Writer- Savi Sharma
‘‘मृगया कहां हो? कुछ चैक साइन करने हैं,’’ राज ने फोन कर मृगया से कहा. वह आज औफिस नहीं आई थी कुछ काम था.
‘‘थोड़ी देर में आ जाऊंगी,’’ मृगया बोली.
अब अकसर राज मृगया से चैक साइन करवाने में ?ां?ालाने लगा. उस ने मृगया से कहा कि चैक साइन करने की पावर मु?ो भी दो. मगर वह इस विषय पर खामोश हो जाती. उस के लिए यह निर्णय आसान नहीं था वह अभी भी राज पर इतना यकीन नहीं कर पाई थी कि उसे पावर दे या बिजनैस में हिस्सेदार बनाए.
अब राज मृगया से छोटीछोटी बातों पर ?ागड़ा करता. राज के स्वभाव में चिड़चिड़ापन आने लगा.
‘‘मृगया कहां हो?’’ राज बाहर से आ कर रात 10 बजे घर में घुसते हुए चिल्लाया.
मृगया जो कृश को सुलाने की कोशिश कर रही थी कमरे से निकल बाहर आई, ‘‘क्यों चिल्ला रहे हो?’’
‘‘राज, मैं ने तुम्हें कितनी बार फोन मिलाया तुम ने नहीं उठाया. आज दोस्त भी हंस रहे थे कि मेरी औकात कुछ नहीं है. बिल ज्यादा हो गया तो मैनेजर ने भी बिन तुम से बात किए पैसे देने से मना कर दिया,’’ अपमान और ग्लानि से राज का चेहरा तमतमा रहा था, ‘‘मेरी हैसियत ही क्या है. तुम मालकिन और मैं क्या?’’
मृगया पलभर को सकते में आ गई कि कहीं उसे राज को सम?ाने में कोई गलती तो नहीं हुई. उसे याद आने लगा राज का भोला चेहरा, भोली सी बच्चे जैसी मुस्कान और उस का मृगया के लिए सोचना. वह अतीत के बादलों पर पिघलने लगी…
राज ने देखा आज मृगया औफिस पहले आ गई. पूछा, ‘‘अरे आज आप इतनी जल्दी? पहले रोज देर हो जाती थी?’’ राज ने मुसकरा कर कहा.
‘‘मृगया ने एक नजर राज को देखा और फिर अपने कैबिन की ओर बढ़ गई. उस के पास समय ही नहीं होता है कि फालतू किसी की बात पर ध्यान दे.
पहले घर देखो भले ही कितने काम वाले हों फिर भी देखना तो पड़ता ही है. एक छोटा बेटा, बिस्तर पर पड़ी सास और इतना बड़ा घर. गार्डन भी खूब बड़ा और खूबसूरत, पति मृदुल को कितना शौक था फूलों का. दिन चांदी के रातें सोने की थीं.
रात के 11 बजे अचानक फोन आया. अभी 2 घंटे पहले मृदुल बिजनैस के सिलसिले में अमेरिका की फ्लाइट में बैठे थे टेक औफ के पहले बात हुई थी निश्चिंत हो वह सो गई थी. एक साल का कृश उस के पास सो रहा था.
‘‘हैलो आप को खेद के साथ सूचित कर रहे हैं जो फ्लाइट अमेरिका के लिए उड़ी थी. वह तकनीकी खराबी के कारण इमरजैंसी लैंडिंग में क्षतिग्रस्त हो गई है यात्रियों को काफी चोटें आई हैं, पूरी डीटेल बाद में दी जाएगी.’’
सपनों को वक्त का बाज इस तरह भी नोचता है यह कल्पना मृगया की सोच से परे थी.
जिंदगी ने आसमान से अचानक जमीन पर ला पटका. मृदुल उस के जीवन में सुख के हस्ताक्षर कर वाष्प बन न जाने कहां अंतरिक्ष में छिप गया. मृदुल तो चले गए रह गया बड़ा बिजनैस, मां और छोटा बेटा. मृगया की सोचने की शक्ति ही खत्म हो गई.
