क्या Migraine आपकी Daily Life को Effect कर रहा है?

अगर आपको तेज सिरदर्द, मतली और प्रकाश और ध्वनि के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता है, तो आपका यह सिरदर्द मामूली नहीं है. दरअसल यह सिरदर्द माइग्रेन हैं, जो न केवल आपको पूरी तरह से बिस्तर पर पहुंचा सकता हैं बल्कि आपकी रोजमर्रा की गतिविधियों को भी बाधित कर सकता हैं.द लाइफकार्ट .इन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ प्रवीण जैकब के मुताबिक यह एक सामान्य स्थिति है, जिसका  अनुमानित वैश्विक प्रसार 14.7% है अर्थात यह 7 लोगों में से लगभग 1 को होता है. जब माइग्रेन अटैक होता है, तो माइग्रेन से पीडित व्यक्ति कष्टदायी दर्द से छुटकारा पाने के लिए लगभग हर संभव तरीके को अपनाते हैं. दवा दर्द को कम करने में मदद कर सकती है, और एंटीडिपेंटेंट्स और बीटा-ब्लॉकर्स एपिसोड को रोकने में मदद कर सकते हैं. हालांकि इन सभी दवा की विधियों में मतली, अनिद्रा, हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट अटैक सहित संभावित साइड इफेक्ट होते हैं. क्लीनिकल स्टडी से पता चला है कि सामान्य देखभाल की तुलना में घरेलू उपचार दर्द से राहत दिलाने में ज्यादा प्रभावी साबित हुआ है.

इस समस्या से निपटने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि पहले यह जान जाएं कि यह समस्या किस वजह से हो रही है. जिन चीजों से यह समस्या ज्यादा होती है उनमे मुख्य रूप से  हाई ब्लड प्रेशर, गर्दन या कंधे की मांसपेशियों में अकड़न, भावनात्मक तनाव, कुछ विशेष दवाएं, एडिटिव्स, या कुछ खाद्य पदार्थ शामिल है. हेलिकोबैक्टर पाइलोरी को आमतौर पर एच-पाइलोरी बैक्टीरिया के रूप में जाना जाता है, यह माइग्रेन, अल्सर और अन्य गैस्ट्रिक समस्याओं को पैदा करने के लिए जाना जाता है. माइग्रेन के लक्षणों को जांचने के लिए  प्राकृतिक उपचारों को अपनाना एक दवा-मुक्त तरीका है. ये घरेलू उपचार माइग्रेन को रोकने में मदद कर सकते हैं या इसकी गंभीरता और इससे पीड़ित होने के समय को कम से कम करने में मदद कर सकते हैं.

1. हाइड्रेशन बहुत जरूरी है 

बिना दवा के माइग्रेन का इलाज करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप ढेर सारा पानी या इलेक्ट्रोलाइट ड्रिंक  को पिएँ. यह देखा गया है कि डीहाइड्रेशन होने से सिरदर्द होता है. सुनिश्चित करें कि जिस इलेक्ट्रोलाइट ड्रिंक को आप पी रहे हो उसमे  चीनी या रंग न मिलाहो क्योंकि इससे सिरदर्द और ज्यादा बढ़ सकता हैं. विटामिन सी युक्त ड्रिंक पीना सबसे बढ़िया होता है. अगर व्यक्ति को डायबिटीज है तो ड्रिंक में कितनी चीनी है, इसको जरूर जांच लेना चाहिए.

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2. नियमित रूप से योग करें

रिसर्च से पता चला है कि योग करने से सिरदर्द को कम करने में मदद मिल सकती है. योग एक बहुत पुरानी परंपरा है, जिसमे सांस लेने की तकनीक और आसन के माध्यम से दर्द से  छुटकारा पाने में मदद मिल सकती है. इन आसनों और प्राणायामों का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है. एक प्रमाणित ट्रेनर के मार्गदर्शन में हर दिन दो बार करने से माइग्रेन के दर्द की गंभीरता कम हो जाएगी और भविष्य के माइग्रेन अटैक  के लिए तैयार होने में मदद मिलेगी.

3. एक्यूपंक्चर

एक्यूपंक्चर एक ऐसी  वैकल्पिक चिकित्सा तकनीक है जिसमे शरीर के प्रेशर पॉइंट की पहचान करके सुइयों को चुभा करके दर्द और माइग्रेन के अन्य लक्षणों को सही करने में मदद की जाती है. स्टडी ने एक्यूपंक्चर को पुराने सिरदर्द से पीड़ित लोगों के लिए दर्द से छुटकारा पाने के लिए सबसे  विश्वसनीय वैकल्पिक चिकित्सा तकनीक मानी गयी है. यहां तक कि थ्रोबिंग माइग्रेन के दर्द से पीड़ित मरीज को एक्यूपंक्चरिस्ट के साथ सेशन करने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि एक्यूपंक्चरिस्ट भी एक्यूपंक्चर से माइग्रेन के दौरान दर्द से राहत पाने के लिए सबसे सुरक्षित बिना दवा के इस विकल्पों को अपनाने की सलाह देंगे.

4. मेडिटेशन

माइंडफुल मेडिटेशन में बिना किसी निर्णय वाले दिमाग के साथ वर्तमान समय पर ध्यान केंद्रित करना शामिल होता है. मेडिटेशन एक तरह से तनाव को कम करने में मदद करता है, जैसा कि सभी को पता है कि माइग्रेन को बढ़ाने में तनाव सबसे बड़ा कारण है. मन-तन की तकनीक जैसे मेडिटेशन और कुछ समय के लिए आराम करने से  तनाव को कम करके सिरदर्द को दूर  करने में मदद मिल सकती है.

5. एक्सरसाइज

नियमित रूप से एक्सरसाइज करने से माइग्रेन अटैक होने की संख्या  और  गंभीरता  को कम करने में मदद करता है. लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि ज्यादा मेहनत वाली एक्सरसाइज करने से माइग्रेन के लिए हानिकारक हो सकता है. एक्सरसाइज वास्तव में तनाव से बचाव में मदद करता है, तनाव होना एक सामान्य माइग्रेन ट्रिगर होता है. जब हम एक्सरसाइज करते हैं तो हम फील-गुड हार्मोन रिलीज करते हैं, इन हार्मोन को शरीर के प्राकृतिक दर्द निवारक और एंटी- डिस्पेरेंट भी माना जाता है. अगर आप  माइग्रेन दर्द से पीड़ित हैं तो एक्सरसाइज न करें क्योंकि इससे आपकी स्थिति और खराब हो जाएगी.

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6. ख़ुद से मसाज करना मददगार हो सकता है

टेम्पल्स, कंधों और सिर के पिछले हिस्से के आसपास खुद से मालिश करने से तनाव से होने वाले सिरदर्द में राहत मिल सकती है. खुद से मालिश करने या किसी मालिश चिकित्सक के साथ काम करने से क्रोनिक  गर्दन के दर्द को हल किया जा सकता है और कंधे का तनाव को कम किया जा सकता है, इससे सिरदर्द नहीं होगा. यह हमेशा सलाह दी जाती है कि प्रेशर पॉइंट पर दबाव I-4 पर दबाव डाला जाए, इस पॉइंट को हेगू भी कहा जाता है, यह आपके अंगूठे और तर्जनी के आधार के बीच स्थित होता है. इससे आपको दर्द और सिरदर्द से राहत पाने में मदद मिलेगी.

