हैप्पी मैरिड लाइफ: जीवन का आधार

शादी अपने साथ कई चुनौतियां ले कर आती है. यदि खुशी है तो गम भी आप की जिंदगी का हिस्सा होता है. ऐसे में जरूरी है कि आप उस में संतुलन बना कर चलें. पति और पत्नी एक सिक्के के दो पहलू हैं. दोनों में  से एक को कभी भी किसी मोड़ पर दूसरे की जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में ध्यान रखना आवश्यक है कि आप उसे परेशानी नहीं समझें बल्कि अपना कर्तव्य समझ कर समझदारी से काम लें.

ऐसा ही कुछ अभिनव और आरती के साथ हुआ. अभिनव की नौकरी किसी कारणवश छूट गई जिस के चलते वह घर में रहने लगा. वह चिड़चिड़ा होने के साथ गुस्सैल स्वभाव का बरताव करने लगा. उस का ऐसा बरताव आरती से सहन नहीं हो पाया और वह अपने मायके में जा कर बैठ गई.

आरती को थोड़े संयम की आवश्यकता थी. आरती को समझने की जरूरत थी कि समय कभी एकजैसा नहीं रहता. यदि आज परेशानी है तो कल उस से छुटकारा भी मिल ही जाएगा. आइए जानें किस तरह पत्नियां स्वयं को घर में कैद न समझ, प्रेमपूर्वक अपने जीवनसाथी का साथ निभाएं :

पति, पत्नी का मजबूत रिश्ता

प्यार व विश्वास पर टिका है पतिपत्नी का रिश्ता. किसी भी इमारत को बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि उस की नींव मजबूत हो, अगर नींव मजबूत नहीं होगी तो इमारत गिरने का खतरा हमेशा बना रहेगा. ठीक इसी तरह पतिपत्नी के रिश्ते की इमारत के 2 आधार स्तंभ होते हैं प्यार और विश्वास. यही स्तंभ अगर कमजोर हों तो रिश्ता ज्यादा समय नहीं चल सकता. जिन पतिपत्नी के बीच ये दोनों बातें मजबूत होती हैं, उन का दांपत्य जीवन सुखमय बीतता है.

बीमार पड़ने पर

जब आप को पता चले कि आप का जीवनसाथी किसी बीमारी से ग्रस्त है तो जरूरी है कि आप प्यार और संयम से काम लें. जीवनसाथी में यदि पति किसी बीमारी से ग्रस्त है तो पत्नी ध्यान दे कि इस समय उन के पति को सब से ज्यादा उन के सहयोग की उन्हें आवश्यकता है क्योंकि ज्यादातर पुरुषों को कार्य के सिलसिले में बाहर रहना पड़ता है और जब उन्हें घर में बैठना पड़ जाता है तो उन से यह कतई बरदाश्त नहीं हो पाता है.

साथ ही, बीमार होने के कारण उन का चिड़चिड़ापन और बातबात में गुस्सा आना स्वाभाविक हो जाता है. ऐसे में पत्नियों का बेहद महत्त्वपूर्ण योगदान होता है. पत्नियां प्यार और धैर्य से उन्हें समझाती हैं और उन का ध्यान रखती हैं.

ऐसे बहुत से जोड़े देखने को मिलते हैं जो अपनी जिंदगी के मुश्किल दौर में एकदूसरे का साथ दे पाए हैं. यहां तक कि उन्होंने गंभीर बीमारी के साथ खुशीखुशी जीना भी सीख लिया है.

ऐसा ही कुछ अक्षय और पारुल के साथ हुआ. अक्षय की रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के कारण वह बिना किसी की मदद के जरा भी हिलडुल नहीं सकता था. उस की पत्नी पारुल ने समझदारी से उस का साथ निभाया. वह हमेशा अक्षय के साथ रहती थी, उस की हर जरूरत को पूरा करती थी, यहां तक कि करवट लेने तक में भी उस की मदद करती थी. वह अपने पति और अपने रिश्ते को पहले से भी अधिक मजबूत महसूस कर रही थी.

तालमेल है जरूरी

अकसर देखा जाता है कि पति की नाइटशिफ्ट की जौब होती है जिस में पति पूरी रात औफिस में रहता है और पूरा दिन घर में आराम करता है. या फिर शिफ्ट चेंज होती रहती है. ऐसे में जौब करना चाहते हुए भी पत्नियां अपने जीवनसाथी की देखभाल के लिए घर में रहती हैं क्योंकि औरों को देखते हुए उन की दिनचर्या का पूरा सिस्टम ही अलग तरह से चलता है. जब पति पूरी रात कार्य करेंगे तो वे पूरा दिन घर में आराम करेंगे. ऐसे में पत्नी को उन के नहाने, खाने व सोने आदि का ध्यान रखते हुए अपने कार्यों का एक रुटीन बनाना होता है.

आभा, जिन के पति की नाइटशिफ्ट की नौकरी है, बताती हैं, ‘‘मेरे पति जब घर पर आते हैं तो मैं ध्यान रखती हूं कि उन के सोने के समय में कोई भी उन्हें परेशान न करे क्योंकि वे पूरी रात के जगे होते हैं. मैं उन के आने से पहले उन का नाश्ता और बाकी सभी चीजों का ध्यान रखती हूं जो उन्हें चाहिए होती हैं. हम दोनों में किसी भी तरह का मनमुटाव नहीं है.’’

जौब छूट जाने पर

औफिस में किसी परेशानी के चलते या फिर किसी कारणवश पति की अच्छीखासी जौब छूट जाती है, तो नई जौब मिलने तक पति को अपनी पत्नी की सब से ज्यादा आवश्यकता होती है. ऐसे में सब से ज्यादा साथ देने वाली पत्नियां अपने रिश्ते को और भी मजबूत बना लेती हैं. जब पति कमा कर लाता है तो हर पत्नी को अच्छा लगता है लेकिन जब वही पति घर में बैठ जाता है तो वह उन से बरदाश्त नहीं होता है.

जौब छूटने पर पति मानसिक रूप से टूट जाते हैं लेकिन एक समझदार पत्नी  उन का ध्यान रखने के साथ उन का मनोबल बढ़ाती है, घर में रह कर उन की जरूरतों को पूरा करती है जिस से पति को किसी भी तरह तनाव महसूस न हो, वह अपने को अकेला महसूस न करे. साथ ही, नई नौकरी ढूंढ़ने में पत्नी उन का पूरा साथ देती है. वह अपने पति के खानपान और रहनसहन का पूरा खयाल रखती है. इस तरह दांपत्य खुशहाल रहता है.

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शादी के बाद भी जिएं आजादी से

स्वाति की नईनई शादी हुई है. वह मेहुल को 5 सालों से जानती है. दोनों ने एकदूसरे को जानासमझा तो दोनों को ही लगा कि वे एकदूसरे के लिए ही बने हैं. फिर अभिभावकों की मरजी से विवाह करने का निर्णय ले लिया. लेकिन आजाद खयाल की स्वाति ने विवाह से पहले ही मेहुल के सामने अपनी सारी टर्म्स ऐंड कंडीशंस ठीक वैसे ही रखीं जैसे कोई बिजनैस डील करते समय 2 लोग एकदूसरे के सामने रखते हैं. हालांकि ये लिखी नहीं गईं पर बातोंबातों में स्पष्ट कर दी गईं.

आइए, जरा स्वाति की टर्म्स ऐंड कंडीशंस पर एक नजर डालते हैं:

  1. शादी के बाद भी मैं वैसे ही रहूंगी जैसे शादी से पहले रहती आई हूं. मसलन, मेरे पढ़ने, पहननेओढ़ने, घूमनेफिरने, जागनेसोने के समय पर कोई पाबंदी नहीं होगी.
  2. तुम्हारे रिश्तेदारों की आवभगत की जिम्मेदारी मेरी अकेली की नहीं होगी.
  3. अगर मुझे औफिस से आने में देर हो जाए, तो तुम या तुम्हारे परिवार वाले मुझ से यह सवाल नहीं करेंगे कि देर क्यों हुई?
  4. मुझ से उम्मीद न करना कि मैं सुबहसुबह उठ कर तुम्हारे लिए पुराने जमाने की बीवी की तरह बैड टी बना कर कहूंगी कि जानू, जाग जाओ सुबह हो गई है.
  5. मेरे फाइनैंशियल मैटर्स में तुम दखल नहीं दोगे यानी जो मेरा है वह मेरा रहेगा और जो तुम्हारा है वह हमारा हो जाएगा.
  6. अपने मायके वालों के लिए जैसा मैं पहले से करती आ रही हूं वैसा ही करती रहूंगी. इस पर तुम्हें कोई आपत्ति नहीं होगी. मेरे और अपने रिश्तेदारों को तुम बराबर का महत्त्व दोगे.

स्वाति की इन टर्म्स ऐंड कंडीशंस से आप भी समझ गए होंगे कि आज की युवती विवाह के बाद भी पंछी बन कर मस्त गगन में उड़ना चाहती है. पहले की विवाहित महिला की तरह वह मसालों से सनी, सिर पर पल्लू लिए सास का हुक्म बजाती, देवरननद की देखभाल करती बेचारी बन कर नहीं रहना चाहती. दरअसल, आज की युवती पढ़ीलिखी, आत्मविश्वासी, आत्मनिर्भर है. वह हर स्थिति का सामना करने में सक्षम है. अपने किसी भी काम के लिए पति या ससुराल के अन्य सदस्यों पर निर्भर नहीं है. इसीलिए वह विवाह के बाद भी अपनी आजादी को खोना नहीं चाहती.

जिंदगी की चाबी हमारे खुद के हाथ में

आज की पढ़ीलिखी युवती विवाह अपनी मरजी और अपनी खुशी के लिए करती है. वह नहीं चाहती कि विवाह उस की आजादी की राह में रोड़ा बने. वह अपनी आजादी की चाबी पति या ससुराल के दूसरे सदस्यों को सौंपने के बजाय अपने हाथ में रखना चाहती है. वह चाहती है कि अगर सासससुर साथ रहते हैं, तो वे उस की मदद करें. पति और वह मिल कर बराबरी से घर की जिम्मेदारी उठाएं. आज की युवती का दायरा घर और रसोई से आगे औफिस और दोस्तों के साथ मस्ती करने तक फैल गया है. वह जिंदगी का हर निर्णय खुद लेती है. फिर चाहे वह विवाह का निर्णय हो, पसंद की नौकरी करने का हो अथवा विवाह के बाद मां बनने का.

