बीवी कोई रसोइया नहीं

आज आधुनिक शिक्षा स्त्री एवं पुरुष को एकजैसी योग्यता और हुनर प्रदान करती है. दोनों घर से बाहर काम पर जाते हैं, एकसाथ मिल कर घर चलाते हैं पर जब बात खाना बनाने की होती है तो आमतौर पर किचन में घर की महिला ही खाना बनाती है जबकि खाना बनाना सिर्फ महिलाओं का ही एकाधिकार नहीं है बल्कि एक जरूरत है.

यह महिलाओं के अंदर ममता एवं सेवा की एक अभिव्यक्ति जरूर है और जिस का कोई अन्य विकल्प नहीं, पर यह विडंबना ही है कि आज भी हमारे समाज में एक औरत से ही यह उम्मीद की जाती है कि रसोई में वही खाना बना सकती है और यही उस का दायित्व है.

औरत का काम सिर्फ खाना बनाना नहीं

एक मशहूर कहावत है कि पैर की मोच और छोटी सोच आदमी को आगे नहीं बढ़ने देती. यह किसी पुरुष पर उंगली उठाने की बात नहीं है, बल्कि समाज की उस सोच की बात है जो यह मानती रही है कि आदमी का काम है पैसा कमाना और औरत तो घर का काम करने के लिए ही बनी है.

जमाना काफी बदल गया है पर आज भी इस सोच वाले बहुत हैं. वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो गर्व से कहते हैं कि वे घर के काम में अपनी मां या पत्नी की सहायता करते हैं, लेकिन इस सोच वाले पुरुषों की संख्या बेहद कम है.

‘केवल पत्नी ही किचन के लिए बनी है, पति नहीं’ ऐसी सोच रखने का कारण क्या है और यह भारतीय समाज की ही सोच क्यों बन कर रह गई?

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एक कारण तो यही है कि सदियों से महिलाओं को भारतीय समाज में चारदीवारी के अंदर रहना सिखाया गया है. ऐसा नहीं है कि इस मामले में बदलाव की हवा नहीं चली. कुछ ऐसी महिलाएं भी हैं जो इस गुलामी की मानसिकता से आजाद हो चुकी हैं पर उन की गिनती उंगलियों पर गिनने लायक है.

महिलाओं और किचन के बीच उन के काम, समाज में उन की स्थिति, उन के शौक, उन की रूचि, घर का वातावरण और रीतिरिवाजों से ले कर बाजार तक बहुत कुछ आ जाता है. इन सब के चक्कर में वे खुद को ही भूलने सी लगती हैं.

मशीनी जिंदगी और…

जैसे शुक्रवार शाम से ही अंजलि भी कुछ रिलैक्स करने के मूड में आ गई. बच्चे रिंकी व मोनू और उस के पति विकास आजकल घर से ही औनलाइन काम कर रहे थे. बच्चों की औनलाइन क्लासेज रहतीं पर उस के काम बहुत बढ़ गए थे.

लौकडाउन के चलते कामवाली भी नहीं आ रही थी. सब घर पर ही थे. मगर इधर फरमाइशें कभी खत्म ही न होती थीं.

उस का भी मन हो आया कि वैसे तो तीनों सुबह 8 बजे अपनेअपने काम पर बैठ जाते हैं और वह पूरे सप्ताह ही भागदौड़ में लगी रहती है मगर अब उस का मन भी हो गया कि स्कूल और औफिस की छुट्टी है तो वह भी कुछ आराम करेगी. उसे भी अपने रूटीन में कुछ बदलाव तो लगे. वही मशीनी जिंदगी… कुछ तो छुटकारा मिले.

इतने में विकास और बच्चे भी उस के पास आ कर बैठ गए. बच्चों ने कहा,”मम्मी, देखो अनु ने फोन से अपनी मम्मी की कुकिंग की पिक्स भेजी हैं. उस की मम्मी ने पिज्जा  और कटलैट्स बनाए हैं. आप भी कल जरूर बनाना.‘’

”मैं तो थोड़ा आराम करने की सोच रही हूं, कुकिंग तो चलती ही रहती है. थोड़ा स्किन केयर की सोच रही थी, ब्यूटी पार्लर्स बंद हैं. कल थोड़ी केयर अपनेआप ही करती हूं. मन हो रहा है कुछ खुद पर ध्यान देने का.”

विकास ने कहा ,”अरे छोड़ो, ठीक तो लग रही हो तुम. बस, वीकेंड पर बढ़ियाबढ़िया चीजें बनाओ.”

अंजलि का मन बुझ गया. घर के ढेरों कामों के साथ किसी की कोई सहायता नहीं. बस फरमाइशें. उसे बड़ी कोफ्त हुई. वह चुप रही तो विकास ने कहा,”अरे, इतना बङा मुंह बनाने की बात नहीं है. लो, मेरे फोन में देखो, अनिल की बीवी ने आज क्या बनाया है…”

बच्चे चौंक गए,”पापा, हमें भी दिखाओ…”

विकास ने अपने फोन में उन्हें रसमलाई की फोटो दिखाई तो बच्चों के साथ विकास भी शुरू हो गए,”अब तुम भी कल बना ही लो. बाजार से तो अभी कुछ आ नहीं सकता. अब क्या हम अच्छी चीजें औरों की तरह नहीं खा सकते?”

अंजलि ने कहा,” उस की पत्नी को शौक है कुकिंग का. मुझे तो ज्यादा कुछ बनाना आता भी नहीं.”

”तो क्या हुआ,अंजलि. गूगल है न… यू ट्यूब में देख कर कुछ भी बना सकती हो.”

फिर हमेशा की तरह वही हुआ जो इतने दिनों से होता आ रहा था. वह वीकेंड में भी किचन से निकल नहीं पाई. उस का कोई वीकेंड नहीं, कोई छुट्टी नहीं.

इच्छाओं का दमन न करें

पति और बच्चों के खाने के शौक से वह थक चुकी है. ज्यादा न कहते नहीं बनता. बस फिर अपनी इच्छाएं ही दबानी पड़ती हैं. सोचती ही रह जाती है कि कुछ समय अपने लिए चैन से मिल जाए तो कभी खुद के लिए भी कुछ कर ले. पर इस लौकडाउन में इन तीनों के शौकों ने उसे तोड़ कर रख दिया है.

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मंजू का तो जब से विवाह हुआ वह पति अजय और उस के दोस्तों को खाना खिलाने में ही जीवन के 20 साल खर्च चुकी है.

वह अपना अनुभव कुछ यों बताती है,”शुरूशुरू में मुझे भी अच्छा लगता था कि अजय को मेरा बनाया खाना पसंद है. मुझे भी यह अच्छा लगता कि उस के दोस्त मेरी कुकिंग की तारीफ करते हैं. बच्चे भी अपने दोस्तों को बुला कर खूब पार्टी करते.मैं जोश में सौस, अचार, पापड़ सब घर पर ही बनाती. इस से मेरी खूब तारीफ होती. धीरेधीरे मेरा मन ही कुकिंग से उचटने लगा. जहां मैं कुकिंग की इतनी शौकीन थी, वहीं अब एक समय ऐसा आया कि खाना बनाने का मन ही नहीं करता. सोचती कि क्या खाना ही बनाती रहूंगी जीवन भर?

“फरमाइशें तो रुकने वाली नहीं, क्या अपने किसी भी शौक को समय नहीं दे पाऊंगी? पैंटिंग, म्यूजिक, डांस, रीडिंग आदि सब भूल चुकी थी मैं. अब अजीब सा लगने लगता कि कर क्या रही हूं मैं? अगर कोई मुझ से मेरी उपलब्धि पूछे तो क्या है बताने को? यही कि बस खाना ही बनाया है जीवनभर… यह तो मेरी कम पढ़ीलिखी सासूमां और मां भी करती रही हैं.

“मुझे अचानक कुछ और करने का मन करता रहता. मैं थोड़ी उदास होने लगी.

एक दिन रविवार को बच्चों और पति ने लंबीचौड़ी फरमाइशों की लिस्ट पकड़ाई, तो मेरे मुंह से निकल ही गया कि मैं कोई रसोइया नहीं हूं. मुझे भी तुम लोगों की तरह रविवार को कभी आराम करने का मौका नहीं  मिल सकता?