7. अपने पेट के स्वास्थ्य को  बेहतर रखें

पेट और दिमाग के बीच एक मजबूत संबंध होता है. इसका मतलब है कि अगर हमारे पेंट का स्वास्थ्य सही है तो  इसका असर माइग्रेन की समस्या पर भी पड़ेगा. यही कारण है कि जीआई डिसऑर्डर, जैसे इरिटेबल बोवेल

सिंड्रोम और इन्फ्लेमेटरी बोवेल की बीमारी, और माइग्रेन अक्सर व्यक्ति द्वारा एक साथ अनुभव किया जाता है. अस्वास्थ्यकर खानपान की आदतों और एंटीबायोटिक दवाओं के ज्यादा सेवन में वृद्धि होने से  मानव शरीर में एच-पाइलोरी बैक्टीरिया की संख्या (मानव-आंत के अंदर) अच्छे और महत्वपूर्ण बैक्टीरिया को कम कर देते है, जिससे पेट की समस्या होती है और परिणामस्वरूप माइग्रेन होता है.

8. प्राकृतिक माइग्रेन रिलीफ किट

इन स्टेप्स का पालन करने के बाद भी अगर राहत नहीं मिलती है, तो प्राकृतिक माइग्रेन रिलीफ किट को आजमा सकते हैं. ये सभी किट ऑनलाइन उपलब्ध हैं और माइग्रेन और सिरदर्द से लड़ने तथा ठीक करने के लिए 100% प्राकृतिक इलाज प्रदान करती हैं. ये हर्बल प्रोबायोटिक किट देशी जड़ी बूटियों से बनाई जाती हैं जिनमें काला जीरा, जीरा, चाँद की पत्ती, अदरक, और पुदीना शामिल हैं जो आपके पेट में इंटेस्टिनल फ़्लोरा (आंतों के वनस्पतियों) को पनपने की अनुमति देकर सिरदर्द और दर्द को हल करने में मदद करते हैं.

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Winter Special: हार्ट पेशंट के लिए हानिकारक हो सकती हैं सर्दियां, जानिए दिल को स्वस्थ रखने के टिप्स

लेखिका- दीप्ति गुप्ता

सर्दियों का मौसम बड़ा ही सुहावना होता है. लेकिन दिल के मरीजों के लिए काफी चैलेंजिंग है. सर्दी वह समय है जब दिल से जुड़ी समस्या वाले लोगों को दिल का दौरा पड़ सकता है. दरअसल, तापमान में अचानक गिरावट के कारण पेराफेरल वेसेल्स सिकुड़ जाती हैं इस प्रकार हृदय पर अधिक दबाव पड़ता है. जिसके कारण हृदय में ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है. नतीजतन आपके दिल को ऑक्सीजन और ब्लड पंप करने के लिए ज्यादा प्रयास करने होते हैं. ऐसे में ठंड में दिल की सेहत को मैनेज करने के लिए यहां बताए गए कुछ घरेलू टिप्स आपकी मदद कर सकते हैं.

1. ब्लड प्रेशर की निगरानी करें-

यदि आप उन लोगों में से हैं, जिन्हें ब्लड प्रेशर की समस्या है, तो आपके लिए नंबरों पर नजर रखना बेहद जरूरी है. ऐसा करने से कार्डियक अटैक की संभावना काफी कम हो सकती है. इसलिए आपको डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाओं को समय पर लेना चाहिए.

2. शराब के सेवन से बचें-

शराब त्वचा में ब्लड वेसेल्स का विस्तार कर सकती है. यह आपके शरीर के जरूरी अंगों  से गर्मी निकालकर आपको गर्म महसूस करा सकती है. इसी तरह धूम्रपान से एथेरोस्कलेरोसिस होता है. इतना ही नहीं धूम्रपान करने वालों को भी दिल का दौरा पड़ सकता है. धूम्रपान न केवल हृदय की तरफ ऑक्सीजन के प्रवाह को कम करता है बल्कि आपकी हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर को भी बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है.

3. स्वस्थ आहार लें-

ताजे, फल और सब्जियां , बीज, मेवा, फलियां और दालों का सेवन ज्यादा से ज्यादा करें. दिल के रोगियों को ठंड के दिनों में गर्म सूप या गर्म भोजन का सेवन ही करना चाहिए. विशेषज्ञ मानते हैं कि नमक या चीनी से भरपूर भोजन खाने से बचना दिल को स्वस्थ रखने का बेहतर तरीका है. डॉक्टर भी दिल के रोगी को प्रोसेस्ड, जंक और ऑयली फूड्स से बचने की सलाह देते हैं.

4. सिर और हाथों को ढंकें-

डॉक्टर अक्सर दिल के मरीज को ठंड में ज्यादा समय घर से बाहर न बिताने के लिए कहते हैं. उनके अनुसार, यदि जाना भी पड़े, तो कई परतों में गर्म कपड़े पहनना चाहिए. खासतौर से अपने हाथों और सिर को पूरी तरह से ढंकें, गर्म मोजे और जूते पहनें.

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5. शरीर को ज्यादा गर्म करने से बचें-

बेशक सर्दियों में शरीर में गर्माहट जरूरी है, लेकिन इसे जरूरत से ज्यादा गर्म नहीं करना चाहिए. इससे रक्त वाहिकाएं फैल सकती हैं, जिससे हृदय की समस्या से जूझ रहे लोगों का ब्लड प्रेशर लो हो सकता है. इस वजह से हृदय की रक्त आपूर्ति कम हो जाती है और हार्ट अटैक आने की संभावना बढ़ जाती है.

6. स्वस्थ आदतों को अपनाएं-

दिल की सेहत को सर्दियों में दुरूस्त बनाए रखने के लिए एक इंडोर एक्सरसाइज प्रोग्राम शुरू करें. घर का गर्म भोजन करें और नियमित रूप से पानी पीएं. यह आपके शरीर को ऊर्जा देगा , जो आपको गर्म रखने के लिए जरूरी है.

7. ज्यादा से ज्यादा आराम करें-

अगर आप दिल के रोगी हैं और आपको ठंड के मौसम में खांसी-जुकाम रहता है, तो आप आराम करें और अच्छे से  अच्छा खाएं. इन दिनों यदि आपको ह्दय रोग के कोई भी लक्षण दिखाई दें, तो डॉक्टर से संपर्क जरूर करें.

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जैसे ही हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है वैसे ही हम पर वायरस का हमला हो जाता है, जिससे हमें सर्दी, जुकाम, खांसी और कभी-कभी बुखार की समस्‍या हो जाती है, जो कई दिनों तक आपको परेशान करती हैं.

