विश्वास: नीता की बीमारी जानने के बाद क्या था समीर का फैसला

उसरात नीता बहुत खुश थी. जब वह घर लौटी तो पुरानी यादों में ऐसी खोई कि उस की आंखों की नींद न जाने कहां गायब हो गई. उसे समीर ही समीर दिखाई दे रहा था. जब वह पहली बार समीर से मिली थी, तब उसे देखते ही उस का दिल धड़क उठा था. समीर एम. टैक. फाइनल ईयर का छात्र था और नीता फाइन आर्ट्स की. दोनों एक अनजाने आकर्षण से एकदूसरे की ओर खिंचे चले जा रहे थे. दोनों रोज मिलते. प्रेम के सागर में डूबे दोनों को एकदूसरे के बिना जीवन निरर्थक लगने लगा था. समीर नीता के सौंदर्य और उस के मधुर स्वभाव पर मुग्ध था और नीता… नीता तो समीर की दीवानी थी. जब कभी अपने सपनों के शहजादे की कल्पना करती तो उस की आंखों में समीर का ही चेहरा आता.

नीता समीर से रोज मिलती थी. एक दिन नीता समीर के प्यार में सराबोर हो ऐसी बही की सारी सीमाएं ही भूल गई. मगर समझदार थे दोनों, इसलिए पूरी सावधानी बरती थी.

नीता की प्रेम के रंग में रंगी पतंग आसमान में ऊंची उड़ती जा रही थी. तभी एक दिन वह पतंग अचानक धम से नीचे आ गिरी. दरअसल, हुआ यह कि नीता को नहाते समय शीशे में अपनी पीठ पर एक सफेद दाग दिखा. वह उस दाग को देखते ही विचलित हो उठी कि यदि यह बीमारी फैल गई तो कैसे जीवित रहेगी वह? समीर का खयाल आते ही उस के मधुर सपने कांच की तरह टूट कर बिखर गए. उस ने रोतेरोते मां से कहा, ‘‘देखो न मां, मेरी पीठ पर यह कैसा दाग दिखाई दे रहा है.’’

नीता की मां शांति ने जैसे ही दाग देखा तो वे भी परेशान हो गईं.

फिर एक दिन शांति ने अपनी सहेली से कंकड़ बाबा का पता ले कर नीता से कहा, ‘‘चल नीता बेटी, तैयार हो जा. मैं तुझे कंकड़ बाबा के पास ले चलती हूं… कुछ दिन पहले मेरी सहेली सुजाता की भानजी को भी ऐसे ही दाग हो गए थे. सुजाता उसे 2-4 बार कंकड़ बाबा के पास ले कर गई और उस के दाग गायब हो गए.’’

नीता को मां से ऐसी बात की कतई आशा नहीं थी. अत: झुंझलाते हुए बोली, ‘‘मां, आप पढ़ीलिखी हो कर कैसी बातें कर रही हैं? ये बाबा लोग धर्म और आस्था के नाम पर लोगों को मानसिक रूप से गुलाम बना कर उन्हें ठगते हैं.’’

यह सुन कर मां गुस्सा हो कर कहने लगीं, ‘‘बस यही तो इस नई जैनरेशन की परेशानी है… बच्चे अपने आगे किसी को कुछ समझते ही नहीं. अरे भई, मंत्र में भी बड़ी शक्ति होती है. चल, जल्दी से तैयार हो जा.’’

नीता को न चाहते हुए भी उस कंकड़ बाबा के पास जाना पड़ा. कंकड़ बाबा के पास बहुत सारे लोग इलाज के लिए आए थे. कुछ ही देर में काले वस्त्र पहने वहां ‘जय मां काली, जय मां काली’ कहते हुए कंकड़ बाबा पहुंच गया. भक्तों ने भी ‘जय मां काली’ के जयकारे लगाने शुरू कर दिए. फिर बाबा ने बड़े ही विचित्र ढंग से लोगों का उपचार करना शुरू किया.

एक औरत के पेट में पथरी थी. बाबा ने कोई मंत्र फूंका और फिर उस के पेट में से पत्थर को चूस कर बाहर निकालने का दावा किया. नीता ये सब देख कर डर गई. जब उस का नंबर आया तब बाबा ने नीता का कुरता उठाया और कमर पर मोरपंख की झाड़ू घुमाते हुए मंत्र फूंका. फिर नीता को अजीब नजरों से घूरते हुए बोला, ‘‘यह दाग किसी ऊपरी शक्ति का प्रकोप है. इस के लिए तो बड़े उपाय करने होंगे.’’

‘‘बताइए न बाबा,’’ शांति ने बड़ी श्रद्धा से कहा.

‘‘बाबा ने नीता को एक लाल कपड़े की पोटली देते हुए कहा, ‘‘लड़की,

इस लाल कपड़े की पोटली को रोज अपने तकिए के नीचे रख कर सोना. और हां, एक काले कुत्ते को हर शनिवार को इमरती खिलाना.’’

शांति ने स्वीकृति में सिर हिलाया. फिर बाबा कोई पेयपदार्थ देते हुए बोला, ‘‘ले, यह दिव्य पेय अभी पी ले और अंदर कुटिया में एक शिला है, उस पर जा कर लेट जा. कोई लेप लगाना होगा.’’

नीता की मां शांति भी उस के साथ कुटिया में जाने के लिए उठने लगीं तो बाबा ने कहा, ‘‘अरेअरे रुक… वहां इसे अकेले ही जाना होगा.’’

नीता वहां का माहौल देख कर बुरी तरह डर गई थी. वह उठी और भागने लगी. पीछेपीछे उस की मां शांति भी भागीं.

बाबा के चेले चिल्लाते रह गए, ‘‘रुको… रुको…’’

नीता ने किसी की नहीं सुनी. वह चिल्लाते हुए बोली, ‘‘मुझे नहीं दिखाना किसी बाबा को. इन पाखंडी, ठग बाबाओं के नित नए कारनामे सुन कर भी क्या मां आप को डर नहीं लगता? चलो, घर चलो.’’

जब नीता के पापा दिनेशजी ने ये सब सुना तो वे शांति पर बहुत गुस्सा हुए. बोले, ‘‘शांति, तुम किस पचड़े में पड़ी हो? ये बाबा, ओझा आदि तंत्रमंत्र और दैवीय शक्ति के नाम पर सीधेसादे लोगों को मूर्ख बनाते हैं. न जाने अकेले में वह बदमाश क्याक्या करता. ये पाखंडी लोगों की अंधश्रद्धा का फायदा उठाते

हैं… नीता बेटा, मैं कल तुझे डाक्टर के पास ले चलूंगा.’’

नीता के पिता उसे डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर ने चैकअप कर कहा, ‘‘यह ल्यूकोडर्मा जैसी बीमारी की शुरुआत है. समय पर इलाज करा लेने से ठीक हो जाती है वरना इस के परिणाम खतरनाक भी हो सकते हैं.’’

नीता पूरे मनोयोग से इलाज करा रही थी. मगर उसे यह चिंता भी

सता रही थी कि यदि सफेद दाग के बारे में जान कर समीर ने शादी से इनकार कर दिया तो? इस कल्पना मात्र से उस का दिल क्यों दुखाऊं? मगर शादी के बाद जब उसे दाग दिखाई देगा, तब उस का क्या हाल होगा? वह क्या सोचेगा?

ऐसे ही खयालों में डूबी नीता रोज परेशान रहती थी. उस का दिल और दिमाग दोनों ही अलगअलग दिशाओं में जा रहे थे. वह समीर को खोने के डर से सच छिपाने की कोशिश करती रहती थी.

नीता का मन उसे ऐसा करने से धिक्कारता. मन की आवाज की अवहेलना करतेकरते वह परेशान हो उठी थी. नीता यह समझ गई थी कि सफेद दाग की बात छिपाना समीर को बहुत बड़ा धोखा देना होगा. वह यह भलीभांति जानती थी कि विवाह जैसे पावन, मधुर रिश्ते की नींव विश्वास और प्रेम पर ही टिकी होती है. यदि प्रेम और विश्वास न हो तो सफल विवाह की कल्पना भी नहीं की जा सकती. अत: उस ने मन ही मन यह निर्णय कर लिया कि जो भी होगा वह सह लेगी, पर समीर से सच नहीं छिपाएगी.

इसी बीच एक दिन समीर का फोन आया. बोला, ‘‘शहर में एक नया रेस्तरां खुला है… कल चलोगी न?’’

समीर ने इतने आग्रहपूर्वक कहा कि नीता तुरंत मान गई.

अगले दिन यूनिवर्सिटी जाने के बजाय वह समीर के साथ नए रेस्तरां पहुंच गई.

रेस्तरां का वह कोना रंगबिरंगी रोशनी से खूब चमक रहा था. वातावरण में अनोखी चमक थी.

समीर घुटनों के बल बैठ कर धरती, आकाश, जल, पवन और अग्नि को साक्षी मान कर नीता को प्रोपोज करने ही वाला था कि तभी नीता बोल पड़ी, ‘‘समीर, मुझे तुम से कुछ कहना है.’’

उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. उस ने अपने दिल को कड़ा कर लिया था. वह समीर के हर उत्तर के लिए तैयार थी. फिर उस ने समीर को अपने सफेद दाग के बारे में बता दिया.

सुन कर समीर ने नीता का हाथ पकड़ कर बड़े प्यार से कहा, ‘‘मैं हर स्थिति में तुम्हारे साथ हूं. तुम मेरी धड़कन हो… करोगी न मुझ से शादी?’’ नीता की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे. उस के मन में उमड़ा तूफान पूरी तरह शांत हो चुका था. सारी शंकाएं दूर हो चुकी थीं. उसे पवित्र प्रेम का उपहार मिल चुका था.

नीता जीवन की इन्हीं खट्टीमीठी यादों को याद करते हुए न जाने कब नींद के आगोश में चली गई.

सुबह उस की मां ने उसे उठाते हुए कहा, ‘‘उठो बेटा, यूनिवर्सिटी जाने का समय हो गया है.’’

नीता के चेहरे पर अद्भुत तेज और सुकून दिखाई दे रहा था. वह मां से बोली, ‘‘मां, बैठो न मेरे पास,’’ नीता मां की गोद में सिर रख कर लेट गई फिर प्यार से बोली, ‘‘मां, मैं आप को कुछ बताना चाहती हूं.’’

मां ने उस के बालों को सहलाते हुए कहा, ‘‘बोल बेटी, क्या कहना चाहती है?’’

‘‘मां, आप समीर से तो मिल चुकी हैं. मैं उस से बहुत प्यार करती हूं. हम दोनों शादी करना चाहते हैं.’’

‘‘यह तो ठीक है बेटी, पर क्या वह तेरी बीमारी के बारे में जानता है?’’ मां ने पूछा.

‘‘हां मां, मैं ने उसे सब बता दिया है.’’

नीता के मातापिता उस का रिश्ता ले कर समीर के घर गए. सब की रजामंदी से समीर और नीता का रिश्ता तय हो गया. अब तक जो प्रेम छिपछिप कर चल रहा था, अब जग उजागर हो चुका था. कुछ ही दिनों में बड़ी धूमधाम से दोनों का विवाह हो गया.

अपने कमरे में नईनवेली दुलहन नीता रिश्तेदारों से घिरे समीर का इंतजार कर रही थी. थोड़ी देर में नीता की प्रतीक्षा की घडि़यां समाप्त हुईं. समीर को देखते ही वह खुशी से झूम उठी. पतिपत्नी अपनी न्यारी, प्यारी दुनिया में खोए रहे. बहुत देर हंसतेबतियाते रहे.

नीता ने कहा, ‘‘समीर, तुम ने मुझे मेरे दाग के साथ अपना कर मेरा जीवन सफल कर दिया.’’

समीर ने नीता का चुंबन लेते हुए कहा, ‘‘तुम्हें याद है वह दिन, जब तुम उस मदमाती बेल की तरह मुझ से लिपट गई थी और सारी सीमाओं को भूल गई थी?’’

समीर की बात सुनते ही नीता शर्म से लाल हो गई.

समीर बोला, ‘‘सच बताऊं तो मैं ने तुम्हारा दाग उसी दिन देख लिया था. मैं तो तुम्हारीझ्र भोली सूरत, समझदारी और मधुर स्वभाव पर हमेशा से मुग्ध था. नीता, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं, पर मेरे मन के किसी कोने में यह इच्छा दबी थी कि तुम अपने जीवन का सत्य मुझे स्वयं बताओ. नीता उस रेस्तरां

की रंगबिरंगी रोशनी में तुम ने सच बोल कर मेरे विश्वास को हमेशा के लिए जीत लिया. नीता तुम मेरी जिंदगी हो… मैं तुम्हारे बिना अधूरा हूं.’’

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दर्द आसना: आजर ने जोया और सना में से किसे चुना

‘तुम गई नहीं..?’’

‘‘कहां?’’

‘‘आजर भाई को देखने…’’

‘‘मैं क्यों जाऊं?’’‘‘घर के सब लोग जा चुके हैं लेकिन तुम हो कि अभी तक नहीं गई. आखिर वह तुम्हारे मंगेतर हैं.’’

‘‘मंगेतर…मंगेतर थे. लेकिन अब नहीं. एक अपाहिज मेरा मंगेतर नहीं हो सकता. मुझे उस की बैसाखी नहीं बनना.’’

वह आईने के सामने खड़ी बाल संवार रही थी और अपनी बहन के सवालों के जवाब लापरवाही से दे रही थी. जब बाल सेट हो गए तो उस ने आईने में खुद को नीचे से ऊपर तक देखा और पर्स नचाती हुई दरवाजे से बाहर निकल गई.

आजर के यहां का दस्तूर था कि रिश्ते आपस में ही हुआ करते थे. और शायद इसी रिवायत को जिंदा रखने के लिए मांबाप ने बचपन में उस का रिश्ता उस के चाचा की बेटी से तय कर दिया था.

आजर कम बोलने वाला सुलझा हुआ लड़का था. जबकि जोया को मां के बेजा लाड़प्यार ने जिद्दी और खुदसर बना दिया था. शायद यही वजह थी कि दोनों साथसाथ खेलतेखेलते झगड़ने लगते थे. जो खिलौना आजर के हाथ में होता, जोया उसे लेने की जिद करती और जब तक आजर उसे दे नहीं देता, वह चुप न होती.

उस दिन तो हद हो गई. आजर पुरानी कौपी का उधड़ा हुआ कवर लिए था. कवर पर कोई तसवीर बनी थी, शायद उसे पसंद थी. जोया की नजर पड़ गई, वह चिल्लाने लगी, ‘‘वह मेरा है…उसे मैं लूंगी.’’

आजर भी बच्चा था. बजाए उसे देने के दोनों हाथ पीछे करके छिपा लिए. वह चीखती रही, चिल्लाती रही यहां तक कि बड़े लोग आ गए.

‘‘तौबा है दफ्ती के टुकड़े के लिए जिद कर रही थी. अभी ये आजर के हाथ में न होता तो रद्दी होता. क्या लड़की है, कयामत बरपा कर दी.’’ बड़ी अम्मी बड़बड़ाईं और अपने बेटे आजर को ले कर चली गईं.

यूं ही लड़तेझगड़ते दोनों बड़े हो गए. बचपन पीछे छूट गया. दोनों उम्र के उस मुकाम पर थे, जहां जागती आंखें ख्वाब देखने लगती हैं. और जब आजर ने जोया की आंखों में देखा तो हया की लाली उतर आई.

नजर अपने आप झुकती चली गई. शायद उसे मंगेतर का मतलब समझ आ गया था. अब वह आजर की इज्जत करती, उस की बातों में शरीक होती, उस के नाम पर हंसती. घर वालों को इत्मीनान हो गया कि चलो सब कुछ ठीक हो गया है.

बड़ी अम्मी इन दिनों मायके गई हुई थीं और जब लौटीं तो उन के साथ एक दुबलीपतली सी लड़की थी. जिस की मां बचपन में गुजर चुकी थी. बाप ने दूसरी शादी कर ली थी. अब उस के भी 4 बच्चे थे. बेचारी कोल्हू के बैल की तरह लगी रहती. बिस्तर पर जाती तो बिस्तर बिछाने का होश न रहता. पता नहीं कब सुबह हो जाती.

दादा से पोती की हालत देखी न जाती. दादा बड़ी अम्मी के रिश्ते के चचा थे, जब बड़ी अम्मी उन से मिलने गईं तो पोती का दुखड़ा ले कर बैठ गए.

‘‘अल्ला न करे किसी की मां मरे.’’ बड़ी अम्मी ने ठंडी सांस ली.

‘‘आप उसे हमारे साथ भेज दीजिए.’’ बड़ी अम्मी ने कुछ सोच कर कहा.

अंधा क्या चाहे दो आंखें, वह खुशीखुशी राजी हो गए. लेकिन बहू का खयाल आते ही उन की सारी खुशी काफूर हो गई. वह ले जाने देगी या नहीं. और जब नजर उठी तो वह दरवाजे में खड़ी थी. उस ने सारी बातें सुन ली थीं.

बड़ी अम्मी कब हारने वाली थीं. उन्होंने अपने तरकश से एक तीर छोड़ा, जो सही निशाने पर बैठा. उन्होंने हर महीने कुछ रकम भेजने का वादा किया और उसे अपने साथ ले आईं.

सना ने आते ही पूरा घर संभाल लिया था. इतना काम उस के लिए कुछ नहीं था. वह घर का काम आंखें बंद कर के कर लेती. उसे सौतेली मां के जुल्म व सितम से निजात मिल गई थी. अर्थात वह यहां आ कर खुश थी.

अगर कभी घर में गैस खत्म हो जाती तो लकडि़यों के चूल्हे पर सेंकी हुई सुर्खसुर्ख रोटियां और धीमीधीमी आंच पर दम की हुई हांडी की खुशबू फैलती तो भूख अपने आप लग जाती.

चाची की तरफ मातम बरपा होता. अरे गैस खत्म हो गई…अब क्या करें…भाभी सिलेंडर वाला आया क्या? फिर बाजार से पार्सल आते तब जा कर खाना नसीब होता.

और अगर कभी मिरची पाउडर खत्म हो जाता, सना साबुत मिर्च निकालती. सिलबट्टे पर पीस कर खाना तैयार कर देती. सालन देख कर अम्मी को पता चलता कि मिरची खत्म हो गई है.

और चाची की तरफ ऐसा होता तो जोया कहती, ‘‘न बाबा न मेरे हाथ में जलन होने लगती है. हया तुम पीस लो.’’ हया भी साफ मना कर देती.

सना तुम कौन हो…कहां से आई हो…सादगी की मूरत…वफा का पैकर…जिंदगी का आइडियल, सना तुम्हारी सना (तारीफ) किन लफ्जों में करूं. आजर का दिल बिछबिछ जाता. फिर उसे जोया का खयाल आता.

वह तो उस का मंगेतर है. कल को उस से उस की शादी हो जाएगी, फिर ये कशिश क्यों. मैं सना की तरफ क्यों खिंचा जा रहा हूं. अकसर तनहाई में वह उस के बारे में सोचता रहता.

आजर एक दिन लौंग ड्राइव से लौट रहा था. उस का एक्सीडेंट हो गया. अस्पताल पहुंचने पर डाक्टर ने कहा, ‘‘अब ये अपने पैरों पर नहीं चल सकेंगे.’’

सारा घर जमा था. सब का रोरो कर बुरा हाल था.

जब से आजर का एक्सीडेंट हुआ था, जोया ने अपने कालेज के दोस्तों से मिलना शुरू कर दिया था. आज भी वह तैयार हो कर किसी से मिलने गई थी. हया के लाख समझाने पर भी उस पर कोई असर न हुआ था.

आजर अस्पताल के बैड पर दोनों पैरों से माजूर लेटा हुआ था. हर आहट पर देखता, शायद वह आ जाए, जिस से दिल का रिश्ता जुड़ा है. वफा के सिलसिले हैं, जीने के राब्ते हैं, जो उस का मुस्तकबिल है, लेकिन दूर तक उस का कहीं पता न था.

एक आहट पर उस के खयालात बिखर गए. अम्मी आ रही थीं. उन के पीछे सना थी. अम्मी ने इशारा किया तो वह सामने स्टूल पर बैठ गई.

अम्मी रात का खाना ले कर आई थीं. आजर खाना खा रहा था और कनखियों से उसे देख रहा था. फुल आस्तीन की जंपर, चूड़ीदार पजामा, सर पर पल्लू डाले वह खामोश बैठी थी. काश! इस की जगह जोया होती, उस ने सोचा.

फिर जल्दी से नजरें झुका लीं. कहीं उस के चेहरे से अम्मी उस का दर्द न पढ़ लें. वह मुंह में निवाला रख कर चबाने लगा. जब खाने से फारिग हो गया तो अम्मी बरतन समेटने लगीं.

‘‘अम्मी, आप रहने दीजिए मैं कर लूंगी.’’ उस की महीनमहीन सी आवाज आई.

उस ने बरतन समेट कर थैले में रखे और खड़ी हो गई. जब वह बरतन उठा रही थी तो खुशबू का झोंका उस के पास से आया और आजर को महका गया. अम्मी उसे अपना खयाल रखने की हिदायत दे कर चली गईं.

आज आजर को डिस्चार्ज मिल गया था. बैसाखियों के सहारे जब वह अंदर आया तो अम्मी का कलेजा मुंह को आने लगा. लेकिन होनी को कौन टाल सकता है. सना आजर का पहले से ज्यादा खयाल रखती. बहरहाल दिन गुजरते रहे.

एक दिन देवरानीजेठानी दरम्यानी बरामदे में बैठी हुई थीं. देवरानी शायद बात का सिरा ढूंढ रही थी.

‘‘भाभी, हम आप से कुछ कहना चाहते हैं.’’ उन्होंने उन की आंखों में देखा.

‘‘जोया ने इस रिश्ते के लिए मना कर दिया है. वह आजर से रिश्ता नहीं करना चाहती, क्योंकि आजर तो…’’ उन्होंने जुमला अधूरा छोड़ दिया. वह जबान से कुछ न बोलीं और उठ कर चली आईं.

आजर ने नोटिस किया था, अम्मी बहुत बुझीबुझी सी रहती हैं. आखिर वह पूछ बैठा, ‘‘अम्मी क्या बात है, आप बहुत उदास रहती हैं.’’

‘‘कुछ नहीं, बस ऐसे ही, जरा तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘मैं जानता हूं आप क्यों परेशान हैं, जोया ने इस रिश्ते से मना कर दिया है.’’

अम्मी ने चौंक कर बेटे की तरफ देखा.

‘‘हां अम्मी, मुझे मालूम है. वह मुझे देखने तक नहीं आई. अगर रिश्ता नहीं करना था, तो न सही. लेकिन इंसानियत के नाते तो आ सकती थी, जिस का इंसानियत से दूरदूर तक वास्ता न हो, मुझे खुद उस से कोई रिश्ता नहीं रखना.’’