“मेरी बात पर सब का ध्यान गया तो सब सोचने पर मजबूर हुए. मैं ने फिर कहा कि ऐसा भी कभी हो सकता है कि एक दिन मुझे छुट्टी दो और एकएक कर के खुद कुछ बनाओ. अब तो बच्चे भी बड़े हो गए हैं.‘’

“मैं बड़ी हैरान हुई जब मेरा यह प्रस्ताव मान लिया गया. उस दिन से सब कुछ न कुछ बनाने लगे. कभी मिल कर, कभी अकेले किचन में घुस जाते. फिर मुझे जब सब का सहयोग मिलने लगा तो मैं ने कुछ दिन अपने डांस की खुद प्रैक्टिस की, फिर घर में ही क्लासिकल डांस सिखाने लगी.

इस काम में मुझे बहुत संतोष मिलने लगा. बहुत खुशी होती है कि आखिरकार कुछ क्रिएटिव तो कर रही हूं. अब खाली समय में कुकिंग करना बुरा भी नहीं लग रहा है.”

न भूलें अपनी प्रतिभा

हम में से कई महिलाएं अकसर यह गलती कर देती हैं कि अपने शौक, अपनी रूचि, अपनी प्रतिभा को भूल कर बस परिवार को खुश करने के लिए अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा बिता देती हैं.

परिवार का ध्यान रखना, उन की पसंदनापसंद का ध्यान रखना कोई बुरी या छोटी बात नहीं है. एक स्त्री अपना अस्तित्व भुला कर यह सब करती है, पर आजकल यह भी देखा गया है कि जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो उन्हें यह कहने में जरा भी संकोच नहीं लगता कि मां,आप को क्या पता है, किचन के सिवा आप को कुछ भी तो नहीं आता.

यही हुआ नीरा के साथ, जब उस की बेटी एक दिन कालेज से आई, तो उस से पूछ लिया, “प्रोजैक्ट कैसा चल रहा है, कितना बाकी है?”

बेटी का जवाब था,”मां, आप प्रोजैक्ट रहने दो, खाना बनाओ.”

नीरा कहती हैं,”यह वही बच्चे हैं जिन के लिए मैं ने अपनी नौकरी छोड़ दी थी. आज मुझे इस बात का बहुत दुख है. मैं जिस कुकिंग को अपना टेलैंट समझती रही, वह तो एक आम चीज है, जो कोई भी बना लेता है. अपने पैरों पर खड़े हो कर जो संतोष मिलता है, उस की बात ही अलग होती है.”

आजकल के पति और बच्चे भी इस बात में गर्व महसूस करते हैं जब उन की पत्नी या मां कुछ क्रिएटिव कर रही हों.

25 साल की नेहा का कहना है, ”मम्मी जब गणित की ट्यूशन लेती हैं, तो बड़ा अच्छा लगता है. मेरे दोस्त कहते हैं कि आंटी कितनी इंटैलीजैंट हैं, 12वीं का मैथ्स पढ़ाना आसान नहीं.

“मम्मी जब ज्यादा थकी होती हैं, तो हमलोग खाना बाहर से और्डर कर लेते हैं या उस दिन सभी मिल कर खाना बना लेते हैं.”

सोशल मीडिया पर प्रदर्शन क्यों

सर्वगुण संपन्न होने की उपाधि लेने के लिए अनावश्यक तनाव अपने ऊपर न लें. कुक द्वारा बनाए खाने को भी प्यार से सब को परोस कर घर का माहौल प्यारभरा बनाया जा सकता है.

गुस्से में बनाया हुआ खाना यदि तनावपूर्ण माहौल में खाया जाए तो वह तनमन पर अच्छा प्रभाव नहीं डालता है.

किचन की बात हो और वह भी इस लौकडाउन टाइम में, महिलाओं ने अपनी कुकिंग स्किल्स की सारी की सारी भड़ास जैसे सोशल मीडिया पर ही निकाल दी. कभी अजीब सा लगता है कि यह क्या, कुकिंग ही कर कर के लौकडाउन बिताया जाता रहेगा?

वहीं अंजना को कुकिंग का बहुत शौक है. वह खुद मीठा नहीं खाती फिर भी अपने पति और बच्चों के लिए उसे कुछ बना कर खुशी मिलती है. उस का कहना है कि उस के पति और बेटा मना करते रह जाते हैं कि हमारे लिए मेहनत मत करो, जो खुद खाना हो वही बना लो, पर उसे अच्छा लगता है उन दोनों के लिए बनाना. जब वे दोनों सो रहे होते हैं तो वह चुपचाप उन्हें सरप्राइज देने के लिए कुछ न कुछ बना कर रखती है, जिस से लौकडाउन के समय में कोई बाहर की चीज के लिए न तरसे.

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सपनों को पंख दें

कुकिंग का शौक आप को है तो अलग बात है पर यह नहीं होना चाहिए कि सब अपनी लिस्ट आप को देते रहें और आप को कुकिंग का शौक ही न हो. कुकिंग आप पर लादी नहीं जानी चाहिए. किचन के रास्ते पर जाना आप की पसंद पर होना चाहिए, मजबूरी नहीं.

ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप कुछ और क्रिएटिव करना चाहती हैं और आप को उस का मौका ही न मिले. आप को अगर सचमुच कुछ क्रिएटिव करने का मन है तो जरूर करें.

रोजरोज की फरमाइशों से तंग आ चुकी हैं तो अपने परिवार को प्यार से समझाइए कि आप सहयोगी बन कर जीना चाहती हैं, रसोइया बन कर नहीं. आप को और भी कुछ करना है. किचन के बाहर भी आप की एक दुनिया हो सकती है. आप को बस उस का रास्ता खुद बनाना है. आप ही किचन से बाहर नहीं निकलना चाहेंगी तो दूसरा आप के लिए रास्ता नहीं बना सकता, इसलिए कुछ क्रिएटिव करने की कोशिश जरूर करें. घर के कामों में सब से हैल्प लेना कोई शर्म की बात नहीं. अब वह जमाना नहीं है कि घर की हर चीज एक औरत के सिर पर ही टिकी है. सब मिल कर कर सकते हैं ताकि आप अपने सपने को पंख दे सकें.

नेक्स्ट डोर महिला जब पति में कुछ ज्यादा  रुचि लेने लगे

मेघा ने अपने नए पड़ोसियों का स्वागत खुले दिल से किया, फ्लोर पर ही सामने वाले फ्लैट में आए अंजलि, उस के पति सुनील और उन की 4 साल की बेटी विनी भी उन से अच्छी तरह बात करते, सामना होने पर हंसते, मुसकराते, सुनील का टूरिंग जौब था, मेघा के पति विनय और उन का युवा बेटा यश थोड़े इंट्रोवर्ट किस्म के इंसान थे.

कुछ ही दिन हुए कि मेघा ने नोट किया कि अंजलि जानबूझ कर उसी समय पार्किंग में टहल रही होती है जब विनय का औफिस से आने का समय होता है. पहले तो उस ने इसे सिर्फ इत्तेफाक समझा पर जब विनय ने एक दिन आ कर बताया कि अंजलि उस से बातें करने की कोशिश भी करती है, उन का फोन नंबर भी यह कह कर ले लिया कि अकेली ज्यादा रहती हूं, पड़ोसियों का नंबर होना ही चाहिए तो मेघा हैरान हुई कि कितनी बार तो उस से उस का आमनासामना होता है, उस से तो कभी ऐसी बात नहीं की.

अंजलि अकसर उस टाइम आ धमकने भी लगी जब वह किचन में बिजी होती, विनय टीवी देख रहे होते. उस के रंगढंग मेघा को कुछ खटकने लगे. एक दिन विनय ने बताया कि वह उन्हें मैसेज, जोक्स भी भेजने लगी है. पहले तो मेघा को बहुत गुस्सा आया फिर उस ने शांत मन से विनय को छेड़ा, ‘‘तुम इस चीज को एेंजौय तो नहीं करने लगे?’’

‘‘ऐंजौय कर रहा होता तो बताता क्यों,’’ विनय ने भी मजाक किया, ‘‘मतलब तुम्हारा पति इस लायक है कि कोई पड़ोसन उस से फ्लर्ट करने के मूड में है, माय डियर प्राउड वाइफ.’’

‘‘चलो, फिर पड़ोसन का फ्लर्टिंग का भूत उतारना तो मेरे बाएं हाथ का काम है. अच्छा है, तुम्हें इस में मजा नहीं आ रहा नहीं तो 2 का भूत उतारना पड़ता,’’ मेघा की बात पर विनय ने हंस कर हाथ जोड़ दिए.