फ्लू

सुबह की सर्द हवाएं, वातावरण में नमी और चारों तरफ छाई धुंध ये बताती है कि सर्दी ने दस्‍तक दे दी है. ये तो आप सभी जानते होंगे कि सर्दी आते ही हमारे रहन-सहन में थोड़ा बदलाव आ जाता है. लेकिन सबसे जरूरी बात यह है कि हम अपनी सेहत का किस तरह से ख्‍याल रख रहे हैं.

जैसे ही हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है वैसे ही हमारे ऊपर वायरस का हमला हो जाता है, जिससे हमें सर्दी, जुकाम, खांसी और कभी-कभी बुखार की समस्‍या हो जाती है, जो कई दिनों तक आपको परेशान करती हैं. इनसे जुड़ी कुछ बातें हैं जिन्‍हें जरूर जानना चाहिए.

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फ्लू वायरस

जब तक आपको सर्दी-जुकाम के लक्षण पता चलते हैं, हो सकता है एक दिन पहले ही इसके विषाणु (वायरस) आपके शरीर में फैल चुके हों. और ये वायरल आने वाले सात दिनों तक फैलते रहते हैं.

फ्लू की शुरूआत

सर्दी-जुकाम वाले मौसम आमतौर पर अक्‍टूबर के आखिरी सप्‍ताह से ही शुरू हो जाते हैं जो कि दिसंबर में काफी बढ़ जाते हैं. ये जनवरी में यह स्थिति शीर्ष पर होती है. इसके बाद फरवरी के आखिरी दिनों में यह समाप्‍त होने लगती है.

फ्लू संक्रमण

शोध के मुताबिक, फ्लू वायरस ठंड और शुष्‍क मौसम में पनपते हैं. जबकि गर्म मौसम में फ्लू का संक्रमण दर उच्च आर्द्रता और बारिश के साथ जुड़ जाते हैं. यानी मौजूद रहते हैं.

नेजल स्‍प्रे

नेजल स्‍प्रे को लंबे समय तक प्रयोग में नही लाया जा सकता है क्‍योंकि इसकी प्रभावशीलता ज्‍यादा समय तक नही होती है.

एंटीवायरल दवाएं

कुछ एंटीवायरल दवाएं हैं जो बच्‍चों और बड़ों को दी जा सकती है बशर्ते डॉक्‍टर की सलाह जरूर लें.

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इन 9 होममेड टिप्स से ट्राय करें हाई ब्लड प्रेशर

उच्च रक्तचाप यानी कि हाई ब्लड प्रेशर वह स्थिति है जब रक्तचाप सामान्य (120/80mmHg) से अधिक हो जाता है. सामान्य रूप से मोटापा, आनुवांशिक कारण, शराब का अत्यधिक सेवन, अधिक मात्रा में नमक का सेवन, व्यायाम न करना, तनाव, दर्द निवारक दवाओं का सेवन और किडनी रोग आदि उच्च रक्तचाप के प्रमुख कारण हैं. वैसे तो इसके निवारण के लिए अनेक दवाएं हैं लेकिन कुछ प्राकृतिक उपाय ऐसे हैं जिनको अपनाकर आसानी से उच्च रक्तचाप से मुक्त हुआ जा सकता है. इन घरेलू उपायों को अपनाने के साथ-साथ डाक्टर के निर्देशों का पालन जरूर किया जाना चाहिए और नियमित चेकअप के साथ-साथ खान-पान संबंधी निर्देशों का भी पालन किया जाना चाहिए.

1. केला

केले में पोटैशियम प्रचुर मात्रा में होता है जो कि सोडियम के असर को कम करता है. केले का हाईब्लड प्रेशर के मरीजों को नियमित रूप से सेवन करना चाहिए. रोज एक से दो केले का सेवन शुरू करें. केले के साथ आप सूखे खुबानी, किशमिश, संतरे का रस, पालक, बेक्ड आलू और कैंटोलाप का भी सेवन कर सकते हैं.

2. अजवायन

अजवाइन में मौजूद फाइटोकेमिकल 3-एन-ब्युटिल्फथलाइड का उच्च स्तर बहुत उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करता है. यह धमनियों में अधिक स्थान बनाने के साथ बिना बाधा के रक्त प्रवाह में मदद करता है. इसके साथ ही साथ यह तनाव पैदा करने वाले हार्मोन्स, जो कि रक्त वाहिकाओं को सिकोड़ते हैं, को नियंत्रित करने में भी मदद करता है. रोजाना एक गिलास पानी के साथ अजवाइन खाएं. यदि आप चाहें तो दिन में कई बार अजवाइन चबा सकती हैं.

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3. नारियल पानी

उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों को शरीर में पानी की कमी नहीं होने देना चाहिए. रोजाना आठ से दस गिलास पानी पीना आपके लिए अच्छा होगा. रक्तचाप को कम करने के लिए नारियल का पानी विशेष रूप से फायदेमंद है. नारियल के पानी के साथ, आप खाना पकाने में भी नारियल तेल का उपयोग कर सकती हैं.

4. नीबू

नीबू धमनियों को नरम रखने में सहायक होता है. जब रक्त वाहिकाओं में कठोरता नहीं होगी तो स्वाभाविक रूप से उच्च रक्तचाप कम हो जाएगा. इसके अलावा आप नीबू के नियमित सेवन से हार्टफेल की संभावना को भी कम कर सकते हैं. नीबू में मौजूद विटामिन सी एक एंटीआक्सीडेंट है जो मुक्त कणों के हानिकारक प्रभावों को बेअसर करने में आपकी मदद करता है.

5. शहद

शहद रक्त वाहिकाओं पर असर करती है और दिल पर रक्त के दबाव को कम करती है. इसीलिए यह उच्च रक्तचाप को कम करने में सहायक होती है. हर सुबह खाली पेट दो चम्मच शहद सेवन करें. आप एक चम्मच शहद और अदरक का रस को दो चम्मच जीरा के साथ मिलाकर ले सकती हैं. इसे दिन में दो बार खाएं. एक अन्य प्रभावी उपाय है तुलसी का रस और शहद को बराबर मात्रा में लेना. इसे रोजाना एक बार खाली पेट ले सकते हैं.

6. काली मिर्च

हल्के उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों को काली मिर्च खाने से फायदा मिलता है. यह प्लेटलेट्स के साथ मिलकर रक्त के थक्के बनने से रोकती है साथ ही चिकनाई पैदा करके रक्त प्रवाह में मदद करती है. आप फलों या सब्जियों के सलाद में कुछ काली मिर्च डाल सकती हैं या सूप में भी एक चुटकी काली मिर्च डाल सकती हैं.