‘‘मेरे बच्चे…’’ अम्मी की आंखों से बेअख्तियार आंसू निकल पडे़. उन्होंने उसे गले से लगा लिया.

‘‘अम्मी मेरी शादी होगी…उसी वक्त पर होगी..’’ अम्मी ने उसे परे करते हुए उस की आंखों में देखा. जिस का अर्थ था अब तुझ से कौन शादी करेगा.

‘‘अम्मी, मैं सना से शादी करूंगा. सना मेरी शरीकेहयात बनेगी…मैं ने सना से बात कर ली है.’’ यह सुन कर अम्मी ने फिर उसे गले से लगा लिया.

शादी की तैयारियां होने लगीं. और जो वक्त जोया के साथ शादी के लिए तय था, उसी वक्त पर आजर और सना का निकाह हो गया. आजर को याद आया, एक बार जोया ने बातोंबातों में कहा था, शादी के बाद वह हनीमून के लिए स्विटजरलैंड जाएगी. आजर ने ख्वाहिश जाहिर की तो अम्मी ने उसे जाने की इजाजत दे दी.

आज वह हनीमून से लौट रहा था. सना अंदर दाखिल हुई तो कितनी निखरीनिखरी, कितनी खुश लग रही थी. फिर उस ने दरवाजे की ओर मुसकरा कर देखा, ‘‘आइए न…’’

इतने पर आजर अंदर दाखिल हुआ.

उसे देख कर अम्मी की आंखें हैरत से फैलती चली गईं. वह अपने पैरों पर चल कर आ रहा था.

‘‘बेटे, ये सब क्या है?’’ उन्होंने बढ़ कर उसे थाम लिया.

‘‘बताता हूं…पहले आप बैठिए तो सही.’’ उस ने दोनों बांहें पकड़ कर उन्हें बिठा दिया.

‘‘आप वालिदैन अपने बच्चों के फैसले तो कर देते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि बड़े हो कर उन की सोच कैसी होगी. उन के खयालात कैसे होंगे. उन का नजरिया कैसा होगा.

‘‘और मुझे सच्चे दर्द आशना की तलाश थी. जिस के अंदर कुरबानी का जज्बा हो, एकदूसरे के लिए तड़प हो. …और ये सारी खूबियां मुझे सना में नजर आईं, इसलिए मैं ने डाक्टर से मिल कर एक प्लान बनाया.

‘‘वह एक्सीडेंट झूठा था. मेरे पैर सहीसलामत थे. ये मेरा सिर्फ नाटक था, नतीजा आप के सामने है. जोया ने खुद इस रिश्ते से इनकार कर दिया. सना ने मुझ अपाहिज को कबूल किया. मैं सना का हूं, सना मेरी है.’’

जोया ने सारी बातें सुन ली थीं. उस का जी चाह रहा था सब कुछ तोड़फोड़ डाले.

शुभचिंतक: सविता के पति पर शक का क्या था अंजाम

राकेश से झगड़ कर सविता महीने भर से मायके में रह रही थी. उन के बीच सुलह कराने के लिए रेणु और संजीव ने उन दोनों को अपने घर बुलाया.

यह मुलाकात करीब 2 घंटे चली पर नतीजा कुछ न निकला.

‘‘अब साक्षी के साथ मेरा कोई संबंध नहीं है,’’ राकेश बोला, ‘‘अतीत के उस प्रेम को भुलाने के बाद ही मैं ने सविता से शादी की है. अब वह मेरी सिर्फ सहकर्मी है. उसे और मुझे ले कर सविता का शक बेबुनियाद है. हमारे विवाहित जीवन की सुरक्षा व सुखशांति के लिए यह नासमझी जबरदस्त खतरा पैदा कर रही है.’’

अपने पक्ष में ऐसी दलीलें दे कर राकेश बारबार सविता पर गुस्से से बरस पड़ता था.

‘‘मैं नहीं चाहती हूं कि ये दोनों एकदूसरे के सामने रहें,’’ फुफकारती हुई सविता बोली, ‘‘इन्हें किसी दूसरी जगह नौकरी करनी होगी. इन की उस के साथ ही नौकरी करने की जिद हमारी गृहस्थी के लिए खतरा पैदा कर रही है.’’

‘‘तुम्हारे बेबुनियाद शक को दूर करने के लिए मैं अपनी लगीलगाई यह अच्छी नौकरी कभी नहीं छोडूंगा.’’

‘‘जब तक तुम ऐसा नहीं करोगे, मैं तुम्हारे पास नहीं लौटूंगी.’’

दोनों की ऐसी जिद के चलते समझौता होना असंभव था. नाराज हो कर राकेश वापस चला गया.

‘‘हमारा तलाक होता हो तो हो जाए पर राकेश की जिंदगी में दूसरी औरत की मौजूदगी मुझे बिलकुल मंजूर नहीं है,’’ सविता ने कठोर लहजे में अपना फैसला सुनाया तो उस की सहेली रेणु का दिल कांप उठा था.

रेणु के पति संजीव ने सविता के पास जा कर उस का कंधा पकड़ हौसला बढ़ाने वाले अंदाज में कहा, ‘‘सविता, मैं तुम से पूरी तरह सहमत हूं. राकेश की नौकरी न छोड़ने की जिद यही साबित कर रही है कि दाल में कुछ काला है. तुम अभी सख्ती से काम लोगी तो कई भावी परेशानियों से बच जाओगी.’’

राकेश की इस सलाह को सुन कर सविता और रेणु दोनों ही चौंक पड़ीं. वह बिलकुल नए सुर में बोला था. अभी तक वह सविता को राकेश के पास लौट जाने की ही सलाह दिया करता था.

‘‘मैं अभी भी कहती हूं कि राकेश पर विश्वास कर के सविता को वापस उस के पास लौट जाना चाहिए. उसे उलटी सलाह दे कर आप बिलकुल गलत शह दे रहे हैं,’’  रेणु की आवाज में नाराजगी के भाव उभरे.

‘‘मेरी सलाह बिलकुल ठीक है. राकेश को अपनी पत्नी की भावनाओं को समझना चाहिए. यह यहां रहती रही तो जल्दी ही उस की अक्ल ठिकाने आ जाएगी.’’

संजीव को अपने पक्ष में बोलते देख सविता की आवाज में नई जान पड़ गई, ‘‘रेणु, तुम मेरी सब से अच्छी सहेली हो. कम से कम तुम्हें तो मेरी मनोदशा को समझ कर मेरा पक्ष लेना चाहिए. मुझे तो आज संजीव अपना ज्यादा बड़ा शुभचिंतक नजर आ रहा है.’’

‘‘लेकिन यह समझदारी की बात नहीं कर रहे हैं,’’ रेणु ने नाराजगी भरे अंदाज में उन दोनों को घूरा.

‘‘मेरा बताया रास्ता समझदारी भरा है या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा रेणु. फिलहाल लंच कराओ क्योंकि भूख के मारे अब पेट का बुरा हाल हो रहा है,’’ संजीव ने प्यार से अपनी पत्नी रेणु का गाल थपथपाया, पर वह बिलकुल भी नहीं मुसकराई और नाराजगी दर्शाती रसोई की तरफ बढ़ गई.

आगामी दिनों में संजीव का सविता के प्रति व्यवहार पूरी तरह से बदल गया. इस बदलाव को देख रेणु हैरान भी होती और परेशान भी.

‘‘सविता, तुम जैसी सुंदर, स्मार्ट और आत्मनिर्भर युवती को अपमान भरी जिंदगी बिलकुल नहीं जीनी चाहिए…

‘‘तुम राकेश से हर मामले में इक्कीस हो, फिर तुम क्यों झुको और दबाव में आ कर गलत तरह का समझौता करो?

‘‘तुम जैसी गुणवान रूपसी को जीवनसंगिनी के रूप में पा कर राकेश को अपने भाग्य पर गर्व करना चाहिए. तुम्हें उस के हाथों किसी भी तरह का दुर्व्यवहार नहीं सहना है,’’ संजीव के मुंह से निकले ऐसे वाक्य सविता का मनोबल भी बढ़ाते और उस के मन की पीड़ा भी कम करते.

अगर रेणु सविता को बिना शर्त वापस लौटने की बात समझाने की कोशिश करती तो वह फौरन नाराज हो जाती.

धीरेधीरे सविता और संजीव एक हो गए और रेणु अलगथलग पड़ती चली गई. राकेश की चर्चा छिड़ती तो उस के शब्दों पर दोनों ही ध्यान नहीं देते. सविता संजीव को अपना सच्चा हितैषी बताती. अब रेणु के साथ अकसर उस का झगड़ा ही होता रहता था.

सविता के सामने ही संजीव अपनी पत्नी रेणु से कहता, ‘‘यह बेचारी कितनी दुखी और परेशान चल रही है. इस कठिन समय में इस का साथ हमें  देना ही होगा.

‘‘अपने दुखदर्द के दायरे से निकल कर जब यह कुछ खुश और शांत रहने लगेगी तब हम जो भी इसे समझाएंगे, वह इस के दिमाग में ज्यादा अच्छे ढंग

से घुसेगा. अभी हमें इस का मजबूत सहारा बनना है, न कि सब से बड़ा आलोचक.’’

संजीव, सविता का सब से बड़ा प्रशंसक बन गया. उस के हर कार्य की तारीफ करते उस की जबान न थकती. उसे खुश करने को वह उस के सुर में सुर मिला कर बोलता. उस के लतीफे  सुन सविता हंसतेहंसते दोहरी हो जाती. अपने रंगरूप की तारीफ सुन उस के गाल गुलाबी हो उठते.

‘‘तुम कहीं सविता पर लाइन तो नहीं मार रहे हो?’’ एक रात अपने शयनकक्ष में रेणु ने पति संजीव से यह सवाल पूछ ही लिया.

‘‘इस सवाल के पीछे क्या ईर्ष्या व असुरक्षा का भाव छिपा है, रेणु?’’ संजीव उस की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराया.

‘‘अभी तो ऐसा कुछ नहीं हुआ है न?’’

‘‘जिस दिन मैं अपनी आंखों से कुछ गलत देख लूंगी उस दिन तुम दोनों की खैर नहीं,’’ रेणु ने नाटकीय अंदाज में आंखें तरेरीं.

संजीव ने हंसते हुए उसे छाती से लगाया और कहा, ‘‘पति की जिंदगी में दूसरी औरत के आने की कल्पना ऐसा सचमुच हो जाने की सचाई की तुलना में कहीं ज्यादा भय और चिंता को जन्म देती है डार्लिंग. मैं सविता का शुभचिंतक हूं, प्रेमी नहीं. तुम उलटीसीधी बातें न सोचा करो.’’

उस वक्त संजीव की बांहों के घेरे में कैद हो कर रेणु अपनी सारी चिंताएं भूल गई पर सविता व अपने पति की बढ़ती निकटता के कारण अगले दिन सुबह से वह फिर तनाव का शिकार हो गई थी.

संजीव का साथ सविता को बहुत भाने लगा था. वह लगभग रोज शाम को उन के घर चली आती या फिर संजीव आफिस से लौटते समय उस के घर रुक जाता. सविता के मातापिता व भैयाभाभी उसे भरपूर आदरसम्मान देते थे. उन सभी को लगता कि संजीव से प्रभावित सविता उस के समझाने से जल्दी ही राकेश के पास लौट जाएगी.

सविता ने एक शाम ड्राइंगरूम में सामने बैठे संजीव से कहा, ‘‘यू आर माई बेस्ट फ्रेंड. तुम्हारा सहारा न होता तो मैं तनाव के मारे पागल ही हो जाती. थैंक यू वेरी मच.’’

‘‘दोस्तों के बीच ऐसे ‘थैंक यू’ कानों को चुभते हैं, सविता. हमारी दोस्ती मेरे जीवन में भी खुशियों की महक भर रही है. तुम्हारे शानदार व्यक्तित्व से मैं भी बहुत प्रभावित हूं,’’ संजीव की आंखों में प्रशंसा के भाव उभरे.

‘‘तुम दिल के बहुत अच्छे हो, संजीव.’’

‘‘और तुम बहुत सुंदर हो, सविता.’’

संजीव ने उस की प्रशंसा आंखों में गहराई से झांकते हुए की थी. उस की भावुक आवाज सविता के बदन में अजीब सी सरसराहट दौड़ा गई. वह संजीव की आंखों से आंखें न मिला सकी और लजाते से अंदाज में उस ने अपनी नजरें झुका लीं.

संजीव अचानक उठा और उस के पास आ कर बोला, ‘‘मेरे होते हुए तुम किसी बात की चिंता न करना. मैं हर पल तुम्हारे साथ हूं. कल रविवार को नाश्ता हमारे साथ करना, बाय.’’

आगे जो हुआ वह सविता के लिए अप्रत्याशित था. संजीव ने बड़े भावुक अंदाज में उस का हाथ पकड़ कर चूम लिया था. संजीव की इस हरकत ने सविता की सोचनेसमझने की शक्ति हर ली. उस ने नजरें उठाईं तो संजीव की आंखों में उसे अपने लिए प्रेम के गहरे भाव नजर आए.

संजीव को सविता अपना अच्छा दोस्त और सब से बड़ा शुभचिंतक मानती थी. उस दोस्त ने अब प्रेमी बनने की दिशा में पहला कदम उस का हाथ चूम कर उठाया था.

संजीव की आंखों में देखते हुए सविता पहले शर्माए से अंदाज में मुसकराई और फिर अपनी नजरें झुका लीं. उस ने संजीव को अपना प्रेमी बनने की इजाजत इस मुसकान के रूप में दे दी थी.

बिना और कुछ कहे संजीव अपने घर चला गया था. उस रात सविता ढंग से सो नहीं पाई थी. सारी रात मन में संजीव व राकेश को ले कर उथलपुथल चलती रही थी. सुबह तक वह न राकेश के पास लौटने का निर्णय ले सकी और न ही संजीव से निकटता कम करने का.

मन में घबराहट व उत्तेजना के मिलेजुले भाव लिए वह अगले दिन सुबह संजीव और रेणु के घर पहुंच गई. मौका मिलते ही वह संजीव से खुल कर ढेर सारी बातें करने की इच्छुक थी. नएनए बने

प्रेम संबंध को निभाने के लिए बड़ी गोपनीयता व सतर्कता की जरूरत को वह रेखांकित करने के लिए आतुर थी.

‘‘रेणु नाराज हो कर मायके चली गई है,’’ घर में प्रवेश करते ही संजीव के मुंह से यह सुन कर सविता जोर से चौंक पड़ी थी.

‘‘क्यों नाराज हुई रेणु?’’ सविता ने धड़कते दिल से पूछा.

‘‘कल शाम तुम्हारा हाथ चूमने की खबर उस तक पहुंच गई.’’

‘‘वह कैसे?’’ घबराहट के मारे सविता का चेहरा पीला पड़ गया.

‘‘शायद तुम्हारी भाभी ने कुछ देखा और रेणु को खबर कर दी.’’

‘‘यह तो बहुत बुरा हुआ, संजीव. मैं रेणु का सामना कैसे करूंगी? वह मेरी बहुत अच्छी सहेली है,’’ सविता तड़प उठी.

सविता को सोफे पर बिठाने के बाद उस की बगल में बैठते हुए संजीव ने दुखी स्वर में कहा, ‘‘कल शाम जो घटा वह गलत था. मुझे अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखना चाहिए था.’’

‘‘दोस्ती को कलंकित कर दिया मैं ने,’’ सविता की आंखों से आंसू बहने लगे.

एक गहरी सांस छोड़ कर संजीव बोला, ‘‘रेणु से मैं बहुत प्यार करता हूं. फिर भी न जाने कैसे तुम ने मेरे दिल में जगह बना ली है…तुम से भी प्यार करने लगा हूं मैं…रेणु बहुत गुस्से में थी. मुझे समझ नहीं आ रहा है, अब क्या होगा?’’

‘‘हम से बड़ी भूल हो गई है,’’ सविता सुबक उठी.

‘‘ठीक कह रही हो तुम. तुम्हारे दुखदर्द को बांटतेबांटते मैं भावुक हो उठता था. तुम्हारा अकेलापन दूर करने की कोशिश मैं शुभचिंतक बन कर रहा था और अंतत: प्रेमी बन बैठा.’’

‘‘कुसूरवार मैं भी बराबर की हूं, संजीव. जो पे्रम अपने पति से मिलना चाहिए था, उसे अपने दोस्त से पाने की इच्छा ने मुझे गुमराह किया.’’

‘‘तुम ठीक कह रही हो, सविता,’’ संजीव सोचपूर्ण लहजे में बोला, ‘‘तुम अगर राकेश के साथ होतीं…उस के साथ प्रसन्न व सुखी होतीं, तो हमारे बीच अच्छी दोस्ती की सीमा कभी न टूटती. तुम्हारा अकेलापन, राकेश से बनी अनबन और मेरी सहानुभूति व तुम्हारा सहारा बनने की कोशिशें हमारे बीच अवैध प्रेम संबंध को जन्म देने का कारण बन गए. अब क्या होगा?’’

‘‘मुझे राकेश के पास लौट जाना चाहिए…अपनी सहेली के दिल पर लगे जख्म को भरने का यही एक रास्ता है, बाद में कभी मैं उस से माफी मांग लूंगी,’’ सविता ने कांपते स्वर में समस्या का हल सामने रखा.

‘‘तुम्हारा लौटना ही ठीक रहेगा, सविता, फिर मेरे दिमाग में एक और बात भी उठ रही है.’’

‘‘कौन सी बात?’’

‘‘यही कि तुम राकेश से दूर हो कर अगर मेरी सहानुभूति व ध्यान पा कर गुमराह हो सकती हो, तो आजकल राकेश भी तुम से दूर व अकेला रह रहा है. उस लड़की साक्षी के साथ उस का आज संबंध नहीं भी है, तो कल को वह ऐसी ही सहानुभूति व अपनापन तुम्हारे पति से जता कर उस के दिल में अवैध प्रेम संबंध का बीज क्या आसानी से नहीं बो सकेगी?’’

संजीव की अर्थपूर्ण नजरें सविता के दिल की गहराइयों तक उतर गईं. देखते ही देखते आंसुओं के बजाय उस की आंखों में तनाव व चिंता के भाव उभर आए.

‘‘यू आर वेरी राइट, संजीव,’’ सविता अचानक उत्तेजित सी नजर आने लगी, ‘‘राकेश से अलग रह कर मैं सचमुच भारी भूल कर रही हूं. खुद भी मुसीबत का शिकार बनी हूं और उधर राकेश को किसी साक्षी की तरफ धकेलने का इंतजाम भी नासमझी में खुद कर रही हूं. आई मस्ट गो बैक.’’

‘‘हां, तुम आज ही राकेश के पास लौट जाओ. मैं भी रेणु को मना कर वापस लाता हूं.’’

‘‘रेणु मुझे माफ कर देगी न?’’

‘‘जब मैं कहूंगा कि आज तुम ने मुझे यहां आ कर खूब डांटा, तो वह निश्चित ही तुम्हें कुसूरवार नहीं मानेगी. तुम दोनों की दोस्ती बनाए रखने को…एकदूसरे की इज्जत आंखों में बनाए रखने को मैं सारा कुसूर अपने ऊपर ले लूंगा.’’

‘‘थैंक यू, संजीव. मैं सामान पैक करने जाती हूं,’’ सविता झटके से उठ खड़ी हुई.

‘‘मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं,’’ संजीव भावुक हो उठा.

‘‘तुम बहुत अच्छे दोस्त…बहुत अच्छे इनसान हो.’’

‘‘तुम भी, अपना और राकेश का ध्यान रखना. गुडबाय.’’

सविता ने हाथ हिला कर ‘गुडबाय’ कहा और दरवाजे की तरफ बढ़ गई.

उस के जाने के बाद दरवाजा बंद कर के संजीव ड्राइंगरूम में लौटा तो मुसकराती रेणु ने उस का स्वागत किया. वह अंदर वाले कमरे से निकल कर ड्राइंगरूम में आ गई थी.

‘‘तुम ने तो कमाल कर दिया. सविता तो राकेश के पास आज ही वापस जा रही है,’’ रेणु बहुत प्रसन्न नजर आ रही थी.

‘‘मुझे खुशी है कि मेरी योजना सफल रही. सविता को यह बात समझ में आ गई है कि जीवनसाथी से, उस की जिंदगी में दूसरी औरत की उपस्थिति के भय के कारण दूर रहना मूर्खतापूर्ण भी है और खतरनाक भी.’’

‘‘मैं फोन कर के राकेश को पूरे घटनाक्रम की सूचना दे देता हूं,’’ संजीव मुसकराता हुआ फोन की तरफ बढ़ा.

‘‘आप ने अपनी योजना की जानकारी मुझे आज सुबह से पहले क्यों नहीं दी?’’

‘‘तब तुम्हारी प्रतिक्रियाओं में बनावटीपन आ जाता, डार्ल्ंिग.’’

‘‘योजना समाप्त हुई, तो अब सविता को भुला तो दोगे न?’’

‘‘तुम अकेला छोड़ कर नहीं जाओगी तो उस का प्रेम मुझे कभी याद नहीं आएगा जानेमन,’’ उसे छेड़ कर संजीव जोर से हंसा तो रेणु ने पहले जीभ निकाल कर उसे चिढ़ाया और फिर उस की छाती से जा लगी.

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घोंसले के पंछी: क्या मिल पाए आदित्य और ऋचा

आदित्य गुमसुम से खड़े थे. पत्नी की बात पर उन्हें विश्वास नहीं हुआ. वे शब्दों पर जोर देते हुए बोले, ‘‘क्या तुम सच कह रही हो ऋचा?’’

‘‘पहले मुझे विश्वास नहीं था लेकिन मैं एक नारी हूं, जिस उम्र से अंकिता गुजर रही है उस उम्र से मैं भी गुजर चुकी हूं. उस के रंगढंग देख कर मैं समझ गई हूं कि दाल में कुछ काला है.’’

आदित्य की आंखों में एक सवाल था, ‘वह कैसे?’

ऋचा उन की आंखों की भाषा समझ गई. बोली, ‘‘सुबह घर से जल्दी निकलती है, शाम को देर से घर आती है. पूछने पर बताया कि टाइपिंग क्लास जौइन कर ली है. इस की उसे जरूरत नहीं है. उस ने इस बारे में हम से पूछा भी नहीं था. घर में भी अकेले रहना पसंद करती है, गुमसुम सी रहती है. जब देखो, अपना मोबाइल लिए कमरे में बंद रहती है.’’

‘‘उस से बात की?’’

‘‘अभी नहीं, पहले आप को बताना उचित समझा. लड़की का मामला है. जल्दबाजी में मामला बिगड़ सकता है. एक लड़का हम खो चुके हैं, अब लड़की को खो देने का मतलब है पूरे संसार को खो देना.’’

आदित्य विचारों के समुद्र में गोता लगाने लगे. यह कैसी हवा चली है. बच्चे अपने मांबाप के साए से दूर होते जा रहे हैं. वयस्क होते ही प्यार की डगर पर चल पड़ते हैं, फिर मांबाप की मरजी के बगैर शादी कर लेते हैं. जैसे चिडि़या का बच्चा पंख निकलते ही अपने जन्मदाता से दूर चला जाता है, अपने घोंसले में कभी लौट कर नहीं आता, उसी प्रकार आज की पीढ़ी के लड़के तथा लड़कियां युवा होने से पहले ही प्यार के संसार में डूब जाते हैं. अपनी मरजी से शादी करते हैं और अपना घर बसा कर मांबाप से दूर चले जाते हैं.

आदित्य और ऋचा के एकलौते पुत्र ने भी यही किया था. आज वे दोनों अपने बेटे से दूर थे और बेटा उन की खोजखबर नहीं लेता था. इस में गलती किस की थी? आदित्य की, उन की पत्नी की या उन के बेटे की कहना मुश्किल था.

आदित्य ने पहले ध्यान नहीं दिया था, इस के बारे में सोचा तक नहीं था परंतु आज जब उन की एकलौती बेटी भी किसी के प्यार में रंग चुकी है, किसी के सपनों में खोई है, तो वे विगत और आगत का विश्लेषण करने पर विवश हैं.

प्रतीक एम.बी.ए. कर चुका था. बेंगलूरु की एक बड़ी कंपनी में मैनेजर था. एम.बी.ए. करते समय ही उस का एक लड़की से प्रेम हुआ था. तब तक उस ने घर में बताया नहीं था. नौकरी मिलते ही मांबाप को अपने प्रेम से अवगत कराया. आदित्य और ऋचा को अच्छा नहीं लगा. वह उन का एकलौता बेटा था. उन के अपने सपने थे. हालांकि वे आधुनिक थे, नए जमाने के चलन से भी वाकिफ थे परंतु भारतीय मानसिकता बड़ी जटिल होती है.

हम पढ़लिख कर आधुनिक बनने का ढोंग करते हैं, नए जमाने की हर चीज अपना लेते हैं, परंतु हमारी मानसिकता कभी नहीं बदलती. हमारे बच्चे किसी के प्रेम में पड़ें, वे प्रेमविवाह करना चाहें, हम इसे बरदाश्त नहीं कर पाते. अपनी जवानी में हम भी वही करते हैं या करना चाहते हैं परंतु हमारे बच्चे जब वही सब करने लगते हैं, तो सहन नहीं कर पाते हैं. उस का विरोध करते हैं.

प्रतीक उन का एकलौता बेटा था. वे धूमधाम से उस की शादी करना चाहते थे. वे उसे कामधेनु गाय समझते थे. उस की शादी में अच्छा दहेज मिलता. इसी उम्मीद में अपने एक रिश्तेदार से उस की शादी की बात भी कर रखी थी. मामला एक तरह से पक्का था. मांबाप यहीं पर गलती कर जाते हैं. अपने जवान बच्चों के बारे में अपनी मरजी से निर्णय ले लेते हैं. उन को इस से अवगत नहीं कराते. बच्चों की भावनाओं का उन्हें खयाल नहीं रहता. वे अपने बच्चों को एक जड़ वस्तु समझते हैं, जो बिना चूंचपड़ किए उन की हर बात मान लेंगे. परंतु जब बच्चे समझदार हो जाते हैं तब वे अपने जीवन के बारे में वे खुद निर्णय लेना पसंद करते हैं. वे अपना जीवन अपने तौर पर जीना चाहते हैं.

जब प्रतीक ने अपने प्यार के बारे में उन्हें बताया तो उन के कान खड़े हुए. चौंकना लाजिमी था. बेटे पर वे अपना अधिकार समझते थे. आदित्य और ऋचा ने पहले एकदूसरे की तरफ देखा, फिर प्रतीक की तरफ. वह एक हफ्ते की छुट्टी ले कर आया था. मांबाप से अपनी शादी के बारे में बात करने के लिए. प्रेम उस ने अवश्य किया था परंतु वह उन की सहमति से शादी करना चाहता था. अगर वे मान जाते तो ठीक था, अगर नहीं तब भी उस ने तय कर रखा था कि अपनी पसंद की लड़की से ही शादी करेगा. जिस को प्यार किया था, उसे धोखा नहीं देगा. मांबाप माने या न मानें.

ऋचा ने ही बात का सिरा पकड़ा था, ‘‘परंतु बेटे, हम ने तो तुम्हारी शादी के बारे में कुछ और ही सोच रखा है.’’

‘‘अब वह बेकार है. मैं ने अपनी पसंद की लड़की देख ली है. वह मेरे अनुरूप है.

हम दोनों ने एकसाथ एम.बी.ए. किया था. अब साथ ही नौकरी भी कर रहे हैं, साथ ही जीवन व्यतीत करेंगे.’’

‘‘परंतु हमारे सपने…’’ ऋचा ने प्रतिवाद करने की कोशिश की परंतु प्रतीक की दृढ़ता के सामने वह कमजोर पड़ गईं. ऋचा की आवाज में कोई दम नहीं था. उसे लगा, वह हार जाएगी.

‘‘मम्मी, आप समझने की कोशिश कीजिए. बच्चे ही मांबाप का सपना होते हैं. अगर मैं खुश हूं तो आप के सपने साकार हो जाएंगे, वरना सब बेकार है.’’

‘‘बेकार तो वैसे भी सब कुछ हो चुका है. मैं बंसलजी को क्या मुंह दिखाऊंगा?’’ आदित्य ने पहली बार मुंह खोला, ‘‘उन के साथसाथ सारे नातेरिश्तेदार हैं. वे भी अलगथलग पड़ जाएंगे.’’

‘‘कोई किसी से अलग नहीं होता. आप धूमधाम से शादी आयोजित करें. रिश्तेदार 2 दिन बातें बनाएंगे, फिर भूल जाएंगे. प्रेमविवाह अब असामान्य नहीं रहे,’’ प्रतीक ने बहुत धैर्य से अपनी बात कही.

‘‘बेटे, तुम नहीं समझोगे. हम वैश्य हैं और हमारे समाज ने इस मामले में आधुनिकता की चादर नहीं ओढ़ी है. कितने लोग तुम्हारे लिए भागदौड़ कर रहे हैं. अपनी बेटी का विवाह तुम्हारे साथ करना चाहते हैं. जिस दिन पता चलेगा कि तुम ने गैर जाति की लड़की से शादी कर ली है, वे हमें समाज से बहिष्कृत कर देंगे. तुम्हारी छोटी बहन की शादी में तमाम अड़चनें आएंगी.’’

‘‘उस का भी प्रेमविवाह कर देना,’’ प्रतीक ने सहजता से कह दिया. परंतु आदित्य और ऋचा के लिए यह सब इतना सहज नहीं था.

‘‘बेटे, एक बार तुम अपने निर्णय पर पुनर्विचार करो. शायद तुम्हारा निश्चय डगमगा जाए. हम उस से सुंदर लड़की तुम्हारे लिए ढूंढ़ कर लाएंगे.’’

ये भी पढ़ें- बेईमानी का नतीजा: क्या हुआ बाप और बेटे के साथप्रतीक हंसा, ‘‘मम्मी, यह मेरा आज का फैसला नहीं है. पिछले 3 सालों से हम दोनों का यही फैसला है. अब यह बदलने वाला नहीं. आप अपने बारे में बताएं. आप हमारी शादी करवाएंगे या हम स्वयं कर लें.’’

किसी ने प्रतीक की बात का जवाब नहीं दिया. वे अचंभित, भौचक और ठगे से बैठे थे. वे सभ्य समाज के लोग थे. लड़ाईझगड़ा कर नहीं सकते थे. बातों के माध्यम से मामले को सुलझाने की कोशिश की परंतु वे दोनों न तो प्रतीक को मना पाए, न प्रतीक के निर्णय से सहमत हो पाए. प्रतीक अगले दिन बेंगलूरु चला गया. बाद में पता चला, उस ने न्यायालय के माध्यम से अपनी प्रेमिका से शादी कर ली थी.

वे दोनों जानते थे कि प्रतीक ने भले अपनी मरजी से शादी की थी. परंतु वह उन के मन से दूर नहीं हुआ था. बस उन का अपना हठ था. उस हठ के चलते अभी तक बेटे से संपर्क नहीं किया था. बेटे ने पहले एकदो बार फोन किया था. आदित्य और ऋचा ने उस से बात की थी, हालचाल भी पूछा परंतु उस को दिल्ली आने के लिए कभी नहीं कहा. फिर बेटे ने उन को फोन करना बंद कर दिया.

अब शायद वह हठ टूटने वाला था. अंकिता के साथ वह पहले वाली गलती नहीं दोहराना चाहते थे.

आदित्य ने शांत भाव से कहा, ‘‘ऋचा, हमें बहुत समझदारी से काम लेना होगा. लड़की का मामला है. प्रेम के मामले में लड़कियां बहुत नासमझी और भावुकता से काम लेती हैं. अगर उन्हें लगता है कि मांबाप उन के प्रेम का विरोध कर रहे हैं, तो बहुत गलत कदम उठा लेती हैं. या तो वे घर से भाग जाती हैं या आत्महत्या कर लेती हैं. हमें ध्यान रखना है कि अंकिता ऐसा कोई कदम न उठा ले.’’

ऋचा बेचैन हो गई, ‘‘क्या करें हम?’’

‘‘कुछ करने की आवश्यकता नहीं है, बस उस से बात करो. उस की सारी बातें ध्यान से सुनो. उस के मन को समझने का प्रयास करो. शायद हम उस की मदद कर सकें. अगर वह समझ गई तो बहकने से बच जाएगी. उस के पैर गलत रास्ते पर नहीं पड़ेंगे. ये रास्ते बहुत चिकने होते हैं. फिसलने में देर नहीं लगती.’’

‘‘ठीक है,’’ ऋचा ने आश्वस्त हो कर कहा.

ऋचा ने देर नहीं की. जल्दी ही मौका निकाला. अंकिता से बात की. वह अपने कमरे में थी. ऋचा ने कमरे में घुसते ही पूछा, ‘‘बेटा, क्या कर रही हो?’’

अंकिता हड़बड़ा कर खड़ी हो गई. वह बिस्तर पर लेटी मोबाइल पर किसी से बातें कर रही थी. अंकिता के चेहरे के भाव बता रहे थे, जैसे वह चोरी करते हुए पकड़ी गई थी. ऋचा सब समझ गई, परंतु उस ने धैर्य से कहा, ‘‘बेटा, तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?’’

अंकिता बी.ए. के दूसरे साल में थी.

‘‘ठीकठाक चल रही है,’’ अंकिता ने अपने को संभालते हुए कहा. उस की आंखें फर्श की तरफ थीं.

वह मां की तरफ देखने का साहस नहीं जुटा पा रही थी.

अंकिता जिन मनोभावों से गुजर रही थी, ऋचा समझ सकती थी. उस ने बेटी को पलंग पर बैठाते हुए कहा, ‘‘बैठो और मेरी बात ध्यान से सुनो.’’

वह भी बेटी के साथ पलंग पर एक किनारे बैठ गई. उसे लग रहा था किसी लागलपेट की जरूरत नहीं, मुझे सीधे मुद्दे पर आना होगा.

अंकिता का हृदय तेजी से धड़क रहा था. पता नहीं क्या होने वाला था? मम्मी क्या कहेंगी उस से? उस की कुछ समझ में नहीं आ रहा था परंतु उस के मन में अपराधबोध था. मम्मी ने उसे फोन करते हुए देख लिया था.

ऋचा ने सीधे वार किया, ‘‘बेटी, मैं तुम्हारी मनोदशा समझ रही हूं. मैं तुम्हारी मां हूं. इस उम्र में सब को प्रेम होता है,’’ प्रेम शब्द पर ऋचा ने अधिक जोर दिया, ‘‘तुम्हारे साथ कुछ नया नहीं हो रहा है. परंतु बेटी, इस उम्र में लड़कियां अकसर बहक जाती हैं. लड़के उन को बरगला कर, झूठे सपनों की दुनिया में ले जा कर उन की इज्जत से खिलवाड़ करते हैं. बाद में लड़कियों के पास बदनामी के सिवा कुछ नहीं बचता. वे बदनामी का दाग ले कर जीती हैं और मन ही मन घुलती रहती हैं.’’

अंकिता का दिल और जोर से धड़क उठा.

‘‘बेटी, अगर तुम्हारे साथ ऐसा कुछ हो रहा है, तो हमें बताओ. हम नहीं चाहते तुम्हारे कदम गलत रास्ते पर पड़ें. तुम नासमझी में कुछ ऐसा न कर बैठो, जो तुम्हारी बदनामी का सबब बने. अभी तुम्हारी पढ़ाई की उम्र है लेकिन यदि तुम्हारे साथ प्रेम जैसा कोई चक्कर है, तो हम शादी के बारे में भी सोच सकते हैं. तुम खुल कर बताओ, क्या वह लड़का तुम्हारे साथ शादी करना चाहता है? वह तुम को ले कर गंभीर है या बस खिलवाड़ करना चाहता है.’’

अंकिता सोचने लगी पर उस के मन में दुविधा और शंका के बादल मंडरा रहे थे.

बताए या न बताए. मम्मी उस के मन की बात जान गई हैं. कहां तक छिपाएगी? नहीं बताएगी तो उस पर प्रतिबंध लगेंगे. उस ने आगे आने वाली मुसीबतों के बारे में सोचा. उसे लगा कि मां जब इतने प्यार और सहानुभूति से पूछ रही हैं, तो उन को सब कुछ बता देना ही उचित होगा.

अंकिता खुल गई और धीरेधीरे उस ने मम्मी को सारी बातें बता दीं. गनीमत थी कि अभी तक अंकिता ने अपना कौमार्य बचा कर रखा था. लड़के ने कोशिश बहुत की थी, परंतु वह उस के साथ होटल जाने को तैयार नहीं हुई. डर गई थी, इसलिए बच गई. मम्मी ने इतमीनान की गहरी सांस ली और बेटी को सांत्वना दी कि वह सब कुछ ठीक कर देंगी. अगर लड़का तथा उस के घर वाले राजी हुए तो इसी साल उस की शादी कर देंगे.

अंकिता ने बताया था कि वह अपने साथ पढ़ने वाले एक लड़के के साथ प्यार करती है. उस के घरपरिवार के बारे में वह बहुत कम जानती है. वे दोनों बस प्यार के सुनहरे सपने देख रहे हैं. बिना पंखों के हवा में उड़ रहे थे. भविष्य के बारे में अनजान थे. प्रेम की परिणति क्या होगी, इस के बारे में सोचा तक नहीं था. वे बस एकदूसरे के प्रति आसक्त थे. यह शारीरिक आकर्षण था, जिस के कारण लड़कियां अवांछित विपदाओं का शिकार होती हैं.

ऋचा ने आदित्य को सब कुछ बताया. मामला सचमुच गंभीर था. अंकिता अभी नासमझ थी. उस के विचारों में परिपक्वता नहीं थी. उस की उम्र अभी 20 साल थी. वह लड़का भी इतनी ही उम्र का होगा. दोनों का कोई भविष्य नहीं था. वे दोनों बरबादी की तरफ बढ़ रहे थे. उन्हें संभालना होगा.

स्थिति गंभीर थी. ऋचा और आदित्य का चिंतित होना स्वाभाविक था. परंतु ऋचा और आदित्य को कुछ नहीं करना पड़ा. मामला अपनेआप सुलझ गया. संयोग उन का साथ दे रहा था. समय रहते अंकिता को अक्ल आ गई थी. उस की मम्मी की बातों का उस पर ठीक असर हुआ था.

ये भी पढ़ें- सनक: नृपेंद्रनाथ को हुआ गलती का एहसासअंकिता ने जब शिवम को बताया कि उस की मम्मी को उस के प्रेम के बारे में सब पता चल गया है तो वह घबरा गया.

‘‘इस में घबराने की क्या बात है? मम्मी ने तुम्हारे डैडी का फोन नंबर व पता मांगा है. वह तुम्हारे घर वालों से हमारी शादी की बात करना चाहती हैं.’’

‘‘अरे मर गए, क्या तुम्हारे पापा को भी पता है?’’ उस के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं.

‘‘जरूर पता होगा. मम्मी ने बताया होगा उन को. परंतु तुम इतना परेशान क्यों हो रहे हो? हम एकदूसरे से प्रेम करते हैं, शादी करने में क्या हरज है? कभी न कभी करते ही, कल के बजाय आज सही,’’ अंकिता बहुत धैर्य से यह सब कह रही थी.

‘‘अरे, तुम नहीं समझतीं. यह कोई शादी की उम्र है. मेरे डैडी जूतों से मेरी खोपड़ी गंजी कर देंगे. शादी तो दूर की बात है,’’ वह हाथ मलते हुए बोला.

‘‘अच्छा,’’ अंकिता की अक्ल ठिकाने आ रही थी. वह समझने का प्रयास कर रही थी. बोली, ‘‘तुम मुझ से प्रेम कर सकते हो तो शादी क्यों नहीं. प्रेम मांबाप से पूछ कर तो किया नहीं था. अगर वे हमारी शादी के लिए तैयार नहीं होते, तो शादी भी उन से बिना पूछे कर लो. आखिर हम बालिग हैं.’’

‘‘क्या बकवास कर रही हो, शादी कैसे कर सकते हैं?’’ वह झल्ला कर बोला, ‘‘अभी तो हम पढ़ रहे हैं. मांबाप से पूछे बगैर हम इतना बड़ा कदम कैसे उठा सकते हैं?’’

‘‘अच्छा, मांबाप से पूछे बगैर तुम जवान कुंआरी लड़की को बरगला सकते हो. उस को झूठे प्रेमजाल में फंसा सकते हो. शादी का झांसा दे कर उस की इज्जत लूट सकते हो. यह सब करने के लिए तुम बालिग हो परंतु शादी करने के लिए नहीं,’’ वह रोंआसी हो गई.

उसे मम्मी की बातें याद आ गईं. सच कहा था उन्होंने कि इस उम्र में लड़कियां अकसर बहक जाती हैं. लड़के उन को बरगला कर, झूठे सपनों की दुनिया में ले जा कर उन की इज्जत से खिलवाड़ करते हैं. शिवम भी तो उस के साथ यही कर रहा था. समय रहते उस की मम्मी ने उसे सचेत कर दिया था. वह बच गई. अगर थोड़ी देर होती तो एक न एक दिन शिवम उस की इज्जत जरूर लूट लेता. कहां तक अपने को बचाती. वह तो उस के लिए पागल थी.

शिवम इधरउधर ताक रहा था. अंकिता ने एक प्रयास और किया, ‘‘तुम अपने घर का पता और फोन नंबर दो. तुम्हारे मम्मीडैडी से पूछ तो लें कि वे इस रिश्ते के लिए राजी हैं या नहीं.’’

‘‘क्या शादीशादी की रट लगा रखी है,’’ वह दांत पीस कर बोला, ‘‘हम कालेज में पढ़ने के लिए आए हैं, शादी करने के लिए नहीं.’’

‘‘नहीं, प्यार करने के लिए…’’ अंकिता ने उस की नकल की. वह भी दांत पीस कर बोली, ‘‘तो चलो, नाचेगाएं और खुशियां मनाएं,’’ अब उस की आवाज में तल्खी आ गई थी, ‘‘कमीने कहीं के, तुम्हारे जैसे लड़कों की वजह से ही न जाने कितनी लड़कियां अपनी इज्जत बरबाद करती हैं. मैं ही

बेवकूफ थी, जो तुम्हारे फंदे में फंस गई. थू है तुम पर.. भाड़ में जाओ. सब कुछ खत्म हो गया. अब कभी मेरे सामने मत पड़ना. गैरत हो तो अपना काला मुंह ले कर मेरे सामने से चले जाओ.’’

उस दिन शाम को अंकिता जल्दी घर पहुंच गई. बहुत दिनों बाद ऐसा हुआ था. ऋचा और आदित्य ने भेदभरी नजरों से एकदूसरे की तरफ देखा. अंकिता चुपचाप अपने कमरे में चली गई थी. आदित्य ने ऋचा को इशारा किया. वह पीछेपीछे अंकिता के कमरे में पहुंची. आदित्य भी बाहर आ कर खड़े हो गए थे.

‘‘आज बहुत जल्दी आ गईं बेटी,’’ ऋचा अंकिता से पूछ रही थी.

‘‘हां मम्मी, आज मैं अपने मन का बोझ उतार कर आई हूं. बहुत हलका महसूस कर रही हूं,’’ फिर उस ने एकएक बात मम्मी को बता दी.

मम्मी ने उसे गले से लगा लिया. उसे पुचकारते हुए बोलीं, ‘‘बेटी, मुझे तुम पर गर्व है. तुम्हारी जैसी बेटी हर मांबाप को मिले.’’

‘‘मम्मी यह सब आप की समझदारी की वजह से हुआ है. समय रहते आप ने

मुझे संभाल लिया. मैं आप की बात समझ गई और पतन के गर्त में जाने से बच गई. आप थोड़ा सी देर और करतीं तो मेरी बरबादी हो चुकी होती. मैं आप से वादा करती हूं कि मन लगा कर पढ़ाई करूंगी. आप की नसीहत और मार्गदर्शन से एक अच्छी बेटी बन कर दिखाऊंगी.’’

‘‘हां बेटी, तुम्हारे सिवा हमारा और कौन है? तुम चली जातीं तो हमारे जीवन में क्या बचता?’’

‘‘मम्मी, ऐसा क्यों कह रही हैं? मैं आप के साथ हूं और भैयाभाभी भी तो हैं.’’

ऋचा ने अफसोस से कहा, ‘‘वे अब हमारे कहां रहे? हम ने एकदूसरे को नहीं समझा और वे हम से दूर हो गए.’’

‘‘ऐसा नहीं है मम्मी, वे पहले भी हमारे थे और आज भी हमारे हैं.’’

‘‘ये क्या कह रही हो तुम?’’

‘‘मम्मी, मैं आप को राज की बात बताती हूं. भैया और भाभी से मैं रोज बात करती हूं. भाभी खुद फोन करती हैं. मैं ने उन्हें देखा नहीं है परंतु वे बातें बहुत प्यारी करती हैं. वे हम सब को देखना चाहती हैं. भैया तो एक दिन भी बिना मुझ से बात किए नहीं रह सकते. वे और भाभी यहां आना चाहते हैं लेकिन डैडी से डरते हैं, इसीलिए नहीं आते. मम्मी, आप एक बार…सिर्फ एक बार उन से कह दो कि आप ने उन्हें माफ किया, वे दौड़ते हुए आएंगे.’’

‘‘सच…’’ ऋचा ने उसे अपने सीने से लगा लिया, ‘‘बेटी, आज तू ने मुझे दोगुनी खुशी दी है,’’ वह खुशी से विह्वल हुई जा रही थी.

‘‘हां, मम्मी, आप उन्हें फोन तो करो,’’ अंकिता चहक रही थी, ‘‘मैं भाभी से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘अभी करती हूं. पहले उन को बता दूं. सुन कर वे भी खुशी से पागल हो जाएंगे. हम लोगों ने न जाने कितनी बार उन को बुलाने के बारे में सोचा. बस हठधर्मिता में पड़े रहे. बेटे के सामने झुकना नहीं चाहते थे परंतु आज हम बेटे के लिए और उस की खुशी के लिए छोटे बन जाएंगे. उसे फोन करेंगे.’’

वह बाहर जाने के लिए मुड़ी. कमरे के बाहर खड़े आदित्य अपनी आंखों से आंसू पोंछ रहे थे. आज उन्हें खोई हुई खुशी मिल रही थी. बेटी भी वापस अंधेरी गलियों में भटकने से बच गई थी. वह सहीसलामत घर लौट आई थी. बेटा भी मिल गया था. आज उन की हठधर्मिता टूट गई थी. उन्हें अपनी गलती का एहसास हो चुका था.

ऋचा ने आदित्य को बाहर खड़े देखा. वे समझ गईं कि अब कुछ कहने की जरूरत नहीं थी. वे सब सुन चुके थे. उन के पास जा कर भरे गले से बोली, ‘‘चलिए, बेटे को फोन कर दें और बहू के स्वागत की तैयारी

करें. आज हमें दोगुनी खुशी मिल रही है.

ऐसा लग रहा है, जैसे घोंसले के पंछी वापस आ गए हैं. अब हमारा आशियाना वीरान

नहीं रहेगा.’’

‘‘हां, ऋचा,’’ आदित्य ने उसे बांहों के घेरे में लेते हुए कहा, ‘‘घोंसले के पंछी घोंसले में ही रहते हैं, डाल पर नहीं. प्रतीक को वापस आना ही था. हमारी बगिया के फूल यों ही हंसतेमुसकराते रहें. उन की सुगंध चारों ओर फैले और वे अपनी महक से सब के जीवन को गुलजार कर दे.

 

पटाक्षेप: क्या पूरी हुई शरद और सुरभि की प्रेम कहानी

‘‘मां, मैं नेहा से विवाह करना चाहता हूं,’’ अनंत ने सिडनी से फोन पर सुरभि को सूचना दी. ‘‘कौन नेहा?’’ सुरभि चौंक उठी, उसे यकीन ही नहीं हो रहा था. अनंत तो अभी

25 वर्ष का ही था. उस ने इतना बड़ा फैसला कैसे ले लिया. सुरभि के दिमाग में तो उस का अनंत अभी वही निर्झर हंसी से उस के वात्सल्य को भिगोने वाला, दौड़ कर उस के आंचल में छिपने वाला, नन्हामुन्ना बेटा ही था. अब देखते ही देखते इतना बड़ा हो गया कि विवाह करने का मन ही नहीं बनाया, बल्कि लड़की भी पसंद कर ली.

पति अवलंब की मृत्यु के बाद उस ने कई कठिनाइयों को झेल कर ही उस की परवरिश की और जब अनंत को अपने प्रोजैक्ट के लिए सिडनी की फैलोशिप मिली तब उस ने अपने दिल पर पत्थर रख कर ही अपने जिगर के टुकड़े को खुद से जुदा किया. वह समझती थी कि बेटे के उज्ज्वल भविष्य के लिए अपनी ममता का त्याग करना ही होगा. आखिर कब तक वह उसे अपने आंचल से बांध कर रख सकती थी. अब तो उस के पंखों में भी उड़ान भरने की क्षमता आ गई थी. अब वह भी अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण फैसले लेने में समर्थ था. उस ने अपने बेटे की पसंद को वरीयता दी और फौरन हां कर दी.

अनंत को अपनी मां पर पूरा यकीन था कि वे उस की पसंद को नापसंद नहीं करेंगी. नेहा भी सिडनी में उसी के प्रोजैक्ट पर काम कर रही थी. वहीं दोनों की मुलाकात हुई जो बाद में प्यार में बदल गई और दोनों ने विवाह करने का मन बना लिया. नेहा के पेरैंट्स ने इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया.

सुरभि ने अनंत से नेहा की फोटो

भेजने को कहा जो उसे जल्द ही

मिल गई. फोटो देख कर वह निहाल हो गई, कितनी प्यारी बच्ची है, भंवरें सी कालीकाली आंखें, आत्मविश्वास से भरी हुई, कद 5 फुट 5 इंच, होंठों पर किसी को भी जीत लेने वाली हंसी, सभीकुछ तो मनभावन था.

नेहा की हंसी ने सुरभि के बिसरे हुए अतीत को जीवंत कर दिया था, कितनी प्यारी पहचानी हुई हंसी  है. यह हंसी तो उस के खयालों से कभी उतरी ही नहीं. इसी हंसी ने तो उस के दिन का चैन, रातों की नींद छीन ली थी. इसी हंसी पर तो वह कुरबान थी. तो क्या नेहा शरद की बेटी है? नहींनहीं, ऐसा कैसे हो सकता है. हो सकता है यह मेरा भ्रम हो. उस ने फोटो पलट कर देखा, नेहा कोठारी लिखा था, उस का शक यकीन में बदल गया.

वह अचंभित थी. नियति ने उसे कहां से कहां ला कर खड़ा कर दिया. किस प्रकार वह प्रतिदिन नेहा के रूप में शरद को देखा करेगी? लेकिन वह अनंत को मना भी तो नहीं कर सकती थी क्योंकि नेहा शरद का प्यार है जिसे छीनने का उसे कोई हक भी नहीं है. सो, इस शादी को मना करने का कोई समुचित आधार भी तो नहीं था. वह बेटे को क्या कारण बताती. धोखा तो शरद ने उसे दिया था. उस का बदला नेहा से लेने का कोई औचित्य भी नहीं बनता था. आखिर उस का अपराध भी क्या है? नहींनहीं. अनंत और नेहा एकदूसरे के लिए तड़पें, यह उसे मंजूर नहीं था.

शादी के बाद पता ही न चला कि शरद कहां है और उस ने कभी जानने का प्रयास भी नहीं किया. अब उस का मन उस से छलावा कर रहा था. नेहा की फोटो देखते ही लगता मानो शरद ही सामने खड़े मुसकरा रहे हों.

शरद ने न जाने कब चुपके से उस के जीवन में प्रवेश किया था. शरद जिस ने उस की कुंआरी रातों को चाहत के कई रंगीन सपने दिखाए थे. कैसे भूल सकती थी वह दिन जब उस ने विश्वविद्यालय में बीए (प्रथम वर्ष) में ऐडमिशन लिया था.

भीरु प्रवृत्ति की सहमीसहमी सी लड़की जब पहले दिन क्लास अटैंड करने पहुंची तो बड़ी ही घबराई हुई थी. जगहजगह लड़केलड़कियां झुंड बना कर बातें कर रहे थे. वह अचकचाई सी कौरिडोर में इधरउधर देख रही थी. उसे अपने क्लासरूम का भी पता नहीं था. कोई भी ऐसा नहीं दिख रहा था, जिस से वह पूछ सके. तभी एक सौम्य, दर्शनीय व्यक्तित्व वाला युवक आता दिखा.

उस ने तनिक हकलाते हुए पूछा, रूम नंबर 40 किधर पड़ेगा? उस लड़के ने उसे अचंभे से देखा, फिर तनिक मुसकराते हुए बोला, ‘आप रूम नंबर 40 के सामने ही खड़ी हैं.’ ‘ओह,’ वह झेंप गई और क्लास में जा कर बैठ गई.

‘हाय, आई एम नीमा कोठारी.’ उस ने पलट कर देखा. उस की बगल में एक प्यारी सी उसी की समवयस्क लड़की आ कर बैठ गई. उस ने सुरभि की ओर मैत्री का हाथ बढ़ाया. कुछ ही देर में दोनों में गहरी दोस्ती हो गई.

क्लास समाप्त होते ही दोनों एकसाथ बाहर आ गईं. ‘दादा,’ नीमा चिल्ला उठी. सुरभि ने चौंक कर देखा, वही युवक उन की ओर बढ़ा चला आ रहा था. ‘क्यों रे, क्लास ओवर हो गईर् थी या यों ही बंक कर के भाग रही है?’ उस ने नीमा को छेड़ा.

‘नहीं दादा, क्लास ओवर हो गई थी. और आप ने यह कैसे सोच लिया कि हम क्लास बंक कर के भाग रहे हैं?’

उस के स्वर में थोड़ी नाराजगी थी.

‘सौरी बाबा, अब नहीं कहूंगा,’ उस ने अपने कान पकड़ने का नाटक किया. नीमा मुसकरा उठी. फिर उस ने पलट कर सुरभि से उसे मिलवाया, ‘दादा, इन से मिलो, ये हैं सुरभि टंडन, मेरी क्लासमेट. और सुरभि, ये हैं मेरे दादा, शरद कोठारी, सौफ्टवेयर इंजीनियर, बेंगलुरु में पोस्टेड हैं.’ उस ने दोनों का परिचय कराया.

सुरभि संकोच से दोहरी हुई जा रही थी. बड़ी मुश्किल से उस ने नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़े.

‘मैं इन से मिल चुका हूं. क्यों, है न?’ उस ने दृष्टता से मुसकराते हुए सुरभि की ओर देखा. ‘अच्छा,’ नीमा ने शोखी से कहा.

घर आ कर सुरभि उस पूरे दिन के घटनाक्रम में उलझी रही. ‘यह क्या हो रहा है, ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ, न जाने कितने लोगों से प्रतिदिन मुलाकात होती रहती थी लेकिन इतनी बेचैनी तो पहले कभी नहीं हुई.’ मन में कई सवाल उमड़घुमड़ रहे थे.

नीमा तो कह रही थी कि शरद बेंगलुरु में है तो फिर यहां क्या कर रहा है, फौरन ही उस का मन जवाब देता, हो सकता है आजकल यहीं हो और अपनी बहन को पहले दिन यूनिवर्सिटी छोड़ने आया हो. रहरह कर शरद का मुसकराता चेहरा उस की आंखों के सामने आ कर मुंह चिढ़ाने लगता था, क्यों, झकझोर दिया न मैं ने तुम को, हो रही हो न मुझ से मिलने को बेचैन?

‘हांहां, मैं बेचैन हो रही हूं तुम से मिलने के लिए, क्या तुम भी?’ वह अनायास ही बुदबुदा उठी.

‘क्या हुआ दीदी, तुम नींद में क्या बुदबुदा रही हो?’ बगल में सोई हुई उस की छोटी बहन ऋ तु ने पूछा.

‘क्या हुआ, कुछ भी तो नहीं. तूने कोई सपना देखा होगा,’ सुरभि ने खिसिया कर चादर में अपना मुंह ढांप लिया और सोने की कोशिश करने लगी.

दूसरे दिन हजारों मनौतियां मनाते हुए वह घर से निकली, काश कि आज भी शरद से मुलाकात हो जाए तो कितना अच्छा होगा. पूरे दिन दोनों सहेलियां साथ ही रहीं किंतु वह नहीं आया. चाह कर भी वह  नीमा से कुछ भी नहीं पूछ सकी, शर्म ने उसे जकड़ रखा था. उस का मन शरद से मिलने को बेचैन हो रहा था पर संस्कारों के चाबुक की मार से उस ने खुद को साधे रखा था. इन्हीं विचारों में डूबउतर रही थी कि तभी शरद आता दिखा.

‘क्या बात है दादा, आज आप फिर यहां. आज तो मेरा दूसरा दिन है और मैं कोई अकेली भी नहीं हूं,’ नीमा ने शरद को छेड़ा.

‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं कल सुबह की फ्लाइट से वापस चला जाऊंगा, सोचा आज तुझे थोड़ा घुमाफिरा दूं, इत्मीनान से बातें करते हैं, तुझे कोई प्रौब्लम तो नहीं. फिर तो अरसे बाद ही मुलाकात होगी,’ शरद ने सुरभि की ओर देखते हुए कहा.

नीमा मन ही मन में मुसकरा रही थी, जबकि सुरभि का चेहरा आरक्त हो रहा था और बड़ी ही सरलता से उस के मन के भावों की चुगली कर रहा था. ‘अच्छा दादा, आप सुरभि से बातें करिए, मैं अभी कौमन हौल से हो कर आती हूं.’ नीमा यह कहने के साथ सुरभि की ओर देख कर मुसकराती हुई चली गई.

सुरभि की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बोले, तभी शरद बोल उठा, ‘तुम्हें कुछ कहना तो नहीं है, मैं कल सुबह चला जाऊंगा.’

‘नहीं, मुझे क्या कहना है,’ सुरभि नर्वस हो रही थी.

‘ठीक है, फिर यह न कहना कि मैं ने तुम्हें कुछ कहने का मौका नहीं दिया,’ शरद ने तनिक ढिठाई से कहा. तभी नीमा आते हुए दिखी. नीमा ने आ कर बताया, ‘आज क्लासेज सस्पैंड हो गई हैं.’ यह कहने के साथ उस ने आगे कहा, ‘चलो न दादा, कहीं घूमफिर आएं, तू चलेगी न सुरभि?’

सुरभि पसोपेश में पड़ गई, क्या करे, जाने का मन तो है पर यदि घर में यह बात पता चली, तब? मांपापा कुछ गलत न समझ बैठें. वैसे भी जब उस के दाखिले की बात हुई, तभी मामाजी ने टोका था, ‘जीजाजी, लड़की को विश्वविद्यालय भेज कर आप गलती कर रहे हैं, कहीं हाथ से निकल न जाए.’ लेकिन उस का मन चंचल हो रहा था, क्या हुआ यदि थोड़ी देर और शरद का साथ मिल जाए…और वह तैयार हो गई. तीनों ने खूब घुमाईफिराई की. शाम को नीमा और शरद ने अपनी कार से उसे उस के घर छोड़ा. उस के मांपापा भी उन दोनों से मिल कर बहुत प्रभावित हुए.

दूसरे दिन उस का मन बहुत अशांत

था. आज शरद चला जाएगा, न

जाने अब कब मुलाकात हो. वह बड़े ही अनमने ढंग से क्लासेज के लिए तैयार हो कर यूनिवर्सिटी के लिए निकल गई. सामने से नीमा आते दिखी. सुरभि को देखते ही वह चहक कर बोली, ‘पता है, दादा आज भी नहीं गए. एक माह के लिए अपनी छुट्टियां बढ़ा ली हैं. असल मे दादा के जाने के नाम से ही मम्मी परेशान होने लगती हैं. बस, दादा को रुकने का बहाना मिल गया. उन्होंने अपना जाना कैंसिल कर दिया.’ लेकिन सुरभि अच्छी तरह समझती थी कि वह क्यों नहीं गया.

अब अकसर ही दोनों की मुलाकातें होने लगीं और उस ने अपना दिल शरद के हवाले कर दिया बिना यह जाने कि शरद भी उस को प्यार करता है या नहीं. लेकिन जब शरद ने बिना किसी लागलपेट के सीधेसादे शब्दों में अपने प्यार का इजहार कर दिया तो वह झूम उठी. ऐसा लग रहा था मानो पूरा सतरंगी आसमान ही उस की मुट्ठी में सिमट आया हो. वह अरमानों के पंखों पर झूला झूलने लगी.

एक रविवार को शरद अपने पेरैंट्स और नीमा को ले कर उस के घर आ धमका. उस ने अपने कमरे की खिड़की से देखा. उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हा रहा था. उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. ‘चलो दीदी, मां ने तुम्हें ड्राइंगरूम में बुलाया है,’ ऋ तु ने आ कर उसे चौंका दिया. वह अचकचाई सी मां के बुलाने पर सब के बीच पहुंच गई. शरद के पेरैंट्स उस के पेरैंट्स से बातों में मग्न थे. उसे देखते ही शरद की मां ने उस के दोनों हाथों को पकड़ कर अपनी बगल में बिठा लिया, ‘हमें आप की बेटी बहुत ही पसंद है. हम इसे अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं अगर आप को एतराज न हो.’

वह शर्म से लाल हो रही थी. मांपापा इसी बात पर निहाल थे कि उन्हें घर बैठे ही इतना अच्छा रिश्ता मिल गया. उन्होंने फौरन हां कर दी. उस की भावी सास ने पर्स से अंगूठी निकाली और शरद से उसे पहनाने के लिए कहा. शरद ने लपक कर उस का हाथ पकड़ लिया और उस की अनामिका में अंगूठी पहना कर अपने प्यार की मुहर लगा दी. उस ने भी मां द्वारा दी गई अंगूठी शरद को पहना कर अपनी स्वीकृति दे दी.

उसे यह सब स्वप्न सा महसूस हो रहा था. आखिर इतनी जल्दी उस का प्यार उसे मिलने वाला था. वह इस अप्रत्याशित सगाई के लिए तैयार न थी. क्या सच में जो प्यार उस के दिल के दरवाजे पर अब तक दस्तक दे रहा था, वह उस की झोली में आ गिरा. तभी, ‘भाभी’, कह कर नीमा उस से लिपट गई. लज्जा के मारे उस से वहां बैठा भी नहीं जा रहा था. वह नीमा को ले कर अपने कमरे में आ गई.

सगाई के बाद तो शरद अकसर ही उस के घर आनेजाने लगा था, अब उसे अपनी ससुराल में कभी भी आने का परमिट जो मिल गया था. इस एक महीने में वह सुरभि के साथ एक पूरा जीवन जीना चाहता था. अधिक से अधिक समय वह अपनी मंगेतर के साथ बिताना चाहता था. दोनों कभी मूवी देखने चले जाते, कभी दरिया के किनारे हाथों में हाथ डाले घूमते नजर आते, भविष्य के सुंदर सपने संजोते अपनी स्वप्नों की दुनिया में विचरण करते थे. पहले तो सुरभि को शर्म सी आती थी लेकिन अब घूमनेफिरने का लाइसैंस मिल गया था. सभी लोग बेफ्रिक थे कि ठीक भी है, दोनों एकदूसरे को अच्छी तरह समझ लेंगे तो जिंदगी आसान हो जाएगी.

वह दिन भी आ गया जब शरद को बेंगलुरु वापस जाना था. वह भावविह्वल हो रही थी. शरद उसे अपने से लिपटाए दिलासा दे रहा था. बस, कुछ ही दिनों की तो बात है, फिर हम दोनों एक हो जाएंगे. जहां मैं वहां तुम. हमारे ऊपर कोई बंधन नहीं होगा. और सुरभि ने उस के सीने में अपना मुंह छिपा लिया. शरद उस का मुंह ऊपर उठा कर बारबार उस के होंठों पर अपने प्यार की मुहर अंकित कर रहा था. शरद चला गया उसे अकेला छोड़ कर यादों में तड़पने के लिए.

विवाह जाड़े में होना था और अभी तो कई माह बाकी थे. फोन पर बातों में वह अपने विरह का कुछ इस प्रकार बखान करता था कि सुरभि के गाल शर्म से लाल हो उठते थे. वह उस की बातों का उत्तर देना चाहती थी किंतु शर्म उस के होंठों को सी देती थी. नीमा अकसर उसे छेड़ती और वह शरमा जाती.

अक्तूबर का महीना भी आ गया था. घर में जोरशोर से शादी की तैयारियां चल रही थीं. मांपापा पूरेपूरे दिन, उसे इस मौल से उस मौल टहलाते थे. उस की पसंद की ज्वैलरी और साडि़यां आदि खरीदने के चलते क्लासेज छूट रही थीं. जब वह कुछ कहती तो मां बोलतीं, ‘अब ससुराल में जा कर ही पढ़ाई करना.’ वह चुप रह जाती थी.

नवंबर का महीना भी आ गया. तैयारियों में और भी तेजी आ गई थी. निमंत्रणपत्र भी सब को जा चुके थे कि तभी उन पर गाज गिरी. शरद ने अपने पापा को सूचना दी कि उस ने अपने साथ ही कार्यरत किसी सोमा रेड्डी से विवाह कर लिया है.

सुरभि टूट गई. उसे शरद पर बेहद यकीन था. शरद उसे इस प्रकार धोखा देगा, यह तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. वह शरद, जो उसे अपनी आंखों से ओझल भी नहीं होने देना चाहता था. उस के बालों से अठखेलियां करता, कभी कहता, तुम्हारी झील सी गहरी आंखों में मैं डूबडूब जाता हूं, सागर की लहरों सा लहराता तुम्हारा बदन मुझे अपने में समेटे लिए जा रहा है. ऐसे कैसे धोखा दे सकता है वह उसे? वह खुद से ही सवाल करती.

शरद के पापा बहुत ही लज्जित थे और हाथ जोड़ कर सुरभि के परिवार से अपने बेटे के धोखे की माफी मांग रहे थे. और नीमा…वह तो सुरभि से नजरें मिलाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रही थी. लेकिन अब इन बातों से फायदा भी क्या था? निराशा के अंधकार में वह नई राह तलाशने की कोशिश करती, लेकिन हर राह शरद की ओर ही जाती थी. उस के आगे तो सड़क बंद ही मिलती थी. और वह अंधेरों में भटक कर रह जाती थी.

कहीं से प्रकाश की एक भी किरण नजर नहीं आती थी. अब वह नातेरिश्तेदारों व मित्रों से नजरें चुराने लगी थी. जबकि मां उसे समझाती थी, ‘बेटा, तेरा कोई दोष नहीं है, दोष तो हमारा है जो हम ने उस धोखेबाज को पहचानने में भूल की.’

2 माह बाद ही पापा ने उस का विवाह अवलंब से कर दिया. अवलंब इनकम टैक्स औफिसर थे और बहुत ही सुलझे हुए व्यक्तित्व के थे. पापा ने उन से शरद और सुरभि की कोई भी बात नहीं छिपाई थी और परिवार के सम्मान की खातिर ही उस ने इस विवाह को स्वीकार कर लिया था. अवलंब सही माने में अवलंब थे. उन्होंने कभी भी उसे इस बात का आभास तक न होने दिया कि वे उस के अतीत से परिचित हैं और उन्होंने उसे अपने प्यार से लबरेज कर दिया. अब उसे शरद की याद भी न के बराबर ही आती थी. वह अवलंब का साया बन गई थी.

2 वर्षों बाद ही उस के जीवन की बगिया में अवलंब के प्यार का एक फूल खिला, अनंत, उस का बेटा. वह अपनेआप को दुनिया की सब से खुशनसीब स्त्री समझने लगी थी. अवलंब का बेशुमार प्यार और अनंत की किलकारियों से वह अपने अतीत के काले अध्याय को भूल चुकी थी, लेकिन नियति उस पर हंस रही थी. तभी तो 2 दिनों के दिमागी बुखार से अवलंब उसे अलविदा कह कर उस के जीवन से बहुत दूर चला गया और अब वह अपने बेटे के साथ अकेली रह गई.

अवलंब के औफिस में ही उसे नौकरी मिल गई. वह अकेली ही चल पड़ी उस डगर पर जो नियति ने उस के लिए चुनी थी. उसे अपने पति के हर उस सपने को पूरा करना था जो उन्होंने अनंत के लिए देखे थे. उसे अनंत का भविष्य संवारना था. उसे आकाश की अनंत ऊंचाइयों तक पहुंचाना था. अनंत था भी बड़ा ही मेधावी, सदा अव्वल रहने वाला. पीछे पलट कर उस ने कभी देखा ही नहीं और लगातार तरक्की की ओर बढ़ता गया.

सिडनी में अनंत को फैलोशिप मिल गई थी और उस के उज्जवल भविष्य के लिए सुरभि ने बिना नानुकुर किए उसे विदेश भेज दिया, वहां उसे नेहा मिली, जिस से वह विवाह करना चाहता था. और जिस की मंजूरी सुरभि ने फौरन ही दे दी. उस का मन उसे भटका रहा था. यदि वास्तव में नेहा शरद की ही बेटी हुई, तो क्या वह शरद का सामना कर सकेगी? क्यों उस ने यह रिश्ता स्वीकार कर लिया, अब क्या वह अनंत को मना कर दे इस शादी के लिए, लेकिन सबकुछ इतना आसान भी तो नहीं था. अब यदि अनंत ने इनकार का कारण पूछा तब क्या वह अपने ही मुंह से अपने अतीत को बयां कर सकेगी जिस ने उस के जीवन के माने ही बदल दिए थे, शरद की बेटी को क्या वह दिल से स्वीकार कर सकेगी, कहीं ऐसा न हो कि शरद के प्रति उस के प्रतिकार का शिकार वह मासूम बच्ची बने. नहींनहीं, शरद का बदला वह नेहा से कैसे ले सकती थी. वह बेटे का दिल भी तो नहीं तोड़ सकती थी. वरना, वह भी नेहा की नजरों में शरद के समान ही गिर जाएगा.

उस ने अनंत को फोन किया. ‘‘हैलो,’’ दूसरी तरफ से अनंत का स्वर उभरा.

‘‘बेटा, तुम नेहा से वहीं शादी कर के इंडिया आ जाओ. मैं यहां एक ग्रैंड रिसैप्शन दे दूंगी ताकि सभी रिश्तेदारों से बहू का परिचय भी हो जाए और हां, नेहा के मांपापा को विशेष निमंत्रण दे देना.’’

अनंत और नेहा का रिसैप्शन सचमुच बड़ा ही शानदार था. सभी नातेरिश्तेदार व सगेसंबंधी इकट्ठे हुए थे. सुरभि गेट पर सभी का स्वागत कर रही थी. तभी शरद अपनी पत्नी के साथ आता दिखा. उस ने हाथ जोड़ कर दोनों का स्वागत किया. उस के होंठों पर मुसकराहट थी, वह ऐसा प्रदर्शित कर रही थी मानो वह शरद को पहचानती ही नहीं है. लेकिन शरद उसे देख कर अचकचा गया, धीरे से बोला, ‘‘सुरभि, तुम?’’ वह शरद की बात को अनसुना कर के दूसरे मेहमानों की ओर बढ़ चली. खिसियाया हुआ शरद उसे बराबर आतेजाते देख रहा था. लेकिन वह उस से किनारा कर रही थी. शरद को बात करने का वह कोई मौका ही नहीं दे रही थी.

अनंत नेहा के साथ घूमफिर कर सभी मेहमानों से मिल रहा था. सुरभि भी सब से अपनी बहू का परिचय करा रही थी, साथ ही, उस की तारीफों के पुल भी बांधती जा रही थी. सभी मेहमान विदा हो गए. रह गए बस शरद और उस की पत्नी सोमा. अब वह उन की ओर मुखातिब हुई, ‘‘कहिए, कैसा लगा सारा इंतजाम आप लोगों को? अपनी ओर से तो मैं ने कोई भी कसर नहीं छोड़ी.’’

‘‘बहुत ही अच्छा प्रबंध था. आप को देख कर ऐसा लगता है कि मेरी बेटी को बहुत ही समझदार सास मिली है. आइए हम लोग गले तो मिल लें,’’ कह कर सोमा उस के गले लग गई.

सुरभि ने कनखियों से शरद को देखा, उस का चेहरा सियाह हो रहा था. शायद उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि सुरभि उसे न पहचानने का बहाना कर रही है, उसे इस बात का तो अंदाजा था कि वह नाराज है किंतु उसे कुछ कहने का मौका तो दे, कहीं ऐसा न हो कि उस की बेवफाई का बदला नेहा से ले, वह इन्हीं विचारों में डूबउतरा रहा था. उन लोगों के रुकने की व्यवस्था सुरभि ने अपने घर के गैस्टरूम में ही की थी.

रात्रि के 2 बज रहे थे. सुरभि की आंखों में नींद नहीं थी. वह अतीत के सागर में गोते लगा रही थी,  क्यों किया शरद ने मेरे साथ ऐसा और इन 25 वर्षों में उस ने एक बार भी यह जानने की कोशिश नहीं की, कि मेरा हश्र क्या हुआ, मैं जीवित भी हूं या नहीं. जिस प्रकार समाज में मेरा अपमान हुआ था उस से तो मर जाना ही उचित था. वह तो पापा की सूझबूझ से अवलंब जैसे पति मिले, तो जीवन में फिर एक बार आशा का संचार हुआ. लेकिन शरद की यादें हमेशा ही तो मन में उथलपुथल मचाती रहीं. अपने अतीत को अपने सामने पा कर वह विह्लल हो रही थी. इतना गहरा रिश्ता बन गया है, कैसे निभेगा, अब तो बारबार ही शरद से आमनासामना होगा. तब?

वह बेचैन हो कर अपने घर के लौन में टहल रही थी. तभी, ‘‘सुरभि,’’ शरद ने पीछे से आ कर उसे चौंका दिया. ‘‘आप यहां, इस समय, क्यों आए हैं?’’ वह पलटी, उस का स्वर कठोर था.

‘‘सुरभि, एक बार, बस एक बार मुझे अपना पक्ष साफ करने दो, फिर मैं कभी भी तुम से कुछ भी नहीं कहूंगा. मैं तुम से क्षमा भी नहीं मांगूगा क्योंकि जो मेरी मजबूरी थी उसे मैं अपना अपराध नहीं मानता हूं.’’

‘‘कैसी मजबूरी? कौन सी मजबूरी? मैं कुछ भी सुनना नहीं चाहती हूं. जो हुआ, अच्छा ही हुआ. आप के इनकार ने मुझे अवलंब जैसा पति दिया जो वास्तव में अवलंब ही थे और इस के लिए मैं आप की आभारी हूं,’’ सुरभि ने अपने कमरे की ओर कदम बढ़ाए.

‘‘रुको सुरभि, एक बार मेरी बात तो सुन लो, मेरे सीने पर जो ग्लानि का बोझ है वह उतर जाएगा. हमारे रास्ते तो अलग हो ही चुके हैं, एक मौका, बस, एक मौका दे दो,’’ शरद ने सुरभि की राह रोकते हुए कहा.

सुरभि ठिठक कर खड़ी हो गई, ‘‘कहिए, क्या कहना है?’’

‘‘कहां से शुरू करूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है,’’ शरद झिझक रहा था.

‘‘देखिए, आप को जो भी कहना हो, जल्दी से कह दीजिए, कोई आ जाएगा तो आप की किरकिरी हो जाएगी,’’ सुरभि ने कदम आगे बढ़ाने का उपक्रम किया.

‘‘हूं, तो सुनो, यहां से जाने के बाद मैं बहुत ही उल्लसित था. स्वप्न में मैं हर रोज तुम्हारे साथ अपना जीवन बिता रहा था. हर ओर मुझे तुम ही तुम नजर आती थीं. मेरे सभी सहयोगी बहुत ही खुश थे. मेरे एमडी मिस्टर अनिल रेड्डी ने भी ढेरों मुबारकबाद दीं. जब विवाह के 15 दिन ही बचे थे, मेरे साथियों ने एक फाइवस्टार होटल में बड़ी ही शानदार पार्टी का आयोजन किया. मिस्टर रेड्डी भी अपनी पत्नी व बेटी सोमा, जो मेरी सहयोगी भी थी, के साथ मेरी पार्टी में शामिल हुए. डिं्रक्स के दौर चल रहे थे. किसी को कुछ भी होश नहीं था.

‘‘डांसफ्लोर पर सभी थिरक रहे थे कि अचानक मैं लड़खड़ा कर गिरने लगा. सोमा, जो उस समय मेरी ही डांस पार्टनर थी, ने मुझे संभाल लिया. नशा गहरा रहा था और उस पर उस के शरीर की मादक सुगंध में मैं खोने लगा. एक पल को मुझे ऐसा लगा जैसे तुम ही मुझे अपनी ओर आमंत्रण दे रही हो. मैं ने सोमा को अपनी बांहों में भर लिया और सामने वाले कमरे में ले कर चला गया.

‘‘सोमा ने भी कुछ ज्यादा ही पी ली थी. उन्हीं नाजुक पलों में संयम के सारे बांध टूट गए और वो हो गया जो नहीं होना चाहिए था. हम दोनों एकदूसरे की आगोश में लिपटे पड़े थे कि अचानक, ‘‘व्हाट हैव यू डन रास्कल? यू हैव स्पौएल्ड माई डौटर्स लाइफ, नाऊ यू आर सैक्ड फ्रौम योर जौब,’’ चीखते हुए मिस्टर रेड्डी अपनी पुत्री सोमा को एक तरह से घसीटते हुए ले कर चले गए. मैं परेशान भी था और शर्मिंदा भी. यह मैं ने क्या कर दिया. तुम्हें पाने को मैं इतना आतुर था कि सोमा को तुम समझ बैठा और पतन के गर्त में जा गिरा.

दूसरे दिन मिस्टर रेड्डी ने मुझे

दोबारा जौब, इस शर्त पर वापस

की कि मैं सोमा से शादी कर लूं क्योंकि इस घटना का सभी को पता चल चुका था. सोमा के सम्मान का भी सवाल था. बस, मैं मजबूर हो गया और इस प्रकार उस से मुझे विवाह करना ही पड़ा. मैं तुम लोगों को क्या मुंह दिखाता. बस, एक इनकार की सूचना अपने पापा को दे दी. बाद में मिस्टर रेड्डी ने मुझे अपना पार्टनर बना लिया. अब तुम जो भी चाहो, समझो. मैं ने तुम्हें सबकुछ हूबहू बता दिया. हो सके तो क्षमा कर देना.

‘‘नेहा मेरी एकलौती बेटी है, उसे अपनी बेटी ही समझना. मेरा बदला उस से न लेना.’’ इतना कह कर शरद चुप हो गया.

‘‘ठीक है शरद, जो हुआ सो हुआ. नेहा आप की बेटी ही नहीं, मेरी बहू भी है. मेरी कोई बेटी नहीं है, उस ने मेरी यह साध पूरी की है. अब आप अपने कमरे में सोने जाइए. सोमाजी जाग जाएंगी, आप को न पा कर परेशान हो जाएंगी. मैं भूल चुकी हूं कि कभी आप से मिली भी थी और आप भी भूल जाइए,’’ कह कर सुरभि अपने कमरे की ओर मुड़ गई. शरद भी चुपचाप अपने कमरे की ओर चला गया.

इस प्रकार एक बिसरी हुई कहानी का पटाक्षेप हो गया. पर शरद के मन में आज भी अपराधबोध था. सुरभि 25 वर्षों से जिस हलकी आंच पर सुलग रही थी, वह आज बुझ गई. शरद नहीं तो क्या, उस की बेटी तो अब उस ने बहू के रूप में पा ही ली न.

अजंता: आखिर क्या हुआ पूजा के साथ

लेखक- सुधीर मौर्य

अजंता को इस बात की बिलकुल भी उम्मीद नहीं रही होगी कि शशांक उस के फ्लैट पर आ जाएगा. डोरबैल बजने पर अजंता ने जब दरवाजा खोला तो सामने शशांक खड़ा था. उसे यों वहां आया देख कर अजंता सोच ही रही थी कि वह कैसे रिएक्ट करे तभी शशांक मुसकराते हुए बोला, ‘‘नमस्ते मैम, यहां से गुजर रहा था तो याद आया इस एरिया में आप रहती हैं. बस दिल में खयाल आया कि आप के साथ चाय पी लूं.’’

‘‘बट अभी मैं कल क्लास में देने वाले लैक्चर की तैयारी कर रही हूं, चाय पीने के लिए नहीं आ सकती,’’ अजंता ने शशांक को दरवाजे से लौटा देने की गरज से कहा.

‘‘अरे मैम, इतनी धूप में आप बाहर आ कर चाय पीएं यह तो हम बिलकुल न चाहेंगे. चाय तो हम यहां फ्लैट में बैठ कर पी सकते हैं. चाय मैं बनाऊंगा आप लैक्चर की तैयारी करते रहना और हां एक बात बता दूं हम चाय बहुत अच्छी बनाते हैं,’’ शशांक ने दरवाजे से फ्लैट के अंदर देखने की कोशिश करते हुए कहा मानो वह यह तहकीकात कर रहा हो कि इस वक्त अजंता फ्लैट में अकेली है या कोई और भी वहां है.

शशांक की कही बात का अजंता कोई जवाब न दे सकी. एक पल चुप रहने के बाद वह बिना कुछ कहे फ्लैट के भीतर आ गई. शशांक भी उस के पीछेपीछे अंदर आ गया. शशांक ने दरवाजा बंद किया तो उस की आवाज से अजंता ने पलट कर जब उसे देखा तो शशांक ने झट से पूछा, ‘‘मैम, किचन किधर है?’’

‘‘इट्स ओके,’’ अजंता सोफे की ओर इशारा कर के शशांक से बोली, ‘‘तुम वहां बैठो चाय मैं बना कर लाती हूं.’’

‘‘एज यू विश,’’ शशांक ने मुसकरा कर कहा और फिर सोफे पर यों बैठ गया जैसे वह वहां मेहमान न हो, बल्कि यह फ्लैट उसी का हो.

शशांक को वहां बैठा देख कर अजंता किचन में चली गई. शशांक जाती हुई अजंता की लचकती कमर और रोमहीन पिंडलियां देखता रहा. अजंता नौर्मली जब घर पर होती है ढीलाढाला कुरता और हाफ पाजामा पहनती है. यही उस की स्लीपिंग ड्रैस भी है. इस में वह काफी कंफर्ट महसूस करती है.

‘‘मैम, क्या एक गिलास ठंडा पानी मिल सकता है,’’ गैस जला कर अजंता ने चाय बनाने के लिए पानी चढ़ाया ही था कि अपने बेहद करीब शशांक की आवाज सुन कर चौंक पड़ी. हाथ में पकड़ा चायपत्ती वाला डब्बा हाथ से गिरतेगिरते बचा.

अपनी आवाज से अजंता को यों चौंकते देख कर शशांक ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैम, बाहर बहुत धूप है… प्यास से गला सूख गया है.’’

अजंता ने हाथ में पकड़ा चायपत्ती वाला डब्बा एक ओर रख फ्रिज से पानी की बोतल निकाल शशांक को पकड़ा दी. हाथ में पानी की बोतल लिए शशांक ने खुद गिलास लिया. गिलास लेते समय शशांक का जिस्म अजंता के जिस्म से तनिक छू गया. अजंता ने इस टच पर कोई रिएक्शन नहीं दिया. गिलास में पानी डाल कर पीने के बाद शशांक ने कहा, ‘‘मां कहती हैं कि पानी हमेशा गिलास से पीना चाहिए, सीधे बोतल से कभी नहीं.’’

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तुम्हारी मां यह नहीं कहतीं कि एक अकेली लड़की से मिलने उस के घर नहीं जाना चाहिए, अजंता यह कहने ही वाली थी कि उस से पहले ही शशांक ड्राइंगरूम में चला गया. चाय पीते हुए शशांक ने अजंता से ढेरों बातें करने की कोशिश की, लेकिन अजंता उन के जवाब में सिर्फ हां, हूं, नहीं आदि बोल उसे इग्नोर करने का प्रयास करती रही. चाय खत्म होने के बाद शशांक को टालने की गरज से अजंता ने कुछ पेपर उठा लिए और उन्हें मन ही मन पढ़ने का बहाना करने लगी. अजंता को यों अपनेआप में बिजी देख सोफे पर से उठते हुए शशांक ने कहा, ‘‘तो फिर मैं चलता हूं मैम.’’

‘‘हांहां ठीक है. तुम्हें ऐग्जाम की तैयारी भी करनी होगी,’’ कह वह सोच में पड़ गई कि छुट्टी का दिन है और उस से मिलने के लिए प्रशांत कभी भी आ सकता है. एक लड़के को मेरे फ्लैट में देख कर न जाने वह कौन सा सवाल कर बैठे. अजंता खुद चाहती थी कि शशांक जल्दी से जल्दी वहां से चला जाए. इसीलिए उस ने शशांक से पढ़ने की बात कह कर उसे जाने को कहा था पर उसे क्या पता था कि उस की कही बात उस के गले पड़ जाएगी.

‘‘मैम वह सच तो यह है कि मैं इसीलिए यहां आप के पास आया था कि आप से स्टडी में कुछ हैल्प ले सकूं,’’ सोफे पर वापस बैठते हुए शशांक बोला, ‘‘मैम, आप करेंगी न मेरी मदद?’’

‘‘हांहां ठीक है, पर आज नहीं. अभी तुम जाओ. मुझे अभी अपने लैक्चर की तैयारी करनी है,’’ कहतेकहते अजंता की बात में रिक्वैस्ट का पुट आ गया था.

अजंता को रिक्वैस्ट के अंदाज में बोलते देख शशांक को अच्छा लगा और फिर सोफे से उठ कर एहसान करने वाले अंदाज में बोला, ‘‘ओके मैम, आप कह रही हैं तो हम चले जाते हैं पर आप अपना वादा याद रखना.’’

‘‘कैसा वादा?’’ अजंता ने घबराते हुए पूछा.

‘यही कि आप स्टडी में मेरी हैल्प करेंगी,’ शशांक ने हंस कर कहा और फिर दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया.

अजंता दरवाजा बंद करने ही वाली थी कि शशांक पलट कर बोल पड़ा, ‘‘मैम, आप के पैर बहुत खूबसूरत हैं. जी करता है इन्हें देखता ही रहूं. क्या मेरे लिए आप किसी ओपन लैग्स वाली ड्रैस में आ सकती हैं?’’

शशांक की इस बेहूदा बात पर अजंता चुप रह गई. शशांक ने एक गहरी नजर अजंता की रोमहीन चमकती पिंडलियों पर डाली और फिर मुसकराते हुए चला गया. उस के जाते ही अजंता ने झट से दरवाजा बंद कर के सुकून की सांस ली.

अजंता 23-24 साल की बेहद खूबसूरत युवती थी. इतनी खूबसूरत कि उस के चेहरे को देख कर दुनिया की सब से हसीन लड़की भी शरमा जाए, उस के जिस्म के रंग के आगे सोने का रंग मटमैला लगे. कंधे तक बिखरी जुल्फों का जलवा ऐसा मानो वह जुल्फियां नाम की मुहब्बत की कोई अदीब हो. उस के उन्नत उरोज, पतली कमर, भरेभरे नितंब और मस्तानी चाल यकीनन अजंता की खूबसूरती बेमिसाल थी और आज शशांक के कमैंट ने उसे यह भी बता दिया था कि उस की पिंडलियां भी किसी को आकर्षित कर सकने का दम रखती हैं.

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अजंता न सिर्फ जिस्मानी रूप से बेहद खूबसूरत थी, बल्कि बहुत ही कुशाग्रबुद्धि भी थी. बैंगलुरु के एक मशहूर इंजीनियरिंग कालेज से उस ने मैकैनिकल इंजीनियरिंग में बीटैक की डिग्री ली थी और लखनऊ के एक पौलिटैक्निक कालेज में अस्थाई रूप से जौब कर रही थी. रहने वाली कानुपर की थी. लखनऊ के इंदिरानगर में किराए के फ्लैट में रहती थी.

प्रशांत, अजंता के पापा के दोस्त का लड़का है. उस के पापा राजनीति में हैं, विधायक रह चुके हैं. अब प्रशांत उन का उत्तराधिकार संभाल रहा है. अजंता की उस के साथ इंगेजमैंट हो चुकी है. प्रशांत की मदद से उसे एक अच्छा फ्लैट किराए पर मिल गया था. प्रशांत की फैमिली लखनऊ में रहती थी, इसलिए अजंता के लखनऊ में अकेले रहने से उस की फैमिली उस की तरफ से बेफिक्र थी.

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अजंता के और प्रशांत के पापा आपस में दोस्त थे. अत: अजंता और प्रशांत भी एकदूसरे को बचपन से जानते थे. हालांकि दोनों के परिवार अलगअलग शहरों में रहते थे फिर भी साल में 1-2 बार जब भी एकदूसरे के शहर जाते तो मुलाकात हो जाती थी. वैसे भी कानपुर और लखनऊ शहर के बीच की दूरी कोई बहुत ज्यादा नहीं है.

अजंता और प्रशांत की शादी का फैसला जब उन के मां और पिता ने लिया तो प्रशांत और अजंता ने कोई ऐतराज नहीं जताया. अजंता जैसी बेहद सुंदर और उच्च शिक्षा प्राप्त लड़की से तो कोई भी लड़का शादी करने को उतावला हो सकता था, इसलिए प्रशांत ने फौरन हामी भर दी. अजंता ने प्रशांत से शादी करने के लिए अपनी सहमति देने में 1 दिन का वक्त लिया था. शादी के लिए सहमति देने के लिए अजंता ने जो समय लिया उसे दोनों परिवारों ने लड़की सुलभ लज्जा समझा.

अजंता द्वारा लिए गए समय को भले ही दोनों परिवारों ने उस की लज्जा समझा हो पर अजंता सच में शादी जैसे मुद्दे पर सोचने के लिए थोड़ा वक्त चाहती थी. अजंता का यह वक्त लेना लाजिम भी था. भले ही अजंता प्रशांत को बचपन से जानती हो पर उस के मन में कभी प्रशांत के लिए प्यार जैसी किसी भावना ने अंगड़ाई नहीं ली थी.

प्रशांत क्लोज फ्रैंड भी नहीं था. मतलब वह प्रशांत से अपनी निजी बातें शेयर करने में कंफर्ट फील नहीं करती थी न ही उस ने कभी प्रशांत से अंतरंग बातें की थीं. हालांकि जब से उन की इंगेजमैंट हुई थी तब से प्रशांत उस से कभीकभी अंतरंग बातें करता था, जिन का अजंता इस अंदाज में जवाब देती थी जैसे वह इस तरह की बातें करने में ईजी फील नहीं कर रही हो.

प्रशांत न सिर्फ एक नेता का बेटा था, बल्कि खुद भी युवा नेता था, बावजूद इस के उस में कोई खास बुरी आदतें नहीं थीं. कभीकभार किसी फंक्शन के अलावा प्रशांत ड्रिंक भी नहीं लेता था न ही लड़कियों के पीछे भागने वाला लड़का था.

हालांकि कुछ लड़कियां प्रशांत की दोस्त रही थीं. 1-2 लड़कियों से उस के अफेयर के चर्चे भी रहे थे, पर अजंता ने इसे एक सामान्य बात के तौर पर लिया. आजकल के जमाने में लड़कों और लड़कियों का अफेयर होना सामान्य सी बात हो गई है.

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अजंता खुद एक बार एक लड़के के प्रति आकर्षित हुई थी. जब वह बैंगलुरु में बीटैक फर्स्ट ईयर की पढ़ाई कर रही थी तो फाइनल ईयर के स्टूडैंट राजीव की ओर आकर्षित हो गई थी. राजीव हैंडसम और खुशमिजाज लड़का था. वह कानपुर का रहने वाला था. शायद इसीलिए अजंता जल्द ही उस के ओर आकर्षित हो गई. जल्दी ही दोनों दोस्त बन गए और फिर क्लोज फ्रैंड.

अजंता उस समय समझ नहीं पाती थी कि वह सिर्फ राजीव की ओर आकर्षित भर है या फिर उसे प्यार करने लगी है. राजीव लास्ट ईयर का स्टूडैंट था. कालेज कैंपस से उसे एक बड़ी कंपनी में जौब मिल गई और वह ऐग्जाम देते ही दिल्ली चला गया.

कुछ दिनों तक तो राजीव को अजंता ने याद किया और फिर धीरेधीरे उस की स्मृतियां दिल के किसी कोने में खो गईं. राजीव ने भी कभी अजंता को कौंटैक्ट नहीं किया. अब अजंता को समझ में आ गया कि वह राजीव की ओर सिर्फ आकर्षित भर थी, उसे उस से प्यार नहीं हुआ था.

अजंता की जिंदगी में कोई लड़का नहीं था. उस की उम्र भी 23-24 साल की हो रही थी. प्रशांत में कोई कमी भी नहीं थी, इसलिए एक दिन सोचने के बाद उस ने प्रशांत से शादी करने की स्वीकृति दे दी. अजंता के स्वीकृति देते ही दोनों परिवारों ने दोनों की मंगनी कर दी.

अब अजंता अपनी जौब के सिलसिले में लखनऊ में रहती थी, इसलिए प्रशांत और वह एकदूसरे से अकसर मिल लेते थे. हालांकि अजंता कई बार प्रशांत से तनहाई में मिली थी पर अब तक उस ने शारीरिक संबंध नहीं बनाया था. ऐसा नहीं कि प्रशांत ने शारीरिक संबंध बनाने का प्रयास न किया हो पर अजंता ‘प्लीज ये सब शादी के बाद’ कह कर मना करती आई.

अजंता के मना करने के बाद प्रशांत भी उसे ज्यादा फोर्स नहीं करता था. भले ही अजंता और प्रशांत के बीच शारीरिक संबंध नहीं बने थे पर उन दोनों ने एकदूसरे के शरीर को छुआ था, एकदूसरे को किस किया था. वे लड़केलड़की जिन की इंगेजमैंट हो चुकी हो उन के बीच ऐसा होना लाजिम भी है. अजंता को प्रशांत ने कई बार अपने सीने में भी भींचा था, उस का चुंबन लिया था पर न जाने क्यों अजंता को ये सब सतरंगी दुनिया में नहीं ले जा पाते.

करीब 20 साल का शशांक कोई बहुत कुशाग्रबुद्धि का नहीं था. इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद उस ने बीटैक में एडमिशन के लिए कोचिंग ली पर 2 साल तैयारी करने के बाद उसे किसी भी कालेज में दाखिला नहीं मिला. शशांक अपनी क्षमताओं को अच्छी तरह जानता था, इसलिए उस ने दूसरे साल पौलिटैक्निक का भी ऐंट्रैंस ऐग्जाम दिया और उसे राजकीय पौलिटैक्निक, लखनऊ में मैकैनिकल इंजीनियरिंग में दाखिला मिल गया.

कालेज में पढ़ाई से ज्यादा शशांक अन्य ऐक्टिविटीज में ज्यादा दिलचस्पी लेता. खेलकूद में आगे रहता. हमेशा अलमस्त रहने वाला शशांक न जाने क्यों पहले दिन से ही अजंता पर कुछ न कुछ कमैंट करता. अजंता ऐलिमैंट औफ मैकैनिकल इंजीनियरिंग जैसे सब्जैक्ट पढ़ाती थी. इन विषयों से संबंधित सवालों के जवाब शशांक भलीभांति नहीं दे पाता पर वह अजंता से बड़ी डेयरिंग से अन्य बातें कर लेता.

शशांक की कुछ बातें तो ऐसी होतीं कि जिन्हें सुन कर कोई भी लड़की भड़क जाए. बातें अजंता को भी अच्छी नहीं लगतीं पर वह न जाने क्यों वह कभी शशांक पर भड़की नहीं न ही उस की कालेज मैनेजमैंट से कोई शिकायत की. यहां तक कि जब शशांक एक दिन बातों ही बातों में उस के उरोजों और नितंबों की तारीफ कर बैठा तब भी उस ने कोई शिकायत नहीं की पर यह बात सुन कर उस ने रिएक्ट जरूर ऐसे किया जैसे उसे यह बात बेहद नागवार गुजरी हो.

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शशांक ने जब एक दिन हंस कर शादी के लिए प्रपोज किया तब भी उस ने ऐसे ही रिएक्ट किया पर उस रात जब उस की आंख अचानक खुल गई तो शशांक की कही बात सुन कर वह मन ही मन मुसकरा पड़ी.

न जाने क्या था शशांक की आंखों और उस की बातों में कि अजंता ने अपने से करीब 3-4 साल छोटे अपने स्टूडैंट की उन बातों को, जिन्हें लोग अश्लील कहते हैं, पुरजोर विरोध नहीं किया. कभीकभी तो जब अजंता तनहाई में होती तो शशांक उस के खयालों में आ जाता और कोई न कोई ऐसी बात कहता जिसे सुन कर अजंता बाहर से तो गुस्सा दिखाती पर मन में एक गुदगुदी सी महसूस करती.

उस दिन जब शशांक डेयरिंग करते हुए अजंता से मिलने उस के फ्लैट पर आ गया तो अजंता उस के जाने तक सिर्फ यही सोचती रही कि कहीं उसे अकेली देख वह उस के साथ गलत हरकत न करे दे. पर शशांक ने ऐसा कुछ नहीं किया. हालांकि उस ने 1-2 अशिष्ट बातें जरूर कीं. शशांक के जाने के बाद अजंता दरवाजा बंद कर के सुकून की सांस ले ही रही थी कि वापस डोरबैल बज उठी.

अजंता ने धड़कते दिल से दरवाजा खोला तो समाने प्रशांत खड़ा था. बोली, ‘‘आइए, भीतर आ जाइए.’’

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लेखक- सुधीर मौर्य

भले ही अजंता के दिल में अब भी प्रशांत के लिए मुहब्बत के जज्बात न जगे हों पर वह उस का होने वाला पति था, इसलिए उस का मुसकरा कर स्वागत करना लाजिम था. भीतर आ कर प्रशांत उसी सोफे पर बैठ गया जहां कुछ देर पहले शशांक बैठा था. प्रशांत के लिए फ्रिज से पानी निकालते हुए अजंता सोच में पड़ गई कि अगर प्रशांत कुछ देर पहले आ जाता और शशांक के बारे में पूछता तो वह क्या जवाब देती.

‘‘बाहर तो काफी धूप है?’’ अजंता ने पानी देते हुए प्रशांत से जानना चाहा.

पानी पीते हुए प्रशांत ने अजंता को ऊपर से नीचे तक देखा और फिर गिलास उस के हाथ में देते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम्हें मना किया था न ये शौर्ट कपड़े पहनने के लिए.’’

‘‘ओह हां, बट घर में पहनने को तो मना नहीं किया था,’’ अजंता ने कहा और फिर बात बदलने की गरज से झट से बोली, ‘‘आप चाय लेंगे या कौफी?’’

‘‘चाय,’’ प्रशांत सोफे पर पसर और्डर देने के अंदाज में बोला. अजंता किचन की ओर जाने लगी तो प्रशांत ने कहा, ‘‘अजंता मैं चाहता हूं तुम इस तरह के कपड़े घर पर भी मत पहनो.’’

‘‘अरे, घर में इस ड्रैसिंग में क्या प्रौब्लम है और फिर आजकल यह नौर्मल ड्रैसिंग है. ज्यादातर लड़कियां पहनना पसंद करती हैं,’’ चाय बनाने जा रही अजंता ने रुक कर प्रशांत की बात का जवाब दिया.

‘‘नौर्मल ड्रैसिंग है, लड़कियां पसंद करती हैं इस का मतलब यह नहीं कि तुम भी पहनोगी?’’ प्रशांत के स्वर में थोड़ी सख्ती थी.

‘‘अरे, इस तरह की ड्रैसिंग में मैं कंफर्ट फील करती हूं और मुझे भी पसंद है ये सब पहनना,’’ अजंता ने अपनी बात रखी.

‘‘पर मुझे पसंद नहीं अजंता… तुम नहीं पहनोगी आज के बाद यह ड्रैस, अब जाओ चाय बना कर लाओ,’’ और्डर देने वाले अंदाज में प्रशांत के स्वर में सख्ती और बढ़ गई थी.

‘‘तुम्हारी पसंद… क्या मेरी कोई पसंद नहीं?’’ प्रशांत की सख्त बात सुन कर अजंता की आवाज भी थोड़ी तेज हो गई.

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अजंता की तेज आवाज ने प्रशांत के गुस्से को बढ़ा दिया. वह चिल्लाते हुए बोला, ‘‘मैं ने जो कह दिया वह कह दिया और तुम इतने भी मैनर नहीं जानती कि जब पति बाहर से थक कर आता है तो पत्नी उस के साथ बहस नहीं करती.’’

अजंता स्वभाव से सीधीसादी थी. वह समझती थी पति से तालमेल बैठाने के लिए उसे अपनी कुछ इच्छाएं कुरबान करनी ही पडे़ंगी. मगर आज जो प्रशांत कह रहा था वह उसे बुरा लगा. वह पढ़ीलिखी सैल्फ डिपैंडैंट लड़की थी. अत: प्रशांत की बात का विरोध करते हुए बोली, ‘‘प्रशांत, यह तो कोई बात नहीं कि मैं आप की बैसिरपैर की बात मानूं… मुझे इस ड्रैसिंग में कोई दिक्कत नजर नहीं आती और हां आप मेरे होने वाले पति हैं, पति नहीं.’’

अजंता की बात सुन प्रशांत का गुस्सा 7वें आसमान पर जा पहुंचा. लगभग दहाड़ते हुए बोला, ‘‘अजंता, मेरे घर में आने के बाद ये सब नहीं चलेगा. तुम्हें मेरे अनुसार खुद को ढालना ही पड़ेगा. वरना…’’ प्रशांत ने अजंता को थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाया पर फिर रुक गया.

प्रशांत का यह रूप अंजता के लिए एकदम नया था. कुछ देर वह हैरानी खड़ी रही, फिर बोली, ‘‘वरनावरना क्या करोगे… मुझे पीटोगे?’’

प्रशांत को लगा उस से गलती हो गई है. अत: अपनी आवाज को ठंडा करते हुए बोला, ‘‘सौरी अजंता वह बाहर धूप है शायद उस की वजह से मेरे सिर में पागलपन भर गया था… मैं गुस्से में बोल गया. चलो अब तो अपने नर्मनर्म हाथों से चाय बना कर लाओ डियर.’’

‘‘धूप से घर आने वाले व्यक्ति को क्या इस बात का सर्टिफिकेट मिल जाता है कि वह अपनी पत्नी को डांटे, उसे पीटे?’’ अजंता की बात में भी अब गुस्सा था.

प्रशांत कुछ देर अजंता को देखता रहा. फिर मन ही मन कुछ सोच कर बोला, ‘‘अच्छा ठीक है जो मेरी होने वाली बीवी मेरी थकान उतारने के लिए मुझे अपने कोमल हाथों से बना कर चाय नहीं पिला सकती तो मैं अपनी प्यारी खूबसूरत पत्नी का गुस्सा उतारने के लिए उसे चाय बना कर पिलाता हूं,’’ कह कर प्रशांत किचन की ओर बढ़ गया.

वह भले ही उच्च शिक्षा प्राप्त लड़की थी पर थी तो फीमेल, नौर्मल फीमेल, अचानक उस के मन में खयाल जागा कि कहीं सही में बाहर की धूप और थकान की वजह से प्रशांत ने गुस्से में तो उस पर हाथ उठाना नहीं चाहा… केवल हाथ ही तो उठाया, मारा तो नहीं… और अब

वह जब गुस्से में है तो उसे मनाने के लिए खुद किचन में चाय बनाने गया है… उस की खुद भी तो गलती है जब प्रशांत ने उस से कहा था वह थक कर आया है उसे 1 कप चाय बना के पिला दो तो वह क्यों उस से बहस करने लगी?

ये सब सोचते हुए अजंता किचन में आ गई. प्रशांत हाथ में लाइटर ले कर गैस जलाने जा रहा था.

‘‘आप चल कर पंखे में बैठिए मैं चाय बना लाती हूं,’’ अजंता प्रशांत से लाइटर लेने की कोशश करते हुए बोली.

‘‘नहीं अब तो मैं ही चाय बनाऊंगा,’’

प्रशांत ने अजंता का हाथ हटा कर गैस जलाने की कोशिश की. अजंता ने फिर लाइटर लेने की कोशिश की. पर प्रशांत ने फिर मना किया. अजंता ने गैस जला रहे प्रशांत का हाथ पकड़ लिया. प्रशांत ने अजंता का हाथ छुड़ाने की कोशिश की. इस छीनाझपटी में अजंता फिसल कर प्रशांत की बांहों में गिर गई. प्रशांत ने उसे बांहों में भर लिया.

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‘‘छोडि़ए चाय बनाने दीजिए,’’ अजंता कसमसाई.

‘‘नहीं अब तो तुम्हारे होंठों को पीने के बाद ही चाय पी जाएगी,’’ कह प्रशांत ने अजंता के होंठों पर होंठ रख दिए. एक लंबे किस ने अजंता को निढाल कर दिया. इतना निढाल कि प्रशांत ने बिना किसी विरोध के उसे ला कर बिस्तर पर लिटा दिया.

कुछ देर बाद जब प्रशांत ने अजंता की कमर से पाजामा खिसकाने की कोशिश की तो अजंता ने विरोध करते हुए कहा, ‘‘नहीं प्रशांत ये सब शादी के बाद.’’

प्रशांत अजंता की बात सुन कर कुछ देर इस अवस्था में रहा जैसे खुद को संयत करने की कोशिश कर रहा हो और फिर अजंता के ऊपर से उठते हुए बोला, ‘‘ओके डियर ऐज यू विश.’’

अजंता ने उठ कर अपने कपड़े सही किए और फिर चाय बनाने के लिए किचन में आ गई.

‘‘जानती हो अजंता तुम्हारी इसी अदा का

तो मैं दीवाना हूं,’’ प्रशांत ने किचन में आ कर कहा.

‘‘कौन सी?’’ अजंता ने बरतन में पानी डाल कर गैस पर चढ़ाते हुए पूछा.

‘‘यही कि ये सब शादी के बाद,’’ प्रशांत ने मुसकरा कर कहा.

प्रशांत की इस बात पर अजंता भी मुसकरा कर रह गई.

‘‘मैं भी यही चाहता हूं कि मैं तुम्हारे

जिस्म को अपनी सुहागरात में पाऊं,’’

प्रशांत ने अजंता के पीछे आ कर उस के गले में बांहें डाल कर कहा.

अजंता कुछ नहीं बोली. उबलते पानी में चायपत्ती और शक्कर डालती रही.

‘‘हर व्यक्ति अपने मन में यह अरमान पालता है,’’ प्रशांत अपनी उंगलियों से अजंता के गालों को धीरेधीरे सहलाते हुए बोला.

‘‘कैसा अरमान?’’ अजंता ने पूछा.

‘‘यही कि उस की बीवी वर्जिन हो और सुहागरात को अपनी वर्जिनिटी अपने पति को तोहफे में दे.’’

कह कर प्रशांत प्लेट से बिस्कुट उठा कर खाने लगा.

प्रशांत की बात सुन कर अजंता को धक्का लगा कि और अगर लड़की ने शादी से पहले अपनी वर्जिनिटी लूज कर दी हो और फिर प्रशांत पर नजरें गड़ा दीं.

‘‘अगर लड़की वर्जिन न हो एक इंसान कैसे उसे प्यार कर सकता है. तुम्हीं बताओ अजंता, कोई व्यक्ति किसी ऐसी लड़की के साथ पूरी जिंदगी कैसे रह पाएगा जिस ने शादी से पहले ही अपनी वर्जिनिटी लूज कर दी हो?

क्या उस का दिल ऐसी लड़की को कभी कबूल कर पाएगा? और सोचो तब क्या होगा जब किसी दिन वह इंसान सामने आ जाए जो उस लड़की का प्रेमी रहा हो. बोलो अजंता उस व्यक्ति पर यह सोच कर क्या गुजरेगी कि यही वह आदमी है जिस की वजह से उस की बीवी ने शादी से पहले ही अपनी वर्जिनिटी खो दी. ऐसी लड़की से शादी के बाद तो जिंदगी नर्क बन जाएगी, नर्क.’’

प्रशांत बोले जा रहा था, अजंता पत्थर की मूर्त बने सुनते जा रही थी. चाय उबल कर नीचे फैलती जा रही थी…

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तुम्हारे बिना देर शाम औफिस से लौट कर, घर आना और फिर अपने ही हाथों से अपार्टमैंट का ताला खोलना, वही ड्राइंगरूम, वही बैडरूम वही बालकनी, वही किचन सबकुछ तो वही है, मगर एक तुम्हारे बिना सबकुछ वैसा ही क्यों नहीं लगता? बेशकीमती कालीन, सुंदर परदे, रंगीन चादर, चमकते झालर, सुनहरा टीवी स्क्रीन, सुंदर हो कर भी तुम्हारे बिना सबकुछ सुंदर क्यों नहीं लगता? क्षितिज तक फैला नीला सागर, उस पर उठती ऊंचीऊंची लहरें, सुनहरा रेत, ढलती शाम, सबकुछ सुहाना हो कर भी तुम्हारे बिना सुहाना क्यों नहीं लगता? पर्वत की चोटियों पर झूमती काली घटाएं पहाड़ों से आती सरसराती ठंडी हवाएं, स्वर्ग सा सुंदर, पहाड़ों का दामन, हसीन वादियां, खूबसूरत नजारे बहुत खूबसूरत हो कर भी तुम्हारे बिना सबकुछ खूबसूरत क्यों नहीं लगता?

जैसेजैसे शादी की तारीख नजदीक आ रही थी अजंता को प्रशांत की असलियत का पता चलता जा रहा था. एक दिन तो प्रशांत ने सारी सीमाएं ही लांघ दीं…

अजंता की जिंदगी से ज्योंज्यों दिन आगे बढ़ रहे थे वैसे-वैसे उस की जिंदगी में जद्दोजहद बढ़ती जा रही थी. शशांक की बेबाकियां बदस्तूर जारी थीं और अजंता ने न जाने क्यों कभी उस की बेबाकियों पर कोई प्रतिबंध लगाने की कोशिश नहीं की. शशांक, स्टूडैंट और टीचर के रिश्ते से हट कर अपने से करीब 3-4 साल बड़ी अपनी टीचर अजंता से प्रेमीप्रेमिका का संबंध बनाना चाहता था. अजंता का भी दिल कभी कहता कि अजंता यह शशांक तुझे बहुत प्यार करेगा, यही लड़का है जो तेरी इच्छाओं का सम्मान कर के तेरी जिंदगी में मुहब्बत के फूल खिलाएगा. पर अगले ही पल उस के दिमाग पर प्रशांत छा जाता. प्रशांत यद्यपि गाहेबगाहे अजंता के ऊपर अपनी इच्छाएं लादने का प्रयास करता पर जब कभी अजंता इस का विरोध करती तो वह अपनी गलती मान कर अजंता को खुश करने के लिए कुछ भी करता.

सच कहें तो अजंता की जिंदगी शशांक और प्रशांत के बीच उलझ रही थी. कभीकभी उस का दिल कह उठता कि अजंता ये लड़के शशांक और प्रशांत दोनों ही तेरे लायक नहीं. तू हिम्मत कर के इन दोनों को अपनी जिंदगी से बाहर कर दे. पर अजंता जानती थी वह इतनी सख्त दिल की नहीं. इसलिए न ही वह शशांक को कुछ कह पाती और प्रशांत तो उस के परिवार की पसंद था. इसलिए उसे मना करने वाला जिगर, बेहद कोशिश करने के बाद भी अजंता अपने भीतर कहीं भी ढूंढ़ नहीं पाती.

ऊपर से अजंता का अतीत कभीकभी उस के सामने किसी डरवाने सपने की तरह आ कर खड़ा हो जाता. राजीव, हां जो कभी प्रशांत से शादी करने के बाद किसी दिन उस के सामने आ गया और प्रशांत को पता लग गया कि इस व्यक्ति के साथ उस की पत्नी के अंतरंग संबंध रहे हैं. उस की पत्नी वर्जिन नहीं है तो क्या कयामत टूटेगी… अजंता और प्रशांत दोनों की जिंदगी नर्क बन जाएगी.

अजंता ने शशांक और प्रशांत से दूर होने की कोशिश भी की. वह जब प्रशांत से मिलने जाती तो वे कपड़े पहनती जो शशांक को पसंद होते और जब उसे लगता आज उसे शशांक मिल सकता है तो प्रशांत की पसंद के कपड़े पहनती.

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अजंता को ऐसी ड्रैस में देख कर प्रशांत का मूड खराब हो जाता. वह अजंता को शौर्ट कपड़ों में देख कर डांटने के अदांज में अच्छाखासा लैक्चर झाड़ता और आगे से ऐसे कपड़े न पहनने की हिदायत भी देता और शशांक वह अजंता को सलवारसूट आदि में देख कर कहता कि मैम बहुत खूबसूरत लग रही हो पर अगर आज आप ने स्कर्ट पहनी होती तो और खूबसूरत लगतीं.

शशांक की इन्हीं बातों ने अजंता को अपनी ओर थोड़ाबहुत खींचा भी था. उस की इच्छाओं का सम्मान करने वाला शशांक अजंता के दिल में जगह बनाने लगा. पर प्रशांत उस का मंगेतर था. कुछ समय बाद उन की शादी होने वाली थी. दोनों परिवार वालों के सारे जानने वाले और रिश्तेदारों को इस होने वाली शादी की खबर थी. अगर यह शादी टूटी तो कितनी बदनामी होगी, कितनी बातें उठेंगी.

शशांक की ओर बढ़ते अपने कदम तथा अपनी ओर बढ़ते शशांक के कदमों को रोकने के लिए अजंता ने एक दिन शशांक को प्रशांत के बारे में बता दिया. वह उस की मंगेतर है और जल्द ही उन की शादी होने वाली है. सुन कर शशांक के चेहरे पर कुछ देर के लिए उदासी छा गई पर फिर तुरंत ही खिलखिला कर हंसते हुए बोला, ‘‘मैम, किसी कवि ने कहा है कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.’’

शशांक के चेहरे पर आई उदासी से उदास हुई अजंता ने उस की हंसी देख कर रिलैक्स होते हुए पूछा,‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह मैम कि हम तो तब तक कोशिश करते रहेंगे जब तक आप मेरे इश्क में गिरफ्तार नहीं हो जातीं.’’

‘‘नो चांस,’’ अजंता के यह कहने पर शशांक ने तपाक से कहा, ‘‘मैम, अगर इश्क में आप के गिरफ्तार होने के कोई चांस नहीं तो मुझे ही अपने इश्क में गिरफ्तार कर लीजिए.’’

शशांक की बात सुन कर न चाहते हुए भी अजंता हंस पड़ी और फिर उस ने महसूस किया कि उस का दिल शशांक की ओर थोड़ा और खिंच गया.

आगे के दिनों में अजंता की जिंदगी में 2 घटनाएं ऐसी घटीं जिन्होंने उस की सोच की धारा को बदलने में अहम रोल अदा किया.

पहली घटना…

फाइनल ऐग्जाम से पहले राजकीय पौलिटैक्निक लखनऊ में ऐनुअल स्पोर्ट्स गेम होते थे. पूरे प्रदेश के पौलिटैक्निक के लड़केलड़कियां जिन की खेल में रुचि होती इस इवेंट में हिस्सा लेते. हर कालेज अपने चुने स्टूडैंट्स का एक दल ले कर लखनऊ आता. उन के रहने एवं खेल को सुचारु रूप से संपन्न करवाने के लिए कालेज स्टाफ की सहायता राजकीय पौलिटैक्निक, लखनऊ के सीनियर स्टूडैंट्स करते. उन्हें वालेंटियर का एक पास इशू किया जाता.

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उस पास से स्टूडैंट्स किसी भी कैंप में आजा सकते थे. जूनियर लड़कों को कालेज के इतिहास में कभी वालेंटियर का पास इशू नहीं किया गया था. अजंता भी स्पोर्ट्सपर्सन थी, इसलिए वह इस इवेंट में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही थी. अजंता उस समय यह देख कर चौंक पड़ी जब उस ने शशांक को वालेंटियर का पास अपने सीने पर लगाए झांसी से आए गु्रप को हैंडल करते देखा.

‘‘मैम, हर शहर से बहुत प्यारीप्यारी लड़कियां आई हैं खेलने के लिए पर उन में कोई भी आप सी प्यारी नहीं,’’ शशांक ने अजंता के पास से गुजरते हुए जब यह कहा तो उस के मन ने सोचा काश वह आज शशांक की टीचर न हो कर स्टूडैंट होती तो शायद शशांक की बात का पौजिटिव रिप्लाई देती.

बाद में जब अजंता ने शशांक से पूछा कि उसे यह पास कैसे मिल गया तो उस ने अलमस्त अंदाजा में कहा, ‘‘बड़ी सरलता से, वार्डन के घर पर उस की पसंदीदा चीज के साथ गया और यह पास ले आया.’’

यद्यपि शशांक का यह काम गलत था, पर अजंता को यह अच्छा लगा. सच तो यह था कि शशांक अब उसे अच्छा लगने लगा था.

हालांकि अजंता को वार्डन की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया. पहले उस ने सोचा कि इस प्रकरण की शिकायत प्रधानाचार्य से करे, पर इस से शशांक का पास छिन जाने का डर था, इसलिए अजंता चुप रह गई. यह इस बात का प्रमाण था कि वह शशांक की ओर आकर्षित हो चुकी है.

खेल समाप्त हो चुके थे. अगले दिन रंगारंग कार्यक्रम के बाद पार्टिसिपेट करने आए स्टूडैंट्स को अपनेअपने शहर लौट जाना था. पूरे कालेज कैंपस में खुशी का माहौल था. पर अचानक इसी खुशी के माहौल में एक घिनौनी हरकत ने कुहराम मचा दिया.

झांसी से आई स्टूडैंट पूजा जिस ने 100 मीटर की दौड़ में पहला स्थान हासिल किया था, वह फटे कपड़ों एवं खरोंची गई देह के साथ रोबिलख रही थी. वह शायद शौपिंग के लिए मार्केट गई थी. आते समय तक रात हो चुकी थी. उस के साथ 2 और लड़कियां थीं. कालेज के पिछले गेट पर औटो से उतर कर पूजा औटो वाले को पैसे देने लगी. उस की दोनों सहेलियां कालेज कैंपस की ओर बढ़ गईं. कालेज के पिछले गेट वाले रास्ते पर स्ट्रीट लाइट की रोशनी कम थी.

पूजा जब पैसे दे कर कालेज के अंदर आई तब तक उस की सहेलियां आगे निकल गई थीं. तभी अचानक किसी ने पूजा को दबोच लिया. उस ने चीखने की कोशिश की तो तुरंत मुंह को मजबूत हाथों ने चुप कर दिया. पूजा की अस्मत लूटने से पहले लोगों ने उसे नहीं छोड़ा. वे 2 थे. जब पूजा इस हालत में लड़खड़ाती हुई अपने कैंपस में पहुंची तो उस की यह हालत देख कर वहां कुहराम मच गया. अजंता भी वहां पहुंच गई. सभी पूजा को सांत्वना दे रहे थे.

कुछ आवाजें उसे समझाने की कोशिश कर रही थीं कि जो हुआ उसे दबा दिया जाए अन्यथा इस से पूजा के ही भविष्य पर असर पड़ेगा. पर एक आवाज थी जिस ने पूजा से कहा कि उठे और अभी पुलिस स्टेशन चले. उसे अपने साथ हुए अपराध के खिलाफ पूरी ताकत लगा कर लड़ना चाहिए. यह आवाज शशांक की थी.

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‘‘यह लड़का क्या बकवास कर रहा है?’’ अजंता ने पहचानी हुई आवाज की ओर देखा तो प्रशांत खड़ा था.

‘‘आप यहां?’’

‘‘हां, तुम्हारे फ्लैट पर गया तो बंद था,’’ अजंता के सवाल का जवाब देते हुए प्रशांत ने कहा, ‘‘मुझे लगा कालेज में चल रहे इवेंट की वजह से तुम शायद अब तक कालेज में होगी, सो यहां चला आया. यहां देखा तो यह कांड हुआ है. जरूर इस लड़की ने जो यह शौर्ट स्कर्ट पहनी हुई है वह इस की इस हालत की जिम्मेदार है.’’

आगे पढ़ें- अजंता और प्रशांत की बहस चल ही रही थी कि…

लेखक- सुधीर मौर्य

प्रशांत की बात सुन कर अजंता को तेज धक्का लगा. अजंता कुछ कह पाती उस से पहले ही प्रशांत फिर बोल उठा, ‘‘और यह लड़का क्या उलटी बात कर रहा है. अरे जो हुआ सो हुआ. अब इस लड़की की इज्जत इसी में है कि चुप रहे.’’

‘‘और इस के साथ जो अपराध हुआ उस का क्या और अपराधियों को क्या खुला छोड़ दिया जाए?’’

‘‘अरे नेता तुम हो या मैं, यह क्या नेताओं सी बातें कर रही हो,’’ प्रशांत का लहजा तल्ख हो गया.

‘‘अरे हां याद आया, आप तो नेता हैं, तो क्या आप इस पीडि़त लड़की को न्याय दिलाने में मदद नहीं करेंगे?’’ अजंता ने भी तल्ख लहजे में पूछा.

‘‘देखो अजंता, मैं आज की शाम तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं, इस के लिए तुम्हें ढूंढ़ता हुआ यहां तक आया. चलो कहीं बैठ कर डिनर करते हैं.’’

‘‘प्रशांत यह तो संवेदनहीनता है. हमें यहां रुकना चाहिए और पूजा के साथ पुलिस स्टेशन भी चलना चाहिए.’’

‘‘हमारे घर की औरतें पुलिस स्टेशन नहीं जातीं, इसलिए इस लड़की के साथ मैं तुम्हें पुलिस स्टेशन जाने की इजाजत नहीं दूंगा.

‘‘पर प्रशांत?’’

‘‘परवर कुछ नहीं अजंता, तुम मेरे साथ चलो.’’

अजंता और प्रशांत की बहस चल ही रही थी कि तभी शशांक, पूजा को वरदान सर की गाड़ी में बैठा कर 2-3 अन्य लोगों के साथ पुलिस स्टेशन निकल गया.

‘‘मुहतरमा वे लोग गए हैं पुलिस स्टेशन. वे मामला हैंडल कर लेंगे. चलो हम लोग चलते हैं,’’ प्रशांत ने कोमल अंदाज में कहा.

अजंता थकी चाल चल कार में बैठ गई. पूरा रास्ता प्रशांत बोलता रहा. उस ने कहा कलपरसों में दोनों फैमिली वाले मिल कर शादी की डेट फिक्स करने वाले हैं. अजंता पूरा रास्ता चुप रही या फिर हां हूं करती रही.

एक शानदार रैस्टोरैंट के सामने प्रशांत ने गाड़ी रोकी. अंदर आ कर उस ने खाने का और्डर दिया. अजंता क्या खाना पसंद करेगी, उस ने यह तक न पूछा. सब अपनी पसंद की डिश मंगवा लीं.

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वेटर खाना सर्व कर गया.

पहला कौर खाते हुए अजंता ने कहा, ‘‘बेचारी लड़की के साथ बड़ा अपराध हुआ है.’’

‘‘अपराध तो उस लड़के के साथ होगा जिस से इस लड़की की शादी होगी और जब उसे पता चलेगा कि कभी उस की बीवी का बलात्कार हुआ था.’’

प्रशांत की यह बात सुन कर अजंता को ऐसा लगा जैसे उस के मुंह में खाना नहीं, बल्कि कीचड़ रखा हो और उसे अभी उलटी हो जाएगी.

दूसरी घटना…

अजंता और प्रशांत की शादी की डेट फिक्स हो गई थी. दोनों परिवारों में

शादी की तैयारियां शुरू हो गई थीं. इन्विटेशन कार्ड छपने चले गए थे. प्रशांत, अजंता पर और ज्यादा अधिकार जताने लगा था. अजंता के मन में न जाने क्यों अपनी शादी को ले कर उल्लास की कोई भावना जन्म नहीं ले पा रही थी.

अपनी शादी के कार्ड अजंता ने कालेज में बांटे पर न जाने क्या सोच कर उस ने शशांक को कार्ड नहीं दिया. अजंता की शादी की डेट जानने के बाद भी शशांक पर कोई असर नहीं हुआ. वह मस्तमौला बना रहा. उसे यों मस्तमौला देख कर अजंता ने सोचा उस के प्रति शशांक के प्यार का दावा केवल आकर्षण और टाइमपास भर था.

शशांक ने पूजा की हैल्प की. उस की लड़ाई में सहायक बना. उस की कोशिशों से कालेज में ही पढ़ने वाला एक लड़का हेमंत और उस का एक दोस्त पूजा के बलात्कार के जुर्म में पकड़े गए.

एक दिन शशांक कालेज कैंटीन में अजंता को मिला तो उस ने पूछा, ‘‘क्यों मुझ से शादी करने का खयाल दिल से बायबाय हो गया?’’ अजंता ने भीतर से गंभीर हो कर किंतु बाहर से ठिठोली के अंदाज में उस से पूछा.

‘‘आप से शादी करने का खयाल तो तब भी दिल में रहेगा जब आप की शादी हो चुकी होगी मैम,’’ शशांक ने चाय मंगवाने के बाद अजंता के सवाल का जवाब दिया.

‘‘ओह, इतना प्यार करते हो मुझ से, तो मेरे बिना कैसे रह पाओगे?’’ अजंता ने चाय का घूंट भर कर पूछा.

‘‘रह लेंगे?’’ शशांक ने संक्षिप्त जवाब दिया.

‘‘बिना सहारे के?’’ अजंता ने फिर सवाल किया.

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‘‘बिना सहारे के तो मुश्किल होगा.’’

‘‘फिर किस के सहारे?’’

‘‘पूजा से शादी कर लूंगा,’’ शशांक ने गंभीरता से कहा. अजंता ने शशांक को पहली बार इतना गंभीर देखा था.

‘‘ये जानते हुए भी कि उस की इज्जत लुट चुकी है?’’ शशांक की आंखों में देखते हुए अजंता ने पूछा, ‘‘क्या ऐसी लड़की से शादी कर के तुम्हें तकलीफ नहीं होगी जो वर्जिन न हो.’’

‘‘तकलीफ कैसी? यह तो गर्व की बात होगी मैम कि एक ऐसी बहादुर लड़की मेरी बीवी है जिस ने एक सामाजिक अपराध के खिलाफ आवाज बुलंद की.’’

शशांक की बात सुन कर अजंता की आंखें शशांक के सम्मान में झुक गईं.

यह वह दौर था जब बस मोबाइल फोन लौंच ही हुए थे. प्रशांत ने शादी से एक दिन पहले ही अजंता को फोन गिफ्ट किया था. शादी लखनऊ में होने वाली थी. अजंता की फैमिली और रिश्तेदार लखनऊ आ चुके थे. दोनों फैमिली एक ही होटल में रुकी हुई थीं. शादी के लिए पूरा होटल बुक किया गया था.

शादी वाले दिन जैसेजैसे शादी की घड़ी नजदीक आ रही थी अजंता के मन में

एक कसक उठती जा रही थी. अचानक उसे खयाल आया कि उसे कम से शशांक को शादी का इन्विटेशन कार्ड तो देना ही चाहिए था.

शशांक को कार्ड न देना असल में अब अजंता को कचोट रहा था. उसे लग रहा था उस ने गलती की है. फिर अचानक उस ने अपनी गलती सुधारने का फैसला किया. अपने लेडीज पर्स में एक इन्विटेशन कार्ड रखा और होटल से बाहर निकल कर टैक्सी में बैठ गई.

प्रशांत यों ही अजंता से मिलने के लिए उस के रूम में गया. वह वहां नहीं थी. उस के मम्मीपापा से पूछा. उन्हें भी पता नहीं था. होटल में अजंता को न पा कर प्रशांत ने अजंता को

फोन किया.

पर्स से निकाल कर अजंता ने ज्यों ही फोन रिसीव किया दूसरी ओर से प्रशांत ने अधिकारपूर्वक पूछा, ‘‘कहां हो तुम?’’

‘‘एक जानने वाले को इन्विटेशन कार्ड देने जा रही हूं.’’

‘‘कोई जरूरत नहीं, वापस आ जाओ,’’ प्रशांत बोला.

‘‘अरे उसे नहीं बुलाया तो उसे बुरा लगेगा,’’ अजंता ने समझाना चाहा.

‘‘लगता है बुरा तो लगे… मैं कह रहा हूं तुम लौट आओ.’’

‘‘उसे कार्ड दे कर तुरंत आती हूं.’’

‘‘नो… जहां हो वहीं से वापस आ जाओ.’’

‘‘अरे मैं बस पहुंचने ही वाली हूं वहां.’’

‘‘यू बिच… मैं ने तुम्हारी बहुत हरकतें बरदाश्त कर लीं… अब शादी के बाद ऐसी हरकतें नहीं चलेंगी. चलो, तुरंत वापस आओ.’’

प्रशांत की गाली सुन कर अजंता को ऐसे लगा जैसे उस के कानों में किसी ने पिघला शीशा डाल दिया हो. लाइफ में पहली बार उसे किसी ने गाली दी थी और वह भी उस के होने वाले पति ने. ग्लानि से अजंता का दिल बैठ गया. उस ने बिना कुछ कहे फोन काट दिया. प्रशांत ने फोन किया तो अजंता ने फिर काट दिया. उस ने फिर फोन किया तो अजंता ने फोन स्विचऔफ कर दिया. अजंता ने सोचा अगर उस ने अब एक भी शब्द इस शख्श का और सुना तो उस का वजूद ही खत्म हो जाएगा. धड़कते दिल के साथ अजंता शशांक के रूममें पहुंची.

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‘‘अरे मैम आप यहां? आज तो आप की शादी है,’’ अजंता को अपने यहां आया देख कर शशांक ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘आप के बिना मेरी शादी कैसे हो सकती है,’’ कह कर अजंता उस के रूम के भीतर आ गई.

‘‘आज सरकार कुछ बदलेबदले नजर आ रहे हैं,’’ शशांक ने शरारत से कहा तो अजंता ने पूछ लिया, ‘‘कैसे बदलेबदले?’’

‘‘आज मुझे ‘तुम’ की जगह ‘आप’ कह रही हैं आप?’’

‘‘और अगर मैं कहूं कि मैं आप को ताउम्र ‘आप’ कहना चाहती हूं तो?’’ कह अजंता ने शशांक की गहरी आंखों में झांका.

‘‘इस के लिए तमाम उम्र साथ रहना पड़ेगा मैम. क्या आप के होने वाले पति रहने देंगे?’’ शशांक की शरारत जाग उठी.

‘‘यकीनन रहने देंगे.’’

‘‘इतना यकीन?’’ शशांक ने अजंता की आंखों में झांकते हुए पूछा, ‘‘ठीक है उन से पूछ लो फिर.’’

शशांक की बात सुन कर कुछ देर के लिए खामोश रह गई अजंता. फिर उस के करीब आते हुए बोली, ‘‘क्या मुझे अपने शशांक के पास रहने देंगे आप?’’

अजंता की बात कुछ समझते, कुछ न समझते हुए शशांक ने पूछा, ‘‘मतलब मैम?’’

‘‘मतलब मैं सबकुछ छोड़ कर आई हूं आप के पास…  आज आप

की कोशिश कामयाब हो गई है, शशांक. आज मैं आप को अपने इश्क में गिरफ्तार करने आई हूं.’’

‘‘मैं तो कब से आप के इश्क में गिरफ्तार हूं मैम,’’ शशांक ने अजंता को कंधों से पकड़ कर तनिक करीब खींचा.

‘‘मैम नहीं अजंता कहो,’’ अजंता ने शशांक के सीने में मुंह छिपा कर कहा.

‘‘अजंता,’’ शशांक ने जब एक लंबी सांस ले कर कहा तो अजंता पूरी तरह से उस के गले लग गई और फिर उस के होंठों से मद्धिम स्वर में निकला, ‘‘लव यू शशांक.’’

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ताप्ती: उसने जब की शादीशुदा से शादी

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चाहत: दहेज के लालच में जब रमण ने सुमन को खोया

सुबहसुबह औफिस में घुसते ही रमण ने चहकते हुए कहा कि आज शाम उस के घर में उस के बेटे की सगाई की रस्म पार्टी है. यह सुन कर मैं पसोपेश में पड़ गया कि अपनी पत्नी को साथ ले कर जाना ठीक रहेगा कि नहीं.

रमण हमारे इलाके का ही है. उस का गांव मेरे गांव से 3 किलोमीटर दूर है. इधर कई साल से हमारा मिलनाबोलना तकरीबन बंद ही था. अब मैं प्रमोशन ले कर उस के औफिस में उस के शहर में आ गया तो हमारे संबंध फिर से गहरे होने लगे थे. पिछले 20 सालों में हमारे बीच बात ही कुछ ऐसी हो गई थी कि हम एकदूसरे को अपना मुंह दिखाना नहीं चाहते थे.

रमण और मैं 10वीं क्लास तक एक ही स्कूल में पढ़े थे. यह तो लाजिम ही था कि हमें एक ही कालेज में दाखिला लेना था, क्योंकि 30 मील के दायरे में वहां कोई दूसरा कालेज तो था नहीं. हम दोनों रोजाना बस से शहर जाते थे.

रमण अघोषित रूप से हमारा रिंग लीडर था. वह हम से भी ज्यादा दिलेर, मुंहफट और जल्दी से गले पड़ने वाला लड़का था.

पढ़ाई में वह फिसड्डी था, पर शरीर हट्टाकट्टा था उस का, रंग बेहद गोरा.

बचपन से ही मुझे कहानीकविता लिखने का चसका लग गया था. मजे की बात यह थी कि जिस लड़की सुमन के प्रति मैं आकर्षित हुआ था, रमण भी उसी पर डोरे डालने लगा था. हमारी क्लास में सुमन सब से खूबसूरत लड़की थी.

हम लोग तो सारे पीरियड अटैंड करते, मगर रमण पर तो एक ही धुन सवार रहती कि किसी तरह जल्दी से कालेज की कोई लड़की पट जाए. अपनी क्लास की सुमन पर तो वह बुरी तरह फिदा था. खैर, हर वक्त पीछे पड़े रहने के चलते सुमन का मन किसी तरह पिघल ही गया था.

सुमन रमण के साथ कैफे जाने लगी थी. इस कच्ची उम्र में एक ही ललक होती है कि विपरीत लिंग से किसी तरह दोस्ती हो जाए. आशिकी के क्या माने होते हैं, इस की समझ कहां होती है. रमण में यह दीवानगी हद तक थी.

एक दिन लोकल अखबार में मेरी कहानी छपी. कालेज के इंगलिश के लैक्चरर सेठ सर ने सारी क्लास के सामने मुझे खड़ा कर के मेरी तारीफ की.

मैं तो सुमन की तरफ अपलक देख रहा था, वहीं सुमन भी मेरी तरफ ही देख रही थी. उस समय उस की आंखों में जो अद्भुत चमक थी, वह मैं कई दिनों तक भुला नहीं पाया था. पता नहीं क्यों उस लड़की पर मेरा दिल अटक गया था, जबकि मुझे पता था कि वह मेरे दोस्त रमण के साथ कैफे जाती है. रमण सब के सामने ये किस्से बढ़ाचढ़ा कर बताता रहता था.

सुमन से अकेले मिलने के कई और मौके भी मिले थे मुझे. कालेज के टूर के दौरान एक थिएटर देखने का मौका मिला था हमें. चांस की बात थी कि सुमन मेरे साथ वाली कुरसी पर थी. हाल में अंधेरा था. मैं ने हिम्मत कर के उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया तो बड़ी देर तक उस का हाथ मेरे हाथ में रहा.

रमण से गहरी दोस्ती होने के बावजूद बरसों तक मैं ने रमण से सुमन के प्रति अपना प्यार छिपाए रखा. डर था कि क्या पता रमण क्या कर बैठे. कहीं कालेज आना न छोड़ दे. सुमन के मामले में वह बहुत संजीदा था.

एक दिन किसी बात पर रमण से मेरी तकरार हो गई. मैं ने कहा, ‘क्या हर वक्त ‘मेरी सुमन’, ‘मेरी सुमन’ की रट लगाता रहता है. यों ही तू इम्तिहान में कम नंबर लाता रहेगा तो वह किसी और के साथ चली जाएगी.’

रमण दहाड़ा, ‘मेरे सिवा वह किसी और के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकती.’

मैं ने अनमना हो कर यों ही कह दिया, ‘कल मैं तेरे सामने सुमन के साथ इसी कैफे में इसी टेबल पर कौफी पीता मिलूंगा.’

हम दोनों में शर्त लग गई.

मैं रातभर सो नहीं पाया. सुमन ने अगर मेरे साथ चलने से मना कर दिया तो रमण के सामने मेरी किरकिरी होगी. मेरा दिल भी टूट जाएगा. मगर मुझे सुमन पर भरोसा था कि वह मेरा दिल रखेगी.

दूसरे दिन सुमन मुझे लाइब्रेरी से बाहर आती हुई अकेली मिल गई. मैं ने हिम्मत कर के उस से कहा कि आज मेरा उसे कौफी पिलाने का मन कर

रहा है.

मेरे उत्साह के आगे वह मना न कर सकी. वह मेरे साथ चल दी. थोड़ी देर बाद रमण भी वहां पहुंच गया. उस का चेहरा उतरा हुआ था. खैर, कुछ दिनों बाद वह बात आईगई हो गई.

सुमन और मेरे बीच कुछ है या हो सकता है, रमण ने इस बारे में कभी कल्पना भी नहीं की थी और उसे कभी इस बात की भनक तक नहीं लगी.

कालेज में छात्र यूनियन के चुनावों के दौरान खूब हुड़दंग हुआ. रमण ने चुनाव जीतने के लिए दिनरात एक कर दिया. वह तो चुनाव रणनीति बनाने में ही बिजी रहा. वह जीत भी गया.

चुनाव प्रचार के दौरान मुझे सुमन के साथ कुछ पल गुजारने का मौका मिला. न वह अपने दिल की बात कह पाई और नही मेरे मुंह से ऐसा कुछ निकला. दोनों सोचते रहे कि पहल कौन करे. जब कभी कहीं अकेले सुमन के साथ बैठने का मौका मिलता तो हम ज्यादातर खामोश ही बैठे रहते. एक दिन तो रमण ने कह ही दिया था कि तुम दोनों गूंगों की अपनी ही कोई भाषा है. सचमुच सच्चे प्यार में चुप रह कर ही दिल से सारी बातें करनी होती हैं.

मैं एमए की पढ़ाई करने के लिए यूनिवर्सिटी चला गया. रमण ने बीए कर के घर में खेती में ध्यान देना शुरू कर दिया. साथ में नौकरी के लिए तैयारी करता रहता. मैं महीनेभर बाद गांव आता तो फटाफट रमण से मिलने उस के गांव में चल देता. वह मुझे सुमन की खबरें देता.

रमण को जल्दी ही अस्थायी तौर पर सरकारी नौकरी मिल गई. सुमन भी वहीं थी. सुमन के पिता को हार्टअटैक हुआ था, इसीलिए सुमन को जौब की सख्त जरूरत थी. काफी अरसा हो गया था. सुमन से मेरी कोई मुलाकात नहीं हुई. मौका पा कर मैं उस के कसबे में चक्कर लगाता, उस कैफे में कई बार जाता, मगर मुझे सुमन का कोई अतापता न मिलता.

मेरी हालत उस बदकिस्मत मुसाफिर की तरह थी, जिस की बस उसे छोड़ कर चली गई थी और बस में उस का सामान भी रह गया था. संकोच के मारे मैं रमण से सुमन के बारे में ज्यादा पूछताछ नहीं कर सकता था. रमण के आगे मैं गिड़गिड़ाना नहीं चाहता था. मुझे उम्मीद थी कि अगर मेरा प्यार सच्चा हुआ तो सुमन मुझे जरूर मिलेगी. सुमन को तो उस की जौब में पक्का कर दिया गया. उस में काम के प्रति लगन थी. रमण को 6 महीने बाद निकाल दिया गया.

रमण को जब नौकरी से निकाला गया, तब वह जिंदगी और सुमन के बारे में संजीदा हुआ. उस के इस जुनून से मैं एक बार तो घबरा गया. अब तक वह सुमन को शर्तिया तौर पर अपना मानता था, मगर अब उसे लगने लगा था कि अगर उसे ढंग की नौकरी नहीं मिली तो सुमन भी उसे नहीं मिलेगी.

इसी दौरान मैं ने सुमन से उस के औफिस जा कर मिलना शुरू कर दिया था. मैं उसे साहित्य के क्षेत्र में अपनी उपलब्धियां बताता. उसे खास पत्रिकाओं में छपी अपनी रोमांटिक कविताएं दिखाता.

रमण ने सुमन को बहुत ही गंभीरता से लेना शुरू कर दिया था. रमण मुझे कई कहानियां सुनाता कि आज उस ने सुमन के साथ फलां होटल में लंच किया और आज वे किसी दूसरे शहर घूमने गए. सुमन के साथ अपने अंतरंग पलों का बखान वह मजे ले कर करता.

पहले रमण का सुमन के प्रति लापरवाही वाला रुख मुझे आश्वस्त कर देता था कि सुमन मुझे भी चाहती है, मगर अब रमण सच में सुमन से प्यार करने लगा था. ऐसे में मेरी उलझनें बढ़ने लगी थीं.

फिर एक अनुभाग में मुझे और रमण को नियुक्ति मिली. रमण खुश था कि अब वह सुमन को प्रपोज करेगा तो वह न नहीं कहेगी. मैं चुप रहता. मैं सोचने लगा कि अब अगर कुछ उलटफेर हो तभी मेरी और सुमन में नजदीकियां बढ़ सकती हैं. हमारा औफिस सभी विभागों के बिल पास करता था. यहां प्रमोशन के चांस बहुत थे. मैं विभागीय परीक्षाओं की तैयारी में जुट गया.

एक दिन मैं और रमण साथ बैठे थे, तभी अंदर से रमण के लिए बुलावा आ गया. 5 मिनट बाद रमण मुसकराता हुआ बाहर आया. उस ने मुझे अंदर जाने को कहा. अंदर जिला शिक्षा अधिकारी बैठे थे. वे मुझे अच्छी तरह से जानते थे. मेरे बौस ने ही सारी बात बताई, ‘बेटा, वैसे तो मुझे यह बात सीधे तौर पर तुम से नहीं करनी चाहिए. कौशल साहब को तो आप जानते ही हैं. मैं इन से कह बैठा कि हमारे औफिस में 2 लड़कों ने जौइन किया है. इन की बेटी बहुत सुंदर और होनहार है. ये करोड़पति हैं. बहुत जमीन है इन की शहर के साथ.

‘ये चाहते हैं कि तुम इन की बेटी को देख लो, पसंद कर लो और अपने घर वालों से सलाह कर लो. ‘रमण से भी पूछा था, मगर उस ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया. अब तुम्हें मौका मिल रहा है.’ रमण से मैं हर बार उन्नीस ही पड़ता था. बारबार कुदरत हमारा मुकाबला करवा रही थी. एक तरफ सुमन थी और दूसरी तरफ करोड़ों की जायदाद. घरजमाई बनने के लिए मैं तैयार नहीं था और सुमन से इतने सालों से किया गया प्रेम…

फिर पता चला कि शिक्षा अधिकारी ने रमण के मांबाप को राजी कर लिया है. रमण ने अपना रास्ता चुन लिया था. सुमन से सारे कसमेवादे तोड़ कर वह अपने अमीर ससुराल चला गया था. मैं प्रमोशन पा कर दिल्ली चला गया था. सुमन का रमण के प्रति मोह भंग हो गया था. सुमन ने एक दूसरी नौकरी ले ली थी और 2 साल तक मुझे उस का कोई अतापता नहीं मिला.

बहन की शादी के बाद मैं भी अखबारों में अपनी शादी के लिए इश्तिहार देने लगा था. सुमन को मैं ने बहुत ढूंढ़ा. इस के लिए मैं ने करोड़पति भावी ससुर का औफर ठुकरा दिया था. वह सुमन भी अब न जाने कहां गुम हो गई थी. उस ने मुझे हमेशा सस्पैंस में ही रखा. मैं ने कभी उसे साफसाफ नहीं कहा कि मैं क्या चाहता हूं और वह पगली मेरे प्यार की शिद्दत नहीं जान पाई.

अखबारों के इश्तिहार के जवाब में मुझे एक दिन सुमन की मां द्वारा भेजा हुआ सुमन का फोटो और बायोडाटा मिला. मैं तो निहाल हो गया. मुझे लगा कि मुझे खोई हुई मंजिल मिल गई है. मैं तो सरपट भागा. मेरे घर वाले हैरान थे कि कहां तो मैं लड़कियों में इतने नुक्स निकालता था और अब इस लड़की के पीछे दीवाना हो गया हूं.

शादी के बाद भी लोग पूछते रहते थे कि क्या तुम्हारी शादी लव मैरिज थी या अरैंज्ड तो मैं ठीक से जवाब नहीं दे पाता था. मैं तो मुसकरा कर कहता था कि सुमन से ही पूछ लो.

सुमन से शादी के बाद रमण के बारे में मैं ने कभी उस से कोई बात नहीं की. सुमन ने भी कभी भूले से रमण का नाम नहीं लिया.

वैसे, रमण सुंदर और स्मार्ट था. सुमन कुछ देर के लिए उस के जिस्मानी खिंचाव में बंध गई थी. रमण ने उस के मन को कभी नहीं छुआ.

जब रमण ने सुमन को बताया होगा कि उस के मांबाप उस की सुमन से शादी के लिए राजी नहीं हो रहे हैं तो सुमन ने कैसे रिएक्ट किया होगा.

रमण ने यह तो शायद नहीं बताया होगा कि करोड़पति बाप की एकलौती बेटी से शादी करने के लिए वह सुमन को ठुकरा रहा है. मगर जिस लहजे में रमण ने बात की होगी, सुमन सबकुछ समझ गई होगी. तभी तो वह दूसरी नौकरी के बहाने गायब हो गई.

इन 2 सालों में सुमन ने मेरे और रमण के बारे में कितना सोचाविचारा होगा. रमण से हर लिहाज में मैं पहले रैंक पर रहा, मगर सुंदरता में वह मुझ से आगे था.

आज रमण के बेटे की सगाई का समाचार पा कर मैं सोच में था कि रमण के घर जाएं या नहीं.

सुमन ने सुना तो जाने में कोई खास दिलचस्पी भी नहीं दिखाई. उसे यकीन था कि अब रमण का सामना करने में उसे कोई झेंप या असहजता नहीं होगी. इतने सालों से रमण अपने ससुराल में ही रह रहा था. सासससुर मर चुके थे. इतनी लंबीचौड़ी जमीन शहर के साथ ही जुट गई थी. खुले खेतों के बीच रमण की आलीशान कोठी थी. खुली छत पर पार्टी चल रही थी.

रमण ने सुमन को देख कर भी अनदेखा कर दिया. एक औपचारिक सी नमस्ते हुई. अब मैं रमण का बौस था, रमण के बेटे और होने वाली बहू को पूरे औफिस की तरफ से उपहार मैं ने सुमन के हाथों ही दिलवाया.

पहली बार रमण ने हमें हैरानी से देखा था, जब मैं और सुमन उस के घर के बाहर कार से साथसाथ उतरे थे. वह समझ गया था कि हम मियांबीवी हैं.

दूर तक फैले खेतों को देख कर मेरे मन में आया कि ये सब मेरे हो सकते थे, अगर उस दिन मैं जिला शिक्षा अधिकारी की बात मान लेता.

उस शाम सारी महफिल में सुमन सब से ज्यादा खूबसूरत लग रही थी. शायद उसे देख कर रमण के मन में भी आया होगा कि अगर वह दहेज के लालच में न पड़ता तो सुमन उस की हो सकती थी. चलो, जिस की जो चाहत थी, उसे मिल गई थी.

ये लम्हा कहां था मेरा: भाग 1- क्या था निकिता का फैसला

‘‘हमारी बात मान लो न निकिता… मिल तो लो आज अभिनव से. मैनेजर है मल्टीनैशनल कंपनी में और फोटो में भी अच्छा दिख रहा है. तुम्हें पसंद आए तभी हां करना… उस के घर से फोन आया है. पापा पूछ रहे हैं क्या कहना है उन्हें?’’ मीनाक्षी अपनी बेटी से मनुहार करते हुए बोलीं.

‘‘मम्मी, शादी करने के लिए नहीं करता मेरा मन… सोचा भी नहीं जाता मुझ से शादी के बारे में… आप तो जानती हैं सब,’’ निकिता का स्वर निराशा में डूबा था.

‘‘कब तक तुम्हारी दुनिया को अंधेरे में रखेगा वह हादसा? पापा अपनेआप को कुसूरवार समझ दिनरात गमगीन रहते हैं… निकाल दो बेटा अपने दिमाग से वे सब बातें.’’

‘‘मेरी तो कुछ समझ नहीं आता कि क्या करूं मम्मी? आप जो ठीक समझें कर लें,’’ कह कर निकिता गुमसुम सी फिर लैपटौप में खो गई.

‘‘तुम कितनी समझदार हो… ठीक है बेटा, फिर बुला लेते हैं आज उन लोगों को,’’ निकिता के सिर पर प्यार से हाथ फेर मीनाक्षी उस के कमरे से निकल गईं.

अपना काम निबटा निकिता न चाहते हुए भी आज शाम पहनने के लिए कपड़ों का चुनाव करने चल दी. शादी के लिए किसी रिश्ते की बात शुरू होते ही वह अनमनी सी हो जाती थी.

मेहमानों के लिए हो रही तैयारी से घर में रौनक दिख रही थी. उसी रौनक की छाया सुदीप पर भी पड़ रही थी वरना 2 सालों से बेटी निकिता का दर्द उन्हें चैन से सोने नहीं दे रहा था.

शाम को आ गए वे लोग. औसत कदकाठी और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी अभिनव की सादगी मीनाक्षी और सुदीप के मन में अंदर तक उतर गई. अभिनव और निकिता के बीच औपचारिक बातचीत हुई. एक नामी पब्लिशिंग हाउस में कंटैट राइटर की पोस्ट पर कार्य कर रही निकिता का गोरा रंग और खूबसूरत नैननक्श देख अभिनव के मम्मीपापा रिश्ता जोड़ने को बेताब हो रहे थे. डिनर के बाद जाते समय दोनों के मातापिता ने जल्द ही बच्चों से पूछ कर रिश्ता पक्का करने की बात कह खुशीखुशी एकदूसरे से बिदा ली.

उन के चले जाने के बाद मीनाक्षी और सुदीप अभिनव के विषय में निकिता की राय जानने को आतुर थे. निकिता सोच कर जवाब देने की बात कह अपने कमरे में चली गई. बिस्तर पर लेटते ही नींद की जगह विचारों का कारवां उसे घेरने लगा कि क्या करूं अब मना करती हूं शादी के लिए तो मम्मीपापा की परेशानी कम न कर पाने की गुनहगार बन जाती हूं. हां भी कैसे करूं? सोच कर ही सिहर उठती हूं कि अपना तन किसी को सौंप रही हूं.

मम्मीपापा का कहना है कि अभिनव समझदार लग रहा है. मैं खुश रह सकूंगी उस के साथ. पर क्या होगा अगर हर रात मुझे उस में राजन अंकल… नहीं… दरिंदा राजन दिखाई देने लगेगा… निकिता के दिमाग को एक बार फिर झकझोर गया वह दिन…

दिल्ली के नामी कालेज से एमए करने के बाद जब निकिता की प्लेसमैंट पुणे हुई तो मम्मी उस के दूर जाने की बात से चिंतित हो उठी थीं. तब पापा ने याद दिलाया कि उन के एक कुलीग राजन, जो पिछले साल नौकरी छोड़ गए थे, वहीं रह रहे हैं तो मीनाक्षी की सांस में सांस आ गई.

पुणे में निकिता के रहने की व्यवस्था एक पीजी में करवाने के बाद सुदीप निकिता को साथ ले राजन के घर पहुंच गए. राजन का इकलौता बेटा यूके में रह रहा था. राजन की पत्नी भी उन दिनों वहीं गई हुई थी. राजन ने कहा कि निकिता इसे अपना घर समझ कभी भी यहां आ सकती है. पूरा आश्वासन भी दिया था कि उस के रहते निकिता को किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी.

निकिता और राजन की फोन पर कभीकभी बात हो जाती थी, लेकिन निकिता की व्यस्तता के कारण दोबारा मिलना नहीं हुआ था उन का. एक दिन निकिता के पास राजन का फोन आया कि पत्नी की तबीयत अचानक खराब हो जाने के कारण उसे यूके जाना पड़ रहा है, अत: जाने से पहले एक बार वह निकिता से मिलना चाहता है. निकिता शाम को राजन के घर चली गई.

राजन का व्यवहार उस दिन निकिता को बदलाबदला सा लग रहा था. उस के नमस्ते करने पर राजन ने उस के हाथों को अपने दोनों हाथों में ले कर चूम लिया. निकिता को यह बहुत अखर रहा था. कुछ देर बातचीत करने के बाद निकिता जाने लगी तो राजन ने कौफी पी कर जाने का आग्रह किया. फिर उसे कमरे में बैठने को कह कौफी बनाने चल दिया. कामवाली के बारे में निकिता के पूछने पर बोला कि वह आज जल्दी छुट्टी ले कर चली गई है.

कुछ देर बाद कौफी ला कर टेबल पर रख राजन निकिता के सामने बैठ गया. निकिता को चुपचाप कौफी पीते देख हंसता हुआ बोला, ‘‘अरे, कुछ तो बात करो… अच्छा बताओ, मैं कैसा लगता हूं तुम्हें?’’

निकिता को कौफी का घूंट हलक से उतारना मुश्किल हो गया.

‘‘आप अच्छे लगते हैं, अंकल,’’ कह कर वह जल्दीजल्दी कौफी पीने लगी ताकि वहां से निकल पाए. मगर तभी बैठेबैठे उसे चक्कर सा आने लगा. ‘कहीं कौफी में कुछ नशीला तो नहीं?’ सोच कर आधा भरा हुआ मग टेबल पर रख वह उठने लगी तो राजन उस के पास आ कर खड़ा हो गया.

‘‘पता नहीं तुम क्यों मुझे अंकल कह कर बुला रही हो? लोग तो कहते हैं मैं अभी भी किसी बौलीवुड हीरो से कम नहीं लगता.’’

‘‘जी… अच्छा है अगर लोग ऐसा कहते हैं, आप ने फिट रखा हुआ है अपने को,’’ घबराई हुई सी निकिता खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश कर रही थी.

‘‘तो फिर जी नहीं चाहता मेरे पास आने का?’’ कहते हुए राजन निकिता से सट कर बैठ गया.

निकिता भीतर तक कांप उठी. इस से पहले कि हिम्मत जुटा वह उठ भागती राजन उसे अपनी गिरफ्त में ले चुका था. निकिता ने खुद को छुड़ाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन कौफी में मिलाए गए नशीले पदार्थ के असर से वह लड़खड़ा रही थी.

‘‘पता है मुझे, तुम भी यही चाहती हो… पर झिझकती हो कहने में. तभी तो एक बार बुलाते ही दौड़ी चली आई मिलने.’’

‘‘नहीं अंकल…’’ चीख उठी थी निकिता.

‘‘औरत की न का मतलब हां होता है,’’ कहते हुए अपना वहशियाना रूप दिखा दिया राजन ने.

अपनी हवस मिटा कर राजन सोफे पर ही औधे मुंह गिर गया. निकिता अपने कपड़े व्यवस्थित कर गिरतीपड़ती पीजी लौटी तो कुछ सोचनेसमझने की स्थिति में नहीं थी. उस की सहेली अदीबा ने मीनाक्षी को फोन किया. अगले दिन सुदीप और मीनाक्षी वहां पहुंच गए. निकिता से सब सुन कर वे अवाक रह गए. क्रोध से तमतमाया सुदीप राजन के घर पहुंचा, पर वह तो यूके निकल चुका था. पुलिस में शिकायत करने से भी तब कोई लाभ नहीं था. निकिता को साथ ले दोनों टूटेबिखरे से वापस आ गए.

सुदीप और मीनाक्षी निकिता का सहारा बन उसे दिनरात समझाते रहते. लगभग 2 महीने बाद वह इस हादसे से कुछ दूर हुई तो नई नौकरी की तलाश में जुट गई.

अदीबा के भाई की दिल्ली में अच्छी जानपहचान थी. उस की मदद से

कई जगह उसे रिक्त पदों के विषय में जानकारी मिली. अंतत: एक पब्लिशिंग हाउस में बतौर कंटैंट राइटर चुन लिया गया. फिर वहां काम संभालते हुए वह खुद को व्यस्त रखने लगी.

कुछ माह बाद सुदीप और मीनाक्षी ने विवाह की बात छेड़ी तो निकिता ने साफ मना कर दिया. उस का व्यथित मन किसी को भी अपना मानने को तैयार नहीं था, पर मम्मीपापा चाहते थे कि वह सब भूल कर नई जिंदगी शुरू करे.

आज भी तो नहीं मिलना चाह रही थी निकिता अभिनव से, लेकिन पापा की निराशा भी नहीं देखी जाती थी उस से. अभिनव से मिल कर उसे बुरा भी नहीं लगता था, परंतु पतिपत्नी संबंध के विषय में सोचते ही लगने लगता था कि अपनी देह कहां छिपा लूं कि किसी पुरुष की नजर ही न पड़े उस पर. अतीत के काले दलदल में फंसी निकिता रातभर बिस्तर पर करवटें बदलती रही.

सुबह औफिस जाने लगी तो मीनाक्षी उस के जवाब के इंतजार में थीं. ‘‘अभी देर हो रही है, बाद में बात करते हैं,’’ कहते हुए वह भारी मन से औफिस चली गई.

औफिस में उस के पास अलगअलग विषयों पर लिखने के लिए कई मेल आए हुए थे, लेकिन काम में मन ही नहीं लग रहा था उस का. किसी तरह मन बना कर एक टौपिक पर सोच लिखना शुरू ही किया था कि मोबाइल बज उठा.

आगे पढ़ें- हक्कीबक्की सी निकिता बिना कुछ सोचे…

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