अगले दिन मेघा विनय के आने के समय पार्किंग प्लेस के आसपास टहल रही थी. उसे अंजलि दिखी, अचानक अंजलि उसे देख कर थोड़ी सकपका गई, फिर हायहैलो के बाद जल्दी ही वहां से हट गई. मेघा मन ही मन मुसकरा कर रह गई. शाम के समय विनय और यश टीवी में मैच देख रहे थे, वह भी आ धमकी और यह कहते हुए विनय के आसपास ही बैठ गई कि

उसे भी मैच देखने का शौक है. उस के पति को तो स्पोर्ट्स में जरा भी रुचि नहीं. उस की बात सुनते ही मेघा बोली, ‘‘आओ अंजलि, हम लोग अंदर बैठते हैं. इन दोनों को मैच देखने में क्या डिस्टर्ब करना.

‘‘नहीं, मैं अब चलती हूं, विनी अकेली है.’’

‘‘हां, उसे अकेली ज्यादा मत छोड़ा करो.’’

उस दिन तो जल्दी ही अंजलि चली गई. फिर एक दिन विनय ने कहा, ‘‘यार, काफी मैसेज भेजती रहती है, कभी गुडमौर्निंग, कभी जोक्स.’’

‘‘दिखाना,’’ मेघा ने विनय के फोन पर अंजलि के भेजे मैसेज पढ़े, सभी ऐडल्ट जोक्स वीडियो भी आपत्तिजनक, जिन्हें विनय ने देखा ही नहीं था अभी तक, क्योंकि विनय औफिस में ज्यादा ही बिजी रहता था और वह उसे बिलकुल भी लिफ्ट देने के मूड में था ही नहीं. अब मेघा गंभीर हुई.

अगले दिन यों ही अंजलि के फ्लैट पर गई. थोड़ी देर बैठने के बाद उस ने बातोंबातों में कहा, ‘‘तुम शायद बहुत बोर होती हो. विनय बता रहे थे कि उन्हें खूब वीडियो, जोक्स भेजती रहती हो. उन्हें तो देखने का भी टाइम नहीं, मैं ने ही देखे वे वीडियो, उन्हें भेजने का क्या फायदा मुझे भेज दिया करो, मैं देख लूंगी. विनय कुछ अलग टाइप के इंसान हैं, मुझ से कुछ छिपाते नहीं, तुम मेरा फोन नंबर ले लो.’’ अंजलि को बात संभालना मुश्किल हो गया. बुरी तरह शर्मिंदा होती रही. मेघा घर लौट आई. उस दिन से कभी अंजलि ने विनय को एक मैसेज भी नहीं भेजा, न उस के आसपास मंडराई. उस का किस्सा मेघा की लाइफ से खत्म हुआ.

मामला अलग स्थिति अलग

अगर यहां विनय पड़ोसन के साथ फ्लर्ट कर रहा ?होता तो बात दूसरी होती, समस्या पड़ोसन की नहीं, पति की होती पर यहां मामला अलग था. ऐसी स्थिति को बहुत जल्दी ही संभाल लेना चाहिए, फ्लर्टिंग को अफेयर बनते देर नहीं लगती.

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ट्रेसी कौक्स जो डेटिंग, सैक्स और रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट हैं, का कहना है कि महिलाएं विवाहित पुरुषों की तरफ ज्यादा आकर्षित होती हैं, कोई महिला आप के पति के साथ फ्लर्ट कर रही है या नहीं, कैसे समझ सकते हैं, जानिए:

– यदि आप का पति उस की कौल्स और मैसेज के बारे में आप को बता देता है तो इस का मतलब है कि वह आप को प्यार करता है, पर यदि आप को खुद ही यह सब पता चला है तो इस का मतलब है कि आप के पति भी उसे बढ़ावा दे रहे हैं.

– जब वह आप के पति के आसपास मंडराती

है तो वह कुछ अलग ही मेकअप, कपड़ों में होती है, वह उस में रुचि ले रही हैं तो उस

का ध्यान आप के पति को आकर्षित करने

में होगा.

– कोई भी महिला जो किसी विवाहित पुरुष में रुचि लेती है, वह हमेशा यह दिखाने की कोशिश करती है कि वह उस की पत्नी से

बैटर है, अगर उसे पता चलता है कि पति

को कोई शौक है और पत्नी को नहीं है तो वह पति वाले शौक को ही अपना बताने की कोशिश करेगी.

क्या करें

अब सवाल यह उठता है कि ऐसे में एक पत्नी को क्या करना चाहिए, अपने पति पर शक करते हुए उस से सवालजवाब करने से आप के वैवाहिक जीवन में तनाव हो सकता है, उसे ऐसा लगेगा कि आप उस पर विश्वास नहीं करतीं, यह बात आप को नुकसान पहुंचा सकती है, पति के साथ फ्लर्ट करने वाली महिला के साथ कैसे व्यवहार करें, ऐसी कुछ टिप्स जानिए:

– पड़ोसन को सीधेसीधे कुछ कहेंगीं तो आप सनकी, इन्सेक्युर पत्नी लगेंगी. उस के साथ अच्छी तरह पेश आइए, ऐसे कि वह असहज हो जाए. सच यही है कि वह आप को पसंद नहीं करती होगी क्योंकि उस की रुचि आप के पति में है. उसे यह न महसूस होने दें कि आप भी उसे पसंद नहीं करतीं, उस की अच्छी फ्रैंड होने का नाटक करें, उसे अपने पति के साथ टाइम बिताने का मौका बिलकुल न दें. वह खुद ही अनकंफर्टेबल हो कर पीछे हट जाएगी.

– अपने पति से बात करें. उस के इरादों के बारे में आप के पति को भी संदेह हो सकता है. अपने पति पर सवालों की बौछार न करते हुए शांति से बात करें. याद रखें, यहां विक्टिम वह है, उस से पूछें कि क्या उसे भी यही लग रहा है कि पड़ोसन उस के साथ फ्लर्ट कर रही है. यदि पति कहे कि आप को ही बेकार का शक हो रहा तो उन्हें घटनाओं के साथ स्पष्ट करें कि वह फ्लर्ट कर रही थी. अपने पति की इस स्थिति को समझने में हैल्प करें और मिल कर इस से निबटें.

– इस स्थिति पर हंसना सीखें. कोई महिला उस पुरुष के साथ फ्लर्ट करने की कोशिश कर रही है जो आप को प्यार करता है, यह तो फनी है.  अपने विवाह पर फोकस रखें, हर समय इस महिला के बारे में सोच कर तनाव में न रहें.

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– ऐसी महिलाएं आप के और आप के पति के बीच मिसिंग स्पार्क का फायदा उठाने की कोशिश करती हैं. इसलिए उन्हें ऐसा करने का मौका न दें.

अपने पति पर विश्वास रखें, उसे बताएं कि आप को उस पर विश्वास है भले ही कोई भी स्थिति हो. यदि वह गलत नहीं है तो उसे अच्छा लगेगा कि उस की पत्नी को उस पर विश्वास है.

आखिर तुम दिनभर करती क्या हो

मुझे आज से अधिक सुंदर वह कभी न लगी. उस की कुछ भारी काया जो पहले मुझे स्थूल नजर आती थी आज बेहद सुडौल दिखाई दे रही है. बालों का वह बेतरतीब जूड़ा जिस की उलझी लटें अकसर उस के गालों पर ढुलक कर मेरे झल्लाने की वजह बनती थीं आज उन्हें हौले से सुलझाने को जी चाह रहा था. उस का वह सादा लिबास जिस को मैं कभी फूहड़, गंवार की संज्ञा दिया करता था आज सलीकेदार लग रहा था.

मैं अचंभित था अपनी ही सोच पर क्योंकि मेरे दो बच्चों की मां, मेरी वह पत्नी आज मुझे बेहद हसीन लग रही थी. भले ही आप को यह अतिश्योक्ति लगे पर मुझे कहने से गुरेज नहीं कि वह मुझे किसी कवि की कल्पना की खूबसूरत नायिका सी आकर्षक प्रतीत हो रही थी जिस का रूपसौंदर्य बड़ेबड़े ऋषिमुनियों की तपस्या को भंग करने की ताकत रखता था. आज उसे प्रेम करने की अभिलाषा ने मेरे अंतरमन को हुलसा दिया था.

ऐसा नहीं था कि पत्नी के प्रति विचारों ने पहली बार मेरे दिल पर दस्तक दी थी. 12 वर्ष पूर्व जब छरहरी सुंदर देहयष्टि वाली नंदिनी मेरी संगिनी बनी थी तो मैं अपनी किस्मत पर फूला न समाया था. कजिन की शादी में होने वाली भाभी की सांवलीसलोनी बहन के कमर तक लहराते केशों को देखते ही मैं अपनी सुधबुध खो बैठा था और स्वयं ही मां के हाथों उस के घर विवाह प्रस्ताव भिजवा दिया था.

