सफर के सपने देखना.

‘‘आंचल, तू सच में बहुत बुरी है,’’ वह शिकायत भरे स्वर में बोली, ‘‘तू नहीं जानती, तेरे इस झूठ ने मुझे कितनी तकलीफ पहुंचाई है. काश, तू ने मुझ से ऐसा झूठ न बोला होता.’’

‘‘अरे यार, तू मेरे इस झूठ को इतनी संजीदगी से लेगी, मुझे पता न था. वरना मैं ऐसा मजाक तेरे साथ कभी न करती. वैसे एक बात बता दूं कि आदमी को हाथों की लकीरों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए. यह भी हो सकता है कि तेरे लिए अचानक सफर का चांस निकल आए. अभी तू ने अपने जीवन के ज्यादा वसंत थोड़े ही देखे हैं. मेरी बात मान, जब कुदरत को तुझे घुमाना मंजूर होगा, वह अपनेआप तेरे सामने कोई न कोई रास्ता निकाल देगी. तू आज से ही सफर की ख्वाहिश अपने दिल से निकाल फेंक और अच्छी पत्नी की तरह अपने पति की खिदमत और बेटे की अच्छी परवरिश में जुट जा. क्या पता, कल को तेरा बेटा ही तुझे दुनिया भर की सैर करा दे.’’

सोनल को ऐसा महसूस हुआ जैसे उस के हृदय से बोझ हट गया हो. आंचल के जाने के बाद उसे अपनी गलती का एहसास होने लगा.

‘मैं भी कितनी पागल थी,’ वह सोचने लगी, ‘कभी न पूरी होने वाली ख्वाहिश के पीछे दौड़ती रही. खुशफहमियों के जाल में जकड़ी रही. लेकिन शुक्र है कि अब मैं उस से निकल आई हूं. विनय ने मेरी फुजूल सी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए खुद पर कितना बोझ बढ़ा लिया है.’

शाम को जैसे ही विनय के घर आने का समय हुआ, उस ने कपड़े बदले, केशों की ढीली सी चोटी बनाई, आंखों में काजल लगाया और हलकी सी लिपस्टिक लगा कर आंगन में आ गई. वहां से फूल तोड़ कर केशों में लगा लिया और गुनगुनाती हुई विनय के आने का इंतजार करने लगी.

थोड़ी देर बाद विनय घर आया तो सोनल पर निगाह पड़ते ही वह चहके बिना नहीं रह सका, ‘‘क्या बात है, आज कहां बिजली गिराने का इरादा है?’’

‘‘कहीं नहीं,’’ सोनल मुसकरा कर बोली.

‘‘इस का मतलब यह शृंगार हमारे लिए किया है?’’

‘‘नहीं तो क्या अरमान के लिए किया है,’’ वह शोखी से बोली.

‘‘हो सकता है. वह भी तुम्हें देख कर खुश हो जाए कि आज तो उस की मम्मी बहुत खूबसूरत लग रही हैं. अरे हां, वह शैतान कहां है?’’

‘‘सो रहा है. आप कपड़े बदल लीजिए. मैं आप के लिए चाय बना कर लाती हूं,’’ कहने के साथ ही सोनल किचन की तरफ बढ़ गई.

हाथमुंह धोने के बाद विनय कमरे में आया तो उस ने देखा कि सोनल शाम की चाय के साथ गरमगरम पकौड़े और चटनी सजाए बैठी है.

‘‘क्या बात है,’’ वह खुशदिली से बोला, ‘‘भई, बीवी हो तो तुम जैसी. आज तो पार्टटाइम काम करने में मजा आ जाएगा.’’

‘‘आज से आप का पार्टटाइम काम पर जाना बंद,’’ सोनल ने हिदायत देने वाले अंदाज में कहा.

‘‘क्यों?’’ विनय चौंके बिना नहीं रह सका. वह हैरत भरे स्वर में बोला, ‘‘आज यह इंकलाब कैसा? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’

‘‘मेरी तबीयत बिलकुल ठीक है.’’

‘‘फिर पार्टटाइम काम पर जाने पर यह रोक क्यों?’’

‘‘क्योंकि आज मेरी आंखें खुल गई हैं.’’

‘‘आज तुम्हें क्या हो गया है, क्या बोल रही हो तुम?’’

सोनल ने विनय को पूरी बात बताई.

‘‘ओह, तो यह बात है,’’ विनय अपने सिर को हौले से जुंबिश देते हुए बोला, ‘‘वैसे कितनी अजीब बात है. जब तुम सफर के लिए मचलती थीं, तब हमारे सामने कोई रास्ता नहीं था और जब तुम ने अपनी ख्वाहिश खत्म कर दी, तब एक रास्ता खुदबखुद हमारे सामने आ गया है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ सोनल हैरानी से बोली.

‘‘हां सोनल, तुम्हारे लिए एक खुशखबरी है. यह खुशखबरी मैं घर आते ही तुम्हें बता देता. लेकिन आज तुम्हारी खूबसूरती में मैं ऐसा उलझा कि खुशखबरी तुम्हें सुनाना भूल गया. असल में तुम्हारे सफर के प्रति बेपनाह शौक को देखते हुए मैं ने एअरइंडिया में नौकरी के लिए आवेदन किया था. वहां मेरी जौब लग

गई है. अब हमें हर साल देशविदेश घूमने के मौके मिलेंगे.’’

‘‘सच,’’ सोनल खुशी से उछल पड़ी.

‘‘हां डियर, मैं सच कह रहा हूं.’’

मारे खुशी के सोनल विनय से लिपट गई. वर्षों बाद उस की ख्वाहिश जो पूरी होने जा रही थी.

मोहपाश: क्या बेटे के मोह से दूर रह पाई छवि

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नथनी: भाग 1- क्या खत्म हुई जेनी की सेरोगेट मदर की तलाश

उन के मुल्क में जितनी भी सुविधाएं और तकनीकें हासिल थीं, सब पर प्रयास कर डाले गए थे, पर सफलता की कोई भी गुंजाइश न पा कर वहां के सभी डाक्टरों ने डेविड को आखिरी जवाब दे दिया था. डेविड ने भारी मन से यह सचाई जेनी को बताई थी. इस पर उस का भी दुखी होना स्वाभाविक ही था.