मां ने तो बेटे के गम में बिस्तर ही पकड़ किया. मृगया जो खिलाती चुपचाप खातीं. चुपचाप शून्य में निहारती रहतीं. वक्त ने दूसरी बार यह घाव दिया था. मृदुल के पिता भी जब मृदुल 8वीं में था तभी छोड़ गए थे. अब दोबारा यह घाव उन्हें पत्थर बना गया.
मृगया ने वक्त के साथ संभलना शुरू किया. शायद जिंदगी के साथ चलतीफिरती मशीन बन गई थी.
राज को मृगया की पूरी स्थिति पता थी. यह भी जानता था कि इस के पति का बहुत बड़ा बिजनैस था.
अभी कुछ दिनों पहले ही मृगया ने औफिस शुरू किया था पर अब वह नौकरी छोड़ने का निर्णय कर रही थी.
राज ने नौक कर पूछा, ‘‘क्या मैं आ सकता हूं?’’
मृगया ने सपाट स्वर में जवाब दिया, ‘‘आइए,’’ फिर सीट की तरफ इशारा किया, बैठिए.’’
‘‘राज,’’ अगर आप नाराज न हों तो आप से एक सवाल पूछना चाहता हूं?’’
‘‘पूछिए.’’
‘‘आप नौकरी छोड़ रही हैं?’’
‘‘हां, अब पति का काम संभालना है, पहले यह नौकरी अपने शौक के लिए करती थी, अब समय नहीं है.’’
औपचारिक बातें कर राज मृगया के सामने प्रस्ताव रख गया कि यदि उसे बिजनैस में किसी सहायता की आवश्यकता हो तो वह ख़ुशी से करेगा.
आज 8 महीने हो गए. मृगया पति के बिजनैस को संभाल रही है. पति के रहते कभी उसने बिजनैस स्किल सम?ाने की कोशिश ही नहीं की या उसे यह एक आफत ही लगता था. हां कंपनी में जौब करना अलग बात है पर पूरा बिजनैस संभालना अलग बात है. दिनोंदिन उस की उल?ान बढ़ती जा रही थी.
‘‘हैलो राज क्या तुम मेरे औफिस आ
सकते हो?’’
‘‘हां, बताइए कब आना है?’’
‘‘कल 1 बजे मेरे औफिस आ कर मिलो.’’
‘‘ओके.’’
अगले दिन राज मृगया के औफिस आया. औपचारिक बातों के बाद मृगया ने उसे अपना औफिस जौइन करने के लिए कहा.
राज ने हामी भर दी. उस की भोली सूरत पर छाई चिंता की लकीरें उसे अपनी ओर खींचती थीं. फिर मृगया का औफर भी अच्छा था.
अब कभीकभी मृगया के घर भी राज को जाना पड़ता. कुछ काम के बारे में जल्दी निर्णय लेना होता तो घर चला जाता.
घर जा कर कभी मां का हाल लेता कभी आया के साथ खेल रहे बच्चे से बात करता.
अब बिना फोन किए भी राज मृगया के घर चला जाता. अभी तक उस की शादी भी नहीं हुई थी. मातापिता गांव में रहते थे.
एक रोज काम के बारे में बात करते रात के 10 बज गए.
‘‘अरे, आज तो बहुत देर हो गई है. अब खाना खा कर जाना,’’ मृगया बोली.
राज भी मान गया.
औपचारिक से कब अनौपचारिक हो गए राज और मृगया पता ही नहीं चला.
एक रात सोते में राज ने सपना देखा कि उस की और मृगया की शादी हो रही है. अचानक हड़बड़ाहट में उठ बैठा. पूरा पसीने में भीग था. न जाने कितने सवालों ने आ घेरा. खुद भी तो यही चाह रहा था फिर यह बेचैनी क्यों? पूरी रात आंखों में निकल गई. एक पल न सो सका.
एक दिन इतवार को राज ने मृगया को फोन किया, ‘‘मृगया, मैं बहुत दिनों से तुम से कुछ कहना चाह रहा हूं.’’
‘‘कहो.’’
‘‘अगर हम बंधन में बंध जाएं तो? देखो कृश भी मु?ा से घुलमिल गया है और मैं भी तुम को…’’
‘‘मैं भी क्या?’’ मृगया ने ठंडे स्वर में पूछा.
‘‘मैं भी तुम से प्यार करता हूं,’’ राज हकलाते हए कह गया.