जिंदगी की गाड़ी बड़ी खुशीखुशी चल रही थी कि दोनों बच्चों के जन्म के बाद उस की प्राथमिकताएं जैसे बदलने लगीं. मेरी बजाय अब वह बच्चों को काफी वक्त देने लगी. अपनी ओर से बेपरवाह हो कर अकसर वह घर के कामों में लगी रहती. धीरेधीरे उस के शरीर में आते परिवर्तन ने भी उस के प्रति मेरी विरक्ति को बढ़ा दिया.

मेरे सारे कार्य वह अब भी सुचारु रूप से किया करती. लेकिन मुझे अब उस में वह कशिश दिखाई न देती और मैं उस से चिढ़ाचिढ़ा सा रहता. घरगृहस्थी के कामों से फुर्सत हो जब रात को बिस्तर पर वह मेरा सानिध्य चाहती तो उस के अस्तव्यस्त कपड़ों से आती तेलमसालों की गंध मुझे बेचैन कर देती और मैं उसे बुरी तरह झिड़क देता.

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अब किसी फंक्शन या पार्टी में भी उसे अपने साथ ले जाने से मुझे कोफ्त होती, क्योंकि अपने दोस्तों की फैशनेबल, स्लिमट्रिम व स्मार्ट बीवियों की तुलना में वह मुझे गंवार दिखाई देती जिसे न कपडे़ पहनने की तमीज थी और न ही सजने का सलीका. कभीकभी मैं उस पर झल्ला पड़ता कि दूसरों की बीवियों को देखो कैसे सजसंवर कर कायदे से रहती हैं और एक तुम हो कि तरीके से कभी बाल भी नहीं बनातीं. आखिर घर पर बैठेबैठे दिनभर तुम करती क्या हो?

अगर मुझे मालूम होता कि तुम इतनी आलसी होगी तो तुम से शादी कर मैं अपनी जिंदगी कभी बर्बाद नहीं करता. मेरी झल्लाहट पर उस की आंखों के कटोरे छलकने को हो आते और उस के होंठों पर चुप्पी की मुहर लग जाती. तब मैं गुस्से से पैर पटकता बाहर निकल जाता और यहां वहां बेवजह भटकता देर रात ही घर में दाखिल होता और वह चेहरे पर बगैर कोई शिकन लाए मेरा खाना गरम कर मुझे परोस देती.

ऐसा नहीं कि उस ने मेरे मुताबिक अपने आप को कभी ढालने की कोशिश नहीं की. लेकिन जब भी वह ऐसा कुछ करती मुझे वह और भी गईगुजरी नजर आती. धीरेधीरे मेरे रवैए से दुखी हो कर उस ने अपने आप को बच्चों की परवरिश व घर की जिम्मेदारियों में समेट लिया और उस के साथ ही शादी को मैं अपनी फूटी किस्मत मान अपने भाग्य को कोसता रह गया.

इसी बीच आया कोरोना

इस बीच कोरोना के कहर से पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा उठी. आमजन की सुरक्षा के मध्यनजर सरकार द्वारा लौकडाउन की घोषणा कर दी गई. इसे भी नियति का एक कुठाराघात समझ मैं ने दुखी मन से स्वीकार किया, क्योंकि अब 24 घंटे अपनी फूहड़ पत्नी के साथ उस का चेहरा देखते हुए बिताना था. कुछ दिन यों ही गुजर गए. कुछ देर टीवी देख कर और कुछ देर बच्चों के साथ मस्तीमजाक में मैं अपना वक्त बिताता. यारदोस्तों के साथ मोबाइल पर बात कर के भी मेरा थोड़ा समय बीत जाता.

शाम का वक्त मुझे अपनी मां के साथ बिताना अच्छा लगता. पर उन के ऊपर नंदिनी

ने न जाने क्या जादू कर रखा था कि वे हमेशा उस की तारीफों के पुल बांधा करतीं और मैं अनमना हो कर वहां से उठ कर अपने कमरे में आ जाता जहां रात से पहले नंदिनी का प्रवेश न के बराबर होता.

2 दिन से मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही थी. हलकी हरारत के साथ शरीर में टूटन थी. हालांकि रात को क्रोसिन लेने से बुखार तो फिलहाल ठीक था पर सिर दर्द से जैसे फटा जा रहा था. रात में अच्छे से नींद न आने के कारण भी शरीर निस्तेज जान पड़ता था.

जैसेतैसे फै्रश हो कर मैं ने चाय पी और थोड़ा सा नाश्ता किया. मेरी तबियत खराब जान नंदिनी मेरे सिरहाने बैठ कर मेरा सिर दबाने लगी. न जाने क्यों अरसे बाद उस के हाथों का स्पर्श मुझे बहुत अच्छा लग रहा था या इतने दिनों से घर पर रहने के कारण शायद उस के प्रति मेरा नजरिया बदल रहा था. कारण कोई भी हो, उस की इस जादुई छुवन ने मेरा सिरदर्द काफी हद तक कम कर दिया और कुछ ही देर में मुझे गहरी नींद आ गई. इस वक्त नंदिनी ने मेरा बहुत ध्यान रखा. इस बीच उस के स्नेहसिक्त सामीप्य ने मुझ में जैसे एक नई शक्ति का संचार कर दिया था. उसे सहज रूप से तल्लीनतापूर्वक घर के काम करते देख मुझे अच्छा लगने लगा था.

खुद से हुआ शर्मिंदा

आज शाम कुछ देर पहले अपने दोस्तों से फोन पर मेरी बात हुई थी. आश्चर्य की बात थी उन में से ज्यादातर अपनी पत्नियों से दुखी थे और जल्द से जल्द लौकडाउन के खत्म होने का इंतजार कर रहे थे. वे बता रहे थे कि किस तरह बाईयों के न आने से उन की पत्नियों ने उन का जीना दूभर कर दिया है. घर के ज्यादातर काम उन्हें थमा कर वे स्वयं टीवी या मोबाइल पर अपना पूरा समय बिताती हैं. न समय पर खाना बनता है और न ही बच्चों पर ध्यान दिया जाता है.

उन से बात करतेकरते अचानक मेरी नजर नंदिनी पर जा टिकी जो मेरी मां और बच्चों के साथ हौल में बैठी राजा, मंत्री, चोर, सिपाही खेल रही थी. कभी राजा बन कर वह सब पर हुकुम चलाती तो कभी चतुर मंत्री बन चोर को झट से पकड़ लेती. कभी सिपाही की पर्ची मिलते ही मुसकरा उठती तो कभी चोर बन कर मंत्री को बरगलाने की पूरी कोशिश करती. उस वक्त सभी के खिलखिलाते चेहरे देख कर मेरे मन को कैसा सुकून मिला, मैं बता नहीं सकता.

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थोड़ी देर बाद बच्चे अपनी दादी से कहानी सुनने में व्यस्त हो गए और मेरी नजर चौके में चाय बनाती अपनी पत्नी पर फिर जा टिकी. आखिर उस की गलती ही क्या थी. अपने आप को भूल कर उस मासूम ने मेरे घरपरिवार और बच्चों को संभाला था. मेरी बीमार मां की तनमन से सेवा की थी. अगर उस वक्त मैं ने थोड़ा भी उस का हौसला बढ़ाया होता तो शायद वह आज अपने प्रति भी जागरूक रहती.

हलके पीले रंग के सलवारकुरते में उसे देख मुझे बचपन के अपने घर के बगीचे का ध्यान हो आया. जिस में बने लौन के चारों किनारों पर मांपापा ने सूरजमुखी के पेड़ लगा रखे थे जिन पर लगे बड़े पीले फूल मुझे खासा आकर्षित करते थे. जिन्हें मैं दिनभर इस उत्सुकता से निहारा कराता था कि वे सूरज के जाने की दिशा में ही अपना मुंह कैसे घुमाए जाते हैं. आज मेरे बावरे नयन भी पत्नी का अनुसरण करते उसे निहारने की कोशिश में लगे थे. सोचते हुए अनायास ही मेरे मुख पर मुसकान आ गई.

सब के साथ चाय पीने की लालसा में मैं बालकनी से उठ कर हौल में चला आया. मेरी चोर नजरें अभी भी उस का पीछा कर रही थीं. आडंबर विहीन उस के सादगी भरे सौंदर्य ने मुझे अभिभूत कर दिया था. मुझे अपने ऊपर तरस आ रहा था कि सालों तक उस की इस अंदरूनी खूबसूरती को मैं कैसे न देख पाया, कैसे अपनी सुलक्षणा पत्नी के गुणों को न पहचाना और जानेअनजाने उस के निश्छल हृदय को अपने व्यंग्यबाणों से पलपल बेधता रहा.