डेविड खुद अमेरिका के जानेमाने डाक्टरों में से एक थे. लिहाजा, उन से कोई डाक्टर झूठ बोले, सवाल ही नहीं उठता था. फिर सारी की सारी पैथालाजिकल रिपोट उन के सामने थीं. उन को सचाई का ज्ञान हो चुका था कि कमी किस में है और किस किस्म की है. पर उस का हल जब था ही नहीं तो क्या किया जा सकता था. नाम, सम्मान और आर्थिक रूप से काफी मजबूत होने के बावजूद उन के साथ यह एक ऐसी त्रासदी थी कि दोनों ही दुखी थे.

डेविड जेनी को बहुत ज्यादा प्यार करते थे. जब जेनी बच्चे की लालसा में आंखें नम कर लेती थी, डेविड तड़प उठते थे. पर इस खबर से पहले हमेशा उसे धीरज बंधाते रहते थे कि सही इलाज के बाद उन्हें संतानसुख अवश्य मिलेगा.

यह खबर ऐसी थी कि न तो छिपाई जा सकी और न ही उस के बाद जेनी को रोने से रोका ही जा सका था. वह लगातार रोए चली जा रही थी और डेविड उसे कंधे से लगाए ढाढ़स बंधाए जा रहे थे कि अभी भी एक रास्ता बचा है.

जब जेनी की सिसकियां कुछ थमीं और उस की सवालिया निगाहें उठीं तो डेविड ने कहा, ‘‘एक  ‘सेरोगेट मदर’ की जरूरत  होगी जो यहां अमेरिका में तो नहीं, पर हिंदुस्तान में बहुत आसानी से मिल जाएगी और फिर हम एक बच्चा आसानी से पा सकेंगे.’’

जेनी ने डेविड की आंखों में झांका जो पहले से ही उस के स्वागत में बिछी हुई थीं. जेनी की आंखों में चमक आ गई. उस ने डेविड को अपनी बांहों में कस लिया और कई चुंबन ले डाले.

डेविड ने अपने मुल्क की करेंसी में व हिंदुस्तान की करेंसी में मामूली सी तुलना करने के बाद बताया कि हिंदुस्तान में मात्र 2-3 लाख में ‘सेरोगेट मदर’ आसानी से मिल सकती है, जबकि इस से 10 गुनी कीमत पर भी अमेरिका में नहीं मिल सकती. जेनी पहले हिंदुस्तान को बड़ी हेयदृष्टि से देखा करती थी. उस के बारे में नए सिरे से सोचने को मजबूर हो गई.

अब जेनी ने स्थानीय अखबारों में एक विज्ञापन दे डाला, ‘तुरंत आवश्यकता है एक दुभाषिये की, जिसे अंगरेजी और हिंदी का अच्छा ज्ञान हो’ और प्रत्याशियों का बेसब्री से इंतजार करने लगी. अपने यहां के अखबारों में हिंदुस्तान के बारे में जिन खबरों से खास चिढ़ थी, उन्हें ध्यान से पढ़ने लगी. मन एकाएक हिंदुस्तान के रंग में रंगा नजर आने लगा. जिस मुल्क को वह भिखारी और निरीह देश कहा करती थी, अब फरिश्ता नजर आने लगा था. वहां की सामाजिक व्यवस्था, राजनीति व संस्कृति आदि के बारे में जेनी कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा जान लेने के लिए आतुर हो उठी.

एक अच्छे दुभाषिये के मिल जाने पर जेनी ने उस से पहली ही भेंट में तमाम सवाल कर डाले, ‘उस ने हिंदी क्यों सीखी? क्या वह कभी हिंदुस्तान गया था? क्या उसे हिंदुस्तानी रीतिरिवाजों का कुछ ज्ञान है? क्या वह कहीं से ऐसा साहित्य ला सकता है जो वहां के बारे में अधिक से अधिक जानकारी दिला सके? क्या वह हिंदी के प्रचलित शब्दों और मुहावरों के बारे में जानता है आदि.’

यह सब जानने के बाद जेनी में इतना भी सब्र नहीं बचा कि वह डाक्टर डेविड को घर आने देती…उस ने फोन पर ही दुभाषिये के बारे में तमाम जानकारी उन्हें दे डाली. डेविड उस के दर्द से अच्छी तरह वाकिफ थे, इसलिए किसी प्रकार का एतराज न करते हुए उसे आश्वस्त किया कि वह जल्दी ही हिंदुस्तान चलेंगे.

जेनी की भावनाओं की कद्र करते हुए डेविड ने भी हिंदुस्तानी अखबारों में एक ‘सेरोगेट मदर’ की आवश्यकता वाला विज्ञापन भिजवा दिया और बेताबी से जवाब का इंतजार करने लगे. मियांबीवी में अकसर हिंदुस्तान के बारे में जम कर चर्चाएं होने लगीं. उन लोगों को यहां के वैवाहिक विज्ञापनों पर बड़ा कौतूहल हुआ करता था. वह अकसर प्रणय व परिणय के बारे में अपने मुल्क और हिंदुस्तान के बीच तुलना करने बैठ जाते थे.

जब जेनी यह बताती कि हिंदुओं में लड़की वाले, शादी के लिए लड़के वालों के वहां जाते हैं, डेविड यह बताना नहीं भूलते कि मुसलमानों में लड़के वाले लड़की वालों के घर जाते हैं. मुसलमानों में लड़कियों में शीन काफ यानी नाकनक्श खासकर देखे जाते हैं. अगर किसी लड़की के यहां कोई भी लड़के वाला न आया तो वह आजीवन कुंआरी भी रह सकती है, पर धर्म के मामले में वह इतनी कट्टर होती है कि बगावत करने की हिम्मत कम ही कर पाती है.

सलमा एक ऐसी ही हिंदुस्तानी मुसलमान परिवार की लड़की थी. वह बहुत ही खूबसूरत थी, पर उस की बड़ी बहन मामूली नाकनक्श होने के कारण हीनता की शिकार होती चली जा रही थी. गरीबी के चलते बड़ी तो मदरसे की मजहबी तालीम से आगे नहीं बढ़ पाई थी, हां, छोटी ने 10वीं कर ली थी. बाप सब्जी का ठेला लगाता था. मामूली कमाई में 4 लोगों का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो पाता था.

