Periods के दौरान मेरी ब्रैस्ट का साइज हैवी हो जाता है, मैं क्या करूं?

Periods :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 26 साल की हूं. पीरियड्स के दौरान मेरी ब्रैस्ट का साइज हैवी हो जाता है. ब्रैस्ट कड़ी भी हो जाती है. पीरियड्स के कुछ दिनों बाद तक भी यह समस्या बनी रहती है. इस से सैक्स के दौरान मैं सही फील महसूस नहीं करती. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

पीरियड्स के दौरान ब्रैस्ट हैवी होना कोई गंभीर समस्या नहीं है. ऐसा आमतौर पर सौल्ट रिटैंशन की वजह से होता है. बेहतर होगा कि आप फैमिली डाक्टर से मिलें और उन्हें अपनी परेशानी बताएं. उचित उपचार व खानपान से न सिर्फ इस समस्या को जड़ से खत्म किया जा सकता है, बल्कि आप का सौल्ट रिटैंशन और कंजैशन भी कम हो जाएगा.

ये भी पढ़ें- 

पीरियड्स से पहले होने वाली तकलीफ़, मूड स्विंग्स, पेट में दर्द, क्रैम्प्स (ऐंठन) जैसी समस्याएं यानी पीएमएस की तकलीफें हार्मोन्स के कम या ज़्यादा होने के कारण होती हैं. सच कहें तो हार्मोन्स में बदलाव ही महिलाओं के मासिक धर्म का प्रमुख कारण होता है. लेकिन यदि ये हार्मोन्स असंतुलित हो जाते हैं तो ये तकलीफें हद से ज़्यादा बढ़ जाती है.आइये जानते हैं डायटीशियन डॉ स्नेहल अडसुले से कि पीरियड्स के समय , बाद में और पहले क्याक्या चीज़ें खानी चाहिए;

पीरियड्स के पहले

पीरियड्स के पहले यानी मेन्स्ट्रुअल सायकल के 20वें से 30 वें दिन तक आप के अंदर की ऊर्जा कम हो जाती है. आप थोड़ी उदासी भी महसूस कर सकती हैं. दिन में कई बार काफी ज़्यादा भूख महसूस हो सकती है और इसलिए इन दिनों आप के शरीर और मन के लिए सेहतमंद स्नैक्स ज़रुरी होते हैं.

रिफाइन्ड शक्कर, प्रोसेस्ड फूड और अल्कोहल का सेवन जितना संभव हो कम करें. बादाम, अखरोट, पिस्ता जैसे सूखे मेवे यानी हेल्दी फैट का सेवन करें. सलाद में तिल और सूरजमुखी के बीज शामिल करें. सेब, अमरुद, खजूर,पीच जैसे अधिक फायबर वाले फलों को अपने आहार में शामिल करें.

हायड्रेटेड रहें. सोड़ा और मीठे पेय से परहेज़ करें. पर्याप्त मात्रा में पानी पियें. नींबू पानी में पुदिना और अदरक डाल कर पिएं. रात को सोने से पहले शरीर और मन को आराम मिले इसके लिए पेपरमिंट या कैमोमाईल चाय लें.

खून में आयरन सही मात्रा में रहने से आप का मूड और ऊर्जा का स्तर भी अच्छा रहेगा. नट्स, बीन्स (फलियां), मटर, लाल माँस और मसूर जैसे लोहयुक्त खाद्यपदार्थों का आहार में समावेश करें. पेट फूलने या सूजन जैसी समस्या से बचने के लिए नमक का सेवन कम करें.

पीरियड्स के दिनों में (पहले से सातवें दिन तक)

पीरियड्स के दिनों में खास कर पहले दो दिनों में आप को ऐसा लग सकता है जैसे सारी शक्ति चली गई हो. ऊर्जा का स्तर बेहद कम हो जाता है और आप को थकान महसूस हो सकती है. इसलिए इन दिनों ऐसा भोजन करें जिस से आप के शरीर में ऊर्जा का स्तर ऊँचा ऱखने में मदद मिले. अपने आहार में किशमिश, बादाम, मूँगफली, दूध का समावेश करें.

जंक और प्रोसेस्ड फूड में सोडियम और रिफाइन्ड कार्ब्ज प्रचुर मात्रा में होते हैं. इन्हें खाने से बचें. शीतल पेयों में रिफाइन्ड शक्कर भारी मात्रा में होती है जिस के कारण क्रैम्प्स (ऐंठन) आने की मात्रा और पीड़ा बढ़ सकती है. शीतलपेय या सोड़ा के बजाय नींबूपानी, ताजा फलों का रस या हर्बल टी लें.

Hindi Stories Online : पहली तारीख – क्यों परेशान हो जाती थी रेखा

Hindi Stories Online :  डोरबैल बजी तो रेखा ने दरवाजा खोला. न्यूजपेपर वाला हाथ में पेपर लिए किसी से फोन पर बात कर रहा था. रेखा ने उस के हाथ से अखबार ले दरवाजा बंद किया ही था कि फिर से डोरबैल बजी. जैसे ही रेखा ने दरवाजा खोला तो अखबार वाला बोला, ‘‘मैडम, यह हिंदी का अखबार. आप के घर हिंदी और अंगरेजी 2 पेपर आते हैं.’’

‘‘अरे, फिर तभी क्यों नहीं दे दिया?’’

‘‘जब तक देता, आप ने दरवाजा ही बंद कर दिया,’’ अखबार वाला बोला.

‘‘अच्छा, ठीक है,’’ कह रेखा ने अखबार ले कर दरवाजा बंद कर दिया. तभी विपुल यानी रेखा के पति का शोर सुनाई दिया.

‘‘अरे भई कहां हो?’’ रेखा के पति विपुल की आवाज आई.

तभी डोरबैल भी बजती है. रेखा परेशान सी दरवाजा खोलने चल दी. दरवाजा खोला तो सामने वही अखबार वाला खड़ा था. अब रेखा ने गुस्से से पूछा, ‘‘अब क्या है?’’

‘‘मैडम, वह अखबार का बिल,’’ अखबार वाला बोला.

‘‘पहले नहीं दे सकते थे?’’ गुस्से से कह रेखा ने दरवाजा बंद कर दिया.

उधर विपुल आवाज पर आवाज लगाए जा रहा था, ‘‘रेखा, तौलिया तो दे दो, मैं नहा चुका हूं. कब से आवाजें लगा रहा हूं.’’

रेखा ने तौलिया पकड़ाया ही था कि फिर से डोरबैल बजी. दरवाजा खोलते ही रेखा गुस्से में चीखी, ‘‘क्यों बारबार बैल बजा रहे हो?’’

‘‘मैडम, यह गृहशोभा.’’

‘‘नहीं चाहिए,’’ कह रेखा दरवाजा बंद करने लगी.

तभी अखबार वाला बोला, ‘‘अरे, आप ने ही तो कल मैगजीन लाने को बोला था.’’

‘‘क्या ये सब काम एक बार में नहीं कर सकते?’’ कह रेखा ने जोर से दरवाजा बंद कर दिया.

‘‘इतनी देर लगती है क्या तौलिया देने में?’’ विपुल बोला.

‘‘मैं क्या करती, घंटी पर घंटी बजाए जा रहा था, तुम्हारा पेपर वाला.’’

‘‘लगता है तुम्हें पसंद करता है,’’ विपुल हंसते हुए बोला.

‘‘विपुल, मैं मजाक के मूड में नहीं हूं.’’

तभी फिर डोरबैल बजती है. रेखा गुस्से से दरवाजा खोल कर बोली, ‘‘अब क्या है?’’

सामने दूध वाला था. बोला, ‘‘मैडम दूध.’’

रेखा ने थोड़ा शांत हो दूध ले लिया.

‘‘अरे भई नाश्ता लगाओ. देर हो रही है. औफिस जाना है,’’ विपुल की आवाज आई.

रेखा आंखें तरेरते हुए विपुल को देख किचन में चली गई. विपुल किसी से फोन पर बात कर रहा था.

फिर डोरबैल बजी. रेखा ने झल्लाते हुए दरवाजा खोला.

‘‘मैडम, दूध का बिल,’’ दूध वाला बोला.

‘‘क्या परेशानी है तुम सब को? क्या यह बिल दूध के साथ नहीं दे सकते थे?’’ गुस्से में बोल रेखा ने बिल ले लिया.

‘‘क्या खिला रही हो नाश्ते में?’’ विपुल बोला.

रेखा बोली, ‘‘अपना सिर… घंटी पर घंटी बज रही… ऐसे में क्या बन सकता है? ब्रैडबटर से काम चला लो.’’

‘‘अरे, तुम्हारे हाथों से तो हम जहर भी खा लेंगे,’’ विपुल ने कहा.

‘‘देखो, मैं इतनी भी बुरी नहीं हूं,’’ रेखा बोली.

तभी फिर से डोरबैल बज उठी. रेखा गुस्से से बोली, ‘‘विपुल, दरवाजा खोलो… फिर मत कहना मुझे औफिस को देर हो रही है.’’

विपुल ने फोन पर बात करते हुए ही दरवाजा खोला. दूध वाला ही खड़ा था.

दूध वाला बोला, ‘‘साहब, हम कल दूध देने नहीं आएंगे.’’

‘‘जब दूध दिया था तब नहीं बता सकते थे?’’ विपुल ने डांटा.

‘‘सर, भूल गया था.’’

विपुल औफिस चला गया. औफिस पहुंच कर उस ने रेखा को फोन किया. तभी फिर घंटी बज उठी. रेखा जब दरवाजा खोलने पर पेपर वाले को देखती है, तो उस का गुस्सा 7वें आसमान को छू जाता है. विपुल फोन लाइन पर ही था. अत: बोला, ‘‘अरे, रेखा अब कौन है?’’

‘‘वही तुम्हारा पेपर वाला.’’

‘‘यह क्या बना रखा है… क्या सारा दिन दरवाजे पर ही बैठे रहें एक चौकीदार की तरह?’’

‘‘अब क्या लेने आए हो?’’ रेखा तमतमाते हुए बोली.

‘‘सुबह के 50 दे दो… फिर से नहीं आऊंगा,’’ पेपर वाला बोला.

‘‘कोई 50 नहीं मिलेंगे. चले जाओ यहां से,’’ रेखा ने कहा.

इस बीच फोन कट गया था. वह नहाने जा ही रही थी कि फिर से डोरबैल की आवाज पर भिन्ना गई. दरवाजा खोला तो सामने केबल वाला खड़ा था.

‘‘मैडम, केबल का बिल,’’ वह बोला.

‘‘कुछ और देना है तो वह भी दे दो.’’

‘‘मैडम, समझा नहीं,’’ वह बोला.

‘‘कुछ नहीं,’’ रेखा ने जोर से दरवाजा बंद कर दिया और फिर नहाने चली गई.

तभी उसे कुछ शोर सुनाई देता है. ध्यान से सुनने पर, ‘मैडमजी, मैडमजी,’ एक लड़की की आवाज सुनाई दी.

नहा कर दरवाजा खोला तो सामने नौकरानी की लड़की खड़ी थी.

रेखा ने पूछा, ‘‘क्या चाहिए?’’

‘‘मैडमजी, मम्मी आज काम पर नहीं आएंगी. शाम को जिस औफिस में सफाई करती हैं, वहां पगार लेने गई हैं… वहां लंबी लाइन लगी है.’’

रेखा गुस्से में बोली, ‘‘अच्छाअच्छा, ठीक है.’’

‘इसे भी आज ही…’ रेखा मन ही मन बड़बड़ाई और फिर सोचने लगी कि आज खाने में बनेगा क्या… इतनी देर हो गई है… घड़ी की तरफ देखा 1 बज चुका था. अभी सोच ही रही थी कि फिर घंटी बजी. वह चुपचाप यह सोच बैठी रही कि अब दरवाजा नहीं खोलेगी. 2… 3… 4… बार घंटी बजी पर वह नहीं उठी.

तभी फोन बजा. विपुल बोला, ‘‘अरे भई, क्या हम यहीं खड़े रहेंगे… दरवाजा तो खोलो.’’

रेखा मन ही मन सोचती कि इतनी जल्दी कैसे आ गए? क्या बात है? फिर जल्दी से दरवाजा खोला.

‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’ विपुल बोला.

‘‘अरे, आप इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’

‘‘कैसे आ गए. तुम सुबह से परेशान थीं. सोचा, चलो आज लंच बाहर ही करते हैं.’’

रेखा सवाल भरी निगाहों से विपुल की तरफ देखने लगी तो वह बोला, ‘‘अरे बावली, आज पहली तारीख है.’’

Interesting Hindi Stories : आखिर क्यों – क्या दूर हुआ सुरभि और सास का अंधविश्वास

Interesting Hindi Stories : नवंबर मास की ठंडी शाम थी. मैं आफिस से घर लौटी तो घरों में बल्ब जगमगा उठे थे. सुरभि के घर से आती दूधिया रोशनी ने उस के वापस लौट आने की पुष्टि कर दी थी. एक बार मन किया, दौड़ कर उस का हालचाल पूछूं, पर तुरंत ही उस का यों चुपचाप लौट आना मुझे अनेक आशंकाओं से आतंकित कर गया.

घर के बाहरी द्वार पर खड़ी सासू मां को देखते ही मैं अपने पर काबू नहीं रख पाई और बेसाख्ता बोल उठी, ‘‘मांजी, आप को पता है, सुरभि लौट आई है.’’

‘‘लेकिन कब? तुम्हें कैसे पता लगा,’’ मांजी के हैरानी भरे प्रश्न ने स्पष्ट कर दिया कि उन्हें भी उस के लौट आने की कोई खबर नहीं है.

‘‘अभी लौटी, तो देखा उस के घर उजाला हो रहा है,’’ मैं ने उत्तर दिया.