रहूंगी लिव इन की तरह

आज की युवती के लिए विवाह का अर्थ बदल गया है. अब उस के लिए विवाह का अर्थ पाबंदी या जिम्मेदारी न हो कर आजादी हो गया है. आज वह विवाह कर के वे चीजें अपनाती है, जो उसे अच्छी लगती हैं और उन्हें सिरे से नकार देती है, जो उस की आजादी की राह में रुकावट बनती हैं. मसलन, व्यर्थ के रीतिरिवाज, त्योहार और अंधविश्वास, जो उस के जीने की आजादी की राह में बाधा बनते हैं उन्हें वह नहीं अपनाती. वह उन रीतिरिवाजों और त्योहारों को मनाती व मानती है, जो उसे सजनेसंवरने और मौजमस्ती करने का मौका देते हैं. वह अपने होने वाले पति से कहती है कि हम विवाह के बंधन में बंध तो रहे हैं, लेकिन रहेंगे लिव इन पार्टनर की तरह. हम साथ रहते हुए भी आजाद होंगे. एकदूसरे के मामलों में दखल नहीं देंगे. एकदूसरे को पूरी स्पेस देंगे. एकदूसरे के मोबाइल, लैपटौप में ताकाझांकी नहीं करेंगे. हमारी रिलेशनशिप फ्रैंड्स विद बैनिफिट्स वाली होगी, जिस में तुम यानी पति फ्रैंड विद बैनिफिट पार्टनर की तरह रहोगे, जिस में कोई कमिटमैंट नहीं होगी. हमारा रिश्ता फ्रीमाइंडेड रिलेशनशिप वाला होगा, जिस में कोई रोकटोक नहीं होगी. जब हमें एकदूसरे की जरूरत होगी, हम मदद करेंगे, लेकिन इस मदद के लिए कोई एकदूसरे को बाध्य नहीं करेगा. हमारे बीच पजैसिवनैस की भावना नहीं होगी. मैं अपने किस दोस्त के साथ चैटिंग करूं, किस के साथ घूमनेफिरने जाऊं इस पर कोई पाबंदी नहीं होगी.

आजादी मांगने व देने के पीछे का कारण

युवतियों में शादी को ले कर आए इस बदलाव के पीछे एक कारण यह भी है कि उन्होंने अपनी दादीनानी और मां को घर की चारदीवारी में बंद अपनी इच्छाओं व खुशियों को मारते देखा है. वे अपनी हर खुशी के लिए पति पर निर्भर रहती थीं. लेकिन आज स्थिति विपरीत है. आज की पढ़ीलिखी व आत्मनिर्भर युवतियां चाहती हैं कि जब वे बराबरी से घर के काम और आर्थिक मोरचे को संभाल रही हैं, तो वे विवाह के बाद आजाद क्यों न रहें? क्यों वे विवाह के बाद पति और ससुराल के बाकी सदस्यों की मरजी के अनुसार अपनी जिंदगी जीएं? आज की पढ़ीलिखी युवतियां अपनी शिक्षा व योग्यता को घर बैठ कर जाया नहीं होने देना चाहतीं. वे चाहती हैं कि जब पति घर से बाहर व्यस्त है, तो वे घर बैठ कर क्यों उस के आने का इंतजार करें और अगर वह औफिस के बाद अपने दोस्तों के साथ मौजमस्ती करने का अधिकार रखता है तो उन्हें भी विवाह के बाद ऐसा करने का पूर्ण अधिकार है.

दूसरी ओर पति भी चाहता है कि उस की पत्नी विवाह के बाद छोटीछोटी आर्थिक जरूरतों के लिए उस पर निर्भर न रहे. अगर पत्नी कामकाजी नहीं है, तो उस के घर आने पर घरपरिवार की समस्याओं का रोना उस के सामने रो कर उसे परेशान न करे, इसलिए वह उसे आजादी दे कर अपनी आजादी को कायम रखना चाहता है. तकनीक ने भी आज युवतियों को आजाद खयाल का होने में मदद की है. तकनीक के माध्यम से वे दूर बैठी अपने दोस्तों से जुड़ी रहती है और अपनी आजादी को ऐंजौय करती हैं. पति भी चाहता है कि वह व्यस्त रहे ताकि उस की आजाद जिंदगी में कोई रोकटोक न हो.

आजादी के नाम पर गैरजिम्मेदार न बनें

विवाह के बाद आजाद बन कर मस्त गगन में उड़ने की चाह रखने वाली युवती को ध्यान रखना होगा कि कहीं वह आजादी के नाम पर गैरजिम्मेदार तो नहीं बन रही? उस की आजादी से उस के घरपरिवार, बच्चों पर कोई बुरा प्रभाव तो नहीं पड़ रहा है, क्योंकि सिर्फ अपनी टर्म्स ऐंड कंडीशंस पर जीना आजादी नहीं, अपनी बात मनवाना आजादी नहीं, महज घर से बाहर निकल कर मल्टीटास्किंग करना ही आजाद खयाल का होना नहीं. विवाह बंधन नहीं, जिस में आप आजादी चाहते हैं. विवाह का अर्थ एकदूसरे के सुखदुख में भागीदार होना है. पढ़नेलिखने, आत्मनिर्भर होने का अर्थ जरूरी नहीं कि आप नौकरी ही करें. आप चाहें तो अपने आसपास के बच्चों को मुफ्त शिक्षा दें. अपनी घर की जिम्मेदारियां सुचारु रूप से निभाएं. आजादी का अर्थ है विचारों की स्वतंत्रता, पढ़नेलिखने की स्वतंत्रता, निर्णय लेने की आजादी, अपने ढंग से घर चलाने की आजादी, अभिव्यक्ति की आजादी, रुढियों व दकियानूसी विचारों से आजादी, अपना जीवन संवारने की आजादी न कि कर्तव्यों से भटकने की आजादी. प्रकृति ने महिला व पुरुष को अपनीअपनी योग्यता के अनुसार जिम्मेदारियां सौंपी हैं. उन्हीं जिम्मेदारियों का अपनी सीमाओं में रह कर पालन करना ही सही माने में आजादी है, जिस से प्रकृति का संतुलन भी कायम रहेगा और कोई किसी की आजादी का भी उल्लंघन नहीं करेगा. इसलिए सामाजिक दायरे में रह कर अपनी क्षमताएं पहचान कर अपने दायित्वों को निभाना ही सही में आजादी है.

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मैरिड लाइफ में क्यों आ रही दूरियां

सैक्सलैस विवाह के 70% केस युवा जोड़ों के हैं और यह समस्या तेजी से बढ़ रही है. इस के लिए एक ही उपाय है कि दूसरी चीजों की तरह सैक्स के लिए भी समय निकालें, क्योंकि जब आप इस का स्वाद जानेंगे तभी इसे करेंगे. कुछ समय एकदूसरे के साथ जरूर बिताएं. कन्फ्यूशियस ने कहा था कि खाना व यौन इच्छा दोनों मानव की प्राकृतिक जरूरतें हैं.

मनोविज्ञानी और मनोचिकित्सक डा. पुलकित शर्मा इस बढ़ते रोग के संबंध में कुछ सवालों के जवाब दे रहे हैं:

सैक्सलैस विवाह सामान्य होने का कोई सूचक है?

हां, है. विवाहित लोग कैरियर के तनाव से घिरे हैं और अब उन के पास अंतरंगता के लिए बिलकुल भी समय नहीं है. दूसरा, अब चिड़चिड़ाहट को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. विवादों को सुलझाने के बजाय स्त्री तथा पुरुष सैक्स की इच्छापूर्ति को बाहर ढूंढ़ रहे हैं.

क्यों कोई विवाह सैक्सलैस होता है?

यदि हम इन बातों को छोड़ दें कि किसी साथी को सैक्स संबंधी या मानसिक समस्या हो तो भी विवाह की शुरुआत सैक्सलैस नहीं होती, लेकिन बाद में हो जाती है. शुरुआत में अपनी यौन क्षमता को ले कर पुरुषों में विशेष घबराहट होती है. उन्हें डर रहता है कि वे अपने साथी को संतुष्ट कर पाएंगे या नहीं और यह डर इतना ज्यादा होता है कि वे अपनी यौन क्रिया को सही अंजाम नहीं दे पाते. शुरुआत में जोड़े सैक्स तथा अपने संबंधों को अच्छा बताते हैं, लेकिन समय के साथ प्यार तो बढ़ता है, परंतु विवाह सैक्सलैस हो जाता है.

तनाव से डिपे्रशन बढ़ता है, जिस से सैक्सुल इच्छा घटती है व प्रदर्शन ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है. तीसरा कारण है पोर्नोग्राफी. यह लोगों की कल्पनाओं को रंग देती है, जिस से वे जो रील में देखते हैं वैसा ही रियल में करने की कोशिश करते हैं.

क्या सैक्सलैस विवाह वाले जोड़े कम खुश रहते हैं?

भले ही रिश्ता अच्छा हो, परंतु सैक्सहीन विवाहित जोड़े नाखुश रहते हैं, क्योंकि सैक्स प्यार व आत्मीयता का जरूरी हिस्सा है. इस विवाह को कोई एक साथी इच्छाहीन व बेकार महसूस करता है.

क्या सैक्स को दोबारा सक्रिय किया जा सकता है?

हां. बस पहले यह जानने की जरूरत है कि समस्या कहां है? क्या यह समस्या बाह्य है जैसे तनाव, पारिवारिक माहौल आदि. इस बारे में खुल कर बात करें व बिना साथी की इच्छा से कोई फैसला न करें ताकि दूसरा साथी बुरा न महसूस करे. काम का तनाव घटा कर एकदूसरे के साथ ज्यादा समय बिताएं, आपसी विवाद सुलझाएं, यौन क्रियाओं को बढ़ाएं, एकदूसरे की जरूरतों को समझें व इच्छापूर्ति की कल्पना करें, साथी को आराम दें, उसे उत्साहित करें. मनोवैज्ञानिक से सलाह भी ले सकते हैं.

क्या सैक्सहीन विवाह वाले तलाक की ओर बढ़ रहे हैं?

हां, ऐसा हो रहा है, क्योंकि एक साथी अपनेआप को उत्तेजित महसूस करने लगता है या वह महसूस करने लगता है कि उसे धोखा दिया जा रहा है. इसलिए वह भी सैक्स का विकल्प बाहर खोजने लगता है, जिस से बंधेबंधाए रिश्ते में समस्या आने लगती है.