7. लहसुन

कई अध्ययनों से साबित हुआ है कि लहसुन में ब्लड प्रेशर कम करने की क्षमता है. कच्चा हो या पका हुआ दोनों तरह का लहसुन उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में मददगार होता है. साथ ही यह कोलेस्ट्राल के स्तर को भी कम करता है. रोजाना एक या दो कुचले हुए लहसुन खाएं. यह रक्त प्रवाह को सामान्य रखता है, गैस निकालता है और दिल पर दबाव कम करता है. यदि आप कच्चा लहसुन खाना पसंद नहीं करती हैं या इसके सेवन में जलन महसूस हैं तो इसे एक कप दूध के साथ ले सकती हैं.

8. प्याज का रस

एक मध्यम आकार की कच्ची प्याज नियमित रूप से खाने की कोशिश करें. आप एक से दो सप्ताह तक प्रतिदिन दो बार आधा चम्मच प्याज का रस शहद के साथ ले सकते हैं. प्याज में एक एंटीआक्सिडेंट फ्लावानोल मौजूद होता है जिसे क्वरेटिन कहा जाता है. यह आपके रक्तचाप को कम करने में मददगार साबित हो सकता है.

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9. मेथी के बीज

मेथी के बीज में उच्च पोटेशियम और फाइबर होने के कारण यह उच्च रक्तचाप को कम करने के लिए प्रभावी है. दो चम्मच मेथी के बीजों को पानी में लगभग दो मिनट तक उबालें और फिर इसे ठंडा कर लें. इसके बाद इसके बीज निकालकर उसका पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को रोज दो बार खाएं, सुबह एक बार खाली पेट पर और एक बार शाम को. अपने रक्तचाप के स्तर में महत्वपूर्ण सुधार के लिए इस उपाय को दो से तीन महीनों तक करें.

‘वर्ल्ड डायबिटिक डे’ पर रेटिनोपैथी के बारें में जाने यहां

सुमति जब नींद से उठी, तो उसकी आँखों के आगे दिवार पर कुछ काले-काले धब्बे दिखाई पड़ रही थी, ऐसा लग रहा था मानों आँखों में कुछ डाला गया हो. सुमति को कुछ पता नहीं चल पा रहा था और हर चीज उसे धुंधली दिख रही थी.सुमति ने घर में पड़ी ऑय ड्राप दो से तीन बार डाली, जिससे धीरे-धीरे आँख कुछ ठीक हुआ, लेकिन फिर आँखों में खून के थक्के दिखाई पड़ने लगी. मोबाइल की बटन भी धुंधली थी. अब उसे चिंता सताने लगी और वह आंख के डॉक्टर के पास गयी, जहाँ उसे डॉक्टर ने जांच की और उसे कुछ जांच करवाने की सलाह दी. जांच के बाद पता चला कि उसकी शुगर लेवल 204 थी, जिसे काफी अधिक माना जाता है. सुमति अब डायबिटीज की डॉक्टर के पास गयी, जहाँ उसे नियमित मधुमेह की दवा लेने की सलाह दी गयी, लेकिन तब भी सुमति अपनी आँखों को लेकर चिंतित थी, क्योंकि आज हर काम के लिए मोबाइल का प्रयोग करना पड़ता है, ऐसे में आँखों पर अधिक जोर पड़ने से उसकी आँखों में दर्द भी होता था, लेकिन नियमित डॉक्टर की सलाह और दवा से वह कुछ ठीक हुई है.

असल में डायबिटीज रोगी की आँखों में सामान्य व्यक्ति की तुलना में रौशनी गवाने की आशंका 20 गुना अधिक होती है. इसलिए समय रहते अगर इसे काबू में न किया जाय, तो आँखों की समस्या बढती जाती है. डायबिटीज की वजह से होने वाली आँखों की इस समस्या को रेटिनोपैथी कहा जाता है. इस बीमारी के लगातार बढ़ने और जागरूकता को बढ़ाने के लिए हर साल 14 नवम्बर को‘वर्ल्ड डायबिटीज डे’ मनाया जाता है.

इस बारें में ‘साईटसेवर्स’ संस्था की ऑय एक्सपर्ट डॉ. संदीप बूटान कहते है कि भारत में मधुमेह के रोगी तेजी से बढ़ता जा रहा है और अब तक यह6.5 करोड़ वयस्कों को प्रभावित कर चुका है. इस रोग से प्रभावित होने वाली रोगियो की संख्या वर्ष2045तक बढ़कर 13 करोड़ से अधिक होने की संभावना है. डायबिटीज के सभी केसेज में लगभग हर पाँचवे व्यक्ति को आँखों से संबंधित कुछ गंभीर समस्याएँ विकसित होने की संभावना होती है, इन सभी समस्याओं में से सबसे ज्यादा होने वाली समस्या डायबिटिक रेटिनोपैथी की है. डायबिटिक रेटिनोपैथी पहले से ही दक्षिण एशिया में कम दृष्टि और अंधेपन का एक महत्वपूर्ण कारण रहा है. यह रोग तब तक बढेगा, जबतक डायबिटिक रेटिनोपैथी के मामलों को कम करने और इसके इलाज को प्रभावी तरीके से अपनाया नहीं जाता.

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शुरूआती लक्षण

ज्यादातर शुरुआती केसेज में आँखोंपर किसी प्रकार के महत्वपूर्ण लक्षण नहीं दिखाई देते.  कुछ मामलों में, आँखों के सामने छोटे-छोटे काले धब्बे दिखाई दे सकते है और केवल कुछ रोगियों को ही धुंधली दृष्टि की शिकायत हो सकती है, क्योंकि ये शुरूआती मैकुलर एडीमा (आँखों के पीछे की तरफ सूजन) के लक्षण है.

रोकने के उपाय

डॉ संदीप का आगे कहना है कि शुरूआती दिनों में, आँखों की गंभीर समस्याओं के विकास और इसे फैलने से रोकने के लिए ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर पर सख्त नियंत्रण रखना बहुत ही महत्वपूर्ण है. आँखों में शुरुआती बदलावों (आँखों के पीछे की ओर छोटी रक्त वाहिकाओं से रिसाव) का उपचार लेजर थेरेपी से किया जा सकता है और रेटिना (मैक्यूलर ऐडिमा) के केंद्रीय भाग में सूजन आने की स्थिति में, इंट्रा-विट्रियल इंजेक्शन की आवश्यकता पड़ सकती है.अधिक गंभीर मामलों में, बड़ी रेटिनल सर्जरी की आवश्यकता होती है, लेकिन इसके द्वारा रोग का सफलतापूर्वक निदानहोने की संभावना बहुत ही कम होती है. डायबिटिक रेटिनोपैथी के लिए किसी भी उपचार का परिणाम काफी हद तक उस चरण पर निर्भर करता है, जिसमें इसका इस्तेमाल किया जाता है, खासकर शुरूआती चरणों में इसके सफल होने की संभावनाएँ अधिक होती है.

रोगियों की बढती संख्या

डायबिटीज के रोगियों में, रोग की बढ़ती अवधि के दौरान रेटिनोपैथी के विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है. डायबिटीज के लगभग 10 से 25 प्रतिशतरोगियों में रेटिना में परिवर्तन होने की संभावना होती है और इनमें से लगभग दसवें भाग तक के रोगियों में एडवांस्ड स्टेज में होती है, जिन्हें जल्दी उपचार कराने की जरुरत होती है.