‘‘अच्छा, तो जा, जल्दी से उस की खबर ले आ, बड़ी चिंता हो रही है मुझे.’’

फिर सचमुच मुझ से भी रहा न गया. आशाआशंका के भंवर में फंसे अपने उद्विग्न चित्त को ले, मैं उस के घर की ओर बढ़ गई. बरसों पुराना घटनाक्रम सहसा मेरी आंखों के  सामने चलचित्र की भांति क्रमबद्ध हो उठा. सुरभि से मेरा परिचय तब से है जब मैं यहां नईनवेली ब्याह कर आई थी. वह भी मेरी तरह कालोनी के गुप्ताजी की बहू और उन के सुपुत्र विपिन, जो फैक्टरी में सुपरवाइजर था, की दुलहन थी. मुझ से कोई 3 साल पहले ही ब्याह कर आई थी.

उस की सास कौशल्या देवी से ही पहलेपहल मुझे मालूम हुआ कि उस की गोद अब तक सूनी है. एक दिन जब उस की सास हमारे घर आई हुई थीं तब सासू मां के परिचय कराने के उपरांत मैं ने उन के चरण स्पर्श किए तो वह मुझे ‘दूधों नहाओ पूतों फलो’ के आशीर्वाद से नवाजना नहीं चूकीं. साथ ही उलाहना देते हुए मेरी सास से बोलीं, ‘मैं तो अपनी बहू को 3 साल से यही दुआ दे रही हूं पर लगता है बहन, निगोड़ी बांझ है.’

प्रत्युत्तर में मैं ने मांजी को सांत्वना देते हुए सुना, ‘अरे कौशल्या, तुम तो नाहक नाउम्मीद हो रही हो. अभी तो सिर्फ 3 साल हुए हैं, अरे, थोड़ा मौजमस्ती करने दो उन्हें. समय आने पर सब ठीक हो जाएगा.’

इस बीच मैं नेहा, नितिन की मां भी बन गई पर सुरभि की गोद सूनी ही रही. एक दिन मौका लगने पर एकांत में मैं ने उसे टटोला, ‘तुम ने किसी डाक्टर से अपनी जांच वगैरह कभी करवाई.’’

‘नीति, तुम तो जानती हो, मेरी सास को डाक्टरों से ज्यादा साधुसंतों, तांत्रिकों व ओझाओं पर विश्वास है,’ उस ने कहा.

मैं हतप्रभ सी रह गई. आज के इस चिकित्सा विज्ञान के क्रांतिकारी युग में कोई इस के चमत्कार से अछूता कैसे रह सकता है.

फिर तो आएदिन सुरभि मुझे बताती रहती. आज सासू मां के साथ फलांफलां साधु के दर्शनार्थ जाना है या अमुक-अमुक महात्मा शहर में पधारने वाले हैं, उन के सत्संग में जाना है, आदिआदि.

आज इस बात को लगभग 8 वर्ष होने को आए हैं. 1 माह के लिए मैं अपने मायके आगरा गई हुई थी. लौटी तो पता चला सुरभि नए मेहमान के आगमन की चिरप्रतीक्षित अभिलाषा से सराबोर थी. सुन कर बहुत अच्छा लगा. 9 माह के पूर्ण प्रसवकाल के पश्चात उस की झोली सुंदर सलोने बच्चे से भर गई. अनेकानेक प्रयासों के बाद उसे यह संतान नसीब हुई थी. अत: उस ने उस का नाम ‘सार्थक’ रखना चाहा. परंतु सासू मां का मानना था कि यह सब गुरु महाराज वत्सलानंद के आशीर्वाद से संभव हुआ है, अत: बच्चे को नाम दिया गया ‘वत्सल’.

हालांकि पहलेपहल वह सास के इस तर्क से आहत हो उठी थी पर फिर मैं ने ही उसे समझाबुझा कर शांत करने का प्रयास किया था, ‘वैसे तो सार्थक वास्तव में एकदम सटीक नाम है परंतु वत्सल भी कम सुंदर नाम नहीं है. और फिर नाम में क्या रखा है. वत्सल चाहे ईश्वर की सौगात हो या वत्सलानंद की कृपा का फल, तुम्हें क्या फर्क पड़ता है.’

‘नहींनहीं नीति. तुम गलत समझ रही हो, यह सच है कि वत्सल उन्हीं के प्रताप का फल है. जिस माह हम ने उन से दीक्षा ली थी उसी माह उन के आशीर्वाद से यह मेरे गर्भ में आ गया.’

संयोग मात्र को सास अपने गुरु की कृपा समझ बैठी थी. कौशल्या देवी के अंधविश्वासी रंगों में रंगे उस के विचार सुन कर पहली बार मुझे झटका सा लगा.

फिर तो यह आम बात हो गई. वत्सल का अन्नप्राशन हो या नामकरण, जन्मोत्सव हो या फिर स्कूल में उस के नामांकन का कार्य, सभी कार्यकलापों के लिए शुभमुहूर्त स्वामी वत्सलानंद की सुझाई गई तिथियों के हिसाब से क्रियान्वित होने लगे.

मैं ने एकआध बार अपनी सास से इस बात का जिक्र किया तो वह कहने लगीं, ‘अरे जाने दो बहू, अपनीअपनी सोच है, चाहे गुरु की कृपा रही हो या ईश्वर की इच्छा, यही क्या कम है कि कौशल्या का घरआंगन बच्चे की किलकारियों से गुंजायमान हो उठा है.’

सब कुछ निर्बाध गति से चल रहा था कि एक दिन सांझ को बच्चों ने बताया कि स्कूल में प्रार्थना सभा के दौरान वत्सल खड़ेखड़े गिर पड़ा और फिर उसे बहुत उल्टियां हुईं. अत: मैं ने मांजी को उस का हालचाल ले आने को कहा.

मांजी लौट कर आईं तो चिंतामग्न सी दिखीं. पूछने पर उन्होंने बताया कि कौशल्या बता रही थी कि वत्सल को इस तरह की शिकायत 2-4 बार पहले भी हो चुकी है परंतु बजाय किसी डाक्टर को दिखाने के वे स्वामीजी के चक्कर में पड़े हैं.

दूसरे दिन सुरभि को समझाने की गरज से मैं आफिस से लौटते हुए सीधे उस के घर गई. देखती क्या हूं कि बैठकखाने का सुसज्जित विशाल कक्ष धूप व अगरबत्ती की अनोखी सुगंध से सुशोभित है. कक्ष के एक ओर, एक बड़े से तख्त पर बिछे बेशकीमती पलंगपोश पर एक स्थूलकाय महात्मा भगवा वस्त्र धारण किए हुए विराजमान हैं जो संस्कृत के श्लोकों की स्तुति में विचारमग्न हैं. मैं असमंजस की स्थिति से उबरने का प्रयास कर ही रही थी कि सुरभि आई और कक्ष के एक कोने में मुझे बिठाते हुए स्वामीजी के बारे में बताने लगी, ‘यही गुरु वत्सलानंद जी हैं. वत्सल की बीमारी सुन कर महाराज घर आ कर उस के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए संजीवनी जाप कर रहे हैं. सच, वत्सल अपनेआप को काफी अच्छा महसूस कर रहा है.’

वस्तुत: स्वामीजी पर विश्वास से अभिप्रेरित उस परिवार के लोगों का निर्मल मन, बारबार यह झूठा आश्वासन दिला रहा था कि बच्चा स्वस्थ हो रहा है, पर क्या सुरभि भी बच्चे के गिरते स्वास्थ्य का मूल्यांकन नहीं कर पा रही थी. इस से अधिक मैं उसे सुन नहीं सकी. तभी तो लगभग घसीटते हुए मैं सुरभि को दूसरे कमरे में ले गई और बोली, ‘सुरभि तुम्हें ये क्या हो गया है, तुम तो इन थोथी बातों पर विश्वास नहीं करती थीं, फिर आज कैसे इन ढोंगी साधुओं की बातों में फंस गईं. वत्सल को इस समय इन के जपतप की नहीं बल्कि किसी अच्छे डाक्टर के परीक्षण की आवश्यकता है. देख नहीं रही हो, वह किस कदर कमजोर हो गया है.’

पर मेरी बात सुन कर वह जरा भी विचलित नहीं हुई, बल्कि कहने लगी, ‘नहीं नीति, पहले मैं भी इन की शक्तियों से अनभिज्ञ थी, पर अब मैं इन की दिव्य शक्तियों को जान चुकी हूं.’

मैं उसे कुछ और समझाने का प्रयत्न करती कि इस के पूर्व स्वामीजी, जिन्होंने कदाचित क्रोधाग्नि में धधकती मेरी मुखर वाणी सुन ली थी, क्रोध से गरज उठे, ‘ये कौन है जो मेरे ‘भैरव’ देव को ललकार रहा है. कुछ अनिष्ट हुआ तो हमें दोष मत देना. हम साधुसंन्यासी हैं, हमारा भी मानसम्मान है, पर जहां हमारा अपमान हो, हम पर अविश्वास हो, वहां एक पल और ठहरना असंभव.’

‘नहींनहीं गुरुदेव, क्षमा कीजिए,’ क्षमायाचना से भीगे उस की सासू मां के शब्द गूंजे और अगले ही पल उन्होंने स्वामीजी के चरण पकड़ लिए, ‘हमें नहीं पता था वरना मैं उसे आप के सामने आने की इजाजत कभी नहीं देती.’

उसी क्षण सुरभि की बदलती मुखमुद्रा व उस की आग्नेय दृष्टि देख कर मुझे यह आभास होने में क्षण भर भी नहीं लगा कि स्वामीजी के विरुद्ध बोल कर मैं यहां सर्वथा अवांछनीय हो गई हूं. अत: बाहर की ओर रुख करने में ही मैं ने भलाई समझी.

और फिर मेरे घर लौटने के पूर्व ही कौशल्या देवी ने मेरी सास को फोन पर हिदायत दे डाली, ‘अपनी बहू को इतनी ढील मत दो, शारदा. जो मन में आता है बोल देती है, बड़ेछोटे किसी का लिहाज नहीं. आज तो उस ने स्वामीजी का ही अपमान कर डाला. हमारा विपिन तो उन्हें इतना मानता है कि उस ने पूरे 50 हजार रुपए उन की संस्था को श्रद्धा से दान कर दिए.’

अभी वह न जाने और क्याक्या सुनातीं कि मुझे घर आया देख कर मांजी ने फोन काट दिया और मुझे संबोधित कर बोलीं, ‘बेटा, तुम क्यों इन लोगों से उलझती हो, वे गड्ढे में गिरना चाहते हैं तो उन्हें कौन रोक सकता है.’

‘मांजी, मैं तो वत्सल की हालत देख कर आपे में नहीं रह सकी थी, यदि चाचीजी को इतना बुरा लगा है तो मैं उन से माफी मांग लूंगी पर बेचारा वत्सल,’ मैं आह भर कर रह गई.

यों ही 4-5 माह बीत गए. उस दिन की घटना की कड़वाहट से दोनों परिवारों के मध्य एक शीतयुद्ध का मौन पसर गया था. पर कालोनी के अन्य लोगों से मांजी वत्सल की खोजखबर लेती रहतीं. सुना था कि उस की हालत दिन पर दिन गिरती जा रही है, स्कूल में भी वह हफ्तों अनुपस्थित रहने लगा है. इधर बच्चों की वार्षिक परीक्षाएं आरंभ हो चुकी थीं. परीक्षा के दौरान एक दिन वत्सल चक्कर खा कर सीट से लुढ़क पड़ा, जिस से उसे सिर में गंभीर चोट लग गई. आननफानन में स्कूल वालों ने उसे शहर के एक बड़े अस्पताल में भर्ती करा दिया. उसी दौरान उसे अनेक परीक्षणों से गुजरना पड़ा. सुन कर मैं भी अपने को रोक नहीं सकी और वत्सल से मिलने अस्पताल जा पहुंची. सुरभि मुझे देखते ही मुझ से लिपट कर रो पड़ी.

उस की सास भी मुझ से नजरें चुरा रही थी. पूछने पर पता चला कि वत्सल को ब्रेन ट्यूमर था जो घर वालों की लापरवाही की वजह से अधिक जटिल अवस्था में पहुंच गया था. मुझे देखते ही वह फफकफफक कर रो पड़ी और गले से लिपट कर बोली, ‘नीति, तुम ने मुझे समझाने का बहुत प्रयास किया था, पर मेरी ही मति भ्रष्ट हो गई थी जो उस पाखंडी के चक्कर में फंस गई,’

उस की आंखों से अंधविश्वास का परदा हट चुका था.

2 दिन पश्चात उसे डाक्टरों के निर्देशानुसार दिल्ली के एक बड़े अस्पताल ले जाया गया. 12 दिनों तक एडमिट रहने के बाद उस का

ब्रेन ट्यूमर का आपरेशन हुआ फिर करीब 10 घंटे बाद उस के होश में आ जाने की खबर सुरभि ने मुझे फोन पर दी, ‘नीति, लगता है, ईश्वर ने मेरी सुन ली.

यही उस का अंतिम संदेश था.

जब कुछ दिनों तक कोई खबर नहीं मिली तो उस के देवर के यहां फोन किया तो पता चला कि दूसरे ही दिन वह कोमा में चला गया था, तब से सघन चिकित्सा परीक्षण से गुजर रहा है. उस के बाद लाख प्रयत्न करने पर भी कोई खबर नहीं मिल सकी. और आज उस का यों बिना किसी पूर्व सूचना के लौट आना मन को आशंकित कर रहा है. किसी अनिष्ट की कल्पना मात्र से मैं थरथरा उठी.