वैसे तो शहर में 20 साल की लड़की होना कोई माने नहीं रखता पर उस की खूबसूरती एक अच्छीखासी मुसीबत बन गई थी. दिन भर तमाम लड़के  उस की गली के चक्कर लगाने  लगे थे. बड़ी बहन के लिए कोई रिश्ता न आने से गाड़ी आगे नहीं बढ़ पा रही थी. मांबाप की राय थी, पहले बड़ी लड़की निबटा दी जाए तब ही छोटी के बारे में सोचा जाए पर छोटी वाली के लिए तमाम नातेरिश्तेदारों के अलावा लोग टूटे पड़ रहे थे.

एक तो उम्र का तकाजा, उस पर गरीबी की मार. आखिर सलमा के कदम बहक ही गए. जिस घर में भरपेट रोटी नसीब न हो रही हो, उस घर की इज्जत क्या और ईमान क्या? सलमा एक हिंदू लड़के को दिल दे बैठी. क्यों का जवाब भी बड़ा अजीब था. वह जब अपनी हमउम्र सहेलियों को साजशृंगार किए देखती तो उस का मन भी ललचा जाता. काश, वह भी आने वाली ईद पर एक सोने की नथनी खरीद सकती.

यह बात कहीं से चल कर एक फल वाले नौजवान कमल तक पहुंच चुकी थी. उस ने सलमा से अकेले मिलने पर सोने की नथनी देने का वादा उस तक पहुंचवा दिया. पहले मिलन में ही कमल ने न जाने कौन सा जादू कर दिया कि दोनों ने न बिछड़ने की कसम ही खा डाली. नथनी की बात तो खैर काफी पीछे छूट गई.

दोनों का मामला धर्म के ठेकेदारों तक पहुंचा. उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई क्योंकि धर्म के ठेकेदार बड़े मामलों में ही हाथ डालते हैं, जिन से शोहरत व उन के निजी स्वार्थ सध सकें. एक मामूली सब्जी वाले की लड़की की इज्जत ही क्या होती है? ‘गरीबों में यह सब चलता है.’ कह कर कुछ लोगों ने टाल दिया, कुछ लोगों ने कुछ दिनों तक इस मुद्दे पर खूब चटखारे लगाए. मात्र एक रात का मातम मना कर मांबाप भी सामान्य हो गए. उन के मुंह से इतना ही निकला, ‘‘एक तरह से ठीक ही हुआ.’’

कमल का चालचलन ठीक न होने के कारण उस के घर वाले इस शादी के लिए तैयार नहीं थे. जब लड़की वाले राजी थे तो उन्होंने मजबूरी में हां कर दी थी पर शादी के बाद बेटे को घर से अलग कर दिया था.

पलभर का सच: भाग 3- क्या था शुभा के वैवाहिक जीवन का कड़वा सच

शादी होते ही उस ने अपनी अलग इंडस्ट्री खोल ली और उस में पूजा को भी बराबर का हिस्सेदार बना दिया है. पूजा को सचिन के साथ काम करते देख कर मुझे बहुत अच्छा लगता है. जब पूजा को आफिस में काम करते देखती हूं तो 10 साल पहले की एक बात मुझे याद आती है.

‘‘10 साल पहले शेखर ने जब अपने आफिस में ‘पर्सनल आफिसर’ के तौर पर कविता की नियुक्ति की थी तब जाने कितने दिनों बाद शेखर से मेरी फिर एक बार जबरदस्त लड़ाई हुई थी.

‘‘वह सिर्फ झगड़ा नहीं था शालो… शेखर मुझे मारने पर भी उतर आया था.’’

यह सबकुछ बताते हुए शुभा की आंखें भर आई थीं और फिर जाने कितनी देर तक आंसू बहाते हुए वह निशब्द सी हो कर बैठ गई थी.

शुभा की सारी बातें सुन लेने के  बाद मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि उस से क्या कहूं. मन में बारबार एक ही सवाल उठ रहा था कि शुभा जैसी तेजतर्रार लड़की इतने दिनों तक यों चुप कर दब कर क्यों रह गई.

कुछ न सूझते हुए भी मैं ने अनायास ही शुभा से बेहद सरल सवाल करने शुरू किए थे

‘‘तू इतने दिनों तक चुप क्यों थी? और अगर इतने दिनों तक चुप थी तो अब एकदम ही तलाक लेने की आफत क्यों मोल ले रही है? क्या अपनी खुद्दारी दिखाने का यही एक रास्ता बचा है तेरे पास? अपना विरोध हर कदम पर दिखा कर भी तो तू शेखर के साथ रह सकती है.’’

‘‘नहीं शालो, मेरी खुद्दारी, स्वाभिमान सब खत्म हो चुके हैं. अब मैं सिर्फ शांति से और अपने तरीके से जीना चाहती हूं.’’

‘‘मतलब, क्या करने वाली है तू?’’

‘‘यहां दिल्ली में एक वृद्धाश्रम खुला है. उस के संचालन का काम मुझे मिल गया है. सोचती हूं जरूरतमंद वृद्धों की सेवा करूंगी तो जीवन में कुछ करने की चाह भी पूरी हो सकेगी.’’

‘‘क्या शेखर ने इस की इजाजत दी है?’’

‘‘उस की इजाजत मिलेगी ही नहीं, यह मुझे पता है तभी तो पहले उस से तलाक ले कर अलग होने का फैसला लिया है. फिर अपना काम करूंगी.’’

‘‘क्या सचिन यह सब जानता है?’’

‘‘हां, जानता है और कुछ हद तक मेरी भावनाओं को समझता भी है मगर तुम्हारी तरह वह भी कहता है कि अब यह सब करने की क्या जरूरत है.’’

‘‘तो फिर सच में जरूरत क्या है, शुभा?’’

‘‘जीवन में ‘जरूरत’ शब्द की व्याख्या हर इनसान अपनेअपने मन से करता है और तब ‘जरूरत’ हर किसी की अलग हो सकती है…10 साल पहले शेखर ने जब अपने आफिस में कविता की नियुक्ति की थी तब हमारा आखिरी झगड़ा हुआ था. उस के बाद मैं ने कभी शेखर से झगड़ा नहीं किया…मैं अपनेआप से ही झगड़ती रही हूं…10 साल से शेखर के मुंह से कविता की तारीफ सुनसुन कर मैं ऊब सी गई हूं.