क्या है सही इलाज

डॉ. संदीप कहते है कि डायबिटिक रेटिनोपैथी की सही ट्रीटमेंट इसे जल्दी पता कर औरमेटाबोलिज्म को कंट्रोल कर इलाज करवाना है. इसके अलावा नियमित और विस्तृत नेत्र परिक्षण हर साल करवाने से इसका जल्दी पता चल जाता है. मुख्य बीमारी को नियंत्रण में रखने के लिए उचित आहार,सही आदतें और जीवनशैली में बदलाव भी इस बीमारी की गति को रोकने में सफल होती है, साथ ही समय पर रोज डायबिटीज की दवा लेना और शुगर लेवल चेक करना भी जरुरी है, खासकर महिलाओं को इस बारें में अधिक जागरूक होने की आवश्यकता है.

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Testosterone का स्‍तर कम होना है खतरनाक

टेस्टोस्टेरोन एक मेल हार्मोन होता है. टेस्टोस्टेरोन पुरुष यौन क्षमता को बढ़ाता है और इसका संबंध यौन क्रियाकलापों, रक्त संचरण और मांसपेशियों के परिणाम के साथ साथ एकाग्रता, मूड और स्मृति से भी होता है. जब कोई पुरुष चिड़चिड़ा या गुस्सैल हो जाता है तो लोग इसे उसके काम या आयु का प्रभाव मानते हैं, पर यह टेस्टोस्टेरोन की कमी से भी होता है.

क्यों होती है टेस्टोस्टेरोन की कमी

आर्थिक दबावों और बढ़ती महंगाई के अलावा सामाजिक समस्याओं के कारण पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन नामक हार्मोन के स्तर में गिरावट हो सकती है. डायबिटीज होने पर भी इस हार्मोन में कमी आती है, इसकी दवाएं अलग होती हैं. टेस्ट करके हार्मोन के कारणों का पता किया जाता है. इसके बाद इंजेक्शन, दवाएं या सर्जरी आदि से इलाज किया जाता है. अत्यधिक तनाव के कारण इस हार्मोन का स्तर गिरता है. कुछ आहार भी पुरूषों के शरीर में टेस्टोस्टेरोन के स्तर को कम करते हैं जैसे कि फास्ट फूड, तैलीय भोजन, शराब और प्रोसेस्ड फूड.

टेस्टोस्टेरोन की कमी के नुकसान

समान्य तौर पर उम्र बढ़ने के साथ टेस्टोस्टेरॉन के स्तर में गिरावट देखने को मिलती है. हालांकि अब 30 से ज्यादा उम्र के पुरुषों में भी टेस्टोस्टेरॉन के स्तर में गिरावट देखने को मिल रही है. प्रभावित व्यक्ति के अंदर उपस्थित टेस्टोस्टेरॉन का स्तर उसके सामाजिक व्यवहारों को प्रभावित करता है. यह लोगों की मानसिक शांति के साथ-साथ उनके यौन जीवन पर ही ग्रहण लगा रही है. इससे पुरुषों में यौन शक्ति पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. लंबे समय तक बना रहने वाला तनाव पुरुषों में उक्त हार्मोन के स्तर को कम सकता है. यह बहुत जरुरी है कि आप टेस्‍टोस्‍टेरोन के स्‍तर को हमेशा बनाए रखें, नहीं तो आगे चल कर आपको बहुत सारी परेशानियों को झेलना पड़ सकता है.

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कैसे बढ़ाएं टेस्टोस्टेरोन

– अगर आपका वजन बहुत ज्यादा है तो आपको कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. शरीर में ज्यादा चरबी, टेस्टोस्टेरोन के स्तर को बढ़ने से रोक सकती है. टेस्टोस्टेरोन के स्तर को बढ़ाने के लिए अपने वजन को कम करने की कोशिश करें.

– जस्ता और मैग्नीशियम जैसे खनिज शरीर में टेस्टोस्टेरोन के स्तर को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं. अतः, पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन के उच्च स्तर को बनाएं रखने के लिए उन खाद्य पदार्थों का सेवन करना बहुत जरुरी है जो आपके शरीर में इन खनिजों की जरुरत को पूरा करते हैं.

– जब आप बहुत ज्यादा तनाव में होते हैं, तो आपके शरीर में अधिक मात्रा में हार्मोन स्रावित होते हैं. ये हार्मोनस शरीर में टेस्टोस्टेरोन को बढ़ने से रोकते हैं. ध्यान जैसी सरल और प्रभावशाली तकनीक तनाव से लड़ने में आपकी मदद करेगी.

– मीठा कम खाएं शरीर में शर्करा के स्तर के बढ़ने से इंसुलिन का स्तर बढ़ता है. जब आप मीठा खाते हैं तो आपके शरीर में टेस्टोस्टेरोन का स्तर अपने आप कम हो जाता है. इस हार्मोन के स्रवण और शारीरिक विकास के लिए जितनी हो सके उतनी कम मीठी चीज़े खाएं.

– रिसर्च के अनुसार अगर आप हर रोज बहुत तीव्रता से 45-75 मिनट के लिए कसरत करते हैं, तो शायद इसे आपके शरीर में टेस्टोस्टेरोन के विकास मे बाधाएं पैदा हो सकती है. कसरत करते समय किसी पेशेवर ट्रेनर की सलाह लें इसे आपको काफी फायदा होगा.

इन उपायों को अपनाने से पुरूष अपने शरीर में टेस्टोस्टेरोन के स्तर को बनाए रख सकते हैं.

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मां और बच्चों की केयर से जुड़ी सावधानियों के बारे बताइए?

सवाल-

मेरी उम्र 37 वर्ष है और मेरी 7 महीने में प्रीमैच्योर डिलिवरी हुई है. मैं पूरी प्रैगनैंसी के दौरान लगातार मैडिसिन पर चल रही हूं. मेरा दूध बच्चे के लिए पूरा नहीं हो पाता है इसलिए मैं उसे फौर्मूला मिल्क दे रही हूं. लेकिन उस से बच्चे का पेट साफ ही नहीं हो पाता है. लगातार बच्चे को कौन्सिपेशन रहती है. कृपया बताएं कि मैं क्या करूं?

जवाब

आप के बच्चे का जन्म 7वें महीने में हुआ है. समय से पहले जन्म होने के कारण ऐसे बच्चों का संपूर्ण शारीरिक व मानसिक विकास सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त पोषण का मिलना बेहद आवश्यक हो जाता है क्योंकि ऐसे बच्चों का जीवन तब तक संकट में होता है जब तक इन का पूरा टर्म यानी 36 हफ्ते पूरे न हो जाएं. ऐसे में बच्चे की मां के गर्भ के समान तापमान में संरक्षित रखने के लिए जितना उसे नियोनेटल केयर यूनिट में रखा जाना आवश्यक होता है उतना ही जरूरी है उसे आवश्यक न्यूट्रिशन प्रदान करना. इसलिए बच्चे की मां का दूध दिया जाना चाहिए. अगर आप का दूध नहीं बन पा रहा है तो अपने लिए न्यूट्रिशनिस्ट की मदद से संपूर्ण आहार सुनिश्चित करें. बच्चे को 8-12 बार फीड करने की कोशिश करें क्योंकि जब बच्चा स्तनपान करता है तो ऐसे हारमोन बनते हैं जिन से अपनेआप दूध बनने लगता है. खाने में दूध, अलसी, ओट्स और गेहूं का सेवन बढ़ाएं.