आज उन सभी गलतियों के लिए मन ही मन शर्मिंदा हो उस से क्षमायाचना हेतु मैं उठ खड़ा हुआ आने वाले सभी लम्हों को उस के साथ जीने के लिए. लौकडाउन में मिले फुर्सत के क्षणों ने मुझे मेरी जीवनसंगिनी लौटा दी थी और मैं लौटा देना चाहता था उसे उस के चेहरे की वह मुसकान जो मेरी सच्ची खुशी की परिचायक थी.

रिश्ता टूटने का सबसे बड़ा कारण है ससुराल में मायके वालों की दखलअंदाजी

शादी एक खूबसूरत सा बंधन होता है और यह बंधन कुछ समय  का नहीं होता है. यह सात जन्मों का बंधन होता है. पर इस बंधन में भी कई बार दरारें पड़ने शुरू हो जाती हैं और दरारे कई बार इतनी गहरी हो जाती हैं कि पूरा का पूरा रिश्ता ढह जाता है.

यह रिश्ता टूटने के होते तो बहुत सारे कारण हैं लेकिन उनमे से वो  कारण जो सबसे महत्वपूर्ण है वो है ;-“ससुराल में मायके वालों की दखलअंदाजी उनकी इंटरफेरेंस”. शादी हो जाने के बाद लड़की के ससुराल में लड़की के पैरंट्स की बहुत ज्यादा दखलंदाजी  होती है. इस वजह से इतने ज्यादा तलाक होते हैं कि आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते. आज मैं आपसे वो कारण शेयर करूंगी जिनकी वज़ह से अक्सर रिश्तों में दरारे आ जाती है-

1-मायके वाले इनसिक्योर फील करते हैं

अक्सर मायके वाले ये सोचते हैं की बेटी की शादी हो गई. अब उसका प्यार हमारी तरफ कम हो जाएगा. इसलिए उसका और ज्यादा ख्याल रखते हैं… इसलिए उसको और ज्यादा प्यार करते हैं… इसलिए उसकी और ज्यादा केयर करने लगते हैं. . और यह वजह बनती है दखलंदाजी की.

एक बात हमेशा याद रखिये की अगर आप अपनी लड़की को बहुत ज्यादा प्यार दिखाओगे तो कहीं ना कहीं उसके मन में कंपैरिजन की भावना आ जाएगी . वो हमेशा अपने मायके की तुलना  अपने ससुराल से करने लगेगी. और कभी भी अपने ससुराल वालों से इमोशनली  attach नहीं हो पायेगी.

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2- बहुत ज्यादा इमोशनली डिस्टर्ब करना

अक्सर माँ का phone आता  है की -आज तो तेरे पापा ने खाना ही नहीं खाया… आज तो उनको तेरी बहुत याद आ रही थी ..आज मेरा भी कुछ काम करने का मन नहीं हुआ पता नहीं क्यों तेरी आज बहुत याद आ रही थी …,आज बगल वाली आंटी से तेरे ही  बारे में बात हो रही थी  सब तुझको बहुत याद करते हैं.

यह  सब बातें सुनकर लड़की बहुत ज्यादा इमोशनली डिस्टर्ब हो जाती है और उसका न तो अपने ससुराल में मन लगता है और तो और उसके मन में हमेशा यही आ जाता है कि देखो वहां तो इतना प्यार करते हैं यहां तो कोई मुझे पूछता नहीं.

यह चीजें नहीं होनी चाहिए. जब इन चीजों की अति हो जाती है तब  फैमिली डिस्टर्ब हो जाती है .

3-मायके वालों का लड़की को एडजस्ट होने का टाइम ही न देना

बार-बार  फोन करना , बार-बार लड़की के घर आ जाना-‘ की याद आ रही है मन नहीं लग रहा ‘.

तो वो एडजस्ट कैसे होगी. वह खुद नए घर में गई है .वहां पर उसको एडजस्ट होना है. उसको सब का ख्याल रखना है.ऐसे में  अगर माता-पिता की बार-बार एंट्री  होगी तो वह कैसे अपने आपको उस नए घर नए रिश्तों के साथ  एडजस्ट कर पाएगी ?

4 -उसको गिल्टी फील करवाना

एक लड़की है ,शादी होने के बाद वह वह अपने ससुराल में बहुत अच्छे से एडजस्ट हो गई है. सबका ख्याल रख रही है… काम भी करती है …अच्छे से रह रही है . बच्चे भी हैं उसके तो हो सकता है की वो फोन नहीं कर पा रही है अपने मायके में. तो ऐसे में मायके से फोन आता है और कहा जाता है कि क्या जादू कर दिया तेरे ससुराल वालों ने .तेरे मां बाप भी है इस दुनिया में ..तू तो हमें भूल ही गयी . यह बातें उसे कहीं ना कहीं गिल्टी फील कराती हैं.

बल्कि यह तो एक माता पिता के लिए खुशी की बात है कि उनकी लड़की अपने ससुराल में एडजस्ट हो रही है. इस पर आकर उसे गिल्टी फील कराना, उसको यह एहसास दिलाना कि तू तो अपने मायके वाले को भूल ही गई है कि. ये कहां तक सही है?

5-रिश्तों में कोई पारदर्शिता न रखना

मान लीजिए कि मायके वाले अपनी लड़की से  1 घंटे के लिए मिलने गए है.  आधा घंटा, पौना घंटा अकेले कमरे में जाकर सिर्फ अपनी लड़की से बातें करते रहे. और मान लीजिए उसी समय लड़की के ससुराल वाला कोई भी सदस्य अगर वहां आता है तो बातें करना बंद. एकदम चुप.. इससे  सामने वाले को लगता है कि कहीं ना कहीं यह क्या बात कर रहे हैं जो मेरे आने पर चुप हो गए.

दोस्तों पारदर्शिता बहुत जरूरी होती है चाहे वह कोई भी रिश्ता हो .जब लड़की के घर जाओ ना तो सबके साथ बैठो .ज्यादा से ज्यादा टाइम उसके ससुराल वालों के साथ बिताओ .इससे दोनों परिवारों के बीच विश्वास बहुत बढेगा.

6-बार-बार फोन पर बात करना

बार-बार लड़की को फोन करना कहां तक सही है .अब आप सोच रहे होंगे कि क्या बात भी ना करें ?माना कि माता-पिता अलग शहर में रहते हैं, रोज मिलना पॉसिबल नहीं है लेकिन बार- बार phone करते रहना भी सही नहीं है.

फोन तो इस रिश्ते के टूटने की इतनी जबरदस्त जड़ है ना जो बहुत ज्यादा तनाव देती है. लड़की के सुबह उठने से रात में सोने तक न जाने कितनी बार फोन करते  हैं और सारी बातें पूछते हैं  कि क्या नाश्ता किया आज तूने..? क्या पहना ..? अगर गलती से लड़की ने कह दिया कि मैं रसोई में हूं तो बोलना… अरे तू अकेले काम कर रही है.. तेरी ननद कहां है..? तेरी सास कहां है…? वह क्यों नहीं काम कर रही.? तू क्यों लगी रहती है सारा दिन …?ये सब बिलकुल भी सही नहीं है.

अगर एक बार बात नहीं भी  हुई तो कोई बहुत बड़ा इशू  नहीं है. वह ठीक है. उसको अच्छे से रहने दो .उसको सेट होने दो ससुराल में .इस बात को समझो. हम तो सास- बहू, सास- बहू में उलझे हुए हैं पर यहां तो अपनी मां की वजह से ही रिश्तो में दरार आ रही है, तलाक हो रहे हैं. घर टूट रहे हैं..

7-अपनी लड़की को उकसाना

दोस्तों अगर दिन में इतनी बार बात होगी तो कोई कितनी बार हाल चाल पूछेगा.यहाँ वहां की ही बातें होंगी न.

अगर लड़का अपने माता-पिता का  बहुत ख्याल रखता है, बहुत प्यार करता है तो लड़की की मां कहती है की तुम्हारा पति तो माँ बाप का गुलाम है ,तुम्हारा कोई ख्याल नहीं रखता. अब यह बातें सुनकर उस लड़की के मन में भी नेगेटिव फीलिंग आएगी .उसको लगेगा कि मेरे माँ बाप के  अलावा तो मुझे कोई प्यार करता ही नहीं है. कोई मेरी देखभाल करता ही नहीं है. यह मेरी कितनी केयर करते हैं बात बात पर मेरा ख्याल पूछते हैं. पर जाने अनजाने उसके रिश्तों में दरार आना शुरू हो जाती है .