घर पहुंची तो उस का मुख्यद्वार उढ़का पड़ा था. उसे ठेल कर मैं भीतर बढ़ी तो सामने नजर पड़ी, सुरभि फटीफटी नजरों से शून्य में ताक रही है, उस के भाईभाभी ने किसी तरह उसे थाम रखा था. सास भी अपना सिर पकड़ कर गमगीन सी फर्श की ओर एकटक निहार रही थी. विपिन प्रस्तर की बुत बने एक कोने में बैठे थे. उन के बुझेबुझे चेहरों ने मेरे अनुमानित अनिष्ट की पुष्टि कर दी थी.

सुरभि की भाभी ने ही बताया कि कोमा में जाने के 5 दिन बाद उसे पुन: होश आ गया था, उस दिन उस ने मां के हाथों से दलिया भी खाया, तो हमारी खोई आस भी लौट आई. परंतु उस दिन वह शायद मां की ममता को तृप्त करने, उस जगी आस को झूठा साबित करने को ही जाग्रत हुआ था. उस रात वह जो सोया तो फिर कभी नहीं जगा. बताते-बताते वह स्वयं रो पड़ीं. मैं भी अपने आंसुओं को कहां रोक पाई थी.

एक नन्हामासूम सा बच्चा अंधविश्वासों की बलि चढ़ गया था. अंधविश्वास की इतनी बड़ी सजा आखिर उस मासूम को ही क्यों मिली. काश इन ढोंगी साधुसंन्यासियों के लिए भी कानून में मृत्युदंड का प्रावधान होता जो भोलेभाले लोगों को अपने झूठे जाल में फांस कर इन के जीवन तक से खेलने से नहीं हिचकिचाते.

सुरभि इस हादसे से उन्मादित हो उठी थी. कभी वह वीभत्स हंसी हंसती तो कभी उस की मर्मभेदी चीख हृदय पर शूल बन कर उतर जाती.

अंधविश्वास की धुंध छंटने में सचमुच बहुत देर लग चुकी थी और हकीकत की सुबह, काली अंधेरी रात से भी अधिक स्याह प्रतीत हो रही थी. मेरे कानों में मानो वत्सल का प्रश्न गूंज रहा था, आखिर क्यों हुआ यह सब मेरे साथ?

कहानी- दया हीत

Hindi Fiction Stories : बनते बिगड़ते रिश्ते – क्या हुआ था रमेश के साथ

Hindi Fiction Stories : उन दिनों रमेश बहुत ज्यादा माली तंगी से गुजर रहा था. उसे कारोबार में बहुत ज्यादा घाटा हुआ था. मकान, दुकान, गाड़ी, पत्नी के गहने सब बिकने के बाद भी बाजार की लाखों रुपए की देनदारियां थीं. आएदिन लेनदार घर आ कर बेइज्जत करते, धमकियां देते और घर का जो भी सामान हाथ लगता, उठा कर ले जाते.

रमेश ने भी अनेक लोगों को उधार सामान दिया था और बदले में उन्होंने जो चैक दिए, वे बाउंस हो गए. वह उन के यहां चक्कर लगातेलगाते थक गया, मगर किसी ने भी न तो सामान लौटाया और न ही पैसे दिए.

थकहार कर रमेश ने उन लोगों पर केस कर दिए, मगर केस कछुए की चाल से चलते रहे और उस की हालत बद से बदतर होती चली गई.

जब दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो गया, तो रमेश को अपने पुराने दोस्तों की याद आई. बच्चों की गुल्लक तोड़ कर किराए का इंतजाम किया. कुछ पैसे पत्नी कहीं से ले आई और वह अपने शहर की ओर चल दिया.

पृथ्वी रमेश का सब से अच्छा दोस्त था. रमेश को पूरी उम्मीद थी कि वह उस की मदद जरूर करेगा.

अपने शहर बीकानेर आ कर रमेश सीधा अपनी मौसी के घर चला गया. वहां से नहाधो कर व खाना खा कर वह पृथ्वी के घर की ओर चल दिया.

शनिवार का दिन था. रमेश को पृथ्वी के घर पर मिलने की पूरी उम्मीद थी. वह मिला भी और इतना खुश हुआ, जैसे न जाने कितने सालों बाद मिले हों. इस के बाद वे पूरे दिन साथ रहे. रमेश पृथ्वी से पैसे के बारे में बात करना चाहता था, मगर झिझक की वजह से कह नहीं पा रहा था.

वे एक रैस्टोरैंट में बैठ गए. रमेश ने हिम्मत जुटाई और बोला, ‘‘यार पृथ्वी, एक बात कहनी थी.’’

‘‘हांहां, बोल न,’’ पृथ्वी ने कहा.

इस के बाद रमेश ने उसे अपनी सारी कहानी सुनाई. पृथ्वी गंभीर हो गया और बोला, ‘‘तेरी हालत तो खराब ही है. तू बता, मुझ से क्या चाहता है?’’

‘‘यार, वैसे तो मुझे लाखों रुपए की जरूरत है, मगर तू भी सरकारी नौकरी करता है, इसलिए फिलहाल अगर तू मुझे 3 हजार रुपए भी उधार दे देगा, तो मैं घर में राशन डलवा लूंगा.’’

‘‘कोई बात नहीं. सुबह ले लेना.’’

‘‘तो फिर मैं कितने बजे फोन करूं?’’

‘‘तू मत करना, मैं खुद ही कर लूंगा.’’

रमेश के सिर से एक बड़ा बोझ सा उतर गया था. उस ने चैन की सांस ली. इस के बाद उन्होंने काफी देर तक बातचीत की और बाद में वह रमेश को उस की मौसी के घर तक अपनी मोटरसाइकिल पर छोड़ गया.

रमेश ने पृथ्वी को बताया कि उस की ट्रेन दोपहर 2 बजे जाएगी. उस ने रमेश को भरोसा दिलाया कि वह सुबह ही 3 हजार रुपए पहुंचा देगा.

रमेश ऐसी गहरी नींद सोया कि आंखें 9 बजे ही खुलीं. नहाधो कर तैयार होने तक साढ़े 10 बज गए. पृथ्वी का फोन अभी तक नहीं आया था.

रमेश ने फोन किया, तो पृथ्वी का मोबाइल स्विच औफ ही मिला.

रमेश की ट्रेन आई और उस की आंखों के सामने से चली भी गई. उस का मन बुझ सा गया था. उस ने कोशिश करना छोड़ दिया. उस की सूरत ऐसी लग रही थी, जैसे किसी ने गालों पर खूब चांटे मारे हों. उस की आंखों में आंसू तो नहीं थे, मगर एक सूनापन उन में आ कर जम सा गया था. वह काफी देर तक प्लेटफार्म के एक बैंच पर बैठा रहा.

‘‘अरे, रमेश? तू रमेश ही है न?’’

रमेश ने आंखें उठा कर देखा. वह सत्यनारायण था. उस का एक पुराना दोस्त. वह एक गरीब घर से था और रमेश ने कभी भी उसे अहमियत नहीं दी थी.

‘‘हां भाई, मैं रमेश ही हूं,’’ उस ने बेमन से कहा.

‘‘रमेश, मुझे पहचाना तू ने? मैं सत्यनारायण. तुम्हारा दोस्त सत्तू…’’

‘‘क्या हालचाल है सत्तू?’’ रमेश थकीथकी सी आवाज में बोला.

‘‘मैं तो ठीक हूं, मगर तू ने यह क्या हाल बना रखा है? दाढ़ी बढ़ी हुई है और कितना दुबला हो गया है. चल, बाहर चल कर चाय पीते हैं.’’

रमेश की इच्छा तो नहीं थी, मगर सत्यनारायण का जोश देख कर वह उस के साथ हो लिया. वे एक रैस्टोरैंट में आ बैठे और चाय पीने लगे.

‘‘और सुना रमेश, कैसे हालचाल हैं?’’ सत्यनारायण ने पूछा.

‘‘हालचाल क्या होंगे? जिंदा बैठा हूं न तेरे सामने,’’ रमेश ने बेरुखी से कहा.

यह सुन कर सत्यनारायण गंभीर हो गया, ‘‘बात क्या है रमेश? मुझे बताएगा?’’

‘‘क्या बताऊं? यह बताऊं कि वहां मेरे बच्चे भूखे बैठे हैं और सोच रहे हैं कि पापा आएंगे, तो घर में राशन आएगा. पापा आएंगे, तो वे फिर से स्कूल जाएंगे. पापा आएंगे, तो नए कपड़े सिला देंगे. क्या बताऊं तुझे?’’

सत्यनारायण हक्काबक्का सा रमेश का चेहरा देख रहा था.

‘‘मैं तुझ से कुछ नहीं पूछूंगा रमेश. कितने पैसों की जरूरत है तुझे?’’ सत्यनारायण ने पूछा.

रमेश ने सत्यनारायण को ऊपर से नीचे तक देखा. साधारण से कपड़े, साधारण सी चप्पलें, यह उस की क्या मदद करेगा?

‘‘2 लाख रुपए चाहिए, क्या तू देगा मुझे?’’ रमेश ने कहा.

‘‘रमेश, मैं ने अपना सारा पैसा कारोबार में लगा रखा है. अगर तू मुझे कुछ दिन पहले कहता, तो मैं तुझे 2 लाख रुपए भी दे देता. यह बता कि फिलहाल तेरा कितने पैसों में काम चल जाएगा?’’ सत्यनारायण ने पूछा.

‘‘3 हजार रुपए में.’’

‘‘तू 10 मिनट यहां बैठ. मैं अभी आया,’’ कह कर सत्यनारायण वहां से चला गया.

रमेश को यकीन नहीं था कि सत्यनारायण लौट कर आएगा. अब तो लगता है कि चाय के पैसे भी मुझे ही देने पड़ेंगे.

इसी उधेड़बुन में 10 मिनट निकल गए. रमेश उठ ही रहा था कि उस ने सत्यनारायण को आते देखा.

सत्यनारायण की सांसें तेज चल रही थीं. बैठते ही उस ने जेब में हाथ डाला और 50 के नोटों की एक गड्डी रमेश के सामने रख दी.

‘‘यह ले पैसे…’’

रमेश को यकीन नहीं आ रहा था.

‘‘मगर, मुझे तो सिर्फ 3 हजार…’’ रमेश मुश्किल से बोला.

‘‘रख ले, तेरे काम आएंगे.’’

‘‘सत्तू, मैं तेरा एहसान कभी नहीं भूलूंगा.’’

‘‘क्या बकवास कर रहा है? दोस्ती में कोई एहसान नहीं होता है.’’

‘‘लेकिन, मैं ये पैसे तुझे 3-4 महीने से पहले नहीं लौटा पाऊंगा.’’

‘‘जब तेरे पास हों, तब लौटा देना. मैं कभी मांगूंगा भी नहीं. तुझ पर मुझे पूरा भरोसा है,’’ सत्यनारायण ने कहा, तो रमेश कुछ बोल नहीं पाया.

‘‘अब मैं निकलता हूं. चाय के पैसे दे कर जा रहा हूं. तुझे 5 बजे वाली ट्रेन मिल जाएगी, तू भी निकल. बच्चे तेरा इंतजार कर रहे होंगे.’’

सत्यनारायण चला गया. रमेश उसे दूर तक जाते देखता रहा. इस वक्त ये 5 हजार रुपए उस के लिए लाखों रुपए के बराबर थे. वह जिस इनसान को हमेशा छोटा समझता रहा, आज वही उस के काम आया.

रमेश वापस अपने घर लौट गया.

2-3 महीने का तो इंतजाम हो गया था. इस के बाद उस ने फिर से काम की तलाश शुरू कर दी.

एक दिन रमेश को कपड़े की दुकान पर सेल्समैन का काम मिल गया. तनख्वाह कम थी, मगर जीने के लिए काफी थी.

इस के बाद समय अचानक बदला. 3 मुकदमों का फैसला रमेश के हक में गया. जेल जाने से बचने के लिए लोगों ने उस की रकम वापस कर दी. कुछ दूसरे लोग डर की वजह से फैसला होने से पहले ही पैसे दे गए. 6 महीने में ही पहले जैसे अच्छे दिन आ गए.

रमेश ने फिर से कारोबार शुरू कर दिया. इस वादे के साथ कि पहले जैसी गलतियां नहीं दोहराएगा. रमेश ने सत्यनारायण के पैसे भी लौटा दिए. उस ने ब्याज देना चाहा, तो सत्यनारायण ने साफ मना कर दिया.

इन सब बातों को आज 10 साल से भी ज्यादा हो गए हैं. रमेश कारोबार के सिलसिले में अपने शहर जाता रहता है. किसी शादी या पार्टी में पृथ्वी से भी मुलाकात हो ही जाती है. पूरे समय वह अपने नए मकान या नई गाड़ी के बारे में ही बताता रहता है और रमेश सिर्फ मुसकराता रहता है.

रमेश का पूरा समय तो अब सिर्फ सत्यनारायण के साथ ही गुजरता है. वह जितने दिन वहां रहता है, उसी के घर में ही रहता है.

रमेश ने बहुत बुरा वक्त गुजारा. ये बुरे दिन हमें बहुतकुछ सिखा भी जाते हैं. हमारी आंखों पर जमी भरम की धुंध मिट जाती है और हम सबकुछ साफसाफ देखने लगते हैं.

लेखक- महेंद्र तिवारी

Hindi Story Collection : अजनबी

Hindi Story Collection : ‘‘देखिए भारतीजी, आप अन्यथा  न लें, आप की स्थिति को देखते हुए तो मैं कहना चाहूंगी कि अब आप आपरेशन करा ही लें, नहीं तो बाद में और भी दूसरी उलझनें बढ़ सकती हैं.’’

‘‘अभी आपरेशन कैसे संभव होगा डाक्टर, स्कूल में बच्चों की परीक्षाएं होनी हैं. फिर स्कूल की सारी जिम्मेदारी भी तो है.’’