सवाल-

मेरी 2 महीने की बच्ची है. मेरे घर में सभी सदस्य कोरोना पीडि़त हो गए हैं. मैं थोड़ा डरी हुई हूं कि क्या मुझे अपनी बच्ची को स्तनपान करवाना चाहिए? मेरे घर के सभी सदस्य ऐसा करने से मना कर रहे हैं?

जवाब

वर्ल्ड हैल्थ और्गेनाइजेशन द्वारा साफतौर पर यह दिशानिर्देश जारी किए हैं कि हर मां कोरोना प्रभावित होने के बावजूद अपने बच्चे को स्तनपान करवा सकती है. यहां आप तो कोरोना से प्रभावित हैं भी नहीं तो आप को बिना किसी संशय के बच्चे को स्तनपान करवाते रहना चाहिए. आप का दूध ही बच्चे के लिए सुरक्षाकवच का काम करेगा, फिर चाहे वह कोरोना हो या अन्य कोई भी संक्रमण. साथ ही आप को बच्चे के आहार में गोजातीय दूध आधारित उत्पादों जैसेकि फौर्मूला मिल्क से बचना चाहिए. आखिर में यह बेहद आवश्यक है कि आप बच्चे का नियमित चैकअप करवाती रहें. हर ऐक्टिविटी पर रखें नजर. जैसे ही आप को कोई लक्षण दिखाई दे तुरंत डाक्टर के पास जाएं.

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सवाल

मैं ने 40 वर्ष की आयु में आईवीएफ की मदद से 2 जुड़वां बच्चों को जन्म दिया है. मेरी डिलिवरी औपरेशन से हुई है. औपरेशन की वजह से मेरा शरीर बेहद कमजोर हो गया है. मैं दोनों बच्चों को ठीक से फीड नहीं करा पाती, उन्हें ज्यादातर गाय का दूध देना पड़ता है. अब बच्चे भी ऊपर का दूध पीने में ज्यादा सहज रहते हैं. अगर मैं उन्हें फीड करवाने की कोशिश भी करती हूं तो वे पीते नहीं हैं.

जवाब-

औपरेशन से डिलिवरी होने की वजह से आप यकीनन अपने बच्चों को पहले घंटे में अपना दूध नहीं पिला पाई होंगी. मां का पहला दूध बच्चे के लिए प्रतिरक्षा का काम करता है. ऐसे में आप के लिए बहुत जरूरी हो जाता है कि आप बच्चों को अपना दूध दें. अगर वे आप का दूध नहीं पीते हैं तो अपना मिल्क, पंप की मदद से स्टरलाइज किए गए कंटेनर में निकालें और बच्चों को चम्मच की मदद से पिलाएं.

गायभैंस का दूध बिलकुल नहीं दें क्योंकि इस दूध से बच्चों को ऐलर्जी और अन्य हैल्थ रिस्क हो सकते हैं. इस दूध के सेवन से बच्चे में इन्फैक्शन का खतरा बढ़ जाता है. अगर आप को लगता है कि 2 बच्चों के लिए आप का दूध पर्याप्त नहीं है तो नियोलेक्टा का 100% ह्यूमन मिल्क भी आप बच्चों को दे सकती हैं क्योंकि यह उत्पाद डोनेट किए गए ब्रैस्ट मिल्क को ही पाश्च्युराइज्ड कर के बनाया जाता है. लेकिन पहले डाक्टर से सलाह जरूर कर लें.

सवाल-

मेरा बच्चा 4 महीने का है. उसे मेरी मदर इन ला चम्मच से साधारण पानी और अन्य सभी तरह के पेयपदार्थ पिलाती हैं और कभीकभी आलू मैश कर के भी देती हैं. मैं अपने बच्चे की सेहत को ले कर चिंतित हूं. मैं ने सभी जगह पढ़ा है और डाक्टर भी यही सलाह देते हैं कि 6 महीने तक बच्चे को सिर्फ मां का दूध दें और कुछ भी ऊपर का खानपान नहीं देना चाहिए. क्या इस से मेरे बच्चे की पाचनक्रिया पर प्रभाव पड़ेगा?

जवाब-

घर में अकसर बड़ेबुजुर्ग अपने देशी नुसखे बच्चों पर आजमाते हैं. हालांकि उन की भावना अच्छी होती है लेकिन एक डाक्टर होने के नाते मैं इस की सपोर्ट नहीं करती. बच्चे की पाचनक्रिया विकसित हुए बिना उसे अनाज या अन्य खाद्यपदार्थ नहीं देना चाहिए. इतना ही नहीं अगर गरमी का मौसम हो तो भी बच्चे को बारबार और आवश्यकतानुसार स्तनपान कराने पर उसे पानी या किसी अन्य तरल पेय की आवश्यकता नहीं होती है. इसलिए दाई या अन्य लोगों के कहने पर पानी आदि अन्य पेयपदार्थ देने की कोशिश न करें.

मानव दूध ऐंटीबौडी प्रदान करता है और आसानी से पचने योग्य होता है. इस में वे सभी आवश्यक पोषक तत्त्व होते हैं, जो बच्चे के संपूर्ण विकास के लिए बेहद आवश्यक होते हैं.

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सवाल-

मैं 7 महीने के बच्चे की मां हूं. मेरा दूध इतना ज्यादा बनता है कि कई बार कहीं भी बहने लगता है, जो मेरे लिए काफी मुश्किल भरी स्थिति हो जाती है. मैं क्या करूं?

जवाब-

अगर आप का दूध बहुत अधिक मात्रा में बनता है तो इस का मतलब है आप पूरी तरह से स्वस्थ हैं. ब्रैस्ट मिल्क कुदरत की नेमत की तरह है. अगर अपने बच्चे को फीड कराने के बाद भी आप का बहुत दूध बनता है तो आप पंप की मदद उसे निकाल कर मदर मिल्क बैंक में डोनेट कर सकती हैं क्योंकि दुनिया में लाखों बच्चे ऐसे हैं जिन्हें कई कारणों से मां के दूध का पोषण नहीं मिल पाता और उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ती है. इसलिए आप अपने नजदीकी मदर मिल्क बैंक में दूध को जरूर डोनेट करें. यदि आप जाने में समर्थ नहीं हैं तो मिल्क बैंक से संपर्क करें. वे स्वयं आप के यहां से मिल्क कंटेनर तय समय पर कलैक्ट कर लेंगे.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

जानें क्या है लैक्टोज इन्टॉलरेंस

 दूध,दही आदि डेयरी प्रोडक्ट्स स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छे हैं. इसके बावजूद दुनिया में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन्हें दूध या अन्य डेयरी प्रोडक्ट सूट नहीं करते हैं, या कह सकते हैं उन्हें इनसे  एलर्जी है. मेडिकल भाषा में इसे लैक्टोज इन्टॉलरेंस कहते हैं. वे इसे पचा नहीं पाते हैं.

