आशी की आंखें अभी आधी नींद में और आधी खुली हुई थीं. उस के जेहन में बारबार एक शब्द गूंज रहा था, ‘‘ठंडीठंडी.’’
आशी अधखुली आंखों के साथ ही वाशरूम चली गई. चेहरे पर पानी के छींटे पड़ते ही आंखों के नीचे की कालिमा और स्पष्ट रूप से उभर गई. आशी बराबर खुद का चेहरा आईने में देख रही थी. उसे लग रहा था जैसे उस का जीना बेमानी हो गया है. शायद गौरव सच ही कह रहा था कितनी थकी हुई और बूढ़ी लग रही थी वह आईने में.
कैसे बरदाश्त करता होगा गौरव उसे रात में. तभी गौरव की उनींदी आवाज आई, ‘‘आशु चाय बना दो.’’
आशी ने विचारों को झटका और रसोई में घुस गई. अभी आशी चाय बना ही रही थी कि पीछे से सासूमां बोली, ‘‘आशी, तेरे बाल रातदिन इतने झड़ रहे हैं, देख कितने पतले हो गए हैं. पहले कितनी मोटी चोटी होती थी. यह सब इन बालों को कलर कराने का नतीजा है.’’
तभी पीछे से गौरव बोला, ‘‘मम्मी, तुम्हारी बहू अब बूढ़ी हो गई है.’’
सासूमां हंसते हुए बोली, ‘‘चुप कर बेवकूफ.’’
गौरव बोला, ‘‘मु झ से बेहतर कौन जान पाएगा, क्यों आशी?’’
आशी कट कर रह गई. आंखों में आंसुओं को पीते हुए उस ने गौरव को चाय का प्याला पकड़ा दिया.
गौरव नहाने घुस गया तो आशी फिर से आईने के सामने अपने को देखने लगी, उस के बाल आगे से कितने कम हो गए थे. तभी आशी ने देखा बाएं गाल पर 3-4 धब्बे भी नजर आ रहे थे.
तभी कार्तिक आया और बोला, ‘‘मम्मी, नाश्ते में क्या बनाया है?’’
आशी को एकाएक ध्यान आया कि वह कितनी पागल है. पूरे आधे घंटे से आईने के सामने खड़ी है.
सासूमां रसोई में पहले से ही परांठे सेंक रही थी. आशी बोली, ‘‘मम्मी, मैं सेंक लेती हूं.’’
सासूमां प्यार से बोली, ‘‘आशी, तू तैयार हो जा, मैं बना दूंगी. वैसे भी पिछले 3-4 महीनों से तुम बेहद थकीथकी लगती हो, आज गौरव के साथ डाक्टर के पास चली जाना.’’
आशी प्यार में भीगी हुई अंदर चली गई. जब नहा कर बाहर निकली तो उस का मन फूल जैसा हलका लग रहा था.
रास्ते में गौरव आशी से बोला, ‘‘आज
आने में देर हो जाएगी, हम पुराने दोस्तों
का रियूनियन है.’’
आशी ने धीमे स्वर में कहा, ‘‘मैं सोच रही थी आज डाक्टर के पास चलते, मम्मी कह रही थी मु झे अपना ध्यान रखना चाहिए.’’
गौरव हंसते हुए बोला, ‘‘अरे यार ढलती उम्र का क्या कोई इलाज होता है? कल चल पड़ेंगे.’’
दफ्तर में जैसे ही आशी घुसी उस ने कनकियों से देखा, ‘‘पायल और निकिता एकदूसरे को अपने बालों के हाईलाइट्स दिखा रही थीं,’’ आशी का भी कितना मन करता है मगर अब उस के बाल इतने रूखे और बेजान हो गए हैं कि वह सोच भी नहीं सकती है.’’
आशी को सुबहसुबह ही ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उस की ऊर्जा किसी ने सोख ली हो.
