अनियमित पीरियड्स से कैसे निबटें

पीरियड्स एक नेचुरल क्रिया है जिस के बारे में जानना हर बढ़ती उम्र की लड़की और उस की मां के लिए जरूरी है. मां के लिए यह जानना इसलिए जरूरी है, क्योंकि इस प्राकृतिक क्रिया के बारे में अपनी बेटी को वह ही बेहतर तरीके से समझा सकती है. इन दिनों में लड़कियों के शरीर में अलगअलग बदलाव होते हैं और ये बदलाव होते बहुत ही सामान्य हैं. ये बदलाव हर लड़की के हार्मोंस पर निर्भर करते हैं.

कुछ लड़कियां पीरियड्स के दौरान मूड स्विंग्स का सामना करती हैं तो कुछ लड़कियों को कोई खास बदलाव महसूस नहीं होता है. ऐसे ही कुछ लड़कियां डिप्रैशन और इमोशनल आउटबर्स्ट का शिकार होती हैं. इसे कहते हैं प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम और 90 प्रतिशत लड़कियां वर्तमान में इसे महसूस कर रही हैं. पीरियड के दौरान अनेक परेशानियां भी आती हैं. महीने में 2 बार पीरियड्स क्यों हो रहे हैं? मसलन, फ्लो इतना ज्यादा या इतना कम क्यों है? पीरियड्स और लड़कियों के समान क्यों नहीं हैं? अनियमित पीरियड्स क्यों हैं? ये सब प्रश्न अकसर हमारे दिमाग में घर कर लेते हैं. हमें यह समझने की जरूरत है कि ये सब परेशानियां असामान्य नहीं हैं. हर महिला का मासिकधर्म और रक्तस्राव का स्तर अलगअलग है.

असामान्य पीरियड्स

पिछले कुछ मासिक चक्रों की तुलना में रक्तस्राव असामान्य होना, पीरियड्स देर से आना, कम से कम रक्तस्राव से ले कर भारी मात्रा में खून बहना आदि असामान्य पीरियड माने जाते हैं. यह कोई बीमारी नहीं है. इसे अलगअलग हर लड़की में देखा जाता है. इस में अचानक मरोड़ उठने लगती है और बदनदर्द होने लगता है. अनियमित और असामान्य पीरियड को एनोबुलेशन से भी जोड़ा जा सकता है. आमतौर पर इस कारण हार्मोंस में असंतुलन हो सकता है.

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प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम

हर साल भारत की एक करोड़ से भी ज्यादा लड़कियों में प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम देखा जाता है. यह एक ऐसी समस्या है जो लड़कियों को हर महीने पीरियड से कुछ दिनों पहले प्रभावित करती है. इस दौरान लड़कियां शारीरिक और भावनात्मक रूप से खुद को कमजोर महसूस करती हैं. मुंहासे, सूजन, थकान, चिड़चिड़ापन और मूड स्विंग्स इस के कुछ सामान्य लक्षण हैं. सटीक लक्षण और उन की तीव्रता लड़की से लड़की और चक्र से चक्र पर निर्भर करती है.

हार्मोंस में परिवर्तन इस सिंड्रोम का एक महत्त्वपूर्ण कारण है. विटामिन की कमी, शरीर में उच्च सोडियम का स्तर, कैफीन और शराब का अधिक सेवन पीएमएस का कारण बन सकते हैं. पीएमएस 20 से 40 वर्ष की महिलाओं में देखा जा सकता है.

इलाज है जरूरी

पीरियड्स में आने वाले अनियमित पीरियड्स या पीएमएस जैसी परेशानियों का इलाज बहुत ही सरल है. ऐक्सरसाइज हमेशा से ही पीरियड्स की परेशानी का हल रही है. एक स्त्रोत के अनुसार हफ्ते में 5 दिन 35 से 40 मिनट ऐक्सरसाइज करने से उन हार्मोंस की मात्रा कम हो जाती है जिन के कारण अनियमित पीरियड्स हो सकती है. अगर किसी लड़की को पीरियड्स के दौरान बहुत दर्द हो, भारी रक्तस्राव हो, 7 दिनों? से ज्यादा पीरियड के बीच उल्टियां हों तो अच्छा यही होगा कि तुरंत उसे डाक्टर के पास ले कर जाएं.

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पीरियड्स के दिनों में रखें सफाई का खास ख्याल

हम जानते हैं कि हर लड़की और महिला के जीवन में प्रत्येक महीने करीब 4 -5 दिन का समय काफी कठिन और थकावट वाला होता है. यह वो समय है जब आप पीरियड्स से जूझ रही होती हैं, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि आप उन दिनों के दौरान खुद की देखभाल करना छोड़ दें , बल्कि उन दिनों में आप का शरीर आप से ज्यादा देखभाल और साफ-सफाई मांगता है. पीरियड्स के दौरान सफाई का ख्याल जरूर रखें वर्ण बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

  1. यूरिन इन्फेक्शन का रहता है खतरा

मासिक धर्म के दौरान खुद को साफ न रखना बहुत सारे बैक्टीरिया को आमंत्रित करता है. वे न केवल आप को बाहरी रूप से प्रभावित करते हैं बल्कि यूरिन इन्फेक्शन्स भी पैदा कर सकते हैं. इस से न सिर्फ आप के पेट के निचले हिस्से के लिए  दर्दनाक है बल्कि आप की किडनी को भी प्रभावित करता है.

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  1. रैशेज है नौर्मल प्रौब्लम

यह एक बहुत ही आम प्रौब्लम है और लगभग हर दूसरी महिला कभी न कभी इस का अनुभव करती है. आपके पीरियड्स के दौरान होने वाले रैशेज का मुख्य कारण सैनिटरी नैपकिन को बारबार न बदलना है. 4-6 घंटे से अधिक समय तक एक ही नैपकिन का उपयोग करने से रक्त उस के आसपास के इंफेक्शन का कारण बन सकता है जिस से स्किन पर चकत्ते और जलन होती है.

  1. सफेद डिस्चार्ज की प्रौब्लम से बचें

मासिक धर्म के दौरान अस्वच्छता आप की योनि में बैक्टीरिया पनपने का कारण बनती है और बाद में इस से सफेद डिस्चार्ज की प्रौब्लम पैदा होती है. जरूरी है कि योनि को पीरियड्स के दौरान साफ रखें.

  1. बांझपन की होती है संभावना

मासिक धर्म के दौरान गंदे कपड़ों का उपयोग करना या लंबे समय तक एक ही सैनिटरी नैपकिन या टैम्पोन का उपयोग करना बैक्टीरिया पनपने का रास्ता खोलता है. ये बैक्टीरिया अंडाशय तक पहुंच सकते हैं जिससे बांझपन की संभावना बढ़ जाती है.

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  1. सरवाइकल कैंसर का खतरा

पीरियड्स के दौरान अस्वच्छता की वजह से कैंसर के विकास की पर्याप्त संभावनाएं हैं. महिलाओं के लिए यह बहुत जरूरी है कि वे अपने पीरियड्स के दौरान न केवल खुद को साफ रखें बल्कि नियमित रूप से अपने प्राइवेट पार्ट की सफाई कर के स्वच्छता बनाए रखें.