यौन संतुष्टि दर में कमी

भारत में हुए सैक्स सर्वे दर्शाते हैं कि पिछले दशक में यौन संतुष्टि की दर मात्र 29% रह गई. सैक्स से बचने के लिए पत्नियों की पुरानी आदत है कि आज नहीं हनी. आज मुझे सिरदर्द है. 50% पुरुष भी अपनी पत्नी से सैक्स न करने के लिए सिरदर्द का झूठा बहाना बनाते हैं. 43% पति मानते हैं कि उन की आदर्श बिस्तर साथी उन की पत्नी नहीं है. 33% के करीब पत्नियां मानती हैं कि विवाह के कुछ सालों बाद सैक्स अनावश्यक हो जाता है. 14% स्त्रीपुरुषों को नहीं पता कि वे बैडरूम में किस चीज से उत्तेजित होते हैं जबकि 18% के पास कोई जवाब नहीं है कि वे सैक्स के बाद भी संतुष्ट हुए हैं. 60% जोड़े यौन आसन के बारे में कल्पना करते हैं. फिर भी आधे से ज्यादा जोड़े नए आसन के बजाय नियमित आसन ही अपनाते हैं. 39% जोड़े ही यौन संतुष्टि पाते हैं.

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तो कहलाएंगी Wife नं. 1

आजकल अगर आप पत्नियों से यह पूछें कि पति पत्नी से क्या चाहता है तो ज्यादातर पत्नियों का यही जवाब होगा कि सौंदर्य, वेशभूषा, मृदुलता, प्यार. जी हां, काफी हद तक पति पत्नी से नैसर्गिक प्यार का अभिलाषी होता है. वह सौंदर्य, शालीनता, बनावट और हारशृंगार भी चाहता है. पर क्या केवल ये बातें ही उसे संतुष्ट कर देती हैं?

जी नहीं. वह कभीकभी पत्नी में बड़ी तीव्रता से उस की स्वाभाविक सादगी, सहृदयता, गंभीरता और प्रेम की गहराई भी ढूंढ़ता है. कभीकभी वह चाहता है कि वह बुद्धिमान भी हो, भावनाओं को समझने वाली योग्यता भी रखती हो.

बहलाने से नहीं बनेगी बात

पति को गुड्डे की तरह बहलाना ही पत्नी के लिए पर्याप्त नहीं. दोनों के मध्य गहरी आत्मीयता भी जरूरी है. ऐसी आत्मीयता कि पति को अपने साथी में किसी अजनबीपन की अनुभूति न हो. वह यह महसूस करे कि वह उसे सदा से जानता है और वह उस के दुखसुख में हमेशा उस के साथ है. पतिपत्नी के प्यार और वैवाहिक जीवन में यह आत्मिक एकता जरूरी है. पत्नी का कोमल सहारा वास्तव में पति की शक्ति है. यदि वह सहृदयता और सूझबूझ से पति की भावनाओं का साथ नहीं दे सकती, तो वह सफल पत्नी नहीं कहला सकती. पत्नी भी मानसिक तृष्णा अनुभव करती है. वह भी चाहती है कि वह पति के कंधे पर सिर रख कर जीवन का सारा बोझ उतार फेंके.

बहुतों का जीवन प्राय:

इसलिए कटु हो जाता है कि वर्षों के सान्निध्य के बावजूद पति और पत्नी एकदूसरे से मानसिक रूप से दूर रहते हैं और एकदूसरे को समझ नहीं पाते हैं. बस यहीं से शुरू होती है दूरी. यदि आप चाहती हैं कि यह दूरी न बढ़े, जीवन में प्रेम बना रहे तो निम्न बातों पर गौर करें:

यदि आप के पति दार्शनिक हैं तो आप दर्शन में अपनी जानकारी बढ़ाएं. उन्हें कभी शुष्क या उदास मुखड़े से अरुचि का अनुभव न होने दें.

यदि आप कवि की पत्नी हैं, तो समझिए वीणा के कोमल तारों को छेड़ते रहना आप का ही जीवन है. सुंदर बनी रहें, मुसकराती रहें और  सहृदयता से पति के साथ प्रेम करें. उन का दिल बहुत कोमल और भावुक है, आप की चोट सहन न कर पाएगा.

आप के पति प्रोफैसर हैं तो आटेदाल से ले कर संसार की प्रत्येक समस्या पर हर समय व्याख्यान सुनने के लिए प्रसन्नतापूर्वक तैयार रहें.

यदि आप के पति धनी हैं, तो उन के धन को दिमाग पर लादे न घूमें. धन से इतना प्रभावित न हों कि पति यह विश्वास करने लगे कि सारी दिलचस्पी का केंद्र उस की दौलत है. आप दौलत से बेपरवाह हो कर उन के व्यक्तित्व की उस रिक्तता को पूरा करें जो हर धनिक के जीवन में होती है. विनम्रता और प्रतिष्ठतापूर्वक दौलत का सही उपयोग करें और पति को अपना पूरा और सच्चा सान्निध्य दें.

यदि आप के पति पैसे वाले न हों तो उन्हें केवल पति समझिए गरीब नहीं. आप कहें कि आप को गहनों का तो बिलकुल शौक नहीं है. साधारण कपड़ों में भी अपना नारीसौंदर्य स्थिर रखें. चिंता और दुख से बच कर हर मामले में उन का साथ दें.

हमेशा याद रखें कि सच्चा सुख एकदूसरे के साथ में है, भौतिक सुखसुविधाएं कुछ पलों तक ही दिल बहलाती हैं.

जब बीवी बन जाए घर में बौस

राकेश अपने दफ्तर में सीनियर पोस्ट पर काम करता है. औफिस में उस की खूब चलती है. कई लोग उस के नीचे काम करते हैं. मगर उस का यह रोब और रुतबा घर आते ही खत्म हो जाता है, क्योंकि घर आते ही बीवी का मिजाज देखते ही उस के हौसले पस्त हो जाते हैं. बीवी के आगे उस की एक नहीं चलती. बीवी की जीहुजूरी के अलावा राकेश के पास कोई और चारा नहीं है. आखिर बात घर में शांति की है.

यह कहानी सिर्फ राकेश की ही नहीं है, बल्कि ऐसे बहुत से पति हैं, जिन्हें बीवी के इस तरह के ऐटिट्यूड को ले कर हमेशा शिकायत रही है. लेकिन वे चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाते. माना यह समस्या मुश्किल है, लेकिन ऐसी भी नहीं कि इस से निबटा ही न जा सके. बस इस के लिए थोड़ी सी समझदारी और हिम्मत की जरूरत है.

इस चिकचिक डौट कौम से कैसे बचें

टहल आएं: जब बीवी ऐसा ऐटिट्यूड दिखाने के मूड में हो तो इधरउधर टहल लें. मतलब उस सिचुएशन में पड़ने से बचें. उस स्थिति से जितना बचेंगे तकरार की संभावना उतनी ही कम होगी.

काम करें लेकिन सोचसमझ कर: अगर दफ्तर से आते ही या घर पर खाली बैठा देख कर वह आप को घर का काम करने का हुक्म सुनाती है और खुद टीवी के सामने बैठ जाती है तो उस से कहें कि आप भी अभी थक कर आए हैं या अभी मैं रिलैक्स कर रहा हूं, थोड़ी देर बाद दोनों मिल कर सारा काम निबटा लेंगे. घर का काम पुरुष नहीं कर सकते, ऐसा नहीं है, लेकिन वह किस ढंग और ऐटिट्यूड के साथ कराया जा रहा है उस पर डिपैंड करता है.

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वार्निंग दें: न तो आप खुद बेवजह बीवी पर चिल्लाएं और न ही उसे ऐसा करने दें. उसे समझाएं कि बात आराम से भी हो सकती है वरना चिल्लाना आप को भी आता है. इस से वह अगली बार आप से बदतमीजी करने से पहले एक बार जरूर सोचेगी.

आपसी विश्वास बढ़ाएं: बीवी को प्यार से भी समझाया जा सकता है कि उसे उस का इस तरह का व्यवहार आप को बिलकुल पसंद नहीं है. उसे खुद में थोड़ा बदलाव लाने की जरूरत है. साथ में यह भी कहें कि अगर उसे भी आप में कुछ खामियां नजर आती हैं तो आप भी खुद को बदलने को तैयार हैं. इस से आप दोनों के बीच आपसी समझ और विश्वास बढ़ेगा.

नेक सलाह

– ज्यादा रोब जमाने के चक्कर में कहीं ऐसा न हो कि पति की नजरों में आप की इज्जत एक धेले की भी न रह जाए.

– हो सकता है कि आप दफ्तर में अपने पति की बौस हों, लेकिन यह बात कभी न भूलें कि यह घर है आप का दफ्तर नहीं. इसलिए हर बात में हुक्म न चलाएं.

– पति की तो छोडि़ए, बच्चे भी आप से डरने लगेंगे और पीठ पीछे आप की चुगली करेंगे कि मम्मा कितनी बुरी हैं और यह बात आप को कभी पसंद नहीं आएगी.

ऐटिट्यूड के कारण जानें

– क्या वह आप से कहीं ज्यादा गुड लुकिंग है

– क्या वह दफ्तर में भी आप की बौस है

– क्या वह बहुत अमीर घर से है

– क्या वह अपने मायके में बच्चों में सब से बड़ी है जो अपने भाईबहनों पर रोब चलातेचलाते यह उस की आदत हो गई

– क्या आप दोनों के बीच कुछ ऐसी बातें हैं, जिन की वजह से पत्नी फ्रस्ट्रेट फील करती हो और उस का गुस्सा वह आप पर निकालती हो

जब बेवजह आए गुस्सा

यदि आप को अकसर गुस्सा आता है और आप अपने साथी पर बेवजह चिल्लाते हैं, तो आप को अपने खून में ग्लूकोज के स्तर की जांच करानी चाहिए. ग्लूकोज का स्तर सामान्य से कम होने पर लोग गुस्सैल और आक्रामक हो जाते हैं.

ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में संचार एवं मनोविज्ञान के प्रोफैसर ब्रैड बुशमैन का कहना है कि अध्ययन से पता चला है कि किस तरह भूख जैसा सामान्य सा कारक भी परिवार में कलह, लड़ाईझगड़ा और कभीकभी घरेलू हिंसा की वजह बन जाता है.

शोध में 107 विवाहित युगलों पर अध्ययन किया गया, जिस में हर जोड़े से पूछा गया कि अपने विवाहित जीवन से संतुष्ट होने के बारे में उन की क्या राय है  21 दिनों तक किए गए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि विवाहित जोड़े में हर शाम ग्लूकोज का स्तर साथी के साथ संबंधों पर प्रभाव डालता है.