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8-लड़की के मायके वालों का उसके ससुराल वालो  से स्टेटस में compare  करना

अक्सर लड़की के मायके वाले अपनी लड़की को प्यार दिखाने के लिए हमेशा उसके ससुराल वालो से ज्यादा करने की कोशिश करते है.वो अपनी लड़की को महंगे- महंगे गिफ्ट देते है.

इससे कहीं न कहीं ससुराल वालों के मन में काम्प्लेक्स आ जाता है.और यहीं से  उनकेरिश्तों के बीच दरार आना शुरू हो जाती है.

सबसे आखिर में, मै ये नहीं कहती कि  माता-पिता को शादी के बाद अपनी बेटियों से दूरी बना लेनी चाहिए ..या उनकी किसी भी परेशानी में उनका साथ नहीं देना चाहिए . बेशक, आपको उसका साथ देना चाहिए . आप उसके माता पिता है और वह वही राजकुमारी है जो आपके सामने पली-बढ़ी है.लेकिन आपको अपने स्वार्थ को किनारे रखकर उसका सही मार्गदर्शन भी करना है  और उसे उस रानी में बदलना है  जो वह किस्मत में थी या जो आपने बचपन से उसके लिए सोचा था.

8 टिप्स: सजाना है मुझे साजन को

हर धड़कते दिल की यही तमन्ना होती है कि अपने जीवनसाथी के साथ उन्मुक्त गगन की छांव में बेफिक्र मस्त उड़ान भरता रहे, उफनती नदी की लहरों में खुशियों की फुहारों का मजा लेता रहे. लेकिन शादी पूरी एक जिंदगी का लंबा सफर होता है. हनीमून पीरियड औफ होते ही प्यार में उड़ते प्रेमी जोड़े का सामना जब जिंदगी की सचाई से होता है तो उन्हें ऐसा लगता है जैसे किसी ने उन के प्यार के पंछी के बेदर्दी से पर कतर दिए हों, लेकिन ऐसा नहीं है. अगर दंपती शादी के सही अर्थ यानी गृहस्थ जीवन के कर्म का ज्ञान रखें तो शादीशुदा जीवन में खुशियां ही खुशियां हैं. बस कुछ बातों को समझना है. सिर्फ समझाना ही नहीं व्यवहार में भी लाना जरूरी है.

शादी एक पार्टनरशिप

शादी एक 50-50 की पार्टनरशिप है, जहां दोनों के बीच आपसी समझदारी, एकदूसरे के प्रति विश्वास और सम्मान का होना निहायत जरूरी है. तभी वे बेझिझक और बेफिक्र हो कर अपने दिल की चाहत शेयर कर सकेंगे और एकदूसरे की जरूरत या तकलीफ, परेशानी को समझ सकेंगे.

कमल और समर आपस में बहुत अच्छे दोस्त हैं. दोनों बचपन से साथ रहे, साथ पढ़े और अब एक ही कंपनी में साथ जौब भी करते हैं. लेकिन घर हो या औफिस कमल को सभी लोग पसंद करते हैं. वह जहां भी जाता है वहां का माहौल खुशनुमा और सकारात्मक हो जाता है. सभी कमल को सफल और स्मार्ट मैन के रूप में जानते हैं.

उधर समर किसी पर भी अपने व्यक्तित्व की छाप नहीं छोड़ पाता. उस के अंदर ज्ञान बहुत है, फिर भी वह बहुत कम कार्यों में ही सफल हो पाता है, बहुत कम लोग उसे पसंद करते हैं.

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एक दिन एक सेमिनार के दौरान किसी ने कमल से उस की स्मार्टनैस का राज पूछा तो उस ने हंस कर उत्तर दिया, ‘‘मेरी पत्नी.’’

कमल का उत्तर चौंकाने वाला जरूर है, लेकिन सचाई से परिपूर्ण है. विवाह के समय जो पति स्मार्ट, सुंदर और फिट दिखते हैं शादी के 1 साल बाद ही उन का चेहरा कांतिहीन और शरीर थुलथुल हो जाता है. थकावट इस कदर हावी रहती है कि औफिस से लौट कर मुंह से प्यार के दो बोल तक नहीं निकलते. बेचारे इस इंतजार में रहते हैं कि कब शनिवार या इतवार आए और वे चादर मुंह तक ओढ़ कर पलंग पर लेट जाएं और पूरा दिन कमरे से बाहर न निकलें. कुछ मैले कुरतेपाजामे में पूरा दिन बिस्तर पर लेटे रहते हैं, तो कुछ बदरंग से बरमूडा में किसी पार्क या मौल में टहलते दिखाई देते हैं.

यदि गहराई से विश्लेषण किया जाए तो इस परिवर्तन का कारण हो सकता है पत्नी. शादी से पहले जो पत्नी अपने भावी पति की ड्रैस, हेयरस्टाइल, फिट बौडी के प्रति सतर्क रहती थी, शादी के बाद इन सब बातों के प्रति एकदम उदासीन हो जाती है. कुछ प्यार जताने के चक्कर में पति को इतना खिलाती रहती हैं कि कमर का घेरा कई इंच बढ़ जाता है तो कुछ इस ओर कतई ध्यान ही नहीं देतीं. उन्हें देख कर ऐसा लगता है जैसे उन का शादी करने का एकमात्र ध्येय अब पूरा हो गया. अब तुम अपनी चिंता खुद करो हम अपनी करेंगे. ऐसे में इन सुझावों पर अमल कर के पत्नी ताउम्र पति को सुंदर, सजीला और स्मार्ट बना सकती है:

1. ड्रैस सैंस पर ध्यान दें

स्मार्ट दिखने के लिए सब से पहले जरूरी यह है कि आप पति के पहनावे पर ध्यान दें. इस का मतलब बेवजह टोकाटाकी या मीनमेख निकालने से कतई नहीं है. उसे बच्चों की तरह समझाने के बजाय अपने सुझाव अवश्य दे सकती हैं. मसलन, इस पैंट के साथ यह शर्ट और टाई मैच करेगी जो आप पर फबेगी भी खूब. फिर जब पति तैयार हो कर घर से निकले तो आप के प्रशंसा के दो बोल भी जादू का काम करेंगे और आप दोनों और पास आएंगे.

2. हमेशा अपडेट रखें

घरबाहर की बातों से पति को हमेशा अपडेट रखें. हो सकता है काम की अधिकता या व्यस्तता के कारण अखबार या टीवी न्यूज का कोई पहलू पति की नजर से छूट गया हो. ऐसे में आप अपने सामान्य ज्ञान से उसे अपडेट कर सकती हैं. घरपरिवार की छोटीबड़ी बातों की जानकारी पति को अवश्य देती रहें.

3. फिटनैस का रखें ध्यान

स्मार्ट दिखने के लिए बौडी का फिट होना जरूरी है. अत: पति को मौर्निंग वाक, जिम या फिर किसी अन्य व्यायाम के लिए प्रेरित करें. यदि आनाकानी करे तो खुद भी साथ जाने का प्रयास करें. कुछ व्यायाम तो कितनी भी व्यस्तता के बावजूद कुरसी पर भी बैठेबैठे किए जा सकते हैं.

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4. व्यवहार और सोच परिपक्व हो

कुछ पति शादी के बाद बचकाना व्यवहार करने लगते हैं. यदि आप का पति भी ऐसा करता है तो समय पर टोकना जरूरी होगा वरना वह स्वयं तो जगहंसाई का कारण बनेगा ही, लोग आप की भी खिल्ली उड़ाने से बाज नहीं आएंगे.

5. बौडी लैंग्वेज पर भी ध्यान दें

किसी भी व्यक्ति की बौडी लैंग्वेज ऐसी होनी चाहिए जो लोगों को इंप्रैस कर सके. यदि आप के पति की बौडी लैंग्वेज में कुछ कमी है तो पति का इस ओर ध्यान दिलाएं. स्मार्ट दिखने और कैरियर में सफलता के लिए पौजिटिव बौडी लैंग्वेज का होना बहुत जरूरी है.

6. खुश रहना भी जरूरी

एक प्यारी सी मुसकान आप के पति की पर्सनैलिटी में चार चांद लगा देगी. वह जहां भी जाएगा वहां का वातावरण खुशनुमा हो जाएगा. लोग उसे बहुत पसंद करेंगे. मगर यह तभी होगा जब आप स्वयं खुश रहेंगी और घर का माहौल सुंदर और सुखद होगा.