‘‘देखिए, अब आप को यह तय करना ही होगा कि आप का स्वास्थ्य अधिक महत्त्वपूर्ण है या कुछ और, अब तक तो दवाइयों के जोर पर आप आपरेशन टालती रही हैं पर अब तो यूटरस को निकालने के अलावा और कोई चारा नहीं है.’’

डा. प्रभा का स्वर अभी भी गंभीर ही था.

‘‘ठीक है डाक्टर, अब इस बारे में सोचना होगा,’’ नर्सिंग होम से बाहर आतेआते भारती भी अपनी बीमारी को ले कर गंभीर हो गई थी.

‘‘क्या हुआ दीदी, हो गया चेकअप?’’ भारती के गाड़ी में बैठते ही प्रीति ने पूछा.

प्रीति अब भारती की सहायक कम छोटी बहन अधिक हो गई थी और ऊपर वाले फ्लैट में ही रह रही थी तो भारती उसे भी साथ ले आई थी.

‘‘कुछ नहीं, डाक्टर तो आपरेशन कराने पर जोर दे रही है,’’ भारती ने थके स्वर में कहा था.

कुछ देर चुप्पी रही. चुप्पी तोड़ते हुए प्रीति ने कहा, ‘‘दीदी, आप आपरेशन करा ही लो. कल रात को भी आप दर्द से तड़प रही थीं. रही स्कूल की बात…तो हम सब और टीचर्स हैं ही, सब संभाल लेंगे. फिर अगर बड़ा आपरेशन है तो इस छोटी सी जगह में क्यों, आप दिल्ली ही जा कर कराओ न, वहां तो सारी सुविधाएं हैं.’’

भारती अब कुछ सहज हो गई थी. हां, इसी बहाने कुछ दिन बच्चों व अपने घरपरिवार के साथ रहने को मिल जाएगा, ऐसे तो छुट्टी मिल नहीं पाती है. किशोर उम्र के बच्चों का ध्यान आता है तो कभीकभी लगता है कि बच्चों को जितना समय देना चाहिए था, दिया नहीं. रोहित 12वीं में है, कैरियर इयर है. रश्मि भी 9वीं कक्षा में आ गई है, यहां इस स्कूल की पिं्रसिपल हो कर इतने बच्चों को संभाल रही है पर अपने खुद के बच्चे.

‘‘तुम ठीक कह रही हो प्रीति, मैं आज ही अभय को फोन करती हूं, फिर छुट्टी के लिए आवेदन करूंगी.’’

स्कूल में कौन सा काम किस को संभालना है, भारती मन ही मन इस की रूपरेखा तय करने लगी. घर में आते ही प्रीति ने भारती को आराम से सोफे पर बिठा दिया और बोली, ‘‘दीदी, अब आप थोड़ा आराम कीजिए और हां, किसी चीज की जरूरत हो तो आवाज दे देना, अभी मैं आप के लिए चाय बना देती हूं, कुछ और लेंगी?’’

‘‘और कुछ नहीं, बस चाय ही लूंगी.’’

प्रीति अंदर चाय बनाने चल दी.

सोफे पर पैर फैला कर बैठी भारती को चाय दे कर प्रीति ऊपर चली गई तो भारती ने घर पर फोन मिलाया था.

‘‘ममा, पापा तो अभी आफिस से आए नहीं हैं और भैया कोचिंग के लिए गया हुआ है,’’ रश्मि ने फोन पर बताया और बोली, ‘‘अरे, हां, मम्मी, अब आप की तबीयत कैसी है, पापा कह रहे थे कि कुछ प्राब्लम है आप को…’’

‘‘हां, बेटे, रात को फिर दर्द उठा था. अच्छा, पापा आएं तो बात करा देना और हां, तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है? नीमा काम तो ठीक कर रही है न…’’

‘‘सब ओके है, मम्मी.’’

भारती ने फोन रख दिया. घड़ी पर नजर गई. हां, अभी तो 7 ही बजे हैं, अजय 8 बजे तक आएंगे. नौकरानी खाना बना कर रख गई थी पर अभी खाने का मन नहीं था. सोचा, डायरी उठा कर नोट कर ले कि स्कूल में कौन सा काम किस को देना है. दिल्ली जाने का मतलब है, कम से कम महीने भर की छुट्टी. क्या पता और ज्यादा समय भी लग जाए.

फिर मन पति और बच्चों में उलझता चला गया था. 6-7 महीने पहले जब इस छोटे से पहाड़ी शहर में उसे स्कूल की प्रधानाचार्य बना कर भेजा जा रहा था तब बिलकुल मन नहीं था उस का घरपरिवार छोड़ने का. तब उस ने पति से कहा था :

‘बच्चे बड़े हो रहे हैं अजय, उन्हें छोड़ना, फिर वहां अकेले रहना, क्या हमारे परिवार के लिए ठीक होगा. अजय, मैं यह प्रमोशन नहीं ले सकती.’

तब अजय ने ही काफी समझाया था कि बच्चे अब इतने छोटे भी नहीं रहे हैं कि तुम्हारे बिना रह न सकें. और फिर आगेपीछे उन्हें आत्मनिर्भर होना ही है. अब जब इतने सालों की नौकरी के बाद तुम्हें यह अच्छा मौका मिल रहा है तो उसे छोड़ना उचित नहीं है. फिर आजकल टेलीफोन, मोबाइल सारी सुविधाएं इतनी अधिक हैं कि दिन में 4 बार बात कर लो. फिर वहां तुम्हें सुविधायुक्त फ्लैट मिल रहा है, नौकरचाकर की सुविधा है. तुम्हें छुट्टी नहीं मिलेगी तो हम लोग आ जाएंगे, अच्छाखासा घूमना भी हो जाएगा.’’

काफी लंबी चर्चा के बाद ही वह अपनेआप को इस छोटे से शहर में आने के लिए तैयार कर पाई थी.

रोहित और रश्मि भी उदास थे, उन्हें भी अजय ने समझाबुझा दिया था कि मां कहीं बहुत दूर तो जा नहीं रही हैं, साल 2 साल में प्रधानाचार्य बन कर यहीं आ जाएंगी.

यहां आ कर कुछ दिन तो उसे बहुत अकेलापन लगा था, दिन तो स्कूल की सारी गतिविधियों में निकल जाता पर शाम होते ही उदासी घेरने लगती थी. फोन पर बात भी करो तो कितनी बात हो पाती है. महीने में बस, 2 ही दिन दिल्ली जाना हो पाता था, वह भी भागदौड़ में.

ठीक है, अब लंबी छुट्टी ले कर जाएगी तो कुछ दिन आराम से सब के साथ रहना हो जाएगा.

9 बजतेबजते अजय का ही फोन आ गया. भारती ने उन्हें डाक्टर की पूरी बात विस्तार से बता दी थी.

‘‘ठीक है, तो तुम फिर वहीं उसी डाक्टर के नर्सिंग होम में आपरेशन करा लो.’’

‘‘पर अजय, मैं तो दिल्ली आने की सोच रही थी, वहां सुविधाएं भी ज्यादा हैं और फिर तुम सब के साथ रहना भी हो जाएगा,’’ भारती ने चौंक कर कहा था.

‘‘भारती,’’ अजय की आवाज में ठहराव था, ‘‘भावुक हो कर नहीं, व्यावहारिक बन कर सोचो. दिल्ली जैसे महानगर में जहां दूरियां इतनी अधिक हैं, वहां क्या सुविधाएं मिलेंगी. बच्चे अलग पढ़ाई में व्यस्त हैं, मेरा भी आफिस का काम बढ़ा हुआ है. इन दिनों चाह कर भी मैं छुट्टी नहीं ले पाऊंगा. वहां तुम्हारे पास सारी सुविधाएं हैं, फिर आपरेशन के बाद तुम लंबी छुट्टी ले कर आ जाना. तब आराम करना. और हां, आपरेशन की बात अब टालो मत. डाक्टर कह रही हैं तो तुरंत करा लो. इतने महीने तो हो गए तुम्हें तकलीफ झेलते हुए.’’

भारती चुप थी. थोड़ी देर बात कर के उस ने फोन रख दिया था. देर तक फिर सहज नहीं हो पाई.

वह जो कुछ सोचती है, अजय उस से एकदम उलटा क्यों सोच लेते हैं. देर रात तक नींद भी नहीं आई थी. सुबह अजय का फिर फोन आ गया था.

‘‘ठीक है, तुम कह रहे हो तो यहीं आपरेशन की बात करती हूं.’’

‘‘हां, फिर लंबी छुट्टी ले लेना…’’ अजय का स्वर था.

प्रीति जब उस की तबीयत पूछने आई तो भारती ने फिर वही बातें दोहरा दी थीं.

‘‘हो सकता है दीदी, अजयजी ठीक कह रहे हों. यहां आप के पास सारी सुविधाएं हैं. नर्सिंग होम छोटा है तो क्या हुआ, डाक्टर अच्छी अनुभवी हैं, फिर अगर आपरेशन कराना ही है तो कल ही बात करते हैं.’’

भारती ने तब प्रीति की तरफ देखा था. कितनी जल्दी स्थिति से समझौता करने की बात सोच लेती है यह.

फिर आननफानन में आपरेशन के लिए 2 दिन बाद की ही तारीख तय हो गई थी.

अजय का फिर फोन आ गया था.

‘‘भारती, मुझे टूर पर निकलना है, इसलिए कोशिश तो करूंगा कि उस दिन तुम्हारे पास पहुंच जाऊं पर अगर नहीं आ पाऊं तो तुम डाक्टर से मेरी बात करा देना.’’

हुआ भी यही. आपरेशन करने से पहले डाक्टर प्रभा की फोन पर ही अजय से बात हुई, क्योंकि उन्हें अजय की अनुमति लेनी थी. सबकुछ सामान्य था पर एक अजीब सी शून्यता भारती अपने भीतर अनुभव कर रही थी. आपरेशन के बाद भी वही शून्यता बनी रही.

शरीर का एक महत्त्वपूर्ण अंग निकल जाने से जैसे शरीर तो रिक्त हो गया है, पर मन में भी एक तीव्र रिक्तता का अनुभव क्यों होने लगा है, जैसे सबकुछ होते हुए भी कुछ भी नहीं है उस के पास.

‘‘दीदी, आप चुप सी क्यों हो गई हैं, आप के टांके खुलते ही डाक्टर आप को दिल्ली जाने की इजाजत दे देंगी. बड़ी गाड़ी का इंतजाम हो गया है. स्कूल के 2 बाबू भी आप के साथ जाएंगे. अजयजी से भी बात हो गई है,’’ प्रीति कहे जा रही थी.

तो क्या अजय उसे लेने भी नहीं आ रहे. भारती चाह कर भी पूछ नहीं पाई थी.

उधर प्रीति का बोलना जारी था, ‘‘दीदी, आप चिंता न करें…भरापूरा परिवार है, सब संभाल लेंगे आप को, परेशानी तो हम जैसे लोगों की है जो अकेले रह रहे हैं.’’

पर आज भारती प्रीति से कुछ नहीं कह पाई थी. लग रहा था कि जैसे उस की और प्रीति की स्थिति में अधिक फर्क नहीं रहा अब.

हालांकि अजय के औपचारिक फोन आते रहे थे, बच्चों ने भी कई बार बात की पर उस का मन अनमना सा ही बना रहा.

अभी सीढि़यां चढ़ने की मनाही थी पर दिल्ली के फ्लैट में लिफ्ट थी तो कोई परेशानी नहीं हुई.

‘‘चलो, घर आ गईं तुम…अब आराम करो,’’ अजय की मुसकराहट भी आज भारती को ओढ़ी हुई ही लग रही थी.

बच्चे भी 2 बार आ कर कमरे में मिल गए, फिर रोहित को दोस्त के यहां जाना था और रश्मि को डांस स्कूल में. अजय तो खैर व्यस्त थे ही.

नौकरानी आ कर उस के कपड़े बदलवा गई थी. फिर वही अकेलापन था. शायद यहां और वहां की परिस्थिति में कोई खास फर्क नहीं था, वहां तो खैर फिर भी स्कूल के स्टाफ के लोग थे, जो संभाल जाते, प्रीति एक आवाज देते ही नीचे आ जाती पर यहां तो दिनभर वही रिक्तता थी.

बच्चे आते भी तो अजय को घेर कर बैठे रहते. उन के कमरे से आवाजें आती रहतीं. रश्मि के चहकने की, रोहित के हंसने की.

शायद अब न तो अजय के पास उस से बतियाने का समय है न पास बैठने का, और न ही बच्चों के पास. आखिर यह हुआ क्या है…2 ही दिन में उसे लगने लगा कि जैसे उस का दम घुटा जा रहा है. उस दिन सुबह बाथरूम में जाने के लिए उठी थी कि पास के स्टूल से ठोकर लगी और एक चीख सी निकल गई थी. दरवाजे का सहारा नहीं लिया होता तो शायद गिर ही पड़ती.

‘‘क्या हुआ, क्या हुआ?’’ अजय यह कहते हुए बालकनी से अंदर की ओर दौडे़.

‘‘कुछ नहीं…’’ वह हांफते हुए कुरसी पर बैठ गई थी.

‘‘भारती, तुम्हें अकेले उठ कर जाने की क्या जरूरत थी? इतने लोग हैं, आवाज दे लेतीं. कहीं गिर जातीं तो और मुसीबत खड़ी हो जाती,’’  अजय का स्वर उसे और भीतर तक बींध गया था.

‘‘मुसीबत, हां अब मुसीबत सी ही तो हो गई हूं मैं…परिवार, बच्चे सब के होते हुए भी कोई नहीं है मेरे पास, किसी को परवा नहीं है मेरी,’’ चीख के साथ ही अब तक का रोका हुआ रुदन भी फूट पड़ा था.

‘‘भारती, क्या हो गया है तुम्हें? कौन नहीं है तुम्हारे पास? हम सब हैं तो, लगता है कि इस बीमारी ने तुम्हें चिड़चिड़ा बना दिया है.’’