जिन लोगों में ग्लूकोज का स्तर कम पाया गया, वे अपने साथी पर ज्यादा गुस्सा करते हैं, उन पर हावी होने की कोशिश कर उन्हें दबाने के प्रयास में तेज आवाज में बात करते हैं. ग्लूकोज का स्तर कम होने से उत्पन्न भूख और क्रोध की स्थिति बेहद करीबी रिश्तों को भी प्रभावित कर सकती है.

सम्मान न खोने दें: आप ने प्यारप्यार में कुछ ज्यादा ही छूट तो नहीं दे दी जो उस का गलत फायदा उठा कर वह आप के सिर पर सवार होने की कोशिश कर रही हो. अत: प्यार करें, लेकिन अपने सम्मान को न खोने दें.

अपने दब्बूपन को बदलें: खुद को भी टटोलें कि कहीं आप कुछ ज्यादा ही दब्बू तो नहीं हैं  हर जगह चाहे पड़ोसी से लड़ाई हो या रिश्तेदारी में कोई बात, आप अपनी बीवी को आगे तो नहीं कर देते  अगर ऐसा है तो सब से पहले अपनी इस आदत को बदलें, क्योंकि बाहर रोब जमातेजमाते यह ऐटिट्यूड वह घर में आप पर भी अपनाने लगी है.

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हिम्मत भी दिखाएं: हर बार टालना भी कोई उपाय नहीं है. इसलिए एक बार हिम्मत कर के आमनेसामने बात कर ही लें कि आखिर इस तरह के व्यवहार की वजह क्या है  पत्नी को साफसाफ शब्दों में यह भी समझा दें कि अब इस तरह की बातें आप और सहन नहीं करेंगे. हो सकता है आप की इस धमकी के बाद वह सुधर जाए.

बिजी रखें: आप खुद को बिजी रखें ताकि आपस में उलझने के मौके कम आएं. जब आप खुद को बिजी रखेंगे तो वह भी आप से कम ही बोलेगी.

ओवर रिऐक्ट न करें: यह भी हो सकता है कि वह सही बात कह रही हो, बस कहने का अंदाज थोड़ा कर्कश हो. यह उस का नेचर भी हो सकता है, इसलिए यह भी सोचें कि कहीं आप ही तो ओवर रिऐक्ट नहीं कर रहे.

पति का टोकना जब हद से ज्यादा बढ़ जाए, तो उन्हें इस तरह कराएं एहसास

कविता शादी से पहले ही शहर के एक सरकारी स्कूल में टीचर थी. जब उस की शादी हुई तो वह जो कुछ उस के ससुराल वाले कहते उसे मानने लगी. फिर उसी के अनुसार उस ने अपने रहने, खाने व पहननेओढ़ने की जीवनशैली बना ली. कविता का ससुराल पक्ष ग्रामीण क्षेत्र से था, लेकिन शहरी होने के बावजूद भी उस ने हर एक पारंपरिक रीतिरिवाज को बड़ी आसानी से अपना लिया. लेकिन परिवार, पति, बच्चों व नौकरी के साथ बढ़ती जिम्मेदारियों का चतुराई से सामंजस्य बैठाना उस के लिए शादी के 15 साल बाद भी एक चुनौती है. वक्त के साथ सब कुछ बदलता है. लेकिन कविता की ससुराल में कुछ भी नहीं बदला. बदलाव के इंतजार में वह घुटघुट कर जीती आई है और अभी भी जी रही है.

उस के पति की धारणा यह थी कि शादी के बाद पत्नी का एक ही घर होता है, और वह है पति का घर. दकियानूसी सोच की वजह से अकसर कविता के घर से उस की अनर्गल बातें सुनाई पड़ जाती थीं. जैसे, साड़ी ही पहनो, सिर पर पल्लू रख कर चला करो, घर में मम्मीपापा के सामने घूंघट निकाल कर रहा करो, सुबह नाश्ते में यह बनाना… दोपहर का खाना ऐसा बनाना… रात का खाना वैसा बनाना आदि. कपड़े वाशिंग मशीन में नहीं हाथ से ही धोने चाहिए, क्योंकि मशीन में कपड़े साफ नहीं धुलते. कविता को बचपन से ही अपने पैरों पर खड़ा होने का शौक था और इस जनून को पूरा करने के लिए वह हालात से समझौता करने के लिए तैयार थी.

समय बीतने पर वह प्रमोट हो कर प्रथम ग्रेड टीचर बन गई. उस के बच्चे 9वीं और 10वीं कक्षा में अध्ययन कर रहे थे. लेकिन अभी भी उसे स्पष्ट निर्देश मिले हुए थे कि बस से आयाजाया करो. अगर पैदल जाओ तो इसी रास्ते से पैदल वापस आया करो और ध्यान रहे स्कूल के अलावा अकेली कहीं मत जाना. मानसिक तनाव झेलती कविता इन सब बातों से झल्ला उठी, क्योंकि वह स्कूल में सहयोगियों और पड़ोसिनों के लिए उपहास का पात्र बन गई थी. उस ने मन में ठान ली कि वह अब यह सब धीरेधीरे खत्म कर देगी और खुद की जिंदगी जिएगी. हर गलत बात का पालन और समर्थन नहीं करेगी.

आधुनिकता का वास्ता

उस ने ऐसा सोचा और फिर एक बार बोल क्या दिया तानों, बहस व कोसने का सिलसिला शुरू हो गया. लेकिन कविता ने परिवर्तन करने की ठान ली. वह धीरेधीरे घूंघट हटा कर सिर तक पल्ला लेने लगी. फिर आधुनिकता का वास्ता दे कर सूट भी पहनने लगी तो पति तिलमिला गया. उस के तिलमिलाने से कविता ने जब यह कहा कि मैं थक चुकी हूं और अब नौकरी नहीं करना चाहती. जितना करना था कर लिया. अब मैं आप का, बच्चों और परिवार का ध्यान रखूंगी और इस के लिए मैं घर पर ही रहूंगी. सुनते ही पति बौखला गया और यह कह कर, ‘‘धौंस देती है नौकरी की… छोड़ दे… अभी ही छोड़ दे… क्या तेरे नौकरी नहीं करने से मेरा घर नहीं चलेगा,’’ घर से बाहर निकल गया. 2 घंटे बाद वह वापस आया और बोला, ‘‘ठीक है, पहन लो सूट लेकिन लंबे और पूरी बांहों वाले कुरते ही पहनना और चूड़ीदार नहीं, सलवार पहनोगी.’’ आधुनिकता की दिखावटी केंचुली में खुद को फंसा पा कर कविता खुद को बेहद अकेला महसूस कर रही थी और उस की आंखों से अनवरत आंसू बह रहे थे, जिन्हें समझने का दम न उस के पति के पास था और न घर के अन्य सदस्यों के पास.

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रूढि़वादी सोच

अशोक 5 भाइयों में मझला भाई है. वह पढ़ालिखा है लेकिन उस की सोच शुरू से ही, मातापिता व अन्य भाइयों से बिलकुल विपरीत कट्टर, रूढि़वादी और परंपरावादी रहा है. उस के मातापिता व घर के अन्य सदस्य वक्त के साथ बदले लेकिन वह बिलकुल नहीं बदला. उस की बेबुनियादी बातें, व्यवहार एवं आचरण पहले जैसा है. अशोक की शादी निशा से हुई. शादी के बाद होली निशा का पहला त्योहार था. उसे होली के एक दिन पहले ही अशोक द्वारा कठोर निर्देश मिल गए थे कि कल होली है, ध्यान रहे रंग नहीं खेलना है. निशा बोली, ‘‘क्यों…?’’ तो अशोक ने कहा, ‘‘क्यों कोई मतलब नहीं, बस नहीं खेलना तो नहीं खेलना.’’ निशा ने सोचा कि हो सकता है कि इन के यहां होली के त्योहार पर कभी कोई दुखद घटना घटी हो, इसलिए इन के यहां नहीं खेलते होंगे. दूसरे दिन देखा कि घर के सभी लोग चहकचहक कर होली खेल रहे हैं. वह दिल ही दिल में अचंभित हो रही थी कि अशोक ने मुझे तो मना किया है तो ये सब क्या है… सब क्यों खेल रहे हैं?

वह सोच ही रही थी कि सब ने आ कर होली है भई होली है कह कर उसे गुलाबी रंग के गुलाल से रंग दिया. यह सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि वह सकपका गई और इनकार करने का भी समय उसे नहीं मिल पाया. फिर वह अशोक की कही बात सोच ही रही थी कि अशोक आ गया और आवाज दी, ‘‘निशा.’’ निशा आवाज सुन कर बहुत खुश हुई कि चलो अच्छा हुआ जो ये आ गए. आज हमारी पहली होली है. उस का दिल गुदगुदा रहा था. अशोक के पास आते ही उस ने हरे रंग का गुलाल मुट्ठी में भर लिया और ज्यों ही अशोक के गाल पर लगाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, अशोक ने उस का हाथ झटक दिया. उस के हाथ का सारा गुलाल हवा में फैल कर बिखर गया. इस अप्रत्याशित आक्रामकता के लिए निशा कतई तैयार नहीं थी.

अशोक की आंखें तर्रा रही थीं. वह तेज आवाज में बोला, ‘‘जब तुम्हें मना किया था कि होली नहीं खेलना है तब क्यों होली खेली?’’ निशा सिर झुका कर बाथरूम में चली गई. फिर पूरे दिन निशा का मूड खराब रहा. रात को बिस्तर पर अशोक ने अपनी सफाई देते हुए कहा, ‘‘होली नहीं खेलना. मैं ने सिर्फ इसलिए कहा था कि इस के रंगों से घर में गंदगी हो जाती है साथ ही चमड़ी भी खराब हो जाती है.’’

बातबात पर टोकना

निशा ने अपने पति की इस बात को सकारात्मक लिया तो बात आईगई हो गई. लेकिन धीरेधीरे विचारों की परतें उधड़ने और खुलने लगीं. हर बात पर टोकाटाकी फिर तो जैसे उस की झड़ी ही लग गई.

‘‘पड़ोसिनों से ज्यादा बात मत किया करो… टाइम पास औरतें हैं वे.’’

‘‘बाल खुले मत रखा करो… ऐसी चोटी नहीं वैसी बनाया करो, नहीं तो बाल खराब हो जाएंगे.’’