‘‘मैं जानती हूं कि इस में मेरी स्त्रीसुलभ ईर्ष्या भी हो सकती है लेकिन सच तो यह है कि शेखर के मुंह से कविता की तारीफ सुन कर मैं हैरान हो कर सोचती हूं कि एक इनसान इस तरह अलगअलग हिस्सों में अलगअलग बरताव कैसे कर सकता है.’’

‘‘तो क्या तू समझती है कि शेखर और कविता में कुछ चल रहा है?’’ मैं ने बड़े ही संयत स्वरों में पूछा.

कुछ देर तक तो शुभा चुप रही फिर बड़े ही अटपटे से स्वर में बोली, ‘‘मैं दावे के साथ कुछ नहीं कह सकती मगर यह सच है कि शेखर का अधिकतर समय अब उस के साथ ही बीतता है. मैं यह भी नहीं कह सकती कि शेखर का मेरी तरफ ध्यान ही नहीं है, वह आज भी मेरी हर जिम्मेदारी को पूरा करता है.

त्योहारों में मुझे गहने व साडि़यां दिलाना, मुझे पार्टियों में ले जाना, यह सब कुछ पहले की तरह ही चल रहा है क्योंकि शेखर के जीवन में मैं आज भी ‘बीवी’ नामक ऐसी चीज हूं जिस पर कानूनन शेखर का ही अधिकार है. लेकिन शालो, अब इस तरह सिर्फ एक कानूनन हकदार चीज बन कर रहना मेरे लिए नामुमकिन हो गया है.’’

‘‘और दोनों बच्चों के बारे में तुम ने क्या सोचा है?’’

‘‘बच्चों का सोचतेसोचते ही तो शेखर के साथ 30 साल गुजारे, शालो, अब बच्चे बच्चे नहीं रहे… उन के जीने के अपनेअपने तरीके हैं, उन्हें अपने तरीके से जीने दें…मुन्ना ने भी अपनी शादी तय कर ली है और उस की शादी होते ही मैं मुक्त हो जाऊंगी… जब भी बच्चों को मेरी जरूरत होगी, मैं उन के पास जरूर हो आऊंगी.’’

‘‘उम्र के इस पड़ाव पर आ कर अचानक इस तरह का निर्णय लेने से तुझे डर नहीं लगा?’’

‘‘नहीं, शालो, अब सच में डर नहीं लगता. जीवन भर मैं ने जो मानसिक यातनाएं भोगी हैं उन्हें अब दोबारा बहूबेटों के सामने भुगतने से डर लगता है और इसी से अब मैं निर्भय हो कर जीना चाहती हूं.’’

शुभा की कहानी सुन कर मैं कुछ देर तक तो निशब्द सी बैठी रही फिर शुभा को गले लगा लिया और बोली, ‘‘तेरे इस निर्भीक फैसले पर मुझे गर्व है, शुभा. तेरे इस अनोखे निर्णय में तेरी यह सहेली हमेशा तेरे साथ रहेगी. जब कभी किसी चीज की जरूरत पड़ेगी तो बेहिचक मेरे पास चली आना, समधन समझ कर नहीं, अपनी प्रिय सहेली समझ कर.’’

इतनी सारी मन की बातें मुझ से कह लेने के बाद मेरे कहने पर ही शुभा बहुत ही सामान्य हो कर 2 दिन तक रह गई थी. लेकिन तीसरे दिन एक अनोखी घटना ने शुभा को और मुझे हिला कर रख दिया था.

एक कार दुर्घटना में शेखर की अचानक मौत हो गई और शुभा का जीवन फिर एक बार शेखर से जुड़ गया था.

शुभा को ले कर तुरंत हम लोग मुंबई पहुंचे थे. तो एक बार फिर वह भूचाल में घिर गई थी.

मुंबई में इतने बड़े इंडस्ट्रीयलिस्ट की मौत का ‘नजारा’ किसी त्योहार से कम नहीं था.

शुभा की शुष्क आंखों ने पति की मौत का राजसी ठाटबाट भी ‘संयत’ मन से सह लिया था.

अब इतने बड़े उद्योगपति की विधवा होने का मानसम्मान भी उस के जीवन को त्याग नहीं सकता था. जिस मुक्ति की कामना वह कर रही थी वह तो अपनेआप ही मिल गई थी मगर किस ढंग से?

जीवन को खदेड़ देने वाले मुझ से कहे हुए उस पल भर के ‘सच’ को क्या वह कभी भूल सकती है? और क्या मैं कभी भुला पाऊंगी?

सच्चाई: क्या सपना सचिन की शादी के लिए घरवलों को राजी कर पाई- भाग 2

‘‘हम ने तो इस संभावना के बारे में सोचा ही नहीं था,’’ सब सुनने के बाद सलिल ने कहा.

‘‘अगर ऐसा कुछ है तो हम उस का इलाज करवा सकते हैं. आजकल कोई रोग असाध्य

नहीं है, लेकिन अभी यह सब सचिन को मत बताना वरना अपने मम्मीपापा से और भी ज्यादा चिढ़ जाएगा.’’

‘‘उन का ऐतराज भी सही है सलिल, किसी व्याधि या पूर्वाग्रस्त लड़की से कौन अभिभावक अपने बेटे का विवाह करना चाहेगा? बगैर सचिन या सिमरन को कुछ बताए हमें बड़ी होशियारी से असलियत का पता लगाना होगा,’’ सपना ने कहा.

‘‘सिमरन के घर जाने के बजाय उस से पहले कहीं मिलना बेहतर रहेगा. ऐसा करो तुम कल लंचब्रेक में सचिन के औफिस चली जाओ. कह देना किसी काम से इधर आई थी, सोचा लंच तुम्हारे साथ कर लूं. वैसे तो वह स्वयं ही सिमरन को बुलाएगा और अगर न बुलाए तो तुम आग्रह कर के बुलवा लेना,’’ सलिल ने सु झाव दिया.

अगले दिन सपना सचिन के औफिस में पहुंची ही थी कि सचिन लिफ्ट से एक लंबी, सांवली मगर आकर्षक युवती के साथ निकलता दिखाई दिया.