‘‘हां, चिड़चिड़ी हो गई हूं. अब समझ में आया कि इस घर में मेरी अहमियत क्या है… इतना बड़ा आपरेशन हो गया, कोई देखने भी नहीं आया, यहां अकेली इस कमरे में लावारिस सी पड़ी रहती हूं, किसी के पास समय नहीं है मुझ से बात करने का, पास बैठने का.’’

‘‘भारती, अनावश्यक बातों को तूल मत दो. हम सब को तुम्हारी चिंता है, तुम्हारे आराम में खलल न हो, इसलिए कमरे में नहीं आते हैं. सारा ध्यान तो रख ही रहे हैं. रही बात वहां आने की, तो तुम जानती ही हो कि सब की दिनचर्या है, फिर नौकरी करने का, वहां जाने का निर्णय भी तो तुम्हारा ही था.’’

इतना बोल कर अजय तेजी से कमरे के बाहर निकल गए थे.

सन्न रह गई भारती. इतना सफेद झूठ, उस ने तो कभी नौकरी की इच्छा नहीं की थी. ब्याह कर आई तो ससुराल की मजबूरियां थीं, तंगहाली थी. 2 छोटे देवर, ननद सब की जिम्मेदारी अजय पर थी. सास की इच्छा थी कि बहू पढ़ीलिखी है तो नौकरी कर ले. तब भी कई बार हूक सी उठती मन में. सुबह से शाम तक काम से थक कर लौटती तो घर के और काम इकट्ठे हो जाते. अपने स्वयं के बच्चों को खिलाने का, उन के साथ खेलने तक का समय नहीं होता था, उस के पास तो दुख होता कि अपने ही बच्चों का बालपन नहीं देख पाई.

फिर यह बाहर की पोस्ंिटग, उस का तो कतई मन नहीं था घर छोड़ने का. यह तो अजय की ही जिद थी, पर कितनी चालाकी से सारा दोष उसी के माथे मढ़ कर चल दिए.

इच्छा हो रही थी कि चीखचीख कर रो पड़े, पर यहां तो सुनने वाला भी कोई नहीं था.

पता नहीं बच्चों से भी अजय ने क्या कहा था, शाम को रश्मि और रोहित उस के पास आए थे.

‘‘मम्मी, प्लीज आप पापा से मत लड़ा करो. सुबह आप इतनी जोरजोर से चिल्ला रही थीं कि अड़ोसपड़ोस तक सुन ले. कौन कहेगा कि आप एक संभ्रांत स्कूल की पिं्रसिपल हो,’’ रोहित कहे जा रहा था, ‘‘ठीक है, आप बीमार हो तो हम सब आप का ध्यान रख ही रहे हैं. यहां पापा ही तो हैं जो हम सब को संभाल रहे हैं. आप तो वैसे भी वहां आराम से रह रही हो और यहां आ कर पापा से ही लड़ रही हो…’’

विस्फारित नेत्रों से देखती भारती सोचने लगी कि अजय ने बच्चों को भी अपनी ओर कर लिया है. अकेली है वह… सिर्फ वह…

Latest Hindi Stories : एक रिश्ता प्यारा सा – अमर ने क्या किया था

Latest Hindi Stories :  “अरे रमन जी सुनिए, जरा पिछले साल की रिपोर्ट मुझे फॉरवर्ड कर देंगे, कुछ काम था” . मैं ने कहा तो रमन ने अपने चिरपरिचित अंदाज में जवाब दिया “क्यों नहीं मिस माया, आप फरमाइश तो करें. हमारी जान भी हाजिर है.

“देखिए जान तो मुझे चाहिए नहीं. जो मांगा है वही दे दीजिए. मेहरबानी होगी.” मैं मुस्कुराई.

इस ऑफिस और इस शहर में आए हुए मुझे अधिक समय नहीं हुआ है. पिछले महीने ही ज्वाइन किया है. धीरेधीरे सब को जानने लगी हूं. ऑफिस में साथ काम करने वालों के साथ मैं ने अच्छा रिश्ता बना लिया है.

वैसे भी 30 साल की अविवाहित, अकेली और खूबसूरत कन्या के साथ दोस्ती रखने के लिए लोग मरते हैं. फिर मैं तो इन सब के साथ काम कर रही हूं. 8 घंटे का साथ है. मुझे किसी भी चीज की जरूरत होती है तो सहकर्मी तुरंत मेरी मदद कर देते हैं. अच्छा ही है वरना अनजान शहर में अकेले रहना आसान नहीं होता.

दिल्ली के इस ब्रांच ऑफिस में मैं अपने एक प्रोजेक्ट वर्क के लिए आई हुई हूं. दोतीन महीने का काम है. फिर अपने शहर जयपुर वाले ब्रांच में चली जाऊंगी. इसलिए ज्यादा सामान ले कर नहीं आई हूं.

मैं ने लक्ष्मी नगर में एक कमरे का घर किराए पर ले रखा है. बगल के कमरे में दो लड़कियां रहती हैं. जबकि मेरे सामने वाले घर में पतिपत्नी रहते हैं. शायद उन की शादी को ज्यादा समय नहीं हुआ है. पत्नी हमेशा साड़ी में दिखती है. मैं सुबहसुबह जब भी खिड़की खोलती हूं तो सामने वह लड़का अपनी बीवी का हाथ बंटाता हुआ दिखता है. कभीकभी वह छत पर एक्सरसाइज करता भी दिख जाता है.

उस की पत्नी से मेरी कभी बात नहीं हुई मगर वह लड़का एकदो बार मुझे गली में मिल चुका है. काफी शराफत से वह इतना ही पूछता है,” कैसी हैं आप ? कोई तकलीफ तो नही यहां.”

“जी नहीं. सब ठीक है.” कह कर मैं आगे बढ़ जाती.

इधर कुछ दिनों से देश में कोरोना के मामले सामने आने लगे हैं. हर कोई एहतियात बरत रहा है. बगल वाले कमरे की दोनों लड़कियों के कॉलेज बंद हो गए. दोनों अपने शहर लौट गई .

उस दिन सुबहसुबह मेरे घर से भी मम्मी का फोन आ गया,” बेटा देख कोरोना फैलना शुरु हो गया है. तू घर आ जा.”

“पर मम्मी अभी कोई डरने की बात नहीं है. सब काबू में आ जाएगा. यह भी तो सोचो मुझे ऑफिस ज्वाइन किए हुए 1 महीना भी नहीं हुआ है. इतनी जल्दी छुट्टी कैसे लूं? बॉस पर अच्छा इंप्रेशन नहीं पड़ेगा. वैसे भी ऑफिस बंद थोड़े न हुआ है. सब आ रहे हैं.”

“पर बेटा तू अनजान शहर में है. कैसे रहेगी अकेली? कौन रखेगा तेरा ख्याल?”

“अरे मम्मी चिंता की कोई बात नहीं. ऑफिस में साथ काम करने वाले मेरा बहुत ख्याल रखते हैं. सरला मैडम तो मेरे घर के काफी पास ही रहती है. उन की फैमिली भी है. 2 लोग हैं और हैं जिन का घर मेरे घर के पास ही है. इसलिए आप चिंता न करें. सब मेरा ख्याल रखेंगे.”

“और बेटा खानापीना… सब ठीक चल रहा है ?”

“हां मम्मा. खानेपीने की कोई दिक्कत नहीं है . मुझे जब भी कैंटीन में खाने की इच्छा नहीं होती तो सरला मैडम या दिवाकर सर से कह देती हूं. वे अपने घर से मेरे लिए लंच ले आते हैं. ममा डोंट वरी. मैं बिल्कुल ठीक हूं. गली के कोने में ढाबे वाले रामू काका भी तो हैं. मेरे कहने पर तुरंत खाना भेज देते हैं. ममा कोरोना ज्यादा फैला तो मैं घर आ जाऊंगी. आप चिंता न करो .”

उस दिन मैं ने मां को तो समझा दिया था कि सब ठीक है. मगर मुझे अंदाज भी नहीं था कि तीनचार दिनों के अंदर ही देश में अचानक लॉकडाउन हो जाएगा और मैं इस अनजान शहर में एक कमरे में बंद हो कर रह जाऊंगी. न घर में खानेपीने की ज्यादा चीजें हैं और न ही कोई रेस्टोरेंट ही खुला हुआ है .

मैं ने सरला मैडम से मदद मांगी तो उन्होंने टका सा जवाब दे दिया,” देखो माया अभी तो अपने घर में ही खाने की सामग्री कब खत्म हो जाए पता नहीं . अभी न तुम्हारा घर से निकलना उचित है और न हमारे घर में ऐसा कोई है जो तुम्हें खाना दे कर आए. आई एम सॉरी. ”

“इट्स ओके .” बस इतना ही कह सकी थी मैं. इस के बाद मैं ने दिवाकर सर को फोन किया तो उन्होंने उस दिन तो खाना ला कर दे दिया मगर साथ में अपना एक्सक्यूज भी रख दिया कि माया अब रोज मैं खाना ले कर नहीं आ सकूंगा. मेरी बीवी भी तो सवाल करेगी न.

“जी मैं समझ सकती हूं . मुझे उन की उम्मीद भी छोड़नी पड़ी. अब मैं ने रमन जी को फोन किया जो हर समय मेरे लिए जान हाजिर करने की बात करते रहते थे. उन का घर भी लक्ष्मी नगर में ही था. हमेशा की तरह उन का जवाब सकारात्मक आया. शाम में खाना ले कर आने का वादा किया. रात हो गई और वह नहीं आए. मैं ने फोन किया तो उन्होंने फोन उठाया भी नहीं और एक मैसेज डाल दिया, सॉरी माया मैं नहीं आ पाऊंगा.

अब मेरे पास खाने की भारी समस्या पैदा हो गई थी. किराने की दुकान से ब्रेड और दूध ले आई. कुछ बिस्किट्स और मैगी भी खरीद ली. चाय बनाने के लिए इंडक्शन खरीदा हुआ था मैं ने. उसी पर किसी तरह मैगी बना ली. कुछ फल भी खरीद लिए थे. दोतीन दिन ऐसे ही काम चलाया मगर ऐसे पता नहीं कितने दिन चलाना था. 21 दिन का लॉकडाउन था. उस के बाद भी परिस्थिति कैसी होगी कहना मुश्किल था.

उस दिन मैं दूध ले कर आ रही थी तो गेट के बाहर वही लड़का जो सामने के घर में रहता है मिल गया. उस ने मुझ से वही पुराना सवाल किया,” कैसी हैं आप? सब ठीक है न? कोई परेशानी तो नहीं?”

“अब ठीक क्या? बस चल रहा है. मैगी और ब्रेड खा कर गुजारा कर रही हूं .”

“क्यों खाना बनाना नहीं जानती आप?

उस के सवाल पर मैं हंस पड़ी.

“जानती तो हूं मगर यहां कोई सामान नहीं है न मेरे पास. दोतीन महीने के लिए ही दिल्ली आई थी. अब तक ऑफिस कैंटीन और रामू काका के ढाबे में खाना खा कर काम चल जाता था. मगर अब तो सब कुछ बंद है न. अचानक लॉक डाउन से मुझे तो बहुत परेशानी हो रही है.”

“हां सो तो है ही. मेरी वाइफ भी 5-6 दिन पहले अपने घर गई थी. 1 सप्ताह में वापस आने वाली थी. संडे मैं उसे लेने जाता तब तक सब बंद हो गया. उस के घरवालों ने कहा कि अभी जान जोखिम में डाल कर लेने मत आना. सब ठीक हो जाए तो आ जाना. अब मैं भी घर में अकेला ही हूं.”

“तो फिर खाना?”

“उस की कोई चिंता नहीं. मुझे खाना बनाना आता है. ” उस के चेहरे पर मुस्कान खिल गई.

“क्या बात है! यह तो बहुत अच्छा है. आप को परेशानी नहीं होगी.”

“परेशानी आप को भी नहीं होने दूंगा. कल से मैं आप के लिए खाना बना दिया करूंगा. आप बिल्कुल चिंता न करें. कुछ सामान लाना हो तो वह भी मुझे बताइए. आप घर से मत निकला कीजिए. मैं हूं न.”

एक अनजान शख्स के मुंह से इतनी आत्मीयता भरी बातें बातें सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा.” थैंक यू सो मच “मैं इतना ही कह पाई.

अगले दिन सुबहसुबह वह लड़का यानी अमर मेरे लिए नाश्ता ले कर आ गया. टेबल पर टिफिन बॉक्स छोड़ कर वह चला गया था. नाश्ते में स्वादिष्ट पोहा खा कर मेरे चेहरे पर मुस्कान खिल गई. मैं दोपहर का इंतजार करने लगी. ठीक 2 बजे वह फिर टिफिन भर लाया. इस बार टिफिन में दाल चावल और सब्जी थे. मैं सोच रही थी कि किस मुंह से उसे शुक्रिया करूं. अनजान हो कर भी वह मेरे लिए इतना कुछ कर रहा है.

मैं ने उसे रोक लिया और कुर्सी पर बैठने का इशारा किया. वह थोड़ा सकुचाता हुआ बैठ गया. मैं बोल पड़ी ,” आई नो एक एक अनजान, अकेली लड़की के घर में ऐसे बैठना आप को अजीब लग रहा होगा. मगर मैं इस अजनबीपन को खत्म करना चाहती हूं. आप अपने बारे में कुछ बताइए न. मैं जानना चाहती हूं उस शख्स के बारे में जो मेरी इतनी हेल्प कर रहा है.”