‘‘सहेलियों से मोबाइल पर ज्यादा बात नहीं किया करो… बारबार बात करने से मोबाइल खराब हो जाता है और मस्तिष्क पर भी बुरा असर पड़ता है. साथ ही पैसे का मीटर भी खिंचता है.’’

‘‘टीवी ज्यादा मत देखो, आंखें कमजोर हो जाएंगी.’’

‘‘घर की बालकनी में मत खड़ी हुआ करो, कई तरह के लोग यहां से गुजरते हैं.’’

‘‘सभी के खाना खाने के बाद तुम खाना खाया करो. मर्यादा और लक्ष्मण रेखा में रहा करो.’’

निशा भीतर ही भीतर कसमसा गई. फिर उस के द्वारा अपने अधिकारों की मांग शुरू हुई तो अशोक उस को छोड़ देने की बारबार धमकी देने लगा. समय रुका नहीं और अशोक की आदतें भी नहीं छूटीं. अब निशा चिड़चिड़ी रहने लगी. उस के गर्भ में अशोक का बच्चा पल रहा था. वह आवाज उठाने का प्रयास करती तो सीधे उस के खानदान को गाली मिलती. धीरेधीरे वह अवसाद में आने लगी. उस से उबरने और अपना ध्यान हटाने के लिए कभी मैगजीन पढ़ती या कोई संगीत सुनती तो भी ताने कि पैसा खर्च होता है… समय खराब होता है… स्वास्थ्य खराब होता है.

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बदलनी होगी सोच

निशा अब अपना दिमागी संतुलन खोने लगी, क्योंकि अशोक का छोटीछोटी बातों में मीनमेख निकालना और उसे बातबात पर ताने देना कम नहीं हो रहा था. वह रोती तो उस के आंसू मगरमच्छ के आंसू समझ लिए जाते. निशा अधिक घुटन नहीं सह सकी तो अपने मायके आ गई. वहां उस को बेटा हुआ. अशोक उसे देखने नहीं आया, उस ने तलाक के कागज पहुंचा दिए. पर निशा ने तलाक के पेपर साइन नहीं किए. उस का बेटा 4 साल का हो चुका है, वह आज भी प्रयासरत है कि अशोक उसे अपने घर ले जाएं. पर अशोक ऐसा बिलकुल नहीं सोचता. वह कहता है कि निशा उस की एक नहीं सुनती. जबकि सच तो यह है कि अहंकारी, जिद्दी एवं स्वार्थी अशोक को हां में हां करने वाली गुडि़या चाहिए. सहयोगिनी एवं अर्द्धांगिनीनहीं. कहीं कम तो कहीं ज्यादा अहं और स्वार्थ पति पत्नी पर लाद देने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन यह नहीं सोचते कि कोई पत्नी दिल से ऐसे रिश्तों को कैसे पाल सकती है और निभा सकती है? ऐसे रिश्ते चलते नहीं घिसटते हैं और बाद में नासूर बन जाते हैं. जुल्म बड़ा आसान लगता है मगर पत्नी की भावनाओं को दफना कर क्या पति खुद सुख के बिस्तर पर सो पाता है?

यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस प्रकार सुबह उठ कर दांतमुंह व शरीर की सफाई जरूरी है वैसे ही सुखद एवं स्थायी रिश्तों के लिए मानसिक एवं विचारात्मक सफाई भी जरूरी है. पतिपत्नी दोनों का ही दायित्व बनता है कि वे अपनी गलतियां सुधारें और एकदूसरे की भावनात्मक, शारीरिक एवं मानसिक जरूरतें समझ कर कदम से कदम मिला कर साथसाथ चलने को तत्पर रहें. वे इस बात का खयाल रखें कि एकदूसरे के प्रति कभी नफरत के बीज न पनपने पाएं.

ताकि प्यार कम न हो

आज जब रंजना दफ्तर में आई तो कुछ रोंआसी सी दिखी. हमेशा मुसकराने वाली रंजना के चेहरे के भाव किसी से छिपे नहीं रहे तो सभी सहेलियां उस से पूछने लगीं, ‘‘रंजना क्या बात है,आज तेरे चेहरे की रंगत कुछ फीकीफीकी क्यों नजर आ रही है?’’

‘‘कुछ नहीं, बस ऐसे ही.’’

उस का जवाब सुन सभी समझ गए कि कुछ बात जरूर है, लेकिन वह बताना नहीं चाहती.

थोड़ी देर में रंजना इस्तीफा ले कर बौस के पास गई. बौस भी उस के उदास चेहरे और अचानक इस्तीफे को देख कर सोच में पड़ गईं. बोलीं, ‘‘बैठो रंजना, क्या बात है, यह अचानक इस्तीफा क्यों?’’

यहां औफिस में तुम्हारी प्रतिष्ठा भी अच्छी है. फिर क्या तकलीफ है तुम्हें?’’

बौस की बात सुन रंजना की आंखों में आंसू आ गए. बोली, ‘‘मैडम, वैसे तो कोई खास बात नहीं. लेकिन जब से शादी हुई है, हम दोनों पतिपत्नी में कुछ न कुछ झगड़ा चलता ही रहता है. दोनों नौकरी वाले हैं. घर तो संभालना ही पड़ता है, ऊपर से मेरे पति की टूरिंग जौब. इसलिए सोचती हूं कि मैं ही नौकरी छोड़ दूं.’’

‘‘तो यह बात है,’’ रंजना की बौस बोलीं, ‘‘लेकिन रंजना ये सब तो छोटीमोटी बातें हैं. शायद सभी को ऐसी परेशानियां हों, फिर भी कितनी महिलाएं दफ्तर में काम कर रही हैं. ऐसे हिम्मत हारने से थोड़े ही काम चलता है. मैं स्वयं भी तो इतने सालों से नौकरी कर रही हूं.’’

अपनी बौस की बात सुन कर रंजना मुंह बना कर बोली, ‘‘आप तो जौब में वैल सैटल्ड हैं मैडम, लेकिन मेरी जौब भी नई और शादी भी. पता नहीं सब क्यों मैनेज नहीं हो पा रहा.’’

‘‘पहले तो तुम अपना त्यागपत्र वापस लो, उस के बाद यदि तुम उचित समझो तो अपनी घरेलू समस्या मुझे बता सकती हो. हो सकता है मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं,’’ रंजना की बौस ने मुसकरा कर कहा.

उन्हें मुसकराते और मदद को तैयार देख रंजना में थोड़ी हिम्मत आ गई. वह मुसकरा कर बोली, ‘‘सिर्फ एक परेशानी नहीं, समय तो इतना मिलता नहीं, सो कई बार तो खाना नहीं बना पाती और पति को खाना समय पर और स्वाद में भी अच्छा चाहिए.

‘‘दूसरे मेरे पति हैं फिटनैस और फैशन कौंशस. वे चाहते हैं कि मैं उन के साथ रोज वाक पर जाऊं, सुबह जल्दी जागूं. पर रात को सोतेसोते ही इतनी देर हो जाती है कि सुबह नींद ही नहीं खुलती. बस ऐसी ही छोटीछोटी बातें हैं, जिन के कारण हमारे संबंध में दरार पड़ने लगी है,’’ रंजना ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं रंजना, पर इतनी छोटीछोटी बातों के लिए कोई इतने बरसों की मेहनत पर पानी फेरता है क्या? ये सब समस्याएं तो शायद सभी के घर में होंगी. तुम पहली नहीं हो. मेरे

20 साल के तजरबे में ऐसी बहुत महिलाएं आई हैं, जो किसी न किसी कारण से नौकरी छोड़ देना चाहती थीं, पर आज अच्छे पद पर काम कर रही हैं. अगर पतिपत्नी दोनों नौकरी वाले हों तो निम्न बातें ध्यान में रखनी होती हैं ताकि वैवाहिक जीवन सुखमय हो सके:

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घरेलू काम का दबाव कम हो

सब से पहले तुम्हें टाइम मैनेजमैंट करना पड़ेगा. जैसे तुम्हें सुबह 9 बजे दफ्तर पहुंचना है और वाक के लिए भी जाना है, तो कम से कम 3 घंटे तो चाहिए कि तुम वाक करो, दफ्तर के  लिए तैयार हो और अपना नाश्ता भी आराम से कर सको.

सुबह सफाई के लिए एक और खाने के लिए एक कुक का इंतजाम कर लो. जब तुम सुबह उठो उसी समय उसे बुलाओ ताकि जब तक वह खाना व नाश्ता तैयार करे तुम वाक कर के आ जाओ. इस से तुम्हें व तुम्हारे पति को आपस में बातचीत का समय भी मिलेगा और तुम्हारी फिटनैस भी बरकरार रहेगी. घर आओ, नाश्ता करो और दोनों तैयार हो कर अपनेअपने दफ्तर निकल जाओ. ऐसे ही उसे शाम के समय बुलाओ ताकि तुम पर घरेलू काम का दबाव कम हो जाए.

क्वांटिटी नहीं क्वालिटी टाइम आवश्यक

पतिपत्नी जब साथ समय बिताएं तो एकदूसरे के बारे में और अपने घर के बारे में बातें करें न कि इधरउधर की. नौकरी वाली महिला के पास तो समय की भी कमी होगी सो पतिपत्नी दोनों ही अपने हर पल को क्वालिटी पल बनाने की कोशिश करें. एकदूसरे के सुखदुख के बारे में बातें करें न कि इधरउधर की. जरूरी बातों के अलावा जितना हो सके एकसाथ मनोरंजन में समय व्यतीत करें.

सैक्स लाइफ भी है आवश्यक

जिस तरह खानापीना, सोना हमारे शरीर की जरूरत है उसी तरह सैक्स भी बेसिक नीड है. विवाहित जीवन में यदि पतिपत्नी दोनों में से किसी एक को भी सैक्सुअल संतुष्टि नहीं है तो रिश्ते में दरार पड़ते देर नहीं लगती.

एकदूसरे की भावनाओं की कद्र करें कई बार न चाहते हुए भी गलत शब्द मुंह से निकल जाता है, जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए. लेकिन ऐसी स्थिति में भी बात आगे नहीं बढ़ाना चाहिए.

रखें भरोसा

पत्नी पति पर शक करती हैं और अपने वैवाहिक जीवन को नर्क बना लेती हैं. इस में समझने की बात यह है कि अब जब स्त्री और पुरुष दफ्तर में एकसाथ काम कर रहे हैं तो किसी न किसी का आपस में लगाव होना स्वाभाविक है. ऐसे में पतिपत्नी आपस में एकदूसरे पर भरोसा रखें तो अलगाव की स्थिति पैदा नहीं होगी.

फाइनैंशियल प्लानिंग भी है आवश्यक

जब पतिपत्नी दोनों मिल कर घर के खर्च की जिम्मेदारी उठाएं तो आपसी निकटता बढ़ना स्वाभाविक है. इसलिए प्लानिंग बहुत जरूरी है कि कौन कितना और कहां खर्च करेगा? अपनीअपनी तनख्वाह के लिए घर में झगड़ा न हो तो अच्छा.

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बांटिए घर व बाहर के काम भी

जहां पत्नी भी कामकाजी है तो यह तो तय है कि उस पर दोहरी जिम्मेदारी हो जाती है. ऐसे में यदि पति उसे घर के काम में मदद करे तो वह अपने कामकाजी होने का महत्त्व समझती है औैर दोनों यदि साथ मिल कर काम करें तो बातबात में काम हो जाता है, जिस से समय की बचत तो होती ही है, पत्नी को भी यह एहसास नहीं होता कि वह दोहरी जिंदगी जी रही है. दोनों के मन में प्यार का एहसास भी बना रहता है. यदि बच्चे हैं तो उन की देखरेख और पढ़ाई में दोनों को मिल कर भागीदारी निभानी चाहिए. जैसे कभी पीटीएम के लिए पति छुट्टी ले तो कभी पत्नी. उन्हें स्कूल छोड़ने की जिम्मेदारी भी दोनों की हो.

कभी कभी डेट पर जाएं

कामकाजी दंपती को आपस में बिताने के लिए समय हमेशा कम ही पड़ता है. ऐसे में जब बच्चे भी हों तो वह समय औैर भी बंट जाता है. तो कभीकभी डेट पर भी जाएं यानी एक दिन सुनिश्चित कर लें और सिर्फ दोनों ही जाएं. बच्चे को किसी पड़ोसी, आया, घर में कोई बड़ा हो तो उन की निगरानी में छोड़ कर जाएं. बच्चों व नौकरी के रहते कई बार पतिपत्नी आपस में कई दिनों तक बात भी नहीं कर पाते, जिस से आपस में दूरियां बनने लगती हैं.

रहें अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार

सुधा बड़े ही हंसमुख स्वभाव की थी. जब वह खिलखिला कर हंसती तो समझो सब के दिलों पर बिजलियां गिर जातीं. बस ऐसे ही किसी सहकर्मी को उस से प्यार हो गया और उस ने इजहार करने में भी देर न लगाई. लेकिन सुधा अपने परिवार के बारे में न सोच उस बहाव में बह गई. जब उस के पति को यह बात मालूम हुईर् तो उसे जरा भी बरदाश्त नहीं हुआ क्योंकि वह स्वयं एक जिम्मेदार एवं बहुत प्यार करने वाला पति है. नतीजा दोनों अलगअलग रहने लगे और इस का नुकसान भुगता उन के बच्चों ने. महिलाओं और पुरुषों के एकसाथ दफ्तर में काम करने से कईर् बार लगाव होना स्वाभाविक होता है. इस स्थिति में परिवार टूटने की शतप्रतिशत संभावना रहती है. अत: अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहने की पूरी कोशिश करें एवं दफ्तर में व्यवहार की सीमाएं स्वयं तय करें.

अपने बौस के द्वारा बताए गए इतने सारे किस्से सुन कर रंजना को अपनी परेशानी बहुत छोटी लगी. अत: कहने लगी, ‘‘मैडम, आप की बातें सुन कर मेरी थोड़ी हिम्मत बंधने लगी है. मैं एक बार और सोचती हूं,’’ और फिर मुसकराते हुए कैबिन से बाहर चली गई.

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आज पूरे 7 वर्ष हो गए उसे विवाह पश्चात नौकरी करते हुए. इन 7 वर्षों में एक बेटी की मां भी बन गई. वह बहुत खुशहाल जिंदगी जी रही है. जब भी अपनी बौस से मिलती है, उन का शुक्रिया अदा करना नहीं भूलती.

क्यों होते हैं एक्सट्रा मैरिटल अफेयर्स

रूटीन जहां हमें व्यवस्थित रखता है वहीं कई बार बोर भी कर देता है. वर्षों तक साथ रहने के बाद जीवनसाथी के प्रति हम लापरवाह से हो जाते हैं. ‘टेकन फौर ग्रांटेड’ होते ही हर अच्छाई कर्तव्य और हर बुराई अवगुण हो जाती है. आज के जमाने की तकनीक भी हमारी निजता को बनाए रखने में कारगर है. फलतया ऐक्सट्रा मैरिटल अफेयर्स आज आम हो गए हैं. क्यों हो जाते हैं पार्टनर बेवफा? क्या दैहिक विविधता की तलाश होती है या जीवन में नएपन की, रोमांस की जरूरत महसूस करते हैं या भावनात्मक साथ की? छिपाने और झूठ बोलने का रोमांच उन्हें अच्छा लगता है या वाकई वे आसक्त रहते हैं? आइए जानते हैं:

महिलाएं ध्यान चाहती हैं: विवाह काउंसलर और विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाएं अकेलेपन को कम करना चाहती हैं. वे इसीलिए मित्रता करती हैं कि कोईर् उन्हें ध्यान से सुने. विवाहित जीवन में अकसर पति या बच्चे महिला को समझ नहीं पाते और यही उन के जीवन की सब से बड़ी विडंबना बन जाती है.

बीइंग ऐप्रिशिएटेड: ऐप्रिशिएट होने की इच्छा हम सब को होती है. हम में से प्रत्येक दूसरे से प्रशंसा सुन कर संतुष्टि पाता है. पर विवाह के गुजरते वर्षों में एकदूसरे को ऐप्रिशिएट करना हम कम कर देते हैं.

पुरुष अपनी पावर और इंटेलैक्ट के लिए पहचाने जाना चाहते हैं: पुरुषों को अपनी व्यवस्था संबंधी योग्यताओं पर बहुत नाज होता है. वे स्ट्रौंग ह्यूमंस के रूप में पहचाने जाना चाहते हैं.

स्त्रियों को डिजायरेबल लगना पसंद है: स्त्रियों को सैल्फ ऐस्टीम और सैक्सी फील करने के लिए पुरुषों के ध्यान की आवश्यकता महसूस होती है.

ईगो बूस्ट होता है: विपरीत लिंगी के साथ बिताए थोड़े समय में ईगो को बूस्ट मिलता है और मन को तसल्ली. स्वयं के प्रति आप पुन: आश्वस्त से हो जाते हैं. कौन्फिडैंस वापस लौट आता है.

स्पाउस एकदूसरे का भावनात्मक सहारा नहीं बनना चाहते: शादी के बाद पतिपत्नी एकदूसरे की भावनात्मक जरूरतें पूरी करने से बचते हैं. उन्हें डर होता है कि दूसरा कहीं उन्हें अपना गुलाम न बना ले. वे सच सुनना पसंद नहीं करते. अपनी भावनाएं भी कई बार एकदूसरे से छिपा लेते हैं. शादी, शादी नहीं युद्ध का मैदान बन जाती है.

असंतोष पनपता है: विवाह में जब मन नहीं मिलते, अंडरस्टैंडिंग गड़बड़ा जाती है तो असंतोष सा पनपने लगता है. यही असंतोष किसी दूसरे की तरफ आकर्षित करता है और ऐक्सट्रा मैरिटल अफेयर पनपते हैं.

साइकिएट्रिस्ट के अनुसार, इनसान हमेशा किसी ऐसे साथ की तलाश में रहता है जो उसे उस की कमियों और खूबियों के साथ स्वीकार सके. जब आप किसी के साथ कंफर्टेबल होते हैं तो आप ज्यादा संयम नहीं रख पाते, बस यहीं से शुरुआत होती है अफेयर की.

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आप को अपना तथाकथित पार्टनर (अफेयर वाला) जन्मोंजन्मों का साथी लगने लगता है. उस का साथ आप में एक नशा सा भरने लगता है और फिर आप नैतिकताअनैतिकता की सारी सीमाएं लांघ जाते हैं. सामने आया अवसर और अफेयर थ्रिल आप से कई ऐसे काम करवाता है जिस पर खुद आप को भी यकीन नहीं आता.

आप अपनी प्रत्येक हरकत को सही ठहराते हैं, आप को लगने लगता है कि आप को नए संबंध बनाने का पूरा हक है. शारीरिक भूख अफेयर को एक मदमस्त कर देने वाले रोमांच से भर देती है. नएपन की चाह, उस से उपजा एहसास बहुत हद तक इन रिश्तों को टिकाए रखता है.

यदि आप के साथ भी ऐसा कुछ हुआ हो, आप के पार्टनर का यह सच आप को पता चले कि वह आप को बिना बताए किसी और से मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है, तो यकीनन आप टूट जाएंगे.

आप अलग तरीके से रीऐक्ट करेंगे: गुस्से, दुख, उत्तेजना से भरे आप उस के हर काम को, हर क्रिया को शक की निगाहों से देखेंगे. आप सोचने लगेंगे कि क्या वह हमेशा से आप से झूठ बोलता रहा? दूसरे के प्रति आकर्षित होने का उस का कारण क्या था? क्या वह आप से बेहतर था?

शारीरिक भावनात्मक स्तर पर बेवफाई से दिल टूटता है: रिश्ते छिन्नभिन्न हो जाते हैं. जिस का दिल टूटता है कई बार तो वह अपनेआप में सिमट सा जाता है पर कई लोग पार्टनर को उसी अफेयर के बारे में बारबार जाहिर कर के बेइज्जत करते हैं.

हर अफेयर का मतलब पुराने रिश्तों का हमेशा के लिए टूट जाना नहीं होता: हो सकता है आप के बच्चों की खातिर आप को साथ रहना पड़े या बूढ़े मांबाप को आप दुख न पहुंचाना चाहते हों. तलाक से जुड़े हर पहलू पर सोचसमझ कर निर्णय लेने के बाद आप यदि हर तरह के परिणाम के लिए तैयार हों तो संबंध खत्म कर दीजिए.

क्या रिश्ता तोड़ने योग्य मुद्दा है: अपने जीवन पर नजर डालिए. क्या आप दोनों साथ में खुश और संतुष्ट रहे हैं? क्या आप एकदूसरे के पूरक हैं? यदि उत्तर हां में है तो फिर सिर्फ एक अफेयर के कारण अपना रिश्ता खत्म न कीजिए.