‘‘अरे दीदी, आप यहां? खैरियत तो है?’’ सचिन ने चौंक कर पूछा.

‘‘सब ठीक है, इस तरफ किसी काम से आई थी. अत: मिलने चली आई. कहीं जा रहे हो क्या?’’

‘‘सिमरन को लंच पर ले जा रहा था. शाम का प्रोग्राम बनाने के लिए…आप भी हमारे साथ लंच के लिए चलिए न दीदी,’’ सचिन बोला.

‘‘चलो, लेकिन किसी अच्छी जगह यानी जहां बैठ कर इतमीनान से बात कर सकें.’’

‘‘तब तो बराबर वाली बिल्डिंग की ‘अंगीठी’ का फैमिलीरूम ठीक रहेगा,’’ सिमरन बोली.

चंद ही मिनट में वे बढि़या रेस्तरां पहुंच गए.

‘‘बहुत बढि़या आइडिया है यहां आने का सिमरन. पार्किंग और आनेजाने में व्यर्थ होने वाला समय बच गया,’’ सपना ने कहा.

‘‘सिमरन के सु झाव हमेशा बढि़या और सटीक होते हैं दीदी.’’

‘‘फिर तो इसे जल्दी से परिवार में लाना पड़ेगा सब का थिंक टैंक बनाने के लिए.’’

सचिन ने मुसकरा कर सिमरन की ओर देखा. सपना को लगा कि मुसकराहट के साथ ही सिमरन के चेहरे पर एक उदासी की लहर भी उभरी जिसे छिपाने के लिए उस ने बात बदल कर सपना से उस के विदेश प्रवास के बारे में पूछना शुरू कर दिया.

‘‘मेरा विदेश वृतांत तो खत्म हुआ, अब तुम अपने बारे में बताओ सिमरन.’’

‘‘मेरे बारे में तो जो भी बताने लायक है वह सचिन ने बता ही दिया होगा दीदी. वैसे भी कुछ खास नहीं है बताने को. सचिन की सहपाठिन थी, अब सहकर्मी हूं और नेहरू नगर में रहती हूं.’’

‘‘अपने पापा के शौक से बनाए घर में जो लाख परेशानियां

आने के बावजूद इस ने बेचा नहीं,’’ सचिन ने जोड़ा, ‘‘अकेली रहती है वहां.’’

‘‘डर नहीं लगता?’’

‘‘नहीं दीदी, डर

तो अपना साथी है,’’ सिमरन हंसी.

‘‘आई सी…इस ने तेरे बचपन के नाम डरपोक को छोटा कर दिया है सचिन.’’

सिमरन खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘‘नहीं दीदी, इस ने बताया ही नहीं कि इस का नाम डरपोक था. किस से डरता था यह दीदी?’’

‘‘बताने की क्या जरूरत है जब रातदिन इस के साथ रहोगी तो अपनेआप ही पता चल जाएगा,’’ सपना हंसी.

‘‘रातदिन साथ रहने की संभावना तो बहुत कम है, मैं मम्मीजी की भावनाओं को आहत कर के सचिन से शादी नहीं कर सकती,’’ सिमरन की आंखों में उदासी, मगर स्वर में दृढ़ता थी.

सपना ने घड़ी देखी फिर बोली, ‘‘अभी न तो समय है और न ही सही जगह जहां इस विषय पर बहस कर सकें. जब तक मेरा नर्सिंगहोम तैयार नहीं हो जाता, मैं तो फुरसत में ही हूं, तुम्हारे पास जब समय हो तो बताना. तब इतमीनान से इस विषय पर चर्चा करेंगे और कोई हल ढूंढ़ेंगे.’’

‘‘आज शाम को आप और जीजाजी चल रहे हैं न इस के घर?’’ सचिन ने पूछा.

‘‘अभी यहां से मैं नर्सिंगहोम जाऊंगी यह देखने कि काम कैसा चल रहा है, फिर घर जा कर दोबारा बाहर जाने की हिम्मत नहीं होगी और फिर आज मिल तो लिए ही हैं.’’

महंगे ख्वाब: भाग 3- रश्मि को कौनसी चुकानी पड़ी कीमत

राहुल और रश्मि इधरउधर बाइक से घूमने लगे. आज रश्मि काफी खुश थी, हो भी क्यों न, आज उस के सपनों के पर निकल आए थे. काफी देर घूमने के बाद राहुल ने रश्मि से कहा, ‘‘ऐसा है, इधरउधर घूमने से बेहतर है कि तुम आज मेरे रूम चलो, वहीं बैठ कर ढेर सारी बातें करेंगे.’’

रश्मि ने मारे खुशी के इस बात की तरफ जरा भी ध्यान नहीं दिया कि शहर में किसी लड़के के रूम में जाने के क्या माने होते हैं.

रश्मि पहली बार राहुल के रूम में आई थी. राहुल किराए के मकान में रहता था और भी कई लड़के उसी मकान में किराएदार थे. इन सब बातों से बेपरवा रश्मि वहां आ गई थी. राहुल रूम में अकेला रहता था, इसलिए उसे किसी के आने का कोई डर नहीं था. राहुल का कमरा देखने में अच्छा था, लेकिन सारा सामान इधर से उधर तक बिखरा था.

‘‘राहुल, तुम्हारा रूम कितना गंदा है, लगता है कभी इस की सफाई नहीं करते?’’

‘‘अब कौन रोजरोज सफाई अभियान चलाए,’’ राहुल एकदम पास आ कर बोला. थोड़ी देर बात करते हुए राहुल रश्मि से एकदम सट कर बैठ गया और उस के कंधे पर अपने हाथों को रख लिया.

रश्मि के कुछ न कहने पर उस का हौसला बढ़ गया और अचानक से रश्मि के नाजुक गालों को चूम लिया.

‘‘यह क्या कर रहे हो,’’ रश्मि उस के पास से हटते हुए बोली. लेकिन उसी पल राहुल ने पागल आशिकों की तरह उस का हाथ पकड़ कर खींच लिया, रश्मि उस के ऊपर आ गिरी. अब रश्मि उस की मजबूत बांहों में समा चुकी थी.