“ऐसा कुछ नहीं माया जी. हम सब को एकदूसरे की सहायता करनी चाहिए.” बड़े सहज तरीके से उस ने जवाब दिया और फिर अपने बारे में बताने लगा,

“दरअसल मैं ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं हूं. मेरठ में मेरा घर है . स्कूल में हमेशा टॉप करता था. मगर घर के हालात ज्यादा अच्छे नहीं थे. सो इंटर के बाद ही मुझे नौकरी करनी पड़ी. करोल बाग में मेरा ऑफिस है. वाइफ भी मेरठ की ही है. बहुत अच्छी है. बहुत प्यार करती है मुझ से. हम दोनों की शादी पिछले साल ही हुई थी. दिल्ली आए ज्यादा समय नहीं हुआ है.”

“बहुत अच्छे. मैं भी दिल्ली में नई हूं. हमारे इस ऑफिस का एक ब्रांच जयपुर में भी है. वही काम करती थी मैं. यहां एक प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए आई हुई हूं .अगर प्रमोशन मिल गया तो शायद हमेशा के लिए भी रहना पड़ जाए.”

अच्छा जी अब आप खाना खाएं. देखिए मैं ने ठीक बनाया है या नहीं.”

आप तो बहुत स्वादिष्ट खाना बनाते हैं. सुबह ही पता चल गया था. कह कर मैं हंस पड़ी. वह भी थोड़ा शरमाता हुआ मुस्कुराने लगा था. मैं खाती रही और वह बातें करता रहा.

अब तो यह रोज का नियम बन गया था. वह 3 बार मेरे लिए खाना बना कर लाता. मैं भी कभीकभी चाय बना कर पिलाती. किसी भी चीज की जरूरत होती तो वह ला कर देता . मुझे निकलने से रोक देता.

मेरे आग्रह करने पर वह खुद भी मेरे साथ ही खाना खाने लगा. हम दोनों घंटों बैठ कर दुनिया जहान की बातें करते.

इस बीच मम्मी का जब भी फोन आता और वह चिंता करतीं तो मैं उन्हें समझा देती कि सब अच्छा है. मम्मी जब भी खाने की बात करतीं तो मैं उन्हें कह देती कि सरला मैडम मेरे लिए खाना बना कर भेज देती हैं. कोई परेशानी की बात नहीं है.

इधर अमर की वाइफ भी फोन कर के उस का हालचाल पूछती. चिंता करती तो अमर कह देता कि वह ठीक है. अपने अकेलेपन को टीवी देख कर और एक्सरसाइज कर के काट रहा है.

हम दोनों घरवालों से कही गई बातें एकदूसरे को बताते और खूब हंसते. वाकई इतनी विकट स्थिति में अमर का साथ मुझे मजबूत बना रहा था. यही हाल अमर का भी था. इन 15- 20 दिनों में हम एकदूसरे के काफी करीब आ चुके थे. और फिर एक दिन हमारे बीच वह सब हो गया जो उचित नहीं था.

अमर इस बात को ले कर खुद को गुनहगार मान रहा था. मगर मैं ने उसे समझाया,” तुम्हारा कोई दोष नहीं अमर. भूल हम दोनों से हुई है. पर इसे भूल नहीं परिस्थिति का दोष समझो. यह भूल हम कभी नहीं दोहराएंगे. मगर इस बात को ले कर अपराधबोध भी मत रखो. हम अच्छे दोस्त हैं और हमेशा रहेंगे. एक दोस्त ही दूसरे का सहारा बनता है और तुम ने हमेशा मेरा साथ दिया है. मुझे खुशी है कि मुझे तुम्हारे जैसा दोस्त मिला.”

मेरी बात सुन कर उस के चेहरे पर से भी तनाव की रेखाएं गायब हो गई और वह मंदमंद मुस्कुराने लगा.

Hindi Moral Tales : विद्रोह – क्या राकेश को हुआ गलती का एहसास

Hindi Moral Tales : सीमा को अपने मातापिता के घर में रहते हुए करीब 15 दिन हो चुके थे. इस दौरान उस का अपने पति राकेश से किसी भी तरीके का कोई संपर्क नहीं रहा था. उस शाम राकेश को अचानक घर आया देख कर वह हैरान हो गई.

‘‘बेटी, आपसी मनमुटाव को ज्यादा लंबा खींचना खतरनाक साबित हो जाता है. राकेश के साथ समझदारी से बातें करना,’’ अपनी मां की इस सलाह पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर किए बिना सीमा ड्राइंगरूम में राकेश के सामने पहुंच गई.

‘‘तुम्हें मेरे साथ घर चलना पडे़गा, सीमा,’’ राकेश ने बिना कोई भूमिका बांधे सख्त लहजे में कहा.

‘‘तुम्हारा घर मैं छोड़ आई हूं,’’ सीमा ने भी रूखे अंदाज में अपना फैसला उसे सुना दिया.

‘‘क्या हमेशा के लिए?’’ राकेश ने उत्तेजित हो कर सवाल किया.

‘‘ऐसा ही समझ लो,’’ सीमा ने विद्रोही स्वर में जवाब दिया.

‘‘बेकार की बात मत करो. मेरी सहनशक्ति का तार टूट गया तो पछताओगी,’’ राकेश भड़क उठा.

‘‘मुझे डरानेधमकाने का अब कोई फायदा नहीं है,’’ सीमा ने निडर हो कर कहा, ‘‘अगर तुम्हें और कोई बात नहीं कहनी है तो मैं अपने कमरे में जा रही हूं.’’

राकेश ने अपनी पत्नी को अचरज भरी निगाहों से देखा.  उन की शादी को करीब 12 साल  हो चुके थे. इस दौरान उस ने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि सीमा ऐसे विद्रोही अंदाज में उस से पेश आएगी.

उठ कर खड़ी होने को तैयार सीमा को हाथ के इशारे से राकेश ने बैठने को कहा और फिर  बताया कि कल सुबह मयंक और शिक्षा होस्टल से 10 दिनों की छुट्टियां बिताने घर पहुंच रहे हैं.

कुछ देर सोच में डूबी रहने के बाद सीमा ने व्याकुल स्वर में कहा, ‘‘उन दोनों को यहां मेरे पास छोड़ जाना.’’

‘‘तुम्हें पता है कि तुम क्या बकवास कर रही हो. वह दोनों यहां नहीं आएंगे,’’ राकेश गुस्से से फट पड़ा.

‘‘फिर जैसी तुम्हारी मर्जी, मैं बच्चों से कहीं बाहर मिल लिया करूंगी,’’ सीमा ने थके से अंदाज में राकेश का फैसला स्वीकार कर लिया.

‘‘यह कैसी मूर्खता भरी बात मुंह से निकाल रही हो. तुम्हारे बच्चे 4 महीने बाद घर लौट रहे हैं और तुम उन के साथ घर रहने नहीं आओगी. तुम्हारा यह फैसला सुन कर मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा है.’’

‘‘अपने बच्चों के साथ कौन मां नहीं रहना चाहेगी,’’ सीमा का अचानक गला भर आया, ‘‘मैं अपने फैसले से मजबूर हूं. मुझे उस घर में लौटना ही नहीं है.’’

‘‘हम अपने झगडे़ बाद में निबटा लेंगे, सीमा. फिलहाल तो बच्चों के मन की सुखशांति के लिए घर चलो. तुम्हें घर में न पाने का सदमा वे दोनों कैसे बरदाश्त करेंगे? अब वे दोनों बहुत छोटे बच्चे नहीं रहे हैं. मयंक 10 साल का और शिखा 8 साल की हो रही है. उन दोनों को बेकार ही मानसिक कष्ट पहुंचाने का फायदा क्या होगा?’’ राकेश ने चिढे़ से अंदाज में उसे समझाने का प्रयास किया.

‘‘एक दिन तो बच्चों को यह पता लगेगा ही कि हम दोनों अलग हो रहे हैं. यह कड़वी सचाई उन्हें इस बार ही पता लग जाने दो,’’ उदास सीमा अपनी जिद पर अड़ी रही.

‘‘ऐसा हुआ ही क्या है हमारे बीच, जो तुम यों अलग होने की बकवास कर रही हो?’’ राकेश फिर गुस्से से भर गया.

‘‘मुझे इस बारे में तुम से अब कोई बहस नहीं करनी है.’’

‘‘इस वक्त सहयोग करो मेरे साथ, सीमा.’’

सीमा ने कोई जवाब नहीं दिया. वह सिर झुकाए सोच में डूबी रही.

राकेश ने अंदर जा कर अपने सासससुर को सारा मामला समझाया. मयंक और शिखा की खुशियों की खातिर वह अपनी नाराजगी व शिकायतें भुला कर राकेश की तरफ  हो गए.

सीमा पर ससुराल वापस लौटने के लिए अब अपने मातापिता का दबाव भी पड़ा. अपने बच्चों से मिलने के लिए उस का मन पहले ही तड़प रहा था. अंतत: उस ने एक शर्त के साथ राकेश की बात मान ली.

‘‘मैं तुम्हारे साथ बच्चों की मां के रूप में लौट रही हूं, पत्नी के रूप में नहीं. पतिपत्नी के टूटे रिश्ते को फिर से जोड़ने का कोई प्रयास न करने की तुम कसम खाओ, तो ही मैं वापस लौटूंगी,’’ बडे़ गंभीर हो कर सीमा ने अपनी शर्त राकेश को बता दी.

अपमान का घूंट पीते हुए राकेश को मजबूरन अपनी पत्नी की बात माननी पड़ी.

‘‘बच्चे कल आ रहे हैं, तो मैं भी कल सुबह घर पहुंच जाऊंगी,’’ अपना निर्णय सुना कर सीमा ड्राइंगरूम से उठ कर अपने कमरे में चली आई.

सीमा के व्यक्तित्व में नजर आ रहे जबरदस्त बदलाव ने उस के मातापिता व पति को ही नहीं, बल्कि उसे खुद को भी अचंभित कर दिया था.

उस रात सीमा की आंखों से नींद दूर भाग गई थी. पलंग पर करवटें बदलते हुए वह अपनी विवाहित जिंदगी की यादों में खो गई. उसे वे घटनाएं व परिस्थितियां रहरह कर याद आ रही थीं जो अंतत: राकेश व उस के दिलों के बीच गहरी खाई पैदा करने का कारण बनी थीं.

उस शाम आफिस से देर से लौटे राकेश की कमीज के पिछले हिस्से में लिपस्टिक से बना होंठों का निशान सीमा ने देखा. अपने पति को उस ने कभी बेवफा और चरित्रहीन नहीं समझा था. सचाई जानने को वह उस के पीछे पड़ गई तो राकेश अचानक गुस्से से फट पड़ा था.

‘हां, मेरी जिंदगी में एक दूसरी लड़की है,’ सीमा के दिल को गहरा जख्म देते हुए उस ने चिल्ला कर कबूल किया, ‘उस की खूबसूरती, उस का यौवन और उस का साथ मुझे वह मस्ती भरा सुख देते हैं जो तुम से मुझे कभी नहीं मिला. मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं, उसे नहीं.’

‘मेरे सारे गुण…मेरी सेवा और समर्पण को नकार कर क्या तुम एक चरित्रहीन लड़की के लिए मुझे छोड़ने की धमकी दे रहे हो?’ राकेश के आखिरी वाक्य ने सीमा को जबरदस्त मानसिक आघात पहुंचाया था.

‘उस लड़की के लिए न कोई अपशब्द कभी मेरे सामने निकालना और न उसे छोड़ने की बात करना. तुम अपनी घरगृहस्थी और बच्चों में खुश रहो और मुझे भी खुशी से जीने दो,’ कहते हुए बड़ी बेरुखी दिखाता राकेश बाथरूम में घुस गया था.

वह रात सीमा ने ड्राइंगरूम में पडे़ दीवान पर आंसू बहाते हुए काटी थी. उस के दिलोदिमाग में विद्रोह के बीज को इन्हीं आंसुओं ने अंकुरित होने की ताकत दी थी.

उस रात सीमा ने अपने दब्बूपन व कायरता को याद कर के भी आंसू बहाए थे.

राकेश शादी के बाद से ही उसे अपमानित कर नीचा दिखाता आया था. घर व बाहर वालों के सामने बेइज्जत कर उस का मजाक उड़ाने का वह कोई मौका शायद ही चूकता था.

सीमा के सुंदर नैननक्श की तारीफ नहीं बल्कि उस के सांवले रंग का रोना वह अकसर जानपहचान वालों के सामने रोता.

घर की देखभाल में जरा सी कमी रह जाती तो उसे सीमा को डांटनेडपटने का मौका मिल जाता. उस का कोई काम मन मुताबिक न होता तो वह उसे बेइज्जत जरूर करता.

बच्चों के बडे़ होने के साथ सीमा की जिम्मेदारियां भी बढ़ी थीं. 2 साल पहले सास के निधन के बाद तो वह बिलकुल अकेली पड़ गई थी. उन के न रहने से सीमा का सब से बड़ा सहारा टूट गया था.

राकेश के गुस्से से बच्चे डरेसहमे से रहते. उस के गलत व्यवहार को देख सारे रिश्तेदार, परिचित और दोस्त उसे एक स्वार्थी, ईर्ष्यालु व गुस्सैल इनसान बताते.

सीमा मन ही मन कभीकभी बहुत दुखी व परेशान हो जाती पर कभी किसी बाहरी व्यक्ति के मुंह से राकेश की बुराई सुनना उसे स्वीकार न था.

‘वह दिल के बहुत अच्छे हैं…मुझे बहुत प्यार करते हैं और बच्चों में तो उन की जान बसती है. मैं बहुत खुश हूं उन के साथ,’ सीमा सब से यह कहती भी थी और अपने मन की गहराइयों में इस विश्वास की जड़ें खुद भी मजबूत करती रहती थी.

घर में डरेसहमे से रह रहे मयंक व शिखा के व्यक्तित्व के समुचित विकास को ध्यान में रखते हुए वह उन्हें पिछले साल होस्टल में डालने को तैयार हो गई थी.