धमकाइए मत और भीख भी मत मांगिए: अफेयर का पता चलने के बाद साथी को ब्लैकमेल करना, धमकाना या उस से दया की भीख मांगना गलत है. अपनी गरिमा बनाए रखें. अपने पार्टनर के साथ कनैक्टेड रहने के लिए आप को स्वयं का व्यक्तित्व लुभावना और बोल्ड बनाए रखना पड़ेगा.

ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रिश्ते का अंत नहीं: रिसर्च बताते हैं कि शुरुआत में भले ही लगे पर ऐसे अफेयर 3-4% ही विवाह में तबदील होते हैं. बाकी भी ज्यादा समय नहीं चलते.

समय निकालिए: ऐक्सट्रा मैरिटल अफेयर का पता चलते ही निष्कर्ष पर मत पहुंचिए. समय निकाल धैर्य से सोचिए. कह देने के बाद आप वापस नहीं आ सकते या तो रिश्ता निभाना पड़ेगा या तुरंत छोड़ना पड़ेगा.

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सोचसमझ कर निर्णय लें:  सचाई उगलवाने से पहले आप को मालूम होना चाहिए कि आप कितना सह पाएंगे. क्या आप उस के शारीरिक संबंधों की बात सुन कर उद्वेलित हो उठेंगे या उस के भावनात्मक स्तर पर जुड़ाव से परेशान होंगे.

सचाई जानें: क्या आप तलाक ले कर अकेले गुजारा कर लेंगे? क्या आप आर्थिक रूप से सक्षम हैं? पतिपत्नी पर घर के कामों के लिए और पत्नी पति पर आर्थिक दृष्टि से निर्भर होती है. अत: सोचसमझ कर निर्णय लेना सही रहता है.

माफ करना सीखें: यदि पार्टनर गलती मान रहा है और ‘आगे से कभी ऐसा नहीं होगा’ कह रहा है तो आप भी उस के आचरण को परखने के बाद उसे माफ कर दीजिए. गलती सभी से होती है.

प्रोफैशनल की मदद लें: विवाह काउंसलर इस काम में अपने प्रोफैशनल स्किल्स से आप की मदद कर सकता है. उस से मदद लेना रिश्ता जोड़ने के लिए अच्छा है.

हम सभी इनसान हैं. मानव स्वभाव के कारण हम से कईर् गलतियां हो जाती हैं. शादी जैसे बंधन जिसे निभाने में सालों लग जाते हैं, उसे ऐसे ही तोड़ देना सही नहीं.

विवाह के टूटने का दंश समाज को, बच्चों को, बुजुर्ग मातापिता को भुगतना पड़ता है. इसीलिए ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स पर भी कड़ा मन रख कर माफ कर के नए अटूट रिश्ते की शुरुआत की जा सकती है.

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जब सताने लगे अकेलापन

रंजना का अपने पति से तलाक हो गया सुन कर धक्का लगा. 45 वर्षीय रंजना भद्र महिला है. पति, बच्चे सब सुशिक्षित. भला सा हंसताखेलता परिवार. फिर अचानक यह क्या हुआ? बाद में पता चला कि रंजना ने दूसरी शादी कर ली. दूसरा पति हर बात में उन के पहले पति से उन्नीस ही है. किसी ने बताया रंजना की मुलाकात उस व्यक्ति से फेसबुक पर हुई थी और उन्हीं के बेटे ने उन्हें बोरियत से बचाने के लिए उन का फेसबुक पर अकाउंट बनाया था. प्रारंभिक जानपहचान के बाद उन की घनिष्ठता बढ़ती गई, जो बाद में प्यार में बदल गई. वह व्यक्ति भी उसी शहर का था. कभीकभी होने वाली मुलाकात एकदूसरे के बिना न रह सकने में तबदील हो गई. वह भी शादीशुदा था. इस शादी के लिए उस ने अपनी पत्नी को बड़ी रकम दे कर उस से छुटकारा पा लिया.

कुछ साल पहले तक ऐसे समाचार अखबारों में पढ़े जाते थे और वे सभी विदेशों के होते थे. तब अपने यहां की संस्कृति पर बड़ा मान होता था. लेकिन आज हमारे देश में भी यह आम बात हो गई है. हमारा सामाजिक व पारिवारिक परिवेश तेजी से बदल रहा है. इन परिवर्तनों के साथ आ रहे हैं मूल्यों और पारिवारिक व्यवस्था में बदलाव. आज संयुक्त परिवार तेजी से खत्म होते जा रहे हैं. सामाजिक व्यवस्था नौकरी पर टिकी है जिस के लिए बच्चों को घर से बाहर जाना ही होता है. पति के पास काम की व्यस्तता और बच्चों की अपनी अलग दुनिया. अत: महिलाओं के लिए घर में अकेले समय काटना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में उन का सहारा बनती है किट्टी पार्टी या फेसबुक पर होने वाली दोस्ती.

आइए जानें कुछ उन कारणों को जिन के चलते महिलाएं अकेलेपन की शिकार हो कर ऐसे कदम उठाने को मजबूर हो रही हैं:

संयुक्त परिवार खत्म हो रहे हैं. एकल परिवार के बढ़ते चलन से पति व बच्चों के घर से चले जाने के बाद महिलाएं घर में अकेली होती हैं. तब उन का समय काटे नहीं कटता.

अति व्यस्तता के इस दौर में रिश्तेदारों से भी दूरी सी बन गई है. अत: उन के यहां आनाजाना, मिलनाजुलना कम हो गया है. साथ ही सहनशीलता में भी कमी आई है. इसलिए  रिश्तेदारों का कुछ कहना या सलाह देना अपनी जिंदगी में दखल लगता है, जिस से उन से दूरी बढ़ा ली जाती है.

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विश्वास की कमी के चलते सामाजिक दायरा बहुत सिमट गया है. अब पासपड़ोस पहले जैसे नहीं रह गए. पहले किस के घर कौन आ रहा है कौन जा रहा है की खबर रखी जाती थी. दिन में महिलाएं एकसाथ बैठ कर बतियाते हुए घर के काम निबटाती थीं. इस का एक बड़ा कारण दिनचर्या में बदलाव भी है. सब के घरेलू कामों का समय उन के बच्चों के अलग स्कूल टाइम, ट्यूशन की वजह से अलगअलग हो गया है.

पति की अति व्यस्तता भी इस का एक बड़ा कारण है. अब पहले जैसी 10 से 5 वाली नौकरियां नहीं रहीं. अब दिन सुबह 5 बजे से शुरू होता है, जो सब के जाने तक भागता ही रहता है. इस से पतिपत्नी को इतमीनान से साथ बैठ कर पर्याप्त समय बिताने का मौका ही नहीं मिलता. कम समय में जरूरी बातें ही हो पाती हैं.

ऐसे ही पुरुषों की व्यस्तता भी बहुत बढ़ गई है. सुबह का समय भागदौड़ में और रात घर पहुंचतेपहुंचते इतनी देर हो जाती है कि कहनेसुनने के लिए समय ही नहीं बचता. इसलिए आजकल पुरुष भी अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं और औफिस में या फेसबुक पर उन की भी दोस्ती महिलाओं से बढ़ रही है जिन के साथ वे अपने मन की सारी बातें शेयर कर सकें.

यदि अकेले रहने की वजह परिवार से मनमुटाव है, तो ऐसे में पति का उदासीन रवैया भी पत्नी को आहत करने वाला होता है. उसे लगता है कि उस का पति उसे समझ नहीं पा रहा है या उस की भावनाओं की उसे कतई कद्र नहीं है. इस से पतिपत्नी के बीच भावनात्मक अलगाव पैदा हो रहा है.

टीवी सीरियलों में आधुनिक महिलाओं के रूप में जो चारित्रिक हनन दिखाया जा रहा है उस का असर भी महिलाओं के सोचनेसमझने पर हो रहा है. अब किसी पराए व्यक्ति से बातचीत करना, दोस्ती रखना, कभी बाहर चले जाना जैसी बातें बहुत बुरी बातों में शुमार नहीं होतीं, बल्कि आज महिलाएं अकेले घर का मोरचा संभाल रही हैं. ऐसे में बाहरी लोग आसानी से उन के संपर्क में आते हैं.

पति परमेश्वर वाली पुरानी सोच बदल गई है.

इंटरनैट के द्वारा घर बैठे दुनिया भर के लोगों से संपर्क बनाया जा रहा है. ऐसे में अकेलेपन, हताशानिराशा को बांट लेने का दावा करने वाले दोस्त महिलाओं की भावनात्मक जरूरत में उन के साथी बन कर आसानी से उन के फोन नंबर, घर का पता हासिल कर उन तक पहुंच बना रहे हैं.

नौकरीपेशा महिलाएं भी घरबाहर की जिम्मेदारियां निभाते हुए इतनी अकेली पड़ जाती हैं कि ऐसे में किसी का स्नेहस्पर्श या  भावनात्मक संबल उन्हें उस की ओर आकर्षित करने के लिए काफी होता है.

अत्यधिक व्यस्तता और तनाव की वजह से पुरुषों की सैक्स इच्छा कम हो रही है. सैक्स के प्रति पुरुषों की अनिच्छा स्त्रियों में असंतोष भरती है. ऐसे में किसी और पुरुष द्वारा उन के रूपगुण की सराहना उन में नई उमंग भरती है और वे आसानी से उस की ओर आकर्षित हो जाती हैं. लेकिन क्या ऐसे विवाहेतर संबंध सच में महिलाओं या पुरुषों को भावनात्मक सुकून प्रदान कर पाते हैं? होता तो यह है कि जब ऐसे संबंध बनते हैं दिमाग पर दोहरा दबाव पड़ता है. एक ओर जहां उस व्यक्ति के बिना रहा नहीं जाता तो वहीं दूसरी ओर उस संबंध को सब से छिपा कर रखने की जद्दोजेहद भी रहती है. ऐसे में यदि कोई टोक दे कि आजकल बहुत खुश रहती हो या बहुत उदास रहती हो तो एक दबाव बनता है.

जब संबंध नएनए बनते हैं तब तो सब कुछ भलाभला सा लगता है, लेकिन समय के साथ इस में भी रूठनामनाना, बुरा लगना, दुख होना जैसी बातें शामिल होती जाती हैं. बाद में स्थिति यह हो जाती है कि न इस से छुटकारा पाना आसान होता है और न बनाए रखना, क्योंकि तब तक इतनी अंतरंग बातें सामने वाले को बताई जा चुकी होती हैं कि इस संबंध को झटके से तोड़ना कठिन हो जाता है. हर विवाहेतर संबंध की इतिश्री तलाक या दूसरे विवाह में नहीं होती. लेकिन इतना तो तय है कि ऐसे संबंध जब भी परिवार को पता चलते हैं विश्वास बुरी तरह छलनी होता है. फिर चाहे वह पति का पत्नी पर हो या पत्नी का पति पर अथवा बच्चों का मातापिता पर. बच्चों पर इस का सब से बुरा असर पड़ता है. एक ओर जहां उन का अपने मातापिता के लिए सम्मान कम होता है वहीं परिवार के टूटने की आशंका भी उन में असुरक्षा की भावना भर देती है, जिस का असर उन के भावी जीवन पर भी पड़ता है और वे आसानी से किसी पर विश्वास नहीं कर पाते.

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यदि परिवार और रिश्तेदार इसे एक भूल समझ कर माफ भी कर दें तो भी आगे की जिंदगी में एक शर्मिंदगी का एहसास बना रहता है, जो सामान्य जिंदगी बिताने में बाधा बनता है. विवाहेतर संबंध आकर्षित करते हैं, लेकिन अंत में हाथ लगती है हताशा, निराशा और टूटन. इन से बचने के लिए जरूरी है कि अकेलेपन से बचा जाए. खुद को किसी रचनात्मक कार्य में लगाया जाए. अपने पड़ोसियों से मधुर संबंध बनाए जाएं, रिश्तेदारों से मिलनाजुलना शुरू किया जाए. अपने पार्टनर से अपनी परेशानियों के बारे में खुल कर बात की जाए और अपने पूर्वाग्रह को भुला कर उन की बातें सुनी और समझी जाएं. हमारी सामाजिक व पारिवारिक व्यवस्था बहुत मजबूत और सुरक्षित है. इसे अपने बच्चों के लिए इसी रूप में संवारना हमारा कर्तव्य है. आवेश में आ कर इसे तहसनहस न करें.

रिश्ते को बना लें सोने जैसा खरा

पतिपत्नी के बीच मतभेद होना बहुत ही स्वाभाविक सी बात है, क्योंकि दोनों अलगअलग सोच, धारणाओं और परिवारों के होते हैं. एक में धैर्य है तो दूसरे को बहुत जल्दी क्रोध आ जाता है और एक मिलनसार है तो दूसरा रिजर्व रहता है. ऐसे में लोहे और पानी की तरह उन के मतभेदों का औक्सीडाइज्ड होना बहुत आम बात है. लोहे और पानी के मिलने का अर्थ ही है जंग लगना. नतीजा रिश्ते में बहुत जल्दी कड़वाहट का जंग लग जाता है.

ऐसा न हो इस के लिए जानिए कुछ उपाय:

हो सोने जैसा ठोस

अगर हम अपने रिश्ते को सोने जैसा बना लें और सोने की खूबियों को अपने जीवन में ढाल लें, तो मतभेद रूपी जंग कभी भी वैवाहिक जीवन में लगने ही न पाए. सोने की सब से बड़ी खूबी यह होती है कि वह ठोस होता है, इसलिए उस में कभी जंग नहीं लगता और न ही उस के टूटने का खतरा रहता है. अपने वैवाहिक रिश्ते को भी आपसी समझ, प्यार और विश्वास की नींव पर खड़ा करते हुए इतना ठोस बना लें कि वह भी सोने की तरह मजबूत हो जाए.

आपसी विश्वास, सम्मान और साथी के साथ संवाद स्थापित कर आसानी से रिश्ते में आए खोखलेपन को दूर किया जा सकता है. सोना न तो अंदर से खोखला होता है न ही इतना कमजोर कि उसे हाथ में लो तो वह टूट जाए या उस में दरार आ जाए. आप का साथी, जो कह रहा है उसे मन लगा कर सुनें और यह जताएं कि आप को उस की परवाह है. बेशक आप को उस की बात ठीक न लगती हो, पर उस समय उस की बात काटे बिना सुन लें और बाद में अपनी तरह से उस से बात कर लें. ऐसा होने से मतभेद होने से बच जाएंगे और आप के रिश्ते की नींव भी खोखली नहीं होगी. सोने जैसी ठोस जब नींव होगी, तो जीवन में आने वाले किसी भी तूफान के सामने न तो आप का रिश्ता हिलेगा न टूटेगा. सच तो यह है कि आप का रिश्ता सोने की तरह हर दिन मजबूत होता जाएगा.

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हो प्यार की चमक

सोने का ठोस होना ही नहीं, उस की चमक भी सब को अपनी ओर आकर्षित करती है. पास से ही नहीं दूर से भी देखने पर सोने की चमक वैसी ही लगती है और उसे पाने की चाह महिला हो या पुरुष दोनों में बराबर रूप से बलवती हो उठती है. वैवाहिक रिश्ते में केवल शारीरिक रूप से ही नहीं, बल्कि वैचारिक व संवेदनशील रूप से भी यह चमक बरकरार रहनी चाहिए. सोने जैसा चमकीलापन पाने के लिए पतिपत्नी में प्यार और समर्पण की भावना समान रूप से होनी चाहिए. सोने की चमक पानी है तो वह सिर्फ प्यार से ही पाई जा सकती है और केवल प्यार होना ही काफी नहीं है, उसे जताने में भी पीछे न रहें. वैसे ही जैसे सोने का आभूषण जब आप पहनती हैं तो उसे बारबार दिखाने का प्रयास करती हैं और लोगों को उस के बारे में बढ़चढ़ कर बताती हैं. तो फिर आप अपने साथी को प्यार करती हैं, तो उसे बढ़चढ़ कर कहने में हिचकिचाहट क्यों? तभी तो चमकेगा आप का रिश्ता सोने की तरह.

जैसा चाहो ढाल लो

सोना महिलाओं की खूबसूरती में अगर चार चांद लगाता है, तो उस की दूसरी सब से बड़ी खासीयत है उस का पिघल कर किसी भी रूप में ढल जाना. ठोस होने के बावजूद सोना पिघल जाता है और फिर हम जैसा चाहते हैं वैसा उसे आकार देते हैं. अगर आप विवाह के बाद सोने की ही तरह स्वयं को पति के परिवार वालों या पति के अनुरूप ढाल लेती हैं, तो रिश्ता सदा सदाबहार रहता है और उस में जंग लगता ही नहीं. अपने को ढाल लेने का मतलब अपनी खुशियों या इच्छाओं की कुरबानी देना या अपना अस्तित्व खो देना नहीं होता, बल्कि इस का मतलब तो दूसरों की खुशियों और इच्छाओं का मान करना होता है. एक पहल अगर आप करती हैं तो यकीन मानिए दूसरे भी पीछे नहीं रहते. विवाह होने के बाद आप केवल पत्नी ही नहीं बनती हैं, वरन आप को बहुत सारे रिश्तों में अपने को ढालना होता है. अहंकार और इस भावना से खुद को दूर रखते हुए कि साथी की बात मानना झुकना होता है, उस के अनुरूप एक बार ढल जाएं. फिर देखें वह कैसे आप के आगे बिछ जाता है.

उपहार दें

सोना एक ऐसी चीज है जिसे उपहार में मिलना हर कोई पसंद करता है. उस के सामने अन्य चीजें फीकी पड़ जाती हैं. आज जब हम सोने की कीमत पर नजर डालते हैं तो पता चलता है कि वह निरंतर महंगा होता जा रहा है. फिर भी न तो विभिन्न मौकों पर सोना खरीदने वालों में कमी आई है और न ही उसे गिफ्ट में देना बंद हुआ है. वजह साफ है कि सोना शानोशौकत का प्रतीक है और व्यक्ति की हैसियत, उस के रहनसहन को समाज में उजागर करता है. आप जितना सोना पहन कर कहीं जाती हैं, उस से आप की हैसियत का भी अंदाजा लगाया जाता है.

सोने की ही तरह अपने रिश्ते में भी एक शानोशौकत को बरकरार रखें. अपने वैवाहिक जीवन की छोटीछोटी बातों का आनंद लें और साथी को गिफ्ट देना न भूलें. अपने घर की सज्जा और अपनी जीवनशैली पर ध्यान दें और पूरी मेहनत करें ताकि सोने की तरह आप के जीवन में भी शानोशौकत बनी रहे.

प्रशंसा करें

सोने के गहने हों या उस से बनी कोई नक्काशी या उस से किया कपड़ों पर काम, आप प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाती हैं. ठीक वैसे ही आप साथी की भी प्रशंसा करने में कोताही न बरतें. इस से उसे महसूस होगा कि आप उस से प्यार करती हैं, उस को पसंद करती हैं. प्रशंसा करने के लिए बड़ीबड़ी बातों का इंतजार न करें. उस की छोटीछोटी बातों की भी तुरंत प्रशंसा कर दें. इस से उस के चेहरे पर खुशी आ जाएगी. इसी तरह अगर पति अपनी पत्नी की झूलती लटों की प्रशंसा कर दे, तो वह खुश हो अपना सारा प्यार उस पर लुटा देगी.

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सुरक्षा है सदा के लिए

महंगा होने पर भी लोग सोना इसलिए खरीदते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि मुसीबत के समय यही काम आएगा. सोना जहां सौंदर्य का प्रतीक है, वहीं वह यह मानसिक संतुष्टि भी प्रदान करता है कि कभी जीवन में कठिनाइयों ने घेरा तो उसे बेच कर काम चला लेंगे. सोना एक सुरक्षा का एहसास देता है, इसलिए उस के पास होने से हम निश्चिंत रहते हैं. सोने जैसा स्थायित्व, मानसिक संतुष्टि और राहत का एहसास वैवाहिक जीवन में भी पाया जा सकता है. युगल को केवल आर्थिक ही नहीं, हर पहलू से यह आश्वासन चाहिए होता है कि मुसीबत के समय उस का साथी उस का साथ देगा. उसे वह मझधार में नहीं छोड़ेगा. अपने साथी को सुरक्षित होने का एहसास कराना आवश्यक है. उस के सुखदुख में साथ दे कर, उस की परेशानियों को समझ कर आप ऐसा कर सकते हैं. अगर जीवन में मानसिक संतुष्टि हो और एक स्थायित्व की भावना तो वह बहुत सुगमता और मधुरता से आगे बढ़ सकता है, वह भी तमाम हिचकोलों के बीच.

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