लैक्टोज क्या है दूध में शुगर होता है जिसे लैक्टोज कहते हैं. हालांकि लैक्टोज इन्टॉलरेंस कोई बीमारी नहीं है पर यह आपके लिए असहज और असह्य हो सकती है. हमारे शरीर में एक एंजाइम ‘ लैक्टेज ‘ होता है जो शरीर को शुगर एब्जॉर्ब करने में मदद करता है. यह एंजाइम छोटी आंत में होता है पर कुछ लोगों को यह नहीं होता है या बहुत कम होता है. जिन्हें  लो लैक्टेज होता है वे डेयरी प्रोडक्ट पचा नहीं पाते हैं यहाँ तक की दूध से बनी स्वादिष्ट देशी मिठाईयां भी.

लो लैक्टेज से क्या होता हैजिन्हें लैक्टेज एंजाइम की कमी है उनकी छोटी आंत में दूध का शुगर, लैक्टोज,  ब्रेक डाउन नहीं हो पाता है. यह नीचे कोलन में जा कर वहां बैक्टीरिया से मिलता है और फरमेंट करता है  जिसके चलते गैस, डकार, दस्त और उल्टी या मिचली की शिकायत होती है.

लैक्टोज इन्टॉलरेंस किसे हो सकता है इसमें कोई अपवाद नहीं है, यह शिकायत दुनिया भर में करोड़ों लोगों को है, खास कर वयस्कों को. इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि लगभग 40 % लोगों में  2 से 5 साल के बाद लैक्टेज एंजाइम बनना बंद हो जाता है या बहुत कम हो जाता है.

यह अनुवांशिक भी हो सकता है या कुछ अन्य बिमारियों के चलते भी.

सिम्पटम्स दस्त ( डायरिया ), मिचली, उल्टी, पेट में दर्द या क्रैम्प ( ऐंठन ), गैस और डकार.

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डायग्नोसिसआप स्वयं कुछ सप्ताह के लिए डेयरी प्रोडक्ट खाना बंद कर देखें. आपके सिम्प्टम खत्म हो गए हों तब पुनः डेयरी प्रोडक्ट्स खाना शुरू कर इसकी प्रतिक्रिया देखें . आवश्यकतानुसार डॉक्टर की सलाह लें.

2. आपके सिम्प्टम के आधार पर डॉक्टर आपको भोजन में डेयरी प्रोडक्ट  कुछ दिनों के लिए बंद करने की सलाह दे कर उसका परिणाम देखना चाह सकते हैं. इसके अतिरिक्त निम्न टेस्ट की सलाह दे सकते हैं –

हाइड्रोजन ब्रेथ टेस्ट आपको एक पेय पीने को कहा जायेगा जिसमें लैक्टोज हाई लेवल में होगा. कुछ कुछ समय के अंतराल पर आपकी साँस में हाइड्रोजन की मात्रा नापी जाएगी. अगर आके द्वारा छोड़ी गयी साँस में हाइड्रोजन की मात्रा अधिक हुई तो इसका मतलब आपको लैक्टोज इन्टॉलरेंस है.

लैक्टोज टॉलरेंस टेस्ट हाई लेवल लैक्टोज ड्रिंक पीने के दो घंटे बाद आपका ब्लड टेस्ट किया जायेगा.अगर  ब्लड में ग्लूकोज की मात्रा में वृद्धि नहीं हुई तो इसका मतलब  आप लैक्टोज नहीं पचा प् रहे हैं और आपको  लैक्टोज इन्टॉलरेंस है.

उपचार अगर लैक्टोज इन्टॉलरेंस कुछ निहित कारणों से हो तब उपचार के बाद ठीक हो सकता है हालांकि इसमें महीनों लग सकते हैं. अन्यथा  इसके लिए कुछ उपाय हैं –

मिल्क और अन्य डेयरी प्रोडक्ट खाना कम कर इन्टॉलरेंस रेगुलेट किया जा सकता है. लैक्टेज एंजाइम का पाउडर दूध में मिला कर ले सकते हैं.

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अक्सर ऑटिस्म से ग्रस्त बच्चों को डॉक्टर ग्लूटेन फ्री ( बिना गेहूँ वाला ) और केसिन फ्री (  डेयरी फ्री, Casein डेयरी प्रोडक्ट में मौजूद प्रोटीन को कहते हैं ) खाना खाने की सलाह देते हैं. ग्लूटेन और केसिन पेट में इन्फ्लेमेशन बढ़ाते हैं जिसका असर ब्रेन पर भी पड़ता है और ऑटिज्म  के सिंप्टम और खराब हो सकते हैं.

आजकल अन्य लैक्टोज फ्री मिल्क भी उपलब्ध हैं सोया मिल्क, राइस मिल्क, आलमंड मिल्क, कोकोनट मिल्क, कैश्यु ( काजू ) मिल्क, हेम्प सीड मिल्क, ओट मिल्क, गोट मिल्क, पी नट मिल्क और हेज़ल नट मिल्क. इनमें कुछ के दूध के अलावा दही, पनीर और मिठाईयां भी बन सकती हैं. डेयरी मिल्क का निकटतम   वैकल्पिक मिल्क सोया मिल्क है, यह अन्य विकल्प की तुलना में सस्ता भी होता है.

Winter Special: सर्दियों में पानी पीना न करें कम

हमारा शरीर जिन तत्वों से बना है, उसमें जल मुख्य घटक है. अगर शरीर में जल की मात्रा कम हो जाए, तो जीवन खतरे में पड़ जाता है.  इससे यह बात बिल्‍कुल साफ है कि पानी पीना हमारे लिए कितना जरूरी है.

गर्मियों में प्यास अधिक लगती है तो लोग पानी भी खूब पीते हैं मगर सर्दियों में यह मात्रा कम हो जाती है. इसकी एक वजह यह है कि हमें इन दिनों प्यास नहीं लगती, जिसके कारण लोग पर्याप्‍त पानी नही पीते हैं. इस वजह से कई गंभीर समस्‍याओं का सामना करना पड़ता है.

शरीर में पानी की कमी डिहाइड्रेशन, हाई ब्लड प्रेशर और इंफेक्शन जैसी बीमारियों को जन्म देती है. पानी की कमी से पाचन क्रिया भी प्रभावित होती है जिस कारण सिरदर्द और थकान की शिकायत होती है. कई लोग बुखार में मरीज को पानी नहीं देते. जबकि बुखार और डायरिया में शरीर को पानी की ज्यादा जरूरत पड़ती है.  डायरिया में शरीर में पानी की कमी के कारण मरीज की हालत खराब हो सकती है. इसलिए थोड़ी-थोड़ी देर में उसे पानी देते रहना चाहिए. बुखार में शरीर का तापमान सही रखने के लिए पानी की जरूरत ज्यादा होती है.

महिलाओं के लिए है जरूरी

महिलाओं को अधिक मात्रा में पानी पीना चाहिए.  स्त्रियों में यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन की समस्या होती है.  इसी वजह उनके शरीर को पानी की अधिक जरूरत होती है. जो महिलाएं प्रेगनेंट हैं या स्तनपान कराती हैं उनके शरीर को पानी की ज्यादा जरूरत होती है. ऐसे में उन्हें ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिए. कोई भी इंसान खाने के बिना कई दिनों तक रह सकता हैं, पर शरीर को पानी रोज चाहिए. शरीर के मेटाबोलिज्म, डाइजेशन और एबजॉरव्शन के लिए पानी की बेहत जरूरत होती हैं. शरीर के यूरिया, सोडियम और पोटेशियम जैसे विषैले पदार्थ को बाहर करने और तापमान सही रखने के लिए पानी की जरूरत पड़ती है.

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खूबसूरती के लिए 

त्वचा की खूबसूरती को बरकरार रखने के लिए पानी ज्यादा से ज्यादा मात्रा में पिएं.  पानी की कमी त्वचा को रूखा बनाती है.  रूखी त्वचा पर झुर्रियां भी जल्द पड़ती हैं.  इसलिए त्वचा में नमी के लिए पानी पीएं ताकि त्वचा चमकदार और जवां बनी रहे.  शरीर में पानी की कमी मोटापा भी बढ़ाता है.  पर्याप्त पानी पीने से वजन भी नियंत्रित रहता है.  आप चाहें तो डाइट से भी शरीर में पानी की कमी को पूरा कर सकते हैं.  खाने में खीरा, तरबूज, खरबूज और दूसरे फल शामिल कर पानी की पूर्ति कर सकते हैं.  सर्दियों के मौसम में कई तरह की हरी सब्जियां मिलती हैं जिससे शरीर को पानी मिलता है.

इस वजह से भी पीएं पानी

पानी पीना इस इस बात पर भी निर्भर करता हैं कि आपकी दिनचर्या कैसी है.  अगर आप ज्यादा शारीरिक मेहनत करते हैं तो आपके शरीर को ज्यादा पानी की जरूरत है.  जो लोग एक्‍सरसाइज करते हैं उन्‍हें भी भरपूर मात्रा में पानी पीना चाहिए.  पसीना, यूरिन अैर मेटाबोलिज्म फंक्शन के कारण शरीर में पानी की कमी होती है. इसलिए पानी ज्यादा से ज्यादा पीना जरूरी है.

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प्‍यूबिक हेयर सफेद होने का मतलब जानती हैं आप?

सिर पर एक सफेद बाल दिखते ही लोग उछल पड़ते हैं और उसे काला करने के उपाय करने लगते हैं. लेकिन प्यूबिक हेयर (जननांग के बाल) सफेद होने लगें तब आपका रिएक्शन कैसा होगा? ये सोचने वाली बात ही नहीं है बल्कि उसपर विचार करने वाली बात भी है.

तीस वर्षीय फूलकुमारी ने अचानक एक दिन नोटिस किया की उसके जननांग के बाल सफेद और पतले होने लगे हैं. फूलकुमारी बहुत चिंतित हो गई और सीधे अपनी डॉक्टर से मिली. तब उसकी चिकित्सक ने उसे शांत रहने की हिदायत दी और कहा कि ये सामान्य लक्षण हैं और इसपर चिंता करने की बात नहीं है. लेकिन फूलकुमारी को विश्‍वास नहीं हुआ. तब उसकी डॉक्टर ने उसको कहा कि जैसे अनियमित खान-पान और तनाव की वजह से सिर के बाल सफेद और पतले होने लगते हैं वैसे ही प्यूबिक हेयर भी सफेद और पतले होने लगते हैं. खान-पान को नियमित करके इसपर नियंत्रण पाया जा सकता है.

बिल्कुल सामान्य है

इससे पहले की आप इसे उखाड़ने या निकलने जाएं, हम आपको पहले ही बता देते हैं ति ये बहुत ही सामान्य स्थिति है. जैसे उम्र के अनुसार सिर के बाल सफेद और पतले होने लगते हैं वैसे ही प्यूबिक हेयर भी उम्र के अनुसार पतले और सफेद होने लगते हैं.”

अनियमित खान-पान

प्यूबिक हेयर कई बार अनियमित खान-पान और जीन्स की गड़बडि़यों या अनुवांशिक तौर पर भी सफेद और पतले होने लगते हैं.

दो लोगों के बाल सफेद होने में अंतर

प्यूबिक हेयर का सफेद होना सामान्य है लेकिन जरूरी नहीं कि जब आपके हों तो आपके दोस्त के भी हों.

आपके और आपके दोस्त के प्यूबिक हेयर के सफेद होने में काफी अंतर होता है.

क्योंकि आपके प्यूबिक बाल अनुवांशिक कारण से भी सफेद हो रहे होंगे.

या फिर जरूरी नहीं कि आपके अनियमित खान-पान के तरह की समस्या आपके दोस्त को भी हो. ऐसे में चिंतित होने की जरूरत नहीं है.

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सामान्य है ये स्थिति 

डर्मेटॉलॉजी की ब्रिटिश जर्नल में छपी एक शोध के अनुसार जनसंख्या के 23 प्रतिशत हिस्से में कम से कम 50 प्रतिशत लोग अपना 50वां जन्मदिन मनाते वक्त तक सफेद प्यूबिक बालों से सामना कर चुके होते हैं.

असमय सफेद होने के कारण 

प्यूबिक बालों के असमय सफेद होने के कई कारण हो सकते हैं. कई बार विटामिनों की कमी से भी ऐसा होता है. इसके पीछे विटामिन B12 और थॉयराइड में ग्लैंड डिसऑर्डर कारण हो सकते हैं. या फिर कई बार विटलीगो जैसी बीमारी के कारण भी वहां के बाल सफेद हो जाते हैं. ऐसा वहां पर व्हाइट पैचेस पड़ने के कारण होता है. कई शोध में इन कारणों को असमय प्यूबिक बालों के सफेद होने के पीछे का कारण माना गया है.

कैसे रोका जाए

तो इसे कैसे रोका जाए? बालों का सफेद होना जेनेटिकली है जिसे रोकना मुश्किल होता है. लेकिन इसे रोकने के लिए सबसे पहले अपने स्मोकिंग की आदत पर रोक लगाएं. एक स्टडी के अनुसार स्मोकर्स अपनी स्मोकिंग की आदतों में रोक लगाकर 2.5 गुना बालों के सफेद होने पर रोक लगा सकते हैं. साथ ही खाने में विटामिन B12 युक्त भोजन अधिक से अधिक शामिल करें.

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