उन की पढ़ाई व घर का ज्यादातर खर्चा वह अपनी तनख्वाह से चलाती थी. राकेश करीब 1 साल से घरखर्च के लिए ज्यादा रुपए नहीं देता था. यह सीमा को उस रात ही समझ में आया कि वह जरूर अपनी प्रेमिका पर जरूरत से ज्यादा खर्चा करने के कारण घर की जिम्मेदारियों से हाथ खींचने लगा है.

अगले दिन वह आफिस नहीं गई थी. घर छोड़ कर मायके जाने की सूचना उस ने राकेश को उस के आफिस जाने से पहले दे दी थी.

‘तुम जब चाहे लौट सकती हो. मैं तुम्हें कभी लेने नहीं आऊंगा, यह ध्यान रखना,’ उसे समझानेमनाने के बजाय उस ने उलटे धमकी दे डाली थी.

‘मैं इस घर में कभी नहीं लौटूंगी,’ सीमा ने अपना निर्णय उसे बताया तो राकेश मखौल उड़ाने वाले अंदाज में हंस कर घर से बाहर चला गया था.

राकेश चाहेगा तो वह उसे तलाक दे देगी, पर उस के पास अब कभी नहीं लौटेगी, सीमा की इस विद्रोही जिद को उस के मातापिता लाख कोशिश कर के  भी तोड़ नहीं पाए थे.

लेकिन एक मां अपने बच्चों के मन की सुखशांति व खुशियों की खातिर अपने बेवफा पति के घर लौटने को तैयार हो गई थी.

सीमा को अगले दिन उस के मातापिता राकेश के पास ले गए. उस ने वहां पहुंचते ही पहले घर की साफसफाई की और फिर रसोई संभाल ली. अपने बेटाबेटी के लिए वह उन की मनपसंद चीजें बडे़ जोश के साथ बनाने के काम में जल्दी ही व्यस्त हो गई थी.

राकेश और उस के बीच नाममात्र की बातें हुईं. दोनों बच्चों को स्टेशन से ले कर राकेश जब 11 बजे के करीब घर लौटा, तब घर भर में एकदम से रौनक आ गई. मयंक और शिखा के साथ खेलते, हंसतेबोलते और घूमतेफिरते सीमा के लिए समय पंख लगा कर उड़ चला. दोनों बच्चे अपने स्कूल व दोस्तों की बातें करते न थकते. उन के हंसतेमुसकराते चेहरों को देख कर सीमा फूली न समाती.

जब कभी सीमा अकेली होती तो उदास मन से यह जरूर सोचती कि अपने कलेजे के टुकड़ों को कैसे बताऊंगी कि मैं ने उन के पापा को छोड़ कर अलग रहने का फैसला कर लिया है. उन हालात को यह मासूम कैसे समझेंगे जिन के कारण मुझे इतना कठोर फैसला करना पड़ा है.

वह रात को बच्चों के साथ उन के कमरे में सोती. दिन भर की थकान इतनी होती कि लेटते ही गहरी नींद आ जाती और मन को परेशान या दुखी करने वाली बातें सोचने का समय ही नहीं मिलता.

राकेश इन तीनों की उपस्थिति में अधिकतर चुप रह कर इन की बातें सुनता. उस में आए बदलाव को सब से पहले मयंक ने पकड़ा.

‘‘मम्मी, पापा बहुत बदलेबदले लग रहे हैं इस बार,’’ मयंक ने घर आने के तीसरे दिन दोपहर में सीमा के सामने अपनी बात कही.

‘‘वह कैसे?’’ सीमा की आंखों में उत्सुकता के भाव जागे.

‘‘वह पहले की तरह हमें हर बात पर डांटतेधमकाते नहीं हैं.’’

‘‘और मम्मी आप से भी लड़ना बंद कर दिया है पापा ने,’’ शिखा ने भी अपनी राय बताई.

‘‘मुझे तो इस बार पापा बहुत अच्छे लग रहे हैं.’’

‘‘मुझे भी बहुत प्यारे लग रहे हैं,’’ शिखा ने भी भाई के सुर में सुर मिलाया.

अपने बच्चों की बातें सुन कर सीमा मुसकराई भी और उस की आंखों में आंसू भी छलक आए. राकेश की बेवफाई को याद कर उस के दिल में एक बार नाराजगी, दुख व अफसोस से मिश्रित पीड़ा की तेज लहर उठी. जल्दी ही मन को संयत कर वह बच्चों के साथ विषय बदल कर इधरउधर की बातें करने लगी.

उस दिन शाम को राकेश बैडमिंटन खेलने के 4 रैकिट और शटलकौक खरीद लाया. दोनों बच्चे खुशी से उछल पड़े. उन की जिद के आगे झुकते हुए सीमा को भी उन तीनों के साथ बैडमिंटन खेलना पड़ा. यह शायद पहला अवसर था जब राकेश के साथ उस ने किसी गतिविधि में सहज व सामान्य हो कर हिस्सा लिया था.

उस रात सीमा बच्चों के कमरे में सोने के लिए जाने लगी तो राकेश ने उसे रोकने के लिए उस का हाथ पकड़ लिया था.

‘‘नो,’’ गुस्से और नफरत से भरा सिर्फ यह एक शब्द सीमा ने मुंह से निकाला तो राकेश की इस मामले में कुछ और कहने या करने की हिम्मत ही नहीं हुई.

बच्चों का मन रखने के लिए सीमा राकेश के साथ उस के दोस्तों के घर चायनाश्ते व खाने पर गई.

राकेश के सभी दोस्तों व उन की पत्नियों ने सीमा के सामने उस के पति के अंदर आए बदलाव पर कोई न कोई अनुकूल टिप्पणी जरूर की थी. उन के हिसाब से राकेश अब ज्यादा शांत, हंसमुख व सज्जन इनसान हो गया है.

सीमा ने भी उस में ये सब परिवर्तन महसूस किए थे, पर उस से अलग रहने के निर्णय पर वह पूर्ववत कायम रही.

राकेश ने दोनों बच्चों को कपड़ों व अन्य जरूरी सामान की ढेर सारी खरीदारी खुशीखुशी करा कर उन का मन और ज्यादा जीत लिया.

बच्चों को उन के वापस होस्टल लौटने में जब 4 दिन रह गए तब सीमा ने राकेश से कहा, ‘‘मेरी सप्ताह भर की छुट्टियां अब खत्म हो जाएंगी. बाकी 4 दिन बच्चे नानानानी के पास रहें, तो बेहतर होगा.’’

‘‘बच्चे वहां जाएंगे, तो मैं उन से कम मिल पाऊंगा,’’ राकेश का स्वर एकाएक उदास हो गया.

‘‘बच्चों को कभी मुझ से और कभी तुम से दूर रहने की आदत पड़ ही जानी चाहिए,’’ सीमा ने भावहीन लहजे में जवाब दिया.

राकेश कुछ प्रतिक्रिया जाहिर करना चाहता था, पर अंतत: धीमी आवाज में उस ने इतना भर कहा, ‘‘तुम अपने घर बच्चों के साथ चली जाओ. उन का सामान भी ले जाना. वे वहीं से वापस चले जाएंगे.’’

नानानानी के घर मयंक और शिखा की खूब खातिर हुई. वे दोनों वहां बहुत खुश थे, पर अपने पापा को वे काफी याद करते रहे. राकेश उन के बहुत जोर देने पर भी रात को साथ में नहीं रुके, यह बात दोनों को अच्छी नहीं लगी थी.

अपने मातापिता के पूछने पर सीमा ने एक बार फिर राकेश से हमेशा के लिए अलग रहने का अपना फैसला दोहरा दिया.

‘‘राकेश ने अगर अपने बारे में तुम्हें सब बताने की मूर्खता नहीं की होती, तब भी तो तुम उस के साथ रह रही होंती. तुम्हें संबंध तोड़ने के बजाय उसे उस औरत से दूर करने का प्रयास करना चाहिए,’’ सीमा की मां ने उसे समझाना चाहा.

‘‘मां, मैं ने राकेश की कई गलतियों, कमियों व दुर्व्यवहार से हमेशा समझौता किया, पर वह सब मैं पत्नी के कर्तव्यों के अंतर्गत करती थी. उन की जिंदगी में दूसरी औरत आ जाने के बाद मुझ पर अच्छी बीवी के कर्तव्यों को निभाते रहने के लिए दबाव न डालें. मुझे राकेश के साथ नहीं रहना है,’’ सीमा ने कठोर लहजे में अपना फैसला सुना दिया था.

अगले दिन बच्चे अपने पापा का इंतजार करते रहे पर वह उन से मिलने नहीं आए. इस कारण वे दोनों बहुत परेशान और उदास से सोए थे. सीमा को राकेश की ऐसी बेरुखी व लापरवाही पर बहुत गुस्सा आया था.

उस ने अगले दिन आफिस से राकेश को फोन किया और क्रोधित स्वर में शिकायत की, ‘‘बच्चों को यों परेशान करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है. कल उन से मिलने क्यों नहीं आए?’’

‘‘एक जरूरी काम में व्यस्त था,’’ राकेश का गंभीर स्वर सीमा के कानों में पहुंचा.

‘‘मैं सब समझती हूं तुम्हारे जरूरी काम को. अपनी रखैलों से मिलने की खातिर अपने बच्चों का दिल दुखाना ठीक नहीं है. आज तो आओगे न?’’

‘‘अपनी रखैल से मिलने सचमुच आज मुझे नहीं जाना है, इसलिए बंदा तुम सब से मिलने जरूर हाजिर होगा,’’ राकेश की हंसी सीमा को बहुत बुरी लगी, तो उस ने जलभुन कर फोन काट दिया.

राकेश शाम को सब से मशहूर दुकान की रसमलाई ले कर आया. यह सीमा की सब से ज्यादा पसंदीदा मिठाई थी. वह नाराजगी की परवा न कर उस के साथ हंसीमजाक व छेड़छाड़ करने लगा. बच्चों की उपस्थिति के कारण वह उसे डांटडपट नहीं सकी.

राकेश दोनों बच्चों को बाजार घुमा कर लाया. फिर सब ने एकसाथ खाना खाया. सीमा को छोड़ कर सभी का मूड बहुत अच्छा बना रहा.

बच्चों को सोने के लिए भेजने के बाद वह राकेश से उलझने को तैयार थी पर उस ने पहले से हाथ जोड़ कर उस से मुसकराते हुए कहा, ‘‘अपने अंदर के ज्वालामुखी को कुछ देर और शांत रख कर जरा मेरी बात सुन लो, डियर.’’

‘‘डोंट काल मी डियर,’’ सीमा चिढ़ उठी.

‘‘यहां बैठो, प्लीज,’’ राकेश ने बडे़ अधिकार से सीमा को अपनी बगल में बिठा लिया तो वह ऐसी हैरान हुई कि गुस्सा करना ही भूल गई.

‘‘मैं ने कल पुरानी नौकरी छोड़ कर आज से नई नौकरी शुरू कर दी है. कल शाम मैं ने अपनी ‘रखैल’ से पूरी तरह से संबंध तोड़ लिया है और अपने अतीत के गलत व्यवहार के लिए मैं तुम से माफी मांगता हूं,’’ राकेश का स्वर भावुक था, उस ने एक बार फिर सीमा के सामने हाथ जोड़ दिए.

‘‘मुझे तुम्हारे ऊपर अब कभी विश्वास नहीं होगा. इसलिए इस विषय पर बातें कर के न खुद परेशान हो न मुझे तंग करो,’’ न चाहते हुए भी सीमा का गला भर आया.

‘‘अपने दिल की बात मुझे कह लेने दो, सीमा, सब तुम्हारी प्रशंसा करते हैं, पर मैं ने सदा तुम में कमियां ढूंढ़ कर तुम्हें गिराने व नीचा दिखाने की कोशिश की, क्योंकि शुरू से ही मैं हीनभावना का शिकार बन गया था. तुम हर काम में कुशल थीं और मुझ से ज्यादा कमाती भी थीं.

‘‘मैं सचमुच एक घमंडी, बददिमाग और स्वार्थी इनसान था जो तुम्हें डरा कर अपने को बेहतर दिखाने की कोशिश करता रहा.

‘‘फिर तुम ने मेरी चरित्रहीनता के कारण मुझ से दूर होने का फैसला किया. पहले मैं ने तुम्हारी धमकी को गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि तुम कभी मेरे खिलाफ विद्रोह करोगी, ऐसा मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.

‘‘पिछले दिनों मैं ने तुम्हारी आंखों में अपने लिए जो नाराजगी व नफरत देखी, उस ने मुझे जबरदस्त सदमा पहुंचाया. सीमा, मेरी घरगृहस्थी उजड़ने की कगार पर पहुंच चुकी है, इस सचाई को सामने देख कर मेरे पांव तले की जमीन खिसक गई.

‘‘मुझे तब एहसास हुआ कि मैं न अच्छा पति रहा हूं, न पिता. पर अब मैं बदल गया हूं. गलत राह पर मैं अब कभी नहीं चलूंगा, यह वादा दिल से कर रहा हूं. मुझे अकेला मत छोड़ो. एक अच्छा पति, पिता व इनसान बनने में मेरी मदद करो.

‘‘तुम मां होने के साथसाथ मुझ से कहीं ज्यादा समझदार व सुघड़ स्त्री हो. औरतें घर की रीढ़ होती हैं. मेरे पास लौट कर हमारी घरगृहस्थी को उजड़ने से बचा लो, प्लीज,’’ यों प्रार्थना करते हुए राकेश का गला भर आया.

‘‘मैं सोच कर जवाब दूंगी,’’ राकेश के आंसू न देखने व अपने आंसू उस की नजरों से छिपाने की खातिर सीमा ड्राइंगरूम से उठ कर बच्चों के पास चली गई.