ऐसा नहीं है कि रश्मि ने राहुल से छूटने की कोशिश न की हो, लेकिन राहुल उसे अपने फौलादी हाथों से जकड़े हुए था. रश्मि उस की बांहों में शिकार बने परिंदे की तरह छटपटा रही थी, लेकिन उस की सारी कोशिशें नाकाम रहीं. इस का दूसरा पहलू यह भी था, रश्मि खुद ही राहुल की बांहों में प्यार के गोते लगाना चाहती थी. रश्मि अब राहुल के जिस्म में लता की तरह लिपटी हुई थी और रेगिस्तान में मछली की तरह प्यार में तड़प रही थी. राहुल भी सारी सरहदें पार कर के हद से गुजर जाना चाहता था. प्यार की तड़प, जज्बातों की प्यास और जिस्म की आग दोनों तरफ से इस कदर लगी थी कि उन्हें अच्छेबुरे की सुध ही न रही.

रफ्तारफ्ता यह सिलसिला चलता रहा और प्यार करने की चाहत दिनबदिन बढ़ती गई. लेकिन क्या यह प्यार था या सिर्फ चाहत या जो जिस्मों की प्यास बुझाने के लिए था? इस रिश्ते का नाम कुछ भी हो, एक बात तो तय थी कि इन में से कोई भी ईमानदार नहीं था. रश्मि को मौडल बनना था और राहुल को जिस्म की आग ठंडी करनी थी. रश्मि अपने ख्वाबों को हकीकत बनाने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा चुकी थी, उसे सिर्फ कामयाबी चाहिए थी, फिर चाहे जैसे मिले. इस से रश्मि को कोई फर्क नहीं पड़ता था.

अकसर सुनने में आता है कि झूठ को इतनी बार बोलो कि वह सच लगने लगे, लेकिन आखिर कब तक? कब तक आप किसी से इस तरह से फरेब करते रहेंगे. एक दिन तो सचाई दुनिया के सामने आनी ही है और यह सचाईर् रश्मि के सामने बहुत भयानक रूप में आई.

रश्मि मौडल बनने के लिए कुछ भी कर सकती थी, इसलिए राहुल ने उसे उंगलियों पर नचाना शुरू कर दिया था. वह उसे आजकल में टालता रहा, फिर एक दिन उसे स्टूडियो में ले जा कर उस का फोटोशूट करवाया. विकास सर बोले ‘‘रश्मि, आप को मौडल बनना है?’’

‘‘जी सर,’’ रश्मि बोली.

‘‘तो आप कल से इस तरह के गांव वाले कपड़े पहन कर मत आना.’’

‘‘जी सर,’’ रश्मि ने हामी भरी.

अगले दिन रश्मि काफी भड़कीला सूट पहन कर आई और फोटोशूट के लिए तैयार हो गई. कैमरामैन शौट लेने के लिए रेडी था. उस ने कई एंगल से शौट लिए. लेकिन विकास जिस तरह का शौट चाहते थे, उन्हें नहीं मिल पा रहा था. वे उठ खड़े हुए और रश्मि को डांटते हुए बोले कि तुम्हें इतना भी नहीं मालूम की कैसे कपड़े पहन कर आया जाता है.

फिर उन्होंने कैमरामैन से डिजाइन किए ड्रैसेज लाने को कहा. उस ने एक बौक्स से कुछ ड्रैसेस निकालीं और रश्मि को पहनने को दीं. रश्मि जब चेंजिंग रूम में गई और एक ड्रैस पहनी और वहीं लगे आईने में देखा तो शरमा गई. जो ड्रैस पहनी थी, उस से बमुश्किल ही जिस्म छिप पा रहा था. लेकिन यह सब तो करना ही था. इसी तरह कई ड्रैसेज में उस ने पोज दिए, रश्मि आज काफी नर्वस थी, उस की हालत देख कर राहुल उसे करीब कर के बोला, ‘‘रश्मि, यह सब तो करना ही पड़ेगा, अब मौडल जो बनना है.’’

‘‘हां राहुल, फिर भी मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा,’’ रश्मि उदासी से बोली.

रात को रश्मि काफी देर तक छत से लटकते पंखे को निहारती रही, ‘क्या मैं जो कर रही हूं, वह ठीक है? या मौडल बनने के चक्कर में किसी दलदल में फंस गई हूं.’ काफी रात तक वह जागती रही, लेकिन उस के लिए किसी नतीजे पर पहुंचना मुश्किल था. एक तरफ बचपन से पाला हुआ ख्वाब था, तो दूसरी तरफ ख्वाबों को हकीकत में बदलने का मौका और इस मौके में कई तरह के खौफनाक मोड़. आज रश्मि का फोटोशूट भोपाल से बाहर एक फार्महाउस में होना था. इसलिए थोड़ी देर बाद रश्मि तैयार हो कर राहुल की बाइक पर शहर से दूर किसी हाइवे पर फर्राटा भरते हुए चली जा रही थी. करीब 40 मिनट बाद उन की बाइक हाइवे से उतर कर एक ऊबड़खाबड़ सड़क पर हिचकोले खाते हुए मंजिल की तरफ बढ़ी.

बा?इक एक आलीशान फार्महाउस के सामने आ कर रुकी. राहुल ने हौर्न बजाया. गेट खुला. फिर दोनों अंदर साथ गए. वहां जा कर रश्मि ने देखा कि फार्महाउस काफी बड़ा है. सामने ही उसे विकास सर नजर आ गए. रश्मि ने नमस्ते कहा. इस के जवाब में विकास सर ने भी.

अंदर जा कर रश्मि ने देखा तो खानेपीने का इंतजाम पहले से ही था. वहीं टेबल पर कुछ बोतलें शराब की थीं. यह सब देख कर रश्मि को अजीब लगा, लेकिन फिर सोचा कि यह सब आज के दौर में चलता है. थोड़ी देर बाद सभी एक बड़े डाइनिंग टेबल पर बैठ कर खानेपीने लगे.

‘‘रश्मि,’’ सक्सेना सर ने उसे शराब पीने का औफर दिया. लेकिन रश्मि ने साफ मना कर दिया. ‘‘यह सब चलता है,’’ राहुल पीते हुए बोला. इस बार रश्मि ने जाम को हाथों से थाम लिया. शराब पीते ही रश्मि को बड़ा अजीब लगा, जैसे कोई तीखी चीज गले को चीर कर अंदर उतर गई हो.