तभी आशी की सीट पर प्रियशा आई, ‘‘क्या सोच रही है आशी और यह चेहरे पर 12 क्यों बज रहे हैं?’’
आशी बोली, ‘‘अभी तुम बस 38 साल की हो, तुम्हें सम झ नहीं आएगा कि 50 वर्ष की महिला को कैसा प्रतीत होता है जब उस का अस्तित्व उस से जुदा हो रहा होता है.’’
प्रियाशा बोली, ‘‘आशी, क्या आंटियों की तरह पहेलियां बुझा रही हो.’’
आशी बिना कुछ बोले अपने लैपटौप में डूब गई. जब आशी दफ्तर से वापस आई तो सासूमां उस का चाय पर इंतजार कर रही थी.
आशी को शादी के बाद कभी अपनी मम्मी की कमी नहीं खली थी. सासूमां ने हमेशा आशी से बेटी की तरह ही व्यवहार किया था. चाय का घूंट पीते हुए आशी सोच रही थी कि सबकुछ तो कितना अच्छा चल रहा था, मगर फिर न जाने यह मेनोपौज का मोड़ अचानक कहां से आ गया.
सासूमां सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली, ‘‘क्या बात है, देख रही हूं पिछले कुछ दिनों से बहुत थकीथकी रहती… इस गौरव के मिजाज का भी कुछ ठीक नहीं है. वह क्यों इधरउधर बिना तेरे दोस्तों के साथ घूमता रहता है.’’
आशी बोली, ‘‘वह न जाने मम्मी आजकल क्यों मेरा मन उखड़ाउखड़ा रहता है जिस कारण गौरव अपसैट हो जाते हैं.’’
सासूमां तोलती सी नजरों से बोली, ‘‘आशी, तुम शायद मेनोपौज के मोड़ पर खड़ी हो मगर इस मोड़ पर गौरव को तुम्हारा साथ देना चाहिए न कि इधरउधर फुदकने लगे.
रात में काफी देर तक आशी गौरव की प्रतीक्षा करती रही और फिर थक कर सो गई थी.
आधी रात को अचानक आशी की आंख खुली. उस का गाउन खराब हो गया था. पहले तो उसे अपनी डेट का हमेशा आभास भी हो जाता था और वह कभी इधरउधर भी नहीं होती थी. वह वाशरूम में जा कर जब वापस आई तो गौरव की खीज भरी आवाज कानों से टकराई, ‘‘क्या प्रौब्लम है तुम्हारा… न दिन में चैन और न ही रात में.’’
आशी को एकाएक खुद पर शर्म सी आ गई. 50 साल की उम्र में उस के कपड़े खराब हो गए हैं, कितनी फूहड़ है वह. दफ्तर में भी आशी को बहुत दिक्कत हो रही थी. इसलिए बीच में ही घर चली आई थी.
शाम को गौरव आया और तैयार होते हुए बोला, ‘‘आज मेरा डिनर बाहर है.’’
आशी बोली, ‘‘गौरव हम डाक्टर के पास कब चलेंगे?’’
गौरव बोला, ‘‘मेरी क्या जरूरत है आशी… पढ़ीलिखी हो खुद चली आओ.’’
आशी फिर पूरी शाम ऐसे ही लेटी रही. शाम को सासूमां आई और फटकार लगाते हुए बोली, ‘‘क्या हो गया है तुम्हें? क्या तुम्हारी कोई अपनी जिंदगी नहीं है, चलो उठो डाक्टर के पास जाओ, कब तक खुद को इग्नोर करती रहोगी.’’
डाक्टर ने आशी से बात करी और फिर बोला, ‘‘इस उम्र में यह सब नौर्मल है. जरूरी है आप इसे सहजता से लें. अगली बार अपने पति के साथ आइए. आप के साथसाथ उन की काउंसलिंग भी जरूरी है, और फिर आशी को कुछ दवाइयां लिख दीं.’’
जब गौरव वापस आया तो औपचारिक तौर से पूछा, ‘‘क्या कहा डाक्टर ने?’’
आशी बोली, ‘‘अगली बार तुम्हें बुलाया है.’’
गौरव हंसते हुए बोला, ‘‘भई बूढ़ी तुम हो रही हो मैं नहीं, मु झे किसी डाक्टरवाक्टर की जरूरत नहीं है.’’
आशी को सम झ नहीं आ रहा था कि गौरव इतना असंवेदनशील कैसे हो सकता है. अगर वह 50 साल की हो गई है तो गौरव भी 52 साल का हो रहा है फिर यह उम्र का ताना क्यों बारबार उसे मिल रहा है, इसलिए क्योंकि वह एक औरत है. जो गौरव पहले भौंरे की तरह उस से चिपका रहता था अब उस के संपूर्ण जीवन का रस सोखने के बाद ऐसे व्यवहार कर रहा है मानो यह उस का कोई अपराध हो.
अगले दिन दफ्तर में जब आशी ने प्रियांशी से इस बारे में बातचीत करी तो प्रियांशी हंसते हुए बोली, ‘‘यह बस जीवन का एक मोड़ है. जैसे हम लड़कियों की जिंदगी में मासिकधर्म का आरंभ होना भी एक मोड़ होता है वैसे ही रजनोवृत्ति भी बस एक मोड़ ही है, जिंदगी खत्म होने का संकेत नहीं है.’’
आशी बोली, ‘‘तुम अभी सम झ नहीं पाओगी. ऐसा लगता है जैसे तुम्हारा वजूद खत्म हो रहा है. जब तुम अपने पति की नजरों में एक फालतू सामान बन जाते हो, तब सम झ आता है कि यह मोड़ है या डैड एंड है.’’
प्रियांशी बोली, ‘‘मैडम, मैं 35 साल की उम्र से इस मोड़ पर खड़ी हूं.’’
आशी आश्चर्य से प्रियांशी की तरफ देखने लगी तो प्रियांशी बोली, ‘‘देखो क्या
मैं तुम्हें बुढि़या लगती हूं? मेनोपौज को तो मैं कंट्रोल नहीं कर सकती थी मगर खुद को तो कर सकती हूं. मेरी स्त्री होने की पहचान बस इस एक प्रक्रिया से नहीं है और हम स्त्रियों का स्त्रीत्व बस इसी पर क्यों टिका हुआ हैं? क्या तुम्हारे पति की परफौर्मैंस पहले जैसी ही है अभी भी? पर पुरुषों के पास स्त्रियों की तरह ऐसा कोई इंडिकेटर नहीं है इसलिए आज भी अधिकतर मर्द इस गलतफहमी में जीते हैं कि मर्द कभी बूढ़े नहीं होते हैं.’’
आशी सोचते हुए बोली, ‘‘बात तो सही है तुम्हारी.’’
प्रियांशी और आशी फिर बहुत देर तक बात करती रही. प्रियांशी से बात करने के बाद आशी सोच रही थी कि वह कितनी बुद्धू है.
उस रात को जब आशी ने पहल करी तो गौरव बोला, ‘‘अरे, आज इतना जोश कैसे आ गया तुम्हें?’’
आशी मुसकराते हुए बोली, ‘‘अब तुम्हारे अंदर भी पहले जैसा जोश कहां रह गया है?’’
गौरव घमंड से बोला, ‘‘मर्द और घोड़े कभी बूढ़ा नहीं होता है.’’
आशी बोली, ‘‘यह मु झ से बेहतर कौन जान सकता है.’’
आशी के स्वर में उपहास देख कर गौरव चुपचाप किताब के पन्ने पलटने लगा. उस का मन जानता था कि आशी की बातों में सचाई है और इसी सचाई को झुठलाने के लिए वह आशी को रातदिन कोसता रहता था. मगर आशी उसे इस तरह बेपरदा कर देगी उस ने सोचा भी नहीं था.