अपने बच्चों के मायूस, सोते चेहरों को देख कर वह रो पड़ी. उस के आंसू खूब बहे और इन आंसुओं के साथ ही उस के दिल में राकेश के प्रति नाराजगी, शिकायत व गुस्से के सारे भाव बह गए.

कुछ देर बाद राकेश उस से कमरे में विदा लेने आया.

‘‘आप रात को यहीं रुक जाओ कल बच्चों को जाना है,’’ सीमा ने धीमे, कोमल स्वर में उसे निमंत्रण दिया.

राकेश ने सीमा की आंखों में झांका, उन में अपने लिए प्रेम के भाव पढ़ कर उस का चेहरा खिल उठा. उस ने बांहें फैलाईं तो लजाती सीमा उस की छाती से लग गई.

Makeup Tips : पसीने के साथ बह न जाए मेकअप, जानें लौन्ग-लास्टिंग फ्रेश लुक के बेस्ट टिप्स

Makeup Tips : गरमियों का मौसम आते ही जहां एक तरफ लाइट, फ्रैश और ब्राइट लुक की चाहत होती है, वहीं पसीना, गरम हवाएं और चिपचिपापन मेकअप के सब से बड़े दुश्मन बन जाते हैं. सुबहसुबह किया गया परफैक्ट मेकअप चंद घंटे में बह कर चेहरे पर धब्बे या पैच छोड़ देता है.

लेकिन कुछ स्मार्ट ट्रिक्स और सही प्रोडक्ट्स की मदद से आप अपने मेकअप को पूरा दिन टिकाऊ और स्मजफ्री बना सकती हैं :

क्लीन स्किन से करें शुरुआत

फेसवाश : चेहरे को किसी माइल्ड फेसवाश से धोएं ताकि ऐक्स्ट्रा औयल और पसीना साफ हो जाए.

आइस क्यूब या टोनर : चेहरे को ठंडा करने के लिए आइस क्यूब को कपड़े में लपेट कर हलके हाथों से चेहरे पर रब करें. इस से पोर्स टाइट हो जाएंगे और पसीना कम आएगा.

टोनर : औयली स्किन के लिए अल्कोहल फ्री टोनर इस्तेमाल करें, इस से स्किन फ्रैश रहती है.

औयल फ्री मोइस्चराइजर और सनस्क्रीन लगाएं

गरमियों में स्कीन वैसे ही इतना औयल रिलिज करती है, ऐसे में और तेल अपने चेहरे पर न मलें. मोइस्चराइजर जरूरी है, बस हलका और औयल फ्री होना चाहिए. इस के बाद मैट फिनिश सनस्क्रीन लगाएं ताकि स्किन सुरक्षित भी रहे और चिपचिपी न लगे. एसपीएफ (SPF) वाला प्राइमर भी एक बेहतरीन औप्शन है, जो 2 काम एकसाथ कर देगा. कम से कम एसपीएफ 50 प्लस के प्रोडक्ट ही चुनें.

प्राइमर : मेकअप को लौक करने का सीक्रेट

अगर आप चाहती हैं कि आप का मेकअप पसीने में भी न बहे, तो प्राइमर को स्किप न करें. यह मेकअप को स्किन पर अच्छे से सैट करता है और पसीने से प्रोटेक्ट करता है. वाटर बेस्ड प्राइमर चुनें. खासकर माथा, नाक और ठुड्डी पर जरूर लगाएं क्योंकि सब से ज्यादा पसीना यहीं आता है.

लिक्विड और क्रीम प्रोडक्ट्स से बचें

गरमियों में पाउडर बेस्ड प्रोडक्ट्स बेहतर होते हैं क्योंकि ये जल्दी ड्राई होते हैं और स्किन पर लंबे समय तक टिकते हैं. मैट फिनिश और औयल फ्री फाउंडेशन चुनें, बीबीसीसी (BB/CC) क्रीम या मूज भी हलके विकल्प होते हैं. ब्लश और हाइलाइटर में भी पाउडर फौर्म लें.

फाउंडेशन को सैट करें लूज पाउडर से

फाउंडेशन लगाने के बाद एक पतली लेयर ट्रांस्लूसेंट पाउडर या कंपैक्ट पाउडर लगाएं. इस से फाउंडेशन लौक हो जाता है और स्किन मैट बनी रहती है. आप चाहें तो ब्लौटिंग पेपर का इस्तेमाल भी कर सकती हैं ताकि ऐक्स्ट्रा औयल सोख लिया जाए.

आई मेकअप को बनाएं स्मज प्रूफ

आप अगर आईलाइनर और काजल पसंद करती हैं तो हमेशा वाटरप्रूफ और जैल बेस्ड फौर्मूला चुनें. डे टाइम में आइशैडो को स्किप किया जा सकता है लेकिन अगर इस्तेमाल करना है तो क्रीम या मेटालिक की जगह पाउडर बेस आईशैडो को ही चुनें. वाटरप्रूफ मसकारा लगाएं ताकि पसीने में बह न जाए. वैसे गरमी में आप आई मेकअप पर ज्यादा फोकस न करें. सिर्फ मसकारा से ही आप को लाइट और अच्छी लुक मिल जाएगी.

लिपस्टिक हो लौंग लास्टिंग

लिप्स पर पहले हलका लिप बाम लगाएं ताकि ड्राई न हों, उस के बाद लिप लाइनर से आउटलाइन कर के लिक्विड मैट लिपस्टिक लगाएं. चाहें तो टिशू पेपर से हलका दबा कर 2 कोट लगाएं। इस से लिपस्टिक ज्यादा देर टिकेगी.

आप अगर हैवी लिपस्टिक न लगाना चाहें तो मार्केट में उपलब्ध लिप टिंट लगा सकती हैं. इस से आप को लिप्स पर हैवीनेस भी नहीं लगेगी और होंठों पर हलका रंग भी आ जाएगा.

सैटिंग स्प्रे : फिनिशिंग टच जो मेकअप को सील करता है

सैटिंग स्प्रे गरमी के लिए एक वरदान है. मेकअप के बाद हलके हाथ से पूरे चेहरे पर स्प्रे करें. इस से मेकअप पूरे दिन फ्रैश दिखेगा और स्मज नहीं होगा.

इन बातों का रखें खास ध्यान :

बारबार चेहरे को रगड़ें नहीं, इस से चेहरे पर पैच पड़ सकते हैं. फेस पर टिशू या ब्लौटिंग पेपर से हलके हाथ से पसीना साफ करें. हैवी लेयरिंग से बचें, जितना मिनिमल मेकअप उतना अच्छा. टचअप किट भी अपने साथ रखना न भूलें, जिस में आप सैटिंग पाउडर जरूर रखें. साथ ही जो शैड आप ने लिप्स पर कैरी किया है उस को जरूर रखें. आप सीधे धूप में जाने के टाइम पर छतरी या दुपट्टे से अपना फेस जरूर कवर कर लें.

एक छोटा मिरर भी अपने पास रखें। बहरहाल, आप का मोबाइल भी शीशे की तरह यूज हो सकता है लेकिन कई बार मोबाइल कैमरे के फिल्टर आप को असल स्थिति बयां नहीं करते, इसलिए मिनी मिरर जरूर कैरी करें.

गरमी में पसीना आना स्वाभाविक है, लेकिन सही स्किन प्रेप, सही प्रोडक्ट और कुछ आसान ट्रिक्स की मदद से आप अपने मेकअप को पूरे दिन टिकाऊ बना सकती हैं.

तो अगली बार जब बाहर जाने की प्लानिंग हो, तो इन टिप्स को जरूर आजमाएं.

Bhabhiji Ghar Par Hain की अंगूरी भाभी के पति की डेथ, 2 महीने पहले ही शुभांगी अत्रे का हुआ था तलाक

Bhabhiji Ghar Par Hain : ‘भाभीजी घर पर हैं’ फेम शुभांगी अत्रे (Shubhangi Atre) फैंस के बीच काफी पौपुलर हैं. टीवी एक्ट्रेस से जुड़ी एक बुरी खबर सामने आई है. रिपोर्ट के अनुसार, शुभांगी अत्रे के ऐक्स हसबैंड पीयूष पूरे का निधन हो गया है. खबरों के अनुसार, वह कुछ समय से बीमार थे. हालांकि मीडिया ने एक्ट्रेस से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

2003 में हुई थी शादी

आपको बता दें कि पीयूष पूरे पेशे से डिजिटल मार्केटिंग एक्सपर्ट थे. शुभांगी और पीयूष की शादी साल 2003 में इंदौर में हुई थी. शादी के दो साल बाद एक बेटी हुई. लेकिन समय के साथ उनके रिश्ते में दूरियां आने लगी और इसी साल फरवरी में कपल का तलाक हो गया. खबरों के अनुसार, तलाक के बाद दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं थी. लेकिन शुभांगी ऐक्स हसबैंड की मौत की खबर से बुरी तरह आहत हुई हैं.

फरवरी 2025 में हुआ तलाक

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक काफी समय पहले कपल के बीच मनमुटाव चल रहा था लेकिन एक्ट्रेस ने बेटी की खातिर तलाक नहीं लेना चाहती थी. हालांकि फरवरी 2025 में दोनों औफिसियल अलग हो गए.’ईटाइम्स’ एक रिपोर्ट के मुताबिक शुभांगी ने तलाक के बारे में कहा था, ‘ये बहुत दर्दनाक था. मैं पूरी तरह से रिश्ते में डूबी हुई थी. मैं हमेशा से ऐसी ही इंसान रही हूं. समय के साथ, पीयूष और मेरे बीच बहुत मतभेद हो गए. हालांकि, अब मैं उस शादी से बाहर आ गई हूं और मुझे शांति का एहसास हो रहा है, जैसे कोई भारी बोझ उतर गया हो.

तलाक के बाद आजादी का एहसास हुआ

शुभांगी ने आगे कहा कि उन्हें आजादी का एक नया एहसास हुआ है और इन भावनाओं को शब्दों में बयां करना मुश्किल है. अब, मैं अपनी बेटी आशी को एक खुशहाल और सुरक्षित माहौल देना चाहती हूं.’ खबरों के मुताबिक शुभांगी अन्ने से दोबारा शादी पर सवाल किया गया तो एक्ट्रेस ने कहा, ‘मैं दोबारा शादी नहीं करना चाहती. अब मेरी प्राथमिकता मेरी बेटी है.

22 की उम्र में शुभांगी अत्रे बनी थीं मां

शुभांगी अत्रे की बेटी आशी 18 साल की है. वह अमेरिका में पढ़ाई कर रही है. शुभांगी अत्रे की अपनी बेटी के साथ दोस्ती का रिश्ता है. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि वह चाहती हैं कि बेटी अपनी शर्तों पर जीवन जीए. वह अपने फैसले खुद से ले.

Summer Tips : पसीने की बदबू से हैं परेशान, तो इस तरह पाएं छुटकारा

Summer Tips : गरमियां आते ही पसीना आना आम बात है. लेकिन जब यही पसीना तेज बदबू में बदल जाता है, तो यह आप के औफिस के माहौल को भी प्रभावित कर सकता है. हो सकता है कि आप को पता भी न चले और आप के सहकर्मी धीरेधीरे आप से दूरी बनाने लगें.

कैसे पहचानें कि लोग आप से बच रहे हैं…

● बात करते समय लोग दूरी बना कर खड़े होते हैं

● आप की सीट के पास आने से लोग कतराते हैं.

● मीटिंग या ग्रुप वर्क में आप से कम बातचीत करते हैं.

● बारबार अपनी नाक छूना, चेहरे पर असहजता का भाव होना.

अगर इन में से कुछ संकेत दिखें, तो समय है थोड़ा सोचने का.

पसीने की बदबू : एक सामान्यतौर पर संवेदनशील समस्या यह कोई शर्म की बात नहीं है. पसीने की बदबू एक आम समस्या है, लेकिन इसे नजरअंदाज करना आप की प्रोफैशनल छवि को नुकसान पहुंचा सकता है.
औफिस एक ऐसा स्थान है जहां आप का आत्मविश्वास, व्यवहार और साफसफाई काफी मायने रखते हैं. अच्छी प्रस्तुति (presentation) सिर्फ कपड़ों से नहीं, बल्कि आप के शरीर की ताजगी से भी जुड़ी होती है.

बदबू से बचने के आसान उपाय

● डबल शावर रूल : गरमियों में दिन में 2 बार नहाएं, खासकर औफिस जाने से पहले.

● डिओडरेंट / रोलौन का इस्तेमाल करें और कोशिश करें कि वह ऐंटी बैक्टीरियल हो.

● साफ कपड़े पहनें, खासकर शर्ट्स और अंडरगारमेंट्स रोजाना बदलें.

● बगल की सफाई रखें, वहां बैक्टीरिया पनपने की अधिक संभावना होती है.

● कार्यालय में छोटा परफ्यूम या बौडी मिस्ट रखें, ताकि जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल कर सकें.

अपने आसपास वालों का ध्यान रखें. शारीरिक स्वच्छता सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि अपने साथ काम करने वालों के लिए भी एक जिम्मेदारी है. आप के पास चाहे जितनी स्किल्स हों, अगर लोग आप के पास बैठने से कतराते हैं तो वे असर आप की परफौर्मेंस पर भी पड़ सकता है.

अगर आप चाहें कि लोग आप की उपस्थिति में सहज महसूस करें, तो थोड़ी सी अतिरिक्त स्वच्छता और जागरूकता आप के रिश्तों को और मजबूत बना सकती है. पसीना आना नैचुरल है, लेकिन बदबू को नजरअंदाज करना प्रोफैशनल नहीं. तो अगली बार औफिस जाएं, तो खुद से पूछें कि मैं सिर्फ स्मार्ट दिख रहा हूं/रही हूं या महक भी रहा हूं/रही हूं?

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें