Eid Special: ईद का चांद- क्यों डूबा हिना का अस्तित्व

उस दिन रमजान की 29वीं तारीख थी. घर में अजीब सी खुशी और चहलपहल छाई हुई थी. लोगों को उम्मीद थी कि शाम को ईद का चांद जरूर आसमान में दिखाई दे जाएगा. 29 तारीख के चांद की रोजेदारों को कुछ ज्यादा ही खुशी होती है क्योंकि एक रोजा कम हो जाता है. समझ में नहीं आता, जब रोजा न रखने से इतनी खुशी होती है तो लोग रोजे रखते ही क्यों हैं?

बहरहाल, उस दिन घर का हर आदमी किसी न किसी काम में उलझा हुआ था. उन सब के खिलाफ हिना सुबह ही कुरान की तिलावत कर के पिछले बरामदे की आरामकुरसी पर आ कर बैठ गई थी, थकीथकी, निढाल सी. उस के दिलदिमाग सुन्न से थे, न उन में कोई सोच थी, न ही भावना. वह खालीखाली नजरों से शून्य में ताके जा रही थी.

तभी ‘भाभी, भाभी’ पुकारती और उसे ढूंढ़ती हुई उस की ननद नगमा आ पहुंची, ‘‘तौबा भाभी, आप यहां हैं. मैं आप को पूरे घर में तलाश कर आई.’’

‘‘क्यों, कोई खास बात है क्या?’’ हिना ने उदास सी आवाज में पूछा.

‘‘खास बात,’’ नगमा को आश्चर्य हुआ, ‘‘क्या कह रही हैं आप? कल ईद है. कितने काम पड़े हैं. पूरे घर को सजानासंवारना है. फिर बाजार भी तो जाना है खरीदारी के लिए.’’

‘‘नगमा, तुम्हें जो भी करना है नौकरों की मदद से कर लो और अपनी सहेली शहला के साथ खरीदारी के लिए बाजार चली जाना. मुझे यों ही तनहा मेरे हाल पर छोड़ दो, मेरी बहना.’’

‘‘भाभी?’’ नगमा रूठ सी गई.

‘‘तुम मेरी प्यारी ननद हो न,’’ हिना ने उसे फुसलाने की कोशिश की.

‘‘जाइए, हम आप से नहीं बोलते,’’ नगमा रूठ कर चली गई.

हिना सोचने लगी, ‘ईद की कैसी खुशी है नगमा को. कितना जोश है उस में.’

7 साल पहले वह भी तो कुछ ऐसी ही खुशियां मनाया करती थी. तब उस की शादी नहीं हुई थी. ईद पर वह अपनी दोनों शादीशुदा बहनों को बहुत आग्रह से मायके आने को लिखती थी. दोनों बहनोई अपनी लाड़ली साली को नाराज नहीं करना चाहते थे. ईद पर वे सपरिवार जरूर आ जाते थे.

हिना के भाईजान भी ईद की छुट्टी पर घर आ जाते थे. घर में एक हंगामा, एक चहलपहल रहती थी. ईद से पहले ही ईद की खुशियां मिल जाती थीं.

हिना यों तो सभी त्योहारों को बड़ी धूमधाम से मनाती थी मगर ईद की तो बात ही कुछ और होती थी. रमजान की विदाई वाले आखिरी जुम्मे से ही वह अपनी छोटी बहन हुमा के साथ मिल कर घर को संवारना शुरू कर देती थी. फरनीचर की व्यवस्था बदलती. हिना के हाथ लगते ही सबकुछ बदलाबदला और निखरानिखरा सा लगता. ड्राइंगरूम जैसे फिर से सजीव हो उठता. हिना की कोशिश होती कि ईद के रोज घर का ड्राइंगरूम अंगरेजी ढंग से सजा न हो कर, बिलकुल इसलामी अंदाज में संवरा हुआ हो. कमरे से सोफे वगैरह निकाल कर अलगअलग कोने में गद्दे लगाए जाते. उस पर रंगबिरंगे कुशनों की जगह हरेहरे मसनद रखती.

एक तरफ छोटी तिपाई पर चांदी के गुलदान और इत्रदान सजाती. खिड़की के भारीभरकम परदे हटा कर नर्मनर्म रेशमी परदे डालती. अपने हाथों से तैयार किया हुआ बड़ा सा बेंत का फानूस छत से लटकाती.

अम्मी के दहेज के सामान से पीतल का पीकदान निकाला जाता. दूसरी तरफ की छोटी तिपाई पर चांदी की ट्रे में चांदी के वर्क में लिपटे पान के बीड़े और सूखे मेवे रखे जाते.

हिना यों तो अपने कपड़ों के मामले में सादगीपसंद थी, मगर ईद के दिन अपनी पसंद और मिजाज के खिलाफ वह खूब चटकीले रंग के कपड़े पहनती. वह अम्मी के जिद करने पर इस मौके पर जेवर वगैरह भी पहन लेती. इस तरह ईद के दिन हिना बिलकुल नईनवेली दुलहन सी लगती. दोनों बहनोई उसे छेड़ने के लिए उसे ‘छोटी दुलहन, छोटी दुलहन’ कह कर संबोधित करते. वह उन्हें झूठमूठ मारने के लिए दौड़ती और वे किसी शैतान बच्चे की तरह डरेडरे उस से बचते फिरते. पूरा घर हंसी की कलियों और कहकहों के फूलों से गुलजार बन जाता. कितना रंगीन और खुशगवार माहौल होता ईद के दिन उस घर का.

ऐसी ही खुशियों से खिलखिलाती एक ईद के दिन करीम साहब ने अपने दोस्त रशीद की चुलबुली और ठठाती बेटी हिना को देखा तो बस, देखते ही रह गए. उन्हें लगा कि उस नवेली कली को तो उन के आंगन में खिलना चाहिए, महकना चाहिए.

अगले दिन उन की बीवी आसिया अपने बेटे नदीम का पैगाम ले कर हिना के घर जा पहुंची. घर और वर दोनों ही अच्छे थे. हिना के घर में खुशी की लहर दौड़ गई. हिना ने एक पार्टी में नदीम को देखा हुआ था. लंबाचौड़ा गबरू जवान, साथ ही शरीफ और मिलनसार. नदीम उसे पहली ही नजर में भा सा गया था. इसलिए जब आसिया ने उस की मरजी जाननी चाही तो वह सिर्फ मुसकरा कर रह गई.

हिना के मांबाप जल्दी शादी नहीं करना चाहते थे. मगर दूसरे पक्ष ने इतनी जल्दी मचाई कि उन्हें उसी महीने हिना की शादी कर देनी पड़ी.

हिना दुखतकलीफ से दूर प्यार- मुहब्बत भरे माहौल में पलीबढ़ी थी और उस की ससुराल का माहौल भी कुछ ऐसा ही था. सुखसुविधाओं से भरा खातापीता घराना, बिलकुल मांबाप की तरह जान छिड़कने वाले सासससुर, सलमा और नगमा जैसी प्यारीप्यारी चाहने वाली ननदें. सलमा उस की हमउम्र थी. वे दोनों बिलकुल सहेलियों जैसी घुलमिल कर रहती थीं.

उन सब से अच्छा था नदीम, बेहद प्यारा और टूट कर चाहने वाला, हिना की मामूली सी मामूली तकलीफ पर तड़प उठने वाला. हिना को लगता था कि दुनिया की तमाम खुशियां उस के दामन में सिमट आई थीं. उस ने अपनी जिंदगी के जितने सुहाने ख्वाब देखे थे, वे सब के सब पूरे हो रहे थे.

किस तरह 3 महीने गुजर गए, उसे पता ही नहीं चला. हिना अपनी नई जिंदगी से इतनी संतुष्ट थी कि मायके को लगभग भूल सी गई थी. उस बीच वह केवल एक ही बार मायके गई थी, वह भी कुछ घंटों के लिए. मांबाप और भाईबहन के लाख रोकने पर भी वह नहीं रुकी. उसे नदीम के बिना सबकुछ फीकाफीका सा लगता था.

एक दिन हिना बैठी कोई पत्रिका पढ़ रही थी कि नदीम बाहर से ही खुशी से चहकता हुआ घर में दाखिल हुआ. उस के हाथ में एक मोटा सा लिफाफा था.

‘बड़े खुश नजर आ रहे हैं. कुछ हमें भी बताएं?’ हिना ने पूछा.

‘मुबारक हो जानेमन, तुम्हारे घर में आने से बहारें आ गईं. अब तो हर रोज रोजे ईद हैं, और हर शब है शबबरात.’

पति के मुंह से तारीफ सुन कर हिना का चेहरा शर्म से सुर्ख हो गया. वह झेंप कर बोली, ‘मगर बात क्या हुई?’

‘मैं ने कोई साल भर पहले सऊदी अरब की एक बड़ी फर्म में मैनेजर के पद के लिए आवेदन किया था. मुझे नौकरी तो मिल गई थी, मगर कुछ कारणों से वीजा मिलने में बड़ी परेशानी हो रही थी. मैं तो उम्मीद खो चुका था, लेकिन तुम्हारे आने पर अब यह वीजा भी आ गया है.’

‘वीजा आ गया है?’ हिना की आंखें हैरत से फैल गईं. वह समझ नहीं पाई थी कि उसे खुश होना चाहिए या दुखी.

‘हां, हां, वीजा आया है और अगले ही महीने मुझे सऊदी अरब जाना है. सिर्फ 3 साल की तो बात है.’

‘आप 3 साल के लिए मुझे छोड़ कर चले जाएंगे?’ हिना ने पूछा.

‘हां, जाना तो पड़ेगा ही.’

‘मगर क्यों जाना चाहते हैं आप वहां? यहां भी तो आप की अच्छी नौकरी है. किस चीज की कमी है हमारे पास?’

‘कमी? यहां सारी जिंदगी कमा कर भी तुम्हारे लिए न तो कार खरीद सकता हूं और न ही बंगला. सिर्फ 3 साल की तो बात है, फिर सारी जिंदगी ऐश करना.’

‘नहीं चाहिए मुझे कार. हमारे लिए स्कूटर ही काफी है. मुझे बंगला भी नहीं बनवाना है. मेरे लिए यही मकान बंगला है. बस, तुम मेरे पास रहो. मुझे छोड़ कर मत जाओ, नदीम,’ हिना वियोग की कल्पना ही से छटपटा कर सिसकने लगी.

‘पगली,’ नदीम उसे मनाने लगा. और बड़ी मिन्नतखुशामद के बाद आखिर उस ने हिना को राजी कर ही लिया.

हिना ने रोती आंखों और मुसकराते होंठों से नदीम को अलविदा किया.

अब तक दिन कैसे गुजरते थे, हिना को पता ही नहीं चलता था. मगर अब एकएक पल, एकएक सदी जैसा लगता था. ‘उफ, 3 साल, कैसे कटेंगे सदियों जितने लंबे ये दिन,’ हिना सोचसोच कर बौरा जाती थी.

और फिर ईद आ गई, उस की शादीशुदा जिंदगी की पहली ईद. रिवाज के मुताबिक उसे पहली ईद ससुराल में जा कर मनानी पड़ी. मगर न तो वह पहले जैसी उमंग थी, न ही खुशी. सास के आग्रह पर उस ने लाल रंग की बनारसी साड़ी पहनी जरूर. जेवर भी सारे के सारे पहने. मगर दिल था कि बुझा जा रहा था.

हिना बारबार सोचने लगती थी, ‘जब मैं दुलहन नहीं थी तो लोग मुझे ‘दुलहन’ कह कर छेड़ते थे. मगर आज जब मैं सचमुच दुलहन हूं तो कोई भी छेड़ने वाला मेरे पास नहीं. न तो हंसी- मजाक करने वाले बहनोई और न ही वह, दिल्लगी करने वाला दिलबर, जिस की मैं दुलहन हूं.’

कहते हैं वक्त अच्छा कटे या बुरा, जैसेतैसे कट ही जाता है. हिना का भी 3 साल का दौर गुजर गया. उस की शादी के बाद तीसरी ईद आ गई. उस ईद के बाद ही नदीम को आना था. हिना नदीम से मिलने की कल्पना ही से पुलकित हो उठती थी. नदीम का यह वादा था कि वह उसे ईद वाले दिन जरूर याद करेगा, चाहे और दिन याद करे या न करे. अगर ईद के दिन वह खुद नहीं आएगा तो उस का पैगाम जरूर आएगा. ससुराल वालों ने नदीम के जाने के बाद हिना को पहली बार इतना खुश देखा था. उसे खुश देख कर उन की खुशियां भी दोगुनी हो गईं.

ईद के दिन हिना को नदीम के पैगाम का इंतजार था. इंतजार खत्म हुआ, शाम होतेहोते नदीम का तार आ गया. उस में लिखा था :

‘मैं ने आने की सारी तैयारी कर ली थी. मगर फर्म मेरे अच्छे काम से इतनी खुश है कि उस ने दूसरी बार भी मुझे ही चुना. भला ऐसे सुनहरे मौके कहां मिलते हैं. इसे यों ही गंवाना ठीक नहीं है. उम्मीद है तुम मेरे इस फैसले को खुशीखुशी कबूल करोगी. मेरी फर्म यहां से काम खत्म कर के कनाडा जा रही है. छुट्टियां ले कर कनाडा से भारत आने की कोशिश करूंगा. तुम्हें ईद की बहुतबहुत मुबारकबाद.’       -नदीम.

हिना की आंखों में खुशी के जगमगाते चिराग बुझ गए और दुख की गंगायमुना बहने लगी.

नदीम की चिट्ठियां अकसर आती रहती थीं, जिन में वह हिना को मनाता- फुसलाता और दिलासा देता रहता था. एक चिट्ठी में नदीम ने अपने न आने का कारण बताते हुए लिखा था, ‘बेशक मैं छुट््टियां ले कर फर्म के खर्च पर साल में एक बार तो हवाई जहाज से भारत आ सकता हूं. मगर मैं ऐसा नहीं करूंगा. मैं पूरी वफादारी और निष्ठा से काम करूंगा, ताकि फर्म का विश्वासपात्र बना रहूं और ज्यादा से ज्यादा दौलत कमा सकूं. वह दौलत जिस से तुम वे खुशियां भी खरीद सको जो आज तुम्हारी नहीं हैं.’

नदीम के भेजे धन से हिना के ससुर ने नया बंगला खरीद लिया. कार भी आ गई. वे लोग पुराने घर से निकल कर नए बंगले में आ गए. हर साल घर आधुनिक सुखसुविधाओं और सजावट के सामान से भरता चला गया और हिना का दिल खुशियों और अरमानों से खाली होता गया.

वह कार, बंगले आदि को देखती तो उस का मन नफरत से भर उठता. उसे  वे चीजें अपनी सौतन लगतीं. उन्होंने ही तो उस से उस के महबूब शौहर को अलग कर दिया था.

उस दौरान हिना की बड़ी ननद सलमा की शादी तय हो गई थी. सलमा उस घर में थी तो उसे बड़ा सहारा मिलता था. वह उस के दर्द को समझती थी. उसे सांत्वना देती थी और कभीकभी भाई को जल्दी आने के लिए चिट््ठी लिख देती थी.

हिना जानती थी कि उन चिट्ठियों से कुछ नहीं होने वाला था, मगर फिर भी ‘डूबते को तिनके का सहारा’ जैसी थी सलमा उस के लिए.

सलमा की शादी पर भी नदीम नहीं आ सका था. भाई की याद में रोती- कलपती सलमा हिना भाभी से ढेरों दुआएं लेती हुई अपनी ससुराल रुखसत हो गई थी.

शादी के साल भर बाद ही सलमा की गोद में गोलमटोल नन्ही सी बेटी आ गई. हिना को पहली बार अपनी महरूमी का एहसास सताने लगा था. उसे लगा था कि वह एक अधूरी औरत है.

नदीम को गए छठा साल होने वाला था. अगले दिन ईद थी. अभी हिना ने नदीम के ईद वाले पैगाम का इंतजार शुरू भी नहीं किया था कि डाकिया नदीम का पत्र दे गया. हिना ने धड़कते दिल से उस पत्र को खोला और बेसब्री से पढ़ने लगी. जैसेजैसे वह पत्र पढ़ती गई, उस का चेहरा दुख से स्याह होता चला गया. इस बार हिना का साथ उस के आंसुओं ने भी नहीं दिया. अभी वह पत्र पूरा भी नहीं कर पाई थी कि अपनी सहेली शहला के साथ खरीदारी को गई नगमा लौट आई.

हिना ने झट पत्र तह कर के ब्लाउज में छिपा लिया.

‘‘भाभी, भाभी,’’ नगमा बाहर ही से पुकारती हुई खुशी से चहकती आई, ‘‘भाभी, आप अभी तक यहीं बैठी हैं, मैं बाजार से भी घूम आई. देखिए तो क्या- क्या लाई हूं.’’

नगमा एकएक चीज हिना को बड़े शौक से दिखाने लगी.

शाम को 29वां रोजा खोलने का इंतजाम छत पर किया गया. यह हर साल का नियम था, ताकि लोगों को इफतारी (रोजा खोलने के व्यंजन व पेय) छोड़ कर चांद देखने के लिए छत पर न जाना पड़े.

अभी लोगों ने रोजा खोल कर रस के गिलास होंठों से लगाए ही थे कि पश्चिमी क्षितिज की तरफ देखते हुए नगमा खुशी से चीख पड़ी, ‘‘वह देखिए, ईद का चांद निकल आया.’’

सभी खानापीना भूल कर चांद देखने लगे. ईद का चांद रोजरोज कहां नजर आता है. उसे देखने का मौका तो साल में एक बार ही मिलता है.

हिना ने भी दुखते दिल और भीगी आंखों से देखा. पतला और बारीक सा झिलमिल चांद उसे भी नजर आया. चांद देख कर उस के दिल में हूक सी उठी और उस का मन हुआ कि वह फूटफूट कर रो पड़े मगर वह अपने आंसू छिपाने को दौड़ कर छत से नीचे उतर आई और अपने कमरे में बंद हो गई.

उस ने आंखों से छलक आए आंसुओं को पोंछ लिया, फिर उबल आने वाले आंसुओं को जबरदस्ती पीते हुए ब्लाउज से नदीम का खत निकाल लिया और उसे पढ़ने लगी. उस की निगाहें पूरी इबारत से फिसलती हुई इन पंक्तियों पर अटक गईं :

‘‘हिना, असल में शमा सऊदी अरब में ही मुझ से टकरा गई थी. वह वहां डाक्टर की हैसियत से काम कर रही थी. हमारी मुलाकातें बढ़ती गईं. फिर ऐसा कुछ हुआ कि हम शादी पर मजबूर हो गए.

‘‘शमा के कहने पर ही मैं कनाडा आ गया. शमा और उस के मांबाप कनाडा के नागरिक हैं. अब मुझे भी यहां की नागरिकता मिल गई है और मैं शायद ही कभी भारत आऊं. वहां क्या रखा है धूल, गंदगी और गरीबी के सिवा.

‘‘तुम कहोगी तो मैं यहां से तुम्हें तलाकनामा भिजवा दूंगा. अगर तुम तलाक न लेना चाहो, जैसी तुम्हारे खानदान की रिवायत है तो मैं तुम्हें यहां से काफी दौलत भेजता रहूंगा. तुम मेरी पहली बीवी की हैसियत से उस दौलत से…’’

हिना उस से आगे न पढ़ सकी. वह ठंडी सांस ले कर खिड़की के पास आ गई और पश्चिमी क्षितिज पर ईद के चांद को तलाशने लगी. लेकिन वह तो झलक दिखा कर गायब हो चुका था, ठीक नदीम की तरह…

हिना की आंखों में बहुत देर से रुके आंसू दर्द बन कर उबले तो उबलते ही चले गए. इतने कि उन में हिना का अस्तित्व भी डूबता चला गया और उस का हर अरमान, हर सपना दर्द बन कर रह गया.

देह से परे: क्या कामयाब हुई मोनिका

लिफ्ट बंद है फिर भी मोनिका उत्साह से पांचवीं मंजिल तक सीढि़यां चढ़ती चली गई. वह आज ही अभी अपने निर्धारित कार्यक्रम से 1 दिन पहले न्यूयार्क से लौटी है. बहुत ज्यादा उत्साह में है, इसीलिए तो उस ने आरव को बताया भी नहीं कि वह लौट रही है. उसे चौंका देगी. वह जानती है कि आरव उसे बांहों में उठा लेगा और गोलगोल चक्कर लगाता चिल्ला उठेगा, ‘इतनी जल्दी आ गईं तुम?’ उस की नीलीभूरी आंखें मारे प्रसन्नता के चमक उठेंगी. इन्हीं आंखों की चमक में अपनेआप को डुबो देना चाहती है मोनिका और इसीलिए उस ने आरव को बताया नहीं कि वह लौट रही है. उसे मालूम है कि आरव की नाइट शिफ्ट चल रही है, इसलिए वह अभी घर पर ही होगा और इसीलिए वह एयरपोर्ट से सीधे उस के घर ही चली आई है. डुप्लीकेट चाबी उस के पास है ही. एकदम से अंदर जा कर चौंका देगी आरव को. मोनिका के होंठों पर मुसकराहट आ गई. वह धीरे से लौक खोल कर अंदर घुसी तो घर में सन्नाटा पसरा हुआ था. जरूर आरव सो रहा होगा. वह उस के बैडरूम की ओर बढ़ी. सचमुच ही आरव चादर ताने सो रहा था. मोनिका ने झुक कर उस का माथा चूम लिया.

‘‘ओ डियर अलीशा, आई लव यू,’’ कहते हुए आंखें बंद किए ही आरव ने उसे अपने ऊपर खींच लिया. लेकिन अलीशा सुनते ही मोनिका को जैसे बिजली का करैंट सा लगा. वह छिटक पड़ी.

‘‘मैं हूं, मोनिका,’’ कहते हुए उस ने लाइट जला दी. लेकिन लाइट जलते हो वह स्तब्ध हो गई. आरव की सचाई बेहद घृणित रूप में उस के सामने थी. जिस रूप में आरव और अलीशा वहां थे, उस से यह समझना तनिक भी मुश्किल नहीं था कि उस कमरे में क्या हो रहा था. मोनिका भौचक्की रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे अपने जीवन में ऐसा दृश्य देखना पड़ेगा. आरव को दिलोजान से चाहा है उस ने. उस के साथ जीवन बिताने और एक सुंदर प्यारी सी गृहस्थी का सपना देखा है, जहां सिर्फ और सिर्फ खुशियां ही होंगी, प्यार ही होगा. लेकिन आरव ऐसा कुछ भी कर सकता है यह तो वह सपने में भी नहीं सोच पाई थी. पर सचाई उस के सामने थी. इस आदमी से उस ने प्यार किया. इस गंदे आदमी से. घृणा से उस की देह कंपकंपा उठी. अपने नीचे गिरे पर्स को उठा कर और आरव के फ्लैट की चाबी वहीं पटक कर वह बाहर निकल आई. खुली हवा में आ कर उसे लगा कि बहुत देर से उस की सांस रुकी हुई थी. उस का सिर घूम रहा था, उसे मितली सी आ रही थी, लेकिन उस ने अपनेआप को संभाला. लंबीलंबी सांसें लीं. तभी आरव के फ्लैट का दरवाजा खुला और आरव की धीमी सी आवाज आई, ‘‘मोनिका, प्लीज मेरी बात सुनो. आई एम सौरी यार.’’

लेकिन जब तक वह मोनिका के पास पहुंचता वह लिफ्ट में अंदर जा चुकी थी. इत्तफाक से नीचे वही टैक्सी वाला खड़ा था जिस से वह एयरपोर्ट से यहां आई थी. टैक्सी में बैठ कर उस ने संयत होते हुए अपने घर का पता बता दिया. टैक्सी ड्राइवर बातूनी टाइप का था. पूछ बैठा, ‘‘क्या हुआ मैडम, आप इतनी जल्दी वापस आ गईं? मैं तो अभी अपनी गाड़ी साफ ही कर रहा था.’’

‘‘जिस से मिलना था वह घर पर नहीं था,’’ मोनिका ने कहा, लेकिन आवाज कहीं उस के गले में ही फंसी रह गई. ड्राइवर ने रियर व्यू मिरर से उस को देखा फिर खामोश रह गया. अच्छा हुआ कि वह खामोश रह गया वरना पता नहीं मोनिका कैसे रिऐक्ट करती. उस की आंखों में आंसू थे, लेकिन दिमाग गुस्से से फटा जा रहा था. क्या करे, क्या करे वह? आरव ने कई बार उस से कहा था कि आजकल सच्चा प्यार कहां होता है? प्यार की तो परिभाषा ही बदल चुकी है आज. सब कुछ  ‘फिजिकल’ हो चुका है. लेकिन मोनिका ने कभी स्वीकार नहीं किया इस बात को. वह कहती थी कि जो ‘फिजिकल’ होता है वह प्यार नहीं होता. कम से कम सच्चा प्यार तो नहीं ही होता. प्यार तो हर दुनियावी चीज से परे होता है. आरव उस की बातों पर ठहाका लगा कर हंस देता था और कहता था कि कम औन यार, किस जमाने की बातें कर रही हो तुम? अब शरतचंद के उपन्यास के देवदास टाइप का प्यार कहां होता है? आरव के तर्कों को वह मजाक समझती थी, सोचती थी कि वह उसे चिढ़ा रहा है, छेड़ रहा है. लेकिन वह तो अपने दिल की बात बता रहा होता था. अपनी सोच को उस के सामने रख रहा होता था और वह समझी ही नहीं. उस की सोच, उस के सिद्धांत इस रूप में उस के सामने आएंगे इस की तो कभी कल्पना भी नहीं की थी उस ने. लेकिन वास्तविकता तो यही है कि सचाई उस के सामने थी और अब हर हाल में उसे इस सचाई का सामना करना था.

मोनिका का यों गुमसुम रहना और सारे वक्त घर में ही पड़े रहना उस के डैडी शशिकांत से छिपा तो नहीं था. आज उन्होंने ठान लिया था कि मोनिका से सचाई जान ही लेनी है कि आखिर उसे हुआ क्या है और कुछ भी कर के उसे जीवन की रफ्तार में लाना ही है. वे, ‘‘मोनिका, माई डार्लिंग चाइल्ड,’’ आवाज देते उस के कमरे में घुसे तो हमेशा की तरह गुडमौर्निंग डैडी कहते हुए मोनिका उन के गले से नहीं झूली. सिर्फ एक बुझी सी आवाज  में बोली, ‘‘गुडमौर्निंग डैडी.’’

‘‘गुडमौर्निंग डियर, कैसा है मेरा बच्चा?’’ शशिकांत बोले.

‘‘ओ.के डैडी,’’ मोनिका ने जवाब दिया. शशिकांत और उन की दुलारी बिटिया के बीच हमेशा ऐसी ही बातें नहीं होती थीं. जोश, उत्साह से बापबेटी खूब मस्ती करते थे, लेकिन आज वैसा कुछ भी नहीं है. शशिकांत जानबूझ कर हाथ में पकड़े सिगार से लंबा कश लगाते रहे, लेकिन मोनिका की ओर से कोई रिऐक्शन नहीं आया. हमेशा की तरह ‘डैडी, नो स्मोकिंग प्लीज,’ चिल्ला कर नहीं बोली वह. शशिकांत ने खुद ही सिगार बुझा कर साइड टेबल पर रख दिया. मोनिका अब भी चुप थी.

‘‘आर यू ओ.के. बेटा?’’ शशिकांत ने फिर पूछा.

‘‘यस डैडी,’’ कहती मोनिका उन के कंधे से लग गई. मन में कुछ तय करते शशिकांत बोले, ‘‘ठीक है, फिर तुझे एक असाइनमैंट के लिए परसों टोरैंटो जाना है. तैयारी कर ले.’’

‘‘लेकिन डैडी…,’’ मोनिका हकलाई.

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं, जाना है तो जाना है. मैं यहां बिजी हूं. तू नहीं जाएगी तो कैसे चलेगा?’’ फिर दुलार से बोले, ‘‘जाएगा न मेरा बच्चा? मुझे नहीं मालूम तुझे क्या हुआ है. मैं पूछूंगा भी नहीं. जब ठीक समझना मुझे बता देना. लेकिन बेटा, वक्त से अच्छा डाक्टर कोई नहीं होता. न उस से बेहतर कोई मरहम होता है. सब ठीक हो जाएगा. बस तू हिम्मत नहीं छोड़ना. खुद से मत हारना. फिर तू दुनिया जीत लेगी. करेगी न तू ऐसा, मेरी बहादुर बेटी?’’

कुछ निश्चय सा कर मोनिका ने हां में सिर हिलाया. शशिकांत का लंबाचौड़ा रेडीमेड गारमैंट्स का बिजनैस है जो देशविदेश में फैला हुआ है. उस के लिए आएदिन ही उन्हें या मोनिका को विदेश जाना पड़ता है. मोनिका की उम्र अभी काफी कम है फिर भी अपने डैडी के काम को बखूबी संभालती है वह. इसलिए मोनिका के हां कहते ही शशिकांत निश्चिंत हो गए. वे जानते हैं कि उन की बेटी कितना भी बिखरी हो, लेकिन उस में खुद को संभालने की क्षमता है. वह खुद को और अपने डैड के बिजनैस को बखूबी संभाल लेगी. निश्चित दिन मोनिका टोरैंटो रवाना हो गई. मन में दृढ़ निश्चय सा कर लिया उस ने कि आरव जैसे किसी के लिए भी वह अपना जीवन चौपट नहीं करेगी. अपने प्यारे डैड को निराश नहीं करेगी. सारा दिन खूब व्यस्त रही वह. आरव क्या, आरव की परछाईं भी याद नहीं आई. लेकिन शाम के गहरातेगहराते जब उस की व्यस्तता खत्म हो गई, तो आरव याद आने लगा. आदत सी पड़ी हुई है कि खाली होते ही आरव से बातें करती है वह. दिन भर का हालचाल बताना तो एक बहाना होता है. असली मकसद तो होता है आरव को अपने पास महसूस करना लेकिन आज? आज आरव की याद आते ही उस से अंतिम मुलाकात ही याद आई. थोड़ी देर बाद मोनिका जैसे अपने आपे में नहीं थी. वह कहां है, क्या कर रही है, उसे कुछ भी होश नहीं था. सिर्फ और सिर्फ आरव और अलीशा की तसवीर

उस की आंखों के सामने घूम रही थी. उसे अपनी हालत का तनिक भी भान नहीं था कि वह होटल के बार में बैठी क्या कर रही है और यह स्मार्ट सा कनाडाई लड़का उसी के बगल में बैठा उसे क्यों घूर रहा है? फिर अचानक ही उस ने मोनिका का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘मे आई हैल्प यू? ऐनी प्रौब्लम?’’ मोनिका जैसे होश में आई. अरे, उस की आंखों से तो आंसू झर रहे हैं. शायद इसीलिए उस लड़के ने मदद की पेशकश कर दी होगी. फिर उस ने अपना गिलास मोनिका की ओर बढ़ा दिया जिसे बिना कुछ सोचेसमझे मोनिका पी गई. बदला…बदला लेना है उसे आरव से. उस ने जो किया उस से सौ गुना बेवफाई कर के दिखा देगी वह. कनाडाई लड़का एक के बाद एक भरे गिलास उस की ओर बढ़ाता रहा और वह गटागट पीती रही और फिर उसे कोई होश नहीं रहा. थोड़ी देर बाद वह संभली तो अपने रूम में लौटी. फिर दिन गुजरते गए और  मोनिका जैसे विक्षिप्त सी होती गई. अपने डैडी के काम को वह जनून की तरह करती रही. आएदिन विदेश जाना फिर लौटना. इसी भागदौड़ भरी जिंदगी में 6-7 महीने पहले यहीं इंडिया में वह अदीप से मिली और न जाने क्यों धीरेधीरे अदीप बहुत अपना सा लगने लगा. आरव के बाद वह किसी और से नहीं जुड़ना चाहती थी, लेकिन अदीप उस के दिल से जुड़ता ही जा रहा था. किसी के साथ न जुड़ने की अपनी जिद के ही कारण वह हर बार विदेश से लौट कर सीधेसपाट शब्दों में अपनी वहां बिताई दिनचर्या के बारे में अदीप को बताती रहती थी. कभी न्यूयार्क कभी टोरैंटो, कभी पेरिस तो कभी न्यूजर्सी. नई जगह, नया पुरुष या वही जगह लेकिन नया पुरुष. ‘मैं किसी को रिपीट नहीं करती’ कहती मोनिका किस को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही थी, खुद को ही न? और ऐसे में अदीप के चेहरे पर आई दुख और पीड़ा की भावना को क्या सचमुच ही नहीं समझ पाती थी वह या समझना नहीं चाहती थी? लेकिन यह भी सच था कि दिन पर दिन अदीप के साथ उस का जुड़ाव बढ़ता ही जा रहा था.

उस की इस तरह की बातों पर अदीप कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करता था, लेकिन एक दिन उस ने मोनिका से पूछा, ‘‘आरव से बदला लेने की बात करतेकरते कहीं तुम खुद भी आरव तो नहीं बन गईं मोनिका?’’

‘‘नहीं…’’ कह कर, चीख उठी मोनिका, ‘‘आरव का नाम भी न लेना मेरे सामने.’’

‘‘नाम न भी लूं, लेकिन तुम खुद से पूछो क्या तुम वही नहीं बनती जा रहीं, बल्कि शायद बन चुकी हो?’’ अदीप फिर बोला.

‘‘नहीं, मैं आरव से बदला लेना चाहती हूं. उसे बताना चाहती हूं कि फिजिकल रिलेशन सिर्फ वही नहीं बना सकता मैं भी बना सकती हूं और उस से कहीं ज्यादा. मैं उसे दिखा दूंगी.’’ मुट्ठियां भींचती वह बोली. लेकिन न जाने क्यों उस की आंखें भीग गईं. अदीप की गोद में सिर रख कर वह यह कहते रो दी, ‘‘मैं सच्चा प्यार पाना चाहती थी. ऐसा प्यार जो देह से परे होता है और जिसे मन से महसूस किया जाता है. पर मुझे मिला क्या? मेरे साथ तो कुछ हुआ वह तुम काफी हद तक जानते हो. अगर ऐसा न होता तो मैं उस से कभी बेवफाई न करती.’’ मोनिका की हिचकियां बंध गई थीं. अदीप कुछ नहीं बोला सिर्फ उस के बालों में उंगलियां फिराता उसे सांत्वना देता रहा. कुछ देर रो लेने के बाद मोनिका सामान्य हो गई. सीधी बैठ कर वह अदीप से बोली, ‘‘मुझे कल न्यूयार्क जाना है. 3 दिन वहां रुकंगी. फिर वहां से पेरिस चली जाऊंगी और 4 हफ्ते बाद लौटूंगी.’’ अदीप कुछ नहीं बोला. दोनों के बीच एक सन्नाटा सा पसरा रहा. कुछ देर बाद मोनिका उठी और बोली, ‘‘मैं चलूं.? मुझे तैयारी भी करनी है.’’

‘‘मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ हर बार की तरह इस बार भी अदीप का छोटा सा जवाब था.

एकाएक तड़प उठी मोनिका, ‘‘क्यों मेरा इंतजार करते हो तुम अदीप? और सब कुछ जानने के बाद भी. हर बार विदेश से लौट कर मैं सब कुछ सचसच बता देती हूं. फिर भी तुम क्यों मेरा इंतजार करते हो?’’

अदीप सीधे उस की आंखों में झांकता हुआ बोला, ‘‘क्या तुम सचमुच नहीं जानतीं मोनिका कि मैं तुम्हारा इंतजार क्यों करता हूं? मेरे इस प्रेम को जब तक तुम नहीं पहचान लेतीं, जब तक स्वीकार नहीं कर लेतीं, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

मोनिका की हिचकियां सी बंध गईं. अदीप के कंधे से लगी वह सुबक रही थी और अदीप उस की पीठ थपक रहा था. देह परे, मोनिका और अदीप का निश्छल प्रेम दोनों के मन को भिगो रहा था.

प्रोफाइल पिक्चर: रंजीत ने क्या किया था

उसएक रौंग कौल ने जैसे मेरी बेरंग जिंदगी को रंगीन बना दिया. वीराने में जैसे बहार आ गई. मेरा दिल एक आजाद पंछी की तरह ऊंची उड़ान भरने लगा.

ये सब उस रौंग कौल वाले रंजीत की वजह से था. उस की आवाज में न जाने कैसी कशिश थी कि न चाहते हुए भी मैं उस की कौल का इंतजार करती रहती थी. जिस दिन उस की कौल नहीं आती, मैं तो जैसे बेजान सी हो जाती थी. उस की कौल मेरे लिए नई ऊर्जा का काम करती थी.

गुड मौर्निंग से ले कर गुड नाइट तक न जाने कितनी कौल्स आ जाती थीं उस की. उस की खनकती आवाज मेरे कानों में शहनाई सी बजाती थी. मीठीमीठी बातें रस सी घोल जाती थीं. रंजीत मुझे अपनी सारी बातें बताने में जरा भी नहीं हिचकिचाता था. और एक मैं थी, जो चाहते हुए भी सारी बात नहीं बता पाती थी. मेरे अंदर की हीनभावना कुछ बोलने ही नहीं देती थी.

रंजीत ने मुझे बताया था कि वह एक आर्मी अफसर था, पैर में दुश्मन की गोली लगने की वजह से उस का पैर काट दिया गया था. यह बात बताने में भी वह बिलकुल शरमाया नहीं था, बल्कि बड़े गर्व से बताया था.

2 दिन हो गए थे रंजीत की कौल आए हुए. ये 2 दिन 2 सालों के समान थे. वह मुझ से नाराज था. उस का नाराज होना शायद जायज भी था.

उस ने सिर्फ इतना ही तो कहा था मुझ से कि लता व्हाट्सऐप पर अपनी प्रोफाइल

पिक्चर लगा दो. मैं ने उसे डांटते हुए कहा था कि मेरी मरजी मैं लगाऊं या न लगाऊं. तुम कौन होते हो मुझे और्डर देने वाले? रंजीत चुप हो गया था.

रंजीत अपने प्रोफाइल पिक्चर रोजरोज बदलता था. सुंदरसुंदर फोटो लगाता था. आर्मी ड्रैस के फोटो में तो वह बहुत ही जंचता था.

मैं ने सोचा रंजीत को खुश करने के लिए प्रोफाइल फोटो लगा ही देती हूं. लगाने से पहले मैं ने अपनेआप को फिर एक बार आईने में निहारा.

आंखों के नीचे कालापन उस पर चढ़ा मोटे लैंस का चश्मा, चेहरे पर हलकी रेखाएं, दागधब्बे, तिल, पेट पर चरबी, कमर पर सिलवटें, मोटी छोटी सी नाक, सिर के बालों में से झांकती सफेदी. ‘नहींनहीं’ मैं अपना फोटो कैसे लगा सकती हूं, सोच मैं ने फोटो लगाने का इरादा बदल दिया.

रंजीत को कैसे समझाती मेरा फोटो लगाने लायक है ही नहीं. काश, रंजीत मेरी मजबूरी समझ पाता और नाराज नहीं होता. सारा दिन मोबाइल हाथ में पकड़ेपकड़े रंजीत की कौल का इंतजार करती रही.

अचानक मेरा मोबाइल बजा. मानो कई जलतरंगें एक साथ बज उठी हों. रंजीत का नंबर फ्लैश होने लगा. मेरी आंखें खुशी से चमक उठीं.

मैं ने बिना देर किए फोन उठा लिया. उधर से वही दिलकश आवाज, जिसे सुन कर कानों को सुकून सा मिलता था, ‘‘मेरी कौल का इंतजार कर रही थीं न.’’ रंजीत ने शरारती आवाज में पूछा.

‘‘नहीं तो,’’ मैं ने झूठ कहा.

‘‘कर तो रही थीं पर मानोगी नहीं… फोन हाथ में ही पकड़ा हुआ था… तुरंत उठा लिया… और क्या सुबूत चाहिए,’’

रंजीत ने हंसते हुए कहा.

‘‘कल कौल क्यों नहीं की?’’ मैं ने गुस्सा होते हुए पूछा.

‘‘अरे, मैं अपना फुल चैकअप कराने गया था. उस में टाइम तो लगता ही है.’’

‘‘क्या हुआ तुम्हें?’’ मैं ने घबराते हुए पूछा.

‘‘कुछ नहीं हुआ… 40 के बाद कराते रहना चाहिए… तुम भी अपना चैकअप कराती रहा करो,’’ रंजीत ने नसीहत देते हुए कहा.

‘‘अच्छा यह बताओ तुम्हारी रिपोर्ट आ गई? सब ठीक तो है न रंजीत? कुछ छिपा तो नहीं रहे हो?’’

‘‘रिपोर्ट आ गई है. सब नौर्मल है. थोड़ा ब्लड प्रैशर बढ़ा हुआ था. उस की दवा खा रहा हूं. चिंता की कोई बात नहीं है,’’ रंजीत बोला.

मैं ने रात को ही व्हाट्सऐप पर गुलाब के फूलों वाली प्रोफाइल पिक्चर लगा दी. रंजीत को गुलाब के फूल बहुत पसंद थे. व्हाट्सऐप पर तो सिर्फ गुडमौर्निंग और गुड नाइट ही होती थी. बाकी बातें तो फोन पर ही होती थीं.

समय पंख लगा कर उड़ रहा था. 1 महीना कब बीत गया, पता ही नहीं चला. मैं अपनेआप को आईने में देखती तो 16 साल की लड़की की तरह शरमा जाती. गाल सिंदूरी हो जाते. चेहरा चमकने लगता.

लताजी के गाने सुनती तो साथ में गुनगुनाने लगती. कभीकभी तो

अपनेआप ही पैर भी थिरकने लगते थे. यह मुझे क्या होता जा रहा था… शायद रंजीत की दोस्ती का खुमार था.

रंजीत ने फोन पर मिलने की अनुमति मांग कर मुझे उलझन में डाल दिया था. उस समय तो मैं ने कह दिया था, सोच कर बताऊंगी,पर मैं तय ही नहीं कर पा रही थी कि उस का फोन आएगा तो मुझे क्या कहना है.

मोबाइल बजने लगा. कांपते हाथ से उठाया. मेरे हैलो बोलने से पहले ही रंजीत ने बोलना शुरू कर दिया, ‘‘लता हम को अब मिल ही लेना चाहिए… जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है. आज है, कल न रहे.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रहे हो? कुछ हुआ है क्या? मैं ने कुछ रुंधी आवाज में पूछा.’’

‘‘नहीं, कुछ नहीं हुआ,’’ रंजीत हंसते हुए बोला, ‘‘इतने दिनों से बस फोन पर ही बातें कर रहे हैं. एक बार मिलना भी तो चाहिए… अब आमनेसामने ही बातें करेंगे.’’

रंजीत ने खुद ही जगह और टाइम तय कर दिया, ‘‘और हां तुम तो मुझे पहचान ही लोगी, एक पैर वाला वहां मेरे सिवा कोई दूसरा नहीं होगा.’’

‘‘पता तुम गुलाबी साड़ी पहन कर आना, पहचानने में आसानी होगी.’’

‘‘गुलाबी साड़ी?’’ मैं ने जोर दे कर कहा.

‘‘गुलाबी नहीं तो किसी और रंग की पहन लेना,’’ रंजीत ने कहा, ‘‘लता कल 4 बजे मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा और हां, अब मैं फोन नहीं करूंगा. आमनेसामने ही बातें करेंगे.’’

मैं कुछ बोल पाती उस से पहले ही उस ने फोन काट दिया. यह रंजीत को क्या हो गया है? मिलने के लिए इतनी जिद क्यों कर रहा है? मेरी बात तो उस ने सुनी ही नहीं, अपना ही राग अलापता रहा.

‘‘गुलाबी साड़ी,’’ मुझे मेरे अतीत में खींच ले गई…

मां ने बताया, मुझे देखने लड़के वाले आ रहे हैं. लड़के का नाम मनोज था, जो इंजीनियर था. मां ने गुलाबी साड़ी देते हुए कहा, ‘‘यह साड़ी पहन लेना रूप निखर कर आएगा.’’

अब मां को कौन समझाए, रूपरंग जैसा है वैसा ही रहेगा. मां उबटन लगाने के लिए भी दे गईं. मां चाह रही थीं किसी भी तरह मैं पसंद आ जाऊं और मेरे हाथ पीले हो जाएं.

शाम को मनोज और उस के मातापिता मुझे देखने के लिए आए. वही दिखावा, चाय की ट्रे ले कर मैं लड़के वालों के सामने उपस्थित हुई. मेरे साथ मेरी छोटी बहन उमा भी थी. उन्होंने 1-2 प्रश्न भी मुझ से पूछे.

मनोज अपने पिता के कान में कुछ फुसफुसाया. देखने मुझे आया था पर नजर उमा पर गड़ाए था. उस की मंशा मैं कुछकुछ समझ

गई थी.

मनोज के पिता मां से बोले, ‘‘हमारे लड़के को आप की छोटी बेटी पसंद है. आप चाहें तो हम अभी शकुन कर देते हैं.’’

मां उठ खड़ी हुई और फिर साफ इनकार करते हुए बोलीं, ‘‘पहले हम बड़ी बेटी का रिश्ता तय करेंगे उस के बाद छोटी बेटी का,’’ और हाथ जोड़ते हुए चले जाने को कहा.

मां अपनी जिद पर अड़ी रहीं. मैं ने उन्हें बहुत समझाया कि जिस की शादी पहले हो रही है होने दो. बड़ी मुश्किल से मां को समझाबुझा कर उमा की शादी मनोज से करवा दी.

मुझे तो जैसे शादी के नाम से ही नफरत सी हो गई थी. मैं ने शादी न करने का फैसला कर लिया. मैं बारबार अपनी नुमाइश नहीं लगाना चाहती थी. मां ने मुझे बहुत समझाया पर मैं अपनी जिद पर अड़ी रही. पढ़ाई पूरी कर के मैं ने एक स्कूल में नौकरी कर ली. मां मेरी शादी की हसरत लिए हुए इस दुनिया से चली गईं.

मैं जिस अतीत से पीछा छुड़ाना चाहती थी, आज वह फिर एक बार मेरे सामने पंख फैला खड़ा हो गया था.

मोबाइल बजते ही मैं अतीत से बाहर आ गई. फोन मेरी छोटी बहन उमा

का था, ‘‘दीदी कैसी हो? आप से बात किए बहुत दिन हो गए… अब तो आप के स्कूल में छुट्टियां चल रही होंगी. कुछ दिनों के लिए यहां आ जाओ… आप का मन भी बदल जाएगा… दीदी आप बोल क्यों नहीं रहीं?’’

‘‘तुम बोलने दोगी तब तो बोलूंगी,’’ मैं ने हंसते हुए कहा.

उमा अपने को मेरा दोषी मानती थी, इसलिए अकसर खुद ही फोन कर लेती थी. मां के जाने के बाद उस के फोन भी आने कम हो गए थे.

घड़ी में 3 बजने का संकेत दिया. मैं बेमन से उठी… रंजीत से मिलने के लिए तैयारी करने लगी.

औटो कर के रंजीत की तय करी जगह पहुंच गई. रंजीत को मेरी आंखें ढूंढ़ने लगीं. उसे ढूंढ़ने में ज्यादा देर नहीं लगी. सामने ही एक कुरसी पर रंजीत बैठा था. पास ही बैसाखी रखी हुई थी. हाथ में गुलाब का ताजा फूल था.

मैं एक पेड़ की ओट में खड़ी हो कर रंजीत को देखने लगी. इस उम्र में भी वह बहुत ही आकर्षक लग रहा था. गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें, चौड़ा सीना, लंबा कद, काले सफेद खिचड़ी वाले बाल, जो उस की मासूमियत और बढ़ा रहे थे.

रंजीत को देख कर मेरे अंदर दबी हीनभावना फिर से जाग्रत हो गई. मन में अजीबअजीब से खयाल आने लगे. रंजीत मुझे देख कर क्या सोचेगा? इस औरत से मिलने के लिए बेचैन था, जिस का न रूप न रंग. मैं ने रंजीत की तरफ से खुद ही सोच लिया.

नहींनहीं, मैं रंजीत के सामने नहीं जा सकती… दूसरी बार नापसंदी का बोझ नहीं झेल पाऊंगी और फिर रंजीत से मिले बिना मैं घर लौट आई. मुझे मालूम था रंजीत बहुत गुस्सा होगा.

घर पहुंची ही थी कि मोबाइल बज उठा. पर्स में से कांपते हाथ से मोबाइल निकाला. दिल जोरजोर से धड़क रहा था. मेरे हैलो बोलने से पहले ही रंजीत गुस्से बोला, ‘‘तुम आई क्यों नहीं?’’

झूठ बोलते हुए मैं ने दबी आवाज में कहा, ‘‘पड़ोस में एक सहेली का ऐक्सिडैंट हो गया था. वहीं थी मैं.’’

‘‘बताना तो था मुझे या वो भी जरूरी नहीं समझा,’’ गुस्से से झल्लाते हुए रंजीत ने फोन काट दिया.

मैं समझ गई रंजीत बहुत ही नाराज है मुझ से. शायद आज मैं ने अपना सब से अच्छा दोस्त खो दिया. भरी आंखों से आंसू गालों तक लुढ़क गए.

सुबह उठ कर सब से पहले व्हाट्सऐप देखा. रंजीत का गुडमौर्निंग नहीं आया था. रोज बदलने वाली प्रोफाइल पिक्चर भी नहीं बदली थी. पूरे दिन में रंजीत ने 1 बार भी व्हाट्सऐप चैक नहीं किया. पूरा दिन निकल गया रंजीत के फोन का इंतजार करते हुए. अब तो रात भी आधी बीत चुकी थी.

मैं ने सोच लिया था सुबह उठ कर सब से पहले रंजीत को फोन कर के माफी मांगूंगी… उसे मना लूंगी. वह फोन नहीं कर रहा तो क्या हुआ? मैं तो उसे कर सकती हूं.

रात जैसेतैसे कटी. सुबह उठते ही व्हाट्सऐप खोल कर देखा. जल्दी में अपना चश्मा

लगाना भी भूल गई, धुंधला सा दिखाई दिया. लगता है रंजीत ने अपनी प्रोफाइल पिक्चर भी बदली है और एक मैसेज भी भेजा है. मेरी आंखें चमक उठी. जान में जान आ गई.

मैं ने जल्दी से अपना चश्मा साइड में रखे स्टूल से उठा कर लगाया और फोटो देखने लगी. यह क्या? रंजीत के फोटो पर फूलों का हार? दिल धक्क से रह गया. जल्दी से मैसेज पढ़ना शुरू किया… आज शाम 4 बजे उठावनी की रम्म है… रंजीत को हार्टअटैक…

इस से ज्यादा पढ़ने की हिम्मत नहीं हुई. आंखें पथरा सी गईं. कलेजा मुंह को आने लगा, दिल जोरजोर से धड़कने लगा… जोर की हिचकी के साथ चीख निकल गई.

‘‘रंजीत मुझे छोड़ कर ऐसे नहीं जा सकते हो… प्लीज एक बार लौट आओ… मैं गुलाबी साड़ी पहन कर ही आऊंगी… हम आमनेसामने बातें करेंगे. मैं तुम से मिलने आऊंगी,’’ विलाप करती रही, फूटफूट कर रोती रही, न कोई देखने वाला न कोई सुनने वाला.

हाय री विडंबना… मेरा अतीत फिर सामने पंख फैलाए दस्तक दे रहा था.

फिर वही बेरंग जिंदगी, उजड़ा चमन, सूनापन, बेजान सा मोबाइल, धूल खाता रेडियो, सबकुछ पहले जैसा… इस सब की जिम्मेदार सिर्फ मैं ही तो थी…

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सूखा पत्ता: संगीता की कौनसी गलती बनी सजा

6 महीने पहले ही रवि की शादी पड़ोस के एक गांव में रहने वाले रघुवर की बेटी संगीता से हुई थी. उस के पिता मास्टर दयाराम ने खुशी के इस मौके पर पूरे गांव को भोज दिया था. अब से पहले गांव में इतनी धूमधाम से किसी की शादी नहीं हुई थी. मास्टर दयाराम दहेज के लोभी नहीं थे, तभी तो उन्होंने रघुवर जैसे रोज कमानेखाने वाले की बेटी से अपने एकलौते बेटे की शादी की थी. उन्हें तो लड़की से मतलब था और संगीता में वे सारे गुण थे, जो मास्टरजी चाहते थे. ढ़ाई के बाद जब रवि की कहीं नौकरी नहीं लगी, तो मास्टर दयाराम ने उस के लिए शहर में मोबाइल फोन की दुकान खुलवा दी. शहर गांव से ज्यादा दूर नहीं था. रवि मोटरसाइकिल से शहर आनाजाना करता था.

शादी से पहले संगीता का अपने गांव के एक लड़के मनोज के साथ जिस्मानी रिश्ता था. गांव वालों ने उन दोनों को एक बार रात के समय रामदयाल के खलिहान में सैक्स संबंध बनाते हुए रंगे हाथों पकड़ा था. गांव में बैठक हुई थी. दोनों को आइंदा ऐसी गलती न करने की सलाह दे कर छोड़ दिया गया था. संगीता के मांबाप गरीब थे. 2 बड़ी लड़कियों की शादी कर के उन की कमर पहले ही टूट हुई थी. उन की जिंदगी की गाड़ी किसी तरह चल रही थी. ऐसे में जब मास्टर दयाराम के बेटे रवि का संगीता के लिए रिश्ता आया, तो उन्हें अपनी बेटी की किस्मत पर यकीन ही नहीं हुआ था. उन्हें डर था कि कहीं गांव वाले मनोज वाली बात मास्टर दयाराम को न बता दें, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ था.

वही बहू अब मनोज के साथ घर से भाग गई थी. रवि को फोन कर के बुलाया गया. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उस की बीवी किसी गैर मर्द के साथ भाग सकती है, उस की नाक कटवा सकती है.

‘‘थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई जाए,’’ बिरादरी के मुखिया ने सलाह दी.

‘‘नहीं मुखियाजी…’’ मास्टर दयाराम ने कहा, ‘‘मैं रिपोर्ट दर्ज कराने के हक में नहीं हूं. रिपोर्ट दर्ज कराने से क्या होगा? अगर पुलिस उसे ढूंढ़ कर ले भी आई, तो मैं उसे स्वीकार कैसे कर पाऊंगा.

‘‘गलती शायद हमारी भी रही होगी. मेरे घर में उसे किसी चीज की कमी रही होगी, तभी तो वह सबकुछ ठुकरा कर चली गई. वह जिस के साथ भागी है, उसी के साथ रहे. मुझे अब उस से कोई मतलब नहीं है.’’

‘‘रवि से एक बार पूछ लो.’’

‘‘नहीं मुखियाजी, मेरा फैसला ही रवि का फैसला है.’’

शहर आ कर संगीता और मनोज किराए का मकान ले कर पतिपत्नी की तरह रहने लगे. संगीता पैसे और गहने ले कर भागी थी, इसलिए उन्हें खर्चे की चिंता न थी. वे खूब घूमते, खूब खाते और रातभर खूब मस्ती करते. सुबह के तकरीबन 9 बज रहे थे. मनोज खाट पर लेटा हुआ था… तभी संगीता नहा कर लौटी. उस के बाल खुले हुए थे. उस ने छाती तक लहंगा बांध रखा था. मनोज उसे ध्यान से देख रहा था. साड़ी पहनने के लिए संगीता ने जैसे ही नाड़ा खोला, लहंगा हाथ से फिसल कर नीचे गिर गया. संगीता का बदन मनोज को बेचैन कर गया. उस ने तुरंत संगीता को अपनी बांहों में भर लिया और चुंबनों की बौछार कर दी. वह उसे खाट पर ले आया. ‘‘अरे… छोड़ो न. क्या करते हो? रातभर मस्ती की है, फिर भी मन नहीं भरा तुम्हारा,’’ संगीता कसमसाई.

‘‘तुम चीज ही ऐसी हो जानेमन कि जितना प्यार करो, उतना ही कम लगता है,’’ मनोज ने लाड़ में कहा.

संगीता समझ गई कि विरोध करना बेकार है, खुद को सौंपने में ही समझदारी है. वह बोली, ‘‘अरे, दरवाजा तो बंद कर लो. कोई आ जाएगा.’’ ‘‘इस वक्त कोई नहीं आएगा जानेमन. मकान मालकिन लक्ष्मी सेठजी के घर बरतन मांजने गई है. रही बात उस के पति कुंदन की, तो वह 10 बजे से पहले कभी घर आता नहीं. बैठा होगा किसी पान के ठेले पर. अब बेकार में वक्त बरबाद मत कर,’’ कह कर मनोज ने फिर एक सैकंड की देर नहीं की. वे प्रेमलीला में इतने मगन थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि बाहर आंगन से कुंदन की प्यासी निगाहें उन्हें देख रही थीं. दूसरे दिन कुंदन समय से पहले ही घर आ गया. जब से उस ने संगीता को मनोज के साथ बिस्तर पर मस्ती करते देखा था, तभी से उस की लार टपक रही थी. उस की बीवी लक्ष्मी मोटी और बदसूरत औरत थी. ‘‘मनोज नहीं है क्या भाभीजी?’’ मौका देख कर कुंदन संगीता के पास आ कर बोला.

‘‘नहीं, वह काम ढूंढ़ने गया है.’’

‘‘एक बात बोलूं भाभीजी… तुम बड़ी खूबसूरत हो.’’

संगीता कुछ नहीं बोली.

‘‘तुम जितनी खूबसूरत हो, तुम्हारी प्यार करने की अदा भी उतनी ही खूबसूरत है. कल मैं ने तुम्हें देखा, जब तुम खुल कर मनोज भैया को प्यार दे रही थीं…’’ कह कर उस ने संगीता का हाथ पकड़ लिया, ‘‘मुझे भी एक बार खुश कर दो. कसम तुम्हारी जवानी की, किराए का एक पैसा नहीं लूंगा.’’

‘‘पागल हो गए हो क्या?’’ संगीता ने अपना हाथ छुड़ाया, पर पूरी तरह नहीं.

‘‘पागल तो नहीं हुआ हूं, लेकिन अगर तुम ने खुश नहीं किया तो पागल जरूर हो जाऊंगा,’’ कह कर उस ने संगीता को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘छोड़ो मुझे, नहीं तो शोर मचा दूंगी,’’ संगीता ने नकली विरोध किया.

‘‘शोर मचाओगी, तो तुम्हारा ही नुकसान होगा. शादीशुदा हो कर पराए मर्द के साथ भागी हो. पुलिस तुम्हें ढूंढ़ रही है. बस, खबर देने की देर है.’’ संगीता तैयार होने वाली ही थी कि अचानक किसी के आने की आहट हुई. शायद मनोज था. कुंदन बौखला कर चला गया. मनोज को शक हुआ, पर कुंदन को कुछ कहने के बजाय उस ने उस का मकान ही खाली कर दिया. उन के पैसे खत्म हो रहे थे. महंगा मकान लेना अब उन के बस में नहीं था. इस बार उन्हें छोटी सी खोली मिली. वह गंगाबाई की खोली थी. गंगाबाई चावल की मिल में काम करने जाती थी. उस का पति एक नंबर का शराबी था. उस के कोई बच्चा नहीं था.

मनोज और संगीता जवानी के खूब मजे तो ले रहे थे, पर इस बीच मनोज ने यह खयाल जरूर रखा कि संगीता पेट से न होने पाए. पैसे खत्म हो गए थे. अब गहने बेचने की जरूरत थी. सुनार ने औनेपौने भाव में उस के गहने खरीद लिए. मनोज को कपड़े की दुकान में काम मिला था, पर किसी बात को ले कर सेठजी के साथ उस का झगड़ा हो गया और उन्होंने उसे दुकान से निकाल दिया. उस के बाद तो जैसे उस ने काम पर न जाने की कसम ही खा ली थी. संगीता काम करने को कहती, तो वह भड़क जाता था. संगीता गंगाबाई के कहने पर उस के साथ चावल की मिल में जाने लगी. सेठजी संगीता से खूब काम लेते, पर गंगाबाई को आराम ही आराम था. वजह पूछने पर गंगाबाई ने बताया कि उस का सेठ एक नंबर का औरतखोर है. जो भी नई औरत काम पर आती है, वह उसे परेशान करता है. अगर तुम्हें भी आराम चाहिए, तो तुम भी सेठजी को खुश कर दो.

‘‘इस का मतलब गंगाबाई तुम भी…’’ संगीता ने हैरानी से कहा.

‘‘पैसों के लिए इनसान को समझौता करना पड़ता है. वैसे भी मेरा पति ठहरा एक नंबर का शराबी. उसे तो खुद का होश नहीं रहता, मेरा क्या खयाल करेगा. उस से न सही, सेठ से सही…’’

संगीता को गंगाबाई की बात में दम नजर आया. वह पराए मर्द के प्यार के चक्कर में भागी थी, तो किसी के भी साथ सोने में क्या हर्ज? अब सेठ किसी भी बहाने से संगीता को अपने कमरे में बुलाता और अपनी बांहों में भर कर उस के गालों को चूम लेता. संगीता को यह सब अच्छा न लगता. उस के दिलोदिमाग पर मनोज का नशा छाया हुआ था. वह सोचती कि काश, सेठ की जगह मनोज होता. पर अब तो वह लाचार थी. उस ने समझौता कर लिया था. कई बार वह और गंगाबाई दोनों सेठ को मिल कर खुश करती थीं. फिर भी उन्हें पैसे थोड़े ही मिलते. सेठ ऐयाश था, पर कंजूस भी. एक दिन मनोज बिना बताए कहीं चला गया. संगीता उस का इंतजार करती रही, पर वह नहीं आया. जिस के लिए उस ने ऐशोआराम की दुनिया ठुकराई, जिस के लिए उस ने बदनामी झेली, वही मनोज उसे छोड़ कर चला गया था.

संगीता पुरानी यादों में खो गई. मनोज संगीता के भैया नोहर का जिगरी दोस्त था. उस का ज्यादातर समय नोहर के घर पर ही बीतता था. वे दोनों राजमिस्त्री का काम करते थे. छुट्टी के दिन जीभर कर शराब पीते और संगीता के घर मुरगे की दावत चलती. मनोज की बातबात में खिलखिला कर हंसने की आदत थी. उस की इसी हंसी ने संगीता पर जादू कर दिया था. दोनों के दिल में कब प्यार पनपा, पता ही नहीं चला. संगीता 12वीं जमात तक पढ़ चुकी थी. उस के मांबाप तो उस की पढ़ाई 8वीं जमात के बाद छुड़ाना चाहते थे, पर संगीता के मामा ने जोर दे कर कहा था कि भांजी बड़ी खूबसूरत है. 12वीं जमात तक पढ़ लेगी, तो किसी अच्छे घर से रिश्ता आ जाएगा. पढ़ाई के बाद संगीता दिनभर घर में रहती थी. उस का काम घर का खाना बनाना, साफसफाई करना और बरतन मांजना था. मांबाप और भैया काम पर चले जाते थे. नोहर से बड़ी 2 और बहनें थीं, जो ब्याह कर ससुराल चली गई थीं.

एक दिन मनोज नशे की हालत में नोहर के घर पहुंच गया. दोपहर का समय था. संगीता घर पर अकेली थी. मनोज को इस तरह घर में आया देख संगीता के दिल की धड़कन तेज हो गई. उन्होंने इस मौके को गंवाना ठीक नहीं समझा और एकदूसरे के हो गए. इस के बाद उन्हें जब भी समय मिलता, एक हो जाते. एक दिन नोहर ने उन दोनों को रंगे हाथों पकड़ लिया. घर में खूब हंगामा हुआ, लेकिन इज्जत जाने के डर से संगीता के मांबाप ने चुप रहने में ही भलाई समझी, पर मनोज और नोहर की दोस्ती टूट गई  संगीता और मनोज मिलने के बहाने ढूंढ़ने लगे, पर मिलना इतना आसान नहीं था. एक दिन उन्हें मौका मिल ही गया और वे दोनों रामदयाल के खलिहान में पहुंच गए. वे दोनों अभी दीनदुनिया से बेखबर हो कर एकदूसरे में समाए हुए थे कि गांव के कुछ लड़कों ने उन्हें पकड़ लिया.

समय गुजरा और एक दिन मास्टर दयाराम ने अपने बेटे रवि के लिए संगीता का हाथ मांग लिया. दोनों की शादी बड़ी धूमधाम से हो गई. संगीता ससुराल आ गई, पर उस का मन अभी भी मनोज के लिए बेचैन था. पति के घर की सुखसुविधाएं उसे रास नहीं आती थीं. दोनों के बीच मोबाइल फोन से बातचीत होने लगी. संगीता की सास जब अपने गांव गईं, तो उस ने मनोज को फोन कर के बुला लिया और वे दोनों चुपके से निकल भागे. अब संगीता पछतावे की आग में झुलस रही थी. उसे अपनी करनी पर गुस्सा आ रहा था. गरमी का मौसम था. रात के तकरीबन 10 बज रहे थे. उसे ससुराल की याद आ गई. ससुराल में होती, तो वह कूलर की हवा में चैन की नींद सो रही होती. पर उस ने तो अपने लिए गड्ढा खोद लिया था.

उसे रवि की याद आ गई. कितना अच्छा था उस का पति. किसी चीज की कमी नहीं होने दी उसे. पर बदले में क्या दिया… दुखदर्द, बेवफाई. संगीता सोचने लगी कि क्या रवि उसे माफ कर देगा? हांहां, जरूर माफ कर देगा. उस का दिल बहुत बड़ा है. वह पैर पकड़ कर माफी मांग लेगी. बहुत दयालु है वह. संगीता ने अपनी पुरानी दुनिया में लौटने का मन बना लिया. ‘‘गंगाबाई, मैं अपने घर वापस जा रही हूं. किराए का कितना पैसा हुआ है, बता दो?’’ संगीता ने कहा.

‘‘संगीता, मैं ने तुम्हें हमेशा छोटी बहन की तरह माना है. मैं तेरी परेशानी जानती हूं. ऐसे में मैं तुम से पैसे कैसे ले सकती हूं. मैं भी चाहती हूं कि तू अपनी पुरानी दुनिया में लौट जा. मेरा आशीर्वाद है कि तू हमेशा सुखी रहे.’’ मन में विश्वास और दिल के एक कोने में डर ले कर जब संगीता बस से उतरी, तो उस का दिल जोर से धड़क रहा था. वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे पहचाने, इसलिए उस ने साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढक लिया था. जैसे ही वह घर के पास पहुंची, उस के पांव ठिठक गए. रवि ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया तो… उस ने उस दोमंजिला पक्के मकान पर एक नजर डाली. लगा जैसे अभीअभी रंगरोगन किया गया हो. जरूर कोई मांगलिक कार्यक्रम वगैरह हुआ होगा.

‘‘बहू…’’ तभी संगीता के कान में किसी औरत की आवाज गूंजी. वह आवाज उस की सास की थी. उस का दिल उछला. सासू मां ने उसे घूंघट में भी पहचान लिया था. वह दौड़ कर सासू मां के पैरों में गिरने को हुई, लेकिन इस से पहले ही उस की सारी खुशियां पलभर में गम में बदल गईं.

‘‘बहू, रवि को ठीक से पकड़ कर बैठो, नहीं तो गिर जाओगी.’’

संगीता ने देखा, रवि मोटरसाइकिल पर सवार था और पीछे एक औरत बैठी हुई थी. संगीता को यह देख कर धक्का लगा. इस का मतलब रवि ने दूसरी शादी कर ली. उस का इंतजार भी नहीं किया. इस से पहले कि वह कुछ सोच पाती, मोटरसाइकिल फर्राटे से उस के बगल से हो कर निकल गई. संगीता ने उन्हें देखा. वे दोनों बहुत खुश नजर आ रहे थे. तभी वहां एक साइकिल सवार गुजरा. संगीता ने उसे रोका, ‘‘चाचा, अभी रवि के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर गई वह औरत कौन है?’’

‘‘अरे, उसे नहीं जानती बेटी? लगता है कि इस गांव में पहली बार आई हो. वह तो रवि बाबू की नईनवेली दुलहन है.’’

‘‘नईनवेली दुलहन?’’

‘‘हां बेटी, वह रवि बाबू की दूसरी पत्नी है. पहली पत्नी बड़ी चरित्रहीन निकली. अपने पुराने प्रेमी के साथ भाग गई. वह बड़ी बेहया थी. इतने अच्छे परिवार को ठोकर मार कर भागी है. कभी सुखी नहीं रह पाएगी,’’ इतना कह कर वह साइकिल सवार आगे बढ़ गया. संगीता को लगा, उस के पैर तले की जमीन खिसक रही है और वह उस में धंसती चली जा रही है. अब उस से एक पल भी वहां रहा नहीं गया. जिस दुनिया में लौटी थी, वहां का रास्ता हमेशा के लिए बंद हो चुका था. उसे चारों तरफ अंधेरा नजर आने लगा था. तभी संगीता को अंधेरे में उम्मीद की किरण नजर आने लगी… अपना मायका. सारी दुनिया भले ही उसे ठुकरा दे, पर मायका कभी नहीं ठुकरा सकता. भारी मन लिए वह मायके के लिए निकल पड़ी. किवाड़ बंद था. संगीता ने दस्तक दी. मां ने किवाड़ खोला.

‘‘मां…’’ वह जैसे ही दौड़ कर मां से लिपटने को हुई, पर मां के इन शब्दों ने उसे रोक दिया, ‘‘अब यहां क्या लेने आई है?’’

‘‘मां, मैं यहां हमेशा के लिए रहने आई हूं.’’

‘‘हमारी नाक कटा कर भी तुझे चैन नहीं मिला, जो बची इज्जत भी नीलाम करने आई है. यह दरवाजा अब तेरे लिए हमेशा के लिए बंद हो चुका है.’’

‘‘नहीं मां….’’ वह रोने लगी, ‘‘ऐसा मत कहो.’’

‘‘तू हम सब के लिए मर चुकी है. अच्छा यह है कि तू कहीं और चली जा,’’ कह कर मां ने तुरंत किवाड़ बंद कर दिया.

संगीता किवाड़ पीटने लगी और बोली, ‘‘दरवाजा खोलो मां… दरवाजा खोलो मां…’’ पर मां ने दरवाजा नहीं खोला. भीतर मां रो रही थी और बाहर बेटी. संगीता को लगा, जैसे उस का वजूद ही खत्म हो चुका है. उस की हालत पेड़ से गिरे सूखे पत्ते जैसी हो गई है, जिसे बरबादी की तेज हवा उड़ा ले जा रही है. दूर, बहुत दूर. इस सब के लिए वह खुद ही जिम्मेदार थी. उस से अब और आगे बढ़ा नहीं गया. वह दरवाजे के सामने सिर पकड़ कर बैठ गई और सिसकने लगी. अब गंगाबाई के पास लौटने और सेठ को खुश रखने के अलावा कोई चारा नहीं था… पर कब तक?

इस हाथ ले, उस हाथ दे: क्या अपनी गलती समझ पाया वरुण

वरुण और अनुज के पिता ने जीवन भर की भागदौड़ के बाद एक बड़ा कारखाना लगाया था. उन की रेडीमेड कपड़ों की फैक्टरी तिरुपुर में थी, जहां मुंबई से रेल में जाने पर काफी समय लगता था. हवाई जहाज से जाने पर पहले कोयंबटूर जाना पड़ता था. उन दिनों मुंबई से कोयंबटूर के लिए हफ्ते में केवल एक उड़ान थी, अत: वरुण प्राय: वहां महीने में एक बार जाता था. वरुण  को कपड़ों के एक्सपोर्ट के सिलसिले में आस्टे्रलिया व अमेरिका भी साल में 2-3 बार जाना पड़ता. पिता मुंबई आफिस व ऊपर का सारा काम देखते, वरुण फैक्टरी व भागदौड़ का काम देखता था. अनुज अपने बड़े भाई वरुण से करीब 10 साल छोटा था और अब कालिज में दाखिल हो चुका था.

वरुण का विवाह काफी साल पहले साधना से हो चुका था. उस के 1 लड़का व 2 लड़कियां यानी कुल 3 बच्चे थे. तीसरे बच्चे के होने तक साधना पूजापाठ, व्रतउपवास व तीर्थयात्रा आदि में अधिक समय बिताने लगी, धार्मिक मनोवृत्ति उस की शुरू से ही थी. पतिपत्नी की रुचियों में भारी अंतर होने के चलते ही दोनों में काफी तनातनी रहने लगी.

वरुण का धंधा एक्सपोर्ट का था और चेंबर औफ कौमर्स की सभाओंपार्टियों में उसे हफ्ते में एक बार तो जाना ही पड़ता था. ऐसी पार्टियों में शराब व डांस आदि का सिलसिला जोर से चलता था. इस वातावरण में धार्मिक प्रवृत्ति की साधना का दम घुटता था. यह देख कर कि कोई मर्द दूसरी औरत को छाती से चिपका कर नाचता. चूंकि यह सब आम दस्तूर की बातें थीं, जो उसे कतई रास न आतीं.

शुरुआत में तो साधना अकेली टेबल पर बैठी रहती और वरुण दूसरी औरतों के साथ नाचता रहता. साधना न तो इतनी देर रात की कायल थी, न ही वह ससुर व बच्चों को अकेले छोड़ना चाहती थी. अब तो उस ने ऐसी पार्टियों में जाना ही बंद कर दिया तो वरुण पहले से और भी अधिक खुल गया और 1-2 महिलाओं से उस का संबंध भी हो गया, जिस के लिए उसे छोटे होटलों में जाना पड़ता. धंधे के नाम पर सब ढका रहता.

अनुज अब एम.बी.ए. कर चुका था. शादी के बाद वह घर के धंधे में ही हाथ बटाना चाहता था. वरुण ने शुरूशुरू में तो उसे ऊपर का काम बताया, पर बाद में उसे फैक्टरी को संभालने के काम से तिरुपुर भेजने लगा. अनुज का विवाह चंदा से हुआ, जो ग्वालियर के एक व्यापारी की लड़की थी.

चंदा साधना से ठीक उलटे स्वभाव की निकली. उसे आएदिन पार्टियों में जाने, नए फैशन व गहनों का बेहद शौक था. उस की उलझन सामने आने लगी क्योंकि अनुज अब ज्यादातर कंपनी के काम से बाहर रहने लगा. एकाध बार बेहद आवश्यक पार्टी में वरुण साधना के न जाने पर चंदा को ले गया. साथ में 1-2 बार दोनों ने डांस भी किया जिस से चंदा की झिझक जाती रही.

शेर जब खून चख लेता है तो फिर उस के पीछे पड़ जाता है. पिता के साथ दोनों भाई एक ही मकान में रहते थे. दोनों भाइयों के रहने के हिस्से अलगअलग थे, पर सभी कमरे ड्राइंगरूम में खुलते थे. वरुण ऊपर से तो शालीन नजर आता, पर एकांत में चंदा से थोड़ाबहुत मजाक कर बैठता. चंदा को इस प्रकार की छेड़खानी अच्छी लगती थी, उस से आगे दोनों ने ही कुछ सोचाविचारा न था.

एक दिन शाम को क्लब में दोनों ही एकाएक स्वीमिंग पूल में साथ हो लिए. वरुण वैसे तो अकसर सुबह क्लब जाता था और चंदा कभीकभी शाम को. साधना यथावत शाम को कहीं न कहीं भजनकीर्तन में जाती थी और भोजन के वक्त आ जाती. उसे इस मामले में कुछ भी सुराग न था, वह अपने नित्यकर्म में मस्त रहती.

स्वीमिंग देर शाम को हो रही थी, अत: पानी के नीचे क्या हो रहा है, दिखाई नहीं देता. पहले तो दोनों साधारण गपशप करते रहे, फिर खेलखेल में तैरने व दोनों के बीच अठखेलियां होने लगीं. वरुण ने पानी में ही उस के वक्ष पर इस तरह हाथ लगाया, जैसे अनजाने में लगा हो. इस पर चंदा मुसकरा कर और तेजी से तैरने लगी. इस प्रकार दोनों तैर कर बगल में बने हुए गरम पानी के जकूजी में गए, जहां तैरने के  बाद नहाने से पहले जा कर तैरने वाले रिलैक्स होते थे.

वरुण चंदा के पांव धीरेधीरे सहलाने लगा, मानो उस की थकावट मिटा रहा हो. बाद में वह चंदा का हाथ ले कर अपने शरीर पर फिरवाने लगा. उत्तेजना में दोनों काफी देर तक एकदूसरे के साथ अंगीकरण के बाद जब शांत हुए तो चुपचाप अपनाअपना टावल ले कर चल दिए. दोनों अलगअलग गाडि़यों में जैसे वहां आए थे, वैसे ही आगेपीछे घर पहुंचे. अब तो दोनों का हौसला बढ़ गया. देर रात को सब के सोने के बाद वरुण अपना डे्रसिंग गाउन पहन कर इस तरह कमरे से निकलता मानो ड्राइंगरूम में जा रहा हो. घंटे आधघंटे मस्ती व आलिंगन के बाद वह वापस आ कर सो जाता.

साधना को पहले तो काफी अरसे तक कुछ पता नहीं चला. इन दिनों वरुण का ब्लड प्रेशर भी हाई रहने लगा था और उस की शराब व जिंदगी के तौरतरीके से डाक्टर ने वार्षिक टेस्ट होने पर उसे चेतावनी दी कि उसे अब उत्तेजनात्मक व भागदौड़ की टेंशन से बचना होगा. दवा लेने के बावजूद वरुण का ब्लड प्रेशर 180/120 पर रहने लगा, पर जीवन को नियंत्रित करना कोई सहज खेल नहीं है. यू टर्न के लिए बहुत धीमी गति व काफी फासले की जरूरत रहती है, पर इस के लिए मन में आभास होने पर दृढ़ निश्चय करना होता है जोकि उस के बस की बात नहीं थी.

एक रात को सहसा पलंग सूना देख साधना देखने गई कि कहीं वरुण की तबीयत तो नहीं खराब हो गई. थोड़ी देर में वह चंदा के कमरे से निकला तो साधना को मानो सांप ही सूंघ गया. वह गश खा कर बेहोश हो गिर गई. ललाट फटने से खून बह निकला. बड़ी मुश्किल से अस्पताल में टांके व मरहमपट्टी करवा कर वरुण उसे खिसियाए मुंह घर ले आया. उस ने साधना से वादा भी किया कि यह भूल अब कभी नहीं होगी, वह तो केवल 5 मिनट के लिए चंदा के कमरे से कुछ आवाज आने पर उसे देखने गया था. और वह कहता भी क्या?

साधना गंभीर व समझदार तो थी ही, बात को बढ़ाने में उस ने कोई लाभ नहीं समझा. वरुण अब चंदा से कतरा कर आफिस की एक लड़की के साथ किसी होटल में जाता. एक बार उसे इसी क्रिया में जबरदस्त हार्टअटैक आया और बेहोशी की हालत में लड़की ने उसे अस्पताल में भरती करा कर घर वालों को फोन किया कि दफ्तर में वरुण का जी घबराने से वह उसे डाक्टर के पास ले जा रही थी कि रास्ते में ही हालत खराब हो गई.

वरुण को हार्टअटैक बहुत जोर का पड़ा था, साथ ही ब्लड प्रेशर की मार से दाएं अंग में लकवा आ गया. 52 साल की उम्र में ही उस के जीवन में उल्कापात हुआ, करीब 6 महीने की साधना व फिजियोथेरैपी से वह बच तो गया, पर चलनेफिरने व यात्रा करने से मजबूर हो गया. अब वह घर पर ही पड़ा रहता और साधना उस की मन से सेवा करती. रात के लिए एक नर्स अलग से रखी गई थी, ताकि 24 घंटे वरुण की देखभाल हो सके.

पिता ने अनुज को कंपनी का चार्ज दे दिया. साधना ने एक दिन भी पति को खरीखोटी नहीं सुनाई, बल्कि धीरज व धैर्य से उसे रहने की हिदायत देती रहती और मदद करती रहती. वरुण अब देखने में 65-70 साल का दिखने लगा है. वापस पुरानी ऊर्जा व स्फूर्ति अब उसे कभी नहीं मिलेगी, ऐसा सभी डाक्टरों ने कह दिया.

बिदाई- भाग 1: क्यों मिला था रूहानी को प्यार में धोखा

‘‘मां मैं ने ठान लिया है कि मैं अभिनेत्री ही बनूंगी. अच्छा होगा आप और पापा भी मेरे इस निर्णय में मेरा साथ दो. वैसे भी जब मैं ने निर्णय ले ही लिया है तो करूंगी तो मैं वही,’’ रूहानी का सुर सख्त था. वह शुरू से अडि़यल रही थी. बड़ा होने के साथ, जल्द से जल्द पैसा और शोहरत पाने की धुन ने उसे और भी कठोर बना दिया था. मातापिता का उस के निर्णय में साथ देने या न देने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था. जब से उस की एक सहेली ने उसे एक एजेंट से मिलवाया था और उस एजेंट ने रूहानी को टैलीविजन पर उच्च कोटि की अभिनेत्री बनवाने के सुनहरे ख्वाब दिखाए थे, तब से रूहानी लगातार वही सपना देख रही थी. वह एजेंट भी लगभग रोज ही उसे फोन करता और जल्दी नोएडा पहुंचने को कहता. रूहानी भी उसी समय अपने मातापिता से जिद करने लगती.

‘‘मैं कहती हूं जी, यदि हम रूहानी को अपने साथ, अपने पास रखना चाहते हैं, तो हमें उस का साथ देना चाहिए वरना 18 वर्ष की तो वह हो ही गई है… घर छोड़ कर चली गई तो हम क्या कर पाएंगे?’’ उस की जिद के आगे मां ने हार मान ली थी. अब वे अपनी बेटी को खोना नहीं चाहती थीं, इसलिए उस के पिता को समझाबुझा रही थीं.

‘‘क्या तुम जानती नहीं हो कि वह कैसी दुनिया है… जितनी चकाचौंध है, उतना ही तनाव भी… जितना पैसा है, उतनी ही प्रतिस्पर्धा भी. जितनी जल्दी शोहरत मिलती है, उतना ही कठिन उस शोहरत को अपने पास बनाए रखना होता है. तुम्हें लगता है कि रूहानी इतनी कठिन जिंदगी जी पाएगी? और नोएडा यहां रखा है क्या? कितनी दूर है हमारे शहर से. वहां अकेली कैसे रहेगी वह?’’ पिता अब भी राजी न थे. लेकिन वयस्क बेटी की जिद के आगे कब तक टिक पाते?

रूहानी ने अपना बोरियाबिस्तर बांधा और निकल पड़ी घर से. पटरियों पर तेजी से दौड़ती ट्रेन से खिड़की से बाहर झांकते हुए, भागते हुए पेड़ों के साथ उस के मानसपटल पर अतीत के क्षण भी दौड़ने लगे…

कैसे उस एजेंट ने रूहानी को देखते ही 2-3 टीवी धारावाहिकों की बात कह डाली थी, ‘‘अरे रूहानी, तुम एक बार नोएडा आओ तो सही, औडिशन में तुम्हारा नंबर लगाना मेरा काम है… मैं दावे से कह सकता हूं कि तुम्हारा चयन हो जाएगा. फिर तुम्हें एक मैनेजर की आवश्यकता पड़ेगी… चलो, उस का इंतजाम भी कर दूंगा. अब बस, रातोंरात स्टार बनने की तैयारी कर लो, डार्लिंग.’’

ट्रेन में अकेले नोएडा जाते हुए वह सोचती जा रही थी, ‘आज मैं इस भीड़ का हिस्सा हूं. मुझे कोई नहीं जानता. मैं भी इन लोगों में, इन्हीं की तरह खो गई हूं, लेकिन वह दिन दूर नहीं जब मैं इसी भीड़ की रोल मौडल होऊंगी,’ मन ही मन मुसकराती रूहानी पर किसी का ध्यान नहीं था.

आज वाकई वह इस भीड़ का हिस्सा थी. लेकिन भविष्य किस ने देखा है? शायद इसीलिए भविष्य के सपने सजानादिखाना आसान है. बहुत सी दुकानें इसी स्वप्निल भविष्य को बेच रही हैं… बहुत से लोग दूसरों के भविष्य को दिखा कर अपना वर्तमान सुधार रहे हैं.

नोएडा पहुंचते ही रूहानी ने उस एजेंट से संपर्क साधा. फिर उसी ने रूहानी को नोएडा से सटे एक सस्ते से गांव में पीजी में एक कमरा दिलवा दिया. रूहानी के साथ वहां 3 लड़कियां और रहती थीं.

कमरे की हालत देख रूहानी के सपने थोड़े चटकने लगे. बोली, ‘‘आप ने तो कहा था कि आप मुझे रातोंरात स्टार बना दोगे, पर यहां तो…’’

‘‘डोंट बी सिली रूहानी, स्टार बनने में मेहनत लगती है… पहले पेड़ उगाओ, फिर आम खाना. खैर, छोड़ो ये फुजूल की बातें, मैं ने कल तुम्हारे लिए एक औडिशन में नंबर लगाया है. ठीक 10 बजे पहुंच जाना इस पते पर,’’ वह उसे पता लिखा कागज पकड़ा गया.

सुबहसुबह तैयार हो रूहानी निश्चित समय पर निर्धारित स्थान पहुंच गई. नई जगह, नई संस्कृति. रूहानी थोड़ा असहज अनुभव कर रही थी. वहां लंबी कतार लगी थी. रूहानी का नंबर आतेआते तीसरा पहर आ गया.

भूखीप्यासी रूहानी थकान से बेहाल थी. अपना नाम पुकारे जाने पर चेहरा थोड़ा संवार कर वह अंदर पहुंची. जो लाइनें उसे दी गई थीं, उन्हें उस ने याद कर लिया था, किंतु पहली बार कैमरे के सामने बोलने के कारण उस के चेहरे पर कोई हावभाव न आ पाए. एक रोबोट की भांति उस ने लाइनें बोल दीं. जाहिर है वह उस औडिशन में नहीं चुनी गई. एक तो अनुत्तीर्ण होने का दुख, ऊपर से एजेंट से अच्छीखासी डांट सुननी पड़ी, वह अलग. एजेंट उसे अलगअलग जगह औडीशन पर भेजता, किंतु कैमरे के सामने आते ही पता नहीं रूहानी को क्या हो जाता. इसी भागदौड़ में 3 माह गुजर गए. घर से जो पैसे लाई थी, वे खत्म होने लगे थे. साथ रह रही अन्य लड़कियों का भी यही हाल था. सभी इस रुपहली दुनिया का हिस्सा बनने आई थीं, किंतु कामयाबी किसी के भी हाथ नहीं लग रही थी.

रूहानी के चेहरे का फायदा उठाने और कैमरे के प्रति उस की झिझक मिटाने हेतु एजेंट ने पहले उस से मौडलिंग करवाने की सोची. नियत समय पर रूहानी मालवीय नगर की गलियों में स्थित मौडलिंग एजेंसी पहुंच गई. वहां भी लड़कियों की लंबी कतार. वहां का एजेंट बेशर्मी से लड़कियों के बदन को छू रहा था. हर लड़की के बदन के हर हिस्से का नाप ले रहा था और जोरजोर से उसे दूसरे लड़के को बताता जा रहा था, जो उसे एक कागज पर लड़कियों के नाम के आगे लिखता जा रहा था.

हद तो तब हुई जब उस ने रूहानी के आगे खड़ी लड़की के नितंब दबा कर पूछा, ‘‘असली हैं?’’

रूहानी के लिए यह सब अप्रत्याशित था. लेकिन कहते हैं न भट्टी में तप कर ही सोना कंचन बनता है. धीरेधीरे रूहानी भी ऐसे कल्चर की आदी हो गई. उस की झिझक खुलने लगी. उस के हावभाव, उस की भावभंगिमा में खुलापन आ गया. छोटेमोटे विज्ञापन कर कुछ पैसा भी आने लगा था. इस शहर में रहना अब रूहानी के लिए संभव होता जा रहा था.

शायद रूहानी के एजेंट ने अपना लक्ष्य पाने को सही मार्ग अपनाया था. कुछ था उस की आंखों में, उस के चेहरे में जो उस एजेंट ने भांप लिया था. रूहानी को उस ने फिर एक टीवी धारावाहिक के औडिशन हेतु भेजा.

इस बार रूहानी के सपने सिर्फ हवाई नहीं थे. रूहानी को एक छोटा रोल मिल गया, लीड ऐक्ट्रैस की ननद की भूमिका निभाने का.

शुरू में रूहानी को यह काम भी और कामों जैसा ही प्रतीत हुआ जैसे दफ्तर जा रही हो. उतनी ही मेहनत, वैसी ही समयसारिणी, बल्कि छुट्टियां उस से कहीं कम. न कोई शनिवार, न कोई इतवार…चाहे बुखार ही क्यों न आ जाए. दवा फांको और चलो काम पर. किंतु जैसेजैसे उस धारावाहिक की टीआरपी बढ़ने लगी, लोग उस के किरदार को पहचानने लगे. रूहानी का मकानमालिक अब उस से तमीज से पेश आता. कभीकभार उस के बच्चे, अपने मित्रों सहित रूहानी के साथ सैल्फी लेने चले आते.

उसे अच्छा लगता जब उस का एजेंट उसे किसी भी वेशभूषा में बाजार जाने से मना करता, ‘‘अब तुम एक सैलिब्रिटी हो, डार्लिंग, यों उठ कर अब तुम मार्केट नहीं जा सकती हो… अपना सामान औनलाइन और्डर कर दिया करो.’’

धारावाहिक करतेकरते रूहानी को 1 साल होने को आ रहा था. इस बीच अपने मातापिता से उस का संपर्क बहुत ही कम रह गया था. क्या करती समय ही नहीं था उस के पास. जब कभी मिलना होता तब उस के मातापिता ही चले आते उस के पास. लेकिन तब भी वह उन के साथ बहुत ही कम समय व्यतीत कर पाती.

तेजाब- भाग 2: प्यार करना क्या चाहत है या सनक?

‘‘प्यार नहीं तो साथ रहने की क्या तुक? आज मु झे अपने पिता की रत्तीभर याद नहीं आती. उम्र के इस पड़ाव पर मैं सोचती हूं मेरी जिंदगी है, चाहे जैसे जिऊं. उन्होंने भी अपने समय में यही सोचा होगा? पर तुम इतना सीरियस क्यों हो?’’

‘‘क्रिस्टोफर, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. ताउम्र तुम्हारा साथ चाहिए मु झे,’’ मैं भावुक हो गया. क्रिस्टोफर हंसने लगी.

‘‘मैं भाग कहां रही हूं? इंडिया आतीजाती रहूंगी. अभी तो मेरा प्रोजैक्ट अधूरा है.’’

‘‘यह मेरे सवाल का जवाब नहीं है. तुम्हारे बगैर जी नहीं सकूंगा.’’

‘‘तुम इंडियन शादी के लिए बहुत उतावले होते हो. शादी का मतलब भी जानते हो?’’ क्रिस्टोफर का यह सवाल मु झे बचकाना लगा. अब वह मु झे शादी का मतलब सम झाएगी? मेरा मुंह बन गया. मेरा चेहरा देख कर क्रिस्टोफर मुसकरा दी. मैं और चिढ़ गया.

‘‘क्यों अपना मूड खराब करते हो. यहां हम लोग एंजौय करने आए हैं. शादी कर के बंधने से क्या मिलने वाला है?’’

‘‘तुम नहीं सम झोगी. शादी जिंदगी को व्यवस्थित करती है.’’

‘‘ऐसा तुम सोचते हो, मगर मैं नहीं. मेरी तरफ से तुम स्वतंत्र हो.’’

‘‘तुम अच्छी तरह सम झती हो कि मैं सिर्फ तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘तब तो तुम को इंतजार करना होगा. जब मु झे लगेगा कि तुम मेरे लिए अच्छे जीवनसाथी साबित होगे, तो मैं तुम से शादी कर लूंगी. मैं किसी दबाव में आने वाली नहीं.’’

‘‘मैं तुम पर दबाव नहीं डाल रहा.’’

‘‘फिर इतनी जल्दबाजी की वजह?’’

‘‘मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता. क्या तुम मु झ से प्रेम नहीं करतीं?’’

‘‘प्रेम और शादी एक ही चीज है?’’

‘‘प्रेम की परिणति क्या है?’’

‘‘शादी?’’ वह हंस पड़ी. जब रुकी तो बोली, ‘‘मैं तुम्हें एक अच्छा दोस्त मानती हूं. एक बेहतर इंडियन दोस्त.’’

‘‘और कुछ नहीं?’’

‘‘और क्या?’’

‘‘हमारे बीच जो शारीरिक संबंध बने उसे किस रूप में लेती हो?’’

‘‘वे हमारी शारीरिक जरूरतें थीं. इस को ले कर मैं गंभीर नहीं हूं. यह एक सामान्य घटना है मेरे लिए.’’

क्रिस्टोफर के कथन से मेरे मन में निराशा के भाव पैदा हो गए. इस के बावजूद मेरे दिल में उस के प्रति प्रेम रत्तीमात्र कम नहीं हुआ. वह भले ही मु झे पेरिस न ले जाए, मैं ने कभी भी इस लोभ में पड़ कर उस से प्रेम नहीं किया. मैं ने सिर्फ क्रिस्टोफर की मासूमियत और निश्च्छलता से प्रेम किया था. आज के समय में वह मेरे लिए सबकुछ थी. मैं ने उस के लिए सब को भुला दिया. मेरे चित्त में हर वक्त उसी का चेहरा घूमता था. एक क्षण वह आंखों से ओ झल होती तो मैं भाग कर उसे खोजता.

‘‘यहां हूं बारामदे में,’’ क्रिस्टोफर बोली तो मैं तेजी से चल कर उस के पास आया और उसे बांहों में भर लिया.

‘‘बिस्तर पर नहीं पाया, इसलिए घबरा गया था,’’ मैं बोला.

‘‘चिंता मत करो. मैं पेरिस में नहीं, तुम्हारे साथ नैनीताल के एक होटल में हूं. तुम्हारे बिना लौटना क्या आसान होगा?’’ वह हंसी.

‘‘आसान होता तो क्या अकेली चली जाती?’’ मेरा चेहरा बन गया. क्रिस्टोफर ने मेरे चेहरे को पढ़ लिया.

‘‘उदास मत हो. वर्तमान में रहना सीखो. अभी तो मैं तुम्हारे सामने हूं, डार्लिंग.’’ क्रिस्टोफर ने मु झे आलिंगनबद्ध कर लिया. मेरे भीतर का भय थोड़ा कम हुआ. एक हफ्ते बाद हम दोनों बनारस आए. 2 दिनों बाद क्रिस्टोफर ने बताया कि उसे पेरिस जाना होगा. 10 दिनों बाद लौटेगी. सुन कर मेरा दिल बैठ गया. उस के बगैर एक क्षण रहना मुश्किल था मेरे लिए. 10 दिन तो बहुत थे. क्रिस्टोफर अपना सामान बांध रही थी. इधर मैं उस की जुदाई में डूबा जा रहा था. क्या पता क्रिस्टोफर न लौटे? सोचसोच कर मैं परेशान हुआ जा रहा था. जब नहीं रहा गया तो पूछ बैठा, ‘‘लौट कर आओगी न,’’ कहतेकहते मेरा गला भर आया.

‘‘आऊंगी, जरूर आऊंगी,’’ उस ने आऊंगी पर जोर दे कर कहा.

वह चली गई. मैं घंटों उस की याद में आंसू बहाता रहा. 10 दिन 10 साल की तरह लगे. न खाने का जी करता न ही सोने का. नींद तो जैसे मु झ से रूठ ही गई थी. ऐसे में स्कैचिंग का प्रश्न ही नहीं उठता. मेरी दुर्दशा मेरे मम्मीपापा से देखी नहीं गई. उन्होंने मु झे सम झाने का प्रयास किया. उसे भूलने को कहा. क्या यह संभव था? मैं ने अपनेआप को एक कमरे में बंद कर लिया था. क्रिस्टोफर की फोटो अपने सीने से लगाए उस के साथ बिताए पलों को याद कर अपना जी हलका करने की कोशिश करने लगा.

पूरे एक महीने बाद एक सुबह अचानक क्रिस्टोफर ने मेरे घर पर दस्तक दी. उसे सामने पा कर मैं बेकाबू हो गया. उसे बांहों में भर कर चूमने लगा. क्रिस्टोफर को मेरा यह व्यवहार अमर्यादित लगा.

‘‘यह क्या बदतमीजी है?’’ क्रिस्टोफर ने खुद को मु झ से अलग करने की कोशिश की.

‘‘क्रिस्टोफर, अब मु झे छोड़ कर कहीं नहीं जाओगी,’’ मेरा कंठ भर आया. आंखें नम हो गईं.

‘‘क्या हालत बना रखी है. बेतरतीब बाल, बढ़ी दाढ़ी. जिस्म से आती बू.’’ क्रिस्टोफर मु झ से छिटक कर अलग हो गई. यह मेरे लिए अनापेक्षित था. होना तो यह चाहिए था कि वह भी मेरे प्रति ऐसा ही व्यवहार करती.

‘‘तुम पहले अपना हुलिया ठीक करो.’’ मैं भला क्रिस्टोफर का आदेश कैसे टाल सकता था. थोड़ी देर बाद जब मैं उस के पास आया तो वह खुश हो गई.

‘‘आई लव यू,’’ कह कर उस ने मु झे चूम लिया. उस शाम हम दोनों खूब घूमे. घूमतेघूमते हम दोनों अस्सी घाट पर आए. वहां बैठे शाम का नजारा ले रहे थे कि उस का फोन बजा. क्रिस्टोफर उठ कर एकांत में चली गई. थोड़ी देर बाद आई.

‘‘किस का फोन था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘पेरिस के मेरे एक दोस्त का था. मेरे पहुंचने की खबर ले रहा था.’’ क्रिस्टोफर के कथन ने एक बार फिर से मु झे सशंकित कर दिया. मैं भी दोस्त वह भी दोस्त. वह भी इतना अजीज कि उस का हाल पूछ रहा था. क्या वह मु झ से भी ज्यादा करीबी था जो क्रिस्टोफर ने एकांत का सहारा लिया. बहरहाल, मैं इस वक्त को पूरी तरह से जी लेना चाहता था. रात 10 बजने को हुए तो क्रिस्टोफर ने घर चलने के लिए कहा. घर आ कर उस ने मु झे गुडनाइट कहा. उस के बाद हम दोनों अपनेअपने कमरे में चले गए.

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