कैसे रखें सफाई

अपने योनि क्षेत्र को साफ रखें. गर्म पानी और इंटिमेट या वैजाइनल वौश का उपयोग कर इसे समय-समय पर साफ करती रहे.

कभी भी एक साथ दो पैड का इस्तेमाल न करें. कुछ महिलाएं हैवी पीरियड्स के समय एक बार में दो सेनेटरी पैड का उपयोग करती हैं. इस से योनि क्षेत्र में इंफेक्शन हो सकता है.

आरामदायक, साफ अंडरवियर पहनें. केवल कौटन या कपड़े से बने अंडरवियर जो आप की स्किन को सांस लेने की अनुमति देते हैं उन्हीं को पहने. सिंथेटिक और टाइट अंडरवियर भी इंफेक्शन को आमंत्रित करते है.

इंटरनेशनल फर्टिलिटी सेंटर की डौ. रीता बक्शी से बातचीत पर आधारित.

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पीरियड्स: लोगों की घटिया सोच…..

शर्म आती है ऐसी नीची सोच रखने वाले लोगों पर. एक स्त्री के मासिक धर्म(पीरियड्स) को अपवित्र मानने वाले लोगों ने ही इस तरह की परंपरा बनाई है. अरे अपनी आंखों को खोल कर देखो की जिस पीरियड्स को तुम अपवित्र मानते हो असल मे उसी वक्त एक स्त्री सबसे ज्यादा पवित्र होती है.

मासिक धर्म तो एक प्रक्रिया है जिससे एक स्त्री हर महीने गुजरती है. दर्द सहन करती है,  तकलीफ सहन करती है. अरे जिस वक्त स्त्री को परिवार के सहयोग की आवश्यकता होती है उस वक्त लोग उसके साथ ऐसा बर्ताव करते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि ये कुरीति आयी कहां से? ये कुरीति समाज में उन पुर्खों ने उन पंडितों ने फैलाया जो खुद को भगवान का का बहुत बड़ा भक्त मानते हैं.

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भला ऐसी भक्ति का क्या फायदा जो समाज के लिए ज़हर बन जाये. एक स्त्री के परिवार वाले भी खुश नहीं होते हैं उसके साथ ऐसा बर्ताव करके क्योंकि वो उसके करीबी हैं, लेकिन इन पंडितों ने जो पवित्र -अपवित्र की बातें लोगों के दिमाग मे डाली हैं उससे मजबूर हैं.  एक स्त्री पीरियड्स के दिनों को कैसे काटती है , शायद इन पुरुषों को ये पता नहीं क्योंकि वो खुद इन सबसे नहीं गुज़रते हैं. मानती हूं पुरुष और स्त्री दोनों में अंतर है लेकिन इन रूढ़िवादी स्त्रियों को क्या कहें?

जो खुद सब जानते हुए भी सही और गलत में फर्क नहीं करतीं.  जानकारी के लिए बता दू कि महिला का शरीर हर महीने गर्भ की तैयारी करता है, जो गर्भाशय की नलिका में चला जाता है. इसी समय महिला के गर्भाशय की परत में रक्त जमा होता रहता है ताकि गर्भ के बैठने पर उस रक्त से बच्चा विकसित हो सके. गर्भ के न बैठने पर ये परत टूट जाती है और जमा रक्त पीरियड्स में योनि के माध्यम से निकल जाता है. इस रक्त के द्वारा शरीर के बैक्टीरिया भी निकल जाते हैं. तो अब आप खुद इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि पीरियड्स क्यों जरूरी है और इसमें कितनी पवित्रता है.

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अभी हाल ही में माहवारी पर आधारित एक फ़िल्म “पिरियड:एंड द सेंटेंस ” को ऑस्कर अवार्ड मिला है. ये फिल्म पवित्र-अपवित्र माने जाने वाली कुरीतियों पर नज़र डालती हैं. इस फिल्म में वो सच है जो एक स्त्री की सच्चाई को बयां करती है. जो लड़कियां पहली बार माहवारी का सामना करती हैं वो डर जाती हैं. कई बार तो मौत के मुंह में चली जाती हैं. स्नेह भी उन लड़कियों में से एक हैं जिनपर ये फिल्म बनी है. समाज को आइना दिखाती है ये फिल्म. फिल्म में उस लड़की की कहानी को बयां किया जिसनें पैड बनाने वाली कंपनी एक्शन इंडिया को ज्वाइन किया, जबकि उसका सपना दिल्ली शहर में काम करने का था.

अभी हाल ही में एक खबर छपी थी कि एक महिला को माहवारी के दौरान ठंड में घर से बाहर कर दिया गया और फिर वो दूसरे दिन अपने दो बच्चों के साथ एक कंबल में मृत पायी गई. आखिर जब पीरियड ‘एंड औफ सेन्टेंस’ जैसी फिल्मों को अवौर्ड देते हैं तो फिर ऐसी कुरीतिंयों को हटाने की कोशिश क्यों नहीं करते हैं? यह फिल्म एक ऐसी लड़की पर बनी है जिसनें अपनी जिंदगी में काफी लंबा सफर तय किया है.

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स्नेह 15 साल की थी, जब पहली बार उनका सामना माहवारी से हुआ था. उन्हें उस वक़्त समझ नहीं आया कि उनके साथ क्या हो रहा है किन्तु समझ आने पर उन्होंने एक बड़ा कदम उठाया. स्नेह अब 22 साल की हैं, वह अपने गांव की एक छोटी फैक्ट्री में काम करती हैं, जहां सैनेटरी पैड बनाया जाता है.  पीरियडः एंड औफ सेन्टेंस, एक डौक्यूमेंट्री फिल्म है, जिसे औस्कर में बेस्ट डौक्यूमेंट्री शौर्ट सब्जेक्ट कैटेगरी में अवौर्ड मिला है. पैड बनाने का काम करना एक लड़की के लिए बहुत बड़ी बात है.

स्नेह हापुड़ जिले के काठीखेड़ा गांव में स्थित एक्शन इंडिया नाम की कंपनी में काम करती हैं. जान कर हैरानी होगी कि इस गांव में आज भी लोगों के बीच माहवारी पर बात नहीं होती लोगों को शर्मिंदगी महसूस होती है. इस फिल्म में इन्हीं कुरीतियों पर नज़र डाली गई है. अगर समाज से इन कुरीतियों को हटाना है तो इसके लिए लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है. उन्हें बताने की आवश्यकता है कि माहवारी में कोई अपवित्रता नहीं है बल्कि ये तो एक प्रक्रिया है शरीर की जो हर महीने होती है. पवित्रता – अपवित्रा तो बस पंडितों की दिमाग में बैठाई हुई सोच है, जिससे हर किसी को बाहर निकलना ही होगा.

