क्या करें जब कोई मारे ताना

लेखक- पूजा पाठक

क्षिप्रा के घर किट्टी पार्टी चल रही थी. अचानक घड़ी पर नजर पड़ते ही रागिनी उठ कर चल दी.

‘‘अरे अभी तो 5 ही बजे हैं, 6 बजे तक चली जाना,’’ क्षिप्रा ने उस का हाथ पकड़ कर चिरौरी की.

‘‘माफ करना. मुझे तो कल सुबह औफिस जाना है. अब तेरी तरह हाउसवाइफ तो हूं नहीं कि आराम की जिंदगी जी सकूं. मुझे तो घरबाहर दोनों देखना होता है,’’ रागिनी ने महीन ताना करते हुए कहा. अपनेपन से पकड़े गए हाथ की पकड़ ढीली हो गई. क्षिप्रा ने सामने कुछ नहीं कहा लेकिन इस एक व्यंग्य से दोनों सखियों की दोस्ती में एक अनकही दरार तो आ ही गई.

कई लोग व्यंग्य, फब्तियां कसने, ताना देने और किसी के मजे लेने को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं. पर वास्तव में इस के पीछे उन की जलन की भावना काम करती है. उक्त परिदृश्य में भी किट्टी पार्टी के दौरान क्षिप्रा के घर की साजसंभाल को ले कर हो रही तारीफ रागिनी आसानी से हजम नहीं कर पाई और न चाहते हुए भी उस के मुंह से क्षिप्रा को नीचा दिखाने वाली बात निकल गई, जिस ने पार्टी का माहौल तो बोझिल किया ही साथ ही 2 सखियों के बीच मनमुटाव को भी जन्म दे दिया.

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क्या है इस मानसिकता की वजह

आखिर ताना करने के पीछे किसी का क्या मंतव्य हो सकता है. दरअसल, जब आप किसी को सुपीरियर देखते हैं तो मन में एक स्वाभाविक जिज्ञासा उठती है कि आखिर वह हम से बेहतर कैसे? बस यहीं एक सकारात्मक विचार वाला व्यक्ति इस बात को प्रशंसात्मक रूप में ले कर सामने वाले की प्रशंसा करता है. उस के हुनर या प्रतिभा से सीखने की कोशिश करता है जबकि हीनभावना से ग्रसित इंसान उक्त व्यक्ति से ईर्ष्या, द्वेष व जलन की भावना रखने लगता है और अंतत: आसानी से दुराग्रह की चपेट में आ कर उसे नीचा दिखा कर दुखी करने की फिराक में लग जाता है.

इस किस्म के लोग वास्तव में बीमार मानसिकता के गुलाम होते हैं. उन्हें दूसरों की खूबसूरती, प्रतिभा, खुशी या सफलता रास नहीं आती. जब वे अपनी इस भावना पर अंकुश नहीं लगा पाते तब उन के मुंह से ताना निकल जाते हैं जो सामने वाले को अप्रत्यक्ष रूप से अपमानित करने के लिए होते हैं.

कभीकभी ये ताना किसी बदले की भावना के तहत किए जाते हैं या शायद अपनी खुन्नस निकालने के लिए भी. बहरहाल, ये वाक्य शब्दों को घुमाफिरा कर इस तरह से कहे जाते हैं ताकि साफसाफ उन पर कोई आरोप न आए और वक्त पड़ने पर वे यह कह कर अपना बचाव भी कर सकें कि मैं ने तो ऐसे ही कह दिया था. मेरा वह मतलब नहीं था.

बचने का रास्ता

आखिर ऐसा क्या करें कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. यानी उसे आईना भी दिखा दें और स्वयं भी दुखी न हों, आइए जानते हैं:

– इस बात को ज्यादा तरजीह न देते हुए उस वक्त यह सोच कर चुप्पी साध जाएं कि आप पर फब्तियां कसना उस की कमजोरी है. हां, बाद में सही वक्त देख कर उस के मन में अपने लिए बैठे मैल को दूर करने का प्रयास करें.

– उस की जो भी खूबी आप को भाती हो उस की दिल खोल कर तारीफ करें, ताकि वह स्वयं ही अपनी करनी पर शर्मिंदा हो कर आप के प्रति दोगुने सम्मान से भर उठे.

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– उसे साफ शब्दों में ऐसी कोई बात न कहने के लिए जरूर कहें. इस से वह सचेत हो जाएगा और किसी और से भी ऐसा व्यवहार करने से पहले कई बार सोचेगा.

तो यह फैसला व्यक्ति या परिस्थितियां देख कर आप को स्वयं लेना होगा कि किसी के द्वारा ताना किए जाने पर आप की क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए. सिर्फ इतना निश्चित करना पड़ेगा कि किसी के ताना पर आप अपना दिल न दुखाएं और न ही स्वयं बेवजह किसी पर कोई व्यक्तिगत आक्षेप या टिप्पणी करें.

पापा की बेटी और बेटी के पापा

बदलते वक्त ने परिवारों को आज न्यूक्लियर फैमिली में बदल दिया है. बचपन से लड़की को अपने पिता के करीब माना जाता है तो जाहिर सी बात है वही उस के आदर्र्श भी होंगे. परेशानी तब होती है जब शादी के बाद उस सांचे में वह अपने पिता के अलावा अपने पति को फिट नहीं कर पाती. हर समय वह पिता का ही अक्स ढूंढ़ती है पति में.

यह समस्या तब और भी बढ़ती है जब वह पति को बातबात पर पिता जैसा न होने का ताना देती है. वह विवाह के बाद नए घर में प्रवेश करती है तो उस के मन में सपनों के साथ कुछ डर भी होता है. ऐसे में यही डर लिए जब पिता अपनी लाड़ली को बारबार फोन करते हैं या जल्दीजल्दी मिलते हैं तो इस से बेटी का स्वभाव प्रभावित रहता है. पिता को तरजीह देना बुरी बात नहीं. पर इस चक्कर में आपसी संबंधों को नजरअंदाज कर दिया जाए, यह भी उचित नहीं.

चाहे लव मैरिज हो या अरैंज मैरिज, नए परिवार का परिवेश एक लड़की के लिए अनजान ही होता है. ऐसे में घर के प्रत्येक सदस्य का फर्र्ज है कि वह उसे प्यारदुलार और सौहार्दपूर्र्ण वातावरण दे. कई बार कुछ गलतफहमियां दरार पैदा कर देती हैं. तब पछतावे के अलावा हाथ में कुछ नहीं रहता.

1. गुस्से में निर्णय न लें

परिवार में कुछ छोटीमोटी बात हो जाती है और आप को वह बात बुरी लगती है और आप गुस्से में आ कर कुछ भी निर्णय ले लें तो यह गलत है. गुस्से में लिया निर्णय गलत होता है और बात को बिगाड़ देता है. ऐसे में जीवनभर अफसोस करने से बेहतर है कि संभल कर निर्णय लें. बात की गहराई तक जाएं, मन शांत होने पर उस बात पर पुनर्विचार करें.

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सुमेधा का तलाक होने वाला था. बात सिर्फ इतनी सी थी कि सुमेधा अपने पापा की कुछ ज्यादा ही लाड़ली थी. उस के विवाह के बाद जब भी मन होता उस के पापा उसे कौल मिला लेते. हद तो तब हुई जब दोनों हनीमून के लिए गए. सुमेधा के पति निखिल के अनुसार अकसर रात को जब वह सुमेधा के साथ समय बिताना चाहता, तभी पापा की कौल आते ही सुमेधा उन से बातों में मस्त हो जाती और निखिल नजदीकियों के लिए तरसता उस का इंतजार करते सो जाता. कई बार उस ने सम झाना चाहा, पर उलटा उस ने निखिल को ही दोष दिया. जब सुमेधा के पापा को इस मनमुटाव की बात पता चली तो उन्होंने निखिल को भलाबुरा कहा और सुमेधा को अपने साथ ले आए. ऐसे में दोनों पक्षों के बीच गलतफहमी व  झगड़े बढ़ते गए और तलाक की नौबत आ गई.

बेटी से पिता का प्यार बदलते समय के साथ कम नहीं होता वरन बढ़ता है, जो बुरा नहीं है. पर बेटी से लगाव अगर उस की शादीशुदा जिंदगी में कलह का कारण बन रहा है, तो सही नहीं. बारबार कहना ‘मेरे पापा जैसे नहीं, तुम’ या ‘वह ऐसा करते थे’ या ‘वैसा करते थे’ आदि वाक्य कटुता ही पैदा करेंगे. कलह का कारण कोई भी हो, पर बेटीदामाद के रिश्तों में समयअसमय पिता की एंट्री सही नहीं.

रिलेशनशिप के कुछ ऐसे ही अनदेखे पहलू पर रोशनी डाल रही हैं फैमिली रिलेशनशिप काउंसलर डा. अंशु लहरी. आइए, डालते हैं एक नजर-

2. पिता और पति में तुलना न करें

कभी भी दोनों में तुलना न करें. इस बात का ध्यान रखें कि दोनों परिवारों की परिस्थितियां, रहनसहन के तरीके, आय के साधन, परिवार में सदस्यों की संख्या अलगअलग होने के कारण समानता होना कठिन होता है.

यदि आप के पापा किसी चीज पर दिल खोल कर खर्च करते हैं और पति नहीं, तो इस बात का रोब न मारें. स्वयं को उस वातावरण में ढालने का प्रयास करें. वह आप का पास्ट था, यह प्रैजेंट है, इस बात को दिमाग में रखें.

3. स्वयं को तैयार रखें

नए परिवार में आप को माहौल के अनुसार ढलना होगा, इस बात के लिए मानसिक रूप से तैयार रहें ताकि बाद में परेशानी न हो. मनमुटाव, नोक झोंक किस रिश्ते में नहीं होते. हम रिश्ते को प्यार और आपसी विश्वासभरा बनाने की कोशिश जरूर कर सकते हैं.

प्रेम की पींगें बढ़ाते प्रेमी युगल हों या फिर नवविवाहित दंपती, रिश्ते में आज परेशानियां, मनमुटाव, अविश्वास, ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार जैसी भावनाएं हावी होती दिखती हैं. नतीजतन, रिश्ते टूट रहे हैं, उन की उम्र छोटी होती जा रही है. लंबे समय तक लोग एकदूसरे का साथ बना कर रख ही नहीं पा रहे हैं.

4. जैसे को तैसा की भावना

जैसे को तैसा वाली भावना मन में न रखें. इसे दूर कर दें. उन्होंने मेरे साथ ऐसा किया, इसलिए मैं भी उन के साथ ऐसा करूंगी, जैसी भावना मन में आना सही नहीं है. यह रिश्ते को बनने नहीं देती, बल्कि बिगाड़ देती है.

5. असुरक्षा

शादी के बाद बेटी को ले कर पिता को यह चिंता सताने लगती है कि कहीं बेटी को कोई परेशानी न हो. कहीं न कहीं ऐसा वे उस के भविष्य की सुरक्षा को ले कर सशंकित हो कर करते हैं. दूसरा, उन को यह भी सम झना चाहिए कि बेटी और दामाद की नई जिंदगी की शुरुआत है, उन दोनों का एकसाथ वक्त बिताना भी तो जरूरी है ताकि वे आगे की जिंदगी आसानी से जी सकें. उन को साथ वक्त बिताने का पूरा मौका दें.

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6. अपेक्षाएं

लड़का और लड़की दोनों को एकदूसरे को वैसे ही स्वीकारना चाहिए जैसे कि वे हैं. दोनों को सम झना चाहिए कि वे इतने सालों से एक लाइफस्टाइल से जी रहे हैं तो अचानक से खुद को बदलना उन के लिए एकदम आसान नहीं होता. इसलिए आपस में मनमुटाव न रखें. एकदूसरे को प्यार व सम्मान दें. एकदूसरे की भावनाओं का आदर करें.

अगर आप किसी का हाथ थामते हैं तो उसे निभाना सीखें. पतिपत्नी के रिश्ते को हर पल सींचने की जरूरत होती है.

सांवली स्किन के साथ खुद को संवारें ऐसे

भले ही महिला की खूबसूरती का अहम पैमाना गोरे रंग को माना जाता हो, मगर व्यक्तित्त्व का यह एक पहलू मात्र है. आज के समय में रंग से ज्यादा अहमियत फैशन सैंस, स्मार्टनैस, कौन्फिडैंस और मेकअप के अंदाज को दी जाती है. यदि आप की स्किन टोन डस्की है तो अपने दूसरे पक्षों को उभारें. सांवली रंगत को ले कर अपनी निराशा छोड़ें और ठान लें कि पर्सनैलिटी को निखारना है, कुछ ऐसे:

बोल्ड बनें

अपने व्यक्तित्व में बोल्डनैस और स्मार्टनैस लाएं. किसी भी कंपीटिशन में हिस्सा लेने से पीछे न हटें. चुनौतियां स्वीकार करें. कोने में दबीढकी लड़की बन कर रहने से अच्छा है हमेशा आगे बढ़ कर नेतृत्व करने को तैयार रहना. कोई आप से आगे आने को नहीं कहेगा. खुद में ऐसी स्किल्स डैवलप करनी होंगी कि हर महत्त्वपूर्ण काम के लिए लोगों को आप की तरफ ही देखना पड़े.

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आंखों में आंखें डाल करें बात

किसी से भी बात करनी हो तो नजरें मिला कर बात करें. इधरउधर देख कर बात करने वालों पर कोई विश्वास नहीं करता और नीची नजरें रखने वाले हमेशा पीछे रह जाते हैं. पूरे आत्मविश्वास के साथ नजरें सामने रख कर बात करने की कोशिश करें.

दूसरों से अपनी तुलना न करें

दूसरों से तुलना करने की आदत आप के आत्मविश्वास को डगमगा सकती है. आप अपनी खूबियों के बारे में सोचें न कि यह कि सामने वाला आप से बेहतर है. खुद को कभी कमजोर महसूस न करें.

भय पर विजय पाने का प्रयास करें

जिस चीज से भय लगता हो तो उसे बारबार कर के भय भगाना जरूरी है न कि उसे दूर से सलाम कर के चलते बनना. कुछ लोगों को स्टेज पर जाने से डर लगता है, कुछ को तैरने से, कुछ को ऊंचाई से, कुछ को अकेली सफर करने से और कुछ को प्रेजैंटेशन देने से डर लगता है. आप अपने डर पर विजय प्राप्त करें. इस से आप का आत्मविश्वास मजबूत होगा और आप बोल्ड और कौन्फिडैंट दिखेंगी.

अपनी स्ट्रैंथ पर फोकस करें

जिंदगी ने हर किसी को कुछ खास खूबियां दी हैं. कोई खूबसूरत है, कोई अच्छा गाता है, किसी में तार्किक क्षमता कमाल की होती है, कोई नृत्य अच्छा करता है तो कोई अच्छा लिखता है. आप का रंग दबा हुआ है तो हीनभावना महसूस करने के बजाए अपनी दूसरी खूबियों को उभारें. जो खूबी आप में है वह किसी और में नहीं हो सकती. अपनी स्मार्टनैस, काबिलियत और अच्छे व्यवहार से दूसरों की नजरों में चढ़ें.

अंदर से खूबसूरत महसूस करें

आप खूबसूरत और स्मार्ट तभी दिखेंगी जब अंदर से खूबसूरत और दूसरों से बेहतर महसूस करेंगी. मन में दुख, हीनता, संताप, ईर्ष्या जैसी भावनाएं हावी रहेंगी तो यह सब चेहरे पर झलकने लगेगा, क्योंकि मन की स्थिति से त्वचा की रौनक जुड़ी हुई है. सांवली सूरत यदि चिकनी और स्वस्थ हो तो वह ज्यादा अच्छी लगती है न कि गोरी पर मुहांसों से भरी त्वचा.

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अतीत की उपलब्धियां याद करें

जिंदगी में जब भी आप को सफलता मिली है, उन पलों को याद कर मन में हमेशा स्फूर्ति, सकारात्मकता और उत्साह कायम रखें. अपने अंदर हमेशा आत्मविश्वास बनाए रखें.

ब्रेकअप के बाद डिप्रैशन से बचें ऐसे

दिल टूटने की आवाज नहीं होती, पर दर्द बेहिसाब होता है. प्यार जैसी भावना में जब विश्वास टूटता है और साथ छूटता है, तो उस दर्द को बरदाश्त करने की ताकत तकरीबन खत्म हो जाती है. और यही वजह है कि प्यार में हारे लोग गहरे अवसाद में चले जाते हैं या जिंदगी से हार कर अपनी जान तक खत्म कर लेते हैं.

करीब 2 साल तक रिलेशनशिप में रहने के बाद मीता का उस के बौयफ्रैंड से ब्रेकअप हो गया. ब्रेकअप के पीछे की वजह जो भी हो, पर अपने बौयफ्रैंड से ब्रेकअप का सदमा मीता  झेल नहीं पाईर् और डिप्रैशन में चली गई. यह सोचसोच कर उस की आंखों से आंसू गिरते रहते थे कि जिसे दिलोजान से प्यार किया उसी ने उस का दिल तोड़ दिया, आखिर क्यों? उसे लगता था जैसे उस के शरीर से उस का एक अंग निकाल लिया गया हो, ऐसा दर्द महसूस होता था उसे. मर जाना चाहती थी वह और शायद मर भी गई होती अगर दोस्त और परिवार का सपोर्ट न मिला होता.