विकास सर और राहुल पर शराब का सुरूर चढ़ा तो उन्होंने इधरउधर की भद्दी बातें करनी शुरू कर दीं. थोड़ी ही देर में विकास सर ने रश्मि को अपने पास बुलाया और हाथ पकड़ कर उसे अपनी गोद में बैठा लिया और छेड़खानी करने लगे.

‘‘सर, आप क्या रहे रहे हैं, यह सब गलत है,’’ रश्मि ने कहा. लेकिन सही और गलत की किसे परवा थी.

‘‘तुम्हें मौडल नहीं बनना क्या, देखो रश्मि, जिंदगी में कुछ बड़ा करना है तो यह सब गलत नहीं है, और मेरे कुछ करने से तुम्हारी खूबसूरती में कोई कमी नहीं आ जाएगी,’’ यह कहते हुए सक्सेना के हाथ रश्मि के गालों से होते हुए उस के सीने पर आ कर थम गए.

‘‘सर, यह तो मेरे बचपन का शौक है,’’ रश्मि धीमी आवाज में बोली.

‘‘फिर क्यों मना कर रही हो, हम कोई गैर नहीं हैं, हमें अपना ही समझो,’’ विकास सर कहते हुए बदहवास उस पर टूट पड़े.

रश्मि मौडल बनने के लिए अपनी इज्जत दांव पर लगाने से गुरेज करने वालों में नहीं थी, वह जिस्म को मंजिल हासिल करने का सिर्फ जरिया मानती थी और आज उस ने वही किया. यह बात और है कि एक औरत होने के नाते उसे भी थोड़ीबहुत झिझक थी, जो अब टूट चुकी थी.

मन में बाराबर यही आ रहा था कि बचपन से संजोए ख्वाब शायद अब हकीकत बन जाएं. लेकिन यह ख्वाब महंगे साबित होंगे, उस ने सोचा न था. लेकिन महंगे ख्वाब आसानी से पूरे नहीं होते हैं, इस बात का एहसास उसे अब तक हो चुका था. तभी तो अब रश्मि इस खेल में मंझी हुई खिलाड़ी की तरह विकास का साथ दे रही थी. यह सब करते हुए अब उसे कोई पछतावा नहीं हो रहा था, बल्कि जिंदगी का अहम हिस्सा मान कर अपने सपनों के साथ सैक्स का भी मजा लेने लगी. उसे अपनी मंजिल मिल गई थी.

टैडी बियर: क्या था अदिति का राज

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पलभर का सच: भाग 2- क्या था शुभा के वैवाहिक जीवन का कड़वा सच

पूजा की शादी को साल भर हो चुका था. इस दौरान वह और सचिन अकसर दिल्ली मेरे यहां आया करते थे मगर शुभा पहली बार मेरे यहां बतौर समधन आ रही थी इसलिए भी मैं मन ही मन बहुत खुश हो रही थी. मुझ में बहुत सी पुरानी यादें उमड़ती जा रही थीं और उन मीठी सुहानी यादों की डोर मुझे कभी बचपन में तो कभी जवानी में ले जा कर ‘मायके’ पहुंचा रही थी.

ठीक 11 बजे राजू पूजा और शुभा को घर ले आया. कार से उतरते हुए मैं ने उन दोनों को देखा तो पूजा सिर्फ एक बैग ले कर आई थी मगर शुभा तो 3-4 बैग के साथ आई थी. बैगों को देख कर मेरे चेहरे पर आए अजीबोगरीब भावों को देख कर कुछ झेंपते हुए शुभा बोली, ‘‘मेरा सामान बहुत ज्यादा है न. दरअसल, मैं अब दिल्ली में अपने बेटे मुन्ना के पास रहने के इरादे से आई हूं. मेरा सामान यहीं बाहर ही रहने दो…अभी थोड़ी देर में मुन्ना आ जाएगा तो मैं उस के साथ चली जाऊंगी.’’

‘‘मेरी प्यारी समधन जी, आप हमारे घर अपनी इच्छा से आई हैं, मगर जाएंगी हमारी इच्छा से, समझीं? अब ज्यादा नखरे मत दिखाओ और चुपचाप अंदर चलो.’’

मैं ने शुभा से मजाक करते हुए कहा था तो मेरे बोलने के अंदाज से वह बहुत खुश हो गई और मेरे गले लग कर पहले की तरह हंसनेबोलने लगी थी.

खाना खा लेने के बाद हम सब कुछ देर तक गपशप करते रहे. पूजा अपने डैडी से अपने काम की बातें करती जा रही थी. पूजा की बातों से प्रभावित हो कर राजू भी अपनी छोटी बहन से सवाल पर सवाल पूछता जा रहा था. कुछ देर तक उन तीनों की बातें सुन लेने के बाद मैं शुभा को ले कर अपने कमरे में चली गई थी.

कमरे में जा कर हम दोनों जब पलंग पर लेट गए तो मैं ने सोचा कि हम दोनों एकसाथ होते ही पहले की तरह अनगिनत बातें शुरू कर देंगे और बातें करने को समय कम पड़ जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं था.

क्या उम्र के तकाजे ने या बदलते रिश्ते ने हमारे होंठ सिल दिए थे? मैं सोचने लगी कि शुभा बड़े धीरगंभीर और संयत स्वर में अचानक बोली थी, ‘‘मैं तलाक ले रही हूं, शालो.’’

‘‘क…क्याऽऽऽ?’’ कहते हुए मैं पलंग पर उठ कर बैठ गई थी.

‘‘हां, शालो, यह सच है. तुम्हें कहीं बाहर से खबर मिले और फिर तुम लोग परेशान हो जाओ, इस से अच्छा है कि मैं ही बता दे रही हूं…इसीलिए पहले मैं ने पूजा व सचिन की शादी 2 साल बाद करने की बात कही थी… सोचती थी कि बेटे की शादी के बाद यह सब अच्छा नहीं लगेगा… लेकिन अब मुझ से सहा नहीं जा रहा. अब मैं ने अपना मन पक्का कर लिया है.’’

‘‘लेकिन इतने सालों बाद यह फैसला क्यों, शुभा?’’