‘‘तुम जानते हो मैं विधवा हूं और एक बच्चा है. अभी तुम भावावेश में कह रहे हो… फिलहाल अभी मैं ने कुछ सोचा नहीं है.’’
‘‘मृगया कहां हो? सब काम निबट गया हो तो जरा आना,’’ मां ने मृगया को आवाज लगाई.
मृगया आई तो मां ने स्नेह से पास बैठाया और सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘मृगया… बेटा राज अच्छा इंसान है. देख ले, सोच ले जल्दी नहीं है. मैं जानती हूं तू मृदुल को बहुत प्यार करती है. पर मैं कब तक जिंदा रहूंगी. कृश और तुम्हारा पूरा जीवन पड़ा है. तेरा सारा बिजनैस संभालने में भी मदद कर रहा है. भला इंसान है.’’
‘‘ठीक है मां सोचती हूं पर कहीं धोखा दिया तो? अगर मन में पैसों का लालच हुआ तो? अभी कुंआरा है फिर एक विधवा से शादी?’’
‘‘बेटा, तुम शुरू में बिजनैस में सां?ा मत करना. कुछ समय देखना फिर जो ठीक लगे करना.’’
आखिर कुछ दिन बाद मृगया ने राज से शादी के लिए हां कह दी. राज और मृगया विवाह बंधन में बंध गए. मृगया ने तमाम उल?ानें मन में समेटे राज के साथ नए वैवाहिक जीवन में कदम रखा.
दोनों साथ मिल कर औफिस जाते. काम को और बेहतर तरीके से करने लगे. अब मृगया राज पर कुछकुछ विश्वास करने लगी थी. शादी को साल होने को आया. अगले महीने ही तो ऐनिवर्सरी है.
मगर आज राज का यह रूप अचानक उस की सोच को विराम लगा. मृगया जैसे अतीत से वर्तमान में लौट आई. एक अनिश्चितता ने उसे परेशान कर दिया. वह सीधे अपनी सासूमां के पास जा कर गमसुम बैठ गई.
मां ने देखा कि मृगया परेशान है. बोलीं, ‘‘यहां आओ बेटा, कोई दुविधा है?’’ कहते हुए उन्होंने उसे पास बैठा लिया.
मृगया फूटफूट कर रो पड़ी ‘‘क्या हुआ, ऐसे क्यों रो रही हो बेटा?’’
‘‘मां जिस का डर था वही हुआ, राज कह रहे हैं उन्हें शादी कर के क्या मिला. आज चिल्ला रहे थे कि 1-1 पैसे के लिए हाथ फैलाना पड़ता है. मां मैं ने गलती की राज से शादी कर के.’’
‘‘नहीं मृगया ऐसी बात नहीं. सोच राज अच्छा नौजवान व पढ़ालिखा लड़का है. उसे लड़कियों की कमी नहीं थी. वह तेरे पास आया. तु?ो अपनाया. कृश को भी पिता का प्यार दिया, अपना नाम दिया. लेकिन सोच उस के पास सबकुछ दे कर अधिकार क्या है? वह ठीक कह रहा है अगर अब भी उसे हर बार पैसे के लिए मैनेजर को फोन करना पड़े तो उस का अपमान ही होगा और तेरा भी. मृगया उसे अब पूरी तरह अपना ले उसे उस के अधिकार दे कर.’’
मृगया सोचने लगी मां ठीक कह रही हैं मृदुल के बाद उस का जीवन कितना
नीरस हो गया था. जीवन मशीन की तरह चल रहा था. उस नीरस जीवन में राज ने ही रंग भरे हैं. कृश को भी पिता का प्यार मिला. राज ने उसे अपना जीवन दे दिया और वह खुद अब तक भ्रम में ही खड़ी है. कहीं ऐसा न हो वह प्यार की ?ांकार अब न सुन पाए तो पूरा जीवन बिन प्यार खाली ही गुजरेगा? मृदुल तो उस का अतीत था. उस का आज सिर्फ और सिर्फ राज है. अब पूरा हक दे कर उसे अपनाएगी. उस ने मुसकरा कर दूर से आते राज को देखा और समर्पण, प्यार और विश्वास से उस की आंखों में सतरंगी धनुष खिलने लगे.