नेहा कक्कड़, काफी समय से अपनी लवलाइफ को ले कर सुर्खियों में हैं. कुछ समय पहले खबर आईर् थी कि नेहा का अपने बौयफ्रैंड हिमांश कोहली से ब्रेकअप हो गया है. ब्रेकअप के बाद से ही नेहा कक्कड़ इतना टूट चुकी थीं कि इंडियन आइडल के सैट पर जोरजोर से रोने लगती थीं. नेहा कक्कड़ ने खुलासा किया था कि वे डिप्रैशन में हैं. इस बात का खुलासा नेहा ने अपने इंस्टाग्राम पर किया था.

हाल ही में विक्की कौशल की पर्सनल लाइफ को ले कर खबरें आई थीं कि उन का अपनी गर्लफ्रैंड हरलीन सेठी से ब्रेकअप हो गया है. दोनों एक साल से रिलेशनशिप में थे. वजह तो अभी नहीं पता, पर पिंकविला की रिपोर्ट की मानें तो विक्की से अलग होने का सदमा हरलीन  झेल नहीं पा रही हैं और वे डिप्रैशन में चली गई हैं. अभी वे ज्यादा से ज्यादा समय अपने परिवार के साथ बिता रही हैं.

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कुछ अध्ययनों से संकेत मिलता है कि रोमांटिक ब्रेकअप के कारण 5 में से एक किशोर अवसादग्रस्त हो जाता है.

कंसल्टैंट साइकोलौजिस्ट डा. राशि आहूजा के अनुसार, आजकल के दौर में रिलेशनशिप बनना और उस का टूटना (खासतौर पर युवाओं में) बेहद आम हो गया है. साथ ही आजकल ब्रेकअप और तलाक आदि की संख्या में भी इजाफा हुआ है. ऐसे में बेहद जरूरी है कि हम खुद पर थोड़ा ध्यान दें. किसी रिश्ते के टूटने पर हमारे दिल और दिमाग पर गहरा असर पड़ता है. लेकिन जो चीज खत्म हो चुकी है उस बारे में खुद को कोसने और दोष देने से कोई फायदा नहीं है. ब्रेकअप के बाद अकसर लोग बाहर निकलना बंद कर देते हैं और लोगों से मेलजोल भी कम कर देते हैं जिस के कारण वे और अकेले पड़ जाते हैं और डिप्रैशन का शिकार हो जाते हैं.

हर कोई नहीं जानता है कि कैसे ब्रेकअप के दर्द से बाहर निकलें, ब्रेकअप होने के बाद क्या करें और इस कारण व्यक्ति और डिप्रैशन में चला जाता हैं. लेकिन रोमांटिक ब्रेकअप के बाद डिप्रैशन से कैसे उबरें, यह जानते हैं इन टिप्स से.

अपनी भावनाओं को दबाएं नहीं

रोना आप की कमजोरी का संकेत नहीं है, इसलिए आप को कभी भी अपनी भावनाओं को दबाना नहीं चाहिए. भावनाओं को बह जाने दीजिए. इस से आप बेहतर महसूस करेंगे.

प्यार से जुड़ी चीजों को देखना और सोचना बंद कर दें

ब्रेकअप के बाद वही सब प्यार से जुड़ी बातें दिमाग में न चाहते हुए आती रहती हैं. लेकिन इस का अब कोई फायदा नहीं. तो सब से पहले आप उन सब बीती बातों के बारे में सोचना बंद कर दें. क्योंकि आप के सोचने से कुछ बदलने वाला नहीं है. इसलिए उस प्यार से जुड़ी सारी बातें, जैसे एक्स बौयफ्रैंड के दिए गिफ्ट, उस के साथ बिताए वे लमहे, सब भुला दें. वह फेवरेट रैस्तरां, कौफी शौप, जहां आप दोनों अकसर जाते थे, वहां जाने के बजाय एक नई जगह खोजें. जिन गीतों को आप ने एकसाथ सुना, उन्हें सुनने से बचें. जितना हो सके अपने जीवन से उस की उपस्थिति को मिटा दें. और नए सिरे से सोचना शुरू कर दें.

दोस्तों से बातें करें

अधिकांश लोग ब्रेकअप के बाद अकेले रहना पसंद करते हैं. लेकिन जान लें कि सब से ज्यादा सुकून आप को अपने दोस्तों के पास ही मिलता है. ब्रेकअप के बाद अगर आप मानसिक रूप से परेशान हैं, तो दोस्तों से मिलें और उन से बातें करें. ब्रेकअप के बाद जब आप अपने मन की बात दोस्तों से शेयर करेंगे तो आप को मानसिक तौर पर शांति मिलेगी और आप ज्यादा सुकून महसूस करेंगे.

हौबी को बढ़ावा दें

हर इंसान की कोई न कोई हौबी होती है. लेकिन, आप यह बात नहीं जानते होंगे कि दुख में हमारी सोच और गहरी हो जाती है जिस के कारण क्रिएटिविटी और बढ़ जाती है. इसलिए आप अपनी पसंद की हौबी चुनें, जैसे किसी को संगीत सुनना अच्छा लगता है, किसी को डांस, तो किसी को पेंटिंग करना आदि. इस से आप का मन बहलेगा और बेकार की बातों से ध्यान हटेगा. आप चाहें तो अपनी मनपसंद जगह पर घूमने भी जा सकते हैं.

कैरियर को महत्त्व दें

यंग एज में प्यार या ब्रेकअप होने पर लोगों का पढ़ाई से मन उचटने लगता है, मतलब कि वे अपने कैरियर को महत्त्व देना कम कर देते हैं. मगर प्यार के साथ इंसान के लिए कैरियर भी बहुत जरूरी है. इसलिए अगर आप ब्रेकअप के गम से उबरना चाहते हैं, तो अपने कैरियर पर फोकस करें. अपनेआप उस तरफ से, जिस से आप को दर्द हो रहा है, ध्यान हटने लगेगा.

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नए दोस्त बनाएं

नए दोस्त बनाएं, खूब मजेदार वीडियो देखें, गेम खेलें. उन दोस्तों से दूरी बना लें जो आप को पुरानी बातें याद दिला कर दुखी करें. हो सकता है नए दोस्त पुराने गम को दूर कर दें और आप की जिंदगी में फिर से रौनक आ जाए.

परिवार के साथ समय बिताएं

परिवार का साथ हो तो बड़े से बड़ा गम और परेशानियां दूर हो जाती हैं. ब्रेकअप के बाद इंसान पूरी तरह से टूट जाता है, लेकिन परिवार का साथ हो तो बुरा वक्त भी निकल जाता है. इसलिए ब्रेकअप के बाद ज्यादा से ज्यादा समय अपने परिवार के साथ बिताइए.

अपनेआप को व्यस्त रखें

अकेलापन दुख ज्यादा देता है, इसलिए अकेले रहने से बचें. आप जितना खुद को व्यस्त रखेंगे, उतनी जल्दी ब्रेकअप के गम से उबर पाएंगे. ऐसे बहुत से काम होंगे जिन्हें आप रिलेशनशिप में रहने के दौरान टालते जाते होंगे. उन कामों की लिस्ट बनाएं और उन्हें पूरा करें. पुराने और भूल चुके दोस्तों को फोन करें, उन से मिलें, बातें करें, फिल्म देखने जाएं, मनपसंद किताबें पढ़ें. किताबें हमारी सब से अच्छी दोस्त होती हैं. कुछ भी सार्थक करते रहें, ताकि आप के पास खाली समय ही न बचे.

एक्सरसाइज करें

एक्सरसाइज स्ट्रैस को खत्म करने का सब से आसान तरीका है. इस से आप के मन को शांति मिलेगी और पौजिटिव सोच भी आएगी और आप ब्रेकअप की यादों से बाहर आ सकेंगे.

लक्ष्य बनाएं

जिंदगी न मिलेगी दोबारा, यह सच है. लेकिन सच्चा प्यार फिर नहीं मिल सकता, यह सच नहीं है. इस एक रिश्ते के खत्म हो जाने से जिंदगी खत्म नहीं हो जाती. जो बीत गया सो बीत गया. आप कभी भी यह मत सोचिए कि आप की लाइफ बरबाद हो गई. सोचिए, हो सकता है लाइफ बर्बाद होने से बच गई. आप को एक नया मौका मिला है अपनी लाइफ खुल कर जीने का. तो खोलिए अपने पंख और उड़ान भरिए जी भर कर किसी की परवा किए बगैर. जीवन में आगे बढ़ने के लिए कोई लक्ष्य बनाइए और उसे हासिल करने की ठान लीजिए. इंसान के वश में सबकुछ है, बस, सोच होनी चाहिए.