‘‘वैसे तो बहुत लंबी कहानी है, मगर जिस किसी को सुनाऊं उसे तो यह बहुत ही छोटी सी बात लगती है. कोई क्या जाने कि कभीकभी छोटी सी बात ही दिल में बवंडर बन कर समूचे जीवन को तहसनहस कर देती है.

‘‘तुम तो जानती ही हो कि शेखर मुझ से बेहद प्यार करता था. प्यार तो वह शायद आज भी बहुत करता है लेकिन शादी के बाद ही मैं ने उस के प्यार में बहुत बड़ा अंतर पाया है. शादी के पहले मुझे यह तो पता था कि हमारे यहां शादी सिर्फ पति से ही नहीं उस के पूरे परिवार से होती है. लेकिन शेखर से शादी करने के बाद मुझे लगा कि मेरी शादी शेखर के परिवार से नहीं उस के  परिवार की अजीबोगरीब अमीरी से हुई है.

‘‘शादी के बाद मुझे यह भी पता चला कि अमीरों की भी अलगअलग जातियां होती हैं. शेखर के पिता बड़े अमीर थे जो अपने दोनों बेटों के साथ अपने उद्योग को और बढ़ाना चाहते थे. शेखर की मां का बहुत पहले ही देहांत हो चुका था. घर में हम सिर्फ 4 लोग थे. शेखर के पिता, शेखर का छोटा भाई विशाल, शेखर और मैं. घर के इन 4 लोगों में से मेरी बातचीत सिर्फ शेखर से होती थी. शेखर के पिता ने कभी भी मुझ से आमनेसामने हो कर बात नहीं की थी. जब भी कुछ कहना होता तो शेखर से कह देते कि बहू से कहो…

‘‘विशाल, मेरा छोटा देवर शेखर से सिर्फ 2 साल छोटा था. वह स्वभाव से बेहद शर्मीला था. शुरूशुरू में मैं ने उस से दोस्ती करने के लिए हंसीमजाक करने की कोशिश की तो एक दिन शेखर ने बड़े गंभीर अंदाज में मुझ से कहा था, ‘तुम विशाल से यों हंसीमजाक न किया करो… डैडी को अच्छा नहीं लगता.’

‘‘ ‘तुम्हारे डैडी को तो मैं ही अच्छी नहीं लगती. तभी तो वह सीधे मुंह मुझ से बात ही नहीं करते, जो कहना होता है तुम से कहलवाते हैं और अब विशाल से बात करने क ो भी मना कर रहे हैं.’

‘‘मैं ने गुस्से में तुनक कर कहा था. इस पर शेखर का जो रौद्र रूप उस रात मैं ने पहली बार देखा था वह आजतक नहीं भूल पाई हूं.

‘‘अपने मजबूत हाथों से मुझे पलंग से उठा कर नीचे गिराते हुए एकदम ही राक्षसी अंदाज में शेखर ने कहा था, ‘इस घर में जो डैडी कहेंगे वही होगा, और तुम्हें भी वही करना होगा. अगर तुम्हें यह सब पसंद नहीं है तो तुम इस घर को छोड़ कर जा सकती हो…मगर तब मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगा.’

‘‘और फिर बड़ी बेदर्दी से शेखर बेडरूम छोड़ कर बाहर चला गया था. और मैं रात भर रोती रही थी पर मेरी सिसकियां सुनने वाला वहां कोई नहीं था.

‘‘इस घटना के बाद 15-20 दिनों तक शेखर और मुझ में बोलचाल बिलकुल बंद थी. जाने कितने दिनों तक हम दोनों का यह मौनव्रत चालू रहता मगर एक दिन बात को निरर्थक न बढ़ाने की सोच कर मैं ने ही शेखर से बात करनी शुरू की और फिर शायद मुझे खुश करने के लिए ही वह उस समय मुझे घुमाने स्विट्जरलैंड ले गया था. वह 10-12 दिन जैसे परियों के पंख लगा कर उड़ गए थे. वापसी में मैं ने ही शेखर से कहा था, ‘सोचती हूं, कुछ दिन…मां से मिल आऊं.’

‘‘शेखर ने तब कहा था, ‘चलो, कल ही चले चलते हैं.’

‘‘मां और बाबूजी हम दोनों को देख कर बहुत खुश हो गए थे. मां तो दामाद की सेवा करतेकरते मुझे भूल ही गई थीं. लेकिन जब उन्होंने मुझे कुछ दिन उन के पास छोड़ जाने की बात शेखर से कही तो उस ने तपाक से मना कर दिया और फिर 2 दिन में ही मैं शेखर के साथ अपने घर वापस आ गई थी. उस वक्त भी मेरा मन बहुत खट्टा हो गया था और रात को शेखर से कुछ कहने ही वाली थी कि उस का तमतमाता हुआ चेहरा देख कर डर के मारे चुप ही रह गई थी.

‘‘इस घटना के बाद हर 15-20 दिनों के बाद कुछ न कुछ ऐसा घट जाता जिस से मैं जान गई कि इस घर में मुझे अपने मन की इच्छा पूरी करने की आजादी कभी मिल ही नहीं सकती. यह बात सच थी कि व्यावहारिक दृष्टिकोण से उस घर में सुख ही सुख था. गहने, कपड़े, खानापीना यानी किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी. शेखर मुझ से प्यार तो बहुत करता था मगर उस के प्यार में मेरी अपनी इच्छा की कोई कद्र नहीं होती थी.

‘‘घर में कुछ काम नहीं था तो मैं ने शेखर से आगे की पढ़ाई करने की बात कहीं तो ‘जरूरत क्या है’ कह कर उस ने मना कर दिया.

‘‘कुछ करने की बात छोड़ो, किसी सहेली से मिलने जाने की बात करती तो हर वक्त शेखर के साथ ही जाना होता था और उसी के साथ वापस भी आना होता था… इसी कारण मैं तुम्हारे घर बहुत कम आती थी. वैसे पूजा के डैडी की आंखों में मैं ने रईसी के प्रति नफरत कब की पढ़ ली थी. तभी तो सचिन व पूजा की शादी से मैं डरती थी. लगता था पूजा को मेरा ही इतिहास न दोहराना पड़े मगर सचिन बहुत समझदार है.

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