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पीरियड पैंटी रखे उन दिनों में टैंशन फ्री

कहते हैं मां सब जानती है और औफिस के लिए निकली अभिलाषा जब घर वापस आई तो मां को बात समझने में जरा भी देर ना लगी और टैंशन में देख अभिलाषा को बौडीकेयर पीरियड पैंटी थमा कर बोली अब टैंशन की नहीं है बात जब पीरियड पैंटी हो साथ, क्योंकि ऐसे समय पर बहुत सारे प्यार व केयर के साथ आपको जरूरत है एक ऐसी पैंटी की जो इन खास दिनों में भी आपकी उड़ान को कम न होने दे. अगर आप भी किसी ऐसी ही पैंटी की तलाश में हैं, तो अब बाजार में ऐसी पैंटी मौजूद है.

1. पीरियड पैंटी क्या है

पीरियड पैंटी महिलाओं के लिए खासतौर पर तैयार की गई पैंटी है, जिसे बनाने में बौडीकेयर ने लीकेज और गंध रहित कपड़े का प्रयोग किया है जिसे पौलीयुरेथेन लैमिनेशन लाइनिंग के नाम से जाना जाता है. यह पैंटी महिलाओं को उन दिनों में सहज रखने का एक शानदार तरीका है.

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2. पीरियड पैंटी का इस्तेमाल कैसे किया जाता है

आमतौर पर बौडीकेयर पीरियड पैंटी कई किस्म की होती हैं लेकिन प्रत्येक पीरियड पैंटी का इस्तेमाल करने का तरीका एक जैसा होता है. आइए, जानते हैं कि पीरियड पैंटी का इस्तेमाल कैसे किया जाता है:

– सबसे पहले आप यह जांच लें कि आपको भारी रक्तस्राव हो रहा है या फिर हल्का.

– उसके बाद आप पीरियड फैंटी में पैड को लगा लें और इसको पहन लें. इसके बाद आप आराम से अपने सभी काम करें.

– पीरियड पैंटी पहनने के बाद आपको आम पैंटी की तरह ही एहसास होगा और पैड खिसकने की चिंता नहीं रहेगी.

– पीरियड पैंटी पहनने के बाद आप सुविधाजनक पीरियड की अवधि बिता सकती हैं.

3. आइए जानें इसके फायदे

आमतौर पर पीरियड हर महिला के लिए किसी परेशानी से कम नहीं होते हैं. ज्यादातर स्कूल एवं कौलेज जाने वाली लड़कियां एवं कामकाजी महिलाएं इस बात से डरती हैं कि कहीं पीरियड का खून रिस कर उनके कपड़े में न लग जाए. लेकिन पीरियड पैंटी आपकी इस चिंता को दूर करन में बेहद फायदेमंद है. आइए जानते हैं इसके फायदों के बारे में.

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4. दुर्गंध से बचाव: पीरियड के दौरान आने वाली गंध से लड़ने में मदद मिलती है. इस पैंटी को इस प्रकार बनाया जाता है कि माहवारी की गंध पैंटी से बाहर न जाए.

5. है लीकेज फ्री: भारी मात्रा में माहवारी होने से कपड़ों पर दाग लगने का डर रहता है, लेकिन बौडीकेयर की पीरियड पैंटी को खास कपड़े से बनाया गया है, जिसमें लीकेज का कोई डर नहीं होता.

6. जब करना हो सफर: पीरियड पैंटी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें लगाया हुआ पैड खिसकता नहीं है जिसके कारण यात्रा के दौरान आपको कोई भी परेशानी नहीं होगी क्योंकि यह लंबे समय तक एक ही जगह पर रहती है.

7. बार-बार इस्तेमाल करें: पीरियड पैंटी को आप धो कर दोबारा भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

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8. आरामदायक है: इस पैंटी का कपड़ा बहुत ही आरामदायक फैब्रिक से बना है इसलिए इस को पीरियड के दौरान पैड लगा कर प्रयोग करने के बाद भी आपको कुछ अजीब महसूस नहीं होता और आप अपने रोज के काम आराम से कर सकती हैं.

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बेटी को जरूर बताएं पीरियड्स से जुड़ी ये बातें

ज्यादातर मांएं पीरियड्स के बारे में बेटी से खुल कर बात नहीं करतीं. यही कारण है कि इस दौरान किशोरियां हाइजीन के महत्त्व पर ध्यान नहीं देतीं और कई परेशानियों का शिकार हो जाती हैं. पीरियड्स को लेकर जागरूकता का न होना भी इन परेशानियों की बड़ी वजह है. पेश हैं, कुछ टिप्स जो हर मां को अपनी किशोर बेटी को बतानी चाहिए ताकि वह पीरियड्स के दौरान होने वाली परेशानियों से निबट सकें:

1. कपड़े के इस्तेमाल को न कहें 

आज भी हमारे देश में जागरूकता की कमी के चलते माहवारी के दौरान युवतियां कपड़े का इस्तेमाल करती हैं. ऐसा करना उन्हें गंभीर बीमारियों का शिकार बना देता है. कपड़े का इस्तेमाल करने से होने वाली बीमारियों के प्रति अपनी बेटी को जागरूक बनाना हर मां का कर्तव्य है. बेटी को सैनिटरी पैड के फायदे बताएं और उसे अवगत कराएं कि इस के इस्तेमाल से वह बीमारियों से तो दूर रहेगी ही, साथ ही उन दिनों में भी खुल कर जी सकेगी.

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2. पैड बदलने के बारे में बताएं

हर मां अपनी बेटी को यह जरूर बताए कि आमतौर पर हर 6 घंटे में सैनिटरी पैड बदलना चाहिए. इस के अलावा अपनी जरूरत के अनुसार भी सैनिटरी पैड बदलना चाहिए. हैवी फ्लो के दौरान आप को बारबार पैड बदलना पड़ता है, लेकिन अगर फ्लो कम है तो बारबार बदलने की जरूरत नहीं होती. फिर भी हर 4 से 6 घंटे में सैनिटरी पैड बदलती रहे ताकि इन्फैक्शन से सुरक्षित रह सके.

3. इनर पार्टस की करें नियमित सफाई

पीरियड्स के दौरान गुप्तांगों के आसपास की त्वचा में खून समा जाता है, जो संक्रमण का कारण बन सकता है. इसलिए गुप्तांगों को नियमित रूप से धो कर साफ करने की सलाह दें. इस से वैजाइना से दुर्गंध भी नहीं आएगी.

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4. इन चाजों से दूर रहने की दें सलाह

वैजाइना में अपने आप को साफ रखने का नैचुरल सिस्टम होता है, जो अच्छे और बुरे बैक्टीरिया का संतुलन बनाए रखता है. साबुन योनि में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया को नष्ट कर सकता है. इसलिए इस का इस्तेमाल न करने की सलाह दें.

5. धोने का सही तरीके बारे में बताएं

बेटी को बताएं कि गुप्तांगों को साफ करने के लिए योनि से गुदा की ओर साफ करे यानी आगे से पीछे की ओर. उलटी दिशा में कभी न धोए. उलटी दिशा में धोने से गुदा में मौजूद बैक्टीरिया योनि में जा सकते हैं और संक्रमण का कारण बन सकते हैं.

6. सैनिटरी पैड के डिस्पोजल की दें जानकारी

इस्तेमाल किए गए पैड को सही तरीके से और सही जगह फेंकने को कहें, क्योंकि यह संक्रमण का कारण बन सकता है. पैड को फ्लश न करें, क्योंकि इस से टौयलेट ब्लौक हो सकता है. नैपकिन फेंकने के बाद हाथों को अच्छी तरह से धोना भी जरूरी है.

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7. रैशेज से कैसे बचें इसके बारे में भी बताएं

पीरियड्स में हैवी फ्लो के दौरान पैड से रैश होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है. ऐसा आमतौर पर तब होता है जब पैड लंबे समय तक गीला रहे और त्वचा से रगड़ खाता रहे. इसलिए बेटी को बताएं कि नियमित रूप से पैड चेंज करे. अगर रैश हो जाए तो नहाने के बाद और सोने से पहले ऐंटीसैप्टिक औइंटमैंट लगाए. इस से रैश ठीक हो जाएगा. अगर औइंटमैंट लगाने के बाद भी रैश ठीक न हो तो उसे डाक्टर के पास ले जाएं.

8. एक ही तरह का सैनिटरी प्रोडक्ट का करें इस्तेमाल

जिन किशोरियों को हैवी फ्लो होता है, वे एकसाथ 2 पैड्स या 1 पैड के साथ टैंपोन इस्तेमाल करती हैं या कभीकभी सैनिटरी पैड के साथ कपड़ा भी इस्तेमाल करती हैं यानी कि ऐसा करने से उन्हें लंबे समय तक पैड बदलने की जरूरत नहीं पड़ती. ऐसे में बेटी को बताएं कि एक समय में एक ही प्रोडक्ट इस्तेमाल करे. जब एक-साथ 2 प्रोडक्ट्स इस्तेमाल किए जाते हैं तो जाहिर है इन्हें बदला नहीं जाता, जिस कारण इन्फैक्शन की संभावना बढ़ जाती है.

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मासिक धर्म के साए में क्यों?

मैंने बचपन में देखा है कि दादी मेरी मम्मी को पीरियड्स के दौरान घर के कामों से बेदखल रखती थी. मम्मी को रसोईघर में घुसने की अनुमति नहीं होती थी, साथ ही वह किसी भी चीज को छू भी नहीं सकती थीं. यही नहीं उन्हें उन दिनों कांच के बरतनों में भोजन दिया जाता था और उसे भी वे अलग कमरे में बैठ कर खाती थीं. बरतन भी अलग धोती थीं. बात सिर्फ धोने पर ही नहीं खत्म होती थी. वे बरतन उन्हें आग जला कर तपाने होते थे. हम छोटे-छोटे बच्चे जब भी ये सब देखते और सवाल करते थे तो जवाब मिलता था कि छिपकली छू गई थी.

अपने ऊपर विश्वास करो सारे सपने सच होंगे: अलीशा अब्दुल्ला

वैदिक धर्म के अनुसार मासिकधर्म के दिनों में महिलाओं के लिए सभी धार्मिक कार्य वर्जित माने गए हैं और यह दकियानूसी नियम सिर्फ हिंदू धर्म में ही नहीं, लगभग सभी धर्मों में है. लेकिन इस सोच के पीछे छिपे तथ्य को समझ पाना बहुत मुश्किल लगता है. सब लोगों से अलग रहो, अचार को हाथ मत लगाओ, बाल न संवारों, काजल मत लगाओ आदि. न जाने कितने दकियानूसी नियम आज भी गांवों और कसबों में औरतों को झेलने पड़ रहे हैं. क्या कोई लौजिक है? किस ने बनाए हैं ये रूल्स और आखिर क्यों? जवाब कोई नहीं, क्योंकि होता आ रहा है, इसलिए सही है. आज भी बहुत सी महिलाओं के दिमाग पर ताले पड़े हैं.

क्या है इसके पीछे का लौजिक

आज 21वीं सदी में जब इंसान चांद पर जीवन की या मंगल पर पानी की खोज कर रहा है तब यह सोच कितनी अवैज्ञानिक है. कैसी मूर्खतापूर्ण सोच है जिस के कारण रजस्वला नारी को अपवित्र मान लिया जाता है और पलभर में ही स्वयं के घर में वह अछूत बन जाती है. उस से अछूत की तरह बरताव किया जाता है. जबकि इस का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. बस परंपरा के नाम पर आज भी आंखों पर काला चश्मा चढ़ा हुआ है.

एक सहज और सामान्य शारीरिक क्रिया जो किशोरावस्था से शुरू हो कर सामान्य तौर पर अधेड़ावस्था तक चलती रहती है न जाने आज भी कितनी पाबंदियां झेलती है. यह एक सामाजिक पाबंदी बन गई है. उन के साथ अछूतों जैसा व्यवहार और हर महीने 4-5 दिनों का यह समय किसी सजा से कम नहीं होता है. पीरियड्स के दौरान महिलाएं न तो खाना बना सकती हैं और न ही दूसरे का खाना या पानी छू सकती हैं. उन्हें मंदिर और पूजापाठ से भी दूर रखा जाता है. कई मामलों में तो उन्हें जमीन पर सोने के लिए मजबूर किया जाता है.

उदाहरण- एक स्वामी किस तरह अज्ञानता फैला रहा है

‘‘इस का कारण यह कि रजस्वला के स्पर्श के कारण विविध वस्तुओं पर प्रभाव पड़ता है. इस के अलावा रजोदर्शन काल में अग्नि साहचर्य के कारण (रसोई बनाते समय) उसे शारीरिक हानि होती है.’’

इन अज्ञानताभरी बातों का असर आज भी बहुत से घरों में इन रूढि़वादी परंपराओं को तोड़ने नहीं देता. इन घरों में आम धारणा यह है कि इस दौरान महिलाएं अशुद्ध होती हैं और उन के छूते ही कोई चीज अशुद्ध या खराब हो सकती है.

एक स्कूल अध्यापिका मीरा का कहना है कि उस ने सारा जीवन इन पाबंदियों को माना, क्योंकि घर के बड़ों ने उसे ऐसा करने को कहा था. उसे हर बार इस का विरोध करने पर कहा गया कि ऐसा नहीं करने पर नतीजा बुरा होगा. जैसे दरिद्रता आएगी, बीमारियां फैलेंगी, घर के बड़े या बच्चे बीमार पड़ जाएंगे या पति की मौत हो जाएगी. ऐसी और न जाने कितनी बातें.

महिलाएं वर्जनाओं को तोड़ रही हैं: स्मृति मंधाना

मीरा दुखी होते हुए कहती हैं, ‘‘ये 4-5 दिन घर की महिलाओं के लिए किसी सजा से कम नहीं होते थे. पर घर की बड़ी महिलाएं आंख बंद कर के ये सब मानती थीं. उन्हें इस बात में कुछ भी बुरा नजर नहीं आता था. किसी भी पुजारी या महंत के द्वारा बताई गईर् सभी बातें घर के सब सदस्यों को जायज लगती थीं. रजस्वला को कुछ भी छूने की मनाही होती थी. मैं सोचती थी कि पुरुषों के साथ ऐसा भेदभाव क्यों नहीं होता. ये सब हम लड़कियों को ही क्यों भुगतना पड़ता है. आज मैं ने अपनेआप को इन बातों से आजाद ही नहीं करा, बल्कि मेरी कोशिश है कि हर घर में परंपराओं की ये बेडि़यां टूटें.’’

आशाजी कहती हैं कि उन के गांव में आज भी रजस्वला महिला के साथ ऐसा होता है. जैसे यह गुनाह वह जानबूझ कर रही है. इस से भी बड़ी हैरानी तो तब होती है, जब हमारे पोथीपुराणों का हवाला देते हुए पंडेपुजारी भी मासिकधर्म को अशुद्ध घोषित करते हैं. रजस्वला महिला को उन की अपनी ही चीजें छूने की मनाही होती है. यही नहीं उन के लिए अलग बिस्तर या चटाई बिछती है.

मासिकधर्म के विषय में यह मान्यता है कि इस दौरान स्त्री अचार को छू ले तो अचार सड़ जाता है. पौधों में पानी दे तो पौधे सूख जाते हैं. यही नहीं अगर घर के लोग इस स्थिति में किसी महिला को घर की किसी चीज को छूते हुए देख लें, तो बहुत अनर्थ होता है.

आज के हालात

मैं अपनी ननद के घर गई, जोकि उत्तराखंड में रहती है. वहां पहुंचने पर मैं ने देखा कि ननद एक प्लास्टिक की कुरसी पर बैठी है, जबकि बाकी सब सोफे पर बैठे थे. खानेपीने के समय भी उन्हें साथ नहीं बैठाया गया. जिस कुरसी पर बैठी थीं उसे भी बाद में सर्फ से धोया गया. लेकिन परिवार के हर सदस्य चाहे बच्चा हो या बुजुर्ग या नौकर या घर के पुरुष सब के लिए यह स्थिति बहुत सामान्य सी बात थी.

मैं ने जब ननद या ननदोई को समझाने की कोशिश की तो जवाब मिला, ‘‘इस में बुराई भी क्या है? हम सब वही कर रहे हैं जो हमारे स्वामीजी कहते हैं, पुरखे मानते आए हैं. तुम दिल्ली वाले ज्यादा पढ़लिख कर परंपराएं निभाना भूल जाते हैं.’’

मुझे यह देख दुख हुआ कि आज भी भारत के अधिकांश क्षेत्रों में यह छुआछूत का भयंकर रिवाज हमारे समाज में चालू है. इस लज्जा और अपमानजनक स्थिति के लिए क्या महिलाएं खुद दोषी नहीं हैं?

प्रकृति के नियमों पर कैसे चढ़ा धार्मिक रंग

अब वक्त बदला है. अब शहर के पढ़ेलिखे लोग, रजस्वला नारी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करते हैं. इस तरह की किसी परंपरा को नहीं मानते. लेकिन पूजा करना या मंदिर जाना आज भी वर्जित है. इस विषय पर आज भी महिलाएं खुल कर बात नहीं कर पातीं. बड़े शहरों की कुछ शिक्षित महिलाओं को छोड़ छोटे शहरों व कसबों में यह आज भी वर्जित विषय है.

अब जरा सोचिए, यदि एकल परिवारों के चलते, परिस्थिति से समझौता करते हुए, रजस्वला महिला को रसोईघर में जाने की इजाजत मिली है, तब क्या उस महिला का या उस के परिवार वालों का कुछ अनिष्ट हुआ?

दरअसल, मासिकचक्र या रजस्वला होना एक नैसर्गिक क्रिया है, जो पूरी तरह से शरीर के गर्भावस्था के लिए तैयार होने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है. यह कहना कि इस से दूषित रक्त बाहर निकलता है सर्वथा गलत है. चिकित्सीय दृष्टिकोण से नारी का ठीक समय पर रजस्वला होना बेहद जरूरी है. इस नैसर्गिक क्रिया से हर महिला को गुजरना पड़ता है. सभी लोगों को खासकर महिलाओं को भी समझना होगा कि इस का पवित्रता से कोई लेनादेना नहीं है. यहां तो खुद औरत ही औरत के ऊपर इस तरह की बेबुनियाद परंपराएं थोपते हुए नजर आती है.

एक चर्चित केस

नेहा को अचानक स्कूल में पीरियड शुरू हो गया और उसे पता नहीं चला. राह चलते समय मर्द उसे घूर रहे थे और महिलाएं उसे अपनी टीशर्ट नीचे कर खून के धब्बे छिपाने की सलाह दे रही थीं. लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी. तभी एक महिला ने उसे सैनिटरी नैपकिन दिया. तब जा कर उसे लोगों के घूरने का माजरा समझ आया.

फिर क्या था? घर आ कर नेहा ने अपनी वही स्कर्ट बिना किसी शर्म और झिझक के सोशल साइट पर शेयर करते हुए लिखा कि क्या औरत होना गुनाह है? यह पोस्ट उन सभी महिलाओं के लिए है जिन्होंने औरत होते हुए भी मेरे वूमनहुड को छिपाने के लिए मुझे मदद का औफर दिया. मैं शर्मिदा नहीं हूं. मुझे हर 28 से 35 दिनों में पीरियड होता है जोकि एक नैसर्गिक क्रिया है. मुझे दर्द भी होता है. तब मैं मूडी हो जाती हूं. लेकिन मैं किचन में जाती हूं और कुछ चौकलेट, बिस्कुट खाती हूं.

अब आप ही बताएं यदि पीरिएड्स स्त्री का गुनाह है, तो इन के हुए बिना वह मां कैसे बनेगी? संसार में रजस्वला होना प्रकृति का नारी को दिया हुआ एक वरदान है. इस वरदान से ही पूरी सृष्टि की रचना हुई है. क्या इस बात को झुठलाया जा सकता है?

परंपरा के पीछे का सच

इस प्रक्रिया के दौरान 3 से 5 दिनों में करीब 35 मिलीलीटर खून बहता है, तो महिला का शरीर थोड़ा कमजोर हो जाता है. बहुत सी महिलाओं को तो असहनीय दर्द भी होता है. ऐसे में महिला को आराम की जरूरत होती है. शायद इसी वजह से हमारे पूर्वजों ने यह परंपरा शुरू की कि इसी बहाने से रजस्वला को थोड़ा आराम मिल जाएगा. लेकिन अच्छी पहल का भी परिणाम उलटा ही हुआ. रजस्वला नारी को अपवित्र माना जाने लगा और उसे रसोई से छुट्टी देने की जगह उस का पारिवारिक बहिष्कार किया जाने लगा.

ताकि प्राकृतिक संतुलन बना रहे

हैरानी की बात तो यह है कि इन नसीहतों में कहीं भी सेहत से जुड़ी बातें शामिल नहीं होतीं. आज भी कई गांवों में मासिकधर्म के दौरान महिलाओं का किचन में जाना और बिस्तर पर सोना वर्जित है. आज भी महिलाओं की बड़ी संख्या सैनिटरी नैपकिन के बजाय गंदे, पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करती हैं, जिस कारण महिलाओं में बीमारी का खतरा बढ़ जाता है. आज भी हमारे देश में जहां हम पौर्न और सैक्स कौमेडी के बारे में तो खुलेआम बाते करते हैं, मगर जब बात महिला की सेहत की आती है, तो उसे टैबू बना कर रखना चाहते हैं.

वैसे इस टैबू को तोड़ने की जिम्मेदारी खुद महिलाओं के कंधे पर है. जब तक महिलाएं शर्म और झिझक छोड़ कर अपनी बेटियों को इस बारे में नहीं बताएंगी, कोई कैंपेन, कोई संस्था कुछ नहीं कर सकती. बड़े पैमाने पर बदलाव के लिए पहल महिलाओं को ही करनी होगी.

पीरियड्स में पर्सनल हाइजीन का रखें ख्याल

भारत में सिर्फ 12% महिलाएं ही पर्सनल हाइजीन यानी पैड्स का इस्तेमाल करती हैं जो काफी चौंकाने वाला आंकड़ा है, क्योंकि अगर इस पर्सनल हाइजीन का ध्यान नहीं रखते हैं तो यह हमें ढेरों बीमारियों की गिरफ्त में ले जाती है. यहां तक कि हम यूटीआई, कैंसर जैसी घातक बीमारियों के भी शिकार हो जाते हैं.

‘द नैशनल हैल्थ मिशन औफ द मिनिस्ट्री औफ हैल्थ ऐंड फैमिली वैलफेयर औफ इंडिया’ स्वच्छ भारत अभियान के साथ मिल कर मैंस्ट्रुअल हाइजीन व सैनिटरी पैड्स के प्रति अवेयरनैस बढ़ाने का काम कर रहा है. आप को बता दें कि देश लंबे समय से प्रदूषण के खिलाफ जंग लड़ रहा है, जिस में प्लास्टिक पौल्यूशन चरम पर है और इस में सैनिटरी पैड्स का अहम रोल है, क्योंकि भारत में हर साल 11,300 टन प्लास्टिक बरबाद होता है. प्लास्टिक नौनबायोडिग्रेडेबल की श्रेणी में आता है. ऐसे में जरूरत है पर्यावरण को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाने वाले और बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करने की.

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पर्सनल हाईजीन से समझौता नहीं

ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी महिलाएं माहवारी के समय सैनिटरी पैड्स की जगह कपड़ा, न्यूजपेपर, पत्ते, रेत या फिर राख का इस्तेमाल करती हैं, जिस से उन्हें इन्फैक्शन के साथसाथ गर्भाशय कैंसर तक हो सकता है. इसीलिए सरकार अब सस्ते पैड्स बना रही है ताकि माहवारी के दौरान हर महिला को कपड़े आदि के प्रयोग से छुटकारा मिले और वह सुरक्षित सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करे.

क्या होते हैं ईको फ्रैंडली पैड्स

वैसे तो आप को मार्केट में सस्ते से सस्ता और महंगे से महंगा पैड मिल जाएगा, लेकिन फर्क सिर्फ यह है कि जो सिंथैटिक पैड्स होते हैं उन में 90% प्लास्टिक, पौलिमर्स, परफ्यूम व कई कैमिकल होते हैं जो महिला की संवेदनशील त्वचा के लिए हानिकारक साबित होते हैं, जबकि ईको फ्रैंडली सैनिटरी पैड्स विभिन्न नैचुरल बायोडिग्रेडेबल पदार्थों से बनते हैं, जो पर्यावरण को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं और इन की सोखने की क्षमता भी काफी ज्यादा होती है. बहुत ही सौफ्ट होने के कारण ये महिला की वैजाइना की सैंसिटिव त्वचा के लिए पूरी तरह सेफ हैं.

अब समय आ गया है ऐसे सैनिटरी नैपकिन को इस्तेमाल करने का जो उन दिनों में आप की पर्सनल हाइजीन का खयाल रखने के साथसाथ पर्यावरण को भी नुकसान न पहुंचाए.

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बायोडिग्रेडेबल पैड्स

ये पैड्स प्राकृतिक पौधों के फाइबर से बने होते हैं. ये डिस्पोजल के 6 महीनों से 2 साल के बीच में गल जाते हैं, जो पर्यावरण के लिए किसी भी तरह से हानिकारक नहीं है.

रीयूजेबल पैड्स

इन पैड्स को आप धो कर भी कई बार यूज कर सकती हैं. ये हाइजीनिक होने के साथसाथ स्किन पर भी किसी तरह की जलन व रैशेज नहीं होने देते.

अगर आप सफर पर जा रही हैं तो अब परेशान न हों कि सैनिटरी पैड्स को फेंकने के लिए पौलिथीन बैग्स या टिशू पेपर भी कैरी करना पड़ेगा, क्योंकि अब मार्केट में ऐसे पैड्स बनने लगे हैं जो डिस्पोजल बैग के साथ आते हैं ताकि आप पैड को यूज कर के आसानी से उस में फेंक सकें. ये बैग्स पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल हैं.

माहवारी कोई समस्या नहीं है, बल्कि एक सामान्य शारीरिक क्रिया है. इस दौरान खुद को बंधन में बंधा महसूस करने के बजाए सुरक्षित सैनिटरी नैपकिन का प्रयोग करें और जीएं जिंदगी खुल कर.

प्रेग्नेंसी के अलावा पीरियड्स ना आने के हैं ये 4 कारण

हर महीने में 3-4 दिन हर लड़की के लिए मुश्किल भरा होता है. पीरियड्स में ना सिर्फ महिलाओं के आम दिनचर्या को प्रभावित करते हैं, बल्कि इस दौरान होने वाला दर्द उन्हें सबसे अधिक परेशान करता है. अगर पीरियड्स समय पर ना आए तो महिलाएं परेशान हो उठती हैं. आमतौर पर धारणा है कि प्रेग्नेंसी के वक्त ही पीरियड्स मिस होते हैं पर इस खबर में हम आपको ऐसे तमाम कारणों के बारे में बताएंगे जिससे महिलाओं के पीरियड्स मिस होते हैं या देरी से आते हैं.

तो आइए शुरू करें.

शरीर का कम वजन

अगर आपका वजन कम है तो आपका पीरियड साइकल प्रभावित होता है. कम वजन से आपका पीरियड में अनियमितताएं आती हैं.

तनाव

तनाव महिलाओं के पीरियड्स को बुरी तरह से प्रभावित होता है. अधिक तनाव आपके हार्मोंस को बुरी तरह से प्रभावित करता है. इस कारण कई बार पीरियड्स में देरी हो जाती है.

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पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम

आजकल की जैसी जीवनशैली हो चुकी है, महिलाओं में पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (Polycystic Ovary Syndrome) की समस्या आम हो गई है. इस बीमरी के कारण महिलाओं में अनियमित पीरियड्स की शिकायत हो रही है. ना सिर्फ पीरियड्स बल्कि इस बीमारी के कारण महिलाओं में वजन बढ़ने, बाल झड़ने, चेहरे पर दाग:धब्बे जैसी परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है.

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अधिक एक्सरसाइज

एक्सरसाइज शरीर के लिए बेहद जरूरी है. इससे हमारी सेहत पर काफी सकारात्मक असर पड़ता है. पर अत्यधिक एक्सरसाइज आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है. इसका सीधा असर आपके हार्मोंस पर पड़ता है, और आपके पीरियड्स ठीक समय पर नहीं आते हैं.

हिंदी की वो 10 फिल्में जिसे हर लड़की को देखनी चाहिए

‘सिनेमा समाज का आईना होता है’ ये एक प्रचलित कहावत है. अधिकतर फिल्मों में हिरोइन का अस्तित्व हीरो की वजह से होता है. यही सच्चाई है हमारे समाज की. पुरुष प्रधान इस समाज में महिलाओं के अस्तित्व को पुरुष ये इतर सोचा नहीं जाता. पर समय के साथ समाज बदला और फिल्में भी बदली. सही मायनो में कहे तो अब फिल्में समाज को राह दिखा रही हैं. समाज और फिल्मों का ये बदला हुआ ट्रेंड आज का नहीं है. इसकी शुरुआत को एक लंबा अरसा हो चुका है.

आज महिलाओं की जो बेहतर स्थिति है उसमें हमारी फिल्मों का भी अहम रोल है. कुछ फिल्मों  के सहारे हम आपको ये बताने की कोशिश करेंगे कि कैसे फिल्मों के बदलते संदेश, स्वरूप ने महिलाओं की स्थिति में बदलाव लाया. कैसे दशकों पुरानी फिल्मों के असर को आज समाज के बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है.

तो आइए जाने उन 10 बड़ी फिल्मों के बारे में जिन्होंने महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया ही बदल दिया.

मदर इंडिया

10 must watch movies for girls

आजादी से ठीक 10 साल बाद 1957 में आई इस फिल्म ने देश की दशा को दुनिया के सामने ला दिया. फिल्म को औस्कर में नामांकन मिला. महमूद के निर्देशन में बनी इस फिल्म में नरगिस, राज कुमार, सुनील दत्त, राजेन्द्र कुमार ने मुख्य किरदार निभाया. पर फिल्म की कहानी नरगिस के इर्दगिर्द घूमती रही.  उनके उस किरदार ने महिला शक्ति को एक अलग ढंग से दुनिया के सामने परोसा. जिस दौर में महिला सशक्तिकरण की बहस तक मुख्यधारा में नहीं थी, उस बीच ऐसी फिल्म का बनना एक दूरदर्शी कदम समझा जा सकता है.

बैंडिट क्वीन

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1994 में शेखर कपूर ने निर्देश में बनी ये फिल्म अपने वक्त की सबसे विवादित फिल्म थी. डाकू फूलन देवी के जीवन पर बनी इस फिल्म ने गरीबी, शोषण, महिलाओं की दयनीय स्थिति, जातिवादी व्यवस्था का भद्दा रूप सबके सामने लाया. फिल्म में फूलन देवी के डाकू वाली छवि से इतर, पितृसत्तात्मक समाज से लड़ाई लड़ने वाली एक लड़ाके के रूप में दिखाया गया. फिल्म ने लंबे समय से चले आ रहे महिला उत्थान,  समाजिक सुधार के बहस को और गर्मा दिया. दुनिया के सामने भारतीय ग्रामीण महिलाओं की एक सच्ची छवि रख दी. फिल्म का जबरदस्त विरोध हुआ.

मैरी कौम

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दुनियाभर में बौक्सिंग में देश का नाम रौशन करने वाली बौक्सर मैरी कौम लड़कियों के लिए किसी रोल मौडल कम नहीं हैं. 2014 में उनके संघर्ष, लड़ाई, मेहनत को बड़े पर्दे पर लाया निर्देशक ओमंग कुमार ने. फिल्म का बौक्स औफिस पर ठीकठाक प्रदर्शन रहा पर इसके संदेश ने महिलाओं की लड़ाई का एक चेहरा समाज के सामने लाया. फिल्म ने दिखाया कि अगर आपके पास जज्बा है, अगर आप जुनूनी हैं तो आपको आपकी मंजिल तक पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता. महिला सश्क्तिकरण का मैरी कौम एक बेहतरीन उदाहरण हैं.

राजी

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2018 में आई इस फिल्म को स्पाई और इंटेलिजेंसी वाली फिक्शन फिल्मों से पुरुषों के एकाधिकार को खत्म करने वाली कुछ फिल्मों के तौर पर देखा जा सकता है. फिल्म में आलिया भट्ट के किरदार की खूब तारीफ हुई. फिल्म में विकी कैशल के बावजूद लीड रोल में आलिया रहीं, इसके बाद भी फिल्म को दर्शकों ने पसंद किया. ये दिखाता है कि वक्त बदल रहा है हीरो के बिना भी फिल्मों को स्वीकारा जाता है.

क्वीन

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हाल के कुछ वर्षों में महिला सशक्तिकरण के लिए क्वीन से बेहतर कोई फिल्म नहीं बनी. ऐसा बोल कर हम बाकी फिल्मों को नकार नहीं रहे. बल्कि हमारे ये कहने के पीछे एक कारण है जो आगे आपको समझ आएगा.

इस फिल्म में कंगना एक बेहद साधारण सी शहरी लड़की के किरदार में थी. किरदार ऐसा कि एक बड़ी आबादी इसे खुद से जोड़ सके. किसी भी फिल्म के लिए इससे बड़ी बात कुछ नहीं हो सकती कि वो एक बड़ी आबादी से जुड़ जाए. ‘पुरुष के बिना महिला का जीवन संभव नहीं’ इस बात पर एक तंमाचा है ये फिल्म. मिडिल क्लास लड़की जिसकी कोई कहानी नहीं होती, वो भी कैसे अपनी कहानी कह सकती है, इस फिल्म ने बताया. देश में महिला सशक्तिकरण पर बनी फिल्मों की लिस्ट क्वीन के बिना अधूरी है.

वाटर

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रूढ़ीयां, कुरीतियां, धार्मिक जंजाल, पर एक करारा तमाचा है वाटर. फिल्म को बैन कर दिया गया था. इसका कंटेंट इसना सच्चा था कि समाज इसको अपनाने को तैयार ना हो सका. फिल्म ने दो मुद्दे प्रमुख रहें. एक बाल विवाह और दूसरा विधवाओं का जीवन. कैसे समाजिक कुरीतियां एक विधवा से खुश रहने की सारी वजहों को छीन लेता है, फिल्म में जबरदस्त अंदाज में दिखाया गया है.

पिंक

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मौडर्न लाइफस्टाइल में, खास कर के मेट्रो शहरों में महिलाओं की क्या स्थिति है. फिल्म में दिखाया गया कि कैसे तथाकथित मौडर्न सोसाइटी आज भी महिलाओं को केवल एक भोग की वस्तु के रूप में देखती है. इस फिल्म के माध्यम से महिलाओं के प्रति समाज की नजर, रवैये, धारणाएं, पूर्वानुमान आदि चीजों को एक सलीके से बड़े पर्दे पर उतारा गया.

इंगलिश विंगलिश

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श्रीदेवी की कुछ बेहतरीन फिल्मों में से एक है इंगलिश विंग्लिश. लेट एज अफेयर जैसे महत्वपूर्ण बिंदू को भी फिल्म में जगह दी गई. फिल्म से बच्चों का अपने मां बाप के प्रति नजरिए को भी प्रमुखता से दिखाया गया.

मौम

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श्रीदेवी की फिल्म मौम एक सौतेली बेटी और मां के बीच की कहानी है. अपनी बेटी का रेप हो जाने के बाद कैसे एक मां आरोपी को सजा दिलाने के लिए कुछ भी कर सकती है फिल्म में बखूबी ढंग से दिखाया गया. समाज में महिलाओं के कमजोर छवि को दूर करने में फिल्म अहम योगदान निभाती है.

बेगम जान

10 must watch movies for girls

बेगम जान बंगाली फिल्म ‘राजकहिनी’ का हिंदी रीमेक है. फिल्म में विद्या बालन एक तवाफ के किरदार में हैं. फिल्म में औरतों के आत्मसम्मान की लड़ाई को बेहतरीन अंदाज में दिखाया गया है.

पीरियड्स: एंड औफ सेंटेंस

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इसी साल आई इस डौक्यूमेंट्री फिल्म ने दुनिया को हौरान कर दिया. 26 मिनट की इस डौक्यूमेंट्री ने हरियाणा के एक छोटे से गांव के हालात को पर्दे पर बयां कर औस्कर में ‘बेस्ट डौक्यूमेंट्री औवर्ड’ अपने नाम किया. पीरियड को ले कर लोगों के मन में जो धारणा है उसपर ये फिल्म एक व्यंग है. महिलाओं की सुधरती स्थिति और जागरुकता के तमाम दावों को धता बताते हुए फिल्म ने समाज की नंगी तस्वीर सामने लाई. ये फिल्म भारतीय नहीं है. चूंकि इसकी पृष्ठभूमि भारतीय है, हमने इसे अपनी लिस्ट में जगह दी.

इन 7 टिप्स को अपनाएं, नहीं होगी पीरियड्स में कोई परेशानी

ज्यादातर महिलाएं अपने पीरियड्स के बारे में बात नहीं करना चाहतीं. यही कारण है कि इस दौरान वे हाइजीन के महत्त्व पर ध्यान नहीं देतीं और नई परेशानियों की शिकार हो जाती हैं.

माहवारी को ले कर जागरूकता का न होना भी इन परेशानियों की बड़ी वजह है. पेश हैं, कुछ सुझाव जिन पर गौर कर वे पीरियड्स के दौरान होने वाली परेशानियों से बच सकती हैं:

नियमित रूप से बदलें: आमतौर पर हर 6 घंटे में सैनिटरी पैड बदलना चाहिए और अगर आप टैंपोन का इस्तेमाल कर रही हैं, तो हर 2 घंटे में इसे बदलें. इस के अलावा आप को अपनी जरूरत के अनुसार भी सैनिटरी प्रोडक्ट बदलना चाहिए. जैसे हैवी फ्लो के दौरान आप को बारबार प्रोडक्ट बदलना पड़ता है, लेकिन अगर फ्लो कम है तो बारबार बदलने की जरूरत नहीं होती. फिर भी हर 4 से 8 घंटे में सैनिटरी प्रोडक्ट बदलती रहें ताकि आप अपनेआप को इन्फैक्शन से बचा सकें.

अपने गुप्तांग को नियमित रूप से धो कर साफ करें: पीरियड्स के दौरान गुप्तांग के आसपास की त्वचा में खून समा जाता है, जो संक्रमण का कारण बन सकता है, इसलिए गुप्तांग को नियमित रूप से धो कर साफ करें. इस से वैजाइना से दुर्गंध भी नहीं आएगी. हर बार पैड बदलने से पहले गुप्तांग को अच्छी तरह साफ करें.

हाइजीन प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल न करें: वैजाइना में अपनेआप को साफ रखने का नैचुरल सिस्टम होता है, जो अच्छे और बुरे बैक्टीरिया का संतुलन बनाए रखता है. साबुन योनि में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया को नष्ट कर सकता है इसलिए इस का इस्तेमाल न करें. आप सिर्फ पानी का इस्तेमाल कर सकती हैं.

धोने का सही तरीका अपनाएं: गुप्तांग को साफ करने के लिए योनि से गुदा की ओर साफ करें यानी आगे से पीछे की ओर जाएं. उलटी दिशा में कभी न धोएं. उलटी दिशा में धोने से गुदा में मौजूद बैक्टीरिया योनि में जा सकते हैं और संक्रमण का कारण बन सकते हैं.

इस्तेमाल किए गए सैनिटरी प्रोडक्ट को सही जगह फेंकें: इस्तेमाल किए गए प्रोडक्ट को सही तरीके से और सही जगह फेंकें, क्योंकि यह संक्रमण का कारण बन सकता है. फेंकने से पहले लपेट लें ताकि दुर्गंध या संक्रमण न फैले. पैड या टैंपोन को फ्लश न करें, क्योंकि इस से टौयलेट ब्लौक हो सकता है. नैपकिन फेंकने के बाद हाथों को अच्छी तरह धो लें.

पैड के कारण होने वाले रैश से बचें: पीरियड्स में हैवी फ्लो के दौरान पैड से रैश होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है. ऐसा आमतौर पर तब होता है जब पैड लंबे समय तक गीला रहे और त्वचा से रगड़ खाता रहे. इसलिए अपनेआप को सूखा रखें, नियमित रूप से पैड चेंज करें. अगर रैश हो जाए तो नहाने के बाद और सोने से पहले ऐंटीसैप्टिक औइंटमैंट लगाएं. इस से रैश ठीक हो जाएगा. अगर औइंटमैंट लगाने के बाद भी रैश ठीक न हो तो तुरंत डाक्टर से मिलें.

एक समय में एक ही तरह का सैनिटरी प्रोडक्ट इस्तेमाल करें: कुछ महिलाएं जिन्हें हैवी फ्लो होता है, वे एकसाथ 2 पैड्स या 1 पैड के साथ टैंपोन इस्तेमाल करती हैं या कभीकभी सैनिटरी पैड के साथ कपड़ा भी इस्तेमाल करती हैं यानी ऐसा करने से उन्हें लंबे समय तक पैड बदलने की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन बेहतर होगा कि आप एक समय में एक ही प्रोडकट इस्तेमाल करें और इसे बारबार बदलती रहें. जब एकसाथ 2 प्रोडक्ट्स इस्तेमाल किए जाते हैं, तो आप बारबार इन्हें बदलती नहीं, जिस कारण रैश, इन्फैक्शन की संभावना बढ़ जाती है. अगर आप पैड के साथ कपड़ा भी इस्तेमाल करती हैं, तो संक्रमण की संभावना और अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि पुराना कपड़ा अकसर हाइजीनिक नहीं होता. पैड्स के प्रयोग की बात करें तो ये असहज हो सकते हैं और रैश का कारण भी बन सकते हैं.

-डा. रंजना शर्मा, सीनियर कंसलटैंट, ओब्स्टेट्रिशियन एवं गाइनेकोलौजिस्ट, इंद्रप्रस्थ अपोलो

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