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ताकि याद रहे मेहमाननवाजी

यह सच है कि भारतीय त्योहारों व शादी में रस्में बहुत धूमधाम से मनाई जाती हैं. मेहमानों का आना भी अच्छा लगता है. मगर मेहमानों के खानेपीने और रहने का विशेष प्रबंध होना चाहिए ताकि वे वापस जा कर यह कहते न थकें कि आप की मेहमाननवाजी बहुत ही अच्छी रही. जबरदस्त मेजबानी हुई. मेहमानों को कैसे करें ऐसा कहने को मजबूर इस के लिए प्रस्तुत हैं कुछ टिप्स:

रहने की व्यवस्था

आप सब से पहले आने वाले मेहमानों की लिस्ट बनाएं. इस में यह भी देखें कि कितने सीनियर सिटीजंस है और कितने यंग. बड़ी उम्र के मेहमानों के लेटनबैठने की व्यवस्था के लिए बैड, कुरसी आदि का इंतजाम हो. उन्हें अपना सामान रखने के लिए एक छोटी मेज हो, ताकि उन्हें झुकना न पड़े. यंग लोग तो जमीन पर भी गद्दा आदि लगा कर रह सकते हैं. यदि बैठने का इंतजाम ऊपर व नीचे की मंजिल पर हो और लिफ्ट न हो तो सीनियर सिटीजंस को हमेशा नीचे की मंजिल पर रखें और टौयलेट भी पास हो. गरमी का मौसम है तो किराए पर ही एयर कंडीशनर या कूलर लगवा लें ताकि मेहमान गरमी से बेहाल न हों.

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खाने-पीने की व्यवस्था

शुरुआत चाय से होती है. अत: मीठी और फीकी चाय का इंतजाम हो. साथ में बिस्कुट भी अवश्य होने चाहिए. जिन के बच्चे छोटे हों और दूध पीते हों उन के लिए दूध की भी व्यवस्था हो. इस सब के साथसाथ नीबूपानी, कुनकुने पानी का भी इंतजाम हो.

स्नैक्स में डीप फ्राई चीजों जैसे पकौड़ों, कचौड़ी, हलवा आदि का प्रबंध हो तो साथ में सैंडविंच, पोहा, उपमा, दलिया, इडली, सांभर चटनी आदि का भी प्रबंध रखें, ताकि जो मेहमान तला नाश्ता नहीं करते हो वे नाश्ता कर सकें.

इसी तरह लंच और डिनर का भी समय सही रखने का प्रयास करें. खाना बहुत स्पाइसी न बनवाएं. अपने परिवार के मेहमानों के बारे में जानते हुए 1-2 सब्जियां हलके नमक की अवश्य रखें. उबले आलू, दही, सलाद फ्रिज में अवश्य रखें. दही खट्टा न हो. छाछ, नारियल पानी आदि भी अवश्य रखवाएं.

जब भी कोई मेहमान आए पानी के साथ मिठाई अवश्य दें. सब से मिलते रहें और एकदूसरे से परिचय कराते रहें, ताकि मेहमान आपस में भी घुलतेमिलते रहें.

प्रतियोगिताओं का आयोजन

शादी में सिर्फ बातचीत से काम नहीं चलता. अत: शादी के माहौल को मजेदार और यादगार बनाने के लिए यंग जैनरेशन सीनियर सिटीजंस के बीच अंत्याक्षरी आदि प्रतियोगिताएं रखें. पुरुषों में साड़ी जल्दी कौन तह करता है तो स्त्रियों में रखें कि साड़ी कौन जल्दी बांधती हैं. किसी महिला वाले पोस्टर पर स्त्रीपुरुष दोनों माथे पर कौन सही जगह बिंदी लगाता है प्रतियोगिता रखें.

इस सीजन में फल बहुतायत में आते हैं. अत: लड़कियों और महिलाओं के बीच जल्दी फल को काटनेछीलने की प्रतियोगिता रखें. इस से एक और फायदा यह होगा कि सभी मेहमानों को फल खाने को मिलेंगे और वे कट भी जाएंगे. प्रतियोगिता जीतने वाले के लिए पहले से ही इनाम तय रखें. तंबोला भी खिला सकते है. डांस का भी आयोजन कर सकते हैं.

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यंग बनाम सीनियर सिटीजंस.

शादी व त्योहार को यादगार बनाने के लिए प्रत्येक मेहमान के साथ ज्यादा से ज्यादा क्वालिटी टाइम बिताने की कोशिश करें. गिफ्ट सब को बराबर दें. इस तरह मेहमानों को एहसास होता है कि वे वाकई खास हैं. वे कभी आप की मेजबानी नहीं भूल पाएंगे.

DIWALI 2019: फैमिली के साथ ऐसे मनाएं फेस्टिवल

रोशनी का त्योहार दीवाली हो या कोई और उत्सव, जब तक 10-20 लोग मिल कर धूम न मचाएं आनंद नहीं आता. सैलिब्रेशन का मतलब ही मिल कर खुशियां मनाना और मस्ती करना होता है. पर मस्ती के लिए मस्तों की टोली भी तो जरूरी है.  आज बच्चे पढ़ाई और नौकरी के लिए घरों से दूर रहते हैं. बड़ेबड़े घरों में अकेले बुजुर्ग साल भर इसी मौके का इंतजार करते हैं जब बच्चे घर आएं और घर फिर से रोशन हो उठे. बच्चों से ही नहीं नातेरिश्तेदारों और मित्रों से मिलने और एकसाथ आनंद उठाने का भी यही समय होता है.

सामूहिक सैलिब्रेशन बनाएं शानदार

पड़ोसियों के साथ सैलिब्रेशन:  इस त्योहार आप अपने सभी पड़ोसियों को साथ त्योहार मनाने के लिए आमंत्रित करें. अपनी सोसाइटी या महल्ले के पार्क अथवा खेल के मैदान में पार्टी का आयोजन करें. मिठाई, आतिशबाजी और लाइटिंग का सारा खर्च मिल कर उठाएं. जब महल्ले के सारे बच्चे मिल कर आतिशबाजी का आनंद लेंगे तो नजारा देखतेही बनेगा. इसी तरह आप एक शहर में रहने वाले अपने सभी रिश्तेदारों और मित्रों को भी सामूहिक सैलिब्रेशन के लिए आमंत्रित कर सकते हैं.

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डांस पार्टी:  भारतीय वैसे भी डांस और म्यूजिक के शौकीन होते हैं तो क्यों न प्रकाशोत्सव के मौके को और भी मस्ती व उल्लास भरा बनाने के लिए मिल कर म्यूजिक डांस और पार्टी का आयोजन किया जाए.  पूरे परिवार के साथसाथ पड़ोसियों को भी इस में शरीक करें ताकि यह उत्सव यादगार बन जाए. बुजुर्गों, युवाओं और बच्चों के चाहें तो अलगअलग ग्रुप बना सकते हैं ताकि उन के मिजाज के अनुसार संगीत का इंतजाम हो सके. बुजुर्गों के लिए पुराने फिल्मी गाने तो युवाओं के लिए आज का तड़कताभड़कता बौलीवुड डांस नंबर्स, अंत्याक्षरी और डांस कंपीटिशन का भी आयोजन कर सकते हैं.

स्वीट ईटिंग कंपीटिशन

प्रकाशोत्सव सैलिब्रेट करने का एक और बेहतर तरीका है कि तरहतरह की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएं. मसलन, स्वादिष्ठ मिठाईयां बनाने की प्रतियोगिता, कम समय में ज्यादा मिठाई खाने की प्रतियोगिता, खूबसूरत रंगोली बनाने की प्रतियोगिता आदि. आप चाहें तो जीतने वाले को इनाम भी दे सकते हैं. इतना ही नहीं, कौन जीतेगा यह शर्त लगा कर गिफ्ट की भी मांग कर सकते हैं.

वन डे ट्रिप

आप त्योहार का आनंद अपने मनपसंद  शहर के खास टूरिस्ट स्थल पर जा कर भी ले सकते हैं. सभी रिश्तेदार पहले से बुक किए गए गैस्ट हाउस या रिजौर्ट में पहुंच कर अलग अंदाज में त्योहार मनाएं और आनंद उठाएं. त्योहार मनाने का यह अंदाज आप के बच्चों को खासतौर पर पसंद आएगा.

तनहा लोगों की जिंदगी करें रोशन 

आप चाहें तो त्योहार की शाम वृद्घाश्रम या अनाथालय जैसी जगहों पर भी बिता सकते हैं और अकेले रह रहे बुजुर्गों या अनाथ बच्चों की जिंदगी रोशन कर सकते हैं. पटाखे, मिठाई और कैंडल्स ले कर जब आप उन के बीच जाएंगे और उन के साथ मस्ती करेंगे तो सोचिए उन के साथसाथ आप को भी कितना आनंद मिलेगा. जरा याद कीजिए ‘एक विलेन’ फिल्म में श्रद्घा कपूर के किरदार को या फिर ‘किस्मत कनैक्शन’ फिल्म में विद्या बालन का किरदार. ऐसे किरदारों से आप अपनी जिंदगी में ऐसा ही कुछ करने की प्रेरणा ले सकते हैं. इनसान सामाजिक प्राणी है. अत: सब के साथ सुखदुख मना कर ही उसे असली आनंद मिल सकता है.

सामूहिक सैलिब्रेशन के सकारात्मक पक्ष

खुशियों का मजा दोगुना

जब आप अपने रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों के साथ सामूहिक रूप से त्योहार मनाते हैं तो उस की खुशी अलग ही होती है. घर की सजावट और व्हाइटवाशिंग से ले कर रंगोली तैयार करना, मिठाई बनाना, शौपिंग करना सब कुछ बहुत आसान और मजेदार हो जाता है. हर काम में सब मिल कर सहयोग करते हैं. मस्ती करतेकरते काम कब निबट जाता है, पता ही नहीं चलता. वैसे भी घर में कोई सदस्य किसी काम में माहिर होता है तो कोई किसी काम में. मिल कर मस्ती करते हुए जो तैयारी होती है वह देखने लायक होती है.

मानसिक रूप से स्वस्थ त्योहारों के दौरान मिल कर खुशियां मनाने का अंदाज हमारे मन में सिर्फ उत्साह ही नहीं जगाता वरन हमें मानसिक तनाव से भी राहत देता है.  यूनिवर्सिटी औफ दिल्ली की साइकोलौजी की असिस्टैंट प्रोफैसर, डा. कोमल चंदीरमानी कहती हैं कि त्योहारों के समय बड़ों का आशीर्वाद और अपनों का साथ हमें ऊर्जा, सकारात्मक भावना और खुशियों से भर देता है. समूह में त्योहार मनाना हमारे मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है. इस से हमारा सोशल नैटवर्क और जीवन के प्रति सकारात्मक सोच बढ़ती है, जीवन को आनंद के साथ जीने की प्रेरणा मिलती है.  हाल ही में अमेरिका में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है कि जिन लोगों का समाजिक जीवन जितना सक्रिय होता है उन के मानसिक रोगों की चपेट में आने की आशंका उतनी ही कम होती है. शोध के अनुसार, 15 मिनट तक किया गया सामूहिक हंसीमजाक दर्द को बरदाश्त करने की क्षमता को 10% तक बढ़ा देता है.  अपने होने का एहसास: आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में अकसर हमें अपने होने का एहसास ही नहीं रह जाता. सुबह से शाम तक काम ही काम. मिल कर त्योहार मनाने के दौरान हमें पता चलता है कि हम कितने रिश्तेनातों में बंधे हैं. हम से कितनों की खुशियां जुड़ी हैं. तोहफों के आदानप्रदान और मौजमस्ती के बीच हमें रिश्तों की निकटता का एहसास होता है. हमें महसूस होता है कि हम कितनों के लिए जरूरी हैं. हमें जिंदगी जीने के माने मिलते हैं. हम स्वयं को पहचान पाते हैं. जीवन की छोटीछोटी खुशियां भी हमारे अंदर के इनसान को जिंदा रखती हैं और उसे नए ढंग से जीना सिखाती हैं.

बच्चों में शेयरिंग की आदत

आप के बच्चे जब मिल कर त्योहार मनाते हैं तो उन में मिल कर रहने, खानेपीने और एकदूसरे की परवाह करने की आदत पनपती है. वे बेहतर नागरिक बनते हैं.

बच्चे दूसरों के दुखसुख में भागीदार बनना सीखते हैं. उन में नेतृत्व की क्षमता पैदा होती है. घर के बड़ेबुजुर्गों को त्योहार पर इकट्ठा हुए लोगों को अच्छी बातें व संस्कार सिखाने और त्योहार से जुड़ी परंपराओं और आदर्शों से रूबरू कराने का मौका मिलता है.

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गिलेशिकवे दूर करने का मौका 

उत्सव ही एक ऐसा समय होता है जब अपने गिलेशिकवों को भूल कर फिर से दोस्ती की शुरुआत कर सकता है. त्योहार के नाम पर गले लगा कर दुश्मन को भी दोस्त बनाया जा सकता है. सामने वाले को कोई तोहफा दे कर या फिर मिठाई खिला कर आप अपनी जिंदगी में उस की अहमियत दर्शा सकते हैं. सामूहिक सैलिब्रशन के नाम पर उसे अपने घर बुला कर रिश्तों के टूटे तार फिर से जोड़ सकते हैं.

कम खर्च में ज्यादा मस्ती

जब आप मिल कर त्योहार मनाते हैं, तो आप के पास विकल्प ज्यादा होते हैं. आनंद व मस्ती के अवसर भी अधिक मिलते हैं. इनसान सब के साथ जितनी मस्ती कर सकता है उतनी वह अकेला कभी नहीं कर सकता. एकल परिवारों के इस दौर में जब परिवार में 3-4 से ज्यादा सदस्य नहीं होते, उन्हें वह आनंद मिल ही नहीं पाता जो संयुक्त परिवारों के दौर में मिलता था. सामूहिक सैलिब्रेशन में मस्ती और आनंद ज्यादा व खर्च कम का फंडा काम करता है.

DIWALI 2019: त्यौहार पर घर जाने की मारामारी क्यों?

कार्यालय में अपनी सीट पर बैठेबैठे अचानक मोनिका की नजर टेबल पर लगे कैलैंडर पर चली गई. दीवाली की तारीख नजदीक आते देख सब से पहले जो सवाल उस के जेहन में कौंधा वह था कि रिजर्वेशन मिलेगा या नहीं? अगले ही पल उस की उंगलियां लैपटौप के कीबोर्ड पर दौड़ने लगीं, लेकिन उसे हताशा हाथ लगी. सभी सीटें फुल हो चुकी थीं. ट्रेन का ही नहीं उसे बस और हवाईजहाज का भी टिकट न मिला. अब वह सोच में पड़ गई कि घर कैसे जाए और यदि न जा पाए तो परिवार से दूर कैसे त्योहार मनाए?

मोनिका की ही तरह और भी न जाने कितने लोग अपने घरपरिवार से दूर दूसरे शहरों में रहते हैं. सब की घरपरिवार से दूर रहने की अपनी वजह है. कोई पढ़ाई के लिए तो कोई नौकरी की वजह से दूसरे शहर में बसेरा डाले हुए है. काम और पढ़ाई में उलझे ऐसे लोगों को हर दिन तो नहीं लेकिन तीजत्योहार पर परिवार वालों की कमी बहुत खलती है. इसीलिए वे त्योहारों पर घर जाने की जद्दोजेहद में लगे रहते हैं. रिजर्वेशन खुलते ही लोग अपनी सीट बुक कराने के लिए इंटरनैट से चिपक जाते हैं. कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो खासतौर पर रिजर्वेशन कराने के लिए दफ्तर से छुट्टी ले कर रेलवे स्टेशन में लगी लंबी कतार में घंटों खड़े रहते हैं. मगर उस के बाद भी कई बार रिजर्वेशन नहीं हो पाता है. ऐसे में कभीकभी  अपने ही शहर में रहने वाले यारदोस्तों, जिन को घर जाने के लिए सीट मिल चुकी होती है, उन की खुशामद करनी पड़ती है, तो कभी रिश्वत का सहारा लेना पड़ता है.

1. हो सकते हैं नुकसान कई

ऐसे में सवाल उठता है कि एक दिन के त्योहार के लिए इतनी मारामारी क्यों? आखिर त्योहार उस स्थान पर भी तो मनाया जा सकता है जहां आप रहते हैं. यदि घर जाने की व्यवस्था नहीं हो पा रही है तो बेमतलब की परेशानी उठाने की क्या जरूरत है? त्यौहार के बाद भी तो समय निकाल कर घर जाया जा सकता है? हां, यह स्वाभाविक है कि त्यौहारों का मजा अपनों के संग ही आता है. इस के लिए सचेत रहने की जरूरत होती है. यानी पहले से घर जाने की व्यवस्था करने में ही समझदारी है वरना इस मारामारी के कई नुकसान भी उठाने पड़ सकते हैं. आइए, जानते हैं कि हड़बड़ी में सफर करने के क्याक्या नुकसान हो सकते हैं:

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सबसे पहला और बड़ा नुकसान तो आप की जेब को होता है. यदि आप समय पर टिकट बुक नहीं करवा पाए हैं, तो जाहिर है कि तत्काल टिकट मिलना असंभव होता है. यदि किसी दलाल से तत्काल टिकट बुक कराते हैं तो जाहिर है कि वह आप को काफी महंगा पड़ेगा. इस के अलावा यदि आप बस या फ्लाइट से जाने की सोचते हैं तो वहां भी आप की जेब को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.

पैसों के अलावा दूसरा नुकसान होता है दफ्तर के काम का. जब आप ने तय ही कर लिया है कि जैसेतैसे घर जाना ही है तो जाहिर है आप हर वक्त यही सोचते रहेंगे कि घर जाने से पहले सारे काम निबटा लिए जाएं. होना भी यही चाहिए कि आप की अनुपस्थिति में आप के द्वारा किए जाने वाले कार्य का बोझ और किसी पर न आए. लेकिन काम को आननफानन कर पाना संभव नहीं होता है. घर जाने की जल्दी में जिस काम में अधिक समय लगता है उसे कम समय में सिर्फ निबटा देने के उद्देश्य से किया जाए तो आप सोच सकते हैं कि उस काम की क्या गुणवत्ता होगी? ऐसे में काम को कुशलता से न कर पाने का जोखिम आप को तब उठाना पड़ता है जब आप के अप्रेजल का समय आता है, क्योंकि संस्थानों में कर्मचारी की काम के प्रति ईमानदारी, मेहनत और लगन को ऐसे मौकों पर ही परखा जाता है. ऐसे में यह एक माइनस पौइंट आप की साल भर की मेहनत पर पानी फेर सकता है.

कई बार काम को निबटाने और घर जाने की व्यवस्था करने की चिंता में अकसर खाने को नजरअंदाज किया जाता है या फिर बेवक्त खाना खाया जाता है. यह भी सेहत को बिगाड़ने का ही इंतजाम है.

अूममन लोग ट्रेन में बिना टिकट यह सोच कर चढ़ जाते हैं कि टीटी को रिश्वत दे देंगे. सीट भले न मिले, लेकिन खड़े होने की जगह तो मिल ही जाएगी. लेकिन क्या आप को पता है कि रिश्वत देना अपराध है और इस की सजा भी भुगतनी पड़ सकती है?

सीट कन्फर्म न होने पर केवल स्थान पाने की ही जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती, बल्कि सामान के खोने का डर भी बढ़ जाता है, क्योंकि आप पूरा सफर सामान को कंधे पर उठाए तो सफर नहीं कर सकते. कहीं तो आप को सामान रखना ही पड़ेगा. इस स्थिति में सामान कहीं और आप कहीं और होते हैं. ऐसे में सामान के चोरी होने का डर बना रहता है.

2. पहले से करें तैयारी

त्योहार घर पर मनाने का मन बना ही लिया है, तो इस की प्लानिंग भी सुनियोजित तरीके से करें. आइए, आप को इस के कुछ टिप्स बताते हैं:

यह बात सभी को पता है कि ट्रेन में सीट रिजर्वेशन के लिए 4 महीने पहले से टिकट मिलने शुरू हो जाते हैं. लेकिन यह याद रखना आप की जिम्मेदारी है. यदि आप घर जाने की सोच रही हैं खासतौर पर दीवाली जैसे मौके पर तो जिस दिन इस तारीख के लिए रिजर्वेशन खुलता है उसी दिन आप को टिकट बुक करा लेना चाहिए. त्योहार के 1 महीना या हफ्ता भर पहले टिकट मिलना नामुमकिन होता है, यह हमेशा ध्यान रखें. यह भी खयाल रखें कि जरूरी नहीं कि दलाल से आप को पक्का ही टिकट मिल जाएगा, क्योंकि यह ऐसा वक्त होता है जब आप की ही तरह बहुत लोग दलाल की दुकान के आगे कतार में खड़े मिलते हैं. यहां पर फर्स्ट कम फर्स्ट सर्विस वाला हिसाब होता है. यदि यहां भी देर हो गई तो आप के पास अफरातफरी में सफर करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचेगा.

लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि त्योहार के दिन या उस के आसपास के दिनों में लोकल कनवेंस तक में जगह नहीं मिलती. इसलिए जाने के लिए टिकट का इंतजाम पहले से कर लें.

बौस को कम से कम 1 माह पूर्व घर जाने की बात बता दें. इस से जो भी महत्त्वपूर्ण काम होंगे उन्हें वे आप को पहले करने को कह देंगे. तब आप उन्हें पूरी कुशलता से और समय से पूरा कर पाएंगे.

कालेज में त्योहार पर भले ही आप को छुट्टी दी जा रही हो, लेकिन त्योहार के आसपास आप के इम्तिहान तो नहीं हैं या कोई जरूरी प्रोजैक्ट तो आप को जमा नहीं करना, इस बात का भी ध्यान रखें. यदि ऐसा कुछ है तो उस की तैयारी पहले से करें और फिर उसी के हिसाब से रिजर्वेशन कराएं.

3. न जा पाएं घर तो क्या करें

तमाम कोशिश के बाद भी यदि आप घर जाने में असफल रहते हैं तो उदास न हों और न ही त्योहार के उत्साह को कम होने दें. जिस शहर में आप हैं उसी शहर में आप त्योहार को अपनी तरह से मना सकते हैं. अपने परिवार के साथ तो आप ने कई बार त्योहार मनाया होगा, लेकिन इस बार नए लोगों के साथ नए तरीके से त्योहार मना कर भी देखें.

अगर महल्ले में कोई आप के जैसा हो, जो त्योहार पर अपने घर न जा सका हो तो उस के साथ त्योहार का आनंद लें.

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आजकल त्योहारों पर कुछ समुदायों और संस्थानों द्वारा कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है. यदि आप को ऐसे आयोजनों का हिस्सा बनने में आनंद आता हो तो जरूर उन का हिस्सा बनें. ऐसा करने पर आप त्योहार का मजा एक नए अंदाज में ले सकेंगे.

आप जिस शहर में हैं उस के आसपास सैरसपाटे का कोई स्थान हो तो आप त्योहार के दिन वहां भी जा सकते हैं. यदि आप को इस छोटे से सफर में कोई साथी मिल जाए तो और भी अच्छा रहेगा.

त्यौहार के दिन कुछ ऐसा करें जो आप ने कभी न किया हो. आप हर बार त्योहार पर अपने और अपने घर वालों के लिए ढेर सारा सामान खरीदते हैं, तो इस बार उन के लिए खरीदिए जिन के लिए कोई नहीं खरीदता और जो खुद भी अपने लिए कुछ खरीद पाने में असमर्थ होते हैं. आप त्योहार का मजा अनाथ बच्चों, वृद्धों और स्पैस्टिक सैंटर जा कर वहां के लोगों के साथ भी ले सकते हैं. त्योहार को मनाने का यह नया अंदाज आप को जो अनुभूति देगा उसे आप कभी नहीं भुला पाएंगे.

गिफ्ट: प्यार या दिखावा

गिफ्ट ऐसा शब्द है जिसे सुन हम आज भी उत्साहित हो जाते हैं. बचपन में जब हमारे सगेसंबंधी दीवाली में हमारे लिए पटाखे, खिलौने व कपड़े लाया करते थे तो हम खुशी से झूम उठते थे. आज फर्क मात्र बच्चों की तरह खुशी जाहिर न करने का है.

वहीं, जब हम किसी दोस्त व सगेसंबंधियों के लिए तोहफे खरीदते हैं तो यही उम्मीद करते हैं कि वे बहुत खुश होंगे. पर कभीकभी यही तोहफे रिश्तों में खटास भी ले आते हैं. आखिर जब गिफ्ट रिश्तों में स्नेह के प्रतीक हैं तो यह कड़वाहट कैसे और क्यों घोल जाते हैं? स्नेह आजकल दिखावे की जगह लेता जा रहा है जिस से न सिर्फ पैसों की बरबादी होती है बल्कि यह दिखावा रिश्तों की मिठास को भी खत्म करता जा रहा है.

1. बोझ न बनने दें

गिफ्ट देना व लेना हर स्थान का चलन है परंतु कभीकभी यह प्रथा रिश्तों पर बोझ भी बन जाती है. ऋचा की सहेली सलोनी तो बहुत ही स्नेही लड़की है परंतु जब भी वह ऋचा के घर आती है, ऋचा व बच्चों के लिए खूब महंगेमहंगे तोहफे ले आती है. शुरूशुरू में ऋचा ने उसे समझाया कि हर बार तोहफा ले कर आने की जरूरत नहीं है और विशेषकर इतने महंगे तोहफे तो वह कतई न लाए. लेकिन सलोनी उस की एक न सुनती.

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सलोनी सदैव यही दलील देती कि वह बच्चों की मौसी है और बच्चों को गिफ्ट देने का उस का पूरा हक है. ऋचा जानती थी कि सलोनी और उस की आर्थिक स्थिति में जमीनआसमान का फर्क था परंतु फिर भी उस ने हमेशा यही सोचा कि दोस्ती में इन सब बातों के लिए कोई जगह नहीं होती है परंतु अब उसे सलोनी का इतने महंगे तोहफे लाना बोझ लगने लगा.वह जानती थी कि चाह कर भी वह इतना सबकुछ सलोनी के बच्चों को कभी नहीं दे सकती थी. हालांकि सलोनी को कोई फर्क नहीं पड़ता था कि ऋचा उस के बच्चों के लिए गिफ्ट लाए या नहीं, उसे किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. ऋचा के पति मोहित भी अब ऋचा से यही कहते कि हम उन की बराबरी के नहीं हैं, इसलिए अच्छा यही होगा कि तुम सलोनी से थोड़ी दूरी बना कर ही रहो.

कई बार बचपन में हम लोगों ने यह देखा होगा कि जब घर में हमारे कोई रिश्तेदार आते थे तो चाहे घर की स्थिति कैसी भी हो, उन के लिए नए कपड़े जरूर खरीदे जाते थे. फिर चाहे उन्हें इस की जरूरत हो या न हो. गिफ्ट देना या लेना कतई गलत नहीं है. गिफ्ट देना तो स्नेह प्रकट करने का एक रूप है.

याद कीजिए जब हम बच्चे थे तब हमें भी गिफ्ट कितना पसंद आता था और बचपन में ही क्यों, गिफ्ट तो आज भी हम सब को पसंद आता है. परंतु जब तक ये गिफ्ट दिल व स्नेह से दिए जाएं तब तक ही इन की सार्थकता सही अर्थों में होती है.बहुत महंगे गिफ्ट दे कर आप किसी पर बोझ ही डाल रही हैं. महंगे गिफ्ट दे कर अथवा कोई ऐसा गिफ्ट दे कर जिस की सामने वाले को कोई जरूरत न हो, हम दिखावा ही करते हैं. गिफ्ट स्नेह से दें, न कि दिखावे के लिए.

2. अवसर व उपयोगिता का रखें ध्यान

हम अब भी किसी दोस्त या रिश्तेदार के लिए गिफ्ट खरीदें तो यह जरूर जान लें कि उसे किस तरह की चीजों से लगाव है. मान लीजिए किसी व्यक्ति को किताबों में रुचि है तो आप गिफ्टस्वरूप उसे उस की पसंद की किताबें दे सकती हैं. यह जरूरी नहीं कि गिफ्ट महंगे ही खरीदें जाएं. अगर आप का रिश्तेदार या मित्र सिर्फ महंगे तोहफों की ही कद्र करता है तो बेहतर यही होगा कि आप ऐसे लोगों से थोड़ी दूरी बना कर ही रखें क्योंकि आप का सच्चा मित्र आप की व आप की सोच की कद्र करेगा, आप के महंगे दिखावे में दिए गए उपहारों की नहीं.

अगर आप पैसा खर्च कर अपने बच्चे के जन्मदिन के अवसर पर कुछ खास करना ही चाहती हैं तो आप गरीब व जरूरतमंद बच्चों को छोटेछोटे गिफ्ट दे कर या उन की जरूरत के हिसाब से चीजें खरीद कर दे सकती हैं. ऐसा करने से आप के बच्चे जिंदगी की वास्तविकता से अवगत होंगे व उन के मन में सहानुभूति की भावना जागेगी व आगे चल कर वे भी आप की ही तरह गरीब व जरूरतमंद इंसान की अवश्य मदद करना चाहेंगे. गिफ्ट देते समय इस बात का ध्यान रखें कि आप का दिया हुआ गिफ्ट अवसर के अनुकूल हो. जैसे, बच्चों के जन्मदिन के अवसर पर बच्चों की उम्र और उन की रुचि को ध्यान में रखते हुए ही तोहफे खरीदें. गिफ्ट देते वक्त अवसर और उपयोगिता का सदैव ध्यान रखना चाहिए.

आप ने यह कई बार देखा होगा कि जब कुछ लोग किसी अमीर रिश्तेदार व दोस्त से मिलने जाते हैं तो उन की कोशिश यही रहती है कि हम उन की हैसियत के हिसाब से उन के लिए महंगे गिफ्ट ले जाएं. जबकि जब वे किसी गरीब रिश्तेदार व दोस्त के घर जाते हैं तब उन के लिए कुछ भी छोटा सा गिफ्ट ले जाते हैं. उन के लिए गिफ्ट खरीदने में वे पैसा और समय बरबाद नहीं करना चाहते. यह गलत है. ऐसा न करें. याद कीजिए जब आप की नानी व दादी आप के लिए घर से आप की पसंद की मिठाइयां व नमकीन तथा अचार अपने हाथों से बना कर भेजती थीं तब आप को कितनी खुशी होती थी. यह उन के स्नेह का ही प्रतीक था. घर की बनी शुद्घ साफसुथरी चीजों में स्वाद के साथ सेहत का भी भरपूर ध्यान रखा जाता था परंतु आजकल बच्चे सिर्फ बाहरी जंक फूड्स ही खाना पसंद करते हैं. कोई अगर घर की चीजें बना कर भेजता है तो वे उस की कोई कद्र नहीं करते.

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आप ने घरपरिवार में अकसर किसी न किसी से यह बात सुनी होगी कि फलां इंसान ने उन्हें कितना सस्ता व घटिया गिफ्ट दिया है, या साड़ी का रंग अच्छा नहीं था, कुरती का डिजाइन पहनने लायक ही नहीं है. खासकर शादीब्याह में कपड़ों का लेनदेन इतना ज्यादा होता है कि अकसर इस तरह की शिकायतें कही व सुनी जाती हैं. जब हम किसी से तोहफे लेते हैं तो हमें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि हमारे कारण उन्हें कोई तकलीफ न हो. न तो किसी से तोहफों की जरूरत से ज्यादा उम्मीद रखें और न ही किसी को जरूरत से अधिक महंगे तोहफे दें. तोहफे स्नेह को दर्शाते हैं. तोहफों की वजह से रिश्तों में अगर कोई खटास आ जाए तो ऐसे तोहफे भला किस काम के?

3. रिश्तों की मजबूत डोर स्नेह से पिरोएं तोहफों की कीमत से नहीं

अगर कोई आप को स्नेह से कोई तोहफा देता है तो हमेशा उस की कद्र करें. फिर चाहे वह तोहफा कम कीमत का ही क्यों न हो. अनेक लोग अपने प्रियजनों को अपने हाथ से बनाए खिलौने, पर्स, स्वेटर, मूर्तियां, दीये, सजावट वाली मोमबत्तियां, मिठाइयां आदि देना पसंद करते हैं. और यकीनन ये तोहफे अनमोल होते हैं. इन तोहफों में देने वालों का स्नेह व परिश्रम छिपा होता है. इन की हमेशा कद्र करनी चाहिए परंतु विडंबना यह है कि कुछ लोग दिल से दिए गए तोहफों कि कोई कद्र नहीं करते. समय के साथसाथ परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है. समय बदला है, नजरिया बदला है, परंतु स्नेह तो स्नेह ही है. जब आप अपने घर से दूर जाते हैं तब आप की मां कितने स्नेह से आप के लिए घर की बनाई हुई खानेपीने की चीजें देती हैं. ऐसा नहीं है कि वे चीजें आप के शहर में नहीं मिलतीं परंतु यह मां का स्नेह ही तो होता है. इन छोटीमोटी चीजों में जो स्नेह छिपा है वह शायद दिखावे के महंगे तोहफों से कई गुना बड़ा है.

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जब छूट जाए नौकरी

विशाल रोजाना की तरह अपने औफिस गया. वहां जाने पर उसे पता चला कि कंपनी घाटे में चलने और आर्थिक मंदी के कारण कर्मचारियों की छंटनी कर रही है जिस में उस का नाम भी है. कंपनी ने अपने 1,600 कर्मचारियों में से 600 की छुट्टी कर दी.

विशाल के पैरों तले जमीन खिसक गई. उस पर अपने परिवार का दायित्व था. उसे वह कैसे निभाएगा? यह सोचते हुए वह लौट रहा था कि अचानक उस की मुलाकात उस के एक प्रोफैसर से हुई, जिन्होंने उसे 10 वर्ष पूर्व पढ़ाया था. बातों ही बातों में उस ने बताया कि छंटनी की वजह से उस की नौकरी चली गई और अब वह बेरोजगार हो गया है.

प्रोफैसर ने उसे दिलासा देते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं. एक दरवाजा बंद होता है तो दूसरा खुलता है. इसलिए निराश न हो. तुम पढ़ेलिखे हो, अनुभवी हो और काबिल भी हो. आज नहीं तो कल, तुम्हें जौब अवश्य मिल जाएगी. हां, इस के लिए कोशिश अभी से जारी कर दो. अपनी सोच सकारात्मक रखो और आत्मविश्वास को डगमगाने मत दो, फिर देखो कितनी जल्दी दूसरी नौकरी मिलती है.’’

रोहित जिस फैक्ट्री में काम करता था, उसे किसी अन्य ने खरीद लिया और उसे कंप्यूटरीकृत कर दिया. इस से उस की जगह कंप्यूटरों ने ले ली. कंपनी ने उसे नौकरी से हटा दिया. वह पिछले 8 सालों से सुपरवाइजर का काम कर रहा था.

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राकेश विगत 12 सालों से संविदा आधार पर शिक्षक के रूप में कार्यरत था. हर साल उस का कौंट्रैक्ट सालभर के लिए बढ़ा दिया जाता था. लेकिन, सरकार बदलते ही नीति में बदलाव होने से संविदा व्यवस्था समाप्त कर दी गई और उस की नौकरी चली गई.

आज नौकरी बड़ी मुश्किल से मिलती है. एक पद के लिए हजारों आवेदन आते हैं. ऐसे में लगीलगाई नौकरी का छूट जाना कितना पीड़ादायक होता है, यह एक भुक्तभोगी ही जानता है. लेकिन नौकरी के चले जाने का मतलब यह नहीं कि दुनिया समाप्त हो गई. आशा का दीप कभी बुझने न दें.

परीक्षा की घड़ी

एक नौकरी छूटने और दूसरी मिलने के बीच का समय संक्रमण काल होता है. यह व्यक्ति के लिए परीक्षा की घड़ी होती है. यदि इस दौरान हिम्मत छोड़ दी, तो बुरी तरह टूट जाएंगे. हिम्मत वालों की कभी हार नहीं होती. यकीन मानिए, आप को काम अवश्य मिल जाएगा. हां, यह बात अलग है कि पूर्व में जिस पद और वेतन पर आप काम रहे थे, उस से कमतर पर आप को समझौता करना पड़े. एक बार नई नौकरी मिल जाए, फिर सामने वाला आप की योग्यता और काबिलीयत को देखते हुए प्रमोशन अवश्य देगा.

कुछ लोग बौस के डांटने पर तैश में आ जाते हैं और अपनी नौकरी छोड़ने का फैसला कर बैठते हैं. वे अपना त्यागपत्र प्रस्तुत कर देते हैं, जिसे स्वीकार करने में बौस जरा भी देर नहीं करता. ऐसे में अपने क्रोधी स्वभाव की वजह से व्यक्ति अपनी जौब खो देता है. यदि उस ने अपने स्वभाव में बदलाव नहीं किया, तो दूसरी नौकरी छोड़ते भी उसे देर नहीं लगेगी.

यदि आप कंप्यूटर के जानकार हैं या नई स्किल्स से वाकिफ हैं तो आप को नई नौकरी ढूंढ़ने में अधिक परेशानी नहीं होगी. लेकिन, यदि आप बदलते युग के साथ अपनेआप को ढालने में असमर्थ हैं तो फिर नई नौकरी के कई दरवाजे आप को बंद मिलेंगे और लंबे इंतजार के बाद ही आप रोजगार पाने में सफल होंगे.

धैर्य न खोएं

जब किसी की नौकरी छूट जाती है तो वह घबरा जाता है. उस के मन में संशय होता है कि नई नौकरी मिलेगी या नहीं. वह मानसिक रूप से टूट जाता है और अपनेआप को अयोग्य मानने लगता है. कुछ तो नौकरी छूटने को बरदाश्त नहीं कर पाते और डिप्रैशन में चले जाते हैं. ऐसे लोग भी हैं जिन्हें स्वयं पर भरोसा नहीं होता, वे खुदकुशी कर लेते हैं. क्या खुदकुशी करना समस्या का हल है? यह तो कायरतापूर्ण कदम है. इसलिए नौकरी छूट जाने पर भी धैर्य न खोएं.

आज इंटरनैट का जमाना है. यहां से आप नौकरी के अवसरों को तलाश सकते हैं तथा अपनी योग्यतानुसार नौकरी का विकल्प चुन कर वहां आवेदन कर सकते हैं. इस के अलावा, अपने कौंट्रैक्ट्स को भी बढ़ाएं. आप की नैटवर्किंग अच्छी होगी, तो काम तलाशना आसान हो जाएगा.

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कभी भी इन कारणों से न करें शादी

अक्सर बहुत सी लड़कियों की शादी बहुत जल्दी हो जाती हैं और बाद में पछताती हैं लेकिन ये वो शादी अपनी मर्जी से नहीं करती हैं. किसी न किसी की कोई मजबूरी होती है तभी वो जल्दी शादी के बंधन में बंध जाती हैं बिना कुछ सोचे, बिना कुछ समझे अपनी जिंदगी की खुशियों पर लगाम लगाकर वो आगे बढ़ जाती हैं और सोचती हैं कि शायद यहीं उनकी तकदीर थी, लेकिन अगर आप शादी कर रहीं हैं तो कभी भी उन कारणों से शादी न करें जिससे कारण आपको बाद में अफसोस हो. ऐसे कई कारण होतें है…

फैमिली प्रेशर

अक्सर परिवार वाले शादी का आप पर दबाव बनाते हैं कि अब तो शादी कर लेनी चाहिए या फिर मां-बाप को लगता है कि पता नहीं इससे अच्छा लड़का कब मिलेगा… ये लड़का बहुत अच्छा है बेटा तू शादी कर ले ये सब कह कर बेटी की शादी कर देते हैं और बेटी भी मां-बाप की बात में आकर शादी कर लेती है…फिर बाद में पछतावा होता है क्योंकि आप शादी दबाव में आकर करती हैं और आप उस वक्त शादी के लिए रेडी नहीं रहती.भले ही रिश्ता निभ जाए लेकिन बहुत कुछ है जिसके लिए आपको अफसोस होगा.

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उमर निकली जा रही है…                                   

अक्सर फैमिली वाले ये कहकर भी शादी के लिए दबाव बनाते हैं कि अरे उमर निकली जा रही है अब नहीं करेगी तो कब करेगी शादी. 25 की हो चली है भला इसके बाद कौन करेगी शादी. 25 के बाद तो लड़का भी नहीं मिलता है इसलिए कर ले शादी लेट शादी करेगी तो आगे के लिए दिक्कत हो जाएगी ये सब कह कर लड़की की शादी कर देते मां-बाप तो ऐसा कभी भी न करें बल्कि लड़की को पूरा मौका दें जब वो तैयार हो तभी शादी करें.

रिश्तेदारों का दबाव-

कभी-कभी मां-बाप तो समझ जाते हैं लेकिन कुछ रिश्तेदार ऐसे होते हैं जो लकड़ी के मां-बाप पर दबाव बनाते हैं कि बहुत अच्छा लड़का है इसकी शादी कर दीजीए भला इससे अच्छा परिवार अब कहां मिलेगा ज्यादा सोचिए मत और शादी फिक्स कर दिजीए…ऐसी तमाम बातें कहकर रिश्तेदार भी दबाव बनाते हैं…. तो सावधान हो जाइए..ऐसा कभी  न करें वरना आप खुद पछताएगी.

ब्रेकअप से उभरने के लिए-

अक्सर लड़कियों का ब्रेकअप होता है तो वो बहुत उदास और दुखी होती हैं ऐसे में अगर उनके पास शादी का ऑफर आता है तो उसे एक्सेप्ट कर लेती हैं अपने प्यार को भुलाने के लिए तो ऐसा भूलकर भी कभी न करें क्योंकि आप जिससे शादी करेंगी उससे आपको प्यार नहीं होगा तो आप शादी करके भी अपने प्यार को भूल नहीं पाएंगी और खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारेंगी.

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लड़के का बैक बैलेंस और सुन्दरता देखकर-

अक्सर कुछ लड़कियां लड़के का वेल सेटल्ड होना देखकर उनका बैंक बैलेंस देखकर उनकी सुन्दरता देखकर शादी के लिए हां कर देती हैं लेकिन उनका व्यवहार कैसा होता है पता ही नहीं होती और जब लड़के का व्यवहार लड़की के अनुरुप नहीं होता तो वो रिश्ता ज्यादा नहीं चलता इसलिए पहले लड़के को जानिए उसे समझिए,….जब आपको लगे कि अब अन्दर कोई डाउट नहीं है आप रेडी हैं तभी हां करिए.

ये सभी वो कारण है जिनके कारण लड़कियां शादी करती हैं और फिर पछताती हैं तो कभी भी इन कारणों से शादी न करें और खुद को शादी के लिए वक्त दें और मां-बाप भी इस बात को समझे.

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