7. सफाई और हाइजीन जरूरी

आजकल कंपीटिशन का जमाना है. गंदे नाखून, अधपके खिचड़ी बाल, मुंह की दुर्गंध किसी को प्रभावित करने के बजाय उलटे आप के पति को दूर कर देगी. बालों को ढंग से ट्रिमिंग करवा कर डाई करना, नाखून काटना, माउथ फ्रैशनर का इस्तेमाल करने से पति के व्यक्तित्व में निखार आएगा.

8. दिल को दिल से जोड़ता है प्रेम

मैरिड लाइफ का गहना प्यार है. जब पतिपत्नी के बीच प्रेम की गंगा निरंतर प्रवाहित होती रहती है तब वे एकदूसरे में केवल अच्छाइयों को ही देखते हैं, बुराइयां उन्हें नजर नहीं आतीं. प्यार से भरे दो दिलों के लिए तो रोज ही वैलेंटाइन डे होता है. लेकिन अफसोस आज दांपत्य में प्रेम कम नफरत का भाव ज्यादा पनप रहा है. अत: जहां तक संभव हो इस नफरत को मिटाने का प्रयास करें.

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ऐसे कराएं पति से काम

‘‘अरे सुनो मुझे चाय के साथ के लिए टोस्ट, बिस्कुट कुछ भी नहीं मिल रहा है. कहां रखे हैं?’’

‘‘वहीं गैस प्लेटफार्म के ऊपर वाली

दराज में देखो,’’ अनीशा ने पति अमन को फोन पर बताया.

15 मिनट बाद फिर अमन का फोन आया, ‘‘यार दूध लेने के लिए भगौना कहां है?’’

अपने मातापिता की इकलौती संतान अनीशा आज सुबह ही अपने मायके मुंबई पहुंची थी और सुबह 10 बजे तक उस के पति का 5-6 बार घर की विभिन्न वस्तुओं का पता करने के लिए फोन आ चुका है.

सुगंधा को अपनी कैंसर से ग्रस्त मौसी को देखने के लिए 2 दिन के लिए अहमदाबाद जाना था. जाने से पहले वह फ्रिज में सलाद काट कर नाश्ते के डब्बे टेबल पर रख कर, 2 दिन के लिए अपने पति के पहनने के कपड़े तक अलमारी में से निकाल कर बैड पर रख कर गई ताकि पति को उस की गैरमौजूदगी में कोई परेशानी न हो.

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अकसर इसी प्रकार महिलाएं अपने पति के सारे कामों को हाथोंहाथ कर के उन्हें इतना निष्क्रिय और अपाहिज सा बना देती हैं कि वे घर के छोटेमोटे कार्यों के अलावा अपने व्यक्तिगत जरूरत के कार्यों तक को करना भूल जाते हैं.

एक निजी कालेज में साइकोलौजी की प्रोफैसर और काउंसलर कीर्ति वर्मा कहती हैं, ‘‘विवाह के समय पतिपत्नी एकदूसरे के अगाध प्रेम रस में डूबे रहते हैं. ऐसे में लड़की अपने पति के सभी कार्यों को करने में अपार प्रेम अनुभव करती है परंतु यहीं से एक अनुचित परंपरा का प्रारंभ हो जाता है. पति इसे पत्नी का कर्तव्य समझने लगता है. कुछ समय बाद जब परिवार बड़ा हो जाता है तो समयाभाव के कारण पत्नी पति के उन्हीं कार्यों को करने में स्वयं को असमर्थ पाती है, तब पति को लगता है कि पत्नी उस की ओर ध्यान नहीं दे रही है और इस की परिणति पतिपत्नी के मनमुटाव, यहां तक कि पति के  भटकन यानी विवाहेतर संबंध बनने और कई बार तो परिवार के टूटने तक के रूप में होती है.’’

वास्तव में पति के साथ इस प्रकार का व्यवहार कर के महिलाएं अपने पति को तो अपाहिज सा बना ही देती हैं, स्वयं के पैरों पर भी कुल्हाड़ी मार लेती हैं.

आप चाहे कामकाजी हों या होममेकर जिस प्रकार आप अपने बच्चों को आवश्यक गृहकार्यों में दक्ष बनाती हैं उसी प्रकार पति को भी बनाएं ताकि आप की गैरमौजूदगी में उन्हें किसी का मुंह न ताकना पड़े, वे अपना और बच्चों का कार्य सुगमता से कर सकें.

पति को बनाएं अपना सहयोगी

तैयार होने के लिए अपने कपड़े स्वयं निकालना या अपने जूते साफ करना, औफिस बैग में से लंच बौक्स निकाल कर सिंक में रखना जैसे अपने कार्य स्वयं ही करने की आदत डालें. इस से आप का काम का भार भी कम होगा, साथ ही उन्हें काम करने की आदत भी होगी.

अणिमा के यहां पारिवारिक मित्र डिनर पर आने वाले थे. उस के पति और बच्चों ने डाइनिंग टेबल तैयार कर दी. वह कहती है कि उस ने बच्चों और पति में प्रारंभ से ही मिलजुल कर कार्य करने की आदत डाली है. पति और बच्चों की मदद के कारण ही वे अपना पूरा ध्यान किचन पर केंद्रित कर पाती हैं.

किचन के कार्य सिखाएं

चाय, कौफी, दालचावल, पुलाव आदि बनाना उन्हें अवश्य सिखाएं. यद्यपि पहले की अपेक्षा आज सामाजिक ढांचे में काफी बदलाव आया है और लड़के भी किचन के कार्यों में रुचि लेने लगे हैं, परंतु फिर भी कई परिवार ऐसे हैं जहां लड़कों से काम नहीं करवाया जाता है और जब यही लड़के पति बनते हैं तो अपनी पत्नियों के लिए सिरदर्द बन जाते हैं. ऐसे पति यदि आप के भी जीवनसाथी हैं तो उन्हें किचन के छोटेमोटे कार्यों में कुशल बनाना आप की ही जिम्मेदारी है.

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बच्चों की देखभाल करना

यदि आप कामकाजी हैं तो बच्चे की पढ़ाई, होमवर्क आदि मिल कर कराएं और हाउसवाइफ हैं तो अवकाश के दिनों में बच्चे की जिम्मेदारी पति को सौंपें. इस से जहां आप को थोड़ा सा सुकून मिलेगा, वहीं बच्चे का अपने पिता से भावनात्मक लगाव भी मजबूत होगा और पति को भी बच्चे को संभालने की आदत रहेगी.

बागबानी में लें मदद

सीमा अपने बीमार पिता को देखने के लिए 4 दिनों के लिए घर से गई. लौटी तो देखा भरी गरमी के कारण उस के सारे पौधे झुलस गए हैं.

उस ने अपने पति सोमेश से कहा, ‘‘तुम ने पौधों को पानी ही नहीं दिया, देखो सारे कैसे झुलस गए हैं.’’

‘‘मुझे क्या पता था इन्हें पानी देना है. तुम ने तो कहा ही नहीं था. अगर तुम कह जातीं तो मैं दे देता,’’ सोमेश बोला.

सही भी था, सीमा ने अपने पति से कभी गार्डन में मदद ली ही नहीं थी, इसलिए सोमेश को समझ ही नहीं आया कि पौधों को पानी की आवश्यकता है. पति की व्यस्तता के चलते भले ही आप उन से रोज काम न करवाएं परंतु अवकाश के दिन गार्डन में मदद अवश्य लें ताकि उन्हें भी पौधों की जानकारी रहे और आप की गैरमौजूदगी में पौधे आईसीयू में पहुंचने से बचे रहें.

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मार्केटिंग करवाएं

अक्षता चाहे कितनी भी थकी हो, कैसी भी स्थिति हो, सब्जी लाने का कार्य उसे ही करना होता है. वह कहती है कि आर्यन को सब्जी लेना ही नहीं आता. जब भी लाता है बासी और उलटीसीधी सब्जी ले आता है. इस प्रकार के पतियों को आप अपने साथ ले जाएं उन्हें ताजा और बासी का फर्क बताएं और समयसमय पर उन से मंगवाएं भी ताकि आवश्यकता पड़ने पर वे आप की मदद कर सकें. इस के अतिरिक्त उन से छोटामोटा किराने का सामान आदि भी मंगवाती रहें.

क्या बेहतर सुरक्षा पति से ही

हमारा समाज सदियों से पुरुषप्रधान रहा है. इस प्रधानता की देन के लिए केवल समाज ही जिम्मेदार नहीं है, बल्कि कुदरत ने भी औरत की शारीरिक संरचना ऐसी की है कि वह पुरुष की अपेक्षाकृत कमजोर है. अत: यह स्पष्ट है कि स्त्री को सुरक्षा के लिए पुरुष के सहारे की आवश्यकता है और बेहतर संरक्षक ही सुरक्षा दे सकता है, इसलिए पुरुष का स्त्री से हर क्षेत्र में बेहतर होना आवश्यक है, यह सर्वविदित है. लेकिन पुरुष कई बार संरक्षक के स्थान पर भक्षक का रूप भी ले लेता है. यह बात दीगर है कि उस के लिए खास तरह के व्यायाम कर के या ट्रेनिंग ले कर उस से औरत मुकाबला कर सकती है, लेकिन यह अपवाद है. इसीलिए पैदा होने के बाद पहले पिता के, फिर भाई के, फिर पति के और बुढ़ापे में बेटे के संरक्षण में रह कर वह स्वयं को सुरक्षित रखती है.

स्त्री पुरुष पर निर्भर क्यों

अब प्रश्न उठता है कि क्या केवल शारीरिक सुरक्षा के लिए ही स्त्री पुरुष पर निर्भर करती है? नहीं. आर्थिक, सामाजिक सुरक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है. पहले जमाने में बालविवाह का प्रावधान था ताकि लड़की ससुराल के नए परिवेश में अपनेआप को आसानी से ढाल सके. लड़कियों को शिक्षित नहीं किया जाता था. तब वे आर्थिक दृष्टि से पूर्णरूप से पुरुषों पर निर्भर रहती थीं. समाज में विवाह के पहले औरत की पहचान पिता के नाम से होती थी, विवाह के बाद पति के नाम से. उस का अपना तो जैसे कोई वजूद ही नहीं था.

जिस लड़की के विवाह के पहले पिता या भाई नहीं होता था, वह अपनेआप को बहुत असुरक्षित महसूस करती थी. यहां तक कि परिणामस्वरूप आर्थिक अभाव के कारण उस के विवाह में भी अड़चनें आती थीं. विवाह के बाद भी यदि किसी कारणवश उस के पति की मृत्यु हो जाती थी या उस के द्वारा त्याग दी जाती थी, तो उस का पूरा जीवन ही अभिशप्त हो कर रह जाता था. जैसे उसी ने कोई अपराध किया हो. उस को पुन: विवाह की भी अनुमति नहीं थी. समाज में वह मनहूस के विशेषण से नवाजी जाती थी. वह किसी भी सामाजिकमांगलिक कार्य का हिस्सा नहीं बन सकती थी. उस के पूरे कार्यकलाप के लिए सीमा रेखा खींच कर उसे प्रतिबंधित कर दिया जाता था. उसे जीवन नए सिरे से आरंभ करना पड़ता था.

उसे पुरुषों की लोलुप नजरों का शिकार हो कर जनता की संपत्ति बनते देर नहीं लगती थी. इसी प्रकार बिना पति के पत्नी का जीवन बिना पतवार के नाव के समान होता था. आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न होने के कारण उसे परिवार वालों की दया का पात्र बन कर जीवनयापन करना पड़ता था. पुरुष जैसे उस के शारीरिक, सामाजिक, आर्थिक और किसी हद तक मानसिक सुरक्षा की बीमा पौलिसी था.

क्या पुरुष सुरक्षा देने में सक्षम

पहले जमाने में हर दृष्टि से स्त्री अबला थी, इसलिए उम्र के हर पड़ाव में उसे पुरुष के संरक्षण की आवश्यकता पड़ती थी और उस के विवाह के समय हर माने में उस के अपेक्षाकृत उस से श्रेष्ठ पुरुष को ढूंढ़ा जाता था, जैसेकि उम्र में, कदकाठी में, शिक्षा में तथा आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर ताकि वह अपनी पत्नी को हर प्रकार की सुरक्षा प्रदान कर सके. लेकिन क्या इतना ध्यान रखने के बाद भी वास्तव में उसे अपने पति से सुरक्षा मिलती थी? नहीं. वह मात्र बच्चे पैदा करने वाली और घरेलू कार्य करने वाली मशीन बन कर रह जाती थी. उसे परिवार द्वारा प्रताडि़त किए जाने पर भी उस का पति आज्ञाकारी पुत्र की तरह मूकदर्शक ही बना रहता था. आर्थिक दृष्टि से भी आत्मनिर्भर होने के बावजूद वह पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों और रीतिरिवाजों के भंवरजाल में फंस कर अपने मन की कुछ भी नहीं कर पाता था तो पत्नी को क्या आर्थिक सुरक्षा देता?

रहा सवाल शारीरिक संरक्षण का तो वह पत्नी की इच्छा के विरुद्ध अपनी वासना की पूर्ति के लिए उस का बलात्कार कर के स्वयं ही रक्षक से भक्षक बन जाता है, तो औरों से सुरक्षित रखने की उस से क्या उम्मीद की जा सकती है?

बदल गया समय

अब समय बदल गया है. महिलाएं पढ़लिख कर आत्मनिर्भर और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो गई हैं. अब उन्हें अपनी पहचान के लिए किसी की पीठ के पीछे खड़े होने की आवश्यकता नहीं है. हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर कार्य कर रही हैं और समाज में प्रतिष्ठित हो रही हैं. इस का सब से अधिक श्रेय उन की आर्थिक आत्मनिर्भरता को जाता है. इस से उन के अंदर आत्मविश्वास पैदा हुआ है और वे अपने निर्णय स्वयं लेने में सक्षम हो गई हैं.

पति के सरनेम के साथ अपने विवाह पूर्व सरनेम को अपने नाम के साथ साधिकार जोड़ने लगी हैं. किसी भी दस्तावेज में पिता, पति के नाम के साथ मां और पत्नी का नाम भी मान्य होने लगा है. पैतृक संपत्ति में बेटी को भी बेटे के बराबर अधिकार मिलने लगा है. परित्यक्ताओं या विधवाओं की स्थिति भी आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से बहुत सुधरी है. वे आत्मनिर्भर होने के कारण किसी की दया की पात्र न हो कर स्वाभिमान से जीवनयापन करती हैं और उन्हें संपत्ति से भी हिस्सा मिलता है. और तो और, पुन: विवाह कर के समाज के द्वारा उन के लिए बनाई गई वर्जनाओं और कुरीतियों की धज्जियां उड़ाने में भी वे सक्षम हैं.

तो क्या आज के संदर्भ में जब पत्नी आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर है, जागरूक है, उस की सुरक्षा के लिए बेहतर पति की अपेक्षा करने की आवश्यकता नहीं है? है. जिस रफ्तार से पत्नियों की दशा में सुधार हो रहा है, उस की तुलना में समाज की उन के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया में बहुत धीमी गति से सुधार हो रहा है. वह अभी भी हर क्षेत्र में पत्नियों को पति से कमतर आंकने में ही संतुष्ट है.

समाज का रोड़ा

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, इसलिए समाज के नियमों के विरुद्ध जा कर स्थिति को संभालने की क्षमता बहुत कम लोगों में होती है. दूसरा पति का अहम भी है, जो उसे घुट्टी में पिलाया जाता है. फिर कुछ कुदरत ने भी उस की संरचना में योगदान दिया है, जो पत्नी को उस से आगे बढ़ने में रोड़े अटकाने का काम करती है. इस का बहुत अच्छा उदाहरण अमिताभ बच्चन की मूवी ‘अभिमान’ है.

लड़का लड़की से उम्र में बड़ा हो, लंबा हो, शारीरिक संरचना से भी बड़ा दिखाई दे, अधिक कमाऊ हो, हर क्षेत्र में पत्नी से बेहतर हो, इस के पीछे भी उस की पत्नी को शाशित करने की मानसिकता ही है. पति की अहम संतुष्टि के लिए तथा सामाजिक दृष्टिकोण से भी छोटी पत्नी पति के वर्चस्व के साथ आसानी से तालमेल बैठा सकती है. वैवाहिक जीवन को सफल बनाने के लिए यह आवश्यक सा हो गया है.

अधिकतर लड़कियां आज भी अपने से बेहतर पति की कामना करती हैं और ऐसे पति के साथ ही अपनेआप को सुरक्षित समझती हैं. उन के नाम से अपनी पहचान बता कर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करती हैं.

सब से ताजा खबर है कि पुरुषप्रधान लड़ाकू बेड़े में महिलाओं ने भी अपना स्थान बना लिया है. किसी भी क्षेत्र में स्त्री पुरुष से पीछे नहीं है, लेकिन हर स्त्री की सफलता के पीछे किसी न किसी पुरुष का संरक्षण है. विवाह के लिए समाज के द्वारा बनाए गए मानदंड भी अब लचीले हो रहे हैं. पतिपत्नी में आपसी समझ हो तो किसी नियमकानून को मानना आवश्यक नहीं है.

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